शुक्रवार, 26 मार्च 2021

उच्च के ग्रह


्उच्च के ग्रह ््
सूर्य
सूर्य यानी पिता जिसने जीवन दिया। लग्न में उच्च का कर दिया।
           चन्द्रमा

फिर चन्द्रमा माता। द्वितीय भाव भोजन, परिवार। हो गया यहां उच्च का।

             राहु
फिर तीसरा भाव राहु भाई शारीरिक ग्रोथ, भावनाएं। सब कुछ बढ़ने लगी। हो गया राहु उच्च का।

              गुरु
फिर आये गुरु महाराज ज्ञान देने को चतुर्थ में। समझदारी, विवेक, विद्या। हो गए चतुर्थ में उच्च के।
            बुध      

अब बुध बाबू प्रतियोगिता में। हर चीज में प्रथम आने की चाह। हो गए बुध बाबू यहां उच्च के।
              शनि

अब आये शनि महाराज जिंदगी को बैलेंस करने के लिए। सप्तम में उच्च के। सोचने के लिए की क्या करना है जिंदगी में आगे।
             केतु

फिर केतु महाराज ने नवम में धर्म, उच्च कोटि की बुद्धि दे दी कि अब जीवन जी लिया आगे का क्या सोचा है।


मंगल
दसम में तो मंगल महावीर ने दिखा दिया अपने पराक्रम का दम उच्च का होक की कर्म किये जा फल की चिंता मत कर।

            शुक्र
ओर सबसे अंत मे नंबर आया शुक्र का की बहुत भोग, भोग लिया अब निर्वाण की तैयारी करो।




शनिवार, 20 मार्च 2021

देव गुरु बृहस्पति ग्रह का गोचर 2021की पुरी जानकारी

www.acharyarajesh.in
देवगुरु बृहस्पति अपनी नीच राशि मकर की यात्रा समाप्त करके 05 अप्रैल 2021 की मध्यरात्रि कुंभ राशि में प्रवेश कर रहे हैं। इस राशि पर 13 सितंबर तक रहने के बाद वक्री अवस्था में पुनः मकर राशि में प्रवेश कर जाएंगे, जहां 20 नवंबर 2021 तक रहेंगे। उसके बाद पुनः मार्गी अवस्था में कुंभ राशि में प्रवेश कर जाएंगे। इनके राशि परिवर्तन का प्रभाव सभी प्राणियों के कार्य-व्यापार में हानि-लाभ के अतिरिक्त शासन सत्ता और न्यायिक प्रक्रिया को भी प्रभावित करता है।तुलसीदास जी ने एक चौपाई रामचरितमानस में लिखी है -"धर्म से विरति योग से ग्याना,ग्यान मोक्ष प्रद वेद बखाना",अर्थात जब व्यक्ति अपने को न्याय समाज जलवायु और मर्यादा में लेकर चलने लगता है तो उसके सामने हजारों कारण व्यस्त रहने के बन जाते है,जब वह अपने को कारण रूप से बने कार्यों के अन्दर व्यस्त कर लेता है तो वह एक योगी की भांति अपने जीवन को चलाने लगता है। उसे केवल भोजन अगर समय से मिल जाये तो ठीक है नही मिलता है तो ठीक है वह अपने को कार्यों में हमेशा ही लगाकर रखता है। कार्य की अधिकता के कारण और अपने शरीर को शरीर नही समझने पर इस प्रकार के जातक को एक योगी की भांति ही माना जा सकता है। जब व्यक्ति विरति यानी कर्म में अपने को लगा लेता है और संसार में केवल अपना कर्म ही धर्म के रूप में देखता है तो उसे योग अर्थात समय की पहिचान और कार्यों के दक्षता के साथ दुनियादारी के प्रति जानकार समझ लिया जाता है। उसे ज्ञानी की श्रेणी में रखा जाने लगता है और जब ज्ञान को खर्च करने के बाद उसका उपयोग किया जाता है,तो वह मोक्ष का अधिकारी माना जाता है। कुम्भ राशि वालों को कार्य के बाद प्राप्त फ़लों के रूप में माना जाता है,कालपुरुष के अनुसार यह राशि मित्रता और बडे भाई के रूप में माना जाता है। यह कार्य करने के बाद मिलने वाले फ़लों से भी माना जाता है,यह राशि घर बनाने और जनता से सम्बन्ध स्थापित करने के लिये प्राप्त की जाने वाली रिस्क से भी माना जाता है। यह भाव सन्तान के जीवन से चलने वाली जद्दोजहद से भी माना जा सकता है। पिता के द्वारा प्राप्त नगद आय से भी माना जाता है,पिता