शनिवार, 28 नवंबर 2020

चंद्र ग्रहण Chandra Grahan (Lunar Eclipse) 30 November 2020


मित्रों साल 2020 का आखरी चंद्रगहण 30 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा के दिन लगने जा रहा है. साल 2020 का आखरी चंद्रगहण 30 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा के दिन लगने जा रहा है. वैसे  30 नवंबर के दिन दोपहर 1.04 बजे से ग्रहण लगना शुरू होगा और 5.22 मिनट कर रहेगाजबकि, इस बीच दोपहर 3 बजकर 13 मिनट पर यह चरम पर होगा. उपछाया ग्रहण कुल 04 घंटे 18 मिनट 11 सेकंड तक   दिखेगा कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि यानी  सोमवार लगने वाला चंद्र ग्रहण रोहिणी नक्षत्र और वृषभ राशि में लगेगा.30 नवंबर को पड़ने वाला ग्रहण उपच्छाया चंद्र ग्रहण है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार उपच्छाया चंद्र ग्रहण का कोई सूतक काल नहीं होगा यह चंद्र ग्रहण उपछाया चंद्र ग्रहण है जो भारत में दिखाई नहीं देगा. शास्त्रों में उपछाया चंद्र ग्रहण को ग्रहण नहीं माना जाता है. इसलिए ना तो यहां सूतक काल माना जाएगा और ना ही किसी तरह के कार्यों पर पाबंदी होगी. हालांकि नक्षत्र और राशि में लगने का असर जातकों पर जरूर पड़ेगा. ये ग्रहण वृषभ राशि में लगेगा मित्रों ग्रहण के दौरान नकारात्मक शक्तियां ज्यादा हावी रहती हैं, मित्रों हमारी जन्म कुंडली के अंदर भी ग्रहण दोष पाया जाता है अतः इस चंद्रग्रहण पर हम उसके उपाय करके उस दोष को उसके द्वारा दी जाने वाली पीड़ा को कम कर सकते हैं मित्रों अगर कुंडली में चंद्र ग्रहण हो तो उसके कई दुष्परिणाम बुरे प्रभाव हमें देखने को मिलते यह दोष भाग्य कमजोर कर देते है ,बहुत ख़राब कर देते है लाइफ में हर चीज़ संघर्ष से बनती है या संघर्ष से मिलती है  हमारे चन्द्र ग्रह से वाहन का सुख सम्पति का सुख विशेष रूप से माता और दादी का सुख और घर का रूपया पैसा और मकान आदि सुख देखा जाता है. जन्म कुंडली में यदि चन्द्र राहू या केतु के साथ आ जाये तो वे शुभ फल नहीं देता है.ज्योतिष ने इसे चन्द्र ग्रहण माना है, यदि जन्म कुंडली में ऐसा योग हो तो चंद्रमा से सम्बंधित सभी फल नष्ट हो जाते है माता को कष्ट मिलता है घर में शांति का वातावरण नहीं रहता जमीन और मकान सम्बन्धी समस्या आती है.चन्द्र ग्रहण योग की अवस्था में जातक डर व घबराहट महसूस करता है,चिडचिडापन उसके स्वभाव का हिस्सा बन जाता है,माँ के सुख में कमी आती है, कार्य को शुरू करने के बाद उसे अधूरा छोड़ देना लक्षण हैं, फोबिया,मानसिक बीमारी, डिप्रेसन ,सिज्रेफेनिया,इसी योग के कारण माने गए हैं, मिर्गी ,चक्कर व मानसिक संतुलन खोने का डर भी होता है.
.इसी प्रकार जब चंद्रमा की युति राहु या केतु से हो जाती है तो जातक लोगों से छुपाकर अपनी दिनचर्या में काम करने लगता है . किसी पर भी विश्वास करना उसके लिए भारी हो जाता है .मन में सदा शंका लिए ऐसा जातक कभी डाक्टरों तो कभी पण्डे पुजारियों के चक्कर काटने लगता है .अपने पेट के अन्दर हर वक्त उसे जलन या वायु गोला फंसता हुआ लगता हैं .डर -घबराहट ,बेचैनी हर पल उसे घेरे रहती है .हर पल किसी अनिष्ट की आशंका से उसका ह्रदय कांपता रहता है .भावनाओं से सम्बंधित ,मनोविज्ञनससम्बंधित ,चक्कर व अन्य किसी प्रकार के रोग इसी योग के कारण माने जाते हैं 
कुंडली चंद्रमा यदि अधिक दूषित हो जाता है तो मिर्गी ,पागलपन ,डिप्रेसन,आत्महत्या आदि के कारकों का जन्म होने लगता हैं । चूँकि चंद्रमा भावनाओं का प्रतिनिधि ग्रह होता है .इसकी राहु से युति जातक को अपराधिक प्रवृति देने में सक्षम होती है ,विशेष रूप से ऐसे अपराध जिसमें क्षणिक उग्र मानसिकता कारक बनती है . जैसे किसी को जान से मार देना , लूटपाट करना ,बलात्कार आदि .वहीँ केतु से युति डर के साथ किये अपराधों को जन्म देती है . जैसे छोटी मोटी चोरी .ये कार्य छुप कर होते है,किन्तु पहले वाले गुनाह बस भावेश में खुले आम हो जाते हैं ,उनके लिए किसी विशेष नियम की जरुरत नहीं होती .यही भावनाओं के ग्रह चन्द्र के साथ राहु -केतु की युति का फर्क होता है  मित्रों आप की कुंडली में भी चंद्र ग्रहण दोष है तो आप मुझसे या किसी अच्छै astrologer से मिलकर  उपाय करें यह आपके लिऐ अच्छा होता https://youtu.be/bV7kSwr8i3wकुछ उपाय मैंने अपने पुराने यूट्यूब वीडियो में बताएं थे जिसका लिंक में जहां दे रहा हूं उसकोopen करके सूने  उसको करके आप लाभ उठा सकते हैं  

