सोमवार, 29 जनवरी 2018

मित्रो आप मे से वहुँत से मित्रमुझे फोन पर ज्योतिष की कितावो के वारे मे पुछते है तो सोचा आज आप को कुछ अच्छी books की जानकारीदेदु जो आप के काम आऐ ऐसी books के बारे में जानकारी देने का प्रयास कर रहा हूं, जो किसी भी प्रशिक्षु ज्‍योतिषी एवं ज्योतिष में रूचि रखने वाले किसी भी प्राणी को अवश्‍य पढ़नी चाहिए। इन सभी पुस्‍तकों को मैंने बार बार पढ़ा है और आज भी पढ़ता रहता हूं। हर बार किसी नए कोण से कोई नई बात उभरकर सामने आती है। ऐसे में आप भी इन पुस्‍तकों को पढ़ें, तो इस क्षेत्र में अच्‍छा ज्ञान अर्जित कर सकते हैं। बहुत बार नए ज्‍योतिषियों के सामने यह समस्‍या होती है कि कौनसी पुस्‍तक पढ़ें और कौनसी छोड़ें। आज ज्‍योतिष के क्षेत्र में पुस्‍तकों के सैकड़ों टाइटल मिल जाएंगे, लेकिन सटीक रूप से कौनसी पुस्‍तक आपको जानकारी दे सकती है, इस जानकारी का अभाव है। ऐसे में मेरी लाइब्रेरी का यह विवरण आपके जरूर काम आ सकता है। फण्‍डामेंटल प्रिंसीपल ऑफ एस्‍ट्रोलॉजी – इस किताब का हिन्‍दी अनुवाद भी बाजार में आ चुका है। काटवे की देव विचार माला – इसमें सत्रह छोटी पॉकेट साइज पुस्‍तकें शामिल हैं। पहले यह आउट ऑफ प्रिंट हो गई थी अब इसका रीप्रिंट वर्जन बाजार में आ चुका है। लाल किताब (Lal Kitab)- लेखक पंडित रामचंद्र शास्‍त्री, कालका वाले। भवन भास्‍कर (Bhawan Bhaskar)- यह किताब आउट ऑफ प्रिंट हो चुकी है, किसी एक व्‍यक्ति के पास उपलब्‍ध हो तो वह अन्‍य पाठकों को फोटो प्रति करके उपलब्‍ध करा सकता है, पहले यह गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित होती थी। कुछ स्‍टॉलों पर अब भी मिल सकती है। (इस किताब का नया प्रिंट फिर से बाजार में आ चुका है। गीताप्रेस ने ही पुन: प्रकाशित किया है।) ज्‍योतिष रत्‍नाकर– देवीनन्‍दन सिंह की लिखी यह पुस्‍तक ज्‍योतिष आठ धाराओं में बांटकर सिखाती है। यह अपने आप में पूर्ण पुस्‍तक है लघु पाराशरी टीकाकार मेजर एसजी खोत – यह पुस्‍तक हर कहीं उपलब्‍ध नहीं है, लेकिन मिल सकती है, लघु पाराशरी सिद्धांतों को समझने के लिए यह अल्‍टीमेट पुस्‍तक है। फलित ज्‍योतिष रेडीरेकनर- शौकिया और प्रमाणिक ज्‍योतिष के पाठकों के लिए यह पुस्‍तक महल की बहुत अच्‍छी किताब है। इसे पढ़कर आप अपनी कुण्‍डली का फौरी तौर पर विश्‍लेषण कर सकते हैं। अच्‍छी बात यह है कि इस पुस्‍तक में नेगेटिव प्‍वाइंट बहुत कम हैं। एस्‍ट्रो सीक्रेट्स यह पुस्‍तक केवल अंग्रेजी में ही उपलब्‍ध है। अगर इसका कोई हिन्‍दी संस्‍करण आया भी है तो मुझे उसकी जानकारी नहीं है। मेरी सलाह है कि इसे अंग्रेजी में ही पढ़ा जाए तो बेहतर है। प्रोफेसर केएस कृष्‍णामूर्ति के शिष्‍य के. शबुंगम की लिखी यह पुस्‍तक केपी एस्‍ट्रोलॉजी को समझने की एक नई दिशा देती है। तीन सौ महत्‍वपूर्ण योग- योगायोगों के बारे में बीवी रमन ने अपनी खुद की सोच रखी और प्राचीन योगों में से भी तीन सौ ऐसे योग निकालकर उनका संग्रह पेश किया कि बहुत से जातकों की कुण्‍डली में ये योग मिल जाते हैं। इन योगों के फलादेश भी बहुत कुछ सटीक पड़ते हैं। इसे जरूर पढ़ना चाहिए। ज्योतिष की कुछ अन्य महत्वपूर्ण पुस्तकें (Astrology books की ऐक लिस्ट भारतीय ज्‍योतिष : नेमीचंद शास्‍त्री ज्‍योतिष रत्‍नाकर : देवकीनन्‍दन सिंह प्रिडिक्टिव स्‍टेलर एस्‍ट्रोलॉजी : केएस कृष्‍णामूर्ति काटवे सीरीज : देव विचार माला की सभी 17 किताबें अध्‍यात्‍म ज्‍योतिष : हेमवंता नेमासा काटवे योग विचार : हेमवंता नेमासा काटवे 300 महत्‍वपूर्ण योग : बीवी रमन भद्रबाहु संहिता : नेमीचंद्र शास्‍त्री मंत्र विद्या : करणीदान सेठिया लाल किताब : रामेश्‍वरचंद्र शास्‍त्री कालका वाले समरांगण सूत्रधार : भवन निवेश हॉरेरी एस्‍ट्रोलॉजी : केएस कृष्‍णामूर्ति कास्टिंग द होरोस्‍कोप : केएस कृष्‍णामूर्ति फलित ज्‍योतिष रेडीरेकनर : तिलक राज तिलक नवमांशा इन एस्‍ट्रोलॉजी : चंदूलाल एस पटेल उपचारीय ज्‍योतिष : के के पाठक सचित्र ज्‍योतिष शिक्षा : बाबूलाल ठाकुर भाग दो, चार, छह, आठ ज्‍योतिष कौमुदी बॉडी लैंग्‍वेज : एलन पीज द प्रोगेस्‍ड होरोस्‍कोप : एलन लियो जातक निर्णय : बीवी रमन नक्षत्र फल : के टी शुभाकरन दोनों भाग लघुपाराशरी : टीकाकार मेजर एसजी खोत न्‍यू टैक्‍नीक्‍स ऑफ प्रिंडिक्‍शन : एचआर शेषाद्री अय्यर भवन भास्‍कर : गीताप्रेस गोरखपुर भुवन दीपक : डॉ शुकदेव चतुर्वेदी गोचर विचार : जगन्‍नाथ भसीन वास्‍तुमुक्‍तावली : मास्‍टर खेलाड़ीलाल ज्‍योतिष बोध : पंडित धरणीधर शास्‍त्री प्रश्‍न चंद्रप्रकाश : चंद्रदत्‍त पंत हस्‍तरेखा विश्‍वकोष : हरिदत्‍त शर्मा मण्‍डेन एस्‍ट्रोलॉजी : मानिकचंद जैन राहू केतू : मानिकचंद जैन सत्‍य सिद्धांत ज्‍योतिष : प्रभुलाल शर्मा व्‍यापार रत्‍न : पंडित हरदेव शर्मा त्रिवेदी अर्घ मार्तण्‍ड : पंडित मुकुल वल्‍लभ मिश्र लघुपाराशरी एवं मध्‍य पाराशरी : पंडित केदारदत्‍त जोशी सर्वार्थ चिंतामणि : खेमराज श्रीकृष्‍णदास आकृति से रोग की पहचान : लुई कुने रमल नवरत्‍न : खेमराज श्रीकृष्‍णदास सुगम वैदिक ज्‍योतिष बुक ऑफ नक्षत्राज : प्राश त्रिवेदी सुनहरी किताब इसके साथ ही ज्‍योतिषियों को मोटीवेशनल मैनेजमेंट, साइकोलॉजी और स्‍वास्‍थ्‍य से संबंधित पुस्‍तकों का भी अध्‍ययन करना चाहिए।आचार्य राजेश

