सोमवार, 31 जनवरी 2022

अंक ज्योतिष कितना सही?

अंक ज्योतिष कितना सही? 

अब ज्‍योतिष की  बात है और मैं यह बात लिख रहा हूं तो आप सोचेंगे कि आखिर आ ही गया अपनी औकात पर। आप कुछ ऐसा समझ सकते हैं। क्‍योंकि मैंने सीखने में कभी कंजूसी नहीं बरती सो हर ऐसे इंसान से सीखने की कोशिश की जिसके बारे में कहा जाता था कि इसे कुछ आता है। सही कहूं तो आज भी यही स्थिति है। जिस तरह कला के जवान होने तक कलाकार बूढा हो जाता है वैसे ही ज्‍योतिष की समझ आने तक फलादेश करने का महत्‍व भी खो सा जाता है। खैर में आता हूं विषय पर आज मित्रों में बात करना चाहता हूं Ank ज्योतिष पर फलित ज्योतिष हमारे ऋषि-मुनियों की देन है तो इस पर उन्होंने बहुत खोज की और रिसर्च की है और भारत से यह विघा विदेशों में भी में फेली लेकिन हम भारतीय अपनी विद्या को संभाल नहीं सके और जब तक उसमें पश्चिम ठप्पा नहीं लगता तब तक उसको हम मानते नहीं और पश्चिम में विकसित आधा अधूरा ज्ञान को हम भारतीय अपना लेते हैं अपने अपने ज्ञान को भूलकर, हमारा भारतीय संवत बिक्रम संवत हिजरी संवत शाखा संवत आदि पहले तो यही तय कर लिया जाय कि परम्परावादी भारतीयों को अपना जन्मदिन कि पद्धति से मानना चाहिए, पारंपरिक हिन्दू कैलेण्डर को (जो भिन्न-भिन्न हैं) या आधुनिक कैलेण्डर को. मेरे जीवन को वर्त्तमान में जो तिथियाँ नियंत्रित करती हैं वे आधुनिक है परन्तु मेरे घर में ही बहुत सी बातों के लिए पारंपरिक कैलेण्डर को आगे कर देते हैं. फिर यह लोचा कि जन्मतिथि मात्र मानी जाय या जन्मतिथि, महीने, और वर्ष के अंकों का जोड़, इसमें भी कई विधियाँ हैं जिनसे योग पृथक आता है. फिर इसमें वर्णमाला के अक्षरों को भी शामिल कर लेना पचड़े को और ज्यादा बढ़ा देता है.वैदिक ज्योतिष, जो महर्षि पराशर, जैमनी, कृष्णमूर्ति आदि की उत्कृष्ट परम्परा पर आधारित है, उसमें जातक के जन्म की तिथि, समय और स्थान को लेकर, एक वैज्ञानिक तरीके से जन्म के समय, आकाश में ग्रहों व नक्षत्रों की स्थिति का निर्धारण कर समय का आकलन किया जाता है। तत्पश्चात ज्योतिष के शास्त्रीय ग्रन्थों के आधार पर फलित कहा जाता है। ज्योतिषीय गणनाएँ पूर्णतः खगोलीय सिद्धांतों पर आधारित होती हैं, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने जिस तरह घर-घर अपनी पैठ बना ली है, उसका एक दुष्प्रभाव यह हुआ कि मदारी ज्योतिषियों की संख्या बढ़ी है। आप कोई भी चैनल देखें, इन मदारी ज्योतिषियों की एक पूरी जमात अपने लैपटॉप पर त्वरित समाधान बाँचती नज़र आयेगी।उपभोक्तावाद की इस रेलमपेल में कहीं तिलक चुटियाधारी खाँटी पंडित जी दिखते हैं, तो कहीं टाई-सूट में सजे फ़र्राटा अंग्रेज़ी बोलने वाले एस्ट्रोलोजर। इन सबके बीच एक प्रचलित विद्या है अंक ज्योतिष। इस प्रचलित अंक ज्योतिष में व्यक्ति की जन्मतिथि (ईसवी कलेंडर के अनुसार) के अंकों को जोड़कर एक मूलांक बना दिया जाता है और फिर उसे आधार बनाकर अधकचरा भविष्य बाँच दिया जाता है। इसी तरह अंग्रेजी के अक्ष्ररों (ए, बी, सी, डी आदि) को एक एक अंक दिया है. और लोगों के नाम के अंग्रेजी अक्षरों के अंकों के योग से उसका मूलांक निकाला जाता है. फिर उसी आधार पर उसका भी भविष्य बाँच दिया जाता है।अंक ज्योतिष ईसवी कलेंडर की तिथि के अनुसार चलता है जिसका एक सौर वर्ष मापने के अलावा कोई सार्वभौमिक आधार नहीं है। समय के अनंत प्रवाह में ईसवी कलेंडर मात्र 20 शताब्दी पुराना है। जिसमें अचानक एक दिन को 1 जनवरी लेकर वर्ष की शुरुआत कर दी गयी और शुरु हो गया 1 से 9 अंकों की श्रेणी में जातक को बाँटने का सिलसिला। यह सर्वविदित है कि इतिहास की धारा में अनेक सभ्यताओं तथा राजाओं ने अपने अपने कलेंडर विकसित किये जिन सबके वर्ष और तिथियों में कोई तालमेल नहीं है। तब सवाल यह उठता कि अंक ज्योतिष का आधार ईसवी कलेन्डर ही क्यों? अंग्रेज़ों ने चुँकि विश्व के एक बड़े हिस्से पर राज किया, इसलिये ईसवी कलेंडर का प्रचलन बढ़ गया। यहाँ तक कि विभिन्न गिरजाघरों ने इस कैलेंडर के दिनों की मान्यताओं पर प्रश्न चिह्न लगाए हैं. और तो और, जो सबसे अवैज्ञानिक बात इसकी सार्वभौमिकता को चुनौती देती है, वो यह है कि भिन्न भिन्न देशों ने इस कैलेंडर को भिन्न भिन समय पर अपनाया.ईसवी कलेंडर की शुरुआत 1 ए.डी. से होती है जो 1बी.सी. के समाप्त होने के तुरत बाद आ जाता है, यह तथ्य मज़ेदार है, क्योंकि इस बीच किसी ज़ीरो वर्ष का प्रावधान नहीं है। देखा जाये तो ईसवी कलेंडर की तिथियाँ, मूलत: सौर वर्ष को मापने का एक मोटा मोटा तरीका भर है। जब हम ईसवी कलेंडर के विकास पर दृष्टि डालतें हैं तो पाते हैं कि कलेंडर के बारह महीनों के दिन समान नहीं हैं और इनमें अंतर होने का कारण भी स्पष्ट नहीं है. यदि इस कलेंडर का इतिहास देखें तो इतनी उथल पुथल है कि इसकी सारी वैज्ञानिक मान्यताएँ समाप्त हो जाती हैं. इस कलेंडर पर कई राजघरानों का भी प्रभाव रहा, जैसे जुलियस और ऑगस्टस सीज़र. 13 वीं सदी के इतिहासकार जोहान्नेस द सैक्रोबॉस्को का कहना है कि कलेंडर के शुरुआती दिनों में अगस्त में 30 व जुलाई में 31 दिन हुआ करते थे। बाद में ऑगस्टस नाम के राजा ने (जिसके नाम पर अगस्त माह का नाम पड़ा) इस पर आपत्ति जतायी कि जुलाई (जो ज्यूलियस नाम के राजा के नाम पर था) में 31 दिन हैं, तो अगस्त में भी 31 दिन होने चाहिये. इस कारण फरवरी (जिसमें लीप वर्ष में 30 व अन्य वर्षॉं में 29 दिन होते थे) से एक दिन निकालकर अगस्त में डाल दिया गया। अब क्या वे अंक ज्योतिषी कृपा कर यह बताएँगे कि दिनों को आगे पीछे करने से कालांतर में तो सभी अंक बदल गये, तो इनका परिमार्जन क्या और कैसे किया गया?सारी सृष्टि एक चक्र में चलती है सारे अंक एक चक्र में चलते हैं जैसे 1 से 9 के बाद पुन: 1 (10=1+0=1) आता है. ईसवी कलेंडर के आधार पर अंक ज्योतिष में अजब तमाशा होता है जैसे 30 जून (मूलांक 3) के बाद 1 जुलाई (मूलांक 1) आता है। इसी तरह 28 फरवरी (2+8=10=1) के बाद 1 मार्च (1 अंक) आता है। नाम के अक्षरों के आधार पर की जाने वाली भविष्यवाणियाँ अंगरेज़ी (आजकल हिंदी वर्णमाला के अक्षरों को भी) के अक्षरों के अंकों को जोड़कर की जाती हैं. अब यह तो सर्वविदित है कि नाम के हिज्जे उस भाषा का अंग है जो जातक के देश या प्रदेश में बोली जाती है और जो साधारणतः निर्विवाद होता है. जैसे ही इसका अंगरेज़ी लिप्यांतरण किया जाता है, वैसे ही विरोध प्रारम्भ हो जाता है. ऐसे में सारे अंक बिगड़ सकते हैं और साथ ही जातक का भविष्य भी इसी अधूरे ज्ञान का सहारा लेकर आजकल लोग इन ज्योतोषियों की सलाह पर अपने नाम की हिज्जे बदलने लगे हैं.अंक ज्योतिष के यह अंतविरोध, इसके पूरे विज्ञान को तथाकथित की श्रेणी में ले आते हैं। एक सवाल यह भी रह जाता है कि क्या पूरी मानव सभ्यता को मात्र 9 प्रकार के व्यक्तियों में बांट कर इस प्रकार का सरलीकृत भविष्य बाँचा जा सकता है? ऐसे में इस नितांत अवैज्ञानिक सिद्धांत को, ज्योतिष के नाम पर चलाने के इस करतब को क्या कहेंगे आप? भारतीय अंक ज्योतिष अपने आप में एक विज्ञान है और हमारी वर्णमाला मैं बहुत से रहस्य छुपे है हमारी तिथियां अपने आप में संपूर्ण है उपरोक्त विचार मात्र अंक-ज्योतिष के विषय में हैं। ज्योतिष शास्त्र के विषय में नहीं क्योंकि उसके सिद्धांत और पद्धतियाँ, खगोल शास्त्र पर आधारित हैं और कई अर्थो में वैज्ञानिकता लिये हैं। ज्योतिष शास्त्र में अभी और गहन शोध होने बाकी हैं भक्ति सिर को भी इस पर बात जारी रहेगी दोस्तों हो सकते मेरी बातों से तो ताकत के दोषियों को नाराजगी पैदा हो पर मुझे इस पर कोई फर्क नहीं पड़ता सच तो सच्च ही होता है आचार्य राजेश

