गुरुवार, 31 जनवरी 2019

कुंडली कुंभ लग्न की

 एक सज्जन का यह प्रश्न है।आकाश के 300 डिग्री से 330 डिग्री तक के भाग को कुंभ राशि के नाम से जाना जाता है. जिस जातक के जन्‍म समय में यह भाग आकाश के पूर्वी क्षितिज पर उदित होता हुआ दिखाई देता है, उस जातक का लग्‍न कुंभ माना जाता है कुण्डली कुम्भ लगन की है और राशि कर्क है। राहु ,पंचम स्थान मे विराजमान है,चन्द्रमा छठे भाव मेकुंभ लग्‍न की कुंडली में मन का स्‍वामी चंद्र षष्‍ठ भाव का स्‍वामी होता है. यह जातक के रोग, ऋण, शत्रु, अपमान, चिंता, शंका, पीडा, ननिहाल, असत्य भाषण, योगाभ्यास, जमींदारी वणिक वॄति, साहुकारी, वकालत, व्यसन, ज्ञान, कोई भी अच्छा बुरा व्यसन इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होता हैओर  विराजमान है,शनि मंगल दोनो अष्टम स्थान मे विराजमान है,गुरु भाग्य भाव मे विराजमान हैसमस्त विश्व को प्रकाशित करने वाला सूर्य सप्‍तम भाव का स्‍वामी होकर जातक के लक्ष्मी, स्त्री, कामवासना, मॄत्यु मैथुन, चोरी, झगडा अशांति, उपद्रव, जननेंद्रिय, व्यापार, अग्निकांड इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होता है.,सूर्य कार्य भाव मे है और केतु बुध लाभ भाव मे विराजमान है,तथा शुक्र जो नवे भाव का मालिक है वह बारहवे भाव मे विराजमान है।

घर किस्मत का तभी पनपता,जीव उजाले बैठा हो,चार सात घर खाली होते जीव तन्हा रह जाता है"इस बात को इस कुंडली से समझा जा सकता है,किस्मत का मालिक शुक्र है और शुक्र बारहवे भाव मे जाकर उच्च का हो जाता है। बारहवा भाव आसमान का घर भी कहलाता है। लेकिन चार और सात दोनो खाली है इस प्रकार से किस्मत उच्च की होने के बावजूद भी जातक का जीवन तन्हा है वह अपने को अकेले में ही रखना पसन्द करता है। शनि और मंगल उसके अष्टम मे है इस बात के लिये कहा जाता है:-सालन सस्ता फ़ूस से बनता,रोज कमाना खाना है,जीव अहारी मरा जो खावे अष्टम शनिमंगल की बलिहारी"्आठवे घर को शमशान की उपाधि दी जाती है,अस्पताल का घर भी कहा जाता है,शनि को सडा हुआ भी कहा जाता है और मंगल को पकाने वाला भी कहा जाता है। फ़ूस का अर्थ पत्ते वाले ईंधन से है किसी वस्तु को पकाने के लिये अगर पत्तों को जलाया जाये तो वह अपनी गर्मी को पैदा नही कर पाता है,जब तक पत्ते जलाते रहो तब तक आग बनी रहती है और जैसे ही पत्ते खत्म हो गये आग भी खत्म हो गयी,शनि काले रंग की राख ही मिलती है। यह अर्थ अक्सर शमशानी खाने से भी जोडा जाता है जैसे मांस का भोजन,शनि को शिथिलता से भी जोडा जाता है और इस शनि की शिथिलता को दूर करने के लिये दवाइयों के रूप में मंगल को भी देखा जाता है जो शिथिलता को दूर करे। अक्सर इस युति वाले जातक को मरा हुआ मांस या जमीन के नीचे पैदा होने वाले कंद आदि खाने का शौक भी होता है। जातक को मंगल और शनि की शिफ़्त से शुगर या केंसर जैसी बीमारी भी हो जाती है। लेकिन बारहवा शुक्र जो किस्मत का मालिक है दोनो ग्रहों से अपनी युति को बनाकर बैठता है तो जातक को धन वाली कम्पनी मे या अस्पताल मे अथवा गुप्त रहस्यों को खोजने और सुलझाने मे सहायता भी मिलती है,शुक्र वैज्ञानिक बनाने के लिये भी अपनी तकनीक को देता है।पंचम राहु नौटंकी वाला गुरु नवें से करता है".पांचवे भाव मे राहु की नजर अगर पांचवी द्रिष्टि से गुरु पर पडती है तो जातक अक्सर व्यापार के मामले मे धन का ब्रोकर वाला कार्य करता है,यह कार्य लोगों के लिये किये जाने वाले मनोरंजन को भी व्यापारिक कारणो से जोड कर चलने वाला होता है। अपनी बाहरी जिन्दगी मे वह अपने जीवन की नैया को भाग्य के सहारे भी छोड कर अपने जीवन को लोगों के हित के लिये भी शुरु करने वाला होता है,लेकिन उसके लिये कोई भी जोखिम का काम नौटंकी करने जैसा ही होता है। यहां तक कि वह अपने आने वाली संतान के मामले मे भी दोहरी जिन्दगी को जीने की चाहत वाला माना जाता है इस प्रकार के जातक के कोई भी काम प्लान बनाकर सफ़ल नही हो पाते है वह जो भी काम रास्ता चलते करता है वह पूरा हो जाता है।शुक्र बारहवा सूर्य दसें में अन्धापन दे जाता है,कानूनी मसलों के कारण मन ही मन पछताता है"अगर शुक्र बारहवा हो और सूर्य दसवे भाव मे हो तो किसी न किसी प्रकार की बीमारी आंख सम्बन्धी हो जाती है,यह युति अक्सर शरीर मे पोषक तत्वों की कमी के कारण ह्रदय रोग को भी देने वाला होता है और शरीर मे खून के थक्के जमने की बीमारी भी देता है। किडनी वाले रोग भी देने के लिये यह सूर्य और शुक्र की युति अपना काम करती है। अधिक से अधिक खर्चा दवाइयों और अस्पताली कारणो मे ही होता रहता है।शुक्र बारहवां त्रिया हितकारी"बारहवे शुक्र के होने पर अगर जातक अपनी स्त्री से हित लगाकर चलता है तो वह जीवन मे दिक्कत नही उठाता है जितना वह अपनी स्त्री को परेशान करेगा उतना ही वह दुखी होगा,इसके अलावा भी अगर जातक मीडिया और सजावट वाले कामो को बिजली वाले कामो को लेकर चलता है तो वह जीवन मे धन के लिये भी दुखी नही हो पायेगा जैसे ही उसकी शादी होगी उसकी स्त्री जातक के सभी कष्टों को अपने पर झेलने के लिये तैयार हो जायेगी।

रविवार, 27 जनवरी 2019

ज्योतिषी भी उजाड़ देते हैं जिन्दगी।

  ज्योतिषी भी उजाड़ देते हैं जिंदगी।                                    कैसे देखें   यह कुंडली एक कन्या की है,सिंह लगन है स्वामी सूर्य है,भाग्य के मालिक मंगल है पति का मालिक शनि है,पति के भाग्य का मालिक शुक्र है,धन और लाभ का मालिक बुध है,लगनेश सूर्य भाग्येश और चतुर्थेश मंगल लाभेश और धनेश बुध एक साथ ही भाग्य भाव मे विराजमान है.

मंगल स्वराशि मे है शुक्र भी स्वराशि मे है,चन्द्रमा स्वराशि मे है,शनि उच्च राशि मे जाकर वक्री हो गया है,राहु उच्च का है लेकिन लाभ भाव मे है और केतु भी उच्च राशि मे लेकिन पंचम मे जाकर अपना प्रभाव जीवन मे देने के लिये बैठ गया है। जातिका के पति भाव को राहु केतु शनि तीनो ने अपने अपने अनुसार बल दिया है।कन्या का विवाह विच्छेद केवल इसलिये हो गया है क्योंकि एक ज्योतिषी ने कन्या के पति को राय दे डाली कि यह कन्या भाग्यहीन है। इस कुंडली के अनुसार जब कन्या के भाग्य में भाग्य के मालिक विराजमान है,कन्या तीन तीन विषयों मे डिग्री लेकर बैठी है,कन्या के लगनेश सूर्य भाग्य के ही घर मे विराजमान है लाभ और धन के मालिक कन्या के भाग्य मे विराजमान है फ़िर उन ज्योतिषी जी को कैसे समझ मे आ गया कि कन्या भाग्य हीन है ? जिस दिन से कन्या ने जन्म लिया उसके पिता की दिनो दिन बढोत्तरी हो गयी,जिस दिन से कन्या ने जन्म लिया पिता की साख जनता मे बहुत अच्छी हो गयी,फ़िर कन्या कहां से भाग्य हीन हो गयी। इससे लगता है कि कन्या के पति ने अपने भाग्य को मिटाने के लिये कुचक्र पैदा किया और किसी  अज्ञानीज्योतिषी से कहला दिया कि कन्या भाग्य हीन है। कन्या के पति भाव का मालिक शनि है शनि कन्या के तीसरे भाव मे वक्री है,वैसे तो शनि उच्च राशि का होकर तुला राशि मे विराजमान है,लेकिन नियम के अनुसार जब कोई ग्रह उच्च का होकर वकी हो जाता है तो वह नीच का फ़ल देने लगता है। पति के ग्यारहवे भाव मे केतु विराजमान है ग्यारहवा केतु धनु राशि का है,कहने को तो उच्च राशि मे है लेकिन पति के लाभ भाव को केतु अपनी शक्ति दे रहा है,और पति के पंचम मे विराजमान राहु का असर लेकर पति की व्यापारिक बुद्धि का उल्टा फ़ायदा लेकर पति को चंद रुपयों के लिये बनायी हुयी राय जो खुद ने ही प्रकाशित की होगी या किसी घटिया सोफ़्टवेयर से कुंडली को निकाल कर दिखा दिया होगा और कह दिया होगा कि उसकी पत्नी भाग्यहीन है। मित्रों इसलिए अपनी कुंडली कैसे सही ज्योतिषी जो पूरा ज्ञान रखता  हो को ही दिखाएं मित्रों रतन भी अगर आप पहन   रहे हैं तो किसी अच्छे रतन एक्सपर्ट ज्योतिषी को ही मिलकर  ले अब पुखराज का ही उदाहरण लें पुखराज कई किस्मों में कई रंगों में मिलता है अब आपको कोई पुखराज बताता है तो आप अपने हिसाब से बाजार से  लेकर पहन लेते हैं जो आपको उल्टा असर भी दे सकता है अब पुखराज कौन सा पहनना है यह अपने ज्योतिषी को पूछ कर दिखा कर ही लेओर देखें कुंडली कर्क राशि की है,चन्द्रमा का स्थान राहु से दूसरे भाव मे है यह कन्या डरने वाली है,लेकिन उसे दम देने के लिये मंगल जो नवे भाव का है ने राहु को कन्ट्रोल करने केलिये अपनी शक्ति दी है,अष्टम और पंचम का मालिक गुरु भी चौथे भाव मे वृश्चिक राशि का होकर वक्री है,वर्तमान मे राहु ने भी गुरु पर अपना असर दिया है और वह कनफ़्यूजन मे है,गुरु यानी रिस्ते को कनफ़्यूजन मे देकर बरबाद करने के लिये भी माना जा सकता है,गुरु का सम्बन्ध दसवे शुक्र से भी है शुक्र कार्य और तीसरे भाव का मालिक है,जातिका के पति भाव से शुक्र का स्थान चौथे भाव मे है,इस प्रकार से पति के दिमाग मे एक सात दो स्त्रियों का होना भी माना जा सकता है। कन्या का विवाह जहां होता है वहां की स्त्रियां अपने अनुसार कन्या के पैतृक परिवार की समृद्धि देख कर सहन नही कर पाती है। साथ ही मंगल का स्वराशि मे होने के कारण और सूर्य के साथ होने से मंगल का राहु हो पति भाव से पंचम मे स्वछन्द गति से अपने अनुसार हमेशा बदलने वाले रिस्तो को अपनाने के कारण और राहु से बारहवे शुक्र यानी स्त्री जाति को केवल भोग्या समझने के कारण वह कन्या के परिवार का अंकुश सहन नही कर पाया यह भी कारण हो सकता है,इसके अलावा भी राहु जो कन्या के परिवार से कन्ट्रोल किया गया है राहु ग्यारहवे भाव मे ज्योतिषी का रूप धारण कर लेता है और वह केवल लाभ के लिये अपने कार्यों को करता है साथ ही धर्म कर्म से सम्बन्धित दो लोगो को अपने साथ लेकर चलता है पूजा पाठ कर्मकांड आदि के काम वह अपने अनुसार करवाता है साथ ही वह इन कार्यों के बदले मे वह अच्छे धन को प्राप्त करने के लिये अपनी बुद्धि का प्रयोग करता है। उस ज्योतिषी ने कन्या परिवार से भी किसी पूजा या कर्मकांड के लिये धन की मांग की होगी और कन्या परिवार ने अपने प्रभाव के कारण उस ज्योतिषी को कन्ट्रोल करने के लिये अपनी शक्ति का प्रयोग किया होगा उस ज्योतिषी ने अपने कर्म कांड का हवाला देकर पति परिवार को अपने ग्रहण मे लिया होगा और पति के परिवार ने उस ज्योतिषी की बात को सही मानकर कन्या से छुटकारा करने के लिये तलाक लेने का कार्य रचा होगा। वक्री शनि की नजर पंचम केतु पर है,पति के द्वारा विदेशी कार्य किसी ब्रोकर से करवाये जा रहे होंगे,पिछले समय मे जन्म के केतु पर गोचर के राहु ने अपने कनफ़्यूजन को दिया,पति के किये जाने वाले कार्य और लाभ देने वाले विदेशी ब्रोकर से लाभ का आना बन्द हो गया,साथ ही पति भाव से ग्यारहवे राहु और जन्म के छठे चन्द्रमा से युति होने के कारण जो कार्य प्लान बनाकर किये जा रहे थे वह सभी कनफ़्यूजन मे चले गये और पति को यह लगने लगा कि उसकी शादी के बाद से ही सब कुछ उल्टा होने लगा है इसलिये भी पति ने ज्योतिषी से राय ली और पूरी पत्री की व्याख्या जाने बिना उस ज्योतिषी ने अपनी राय मे कह दिया कि उसकी पत्नी का भाग्य सही नही है इसलिये उसका कारोबार दिक्कत मे आ गया है।
जब तक विवाह भाव को सही नही देखा जाता है और विवाह तथा साझेदारी को स्पष्ट तरीके से विवेचना मे नही लाया जाता है कोई भी व्यक्ति हरगिज किसी सही नतीजे पर नही पहुंच सकता है। जब सूर्य मंग्ल बुध एक ही भाव मे है और भाग्य भाव मे है तपते हुये मंगल को सूर्य की रोशनी मिल जाती है तो वह अपने वास्तविक रूप मे आजाता है। बुध का साथ मिलने पर वह बुध जो कोमल प्रकृति का होता है दोनो के प्रभाव से कुम्हला जाता है। पति भाव से तीसरे भाव मे सूर्य मंगल के होने से यही कारण माना जाता है.सूर्य मंगल बुध अगर त्रिकोण मे है तो तीन भाई का योग होता है,कारण तीनो ही ग्रह पुरुष राशि मे होने के कारण पुरुषत्व को प्रकट करते है,सूर्य और मंगल मित्र है इसलिये दो भाई जातिका के आज्ञाकारी है और जो जातिका कहती है उसे करने को तैयार हो जाते है इस बात पर भी जातिका के पति को डर लगने लगा हो कि उसने कभी कोई ऐसी वैसी बात वैवाहिक जीवन के अन्दर पैदा की तो जातिका के दोनो भाई क्या से क्या कर सकते है। इसलिये भी कोई कारण नही मिलने पर जातिका के पति ने ज्योतिषी को लोभ देकर कन्या को भाग्यशाली करार दिलवाया हो। जातिका का एक भाई किसी एजेन्सी का कार्य करता है,अक्सर यह सम्बन्ध यात्रा के अन्दर बनते है और जो सम्बन्ध सिंह राशि के यात्रा मे बनते है वे अक्सर धोखा ही देने के लिये माने जाते है।चन्द्र गुरु की युति भी खतरनाक बन जाती है,पति का पिता धार्मिक हो सकता है,लेकिन जातिका की मां धर्म पर विश्वास करने वाली नही होती है,दोनो के सम्बध बनने का कारण चन्द्र गुरु की युति से भी मिलता है जातिका के माता पिता कहीं दूर से जाकर बसे हो और जो समबन्ध बना है वह अनजान लोगो का हो,साथ ही वक्री गुरु का एक प्रभाव यह भी देखा जाता है कि जब वक्री गुरु वक्री शनि के घेरे मे हो तो व्यक्ति जहां रहता है वहां की सभ्यता मर्यादा सामाजिकता आदि सभी विरोध करने वाला होता है,वह उल्टे कार्य करता है और उसके यह कार्य जातिका को सही नही लगे वह उसके अनुसार नही चली हो,इसके बाद भी गुरु चन्द्र की युति अगर कन्या की कुंडली मे मिलती है तो अपने आप ही कन्या की सास से नही बनती है,किसी न किसी बात पर बेकार का मनमुटाव बन जाता है यह प्रभाव गुरु के वक्री होने पर अपने आप ही नफ़रत का रूप ले लेता है। कन्या की सास डायबटीज की रोगी भी होती है और बीमार भी होती है वह बहू के स्थान पर नौकरानी चाहती है लेकिन तीन तीन डिग्री धारण करने वाली कन्या कैसे किसी की नौकरानी बन सकती है।इस प्रकार से कहा जा सकता है कि जातिका बहुत भाग्य शाली है लेकिन भाग्य को प्रयोग करने के लिये मर्द की जरूरत होनी चाहिये अगर कोई चालाक और झूठ  पर अपनी गाडी चलाने वाला होगा तो वह ज्योतिषी की राय को ही मानेगा,कहा भी गया है कि पुरुषार्थ सितारों को चलाने वाला होता है और कामचोर को सितारे चलाते रहते है,पुरुषार्थी ज्योतिष से केवल अच्छे और बुरे समय को इसलिये पूंछते है कि उन्हे पहले से क्या तैयारी करनी है जबकि कामचोर केवल ज्योतिष को इसलिये पूंछते है कि वे बिना कार्य किये कैसे मुफ़्त का माल ले सकते है।

