रविवार, 29 सितंबर 2019

Diseases ज्योतिष द्वारा रोग की पहिचान

Diseases  ज्योतिष द्वारा रोग की पहिचान

ज्योतिष शास्त्र भविष्य दर्शन की आध्यात्मिक विद्या है। भारतवर्ष में चिकित्साशास्त्र (आयुर्वेद) का ज्योतिष से बहुत गहरा संबंध है। होमियोपैथ की उत्पत्ति भी ज्योतिष शास्त्र  के आधार पर ही हुआ है I जन्मकुण्डली व्यक्ति के जन्म के समय ब्रह्माण्ड में स्थित ग्रह नक्षत्रों का मानचित्र होती है, जिसका अध्ययन कर जन्म के समय ही यह बताया जा सकता है कि अमुक व्यक्ति को उसके जीवन में कौन-कौन से रोग होंगे। चिकित्सा शास्त्र व्यक्ति को रोग होने के पश्चात रोग के प्रकार का आभास देता है।चन्द्रमा के प्रकाश और वायु से धरती पर रोगो को पैदा करने वाले कारक और निवारण के कारक पैदा होते है। जब चन्द्रमा और वायु के कारक गुरु का किसी खराब ग्रह से योगात्मक प्रभाव मिलता है तो चराचर जगत के साथ साथ वनस्पतियों मे भी उनके खराब गुण ही विद्यमान हो जाते है। इसके लिये कहा भी गया है कि ऋतु के अनुसार भोजन लेने से और जो भोजन ऋतु के हिसाब से नही लिया जा सकता है के परित्याग से रोगो का पैदा होना नही मिलता है लेकिन जब जब राहु गुरु चन्द्रमा के साथ साथ अपना प्रभाव देगा वह भाव के अनुसार रोग को पैदा करने के लिये माना जायेगा। मन का कारक चन्द्रमा है और मन के रोगी होने पर शरीर रोगी हो जाता है और मन के प्रसन्न रहने पर शरीर रोग से दूर रहता है। उसी प्रकार से गुरु वायु का और प्राण वायु को संचालित करने का काम करता है जैसे ही गुरु का मिलना राहु या इसी प्रकार के ग्रह शनि केतु मंगल आदि ग्रहों के रोगी भाव के ग्रह के साथ युति लेने से रोग की शुरुआत हो जाती है। चन्द्रमा के लिये शीतकाल का समय बहुत ही अच्छा माना जाता है और इसी लिये देखा होगा कि शरद ऋतु की पूर्णिमा का चन्द्रमा रोगो से लडने की शक्ति को रखता है और लोग इस शरदीय पूर्णिमा को नदियों मे सरोवरो मे स्नान भी करते है और खीर आदि बनाकर रात को चन्द्रमा के सामने रखते है सुबह को उसका सेवन करते है जिससे चन्द्रमा के द्वारा दिये गये रोग निदान की शक्ति को ग्रहण किया जाता है। एक बात और भी देखी होगी कि पूर्णिमा के दिन मन भी बहुत प्रसन्न रहता है और अमावस्या के दिन मन की गति भी बहुत कमजोर मानी जाती है,जो काम अमावस्या को शुरु करने पर नही हो पाता है वह पूर्णिमा के दिन शुरु करने से पूरा हो जाता है। राजस्थान मे देखा भी गया है कि अमावस्या को मेहनत का काम करने वाले कारीगर इमारतो का काम करने वाले ठेकेदार काम को बन्द ही रखते है और काम को इसलिये नही करते है कि वे मानते है कि यह दिन उनके पूर्वजो का है और पूर्वजो के लिये वे काम नही करते है इसके पीछे जो वैज्ञानिक कारण सामने आता है वह केवल यही है कि मेहनत के काम को करने के बाद अगर अमावस्या को किया जाता है तो वह काम अगर खराब हो जाता है तो दुबारा से करना पडेगा और किये गये काम की मेहनत के साथ साथ उसका फ़ल भी खराब हो जायेगा। इसी प्रकार से समुद्र के अन्दर होने वाले बदलाव को भी इन्ही तिथियों मे देखा जा सकता है। रोगो की वृद्धि और कमी भी इन्ही तिथियों मे देखी जा सकती है। चन्द्रमा का रोगो से बहुत सम्बन्ध होता है इस बात को एक प्रकार से और भी देखा जा सकता है कि अगर रात को बच्चा जन्म लेता है तो बच्चे की आंखे नीली या कालिमा लिये होती है जबकि दिन को जन्म लेने वाले बच्चे की आंखो की पुतली का रंग बिलकुल सफ़ेद होता है यही बात अगर आप कर्क के चन्द्रमा और वृश्चिक के चन्द्रमा से देखेंगे तो कर्क के चन्द्रमा मे जन्म लेने वाले जातक की दांतो की पहिचान बहुत ही सुन्दर व चमकीली होती है जबकि चन्द्रमा के वृश्चिक राशि मे होने से दांतो की पहिचान गन्दी और पायरिया आदि से ग्रस्त तथा टेढी मेढी होती है,उसी प्रकार से मीन के चन्द्रमा मे जातक के दांत लम्बे होते है वृष के चन्द्रमा के दांत चौडे और सामने के चौकोर होते है।
"ज्योतिष के अनुसार यह भी कहा जाता है कि दवाई रत्न ग्रह नक्षत्र तारा आदि जब भाग्य सही होता है तो वह सभी सफ़ल हो जाते है और जब दुर्भाग्य का समय होता है तो वे सभी बेकार हो जाते है" इसलिये रोगो के लिये और इलाज के लिये सबसे पहले भाग्य का देखना जरूरी होता है और भाग्य सही नही है तो किसी भी प्रकार से रोग भी ठीक नही होता है और रोगी को कष्ट भी मिलता है।"जब  यदि देवयोग से शनि रोग का कारक बनता हो, जो जातक को लम्बे समय तक पीड़ित रखता है। यह और एक दर्द भी है कि राहु जब किसी रोग का जनक होता है, तो बहुत समय तक तो उस रोग की जांच (डायग्नोसिस) ही नहीं हो पाती है। डाक्टर यह समझ ही नहीं पाता है कि जातक को क्या बीमारी है? और ऐसी स्थिति में रोग अपेक्षाकृत अधिक अवधि तक चलता है।
प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में कभी न कभी रोगों से अवश्य पीड़ित होता है। कुछ व्यक्ति कुछ विशेष समय में अथवा माह में ही प्रतिवर्ष बीमार हो जाते है। ये सभी तथ्य प्रायः जन्म पत्रिका में ग्रहों की भावगत एवं राशिगत स्थितियों और दशा, अन्तर्दशा पर निर्भर करते हैं। इसके अतिरिक्त कई बीमारियां ऐसी हैं, जो होने पर बहुत कम दुष्प्रभाव डाल पाती हैं, जबकि कुछ बीमारियां ऐसी हैं, जो जब भी जातक विशेष को होती हैं, तो बहुत नुकसान पहुंचाती है। कई बार ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है कि बीमारी होती तो हैं लेकिन उसकी पहचान भली प्रकार से नहीं हो पाती है। उन सभी प्रकार के तथ्यों का पता जातक की कुंडली को देखकर लगाया जा सकता है।आयुर्वेद शास्त्र में अनिष्ट ग्रहों का विचार कर रोग का उपचार विभिन्न रत्नों का उपयोग और रत्नों की भस्म का प्रयोग कर किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार रोगों की उत्पत्ति अनिष्ट ग्रहों के प्रभाव से एवं पूर्वजन्म के अवांछित संचित कर्मो के प्रभाव से बताई गई है। अनिष्ट ग्रहों के निवारण के लिए पूजा, पाठ, मंत्र जप, यंत्र धारण, विभिन्न प्रकार के दान एवं रत्न धारण आदि साधन ज्योतिष शास्त्र में उल्लेखित है।
ग्रहों के अनिष्ट प्रभाव दूर करने के लिये रत्न धारण करने की बिल्कुल सार्थक है। इसके पीछे विज्ञान का रहस्य छिपा है और पूजा विधान भी विज्ञान सम्मत है। ध्वनि तरंगों का प्रभाव और उनका वैज्ञानिक उपयोग अब हमारे लिये रहस्यमय नहीं है। इस पर पर्याप्त शोध किया जा चुका है और किया जा रहा है। आज के भौतिक और औद्योगिक युग में तरह-तरह के रोगों का विकास हुआ है। रक्तचाप, डायबिटीज, कैंसर, ह्वदय रोग, एलर्जी, अस्थमा, माईग्रेन आदि औद्योगिक युग की देन है। इसके अतिरिक्त भी कई बीमारियां हैं, जिनकी न तो चिकित्सा शास्त्रियों को जानकारी है और न उनका उपचार ही सम्भव हो सका है। आचार्य राजेश

