गुरुवार, 21 नवंबर 2019

शनिदेव पर तेल चढ़ाना

जब कोई भी ग्रह अपने खराब फ़ल को प्रदान करता है तो ज्योतिषी अपने अनुसार उस ग्रह के बारे मे उपाय बताने लगते है। इन्ही उपायों मे एक उपाय है
शनि पर तेल चढाना,इस उपाय का वास्तविक कारण और मिलने वाले फ़लो के बारे मे विस्तार से जानना जरूरी है।
शनि ग्रह कठोर और ठंडे स्वभाव के लिये कहा गया है,शनि की द्शा अन्तर्दशा मे शनि के गोचर मे साढे शाती के समय मे शनि अपने फ़लो को देता है,इन फ़लो मे वह जातक को कठोर जीवन जीने और विषम परिस्थितियों मे रहने तथा काम करने की बुद्धि को भी प्रदान करता है और स्वविवेक से जीवन जीने के लिये भी अपने अनुसार परिस्थिति को प्रदान करता है।लाखो किस्से कहानिया आपबीती आदि बाते पढने और सुनने को मिलती है। मैने  इसमे शनि की दशा को भी भोगा है अन्य ग्रहो के साथ की अन्तर्दशा को भी भोगा है साढेशाती भी भोगी है और शनि को नजदीक से पहिचाना भी है। शनि करके सिखाने वाला ग्रह है जैसे स्कूल कालेज मे पढा भी जाता है और करके सीखा भी जाता है प्रेक्टिकल नाम की शिक्षा करके सीखने की क्रिया ही मानी जाती है। केवल पढने से और देखने से कोई भी काम नही किया जा सकता है जब उस काम को करने के लिये मानस नही बने और काम को किया नही जायेगा वह किसी भी प्रकार से न तो दिमाग मे बैठेगा और न ही किये गये काम का उचित फ़ल ही मिल पायेगा। शनि की कठोरता को समझने के लिये किये जाने वाले काम का रूप और काम को करने के प्रति लगाव तथा काम करने के लिये प्रयोग की जाने वाली शक्ति का प्रयोग जानना जरूरी होता है। किसी काम को नही करने और बिना किये ही उसका फ़ल प्राप्त होने का मतलब है कि मन के अन्दर या शरीर के अन्दर कार्य करने की क्षमता का विकास नही हो पाया है और उस कारण को एक प्रकार से ऐसे भी जाना जाता है कि जो कार्य करना था उसके अन्दर अन्य कारको को सामने लाकर कार्य शक्ति का क्षीण हो जाना भी माना जाता है,यानी जो शक्ति कार्य करने मे लगानी थी उस शक्ति को अन्यत्र कहीं प्रयोग मे लाया गया है जो भी कार्य किया जा रहा है वह नही हो पा रहा है।शक्ति का प्रयोग करने के लिये
तथा शक्ति को प्रयोग करने के बाद फ़लाफ़ल का भेद जानने के लिये खुद पर नियंत्रण करना जरूरी है। मिट्टी पत्थर लोहा आदि सभी जमीनी तत्व है इन जमीनी तत्वो को अन्दर ही तैलीय तत्व भी विद्यमान है,जैसे सरसों का तेल मूंगफ़ली का तेल कोई हवा मे उडकर तो आता नही है जमीन के अन्दर की गर्मी और जमीन के तत्वो का वैज्ञानिक विकास सरसों के दाने मे तेल भी लाता है और मूंगफ़ली के अन्दर भी तेल की मात्रा को प्रदान करता है। संसार का कोई भी अनाज लिया जाये सभी के अन्दर तैलीय पदार्थ यानी वसा का उपस्थित होना जरूरी होता है,किसी भी जीव को देखा जाये सभी के अन्दर वसा का होना देखा जाता है बिना वसा के या तैलीय पदार्थ के जीवन का रहना नही माना जाता है और