शनिवार, 24 मार्च 2018

मां काली मुर्ती रहस्य

मां काली मुर्ती रहस्य।                                  कभी आपने देखा है काली की मूर्ति को, वह मां है और विकराल, मां है और हाथ में खप्‍पर लिए है। आदमी की खोपड़ी का। मां है,।  

                   उसकी आंखों में सारे मातृत्‍व का सागर। और नीचे, वह किसी की छाती पर खड़ी है। पैरों के नीचे कोई दबा हे। क्‍योंकि जो सृजनात्मक है, वहीं विध्‍वंसात्‍मक होगा। क्रिएटिविटि का दूसरा हिस्‍सा डिस्ट्रैक्शन है। इसलिऐ मां को खड़ा किया है, नीचे लाश की छाती पर खड़ी है। हाथ में खोपड़ी है आदमी की मुर्दा। खप्‍पर है, लहू टपकता है। गले में माला है खोपडियो की। और मां की आंखे है और मां का ह्रदय है, जिनसे दूध बहे। और वहां खोपड़ियो की माला टंगी है।

   

   असल में जहां से सृष्‍टि पैदा होती है। वहीं प्रलय होता है। सर्किल पूरा वहीं होता है। इसलिए मां जन्‍म दे सकती है। लेकिन मां अगर विकराल हो जाती है। शक्‍ति उसमें बहुत है। क्‍योंकि शक्‍ति तो वहीं  है, चाहे वह क्रिएशन बने और चाहे डिस्ट्रैक्शन बने। शक्‍ति तो वहीं है, चाहे सृजन हो या विनाश हो। जिन लोगों ने मां की धारणा के साथ सृष्‍टि और विनाश, दोनों को एक साथ सोचा था, उनकी दूरगामी कल्‍पना है। लेकिन बड़ी गहन और सत्‍य के बड़े निकटअसल मे स्‍वर्ग और पृथ्‍वी का मूल स्‍त्रोत वहीं है। वहीं से सब पैदा होती है। लेकिन ध्‍यान रहे, जो मूल स्‍त्रोत होता है,वही चीजें लीन हो जाती हे। वह अंतिम स्‍त्रोत भी होता है।

मंगलवार, 20 मार्च 2018

रत्न फिरोजा Gemstone

मित्रों आज वात करते हैं फिरोजा रतन की ग्रहों के प्रभाव को वल देने के लिए या फिर उन्हें मजबूती प्रदान करने के लिए ज्योतिष विज्ञान द्वारा विभिन्न प्रकार के रत्न प्रदान किए गए हैं। 
यह रत्न हमारे जीवन को सुधारने और यहां तक कि कई रोगों से लड़ने में भी सहायक सिद्ध होते हैं।या फिर समस्याओं दूर करने के लिए रत्नों का सहारा लिया जाता है।
वैसे पहले भी हम आपको कई रत्नों जैसे पुखराज, सफेद मोती आदि के बारे में बता चुके हैं इसी कड़ी में आज आपको बताएंगे 'फिरोजा' के बारे में। ये एक ऐसा रत्न है जो दुश्मनों से भी आपको विजय दिला सकता है और आपकी सारी समस्याएं भी सुलझ जाती है। ज्योतिष की मानें तो यह रत्न पूर्ण रूप से वैज्ञानिक हैं और निश्चित समय में काम करना आरंभ कर देते हैं।फिरोजा 16 वीं सदी के आसपास फ्रेंच भाषा के तुर्की (Turquois) से प्राप्त हुवा था। यह गहरे नीले रंग का रत्न है। इस के नाम मे बहोत सारे सहस्य है।  इसे पहनने से बीमारियों से भी छुटकारा पाया जा सकताहै फिरोजा नफरत को शांत कर निश्छल प्रेम बढ़ाता है। 

