शनिवार, 31 दिसंबर 2016

*बुद्ध आदित्य योग पहले तो आप योग का नाम ही पढिये। बुद्ध आदित्य योग याने बुद्ध पहले और बादमे आदित्य याने सूर्य याने कुंडली में बुध पहले तो सूर्य से डिग्रीकली(12")अंस जेसा आगे हो ।ये एक नियम है। दूसरा नियम बुद्ध आदित्य योग फक्त बुद्ध ,सूर्य और सूर्य की उच्च की राशि में ही ये योग बनता है।याने 3-मिथुन,6-कन्या,5-सिंह और 1-मेष.ये राशि में हो तोहि ये योग बनता है।

काली मंत्र काली मां दुर्गा का ही एक स्वरुप है। मां दुर्गा के इस महाकाली स्वरुप को देवी के सभी रुपों में सबसे शक्तिशाली माना जाता है। दसमहाविद्याओं में काली का पहला स्थान माना जाता है। दुष्ट, अभिमानी राक्षसों के संहार के लिए मां काली को जाना जाता है। अक्सर काली की साधना सन्यासी या तांत्रिक करते ही करते हैं लेकिन मां काली के कुछ मंत्र ऐसे भी हैं जिनका जाप कर कोई भी साधक अपने जीवन के संकटों को दूर कर सकता है। 22 अक्षरी श्री दक्षिण काली मंत्र ॐ क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं स्वाहा॥ इस मंत्र के जरिये दक्षिण काली का आह्वान किया जाता है। शत्रुओं के विनाश के लिए साधक इस मंत्र के जरिये मां काली की साधना करते हैं व सिद्धि प्राप्त करते हैं। तंत्र विद्या में मां काली की साधना के लिए यह मंत्र काफी लोकप्रिय है। इस मंत्र का तात्पर्य है अर्थ है कि परमेश्वरी स्वरुप जगत जननी महाकाली महामाया मां मेरे दुखों को दूर करें। शत्रुओं का नाश कर मां अज्ञानता का अंधकार मिटाकर ज्ञान का प्रकाश हो। वैसे भी मां काली ज्ञान, मोक्ष तथा शत्रु नाश करने की अधिष्ठात्री देवी हैं। इनकी कृपा से समस्त दुर्भाग्य दूर हो जाते हैं एकाक्षरी काली मंत्र ॐ क्रीं यह मां काली का एकाक्षरी मंत्र है। इसका जप मां के सभी रूपों की आराधना, उपासना और साधना में किया जा सकता है। मां काली के इस एकाक्षरी मंत्र को मां चिंतामणि काली का विशेष मंत्र भी कहा जाता है। तीन अक्षरी काली मंत्र ॐ क्रीं ह्रुं ह्रीं॥ मां काली की साधना व उनके प्रचंड रुपों की आराधना के लिए यह तीन अक्षरी मंत्र एक विशिष्ट मंत्र है। एकाक्षरी व त्रयाक्षरी मंत्रों को तांत्रिक साधना के मंत्र के पहले और बाद में संपुट की तरह भी लगाया जा सकता है। पांच अक्षरी काली मंत्र ॐ क्रीं ह्रुं ह्रीं हूँ फट्॥ माना जाता है कि इस पंचाक्षरी मंत्र का जाप प्रतिदिन प्रात:काल में 108 बार किया जाये तो मां काली साधक के सभी दुखों का निवारण करके उसके यहां धन-धान्य की वृद्धि करती हैं। पारिवारिक शांति के लिए भी इस मंत्र का जप किया जाता है। षडाक्षरी काली मंत्र ॐ क्रीं कालिके स्वाहा॥ इस षडाक्षरी मंत्र का जप सम्मोहन आदि तांत्रिक सिद्धियों के लिए किया जाता है। यह मंत्र तीनों लोकों को मोहित करने वाला है। सप्ताक्षरी काली मंत्र ॐ हूँ ह्रीं हूँ फट् स्वाहा॥ यह मंत्र भी धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति के लिए यह मंत्र कारगर माना जाता है। श्री दक्षिणकाली मंत्र ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रुं ह्रुं क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिणकालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रुं ह्रुं ह्रीं ह्रीं॥ तांत्रिक इस मंत्र के जरिये दक्षिण काली की साधना कर सिद्धि प्राप्ति की कामना करते हैं। यदि आपको शत्रुओं का भय सता रहा है तो आप भी अपने गुरु के मार्गदर्शन में इस मंत्र का जाप कर सकते हैं। श्री दक्षिणकाली मंत्र क्रीं ह्रुं ह्रीं दक्षिणेकालिके क्रीं ह्रुं ह्रीं स्वाहा॥ यह भी दक्षिण काली का एक प्रचलित मंत्र है। रोग दोष आदि को दूर करने के लिए इस मंत्र से साधना करें। मां काली शीघ्र कृपा करती हैं। श्री दक्षिणकाली मंत्र ॐ ह्रुं ह्रुं क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं दक्षिणकालिके ह्रुं ह्रुं क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं स्वाहा॥ इस मंत्र में भी विभिन्न बीज मंत्रों को सम्मिलित किया गया है जिससे मंत्र और अधिक शक्तिशाली हो जाता है। मां काली को शीघ्र प्रसन्न करने के लिए तांत्रिक या सन्यासी इस मंत्र के द्वारा मां काली की साधना करते हैं। श्री दक्षिणकाली मंत्र ॐ क्रीं क्रीं क्रीं ह्रुं ह्रुं ह्रीं ह्रीं दक्षिणकालिके स्वाहा॥ यह काली माता का एक विशिष्ट मंत्र है इसका प्रयोग भी तांत्रिक साधना में किया जाता है। भद्रकाली मंत्र ॐ ह्रौं काली महाकाली किलिकिले फट् स्वाहा॥ मां भद्रकाली के इस मंत्र का प्रयोग शत्रुओं को वश में करने के लिये किया जाता है। शत्रुओं के तीव्र विनाश के लिये मां भद्रकाली की साधना की जाती है। मां भद्रकाली को धर्म, कर्म और अर्थ की सिद्धी देने वाली माना जाता है। साधक जिस भी कामना से भद्रकाली की साधना करता है, उनकी उपासना करता है, वह पूर्ण होती है। श्री शमशान काली मंत्र ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं कालिके क्लीं श्रीं ह्रीं ऐं॥ यह माना जाता है कि शमशान काली शमशान में वास करती हैं व शव की सवारी करती हैं। तंत्र विद्या के अनुसार शमशान काली की साधना शवारुढ़ यानि शव पर बैठकर की जाती है। इसलिए यह बहुत ही जटिल एवं अमानवीय साधना भी मानी जाती है जो कि सामाजिक व कानूनी रुप से लगभग प्रतिबंधित है। फिर भी लकड़ी आदि के टुकड़ों में प्राण प्रतिष्ठा कर उसे शव का रुप देकर भी तांत्रिक शमशान काली की साधना करते हैं। भूत-प्रेत, पिशाचादि को वश में करने के लिए शमशान काली की साधना की जाती है। नोट: यह बात विशेष रुप से ध्यान दें कि कोई भी साधना गुरु के मार्ग दर्शन में ही करें। विशेषकर मां काली की साधना कठिन होने के कारण तांत्रिकों अथवा योगियों द्वारा ही की जाती है।

शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016

मित्रो मेरी यही कोशिश रहती है आपको ज्योतिष के वारे ज्यादा से ज्यादा जानकारी हो यही मेरा प्रयास रहता है आपमे से वहुँत मित्र मुझे फोन पर कहते है कि आपकी पोस्ट से हमे वहुँत सिखने को मिल रहा है तो वहुँत खुशी होती है कहा जाता है कि आत्मा जब अपने साकार रूप को प्रकट करती है और उस आत्मा के रूप को प्रकट करने का क्षेत्र शुद्ध और सात्विक होता है तो वह आत्मा अपने अन्दर उन्ही गुणो के शरीर को धारण करके आती है जैसा उस स्थान की धरती का प्रभाव होता है। यह प्रभाव भी उसी प्रकार से माना जाता है जैसे एक बीज को बोने के लिये अलग अलग जमीन का प्रयोग किया जाता है और जमीन के प्रभाव के अनुसार ही बीज की उत्पत्ति होती हैकुंडली मे गुरु जीव का अधिकारी होता है सूर्य आत्मा का अधिकारी माना जाता है मंगल आत्मीय शक्ति को बढाने वाला होता है बुध आत्मीय प्रभाव को प्रसारित करने का कारक होता है शुक्र जीव को सजाने और आत्मा के भावो को प्रकट करने मे अपनी सुन्दरता को प्रकट करता है तो चन्द्रमा आत्मीय मन को सृजित करने का भाव पैदा करता है.शनि भौतिक रूप को प्रकट करता है और जीव के कर्म को करने के लिये अपनी योग्यता को प्रकट करता है। यूरेनस दिमाग के संचार को प्रकट करने और भौतिक संचार को बनाने बिगाडने का काम करता है प्लूटो मिट्टी को मशीन मे परिवर्तित करने का कार्य करता है नेपच्यून आत्मा के विकास का अधिकारी माना जाता है.समय के अनुसार जीव का रूप परिवर्तन होता रहता है जैसे आदिम युग मे जीव का रूप कुछ और होता था पाषाण युग मे कुछ था मध्य युग मे कुछ और था और वर्तमान मे कुछ और है तथा आने वाले भविष्य मे जीव का रूप कुछ हो जायेगा। जीव वही रहता है रूप परिवर्तन मे सहायक प्लूटो को मुख्य माना गया है,जो आधुनिकता से लेकर अति अधुनिकता को विकसित करने के लिये लगातार अपने प्रभाव को बढाता जा रहा है और हम क्या से क्या होते जा रहे है,लेकिन जीव के विकास की कहानी के साथ आत्मा का रूप नही बदल पाता है जीव कितना ही आधुनिक हो जाये आत्मा वही रहती है। जो भी कर्म किये जाते है उनका प्रभाव आत्मा पर उसी प्रकार से पडता रहता है जैसे एक चिट्टी विभिन्न डाकघरो मे जाकर डाकघर की उपस्थिति को दर्शाने के लिये अपने ऊपर उन डाकघरो की मुहर अपने चेहरे पर लगाकर प्रस्तुत करती है। कुंडली सिंह लगन की है और सूर्य विद्या से प्राप्त बुद्धि के भाव मे विराजमान है,सूर्य का साथ देने के लिये बुध जो लगन का चेहरा और भौतिक प्राप्ति तथा कार्य के प्रभाव का नाम प्रस्तुत करने की भावना को भी देता है। सूर्य का प्रभाव धरती तक लाने के लिये सूर्य किरण ही जिम्मेदार होती है। बिना सूर्य किरण के सूर्य का प्रभाव धरती पर आ ही नही सकता है,बुध को किरण का रूप मानने पर यही पता चलता है कि बुध सूर्य की गरमी रोशनी जीवन की प्रस्तुति को धरती तक लाने के लिये संचार का काम करता है इसलिये बुध को संचार का ग्रह कहा गया है। पंचम भाव विद्या के भाव से दूसरा भाव होने से विद्या से प्राप्त बुद्धि को प्रयोग करने का भाव भी कहा गया है और जब इस भाव मे गुरु की धनु राशि का समागम होता है तो ऊंची शिक्षा वाली बुद्धि को प्राथमिक शिक्षा जैसा माना जाता है। कानून की कारक यह राशि विदेशो से भी सम्बन्ध रखती है धर्म और भाग्य से भी यह राशि जुडी होती है साथ ही यात्रा और धार्मिकता को फ़ैलाने या उस धार्मिकता से लोकहित के कार्य करने के लिये भी अपनी युति को प्रस्तुत करती है। इस राशि के प्रभाव को अगर पंचम मे लाया जाता है तो ऊंची जानकारी को खेल खेल मे प्रस्तुत करने की कला भी मानी जाते है,सूर्य भी हकीकत मे कालपुरुष की कुंडली के अनुसार इसी भाव का मालिक है,राज्य और राजनीति से भी सम्बन्ध रखता है। लेकिन उद्देश्य कुछ भी हो मतलब शिक्षा से ही होता है। पुराने जमाने की जो कहानी कही जाती है कि गुरुओं मे इतनी दम होती थी कि वे मिट्टी को चलाने फ़िराने लगते थे,वे कहानिया अविश्वसनीय लगती है,हम कभी कभी कह देते है कि यह सब कपोल कल्पित है,लेकिन आज जिधर भी नजर घुमाई जाती है उधर ही मरी हुयी मिट्टी दौड रही है जिस इंसान को देखो मरी मिट्टी से ही खेल रहा है काम कर रहा है उसी मिट्टी को प्रयोग मे लाकर कमा रहा खा रहा है उसी मिट्टी पर बैठ कर भागा जा रहा है उसी मिट्टी से एक दूसरे से संचार कर रहा है,लेकिन उस जमाने की बातें कपोल कल्पित लगती है ! पुराने गुरु पीले कपडे पहिन कर विद्या को प्रदान किया करते थे लेकिन आधुनिक गुरु कम कपडे पहिन कर कम काम करके अधिक बुद्धि का प्रयोग करके जो कारक पैदा कर रहे है उन्हे गुरु की उपाधि से दूर करने के बाद वैज्ञानिक की उपाधि दे रहे है,वास्तविकता भी है कि जब गुरु सुपर गुरु हो जाता है और मरी मिट्टी मे इतनी जान डाल देता है कि उसका जीवन बिना मरी मिट्टी के बेकार सा हो जाता है तो वह दिमाग को हर पल हर क्षण हर मौके पर दौडाने का काम भी करता है और अपने को वैज्ञानिक कहलाने लगता है। वैज्ञानिक शब्द की व्याख्या को देखा जाये तो वह व+ऐ+ज्ञान+इक से ही देखा जायेगा और इसे अगर विच्छेद करने के बाद जाना जाये तो वाममार्गी तांत्रिको से कम नही समझा जा सकता है। व को मुर्दा कहा जाता है ऐ की मात्रा लगाते है मुर्दे मे जान डालने की क्रिया बन जाती है और जो इस क्रिया को प्रयोग करना जानता हो उसे ज्ञानी की उपाधि दी जाती है लेकिन वह सिद्धान्त के ऊपर ही निर्भर है इसलिये इक यानी एक ही के प्रति समर्पित हो जाती है,तो कौन कहता है कि वैज्ञानिक तांत्रिक नही होता है। जीव यानी गुरु को अपने तंत्र से मरी हुयी मिट्टी मे जान डाल कर लोक हित मे प्रयोग किया जाने लगे और लोग उस मरी मिट्टी जिसमे जान डाल दी गयी है उसे प्रयोग मे लेकर अपने को धन्य समझ ले तथा अपनी आवश्यकताओ को पूरा करने के लिये अपनी योग्यता को जाहिर कर दे तो जिसने उस मई मिट्टी मे जान डाल दी है वह किसी संत से कम कहा जा सकता है क्या ?राहु फ़ैलाव देता है फ़ैलना भी सीमित नही होता है,असीमित होता है और जो व्यक्ति एक साधारण व्यक्ति से कई गुनी योग्यता सीखने की रखता हो तथा अपने को बजाय साधारण आदमी के अलग थलग दिखाने की औकात को रखता हो उसी को वक्री कहा जाता है। राहु हमेशा उल्टा चलता है,राहु को शक्ति के रूप मे देखा जाता है और जब यह राहु गुरु के साथ हो जाये तो खराब भाव मे जाकर यह जहरीली हवा बन जाता है लेकिन अच्छे भाव मे जाकर यह अमृत प्रदान करने वाली हवा भी बन जाता है और जिस व्यक्ति की कुंडली मे राहु लगन मे हो अच्छी राशि मे हो तो बात ही कुछ और होती है। लेकिन सीधा आदमी उल्टे को नही सुधार सकता है केवल उल्टा आदमी ही उल्टे को सुधार सकता है,उसी प्रकार से राहु को सुधार मे लाने के लिये गुरु को भी उल्टा कर दिया जाये तो राहु आसानी से सुधार मे लाया जा सकता है,इस कुंडली को भी देखिये राहु लगन मे है शिक्षा की राशि मे है और गुरु भी वक्री होकर राहु की गति मे बदल गया है साथ ही नवे भाव के मालिक मंगल का तकनीकी सहारा भी ले लिया है तो राहु को सुधार कर अच्छे रूप मे बदलना जाना जा सकता है। जो राहु दूसरो को डराने का काम करता है एक प्रकार से काली आंधी बनकर लोगो को परेशान करता है तो वह राहु वक्री गुरु के सानिध्य मे आकर और मंगल का साथ लेकर असीमित ज्ञान के क्षेत्र को दिखाने प्रकाश मे लाने के लिये और संसार को सामने रखने के लिये अपनी योग्यता को जाहिर कर रहा है। इसी बात को अगर राहु को सिलीकोन माना जाये गुरु को सिलीकोन को तरीके से जोडना और सर्किट आदि बनाने के काम मे लिया जाये तथा मंगल को शक्ति की कारक बिजली के रूप मे देखा जाये तो यह कम्पयूटर का रूप धारण कर सकता है सर्किट बोर्ड पर लगे हुये आई सी कण्डेन्सर रजिस्टेंस ट्रांजिस्टर डायोड आदि की जानकारी भी देता है और उस के अन्दर अपने ज्ञान का प्रयोग करने के बाद लोगो के लिये उस मशीन का तैयार करना हो जाता है जिससे लोग अपने जीवन की जरूरतो को बाहरी लोगो से लिखने पढने से लेकर आने जाने तथा कितने ही प्रकार के कार्य करने के लिये स्वतंत्र हो सकते है। यह वक्री गुरु का ही काम है कि वह शनि प्लूटो यानी मरी हुयी मशीन को हार्डवेयर आदि डालकर उसे सिस्टम से चलाने की क्रिया मे राहु नामका सोफ़्टवेयर डालकर कई प्रकार की मशीनी श्रेणी मे बदल सकता है। अगर इसी जगह पर मार्गी गुरु होता तो वह दूसरे के द्वारा बनाये गये सामान को प्रयोग करने वाला होता लेकिन वक्री गुरु होने के कारण वह अपने द्वारा बनाये गये सामान को दूसरो के हित के लिये प्रयोग करने वाला बन जाता है।सिंह लगन का चौथा भाव वृश्चिक राशि का होता है यह राशि बहुत गूढ होती है कभी प्रकट रूप से सामने नही होती है जैसा कि मेष राशि का स्वभाव होता है कि उसके मन के अन्दर कुछ भी है वह सामने रख देती है इसलिय ही दूसरो के लिये बलि का बकरा बन जाती है उसी स्थान पर सिंह लगन का जातक अपने विचार बहुत गूढ रखता है और उस बुद्धि का प्रयोग करता है जो बुद्धि साधारण आदमी के पास नही होती है वह अपने भाव को प्रकट करने के लिये गूढ तंत्र का प्रयोग करता है उसे तकनीकी विद्या को प्राप्त करने की आदत होती है साथ ही वह अपने को इतने भेद की नीति के अन्दर रखता है कि मन के अन्दर क्या है जान लेने के लिये अपनी पूरी योग्यता को प्रस्तुत कर सकने के बाद भी यह जाहिर नही होने देता है कि आखिर मे उसकी मंशा क्या थी ? यह राशि तकनीकी राशि भी है और किसी भी प्रकार की तकनीक को दिमाग मे रखने और तकनीकी विद्या के प्रति हमेशा मन को लगाकर चलने के लिये भी मानी जा सकती है यह राशि तकनीक के अलावा दुनिया के भेद मृत्यु के बाद का जीवन पराशक्तियों और शमशानी सिद्धियों के प्रति भी जान लेने की भावना को रखती है। हकीकत मे इस भाव का मालिक चन्द्रमा होता है और जनता का मालिक भी चन्द्रमा होता है दिशाओं से यह दक्षिण पश्चिम दिशा की कारक भी कही गयी है इस प्रकार से जातक की मानसिक रुचि अन्तर की जानकारी के लिये भी मानी जा सकती है।यह राशि नकारात्मक मंगल की राशि भी कही गयी है सकारात्मक मंगल जीव के अन्दर की शक्ति कही जाती है और नकारात्मक मंगल जीव के मरने के बाद उसकी पराशक्ति का कारक होता है। सकारात्मक मंगल जीव के जिन्दा रहने तक साथ देने वाला होता है और नकारात्मक मंगल जीव के मरने के बाद उसकी शक्तियों को दूसरे लोगों के प्रति प्रयोग करने के लिये भी माना जाता है,अक्सर सामाजिक परिवेश मे इस मंगल को लोग भूत प्रेत तंत्र आदि के रूप मे कहते सुने जा सकते है।यूरेनस इस राशि मे उपस्थित होता है तो जातक के मन के अन्दर एक तो उन शक्तियों को प्रकट करने की इच्छा होती है जो मरने के बाद की जानी जा सकती है दूसरे जातक के अन्दर मरी हुयी मिट्टी के अन्दर से यह जान लेने की कला का विकास भी होता है कि वह कैसे मरी किस अवयव की खराबी से मरी और उस मरी हुई शक्ति के अवयब को जांच लेने की और उसे बदल कर नया जीवन मरी हुयी मिट्टी को देने से भी जानी जा सकती है इस बात को अगर डाक्टरी रूप मे देखा जाता है तो एक प्राणी की मौत के पहले के जीवन को प्राप्त करने के लिये खराब हुये अवयब को बदलने का काम किया जाता है जबकि यूरेनस को संचार का ग्रह माने जाने पर जातक के अन्दर कमन्यूकेशन की चीजों के खराब होने पर उन्हे जांच लेने और उन्हे ठीक करने की क्रिया को जान लेने का कारण भी कहा जाता है इस कारण को अगर देखा जाये तो आज के जमाने मे इन्हे इन्फ़ोर्मेशन तकनीक का जानकार भी कहा जाता है और कम्पयूटर इंजीनियर के रूप मे भी देखा जाता है। नेपच्यून के इस भाव मे होने से यह भी देखा जाता है कि जातक के अन्दर राख से साख निकालने की क्षमता का होना भी होता है वह समझ सकता है कि जो कबाडा हो चुका है उस कबाडे से क्या क्या वस्तु निकाली जा सकती है जो काम की है और उस वस्तु को दूसरी वस्तुओं मे प्रयोग करने के बाद उन्हे काम मे लिया जा सकता है। नेपच्यून का रूप अक्सर आत्मा के रूप मे पाश्चात्य ज्योतिष मे प्रयोग मे लाया गया है लेकिन हमारी संस्कृति के अनुसार से मन के आगे नही मान सकते है मन और आत्मा मे भेद को समझने वाले लोग इस बात को समझ सकते है। जो आत्मा कबाड से जुगाड बनाकर उन्हे काम का सिद्ध कर सके वही एक अच्छे इंजीनियर की श्रेणी मे भी गिना जाता है। सूर्य और बुध का पंचम भाव मे होना आत्मा का मिलन शिक्षा के क्षेत्र मे जाने का होता है यहा जातक अपनी उपस्थिति को शिक्षा के क्षेत्र मे ले जाने और वहीं से अपनी उन्नति को शुरु करने के लिये भी माना जाता है लेकिन यह बात तभी सिद्ध हो सकती है जब जातक के पुत्र संतान की प्राप्ति हो,उसके पहले सूर्य का उदय होना और सरकारी क्षेत्र मे अपने प्रभाव को दिखाने का कारण नही बनता है,सूर्य से तीसरे भाव मे केतु के होने से भी एक कारण यह भी माना जाता है कि कुम्भ राशि का केतु उन्ही लोगो से मित्रता को बनाता है जब वह मित्रता किसी भी प्रकार से कमन्यूकेशन के मामले मे हो पुरानी ज्योतिष के अनुसार बडे भाई की पत्नी या दोस्त की पत्नी के या बडी बहिन के पति के सहायक कार्यों से जोड कर भी देखा जाता है और इस केतु को अक्सर सहायक के रूप मे भी माना जाता है चाचा भतीजे का सम्बन्ध भी कायम करता है जीवन के अन्दर एक व्यक्ति की सलाह और शिक्षा जातक को आगे बढाने के लिये भी मानी जाती है।यह केतु पत्नी के रूप मे भी सामने आता है और जातक को अपनी सहायता से आगे बढाने के लिये भी देखा जा सकता है। यह केतु मानसिक रूप से भी अपनी सहायता को देने वाला माना जाता है और जीवन मे जो भी सहायक कार्य है उन्हे करने के लिये भी देखा जा सकता है। संतान मे यह दूसरे नम्बर की संतान का रूप भी समझा जा सकता है और पुत्री संतान के प्रति भी अपनी भावना को रखता है।जातक एक शिक्षक के रूप मे भी जाना जा सकता है जो लोगो को आधुनिक युग मे विभिन्न प्रकार की मशीनोको उपयोग मे लाने का रूप बताये,जो लोग विद्या से जुडे है उनके लिये कार्य करने का रूप भी प्रस्तुत करता है,साथ ही कालेज शिक्षा मे कार्य को करने का रूप भी दे सकता है जो राजनीति से सम्बन्धित विषयों की जानकारी कानूनी जानकारी और विदेशी परिवेश से जुडी जानकारी को प्रदान करना जानता हो,एक संत जो अपने स्वार्थ की पूर्ति के बिना अपनी सहायता को सेवा के रूप मे लोगों को प्रदान करे भी माना जा सकता है। शनि अपनी नजर से की जाने वाली सेवा से जीवन यापन के लिये कार्य करना भी माना जाता है साथ ही प्लूटो के साथ होने से वह उतना धन नही इकट्ठा कर पाता है जो जीवन मे धन का मोह रखने वाले करते है और बिना उपयोग मे लाये मर जाते है। चन्द्रमा का ग्यारहवे भाव मे होना जातक को उतना ही लाभ दे पाता है जो अपने शरीर की पूर्ति कर ले और कहने के लिये तो उसके कोई भी काम नही बिगडते है जो भी कार्य होता है वह मित्रो की सहायता से पत्नी की सहायता से साथ मे चलने वाले दो लोगो से जो मित्रता की सीमा मे ही होते है के प्रति माना जा सकता है।

गुरुवार, 29 दिसंबर 2016

सामान्यतयः लग्न लगभग दो घंटे तक एक ही रहती है फिर भी जिस तरह दो व्यक्तियों के अंगूठे का निशान , आँखोँ के रैटीना की डिजायन या हृदय की धड़कन एक जैसी नहीं हो सकती ठीक उसी तरह कभी भी दो व्यक्तियों की जन्मकुंडली एक जैसी नहीं हो सकती है l यहाँ तक कि एक ही स्थान पर एक ही माँ से जन्म लेने वाले दो जुड़वाँ बच्चो की जन्मकुंडली भी एक जैसी नहीं हो सकती है क्योकि स्थूल रूप से देखने पर लग्न कुण्डली, चन्द्र कुण्डली, नवमांश कुण्डली, चलित कुण्डली तो एक जैसी ही दिखती है किन्तु जब कुण्डली के विस्तृत विश्लेषण की बात आती है तो विद्या के लिये चतुर्विशांश, बलाबल के लिये सप्तविशांश, अरिष्ट गणना के लिये त्रिविशांश, सुख कि गणना के लिये षोडशांश आदि कुंडलियाँ बनानी पड़ती है, जो कि एक ही लग्न में लगभग हर 2 मिनट बाद बदलती रहती है I अन्य अधिक बारीक़ गणना की स्थिती में प्रत्येक 3 सेकेंड के अन्तराल पर कुंडलियों का सूक्ष्म विश्लेषण बदलता रहता है I ऐसी स्थिती में यह आवश्यक हो जाता है कि जन्म के सही समय की गणना सटीकता से की जाये ।अव राशी फल ईस लिऐ भी वोगस हो जाता है जेसा मैने पहले भी कहा है 6 अरव की आवादी पुरे विश्व की है 12 राशीया अव 50 करोङ के लग भग ऐक राशी के लोग जिसमे वच्चे वुढे जवान ओर ईसमे भी सभी अलग अलग काम घन्घे वाले तो राशी फल संभव ही नही कोई भी समझदार जातक राशीफल को वोगस ही कहेगा हा गोचर से हम देश काल मे होने वाले घटना से संबंध का अनुमान लगाया जा सकता है