रविवार, 28 जनवरी 2018

राहु ओर रोग मे वाघा भाग _2

राहु एवं रोग निदान मेंवाघा भाग 2

देने वाला छायाग्रह है I अत: यदि रोगी क्री राहु की महादशा अंतर्दशा या प्रत्यन्तर्दशा  चल रही हो, तो उसके शरीार में विद्यमान राहु की adrishya Paraवैगनी किरणे  उनकें उपच्चार में बाधायें उत्पनकरती हैं, आरोग्य मे वाघा  कर घोर निराशा  उत्पन्न करती हैं, व  साघय रोग  को असघ्य कर देती हैं। Prakriti ke Niyam ke anusar कोइ  भी वस्तु जिस रंग की होती हैं वह उस रंग की इसलिए दिखाई पड़ती है क्योंकि वह  सवकिरणो कोअपने में सोख कर केवल उसी रंग को परावर्तित कर देती हे, जिस -रंग की वह दिखाई दे रही होती है t लाल रंग का गुलाब पुष्प हमे लाल रंग का इसलिये दिखाई देता है, क्योंकि वह अन्य सभी रंगों क्रो अवशोषित कर केवल लाल रंग क्रो बिकर्थित कर देता है । यह प्रकृति न्यूटन के नियम, ‘Similar poles repel each other.’ अर्थात् "समान घुव एक दूसरे को विकर्षिव्र करते है' पर आधारित है । अत: जब रोगी व्यक्ति का एक्स-रे किया जाता है, तो इस सिद्घान्त के आधार पर शरीर में पहले से ही मौजूद पराबैंगनी किरणे एक्स किरणों को विकर्षित कर देती हैं, और एक्स-रे की 'रिपोर्ट' साभान्य आती है, तथा रोगी की आंतरिक खराबी या तकलीफ का पता नही चलता, जबकि रोगी उस पीड़ा को भोग रहा होता है । इस्री प्रकार शरीर मे मोजूद पराबैगनी किरणे 'पेथोलॉंजिकल' जांचों को भी शरीर की आंतरिक गडबड्रियों क्रो उजागर नही करने देती, अत: ऐसी जांचों का परिणाम हमेशा 'नॉर्मल' अर्थात् सामान्य आता है । ऐसी स्थिति में व्यक्ति एक डॉक्टर से दूसरे डॉक्टर के पास तथा एक डायब्वनोस्टिक्र लेब से दूसरी डायज्जनौस्टिक लेब मे जाता रहता है, पर न तो उसके रोग का ही सही निदान हो पाता है, और न किसी प्रकार की औषधियों या उपचार पद्धतियों से उसके रोग का समापन ही हो पाता है  जब व्यक्ति चिकित्सा बिज्ञान क्रो आजमाकर निराश हो जाता है, तो वह मंत्र-तंत्र अथवा ज्योतिष जैसे विज्ञानों की मदद लेता है । मंत्र-तंत्र विशेषज्ञ द्धारा मंत्र के निरन्तर जप से उत्पन्न मंत्रशक्तिमय किरणे और ब्रह्माण्ड से प्राप्त पराबैगनी किरणे, दोनो चूंकि एक ही तरंगन्देर्ध्व पर काम करती हैं, अत: पराबैगनी किरणे मंत्ररश्मियो क्रो भी रोक देती है, और मंत्र-तंत्र चिकित्सा से भी कोई बिशेष लाभ नहीं होता । मंत्ररस्मियां शरीर में
उपस्थित पराबैगनी किरणों से टकराती हैं, और समाप्त हो जाती है । ऐसे समय मे पीडित व्यक्ति ज्योतिषी देवज्ञ से परामर्श करता है जीवन मेंराहु की अन्तर्दशा पहले आती है, उसके बाद ही वृहस्पति (गुरु) की दशा का आगमन होता हे I राहु के समय के दौरान व्यक्ति धोखेबाजी और जालसाजी के ही संपर्क में आ पाता है, चाहे वे मंत्र-तंत्र. चिकित्सा, ज्योतिष किसी भी क्षेत्र से संबंधित हो । और इस प्रकार व्यक्ति का समय व धन बर्बाद ही होता है
यद्यपि वह निराश हो चुका होता है, लेकिन समाधान की प्रबल आवश्यकता उसे एक के बाद दूसरा दरवाजा खटखटाने को बाध्य कर देती है I जब तक राहु का समय चल रहा होता है, तब तक वह लगातार यहां से वहां और इधर से उधर भटकता रहता है I इस समय के दौरान यदि यह किसी अच्छे ज्योतिषीके संपर्क में आ  भी जाता है, जो पराबैगनी किरणों का अवरोधक प्रभाव उपाय के द्वारा उसकी जन्मकुषडली का भलीभांति विश्लेषण करने  के वाद उसकी समस्या का समाधान कर सकता हो परन्तु राहु उसे सही ज्योतिषी से परामर्श लेने नहीं देता और वह गलत ज्योतिषीय निदान कर बैठता हे I ऐसे समय में  उदाहरण के लिये यदि  ईराक-अमेरिका युद्ध को देखें, तो हमे ज्ञात होगा कि जब 'स्कड' (Skud) नामक 'मिसाइल‘ या आग्नेयास्त्र चलाया जात्ता था, तो उसे 'पैट्रियांट' (Patriot) नामक आग्नेयास्त्र मारकर गिरा देता था । इसी प्रकार का विवरण रामायण, महाभारत व हमारे अन्य पौराणिक ग्रंथों में भी है, जिसमे जब एक ओर से एक विनाशकारी वाण चलाया जाता था, तो उसे दूसरी ओर से एक विध्वंसक विपरीत वाण संधान द्वारा नष्ट कर दिया जाता था । एक प्रकार से देखा जाये, तो वर्तमान युग की मिसाइलें हमारी प्राचीन मिसाइलों (बाणों) का ही आधुनिक संस्करण है I