गुरुवार, 26 नवंबर 2020

प्रकृति अनुसार मकान की बनावट और वास्तु

www.acharyarajesh.in

प्रकृति अनुसार मकान की बनावट और वास्तु
आज की दुनिया में, हम में से हर एक सफल और शक्तिशाली होने की दौड़ में है। सकारात्मक ऊर्जा और सहयोगी घर  कार्यस्थल से ईंधन की जा रही एक आनंदित और सफल जीवन की महत्वपूर्ण अवधियां हैं। और यहां, वास्तु एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस क्षेत्र में किए गए वैज्ञानिक अध्ययन ने यह साबित किया है कि सकारात्मक परिवेश और अच्छे वाइब्स व्यक्तियों की सफलता के लिए अधिकतम योगदान करते हैं। हालांकि ज्यादातर लोग असंतोष और दुःख के लिए अपने सितारों को दोषी मानते हैं; आपके असफल जीवन की ओर काम करने वाली अन्य शक्तियां हैं जो आपको मानसिक तनाव और बुरे स्वास्थ्य का कारण देती हैं जब आप वास्तु सिद्धांतों के खिलाफ जाते हैं वास्तु शास्त्र, ऊर्जा, सौर ऊर्जा, चंद्र ऊर्जा, तापीय ऊर्जा, चुंबकीय ऊर्जा, प्रकाश ऊर्जा, और पवन ऊर्जा से वातावरण से आने वाली विभिन्न ऊर्जा पर आधारित है। इन ऊर्जा को शांति, समृद्धि और सफलता बढ़ाने के लिए संतुलित किया जा सकता है यदि घर वास्तु सिद्धांतों के अनुसार किया जाता है, तो  जीवन में सभी सुख का आनंद होता है, लेकिन अगर यह सिद्धांतों के खिलाफ है, तो यह सभी प्रकार की समस्याओं, चिंताओं और बेचैनी का स्थान होगा। वास्तु ने धरती, जल, वायु, अग्नि और आकाश के पांच तत्वों से जुड़े प्रकृति की विभिन्न शक्तियों के परस्पर क्रिया को माना और इन तत्वों को प्रभावित करने, मार्गदर्शन करने और मनुष्यों के न केवल मनुष्यों की जीवित शैलियों को बदलने के लिए प्रयास किया, लेकिन पृथ्वी पर रहने वाले हर जीव वास्तु को सुधारने के लिए स्वयं करें, हम सभी अपने घरों की देखभाल करते हैं और समय, प्रयास और पैसा खर्च करते हैं, उन्हें और अधिक आरामदायक बनाने की कोशिश करते हैं। एक बार घर का निर्माण हो जाने पर, संरचनात्मक परिवर्तन करना इतना आसान नही कहावत है कि "कमाना हर किसी को आता है खर्च करना किसी किसी को आता है",शरीर और मकान की रूपरेखा को समझना और सजाना संवारना एक जैसा ही है। आज के जमाने में जब व्यक्ति को एक समय का भोजन जुटाना भारी है उसके बाद मकान का बन्दोबस्त करना कितनी टेढी खीर होगी इसका अन्दाज एक मध्यम वर्गीय परिवार आराम से लगा सकता है। हाँ उन लोगों को कोई फ़र्क नही पडता है जिनके बाप दादा कमा कर रख गये है और वे अपने जीवन में मनमाने तरीके से खर्च कर रहे है,लेकिन उनकी औलादों के लिये भी सोचना तो पडेगा ही। मकान बनाने के लिये जीवन की गाढी कमाई को प्रयोग में लेना पडता है,उस गाढी कमाई को अगर समझ बूझ कर खर्च नही किया तो वह एक दिन अपने ही कारण से रोना बन कर रह जाती है। मकान का ढांचा इस प्रकार से बनाना चाहिये कि वह किसी भी तरह के बोझ को टआराम से सहन कर ले। जून की गर्मी हो या अगस्त की बरसात अथवा दिसम्बर का जाडा,सभी ऋतुओं की जलवायु को मकान का ढांचा सहन कर लेता है तो वह आराम से निवास करने वालों के लिये दिक्कत वाला नही होता है। प्रकृति के नियम के अनुसार अक्सर जाडे में बनाये हुये मकान गर्मी में अपनी बनावट में परिवर्तन करते है,अक्सर भारत के मध्य में जो मकान गर्मी में बन जाते है वे दिसम्बर में अपने अन्दर बदलाव करते है। मकान का ढांचा अपने स्थान से कुछ ना कुछ घटता है,इस घटाव के कारण अगर मकान का ढांचा बनाकर फ़टाफ़ट पलस्तर कर दिया गया है और उसके बाद फ़टाफ़ट रंग रोगन कर दिया गया है तो वह कहीं ना कहीं से चटक दिखायेगा जरूर,मकान की चटक किसी भी तरह से रंग रोगन के बाद दबाने से नही दबती है,वह अगली साल में अपनी फ़िर से रंगत दिखा देती है और अच्छा पैसा लगाने के बाद भी समझ में नही आता है कि मकान की चटक को कैसे दबाया जाये। अक्सर बडे बडे कारीगर और मकान का निर्माण करने वाले कह देते है कि मकान ने सांस ले ली है। भूतकाल में जो मकान बनाये जाते थे,वे धीरे धीरे बनाये जाते थे,जैसे जैसे हाथ फ़ैलता था मकान का निर्माण कर लिया जाता था,और जब मकान धीरे धीरे बनता था जो लाजिमी है कि मकान का पहले ढांचा बनता था फ़िर कुछ समय बाद पलस्तर होता था उसके बाद महीनो या सालों के बाद उसके अन्दर रंग रोगन किया जाता था। वे मकान आज भी सही सलामत है कोई उनके अन्दर दरार या कमी नही मिलती है। किसी प्रकार से वास्तु का प्रभाव भी होता था तो उसे समय रहते बदल दिया जाता था,लेकिन आज के भागम भाग युग में हर कोई आज ही मकान बनाकर उसके अन्दर ग्रह-प्रवेश कर लेना चाहता है। कई मंजिला मकान बनाने के लिये जो ढांचा बनाना पडता है उसके लिये पहले जमीन में जाल भरा जाता है,उस जाल को भरने के बाद बीम भरे जाते है,उन बीमों को भरने के बाद कुछ समय के लिये उन्हे छोड दिया जाता है,उसके बाद उनकी कार्य लेने की गति के अनुसार बाकी का साज सज्जा वाला काम किया जाता है। बीम के अन्दर या जाल के अन्दर जो सरिया सीमेंट बजरी और रोडी आदि प्रयोग में ली जाती है उसे मानक दंडों से माप कर ही प्रयोग में लाया जाता है,बडे बडे जो पुल बनाये जाते है उनके अन्दर भले ही दो इन्च की जगह रखी जाये लेकिन जगह जरूर छोडी जाती है,जिससे गर्मी के मौसम में अगर बीम अपने स्थान से बढता है तो वह अपनी जगह पर ही बना रहे,नीचे नही गिरे,जैसे रेलवे लाइनों के बीच में जगह छोडी जाती है,उसी प्रकार से घर बनाने के समय डाले गये बीम में किसी ना किसी प्रकार की जगह छोडी जाती है,इसके अलावा गर्मी और सर्दी का असर देखने के लिये रोजाना की तराई भी अपना काफ़ी काम करती है,जून के महिने में अगर मकान को बनाया जाता है तो रोजाना की जाने वाली पानी की तराई उस लगे हुये सीमेंट और सरिया के अन्दर अपना घटाने और बढाने वाला औसत बनाने के लिये काफ़ी अच्छा माना जाता है,तराई करते वक्त सीमेंट बजरी और सरिया रोडी अपने स्थान से सिकुडते भी है और पानी की तरावट पाकर सीमेंट अपने अन्दर पानी के बुलबुलों से जगह भी बनाता है,इस प्रकार से दिवाल में एक फ़ोम जैसा माहौल बन जाता है जो किसी भी मौसम में उसी प्रकार से काम करता है जैसे फ़ोम को दिशा के अनुसार घटाया बढाया जा सकता है। यह ध्यान रखना चाहिये कि मकान का झुकाव हमेशा ईशान की तरफ़ होता है,कितनी ही डिग्री को संभाल कर बनाया जाये लेकिन कुछ समय उपरान्त मकान ईशान की तरफ़ कुछ ना कुछ डिग्री में झुकेगा जरूर,इसका कारण सूर्य की गर्मी वाली किरणें शाम के साम पश्चिम दिशा की तरफ़ से पडती है और रात हो जाने के बाद ईशान दिशा सबसे पहले ठंडी हो जाती है,गर्मी हमेशा ठंड की तरफ़ भागती है,इसी प्रक्रिया के कारण मकान का झुकाव ईशाव की तरफ़ हो जाता है।