के द्वारा जोडे गये कुटुम्बी जनों के प्रति और उनसे मिलने वाली सहायता से भी माना जा सकता है। इस राशि का स्वभाव अपने कार्यों और पीछे की जिन्दगी से जुडे कार्यों से माना जाता है यानी जो कल किया है उससे मिलने वाले फ़लों से भी माना जा सकता है। यह राशि बडे रूप में हर कार्य को करना चाहती है छोटे रूप में कार्य करने पर यह केवल जनता के अन्दर रहकर जनता की सेवा करने के बाद और जनता से जुडी समस्याओं के प्रति अपनी वफ़ादारी को रखती है लेकिन इस प्रकार के जातकों का मोह कर्क राशि के छठे भाव में होने के कारण अन्दरूनी रूप से जनता के अन्दर की जानकारियां भी सही समय पर लेने की उत्कंठा रहती है,जब उन्हे जनता के अन्दर के भेद मिल जाते है तो उन्हे दुनियादारी में प्रसारित करने में भी अच्छा लगता है। इस राशि वाले अगर किसी प्रकार से मीडिया या इसी प्रकार के वायु वाले कमन्यूकेशन से जुड जाते है तो अपना अच्छा नाम कर लेते है और कभी कभी यह भी देखा गया है कि इनकी रुचि आलसी होने के कारण और पूर्व में अपने द्वारा फ़रेब आदि करने से गुरु के समय में दिक्कत भी आती है। इस राशि में गोचर किया है गुरु ने कुंभ राशि जो शनि की राशि है और काल पुरुष की कुंडली के अनुसार यह खाना नंबर 11 है।पिछले समय से चली आ रही अपमान मौत और जोखिम के लिये जो शनि बार बार अपनी शक्ति को दे रहा था उसके अन्दर कमी आएगी शनि मकर में है पहले गुरु के साथ था अब गुरु उसके आगे एक घर आ जाएगा गुरु के कुंभ राशि में आ जाने से धन वाली और परिवार कुटुम्ब वाली परेशानियों में अन्त होने का समय माना जाता है,जो लोग पहले अपनी रिस्क के अनुसार जनता के धन को प्रयोग में लाने के बाद जनता के कर्जी बन गये थे और उन्हे कोई रास्ता चुकाने का नही मिल रहा था वह इस गुरु की कृपा से कोई न कोई रास्ता मिल जाता है चाहे वह रास्ता किसी प्रापर्टी को बेचने के बाद मिलता हो या कोई प्रापर्टी वाला कार्य करने के बाद मिलने वाले कमीशन आदि से जाना जाता हो। कुंभ को अगर लगन मानकर चलें तो गुरु की पांचवीं द्रिष्टि पंचम भाव यहां पर मिथुन राशि आती है जो कि काल पुरुष की कुंडली के अनुसार तीसरी राशि भी है मिथुन राशि वालों के लिए गुरु की दृष्टि अमृत के समान है।मिथुन राशि कमन्यूकेशन और प्रदर्शन की राशि है,इस राशि से कालपुरुष अपनी प्रकृति को दर्शित करता है,संसार में जितने भी कमन्यूकेशन के साधन है और जैसा भी स्थान देश और जलवायु के अनुसार बोलचाल रहन सहन अपने को लोगों को दिखाने की कला है,वह सब मिथुन राशि के ऊपर ही निर्भर करती है। गुरु इस राशि से सप्तम भाव और दसवें भाव का मालिक है। सप्तम जीवन साथी और साझेदारी के नाम से जाना जाता है और व्यक्ति अपने जीवन में जो भी करने के लिये आता है वह सब सप्तम के साथ आमना सामना करने के बाद ही करता है। मिथुन राशि का स्वभाव होता है कि वह गर्म के सामने ठंडी हो जाती है और ठंडे के सामने अपनी गर्मी को प्रस्तुत करती है। यह स्वभाव व्यक्ति स्थान वस्तु के लिये भी देखा जाता है,जैसे घर बनवाते समय बरसात के मौसम में उसकी सुरक्षा के लिये छत बनाना और बिना बरसात वाले स्थान में जहां धूप गर्मी और जाडे की आवश्यकता नही समझी जाती है वहां खुला छोड दिया जाता है। उसी प्रकार से मनुष्य के पहिनावे के लिये भी देखा जाता है,मनुष्य के बोलचाल की भाषा में भी देखा जाता है,भाषा और भाषा के विश्लेषण के लिये भी देखा जाता है। इस राशि का प्रभाव हर मनुष्य के अन्दर किसी न किसी रूप में मिलता है.