मंगलवार, 27 दिसंबर 2016

*वर्ष - 2017* *•• शनि राशि बदलकर धनु में प्रवेश करेगा, सीधे मूला-नक्षत्र में संचार* *करेगा । गुरु बृहस्पति शत्रु राशि में है और निर्बल है । गुरु बृहस्पति के निर्बल होने से सुधार और रचनात्मकता की प्रक्रिया थमी रहेगी और पाप ग्रह उत्पात करेंगे । राहु-केतु - वर्ष के मध्य में राशियां बदलेंगे । ये ग्रह-योग दर्शाते हैं कि - ये वर्ष सहज और सरल नहीं है ।* *ये वर्ष - समय, सम्बन्ध और संचार की जटिलता का है । समय निरंतर बदलता रहेगा और असमंजस तथा उलझनों का निर्माण करता रहेगा । संबंधों की नयी परिभाषा बनेगी और वैचारिक मतभेद - संबंधों की सीमायें तय कर देंगे । संचार पर निर्भर रहने वाली ये दुनियाँ खुद को अफवाओं से नहीं बचा पायेगी और ये काम संचार माध्यम खुद ही करेगा । लोग अपने आप में सिमट जायेंगे और किसी पर विश्वास नहीं करेंगे ।* *संचार और संबंधों का कारक बुध है - शनि - बुध के नक्षत्र - ज्येष्ठा में है । गुरु बृहस्पति - बुध की राशि कन्या में है । इसलिये बुध बुनियाद में है । जैसे ही शनि - धनु-राशि में प्रवेश करेगा - बुध की बुनियाद हिल जायेगी । केतु का नक्षत्र बुध के प्रभाव को समाप्त कर देगा और समय रहस्यमय आवरण से लिपट जायेगा । केतु रहस्यमयी ग्रह है और बुध का शत्रु है । इससे संबंधों की नयी परिभाषा बन जायेगी और संचार माध्यम अफवाओं को जन्म देने लगेगा अर्थात संचार माध्यम भय का वातावरण निर्माण करने लगेगा । शनि जोकि समय का कारक है । पहले बुध के नक्षत्र से केतु के नक्षत्र में संचार करेगा फिर केतु के नक्षत्र से बुध के नक्षत्र में संचार करेगा । नक्षत्र तो अदल-बदल करेगा ही राशियां भी बदलेगा । ऐसा वो 21 ऑक्टोबर तक करता रहेगा । अर्थात लगभग पूर्ण वर्ष ऐसा ही करता रहेगा । इससे संपूर्ण वर्ष - समय की उथल-पुथल चलती रहेगी और लोग भविष्य की योजनायें नहीं बना पायेंगे । गुरु बृहस्पति संपूर्ण वर्ष शत्रु राशियों में संचार करता रहेगा । पहले कन्या राशि में फिर वर्ष-मध्य से तुला राशि में संचार करेगा जिससे उसकी निदान प्रस्तुत करने की क्षमता प्रभावित होगी । लोग समस्याओं के उपाय और परिहार नहीं तलाश कर पायेंगे ।* *बुध के कारण ही संचार व्यवस्था ठप्प हो सकती है, लोग अपने फोन इस्तेमाल नहीं कर पायेंगे तथा इंटरनेट व्यवस्था बाधित हो सकती है और आपस के संपर्क-सम्बन्ध टूट सकते हैं । जन-साधारण को वैकल्पिक* *व्यस्थाओं के विषय में सोचना होगा ।* *26 जनवरी, 2017 को शनि - धनु राशि में प्रवेश करेगा और इसके साथ ही केतु के नक्षत्र मूला में भी संचार करने लगेगा । मूला नक्षत्र चमकदार, अग्निकारक और मोक्ष कारक है । शनि धर्म-पारायण, कर्तव्य-पारायण और कर्म-कारक है । मूला नक्षत्र से इसका तालमेल धर्म की कट्टरता को बढ़ावा देगा । धार्मिक कट्टरतावाद से दुनिया का तीव्रता से ध्रुवीकरण होगा और मोक्ष-कारक केतु के प्रभाव से मृत्यु दर बढ़ेगी । आतंकवाद का एक नया चेहरा सामने आ सकता है । शनि के कारण दुनियाँ कर्मफल की और अग्रसर होगी और जिसने जैसा किया है उसे वैसा फल मिलेगा । युद्ध के बादल और घने होंगे तथा रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल से दुनियाँ सिहर सकती है । केतु - रसायन का कारक है अचानक चौका देने का फल कर सकता है* *खाड़ी देशों को विशेष रूप से याद रखना होगा क्योंकि धर्म के नाम पर सबसे ज्यादा उठापटक वही होती आयी है । युद्ध की आग तो वहां सुलग ही रही है - शनि के वक्रि होते ही ये आसपास फ़ैल सकती है ।* *ऐसी शंकायें भी हैं कि - इस बार विश्व-युद्ध देशों के बीच नहीं बल्कि सभ्यताओं के बीच होगा ।* *ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, पाकिस्तान, भारत और दुनियां भर में कई जगहों पर आतंकवादी हमलों से ऐसा वातावरण लगभग तैयार भी हो चुका है ।* *दुनियां में जब शक्ति-संतुलन* *बिगड़ने लगे, एक साथ कई शाक्ति-स्तंभ उभर आयें और छोटे-बड़े देश एक-दूसरे पर दबाव बनाने लगे तो* *समझना होगा कि - तृतीय विश्व-युद्ध की भूमिका बन रही है* *केतु - शनि की राशि में है और शनि - केतु के नक्षत्र में होगा - ये योग भयंकर अग्निकांडों को जन्म दे सकता है । गुरु बृहस्पति और शनि के निर्बल होने से 'वायु-तत्व' के अनुपात में घटबढ़ होगी जिससे आंधी-तूफ़ान और* *वायुयान दुर्घटनाओं की संभावना बढ़ जायेगी । बुध के नक्षत्र से निकलकर केतु के नक्षत्र में संचार और फिर अचानक वक्रि होकर फिरसे बुध के नक्षत्र में* *प्रवेश से शनि - व्यापार-व्यवसाय को और शेयर मार्केट को अकल्पनीय उतार-चढ़ाव प्रदान कर सकता है ।* *बीच-बीच में जब कभी गुरु बृहस्पति को बल मिलेगा तो कुछ राहत अथवा सुधार की संभावना होगी लेकिन इससे भरपाई और सुधार उतना नहीं हो पायेगा जितनी हानि होगी । बुध के नक्षत्र में वक्रि शनि के लौट आने से भी हालात के बेहतर होने का अंदेशा होगा जबकि हालात और खराब होंगे । ये वर्ष राहु-केतु और शनि के प्रभाव का है । इनकी सक्रियता दुनियाँ में उथल-पुथल प्रकट करेगी । हालांकि समय-समय पर शुक्र, बुध और चंद्र शुभ होकर कुछ समय की राहत और शाँति दे सकते है और ऐसे ही समय में जन-साधारण को अपने कार्य बना लेने का प्रयास करना होगा । समय कम होगा और कार्य अधिक लेकिन जितना बन सके उतना बना लेना ही बुद्धीमानी होगी । ऐसे समय में अपने विवेक से काम लेना होगा और तत्पर बुद्धी से कार्य करना होगा*

रविवार, 25 दिसंबर 2016

[25/12 2:11 pm] Acharya rajesh: मित्रो लेख थोङालंवा खिच गया क्षमा चाहुगा माना जाता है जो अंक हमसे जुड़े होते हैं, वे हमारी किस्मत पर प्रभाव डालते हैं। क्या ऐसा सच में होता है? क्या अंक ज्योतिष कारगर है? या फिर हमें खुद की क्षमता को बढाने पर ध्यान देना चाहिए? : एक दिन कोई उद्योगपति मुझसे मिलने आए थे उन्होंने अपना विजिटिंग कार्ड दिया। थोड़ी देर बातें करते रहे विदा लेकर निकलते हुए जरा हिचकते हुए खड़े रहे। आखिर पूछ ही दिया : आचार्य जी मेरे साथ बात करते समय आप बीच बीच में ‘रमियान’ ‘रमियान’ कह रहे थे। उस मंत्र का क्या अर्थ है मैं चौंक उठा उनका दिया विजिटिंग कार्ड दिखाते हुए मैंने कहा : यही तो आपका नाम है कार्ड में Rhamean ही तो लिखा है ‘‘नहीं महाराज मेरा नाम रमन है। न्यूमरालॅजी के ज्योतिषी ने परामर्श दिया था कि मेरे नाम को अँग्रेजी में इस तरह लिखा जाए तो व्यवसाय में सफलता मिलेगी मैं अपनी हँसी रोक नहीं पाया। मनुष्य ने ही तो अंकों और अक्षरों को रूप दिया है। फिर वे कैसे मानव की किस्मत बना सकते हैं? बताइए, आप अपनी क्षमता के बूते पर उद्योग खड़ा करेंगे या अंकों पर विश्वास करके? नंबर क्या कर सकते हैं?अगर किसी ने कहा दिया कि अंक दो आपके लिए भाग्यशाली है तो क्या आप आँख मूँदकर उस पर विश्वास कर बैठेंगे ज्योतिषी के कहने पर अपना हाथ या पैर काट डालेंगे? कितनी मुरखो वाली वात हमने अपनी सुविधा के लिए दिन, वार और संख्याओं की व्यवस्था की थी। क्या ये सब चीजें हमारे जीवन को तय कर सकती हैं प्राणवान होकर आप लोग जो बेवकूफियाँ करते हैं उनके लिए बेजान ग्रहों को जिम्मेदार ठहराना कितनी बड़ी कायरता है। ग्रहों में जो स्पंदन होते हैं, उनका असर पृथ्वी पर पड़ सकता है। लेकिन जिन लोगों का मन संतुलित है, उन पर इन स्पंदन झेलने की ताकत हो सकती है कार्य आरंभ करने से पहले आप ज्योतिषी के पास जाएँगे। अगर वे कह दें कि कार्य में सफलता मिलेगी तो आप उसी पर विश्वास करते हुए पूरी क्षमता के साथ काम नहीं करेंगे। अगर वे कहें कि सफलता नहीं मिलेगी तब निराशा के मारे लगन के साथ काम नहीं करेंगे। तब ज्योतिषी के पास जाने का मतलब ही क्या है?आधे-अधूरे काम करेंगे तो सफलता कहाँ से मिलेगी इच्छित वस्तु को पाना हो तो अपनी क्षमता बढ़ा लीजिए। खेलने के लिए उतरने से पहले ही परिणाम पाने की इच्छा न करें। अपने काम की जिम्मेदारी स्वयं लेने की आदत डालें।फिर भी पुरी दुनियामे कितनी भाषा वोली जाती है ओर कितने तरह के अक्षर है इसलिए अंक ज्योतिष, रामशलाका, भैरव ज्ञान, नंदी नाड़ी, स्वर ज्योतिष, क्रिस्टल बॉल, रमल ज्योतिष जैसे उपाय चलन में आए। भविष्य जाने की इन विधाओं के बावजूद फलित ज्योतिष ज्यादा xलोकप्रिय रहा है, वजह उसकी समझ में आने वाला वैज्ञानिक आधार और लम्बी परंपरा वैदिक ज्योतिष भारतीय ज्योतिष विधि में सबसे प्रमुख है। यह वेद का हिस्सा है जिसे वेद की आंखें भी कहते हैं। इसमें जन्म कुण्डली के आधार पर भविष्य कथन किया जाता है। इस विधि से भविष्य जानने के लिए जन्म समय, जन्मतिथि एवं जन्म स्थान का ज्ञान होना आवश्यक होता है। महर्षि पराशर और जैमिनी दोनों ही समकालीन थे। इन दोनों ऋषियों ने वैदिक ज्योतिष के आधार पर भविष्य आंकलन की नई विधि को जन्म दिया।जैमिनी पद्धति दक्षिण भारत में अधिक प्रचलित है। यह पद्धति वैदिक ज्योतिष से मिलती-जुलती है परंतु इसके कुछ अपने सिद्धांत और नियम हैं। जो ज्योतिषशास्त्री जैमिनी और पराशरी ज्योतिष दोनों से मिलाकर भविष्य कथन करते हैं उन्हें परिणाम काफी सटीक मिलते हैं। प्रश्न कुण्डली प्रश्न पर आधारित ज्योतिषीय विधि है; जिन्हें अपनी जन्मतिथि, समय और स्थान का ज्ञान नहीं होता उनके लिए यह ज्योतिष विधि श्रेष्ठ मानी जाती है। इन विधियों की सच्चाई या विश्वसनीयता के बारे मे मेरा मानना यह हे ' कि ज्योतिष के रहस्य प्रामाणिक व्यक्ति के सामने ही खुल कर आते है, जो विद्या भूत भविष्य के बारे में सटीक जानकारी देती हो वह इतनी कमजोर और सहज नहीं हो सकती की जिस तिस के सामने उसके गूढ़ अर्थ उजागर हो जाएं। गणित या भूगोल जैसे प्रतिदिन काम आने वाले विषयों के बारे में आधिकारिक प्रवेश के लिए एक न्यूनतम अनुशासन होना जरूरी है। उसके बिना इन विद्याओं का क ख ग भी पता नहीं चलता इसलिए ज्योतिष जैसे गूढ़ विषय में अधिकार की शर्तें या पात्रता तो और भी गंभीर है। ईमानदारी और निस्वार्थ भावना पहली शर्त है, इसके बिना कोई व्यक्ति इस विषय का जानकार तो हो सकता है पर आधिकारिक विद्वान नहीं, की उसकी की हुई गवेषणा सही निकले। भविष्य जानने की अन्य विधाओं का भी अलग-अलग नियम है, उन पर भी गौर किया जाना चाहिए।आज ईतना ही । आचार्य राजेश

शुक्रवार, 23 दिसंबर 2016

भावों के विश्लेषण में महत्वपूर्ण तथ्य आइए अब भावों के विश्लेषण में महत्वपूर्ण तथ्यों की बात करें. जब भी किसी कुंडली को देखना हो तब उपरोक्त बातों के साथ भावों का भी अपना बहुत महत्व होता है. आइए उन्हें जाने कि वह कौन सी बाते हैं जो भावों के सन्दर्भ में उपयोगी मानी जाती है. 1. जिस भाव के फल चाहिए उसे देखें कि वह क्या दिखाता है. 2. उस भाव में कौन से ग्रह स्थित हैं. 3. भाव और उसमें बैठे ग्रह पर पड़ने वाली दृष्टियाँ देखें कि कौन सी है. 4. भाव के स्वामी की स्थिति लग्न से कौन से भाव में है अर्थात शुभ भाव में है या अशुभ भाव में है, इसे देखें. 5. जिस भाव की विवेचना करनी है उसका स्वामी कहाँ है, कौन सी राशि व भाव में गया है, यह देखें. 6. भाव स्वामी पर पड़ने वाली दृष्टियाँ देखें कि कौन सी शुभ तो कौन सी अशुभ है. 7. भाव स्वामी की युति अन्य किन ग्रहों से है, यह देखें और जिनसे युति है वह शुभ हैं या अशुभ हैं, इस पर भी ध्यान दें. 8. भाव तथा भाव स्वामी के कारकत्वों का निरीक्षण करें. 9. भाव का स्वामी किस राशि में है, उच्च में है, नीच में है या मित्र भाव में स्थित है, यह देखें. 10. भाव का स्वामी अस्त या गृह युद्ध में हारा हुआ तो नहीं है या अन्य किन्हीं कारणों से निर्बली अवस्था में तो स्थित नहीं है, इन सब बातों को देखें. 11. भाव, भावेश तथा भाव के कारक तीनों का अध्ययन भली - भाँति करना चाहिए. इससे संबंधित भाव के प्रभाव को समझने में सुविधा होती है.

यादो में ना ढूंढो हमें मन में हम बस जायेंगे तम्मना हो अगर मिलने की तो हाथ रखो सीने पर हम धड़कनों में मिल जायेंगे

गुरुवार, 22 दिसंबर 2016

बुध का भेद जब कुंडली मुकम्मल हो और खाना नं १ का अक्षर देकर हर तरह से बात समाप्त हो चुकी हो, तो बुध का सारा भेद या स्वभाव देखने के लिए नीचे का असूल काम में आयगा। हर ग्रह की शक्ति को उस खाना के नं से गुना करे। ९ ग्रहों का जोड़ करे। ९ से भाग करे। बाकि बचा देखे ० बचे तो बुध का स्वभाव कुंडली के खाना नं ५ में बैठे ग्रह की तरह होगा। याने बुध के खाली ढांचे में राहु-केतु पकडे गये। याने जब बुध की शक्ति सिफर हो तो उस कुंडली में राहु केतु का असर दुसरे ग्रह पर न होगा। मगर राहु-केतु का जाती असर जरूर होगा। क्योंकि बुध में राहु-केतु का जाती असर शामिल गिनती है सिवाय बुध खाना नं ४ के। राहु घडी की चाबी तो केतु घडी का कुत्ता है। दोनों को चलता गुरु ही है। मगर घूमते बुध के दायरे में है। गर खाना ५ खाली तो जिस घर में और जैसा सूरज, वैसा ही बुध का फल होगा। अगर जो शेष बचे तो उस से सम्बंधित ग्रह कुंडली में जहाँ बैठा हो उसकी शक्ति तथा स्वभाव का बुध होगा। यह स्वभाव बुध का अपना स्वभाव होगा जैसा की शनि का स्वयं का स्वभाव राहु - केतु - शनि के पहले या बाद के घरो में होने का है। मसलन : बृहस्पति खाना नं ४ में उच्च है। बृहस्पति की शक्ति ९ ग्रहो में ६/९ है - गुना किया ४ गुणा ६/९ = २ ४ / ९ सूर्य खाना नं ३ में : ३ गुणा ९/९ = २ ७ / ९ चन्द्र खाना नं ६ ६ गुणा ८/९ शुक्र खाना नं ५ ५ गुणा ७/९ मंगल खाना नं ५ बुध खाना नं ३ शनि खाना नं १ २ राहु खाना नं २ केतु खाना नं ८ सब ९ ग्रहो को गुणा कर के जोडे। मसलन जोड़ आया २ १ ९ / ९ = २ ४ + ३/९ पूरे हिस्से छोड़ दे यानी ३/९ ही जो बचा लेना है। ३/९ शक्ति तो शनि की है. अब शनि खाना नं १ २ में बैठा था तो यह बुध का स्वभाव हुआ। याने बुध जो खाना नं ३ में बैठा है वो खाना नं 1 में बैठे शनि के स्वभाव का है। शनि का स्वभाव देखे : पहले राहु फिर केतु फिर अंत में शनि है। ऐसे में शनि का अपना प्रभाव मंदा होता है। इस लिए जब बुध का समय होगा तब शनि दो गुना मंदा होगा। क्योंकि बुध शनि दोनों ही खराब स्वाभाव के है। बुध का स्वभाव जिस ग्रह से मिलता हो उपाय उस ग्रह दोनों को मिला कर करना होगा। खाना नं ३ या ९ के लिए लोहे की लाल गोली ले पर अगर बुध नेक स्वाभाव हो तो शीशे की गोली ले और उस रंग को शामिल करे जो ऊपर की तरह से ग्रह आया। खाना नं १२ के बुध के लिए नष्ट ग्रह वाले की मदद का इलाज या केतु ( कुत्ता रंग बिरंगा या काल सफ़ेद पर लाल रंग न हो ) कायम करना शुभ होगा। असल में बुध खली खलाव (जगह), सफ़ेद कागज़, शीशा और फिटकरी होगा। जब उस पर जरा भी मैल या किसी और ग्रह का ताल्लुक हुआ तो उसकी गोलाई का ठिकाना मालूम करना वैसा ही मुश्किल होगा जैसा की जमीन का धुरी माप लेना। इसलिए उस की जांच पूरी कर लेना जरूरी होगा। बहरहाल बुध नं ३ या ९ या कही और का मंदा प्रभाव उस साल या उस समय नेक होगा जिसमे की वो स्वयं अपने स्वभाव के उसूल पर नेक हो जावे, मगर जन्म के पहले साल या पहले मास उसका हिरा जहर से खाली न होगा। अगर होगा तो जन्म मरण का झगडा ही समाप्त होगा। सूर्य और मंगल के मुकाबले में बुध का फल गायब। या ससूर्य मंगल नेक के समय अपना आधा समय चुप होगा फिर भी छुपी शरारत जरूर करता होगा। मंगल नेह है ही वही जिसमे सूर्य हो। और वो सूर्य के साथ चुप होगा। सूर्य रेखा और चन्द्र रेखा दिल को मिलने त्रिकोण मंगल बद को असर देगी जिस का प्रभाव दिल की शक्ति पर होगा चाहे बुरी तरफ ही क्यों न हो। बहरहाल दिल की शक्ति अधिक होगी।

सोमवार, 19 दिसंबर 2016

मित्रो जन्मकुण्डली में ग्रहों की स्थिति प्रायः फल-विचारकों को चिन्तित कर देती है। अक्सर ज्योतिषी लोग कई ग्रहो के ऐक साथ वैठने से गचा खा जाते है पर हो सकता है जो दुरयोग वन रहा है उसका परिहार हो रहा होपर आम जातक का चिन्तित होना स्वाभाविक भी है,क्यों कि हमारा जीवन-चक्र इन्हीं ग्रहों के अधीन है। हालाकि ग्रह तो केवल निमित्त हैं- परमसत्ता के आदेशपाल मात्र । तथाकथित सुपथ-कुपथ चलने वाले जीवन-यान को वैधिक रुप प्रदान करना तो मनुष्य के स्वकर्मों के अधीन है- कर्म प्रधान विश्व करि राखा यहां कोई ये तर्क भी दे सकता है कि सब कुछ ईश्वराधीन है। उनकी मर्जी के बिना तो पत्ता भी नहीं डोलता- सबहीं नचावत राम गुसाईं... ; किन्तु यह आंशिक सत्य है। यह सही है कि सब कुछ भगवान करते-कराते हैं,किन्तु ये भी उतना ही सत्य है कि वे कुछ नहीं करते- वे एक द्रष्टा मात्र हैं,स्रष्टा हैं,नियोक्ता हैं। क्योंकि पूरी व्यवस्था के साथ- पंचज्ञानेन्द्रिय, पंचकर्मेन्द्रिय,के साथ महेन्द्रिय- मन,और फिर उससे परे बुद्धि,और सर्वोपरि- विवेक से सुसज्जित करके हमें कर्मक्षेत्र में उतार दिया गया है जा कहे जन्म दिया है और सुदूर महदाकाश में विराजते हुये निर्विकार भाव से सिर्फ और सिर्फ द्रष्टा की भूमिका निभा रहे हैं। इससे आगे जो कुछ भी होता है, जो कुछ भी हो रहा है- हमारे कर्मों का परिणाम है। इससे भिन्न कुछ नहीं। हम चोरी करते हैं,पकड़े जाते हैं। सजा होती है। इसका ये अर्थ नहीं कि सिपाही हमारा शत्रु है,या दण्डाधिकारी दुष्ट है। वे सब तो अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं- चोर को पकड़ने और सजा देने की ड्यूटी। सूर्यादि नवग्रह भी यही कर रहे हैं- हमारे कर्मों का क्षण-क्षण का लेखाजोखा रखा जाता है,और उसके अनुसार ही आगे की जीवन-यात्रा तय होती है-। जन्मकालिक ग्रह इसी बात का संकेत देते हैंकि जीवन में कब क्या कैसा व्यतीत होगा। पुनः हम अपने कर्मों से धक्के देकर आगत यानी प्रारब्ध कर्म को थोड़ा इधर-उधर सरका भर देते हैं,किन्तु समूल नष्ट नहीं कर सकते,शुभाशुभम्। जो भी शुभ या अशुभ कर्म किये गये हैं- उन्हें तो भोगना ही पड़ेगा- आज भोगें या दो दिन बाद। किन्तु हां,एक अति विशिष्ट स्थिति भी आती है,और उसी का आधार लेकर लोग मान लेते हैं कि सबकुछ भगवान ही कराते हैं। परन्तु यह जान लें कि यह स्पेशल केस है,विशेष स्थिति है- हमारा स्तर,हमारा चिन्तन,हमारा कर्म जब पूर्णरुप से भगवदर्पण या भगवदर्थ हो जाता है,तब की वो स्थिति है। उसके पूर्व ऐसा कदापि नहीं होता। खैर, ये हुयी कर्म-रहस्य की बातें। यहां कहना मैं ये चाहता हूँ कि कुण्डली के द्वादश भावों में बैठे ग्रहों को देख कर चिन्तित न हों। बहुत बार ऐसा भी होता है कि वे निष्क्रिय या निष्फल तुल्य होते हैं। कौन से ग्रह कहां किस भाव में बैठे हैं,किसके साथ बैठे हैं- ये बहुत ही महत्त्वपूर्ण होता है। ज्योतिषशास्त्र का यानी राहु के साथ यदि बुध बैठे हों तो राहु का दोष नहीं लगता,राहु और बुध दोनों के दोषों को शनि का साथ होने पर नाश हो जाता है। राहु,बुध और शनि इन तीनों के दोषों का नाश मंगल के साथ होने से हो जाता है। राहु,बुध, शनि और मंगल इन चारों के दोषों का नाश दैत्यगुरु शुक्राचार्य कर देते हैं यदि साथ में हों। राहु,बुध,शनि,मंगल और शुक्र इन पांचों के दोष का नाश देवगुरु वृहस्पति करते हैं। राहु,बुध,शनि,मंगल,शुक्र और वृहस्पति इन छः ग्रहों के दोष को बलवान चन्द्रमा नष्ट कर देते हैं, और अन्त में कहते हैं कि सूर्य तो उक्त सभी ग्रहों के दोषों का नाश कर देते हैं- साथ में यदि विराज रहे हों,विशेषकर उत्तरायण यानि मकर,कुम्भ,मीन,मेष,वृष और मिथुन राशि पर कहीं भी हों तो और भी शक्तिशाली हो जाते हैं। अतः ग्रहों का दोष-बल विचार करते समय इन बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए। ध्यातव्य है कि यहां केतु की चर्चा नहीं हुयी है। क्यों कि केतु को राहु में ही मानलिया गया है। सूर्य के साथ बैठे होने पर चन्द्रमा निस्तेज होजाते हैं,यानी उनका दोष नहीं लगता। चन्द्रमा के पुत्र यानी बुध चौथे घर में बैठे होने पर निस्तेज होते हैं। वृहस्पति पांचवें घर में और भूमि-पुत्र मंगल दूसरे घर में, भार्गव शुक्राचार्य छठे घर में निष्फल होते हैं,तथा रविनन्दन शनि कलत्र यानी सातवें घर में निष्फल होते हैं। किन्तु शनि की निष्फलता पर विशेष ध्यान ये देना है कि यदि वे अपनी राशि मकर और और कुम्भ में होकर,या उच्चराशि तुला के होकर, सातवें स्थान में बैठे हों,तो विपरीत गुणधर्मी होजाते हैं,यानी निष्फल होने के वजाय और भी प्रबल हो जाते हैं। अतः किसी भी प्रकार के फलकथन में इनका विचार अवश्य करना चाहिए

बुधवार, 14 दिसंबर 2016

अक्षरों से मिलकर शब्द बनते हैं शब्दों से मिलकर वाक्य। वाक्यों से मिलकर अहसास पुरे होते हैं और अहसासों से मिलकर जज्बात। जज्बातों से मिलकर ख़्याल बनता है और ख़्यालों से मिलकर बनती है रचना। जिन्हें हम कभी कविता कहते है तो कभी नज्म और कभी गज़ल कहकर पुकारते है तो कभी छंद कहकर। वास्तव में ये हमारी सोच और ख़्याल का ही तो प्रतिरूप है। अक्स है हमारी खुशी और ग़म का हमारे अकेलेपन और तन्हाईयों का। दिल की गहराईयों में दफ्न हो चुके गुजरे हुए कल का। हमारे आस-पास घटती हर अच्छाई और बुराई का। जिन्हें हम शब्दों की चाशनी में लपेट कर कोरे कागज की थाली में परोस कर आपके सामने रख देते हैं।