शनिवार, 28 सितंबर 2019

संगत से गुण होत हैं , संगत से गुण जात


 हम संगति के महत्व के बारे में हमेशा ही कुछ न कुछ पढ़ते आ रहें हैं। यहॉ तक कहा गया है -----` संगत से गुण होत हैं , संगत से गुण जात ´। मित्रों ज्योतिष भी संगति के महत्व को स्वीकार करता है। एक कमजोर ग्रह या कमजोर भाववाले व्यक्ति को मित्रता , संगति , व्यापार या विवाह वैसे लोगों से करनी चाहिए , जिनका वह ग्रह या वह भाव मजबूत हो। इस बात को एक उदाहरण की सहायता से अच्छी तरह समझाया जा सकता है। यदि एक बालक का जन्म अमावस्या के दिन हुआ हो , तो उन कमजोरियों के कारण , जिनका चंद्रमा स्वामी है ,बचपन में बालक का मनोवैज्ञानिक विकास सही ढंग से नहीं हो पाता है और बच्चे का स्वभाव कुछ दब्बू किस्म का हो जाता है , उसकी इस स्थिति को ठीक करने के लिए बालक की संगति पर ध्यान देना होगा। उसे उन बच्चों के साथ अधिकांश समय व्यतीत करना चाहिए , जिन बच्चों का जन्म पूर्णिमा के आसपास हुआ हो। उन बच्चों की उच्छृंखलता को देखकर उनके बाल मन का मनोवैज्ञानिक विकास भी कुछ अच्छा होजाएगा। इसके विपरीत यदि उन्हें अमावस्या के निकट जन्म लेनेवाले बच्चों के साथ ही रखा जाए तो बालक अधिक दब्बू किस्म का हो जाएगा। इसी प्रकार अधिक उच्छृंखल बच्चों को अष्‍टमी के आसपास जन्म लेनेवाले बच्चों के साथ रखकर उनके स्वभाव को संतुलित बनाया जा सकता है। इसी प्रकार व्‍यवसाय , विवाह या अन्‍य मामलों में अपने कमजोर ग्रहों के प्रभाव को कम करने या अपने कमजोर भावों की समस्‍याओं को कम करने के लिए सामने वाले के यानि मित्रों या जीवनसाथी की जन्‍मकुंडली में उन ग्रहों या मुद्दों का मजबूत रहना अच्‍छा होता है। इसके अलावे ग्रहों के बुरे प्रभाव को दूर करने के लिए हमारे धर्मशास्त्रों में हर तिथि पर्व पर स्नानादि के पश्चात् दान करने के बारे में बताया गया है।प्राचीनकाल से ही दान का अपना महत्व रहा है , परंतु दान किस प्रकार का किया जाना चाहिए , इसकी जानकारी बहुत कम लोगों को है। दान के लिए शुद्ध द्रब्य का होना अनिवार्य है । दान के लिए सुपात्र वह व्यक्ति है , जो अनवरत किसी क्रियाकलाप में संलग्न होते हुए भी अभावग्रस्त है। दुष्‍कर्म या पापकर्म करनेवाले या आलसी व्यक्ति को दान देना बहुत बड़ा पाप होता है । यदि दान के नाम पर आप ठगे जाते हैं , तो इसका पुण्य आपको नहीं मिलेगा। इसलिए दान का उचित फल प्राप्त करने के लिए आप दान करते या देते समय ध्यान रखें कि दान उस सुपात्र तक पहुंच सके , जहॉ इसका उचित उपयोग हो सके।ऐसे में आपको सर्वाधिक फल की प्राप्ति होगी।साथ ही अपनी कुंडली के अनुसार ही उसमें जो ग्रह कमजोर हो , उसको मजबूत बनाने के लिए दान करना चाहिए। जातक का चंद्रमा कमजोर हो , तो अनाथाश्रम को दान करना चाहिए , खासकर 12 वर्ष से कम उम्र के अभावग्रस्त और जरुरतमंद बच्चों को दिए जानेवाले दान से उनका काफी भला होगा। जातक का बुध कमजोर हो तो उन्हें विद्यार्थियों को या किसी प्रकार के रिसर्च कार्य में लगे व्‍यक्ति को सहयोग देना चाहिए। जातक का मंगल कमजोर हो , तो उन्हें युवाओं की मदद और कल्याण के लिए कार्यक्रम बनाने चाहिए। जातक का शुक्र कमजोर हो तो उनके लिए कन्याओं के विवाह में सहयोग करना अच्छा रहेगा। सूर्य कमजोर हो तो प्राकृतिक आपदाओं में पड़नेवालों की मदद की जा सकती है। बृहस्पति कमजोर हो तो अपने माता पिता और गुरुजनों की सेवा से लाभ प्राप्त जोकिया जा सकता है। शनि कमजोर हो तो वृद्धाश्रम को दान करें या अपने आसपास के जरुरतमंद अतिवृद्ध की जरुरतों को पूरा करने की कोशिश करें। राहु के लिए कुष्ठ आश्रम में दान दे। केतु के लिए विकलांग अपाहिज, सफाईकर्मचारी जो जरुरतमंद हो
 यह तथ्‍य सर्वविदित ही है कि विभिन्न पदार्थों में रंगों की विभिन्नता का कारण किरणों को अवशोषित और उत्सर्जित करने की शक्ति है। जिन रंगों को वे अवशोषित करती हैं , वे हमें दिखाई नहीं देती , परंतु जिन रंगों को वे परावर्तित करती हैं , वे हमें दिखाई देती हैं। यदि ये नियम सही हैं तो चंद्र के द्वारा दूधिया सफेद , बुध के द्वारा हरे , मंगल के द्वारा लाल , शुक्र के द्वारा चमकीले सफेद , सूर्य के द्वारा तप्‍त लाल , बृहस्पति के द्वारा पीले और शनि के द्वारा काले रंग का परावर्तन भी एक सच्‍चाई होनी चाहिएपृथ्‍वी में हर वस्‍तु का अलग अलग रंग है , यानि ये भी अलग अलग रंगों को परावर्तित करती है । इस आधार पर सफेद रंग की वस्‍तुओं का चंद्र , हरे रंग की वस्‍तुओं का बुध , लाल रंग की वस्‍तुओं का मंगल , चमकीले सफेद रंग की वस्‍तुओं का शुक्र , तप्‍त लाल रंग की वस्‍तुओं का सूर्य , पीले रंग की वस्‍तुओं का बृहस्‍पति और काले रंग की वस्‍तुओं का श‍नि के साथ संबंध होने से इंकार नहीं किया जा सकता। शायद यही कारण है कि नवविवाहिता स्त्रियों को मंगल ग्रह के दुष्‍प्रभावों से बचाने के लिए लाल रंग को परावर्तित करने के लिए प्राय: लाल वस्त्र से सुशोभित करने तथा मॉग में लाल सिंदूर लगे की प्रथा है।इसी कारण चंद्रमा का प्रभाव बड़ाने  के लिए मोती , बुध के लिए पन्ना , मंगल के लिए मूंगा , शुक्र के लिए हीरा , सूर्य के लिए माणिक , बृहस्पति के लिए पुखराज और शनि के लिए नीलम पहनने की परंपरा समाज में बनायी गयी है। ये रत्न संबंधित ग्रहों की किरणों को उत्सर्जित कर देते हैं , जिसके कारण ये किरणें इन रत्नों के लिए तो प्रभावहीन होती ही हैं , साथ ही साथ इसको धारण करनेवालों के लिए भी प्रभावहीन बन जाती हैं। इसलिए रत्नों का प्रयोग सिर्फ  ग्रहों को मजबूत के लिए ही किया जाना चाहिए , बुरे ग्रहों के लिए नहीं कभी-कभी पंडितों की समुचित जानकारी के अभाव के कारण ये रत्न जातक को अच्छे फल से भी वंचित कर देती है।रंगों में अद्भूत प्रभाव होने का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि विभिन्न रंगों की बोतलों में रखा पानी सूर्य के प्रकाश में औषधि बन जाता है , जिसका उपयोग विभिन्न रोगों की चिकित्सा में किया जाता है।यदि व्यक्ति का जन्मकालीनचंद्र कमजोर हो, तो उन्हें सफेद , बुध कमजोर हो , तो उसे हरे , मंगल कमजोर हो , तो उसे लाल , शुक्र कमजोर हो , तो उसे हल्के नीले , सूर्य कमजोर हो , तो उसे ईंट के रंग , बृहस्पति कमजोर हो , तो उसे पीले , तथा शनि कमजोर हो , तो काले रंग का अधिक प्रयोग कर उन ग्रहों के प्रभाव को परावर्तित किया जा सकता है। लेकिन ध्यान रहे , मजबूत ग्रहों की किरणों का अधिकाधिक प्रभाव आपपर पड़े , इसके लिए उससे संबंधित रंगों का प्रयोग सही मात्रा होना चाहिए। इन रंगों की वस्तुओं का  आप दान करें , तो काफी फायदा हो सकता है। क्योंकि हम जिस वस्तु को स्पर्श करते हैं उसको छूने से ऊर्जा ग्रहण भी करता है हमारा शरीर और छोड़ता भी है यानी हमारे शरीर की ऊर्जा बैलेंस होने लगती है आचार्य राजेश

गुरुवार, 26 सितंबर 2019

ज्योतिष विद्या : विज्ञान या अंधविश्वास

ज्योतिष विद्या : विज्ञान या अंधविश्वास 

ज्योतिष विज्ञान है या अंधश्वास , इस प्रश्न का उत्तर दे पाना समाज के किसी भी वर्ग के लिए आसान नहीं है। परंपरावादी और अंधविश्वासी विचारधारा के लोग ,जो कई स्थानों पर ज्योतिष पर विश्वास करने के कारण धोखा खा चुकें हैं ,भी इस शास्त्र पर संदेह नहीं करते। सारा दोषारोपण ज्योतिषी पर ही होता है। वैज्ञानिकता से संयुक्त विचारधारा से ओत-प्रोत व्यक्ति भी किसी मुसीबत में फंसते ही समाज से छुपकर ज्योतिषियों की शरण में जाते देखे जाते हैं। ज्योतिष की इस विवादास्पद स्थिति के लिए मै सरकार ,शैक्षणिक संस्थानों एवं पत्रकारिता विभाग को दोषी मानता हूं। 

सरकार यदि चाहती तो  सभी पत्रिकाओंओर TV channel पर में राशि-फल के प्रकाशन /प्रसारण पर रोक लगाया जा सकता था। आखिर हर प्रकार की कुरीतियों और अंधविश्वासों जैसे जुआ , मद्यपान , बाल-विवाह, सती-प्रथा आदि को समाप्त करनें में सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी है ,परंतु ज्योतिष पर विश्वास करनेवालों के लिए ऐसी कोई कड़ाई नहीं हुई। आखिर क्यों ?
 पत्रकारिता के क्षेत्र में देखा जाए तो लगभग सभी पत्रिकाएं यदा-कदा ज्योतिष से संबंधित लेख, इंटरव्यू , भविष्यवाणियॉ आदि निकालती रहती है पर जब आजतक इसकी वैज्ञानिकता के बारे में निष्कर्ष ही नहीं निकाला जा सका, जनता को कोई संदेश ही नहीं मिल पाया तो फिर ऐसे लेखों या समाचारों का क्या औचित्य ?पत्रिकाओं के विभिन्न लेखों हेतु किया जानेवाला ज्योतिषियों कें चयन का तरीका ही गलत है । उनकी व्यावसायिक सफलता को उनके ज्ञान का मापदंड समझा जाता है , लेकिन वास्तव में किसी की व्यावसायिक सफलता उसकी व्यावसायिक योग्यता का परिणाम होती है ,न कि विषय-विशेष की गहरी जानकारी। इन सफल ज्योतिषियों का ध्यान फलित ज्योतिष के विकास में न होकर अपने व्यावसायिक विकास पर होता है। ऐसे व्यक्तियों द्वारा ज्योतिष विज्ञान का प्रतिनिधित्व करवाना जनता को कोई संदेश नहीं दें पाता है। जो ज्योतिषी ज्योतिष को विज्ञान सिद्ध कर सकें , उन्हें ही अपने विचार प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया जाना चाहिए या एक प्रतियोगिता में किसी व्यक्ति की जन्मतिथि, जन्मसमय और जन्मस्थान देकर सभी ज्योतिषियों से उस जन्मपत्री का विश्लेषण करवाना चाहिए । उसकी पूरी जिंदगी कें बारे में जो ज्योतिषी सटीक भविष्यवाणी कर सके उसे ही अखबारों ,पत्रिकाओं टीवी चैनल में स्थान मिलना चाहिए।

परंतु ज्योतिषियों की परीक्षा लेने के लिए कभी भी ऐसा नहीं किया गया ,फलस्वरुप ज्योतिष की गहरी जानकारी रखनेवाले समाज के सम्मुख कभी नहीं आ सके और समाज नीम-हकीम ज्योतिषियों से परेशान होता रहा। इसके अतिरिक्त वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखनेवाले कुछ लोग और कुछ संस्थाएं ऐसी है , जो ज्योतिष विज्ञान के प्रति किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं। वे ज्योतिष से संबंधित बातों को सुनने में रुचि कम और उपहास में रुचि ज्यादा रखते हैं। उनके दृष्टिकोण में समन्वयवादिता की कमी भी आजतक ज्योतिष को विज्ञान नहीं सिद्ध कर पायी है।
ज्योतिष विज्ञान की वैज्ञानिकता के बारे में संशय प्रकट करते हुए यह कहा जाता है कि सौरमंडल में सूर्य स्थिर है तथा अन्य ग्रह इसकी परिक्रमा करते हैं, किन्तु ज्योतिष शास्त्र यह मानता है कि पृथ्वी स्थिर है और अन्य ग्रह इसकी परिक्रमा करते हैं। जब यह परिकल्पना ही गलत है तो उसपर आधारित भविष्यवाणी कैसे सही हो सकती है ? हमारे ऋषि मुनियों पर भी संदेह किया गया पर बात ऐसी नहीं है । जिस पृथ्वी पर हम रहते हैं , वह चलायमान होते हुए भी हमारे लिए स्थिर है , ठीक उसी प्रकार , जिस प्रकार हम किसी गाड़ी में चल रहे होते हैं , वह हमारे लिए स्थिर होती है और किसी स्टेशन पर पहुंचते ही हम कहते हैं , `अमुक शहर आ गया।´ जिस पृथ्वी में हम रहतें हैं , उसमें हम स्थिर सूर्य के ही उदय और अस्त का प्रभाव देखते हैं। इसी प्रकार अन्य आकाशीय पिंडों का भी प्रभाव हमपर पड़ता है। पृथ्वी से कोई कृत्रिम उपग्रह को किसी दूसरे ग्रह पर भेजना होता है तो पृथ्वी को स्थिर मानकर ही उसके सापेक्ष अन्य ग्रहों की दूरी निकालनी पड़ती है। जब यह सब गलत नहीं होता तो ज्योतिष में पृथ्वी को स्थिर मानते हुए उसके सापेक्ष अन्य ग्रहों की गति पर आधारित फल कैसे गलत हो सकता है ?