शुक्रवार, 28 जनवरी 2022

ग्रह दशा फल


ग्रह दशा फलग्रह दशा फल
ज्योतष में परिणाम की प्राप्ति होने का समय जानने के लिए जिन विधियों का प्रयोग किया जाता है उनमें से एक विधि है विंशोत्तरी दशा। विंशोत्तरी दशा का जनक महर्षि पाराशर को माना जाता है। पराशर मुनि द्वारा बनाई गयी विंशोत्तरी विधि चन्द्र नक्षत्र पर आधारित है।विंशोत्तरी दशा के द्वारा हमें यह भी पता चल पाता है कि किसी ग्रह का एक व्यक्ति पर किस समय प्रभाव होगा।प्रत्येक ग्रह अपने गुण-धर्म के अनुसार एक निश्चित अवधि तक जातक पर अपना विशेष प्रभाव बनाए रखता है जिसके अनुसार जातक को शुभाशुभ फल प्राप्त होता है। ग्रह की इस अवधि को हमारे महर्षियों ने ग्रह की दशा का नाम दे कर फलित ज्योतिष में विशेष स्थान दिया है। फलित ज्योतिष में इसे दशा पद्धति भी कहते हैं। भारतीय फलित ज्योतिष में 42 प्रकार की दशाएं एवं उनके फल वर्णित हैं, किंतु सर्वाधिक प्रचलित विंशोत्तरी दशा ही है। उसके बाद योगिनी दशा है
लगनेश की दशा मे शरीर को सुख मिलता है और धन का लाभ भी होता है,धनेश की दशा मे धन लाभ तो होता है लेकिन शरीर को कष्ट होता है,यदि धनेश पर पाप ग्रह की नजर हो तो मौत तक होती देखी गयी है,तीसरे भाव के स्वामी की दशा मे रोग भी होते है चिन्ता भी होती है आमदनी का प्रभाव भी साधारण ही रहता है,चौथे भाव के स्वामी की दशा मे स्वामी के अनुसार ही मकान का निर्माण भी होता है सवारी का सुख भी प्राप्त होता है,लाभ के मालिक और दसवे भाव के मालिक दोनो ही अगर द्सवे या चौथे भाव मे हो तो चौथे भाव के स्वामी की दशा मे फ़ैक्टरी या बडे कारोबार की तरफ़ इशारा करते है,विद्या लाभ के लिये भी इसी दशा को देखा जाता है.पंचम भाव के स्वामी की दशा में विद्या की प्राप्ति भी होती है धन का जल्दी से धन कमाने के साधनो से धन भी प्राप्त होता है दिमाग अधिकतर लाटी सट्टे और शेयर बाजार जैसे कार्यों से धन की प्राप्ति होती है अधिकतर जुआरी इसी दशा मे अपने को पनपा लेते है.प्रेम इश्क मुहब्बत का कारण भी इसी दशा मे देखा जाता है,अगर साठ साल की उम्र मे भी इस भाव के स्वामी की दशा शुरु हो जाये तो व्यक्ति सठियाने वाली कहावत को चरितार्थ करने लगता है.सम्मान भी मिलता है समाज मे यश भी मिलता हैलेकिन बचपन मे दशा शुरु हो जाये तो माता और मकान तथा वाहन के प्रति दिक्कत भी शुरु हो जाती है.छठे भाव के स्वामी की दशा मे दुश्मनी पैदा होने लगती है बीमारी घेरने लगती है कर्जा भी बढने लगता है.सबसे अधिक सन्तान के लिये दिक्कत का समय माना जाता है और वह उन सन्तान के लिये माना जाता है जब वह शिक्षा के क्षेत्र मे होती है उनके लिये यह भी माना जाता है कि धन का कारण उन्हे पता लगने लगता है और उस कारण से वह चोरी करना ठगी करना और परिवार को बदनाम करने वाले काम भी करने से नही चूकती है,सप्तमेश की दशा मे अगर शादी हो चुकी है तो जीवन साथी को कष्ट बेकार के कारणो से होना शुरु हो जाता है शादी नही हुयी है तो कई प्रकार के रिस्ते बनते और बिगडने की बात भी मानी जाती है.अष्टमेश की दशा मे अगर वह पाप ग्रह है तो मौत या मौत जैसे कष्ट मिलने की बात मानी जाती है अगर अष्टमेश पाप ग्रह के रूप मे है और दूसरे भाव मे विराजमान है तो निश्चय ही मौत का होना माना जा सकता है गुरु के द्वारा देखे जाने पर कोई न कोई सहायता मिल जाती है,लेकिन गुरु के वक्री होने पर मिलने वाले उपाय भी बेकार हो जाते है.नवमेश की दशा मे सुख मिलना जरूरी होता है,भाग्योदय का समय भी माना जाता है,धार्मिक कार्यों मे मन का लगना और अचानक धार्मिक होना भी इसी दशा के प्रभाव से माना जाता है.दसवे भाव के मालिक की दशा मे राज्य से,सहायता मिलने लगती है पिता से सहायता के लिये भी और पुत्र से सहायता के लिये भी माना जाता है सुख का समय शुरु होना भी माना जाता है सम्मान प्राप्ति देश विदेश मे नाम होने की बात भी देखी जाती है लाभेश की दशा मे धन का आना तो होता है लेकिन पिता और पिता सम्बन्धी कारको का नष्ट होना भी माना जाता है बारहवे भाव के मालिक की दशा मे शरीर को कष्ट भी होता है धन की हानि भी होती है और भटकाव भी देखा जाता है सबसे अधिक कारण मानसिक चिन्ताओं के लिये भी माना जाता है,राहु की दशा मे अजीब गरीब कार्य का होना,अचानक धनी और अचानक निर्धन बन जाना पूर्वजो के नाम को या तो चमका देना या उनके नाम का सत्यानाश कर देना भी माना जाता है केतु की दशा मे दलाली जैसे काम करना कुत्ते जैसा भटकाव या ननिहाल खान्दान से अपने जीवन यापन को करना अथवा भटकाव चुगली खबर बनाने का काम आदेश से काम करने के बाद रोजी की प्राप्ति दूसरे के इशारे पर काम करना आदि माना जाता है.

