ज्योतिष शास्त्र भविष्य दर्शन की आध्यात्मिक विद्या है। भारतवर्ष में चिकित्साशास्त्र (आयुर्वेद) का ज्योतिष से बहुत गहरा संबंध है। होमियोपैथ की उत्पत्ति भी ज्योतिष शास्त्र के आधार पर ही हुआ है I जन्मकुण्डली व्यक्ति के जन्म के समय ब्रह्माण्ड में स्थित ग्रह नक्षत्रों का मानचित्र होती है, जिसका अध्ययन कर जन्म के समय ही यह बताया जा सकता है कि अमुक व्यक्ति को उसके जीवन में कौन-कौन से रोग होंगे। चिकित्सा शास्त्र व्यक्ति को रोग होने के पश्चात रोग के प्रकार का आभास देता है।चन्द्रमा के प्रकाश और वायु से धरती पर रोगो को पैदा करने वाले कारक और निवारण के कारक पैदा होते है। जब चन्द्रमा और वायु के कारक गुरु का किसी खराब ग्रह से योगात्मक प्रभाव मिलता है तो चराचर जगत के साथ साथ वनस्पतियों मे भी उनके खराब गुण ही विद्यमान हो जाते है। इसके लिये कहा भी गया है कि ऋतु के अनुसार भोजन लेने से और जो भोजन ऋतु के हिसाब से नही लिया जा सकता है के परित्याग से रोगो का पैदा होना नही मिलता है लेकिन जब जब राहु गुरु चन्द्रमा के साथ साथ अपना प्रभाव देगा वह भाव के अनुसार रोग को पैदा करने के लिये माना जायेगा। मन का कारक चन्द्रमा है और मन के रोगी होने पर शरीर रोगी हो जाता है और मन के प्रसन्न रहने पर शरीर रोग से दूर रहता है। उसी प्रकार से गुरु वायु का और प्राण वायु को संचालित करने का काम करता है जैसे ही गुरु का मिलना राहु या इसी प्रकार के ग्रह शनि केतु मंगल आदि ग्रहों के रोगी भाव के ग्रह के साथ युति लेने से रोग की शुरुआत हो जाती है। चन्द्रमा के लिये शीतकाल का समय बहुत ही अच्छा माना जाता है और इसी लिये देखा होगा कि शरद ऋतु की पूर्णिमा का चन्द्रमा रोगो से लडने की शक्ति को रखता है और लोग इस शरदीय पूर्णिमा को नदियों मे सरोवरो मे स्नान भी करते है और खीर आदि बनाकर रात को चन्द्रमा के सामने रखते है सुबह को उसका सेवन करते है जिससे चन्द्रमा के द्वारा दिये गये रोग निदान की शक्ति को ग्रहण किया जाता है। एक बात और भी देखी होगी कि पूर्णिमा के दिन मन भी बहुत प्रसन्न रहता है और अमावस्या के दिन मन की गति भी बहुत कमजोर मानी जाती है,जो काम अमावस्या को शुरु करने पर नही हो पाता है वह पूर्णिमा के दिन शुरु करने से पूरा हो जाता है। राजस्थान मे देखा भी गया है कि अमावस्या को मेहनत का काम करने वाले कारीगर इमारतो का काम करने वाले ठेकेदार काम को बन्द ही रखते है और काम को इसलिये नही करते है कि वे मानते है कि यह दिन उनके पूर्वजो का है और पूर्वजो के लिये वे काम नही करते है इसके पीछे जो वैज्ञानिक कारण सामने आता है वह केवल यही है कि मेहनत के काम को करने के बाद अगर अमावस्या को किया जाता है तो वह काम अगर खराब हो जाता है तो दुबारा से करना पडेगा और किये गये काम की मेहनत के साथ साथ उसका फ़ल भी खराब हो जायेगा। इसी प्रकार से समुद्र के अन्दर होने वाले बदलाव को भी इन्ही तिथियों मे देखा जा सकता है। रोगो की वृद्धि और कमी भी इन्ही तिथियों मे देखी जा सकती है। चन्द्रमा का रोगो से बहुत सम्बन्ध होता है इस बात को एक प्रकार से और भी देखा जा सकता है कि अगर रात को बच्चा जन्म लेता है तो बच्चे की आंखे नीली या कालिमा लिये होती है जबकि दिन को जन्म लेने वाले बच्चे की आंखो की पुतली का रंग बिलकुल सफ़ेद होता है यही बात अगर आप कर्क के चन्द्रमा और वृश्चिक के चन्द्रमा से देखेंगे तो कर्क के चन्द्रमा मे जन्म लेने वाले जातक की दांतो की पहिचान बहुत ही सुन्दर व चमकीली होती है जबकि चन्द्रमा के वृश्चिक राशि मे होने से दांतो की पहिचान गन्दी और पायरिया आदि से ग्रस्त तथा टेढी मेढी होती है,उसी प्रकार से मीन के चन्द्रमा मे जातक के दांत लम्बे होते है वृष के चन्द्रमा के दांत चौडे और सामने के चौकोर होते है।
आचार्य राजेश (ज्योतिष,वास्तु , रत्न , तंत्र, और यन्त्र विशेषज्ञ ) जन्म कुंडली के द्वारा , विद्या, कारोबार, विवाह, संतान सुख, विदेश-यात्रा, लाभ-हानि, गृह-क्लेश , गुप्त- शत्रु , कर्ज से मुक्ति, सामाजिक, आर्थिक, राजनितिक ,पारिवारिक विषयों पर वैदिक व लाल किताबकिताब के उपाय ओर और महाकाली के आशीर्वाद से प्राप्त करें07597718725-०9414481324 नोट रत्नों का हमारा wholesale का कारोबार है असली और लैव टैस्ट रत्न भी मंगवा सकते है
रविवार, 29 सितंबर 2019
Diseases ज्योतिष द्वारा रोग की पहिचान