जितना तैलीय पदार्थ शरीर अनाज फ़ल वनस्पति मे होता है उतनी ही वह शक्तिशाली भी होती है और अधिक दिन तक चलने वाली भी होती है। साधारण रूप से वसा या तैलीय पदार्थ को कठोर काम करने और अधिक समय तक काम करने के लिये प्रयोग मे लाना उचित माना जाता है लेकिन यह उन्ही लोगो के लिये माना जाता है जो शरीर से श्रम करने वाले होते है अगर किसी एसी मे बैठने वाले व्यक्ति को अधिक वसा या तैलीय पदार्थ का सेवन अधिक करवा दिया जाये या उसके अन्दर वसा की मात्रा अधिक हो जायेगी तो काम नही करने शरीर मे गर्मी नही पैदा करने के कारण वसा शरीर मे जगह जगह जम जायेगी और जो भी शरीर का तंत्रिका तंत्र है उसके कार्यों में अवरोध का पैदा होना हो जायेगा फ़लस्वरूप ह्रदय सम्बन्धी बीमारी आदि का होना शुरु हो जायेगा।
जब शनि देव परेशान करते है तो मनुष्य को मेहनत करने का समय आता है,मेहनत करने का कारण भी जीवन के प्रति मिलने वाले फ़लो की प्राप्ति से जुडा होता है। जैसे पेड पौधे जीव जन्तु आहार विहार से तैलीय पदार्थो को प्राप्त करते रहते है वैसे ही मनुष्य भी आहार विहार और भोजन आदि से चिकनाई प्राप्त करता रहता है,शरीर मे जितनी चिकनाई को प्रयोग करने की क्षमता होती है उतना वह प्रयोग मे ले लेता है बाकी का हिस्सा उसे जहां खाली जगह मिलती है जमा कर लेता है,जब उसे कहीं जमा करने की जगह नही मिलती है तो वह खाल को बढाकर खाली जगह मे चर्बी को इकट्ठा कर देता है। यह बात अक्सर उन लोगो के अन्दर देखी जाती है जो बैठे रहते है दिमागी काम को करते है और ठंडे माहौल मे रहते है। यह चर्बी यानी वसा उन्हे शरीर के अन्दर अधिक ठंड से बचाने और शरीर का तापमान नियंत्रित करने के काम भी आता है,साथ ही भूख प्यास मे शरीर को मिलने वाली ऊर्जा को भी प्रदान करने के काम आता है जैसे समय कुसमय भोजन आदि नही मिलता है पानी नही मिलता है तो यह चर्बी अपनी पूर्ति से प्यास और भूख को पूर्ति मे लाती है। इस बात के लिये जीवो के अन्दर आप देख सकते है कि उत्तरी धुर्वीय प्रदेशो मे रहने वाले जीव सील वालरस आदि अपनी चर्बी की सहायता से बर्फ़ के जमे रहने तक बिना कुछ खाये पिये तापमान के प्रभाव को झेलते रहते है,ठंडे प्रदेश मे रहने वाले लोग जीवो का आहार करते रहते है कारण उन्हे वनस्पति की अपेक्षा जीव के अन्दर से अधिक वसा मिल जाती है और वे अपने जीवन को सुचारु रूप से चलाते रहते है इसलिये ही ठंडे प्रदेशो मे रहने वाले लोग मांसाहारी अधिक मात्रा मे होते है। इसी प्रकार से गर्म प्रदेशो मे भी चर्बी का प्रयोग प्यास को शांत रखने के लिये किया जाता है,जैसे रेगिस्तानी इलाको मे भी अधिक घी और तेल का प्रयोग किया जाता है साथ ही ऊंट इसका अच्छा उदाहरण है वह कई दिनो तक बिना पानी को पिये रह सकता है।