मंगलवार, 24 नवंबर 2020

वास्तुशास्त्र के नियम

https://wp.me/p8Sg50-1Rv
वास्तु के इन नियमों को मानकर परिवार में सुख, शांति और व्यापारिक संस्थानों को श्रीसमृद्धि से युक्त बनाया जा सकता है।कहावत है कि आधा भाग्य मनुष्य का और आधा भाग्य रहने वाले स्थान का काम करता है,अगर किसी प्रकार से मनुष्य का भाग्य खराब हो जावे तो रहने वाले घर का भाग्य सहारा दे देता है,और जब घर का भाग्य भी खराब हो और मनुष्य का भाग्य भी खराब हो जावे तो फ़िर सम्स्या पर समस्या आकर खडी हो जाती है और मनुष्य नकारात्मकता के चलते सिवाय परेशानी के और कुछ नही प्राप्त कर पाता है.मैने अपने वीस साल के ज्योतिषीय जीवन में जो अद्भुत गुर वास्तु के स्वयं अंजवाकर देखे है,और लोगों को बता कर उनकी परेशानियों का हल निकालने में सहायता दी है,यह कोई ढकोसला या प्रोप्गंडा नही है.
वास्तु क्या है
कम्पास को देखने के बाद और पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव के बारे में सभी जानते है,कम्पास की सुई हमेशा उत्तर की तरफ़ रहती है,कारण खिंचाव केवल सकारात्मक चुम्बकत्व ही करता है और विपरीत दिशा में धक्का देने का काम नकारात्मक चुम्बकत्व करता है,कभी आपेन चुम्बक को देखा होगा,उसकी उत्तरी सीमा में लोहे को ले जाते ही वह चुम्बक की तरफ़ खिंचता है और नकारात्मक सीमा में ले जाते ही वह चुम्बक विपरीत दिशा की तरफ़ धक्का देता है,उत्तरी ध्रुव पर सकारात्मक चुम्बकत्व है,और दक्षिणी ध्रुव की तरफ़ नकारात्मक चुम्बकत्व है,उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव की तरफ़ लगातार बिना किसी रुकावट के प्रवाहित होती रहती है,यही जीवधारियों के अन्दर जो जैविक करेन्ट उपस्थित होता है,वह इस प्रवाहित होने वाले चुम्बकीय प्रभाव से अपनी गति को बदलता है,सकारात्मक प्रभाव के कारण दिमाग में सकारात्मक विचार उत्पन्न होते है और नकारात्मक प्रभाव के कारण नकारात्मक प्रभाव पैदा होते है.
सकारात्मकता के होते भी नकारात्मक प्रभाव
मनुष्य शरीर के पैर के तलवे,और हाथों की हथेलियां दोनो ही शरीर के करेंट को प्रवाहित करने और सोखने के काम आती हैं,हाथ मिलाना भी एक ऊर्जा को अपने शरीर से दूसरे के शरीर में प्रवाहित करने की क्रिया है,चुम्बन लेना और देना भी अत्यन्त प्रभावशाली ऊर्जा को प्रवाहित करने और सोखने का उत्तम साधन है,बिना चप्पल के घूमना शरीर की अधिक सकारात्मक ऊर्जा को ग्राउंड करने का काम है जबकि लगातार चप्पल पहिन कर और घर में रबर का अधिक प्रयोग करने पर व्यक्ति अधिक उत्तेजना में आ जाता है,और नंगे पैर रहने वाला व्यक्ति अधिकतर कम उत्तेजित होता है.नकारात्मक पभाव का असर अधिकतर स्त्रियों में अधिक केवल इसलिये देखने को मिलता है कि वे अपने निवास स्थान में नंगे पैर अधिक रहना पसम्द करती है,और जो स्त्रियां पुरुषॊ की तरह से चप्पले या जूतियां पहना करती है वे सकारात्मक काम करना और सकारात्मक बोलना अधिक पसंद करती है.सूर्य सकरात्मकता का प्रतीक है,सूर्योदय के समय जो प्रथम किरण निवास स्थान में प्रवेश करती है,वह ऊर्जा का पूरा असर निवास स्थान में भरती है,और जो भी लोग उस निवास स्थान में रहते है,चाहे वह पशु पक्षी हो या मनुष्य सभी को उसका प्रभाव महसूस होता है.भारत के पुराने जमाने के जो भी किले बनाये जाते थे,उनका सबका सामरिक महत्व केवल इसलिये ही अधिक माना जाता था कि,उनके दरवाजे दक्षिण की तरफ़ ही अधिकतर खुलते थे,मन्दिर जिनके भी दरवाजे दक्षिण की तरफ़ खुलते है,वे सभी मन्दिर प्रसिद्ध है,अस्पताल भी दक्षिण मुखी प्रसिद्ध इसी लिये हो जाते है कि उनका वास्तविक प्रभाव मंगल से जुड जाता है.
साउथ फ़ेसिंग मकान और कार्य स्थलों मे अन्तर
साउथ को मंगल का क्षेत्र कहा गया है,उज्जैन में मंगलनाथ नामक स्थान पर जो मंगल का यंत्र स्थापित है उसकी आराधना करने पर आराधना करने वाले का फ़ेस दक्षिण की तरफ़ ही रहता है,मन्दिर का मुख्य दरवाजा भी दक्षिण की तरफ़ है,मंगल का रूप दो प्रकार का ज्योतिष में कहा गया है,पहला मंगल नेक और दूसरा मंगल बद,मंगल नेक के देवता हनुमानजी,और मंगल बद के देवता भूत,प्रेत,पिसाच आदि माने गये है.इसी लिये जिनके परिवारों में पितर और प्रेतात्मक शक्तियों की उपासना की जाती है,अधिकतर उन लोगों के घर में शराब कबाब और भूत के भोजन का अधिक प्रचलन होता है,जबकि नेक मंगल के देवता हनुमानजी की उपासना वाले परिवारों के अन्दर मीठी और सुदर भोग की वस्तुओं के द्वारा पूजा की जाती है.साउथ फ़ेसिंग मकान में रहने वाले लोग अगर तीसरे,सातवें,और ग्यारहवें शनि से पूरित हैं तो भी वे अच्छी तरह से निवास करते हैं.साउथ फ़ेसिंग भवन केवल डाक्टरी कार्यों,इन्जीनियरिन्ग वाले कार्यों,बूचडखानों,और भवन निर्माण और ढहाने वाले कार्यों, के प्रति काफ़ी उत्साह वर्धक देखे गये हैं,धार्मिक कार्यों का विवेचन करना,पूजा पाठ हवन यज्ञ वाले कार्यों,आदि के लिये भी सुखदायी साबित हुए हैं,टेक्नीकल शिक्षा और बैंक आदि जो उधारी का काम करते हैं,भी सफ़ल होते देखे गये है,गाडियों के गैरेज और वर्कशाप आदि का मुख दक्षिण दिशा का फ़लदायी होता है,होटल और रेस्टोरेंट भी दक्षिण मुखी अपना फ़ल अच्छा ही देते है.
वास्तु के नियमों का विवेचन
कुंडली को देखने के बाद पहले कर्म के कारक शनि को देखने के बाद ही मकान या दुकान का वास्तु पहिचाना जाता है,राहु जो कि मुख्य द्वार का कारक है,को अगर मंगल के आधीन किया जाता है तो वह शक्ति से और राहु वाली शक्तियों से अपने को मंगल के द्वारा शासित कर लिया जाता है,राहु जो कि फ़्री रहने पर अपने को अन्जानी दिशा में ले जाता है,और पता नही होता कि वह अगले क्षण क्या करने वाला है,इस बात को केवल मंगल के द्वारा ही सफ़ल किया जा सकता है.हर ग्रह को समझने के लिये और हर ग्रह का प्रभाव देखने के बाद ही मुख्य दरवाजे का निर्माण उत्तम रहता है,अग्नि-मुखी दरवाजा आग और चोरी का कारक होता है,यह नियम सर्व विदित है,लेकिन उसी अग्नि मुखी दरवाजे वाले घर की मालिक अगर कोई स्त्री है और वह घर स्त्री द्वारा शासित हि तो यह दिशा जो कि शुक्र के द्वारा शासित है,और स्त्री भी शुक्र का ही रूप है,उस घर को अच्छी तरह से संभाल सकती है,लेकिन उस घर में पुरुष का मूल्य न के बराबर हो जाता है,दूसरी विवाहित स्त्री के घर में स्थान पाते ही और उसके पुत्र की पैदायस के बाद ही वह घर या तो बिक जाता है,या फ़िर खाली पडा रहता है,उस घर का पैसा भी स्त्री सम्बन्धी परेशानियों में जिसका शनि और केतु उत्तरदायी होता है,के प्रति कोर्ट केशों और वकीलों की फ़ीस के प्रति खर्च कर दिया जाता है.ईशान दिशा सूर्योदय की पहली सकारात्मक किरण को घर के अन्दर प्रवेश देती है,अगर किसी प्रकार से इस पहली किरण को बाधित कर दिया जाये और उस किरण को जिस भी ग्रह से मिलाकर घर के अन्दर प्रवेश दिया जाता है,उसी ग्रह का प्रभाव घर के अन्दर चालू हो जाता है,पहली किरण के प्रवेश के समय अगर कोई बिजली का या टेलीफ़ोन का खम्भा है,तो पहली किरण केतु को साथ लेकर घर में प्रवेश करेगी,और केतु के 180 अंश विपरीत दिशा में राहु अपने आप स्थापित हो जाता है,यह राहु उस घर को संतान विहीन कर देगा,या फ़िर वहां पर बने किसी भी प्रकार कृत्रिम निर्माण को समाप्त करके शमशान जैसी वीरानी दे देगा,इस बात का सौ प्रतिशत फ़ल आप किसी भी मन्दिर या मीनार की पहली सूर्योदय की किरण के पडने वाले स्थान को देखकर लगा सकते है,उस मंदिर या मीनार के दक्षिण-पश्चिम दिशा में वीराना ही पडा होगा. मित्रों वास्तु विज्ञान का स्पष्ट अर्थ है चारों दिशाओं से मिलने वाली ऊर्जा तरंगों का संतुलन. यदि ये तरंगें संतुलित रूप से आपको प्राप्त हो रही हैं, तो घर में स्वास्थ्य व शांति बनी रहेगी। अत: ढेरों वर्जनाओं में बँधने के बजाय दिशाओं को संत‍ुलित करें तो लाभ मिल सकता है।

