Gemstone रत्न किस तरह चारण करें
मित्रों ग्रहों को मजबूत करने के लिए रत्नों का प्रयोग किया जाता है। कुंडली में कमजोर ग्रहों के शुभ प्रभाव को पाने के लिए भी रत्न धारण किए जाते हैं.liकुंडली में कमजोर ग्रहों के शुभ प्रभाव को पाने के लिए भी रत्न धारण किए जाते हैं. आइए जानते हैं कि वैदिक ज्योतिष में रत्नों को किस तरह से धारण करना उत्तम माना गया है।
रत्न नौ प्रकार के होते हैं
ग्रहों के आधार पर रत्नों को नौ भागों में बांटा गया है। हर एक ग्रह को मजबूती प्रदान करने के लिए एक रत्न निर्धारित किया गया है। सूर्य के लिए माणिक, चंद्रमा के लिए मोती, बुध के लिए पन्ना, मंगल के लिए मूंगा, गुरु के लिए पुखराज, शुक्र के लिए हीरा, शनि के लिए नीलम, राहु के लिए गोमेद और केतु के लिए लहसुनिया पहना जाताहै मित्रों एक रतन कई किसानों का कई प्रजातियों का और उसमें अलग-अलग बंद होते हैं तब तब होते हैं यह सब एक एस्ट्रोलॉजर जातक की कुंडली को देख कर ही निर्धारित करता है कि उसको कौन सा नीलम या कौन सा पुखराज बनाया जाए गलत नीलम या गलत पुखराज पहनाने से भी परेशान आ सकते परेशानी आ सकती है। इसलिए एक अच्छा रत्न expert ही बता सकता है
रत्न राशि अनुसार नहीं बल्कि कुंडली में ग्रहों की स्थिति के अनुसार पहनने चाहिए। कौन-सा रत्न कब पहना जाएं इसके लिए कुंडली का सूक्ष्म विश्लेषण करना जरूरी होता है। लग्न कुंडली के अनुसार कारक ग्रहों के रत्न ही पहनने चाहिए। अगर कुंडली में कोई भी कारक ग्रह शुभ ग्रह किसी भी तरह पीड़ित हो रहा हो अस्त हो रहा तो उसको उस ग्रह को मजबूत करने के लिए रत्न धारण करना चाहिए। जो ग्रह कुडली में उपयोगी है उसकी ताकत को बढ़ाया जाए
सामान्यत: लग्न कुंडली के अनुसार कारकर ग्रहों के रत्न पहने जा सकते हैं जो ग्रह शुभ भावों के स्वामी होकर पाप प्रभाव में हो, अस्त हो या शत्रु क्षेत्री हो उन्हें प्रबल बनाने के लिए भी उनके रत्न पहनना प्रभाव देता है।
किसी भी व्यक्ति के जीवन में रंग और तरंग का सर्वाधिक महत्व होता है. रत्न भी इन्ही रंगों और तरंगों के माध्यम से प्रभाव डालते हैं. व्यक्ति के शरीर के सात चक्र इन्ही रंगों और तरंगों को ग्रहण करते हैं. रत्नों के प्रयोग से व्यक्ति की मानसिक स्थिति में तुरंत बदलाव हो जाता है. रत्नों का असर शरीर के साथ ही मन और कार्यों पर भी पड़ता है. रत्नों का लाभ तो थोड़ी देर में होता है लेकिन गलत रत्न पहनने का नुकसान जल्दी होने लगता है.मित्रो इन लेखों में मैंने वर्तमान में रत्न को लेकर चल रहे कई सिद्धांतों और उनके कारण पैदा हो रहे व्याघात को समझाने का प्रयास किया है। निर्बल और उच्च ग्रह का उपचार भी ऐसा ही एक और व्याघात है। इसे एक उदाहरण कुण्डली से समझने का प्रयास करते हैं। मान लीजिए एक तुला लग्न की कुंडली है। उसमें शुक्र लग्न का अधिपति हुआ। एक केन्द्र और एक त्रिकोण का अधिपति होने के कारण शनि इस कुंडली में कारक ग्रह है। नवम भाव का अधिपति होने के कारण बुध का उपचार भी किया जा सकता है।