बुधवार, 23 जनवरी 2019

राहु का गोचर ओर राहु की माया

राहु का गोचर ओर  राहु की माया
मित्रोंअक्सर लोगो का बहम होता है कि व्यक्ति पर भूत प्रेत पिशाच का साया है और वह उनके प्रभाव मे आकर अपनी जिन्दगी को या तो तबाह कर लेता है।पर होता है राहु का असर  बिल्कुल उसके लक्षण ऐसे होते हैं जैसे कोई भूत प्रेत से ग्रस्त काया सीधा सा अर्थ है कि भूत कोई अन्जानी आत्मा नही है वह केवल अपने द्वारा किये गये प्रारब्ध यानी पूर्व के कर्मो का फ़ल है,पिशाच कोई खतरनाक आत्मा या द्रश्य रूप मे नरभक्षक नही है वह केवल अपने अन्दर की वासनाओं का कुत्सित रूप है। प्रेत का मतलब कोई खतरनाक यौनि नही है बल्कि स्थान विशेष पर किये गये कृत्यों का सूक्ष्म रूप है जो बडे आकार मे केवल सम्बन्धित व्यक्ति को ही द्रश्य होता है।इन सब कारणो को प्रदर्शित करवाने के लिये राहु को जिम्मेदार माना जाता है 

यानी राहु का असर भी ऐसा होता है जेसे भूत प्रेत और हवा से ग्रस्त आदमी यह कुंडली मे जिस भाव मे जिस ग्रह के साथ गोचर करता है उसी ग्रह और भाव तथा राशि के अनुसार अपनी शक्ति का एक नशा पैदा करता जाता है और जीवन मे या तो अचानक बदलाव आना शुरु हो जाता है। एक अच्छा आदमी बुरा बन जाता है या एक बुरा आदमी अच्छा बन जाता है आदि बाते राहु से समझी जा सकती है।
मेरी हमेशा भावना रही है कि जो कारण भौतिकता मे सामने आते है और जिन्हे हम वास्तव मे देखते है समझते है महशूश करते है उनके प्रति ही मै आपको बताऊँ कपोल कल्पित या सुनी सुनाई बात पर मुझे तब तक विश्वास नही होता है,जब तक प्रत्यक्ष रूप मे उसे प्रमाणित नही कर के देख लूँ। इस प्रमाणिकता के लिये कई बार जीवन को भी बडे जोखिम मे डाल चुका हूँ और राहु के प्रभाव को ग्रह के साथ गोचर के समय मिलने वाले प्रभाव को साक्षात रूप से समझकर ही लिखने और बताने का प्रयास करने का मेरा उद्देश्य रहा है। साथ ही राहु के प्रभाव को कम करने के लिये और उसके रूप को बदलने के लिये जितनी भी भावना रही है उनके अनुसार चाहे वह बदलाव चलने वाले प्रभाव को बाईपास करने से सम्बन्धित हो या बदलाव को अलग करने के लिये किये जाने वाले तांत्रिक कारणो से जुडे हो वह सभी अपने अपने स्थान पर कार्य जरूर करते है राहु एक मायावी  ग्रह है वह जब किसी भी भाव मे अपना असर प्रदान करता है तो भाव के अनुसार उल्टी गति राहु के प्रभाव से भाव मे मिलनी शुरु हो जाती है इसके साथ ही राहु की गति उल्टी होती है वह अन्य ग्रहो के अनुसार सीधा नही चलता है उल्टे चलकर ही अपने प्रभाव को प्रदर्शित करता है,साथ ही जो भाव जीवन मे सहायक होता है उसके लिये वह अपने प्रभाव को देने के लिये सहायता वाले भाव के प्रति अपनी धारणा को पूर्व से ही बदलना शुरु कर देता है जैसे राहु को कोई बीमारी देनी है तो वह सबसे सहायता देने वाले डाक्टर या दवाई से दूरी पैदा कर देता है अगर समय पर डाक्टर की सहायता मिलनी है तो किसी न किसी बात पर डाक्टर के प्रति दिमाग मे क्षोभ पैदा कर देगा और उस डाक्टर से दूरी बना देगा,और जैसे ही बीमारी पैदा होगी उस डाक्टर की सहायता नही मिल पायेगी या जो दवाई काम आनी है वह पास मे नही होगी या उस दवाई को खोजने पर भी वह नही मिलेगी,अगर किसी प्रकार से मिल भी गयी तो वह दवाई पहले से ली गयी अन्य दवाइयों के असर मे आकर अपना वास्तविक प्रभाव नही दे पायेगी। राहु का मुख्य काम होता है वह घटना के पूर्व मे लगभग छत्तिस महिने पहले से ही अपने प्रभाव को देना शुरु कर देगा,जैसे बच्चे को पैदा होने के बाद किसी बडी बीमारी को देना है तो वह पहले माता पिता के अन्दर नौ महिने पहले से ही हाव भाव रहन सहन खानपान आदि मे बदलाव लाना शुरु करेगा उसके बाद के नौ महिने मे वह बीमारी वाले कारणो को माता पिता के अन्दर भरेगा उसके बाद वह उस बीमारी को बनाने वाले कारणो को मजबूत बनाने के लिये अपने प्रभाव को बच्चा पैदा करने वाले तत्वो के अन्दर स्थापित करेगा और जब आखिर के नौ महिने मे बच्चे का गर्भ मे आकर पैदा होने तक का समय होगा तो बच्चे के अन्दर वही सब बीमारी वाले तत्व समावेशित हो जायेंगे और बच्चा पैदा होने के बाद उसी बीमारी से जूझने लगेगा। जैसे बच्चे के पैदा होने के बाद अगर टिटनिस की बीमारी होनी है तो वह बीमारी बच्चे के अन्दर माता पिता के द्वारा उनके खून से मिलने वाली टिट्निस विरोधी कारको को शरीर मे नही आने देगा और खून के अन्दर कोई न कोई इन्फ़ेक्सन देकर अगर माता के द्वारा गर्भ समय मे टिटनिश का टीका भी लगवाया गया है या कोई दवाई ली गयी है तो उन तत्वो को वह शरीर से बाहर कर देगा,बाहर करने के लिये माता को कोई अजीब सी परेशानी होगी और वह उस परेशानी को दूर करने के लिये अन्य दवाइओं का प्रयोग करना शुरु कर देगी या किसी दवाई के गलत प्रभाव से बचने के लिये समयानुसार कोई डाक्टर उसे एंटीक बैटिक आदि को दे देगा और वह तत्व समाप्त हो जायेंगे। इसके साथ ही बच्चे के पैदा होने के बाद नाड छेदन के लिये कितनी ही जुगत से रखे गये  सीजेरियन हथियार मे टिटनिश के जीवाणु विराजमान हो जायेंगे,अथवा कोई नाड छेदन करने वाला व्यक्ति अपने अन्दर बाहर से आने के बाद किसी प्रकार से उन जीवाणुओं के संयोग मे आ जायेगा आदि कारण देखे जा सकते है। इसी प्रकार से जब राहु अन्य प्रकार के कारण पैदा करेगा तो वह अपने अनुसार उसी प्रकार की भावना को व्यक्ति के खून के अन्दर अपने इन्फ़ेक्सन को भर देगा,अथवा भावनाये जो व्यक्ति के लिये दुखदायी या सुखदायी होती है उन्ही भावनाओ के अनुसार लोगो से वह अपना सम्पर्क बनाना शुरु कर देगा और वह भावनाये उस व्यक्ति को अगर अच्छी है तो उन्नति देगा और बुरी है तो वह भावनाये व्यक्ति को समाप्त करने के लिये कष्ट देने के लिये अथवा आहत करने के लिये अपने अनुसार प्रभाव देने लगेंगी। कहा जाता है कि राहु अचानक अपना प्रभाव देता है लेकिन उस अचानक बने प्रभाव मे भी राहु की गति के अनुसार ही सीधे और उल्टे कारको का असर सामने आता है। अगर व्यक्ति का एक्सीडेंट होना है तो कारक पहले से ही बनने शुरु हो जायेंगे,व्यक्ति के लिये राहु अपने प्रभाव से किसी ऐसे जरूरी काम को पैदा कर देगा कि वह व्यक्ति उसी आहत करने वाले स्थान पर स्वयं जाकर उपस्थिति हो जायेगा और कारक आकर उसके लिये दुर्घटना का कारण बना देगा। अगर जातक को केवल कष्ट ही देना है तो कारक शरीर या सम्बन्धित कारण को आहत करेगा फ़िर व्यक्ति के भाग्यानुसार सहायता करने वाले कारक उसके पास आयेंगे उसे सम्बन्धित सहायता को प्रदान करेंगे और व्यक्ति राहु के समय के अनुसार कष्ट भोगकर अपने किये का फ़ल प्राप्त करने के बाद जीवन को बिताने लगेगा। राहु की गति प्रदान करने का समय नाडी ज्योतिष से अठारह सेकेण्ड का बताया गया है और वह अपनी गति से अठारह सेकेण्ड मे व्यक्ति को जीवन या मृत्यु वाले कारण को पैदा कर सकता है। जिस समय राहु का कारण पैदा होता है व्यक्ति के अन्दर एक प्रकार की विचित्र सी सनसनाहट पैदा हो जाती है,और उस सनसनाहट मे व्यक्ति जो नही करना है उसके प्रति भी अपने बल को बढा लेता है और उस कृत्य को कर बैठता है जो उसे शरीर से मन से वाणी से या कर्म से बरबाद कर देता है मित्रोंराहु कुंडली मे बारह भावो मे गोचर का फ़ल अपने अनुसार देता है लेकिन भाव के लिये भी राशि का प्रभाव भी शामिल होता है। जैसे राहु कन्या राशि मे दूसरे भाव का फ़ल दे रहा है तो राहु के लिये तुला राशि का पूरा प्रभाव उसके साथ होगा लेकिन जन्म लेने के समय राहु का जो स्थान है उस स्थान और राशि का प्रभाव भी उसके साथ होगा और वह प्रभाव दूसरे भाव मे तुला राशि के प्रभाव मे मिक्स करने के बाद व्यक्ति को धन या कुटुम्ब या अपने पूर्व के प्राप्त कर्मो को अथवा अपने नाम चेहरे आदि पर अपना असर प्रदान करने लगेगा राहु जब विभिन्न ग्रहो के साथ विभिन्न भावो और राशि मे गोचर करता है तो राहु अपने जन्म समय के भाव और राशि के प्रभाव को साथ लेकर ग्रह और ग्रह के स्थापित भाव तथा राशि के प्रभाव मे अपने प्रभाव को शामिल करने के बाद अपना असर प्रदान करेगा लेकिन जो भी प्रभाव होंगे वह सभी उस भाव और राशि के साथ राहु के साथ के ग्रह हो जन्म समय के है को मिलाकर ही देगा। अगर राहु वृश्चिक राशि का है और वह कुंडली के दूसरे भाव मे विराजमान है तो वह दसवे भाव मे गोचर के समय मे वृश्चिक राशि के साथ दूसरे भाव का असर मिलाकर ही दसवे भाव की कर्क राशि मे पैदा करने के बाद अपने असर को प्रदान करेगा,जैसे वृश्चिक राशि शमशानी राशि है और राहु इस राशि मे शमशाम की राख के रूप मे माना जाता है यह जरूरी नही है कि वह शमशान केवल मनुष्यों के शमशान से ही सम्बन्धित हो वह बडी संख्या मे मरने वाले जीव जन्तुओं के स्थान से भी सम्बन्ध रख सकता है वह किसी प्रकार की वनस्पतियों के खत्म होने के स्थान से भी सम्बन्ध रख सकता है वह अपने अनुसार जलीय जीवो के समाप्त होने के स्थान स्थलीय जीवो के अथवा आसमानी जीवो के प्रति भी अपनी धारणा को लेकर चल सकता है। राहु वृश्चिक राशि के दूसरे भाव मे होने पर वह अपने कारणो को दसवे भाव मे जाने पर कर्क राशि के अन्दर जो भावना को पैदा करेगा वह धन के रूप मे कार्य करने के लिये शमशानी वस्तुओं को खरीदने बेचने का काम ही करेगा आदि बाते राहु के ग्रहो के साथ गोचर करने पर मिलती है और इन्ही बातो के अनुसार घटना और दुर्घटना का कारण जाना जाता है।

रविवार, 20 जनवरी 2019

राशिफल कहा सही बैठता है

https://youtu.be/sXMcp0IapGEभारतीय वैदिक ज्योतिष मूलरूप से नक्षत्र आधारित है कारण जब बालक का जन्म होता है तो सर्वप्रथम नक्षत्र के आधार पर उसके शुभ अशुभ का ज्ञान किया जाता ही फिर उसके अन्य संश्कारो के निर्धारण के लिए नक्षत्र के आधार पर ही मुहूर्त देखा जाता है कहा जाता है कि ग्रह से बडा नक्षत्र होता है और नक्षत्र से भी बडा नक्षत्र का चरण जब विवाह कि बात आती है

 तो वर बधू का मेलापक भी नक्षत्र के आधार पर ही किया जाता है जब भी किसी शुभ कार्य के लिए मुहूर्त का निर्धारण करना होता है तब भी नक्षत्रों को ही प्राथमिकता प्रदान की जाती है कुंडली में भविष्य के फलादेश के लिए भी सर्वाधिक प्रयोग की जाने वाली विंशोत्तरी दशा का निर्धारण भी नक्षत्रों के आधार पर ही होता है  फिर फलादेश के लिए नक्षत्रों का प्रयोग क्यों नहीं !तिष जगत में आज नक्षत्रों का चलन सिर्फ मुहूर्त निर्धारण तक ही सीमित हो गया है, ज्योतिषी राशियों के आधार पर ही फलादेश कर रहे है नतीजा फ़लादेश असफल हो रहे हैंज्‍योतिष की किताबों में आपको ग्रहों, राशियों और भावों के बारे में विस्‍तार से जानकारी मिल जाएगी। इससे अधिक देखने पर हम पाते हैं कि राशियों को नक्षत्रों के अनुसार विशिष्‍टता दी गई है। चंद्रमा भी नक्षत्रों पर से गुजरते हुए हमें रोज के बदलावों की जानकारी देता है। ज्‍योतिष की प्राचीन और नई पुस्‍तकों में यह तो दिया गया है कि अमुक नक्षत्र में चंद्रमा के विचरण का फलां फल है, लेकिन कहीं यह नहीं बताया गया है कि नक्षत्र का नैसर्गिक स्‍वभाव क्‍या है या उस पर किसी ग्रह के स्‍वामित्‍व का वास्‍तविक अर्थ क्‍या है।


पाराशर ऋषि ने नक्षत्र चार के आधार पर ही दशाओं का विभाजन किया लेकिन नक्षत्रों के बारे में विस्‍तार से जानकारी नहीं दी। इसी तरह प्रोफेसर केएस कृष्‍णामूर्ति ने केवल चंद्रमा के नक्षत्र चार से बाहर आकर हर भाव और ग्रह के नक्षत्रों तक उतरकर विशद् विश्‍लेषण पेश किया, लेकिन उन्‍होंने ने भी कहीं नक्षत्रों की निजी विशिष्‍टताओं के बारे में स्‍पष्‍ट नहीं किया गया है। जबकि वृहत्त संहिता और दूसरी एकाध प्राचीन पुस्‍तक में नक्षत्रों के स्‍वरूप का वर्णन तक मिलता है। इन नक्षत्रों के स्‍वरूप के आधार पर ही उनके गुण भी बताए गए हैं। जब नक्षत्र के बारे में इतनी सटीक जानकारी उपलब्‍ध है तो उनके निजी या एकांगिक गुणों के बारे में कहीं स्‍पष्‍ट नहीं किया जाना कुछ खल जाता है। नक्षत्रों में विचरण को दौरान अगर चंद्रमा के स्‍वभाव में नियमित रूप से परिवर्तन आता है तो क्‍या अन्‍य ग्रहों पर भी ऐसे प्रभाव का अध्‍ययन जरूरी नहीं है।पहले पता करते हैं कि नक्षत्र हैं क्‍या?