इस रत्न के विषय में माना जाता है कि स्वयं खरीदकर धारण करने की बजाय किसी से उपहार मिलने पर इसका असर ज्यादा होता है। किसी के प्रति अपना प्रेम प्रकट करना हो, तो उसे फिरोजा की बनी मुद्रिका भेंट करनी चाहिए। यह प्रेमी-प्रेमिका, पति-पत्नी, अथवा मित्र किसी को भी भेंट की जा सकती है। इसमें अनुराग का रंग चढ़ा होता है। अगर पहले से प्रेम अंकुरित है, तो वह पल्लवित होगा, पुष्पित होगा और अंत में फलित भी होगा। यदि पहले से कुछ न हो, तो तब भी प्रेम अंकुरित होने लगेगा। विवाहित युगल एक जैसी दो अंगूठियां फिरोजा की बनवाएं और प्रेमपूर्वक एक दूजे को पहनाएं, तो प्रेम संबंधों में प्रगाढ़ता आएगी। यदि किसी प्रकार का मतभेद है, तो वह समाप्त हो कर निकटता बढ़ेगी। दो मित्र, अथवा दो सहेलियां भी अपने प्रिय को फिरोजा की अंगूठी, अथवा लाॅकेट भेंट करें, तो मित्रता का रंग चोखा चढ़ेगा। फिरोजा में सात्विक किस्म की वशीकरण शक्ति होती है। एक विशेष प्रयोग के बारे में लिखा जा रहा है। तीन मित्र थे। तीनांे में से दो में किसी बात को ले कर मतभेद हो गया। एक ही शहर में रह कर दोनों ने पांच साल तक बोलचाल बंद रखी। तीसरे मित्र ने, जो दोनों का परम मित्र और शुभ चिंतक था, एक ही तरह की तथा एक ही वजन की तीन फिरोजा की अंगुठियां बनवायीं। अभिमंत्रित होने के बाद तीनों मित्रों ने अंगुठियां पहनीं। दोनों फिरोजा पहने रूठे मित्रों को आपस में हाथ मिलाते देर नहीं लगी।  इस परोपकारी रत्न के अनेक नाम हैंः संस्कृत में पेरोजक, पैरोज, व्योमाभ, नीलकंठक, फारसी में फिरोजा  फिरोजा फारस (नौशपुर नामक स्थान) तिब्बत, अफगानिस्तान, मिस्र, अमेरिका एवं तुर्की ईरान दक्षिण ऑस्ट्रेलिया. में चीन, ब्राजील, मेक्सिको, संयुक्त राज्य अमरीका, इंग्लैंड, बेल्जियम और भी बहोत  आदि देशों में पाया जाता है। इसका रंग गहरा नीला, आसमानी नीला और हरापन लिए होता है। शुद्ध नीले रंग की मांग अधिक होती है। तिब्बत में हरा रंग पसंद किया जाता है। गर्मी, तेज प्रकाश और पसीने से इसका रंग खराब हो सकता है। फिरोजा अपारदर्शक होते हुए भी अपने रंग की चमक के कारण सुंदर रत्नों की श्रेणी में आता है। फिरोजा का काठिन्य 5.6 से 6 तथा अपेक्षित गुरुत्व 2.6 से 2.8 तक होता है। रसायन शास्त्र के अनुसार यह एल्युमीनियम, लोहा, तांबा और फाॅस्फेट का यौगिक है। औषधीय गुण फिरोजा का शोधन करने के पश्चात भस्म, या पाक का औषधीय प्रयोग किया जाता है। यह प्रयोग अनुभवी चिकित्सक के मार्गदर्शन में ही करना उचित है। यह नेत्र एवं वाणी दोष, मुंह और गले के रोग, उदर शूल और पुराने विष का प्रभाव नष्ट करता है। अनिद्रा रोग में भी यह लाभदायक है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि फिरोजा के धारक के निकट बिच्छु नहीं आता। उसे बिजली और पानी का भय नहीं रहता है।फिरोजा रत्न को शुक्र और शनि का मिश्रित रत्न माना जाता है. ज्योतिष में शुक्र और शनि की युति लैला मजनू की जोड़ी के नाम से प्रसिद्द है.शुक्र प्रेम का कारक ग्रह माना जाता है  इस रत्न को धारण करने से शुक्र का शुभ फल प्राप्त होता है। यह राहु एवं केतु के अशुभ प्रभाव को भी दूर करता है फिरोज़ा कमाल का हीलर होता है। ऐसा माना जाता है कि फ़िरोज़ा स्वर्ग और पृथ्वी के बीच ऊर्जावान पुल का काम करता है। प्राचीन काल से ही यह सुरक्षा तथा अच्छे भाग्य जैसे अपने आकर्षण गुणों के लिए जाना जाता रहा है। ऐसा माना जाता है कि जब कोई व्यक्ति फ़िरोज़ा उपहार में देता है तो इसके गुण सौ गुना बढ़ जाते हैं।: 
इसे धारण करने से रिश्तों में प्रगाढ़ता आती है और प्रेम का संचार होता है। यही नहीं भविष्य में आने वाले संकटों से भी निजात मिलता है जैसे भूत प्रेत बाधा और दैवी आपदा जैसी भयानक शक्तियां अपना सिर नहीं उठा पाती।
कुछ ज्योतिषियों का यह मानना है कि यह दो ग्रहों के शुभ प्रभाव को बढाता है | अन्य कोई ऐसा रत्न नहीं है जो दो ग्रहों को शांत करता हो शनि और बुध मिलकर व्यक्ति को नपुंसक बनाते हैं और फिरोजा नपुंसकता को नष्ट करता है  जुए और सट्टे की लत से छुटकारा दिलाता है, शराब छुडवाने के लिए भी फिरोजा पहना जा सकता है | इसे पहनने से व्यक्ति कूटनीति में सफलता प्राप्त कर सकता है |
हर किसी को यह रत्न लाभ नहीं देता परन्तु जिस किसी को यह रत्न माफिक आ जाए उसका हर शत्रु से बचाव करता है | परिवार को मुसीबत से बचाता है विशेष रूप से पति और पत्नी बीच , नफ़रत को नष्ट करता है और प्यार बढ़ाता है।
काला जादू या तांत्रिक क्रियाकलाप में फिरोजा बहुत काम आता है | यदि फिरोजा पहना है तो भूत प्रेत और बुरी नजर से बचाव करता है | इसके अतिरिक्त फिरोजा ग्रह स्थिति के अनुसार अपना प्रभाव दिखाता है | फिरोजा यदि असली मिल जाए तो बेहद आकर्षक यह रत्न जितना सुन्दर लगता है उतना ही यह प्रभाव भी देता है फिल्म उमराव जान के एक सीन में फारुख शेख रेखा के बालों में आहिस्ता-आहिस्ता ऊँगलियाँ फिरा रहे हैं। इस बेहद खूबसूरत और रोमांटिक सीन में रेखा की काली जुल्फों के साथ जिस चीज पर कैमरा फोकस कर रहा है वह फारुख शेख के हाथ की एक ऊँगली में जगमगा रहा नैशापुरी फिरोजा है। लखनऊ में शूटिंग के दौरान नवाब मीर जाफर अब्दुल्ला की ऊँगली से उतरवाकर फिल्म के निर्देशक मुजफ्फर अली ने यह अँगूठी खास तौर पर फारुख शेख को पहनाई थीमुजफ्फर अली शिया मुसलमान हैं और कहीं न कहीं वह यह जरूर दिखाना चाहते थे कि शियाओं की एक पहचान फिरोजा रत्न भी है क्योंकि चौथे खलीफा हजरत अली और आठवें इमाम रजा फिरोजे की अँगूठी पहनते थे। ईरान स्थित नौशापुर का फिरोजा सबसे बेहतरीन माना जाता है। इराक के नजफ में हजरत अली के रौजे और ईरान के मशद में इमाम रजा की कब्र से मस (छुआ) कर फिरोजा पहनना शियाओं में सवाब (पुण्य) माना जाता है।
फिरोजे का इस्तेमाल सोने के जेवरों में भी हमेशा से खूब होता आया है। इसकी नीली चमक पीले सोने में खूब फबती है। इसे जवाहरात की श्रेणी में दूसरे नंबर पर रखा गया है। इस पर न तो तेजाब का असर होता है और न आग में पिघलता है। इसे पहनने से दिल के मर्ज में फायदा होता है। तबीयत को राहत और ताजगी बख्शता है। आँखों की रोशनी बढ़ाता है और गुर्दे की पथरी निकालता है। साफ और खुली फिजा में इसका रंग और ज्यादा खिल जाता है।| यह राहु एवं केतु के अशुभ प्रभाव को भी दूर करता है जो भ्रम और मानसिक उलझनों को बढ़ाने वाला ग्रह है। इसे धारण करने से ऊपरी चक्कर, भूत-प्रेत बाधाओं से भी मुक्ति मिलती है। इस रत्न को आम तौर पर दायें हाथ की कनिष्ठा, अनामिका, या मध्यमा उंगली में शुक्रवार को सुबह स्नान करने के बाद धारण किया जाता है। शुक्रवार कुछ ज्योतिषी इसे बुधवार या शनिवार को धारण करने कि सलाह भी देते हैं.इसे लोग ब्रेसलेट में भी पहनते हैं. कहते हैं कि जब से सलमान खान ने इसे पहना, लाखो लोगों ने देखा-देखी इसे ख़रीदा (हालाँकि ब्रेसलेट में अक्सर नकली फ़िरोज़ा ही चलता है)
नोट : यह गुण आप लोगों की रुचि और ज्ञान के लिए लिख दिए जाते हैं, पर रत्न धारण कुंडली के सही विश्लेषण और अच्छे ज्योतिषी की सलाह पर ही धारण करने चाहिएं. कौन सा रत्न कब पहना जाए इसके लिए कुंडली का सूक्ष्म निरीक्षण जरूरी होता है।मैंने एक मामले में फ़िरोज़ा उतरवा कर ही उस जातक के लिए बहुत अच्छे परिणाम देखे हैं (उनके अनुभव मैंने कई बार शेयर भी किये हैं). उन के अटके हुए काम फ़िरोज़ा उतारने के बाद ही खुले !ज्योतिष में सभी को फिरोजा पहनने की सलाह नहीं दी जाती बल्कि कुछ खास लोगों को ही यह पहनाया जाता हैआज कल बाजार में नकली रत्न बहुत सारे आ रहे है, इसलिए रत्न लेने से पहले उसे पहले जाँच या परख कर के ही ख़रीदे ,रत्नों में अद्भूत शक्ति होती है. रत्न अगर किसी के भाग्य को आसमन पर पहुंचा सकता है तो किसी को आसमान से ज़मीन पर लाने की क्षमता भी रखता है. रत्न के विपरीत प्रभाव से बचने के लिए सही प्रकर से जांच करवाकर ही रत्न धारण करना चाहिए. ग्रहों की स्थिति के अनुसार रत्न धारण करना चाहिए. रत्न कुंडली दिखाकर ही पहने क्योंकी रत्नों का काम सूर्य से उर्जा लेकर उसे शरीर में प्रवाहित करना होता है ,अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान या कुंडली विश्लेषण हेतु संपर्क कर सकते  हैं या असली ओर लैवटैस्ट रतन रैना चाहते हैं तो भी आप हमारे नम्वरो पर वात कर सकते हैं 07597718725-09414481324 आचार्य राजेश