शुक्रवार, 20 नवंबर 2020

गुरु शनि का गोचर युति योग।(Jupiter)Guru Transit 2020


मित्रों देव गुरु बृहस्पति अपनी राशि धनु से निकलकर मकर राशि में आ गऐ हैं। जहां पर न्याय के देवता शनिदेव पहले से मौजूद हैं। मकर राशि में शनि और गुरु का आना दो ग्रहों का अद्भत संयोग है। गुरु यहां पर 20 नवंबर से लेकर 6 अप्रैल 2021 तक रहेंगे। मकर और कुंभ राशि शनि देव की राशि है और शनि स्वयं वर्तमान समय में इसी राशि पर गोचर कर रहे हैं ऐसे में बृहस्पति के आ जाने से शनि और गुरु की एक साथ युति फलित ज्योतिष में अप्रत्याशित परिणाम दिलाने वाली सिद्ध होगी।  ज्योतिष शास्त्र के अनुसार गुरु और शनि एक दूसरे प्रति एक समान संबंध रखते हैं। ऐसे में गुरु और शनि का मकर राशि में मिलन कुछ लोगों के लिए अच्छा तो कुछ के लिए अशुभ और कुछ के लिए मिलाजुला रह सकता है। यह सब आपकी अपनी कुंडली पर निर्भर होगा गुरुग्रह के विषय में कहा गया है की जिस प्रकार शरीर में प्राण के निकल जाने पर शरीर मृत हो जाता उसी प्रकार जन्मकुंडली विना गुरु मृतप्राय ही है। जन्मकुंडली में गुरु ग्रह ज्ञान, न्याय दर्शन शास्त्र, विष्णु, ज्योतिष, शिक्षा, इत्यादि का कारक है।  यदि आपकी कुंडली में गुरु उच्च का, अपने घर का, केंद्र या त्रिकोण स्थान में है तो आप अपने जीवन काल में मनोनुकूल सुख सुविधा का उपभोग करेंगे गुरु ग्रह जीव, ज्ञान, धर्म, न्याय, धन, संतान इत्यादि का कारक ग्रह है। जिस जातक की कुंडली में गुरु और शनि कुंडली के बारह भावो में युति होने से फल में भी अंतर आ जाता है।और उस हिसाब से गोचर फल भी उसी तरह जातक को फल देगागुरु-शनि में कई विपरीत समानताएं है।गुरु वृद्धि कारक है तो शनि कमी का कारक है।गुरु की दृष्टि सुखकारक होती है तो शनि की दृष्टि दुःखकारक और शुभ फल में कमी करती है जहां बृहस्पति / गुरु की गणना नैसर्गिक रूप से शुभ ग्रह में होती है, तो वहीं शनि को क्रूर ग्रहों में प्रमुख माना जाता है। यह दोनों ही न्याय के पक्षधर होते हैं और जहां शनि क्रूरता से कर्म फल प्रदान करते हैं, वहीं बृहस्पति देव उदारता का परिचय देते हुए व्यक्ति को सही मार्ग पर आने का रास्ता दिखाते हैं।गुरु और शनि का मिलन होना सम संबंध को दर्शाता है। यानी ये दोनों ही ग्रह एक-दूसरे से किसी प्रकार का बैर नहीं रखते। अर्थात ये किसी प्रकार से एक-दूसरे को नुकसान नहीं पहुंचाते। शनि गुरु का सम्‍मान करते हैं। शनि को कर्मों का देवता माना जाता है, तो वहीं गुर आपके कॅरियर की दशा और दिशा तय करते हैं मित्रों 19 से 20 वर्षों के बाद एक राशि में युति कर संपूर्ण विश्व में बड़े बदलाव लाने के योग बनाते हैं   पिछले 100 वर्षों के इतिहास पर नजर डालें तो द्वितीय विश्व युद्ध में वर्ष 1941 में गुरु-शनि की युति वृष राशि में हुई थी, उस समय अमरीका ने जापान के द्वारा पर्ल हार्बर पर किए हमले के बाद युद्ध में उतर कर निर्णायक रूप से विजय दिलाकर स्वयं के लिए विश्वशक्ति का खिताब अर्जित किया था
   शनि के साथ गुरु की युति भारत और दुनिया के अन्य देशों में बड़े परिवर्तन लाएगी। आपको बता दें कि ये दोनों बड़े ग्रह लगभग 19 से 20 वर्षों के बाद एक राशि में युति कर पुरी दुनिया में बड़े बदलाव लाने के योग बनाते हैं। पिछले 100 वर्षों के इतिहास पर नजर डालें तो द्वितीय विश्व युद्ध में वर्ष 1941 में गुरु-शनि की युति वृष राशि में हुई थी, उस समय अमरीका ने जापान के द्वारा पर्ल हार्बर पर किए हमले के बाद युद्ध में उतर कर निर्णायक रूप से विजय दिलाकर स्वयं के लिए विश्वशक्ति का खिताब अर्जित किया था।
गुरु शनि मकर राशि में चलेंगे साथ, इन्हें रहना होगा सजग, सावधान
भारत-चीन के बीच हुआ था युद्ध
ठीक 20 वर्ष के बाद गुरु-शनि की युति मकर राशि में हुई तब क्यूबा मिसाइल संकट के समय अमरीका और तात्कालिक सोवियत संघ के बीच युद्ध की ठन गयी थी। भारत को तो चीन से उस समय एक भयानक युद्ध का सामना करना पड़ा था। बाद में 1980-81 में गुरु-शनि के महायुति कन्या राशि में बनी, जिसने ईरान और इराक के बीच घमासान युद्ध हुए जिसने में 10 लाख लोगों के प्राण लील लिए।
आर्थिक बदलाव के भी बन रहे हैं योग
वर्ष 2000-01 में गुरु-शनि की युति वृष राशि में हुई, जिसने अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर हमले के बाद पूरे विश्व में उथल-पुथल मचा दी। अब गुरु-शनि की महायुति फिर से हो रही है। इससे पहले इस साल जून तक इन दिनों ग्रहों ने मकर राशि में मिलकर पूरी दुनिया को कोरोना संकट में उलझा रखा और बड़ी संख्या में जन-धन की हानि करवाई। अब इन दिनों ग्रहों के संयोग से दुनिया के कई देशों में राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक बदलाव के योग बन रहे हैं।
पाकिस्तान और मध्य-एशिया में मच सकती है बड़ी उथल-पुथल बृहत संहिता के अनुसार मकर राशि का प्रभाव क्षेत्र पंजाब, सिंध, गांधार और यवन देश तक माना जाता है। आधुनिक परिपेक्ष में इसे देखें तो मकर राशि के प्रभाव में वर्तमान उत्तर भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान आता है। मकर राशि में होने वाली शनि-गुरु की यह महायुति हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान के  वहां अगले वर्ष सत्ता परिवर्तन के लिए बड़े जन-आंदोलन करवा सकती है। शनि-गुरु की यह युति  भारत की  धार्मिक उन्माद को बढ़ा सकती है। सामान नागरिक कानून, राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर और नागरिकता संशोधन कानून का विवाद अगले वर्ष के आरंभ में बड़ा मुद्दा बना सकता है, इसके लिए जन-आंदोलन भी हो सकता है। ईरान और मध्य-एशिया में कोरोना महामारी एवं आर्थिक-मंदी से परेशान जनता सत्ता पक्ष के विरुद्ध उठ खड़ी हो सकती है।शनि को ज्योतिषशास्त्र में कृषक और मजदूर भी कहा जाता है। शनि खेती-बाड़ी, पशुपालन और छोटी नौकरी का कारक ग्रह है। मकर राशि में शनि के साथ शुभ ग्रह गुरु की महायुति जैविक कृषि और अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में प्रगति लेकर आएगी। शनि और गुरु की यह युति मकर राशि में पहले उत्तराषाढ़ा नक्षत्र और बाद में श्रवण नक्षत्र में होगी जिनके प्रभाव क्षेत्र में बड़े नेता, उद्योगपति, धर्मगुरु, धार्मिक जन, पहलवान, खिलाडी, पेड़-पौधे और वनस्पति आदि आते हैं। शनि और गुरु की युति के समय अगले 4 माह में इन क्षेत्रों से जुड़े लोगों को कष्ट और परेशानी हो सकती है। शनि-गुरु की महायुति के समय राहु के वृष राशि में होने के कारण दुनिया के कई देशों में धर्म के नाम पर लोग आंदोलन भी कर सकते हैं।