इस राशि वालों के जीवन साथी के मामले में माना जाता है कि जीवन साथी तो ज्ञान और मर्यादा के साथ बंध कर रहता है लेकिन इस राशि वाले का स्वभाव जो है उसे बोल देने और केवल बातें करने से माना जाता है। इस राशि वाले गाने बजाने और संगीत आदि के प्रेमी होते है जब कि उनके जीवन साथी अपने अनुसार हमेशा चुप रहने और बडी बातें सोचने के कारण अपने को गुप्त ही रखा करते है। इस राशि के दसवें भाव का मालिक गुरु है जो ज्योतिष के अनुसार नीच का कहलता है,और इस गुरु की शिफ़्त के अनुसार जो भी कार्य इस राशि वालों से प्रकृति करवाती है वह सभी किसी न किसी प्रकार से घर और बाहर की बातें ध्यान में रखकर तथा सबसे पहले धन के मामले में सोच कर ही की जाती है,अक्सर इस राशि वालों की मुख्य कमाइया किराया ब्याज से लेना या देना और जनता से अपनी इच्छाओं की पूर्ति में रहता है,इस राशि वाले अपना भावनात्मक रूप इस प्रकार से प्रस्तुत करते है कि सामने वाला इनकी बातों में जरूर आजाता है,और जो भी इन्हे अपने अनुसार करना होता है कर जाते है और अपने लिये जो भी चाहत होती है पूरी कर लेते है,इनके अष्टम में शनि की मकर राशि होने से यह अपने प्रभाव को अन्दरूनी गुप्त रिस्तों में बहुत ही छिपाकर रखते है और अक्सर बडी उम्र वाले हमेशा अपनी उम्र से कम लगने के कारण अपने से कम उम्र वालों के साथ मिलकर चलते देखे जा सकते है। इस राशि वालों की सिफ़्त एक प्रकार से बडी खतरनाक भी होती है यह अपने घर की बात किसी को नही बताते लेकिन इनके पास सबकी खबर रहती है कि कब किसके यहां क्या हो रहा है। गुरु को दोहरे धन और धन के द्वारा बनायी जाने वाली सम्पत्ति से तथा घर आदि केरहने के स्थान के परिवर्तन से भी माना जाता है। जनता के अन्दर से ही धन को लेने के बाद जनता के लिये ही कमाने का उपक्रम भी सामने आने लगता है जो लोग शेयर बाजार कमोडिटी आदि का कार्य करते है उन्हे जनता से धन प्राप्त करने और जनता के लिये कमाकर देने के लिये अच्छा समय माना जा सकता है लेकिन अगर वही लोग अपने कमाये धन को अचल सम्पत्ति के रूप में इकट्ठा करते रहे तो आगे के समय उनके लिये अपनी औकात दिखाने का और अपने नाम को बनाने का सही अवसर भी माना जाता है। जो भी रिस्क लेने वाले साधन है उनके अन्दर यह राशि वाले अगर अपनी बुद्धि को जरा भी प्रयोग में लाते है तो उन्हे धन के कमाने से कोई रोक नही सकता है,इसके लिये उन्हे यह भी ध्यान रखना पडेगा कि वारहवे विराजमान राहु उन्हे अचानक ऐसे खर्चे करवाएगा जिसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की होगीऔरअपनोद्वारा कपट पूर्ण व्यवहार से भी बाधित करेगा,मित्रो से झूठ और फ़रेब से बचकर भी जातक को चलना पडेगा.समय समय पर अपने द्वारा कमाये गये लाभ को अगर वह किसी दूसरे की मंत्रणा से खर्च करता है तो उसे अचानक हानि का भी सामना करना पडेगा। इस गुरु की सप्तम द्रिष्टि सिंह राशि पर जाने से भी अगर वह अपना मोह नौकरी आदि के लिये करता है तो उसके द्वारा किये जाने वाले कोई भी प्रयास जोखिम तो ले सकते है लेकिन सभी जोखिम लेने के पीछे सरकारी अफसरोसे सहयोग मिलने के ही आसार मिलते है,अगर हो सके तो इस गुरु के प्रभाव की गर्म हवाओं से बचने के लिये दूसरे की नौकरी में कोई रिस्क लेना बेकार ही माना जायेगा। इस गुरु की नवीं द्रिष्टि कर्म भाव में जाने से और कर्म भाव में तुला राशि में होने से जोतुला राशि तुलनात्मक कार्यों के लिये उत्तम राशि है,यह धर्म अर्थ काम और मोक्ष के बारे में तुलनात्मक अध्ययन करना जानती है.बिना शुक्र की भौतिकता के इस राशि वाले अपने कार्यों को प्रदर्शित नही कर सकते है। तुला राशि वाले अपने अन्दर ही हमेशा सिमटे रहने वाले होते है और वक्त पडने पर उसी राय को प्रदान करते है जो उनके अनुसार सर्वश्रेष्ठ होती है। इस राशि वालों को हमेशा नकारात्मक परिस्थितियों से जूझना पडता है,जो भी खुद के लोग होते है वे केवल शमशानी क्रियाओं तक ही साथ रहते है,जिन्हे सहायता दी जावे वे अपने को दूर करने के बाद पीछे से बुराइयां ही प्रदान करते है,गुरु इस राशि के तीसरे और छठे भाव का मालिक होता है,तीसरा भाव धनु राशि होने से इस राशि वालों को अपने को प्रदर्शित करने के लिये केवल न्याय वाले क्षेत्र,धर्म और भाग्य से सम्बन्धित क्षेत्र, समाज मर्यादा और देश के प्रति किये जाने वाले प्रयासों के लिये लिखने पढने और बोलने के अन्दर सामाजिकता प्रभाव रखने वाले आदि स्थान माने जाते है,मीन राशि जो गुरु की नकारात्मक राशि है इस राशि के छठे भाव मे अपना स्थान रखती है,यह भाव भी नकारात्मक है और यह राशि भी नकारात्मक है,नियम के अनुसार जब दो नकारात्मक शक्तियां आपस में मिलती है तो कोई न कोई सकारात्मक परिणाम ही निकलता है। किसी भी नकारात्मक स्थान की सेवा करने के बाद उस स्थान को सकारात्मक बनाना इस राशि वालों के लिये इसी मीन राशि से सहायता मिलती है। इस राशि वालों के पास या तो कर्जा होगा नही और होगा तो इतना बडा होगा कि आजीवन उसे चुकाने में लगे रहना पडेगा,या तो कोई बीमारी होगी नहे और होगी भी तो इतनी बडी कि आजीवन उस बीमारी के लिये सोचना ही पडेगा,या तो इस राशि वाले सेवा करेंगे नही और करेंगे तो आजीवन सेवा के कार्य ही करते रहेंगे। भी कबाड से जुगाड बनाने की कला होती है वह जातक के अन्दर आराम से काम करने लगती है और व्यक्ति अपने दिमाग से राख से भी सोना पैदा करने की जानकारी रख सकता है। उसके द्वारा ब्रोकर वाले कार्य किसी भी तरह की कमीशन खोरी के कार्य करने वालों को धन लाभ होगा और इस काम से उससे अधिक धन पैदा करने के कार्य पिछले समय में अपनी योग्यता से जो हानि प्राप्त की है उस योग्यता को प्रदर्शित करने और उसके प्रयोग करने के बाद गयी हुयी प्रतिष्ठा को हासिल किया जा सकता है।