यदि मंत्ररश्मियों क्रो 'स्कड' मिसाइल मान ले, तो राहु रश्मियां ‘पैट्रियॉट' का काम करती हे I यही कारण है, कि राहु की अन्तर्दशा या प्रत्यन्तर्दशा में मंत्र-तंत्र का लाभ प्रतीत नहीं होता । वास्तव पे मंत्र तो अपना ज्योतिष विद्या उपायों फे बिना उसी प्रकार है, जिस प्रकार आत्मा के बिना शरीर । महर्षि पराशर ने उपायों पर बहुत अधिक बल दिया है । उन्होंने जो उपाय सुझाये, उनमें जरूरत्तमन्दो व याचकों को भोजन कराना, रत्न पहनना, यंत्र धारण करना, ग्रह विशेष के तांत्रोक्त मंत्र का जप करना व औषधीय ज़ड्रीडबूटियों से स्नान करना इत्यादि उपाय शामिल हैं I इन सभी का विस्तृत विवेचन किया है लाल किताब के अनुसार भी उपाय भी प्रभाव शाली है दान के पीछे तर्क यह है, कि इससे रोग क्रो आरोग्य न होने के लिये जिम्मेदार किरणों को विकर्षित किया जा सकता है तथा पीडित व्यक्ति को लाभ पहुंचाया जा सकता है ।हमारे महर्षिगण, जो उच्चकोटि के वैज्ञानिक थे, उन्होंने विभिन्न तरंगदेथ्यों के प्रभाव का अध्ययन किया, और उसी आधार पर विभिन्न वस्तुओं की तरंगदेर्ध्व के निर्धारण मेँ समर्थ हुए तथा उन्होंने ऐप्ती विशिष्ट वस्तुओ का ही वितरण जरूरत्तमन्दो में करने का परामर्श दिया a दान की इस प्नब्रिज्या का दोहरा लाभ होता है
अर्थात् व्यक्ति पेट की क्षुधा को शांत करने के लिये कौन सा पाप नहीं कर सकता? अत: एक और भूखे व जरूरतमंद लोगों को भोजन कराकर, जहां व्यक्ति उन्हें चोरी, डकैती, हिंसा, छोना-झपटी, लूटमार व अन्य आपराधिक कृत्यों को करने से बचा सकता है, वही दूसरी ओर दान प्राप्त करने वाले की आत्मा का अवचेतन भाग, निश्चित रूप से दानी व्यक्ति को आशीर्वाद देता है, और उसकी तक्लीफ या पीडा कम होने जातीहै
अपने पास से पैसा निकालकर दूसरों पर खर्च करना बहुत मुश्किल है, परन्तु ऐसा करने वाला सदैव सुखी जीवन भोगता है लोक ओर परलोक के सुख पाता है
इस तथ्य पर पिछले लेखों  में पर्याप्त प्रकाश डाला जा चुका है कि राहु की किरणे अदृश्य होतो हैं I वे मानवजाति को गुप्त रूप से प्रभावित करती हैं । अत: जब व्यक्ति की राहु की दशा या अन्तर्दशा या प्रत्यन्तर्दशा चल रही होती  है, तब परावैगनी किरणे शरीर में विद्यमान होतो हैं I यदि व्यक्ति इस समय दोरान किसी रोग से पीडित होता है, तो शरीर में पहले से विद्यमान राहु की किरणे  में न तो दवाई क्रो काम करने देती हैं, और न ही रोगी को ऊन्य किसी "उपचार से ठीक होने देती हैं I शनि से संबंधित चर्चा के अन्तर्गत यह जा चुका है, किं रुनि विलम्ब का ग्रह है, रुकावट का ग्रह है,  और राहु के लिये "शनिवत राहु  राहु 'सूत्र का प्रयोग किया गया है , कि राहु शनि की भांति कार्य करता है । परन्तु राहु किरनें (परावैगनी किरणे) शनि की किरणों से ना केवल ज्यादा ताकतवर हें,ओर  अदुश्व भी हें, अत: यदि शनि विलम्ब का कारक हैं, तो उससे भी अदिक विलम्ब का कारक है जो अपनी अद्श्य प्रकृतिक्श  विलम्व के कारण रोग  का कारण भी पता  चलने नही देता  यदि शनि रुकावट का कारक है, तो राहु उ्स्से भी अघिक शक्तिशाली तथा अदृश्य वाघा का  जनक है यद्यपि शनि निराशा का ग्रह है, तो राहु घोर निराशा को  चरमशिखर घर पहुंचा