सोमवार, 12 मार्च 2018

लाल किताब ओर रत्न चयन

मित्रों रत्नों पर वात चल रही है मैंने अपनी पिछली पोस्ट रतनो पर ही  लिखी थी जो आप लोगों द्वारा काफी पसन्द की गई  यह पोस्ट भी रत्नों पर ही   है लालं किताव में रतन पहनने के बारे में कई तरह के नियम बताए गए हैं।लाल किताब कहती है रत्न शुभ फल देने की शक्ति रखता है तो अशुभ फल देने की भी इसमें ताकत है। रत्नों के नाकारात्मक फल का सामना नहीं करना पड़े इसके लिए रत्नों को धारण करने से पहले कुछ सावधानियों का भी ध्यान रखना जरूरी होता है। 

वैसे  रतन  पहने  तो लाल किताब के विशेषज्ञ से पूछकर ही पहने।लाल किताब के अनुसार रत्नों में मंदे, कमजोर एवं सोये हुए ग्रहों को नेक, बलशाली, एवं जगाने की क्षमता होती है। लेकिन जब तक सही ज्योतिषी सलाह ना मिले, तब रत्न धारण करने ने नुकसान हो सकता है।वैदिक ज्योतिष के समान लाल किताब भी भविष्य जानने की एक विधा है.लाल किताब में ग्रहों के योग और उनके फल के सम्बन्ध में अपनी मान्यताएं हैं यह ग्रंथ जन्म कुण्डली, हस्त रेखा तथा सामुद्रिक शास्त्र का मिश्रण है और जिन व्यक्तियों को अपनी जन्म कुण्डली की सत्यता पर भरोसा ना हो तो वह लालकितावके ज्ञान के आधार पर अपने जीवन की बाधाओं का समाधान कर सकते हैं।ज्योतिष की इस विधा में भी लग्न कुंडली वनाई जाती हैप्रयुक्त कुण्डली बस्तुतः पारम्परिक जन्म कुण्डली ही है। जन्म कुण्डली में ग्रहों को यथा स्थान रहने दें, जिन राशियों वह हैं, उन्हें हटा दें। अब लग्न को 1(मेष) राशि मानते हुए दूसरे, तीसरे, आदि 12 भावों में क्रमशः 2(वृष), 3(मिथुन) आदि 12 राशि 12(मीन) तक लिख दें। यह कुण्डली लाल किताब का आधार है।


मित्रों ध्यान दें, लग्न कुण्डली में चाहे जो राशि हो लाल किताब की कुण्डली में सदैव मेष राशि ही रहती है। इसी प्रकार क्रमशः दूसरे में वृष, तीसरे में मिथुन आदि मीन तक बारहों राशियॉ रहती है। यह इन घरों की पक्की राशियॉ कहलाती हैं।

जो ग्रह शत-प्रतिशत शक्तिशाली होते हैं, वह उच्च के ग्रह कहे जाते हैं तथा जो ग्रह निर्बल होते हैं, वह नीचे के कहे जाते हैं। कुण्डली में इनके स्थान भी सुनिश्चित हैं, यथा