मनुष्य के शरीर मे जब अधिक वसा एकत्रित हो जाती है तो वह कार्य करने मे आलस का भाव ले आता है वह और अधिक सुस्त होता चला जाता है उसे किसी प्रकार से भी काम करने का मन नही करता है,जब शरीर की ग्रंथिया शिथिल हो जाती है तो यह भी जरूरी है कि शरीर का तंत्र भी गडबडा जाता है,इस गडबड मे और आलस के अधिक आने से न तो शरीर ही काम करता है और न ही दिमाग ही काम करता है कारण दिमाग भी शरीर के अनुसार ही काम करता है जितना शरीर बिना चर्बी के होता है उतना ही वह गर्म भी होता है और कार्य करने के अन्दर उत्तेजना भी आती है कार्य के अन्दर फ़ुर्ती भी आती है लेकिन अधिक कमजोरी के कारण गुस्से की मात्रा भी बढ जाती है। अक्सर यह भी देखा होगा कि जो लोग अधिक भारी होते है और शरीर से बलवान होते है उन्हे गुस्सा आती ही नही है या आती है तो जरा सी देर के लिये आती है,जितना अधिक शरीर बलवान होता है भारी होता है बुद्धि की कमी आजाती है,जितना शरीर हल्का होता है बुद्धि भी उतना ही काम करती है। जब आलस आता है तो चर्बी को घटाने की जरूरत पडती है,उस चर्बी को मेहनत करने के द्वारा ही घटाया जा सकता है शरीर को चलाने फ़िराने से चर्बी घट सकती है इसी लिये जिन लोगो के पास कोई काम नही होता है या दिमागी काम को करने वाले होते है उन्हे योग व्यायाम आदि करने की सलाह दी जाती है विभिन्न हिस्सो की चर्बी को हटाने और य्ववस्थित रखने के लिये योगो के कई रूप बनाये गये है.जब शरीर मे चर्बी की मात्रा का फ़ैलाव अधिक हो जाता है तो काम नही बन पाते है और उन कामो के नही बनने का कारण यह भी होता है कि आलस का आना समय पर क्रिया को पूरा नही कर पाना उचित समय पर उचित काम को नही करपाना आदि। इस प्रकार की बाते होने पर शरीर को जो तैलीय पदार्थ सेवन करने के लिये कहे गये है उनके अन्दर कमी कर दी जाती है। अक्सर मनुष्य की भावना जोड कर रखने और नियमित रूप से हर वस्तु को प्रयोग करने की होती है,उसी प्रकार से घर के अन्दर रसोई के अन्दर तैलीय पदार्थ भी रखे जाते है जब घर के अन्दर रखे हुये है और पूडी बनाकर खाने की इच्छा होगी तो वह तो बनायी जायेंगी और मन के आजाने से कितने ही तेल की मात्रा शरीर मे बढी हुयी हो वह खायी भी जायेंगी,इस बात को लोगो ने धार्मिक पहलू मे जोडा और शनिवार के दिन तेल का दान करवाना शुरु कर दिया तथा शनिवार को तेल से बने पदार्थ आदि खाने से मना भी किया कर दिया। कई स्थानो पर तेल को दान मे लेने वाले नही मिलते है इसलिये धार्मिक भावना मे यह निश्चित कर दिया गया कि अमुक स्थान पर शनि के रूप मे काले पत्थर पर तेल को चढाया जाये,लोगो की आस्था के अन्दर यह बात घर कर गयी कि तेल को शनि पर चढाने से शनि का प्रभाव कम होता है,और लोग इस बात को लेकर चलने लग गये। लेकिन जब खुद के घर मे तेल नही हो और शरीर की अन्य कमी के कारण शरीर काम नही कर रहा हो तो मनोवैज्ञानिक आधार पर भी लोग खरीद कर तेल को चढाने लग गये,जो लोग शरीर से कमजोर है और उनके अन्दर चलने फ़िरने की हिम्मत नही है वे भी तेल को खरीद कर धार्मिक आस्था के चलते शनि के नाम से किसी भी स्थान पर तेल को चढाने लग गये। इस प्रकार से चालाक लोगो की अपनी चलने लगी और उन्होने शनि को तेल चढाने की क्रिया करवाना शुरु कर दिया।