हमने देखा कि बारह राशियां भचक्र के 360 डिग्री को बराबर भागों में बांटती हैं। इस तरह आकाश के हमने बारह बराबर टुकड़े कर दिए। तारों का एक समूह मिलकर नक्षत्र बनाता है। ऐसे सत्‍ताईस नक्षत्रों की पहचान की गई है। इससे आकाश को बराबर भागों में बांटा गया है। हर नक्षत्र के हिस्‍से में आकाश का 13 डिग्री 20 मिनट भाग आता है। जब हम चंद्रमा के दैनिक गति की बात करते हैं कि इसमें नक्षत्रों की विशेष भूमिका होती है। राशि वही हो और नक्षत्र बदल जाए तो चंद्रमा का स्‍वभाव भी बदल जाता है। इसी तरह हर ग्रह के स्‍वभाव में भी नक्षत्र चार के दौरान बदलाव आता है। चूंकि नक्षत्रों का स्‍वामित्‍व ग्रहों को ही दिया गया है। ऐसे में स्‍वभाव में परिवर्तन भी ग्रहों के अनुसार ही मान लिया जाता है। जबकि हकीकत में यह नक्षत्र की नैसर्गिक प्रवृत्ति के अनुसार होना चाहिए।अव आप देख सकते हैं राशि फल कहा सही वैठता है

शनिवार, 19 जनवरी 2019

बच्चों की पढ़ाई को लेकर माता-पिता की चिंता

मित्रो हमारे पास हर रोज ऐसे माता पिता अपनी वच्चो की पङाई की समस्या से परेशानी लेकर कि आचार्य जी आप हमे कोई उपाय वतऐ पढाई में कमजोर बच्चों के लिऐ अक्सर सुनने में आता की हमारे बच्चे पढाई में कमजोर है।हम अपने बच्चों को पढाई करवाने के लिए बहुत मेहनत करते है।दिन रात उन्हें खुद पढाते है।और ट्यूशन भी भेजते हैं।लेकिन परीक्षा में कम नम्बर या पास नहीं होते। या किसी भी नौकरी के लिए या उच्च पढाई के लिए तैयारी करते है। लेकिन वहां भी विफल हो जाते है।सफलता हाथ नहीं लगती। तब इस स्थिति मे हमें क्या करना चाहिए। बहुत मानसिकता बनी रहती है।इस चिंता को दूर करने के लिए हम कुछ उपाय आप को बताने जा रहे है धन कोई भी मनुष्य किसी भी अवस्था में कमा सकता है। वो उसका भाग्य है।कि उसकी कमाई कम हो या ज्यादा हो। लेकिन विद्या हर मनुष्य के भाग्य में नहीं होती। चाहे आप किसी धनवान व्यक्ति के घर आप का जन्म हुआ। और अपने धन के द्वारा पदवी ( डिग्री ). प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन आप उस पदवी का ज्ञान कहा से लायेगे एक कहावत बोली जाती है।कि धन से आप पुस्तक खरीद सकते है लेकिन विद्या ज्ञान कभी नहीं खरीद स
कते। विद्या हमेशा झुक कर, नम्रता से आप को उस विद्या के लायक बनना पडेगा। इसके बाद ही आप विद्या के पात्रबनेगे। और आपको गुरू की कृपा मिलेगी और आप समस्त संसार में अपनी विद्या से ख्याति, पद, प्रतिष्ठा प्राप्त करेंगे। यदि हम अपनी पढाई को सही उतम करना चाहते हो तो आप को माँ सरस्वती की अराधना, पूजा करना शुरू कर दो। जिस दिन आप के बच्चों का जन्म दिन हो उस समय गरीब विद्याथियो को पुस्तक, कोपी, पैंसिल, पैंन दान करना चाहिए। यदि आप किसी गरीब, जरूरतमंद छात्र, छात्राओ को विद्या का दान उन्हे पढाते हो। और उन्हें ट्यूशन पढाने का कोई मूल्य नहीं लेते तो निश्चित ही आप आने वाले समय में बहुत उच्च,शिक्षा ग्रहण कर पाओगे। सरस्वती माँ पूजा पाठ से आप के उपर प्रसन्न हो या ना हो लेकिन यदि आप किसी गरीव को फ्री में ट्यूशन पढाते हो या पङाने मे उसकी फीस देते है तो आप के उपर माँ सरस्वती की कृपा बनी रहेंगी। और आप बिना रूकावट, बाधा के अपनी पढाई पूरी कर पाओगे। इस में कोई शक नहीं है।यदि आप अपने बच्चों से किसी भी शिक्षित व्यक्ति जैसे की अध्यापक, लेक्चरार, प्रोफेसर, या विघवान जिनके पास आप ट्यूशन पढते हो उन्हें अपने बच्चों के हाथ से पैन दिलवाऐ। यह उपाय करवा के आप अपने बच्चों की पढाई में आने वाली बाधाओं को दूर कर सकते हो। और उनके उज्ज्वल भविष्य बनाने में आप का बहुत बड़ा हाथ हो सकता है। विद्या वाला मनुष्य देश विदेश कहीं भी जाये उसका विद्या के कारण मान सम्मान माँ सरस्वती की कृपा से प्राप्त होता है। यदि आप भी सरस्वती की कृपा अपने उपर या अपनी संतान के ऊपर चाहते हो तो माँ शारदा देवी सरस्वती के इस बारह नाम का पाठ अपने घर परिवार में करें और अपने बच्चों से भी करवाये। जब भी आप अपने बच्चों को पढाने बैठे तो इस स्त्रोत का पाठ करवाये फिर आप अपने बच्चों को पुस्तक पढने के लिए कहिये। जब भी किसी भी समय आप के बच्चे पुस्तक के प्रशन याद करने बैठेगे। उस समय इस स्त्रोत का पाठ करके या करवा के आप को शीध्र अपने प्रशन के उतर याद हो जायेगे। आप का पढाई में मन लगेगा ज्यादा समय आप अपनी पढाई में लगा सकोगे। जिसके कारण आप का परीक्षा फल पहले के मुकाबले बहुत अच्छा रहेगा। आप अपने जीवन मे सद्बुद्धि, सत्संग, सद्मार्ग, उच्च पद, प्रतिष्ठा, और माँ सरस्वती की कृपा से उच्च शिक्षा प्राप्त कर पाओगे। माँ सरस्वती के वीज मंत्र का जाप वच्चे से करवाऐ या वच्चे के नाम से माता पिता मे से कोई भी कर सकता है वच्चो को मिट्टी मे खेलने से ना रोके वच्चो को केसर का टीका माथे पर लगाते रहे ओर थोङा केसर दुघ मे ङाल कर दुघ पिने को दे अखरोट ओर वादाम गिरी भी वच्चो को लाभ देगी वरहमी शंखपुश्पी जेसी जङी वुटी वाली दवा किसी योग्य चिकित्सक की सलाह से दे किसी अच्छे ज्योतिषी को कुंङली दिखा कर समाघान करवाऐ आचार्य राजेश 09414481324 07597718725 माँ काली ज्योतिष hanumaangarh or dabwali

राहु वक्री साथ वालो को भी करें वक्री

वक्री राहु साथ वाले ग्रह को भी कर दे बक्री      छाया ग्रह के रुप में जाना जाने वाला राहु ग्रह पूर्व जन्मों के कर्म बंधन को दर्शाता है। राहु जिस ग्रह के साथ युति में होता है वैसा ही कर्मबंधन अर्थात दोष होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार राहु सिर है। शरीर की अन्य इंद्रियों के अभाव के चलते इसमें अच्छे-बुरे का ज्ञान नहीं होता है, इसलिए इसे यह धर्म के विपरीत कार्य करता है। सामान्य रूप से लोगों में यह मान्यता है कि राहु हमेशा ही जातक को खराब फल देता है। बल्कि ऐसा नहीं है।

ऐक)कहावत बहुत ही मशहूर है,-"संगति ही गुण ऊपजे संगति ही गुण जाय,बांस फ़ांस और मीशरी एकहि भाव बिकाय",संगति का असर बडा ही अनौखा है,एक बांस की लकडी मिश्री के साथ तौल में मिश्री के भाव मे ही बिकती है.यह बात राहु की संगति के लिये भी मानी जाती है जिस भाव मे जाये उसका उल्टा फ़ल देने लगता है और जिस ग्रह को द्रिष्टि दे दे वही ग्रह वक्री का फ़ल देने लगे.गुरु के साथ आते ही अच्छा भला विद्वान आदमी छिछोरे काम करने लगे और शनि के साथ आने से अच्छा भला सेवा करने वाला आदमी हुकुम चलाने लगे.बुध के साथ आजाये तो बजाय बोलने के प्रदर्शन करने लगे,मंगल के साथ आजाये तो बजाय मेहनत करके शक्ति को पैदा करके दवाई खाकर या शराब पीकर शक्ति को बताने लगे,चन्द्रमा के साथ आजाये तो अच्छी भली सोच बदल कर कन्फ़्यूजन पैदा कर दे और सूर्य के साथ आजाये तो पिता को बेटे की हुकूमत मे चलना पडे और राज्य करने वाला बेईमान का रूप धारण करले यह सब राहु की संगति का परिणाम देखा जाता है.मतलब सीधे को उल्टा करना और उल्टे को सीधा करना इसका काम है.कई बार देखा है कि मारक अपनी शक्ति लेकर मारने के लिये जातक को अपना असर देता है लेकिन राहु की संगति मिलते ही मारने वाला बचाने के लिये भागने लगता है और बचाने वाला मारने के लिये अपने प्रयास करने लगता है।भाव का असर भी देखने मे बहुत ही अजीब सा लगता है अगर राहु लगन मे बैठ जाये तो उल्टा काम और बोलने चालने मे प्रदर्शन मे सभी कार्यो मे उल्टा फ़ल प्रदान करने लगता है आदमी है तो औरत वाली हरकते करने लगता है और औरत है तो आदमी वाले व्यवहार करने लगता है.राहु धन मे बैठ जाता है तो बजाय देने के लेने लगता है तीसरे भाव मे आजाये तो समझ कर चलने बोलने आदि की कला को बदल कर लडने झगडने और अपने को छुपाकर चलने मे अपना रूप प्रदर्शित करने लगे,चौथे भाव मे आजाये तो बजाय सोचकर बोलने और सोचकर चलने के कनफ़्यूजन को पैदा करदे,जो कुछ सीखा जा रहा था उसे करना शुरु कर दे और जब भी मौका मिले तो बजाय पानी के शराब के लिये अपना रुख जाहिर करने लगे,जो घर बरबाद हो गया था उसे आबाद करने लगे और जो आबाद है उसे बरबाद करने लगे,पंचम मे जाकर बजाय सीखने और याद करने के लोगो को याद करवाने लगे और छठे भाव मे जाकर जब कर्जा लेने की युति बने तो लोगो को कर्जा देने लगे,बजाय दुश्मनी की घात को पास लाने के दुश्मनो का ही विनाश करने लगे,सप्तम मे आजाये तो पत्नी का रूप पति की तरह हो जाये और पति महोदय बजाय शेर के बिल्ली होकर म्याऊँ की आवाज मे बोलने लग जायें आठवे भाव मे जाने से मौत को बचाने के बजाय मौत को ही गले लगाने लग जाये,नवे भाव मे जाते ही बजाय भाग्य को दूसरे से पूंछने के खुद ही भाग्य को बताने लग जाये दसवे भाव मे जाकर जैसे ही राहु अपनी गति को शुरु करे तो बजाय काम करने के सोने लग जाये और जो सो रहे हो उन्हे जगाकर काम करवाना शुरु कर दे,लाभ के भाव मे जाते ही जहां लाभ होता है वहां से लाभ की बजाय हानि देने के लिये तैयार हो जाये और जहां पर काम के बदले मे काम का मेहनताना मिलना था वहां अपनी जेब से भरना पड जाये यही हाल बारहवे भाव का है जब शांति का समय आये तो डर दिमाग मे भर जाये और जब कोई अपनी आत्मा को संतुष्टि देने लग जाये तो भूत प्रेत का असर सामने आने लग जाये किसी ने जीवन भर मेहनत करने के बाद पूजा पाठ करने से लोगो का भला करने के बाद गति प्राप्त करने के लिये धर्म किये थे लेकिन मरने के समय राहु का गोचर अगर बारहवे भाव मे हो गया तो अंत समय मे कोई ऐसा काम हो जाये कि अधोगति को प्राप्त करने के बाद नरक योनि मे भटकने के लिये मजबूर होना पडे.

यही बात राशि के अनुसार भी मानी जाती है,मेष मे राहु के होने से बजाय शरीर की शक्ति के दिमागी शक्ति का प्रयोग करने लगे या मानसिक सोच से काम करने लगे वृष राशि मे जाते ही बजाय चुप रहने के बकर बकर करने लग जाये मिथुन राशि मे जाने से बजाय बोलने के दिखाने लग जाये कर्क राशि मे जाकर बजाय पानी के शराब का आदी बना दे और सिंह राशि मे जाकर बजाय राज्य करने के झाडू लगवाने की कला को पैदा करदे,कन्या राशि मे जाकर सेवा करने की बजाय लोगो से सेवा करवाने लग जाये तुला राशि का होने पर बजाय तौल कर बोलने के अनर्गल बोलना शुरु कर दे,वृश्चिक राशि मे जाकर बजाये दवाई देने के भभूत देने लग जाये,अस्पताल मे बजाय जीवन दान देने के जीवन को खरीदना बेचना शुरु कर दिया जाये,धनु मे जाते ही बाप दादा की औकात को दूर रखकर मन के अनुसार काम कर लिये जाये,मकर मे जाने के बाद बजाय काम करने के सोने और खाली बैठ कर जीवन को गुजार दिया जाये,कुम्भ मे जाने से मित्रता को स्वार्थ की भावना से देखा जाये और बजाय बडे भाई की सहायता लेने के देनी पड जाये,मीन राशि का होने पर धर्म स्थान की बजाय पाप स्थान मे जाने का मन करने लगे।

वह तोमंगल की फ़ेरी जीवन मे अच्छी मानी जाती है जैसे ही राहु अपनी हरकतो को उल्टा करना शुरु कर देता है वह अपनी तकनीक से राहु की हरकत से अपने अनुसार फ़ायदा वाली बातो को करने लगता है.इसी लिये कहा है कि राहु हाथी है तो मंगल हाथी को संभालने वाला अंकुश और आज के जमाने मे राहु बिजली है तो मंगल उसका तकनीकी बटन मंगल को क्षत्रीय ग्रह कहा जाता है जो रक्त का प्रतिनिधित्व करता है वहीं राहु बुद्धि को भ्रमित करने वाला ग्रह है।राहू रहस्य का कारक ग्रह है और तमाम रहस्य की परतें राहू की ही देन होती हैं | राहू वह झूठ है जो बहुत लुभावना लगता है | राहू झूठ का वह रूप है जो झूठ होते हुए भी सच जैसे प्रतीत होता है | राहू कम से कम सत्य तो कभी नहीं है |

शुक्रवार, 18 जनवरी 2019

हवन द्वारा रोग का नाश

मित्रो हवन द्वारा वङे से वङा रोग भी कट सकता है। मानसिक पीङा पागलपन वहमी होना यह सव रोग चन्द्र मा की देन हो सकते है क्योंकि चंद्रमा का मन से सीधा संबंध है। अतः मानसिक रोगों, मनोविकृतियों, मन में संचित विषों आदि उष्णताओं का शमन चंद्र गायत्री से होता है। 