शनिवार, 3 दिसंबर 2016

सच्चा गुरु कौनृ[03/12 11:27 am] Acharya rajesh: ज्ञान से त्याग उत्पन्न होता है लेकिन किस चीज़ का और कितना त्याग ? हरेक गुरू ने अलग अलग चीज़ों का त्याग करना बताया और उनका स्तर भी अलग अलग ही बताया। इनमें से किसने ठीक बताया है ?, यह भी एक प्रश्न है। जितने लोगों को आज गुरू माना जाता है। वे ख़ुद जीवन भर दुखी रहे और जिसने भी उनके रास्ते पर चलने की कोशिश की उस पर भी दुख का पहाड़ टूट पड़ा। बुरे लोगों ने गुरू और उनके शिष्यों को ख़ूब सताया। बुरे लोगों ने गुरूओं और उनके शिष्यों के प्राण तक लिए हैं। अच्छे लोगों ने संसार का त्याग किया तो बुरे लोगों ने संसार पर राज्य किया। इस तरह संसार का त्याग करने वाले बुरे लोगों के रास्ते से ख़ुद ही हट गए और बुरे लोगों ने समाज का डटकर शोषण किया। संसार का त्याग करने से न तो अपना दुख नष्ट हुआ और न ही समाज का। यह और बात है कि किसी ने अपने अहसास को ही ख़त्म कर लिया हो। उसकी बेटी विधवा हुई हो तो वह रोया न हो। उसने अपनी बेटी के दुख को अपने अंदर महसूस ही न किया हो कि उसकी बेटी पर क्या दुख गुज़रा है ? उसके घर में कोई जन्मा हो तो वह ख़ुश न हुआ हो। उसके घर में कोई मर भी जाए तो वह दुखी न होगा। उसका मन संवेदना जो खो चुका है। वह अपने मन में ख़ुशी और दुख के हरेक अहसास को महसूस करना बंद कर चुका है। उसमें और एक पत्थर में कोई फ़र्क़ नहीं बचा है। अब वह एक चलते फिरते पत्थर में बदल चुका है। ऐसे लोग परिवार छोड़ कर चले जाते हैं या परिवार में रहते भी हैं तो उनकी मनोदशा असामान्य बनी रहती है। जब तक हमारी खाल तंदरूस्त है, वह ठंडक और गर्मी को महसूस करती है। उसके ऐसा करने से हमें दुख अनुभव होता है। वह ऐसा करना बंद कर दे। हममें से यह कोई भी न चाहेगा क्योंकि इसका मतलब है रोगी हो जाना लेकिन दिल को सुख दुख का अहसास बंद हो जाए, इसके लिए लोगों ने ज़बर्दस्त साधनाएं कीं। जो विफल रहे वे तो नाकाम ही रहे और जिनकी साधना सफल हुई, वे उनसे भी ज़्यादा नाकाम रहे। उनके दिल से सुख दुख का अहसास जाता रहा।सुख दुख का अहसास है तो आप चंगे हैं। दुख मिटाने की कोशिश में आपका दिल संवेदना खो देगा। तब आप न ख़ुशी में ख़ुश होंगे और न दुख में दुखी होंगे। आप समझेंगे कि मुझे ‘सम‘ अवस्था प्राप्त हो गई है लेकिन हक़ीक़त में मानवीय संवेदना की स्थिति जो आपको प्राप्त थी, आपने उसे खो दिया है इच्छा, कामना, तृष्णा और संबंध दुख देते हैं तो दें इन्हें छोड़कर दुख से मुक्ति मिलती है तो उस मुक्ति का अचार डालना है क्या हम किसी के उपयोग के न बचें, जगत की किसी वस्तु का हम उपयोग न करें और अगर करें तो उसमें लिप्त न हों इस सबका लाभ क्या है ? दुख से मुक्ति वह संभव नहीं है कोई बुरा आदमी हमें न भी सताए, तब भी औरत बच्चे को जन्म देगी तो उसे दुख अवश्य होगा दुख हमेशा हमारे कर्म में लिप्त होने से ही उत्पन्न नहीं होता दुख हमारे जीवन का अंग है। परमेश्वर ने हमारे जीवन को ऐसा ही डिज़ायन किया है परमेश्वर ने हमारे जीवन को ऐसा क्यों बनाया है परमेश्वर हमें न बताए तो हम इस सत्य को जान नहीं सकते। जीवन के सत्य को जानने के लिए हमें परमेश्वर की ज़रूरत है क्योंकि सत्य का ज्ञान केवल उसी सर्वज्ञ को है। मनुष्य का गुरू वास्तव में सदा से वही है सच्चा गुरू वह है जो जीने की राह दिखाता है सच्चा गुरू आपको इसी समाज में जीन सिखाएगा। वह आपको पत्नी और परिवार के प्रति संबंधों का निर्वाह सिखाएगा परिवार को छोड़कर भागना वह न सिखाएगा सन्यास को वह वर्जित बताएगा। वह आपको जज़्बात में जीना सिखाएगा। वह आपके दिल की सेहत को और बढ़ाएगा। वह सुख और दुख को महसूस करना और उस पर सही प्रतिक्रिया देना सिखाएगा वह आपको काम, क्रोध, लोभ, मोह को छोड़ने के लिए नहीं कहेगा। वह इनका सकारात्मक उपयोग सिखाएगा। ज़हर का इस्तेमाल दवा के रूप में भी होता है। वह हमें अपने दुखों की चिंता छोड़कर दूसरों के दुख में काम आना सिखाएगा वह अपनी वाणी में यह सब विस्तार से बताएगा। अपनी वाणी के साथ वह उसके अनुसार व्यवहार करने वाले एक मनुष्य को भी लोगों का आदर्श बनाएगा ताकि लोग जान लें कि क्या करना है और कैसे करना है ? परमेश्वर अपने ज्ञान के कारण स्वयं गुरू है और आदर्श मनुष्य उसके ज्ञान के कारण और उसके द्वारा चुने जाने के कारण गुरू है। लोग ईश्वर की वाणी को भी परख सकते हैं और उसके द्वारा घोषित आदर्श व्यक्ति को भी। परमेश्वर के कर्म भी हमारे सामने हैं और आदर्श मनष्य के कर्म भी। प्रकृति ओर इतिहास दोनों हमारे सामने हैं। सच्चे गुरू को पाना बहुत आसान है लेकिन उसके लिए पक्षपात और पूर्वाग्रह छोड़ना पड़ेगा दुनिया में जितने लोगों ने मनुष्य को जीवन का मक़सद और उसे पाने का तरीक़ा बताया है। आप उन सबके कामों पर नज़र डालिए और देखिए कि वे ख़ुद समाज के कमज़ोर और दुखी लोगों के दुख में काम कैसे आए और कितना आए . और उन्होंने एक इंसान को दूसरे इंसान के काम आने के लिए क्या सिखाया और उन्होंने अपने बीवी-बच्चों की देखभाल का हक़ कैसे अदा किया [03/12 11:39 am] Acharya rajesh: उनमें से जिसने यह काम सबसे बेहतर तरीक़े से किया होगा, उसने अपने अनुयायियों का साथ एक दोस्त की तरह ही दिया होगा और उनके भीतर छिपी समझ को भी उन्होंने जगाया होगा और तब उनके दिल की गहराईयों में जो घटित हुआ होगा, उसे बेशक आत्मबोध कहा जा सकता है। आत्मबोध से आपको अपने कर्तव्यों का बोध होगा और उन्हें करने की भरपूर ऊर्जा मिलेगी। उन कर्तव्यों के पूरा होने से आपके परिवार और समाज का भला होगा। किसी के कर्म देखकर ही उसके मन की गहराईयों के विचारों को जाना जा सकता है कि उसके मन में सचमुच ही ‘आत्मबोध‘ घट चुका है। इसी के बाद आदमी को ज्ञान होता है कि किस चीज़ को कितना और कैसे त्यागना है और क्यों त्यागना है ? और किस चीज़ को कितना और कैसे भोगना है और क्यों भोगना है ? जगत का उपभोग यही कर पाते हैं और यह जगत बना भी इसीलिए है दुनियावी जीवन को सार्थक करने वाले यही लोग हैं यही लोग सीधे रास्ते पर हैं और यही लोग सफलता पाने वाले हैं

आने वाले 2017नूतन वर्ष के इस सुप्रभातकारी आगमन की सुमधुर वेला में 'स्वास्थ्य-सुख' परिवार की ओर से अपने सभी पाठकों, समर्थकों, व मित्रो सहित सभी परिचित-अपरिचित साथियों को इस नूतन वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ.... परम-पिता परमेश्वर से कामना है कि आप सहित आपके परिजनों व मित्रों के जीवन में नई उमंगें, व खुशियों के आगमन सहित उनकी सभी कामनाएँ आगामी 365 दिनों के इस कालखंड में सम्पूर्णता को प्राप्त हों. नववर्ष मुबारक

सोमवार, 28 नवंबर 2016

सच्चा सुलेमिनी पत्थर भी नजर पुराने जमाने मे राजा महाराजा अपने अपने अनुसार सुलेमान की चीजो का प्रयोग करना जानते थे,सुलेमान के पत्थर सुलेमान की खासियत है,कारण सुलेमान की जमीन ही पुराने जमाने के पीर फ़कीरो की साधना जमीन रही है,बडे बडे जिन्नात वाले साधन सुलेमान से ही प्राप्त होते है। सुलेमानी तलवार के बारे मे खूब किस्से कहानी मिलते है,वह तलवार किसी भी शैतानी ताकत को काटने की हिम्मत रखती थी। खैर अब तीर तलवार का जमाना चला गया है लेकिन सुलेमान का तरासा हुआ पत्थर जो खास किस्म का होता है,आज भी नजर दोष पति पत्नी की अनबन दुकान घर मे लगी नजर आदि के काम आता है। जो लोग शमशानी स्थानो के आसपास रहते है या जो महिलाये अधिकतर पर्दे मे रहती है,या जो लोग किसी न किसी कारण से मशहूर हो गये होते है,उन लोगो के लिये शैतानी आंख अनदेखे हथियार की तरह से मारने के काम आती है,महिलाओ मे सिरदर्द की बीमारी हो जाना,उल्टी आदि होने लगना,अनाप सनाप बकने लगना,किसी को कुछ भी कहने लग जाना,अगर बच्चे को दूध पिलाने वाली महिलाये है तो उनके दूध का अचानक सूखने लग जाना,भूख नही लगना,हमेशा बुरे बुरे ख्याल आते रहना,कामुकता का अधिक पैदा हो जाना,जननांग को खुजलाने की आदत लग जाना,योनि का हमेशा गीला रहना,बाथरूम मे अधिक समय का लगना,बाल खुल्ले रखने की आदत बन जाना,किसी न किसी अंग का लगातार फ़डकते रहना,अचानक रोने का मन करना,कभी अचानक बिना बात के ही हंसी आजाना,किसी के गिरने पडने पर मजा आना,ऊंचे स्थान पर जाने के बाद नीचे कूद जाने का मन करना,खतरे से खेलने के लिये मन मे उतावलापन होना,अपने ही रखवालो को अपने से दूर करने के लिये कठोर बात करने लग जाना,लडने झगडने की आदत बन जाना,भोजन मे अधिक खटाई का प्रयोग करने लग जाना,छाछ आदि की पीने की इच्छा रखना,घर की महिलाओ से अकारण ही बैर भाव पाल लेना,अपनी सन्तान का ख्याल नही रखना,दूसरो की बातो मे समय को निकालना,नाखून चबाते रहना आदि बाते देखने को मिलती है। इसी प्रकार से दुकानदारी के चलते चलते अचानक बन्द हो जाना,ग्राहक का आना लेकिन कुछ समय बाद उसका मन बदल जाना और बिना कुछ खरीदे वापस चले जाना,खुद की दुकान से सस्ता सामान नही खरीदना अगल बगल वाली दुकान से महंगा सामान खरीद कर ले जाना,दुकान के सामने किसी न किसी प्रकार से गंदगी का होना,कुत्तो का अधिक आना जाना लग जाना,दुकान या व्यवसाय स्थान के गेट पर कुत्तो का पेशाब करने लग जाना,वाहन पर कुत्तों का पेशाब करने लग जाना,घर के अन्दर काली बिल्ली का रात को आना,छत पर बिल्लिया आपस में लडने लग जाना,अचानक बुखार का आना और अचानक ही उतर भी जाना,किसी अच्छे काम को शुरु करते ही किसी न किसी प्रकार की बाधा का आजाना कुछ नही तो टेलीफ़ोन का ही बजने लग जाना और जब तक उसे उठाओ बन्द हो जाना,गलत नम्बर का बार बार आना,किसी महत्वपूर्ण बात को करने के समय किसी बेकार के व्यक्ति का आजाना और बात का पूरा नही हो पाना,किसी बडे सौदे के समय मे या तो अधिकारी का नही आना या खुद के परिवार की कोई दिक्कत का पैदा हो जाना,सोने वाले बिस्तर पर लाल या काली चींटियों का घूमने लग जाना,ओढने बिछाने वाले कपडो मे अजीब सी बदबू का आना शुरु हो जाना,त्वचा मे बिना किसी कारण के खुजलाहट होने लगना आदि बाते देखने को मिलती है तो सुलेमानी पत्थर को पहिनने से इनमे आराम मिलने लगता है। अक्सर यह भी देखा जाता है कि इस पत्थर को पहिन कर अगर कोई शमशान कब्रिस्तान या मौत वाले स्थान पर जाता है तो यह पत्थर अपनी शक्तियों से विहीन हो जाता है और बेकार हो जाता है,कारण ऐसे स्थानो पर शैतानी आत्मायें अधिक होती है और इस पत्थर मे उतनी ही ताकत होती है जितनी व्यक्ति के द्वारा इसे शक्तिवान किया जाता है। इस पत्थर के पहिनने से रात को खराब स्वप्न भी नही आते है आराम की नींद आती है भूख भी लगने लगती है। इसे काले रंग के धागे मे पहिना जाता है और बहुत ही संभाल कर रखा जाता है,कारण जब बुरी आत्माओं को परेशान करना होता है तो वे इस पत्थर को दूर करने के लिये दिमाग पैदा करने लगती है.

रविवार, 27 नवंबर 2016

क्या नजर दोष होता है अगर है तो क्या है उपाय शैतान की आंख का प्रयोग अक्सर एक ऐसी बीमारी के लिये किया जाता है जिसके अन्दर किसी भी दवा उपाय डाक्टर समझदार व्यक्ति समझने मे असमर्थ हो जाते है इस के लिये जो दुर्भावना रखता है,जलन रखता है और किसी प्रकार से आगे नही बढने देता है,आदि कारणों से युक्त व्यक्ति से नजर लगना कहा जाता है,इसे नजर-दोष भी कहा जाता है,हर्ब्यू के शब्दों में ’अयन हारा’ जिसके अन्दर यद्धिश लोग अयन-होरो,अयन होरा या अयन हारा भी कहते है,इटली मे इसे ’मालओसियो’ और स्पेन मे ’माल ओजो’ या ’एल ओजो’ के नाम से जाना जाता है,सिसली लोग ’जैट्टोर जिसका शाब्दिक अर्थ आंख के द्वारा प्रोजेक्सन करना,माना जाता है,फ़ारसी लोग ’ब्लाबन्द’यानी शैतान की आंख कहते है। शैतान की आंख उस व्यक्ति के लिये भी मानी जाती है जो किसी भी प्रकार से नुकसान पहुंचाने वाला या किसी भी प्रकार से जलन या दुर्भावना नही रखता है उसके पास भी हो सकती है,और उसके द्वारा भी आपके बच्चे को,आपको,आपके पास रखे किसी वस्तु विशेष के भन्डार को,आपके पास रखे फ़लों को,आपके फ़लवाले वृक्षों को आपके दूध देने वाले पशुओं को,आपकी सुन्दरता को आपके व्यवसाय को,आपके प्राप्त होने वाले धन के स्तोत्र को नुकसान पहुंचा सकती है। और यह सब केवल उस व्यक्ति के द्वारा देखने और उसके द्वारा किसी भी प्रकार के लालच करने से हो सकता है। अक्सर इस प्रकार का असर उन लोगों के द्वारा भी होता है जो ओवर-लुकिन्ग की मान्यता को रखते हैं उनके द्वारा उनकी आंखों से अधिकतम अनुमान लगाने किसी वस्तु,मकान,इन्सान आदि को आंखों से ही नापने और उसकी क्षमता का अनुमान लगाने से भी प्रभाव पडता है इस बीमारी को देने वाले व्यक्ति अगर किसी प्रकार से खाना खाते वक्त पास में हों,तो उनके देखते ही हाथ का ग्रास नीचे गिर जाता है किसी मकान की सुन्दरता को वे अपनी नजर से परख लें तो मकान मे दरार आना,या मकान का गिर जाना भी सम्भव होता है,अधिकतर असर छोटे बच्चों पर अधिक होता है नजर या शैतान की आंख को खराब ही माना जाता है और यह जलन रखने वाले और सही किसी भी प्रकार के व्यक्ति के पास हो सकती है इसका कारण एक और माना जाता है कि जो बच्चे किसी प्रकार से बचपन में अपना ही मल खा जाते है उनकी आंख भी शैतान की आंख का काम करती हैआगे जारी

क्या नजर दोष होता है अगर है तो क्या है उपाय शैतान की आंख का प्रयोग अक्सर एक ऐसी बीमारी के लिये किया जाता है जिसके अन्दर किसी भी दवा उपाय डाक्टर समझदार व्यक्ति समझने मे असमर्थ हो जाते है इस के लिये जो दुर्भावना रखता है,जलन रखता है और किसी प्रकार से आगे नही बढने देता है,आदि कारणों से युक्त व्यक्ति से नजर लगना कहा जाता है,इसे नजर-दोष भी कहा जाता है,हर्ब्यू के शब्दों में ’अयन हारा’ जिसके अन्दर यद्धिश लोग अयन-होरो,अयन होरा या अयन हारा भी कहते है,इटली मे इसे ’मालओसियो’ और स्पेन मे ’माल ओजो’ या ’एल ओजो’ के नाम से जाना जाता है,सिसली लोग ’जैट्टोर जिसका शाब्दिक अर्थ आंख के द्वारा प्रोजेक्सन करना,माना जाता है,फ़ारसी लोग ’ब्लाबन्द’यानी शैतान की आंख कहते है। शैतान की आंख उस व्यक्ति के लिये भी मानी जाती है जो किसी भी प्रकार से नुकसान पहुंचाने वाला या किसी भी प्रकार से जलन या दुर्भावना नही रखता है उसके पास भी हो सकती है,और उसके द्वारा भी आपके बच्चे को,आपको,आपके पास रखे किसी वस्तु विशेष के भन्डार को,आपके पास रखे फ़लों को,आपके फ़लवाले वृक्षों को आपके दूध देने वाले पशुओं को,आपकी सुन्दरता को आपके व्यवसाय को,आपके प्राप्त होने वाले धन के स्तोत्र को नुकसान पहुंचा सकती है। और यह सब केवल उस व्यक्ति के द्वारा देखने और उसके द्वारा किसी भी प्रकार के लालच करने से हो सकता है। अक्सर इस प्रकार का असर उन लोगों के द्वारा भी होता है जो ओवर-लुकिन्ग की मान्यता को रखते हैं उनके द्वारा उनकी आंखों से अधिकतम अनुमान लगाने किसी वस्तु,मकान,इन्सान आदि को आंखों से ही नापने और उसकी क्षमता का अनुमान लगाने से भी प्रभाव पडता है इस बीमारी को देने वाले व्यक्ति अगर किसी प्रकार से खाना खाते वक्त पास में हों,तो उनके देखते ही हाथ का ग्रास नीचे गिर जाता है किसी मकान की सुन्दरता को वे अपनी नजर से परख लें तो मकान मे दरार आना,या मकान का गिर जाना भी सम्भव होता है,अधिकतर असर छोटे बच्चों पर अधिक होता है नजर या शैतान की आंख को खराब ही माना जाता है और यह जलन रखने वाले और सही किसी भी प्रकार के व्यक्ति के पास हो सकती है इसका कारण एक और माना जाता है कि जो बच्चे किसी प्रकार से बचपन में अपना ही मल खा जाते है उनकी आंख भी शैतान की आंख का काम करती हैआगे जारी

शुक्रवार, 25 नवंबर 2016

नाडी ज्योतिष में दशायें नाडी ज्योतिष के अनुसार जो दशायें सामने आती है वे इस प्रकार से मानी जाती हैं:- पहली दशा जन्म दशा कहलाती है. दूसरी दशा सम्पत्ति की दशा कहलाती है. तीसरी दशा विपत्ति की दशा होते है. चौथी दशा कुशल क्षेम की दशा होती है. पांचवी दशा शरीर या परिवार से पृथक होने की दशा होती है. छठी दशा शरीर या मन को साधने की दशा कही जाती है. सातवीं दशा में मृत्यु योग को अन्य के द्वारा प्रस्तुत किया जाता है. आठवीं दशा में जो कारक मृत्यु योग प्रस्तुत करना चाहते वे मित्रता करते हैं. नौवीं दशा परममित्र की दशा होती है,जिसके अन्दर मनसा वाचा कर्मणा सभी मित्र होते है.

संसार में प्रथम तो वैराग्य होना कठिन है। यदि वैराग्य हो भी गया तो कर्मकाण्ड का छूटना कठिन है। यदि कर्मकाण्ड से छुटकारा मिल गया तो काम क्रोधादि से छूटकर दैवी सम्पत्ति प्राप्त करना कठिन है। यदि दैवी संपत्ति भी आ गई तो भी सदगुरु मिलना कठिन है। यदि सदगुरु भी मिल जाय तो भी उनके वाक्य में श्रद्धा होकर ज्ञान होना कठिन है। और यदि ज्ञान भी हो जाय तो भी चित्त- वृत्ति का स्थिर रहना कठिन है। यह स्थिति तो केवल भगवत्कृपा से ही होती है, इसका कोई अन्य साधन नही है

अकेला ऐक गृह कुछ नही कर सकता हा दशा अन्तरदशा गृहवल नछत्तर दृष्टि चन्द्र लगन ओर वाकी chart ओर वहुँत से विन्दु है जिससे सटीक फलकथन किया जाना चाहिऐ आजकल ज्योतिष का वेङा गर्क हो गया है जेसे फला गृह लग्न मे तो याह फल दुसरे भाव मे तो ह यह फल अगर तुला लगन वाले ऐसे होते है मेष वाले ऐसे होते है या आज कन्या राशीवाले यह करे घनु राशी का यह फल क्या यह ज्योतिष है सव को पता है की यह गलत है फिर भी सवी चुप है

सोमवार, 21 नवंबर 2016

मित्रो वक्री ग्रह हो को लेकर पहले भी काफी पोस्ट fb पर post कर चुका हु वक्री ग्रह सदा हानी या वुरा नहीं करते वह कभी-कभी बहुत शुभ फल भी जातक को देते है खास स्थान में वक्री ग्रह जातक को उच्च शिखर पर पहुंचाने में अत्यंत सहायक होते हैं ऐसी स्थिति में जातक को धन, यश व अच्छी सेहत की प्राप्ति होती है किसी के जन्म में यदि कोई ग्रह वक्री होता है और जीवन में वह वक्री ग्रह जब गोचर में आता है, तो बहुत शुभ फल देता है। खास बात यह है कि सूर्य और चंद्रमा कभी वक्री नहीं होते मंगल : यह ग्रह यदि वक्री है तो व्यक्ति शीघ्र क्रोधी तथा उत्तेजित होने वाला हो सकता है जब मंगल का वक्रत्व समाप्त होता है, तभी उसके सभी कार्य पूर्ण होना माना जा सकता है वक्री मंगल वाले व्यक्ति प्राय: डॉक्टर, वैज्ञानिक या रहस्यमयी विधाओं के ज्ञाता देखे गऐ है वाकी योग भी कुंङली मे हो तो वैसे वक्री मंगल वाले मजदूर कार्यस्थल पर काम के बजाय हड़ताल पर रहना ज्यादा पसंद करते हैं। ऐसे जातक अधिकतर कामचोर होते हैंपुरा फल कथन पुरी कुंङली पर ही देखा जाता है यह सिर्फ जनरल जानकारी है हर ग्रह के लिऐ ऐसा ही माने क्योकि कोई भी ऐक ऐकल ग्रह से फल संभव नही बुध : जिनकी जन्मकुंडली में बुध वक्री होता है, वह कमजोर स्वाभाव वाले अथवा मुसीबत में घबरा जाने वाले व्यक्ति होते हैं। जब गोचर में बुध वक्री हो जाता है तो व्यक्ति तीक्ष्ण बुद्धि वाले होते हैं। समाज की विभिन्न समस्याओं को आश्चर्यजनक ढंग से सुलझाने में वे सक्षम होते हैं वुघ जव भी गोचर मे वक्री हो तव वो अपना लेपटोप या कम्प्यूटर मे ङाटा को संभाल कर रखे या backup वना कर रखे बृहस्पति : वक्री बृहस्पति भी शुभ फल देता है। इसके जातकों के पास अद्भुत क्षमता होती है और वे विलक्षण कार्यशैली वाले होते हैं। भले ही उनका कोई काम अधूरा रह जाए, पर आखिरकार वह अपने अधूरे कार्यों को पूरा जरूर करते हैं। उदाहरण के लिए, यदि भवन निर्माण का कार्य रुका हुआ हो अथवा फैक्टरी बंद पड़ी हो, तो दोबारा गोचर में वक्री आने पर रुका हुआ काम पुन: शुरू हो जाता है और पूरा भी होता है शुक्र : जन्म के समय शुक्र के वक्री होने पर जातक धार्मिक स्वभाव का होता है। धर्म पर विश्वास रखने के कारण ऐसे जातकों को लोकप्रियता मिलती है। गोचर में शुक्र जब वक्री होता है, तो उस दौरान वह व्यक्ति सत्यवादी, पर क्रूर हो जाता है। यदि वक्री शुक्र वाले जातक को प्यार, स्नेह या सम्मान नहीं मिलता, तो वह विद्रोही हो जाता है। वक्री शुक्र वाले जातक यदि कलाकार, संगीतज्ञ, कवि या ज्योतिषी हैं, तो उनकी शक्ति बढ़ जाती है और अपने व्यवसायों में वे शिखर पर पहुंच जाते हैं। साथ ही वे काफी नाम भी कमाते हैं। शनि : जन्म में शनि जब वक्री होता है और युवा होने पर जब वह वक्री गोचर में आता है, तो व्यक्ति शक्की स्वभाव का हो जाता है और साथ ही स्वार्थी भी हो जाता है। ऐसे व्यक्ति दिखते कुछ और हैं, पर वास्तव में कुछ और होते हैं। ऐसे व्यक्ति ऊपर से साहसी, कठोर, सिद्धांतवादी और अनुशासनप्रिय होने का ढोंग करते हैं। हकीकत यह होती है कि वे अंदर से डरपोक, खोखले और लचीले स्वभाव के होते हैं। वैसे तो वक्री ग्रहों को अच्छा नहीं माना जाता, पर कुछ खास परिस्थितियों में इनका प्रभाव जातकों के लिए शुभ होता है। ज्योतिष शास्त्र में वक्री ग्रहों को भी शुभ की संज्ञा दी गई है, जिनसे जातकों का जीवन सुखमय हो सकता है।मै फिर यही कहुगा कोई फल पुरी कुंङली देख कर ही संभव हो सकता है वक्री ग्रह अगर कुंङली मे शुभ है या अशुभ है तो उसके फलो मे अघिकता होगी आचार्य राजेश