शनि के रूप मे किये जाने वाले दान पुण्य आदि के नाम से लोगो के लिये एक प्रकार से उद्योग बन गये और गली मे मुहल्ले मे शहर मे कई कई स्थान बना दिये गये,किसी को कोई स्थान नही मिला तो शनि का पेड शमी को बताकर उसके ऊपर ही तेल को चढाया जाने लगा,कई लोगो ने शनि के लिये काले अनाज को दान करवाना शुरु कर दिया कोई लोहे को दान करने के लिये कहने लगा और कोई अपने अपने मत से कई कारण बताकर समस्या को तो देखा नही लेकिन समस्या की पूर्ति के लिये अपनी वाहवाही के लिये शनि के लिये तेल को चढाना आदि बाते शुरु करवा दी,तथा एक प्रकार से भय का भी प्रदान करना शुरु कर दिया कि जो भी शनि के लिये उल्टा बोलता है जो भी शनि की बुराई करता है उसे शनि अपनी वक्र द्रिष्टि देकर बरबाद कर देते है। यह बात कहां साबित होनी थी और कहां उसे प्रयोग कर दिया। जो लोग अधिक मोटे हो जाते है उनका शरीर कोई काम नही करता है जो आलस से घिर जाते है जिन्हे केवल खाने और अपनी शारीरिक क्रियाओं को पूरा करने के लिये रोजाना की जरूरत के लिये धन और वस्तुओं की आवश्यकता होती है,वे अपनी चालाकी वाली वक्र द्रिष्टि से तलासा करते है कि कौन सा ऐसा काम किया जाये जिससे वे अधिक से अधिक साधन प्राप्त करने के लिये अधिक से अधिक चालाकी वाले काम करके अधिक से अधिक लोगो को अपनी वक्र द्रिष्टि से कोपभाजन बनाये। लेकिन यह बात भी शनि देव को प्रदान कर दी। जो लोग मेहनत करते है मजदूरी करते है अपने रोजाना के पेट पालने के उपक्रम करते है शरीर को तोडते है जिन लोगो के अन्दर किसी भी काम करने के लिये अद्भुत शरीर की शक्ति होती है उन्हे शनि के लोगो मे गिना जाने लगा,यह केवल लोगो के अन्दर गलत धारणा के लिये माना जा सकता है और यह धारणा केवल इसी लिये पैदा की जाने लगी कि कैसे भी अपनी वक्र द्रिष्टि से लोगो को निशाना बनाकर लूटा जा सके और अपनी पेट भराई को किया जाता रहे।
शनि को कार्य का रूप भी दिया गया है,जो कार्य करता है वह शनि के रूप मे माना जाता है,जबकि शनि वसा की अधिकता से कार्य करने के लिये कतई मजबूर है,कार्य को करने के लिये शक्ति देने के लिये मंगल को माना जाता है,मंगल की शक्ति से खून के अन्दर बल होगा तो वह अपने आप काम करने लगेगा वह किसी की सहारे की जरूरत को कभी प्रयोग मे नही लेगा,लेकिन शनि वाले व्यक्ति को सहारे की भी जरूरत होगी और अपने लिये जरूरतो को पूरा करने के लिये वह मंगल की सहायता के लिये भी भागेगा। जैसे ही वह अपनी वक्र द्रिष्टि देने मे कामयाब हो जायेगा वह अपने काम को चतुराई से करने भी लगेगा और अपना आक्षेप दूसरो पर देकर मेहनत करने वाले लोगो को शनि की उपाधि भी देने लगेगा। जिन लोगो मे शनि की अधिकता है और जो लोग काम नही कर