बुधवार, 18 नवंबर 2020

कैसे काम करते हैं ज्योतिषय उपाय

कैसे काम करते हैं ज्योतिषय उपाय

मित्रों अक्सर कुछ लोगों को कहते सुना है की भाग्य में जो लिखा है वो होकर रहेगा उसे कोई टाल नही सकता यानी हम कुछ करे या न करे होनी है तो वो होकर ही रहेगी  तो फिर ज्योतिषय उपाय करने से क्या होगा क्या हमारी क़िस्मत वदल सकती हे। मित्रों हमारे ऋषियों-मुनियों ने अपने चिन्तन द्वारा यह प्रमाणित किया है कि मनुष्य के जीवन में कर्म का स्थान अत्यन्त महत्वपूर्ण है। प्राणियों का सम्पूर्ण जीवन तथा मरणोत्तर जीवन कर्म-तन्तुओं से बंधा हुआ है। कर्म ही प्राणियों के जन्म, जरा, मरण तथा रोगादि विकारों का मूल है। दर्शन भी जन्म और दु:खों का हेतु कर्म को ही स्वीकार करता हैं। संसार के समस्त भूत, भविष्य एवं वर्तमान घटनाओं का सूत्रधार यह कर्म ही हैं। आस्तिक दर्शनों में तो यहाँ तक कहा गया है कि कर्म के भूभंगमात्र से ही सृष्टि एवं प्रलय होते हैं।
ग्रह, नक्षत्र, तारागणों की स्थिति, गति और विनाश भी कर्माधीन ही है। भगवान शंकर के घर में अन्नपूर्णा जी है तथापि भिक्षाटन करना पड़ता है। यह कर्म की ही विडम्बना हैं। जन्मान्तर में उपार्जित कर्त से ही जीवात्मा को शरीर धारणा करना पडता हैं। जन्म प्राप्त कर वह नित्य नये कर्मो को करता रहता है। जो उसके आगले जन्म का कारण बन जाते है। इस प्रकार कर्म से जीवात्मा की तथा जीवात्मा से ही पुन: कर्म की उत्पत्ति होती है। यदि पूर्वजन्म में कर्मो का सम्बन्ध न माना जाय तब नवजात शिशु के हस्त-पाद-ललाट आदि में शंख, चक्र, मत्स्य आदि चिन्ह कैसे आ जाते हैं। स्वकृत कर्म के कारण ही ग्रह-नक्षत्रज्ञदि जन्म कुण्डली में तत्तह स्थानों में अवस्थित होकर अनुकूल-प्रतिमूल फलदाता बन जाते है। तब जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि कर्म एवं ग्रह-दोनों कैसे सुख-दु:ख के हेतु हो सकते है। उत्तर होगा-सुख दु:खात्मक फल का उपादानकारण कर्म है, जबकि ग्रह-नक्षत्रादि निमित्त कारण हैं।कर्मो ने अनुसार ही जातकों की ग्रहस्थितियाँ बनती हैं। कर्मो से कुछ कर्म दृढ़ होते है, कुछ अदृढ़ तथा कुछ दृढ़ा दृढ़। इन कर्मफलों की व्याख्या करते हुए आचार्य श्रीपति कहते है कि विंशोत्तरी आदि दशओं द्वारा दृढ़ कर्मफलों का ज्ञान, अष्टकवर्ण तथा गोचर द्वारा अदृढ़ कर्मफलों का ज्ञान होता है, जबकि नाभसादि योगो द्वारा दृढ़ादृढ़ कर्मफलों का ज्ञान फलित ज्योतिष द्वारा जाना जाता हैं।और उसके अनुसार उपाय जैसे हलवा बनाते समय चीनी या घी की मात्रा यदि कम हो या फिर पानी अधिक या कम हो तो उसे ठीक किया जा सकता है। पर हलवा पक जाने पर उसे फिर से सूजी में नहीं बदला जा सकता। मट्ठा यदि अधिक खट्टा हो, उसमें दूध या नमक मिलाकर पीने लायक बनाया जा सकता है। पर उसे वापस दूध में बदला नहीं जा सकता। प्रारब्ध कर्म बदले नहीं जा सकते। कुंडली या इसके ग्रहों की स्थिति को बदला नहीं जा सकता है। लेकिन हम ग्रह परिवर्तन, दशा और गोचर का लाभ उठा सकते हैं। ये सभी समय के साथ बदलते रहते हैं। और यहीं से हमारे कर्मों की भूमिका सामने आती है। हमारे वर्तमान जीवन के कर्म हमारे हाथ से बदले या प्रतिबंधित किये जा सकते हैं ! और यही एक जातक जहाँ एक कुशल ज्योतिषी से सही समय सलाह ले ज्योतिषी के मार्गदर्शन से फर्क पड़ सकता है।
 ज्योतिष हमारी कुंडली के विभिन्न पहलुओं को एक-दूसरे के पिछले जन्म और उसमें संचित कर्म के साथ सह-संबंधित करता है। पिछले जन्म के कर्म हमारी जन्मकुंडली का निर्माण करते हैं और जन्म कुंडली  हमारे पिछले जन्म कर्म अच्छे या बुरे  का बहुत स्पष्ट और निश्चित प्रतिबिंब होता  हैं !हम सकारात्मक रूप से रखे गए ग्रहों (सकारात्मक पूर्वा जन्म कर्म, या सकारात्मक पिछले जन्म कर्म) के लाभों का आनंद लेते हैं और कुंडली में नकारात्मक रूप से रखे गए ग्रहों (नकारात्मक पूर्व जन्म कर्म, या नकारात्मक पिछले जन्म कर्म) के लिए भुगतान करते हैं ! और हम तब तक आनंद लेते रहते हैं या तब तक पीड़ित रहते हैं जब तक कि पिछले जीवन से अर्जित शेष राशि समाप्त नहीं हो जाती। लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती है, इसमें थोड़ा मोड़ है जिसे कर्म सुधार कहा जाता है। याद रखें ज्योतिषीय उपाय आपके जीवन से समस्याओं को पूरी तरह से दूर नहीं करेंगे, लेकिन आपको इसके प्रभाव से राहत दिला सकते हैं। हैरानी की बात है, ज्योतिष न केवल भाग्य के बारे में जीवन के पहलुओं की भविष्यवाणी करता है, बल्कि यह वास्तव में जीवन को सुधारनेक और परेशानियों का हल निकालने में भी मदद कर सकता है। बहुत से लोग ज्योतिष और ज्योतिषियों से इस समस्या को पूरी तरह से जड़ से मिटाने की उम्मीद करते हैं। दुर्भाग्य से, वे मनुष्य भी हैं और किसी व्यक्ति की नियति को बदल नहीं सकते हैं। वे केवल मार्गदर्शन प्रदान कर सकते हैं, समस्याओं को ट्रैक कर सकते हैं, इसके प्रभाव का विश्लेषण कर सकते हैं और अपने जीवन में इसके प्रभाव को कम करने के लिए उन्हें हल करने में मदद कर सकते हैं।

गुरुवार, 12 नवंबर 2020

दिवाली पर खास तंत्र शक्ति साघना घन की देवी लक्ष्मीसाघना

दिवाली पर खास तंत्र शक्ति साघना घन की देवी लक्ष्मीसाघना
दीपावली की रात तंत्र की महारात्रि होती है। दिवाली पर तंत्र और तांत्रिक वस्तुओं का महत्व कुछ खास ही माना जाता है। दिवाली की रात वैसे भी अमावस्या होती है। और अमावस्या को वैसे भी बहुत रहस्यमयी माना जाता है। दिवाली का पर्व विशेष रूप से शाक्तों का पर्व है। शाक्त यानि तांत्रिक,ये वे होते हैं जो विभिन्न दस महाविद्याओं या महाशक्तियों में से किसी एक की उपासना करते हैं।
ये दीपावली की रात को शाक्त शक्ति का विशेष रूप से आवाहन करते हैं, ताकि पूजा करके अपनी शक्तियों को बढ़ा सकें।इसदिन सन्यासी-अघोरी लोग परा शक्तियों को सिद्ध कर विजय हासिल करते है। मित्रो वैज्ञानिक चांद से लेकर मंगल तक पहुंच गए, लेकिन तंत्र-मंत्र की गुप्त विद्या उन्हे विचार करने के लिए विवश कर देती है।
इसका बानगी दीपावली की रात्रि दिखाई देता है। जब कई संपन्न परिवार के सदस्य अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए तंत्र विद्या का सहारा लेते है। :


