गुरुवार, 31 मई 2018

व्याख्या ज्योतिष की

विज्ञान एवं ज्ञान-प्रणाली के रूप में ज्योतिषशास्त्र सर्वथा अनूठा हैज्योतिषशास्त्र आधुनिक विज्ञान की तरह ही सर्वव्यापक अध्यात्मशास्त्र का एक भाग है । इसका यह कारण है

कि आधुनिक विज्ञान के समान अवलोकन, अनुमान और निष्कर्ष के आधार पर ज्योतिषशास्त्र की भी पुष्टि एवं पुनः पुष्टि की गर्इ है । तथापि ज्योतिषशास्त्र में अंतर्ज्ञान का प्रयोग तभी संभव है यदि ज्योतिषी उच्च आध्यात्मिक स्तर का हो ।ज्योतिषशास्त्र की जडें प्राचीन भारतीय वैदिक शास्त्रों में हैं । प्राचीन भारत के ऋषियों को हजारों वर्ष पहले ही हमारे ब्रह्मांड के ऐसे अनेक तथ्यों का पता था जो आधुनिक विज्ञान को निकट अतीत में ही ज्ञात हुए हैं । इन तथ्यों में से कुछ हैं:इस पर हम वाद में वात करेंगेज्योतिष आकाशीय ग्रहों की ताकत को मानवीय प्रकृति के अन्दर होने की जानकारी देता है,यह एक भविष्य कथन नही माना जाता है,ज्योतिष सिर्फ़ बताती है कि मनुष्य अपने में किस प्रकृति का है,वह कहां से आया है,और उसे कहां जाना है,ज्योतिष चरित्र को बताती है,और चरित्र ही जीवन का मुख्य क्षेत्र होता है,अगर मनुष्य अपने चरित्र को बदल देता है,तो वह अपने आगे जाने वाले क्षेत्र को बदल कर नया जीवन चालू करता है,ज्योतिष का मुख्य उद्देश्य स्वास्थ्य के बारे में,कमजोरी के बारे में,चरित्र के बारे में खोजना होता है,साथ ही जो भी मनुष्य के लिये अहितकर है,उसके लिये उससे बचने के लिये सुझाव भी ज्योतिष के द्वारा दिया जाता है,ज्योतिष से बच्चों के प्रति उनकी जन्म कुन्डली से देख कर अभिभावकों को सचेत किया जाता है,कि वे किस तरह से जीवन में प्रगति की तरफ़ जा सकते है,किस तरह के लोगों के बीच उनका समानीकरण मिल सकता है.

हज्योतिष मात्र घटनाओं को ही बखान करती है,एक मनुष्य अपने सितारों पर शासन अपने द्वारा कर सकता है,शर्त यह है कि उसे पता हो कि जो सामने होने जा रहा है और उस से बचने का या उसे प्राप्त करने का रास्ता किस दिशा से या किस जानकारी से मिल सकता है,अगर मनुष्य अपने जीवन के ज्वार-भाटे के साथ बहता है,तो ज्योतिष की द्वारा जीवन प्रति जन्म कुन्डली बताती है,कि आगे क्या होने वाला है,एक चीज और है कि जन्म पत्री किसी की इच्छाओं को बखान सही तरीके से नही कर सकती है केवल अंदाज के द्वारा उस इच्छा को विभिन्न रास्तों से समझाया जा सकता है,एक चतुर आदमी अपने सितारों पर राज्य करता है,और के बेबकूफ़ आदमी  सितारों के द्वारा शासित किया जाता है,ज्योतिष केवल सावधान करती है,अगर उसे सही तरीके से जाना जाय,ज्योतिष एक नक्शे की तरह से है,और जीवन के अलग अलग रास्तों पर जाने का संकेत देती है,अगर उन संकेतों को समझा जाये,जो उन रास्तों के चिन्हों को जानता है,वह जन्म कुन्डली को उसी तरह से पढ सकता है,जिस प्रकार से एक नक्शा जानने वाला निशान देख कर कह देता है,कि आगे रास्ता बन्द है,और जबरदस्ती जाने पर एक्सीडेन्ट हो सकता है.

हमेशा याद रखने वाली बात है,कि अच्छा और बुरा इन दो प्रकार के समयों का बखान करना भाग्य का बखान करना नही होता है,वह वास्तव में हमने अपने खुद के द्वारा क्या पैदा किया है उसकी जानकारी देना होता है,कुन्डली बताती है,कि हमने अपने पिछले समय में क्या प्राप्त किया है,और क्या नही,और जो प्राप्त किया है,वह आगे की जिन्दगी में हमारे साथ क्या प्रभाव देगा,और अगर किसी प्रकार से कुछ गलत किया है,और उस गलती से आगे की जिन्दगी में कुछ बुरा होने वाला है,तो उसे किस तरह से बदल कर हम अपने लिये अच्छा प्रभाव पैदा कर सकते है,ग्रह या सितारे प्रभाव को देते है,उन्हे रोकने वाला कोई नही है,रोकना केवल अपने प्रयासों से सम्भव है,कहावत है कि मनुष्य प्रत्येक प्रकार की शक्ति को श्रंखला से प्राप्त कर सकता है,अगर वह अपने को कंट्रोल करने का उपाय जानता है.

जीवन और प्रकृति का बखान मानव के लिये एक अटल सिद्धान्त के रूप में कार्य करता है,ग्रहों की आपसी युति जीवन के प्रति जो मंजिल बताती है,वह जन्म कुन्डली के द्वारा ही मालुम होती है,जन्म कुन्डली में जिस समय जन्म हुआ,उस समय की ग्रह स्थिति उनका स्थान और उनके द्वारा आपसी सम्बन्धों का विवेचन जो कहा जाता है,वह एक सामयिक घटना के अलावा कुछ नही माना जा सकता है,जन्म एक अहम के माफ़िक होता है,"मैं एक व्यक्ति हूँ",और मेरा जन्म इस तारीख को हुआ था,इसके अलावा और कुछ नही कहा जा सकता है,इस अहम का अन्त ही मौत के नाम से जानी जाती है,जन्म कुडली हर व्यक्ति के मंजिल पर पहुंचने की एक घडी मानी जाती है,जो मंजिल पर पहुंचने का समय बताती है.इस घडी के द्वारा यह भी पता चलता है,कि कब किस काम के द्वारा अच्छा किया गया है,और किस काम के द्वारा बुरा किया गया है,जो किया गया है,उसका मिलने वाला फ़ल कब और कैसे मिलेगा,प्रति ली जाने वाली सांस के द्वारा ग्रहों का असर शरीर में आता है,और प्रति सांस के द्वारा किये जाने वाला कार्य और सोचा जाने वाला विचार ग्रहों के द्वारा जीवन के रजिस्टर मे लिखा जाता है,और जब किये गये या सोचे गये कामों का फ़ल मिलने का समय आता है,अथवा जो बोया गया है,उसे काटने का समय आता है,तब व्यक्ति के पास सुख या दुख मिलना चालू हो जाता है,लेकिन प्रकृति का नियम कभी बदला नही जा सकता है,भगवान की चक्की में पिसता जरूर देर से है,लेकिन पीसा महीन जाता है.

इस ज्योतिष के तीन सिद्धान्त है,जो इस जादुई विद्या का प्रतिपादन करते है,पहला भाव के रूप में जाना जाता है,जैसे पहला भाव,दूसरा भाव आदि,दूसरा सिद्धान्त राशियां है,जैसे मेष राशि,वृष राशि आदि और तीसरा सिद्धान्त ग्रह बताये गये है,हर भाव जिन्दगी का एक डिपार्टमेंट है,राशि ब्रहमाण्ड का डिवीजन है,जो भाव के अन्दर स्थित होकर व्यक्ति का प्राथमिक उत्तेजना का बखान करता है,और व्यक्ति किस प्रकार से अपने जीवन के अन्दर अपना असर देगा,यह बताया जाता है,इसके अलावा ग्रह भगवान के द्वारा स्थापित किये गये दूत है,जो हर भाव और राशि में घूम घूम कर आत्मा की उन्नति और अवनति के लिये अपना कार्य करते रहते है.  

ग्रह अपना भाव उसी तरह से प्रकट करते हैं,जिस प्रकार से एक एक्टर अपनी कला को स्टेज पर दिखाता है,और जिस राशि में ग्रह है,वह बताता है,कि यह एक्टर किस प्रकार का खेल दिखा सकता है,और भाव के द्वारा पता चलता है कि जो खेला जाता है,उस खेल की सेटिंग किस तरह से की गयी है,कितने समय का और कब खेला जायेगा,और किस प्रकार से उस खिलाडी से अपना सम्बन्ध बना कर रखेगा,हर ग्रह अपनी एक भिन्न शक्ति को रखता है,वह शक्ति नकारात्मक भी हो सकती है और सकारात्मक भी,ग्रह पूरी तरह से सकारात्मक है,और नकारात्मक भाव में या नकारात्मक राशि में,या नकारात्मक ग्रह द्वारा समर्थित है,तो वह भी जथा संगति तथा गुण को देगा,यह जरूरी बात है.कुन्डली केवल टेन्डेन्सी  बताती है,यह बताने वाले के ऊपर निर्भर करता है,कि वह उस बखान को किस प्रकार से करेगा,कुन्डली को बखान करने के लिये ज्योतिषी में भी इच्छा शक्ति का होना जरूरी है.

सोमवार, 28 मई 2018

ज्योतिष का ज्ञान

वैदिक काल से ज्योतिष का प्रचलन रहा है। ज्योतिष वेद का छठां अंग भी कहा जाता है। समय की पहिचान बिना ज्योतिष के ज्ञान के नही हो सकती है। 

इसी प्रकार से आसमानी गह भी ज्योतिष से ही कालान्तर के लगातार ज्ञान को प्राप्त करने के कारण ही पहिचाने जाते है। जब तक ज्योतिष का ज्ञान नही था तब तक पृथ्वी स्थिर थी और सूर्य चन्द्रमा और तारे चला करते थे। जैसे ही ज्योतिष का ज्ञान होने लगा तो पता लगा कि सूर्य तो अपनी ही कक्षा मे स्थापित है बाकी के ग्रह चल रहे है। लेकिन ऋषियों और मनीषियों को बहुत पहले से ज्योतिष का ज्ञान था उन्हे प्रत्येक ग्रह के बारे मे जानकारी थी,यहां तक कि मंगल ग्रह के बारे मे भी उनका ज्ञान प्रचुर मात्रा मे था और उन्होने मंगल ग्रह की पूरी गाथा पहले ही लिख दी थी। पुराने जमाने से सुनता आया हूँ- "लाल देह लाली लसे और धरि लाल लंगूर,बज्र देह दानव दलन जय जय कपि शूर",इस दोहे को लिखा तो तुलसीदास जी है लेकिन उन्हे इस बारे मे कैसे पता लगा कि मंगल का रंग लाल है और जब मंगल को खुली आंख से देखा जाये तो लाल रंग का ही दिखाई देता है सूखा ग्रह है इसलिये बज्र की तरह से कठोर है,साथ ही ध्वजा पर लाल रंग का होना मंगल का उपस्थिति का कारण भी बनाता है,मंगल के देवता हनुमान जी के विषय मे उन्होने लिखा था। इस बात का सटीक पता तब और चला जब अमेरिका के नासा स्पेस से वाइकिंग नामका उपग्रह यान मंगल पर भेजा गया और उसने जब सन दो हजार में मंगल के ऊपर की कुछ तस्वीरे भेजी तो उसके अन्दर एक फ़ेस आफ़ मार्स के नाम से भी तस्वीर आयी। यह तस्वीर बिलकुल हनुमान जी की तस्वीर की तरह थी,इस तस्वीर को उन्होने सन दो हजार दो तक नही प्रसारित की,इसका भी कारण था,वे अपने को बहुत ही उन्नत और वैज्ञानिक भाषा मे दक्ष मानते थे और जब भी उनका कोई टूरिस्ट भारत आता था और भारत मे जब हनुमानजी के मंदिर को देखता तो वह मजाक करता था और "मंकी टेम्पिल" कह के चला जाता था। इस फ़ेस आफ़ मार्स ने अमेरिका के वैज्ञानिक धारणा को चौपट कर दिया और उन्हे यह पता लग गया कि भारत मे तो आदि काल से ही मंगल को हनुमान जी के रूप मे माना जा रहा है।विज्ञान जहाँ समाप्त हो जाता है वहाँ से ज्योतिष विज्ञान शुरु होता है !

जिस प्रकार से विज्ञान के अन्दर जो भी धारणा पैदा की जाती है उसके अनुसार रसायन शास्त्र भौतिक शास्त्र चिकित्सा शास्त्र आदि बनाये गये है। लेकिन जितनेी तत्व विज्ञान की कसौटी पर खरे उतरते है उनके अन्दर केवल चार तत्व की मीमांसा ही की जा सकती है। बाकी का एक तत्व जो गुरु के रूप मे है वह विज्ञान न तो कभी प्रकट कर पाया है और न ही कभी अपनी धारणा से प्रकट कर सकता है। शरीर विज्ञान को ही ले लीजिये,सिर से लेकर पैर तक सभी अंगो का विश्लेषण कर सकता है,हड्डी से लेकर मांस मज्जा खून वसा धडकन की नाप आदि सभी को प्रकट कर सकता है कृत्रिम अंग बनाकर एक बार शरीर के अंग को संचालित कर सकता है। फ़ाइवर ब्लड को बनाकर कुछ समय के लिये खून की मात्रा को बढा सकता है लेकिन जो सबसे मुख्य बात है वह है प्राण वायु यानी गुरु की वह पैदा नही कर सकता है जब प्राण वायु को शरीर से जाना होता है तो वह चली जाती है और शरीर मृत होकर पडा रह जाता है उसके बाद शरीर वैज्ञानिक केवल पोस्ट्मार्टम रिपोर्ट को ही पेश कर सकता है कि ह्रदय रुक गया मस्तिष्क ने काम करना बन्द कर दिया अमुक चीज की कमी रह गयी और अमुक कारण नही बन पाया। नही समझ पाये आज तक कि गुरु क्या है लेकिन ज्योतिष शास्त्र मे सर्वप्रथम गुरु का विवेचन समझना पडता है गुरु जिस स्थान से शुरु होता है अपने अन्तिम समय तक केवल काल की अवधि तक ही सीमित रहता है उसे कोई पकड नही पाया अपने अनुसार पैदा नही कर पाया और न ही विज्ञान के अन्दर इतनी दम है कि वह भौतिक रूप से गुरु को प्रदर्शित कर सके। जिस दिन यह गुरु भौतिकता मे समझ मे आने लगेगा उस दिन विज्ञान की परिभाषा पराविज्ञान के रूप मे जानी जायेगी

