गुरुवार, 29 अक्तूबर 2020

नवंबर में बदल रही है कई ग्रहों की स्थिति, जानें तिथि और प्रभाव।।जानते हैं कौन से ग्रहों की स्थिति में बदलाव हो रहाऔर उसका प्रभाव कैसा रहेगा

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नवंबर में बदल रही है कई ग्रहों की स्थिति, जानें तिथि और प्रभाव।।जानते हैं कौन से ग्रहों की स्थिति में बदलाव हो रहाऔर उसका प्रभाव कैसा रहेगा
 नवंबर का महीना त्‍योहारों की दृष्टि से भी बेहद महत्‍वपूर्ण है बल्कि इस महीने को ज्‍योतिष के लिहाज से भी बेहद खास माना जा रहा है। इस महीने कई ग्रहों की स्थि‍ति में फेरबदल होने जा रहा है और कुछ ग्रह मार्गी होने जा रहे हैं तो कुछ ग्रहों का गोचर देखने को मिलेगा। धनतेरस और दीपावली के चलते आर्थिक दृष्टि से यह महीना बहुत खास माना जा रहा है और ऐसे में ग्रहों का राशि परिवर्तन बड़ा प्रभाव डाल सकता है। आइए जानते हैं कौन से ग्रहों की स्थिति में बदलाव हो रहा है और इसका क्या प्रभाव हो सकता है।
  वक्री अवस्था में तुला राशि पर गोचर करते हुए 31 अक्टूबर शनिवार की रात्रि 11 बजकर 38 मिनट पर उदय हो रहे हैं। इस राशि पहले से ही सूर्यदेव विराजमान हैं इसलिए बुध के उदय होते ही फलित ज्योतिष में अति शुभफलदायक बुधादित्य योग का प्रभाव आरंभ हो जाएगा। जिन जातकों की जन्मकुंडलियों में ये शुभभाव में रहेंगे, उनके लिए अति शुभ फल कारक सिद्ध होंगे। नवंबर को ग्रहों के राजकुमार और सभी राशि के जातकों को बुद्धि प्रदान करने वाले बुध की राशि तुला में मार्गी होने जा रहे हैं. यानी सीधी चाल से चलना शुरू करेंगे. बुध की सीधी चाल को बहुत ही शुभ माना जाता है. इसके प्रभाव से कुछ जातक करियर और दांपत्‍य जीवन में सफलता प्राप्‍त करते हैं तो कुछ जातकों की रिलेशनशिप सुधर जाती है. वहीं इसके बाद 28 नवंबर को बुध वृश्चिक में गोचर करेंगे.
14,नवंबर को  सेनापति माने जाने वाले मंगल गुरु की राशि मीन में मार्गी होने जा रहे हैं, यानी सीधी चाल से चलना शुरू करेंगे. दीपावली पर यह मंगल की स्थिति में होने वाला यह बदलावा आर्थिक दृष्टि से बेहद अहम माना जा रहा है. मंगल का यह बदलाव कुछ जातकों के लिए मंगलकारी होगा तो  को इससे नुकसान भी हो सकता है.यह अपकी कुंडली पर निर्भर है।
 ग्रहों का राजा माने जाने वाले सूर्यदेव 16 नवंबर को अपनी निच राशि छोड़ वृश्चिक राशि में प्रवेश करेंगे. सूर्य देवता को करियर और समाज में मान सम्‍मान की दृष्टि से बेहद अहम माना जाता है. सूर्य की स्थिति में बदलाव का कुछ राशियों पर खासा प्रभाव पड़ सकता है. मंगल को वृश्चिक का स्‍वामी माना जाता है, इस वजह से इसे वृश्चिक को उग्र ग्रह की राशि माना जाता है. इस राशि में सूर्य का आना गोचर में काफी उथल-पुथल मचाने वाला साबित हो सकता ।
भौतिक सुख-सुविधाओं के साथ दांपत्‍य जीवन को प्रभावित करने वाले शुक्र अपनी ही राशि तुला में 16 नवंबर को प्रवेश करेंगे. शुक्र को प्रेम और रोमांस के मामले में भी काफी महत्‍वपूर्ण माना जाता है. वहीं इससे कुछ राशियों का यौन जीवन भी प्रभावित होता है. आपके ऊपर इस गोचर का क्‍या प्रभाव होता है, यह देखना जरूरी है.

करियर और संपत्ति प्रदान करने वाले गुरु 20 नवंबर को शनि की राशि मकर में जाने वाले हैं. मकर में गुरु के आने से मकर राशिओर लग्न के जातकों का करियर के मामले में भला हो सकता है तो वहीं अन्‍य जातकों को भी इससे लाभ हो सकता है. हालांकि गुरु और शनि को एक-दूसरे का विरोधी माना जाता है. ऐसे में गुरु का मकर में गोचर काफी महत्‍वूपर्ण माना जा रहा है.
मा- चंद्रमा का राशि परिवर्तन हर ढाई दिन में होता है। सभी ग्रहों में चंद्रमा ही एक ऐसा ग्रह है जो सबसे तेज गति से राशि परिवर्तन करता है।
केतु- इस महीने में राहु-केतु में कोई परिवर्तन नहीं होगा। राहु को अनैतिक कृत्यों का कारक भी माना जाता है। शनि के बाद राहु-केतु ऐसा ग्रह है जो एक राशि में लंबे समय तक रहता है। राहु को शनि से भी अधिक अशुभ परिणाम देने वाला ग्रह माना जाता है। दोनों ग्रह हमेशा वक्री अवस्था में रहते हैं। पूरे माह राहु वृष में और केतु वृश्चिक में रहेगा।

सोमवार, 26 अक्तूबर 2020

ग्रहों की गति चाल को बदल सकतें है meditation से,घ्यान से? Can meditation change the movement of planets?


ग्रहों की गति चाल को बदल सकतें है meditation से? Can meditation change the movement of planets?
ज्योतिष सिर्फ ग्रह नक्षत्रों का अध्‍ययन ही नहीं हे। वह तो है ही साथ ही ज्‍योतिष और अलग-अलग आयामों से मनुष्‍य के भविष्‍य को टटोलने की चेष्‍टा है कि वह भविष्‍य कैसे पकड़ा जा सके। उसे पकड़ने के लिए अतीत को पकड़ना जरूरी है। उसे पकड़ने के लिए अतीत के जो चिन्‍ह है, आपके शरीर पर और आपके मन पर भी छुट गये है। उन्‍हें पहचानना जरूरी हे। और जब से ज्‍योतिषी शरीर के चिन्‍हों पर बहुत अटक गए है तब से ज्‍योतिष की गिराई खो गई है, क्‍योंकि शरीर के चिन्‍ह बहुत उपरी है। प्रत्‍येक आत्‍मा अपना गर्भा धारण चुनती है, कि कब उसे गर्भ स्‍वीकार करना है, किस क्षण में। क्षण छोटी घटना नहीं है। क्षण का अर्थ है कि पूरा विश्‍व उस क्षण में कैसा है। और उस क्षण में पूरा विश्‍व किस तरह की सम्‍भावनाओं के द्वार खोलता है। जब कोई मनुष्‍य जन्‍म लेता है तब उस जन्‍म के क्षण में इन नक्षत्रों के बीच जो संगीत की व्‍यवस्‍था होती है। वह उस मनुष्‍य के प्राथमिक, सरल तम, संवेदनशील चित पर अंकित हो जाती है। वही उसे जीवन भर स्‍वस्‍थ और अस्‍वस्‍थ करती है। जब भी वह अपनी उस मौलिक जन्‍म के साथ पायी गई, संगीत व्‍यवस्‍था के साथ ताल मेल बना लेता है तो स्‍वस्‍थ हो जाता है। और जब उसका ताल मेल उस मूल संगीत से छूट जाता है तो वह अस्‍वस्‍थ हो जाता है। मित्रोआप देखें कुछ लोग अपनी पढाई 22 साल की उम्र में पूर्ण कर लेते हैं मगर उनको कई सालों तक कोई अच्छी नौकरी नहीं मिलती,
कुछ लोग 25 साल की उम्र में किसी कंपनी के सीईओ बन जाते हैं और 50 साल की उम्र में हमें पता चलता है वह नहीं रहे, जबकि कुछ लोग 50 साल की उम्र में सीईओ बनते हैं और 90 साल तक आनंदित रहते हैं,
बेहतरीन रोज़गार होने के बावजूद कुछ लोग अभी तक ग़ैर शादीशुदा है और कुछ लोग बग़ैर रोज़गार के भी शादी कर चुके हैं और रोज़गार वालों से ज़्यादा खुश हैं,
बराक ओबामा 55 साल की उम्र में रिटायर हो गये... जबकि ट्रंप 70 साल की उम्र में शुरुआत करते है,
कुछ लोग परीक्षा में फेल हो जाने पर भी मुस्कुरा देते हैं और कुछ लोग एक नंबर कम आने पर भी रो देते हैं, किसी को बग़ैर कोशिश के भी बहुत कुछ मिल गया और कुछ सारी ज़िंदगी बस एड़ियां ही रगड़ते रहे,तो इस दुनिया में हर शख़्स अपने ग्रह नछत्र के अधीन है और उसी अघार पर ही टाइम जोन काम करता है ।
ज़ाहिरी तौर पर हमें ऐसा लगता है कुछ लोग हमसे बहुत आगे निकल चुके हैं,
और शायद ऐसा भी लगता हो कुछ हमसे अभी तक पीछे हैं,
लेकिन हर व्यक्ति अपनी अपनी जगह ठीक है अपने अपने वक़्त के मुताबिक़....!!
किसी से भी अपनी तुलना मत कीजिए..
अपने टाइम ज़ोन में रहें
इंतज़ार कीजिए और
इत्मीनान रखिए...
ना ही आपको देर हुई है और ना ही जल्दी,
परमपिता परमेश्वर ने हम सबको अपने हिसाब से डिजा़इन किया है डिजा़इनसे देखें तो वो है आप के कर्म भगवान ने हमें कितनी स्‍वतंत्रता दी है, इसका कोई निश्चित मापदण्‍ड नहीं है। ज्‍योतिष के मूल में यही सिद्धांत है कि जो कुछ घटित हो रहा है, वह सबकुछ पूर्वनिर्धारित है। जिस प्रकार फर्श पर गिरा पानी ढलते हुए नाली तक पहुंचता है, अब नाली तक उस पानी के पहुंचने की धारा एक हो सकती है, दो हो सकती है, सैकड़ों हो सकती अथवा धारा दिशा बदल बदलकर नाली तक पहुंच सकती है। पानी का गिरना निर्धारित है और नाली तक पहुंचना निर्धारित है, इसके बीच की सभी अवस्‍थाएं स्‍वतंत्र की श्रेणी में आ सकती हैं।
यह धारा किस प्रकार गति करेगी, यह फलादेश ज्‍योतिषी अपनी सहज बुद्धि, अंतर्ज्ञान और ज्‍योतिषीय ज्ञान के बूते पर करने का प्रयास करता है।किसी भी जातक के जीवन को ग्रह कभी प्रभावित नहीं करते। जातक के जीवन को उसके कर्म ही प्रभावित करते हैं। हमारे शास्त्रों के अनुसार कर्म तीन प्रकार के होते हैं, संचित कर्म जो कि हमारे सभी पूर्वजन्‍मों के कर्मों का संचय है, प्रारब्‍ध कर्म जो हमें इस जन्‍म में भोगने के लिए मिले कर्म हैं और क्रियमाण कर्म जो हमें इस जन्‍म में करने हैं वे कर्म। जातक जो जीवन जीता है वह इन्‍हीं कर्मों के बीच रहता है। ग्रहों की चाल से जातक के प्रारब्‍ध और इस जन्‍म के कर्मों की संभावनाओं से भाग्‍य देखने का प्रयास होता है।
जब यह कहा जाता है कि फलां ग्रह की बाधा है, तो किसी यह कहा जाता है कि ग्रह की बाधा है, तो यहां ग्रह किसी प्रकार की बाधा नहीं दे रहा है, ग्रह यह इंगित कर रहा है कि पूर्वजन्‍म के किसी कर्म के कारण, इस जन्‍म में अमुक प्रकार की बाधा आ सकती है, जब कहा जाता है कि राहु की समस्‍या है तो वह राहू द्वारा पैदा की गई समस्‍या नहीं होती, बल्कि पूर्वजन्‍म के कर्म और प्रारब्‍ध में मिले कर्म के अनुसार इस जन्‍म में भोगने वाले कर्म की गति है, जिसका राहु की स्थिति से आकलन किया जा रहा है।
ज्‍www.acharyarsjesh.inयोतिष की सभी गणनाएं और फलादेश जातक के सांसारिक जीवन से ही संबंधित होते हैं। ज्‍योतिष से पूर्वजन्‍म देखने का प्रयास किया जा सकता है, या कहें कि कुछ सिद्धांतों के आधार पर ग्रहों की बाधा का कारण पूर्वजन्‍म के किसी कर्म पर आधारित बता दिया जाता है, लेकिन उससे पूर्वजन्‍म न तो देखा जा सकता है, न बदला जा सकता है। जो कुछ घटित हुआ है, इसी जन्‍म में घटित हुआ है और आगे जो भी होना है, वह इसी जन्‍म में होगा।
ज्‍योतिष के अधिकांश कारक सांसारिक कार्य कारण संबंध और साधनों का ही प्रतिनिधित्‍व करते हैं।जैसे ही
हम बात करते हैं साधना की, तो हम वास्‍तव में ज्‍योतिष से परे चले जाते हैं। सांसारिक कार्य कारण संबंधों से परे हमें ऐसा सूत्र हाथ लगता है जो कि हमें इस बंधन से मुक्‍त कर सकता है। साधक का प्रयास जितना तीव्र होगा, बंधन से मुक्ति भी उतनी ही तीव्र होगी। एक ओर जहां तंत्र इस बंधन से मुक्‍त होने में सहायक है तो दूसरी ओर योग।
महर्षि पतंजलि ने योगसूत्र की व्‍याख्‍या शुरू करने के साथ ही कहा है “योगश्चित वृत्ति निरोधः” यानी चित की वृत्तियों का निरोध ही योग है। सांसारिक साधनों से जोड़ने वाली चित की वृत्तियों का योग की शुरूआत में ही निरोध कर दिया गया है। योग के आठ अंग बताए गए हैं, यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्‍याहार, धारणा, ध्‍यान और समाधि।
इनमें से यम और नियम योग के लिए साधक को तैयार करने की विधि है, आसन देह की स्थिरता के लिए जरूरी है, प्राणायाम श्‍वास को स्थिर करने के लिए आवश्‍यक है, प्रत्‍याहार से आत्‍मा और मन पर वजन कम होगा, इसके बाद किसी एक संकल्‍प की धारणा करनी होगी, उस धारणा को स्थिर करने पर ध्‍यान होगा।
ध्‍यान से पूर्व की सभी विधियों को छोटा बड़ा किया जा सकता है, लेकिन ध्‍यान अपने आप में एक गहन पद्धति है। स्‍वामी विवेकानन्‍द ने अनुलोम-विलोम प्राणायाम के जरिए निर्विकल्‍प ध्‍यान को राजयोग बताया है। यानी हमें किसी विषय, वस्‍तु और देवता तक का ध्‍यान नहीं करना, बस जैसा है वैसा ही ध्‍यान करना है।
ध्‍यान की सैकड़ों विधियां हैं, हर जातक अपने लिए विशिष्‍ट प्रकार का ध्‍यान चुन सकता है। ओशो के लिए विपश्‍यना प्रिय थी तो विवेकानन्‍द के लिए निर्विकल्‍प ध्‍यान। बौद्ध तंत्र के अपने ध्‍यान के तरीके हैं और जैन तंत्र के अपने। सनातनी ध्‍यान की पद्धतियां तो सैकड़ों की संख्‍या में हैं। एक सामान्‍य योग गुरू आपको ध्‍यान के लिए दीक्षित कर सकता है।एक बार ध्‍यान की प्रक्रिया शुरू हो जाए तो मैं एक ज्‍योतिषी के रूप में अपने अनुभव के साथ कह सकता हूं कि ध्‍यान आपको ग्रहों द्वारा बताए गए परिणाम से दूर ले जा सकता है। दूसरे शब्‍दों में कर्म बंधनों को काटने में ध्‍यान की महत्‍वपूर्ण भूमिका है।