रविवार, 20 नवंबर 2016

वहुँत सी मेरी माताऐ मुझ से वच्चो को लेकर सवाल करती है की हमारे वच्चे पङते नही ना ही कहना मानते है सारा दिन फोन पर या Tv पर लगे रहते है मै मानता हु आज का वातावरण ऐसा हो रहा है उसका प्रभाव वच्चो पर आना माना जा सकता है जिस मां के मन में अध्यात्मिक भाव हो वही अपने बच्चे के लिये भी यही चाहती है कि उसमें अच्छे संस्कार आयें और इसके लिये बकायदा प्रयत्नशील रहती है। यहां यह भी याद रखें कि मां अगर ऐसे प्रयास करे तो वह सफल रहती है। अब यहां कुछ लोग सवाल उठा सकते हैं कि अध्यात्मिक भाव रखने से क्या होता है? श्रीमद्भागवत गीता कहती है कि इंद्रियां ही इंद्रियों में और गुण ही गुणों में बरत रहे हैं। साथ ही यह भी कि हर मनुष्य इस त्रिगुणमयी माया में बंधकर अपने कर्म के लिये बाध्य होता है। इस त्रिगुणमयी माया का मतलब यह है कि सात्विक, राजस तथा तामस प्रवृत्तियों मनुष्य में होती है और वह जो भी कर्म करता है उनसे प्रेरित होकर करता है। जब बच्चा छोटा होता है तो माता पिता का यह दायित्व होता है कि वह देखे कि उसका बच्चे में कौनसी प्रवृत्ति डालनी चाहिए। हर बच्चा अपने माता पिता के लिये गीली मिट्टी की तरह होता है-यह भी याद रखें कि यह केवल मनुष्य जीव के साथ ही है कि उसके बच्चे दस बारह साल तक तो पूर्ण रूप से परिपक्व नहीं हो पाते और उन्हें दैहिक, बौद्धिक, तथा मानसिक रूप से कर्म करने के लिये दूसरे पर निर्भर रहना ही होता है। इसके विपरीत पशु, पक्षियों तथा अन्य जीवों में बच्चे कहीं ज्यादा जल्दी आत्मनिर्भर हो जाते हैं। यह तो प्रकृति की महिमा है कि उसने मनुष्य को यह सुविधा दी है कि वह न केवल अपने बल्कि बच्चों के जीवन को भी स्वयं संवार सके। ऐसे में माता पिता अगर लापरवाही बरतते हैं तो बच्चों में तामस प्रवृत्ति आ ही जाती है। मनुष्य का यह स्वभाव है कि वह व्यसन, दुराचरण तथा अभद्र भाषा की तरफ स्वाभाविक रूप ये आकर्षित होता है। अगर उसे विपरीत दिशा में जाना है तो अपनी बुद्धि को सक्रिय रखना आवश्यक है। उसी तरह बच्चों के लालन पालन में भी यह बात लागू होती है। जो माता पिता यह सोचकर बच्चों से बेपरवाह हो जाते हैं कि बड़ा होगा तो ठीक हो जायेगा। ऐसे लोग बाद में अपनी संतान के दृष्कृत्यों पर पछताते हुए अपनी किस्मत और समाज को दोष देते हैं। यह इसलिये होता है क्योंकि जब बच्चों में सात्विक या राजस पृवत्ति स्थापित करने का प्रयास नहीं होता तामस प्रवृत्तियां उसमें आ जाती हैं। बाहरी रूप से हम किसी बुरे काम के लिये इंसान को दोष देते हैं पर उसके अंदर पनपी तामसी प्रवृत्ति पर नज़र नहीं डालते। अध्यात्मिक ज्ञान में रुचि रखने वालों में स्वाभाविक रूप से सात्विकता का गुण रहते हैं और उनका तेज चेहरे और व्यवहार में दिखाई देता है

गुरुवार, 17 नवंबर 2016

अक्षरो की यात्रा मित्रो जिसका क्षरण नही हो सकता है अक्षर कहलाता है किसी भी भाषा का बना हो,किसी भी देश में लिखा या बोला जाता हो अक्षर ही अपनी योग्यता को शब्द बनाकर दिखलाने का काम करता है। मान लीजिये गाली एक शब्द है और गाली में ग आ ल और ई अक्षरों का प्रयोग किया गया है,अब ग का उच्चारण किया तो गले से ही निकलेगा आ का उच्चारण किया तो मुंह पूरा खोलना ही पडेगा,ल का उच्चारण किया तो लपलपी जीभ को प्रयोग में लाना ही पडेगा और ई का प्रयोग करने पर सभी मुंह के अंगो के साथ शरीर की भी गति को संभाल कर बोलना पडेगा,तभी केवल गाली शब्द को बोलना पडेगा। अब खतरनाक गाली है तो गले की नौबत है,थोडी कम खतरनाक है तो मुंह को बाजा की तरह बजाने का कारण बन सकता है,अन्यथा बदले में ली तो जायेगी ही चाहे वह इज्जत के रूप में हो या औकात के रूप में इसलिये गाली शब्द को बडी गम्भीरता से बनाया गया होगा,लेकिन अक्षर का चुनाव करने के समय कितना दिमाग पूर्वजों ने लगाया होगा इसका भी अनुमान लगाना बडा कठिन काम है। बावन अक्षर वेदों मे नियत किये गये है,अन्ग्रेजी में तो केवल चौबीस अक्षर ही प्रयोग में लाये गये है,अक्षरों को मिला मिलाकर कितने करोड शब्द बन गये कि उनकी गणना करने में कितना समय लगेगा। म अक्षर के शुरु में लगने से किसी प्रकार की ममता का भान तो होना ही है,जैसे महान म हान में नही होता तो वह बेकार ही था,म के लगते ही हान महान हो गया। कर में म के लगते ही मकर हो गया,यानी म नही लगती तो केवल कर यानी कर्म रह जाता या कर यानी हाथ का ही रूप होता। इसी प्रकार से मचल को ही देख लीजिये म नही होता तो चला चली का ही खेला था,क्या फ़ायदा था जो मचलना भी नही हो पाता। ध्वनि का कारण अक्षर से ही सम्भव है। जो ध्वनि हमारे शरीर से पैदा की जाती है उस ध्वनि को निकालना और सुनना बहुत ही महत्व की बात है। गला जीभ तालू होंठ दांत सभी अक्षर पर ही निर्भर है। ग से गला ज से जीभ त से तालू द से दांत और बिना किसी इन अंगो के प्रयोग के ह तो बोला ही जा सकता है। इसी लिये कहा जाता है कि हंसने के लिये किसी भी अंग को श्रम नही करना पडता है वह हंसा सिर्फ़ ह्रदय से ही जा सकता है लेकिन रोने के लिये जीभ को थर्राना जरूरी है और नाक मुंह तालू सभी को काम करना पडता है,अब बताइये अक्षर हंसने में अच्छे लगते है या रोने में। जो लोग हमेशा रोते ही रहते है वे सही है या जो लोग हमेशा हंसते रहते है वे ही अच्छे है,हंसने वाले ह्रदय से काम लेते है और रोने वाले अपने शरीर को काम मे लेते है शरीर से काम लेने वाले तो गलत काम भी कर सकते है लेकिन ह्रदय से काम लेने वाले कभी गलत काम भी नही कर सकते है। क्ष अक्षर की विशेषता को समझने के लिये किसी को तो बरबाद करना ही पडेगा,जैसे अच्छी भली लार मुंह में आ रही थी,क्ष को कहते ही तालू को सुखाना जरूरी हो गया,उसी तरह से अ को कहने से ही किसी न किसी को तो आना ही पडेगा चाहे वह भावना का आना हो या इन्सान का अथवा जानवर को पुकारने के समय अ अक्षर अपना काम तो करता ही है। आप भी सोच कर देखिये,इसमें कोई पाप नही नही है

सोमवार, 14 नवंबर 2016

धन का शास्त्र ****************************** धन का शास्त्र समझना चाहिए। धन जितना चले उतना बढ़ता है। चलन से बढ़ता है। समझो कि यहां हम सब लोग हैं, सबके पास सौ—सौ रुपए हैं। सब अपने सौ—सौ रुपए रखकर बैठे रहें! तो बस प्रत्येक के पास सौ—सौ रुपए रहे। लेकिन सब चलाएं। चीजें खरीदें, बेचें। रुपए चलते रहें। तो कभी तुम्हारे पास हजार होंगे, कभी दस हजार होंगे। कभी दूसरे के पास दस हजार होंगे, कभी तीसरे के पास दस हजार होंगे। रुपए चलते रहें, रुकें न कहीं। रुके रहते, तो सबके पास सौ—सौ होते। चलते रहें, तो अगर यहां सौ आदमी हैं तो सौ गुने रुपए हो जाएंगे। इसलिए अंग्रेजी में रुपए के लिए जो शब्द है वह करेंसी है। करेंसी का अर्थ होता है: जो चलती रहे, बहती रहे। धन बहे तो बढ़ता है। अमरीका अगर धनी है, तो उसका कुल कारण इतना है कि अमरीका अकेला मुल्क है जो धन के बहाव में भरोसा करता है। कोई रुपए को रोकता नहीं। तुम चकित होओगे जानकर यह बात कि उस रुपए को तो लोग रोकते ही नहीं जो उनके पास है, उस रुपए को भी नहीं रोकते जो कल उनके पास होगा, परसों उनके पास होगा! उसको भी, इंस्टालमेंट पर चीजें खरीद लेते हैं। है ही नहीं रुपए, उससे भी खरीद लेते हैं। इसका तुम अर्थ समझो। एक आदमी ने कार खरीद ली। पैसा उसके पास है ही नहीं। उसने लाख रुपए की कार खरीद ली। यह लाख रुपया वह चुकाएगा आने वाले दस सालों में। जो रुपया नहीं है वह रुपया भी उसने चलायमान कर दिया। वह भी उसने गतिमान कर दिया। लाख रुपए चल पड़े। ये लाख रुपए अभी हैं नहीं, लेकिन चल पड़े। इसने कार खरीद ली लाख की। इसने इंस्टालमेंट पर रुपए चुकाने का वायदा कर दिया। जिसने कार बेची है, उसने लाख रुपए बैंक से उठा लिए। कागजात रखकर। लाख रुपए चल पड़े। लाख रुपयों ने यात्रा शुरू कर दी! अमरीका अगर धनी है, तो करेंसी का ठीक—ठीक अर्थ समझने के कारण धनी है। भारत अगर गरीब है, तो धन का ठीक अर्थ न समझने के कारण गरीब है। धन का यहां अर्थ है बचाओ! धन का अर्थ होता है चलाओ। जितना चलता रहे उतना धन स्वच्छ रहता है। और बहुत लोगों के पास पहुंचता है। इसलिए जो है, उसका उपयोग करो। खुद के उपयोग करो, दूसरों के भी उपयोग आएगा। लेकिन यहां लोग हैं, न खुद उपयोग करते हैं, न दूसरों के उपयोग में आने देते हैं! और धीरे—धीरे हमने इस बात को बड़ा मूल्य दे दिया। हम इसको सादगी कहते हैं। यह सादगी बड़ी मूढ़तापूर्ण है। यह सादगी नहीं है। यह सादगी दरिद्रता है। यह दरिद्रता का मूल आधार है। चलाओ! कुछ उपयोग करो। बांट सको बांटो। खरीद सको खरीदो। धन को बैठे मत रहो दबाकर! यह तो तुम्हें करना है तो मरने के बाद, जब सांप हो जाओ, तब बैठ जाना गड़ेरी मारकर अपने धन के ऊपर! अभी तो आदमी हो, अभी आदमी जैसा व्यवहार करो

शुक्रवार, 11 नवंबर 2016

मांकाली ज्योतिष की आज की पोस्ट उन मित्रो के लिऐ है जो ज्योतिष सिख रहे है या जो ज्योतिष की जानकारी रखते है ओर ज्यादा से ज्यादा ज्ञान पाना चाहते है मित्रो पोस्ट थोङी लम्वी है माफी चाहुगा मेरा तो यही उदेश्य है की ज्ञान वाटा जाऐ ज्ञान वाटने से ओर वङता है आचार्य राजेश मिथुन लगन की कुंडली और केतु लगन में है,राहु का सप्तम में होना बाजिव है,चौथा शनि वक्री है,लगनेश वक्री बुध दसवे भाव में मंगल गुरु शुक्र के साथ विराजमान है,सूर्य ग्यारहवा और चन्द्र पंचम में विराजमान है। केतु का कार्य प्राप्त करना होता है और राहु का कार्य इकट्ठा करके देना होता है। राहु जिस भाव में है उस भाव के आसपास से और जहां जहां उसकी द्रिष्टि यानी स्थापित होने वाले स्थान से स्थापित होने वाले स्थान से तीसरे स्थान से पंचम स्थान से सातवें स्थान से और नवें स्थान से यह लेता है, (सातवें स्थान के केतु से यह भाव का नकारात्मक प्रभाव लेता है) और सकारात्मक रूप से यह केवल केतु को ही प्रदान करता है। केतु राहु से प्राप्त किये गये प्रभाव और कारण को अपने स्थान पर खर्च करता है तीसरे स्थान पर खर्च करता है पंचम स्थान पर खर्च करता है और नवें स्थान पर खर्च करता है। इस बात के लिये यह भी जानना आवश्यक है कि जब राहु अपने से तीसरे स्थान से पराक्रम को इकट्ठा करके केतु को देता है तो केतु बदले में उस पराक्रम के स्थान पर भाग्य की बातों को देता है। जैसे राहु ने अपने से तीसरे स्थान से व्यक्ति की कपडे पहिनने की जानकारी को इकट्ठा किया और केतु को प्रदान कर दिया,बदले में केतु ने उस तीसरे स्थान पर अपने समाज और मर्यादा के अनुरूप गुण प्रदान कर दिया यानी जातक को बजाय कपडे को ओढने के उसे सिलवा कर तरीके से पहिना दिया,उसी प्रकार से राहु ने जातक के द्वारा शिक्षा की शक्ति को लिया और केतु को प्रसारित कर दिया,केतु ने धीरे से उस शक्ति को लाभ के मामले में लेकर उसे अपने लिये साधन बना लिया और जीविकोपार्जन के लिये प्रदान करने लगा। राहु ने सप्तम के प्रभाव को जातक से लिया और वासना के रूप में केतु को प्रदान कर दिया,जातक ने अफ़ेयर और शादी विवाह के सम्बन्ध के द्वारा उस शक्ति को प्रयोग में लिया और अपने लिये आजीवन व्यस्त रहने का साधन बना लिया। राहु ने अपने से नवें भाव के प्रभाव को भाग्य के रूप में प्राप्त किया,केतु ने उस भाग्य के प्रभाव को अपनी शक्ति बनाकर समाज मे चलने के लिये योग्य बना लिया।राहु केतु की सीमा रेखा एक दूसरे के प्रति एक सौ अस्सी डिग्री की मानी जाती है,दोनो ही छाया ग्रह है इसलिये अपनी अपनी योग्यता को स्वभाव और ज्ञान के रूप में तो प्रदर्शित करते है,लेकिन सामने नही आते है,जैसे बिजली का तार लम्बा है तो केतु का रूप देता है,चौकोर है तो मंगल केतु का रूप देता है,गोल है तो बुध केतु का रूप देता है,लचीला है तो बुध के साथ गुरु का प्रभाव भी शामिल है कठोर है तो शनि का प्रभाव भी शामिल है,उस तार का प्रयोग अगर कपडे लटकाने वाली अलगनी के रूप में लिया जाता है तो वह शक्ति की भावना को तभी तक अपने अन्दर संजोकर रखेगा जब तक कपडे के अन्दर पानी यानी चन्द्रमा की मात्रा अधिक है,अगर शनि का प्रभाव चन्द्रमा के साथ है तो केतु को अधिक समय तक बोझ को लादकर रखना पडेगा,और सूर्य का चन्द्रमा के साथ अधिक प्रभाव है तो जरा सी देर के लिये बोझ को लादना पडेगा,साथ ही मंगल का प्रभाव अधिक है तो कपडे को जला भी सकता है और खुद भी मंगल के साथ जल कर खत्म हो सकता है। लेकिन राहु का प्रभाव उस केतु के अन्दर समय के अनुसार ही बनेगा। जैसे बिजली का तार देखने में तो वह आस्तित्वहीन मालुम होगा लेकिन उसे छूते ही वह करेंट को अपने बल के द्वारा प्रदर्शित करेगा मिथुन राशि का बुध दसवें भाव में वक्री है,राहु से चौथा है और केतु से दसवां,साथ ही शनि वक्री होकर चौथे भाव में लगनेश से विरोधाभास का कारण भी पैदा कर रहा है। अगर यह युति प्रश्न कुंडली के अनुसार देखी जाती तो वक्री बुध के लिये यह माना जाता कि प्रश्न कर्ता कुछ भूल कर आया है और उसे वापस फ़िर से प्रश्न पूंछने के लिये आना पडेगा,यहां बुध वक्री किसी गणित की जानकारी जैसे तारीख या हिसाब किताब को खोज कर वापस आयेगा। सप्तम में शनि वक्री के लिये माना जाता है कि उसकी पत्नी या जीवन साथी नही है,कारण राहु ने दसवीं नजर से शनि वक्री को देखा है,केतु ने चौथे भाव से देखा है इसलिये पत्नी या जीवन साथी का इन्तकाल तभी हो गया होगा जब शनि वक्री हुआ होगा। केतु से दसवें भाव में लगनेश के होने से लगनेश को मानसिक चिंता केतु के लिये ही होगी। लगनेश जो भी कार्य करेगा वह केतु को ध्यान में रखकर ही करेगा लगनेश से सम्बन्ध रखने वाले ग्रहों में जैसे शुक्र है तो लगनेश को चिन्ता स्त्री की अपने लिये नही होगी,कारण लगनेश वक्री है कभी भी वक्री लगनेश अपने लिये चिन्ता करने वाला नही होता है उसे अपने से चौथे भाव की चिन्ता का सामना ही करना पडता है। लगनेश को चिन्ता अपने केतु के लिये शुक्र को पैदा करने की है,वह चाहता है कि उसके पुत्र की शादी हो जाये जो उसके लिये घर संभालने वाली बात को कर सके। लगनेश् से दसवें भाव में राहु के होने से पिता का भी अन्तकाल हो चुका है,और लगनेश से चौथे केतु पर शनि की दसवी नजर पडने के कारण माता का भी अन्तकाल हो गया है। केतु से पंचम में चन्द्रमा के होने से और राहु से ग्यारहवे भाव में चन्द्रमा होने से लगनेश को दो माताओं ने एक साथ पाला है,एक माता अष्टम चन्द्र होने के कारण ताई की हैसियत वाली होगी,और लगनेश से दूसरे भाव में सूर्य के होने से जातक का पिता दो भाई था लेकिन राहु का असर दूसरे भाव के सूर्य पर पडने से जातक की ताई विधवा का जीवन निकालने के समय में ही जातक के पालन पोषण के प्रति अपनी आस्था रखने वाली होगी। वक्री बुध के साथ मंगल के होने से जातक रक्षा सेवा में कार्य करने वाला होगा,लगनेश के साथ गुरु के होने से जातक का एक भाई बडा भी होगा जो चौथे केतु की करामात से अपंग रहा होगा और गुरु के साथ वक्री बुध के कारण अविवाहित ही रहा होगा,तथा लगनेश के वक्री होने से और सूर्य के बीच में गुरु के होने से वह अनदेखी के कारण चन्द्रमा के पीछे शनि होने से ठंड के कारण अन्तिम गति को प्राप्त हुआ होगा। सूर्य से तीसरे भाव में केतु के होने से जातक के पिता को लाठी या सहारा लेकर चलने की आदत भी होगी सूर्य से सप्तम में चन्द्रमा के होने से जातक की दो बुआ हमेशा पिता को सहारा देने वाली होंगी लेकिन प्रश्न के समय वे दोनो ही बुआ विधवा जीवन को निकाल रहीं होंगी। चन्द्रमा से छठे भाव में बुध के वक्री होने से दोनो बुआ अपनी अपनी कमर को झुकाकर चलने वाली होंगी और जातक की ताई भी कमर झुकाकर ही मरी होंगी। मंगल के चौथे भाव में केतु के होने से और बुध के वक्री होने से गुरु के साथ होने से जातक की पत्नी को केंसर जैसी बीमारी रही होगी,तथा एक बुआ को भी केंसर की बीमारी रही होगी। जो केंसर की बीमारी जातक के गुरु यानी गले में रही होगी तो जातक की एक बुआ को गर्भाशय जो चन्द्रमा से पंचम स्थान को वक्री शनि के द्वारा देखा जा रहा है,की बीमारी रही होगी।लगन से सप्तम का राहु अगर धनु राशि का है तो जातक बदचलन होगा,वह अपनी मर्यादा को नही जानता होगा और उसका विश्वास नही किया जा सकता है। साथ ही जातक के जो भी सन्तान होगी वह या तो शराब आदि के कारणों मे व्यस्त होगी जो कार्य जातक के द्वारा किया जायेगा वही कार्य जातक के बडे पुत्र के द्वारा किया जायेगा,अन्य सन्तान भी राहु के असर से ग्रसित होगी या तो विक्षिप्त अवस्था में होगी या पिता का कहना नही मानती होगी। राहु ग्यारहवा चन्द्रमा जातक को भौतिक धन के रूप में खेती वाली जमीने ही इकट्ठी करने के लिये अपनी युति देगा,साथ ही केतु से दसवा मंगल रक्षा सेवा देगा मंगल बुध मिलकर एक सन्तान को मारकेटिंग में अग्रणी बनायेगा,शुक्र से सम्बन्धित होने के कारण एक सन्तान को पत्नी भक्त बनायेगा। जैसे ही गुरु चन्द्रमा के साथ गोचर करेगा जातक अपने जीवन साथी की जगह पर एक स्त्री को लाकर घर में रखेगा,जो विधवा होगी और वह जातक की ताई की भांति ही अपने जीवन को निकालेगी वहुँत से मित्र फोन करते है कुंङली के लिऐ मित्रो हमारी paid service है अगर आपका मन हो तो ही वात करे हा कोई लाचार है या गरीव है उसके लिऐ free हैकृप्पा msgना करे हमारे नम्वरो पर वात करे 07597718725 09414481324

गुरुवार, 3 नवंबर 2016

काफी पुरानी ऐक पोस्ट कर रहा हु कुन्ङली की फोटो के साथ ताकि जो ज्योतिष सिख रहै है उनको लाभ मिले मेरी यही कोशिश रही है ज्यादा से ज्यादा ज्ञान हम सव को प्राप्त हो क्योंकि ज्ञान वाटने से ओर वङता है आचार्य राजेश यहकुंडली कर्क लगन की है और लगनेश चन्द्रमा दूसरे भाव में है। गुरु लगनेश चन्द्रमा से सप्तम भाव में वक्री होकर विराजमान उच्च का मंगल सप्तम मे विराजमान हैपंचम शनि ने मंगल को आहत किया है। पंचम शनि के पास नवे भाव मे विराजमान राहु का असर भी है। सूर्य केतु का पूरा बल सप्तम के मंगल को मिल रहा हैजो कारण ग्रह अपने अनुसार वैवाहिक जीवन को छिन्न भिन्न करने के लिये उत्तरदायी है वे इस प्रकार से है:- गुरु सम्बन्ध का कारक है चन्द्रमा से सप्तम में विराजमान है मार्गी गुरु समानन्तर में रिस्ता चलाने के लिये माना जाता है लेकिन वक्री गुरु जल्दबाजी के कारण रिस्ता बदलने के लिये माना जाता है। मार्गी गुरु समानन्तर में रिस्ता चलाने के लिये माना जाता है लेकिन वक्री गुरु जल्दबाजी के कारण रिस्ता बदलने के लिये माना जाता है। मार्गी गुरु स्वार्थ भावना को लेकर नही चलता है लेकिन वक्री गुरु स्वार्थ की भावना से रिस्ता बनाता भी है और जल्दी से तोड भी देता है। बार बार मानसिक प्रभाव रिस्ते से बदलने के कारण और एक से अधिक जीवन साथी प्राप्त करने के लिये अपनी मानसिक शक्ति को समाप्त करने के कारण अक्सर वक्री गुरु पुरुष सन्तान को भी पैदा करने से असमर्थ रहता है। उस समय में गुरु नवे भाव में जन्म के राहु के साथ गोचर कर रहा था और राहु का असर गुरु पर आने से जीवन साथी पर कनफ़्यूजन की छाया पूरी तरह से है गोचर के गुरु के सामने जन्म समय के सूर्य केतु भी है,जो पिता और पिता परिवार से लगातार गुप्त रूप से कमन्यूकेशन और राजनीति करने तथा गुप्त रूप से जातिका को रिमोट करने से आहत भी है. पंचम का शनि वृश्चिक राशि का है,साथ ही चन्द्रमा और लगन से सप्तमेश शनि के होने के कारण तथा शनि का शमशानी राशि में स्थापित होने के कारण जातिका के परिवार के द्वारा शादी के बाद से ही पति को नकारा समझा जाने लगा,इसके साथ ही जातक की अन्तर्बुद्धि भी परिवार के कारणों से खोजी बनी हुयी है,जातिका का समय पर भोजन नही करना शनि की सिफ़्त के कारण लगातार चिन्ता में रहना,पति पत्नी के सम्बन्ध के समय में अपने को ठंडा रखना,जननांग में इन्फ़ेक्सन की बीमारी गंदगी के कारण रहना और सन्तान के लिये या तो असमर्थ होना या भोजन के अनियमित रहने के कारण शरीर में कमजोरी होना भी माना जाता है,इसी के साथ पंचम शनि के प्रभाव से सप्तम स्थान का आहत होना जब भी कोई घरेलू बात होना या परिवार को सम्भालने की बात होना तो गुपचुप रहना घरेलू कार्यों में वही काम करना जो परिवार से दूरिया बनाते हो,वैवाहिक जीवन को ठंडा बनाने के लिये काफ़ी होते है,शनि का लाभ भाव में भी अपने असर को देना,अर्थात रोजाना के कार्यों में सुबह से ही घरेलू चिन्ताओं का पैदा किया जाना और इन कारणों से होने वाली लाभ वाली स्थिति में दिक्कत आना भी वैवाहिक कारणों के नही चलने के लिये माना जाता है,शनि की दसवीं द्रिष्टि दूसरे भाव में चन्द्रमा पर होने से नगद धन और पति परिवार की महिलाओं से पारिवारिक बातों का बुराई के रूप में बताया जाना भी वैवाहिक कारणों को समाप्त करने के लिये काफ़ी है। वक्री गुरु का सीधा नवम पंचम का सम्बन्ध शुक्र और बुध से होने से पति के द्वारा पहले किसी अन्य स्त्री से अफ़ेयर का चलाना और बाद मे शादी करना भी एक कारण माना जा सकता है,इस प्रभाव से जो मर्यादा पत्नी की होती है वह अन्य स्त्रियों से काम सुख की प्राप्ति के बाद पति के अन्दर केवल पत्नी मौज मस्ती के लिये मानी जाती है,लेकिन जैसे जैसे पत्नी का ओज घटता जाता है पति का दिमाग पत्नी से हट्कर दूसरी स्त्रियों की तरफ़ जाना शुरु हो जाता है,इस कारण में अक्सर सन्तान के रूप में केवल पुत्री सन्तान का होना ही माना जाता है,और पुरुष को वैवाहिक जीवन से दूर जाने के लिये यह आकांक्षा भी शामिल होती है कि वह पुत्र हीन है और उसकी पत्नी पुत्र सन्तान पैदा करने में असमर्थ है,शुक्र बुध के एक साथ तुला राशि में चौथे भाव में होने से शादी के बाद भी पति का रुझान अन्य स्त्रियों से होता है। केतु का शनि को बल देना और केतु को सूर्य का बल प्राप्त होना तथा शनि का परिवार में स्थापित होना वैवाहिक जीवन को पारिवारिक न्यायालय से समाप्त करने का कारण तैयार होता है। अष्टम गुरु से दूसरे भाव में राहु के होने से पति के द्वारा बनायी गयी बातों से और झूठे कारण बनाकर अदालती कारण जातिका के लिये बनाये जाते है,राहु के द्वारा शुक्र बुध को अष्टम भाव से देखने के कारण जातिका पर चरित्र के मामले में भी झूठे कारण बनाकर लगाये जाते है.इन कारणों से चन्द्रमा जो राहु से षडाष्टक योग बनाकर विराजमान है,परिवार पर झूठे चरित्र सम्बन्धी आक्षेप सहन नही कर पाता है और विवाह विच्छेद का कारण बनना जरूरी हो जाता है. इन कारणों को जातिका के द्वारा रोका जा सकता है। उच्च के मंगल की स्थिति के कारण जातिका को कटु वचन बोलने से बचना चाहिये। राहु के मीन राशि में होने से जातिका को जितना डर लगेगा उतना ही ससुराल खानदान उसके ऊपर सवार होगा मित्रो अगर आप मुझ से अपनी कुंङली दिखाना या कुंङली वनवाना चाहते है तो मेरे नम्वर पर सम्पर्क करे माकाली ज्योतिष आचार्य राजेश 07597718725 09414481324

शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2016

मित्रो दिपावाली दीयो के विना अघुरी है दियो वेचने वाले से तोलमोल मत करे ऐक गरीव थोङा पैसा ज्यादा भी ले तो कोई फर्क नही पङेगा दोस्तो दियो को पँच तत्व व गृहो से क्यामेल है आऐ देखते है दीया मिटृटी से वनता है यानी तत्व पृथ्वी ओर मिटृटी को शुक्र गृह से भी जोडा गया मिटृटी को मथा जाता है पानी के साथ तत्व पानी ओर गृह चन्द्र ओर मिटृटी को मथने वाला कुम्हार यानी शनी यहा मेहनत होगी वहा शनी का ही माना जा सकता है दीयो का अकार वुघ का माना जा सकता है दीयो को पकने के लिऐ आग की जरुरत होगी यानी मंगल ओर अग्नी तत्व आग को जलाने के लिऐ लकङी यानी शनीआग को जलने के लिऐ हवा यानी आक्सीजन की जरुरता होगी यानी वृहस्पती दीयो के अन्दर खाली स्थान यानी अकाश तत्व पकने के वाद दीयो का लाल होना यानी मंगल ओर कही से काला होना राहु ओर तेल सरसो का ङाले शनी देसी घी ङाले तो शुक्र ओर राहु जव दीयो को जलाते है तो प्रकाश यानी सुरज गृह वात्ती केतु गृह दीयो से उठने वाला घुँआ राहु दीये तले अन्घेरा राहु ओर शनी घर लक्ष्मी दीये जगाऐ तो यह वेटी जगाऐ तो वुघ घरवाली जगाऐ तो शुक्र मंगल कार्य मे मंगल ओर घर्म कार्य मे गुरु गृह अव आप देखे दीयो को पाँच तत्व ओर नो गृह का साथ है आचार्य राजेश

बुधवार, 26 अक्तूबर 2016

मित्रो आज वात करते है दीपावाली की अमावस की रात गहरा गहन अंघेरा हम दीये जलाते है ओर पुरी रोशनी करते है ओर सोचते है दीये जलाकर अंघेरा दुर हो गया है कोन सा अंघेरा अव अंघेरा भी दो तरह का है वाहर भी ओर भीतर भी वाहर तो रोशनी हो गई पर भीतर तो ओर गहरा अंघेरा है यह तो कभी सोचा ही नही भीतर का दीया कैसे जगेगा कोन सा तेल डालना होगा ओर तेल कहा मिलेगा वाहर के दीये तो तेल से जलते है ओर वाती भी चाहिये भीतर के दीवे के लिऐ ना तेल चाहिऐ ना वाती ईस लिऐ पलटु साहिव ने कहा उलटा कुँआ गगन मे दीया जले वीन वाती वीन तेल दीया सतत जल रहा है वस पर्दा हटाना होगा जव हमे हमारा दीया मिलेगा तव असल मे दिवाली होगी ओर हर क्षण ओर हर पल दीवाली आओ दीया जलाऐ जय माँता दी जय माँकाली आचार्य राजेश

सोमवार, 24 अक्तूबर 2016

मित्रो आपने दीपावाली की पुजा को लेकर शुभसमय पुछा है जो ईस तरह है2016, रविवार के दिनयह पर्व मनाया जायेगा। जिसका समय सायं 06:27 से लेकर रात्रि 08:09 का है इस मुहूर्त की अवधि 1 घंटे 42 मिनट की है। श्री लक्ष्मी-गणेश पूजन का ये मुहूर्त अत्यंत शुभ मुहूर्त है। जिसमे श्री लक्ष्मी-गणेश की पूजा करना बहुत लाभकारी सिद्ध होगा ऊपर बताया गया मुहूर्त प्रदोष काल मुहूर्त है। जिसमे प्रदोष काल सायं 05:33 से प्रारंभ होकर रात्रि 08:09 तक रहेगा। जबकि वृषभ काल सायं 6:27 से प्रारंभ होकर रात्रि 08:22 तक रहेगा।अमावस्या दिनांक 29 अक्टूबर, 2016 शनिवार रात्रि 10:40 से प्रारंभ होकर दिनांक 30 अक्टूबर, 2016 रविवार रात्रि 11:08 पर समाप्त होगीजबकि सिंह काल रात्रि 12 :57 से प्रारंभ होकर प्रातः 03:14 तक रहेगा दिवाली लक्ष्मी पूजन के लिए चौघड़िया के मुताबिक शुभ मुहूर्त प्रातः मुहूर्त (चार, लाभ, अमृत) – सुबह 07:58 से दोपहर 12:05 तक। दोपहर मुहूर्त (शुभ) – दोपहर 1:27 से दोपहर 02:49 तक। सायं मुहूर्त (शुभ, अमृत, चार) – सायं 05:33 से 10:27 तक।

दीपावालीकी सव को राम राम अरे आज तो दीपावाली नही है जी आने वाली 30 तारीख को दीपावाली की सवको राम राम मित्रो मन हुआ दियो के पर्व पर पर कुछ कहु हे माँ सवके जीवन रोशनी से भरदे हमे अंघेरे से उजयारे की ओर लेकर आओ माँ तुम ही शक्ती रुपा हो शक्ति ही जीवन है,और जब शक्ति नही है तो जीवन भी निरर्थक है। जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त विभिन्न प्रकार की शक्तियां मानव जीवन के साथ चलती है,शक्तियों के तालमेल से ही व्यक्ति आगे बढता है,नाम कमाता है,प्रसिद्धि प्राप्त करता है,जब शक्ति पर विश्वास नही होता है तो जीवन भी हवा के सहारे की तरह से चलता जाता है,और जरा भी विषम परिस्थिति पैदा होती है तो जीवन के लिये संकट पैदा हो जाते हैं। किस प्रकार की शक्तियों का होना जरूरी है हर व्यक्ति के लिये तीन प्रकार की शक्तियों को प्राप्त करना जरूरी होता है,पहली मानव शक्ति,दूसरी है भौतिक शक्ति,और तीसरी है देव शक्ति। मानव शक्ति भी दिखाई देती है,भौतिक शक्ति भी दिखाई देती है लेकिन देव शक्ति दिखाई नही देती है बल्कि अद्रश्य होकर अपना बल देती है। कौन देवता किस शक्ति का मालिक है? भगवान गणेशजी मानव शक्ति के प्रदाता है,माता लक्ष्मी भौतिक शक्ति की प्रदाता है और माता सरस्वती पराशक्ति यानी देव शक्ति की प्रदाता हैं,इन्ही तीन शक्तियों की पूजा का समय दीपावली के दिन प्राचीन काल से माना जाता रहा है। दीपावली का त्यौहार कार्तिक कृष्ण-पक्ष की अमावस्या को ही मनाया जाता है भारत मे तीन ऋतुओं का समय मुख्य माना जाता है,सर्दी गर्मी और बरसात,सर्दी की ऋतु कार्तिक अमावस्या से चैत्र की अमावस्या तक,गर्मी की ऋतु चैत्र अमावस्या से श्रावण अमावस्या तक,और बरसात की ऋतु श्रावण अमावस्या से कार्तिक अमावस्या तक मानी जाती है।बरसात के बाद सभी वनस्पतियां आकाश से पानी को प्राप्त करने के बाद अपने अपने फ़लों को दीवाली तक प्रदान करती है,इन वनस्पतियों के भण्डारण के समय की शुरुआत ही दीपावली के दिन से की जाती है,आयुर्वेद में दवाइयां और जीवन वर्धक वनस्पतियों को पूरी साल प्रयोग करने के लिये इसी दिन से भण्डारण करने का औचित्य ऋग्वेद के काल से किया जाता है। इसके अलावा उपरोक्त तीनो शक्तियों का समीकरण इसी दिन एकान्त वास मे बैठ कर किया जाता है,मनन और ध्यान करने की क्रिया को ही पूजा कहते है,एक समानबाहु त्रिभुज की कल्पना करने के बाद,साधन और मनुष्य शक्ति के देवता गणेशजी,धन तथा भौतिक सम्पत्ति की प्रदाता लक्ष्मीजी,और विद्या तथा पराशक्तियों की प्रदाता सरस्वतीजी की पूजा इसी दिन की जाती है तीनो कारणों का समीकरण बनाकर आगे के व्यवसाय और कार्य के लिये योजनाओं का रूप दिया जाता है,मानव शक्ति और धन तथा मानवशक्ति के अन्दर व्यवसायिक या कार्य करने की विद्या तथा कार्य करने के प्रति होने वाले धन के व्यय का रूप ही तीनों शक्तियों का समीकरण बिठाना कहा जाता है। जैसे साधन के रूप में फ़ैक्टरी का होना,धन के रूप में फ़ैक्टरी को चलाने की क्षमता का होना,और विद्या के रूप में उस फ़ैक्टरी की जानकारी और पैदा होने वाले सामान का ज्ञान होना जरूरी है साधन विद्या और लक्ष्मी तीनो का सामजस्य बिठाना ही दीपावली की पूजा कहा जाता है विभिन्न राशियों के विभिन्न गणेश,लक्ष्मी,और सरस्वती रूप संसार का कोई एक काम सभी के लिये उपयुक्त नही होता है,प्रकृति के अनुसार अलग अलग काम अलग अलग व्यक्ति के लिये लाभदायक होते है,कोई किसी काम को फ़टाफ़ट कर लेता है और कोई जीवन भर उसी काम को करने के बाद भी नही कर पाता है,इस बाधा के निवारण के लिये ज्योतिष के अनुसार अगर व्यक्ति अपने काम और विद्या के साथ अपने को साधन के रूप में समझना शुरु कर दे तो वह अपने मार्ग पर निर्बाध रूप से आगे बढता चला जायेगा,व्यक्ति को मंदिर के भोग,अस्पताल में रोग और ज्योतिष के योग को समझे बिना किसी प्रकार के कार्य को नही करना चाहिये।आम आदमी को लुभावने काम बहुत जल्दी आकर्षित करते है,और वह उन लुभावने कामों के प्रति अपने को लेकर चलता है,लेकिन उसकी प्रकृति के अनुसार अगर वह काम नही चल पाता है तो वह मनसा वाचा कर्मणा अपने को दुखी कर लेता है। आगे हम आपको साधन रूपी गणेशजी,धन रूपी लक्ष्मी जी और विद्या रूपी सरस्वतीजी का ज्ञान करवायेंगे,कि वह किस प्रकार से केवल आपकी ही प्रकृति के अनुसार आपके लिये काम करेगी,और किस प्रकार से विरोधी प्रकृति के द्वारा आप को नेस्तनाबूद करने का काम कर सकती है जय माता दी जय माँ काली माकाली ज्योतिष आचार्य राजेश 09414481324 07597718725

रविवार, 23 अक्तूबर 2016

शरीर एक नाव है एँव आत्मा एक यात्री यही सत्य है सभी कहते हैँ यदि यह सत्य भी है महान तो शरीर ही हुआ ना जीवन भर ढोता रहा जो इस यात्री का बोझ जो केवल मूक साथी था इस घाट से उस घाट की बीच की दूरी का इस आशा मेँ इस पर सवार किंचित यह नाव समय के धारे के विपरीत बह कर उसे मिला देगी उस परम से जिसका वो एक अँश है उसे क्या बोध कि इस नाव के साथ बँधी हैँ और बहुत सी नाँवेँ जो विवश करती है उसे सिर्फ बहाव के साथ बहने को और उन नावोँ पर सवार उस जैसे यात्री अनसुना कर देते है इस नाव के अंत्रनाद को जय माता दी

सोमवार, 17 अक्तूबर 2016

मित्रो मेरी पिछली पोस्ट वास्तु पर थी आप लोगो ने वहुँत पसन्द की मेरी कोशिश है ज्यादा से ज्यादा आप को श्ज्ञान मिले ताकि कुछ अंघविश्वास जो हमारे समाज मे फैले है उससे दुर हो सके मित्रो मेरी आने वाली कुछ पोस्ट वास्तु पर ही होगी दक्षिण मुखी मकान को लेकर ना जाने कितनी गलत फहमी है की यह शुभ है या कितना वुरा है वास्तु जीवन को प्रभावित करता है यह कई प्रकार से देखने मे भी आता है और समझने मे भी आता है.लेकिन हर दिशा हर व्यक्ति के लिये अशुभ हो यह समझ मे नही आता है.अक्सर लोगो को कहते सुना है कि दक्षिण मुखी मकान अशुभ होता है और उसी जगह पर पूर्व फ़ेसिंग और उत्तर फ़ेसिंग मकान की कीमत अच्छी मिल जाती है लेकिन दक्षिण मुखी मकान का पूरा मूल्य नही मिल पाता है.आखिर ऐसा क्या है जो दक्षिण मुखी मकान से लोग घबरा जाते है यहा तक कुछ सुत्र को समझने के वाद दक्षिण मुखी मकान में दोपहर का सूर्य अपनी रश्मियों को प्रसारित करता है इन रश्मियों को वही सहन कर सकता है जो दिमाग शरीर और भौतिकता मे बलवान होता है.कारण जो गर्मी और ऊष्मा सूर्य से प्रसारित होती है वह साधारण लोग हजम नही कर पाते है.जिनका मंगल शुभ हो वो दक्षिण मुखी मकान मे रह सकते है पुलिस सेना तकनीके क्षेत्र के लोग डाक्टर दवाई बनाने वाले होटल और आग वाला काम करने वाले मिठाई बनाने वाले दक्षिण मुखी मकान मे सफ़ल हो जाते है और उनकी बराबरी का कार्य अलावा दिशाओ वाले नही कर पाते है. तकनीकी दिमाग का होना और गर्म दिमाग का होना इसी दिशा मे रहने वाले लोगों के पास होता है,अधिकतर देह बल का प्रयोग करने वाले और शरीर को धन औकात और नाम के लिये प्रयोग करने वाले लोग इसी दिशा को पसन्द करते है. जो लोग विपरीत कार्यों से जुडे होते है वे उपरोक्त कारणो के कारण परेशान होते है,पूजा घर भी दक्षिण फ़ेस वाले सही माने गये है अगर उन घरो में हवन अखण्ड ज्योति को जलाकर रखा गया है. अगर दक्षिण मुखी मकान का दरवाजा लाल रंग का है तो व्यक्ति आराम से रह सकता है. लाल रंग के स्वास्तिक भी इस दिशा के दरवाजे वाले मकानो के लिये शुभ होते है. मिर्च मसाले के व्यवसाय वाले इस दिशा के दरवाजों के मकान मे रहने के बाद अक्सर पनपते देखे गये है. कर्जा देने वाले बैंकिंग का काम करने वाले और ब्याज तथा किराये से रहने वाले लोग इस दिशा के मकानो से हमेशा दुखी देखे गये है उनके धन को या सम्मान को शरीर को किसी न किसी प्रकार से आघात ही लगते देखे गये है. अगर दक्षिण मुखी मकान के आगे टी क्रास भी है तो अक्सर मकान मालिक और किरायेदार के बीच मे लम्बी लडाई भी होती देखी गयी है,अक्सर मकान मालिक बाहर भटकता है और किरायेदार ऐश करता है. हर किसी के लिऐ दक्षिण दिशा वुरी नही हो सकती मित्रो अगर आप अपनी कुंङली दिखाना या कोई समस्या का उपाय चाहते है तो सम्पर्क करे आचार्य राजेश 09414481324 07597718725 paid service

जीवन मन्त्र ...............अपनी आवश्यकता को कंट्रोल में रखिये, फिजूल खर्ची और दिखावे से बचिए अपने जीवन को सिर्फ पैसों की दौड़ में ही व्यर्थ ना कीजिये, पैसे के अलावा भी बहुत कुछ.......बहुत कुछ है जीवन में जीने का पूरा-पूरा लुत्फ़ भी उठाईये. तभी हमारा जीवन सार्थक होगा जब हम हवन द्वारा पूजा करते हैं तो हवन सामग्री थोड़ी-थोड़ी देर में हवन कुंड में डालते है. यदि उस हवन कुंड में सामाग्री बहुत देर से डालें तो अग्नि ही ख़त्म हो जायेगी लेकिन यदि सारी सामाग्री हमनें इसलिए बचाए रखा कि आख़िर में सामग्री काम आएगी तो उसे अंत में डालने पर इतना धुवां फैलेगा कि आँखें जलने लगेगी और गर्मी से वहाँ बैठना ही मुश्किल हो जायेगा. पर ऐसा ही हम करते हैं. यही हमारी फितरत है. या तो हम इतनी कंजूसी से जीते हैं कि जीने का रस ही नहीं ले पाते. और या हम अंत के लिए बहुत कुछ बचाए रखते हैं. हम समझ ही नहीं पाते कि हर पूजा खत्म होनी होती है. हम ज़िंदगी जीने की तैयारी में ढेरों चीजें जुटाते रहते हैं, पर उनका इस्तेमाल नहीं कर पाते. हम कपड़े खरीद कर रखते हैं कि फलां दिन पहनेंगे, फलां दिन कभी नहीं आता. हम पैसों का संग्रह करते रहते हैं ताकि एक दिन हमारे काम आएगा, वो एक दिन नहीं आता और फिर एक दिन अचानक ही ऊपर से बुलावा आ जाता है. ज़िंदगी की पूजा खत्म हो जाती है और हवन सामग्री बची ही रह जाती है. हम बचाने में इतने खो जाते हैं कि हम समझ ही नहीं पाते कि जब सब कुछ होना हवन कुंड के हवाले है, उसे बचा कर क्या करना? बाद में तो वो सिर्फ धुंआ ही देगा अगर ज़िंदगी की हवन सामग्री का इस्तेमाल हम पूजा के समय सही अनुपातम में करते चले जाएं, तो न धुंआ होगी, न गर्मी न आंखें जलेंगी ध्यान रहे, संसार हवन कुंड है और जीवन पूजा. एक दिन सब कुछ हवन कुंड में समाहित होना है. अच्छी पूजा वही होती है, जिसमें हवन सामग्री का सही अनुपात में इस्तेमाल हो जाता है. अच्छी ज़िंदगी वही होती है, जिसमें हमें संग्रह करने के लिए मेहनत न करनी पड़े. हमारी मेहनत तो बस ज़िंदगी को जीने भर जुटाने की होनी चाहिए और थोड़ा इमरजेंसी जितना बचाकर रखना चाहिए और कुछ अपनी अगली पीढी के लिए.

शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2016

मित्रो आप मे से वहुँत से मित्र मुझसे वास्तु के वारे मे सवाल पुछ रहे थे ईसके वारे मुझे जानकारी तो थी पर समझ मे नही आ रहा था की कहा से शुरु करु सो छोटी सी कोशिश की है लेख थोङा लम्वा जरुर है पर आपको जानकारी जरुर मिलेगी वास्तु क्या है वास्तु विज्ञान को समझने के लिये निम्न सिद्धान्तों को ध्यान में रखना पृथ्वी की गति पृथ्वी के घूर्णन और अन्य ग्रहों के चुम्बकीय प्रभाव सूर्य से प्रदत्त ऊर्जा सूर्य से मिलने वाली विभिन्न रंगों की ऊर्जा ऊर्जा को प्रभावी-अप्रभावी बनाने वाले नियम अलग अलग स्थानों की ऊर्जा और मानवीय स्वभाव ऋतुओं के अनुसार अलग अलग ऊर्जा के प्रकार स्थल पठार पहाड जलीय वन भूमि से प्राप्त अलग अलग ऊर्जा के प्रकार अलग अलग ऊर्जा से शरीर का अलग अलग विकास और सभ्यता की नई और पुरानी विकास की गति मस्तिष्क को मिलने वाली नई और पुरानी ऊर्जा के अनुसार किये जाने वाले निर्माण और विध्वंशकारी कार्य तथा सृजन क्षमता का विकास या विदीर्ण दिमाग की गति. भूगोल में आप लोगों ने पढा होगा कि पृथ्वी अपनी धुरी पर साढे तेइस अंश झुकी हुयी है,अगर यह झुकाव नही होता तो सभी दिन रात आचार विचार व्यवहार मानव जीव जन्तु सभी एक जैसे होते। दिन रात का माप बराबर का होगा,उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव पर छ: छ: महिने के दिन और रात नही होते। भूमध्य रेखा पर बारह महीने लगातार पानी नही बरसता और भयंकर गर्मी नहीं पडती आदि कारण मिलते। लेकिन हवाओं का प्रवाह नही होता,ऋतुओं का परिवर्तन नही होता,पानी की गति नही होती नदियां बहती नही पहाड बनते नहीं यह सब भी पृथ्वी की गति और उसके झुके होने का फ़ल है। उत्तरी ध्रुव का फ़ैल कर घूमना और दक्षिणी ध्रुव का एक ही स्थान पर सिमट कर घूमना,यह दोनो बातें धरती के लिये एक भराव और जमाव वाली बातों के लिये मानी जा सकती है,जिस तरह से एक पंखा अपनी हवा को उल्टी तरफ़ से खींच कर सीधी तरफ़ यानी सामने फ़ेंकता है उसी तरह से धरती उत्तरी ध्रुव से अन्य ग्रहों की चुम्बकीय शक्ति को इकट्ठा करने के बाद धरती के अन्य भागों को प्रेषित करता है। अक्सर आपने देखा होगा कि उत्तरी ध्रुव के पास रहने वाले लोग अपने आप में विलक्षण बुद्धि के मालिक होते है उनके शरीर सुडौल और दिमागी ताकत अधिक होती है। पूर्वी भागों में रहने वाले लोग शरीर से कमजोर ठिगने और बुद्धि से चालाक होते है,पानी के अन्दर रहने या उष्ण जलवायु के कारण उनका शरीर काले रंग का होता है। इसके विपरीत दक्षिणी ध्रुव की तरफ़ रहने वाले लोग अत्याचारी और अपनी बुद्धि को मारकाट की तरफ़ ले जाने वाले हिंसक प्रवृत्ति वाले होते है।यह सकारात्मक और नकारात्मक गति का प्रभाव माना जाता है। नदियों का पानी अधिकतर पश्चिम से पूर्व की तरफ़ उत्तरी ध्रुव की तरफ़ तथा कर्क रेखा के आसपास के क्षेत्रों में बहता हुआ पाया जाता है,लेकिन जैसे जैसे मकर रेखा के पास पहुंचते जाते है पानी की गति पश्चिम की तरफ़ जाती हुयी मिलती है। समुद्र के पानी की गति भी अक्सर देखने को मिलती है कि जैसे जैसे सूर्य कर्क रेखा की तरफ़ चलता जाता है,समुद्र का पानी दक्षिणी ध्रुव की तरफ़ सिमटता जाता है और जैसे ही सूर्य मकर रेखा की तरफ़ बढता जाता है समुद्र का पानी उत्तरी ध्रुव की तरफ़ बढना शुरु हो जाता है। सपाट मैदानी भागों में हवा का रुख काफ़ी तेज होता है और पहाडी भागों में तथा हिमालय के तराई वाले भागों में हवा का बहाव कम ही मिलता है। तूफ़ान पहाडी चोटियों और समुद्री किनारों की तरफ़ अधिक चलते है,पृथ्वी का पानी उत्तरी ध्रुव की तरफ़ अधिक जमता हुआ चला जाता है,और सूर्य के कर्क रेखा की तरफ़ आने पर वह पिघल कर नदियों के रास्ते दक्षिण की तरफ़ के समुद्रों को भरने लगता है। जैसे ही सूर्य मकर रेखा की तरफ़ आता है समुद्रों का पानी वाष्पीकरण द्वारा हवा में नमी के रूप में आता है बादलों की शक्ल में बदलता है और उत्तरी भागों की तरफ़ बढता चला जाता है,हिमालय पहाड की चोटियों से टकराकर कुछ बादल तो भारत में बरस जाते है और जो बाहर उत्तर की तरफ़ निकल जाते है वे बर्फ़ के रूप में जम कर उत्तरी ध्रुव में पानी को जमाकर बर्फ़ में बढोत्तरी करते हैं। यह गति धरती की असमान्य गति है,जब भी कोई भूमण्डलीय बदलाव की स्थिति होती है अथवा मानवीय कारणों से कोई विकृति धरती के अन्दर पैदा की जाती है तो अचानक भूकम्प टीसुनामी आदि से धरती के ही वासियों को प्रकोप को भुगतना पडता है। सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा सकारात्मक ऊर्जा के लिये पहले क्षितिज पर उदय होते सूर्य को देखना चाहिये,घर का दरवाजा अगर उदय होने वाले सूर्य के सामने आता है तो सूर्य से निकलने वाली रश्मियां सीधे रूप से घर के अन्दर प्रवेश करती है। लेकिन अस्त होने के समय सूर्य की विघटित ऊर्जा घर के अन्दर प्रवेश करती है अगर घर का द्वार नैऋत्य में होता है। सुबह का मौसम नमी युक्त होता है और जो भी ऊर्जा आती है वह द्रव अवस्था मे होती है लेकिन शाम के समय की ऊर्जा सूखी और निरीह होती है,इसी कारन से पूर्व मुखी द्वार वालो को अक्सर पूजा पाठ और ध्यान समाधि के साथ उत्तरोत्तर आगे बढता हुआ देखा जाता है तथा पश्चिम मुखी दरवाजे वालों के यहां भौतिक साधन तो खूब होंगे लेकिन मन की शांति नही होगी,वे तामसी खाने पीने की आदत में जरूर चले गये होंगे,अगर वे किसी प्रकार से तामसी खाने पीने के साधनो में नही गये होंगे तो उनके घरों में सबसे अधिक खर्चा दवाइयों में ही होता होगा। रिस्तेदारी और प्रेम वाले मामलो में ईशान मुखी दरवाजे वाले व्यक्ति अधिक भरोसे वाले होते है,और नैऋत्य मुखी दरवाजे वाले लोग कभी भी किसी प्रकार की भी रिस्तेदारी तोड सकते है। भूमि का चयन जब मकान बनाना होता है तो सबसे पहले भूमि की जरूरत पडती है,भूमि को लेने के पहले उसके चारों ओर की बसावट पर्यावरण दोष आदि की परीक्षा,शमशान के पास वाली जमीन,गंदा नाला या नदी अथवा गंदा भरा हुआ पानी,वर्कशाप के पास वाली जमीन,जमीन पर किसी प्रकार का चलने वाला कोर्ट केश आदि, बिजली की लाइनों के नीचे वाली जमीन,झोपड-पट्टी वाली जमीन,जो जमीन डूब क्षेत्र में हो,बीहड या जंगल वाली जमीन,जिस जमीन पर कोई अपराध वाली घटनायें गोली कांड या दुर्घटना आदि हुयी हो,भूखण्ड का आकार चित्र विचित्र हो, दलदली भूमि,पानी वाले स्थान को मिट्टी भर कर पाट कर बनायी गयी जमीन,आदि दोष वाली जमीन लेने से बचना चाहिये। जमीन लेने के पहले देखलें कि जमीन पर निर्माण करने के बाद तथा बाद में निर्माण होने के बाद प्राकृतिक रूप से मिलने वाले प्रकाश में कमी तो नही हो जायेगी। रहने वाली जमीन के आसपास कोई आगे चल कर व्यवसायिक रूप तो नही रख लेगा,आने जाने के मार्ग को कोई अतिक्रमित तो नही कर लेगा,जिस बस्ती या मुहल्ले में जमीन क्रय की जा रही है वह नाम राशि के अनुकूल है कि नही,इस प्रकार से खरीदी गयी जमीन हमेशा सुखदायी होती है।