ज्योतिष की वैज्ञानिकता के बारे में संशय प्रकट करते हुए दूसरा तर्क यह दिया जाता है कि सौरमंडल में सूर्य तारा है , पृथ्वी, मंगल, बुध, बृहस्पति, शनि आदि ग्रह हैं तथा चंद्रमा उपग्रह है, जबकि ज्योतिष शास्त्र में सभी ग्रह माने जाते हैं । इसलिए इस परिकल्पना पर आधारित भविष्यवाणी महत्वहीन है। इसके उत्तर में मेरा यह कहना है कि सभी विज्ञान में एक ही शब्दों के तकनीकी अर्थ भिन्न-भिन्न हो सकते हैं । अभी विज्ञान पूरे ब्रह्मांड का अध्ययन कर रहा है। ब्रह्मांड में स्थित सभी पिंडों को स्वभावानुसार कई भागों में व्यक्त किया गया है। सभी ताराओं की तरह ही सूर्य की प्रकृति होने के कारण इसे तारा कहा गया है। सूर्य की परिक्रमा करनेवाले पिंडों को ग्रह कहा गया है। ग्रहों की परिक्रमा करनेवाले पिंडों को उपग्रह कहा गया है। किन्तु फलित ज्योतिष पूरे ब्रह्मांड का अध्ययन नहीं कर सिर्फ अपने सौरमंडल का ही अध्ययन करता है। सूर्य को छोड़कर अन्य ताराओं का प्रभाव पृथ्वी पर नहीं महसूस किया गया है। इसी प्रकार अन्य ग्रहों के उपग्रहों का पृथ्वी पर कोई प्रभाव नहीं देखा गया है । सूर्य, चंद्र , बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि एवं मंगल की गति और स्थिति के प्रभाव को पृथ्वी , उसके जड़-चेतन और मानव-जाति पर महसूस किया गया है। इसलिए इन सबों को ग्रह कहा जाता है। ग्रहों की इस शास्त्र में यही परिभाषा दी गयी है। इसके आधार पर इसकी वैज्ञानिकता पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगाया जा सकता।तीसरा तर्क यह है कि ज्योतिष में राहू और केतु को भी ग्रह माना गया है , जबकि ये ग्रह नहीं हैं । ये तर्क बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। सबसे पहले यह जानकारी आवश्यक है कि राहू और केतु हैं क्या ? पृथ्वी को स्थिर मानने से पृथ्वी के चारो ओर सूर्य का एक काल्पनिक परिभ्रमण-पथ बन जाता है। पृथ्वी के चारो ओर चंद्रमा का एक परिभ्रमण पथ है ही । ये दोनो परिभ्रमण-पथ एक दूसरे को दो विन्दुओं पर काटते हैं । अतिप्राचीनकाल में ज्योतिषियों को मालूम नहीं था कि एक पिंड की छाया दूसरे पिंडों पर पड़ने से ही सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण होते हैं। जब ज्योतिषियों ने सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण होते हैं और सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रह की गणना सैकड़ों साल पहले ही हम बता देते हैं हमारे ऋषि-मुनियों ने अंतघ्यान हो कर ब्रह्मांड को देखा और उसको पूरा समझने के लिए आपको भीतर के ब्रह्मांड को देखना ही पड़ेगा तभी ज्योतिष के बारे में आप की जानकारी पूरी होगी वरना बाहर से कुछ हासिल नहीं होता अधूरा ही मिलेगा

चौथा तर्क यह है कि सभी ज्योतिषियों की भविष्यवाणियों में विविधता क्यों होती है ? हम सभी जानते हैं कि कोई भी शास्त्र या विज्ञान क्यों न हो कार्य और कारण में सही संबंध स्थापित किया गया हो तो निष्कर्ष निकालने में कोई गल्ती नहीं होती। इसके विपरित यदि कार्य और कारण में संबंध भ्रामक हो तो निष्कर्ष भी भ्रमित करनेवाले होंगे। ज्योतिष विज्ञान का विकास बहुत ही प्राचीन काल में हुआ। उस काल में कोई भी शास्त्र काफी विकसित अवस्था में नहीं था।सभी शास्त्रों और विज्ञानों में नए-नए प्रयोग कर युग के साथ-साथ उनका विकास करने पर बल दिया गया , पर अफसोस की बात है कि ज्योतिष विज्ञान अभी भी वहीं है जहॉ से इसने यात्रा शुरु की थी । महर्षि जैमिनी और पराशर के द्वारा ग्रह शक्ति मापने और दशाकाल निर्धारण के जो सूत्र थे ,उसकी प्रायोगिक जॉच कर उन्हें सुधारने की दिशा में कभी कार्य नहीं किया गया। अंधविश्वास समझते हुए ज्योतिष-शास्त्र की गरिमा को जैसे-जैसे धक्का पहुंचता गया, इस विद्या का हर युग में ह्रास होता ही गया।

फलस्वरुप यह 21वीं सदी में भी घिसट-घिसटकर ही चल रहा है। ज्योतिषियों की भविष्यवाणियों में अंतर का कारण कार्य और कारण में पारस्परिक संबंध की कमी होना है। ग्रह-शक्ति निकालने के लिए मानक-सूत्र का अभाव है। कुल 10-12 सूत्र हैं ,सभी ज्योतिषी अलग अलग सूत्र को महत्वपूर्ण मानते हैं। दशाकाल निर्धारण का एक प्रामाणिक सूत्र है , पर उसमें एक साथ जातक के चार-चार दशा चलते रहतें हैं-एक महादशा, दूसरी अंतर्दशा, तीसरी प्रत्यंतर दशा और चौथी सूक्ष्म महादशा। इतने नियमों को यदि कम्प्यूटर में भी डाल दिया जाए , तो वह भी सही परिणाम नहीं दे पाता है , तो पंडितों की भविष्यवाणी में अंतर होना तो स्वाभाविक है। सभी ज्योतिषी अलग अलग दशा को महत्वपूर्ण मान लें तो सबके कथन में अंतर तो आएगा ही।  ओर फिर अगर आप समुंदर के किनारे खड़े हैं और आपके पास जो जो पात्र हैं उतना उतना ही जल ले पाओगे अगर आपके पास पात्र छोटा है तो उसमें कम जल आएगा अगर आपके पास पात्र बड़ा है तो उसमें ज्यादा जल आएगा इसी तरह ज्योतिष ज्ञान है।
ज्योतिष विज्ञान मूलत: संकेतों का विज्ञान है , यह बात न तो ज्योतिषियों को और न ही जनता को भूलनी चाहिए। किन्तु जनता ज्योतिषी को भगवान बनाकर तथा ज्योतिषी अपने भक्तों को बरगलाकर फलित ज्योतिष के विकास में बाधा पहुंचाते आ रहे हैं। हर विज्ञान में सफलता और असफलता साथ-साथ चलती है। मेडिकल साइंस को ही लें। हर समय एक-न-एक रोग डॉक्टर को रिसर्च करने को मजबूर करते हैं। किसी परिकल्पना को लेकर ही कार्य-कारण में संबंध स्थापित करने का प्रयास किया जाता है, पर सफलता पहले प्रयास में ही मिल जाती है, ऐसी बात नहीं है। अनेकानेक प्रयोग होते हैं , करोड़ों-अरबों खर्च किए जाते हैं, तब ही सफलता मिल पाती है ।
भूगर्भ-विज्ञान को ही लें, प्रारंभ में कुछ परिकल्पनाओं को लेकर ही कि यहॉ अमुक द्रब्य की खान हो सकती है , कार्य करवाया जाता था ,परंतु बहुत स्थानों पर असफलता हाथ आती थी। धीरे-धीरे इस विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है कि कसी भी जमीन के भूगर्भ का अध्ययन कम खर्च से ही सटीक किया जा सकता है। अंतरिक्ष में भेजने के लिए अरबों रुपए खर्च कर तैयार किए गए उपग्रह के नष्ट होने पर वैज्ञनिकों ने हार नहीं मानी। अभी हाल ही में चंद्रयान इसरो ने भेजा उसके बारे में सभी जानते हैं उनकी कमजोरियों पर ध्यान देकर उन्हें सुधारने का प्रयास किया जा रहा है तो अब सफलता मिल रही है। उपग्रह से प्राप्त चित्र के सापेक्ष की जानवाली मौसम की भविष्यवाणी नित्य-प्रतिदिन सुधार के क्रम में देखी जा रही है।
मानव जब-जब गल्ती करते हैं , नई-नई बातों को सीखते हैं ,तभी उनका पूरा विकास हो पाता है , परंतु ज्योतिष-शास्त्र के साथ तो बात ही उल्टी है , अधिकांश लोग तो इसे विज्ञान मानने को तैयार ही नहीं , सिर्फ खामियॉ ही गिनाते हैं और जो मानते हैं , वे अंधभक्त बने हुए हैं । यदि कोई ज्योतिषी सही भविष्यवाणी करे तो उसे प्रोत्साहन मिले न मिले ,उसके द्वारा की गयी एक भी गलत भविष्यवाणी का उसे व्यंग्यवाण सुनना पड़ता है। इसलिए अभी तक ज्योतिषी इस राह पर चलते आ रहें हैं , जहॉ चित्त भी उनकी और पट भी उनकी ही हो। यदि उसने किसी से कह दिया, `तुम्हे तो अमुक कष्ट होनेवाला है , पूजा करवा लो ,यदि उसने पूजा नहीं करवाई और कष्ट हो गया,तो ज्योतिषी की बात बिल्कुल सही। यदि पूजा करवा ली और कष्ट हो गया तो `पूजा नहीं करवाता तो पता नहीं क्या होता´ । यदि पूजा करवा ली और कष्ट नहीं हुआ तो `ज्योतिषीजी तो किल्कुल कष्ट को हरनेवाले हैं´ जैसे विचार मन में आते हैं। हर स्थिति में लाभ भले ही पंडित को हो , फलित ज्योतिष को जाने-अनजाने काफी धक्का पहुंचता आ रहा है।चीज का विकास लगभग नियिचत होता है प्रकृति का यह नियम है कि जिस बीज को उसने पैदा किया , उसे उसकी आवश्यकता की वस्तु मिल ही जाएगी । देख-रेख नहीं होने के बावजूद प्रकृति की सारी वस्तुएं प्रकृति में विद्यमान रहती ही है। बालक जन्म लेने के बाद अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अपनी मॉ पर निर्भर होता है। यदि मॉ न हों , तो पिता या परिवार के अन्य सदस्य उसका भरण-पोषण करते हैं। यदि कोई न हो , तो बालक कम उम्र में ही अपनी जवाबदेही उठाना सीख जाता है। एक पौधा भी अपने को बचाने के लिए कभी टेढ़ा हो जाता है , तो कभी झुक जाता है। लताएं मजबूत पेड़ों से लिपट कर अपनी रक्षा करती हैं ।

कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि सबकी रक्षा किसी न किसी तरह हो ही जाती है और ऐसा ही ज्योतिष शास्त्र के साथ हुआ। आज जब सभी सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाएं ज्योतिष विज्ञान के प्रति उपेक्षात्मक रवैया अपना रही है, 
जीवन में सभी ग्रहों के पड़नेवाले प्रभाव को ज्ञात करने के लिए भी आपको भीतर का ज्ञान होना आवश्यक है 
 किसी व्यक्ति का भविष्य जानना असंभव तो नहीं , मुश्किल भी नहीं रह गया है , क्योंकि व्यक्ति के भविष्य को प्रभावित करने में बड़ा अंश विज्ञान के नियम का होता है , छोटा अंश ही सामाजिक , राजनीतिक , आर्थिक या पारिवारिक होता है या व्यक्ति खुद तय करता है। वास्तव में , हर कर्मयोगी आज यह मानते हैं कि कुछ कारकों पर आदमी का वश होता है , कुछ पर होकर भी नहीं होता और कुछ कुछ पर तो होता ही नहीं । व्यक्ति का एक छोटा निर्णय भी गहरे अंधे कुएं में गिरने या उंची छलांग लगाने के लिए काफी होता है। इतनी अनिश्चितता के मध्य भी अगर ज्योतिष भविष्य में झांकने की हिम्मत करता आया है तो वह उसका दुस्साहस नहीं , वरण् समय-समय पर किए गए रिसर्च के मजबूत आधार पर उसका खड़ा होना है। और फिर मित्रों भविष्य बताने वाला कुक्षी कितना भीतर से उस परमात्मा से जुड़ा हुआ है ?कितनी उसने अपना अध्यात्म में बल प्राप्त है !यह सब बातें भी निर्भर करती है! अब सही ज्योतिषी की तलाश कैसे करें? कोई ज्योतिषी जो होगा मित्रों वो कभी भविष्यफल बताने के लिए राशिफल का सहारा नहीं लेगा क्योंकि ज्योतिष विज्ञान के बोबिल्कुल उलट है तो जो लोग राशिफल बता रहे हैं आप उन्हें नजरअंदाज करें!आपकी कुंडली ओर गोचर दोनो का प्रभाव आपका आने वाला समय तय करता है! आचार्य राजेश

शनिवार, 21 सितंबर 2019

भारत की कुंडली

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मित्रों मुझे बहुत दुख होता है जब मैं देखता हूं बड़े बड़े अच्छे  नाम वाले ज्योतिषी सदियों से  लोगों को गुमराह कर रहे हैं राशिफल के नाम पर और भी जाने क्या-क्या   और अब मैं देख रहा हूं कि 15 अगस्त  भारतदेश की कुंडली की बात हो रही है जो हर साल होती है तो उसको लेकर मेरे क्या विचार हैं आइए जानते हैंभारतवर्ष की कुंडली का विश्लेषण समय-समय पर ज्योतिषीगण करते ही रहते हैं। आज मैं इस मुद्दे पर अपना मत प्रकट कर रहा हूं- जड़ वस्तु का ज्योतिषीय विश्लेषण नहीं-
 मेरा मानना है कि किसी भी जड़ वस्तु का ज्योतिषीय विश्लेषण नहीं हो सकता फ़िर चाहे वह देश हो, खेत-खलिहान हो या मकान इत्यादि। उनके ज्योतिषीय विश्लेषण के लिए वह जिस व्यक्ति के आधिपत्य में है उसकी जन्मपत्रिका का विश्लेषण किया जाना चाहिए ना कि उस वस्तु का, जैसे यदि किसी राज्य का विश्लेषण करना हो तो वह उसके राजा की जन्मपत्रिका के आधार पर किया जाएगा
भारत की प्रचलित कुंडली गलत है-
 यदि हम यह मान भी लें कि भारतवर्ष की कुंडली के आधार पर भारत के भविष्य के संबंध में कुछ भविष्यवाणियां की जा सकती हैं तो उसके लिए भारत की प्रामाणिक जन्मपत्रिका का होना आवश्यक है। अभी तक तथाकथित ज्योतिषीगण जिस जन्मपत्रिका को भारत की जन्मपत्रिका बताकर उसका विश्लेषण करते हैं वह जन्मपत्रिका सर्वथा असत्य व गलत है। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं कि जन्मपत्रिका के निर्माण के लिए जातक के जन्म की सही दिनांक, समय व स्थान की आवश्यकता होती है। भारत के संबंध में यह तीनों ही अप्राप्त हैं अब आप शायद मेरी बातों का विश्वास ना करें क्योंकि आप कहेंगे भारत का जन्म तो 15 अगस्त सन 1947 को रात्रि 12:00 बजे हुआ था। भारतवर्ष की बताई जाने वाली जन्मपत्रिका भी इसी समय व दिनांक के आधार पर बनी हुई होती है लेकिन यह पूर्णत: गलत है क्योंकि जन्म तो 'पाकिस्तान' का हुआ था ना कि भारत का, भारत का तो विभाजन हुआ था। विभाजन के आधार पर यदि भारत का जन्म माने तो भारत का विभाजन तो इससे पूर्व भी कई बार हो चुका था। अत: भारत के जन्म अर्थात निर्माण के सम्बन्ध में कोई दिनांक व समय प्राप्त ही नहीं है तो फ़िर जन्मपत्रिका का निर्माण कैसे हो?

 एक समान कुंडली-नोट यहां में जड़ वस्तु की वात कर रहा हु 
 
14 एवं 15 अगस्त को रात्रि 12:00 बजे को आधार मानकर निर्माण की जाने वाली कुंडलियों में चन्द्र को छोड़कर सभी ग्रहों  की समानता है क्योंकि ग्रह परिवर्तन सामान्यत: कम से कम 1 माह में ही होता है। अत: जब कुंडली एक ही समान हैं तो फ़लित विलग-विलग कैसे   संभव है? इसका निर्णय आप स्वयं कीजे विभाजन के आधार पर समय अलग नहीं हो सकता-कुछ विद्वानों ने 13 रात का समय लिया तो कुछ विद्वानों ने 14 सुवह का पाकिस्तान का लिया है
 हम यदि भारत के विभाजन को भी जन्मपत्रिका निर्माण का आधार मानें जो कि सर्वथा गलत है तो भी विभाजन का समय अलग-अलग नहीं हो सकता। जिस दिन पाकिस्तान का निर्माण किया गया ठीक उसी समय वर्तमान भारत भी अस्तित्व में आ गया फ़िर दोनों देशों का निर्माण समय अलग-अलग कैसे हुआ? स्वतन्त्रता या परतन्त्रता ज्योतिष का आधार नहीं हो सकती।
 अत: उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर यह स्पष्ट हो जाता है कि भारतवर्ष की कुंडली बनाकर उसका फ़लित व भविष्य विश्लेषण सम्बन्धी बातें करना नितांत असत्य व भ्रामक हैं।कल वात करते हैं कि भारत का नाम भारत कैसे पड़ा। मित्रों भारतवर्ष का नामकरण कैसे हुआ इस संबंध में मतभेद हैं। भारतवर्ष में तीन भरत हुए एक भगवान ऋषभदेव के पुत्र, दूसरे राजा दशरथ के और तीसरे दुश्यंत- शकुंतला के पुत्र भरत।
भारत-1 : भारत नाम की उत्पति का संबंध प्राचीन भारत के चक्रवर्ती सम्राट राजा मनु के वंशज भगवान ऋषभदेव के पुत्र भरत से है। श्रीमद् भागवत एवं जैन ग्रंथों में उनके जीवन एवं अन्य जन्मों का वर्णन आता है।

ऋषभदेव स्वयंभू मनु से पांचवीं पीढ़ी में इस क्रम में हुए- स्वयंभू मनु, प्रियव्रत, अग्नीघ्र, नाभि और फिर ऋषभ। राजा और ऋषि ऋषभनाथ के दो पुत्र थे- भरत और बाहुबली।

बाहुबली को वैराग्य प्राप्त हुआ तो ऋषभ ने भरत को चक्रवर्ती सम्राट बनाया।
भारत-2 : राम के छोटे भाई भरत राजा दशरथ के दूसरे पुत्र थे। उनकी माता कैकयी थी। उनके अन्य भाई थे लक्ष्मण और शत्रुघ्न। परंपरा के अनुसार राम को गद्दी पर विराजमान होना था लेकिन उन्हें 14 वर्ष का वनवास मिला। इस दौरान भरत ने राजगद्दी संभाली और उन्होंने राज्य का विस्तार किया। कहते हैं उन्हीं के कारण इस देश का नाम भारत पड़ा।
भरत-3 : पुरुवंश के राजा दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र भरत की गणना 'महाभारत' में वर्णित सोलह सर्वश्रेष्ठ राजाओं में होती है। कालिदास कृत महान संस्कृत ग्रंथ 'अभिज्ञान शाकुंतलम' के एक वृत्तांत अनुसार राजा दुष्यंत और उनकी पत्नी शकुंतला के पुत्र भरत के नाम से भारतवर्ष का नामकरण हुआ।
मरुद्गणों की कृपा से ही भरत को भारद्वाज नामक पुत्र मिला। भारतद्वाज महान ‍ऋषि थे। चक्रवर्ती राजा भरत के चरित का उल्लेख महाभारत के आदिपर्व में भी है।
हालांकि ज्यादातर विद्वान मानते हैं कि ऋषभनाथ के प्रतापी पुत्र भरत के नाम पर ही भारत का नामकरण हुआ।  आचार्य राजेश

राहु की संगत बनाम शक्तीकीरंगत

 
कुंडली मे राहु जिस ग्रह के साथ गोचर करता है या जिस ग्रह के साथ जन्म समय से विराजमान होता है वही शक्ति जीवन के अन्दर काम करने के लिये मानी जाती है। घर की छत की शक्ति होती है कि वह हवा पानी धूप से रक्षा करती है,छतरी की शक्ति होती है कि वह पानी और धूप से शरीर को बचाती है,धूप की शक्ति होती है कि वह शरीर मे गर्मी पहुंचाती है,बरसात की शक्ति होती है कि वह शरीर को भीगने का सुख देती है,सर्दी की शक्ति होती है कि वह शरीर को ठंडा रखने का सुख देती है। यानी जहां जहां शक्ति है वहां वहां राहु की छाया है,घर की छत को भी राहु की उपाधि दी जाती है तो छतरी को भी राहु कहा जाता है,सूर्य की छाया यानी धूप भी राहु की श्रेणी मे आजाती है चन्द्रमा की शीतलता भी राहु की श्रेणी मे गिनी जाती है. इस प्रकार से जब ब्रह्माण्ड का कारक राहु ही है तो राहु से डरने का कारण क्या हो सकता है। जब राहु जिस ग्रह के साथ होता है तो उस ग्रह के बारे मे असीमित भावना को भर देता है,वह भावना अगर जन्म के राहु से टकरा रही है तो वह एक अमिट छाप यानी मोहर को लगा देती है।
राहु के साथ अगर सूर्य है शुक्र है तो राहु राजसी ठाटबाट को प्रस्तुत करने से चूकेगा नही उसी जगह पर अगर राहु के साथ मे शनि है वक्री बुध है तो उस आदमी को झूठ बोलने और चालाकी से काम निकालने के अलावा कुछ आता भी नही होगा। उदाहरण के लिये अपने क्रिकेत खिलादी सचिन तेन्दुलकर को ही देख लो कहने को तो राहु चौथे भाव मे बैठा है चन्द्रमा के साथ है अष्टम के सूर्य शुक्र से युति है तो वह राजकीय रूप से जनता के मन से धन धान्य के द्वारा आगे बढाने के लिये कमी नही दे रहा है। इसी बात को अगर और देखा जाये तो राहु का योग चौथे भाव मे भी है और राहु का योग अगर अष्टम भाव मे हो जाता है तो राहु अन्दरूनी भेद को भी जानने वाला बना देताहै,सचिन की कुंडली मे जन्म कुंडली से राहु चौथे भाव मे है और जिस घडी मे सचिन पैदा हुये है उस घडी मे राहु अष्टम मे बैठा हुआ है,अगर कारकांश कुंडली से देखा जाये तो भी चौथे भाव को मजबूत कर रहा है और उसे अगर होरा लगन से देखा जाये तो सीधा जाकर लाभ मे बैठ जाता है,इस प्रकार से जीवन मे प्रसिद्धि धन धान्य के लिये राहु अपनी गति को पूर्ण रूप से प्रदान करने वाला होता है। चन्द्र कुंडली से जब राहु लगन मे हो तो वह अपनी शक्ति को मजबूती से पैर जमाने के लिये और खुद की सोच से आगे बढने वाला भी बना देता है,नवांश से यह राहु अगर सप्तम मे चला जाये और शनि के साथ शुक्र का प्रभाव देकर आच्छादित कर दे और भी सोने मे सुहागा बना देने के लिये अपनी गति को और भी प्रदान करने वाला बन जाता है।
तीसरा सप्तम का और ग्यारहवा राहु अगर सही स्थिति मे है तो वह प्रसिद्धि देने के लिये बहुत ही उत्तम माना जाता हैजबराहु का गोचर तीसरे भाव मेआया  वह सचिन को प्रसिद्धि दी तो सौवां शतक देकर इस राहु ने नवाजा है। इसके अलावा भी एक बात और भी सही है कि जब कुंडली मे राहु चौथा होता है तो वह धर्मी हो जाता है वह किसी भी प्रकार से जीवन मे खराबी नही पैदा कर सकता है चन्द्रमा के साथ होने से मां का आशीर्वाद हमेशा साथ रहने वाला होता है जो लोग मां को घूरा कूडा समझते है उन्हे इस बात को समझ लेना चाहिये कि जब तक माता का आशीर्वाद साथ है दुनिया साथ है जैसे ही इस आशीर्वाद मे बददुआ मिल जाती है अपना शरीर भी काम नही आता है। । ग्रहों की स्थिति के साथ ही हम बात करते हैं महादशाओं की। किसी भी जातक को उसकी कुंडली के शुभ ग्रहों का फल उस ग्रह महादशा अंतर्दशा में माना जाएगा या गोचर से माना जाएगा मंगल की महादशा के बाद प्रारंभ हुई राहु की महादशा। राहु की महादशा के प्रारंभ होते ही शुरू हुआ सचिन की सफलताओं का वह स्वर्णिम सफर जिसे कोई भूल नहीं सकता। राहु चतुर्थ भाव में लाभेश चंद्रमा से युत होकर स्थित हैं तथा दशम भाव को पूर्ण दृष्टि प्रदान कर रहे हैं। राहु धनेश शुक्र व लाभेश चंद्रमा के नक्षत्र व उपनक्षत्र में बैठकर नीचभंग राजयोग भी बना रहे हैं। राहु मिथुन राशि में उच्च के होते हैं। राहु के उच्चनाथ बुध सप्तम भाव में अर्थात लग्न से केंद्र में बैठे हैं जिस कारण राहु का नीच भंग हो गया है। 18 वर्ष की राहु की महादशा में सचिन को वह सब कुछ मिला जिसकी हर व्यक्ति की चाह होती है। अब तक अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में उनकी पकड़ बन चुकी थी। उनका प्रेम परवान चढ़ा और पारिवारिक सहमति से उनका विवाह भी हो गया। यहां पर हम कुंडली की व्याख्या नहीं करेंगेसचिन तेंदुलकरः कोच या कमेंटेटर के रूप में आ सकते है नजर 
सचिन ने इस समय क्रिकेटे के खेल से भले ही निवृत्ति ले ली हो, पर क्रिकेट का मैदान नहीं छोड़ेंगे। कहने का अभिप्राय यह है कि आगामी समय में सचिन कोच या कमेंटेटर के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकते हैं। कुंडली के अनुसार जब राहु का गोचर में  इसी स्थान पर   में आगमन होगा तब इनको किसी रूप में आकस्मिक लाभ होने के आसार हैं। मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर को  बीच विदेश में किसी प्रकार का सम्मान मिलने की संभावना है। 
आपका भाग्य अापको किस और ले जाएगा, इसका जवाब जानें