ज्योतिष शास्त्र भविष्य दर्शन की आध्यात्मिक विद्या है। भारतवर्ष में चिकित्साशास्त्र (आयुर्वेद) का ज्योतिष से बहुत गहरा संबंध है। होमियोपैथ की उत्पत्ति भी ज्योतिष शास्त्र के आधार पर ही हुआ है I जन्मकुण्डली व्यक्ति के जन्म के समय ब्रह्माण्ड में स्थित ग्रह नक्षत्रों का मानचित्र होती है, जिसका अध्ययन कर जन्म के समय ही यह बताया जा सकता है कि अमुक व्यक्ति को उसके जीवन में कौन-कौन से रोग होंगे। चिकित्सा शास्त्र व्यक्ति को रोग होने के पश्चात रोग के प्रकार का आभास देता है।चन्द्रमा के प्रकाश और वायु से धरती पर रोगो को पैदा करने वाले कारक और निवारण के कारक पैदा होते है। जब चन्द्रमा और वायु के कारक गुरु का किसी खराब ग्रह से योगात्मक प्रभाव मिलता है तो चराचर जगत के साथ साथ वनस्पतियों मे भी उनके खराब गुण ही विद्यमान हो जाते है। इसके लिये कहा भी गया है कि ऋतु के अनुसार भोजन लेने से और जो भोजन ऋतु के हिसाब से नही लिया जा सकता है के परित्याग से रोगो का पैदा होना नही मिलता है लेकिन जब जब राहु गुरु चन्द्रमा के साथ साथ अपना प्रभाव देगा वह भाव के अनुसार रोग को पैदा करने के लिये माना जायेगा। मन का कारक चन्द्रमा है और मन के रोगी होने पर शरीर रोगी हो जाता है और मन के प्रसन्न रहने पर शरीर रोग से दूर रहता है। उसी प्रकार से गुरु वायु का और प्राण वायु को संचालित करने का काम करता है जैसे ही गुरु का मिलना राहु या इसी प्रकार के ग्रह शनि केतु मंगल आदि ग्रहों के रोगी भाव के ग्रह के साथ युति लेने से रोग की शुरुआत हो जाती है। चन्द्रमा के लिये शीतकाल का समय बहुत ही अच्छा माना जाता है और इसी लिये देखा होगा कि शरद ऋतु की पूर्णिमा का चन्द्रमा रोगो से लडने की शक्ति को रखता है और लोग इस शरदीय पूर्णिमा को नदियों मे सरोवरो मे स्नान भी करते है और खीर आदि बनाकर रात को चन्द्रमा के सामने रखते है सुबह को उसका सेवन करते है जिससे चन्द्रमा के द्वारा दिये गये रोग निदान की शक्ति को ग्रहण किया जाता है। एक बात और भी देखी होगी कि पूर्णिमा के दिन मन भी बहुत प्रसन्न रहता है और अमावस्या के दिन मन की गति भी बहुत कमजोर मानी जाती है,जो काम अमावस्या को शुरु करने पर नही हो पाता है वह पूर्णिमा के दिन शुरु करने से पूरा हो जाता है। राजस्थान मे देखा भी गया है कि अमावस्या को मेहनत का काम करने वाले कारीगर इमारतो का काम करने वाले ठेकेदार काम को बन्द ही रखते है और काम को इसलिये नही करते है कि वे मानते है कि यह दिन उनके पूर्वजो का है और पूर्वजो के लिये वे काम नही करते है इसके पीछे जो वैज्ञानिक कारण सामने आता है वह केवल यही है कि मेहनत के काम को करने के बाद अगर अमावस्या को किया जाता है तो वह काम अगर खराब हो जाता है तो दुबारा से करना पडेगा और किये गये काम की मेहनत के साथ साथ उसका फ़ल भी खराब हो जायेगा। इसी प्रकार से समुद्र के अन्दर होने वाले बदलाव को भी इन्ही तिथियों मे देखा जा सकता है। रोगो की वृद्धि और कमी भी इन्ही तिथियों मे देखी जा सकती है। चन्द्रमा का रोगो से बहुत सम्बन्ध होता है इस बात को एक प्रकार से और भी देखा जा सकता है कि अगर रात को बच्चा जन्म लेता है तो बच्चे की आंखे नीली या कालिमा लिये होती है जबकि दिन को जन्म लेने वाले बच्चे की आंखो की पुतली का रंग बिलकुल सफ़ेद होता है यही बात अगर आप कर्क के चन्द्रमा और वृश्चिक के चन्द्रमा से देखेंगे तो कर्क के चन्द्रमा मे जन्म लेने वाले जातक की दांतो की पहिचान बहुत ही सुन्दर व चमकीली होती है जबकि चन्द्रमा के वृश्चिक राशि मे होने से दांतो की पहिचान गन्दी और पायरिया आदि से ग्रस्त तथा टेढी मेढी होती है,उसी प्रकार से मीन के चन्द्रमा मे जातक के दांत लम्बे होते है वृष के चन्द्रमा के दांत चौडे और सामने के चौकोर होते है।
शनिवार, 28 सितंबर 2019
संगत से गुण होत हैं , संगत से गुण जात