गुरुवार, 24 मई 2018

नशा और राहु

नशे की लत आज समाज को अंदर ही अंदर खोखला कर रही हैं। नशे रूपी दानव दिन प्रतिदिन विकराल होता जा रहा हैं। आज छोटे छोटे बच्चों से लेकर बडे बुजुर्ग तक नशे के शिकार बन चुके हैं। समाज में व्यापत अनेक अपराध नशे के कारण ही पनप रहे हैं। नशे का सबसे भयंकर रूप तब देखने को मिलता हैं जब किसी को इसकी लत पड जाती हैं। वह लाख प्रयत्न करने के बाद भी इस समस्या से बहार नही आ पाता।ज्योतिष शास्त्र कि सहायता द्वारा यह जाना जा सकता हैं, कि कौन व्यक्ति नशा कर सकता हैं, कौन नही और साथ  ही यह भी जाना जा सकता हैं कि व्यक्ति किस प्रकार का नशा करेगा। ग्रहों की जिन परिस्थितियों के कारण व्यक्ति नशे का अभ्यस्त  होता है सभी जानते हैं कि नशा खराब है..??? इससे शरीर, मन, धन, परिवार सब कुछ दाँव पर लग जाता है, मगर फिर भी लोग विशेषकर युवा बुरी तरह से इसकी गिरफ्‍त में आ जाते हैं। आज हर दूसरा युवा किसी न किसी नशे को अपनाता है। प्रारंभ में शौक में किया गया नशा बाद में लत बनता जाता है और सारा करियर तक चौपट कर सकता है।यह सच है कि नशे का आदी बनने में वातावरण का भी हाथ होता है,ज्योतिष में राहु को नशे के रूप में माना जाता है। जब राहु की छाया चन्द्रमा पर पडती है तो मानसिक चिन्ता का रूप शुरु हो जाता है,मंगल के साथ राहु का रूप होने से खून के अन्दर मंगल की स्थिति के अनुसार कम या अधिक दबाब अधिक चिन्ताओं के कारण बन जाता है। बुध के साथ राहु की युति होने के कारण व्यक्ति का दिमाग असीम गणनाओं की तरफ़ चला जाता है,गुरु के साथ राहु की स्थिति होने के कारण हवा के अन्दर ही विषाक्त कणों का जाना शुरु हो जाता है और जातक के अन्दर कई तरह की वायु वाली बीमारियां होने से बेकार की चिन्तायें ही अपना घर बना लेती है,शुक्र के साथ राहु का आना खतरनाक माना जाता है,इस युति के कारण जातक का दिमाग किसी भी प्रकार से किसी भी उम्र में अनैतिक सम्बन्धों की तरफ़ चला जाता है,अक्सर इसी प्रकार के किस्से प्रेम करने और प्यार करने तथा प्यार भरी कहानी बनाने के लिये माना जाता है। अक्सर कोई सही ग्रह अगर राहु शुक्र की तरफ़ अपना इशारा कर लेता है तो यह नशा बडी बडी इमारते बनाने और चमक दमक की तरफ़ मन को ले जाने के लिये भी माना जाता है। स्त्री की कुंडली में अगर राहु मंगल का योग है तो वह किसी न किसी प्रकार से अपने को प्रेम सम्बन्धों की तरफ़ खींच कर ले ही जाता है वह सम्बन्ध जरूरी नही है कि गलत ही हो,अक्सर इस युति से बने सम्बन्ध कभी कभी खतरनाक भी हो जाते है और उन सम्बन्धो के कारण कई गृहस्थियां टूटी भी है और कितने ही लोगों ने अपने जीवन को इस युति के कारण बरबाद भी किया है,राजपूत कुल के लिये अक्सर मंगल राहु की युति को पूर्ण रूप से देखा जाता है,खून का नशा मानकर और किसी भी समस्या में जुझारू वृत्ति होने के कारण मंगल राहु की युति को समझना बहुत ही टेढी खीर मानी जाती है,कब किसके प्रति दुश्मनी बना कर किस प्रकार से अपने दाव का बदला लिया जाये यह समझना मुश्किल हो जाता है। अक्सर इस युति के कारण लोगों के द्वारा गांव शहर और देश तक उजडते देखे गये है।खून का नशा जब भी किसी पर हावी होता है तो वह अपनी चाल को दूसरे के प्रति बदले की नीयत से सामने लाने की कोशिश करता है,राजपूती खून के अन्दर यह नशा होने के कारण ही इस जाति को जुझारू जाति कहा जाता है,अक्सर शराब और तामसी कारणों को खून के अन्दर लगातार मिक्स करते रहने से भी खून के अन्दर जुझारू कारण पैदा होने लगते है,जैसे किसी नशेलची से अगर तकरार कर ली जाये और उसे भूल जाने की कोशिश की जाय तो यह असम्भव ही माना जा सकता है,इसका कारण है कि नशे को करने वाला व्यक्ति जब भी नशा उस पर हावी होगा उसकी अतीन्द्रिय अपना काम करना शुरु कर देती है और उसे जन्मों की बातें याद आने लगती है,जैसे ही उसे याद आता है कि अमुक ने उसके साथ अन्याय किया था वह अपनी जुझारू वृति को अपनाने केलिये प्रयास करना शुरु कर देता है,यही नशाखोरी के अन्दर किये जाने वाले अपराधों की श्रेणी में आजाता है। कारण साधारण आदमी तो अपनी बातो को भूल जाता है लेकिन नशे को करने वाला व्यक्ति उस बात को भूलता नही है जैसे ही साधारण आदमी किसी कारण से अपने रास्ते को भूला या नशा करने वाले के फ़न्दे में आया वह नशा करने वाले व्यक्ति का शिकार हो जाता है।राहु की द्रिष्टि कभी भी एक स्थान पर नही होती है वह अपने स्थान के अलावा तीसरे भाव पन्चम भाव सप्तम भाव और नवे भाव को देखता है। इसी प्रकार से मंगल के साथ बैठने वाला राहु मंगल की द्रिष्टि का भी अनुसरण करता है,जैसे मंगल अपने स्थान पर अपने स्थान से चौथे स्थान पर अपने स्थान से सप्तम स्थान पर और अपने स्थान से अष्टम स्थान को कन्ट्रोल करने की कोशिश करता है,इन दोनो की युति के कारण जब भी कोई शरारत मंगल और राहु की युति वाला व्यक्ति करता है तो वह अपनी तीसरे चौथे पांचवे सातवें आठवे और नवे भाव को आहत करता ही है। सबसे पहले वह अपनी आदतों के अनुसार अपने को नशेलची घोषित करता है यह उसके तीसरे भाव का कारण है और वह अपने जनता के बीच में ले जाता है सार्वजनिक स्थान में ले जाता है यह चौथे भाव का कारण बनता है उसके बाद पंचम भाव में ले जाने पर वह किसी से भी अपनी दोस्ती करने की कोशिश करता है,अपने आपको राजा समझता है यह पंचम भाव की बात होती है जो भी उसे समझाने की कोशिश करता है या बात करने की कोशिश करता है वह उसकी नजर में केवल दुश्मन ही समझ में आता है और जो भी वह कहता है लगने वाली बात के अनुसार ही कहता है इसलिये अच्छे लोग नशा करने वाले से बचते है,सबसे बडी बात जब मंगल और राहु की सम्मिलित द्रिष्टि आठवें भाव पर पडती है तो उसे अपमान करने कोई भी जोखिम लेने और किसी भी तरह से मौत को कारित करने में देर नही लगती है,उस समय उसका खून बह रहा हो या सामने वाले का उसे कोई दर्द नही महसूस होता है। यह केवल राहु की सीमा में रहने तक ही सीमित होता है जैसे ही चन्द्रमा का असर या मगल के डिग्री का असर समाप्त होता हैया किसी प्रकार का राहु विरोधी उपाय किया जाता है जातक अपने ही मूड में आजाता है और अपने पहले जैसे स्वभाव को प्रदर्शित करने लगता है।

सोमवार, 21 मई 2018

कुंडली का फलकथन कैसे करें

किसी भी इंसान के जीवन में क्या होगा, कब होगा या उसका जीवन कैसा बीतेगा इसका कथन व्यक्ति की जन्मकुंडली में होता है। जन्मकुंडली के फल-कथन के माध्यम से ज्योतिष मनुष्य के कर्म, 

गति और भाग्य के बारे में कई बातें बता सकते हैं। इसमें भाव तथा ग्रहों के विश्लेषण का बहुत महत्व होता है।जन्म कुंडली का विश्लेषण करने से पूर्व किसी भी कुशल ज्योतिषी को पहले कुंडली की कुछ बातो का अध्ययन करना चाहिए. जैसे ग्रह का पूरा अध्ययन, भावों का अध्ययन, दशा/अन्तर्दशा, गोचर आदि बातों को देखकर ही फलकथन कहना चाहिए. आज इस लेख के माध्यम से हम कुंडली का अध्ययन कैसे किया जाए सीखने का प्रयास करेगें.

जन्म कुंडली  में 

सबसे पहले यह देखें कि ग्रह किस भाव में स्थित है और किन भावों का स्वामी है.

ग्रह के कारकत्व क्या-क्या होते हैं.

ग्रहों का नैसर्गिक रुप से शुभ व अशुभ होना देखेगें.

ग्रह का बलाबल देखेगें.

ग्रह की महादशा व अन्तर्दशा देखेगें कि कब आ रही है.

जन्म कालीन ग्रह पर गोचर के ग्रहों का प्रभाव.

ग्रह पर अन्य किन ग्रहों की दृष्टियाँ प्रभाव डाल रही हैं.

ग्रह जिस राशि में स्थित है उस राशि स्वामी की जन्म कुण्डली में स्थिति देखेगें और उसका बल भी देखेगें.

ग्रह की जन्म कुंडली में स्थिति के बाद जन्म कुंडली के साथ अन्य कुछ और कुंडलियों का अवलोकन किया जाएगा, जो निम्न हैं.

जन्म कुंडली के साथ चंद्र कुंडली का अध्ययन किया जाना चाहिए.

भाव चलित कुंडली को देखें कि वहाँ ग्रहों की क्या स्थिति बन रही है.

जन्म कुंडली में स्थित ग्रहों के बलों का आंकलन व योगों को नवांश कुंडली में देखा जाना चाहिए.

जिस भाव से संबंधित फल चाहिए होते हैं उससे संबंधित वर्ग कुंडलियों का अध्ययन किया जाना चाहिए. जैसे व्यवसाय के लिए दशमांश कुंडली और संतान प्राप्ति के लिए सप्ताँश कुंडली. ऎसे ही अन्य कुंडलियों का अध्ययन किया जाना चाहिए.

वर्ष कुंडली का अध्ययन करना चाहिए जिस वर्ष में घटना की संभावना बनती हो.

ग्रहों का गोचर जन्म से व चंद्र लग्न से करना चाहिए.

अंत में कुछ बातें जो कि महत्वपूर्ण हैं उन्हें एक कुशल ज्योतिषी अथवा कुंडली का विश्लेषण करने वाले को अवश्य ही अपने मन-मस्तिष्क में बिठाकर चलना चाहिए.

जन्म कुंडली में स्थित सभी ग्रहो की अंशात्मक युति देखनी चाहिए और भावों की अंशात्मक स्थित भी देखनी चाहिए कि क्या है. जैसे कि ग्रह का बल, दृष्टि बल, नक्षत्रों की स्थिति और वर्ष कुंडली में ताजिक दृष्टि आदि देखनी चाहिए.

जिस समय कुंडली विश्लेषण के लिए आती है उस समय की महादशा/अन्तर्दशा/प्रत्यन्तर दशा को अच्छी तरह से जांचा जाना चाहिए.

जिस समय कुंडली का अवलोकन किया जाए उस समय के गोचर के ग्रहों की स्थिति का आंकलन किया जाना चाहिए.

आइए अब भावों के विश्लेषण में महत्वपूर्ण तथ्यों की बात करें. जब भी किसी कुंडली को देखना हो तब उपरोक्त बातों के साथ भावों का भी अपना बहुत महत्व होता है. आइए उन्हें जाने कि वह कौन सी बाते हैं जो भावों के सन्दर्भ में उपयोगी मानी जाती है.

जिस भाव के फल चाहिए उसे देखें कि वह क्या दिखाता है.

उस भाव में कौन से ग्रह स्थित हैं.

भाव और उसमें बैठे ग्रह पर पड़ने वाली दृष्टियाँ देखें कि कौन सी है.

भाव के स्वामी की स्थिति लग्न से कौन से भाव में है अर्थात शुभ भाव में है या अशुभ भाव में है, इसे देखें.

जिस भाव की विवेचना करनी है उसका स्वामी कहाँ है, कौन सी राशि व भाव में गया है, यह देखें.

भाव स्वामी पर पड़ने वाली दृष्टियाँ देखें कि कौन सी शुभ तो कौन सी अशुभ है.

भाव स्वामी की युति अन्य किन ग्रहों से है, यह देखें और जिनसे युति है वह शुभ हैं या अशुभ हैं, इस पर भी ध्यान दें.

भाव तथा भाव स्वामी के कारकत्वों का निरीक्षण करें.

भाव का स्वामी किस राशि में है, उच्च में है, नीच में है या मित्र भाव में स्थित है, यह देखें.

भाव का स्वामी अस्त या गृह युद्ध में हारा हुआ तो नहीं है या अन्य किन्हीं कारणों से निर्बली अवस्था में तो स्थित नहीं है, इन सब बातों को देखें.

भाव, भावेश तथा भाव के कारक तीनों का अध्ययन भली - भाँति करना चाहिए. इससे संबंधित भाव के प्रभाव को समझने में सुविधा होती है.