शुक्रवार, 20 सितंबर 2019

गोचर मैं सिंह राशि में मंगल के प्रति फलादेश

गोचर मैं सिंह राशि में मंगल के प्रति फलादेश

वर्तमान मे मंगल का गोचर सूर्य की राशि मे चल रहा है,यह कारण सरकारी क्षेत्र मे और राजनीति में जिद्दी होने की बात को प्रकट करता है,सबसे पहले जिद्दी शब्द की व्याख्या करना जरूरी है। जब किसी कार्य मे परेशानी का कारण पैदा होने लगता है तो उस कार्य को जबरदस्ती करने की दिमाग मे आती है,बाकी के सभी कार्य छोड कर एक ही कार्य करने की जिद दिमाग मे पैदा हो जाती है। इससे व्यक्ति रूप मे भी दिमाग मे जिद्दीपन आजाता है,और व्यक्ति के आसपास के जो कार्य होते है उनके अन्दर परेशानी का कारण पैदा होना शुरु हो जाता है। काल पुरुष के अनुसार मंगल का स्थान संतान परिवार विद्या बुद्धि मनोरंजन जल्दी से धन कमाने के क्षेत्र खेलकूद के प्रति की जाने वाली भावना माता के परिवार माता के धन पिता के द्वारा रिस्क लेकर किये जाने वाले कार्य जीवन साथी के मित्र आदि के भाव मे इस मंगल का गोचर करना माना जाता है। इन सभी कारणो मे किसी न किसी प्रकार की उत्तेजना के कारण दिक्कत का होना माना जा सकता है। इन कारणो मे सरकार का परिवार का सन्तान का और इसी प्रकार के कारको का मानसिक तनाव भी माना जा सकता है। इन्ही क्षेत्रो मे कार्य करने वाले लोग किसी न किसी प्रकार से आहत भी होते है और चोट आदि के द्वारा दिक्कत भी उठाते है। मंगल खून की गर्मी का कारक है इस कारण से गुस्सा का बढना भी माना जाता है,जब कोई बढचढ कर बात करने के लिये अपनी मानसिकता को आगे रखता है या ताव खाता है तो अभिमान की मात्रा बढने से लडाई झगडे की नौबत भी आजाती है। अगर जातक की कुंडली में सूर्य भी इसी स्थान मे है तो जातक के पिता के प्रति यही धारणा मानी जा सकती है पुत्र के प्रति भी यही कारण माना जा सकता है इन दोनो को किसी प्रकार चोट आदि से पेट सम्बन्धी दिक्कत का होना भी माना जा सकता है.अगर इस भाव मे चन्द्रमा है तो जातक की माता को परेशानी का कारण पैदा होता है जनता के अन्दर किसी न किसी बात पर गुस्सा आता है और तोड फ़ोड जैसे कारण पैदा हो जाते है। शासन मे कोई स्त्री शासक यात्रा आदि मे अपने बिजी रखता है,परिवार मे भाई की यात्रा का कारण भी माना जा सकता है,इस युति से उतावलापन भी देखने को मिलता है। अगर इसी स्थान मे बुध है तो मानसिक अशान्ति और और दुश्मनी मे बढोत्तरी होने लगती है जो मित्र होते है वह भी अधिक अभिमान या अहम के कारण शत्रु बनने लगते है,पेट सम्बन्धी बीमारी का होना भी माना जा सकता है। अगर इस भाव मे गुरु के साथ मंगल का गोचर होता है तो जातक के अन्दर जितनी विद्या है उससे अधिक बात करने का कारण बनता है और कार्य के अन्दर जाकर वह झूठा अहम खत्म हो जाता है इसलिए अपमान भी होता है और अगर स्त्री की कुंडली मे यह युति बनती है तो उसके पति का यात्रा वाला या स्थान परिवर्तन का योग बनता है। वैसे उन्नति का समय भी माना जा सकता है। गोचर से जब मंगल इस भाव मे शुक्र पर आता है तो जान पहिचान मे बढोत्तरी होने की बात भी मिलती है सम्बन्धी घर आने लगते है,उत्सव आदि होने की बात भी होती है स्त्री जातक की कुंडली मे पति को लाभ होता है और भाई को किसी स्त्री से जान पहिचान का कारण भी माना जा सकता है। यही मंगल जब शनि पर गोचर करता है तो नौकरी आदि मे परेशानी देने का कारण बनता है किसी उच्च अधिकारी से मनमुटाव हो जाता है और धन की भी हानि होने का कारण बनता है यह बात अक्सर कार्य के अन्दर अधिक तकनीक लगाने और अपनी बात को उत्तेजना मे आगे रखने का कारण बनता है,यही पर राहु का असर होता है तो जातक के भाई पर परेशानी का कारण पैदा होता है जिद मे बढोत्तरी होती है पेट के अन्दर गैस का बनना और पाचन क्रिया का खराब होना भी माना जा सकता है,केतु के साथ मंगल का गोचर होने से भाई के अक्समात धार्मिक बनने की बात भी मानी जा सकती है या पति का किसी प्रकार से धर्म के प्रति लगाव शुरु हो जाता है आचार्य राजेश

मंगलवार, 17 सितंबर 2019

वक्रीशनि मार्गी शनि

शनि बुधवार, 18 सितंबर को ग्रहों का न्यायाधीश शनि अपनी चाल बदलेगा। ये ग्रह अभी धनु राशि में वक्री है। 18 तारीख के बाद मार्गी हो जाएगाजब शनि मार्गी हो जाएगा, तब सिर्फ राहु-केतु ही वक्री रहेंगे, क्योंकि ये दोनों ग्रह हमेशा वक्री ही रहते हैं।

"मार्गी शनि देह कुटवावे,वक्री खुद की बुद्धि चलावे,
काम करे ना करवावन देई,केवल आवन जावन लेई.
खुद के घर में वक्री रहता,देश से जाय विदेश में रहता,
जब कभी घर आवन होई,दस पांच साल में वापिस कोई"
शनि की आदतों से नही शनि की नजर से डरा जाता है,शनि की नजर जहाँ भी पड जाती है उसका कल्याण होना निश्चित है,मार्गी शनि पानी वाला सांप माना जाता है तो वक्री शनि जहरीला सांप और अस्त शनि को शेषनाग की उपाधि दी जाती है। कुंडली के त्रिक भाव में अगर शनि है तो बिना अपना असर दिये नही जाता है लेकिन शनि की आदत है कि वह अगर अपने इष्ट देव चाहे जो भी हों या अपने माता पिता की सेवा में रहता है,तो उसके ऊपर यह अपना असर कम ही करते हैं। जब शनि कुंडली में मार्गी होता है तो शरीर से मेहनत करवाता है और जो भी काम करवाता है उसके अन्दर पसीने को निकाले बिना भोजन भी नहीं देता है और जब किया सौ का जाय तो मिलता दस ही है,इसके साथ ही शरीर के जोड़ जोड़ को तोड़ने के लिए अपनी पूरी की पूरी कोशिश भी करता है,रहने के लिए अगर निवास का बंदोबस्त किया जाए तो मजदूरों से काम करवाने की बजाय खुद से भी मेहनत करवाता है तब जाकर कोई छोटा सा रहने वाला मकान बनवा पाता है,जब कोई कार्य करने के लिए अपने को साधनों की तरफ ले जाता है तो साधन या तो वक्त पर खराब हो जाते है या साधन मिल ही नहीं पाते है,मान लीजिये किसी को घर बनवाने के लिए सामान लाना है,सामान लाते हुए घर के पास ही या तो साधन खराब हो जाएगा जिससे आने वाले सामान को घर तक लाना भी है और साधन भी ख़राब है या रास्ता ही खराब है उस समय मजदूरी से अगर उस सामान को लाया जाता है तो वह मजदूरी इतनी देनी पड़ती है जिससे मकान को बनवाने के लिए जो बजट है वह फेल हो रहा है इस लोभ के कारण सामान को खुद ही घर बनाने के स्थान तक ढोने के लिए मजबूर होना पड़ता है,इसके बाद अगर किसी बुद्धि का प्रयोग भी किया जाए तो कोई न कोई रोड़ा आकर अपनी कलाकारी कर जाता है,जैसे कोई आकर कह जाता है कि अमुक समय पर उसका वह काम करवा देगा लेकिन खुद भी नहीं आता है और भरोसे में रखकर काम को करने भी नहीं देता है,यह मार्गी शनि का कार्य होता है,इसी प्रकार से मार्गी शनि एक विषहीन सांप की भांति भी काम करता है,विषहीन सांप से कोई डरता नहीं है उसे लकड़ी से उछल कर हाथ से पकड़ कर शरीर को तोड़ने का काम करता हैउसी जगह वक्री शनि बुद्धि से काम करने वाला होता है जैसे जातक को घर बनवाना है तो वह अपनी बुद्धि से साधनों का प्रयोग करेगा,पहले किसी व्यक्ति को नियुक्त कर देगा फिर उसे अपनी बुद्धि के अनुसार किये जाने वाले काम का मेहनताना देगा,जो मेहनताना दिया जा रहा है उसकी जगह पर वह दूसरा कोई काम बुद्धि से करेगा जिससे दिया जाने वाला मेहनताना आने भी लगेगा और दिया भी जाएगा जिससे खुद के लिए भी मेहनत नहीं करनी पडी और नियुक्त किये गए व्यक्ति के द्वारा काम भी हो गया,इस प्रकार से बुद्धि का प्रयोग करने के बाद जातक खुद मेहनत नहीं करता है दूसरो से बुद्धि से करवाकर धन को भी बचाता है,वक्री शनि का रूप जहरीले सांप की तरह से होता है वह पहले तो सामने आता ही नहीं है और अगर छेड़ दिया जाए तो वह अपने जहर का भी प्रयोग करता है और छेड़ने वाले व्यक्ति को हमेशा के लिए याद भी करता है,इस शनि के द्वारा मेहनत कास लोगों के लिए भी समय समय पर आराम करने और मेहनत करने के लिए अपने बल को देता है जैसे मार्गी शनि जब वक्री होता है तो मेहनत करने वाले लोग भी दिमागी काम को करने लगते है और जब वक्री शनि वाले जातको की कुंडली में वक्री होता है तो दिमागी काम की जगह पर मेहनत वाले काम करने की योजना को बनाकर परेशानी में डाल देता है.जब शनि अपने ही घर में वक्री होकर बैठा हो तो वह पैदा होने वाले स्थान से उम्र की दूसरे शनि वाले दौर में शनि का एक दौर पैंतीस साल का माना जाता है विदेश में फेंक देता है,जब कभी जातक को पैदा होने वाले स्थान में भेजता है और जल्दी ही वापस बुलाकर फिर से विदेश में अपनी जिन्दगी को जीने के लिए मजबूर कर देता है,इसके साथ ही शनि की आदत है कि वह कभी भी स्त्री जातक के साथ बुरा नहीं करता है वह हमेशा पुरुष जातक और अपने ऊपर धन बल शरीर बल बुद्धि बल रखने वाले लोगों पर बुरा असर उनके बल को घटाने और वक्त पर उनके बल को नीचा करने का काम भी करता है,घर में जितना असर पुत्र जातक को खराब देता है उतना ही अच्छा बल पुत्री जातक को देता है,लेकिन वक्री शनि से पुत्री जातक अपने देश काल और परिस्थिति से दूर रहकर विदेशी परिवेश को ही सम्मान और चलन में रखने के लिए भी माना जाता है.