बुधवार, 12 अक्तूबर 2016

मित्रो अस्त गृहो लेकर वहुँत सी गलतफहमीया है ज्‍योतिष में सौरमण्‍डल के अन्‍य ग्रहों के साथ सूर्य को भी एक ग्रह मान लिया गया है, लेकिन वास्‍तव में सूर्य ग्रह न होकर एक तारा है। ग्रह जहां सूर्य की रोशनी से चमकते हैं वहीं सूर्य खुद की रोशनी से दमकता है। पृथ्‍वी से परीक्षण के दौरान हम देखते हैं कि कई बार ग्रह सूर्य के बहुत करीब आ जाते हैं। किसी भी ग्रह के सूर्य के करीब आने पर ज्‍योतिष में उसे अस्‍त मान लिया जाता है। आमतौर पर दस डिग्री से घेरे में सभी ग्रह अस्‍त रहते हैं। सिद्धांत ज्‍योतिष के अस्‍त के कथन को भी फलित ज्‍योतिष में गलत तरीके से लिया जाने लगा है। अस्‍त ग्रह के लिए यह मान लिया जाता है कि अमुक ग्रह ने अपना प्रभाव खो दिया, लेकिन वास्‍तव में ऐसा नहीं होता। ग्रह खुद की किरणें भेजने के बजाय नक्षत्रों से मिली किरणें जातकों तक भेजते हैं। बुध और शुक्र सूर्य के सबसे करीबी ग्रह हैं। छोटे कक्ष में लगातार चक्‍कर लगा रहे ये ग्रह सर्वाधिक अस्‍त होते हैं। अन्‍य ग्रह भी समय समय पर अस्‍त और उदय होते रहते हैं। फलित ज्‍योतिष के अनुसार इन ग्रहों के अस्‍त होने का वास्‍तविक अर्थ यह है कि नक्षत्रों (तारों के समूह) से मिल रहे किरणों के प्रभाव को अब ग्रह सीधा भेजने के बजाय सूर्य के प्रभाव के साथ मिलाकर भेज रहे हैं। ऐसे में ग्रह का प्रभाव यथावत तो रहेगा ही उसमें सूर्य का प्रभाव भी आ मिलेगा। इसी वजह से तो बुधादित्‍य के योग को हमेशा बेहतरीन माना गया है। लेकिन यह योग 4 5 9 भाव मे अपना प्रभाव ही माना जा सकता है

सोमवार, 10 अक्तूबर 2016

मित्रों ज्योतिष एक विज्ञान है परन्तु इस विज्ञान का इस्तेमाल एक विज्ञानिक ही कर सकता है जिसने इस ज्योतिष विज्ञान पर कुछ शोध किया हो इसके सिद्धान्तो के बारे मे स्वयं अनुभव किया हो कहने का तात्पर्य सिर्फ़ इतना है कि पुस्तकीय सिद्धान्त जब प्रयोगिक तौर पर अनुभव मे आते है तभी सिद्धन्तो के मूल की जानकारी होती है ! ज्योतिष के बारे में लोगो में अलग अलग धारणाये है जैसे लोग इसे ज्ञान, शास्र, विद्या, हुनर या एक कला के रूप में जानते है होता ये है की अधिकांशतः ज्योतिषी सिर्फ़ साधारण तौर पर कुछ पुस्तकीय ज्ञान के आधार पर ही फ़लदेश करते है और फ़लदेश गलत साबित हो जाता है कारण सिर्फ़ इतना है कि यदि थोडा सा गहन अध्यन किया गया होता तो फ़लादेश गलत साबित नही होता एक जातक एक ज्योतिषी से सलाह लेता है ज्योतिषी सिर्फ़ दशम भाव मे स्थित एक कारक ग्रह देखता है जिसकी दशा प्रारम्भ होने वाली थी ! ज्योतिषी ने फ़लादेश किया कि आने वाले छः माह के दौरान नौकरी मे पदोन्नति, व्यापार मे तरक्की या लाभ प्राप्त होगा ! समय बीतता गया जातक के जीवन मे कोई शुभ बदलाव होने के बजाय, उसे हानि हुई ! एक फ़लादेश गलत साबित होता है कुछ ज्योतिष को दोष देते है कुछ ज्योतिषी को ! आखिर दोषी है कौन ज्योतिष या ज्योतिषी ! वास्तव मे अगर गहन मन्थन किया जाये तो ना ज्योतिष दोषी है ना ही ज्योतिषी ! हां ज्योतिषी का इतना कसूर है कि उसने सिर्फ़ किताबी ज्ञान का इस्तेमाल किया जब कि पुस्तकीय सिद्धन्तों की गहराई समझने की आवश्यकता है उन्हे अनुभव मे लाने से पूर्व प्रयोगात्मक रूप से ग्रह, राशि एवम नक्षत्र का वास्तविक एवम तत्कालिक स्वभाव एवम गुण का अध्यन करना चाहिये था इसी तरह अन्य मामलों में ज्योतिषी भविष्यवाणी करते हैं कि समय बुरा चल रह है दुर्घटना हो सकती है आप अस्पताल में भर्ती हो सकते है ! शादी हो सकती है ! तलाक होगी ! अपनी नौकरी खो सकते हैं ! लेकिन यह कभी नहीं हुआ, भविष्यवाणी गलत हो गयी इन सभी मामलों में ज्योतिषी सहित सब हैरान रह गये परन्तु ज्योतिषी अभी भी सफ़ाई देते है कि विपरीत राज योग के कारण ऐसा हुआ आदि आदि यदि ज्योतिषी ग्रह राशियों एवम नक्षत्रों के गुण स्वभाव का गहन अध्यन करने के साथ साथ वैदिक ज्योतिष के सिधन्तो का अध्यन करें तो सत प्रतिशत शुद्ध फ़लादेश या भविष्यवाणी की जा सकती है हमारी ज्योतिषी पुस्तकों मेभी किसी ग्रह को लेकर या योग को लेकर अलग अलग मत है सो यह सव अनुभव से ही आता है दुसरा यह फला ग्रह यहा वैठा है तो यह फल वहा वैठा तो यह फल या फला राशी वाले लाल रंग के कपङे पहने या कन्या राशी वालो का आज का दिन खराव है मित्रो मे राशीयो को नकार नही रहा सिरफ ईतना कहना चाहता हु ज्योतिष वहुँत वङी देन है जो हमे हमारे श्रृषीयो मुनीयो ने हमे दी ईसे हमे ओर उपर लेकर जाऐ यह राशीयो के हाल पङकर ईसे वौना मत वनाऐ मित्रो राम ओर रावण की राशीया ऐक थी कृश्न ओर कंस की भी ऐक ने मारा ओर ऐक मरा यह घटना ऐक साथ घटी माया वती ओर मुलायम सिंहा ऐक के गले मे हार दुसरा वैसे ही हारा मे यह मेरे अपने विचार है मेरा किसे से कोई वैर नही ना ही विरोघ आचार्य राजेश

शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2016

मिट्टी दीया मुरता नू मिट्टी दा खुमार है मिट्टी दीया टेरीया ते वैठा सांसार है मिट्टी दा व्यपार सारा ते मिट्टी कारोवार है हर वंदे दी इको पिछे वस ऐनी तकरार है काला गोरा जात पात सव मिट्टी दा अंहकार है मिट्टी जो मिट गई उस मिट्टी नु सलाम है जिते जी जो ना मिटी वो मिट्टी ही वेकार है

मंगल को लेकर कई तरह की वाते व अंघविश्वास फेले है या फैलाऐ है अव कुछ मित्र पुछते 28 साल के वाद क्या मंगल दोष मंगल का बुरा प्रभाव समाप्त हो जाता है ? बहुत जिसका उत्तर बड़े धैर्य से समझने की जरुरत है ग्रहों की भी अपनी एक उम्र है और इसका तालमेल एक सुलझा हुआज्योतिष ही बैठा सकता है , नहीं तो बातें गड्ड-मड्ड हो जाती है। हर ग्रह की परिपक्व होने की एक उम्र होती है उस निश्चित समय के बाद वो अपना बुरा प्रभाव कुछ हद्द तक कम कर देता है यानि उग्रता कम हो जाती है। जैसे--- बृहस्पति 15से 20की उम्र को अपने दखल में लेता है , यही वक्त है जब शिक्षा ग्रहण का महत्वपूर्ण समय होता है। { यहाँ ये तर्क कि शिक्षा ग्रहण की कोई उम्र नहीं होती बेमानी है } आप समझिए इस तथ्य को कि शिक्षा का यही समय महत्वपूर्ण होता है। बाकी ज्यादा उम्र में सभी नहीं पढ़ते कोई कोई जिसकी ग्रह दशा इजाजत देती है वही बुढ़ापे में पढाई करते हैं। सूर्य का समय 22 साल की उम्र का। चन्द्रमा का समय है 24साल का वक्फा यानि ये peak टाइम कहलाता है। शुक्र का समय 25 से 27. मंगल का समय 28 से 31peak समय 28. का कहलाता है। बुध का समय 31 से 34peak समय 32 शनि 36 से 39peak समय 36 राहु 42 से 47peak समय 42का केतु का परिपक्व होने का समय 48 से 54peak 48का यानि यहाँ ग्रहो की जो उम्र लिखी हुई है उस उम्र के बाद ग्रह अपनी उग्रता खोता है अपने बुरे फल को देने में कमी आ जाती है। अब यहाँ इस तथ्य को ध्यान दे कि जिस ग्रह की जो उम्र यहाँ दी हुई है उसी दौरान विंशोत्तरी महादशा के के अनुसार उसी ग्रह की दशा-अन्तर्दशा आ जाए तो ग्रहो का अच्छा बुरा फल दोनों तीब्रता से मिलता है। अब लौटे मंगल की तरफ , जै एक ख़ास उम्र के बाद ग्रह परिपक्व होते हैं , यानि एक इंसान जब 40 की उम्र के बाद परिपक्व होता है तो बच्चो जैसी गलतियाँ नहीं करता , इसी तरह एक ख़ास उम्र के बाद ग्रह भी समझदार होते हैं , अब इसे जरा दूसरे तरीके से देखे कि एक बीस साल का लड़का जितना उग्र होगा तीस साल वाला उतना उग्र नहीं हो सकता और मंगल उग्रता का ही मुख्य ग्रह है , इसलिए जिनकी कुण्डली में मांगलिक दोष का सचमुच प्रभाव है वो 28 साल की उम्र के बाद विवाह करे तो मंगल का बुरा फल उनको कुछ कम मिलता है , इसे यूँ समझे कि चौबीस साल की उम्र का लड़का अगर मार कर सर फोड़ देगा तो -तीस साल वाला मारने को उठेगा मगर गालियाँ देकर ही शांत हो जाएगा , हाँ यहाँ एक बात है -मंगल के बुरे प्रभाव की वजह से शारीरिक हिंसा में ही कमी आएगी -अगर मंगल सचमुच बुरा फल देने वाला है तो - गालीगलौज और झगड़ा होता रहेगा सिर्फ शारीरिक हिंसा में कमी आएगी - अब कुंडली का गुरु अच्छा है तो और कमी आएगी -शनि मजबूत है तो झगड़ा होगा। मंगल का 28 के बाद मूल रूप से हिंसक होना कम हो जाता है मंगल की तासीर को समझे मंगल जोश का कारक है उतेजना का कारक है जव आदमी मेच्योर होता होता जाता है तो जोश के साथ होश भी आता है खुन की गर्मी नरम होने लगती है मित्रो मेरी यही कोशिश रहती है कि आप को ज्यादा से ज्यादा ज्ञान मिले ताकि आप अन्घविश्वास से रहित जीवन जीये आचार्य राजेश 09414481324 07597718725

शुक्रवार, 30 सितंबर 2016

दोस्तो काल पुरुष की कुन्ङली से 4 भाव मे कर्क राशी है ओर ईस राशी का स्वामी चन्द्र है चौथे घर से शिक्षा , घर , संपत्ति , माँ , घरेलू सुख, वाहन सुख इत्यादि देखते है माँ माँ - 4वे घर का उप नक्षत्र स्वामी मरक और बाधक घर से सम्बंधित नहीं होते है तो माँ कि उम्र लंबी होती है माँ के साथ सम्बन्ध - 4वे घर का उप नक्षत्र स्वामी 2 5 9 या 11 घरों के साथ सम्बंधित हो तो माँ के साथ अच्छे सम्बन्ध होते है । और 4वे घर का उप नक्षत्र स्वामी 3,6,8,12 घरों के साथ सम्बंधित हो तो माँ के साथ अच्छे सम्बन्ध नहीं होते है शिक्षा अच्छी शिक्षा ,- 4वे घर का उप नक्षत्र स्वामी २, 4 , 6 ,9 ,11 घरों जुड़ा हैऔर बुद्ध या गुरु से सम्बंधित हो तो अच्छी शिक्षा होती है यदि 4वे घर का उप नक्षत्र स्वामी 3 5 8 12 घरों के साथ जुड़ा हुआ है तो अच्छी शिक्षा नहीं होती घर घर - 4वे घर का उप नक्षत्र स्वामी 3 5 8 12 घरों से सम्बंधित है तो एक भी घर नहीं बना पाते 4वे घर का उप नक्षत्र स्वामी 4,11,12 घरों से सम्बंधित है तो घर खरीद सकते हैं और 6वें घर से भी सम्बंधित हो तो घर खरीदने के लिए ऋण की सुविधा मिल जाती है 4वे घर का उप नक्षत्र स्वामी 4,8,11 घरों से सम्बंधित है तो पैतृक संपत्ति मिलने का योग है वाहन 4वे घर का उप नक्षत्र स्वामी 4,9,11,12 घरों से सम्बंधित है और शुक्र से सम्बंधित हो तो वाहन खरीदने का योग बनता है. 4वे घर का उप नक्षत्र स्वामी 3 , 8 ,12 घरों से सम्बंधित है और 8वे घर का उप नक्षत्र स्वामी 4वे घर से सम्बंधित हो वाहन दुर्घटना कि सम्भावना बढ़ जाती है . वाकी फीर जय माता दी मित्रो अगर आप मुझ से कुन्ङली दिखाना वनवाना या किसी समस्या का हल चाहते है तो आप ईन नम्वरो पर सम्पर्क करे आचार्य राजेश 07597718725 09414481324

गुरुवार, 29 सितंबर 2016

मित्रो आज ऐसी पोस्ट ङाल रहा हु जिसे पङ कर काफी लाभ हो सकता है कल ऐक गरुप मे पेङ पोघो पर चर्चा हो रही थी की कोन सा पैङ वृक्ष यावनस्पती कोन से गृह से सवन्घित है यहपोस्ट उसी से दिमाग मे आई जय गुरु देव पहला सुख निरोगी काया ग्रहों के जन्म से अथवा गोचर से शरीर पर प्रभाव पडता रहता है और उस प्रभाव के कारण या तो शरीर की क्षति होती रहती है या शरीर काम करने के योग्य नही रहता है। जब शरीर ही स्वस्थ नही है तो दिमाग मी स्वस्थ नही रहेगा और मानसिक सोच मे भी बदलाव आजायेगा या तो चिढचिढापन आजायेगा या किसी भी काम को करने का मन नही करेगा अच्छी शिक्षा के बावजूद भी जब समय पर शिक्षा का प्रयोग नही हो पायेगा तो धन और मान सम्मान की कमी बनी रहेगी। अक्सर यह भी देखा जाता है कि दो कारण एक साथ जीवन मे जवान होने के समय मे उपस्थित होते है पहला कारण अच्छी तरह से कमाई के साधन बनाने के और दूसरे रूप मे जीवन साथी के प्राप्ति के लिये,दोनो कारणो से शरीर मे कोई न कोई व्याधि लगना जरूरी हो जाता है जैसे कमाई के साधनो की प्राप्ति के लिये अधिक दिमाग का और मेहनत का प्रयोग किया जाना वही जीवन साथी और उम्र के चढाव के साथ कामसुख की प्राप्ति के लिये सहसवास आदि से शरीर के सूर्य रूपी वीर्य या रज का नष्ट होने लगना कुछ समय तो यह हालत सम्भाल कर रखी जा सकती है लेकिन अधिक समय तक इसे सम्भालना भी दिक्कत देने वाला होता है इसी कारण से अक्सर धन की प्राप्ति तो हो सकती है वह भी अगर पहले से कोई पारिवारिक या व्यक्तिगत सहायता मिली हुयी है और नही मिली है तो पारिवारिक जीवन भी खतरे मे होता है धन कमाने का कारण भी दिक्कत देने लगता है जीवन साथी से बिगडने लगती है और अक्सर यह कारण संतानहीनता के लिये भी देखे जाते है। इन सबके लिये शरीर का सही रहना जरूरी होता है,शरीर को सम्भाल कर रखने के लिये और मानसिक शांति के लिये लोग कई प्रकार के नशे की आदतो मे भी चले जाते है वे समझते है कि उनकी मानसिक शांति अमुक नशा करने से प्राप्त होती है लेकिन उन्हे यह पता नही होता है नशा कोई भी अपना घर अगर शरीर के अन्दर बना लेता है तो वह आगे जाकर आदी बना देता है बजाय लाभ के वह हानि देने लगता है आदि बाते भी पैदा होती है। ग्रहो से सहायता लेकर अगर सभी ग्रहों की मिश्रित चिकित्सा की जाती रहे तो ग्रह अपने अनुसार बल नही देंगे तब भी शरीर के अन्दर उस ग्रह की उपस्थिति होने से खराब कारण पैदा करने वाला ग्रह भी अपनी शक्ति से शरीर और मन के साथ बुद्धि को खराब नही होने देगा। मैने अपने अनुसार जो आयुर्वेदिक रूप ग्रहों के लिये प्रयोग मे लिया है उसके अनुसार पुराने समय के बीमार सिर के रोगी संतान हीन लोग ह्रदय और सांस के मरीज पेट की पाचन क्रिया से ग्रसित लोग कमजोरी से अंगो के प्रभाव मे नही रहने से अपंगता वाले लोग अपने वास्तविक जीवन मे लौटते देखे है। जब कोई भी आयुर्वेदिक दवाई का लिया जाना होता है तो पहले किसी भी प्रकार के नशे की लत को छोडना जरूरी होता है तामसी भोजन से भी बचना होता है जैसे अधिक खटाई मिठाई चरपरी चीजे त्यागनी होती है। इस आयुर्वेदिक चिकित्सा का प्रयोग करने से पहले यह ध्यान रखना भी जरूरी है कि किसी प्रकार से अन्य औषिधि जो डाक्टरो के द्वारा दी जा रही है,उसके साथ लेने से और भी दिक्कत हो सकती है साथ ही अगर पास मे कोई आयुर्वेदिक चिकित्सा का केन्द्र है या कोई वैद्य है तो उससे भी इस चिकित्सा के लिये परामर्श लेना जरूरी है।शा शरीर को स्वस्थ रखने के लिये आयुर्वेदिक चिकित्सा का नुस्खा ग्रहों की रश्मियों के बिना वनस्पति भी अपने अनुसार नही उग सकती है,वनस्पति को पैदा करने मे ग्रहों का भी बहुत बडा योगदान है,जैसे सूर्य की अच्छी स्थिति मे ही गेंहू की पैदावार होती है,जब सूर्य पर किसी शत्रु ग्रह की छाया होती है या साथ होता है तो फ़सल मे किसी न किसी प्रकार की दिक्कत आजाती है,इसके अलावा भी शनि चने का कारक है और चना तभी सही रूप से पैदा हो पाता है जब जमीन मे नमी हो लेकिन बारिस ऊपरी कम हो अगर शनि की फ़सल मे पानी की अधिक मात्रा का प्रयोग कर दिया जाता है तो फ़सल मे पैदावार कम हो जाती है उसी प्रकार से चन्द्रमा की फ़सल चावल के समय मे अगर राहु का प्रकोप चन्द्रमा पर अधिक हो या किसी प्रकार से दु:स्थान पर हो तो फ़सल मे कीडे लग जाते है या खाद आदि के प्रयोग से फ़सल जल जाती है या कम हो जाती है इसके अलावा राहु की अधिकता होने पर जैसे कर्क के राहु मे चावल की पैदावार कम होती है लेकिन चावल के पुआल की मात्रा बढ जाती है। शरीर मे सभी प्रकार के ग्रहो के तत्वो को पूरा करने के लिये आयुर्वेद मे जडी बूटियों का प्रयोग किया जाता है।यह नुस्खा इस प्रकार से है: दक्षिणी गोखुरू (सूर्य बुध राहु) 1०० ग्राम असगंध (शनि केतु) 1०० ग्राम शुद्ध कौंच (गुरु शनि) 1०० ग्रम शतावरी (मंगल गुरु) 1०० ग्राम बिदारी कंद (चन्द्र शनि) 1०० ग्राम सतगिलोय (राहु मंगल) 125ग्राम चित्रक की छाल (मंगल शनि) 3० ग्राम तिल काले (शनि केतु) 1०० ग्राम मिश्री (चन्द्र मंगल) 450 ग्राम शहद (चौथा मंगल) 225ग्राम गाय का घी (शुक्र राहु) 150ग्राम काली मूसली (अष्टम शनि चन्द्र) 100 ग्राम सफ़ेद मूसली (चौथा चन्द्र शनि) 100ग्राम खरैंटी (राहु गुरु) 100ग्राम तालमखाना (अष्टम चन्द्र शुक्र) 100 ग्राम मकरध्वज (बारहवां मंगल) 10ग्राम प्रवाल पिष्टी (लगन का मंगल) 20ग्राम बसंत कुसुमाकर (बुध शनि केतु) 20 ग्राम इन अठारह जडी बूटियों को साफ़ सफ़ाई से पीस कर आटा चालने वाली छलनी से बडी परात में छान कर मिला लेना चाहिये बाद में घी और शहद को मिला लेना चाहिये,इन्हे मिलाकर किसी साफ़ स्टील के बडे बर्तम मे रख लेना चाहिये। यह दवाई किसी भी उम्र के लिये अत्यन्त फ़ायदे वाली है,बच्चों के दिमागी रूप से कमजोर होने पर दी जा सकती है जिन बच्चो की आंखो की कमजोरी है याददास्त कमजोर है उन्हे भी दी जा सकती है। चिन्ता करने वाले लोग भी इसे प्रयोग मे लाकर दिमागी काम कर सकते है नि:सन्तान लोग भी इस दवाई के लगातार प्रयोग से संतान को प्राप्त कर सकते है,जिनके जननांग मे कमजोरी है और वे सन्तान पैदा करने मे असमर्थ है वे लोग रोजाना सुबह शाम को डाबर का सांडे का तेल और मल्ल तेल मिलाकर या श्री गोपाल तेल जननांग पर चार बूंद मालिस करते रहे तो जननांग की कमजोरी मे फ़ायदा होता है। दिमागी काम करने वाले लोग इसे लेते रहे तो किसी भी प्रकार के दिमागी काम मे उनकी उन्नति देखी जा सकती है। इस दवाई को बच्चे आधा चम्मच फ़ीके गुनगुने दूध के साथ ले सकते है,बडे लोग एक चम्मच फ़ीके गुनगुने दूध के साथ तथा बुजुर्ग लोग डेढ चम्मच फ़ीके दूध गुनगुने दूध के साथ ले सकते है। इस दवाई के लेने के समय मे युवा लोग मैथुन आदि से एक महिने दूरी रखे,बुजुर्गों के घुटनों का दर्द पीठ का दर्द मास पेशियों का दर्द सभी मे यह रामबाण औषिधि की तरह से काम करती है।माँ काली ज्योतिष hanumaangarh dabwali 09414481324 07597718725

रविवार, 25 सितंबर 2016

मित्रो ज्योतिष में कुछ कुरीतियां हैं जैसे- कालसर्प योग, साढ़ेसाती तथा मांगलिक दोष आदि। हमारे ज्योतिषी कलसर्प दोष से जनता को भयभीत करते हैं जबकि यह पूरी तरह भ्रामक है। किसी सर्वमान्य ग्रंथ में इसका उल्लेख नहीं है। दुनिया में यह तथाकथित योग जिनकी कुण्डली में है, वे अन्य लोगों की तरह सफलता के उच्चतम शिखर पर पहुंचे हैं। इन लोगों ने कभी कोई ग्रह शांति नहीं करवाई। ऐसे जातकों का पूरा परिचय ‘जर्नल आफ एस्ट्रोलाजी’ के डॉ. केएन राव द्वारा लिखित लेख में पढ़ा जा सकता है।दूसरा है शनि की साढ़ेसाती। जिसके नाम से जनमानस डर जाता है। यह भी सच है कि शनि की साढ़ेसाती में कितनों का जीवन चरमोत्कर्ष पर होता है। साढ़ेसाती के साथ हम दशाओं के प्रभाव का अध्ययन नहीं करते हैं। तीसरा हैं मांगलिक दोष। इसके द्वारा जनता को गुमराह किया जाता है और विशिष्ट पूजन के नाम पर खर्चे की एक लिस्ट थमा दी जाती है मंगल 1 4 7 8 12 मे हो तो मांगलिक योग वनता है दक्षिण मे 2 भाव मे ही मांगलिक योग हो जाता है फिर चंद्र लग्न से फिर शुक्र से देखा जाता है अव वचा क्या आप सोचे फिर विना यह सोचे समझे मांगलीक योग है या दोष वस पुजा के नाम पर ठगी चल रही है तोरूढ़िवादी परंपराएं हमने समाज को दे दी हम विद्वानों से यह जानना चाहते हैं कि कालसर्प योग का जब किसी ग्रंथ में उल्लेख नहीं है तो इसकी उपज कहां से हुई और इसको क्यों फैलाया जा रहा है। जब ज्योतिषी काल का अर्थ ‘मृत्यु’ और सर्प का अर्थ ‘सांप’ बताते हुए कालसर्प योग को दोनों का समन्वय बताते हैं, तो सामान्य लोग भय के कारण मृत्प्राय हो जाते हैं। आजकल कालसर्प योग पर पुस्तकें लिखने वाले लेखकों की यह प्रवृत्ति बनती जा रही है कि कालसर्प योग की तरह राहु-केतु के दुष्प्रभाव को कुछ जन्मकुण्डलियों के आधार पर कम करने के लिए मिथ्या और निरर्थक धार्मिक अनुष्ठान करवाए जाते हैं। वे पीड़ादायक प्रभाव बिना राहु-केतु के भी जन्मकुण्डलियों में अधिक स्पष्ट दिखाई देते हैं। वे पुस्तकें साहित्यिक अधिकार के आडम्बर के साथ लिखी जाती हैं। परन्तु इन पुस्तकों में ज्योतिषीय और धार्मिक शब्दावली का प्रयोग जन्मकुण्डलियों की सतही और धूर्ततापूर्ण व्याख्या के लिए किया जाता है। इससे उन ज्योतिषियों के मन में भय पैदा हो गया है जिन्होंने इस विषय पर गहन अध्ययन नहीं किया है। ज्योतिष के प्रसिद्ध ग्रंथों में वृहत्पाराशर होराशास्त्र, मानसागरी, जातकपारिजात, जातकाभरण, फलदीपिका व सारावली आदि प्रमुख हैं। इनमें से किसी भी ग्रंथ में कालसर्प योग का उल्लेख नहीं है। जो भी ज्योतिषी कालसर्प योग की बात करता है, उसने कालसर्प योग के भय को जीवित रखना अपने ज्योतिषीय जीवन का उद्देश्य बना लिया है।उन्होंने कहा कि हर 15 साल में राहु-केतु के बीच में जब बाकी ग्रह पड़ जाते हैं तो साल में तीन से छह महीने यह स्थिति बनी होती है। जिसका अर्थ संसार में छह सौ करोड़ लोगों में से 80-90 करोड़ लोगों की कुण्डली में तथाकथित कालसर्प योग रहता है। जो लोग यह कहते हैं कि जिन्होंने पूर्व जन्म में सांप को मारा, उनकी कुण्डली में यह योग रहता है, तो इसका अर्थ होगा कि इन लोगों ने कम से कम 90 करोड़ सर्पों को मारा होगा। जनगणना की तरह सर्पगणना नहीं होती है, इसलिए यह नहीं मालूम कि दुनिया में 80-90 करोड़ सांप है भी या नहीं।कुछ वाते सोचने की समझने की है मेरी वाते कुछ लोगो को पसन्द नही आऐगी पर मेरा दावा है किसी भी मंच पर आकर मुझ से तर्क करे की कालसर्प पर ओर सावित करे की ईसकी वेदो से लेकर हमारे ज्योतिष अघार माने गऐ शास्त्र मे ईसकी कहा पर व्याख्या है या फिर आपका अपना रिसर्च हो हर सिक्के के दो पहलु होते है जरुरी है उसको जाचने का जय माता दी आचार्य राजेश