बुधवार, 26 जनवरी 2022

रोग और बीमारी में वाघा करता है

रोग और बीमारी में वाघा करता है रोग और बीमारी में वाघा करता है राहु ------

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राहु एक छाया ग्रह है,जिसे चन्द्रमा का उत्तरी ध्रुव भी कहा जाता है,इस छाया ग्रह के कारण अन्य ग्रहों से आने वाली रश्मियां पृथ्वी पर नही आ पाती है,और जिस ग्रह की रश्मियां पृथ्वी पर नही आ पाती हैं,उनके अभाव में पृथ्वी पर तरह के उत्पात होने चालू हो जाते है,यह छाया ग्रह चिंता का कारक ग्रह कहा जाता है इस तरह राहु रोग निर्धारण मे वाघ खड़ी करता हैयह अदृश्य ग्रह है  इस के कारण ही इसे ‘मूत-पिशाच, गुप्त भेद, गुप्त मन्त्रणा, धोखेबाजी आदि का कारक माना जात्ता है I यह पेट के कीडों का भी कारक है विद्युत तरंगें तथा वायुमण्डल की अन्य तरंगें दृष्टिगोचर नहीं होती तथापि उनका प्रभाव सर्वविदित है अदृश्य तरंगो द्वारा किसी भी व्यथित के शरीर के भीतर विद्यमान रोग का पता चलाना आज आम वात  हो गयी है  यदि हम सूर्य किरणों की ओर ध्यान दे, तो दो किरणे, जो दृष्टिगोचर नहीं ढोती, उनका प्रभाव काफी समय से सिद्ध किया जा चुका है  सूर्या की साक्ष किरणों और आकाशीय ग्रहों का परस्पर क्यद्ध सम्बन्थ है और इस रहस्यमय ज्ञान से कैसे लाभ उठाया जा सकता है 
हिंन्दू धर्म के अनुसार सूर्य के रथ में सात घोड़े हैं  इन्हीं सात घोडों पर अन्वेषण न्यूटन ने अपनी पुस्तक में किया और नोवल पुरस्कार प्राप्त किया  न्यूटन के अनुसार यदि हम सूर्य प्रकाश के स्पैवट्रम की और ध्यान दें, तो दो रंग, अवरक्त तथा पराबैगनी, अदृश्य होने के कारण नहीं देखे जा सकते किन्तु अवरक्त फोटोग्राफी तथा अदृश्य किरणों द्वारा व्यक्ति के शरीर के भीतरी मार्गों का फोटो लेना इन्हीं किरणो द्वारा सम्भव हे  सूर्य-किरण पद्धति के अनुसार, जो भी वस्तु जिस रंग की होती है; वह अन्य रंगों को अपने मे सोख लेती है, लेकिन उस  रंग क्रो वापस करती है, जिस रंग की वह होती हैं। वह रंग हमारी ओर जाता है और हम उसवस्तु का वही रंग मानते हैं।  इस प्रणग्लो का ध्यान रखने हुए,किरणो का अध्ययन करे तो जब व्यक्ति की राहु की  कैतु की दशा,अन्तर दशा -प्रयन्तरदशा चल रही हो तो उस समय उनके  शरीर में राहु या कैतु की अट्टश्य किरणे पेहले सै ही विद्यमान होती हैं, तथा  क्षरश्मि (X-I'ays) की अट्टश्य किरणों की वापिस कर देती हैं I अता  क्षरशि्म द्वारा खींचा क्या फोटो शरीर कै अन्दर‘की ठीक वस्तुस्थिति क्रो नहीं बता पाता और हमारी चिकित्सा प्रणाली कहती  है कि क्षरिश्म द्वारा प्राप्त फोटो में सभी कुछ ठीक है I लेकिन यदि सभी कुछ सामान्य है, तो फिर… व्यक्ति रुग्ग क्यों? यही स्थिति अन्य परीक्षणों की भी  होती है I अत यदि राहु  कैतु की अन्तर्दशा  प्रत्यन्तर्दशा चल  रही हो, तो उस समय सभी परीक्षण सही वस्तुस्थिति नहीं दर्शाते, और व्यक्ति कै रोग का निदान नहीं हो पाता ऐसी अवस्था में 
ऐसै समय में न तो मन्त्र ही प्रभाक्शाली होते हैं, और न किसी भी दिव्यात्मा कै द्वारा दिया क्या आशीर्वाद ही काम करता है यदि वह व्यक्ति स्वयं ही दिव्यात्मा हो, तो उसका दिया हुआ शाप भी काम नहीं करता है राहु की दशा में मंत्र जप भी निष्कलं अनुभव होता है । ऐसा क्यो होता है ? ऐसा इसलिए होता हैं, कि जब मन्त्र का जप करते है, तो उस समय मन्त्र ध्वनि से विशेष किरणे बनती हैं, और वे कार्य सिद्धि के लिए
आगे बढती हैं, लेकिन वे किरणे राहु की किरणों से टकराती हैं ओंर 
निष्किथ ही जाती हैं राहु की अन्तर्दशा में यह होता रहता है, और उस 
समय उपाय का लाभ इसीलिए प्रतीत नहीं होता है  वास्तव में मन्त्र तो .
राहु एवं रोग निर्धारण में त्रुटि अपना कार्य कर ही रहा होता है  मन्त्र जप न करने क्री स्थिति मे जो और भी हानि होती, उसका सही अनुमान लगाना सम्भव नहीं हो पाता 1968 मेँ गैस्टन और मेनाकर ने एक निबन्ध प्रकाशित किया, जिसमे उन्होंने पीनियल ग्रंथि को फोटोरिसेप्टर (प्रकाश संवेदी केन्द्र) के रूप में सिद्ध किया  यह खोज मानवीय मस्तिष्क में पीनियल नामक महत्त्वपूर्ण ग्रंथि के बिषय में थी  पीनियल ग्रंथि का प्रकाश से सम्बन्ध हैं  बिकान्सिन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक एचएस. स्सीडर ने अपने अनुसंधान के द्वारा बताया, कि रोशनी का पीनियल पर प्रभाव पड़ता है  पीनियल ग्रंथि से एक हॉर्मोन निकलता है, जो सिरोटोनिन कहलाता हे  मन्द और शीतल प्रकाश में खाव की मात्रा अधिक होती हे  इसी कारण गीता में कहा गया हैं -या निशा सर्वभूतानामू त्तस्याम जाग्रति संयमी' -अर्थात् जिस समय संसार सो रखा होगा  उस रात्रि के समय में योगी पुरुष जागते रहते है और साधना में संलग्न रहते हैं I क्योकि रात्रि मे की  गई उपासना मे सिंरोटोनिन का स्राव अथिक होता है, और योगी पुरुष रात्रि क्रो ही उपासना करतेहै  तीत्मा प्रकाश में इस रस का स्राव कम हो जाता है . जिस प्रकार माचिस की तीली में अग्नि रहती है, लेकिन रगढ़ने पर ही वह प्राप्त होती हे इस्री प्रकार पीनियल ग्रंथि में दिव्य शक्तियां हैं, लेकिन अंधकार में अभ्यास से ही वे प्राप्त हो सकती हैं । 
परोक्ष दर्शन क्री यह प्रक्रिया एक्स और गामा किरणों की तरह होती है I 'एक्स-किरण जिस प्रकार शरीर की भीतरी संरचना तथा गामा किरण  इस्पप्ल जेसी कठोर वस्तु की आन्तरिक बनावट का भी भेद खोल देती हैं, इसी प्रकार पीनियल ग्रथि को रश्मियों के माध्यम से सामने बैठे व्यक्ति के बिषय मे कुछ भी बताया जा सकता है I वृक्षों में भी सिरोटोनिन से मिलतान्तुलता एक स्राव 'मिलटोनिन' पाया जाता हैं  यह हार्मोन क्ले, पीपल तथा बरगद जैसे पेडों मे स्वाभाविक मात्रा मे माया जाता है ।इस लिए धार्मिक कार्यो तथा विवाह के समय क्ले के तने और पत्तों का प्राय: प्रयोग किया जाता था पीपल के वृक्ष को मी इसीलिए पवित्र मानते हैं गीता में श्रीकृष्ण ने पैडो मे स्वयं क्रो अश्वत्थ्व(पीफ्त) बताया है I स्मरण रहे, कि पीनियल ग्रंथि आज्ञा चक्र के घास होती है I आज इतना ही वाकी अगले लेख में आचार्य राजेश
आचार्य राजेश