पाते है जिनकी बुद्धि समय पर काम नही करती है जिन लोगो के अन्दर चतुराई की आदत नही है वे लोग शनि के उपाय करने के लिये तेल भी चढा सकते है और शनि की पूजा पाठ के लिये अपने शरीर के कई कारणो को समाप्त भी कर सकते है,इसलिये जरूरत होती है कि शरीर को मंगल की पूर्ति की जाये यानी शरीर को गर्म रखने के लिये और शरीर के अन्दर पैदा हुये तैलीय पदार्थो की कमी के लिये निश्चित समय पर योग किये जाये जो लोग खुले स्थान मे है वे लोग सुबह शाम की दौड लगाये,मेहनत वाले कामो को करने के बाद तेल जमीन और पत्थरो को दान करे लेकिन वह तेल वास्तविक तेल होना चाहिये यानी वह मनुष्य के शरीर से निकला हुआ तेल पसीने के रूप मे होना चाहिये,वह तेल खरीदा नही होना चाहिये वह घर के अन्दर से नही लेना चाहिये वह तेल मेहनत करने के बाद शरीर से पसीने के रूप मे निकाल कर दान करना चाहिये तब जाकर शनि देव प्रसन्न भी होंगे और दिमाग भी चलेगा,सभी काम चाहे वह शिक्षा का हो चाहे वह नौकरी का हो चाहे वह व्यापार का हो सभी पूरे होने लगेंगे। मित्रों मेरी तो यही कोशिश रहती है कि मैं आपको ज्योतिष के जो वैज्ञानिक तथ्य है, पहलू है। उस की जानकारी दू, और इस में फैले हुए अंधविश्वास को दूर कर सकें ।आचार्य राजेश

शुक्रवार, 1 नवंबर 2019

क्या है अंक13 का रहस्य कितना शुभ और कितना अशुभ

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मित्रों धनतेरस के दिन यह मन में विचार आया कि हम लोग 13 अंक को अशुभ क्यों मानते हैं। एक तरफ तो हम धनतेरस के दिन खरीदारी करते हैं। घर में कुछ ना कुछ लेकर आते हैं 13 का अंक अगर देखें तो एकांत सूर्या का और चीन अंक गुरु का गुरु और सूर्य का मेल गुरु ज्ञान का कारक है और सूर्य रोशनी का जीवन देने का कारक है। हमारी आत्मा का कारक है या रोशनी है ज्ञान है तो इस अंक को राहु के साथ जोड़कर इस अंक के साथ नाइंसाफी की जाती है हम लोग पश्चिम की देखा देखी हर उस बात को मानना शुरू कर देते हैं। जो बात वहां के समाज में मानी हो हम अपने सनातन धर्म की संस्कृति को भूलकर दूसरों के विचारों को मानना शुरू कर देते हैं। और यह कुछ बात अंक तेरा की करते हैं मित्रों एक पोस्ट लिखने पर बहुत मेहनत होती है। अगर अच्छी लगे तो लाइक करें शेयर करें अगर कुछ कमी रह गए तो अपने विचार लिखें।
हमारे कुछ मित्र 13 अंक के बारे में बहुत बार बात करते है। 
 दुनिया के कई दूसरे देशों में 13 नंबर को अपशगुन मा्ना जाता है नम्बर तेरह को अक्सर बुरी नजर से देखा जाता है लोग अपने मकान के नम्बर को भी नम्बर को भी तेरह के साथ जोड कर नही रखना चाहते है किसी होटल आदि मे जाना हो तो आप देख सकते है नम्बर तेरह का कमरा बडी मुश्किल से देखने को मिलता है। हिब्रू ने भी बडी तन्मयता से इस नम्बर के बारे मे लिखा है कि एक नरकंकाल जो मनुष्यों के रूप की फ़सल को काट रहा है,नर कंकाल के हाथ में एक हंसिया है और वह मनुष्यों के सिर को काटने का उपक्रम कर रहा है। भारत में हमारे सिख मित्रों ने नंबर 13 को बहुत ही शुभ माना है क्योंकि गुरु नानक देव ने कहा था कि तेरा ही तेरा। लेकिन तेरा ही तेरा और 13 ही 13 में बहूत फर्क है । उन्होंने कुछ और कहा था ।