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नवरात्रि का रहस्य*

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नवरात्रि का रहस्य*
चान्द्रमास के अनुसार चार नवरात्रि होते है ------

*" नवशक्तिसमायुक्तां  नवरात्रं तदुच्यते*"

 नौ शक्तियोंसे युक्त होनेसे इसे नवरात्र कहा गया है। 

*"नविभि: रात्रिभि: सम्पद्यते य: स नवरात्र:"*

आषाढ शुक्लपक्ष मे आषाढी नवरात्रि।

आश्विन शुक्लपक्ष मे शारदीय नवरात्रि।

माघशुक्ल पक्ष में शिशिर नवरात्रि।

 चैत्र शुक्ल पक्ष मे बासिन्तक नवरात्रि ।

तथापि परंपरा से दो नवरात्रि -----

 चैत्र एवं आश्विन मास मे सर्वमान्य है ।

चैत्रमास मधुमास एवं आश्विनमास ऊर्ज मास नाम से प्रसिद्ध है----

जो शक्ति के पर्याय है ---

अतः शक्ति आराधना हेतु इस काल खण्ड को नवरात्र शब्द से सम्बोधित किया गया है 

 *नवानां रात्रीणां समाहारः*
 अर्थात नौ रात्रियो का समूह"

रात्रि का तात्पर्य है "विश्रामदात्री , सुखदात्री के साथ एक अर्थ जगदम्बा" भी है।

" *रात्रिरुपयतो देवी दिवारुपो महेश्वरः*"

तंत्रग्रन्थो मे तीन रात्रि ----

कालरात्रि (महाशिवरात्रि ) -----फाल्गुन कृष्णपक्ष चतुर्दशी 
महाकाली की रात्रि ।

मोहरात्रि ----आश्विन शुक्लपक्ष अष्टमी महासरस्वती की रात्रि ।

महारात्रि----- कार्तिक कृष्णपक्ष अमावश्या महालक्ष्मी की रात्रि।

एक अंक से सृष्टि का आरम्भ है । सम्पूर्ण मायिक सृष्टि का विस्तार आठ अंक तक ही है---

इससे परे ब्रह्म है जो नौ अंक का प्रतिनिधित्व करता है --

अस्तु नवमी तिथि के आगमन पर शिव शक्ति का मिलन
होता है ।

शक्ति सहित शक्तिमान को प्राप्त करने हेतु भक्त को नवधा भक्ति का आश्रय लेना पडता है ।

जीवात्मा नौ द्वार वाले पुर(शरीर) का स्वामी है -
  
" *नवछिद्रमयो देहः*" .

इन छिद्रो को पार करता हुआ जीव ब्रह्मत्व को प्राप्त करता है ---

अतः नवरात्र की प्रत्येक तिथि के लिए कुछ साधन ज्ञानियो द्वारा नियत किये गये है .....

*प्रतिपदा* ----
 इसे शुभेच्छा कहते है । जो प्रेम जगाती है प्रेम बिना सब साधन व्यर्थ है ,अस्तु प्रेम को अबिचल अडिग बनाने हेतु "शैलपुत्री" का आवाहन पूजन किया जाता है ।
 अचल पदार्थो मे पर्वत सर्वाधिक अटल होता है ।

*द्वितीया* -----
 धैर्यपूर्वक द्वैतबुद्धि का त्याग करके ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए माँ "ब्रह्मचारिणी" का पूजन करना चाहिए ।

*तृतीया* -----
 त्रिगुणातीत (सत , रज ,तम से परे) होकर "माँ चन्द्रघण्टा" का पूजन करते हुए मन की चंचलता को बश मे करना चाहिए ।

*चतुर्थी* ----
 अन्तःकरण चतुष्टय मन ,बुद्धि , चित्त एवं अहंकार
का त्याग करते हुए मन, बुद्धि को "कूष्माण्डा देवी" के चरणो मे अर्पित करे ।

*पंचमी* ----
 इन्द्रियो के पाँच विषयो अर्थात् शब्द रुप रस गन्ध स्पर्श का त्याग करते हुए "स्कन्दमाता" का ध्यान करे।

*षष्ठी* ----
 काम क्रोध मद मोह लोभ एवं मात्सर्य का परित्याग करके "कात्यायनी देवी' का ध्यान करे ।

*सप्तमी* --- 
रक्त , रस माँस मेदा अस्थि मज्जा एवं शुक्र इन सप्त धातुओ से निर्मित क्षण भंगुर दुर्लभ मानव देह को सार्थक करने के लिए "कालरात्रि देवी" की आराधना करे।

*अष्टमी* -----
 ब्रह्म की अष्टधा प्रकृति पृथ्वी जल.अग्नि वायु आकाश मन बुद्धि एवं अहंकार से परे "महागौरी" के स्वरुप का ध्यान करता हुआ ब्रह्म से एकाकार होने की प्रार्थना करे ।

*नवमी* ----
 "माँ सिद्धिदात्री" की आराधना से नवद्वार वाले शरीर की प्राप्ति को धन्य बनाता हुआ आत्मस्थ हो जाय ।

 पौराणिक दृष्टि से आठ लोकमाताएँ हैं ,तथा तन्त्रग्रन्थो मे आठ शक्तियाँ है----

1 *ब्राह्मी* - सृष्टिक्रिया प्रकाशित करती है ।

2 *माहेश्वरी* - यह प्रलय शक्ति है ।

3 *कौमारी* - आसुरी वृत्तियो का दमन करके दैवीय
गुणो की रक्षा करती है ।

4 *वैष्णवी* - सृष्टि का पालन करती है ।

5 *वाराही* - आधार शक्ति है इसे काल शक्ति कहते है ।

6 *नारसिंही* - ये ब्रह्म विद्या के रुप मे ज्ञान को प्रकाशित करती है

7 *ऐन्द्री* - ये विद्युत शक्ति के रुप मे जीव के कर्मो को प्रकाशित करती है ।

8 *चामुण्डा* - पृवृत्ति (चण्ड) निवृत्ति (मुण्ड) का विनाश करने वाली है ।

*आठ आसुरी शक्तियाँ* ----

1 मोह - महिषासुर

2 काम - रक्तबीज

3 क्रोध - धूम्रलोचन

4 लोभ - सुग्रीव

5 मद;मात्सर्य - चण्ड-मुण्ड

6 राग-द्वेष - मधु-कैटभ

7 ममता - निशुम्भ

8 अहंकार - शुम्भ

अष्टमी तिथि तक इन दुगुर्णो रुपी दैत्यो का संहार करके
नवमी तिथि को प्रकृति पुरुष का एकाकार होना ही नवरात्रि का आध्यात्मिक रहस्य है ।l🙏

शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2020

गलत दानकरने से जीवन वर्वाद हो सकता है

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गलतदानकरने से जीवन वर्वाद हो सकता है
मित्रो यह संसार बहुत ही रहस्य्मय  है !  इस ने अपने सीने में न जाने कितने रहस्यों को दवा कर रखा है !  इंसान उन्हें अभी तक न तो खोज पाया है और न ही शायद उस के लिए यह इतना सम्भव  ही है ! और फिर यहाँ इस धरती पर जिस दिन यह रहस्य खुल जाएंगे , उस दिन होगा एक नए युग का आगाज़ !
और उस युग में होगा तो केवल और केवल सुख दुःख का कहीं नाम नहीं होगा !
निश्चित तौर पर दुखों का अंत हो ही जाएगा ! पर क्या यह संभव है ?
बस यही माया है ! और यहीं से शुरू होता है हमारा कार्य हमारा उसी विषय पर  आप से बात करना चाहता हूं !
 इस घरत पर ऐसे ऐसे लोगों का ऐसे ऐसे महापुरषों का आना हुआ कि हम यदि चाहें भी तो उन की देनो का कभी क़र्ज़ नहीं उतार पाएंगे ! उन का एहसान जीवन भर नहीं उतार पाएंगे !
चाहे उन सभी के कार्य -क्षेत्र और विषय अलग अलग ही क्यों न रहे  हों पर वो सभी बढ़ तो एक ही दिशा की  तरफ ही रहे थे  ! और वो दिशा थी मानव जीवन की भलाई 
 किसी ने न्यूटन  बन कर अपने नाम के सिद्धांत बना डाले और उन  सिद्धांतों से संसार को अचम्भे में डाल दिया ! तो  किसी ने आर्य भट्ट के नाम  से जन्म लेकर  अपने सिद्धांतों से संसार को अचम्भे में डाले रखा   !  कुछ लोगों की देन से मानव ने  चाँद -मंगल पर कदम रखने के सहस  जुटाए तो  कुछ की देन से आज मानव , इंसानी हृदय को शरीर से निकाल , उसे  टेबल पर रख,  उस का ऑपरेशन करने की सोच बैठा ! इन सब  देनो को देने वाले आज चाहे हमारे बीच में नहीं हैं परन्तु आज भी वो भगवान  की तरह  जिन्दा हैं इंसानी दिलों में !  और उन की कभी मौत नहीं होगी ! उन के कार्यों के लिए उन्हें संसार सदा याद रखेगा ! उन की शरीरिक मौत चाहे हो गई हो परन्तु आध्यात्मिक मौत कभी भी न होगी !
बस यही माया है !
एक शक्ति आकाश से किसी न किसी रूप में उतरती है और इस धरा पर अपना कार्य पूरा कर के चली जाती है ! फिर इस शक्ति के आलोप होते ही इंसान उसे   बस एक ही नाम से जानने को व्याकुल हो उठता है ! और वह नाम जो  वह उस शक्ति को  देता है ,  वह   कहलाता  है..केवल और केवल ..." भगवान 
बस यही माया है !
शक्तियों का संगम भूत में भी होता आया है , वर्तमान में भी हो रहा है और भविष्य में भी होता ही रहेगा !  पर हम फिर वहीँ  अपनी बात पर लौट कर  आते हैं ! इन शक्तियों की देन के तो इतने विषय बन जाएंगे की शायद हम गिन भी न पाएं ! हम तो बस  आप को केवल एक ही शक्ति का एहसास मात्र कराना चाहेंगे ! वह शक्ति जिसे हम सब  आज से नहीं बल्कि सनातन काल से युगों युगों से जानते भी आए है , जानते भी हैं और आगे भी जानते रहेंगे ! उस महान शक्ति का नाम है "आध्यात्म और फिर आध्यात्म से इतने विषय निकल आएँगे की शायद हम उन्हें भी न गिन पाएं !
बस यही माया है !
 तो आप को आज ऐसे विषय पर ले जाना चाहता हूं जो अपने आप में अत्यंत ही आलौकिक  है !और इतना ही नहीं वह बहुत रहस्य्मय भी है ! उस के रहस्य आज भी  अनसुलझे पड़े हैं ! जब कभी भी उस के रहस्यों की बात का आगाज़ होता है तो बस  इंसान केवल और केवल असमंजस्य की स्थिति में  अवाक् सा रह जाता है ! और फिर उस के होठों से केवल यही शब्द निकलता है  क्या ऐसा हो सक्ता है ?.क्या ऐसा संभव है ?
क्या इस धरा पर कोई ऐसी शक्ति हो भी  सक्ती है ?  क्या  है यह बात संभव कि किसी का केवल जन्म समय लेकर उस के भविष्य में होने वाली बेशुमार घटनाओं के बारे में जाना जा सके ?
शायद "हाँऔर फिर शायद .... "ना " भी ! ऐसे ही चलता आया है और चलता भी रहेगा ! चले भी क्यों न ? यह चलता रहेगा और तब तक चलता रहेगा जब तक इस धरा पर दो किस्म के इंसान रहेंगे ! एक वह जो आँख मूँद कर विश्वास कर लें और दूसरे वो जो हर बात का तर्क मांगे ! बिना तर्क के विश्वास न करें !
  हम नही कहते कि आप विश्वास करें हमारी बात पर और हम यह भी नही कहते कि आप विश्वास ही न करें हमारी बात पर ! यह तो तय करना केवल और केवल आप पर निर्भर करता है ! बातों का सिलसिला बढ़ा कर हम शायद अपने विषय से दूर चले जाएं ! इस लिए हम एक ही बात जानते हैं और बार बार कहते भी हैं कि .
अध्यात्म से बहुत सारे विषयों का जन्म हुआ ! सम्मोहन , आकर्षण ,पुनर्जन्म ,आत्मा , परमात्मा ,समाधि ,और ऐसे कितने ही विषयों के बाद एक सर्वोच्च शक्ति पर जा कर अध्यात्म खड़ा हो जाता है ! और उस सर्वोच्च और महा शाक्ति का नाम है ........भगवान..!....ईश्वर ...!  पर इस को भी फिर इंसान  वहां से खड़ा हो कर देखता है जहाँ से उस के मष्तिष्क पर रह रह कर दो ही बातें हथोड़े कि तरह प्रहार  करती हैं !..... पहली यह कि ...." वह है "......और दूसरी यह भी कि वह ..."नहीं है" !
बस यही माया है !
इसी कश्मकश के बीचो बीच हम अब चलेंगे उस शक्ती  की  तरफ ..जिस की  हालत बिलकुल ऐसी ही है जैसी हम ने ऊपर ईश्वर के होने न होने की  बताई है !
उस शक्ती का नाम है    .."ज्योतिष " !
हम यहाँ पर यह कह देना उचित समझते है कि अब हम यहाँ तनिक भी उस तरफ नहीं जाएंगे कि हम यह समझाएं आप को कि यह विषय .....उचित और सत्य है या फिर बिलकुल निराधार .. मित्रों
ईश्वर के पास जाने के लिए , या मोक्ष पाने के लिए , या फिर जीवन में सफलता को प्राप्त करने के लिए  केवल तीन ही मार्ग बताए गए हैं !
पहला मार्ग है आध्यात्म या ज्ञान मार्ग  ! यानि कि अपने ज्ञान को उस  सीमा तक  बढ़ा  लेना कि जहाँ पहुँच कर दुःख सुख के अनुभव से हमारी आत्मा विचलित न हो !   यानि  आत्मा- परमात्मा का पूर्ण ज्ञान पा लेना ! लेकिन यह मार्ग बहुत कठिन है ! यह तो बहुत बड़े महापुरुष  ही कर पाते हैं !
दूसरा मार्ग है  भक्ति मार्ग ! यानि मीरा की भांति  भक्ति में इतना डूब जाना कि जहर भी पीना पड़े तो मृत्यु न हो ! लेकिन यह भी कठिन मार्ग है !
तीसरा मार्ग है कर्म मार्ग !...जो सब से सरल और सुगम है ! कर्मो को इतना अच्छा बना लेना  कि एक देवता जैसी छवि हो जाए आप की.! अस्पताल या धर्मशालाएं   बनवा देना ........... ! ...कुआँ खुदवा देना  .......!... भूखों को भोजन खिला देना  इत्यादि कितने ही कर्म हैं जिन के करते भगवान को प्राप्त किया जा सके ! राजा हरीशचंद्र  की तरह !....और  सुगम मार्ग होने से आज संसार के अधिकतर लोग इसी रस्ते पर चल पड़े हैं ! और निश्चित ही इंसान का भला भी हुआ है ! और जीवों का भी भला हुआ है !
बस यही माया है !
लेकिन हमारा  रास्ता तो ज्योतिष है न , इस लिए  हम फिर वहीं चलते हैं !एक बार हमें एक सज्जन हमारे घर पर हमें कुंडली दिखलाने  आए  .! और हम से मिल कर बोले  कि .."अपने जीवन में  हम आचार्य जी बहुत  सा दान करते  आए  है परन्तु फिर भी परिवार में सभी भाइयों से अधिक परेशानी में हम ही हैं  कारोबार खत्म हो गया है मकान भी बिकने की कगार पर है ! क्या यही फल दिया है हमें  भगवान ने हमारे  दान पुण्य का ? हमारे दूसरे भाई जिन्हों ने कभी कोई दान ही नहीं किया वह हम से आज कहीं बहुत ही  आगे हैं  ! बताइए  ऐसा क्यों ? क्या गुनाह हुआ है हम से ?
 एक बार तो हम  भी सोच में ही पड़ कर  रह गए ! अब क्या जवाब दें उन को ? दान को शायद वो अमीर बनने का फार्मूला समझ बैठे थे  ! बस यही अज्ञान है , यही माया है ! इस से निकलना ही होगा !
हम ने  उन  को तसल्ली दी ! और  उन  को यह बतलाना उचित समझा कि दान करने के कुछ नियम हैं ! लालच ,  दान को अमीरी का फार्मूला समझ कर करना  जल्दी अमीर हो जाने की चाह रखते दान करना... मित्रों
हम फिर कहते हैं  कि दान करने  के लिए भी कुछ नियम हैं ज्योतिष में। आप कौन सा दान कर सक्ते हैं और कौन सा नहीं , इस के लिए भी  कुछ नियम हैं ज्योतिष में। । जो लोग इस नियम को नहीं मानते उन्हें भोगना पड़ता है तब दुखों  का दंश. 
ज्योतिष में आज एक नया विचार उभर कर   सामने आया है !
वो यह कि  " क्या  दान करने से जीवन की मुश्किलों से बाहर आया जा सक्ता है " ?
क्या जीवन में इस से कोई बदलाव लाया जा सक्ता है !
विज्ञान कहता है ..नहीं " !
पर आध्यात्म कहता है ......" हाँ 
ऐसा चल भी रहा है और चलता भी रहेगा ! यह फ़ासला तो यूँ ही बरकरार रहेगा ! यही माया है ! बस इसे ही नहीं जान पाया कोई  !
अब हम फिर अपनी बात पर वापिस लौट कर आते हैं !