दिवाली के अमावस्या वाली काली रात्रि तांत्रिकों के लिए एक सर्वश्रेष्ठ अवसर है। इसे जिंदगी का वह अमिट तांत्रिक पन्ना भी माना जाता है। वहीं तंत्र की देवी माता काली जिनके आशीर्वाद के बिना कोई भी तांत्रिक अनुष्ठान अधूरा है। वे ही मां काली इस दिन अपने तांत्रिक भक्तों की इस काली भयावह रात्रि में परीक्षा लेती हैं। संसार की रचना के साथ ही कई चीजों का अविष्कार हुआ है। जैसे-जैसे मनुष्य ने उन्नति की अपने स्वार्थं, पुरुषार्थं, परोपकार के लिए कुछ न कुछ खोजता रहा, ये जिज्ञासा संसार में सदैव प्रबल रही है। कई ऐसे सिद्धिप्रद मुहुर्तं होते हैं जिनमें तंत्रशास्त्र में रुचि लेने वाले तथा इसके प्रकांड ज्ञाता तंत्र-मंत्र की सिद्धि, प्रयोग, व अनेक क्रियाएं करते हैं। इन मुहूर्तों में सर्वांधिक प्रबल महूर्तं हैं धनतेरस, दीपावली की रात, दशहरा, नवरात्र व महाशिवरात्री। इसमें दीपावली की रात्र को तंत्रशास्त्र की महारात्रि कहा जाता है। मित्रों ! तंत्र के अनुसार '' जपात सिद्धि जपात सिद्धि जपात सिंह न संशय:है !जाप से सिद्धि प्राप्त हो सकती है और बिना जप के सिद्धि संभव हो नहीं सकती है ! इसलिए तंत्र मार्ग में मन्त्र को चैतन्य करने के लिए मंत्र जाप के अनेक उपाय बतलाये गए हैं ! दीपावली की रात भी हम पहले मन्त्र जप और बाद में तांत्रिक हवन करते हैं ! दीपावली की रात अमावस की रात जब दूर दूर तक प्रकाश का नाम नहीं होता है ,उस रात तांत्रिक,अघोरी,ओघढ़ या कोई अन्य साधक सिद्धि के लिए जप कर रहा होता है ! रात जितनी काली अर्थात गहरी होती है सिद्धि का सवेरा उतना ही समीप होता है ! क्योंकि अति ही अंत को दर्शाती है ! कार्तिक मास की अमावस्या की रात इसी बात की पुष्टि करती है की साधना की भोर ( प्रात: ) होने को है ,साधकों जागो !बहुत सो लिए ,बहुत जला लिए मिटटी के दिए अब साधना का समय आ गया है ,सिद्घी के लिए प्रयत्न करो ! दीपावली का दिया तो केवल एक रात जलेगा और फिर बुझ जायगा परन्तु सिद्धि का साधना का दिप तो सदेव जलेगा ! यदि यह एक बार जल गया तो सब मिल जायगा फिर कोई अँधेरा नहीं,फिर कोई भटकाव नहीं फिर हर दिन और हर रात दिवाली होगी ! वैसे भी दीप तांत्रिक साधना में बहुत महत्व रखता है अगर दीपों का पर्व दीपावली हो तो फिर कहना क्या ? दीप अग्नि का प्रतीक है ! साधना के समय दीप अवश्य जलाया जाता है ! तंत्र शास्त्रों के अनुसार दीप का प्रयोग विधान के अनुसार करना चाहिए ! दीप दान से 'षट्कर्म ' साधना सरल हो जाती है ! दीपावली की रात में साधना कुछ विशेष मन्त्रों से करनी चाहए ! दिवाली की रात वाम मार्गी साधना ,कापालिक, पाशुपत, वीर शैव,जंगम शैव, सिद्धांत ,रोद्र, भैरव साधना करने का चलन है !ये हैं दस महाविद्याएं या महाशक्तियां:
1. महाकाली 2. मां तारा 3. मां षोडशी 4. मां भुवनेश्वरी 5. मां छिन्नमस्तिका 6. मां त्रिपुर भैरवी 7. मां धूमावती 8. माता श्री बगलामुखी 9. मां मातंगी 10. मां कमला

माना जाता है कि इन महाविद्याओं की श्रृद्धापूर्वक साधना करने से सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं। आत्म-ज्ञान बढ़ता है, अलौकिकता आती है मां कालीने तो मेरा परिचय दीपावली की रात '' भैरवी चक्र और चोली चक्र '' से कराया था ! ये साधनाए तंत्र की ना केवल गुप्त वरन उच्चतम साधनाएं हैं ! दीपावली की रात तांत्रिक तंत्र गुरु की आज्ञानुसार -अघोर,चीनाचार,विक,प्रत्येविघ्या ,स्पंद और महार्त आदि साधना भी करते हैं ! मित्रों! पुस्तकों के पीछे मत भागो ,वो जानने का प्रयत्न करो जो तांत्रिको के ह्रदय में छुपा है ! जो छुपा है वोही असली तंत्र है जो प्रकाशित है वो तंत्र साहित्य है। कार्तिक अमावस्या की साधना पूजा से सभी विघ्न बाधाएं दूर होने के अलावे सिर्फ धन संपत्ति की प्राप्ति होती ही है। बल्कि रोग, शोक, शक्ति शत्रु का दमन भी होता है। वहीं तंत्र मंत्र सिद्धि करने वालों के लिए यह रात शक्ति प्रदान करती है।, इस दिन यज्ञ, जप की तैयारी कर रहा तो कोई ताबीजों-यंत्रों को सिद्ध करेंगे यानि गणेश-लक्ष्मी पूजन के अलावा तंत्र-मंत्र-यंत्र की सिद्धि भी दीपावली की रात परवान चढ़ेगी।
गृहस्थ लोग भी अपने घरों में लक्ष्मी पूजन के बाद इस तरह की सिद्धि कर सकते हैं सिद्घ मंत्रों व यंत्रों के ताबीज व यंत्र वना सकतें हैं
श्री यंत्र सिद्ध करना सबसे आसान है। इसके लिए पूजन के बाद लक्ष्मी मंत्र-ऊं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्री ह्रीं श्रीं ऊं महालक्ष्म्ये नम: की 11 माला का जाप करें। साथ ही श्री यंत्र की स्थापना कर उसका पूजन करें तो वह सिद्ध हो जाएगा।
इसी प्रकार लक्ष्मी के बीज मंत्र ऊं श्रीं ह्रीं महालक्ष्म्ये नम: की 21 माला कमलगंट्टे अथवा स्फटिक की माला पर जाप करें और दशांश हवन करें तो यंत्र ऊर्जा से भर जाता है। हवन में कमल गंट्टा अथवा कमल पुष्प की आहूति दी जानी चाहिए दीपावली की रात में लक्ष्मी यंत्र, श्री यंत्र, बीसा यंत्र, पंद्रह का यंत्र, हनुमान यंत्र आदि नजर, रक्षा, मुकदमा विजय एवं वशीकरण यंत्र भी इस रात सिद्घ कर सकते हैं मित्रों वर्ष के मान से उत्तरायण में और माह के मान से शुक्ल पक्ष में देव आत्माएं सक्रिय रहती हैं तो दक्षिणायन और कृष्ण पक्ष में दैत्य आत्माएं ज्यादा सक्रिय रहती हैं।

जब दानवी आत्माएं ज्यादा सक्रिय रहती हैं, तब मनुष्यों में भी दानवी प्रवृत्ति का असर बढ़ जाता है इसीलिए उक्त दिनों के महत्वपूर्ण दिन में व्यक्ति के मन-मस्तिष्क को धर्म की ओर मोड़ दिया जाता है।
वहीं ये भी माना जाता है कि अमावस्या के दिन भूत-प्रेत, पितृ, पिशाच, निशाचर जीव-जंतु और दैत्य ज्यादा सक्रिय और उन्मुक्त रहते हैं। ऐसे दिन की प्रकृति को जानकर विशेष सावधानी रखनी चाहिएं। प्रेत के शरीर की रचना में 25 प्रतिशत फिजिकल एटम और 75 प्रतिशत ईथरिक एटम होता है। इसी प्रकार पितृ शरीर के निर्माण में 25 प्रतिशत ईथरिक एटम और 75 प्रतिशत एस्ट्रल एटम होता है। अगर ईथरिक एटम सघन हो जाए तो प्रेतों का छायाचित्र लिया जा सकता है और इसी प्रकार यदि एस्ट्रल एटम सघन हो जाए तो पितरों का भी छायाचित्र लिया जा सकता है।
ज्योतिष में चन्द्र को मन का कारक माना गया है। अमावस्या के दिन चन्द्रमा दिखाई नहीं देता। इस दिन चन्द्रमा नहीं दिखाई देता तो ऐसे में हमारे शरीर में हलचल अधिक बढ़ जाती है। जिस व्यक्ति का ओरा कमजोरहोता है उसकी सोच नकारात्मक वाली हो जाती है उसे नकारात्मक शक्ति अपने प्रभाव में ले लेती है।शेष फिर कभी आचार्य राजेश