शनिवार, 27 जनवरी 2018

पेट रोग ओर ज्योतिष मे उपाय

मित्रों आज एक कुंडली पर चर्चा करते हैयदि जातक बचपन से रोगी हो जाये, तो यह उसके पूर्व जन्म का ही
फल होता हैं मनुष्य बुरे कर्म जानकर या अनजाने में करता है "बोया प्रैड़ बबूल का आम कहौं से खाये ।" फिर उसका नया ज़न्म होता है संसार मे जन्म लेकर आते ही रोग उसे दबोच लेते हैं l ऐसो ही यह कहानी है I लग्न में मंगल स्थित है । मंगल अष्टमेश है । खरबूजा चाकू पर गिरे श चाकू खरबूजे पर, कटता खरबूजा ही है । यहां चाकू (अष्टमेश) लग्न ने हैं; वक्री शनि, जो पंचमेश है, वह पंचम भाव, जो पेट का होता है, उसमे रोग होने का संकेत करता है i केतु 4-25 की दूष्टि सूर्य 3-50, बुध  व शुक्र 3-52 धर है राहु क्री दृष्टि पंचमेश शनि तथा चन्द्रमा पर है t नवांश में केतु सूर्य व शुक्र के साथ हैं राहु चन्द्र तथा बुध के साथ है  इस कारण इसका बचपन से पेट ख्याल रहता  राहु की विशेष कृपा कै कारण हमेशा पेट की पीड़ा कै क्या उससे प्तम्बन्धित दवायें खानी पडती हैं I इस प्रकार गत 10 वर्षो से पेट की पीडा जाने का नाम ही नहीं ले रही  सभी  औषधियों के सेवन से
तंग आकर इसका परिवार ंमिला  तब उन्हें ये उपाय  वता दिया गया
200 पूडियां तथा आलू की सब्जी प्रति सप्ताह गरीबो क्रो दान करें । ओर 2 किलो सूजी का हलवा प्रति सप्ताह बांटे। 3.100 मौसमी प्रति सप्ताह दान करे ।  कुछ और  उपाय करवाये
इसके अतिरिक्त भोजन में उन्हें पपीता खाने का परामर्श दिया गया
साथ ही हवन यज विशेष ओषघ युक्त  सामग्री से  करने के लिए कहा गया  जैसे ही पूर्व जन्म के ऋण क्री वापसी हो गई यह वच्चा बिना औषधि के दो मास मेँ स्वस्थ हो गया