अंतरात्मा की शांति, चित्त की एकाग्रता, पारिवारिक क्लेश, द्वेष, वैमनस्य, मानसिक उत्तेजना, क्रोध, अंतर्कलह आदि को शांत करके शीतल मधुर संबंध उत्पन्न करने के लिए भी चंद्र गायत्री विशेष लाभप्रद होती है। चंद्र गायत्री का मंत्र इस प्रकार है- ॐ भूर्भुवः स्वः क्षीर पुत्राय विऽहे, अमृत तत्वाय धीमहि तन्नः चंद्रः प्रचोदयात्। इस मंत्र द्वारा रोगानुसार विशेष प्रकार से तैयार की गई हवन सामग्री से नित्यप्रति कम-से-कम चौबीस बार हवन करने एवं संबंधित सामग्री के सूक्ष्म कपड़छन पाउडर को सुबह-शाम लेते रहने से शीघ्र ही मनोविकृतियों से छुटकारा मिल जाता है। हवन करने वाले का चित्त स्थिर और शांत हो जाता है। मानसिक दाह, उद्वेग, तनाव आदि विकृतियाँ उसके पास फटकती तक नहीं। सर्वप्रथम मस्तिष्क रोग की सर्वमान्य विशेष हवन सामग्री यहाँ दी जा रही है। इसके साथ ही पूर्वके लेखो मे मैने हवन सामग्री वताई थी को भी बराबर मात्रा में मिलाकर तब हवन करना चाहिए। विस्तृत जानकारी आप हमे फोन करके ले सकते है हवन सामग्री में जो वनौषधियाँ बराबर मात्रा में मिलाई जाती हैं, वे हैं, अगर, तगर, देवदार, चंदन, लाल चंदन, जायफल, लौंग, गुग्गल, चिरायता, गिलोय एवं असगंध। (1) मस्तिष्क रोगों की विशेष हवन सामग्री- (1) देशी बेर का गूदा (पल्प) (2) मौलश्री की छाल (3) पीपल की कोपलें (4) इमली के बीजों की गिरी (5) काकजंघा (6) बरगद के फल (7) खरैटी (बीजबंद) बीज (8) गिलोय (9) गोरखमुँडी (10) शंखपुष्पी (11) मालकंगनी (ज्योतिष्मती) (12) ब्राह्मी (13) मीठी बच (14) षतावर (15) जटामाँसी, (16) सर्पगंधा।ओर केसर ;-) इन सभी सोलह चीजों के जौकुट पाउडर को हवन सामग्री के रूप में प्रयुक्त करने के साथ ही सभी चीजों को मिलाकर सूक्ष्मीकृत चूर्ण को एक चम्मच सुबह एवं एक चम्मच शाम को घी-शक्कर या जल के साथ रोगी व्यक्ति को नित्य खिलाते रहना चाहिए।मघुमह रोगी को शक्कर ना दे मस्तिष्कीय रोगों में समिधाओं का भी अपना विशेष महत्व है। अतः जहाँ तक संभव हो क्षीर एवं सुगंधित वृक्ष अर्थात् वट, पीपल, गूलर, बेल, देवदार, खैर, शमी का प्रयोग करना चाहिए। चंद्रमा की समिधा-पलाश है। यदि यह मिल सके, तो सर्वश्रेष्ठ समझना चाहिए। उद्विग्न-उत्तेजित मन-मस्तिष्क को शीतलता प्रदान करने में उससे पर्याप्त सहायता मिलती है। ( तनाव ‘स्ट्रेस’ एवं हाइपर टेन्शन की विशेष हवन सामग्री- तनाव से छुटकारा पाने के लिए निम्नलिखित अनुपात में औषधियों की जौकुट सामग्री मिलाई जाती है- (1) ब्राह्मी-1 ग्राम, (2) शंखपुष्पी-1 ग्राम, (3) शतावर-1 ग्राम, (4) सर्पगंधा-1 ग्राम, (5) गोरखमुँडी-1 ग्राम, (6) मालकाँगनी-1 ग्राम, (7) मौलश्री छाल-1 ग्राम, (8) गिलोय-1 ग्राम, (9) सुगंध कोकिला-1 ग्राम, (1) नागरमोथा-2 ग्राम, (11) घुड़बच-5 ग्राम, (12) मीठी बच-5 ग्राम, (13) तिल-1 ग्राम, (14) जौ-1 ग्राम, (15) चावल-1 ग्राम, (16) घी 1 ग्राम, (17) खंडसारी गुड़-5 ग्राम, (18) जलकुँभी (पिस्टिया)-1 ग्राम। इस प्रकार से तैयार की गई विशेष हवन सामग्री से चंद्र गायत्री मंत्र के साथ हवन करने से तनाव एवं उससे उत्पन्न अनेकों बीमारियाँ तथा हाइपरटेंशन से प्रयोक्ता को शीघ्र लाभ मिलता है। यहाँ इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि उक्त सामग्री में क्रमाँक (1) अर्थात् ब्राह्मी से लेकर क्रमाँक (12) अर्थात् मीठी बच तक की औषधियों का महीन बारीक पिसा एवं कपड़े द्वारा छना हुआ चूर्ण सम्मिश्रित रूप से एक-एक चम्मच सुबह एवं शाम को जल या दूध के साथ रोगी को सेवन कराते रहना चाहिए। (3) दबाव-अवसाद-’डिप्रेशन’ आदि मानसिक रोगों की विशेष हवन सामग्री- (1) अकरकरा, (2) मालकाँगनी, (ज्योतिष्मती) (3) विमूर (4) मीठी बच, (5) घुड़बच, (6) जटामाँसी, (7) नागरमोथा, (8) गिलोय, (9) तेजपत्र, (1) सुगंध कोकिला, (11) जौ, तिल, चावल, घी, खंडसारी गुड़। उक्त औषधियों से तैयार हवन सामग्री से हवन करने के साथ ही (नं 1) से (नं 1) तक की औषधियों का बारीक पिसा हुआ चूर्ण रोगी को सुबह शाम एक-एक चम्मच जल या दूध के साथ नित्य खिलाते रहने से शीघ्र लाभ मिलता है। इसके साथ ही डिप्रेशन या दबाव से पीड़ित व्यक्ति को शीघ्र स्वस्थ एवं सामान्य स्थिति में लाने के लिए यह आवश्यक है कि उसके मन के अनुकूल बातें की जाएँ। (4) मिर्गी-अपस्मार या ‘फिट्स’ की विशेष हवन सामग्री- मिर्गी एवं इससे संबंधित रोगों पर निम्नलिखित औषधियों से बनाई गई हवन सामग्री से यजन करने पर यह रोग समूल नष्ट हो जाता है। (1) छोटी इलायची, (2) अपामार्ग के बीज, (3) अश्वगंधा, (4) नागरमोथा, (5) गुरुचि, (6) जटामाँसी, (7) ब्राह्मी, (8) शंखपुष्पी, (9) चंपक, (10) मुलहठी, (11) गुलाब के फूल ;-) मोती पिश्ठी आदि मित्रो मेरे पास अनुभव ओर ज्ञान की कमी नही है पर आप मेरी पोस्ट से लाभ ले सके यही मेरा मकसद है वाकी मेरा मुझ मे कुछ नही सव माता रानी की देन है आचार्य राजेश 07597718725 09414481324

मंगलवार, 15 जनवरी 2019

तुला ♎ लग्न भाग 2

तुला लगन मे सूर्य राहु बुध

सन्तान की पैदाइस मे तुला लगन का महत्व अक्सर चौथे नम्बर की सन्तान के बारे मे जाना जाता है.इससे पता उल्टी रीति से कुंडली को देखा जाता है,कि कितने बडे भाई बहिन है और सीधी गणना करने से कितने छोटे भाई बहिन है इस बात का पता किया जाता है। बडे भाई बहिनो के लिये उल्टी रीति से देखने पर तुला लगन मे नवे भाव से देखने पर बुध की मिथुन राशि आती है और इस राशि का मालिक बुध है 

जो स्त्री ग्रह के रूप मे जाना जाता है,और सबसे बडी बहिन होने के लिये अपनी गति को देता है.इसके पहले सूर्य की सिंह राशि आती है जिसका मालिक सूर्य होने से पुरुष ग्रह की शक्ति को देखकर माना जाता है कि बडी बहिन के बाद एक बडा भाई होता है,फ़िर तुला लगन को अगर पुरुष ग्रह अपनी पूर्ण युति से देखते है तो इस राशि के मालिक शुक्र के दो रूप मिलते है  शुक्र अगर किसी स्त्री ग्रह के साथ होता है तो पुरुष संतति और शुक्र अगर पुरुष ग्रह के साथ होता है तो स्त्री संतति के कारण को समझा जा सकता है। जातक की लिंग प्रकृति को निर्धारण करने के कारको मे लगनेश का बहुत ही महत्व होता है। इसके अलावा भी अगर लगनेश को अधिक स्त्री ग्रह देखते है तो वह स्त्री रूप मे और पुरुष ग्रह अधिक द्रिष्टि देते है तो पुरुष रूप में समझा जाता है। जैसे लगन के मालिक को अगर पुरुष ग्रह अपनी शक्ति मे अन्य पुरुष ग्रहो की शक्ति को शामिल करने के बाद देता है तो वह रूप पुरुष सन्तति के रूप मे गिना जाता है। इसके उदाहरण के लिये अगर तुला लगन का मालिक दूसरे भाव मे है और उसे शनि अपनी द्रिष्टि से देख रहा है तो यह समझना जरूरी है कि पहले तो शुक्र पुरुष राशि के प्रभाव मे है जैसे तुला लगन की दूसरी राशि वृश्चिक है और इस राशि का मालिक मंगल है,मंगल के प्रभाव से शुक्र का रूप पुरुष रूप मे परिवर्तित होता है इसके बाद अगर बारहवे दसवे आठवे छठे भाव मे गुरु विराजमान है तो पुरुष ग्रह की द्रिष्टि से और भी लगनेश को पुरुष ग्रहो का बल मिल जाता है,साथ ही गुरु के साथ अगर पुरुष ग्रहो जैसे सूर्य मंगल का प्रभाव शामिल हो जाता है तो वह सन्तति पुरुष सन्तति के रूप मे सामने आती है। लेकिन यह भी ध्यान रखने वाली बात होती है कि किसी प्रकार से गुरु या मंगल वक्र हो जाता है तो बजाय पुरुष संतति के स्त्री संतति के बारे मे जाना जा सकता है।तुला लगन मे जब राहु विराजमान हो जाता है तो जातक के जीवन असमान्य स्थितिया हमेशा बनी रहती है,उसके कार्य के बारे मे कुछ नही कहा जा सकता है उसके विवाह सम्बन्धो के बारे मे भी कुछ नही कहा जा सकता है,उसके जीवन के बारे मे भी कुछ नही कहा जा सकता है। इस लगन मे राहु होने का मतलब होता है कि केतु का स्थान सप्तम मे अपने आप आजयेगा,सूर्य के साथ होने पर राहु का प्रभाव बडे भाई के कारक ग्रह पर होने के कारण बडे भाई के जीवन मे ग्रहण की युति बन जायेगी और केतु जो सप्तम स्थान मे बैठा होगा उसकी युति से बडे भाई का जो पुत्र होगा वह विदेशी मान्यता के अनुरूप माना जायेगा। लगन तुला होगी लेकिन सूर्य और राहु के होने से कुण्डली बडे भाई की मानी जायेगी और बुध के साथ होने पर वह बडी बहिन से भी मिलती जुलती होगी। तुला लगन की कुंडली को या तो चन्द्रमा की लगन से या लगनेश की लगन से मान्यता गिनने पर फ़लादेश मे त्रुटि रहने की सम्भावना कम हो जायेगी।तुला लगन का राहु और सूर्य बडे भाई के जीवन मे उसके सप्तम मे बैठा केतु ही उसके जीवन को बरबाद करने वाला माना जायेगा कारण उस लगन के केतु का प्रभाव अगर किसी प्रकार से चन्द्रमा से हो गया है तो वह बडे भाई की पत्नी के रूप मे हमेशा अपनी झूठी तरफ़दारी से अपने को आगे बढाने की कोशिश करेगा और उसकी पत्नी हमेशा अपने पुत्र और दामाद के लिये ही अपने जीवन को समर्पित कर देगा। इस लगन के जातक की भाभी के लिये केतु को गिना जायेगा। केतु की द्रिष्टि जिन ग्रहो भावो को अपनी गिरफ़्त मे ले रही होगी वही भाव और ग्रह अपनी युति मे केतु जैसा बर्ताव करना शुरु कर देंगे,इसके अलावा केतु जिन ग्रहों भावो से षडाष्टक योग बना रहा होगा जिन भावो को का असर केतु के लिये द्वादस का गोचर और जन्म के हिसाब से होगा उनके लिये वह हमेशा दिक्कत देने वाला होगा। अगर केतु से पंचम मे चन्द्रमा यानी जातक के ग्यारहवे भाव मे चन्द्रमा है तो केतु की चन्द्र की युति से चन्द्र ग्रहण योग बन जायेगा और जातक की भाभी की माता ग्रहण के कारण विधवा भी हो सकती है या परित्यक्ता भी हो सकती है साथ ही केतु से पंचम भाव मे चन्द्रमा होने से भाभी की माता प्राथमिक शिक्षा वाले कार्यों मे भी हो सकती है और राज्य से भी किसी न किसी प्रकार का लाभ उसे चन्द्रमा से नवे भाव मे केतु होने से मिल रहा होगा।इस केतु का असर जातक के बडे भाई पर असीमित रूप मे पड रहा होगा,जैसे सप्तम के केतु को दूसरे नम्बर का लडका कहा जाता है,जातक के बडे भाई का लडका दूसरे नम्बर का होगा उसके पहले अगर राहु के साथ बुध है तो और सूर्य भी उसे साथ दे रहा है तो किसी न किसी प्रकार से जातक की भाभी को पहली सन्तान का या तो गर्भपात करवा दिया जाता है या वह पैदा होने के बाद भी टिक नही पाती है। केतु के पंचम में चन्द्रमा के होने से यह भी जाना जाता है कि जातक की भाभी की माँ के गुजरने के बाद जातक की भाभी की पुत्री का राज घर पर होगा और उस राज में जो भी जातक की भाभी की जायदाद आदि होगी वह जातक की भाभी के बाद जातक के बडे भाई के दामाद के कब्जे मे चली जायेगी।जिस प्रकार से केतु का असर जातक के दूसरे भाव मे होगा उसी प्रकार का असर जातक के बडे भाई की पुत्र वधू के साथ मिलेगा। कारण वही कारक तो जातक के बडे भाई की पत्नी के रूप मे केतु अपने रूप को जाहिर करेगा और वही रूप बडे भाई के बडे पुत्र के लिये जो दूसरे नम्बर का होगा उसके लिये माना जायेगा। जातक को जातक की भाभी हमेशा अपमान देने और अपमानित करने की द्रिष्टि से देखेगी तो जातक के बडे भाई का पुत्र भी अपनी पत्नी को अपमान और अपमानित करने वाली नजर से देखेगा। अक्सर यह कारण लांछन लगाने और झूठी चोरी आदि लगाने के कारको मे जाना जायेगा। कोई भी कार्य हो जातक के द्वारा जो भी किया जायेगा वह कितना ही अच्छा हो या अच्छे के लिये किया जाये लेकिन उसके अन्दर भी अपमान और झूठे इल्जाम लगाये जाने के कारण जातक को मानसिक रूप से सटप्रताणित करने का काम ही जातक की भाभी का और बाद मे जातक के बडे भाई की पुत्र वधू के लिये किया जायेगा

सोमवार, 14 जनवरी 2019

ग्रहों के अधीन है हर चीज

आसपास की हर वह वस्तु ( सजीव अथवा निर्जीव) जिसका हम पर या हमारे जीवन पर और हमारे रोजमर्रा के कार्य पर प्रभाव है हर वस्तु पर ग्रहण का किस तरह दखल है, यह हमें पहचानने की आवश्यकता है जी हां मित्रोंधरती पर भी ग्रह का अंश विद्यमान है और हमे उसे पहिचानने की आवश्यकता होती है। आप अपने कम्पयूटर की टेबिल पर विराजमान है और आप को यह समझना जरूरी है कि इस टेबिल के आसपास कौन कौन से ग्रह के अंश विद्यमान है। की बोर्ड केतु है और की बोर्ड के अन्दर लिखा जाने वाला कार्य बुध है