हम संगति के महत्व के बारे में हमेशा ही कुछ न कुछ पढ़ते आ रहें हैं। यहॉ तक कहा गया है -----` संगत से गुण होत हैं , संगत से गुण जात ´। मित्रों ज्योतिष भी संगति के महत्व को स्वीकार करता है। एक कमजोर ग्रह या कमजोर भाववाले व्यक्ति को मित्रता , संगति , व्यापार या विवाह वैसे लोगों से करनी चाहिए , जिनका वह ग्रह या वह भाव मजबूत हो। इस बात को एक उदाहरण की सहायता से अच्छी तरह समझाया जा सकता है। यदि एक बालक का जन्म अमावस्या के दिन हुआ हो , तो उन कमजोरियों के कारण , जिनका चंद्रमा स्वामी है ,बचपन में बालक का मनोवैज्ञानिक विकास सही ढंग से नहीं हो पाता है और बच्चे का स्वभाव कुछ दब्बू किस्म का हो जाता है , उसकी इस स्थिति को ठीक करने के लिए बालक की संगति पर ध्यान देना होगा। उसे उन बच्चों के साथ अधिकांश समय व्यतीत करना चाहिए , जिन बच्चों का जन्म पूर्णिमा के आसपास हुआ हो। उन बच्चों की उच्छृंखलता को देखकर उनके बाल मन का मनोवैज्ञानिक विकास भी कुछ अच्छा होजाएगा। इसके विपरीत यदि उन्हें अमावस्या के निकट जन्म लेनेवाले बच्चों के साथ ही रखा जाए तो बालक अधिक दब्बू किस्म का हो जाएगा। इसी प्रकार अधिक उच्छृंखल बच्चों को अष्टमी के आसपास जन्म लेनेवाले बच्चों के साथ रखकर उनके स्वभाव को संतुलित बनाया जा सकता है। इसी प्रकार व्यवसाय , विवाह या अन्य मामलों में अपने कमजोर ग्रहों के प्रभाव को कम करने या अपने कमजोर भावों की समस्याओं को कम करने के लिए सामने वाले के यानि मित्रों या जीवनसाथी की जन्मकुंडली में उन ग्रहों या मुद्दों का मजबूत रहना अच्छा होता है। इसके अलावे ग्रहों के बुरे प्रभाव को दूर करने के लिए हमारे धर्मशास्त्रों में हर तिथि पर्व पर स्नानादि के पश्चात् दान करने के बारे में बताया गया है।प्राचीनकाल से ही दान का अपना महत्व रहा है , परंतु दान किस प्रकार का किया जाना चाहिए , इसकी जानकारी बहुत कम लोगों को है। दान के लिए शुद्ध द्रब्य का होना अनिवार्य है । दान के लिए सुपात्र वह व्यक्ति है , जो अनवरत किसी क्रियाकलाप में संलग्न होते हुए भी अभावग्रस्त है। दुष्कर्म या पापकर्म करनेवाले या आलसी व्यक्ति को दान देना बहुत बड़ा पाप होता है । यदि दान के नाम पर आप ठगे जाते हैं , तो इसका पुण्य आपको नहीं मिलेगा। इसलिए दान का उचित फल प्राप्त करने के लिए आप दान करते या देते समय ध्यान रखें कि दान उस सुपात्र तक पहुंच सके , जहॉ इसका उचित उपयोग हो सके।ऐसे में आपको सर्वाधिक फल की प्राप्ति होगी।साथ ही अपनी कुंडली के अनुसार ही उसमें जो ग्रह कमजोर हो , उसको मजबूत बनाने के लिए दान करना चाहिए। जातक का चंद्रमा कमजोर हो , तो अनाथाश्रम को दान करना चाहिए , खासकर 12 वर्ष से कम उम्र के अभावग्रस्त और जरुरतमंद बच्चों को दिए जानेवाले दान से उनका काफी भला होगा। जातक का बुध कमजोर हो तो उन्हें विद्यार्थियों को या किसी प्रकार के रिसर्च कार्य में लगे व्यक्ति को सहयोग देना चाहिए। जातक का मंगल कमजोर हो , तो उन्हें युवाओं की मदद और कल्याण के लिए कार्यक्रम बनाने चाहिए। जातक का शुक्र कमजोर हो तो उनके लिए कन्याओं के विवाह में सहयोग करना अच्छा रहेगा। सूर्य कमजोर हो तो प्राकृतिक आपदाओं में पड़नेवालों की मदद की जा सकती है। बृहस्पति कमजोर हो तो अपने माता पिता और गुरुजनों की सेवा से लाभ प्राप्त जोकिया जा सकता है। शनि कमजोर हो तो वृद्धाश्रम को दान करें या अपने आसपास के जरुरतमंद अतिवृद्ध की जरुरतों को पूरा करने की कोशिश करें। राहु के लिए कुष्ठ आश्रम में दान दे। केतु के लिए विकलांग अपाहिज, सफाईकर्मचारी जो जरुरतमंद हो
गुरुवार, 26 सितंबर 2019
ज्योतिष विद्या : विज्ञान या अंधविश्वास
ज्योतिष विज्ञान है या अंधश्वास , इस प्रश्न का उत्तर दे पाना समाज के किसी भी वर्ग के लिए आसान नहीं है। परंपरावादी और अंधविश्वासी विचारधारा के लोग ,जो कई स्थानों पर ज्योतिष पर विश्वास करने के कारण धोखा खा चुकें हैं ,भी इस शास्त्र पर संदेह नहीं करते। सारा दोषारोपण ज्योतिषी पर ही होता है। वैज्ञानिकता से संयुक्त विचारधारा से ओत-प्रोत व्यक्ति भी किसी मुसीबत में फंसते ही समाज से छुपकर ज्योतिषियों की शरण में जाते देखे जाते हैं। ज्योतिष की इस विवादास्पद स्थिति के लिए मै सरकार ,शैक्षणिक संस्थानों एवं पत्रकारिता विभाग को दोषी मानता हूं।
शनिवार, 21 सितंबर 2019
भारत की कुंडली
मित्रों मुझे बहुत दुख होता है जब मैं देखता हूं बड़े बड़े अच्छे नाम वाले ज्योतिषी सदियों से लोगों को गुमराह कर रहे हैं राशिफल के नाम पर और भी जाने क्या-क्या और अब मैं देख रहा हूं कि 15 अगस्त भारतदेश की कुंडली की बात हो रही है जो हर साल होती है तो उसको लेकर मेरे क्या विचार हैं आइए जानते हैंभारतवर्ष की कुंडली का विश्लेषण समय-समय पर ज्योतिषीगण करते ही रहते हैं। आज मैं इस मुद्दे पर अपना मत प्रकट कर रहा हूं- जड़ वस्तु का ज्योतिषीय विश्लेषण नहीं-