शनिवार, 14 सितंबर 2019

राहु दशाफल भाग (4)

राहु दशा भाव (4)

काल पुरुष की कुंडली में आठवें भाव में वृश्चिक राशि मंगल की सकारात्मक राशि है। भावनात्मक राशि के लिये मेष को जाना जाता है। राहु को ग्रहों में छाया ग्रह के रूप मे जाना जाता है,लेकिन विस्तार की नजर से इस छाया ग्रह का वही प्रभाव वही सामने आता है जैसे कडक धूप के अन्दर छाया का आनन्द आता है,या सादा से दिखने वाले तार में बिजली का करण्ट झटका मारता है या एक बुद्धू से दिखाई देने वाले व्यक्ति के अन्दर से असीम ज्ञान का भण्डार उमड पडता है। इस राहु के बारे में कहा जाता है कि बारह साल में रुडी के दिन भी घूम जाते है,या बेकार से लोग राख से साख पैदा कर देते है अथवा बडी बडी दवाइयों के फ़ेल होने के बाद भी सादा सी भभूत काम कर जाती है। वैसे सादा व्यक्ति के लिये इस राशि का राहु बहुत ही खतरनाक माना जाता है,इस राहु के जन्म समय मे वृश्चिक राशि में होने के समय मे राहु की दशा या राहु के गोचर के समय जिस जिस भाव में जिस जिस ग्रह पर अपना प्रभाव डालता है वह भाव ग्रह अपने अपने अनुसार समाप्त होता जाता है।आठवें घर का संबध शनि और मंगल ग्रह से होता है। इसलिए इस भाव का राहू अशुभ फल देता है। जातक अदालती मामलों में बेकार में पैसे खर्च करता है।परिवारिक जीवन भी प्रतिकूलता से प्रभावित होता है। यदि मंगल ग्रह शुभ हो  तो जातक को घनी भी वनाता हैं अष्टम भाव काअशुभ राहु का  धोखा अक्सर किये जाने वाले कामो से देखने को मिलते है,पहले आशा लगी रहती बस है कि इस काम को करने के बाद बहुत लाभ होगा और एक समय ऐसा आता है कि पूरी मेहनत भी लग चुकी होती है पास का धन भी चला गया होता है पता चलता है कि काम का मूल्य ही समाप्त हो चुका है,इसी प्रकार का धोखा अधिकतर मंत्र तंत्र और यंत्र बनाने वाले अद्भुत चीजो का व्यापार करने वाले शमशान सिद्धि का प्रयोग करने वाले भी करते है जब राहु का स्थान किसी के अष्टम मे होता है या अष्टम का स्वामी किसी प्रकार से राहु केतु शनि के घेरे मे होता है तो वह इन्ही लोगो के द्वारा धोखा खाने वाला माना जाता है यह कारण दशा के अन्दर भी देखा जाता है जैसे धनेश और राहु की दशा मे या अष्टमेश और राहु की दशा मे इसी प्रकार की धोखे वाली बात होती देखी जाती है.अक्सर इसी प्रकार के धोखे शीलहरण के लिये स्त्रियों मे भी देखे जाते है जब भी कोई अपनी रसभरी बातो को कहता है या अपने प्रेम जाल मे ले जाने के लिये चौथे भाव या बारहवे भाव की बातो को प्रदर्शित करता है तो उन्हे समझ लेना चाहिये कि उनके लिये कोई बडा धोखा केवल उनके शील को हरने के लिये किया जा रहा है,इस धोखे के बाद उनका मन मस्तिष्क और ईश्वरीय शक्तिओं से भरोसा उठना भी माना जा सकता है,इस भाव का धोखा उन लोगो के लिये भी दिक्कत देने वाला होता है जो डाक्टरी काम करते है वह अपने धोखे के अन्दर आकर किसी बीमारी को समझ कर कोई दवाई दे देते है और उस दवाई को देने के बाद मरीज बजाय बीमारी से ठीक होने के ऊपर का रास्ता पकड लेता है। यही बात इन्जीनियर का काम करने वाले लोगो के साथ भी होता है वह धोखे मे आकर अपनी रिपेयर करने वाली चीज मे या तो अधिक वोल्टेज की सप्लाई देकर उसे बजाय ठीक करने के फ़ूंक देते है या सोफ़्टवेयर को गलत रूप से डालकर पूरे प्रोग्राम ही समाप्त कर लेते है मित्रों कालपुरुष की कुंडली में वृश्चिक राशि बनती हैइस राशि वाला जातक विष जैसी वस्तुओं को आराम से सेवन कर सकता है,और मृत्यु भी इसी प्रकार के कारकों से होती है,उसके बोलने पर गालियों का समिश्रण होता है,मतलब जो भी बात करता है वह बिच्छू के जहर जैसी लगती है,अगर गुरु या कोई सौम्य ग्रह सहायता में नही है तो अक्सर इस प्रकार के लोग शमशान के कारकों के लिये मशहूर हो जाते है,राहु खून की बीमारियां और इन्फ़ेक्सन भी देता है,जैसे मंगल नीच के साथ अगर राहु अष्टम है तो जातक को लो ब्लड प्रेसर की बीमारी होगी,वही बात अगर उच्च के मंगल के साथ युति है तो हाई ब्लड प्रेसर की बीमारी होगी,और मंगल राहु के साथ गुरु भी कन्या राशि के साथ या छठे भाव के मालिक के साथ मिल गया है तो शुगर की बीमारी भी साथ में होगी. अष्टम भाव में राहु गुप्त विद्या गूढ ज्ञान के लिये वह अपने को आगे रखता है,बाहरी लोगों से और पराशक्तियों के प्रति उसे विश्वास होता है,अपने खुद के परिवार के लिये आफ़तें और शंकाये पैदा करता रहता है.
राहु को दवाइयों के रूप में भी माना जाता है,जो दवाइयां शरीर में एल्कोहल की मात्रा को बनाती है और जो दवाइयां दर्द आदि से छुटकारा देती है वे राहु की श्रेणी में आती है.
राहु की आशंका कभी कभी बहुत बडा कार्य कर जाती है जैसे कि अपना प्रभाव फ़ैलाने के लिये कोई झूठी अफ़वाह फ़ैला कर अपना काम बना ले जाना राहु को कचडा अगर माना जाये तो यह राहु कबाडी का काम करने वाले लोगों को और मौत को पेशा के रूप में अपनाने वाले लोगों के लिये भी माना जाना जाता है। इस राहु का कारण अगर व्यक्ति स्थान या नाम के लिये लिया जाता है तो आम आदमी के अन्दर भय का वातावरण पैदा करने के लिये और डरने के लिये भी माना जाता है। जाति से इस राहु का प्रभाव मुस्लिम जाति के लिये भी माना जाता है जो लोग खतरनाक स्थानों में निवास करते है,समुदाय बनाकर हत्या और डराकर राज करने वाले लोगों के लिये भी यह राहु अपने अनुसार कार्य करने वाला माना जाता है। जो लोग दक्षिण पश्चिम दिशा में घर के संडास को बना लेते है उनकी कुंडली में राहु इस राशि में किसी न किसी प्रकार से आकस्मिक हादसे देने का कारक बन जाता है। इस राशि में राहु के होने से केतु का स्थान धन की राशि में होना वास्तविक है,केतु का स्थान धन की राशि में होने से नकारात्मक प्रभाव भी माना जाता है,साथ ही इस राशि में राहु के होने से भोजन आदि के लिये भी सहायक साधनों का इन्तजाम करना पडता है। या तो भोजन को किसी अन्य व्यक्ति की सहायता से खाना पडता है या भोजन के लिये अलग से चम्मच या इसी प्रकार के औजारों से भोजन करना पडता है,दाहिने अंग में लकवा जैसी बीमारी को पैदा करने के लिये इसी राहु का असर माना जाता है। जननांगो में इन्फ़ेक्सन जैसी बीमारियों के लिये भी इसी राहु को दोषी ठहराया जाता है। बायो गैस प्लांट भी इसी स्थान की उत्पत्ति मानी गयी है,साथ ही शमशानी कार्य करना और शमशान आदि की देखभाल करना नगर पालिका जैसे कार्य करना आदि भी इसी राशि के राहु की देन मानी जाती है।आचार्य राजेश

शुक्रवार, 6 सितंबर 2019

राहु की दशा भाग (3)

मित्रों कल हमनें 6भाव तक लिखा था आज आगे सातवें भाव की वात करते हैं। सातवाँ भाव गृहस्थी का कारक है। वैवाहिक और दाम्पत्य सम्बन्ध इसमें समाहित होते है।