उपरोक्त बातों के साथ हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि किसी भी कुंडली का सामान्य रुप से अध्ययन करने के लिए लग्न, लग्नेश, राशिश, इन पर पड़ने वाली दृष्टियाँ और अन्य ग्रहो के साथ होने वाली युतियों पर ध्यान देना चाहिए. इसके बाद नवम भाव व नवमेश को देखना चाहिए कि उसकी कुंडली में क्या स्थिति है क्योकि यही से व्यक्ति के भाग्य का निर्धारण होता है. लग्न के साथ चंद्रमा से भी नवम भाव व नवमेश का अध्ययन किया जाना चाहिए. इससे कुंडली के बल का पता चलता है कि कितनी बली है. जन्म कुंडली में बनने वाले योगो का बल नवाँश कुंडली में भी देखा जाना चाहिए. नवाँश कुंडली के लग्न तथा लग्नेश का बल भी आंकना जरुरी है.ओर जो चल रहा है वह केवल दशा और अन्तर्दशाओं का परिणाम है। इसके ज्ञान के लिए आपको लग्न के ज्ञान की आवश्यकता है, इसके अतिरिक्त आप जीवन मे चल रही घटना के लिए दशानाथ और अन्तर्दशानाथ को उत्तरदायी ठहरा सकते हैं। पाराशर ऋषि ने कभी भी प्रत्यंतर को लेकर विशिष्ट व्याख्याएं नहीं दी हैं। वे प्रत्यन्तरनाथ को घटना के समय-काल का निर्धारण करने वाला मानते हैं। 

मैंने बहुत सारे ज्योतिषियों को घटना के कारण जन्मपत्रिका मेें ढूंढते हुए देखा है जबकि आने वाली घटना की सूचना महादशानाथ और अन्तर्दशानाथ ही दे देते हैं,  षड्बल एवं षोड्शवर्ग घटना की तीव्रता का ज्ञान करने के उपकरण मात्र हैं, घटना अवश्य घटेगी। यह आप पर निर्भर है कि आप घटना के घटित होने से पूर्व पापकर्मो के क्षय के लिए उपाय कर पाते हैं या नहीं। दूसरे शब्दों में घटना की तीव्रता को आप नियंत्रित कर सकते हैं।  आपको सबसे पहले लग्न का ज्ञान होना चाहिए और उसके बाद तत्कालीन अन्तर्दशा का। 

अन्तर्दशा का महत्व : अन्तर्दशानाथ, महादशानाथ से बलवान होते हैं और व्यक्ति के वर्तमान समय का आकलन अन्तर्दशानाथ के आधार पर ही किया जा सकता है। मान लीजिए, षष्ठेश की दशा चल रही है तो उस समय जीवन की मुख्य धुरी रोग, रिपु, ऋण हो जाएंगे भले ही जन्मपत्रिका में कितने ही शुभ या राजयोग हों। वर्तमान परिस्थित के सही आकलन के लिए एक अन्तर्दशा पीछे जाना बहुत जरूरी है। जिस प्रकार हम बीमार होते ही तुरंत डॉक्टर के पास नहीं जाते हैं, उसी प्रकार परेशानी आते ही कोई ज्योतिषी के पास नहीं जाता है। कई बार ऎसा होता है कि वर्तमान अन्तर्दशा तो शुभ है परंतु उससे ठीक पहले की अन्तर्दशा कठिन थी। कठिन परिस्थितियों को झेलते हुए जब तक व्यक्ति ज्योतिषी के पास जाता है, अन्तर्दशा बदल चुकी होती है परंतु अच्छे परिणाम ने अभी आहट नहीं दी है। मान लीजिए वर्तमान में कठिन अन्तर्दशा चल रही है और परिणामों की तीव्रता बहुत अधिक है। उस अन्तर्दशा से ठीक पहले चतुर्थेश या भाग्येश की दशा थी। इन दशाओं में उसने जमीन या मकान खरीदा होगा। यदि उसके चतुर्थेश या चतुर्थ भाव पीडत हैं तो परिणामों की तीव्रता का कारण वास्तु दोष भी एक कारण हो सकता है। अत: अन्तर्दशा का पूरा अध्ययन परिणामों के पूर्ण विश्लेषण में बहुत अधिक सहायक हो सकता है।कारकत्व : अन्तर्दशानाथ से मुख्य विषय का ज्ञान करने के पश्चात् हमें जो ग्रह अन्तर्दशानाथ हैं उनका कारकत्व और वह जिस भाव में स्थित हैं, उस भाव के कारकत्व का विश्लेषण करना है। सदा ग्रह और भाव के कारकत्वों को समझे वर्गकुण्डलियों में तभी जाएं जब मूल जन्मपत्रिका की आत्मा को आप पहले समझ लीजिए। ग्रह एवं भावों के कारकत्वों के विस्तृत अध्ययन के लिए कालिदास रचित उत्तर कालामृत सर्वश्रेष्ठ है। अष्टमेश की दशा में हम मृत्यु, मृत्युतुल्य कष्ट, कठिनाइयों को ही ढूंढ़ते हैं। अनुसंधान का भाव भी अष्टम भाव ही है। महान अनुसंधान करने वाले कई महापुरूषों ने अपना सबसे गहन अध्ययन अष्टमेश की दशा में ही किया। ऎसी कुण्डलियों में प्राय: अष्टम का संबंध लग्न से रहता है। यश और अपमान हम दशम भाव से देखते हैं परंतु इसका संबंध चतुर्थ भाव से भी है। जनता द्वारा दिया जाना वाला यश चतुर्थ भाव से देखा जाता है। नेता, अभिनेता की कुण्डली में इसे जनता द्वारा दिए जाने वाले प्यार और सम्मान के रूप में देखा जा सकता है परंतु आम व्यक्ति के लिए इसे किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा उसके लिए बनाए गए  रूप में देखा जाना चाहिए। मान लीजिए किसी का कोई कोर्ट केस चल रहा है या कार्यस्थल पर कोई झग़डा है, जिसका निपटारा होना है। ऎसे में यदि चतुर्थेश की दशा है तो चतुर्थ भाव और चतुर्थेश की स्थिति के आधार पर निर्णय दिया जा सकता है। यदि चतुर्थेश बलवान है और चतुर्थ भाव पर शुभ प्रभाव है तो उस दशा में व्यक्ति के खिलाफ केस नहीं बनेगा और चीजें उसके पक्ष में होंगी। यदि ग्रहों के कारकत्व की बात करें तो केतु की दशा में अचानकता बनी रहती है। साथ ही मानसिक बेचैनी भी रहती है। भले ही केतु शुभ हों और अच्छे परिणाम भी दें परंतु अपने नैसर्गिक कारकत्व से जु़डे परिणाम भी देंगे। ग्रहों के कारकत्व का गहराई से अध्ययन भविष्यकथन में सटीक परिणाम देने में सहायक होता है।योगकारक-अयोगकारक का निर्णय : सही परिणाम तक पहुंचने के लिए आवश्यक है कि यह निर्णय लिया जाए कि महादशानाथ और अन्तर्दशानाथ योगकारक हैं या अयोगकारक। प्रत्यन्तर, सूक्ष्म और प्राण दशा से परिणाम लेते समय भी यह सुनिश्चित करना आवश्यक होता है। योगकारक-अयोगकारक का निर्णय करने का सूत्र बहुत ही विस्तृत रूप से लघुपाराशरी में समझाया गया है। लघु पाराशरी में इस विषय में कुछ महत्वपूर्ण सूत्र दिए गए हैं : 

1. त्रिकोणेश सदा शुभ होगा भले ही वह नैसर्गिक रूप से अशुभ ग्रह हो। 

2. केन्द्र में प़डने वाली राशि सम होती है भले ही वह नैसर्गिक रूप से शुभ हो या अशुभ। 

3. द्वितीयेश व द्वादशेश की दूसरी राशि जिस स्थान में प़डती है, उसी स्थान के अनुसार अपना शुभ व अशुभ फल देंगे। 

इन नियमों को उदाहरण से समझते हैं। कर्क लग्न के लिए पंचमेश हैं मंगल, अत: मंगल अति शुभ होंगेे, भले ही वे नैसर्गिक रूप से अशुभ ग्रह हैं। मंगल की दूसरी राशि मेष दशम भाव में आ रही है। नियमानुसार केन्द्र में प़डने वाली राशि सम हो जाएगी अत: दोनों राशियों के आधार पर मंगल की स्थिति इस प्रकार होगी :

अतिशुभ + सम = अति शुभ (त्रिकोणेश (केन्द्रेश होने अथवा होने के कारण) के कारण) योगकारक कर्क लग्न में ही दूसरे त्रिकोणेश बृहस्पति की दूसरी राशि छठे भाव में है अत: त्रिकोणेश होने से शुभ परंतु छठे भाव के स्वामी होने के कारण अशुभ। यहां एक तथ्य पर ध्यान देना आवश्यक है बृहस्पति नैसर्गिक रूप से शुभ ग्रह हैं अत: स्थिति इस प्रकार होगी :

अतिशुभ + अशुभ (नैसर्गिक शुभ) = सामान्य शुभ (त्रिकोणेश होने के कारण) कन्या लग्न में शनि पंचमेश होने के कारण शुभ हैं परंतु षष्ठेश होने के कारण अशुभ और साथ ही नैसर्गिक अशुभ होने के कारण स्थिति इस प्रकार होगी :

अतिशुभ + अशुभ + नैसर्गिक अशुभ = अशुभ इस प्रकार हर लग्न के लिए योगकारक-अयोगकारक का निर्णय करने से फलकथन में सहायता मिलती है। इन नियमों में कुछ अपवाद भी हैं जिन्हें ध्यान में रखना अति आवश्यक है। "भावार्थ रत्नाकर" नामक पुस्तक इस विषयां में बहुत अच्छी जानकारी देती है। 

 ऎसे बहुत से महत्वपूर्ण नियम भावार्थ रत्नाकर में उद्धत हैं।

महादशानाथ और अन्र्तदशानाथ में संबंध : इस अत्यंत महत्वपूर्ण विवेचन के लिए एक बार पुन: लघुपाराशरी की शरण में जाना होगा। लघुपाराशरी के अनुसार किसी भी दशा में पूर्णफल तभी मिलेंगे जब महादशानाथ और अन्तर्दशानाथ समानधर्मी और संबंधी हों।

फल से तात्पर्य शुभ और अशुभ दोनों हैं। महत्वपूर्ण नियम यह है कि किसी भी ग्रह की महादशा में पहली अन्तर्दशा उसी ग्रह की होगी परंतु पूर्णफल देने में सक्षम नहीं होगी फिर भले ही वह योगकारक हो, अयोगकारक या मारक। फलकथन में इन बारीकियों का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है। मान लीजिए, किसी कुण्डली में शुक्र योगकारक हैं और उनकी महादशा शुरू होने वाली है। शुक्र महादशा में पहली अन्तर्दशा शुक्र की ही होगी और लगभग तीन वर्ष की होगी। ऎसी स्थिति में इस अवधि में बहुत अच्छे परिणाम कहना, कथन को गलत सिद्ध कर सकता है।

समानधर्मी से तात्पर्य है स्वाभाविक फल समान होना अर्थात् महादशानाथ और अन्तर्दशानाथ दोनों ही योगकारक हों, अयोगकारक हों या मारक हों। यदि महादशानाथ और अन्तर्दशानाथ सहधर्मी होने के साथ-साथ संबंधी भी हुए तो दशा का पूरा फल प्राप्त होगा। संबंधी से तात्पर्य है किसी भी प्रकार का चतुर्विध संबंध। यदि महादशानाथ और अन्तर्दशानाथ सहधर्मी और संबंधी दोनों हुए तो श्रेष्ठ परिणाम प्राप्त होंगे। परिणाम अच्छे या बुरे दोनों हो सकते हैं। वृहत पाराशर होरा शास्त्र में सभी ग्रहों की महादशा में सभी अन्तर्दशाओं का विस्तृत विवरण दिया गया है। इस विवरण से न सिर्फ कुछ विशेष परिणाम का ज्ञान होता है बल्कि बहुत से अचूक उपायों का भी ज्ञान होता है। स्पष्ट है कि शुभ महादशा में योगकारक अन्तर्दशाएं अति शुभ परिणाम देंगी और अयोगकारक एवं मारक दशाएं अपने पूरे परिणाम नहीं दे पाएंगी इसलिए शुभ महादशा का समय अच्छा बीतेगा।

अन्तर्दशानाथ की स्थिति का विवेचन : दशा में आने वाले परिणाम दशानाथ की स्थिति पर आधारित होंगे। दशानाथ उच्चा, नीच, मित्र, शत्रु आदि जिस भी राशि में हैं परिणाम की विवेचना उसी आधार पर की जाती है। दशानाथ का षड्बल बहुत महत्वपूर्ण संकेत देता है। षड्बल में विभिन्न मापदण्डों पर ग्रह का बल तौला जाता है। यदि दशानाथ का षड्बल औसत से अच्छा है अर्थात् 1 रूपाबल या उससे अधिक तो दशानाथ फल देने में सक्षम हैं। पुन: स्पष्ट करना आवश्यक है कि फल शुभ या अशुभ दोनों हो सकते हैं। यदि दशानाथ का ष्ड्बल कम है तो वह पूर्ण परिणाम देने में सक्षम नहीं है। मान लीजिए, दशानाथ भाग्येश हैं परंतु षड्बल कम है तो शुभ परिणाम कहीं ना कहीं कम हो जाएंगे। षड्बल से विवेचना करते समय ग्रह का नैसर्गिक कारकत्व भी अवश्य देखना चाहिए। जिसकी कुण्डली में शुक्र का षड्बल अच्छा होता है, उसे सौन्दर्य की परख बहुत अच्छी होती है। अगर उस कुण्डली के लिए शुक्र षष्ठेश हैं तो शुक्र षष्ठेश के ही परिणाम देंगे परंतु उनका यह नैसर्गिक गुण भी अवश्य विद्यमान होगा। ग्रहों के नैसर्गिक गुणों एवं कारकत्वों को नजर अंदाज नहीं करना चाहिए। लघुपाराशरी के एक अन्य नियम की चर्चा यहां करना आवश्यक है। लघुपाराशरी के अनुसार एक ही ग्रह कारक और मारक दोनों हो सकता है। दूसरे भाव का स्वामी या दूसरे भाव में बैठा ग्रह धनदायक है तो मारक भी है। जब दशा में योगकारक ग्रह का साथ मिलेगा तो वह ग्रह धन प्रदान करेगा और जब मारक ग्रह का साथ मिलेगा तो वह मारक फल प्रदान करेगा। परन्तु काल परिस्थिति वाली वात भी यहां घ्यान में रखे 

षोड्श वर्ग : वैदिक ज्योतिष का सबसे महत्वपूर्ण अंग है षोड्श वर्ग। दशानाथ की पूर्ण शक्ति समझने के लिए नवांश कुण्डली में उसकी स्थिति जरूर देखी जानी चाहिए। यदि ग्रह जन्मकुण्डली में मजबूत है परंतु नवांश कुण्डली में कमजोर है तो उसे कमजोर माना जाना चाहिए परंतु जन्मकुण्डली में नीच का ग्रह यदि नवांश कुण्डली में उच्चा का है तो वह फल देने में सक्षम है। नवांश कुण्डली के पश्चात् उस षोड्श वर्ग कुण्डली का अध्ययन करना चाहिए जिससे संबंधित भाव की दशा चल रही है। षोड्श वर्ग के अध्ययन को लेकर अभी भी बहुत असमंजस है। जो जन्मकुण्डली में नहीं है उसे षोड्श वर्ग में ना ढूंढे।  चाहे पाप ग्रह उच्चा का हो और चाहे शुभ ग्रह नीच का, कभी भी अपने मूल संस्कार नहीं भूलते। फलकथन के प्रतिशत में अंतर आ सकता है परंतु पापग्रह पाप फल देने से नहीं चूकते और शुभ ग्रह शुभ फल देने से नहीं चूकते। मान लीजिए, जन्मपत्रिका का पंचम भाव पीडत है और संतान प्राप्त में दिक्कतें आ रही हैं तो जन्मपत्रिका के पंचमेश की स्थिति सप्तमांश कुण्डली में देखें।