राहु की संगत बनाम शक्तीकीरंगत
कुंडली मे राहु जिस ग्रह के साथ गोचर करता है या जिस ग्रह के साथ जन्म समय से विराजमान होता है वही शक्ति जीवन के अन्दर काम करने के लिये मानी जाती है। घर की छत की शक्ति होती है कि वह हवा पानी धूप से रक्षा करती है,छतरी की शक्ति होती है कि वह पानी और धूप से शरीर को बचाती है,धूप की शक्ति होती है कि वह शरीर मे गर्मी पहुंचाती है,बरसात की शक्ति होती है कि वह शरीर को भीगने का सुख देती है,सर्दी की शक्ति होती है कि वह शरीर को ठंडा रखने का सुख देती है। यानी जहां जहां शक्ति है वहां वहां राहु की छाया है,घर की छत को भी राहु की उपाधि दी जाती है तो छतरी को भी राहु कहा जाता है,सूर्य की छाया यानी धूप भी राहु की श्रेणी मे आजाती है चन्द्रमा की शीतलता भी राहु की श्रेणी मे गिनी जाती है. इस प्रकार से जब ब्रह्माण्ड का कारक राहु ही है तो राहु से डरने का कारण क्या हो सकता है। जब राहु जिस ग्रह के साथ होता है तो उस ग्रह के बारे मे असीमित भावना को भर देता है,वह भावना अगर जन्म के राहु से टकरा रही है तो वह एक अमिट छाप यानी मोहर को लगा देती है।
शुक्रवार, 20 सितंबर 2019
गोचर मैं सिंह राशि में मंगल के प्रति फलादेश
वर्तमान मे मंगल का गोचर सूर्य की राशि मे चल रहा है,यह कारण सरकारी क्षेत्र मे और राजनीति में जिद्दी होने की बात को प्रकट करता है,सबसे पहले जिद्दी शब्द की व्याख्या करना जरूरी है। जब किसी कार्य मे परेशानी का कारण पैदा होने लगता है तो उस कार्य को जबरदस्ती करने की दिमाग मे आती है,बाकी के सभी कार्य छोड कर एक ही कार्य करने की जिद दिमाग मे पैदा हो जाती है। इससे व्यक्ति रूप मे भी दिमाग मे जिद्दीपन आजाता है,और व्यक्ति के आसपास के जो कार्य होते है उनके अन्दर परेशानी का कारण पैदा होना शुरु हो जाता है। काल पुरुष के अनुसार मंगल का स्थान संतान परिवार विद्या बुद्धि मनोरंजन जल्दी से धन कमाने के क्षेत्र खेलकूद के प्रति की जाने वाली भावना माता के परिवार माता के धन पिता के द्वारा रिस्क लेकर किये जाने वाले कार्य जीवन साथी के मित्र आदि के भाव मे इस मंगल का गोचर करना माना जाता है। इन सभी कारणो मे किसी न किसी प्रकार की उत्तेजना के कारण दिक्कत का होना माना जा सकता है। इन कारणो मे सरकार का परिवार का सन्तान का और इसी प्रकार के कारको का मानसिक तनाव भी माना जा सकता है। इन्ही क्षेत्रो मे कार्य करने वाले लोग किसी न किसी प्रकार से आहत भी होते है और चोट आदि के द्वारा दिक्कत भी उठाते है। मंगल खून की गर्मी का कारक है इस कारण से गुस्सा का बढना भी माना जाता है,जब कोई बढचढ कर बात करने के लिये अपनी मानसिकता को आगे रखता है या ताव खाता है तो अभिमान की मात्रा बढने से लडाई झगडे की नौबत भी आजाती है। अगर जातक की कुंडली में सूर्य भी इसी स्थान मे है तो जातक के पिता के प्रति यही धारणा मानी जा सकती है पुत्र के प्रति भी यही कारण माना जा सकता है इन दोनो को किसी प्रकार चोट आदि से पेट सम्बन्धी दिक्कत का होना भी माना जा सकता है.अगर इस भाव मे चन्द्रमा है तो जातक की माता को परेशानी का कारण पैदा होता है जनता के अन्दर किसी न किसी बात पर गुस्सा आता है और तोड फ़ोड जैसे कारण पैदा हो जाते है। शासन मे कोई स्त्री शासक यात्रा आदि मे अपने बिजी रखता है,परिवार मे भाई की यात्रा का कारण भी माना जा सकता है,इस युति से उतावलापन भी देखने को मिलता है। अगर इसी स्थान मे बुध है तो मानसिक अशान्ति और और दुश्मनी मे बढोत्तरी होने लगती है जो मित्र होते है वह भी अधिक अभिमान या अहम के कारण शत्रु बनने लगते है,पेट सम्बन्धी बीमारी का होना भी माना जा सकता है। अगर इस भाव मे गुरु के साथ मंगल का गोचर होता है तो जातक के अन्दर जितनी विद्या है उससे अधिक बात करने का कारण बनता है और कार्य के अन्दर जाकर वह झूठा अहम खत्म हो जाता है इसलिए अपमान भी होता है और अगर स्त्री की कुंडली मे यह युति बनती है तो उसके पति का यात्रा वाला या स्थान परिवर्तन का योग बनता है। वैसे उन्नति का समय भी माना जा सकता है। गोचर से जब मंगल इस भाव मे शुक्र पर आता है तो जान पहिचान मे बढोत्तरी होने की बात भी मिलती है सम्बन्धी घर आने लगते है,उत्सव आदि होने की बात भी होती है स्त्री जातक की कुंडली मे पति को लाभ होता है और भाई को किसी स्त्री से जान पहिचान का कारण भी माना जा सकता है। यही मंगल