,की बोर्ड के अन्दर जो बिजली का प्रवाह है वह मंगल के रूप में है और की बोर्ड की बनावट को दर्शाने वाला सूर्य है,की बोर्ड की सजावट शुक्र है और की बोर्ड पर की जाने वाली मेहनत वह की दबाने से सम्बन्ध रखती हो या की बोर्ड की जानकारी के लिये जानी जाती हो। की बोर्ड को चलाने का तरीका ही गुरु है और की बोर्ड के अन्दर के पार्ट राहु के रूप में है जो अपनी भाषा से कम्पयूटर के अन्दर डाटा भेज कर अपने कार्य को बृहद गणना से पूरा करने के बाद सम्बन्धित प्रोग्राम को खोलकर सामने लाते है। की बोर्ड का तार भी केतु की श्रेणी मे आता है और कीबोर्ड का जैक भी केतु की श्रेणी में आता है। कम्पयूटर का हार्डवेयर केतु है,उसके अन्दर लगे पार्ट्स भी केतु की श्रेणी में आते है चलने वाली बिजली मंगल है और अन्दर जो डाटा चल रहा है वह राहु की श्रेणी में आता है। बनाये गये प्रोग्राम जो भी स्क्रीन पर आते है वे द्रश्य रूप में सूर्य की श्रेणी में आते है और स्क्रीन जो मनभावन कलर में और मन को अच्छी लगने वाली वालपेपर के रूप में सामने है वह शुक्र की श्रेणी में आता है। माउस भी केतु की श्रेणी में आता है लेकिन माउस के द्वारा किया जाने वाला कार्य जो कम्पयूटर को शक्ति देता है वह राहु की श्रेणी में आता है। सभी को मिलाकर गुरु और बुध की श्रेणी में इसलिये लिया जाता है क्यों कि बुध और राहु मिलकर असीमित विस्तार का रूप देते है,बुध और केतु मिलकर यंत्र का निर्माण करते है और मंगल उनके अन्दर बिजली की शक्ति देता है,सूर्य से ढांचा बनाया जाता है और शुक्र से उसका रूप सजाया जाता है। जो भी रंग हमे कम्पयूटर में दिखाई देते है वे सभी ग्रहों के अंश के रूप में दिखाई देते है। इसी तरह से प्रिंटर को भी समझा जा सकता है,प्रिंट करना बुध और शनि के अन्दर आता है कागज का रूप शनि चन्द्र के रूप में आता है कागज पर छपा हुआ मेटर केतु की श्रेणी में और कागज पर छपे मेटर से उत्पन्न होने वाला भाव राहु की श्रेणी में आता है,उसकी उपयोगिता और अनुपयोगिता को गुरु की श्रेणी में लाया जाता है। इसी तरह से जब हम अपनी बैठक में बैठ कर कोई टीवी प्रोग्राम देख रहे होते है तो टीवी भी बुध और राहु की श्रेणी में आता है उसके अन्दर चलने वाले प्रोग्राम बुध और गुरु की देन होती है और हमें क्या अच्छा लग रहा है वह उस समय के ग्रह के अनुसार मानसिक रूप से चन्द्रमा के द्वारा समझ में आता है सैटेलाइट से या केबिल से जो भी प्रोग्राम हमारे टीवी के अन्दर आ रहे होते है वे केतु के द्वारा राहु की देन होते है और जो भी कार्यक्रम हम पसंद करते है वह हमारे मन यानी चन्द्रमा के आधीन होते है। इसी लिये कोई प्रोग्राम हम सभी को एक साथ देखने में अच्छा लगता है वह उस समय की बुध और राहु की देन होती है जो चन्द्रमा पर अपना अधिकार दे रही होती है। कभी कभी हमें कोई प्रोग्राम अच्छा नही लगता है और कभी कभी हमे बेकार का प्रोग्राम भी अच्छा लगता है,बुध और सूर्य के मिलने पर हमे समाचार अच्छे लगते है और बुध शुक्र के मिलने पर हमे गाने अच्छे लगते है,शुक्र का प्रभाव जब मानसिक रूप से सूर्य को प्रभावित करता है तो हमें उत्तेजक द्रश्य अच्छे लगते है और बुध का प्रभाव जब गुरु के अनुसार होता है तो हमे धार्मिक और बुद्धि को बढाने वाले प्रोग्राम अच्छे लगते है। धन से सम्बन्धित प्रोग्राम हमारे दूसरे भाव के द्वारा समझ में आते है और खेल कूद के प्रोग्राम हमें हमारे पांचवे भाव के अनुसार अच्छे लगते है।जब भोजन की टेबिल पर बैठे होते है तो भी ग्रह हमारे आसपास ही होते है । पानी के रूप में चन्द्रमा हमारे आसपास होता है। रसों के रूप में शुक्र हमारे पास होता है वही शुक्र फ़लों के रूप में सजीव दिखाई देता है जब रस का बना हुआ ढांचा शुक्र और सूर्य का मिलावटी रूप होता है। मंगल के साथ होने पर फ़ल लाल रंग का मीठा होता है और गुरु के साथ होने पर पीला होता है। बनी हुई दाल गुरु और मंगल के साथ सूर्य से अपना संबध रखती है और बना हुये चावल चन्द्रमा मंगल और सूर्य के साथ हमारे साथ होते है। वेजेटेरियन खाना हमारे गुरु के अनुसार होता है और नानवेज खाना हमारे शनि और राहु के अनुसार माना जाता है,भोजन को ग्रहण करने के समय जो भी कारक चाहे वे प्लेटें हो चमचा हों या भोजन को मुंह तक पहुंचाने के लिये हाथों का प्रयोग होता हो या भोजन को करवाने के लिये किसी अन्य व्यक्ति का रूप सामने हो वह केतु के रूप में माना जाता है। भोजन जो किया जाता है उसका प्रभाव शक्ति के रूप में हस्तांतरित होता है,शक्ति अच्छी या बुरी राहु के रूप में खून यानी मंगल के अन्दर अपना स्थान बनाती है और जैसे जैसे मंगल खून के रूप में अपना प्रभाव शरीर पर देता है उसी प्रकार की शक्ति मन की शक्ति के रूप में समझने में आने लगती है। अगर तामसी भोजन किया होता है तो खून के अन्दर राहु का प्रभाव बद के रूप में शामिल हो जाता है और वह अपनी शक्ति से मन को गंदा करता है दिमाग मे कुत्सित विचार आने लगते है तथा कोई भी गलत कार्य करने के बाद जो सोच रह जाती है वह केवल चिन्ता को पैदा करती है इससे ह्रदय के ऊपर अधिक भार पडने से हाई या लो ब्लड प्रेसर का रूप सामने आने लगता है।जब हम कोई भी कार्य कर रहे होते है तो वह भी ग्रह के अनुसार ही सामने होता है। अगर गाडी की ड्राइव कर रहे है तो शुक्र केतु का रूप सामने होता है,और राहु जो सडक के रूप में होती है उस पर केतु शुक्र का आमना सामना होता रहता है। दिमागी विचार के रूप में गुरु अपनी शक्ति को देता रहता है और बुध के साथ राहु का दूसरा प्रभाव अगर चिन्ता के रूप में सामने होता है तो दिमाग सडक की वजाय अन्यत्र भटकने लगता है,इससे ही दुर्घटना होने के अन्देसे सामने आने लगते है। जब व्यक्ति चल कहीं रहा होता है और दिमाग कहीं भटक रहा होता है तो जो सामने होने को है उससे दिमाग अपने विस्तार रूपी केलकुलेशन को हटा देता है,और उसी समय ही दुर्घटना हो जाती है। शुक्र के ऊपर जो राहु का प्रभाव सामने आता है तो हमेशा दिमाग में सुन्दरता के प्रति विचार दिमाग में पनपते रहते है और शुक्र राहु का नशा भी जब व्यक्ति को परेशान करता है तो वह अपने चलने वाले कार्यों और विचारों को भूल कर एक अनौखी दुनिया में विचरण करने लगता है। उस विचरण के दौरान ही व्यक्ति के अन्दर जो भी लाभ हानि होती है,वह राहु और शुक्र के प्रति ही समझा जाता है। जब व्यक्ति को अपनी भूल का अहसास होता है तो वह काफ़ी कुछ खो बैठता है या काफ़ी कुछ राहु की कृपा से प्राप्त कर चुका होता है।हमारा पूरा जीवन ही ग्रह गणित में फ़ंसा है। जन्म से लेकर मौत तक ग्रह ही अपनी अपनी शक्ति से अपना अपना कार्य करवाते जाते है और हम आसानी से उन कार्यों को करते जाते है जब ग्रह अपना रूप अटकाने के लिये सामने लाते है तो हम अटक जाते है और जब ग्रह अपने अनुसार सही होते है तो हम उन्ही कार्यों को करते हुये आगे निकलते जाते है,जब हमारे कार्य पूरे होते है तो हम सुखी रहते है और जब हमारे कार्य पूरे नही होते है तो हम दुखी होते है। ग्रह गणित में रिस्ते नाते भी आते है,सूर्य से पिता या पुत्र को माना जाता है चन्द्रमा का विभिन्न रूप माता के सरीखे लोगों से सामने आने लगता है मंगल या तो भाई होता है या स्त्री जातक के लिये पति का रूप भी सामने लाता है बुध बहिन बुआ या बेटी के रूप में होती है और गुरु जो जीव के रूप में स्वयं भी होता है शुक्र पत्नी का कारक है स्त्री के लिये सजावटी कार्यों का कारक है शनि से कर्म का अन्दाज लिया जाता है या घर के बुजुर्ग लोगों के लिये भी शनिकी गिनती की जाती है। राहु को अन्दरूनी शक्ति के लिये जाना जाता है केतु के लिये केवल साधनो के रूप में ही जाना जाता है वैसे दोनो ही ग्रह छाया ग्रह के रूप में जाने जाते है केतु को नकारात्मक छाया और राहु को सकारात्मक छाया के लिये जाना जाता है। राहु केतु के बिना जीवन के अन्दर कोई भी कार्य पूरा नही होता है,कारण नही बनता है तब तक उसका निवारण भी नही बनता है कारण को बनाने वाला केतु होता है और निवारण के लिये अपनी शक्ति को देने वाला राहु होता है।आज इतना ही बाकी फिर मिलेंगे दोस्तों एक और नए लेख को लेकर जय माता दी खुश रहिए धानंद मे रहिए मस्त रहिए

रविवार, 13 जनवरी 2019

तुला♎लग्न के लिए घन कारक ग्रह

तुला लग्न के स्वामी शुक्र होते है  ये चर राशि है  तुला राशि में वायु तत्त्व की प्रधानता देखने को ,मिलती है । शूद्र वर्ण की ये राशि भचक्र की सातवें स्थान पर आने वाली राशि हैइस राशि  में चित्र स्वाति  और  विशाखा नक्षत्र  आते  तुला लगन मे जन्म लेने वाले जातको के लिये धन प्रदाता ग्रह मंगल है।धनेश मंगल की शुभाशुभ स्थिति से धन स्थान से संबंध जोडने वाले ग्रहों की स्थिति  योगायोग एवं मंगल तथा धन स्थान पर पडने वाले ग्रहों के द्रिष्टि संबंध से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति आय के स्त्रोतों तथा चल अचल संपत्ति का पता चलता है।  इसके अतिरिक्त लगनेश शुक्र पंचमेश शनि भाग्येश बुध ऐश्वर्य एवं वैभव को बढाने में पूर्ण सहायक होते है। वैसे तुला लगन के लिये गुरु सूर्य मंगल अशुभ है। शनि बुध शुभ होते है चन्द्र और बुध राजयोग कारक होते है,मंगल प्रधान मारकेश होकर भी मारक कार्य नही करता है।

 गुरु छठे भाव के मालिक होने से अशुभ फ़लदायक है। गुरु परमपापी है सूर्य व शुक्र भी पापी है,अति शुभ फ़लदायक शनि है। मंगल साहचर्य से मारक का कार्य करेगा। मंगल के कार्यों से अगर जातक को जोडा जाता है तो जातक अस्पताली कार्यों के प्रति निपुणता का प्रदर्शन करने के बाद धन को प्राप्त कर सकता है,मंगल ही इन्जीनियरिंग आदि के कार्यों से अपना सम्बन्ध जोडता है और मंगल ही तोडफ़ोड और पुराने सामान जो लोहे और मशीनरी आदि से सम्बन्ध रखते है से अपना सम्बन्ध बनाकर कर रखता है। मंगल भोजन के लिये भी जाना जाता है और मंगल होटल ढाबा और इसी प्रकार के कार्यों से जोडा जाता है। लेकिन तुला लगन में मंगल का आधिपत्य दूसरे भाव की वृश्चिक लगन से होने से भी जातक के लिये उन कार्यों के प्रति भी रुझान बढेगा जो कार्य गूढ होते है और जो कार्य कबाड से जुगाड बनाने वाले कारणों में जाने जाते है। धनेश मंगल ही सप्तमेश का कार्य करता है,अगर सप्तम स्थान जातक के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कार्य करता है तो जातक को धनी बनने से कोई रोक नही सकता है। अक्सर सप्तम स्थान से मंगल की स्थिति अगर छ: यानी लगन से बारहवे स्थान में होती है तो जातक का जीवन साथी जातक के द्वारा कमाये गये धन को अपने अनुसार कर्जा दुश्मनी बीमारी और रोजाना के घर के खर्चों के बहाने खर्च कर लेगा और उसके पास कुछ भी नही बचेगा जितना जातक कमायेगा उससे अधिक जातक का जीवन साथी अपने कारणों से खर्च कर लेगा। इसके अलावा सप्तम से छठे स्थान में अगर गुरु किसी प्रकार से अपनी युति देता है तो जातक के द्वारा बनाये गये संबध भी जीवन साथी की बजह से बेकार होजाते है और उन सम्बन्धो की बजह से भी जातक को मुकद्दमा या पारिवारिक कारणों से खर्च करना पडता है। यह बाते संतान से सम्बन्धित रिस्तों में भी होते है और रोजाना के कार्यों के अन्दर भी माने जाते है। इसके अलावा अगर मंगल का स्थान सप्तम से अष्टम यानी जातक के दूसरे भाव में होता है तो जातक को अपने ही परिवार के कारण धन को खर्च करना पडता है और यह भी जीवन साथी के प्रति अपमान या मौत जैसे कारणों के लिये माना जाता है।जीवन साथी को जोखिम के कामों में अधिक मन लगने से भी जातक को धन के साथ कभी कभी शारीरिक क्षति मिलती है।तुला लगन में अगर शुक्र लगन में ही विराजमान हो शनि बुध की आपसी युति किसी भी प्रकार से हो तो जातक के लिये अपनी प्रसिद्धि का कारण बन जाता है,शुक्र लगन में होता है तो जातक को तुला राशि का पूरा प्रभाव मिलता है उसे धन को जायदाद को और जो भी धन के देने वाले कारक होते है के अन्दर बेलेंस बनाने की अभूतपूर्व क्षमता का विकास होता है,वह किसी भी प्रकार के धन और सम्पत्ति को बेलेंस बनाने के कामों में अपनी बुद्धि का प्रयोग करता है अगर जातक पुरुष है तो वह महिलाओं के सानिध्य से और महिला है तो पुरुषों और सम्पत्ति के बल पर अपनी औकात को बनाता चला जाता है,बुध के भाग्य और खर्च करने के भावों का मालिक होने के कारण वह धन की स्थिति को जोडने घटाने के कामों मे और कई तरह की भाषाओं को जानने की बजह से भी अपनी योग्यता को बढाता चला जाता है उसे कमन्यूकेशन के साधनों से भी अच्छी कमाई होती है और वह अपने विस्तार को अधिक से अधिक बढाता हुआ अपने को प्रसिद्धि के रास्ते पर ले जाता है। शनि का आधिपत्य मकर और कुम्भ राशि पर होने से शनि सुख और बुद्धि का मालिक बन जाता है और कुंडली में जहां भी होता है वह सुख और बुद्धि वाले कामों को ही देता है। शनि कर्म का भी दाता है और भावों के अनुसार अपना फ़ल जातक को देता चला जाता है,अगर शनि लगन से छठे भाव में है तो जातक को रोजाना के कामों में और कर्जा दुश्मनी बीमारी से भी लाभ देने का कारक बना होता है। अगर शनि लगन से सप्तम स्थान में होता है तो वैसे तो शनि को मेष राशि का होने पर नीच का कहा जाता है लेकिन जातक धन के मामलो में अपने जीवन साथी की नीचता का लाभ उठाता है उसके पास वही साझेदार होते है जो अपनी नीचता के द्वारा जातक को लाभ देने के मामले में जाने जाते है। अक्सर इस स्थान का शनि जातक को उसी प्रकार के जीवन साथी को प्राप्त करने के लिये बल देता है जो अनैतिक कार्यों को करने वाले और अपने शरीर को किसी भी गलत कार्यों में लगा सकने में समर्थ होते है। यह बात अक्सर अच्छे कार्यों के लिये भी माना जाता है जैसे राजनीति आदि के कारणों में अपनी पहिचान बनाने के लिये और नीची बस्तियों में रहने वाले लोगों से ताल मेल बैठाकर उनसे अपने कार्यों को करवाने के लिये माने जाते है। शनि जब बुध के साथ अपनी युति रखता है तो जातक को कार्य के प्रति आकलन करने की अच्छी शक्ति अपने आप पैदा हो जाती है और अगर शनि का स्थान अष्टम में होता है तो जातक प्लास्टिक के कामों में और जमीन की खरीद बेच करने में अपनी योग्यता का अच्छा परिचय देता है और अन्दरूनी तरीके से धन कमाने के लिये अपने को छुपाकर रखता है,साधारण आदमी को पता नही चलता है कि जातक के पास कितनाधन कहां से आया है और कहां है। अक्सर इस प्रकार के कार्यों के अन्दर दवाइयों के व्यापार से भी जोड कर देखा जाता है,और कबाड आदि के कार्यों से भी मिलाकर देखा जाता है।शनि का स्थान अगर दूसरे भाव में है और बुध का स्थान अगर अष्टम में है तो जातक मंत्र विद्या में पारंगत होता है और जातक किसी भी जासूसी वाले कार्य में निपुण होता है। जातक को जमीन के अन्दर के तत्वों की पूरी जानकारी होती है वह अपने दिमाग से रत्न व्यवसाय का अच्छा व्यवसाय कर सकता है,और अन्दर से कुछ कार्य बाहर से कुछ दिखाई देने वाले कार्यों की बजह से भी जातक अपने को धन के क्षेत्र में ले जाता है,जातक रद्दी से रद्दी वस्तु का स्तेमाल करने की योग्यता रखता है,बेकार से बेकार आदमी को कार्य में लगाने की हिम्मत रखता है,जडी बूटी से अच्छी से अच्छी दवाई बनाकर बेचने की भी औकात रखता है।जातक का धन अक्सर उन्ही फ़सलों के उत्पादनों से सम्बन्धित होते है जो जमीन के अन्दर कन्द के रूप में पैदा होती है और उन फ़सलों के द्वारा जातक खुले रूप में या उन्हे परिष्कृत करने के बाद अच्छा धन कमा सकता है। जातक ज्योतिष विद्या और इसी प्रकार की भाषाओं से से अपनी जीविका को चलाने की हिम्मत रखता है। अगर शनि तीसरे स्थान में होता है तो जातक का ध्यान बडी मीडिया या पब्लिसिंग वाले कार्यों की तरफ़ ध्यान जाता है जातक को कानूनी कार्य करने का शौक होता है जातक लम्बी रेल यात्रा करने का शौकीन होता है और जातक के लिये कोई भी धर्म और भाग्य के कार्य करने और उन्हे बताने का अच्छा व्यवहारिक ज्ञान होता है। अगर पंचम स्थान में शनि होता है और लाभ स्थान का सूर्य होता है तो जातक अपने कार्यों से अपने इलाके का मसहूर व्यक्ति बन जाता है जातक को लोग अपने अपने अनुसार पहिचानने लगते है। तुला लगन में भाग्य स्थान यानी मिथुन राशि का बुध जातक को विदेशी भाषाओं और कानून के मामले में अपनी पहिचान देता है तथा किसी भी तरह के हाईकोर्ट जैसे मामले को वह चुटकी से निपटाने की औकात रखता है। विदेशी व्यापार और विदेशी कानून को वह आसानी से पहिचानने और करने के लिये अपनी बुद्धि का सही प्रयोग करता है। घर में परिवार में और शहर में वह अपने अनुसार जाना जाता है उसकी प्रसिद्धि अल्प प्रयत्न से होती है,उसे किसी प्रकार से अपनी पहिचान किसी को बताने की जरूरत नही पडती है। बुध का स्थान अगर सिंह राशि में होता है तो जातक के मित्र अधिकतर धनी वर्ग के होते है या बनिया स्वभाव के होते है उनसे जातक को किसी भी मुशीबत में अपने लिये सहायता मिलती रहती है और जातक को अपनी पुत्री बहिन या बुआ से काफ़ी सहायता मिलती है,उसी सहायता से जातक अपने को बलशाली बना लेता है। इस स्थान का बुध जातक को रिहायसी प्लाट आदि खरीदने और बेचने से धनवान बनाने में सहयोग करते है,अगर जातक किसी प्रकार से अपनी बडी बहिन या बडी बुआ से बनाकर चलता है तो जातक के पास अकूत धन बहिन या बुआ के भाग्य से पैदा होने लगता है। इस स्थान के बुध के लिये जातक की पहिचान होती है कि उसके सामने वाले दांतों में दाहिनी तरफ़ के दांत के ऊपर एक दांत और होता है जिसे दतूसर के नाम से जाना जाता है,अगर जातक किसी प्रकार से तामसी भोजन यानी शनि का प्रयोग करना शुरु कर देता है तो उसके पास धन की बढोत्तरी शुरु हो जाती है कारण बुध दतूसर और शनि तामसी भोजन दोनो का संयोग लक्ष्मी को बढाने के लिये जाने जाते है।