यदि सप्तमांश कुण्डली में वह ग्रह सुदृढ़ स्थिति प्राप्त कर रहा है या शुभ ग्रहों से दृष्ट है तो इसका तात्पर्य है कि संतान प्राप्त की संभावनाएं हैं। संतान कब होगी इसके लिए पुन: जन्मपत्रिका का सहारा ही लेना होगा। इस तरह फलकथन की तकनीक को सरल रखने का प्रयास करना चाहिए। जब कोई ग्रह कई षोड्श वर्गो में उच्च या स्वराशि का हो तो वह ग्रह अति विशेष परिणाम देने में सक्षम हो जाता है। अत: जिस ग्रह की दशा चल रही है उसे षोड्श वर्ग सारिणी में देखें। यदि ग्रह 6 से अधिक वर्गो में उच्च या स्वराशि होता है तो फलकथन में इस तथ्य को भी शामिल करना चाहिए। गोचर : दशा जिस घटना का संकेत देती है, गोचर से उसकी पुष्टि की जा सकती है। साथ ही घटना की तीव्रता का आकलन भी गोचर के माध्यम से किया जा सकता है। उदाहरण के लिए जब सप्तमेश की दशा चल रही हो उसी समय गोचरवश सप्तम भाव पर बृहस्पति और शनि का प्रभाव विवाह की संभावनाओं को प्रबल कर देता है। जिस समय मारकेश की दशा चल रही है उस समय लग्न पर बृहस्पति की अमृत दृष्टि जीवन रक्षा का संकेत देती है। यह अत्यंत आवश्यक है कि सिर्फ गोेचर के आधार पर परिणाम लेने का प्रयास नहीं करना चाहिए। इससे गलती की संभावना बढ़ सकती है।विशेष नियमों का ज्ञान : कुछ विशेष नियमों का ज्ञान फल की सटीकता को कई गुणा बढ़ा सकता है। कालिदास जी की उत्तर कालामृत में ऎसे ही कुछ विशेष नियमों का उल्लेख है। उदाहरण के लिए शनि में शुक्र और शुक्र में शनि की दशा का विशेष नियम दिया है लेख काफी लंबा हो गया वाकी फिर आगे आचार्य राजेशआप अपनी कुंडली दिखाकर अपनी समस्या का समाधान चाहते हैं या कुंडली वनवाना चाहते हैं या वर्षफल वनवाना चाहते हैं या उच्च quality के रतन लैवटैस्ट मंगवाना चाहते हैं तो हम से हमारे फोन नम्वरो पर वात कर सकते हैं 07597718725-09414481324आप नोटअसली प्रामाणिक और रत्न प्रयोगशालाओं द्वारा प्रमाणित रत्न (सर्टिफिकेट सहित)सही ्wolesale कीमत खरीदने के लिए भी संपर्क कर सकते हैंहमारा रत्नों का wolesale का कारोबार है

रविवार, 20 मई 2018

: क्यो जरूरी है ज्योतिष की जानकारी ?

: क्योजरूरी है ज्योतिष की जानकारी ?

कहते हैं कि जानकारी ही बचाव है। हम बहुत-सा ऐसा ज्ञान प्राप्त भी करते रहते हैं जिसकी जीवन में कोई उपयोगिता नहीं रहती है। व्यर्थ ही समय और पैसा कई अन्य बातों में खर्च करते रहते हैं। हम ऐसी भी बातें सुनते या देखते रहते हैं जिससे हमारे जीवन में नकारात्मकता का विकास होता है। किताबी और प्रायोगिक ज्ञान को आप थ्योरी और प्रैक्टिकल नॉलेज समझे। जीवन में दोनों ही तरह का ज्ञान जरूरी है। किसी भी विषय या क्षेत्र में कार्य करने से पहले उसकी जानकारी हासिल करना जरूरी है, फिर उसके व्यावहारिक या प्रोयोगिक पक्ष को समझना भी जरूरी है। यदि आप ‍जीवन में कोई-सा भी कार्य करने जा रहे हैं ‍तो पहले उसकी अच्छे से जानकारी एकत्रित कर लें। आप अपने ‍जीवन को सुंदर और सुखद बनाना चाहते हैं तो यह समझना जरूरी है कि हमारे लिए कौन-सा ज्ञान महत्वपूर्ण है और कौन-सा व्यर्थ। हालांकि बहुत से लोगों को यह जानकारी होगी ही। यदि है तो अपनी इस जानकारी को अपडेट करते रहें।ज्योतिष सीखना और ज्योतिष से काम करना कोई बुरी बात नही है.लेकिन ज्योतिष पर अंधविश्वास करके चलना और खुद के द्वारा अनुमान नही लगापाना बुरी बात है

.कोई भी कारण एक साथ नही बनता है,कारण समय से शुरु हो जाता है और समय आने पर कारण अपनी भूमिका अदा कर जाता है,जब कारण अपनी भूमिका अच्छे या बुरे प्रभाव मे अदा कर गया उसके बाद कारण को या कारक को या कारकत्व को दोष देना बेकार की बात ही मानी जायेगी। जन्म समय के ग्रह और गोचर के ग्रह आपसी सम्बन्ध से कारण पैदा करते है जो भी कारण पैदा होता है वह ग्रह राशि और भाव के अनुसार होता है,भाव हमारे अन्दर ही प्रकट होते है राशि का सीधा सा सिद्धान्त है कि वह एक क्षेत्र जिसके बारे मे भाव पैदा होगा उस भाव का फ़ल ग्रह के अनुसार मिलना जरूरी है। अच्छे भाव से अच्छे क्षेत्र से अगर ग्रह कारक को बल देगा तो कारकत्व अच्छा होगा और कार्य फ़ल की प्राप्ति भी अच्छी होगी लेकिन वही ग्रह बुरे भाव से बुरे क्षेत्र से बुरा फ़ल दे रहा होगा तो कारकत्व भी खराब होगा और फ़ल भी खराब मिलेगा।घटना का सही आकलन करना

घटना का सही आकलन करने के लिये ग्रह की चाल देखी जाती है कब ग्रह किस भाव से और राशि से घटना के लिये सामने आ रहा है उस समय जिस कारक के साथ घटना घटनी है उस कारक के पास कोई बल है कि नही अगर बल है तो ग्रह अपनी शक्ति से प्रभाव तो देगा लेकिन बल उसे कम या अधिक कर देगा। बुखार आने के लिये कारण पहले से शुरु हो जायेगा,इन्फ़ेक्सन भाव है और क्षेत्र उस भाव से जुडा हुआ है,जब इन्फ़ेक्सन वाला कारण बनेगा तो अन्दाज पहले से ही होने लगेगा,कही ऐसे क्षेत्र मे जाना पडेगा जहां इन्फ़ेक्सन वाले कारण मौजूद है,उस क्षेत्र मे जाकर उन्ही कारको को प्रयोग मे लाना पडेगा जिससे इन्फ़ेक्सन फ़ैले और जैसे ही इन्फ़ेक्सन शरीर मे घुसा बुखार का आना शुरु हो गया। अगर शरीर के अन्दर इन्फ़ेक्सन को रोकने के लिये जरूरी तत्व मौजूद है तो वह बुखार के कारको को समाप्त कर देंगे थोडा बहुत असर जरूर होगा लेकिन बुखार से बच जायेंगे। इतनी सी बात को समझने के लिये जन्म कुंडली में रोग के कारक ग्रह को देखेंगे,वह खून के कारक ग्रह मंगल के साथ कब मिल रहा है,अगर उस क्षेत्र मे राहु जो इन्फ़ेक्सन का कारक है अगर रोग के कारक ग्रह को बल दे रहा है तो खून का कारक ग्रह मंगल इन्फ़ेक्टेड होगा और रोग के होने के आसार समझ मे आजायेंगे,लेकिन उसी जगह पर अगर जीवन रक्षक ग्रह या सहायता देने वाले ग्रहों में गुरु या बुध या लगन पंचम नवम भाव का ग्रह मजबूती से अपनी सहायता दे रहा है वह किसी प्रकार के अन्य बन्धन मे नही है तो बुखार के कारण शरीर मे खून के अन्दर प्रवेश करेंगे उसी समय वह ग्रह का बल उन इन्फ़ेक्सन को समाप्त करने के लिये अपनी युति प्रदान करने लगेंगे,अगर कोई जीवन रक्षक ग्रह मंगल को बल दे रहा है तो बुखार के आते ही मंगल जो खून का कारक है वह डाक्टर के रूप मे उसी राहु को जो इन्फ़ेक्सन का कारक भी है और सही बल मिलने से दवाई का रूप भी ले लेगा तो समय पर सहायता मिल जायेगी और रोग से बचाव हो जायेगा। अगर नवम पंचम या लगन का ग्रह मजबूत नही है और रोग का कारक ग्रह अपने बल को कम भी नही कर सकता है और हमे पता है कि रोग का कारक ग्रह जरूर असर करेगा तो हम अपने अनुसार लगन पंचम या नवम के लिये बल देने वाले प्रयोग करना शुरु कर देंगे,यह बल भौतिक रूप मे इनके मालिको के लिये रत्नो का प्रयोग अथवा ग्रह से सम्बन्धित खाद्य पदार्थ के रूप मे अथवा वनस्पति के रूप मे होगी अथवा शरीर की सबसे बडी शक्ति ह्रदय जिव्हा और तालू के साथ होंठ तथा गले के एक विशेष बल के साथ प्रयोग करने पर मंत्र शक्ति का प्रयोग लेने लगेंगे,और इन ग्रहों का असर बढने लगेगा और कारक जो है वह अपना बुरा असर प्रदान नही कर पायेगा हम बच जायेंगे।पहले मानसिक गति बनती है

एक व्यक्ति का मन व्यथित है कि वह किसी भी काम मे सफ़ल नही हो पा रहा है वह जिस भी काम मे हाथ डालता है वह काम बेकार हो जाता है,उसकी रोजाना की जिन्दगी एक प्रकार से अस्त व्यस्त सी है और कभी कभी उसके मन मे आता है कि आत्म हत्या कर लेनी चाहिये। मन महिने में हर व्यक्ति का तीस घंटे के लिये व्यथित होता है वह अगर जाग्रत अवस्था मे है तो वह कारक के रूप मे और नींद की अवस्था मे है तो स्वप्न के रूप में व्यथा जरूर देता है। यह चन्द्रमा के द्वारा होता है चन्द्रमा जन्म के राहु के साथ गोचर के राहु के साथ और राहु जन्म के चन्द्रमा के साथ और गोचर के चन्द्रमा के जब जब अपनी युति को प्रदान करेगा तो मन मे व्यथा प्राप्त होगी,लेकिन गोचर का समय चन्द्रमा के लिये सवा दो घंटे में सत्रह मिनट के लिये ही होगा जबकि जन्म के चन्द्रमा के साथ राहु का गोचर पूरे चौवन महिने के लिये अपना असर देगा और इस साढे चार साल के अन्तराल मे जातक लगातार मानसिक व्यथा से जूझता रहेगा,इस व्यथा मे वह जो भी काम करेगा उसके लिये एक रास्ता नही दे पायेंगे हर काम मे दस अडचने उसके अपने मन के अनुसार मिलनी शुरु हो जायेंगी वह अपने विश्वास को अटल नही कर पायेगा। इस प्रकार से अगर एक साधारण व्यक्ति को कहा जाये कि वह ध्यान समाधि से अपने मन के ऊपर काबू रखे तो बेकार की बात है जब किसी काम खराब हो रहा हो तो वह काम की उलझन घर और बाहर की आफ़ते और खुद के जीवन मे अनियमिता के कारण कुछ भी करने मे असमर्थ सा हो जायेगा। इस समय मे देखा जाता है कि लोग अपने को चिन्ताओ के कारण नशे आदि मे ले जाते है,कुछ लोग अपने को भूल ही जाते है कि उनके पास कौन सी शक्ति है जो उन्हे उनके कारणो से बचा सकती है,शरीर मे कैमिकल बढने लगते है तरह तरह की बीमारी जैसे डायबटीज मोटापा झल्लाहट आदि जैसे कारण पैदा हो जाते है। इस मानसिक गति को सम्भालने के लिये अगर राहु का रूप तकनीकी रूप से मंगल के साथ जोड दिया जाये तो वह बडे प्रेम से दिये जाने वाले गलत प्रभाव को अच्छे प्रभाव मे बदलना शुरु कर देगा। मंगल के चार स्थान ही माने जाते है पहला धर्म स्थान मे दूसरा पुलिस थाने मे तीसरा अस्पताल मे और चौथा मानसिक बल में,इसके लिये जातक धर्म स्थान मे जाने लगे,उसके ऊपर जो आफ़ते आ रही है उनके लिये पुलिस की सहायता ले,अन्यथा अस्पताल मे जाकर मानसिक इलाज करवाये और भोजन मे बदलाव करे और मानसिक बल को बढाये,दो बाते हर आदमी आराम से कर सकता है,धर्म स्थान पर जाना और मानसिक बल को बढाकर समस्या का समाधान करना,धर्म स्थान मे जाना भी और धर्म से सम्बन्धित जानकारी अधिक लगाव करना केवल उन्ही बातो के लिये जरूरी है जो जितने समय धर्म स्थान मे रहे उतने समय के लिये मन धर्म मय हो जाता है,और जब मन के अन्दर रीफ़्रेस जैसी बाते पैदा हो जाती है तो मन के अन्दर बल बढना शुरु हो जाता है तरीके सामने आने लगते है और काम बनने लगते है,उसी तरह से मन की मजबूती के लिये या तो राहु के जाप करना,कारण राहु जो भी दिक्कत देता है वह भ्रम के कारण देता है जातक भ्रम के अन्दर फ़ंस जाता है कि वह अगर इस काम को करता है तो वह नही बना तो मेहनत और धन दोनो बरबाद हो जायेंगे या जो भी रिस्ता किया जा रहा है उसके अन्दर तो यह कमी है अथवा जो भी कारण मन के अन्दर लाया जा रहा है वह कारण असत्य है या अमुक ने ऐसा किया था तो ऐसा हुआ था अमुक ने ऐसा नही किया तो ऐसा नही हुआ था,अथवा अमुक ने अमुक तरह का कार्य किया था तो ऐसा हुआ था और अमुक ने अमुक के साथ ऐसा नही किया था तो ऐसा नही हुआ था। इस प्रकार के कारणो से लोगो की आस्था एक विशेष स्थान विशेष व्यक्ति की तरफ़ चली जाती है और इसके फ़ल मे यह प्राप्त होता है कि जब अमुक के साथ अमुक समस्या थी तो उस समय मे और उसके सामने के समय मे बहुत अन्तर है,अमुक का व्यवहार और सामने वाला व्यवहार भी अलग है,इस प्रकार से या तो जो भी बात सामने लाई जा रही है वह असत्य हो जायेगी या और अधिक अन्धकार मे जाना हो जायेगा। जब देखे कि भ्रम बहुत अधिक बढ गये है और किसी प्रकार से भ्रम दूर नही हो रहे है तो आराम से जब भ्रम अधिक परेशान करते है वह समय शाम का होता है,सूर्यास्त के बाद और रात के पहले प्रहर में कारण सूर्यास्त के बाद शरीर आराम की मुद्रा मे होता है और रात के पहले प्रहर के बाद सोने का समय शुरु होता है उस समय मे अगर राहु के मन्त्र का जाप शुरु कर दिया जाये और एक काल की अवधि मे होंठ जीभ तालू गले को मंत्र के अनुसार हिलाया जाये तो शरीर मे प्रवाहित रक्त के अन्दर के विषैले तत्व फ़िल्टर होने लगते है इस कारण से सिर के पीछे स्थापित मेडुला आबलम्ब गेटा के अन्दर विचित्र तरह की शक्ति का अर्जन होने लगता है शरीर एक प्रकार से उत्साह मे आजाता है। अगर खुद नही किया जा सके तो किसी विद्वान की संगति का लाभ लिया जाये वह लाभ केवल संकल्प लिया जा सकता है,कारण जो मानसिक व्यथा संकल्प के समय मे होती है वह व्यथा संकल्प के साथ उस विद्वान के पास जाती है अगर वह विद्वान अपनी गति से ह्र्दय के अन्दर सहानुभूति या दया के रूप मे मंत्र का जाप करता है या करवाता है तो आराम मिलने मे कोई सन्देह नही होता है। जब मंत्र का जाप करवाया जाता है या किया जाता है तो शरीर मे तनाव की मात्रा कम होती है और सबसे पहला फ़ल नींद के रूप मे मिलता है,जैसे ही नींद पूरी होने लगती है शरीर से चिन्ताओ का कारण समाप्त होने लगता है और कार्य सफ़ल होने लगते है,यही कारण डाक्टरो ने अपने अनुसार मानसिक इलाज के लिये अपनाया है किसी भी डाक्टर के पास चले जाइये वह सबसे पहले नींद की दवा को देता है,नींद की दवा के साथ मानसिक बल बढाने के लिये भूख को खोलने के लिये दवा देता है,लेकिन यह कारण सामयिक तो बनता है जैसे ही शरीर से उस दवा के अनुसार साल्ट कम होते है फ़िर से वही कारण पैदा होने लगते है या तो उन्ही साल्ट्स के लिये आदी होना पडता है या फ़िर उन साल्ट को कम करने के लिये दूसरे साल्ट्स को प्रयोग मे लाना पडता है।