स्पष्ट ग्रह शुभता प्रदान करने में पूर्ण रुप से सहयोगी सिद्ध होता है। ज्योतिष शास्त्र के नियमों की तरह प्रत्येक ग्रह की अपनी दृष्टि विशेष होती है। सूर्य, चंद्र, गुरु तथा बुद्ध अपने से सातवें भाव को देखता है। गुरु, राहु, केतु अपने से पॉचवे, सातवें तथा नवे भाव को देखते हैं। मंगल चौथ, सातवे, आठवे भावों को तथा शनि अपने से तीसरे, सातवे तथा दसवे भाव को देखता है। प्रत्येक ग्रह सातवे भाव को अवश्य देखता है।लाल किताब से रत्न चयन करने के लिए यह परिचय पूर्ण नहीं कहा जा सकता तदापि यह भूमिका विषय को समझाने और व्यवहार में लाने की कुंजी अवश्य सिद्ध हो सकती है। किसी कुण्डली में यदि बलवान है, लाल किताब की भाषा में कहें कि यदि वह अपने पक्के ग्रहों में स्थित है तो उनसे संबंधित रत्न धारण किया जा सकता है। किताब सदैव उच्च अर्थात शत-प्रतिशत शक्तिशाली ग्रहों के रत्न धारण करने पर बल देती है। ऐसे योग कुण्डली में खेाजना बहुत ही सरल है। परन्तु यदि कुण्डली में शक्तिशाली ग्रह अथवा ग्रहों का अभाव हो तो सुप्त ग्रह तथा सुप्त भाव को बलवान करने का प्रयास करना चाहधि जितनी सरल है उतनी ही अधिक प्रभावशाली भी सिद्ध होगी। आवश्यता है कि इस ज्ञान को समझने की, उसमें अधिक खोज करने की, तदनुसार व्यवहार में लाने की ताकि अधिकारिक रुप से मानव कल्याण हो सके।  अपने बुद्धि-विवेक से और आगे बढ़ाने का एक और प्रयास करके तो देखिये, कितने संतोष जनक परिणाम आपको मिलते हैं।तमाम वैदिक ज्योतिषी मित्रों को कहना चाहता हूं आप लाल किताब की निन्दा मत करें आप इस विघा को सिखे  यदि किसी घर में कोई ग्रह सोया हुआ हो तो उस घर को और उस ग्रह के प्रभाव को जाग्रत करने के लिए उस घर का रत्न धारण करें। जैसे पहले घर को जगाने के लिए मंगल का रत्न, दूसरे घर को जगाने के लिए चंद्र का, तीसरे के लिए बुध का, चैथे के लिए चंद्र का, पांचवें के लिए सूर्य का, छठे के लिए राहु का, सातवें के लिए शुक्र का, आठवें के लिए चंद्र, नौवें के लिए गुरु का, दसवें के लिए शनि का, ग्यारहवें के लिए गुरु का एवं बारहवें घर को जगाने के लिए केतु का रत्न धारण किया जा सकता है। यदि दो ग्रह आपस में टक्कर के हों और उनमें शत्रु भाव उत्पन्न हो रहा हो तो दोनों ही ग्रहों के रत्न एक साथ ही पहनना चाहिए। किसी कुंडली में ग्रह यदि बलवान हों, लाल किताब की भाषा में कहें तो यदि वे अपने पक्के घरों में स्थित हों, तो उनसे संबंधित रत्न चयन किया जा सकता है। लाल किताब सदैव उच्च अर्थात शतप्रतिशत शक्तिशाली ग्रहों के रत्न धारण करने पर बल देती है। ऐसे योग किसी कुंडली में खोजना बहुत ही सरल है। परंतु यदि कुंडली में शक्तिशाली ग्रह अथवा ग्रहों का अभाव हो तो सुप्त ग्रह तथा सुप्त भाव को बलवान बनाने की प्रक्रिया अपनाएं। यह विधि जितनी सरल है उतनी ही प्रभावशाली भी। यदि कुंडली में चंद्र ग्रह सर्वाधिक बलशाली हो तो चंद्र का रत्न मोती धारण करवाया जा सकता है। इसके साथ-साथ सुप्त भाव तथा सुप्त ग्रह को भी बलवान कर लिया जाए तो परिणाम अधिक अच्छे होंगे। कुंडली में सर्वाधिक भाग्यशाली ग्रह उच्च भाग्य का द्योतक है। भाग्य के लिए सर्वोत्तम ग्रह के अनुरूप रत्न का चयन निम्न चार बातों को ध्यान में रखकर कर सकते हैं- जिस राशि में ग्रह उच्च का होता है और लाल किताब की कुंडली के अनुसार भी उसी भाव अर्थात राशि में स्थित होता है उससे संबंधित रत्न भाग्य रत्न होता है। यदि ग्रह अपने स्थायी भाव में स्थित हो तथा उसका कोई मित्र ग्रह उसके साथ हो अथवा उसको देखता हो तो उस ग्रह से संबंधित रत्न भाग्य रत्न होता है। नौ ग्रहों में से जो ग्रह श्रेष्ठतम भाव में स्थित हो, उस ग्रह से संबंधित रत्न भाग्य रत्न होता है।  कुंडली के केंद्र अर्थात पहले, चैथे, सातवें तथा 10वें भाव में बैठा ग्रह भी भाग्यशाली रत्न इंगित करता है। यदि उक्त भाव रिक्त हों तो नौवां, नौवां रिक्त हो तो तीसरा, तीसरा रिक्त हो तो ग्यारहवां, ग्यारहवां रिक्त हो तो छठा और यदि छठा भाव भी खाली हो तो खाना 12 में बैठा ग्रह भाग्य ग्रह कहलाता है। इस ग्रह से संबंधित रत्न भी भाग्य रत्न कहलाता है। जब किसी भाव पर किसी भी ग्रह की दृष्टि नहीं हो अर्थात वह भाव किसी भी ग्रह द्वारा देखा नहीं जाता हो तो वह सुप्त भाव कहलाता है। उदाहरण में ऐसे सुप्त भाव पहला तथा सातवां हैं। इन दोनों भावों को कोई भी ग्रह नहीं देख रहा है। इसके लिए यदि इन भावों को चैतन्य कर देने वाले ग्रहों का उपाय किया जाए तो ये भाव चैतन्य हो जाएंगे तथा इन से संबंधित विषय में व्यक्ति को आशातीत लाभ मिलने लगेगा। जब कोई ग्रह किसी अन्य ग्रह को नहीं देखता तो वह ग्रह सुप्त कहलाता है। सुप्त ग्रह कब जाग्रत होते हैं अर्थात आयु के किस वर्ष में फल देते हैं इसका विवरण भी लाल किताब में मिलता है। यदि उस वर्ष में खोज किए हुए ग्रह के उस रत्न का प्रयोग किया जाए तो जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में यथा उपाय सहायता मिलती है। लाल किताब के अनुसार ग्रहों के कुप्रभावों को समाप्त करने के लिए, उन्हें अनुकूल बनाने के लिए नीचे दिए गए विवरण के अनुसार विभिन्न रत्नों को विभिन्न धातुओं में धारण करना चाहिए। जिस ग्रह को बलवान करना हो उस ग्रह का रत्न उसकी धातु के साथ जड़वा कर पहनना चाहिए। जन्म का ग्रह और जन्म समय का ग्रह यदि एक हो तो वह व्यक्ति के लिए हमेशा शुभ फल प्रदान करने वाला होता है। अतः उसका रत्न निःसंकोच धारण कर लेना चाहिए। जन्म दिन के ग्रह एवं जन्म समय के ग्रह का विवरण इस प्रकार है। इस प्रकार समस्याओं से पीड़ित जातकगण लाल किताब के अनुसार अपने भाग्यशाली रत्न का चयन कर प्रतिकूल ग्रहों के कुप्रभावों से अपनी रक्षा कर सकते हैं। लाल किताब के उपायों से कष्ट निवारण में सहायता मिलती है, यह एक निर्विवाद सत्य है। दिन समय ग्रह रविवार दिन का दूसरा प्रहर सूर्य सोमवार चांदनी रात चंद्र मंगलवार पूर्ण दोपहर मंगल बुधवार दिन का तीसरा प्रहार बुध गुरुवार दिन का प्रथम प्रहर गुरु शुक्रवार कालीरात शुक्र शनिवार रात्रि एवं अंधकारमय शनि गुरुवार शाम पूर्णशाम राहु रविवार प्रातः सूर्योदय से पूर्व केतु ग्रह रत्न धातु सूर्य माणिक्य सोना चंद्र मोती चांदी मंगल मूंगा तांबा बुध पन्ना सोना गुरु पुखराज सोना शुक्र हीरा चांदी शनि नीलम लोहा राहु गोमेद ऊपर धातु केतु लहसुनिया सोना या तांबात्रों ,आप सब जब भी रत्न धारण करे तो ऊपर लिखी बातों का अवश्य ध्यान करे .प्रत्येक जातक को अपनी ग्रह की महादशा के अनुसार और ग्रहो की मित्रता ,उच्च राशिगत ,नीच राशिगत ,अन्तर्दशा ,अन्य ग्रहो की दृष्टि इत्यादि बातो का गहन अध्ययन करके की सही रत्न का चुनाव करना चाहिए नहीं तो लाभ की जगह हानि का सामना करना पड़ सकता हैत्रों ,आप सब जब भी रत्न धारण करे तो ऊपर लिखी बातों का अवश्य ध्यान करे .प्रत्येक जातक को अपनी ग्रह की महादशा के अनुसार और ग्रहो की मित्रता ,उच्च राशिगत ,नीच राशिगत ,अन्तर्द सबशा ,अन्य ग्रहो की दृष्टि इत्यादि बातो का गहन अध्ययन करके की सही रत्न का चुनाव करना चाहिए नहीं तो लाभ की जगह हानि हो सकती है हमसे कुंडली दिखाने पर  जातक को रत्न का सुझाव बड़ी ही सटिकता से दिया जाता है .अनेक जातको ने हमारे द्वारा लताऐं सही रत्न का चुनाव कर कई समस्यायों से निजात पाई है .यदि आप भी किसी भी समस्या से पीड़ित है तो मुझसे अवश्य संपर्क करे और पुरे विश्वास के बाद ही रत्न धारण करे क्योंकि आपका विश्वास ही आपकी सफलता की निशानी है .किसी के प्रति अविश्वास ही असफलता की प्रथम सीढ़ी है .