जातक जीविका उपार्जन करने के लिए किस प्रकार के धंधे करेगा? उसे कितनी आय की प्राप्ति होगी? जीवन निर्वाह आसान होगा या कठिन? गृहस्थ जीवन सुखमय होगा या दुःख भरा? पति पत्नी, जातक के माता पिता, भाई बहन, बाल बच्चे की क्या स्थति होगी? इन बातों का विचार सातवें भाव से किया जाता है। लाल किताब में सातवें भाव को 'गृहस्थी की चक्की ' कहा है – आकाश जमीन दो पत्थर सातवें रिज्क अकल की चक्की हो"भाव सात अगर देखें काल पुरुष की कुंडली में शुक्र की तुला राशि है इस राशि का महत्व जीवन साथी साझेदार जीवन मे लडी जाने वाली जंग तथा सेवा आदि से प्राप्त आय सेवा के प्रति समाप्त करने वाले कारण सन्तान की हिम्मत और सन्तान कैसी है किस प्रकार के आचार विचार उसके अन्दर है वह अपने को समाज मे किस प्रकार के क्षेत्र से जुडकर अपने को संसार मे दिखायेगी माता के घर और माता की मानसिक स्थिति को पिता के कार्य को और कार्यों से जुडे धन आदि की समीक्षा करने के लिये अपनी क्रिया को करेगी. राहु को वैसे छाया ग्रह कहा जाता है,इसके साथ ही राहु के बारे मे कहा जाता है कि ऐसा कोई भी कारक नही है जो आसमान से नही जुडा है चाहे वह अच्छा हो या बुरा सभी की शक्ति को समेटने के लिये राहु का प्रभाव बहुत ही बडे रूप मे या आंशिक रूप से समझना जानना जरूरी है। तुला राशि का राहु मानसिक रूप से अपने को हमेशा उपरोक्त कारणो से जोड कर रखता है और इस राहु का प्रभाव घर के सदस्यों में अच्छे और बुरे रूप से भी देखा जाता है। जिस दिन इस राहु के साथ जन्म होता है उसके अठारह महिने पहले से ही घर के बुजुर्ग सदस्यों पर असर को देखा जाने लगता है। राहु का प्रभाव पिता के बडे भाई पर पहले पडता है इसके बाद यह प्रभाव बडे भाई या बहिन पर पडता है फ़िर इसका प्रभाव छोटे भाई बहिन पर भी पडता है । इसके साथ ही जातक की आमदनी के क्षेत्र पर जातक एके भेषभूषा पर भी पर इसका असर पडता है इस राहु के कारण पैदा होने वाले जातक अक्सर सबसे पहले बायें हाथ से लिखने पढने वाले या इस हाथ से काम करने के लिये पहले ही अपने को उद्धत करते है अक्सर यह भी देखा जाता है कि इस राशि मे राहु वाले व्यक्ति अपने को जीवन साथी के भरोसे ही रखते है उनके लिये कोई भी काम करना मुश्किल होता है जबतक कि वे अपनी भावना को आशंका को अपने जीवन साथी से न बता दें,यह भी देखा गया है कि इस राशि का राहु पति पत्नी के बीच मे एक प्रकार का आशंकाओं का जाल भी बुन देता है और दोनो के बीच मे वाकयुद्ध कारण अक्सर घर का माहौल तनाव वाला बन जाता है और कुछ समय के लिये ऐसा लगता है कि पति पत्नी मे एक ही रहेगा। इस भाव के राहु वाला व्यक्ति पैदा होने के बाद एक प्रकार से आवारगी का जीवन बिताने के लिये भी माना जाता है वह कहां जा रहा है किसके लिये जा रहा है,उसे खुद पता नही होता है। इसके अलावा भी कई शास्त्रो ने अपने अपने अनुसार कथन किये है जो आज के युग मे कम ही फ़लीभूत होते देखे गये है।कहा जाता है कि सप्तम का राहु व्यक्ति के अन्दर अधिक कामुकता को देता है और कामुकता के कारण व्यक्ति का सम्बन्ध कई व्यक्तियों से होता है। यह बात मेरे अनुसार तभी मानी जाती है जब राहु शुक्र या गुरु पर अपना असर दे रहा हो तो शुक्र पर असर होने के कारण पति के प्रति कई स्त्रियों से सम्बन्ध बनाने के लिये और पत्नी पर अपने को सजाने संवारने के प्रति अधिक देखा जाता है जब यह जीवन की जद्दोजहद मे आजाता है तो व्यक्ति एक से अधिक कार्य करने साझेदारी और इसी प्रकार के कामो से अपने को आगे बढाने के लिये भी देखा जाता है। राहु शुक्र के घर मे होने से और व्यवसाय के प्रति अपनी सोच रखने के कारण व्यक्ति को हर मामले मे बडी सोच देकर व्यवसाय के लिये अपनी समझ को देता है। अक्सर इस असर के कारण ही कई लोग तो आसमान की ऊंचाइयों मे चले जाते है और कई लोग अपने पूर्वजो के धन को भी अपनी समझ से बरबाद करने के बाद शराब आदि के आदी होकर अपने जीवन को तबाह कर लेते है। जिन लोगो ने विक्रम बेताल की कथा को पढा होगा उन्हे इस राहु का पूरा असर समझ मे आ गया होगा,यह राहु एक भूत की तरह से व्यक्ति के ऊपर सवार होता है और अपनी क्रिया से जीवन की वह बाते सामने ला देता है जिन्हे हर कोई अपनी बुद्धि से सामने नही ला सकता है जैसे ही व्यक्ति अपनी बुद्धि का प्रयोग करता है यह राहु का नशा अपने आप ही पता नही कहां चला जाता है। इस राहु का नशा एक प्रकार से या तो बहुत ही भयंकर हो जाता है और उतारने के लिये व्यक्ति पुलिस स्टेशन लाया जाता है,या इस राहु के नशे को उतारने के लिये अस्पताल काम मे आते है या इस राहु का नशा उतारने के लिये धर्म स्थान अपना काम करते है इसके अलावा इसका नशा तब और भी खतरनाक उतरता है जब व्यक्ति अपनी धुन मे चलने के कारण सडक या किसी अन्य प्रकार के कारण से दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है।

गुरुवार, 5 सितंबर 2019

राहु की दशाभाग 2

http://acharyarajesh.in/2019/09/05/%e0%a4%?राहु की दशाभाग 2
मित्रों पहले हमने राहु पर लिखा था आज उससे आगे,
राहु को विराट रूप मे जाना जाता है और जितने भी ग्रह है सबकी शक्ति को अपने अन्दर सोख लेने की ताकत केवल राहु में है.राहु को समझना भी भारी हैराहु अपनी चलाने के चक्कर में ग्रह और भावों को गलत बताकर भय देने के बाद पूंछने वाले से धन या औकात को छीनने का कार्य करता है.
वैसे राहु की देवी सरस्वती है और अपने समय पर व्यक्ति को सत्यता भी देती है लेकिन सरस्वती और लक्ष्मी में बैर है,जहां सरस्वती होती है वहां लक्ष्मी नही और जहां लक्ष्मी होती है वहां सरस्वती नही.जो लोग दोनो को इकट्ठा करने के चक्कर में होते है वे या तो कुछ समय तक अपने झूठ को चलाकर चुप हो जाते है या फ़िर सरस्वती खुद उन्हे शरीर धन और समाज से दूर कर देती है,अथवा किसी लक्ष्मी के कारण से उन्हे खुद राहु के साये में जैसे जेल या बन्दी गृह में अपना जीवन निकालना पडता है.
राहु अलग अलग भावों में अपनी अलग अलग शक्ति देता है,अलग अलग राशि से अपना अलग अलग प्रभाव देता है,तुला राशि के दूसरे भाव में अगर राहु विद्यमान है तो इस राशि वाला जातक विष जैसी वस्तुओं को आराम से सेवन कर सकता है,और मृत्यु भी इसी प्रकार के कारकों से होती है,उसके बोलने पर गालियों का समिश्रण होता है,मतलब जो भी बात करता है वह बिच्छू के जहर जैसी लगती है,अगर गुरु या कोई सौम्य ग्रह सहायता में नही है तो अक्सर इस प्रकार के लोग शमशान के कारकों के लिये मशहूर हो जाते है, राहु चौथे भाव में स्वभाव से क्रूर कम बोलने वाला असंतोषी और माता को कष्ट देने वाला होता है। शक की बीमारी को देता है रहने वाले स्थान को सुनसान रखने के लिये माना जाता है,मन के अन्दर आशंकाये हमेशा अपने प्रभाव को बनाये रखती है,यहां तक कि रोजाना के किये जाने वाले कामों के अन्दर भी शंका होती है,जो भी काम किया जाता है उसके अन्दर अपमान मृत्यु और जान जोखिम का असर रहता है,बडे भाई और मित्र के साथ कब अपघात कर दे कोई पता नही होता है,जो भी लाभ के साधन होते है उनके लिये हमेशा शंका वाली बातें ही होती है,माता के लिये अपमान और जोखिम देने वाला घर में रहते हुये अपने प्रयासों से कोई न कोई आशंका को देते रहना उसका काम हो जाता है,लेकिन बाहर रहकर अपने को अपने अनुसार किये जाने वाले कामों में वह सुरक्षित रखता है पिता के लिये कलंक देने वाला होता है.
पंचम भाव का राहु मित्रों राहु का सम्बन्ध दूसरे और पांचवें स्थान पर होने पर जातक को सट्टा लाटरी और शेयर बाजार से धन कमाने का बहुत शौक होता है,राहु के साथ बुध हो तो वह सट्टा लाटरी कमेटी जुआ शेयर आदि की तरफ़ बहुत ही लगाव रखता है,अधिकतर मामलों में देखा गया है कि इस प्रकार का जातक निफ़्टी और आई.टी. वाले शेयर की तरफ़ अपना झुकाव रखता है। अगर इसी बीच में जातक का गोचर से बुध अस्त हो जाये तो वह उपरोक्त कारणों से लुट कर सडक पर आजाता है,और इसी कारण से जातक को दरिद्रता का जीवन जीना पडता है,उसके जितने भी सम्बन्धी होते है,वे भी उससे परेशान हो जाते है,और वह अगर किसी प्रकार से घर में प्रवेश करने की कोशिश करता है,तो वे आशंकाओं से घिर जाते है। कुन्डली में राहु का चन्द्र शुक्र का योग अगर चौथे भाव में होता है तो जातक की माता को भी पता नही होता है कि वह औलाद किसकी है,पूरा जीवन माता को चैन नही होता है,और अपने तीखे स्वभाव के कारण वह अपनी पुत्र वधू और दामाद को कष्ट देने में ही अपना सब कुछ समझती है। पंचम भाव में राहु संतान और बुद्धि को बरबार रखता है,जल्दी से जल्दी हर काम को करने के चक्कर में वह अपनी विद्या को बीच में तोड लेता है,नकल करने की आदत या चोरी से विद्या वाली बातों को प्रयोग करने के कारण वह बुद्धि का विकास नही कर पाता है,जब भी कभी विद्या वाली बात को प्रकट करने का अवसर आता है कोई न कोई बहाना बनाकर अपने को बचाने का प्रयास करता है पत्नी या जीवन साथी के प्रति वह प्रेम प्रदर्शित नही कर पाता है और आत्मीय भाव नही होने से संतान के उत्पन्न होने में बाधा होती है.
छठा राहु बुद्धि के अन्दर भ्रम देता है,लेकिन उसके मित्रों या बडे भाई बहिनो के प्रयास से उसे मुशीबतों से बचा लिया जाता है,अपमान लेने में उसे कोई परहेज नही होता है,कोई भी रिस्क को ले सकता है,किसी भी कुये खाई पहाड से कूदने में उसे कोई डर नही लगता है,वह किसी भी कार्य को करने के लिये भूत की तरह से काम कर सकता है और किसी भी धन को बडे आराम से अपने कब्जे में कर सकता है,गूढ ज्ञान के लिये वह अपने को आगे रखता है,बाहरी लोगों से और पराशक्तियों के प्रति उसे विश्वास होता है,अपने खुद के परिवार के लिये आफ़तें और शंकाये पैदा करता रहता है.
राहु को दवाइयों के रूप में भी माना जाता है,जो दवाइयां शरीर में एल्कोहल की मात्रा को बनाती है और जो दवाइयां दर्द आदि से छुटकारा देती है वे राहु की श्रेणी में आती है.
राहु की आशंका कभी कभी बहुत बडा कार्य कर जाती है जैसे कि अपना प्रभाव फ़ैलाने के लिये कोई झूठी अफ़वाह फ़ैला कर अपना काम बना ले जाना.
धर्म स्थान पर राहु का रूप साफ़ सफ़ाई करने वाले व्यक्ति के रूप में होता है,धन के स्थान में राहु का रूप आई टी फ़ील्ड की सेवाओं के रूप में माना जाता है,जहां असीमित मात्रा की गणना होती है वहां राहु का निवास होता है. आगे लिखा जा रहा है‌।,,,,,,,,,,,