मानसिक व्यथा के शुरु होने से पहले ही यानी अठारह महिने पहले ही कारण बनने लगते है,अगर ज्योतिष की जानकारी है या ज्योतिषी से सामयिक परामर्श लिया जाता है तो कारण बनते ही उनका इलाज शुरु हो जाता है और समस्या के आने से पहले ही इलाज अगर हो जाता है तो समस्या अपने आप ही समाप्त हो जाती है,जैसे किसी से कहासुनी हो गयी और पता है कि सामने वाला किसी भी तरह से बदला ले सकता है या कहासुनी के बदले शरीर को हानि दे सकता है समय भी विपरीत है तो पहले से ही या तो सामने वाले से क्षमा याचना करना सही होता है फ़िर भी नही मानता है तो कानूनी सहायता के लिये या अदालती मामले के लिये पहले से ही अगर जान माल की सुरक्षा की गुहार की गयी है,या किसी केश मे फ़ंसने से पहले ही अग्रिम जमानत की कार्यवाही कर ली गयी है तो बचाव हो सकता है।

ज्योतिष भी राहु है

कहा जाता है कि लोहा हमेशा लोहे को काटता है उसी प्रकार से जो भी कारण जीवन मे पैदा होते है वह राहु के द्वारा ही पैदा होते है,राहु अगर तकनीकी पहलू मंगल की सहायता से दे दिया जाता है वह भी केन्द्र त्रिकोण मे तो राहु मंगल बजाय खराब असर देने के और अधिक बढोत्तरी देने लग जायेंगे और त्रिक भाव या पणफ़र भाव में राहु मंगल की युति को ले लिया गया तो समस्या बजाय घटने के और भी बढने लगेगी। राहु की सीमा नही है कितना कष्ट दे सकता है या कितनी ऊंचाई पर ले जा सकता है,जैसे हाथी का भरोसा नही है कि वह कब बल पूर्वक अच्छे काम करता है और कब बिगडने पर गली की गली साफ़ करने के लिये अपनी शक्ति को प्रयोग मे ला सकता है। राहु शुक्र की युति मिलने का समय आता है व्यक्ति के अन्दर प्रेम रोग का भूत सवार हो जाता है उसे अपनी दुनिया समझ मे ही नही आती है,अगर उसी युति को मंगल की सहायता से मिला लिया जाये तो वह भूत बजाय बिगाडने के ऊंची ऊंची पोजीसन भी दिलवा सकता है जितना है उससे करोडों गुना बढा भी सकता है। राहु गुरु की युति आती है आम आदमी भी अपने को शहंशाह समझने लगता है उसे लगता है कि उसके सामने उसकी बुद्धि के जैसा कोई नही है वह तर्क वितर्क से अपने प्रभाव देना शुरु कर देता है उसे एक गंदगी मे भी सोना नजर आने लगता है वह धर्म और शिक्षा के अलावा रिस्ते आदि मे अपनी सीमा को तादात से अधिक बढाने लगता है अगर साथ मे मंगल को लिया गया है तो वह इन्ही कारणो मे तकनीकी कारण देखने के बाद उस क्षेत्र मे अपने को नाम और यश के रास्ते ले जायेगा और मंगल की युति नही ली है या केवल शुक्र का सहारा लिया है तो धन और वैभव मे तो आगे बढ जायेगा सुरा सुन्दरी की प्राप्ति तो हो जायेगी लेकिन जैसे ही राहु गुरु का असर समाप्त हुआ उसके अपने ही लोग उसे ले डूबेंगे।

ज्योतिष समय की जानकारी देती है

सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त और सूर्यास्त से लेकर सूर्योदय तक जो भी देश काल और परिस्थिति के अनुसार प्रभाव होते है ज्योतिष जानकारी देती है।कार्य और शरीर की समय सीमा के लिये ज्योतिष लाभदायी है। एक ग्रह के तीन सौ साठ कारण और एक भाव के तीस कारण एक राशि के एक सौ पचास कारण यह सब अगर देश काल और परिस्थिति से समझ मे आजाते है तो व्यक्ति दुख मे भी सुख का कारण निकाल सकता है और सुख मे भी दुख पैदा कर सकता है,बाकी के लिये एक ही बात कही जा सकती है-"खाना पीना सोना दुनिया मे तीन तत्व,एक दिन मर जाओगे धरि छाती पर हत्थ"।

शुक्रवार, 18 मई 2018

ज्योतिष ज्योतिषी और जातक

एस्ट्रोलॉजी एक विज्ञान है यह बात सुप्रीम कोर्ट ने भी कही है। जो लोग ज्योतिष के नाम पर 'भ्रामक' प्रचार कर जनता को मूर्ख बना रहे हैं उन पर रोक लगाई जानी चाहिएआज हमें प्रत्येक चैनलों पर 'भ्रामक' बातें सुनने को मिलती हैं। जैसे शनि ग्रह को ही लें। 

एक चैनल पर दिखाए गए प्रोग्राम से प्रेरित होकर यूपी के एक छात्र ने आत्महत्या कर ली थी। ऐसी खबर समाचार पत्रों में छपी थी। मित्रोंज्योतिषशास्त्र ज्ञान की एक वृहद प्रणाली है, जिसमें नक्षत्रों और ग्रहों की स्थिति के आधार पर बहुत जटिल गणनाएं एवं उनके मध्य विद्यमान पारस्परिक संबंध तथा मानव-जीवन सहित पृथ्वी पर विभिन्न घटनाओं आदि की विशाल व्याख्याएं अंतर्भूत हैं । परन्तु आज ज्योतिषविषय के साथ यह कैसी खिलवाड़ हो रही है ऎसा लगता है कि कोई इसको देखने वाला या धनी धोरी बचा ही नहीं है पिछले कई वर्षों से हम देखते चले आ रहे हैं कि ज्योतिष विषय विशेषज्ञों की जहाँ देखो वहीं बाढ़ सी आ गई है,आज-कल टीवी पर प्रसारित कार्यक्रमों में सबसे ज्यादा ज्योतिष को तवज्जो दी जाने लगी है, जिसकी वजह से ज्योतिषी भविष्‍यवाणी के बारे में जानकरी देते है कोई भी चैनल फ्री में किसी भी कार्यक्रम को पेश नहीं करता। अतः जो लाखों रुपए खर्च कर टीवी पर अपना प्रचार करवाते हैं वे जनता ‍से ही राशि लूटकर चैनल वालों को देते हैं। हमने देखा होगा कि एक लोकप्रिय कलाकार भी लॉकेट व यंत्रो का प्रचार करके उसको खरीदने के लिए लोगों को प्रेरित करते दिखाई देते हे।टी. वी. का सायद ही कोई चैनल होगा जिस पर ज्योतिषी अपनी दुकान चलाते न मिल जायें,कई ज्योतिष एक घंटे में, कई ग्यारह घंटों में तो कई एक सौ एक प्रतिशत काम होने की ग्यारंटी देते हैं। सो ऐसे ही ज्योतिषियों ने ज्योतिष का माखौल उडा़या है जिससे आम जनता का ज्योतिष पर से विश्वास उठ गया है। इस प्राचीनतम विद्या को बदनाम किया है। ऐसे लोगों पर अवश्य ही कार्रवाई होनी चाहिए। और ऐसे भ्रामक विज्ञापनों को समाचार पत्रों को भी नहीं छापना चाहिए। कोई भी ज्योतिष भगवान नहीं होता जो ग्यारंटी दें और वह पूरी हो जाएँ। सिर्फ और सिर्फ 'भ्रामक' प्रचार फैला कर अपना उल्लू सीधा करते हैं। परन्तु जब इन तथा कथित ज्योतिषियों से कोई पत्रकार या बुद्धिजीबी व्यक्ति कोई बात सैद्दान्तिक या वैज्ञानिक तरीके से पूछने लगता है तो मुझे नहीं लगता कि कोई ज्योतिषी उनको उनकी ही भाषा में समुचित जबाब दे पाता है और जब जब इस प्रकार के मौके आये तब तब आज के ज्योतिषियों ने ज्योतिष को सर्मिन्दा ही किया, मुहतोड़ जबाब देने में अक्षम ही रहे । जिसका मुझे एक मुख्य कारण ये भी लगाकि जितने भी टी. बी. चैनल वाले लोग हैं बो कभी विषय विशेषज्ञों ( ज्योतिष विभागाध्यक्षों या जिन्होंने ज्योतिष विषय में ही महा विद्यालयों में विधिवत शिक्षा पाई हो ) को चैनलों पर नहीं लाये, चाहे कारण कोई भी रहा हो / जब देखो तब आपको अधिकांश ऎसे लोग ही टी. बी. पर ज्योतिष के बारे में चर्चा करते दिखाई देंगे जिन्होंने ज्योतिष की विधिवत शिक्षा नहीं पाई है। जो लोग इनकी ठगी के शिकार हो जाते हैं, बो फिर ज्योतिष के बारे मन चाही टिप्पड़ीं करते हैं, अब तो हद हो गई नाचने कूदने वाले लोग भी हनुमान चालीसा बेच कर लोगों के भाग्य बदलने में सक्षम हो गये हैं/ अरे भाई इन का हनुमान चालीसा  इतना प्रभाव शाली है तो खुद दो चार लाकिट पहन कर अरबपति क्यों नहीं बन जाते, सारे दिन किराये के तारीफदारों से क्यों उसकी तारीफ करबाते हवह सेवा या उत्पाद जिस का प्रचार इश्तिहारों के जरिए करना पड़े, कारोबार होता है. आजकल कथा कथितज्योतिषी अरबों रुपया अपने धंधे के प्रचारप्रसार पर फूंक रहे हैं. इस से साफ है कि वे एवज में खरबों रुपए कमा भी रहे हैं. न्यूज चैनल्स पर ज्योतिषी स्क्रीन पर बैठे लोगों को ग्रहनक्षत्रों की चाल और गणना किए विना ही  परेशानियों को दूर करने के उपाय बता रहे हैंकोई भी अखबार उठा लें ज्योतिष उस में जरूर मिलेगा. दैनिक राशिफल से ले कर वार्षिक भविष्यफल तक बताया जाता है. कहीं लोग विश्वास करने से इनकार न करने लगें, इस के लिए कुछ अखबार तो 2-3 तरह के भविष्य और राशिफल छाप रहे हैं. एक फलित ज्योतिष तो दूसरा अंक और तीसरा टेरो कार्ड वाला यानी कोई न कोई तो आप की परेशानियों के नजदीक होगा ही. ये भविष्यफल सट्टे के नंबर के सरीखे होते हैं. इन में से जो आप को माफिक बैठे, उसे मान लो.

इतने बड़े पैमाने परगलत ढ़ंग से  ज्योतिष का प्रचारप्रसार कभी नहीं हुआ था. सीधी सी बात यह है कि ठगी के इस धंधे में अब प्रतिस्पर्धा भी बढ़ रही है अब हर कोई यह काम कर पैसा कमा रहा है. दिलचस्पी की बात यह है कि ज्योतिष के धंधे में अब महिलाएं भी तेजी से टआ रही हैं. इन्हें घर में बैठी रहने वाली महिला ग्राहकों को रिझाने में सहूलियत रहती है. वैसे भी, किसी कारोबार या ठगी पर अब पुरुषों का ही एकाधिकार नहीं रह गया है.नए जमाने के ये हाईटैक ज्योतिषी ऐरेगैरे नहीं हैं. ये पूरे आत्मविश्वास से बताते हैं कि आप की परेशानी का हल क्या है. मसलन, एक चैनल पर  ज्योतिषी टेबल पर लैपटौप ले कर बैठता है. कार्यक्रम शुरू होता है तो एंकर ज्योतिषी की ब्रह्मा तक पहुंच का बखान कर एकएक कर फोन सुनती है. एक फोन करने वाली जिसे कौलर कहा जाता है, पूछती है कि पंडितजी, मेरे बेटे का जन्म 20 अगस्त, 1993 की रात9-40ट बजे हुआ है. उस का कैरियर क्या होगा? उसे किस तरह की नौकरी मिलेगी?