जब शनि पर गोचर करता है तो नौकरी आदि मे परेशानी देने का कारण बनता है किसी उच्च अधिकारी से मनमुटाव हो जाता है और धन की भी हानि होने का कारण बनता है यह बात अक्सर कार्य के अन्दर अधिक तकनीक लगाने और अपनी बात को उत्तेजना मे आगे रखने का कारण बनता है,यही पर राहु का असर होता है तो जातक के भाई पर परेशानी का कारण पैदा होता है जिद मे बढोत्तरी होती है पेट के अन्दर गैस का बनना और पाचन क्रिया का खराब होना भी माना जा सकता है,केतु के साथ मंगल का गोचर होने से भाई के अक्समात धार्मिक बनने की बात भी मानी जा सकती है या पति का किसी प्रकार से धर्म के प्रति लगाव शुरु हो जाता है आचार्य राजेश
मंगलवार, 17 सितंबर 2019
वक्रीशनि मार्गी शनि
शनि बुधवार, 18 सितंबर को ग्रहों का न्यायाधीश शनि अपनी चाल बदलेगा। ये ग्रह अभी धनु राशि में वक्री है। 18 तारीख के बाद मार्गी हो जाएगाजब शनि मार्गी हो जाएगा, तब सिर्फ राहु-केतु ही वक्री रहेंगे, क्योंकि ये दोनों ग्रह हमेशा वक्री ही रहते हैं।
काम करे ना करवावन देई,केवल आवन जावन लेई.
खुद के घर में वक्री रहता,देश से जाय विदेश में रहता,
जब कभी घर आवन होई,दस पांच साल में वापिस कोई"
शनि की आदतों से नही शनि की नजर से डरा जाता है,शनि की नजर जहाँ भी पड जाती है उसका कल्याण होना निश्चित है,मार्गी शनि पानी वाला सांप माना जाता है तो वक्री शनि जहरीला सांप और अस्त शनि को शेषनाग की उपाधि दी जाती है। कुंडली के त्रिक भाव में अगर शनि है तो बिना अपना असर दिये नही जाता है लेकिन शनि की आदत है कि वह अगर अपने इष्ट देव चाहे जो भी हों या अपने माता पिता की सेवा में रहता है,तो उसके ऊपर यह अपना असर कम ही करते हैं। जब शनि कुंडली में मार्गी होता है तो शरीर से मेहनत करवाता है और जो भी काम करवाता है उसके अन्दर पसीने को निकाले बिना भोजन भी नहीं देता है और जब किया सौ का जाय तो मिलता दस ही है,इसके साथ ही शरीर के जोड़ जोड़ को तोड़ने के लिए अपनी पूरी की पूरी कोशिश भी करता है,रहने के लिए अगर निवास का बंदोबस्त किया जाए तो मजदूरों से काम करवाने की बजाय खुद से भी मेहनत करवाता है तब जाकर कोई छोटा सा रहने वाला मकान बनवा पाता है,जब कोई कार्य करने के लिए अपने को साधनों की तरफ ले जाता है तो साधन या तो वक्त पर खराब हो जाते है या साधन मिल ही नहीं पाते है,मान लीजिये किसी को घर बनवाने के लिए सामान लाना है,सामान लाते हुए घर के पास ही या तो साधन खराब हो जाएगा जिससे आने वाले सामान को घर तक लाना भी है और साधन भी ख़राब है या रास्ता ही खराब है उस समय मजदूरी से अगर उस सामान को लाया जाता है तो वह मजदूरी इतनी देनी पड़ती है जिससे मकान को बनवाने के लिए जो बजट है वह फेल हो रहा है इस लोभ के कारण सामान को खुद ही घर बनाने के स्थान तक ढोने के लिए मजबूर होना पड़ता है,इसके बाद अगर किसी बुद्धि का प्रयोग भी किया जाए तो कोई न कोई रोड़ा आकर अपनी कलाकारी कर जाता है,जैसे कोई आकर कह जाता है कि अमुक समय पर उसका वह काम करवा देगा लेकिन खुद भी नहीं आता है और भरोसे में रखकर काम को करने भी नहीं देता है,यह मार्गी शनि का कार्य होता है,इसी प्रकार से मार्गी शनि एक विषहीन सांप की भांति भी काम करता है,विषहीन सांप से कोई डरता नहीं है उसे लकड़ी से उछल कर हाथ से पकड़ कर शरीर को तोड़ने का काम करता हैउसी जगह वक्री शनि बुद्धि से काम करने वाला होता है जैसे जातक को घर बनवाना है तो वह अपनी बुद्धि से साधनों का प्रयोग करेगा,पहले किसी व्यक्ति को नियुक्त कर देगा फिर उसे अपनी बुद्धि के अनुसार किये जाने वाले काम का मेहनताना देगा,जो मेहनताना दिया जा रहा है उसकी जगह पर वह दूसरा कोई काम बुद्धि से करेगा जिससे दिया जाने वाला मेहनताना आने भी लगेगा और दिया भी जाएगा जिससे खुद के लिए भी मेहनत नहीं करनी पडी और नियुक्त किये गए व्यक्ति के द्वारा काम भी हो गया,इस प्रकार से बुद्धि का प्रयोग करने के बाद जातक खुद मेहनत नहीं करता है दूसरो से बुद्धि से करवाकर धन को भी बचाता है,वक्री शनि का रूप जहरीले सांप की तरह से होता है वह पहले तो सामने आता ही नहीं है और अगर छेड़ दिया जाए तो वह अपने जहर का भी प्रयोग करता है और छेड़ने वाले व्यक्ति को हमेशा के लिए याद भी करता है,इस शनि के द्वारा मेहनत कास लोगों के लिए भी समय समय पर आराम करने और मेहनत करने के लिए अपने बल को देता है जैसे मार्गी शनि जब वक्री होता है तो मेहनत करने वाले लोग भी दिमागी काम को करने लगते है और जब वक्री शनि वाले जातको की कुंडली में वक्री होता है तो दिमागी काम की जगह पर मेहनत वाले काम करने की योजना को बनाकर परेशानी में डाल देता है.