आपका जीवन शुभ हो ,मंगलमय हो ,स्वर्णमय हो ,तथास्तु 

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्jyotish acharya Rajesh: लहसुनिया केतु रतन �� Catseye

्jyotish acharya Rajesh: लहसुनिया केतु रतन �� Catseye

गुरुवार, 8 मार्च 2018

लहसुनिया केतु रतन 🐈 Catseye

 मित्रों रत्नों की बात चल रही है और इसी लय को बरकरार रखते हुए आज हम आपको लहसुनिया रत्न से जुड़ी कुछ बातें बताने जा रहे हैं।लहसुनिया केतु का रत्‍न है जो कि बेहद चमकीला होता है।
 अपनी विशेष बनावट के कारण इसे अंग्रेजी में 'कैट्स आई' कहा जाता हलहसुनिया किस लिए पहना जाता है? लहसुनिया छाया ग्रह केतु का रत्न है और केतु को साधारणतय अशुभ ग्रह माना जाता है| 

फिर क्यों इस रत्न को धारण किया जाए ये एक प्रश्न है जो generally मन में उठ सकता है|नुकूल स्थिति में केतु धार्मिक प्रकृति, विरक्ति, ज्ञान, विभेदन क्षमता (power of discriminatio
n) और आध्यात्मिक ज्ञान आदि प्रदान करता है|
शास्त्र कहते हैं “कुजावत केतु शनिवत राहू” मतलब केतु, कुजा याने मंगल की तरह और राहू शनि की तरह आचरण करते हैं| परन्तु केतु मंगल से भी ज्यादा विध्वंसकारी हो सकता है अगर ये कुंडली में अशुभ स्थिति में हो या किसी और अशुभ ग्रह के साथ युत हो  लहसुनिया की जानकारी अति प्राचीनकाल से ही लोगों को थी  इसकी कुछेक विशेषता ने हमारे पूर्वजों को आकर्षित किया था, जो आज भी लोगों को आकृष्ट करती हैं। इसके विलक्षण गुण हैं-विडालाक्षी आंखें और इससे निकलने वाली दूधिया-सफेद, नीली, हरी या सोने जैसी किरणें। इसको हिलाने-डुलाने पर ये किरणें निकलती। यह पेग्मेटाइट, नाइस तथा अभ्रकमय परतदार पत्थरों में पाया जाता है और कभी-कभी नालों की तलछटों में भी मिल जाता है। यह भारत, चीन, श्रीलंका, ब्राजील और म्यांमार में मिलता है, लेकिन म्यांमार के मोगोव स्थान में पाया जाने वाला लहसुनिया श्रेष्ठ माना जाता है ज्योतिष के अनुसार केतु का प्रत्येक कुंडली में विशेष महत्व है तथा किसी कुंडली में केतु का बल, स्वभाव और स्थिति कुंडली से मिलने वाले शुभ या अशुभ परिणामों पर बहुत प्रभाव डाल सकती है। केतु के बल के बारे में चर्चा करें तो विभिन्न कुंडली में केतु का बल भिन्न भिन्न होता है जैसे किसी कुंडली में केतु बलवान होते हैं तो किसी में निर्बल जबकि किसी अन्य कुंडली में केतु का बल सामान्य हो सकता है। किसी कुंडली में केतु के बल को निर्धारित करने के लिय बहुत से तथ्यों का पूर्ण निरीक्षण आवश्यक है हालांकि कुछ  ज्योतिषी यह मानते हैं कि कुंडली में केतु की किसी राशि विशेष में स्थिति ही केतु के कुंडली में बल को निर्धारित करती है जबकि वास्तविकता में किसी भी ग्रह का किसी कुंडली में बल निर्धारित करने के लिए अनेक प्रकार के तथ्यों का अध्ययन करना आवश्यक है  विभिन्न कारणों के चलते यदि केतु किसी कुंडली में निर्बल रह जाते हैं तो ऐसी स्थिति में केतु उस कुंडली तथा जातक के लिए अपनी सामान्य और विशिष्ट विशेषताओं के साथ जुड़े फल देने में पूर्णतया सक्षम नहीं रह पाते जिसके कारण जातक को अपने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में कुंडली में निर्बल केतु को ज्योतिष के कुछ उपायों के माध्यम से अतिरिक्त उर्जा प्रदान की जाती है जिससे केतु कुंडली में बलवान हो जायें तथा जातक को लाभ प्राप्त हो सकें केतु को किसी कुंडली में अतिरिक्त उर्जा प्रदान करने के उपायों में से उत्तम उपाय है केतु का रत्न लहसुनिया धारण करना जिसे धारण करने के पश्चात धारक को केतु के बलवान होने के कारण लाभ प्राप्त होने आरंभ हो जाते हैं लहसुनिया रत्न केतु की उर्जा तरंगों को अपनी उपरी सतह से आकर्षित करके अपनी निचली सतह से धारक के शरीर में स्थानांतरित कर देता है जिसके चलते जातक के आभामंडल में केतु का प्रभाव पहले की तुलना में बलवान हो जाता है तथा इस प्रकार केतु अपना कार्य अधिक बलवान रूप से करना आरंभ कर देते हैं। यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि केतु का रत्न लहसुनिया किसी कुंडली में केतु को केवल अतिरिक्त बल प्रदान कर सकता है तथा लहसुनिया किसी कुंडली में केतु के शुभ या अशुभ स्वभाव पर कोई प्रभाव नहीं डालता। इस प्रकार यदि किसी कुंडली में केतु शुभ हैं तो लहसुनिया धारण करने से ऐसे शुभ केतु को अतिरिक्त बल प्राप्त हो जायेगा जिसके कारण जातक को केतु से प्राप्त होने वाले लाभ अधिक हो जायेंगें जबकि यही केतु यदि किसी जातक की कुंडली में अशुभ है तो केतु का रत्न धारण करने से ऐसे अशुभ केतु को और अधिक बल प्राप्त हो जायेगा जिसके चलते ऐसा अशुभ केतु जातक को और भी अधिक हानि पहुंचा सकता है। इस लिए केतु का रत्न लहसुनिया केवल उन जातकों को पहनना चाहिये जिनकी कुंडली में केतु शुभ रूप से कार्य कर रहे हैं तथा ऐसे जातकों को केतु का रत्न कदापि नहीं धारण करना चाहिये जिनकी कुंडली में केतु अशुभ रूप से कार्य कर रहें हैं।