पंडितजी की-बोर्ड के बटन खटखटा कर कुछ ही सैकंडों में कुंडली नाम के सौफ्टवेयर की कृपा से जन्मकुंडली बना कर धीरगंभीर आवाज में बताते हैं कि आप के बेटे को नौकरी किसी सौफ्टवेयर कंपनी में मिलेगी. उस का बुध थोड़ा कमजोर है, बेटे को कहे गणेश का पूजन करें.ओर कुछ उपाय जो हम यहां नहीं बता सकते आप हमें पर्सनली फोन पर पूछ ले फोन करने वाली मां यह सुन कर धन्य हो जाती है कि बेटे की नौकरी पक्की हो गई. . दूसरे कौलर बेटी की शादी को ले कर परेशान हैं. फोन करते हैं, पंडितजी तुरंत जन्मपत्री देखते हैं और बताते हैं कि आप की बिटिया को आंशिक मंगल है, लिहाजा, शादी में मामूली अड़चन आएगी. लेकिन ये उपाय करें. शादी जल्दी  हो जाएगी. फोन करने वाला पिता गद्गद हो जाता है कि जरा सी अड़चन है क्या हम आपको यहा पर नहीं बता सकते पर्सनली बात करें

इस तरह की ढेरों शाश्वत चिंताएं और परेशानियां टैलीविजन वाले पंडित को बताई जाती हैं. वह फुरती से ग्राहकों को निबटाता जाता है. उस का यह विज्ञापनीय कार्यक्रम सालछह महीने चलता है, फिर हैरानपरेशान लोग उस ज्योतिषी के स्क्रीन पर बताए गए फोन नंबरों पर संपर्क करते हैं और हजारों रुपए फीस के दे कर अपनी कथित समस्या का कथित हल निकलवाते हैं. अगर निर्मल बाबा छाप टोटकों से ग्राहक संतुष्ट नहीं होता तो ये तांत्रिक क्रियाओं के नाम पर भी पैसे ऐंठने में चूकते नहीं.  धड़ल्ले से ज्योतिषी और उन से विज्ञापनीय कार्यक्रम का  लेने वाले चैनल्स जिन्हें शुल्कोंसमाज से या लोगों के भले से कोई सरोकार नहीं.सव पैसे लूटने मे लगे हैं सब क्या है? .

धंधा बनाए रखने और बढ़ाने के लिए अब ये कथा कथित ज्योतिषी तरहतरह के नामों से संगठन बना कर शिविर लगाते हैं और ग्राहकों को पटाते हैं. ज्योतिष शिविरों में हर तरह के लोग आते हैं. एक शिविर में यह प्रतिनिधि गया और पूरे दिन नजारा देखा तो समझ आया कि किसी का दांपत्य कलह भरा है, किसी की पत्नी या पति कहीं अफेयर में फंस गया है तो कोई बेटी के गलत लड़के से प्रेमप्रसंग को ले कर तनाव में है. बेटे के जौब के बारे में जानने के लिए भी लोगों की भीड़ उमड़ती है. कोई असाध्य बीमारी से छुटकारा पाने के लिए शिविर में आया है तो कोई दफ्तर में बौस या सहकर्मी से तंग है. ऐसी ढेरों समस्याओं पर ज्योतिषियों ने निशुल्क परामर्श दिया लेकिन पुख्ता व गारंटीशुदा समाधान के लिए विजिटिंग कार्ड दे कर अपने दफ्तर में आने को कहा.

यह शिविर कहने को ही निशुल्क होते हैं, मकसद ग्राहकों की भीड़ इकट्ठा कर, बाद में उन्हें निचोड़ने का होता है और इस में वे कामयाब भी होते हैं. ये सभी ज्योतिषी पढ़ेलिखे और अधिकांश सरकारी पद पर सम्मानजनक नौकरी कर रहे थे और कुछ रिटायरमैंट के कगार पर थे जो आने वाले वक्त में मुफ्त की मलाई जीमने का इंतजाम कर रहे थे. इन का व्यक्तित्व और वाक्पटुता देख लोग प्रभावित थे पर यह नहीं सोच पा रहे थे कि यह शुद्ध ठगी है. लैपटौप और कंप्यूटर का दुरुपयोग करते ये ज्योतिषी किसी और का भले ही भविष्य न संवार पाएं, अपना भविष्य जरूर संवार चुके थे. 8-10 टेबलों पर बैठे इन ज्योतिषियों में कोई आपसी बैर नहीं था. इन की हालत अदालत के बाहर बैठे मुंशियों और दस्तावेज लेखकों जैसी थी कि जो जिस के पास आ गया वह उस का स्थायी ग्राहक हो कर रह गया. इस में कोई शक नहीं. और वे रहेंगी भी. लेकिन पढ़ेलिखे लोग ज्यादा आत्मविश्वास की कमी के शिकार हैं. उन के दिलोदिमाग में यह बात गहरे से बैठी है ज्योतिषियों के जरिए उन की समस्याएं हल कर इसलिए हमें कोई कोशिश नहीं करनी है. जबकि हकीकत यह है कि लोग अकर्मण्य और जीवन की वास्तविकताओं से भागने वाले हैं. वे बगैर मेहनत किए पैसा चाहते है

तगड़ी मुरगी हो तो ज्योतिषी एक एलबम निकालते हैं जिस में नामीगिरामी नेता, फिल्मकार, व्यापारी, उद्योगपति, प्रोफैसर, डाक्टर, पत्रकार और दूसरे लोग इन के साथ होते हैं. इस का वाजिब असर पड़ता है और लोग यही सोचते हैं कि कुछ न कुछ तो सच इस में होगा जो अपने क्षेत्र के कामयाब लोग इन के पास आते हैं. ज्योतिषियों के संगठन और विज्ञापन. ये शक्तिवर्धक दवाइयों की तरह हैं कि एक बार आजमा कर देखने में हर्ज क्या है. ये वैसे इश्तिहार हैं जिन्हें देख लोगों को खुदबखुद ही कमजोरी का एहसास होने लगता है.

हर्ज यह है कि इस से समाज पिछड़ रहा है. लोगों की मेहनत और कोशिश का श्रेय ठगी के खाते में ई कानून ऐसा नहीं है जो इन कुकुरमुत्ते से उगते इश्तिहारी ज्योतिषियों की गिरहबान पकड़े. अगर है भी तो लोग उस का सहारा लेने की हिम्मत नहीं जुटा पाते. किसी डाक्टर की लापरवाही से मरीज मर जाए या खतरे में पड़ जाए तो उस की पिटाई कर दी जाती है, और अदालत का दरवाजा खटखटाया भी जाता है. डाक्टर चूंकि जानकार होता है इसलिए उसे चुनौती दलीलों के जरिए दी जा सकती है ज्योतिषी को नहीं क्योंकि उस की कोई जिम्मेदारी अपने कथित ज्ञान और विद्या के बाबत नहीं बनती और न ही ज्योतिष के कारोबार का कोई सबूत या वजूद होता है.ध्यान रहे ! ये ज्योतिष बो विषय है, जहाँ आज का विज्ञान फेल होता दिखाई देता है, वहाँ से ज्योतिष विषय प्रारम्भ होता है / उदाहरण स्वरूप देखें जब रोगी के बारे में चिकित्सक मौन हो जाता है, तब रोगी के घर वाले लोग रोगी के भविष्य के बारे में ज्योतिषी से सलाह लेते रहे हैं और आज भी लेते हैं / ये देश के कर्णधार नेता लोग चुनाव लड़ते हैं तोज्योतिषी से सलाह लेते हैं / बड़े बड़े कारोबारी लोग जब अपने कारोबार में अपने साइन्टिष्टों व सलाहकारों सहित फेल हो जाते हैं और कारोबार डूबने की स्थिति में आ जाता है, तब ज्योतिषियों से सलाह लेते हैं/ जब बैबाहिक जीवन में तलाक की नौवत आ जाती है या पति पत्नी में आपस में सामाजस्य नहीं बैठ पाता है, तब लोग ज्योतिषियों से सलाह लेते हैं क्यों ? जहाँ पर सैकेण्ड से भी छोटीं इकाई काम आतीं हों, जहाँ केवल सूर्योदय निकालने के लिए सायन्ठीटा और टेन ठीटा काम आते हों, जहाँ अक्षांश और देशान्तर के बिना गणित प्रारम्भ ही न हो पाता हो, जहाँ ध्वनि ( साउण्ड ) के नियमों को पूरी तरह काम में लेना पड़ता हो , जहाँ प्रकाश ( लाइट ) के नियमों का प्रयोग होता हो , जहाँ देश काल परिस्थिति को जानने के लिए भूगोल की जान कारी अति अनिवार्य हो , जहाँ जीव विज्ञान की जान कारी अनिवार्य हो ,  उस विषय को  ऎसे ब्यक्ति देख रहे हों , जिन्हों ने उपर्युक्त विषयों का कभी सिंगावलोकन भी न किया हो , जिन्हों ने हाई स्कूल भी विज्ञान  विषय ले कर उत्तीर्ण न कर पाया हो , बो लोग उस विषय के वारे में सिबाइ बेवेकूफ बनाने के और क्या करेंगे  आचार्य राजेश

जन्मकुंडली ओर आप का भविष्य

जब किसी ज्योतिषी से आप अपनी कुंडली बनवाते हैं; तो वह सॉफ्टवेर पर डालकर आपकी कुंडली बना देता हैं
।यह तरीका सरल  है ; और ज्योतिष के तमाम दशा, महादशा, अन्तर्दशा के साथ निकल आते है।परन्तु इस सॉफ्ट
वेर के द्वारा दी गयी फल गणना किसी काम की नहीं होती।चाहे वह परम्परागत ज्योतिष हो या लाल किताब में
।जिस प्रकार ऊंगलियों के निशान एक से नहीं होते, कुंडली भी एक सी नहीं होती।लग्न में ग्रहों की स्थिति एक जैसी भी हो, तो राशियों की स्थिति का अंतर होता है, वह एक जैसी हो; तो ग्रहों के उदय बल सहित 6 बलों का नात्र होता है, नक्षत्रों, वर्ण,गण आदि का अंतर होता है।फल गणना पर इनका गुणात्मक अंतर होता है।इन सबको सॉफ्टवेर से कण्ट्रोल नहीं किया जा सकता
ग्रह, राशि, नक्षत्र, इनकी दृष्टि, इनके बलाबल के अतिरिक्त कुंडली के प्रथम एवं द्वितीय पृष्ठ पर दिए गये दर्जनों प्रकार के आंकड़ों – का समावेश होता है।लाल किताब को लोग सरल समझते है; पर इसमें इतने प्रकार के चार्ट है कि उन सबकी संख्या कई दर्जन हो जाते है।बिना इन सबको मिलाये राशि, भाव और ग्रह के सहारे फल की घोषणा करने वाला ज्योतिषी झोला छाप डॉक्टरों की तरह होता है; जो कुछ पेटेंट दवाओं के सहारे अपनी दूकानदारी चलाता है।एक लाल किताब के विवरणों की विस्तार से व्याख्या करने और उनसे निकलने वाले नये तत्त्वों की व्याख्या में बड़े साइज़ के (11”x 18”) के 2100 पेज भी कम पड़ गये।इसे कोई भी व्यक्ति सरसरी नजर देखकर कैसे बता सकता है
होता यह है कि ये लोग चार्ट से दशा-महादशा – अन्तर्दशा को देखकर या कुंडली के ग्रहों की स्थिति देख कर फल एवं उपाय बता देते है।सरल काम है।कोई साधारण व्यक्ति भी कर सकता है, जो ज्योतिष का थोङा सा भी ज्ञान रखता हो 
पर न तो इस फल का कोई अर्थ है, न ही उपाय का।ऐसा उपाय आपको हानि में डाल सकता है
कुंडली में कोई ग्रह खराब हो रहा हो, तो ये लोग तुरंत उस ग्रह का दान करवा देते है या पानी में बहवा देते है।कुछ तो ऐसे भी होते है कि दान भी करवा देते है और रत्न भी फना देते है।जैसे- शनि की गड़बड़ी है, तो लोहे का छल्ला पहन लो और लोहा-तेल दान करो।अब एक तरफ लेना लेना बढ़ा दो, दूसरी तरफ उसे फेंको।यह कैसा उपाय है 
कभी-कभी आपके भाग्य का ग्रह ही किसी कारण वश बुरा प्रभाव देने लगता है।आजकल लालकिताब का बहुत जोर है।अपने को इस विद्या का पारंगत मानने वाले कई व्यक्तियों ने जातक से उसके भाग्य का ग्रह ही पानी में बहवा दिया।कई व्यक्ति सड़क पर आ गये।ऐसे मेरे ही नहीं; कई प्रसिद्ध ज्योतिषियों के अनुभव रहे है
जो ज्योतिषी यह नहीं जानता कि बुरा प्रभाव डालने वाले ग्रह की वस्तुएं घर में लाना या पहनना उसेक प्रभाव को और बढ़ाना है और शुभ ग्रहों या भाग्य के ग्रहों का दान देना (उच्च ग्रह उसके प्रभाव को कम करना है; वह जातक के लिए कितना हानिकारक हो सकता है, इसे समझा जा सकता है।
कोई शनि का भय दिखाता है, कोई राहु-केतु का; पर ग्रह कोई भी बुरा नहीं होता।कोई न रहे, तो हमारा जीवन ही नहीं रहेगा।कोई भी ग्रह, यदि गलत जगह, गलत राशि के साथ होता है या किसी शत्रु आदि की दृष्टि के दायरे में आता है, तो बुरा प्रभाव देने लगता है।ऊपाय कारण का किया जाता है, उस ग्रह का नहीं।यही 
शनि ही नहीं, बृहस्पति और चंद्रमा जैसे शुभ ग्रह भी व्यक्ति को बर्बाद कर देते है, यदि वे गलत जगह पर हों।लोग शनि को व्यर्थ ही बदनाम करते है।उससे भयानक तो बुध होता है; जो बुद्धि भ्रष्ट करके मनुष्य को दलदल में ढकेल देता हैइस तरह ग्रहों को अच्छा-बुरा कहना केवल भय पैदा करना है।
अतः ज्योतिषी चुनने में सावधानी बरतें।सस्ते के चक्कर में या टी.वी. पर विज्ञापन देखकर फँसे, तो अपना बहुत कुछ बर्बाद कर दे सकते है आज कल तो fb पर या whats up पर गरुप मे अपनी कुंङली  की  फोटो ङालते है ओर कुछ ज्योतिषी जो पुरा ज्ञान नही रखते उसकी व्याख्या  करने लग जाते है मित्रो ज्योतिषी  को चाहिऐ की कुंङली  पर पुरा समय ले सभी चार्ट  देखे कुंङली  पर मनन चिन्तन  करे फिर फल कथन करे तो सही होगा मित्रो मुफ्त के चक्कर  मे अपनी जिन्दगी  से खिलवाङ मत करे जय मा काली 07597718725 09414481324

सोमवार, 14 मई 2018

जुड़वां बच्चों का भविष्य

कल कुछ मित्र जुड़वां बच्चों के वारे जानकारी चाहतेथे कि एक ही मां की कोख से कुछ मिनट के अंतराल में जन्मे जुड़वां बच्चों के रंग, स्वभाव और भविष्य में कैसे अंतर आ जाता है?‌जुड़वां बच्चे जन्म लेते है  