जब शनि अपने ही घर में वक्री होकर बैठा हो तो वह पैदा होने वाले स्थान से उम्र की दूसरे शनि वाले दौर में शनि का एक दौर पैंतीस साल का माना जाता है विदेश में फेंक देता है,जब कभी जातक को पैदा होने वाले स्थान में भेजता है और जल्दी ही वापस बुलाकर फिर से विदेश में अपनी जिन्दगी को जीने के लिए मजबूर कर देता है,इसके साथ ही शनि की आदत है कि वह कभी भी स्त्री जातक के साथ बुरा नहीं करता है वह हमेशा पुरुष जातक और अपने ऊपर धन बल शरीर बल बुद्धि बल रखने वाले लोगों पर बुरा असर उनके बल को घटाने और वक्त पर उनके बल को नीचा करने का काम भी करता है,घर में जितना असर पुत्र जातक को खराब देता है उतना ही अच्छा बल पुत्री जातक को देता है,लेकिन वक्री शनि से पुत्री जातक अपने देश काल और परिस्थिति से दूर रहकर विदेशी परिवेश को ही सम्मान और चलन में रखने के लिए भी माना जाता है.
शनिवार, 14 सितंबर 2019
राहु दशाफल भाग (4)
काल पुरुष की कुंडली में आठवें भाव में वृश्चिक राशि मंगल की सकारात्मक राशि है। भावनात्मक राशि के लिये मेष को जाना जाता है। राहु को ग्रहों में छाया ग्रह के रूप मे जाना जाता है,लेकिन विस्तार की नजर से इस छाया ग्रह का वही प्रभाव वही सामने आता है जैसे कडक धूप के अन्दर छाया का आनन्द आता है,या सादा से दिखने वाले तार में बिजली का करण्ट झटका मारता है या एक बुद्धू से दिखाई देने वाले व्यक्ति के अन्दर से असीम ज्ञान का भण्डार उमड पडता है। इस राहु के बारे में कहा जाता है कि बारह साल में रुडी के दिन भी घूम जाते है,या बेकार से लोग राख से साख पैदा कर देते है अथवा बडी बडी दवाइयों के फ़ेल होने के बाद भी सादा सी भभूत काम कर जाती है। वैसे सादा व्यक्ति के लिये इस राशि का राहु बहुत ही खतरनाक माना जाता है,इस राहु के जन्म समय मे वृश्चिक राशि में होने के समय मे राहु की दशा या राहु के गोचर के समय जिस जिस भाव में जिस जिस ग्रह पर अपना प्रभाव डालता है वह भाव ग्रह अपने अपने अनुसार समाप्त होता जाता है।आठवें घर का संबध शनि और मंगल ग्रह से होता है। इसलिए इस भाव का राहू अशुभ फल देता है। जातक अदालती मामलों में बेकार में पैसे खर्च करता है।परिवारिक जीवन भी प्रतिकूलता से प्रभावित होता है। यदि मंगल ग्रह शुभ हो तो जातक को घनी भी वनाता हैं अष्टम भाव काअशुभ राहु का धोखा अक्सर किये जाने वाले कामो से देखने को मिलते है,पहले आशा लगी रहती बस है कि इस काम को करने के बाद बहुत लाभ होगा और एक समय ऐसा आता है कि पूरी मेहनत भी लग चुकी होती है पास का धन भी चला गया होता है पता चलता है कि काम का मूल्य ही समाप्त हो चुका है,इसी प्रकार का धोखा अधिकतर मंत्र तंत्र और यंत्र बनाने वाले अद्भुत चीजो का व्यापार करने वाले शमशान सिद्धि का प्रयोग करने वाले भी करते है जब राहु का स्थान किसी के अष्टम मे होता है या अष्टम का स्वामी किसी प्रकार से राहु केतु शनि के घेरे मे होता है तो वह इन्ही लोगो के द्वारा धोखा खाने वाला माना जाता है यह कारण दशा के अन्दर भी देखा जाता है जैसे धनेश और राहु की दशा मे या अष्टमेश और राहु की दशा मे इसी प्रकार की धोखे वाली बात होती देखी जाती है.अक्सर इसी प्रकार के धोखे शीलहरण के लिये स्त्रियों मे भी देखे जाते है जब भी कोई अपनी रसभरी बातो को कहता है या अपने प्रेम जाल मे ले जाने के लिये चौथे भाव या बारहवे भाव की बातो को प्रदर्शित करता है तो उन्हे समझ लेना चाहिये कि उनके लिये कोई बडा धोखा केवल उनके शील को हरने के लिये किया जा रहा है,इस धोखे के बाद उनका मन मस्तिष्क और ईश्वरीय शक्तिओं से भरोसा उठना भी माना जा सकता है,इस भाव का धोखा उन लोगो के लिये भी दिक्कत देने वाला होता है जो डाक्टरी काम करते है वह अपने धोखे के अन्दर आकर किसी बीमारी को समझ कर कोई दवाई दे देते है और उस दवाई को देने के बाद मरीज बजाय बीमारी से ठीक होने के ऊपर का रास्ता पकड लेता है। यही बात इन्जीनियर का काम करने वाले लोगो के साथ भी होता है वह धोखे मे आकर अपनी रिपेयर करने वाली चीज मे या तो अधिक वोल्टेज की सप्लाई देकर उसे बजाय ठीक करने के फ़ूंक देते है या सोफ़्टवेयर