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गुरुवार, 25 जनवरी 2018

राहु ओर रोग

: राहु एक छाया ग्रह है,जिसे चन्द्रमा का उत्तरी ध्रुव भी कहा जाता है,इस छाया ग्रह के कारण अन्य ग्रहों से आने वाली रश्मियां पृथ्वी पर नही आ पाती है,और जिस ग्रह की रश्मियां पृथ्वी पर नही आ पाती हैं,उनके अभाव में पृथ्वी पर तरह के उत्पात होने चालू हो जाते है,यह छाया ग्रह चिंता का कारक ग्रह कहा जाता है इस तरह राहु रोग निर्धारण मे वाघ खड़ी करता हैयह अदृश्य ग्रह है  इस के कारण ही इसे ‘मूत-पिशाच, गुप्त भेद, गुप्त मन्त्रणा, धोखेबाजी आदि का कारक माना जात्ता है I यह पेट के कीडों का भी कारक है विद्युत तरंगें तथा वायुमण्डल की अन्य तरंगें दृष्टिगोचर नहीं होती  तथापि उनका प्रभाव सर्वविदित है t अदृश्य तरंगो द्वारा किसी भी व्यथित के शरीर के भीतर विद्यमान रोग का पता चलाना आज आम वात  हो गयी है  यदि हम सूर्य किरणों की ओर ध्यान दे, तो दो किरणे, जो दृष्टिगोचर नहीं ढोती, उनका प्रभाव काफी समय से सिद्ध किया जा चुका है  तूर्य की साक्ष किरणों और आकाशीय ग्रहों का परस्पर क्यद्ध सम्बन्थ है और इस रहस्यमय ज्ञान से कैसे लाभ उठाया जा सकता है
हिंन्दू धर्म के अनुसार सूर्य के रथ में सात घोड़े हैं  इन्हीं सात घोडों पर अन्वेषण न्यूटन ने अपनी पुस्तक में किया और नोवल पुरस्कार प्राप्त किया । न्यूटन के अनुसार यदि हम सूर्य प्रकाश के स्पैवट्रम की और ध्यान दें, तो दो रंग, अवरक्त तथा पराबैगनी, अदृश्य होने के कारण नहीं देखे जा सकते किन्तु अवरक्त फोटोग्राफी तथा अदृश्य किरणों द्वारा व्यक्ति के शरीर के भीतरी मार्गों का फोटो लेना इन्हीं किरणो द्वारा सम्भव हे i सूर्य-किरण पद्धति के अनुसार, जो मी वस्तु जिस रंग की होती है; वह अन्य रंगीं को अपने मे सोख लेती है, लेकिन उस  रंग क्रो वापस करती है, जिस रंग की वह होती है l वह रंग हमारी ओर जाता है और हम उस
वस्तु का वही रंग मानते हैं  इस प्रणग्लो का ध्यान रखने हुए,किरणो का अध्ययन करे तो जब व्यक्ति की राहु की  कैतु की दशअन्तर दशा -प्रयन्तरदशा चल रही हो तो उस समय उस्नकै शरीर में राहु या कैतु की अट्टश्य किरणे पेहले सै ही ऐविद्यमान होती हैं, तथा  क्षरश्मि (X-I'ays) की अट्टश्य किरणों की वापिस कर देती हैं I अता  क्षरशि्म द्वारा खींचा क्या फोटो शरीर कै अन्दर‘की ठीक वस्तुस्थिति क्रो नहीं बता पाता और हमारी चिकित्सा प्रणाली कहती  है कि क्षरिश्म द्वारा प्राप्त फोटो में सभी कुछ ठीक है I लेकिन यदि सभी कुछ सामान्य है, तो फिर… व्यक्ति रुग्ग क्यों? यही स्थिति अन्य परीक्षणों की भी  होती है I अत यदि राहु  कैतु की अन्तर्दशा  प्रत्यन्तर्दशा चल  रही हो, तो उस समय सभी परीक्षण सही वस्तुस्थिति नहीं दर्शाते, और व्यक्ति कै रोग का निदान नहीं हो पाता ऐसी अवस्था में