हाँ.........!  हम ने फिर उन  सज्जन से बात की ! उन से कुछ जानकारियां लीं ! फिर अपने ज्ञान का भी उपयोग किया ! उन की कुंडली भी देखी ! और फिर हम यह देख कर तो दंग ही रह गए कि वो तो इतने बरसों से गलत दान ही करते आ रहे थे ! और ऐसा करते रहने के कारण ही आज वह सज्जन उस स्थिति में पहुँच चुके थे   उन से हमें हमदर्दी भी हो आई थी ! और एक जिज्ञासा भी की उन   के कष्टों को दूर करने का कोई उपाए अगर ज्योतिष में है तो वह हम उन   को बतला दें  ! पर न जाने हमें भीतर ही भीतर क्या हो गया था कि हम अपने मन की बात उन से करने का साहस   ही नहीं जुटा पा रहे थे  बस यही माया है ..
फिर हम ने   साहस कर के उन  को समझाने का निर्णय लिया ! हम ने उन से कुछ यूँ कहना शुरू किया .
एक बार जब रामसेतु बनाया जा रहा था तो हनुमान जी ने श्री राम जी से बताया कि.."हे  भगवन, ...जिस पत्थर पर आप का नाम लिख कर समुद्र में छोड़ दिया जाता है वो तैरने लगता है ।"  तब इस पर श्री राम जी ने कहा कि हनुमान जी यह आप का वहम है । तब हनुमान जी ने एक पत्थर पर श्री राम लिखा और समुद्र में छोड़ दिया। वो तैरने लगा। राम जी फिर मुस्कराए और बोले हम भी ऐसा क़र के देखते हैं। उन्हों ने भी एक पथर पर श्री राम लिखा और समुद्र में छोड़ दिया। वो पत्थर डूब गया। तब राम जी ने हनुमान जी से कहा की देखो हनुमान जी वो आप का वहम था ! देखो ..! हम ने भी पत्थर पर श्री " राम "  लिख कर ही समुद्र में आप के सामने छोड़ा पर वोह डूब गया !  कपवह पत्थर  नही तैरा !
इस पर तब हनुमान जी तनिक मुस्करा दिए !
फिर मुस्कराकर कहा  " हे प्रभु..! जिस को भला आप ही त्याग देंगे तो उसे डूबने से फिर कौन बचा सकता है ?"
और ठीक ऐसा ही नियम तो  वर्जित दान के सम्बन्ध में भी  लागु होता है।  यदि आप घर आई हुई लक्ष्मी का   यूँ ही त्याग  करते चले जाएंगे  तो वो फिर आप के पास आएगी ही क्यों ? या फिर आप के गृहस्थ में रहना चाहेगी ही क्यों ?
हमारी  बात सुन कर वो तनिक ठिठक से गए  !
लेकिन हम ने अपनी बात जारी रखी ! और उन्हें  बताना शुरू किया कि वास्तव में सत्य क्या है !
ज्योतिष कहता है कि ..जो ग्रह हमारी कुंडली में उच्च के होंगे या फिर बहुत ही अच्छी अवस्था के होंगे यदि हम उन्हीं का ही दान करते रहे ,उन्हें त्यागते रहे तो वो फिर हमें छोड़ कर ही तो जाएंगे ! क्यों करेंगे हमारा भला ?
दान तो केवल उन ग्रहों का ही किया जाए जो हमारी कुंडली में खराब हालात में हों या खराब घरों के स्वामी बन कर बैठे हों ! ज्योतिष तो यही कहता है ! और बस यही नियम है ! जो इसे समझ लेता है वह तो जीवन में कामयाब हो जाता है और जो नहीं समझ पाता वो बस डूबता और डूबता ही चला जाता है भंवर में...........एक अनजानी सी खाई में ....! 
और फिर शायद आप नहीं जानते  कि ऐसा सिलसिला लगातार जारी रहने से क्या हो सक्ता है !
शायद आप नहीं जानते कि लगातार  ऐसा सिलसिला जारी रहने से आप कंगाल हो  सक्ते हैं ..!
ज्योतिष के अनुसार यही ही तो है ..... " आप के जीवन को हिला देने वाला सत्य ..!"
परन्तु  वास्तव में  क्या यह संभव है ? ... इस में कई दलीलें ....कई तर्क हो सकते हैं ! पर एक बात तो निश्चित तौर पर सभी मानते ही हैं ! चाहे आध्यात्मिक धारा  के लोग हों या  फिर वैज्ञानिक धारा के ! एक बात तो सभी मानते भी हैं और मानेंगे भी कि प्रत्येक क्रिया के विपरीत एक प्रतिक्रिया होती ही है !
न्यूटन का दिया गया यह सिद्धांत कोई भी मानने से इंकार नहीं कर सक्ता कि जिस किसी दिशा में हम जितना बल लगाते हैं उतना ही प्रतिक्रिया के रूप में समान अनुपात का बल विपरीत दिशा में भी लौटता है ! बस एक यही नियम ही संसार का सब से बड़ा नियम है ! एक गेंद को  जितनेबल से हम किसी दीवार पर मारेंगे ठीक उसी बल से वो गेंद विपरीत दिशा में लौट कर आती ही है ! इस को सभी मानते ही हैं ! ज्योतिष इस से कहीं आगे निकल जाता है ! वो कहता है कि किसी भी गेंद को टकरा कर वापिस लौटने से नियम यहीं समाप्त कहाँ हो जाता है ? यदि उस गेंद को दीवार पर न मारा जाए पर बल तो लगाया ही जाएगा ! तब क्या होगा ? तब प्रतिबल का क्या होगा ? न्यूटन ने कहा था कि यदि हम अपनी एक ऊँगली हिलाते हैं तो पूरा ब्रह्माण्ड ही हिल जाता है ! प्रतिबल के कारण ! पर हमें दिखाई नहीं देता ! बस यही अध्यात्म है ...! यही ज्योतिष है ...और यही नियम **********
 यह अनियम है तो इस का प्रभाव भी होना निश्चित है !
पर आध्यात्म और ज्योतिष यहाँ संतुष्ट नहीं होता !
एक पानी के किसी तालाब में पानी में पत्थर फेंकने से पानी की लहर चारों तरफ गोलाकार चक्र  के रूप में पैदा होती है और फ़ैल जाती है ! फिर आप देखेंगे कि उसी तरह वह फैलती फैलती  निश्चल हो कर आलोप हो जाती है ! वास्तव में अपनी सीमाओं को छूने तक उस का बल कम हो कर इतना रह जाता है कि वो अपनी उसी वास्तविक शक्ती  से वापिस लौटता हमें दिखाई नहीं देता ! पर लौटता तो है ! वह लहर वापिस तो आती है ! अब समय और साधन कि विभन्नता के कारण उस का रूप बदल गया है और वह लहर  ठीक उसी रूप में न लौट कर किसी और रूप में उसी तालाब की गर्त में कहीं समा जाती है ! बस यही माया है ! यही आध्यात्म है ! यही नियम दान  के सम्बन्ध में है !
दान का प्रभाव हमारे जीवन में निश्चित ही होता है !अच्छा हो ..चाहे बुरा ! पर होता तो है उच्च के ग्रह का दान करते रहने से यह  दान आप के लिए हानिकारक होगा !
बुरे ग्रह का दान ले लेने से आप के लिए धीमे जहर की तरह होगा !दान का अधिकार तो केवल और केवल पात्र को ही है। जो ग्रह जन्म कुंडली में उच्च राशि या अपनी स्वयं की राशि में स्थित हों, (स्वग्रही) उनसे संबंधित वस्तुओं का दान व्यक्ति को कभी भूलकर भी नहीं करना चाहिए।
 सूर्य मेष राशि में होने पर उच्च तथा सिंह राशि में होने पर अपनी स्वराशि अका होता है अत:1/3/5/9/4 घर अमें हो
 लाल या गुलाबी रंग के पदार्थों का दान न करें।
 गुड़, आटा, गेहूं, अतांबा आदि किसी को न दें। नहीं तो लाभ की जगह हानी होनी निश्चित है
 चंद्र वृष राशि में अउच्च तथा कर्क राशि में स्वगृही होता है। यदि आपकी जन्म कुंडली ऐसी स्थिति में हो अतो-1,2.4.6.8.9 घर में हो तो 
 दूध, चावल, चांदी, मोती एवं अन्य जलीय पदार्थों का दान कभी नहीं करें।हां कुंडली देखकर दांत दिए जा सकते हैं हां पहले घर में कुंडली देखकर दान किए जा सकते हैं
मंगल देव के बारे में कहा जाता है कि जितना मीठा बांटोंगे उतना ही अच्छा फल मिलेगा कुंडली में मंगल कहीं भी किसी भी भाव में हो आपको पूछने की जरूरत नहीं है मीठे का दान और पके हुए खाने का दान आप कभी भी कहीं भी किसी भी वक्त कर सकते हो यहां तक कि आप खून का दान भी कर सकते हो जिससे मंगल बहुत ही शुभ फल देता है बुध मिथुन राशि में तो स्वराशि तथा कन्या राशि में हो तो उच्च राशि का कहलाता है। यदि किसी जातक की जन्मपत्रिका में बुध शुभ फल देने वाली किसी स्थिति में है तो, उसे हरे रंग के पदार्थ और वस्तुओं का दान कभी नहीं करना चाहिए।
हरे रंग के वस्त्र
हरे रंग के वस्त्र, वस्तु और यहां तक कि हरे रंग के खाद्य पदार्थों का दान में ऐसे जातक के लिए निषेध है। इसके अलावा इस जातक को न तो घर में मछलियां पालनी चाहिए और न ही स्वयं कभी मछलियों को कभी दाना डालना चाहिए। नहीं तोलेने के देने पड़ जाएंगे आपका व्यापार चौपट हो जाएगा कारोबार नष्ट हो जाएगा आपकी बहन बुआ बेटी को सुख की बजाय दुख झेलने पड़ेंगे इसी तरह बृहस्पति अगर कुंडली में अच्छे घरों में अपने पक्के घर में उच घर में शुभ फलदायक है तो गुरु ग्रह के दान कभी मत करें ग्रह
बृहस्पति जब धनु या मीन राशि में हो तो स्वगृही तथा कर्क राशि में होने पर उच्चता को प्राप्त होता है। जिस जातक की कुण्डली में बृहस्पति ग्रह ऐसी स्थिति में हो तो, उसे पीले रंग के पदार्थ दान नहीं करना चाहिए। सोना, पीतल, केसर, धार्मिक साहित्य या वस्तुओं आदि का दान नहीं करना चाहिए। इन वस्तुओं का दान करने से समाज में सम्मान कम होता है कुछ लोग कुत्ते को लड्डू भी खिला खिला कर अपना कारोबार घन मान सम्मान खराव कर रहे हैइसी तरह उपाय या दान पुन किसी अच्छे एस्ट्रोलॉजर को पूछ कर ही करें है मित्रों.! बातें और भी हैं आप से शेयर करने के लिए !
लेकिन आगे बढ़ने से पहले हमें आप कि टिप्पणियों का इंतज़ार रहेगा ! तभी हम आगे बढ़ पाएंगे !
प्रणाम ..!www.acharyarajesh.in

