बुधवार, 27 फ़रवरी 2019

Conjunction of mars and Saturn - मंगल शनि युति

https://youtu.be/UhhGa4T6iLsमित्रों आज बात करते है शनि और मगंल जब हो कुंडली मे इकठ्ठे हो कुंडली में इन दोनों ग्रहों के भाव, स्थान व उनके संबन्धित कारकों को भी देखा जाना चाहिए। 

 ज्योतिष का हर जानकार शनि ग्रह को धरती पर होने वाली सभी बुरी घटनाओं का प्रतीक व कारक मानता है। संसार में होने वाले कष्ट, दुःख, संताप, मृत्यु, अपंगता, विकलता, दुष्टता, पतन, युद्ध, क्रूरता भरे कार्य, अव्यवस्था, विद्रोह इत्यादि का कारक ग्रह शनि ही माना जाता है। किसी की भी कुंडली में इसकी स्थिति बहुत महत्व रखती है मंगल  हमारे शरीर में शक्ति के कारक माने जाते है | हमारे में जो फुर्ती होती है जोश और हिम्मत होती है किसी भी कार्य को तत्काल करने की क्षमता मंगल पर निर्भर करती है जबकि दूसरी तरफ शनि  आलस्य के कारक माने जाते है| हम किसी कार्य को कितना टालते है हमारे शरीर में उर्जा की कमी होना या किसी भी कार्य को करने में देरी करना शनि के प्रभाव के फलस्वरूप हमारे शरीर में होती है| शनि  सांप  तो  मंगल  शेर  यानी  की  ऐसे  जातक में इन  दोनों  की  मिलावट  मिली  हुई   होगी  तो ऐसा जातक  विनम्र  इंसान  को माफ़  करने  वाला  लेकिन  क्रूर  इंसान को  तबाह  करने  वाला  होता है  दुसरे  शब्दों में  ऐसा  जातक  बुरे  इंसानों  को  कभी माफ़  नही  करता  और  उनका  नुक्सान करता है  

अब एक तो फुर्ती तेज़ी का प्रतीक जोश का प्रतीक मंगल  तो दूसरी तरफ आलस्य के मारे शनि  दोनों एक साथ हो गये है|} अत: स्पस्ट है की इन दोनों के अपने अपने प्रभाव में कुछ बदलाव तो जरुर आएगा| शनि जो हर कार्य को काफी सोच समझ कर करने के कारक माने जाते है ऐसे में मंगल की अथाह शक्ति को शनि की समझ का सहारा मिल जाता है और इंसान में बहादुरी के साथ अच्छी समझ का भी समावेश हो जाता है| 

लाल किताब के मुताबिक की जब मंगल के साथ शनि हो तो मंगल अपनी सारी शक्ति शनी देव को दे देते है और खुद बुद्ध की तरह खाली हो जाते है और शनिचर ज्यादा बलि हो जाते है| इसका उदाहरण देकर समझाया गया है की ऐसे इन्सान के भाई की हालत जातक से जातक से अच्छी नही होती यानी वो किसी न किसी चीज में जातक से कम होता है जैसे धन दौलत | ऐसे इन्सान के घर चोरी होने का भय भी बना रहता है|शनि मंगल का योग व्यक्ति को तकनीकी कार्यों जैसे इंजीनियरिंग आदि में आगे ले जाता है और यह योग कुंडली के शुभ भावों में होने पर व्यक्ति पुरुषार्थ से अपनी तकनीकी प्रतिभाओं के द्वारा सफलता पाता है। मित्रों शनि को कार्य के लिये और मंगल को तकनीक के लिये माना जाता है। शनि का रंग काला है तो मंगल का रंग लाल है,दोनो को मिलाने पर कत्थई रंग का निर्माण होजाता है। कत्थई रंग से सम्बन्ध रखने वाली वस्तुयें व्यक्ति स्थान पदार्थ सभी शनि मंगल की युति में जोडे जाते है। शनि जमा हुआ ठंडा पदार्थ है तो मंगल गर्म तीखा पदार्थ है,दोनो को मिलाने पर शनि अपने रूप में नही रह पाता है जितना तेज मंगल के अन्दर होता है उतना ही शनि ढीला हो जाता है। इस बात को रोजाना की जिन्दगी में समझने के लिये घर मे बनने वाली आलू की सब्जी के लिये सोचिये,आलू की सिफ़्त शनि में जोडी जाती है कारण जमीन के अन्दर से यह सब्जी उगती है जड के रूप में इसका आस्तित्व है,जब निकाला जाता है तो जमा हुआ पानी और अन्य पदार्थों का मिश्रण होता है। यह सूर्य की गर्मी से सड जाता है इसके लिये इसे कोड स्टोरेज में रखा जाता है और समय पर निकाल कर इसे प्रयोग में लाया जाता है,सब्जी बनाते वक्त इसे छिलके को निकाल कर मिर्च मशाले आदि के साथ सब्जी के रूप में पकाया जाता है जितनी गर्मी इसे दी जायेगी उतना ही पतला यह पक जायेगा,लेकिन अपने अन्दर के पानी के अनुसार ही यह ढीला या कडक बनेगा,भोजन के समय इसे प्रयोग करने पर अपने रूप परिवर्तन से आराम से खाया जा सकता है। अगर इसे गर्म नही किया जाये तो यह पकेगा नही और कसैला स्वाद देगा और खाया भी नही जायेगा। सीधे आग में डालने पर यह जल जायेगा,फ़्लेम वाली आग में यह पकेगा नही,जितनी मन्दी आग से इसे पकाया जायेगा उतना ही स्वादिष्ट बनेगा। दूसरा उदाहरण मंगल की भोजन में प्रयोग की जाने वाली मिर्च से भी लिया जाता है,जब मिर्च अधिक हो जाती है तो शरीर के अन्दर जमा हुआ कफ़ जो शनि के द्वारा पैदा किया जाता है पिघलना शुरु हो जाता है,जितनी अधिक मिर्च खायी जाती है उतना अधिक कफ़ शरीर से पिघलना शुरु हो जाता है,यहां तक कि अगर अधिक मिर्ची खायी जाये तो शरीर में जलन पैदा हो जाती है,शरीर में वसा के रूप में जमा शनि का पदार्थ पिघल कर आन्सू की रूप में कफ़ के रूप में नाक के रूप में पेशाब के समय चर्बी के रूप में मल को पतला करने के बाद दस्त के रूप में निकल जायेगा,अधिक मिर्च के प्रयोग करने पर यह शरीर की रक्षा के रूप में उपस्थित और सर्दी गर्मी से शरीर को बचाने वाले पदार्थ को शरीर से निकाल कर बाहर कर देगी। उसी प्रकार से धीमी आंच पर रखा हुआ पानी भी भाप की शक्ल में बर्तन से विलीन हो जायेगा। यह मंगल की सिफ़्त है। एक बात और भी मानी जाती है कि शनि का स्थान गन्दी जगह पर होता है और मंगल का स्थान गर्म जगह पर होता है,जिन जातकों की कुंडली में शनि मंगल की युति होती है उनका खून किसी न किसी प्रकार के इन्फ़ेक्सन से युक्त होता है। शनि के अन्दर एक बात और देखी जाती है कि वह जड है उसे कोई भान नही है,जैसे सूर्य देखने की क्षमता रखता है चन्द्र सोचने की क्षमता को रखता है मंगल हिम्मत को दिखाने की क्षमता को रखता है बुध गन्द को सूंघने की क्षमता को रखता है,गुरु सुनने और काम शक्ति के विकास की क्षमता को रखता है शुक्र स्पर्श से समझने की क्षमता का रूप होता है,राहु आकस्मिक घटना को देने की ताकत को रखता है तो केतु स्वभाव से ही सहायता के लिये सामने होता है,लेकिन शनि जड है उसे जैसा साधनों से बनाया जाता है वैसा ही वह बन जाता है। मंगल के साथ तकनीकी कारण से शनि जमे हुये कार्य को पिघलाने का काम करता है। शनि पत्थर है और उसे लाल रंग से रंग दिया जाये तो वह धर्म के रूप में बन जायेगा,शनि चोर है तो मंगल सिपाही है। शनि पत्थर है तो मंगल लोहा है,इसलिये ही शनि के लिये लोहे का छल्ला पहिना जाता है। रिस्तो मे देखा जाये तो शनि कर्म है मंगल भाई है,शनि दुख है तो मंगल भाई का दुख है,शनि खेती का काम है तो मंगल मशीनरी है,शनि जेल है तो मंगल उसका प्रहरी है,शनि विदेशी है तो मंगल उसे कन्ट्रोल करने वाला है,शनि कोयला है तो मंगल तपती हुई आग है,शनि कमजोर है तो मंगल उसके अन्दर शक्ति को देने वाला है,शनि डाकू है तो मंगल उसकी उसकी साहस की सीमा है,शनि बुजुर्ग दार्शनिक है तो मंगल उसके तामसिक विचार है,शनि कब्रिस्तान है तो मंगल जलती हुई आग है,शनि खंडहर है तो मंगल उसके अन्दर तपती हुयी रेत है,शनि बाल है तो मंगल उसे काटने वाला नाई है,शनि लकवा है तो मंगल गर्म सेंक है,शनि फ़ोडा है तो मंगल आपरेशन है,शनि कर्म है तो मंगल रसोई है,शनि मधुमक्खी है तो मंगल उसके अन्दर का जहर है,शनि आलू का पकौडा है तो मंगल उसके अन्दर मीठी चटनी है। शनि काम करने वाले कर्मचारी है तो मंगल कार्य स्थल की रखवाली करने वाला गार्ड है। शनि घर है तो मंगल उसका दरवाजा है। मंगल खून चोट चेचक अपेन्डिक्स हार्निया देता है तो शनि वात लकवा ह्रदय की बीमारी ट्यूमर ब्रांकाइटिस की बीमारी देता है। मंगल शनि की युति में कार्य तकनीकी होते है मशीन के कार्य भी होते है,व्यापारिक राशि तुला में अगर युति है तो मारकेटिंग की क्षमता भी होती है,एम बी ए आदि करने के बाद बाजार का तकनीकी ज्ञान भी होता है। शनि कार्य होता है तो मंगल कार्य में संघर्ष भी देता है,एक भाई को कष्ट जरूर होता है,मंगल युवा होता है और शनि उसे बुजुर्ग जैसे कष्ट भी देता है,शनि कार्य है तो मंगल उत्तेजना में उसे बदलने का रूप भी बन जाता है। शत्रु अधिक होते है और किसी प्रकार से चन्द्रमा सामने हो तो नाक पर गुस्सा करने वाला व्यक्ति भी होता है। मंगल शनि के साथ वक्री हो तो उत्साह में कमी होती है,काम शक्ति निर्बल होती है,शनि मंगल के साथ वक्री हो तो अधिकार को प्राप्त करने की जल्दबाजी होती है और वह अधिकार भले ही खास आदमी की मौत करनी पडे लेकिन अधिकार जल्दी से लेने में दिक्कत नही होती है। मंगल शनि की दशा में तीन महिना पहले से और तीन महिना बाद तक तथा बीच के एक महिना में घोर कष्ट भुगतने पडते है। शनि में मंगल की दशा में उन्नीस महिने का घोर कष्ट होता है। शनि मंगल के साथ होने पर जातक को बहुत मेहनत के बाद ही सफ़लता मिलती है,हर काम में असन्तोष होता है,वह अपने तकनीकी कारणॊ से ऊंची पदवी वाले लोगो से अनबन ही रखता है,साथ ही गलतफ़हमी का शिकार भी होता रहता है,कार्य भी अक्सर चलते हुये अपने आप बन्द हो जाते है अगर जातक नौकरी करता है तो इन्ही कारणो से उसे बार बार कार्य बदलने पडते है,किसी के कार्य से उसे सन्तोष होता ही नही है। यह युति अगर तीन सात या ग्यारह में चन्द्रमा के साथ होती है तो जातक को नौकरी में परेशानी होती है जीवन साथी की नाक पर गुस्सा होता है और इसी कारण से वैवाहिक जीवन और नौकरी दोनो ही परेशानी में होती है,जीवन साथी को बीमारियों की बजह से और नौकरी को तकनीकी कमियों से परेशान होने के लिये भी जाना जाता है। धन हानि भी होती है,नौकरी करने में परेशानी भी होती है,व्यापार आदि में कठिनायी भी होती है। अगर यह युति ग्यारहवे भाव में है और राहु छठे भाव में है तो जातक को कार्य के अन्दर बहाने बनाने की आदत होती है साथ ही वह आंख बचाकर काम करने वाला होता है,छठे से छठा कर घर कार्य में चोरी की आदत भी देता है और जातक को किसी न किसी बात पर अचानक धन का मुआवजा देने या पुलिस आदि में रिपोर्ट होने तथा परेशान होने की बात भी मिलती है। एक भाई को सजा वाली बातें भी मिलती है।

सोमवार, 25 फ़रवरी 2019

बुध +शनि एक साथ (बुध शनि की युति)Conjunction of Mercury and Saturn - budh शनि युति

https://youtu.be/hb9Ouf_rST4मित्रों आज बात करेंगे बुध और शनि की युति जब एक ही भाव में एक साथ हो या किसी भी तरह की युति बन रही है, तो कल क्या होगा दो ग्रहों के मेल से एक नए ग्रह का प्रभाव जागृत होता है l बुध बुद्धि और शनि परख है l बुद्धि और परख का तालमेल अगर खराब हो जाए तो नुकसान झेलना पड़ता है l

बुध को खराब करने पर शनि भी negative फल देना शुरू कर देता है l शनि बुध के अधीन है lकुंडली में तो उसका क्या फल होता है, बुध व्यापार प्रधान ग्रह है,सूर्य का साथी है,जाति से बनिया है,स्वभाव से राजकुमार है,कार्य से बातूनी है,अधिक मजाक करना इसकी सिफ़्त है,ह्रदय से जिसके साथ चलदे उसी की गाने लगता है,घर में घरानी और बाहर राजरानी वाला भी स्वभाव अपनाता है। बातूनी होना और अपनी बात को सामने रखकर अपनी ही कहते रहना इसका प्राकृतिक स्वभाव है। शनि कर्म का दाता है,प्रकृति से ठंडा और मन से चालाक है,रात का कारक,अन्धेरे का राजा है,नीची बस्तियों मे रहने वाला,नीच की संगति करने वाला,माना जाता है