रविवार, 14 मार्च 2021

तंत्र-मंत्र-यंत्र और नारी


लोग ज्योतिष को जब अपनी कुंडली दिखाते हैं तो अक्सर एक सवाल पूछते हैं कि कुंडली में किसी तंत्र-मंत्र का असर तो नहीं है. दरअसल, तंत्र एक प्रक्रिया है जिससे हम अपनी आत्मा और मन को बंधन मुक्त करते हैं. तंत्र की प्रक्रिया से मन और शरीर शुद्ध होता है.
इससे ईश्वर का अनुभव करने में सहायता मिलती है. तंत्र की प्रक्रिया से भौतिक और आध्यात्मिक जीवन की समस्या का हल निकाल सकते हैं. तंत्र में पुरुष को को हवा और स्त्री को धरती का रूप दिया गया है। पुरुष की प्रवृत्ति होती है कि वह किसी भी दिशा में गर्मी की तरफ़ बढ लेता है और स्त्री का कार्य किसी भी वस्तु को सहेज कर रख लेने का होता है। स्त्री के अन्दर सहेज कर रखने की प्रवृत्ति अक्सर पुरुषों को समय पर काम भी देती है और जो समझदार नही होते है वे स्त्री के द्वारा सहेज कर रखने वाली वस्तु को नकारते है या बिना समझे उसका दुरुपयोग करते है। सभी स्त्रियों की प्रकृति एक समान होती है,लेकिन जिस प्रकार से एक ही तरह की मिट्टी से कई तरह के मीठे खट्टे चरपरे नमकीन स्वाद अन्य वस्तुओं के सहयोग से निकाल लिये जाते है उसी प्रकार से स्त्री भी अपने स्वभाव से सभी तरह के विषय अपने पास जमा करने के बाद समय पर उन सभी का प्रभाव अपने परिवार को देने का काम करती है। धन की कामना भी स्त्री को इसीलिये अधिक होती है कि वह सभी तरह के विषयों को अपने पास इकट्ठा कर सके। वैसे स्त्री को प्रकृति के अनुसार सोलह जगह से बांधा गया है,और जो स्त्रियां अपने बंधनो से मुक्त है तो वे किसी भी दिशा में अपने विषयों की प्राप्ति के लिये गलत या सही जैसा भी मार्ग अपना सकती हैं। स्त्री का दिमाग कभी भी एक जैसा नही होता है,वह अपने दिमाग को लाखों तरीके से प्रयोग करने की कोशिश करती है। महिलायें किस प्रकार से अपने तंत्र को प्रयोग करती है जो उन्होने प्राचीन या किसी के द्वारा प्रयोग करने के लिये दिये गये तंत्रों से समाधान मिलता है।
स्वप्न तंत्र की प्रक्रिया
सबसे पहले इस तंत्र का बखान करना इसलिये मुख्य समझा है कि यह हर किसी महिला के साथ अक्सर देखा जाता है,सुबह की चाय का स्वाद अगर अधिक मीठा या चाय में शक्कर नही है तो पहिचान लेना चाहिये कि रात को श्रीमती के द्वारा स्वप्न देखा गया है और उसी स्वप्न की उधेड बुन में चाय का स्वाद अधिक मीठा या फ़ीका रह गया है। स्वप्न की बातों का सीधा असर महिलाओं में इसलिये और अधिक जाता है कि वे केवल अपने आसपास के माहौल से काफ़ी सशंकित रहती हैं। पडौसी के घर पर क्या हो रहा है,पडौसिन ने किस से क्या बात की है,पडौसी के घर पर कौन सा नया काम हुआ है,आदि बातें केवल महिलाओं के द्वारा जल्दी से जानी जा सकती है,यह केवल प्रकृति के द्वारा दिया गया एक तोहफ़ा ही माना जायेगा जिनके प्रति हम कभी जागरूक नही होते है वह बातें महिलाओं को जल्दी पता चल जाती है। पति के प्रति अगर उन्हे संदेह होता है तो वे फ़ौरन अपने स्वप्न का अर्थ पता नही किन किन बातों से लगाना शुरु कर देती है और जब स्वप्न में उन्हे कोई अप्रिय बात देखने को मिलती है तो वे किसी ना किसी बहाने से पूंछना शुरु कर देतीं है और अगर पति उन बातों का सही उत्तर देता है तो वे अक्सर समय पर आश्वस्त नही होती है,और इन्तजार भी करती है कि