संसार के विभिन्न भागों से आने वाले लहसुनिया विभिन्न रंगों के हो सकते हैं। यहां पर इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि विभिन्न जातकों के लिए लहसुनिया के भिन्न भिन्न रंग उपयुक्त हो सकते हैं जैसे किसी को हल्के रंग का लहसुनिया अच्छे फल देता है जबकि किसी अन्य को गहरे रंग का लहसुनिया अच्छे फल देता है। इसलिए लहसुनिया के रंग का चुनाव केवल अपने ज्योतिषी के परामर्श अनुसार ही करना चाहिए तथा अपनी इच्छा से ही किसी भी रंग का लहसुनिया धारण नहीं कर लेना चाहिये क्योंकि ऐसा करने से ऐसा लहसुनिया लाभ की अपेक्षा हानि भी दे सकता है। रंग के साथ साथ अपने ज्योतिषी द्वारा सुझाये गये लहसुनिया के भार पर भी विशेष ध्यान दें तथा इस रत्न का उतना ही भार धारण करें जितना आपके ज्योतिषी के द्वारा बताया गया हो क्योंकि अपनी इच्छा से लहसुनिया का भार बदलने से कई बार यह रत्न आपको उचित लाभ नहीं दे पाता जबकि कई बार ऐसी स्थिति में आपका लहसुनिया आपको हानि भी पहुंचा सकत है उदाहरण के लिए अपने ज्योतिषी द्वारा बताये गये लहसुनिया के भार से बहुत कम भार का लहसुनिया धारण करने से ऐसा लहसुनिया आपको बहुत कम लाभ दे सकता है अथवा किसी भी प्रकार का लाभ देने में अक्षम हो सकता है जबकि अपने ज्योतिषी द्वारा बताये गये लहसुनिया के धारण करने योग्य भार से बहुत अधिक भार का लहसुनिया धारण करने से यह रत्न आपको हानि भी पहुंचा सकता है जिसका कारण यह है कि बहुत अधिक भार का लहसुनिया आपके शरीर तथा आभामंडल में केतु की इतनी उर्जा स्थानांतरित कर देता है जिसे झेलने तथा उपयोग करने में आपका शरीर और आभामंडल दोनों ही सक्षम नहीं होते जिसके कारण ऐसी अतिरिक्त उर्जा अनियंत्रित होकर आपको हानि पहुंचा सकती है। इसलिए सदा अपने ज्योतिषी के द्वारा बताये गये भार के बराबर भार का लहसुनिया ही धारण करें क्योंकि एक अनुभवी वैदिक ज्योतिषी तथा रत्न विशेषज्ञ को यह पता होता है कि आपकी कुंडली के अनुसार आपको लहसुनिया रत्न का कितना भार धारण करना चाहिये।        लहसुनिया के       ज्योतिषीय फायदे पर उस से पहले हम इस के गुणों के वारे वात करें यह समझ लैना जरुरी है किआज के वैज्ञानिक युग में भी हम आस्थाओं को महत्व देते हैं इसलिए विस्वास रखना बहुत जरुरी है । पर इसका मतलब यह भी नहीं है कि रत्नों को अपने भाग्यावरोध हटाने का यंत्र समझकर कर्म न करें रत्न अलंकार होते हैं कर्म तो सर्वोपरि है ।यह दिमागी परेषानियां शारीरिक दुर्बलता, दुख, दरिद्रता, भूत आदि सू छुटकारा दिलाता है। लहसुनिया यदि अनुकूल हो तो यह धन दौलत में तीव्र गति से वृद्धि करता है। आकस्मित दुर्घटना, गुप्त शत्रु से भी रक्षा करता है। इसे धारण करने से रात्रि में भयानक स्वप्न नहीं आते है। असको लाकेट में पहनने से दमे से तथा श्वास नली की सूजन से आराम मिलता है। भूत-प्रेत ओर उपरी वाघा को भी यह रतन दुर कर आराम दिलाने की क्षमता रखता हैकहा जाता है कि इस रत्न को पहनने से छुपे हुए दुश्मन, अप्रत्याशित ख़तरे व रोग जीवन से दूर रहते हैं।लहसुनिया रत्न आप की अंतर्दृष्टि को बेहतर बनाने में व आप के पूर्वानुमानों में वृद्घि करता है। इस रत्न को पहनने से आप की सेहत अच्छी रहती है, भाग्योदय होता है व बच्चों से खुशियों की प्राप्ति होती है।घी में लहसुनिया की भस्मव अन्य जड़ी वूटीया मिलाकर खाने से पौरुष शक्ति बढती है। लहसुनिया धारण करने अजीर्ण, मधुमेह आदि रोगों में लाभ मिलता है। पीतल व लहसुनिया की भस्म को खाने से आंखों के रोग दूर हो जाते है।रत्नों से रोग उपचार करने के पहले उचित जानकार वैद्य या ज्योतिष ये सलाह ले लेना चाहिए.तु जिस भाव में बैठता है उस भाव के कारकत्व का नाश कर देता है और युति करने वाले ग्रह की शक्ति को भी क्षीण कर देता है| कुडंली के अतिसूक्ष्म परीक्षण के बाद अच्छी quality का लहसुनिया (Cats eye gemstone) रत्न धारण अति उत्तम साबित हो सकता है और केतु को अनुकूल बनाने में सक्षम होता है|
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शुक्रवार, 2 मार्च 2018