,बुध और शनि के मिल जाने से कार्य के लिये कहा जा सकता है कि वह बातों की खेती करने वाला,बातों की खेती बडे आराम से नहीं की जा सकती है,उसके लिये बुद्धि की जरूरत पडती है,और बुद्धि को देने वाला बुध नहीं होता है,बुद्धि को देने वाला गुरु होता है,अगर किसी प्रकार से गुरु बुध शनि से पीछे बैठा है,तो वह अपने द्वारा बुध शनि को बातों की खेती करने के लिये ज्ञान देने लग जाता है। वह किस प्रकार की बातों की खेती करता है इसका प्रभाव गुरु के बैठने वाले स्थान से जाना जा सकता है,जैसे कर्क का गुरु ऊंची बातों की खेती करेगा,और मकर का गुरु नीची बातें करेगा। इसके साथ ही जो टोपिक बातों के होंगे वे बुध शनि के आगे के भावों के द्वारा देखने को मिलते है,जैसे बुध शनि के आगे अगर सूर्य बैठा है तो बातों की खेती में पिता या पुत्र के प्रति बातें की जायेंगी,लेकिन पिता के प्रति बातें करने के लिये भी सूर्य को देखना पडेगा कि वह किस भाव में है,अक्सर सूर्य बुध के आसपास ही होता है,या तो साथ चलता है अथवा आगे पीछे चलता है,अगर अधिक पास है तो बातों के अन्दर घमंड होता है,और अगर आसपास के भाव में अलग बैठा है तो अहम की मात्रा में उतनी ही कमी होती जाती है। सूर्य से पीछे बैठा है तो बातों में अहम होता है,और सूर्य से आगे बैठा है तो बातों के अन्दर दब्बूपन है। शनि और बुध दोनों ही दोस्त है,कारण बुध का स्वभाव लालकिताब के अनुसार हिजडे के जैसा बताया गया है,हिजडे का अर्थ नपुंसक होने से ही नहीं,मनसा वाचा कर्मणा सभी तरह से व्यक्ति के अन्दर हिजडापन दिखाई देने लगता है,जुबान के अन्दर भी चालाकी।कुंडली मे बुध शनि की युति अगर शिक्षा के क्षेत्र मे होती है तो जातक पढाई लिखाई के प्रति आलसी होता है वह व्यापारिक कला मे प्रवीण होता है। शिक्षा मे देर होने का कारण करके सीखने वाली बुद्धि से भी माना जाता है,बुध को बुद्धि से देखा जाता है और शनि को कार्य से देखा जाता है। जातक करके सीखने वाले कामो मे सफ़ल हो जाता है। शनि को मिट्टी और बुध को आकार बनाने के लिये भी माना जाये तो जातक का कार्य मिट्टी से बने बर्तन आदि बनाने के लिये और उनकी कलाकारी के लिये भी माना जाता है  शनि से लकडी और बुध से खिलौने बनाने का रूप भी देखा जाये तो जातक इसी प्रकार के कार्य करने मे सफ़ल हो सकता है। बुध भाषा से और शनि लिखने के लिये माना जाये तो जातक उन्ही बातो को लिखता है जो इतिहास की द्रिष्टि से मजबूत और हमेशा के लिये याद रखने के लिये मानी जा सकती है। जातक की कुंडली मे बुध शनि जिस भाव मे होते है उसी भाव मे कोई न कोई दोष का होना भी माना जाता है। अगर ग्यारहवे भाव मे यह युति होती है तो जातक की पीठ मे कोई कूबड नुमा उठान होता है। जातक के चौथे भाव मे होने पर पुरुष है तो स्त्री जैसे स्तन बन जाते है और अगर यह स्त्री की कुंडली मे होता है तो वक्ष स्थल के मजबूत होने की बात देखी जाती है लेकिन संतान के मामले मे यह युति स्त्री जातको को दिक्कत देने के लिये भी मानी जाती है। दसवे भाव मे यह युति होने से अक्सर जातक का का काम भूमि सम्बन्धी कामो से होता है जमीनी नाप जोख तथा जमीनी लेखा बन्धी के लिये भी माना जा सकता है।

यह युति जमीनी व्यापार करने के लिये भी उत्तम मानी जाती है जैसे यह युति अगर अष्टम मे होती है तो जातक जमीनी व्यापार करने के लिये अपनी बुद्धि का अच्छा प्रयोग करता है लेकिन शर्त यह है कि जातक के लिये केतु भी अपना बल दे रहा हो। जातक व्यापार कार्य के लिये अपनी बुद्धि को अच्छी तरह से प्रयोग कर सकता है तथा खरीद बेच मे अपने को माहिर बना सकता है। जो भी जमीनी कार्य होते है उनके अन्दर जातक सफ़लता प्राप्त करता जाता है। अक्सर यह भी देखा जाता है कि इस युति मे जो भी भाई बहिन होते है उनके अन्दर एक भाई किसी प्रकार से आगे नही बढ पाता है और उसके लिये जीवन मे किये जाने वाले कार्य साधारण ही होते है वह कितनी ही मेहनत करे लेकिन वह सफ़ल नही हो पाता है,अगर बडा भाई या बहिन होती है,तो वह भी व्यापारिक कला मे जाना अच्छा समझता है। कुंडली मे शनि को पहले जन्मा हुआ माना जाता है इसलिये शनि को बडे भाई बहिन की उपाधि दी जाती है। अगर यह युति पंचम नवम और लगन मे होती है तो जातक का विवाह भी इसी काम से जुडे लोगो के साथ होता है। प्लास्टिक से जुडे काम प्लास्टिक को री साइकिल करने वाले काम टायर ट्यूब के काम गाडियों की सजावट के काम भी फ़ायदा देने वाले होते है। इस युति की किसी भी खराबी के लिये जातक को बच्चो को खिलौने दान मे देना चाहिये,अथवा जब भी कोई घर मे शनि वाला काम करे तो या कोई शनि से सम्बन्धित वस्तु घर मे लाये तो खिलौना आदि भी साथ मे लाने से वह वस्तु नुकसान नही देती है। मित्रों बुध शनि की युति जातक की कुंडली में हर भाव में अपना  अलग प्रभाव देगी और उस पर कितना शुभ प्रभाव है और कितना पाप प्रभाव है इस पर भी युति का फल निर्भर होगा  अगर आपकी कुंडली में बुध शनि एक साथ किसी भाव में बैठे हैं तो आप भी इसका फल जानने के लिए अपनी कुंडली दिखा कर हम से फलादेश प्राप्त कर सकते हैं

शनिवार, 23 फ़रवरी 2019

देशकाल परिस्थिति और ज्योतिष देश काल परिस्थिति और ज्योतिष देश काल परिस्थिति और ज्योतिष देश काल उपस्थिति और ज्योतिष

मित्रो फल कथन करते समय देश काल परिस्थतीक का भी महत्व एक लग्न और एक लग्न की डिग्री में महत्वपूर्ण व्यक्ति का जन्म एक स्थान में कभी नहीं होता। यदि किसी दूरस्थ देश में किसी दूसरे व्यक्ति का जन्म इस समय हो भी , तो आक्षांस और देशांतर में परिवर्तन होने से उसके लग्न और लग्न की डिग्री में परिवर्तन आ जाएगा। फिर भी जब जन्म दर बहुत अधिक हो , तो या बहुत सारे बच्चे भिन्न-भिन्न जगहों पर एक ही दिन एक ही लग्न में या एक ही लग्न डिग्री में जन्म लें , तो क्या सभी के कार्यकलाप , चारित्रिक विशेशताएं , व्यवसाय , शिक्षा-दीक्षा , सुख-दुख एक जैसे ही होंगे ?

मेरी समझ से उनके कार्यकलाप , उनकी बौद्धिक तीक्ष्णता , सुख-दुख की अनुभूति , लगभग एक जैसी ही होगी। किन्तु इन जातकों की शिक्षा-दीक्षा , व्यवसाय आदि संदर्भ भौगोलिक और सामाजिक परिवेश के अनुसार भिन्न भी हो सकते हैं। यहॉ लोगों को इस बात का संशय हो सकता है कि ग्रहों की चर्चा के साथ अकस्मात् भौगोलिक सामाजिक परिवेश की चर्चा क्यो की जा रही है ? स्मरण रहे , पृथ्वी भी एक ग्रह है और इसके प्रभाव को भी इंकार नहीं किया जा सकता। आकाश के सभी ग्रहों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है , परंतु भिन्न-भिन्न युगों सत्युग , त्रेतायुग , द्वापर और कलियुग में मनुष्‍यों के भिनन-भिन्न स्वभाव की चर्चा है। मनुष्‍य ग्रह से संचालित है , तो मनुष्‍य के सामूहिक स्वभाव परिवर्तन को भी ग्रहों से ही संचालित समझा जा सकता है , जो किसी युग विशेष को ही जन्म देता है।

लेकिन सोंचने वाली बात तो यह है कि जब ग्रहों की गति , स्थिति , परिभ्रमण पथ , स्वरुप और स्वभाव आकाश में ज्यो का त्यो बना हुआ है , फिर इन युगों की विशेषताओं को किन ग्रहों से जोड़ा जाए । युग-परिवर्तन निश्चित तौर पर पृथ्वी के परिवेश के परिवर्तन का परिणाम है। पृथ्वी पर जनसंख्या का बोझ बढ़ता जाना , मनुष्‍य की सुख-सुविधाओं के लिए वैज्ञानिक अनुसंधानों का तॉता लगना , मनुष्‍य का सुविधावादी और आलसी होते चले जाना , भोगवादी संस्कृति का विकास होना , जंगल-झाड़ का साफ होते जाना , उद्योगों और मशीनों का विकास होते जाना , पर्यावरण का संकट उपस्थित होना , ये सब अन्य ग्रहों की देन नहीं। यह पृथ्वी के तल पर ही घट रही घटनाएं हैं। पृथ्वी का वायुमंडल प्रतिदिन गर्म होता जा रहा है। आकाश में ओजोन की परत कमजोर पड़ रही है , दोनो ध्रुवों के बर्फ अधिक से अधिक पिघलते जा रहे हैं , हो सकता है , पृथ्वी में किसी दिन प्रलय भी आ जाए ,इन सबमें अन्य ग्रहों का कोई प्रभाव नहीं है।

ग्रहों के प्रभाव से मनुष्‍य की चिंतनधाराएं बदलती रहती हैं , किन्तु पृथ्वी के विभिन्न भागों में रहनेवाले एक ही दिन एक ही लग्न में पैदा होनेवाले दो व्यक्तियों के बीच काफी समानता के बावजूद अपने-अपने देश की सभ्यता , संस्कृति , सामाजिक , राजनीतिक और भौगोलिक परिवेश से प्रभावित होने की भिन्नता भी रहती है। संसाधनों की भिन्नता व्यवसाय की भिन्नता का कारण बनेगी  समुद्र के किनारे रहनेवाले लोग , बड़े शहरों में रहनेवाले लोग , गॉवो में रहनेवाले संपन्न लोग और गरीबी रेखा के नीचे रहनेवाले लोग अपने देशकाल के अनुसार ही व्यवसाय का चुनाव अलग-अलग ढंग से करेंगे। एक ही प्रकार के आई क्यू रखनेवाले दो व्यक्तियों की शिक्षा-दीक्षा भिन्न-भिन्न हो सकती है , किन्तु उनकी चिंतन-शैली एक जैसी ही हो  इस तरह पृथ्वी के प्रभाव के अंतर्गत आनेवाले भौगोलिक प्रभाव को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

इस कारण एक ही लग्न में एक ही डिग्री में भी जन्म लेनेवाले व्यक्ति का शरीर भौगोलिक परिवेश के अनुसार गोरा या काला हो सकता है। लम्बाई में कमी-अधिकता कुछ भी हो सकती है , किन्तु स्वास्थ्य , शरीर को कमजोर या मजबूत बनानेवाली ग्रंथियॉ , शारीरिक आवश्यकताएं और शरीर से संबंधित मामलों का आत्मविश्वास एक जैसा हो सकता है। सभी के धन और परिवार विशयक चिंतन एक जैसे माने जा सकते है सभी में पुरुषार्थ-क्षमता या शक्ति को संगठित करने की क्षमता एक जैसी होगी सभी के लिए संपत्ति , स्थायित्व और संस्था से संबंधित एक ही प्रकार के दृष्टिकोण होंगे। सभी अपने बाल-बच्चों से एक जैसी लगाव और सुख प्राप्त कर सकेंगे। सभी की सूझ-बूझ एक जैसी होगी। सभी अपनी समस्याओं को हल करने में समान धैर्य और संघर्ष क्षमता का परिचय देंगे। सभी अपनी जीवनसाथी से एक जैसा ही सुख प्राप्त करेंगे। अपनी-अपनी गृहस्थी के प्रति उनका दृष्टिकोण एक जैसा ही होगा। सभी का जीवन दर्शन एक जैसा ही होगा , जीवन-शैली एक जैसी ही होगी। भाग्य , धर्म , मानवीय पक्ष के मामलों में उदारवादिता या कट्टरवादिता का एक जैसा रुख होगा। सभी के सामाजिक राजनीतिक मामलों की सफलता एक जैसी होगी। सभी का अभीष्‍ट लाभ एक जैसा होगा। सभी में खर्च करने की प्रवृत्ति एक जैसी ही होगी।

किन्तु शरीर का वजन , रंग या रुप एक जैसा नहीं होगा। संयुक्त परिवार की लंबाई , चौड़ाई एक जैसी न  वास्तव में कुंडली में बनते योग को बांच कर उसे ही 100% मानने की भूल ही इस विवाद का कारण बनती है.जातक के जीवन में इस योग को 20% उसके सामाजिक व् पारिवारिक दशा पर निर्भर होना पड़ता है.20% जातक से जुड़े रक्त सम्बन्धियों का रोल इस योग में होता है ,20% उसका स्वयं का प्रयास अर्थात कर्म यहाँ प्रभावित करने वाला कारक बनता है,बाकि का 20% हम हासिल शाश्त्रों के सुझाये उपायों(जिनमे ज्योतिष आदि सामिल हैं) द्वारा इसे प्रभावित करते हैं.तब जाकर योग का वास्तविक प्रतिशत प्राप्त होने की गणना करना बेहतर निर्णय देने में सहायक बनता है. सामान योग में जन्मा जातक अफ्रीका के जंगलों में आदिवासी कबीले का मुखिया बनता है.यही योग अमेरिका में उसे बराक ओबामा भी बना सकता है.सरकारी विभाग से धन प्राप्ति का योग एक चपरासी की कुंडली में भी विराजमान होता है व् अधिकारी की भी.अत यह सव वाते फलकथन करते समय जरुर maakaali jyotish hanumangarh अर्चाय राजेश 07597718725

09414481324

सोमवार, 18 फ़रवरी 2019

शिव ओर शिवलिग.

  1. शिव ओर शिवलिग.  शिव ओर शिवलिग.           ,                      ,                मिञो् शिवलिंग, का अर्थ है भगवान शिव का आदि-अनादी स्वरुप। शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है। 

स्कन्द पुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है। धरती उसका पीठ या आधार है और सब अनन्त शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है | वातावरण सहित घूमती धरती या सारे अनन्त ब्रह्माण्ड (ब्रह्माण्ड गतिमान है) का अक्ष/धुरी ही लिंग है

पुराणो में शिवलिंग को कई अन्य नामो से भी संबोधित किया गया है जैसे : प्रकाश स्तंभ/लिंग, अग्नि स्तंभ/लिंग, उर्जा स्तंभ/लिंग, ब्रह्माण्डीय स्तंभ/लिंगशिवलिंग भगवान शिव और देवी शक्ति (पार्वती) का आदि-आनादी एकल रूप है तथा पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतिक भी अर्थात इस संसार में न केवल पुरुष का और न केवल प्रकृति (स्त्री) का वर्चस्व है अर्थात दोनों सामान है | हम जानते है की सभी भाषाओँ में एक ही शब्द के कई अर्थ निकलते है जैसे: सूत्र के - डोरी/धागा, गणितीय सूत्र, कोई भाष्य, लेखन को भी सूत्र कहा जाता है जैसे नासदीय सूत्र, ब्रह्म सूत्र आदि | अर्थ :- सम्पति, मतलब  उसी प्रकार यहाँ लिंग शब्द से अभिप्राय चिह्न, निशानी या प्रतीक है, लिङ्ग का यही अर्थ वैशेषिक शास्त्र में कणाद मुनि ने भी प्रयोग किया। ब्रह्माण्ड में दो ही चीजे है : ऊर्जा और पदार्थ। हमारा शरीर प्रदार्थ से निर्मित है और आत्मा ऊर्जा है। इसी प्रकार शिव पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक बन कर शिवलिंग कहलाते है | ब्रह्मांड में उपस्थित समस्त ठोस तथा उर्जा शिवलिंग में निहित है। वास्तव में शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड की आकृति है | अब जरा आईंसटीन का सूत्र देखिये जिस के आधार पर परमाणु बम बनाया गया, परमाणु के अन्दर छिपी अनंत ऊर्जा की एक झलक दिखाई जो कितनी विध्वंसक थी 

इसके अनुसार पदार्थ को पूर्णतयः ऊर्जा में बदला जा सकता है अर्थात दो नही एक ही है पर वो दो हो कर स्रष्टि का निर्माण करता है। हमारे ऋषियो ने ये रहस्य हजारो साल पहले ही ख़ोज लिया था | हम अपने देनिक जीवन में भी देख सकते है कि जब भी किसी स्थान पर अकस्मात् उर्जा का उत्सर्जन होता है तो उर्जा का फैलाव अपने मूल स्थान के चारों ओर एक वृताकार पथ में तथा उपर व निचे की ओर अग्रसर होता है अर्थात दशोदिशाओं की प्रत्येक डिग्री (360 डिग्री)+ऊपर व निचे) होता है, फलस्वरूप एक क्षणिक शिवलिंग आकृति की प्राप्ति होती है जैसे बम विस्फोट से प्राप्त उर्जा का प्रतिरूप, शांत जल में कंकर फेंकने पर प्राप्त तरंग (उर्जा) का प्रतिरूप आदि।

