एक सज्जन का यह प्रश्न है।आकाश के 300 डिग्री से 330 डिग्री तक के भाग को कुंभ राशि के नाम से जाना जाता है. जिस जातक के जन्म समय में यह भाग आकाश के पूर्वी क्षितिज पर उदित होता हुआ दिखाई देता है, उस जातक का लग्न कुंभ माना जाता है कुण्डली कुम्भ लगन की है और राशि कर्क है। राहु ,पंचम स्थान मे विराजमान है,चन्द्रमा छठे भाव मेकुंभ लग्न की कुंडली में मन का स्वामी चंद्र षष्ठ भाव का स्वामी होता है. यह जातक के रोग, ऋण, शत्रु, अपमान, चिंता, शंका, पीडा, ननिहाल, असत्य भाषण, योगाभ्यास, जमींदारी वणिक वॄति, साहुकारी, वकालत, व्यसन, ज्ञान, कोई भी अच्छा बुरा व्यसन इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होता हैओर विराजमान है,शनि मंगल दोनो अष्टम स्थान मे विराजमान है,गुरु भाग्य भाव मे विराजमान हैसमस्त विश्व को प्रकाशित करने वाला सूर्य सप्तम भाव का स्वामी होकर जातक के लक्ष्मी, स्त्री, कामवासना, मॄत्यु मैथुन, चोरी, झगडा अशांति, उपद्रव, जननेंद्रिय, व्यापार, अग्निकांड इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होता है.,सूर्य कार्य भाव मे है और केतु बुध लाभ भाव मे विराजमान है,तथा शुक्र जो नवे भाव का मालिक है वह बारहवे भाव मे विराजमान है।
घर किस्मत का तभी पनपता,जीव उजाले बैठा हो,चार सात घर खाली होते जीव तन्हा रह जाता है"इस बात को इस कुंडली से समझा जा सकता है,किस्मत का मालिक शुक्र है और शुक्र बारहवे भाव मे जाकर उच्च का हो जाता है। बारहवा भाव आसमान का घर भी कहलाता है। लेकिन चार और सात दोनो खाली है इस प्रकार से किस्मत उच्च की होने के बावजूद भी जातक का जीवन तन्हा है वह अपने को अकेले में ही रखना पसन्द करता है। शनि और मंगल उसके अष्टम मे है इस बात के लिये कहा जाता है:-सालन सस्ता फ़ूस से बनता,रोज कमाना खाना है,जीव अहारी मरा जो खावे अष्टम शनिमंगल की बलिहारी"्आठवे घर को शमशान की उपाधि दी जाती है,अस्पताल का घर भी कहा जाता है,शनि को सडा हुआ भी कहा जाता है और मंगल को पकाने वाला भी कहा जाता है। फ़ूस का अर्थ पत्ते वाले ईंधन से है किसी वस्तु को पकाने के लिये अगर पत्तों को जलाया जाये तो वह अपनी गर्मी को पैदा नही कर पाता है,जब तक पत्ते जलाते रहो तब तक आग बनी रहती है और जैसे ही पत्ते खत्म हो गये आग भी खत्म हो गयी,शनि काले रंग की राख ही मिलती है। यह अर्थ अक्सर शमशानी खाने से भी जोडा जाता है जैसे मांस का भोजन,शनि को शिथिलता से भी जोडा जाता है और इस शनि की शिथिलता को दूर करने के लिये दवाइयों के रूप में मंगल को भी देखा जाता है जो शिथिलता को दूर करे। अक्सर इस युति वाले जातक को मरा हुआ मांस या जमीन के नीचे पैदा होने वाले कंद आदि खाने का शौक भी होता है। जातक को मंगल और शनि की शिफ़्त से शुगर या केंसर जैसी बीमारी भी हो जाती है। लेकिन बारहवा शुक्र जो किस्मत का मालिक है दोनो ग्रहों से अपनी युति को बनाकर बैठता है तो जातक को धन वाली कम्पनी मे या अस्पताल मे अथवा गुप्त रहस्यों को खोजने और सुलझाने मे सहायता भी मिलती है,शुक्र वैज्ञानिक बनाने के लिये भी अपनी तकनीक को देता है।पंचम राहु नौटंकी वाला गुरु नवें से करता है".पांचवे भाव मे राहु की नजर अगर पांचवी द्रिष्टि से गुरु पर पडती है तो जातक अक्सर व्यापार के मामले मे धन का ब्रोकर वाला कार्य करता है,यह कार्य लोगों के लिये किये जाने वाले मनोरंजन को भी व्यापारिक कारणो से जोड कर चलने वाला होता है। अपनी बाहरी जिन्दगी मे वह अपने जीवन की नैया को भाग्य के सहारे भी छोड कर अपने जीवन को लोगों के हित के लिये भी शुरु करने वाला होता है,लेकिन उसके लिये कोई भी जोखिम का काम नौटंकी करने जैसा ही होता है। यहां तक कि वह अपने आने वाली संतान के मामले मे भी दोहरी जिन्दगी को जीने की चाहत वाला माना जाता है इस प्रकार के जातक के कोई भी काम प्लान बनाकर सफ़ल नही हो पाते है वह जो भी काम रास्ता चलते करता है वह पूरा हो जाता है।शुक्र बारहवा सूर्य दसें में अन्धापन दे जाता है,कानूनी मसलों के कारण मन ही मन पछताता है"अगर शुक्र बारहवा हो और सूर्य दसवे भाव मे हो तो किसी न किसी प्रकार की बीमारी आंख सम्बन्धी हो जाती है,यह युति अक्सर शरीर मे पोषक तत्वों की कमी के कारण ह्रदय रोग को भी देने वाला होता है और शरीर मे खून के थक्के जमने की बीमारी भी देता है। किडनी वाले रोग भी देने के लिये यह सूर्य और शुक्र की युति अपना काम करती है। अधिक से अधिक खर्चा दवाइयों और अस्पताली कारणो मे ही होता रहता है।शुक्र बारहवां त्रिया हितकारी"बारहवे शुक्र के होने पर अगर जातक अपनी स्त्री से हित लगाकर चलता है तो वह जीवन मे दिक्कत नही उठाता है जितना वह अपनी स्त्री को परेशान करेगा उतना ही वह दुखी होगा,इसके अलावा भी अगर जातक मीडिया और सजावट वाले कामो को बिजली वाले कामो को लेकर चलता है तो वह जीवन मे धन के लिये भी दुखी नही हो पायेगा जैसे ही उसकी शादी होगी उसकी स्त्री जातक के सभी कष्टों को अपने पर झेलने के लिये तैयार हो जायेगी।