ऐसै समय में न तो मन्त्र ही प्रभाक्शाली होते हैं, और न किसी भी दिव्यात्मा कै द्वारा दिया क्या आशीर्वाद ही काम करता है यांदे वह व्यक्ति स्वयं ही दिव्यात्मा हो, तो उसका दिया हुआ शाप भी काम नहीं करता है राहु की दशा में मंत्र जप भी निष्कलं अनुभव होता है । ऐसा क्यो होता है ? ऐसा इसलिए होता हैं, कि जब मन्त्र का जप करते है, तो उस समय मन्त्र ध्वनि से विशेष किरणे बनती हैं, और वे कार्य सिद्धि के लिए
आगे बढती हैं, लेकिन वे किरणे राहु की किरणों से टकराती हैं ओंर
निष्किथ ही जाती हैं I राहु की अन्तर्दशा में यह होता रहता है, और उस
समय उपाय का लाभ इसीलिए प्रतीत नहीं होता है  वास्तव में मन्त्र तो .
राहु एवं रोग निर्धारण में त्रुटि अपना कार्य कर ही रहा होता है  मन्त्र जप न करने क्री स्थिति मे जो और भी हानि होती, उसका सही अनुमान लगाना सम्भव नहीं हो पाता 1968 मेँ गैस्टन और मेनाकर ने एक निबन्ध प्रकाशित किया, जिसमे उन्होंने पीनियल ग्रंथि को फोटोरिसेप्टर (प्रकाश संवेदी केन्द्र) के रूप में सिद्ध किया  यह खोज मानवीय मस्तिष्क में पीनियल नामक महत्त्वपूर्ण ग्रंथि के बिषय में थी  पीनियल ग्रंथि का प्रकाश से सम्बन्ध हैं 1 बिकान्सिन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक एचएस. स्सीडर ने अपने अनुसंधान के द्वारा बताया, कि रोशनी का पीनियल पर प्रभाव पड़ता है  पीनियल ग्रंथि से एक हॉर्मोन निकलता है, जो सिरोटोनिन कहलाता हे  मन्द और शीतल प्रकाश में खाव की मात्रा अधिक होती हे  इसी कारण गीता में कहा गया हैं -या निशा सर्वभूतानामू त्तस्याम जाग्रति संयमी' ' -अर्थात् जिस समय संसार सो रखा होगा  उस रात्रि के समय में योगी पुरुष जागते रहते है और साधना में संलग्न रहते हैं I क्योकि अरात्रि मे क्री गई उपासना मे सिंरोटोनिन का स्राव अथिक होता है, और योगी पुरुष रात्रि क्रो ही उपासना करतेहै  तीत्मा प्रकाश में इस रस का स्राव कम हो जाता है . जिस प्रकार माचिस की तीली में अग्नि रहती है, लेकिन रगढ़ने पर ही वह प्राप्त होती हे I इस्री प्रकार पीनियल ग्रंथि में दिव्य शक्तियां हैं, लेकिन अंधकार में अभ्यास से ही वे प्राप्त हो सकती हैं ।
परोक्ष दर्शन क्री यह प्रक्रिया एक्स और गामा किरणों की तरह होती है I 'एक्स-किरण जिस प्रकार शरीर की भीतरी संरचना तथा गामा किरण  इस्पप्ल जेसी कठोर वस्तु की आन्तरिक बनावट का भी भेद खोल देती हैं, इसी प्रकार पीनियल ग्रथि को रश्मियों के माध्यम से सामने बैठे व्यक्ति के बिषय मे कुछ भी बताया जा सकता है I वृक्षों में भी सिरोटोनिन से मिलतान्तुलता एक स्राव 'मिलटोनिन' पाया जाता हैं  यह हार्मोन क्ले, पीपल तथा बरगद जैसे पेडों मे स्वाभाविक मात्रा मे माया जाता है ।इस लिए धार्मिक कार्यो तथा विवाह के समय क्ले के तने और पत्तों का प्राय: प्रयोग किया जाता था I पीपल के वृक्ष को मी इसीलिए पवित्र मानते हैं । गीता में श्रीकृष्ण ने पैडो मे स्वयं क्रो अश्वत्थ्व(पीफ्त) बताया है I स्मरण रहे, कि पीनियल ग्रंथि आज्ञा चक्र के घास होती है I आज इतना ही वाकी अगले लेख में आचार्य राजेश