ओपल रतन opal gemstone

https://youtu.be/9VwaX00qRcwये सच है कि हर रत्न इस धरती पर मौजूद हर व्यक्ति को शोभा नहीं देता है. इसे पहनने के लिए ज्योतिष की सलाह आवश्यक है.
              ज्योतिष उस व्यक्ति की कुंडली का अध्ययन करता है और उसके लिए एक उपयुक्त और आकर्षण रत्न बताता है. आज हम ओपल रत्न और उससे संबंधित लाभ के बारे में बात करेंगे. इसे पहनने वाला कितना आनंद पा सकता है.ओपल या दूधिया पत्थर धातु से बना जैल है जो बहुत कम तापमान पर किसी भी प्रकार के चट्टान की दरारों में जमा हो जाता है, आमतौर पर चूना पत्थर, बलुआ पत्थर, आग्नेय चट्टान, मार्ल और बेसाल्ट के बीच पाया जा सकता है। ओपल  शब्द की उत्पत्ति लैटिन शब्द ओपलस और यूनानी शब्द ओपैलियस से हुई है।ओपल रत्न शुक्र ग्रह के प्रभाव को बढ़ाने लिए धारण किया जाता है।ओपल रत्न शुक्र ग्रह के प्रभाव को बढ़ाने लिए धारण किया जाता है।हीरा 