आपने कुछ और समझ लिया। उनके कहने का अर्थ था कि सब कुछ तेरा ही तेरा है। हमारा कुछ भी नहीं। लेकिन इस बात का 13 नंबर से कोई संबंध नहीं। लेकिन चाइना के साथ-साथ दूसरे कई देशों ने 13 नंबर को मनहूस या अपशगुन माना है।
उसका कारण यह है कि आदमी के शरीर में नौ छेद हैं; उन्हीं नौ छेदों से जीवन प्रवेश करता है। और उन्हीं नौ छेदों से जीवन बाहर जाता है। और चार अंग हैं। सब मिला कर तेरह। दो आंखें, दो नाक के स्वर, मुंह, दो कान, जननेंद्रिय, गुदा, ये नौ तो छिद्र है 
 और चार--दो हाथ और दो पैर। ये तेरह जीवन के भी साथी हैं और यही तेरह मृत्यु के भी साथी हैं। और यही तेरह तुम्हें जीवन में लाते हैं और यही तेरह तुम्हें जीवन से बाहर ले जाते हैं।
तेरह का मतलब यह पूरा शरीर। इन्हीं से तुम भोजन करते हो; इन्हीं से तुम जीवन पाते हो; इन्हीं से उठते-बैठते-चलते हो; ये ही तुम्हारे स्वास्थ्य का आधार हैं। और ये ही तुम्हारी मृत्यु के भी आधार होंगे। क्योंकि जीवन और मृत्यु एक ही चीज के दो नाम हैं। इन्हीं से जीवन तुम्हारे भीतर आता, इन्हीं से बाहर जाएगा। इन्हीं से तुम शरीर के भीतर खड़े हो। इन्हीं के साथ शरीर टूटेगा, इनके द्वारा ही टूटेगा।
यह बड़ी हैरानी की बात है, ये ही तुम्हें सम्हालते हैं, ये ही तुम्हें मिटाएंगे। भोजन तुम्हें जीवन देता है, शक्ति देता है। और भोजन की शक्ति के ही माध्यम से तुम अपने भीतर की मृत्यु को बड़ा किए चले जाते हो। भोजन ही तुम्हें बुढ़ापे तक पहुंचा देगा, मृत्यु तक पहुंचा देगा। आंख से, कान से, नाक से, जीवन की श्वास भीतर आती है, उन्हीं से बाहर जाती है। नौ द्वार और चार अंग।
तेरह ही जीवन के साथी, तेरह ही मौत के साथी। ये तेरह ही लाते हैं, ये तेरह ही ले जाते हैं।
तेरह की संख्या के कारण चीन में, और फिर धीरे-धीरे सारी दुनिया में, तेरह का आंकड़ा अपशकुन हो गया। वह चीन से ही फैला। पश्चिम में जहां तेरह का आंकड़ा अपशकुन है उनको पता भी नहीं कि क्यों अपशकुन है। उसका जन्म चीन में हुआ।तो आज तो हालत ऐसी है कि अमरीका में होटलें हैं जिनमें तेरह नंबर का कमरा नहीं होता; तेरह नंबर की मंजिल भी नहीं होती। क्योंकि कोई ठहरने को तेरह नंबर की मंजिल पर राजी नहीं है। तो बारह के बाद चौदह नंबर होता है। क्योंकि तेरह शब्द से ही घबड़ाहट पैदा होती है।
तेरह नंबर का कमरा नहीं होता; बारह नंबर के कमरे के बाद चौदह नंबर का आता है। होता तो वह तेरहवां ही है, लेकिन जो ठहरता है उसको नंबर चौदह याद रहता है; तेरह की उसे चिंता नहीं पकड़ती।