स्रष्टि के आरम्भ में महाविस्फोट  के पश्चात् उर्जा का प्रवाह वृत्ताकार पथ में तथा ऊपर व नीचे की ओर हुआ फलस्वरूप एक महाशिवलिंग का प्राकट्त  जिसका वर्णन हमें लिंगपुराण, शिवमहापुराण, स्कन्द पुराण आदि में मिलता  भगवान शिव की जगह-जगह पूजा हो रही है, लेकिन पूजा की वात नहीं है। शिवत्व उपलब्धि की बात है। वह जो शिवलिंग हमने देखा है बाहर मंदिरों में, वृक्षों के नीचे, हमने कभी ख्याल नहीं किया, उसका आकार ज्योति का आकार है। जैसे दीये की ज्योति का आकार होता है। शिवलिंग अंतर्ज्योति का प्रतीक है। जव हम्हारे भीतर का दीया जलेगा तो ऐसी ही ज्योति प्रगट होती है, ऐसी ही शुभ्र! यही रूप होता है उसका। और ज्योति बढ़ती जाती है, बढ़ती जाती है। और धीरे  धीरे ज्योतिर्मय व्यक्ति के चारों तरफ एक आभामंडल होता है; उस आभामंडल की आकृति भी अंडाकार होती है।

स.तो इस सत्य को सदियों पहले जान लिया था। लेकिन इसके लिए कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं थे। लेकिन  रूस में एक बड़ा वैज्ञानिक प्रयाग ची नहा है-किरलियान फोटोग्राफी। मनुष्य के आसपास जो ऊर्जा का मंडल होता है, अब उसके चित्र लिये जा सकते हैं। इतनी सूक्ष्म फिल्में बनाई जा चुकी हैं, जिनसे न केवल तुम्हारी देह का चित्र बन जाता है, बल्कि देह के आसपास जो विद्युत प्रगट होती है, उसका भी चित्र बन जाता है। और किरलियान चकित हुआ है, क्योंकि जैसे -जैसे व्यक्ति शांत होकर बैठता है, वैसे – वैसे उसके आसपास का जो विद्युत मंडल है, उसकी आकृति अंडाकार हो जाती है। उसको तो शिवलिंग का कोई पता नहीं है, लेकिन उसकी आकृति अंडाकार हो जाती है। शांत व्यक्ति जब बैठता है ध्यान तो उसके आसपास की ऊर्जा अंडाकार हो जाता है। अशांत व्यक्ति के आसपास की ऊर्जा अंडाकार नहीं होती, खंडित होती है, टुकड़े -टुकड़े होती है। उसमें कोई संतुलन नहीं होता। एक हिस्सा छोटा- कुरूप होती है।में निर्मित शिवलिंग इतना विशाल तथा की देवता आदि मिल कर भी उस लिंग के आदि और अंत का छोर या शास्वत अंत न पा सके हमारे शरीर मे भी सात चक्रो की    Akriti आकृति muladhar chakkar से यात्रा शुरू होती है  शिवलिंग के अकार की तरह है बात करते हैं शिवलिंग पर जल सहित, भांग, धतूरा, बेलपत्र आदि चढ़ाने की। आपको जानकर हैरानी होगी कि शिवलिंग खुद में न्यूक्लियर रिएक्टर का सबसे बड़ा सिम्बल है। इसकी पौराणिक कथा तो ब्रह्मा और विष्णु के बीच एक शर्त से जुड़ी है। शिवलिंग ब्रह्माण्ड का प्रतिनिधि है। जितने भी ज्योतिर्लिंग हैं, उनके आसपास सर्वाधिक न्यूक्लियर सक्रियता पाई जाती हैयही कारण है कि शिवलिंग की तप्तता को शांत रखने के लिए उन पर जल सहित बेलपत्र, धतूरा जैसे रेडियो धर्मिता को अवशोषित करने वाले पदार्थों को चढ़ाया जाता है।

आप देखेंगे कि कई ऐसी मान्यताएं केवल परंपरा व धर्म के नाम पर निभाई जाती हैं किंतु यदि उनकी गहराई से छानबीन की जाए  Rajesh Kumar 07597718725 09414481324

रविवार, 17 फ़रवरी 2019

राहु शनि या शनि+राहु (प्रेत श्राप योग)

मित्रों आज एक जॉब की बात करते हैं जिसको बहुत ही बुरा दोष माना जाता है शनि और राहु का कुंडली में किसी भी तरह मेल जिसे प्रेत श्राप – भी कहा जाता है जन्म-पत्रिका के किसी भी भाव में शनि-राहू या शनि-केतू की युति हो तो प्रेत श्राप का निर्माण करती है | शनि-राहू या शनि-केतू की युति भाव के फल को पूरी तरह बिगाड़ देती है तथा लाख यत्न करने पर भी उस भाव का उत्तम फल प्राप्त नहीं होता है

सबसे पहले शनि के रूप को समझना जरूरी है,शनि एक ठंडा अन्धेरा और ग्रह है,सिफ़्त कडक है,रूखा है,उसके अन्दर भावनाओं की कोई कद्र नही है,जिस भाव में होता है उस भाव के कामो कारकों और जीवों को जडता में रखता है,इसके अलावा शनि की सप्तम द्रिष्टि भी खतरनाक होती है,जहां जहां इसकी छाया अपना रूप देती है वहां वहां यह अपनी जडता को प्रस्तुत करता है। शनि की जडता की पहिचान वह अपने कामो से करवाता है और अपने पहिनावे और रहन सहन से भी करवाता है,इस पहिचान के लिये शनि की द्रिष्टि को तीसरे भाव से भी देखा जाता है। शनि का अपना परिवार भी होता है उस परिवार को यह अपनी पहिचान के अन्दर ही शामिल रखता है और उस परिवार में अधिकतर लोग कार्य वाली शिक्षाओं को करने वाले और लोहा मशीनरी आदि को काटने जोडने और कई तरह के रूप परिवर्तन वाले कामों को करने वाले होते है। शनि की नजर सप्तम में होने के कारण पत्नी या पति का स्वभाव तेज बोलने का होता है,वह कोई भी बात जोर से चिल्लाकर केवल इसलिये करता है या करती है कि शनि की सिफ़्त वाला व्यक्ति बहुत कम ही किसी की सुनता है और जो सुनता है उसे करने के अन्दर काफ़ी समय लगता है,कम सोचने की आदत होने से और कम बोलने की आदत होने से या गम्भीर बात करने के कारण या फ़ुसफ़ुसाकर बात करने की आदत के कारण चिल्लाकर बात सुनने के लिये जोर दिया जाता है। शनि की जो पैत्रिक पहिचान होती है वह कार्य करने के रूप में कार्य के करने वाले स्थान के रूप में उस स्थान पर जहां पानी की सुलभता कम होती है वहां रहने से भी मानी जाती है,अधिकतर जब पानी की सुलभता कम होती है तो रहने और जीविकोपार्जन के साधन भी कम होते है,इसलिये शनि की सिफ़्त वाले व्यक्ति के पूर्वजों को या पिता को बाहर जाकर कमाने की जरूरत पडती है,शनि की सिफ़्त के अनुसार ही जातक कार्य करता है और जो भी कार्य करता है वह मेहनत वाले काम होते है।

राहु की आदत को समझने के लिये केवल छाया को समझना काफ़ी है। राहु अन्दरूनी शक्ति का कारक है,राहु सीमेन्ट के रूप में कठोर बनाने की शक्ति रखता है,राहु शिक्षा का बल देकर ज्ञान को बढाने और दिमागी शक्ति को प्रदान करने की शक्ति देता है,राहु बिजली के रूप में तार के अन्दर अद्रश्य रूप से चलकर भारी से भारी मशीनो को चलाने की हिम्मत रखता है,राहु आसमान में बादलों के घर्षण से उत्पन्न अद्रश्य शक्ति को चकाचौन्ध के रूप में प्रस्तुत करने का कारक होता है,राहु जड या चेतन जो भी संसार में उपस्थित है और जिसकी छाया बनती है उसके अन्दर अपने अपने रूप में अद्रश्य रूप में उपस्थित होता है।

शनि राहु को आपस में मिलाने पर अगर शनि पत्थर है और राहु शक्ति को मिलाकर उसे प्रयोग किया जायेगा तो सीमेन्ट का रूप ले लेता है,शनि में मंगल को मिलाया गया तो वह लिगनाइट नामक का पत्थर बनकर और उसके अन्दर लौह तत्व की अधिकता से जल्दी से जुडने वाला सीमेंट बन जाता है,राहु अगर लोहे के साथ मिल जाता है तो वह स्टील का रूप ले लेता है,लेकिन अलग अलग भावों के अनुसार राहु को समझना पडता है,एक भाव में वह हिम्मती बनाता है और कार्य करने की शक्ति को बढाकर बहुत अधिक बल देता है,लेकिन दूसरे भाव में जाकर वह धन और बल वाली शक्ति को प्रदान करना शुरु देता है,व्यक्ति के पास काम बहुत अधिक होता है लेकिन धन के रूप में वही मिल पाता है जो मुश्किल से पेट को भरा जा सके। शनि को कार्य के लिये माना जाता है और वह जब तीसरे भाव से सम्बन्ध बना लेता है तो फ़ोटोग्राफ़ी वाले कामो की तरफ़ अपना ध्यान देने लगता है,छठे भाव में जाने पर वह दवाइयों से सम्बन्धित काम करने लगता है,सप्तम में जाकर वह खतरनाक लोगों की संगति देने लगता है तथा अष्टम में जाकर शमशान के धुयें की तरफ़ से काम करने लगता है,नवे भाव मे जाकर वह धर्म और ज्योतिष के साथ यात्रा वाले काम और रेगिस्तानी काम करने के लिये भी अपनी शक्ति देता है। दसवे भाव मे दोनो की शक्ति राजकार्य के लिये माने जा सकते है और किसी भी अचानक कार्यों की उथल पुथल के लिये भी माना जा सकता है। ग्यारहवे भाव में शनि राहु अपनी सिफ़्त के अनुसार बडे भाई को या दोस्तों के कामों को करने के लिये भी अपनी रुचि देता है,बारहवें भाव में शनि राहु का रूप तंत्र मंत्र और ज्योतिष आदि में रुचि रखने वाला भी माना जाता है।जीवन के चार आयाम माने जाते है,पहला धर्म का होता है दूसरा अर्थ का माना जाता है,तीसरा काम होता है और चौथा जो मुख्य होता है उसे मोक्ष की संज्ञा दी जाती है। शनि को इन चारों आयामों के अन्दर प्रकट करने के लिये अगर माना जाये तो धर्म में शनि का रूप कई प्रकार से अपनी मान्यता देगा। घर में माता पिता और घर के सदस्यों के प्रति निभाई गयी जिम्मेदारियों के प्रति शनि अपने कर्म को प्रकट करेगा,उनके आश्रय के लिये बनाये गये निवास स्थान और उनकी जीविका को चलाने के लिये दिये गये कार्य या व्यवसाय स्थान माने जा सकते है,परिवार के बाद समाज का रूप सामने आता है उसके अन्दर धर्म से शनि को प्रकट करने के लिये आने जाने के रास्ते बनवाना,अनाश्रित लोगों की सहायता करना,भूखो को भोजन देना और असहायों की दवाइयों आदि से मदद करना माना जायेगा,इसी प्रकार से जब राहु का मिश्रण धर्म के अन्दर मिलेगा,तो परिवार के लोगों के लिये शिक्षा का बन्दोबस्त करना,परिवार के लोगों के लिये कार्य शक्ति का विकास करना,जो भी वे कार्य करते है उन कार्यों के अन्दर अपनी शक्ति का समावेश करना आदि माना जायेगा। शनि राहु को धर्म में ले जाने और पूजा पाठ मे प्रवेश करवाने पर शनि राहु मन्दिर का रूप लेता है,शनि राहु की सिफ़्त को शेषनाग के रूप में भी प्रकट किया जाता है,यह शरीर और इसकी शक्ति को विकास करने में शनि राहु की महती भूमिका मानी जा सकती है,जैसे कि आत्मा को सुरक्षित रखने के लिये इस शरीर का शक्तिवान और कार्यशील होना भी जरूरी है,अगर शरीर असमर्थ होगा उसके अन्दर कार्य करने की शक्ति नही होगी तो जल्दी ही आत्मा शरीर से पलायन कर जायेगी और शरीर शव का रूप धारण कर नष्ट भ्रष्ट हो जायेगा। समुद्र के अन्दर शेष शय्या पर भगवान विष्णु को दिखाया जाना केवल शरीर के अन्दर आत्मा को सुरक्षित रखने का प्रयास ही माना जा सकता है,इस संसार रूपी समुद्र में शेषनाग रूपी शरीर में विष्णु रूपी आत्मा आराम कर रही है। लालकिताब में शनि के साथ राहु को शेषनाग की युति से विभूषित किया गया है,और बताया भी गया है कि जिस जातक की कुण्डली में यह योग होता है वह शेषनाग के फ़नों के अनुसार एक साथ कई दिशाओं में अपनी द्रिष्टि रखने वाला होता है। मेरे विचार से यह कथन बिलकुल सही है,आज के युग में हो या प्राचीन काल में जिस व्यक्ति की द्रिष्टि चारों तरफ़ गयी वही सभी स्थान से सफ़ल माना जा सकता है,लेकिन जो व्यक्ति एक ही दिशा या एक ही काम के अन्दर अपनी प्रोग्रेस चाहने की कामना में लगा रहा और उस काम या उस वस्तु का युग समाप्त होते ही वह बेकार हो गया और उसके लिये दूसरा रास्ता सामने आने में जितना समय लगा वह वक्त उसके लिये बहुत ही खराब माना जा सकता है। जिस जातक की कुंडली में यह योग होता है वह चारों दिशाओं में अपने दिमाग को ले जाने वाला होता है उसे एक दिशा से कभी संतुष्टि नही होती है। शनि राहु की युति को शेषनाग योग से विभूषित किया गया है। जिस जातक की कुंडली में यह योग बारहवें भाव में होता है उसके लिये रक्षक भी संसार होता है। वह अक्सर इतना बडा तंत्री होता है कि वह अपनी निगाह से जमीन के नीचे से लेकर आसमान की ऊंचाई वाले कामों को भी कर सकता है और परख भी सकता है। शनि का निशाना अपने से तीसरे स्थान पर होता है राहु का निशाना भी अपने से तीसरे स्थान पर होता है,दोनो का निशाना एक ही प्रकार का होने से जो भी असर तीसरे स्थान पर होगा वह मशीनी गति से होगा,अचानक तो बहुत लाभ दिखाई देने लगेगा और अचानक ही हानि दिखाई देने लगेगी। शनि का रूप कार्य से माना जाये और राहु का रूप शक्ति से माना जाये तो कार्य के अन्दर अचानक शक्ति का विकास दिखाई देने लगेगा और कार्य के रूप में दिखाई देने वाला रूप कभी कभी धुयें की तरह उडता दिखाई देगा। बारहवें भाव में शनि और राहु के होने से आसमानी धुयें की तरह माना जासकता है,व्यक्ति के अन्दर अगर निर्माण के कार्य होंगे तो उसका कार्य उस क्षेत्र में होगा जहां पर फ़ैक्टरियों की चिमनियां होंगी,और आसमान में धुंआ दिखाई देगा। अगर यह युति बारहवें भाव में सिंह राशि में होगा तो जहां व्यक्ति का कार्य स्थान होगा वह किसी तरह से सरकार या राजनीतिक कारणों से सम्बन्धित भी होगा। शनि राहु की बारहवें भाव से दूसरे भाव में द्रिष्टि होने से कार्य केवल धन और भौतिक वस्तुओं के निर्माण से सम्बन्धित होगा,उन्ही वस्तुओं का निर्माण किया जायेगा जिनसे धन को बनाया जा सके और व्यापारिक कारणों से माना जा सके,जो भी निर्माण किया जायेगा वह व्यापारिक संस्थानों को दिया जायेगा,खुद ही डायरेक्ट रूप से व्यापार नही किया जा सकेगा। धन के लिये व्यापारिक संस्थान ही अपना योगदान देंगे,बारहवें भाव मे स्थापित शनि और राहु की नजर में चौथी द्रिष्टि भी महत्वपूर्ण मानी जायेगी,कार्य का रूप और कार्य की सोच कार्य करने का स्थान कार्य करने वालेकार्य करने का स्थान कार्य करने वाले लोग कार्य के द्वारा प्राप्त किये गये उत्पादनों को रखने का स्थान,कार्य करने के बाद जो उत्पादन होगा उसका अन्त आखिर में क्या होगा इस बात के लिये शनि और राहु से चौथा भाव देखना बहुत जरूरी होता है। कुंडली के छ: आठ बारह और दूसरे भाव का गति चक्र अपने अनुसार चलता है। बारहवां भाव छठे भाव को देखता है,और दूसरा भाव आठवें को देखता है,वही गति छठे और आठवें की होती है। जैसे बिना कार्य किये मोक्ष यानी शांति नही मिलती है और बिना रिस्क लिये धन की प्राप्ति नही होती है। उसी तरह से बिना धन के रिस्क नही लिया जा सकता है और बिना शांति की आशा के कार्य नही किया जा सकता है,बारहवां भाव जरूरतों का होता है तो वह कार्य करने के लिये प्रेरित करता है,दूसरा भाव धन का होता है तो प्राप्त करने के लिये रिस्क लेने के लिये मजबूर करता है,जो जितनी बडी रिस्क लेता है उतना ही उसे फ़ायदा और नुकसान होता है लेकिन छठे और बारहवें भाव को देखे बिना जो रिस्क लेते है वे या तो बहुत बडे नुकसान में जाते है या फ़िर बहुत बडे फ़ायदे में रहते है,लेकिन समान रूप से फ़ायदा लेने के लिये छठे और बारहवे भाव वाले कार्यों को करना भी जरूरी होता है। हर भाव की कडी एक दूसरे भाव से जुडी होती है,अक्सर शनि जो कलयुग का कारक है और राहु जो कलयुग के शक्ति को देने वाला है दोनो के अन्दर समाजस्य रखने के लिये अन्य ग्रहों की स्थिति और उन ग्रहों के अनुसार किये जाने वाले कार्य अपने अपने अनुसार फ़ल देने वाले होते है।शनि राहु की युति