तुला लगन में मंगल अगर मेष राशि का होता है तो जातक के जीवन साथी के अन्दर शारीरिक बल की अच्छी क्षमता होती है वह जातक के जीवन को कमजोर होने पर भी एक प्रहरी की तरह से संभाल कर रखता है,जब भी जातक के लिये कोई कठिनायी दुश्मनी बीमारी आदि होती है तो वह अकेले ही अपने कार्यों से प्रयासों से जातक को बचा लेता है। जातक का जीवन साथी जुबान का पक्का होता है और जो भी कह देता है वह पूरा करके दिखाता है,इसी कारण से जातक के जीवन साथी से कभी कभी तनाव बना रहता है,इस स्थान का मंगल सप्तम का मंगल कहा जाता है और जातक के अन्दर एक से अधिक जीवन साथी बनाने की भी आदत पायी जाती है लेकिन अपनी तुला लगन की बुद्धि से वह दोनो के अन्दर किसी न किसी प्रकार से बेलेंस बनाकर जीवन में सहयोग लेने के लिये भी जाना जाता है। अक्सर तुला लगन के जातक की आदत भी दोहरी होती है एक अपने लिये और एक दूसरे लोगों के लिये वह अपने लिये कुछ और होता है और दूसरों के लिये कुछ और,इसी कारण से जातक के अक्सर दो नाम होते है एक घर का और एक बाहर का। तुला लगन के जातकों के लिये मंगल का स्थान नकारात्मक पहले होता है और सकारात्मक बाद में होता है। सकारात्मक के लिये जातक के जीवन साथी का सहयोग माना जाता है नकारात्मक होने के लिये इस लगन के जातकों के सम्मुख होने पर पता चलता है। जितनी वाहवाही इस लगन के जातकों की दूर से सुनाई देती है उतनी ही घटिया आदते इस लगन के अन्दरूनी भागों में मानी जाती है,अगर किसी प्रकार से गुरु का स्थान इस लगन से बारहवां होता है तो जातक जैसा घर पर होता है वैसा ही बाहर दिखाई देता हैगुरु के साथ अगर मंगल की युति होती है तो जातक का धन आने के बाद भी नही रुकता है उसका कारण है कि जैसे धन आता है वह किसी न किसी प्रकार से घटता ही जाता है,और जातक किसी को धन किसी प्रकार की सहायता के लिये देता है तो वह जातक को या तो वापस नही मिल पाता है और मिलता भी है तो वह किसी न किसी प्रकार की बुराई को देकर जाता है। वह बुराई अक्सर परिवार की तरफ़ या खुद के चालचलन की तरफ़ इशारा करती है। तुला लगन के ग्यारहवें भाव का मालिक सूर्य होता है,और पिता के स्थान का कारक जातक का बडा भाई माना जाता है,लेकिन जातक के पंचम में कुम्भ राशि होने से जातक की भाभी या जीजा दोहरी बात करने का कारक होता है और यही हाल जातक के बडे पुत्र और उसकी पुत्रवधू के लिये समझा जाता है। बडा भाई अपने अहम के कारण सूर्य की योग्यता को प्रदर्शित करता है,और जातक के साथ किसी न किसी प्रकार से मानसिक अलगाव ही बना रहता है। इसका एक कारण और भी होता है कि जातक की लगन का मालिक शुक्र होने से और बडे भाई की लगन का कारक सूर्य होने से जो भी कारण बनते है वे स्त्री सम्बन्धी राजनीति ही कहे जाते है। सूर्य और शुक्र के संयोग से जब तक बडा भाई जातक से बनाकर चलता है उसके पास पुत्र और धन की अधिकतता बनी रहती है,और बडे भाई या बडी बहिन का भाग्य बनता रहता है,सरकारी या इसी प्रकार के उपक्रमो से जातक के बडे भाई या बडी बहिन को फ़ायदा मिलता रहता है और समाज तथा उन्नतशील लोगों में नाम और प्रशंसा बनी रहती है। बडे भाई या बडी बहिन के भाव से दूसरे भाव में बुध की कन्या राशि तथा ग्यारहवे भाव से दसवें भाव में बुध की मिथुन राशि होती है। बडा भाई या बडी बहिन के लिये धन और भौतिक सुख के कारण बैंक बीमा फ़ायनेन्स अस्पताल या इसी प्रकार की संस्थायें रेडक्रास धन वाले क्षेत्र कर्जा दुश्मनी बीमारी या रोजाना के किये जाने वाले कार्य नाना या मामा परिवार की सम्पत्ति या इन्ही कारकों से मिलने वाला धन आदि माने जाते है,तथा दसवें भाव में मिथुन राशि के होने से पद गरिमा बुध प्रधान शासन करने वाले क्षेत्र कमन्यूकेशन और धन के क्षेत्र से सम्बन्ध रखने वाले लोगों से जान पहिचान कर्जा देने वाली दुश्मनी रखने वाले बीमारी पालने वाले लोगों के प्रति अपनी मानसिक भावना को प्रदर्शित करने वाले कारकों के प्रति माना जाता है। जातक का बडा भाई बुध से हमेशा अपने को जोड कर चलता है,बुध ही जातक के बडे भाई या बहिन के लिये कर्णधार के रूप में माने जाते है।

तुला लगन वालों के लिये अगर मंगल और सूर्य का परिवर्तन योग होता है यानी सूर्य मंगल के घर में और मंगल सूर्य के घर में विद्यमान होता है तो जातक के पास अकूत लक्ष्मी होती है। मंगल मेष राशि का होता तो ऊपर हम बताकर ही आये है लेकिन सूर्य अगर मेष राशि का होता है तो जातक राजनीति या सरकारी क्षेत्र में अपना नाम सेना इन्जीनियरिंग अस्पताल या इसी प्रकार के क्षेत्र में बनाकर चलता है। तुला लगन वाले जातकों के बारे में एक बात और मानी जाती है कि वे लडाई झगडे से दूर रहने वाले होते है और जो भी कार्य दुश्मन के प्रति करते है वह अन्दरूनी ही होता है और वे खुल कर कभी सामने नही आते है। अक्सर इस लगन के जातक पुराने विवादों को जल्दी से भूल जाते है और जो भी उन्हे समय पर प्रताणित करने की कोशिश करता है उससे वे अपने अनुसार केवल समयानुसार ही बदला लेने के लिये जाने जाते है हमेशा के लिये दुश्मनी पालकर चलना उनके वश की बात नही होती है। सूर्य चूंकि बडे भाई मित्रों और पुत्र वधू के रूप में सामने आने की युति देता है,और इस युति का अवसर जब भी जातक को मिलता है वे अपने अनुसार इन्ही कारकों से अपनी कर्जा दुश्मनी बीमारी निपटाने का कार्य करते है,सामाजिक व्यवस्था के प्रति जब इनके अन्दर कोई बदलाव मिलता है तो इनकी जल्दबाजी की आदत से इन्हे दिक्कत आजाती है,और किसी भी काम को जोखिम से करने के प्रति इन्हे अधिक लालसा रहती है किसी भी लम्बी यात्रा या किसी भी अस्पताली काम को अथवा किसी भी तकनीकी काम को यह जोखिम के रूप अक्समात अपने ऊपर धारण कर लेते है,किसी भी खरीद बेच के कामों के अन्दर यह अपने को अपने आप ही प्रवेश करा लेते है लेकिन ग्रह योग अगर किसी प्रकार से विपरीत होता है तो यह अपने दर्द को किसी को बताते भी नही है और अपने ही अन्दर उस दर्द को पीकर रह जाते है। तुला लगन के लिये माता यानी चन्द्रमा अगर किसी प्रकार से सहायक के रूप में होती है जैसे लगन में ही चन्द्रमा होता है तो जातक को माता की शिक्षा के द्वारा एक बनिया प्रकृति का व्यक्ति बना दिया जाता है और उसे जनता तथा जान पहिचान वाले लोगों के प्रति सामने आते ही बेलेंस करने की क्षमता का विकास हो जाता है और जो भी उन्हे धोखा देना चाहता है उससे यह अपने को बचा लेते है,उसी प्रकार से अगर चन्द्रमा मकर राशि का होता है तो जातक की माता का प्रभाव जातक के बचपन के कार्यों के प्रति समझा दिया जाता है और इस लगन के जातक अपने कार्यों को बचपन से ही समझने लगते है और उन्हे अपने परिवार आदि का भार सहन करने की आदत पड जाती है किसी भी कठिन परिस्थिति में वे अपने को चलाकर निकाल लेते है और उनके कोई भी कार्य अटकते नही है,लेकिन अपनी हठधर्मी और माता की मृत्यु के बाद वे अक्सर अपने को अकेला पाते है और जो भी उन्हे ममता देता है उसी की तरफ़ अपने को समेटते चले जाते है भले ही पहले दी जाने वाली ममता ही उनके लिये सर्वनाश के लिये अपने जाल को क्यों न बिछा कर बैठी हो। बारहवें भाव में कन्या राशि होने से या तो जातक के द्वारा कोई असमान्य स्थिति में कन्या आदि के लिये सहायता वाले कार्य किये जाते है अथवा वे किसी कन्या को पुत्री की तरह से मानने लगते है और जितना वे उस कन्या के प्रति खर्च करते जाते है उतना ही धन उनके लिये आगे से आगे बढता जाता है। इस लगन वाले जातकों के लिये यही सुझाव सबसे बढिया है कि वे जीते जागते बुध को अगर अपने माफ़िक बनाना चाहते है तो वे कन्या जाति को अपने सहायता वाले कारकों से फ़लीभूत करते रहे। इस लगन के जातकों की कुंडली में अगर सूर्य शुक्र और चन्द्रमा एक ही स्थान में होता है तो जातक के पास अकूत काला धन भी पाया जाता है। यही हाल तब और देखने को मिलता है जब सूर्य और शुक्र का आपसी परिवर्तन योग होताहै

शनिवार, 12 जनवरी 2019

राहु से विस्तार

राहु का आकार धनात्मक रहता है या ऋणात्मक ही रहता है वह कभी धनात्मक और ऋणात्मक एक साथ नही होता है। वैसे ऋण की सीमा का कारक केतु है और धन की सीमा का कारक राहु है। यही बात गणित के परिधि और केन्द्र के बारे मे भी देखी जाती है केतु अगर केन्द्र है

 तो राहु परिधि है,वह किसी भी सीमा तक जायेगा लेकिन केतु के आमने सामने हमेशा ही रहेगा। बिना केतु के राहु का विस्तार नही हो सकता है जैसे बिना अभाव के पूर्ति का होना नही होता है। पूर्ति होगी तो अभाव होगा और अभाव होगा तो पूर्ति भी होगी। राहु से विस्तार की बात केवल इसलिये की जाती है क्योंकि राहु जिस भाव और ग्रह में अपना प्रवेश लेता है उसी के विस्तार की बात जीव के दिमाग में शुरु हो जाती है,कुंडली में जब यह व्यक्ति की लगन में होता है तो वह व्यक्ति को अपने बारे में अधिक से अधिक सोचने के लिये भावानुसार और राशि के अनुसार सोचने के लिये बाध्य कर देता है जो लोग लगातार अपने को आगे बढाने के लिये देखे जाते है उनके अन्दर राहु का प्रभाव कहीं न कहीं से अवश्य देखने को मिलता है। लेकिन भाव का प्रभाव तो केवल शरीर और नाम तथा व्यक्ति की बनावट से जोड कर देखा जाता है लेकिन राशि का प्रभाव जातक को उस राशि के प्रति जीवन भर अपनी योग्यता और स्वभाव को प्रदर्शित करने के लिये मजबूर हो जाता है। राहु विस्तार का कारक है,और विस्तार की सीमा कोई भी नही होती है,पौराणिक कथा के अनुसार राहु की माता का नाम सुरसा था,और जब हनुमान जी सीताजी की खोज के लिये समुद्र पार कर रहे थे तो देवताओं ने हनुमानजी की शक्ति की परीक्षा के लिये सुरसा को भेजा था । सुरसा को छाया पकड कर आसमानी जीवों को भक्षण करने की शक्ति थी,हनुमान जी की छाया को पकड कर जैसे ही सुरसा ने उन्हे अपने भोजन के लिये मुंह में डालना चाहा उन्होने अपने पराक्रम के अनुसार अपनी शरीर की लम्बाई चौडाई को सुरसा के मुंह से दो गुना कर लिया,आखिर तक जितना बडा रूप सुरसा अपने मुंह का बनाने लगी और उससे दोगुना रूप हनुमानजी बनाने लगे,जब कई सौ योजन का मुंह सुरसा का हो गया तो हनुमानजी ने अपने को एक अंगूठे के आकार का बनाकर सुरसा के पेट में जाकर और बाहर आकर सुरसा को माता के रूप में प्रणाम किया और सुरसा की इच्छा को पूरा होना कहकर सुरसा से आशीर्वाद लेकर वे लंका को पधार गये थे। पौराणिक कथाओं के ही अनुसार सुरसा को अहिन यानी सर्पों की माता के रूप में भी कहा गया है। जब कभी राहु के बारे में किसी की कुंडली में विवेचना की है तो कहने से कहीं अधिक बातें कुंडली में देखने को मिली है। राहु चन्द्रमा के साथ मिलकर अपना रूप जब प्रस्तुत करता है तो वह अपनी शक्ति और राशि के अनुसार अपने को कैमिकल के रूप में प्रस्तुत करता है। तरल राशि के प्रभाव में वह बहता हुआ कैमिकल बन जाता है गुरु रूपी हवा के साथ मिलकर वह गैस के रूप में अपनी योग्यता को प्रकट करने लगता है,शनि रूपी पत्थर के साथ मिलकर वह सीमेंट का रूप ले लेता है,और वही शनि अगर पंचम भाव में होता है तो अनैतिकता की तरफ़ ले जाने के लिये अपनी शक्ति को प्रदान करने लगता है। शुक्र के साथ आजाने से राहु का स्वभाव असीम प्यार मोहब्बत वाली बातें करने लगता है और बुध के साथ मिलकर वह केलकुलेशन के मामले में अपनी योग्यता को कम्पयूटर के सोफ़्टवेयर की तरह से सामने हाजिर हो जाता है। सूर्य के साथ मिलकर राज्य की तरफ़ उसका आकर्षण बढ जाता है और जब राहु और सूर्य दोनो ही बलवान होकर पंचम नवम एकादस में अपनी युति राज्य की कारक राशि में स्थान बनाते है तो बडा राजनीतिक बनाने में राहु का पहला प्रभाव ही माना जाता है। मिथुन राशि में राहु का प्रभाव व्यक्ति के अन्दर भाव के अनुसार प्रदर्शित करने की कला को देता है और धनु राहु में राहु अपनी नीचता को प्रकट करने के बाद बडे बडे अनहोनी जैसे कारण पैदा कर देता है और व्यक्ति की जीवनी को आजन्म और उसके बाद भी लोगों के लिये सोचने वाली बात को बनाने से नही चूकता है।राहु का असर तब और देखा जाता है जब व्यक्ति क नवें भाव में जाकर वह पुराने संस्कारों को तिलांजलि देने के कारकों में शामिल हो जाता है और जिस कुल या समाज में जातक का जन्म होता है जिन संस्कारों में उसकी प्राथमिक जीवन की शुरुआत होती है उन्हे भूलने और समझ मे नही आने के कारण जब वह धन भाग्य और न्याय वाली बातों तथा ऊंची शिक्षाओं अथवा अपने समाज के विपरीत समाज में प्रवेश करने के बाद उसे सोचने के लिये मजबूर होना पडता है। शनि के घर में राहु के प्रवेश होने के कारण तथा व्यक्ति की लगन में होने पर राहु शनि की युति अगर महिला की कुंडली में हो तो शरीर को ढककर चलने के लिये अपनी सोच को देता है और जब वह सप्तम स्थान में चन्द्रमा के साथ अपनी युति बना लेता है जो आजन्म जीवन साथी की सोच को समझने के प्रति असमर्थ बना देता है। राहु को अगर मंगल की युति मुख्यत युति मुख्य त्रिकोण में मिलती है तो जातक को आजीवन प्रेसर वाले रोग मिलते है। और खून के अन्दर कोई न कोई इन्फ़ेक्सन वाली बीमारी मिलती है,महिलाओं की कुंडली में राहु अगर दूसरे भाव में होता है तो अक्सर झाइयां मुंहासे और चेहरे को बदरंग बनाने से नही चूकता है तथा पुरुष के चेहरे वाली राशि में होता है तो जातक को दाडी बढाने और चेहरे पर तरह तरह के बालों के आकार बनाने में बडा अच्छा लगता है। लगन का मंगल राहु क्षत्रिय जाति से अपने को सूचित करता है,मंगल की सकारात्मक राशि वृश्चिक राशि में अपना प्रभाव देने के कारण वह मुस्लिम संप्रदाय से अपनी युति को जोडता है और चन्द्रमा की राशि कर्क को वह अपनी मोक्ष और धर्म के प्रति आस्थावान बनाता है। गुरु राहु मंगल की युति से जातक को सिक्ख सम्प्रदाय से जोडता है और केतु के साथ शनि के होने से वह ईशाई सम्प्रदाय से सम्बन्धित बात को भी बताता है,बुध के साथ केतु के होने से राहु व्यापार की कला में और खरीदने बेचने के कार्यों में कुशलता देता है।राहु को सम्भालने के लिये जातक को मंगल का सहारा लेना पडता है। मंगल तकनीक है तो राहु विस्तार अगर विस्तार को तकनीकी रूप में प्रयोग में लाया जाये तो यह अन्दरूनी शक्ति बडे बडे काम करती है। वैसे तो झाडी वाले जंगल को भी अष्टम राहु के लिये जाना जाता है लेकिन उन्ही झाडियों को औषिधि के रूप में प्रयोग करने की कला का अनुभव हो जाये तो जंगल की झाडियां भी तकनीकी कारणों से काम करने के लिये मानी जा सकती है। शनि के अन्दर राहु और केतु का प्रवेश हमेशा से माना जाता है,शनि को अगर सांप माना जाये तो राहु उसका मुंह है और केतु उसकी पूंछ जब भी शनि को कोई कारण जीवन के लिये पैदा करना होता है तो वह हमेशा के लिये समाप्त या हमेशा के लिये विस्तार करवाने के लिये राहु का प्रयोग करता है और उसे केवल झटका देकर बढाने या घटाने की बात होती है तो वह केतु का प्रयोग करता है। सूर्य को समाप्त करने के बाद जो सबसे पहले कारण पैदा होता है वह आसमान की तरफ़ जाने वाला प्रत्यक्ष प्रमाण के रूप में प्रस्तुत करने के लिये माना जाता है। जैसे सूर्य को लकडी के रूप में जाना जाता है और जब सूर्य (लकडी) मंगल (ताप) और गुरु (हवा) का सहारा लेकर जलाया जाता है तो राहु धुंआ के रूप में आसमान में ऊपर की ओर जाते हुये अपनी उपस्थिति को दर्शाता है।राहु को रूह का भी रूप दिया जाता है अगर यह अष्टम स्थान में वृश्चिक राशि का है तो यह शमशानी आत्मा के रूप में जाना जाता है.इस स्थान का राहु या तो कोई ऐसी बीमारी देता है जिससे जूझने के लिये जातक को आजीवन जूझना पडता है और धर्म अर्थ काम और मोक्ष के कारणों से दूर करता है या घर के अन्दर अपनी करतूतों से शमशानी क्रियायें आदि करने या खुद के द्वारा सम्बन्धित कारणों को समाप्त करने के बाद खाक में मिलाने के जैसा व्यवहार करता है,पैदा होने के पहले भी माता बीमार रहती है पिता को तामसी भोजनों पर विस्वास होता है और जातक के पैदा होने के बाद आठवीं साल की उम्र से कोई शरीर का रोग अक्समात लग जाता है जो आजीवन साथ नही छोडता है।