शनिवार, 20 जनवरी 2018

वात ज्योतिष की

भारतीय वैदिक ज्योतिष मूलरूप से नक्षत्र आधारित है कारण जब बालक का जन्म होता है तो सर्वप्रथम नक्षत्र के आधार पर उसके शुभ अशुभ का ज्ञान किया जाता ही फिर उसके अन्य संश्कारो के निर्धारण के लिए नक्षत्र के आधार पर ही मुहूर्त देखा जाता है कहा जाता है कि ग्रह से बडा नक्षत्र होता है और नक्षत्र से भी बडा नक्षत्र का चरण जब विवाह कि बात आती है तो वर बधू का मेलापक भी नक्षत्र के आधार पर ही किया जाता है जब भी किसी शुभ कार्य के लिए मुहूर्त का निर्धारण करना होता है तब भी नक्षत्रों को ही प्राथमिकता प्रदान की जाती है कुंडली में भविष्य के फलादेश के लिए भी सर्वाधिक प्रयोग की जाने वाली विंशोत्तरी दशा का निर्धारण भी नक्षत्रों के आधार पर ही होता है  फिर फलादेश के लिए नक्षत्रों का प्रयोग क्यों नहीं !तिष जगत में आज नक्षत्रों का चलन सिर्फ मुहूर्त निर्धारण तक ही सीमित हो गया है, ज्योतिषी राशियों के आधार पर ही फलादेश कर रहे है नतीजा फ़लादेश असफल हो रहे हैंज्‍योतिष की किताबों में आपको ग्रहों, राशियों और भावों के बारे में विस्‍तार से जानकारी मिल जाएगी। इससे अधिक देखने पर हम पाते हैं कि राशियों को नक्षत्रों के अनुसार विशिष्‍टता दी गई है। चंद्रमा भी नक्षत्रों पर से गुजरते हुए हमें रोज के बदलावों की जानकारी देता है। ज्‍योतिष की प्राचीन और नई पुस्‍तकों में यह तो दिया गया है कि अमुक नक्षत्र में चंद्रमा के विचरण का फलां फल है, लेकिन कहीं यह नहीं बताया गया है कि नक्षत्र का नैसर्गिक स्‍वभाव क्‍या है या उस पर किसी ग्रह के स्‍वामित्‍व का वास्‍तविक अर्थ क्‍या है।
पाराशर ऋषि ने नक्षत्र चार के आधार पर ही दशाओं का विभाजन किया लेकिन नक्षत्रों के बारे में विस्‍तार से जानकारी नहीं दी। इसी तरह प्रोफेसर केएस कृष्‍णामूर्ति ने केवल चंद्रमा के नक्षत्र चार से बाहर आकर हर भाव और ग्रह के नक्षत्रों तक उतरकर विशद् विश्‍लेषण पेश किया, लेकिन उन्‍होंने ने भी कहीं नक्षत्रों की निजी विशिष्‍टताओं के बारे में स्‍पष्‍ट नहीं किया गया है। जबकि वृहत्त संहिता और दूसरी एकाध प्राचीन पुस्‍तक में नक्षत्रों के स्‍वरूप का वर्णन तक मिलता है। इन नक्षत्रों के स्‍वरूप के आधार पर ही उनके गुण भी बताए गए हैं। जब नक्षत्र के बारे में इतनी सटीक जानकारी उपलब्‍ध है तो उनके निजी या एकांगिक गुणों के बारे में कहीं स्‍पष्‍ट नहीं किया जाना कुछ खल जाता है। नक्षत्रों में विचरण को दौरान अगर चंद्रमा के स्‍वभाव में नियमित रूप से परिवर्तन आता है तो क्‍या अन्‍य ग्रहों पर भी ऐसे प्रभाव का अध्‍ययन जरूरी नहीं है।पहले पता करते हैं कि नक्षत्र हैं क्‍या?
हमने देखा कि बारह राशियां भचक्र के 360 डिग्री को बराबर भागों में बांटती हैं। इस तरह आकाश के हमने बारह बराबर टुकड़े कर दिए। तारों का एक समूह मिलकर नक्षत्र बनाता है। ऐसे सत्‍ताईस नक्षत्रों की पहचान की गई है। इससे आ खाकाश को बराबर भागों में बांटा गया है। हर नक्षत्र के हिस्‍से में आकाश का 13 डिग्री 20 मिनट भाग आता है। जब हम चंद्रमा के दैनिक गति की बात करते हैं कि इसमें नक्षत्रों की विशेष भूमिका होती है। राशि वही हो और नक्षत्र बदल जाए तो चंद्रमा का स्‍वभाव भी बदल जाता है। इसी तरह हर ग्रह के स्‍वभाव में भी नक्षत्र चार के दौरान बदलाव आता है। चूंकि नक्षत्रों का स्‍वामित्‍व ग्रहों को ही दिया गया है। ऐसे में स्‍वभाव में परिवर्तन भी ग्रहों के अनुसार ही मान लिया जाता है। जबकि हकीकत में यह नक्षत्र की नैसर्गिक प्रवृत्ति के अनुसार होना चाहिए।अव आप देख सकते हैं राशि फल कहा सही वैठता है


शनिवार, 6 जनवरी 2018

सैकड़ों ज्योतिष के बीच योग्य ज्योतिष को पहचानेंगे कैसे ?