यह युति दिमागी भ्रम देती है,हायपर टेंसन करना आदि इसके मुख्य लक्षण है,राहु जब शनि को त्रिक भावों में देख रहा हो,राहु शनि त्रिक भाव में किसी स्थान पर एक साथ हो,त्रिक स्थान के अलावा कन्या वृश्चिक मीन राशि में स्थापित जन्म का राहु भी इसी श्रेणी में आता है.इसके लिये जो उपाय जल्दी कारगर हों उनको करना ठीक होता है,किसी रत्न को धारण करने पर वह प्रभाव दस प्रतिशत मिलता है,पूजा पाठ करने से वह तीस प्रतिशत तक मिलता है,लेकिन आज के समय में सभी के पास पूजा पाठ करने का समय नही है और किसी अन्य से पूजा पाठ करवाने में विश्वास भी करना मुश्किल है,इसलिये इस युति से शरीर के अन्दर से जो तत्व कम होते जाते है,उन्हे पूरा करने से फ़ल नब्बे प्रतिशत तक पूरे हो जाते है,और इस युति के अन्दर भी दिमाग सकारात्मक कार्य करने लगता है

शनि राहु की युति का इलाज

शनि में राहू का योगात्मक प्रभाव हाइपर टेन्सन की बीमारिया देता है,जब मानसिक चिंताए अधिक लग जाती है तो किया जाने वाला भोजन नहीं पचता है,सोने वाली गोलिया लेने से नींद कभी प्राकृति रूप से नहीं आती है,किसी कठिन समस्या तथा खतरनाक परिस्थिति में शरीर के रियेक्सन में तनाव पैदा होता है,यह शरीर एक चलती फिरती संसार की सबसे बड़ी केमेस्ट्री लेब है,किसी भी प्रकार का तनाव विचार चिंता से शरीर में विभिन्न प्रकार के एन्जाइम्स पैदा होते है,इन सब कामिकल रियेक्सन के फलस्वरूप शरीर को सेल्यूलर लेबल पर अधिक आक्सीडेशन करना पड़ता है,वास्तव में इस दशा के अन्दर जो तनाव पैदा होता है वह शरीर की अस्सी प्रतिशत बीमारियों का कारण बनता है,वर्त्तमान में जो आपके शरीर की पहिचान होगी वह शनि और राहू इस प्रकार से शो करता है:-


* पुतलियों का डायालेषण.

* मुहं और गले का सूखना

* चहरे की वेंस तथा आर्टरीज का सिकुड़ना,हाथ और पांव का पीला पद जाना,

* दिल की धड़कन तेज होना

* अन्तरंग भागो में इन्फेक्सन का पैदा हो जाना कारण शरीर में रोग प्रतिरोधक शक्ति का कम हो जाना.

* शरीर के हर अंग में पसीना अधिक आता है विशेष कर हथेली में

* मानसिक स्थिति ऐसी बन जाती है कि रहने वाले स्थान को छोड़ देना ही ठीक रहेगा.

* बार बार सिरदर्द

* हाइपर टेन्सन और इस प्रकार से ब्लड प्रेसर की बीमारी जो लो होती है का पैदा हो जाना

* गर्दन गर्दन के पीछे और पीठ में दर्द

* हमेशा रोने की इच्छा करना

* जल्दी से थकान और कमजोरी

* नींद नहीं आना और डरावने सपने

* धीरे धीरे पेट में अल्सर जैसी बीमारियों का पैदा हो जाना

* एलर्जी और अस्थमा जैसे प्रभाव दिखाई देना

* काम शक्ति का कम हो जाना संतान की पैदाइस में दिक्कत आदि लक्षण मिलते है.


इस शनि और राहू के उपाय जो आज की स्थिति के अनुसार है वे इस प्रकार से है:-

* मल्टी विटामिन दिन में दो बार

* विटामिन ई दिन में एक बार

* कैल गैंग दिन में दो बार

* आयरन फोलिक दिन में एक बार

* विटामिन बी काम्प्लेक्स दिन में तीन बार

यह सभी विद्वान् डाक्टर की सलाह से ही लें,वह शरीर के वजन,खून की मात्रा और शरीर के लक्षण से आपको लेने वाली खुराक और मात्रा की जानकारी दे देगा.इसके अलावा विचारों और सुझाव को सही रखे,नकारात्मक सोच को सकारात्मक सोच में बदले तनाव हमेशा हमारे अन्दर नकाराम्तक विचारों से उत्पन्न होता है,अतः जैसी परिस्थितियाँ हों उन्ही के अनुरूप बदलने की कोशिश करे,इस समय में गुस्सा करना दुःख करना डरना आदि दिक्कत देने वाले कारण होते है.सबसे अधिक भोजन की रूचि और अरुचि का ध्यान रखना भी जरूरी है. मित्रों कर आपकी कुंडली में शनि राहु का मेल है तो आप आप अपनी कुंडली किसी अच्छे एस्ट्रोलॉजर को दिखाएं जो आप हम से भी संपर्क कर सकते हैं तो उनसे पूछ कर ही उपाय करें क्योंकिजैसे सिक्के के दो पहलू होते हैं कि कोई भी योग अच्छा या बुरा हो सकता है तो देखा देखी अपने आप कोई उपाय मत करें जिससे आपको लाभ की बजाय हानि  हो सकती है

शनिवार, 16 फ़रवरी 2019

गुरु और राहु गुरु और राहु की युति (चांडाल योग)

मित्रों आज एक और बुरे जो की बात करते हैं जिसे हम गुरु चांडाल योग के नाम से पुकारते हैंराहु-गुरु की युति या दृष्टि संबंध से एक खास प्रकार का योग जन्म लेता है, जिसे गुरु-चांडाल योग के नाम से जाना जाता है।

 इस संबंध की सबसे बड़ी खराबी ये है कि गुरु तो देव गुरु हैं तथा उनका संबंध एक महान असुर राहु से बनने के कारण वे स्वयं अपनी आत्मरक्षा करने में रत हो जाते हैं। गुरु की इस परिस्थिति का लाभ असुर राहु खूब उठाता है तथा कदम-कदम पर गुरु को पथभ्रष्ट करने की कोशिश करता है।

वह गुरु के विरुद्ध षड़यंत्र रचता है, उन्हें अनैतिक व्यवहार अपनाने के लिए प्रेरित करता है। पराई स्त्रियों में मन लगवाता, चारित्रिक पतन के बीज बो देता है। इसके अलावा ऐसा राहु चोरी, जुआ, सट्टा, अनैतिक तरीके से धन अर्जन की प्रवृत्ति, मद्यपान सहित हिंसक व्यवहार आदि प्रवृत्तियों को बढ़ावा देता है।

कुल मिलाकर यह संयोग गुरु की सभी सद्वृत्तियों के समापन के साथ दुष्प्रवृत्तियों का जन्मदाता सिद्ध होता है। इसके साथ ऐसा चाडाल योग जातक को कदम-कदम पर चालबाजी की प्रवृत्ति अपनाने को विवश करता है। जिस कारण जातक खुद को पतन की पराकाष्ठा पर ले जाता है। मित्रों गुरु oxygen है और राहु Co2 जिससे गुरु कमजोर हो जाता है और गुरु के फल कम हो जाते है !

गुरु चांडाल का यह योग प्रत्येक जातक को अशुभ प्रभाव नहीं देता बल्कि इस योग के प्रभाव में आने वाला जातक बहुत अच्छे चरित्र का तथा उत्तम मानवीय गुणों के स्वामी भी होते है !

गुरु चाण्डाल योग का फलादेश करने से पहले कुंडली में गुरु व् राहु के स्वभावhttps://youtu.be/5QlK8Oa_lmk को और वह किस भाव में है जान लेना आवश्यक है !

बुध अस्त में जन्मा जातक कभी भी राहु वाले खेल न खेले तो बहुत सुखी रहता है,राहु का सम्बन्ध मनोरंजन और सिनेमा से भी है,राहु वाहन का कारक भी है राहु को हवाई जहाज के काम,और अंतरिक्ष में जाने के कार्य भी पसंद है,अगर किसी प्रकार से राहु और गुरु का आपसी सम्बन्ध १२ भाव में सही तरीके से होता है,और केतु सही है,तो जातक को पायलेट की नौकरी करनी पडती है,लेकिन मंगल साथ नही है तो जातक बजाय पायलेट बनने के और जिन्दा आदमियों को दूर पहुंचाने के पंडिताई करने लगता है,और मरी हुयी आत्माओं को क्रिया कर्म का काम करने के बाद स्वर्ग में पहुंचाने का काम भी हो जाता है। इसलिये बुध अस्त वाले को लाटरी सट्टा जुआ शेयर आदि से दूर रहकर ही अपना जीवन मेहनत वाले कामों को करके बिताना ठीक रहता है।जिस प्रकार हींग की तीव्र गंध केसर की सुगंध को भी ढक लेती है और स्वयं ही हावी हो जाती है, उसी प्रकार राहु अपनी प्रबल नकारात्मकता के तीव्र प्रभाव में गुरु की सौम्य, सकारात्मकता को भी निष्क्रीय कर देता है। लेकिन ऐसा सदा नहीं होता जब गुरु स्वयं कमजोर, निर्बल, अशुभ भावेश अथवा अकारक हो जाए तभी राहु के साथ उसकी युति चांडाल योग का निर्माण करती है। क्योंकि राहु चांडाल जाति, स्वभाव यानि कि नकारात्मक गुणों का ग्रह है, इसलिए इस योग को गुरु चांडाल योग कहा जाता हैयदि राहु बलशाली हुए तो शिष्य, गुरू के कार्य को अपना बना कर प्रस्तुत करते हैं या गुरू के ही सिद्धांतों का ही खण्डन करते हैं। बहुत से मामलों में शिष्यों की उपस्थिति में ही गुरू का अपमान होता है और शिष्य चुप रहते हैं।गुरू चाण्डाल योग का एकदम उल्टा तब देखने को मिलता है जब गुरू और राहु एक दूसरे से सप्तम भाव में हो और गुरू के साथ केतु स्थित हों। बृहस्पति के प्रभावों को पराकाष्ठा तक पहुँचाने में केतु सर्वश्रेष्ठ हैं। केतु त्याग चाहते हैं, कदाचित बाद में वृत्तियों का त्याग भी देखने को मिलता है। केतु भोग-विलासिता से दूर बुद्धि विलास या मानसिक विलासिता के पक्षधर हैं और गुरू को, गुरू से युति के कारण अपने जीवन में श्रेष्ठ गुरू या श्रेष्ठ शिष्य पाने के अधिकार दिलाते हैं। इनको जीवन में श्रेय भी मिलता है और गुरू या शिष्य उनको आगे बढ़ाने के लिए अपना योगदान देते हैं। यहां शिष्य ही सब कुछ हो जाना चाहते हैं और कालान्तर में गुरू का नाम भी नहीं लेना चाहते। यदि राहु बहुत शक्तिशाली नहीं हुए परन्तु गुरू से युति है तो इससे कुछ हीन स्थिति नजर में आती है। इसमें अधीनस्थ अपने अधिकारी का मान नहीं करते। गुरू-शिष्य में विवाद मिलते हैं। शोध सामग्री की चोरी या उसके प्रयोग के उदाहरण मिलते हैं, धोखा-फरेब यहां खूब देखने को मिलेगा परन्तु राहु और गुरू युति में यदि गुरू बलवान हुए तो गुरू अत्यधिक समर्थ सिद्ध होते हैं और शिष्यों को मार्गदर्शन देकर उनसे बहुत बडे़ कार्य या शोध करवाने में समर्थ हो जाते हैं।शिष्य भी यदि कोई ऎसा अनुसंधान करते हैं जिनके अन्तर्गत गुरू के द्वारा दिये गये सिद्धान्तों में ही शोधन सम्भव हो जाए तो वे गुरू की आज्ञा लेते हैं या गुरू के आशीर्वाद से ऎसा करते हैं। यह सर्वश्रेष्ठ स्थिति है और मेरा मानना है कि ऎसी स्थिति में उसे गुरू चाण्डाल योग नहीं कहा जाना चाहिए बल्कि किसी अन्य योग का नाम दिया जा सकता है परन्तु उस सीमा रेखा को पहचानना बहुत कठिन कार्य है जब गुरू चाण्डाल योग में राहु का प्रभाव कम हो जाता है और गुरू का प्रभाव बढ़ने लगता है। राहु अत्यन्त शक्तिशाली हैं और इनका नैसर्गिक बल सर्वाधिक है तथा बहुत कम प्रतिशत में गुरू का प्रभाव राहु के प्रभाव को कम कर पाता है। इस योग का सर्वाधिक असर उन मामलों मेें देखा जा सकता है जब दो अन्य भावों में बैठे हुए राहु और गुरू एक दूसरे पर प्रभाव डालते हैं। मित्रों अगर आपकी कुंडली में भी ऐसा योग है या दोष है तब आप अपनी कुंडली किसी अच्छे एस्ट्रोलॉजर को दिखाकर उपाय करें या आप हम से भी संपर्क कर सकते हैं देखा देखी अपने आप पढ़कर उपाय मत करें इससे आपको लाभ की बजाय हानी भी हो सकती है मित्रोंजिस तरह सिक्के के दो पहलू होते हैं और तस्वीर के दो रुक उसी तरह कोई भी हो अच्छा या बुरा हो सकता है इसीलिए आप अपनी कुंडली अवश्य दिखाएं और क्या देखें कि यह योग आपको किस तरह का फल दे रहा है उसी तरह से उपाय करें

शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2019

सूर्य और राहु की युति (ग्रहण योग)

मित्रों आज वात करते हैं एक ऐसे योग की जो वोहोत ही खराब माना जाता है सुर्य ओर राहु का मेल 

राहु की गणना सूर्य और चन्द्र के आधार पर की जाती है. अगर सूर्य प्राण है तो चन्द्रमा मन है, राहु इसी मन और प्राण का रहस्य है. 

https://youtu.be/QE0ad0pGkAUराहु का सहयोगी केतु मुक्ति और मोक्ष का द्वार खोल सकता है यह जीवन के तमाम ज्ञात अज्ञात रहस्यों को खोल सकता है अतः इसे रहस्यमयी ग्रह भी कहते हैं. पूर्वजन्म से किस तरह के कर्म और संस्कार आप लेकर आये हैं और जीवन पर उसका क्या प्रभाव होगा, यह बात कुंडली मैं राहु के अध्ययन से जानी जा सकती है. राहु का पूर्वजन्म और वर्तमान जन्म का सम्बन्ध समझकर ही आप अज्ञात बाधाओं से मुक्ति पा सकते हैं.गुरु की तरह ही यदि राहु सूर्य एक साथ आकर बैठ जाए तो सूर्य के प्रभाव को अशुभ बनाने लगता है, किंतु सूर्य जैसा बेहद मजबूत ग्रह फिर भी अपना संघर्ष नहीं छोड़ता है। कुछ इसी प्रकार के व्यवहार वाले होते हैं वे लोग जिनकी कुंडली में ये दो ग्रह एकसाथ होते हैं।

सूर्य के साथ राहु का होना भी पितामह के बारे में प्रतिष्ठित होने की बात मालुम होती है,एक पुत्र की पैदायस अनैतिक रूप से भी मानी जा सकती है,जातक के पास कानून से विरुद्ध काम करने की इच्छायें चला करती है किंतु इन दो ग्रहों की युति जातक को स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां भी देती हैं। सूर्य और राहु का एक जगह पर होना ‘ग्रहण योग’ को जन्म देता है, जिसका सबसे पहला शिकार जातक की आंखें बनती हैं। इसके अलावा यह पिता के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है,पिता की मौत दुर्घटना में होती है,या किसी दवाई के रियेक्सन या शराब के कारण होती है,जातक के जन्म के समय पिता को चोट लगती है,जातक को सन्तान भी कठिनाई से मिलती है,पत्नी के अन्दर गुप चुप रूप से सन्तान को प्राप्त करने की लालसा रहती है,पिता के किसी भाई को जातक के जन्म के बाद मौत जैसी स्थिति होती है।

कुंडली में यदि सूर्य ग्रहण दोष हो तो होती हैं ये परेशानियां

नौकरी और व्यापार में अचानक अवांछित समस्याएं। 

जीवन में देरी से परिणाम मिलना।

पुराने रोग और बीमारियां पैर, श्वास, गर्दन, फेफड़े और आंखों से संबंधित परेशान करती हैं। 

मानसिक असंतुलन या अवसाद।

 समाजिक और कानूनी समस्या।यदि प्राइवेट ऑफिस में कार्यरत हैं तो अपने अधिकारियों के कोप का सामना करना पड़ेगा। 

व्यापारियों को टैक्स आदि मुकदमे झेलने होंगे। 

सामान की बर्बादी होगी। 

मानसिक व्यथा का सामना करना पड़ता है। 

पिता से अच्छा तालमेल नहीं बैठ पाता। जीवन में कम से कम एक बार किसी आकस्मिक नुकसान या दुर्घटना के शिकार होते हैं।

जीवन के अंतिक समय में जातक का पिता बीमार रहता है या स्वयं को ऐसी बीमारी होती है जिसका पता नहीं चल पाता। 

विवाह व शिक्षा में बाधाओं के साथ वैवाहिक जीवन अस्थिर बना रहता है। 

वंश वृद्धि में अवरोध दिखाई पड़ते हैं। काफी प्रयास के बाद भी पुत्र/पुत्री का सुख नहीं होगा। गर्भपात की स्थिति पैदा होती है। 

आत्मबल में कमी रहती है। स्वयं निर्णय लेने में परेशानी होती है। वस्तुतः लोगों से अधिक सलाह लेनी पड़ती है

 परीक्षा एवं साक्षात्मार में असफलता मिलती है। मित्रों सुर्य प्रकाश है, तेज़ है, ओज  है,  ज़िम्मेदार मर्द है, मान है, सम्मान है, घमंड है, पिता है, राजा है | कुंडली में सुर्य की अच्छी स्थिति जातक को मान- सम्मान देती है, पिता का सुख और सरकार के घर से भी लाभ देती है | और सुर्य जातक के बोस का भी कारक होता है | यदि कुण्डलीमे सूर्य राहु केतु शनि के द्वारा देखा जाता हो या युतिमे हो तब जातक को बोस से दिक्कत होती है दोसतो और मित्रों के बीच भी जातक की खास जगह नहीं होती,खराब या कमज़ोर सुर्य के | सुर्य की कमज़ोरी के कारण ही शरीर में विटामिन डी की कमी रहती है, जिसके कारण खाना अच्छे से नहीं पचता, जातक का लिवर डिसट्रब रहता है, जिसकी वझा से शरीर में किसी भी कार्य को लम्बे समय तक एकाग्रता और उर्जा से करने की कमी होती है | जातक सुर्य उदय से पहले उठ नही सकता, सारा दिन कोई भी काम नियत समय में पूरा नही कर सकता, सकूल, कालेज या फ़िर नौकरी पर समय से नहीं पहुंच सकता, एकाग्रता की कमी रहती है | सुर्य यदी कमज़ोर हो तो आंखें कमज़ोर होंगी, चश्मा लग जाता है | आगे बढ कर दूसरो की मदद करने की हिम्मत नही होती, किसी भी नये काम को हाथ में लेने का कान्फ़िडेन्स नही होता | जातक में परुपकार करने की भावना नहीं होती, पिता से सम्बन्ध अच्छे नही रहते | चेहरे पर एक तेज़ नही होता, वो उर्जा आँखो में नही दिखाई देती | गुस्सा और चिढ़चिढ़ापन रहता है | और यदी कुण्डली में सुर्य राहु या केतु के साथ हो या फ़िर राहु या केतु की द्रिश्टि में हो, तब पित्रदोष की घम्भीर स्थिति घर में बनी होती है | ऐसे में घर में लोग घुल मिल कर नहीं रहते, घर की तरकी नही होती, घर के लोगों को नौकरी में प्रमोशन नहीं मिलते, शत्रु से परेशानी रहती है, सुर्य उदय से पहले घर में लोग उठेगे नहीं, रिश्तेदार घर में आकर खुश नही रहते और धीरे धीरे अच्छे मित्रों और रिश्तेदारो से साथ छूटता चला जाता है और चालाकी और धोखा देने वाले लोग ज़िन्दगी में आने लग जाते हैं |मित्रों अगर आपको भी इस तरह की परेशानियां और दिखते आ रही है तो आप अपनी कुंडली दिखा कर हम से उपाय ले सकते हैं

गुरुवार, 14 फ़रवरी 2019

चंद्र राहु की युति एक साथ (ग्रहण योग))

जब किसी के जीवन में अचानक परेशानियां आने लगे, कोई काम होते-होते रूक जाए। लगातार कोई न कोई संकट, बीमारी बनी रहे तो समझना चाहिए कि उसकी कुंडली में कोई दोष है जी हां मित्रो एक बहुत ही बुरे योग कि मैं बात कर रहा हूं चंद्र और राहु की युति जिसको हम ग्रहण दोष भी कहते हैंयह उस ग्रह की पूरी शक्ति समाप्त कर देता है।

यह उस ग्रह और भाव की शक्ति खुद लेलेता है।ह उस भाव से सम्बन्धित फ़लों को दिलवाने के पहले बहुत ही संघर्ष करवाता है फ़िर सफ़लता देता है।

कहने का तात्पर्य है कि बडा भारी संघर्ष करने के बाद सत्ता देता है और फ़िर उसे समाप्त करवा देता हैराहु और चन्द्र किसी भी भाव में एक साथ जब विराजमान हो,तो हमेशा चिन्ता का योग बनाते है,राहु के साथ चन्द्र होने से दिमाग में किसी न किसी प्रकार की चिन्ता लगी रहती है,पुरुषों को बीमारी या काम काज की चिन्ता लगी रहती है,महिलाओं को अपनी सास या ससुराल खानदान के साथ बन्धन की चिन्ता लगी रहती है। राहु और चन्द्रमा का एक साथ रहना हमेशा से देखा गया है, कुंडली में एक भाव के अन्दर दूरी चाहे २९ अंश तक क्यों न हो,वह फ़ल अपना जरूर देता है। इसलिये राहु जब भी गोचर से या जन्म कुंडली की दशा से एक साथ होंगे तो जातक का चिन्ता का समय जरूर सामने होगा। यदि आप किसी ऐसे व्यक्ति से मिले, जो सिर्फ पहेलियों में ही बातें करता हो, तानाकशी में विश्वास करता हो, हड़बड़ाया-सा लगता हो, तथ्य छुपाने की वृत्ति हो तो तय कर लें कि उस व्यक्ति की कुंडली में कहीं न कहीं चंद्र-राहु युति मौजूद हो रमानी जा सकती है 

चंद्र-राहु युति ग्रहण योग भी कहलाती है। राहु की गूढ़ता चंद्र की कोमलता को प्रभावित करती है और व्यक्ति शंकालु, हीन मानसिकता वाला और गूढ़ बनता जाता है।यह युति मानसिक तनाव को बढ़ाती है। परिस्थिति में ढलने की क्षमता कम करती है। ये व्यक्ति जल्दी डिप्रेशन, मानसिक बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। हि‍स्टीरिया, मिर्गी जैसे रोग भी देखे गए हैं। यह युति ऊपरी बाधा, गुप्त शत्रु, पानी से खतरा दिखाती है। वैवाहिक जीवन में भी तनाव निर्माण करती है। 

अन्य योग प्रबल हो तो चंद्र-राहु की गूढ़ता व्यक्ति को रहस्यकथाओं का लेखक, जादूगर आदि भी बना सक‍ती है।दो विपरीत ग्रह, एक दूसरे के शत्रु ग्रह किंतु अनेक प्रकार से समान भी हैं। दोनों ही धन तथा यात्रा के कारक ग्रह हैं। इन दोनों ग्रहों की युति यदि कुंडली के 3, 7 भावों में हो तो ऐसे जातक को अधिकाधिक यात्राएं करनी पड़ती हैं। नवम भाव में यही युति धार्मिक यात्रा का कारण भी बनती है। सप्तम भाव में व्यापार से संबंधित यात्राएं, लग्न में चंद्र+राहु की स्थिति स्वास्थ्य के लिए घातक सिद्ध होती है। दोनों ही ग्रह त्वचा के कारक भी हैं अतः लग्नस्थ चंद्र±राहु ग्रहण योग का निर्माण कर त्वचा रोग तथा मानसिक बेचैनी का कारण बनता है। इन पर यदि बुध का दूषित प्रभाव हो तो परिणाम और भी घातक होते हैं।

चंद्रमा जल का कारक ग्रह है और राहु ‘शीशे’ का प्रतिनिधित्व करता है। परिणामतः उत्तम चंद्रमा वाले जातक का मन सदैव जल के समान निर्मल होता है। जब चंद्र + राहु पर गुरु की शुभ दृष्टि आ रही हो तो ऐसे जातक का जीवन के प्रति दृष्टिकोण सदैव शीशे की तरह पारदर्शी एवं निष्पक्ष होता है। एकादश भाव में यदि यह योग शुभ प्रभाव लेकर आ जाये तो अचानक धन लाभ भी देता है। यदि चतुर्थ भाव का स्वामी होकर चंद्रमा राहु के साथ द्वादश भाव में युति बनाये तो यह योग विदेश यात्रा का कारक भी होता है।इन दोनों ग्रहों की युति कुण्डली में होने पर व्यक्ति रहस्यमयी विद्याओं में रूचि रखते हैं. अगर आपकी कुण्डली में यह युति बन रही है तो शिक्षा प्राप्त कर आप वैज्ञानिक बन सकते हैं. शोध कार्यों में भी आपको अच्छी सफलता मिल सकती है.। जब किसी के जीवन में अचानक परेशानियां आने लगे, कोई काम होते-होते रूक जाए। लगातार कोई न कोई संकट, बीमारी बनी रहे तो समझना चाहिए कि उसकी कुंडली में ग्रहण दोष लगा हुआ है। उस स्थिति में आप अपनी कुंडली किसी अच्छे एस्ट्रोलॉजर को दिखलाएं जहां हमसे भी आप संपर्क कर सकते हैं और उनका उपाय प्राप्त कर सकते हैं

बुधवार, 13 फ़रवरी 2019

मंगल ओर राहु की युति

मंगल और राहू जब राहु और मंगल एक ही भाव में युति बनाते हैं, तो वह मंगल राहु अंगारक योग कहलाता है। मंगल ऊर्जा का स्रोत है, जो अग्नि तत्व से संबद्घ है,

https://youtu.be/3qu9NkJ-vRs जबकि राहु भ्रम व नकारात्मक भावनाओं से जुड़ा हुआ है। जब दोनों ग्रह एक ही भाव में एकत्र होते हैं तो उनकी शक्ति पहले से अधिक हो जाती है। लाल किताब में इस योग को पागल हाथी या बिगड़ा शेर का नाम दिया गया है। राहु से विस्तार की बात केवल इसलिये की जाती है क्योंकि राहु जिस भाव और ग्रह में अपना प्रवेश लेता है उसी के विस्तार की बात जीव के दिमाग में शुरु हो जाती है,कुंडली में जब यह व्यक्ति की लगन में होता है तो वह व्यक्ति को अपने बारे में अधिक से अधिक सोचने के लिये भावानुसार और राशि के अनुसार सोचने के लिये बाध्य कर देता है जो लोग लगातार अपने को आगे बढाने के लिये देखे जाते है उनके अन्दर राहु का प्रभाव कहीं न कहीं से अवश्य देखने को मिलता है। लेकिन भाव का प्रभाव तो केवल शरीर और नाम तथा व्यक्ति की बनावट से जोड कर देखा जाता है लेकिन राशि का प्रभाव जातक को उस राशि के प्रति जीवन भर अपनी योग्यता और स्वभाव को प्रदर्शित करने के लिये मजबूर हो जाता है। राहु विस्तार का कारक है,और विस्तार की सीमा कोई भी नही होती है,मंगल शक्ति का दाता है,और राहु असीमितिता का कारक है,मंगल की गिनती की जा सकती है लेकिन राहु की गिनती नही की जा सकती है।राहु अनन्त आकाश की ऊंचाई में ले जाने वाला है और मंगल केवल तकनीक के लिये माना जाता है,हिम्मत को देता है,कन्ट्रोल पावर के लिये जाना जाता है।अगर मंगल को राहु के साथ इन्सानी शरीर में माना जाये तो खून के अन्दर इन्फ़ेक्सन की बीमारी से जोडा जा सकता है,ब्लड प्रेसर से जोडा जा सकता है,परिवार में लेकर चला जाये तो पिता के परिवार से माना जा सकता है,और पैतृक परिवार में पूर्वजों के जमाने की किसी चली आ रही दुश्मनी से माना जा सकता है। समाज में लेकर चला जाये तो गुस्से में गाली गलौज के माना जा सकता है,लोगों के अन्दर भरे हुये फ़ितूर के लिये माना जा सकता है। अगर बुध साथ है तो अनन्त आकाश के अन्दर चढती हुयी तकनीक के लिये माना जा सकता है। गणना के लिये उत्तम माना जा सकता है। गुरु के द्वारा कार्य रूप में देखा जाने वाला मंगल राहु के साथ होने पर सैटेलाइट के क्षेत्र में कोई नया विकास भी सामने करता है,मंगल के द्वारा राहु के साथ होने पर और बुध के साथ देने पर कानून के क्षेत्र में भ्रष्टाचार फ़ैलाने वाले साफ़ हो जाते है,उनके ऊपर भी कानून का शिकंजा कसा जाने लगता है,बडी कार्यवाहियों के द्वारा उनकी सम्पत्ति और मान सम्मान का सफ़ाया किया जाना सामने आने लगता है,जो लोग डाक्टरी दवाइयों के क्षेत्र में है उनके लिये कोई नई दवाई ईजाद की जानी मानी जाती है,जो ब्लडप्रेसर के मामले में अपनी ही जान पहिचान रखती हो। धर्म स्थानों पर बुध के साथ आजाने से मंगल के द्वारा कोई रचनात्मक कार्यवाही की जाती है,इसके अन्दर आग लगना विस्फ़ोट होना और तमाशाइयों की जान की आफ़त आना भी माना जाता है। वैसे राहु के साथ मंगल का होना अनुसूचित जातियों के साथ होने वाले व्यवहार से मारकाट और बडी हडताल के रूप में भी माना जाता है। सिख सम्प्रदाय के साथ कोई कानूनी विकार पैदा होने के बाद अक्समात ही कोई बडी घटना जन्म ले लेती है। दक्षिण दिशा में कोई बडी विमान दुर्घटना मिलती है,जो आग लगने और बाहरी निवासियों को भी आहत करती है,आदि बाते मंगल के साथ राहु के जाने से मिलती है।मेरा यह मानना है कि इस योग का प्रभाव व्यक्ति के लग्न और ग्रहों की स्थिति के अनुसार अलग-अलग होगा और उपाय भी. मुझ से बहुत मित्र उपाय पूछते रहते हैं. मैंने ऐसे उपाय कई बार लिखे हैं, जो सभी कर सकते हैं. पर कुछ उपाय कुंडली के अनुसार ही होते हैं. यह उसी प्रकार है कि हर एक को हल्दी, लहसुन खाने को कहना, या उस व्यक्ति कि प्रकृति इत्यादि जानकर उसके लिए उसको एकदम फिट बैठने वाली दवा यह योग अच्छा और वुरा दोनो तरह का फल देने वाला है। अता मित्रों आप अपनी कुंडली किसी अच्छे ज्योतिषी को दिखा कर ही उपाय करें अपने आप देखादेखी कोई उपाय है ना करें वरना लाभ के स्थानपर हानी हो सकती है् Acharya Rajesh 09414481324 07597718725