दिवाली पर खास तंत्र शक्ति साघना घन की देवी लक्ष्मीसाघना


दीपावली की रात तंत्र की महारात्रि होती है। दिवाली पर तंत्र और तांत्रिक वस्तुओं का महत्व कुछ खास ही माना जाता है। दिवाली की रात वैसे भी अमावस्या होती है। और अमावस्या को वैसे भी बहुत रहस्यमयी माना जाता है। दिवाली का पर्व विशेष रूप से शाक्तों का पर्व है। शाक्त यानि तांत्रिक,ये वे होते हैं जो विभिन्न दस महाविद्याओं या महाशक्तियों में से किसी एक की उपासना करते हैं।
ये दीपावली की रात को शाक्त शक्ति का विशेष रूप से आवाहन करते हैं, ताकि पूजा करके अपनी शक्तियों को बढ़ा सकें।इसदिन सन्यासी-अघोरी लोग परा शक्तियों को सिद्ध कर विजय हासिल करते है। मित्रो वैज्ञानिक चांद से लेकर मंगल तक पहुंच गए, लेकिन तंत्र-मंत्र की गुप्त विद्या उन्हे विचार करने के लिए विवश कर देती है।
इसका बानगी दीपावली की रात्रि दिखाई देता है। जब कई संपन्न परिवार के सदस्य अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए तंत्र विद्या का सहारा लेते है। :


दिवाली के अमावस्या वाली काली रात्रि तांत्रिकों के लिए एक सर्वश्रेष्ठ अवसर है। इसे जिंदगी का वह अमिट तांत्रिक पन्ना भी माना जाता है। वहीं तंत्र की देवी माता काली जिनके आशीर्वाद के बिना कोई भी तांत्रिक अनुष्ठान अधूरा है। वे ही मां काली इस दिन अपने तांत्रिक भक्तों की इस काली भयावह रात्रि में परीक्षा लेती हैं। संसार की रचना के साथ ही कई चीजों का अविष्कार हुआ है। जैसे-जैसे मनुष्य ने उन्नति की अपने स्वार्थं, पुरुषार्थं, परोपकार के लिए कुछ न कुछ खोजता रहा, ये जिज्ञासा संसार में सदैव प्रबल रही है। कई ऐसे सिद्धिप्रद मुहुर्तं होते हैं जिनमें तंत्रशास्त्र में रुचि लेने वाले तथा इसके प्रकांड ज्ञाता तंत्र-मंत्र की सिद्धि, प्रयोग, व अनेक क्रियाएं करते हैं। इन मुहूर्तों में सर्वांधिक प्रबल महूर्तं हैं धनतेरस, दीपावली की रात, दशहरा, नवरात्र व महाशिवरात्री। इसमें दीपावली की रात्र को तंत्रशास्त्र की महारात्रि कहा जाता है। मित्रों ! तंत्र के अनुसार '' जपात सिद्धि जपात सिद्धि जपात सिंह न संशय:है !जाप से सिद्धि प्राप्त हो सकती है और बिना जप के सिद्धि संभव हो नहीं सकती है ! इसलिए तंत्र मार्ग में मन्त्र को चैतन्य करने के लिए मंत्र जाप के अनेक उपाय बतलाये गए हैं ! दीपावली की रात भी हम पहले मन्त्र जप और बाद में तांत्रिक हवन करते हैं ! दीपावली की रात अमावस की रात जब दूर दूर तक प्रकाश का नाम नहीं होता है ,उस रात तांत्रिक,अघोरी,ओघढ़ या कोई अन्य साधक सिद्धि के लिए जप कर रहा होता है ! रात जितनी काली अर्थात गहरी होती है सिद्धि का सवेरा उतना ही समीप होता है ! क्योंकि अति ही अंत को दर्शाती है ! कार्तिक मास की अमावस्या की रात इसी बात की पुष्टि करती है की साधना की भोर ( प्रात: ) होने को है ,साधकों जागो !बहुत सो लिए ,बहुत जला लिए मिटटी के दिए अब साधना का समय आ गया है ,सिद्घी के लिए प्रयत्न करो ! दीपावली का दिया तो केवल एक रात जलेगा और फिर बुझ जायगा परन्तु सिद्धि का साधना का दिप तो सदेव जलेगा ! यदि यह एक बार जल गया तो सब मिल जायगा फिर कोई अँधेरा नहीं,फिर कोई भटकाव नहीं फिर हर दिन और हर रात दिवाली होगी ! वैसे भी दीप तांत्रिक साधना में बहुत महत्व रखता है अगर दीपों का पर्व दीपावली हो तो फिर कहना क्या ? दीप अग्नि का प्रतीक है ! साधना के समय दीप अवश्य जलाया जाता है ! तंत्र शास्त्रों के अनुसार दीप का प्रयोग विधान के अनुसार करना चाहिए ! दीप दान से 'षट्कर्म ' साधना सरल हो जाती है ! दीपावली की रात में साधना कुछ विशेष मन्त्रों से करनी चाहए ! दिवाली की रात वाम मार्गी साधना ,कापालिक, पाशुपत, वीर शैव,जंगम शैव, सिद्धांत ,रोद्र, भैरव साधना करने का चलन है !ये हैं दस महाविद्याएं या महाशक्तियां:
1. महाकाली 2. मां तारा 3. मां षोडशी 4. मां भुवनेश्वरी 5. मां छिन्नमस्तिका 6. मां त्रिपुर भैरवी 7. मां धूमावती 8. माता श्री बगलामुखी 9. मां मातंगी 10. मां कमला

माना जाता है कि इन महाविद्याओं की श्रृद्धापूर्वक साधना करने से सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं। आत्म-ज्ञान बढ़ता है, अलौकिकता आती है मां कालीने तो मेरा परिचय दीपावली की रात '' भैरवी चक्र और चोली चक्र '' से कराया था ! ये साधनाए तंत्र की ना केवल गुप्त वरन उच्चतम साधनाएं हैं ! दीपावली की रात तांत्रिक तंत्र गुरु की आज्ञानुसार -अघोर,चीनाचार,विक,प्रत्येविघ्या ,स्पंद और महार्त आदि साधना भी करते हैं ! मित्रों! पुस्तकों के पीछे मत भागो ,वो जानने का प्रयत्न करो जो तांत्रिको के ह्रदय में छुपा है ! जो छुपा है वोही असली तंत्र है जो प्रकाशित है वो तंत्र साहित्य है। कार्तिक अमावस्या की साधना पूजा से सभी विघ्न बाधाएं दूर होने के अलावे सिर्फ धन संपत्ति की प्राप्ति होती ही है। बल्कि रोग, शोक, शक्ति शत्रु का दमन भी होता है। वहीं तंत्र मंत्र सिद्धि करने वालों के लिए यह रात शक्ति प्रदान करती है।, इस दिन यज्ञ, जप की तैयारी कर रहा तो कोई ताबीजों-यंत्रों को सिद्ध करेंगे यानि गणेश-लक्ष्मी पूजन के अलावा तंत्र-मंत्र-यंत्र की सिद्धि भी दीपावली की रात परवान चढ़ेगी।
गृहस्थ लोग भी अपने घरों में लक्ष्मी पूजन के बाद इस तरह की सिद्धि कर सकते हैं सिद्घ मंत्रों व यंत्रों के ताबीज व यंत्र वना सकतें हैं
श्री यंत्र सिद्ध करना सबसे आसान है। इसके लिए पूजन के बाद लक्ष्मी मंत्र-ऊं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्री ह्रीं श्रीं ऊं महालक्ष्म्ये नम: की 11 माला का जाप करें। साथ ही श्री यंत्र की स्थापना कर उसका पूजन करें तो वह सिद्ध हो जाएगा।
इसी प्रकार लक्ष्मी के बीज मंत्र ऊं श्रीं ह्रीं महालक्ष्म्ये नम: की 21 माला कमलगंट्टे अथवा स्फटिक की माला पर जाप करें और दशांश हवन करें तो यंत्र ऊर्जा से भर जाता है। हवन में कमल गंट्टा अथवा कमल पुष्प की आहूति दी जानी चाहिए दीपावली की रात में लक्ष्मी यंत्र, श्री यंत्र, बीसा यंत्र, पंद्रह का यंत्र, हनुमान यंत्र आदि नजर, रक्षा, मुकदमा विजय एवं वशीकरण यंत्र भी इस रात सिद्घ कर सकते हैं मित्रों वर्ष के मान से उत्तरायण में और माह के मान से शुक्ल पक्ष में देव आत्माएं सक्रिय रहती हैं तो दक्षिणायन और कृष्ण पक्ष में दैत्य आत्माएं ज्यादा सक्रिय रहती हैं।