को गलत रूप से डालकर पूरे प्रोग्राम ही समाप्त कर लेते है मित्रों कालपुरुष की कुंडली में वृश्चिक राशि बनती हैइस राशि वाला जातक विष जैसी वस्तुओं को आराम से सेवन कर सकता है,और मृत्यु भी इसी प्रकार के कारकों से होती है,उसके बोलने पर गालियों का समिश्रण होता है,मतलब जो भी बात करता है वह बिच्छू के जहर जैसी लगती है,अगर गुरु या कोई सौम्य ग्रह सहायता में नही है तो अक्सर इस प्रकार के लोग शमशान के कारकों के लिये मशहूर हो जाते है,राहु खून की बीमारियां और इन्फ़ेक्सन भी देता है,जैसे मंगल नीच के साथ अगर राहु अष्टम है तो जातक को लो ब्लड प्रेसर की बीमारी होगी,वही बात अगर उच्च के मंगल के साथ युति है तो हाई ब्लड प्रेसर की बीमारी होगी,और मंगल राहु के साथ गुरु भी कन्या राशि के साथ या छठे भाव के मालिक के साथ मिल गया है तो शुगर की बीमारी भी साथ में होगी. अष्टम भाव में राहु गुप्त विद्या गूढ ज्ञान के लिये वह अपने को आगे रखता है,बाहरी लोगों से और पराशक्तियों के प्रति उसे विश्वास होता है,अपने खुद के परिवार के लिये आफ़तें और शंकाये पैदा करता रहता है.
शुक्रवार, 6 सितंबर 2019
राहु की दशा भाग (3)
जातक जीविका उपार्जन करने के लिए किस प्रकार के धंधे करेगा? उसे कितनी आय की प्राप्ति होगी? जीवन निर्वाह आसान होगा या कठिन? गृहस्थ जीवन सुखमय होगा या दुःख भरा? पति पत्नी, जातक के माता पिता, भाई बहन, बाल बच्चे की क्या स्थति होगी? इन बातों का विचार सातवें भाव से किया जाता है। लाल किताब में सातवें भाव को 'गृहस्थी की चक्की ' कहा है – आकाश जमीन दो पत्थर सातवें रिज्क अकल की चक्की हो"भाव सात अगर देखें काल पुरुष की कुंडली में शुक्र की तुला राशि है इस राशि का महत्व जीवन साथी साझेदार जीवन मे लडी जाने वाली जंग तथा सेवा आदि से प्राप्त आय सेवा के प्रति समाप्त करने वाले कारण सन्तान की हिम्मत और सन्तान कैसी है किस प्रकार के आचार विचार उसके अन्दर है वह अपने को समाज मे किस प्रकार के क्षेत्र से जुडकर अपने को संसार मे दिखायेगी माता के घर और माता की मानसिक स्थिति को पिता के कार्य को और कार्यों से जुडे धन आदि की समीक्षा करने के लिये अपनी क्रिया को करेगी. राहु को वैसे छाया ग्रह कहा जाता है,इसके साथ ही राहु के बारे मे कहा जाता है कि ऐसा कोई भी कारक नही है जो आसमान से नही जुडा है चाहे वह अच्छा हो या बुरा सभी की शक्ति को समेटने के लिये राहु का प्रभाव बहुत ही बडे रूप मे या आंशिक रूप से समझना जानना जरूरी है। तुला राशि का राहु मानसिक रूप से अपने को हमेशा उपरोक्त कारणो से जोड कर रखता है और इस राहु का प्रभाव घर के सदस्यों में अच्छे और बुरे रूप से भी देखा जाता है। जिस दिन इस राहु के साथ जन्म होता है उसके अठारह महिने पहले से ही घर के बुजुर्ग सदस्यों पर असर को देखा जाने लगता है। राहु का प्रभाव पिता के बडे भाई पर पहले पडता है इसके बाद यह प्रभाव बडे भाई या बहिन पर पडता है फ़िर इसका प्रभाव छोटे भाई बहिन पर भी पडता है । इसके साथ ही जातक की आमदनी के क्षेत्र पर जातक एके भेषभूषा पर भी पर इसका असर पडता है इस राहु के कारण पैदा होने वाले जातक अक्सर सबसे पहले बायें हाथ से लिखने पढने वाले या इस हाथ से काम करने के लिये पहले ही अपने को उद्धत करते है अक्सर यह भी देखा जाता है कि इस राशि मे राहु वाले व्यक्ति अपने को जीवन साथी के भरोसे ही रखते है उनके लिये कोई भी काम करना मुश्किल होता है जबतक कि वे अपनी भावना को आशंका को अपने जीवन साथी से न बता दें,यह भी देखा गया है कि इस राशि का राहु पति पत्नी के बीच मे एक प्रकार का आशंकाओं का जाल भी बुन देता है और दोनो के बीच मे वाकयुद्ध कारण अक्सर घर का माहौल तनाव वाला बन जाता है और कुछ समय के लिये ऐसा लगता है कि पति पत्नी मे एक ही रहेगा। इस भाव के राहु वाला व्यक्ति पैदा होने के बाद एक प्रकार से आवारगी का जीवन बिताने के लिये भी माना जाता है वह कहां जा रहा है किसके लिये जा रहा है,उसे खुद पता नही होता है। इसके अलावा भी कई शास्त्रो ने अपने अपने अनुसार कथन किये है जो आज के युग मे कम ही फ़लीभूत होते देखे गये है।