इसका जन्म हुआ चीन में, और बड़े अर्थपूर्ण कारण से यह विश्वास फैला। अगर तुम इन तेरह के प्रति सजग हो जाओगे, तो शरीर से तुम्हारा फासला बढ़ेगा। तुम देख पाओगे, मैं पृथक हूं, मैं अन्य हूं। शरीर अलग, मैं अलग।
और यह जो भीतर भिन्नता, इसकी न कोई मृत्यु है, न इसका कोई जीवन है। न यह कभी पैदा हुआ, न कभी यह मरेगा ।आज के ही दिन भारत मे जलियांवाला कांड हुआ था और जनरल डायर जिसकी वास्तविक जन्म तारीख तेरह ही थी,और उस दिन शुक्रवार का ही दिन था। वैसे इतिहासिक रूप से उसकी जन्म तारीख नौ अक्टूबर अठारह सौ चौसठ बताई गयी है,वास्तविक जन्म तारीख १३ नवम्बर १८६३ मिलती है.तुला राशि का सूर्य मंगल गुरु बुध था तथा वृश्चिक राशि का चन्द्रमा और राहु तथा वृष राशि का केतु गन पाइंट से भीड की हत्या करने के लिये एक दुरात्मा की तरह से काम करता है। अक्सर इस दिन पैदा होने वाले लोग मारक शक्ति को लेकर पैदा होते है लेकिन यह वही लोग होते है जो सामाजिक व्यवस्था से दूर होते है और मनमर्जी के अधिकारी भी माने जाते है धर्म कर्म संस्कार आदि जिनके वश की बात नही होती है। यह दिन कई देशो मे बहुत ही प्रसन्नता से मनाये जाता है और कई देशो मे यह भूतो का दिन माना जाता है लेकिन जहां संस्कार और विद्या का प्रयोग करना आता है उन स्थानो मे यह बहुत ही शुभता की द्रिष्टि से मनाया जाता है। मित्रों , संसार क्षण-भंगुर है। उस पर रोचक तथ्य यह टटहै कि क्षण के हजारवें अंश की भी गणना होती है। यह कालचक्र के रहस्यों से भरे खेल का हिस्सा मात्र है। समय की गति का अध्ययन करने वाले और इसके गूढ़ रहस्यों को समझने-समझाने वाले तमाम विज्ञान-शास्त्र नंबरों के इस खेल को और भी रोचक रूप में हमारे सामने प्रस्तुत करते हैं।
ज्योतिष शास्त्र को तो मनुष्य के जन्म के समय, तिथि और अन्य सबंधित टआंकड़ों की गणना मात्र से उसके संपूर्ण जीवनकाल की गणना करने में सक्षम माना गया है। 60 सेकंड का एक मिनट, 60 मिनट का एक घंटा, 12 घंटों का दिन, 12 घंटों की रात, 12 महीनों का एक साल। इस तरह 365-1/4 दिनों के एक साल में जीवन एक-एक सेकंड कर घटित होता है। रोचक बात यह है कि सटीक 12-12 घंटों के दिन-रात और 12 महीनों का कहे जाने के बावजूद एक साल का अंत सटीक 12 पर नहीं होता है। 13 पर होता है। क्योंकि एक साल 365+1/4 यानी 365 दिन + चौथाई दिन का होता है। इससे अंदाजा लगा सकते हैं आप अंक 13 के जलवे का 
जहां कुछ संस्कृतियों में 13 को नंबर ऑफ डेथ कहा गया है वहीं कुछ में इसे "नंबर ऑफ लाइफ" माना गया है। ब्राजील में कोपेरस धर्म को मानने वाले 13 को शुभ मानते हैं। वहां इसे नंबर ऑफ लाइफ माना जाता है। वे कहते हैं कि यह मानवता की रक्षा का परिचायक है। वे इसे नंबर ऑफ गॉड यानी भगवान का अंक मानते हैं। 
हमारे भारत में सिख मतावलंबी 13 को शुभ मानते हैं।  वैशाखी अप्रैल की 13 तारीख को मनाया जाता है।  इसी तरह इस्लाम, यहूदी, रोमन कैथोलिक धर्म में भी कुछ ऎसे विवरण मिलते हैं जो 13 को नंबर ऑफ गॉड यानी भगवान का अंक निरूपित करते हैं। शिया धर्म में रज्जब माह की 13 तारीख को पवित्र माना जाता है।