सोमवार, 24 जनवरी 2022

ज्योतिष में गुरु


ज्योतिष में गुरु

गुरु
तत्व की प्रशंसा तो सभी शास्त्रों ने की है। ईश्वर के अस्तित्व में मतभेद हो सकता है, किन्तु गुरु के लिए कोई मतभेद आज तक उत्पन्न नहीं हो सका। गुरु को सभी ने माना है। प्रत्येक गुरु ने दूसरे गुरुओं को आदर-प्रशंसा एवं पूजा सहित पूर्ण सम्मान दिया है। गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णु र्गुरूदेवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥गुरु ही ब्रह्मा है गुरु ही विष्णु है गुरु ही महेश्वर है,गुरु ही साक्षात दिखाई देने वाला ब्रह्म है तो गुरु को क्यों नही माना जाये। वैसे पूजा गुरु की ब्रह्मा के रूप में की जाती है,और गुरु के रूप में चलते फ़िरते धार्मिक लोगों को उनकी जाति के अनुसार धर्म कर्म करवाने वाले लोग जिन्हे हिन्दू पंडित कहते है मुसलमान मौलवी कहते है ईशाई पादरी कहते है। गुरु कोई बनावटी काम नही करता है वह जन्म से ही रूहानी कार्य करने के लिये अपने को आगे रखता है। वह अपनी हवा को चारों तरफ़ फ़ैलाने की कार्यवाही करता है,पहला गुरु पिता होता है जिसने अपने बिन्दु को माता के गर्भ के द्वारा शरीर रूप में परिवर्तित किया है दूसरा गुरु संसार का हर रिस्ता है जो कुछ न कुछ सिखाने के लिये अपना धर्म निभाता है वह रिस्ता अगर दुश्मनी का भी है तो भी लाभकारी होता है कि उससे दुश्मनी के गुण धर्म भी सीखने को मिलते है,तीसरा गुरु अपना खुद का दिमाग होता है जो समय पर अपने ज्ञान की समिधा से जीवन के लिये अपनी सुखद या दुखद अनुभूति को प्रदान करता है। बाकी के गुरु स्वार्थ के लिये अपना काम करते है जोई धर्म को बढाने के लिये और कोई अपनी संस्था के विकास के लिये मायाजाल फ़ैलाने का काम करते है। गुरु के अन्दर की शक्ति एक हाकिम जैसी होती है यानी जैसा हुकुम गुरु ने दिया उसी के अनुसार सभी काम होने लगे,बिना गुरु के सांस लेना भी दूभर होता है कारण गुरु ही हवा का कारक है और सांस बिना गुरु के नही ली जा सकती है। धातुओं मे गुरु को उसी धातु को उत्तम माना जाता है जो खरीदने में महंगी हो और दूसरे के देखने से अपने आप ही7597718725,9414481324 उसे प्राप्त करने की ललक दिमाग में लग जाये,अगर अधिक आजाये तो दिमाग ऊपर चढ जाये और नही आये तो उसी के लिये दिमाग ऊपर ही चढा रहे यानी सोना और रत्नो में गुरु का रत्न पुखराज को माना जाता है सही पुखराज मिल जाये तो करोडों की कीमत दे जाये और गलत मिल जाये तो जीवन की कमाई को ही खा जाये साथ ही चलते हुये रिस्ते भी तोड दे,शरीर में गुरु की पहिचान नाक से की जाती है शरीर में अगर तोंद नहीबढी है तो नाक सबसे आगे चलती है,माथा देखकर पता कर लिया जाता है कि सामने वाले के अन्दर कितना गुरु विद्यमान है यानी कितना समझदार है,अगर कपडों से गुरु की पहिचान की जाये तो पगडी हैट टोपी आदि से की जाती है कारण सभी वस्त्रों में सबसे ऊंचे स्थान पर अपना स्थान रखती है,भले ही बहुत कम कीमत की हो लेकिन अपनी इज्जत शरीर और जीवन से अधिक रखती है। अगर फ़लों में गुरु का स्थान देखा जाये तो जिस टहनी में फ़ल लटका होता है उसे ही मुख्य मानते है उस टहनी के आगे वृक्ष की भी कोई कीमत नही होती है,जब फ़ल टूटकर संसार में आता है तो केवल फ़ल में लगी हुयी डंडी ही साथ आती है बाकी का पीछे ही छूट जाता है जब फ़ल को प्रयोग में लिया जाता है तो सबसे पहले टहनी को अलग कर दिया जाता है,अगर पशुओं में गुरु को देखा जाये तो वह शेर भी नही बब्बर शेर के रूप में जाना जाता है अक्समात सामने आजाये तो अच्छे भले लोगों की हवा निकल जाये,पेडों के अन्दर गुरु को पीपल के पेड में माना जाता है,कितने चिकने और हरे पत्ते,रेगिस्तान में भी हमेशा अपने हरे रंग को बिखेरने वाला,हर अंग काम आने वाला और यहां तक कि पागल भी दिन के समय पीपल के नीचे निवास करने लगे तो जल्दी ही ठीक हो जाये और रात के समय में बुद्धिमान भी पीपल के नीचे निवास करने लगे तो पागल हो जाये।
ज्योतिष में अगर गुरु को देखा जाता है तो पहले भाव में सिंहासन पर बैठा साधु ही माना जाता है उसके पास चाहे कुछ भी हो लेकिन उसके अन्दर अहम नही होता है और न ही वह दिखावा करता है,दूसरे भाव में संसार के लिये तो वह गुरु होता है लेकिन अपने लिये वह हमेशा फ़कीर ही रहता है तीसरा भाव गुरु को खानदान का मुखिया तो बना देता है लेकिन अपने ही बच्चे उसका आदर नही करते है,चौथा गुरु रखता तो राजा महाराजा की तरह से लेकिन अपन को कभी स्थिर नही रहने देता है,पांचवा गुरु स्कूल के मास्टर जैसा होता है कहीं भी गल्ती देखी और अपनी विद्या को बिखेरना शुरु कर देता है कितने ही गालियां देते जाते है और कितनी ही सिर को टेकते जाते है उसे गालियों से और सिर टेकने से कोई फ़र्क महसूस नही होता है। छठा गुरु जब भी बुलायेगा तो बुजुर्गों को ही मेहमान के रूप में बुलायेगा कभी भी जवान लोगों से दोस्ती नही करता है,सातवां गुरु रहेगा हमेशा निर्धन ही लेकिन वह कितना ही जवान हो अपने को बुजुर्गों जैसा ही शो करेगा,आठवां गुरु बच्चे को भी बूढों की बाते करते हुये देख कर खुस होने वाला होता है,नवां गुरु घर में सबसे बडा होगा मगर यह शर्त नही है कि वह अपने ही खून का रिस्तेदार है या कहीं से आकर टिका हुआ व्यक्ति है। दसवां गुरु खतरनाक होता है अपने बाप की खराब आदतों की बजह से दूसरे ही बचपन को जवानी तक खींच कर ले जाने वाले होते है,ग्यारहवा गुरु बिना बुलाये ही मेहमान बनकर आने वाला माना जाता है उसे मान अपमान की चिन्ता नही होती है उसे केवल अपने स्वार्थ से मतलब होता है,कहीं भी दिक्कत आने पर पतली गली से निकलने में अपनी भलाई समझता है,बारहवां गुरु अपने परिवार के लिये बेकार माना जाता है उसे अपने शरीर की भी चिन्ता नही रहती है और मिल जाये तो रोज लड्डू खाये नही तो नमक रोटी से भी गुजारा चला ले,बच्चे हो तो भी बिना बाप जैसे बच्चे दिखाई देते है।