आखिर में यह बात उन्होने देखी क्यों? एक महिला ने स्वप्न में देखा कि उसकी मरी हुई सास उसके आभूषणों को अन्य किसी महिला को पहिना रही है,महिला ने सुबह से ही उन आभूषणों के बारे में सोचना चालू कर दिया,पति से कई सवाल किये गये कि लाकर में जो आभूषण रखे है वे सही सलामत तो है,उन्हे निकाल कर कहीं गिरवी आदि तो नही रखा गया है,अथवा आज चल कर अपने लाकर के आभूषण चैक करने है। पति को कोई जरूरी काम है और उसने ना नुकर की तो बस घर के अन्दर क्लेश चालू हो गया,आखिर में पति महोदय उन्हे लेकर लाकर में रखे आभूषणों को दिखाने के लिये गये,सभी आभूषणों को चैक किया गया तो हार गायब था। पत्नी को शक सबसे पहले अपने पति पर गया और उनसे पूंछा कि उसकी अनुपस्थिति में लाकर को खोला था,बैंक के मैनेजर से जानकारी मांगी कि कब कब लाकर खुला है,लेकिन पता लगा कि लाकर उसकी अनुपस्थिति में खोला ही नही गया है। बहुत सोचने के बाद कि आखिर हार लाकर से कहाँ गया। पति तो अपने कामों में व्यस्त हो गये लेकिन श्रीमती जी का खाना पीना सब हराम हो गया। वे तरह से तरह से सोचने लगीं कि आखिर में हार गया कहाँ ? आखिरी बार उसे पहिना था और पहिन कर फ़लां की शादी में गये थे,उसके बाद उसे पहिना था तो दूसरे दिन ही लाकर में रख कर आ गये थे। उस हार की चिन्ता में शहर के जाने माने ज्योतिषी जी के पास वे गयीं और उनसे पूंछा,ज्योतिषी जी ने अपनी ज्योतिष से बताया कि हार उन्ही की घर की महिला के पास है। लेकिन यह पता कैसे लगे कि महिला घर की कौन है? वे चिन्ता में घर आयीं,और पलंग पर पडकर सोचने लगीं। रात को पति काम से वापस आये,अनमने ढंग से भोजन आदि दिया गया,और फ़िर पति की खोपडी खाने का समय मिला था,अचानक पति को ध्यान आया कि एक बार उनकी भाभी ने कहीं जाने के लिये गहने मांगे थे,और वे वापस भी कर गयीं थी,लेकिन यह नही देखा था कि हार उन गहनों में है या नही। उन्होने अपनी भाभी से पूंछने के लिये फ़ोन उठाया और पूंछा,-"भाभी आपने जो गहने लिये थे,उस समय हार तो आपके पास नही रह गया था,आज जब लाकर चैक किया तो हार उसके अन्दर नही मिला है",भाभी ने सीधे से उत्तर दिया कि हार वे इसलिये वापस नही कर पायीं थी कि उनकी बडी वाली लडकी पहिन कर अपने ससुराल चली गयी थी और तब से अभी तक आयी नही है,उन्होने सोचा था कि आयेगी तभी जाकर दे आयेंगी। पूरा भेद खुल गया,कि हार जो उस महिला की सास दूसरी औरत को पहिना रही थी,वह बात सही थी,इससे उन श्रीमती का विश्वास स्वप्न के प्रति पक्का हो गया था। इस प्रकार से महिलायें अपने स्वप्नो का अर्थ विभिन्न तरीकों से लगाया करती है,अक्सर उनके स्वप्नों का फ़ल भी सही ही निकलता है।
अंग फ़डकने का फ़ल
महिलाओं में रोजाना यही बात और की जाती है कि आज उनकी दाहिनी आंख फ़डक रही है,दाहिनी आंख महिलाओं की फ़डकने के से अक्सर खराब असर ही मिलते हैं। बेकार की आशंका से पीडित होने पर या घर में किसी के बीमार होने पर अथवा किसी नये किये जाने वाले काम के प्रति आशंकायें की जाती है,घर का कोई सदस्य बाहर होता है तो उसके बारे में अच्छे बुरे विचार किये जाते है,और जब कोई आसपास के लोगों में या परिवार में कोई दुर्घटना घट जाती है तो वह आंख भी फ़डकना बंद हो जाता है,और इस प्रकार से अंग फ़डकने की क्रिया को भी अक्सर महिलाओं में सत्य माना जाने लगता है