हीरा शुक्र का रत्न है। हीरा वे सभी व्यक्ति पहन सकते हैं जिनकी जन्म कुंडली में शुक्र अच्छे भावों का अधिपति होता है। इसके धारण करने से आयु वृद्धि जीवन रक्षा, स्वास्थ्य लाभ, व्यापार में लाभ एवं अन्य शुभ फल प्राप्त होते हैं। प्रमाणिक दुकान से ही असली हीरा गारंटी से खरीदना चाहिए।पर हीरा वोहोत ही ज्यादा मंहगा है इस लिए हर कोई नहीं पहन सकताओपल हीरे का ही प्रतिरूप है। हीरे की सामर्थ्य न होने पर ओपल भी हीरे सा फल देता है।नोट : बहुत से ज्योतिषी जेरकेन भी पहनने की सलाह देते हैं, पर जेरकेन बनाया जाता है, यह प्राकृतिक पत्थर नहीं है. कई सफ़ेद पुखराज भी पहनने की सलाह देते हैं, पर मैंने ओपल को ही प्रभावी पाया है. ओपल धवल से सफेद, भूरे, लाल, नारंगी, पीले, हरे, नीले, बैंगनी, गुलाबी, स्लेटी, ऑलिव, बादामी और काले रंगों में पाई जाती हैं। इन विविध रंगों में, काले रंग के खिलाफ लाल सबसे अधिक दुर्लभ है जबहैकि सफेद ओपल को शुक के लिए पहनाया जाता  ओर कुंडली के हिसाब से ओर रंगो के पहनावे जाते हैं  रंगों में भिन्नता लाल और अवरक्त तरंगदैर्ध्य के आकार और विकास के कारण आती हैओपल का सबसे बड़ा उत्पादक ऑस्ट्रेलिया है। इस देश में दुनिया का लगभग 97% ओपल पैदा होता है। 
ओपल दृश्य स्पेक्ट्रम में हर रंग व्यक्त कर सकते हैं। कीमती ओपल के आंतरिक से परिवर्ती रंग झलकते हैं यह परस्पर क्रिया धातु से बने होने के कारण होती है, यह एक आंतरिक संरचना है।सफेद दूधिया पत्थर का इंग्लिश नाम ओपल लैटिन भाषा के ओपलुस से आया है, जिसका अर्थ ‘गहने सा’ है। एक अन्य जानकारी के अनुसार ओपल शब्द संस्कृति शब्द उपल से आया है, जिसका अर्थ होता है कीमती पत्थर।रंगो के खेल का प्रदर्शन करने वाले विभिन्न किस्मों के रत्न के अलावा, अन्य प्रकार के आम दूधिया ओपल, दूधिया नीले से हरे होते हैं, (जो गुणवत्ता में कभी कभी रत्न के समान हो सकते हैं)एक अनुमान के अनुसार लगभग ओपल रत्न ६० मीलियन वर्ष पुराने हैं, जब डायनासोर धरती पर घूमा करते थे।मध्य युग में, माना जाता था कि ओपल एक ऐसा पत्थर है जो बहुत भाग्यशाली है क्योंकि सभी भाग्यशाली गुणों वाले रत्न के सभी रंगों में से प्रत्येक रंग ओपल के महान स्पेक्ट्रम रंग में मौजूद हैं। यह भी कहा जाता था कि इसे ताजे तेज-पत्ते में लपेटकर हाथ में रखने से अदृश्य होने की शक्ति मिल जाती थी। पता नहीं यह  वात कितनीसही है ओपल  को पहनने से निम्नलिखित लाभ मिलते हैं :रिश्तों में एकता के लिए ओपल रत्नर - ओपल रत्न शुक्र ग्रह का रत्न है जो ज्योतिष में रिश्तों की मज़बूती और लक्जरी पर शासन करने के लिए है. ओपल रत्न पहनने से रिश्तों में एकता और संतुष्टि आती है. ओपल रत्न पहनने से व्यक्ति जीवन में आकर्षण, कला, दया, संस्कृति और विलासिता से भरा जीवन जीता है.संगीत, चित्रकला, नृत्य और थिएटर आदि जैसे कलात्मक क्षेत्रों में शामिल लोगों को ओपल रत्न के पहनने से अनगिनत लाभ प्राप्त हो सकते हैं.वित्तीय स्थिति में सुधार होता है।यौन शक्ति बढ़ती है।काल्पनिक रचनात्मक शक्ति में वृद्घि होती है।अच्छा एकाग्रता और मानसिक शांति को बढ़ावा देता हैशारीरिक तंदरुस्ती प्रदान करता है एवं बुरे स्वप्न को दूर रखता है। व्यक्ति को सफलता, लोकप्रियता एवं मान सम्मान दिलाता है।सके अलावा भी जो व्यक्ति नींद में चौंक जाता हो, भूत एवं पिशाच का डर लगता हो, जिस घर में पति-पत्नी का विवाद तथा घर में कलह का वातावरण रहता हो, - शारीरिक दृष्टि से कमजोर हो, प्रेमी या प्रेमिका या सामने वाले को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए, उसे ओपल धारण करना चाहिएटीवी, फिल्म, थिएटर और ऐसे में काम कर रहे कलाकारों को हमेशा प्रसिद्धि और मान्यता के लिए इस रत्न पहनना चाहिए.ओपल रत्न अगर चांदी में और प्रक्रियाओं अनुसार पहना वीनस की ताकत बढ़ जाती है और वहाँ से सांसारिक आनंद देता है. पहनने के धन, खुशी परिवार, बच्चों, प्रसिद्धि और सम्मान प्राप्त करने में सक्षम है. भारतीय फिल्म स्टार Ashwaria राय बच्चन हमेशा उसके दाहिने हाथ की एक उंगली में ओपल पहन रखा है  ओपल जीवन में महान परिवर्तन ला सकते हैं.ओपल धारण करने से आँखों के रोगों से राहत मिलती है. फायर ओपल धारण करने से शरीर के रक्त विकार तथा लाल रक्त कणिकाओं से संबंधित विकारों से छुटकारा मिलता है और मानसिक तनाव, उदासीनता और आलस्य दूर होता है. विचारों में स्पष्टता झलकती है.
काला ओपल धारण करने पर व्यक्ति विशेष को अस्थि मज्जा, प्रजनन अंगों, प्लीहा अथवा तिल्ली और अग्न्याशय से संबंधित विकारों में लाभ मिलता है. लाल रक्त कणिकाएँ और सफेद रक्त कणिकाओं का शुद्धिकरण होता है. काला ओपल पहनने से व्यक्ति की शारीरिक सुरक्षा भी होती है. बुरे सपने नहीं आते.किडनी की सवी रोगों पर ओपल का वोहोत अच्छा लाभ रहता है मैंने ऐसे लोग जिनकी किडनी काफी खराव हो चुकी थी उन लोगों पर भी इसका प्रयोग किया तो मुझे काफी सफलता मिली
सफेद ओपल 
धारण करने पर मस्तिष्क के दाएँ तथा बाएँ तंत्रिका तंत्र में संतुलन बना रहता है. सफेद रक्त कणिकाओं को ऊर्जा मिलती है. इसके अतिरिक्त ओपल सफेद , इसे पहनने से भाग्य में वृद्धि होती है. उत्साहवर्धन होता है. आत्मविश्वास में बढो़तरी होती है. मस्तिष्क का विकास होता है. मानसिक कार्य करने की शक्तियों का विकास होता है. व्यक्ति की दृढ़ इच्छा शक्ति का विकास होता है.यही कारण है कि  ज्योतिष के अनुसार, ओपल रत्न पहनने की सलाह उस व्यक्ति को दी जाती है जिसकी जन्म कुंडली या जन्म कुंडली में शुक्र ग्रह को मजबूत बनाने के लिए कहा जाता है.रत्नों में अद्भूत शक्ति होती है. रत्न अगर किसी के भाग्य को आसमन पर पहुंचा सकता है तो किसी को आसमान से ज़मीन पर लाने की क्षमता भी रखता है. रत्न के विपरीत प्रभाव से बचने के लिए सही प्रकर से जांच करवाकर ही रत्न धारण करना चाहिए कुंडली में. ग्रहों की स्थिति के अनुसार रत्न धारण करना चाहिए.  रत्न पहनते समय मात्रा का ख्याल रखना आवश्यक होता है. अगर मात्रा सही नहीं हो तो फल प्राप्ति में विलम्ब होता है.ज्‍योतिषीय लाभ के लिए सफेद ऑस्‍ट्रेलियन ओपल ही पहनना चाहिए। इसकी चमक और सफेद रंग जितना साफ होगा ओपल उतना ही अच्‍छा माना जाता हैबेहतरीन ओपल उसकी स्‍पष्‍टता, शेप और क्‍वालिटी से पहचाना जाता है। यह चितना चमकदार, सपाट और एक रंग का होगा उतना ही अच्‍छा होता है। ज्‍योतिषी यह सलाह देते हैं कि वह सफेद ओपल सबसे अच्‍छा होता है जो दोनों ओर से स्‍पष्‍ट साफ दिखाई देता है।रत्‍नों और जेम स्‍टोन के बढ़ते चलन के कारण हर ज्‍वेलर के पास यह रत्‍न मिल जाएगा लेकिन यह जरूरी नहीं हो कि वह प्राकृतिक हो क्‍योंकि लगभग सभी जेमस्‍टोन के सेन्‍थेटिक रूप तैयार किए जा सके हैं।किसी भी रत्‍न को खरीदने से पहले उसकी शुद्धता की जांच अवश्‍य कर लेनी चाहिए। रत्‍नों को अपने जानने वाले डीलर से लें या फिर पहले उनके काम को अच्‍छी तरह से जांच ले फिर वहां से रत्‍नों की खरीदारी करें। रत्‍नों को अगर ज्‍योतिषीय रेमिडी के लिए पहनना हो तो रत्‍न सस्‍ता हो या महंगा उसकी शुद्धता के विषय में किसी अच्‍छी लैब का सर्टिफिकेट अवश्‍य देंखे और खुद भी इंटरनेट के माध्‍यम से और विशेषज्ञों से इसके विषय में जानकारी ले लें। अगर आपको असली ओपल रतन चाहिए तो आप हमसे असली वजह उच्च  क्वालिटी का कोई भी रतन लैबTester ओर  full guarantee ke sath wholesale rate per रतन मंगवा सकते हैं 07597718725-09414481324 आचार्य राजेश

लाल का किताब के अनुसार मंगल शनि

मंगल शनि मिल गया तो - राहू उच्च हो जाता है -              यह व्यक्ति डाक्टर, नेता, आर्मी अफसर, इंजीनियर, हथियार व औजार की मदद से काम करने वा...