सोमवार, 11 फ़रवरी 2019

वक्री वुघ

: वक्री बुघ आमतौर पर ग्रहों के संबोधन को ही उनका असर मान लिया जाता है। जैसे नीच के ग्रह को नीच यानि घटिया और उच्‍च के ग्रह को उच्‍च यानि श्रेष्‍ठ मान लिया जाता है्www.acharyarajesh.inयही स्थिति कमोबेश वक्री ग्रह के साथ भी होती है। उसे उल्‍टी चाल वाला मान लिया जाता है। यानि वक्री ग्रह की दशा में जो भी परिणाम आएंगे वे उल्‍टे ही आएंगे। ऐसा नहीं है कि केवल नौसिखिए या शौकिया ज्‍योतिषी ही यह गलती करते हैं बल्कि मैंने कई स्‍थापित ज्‍योतिषियों को भी यही गलती करते हुए देखा है।बुध का। बुध कभी भी सूर्य से तीसरे घर से दूर नहीं जा पाता है। यानि 28 डिग्री को पार नहीं कर पाता है। इसी के साथ दूसरा तथ्‍य यह है कि सूर्य के दस डिग्री से अधिक नजदीक आने वाला ग्रह अस्‍त हो जाता है। अब बुध नजदीक होगा तो अस्‍त हो जाएगा और दूर जाएगा तो वक्री हो जाएगा। ऐसे में बुध का रिजल्‍ट तो हमेशा ही नेगेटिव ही आना चाहिए। शब्‍दों के आधार पर देखें तो ग्रह के अस्‍त होने का मतलब हुआ कि ग्रह की बत्‍ती बुझ गई, और अब वह कोई प्रभाव नहीं देगा और वक्री होने का अर्थ हुआ कि वह नेगेटिव प्रभाव देगा। वास्‍तव में दोनों ही स्थितियां नहीं होती। टर्मिनोलॉजी से दूर आकर वास्‍तविक स्थिति में देखें तो सूर्य के बिल्‍कुल पास आया बुध अस्‍त तो हो जाता है लेकिन अपने प्रभाव सूर्य में मिला देता है। यही तो होता है बुधादित्‍य योग। ऐसे जातक सामान्‍य से अधिक बुद्धिमान होते हैं। यानि सूर्य के साथ बुध का प्रभाव मिलने पर बुद्धि अधिक पैनी हो जाती है। दूसरी ओर वक्री ग्रह का प्रभाव। सूर्य से दूर जाने पर बुध अपने मूल स्‍वरूप में लौट आता है। जब वह वक्री होता है तो पृथ्‍वी पर खड़े अन्‍वेषक को अधिक देर तक अपनी रश्मियां देता है। यहां अपनी रश्मियों से अर्थ यह नहीं है कि बुध से कोई रश्मियां निकलती हैं, वरन् बुध के प्रभाव वाली तारों की रश्मियां अधिक देर तक अन्‍वेषक को मिलती है। ऐसे में कह सकते हैं बुध उच्‍च के परिणाम देगा। अब यहां उच्‍च का अर्थ अच्‍छे से नहीं बल्कि अधिक प्रभाव देने से है। सुबह यह है कि बुद्ध कब अच्‍छे या खराब प्रभाव देगा इसका जवाब बहुत आसान है। जिस कुण्‍डली में बुध कारक हो और अच्‍छी पोजिशन पर बैठा हो वहां अच्‍छे परिणाम देगा और जिस कुण्‍डली में खराब पोजिशन पर बैठा हो वहां खराब परिणाम देगा। इसके अलावा जिन कुण्‍डलियों में बुध अकारक है उनमें बुध कैसी भी स्थिति में हो, उसके अधिक प्रभाव देखने को नहीं मिलेंगे। [सारावली के अनुसार वक्री ग्रह सुख प्रदान करने वाले होते हैं लेकिन यदि जन्म कुंडली में वक्री ग्रह शत्रु राशि में है या बलहीन अवस्था में हैं तब वह व्यक्ति को बिना कारण भ्रमण देने वाले होते हैं. यह व्यक्ति के लिए अरिष्टकारी भी सिद्ध होते हैं.फल दीपिका में मंत्रेश्वर जी का कथन है कि ग्रह की वक्र गति उस ग्रह विशेष के चेष्टाबल को बढ़ाने का काम करती है. कृष्णमूर्ति पद्धति के अनुसार प्रश्न के समय संबंधित ग्रह का वक्री होना अथवा वक्री ग्रह के नक्षत्र में होना नकारात्मक माना जाता है. काम के ना होने की संभावनाएँ अधिक बनती हैं. यदि संबंधित ग्रह वक्री नहीं है लेकिन प्रश्न के समय वक्री ग्रह के नक्षत्र में स्थित है तब कार्य पूर्ण नहीं होगा जब तक कि ग्रह वक्री अवस्था में स्थित रहेगा. सर्वार्थ चिन्तामणि में आचार्य वेंकटेश ने वक्री ग्रहों की दशा व अन्तर्दशा का बढ़िया विवरण किया है. सर्वार्थ चिन्तामणि के अनुसार ही वक्री बुध अपनी दशा/अन्तर्दशा में शुभ फल प्रदान करता है. व्यक्ति अपने साथी व परिवार का सुख भोगता है. व्यक्ति की रुचि धार्मिक कार्यों की ओर भी बनी रहतीहै बुद्ध बक्री वर्ष में तीन बार होता है,और यह ग्रह केवल चौबीस दिन के लिये बक्री होता है,इस ग्रह के द्वारा अपने फ़लों में बाहरी प्राप्तियों के लिये लाभकारी माना जाता है,अन्दरूनी चाहतों के लिये यह समय नही होता है,यह दिमाग में झल्लाहट पैदा करता है,इन झल्लाहटों का मुख्य कारण कार्यों और कही बातों में देरी होना,पिछली बातों का अक्समात सामने आ जाना वे बाते कही गयीं हो या लिखी गयीं हो,इसके साथ ही इस बक्री बुध का प्रभाव आखिरी मिनट में अपना फ़ैसला बदल सकता है। यह समय किसी भी कारण को क्रियान्वित करने के लिये सही नही माना जाता है,जैसे किसी एग्रीमेंट पर साइन करना,और अधिकतर उन मामलों में जहां पर लम्बी अवधि के लिये चलने वाले कार्यों के लिये एग्रीमेंट तो कतई सफ़ल नही हो सकते हैं। इस समय में साधारण मामले जो लगातार दिमाग में टेंसन दे रहे होते है,उनको निपटाने के लिये अच्छे माने जाते है,उन कारकों के लिये अधिक सफ़ल माने जाते हैं जिनके अन्दर संचार वाले साधन और कारण ट्रांसपोर्ट और आने जाने के प्लान,जो साधारण टेंसन वाले कारण माने जाते है वे किसी प्रकार के कमन्यूकेशन को बनाने और संधारण करने वाले काम,किसी से बातचीत करने वाले काम,आने जाने के साधन को रिपेयर करने वाले काम टेलीफ़ोन के अन्दर बेकार की खराबियां उन समाचारों को जो काफ़ी समय से डिले चल रहे हों,जिन सामानों और पत्रावलियों को वितरित नही किया गया हो उन्हे वितरित करने वाले काम,मशीने जो जानबूझ कर बन्द की गयी हो उन्हे चलाने वाले काम,और जो किसी के साथ अक्समात अपोइटमेंट के कारण बनाये गये हों,और अधिकतर उन मामलों जो आखिरी समय में बनाये गये हों या बनाकर कैंसिल किये गये हों। यह समय उन बातों के लिये भी मुख्य माना जाता है,जो पिछले समय में प्लान बनाये गये हों,और उन प्लानों पर काम किया जाना हो,और प्लानों के अन्दर की बातों को सही किया जाना हो,यह समय उन कारकों को के लिये भी प्रभावी माना जा सकता है जिनके लिये दिमागी रूप से कार्य किया जाना हो,जैसे किसी बात की खोजबीन करना,रीसर्च करना, जो कोई बात लिखी गयी हो या लिखकर उसे सुधारने का काम हो,लिखावट के अन्दर की जाने वाली गल्तियों को सुधारने का काम,यह समय ध्यान लगाने समाधि में जाने और ध्यान लगाकर सोचने वाले कामों के लिये भी उत्तम माना जाता है,अपने अन्दर की बुराइयों को पढने का यह सही समय माना जाता है,मनोवैज्ञानिक तरीके से किसी बात को मनवाने के लिये यह समय उत्तम माना जाता है। नये तरीके के विचार बनाये जा सकते है लेकिन उनको क्रियान्वित नही किया जा सकता है,और उन कामों को करने का उत्तम समय है जो पिछले समय में नही किये जा सके है। इस प्रकार से बक्री बुध शेयर बाजार की गतिविधियों के मामले में भी खोजबीन करने के लिये काफ़ी है,किसी भी प्रकार के तामसी कारकों को प्रयोग करने के बाद की जाने वाली क्रियान्वनयन की बातों के ऊपर भी यह बक्री बुध जिम्मेदार माना जाता है। इस बुध के कारणों में उन बातों को भी शामिल किया जाता है जो पहले कही गयी हों या संचार द्वारा सूचित की गयीं हो,उनके लिये फ़ैसला देने के लिये यह बुध उत्तरदायी माना जा सकता है।