          तो जन्म समय में सिर्फ ५ या १० मिनट का अंतर होता है यदि कुंडली देखी जाये तो दोनों के जन्म नक्षत्र, राशि, लग्न यहाँ तक कि पूरी कि पूरी कुंडली एक जैसी हुबहू होती है सिर्फ विंशोत्तरी दशा काल में कुछ अंतर रहता है  कृष्णमूर्ति जी ने यह विचार किया कि जब दोनों जुड़वाँ जन्म लेने वाले जातको की कुंडलिया एक सी है फलादेश भी एक ही है जब कि वास्तविकता कुछ और ही होती है दोने के रूप रंग , स्वाभाव, व्यव्हार, शिक्षा, विवाह, नौकरी आदि में असमानताए रहती है उन्होंने गहन अध्यन किया दिन रात ज्योतिष अनुसन्धान से उन्होंने आखिरकर ये खोज लिया कि जुड़वाँ जन्म लेने वाले बच्चो में ये असमानताए क्यों होती है !यदि दो जुड़वां बच्चों का जन्म समय एक ही मान लिया जाये तो क्या एक ही कुण्डली को दो बार देखने से अलग – अलग विश्लेषण या परिणाम प्राप्त होगा | यह धारणा बिलकुल गलत है की जुड़वाँ बच्चों का जन्म समय समान होता है |‌इसके अनुसार किसी भाव का फल भावेश अर्थात उसका स्वामी न करके, वह ग्रह जिस नक्षत्र में स्थित हैं, उसका उपनक्षत्र स्वामी करेगा अर्थात् उस भाव का फल उपनक्षत्रेश के आधार पर होगा। जैसे-किसी की जन्मपत्री में तुला लग्न में दशमेश चंद्र, उच्च या स्वगृही है तो उसे किसी कंपनी/सरकारी नौकरी में उच्च पद पर या प्रतिष्ठित व्यवसाय में होना चाहिए। परंतु वास्तव में वह व्यक्ति फुटपाथ पर मजदूरी कर रहा था, तब ऐसे में उसकी जन्मपत्री का अध्ययन किया तो यह पाया कि उसका उपनक्षत्र स्वामी, जन्मपत्री में नीच राशि में स्थित था, अत: उसे वास्तव में निम्न स्तर का रोजगार मिला। ठीक इस प्रकार जुड़वा बच्चों या समकक्ष में के.पी. ने उपनक्षत्र स्वामी का निर्माण राशियों को 4-4 मिनट में बांटकर सारणी तैयार कर किया तथा जुड़वा बच्चों के फल कथन में इस सिद्धांत को प्रस्तुत किया तो बिल्कुल सटीक पाया गया। क्योंकि जुडवां बच्चों में 2-3 मिनट का ही अंतर रहता है या एक ही स्थान, समय में भी 2-3 मिनट का ही अंतर पाया जाता है। अत: के.पी. की उपनक्षत्रेश पद्धति इनपर बिल्कुल सही साबित हुई। गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड के अनुसार विश्व में जुड़वाँ बच्चों के जन्म समय की अवधि में सबसे कम समय का अंतर एक मिनट का दर्ज हुआ है जो कि केसेंड्रा फ्लोरेस नामक अमरीकी महिला ने सेंट जोसफ हॉस्पिटल केलिफोर्निया में 9 जुलाई 2013 को 13:39 व् 13:40 बजे जुड़वाँ बच्चों को जन्म देने पर हुआ है | इसी प्रकार एक पंद्रह वर्ष तक की गयी एक जर्मन शोध के अनुसार जुड़वाँ बच्चों के जन्म समय में औसत अवधि का अंतर 13.5 मिनट का पाया गया है जिस से साबित होता है कि ज्योतिष दृष्टिकोण से भी जुड़वाँ बच्चों का भविष्य व् जीवन एक समान नही हो सकता क्योंकि उनका जन्म समय जो ज्योतिष का आधार है, कभी एक समान नही होता |

इन सभी कारणों से चाहे वह जीवविज्ञान से सम्बन्धित हों, प्रकृति की रचना, कर्म सिद्धांत, पूर्व जन्म का परिणाम, भाग्य, हस्तरेखा या ज्योतिष विषय हो, यह निश्चित होता है कि प्रत्येक व्यक्ति का जीवन और भविष्य कभी दूसरे व्यक्ति के समान नही हो सकता चाहे वह जुड़वाँ ही क्यों न हों |इसे ऐसा भी समझ सकतेहै हमारे चारों तरफ ऊर्जाओं के क्षेत्र है, एनर्जी फील्डसस है और वह पूरे समय हमें प्रभावित कर रहे है। जैसे ही बच्चा जन्म लेता है तो वह जगत के प्रति, जगत प्रभावों के प्रति फंस जाता है। जन्मै को वैज्ञानिक भाषा में हम कहें एक्स पोजर, जैसे कि फिल्म को हम ऐक्सपोज करते है। कैमरे में, जरा सा शटर आप दबाते है एक क्षण के लिए कैमरे की खिड़की खुलती है और बंद हो जाती है। उस क्षण में जो भी कैमरे के समक्ष आ जाता है। वह फिल्मी पर अंकित हो जाता है। फिल्म ऐक्सपोज हो गई। अब दुबारा उस पर कुछ अंकित न होगा—और अब यह फिल्मज उस आकार को सदा अपने भीतर लिए रहेगी। वहींकुछ क्षण के अन्तर से यह फिर से  हो तो वो होता फ्लर्ट आ जाऐगा

जिस दिन मां के पेट में पहली दफा गर्भाधान होता है तो पहला एक्सापोजर होता है। जिस दिन मां के पेट से बच्चाे बाहर आता है, जन्म लेता है, उस दिन दूसरा एक्सिपोजर होता है। और वह दोनों एक्पोिजर संवेदनशील चित पर फिल्म की भांति अंकित हो जाते है। पूरा जगत उस क्षण में बच्चा अपने भीतर अंकित कर लेता है। और उसकी एम्पेतथीज, समानुभूति निर्मित हो जाती है।हर क्षण अलग है

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रविवार, 13 मई 2018

मेरी अपनी वात

मित्रो एक सच यह भी हैं…

(ज्योतिष अपने आप में एक सम्पूर्ण विज्ञानं हैं…ज्योतिषी गलत हो सकता हैं,ज्योतिष नहीं मित्रों जहाँ सभी विज्ञानं का ज्ञान समाप्त हो जाता हैं वह से ज्योतिष विज्ञानं आरम्भ होती हैं 

यह काफी पुरानी घटना हैं,मै ट्रेन मे रिजर्वेशन की तलाश मे भटक रहा था। ट्रेन मे तिल रखने तक की जगह नही थीमेरा मित्र मेरे साथ था  जगह ना मिलने के कारन हम  टायलेट के पास बैठे अपने ही जैसे यात्रियो के साथ बैठ गये  एक सहयात्री समय काटने के लिये लोगो का हाथ देख रहा था और विस्तार से सब कुछ बता रहा था। पास बैठे पिता-पुत्र की बारी आयी। पुत्र का हाथ देखते ही उसके माथे पर चिंता की लकीर उभर आयी। वह कुछ नही बोला। पिता को आशंका हुयी। वह पुत्र के बारे मे जानने व्यग्र हो उठा। एक कोने मे ले जाकर उस सहयात्री ने धीरे से बताया कि आपके पुत्र के हाथ को देखकर लगता है कि इसका कुछ समय पहले किसी से झग़डा हुआ है और ऐसा भी लगता है कि यह मर्डर करके भागा है। मै ने सोचा अब तो उस ज्योतिषी की खैर नही। ऐसा पिटेगा कि दम निकल जायेगा। पर हुआ उल्टा। पिता उनके पैरो मे गिर गया और बताया कि चम्वा मे दोस्तो के साथ किसी झग़डे मे इन सब से किसी की हत्या हो गयी। कैसे भी मैने अपने बेटे को निकाला है। अब इसे मुम्बई ले जा रहा हूँ ताकि कुछ काम सीखने के बाद वाहर के देशो मे नौकरी मिल सके। मेरे आश्चर्य का ठिकाना नही रहा। मैने बहुत बार भविष्य़वाणियो के बारे मे सुना और पढा था पर उन्हे सच होते इतने करीब से नही देखा था।

उस ज्योतिषी के दिव्य ज्ञान ने मुझे प्रेरित किया कि मै इस प्राचीन विज्ञान का विस्तार से अध्ययन करुँ। मैने ढेरो पुस्तके खरीदी पर बिना गुरु केसही ज्ञानृ नही मिलता फिर पत्राचार से भी पङाई की तव भी वात नही वनी प्यास ज्यो की त्यो वनी रही  जब भी हमे अखबारो मे किसी ज्योतिषी का विज्ञापन दिखता हम उसके ठिकने पर पहुँच जातेओर उनसे सीखने को कहते ओर कईयो से सीखा भी पर सव अघकचरे ज्ञानी थे   कुछ समय तक यह सिलसिला चला  यह तक  कि इसी तरह जो शहर के ज्योतिषी थे या आस पास के उनके पास भी जा जा कर सीखा  धीरे-धीरे समझ विकसित हुयी और जब एक ज्योतिष सम्मेलन मे दुनिया भर से आये विद्वानो से मिलवाने मेरे ऐक  मित्र मुझे जबरदस्ती ले गये तो मेरी आँखे खुली। मैने ज्योतिष को एक समृद्ध पारम्परिक ज्ञान की तरह पाया। उन्ही विद्वानो से पता चला कि कैसे भारतीय ज्योतिष के आगे सारी दुनिया नतमस्तक है। उसके बाद से मैने शहर के ज्योतिषी  ङेरे  नाथ संत महात्मा किसी को नही छोङा सभी के पास ज्ञान के लिऐ भटकता रहा !खैर मेरी अघ्यातम  यात्रा के किस्से काफी लम्वे हे फिर कभी आप को वताउगा 

कुछ वर्षो पहले एक ऐसे हस्तरेखा विशेषज्ञ से मिलने का अबसर मिला जो लोगो को टीवी पर या मंच से सुनकर उनकी हू-बहू हस्तरेखाए बना देता है। हस्तरेखा से लोगो के बारे मे बताना तो ठीक है पर लोगो को सुनकर भला कैसे कोई हस्तरेखा बना सकता है? यह विशेषज्ञ अपनी मर्जी से ही व्यक्ति का चुनाव करता है और इस ज्ञान से अर्थ लाभ नही करता है। वह इसके प्रदर्शन के भी खिलाफ है। मुझे पता है कि यदि वह इस ज्ञान के साथ बाजार मे आये तो उसे लोगो के सिर आँखो मे बैठने मे जरा भी देर नही लगेगी। डिस्कवरी चैनल मे एक बार एक फिल्म आ रही थी जिसमे बताया गया था कि शीत युद्ध के दिनो मे अमेरीकी सेना ने एक ऐसे लोगो की टोली बनायी थी जो कल्पना के सहारे एक बन्द कमरे मे बैठकर दुश्मनो के बारे मे विशिष्ट जानकारी देते थे। आज ऐसी कोई बात भारत मे करे तो हमारा आधुनिक समाज इसे अन्ध-विश्वास घोषित करने मे जरा भी देर नही करेगा। इसी तरह की सोच ने आज भारतीय पारम्परिक  ज्ञान को उसके अपने घर मे बेसहारा कर दिया है।

मै ज्योतिष को विज्ञान मानता हूँ। आम तौर पर ज्योतिषीयो द्वारा की जाने वाली भविष्यवाणियो पर तरह-तरह के सवाल किये जाते है। ये भविष्य़वाणियाँ व्यवसायिक ज्योतिष से जुडे लोग अर्थार्जन के लिये करते है। इसी आधार पर ज्योतिष के विज्ञान होने पर सन्देह किया जाता है। लोगो के इस तर्क को सुनकर मुझे बरबस ही एक और विज्ञान की याद आ जाती है। वह है हम सब का प्यारा मौसम विज्ञान जिसकी भविष्य़वाणियाँ शायद की कभी सही होती है। शहर से लेकर गाँवो तक सब जानते है इस विज्ञान को और इसकी उल्टी भविष्य़वाणियो को। पर फिर भी कोई इसे ज्योतिष की तरह कटघरे मे खडा नही करता। देश मे इस विज्ञान के विकास के लिये अरबो खर्च किये जा रहे है। इसका एक प्रतिशत भी भारतीय ज्योतिष के उत्थान मे खर्च किया जाता तो इसे नया जीवन मिल जाता।

कुछ वर्षो पहले एक किसान की हवाले से यह जानकारी स्थानीय अखबार मे छपी कि इस बार मछरिया नामक खरपतवार की संख्या को देखकर लगता है कि बारिश कम होगी। जैसी कि उम्मीद थी दूसरे ही दिन इसे अन्ध-विश्वास बताते हुये एक समाचार छप गया। किसान ने ठान लिया कि चुप रहने मे ही भलाई है। उस साल सचमुच बारिश कम हुयी। ऐसे ही वनस्पतियो और पशुओ के व्यवहार से मौसम की परम्परागत भविष्य़वाणी का विज्ञान अपने देश मे समृद्ध है। मौसम विज्ञानी इसे महत्व नही देते है पर जानकारी मिलने पर इस पर शोध-पत्र तैयार कर विदेशो मे प्रस्तुत करने का अवसर भी नही छोडते है। किसानो के पारम्परिक ज्ञान पर वाह-वाही लूटकर अवार्ड भी पा जाते है

कौआ-कैनी नामक खरपतवार जो कि बरसात मे खेतो मे उगता है, के फूलो को बन्द होता देखकर किसान यह पूर्वानुमान लगा लेते है कि मौसम बिगडने वाला है। इसी तरह सर्दियो मे उगने वाले कृष्णनील नामक खरपतवारो के फूलो से भी ऐसी ही जानकारी एकत्र की जाती है।अब भी यह सागर मे एक बूँद के समान है। कभी-कभी लगता है कि पारम्परिक भारतीय ज्ञान की रक्षा के लिये और परम्पराओ और संस्कारो को नयी पीढी तक पहुँचाने के लिये लोगो को जोडकर एक ऐसा संगठन बनाऊँ जो इस विषय मे उपलब्ध तमाम जानकारियो को आम लोग तक तो पहुँचाये ही साथ ही इन्हे अन्ध-विश्वास बताकर अपनी दुकान चलाने वाले तथाकथित समाजसेवियो के खिलाफ भी आवाज उठाये। आखिर भारत मे रहकर उसकी परम्पराओ और संस्कारो को गलत ठहराना किसी अपराध से कम नही है।मित्रो आज जो भी मांकाली की कृप्पा से ही हु मुझ मे मेरा कुछ भी नही है आचार्य  राजेश

रविवार, 6 मई 2018

विपरीत राजयोग से असाधारण धनलाभ

मित्रों यह पोस्ट उन मित्रों के लिए जो ज्जयोतिष सिख रहे हैं या ज्योतिषी है शुभ भावों के स्वामी बली होते है,तो धन मिलता है,यह तो सभी जानते है,लेकिन ऐसा भी देखा गया है,कि जो भाव कुन्डली में अनिष्ट का संकेत करते है,और अगर उनके स्वामी अगर किसी प्रकार से कमजोर है

   तो भी धन शुभ भावों के स्वामियों से अधिक मिलता है.कुन्डली के ६,८,और १२ भाव अनिष्ट भाव माने जाते है,इन तीनो को त्रिक भी कहा जाता है,इन किसी भी स्थान का स्वामी किसी त्रिक में या अनिष्ट ग्रह से देखा जाता है,तोबहुत ही निर्बल हो जाता है,इस कारण से विपरीत राजयोग की प्राप्ति हो जाती है,माना जाता है कि छथा भाव ऋण का है,और किसी पर लाखों रुपयों का ऋण है,और किसी आदमी द्वारा अक्समात उस ऋण को उतार दिया जाता है,तो उसको एक तो ऋण से छुटकारा मिला और दूसरे धन का लाभ भी हुआ,इसी प्रकार से आठवां स्थान गरीबी का माना जाता है,यदि किसी की गरीबी का अक्समात निवारण हो जाये तो वह भी विपरीत राजयोग की गिनती मे ही गिना जायेगा.इसी प्रकार से बारहवां भाव भी व्यय का है,और किसी का व्यय रुक कर अगर बैंक में जमा होना चालू हो जाये तो भी इसी विपरीत राजयोग की गिनती में गिना जायेगा.गणित का नियम सभी को पता होगा कि दो नकारात्मक एक सकारात्मक का निर्माण करते है,और दो सकारात्मक भी एक सकारात्मक का निर्माण करते है,लेकिन एक नकारात्मक और एक सकारात्मक मिलकर नकारात्मक का ही निर्माण करेंगे,इसी प्रकार का भाव इस विपरीत राजयोग मे प्रतिपादित किया जाता है.