शनिवार, 22 जनवरी 2022

Guru Rashi Parivartan#Jupiter transit in Pisces

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मित्रों13 अप्रैल 2022
13 अप्रैल बुधवार के दिन2022 को गुरु मीन राशि में प्रवेश कर जाएंगे। मीन राशि कालचक्र के अनुसार मोक्ष नामक पुरुषार्थ से सम्बन्ध रखती है। व्यक्ति के जन्म लेने के बाद मौत तक तो वृश्चिक राशि का प्रभाव चलता है लेकिन धनु राशि से लेकर जन्म लगन तक जातक का पिछला परिवार और जातक के पिछले जीवन के बारे में जानकारी मिलती है। मीन राशि गुरु की नकारात्मक राशि है,इस राशि से जातक के लिये देखा जाता है कि जातक पिछले जन्म में किस योनि मे अपना स्थान रखता था,वह आदतों से कैसा था,और उसके द्वारा जो भी आराम करने के स्थान,शांति प्रदान करने के कार्य, कमाने के बाद खर्च करने के स्थान आदि के बारे में सोचा जाता है,वैसे यह राशि कर्क राशि से नवें भाव की राशि है वृश्चिक राशि के पंचम की राशि है, जो भी मौत के बाद की जानकारी होती है इसी राशि से मिलती है। कमाने के बाद जो खर्च कर दिया जाता है और खर्च करने के बाद जो संतोष मिलता है वह इसी राशि से मिलता है,अपने स्वभाव के अनुसार जीव अपने स्वार्थ के लिये खर्च करता है उसे संतोष तभी होता है जब उसने जिस कार्य के लिये खर्च किया है,ऋषि मुनि अपने अपने ज्ञान और शरीर को ही खर्च कर देते थे,धनी लोग अपने स्वार्थ के लिये बडे बडे चैरिटीबल ट्रस्ट बनाकर अपने पूर्वजों के लिये धर्मशाला और मन्दिर आदि बनवा कर खूब खर्च कर देते है। यह मीन राशि का स्वभाव होता है। इसी स्वभाव में जातक का जब जन्म होता है तो उसे ईश्वर की तरफ़ से सौगात मिलती है कि वह बडे संस्थान या बडे काम को सम्भालने के लिये अपनी जीवन को खर्च करने के लिये आया है। उसे जो भी मिलेगा वह बडे रूप में ही मिलेगा,और इस राशि के प्रभाव से वह कार्य भी बडे ही करेगा,उसके लिये कोई छोटा कार्य जभी समझ में आता हैमीन राशि हवा की राशि है और अपने को एक एक कदम पर हवा में उछालती है,शरीर में इस राशि का प्रभाव पैर के तलवों पर होता है,जब भी व्यक्ति चलता है तो हर कदम पर तलवे चलने लगते है भूमि से स्पर्श करने का कार्य तलवों का ही होता है,गुरु का रूप इस संसार मे संबंधो के लिए माना जाता है गुरु ही इस संसार मे चलाने वाली बुराई और अच्छाई वाली हवा के लिए भी जाना जाता है। गुरु गोचर से जब काल पुरुष की कुंडली मे जिस राशि मे गोचर करता है उसी के अनुसार अपने फलो को प्रदान करता जाता है। मीन राशि के गुरु का जातक अपने स्वभाव और पहिने ओढने के बाद देखने में तो पक्का गुरु लगता है लेकिन उसके स्वभाव में गुरु के बक्री होने का असर भी होता है वह कब सात्विक से बदल कर तामसी हो जायेगा कोई पता नही होता है, गुरु का मीन राशि में प्रवेश होने से जिनका गुरु जन्म से ही मीन राशि में था उनके लिये विदेश जाने के रास्ते खुल जाते है। संसार में कुछ ऐसी हवा चलने लगेगी कि लोग विदेश में जाने विदेश में बसने की बातें सोचना शुरू कर देंगे जो लोग अविवाहित होते है उनके लिये रिस्ते आने शुरु हो जाते है । याता यात के साधनों में सरकार की विशेष रूचि रहेगी खासकर हवाई जहाज यात्रा की प्रगति कैसे हो कि मैं सुधार कैसे हो इस इसको लेकर भी काफी उपाय यह माने जा सकते हैं।छोटा सा आदमी भी परा शक्ति की बाते करने धर्म कर्म की बातें करते अपना प्रभाव छोड़ने की कोशिश करेगागुरु की दृष्टि हमेशा स्थान के अनुसार यानी जहां गुरु विराजमान है अपने स्थान से तीसरे स्थान अपने स्थान से पंचम स्थान अपने स्थान से सप्तम स्थान और अपने स्थान से नवे स्थान को बल देने तथा उनही स्थानो के बल को प्रदान करने के लिए भी माना जाता है। गुरु का स्थान मीन राशि मे होने पर इसलिए बाहरी शक्तियों के लिए और विदेश यात्रा आदि के लिए लोगो के ख्याल अधिक माना जाता है।इसके बाद गुरु की निगाह वृष राशि मे होने के कारण लोग अपने विदेशी परिवेश के दौरान अधिक से अधिक धन और भौतिक वस्तुओं की बढ़ोत्तरी अपने कुटुंब की सहायता के लिए विदेश से मिलने वाली सहायता के लिए धर्म स्थान पर जाने और धन को खर्च करने के लिए भी अपनी युति को यह गुरु दे रहा है,इसके बाद गुरु का पंचम प्रभाव कर्क राशि पर होने के कारण लोगो की जो भी धार्मिक यात्राये होगी वह अक्सर या तो पानी वाले स्थान के लिए या फिर बर्फीले स्थानो की तरफ अधिक जाने की तरफ रुचि रहेगी।गुरु की पंचम नजर कर्क राशि पर होने से जातक के अन्दर जल्दी से धन कमाने की कला की पैदाइस भी मानी जा सकती है जो लोग तकनीकी शिक्षा के प्रति कमजोरी महसूस कर रहे थे उनका दिमाग भी सही चलने की बारी आजाती है, इस राशि वालों के लिये दक्षिण पश्चिम की यात्रायें भी बनने लगती है,जो लोग अपने पूर्वजों को तर्पण आदि देना भूल गये होते है वे अपने अपने अनुसार तर्पण की व्यवस्था भी करते हुये देखे जा सकते है। कोई फ़ूलो की माला से कोई दीपक जलाकर और कोई अगरबत्ती जलाकर और कोई पिंड आदि देकर अपने कार्य को सम्भाल लेता है और नही तो कोई अपने पूर्वजों के नाम से धर्म स्थानो का निर्माण ही करवाने लगता है।। गुरु के द्वारा ही पानी चावल चांदी और जनता के अंदर एक प्रकार की उद्वेग बढ़ाना भी शुरू कर देना भी कहा जा सकता है।जनता का रुझान बाहरी शक्तियों को हटाने के लिए इसी गुरु का सहारा लेने के लिए अपनी युति को देने,इस गुरु के अंदर यह भी भावना का उदयहोना माना जाता है।कितने ही लोग अपने अपने जन्म के गुरु के अनुसार व्यापार मे जो चांदी चावल का करते हैं या तो बहुत तरक्की करेंगे अपने व्यापार में या अपने व्यापार को ही डूबो देंगेगुरु की सप्तम नजर कन्या राशि मे होने के कारण भी लोगो का एक सवाल हमेशा उनके जेहन मे उभरता रहेगा कि वे नौकरी करेंगे या कहाँ करेंगे,धन वाले क्षेत्रो मे अस्पताली क्षेत्रो मे और सेवा वाले क्षेत्रो मे काफी लोगो को रोजगार बाहरी सहायताओ के बल से काफी मिलने की प्रबल संभावना है।
गुरु की नौवी दृष्टि वृश्चिक राशि पर होने के कारण लोगो की रुचि रिस्क लेने वाले कारणो की तरफ भी अधिक रहती है।लोग बिना किसी कारण के भी रिस्क लेने के लिए अपने दिमाग को लगाने की तरफ अपने रुझान को रखेंगे जो लोग धार्मिक प्रवृत्ति के हैं उनका लिया हुआ रिस्क फलित होगा।
उनकी रिस्क लेने की बातों को तो पूरा होता देखा गया और उनकी कोई भी रिस्क अपने अनुसार खरी उतरी,साथ ही जो लोग खरीदने बेचने और प्रापर्टी आदि के काम करते होंगे उनके लिए घर बनाकर और घर बनाकर बेचने खाली जमीने लेने और उन जमीनो पर मकान बनाकर बेचने पर गुरु से जिन लोगो के संबंध बहुत अच्छे हैं वह लोगो खूब घन कमा सकते हैं और जिन लोगो के संबंध सही नहीं जिन्हे अधिक चालाक होने की नजर से देखा जाए वे डूबेगा और उनकी कल्पना अधूरी भी रहेगी तथा जो धन बल और जानकारी भी उन्हे ही ले डूबेगी। वृश्चिक राशि शमशान की राशि भी मानी जा सकती है,सही लोग तो राख़ से भी साख निकाल कर ले आएंगे और खराब लोग अपनी साख को भी राख़ मे मिलाकर वापस आ जाएंगे। गुरु अपने अनुसार ही लोगो के लिए वृश्चिक राशि मे असर देने के बाद काम सुख मे भी बढ़ोत्तरी का कारक माना जाता है,
इस नौवी नजर के कारण एक कारण और भी देखा गया कि जो लोग बहुत पहले से अपने को कार्य मे लगे हुए होंगे उनके लिए किसी प्रकार का आघात दिक्कत नही दे पाएंगे और जो लोग अकसमात ही देखा-देखी शुरू हुये होंगे वे अपने को आघात मिलने के कारण या तो दुनिया से ही दूर या अपने लोगो से ही दूर चले ,इसका एक कारण और भी है कि जो लोग अपने को संभाल कर और बुद्धि से चलाते रहेंगे वे सुखी रहेंगे और जो लोग अचानक ही अपने को बदलने के लिए लोग या तो धार्मिक और संबंधो से उच्चता मे या उन्हे समाज से बिलकुल ही दूर हो जाएंगे मित्रों कोई भी गोचर आपकी कुंडली पर निर्भर होता है वह कैसा फल देगा किसी भी ग्रह का परिवर्तन होता है तो वह आपकी कुंडली में बैठे हुए ग्रह के द्वारा ही आपको शुभ या अशुभ फल देगा qa राजेश

गुरुवार, 20 जनवरी 2022

कुकर्मों की सजा देता है गुरु

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कुकर्मों की सजा देता है गुरु
कुकर्मों का फ़ल यह गुरु अपने अपने समय के अनुसार देता है कुकर्मों को करने के बाद सोचते है कि उन्हे कोई देख नही रहा है और वे बडे आराम से अपने कुकर्मो को कर रहे है।कुकर्मों को करने के बाद सोचते है कि उन्हे कोई देख नही रहा है और वे बडे आराम से अपने कुकर्मो को कर रहे है। जब गुरु उनके विपरीत भावों में प्रवेश करता है तो जो कुकर्म किये गये है उनकी सजा भरपूर देने के लिये अपनी कसर बाकी नही छोडता है। जब गुरु अपने अनुसार सजा देता है तो वह यह नही देखता है कि जातक के अन्दर कुकर्मों को करने के बाद धार्मिकता भी आगयी है या वह अपने को लोगों की सहायता के लिये तैयार रखने लगा है बल्कि उसे वह सजा मिलती है जो मनुष्य अपने अनुसार कभी दे ही नही सकता है।

गुरु केतु के साथ मिलकर जब छठे भाव में प्रवेश करता है तो वह धन वाले रोग पहले देना शुरु कर देता है,वह धन को जो किसी प्रकार के कुकर्मो से जमा किया गया है उसे बीमारियों में खर्च करवा देता है जातक को अस्पताल पहुंचा देता है,और उन पीडाओं को देता है जिसे दूर करने में दुनिया के बडे से बडे डाक्टर असमर्थ रहते है। जातक को ह्रदय की बीमारी देता है और गुरु जो सांस लेने का कारक है गुरु जो जिन्दा रखता है,गुरु जो ह्रदय में निवास करता है और हर पल की खबर ब्रह्माण्ड तक पहुंचाता है,यानी जातक के द्वारा जितनी सांसें खींची जाती है और जितनी सांसे ह्रदय के अन्दर थामी जाती है सभी में व्यक्ति के मानसिक रूप से सोचने के बाद कहने के बाद और करने के बाद सबकी खबर हर सांस के साथ ब्रह्माण्ड में पहुंचाता है और हर आने वाली सांस में ब्रह्माण्ड से अच्छे के लिये अच्छा फ़ल और बुरे के लिये बुरा फ़ल गुरु के द्वारा भेज दिया जाता है। अगर व्यक्ति किसी के लिये बुरा सोचता है तो सांस के साथ गुरु उन तत्वों को भेजता जो जातक के सिर के पीछे के भाग्य में जाकर जमा होने लगते है और जातक को चिन्ता नामक बीमारी लग जाती है जातक दिन रात सोचने के लिये मजबूर हो जाता है उसे चैन नही आता है वह खाना समय पर नही खा सकता है वह नींद समय पर ले नही सकता है वह अन्दर ही अन्दर जलने लगता है,और एक दिन वह गुरु उसे लेजाकर किसी अस्पताल या किसी दुर्गम स्थान पर छोड देता है जिन लोगों के लिये जिन कारणों के लिये उसने अपने अनुसार कुकर्म किये थे,उनकी सजा गुरु देने लगता है। व्यक्ति कोजिन्दा रहना भी अच्छा नही लगता है और अन्त में अपने कुकर्मों की सजा यहीं इसी दुनिया में भुगत कर चला जाता है।