रविवार, 10 फ़रवरी 2019

राहु तो राहु है

राहु के गोचर का मानव जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। क्योंकि राहु को अनिश्चितता का कारक कहा जाता है और इसकी प्रवृत्ति को समझना बड़ा मुश्किल है। राहु कब, कैसे और कहां व्यक्ति का भाग्य बदल दे, इसका आभास नहीं लगाया जा सकता है। मित्रों अगरदही मे गुड मिला जाय और उसे दो दिन के लिये रख दिय 
जाये,तीसरे दिन जो दही का रूप बनेगा वह अगर पी लिया जाये तो जो कुछ भी पहले का खाया पिया सुबह को साफ़ हो जायेगा.पुराने जमाने मे भदावर क्षेत्र मे इस मिश्रण को सन्नाटे के रूप में बारात की लौटती की पंगत में दिया जाता था। इस मिश्रण को देने का एक ही उद्देश्य होता था कि जो भी बारात मे उल्टा सीधा चिकनाई और मिठाई आदि के साथ खाया पिया है वह पेट मे इकट्ठा रहने पर शरीर को दिक्कत दे सकता है जैसा हो सकता है या अतिशार जैसी बीमारी हो सकती है इस मिश्रण को पीने के बाद यह पेट की सफ़ाई कर देता है.उसी प्रकार से जबजब व्यक्ति अपनी हैसियत से अधिक कमा लेता है और उसे खर्च करने के लिये कोई रास्ता नही मिलता है तो वह अपनी हैसियत को बरबाद करने के लिये राहु शुक्र के घेरे मे आजाता है। यानी जो भी कार्य उसके पूर्वजों ने धन जोडकर किये है और वह आगे की पीढी के लिये मौज मस्ती को करने के लिये काफ़ी होते है उस जोडे गये धन और इज्जत आदि को जब तक बरबाद नही किया जायेगा उल्टे दिन नही माने जायेंगे। इसे एक प्रकृति का कारण भी माना जाता है कि वह हमेशा हर व्यक्ति हर वस्तु और हर कारक पर अपना बेलेन्स बनाने की क्रिया को करती है। एक कहावत भी कही जाती है कि जब दादा ने इज्जत धन मान मर्यादा शौहरत आदि कमाई होती है तो पिता को अपने जीवन में परेशानी नही होती है और वह अपने जीवन को मस्ती के जीवन मे जीता है उसके बाद जो सन्तान पैदा होती है वह सन्तान पिता के द्वारा कुछ नही करने के कारण तथा मौज मस्ती के जीवन की शैली को अपनाने के कारण दादा की हैसियत को बरबाद करने का कारण बन जाती है। यानी तीसरी साख में कंडुआ पैदा होना माना जा सकता है। राहु की दशा वास्तव मे एक नशा है और वह जिस जिस भाव मे गोचर करता है और जिस राशि से अपनी युति बनाता है जिस ग्रह को अपने चपेटे मे लेता है उसी के अनुसार जातक को नशा देता चला जाता है। राहु का नशा अगर धन भाव का है तो व्यक्ति किसी भी कारण को एक तरफ़ करने के बाद केवल धन को ही कमाने के लिये अपनी हर कोशिश को जारी रखेगा उसे किसी भी प्रकार के कानून धर्म जाति और जीव के प्रति दया भाव नही रहेगा,उससे अगर कहा भी जायेगा कि यह बात गलत है तो वह उस बात को अपने तर्क से दूर करने की पूरी कोशिश को करेगा भी और सच को झूठ बताकर किसी प्रकार का आक्षेप देने के बाद अपने ही मन की करता जायेगा। जिन लोगों की जन्म कुंडली मे  राहु कन्या का है तो हर भाव मे जाकर वह कर्जा दुश्मनी बीमारी और लोन आदि के कारण ही पैदा करेगा,जिसकी कुंडली में राहु वृश्चिक राशि का है तो वह मरने मारने वाले कामो से लेकर किसी भी प्रकार की रिस्क किसी के भी प्रति लेने से नही चूकेगा उसे वही खेल भी अच्छे लगेंगे जो खेल या तो जान से मार सकते है या किसी प्रकार के बडे जोखिम मे डाल सकते है। वह जो भी कार्य करेगा वह गुप्त रूप से करने का स्वभाव उसके अन्दर जरूर ही होगा। उसे खुल कर सामने आने से डर भी रहेगा और भीतरी अपघात करना केवल शमशानी प्रभाव ही पैदा करना और किस प्रकार से गुप्त युक्ति फ़रेब आदि से धन को शरीर की पालना को अपनी शौहरत को बढाने का अवसर मिलेगा वह लगातार अपने को इन्ही क्षेत्रो मे ले कर चलने वाला होगा। अगर राहु मीन राशि का है तो वह हर बात से डरना सीखेगा और डर की बजह से बिना किये गये कार्यों में  भी उसे खर्चा और अपमान सहना पडेगा साथ ही कोई करेगा और भरना इस राशि वाले राहु के साथ होगा,बेकार का खर्चा,अक्समात खर्चा जिस भाव मे है उसी भाव के प्रति माना जा सकता है। जैसे मीन का राहु चलते चलते वृष मे आ गया है तो कुटुम्ब के सदस्यों के साथ अचानक हादसे होने लगेंगे,किसी प्रकार की चाल फ़रेब के कारण धन का अक्समात ही खर्चा होने लगेगा और इस कारण से जातक के अन्दर कोई न कोई नशा या दवाई आदि लेने की आदत भी पड जायेगी।राहु के साथ शुक्र का अन्तर आने पर अगर व्यक्ति जवान है तो प्रेम करने और प्रेम विवाह करने का एक भूत सवार हो जायेगा उसे अपने परिवार जाति मर्यादा आदि का ध्यान नही रहेगा। वह अपने अनुसार युक्तियां बनायेगा और जब तक उसका भूत प्रेम का चढा रहेगा वह किसी की भी बात को नही मानेगा,वह दिन रात सोते जागते एक ही ख्वाब देखेगा कि कैसे प्रेम विवाह किया जाये,कैसे पसंद की गयी लडकी या लडका उसकी गिरफ़्त मे आये,और वह ख्वाब भरी जिन्दगी को एक ऊंची उडान के साथ जीने के लिये अपने प्लान बनाता रहेगा। राहु शुक्र की युति मे ही लोग महंगी और चमक दमक वाली गाडियों की तरफ़ भी अपना रुझान बनाने लगते है। उन्हे सजावट मे अधिक समय लगने लगता है,खुशबू और महंगे परफ़्यूम लगाने का शौक पैदा हो जाता है। मेरे ख्याल से जितने भी सजावटी चीजे है वे सभी राहु और शुक्र की युति मे ही ईजाद की गयी होंगी।राहु शुक्र के अन्तर में अगर कुंडली मेष लगन की है तो जातक के अन्दर जीवन साथी से सम्बन्धित बडी बडी सोच पैदा हो जायेंगी वह हमेशा शादी विवाह वाले कारणो को सोचता रहेगा उसे केवल अपने और अपने जीवन साथी के लिये ही उत्तेजना वाली बाते याद रहेंगी। वह अपने जीवन साथी को बहुत ही सुन्दर रूप मे देखने का आकांक्षी होगा। किसी भी रूप मे वह अपने जीवन साथी को चमक दमक मे ही देखना चाहेगा। अगर राहु का गोचर इस अन्तर में मेष राशि पर है तो जातक अपने ही ख्वाब मे खोया रहेगा तरह के शायरी वाले कारण पैदा करेगा आपनी ख्वाबी बाते लिखेगा और फ़ोटोग्राफ़ी कैमरा और इन्टर्नेट पर अपने विचार उसी भाषा मे प्रसारित करने की युक्ति को पैदा करेगा,उसे फ़िल्म बनाने और फ़िल्म को दर्शाने तथा फ़िल्मो मे केवल प्यार मोहब्बत की बातों का ही खुलाशा करने का भूत सवार रहेगा। राहु हमेशा उल्टी गति से चलता है इसलिये वह जिस भाव मे होता है उससे आगे के भाव को देता है और पीछे के भाव से लेता है। यानी वह अगर  किसी की मेष लगन मे विराजमान है तो वह बाहरी शक्तियों से प्राप्त करेगा और कुटुम्ब और धन आदि के क्षेत्रो को देगा.इसी प्रकार से अगर वृष राशि में राहु गोचर कर रहा है तो वह व्यक्ति को अपने परिवार के प्रति अधिक सोच पैदा करेगा वह अपने परिवार के लिये ही समर्पित रहेगा,उसे यह ख्याल नही रहेगा कि वह अन्य को भी सजा दे रहा है या अन्य लोग भी उसके कामो से दुखी है वह अपने परिवार की जरूरतो को पूरा करने के लिये शरीर की किसी भी हानि से नही डरेगा,वह अपने नाम को भी बरबाद कर सकता है,उसे अपनी सेहत का भी ख्याल नही रहेगा,वह जो भी कुछ करेगा वह अपने छोटे भाई बहिनो के लिये हमेशा करने के लिये तत्पर रहेगा उसका अधिक से अधिक खर्चा केवल कमन्यूकेशन के साधनो और पहिनावे पर ही जायेगा उसे इस बात की चिन्ता नही रहेगी कि वह भोजन भी करेगा और उसे शिक्षा तथा अन्य कारणो को भी देखना है। इस राशि का राहु हमेशा ही जीवन साथी के लिये अपमान जान जोखिम और मृत्यु जैसे कारण पैदा करता है। धन का एक भूत उस व्यक्ति पर सवार रहेगा वह खाने पीने वाली चीजो का शौकीन होगा लेकिन वही खाने पीने की चीजो को प्रयोग मे लायेगा जो किसी न किसी प्रकार का नशा देती हो या शरीर के लिये दिक्कत का कारण बन रही हो। मिथुन लगन में राहु के गोचर करने पर जातक का धन अधिकतर घर बनाने माता या पानी वाले साधनो या लम्बी लंबी यात्राओं मे ही खर्च होगा वह अपने बचत किये धन को भी इन्ही कामो मे लगाने से नही चूकेगा। कर्क राशि का राहु शिक्षा के क्षेत्र और मनोरंजन में ही खर्च करने के लिये माना जाता है वह अपने लिये जल्दी से धन कमाने के कारणो को खोजना शुरु करेगा और जो भी उसके पास है वह अपने छोटे भाई बहिनो और कमन्यूकेशन के साधनो से ही प्राप्त करने के बाद अपने परिवार सन्तान और इसी प्रकार के कारणो में खर्च करेगा उसे प्यार मोहब्बत का भी शुरुर चढेगा वह अपने धन को अपने कमन्यूकेशन के साधनो को इन्ही पर खर्च करता चला जायेगा उसे होश नही रहेगा कि वह जो खर्चा कर रहा है वह किसी के लिये कितना कष्टकारी भी हो सकता है। राहु तो राहु है भाई क्या कहने इसके। आपका दोस्त हुआ तो आप माया मछिन्दर नाथ। दुश्मन हुआ तो पागलखाने में या फिर जिंदगी भर माया जाल में फस कर जीवन व्यतीत करने वाले।राहु मस्त तो सब पस्त।राहु पस्त तो समझ जाओ पिछले जन्म में बड़े भारी कुकर्म किये है। इसी वजह से इस जन्म में पूरी जिंदगी राहु की भयंकर जकड़ में हो। नही विश्वास तो अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाऐ

शनिवार, 9 फ़रवरी 2019

राहु परेशानियों का कारक

मित्रो पहले मैने राहु पर पोस्ट ङाली थी तो वहुँत से मित्र उपाय जानना चाहते है तो उस सम्वघ मे आप को थोङा वता रहा हु जैसे आप जानते ही हे कि राहु छाया ग्रह है, फिर भी उसे एक पूर्ण ग्रह के समान ही माना जाता है।

https://youtu.be/wAxNMKd-x8Yhttps://youtu.be/wAxNMKd-x8Y यह आद्र्रा, स्वाति एवं शतभिषा नक्षत्र का स्वामी है। राहु की दृष्टि पंचम, सप्तम और नवम भाव पर पड़ती है। जिन भावों पर राहु की दृष्टि का प्रभाव पड़ता है, वे राहु की महादशा में अवश्य प्रभावित होते हैं। राहु की महादशा 18 वर्ष की होती है। राहु में राहु की अंतर्दशा का काल 2 वर्ष 8 माह और 12 दिन का होता है। इस अवधि में राहु से प्रभावित जातक को अपमान और बदनामी का सामना करना पड़ सकता है।अगर कुंङली मे राहु खराव हैतो विष और जल के कारण पीड़ा हो सकती है। जहरीले भोजन, से स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है। इसके ईलावा अपच, जहरीले जानवर से खतरा परस्त्री या पर पुरुष गमन की आशंका भी इस अवधि में बनी रहती है। अशुभ राहु की इस अवधि में जातक के किसी प्रिय से वियोग, समाज में अपयश, निंदा आदि की संभावना भी रहती है। किसी दुष्ट व्यक्ति के कारण उस परेशानियों का भी सामना करना पड़ सकता है। उपाय: भगवान शिव के रौद्र अवतार भगवान भैरव के मंदिर में रविवार को तेल का दीपक जलाएं। शराब का सेवन कतई न करें। लावारिस शव के दाह-संस्कार के लिए शमशान में लकड़िया दान करें। मंदे वोलो का प्रयोग न करें। राहु में बृहस्पति: राहु की महादशा में गुरु की अंतर्दशा की यह अवधि दो वर्ष चार माह और 24 दिन की होती है। राक्षस प्रवृत्ति के ग्रह राहु और देवताओं के गुरु बृहस्पति का यह संयोग सुखदायी होता है। जातक के मन में श्रेष्ठ विचारों का संचार होता है और उसका शरीर स्वस्थ रहता है। धार्मिक कार्यों में उसका मन लगता है। यदि कुंडली में गुरु अशुभ प्रभाव में हो, राहु के साथ या उसकी दृष्टि में हो तो उक्त फल का अभाव रहता है। ऐसी स्थिति में यह उपाय करने चाहिए। किसी अपंग छात्र की पढ़ाई या इलाज में सहायता करें। शैक्षणिक संस्था के शौचालयों की सफाई की व्यवस्था कराएं। शिव मंदिर में नित्य झाड़ू लगाएं। पीले रंग के फूलों से शिव पूजन करें। राहु में शनि: राहु में शनि की अंतदर्शा का काल 2 वर्ष 10 माह और 6 दिन का होता है। इस अवधि में परिवार में कलह की स्थिति बनती है। तलाक भाई, बहन और संतान से अनबन, नौकरी में या अधीनस्थ नौकर से संकट की संभावना रहती है। शरीर में अचानक चोट या दुर्घटना के दुर्योग, कुसंगति आदि की संभावना भी रहती है। साथ ही वात और पित्त जनित रोग भी हो सकता है। दो अशुभ ग्रहों की दशा-अंतर्दशा कष्ट कारक हो सकती है। इससे बचने के लिए निम्न उपाय अवश्य करने चाहिए। भगवान शिव की शमी के पत्रों से पूजा और शिव सहस्रनाम का पाठ करना चाहिए। महामृत्युंजय मंत्र के जप स्वयं, अथवा किसी योग्य विद्वान ब्राह्मण से कराएं। जप के पश्चात् दशांश हवन कराएं जिसमें जायफल की आहुतियां अवश्य दें। नवचंडी का पूर्ण अनुष्ठान करते हुए पाठ एवं हवन कराएं। काले तिल से शिव का पूजन करें। राहु में बुध: राहु की महादशा में बुध की अंतर्दशा की अवधि 2 वर्ष 3 माह और 6 दिन की होती है। इस समय धन और पुत्र की प्राप्ति के योग बनते हैं। राहु और बुध की मित्रता के कारण मित्रों का सहयोग प्राप्त होता है। साथ ही कार्य कौशल और चतुराई में वृद्धि होती है। व्यापार का विस्तार होता है और मान, सम्मान यश और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। उपाय: भगवान गणेश को शतनाम सहित दूर्वाकुंर चढ़ाते रहें। हाथी को हरे पत्ते, नारियल गोले या गुड़ खिलाएं।अगर हाथी मिले तो नदी मे जो वहाऐ कोढ़ी, रोगी और अपंग को खाना खिलाएं। पक्षी को हरी मूंग खिलाएं। राहु में केतु: राहु की महादशा में केतु की यह अवधि शुभ फल नहीं देती है। एक वर्ष और 18 दिन की इस अवधि के दौरान जातक को सिर में रोग, ज्वर, शत्रुओं से परेशानी, शस्त्रों से घात, अग्नि से हानि, शारीरिक पीड़ा आदि का सामना करना पड़ता है। रिश्तेदारों और मित्रों से परेशानियां व परिवार में क्लेश भी हो सकता है। उपाय: भैरवजी के मंदिर में ध्वजा चढ़ाएं। कुत्तों को रोटी, ब्रेड या बिस्कुट खिलाएं कौओं को खीर-पूरी खिलाएं। घर या मंदिर में गुग्गुल लोवान कपुर आदि का धूप करें। मुली का दान करेकुते को रोटी ङाले राहु में शुक्र: राहु की महादशा में शुक्र की प्रत्यंतर दशा पूरे तीन वर्ष चलती है। इस अवधि में शुभ स्थिति में दाम्पत्य जीवन में सुख मिलता है। वाहन और भूमि की प्राप्ति तथा भोग-विलास के योग बनते हैं। यदि शुक्र और राहु शुभ नहीं हों तो शीत संबंधित रोग, बदनामी और विरोध का सामना करना पड़ सकता है। इस अवधि में अनुकूलता और शुभत्व की प्राप्ति के लिए निम्न उपाय करें- गाय को हरा चारा खिलाये सांड को गुड़ या घास खिलाएं। शिव मंदिर में स्थित नंदी की पूजा करें और वस्त्र आदि दें। एकाक्षी श्रीफल की स्थापना कर पूजा करें। स्फटिक की माला धारण करें। राहु में सूर्य: राहु की महादशा में सूर्य की अंतर्दशा की अवधि 10 माह और 24 दिन की होती है, जो अन्य ग्रहों की तुलना में सर्वाधिक कम है। इस अवधि में शत्रुओं से संकट, शस्त्र से घात, अग्नि और विष से हानि, आंखों में रोग, राज्य या शासन से भय, परिवार में कलह आदि हो सकते हैं। सामान्यतः यह समय अशुभ प्रभाव देने वाला ही होता है। उपाय: इस अवधि में सूर्य को अघ्र्य दें। उनका पूजन एवं उनके मंत्र का नित्य जप करें। हरिवंश पुराण का पाठ या श्रवण करते रहें। चाक्षुषोपनिषद् का पाठ करें। सूअर को मसूर की दाल खिलाएं। राहु में चंद्र: एक वर्ष 6 माह की इस अवधि में जातक को असीम मानसिक कष्ट होता है। इस अवधि में जीवन साथी से अनबन, तलाक या मृत्यु भी हो सकती है। लोगों से मतांतर, आकस्मिक संकट एवं जल जनित पीड़ा की संभावना भी रहती है। इसके अतिरिक्त पशु या कृषि की हानि, धन का नाश, संतान को कष्ट और मृत्युतुल्य पीड़ा भी हो सकती है। उपाय: राहु और चंद्र की दशा में उत्पन्न होने वाली विषम परिस्थितियों से बचने के लिए माता की सेवा करें। माता की उम्र वाली महिलाओं का सम्मान और सेवा करें। प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव का शुद्ध दूध से अभिषेक करें। चांदी की प्रतिमा या कोई अन्य वस्तु मौसी, बुआ या बड़ी बहन को भेंट करें। चांदी की चेन गले मे घारन करे अगर कुंङली मे चंद्र योगकारक है तो मोती घारन करे राहु में मंगल: राहु की महादशा में मंगल की अंतर्दशा का यह समय एक वर्ष 18 दिन का होता है। इस काल में शासन व अग्नि से भय, चोरी, अस्त्र शस्त्र से चोट, शारीरिक पीड़ा, गंभीर रोग, नेत्रों को पीड़ा आदि हो सकते हंै। इस अवधि में पद एवं स्थान परिवर्तन तथा भाई को या भाई से पीड़ा की संभावना भी रहती है।हनुमान जी की उपासना करे यहथोङे कोमन उपाय वताऐ मेने आपको फिर भी आप किसी अच्छे ज्योतिषी को कुंङली दिखा कर उपाय करे हा मित्रो मुफ्त के चक्कर मे अपने जिवन से खिलवाङ मत करे कुंङली दिखा कर ज्योतिषी को उसकी दक्षिणा दे आचार्य राजेश 09414481324 07597718725