राहु की दशा


राहु की दशा
राहु एक छाया ग्रह है,इसकी परिमाप नही है। आसमान की ऊंचाइयां है,केवल नीले रंग में आभासित होता है लेकिन इसका कोई ठिकाना नही है कि यह है कहां तक है शाम और सुबह का इसका समय है,शाम को इसका समय नकारात्मक होता है और सुबह का समय इसका सकरात्मक होता है। ब्रह्म में इसे विराट रूप मिला है,महाभारत के युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने विराट रूप को प्रदर्शित किया था। वैसे राहु के बारे में बहुत सी मिथिहासिक कहानिया मिलती है,एक कहानी समुद्र मंथन के समय की मिलती है कि देवताओं और दैत्यों ने अमृत प्राप्त करने के लिये समुद्र मंथन किया था,देवताओं के बीच में बैठ कर राहु ने चालाकी से अमृत का पान कर लिया कर लिया था लेकिन सूर्य और चन्द्र ने उसकी चालाकी को देखकर भगवान विष्णु से शिकायत कर दी थी,उन्होने अपने सुदर्शन चक्र से इसके सिर को धड से अलग कर दिया था,लेकिन अमृत गले से नीचे उतरने के कारण धड और सिर अमर हो गये थे,धड को केतु और सिर को राहु नाम से जाना जाता है,तब से सूर्य और चन्द्र के साथ राहु केतु की दुश्मनी मानी जाती है,और समय समय पर यह दोनो सूर्य और चन्द्र को ग्रहण दिया करते है। इसके साथ ही राहु का प्रभाव माता पिता और बच्चे पर अधिक पडता है। राहु के लिये कहा जाता है कि वह आकाशीय पिंड नही है,केवल चन्द्रमा का उत्तरी कटाव बिन्दु है,जिसे पश्चिमी लोग North Node के नाम से जानते है। भारतीय ज्योतिष में राहु और केतु को अन्य ग्रहों के समान महत्व दिया है,पाराशर ने राहो तमो अर्थात अंधकार युक्त ग्रह की परिभाषा दी है,उनके अनुसार धूम्रवर्णी जैसा नीलवर्णी राहु वनचर भयंकर वात प्रकृति प्रधान तथा बुद्धिमान होता है,नीलकंठ ने राहु का स्वरूप शनि जैसा बताया है। शनि जडता देता है,राहु नशा देता है,और केतु नकारात्मक प्रभाव देता है,बिना राहु के केतु पूर्ण नही है और बिना केतु के राहु भी पूर्ण नही है। राहु केतु के लिये कोई राशि नही बताई गयी है केवल नक्षत्रों का आधिपत्य दिया गया है। नारायण भट्ट ने कन्या राशि को राहु के लिये बताया है,उनके अनुसार राहु मिथुन रासि में उच्च का और धनु राशि में नीच का होता है। राहु के नक्षत्रों में आर्द्रा स्वाति और शभिषा हैं। राहु का वर्ण नीलमेघ के समान है,यह सूर्य से १९००० योजन नीचे है,तथा सूर्य के चारों ओर नक्षत्र की भांति घूमता रहता है,शरीर में इसे पेट और पिंडलियों में इसे स्थान मिला है,जब जातक विपरीत कर्म करने लगता है,जो राहु उसे सुधारने के लिये अनिद्रा पेट के रोग दिमागी रोग पागलपन आदि भयंकर रोग देता है,जिस प्रकार से अपने निदनीय कर्मों से दूसरे को पीडा जातक पहुचाता है,उसी प्रकार से राहु जातक को दुख देने के लिये अपने रोग प्रदान करता है। अगर जातक के कर्म शुभ होते है तो यह पलक झपकते ही ऊचाइयों तक पहुंचा देता है,अतुलित धन सम्पत्ति और राजकाज देने में इसे देर नही लगती है,इसलिये अगर जीवन के अन्दर कोई गलत काम हो गये हों तो राहु की दशा शुरु होने से पहले ही राहु की शरण में चले जाना चाहिये। राहु की पूजा पाठ जप दान आदि द्वारा यह प्रसन्न होता है,गोमेद इसकी इसकी मणि है,तथा पूर्णिमा इसका दिन है,अभ्रम इसकी धातु है।कुंडली के बारह भावों में राहु का स्थान
पहले भाव मे राहु शत्रुनाशक होता है लेकिन जातक को अकेला बैठा रहने और काम के अन्दर मन नही लगने की बात भी देता है,सिर के अन्दर अनगिनत विचार आते और जाते रहते है,जब भी जातक को कोई कष्ट या चिन्ता होती है तो वह फ़ौरन घबडा जाता है,राहु के सिर पर होने के कारण उसे घर के अन्दर अपने जीवन साथी के द्वारा किये गये कृत्य समझ में नही आते है,वह दिमागी हलचल के बीच घर की स्थिति को समझ नही पाता है और अपने अनुसार कार्य करने के उपरान्त उसके जीवन साथी के द्वारा पिता और माता का अपमान किया जाता है जातक का पूजा पाठ में मन नही लगता है और किसी न किसी प्रकार के नशे का वह आदी हो जाता है। अक्सर वह सिर दर्द का मरीज होता है और आंखों की रोशनी भी उसकी समय से पहले ही कम हो जाती है,उसे प्रेम प्यार के मामले में एक प्रकार का नशा चढता है,वह जल्दी से धन कमाने वाले मामलों में अपने को जब भी ले जाता है तो उसके शरीर में एक विचित्र सी हलचल हुआ करती है। अक्सर उसकी संतान कम ही होती है और अगर अधिक होती है तो कम से कम एक संतान उसकी अवैद्य जरूर होती है चाहे वह किसी प्रकार से किसी की संतान को पालने के रूप में हो या सहायता करने के रूप में हो। जातक दिमाग का रोगी अवश्य होता है कब क्या करेगा किसी को पता नही होता है घर में या बाहर जब भी उसे कोई क्लेश होता है तो सिर को पटकने की आदत बन जाती है,उसका जीवन साथी उसकी इस प्रकार की दशा से लाभ उठाता है और अपनी चालाकी से जातक को अपने कामो से अन्धेरे में रखता है। लगन का राहु व्यक्ति को स्वार्थी बना देता है और अपना काम बनता भाड में जाये जनता के जैसी आदत का बन जाता है जब तक खुद का स्वार्थ पूरा नही होता है तब तक को पैरो में पडे रहने की आदत होती है लेकिन जैसे ही अपना काम पूरा हुआ लगन के राहु वाले का पता नही चलता है कि वह कहां गया। अक्सर इस प्रकार के राहु वाले की सिफ़्त नौकर की होती है वह या तो नौकर बन कर रहता है या नौकरी वाले काम करने के बाद अपने जीवन को पालने के काम करता है लगन का राहु वाला व्यक्ति झूठ बोलने वाला भी होता है और कपट आदि उसके अन्दर भरे होते है किसी भी काम को निकालने के लिये वह अपने को किसी भी रूप में सामने कर सकता है और भेद लेने के बाद खुद तो बाहर होजाता है और दूसरे को फ़ंसाकर चला जाता है।दूसरे भाव में विराजमान राहु अपने ही कुटुम्ब का नाशक होता है धन के मामले में जातक को दिखाई तो बहुत देता है लेकिन सामने कुछ नही होता है उसके अन्दर शराब आदि नशे करने की आदत होती है और अपने को बहुत ही बलवान समझने के कारण अक्सर भले स्थानों में उसकी बे इज्जती होती है। धन भाव में होने के कारण पिता के परिवार को जल्द से जल्द समाप्त करने वाला होता है,और माता के लिये अक्सर जान का दुश्मन ही बना रहता है,घर के पानी वाले साधनों में भी राहु अपना असर देता है और किसी प्रकार के कैमिकल इफ़ेक्ट से घर के पानी को दूषित करता है,वाहन के लिये भी यह राहु खतरनाक ही होता है,अक्सर इस भाव का जातक नशे में गाडी चलाने का आदी होता है,और नशे में गाडी चलाने के कारण या तो अपने शरीर को तोडता है अथवा किसी अन्य को अपने नशे की आदतों के कारण जान से हाथ तक धोना पडता है,इस स्थान के राहु वाले से अपने स्वसुर से कभी नही बनती है,और बनती भी है तो केवल स्वार्थ की पूर्ति के लिये ही बनती है,जीवन साथी का कोई ठिकाना नही होता है कब दुनियां से कूच कर जाये या अपने मायके जाकर बैठ जाये,इसके अलावा अगर वह पुरुष जातक है तो उसका भी ठिकाना नही होता है कि कब और कहां वह अपने शरीर को नष्ट कर लेगा या किसी अन्य बेकार की स्त्री के साथ अपना सम्बन्ध बनाकर बैठ जायेगा। दूसरे भाव के जातक झूठ बोलने में बहुत ही माहिर होते है उनकी बातों में लगभग झूठ ही मिलती है,वे अपने अपमान जानजोखिम के कामो को और खोजबीन करने वाले कामों कभी भी किसी प्रकार की भी झूठ बोल सकते है,अधिक चालाकी और ठगी करने की आदत होती है,तथा अगर वह मोबाइल आदि अधिक प्रयोग करता है तो उसके मोबाइल अधिकतर खोते ही रहते है,वह किसी भी कमन्यूकेशन के काम को पलक झपकते ही बरबाद कर सकता है,अथवा वह अपने साले भान्जे या मामा के घर के लिये आफ़त भी बन सकता है,जो भी इस प्रकार के जातक से चलकर दुश्मनी लेता है इस भाव के राहु वाला जातक उसे किसी न किसी बहाने ठिकाने लगा ही देता है।
तीसरे भाव के राहु वाला जातक विवेक से काम लेने वाला होता है किसी भी कार्य को वह अपने हठ से पूरा करने की क्षमता रखता है उसे गाने बजाने और संगीत के साधन रखने का बडा शौक होता है अक्सर उसे टीवी या फ़िल्म देखने का बडा शौक होता है उसे परफ़्यूम लगाने का और घर के अन्दर खुशबू रखने का भी शौक होता है,जहरीली दवाइयों को हजम करने की भी आदत होती है,अधिक मिर्च मसाले खाना नानवेज की तरफ़ मन का जाना आदि मिलता है,अक्सर उससे मिलने वाले लोग कम्पयूटर या इसी प्रकार की शिक्षा वाले लोग होते है जो लोग फ़िल्म लाइन में अपना कैरियर संगीन सीन के अन्दर बनाते है वे राहु के तीसरे भाव के कारण ही ऐसा कर पाते है,उनके अन्दर जोखिम लेने की बडी आदत होती है,और उनका मिलान भी इसी प्रकार के लोगों से होता है घर की या बाहर की एन्टिक चीजें बेचने और उन्हे कलेक्ट करने की भी आदत होती है,जब भी कोई चान्स मिलता है तो दोस्ती के अन्दर वे अपने को प्रभावित करने मे नही चूकते हैं। उनका काम दवाइयो का या नशे वाले प्रोडक्ट का अथवा मल्टी मार्केटिंग का होता है,अक्सर इस भाव के राहु का प्रभाव शिक्षात्मक रूप में अधिक होता है,जातक लोगों को सिखाने का काम आसानी से कर सकता है।
आगे लिखा जा रहा है................

लाल का किताब के अनुसार मंगल शनि

मंगल शनि मिल गया तो - राहू उच्च हो जाता है -              यह व्यक्ति डाक्टर, नेता, आर्मी अफसर, इंजीनियर, हथियार व औजार की मदद से काम करने वा...