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गलत दानकरने से जीवन वर्वाद हो सकता है


गलतदानकरने से जीवन वर्वाद हो सकता हैगलतदानकरने से जीवन वर्वाद हो सकता है
मित्रो यह संसार बहुत ही रहस्य्मय  है !  इस ने अपने सीने में न जाने कितने रहस्यों को दवा कर रखा है !  इंसान उन्हें अभी तक न तो खोज पाया है और न ही शायद उस के लिए यह इतना सम्भव  ही है ! और फिर यहाँ इस धरती पर जिस दिन यह रहस्य खुल जाएंगे , उस दिन होगा एक नए युग का आगाज़ !
और उस युग में होगा तो केवल और केवल सुख दुःख का कहीं नाम नहीं होगा !
निश्चित तौर पर दुखों का अंत हो ही जाएगा ! पर क्या यह संभव है ?
बस यही माया है ! और यहीं से शुरू होता है हमारा कार्य हमारा उसी विषय पर  आप से बात करना चाहता हूं !
 इस घरत पर ऐसे ऐसे लोगों का ऐसे ऐसे महापुरषों का आना हुआ कि हम यदि चाहें भी तो उन की देनो का कभी क़र्ज़ नहीं उतार पाएंगे ! उन का एहसान जीवन भर नहीं उतार पाएंगे !
चाहे उन सभी के कार्य -क्षेत्र और विषय अलग अलग ही क्यों न रहे  हों पर वो सभी बढ़ तो एक ही दिशा की  तरफ ही रहे थे  ! और वो दिशा थी मानव जीवन की भलाई 
 किसी ने न्यूटन  बन कर अपने नाम के सिद्धांत बना डाले और उन  सिद्धांतों से संसार को अचम्भे में डाल दिया ! तो  किसी ने आर्य भट्ट के नाम  से जन्म लेकर  अपने सिद्धांतों से संसार को अचम्भे में डाले रखा   !  कुछ लोगों की देन से मानव ने  चाँद -मंगल पर कदम रखने के सहस  जुटाए तो  कुछ की देन से आज मानव , इंसानी हृदय को शरीर से निकाल , उसे  टेबल पर रख,  उस का ऑपरेशन करने की सोच बैठा ! इन सब  देनो को देने वाले आज चाहे हमारे बीच में नहीं हैं परन्तु आज भी वो भगवान  की तरह  जिन्दा हैं इंसानी दिलों में !  और उन की कभी मौत नहीं होगी ! उन के कार्यों के लिए उन्हें संसार सदा याद रखेगा ! उन की शरीरिक मौत चाहे हो गई हो परन्तु आध्यात्मिक मौत कभी भी न होगी !
बस यही माया है !
एक शक्ति आकाश से किसी न किसी रूप में उतरती है और इस धरा पर अपना कार्य पूरा कर के चली जाती है ! फिर इस शक्ति के आलोप होते ही इंसान उसे   बस एक ही नाम से जानने को व्याकुल हो उठता है ! और वह नाम जो  वह उस शक्ति को  देता है ,  वह   कहलाता  है..केवल और केवल ..." भगवान 
बस यही माया है !
शक्तियों का संगम भूत में भी होता आया है , वर्तमान में भी हो रहा है और भविष्य में भी होता ही रहेगा !  पर हम फिर वहीँ  अपनी बात पर लौट कर  आते हैं ! इन शक्तियों की देन के तो इतने विषय बन जाएंगे की शायद हम गिन भी न पाएं ! हम तो बस  आप को केवल एक ही शक्ति का एहसास मात्र कराना चाहेंगे ! वह शक्ति जिसे हम सब  आज से नहीं बल्कि सनातन काल से युगों युगों से जानते भी आए है , जानते भी हैं और आगे भी जानते रहेंगे ! उस महान शक्ति का नाम है "आध्यात्म और फिर आध्यात्म से इतने विषय निकल आएँगे की शायद हम उन्हें भी न गिन पाएं !
बस यही माया है !
 तो आप को आज ऐसे विषय पर ले जाना चाहता हूं जो अपने आप में अत्यंत ही आलौकिक  है !और इतना ही नहीं वह बहुत रहस्य्मय भी है ! उस के रहस्य आज भी  अनसुलझे पड़े हैं ! जब कभी भी उस के रहस्यों की बात का आगाज़ होता है तो बस  इंसान केवल और केवल असमंजस्य की स्थिति में  अवाक् सा रह जाता है ! और फिर उस के होठों से केवल यही शब्द निकलता है  क्या ऐसा हो सक्ता है ?.क्या ऐसा संभव है ?
क्या इस धरा पर कोई ऐसी शक्ति हो भी  सक्ती है ?  क्या  है यह बात संभव कि किसी का केवल जन्म समय लेकर उस के भविष्य में होने वाली बेशुमार घटनाओं के बारे में जाना जा सके ?
शायद "हाँऔर फिर शायद .... "ना " भी ! ऐसे ही चलता आया है और चलता भी रहेगा ! चले भी क्यों न ? यह चलता रहेगा और तब तक चलता रहेगा जब तक इस धरा पर दो किस्म के इंसान रहेंगे ! एक वह जो आँख मूँद कर विश्वास कर लें और दूसरे वो जो हर बात का तर्क मांगे ! बिना तर्क के विश्वास न करें !
  हम नही कहते कि आप विश्वास करें हमारी बात पर और हम यह भी नही कहते कि आप विश्वास ही न करें हमारी बात पर ! यह तो तय करना केवल और केवल आप पर निर्भर करता है ! बातों का सिलसिला बढ़ा कर हम शायद अपने विषय से दूर चले जाएं ! इस लिए हम एक ही बात जानते हैं और बार बार कहते भी हैं कि .
अध्यात्म से बहुत सारे विषयों का जन्म हुआ ! सम्मोहन , आकर्षण ,पुनर्जन्म ,आत्मा , परमात्मा ,समाधि ,और ऐसे कितने ही विषयों के बाद एक सर्वोच्च शक्ति पर जा कर अध्यात्म खड़ा हो जाता है ! और उस सर्वोच्च और महा शाक्ति का नाम है ........भगवान..!....ईश्वर ...!  पर इस को भी फिर इंसान  वहां से खड़ा हो कर देखता है जहाँ से उस के मष्तिष्क पर रह रह कर दो ही बातें हथोड़े कि तरह प्रहार  करती हैं !..... पहली यह कि ...." वह है "......और दूसरी यह भी कि वह ..."नहीं है" !
बस यही माया है !
इसी कश्मकश के बीचो बीच हम अब चलेंगे उस शक्ती  की  तरफ ..जिस की  हालत बिलकुल ऐसी ही है जैसी हम ने ऊपर ईश्वर के होने न होने की  बताई है !
उस शक्ती का नाम है    .."ज्योतिष " !
हम यहाँ पर यह कह देना उचित समझते है कि अब हम यहाँ तनिक भी उस तरफ नहीं जाएंगे कि हम यह समझाएं आप को कि यह विषय .....उचित और सत्य है या फिर बिलकुल निराधार .. मित्रों
ईश्वर के पास जाने के लिए , या मोक्ष पाने के लिए , या फिर जीवन में सफलता को प्राप्त करने के लिए  केवल तीन ही मार्ग बताए गए हैं !
पहला मार्ग है आध्यात्म या ज्ञान मार्ग  ! यानि कि अपने ज्ञान को उस  सीमा तक  बढ़ा  लेना कि जहाँ पहुँच कर दुःख सुख के अनुभव से हमारी आत्मा विचलित न हो !   यानि  आत्मा- परमात्मा का पूर्ण ज्ञान पा लेना ! लेकिन यह मार्ग बहुत कठिन है ! यह तो बहुत बड़े महापुरुष  ही कर पाते हैं !
दूसरा मार्ग है  भक्ति मार्ग ! यानि मीरा की भांति  भक्ति में इतना डूब जाना कि जहर भी पीना पड़े तो मृत्यु न हो ! लेकिन यह भी कठिन मार्ग है !
तीसरा मार्ग है कर्म मार्ग !...जो सब से सरल और सुगम है ! कर्मो को इतना अच्छा बना लेना  कि एक देवता जैसी छवि हो जाए आप की.! अस्पताल या धर्मशालाएं   बनवा देना ........... ! ...कुआँ खुदवा देना  .......!... भूखों को भोजन खिला देना  इत्यादि कितने ही कर्म हैं जिन के करते भगवान को प्राप्त किया जा सके ! राजा हरीशचंद्र  की तरह !....और  सुगम मार्ग होने से आज संसार के अधिकतर लोग इसी रस्ते पर चल पड़े हैं ! और निश्चित ही इंसान का भला भी हुआ है ! और जीवों का भी भला हुआ है !
बस यही माया है !
लेकिन हमारा  रास्ता तो ज्योतिष है न , इस लिए  हम फिर वहीं चलते हैं !एक बार हमें एक सज्जन हमारे घर पर हमें कुंडली दिखलाने  आए  .! और हम से मिल कर बोले  कि .."अपने जीवन में  हम आचार्य जी बहुत  सा दान करते  आए  है परन्तु फिर भी परिवार में सभी भाइयों से अधिक परेशानी में हम ही हैं  कारोबार खत्म हो गया है मकान भी बिकने की कगार पर है ! क्या यही फल दिया है हमें  भगवान ने हमारे  दान पुण्य का ? हमारे दूसरे भाई जिन्हों ने कभी कोई दान ही नहीं किया वह हम से आज कहीं बहुत ही  आगे हैं  ! बताइए  ऐसा क्यों ? क्या गुनाह हुआ है हम से ?
 एक बार तो हम  भी सोच में ही पड़ कर  रह गए ! अब क्या जवाब दें उन को ? दान को शायद वो अमीर बनने का फार्मूला समझ बैठे थे  ! बस यही अज्ञान है , यही माया है ! इस से निकलना ही होगा !
हम ने  उन  को तसल्ली दी ! और  उन  को यह बतलाना उचित समझा कि दान करने के कुछ नियम हैं ! लालच ,  दान को अमीरी का फार्मूला समझ कर करना  जल्दी अमीर हो जाने की चाह रखते दान करना... मित्रों
हम फिर कहते हैं  कि दान करने  के लिए भी कुछ नियम हैं ज्योतिष में। आप कौन सा दान कर सक्ते हैं और कौन सा नहीं , इस के लिए भी  कुछ नियम हैं ज्योतिष में। । जो लोग इस नियम को नहीं मानते उन्हें भोगना पड़ता है तब दुखों  का दंश. 
ज्योतिष में आज एक नया विचार उभर कर   सामने आया है !
वो यह कि  " क्या  दान करने से जीवन की मुश्किलों से बाहर आया जा सक्ता है " ?
क्या जीवन में इस से कोई बदलाव लाया जा सक्ता है !
विज्ञान कहता है ..नहीं " !
पर आध्यात्म कहता है ......" हाँ 
ऐसा चल भी रहा है और चलता भी रहेगा ! यह फ़ासला तो यूँ ही बरकरार रहेगा ! यही माया है ! बस इसे ही नहीं जान पाया कोई  !
अब हम फिर अपनी बात पर वापिस लौट कर आते हैं !
हाँ.........!  हम ने फिर उन  सज्जन से बात की ! उन से कुछ जानकारियां लीं ! फिर अपने ज्ञान का भी उपयोग किया ! उन की कुंडली भी देखी ! और फिर हम यह देख कर तो दंग ही रह गए कि वो तो इतने बरसों से गलत दान ही करते आ रहे थे ! और ऐसा करते रहने के कारण ही आज वह सज्जन उस स्थिति में पहुँच चुके थे   उन से हमें हमदर्दी भी हो आई थी ! और एक जिज्ञासा भी की उन   के कष्टों को दूर करने का कोई उपाए अगर ज्योतिष में है तो वह हम उन   को बतला दें  ! पर न जाने हमें भीतर ही भीतर क्या हो गया था कि हम अपने मन की बात उन से करने का साहस   ही नहीं जुटा पा रहे थे  बस यही माया है ..
फिर हम ने   साहस कर के उन  को समझाने का निर्णय लिया ! हम ने उन से कुछ यूँ कहना शुरू किया .
एक बार जब रामसेतु बनाया जा रहा था तो हनुमान जी ने श्री राम जी से बताया कि.."हे  भगवन, ...जिस पत्थर पर आप का नाम लिख कर समुद्र में छोड़ दिया जाता है वो तैरने लगता है ।"  तब इस पर श्री राम जी ने कहा कि हनुमान जी यह आप का वहम है । तब हनुमान जी ने एक पत्थर पर श्री राम लिखा और समुद्र में छोड़ दिया। वो तैरने लगा। राम जी फिर मुस्कराए और बोले हम भी ऐसा क़र के देखते हैं। उन्हों ने भी एक पथर पर श्री राम लिखा और समुद्र में छोड़ दिया। वो पत्थर डूब गया। तब राम जी ने हनुमान जी से कहा की देखो हनुमान जी वो आप का वहम था ! देखो ..! हम ने भी पत्थर पर श्री " राम "  लिख कर ही समुद्र में आप के सामने छोड़ा पर वोह डूब गया !  कपवह पत्थर  नही तैरा !
इस पर तब हनुमान जी तनिक मुस्करा दिए !
फिर मुस्कराकर कहा  " हे प्रभु..! जिस को भला आप ही त्याग देंगे तो उसे डूबने से फिर कौन बचा सकता है ?"
और ठीक ऐसा ही नियम तो  वर्जित दान के सम्बन्ध में भी  लागु होता है।  यदि आप घर आई हुई लक्ष्मी का   यूँ ही त्याग  करते चले जाएंगे  तो वो फिर आप के पास आएगी ही क्यों ? या फिर आप के गृहस्थ में रहना चाहेगी ही क्यों ?
हमारी  बात सुन कर वो तनिक ठिठक से गए  !
लेकिन हम ने अपनी बात जारी रखी ! और उन्हें  बताना शुरू किया कि वास्तव में सत्य क्या है !
ज्योतिष कहता है कि ..जो ग्रह हमारी कुंडली में उच्च के होंगे या फिर बहुत ही अच्छी अवस्था के होंगे यदि हम उन्हीं का ही दान करते रहे ,उन्हें त्यागते रहे तो वो फिर हमें छोड़ कर ही तो जाएंगे ! क्यों करेंगे हमारा भला ?
दान तो केवल उन ग्रहों का ही किया जाए जो हमारी कुंडली में खराब हालात में हों या खराब घरों के स्वामी बन कर बैठे हों ! ज्योतिष तो यही कहता है ! और बस यही नियम है ! जो इसे समझ लेता है वह तो जीवन में कामयाब हो जाता है और जो नहीं समझ पाता वो बस डूबता और डूबता ही चला जाता है भंवर में...........एक अनजानी सी खाई में ....! 
और फिर शायद आप नहीं जानते  कि ऐसा सिलसिला लगातार जारी रहने से क्या हो सक्ता है !
शायद आप नहीं जानते कि लगातार  ऐसा सिलसिला जारी रहने से आप कंगाल हो  सक्ते हैं ..!
ज्योतिष के अनुसार यही ही तो है ..... " आप के जीवन को हिला देने वाला सत्य ..!"
परन्तु  वास्तव में  क्या यह संभव है ? ... इस में कई दलीलें ....कई तर्क हो सकते हैं ! पर एक बात तो निश्चित तौर पर सभी मानते ही हैं ! चाहे आध्यात्मिक धारा  के लोग हों या  फिर वैज्ञानिक धारा के ! एक बात तो सभी मानते भी हैं और मानेंगे भी कि प्रत्येक क्रिया के विपरीत एक प्रतिक्रिया होती ही है !
न्यूटन का दिया गया यह सिद्धांत कोई भी मानने से इंकार नहीं कर सक्ता कि जिस किसी दिशा में हम जितना बल लगाते हैं उतना ही प्रतिक्रिया के रूप में समान अनुपात का बल विपरीत दिशा में भी लौटता है ! बस एक यही नियम ही संसार का सब से बड़ा नियम है ! एक गेंद को  जितनेबल से हम किसी दीवार पर मारेंगे ठीक उसी बल से वो गेंद विपरीत दिशा में लौट कर आती ही है ! इस को सभी मानते ही हैं ! ज्योतिष इस से कहीं आगे निकल जाता है ! वो कहता है कि किसी भी गेंद को टकरा कर वापिस लौटने से नियम यहीं समाप्त कहाँ हो जाता है ? यदि उस गेंद को दीवार पर न मारा जाए पर बल तो लगाया ही जाएगा ! तब क्या होगा ? तब प्रतिबल का क्या होगा ? न्यूटन ने कहा था कि यदि हम अपनी एक ऊँगली हिलाते हैं तो पूरा ब्रह्माण्ड ही हिल जाता है ! प्रतिबल के कारण ! पर हमें दिखाई नहीं देता ! बस यही अध्यात्म है ...! यही ज्योतिष है ...और यही नियम **********
 यह अनियम है तो इस का प्रभाव भी होना निश्चित है !
पर आध्यात्म और ज्योतिष यहाँ संतुष्ट नहीं होता !
एक पानी के किसी तालाब में पानी में पत्थर फेंकने से पानी की लहर चारों तरफ गोलाकार चक्र  के रूप में पैदा होती है और फ़ैल जाती है ! फिर आप देखेंगे कि उसी तरह वह फैलती फैलती  निश्चल हो कर आलोप हो जाती है ! वास्तव में अपनी सीमाओं को छूने तक उस का बल कम हो कर इतना रह जाता है कि वो अपनी उसी वास्तविक शक्ती  से वापिस लौटता हमें दिखाई नहीं देता ! पर लौटता तो है ! वह लहर वापिस तो आती है ! अब समय और साधन कि विभन्नता के कारण उस का रूप बदल गया है और वह लहर  ठीक उसी रूप में न लौट कर किसी और रूप में उसी तालाब की गर्त में कहीं समा जाती है ! बस यही माया है ! यही आध्यात्म है ! यही नियम दान  के सम्बन्ध में है !
दान का प्रभाव हमारे जीवन में निश्चित ही होता है !अच्छा हो ..चाहे बुरा ! पर होता तो है उच्च के ग्रह का दान करते रहने से यह  दान आप के लिए हानिकारक होगा !
बुरे ग्रह का दान ले लेने से आप के लिए धीमे जहर की तरह होगा !दान का अधिकार तो केवल और केवल पात्र को ही है। जो ग्रह जन्म कुंडली में उच्च राशि या अपनी स्वयं की राशि में स्थित हों, (स्वग्रही) उनसे संबंधित वस्तुओं का दान व्यक्ति को कभी भूलकर भी नहीं करना चाहिए।
 सूर्य मेष राशि में होने पर उच्च तथा सिंह राशि में होने पर अपनी स्वराशि अका होता है अत:1/3/5/9/4 घर अमें हो
 लाल या गुलाबी रंग के पदार्थों का दान न करें।
 गुड़, आटा, गेहूं, अतांबा आदि किसी को न दें। नहीं तो लाभ की जगह हानी होनी निश्चित है
 चंद्र वृष राशि में अउच्च तथा कर्क राशि में स्वगृही होता है। यदि आपकी जन्म कुंडली ऐसी स्थिति में हो अतो-1,2.4.6.8.9 घर में हो तो 
 दूध, चावल, चांदी, मोती एवं अन्य जलीय पदार्थों का दान कभी नहीं करें।हां कुंडली देखकर दांत दिए जा सकते हैं हां पहले घर में कुंडली देखकर दान किए जा सकते हैं
मंगल देव के बारे में कहा जाता है कि जितना मीठा बांटोंगे उतना ही अच्छा फल मिलेगा कुंडली में मंगल कहीं भी किसी भी भाव में हो आपको पूछने की जरूरत नहीं है मीठे का दान और पके हुए खाने का दान आप कभी भी कहीं भी किसी भी वक्त कर सकते हो यहां तक कि आप खून का दान भी कर सकते हो जिससे मंगल बहुत ही शुभ फल देता है बुध मिथुन राशि में तो स्वराशि तथा कन्या राशि में हो तो उच्च राशि का कहलाता है। यदि किसी जातक की जन्मपत्रिका में बुध शुभ फल देने वाली किसी स्थिति में है तो, उसे हरे रंग के पदार्थ और वस्तुओं का दान कभी नहीं करना चाहिए।
हरे रंग के वस्त्र
हरे रंग के वस्त्र, वस्तु और यहां तक कि हरे रंग के खाद्य पदार्थों का दान में ऐसे जातक के लिए निषेध है। इसके अलावा इस जातक को न तो घर में मछलियां पालनी चाहिए और न ही स्वयं कभी मछलियों को कभी दाना डालना चाहिए। नहीं तोलेने के देने पड़ जाएंगे आपका व्यापार चौपट हो जाएगा कारोबार नष्ट हो जाएगा आपकी बहन बुआ बेटी को सुख की बजाय दुख झेलने पड़ेंगे इसी तरह बृहस्पति अगर कुंडली में अच्छे घरों में अपने पक्के घर में उच घर में शुभ फलदायक है तो गुरु ग्रह के दान कभी मत करें ग्रह
बृहस्पति जब धनु या मीन राशि में हो तो स्वगृही तथा कर्क राशि में होने पर उच्चता को प्राप्त होता है। जिस जातक की कुण्डली में बृहस्पति ग्रह ऐसी स्थिति में हो तो, उसे पीले रंग के पदार्थ दान नहीं करना चाहिए। सोना, पीतल, केसर, धार्मिक साहित्य या वस्तुओं आदि का दान नहीं करना चाहिए। इन वस्तुओं का दान करने से समाज में सम्मान कम होता है कुछ लोग कुत्ते को लड्डू भी खिला खिला कर अपना कारोबार घन मान सम्मान खराव कर रहे हैइसी तरह उपाय या दान पुन किसी अच्छे एस्ट्रोलॉजर को पूछ कर ही करें है मित्रों.! बातें और भी हैं आप से शेयर करने के लिए !
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शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2020