लोगों के द्वारा मनीषियॊं के द्वारा कहा जाता है कि स्वर्ग नरक अलग है,लेकिन सिद्धान्तों के अनुसार यहीं स्वर्ग है और यहीं नरक है। जब व्यक्ति सात्विक तरीके से रहता है अपने खान पान और व्यवहार में शुद्धता रखता है और जीवों पर दया करता है तो वह देवता के रूप में स्वर्ग की भांति रहता है। जब व्यक्ति के कुकर्म सामने आने लगते है तो वह अपने स्वभाव में परिवर्तन लाता है,आमिष भोजन को लेने लगता है शराब आदि का सेवन करने लगता है जीवों को मारने और सताने लगता है,अच्छे लोगों के लिये प्रहसन करता है,अपने अन्दर अहम को पालकर सभी को सताने के उपक्रम करने लगता है यही नर्क की पहिचान होती है उसका सम्बन्ध बुरे लोगों से हो जाता है और वह बुरी स्त्री या पुरुषों से सम्पर्क करने के बाद बुरी ही सन्तान को पैदा करता है,अन्त में किसी न किसी भयंकर रोग से पीडित होता है या किसी कारण से अपने को गल्ती करने से अंग भंग कर लेता है अपंग हो जाता है या किसी दुर्घटना उसका शरीर छिन्न भिन्न हो जाता है,उसके पीछे कोई नाम लेने वाला पानी देने वाला नही रहता है,यह नर्क की सजा को भुगतना बोला जाता है।
हर मनुष्य की मर्यादा होती है वह अपने को दूसरे के भले के लिये ही जिन्दा रखे,उसे किसी प्रकार का मोह पैदा नही हो वह जिससे भी मोह कर लेगा वही उसका दुख का कारण बन जायेगा। जिस वस्तु की अधिकता होती है वही वस्तु परेशान करने वाली हो जाती है,यानी अति किसी भी प्रकार से अच्छी नही होती है,इस अति से बचा जाय उतना ही संचय किया जितने से परिवार कुटुंब का पेट भरे और उनके लिये संस्कारों वाली शिक्षायें मिले जो लोग आधीन है वे किसी प्रकार से बुरे रास्ते पर नही जा पायें,वे दुखी नही रहे बुर्जुर्गों को बुजुर्गों वाले सम्मान देने चाहिये और छोटो के लिये हमेशा दया रखनी चाहिये। दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान,तुलसी दया न छोडिये जब लग घट में प्राण।

बुधवार, 12 जनवरी 2022

मंगल राहु युति (Rahu Mangal conjunction)


मंगल और राहु
एक ही भाव में युति बनाते हैं, तो वह मंगल राहु अंगारक योग कहलाता है। मंगल ऊर्जा का स्रोत है, जो अग्नि तत्व से संबद्घ है, जबकि राहु भ्रम व नकारात्मक भावनाओं से जुड़ा हुआ है। जब दोनों ग्रह एक ही भाव में एकत्र होते हैं तो उनकी शक्ति पहले से अधिक हो जाती है। लाल किताब में इस योग को पागल हाथी या बिगड़ा शेर का नाम दिया गया है। राहु से विस्तार की बात केवल इसलिये की जाती है।क्योंकि राहु जिस भाव और ग्रह में अपना प्रवेश लेता है उसी के विस्तार की बात जीव के दिमाग में शुरु हो जाती है,कुंडली में जब यह व्यक्ति की लगन में होता है तो वह व्यक्ति को अपने बारे में अधिक से अधिक सोचने के लिये भावानुसार और राशि के अनुसार सोचने के लिये बाध्य कर देता है जो लोग लगातार अपने को आगे बढाने के लिये देखे जाते है उनके अन्दर राहु का प्रभाव कहीं न कहीं से अवश्य देखने को मिलता है। लेकिन भाव का प्रभाव तो केवल शरीर और नाम तथा व्यक्ति की बनावट से जोड कर देखा जाता है लेकिन राशि का प्रभाव जातक को उस राशि के प्रति जीवन भर अपनी योग्यता और स्वभाव को प्रदर्शित करने के लिऐ मजबूर हो जाता है।
राहु विस्तार का कारक है,और विस्तार की सीमा कोई भी नही होती है, मंगल शक्ति का दाता है,और राहुअसीमितिता का कारक है,मंगल की गिनती की जा सकती है लेकिन राहु की गिनती नही की जा सकती है।राहु अनन्त आकाश की ऊंचाई में ले जाने वाला है और मंगल केवल तकनीक के लिये माना जाता है,हिम्मत को देता है,कन्ट्रोल पावर के लिये जाना जाता है।अगर मंगल को राहु के साथ इन्सानी शरीर में माना जाये तो खून के अन्दर इन्फ़ेक्सन की बीमारी से जोडा जा सकता है,ब्लड प्रेसर से जोडा जा सकता है,परिवार में लेकर चला जाये तो पिता के परिवार से माना जा सकता है,और पैतृक परिवार में पूर्वजों के जमाने की किसी चली आ रही दुश्मनी से माना जा सकता है। समाज में लेकर चला जाये तो गुस्से में गाली गलौज के माना जा सकता है,लोगों के अन्दर भरे हुये फ़ितूर के लिये माना जा सकता है। अगर बुध साथ है तो अनन्त आकाश के अन्दर चढती हुयी तकनीक के लिये माना जा सकता है। गणना के लिये उत्तम माना जा सकता है।
गुरु के द्वारा कार्य रूप में देखा जाने वाला मंगल राहु के साथ होने पर सैटेलाइट के क्षेत्र में कोई नया विकास भी सामने करता है,मंगल के द्वारा राहु के साथ होने पर और बुध के साथ देने पर कानून के क्षेत्र में भ्रष्टाचार फ़ैलाने वाले साफ़ हो जाते है,उनके ऊपर भी कानून का शिकंजा कसा जाने लगता है,बडी कार्यवाहियों के द्वारा उनकी सम्पत्ति और मान सम्मान का सफ़ाया किया जाना सामने आने लगता है,जो लोग डाक्टरी दवाइयों के क्षेत्र में है उनके लिये कोई नई दवाई ईजाद की जानी मानी जाती है,जो ब्लडप्रेसरके मामले में अपनी ही जान पहिचान रखती हो। धर्म स्थानों पर बुध के साथ आजाने से मंगल के द्वारा कोई रचनात्मक कार्यवाही की जाती है,इसके अन्दर आग लगना विस्फ़ोट होना और तमाशाइयों की जान की आफ़त आना भी माना जाता है। वैसे राहु के साथ मंगल का होना अनुसूचित जातियों के साथ होने वाले व्यवहार से मारकाट और बडी हडताल के रूप में भी माना जाता है। सिख सम्प्रदाय के साथ कोई कानूनी विकार पैदा होने के बाद अक्समात ही कोई बडी घटना जन्म ले लेती है। दक्षिण दिशा में कोई बडी विमान दुर्घटना मिलती है,जो आग लगने और बाहरी निवासियों को भी आहत करती है,आदि बाते मंगल के साथ राहु के जाने से मिलती है।मेरा यह मानना है कि इस योग का प्रभाव व्यक्ति के लग्न और ग्रहों की स्थिति के अनुसार अलग-अलग होगा और उपाय भी. मुझ से बहुत मित्र उपाय पूछते रहते हैं. मैंने ऐसे उपाय कई बार लिखे हैं, जो सभी कर सकते हैं. पर कुछ उपाय कुंडली के अनुसार ही होते हैं. यह उसी प्रकार है कि हर एक को हल्दी, लहसुन खाने को कहना, या उस व्यक्ति कि प्रकृति इत्यादि जानकर उसके लिए उसको एकदम फिट बैठने वाली दवा यह योग अच्छा और वुरा दोनो तरह का फल देने वाला है। अता मित्रों आप अपनी कुंडली किसी अच्छे ज्योतिषी को दिखा कर ही उपाय करें अपने आप देखादेखी कोई उपाय  ना करें वरना लाभ के स्थानपर हानी हो सकती है् 
आचार्य राजेश