कहा जाता है कि सप्तम का राहु व्यक्ति के अन्दर अधिक कामुकता को देता है और कामुकता के कारण व्यक्ति का सम्बन्ध कई व्यक्तियों से होता है। यह बात मेरे अनुसार तभी मानी जाती है जब राहु शुक्र या गुरु पर अपना असर दे रहा हो तो शुक्र पर असर होने के कारण पति के प्रति कई स्त्रियों से सम्बन्ध बनाने के लिये और पत्नी पर अपने को सजाने संवारने के प्रति अधिक देखा जाता है जब यह जीवन की जद्दोजहद मे आजाता है तो व्यक्ति एक से अधिक कार्य करने साझेदारी और इसी प्रकार के कामो से अपने को आगे बढाने के लिये भी देखा जाता है। राहु शुक्र के घर मे होने से और व्यवसाय के प्रति अपनी सोच रखने के कारण व्यक्ति को हर मामले मे बडी सोच देकर व्यवसाय के लिये अपनी समझ को देता है। अक्सर इस असर के कारण ही कई लोग तो आसमान की ऊंचाइयों मे चले जाते है और कई लोग अपने पूर्वजो के धन को भी अपनी समझ से बरबाद करने के बाद शराब आदि के आदी होकर अपने जीवन को तबाह कर लेते है। जिन लोगो ने विक्रम बेताल की कथा को पढा होगा उन्हे इस राहु का पूरा असर समझ मे आ गया होगा,यह राहु एक भूत की तरह से व्यक्ति के ऊपर सवार होता है और अपनी क्रिया से जीवन की वह बाते सामने ला देता है जिन्हे हर कोई अपनी बुद्धि से सामने नही ला सकता है जैसे ही व्यक्ति अपनी बुद्धि का प्रयोग करता है यह राहु का नशा अपने आप ही पता नही कहां चला जाता है। इस राहु का नशा एक प्रकार से या तो बहुत ही भयंकर हो जाता है और उतारने के लिये व्यक्ति पुलिस स्टेशन लाया जाता है,या इस राहु के नशे को उतारने के लिये अस्पताल काम मे आते है या इस राहु का नशा उतारने के लिये धर्म स्थान अपना काम करते है इसके अलावा इसका नशा तब और भी खतरनाक उतरता है जब व्यक्ति अपनी धुन मे चलने के कारण सडक या किसी अन्य प्रकार के कारण से दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है।
गुरुवार, 5 सितंबर 2019
राहु की दशाभाग 2
राहु को विराट रूप मे जाना जाता है और जितने भी ग्रह है सबकी शक्ति को अपने अन्दर सोख लेने की ताकत केवल राहु में है.राहु को समझना भी भारी हैराहु अपनी चलाने के चक्कर में ग्रह और भावों को गलत बताकर भय देने के बाद पूंछने वाले से धन या औकात को छीनने का कार्य करता है.
राहु की दशा
लाल का किताब के अनुसार मंगल शनि
मंगल शनि मिल गया तो - राहू उच्च हो जाता है - यह व्यक्ति डाक्टर, नेता, आर्मी अफसर, इंजीनियर, हथियार व औजार की मदद से काम करने वा...
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https://youtu.be/hb9Ouf_rST4 मित्रों आज बात करेंगे बुध और शनि की युति जब एक ही भाव में एक साथ हो या किसी भी तरह की युति बन रही है, तो कल क्य...
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लक्ष्मी योग शुभ ग्रह बुध और शुक्र की युति से बनने वाला योग है।बुध बुद्धि-विवेक, हास्य का कारक है तो शुक्र सौंदर्य, भोग विलास कारक है।अब ये द...
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जब किसी के जीवन में अचानक परेशानियां आने लगे, कोई काम होते-होते रूक जाए। लगातार कोई न कोई संकट, बीमारी बनी रहे तो समझना चाहिए कि उसकी कुंडली...
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दशम भाव ज्योतिष भाव कुडंली का सबसे सक्रिय भाव है| इसे कर्म भाव से जाना जाता है क्यूंकि ये भाव हमारे समस्त कर्मों का भाव है| जीवन में हम सब क...
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https://youtu.be/I6Yabw27fJ0 मंगल और राहूजब राहु और मंगल एक ही भाव में युति बनाते हैं, तो वह मंगल राहु अंगारक योग कहलाता है। मंगल ऊर्जा का स...
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मालव्य योग को यदि लक्ष्मी योगों का शिरोमणी कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं। मालव्य योग की प्रशंसा सभी ज्योतिष ग्रन्थों में की गई है। यह योग शुक्...
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https://youtu.be/9VwaX00qRcw ये सच है कि हर रत्न इस धरती पर मौजूद हर व्यक्ति को शोभा नहीं देता है. इसे पहनने के लिए ज्योतिष की सलाह आवश्यक ह...
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आचार्य राजेश ईस बार मलमास 15 दिसंबर से आरंभ हो रहा है जो 14 जनवरी 2018तक रहेगा। मलमास के चलते दिसंबर के महीने में अब केवल 5 दिन और विवाह मुह...
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मित्रों आज वात करते हैं फिरोजा रतन की ग्रहों के प्रभाव को वल देने के लिए या फिर उन्हें मजबूती प्रदान करने के लिए ज्योतिष विज्ञान द्वारा विभि...