रविवार, 18 सितंबर 2016

जय माता दी जय मा काली नाडी में मंगलकी वात लगन मेष की होने पर और मंगल का मेष राशि में उपस्थित होने पर जब कोई ग्रह बुरा फ़ल देता है तो उसके बारे में इस प्रकार से जाना जाता है,मंगल के विरोधी ग्रह बुध शुक्र शनि माने जाते है,राहु और केतु भी मंगल को बुरा असर देते है। इसके अलावा कोई ग्रह त्रिक भाव में हो और उसके ऊपर भी कोई बुरा ग्रह असर दे रहा होता है तो वह भी अपना बुरा असर मंगल को देता है। जैसे ग्यारहवें भाव में गुरु स्थापित है,और गुरु को नवें भाव में विराजमान राहु देख रहा है,इसके साथ ही केतु जो तीसरे भाव में होगा वह भी गुरु को अपनी द्रिष्टि दे रहा होगा,इस प्रकार से मंगल गुरु के द्वारा ही बाधित होने लगेगा,ग्यारहवा भाव बडे भाई का है,सबसे पहले बडा भाई ही जातक के ऊपर असर देना शुरु करेगा,वह जातक को केतु का असर लेकर केवल साधन के रूप में प्रयोग करेगा,और उसके बाद जातक को राहु के गुरु पर असर होने के कारण जातक का बडा भाई उसकी ओलाद पुत्रों को पैदा करने के बाद जल्दी ही गुजर जाऐ ऐसा हो सकता है और जातक को भाई के पुत्रों के साथ वही व्यवहार करना पडेगा,यानी पालन पोषण और शिक्षा से लेकर शादी सम्बन्ध उनको जीविका में लगाना,उनके लिये घर और बाहर की नआफ़तों से लडना भी माना जा सकता है। नवां भाव का राहु बडे भाई को बालारिष्ट का प्रकोप देगा और किसी तरह के नवें भाव के कारण से बडे भाई को आफ़त आयेगी,अक्सर इन मामलों मे बडा भाई अपनी पत्नी यानी जातक की भाभी के पराक्रम से दुखी होगा,और वह उसके द्वारा किसी प्रकार के बनाये कारण से अपने को जोखिम में डाल लेगा,और उसका अन्त हो जायेगा। इन मामलों में उसकी भाभी द्वारा दिये गये भोजन के रूप में भी माना जा सकता है,वह किसी प्रकार से विषैला भोजन उसके बडे भाई को दे सकती है,अन्जाने में कोई दवा जो रियेक्सन वाली हो दे सकती है,परिणाम में उसकी मृत्यु निश्चित मानी जा सकती है। राहु का प्रभाव हवाई यात्रा और विदेश में जाने से भी है,बडा भाई किसी कारण से विदेश जाये और वहीं पर जाकर रुक जाये,उसका वापस आना ही नही हो सके,अथवा उसके ऊपर विदेशी संस्कृति का प्रभाव पडना शुरु हो जाये,और वह वहीं पर शादी करके बैठ जावे। मंगल पर गुरु का असर आने पर जातक का दिमाग भी घूम सकता है और वह अपने जीवन साथी के अलावा किसी अन्य की स्त्री या पुरुष की तरफ़ आकर्षित हो जाये और अपने जीवन को उसी के साथ बिताने का संकल्प ले ले,इस प्रकार से भी जातक का पूरा जीवन ही खतरे में जा सकता है। गुरु का असर मंगल पर जाने से जातक के सिर में हमेशा एक प्रकार का भूत भरा रहे कि वह किसी अनदेखी शक्ति का धारक है और वह जो कुछ भी करना चाहता है वह कर सकता है,उसे कोई रोकने वाला नही है। गुरु विद्या का कारक है जातक के अन्दर कमाने वाली विद्या का असर पैदा हो जाये और वह अपने पुराने संस्कारों को छोड कर विदेश से कमाने वाले कार्य करना शुरु कर दे,उन कार्यों के अन्दर कोई गलत कार्य होता हो,इस प्रकार से राहु जो जेल जाने का कारक है जातक को जेल भेज कर जातक की पुरानी सामाजिक स्थिति में ग्रहण भी लगा सकता है,जातक के शरीर से यह हिस्सा पुट्ठों का कारक है,जातक के अन्दर गुरु यानी वायु और राहु यानी कैमिकल वाली हवा का प्रवेश पुट्ठों में हो जाने से वह चलने फ़िरने के लिये परेशान होने लगे,उसके लिये एक एक पग चलना मुश्किल हो जाये। राहु का सीधा असर मंगल पर जाने से और मंगल का सिर के स्थान में रहने के कारण सिर के अन्दर खून का प्रवाह कभी तेज और कभी कम होने के कारण वह जातक की जीने वाली जिन्दगी में अपना असर देना शुरु कर दे,जातक को अक्समात क्रोध आना शुरु हो जाये,जातक का को पता नही चले कि वह क्या करने जा रहा है,और जब कोई काम खराब कर ले तो उसे बाद में सोचने के लिये बाध्य होना पडे,जातक का प्रभाव बडे अस्पताली संस्थानो से जुडा हो,उसे किसी भी बीमारी के लिये बडे अस्पतालों में जाना पडे,जातक का दाहिना हाथ अक्समात रह जाये,अर्धांग की बीमारी हो जाये,जातक के सिर में अचानक चोट लगे और जातक की दाहिनी बांह या कान में चोट लग जाये। इसके अलावा जातक की शिक्षा वाले स्थान में नियुक्ति हो जाये और जातक वहां पर कोई अनैतिक काम करना शुरु कर दे। जातक का सामाजिक जीवन केवल एक अन्जान जगह पर बसने का भी माना जा सकता है,राहु का नवें स्थान में जाने का कारण और गुरु यानी जीव का ग्यारहवे भाव में जाने से जातक का जीवन लाभ वाले कमाने के क्षेत्र में चला जाये और जातक कमाने के लिये किसी अन्जानी जगह पर उसी प्रकार से जाकर बस जाये जैसे कोई भगोडा जाकर बसता है। इसके अलावा जातक का परिवार ननिहाल खान्दान के समाप्त हो जाने या ननिहाल परिवार के कही और चले जाने के बाद ननिहाल में बसना पड जाये। यह तो सब था राहु के असर के द्वारा,इसके बाद अगर मंगल पर शनि अगर असर दे रहा हो तो शनि मंगल की युति में खोपडे का केंसर भी माना जा सकता है,खोपडे के खून के अन्दर खून का जमना भी माना जाता है,जिससे जातक मंद बुद्धि का भी हो सकता है,जातक की कुंडली में अगर शनि मंगल की युति लगन में हो जाती है तो जातक को कसाई का रूप प्रदान करता है जातक के अन्दर दया नामकी चीज नही होती है,वह किसी को भी किसी भी कारण के लिये काट सकता है,किसी को भी मार सकता है,किसी को भी अपाहिज कर सकता है,किसी के प्रति भी दुर्भावना बनी रह सकती है। केतु का प्रभाव होने के लिये वह दूसरों के आदेश का पालन करता होता है,वह किसी के कहने से किसी को भी मार सकता है,और अक्सर इस प्रकार के जातकों के अन्दर आदमी को हथियार के रूप में प्रयोग करने की पूरी योग्यता होती है वह जानता है कि कौन सा आदमी कौन से हथियार के रूप में काम आ सकता है। उसके अलावा उसे अन्य प्रकार की दवाइयों और शरीर को ठीक करने वाले कारणों का ज्ञान भी होता है। सिर की शक्ति होता है लगन का मंगल लग्न का मंगल एक तरह की स्टाम्प की तरह से होता है,जो कह दिया वह कह दिया,फ़िर बाद में कोई भी कुछ कहे,उससे लेना देना नही जो कह दिया है उसे ही करना है। अक्सर देखा गया है कि लगन के मंगल वाले के माथे में निशान जरूर बनता है। वह निशान चाहे किसी तिल या मस्से के रूप में हो या फ़िर किसी प्रकार की चोट के रूप में व्यक्ति की पहिचान बनाने के लिये लगन का मंगल निशान जरूर देता है। मंगल एक सेनापति की तरह अगर माना जाये तो लगन का मंगल पूरे शरीर के साथ अपने घर अपने जीवन साथी और अपने लिये भविष्य में आने वाले अपमान जानजोखिम के कारणों को जरूर कन्ट्रोल रखता है,लगन के मंगल का एक बहुत बडा अधिकार अपने दुश्मनो की तरफ़ जरूर होता है,वे पहले बडी आसानी से उन्हे सामने लाने की कोशिश करते है और बहुत ही मीठी और बहादुरी से उसकी रक्षा करते है,लेकिन जैसे ही वे समझते है कि अब उनके अलावा और कोई उस व्यक्ति का धनी धोरी नही है तो वह आराम से उसे हलाल करने में बहुत मजा लेते है। अक्सर देखा जाता है कि लगन के मंगल पर अगर किसी प्रकार से शनि की अष्टमेश के साथ युति बन जाये तो वह खिला खिलाकर मारने में विश्वास रखते है,उनके अन्दर जरा सी भी क्षोभ नही होता है कि जिसे वे सता रहे है,वह तडप रहा है वह अपनी जान से जा रहा है,लेकिन उनके लिये मात्र वह एक मनोरंजन का साधन होता है।मंगल के साथ केतु का आना भी एक तरह से आफ़त की पुडिया को बांधना होता है,जातक हिंसा मे इतना उतारू हो जाता है कि वह गिनने लगता है कि उसने इतनों को मारा है। मंगल अग्नि से सम्बन्धित है तो केतु हथियार से बन्दूक तोप मिशाइल यह सभी मंगल केतु के द्वारा ही समझी जाती है। हिंसक लोग अधिकतर मामलों में सिर की चोट देकर ही मारना पसंद करते हैं। लगन के मंगल को विस्फ़ोट वाली खोपडी कही जाये तो भी कोई अनापत्ति नही होगी। इस मंगल के रूप शरीर के अलावा अगर दूसरे स्थानों देखें तो अलग अलग रूप मिलते हैं। शनि-मंगल को साथ मिला लें तो वह काली पत्थर की मूर्ति बन जाती है,जिसपर लाल रंग का सिन्दूर चढा दिया तो वह देवता का रूप बन जाता है,केतु-शनि-मंगल की आपस की युति में वह लोहे का सरिया बन जाता है जो आग में गर्म होकर लाल रंग का रूप धारण कर लेता है,सूर्य-शनि-मंगल-केतु का योगात्मक रूप बन जाये तो वह शमशान में जलाने वाला बांस का रूप ले लेता है जिससे अन्तिम संस्कार के समय कपाल क्रिया करते है। बुध-मंगल-शनि को साथ में जोड लिया जाये तो वह कुम्हार के अवा में पकता हुआ घडा बन जाता है। बुध मंगल शनि के साथ अगर राहु का मेल हो जाता है तो वह महाकाली की मूर्ति बन जाती है,जिस पर जाने अन्जाने में बलि चढाई जाती है,और खून से इस पत्थर को लाल किया जाता है। कसाई खाने का पत्थर भी इसी श्रेणी में लाया जा सकता है। शनि-राहु-मंगल को अगर कार्य के रूप में देखा जाये तो वह कोयले से चलने वाली भट्टी में काम करता हुआ आदमी भी माना जा सकता है। शुक्र का प्रभाव अगर इन कारकों में जुड जाये तो स्थान के अनुसार वह काले लाल रंग के कपडे के रूप में भी माना जा सकता है। मित्रो कुछ मित्रो के वार वार कहने के कारन अभी फीस वहुँत कम कर दी है अगर आप कुंङली की मुझसे विवेचना कराना चाहते है या कोई सम्सया का हल चाहते है तो मेरे ईन नम्वरो पर जानकारी ले 09414481324 07597718725 आचार्य राजेश

शनिवार, 17 सितंबर 2016

जय माता दी मित्रो बचपन से ही एक बात तो माता पिता ने भी समझाई थी कि जितनी हो सके विद्या की शक्ति को बटोर लो,यह बिना कीमत के मिलती है,हर जगह मिलती है,मनचाही मिलती है,इसे जितना खर्च करो उतनी बढती है,क से कमाना सिखाती है,ख से खाना बताती है,ग से गाना बताती है,घ से भरपूर रहने की सहमति देती है और ड. से याचना का भाव देती है,च से चाहत देती है,छ से उत्तम और घटिया की पहिचान बताती है,ज से नयी उत्पत्ति की तरफ़ जाने का संकेत करती है,झ से फ़ालतू की विद्या को भूलने के लिये अपनी क्रिया देती है,ट से महसूस करने की क्रिया का रूप समझाती है,ठ से किये जाने वाले कार्य के अन्दर कलाकारी लाने को कहती है,ड से कार्य के अन्दर जमे रहने के लिये अपनी योग्यता को देती है,ढ से खराब अवधारणाओं से दूर रहने के लिये कहती है,ण से अपने को सुरक्षित रखने के लिये आसपास के वातावरण को सम्भालने के लिये कहती है,त से अच्छे और बुरे के बीच का अन्तर समझने की शक्ति देती है,थ से जो अच्छा है उसे प्राप्त करने की कला देती है,द से अपने हिस्से से दूसरों की सहायता के लिये भी कहती है,न से जो भी करना है उसका सार कभी अटल नही है इसका भी ज्ञान देती है,प से मानसिकता को शुद्ध रखने के लिये फ़ से अपनी विचारधारा को अक्समात बदलने के लिये ब से प्राप्त विद्या के प्रयोग में लेने के लिये और म से अपने प्रभाव को वातावरण में व्याप्त करने के लिये कहती है,य से जो है वह इसी जगत में है, र से जीव है तो जगत है,ल से जीव है तो शाखा है,व से जीव की औकात केवल धरती पर रहने वाले अणुओं के ऊपर ही निर्भर है,श से इन्तजार का फ़ल प्राप्त करने के लिये ष से कई दिशाओं में अपने रुख को हमेशा तैयार रखने के लिये स से अपने आप को नरम रखने के लिये ह से ब्रह्माण्ड की तरफ़ भी ध्यान रखने के लिये क्ष से जीवों की रक्षा और दया करने के लिये त्र से ईश्वर की शक्ति पर विश्वास रखने के लिये ज्ञ से अन्त में जहां से जो आया वहीं समा जाने की विद्या को प्रकट करने के लिये कहा गया है।उत्तम मध्यम और निम्न गति को प्रदान करने के लिये स्वरों का प्रयोग किया गया है,अ कहने में तो साधारण है लेकिन इसके बिना कोई भी गति नही है,आ से बडप्पन पैदा करने के लिये इ से मुर्दा को जीवित करने के लिये ई से स्त्रीत्व और भूमि का निरूपण करने के लिये ए से साधारण विचार को मध्यम गति देने के लिये,ऐ से मारक शक्ति को पैदा करने के लिये और ओ से शान्त रहने तथा वीभत्सता को रोकने के लिये औ से चालाकी और बुद्धिमानी को प्रकट करने के लिये अं से ऊपर की तरफ़ सोचने के लिये और अ: से जो भी प्राप्त किया है उसे यहीं छोड देने के लिये शक्ति का सिद्धान्त कहा गया है मंत्रयुति के लिये अक्षर को जोडा गया वाक्य युति के लिये शब्द को जोडा गया। भावना की युति के लिये वाक्यों को जोडा गया,ब्रह्माण्ड की युति को प्राप्त करने के लिये भावना की युति को जोडा गया। भावना को भौतिकता में लाने के लिये पदार्थ को जोडा गया पदार्थ को साकार करने के लिये जीव को जोडा गया,पदार्थ को निराकार करने के लिये भावना और पदार्थ के मिश्रण से मूर्ति को बनाया गया। मूर्ति से फ़ल को प्राप्त करने के लिये श्रद्धा को साथ में लिया गया,श्रद्धा और विश्वास को साथ लेकर कार्य की पूर्णता को लिया गया जीव से जीव की उत्पत्ति की गयी जड से चेतन का रूप प्रदान किया गया। रूप और भाव बदल कर विचित्रता की भावना को प्रकट किया गया,पंचभूतो के मिश्रण से कल्पना दी गयी,भूतों के कम या अधिक प्रयोग से स्वभाव का निर्माण किया गया,जड अधिक करने पर चेतन की कमी की गई और चेतन को अधिक करने पर जडता को कम किया गया। जड और चेतन का साथ किया गया। बिना एक दूसरे के औकात को समाप्त किया गया जहां आग पैदा की गयी उसके दूसरे कोण पर पानी को पैदा किया गया,जहां बुद्धि को प्रकट किया गया वहीं दूसरी ओर मन को प्रकट किया गया,बुद्धि के विस्तार के लिये द्रश्य श्रव्य घ्राण अनुभव को प्रकट किया गया,चेतन होकर ग्रहण करने की क्षमता का विकास करने पर हिंसकता को दूर किया गया,जहां ग्रहण करने की क्षमता नही दी गयी वहां हिंसकता का प्रभाव दिया गया,एक को पालने के लिये बनाया गया दूसरे को मारने के लिये बनाया गया,दोनो के बीच में फ़ंसाकर जीव को पैदा किया गया उम्र को कम करने के लिये चिन्ता को दिया गया,उम्र को अधिक करने के लिये विचार शून्य होकर रहने को बोला गया,पदार्थ की अधिकता को ताकत के रूप में प्रकट किया गया,क्षमता को अधिक या कम करने के लिये कई भावनाओं को एक साथ जोडा गया। जीव को पदार्थ के सेवन का अवसर दिया गया,मिट्टी को मिट्टी खाने के लिये रूप में परिवर्तन किया गया,मिट्टी को ही मीठा खट्ठा चरपरा कसैला बनाया गया। मिट्टी को ही मारने के लिये और मिट्टी को ही जीने के लिये दवाइयों के रूप में परिवर्तित किया गया,मिट्टी से मिट्टी को लडाने के लिये जीव की उत्पत्ति की गयी मित्रो आपके निवेदन पर कुछ समय के लिऐ मैने अपनी फीस वहुँत कम कर दी है जो लोग मुझ से कुंङली दिखाना चाहते है या कोई समस्या का समाघान चाहते है तो ईन नम्वरो पर सम्पर्क कर सकते है आचार्य राजेश 09414481324 07597718725

शुक्रवार, 16 सितंबर 2016

धर्म कर्म और पूजा पाठ के लिये देश काल और परिस्थिति को समझना जरूरी है। अगर लोग सुबह चार बजे नहाने के लिये अपने को शुरु से तैयार रखते है और वे अगर किसी ठंडे स्थान में जाकर नहाने का उपक्रम करते है तो उन्हे शर्तिया अपने शरीर को बीमार करना पडेगा,और नही तो वे अपने को ठंडे मौसम की वजह से कुछ न कुछ तो परेशान करेंगे ही,इसके अलावा अगर उनके रहने वाले स्थान में समय की अधिकता है और बाहर जाकर समय की कमी है तो भी जो कार्य उन्हे देर में करने की आदत है उन्हे वह जल्दी से करने के लिये भी तैयार होना चाहिये। साथ ही ध्यान में रखना जरूरी है कि अगर परिस्थिति वश कोई सामान जो पूजा पाठ के लिये नही मिलता है तो निम्न या मानसिक पूजा पाठ ही करना सही रहेगा। देश काल और परिस्थिति को समझ कर ही आराधना के कितने ही नियम बनाये गये है। जो लोग बहुत समय रखते है उनके लिये भजन गाना और कीर्तन करना बताया गया है,जो लोग समय कम रखते है उनके लिये सुबह शाम की पूजा और आरती आदि ही बहुत होती है और जिनके पास कर्म करने के बाद समय की बहुत ही कमी है उन्हे सोते और जगते समय अपने आराध्य के नाम लेने से भी वही फ़ल प्राप्त होगा जो लोग पूरे दिन भजन कीर्तन आदि करने के बाद प्राप्त करते है। इस भाव के लिये एक मिथिहासिक कहानी कही गयी है,एक बार ब्रह्मा पुत्र नारद जी को घंमंड हो गया कि वे भगवान विष्णु के बहुत बडे भक्त है और उनके अलावा इस संसार में कोई बडा भक्त नही है,कारण उनकी जुबान पर हर क्षण नारायण नाम का शब्द रहता है,और जब इस नारायण नाम का शब्द प्रति स्वांस में साथ है तो कौन उनसे बडा भक्त पैदा हो सकता है। भगवान अन्तर्यामी है और अपने भक्तों के भाव को समझते भी है,भगवान विष्णु जो नारायण रूप में है उन्हे मालुम चला कि नारद को घमंड पैदा हो गया है। उन्होने अपने पास नारद को बुलाया और समझाया कि तुम अपने में घमंड नही पालो,तुमसे बडे भी भक्त इस संसार में है। नारद ने एक का पता पूंछा और उसके पास जा पहुंचे,देखा वह एक साधारण किसान है और सुबह अपने खेतों पर काम पर चला जाता है और शाम को अपने घर आकर सो जाता है। बीच में जो भी घर के काम होते है उन्हे करता है अपने परिवार के पालन पोषण के लिये जो भी कार्य उसके वश के है उन्हे करता है। जागने के बाद केवल तीन बार नारायण नारायण नारायण का नाम लेता है और सोने के समय तीन बार नारायण नारायण नारायण का नाम लेता है और सो जाता है। नारद जी को बहुत गुस्सा आया और वे नारायण के पास जा पहुंचे और कहने लगे प्रभू वह एक किसान है और केवल दिन भर में छ: बार नारायण नारायण नारायण नारायण नारायण नारायण कहता है वह उस भक्त से बडा हो गया है तो चौबीस घंटे में इक्कीस हजार छ: सौ बार नारायण का नाम लेता है। विष्णु रूप नारायण समझ गये कि नारद को समझ कम है,उन्होने अपनी माया से एक उपक्रम का निर्माण किया और एक ज्योतिषी को बुलाया,अपने ऊपर राहु केतु और शनि की स्थिति को समझने के लिये प्रश्न किया,ज्योतिषी ने अपने प्रतिउत्तर में जबाब दिया कि आने वाले समय में शनि देव का ठंडा और अन्धकार युक्त समय का आना हो रहा है,इसलिये शनि का उपाय करना जरूरी है,उसने एक कटोरा सरसों का तेल मंगवाया, और नारायण की प्रदिक्षणा करने के लिये पास में उपस्थित नारद जी को इशारा किया साथ ही यह भी उपदेश दिया कि प्रदक्षिणा में तेल की बूंद जमीन पर नही गिर पाये। नारद जी ने बडी सावधानी से तेल का कटोरा लेकर धीरे धीरे प्रदिक्षणा करना शुरु कर दिया,और कुछ समय में पूरी करने के बाद व कटोरा ज्योतिषी को पकडा दिया,वह ज्योतिषी कटोरे को लेकर पास में खडे एक कीकर के पेड पर चढाने के लिये चला गया । नारायण ने नारद से पूंछा कि जितने समय में तुमने मेरी प्रदक्षिणा की उतने समय में तुमने मेरा कितनी बार नाम लिया ? इतना सुनकर नारद जी ने कहा कि अगर वे अपने ध्यान को नाम में ले जाते तो जरूरी था कि तेल कटोरे से नीचे जमीन पर गिर जाता ! नारायण ने नारद से जबाब दिया कि वह किसान अपने गृहस्थी रूपी तेल के कटोरे को लेकर चल रहा है और फ़िर भी छ: बार नारायण का नाम ले लेता है,तो तुम्ही सोचो कि कौन बडा भक्त है,नारद को समझ आ गयी थी कि कौन बडा भक्त है।

गुरुवार, 8 सितंबर 2016

कुछ मित्रो ने पुछा गनेश विर्सजन के वारे मे वताऐ आचार्य जी मित्रो ईसके पिछे वहुँत गहरा राज छुपा है जो शायद अघिकतर लोग नही जानते मित्रो जिवन मे हर वस्तु विरोघावास हैजिवन है तो मृत्यु है रात है तो दिन है अव जिवन ओर मृत्यु के विच की जो यात्रा हमकर रहे है ईसको ईस तरह ले कि हमे सदा के लिऐ यहा नही रहना है ना तो यह संसार ओर ना ही हम यहा सदा के लिऐ रहेगे फिर क्यो ना यह जिवन हंसी खुशी ओर उत्सव मनाते हुऐ यात्रापुरी करे महीनो पहले ईसउत्सव के लिऐ गनेश जी की मुर्तीया वननी शुरु होती है सुन्दर से सुन्दर रंग वरंगी गनेश जी को हम नाचते गाते फुले से सजाकर घर लाते है पुरी श्रदा से पुजा पाठ करते है ओर फिर उसे हम नाचते गाते ही विर्सजन भी करते है विल्कुल वेसे ही भगवान ही हमे वनाता है ओर जिवन देता है ओर भगवान ही मृत्यु यही हम करते है पहले मुर्ती घर लाते है पुजा पाठ करते है ओर फिर विर्सजन कर देते है यह सिख हमे भी सिखनी है यह संसार नाशवान है हमे किसी वस्तु से वंघना नही है वस उसका उपयोग करना है ओर फिर उसे छोङ देना है आचार्य राजेश