मंगलवार, 11 जनवरी 2022

चंद्र राहु युति(Moon Rahu Conjunction/ Grahan Yoga Effects


चंद्र राहु युति(Moon Rahu Conjunction/ Grahan Yoga Effects

मित्रों आज बात करते है चंद्रमा और राहु की पहले बात करते हैं चंद्रमा की चंद्रमा हमारे मन का कारक है माता का कारक है और यह हमारे शरीर में पोषण का कारक भी है जैसा कि आप जानते हैं हमार ओरा  सात रंगों में होता है यानी सभी ग्रह का कोई न कोई रंग है उसमें चंद्रमा को हम अगर देखे तो वह सफेद कलर का होगा और जब भी चंद्रमा के साथ राहु हो तो  राहू का रंग गहरा नीला  काला अव सफेद कलर पर अगर कोई काले रंग का गहरे नीले रंग का दाग लग जाए तो वह अपनी सफेद खोनो लग जाता है जैसे आप के कपड़ों पर कोई काले रंग का अभदा दाग लग जाए कोई गहरे नीले रंग का दाग लग जाए तो आपको कैसा  लगेगा यही चन्द्रमा और राहु की युति के कारण होता है यानी  चंद्रमा को राहु कें द्वारा दाग  राहु चंद्रमा को ग्रहण लगा देता है अभी  कुछ ज्योतिषी क्या करते हैं यदि कुंडली में किसी के राहु और चंद्रमा की युति हो तो वहां चंद्रमा के उपाय करवाने  शुरू कर देते हैं जैसे कि रुद्राभिषेक करवाना सफेद चीजों का दान करवाना  सोमवार के व्रत करवाना बिना सोचे-समझे उपाय  करवाए जाते हैं सिर्फ कुंडली में चंद्रमा और राहु की युति को देखकर जातक पहले से ही परेशान होता है सफेद चीजों को दान करवा कर चंद्रमा के दान करवा कर उसे और कमजोर कर दिया जाता है चंद्रमा जैसा मैंने कहा कि चंद्रमा का कलर सफेद होता है सफेद कलर और सफेद कलर जातक के शरीर में पहले से ही कम हो जाता है राहु के कारण और ऊपर से उसको चंद्रमा के दान करवाकर और भी कमजोर कर दिया जाता है यानी सफेद कलर को और भी शरीर से निकाल दिया जाता है जिससे जातक और भी परेशानी में हो जाता है यहा  लाल किताब में भी चंद्र छठे घर में हो तो वहां  छबील लगाना या जल का अधिक मात्रा में दान करना मना किया जाता है उस बात को लेकर कुछ मेरे ज्योतिष भाई समझ नहीं पाते  वह कहते है कि पानी पिलाना भी क्या कोई बुरा काम है यह तो पुण्य का काम है अब  छबील लगाना मना किया जाता है प्यासे को पानी पिलाना मना नहीं किया जाता पहले जब हम लोग छबीले लगाते तो उसमें पानी के साथ दूध और शरबत डाला जाता था फिर उसको पिलाया जाता था अभी हमारे पंजाब के अंदर  कुछ प्रांतों में यही प्रथा चलती है गर्मी के दिनों में यह छबीले लगाई जाती है तो लाल किताब में भी यह विज्ञान है छठा चंद्रमा बहुत कमजोर हो जाता है घर ६ तो आप जानते ही हैं कि किस चीजों का कारक होता है तो मित्रों  ज्योतिष एक विज्ञान है इसको समझ कर ही उपाय करने चाहिए या करवाने चाहिए ऐसा नहीं है कि यह युति है  है तों  हम लोग बिना सोचे समझे उपाय करवा कर जातक को और परेशानी में डाल दे आचार्य राजेश

रविवार, 9 जनवरी 2022

GrahGochar 2022: नए साल में होने वाले राशि परिवर्तन------------ ---


 मित्रोंआगे 2022 में पांच राज्यों

यूपी, पंजाब उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में चुनाव. पांचों राज्‍यों में अगले साल फरवरी मार्च में होगेंमेरी ज्योतिष गणना के हिसाब से पंजाब को छोड़ कर BJP जीत सकती है पंजाब में Aap का पलड़ा भारी रहेगा लेकिन सरकार किसकी बनेगी यह अभी कहना मुश्किल है उत्तर प्रदेश में 250 से ज्यादा सीट BJP लेकर जीतेगी कुलमिलाकर BJP का पलड़ा भारी रहेगा 