गुरुवार, 11 मार्च 2021

तंत्र विद्या- तांत्रिक और आम आदमी

www.acharyarajesh.in
धर्म ग्रंथों में तंत्र विद्या का महत्व दर्शाया गया है। जो लोग रामायण, महाभारत, शिव पुराण या अन्य ग्रंथों के अस्तित्व को स्वीकारते हैं वे तंत्र विद्या को नकार नहीं सकते। जिस तरह किसी बीमारी को दूर करने दवाई का सेवन जरूरी है उसी तरह जीवन की कुछ समस्याएं ऐसी होती है, जिनका समाधान तंत्र विद्या में है, जिसे विधिवत किया जाए तो फल अवश्य मिलता है। लेकिनअज्ञानी लोगों का यह दुर्भाग्य है कि वे अपनी समस्याओं के निवारण के चक्कर में ढोंगी तांत्रिकों का सहारा लेते हैं। वास्तव में जिस तांत्रिक को तंत्र विद्या का सच्चा ज्ञान होगा वह भोलेभाले लोगों की भावनाओं के साथ कभी खिलवाड़ नहीं करेगा। तंत्र विद्या की यह पहली शर्त होती है कि इसके जरिए समाज के दुखी लोगों को राहत पहुंचाई जाए।
तंत्र का उपयोग मानव कल्याण के लिये किया जाता है,लेकिन मानव ही मानव को तंत्र के तरीके से लूटे तो वह तंत्र कदापि भला नही हो सकता है,जैसे एक डाक्टर का काम मरीज को बचाकर उसकी जिन्दगी देना होता है,कारण उसे शरीर के तंत्र के बारे में सभी बातें ज्ञात होती है,लेकिन वही डाक्टर अगर अपनी विद्या का उल्टा प्रयोग करना चालू कर दे,और बजाय मरीज को बचाने के मरीज के अन्दर अपने धन का भंडार देखना चालू कर दे,अच्छे भले मरीज को जिसे केवल कुछ समय के लिये पेट का दर्द है और उसे अपनी जान पहिचान की लेब्रोटरी से कुछ टेस्ट करवा कर किडनी का मरीज घोषित कर दे,और किडनी को निकाल कर बेच दे तथा मरीज के रिस्तेदार की किडनी को निकाल कर मरीज के लगा दे,तो इसके अन्दर तंत्र दोषी नही माना जा सकता है,तंत्र को प्रयोग करने वाले दोषी माने जा सकते है।भौतिक तथा आजकी उठापटक के अन्दर अपने अन्दर हर व्यक्ति एक भावना पाल कर चल रहा है कि किस प्रकार से वह अधिक से अधिक धन को कमा सकने में समर्थ हो सकता है और उस कमाये हुये धन को मन चाहे तरीके से दूसरों को नीचा दिखाने केलिये प्रयोग करना चालू कर सकता है,उसे जो करना है वह उन बातों को पूरा करने के लिये मानसिक रूप से सोचा करता है कि कब उसकी चाहत वाली बातें पूरी हो सकती है। उन मानसिक बातों को पूरा करने केलिये वह तरह तरह की बातें करना तरह तरह के प्रयोग करना और तरह तरह के साधन बनाकर इन्सान के दिमाग को इन्सान की बुराइयों और इन्सान को ही खत्म करने वाली वस्तुओं को पैदा करना आदि यह सब एक जानवर से अधिक कुछ नही हो सकता है जैसे एक कुत्ते के सामने कोई मांस का टुकडा डाल दिया तो वह अन्य कुत्तों को पास नही फ़टकने देना चाहता है वह चाहता है कि कोई उसके मांस के टुकडे को कोई ले नही जाये।
शिक्षा का अर्थ
शिक्षा का वास्तविक अर्थ विकास होता है,वह शिक्षा चाहे शरीर की हो,धन की हो,व्यक्ति या समाज की हो या फ़िर राजनीति की हो,या फ़िर तकनीक से सम्बन्ध रखती हो,शिक्षा का मूल उद्देश्य विकास ही होता है,अगर शिक्षा से विकास का रास्ता खुलता है तो बेकार का दिमाग जिसके अन्दर कचडा बचपन से भरा होता है उसके समाज और परिवार में जो शुरु से होता रहा है उसके प्रति वह जो शिक्षा को प्राप्त करने वाला है तो उसका दुरुपयोग करने की सोचता है। बहुत ही मुश्किल और कई दसक लगातार काम करने के बाद पहले गणना के यन्त्र बनाये गये फ़िर कम्पयूटर का निर्माण हुआ,यह केवल इसलिये हुआ कि आदमी जल्दी से काम करना सीखे,उसे जो एक साल मे काम करना है उसे वह एक दिन में कर ले,बडी बडी फ़ाइलों को सम्भालने के लिये बडे बडे स्टोर और उनकी देखभाल रख रखाव और प्राकृतिक आपदा के कारण खराब होने से बचाया जा सके,लेकिन उसी जगह कचडा रखने वाले दिमागी लोगों ने पूरा सिस्टम खराब करने के लिये वाइरस का निर्माण ही कर डाला जो दस साल मेहनत की गयी उसे एक सेकेण्ड में बरबाद करने लग गया। शिक्षा का मतलब यह नही होता कि व्यक्ति अपने नैतिक मूल्यों से ही गिर जाये,और प्राचीन महाऋषियों और ज्ञानियों को ही गालियां देने लगे,वह भूल जाये कि जिस विद्या को समझदार समाज खोज रहा है उसे लेने के लिये मारा मारा घूम रहा है,वह सर्वप्रथम हमारे भारत में ही प्राप्त हुयी थी। और उसी शिक्षा की बदौलत हमारा नाम विश्व के कौने में प्रसिद्ध है। जिन्हे हम गंवार जाहिल और बेवकूफ़ की संज्ञा देते है उनके परिवार आज भी सही सलामत और बंधे हुये चल रहे है लेकिन जो आज अलग थलग है और अपनी ही सभ्यता को भूल कर घूम रहे है उन्हे जवानी में तो भोग मिल सकते है लेकिन बुढापे के लिये उन्हे वृद्धाश्रम की ही खोज करनी पडती है।
कौन है तंत्र को बदनाम करने वाला
कहा जाता है कि जब लोमडी को अंगूर नही मिले तो वह कहने लगी कि खट्टे अंगूर है,वही हाल मध्यम परिवारों का है,पुराने जमाने की शिक्षा की बदौलत उनके परिवार कुछ अमीर बन गये,उनकी शिक्षा को जब पूरा किया गया तो वे अपने को शहंशाह समझने लगे और खुद के ही बाप को जब गाली दी जा सकती है,पूर्वजों की बात ही कौन कहे,जब घर के अन्दर आते ही अपने घर वालों की बात का उल्टा जबाब दिया जाये,घर के बडे बूढों के अन्दर जनरेशन गेप बता कर उन्हे बातचीत से दूर किया जाये,एक कोने में कुछ साधन देकर लिटा दिया जाये,पत्नी को काम और बच्चों से फ़ुर्सत नही हो,घर का बुजुर्ग अपने हाल में पडा पडा कराहता रहता हो,और वे ही अगर तंत्र को बेकार बतायें तो वह किस मायने में सही कहा जा सकता है।