शुक्रवार, 5 अगस्त 2016

प्रेम और भोजन 'प्रेम और भोजन बड़े गहरे जुड़े हैं। इसीलिए तो जब हम्हारा किसी से प्रेम होता है तो हम उसे भोजन के लिए घर बुलाते है क्योंकि बिना भोजन खिलाए प्रेम का पता कैसे चलेगा। जो हमे बहुत प्रेम करता है, वह हमारे लिए भोजन बनाता है। जब कोई स्त्री अपने पती के लिए भोजन बनाती है, तो सिर्फ भोजन ही नहीं होता, उसमें प्रीति भी होती है। होटल के भोजन में प्रीति तो नहीं हो सकती। तो शरीर तो तृप्त हो जाएगा, लेकिन कहीं प्राण खाली—खाली रह जाएंगे मां जब अपने बेटे के लिए भोजन बनाती है तो चाहे भोजन रूखा—सूखा ही हो, फिर भी उसमें एक स्वाद है। वह प्रीतिभोज है। कहीं किसी ने कितना ही अच्छा भोजन खिलाया हो, लेकिन खिलाने का मन न रहा हो, बेमन से खिलाया हो, तो पचेगा नहीं। पचा भी तो शरीर से गहरा न जाएगा इस देश में तो हमने हजारों साल पहले इस बात का बोध कर लिया था कि प्रेम कहीं अनिवार्यरूप से भोजन का हिस्सा है। और इसलिए जहां प्रेम न हो वहां भोजन स्वीकार न करना। अगर तुम्हारी पत्नी क्रोध में भोजन बना रही हो तो उस भोजन को स्वीकार मत करना। अगर तुम भोजन बना रहे हो क्रोध में तो मत बनाना, क्योंकि क्रोध में जब भोजन बनाया जाता है तो विष हो जाता है। आज परिणाम नहीं होगा, कल परिणाम होगा। कल नहीं होगा, परसों होगा, जहर इकट्ठा होगा। जब तुम भोजन करने बैठो, अगर क्रोध में हो तो मत करना भोजन। क्योंकि जब तुम प्रेम से भरे होते हो, तभी बाहर से बहते प्रेम को भी तुम भीतर ले जाने में समर्थ होते हो। प्रेम से प्रेम का तालमेल होता है, संयोग होता है। प्रेम की तरंग प्रेम की तरंग को भीतर ले जाती है। अगर तुम क्रोधित बैठे भोजन कर रहे हो तो तुम भोजन तो कर लोगे, लेकिन प्रेम की तरंग भीतर नहीं जा सकेगी। और फिर क्रोध में जो तुम भोजन करोगे वह भी विषाक्त हो जाएगा इसलिए तो हमारे वङो ने बड़े नियम बनाए थे कि क्रोध में कोई भोजन न करे, क्रोध में बनाया भोजन न करे। किसके हाथ का बनाया भोजन करे, किसके हाथ का बनाया भोजन न करे किस घड़ी में कोई भोजन बनाए चार दिन के लिए स्त्रियां—जब उनका मासिक— धर्म हो—तो भोजन के लिए मना कर दिया था। अब संभव है कि भविष्य फिर विज्ञान के आधार से मना करे। क्योंकि जब चार दिन स्त्रियों का मासिक— धर्म होता है तो उनके शरीर में इतने रूपांतरण होते हैं, इतना हार्मोनल अंतर होता है कि उनके भीतर सब प्रीतिसुख सूख जाता है—इतनी पीड़ा होती है। उस पीड़ा और दर्द में आशा नहीं है कि उनका प्रेम बह सके, इसलिए उस घडी में भोजन बनाना ठीक नहीं है। उस घड़ी में बनाया गया भोजन जहर हो जाऐगा इंग्लैंड की एक प्रयोगशाला डिलाबार में उन्होंने प्रयोग किए हैं अगर जिस स्त्री को मासिक— धर्म के समय बहुत पीड़ा होती है, पेट में बहुत दर्द होता है, उस समय अगर वह गुलाब का फूल अपने हाथ में ले ले, तो दुगुनी गति से गुलाब का फूल सूख जाता है—दुगुनी गति से। वही स्त्री जब मासिक— धर्म में न हो, तब गुलाब के फूल को हाथ में लेती है, तो अगर उसको सूखने में घंटाभर लगे, मुर्झाने में घटाभर लगे, तो मासिक— धर्म के समय आधा घंटे में मुर्झा जाता है। तो गुलाब के फूल तक पर तरंगें पहुंच जाती हैं। तो भोजन में भी तरंगें उतर जाएंगीईसी तरह अगर तुलसी को पानी दिया जाऐ तो वो भी सुख जाती है यह जो हम हैं, केवल शरीर ही नहीं हैं, आत्मा भी हैं। तो आत्मा का भी कुछ भोजन होगा, जैसे शरीर का कुछ भोजन है। इसीलिए तो प्रेम के लिए इतनी लालसा होती है आदमी भूखा रह ले, लेकिन प्रेम के बिना नहीं रहा जाता आदमी गरीब रह ले, लेकिन प्रेम के बिना नहीं रहा जाता बिना धन के रह ले, निर्धन रह ले, लेकिन बिना प्रेम के नहीं रहा जाता। प्रेम की एक गहन प्यास है। वह प्यास इतना ही बता रही है कि आत्मा कहीं अतृप्त है आत्मा को जो मिलना था, नहीं मिला, आत्मा का भोजन नहीं मिला आज सव प्रेम से रहे यही मेरी मनो भावना यह माता दी

शुक्रवार, 22 जुलाई 2016

मित्रो लाल किताव वास्तव मे दुख दुर करने की कुंजी है अव कुछ ज्योतिषी भाई लोगो ने किताबें लिखी या लिखाई हैं अथवा अपनी सुविधानुसार बनाई या बनवाई हैं जैसे लाल किताब ऐको घ्यान मे रखकर लाल ,नीली ,पीली ,हरी ,गुलाबी आदि हर कलर में किताबें लोगों ने अपने अपने मन से एक एक किताब बनाकर रख ली है । इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि कुछ पढ़ना लिखना नहीं पड़ता है ओर लोगो पर प्रभाव भी ङल जाता है ज्योतिष के नाम पर जो मन आवे सो बोलो या बकवास करो जब प्रमाण देने की बात आवे तो तथाकथित अपनी अपनी किताबों का नाम बता दो बचाव हो जाएगा। केवल उन नामों के पीछे अमृत या मणि या यन्त्र या तन्त्र लाल लिखना बहुत जरूरी होता है। ये अमृत आदि शब्द इतने अधिक आकर्षक होते हैं कि किसी परेशान व्यक्ति को फाँसने में बड़ा सहयोग मिलता है क्योंकि इन नामों के प्रति हमारे समाज में असीम आस्था होती है। संसार में लोगों को जितने प्रकार की आवश्यकता होती है उन सारी बातों के आगे अमृत या मणि या यन्त्र तन्त्र लिखना बहुत होता है। जैसे -कब्ज दूर करने करने के लिए कब्ज निरोधक मणि अथवा कब्ज हर यन्त्र या कब्ज हर अमृत ।इसी प्रकार यदि आप कुंडलियों के धंधे में कूदना चाहते हैं तो कंप्यूटर से कुंडली बनाकर उसके आगे भी अमृत मणि या यन्त्र लिख सकते हैं । जैसे -गुलाबी किताब अमृत ,हरी किताब मणि ,या पीली किताब यन्त्र आदि या लाल किताव मंथन नामों से वही दो सो रूपए वाली कंप्यूटर कुंडली पाँच हजार रूपए में आराम से बिक जाती है अव ईस से वङिया घन्घा हो भी नही सकता अव तो अब लगने लगा है कि पढ़े लिखे शास्त्रीय ज्योतिषियों के पास मटक मटक कर झूठी तारीफों के पुल बाँधने वाली एक सुन्दर सी लड़की नहीं होती थी उसी झुट्ठी के बिना पिट गए बेचारे। क्योंकि उसे देखने के चक्कर में बड़े बड़े फँसने के बाद होश में आते हैं तब ज्योतिषशास्त्र को गाली देते हैं उन्हें यह होश ही नहीं होता है वो जिस के चक्कर में पड़े थे वो वह ज्योतिष नहीं थी कुछ लोगों ने Tv के माघ्य से भी ईस तरह का प्रचार किया अने ही लोग खङे किये जाते है जो तारीफो के पुल वाघते है अपने ही लोगो से फोन करवाऐ जाते है ओर भोले भाले लोग वो सव असली समझ कर फंस जाते है अव तो ज्योतिषीयो ने चोले भी पहन लिऐ ओर वावा गिरी भी करने लग गऐ है tv पर ही आखे वन्द करके फोन पर वता रहे होते है यह कैसी वचकानी हरकते है खैर हम तो कुछ नही वोलेगे वोलेगे तो कहोगे के वोलते है आचार्य राजेश 07597718725 09414481324

मित्रो लाल किताव वास्तव मे दुख दुर करने की कुंजी है अव कुछ ज्योतिषी भाई लोगो ने किताबें लिखी या लिखाई हैं अथवा अपनी सुविधानुसार बनाई या बनवाई हैं जैसे लाल किताब ऐको घ्यान मे रखकर लाल ,नीली ,पीली ,हरी ,गुलाबी आदि हर कलर में किताबें लोगों ने अपने अपने मन से एक एक किताब बनाकर रख ली है । इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि कुछ पढ़ना लिखना नहीं पड़ता है ओर लोगो पर प्रभाव भी ङल जाता है ज्योतिष के नाम पर जो मन आवे सो बोलो या बकवास करो जब प्रमाण देने की बात आवे तो तथाकथित अपनी अपनी किताबों का नाम बता दो बचाव हो जाएगा। केवल उन नामों के पीछे अमृत या मणि या यन्त्र या तन्त्र लाल लिखना बहुत जरूरी होता है। ये अमृत आदि शब्द इतने अधिक आकर्षक होते हैं कि किसी परेशान व्यक्ति को फाँसने में बड़ा सहयोग मिलता है क्योंकि इन नामों के प्रति हमारे समाज में असीम आस्था होती है। संसार में लोगों को जितने प्रकार की आवश्यकता होती है उन सारी बातों के आगे अमृत या मणि या यन्त्र तन्त्र लिखना बहुत होता है। जैसे -कब्ज दूर करने करने के लिए कब्ज निरोधक मणि अथवा कब्ज हर यन्त्र या कब्ज हर अमृत ।इसी प्रकार यदि आप कुंडलियों के धंधे में कूदना चाहते हैं तो कंप्यूटर से कुंडली बनाकर उसके आगे भी अमृत मणि या यन्त्र लिख सकते हैं । जैसे -गुलाबी किताब अमृत ,हरी किताब मणि ,या पीली किताब यन्त्र आदि या लाल किताव मंथन नामों से वही दो सो रूपए वाली कंप्यूटर कुंडली पाँच हजार रूपए में आराम से बिक जाती है अव ईस से वङिया घन्घा हो भी नही सकता अव तो अब लगने लगा है कि पढ़े लिखे शास्त्रीय ज्योतिषियों के पास मटक मटक कर झूठी तारीफों के पुल बाँधने वाली एक सुन्दर सी लड़की नहीं होती थी उसी झुट्ठी के बिना पिट गए बेचारे। क्योंकि उसे देखने के चक्कर में बड़े बड़े फँसने के बाद होश में आते हैं तब ज्योतिषशास्त्र को गाली देते हैं उन्हें यह होश ही नहीं होता है वो जिस के चक्कर में पड़े थे वो वह ज्योतिष नहीं थी कुछ लोगों ने Tv के माघ्य से भी ईस तरह का प्रचार किया अने ही लोग खङे किये जाते है जो तारीफो के पुल वाघते है अपने ही लोगो से फोन करवाऐ जाते है ओर भोले भाले लोग वो सव असली समझ कर फंस जाते है अव तो ज्योतिषीयो ने चोले भी पहन लिऐ ओर वावा गिरी भी करने लग गऐ है tv पर ही आखे वन्द करके फोन पर वता रहे होते है यह कैसी वचकानी हरकते है खैर हम तो कुछ नही वोलेगे वोलेगे तो कहोगे के वोलते है आचार्य राजेश 07597718725 09414481324

शनिवार, 25 जून 2016

मित्रो जन्म कुंडली का विश्लेषण करने से पूर्व किसी भी कुशल ज्योतिषी को पहले कुंडली की कुछ बातो का अध्ययन करना चाहिए. जैसे ग्रह का पूरा अध्ययन, भावों का अध्ययन, दशा/अन्तर्दशा, गोचर आदि बातों को देखकर ही फलकथन कहना चाहिए. आज हम कुंडली का अध्ययन कैसे किया जाए सीखने का प्रयास करेगें. जन्म कुंडली में ग्रह को समझने के लिए कुछ बातों पर विचार किया जाता है, जो निम्नलिखित हैं. सबसे पहले यह देखें कि ग्रह किस भाव में स्थित है और किन भावों का स्वामी है. ग्रह के कारकत्व क्या-क्या होते हैं. ग्रहों का नैसर्गिक रुप से शुभ व अशुभ होना देखेगें. ग्रह का बलाबल देखेगें. ग्रह की महादशा व अन्तर्दशा देखेगें कि कब आ रही है. जन्म कालीन ग्रह पर गोचर के ग्रहों का प्रभाव. ग्रह पर अन्य किन ग्रहों की दृष्टियाँ प्रभाव डाल रही हैं. ग्रह जिस राशि में स्थित है उस राशि स्वामी की जन्म कुण्डली में स्थिति देखेगें और उसका बल भी देखेगें. ग्रह की जन्म कुंडली में स्थिति के बाद जन्म कुंडली के साथ अन्य कुछ और कुंडलियों का अवलोकन किया जाएगा, जो निम्न हैं. जन्म कुंडली के साथ चंद्र कुंडली का अध्ययन किया जाना चाहिए. भाव चलित कुंडली को देखें कि वहाँ ग्रहों की क्या स्थिति बन रही है. जन्म कुंडली में स्थित ग्रहों के बलों का आंकलन व योगों को नवांश कुंडली में देखा जाना चाहिए. जिस भाव से संबंधित फल चाहिए होते हैं उससे संबंधित वर्ग कुंडलियों का अध्ययन किया जाना चाहिए. जैसे व्यवसाय के लिए दशमांश कुंडली और संतान प्राप्ति के लिए सप्ताँश कुंडली. ऎसे ही अन्य कुंडलियों का अध्ययन किया जाना चाहिए. वर्ष कुंडली का अध्ययन करना चाहिए जिस वर्ष में घटना की संभावना बनती हो. ग्रहों का गोचर जन्म से व चंद्र लग्न से करना चाहिए. अंत में कुछ बातें जो कि महत्वपूर्ण हैं उन्हें एक कुशल ज्योतिषी अथवा कुंडली का विश्लेषण करने वाले को अवश्य ही अपने मन-मस्तिष्क में बिठाकर चलना चाहिए. जन्म कुंडली में स्थित सभी ग्रहो की अंशात्मक युति देखनी चाहिए और भावों की अंशात्मक स्थित भी देखनी चाहिए कि क्या है. जैसे कि ग्रह का बल, दृष्टि बल, नक्षत्रों की स्थिति और वर्ष कुंडली में ताजिक दृष्टि आदि देखनी चाहिए. जिस समय कुंडली विश्लेषण के लिए आती है उस समय की महादशा/अन्तर्दशा/प्रत्यन्तर दशा को अच्छी तरह से जांचा जाना चाहिए. जिस समय कुंडली का अवलोकन किया जाए उस समय के गोचर के ग्रहों की स्थिति का आंकलन किया जाना चाहिए. आइए अब भावों के विश्लेषण में महत्वपूर्ण तथ्यों की बात करें. जब भी किसी कुंडली को देखना हो तब उपरोक्त बातों के साथ भावों का भी अपना बहुत महत्व होता है. आइए उन्हें जाने कि वह कौन सी बाते हैं जो भावों के सन्दर्भ में उपयोगी मानी जाती है. जिस भाव के फल चाहिए उसे देखें कि वह क्या दिखाता है. उस भाव में कौन से ग्रह स्थित हैं. भाव और उसमें बैठे ग्रह पर पड़ने वाली दृष्टियाँ देखें कि कौन सी है. भाव के स्वामी की स्थिति लग्न से कौन से भाव में है अर्थात शुभ भाव में है या अशुभ भाव में है, इसे देखें. जिस भाव की विवेचना करनी है उसका स्वामी कहाँ है, कौन सी राशि व भाव में गया है, यह देखें. भाव स्वामी पर पड़ने वाली दृष्टियाँ देखें कि कौन सी शुभ तो कौन सी अशुभ है. भाव स्वामी की युति अन्य किन ग्रहों से है, यह देखें और जिनसे युति है वह शुभ हैं या अशुभ हैं, इस पर भी ध्यान दें. भाव तथा भाव स्वामी के कारकत्वों का निरीक्षण करें. भाव का स्वामी किस राशि में है, उच्च में है, नीच में है या मित्र भाव में स्थित है, यह देखें. भाव का स्वामी अस्त या गृह युद्ध में हारा हुआ तो नहीं है या अन्य किन्हीं कारणों से निर्बली अवस्था में तो स्थित नहीं है, इन सब बातों को देखें. भाव, भावेश तथा भाव के कारक तीनों का अध्ययन भली - भाँति करना चाहिए. इससे संबंधित भाव के प्रभाव को समझने में सुविधा होती है. उपरोक्त बातोंके साथसाथ हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि किसी भी कुंडली का सामान्य रुप से अध्ययन करने के लिए लग्न, लग्नेश, राशिश, इन पर पड़ने वाली दृष्टियाँ और अन्य ग्रहो के साथ होने वाली युतियों पर ध्यान देना चाहिए. इसके बाद नवम भाव व नवमेश को देखना चाहिए कि उसकी कुंडली में क्या स्थिति है क्योकि यही से व्यक्ति के भाग्य का निर्धारण होता है. लग्न के साथ चंद्रमा से भी नवम भाव व नवमेश का अध्ययन किया जाना चाहिए. इससे कुंडली के बल का पता चलता है कि कितनी बली है. जन्म कुंडली में बनने वाले योगो का बल नवाँश कुंडली में भी देखा जाना चाहिए. नवाँश कुंडली के लग्नतथा लग्नेश का बल भी देखना चाहिए हम जव कोई पोस्ट गरुप मे करते है तो कुछ मित्र लग्न कुन्ङली की फोटो भेजते है कि हमारे वारे मे वताऐ यह कहैगे की हमारा तो ऐक ही प्रशन है मित्रो आपका जिवन अनमोल है थोङी सी दक्षिणा वचाने के चक्कर मे आप भटकते है ऐसा ना करे जव तक सही ढंग से आपकी कुंङली कोई ज्योतिषी नही देखेगा तव तक कुछ नही वता सकता जो वताते है वो गलत है मेरी वात से आगर दुख हुआ हो तो मुझे माफ करना आप मुझ से ईन नम्वर पर वात कर सकते है चेट या मैसज ना करे घन्यावाद आचार्य राजेश



सोमवार, 20 जून 2016

जीवन को प्रेम से भरें आप कहेंगे, हम सब प्रेम करते हैं। मैं आपसे कहूं, आप शायद ही प्रेम करते हों; आप प्रेम चाहते होंगे। और इन दोनों में जमीन-आसमान का फर्क है। प्रेम करना और प्रेम चाहना, ये बड़ी अलग बातें हैं। हममें से अधिक लोग बच्चे ही रहकर मर जाते हैं। क्योंकि हरेक आदमी प्रेम चाहता है। प्रेम करना बड़ी अदभुत बात है। प्रेम चाहना बिलकुल बच्चों जैसी बात है। छोटे-छोटे बच्चे प्रेम चाहते हैं। मां उनको प्रेम देती है। फिर वे बड़े होते हैं। वे और लोगों से भी प्रेम चाहते हैं, परिवार उनको प्रेम देता है। फिर वे और बड़े होते हैं। अगर वे पति हुए, तो अपनी पत्नियों से प्रेम चाहते हैं। अगर वे पत्नियां हुईं, तो वे अपने पतियों से प्रेम चाहती हैं। और जो भी प्रेम चाहता है, वह दुख झेलता है। क्योंकि प्रेम चाहा नहीं जा सकता, प्रेम केवल किया जाता है। चाहने में पक्का नहीं है, मिलेगा या नहीं मिलेगा। और जिससे तुम चाह रहे हो, वह भी तुमसे चाहेगा। तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी। दोनों भिखारी मिल जाएंगे और भीख मांगेंगे। दुनिया में जितना पति-पत्नियों का संघर्ष है, उसका केवल एक ही कारण है कि वे दोनों एक-दूसरे से प्रेम चाह रहे हैं और देने में कोई भी समर्थ नहीं है। इसे थोड़ा विचार करके देखना आप अपने मन के भीतर। आपकी आकांक्षा प्रेम चाहने की है हमेशा। चाहते हैं, कोई प्रेम करे। और जब कोई प्रेम करता है, तो अच्छा लगता है। लेकिन आपको पता नहीं है, वह दूसरा भी प्रेम करना केवल वैसे ही है जैसे कि कोई मछलियों को मारने वाला आटा फेंकता है। आटा वह मछलियों के लिए नहीं फेंक रहा है। आटा वह मछलियों को फांसने के लिए फेंक रहा है। वह आटा मछलियों को दे नहीं रहा है, वह मछलियों को चाहता है, इसलिए आटा फेंक रहा है। इस दुनिया में जितने लोग प्रेम करते हुए दिखायी पड़ते हैं, वे केवल प्रेम पाना चाहने के लिए आटा फेंक रहे हैं। थोड़ी देर वे आटा खिलाएंगे, फिर...। और दूसरा व्यक्ति भी जो उनमें उत्सुक होगा, वह इसलिए उत्सुक होगा कि शायद इस आदमी से प्रेम मिलेगा। वह भी थोड़ा प्रेम प्रदर्शित करेगा। थोड़ी देर बाद पता चलेगा, वे दोनों भिखमंगे हैं और भूल में थे; एक-दूसरे को बादशाह समझ रहे थे! और थोड़ी देर बाद उनको पता चलेगा कि कोई किसी को प्रेम नहीं दे रहा है और तब संघर्ष की शुरुआत हो जाएगी। दुनिया में दाम्पत्य जीवन नर्क बना हुआ है, क्योंकि हम सब प्रेम मांगते हैं, देना कोई भी जानता नहीं है।

आंसुओं से कभी भी भयभीत मत होना। तथाकथित सभ्यता ने तुम्हें आंसुओं से अत्यंत भयभीत कर दिया है। इसने तुम्हारे भीतर एक तरह का अपराध भाव पैदा कर दिया है। जब आंसू आते हैं तो तुम शर्मिंदा महसूस करते हो। तुम्हें लगता है कि लोग क्या सोचते होंगे? मैं पुरुष होकर रो रहा हूं!यह कितना स्त्रैण और बचकाना लगता है। ऐसा नहीं होना चाहिये। तुम उन आंसुओं को रोक लेते हो… और तुम उसकी हत्या कर देते हो जो तुम्हारे भीतर पनप रहा होता है। जो भी तुम्हारे पास है, आंसू उनमें सबसे अनूठी बात है, क्योंकि आंसू तुम्हारे अंतस के छलकने का परिणाम हैं। आंसू अनिवार्यत: दुख के ही द्योतक नहीं हैं; कई बार वे भावातिरेक से भी आते हैं, कई बार वे अपार शांति के कारण आते हैं, और कई बार वे आते हैं प्रेम व आनंद से। वास्तव में उनका दुख या सुख से कोई लेना-देना नहीं है। कुछ भी जो तुमारी ह्रदय को छू जाये, कुछ भी जो तुम्हें अपने में आविष्ट कर ले, कुछ भी जो अतिरेक में हो, जिसे तुम समाहित न कर सको, बहने लगता है, आंसुओं के रूप में । इन्हें अत्यंत अहोभाव से स्वीकार करो, इन्हें जीयो, उनका पोषण करो, इनका स्वागत करो, और आंसुओं से ही तुम जान पाओगे प्रार्थना करने की कला।

रविवार, 19 जून 2016

मित्रो ‘ज्योतिषशास्त्र’ आयुर्वेद और अन्य ग्रंथो की तरह हमारे प्राचीन ग्रंथो मे से एक है ! लेकिन पिछले कुछ वर्षो मे तथाकथित ज्योतिषों ने इसे धंधा बनाकर छोड़ दिया है ! और यही कारण है आज बहुत से लोगो का इस पर से विश्वास उठ गया है और सब यही समझने लगे है की हर कोई ज्योतिष के नाम पर लोगो को मूर्ख बनाने पर उनसे पैसा एंठने पर लगा है ! एक बाद याद रखे मित्रो ज्योतिष सनातन धर्म का एक अंग है करोड़ो वर्षो से चला आ रहा है ,आज भी सच्चे ज्योतिष गणित की गणना से ग्रहो की स्थिति और चंद्र ग्रहण ,सूर्य ग्रहण आदि का पता लगा लेते हैं वो बात अलग है धंधा करने वालों ने इसे कुछ का कुछ बना कर छोड़ दिया है जिस कारण हमारा इससे विश्वास उठता चला जा रहा है कोई ताश के पत्ते लेकर सुबह-सुबह टीवी पर बैठ जाता है ,और कोई लक्ष्मी यंत्र ,आदि बेचकर आपको मूर्ख बना रहा है !

ब्रह्मांड की अति सूक्षम हलचल का प्रभाव भी पृथ्वी पर पडता है,सूर्य और चन्द्र का प्रत्यक्ष प्रभाव हम आसानी से देख और समझ सकते है,सूर्य के प्रभाव से ऊर्जा और चन्द्रमा के प्रभाव से समुद में ज्वार-भाटा को भी समझ और देख सकते है,जिसमे अष्ट्मी के लघु ज्वार और पूर्णमासी के दिन बृहद ज्वार का आना इसी प्रभाव का कारण है,पानी पर चन्द्रमा का प्रभाव अत्याधिक पडता है,मनुष्य के अन्दर भी पानी की मात्रा अधिक होने के कारण चन्द्रमा का प्रभाव मानव मस्तिष्क पर भी पडता है,पूर्णमासी के दिन होने वाले अपराधों में बढोत्तरी को आसानी से समझा जा सकता है, जो पागल होते है उनके असर भी इसी तिथि को अधिक बढते है,आत्महत्या वाले कारण भी इसी तिथि को अधिक होते है,इस दिन स्त्रियों में मानसिक तनाव भी अधिक दिखाई देता है,इस दिन आपरेशन करने पर खून अधिक बहता है,शुक्ल पक्ष मे वनस्पतियां अधिक बढती है,सूर्योदय के बाद वन्स्पतियों और प्राणियों में स्फ़ूर्ति का प्रभाव अधिक बढ जाता है,आयुर्वेद भी चन्द्रमा का विज्ञान है जिसके अन्तर्गत वनस्पति जगत का सम्पूर्ण मिश्रण है,कहा भी जाता है कि “संसार का प्रत्येक अक्षर एक मंत्र है,प्रत्येक वनस्पति एक औषधि है,और प्रत्येक मनुष्य एक अपना गुण रखता है,आवश्यकता पहिचानने वाले की होती है”,’ ग्रहाधीन जगत सर्वम”,विज्ञान की मान्यता है कि सूर्य एक जलता हुआ आग का गोला है,जिससेसभी ग्रह पैदा हुए है,गायत्री मन्त्र मे सूर्य को सविता या परमात्मा माना गया है,रूस के वैज्ञानिक “चीजेविस्की” ने सन १९२० में अन्वेषण किया था,कि हर ११ साल में सूर्य में विस्फ़ोट होता है,जिसकी क्षमता १००० अणुबम के बराबर होती है,इस विस्फ़ोट के समय पृथ्वी पर उथल-पुथल,लडाई झगडे,मारकाट होती है,युद्ध भी इसी समय मे होते है,पुरुषों का खून पतला हो जाता है,पेडों के तनों में पडने वाले वलय बडे होते है,श्वास रोग सितम्बर से नबम्बर तक बढ जाता है,मासिक धर्म के आरम्भ में १४,१५,या १६ दिन गर्भाधान की अधिक सम्भावना होती है.इतने सब कारण क्या ज्योतिष को विज्ञान कहने के लिये पर्याप्त नही है?

दान करना वहुँत अच्छा वात है पर दान हमेशा फलदायी हो ऐसा नहीं है। शास्त्रों में भी अतिदान वर्जित माना गया है। दान के कारण ही कर्ण, बलि आदि महान हुए लेकिन गलत वस्तु के दान से उन्हें नुक्सान भी भुगतना पड़ा। लाल किताब के अनुसार इन स्थितियों में दान नहीं करना चाहिए-जातक की कुंडली में जो ग्रह उच्च का है उससे सम्बन्धित दान नहीं देना चाहिए। नीच ग्रह से सम्बन्धित दान कभी लेना नहीं चाहिए यदि गुरु सप्तम भाव में हो तो साधु या धर्म स्थल के पुजारी को नए कपड़ों का दान नहीं करना चाहिए, इससे संतान पर बुरा असर पड़ता है। जिस जातक की कुंडली में चंद्रमा छठे घर में हो तो उसे आम जन के लिए कुआं, तालाब के लिए दान नहीं देना चाहिए। यदि चंद्रमा बारहवें घर में हो तो भिखारियों को नित्य भोजन न कराएं, समयांतराल में कर सकते हैं। ऐसा करने से स्वास्थ्य में गिरावट आ सकती है। यदि शुक्र भाग्य भाव में हो तो ऐसे जातक को पढ़ाई के लिए छात्रवृति, पुस्तकें व दवा के लिए पैसे दान नहीं करने चाहिएं (पुस्तकें व दवा दी जा सकती है)। यदि शनि अष्टम भाव में हो तो ऐसे जातक को किसी के लिए मुफ्त प्रयोगार्थ आवास का निर्माण नहीं कराना चाहिए। शनि लग्न में व गुरु पंचम भाव में हो तो ऐसे जातकों को कभी भी ताम्बे का दान नहीं करना चाहिए, अशुभ समाचार प्राप्त होते हैं। हालांकि दान देने में कोई मनाही नहीं है लेकिन कुछ बातों का ध्यान रखते हुए वर्जित वस्तुओं का दान करने से बचना चाहिए।

लाल का किताब के अनुसार मंगल शनि

मंगल शनि मिल गया तो - राहू उच्च हो जाता है -              यह व्यक्ति डाक्टर, नेता, आर्मी अफसर, इंजीनियर, हथियार व औजार की मदद से काम करने वा...