शुक्रवार, 11 जनवरी 2019

वुघ का विस्तार

वुघ का विस्तार 

कुंडली में ग्रहों की दशाएं जीवन में बहुत कुछ तय करती हैं. इसी तरह बुध ग्रह आपके बोलने-सुनने से लेकर आपके खूबसूरत दिखने पर असर डालता हैआपके दिमाग और आपकी खूबसूरती का कारक ग्रह है. कुंडली में बुध की स्थति तय करती है कि आप कैसा बोलते हैं,

 कैसा व्यवहार करते हैं, आपका व्यक्तित्व और बुद्धि कैसी है..बुध के मामले में कई कारण ज्योतिष से समझ में आते है लेकिन बुध को प्राथमिक रूप से बहिन बुआ बेटी के रूप में देखा जाता है। बहिन की शादी अजनबी खानदान में करने के बाद विस्तार बढना शुरु हो जाता है यह विस्तार पारिवारिक विस्तार कहा जाता है। बहिन की शादी के बाद जब भानजी की शादी होती है तो वह और बडा विस्तार हो जाता है,मतलब कही तो रिस्तेदारी जायेगी,और परिवार का विस्तार बनता चला जायेगा,घर की बहू आती है वह भी किसी के घर की बेटी होती है और उस घर से जिसे हमने देखा नही है उससे जान पहिचान और आत्मीय रिस्ते बन जाते है,यह बुध का विस्तार कहा जाता है। इस बुध के दो साथी ग्रह भी है जैसे राहु के साथ होने पर ससुराल का सम्बन्ध और विस्तार बनना शुरु हो जाता है और केतु के साथ होने पर बहिन बुआ बेटी के रूप में विस्तार शुरु हो जाता है। इसी बुध के लिये अगर और अधिक आगे बढे तो विस्तार राहु के साथ आकाश तक जा पहुंचता है जिसकी कोई माप नही होती है और केतु के साथ जाने पर यह पाताल तक चला जाता है जिसकी भी कोई माप नही होती है.बुध को विस्तार के रूप में देखने पर इसे भाषाओं की जानकारी वाला ग्रह भी कहा जाता है कौन सी भाषा किस तरह के ज्ञान को कितने विस्तार को वर्णन कर रही है इसका अन्दाज भी नही लगाया जा सकता है। सूर्य के साथ बुध के मिलने से प्रकाश का विस्तार होना शुरु हो जाता है,शनि के साथ मिलने पर अन्धकार का विस्तार शुरु हो जाता है,गुरु के साथ मिलने पर हवा का विस्तार होना शुरु हो जाता है चन्द्रमा के साथ मिलने पर धरती के साथ विस्तार शुरु हो जाता है और मंगल के साथ मिलने पर हिम्मत का विस्तार शुरु हो जाता है.

गुरुवार, 10 जनवरी 2019

मन की साधना और ज्योतिष

शरीर रूपी ब्रह्माण्ड की तीन वृत्तियां है,परा,विराट और अपरा। परा ह्रदय से ऊपर का भाग कहा जाता है,विराट ह्रदय से नाभि पर्यंत का भाग कहा जाता है 

और अपरा नाभि से नीचे का भाग कहा जाता है। चित्त वृत्ति की उपस्थिति इन तीनो ब्रह्माण्डो मे पायी जाती है,तथा द्रश्य वृत्ति केवल परा ब्रह्माण्ड के अन्तर्गत ही आती है। चित्त वृत्ति के स्थिर रहने पर देखना श्रवण करना मनन करना सूंघना आदि सूक्ष्म रूप से महसूस किया जा सकता है,द्रश्य वृत्ति को अगर चित्त वृत्ति मे शामिल कर लिया जाये तो कर्म वृत्ति का उदय होना शुरु हो जाता है। अगर चित्त वृत्ति और द्रश्य वृत्ति मे भिन्नता पैदा हो जाती है तो कर्म वृत्ति का नही होना माना जाता है। जिसे साधारण भाषा मे अनदेखा कहा जाता है। चित्त वृत्ति को साधने की क्रिया को ही साधना के नाम से पुकारा जाता है,और जो अपनी चित्त वृत्ति को साधने मे सफ़ल हो जाते है वही अपने कर्म पथ पर आगे बढते चले जाते है और नाम दाम तथा संसार मे प्रसिद्धि को प्राप्त कर लेते है। चित्त वृत्ति को साधने मे जो रुकावटें आती है,उनमे सबसे बडी बाधा मानसिक भ्रम को मुख्य माना जाता है। उदाहरण के रूप मे बच्चे से अगर माता कहती है वह खिलौना उठाकर ले आओ,उसी समय पिता अगर बच्चे से कह देता है कि पढाई करो,बच्चे के दिमाग मे भ्रम पैदा हो जाता है कि वह खिलौना उठा कर लाये या पढाई करे,इस भ्रम के अन्दर अगर बच्चे से बाद मे पूंछा जाये कि पहले खिलौना उठाकर लायेगा या पढाई करेगा,बच्चा अगर माता से डरता है तो पहले खिलौना उठाकर लायेगा और पिता से डरता है तो माता की बात को अनसुना करने के बाद पढने बैठ जायेगा। इसी प्रकार से अगर किसी को कहा जाये कि अमुक काम को करना है,अमुक को नही,तो मानसिक धारणा के अन्दर उन दोनो कामो को करने के पहले उनके बीच का अर्थ निकालने मे मन लग जायेगा और वही समय मानसिक भ्रम का माना जायेगा। कारण जब समझ मे आयेगा तब तक या तो मना किये गये काम का रूप बदल चुका होगा या बताये गये काम का करना मुनासिब नही हो पायेगा। इसके अलावा एक और बात मानी जाती है कि किसी व्यक्ति से कह दिया जाये कि वह अमुक कार्य को अमुक तरीके से करो,और उसी समय दूसरा व्यक्ति उसी काम को पहले बताये गये व्यक्ति के तरीके से भिन्न हो जाता है तो भी मानसिक भ्रम की उत्पत्ति हो जाती है। इस भ्रम की स्थिति को बच्चो मे तो खेल कूद और मनोरंजन के साधन तथा नई नई चीजों को देखने के रूप मे मानी जाती है जो जिज्ञासा के नाम से जानी जाती है। वही बात अगर युवाओं मे देखी जाये तो उनकी भ्रम वाली स्थिति शादी विवाह करने अपनी नई दुनिया को बसाने तथा एक दूसरे के ज्ञान धन परिवार रहन सहन समाज मे चलने वाले कारणो को समाप्त करने आदि के प्रति भ्रम बनना माना जायेगा,जब व्यक्ति वृद्ध होता है तो उसके दिमाग मे युवाओ को बदलने वाले कारणो का भ्रम बना रहेगा,कि अमुक कार्य से उसे हानि हो सकती है अमुक वस्तु को खाने पीने से उसके अन्दर बुराई पैदा हो सकती है अमुक सम्बन्ध को बनने के बाद उसकी वैवाहिक जिन्दगी मे बरबादी का कारण बन सकता है या अमुक कार्य करने से बडी हानि या किसी को कष्ट भी पहुंच सकता है,इन भ्रमो के अलावा और भी कई प्रकार के भ्रम माने जाते है जो हर व्यक्ति के जीवन मे अपने अपने रूप मे उपस्थित होते है और उन भ्रमो के कारण ही प्रगति के पथ पर लोग या तो गलत रूप से आगे बढ जाते है या फ़िर कार्य मे तमाम बाधाये प्रस्तुत कर लेते है और कार्य पूरा नही हो पाता है उनके द्वारा पहले की गयी मेहनत बरबाद हो जाती है।ज्योतिष मे इस भ्रम नाम की बीमारी को पैदा करने वाला राहु है।राहु एक छाया ग्रह है जिसका प्रभाव उल्टे रूप मे पडता है। जैसे एक व्यक्ति को जंगल के रास्ते जाना है और उसे कोई पहले बता देता है कि रास्ते मे शेर मिल सकता है। व्यक्ति को भले ही शेर नही मिले लेकिन उसके दिमाग मे शेर का भय पैदा हो जायेगा कि शेर अगर मिल गया तो वह उसे मार भी सकता है या उसके शरीर को क्षति भी पहुंचा सकता है। वह व्यक्ति अपनी सुरक्षा के चक्कर मे अपने दिमाग का प्रयोग करेगा,और अपने को सतर्क करने के बाद ही जंगल का रास्ता तय करेगा। इस सोचने की क्रिया के अन्दर जो मुख्य भाव आया वह मृत्यु का भय,जीवन चलने का नाम है और मृत्यु समाप्ति का नाम है,जीवन का नाम सीधा है तो मृत्यु का नाम उल्टा है। यही राहु का कार्य होता है। उल्टा सोचने के कारण ही लोग अपने लिये सुरक्षा का उपाय करते है,उल्टा सोच कर ही लोग समय पर पढने का कार्य करते है या उल्टा सोच कर ही लोग किसी भी कार्य को समय से पहले करने की सोचते है या अपने जीवन के प्रति सजग रहने की बात करते है। जब इस प्रकार की बाते आती है तो राहु कुंडली मे अच्छी स्थिति मे होता है और जब राहु गलत भाव मे होता है तो वह बजाय सीधे रास्ते जाने के उल्टे रास्ते से जाने के लिये अपनी गति देने लगता है। जैसे कुंडली मे चन्द्रमा के साथ राहु किसी खराब भाव मे है तो वह मन के अन्दर एक छाया सी पैदा करे रहेगा। मन का एक स्थान मे रहना नही हो पायेगा। जब मन का बंटवारा कई स्थानो मे हो जायेगा तो याददास्त पर असर पडेगा। रास्ता चलते हुये जाना कहीं होगा तो पहुंच कहीं जायेंगे। करना कुछ होगा तो करने कुछ लगेंगे। किसी रखी हुयी वस्तु को भूल जायेंगे,या रखी कहीं थी खोजने कहीं लग जायेंगे,इस बीच मे बुराइयां भी बनने लगती है,जैसे वस्तु को आफ़िस मे रखा था और खोजने घर मे लगेंगे,फ़िर जब नही मिलेगी तो तरह तरह की शंकाओं के चलते जो भी पास मे रहा होगा उस पर झूठा आक्षेप लगाया जाने लगेगा। यह स्थिति राहु के भावानुसार मानी जायेगी,जैसे राहु धन स्थान मे है और चन्द्रमा से युति ले रहा है तो पर्स को रखा तो टेबिल की दराज मे आफ़िस में जायेगा और खोजा घर के अन्दर जायेगा,घर के किसी सदस्य पर आक्षेप लगेगा और बुराई अपमान आदि की बाते उस सदस्य के पल्ले पडेंगी। इसी प्रकार से लडके लडकियां जब बडे हो जाते है तो उनके अन्दर बडी शिक्षा मे जाने के बाद एक सोच पैदा हो जाती है कि वे अपने सहपाठी से नीचे क्यों है,उसका सहपाठी तो बडी और लक्जरी गाडी मे आता है,वह पैदल या बस से आता है,उसके पास कोई आजकल का चलने वाला साधन नही है,जबकि उसके साथी सभी साधनो से पूर्ण है। यह भाव अपने ही मन मे लाने के कारण पढाई लिखाई तो एक तरफ़ रखी रह गयी,अपने को और भी नीचे ले जाने के लिये सोच को पैदा कर लिया। मन के अन्दर माता पिता दादा दादी और परिवार को जिम्मेदार मान लिया गया,और उनके प्रति मन के अन्दर एक अजीब सी नफ़रत पैदा हो गयी। यह कारण अष्टम मे राहु के होने से और ग्यारहवे भाव के स्वामी से युति लेने के कारण बन जाती है। इसी प्रकार से जब राहु का गोचर पंचम भाव मे होता है या वह पांचवे भाव मे शुरु से ही बैठा होता है या चन्द्र मंगल की युति धन भाव मे होती है और राहु का स्थान पंचम मे होता है अथवा राहु का प्रभाव पंचम से शुक्र के साथ हो रहा होता है तो व्यक्ति के अन्दर बचपन मे मनोरंजन के साधनो का और वाहन सम्बन्धी कारण पैदा होता है,जवानी मे इश्क का भूत सवार हो जाता है और वह या तो अपने लिये नये नये लोगो पर छा जाने वाले कारण पैदा करने लगता है या अपनी दहसत से लोगो के अन्दर भय को पैदा करना शुरु कर देता है। इसी प्रकार से अन्य भाव मे विराजमान राहु अपनी विचित्रता से उल्टे काम करने के लिये अपना प्रभाव देने लगता है।

कहा जाता है कि नशे के अन्दर क्षत्रिय दाढी वाला बाबा शमशान मे निवास करने वाला पागल जैसा लगने वाला व्यक्ति की बराबरी उसी व्यक्ति से की जा सकती है जो नितांत अकेला बैठा सोचता रहता है,जिसे दिन मे सोचने से फ़ुर्सत नही होती और रात को नींद उससे कोशो दूर होती है। वह जब कभी सो भी जाता है तो स्वप्न भी बहुत ही अजीब अजीब आते है जैसे मुर्दो के बीच मे रहना आसमान मे पानी की तरह से चलना,जंगल बीहड वीराने क्षेत्र मे चलना,खतरनाक जानवर देखना या ऐसा लगना कि वह अक्समात ही नीचे गिरता चला जा रहा है यह एक राहु की सिफ़्त का उदाहरण है जो बारहवे भाव अष्टम भाव या चौथे भाव मे बैठ कर अपनी स्थिति को दर्शाता है। जैसे लोग अपने मन को साधने के लिये शराब का सेवन करते है या राशि के अनुसार जो चौथे भाव मे होती है उसके अनुसार नशे को करने लगते है का फ़ल चौथे राहु के द्वारा देखा जाता है,शमशानी राशि अष्टम मे बैठा राहु जिसे वृश्चिक राशि के नाम से जाना जाता है उसके साथ भी दिमाग का बंटवारा एक साथ कार्यों मे बाहरी खर्चो मे घर के लोगो मे धन के मामले मे तथा मानसिक सोच मे जाने के लिये अपनी एक साथ युति को देता है,इस युति के कारण अक्सर लोग या तो बडा एक्सीडेंट कर लेते है या कोई भयंकर जोखिम को ले लेते है,या फ़िर किसी ऊंचे स्थान से कूद जाते है या वाहन आदि को चलाते समय कहीं जाना होता है कहीं चलते है और अपने साथ साथ दूसरो के लिये भी आफ़त का कारण बन जाते है।