तंत्र विद्या- तांत्रिक और आम आदमी

www.acharyarajesh.in
धर्म ग्रंथों में तंत्र विद्या का महत्व दर्शाया गया है। जो लोग रामायण, महाभारत, शिव पुराण या अन्य ग्रंथों के अस्तित्व को स्वीकारते हैं वे तंत्र विद्या को नकार नहीं सकते। जिस तरह किसी बीमारी को दूर करने दवाई का सेवन जरूरी है उसी तरह जीवन की कुछ समस्याएं ऐसी होती है, जिनका समाधान तंत्र विद्या में है, जिसे विधिवत किया जाए तो फल अवश्य मिलता है। लेकिनअज्ञानी लोगों का यह दुर्भाग्य है कि वे अपनी समस्याओं के निवारण के चक्कर में ढोंगी तांत्रिकों का सहारा लेते हैं। वास्तव में जिस तांत्रिक को तंत्र विद्या का सच्चा ज्ञान होगा वह भोलेभाले लोगों की भावनाओं के साथ कभी खिलवाड़ नहीं करेगा। तंत्र विद्या की यह पहली शर्त होती है कि इसके जरिए समाज के दुखी लोगों को राहत पहुंचाई जाए।
तंत्र का उपयोग मानव कल्याण के लिये किया जाता है,लेकिन मानव ही मानव को तंत्र के तरीके से लूटे तो वह तंत्र कदापि भला नही हो सकता है,जैसे एक डाक्टर का काम मरीज को बचाकर उसकी जिन्दगी देना होता है,कारण उसे शरीर के तंत्र के बारे में सभी बातें ज्ञात होती है,लेकिन वही डाक्टर अगर अपनी विद्या का उल्टा प्रयोग करना चालू कर दे,और बजाय मरीज को बचाने के मरीज के अन्दर अपने धन का भंडार देखना चालू कर दे,अच्छे भले मरीज को जिसे केवल कुछ समय के लिये पेट का दर्द है और उसे अपनी जान पहिचान की लेब्रोटरी से कुछ टेस्ट करवा कर किडनी का मरीज घोषित कर दे,और किडनी को निकाल कर बेच दे तथा मरीज के रिस्तेदार की किडनी को निकाल कर मरीज के लगा दे,तो इसके अन्दर तंत्र दोषी नही माना जा सकता है,तंत्र को प्रयोग करने वाले दोषी माने जा सकते है।भौतिक तथा आजकी उठापटक के अन्दर अपने अन्दर हर व्यक्ति एक भावना पाल कर चल रहा है कि किस प्रकार से वह अधिक से अधिक धन को कमा सकने में समर्थ हो सकता है और उस कमाये हुये धन को मन चाहे तरीके से दूसरों को नीचा दिखाने केलिये प्रयोग करना चालू कर सकता है,उसे जो करना है वह उन बातों को पूरा करने के लिये मानसिक रूप से सोचा करता है कि कब उसकी चाहत वाली बातें पूरी हो सकती है। उन मानसिक बातों को पूरा करने केलिये वह तरह तरह की बातें करना तरह तरह के प्रयोग करना और तरह तरह के साधन बनाकर इन्सान के दिमाग को इन्सान की बुराइयों और इन्सान को ही खत्म करने वाली वस्तुओं को पैदा करना आदि यह सब एक जानवर से अधिक कुछ नही हो सकता है जैसे एक कुत्ते के सामने कोई मांस का टुकडा डाल दिया तो वह अन्य कुत्तों को पास नही फ़टकने देना चाहता है वह चाहता है कि कोई उसके मांस के टुकडे को कोई ले नही जाये।
शिक्षा का अर्थ
शिक्षा का वास्तविक अर्थ विकास होता है,वह शिक्षा चाहे शरीर की हो,धन की हो,व्यक्ति या समाज की हो या फ़िर राजनीति की हो,या फ़िर तकनीक से सम्बन्ध रखती हो,शिक्षा का मूल उद्देश्य विकास ही होता है,अगर शिक्षा से विकास का रास्ता खुलता है तो बेकार का दिमाग जिसके अन्दर कचडा बचपन से भरा होता है उसके समाज और परिवार में जो शुरु से होता रहा है उसके प्रति वह जो शिक्षा को प्राप्त करने वाला है तो उसका दुरुपयोग करने की सोचता है। बहुत ही मुश्किल और कई दसक लगातार काम करने के बाद पहले गणना के यन्त्र बनाये गये फ़िर कम्पयूटर का निर्माण हुआ,यह केवल इसलिये हुआ कि आदमी जल्दी से काम करना सीखे,उसे जो एक साल मे काम करना है उसे वह एक दिन में कर ले,बडी बडी फ़ाइलों को सम्भालने के लिये बडे बडे स्टोर और उनकी देखभाल रख रखाव और प्राकृतिक आपदा के कारण खराब होने से बचाया जा सके,लेकिन उसी जगह कचडा रखने वाले दिमागी लोगों ने पूरा सिस्टम खराब करने के लिये वाइरस का निर्माण ही कर डाला जो दस साल मेहनत की गयी उसे एक सेकेण्ड में बरबाद करने लग गया। शिक्षा का मतलब यह नही होता कि व्यक्ति अपने नैतिक मूल्यों से ही गिर जाये,और प्राचीन महाऋषियों और ज्ञानियों को ही गालियां देने लगे,वह भूल जाये कि जिस विद्या को समझदार समाज खोज रहा है उसे लेने के लिये मारा मारा घूम रहा है,वह सर्वप्रथम हमारे भारत में ही प्राप्त हुयी थी। और उसी शिक्षा की बदौलत हमारा नाम विश्व के कौने में प्रसिद्ध है। जिन्हे हम गंवार जाहिल और बेवकूफ़ की संज्ञा देते है उनके परिवार आज भी सही सलामत और बंधे हुये चल रहे है लेकिन जो आज अलग थलग है और अपनी ही सभ्यता को भूल कर घूम रहे है उन्हे जवानी में तो भोग मिल सकते है लेकिन बुढापे के लिये उन्हे वृद्धाश्रम की ही खोज करनी पडती है।
कौन है तंत्र को बदनाम करने वाला
कहा जाता है कि जब लोमडी को अंगूर नही मिले तो वह कहने लगी कि खट्टे अंगूर है,वही हाल मध्यम परिवारों का है,पुराने जमाने की शिक्षा की बदौलत उनके परिवार कुछ अमीर बन गये,उनकी शिक्षा को जब पूरा किया गया तो वे अपने को शहंशाह समझने लगे और खुद के ही बाप को जब गाली दी जा सकती है,पूर्वजों की बात ही कौन कहे,जब घर के अन्दर आते ही अपने घर वालों की बात का उल्टा जबाब दिया जाये,घर के बडे बूढों के अन्दर जनरेशन गेप बता कर उन्हे बातचीत से दूर किया जाये,एक कोने में कुछ साधन देकर लिटा दिया जाये,पत्नी को काम और बच्चों से फ़ुर्सत नही हो,घर का बुजुर्ग अपने हाल में पडा पडा कराहता रहता हो,और वे ही अगर तंत्र को बेकार बतायें तो वह किस मायने में सही कहा जा सकता है।

सोमवार, 8 मार्च 2021

तंत्र विज्ञान-तंत्र क्या है?