नवरात्रि 2020/शुभ मुहूर्त


भगवती को पूजने ,मनाने, एवं शुभ कृपा प्राप्त करने का सबसे उत्तम समय आश्विन शुक्ल पक्ष में प्रतिपदा से नवमी तक होता है। आश्विन मास में पड़ने वाले इस नवरात्र को शारदीय नवरात्र कहा जाता है। इस नवरात्र की विशेषता है कि हम घरों में कलश स्थापना के साथ-साथ पूजा पंडालों में भी स्थापित करके मां भगवती की आराधना करते हैं। मित्रों17अक्टूबर कल से नवरात्र प्रारंभ हो रहे है. इसके साथ ही प्रॉपर्टी, व्हीकल और अन्य चीजों की खरीदारी के लिए नवरात्र में हर दिन शुभ मुहूर्त रहेगा. देवी भागवत के अनुसार इस बार शनिवार को घट स्थापना होने से देवी का वाहन घोड़ा रहेगा. नवरात्रि का पहला दिन शनिवार होने के कारण मां दुर्गा घोड़े की सवारी करते हुए पृथ्वी पर आएंगी. जब मां दुर्गा की सवारी घोड़ा रहता है तब पड़ोसी देशों से युद्ध, गृह युद्ध, आंधी-तूफान और सत्ता में उथल-पुथल जैसी गतिविधियां बढ़ने की आशंका रहती है. साथ ही नवरात्र का आखिरी दिन रविवार होने से देवी भैंसे पर सवार होकर जाएंगी, इसके अशुभ फल के अनुसार देश में रोग और शोक बढ़ने की आशंका है.17 अक्टूबर को मां शैलपुत्री पूजा घटस्थापना,
18 अक्टूबर को मां ब्रह्मचारिणी पूजा,
19 अक्टूबर को मां चंद्रघंटा पूजा,
20 अक्टूबर को मां कुष्मांडा पूजा,
21 अक्टूबर को मां स्कंदमाता पूजा,
22 अक्टूबर षष्ठी मां कात्यायनी पूजा,
23 अक्टूबर को मां कालरात्रि पूजा,
24 अक्टूबर को मां महागौरी दुर्गा पूजा,
महा नवमी पूजा दुर्गा महाष्टमी पूजा,
25 अक्टूबर को मां सिद्धिदात्री पूजा
नवरात्रि पारणा विजय दशमी, 26 अक्टूबर को दुर्गा विसर्जन किया जाएगा।
इस बार सर्वार्थसिद्धि योग में नवरात्र शुरू हो रहा है. नवरात्रि के पहले दिन घट स्थापना शुभ मुहूर्त में होगी. ज्योतिष शास्त्र में इस योग को बेहद शुभ माना जाता है, जो पूजा उपासना में अभीष्ट सिद्धि देगा. साथ ही दशहरे तक खरीदारी के लिए त्रिपुष्कर, सौभाग्य और रवियोग जैसे खास मुहूर्त भी रहेंगे. इन शुभ संयोग में प्रॉपर्टी, व्हीकल, फर्नीचर, भौतिक सुख-सुविधाओं के सामान और अन्य तरह की मांगलिक कामों के लिए खरीदारी करना शुभ रहेगा
स्थापना का शुभ मुहूर्त
शारदीय नवरात्र का आरंभ 17 अक्टूबर आश्चिन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारम्भ होगी. दुर्गा पूजा का आरंभ घट स्थापना से शुरू हो जाता है. घट स्थापना मुहूर्त का समय 17 अक्टूबर दिन शनिवार को प्रात: काल 06 बजकर 27 मिनट से 10 बजकर 13 मिनट तक है. घटस्थापना के लिए अभिजित मुहूर्त सुबह 11 बजकर 44 मिनट से दोपहर 12 बारह 29 मिनट तकरहेगा.अभिजीत मुहूर्त सभी शुभ कार्यों के लिए अति उत्तम होता है। चूंकि चित्रा नक्षत्र में कलश स्थापना प्रशस्त नहीं माना गया है। अतः चित्रा नक्षत्र की समाप्ति दिन में 2:20 बजे के बाद किया जा सकेगा।
स्थिर लग्न कुम्भ दोपहर 2:30 से 3:55 तक होगा साथ ही शुभ चौघड़िया भी इस समय प्राप्त होगी अतः यह अवधि कलश स्थापना हेतु अतिउत्तम है।
दूसरा स्थिर लग्न वृष रात में 07:06 से 09:02 बजे तक होगा परंतु चौघड़िया 07:30 तक ही शुभ है अतः 07:08 से 07:30 बजे के बीच मे कलश स्थापना किया जा सकता है
इस नवरात्रि के दौरान तीन स्वार्थ सिद्धि योग 18 अक्टूबर, 19 अक्टूबर और 23 अक्टूबर को बन रहा है। वहीं, एक त्रिपुष्कर योग 18 अक्टूबर को बन रहा है। नवरात्रि के दौरान गुरु व शनि स्वगृही रहेंगे जो बेहद ही शुभ फलदायी है। इस नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती के साथ-साथ दुर्गा चालीसा का पाठ करना लाभकर होगा। इस दौरान झूठ, फरेब व व्यसन से बचना चाहिए। कन्या पूजन के साथ-साथ नौ वर्ष से नीचे की कन्याओं को उपहार भी देना चाहिए।

बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

ज्योतिष की राय: ग्रहों की चाल देती है।मंदा तेजी व्यापार भविष्य

ज्यो
तिष की राय: ग्रहों की चाल देती है।मंदा तेजी व्यापार भविष्य
बुध14 अक्तूबर की सुबह 6 बजकर 30 पर तुला राशि पर गोचर करते हुए वक्री हो रहे हैं, पुनः 3 नवंबर की रात्रि 11 बजकर 15 पर इसी राशि पर भ्रमण करते हुए मार्गी होंगेउसके वाद  सिर्फ सूर्य अपना राशि परिवर्तन करता है, यानि कि कन्या राशि पर से निकलकर तुला राशि पर प्रवेश करता है। बुध की पोजीशन में दो तबदीलियां होती हैं-वह वक्री होता है तथा पश्चिम में अस्त होता है। आगामी 17 अक्‍टूबर, शनिवार को सूर्य तुला राशि में प्रवेश करने वाले हैं। इस दिन से ही नवरात्रि का भी आरंभ हो रहा है। इस बार मलमास के चलते नवरात्रि एक माह देर से शुरू होगी। मलमास समाप्ति के बाद यह पहला ग्रह है जो राशि बदलेगा। जब भी सूर्य का राशि परिवर्तन होता है, उसे संक्रांति के रूप में जाना जाता है। तुला राशि में सूर्य 16 नवंबर तक रहेंगे इस तरह सूर्य के राशि परिवर्तन के कारण बनने वाले ग्रह योग को देखने से मालूम देता है कि सप्ताह के दौरान जहां घटा-बढ़ी होती रहेगी, वहां एक लाइन भी शुरू हो सकती है, इसलिए मार्कीट को देख-परख कर काम करना चाहिए।
सप्ताह के दौरान बाजार में नर्मी तथा तेजी दोनों तरह का असर देखने को मिल सकता है इसलिए काम धीरज के साथ करना चाहिए तथा सौदा के साथ चिपके न रहना चाहिए। इस सप्ताह में 14, 19, 20 अक्तूबर खास दिन। 14 तथा 19 अक्तूबर दोनों दिन बाजार झटका के साथ एक तरफ चल सकता है।
तेल सोया, तेल मूंगफली, सरसों, अलसी, तोरिया, तिल, तेल, बिनौला, अरंडी, खल, सींगदाना, मेंथा, पिपरामैंट, अन्य तेल पदार्थों, वनस्पति इत्यादि में 14 अक्तूबर को तेजी का झटका, 15-16 नर्मी असर। फिर 19 को रेट जम्प कर सकते हैं।
 20 अक्तूबर शाम साढ़े पांच बजे के बाद रेट टूटने की आशा। काटन, पटसन, रूई, कपास, सन्न, सूत, सिल्क, स्टैपल, ऊनी, सूती, रेशमी कपड़े तथा यारन इत्यादि में 14, 19, 20 तारीखों को बाजार रुख पर नजर रखनी ठीक रहेगी। शेयर मार्कीट में 14 तथा 19 अक्तूबर दोनों दिन तेजी के झटके आने की आशा, बीच में 15, 16 को बाजार कमजोर रहेगा। सोना, चांदी, हीरे, जवाहरात, बहुमूल्य पत्थरों, बहुमूल्य धातुओं, कापर इत्यादि में 14 अक्तूबर को एक तरफा झटका आ सकता है, 15, 16 तारीख को रेट कमजोर रहेंगे, 17-18 को बाजार की छुट्टी। 19 अक्तूबर तेजी का झटका आने पर 20 तारीख को भी तेजी रहेगी, अलबत्ता 20 अक्तूबर शाम  पांच बजे के बाद रेट झटका के साथ एक तरफ चल सकते हैं। गुड़, खांड, शक्कर तथा अन्य मीठी रसदार वस्तुओं तथा मिश्री इत्यादि में 14 तारीख को बाजार एक तरफ चलेगा, फिर 19, 20 अक्तूबर तेजी वाले दिन।
गेहूं, गवारा, मटर, मक्की, चने, जौ, बाजरा, अरहर, मूंग, माष तथा अन्य अनाज पदार्थों, दालों इत्यादि में  14, 19, 20 तारीखें तेजी वाली होंगी। बीच में 15, 16 को रेट नर्म चलेंगे। हाजिर मार्कीट में 15, 16 अक्तूबर को छोड़ कर बाकी दिनों में लवाल काफी एक्टिव नजर आएगा।18 तारीख से, शेयर बाजारों में मंदी देखी जा सकती है। इसके साथ, पूरा स्टॉक मार्केट एकतरफा गिरावट से गुजरेगा, जो वस्तुओं के साथ-साथ विभिन्न क्षेत्रों के शेयरों की कीमतों को प्रभावित करेगा। बैंकिंग, वित्त, भारी इंजीनियरिंग, तंबाकू, कॉस्मेटिक सामान, फार्मा सेक्टर, सार्वजनिक उद्यम, कंप्यूटर सॉफ्टवेयर, सूचना प्रौद्योगिकी, शिपिंग कॉरपोरेशन, परिवहन आदि के ग्राफ में बड़ी गिरावट देखी जाएगी। इसलिए, तेजड़ियों और खरीदारों को सलाह दी जाती है, कि वे अपने निवेश के बारे में सतर्क रहें और पहले अच्छी तरह से सोच-विचार करने के बाद ही कोई निर्णय लें। क्योंकि मित्रों  अक्टूबर से कार्तिक माह की शुरुआत हो रही है अत: व्यापारी को बढ़े भाव (बेचान) बोलकर घटे भाव ही खरीद करना लाभप्रद रहेगा।      
अत: भावों में बहुत उतार-चढ़ाव आएगा। अत: व्यापारी बंधु हर समय भावों को देखते हुए सतर्कतापूर्वक व्यापार करें। 
अत: जैसे ही बढ़े भाव मिलें, व्यापारी को लाभ उठा लेना चाहिए। यह लाभप्रद रहेगा।

गुरुवार, 8 अक्तूबर 2020

कुण्डली में जन्म के सूर्यदेव पर सभी ग्रहों का गोचरजन्म कुंडली सेकुण्डली में जन्म के सूर्यदेव पर सभी ग्रहों का गोचरजन्म कुंडली सेकुण्डली में जन्म के सूर्यदेव पर सभी ग्रहों का गोचरजन्म कुंडली से

कुण्डली में जन्म के सूर्यदेव पर सभी ग्रहों का
गोचरजन्म कुंडली से भविष्य का फल बताते हुए गोचर के द्वारा समय तक पहुंचा जा सकता है| परन्तु ज्योतिष में कुछ ग्रह ऐसे है जो लम्बे समय तक एक ही राशि में टिके रहते है| ऐसे में उन ग्रहों का फल कब घटित होगा यह बताना बहुत मुश्किल हो जाता है। न्डली के ऊपर जब गोचर के ग्रह अपनी युति देते है,तो वर्तमान में चल रही गति विधियों के बारे में ज्ञान मिलता है,ज्योतिषी इस बात के सहारे ही अपनी ज्योतिष विद्या का मान रखते है,जब किसी भी जातक के सामने चलता हुआ वर्तमान और बीता हुआ भूत बखान किया जाता है,और जातक हर बात पर सही का टिक करता जाता है,तब जाकर भविष्य के बारे में कथन करना उपयुक्त माना जाता है,और की गयी भविष्यवाणियां खरी उतरती है,ग्रह गोचर में अपना फ़ल जो देता है,उसमे ध्यान यह भी रखना पडता है,कि जो ग्रह बक्री है,या अस्त है,वह जो भी फ़लादेश लिखा जा रहा है,विपरीत कथन माना जा सकता है,साथ ही जो भी खराब ग्रह खराब स्थान यानी छ: आठ या बारहवें भाव में है,वह बजाय गलत प्रभाव के अच्छा प्रभाव देगा,जब वह बक्री हो या अस्त हो.यही बात स्थान परिवर्तन के मामले में देखी जाती है,और फ़लकथन करते वक्त ध्यान रखा जाता है.प्रस्तुत है गोचर में कुन्डली के ग्रहों पर गुजरने के दौरान मिलने वाले फ़ल
सूर्य पर गोचर से विभिन्न ग्रहों के गुजरने का फ़ल:-
सूर्य पिता है,सूर्य जातक की आत्मा है और सूर्य ही पुत्र है,जब चन्द्र गोचर से जन्म के सूर्य से गुजरता है,तो पिता को अपमान सहना पडता है,शरीर का सूर्य वीर्य के नाम से जाना जाता है,किसी छलिया स्त्री से या किसी छलिया पुरुष से ठगा जाना और अपमान का सामना करना पड सकता है,इन किसी भी कारकों के अन्दर अपने वीर्य को बरबाद किया जा सकता है,सूर्य पिता है,और चन्द्र यात्रा है,पिता को यात्रा भी करनी पड सकती है,जातक के साथ भी यही हो सकता है.चन्द्रमा का सूर्य के ऊपर से गुजरना मात्र सवा दो दिन का माना जाता है,और प्रभाव भी अन्त की सवा दो घडी का होता है.सूर्य और चन्द्र मिलकर महिने का काला दिन भी माना जाता है,इस दौरान किसी भी तरह से किया गया तांत्रिक कार्य शरीर पर प्रभावी हो जाता है,इन दिनो जातक को शमशान यात्रा,किसी तांत्रिक के पास जाना,और किसी प्रकार से किसी दूसरे के प्रति की जाने वाली बुराई से बचना चाहिये,अन्यथा काया और आम में दाग आसानी से लग सकता है.अगर सूर्य कुन्डली में बलवान है,और चन्द्रमा कमजोर है तो जातक की अहम की मात्रा में भडकाव भी आ सकता है,जातक के दिमाग में उग्रता आने से वह किसी भी प्रकार से अपने को बरवाद भी कर सकता है.