राहु को साधने का तरीका आज के युग के लोग अपने को शराब आदि के कारणो मे ले जाते है कोई नींद की गोली लेता है,कोई अफ़ीम आदि के आदी हो जाते है कोई नशे के विभिन्न कारण अपने मन को साधने के लिये लेना शुरु कर देते है,यह प्रभाव उनके ऊपर इतनी शक्ति से हावी हो जाता है कि यह ईश्वर का दिया हुआ रूप बल शक्ति मन दिमाग सभी बरबाद होने लगते है और जो कार्य यह शरीर अपने परिवेश के अनुसार कर सकता था उससे दूर रखने के बाद अपनी लीला को एक दूसरो पर बोझ के नाम से समाप्त कर लेने मे जल्दबाजी भी करते है। राहु को साधने के लिये सबसे पहले अपनी चित्त वृत्ति को साधना जरूरी है,जब मन रूपी चित्त वृत्ति को साधने की क्षमता पैदा हो जाती है तो शरीर से जो चाहो वही कार्य होना शुरु हो जाता है क्योंकि कार्य को करने के अन्दर कोई अन्य कारण या मन की कोई दूसरी शाखा पैदा नही होती है।

चित्त वृत्ति को साधने के लिये महापुरुषो ने कई उपाय बताये है। पहला उपाय योगात्मक उपाय बताया है। जिसे त्राटक के नाम से जाना जाता है। एक सफ़ेद कागज पर एक सेंटीमीटर का वृत बना लिया जाता है उसे जहां बैठने के बाद कोई बाधा नही पैदा होती है उस स्थान पर ठीक आंखो के सामने वाले स्थान पर चिपका कर दो से तीन फ़ुट की दूरी पर बैठा जाता है,उस वृत को एक टक देखा जाता है उसे देखने के समय मे जो भी मन के अन्दर आने जाने वाले विचार होते है उन्हे दूर रखने का अभ्यास किया जाता है,पहले यह क्रिया एक या दो मिनट से शुरु की जाती है उसके बाद इस क्रिया को एक एक मिनट के अन्तराल से पन्द्रह मिनट तक किया जाता है। इस क्रिया के करने के उपरान्त कभी तो वह वृत आंखो से ओझल हो जाता है कभी कई रूप प्रदर्शित करने लगता है,कभी लाल हो जाता है कभी नीला होने लगता है और कभी बहुत ही चमकदार रूप मे प्रस्तुत होने लगता है। कभी उस वृत के रूप मे अजीब सी दुनिया दिखाई देने लगती है कभी अन्जान से लोग उसी प्रकार से घूमने लगते है जैसे खुली आंखो से बाहर की दुनिया को देखा जाता है। वृत को हमेशा काले रंग से बनाया जाता है। दो से तीन महिनो के अन्दर मन की साधना सामने आने लगती है और जो भी याद किया जाता है पढा जाता है देखा जाता है वह दिमाग मे हमेशा के लिये बैठने लगता है। ध्यान रखना चाहिये कि यह दिन मे एक बार ही किया जाता है,और इस क्रिया को करने के बाद आंखो को ठंडे पानी के छींटे देने के बाद आराम देने की जरूरत होती है,जिसे चश्मा लगा हो या जो शरीर से कमजोर हो या जो नशे का आदी हो उसे यह क्रिया नही करनी चाहिये।दूसरी क्रिया को करने के लिये किसी एकान्त स्थान मे आरामदायक जगह पर बैठना होता है जहां कोई दिमागी रूप से या शरीर के द्वारा अडचन नही पैदा हो। पालथी मारक बैठने के बाद दोनो आंखो को बन्द करने के बाद नाक के ऊपर अपने ध्यान को रखना पडता है उस समय भी विचारों को आने जाने से रोका जाता है,और धीरे धीरे यह क्रिया पहले पन्द्रह मिनट से शुरु करने के बाद एक घंटा तक की जा सकती है इस क्रिया के द्वारा भी अजीब अजीब कारण और रोशनी आदि सामने आती है उस समय भी अपने को स्थिर रखना पडता है। इस क्रिया को करने से पहले तामसी भोजन नशा और गरिष्ठ भोजन को नही करना चाहिये। बेल्ट को भी नही बांधना चाहिये। इसे करने के बाद धीरे धीरे मानसिक भ्रम वाली पोजीशन समाप्त होने लगती है तीसरी जो शरीर की मशीनी क्रिया के नाम से जानी जाती है,वह शब्द को लगातार मानसिक रूप से उच्चारित करने के बाद की जाती है उसके लिये भी पहले की दोनो क्रियाओं को ध्यान मे रखकर या एकान्त और सुलभ आसन को प्राप्त करने के बाद ही किया जा सकता है,नींद नही आये या मुंह के सूखने पर पानी का पीना भी जरूरी है। बीज मंत्र जो अलग अलग तरह के है उन्हे प्रयोग मे लाया जाता है,भूमि तत्व के लिये केवल होंठ से प्रयोग आने वाले बीज मंत्र,जल तत्व को प्राप्त करने के लिये जीभ के द्वारा उच्चारण करने वाले बीज मंत्र,वायु तत्व को प्राप्त करने के लिये तालू से उच्चारण किये जाने वाले बीज मंत्र और अग्नि तत्व को प्राप्त करने के लिये दांतो की सहायता से उच्चारित बीज मंत्र का उच्चारण किया जाता है साथ ही आकाश तत्व को प्राप्त करने के लिये गले से उच्चारण वाले बीज मंत्रो का उच्चारण करना चाहिये।ज्योतिष भगवत प्राप्ति और भविष्य को देखने की क्रिया के लिये दूसरे नम्बर की क्रिया के साथ तालू से उच्चारित बीज मंत्र को ध्यान मे चलाना चाहिये। जैसे क्रां क्रीं क्रौं बीजो का लगातार मनन और ध्यान को दोनो आंखो के बीच मे नाक के ऊपरी हिस्से मे ध्यान को रखकर किया जाना लाभदायी होता है।

गुरुवार, 3 जनवरी 2019

जन्म कुंडली में कैसे जाने अपने इष्ट देव को

भारतीय संस्कृति ज्ञान, कर्म और भक्ति का संगम है। इनकी अपनी अपनी महत्ता है

 कोई ज्ञान के आधार पर अपनी मुक्ति का मार्ग ढूंढता है तो तो कोई कर्म को अपना माध्यम बनाता है तो कोई भक्ति भाव को आधार बनाकर मुक्ति पाना चाहता है। ज्ञान, कर्म और भक्ति में भक्ति को सहज और शीघ्र प्राप्ति वाला मार्ग बताया गया है।

 किसी जातक की कुंडली से इष्ट देव जानने के अलग-अलग सूत्र व सिद्धांत समय-समय पर ऋषि मुनियों ने बताये हे जेमिनी सूत्र के रचयिता महर्षि जेमिनी इष्टदेव के निर्धारण में आत्मकारक ग्रह की भूमिका को सबसे अधिक मह्त्वपूर्ण बताया है। कुंडली में लगना, लग्नेश, लग्न नक्षत्र के स्वामी एवं ग्रह जो सबसे अधिक अंश में हो चाहे किसी भी राशि में हो आत्मकारक ग्रह होता है।

अपना इष्ट देव चुनने में निम्न बातों का ध्यान देना चाहिए।

आत्मकारक ग्रह के अनुसार ही इष्ट देव का निर्धारण व उनकी अराधना करनी चाहिए।

भक्ति और आध्यात्म से जुड़े अधिकांश लोगों के मन में हमेशा यह प्रश्न उठते रहता है मेरा इष्ट देव कौन है और हमें किस देवता की पूजा अर्चना करनी चाहिए। किसी भक्त के प्रिय हनुमान हे शिव जी हैं तो किसी के विष्णु तो कोई राधा कृष्ण का भक्त है तो कोई माता दुर्गा का। और कोई तो सभी देवी देवताओं का एक बाद स्मरण करता है। परन्तु एक उक्ति है कि "एक साधै सब सधै, सब साधै सब जाय"। जैसा की आपको पता है कि अपने अभीष्ट देवता की साधना तथा पूजा अर्चना करने से हमें शीघ्र ही मन चाहे फल की प्राप्ति होती है।

अब प्रश्न होता है कि देवी देवता हमें कैसे लाभ अथवा सफलता दिलाते हैं वस्तुतः जब हम किसी भी देवी-देवता की पूजा करते हैं तो हम अपने अभीष्ट देवी देवता को मंत्र के माध्यम से अपने पास बुलाते है और आह्वान करने पर देवी देवता उस स्थान विशेष तथा हमारे शरीर में आकर विराजमान होते है 

वास्तव में सभी दैवीय शक्तियां अलग-अलग निश्चित चक्र में हमारे शरीर में पहले से ही विराजमान होती है आप हम पूजा अर्चना के माध्यम से ब्रह्माण्ड सेउपस्थित दैवीय शक्ति को अपने शरीर में धारण कर शरीर में पहले से विद्यमान शक्तियों को सक्रिय कर देते है और इस प्रकार से शरीर में पहले से स्थित ऊर्जा जागृत होकर अधिक क्रियाशील हो जाती है। इसके बाद हमें सफलता का मार्ग प्रशस्त करती है। ज्योतिष के माध्यम से हम पूर्व जन्म की दैवीय शक्ति अथवा ईष्टदेव को जानकर तथा मंत्र साधना से मनोवांछित फल को प्राप्त करते है।

इष्ट देव को जानने की विधियों में भी विद्वानों में एक मत नहीं है। कुछ लोग नवम् भाव और उस भाव से सम्बन्धित राशि तथा राशि के स्वामी के आधार पर इष्ट देव का निर्धारण करते हैं।

वहीं कुछ लोग पंचम भाव और उस भाव से सम्बन्धित राशि तथा राशि के स्वामी के आधार पर इष्ट देव का निर्धारण करते हैं।

कुछ विद्वान लग्न लग्नेश तथा लग्न राशि के आधार पर इष्ट देव का निर्धारण करते हैं।

त्रिकोण भाव में सर्वाधिक बलि ग्रह के अनुसार भी इष्ट देव का चयन किया जाता है।

महर्षि जैमिनी जैसे विद्वान के अनुसार कुंडली में आत्मकारक ग्रह के आधार पर इष्ट देव का निर्धारण करना बताया गया हे गण  के द्वारा भी इष्ट देव का निर्धारण किया जाता है संसार का प्रत्येक जीव अपने अपने समय में अपने अपने गण को लेकर पैदा होता है। जो जिसका गण होता है उसी के अनुसार व्यक्ति के इष्ट को समझा जाता है.जन्म कुंडली में बारह राशिया है और लगन में जो राशि होती है उस राशि का मालिक ही व्यक्ति के गण का मालिक होता है उस मालिक के गण का प्रमुख देवता कौन सा है वह अपने अपने धर्म के अनुसार ही माना जाता है। उदाहरण के लिये कर्क लगन की कुंडली है और इस लगन का मालिक चन्द्रमा है,चन्द्रमा तीसरे भाव मे है और चन्द्रमा की राशि कन्या है.कन्या राशि का मालिक बुध है,बुध ही जातक का इष्टदेव का कारक है,बुध अगर तुला राशि का होकर चौथे भाव मे सूर्य और शुक्र के साथ बैठा है तो जातक के लिये माना जाता है कि जातक के पिता और माता ने मिलकर मनौती को मांग कर पुत्र को प्राप्त किया है वह मनौती जातक के पिता के ही इष्ट का दूसरा रूप रखने वाली देवी के लिये कहा जा सकता है। हर ग्रह का अलग अलग देवता होता इस बात को वैसे तो मतान्तर से भेद रखने वाली बाते मिलती है लेकिन सही रूप में जानने के लिये लाल किताब ने बहुत ही बारीकी से ग्रह और उसके देवता का वर्णन किया है। जैसे सूर्य से विष्णु को मानते है,चन्द्रमा से शिवजी को मानते है मंगल से हनुमान जी को भी मानते है और अगर मंगल बद होता है तो हनुमान जी की जगह पर भूत प्रेत पिशाच की सेवा करने के कारण मिलने लगते है,बुध को दुर्गा के लिये जाना जाता है गुरु को ब्रह्मा जी से जोडा गया है शुक्र को लक्ष्मी से जोड कर देखा गया है,शनि को भैरों बाबा के लिये पूजा जाता है और राहु को सरस्वती के लिये तथा केतु को गणेशजी के लिये समझा जाता है। लालकिताब के अनुसार जातक का इष्टदेव देवी दुर्गा ही मानी जायेगी। अगर कुंडली मे शनि की स्थिति मार्गी है तो देवी की मूर्ति की पूजा मे ध्यान लगाना फ़ायदा देने वाला माना जाता है शनि के वक्री होने पर मूर्ति की जगह पर दिमागी पूजा यानी मंत्र जाप आदि से फ़ल मिलना माना जा सकता है। इसी प्रकार से जैसे इस कुंडली मे बुध के साथ सूर्य भी है और शुक्र भी है शनि सामने होकर दसवे भाव मे विराजमान है.तुला राशि को पश्चिम की दिशा मानी जाती है,भारत मे चार दिशाओं में भगवान विष्णु के चार धाम है,पूर्व मे जगन्नाथ को विष्णु को रूप में उत्तर में बद्री विशाल को पश्चिम मे द्वारिकाधीश को और दक्षिण में भगवान विष्णु को राम के रूप मे पूजा जाता है.शुक्र और बुध तुला राशि के सूर्य के साथ है तो राधा और रुक्मिणी के साथ द्वारकाधीश की प्रतिमा को जाहिर करते है। सूर्य और शुक्र के साथ बुध की स्थिति पानी वाले भाव यानी चौथे भाव मे है इसलिये अष्टम भाव का राहु समुद्र के किनारे की बात को उजागर करता है,इसलिये इस कुन्डली मे द्वारिकाधीश के साथ राधा और रुक्मिणी की पूजा को करना और उन्हे मानना सही और फ़लदायी माना जा सकता है। राधा लक्ष्मी रूप मे और रुक्मिणी शक्ति के रूप मे अपना अपना फ़ल जातक को देने वाली है। लेकिन यहां एक शंका यह पैदा होती है कि अगर जातक इन्ही ग्रहों को लेकर इंग्लेंड मे पैदा हुआ है तो वह द्वारिकाधीश और राधा रुक्मिणी को कहां से प्राप्त करेगा। भारतीय भू-भाग पर पैदा होने के बाद तो चारो दिशाओं के सूर्य को विष्णु के रूप में मान भी लिया गया है। इंगेलंड मे इन ग्रहों के कारक बदल जायेंगे,इन कारकों में सूर्य के स्थान पर राज्य का मालिक या राजा होगा,और शुक्र तथा बुध के कारको में वह राजकीय धन और कानूनो का मालिक होगा। जहां लोग ईश्वर पर विश्वास रखते है वहां पर यह ग्रह ईश्वरीय शक्ति के रूप मे देखे जाते है और जहां मनुष्य केवल कर्म पर विश्वास रखता है वहां यह ग्रह मनुष्य रूप में स्थापित अधिकारियों के रूप मे काम करने लगते है।अव जैसे कन्या लग्न की कुंडली है चंद्र मीन राशि में है मीन राशि का स्वामी पंचम में मकर राशि मेअव देखें इनको इष्ट देव कौन होगा धर्म का क्षेत्र लगन पंचम और नवम में लगन खाली है अर्थ के क्षेत्र में केवल केतु का राज है,काम यानी पत्नी बच्चे आदि के क्षेत्र में शनि बुध शुक्र चन्द्र है,मोक्ष यानी शान्ति के क्षेत्र में सूर्य राहु है,इस प्रकार से जीवन मे केवल सूर्य राहु का कारण शांति प्रदान नही करने दे रहा है,केतु धन यानी अर्थ के क्षेत्र मे खालीपन दे रहा है काम के क्षेत्र मे जूझने के लिये ही शनि बुध शुक्र चन्द्र अपना प्रभाव दे रहे है.शुक्र को अगर भाग्य क्षेत्र मे स्थान दे दिया जाये तो और इष्ट के रूप मे लक्ष्मी आराधना की जाये तो दूसरा भाव और नवा भाव जाग्रत हो जायेगा,काम के क्षेत्र मे शुक्र का उच्च का होना और चन्द्रमा का सहयोग देना फ़लदायी हो जायेगा,अगर शुक्र की आराधना नही की जाती है तो सप्तम मे बैठा बुध बनते कामो को फ़ल देने के समय मे बरबाद कर देगा.ऐक उघारण ओर देखेमकर लग्न की कुण्डली है। प्रथम भाव में 10 गुरू

चतुर्थ भाव

दशम भाव में 7 तुला में पकेतू, चंद्र, मंगल

एकादश भाव में 8 मेंटट शनि 

द्वादश भाव में सूर्य , शुक्र, बुध है कुंडली के अनुसार चन्द्र केतु मंगल की कारक माता काली आपकी इष्ट है जो आपको जीवन मे तकनीकी बिजली पावर आदि क्षेत्र मे सफ़लता देती है और आप लोगो के प्रति अपनी कटु नीति से दुखो को दूर करने की सोचते है,लेकिन पत्नी की गुस्से वाली नीति आपको तभी परेशान करने लगती है जब आप तामसी कारणो को खुद के प्रति प्रयोग करना शुरु कर देते है। मित्रों की चली अपनी जन्म कुंडली दिखाकर अंजाम इष्टदेव जान सकते हैं क्योंकिजो माया के पीछे भागते है उन्हे राम समझ मे नही आते है और जिन्हे राम समझ मे आते है उन्हे माया समझ मे नही आती है - (माया महा ठगिनी हम जानी,देखन मे लगे नई नई पर सूरत जानी पहिचानी,माया महा ठगिनी हम जानी) 

लाल का किताब के अनुसार मंगल शनि

मंगल शनि मिल गया तो - राहू उच्च हो जाता है -              यह व्यक्ति डाक्टर, नेता, आर्मी अफसर, इंजीनियर, हथियार व औजार की मदद से काम करने वा...