जब दानवी आत्माएं ज्यादा सक्रिय रहती हैं, तब मनुष्यों में भी दानवी प्रवृत्ति का असर बढ़ जाता है इसीलिए उक्त दिनों के महत्वपूर्ण दिन में व्यक्ति के मन-मस्तिष्क को धर्म की ओर मोड़ दिया जाता है।
वहीं ये भी माना जाता है कि अमावस्या के दिन भूत-प्रेत, पितृ, पिशाच, निशाचर जीव-जंतु और दैत्य ज्यादा सक्रिय और उन्मुक्त रहते हैं। ऐसे दिन की प्रकृति को जानकर विशेष सावधानी रखनी चाहिएं। प्रेत के शरीर की रचना में 25 प्रतिशत फिजिकल एटम और 75 प्रतिशत ईथरिक एटम होता है। इसी प्रकार पितृ शरीर के निर्माण में 25 प्रतिशत ईथरिक एटम और 75 प्रतिशत एस्ट्रल एटम होता है। अगर ईथरिक एटम सघन हो जाए तो प्रेतों का छायाचित्र लिया जा सकता है और इसी प्रकार यदि एस्ट्रल एटम सघन हो जाए तो पितरों का भी छायाचित्र लिया जा सकता है।
ज्योतिष में चन्द्र को मन का कारक माना गया है। अमावस्या के दिन चन्द्रमा दिखाई नहीं देता। इस दिन चन्द्रमा नहीं दिखाई देता तो ऐसे में हमारे शरीर में हलचल अधिक बढ़ जाती है। जिस व्यक्ति का ओरा कमजोरहोता है उसकी सोच नकारात्मक वाली हो जाती है उसे नकारात्मक शक्ति अपने प्रभाव में ले लेती है।शेष फिर कभी आचार्य राजेश

सोमवार, 9 नवंबर 2020

दिवाली पर खास शुभ मुहूर्त2020

दिवाली पर www.acharyarsjesh.inखास शुभ मुहूर्त2020

दिवाली अमावस्या को ही आती है और इस त्यौहार को अक्सर लक्ष्मी पूजा के लिये माना जाता है। लेकिन यह त्यौहार खासरूप से पितरो के लिये जाना जाता है,कई कहानिया कई मिथिहासिक सिद्धान्त अपने अपने रूप मे सबके लिये प्रस्तुत होते है लेकिन यह त्यौहार पूर्वजो के लिये ही खास है,इस त्यौहार के बाद ही देव शयन समाप्त होता है और धर्म कर्म से सम्बन्धित सभी कार्य शुरु हो जाते है,इस दिन पूर्वजो की मान्यता के जो सिद्धान्त ह वे इस प्रकार से माने गये है.
इस त्यौहार को दीपदान के लिये माना जाता है और घर बाहर बाग बगीचा धर्म स्थान तथा पूर्वजो के निमित्त भोग आदि का वर्गीकरण अलग अलग रूप मे किया जाता है.
अन्धकार को प्रकश मे परिवर्तित करने के बाद लोग आपसी मेल जोल तथा एक दूसरे के प्रति सद्भभावना को प्रस्तुत करते है.
गोबर्धन के रूप मे गाय को मान्यता भी पूर्वजो के हित को ध्यान मे रखकर ही की गयी है.
गोबर जो आस्तित्व हीन है उसके लिये भी पूजा की मान्यता केवल हिन्दू धर्म मे ही देखने को मिलती है कारण वही गोबर जब खाद के रूप मे अपना बल प्रदर्शित करता है तो जीव को अन्न और वनस्पति के विकास मे सहायक माना जाता है.
चावल की खील और बतासो का भोग अक्सर पूर्वजो के निमित्त ही किया जाता है.
तीन देवताओ की मान्यता भी पूर्वजो के प्रति की जाती है सन्तान के रूप मे गणेश जी स्त्री सम्बन्धी कारको के लिये लक्ष्मी जी और आसमानी हवाओ और अक्समात बचाव करने वाली देवी सरस्वती की पूजा का दिन भी यही है.
इसी कारण से दीवाली का महत्व पूर्वजो की पूजा के लिये मान्य है.पूर्वजो के लिये दीपदान से पहले अगर सात या नौ दीपक पूर्वजो के नाम से जला कर एक पंगत मे रखे जाये तथा उनकी मान्यता करने के बाद जो भी भोग चढाने के लिये रखे गये है उन्हे चढाना भाग्य और पूर्वजो की कृपा के लिए मावा जाता हैइस बार दिवाली शनिवार, 14 नवंबर के दिन मनाई जा रही है। कई वर्षों के बाद शनिवार के दिन दिवाली मनाई जाएगी जो एक दुर्लभ संयोग है।अगर ग्रहों की चाल के बात करें तो  शनिवार को शनि स्वयं की राशि में होने से दिवाली बहुत ही शुभ लाभकारी होगी। इस बार दीपावली में सन् 1521 यानी 499 साल बाद ग्रहों का दुलर्भ योग देखने को मिलेगा. माना जाता है कि आर्थिक स्थिति को मजबूत करने वाला ग्रह गुरु और शनि है. ऐसे में इस वर्ष दीपावली पर धन संबंधी कार्यों में बड़ी उपलब्धि मिल सकती है, क्योंकि ये दोनों ग्रह अपनी राशि में होंगे. दरअसल, दीपावली में गुरु ग्रह अपनी राशि धनु में और शनि अपनी राशि मकर में रहेंगे. वहीं, शुक्र ग्रह कन्या राशि में नीच रहेगा. इन तीनों ग्रहों का यह दुर्लभ योग वर्ष 2020 से पहले सन 1521 में 9 नवंबर को देखने को मिला था. इसी दिन उस वर्ष दीपावली मनाई गई थी. गुरु और शनि ग्रह आर्थिक स्थिति को मजबूत करने वाले माने जाते हैं.17 साल के बाद सर्वार्थ सिद्धि योग में दिवाली पूजन और उत्सव मनाया जाएगा। दिवाली पर भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी की विधिवत रूप से पूजा करने की परंपरा होती है। आइए जानते हैं इस दिवाली लक्ष्मी-गणेश पूजन करने का शुभ मुहूर्त क्या रहेगा। पहले हम शुरुआत
अभिजीतमुहूर्त से करते हैं जो इस प्रकार है  सर्वश्रेष्ठ अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 12 बजकर 09  मिनट से शाम  को  4 बजकर 5 मिनट तक
चौघड़िया मुहूर्त 
लक्ष्मी पूजन
दोपहर का समय:  2 बजकर 18 से शाम 4 बजकर 7 मिनट तक
शाम: शाम को 5 बजकर 30 मिनट से शाम 7 बजकर 8 मिनट तक
रात्रि: रात 8 बजक 50 मिनट से देर रात 1 बजकर 45 मिनट तक
प्रात:काल: 15 नवंबर को सुबह 5 बजकर 4 मिनट से 6 बजकर 44 मिनट तक अमृत की चौघड़िया –14 सांय 20 बजकर 22 मिनट से रात्रि 22 बजकर 58  मिनट तक । यह मुहूर्त शुभ रहेगा।
उसके बाद प्रदोष काल : शाम 5 बजकर 27 मिनट से 8 बजकर 06 मिनट तक
जो लोगवृषभ काल : में पुजा करना चाहते हैं उनके लिए
वृषभ काल :  शाम 5 बजकर 30 मिनट से लेकर 7 बजकर 25 मिनट तक और सिंह लग्न लग्न मुहूर्त, 14 नवंबर:  आधी रात 12 बजकर 05 मिनट से देर रात 2 बजकर 20 बजकर मिनट तक रहेगा

महानिशीथकाल
रात्रि 23 बजकर 39 मिनट से सुबह 24 बजकर 32 मिनट तक महानिशीथकाल रहेगा।  रात्रि के 24:05:40 से 26:19:19  तक सिंह लग्न है और सिंह लग्न में पूजा करना बहुत अच्छा माना गया है।पर  सिंह लग्न में अमावस्या तिथि समाप्त हो जाती है यह भी ठीक नहीं है। तथा इसी लग्न में काल की चौघड़िया मुहूर्त है अतः मेरे अनुसार यह काल सामान्य गृहस्थजीवन के लिए उपयुक्त नहीं है। हाँ महानिशीथकाल में महाशक्ति काली की उपासना, यंत्र-मन्त्र तथा तांत्रिक अनुष्ठान और साधना करने के लिए यह काल विशेष रूप से प्रशस्त है।
महानिशीथकाल में तांत्रिक कार्य करना अच्छा माना जाता है। इस काल में कर्मकांडी  कर्मकाण्ड, अघोरी यंत्र-मंत्र-तंत्र आदि कार्य व विभिन्न शक्तियों का पूजन करते हैं। अवधि में दीपावली पूजा करने के बाद घर में एक चौमुखा दीपक रात भर जलते रहना चाहिए। यह दीपक लक्ष्मी, सौभाग्य रिद्धि सिद्धि   के प्रतीक रूप में माना गया है।

लाल का किताब के अनुसार मंगल शनि

मंगल शनि मिल गया तो - राहू उच्च हो जाता है -              यह व्यक्ति डाक्टर, नेता, आर्मी अफसर, इंजीनियर, हथियार व औजार की मदद से काम करने वा...