अब कृष्णामूर्ति की माने तो इस कुंडली के शुक्र, शनि और बुध ग्रह का ही इलाज किया जा सकता है। अब इस कुंडली में अगर गुरू, सूर्य या मंगल खराब स्थिति में है तो उनके इलाज की जरूरत ही नहीं है। एक व्यक्ति राजमहल में रह रहा हो तो उसे ज्ञान, आधिपत्य, और ताकत स्वत: मिलती है, और अगर न भी मिले तो उसके लिए प्रयास करने की जरूरत भी नहीं है।
ऐसा जातक अगर ज्योतिषी से यह मांग करे कि उसे अपने आधिपत्य, ताकत और ज्ञान में बढ़ोतरी की जरूरत है तो मान लीजिए कि वह केवल किसी लालसा की वजह से कुछ समय के लिए भटककर यह सवाल कर रहा है। वास्तव में उसे जो चाहिए वह ऐश्वर्य, विरासत, कंफर्ट, कम्युनिकेशन स्किल और अपनी चाही गई चीजों के लिए ईज ऑफ एक्सस की जरूरत है। यानि वह अपनी जरूरतों के लिए लम्बी लड़ाई लड़ने के लिए भी तैयार नहीं है।
अगर वह जातक किसी साधन या व्यवस्था को पाने का प्रयास कर रहा है या रही है तो यह कुछ समय की बात हो सकती है दीर्घकालीन जरूरत नहीं। ऐसे में तुला लग्न में बैठे नीच के सूर्य को ताकतवर बनाने के लिए माणिक्य भी पहना दिया तो फायदा करने के बजाय नुकसान अधिक करेगा।
यही बात अन्य लग्नों के लिए भी लागू होती है। तो जातक का इलाज करते समय यह ध्यान रखने वाली बात है कि वास्तव में जातक का मूल स्वभाव क्या है। उसे अपनी मूल स्थिति में लौटाने से अधिक सुविधाजनक कुछ भी नहीं है। भाग्य को धोखा नहीं दिया जा सकता, लेकिन मानसिक स्थिति में सुधार कर खराब समय की पीड़ा को दूर किया जा सकता है। ऐसे में किसी एक जातक की लालसा का पोषण करने के बजाय उसे सही रास्ते की ओर भेजना मेरी समझ में सबसे सही उपाय है। ऐसे में मेष से लेकर मीन राशि और लग्न वाले जातकों के लिए अलग-अलग उपचार होंगे। आप गौर करेंगे कि कुछ ग्रहों को कारक तो कुछ को अकारक भी बताया गया है।
इसका अर्थ यह नहीं है कि किसी कुंडली में कारक ग्रहों का प्रभाव होता है और अकारक का नहीं होता। प्रभाव तो सभी ग्रहों का होगा, लेकिन मूल स्वभाव कारक ग्रह के अनुसार ही होगा। ऐसे में उपचार के समय भी कारक ग्रहों का ही ध्यान रखा जाए।
रही बात उच्च और नीच की… यह तो रश्मियों का प्रभाव है। नीच ग्रह की कम रश्मियां जातक तक पहुंचती है और उच्च ग्रह की अधिक रश्मियां। ऐसे में अगर कारक ग्रह अच्छी स्थिति यानि अच्छे भाव में बैठकर कम रश्मियां दे रहा है तो उसके लिए उपचार करना चाहिए। और अकारक ग्रह खराब स्थिति में या नीच का भी है तो उसे छेड़ने की जरूरत नहीं है। मित्रों एक राजा होकर अगर वह किसी खड्डे में गिर जाए तो उसको से आसन पर बैठा देने में ही समझदारी होती है अगर आप भी अपनी कुंडली दिखा कर रतन धारण करना चाहते हैं या अपने ग्रहों का चार करवाना चाहते हैं तो आप संपर्क कर सकते हैं