मन्गल का सूर्य के ऊपर गोचर:-
मन्गल सूर्य की स्थिति वाली राशि में आता है,तो जातक को खून सम्बन्धी बीमारी से जूझना पड सकता है,पित्त की अधिकता से जातक को उल्टी या दस्त वाली बीमारी हो सकती है,भाई का पिता के साथ कोई जिद्दीपना हो सकता है,पति का पिता के साथ झगडा हो सकता है,हड्डी वाली बीमारियों के लिये किसी डाक्टर से मदद ली जा सकती है,पुलिस का सरकारी कार्यों में हस्तक्षेप हो सकता है,खुद के साथ भी पुलिस के साथ किसी बात को लेकर कानूनी मामला फ़ंस सकता है,इनकम टेक्स या किसी सरकारी कर के बारे में  छापा पड सकता है.

बुध का सूर्य के ऊपर गोचर:-
बुध भूमि का कारक माना जाता है,पिता को या खुद को किसी प्रकार की भूमि का लाभ हो सकता है,भूमि चाहे किराये से या किसी प्रकार से कुछ समय के लिये बैठने के लिये प्रदान की गयी हो,बुध हर हाल में सूर्य का मित्र है,जातक को किसी मित्र से मिलना भी होता है,सूर्य जातक है,तो बुध व्यापार भी है,जातक को कोई नया व्यापार सामने आ रहा हो,सूर्य जातक है तो बुध बहिन बुआ बेटी भी है,जातक के पास मिलने के लिये बहिन बुआ बेटी आ रही हो,बुध बक्री है,और गोचर से बुध अगर सूर्य से मिलने आ रहा है,तो लम्बे समय से पास में रहने वाली बहिन बुआ बेटी कही कुछ समय के लिये जा रही हो.

गुरु का सूर्य के ऊपर गोचर
सूर्य और गुरु दोनो मिलकर जीवात्मा संयोग कहलाता है,गुरु जीव और सूर्य आत्मा दोनो मिलकर महानता की तरफ़ अपने को ले जाते है,गुरु अगर कुन्डली में बलवान है तो जातक को इस समय में काफ़ी सफ़लता मिलती है,अगर धन के भाव का प्रभाव रखता है,तो धन की सफ़लता मिलती है,अगर भाई बहिन के भाव के प्रति अपनी भावना रखता है,तो उनका सहयोग मिलता है,घर और परिवार के प्रति भावना है,तो घर बनता है,और माता के लिये तथा सम्बन्धित जनता के लिये फ़ायदा देने वाला होता है,शिक्षा से जुडा हुआ तो शिक्षा मे सफ़लता देता है,कर्जा दुश्मनी बीमारी से जुडा हुआ है तो उसमे फ़ायदा देता है,जीवन साथी के भाव से जुडा है,तो जीवन साथी या साझेदार से फ़ायदा या सहायता दिलवाता है,अविवाहित लोगों की शादी का समय भी पास मे होता है,मृत्यु के भाव मे होता है,तो बैंक बीमा या किसी प्रकार से पुराना फ़ंसा हुआ धन दिलवाता है,नवे भाव का योगकारक होता है,तो भाग्य और धर्म की तरफ़ रुचि देता है,दसवें भाव का भाव कारक है,तो काम धन्धे और सरकारी कार्यों के अन्दर तरक्की के मार्ग खोलता है,ग्यारहवें भाव से अचल सम्पत्ति और मित्रो से फ़ायदा दिलवाता है,किसी बुद्धिमान का साथ देता है,और अगर बारहवें भाव का कारक बना हुआ है,तो हवाई यात्रायें या ध्यान समाधि की तरफ़ इशारा करता है.

शुक्र का सूर्य के ऊपर गोचर
शुक्र धन और भौतिक कारकों का सहायक माना जाता है,शुक्र ही पुरुष की कुन्डली में पत्नी का कारक होता है,और स्त्री की कुन्डली मे गहनो जेवरातो और सजावत वाली चीजो के बारे मे जाना जाता है,शुक्र को ही जमीनी कारकों से जोडा जाता है,शुक्र से ही फ़लो सब्जियों के लिये जो रस युक्त होती है,के बारे में अपना भाव बताता है,सूर्य स्वर्ण है,तो शुक्र जेवरात के बारे में भी अपनी राय बताता है,सूर्य के साथ जब शुक्र का गोचर होता है,तो जातक को धन की कमी अनुभव होती है,पत्नी बीमार होती है,खेती में सरकारी दखल होता है,गेहूं की पैदावार में बढोत्तरी होती है,गेहूं के भाव चढते है,फ़लो के प्रति सरकारी दखल होता है,गाय और दूध वाले जानवरों के अन्दर तेजी आती है.सरकारी मीडिया और सजावटी सामान की बिक्री के लिये नुमायश आदि का प्रोग्राम आदि बनता है.

शनि का सूर्य के ऊपर गोचर
शनि कार्य का दाता है,शनि जब गोचर से सूर्य के साथ गोचर करता है,तो कार्य में असंतोष पैदा होता है,जो भी काम करवाने वाले होते है,वे अधिकतर खुश नही रहते है,धन बेकार के कामों में खर्च होता रहता है,पिता पुत्र में आपसी विचारों में मतभेद हुआ करता है,शनि और सूर्य की इस युति में मंगल बद हो जाता है,जातक का काम सुबह और शाम का हो जाता है,उसे दिन और रात में किसी प्रकार का कार्य संतुष्ट नही कर पाता है,खाने पीने के लिये हमेशा मन किया करता है,शराब कबाब की तरफ़ मन आकर्षित होता है,और अगर जातक के अन्दर किसी प्रकार की बन्दिश हुआ करती है,तो वह दवाइयों और तामसी चीजों के प्रति अपने को लगा लेता है,अधिकतर इस काल में जातक का दिमाग सही दिशा में नही जा पाता है,मंगल के बद होने के कारण जातक का दिमाग लडाई झगडों की तरह जाता है.

राहु का सूर्य के ऊपर गोचर
पिता के प्रति माया मोह का चक्कर चालू हो जाता है,उसे हर किसी से धन प्राप्त करने और धन के प्रति ही सोच काम करती है,सरकारी कामों में सडक या बिजली वाले कामों का ठेका आदि लेने के लिये जातक का मन जाता रहता है,पिता का अपमान करने से जातक को कोई हिचक नही होती है,वह पुत्र के प्रति उतना वफ़ादार नही होता है जितना कि होना चाहिये,अक्सर उसके भार युक्त दिमाग के कारण पति या पत्नी में मतभेद हुआ करते है,राहु सूर्य को ग्रहण देता है,नाम के आगे कोई न कोई दाग जरूर लग जाता है.पिता को इस दौरान कोई चोट या हादसा होने की पूरी पूरी सम्भावना होती है.

केतु का सूर्य के ऊपर गोचर
केतु सन्यासी प्रवृत्ति दिमाग में देता है,पिता के अन्दर या जातक के अन्दर त्याग की भावना का उदय होना चालू हो जाता है,जातक को लोगों को उपदेश देने वाली बात मिलती है,अक्सर जातक को सरकारी कामो या पिता वाले कामो के लिये डाकिये की तरह से काम करना पडता है,किसी सामाजिक संस्था में कार्य कर्ता के रूप में भाग लेना पडता है.

रविवार, 4 अक्तूबर 2020

राहु वृष राशि मे और वृश्चिक केतु के घेरे में


राहु वृष राशि में और वृश्चिक केतु के घेरे में
कुंडली मे राहु का गोचर जन्म के गोचर से कुछ अलग ही माना जाता है जन्म के समय का राहु तो व्यक्ति के अन्दर अपनी शक्ति के अनुसार सम्बन्धित भाव और राशि तथा ग्रहों का प्रभाव अजीवन देता है लेकिन गोचर का राहु अपने अनुसार कुछ अलग से ही अपने असर को प्रदान करता है। एक प्रसिद्धि आदमी बदनामी को झेलने लगता है और एक बदनाम आदमी प्रसिद्ध हो जाता है यह सब राहु का खेल ही माना जाता है।
कहा जाता है कि नशा आदमी को या तो बरबाद कर देता है या इतना आबाद कर देता है कि उसकी सात पुस्तो में कोई आबाद या बरबाद नही हुआ होता है। आदमी को कई प्रकार के नशे झेलने को मिलते है,कुंडली के बारह भावो के अनुसार नसे भी बारह भावो से जुडे होते है बदलती है तो केवल प्रकृति राशि ग्रहो के असर और ग्रहो की द्रिष्टि से नशे की लत बदल जाती है।मानसिक भ्रम देने का कारक राहु है और केतु साधन देने के लिये माना जाता है,जिस प्रकार का भ्रम पैदा होना है उसके लिये साधन देने का कार्य केतु करता है,बिना केतु के राहु असमर्थ है और बिना राहु के केतु बेकार है।गुरु के कुंडली मे गोचर के अनुसार यह अपनी मर्यादा को लेकर चलते है और शनि के इशारे से अपने कार्यों को पूरा करते है। अक्सर जब राहु राशि मे हो और केतु सप्तम मे हो तो बडे बडे अनर्थ करवा देता है। वर्तमान मे वृष राशि पर राहु का गोचर चल रहा है और वृश्चिक राशि पर केतु का गोचर चल रहा है। शनि का योगात्मक रूप राहु केतु तथा इन दोनो राशियों के लिये बरबाद करने के लिये और मिट्टी मे मिलाने के लिये अपने प्रभाव को देने लगा है। बाकी के ग्रह भी राहु केतु से नही बचते है और शनि भी अपनी शिफ़्त से सभी ग्रहों को कोई न कोई कारण देकर उसी प्रकार के कार्य करवाने के लिये अपनी गति को प्रदान कर रहा है जिससे राहु केतु के घेरे मे आकर उसी ग्रह के अनुसार अपनी स्थिति को इन दोनो स्थितियों से मुलाकात करवायी जा सके।
गुरु परिवार समाज धर्म और विद्या को देने वाला है सामाजिक ज्ञान और इसी प्रकार के कारणो को प्रदान करने वाला है। जब गुरु मार्गी होता है तो वह अपने स्वभाव से सभी भावो को राशियों को अपनी गति को देकर उपरोक्त कारणो पर चलने या उनसे लाभ हानि देने के लिये अपने प्रभाव को देता है तथा वक्री होकर अपने प्रभाव से जो भी उपरोक्त कारण है उनके अन्दर उल्टी गति को देने के लिये माना जाता है।
उदाहरण के लिये इस राशि वाले जातक अगर वृष राशि का है तो उसके ऊपर राहु का असर एक के तरह से काम करेगा,वह व्यक्ति अपने को भौतिक धन के मामले मे नामी ग्रामी बनना चाहता है वह चाहता है कि लोग उसे धनपति के रूप मे देखे और वह अपने को जहां भी जाये एक धनी व्यक्ति की हैसियत से दिखावा करे,लोग उसके प्रति अपने सम्मान को उसकी आज्ञा को उसके प्रति किये जाने वाले व्यवहार को धन के कारण ही उच्च का समझे,वह जो भी चाहे करे और जो भी चाहे खरीदे जिसे भी चाहे प्राप्त करे। इस बात के लिये उसके अन्दर एक प्रकार का नशा पैदा हो जाता है वह केवल हर बात को काम को इन्सान को व्यवहार को धन के रूप मे ही देखना पसन्द करता है उसे इस बात से कतई भरोसा होता है कि इन्सानियत की भी कीमत होती है व्यवहार मे भी केवल एक दूसरे की सहायता का कारण होता है या इन्सान का जन्म ही केवल लोगो की सहायता करने के लिये हुआ है। उसके लिये केवल सहायता का कारण भी पैदा होता है तो वह केवल अपनी सहायता को धन के रूप मे करना चाहता है उसे अपने धन की कीमत जब पता चलती है जब वृश्चिक का केतु अपना असर देकर असहनीय दर्द और कष्ट देना शुरु करता है,तब वह सोचता है कि वह धन के नशे के अन्दर कितना दुनियादारी को भूल गया था,वह अपने धन से बडे अस्पतालो के चक्कर लगाता है जगह जगह मारा मारा घूमता है और उस समय वह वृश्चिक का केतु मजे से उसका धन हरण भी करता है और वह अपने शरीर को भी बरबाद करता है। इस राशि के आठवें भाव मे गुरु होने से जो भी कारण बनेंगे वह गुप्त रूप मे बनेंगे,गुरु के मार्गी रहने तक तो समाज और परिवार के साथ धर्म तथा कानून का पालन करेगा जैसे ही गुरु वक्री अपना प्रभाव देगा वह कानून और समाज धर्म मर्यादा को त्याग कर उल्टे काम करना शुरु कर देगा जातक गुरु के वक्री होते ही गुप्त रूप से अपने कार्य व्यवहार को लेकर चलने लगेगा,जैसे वह शिक्षा मे है तो वह शिक्षा को छोड कर अपने जीवन को बनाने और जीवन साथी को खोज कर उसके साथ अपने जीवन को बिताने का सोचने लगेगा,वह अगर समझदार है तो अपने शिक्षा स्थान को भी छोड सकता है और अपने संभावित चाहने वाले व्यक्ति के साथ भाग भी सकता है। उसकी इस कार्य मे सहायता करने के लिये केतु अपना पूरा प्रभाव देगा,यानी जो भी साधन इस राहु को चाहिये केतु प्रदान करता रहेगा,जैसे मोबाइल को प्रदान करवाना,कम्पयूटर या लेपटाप को दिलवाना,संचार का कोई न कोई जरिया प्रदान करवाना आदि माना जाना भी उचित ही है। अगर इन साधनो से कोई कारण नही बनता है तो वह किन्ही दो व्यक्तियों से अपनी संचार व्यवस्था से अपने कार्यों को अंजाम देने की कोशिश करेगा। इस राहु का प्रभाव जो जातक के ऊपर डालता है वह सबसे पहले राहु से अपने सम्पर्क को बनाना राहु की तीसरी द्रिष्टि कर्क राशि पर होने से यानी जो व्यक्ति वायव्य दिशा का रहने वाला होगा तथा संचार के कारणो को अपने द्वारा प्रदर्शित करने के बाद बुद्धि स्थान को भ्रमित करने के लिये भी अपनी शक्ति को देगा,इस शक्ति से अगर व्यक्ति विद्या के क्षेत्र मे है तो वह अपनी विद्या वाली शक्ति के अन्दर भ्रम को पैदा करने के बाद अपनी याददास्त को खोने लगेगा या किसी प्रकार के अफ़ेयर आदि के चक्कर में आकर या जल्दी से धन कमाने की कोशिश को समझ कर अपने परिवार और समाज से दूरी प्राप्त करने की कोशिश करेगा। सातवी द्रिष्टि से यह सहयोग देने वाले साधनो संचार और सहयोग के लिये धन के साधन को तथा अपनी गुप्त मंत्रणा के लिये अपने सहयोगी को जो छुपे रूप में होगा उससे अपनी युति को प्राप्त करने लगेगा,सबसे बडा असर अपनी समाज की मर्यादा को समाप्त करने वाला होगा वह अपने पिता को भी बडी बुरी तरह से आहत कर सकता है,पिता की सामाजिक अवस्था को समाप्त करना और पिता की खानदानी स्थिति को बरबाद करने का झटका जातक देने से नही चूक सकता नोवी नजर मकर पर यहां शनि गोचर कर रहें हैंआने वाले  उन्हे कि18 महीने तक
वृष और वृश्चिक राशि वालो को जिनकी कुण्डली में भी राहु केतु यहां पर स्थित है।अपने को बहुत ही संभाल कर चलने की जरूरत है,वे किसी प्रकार के मानवीय संबन्ध को बिना विचारे नही बनाये,अपने लिये खोजे जाने वाले रोजगार मे किसी प्रकार की ऐसी नौकरी आदि का चुनाव नही करे जहां प्रलोभन देकर उनका आगे का शोषण किया जाये उन्हे किसी से भी राय लेने मे भी बहुत ही सोच समझ कर चलने की जरूरत है कि वे अपने को इतना किसी भी व्यक्ति पर निर्भर नही कर ले कि वह वक्त पर आकर अपनी आदत से शरीर समाज परिवार और स्थिति पर ग्रहण को लगा दे.यह समय इन दोनो राशियों के लिये बहुत ही कनफ़्यूजन और एक साथ दो दो रास्ते चुनाव करने के लिये माना जाता है जिससे शरीर धन हिम्मत पहिचान बुद्धि पति पत्नी के सम्बन्ध पारिवारिक और सामाजिक स्थिति को बरबाद करना भी माना जा सकता है,किसी भी समस्या के सुझाव के लिये समर्पक कर सकते हैं आचार्य राजेश 7597718725-9414481324