इसकी व्याख्या इस प्रकार से भी की जा सकती है:-आठवें भाव के स्वामी व्यय अथवा ऋण में हों,छठे भाव के स्वामी गरीबी या व्यय के स्थान में हो,और बारहवें भाव के स्वामी ऋण अथवा गरीबी में हों,अथवा अपने ही क्षेत्र में होकर अपने ही प्रभाव से परेशान हो,तो वह जातक धनी लोगो से भी धनी होता है.इसका विवेचन इस कुन्डली के द्वारा भी कर सकते है:- कन्या लगन की कुन्डली में बुध लगन में है,सूर्य केतु दूसरे भाव में तुला में है,गुरु शुक्र तीसरे भाव में वृश्चिक राशि में है,राहु शनि आठवें भाव में मेष राशि के है,मंगल चन्द्र नवें भाव में वृष राशि के है,इस कुन्डली में ऋण भाव के मालिक शनि मेष राशि के नीच भी है और गरीबी के भाव में भी विराजमान है तथा राहु से ग्रसित भी है,साथ ही सूर्य जो व्यय का मालिक है,से भी देखे जा रहे है,और कोई भी अच्छा ग्रह उसे नही देख रहा है,इसी प्रकार से सूर्य भी तुला का होकर नीच है,और केतु का साया भी है,अपने ही स्थान से तीसरे स्थान में है,राहु,शनि और केतु का पूरा पूरा ध्यान सूर्य के ऊपर है,और सूर्य के लिये कोई भी सहारा कही से नही दिखाई दे रहा है,यह उदाहरण विपरीत राजयोग का श्रेष्ठ उदाहरण माना जा सकता है.जातक लगनेश बुध के चलते बातो से कमा रहा है,पराक्रम में गुरु और शुक्र का बल है,गुरु ज्ञान है और शुक्र दिखावा है,मंगल चन्द्र नवें भाव से जो कि धन के मामले में परेशान जनता का उदाहरण है,को अपनी राय देकर मनमानी फ़ीस लेकर जनता को धन के कारणो जैसे कर्जा और धन के कारण चलने वाले कोर्ट केशो से फ़ायदा दिलवा रहा है,इधर शनि जो कि कमजोर होकर राहु का साथ लेकर बैठा है,सरकारी कारिन्दो की सहायता से मुफ़्त की जमीनो से और उनको खरीदने बेचने से भी धन की उपलब्धि करवा रहा है.

शनिवार, 5 मई 2018

जन्म कुंडली और फलादेश

यह पोस्ट  उन मित्रों के लिए है जो ज्योतिष सिख रहे हैं  भारतीय ज्योतिष में जो फ़लादेश किया जाता है उसके लिये कई तरह के तरीके अपने अपने अनुसार अपनाये जाते है। 
,लेकिन मै जो तरीका प्रयोग में लाता हूँ वह अपने प्रकार का है. राशि चक्र में गुरु जहाँ हो उसे लगन मानना जरूरी है कुंडली का विश्लेषण करते वक्त गुरु जहाँ भी विराजमान हो उसे लगन मानना ठीक रहता है,कारण गुरु ही जीव का कारक है और गुरु का स्थान ही बता देता है कि व्यक्ति की औकात क्या है,इसके साथ ही गुरु की डिग्री भी देखनी जरूरी है,गुरु अगर कम या बहुत ही अधिक डिग्री का है तो उसका फ़ल अलग अलग प्रकार से होगा,उदाहरण के लिये कन्या लगन की कुण्डली है और गुर मीन राशि में सप्तम में विराजमान है तो फ़लादेश करते वक्त गुरु की मीन राशि को लगन मानकर गुरु को लगन में स्थापित कर लेंगे,और फ़लादेश गुरु की चाल के अनुसार करने लगेंगे। ग्रहों की दिशाओं को भी ध्यान में रखना जरूरी है कालचक्र के अनुसार राशियों के अनुसार दिशायें भी बताई जाती है,जैसे मेष सिंह और धनु को पूर्व दिशा की कारक और मिथुन तुला तथा कुम्भ को पश्चिम दिशा की कारक वृष कन्या और मकर को दक्षिण दिशा की कारक तथा कर्क वृश्चिक और मीन को उत्तर दिशा की कारक राशियों में माना जाता है। इन राशियों में स्थापित ग्रहों के बल और उनके द्वारा दिये गये प्रभाव को अधिक ध्यान में रखना पडेगा। ग्रहों की द्रिष्टि का ध्यान रखना जरूरी है ग्रह अपने से सप्तम स्थान को देखता है,यह सभी शास्त्रों में प्रचिलित है,साथ ग्रह अपने से चौथे भाव को अपनी द्रिष्टि से शासित रखता है और ग्रह अपने से दसवें भाव के लिये कार्य करता है,लेकिन सप्तम के भाव और ग्रह से ग्रह का जूझना जीवन भर होता है,इसके साथ ही शनि और राहु केतु के लिये बहुत जरूरी है कि वह अपने अनुसार वक्री में दिमागी बल और मार्गी में शरीर बल का प्रयोग जरूर करवायेंगे,लेकिन जन्म का वक्री गोचर में वक्री होने पर तकलीफ़ देने वाला ग्रह माना जायेगा. ग्रहों का कारकत्व भी समझना जरूरी है ग्रह की परिभाषा के अनुसार तथा उसके भाव के अनुसार उसका रूप समझना बहुत जरूरी होता है,जैसे शनि वक्री होकर अगर अष्टम में अपना स्थान लेगा तो वह बजाय बुद्धू के बहुत ही चालाक हो जायेगा,और गुरु जो भाग्य का कारक है वह अगर भाग्य भाव में जाकर बक्री हो जायेगा तो वह जल्दबाजी के कारण सभी तरह के भाग्य को समाप्त कर देगा और आगे की पुत्र संतान को भी नही देगा जिससे आने वाले वंश की क्षति का कारक भी माना जायेगा. जन्म के ग्रह और गोचर के ग्रहों का आपसी तालमेल ही वर्तमान की घटनायें होती है जन्म के समय के ग्रह और गोचर के ग्रहों का आपसी तालमेल ही वर्तमान की घटनाओं को बताने के लिये माना जाता है,अगर शनि जन्म से लगन में है और गोचर से शनि कर्म भाव में आता है तो खुद के कर्मों से ही कार्यों को अन्धेरे में और ठंडे बस्ते मे लेकर चला जायेगा। इसके बाद लगन का राहु गोचर से गुरु को अष्टम में देखता है तो जीवन को बर्फ़ में लगाने के लिये मुख्य माना जायेगा,जीव का किसी न किसी प्रकार की धुंआ तो निकलना ही है। गुरु के आगे और पीछे के ग्रह भी अपना अपना असर देते है गुरु के पीछे के ग्रह गुरु को बल देते है और आगे के ग्रहों को गुरु बल देता है,जैसी सहायता गुरु को पीछे से मिलती है वैसी ही सहायता गुरु आगे के ग्रहो को देना शुरु कर देता है,यही हाल गोचर से भी देखा जाता है,गुरु के पीछे अगर मंगल और गुरु के आगे बुध है तो गुरु मंगल से पराक्रम लेकर बुध को देना शुरु कर देगा,अगर मंगल धर्म मय है तो बुध को धर्म की परिभाषा देना शुरु कर देगा और और अगर मंगल बद है तो गाली की भाषा देना शुरु कर देगा,गुरु के पीछे शनि है तो जातक को घर में नही रहने देगा और गुरु के आगे शनि है तो गुरु घर बाहर निकलने में ही डरेगा। शनि चन्द्रमा की युति जन्म की साढेशाती शनि और चन्द्रमा का कुंडली में कही भी योगात्मक प्रभाव है तो जन्म से ही साढेशाती का समय माना जाता है,इस युति का सीधा सा प्रभाव है कि जातक अपने अनुसार काम कभी नही कर पायेगा,उसे स्वतत्र काम करने में दिक्कत होगी उसे खूब बता दिया जाये कि वह इस प्रकार से रास्ता पकड कर चले जाना लेकिन वह कहीं पर अपने रास्ते को जरूर भूल जायेगा,इसलिये कुंडली में गुरु के साथ चन्द्रमा की स्थिति भी देखनी जरूरी होती है,वैसे चन्द्रमा को माता का कारक भी मानते है,लेकिन अलग अलग भावों में चन्द्रमा का अलग अलग रूप बन जाता है,जैसे धन भाव में चन्द्रमा कुटुम्ब की माता,तीसरे भाव में चन्द्रमा पिता के बिना नही रहने वाली माता चौथे भाव में चन्द्रमा से बचपन के सभी कष्टों को दूर करने वाली माता,पंचम स्थान से स्कूल की अध्यापिका माता,छठे भाव में मौसी भी मानी जाती है और चाची भी मानी जाती है,सप्तम में माता के रहते पत्नी या पति के लिये विनासकारी माता,अष्टम में माता का स्थान ताई की नही बनेगी,नवे भाव में दादी का रूप यह चन्द्रमा ले लेता है,दसवें भाव में पिता से परित्याग की गयी माता,और ग्यारहवे भाव में जब तक स्वार्थ पूरा नही होता है तब तक की माता और बारहवें भाव में जन्म के बाद भूल जाने वाली माता के रूप में माना जाता है,इस चन्द्रमा के साथ जहां भी शनि होगा जातक के लिये वही स्थान फ़्रीज करने के लिये काफ़ी माना जायेगा। कुंडली का सूर्य पिता की स्थिति को बयान करता है गुरु को जीव की उपाधि दी गयी है तो सूर्य को पिता की उपाधि दी गयी है,उसी सूर्य को बाद में पुत्र की उपाधि से विभूषित किया गया है,लेकिन पिता के लिये नवा भाव ही देखना बेहतर तरीका होता है और पिता के ऊपर आने वाले कष्टों के लिये कुंडली के चौथे भाव में जब भी कोई क्रूर ग्रह गोचर करेगा या शनिका गोचर होगा पिता के लिये कष्ट का समय माना जायेगा। इसके अलावा राहु का गोचर पिता के लिये असावधानी से कोई दुर्घटना और केतु के गोचर से अचानक सांस वाली बीमारी या सांस की रुकावट वाली बीमारी को माना जायेगा,चन्द्रमा से जल से भय और मंगल से वाहन या अस्पताल या पुलिस से भय माना जायेगा। सूर्य और गुरु की युति से पिता पुत्र का एक जैसा हाल होगा,और जातक को जीवात्मा की उपाधि दी जायेगी,साथ ही अगर धर्म के भाव में स्थापित है तो ईश्वर अंश से अवतार माना जायेगा। राहु सूर्य और गुरु का साथ पुराने पूर्वज के रूप में जातक का जन्म माना जायेगा,और गुरु से तीन भाव पहले की राशि के काम करने के लिये जातक को वापस अपने परिवार में आने को माना जायेगा। सूर्य शुक्र का साथ बलकारी पिता और जातक के लिये भी बलकारी योग का रूप देगा,इसके अन्दर कितनी ही बलवान स्त्री क्यों न हो लेकिन जातक के वीर्य को अपनी कोख बडी मुश्किल से धारण कर पायेगी,जैसे ही पुत्र संतान का योग आयेगा,जातक की पत्नी किसी न किसी कारण से मिस कैरिज जैसे कारण पैदा कर देगी,लेकिन जैसे ही सूर्य का समय समाप्त होगा जातक के एक पुत्र की उत्पत्ति होगी। इसी प्रकार से सूर्य और चन्द्र का साथ जातक के जीवन में अमावस्या का योग पैदा करता है। जातक के बचपन में माता को पिता के कारणों से फ़ुर्सत ही नही मिल पायेगी,जो वह जातक का ध्यान रख सके। इसी तरह से चन्द्रमा और सूर्य का आमना सामना जातक के जीवन में पूर्णिमा का योग पैदा करेगा,जातक को छोड कर माता का दूर जाना कैसे भी सम्भव नही है और माता के लगातार साथ रहने के कारण जातक को किसी भी कष्ट का अनुभव नही होगा लेकिन वह अपने जीवन में माता जैसा सभी को समझने पर छला जरूर जायेगा,यहां तक कि उसकी शादी के बाद भी लोग उसे छलना नही छोडेंगे,उसकी पत्नी भी उसके साथ भावनाओं में छल करके उससे लाभ लेकर अपने मित्रों को देती रहेगी या अपने परिवार की भलाई का काम सोचती रहेगी अगर आप को नहीं दिखाना चाहते हैं या बनवाना चाहते हैं यहां ज्योति सीखना चाहते हैं तो हमारे नंबरों पर संपर्क करें 0759771872509414481324 आचार्य राजेश

लाल का किताब के अनुसार मंगल शनि

मंगल शनि मिल गया तो - राहू उच्च हो जाता है -              यह व्यक्ति डाक्टर, नेता, आर्मी अफसर, इंजीनियर, हथियार व औजार की मदद से काम करने वा...