www.acharyarajesh.inतंत्र क्या है

तंत्र- भी इसी तरह एक टेक्नोलॉजी है, लेकिन एक अलग स्तर की, पर है भौतिक ही। यह सब करने के लिए इंसान अपने शरीर, मन और ऊर्जा का इस्तेमाल करता है टेक्नोलॉजी चाहे जो हो, हम अपने शरीर, मन और ऊर्जा का ही इस्तेमाल करते हैं। आम तौर पर हम अपनी जरूरतों के लिए दूसरे पदार्थों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन एक mobile फोन या किसी टेक्नोलॉजी के उत्पादन के लिए जिन बुनियादी पदार्थों का उपयोग होता है, वे शरीर, मन और ऊर्जा ही होते हैं
आज जबकि तंत्र या तांत्रिक को पढे लिखे लोग धोखा,पाखण्ड तथा अन्धविश्वास कहते है तो तन्त्र प्रयोग लिखने का औचित्य क्या है? आप किसी भी चीज को दिखाना चाहते है या उसे समझाना चाहते है, यदि वह व्यक्ति उस विषय की गहराई या उस चीज की विशेषता को नहीं जानता इसलिये वह आपका आपकी चीज का तथा आपकी बात का मजाक उडाता है,व्यंग बाण छोडता है तथा अन्धविश्वास कहता है,यही स्थिति पढे लिखे लोगों की हो गयी है,वे अपने अपने विषय के अलावा और कुछ समझने की कोशिश ही नही करते है,उन्हे यह भी पता नही होता है कि वे जब अपनी माँ के पेट में आये होते है उस समय भी दाई ने या डाक्टर ने कोई तंत्र ही किया होता है,अगर दाई या डाक्टर नही होगा तो घर की किसी बढी बूढी महिला के द्वारा तंत्र बताया गया होगा कि इस प्रकार से इतने दिन के पीरियड के समय में बच्चा गर्भ मे आ सकता है,और इतने दिन के पीरियेड के बाद कन्या गर्भ में आ सकती है,इतने दिन के पहले या इतने दिन के बाद गर्भ धारण किया तो बच्चा या तो गर्भपात से गिर जायेगा या पैदा होते ही मर जायेगा,जो लोग तंत्र को नही जानते है वे या तो बच्चों के लिये जीवन भर पछताते रहते है या फ़िर किसी का बच्चा गोद लेकर अपना काम चलाते है,इसके लिये भी अस्पतालों एक फ़र्टिलिटी सेंटर खुल गये है वे आसानी से किसी के वीर्य को किसी के गर्भ में स्थापित कर देते है और एक की जगह दो दो बच्चे जुडवां तक दे देते है। यह सब तंत्र नही है तो क्या है,डाक्टर को दवाई और शरीर विज्ञान का तंत्र आता है उसे आता है कि किस स्थान की कमी है और उस कमी को पूरा करने के लिये कौन सी नश को काट कर या नकली नश को लगाकर काम चलाया जा सकता है,आजकल तो तंत्र के बलबूते पर डाक्टर नकली वाल्व लगाकर दस बारह साल के लिये ह्रदय को चालू कर देते है।
जिस पश्चिमी सभ्यता के पीछे आज के भारतीय लोग दौडे चले जा रहे है,उन लोगों को पता नही था कि भारत में हनुमान जी की पूजा आदि काल से की जाती रही है,वे जब भारत में घूमने के लिये आते तो वे भारत में मंगलवार के दिन हनुमान जी के मंदिर में जाकर लोगों को चिढाया करते थे,Oh ! here is monkey Go? क्या बात है यहां तो बन्दर भी भगवान हैं। जब उन्होने ही मंगल पर वाइकिंग भेजा और जब पहली मंगल की तस्वीर वाइकिंग ने भेजी तो उन्हे यह देखकर महान आश्चर्य हुआ कि जो तस्वीर बंदर के रूप में भारत में पूजी जाती है वह कोई बन्दर की तस्वीर नही होकर "Face of Mars" मंगल का चेहरा है।हमारे यहाँ हनुमान जी की पूजा का महत्व मंगलवार के दिन ही माना जाता है,और मंगल ग्रह की शांति के लिये ही हनुमानजी की पूजा की जाती हैऔर जब भी कोई बाधा आती है तो एक ही दोहा उनकी आराधना के लिये मसहूर माना जाता है,-"लाल देह लाली लसे,और धरि लाललंगूर,बज्र देह दानव दलन जय जय जय कपि शूर",आज जब वैज्ञानिक इस तस्वीर को पा गये है तो उनको आश्चर्य होने लगा है कि यह चेहरा भारत में कैसे पूजा जाने लगा,भारत के लोगों को कैसे पता लगा कि मंगल का चेहरा बन्दर जैसा है,वे बिना किसी यान या विमान के वहाँ कैसे पहुंच गये,जब लोगों को पता लगा कि भारतीयों के पास तांत्रिक विद्या है और उस विद्या से वे किसी भी ग्रह की परिक्रमा आराम से कर लेते है और किसी भी विषय को तंत्र द्वारा आराम समझ सकते है तो उन्हे भारी ग्लानि हुयी,सन दो हजार में मिली फ़ेस आफ़ मार्स की फ़ोटो उन्होने दो हजार दो में इसलिये ही प्रकाशित की थी कि कहीं पूरे विश्व में ही हनुमान जी की आराधना शुरु न हो जाये और जिन लोगों की वे खिल्ली उडाया करते थे वे ही अब उनकी खिल्ली नही उडाने लगें। भारत के अन्दर जो भी संस्कृत और हिन्दी के अक्षर है उनकी कलात्मक रचना ही देवी और देवता का रूप माना गया है,छोटा "अ" अगर सजा दिया जाये तो वह धनुष बाण लेकर खडे हुये व्यक्ति का रूप बन जाता है,शनि जी का रंग काला है और शनि के मंत्र के जाप के समय "शं" बीज का उच्चारण करते है,अगर शं के रूप को सजा दिया जाये तो वह सीधा श्रीकृष्ण भगवान का रूप बन जाता है। इसी प्रकार से "शिव" शब्द को सजाने से भगवान शंकर का रूप बनता है,विष्णु शब्द को सजाने पर वह भगवान विष्णु का रूप बनता है,""क्रीं" शब्द को सजाने पर शेर पर सवार माता दुर्गा का रूप बनता है,आदि रूप आप खुद परख सकते है। जब उन्हे भारत की तंत्र क्रिया पर विश्वास हो गया तो उन्होने भारत से हिन्दी भाषा को ही भारत से गायब करवाने की सोची न रहेगा बांस और न ही बजेगी बांसुरी।

लाल का किताब के अनुसार मंगल शनि

मंगल शनि मिल गया तो - राहू उच्च हो जाता है -              यह व्यक्ति डाक्टर, नेता, आर्मी अफसर, इंजीनियर, हथियार व औजार की मदद से काम करने वा...