गुरुवार, 1 अक्तूबर 2020

राहु केतु का राशि परिवर्तन! राहु केतु की उल्टी चाल

YouTube astroguruacharyaraRajesh
राहु केतु का राशि परिवर्तन राहु केतु की उल्टी चाल
अकाश में ग्रहों की चाल लगातार नई नई स्थितियां पैदा करती रहती हैं, वहीं ज्योतिष के नौ ग्रह में होने वाले परिवर्तन हर किसी को काफी हद तक प्रभावित करते हैं। कभी ये परिवर्तन अत्यंत शुभ होती हैं, तो कभी अति विकराल..जी मित्रों आज हम राहु केतु के गोचर को लेकर ही चर्चा करेंगे मिथुन राशि में अपनी यात्रा को पूर्ण करने के बाद पाप ग्रह राहु अब वृष राशि में आया है.   23 सितम्बर 2020 को प्रात: 08:20 पर राहु ने मिथुन से वृषभ राशि में संचार किया और यह 12 अप्रैल 2022 तक इसी राशि में स्थित रहेगा। राहु हमेशा वक्री अवस्था में ही संचार करता है।  राहु का गोचर मानव जीवन पर बहुत अहम भूमिका निभाता है।राहु के लिए कहा गया है कि राहु अगर बिगड़ जाए तो जिंदगी नर्क सी बना देता है और सुधर जाए तो ताज भी पहना देता है।राहु का अशुभ प्रभाव-
अगर जातक की कुंडली के अशुभ भाव में राहु बैठा होता है तो बीमारी, नेगेटिविटी, परेशानियां और मानसिक तनाव होता है। कभी-कभी राहु के प्रभाव के कारण जातक की बुद्धि काम नहीं करती और वह गलत फैसले लेने लगता है।
कुंडली में शुभ भाव में राहु- जिस जातक की कुंडली में राहु हो उस जातक को सुख-सुविधाओं की प्राप्ति होती है। ऐसे जातकों की किस्मत पलट जाती है और उन्हें समाज में मान-सम्मान की प्राप्ति होती है।राहु के लिए ही कहा गया है कि राहु जिसे मारे तो फिर उसे कौन तारे और राहु जिसे तारे फिर उसे कौन मारे।  राहु अगर खराब फल दे तो मुक़द्दमों में अवश्य फंसवाता है और बिना बात की मानसिक परेशानियों में उलझा देता है। वहीं राहु का शुभ प्रभाव हो तो जातक को बहुत सारा धन और राजनीति में मान तथा सम्मान के साथ उच्च पद भी मिलता है।,दरअसल राहु प्रदर्शन कराने वाला होता है। यह गुब्बारे जैसा होता है, जो जगह अधिक घेरता है, जबकि अंदर से खाली होता है। ऐसे में राहु अति आत्मविश्वासी भी बनाता है जो बाद में परेशानी का कारण बनता है। वहीं यदि इसके कारण आने वाले अति आत्मविश्वास पर को व्यक्ति नियंत्रण में रखता है, तो यह व्यक्तित्व का काफी प्रसार करता है। राहु के चलते व्यक्ति बहिर मुखी हो जाता है अपनी बात को सबके सामने रखने में निपुण हो जाता है। वैसे यह भी देखा गया है कि कई बार व्यक्ति को इसके चलते कॅरियर में अच्छी उन्नति भी मिलती है। विज्ञापन, राजनीति, मार्केटिंग, सेल्स संबंधित क्षेत्र से जुडे लोगों को इस राहु से लाभ भी होता है। खैर हम गोचर की बात कर रहे हैं मित्रों मैं यहां उन एस्ट्रोलॉजर की तरह बकवास नहीं करूंगा जो किसी भी ग्रह के राशि परिवर्तन को लेकर सभी राशियों का फल बताना शुरू कर देते हैं बिना नक्षत्रों को देखें एक राशि में कितने नक्षत्र होते हैं।सभी ग्रहो के तीन तीन नक्षत्र होते हैं.गोचर में ग्रह जिस नक्षत्र में होता है उस नक्षत्र के अनुसार इनका फल भी परिवर्तित होता है। उदाहरण  मेष राशि को ही ले ले मेष राशि के अंदर 3 नक्षत्र आते हैं। अश्वनी, भरणी कृतिका अब इन तीनोंनक्षत्रो का फल मेष राशि के लोगों के लिए अलग- अलग होगा। ब्रह्मांड में स्थित ग्रह अपने-अपने मार्ग पर अपनी-अपनी गति से सदैव भ्रमण करते हुए एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते रहते हैं। जन्म समय में ये ग्रह जिस राशि में पाये जाते हैं वह राशि इनकी जन्मकालीन राशि कहलाती है जो कि जन्म कुंडली का आधार है। जन्म के पश्चात् किसी भी समय वे अपनी गति से जिस राशि में भ्रमण करते हुए दिखाई देते हैं, उस राशि में उनकी स्थिति गोचर कहलाती है।  वास्तविकता तो यह है कि किसी भी ग्रह का गोचर फल उस ग्रह की अन्य प्रत्येक ग्रह से स्थिति के आधार पर भी कहना चाहिए न कि केवल एक ग्रह की स्थिति से।राहू अगर हाथी है तो मंगल महावत है। लिहाजा अपनी उच्च राशि मे होते हुए भी राहू, मंगल के नक्षत्र मे गोचर करते हुए कम हानिकारक हो जाएगा। इस महामारी का कारक राहू ही है, शनि ओर केतु उसके सहायक हैं और गुरु इस सिस्टम मे कैटेलिस्ट यानी उत्प्रेरक की भूमिका मे है। राहु को अमूमन थोड़ा वाचाल प्रकृति का माना जाता है। लेकिन ज्योतिषीय गणना ये भी बताती है कि राहु बहुत बार काफी कुछ देकर भी जाता है, चाहे वो व्यक्ति विशेष की बात हो या फिर समाज, राष्ट्र और दुनिया की। बात करते हैं मित्रों इसका असर अगले 18 महीने तक देखने को मिल सकता है।  आने वाले 18 महीने में चिकित्सा के क्षेत्र में नए-नए आविष्कार हो सकते हैं। आतंकवाद और नक्सलवाद पर रोकथाम हो सकती है। पशुधन, शाकाहार और ज्योतिष, अध्यात्म की तरफ लोगों का रुझान बढ़ सकता है। ज्योतिषी गणना से राहु और केतु के राशि परिवर्तन की विवेचना करें तो ये अनुमान लगाया जा सकता है कि राहु और केतु के राशि परिवर्तन से आंखों के रोग बढ़ सकते हैं। लेकिन जीभ, लार, मुख की सर्जरी सहित लाइलाज बीमारियों का उपचार मिल सकता है।ग्रहों की दिशाएं ऐसी गणना दिखा रही हैं कि आतंकवाद, नक्सलवाद, जातिवाद, रंगभेद, क्षेत्रवाद, भाषावाद बहुत तेजी से फैल सकते हैं और उतनी ही तेजी से उनका खात्मा भी हो सकता है। विश्व के कई देश और सरकारें एकजुट होकर इन सब को समाप्त करने की कोशिश कर सकती हैं। इसकी शुरुआत फ्रांस या यूरोप के किसी देश से हो सकती है याकोरोना महामारी की वजह से बाजार में मंदी देखने को मिल रही है। नया साल लगते ही, यानी जनवरी के 2021 के अंत तक बाजार में रौनक देखने को मिल सकती है और धीरे धीरे मंदी पर काबू पाया जाने की उम्मीद लगा सकते हैं। शेयर बाज़ार, कमोडिटी एक्सचेंज में पूर्वानुमान बढ़ सकता है। पशुधन की ओर लोगों का रुझान बढ़ेगा।
बड़े अविष्कार आ सकते हैं सामने
अगले 18 महीनों में जब सूर्य मेष सिंह धनु नवांश में या बुध कन्या तुला वृश्चिक नवमांश में होगा, तो कोई बड़े आविष्कार भी दुनिया के सामने आ सकते हैं। केतु जब भी वृश्चिक राशि से गुजरता है तो कुछ ना कुछ बुराई को खत्म करता है। राहु-केतु के राशि परिवर्तन से अचानक लाभ, अचानक कष्ट या नुकसान देखने को मिल सकता है।
सत्ता पक्ष में बढ़ सकती है बेचैनी
प्रदेश व देश के विकास में सहायक होगा, तो सत्ता पक्ष में बेचैनी बढ़ाएगा। राहु में जहां शनि के गुण होते हैं तो केतु में मंगल के गुण है।राहु-केतु के बारे में प्राय: माना जाता है कि 'शनि वत राहु, कुज वत केतु' अर्थात राहु शनि के समान और केतु मंगल के समान फल देता है। परंतु यह अनुभव से जाना गया है कि ये दोनों ही ग्रह छाया ग्रह हैं और जिस राशि में होते हैं या गोचर में भ्रमण करते हैं, उसी के स्वामी ग्रहानुसार फल देते हैं। इन दोनों का राशि परिवर्तन कई लोगों के लिए राहत लेकर आएगा, तो कुछ  कों परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।भारत का अपने पड़ोसी देशों से तनाव बढ़ेगा युद्ध हो सकता है या युद्ध जैसे हालात पैदा हो सकते हैं मित्रों आज इतना ही अगर पोस्ट अच्छी लगे तो लाइक व शेयर जरूर किया करें धन्यवाद आचार्य राजेश

लाल का किताब के अनुसार मंगल शनि

मंगल शनि मिल गया तो - राहू उच्च हो जाता है -              यह व्यक्ति डाक्टर, नेता, आर्मी अफसर, इंजीनियर, हथियार व औजार की मदद से काम करने वा...