रविवार, 2 जनवरी 2022

राहु और शनि युति conjunctionक


राहु और शनि युति conjunction राहु और शनि दोनों यदि कुंडली में एक साथ आ जाएं, तो सबसे पहले शनि के रूप को समझना जरूरी है,शनि एक ठंडा अन्धेरा और ग्रह है,सिफ़्त कडक है,रूखा है,उसके अन्दर भावनाओं की कोई कद्र नही है,जिस भाव में होता है उस भाव के कामो कारकों और जीवों को जडता में रखता है,इसके अलावा शनि की सप्तम द्रिष्टि भी खतरनाक होती है,जहां जहां इसकी छाया अपना रूप देती है वहां वहां यह अपनी जडता को प्रस्तुत करता है। शनि की जडता की पहिचान वह अपने कामो से करवाता है और अपने पहिनावे और रहन सहन से भी करवाता है,इस पहिचान के लिये शनि की द्रिष्टि को तीसरे भाव से भी देखा जाता है। शनि का अपना परिवार भी होता है उस परिवार को यह अपनी पहिचान के अन्दर ही शामिल रखता है और उस परिवार में अधिकतर लोग कार्य वाली शिक्षाओं को करने वाले और लोहा मशीनरी आदि को काटने जोडने और कई तरह के रूप परिवर्तन वाले कामों को करने वाले होते है। शनि की नजर सप्तम में होने के कारण पत्नी या पति का स्वभाव तेज बोलने का होता है,वह कोई भी बात जोर से चिल्लाकर केवल इसलिये करता है या करती है कि शनि की सिफ़्त वाला व्यक्ति बहुत कम ही किसी की सुनता है और जो सुनता है उसे करने के अन्दर काफ़ी समय लगता है,कम सोचने की आदत होने से और कम बोलने की आदत होने से या गम्भीर बात करने के कारण या फ़ुसफ़ुसाकर बात करने की आदत के कारण चिल्लाकर बात सुनने के लिये जोर दिया जाता है। शनि की जो पैत्रिक पहिचान होती है वह कार्य करने के रूप में कार्य के करने वाले स्थान के रूप में उस स्थान पर जहां पानी की सुलभता कम होती है वहां रहने से भी मानी जाती है,
अधिकतर जब पानी की सुलभता कम होती है तो रहने और जीविकोपार्जन के साधन भी कम होते है,इसलिये शनि की सिफ़्त वाले व्यक्ति के पूर्वजों को या पिता को बाहर जाकर कमाने की जरूरत पडती है,शनि की सिफ़्त के अनुसार ही जातक कार्य करता है और जो भी कार्य करता है वह मेहनत वाले काम होते है।
राहु की आदत को समझने के लिये केवल छाया को समझना काफ़ी है। राहु अन्दरूनी शक्ति का कारक है,राहु सीमेन्ट के रूप में कठोर बनाने की शक्ति रखता है,राहु शिक्षा का बल देकर ज्ञान को बढाने और दिमागी शक्ति को प्रदान करने की शक्ति देता है,राहु बिजली के रूप में तार के अन्दर अद्रश्य रूप से चलकर भारी से भारी मशीनो को चलाने की हिम्मत रखता है,
राहु आसमान में बादलों के घर्षण से उत्पन्न अद्रश्य शक्ति को चकाचौन्ध के रूप में प्रस्तुत करने का कारक होता है,राहु जड या चेतन जो भी संसार में उपस्थित है और जिसकी छाया बनती है उसके अन्दर अपने अपने रूप में अद्रश्य रूप में उपस्थित होता है।शनि राहु को आपस में मिलाने पर अगर शनि पत्थर है और राहु शक्ति को मिलाकर उसे प्रयोग किया जायेगा तो सीमेन्ट का रूप ले लेता है,शनि में मंगल को मिलाया गया तो वह लिगनाइट नामक का पत्थर बनकर और उसके अन्दर लौह तत्व की अधिकता से जल्दी से जुडने वाला सीमेंट बन जाता है,राहु अगर लोहे के साथ मिल जाता है तो वह स्टील का रूप ले लेता है,लेकिन अलग अलग भावों के अनुसार राहु को समझना पडता है,एक भाव में वह हिम्मती बनाता है और कार्य करने की शक्ति को बढाकर बहुत अधिक बल देता है,लेकिन दूसरे भाव में जाकर वह धन और बल वाली शक्ति को प्रदान करना शुरु देता है,व्यक्ति के पास काम बहुत अधिक होता है लेकिन धन के रूप में वही मिल पाता है जो मुश्किल से पेट को भरा जा सके। शनि को कार्य के लिये माना जाता है और वह जब तीसरे भाव से सम्बन्ध बना लेता है तो फ़ोटोग्राफ़ी वाले कामो की तरफ़ अपना ध्यान देने लगता है,छठे भाव में जाने पर वह दवाइयों से सम्बन्धित काम करने लगता है,सप्तम में जाकर वह खतरनाक लोगों की संगति देने लगता है तथा अष्टम में जाकर शमशान के धुयें की तरफ़ से काम करने लगता है,नवे भाव मे जाकर वह धर्म और ज्योतिष के साथ यात्रा वाले काम और रेगिस्तानी काम करने के लिये भी अपनी शक्ति देता है। दसवे भाव मे दोनो की शक्ति राजकार्य के लिये माने जा सकते है और किसी भी अचानक कार्यों की उथल पुथल के लिये भी माना जा सकता है। ग्यारहवे भाव में शनि राहु अपनी सिफ़्त के अनुसार बडे भाई को या दोस्तों के कामों को करने के लिये भी अपनी रुचि देता है,बारहवें भाव में शनि राहु का रूप तंत्र मंत्र और ज्योतिष आदि में रुचि रखने वाला भी माना जाता है।
जीवन के चार आयाम माने जाते है,पहला धर्म का होता है दूसरा अर्थ का माना जाता है,तीसरा काम होता है और चौथा जो मुख्य होता है उसे मोक्ष की संज्ञा दी जाती है। शनि को इन चारों आयामों के अन्दर प्रकट करने के लिये अगर माना जाये तो धर्म में शनि का रूप कई प्रकार से अपनी मान्यता देगा। घर में माता पिता और घर के सदस्यों के प्रति निभाई गयीजिम्मेदारियों के प्रति शनि अपने कर्म को प्रकट करेगा,उनके आश्रय के लिये बनाये गये निवास स्थान और उनकी जीविका को चलाने के लिये दिये गये कार्य या व्यवसाय स्थान माने जा सकते है,परिवार के बाद समाज का रूप सामने आता है उसके अन्दर धर्म से शनि को प्रकट करने के लिये आने जाने के रास्ते बनवाना,अनाश्रित लोगों की सहायता करना,भूखो को भोजन देना और असहायों की दवाइयों आदि से मदद करना माना जायेगा,इसी प्रकार से जब राहु का मिश्रण धर्म के अन्दर मिलेगा,तो परिवार के लोगों के लिये शिक्षा का बन्दोबस्त करना,परिवार के लोगों के लिये कार्य शक्ति का विकास करना,जो भी वे कार्य करते है उन कार्यों के अन्दर अपनी शक्ति का समावेश करना आदि माना जायेगा। शनि राहु को धर्म में ले जाने और पूजा पाठ मे प्रवेश करवाने पर शनि राहु मन्दिर का रूप लेता है,शनि राहु की सिफ़्त को शेषनाग के रूप में भी प्रकट किया जाता है,यह शरीर और इसकी शक्ति को विकास करने में शनि राहु की महती भूमिका मानी जा सकती है,जैसे कि आत्मा को सुरक्षित रखने के लिये इस शरीर का शक्तिवान और कार्यशील होना भी जरूरी है,अगर शरीर असमर्थ होगा उसके अन्दर कार्य करने की शक्ति नही होगी तो जल्दी ही आत्मा शरीर से पलायन कर जायेगी और शरीर शव का रूप धारण कर नष्ट भ्रष्ट हो जायेगा। समुद्र के अन्दर शेष शय्या पर भगवान विष्णु को दिखाया जाना केवल शरीर के अन्दर आत्मा को सुरक्षित रखने का प्रयास ही माना जा सकता है,इस संसार रूपी समुद्र में शेषनाग रूपी शरीर में विष्णु रूपी आत्मा आराम कर रही है। लालकिताब में शनि के साथ राहु को शेषनाग की युति से विभूषित किया गया है,और बताया भी गया है कि जिस जातक की कुण्डली में यह योग होता है वह शेषनाग के फ़नों के अनुसार एक साथ कई दिशाओं में अपनी द्रिष्टि रखने वाला होता है। मेरे विचार से यह कथन बिलकुल सही है,आज के युग में हो या प्राचीन काल में जिस व्यक्ति की द्रिष्टि चारों तरफ़ गयी वही सभी स्थान से सफ़ल माना जा सकता है,लेकिन जो व्यक्ति एक ही दिशा या एक ही काम के अन्दर अपनी प्रोग्रेस चाहने की कामना में लगा रहा और उस काम या उस वस्तु का युग समाप्त होते ही वह बेकार हो गया और उसके लिये दूसरा रास्ता सामने आने में जितना समय लगा वह वक्त उसके लिये बहुत ही खराब माना जा सकता है। जिस जातक की कुंडली में यह योग होता है वह चारों दिशाओं में अपने दिमाग को ले जाने वाला होता है उसे एक दिशा से कभी संतुष्टि नही होती है। शनि राहु की युति को शेषनाग योग से विभूषित किया गया है।। जिस जातक की कुंडली में यह योग बारहवें भाव में होता है उसके लिये रक्षक भी संसार होता है। वह अक्सर इतना बडा तंत्री होता है कि वह अपनी निगाह से जमीन के नीचे से लेकर आसमान की ऊंचाई वाले कामों को भी कर सकता है और परख भी सकता है। शनि का निशाना अपने से तीसरे स्थान पर होता है राहु का निशाना भी अपने से तीसरे स्थान पर होता है,दोनो का निशाना एक ही प्रकार का होने से जो भी असर तीसरे स्थान पर होगा वह मशीनी गति से होगा,अचानक तो बहुत लाभ दिखाई देने लगेगा और अचानक ही हानि दिखाई देने लगेगी। शनि का रूप कार्य से माना जाये और राहु का रूप शक्ति से माना जाये तो कार्य के अन्दर अचानक शक्ति का विकास दिखाई देने लगेगा और कार्य के रूप में दिखाई देने वाला रूप कभी कभी धुयें की तरह उडता दिखाई देगा। बारहवें भाव में शनि और राहु के होने से आसमानी धुयें की तरह माना जासकता है,व्यक्ति के अन्दर अगर निर्माण के कार्य होंगे तो उसका कार्य उस क्षेत्र में होगा जहां पर फ़ैक्टरियों की चिमनियां होंगी,और आसमान में धुंआ दिखाई देगा। अगर यह युति बारहवें भाव में सिंह राशि में होगा तो जहां व्यक्ति का कार्य स्थान होगा वह किसी तरह से सरकार या राजनीतिक कारणों सेसम्बन्धित भी होगा। शनि राहु की बारहवें भाव से दूसरे भाव में द्रिष्टि होने से कार्य केवल धन और भौतिक वस्तुओं के निर्माण से सम्बन्धित होगा,उन्ही वस्तुओं का निर्माण किया जायेगा जिनसे धन को बनाया जा सके और व्यापारिक कारणों से माना जा सके,जो भी निर्माण किया जायेगा वह व्यापारिक संस्थानों को दिया जायेगा,खुद ही डायरेक्ट रूप से व्यापार नही किया जा सकेगा। धन के लिये व्यापारिक संस्थान ही अपना योगदान देंगे,बारहवें भाव मे स्थापित शनि और राहु की नजर में चौथी द्रिष्टि भी महत्वपूर्ण मानी जायेगी,कार्य का रूप और कार्य की सोच कार्य करने का स्थान कार्य करने वाले लोग कार्य के द्वारा प्राप्त किये गये उत्पादनों को रखने का स्थान,कार्य करने के बाद जो उत्पादन होगा उसका अन्त आखिर में क्या होगा इस बात के लिये शनि और राहु से चौथा भाव देखना बहुत जरूरी होता है। कुंडली के छ: आठ बारह और दूसरे भाव का गति चक्र अपने अनुसार चलता है। बारहवां भाव छठे भाव को देखता है,और दूसरा भाव आठवें को देखता है,वही गति छठे और आठवें की होती है। जैसे बिना कार्य किये मोक्ष यानी शांति नही मिलती है और बिना रिस्क लिये धन की प्राप्ति नही होती है। उसी तरह से बिना धन के रिस्क नही लिया जा सकता है और बिना शांति की आशा के कार्य नही किया जा सकता है,बारहवां भाव जरूरतों का होता है तो वह कार्य करने के लिये प्रेरित करता है,दूसरा भाव धन का होता है तो प्राप्त करने के लिये रिस्क लेने के लिये मजबूर करता है,जो जितनी बडी रिस्क लेता है उतना ही उसे फ़ायदा औरनुकसान होता है लेकिन छठे और बारहवें भाव को देखे बिना जो रिस्क लेते है वे या तो बहुत बडे नुकसान में जाते है या फ़िर बहुत बडे फ़ायदे में रहते है,लेकिन समान रूप से फ़ायदा लेने के लिये छठे और बारहवे भाव वाले कार्यों को करना भी जरूरी होता है। हर भाव की कडी एक दूसरे भाव से जुडी होती है,अक्सर शनि जो कलयुग का कारक है और राहु जो कलयुग के शक्ति को देने वाला है दोनो के अन्दर समाजस्य रखने के लिये अन्य ग्रहों की स्थिति और उन ग्रहों के अनुसार किये जाने वाले कार्य अपने अपने अनुसार फ़ल देने वाले होते है।

लाल का किताब के अनुसार मंगल शनि

मंगल शनि मिल गया तो - राहू उच्च हो जाता है -              यह व्यक्ति डाक्टर, नेता, आर्मी अफसर, इंजीनियर, हथियार व औजार की मदद से काम करने वा...