सैकड़ों ज्योतिष के बीच योग्य ज्योतिष को पहचानेंगे कैसे ?सबसे पहले तो आप यह मानना बंद कर दें कि टीवी पर आधे-आधे घंटे का प्रोग्राम देने वाला या ग्लैमरस स्टूडियो में इंटरव्यू देने वाला सभी ज्योतिष ज्योतिषीय ज्ञान से समृद्ध हैं। इनमें से कुछ सही हो सकते हैं तो कुछ गलत भी। इसलिए ग्लैमरस टीवी स्क्रिन पर दिखने वाले या प्राचरित होने वाले सभी ज्योतिषों पर भरोसा न करें। उसी ज्योतिष के पास जायें जिनकों आप पहले से जानते हैं या पहले परख चुके हैं, अथवा आपके किसी परिचित, मित्र या रिश्तेदारों ने जिन्हें आजमा रखा है। जिस ज्योतिष से आपको या आपके परिचितों और रिश्तेदारों को पहले लाभ मिल चुका है।
उस ज्योतिष पर आप आंख मूंदकर कभी भरोसा न करें जो आपके कुंडली वांचते हुए यह कह रहा हो कि पहले आपके साथ ऐसा होना चाहिए था या यह कहे कि आपके साथ पहले ऐसा हुआ होगा। ज्ञान से समृद्ध और जानकर ज्योतिष स्पष्ट शब्दों में आपके भूत काल की विवेचना करते हुए कहेगा कि आपके साथ ऐसा ही हुआ होगा। ध्यान रहे योग्य ज्योतिष के लिए अगर-मगर किन्तु-परंतु की कोई जगह नहीं होती। पहले और भविष्य की घटनाओं को वह पूरे आत्मविश्वास के साथ कनफर्म करता है। द्विअर्थो संवाद में भविष्य वाचने वाले और आपको ही कन्फ्यूज करने वाले ज्योतिष से आप सावधान रहें। जरा सा भी संदेह होने पर पहले अपनी गलत कुंडली की विवेचना करावें। जो कुंडली आपकी नहीं हो उसे अपनी कुंडली बताकर ज्योतिष महोदय के सामने प्रस्तुत करें। अगर वह वाकई सही और ज्ञानी ज्योतिष हैं तो कुंडली वाचने के पहले ही एक या दो सवाल कर आपकी कुंडली जांच कर उसे गलत करार देंगे और आपकी सही कुंडली बना देंगे या आपको सही कुंडली लाने की सलाह देंगे।दरअसल आपकी सही कुंडली देखते ही कोई भी योग्य ज्योतिष आपका ‘नेचर और फीचर’ बड़ी आसानी से तुरंत बता सकता है। यहां तक की आपकी लंबाई, आपका रंग आपके चेहरे की बनावट के बारे में भी आपकी कुंडली देख कमोवेश सही-सही बताया जा सकता है। अगर कोई ज्योतिष आपकी कुंडली चेक किये बिना या कनफर्म किये बिना भी फलित की विवेचना करता है या उपाये बताता है या उपाये के नाम पर पैसा वसूली की कोशिश करता है तो भी आपको सावधान होने की जरूरत है।
अगर आप ज्योतिषीय सलाह ले रहें हैं या कुंडली की विवेचना करवां रहे हैं तो आप ज्योतिषीय उपाये कहीं भी करने या कराने के लिए स्वतंत्र हैं। याद रहे ज्योतिषीय ज्ञान एक अलग चीज है और उपाय के लिए कर्मकांड एक अलग चीज। दोनों में विशेषज्ञता हासिल करना एक टेढ़ी खीर है। इसलिए कोई एक व्यक्ति दोनों में विशेषज्ञ हो यह जरूरी नहीं है हां, कोई-कोई महापुरुष ऐसे हो सकते हैं।
आज ज्योतिषों की भीड़ में ठगे जाने की आशंका ज्यादा बढ़ गई है। इसलिए जरूरी है कि आप परख कर ही किसी से ज्योतिषीय सलाह लें। नहीं तो अच्छा होने की जगह बुरा भी हो सकता है

सोमवार, 1 जनवरी 2018

नमस्कार करना हमारी संस्कृति का प्रतीक है, हिंदुस्तानियों की पहचान बना 'नमस्कार' केवल एक परंपरा ही नहीं बल्कि इसके कई भौतिक और वैज्ञानिक फायदे हैं।जिनके बारे में आप में से बहुत कम लोग जानते होंगे।हमारे देश ने नमस्कार का अद्भुत ढंग निकाला।‍ दुनिया मैं वैसा कहीं भी नहीं है। भारत देश ने कुछ दान दिया है मनुष्‍य की चेतना को, अपूर्व। यह देश अकेला है जब दो व्‍यक्ति नमस्‍कार करते है, तो दो काम करते है। एक तो दोनों हाथ जोड़ते है। दो हाथ जोड़ने का मतलब होता है: दो नहीं एक। दो हाथ दुई के प्रतीक है, द्वैत के प्रतीक है। उन दोनों को हाथ जोड़ने का मतलब होता है, दो नहीं एक है। उस एक का ही स्‍मरण दिलाने के लिए।हाथों को अनाहत चक पर रखा जाता है, आँखें बंद की जाती हैं और सिर को झुकाया जाता दोनों हाथों को जोड़ कर नमस्‍कार करते है। और, दोनों को जोड़ कर जो शब्‍द उपयोग करते है। वह परमात्‍मा का स्‍मरण होता है। कहते है: राम-राम, जयराम, या कुछ भी, लेकिन वह परमात्‍मा का नाम होता है। दो को जोड़ा कि परमात्‍मा का नाम उठा। दुई गई कि परमात्‍मा आया। दो हाथ जुड़े और एक हुए कि फिर बचा क्‍या: हे राम।

लाल का किताब के अनुसार मंगल शनि

मंगल शनि मिल गया तो - राहू उच्च हो जाता है -              यह व्यक्ति डाक्टर, नेता, आर्मी अफसर, इंजीनियर, हथियार व औजार की मदद से काम करने वा...