प्राचीन मिस्त्र सभ्यता में, जहां मौत के बाद भी जीवन की मान्यता थी, 13 को जीवन और मौत के बीच की कड़ी माना गया था। इसी तरह यदि अल्फाबेट से जोड़ कर देखें तो अल्फाबेट का 13वां लैटर है "एम"। दुनिया एम के ही इर्द-गिर्द घूमती है। मिस्र में तो मौत के बाद मरने वाले को आलीशान पिरामिड में ममी के रूप में सुरक्षित रखा जाता था। इस पिरामिड को कुल 13 दिन में ही बनाया जाता था। 
शैतान का अंक 
ईसाइ धर्म में ऎसे कुछ घटनाक्रमों का उल्लेख है, जिससे 13 का अंक इस धर्म को मानने वालों के लिए शैतान का अंक है । कहा जाता है कि उस दिन 13 तारीख थी जब ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाया गया था। उन्हें जिन लोगों ने सूली पर चढ़ाया था उनकी संख्या 13 थी। यही नहीं, ईसा मसीह ने खुद को सूली पर चढ़ाए जाने से पहले जो अंतिम भोजन किया था, जिसे लास्ट-सपर कहा गया है, उस मेज पर ईसा सहित कुल 13 लोग ही शामिल थे। लिहाजा ईसाई 13 को अशुभ मानते हैं।   
लेकिन कीरो कहते हैं बेहद शुभ है 13 अंक !
अ नुकूल योग होने पर 13 को बेहद करिश्माई अंक बताया गया है। ज्योतिष शास्त्र और अंक शास्त्र में इसे कर्म का प्रतीक भी कहा गया है। यानी जैसा कर्म, वैसा फल। 13 का मूल अंक 4 है, जिसे निर्माण का प्रतीक भी बताया गया है। इस अंक को न्यूमेरोलोजी में पमास्टर-नंबर की पदवी दी गई है। कहा गया है की अनुकूल होने पर यह सबसे करिश्माई अंक साबित होता है पऔर इसे न केवल सौर मंडल बल्कि सम्पूर्ण सृष्टि का सहयोग मिलता अंक तेरह का योग चार मे आता है और चार का अंक भारतीय गणना के अनुसार केतु की परिभाषा मे आता है,केतु को साधनो का कारक और गणेश जी के रूप मे पूजा जाना भी माना जाता है  जो लोग तांत्रिक कारणो को समझते है और उनका प्रयोग करना जानते है वे लोग तांत्रिक वस्तुओं की स्थापना भी करते है,तेरह अप्रैल को यह तारीख और दिन आने से तथा सूर्य का बारहवा स्थान बदलने के बाद मेष राशि मे आने से भी यह दिन बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन लोग केतु से सम्बन्धित तांत्रिक वस्तुओ को स्थापित करने से भी उनकी अद्रश्य शक्ति से सफ़लताओ का मिलना जाना जाता है। लोग आज के दिन दक्षिणावर्ती शंख हड्डी तथा नाखून से बनी वस्तुये केतकी जडी कांटे और वनस्पति जगत की तांत्रिक वस्तुये स्थापित करते है। आज के दिन नाव की कील से बने छल्ले शनि सम्बन्धित तकलीफ़ो जैसे जोडों के दर्द शरीर मे चर्बी का इकट्ठा हो जाना पेशाब वाली बीमारिया हो जाना आदि रोगो के लिये सही माने जाते है।

लाल का किताब के अनुसार मंगल शनि

मंगल शनि मिल गया तो - राहू उच्च हो जाता है -              यह व्यक्ति डाक्टर, नेता, आर्मी अफसर, इंजीनियर, हथियार व औजार की मदद से काम करने वा...