गुरुवार, 7 फ़रवरी 2019

स्वर विघा का विज्ञान (स्वर योग)

स्वर विघा का विज्ञान (स्वर योग)

प्राण वायु मनुष्य के शरीर में श्वास लेने पर नासिका के माध्यम से प्रवेश करती है। नासिका में दो छिद्र होते हैं, जो बीच में एक पतली हड्डी के कारण एक दूसरे से अलग रहते हैं। मनुष्य कभी दाहिने छिद्र से और कभी बाँएँ छिद्र से श्वास लेता है। दाहिने छिद्र से श्वास लेते समय “दाहिना स्वर” तथा बाँएँ छिद्र से श्वास लेते समय “बाँयाँ स्वर” चलता है। अर्थात् श्वास-प्रश्वास की गति जिस नासिका छिद्र से प्रतीत हो, उस समय वही स्वर चलता समझें। यदि दोनों नासिका-छिद्रों से समान रुप से निःश्वास होता हो, तो उसे “मध्य स्वर” कहते हैं। यह स्वर प्रायः उस समय चलता है, जब स्वर परिवर्तन होने को होता है।सूर्य स्वर पुरुष प्रधान है। इसका रंग काला है। यह शिव स्वरूप है

, इसके विपरीत चंद्र स्वर स्त्री प्रधान है एवं इसका रंग गोरा है, यह शक्ति अर्थात्‌ पार्वती का रूप है। इड़ा नाड़ी शरीर के बाईं तरफ स्थित है तथा पिंगला नाड़ी दाहिनी तरफ अर्थात्‌ इड़ा नाड़ी में चंद्र स्वर स्थित रहता है और पिंगला नाड़ी में सूर्य स्वर। सुषुम्ना मध्य में स्थित है, अतः दोनों ओर से श्वास निकले वह सुषम्ना स्वर कहलाएगा।आप देखेंगे कि, बाएं हाथ का उपयोग करने वाले लोगों को दबा दिया जाता है! अगर कोई बच्चा बाएं हाथ से लिखता है, तो तुरंत पूरा समाज उसके खिलाफ हो जाता है माता पिता, सगे संबंधी, परिचित, अध्यापक सभी लोग एकदम उस बच्चे के खिलाफ हो जाते हैं। पूरा समाज उसे दाएं हाथ से लिखने को विवश करता है। दायां हाथ सही है और बायां हाथ गलत है। कारण क्या है? ऐसा क्यों है कि दायां हाथ सही है और बायां हाथ गलत है? बाएं हाथ में ऐसी कौन सी बुराई है, ऐसी कौन सी खराबी है? और दुनिया में दस प्रतिशत लोग बाएं हाथ से काम करते हैं। दस प्रतिशत कोई छोटा वर्ग नहीं है। दस में से एक व्यक्ति ऐसा होता ही है जो बाएं हाथ से कार्य करता है। शायद चेतनरूप से उसे इसका पता भी नहीं होता हो, वह भूल ही गया हो इस बारे में, क्योंकि शुरू से ही समाज, घर परिवार, माता पिता बाएं हाथ से कार्य करने वालों को दाएं हाथ से कार्य करने के लिए मजबूर कर देते हैं। ऐसा क्यों है?दायां हाथ सूर्यकेंद्र से, भीतर के पुरुष से जुड़ा हुआ है। बाया हाथ चंद्रकेंद्र से भीतर की स्त्री से जुड़ा हुआ है। और पूरा का पूरा समाज पुरुषकेंद्रित है।

हमारा बायां नासापुट चंद्रकेंद्र से जुड़ा हुआ है। और दायां नासापुट सूर्यकेंद्र से जुड़ा हुआ है।आप  इसे आजमा कर भी देख सकते हो। जब कभी बहुत गर्मी लगे तो अपना दायां नासापुट बंद कर लेना और बाएं से श्वास लेना और दस मिनट के भीतर ही हमको ऐसा लगेगा कि कोई अनजानी शीतलता हम्हें महसूस होगी।  यह बहुत ही आसान है। या फिर हम ठंड से कांप रहे हो और बहुत सर्दी लग रही है, तो अपना बायां नासापुट बंद कर लेना, और दाएं से श्वास लेना; दस मिनट के भीतर शरीर गर्म होने लगेगाहमारे योगाचार्य ने यह बात समझ ली और योगी कहते हैं और योगी ऐसा करते भी हैं प्रात: उठकर वे कभी दाएं नासापुट से श्वास नहीं लेते। क्योंकि अगर दाएं नासापुट से श्वास ली जाए, तो अधिक संभावना इसी बात की है कि दिन में व्यक्ति क्रोधित रहेगा, लड़ेगा झगड़ेगा, आक्रामक रहेगा शांत और थिर नहीं रह सकेगा। इसलिए योग के अनुशासन में यह भी एक अनुशासन है कि सुबह उठते ही सबसे पहले व्यक्ति को यह देखना होता है कि उसका कौन सा नासापुट क्रियाशील है। अगर बायां क्रियाशील है तो ठीक है, .वही ठीक क्षण होता है बिस्तर से बाहर आने का। अगर बायां नासापुट क्रियाशील नहीं है तो अपना दायां नासापुट बंद करना और बाएं से श्वास लेना। धीरे धीरे जब बायां नासापुट क्रियाशील हो जाए, तभी बिस्तर से बाहर पाव रखना।हमेशा सुबह उसी समय बिस्तर से बाहर आना जब बायां नासापुट क्रियाशील हो, और तब आप  पाओगे कि  पूरी की पूरी दिनचर्या में अंतर आ गया है। क्रोध कम  आएगा, चिड़चिडाहट कम होगी और अधिकाधिक शांत, थिर और ठंडे अनुभव करोगे। ध्यान में अधिक गहरे जा सकोगे। अगर लड़ना झगड़ना चाहते हो, तो उसके लिए दायां नासापुट अच्छा है। अगर प्रेमपूर्ण होना चाहते हो, तो उसके लिए बायां नासापुट एकदम ठीक है।और हमारी श्वास हर क्षण, हर पल बदलती रहती है पर हम कभी इस पर ध्यान नहीं देते आप इस पर ध्यान देकर देखना आधुनिक चिकित्साशास्त्र को इसे समझना होगा, क्योंकि रोगी के इलाज में इसका प्रयोग बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकता है। ऐसे बहुत से रोग हैं, ऐसी बहुत सी बीमारियां हैं, जिनके ठीक होने में चंद्र की मदद मिल सकती है। और ऐसे रोग भी हैं जिनके ठीक होने में सूर्य से मदद मिल सकती है। अगर इस बारे में ठीक ठीक मालूम हो, तो श्वास का उपयोग व्यक्ति. के इलाज के लिए किया जा सकता है। लेकिन आधुनिक चिकित्साशास्त्र की अभी तक इस तथ्य से पहचान नहीं हुई है।श्वास निस्तर परिवर्तित होती रहती है. चालीस मिनट तक एक नासापुट क्रियाशील रहता है, फिर चालीस मिनट दूसरा नासापुट क्रियाशील रहता है। भीतर सूर्य और चंद्र निरंतर बदलते रहते हैं। हमारा पेंडुलम सूर्य से चंद्र की ओर, चंद्र से सूर्य की ओर आताजाता रहता है। इसीलिए हमारी भावदशा अकसर ही बदलती रहती है। कई बार अकस्मात चिडचिडाहट होती है बिना किसी कारण के, अकारण ही। बात कुछ भी नहीं है, सभी कुछ वैसा का वैसा है, उसी कमरे में बैठे हो  कुछ भी नहीं हुआ है  अचानक चिड़चिड़ाहट आने लगती है।थोड़ा ध्यान देना। अपने हाथ को अपने नाक के निकट ले आना और उसे अनुभव करना. तुम्हारी श्वास बायीं ओर से दायीं ओर चली गयी होगी। अभी थोड़ी देर पहले तो सभी कुछ ठीक था, और क्षण भर के बाद ही सभी कुछ बदल गया, कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा। बस, लड़ने को, झगड़ने को और कुछ भी करने के लिए तैयार हो।ध्यान रहे, हमारा पूरा शरीर दो भागों में विभक्त है। हमारा मस्तिष्क भी दो मस्तिष्कों में विभाजित है। हमारे पास एक मस्तिष्क नहीं है; दो मस्तिष्क हैं, दो गोलार्ध हैं। बायीं ओर का मस्तिष्क सूर्य मस्तिष्क है, दायीं ओर का मस्तिष्क चंद्र मस्तिष्क हैआप  थोडी उलझन में पड़ सकते हो, क्योंकि ऐसे तो बायीं ओर सब कुछ चंद्र से संबंधित होता है, तो फिर दायीं ओर के मस्तिष्क का चंद्र से क्या संबंध! दायीं ओर का मस्तिष्क शरीर के बाएं हिस्से से जुड़ा हुआ है। बाया हाथ दायीं ओर के मस्तिष्क से जुड़ा हुआ है, दायां हाथ बायीं ओर के मस्तिष्क से जुड़ा हुआ है, यही कारण है। वे एक दूसरे से उलटे जुडे हुए हैं।दायीं ओर का मस्तिष्क कल्पना को, कविता को, प्रेम को, अंतर्बोध को जन्म देता है। मस्तिष्क का बाया हिस्सा बुद्धि को, तर्क को, दर्शन को, सिद्धांत को, विज्ञान को जन्म देता है।और जब तक व्यक्ति सूर्यऊर्जा और चंद्रऊर्जा के बीच संतुलन नहीं पा लेता है, अतिक्रमण संभव नहीं है। और जब तक बाया मस्तिष्क दाएं मस्तिष्क से नहीं मिल जाता है और उनमें एक सेतु निर्मित नहीं हो जाता है, तब तक सहस्रार तक पहुंचना संभव नहीं है। सहस्रार तक पहुंचने के लिए दोनों ऊर्जाओं का एक हो जाना आवश्यक है, क्योंकि सहस्रार परम शिखर है, आत्यंतिक बिंदु है। वहां न तो पुरुष की तरह पहुंचा जा सकता है, न ही वहा स्त्री की तरह पहुंचा जा सकता है। वहा एकदम शुद्ध चैतन्य की तरह होकर, समग्र और संपूर्ण होकर पहुंचना संभव होता है।पुरुष की कामवासना सूर्यगत है, स्त्री की कामवासना चंद्रगत है। इसीलिए स्त्रियों के मासिक धर्म का चक्र अट्ठाइस दिन का होता है, क्योंकि चंद्र का मास अट्ठाइस दिन में पूरा होता है। स्त्रियां चंद्रमा से प्रभावित होती हैं  चंद्र का वर्तुल अट्ठाइस दिन का होता है।और इसीलिए बहुत सी स्त्रिया पूर्णिमा की रात थोड़ depression का अनुभव करती हैं। याकहे कि असहज महसूस करती है जब पूर्णिमा की रात आए, तो अपन जैसे पूर्णिमा की रात समुद्र में ज्वार भाटा आने लगता है और समुद्र प्रभावित हो जाता है, ऐसे स्त्रियां भी उत्तप्त हो जाती हैं।क्या आपने कभी ध्यान दिया है? पुरुष खुली आंखों से प्रेम करना चाहता है। केवल इतना ही नहीं, बल्कि प्रकाश भी पूरा चाहता है। अगर किसी तरह की बाधा न हो, तो पुरुष दिन में प्रेम करना पसंद करता है। और उन्होंने ऐसा करना शुरू भी कर दिया है    स्त्री अंधकार में प्रेम करना पसंद करती है, जहां थोड़ी भी रोशनी न हो और अंधेरे में भी वे अपनी आंखें बंद कर लेती हैं।चंद्रमा रात्रि में, अंधकार में चमकता है, उसे अंधकार से प्रेम है रात्रि से।इसीलिए स्त्रियां अश्लील साहित्य में उत्सुक नहीं हैपुरुष सूयोंमुन्धी होता है, उसे प्रकाश अच्छा लगता है। आंखें सूर्य का हिस्सा हैं, इसीलिए आंखें देखने में सक्षम होती हैं। आंखों का तालमेल सूर्य ऊर्जा के साथ रहता है। तो पुरुष आंखों से, दृष्टि से अधिक जुड़ा हुआ है। इसीलिए पुरुष को देखना अच्छा लगता है और स्त्री को प्रदर्शन करना अच्छा लगता है। पुरुषों को यह समझ में ही नहीं आता है कि आखिर स्त्रियां स्वयं को इतना क्यों सजाती  संवारती हैं?स्त्रियों में प्रदर्शन की प्रवृत्ति होती है वे चाहती हैं कोई उन्हें देखे। और यह एकदम ठीक भी है, क्योंकि इसी तरह से तो पुरुष और स्त्रियां एक दूसरे के अनुकूल बैठ पाते हैं पुरुष देखना चाहता है, स्त्री दिखाना चाहती है। वे एक दूसरे के अनुरूप हैं, यह एकदम ठीक है। अगर स्त्रियों को प्रदर्शन में उत्सुकता न होगी, तो वे दूसरी कई मुसीबत खड़ी कर देती हैं। और अगर पुरुष स्त्री को देखने में उत्सुक नहीं है, तो फिर स्त्री किसके लिए इतना श्रृंगार करेगी, आभूषण पहनेगी, सजेगी संवरेगी आखिर किसके लिए? फिर तो कोई भी उनकी तरफ नहीं देखेगा। प्रकृति में हर चीज एक दूसरे के अनुरूप होती है, उनमें आपस में सिन्क्रानिसिटी, लयबद्धता होती है।लेकिन अगर सहस्रार तक पहुंचना हो, तो द्वैत को गिराना होगा। परमात्मा तक पुरुष या स्त्री की भांति नहीं पहुंचा जा सकता है। परमात्मा तक तो सहज रूप में, शुद्ध अस्तित्व के रूप में ही पहुंचा जा सकता है, स्त्री और पुरुष के रूप में नहीं।सिर के शीर्ष भाग के नीचे की ज्योति पर संयम केंद्रित करने से समस्त सिद्धों के अस्तित्व से जुड्ने की क्षमता मिल जाती है।ऊर्जा को अगर ऊपर की ओर गतिमान करना है, तो इसकी विधि संयम है। पहली बात, अगर आप  पुरुष हो तो तुम्हें तुम्हारे सूर्य के प्रति तुम्हारे सूर्य ऊर्जा के केंद्र के प्रति, तुम्हारे काम केंद्र के प्रति, पूरी तरह होशपूर्ण होना होगा। तुम्हें मूलाधार में रहना होगा, अपने संपूर्ण चैतन्य को, अपनी पूरी ऊर्जा को मूलाधार पर बरसा देना होगा। जब मूलाधार पर पूरा होश आ जाता है तो  पाओगे कि ऊर्जा केंद्र की ओर उठ रही है, चंद्र की ओर बढ़ रही है।और जब ऊर्जा चंद्रकेंद्र की ओर गतिमान होगी तव आप  बहुत संतृप्ति, बहुत आनंदित अनुभव करोगे। सारी कामवासना के आनंद इसकी तुलना में कुछ भी नहीं हैं कुछ भी नहीं हैं। जब सूर्य ऊर्जा अपनी ही चंद्रऊर्जा में उतरती है, तो उस आनंद की सघनता उससे हजारों गुना अधिक होती है। तब सच में पुरुष और स्त्री का मिलन घटित होता है। बाहर किसी भी स्त्री से कितनी भी निकटता क्यों न हो, कितने भी करीब क्यों न हो, आप  अपने को पृथक और अलग ही अनुभव करते है बाहर का मिलन तो बस सतही और औपचारिक ही होता है दो सतह, दो परिधियां ही आपस में मिलती हैं। दो सतह एक दूसरे को स्पर्श करती हैं, बस इतना ही होता है। लेकिन जब सूर्यऊर्जा चंद्रऊर्जा की ओर गतिमान होती है, तब दो ऊर्जा केंद्रों की ऊर्जा आपस में मिल जाती है और जिस व्यक्ति के सूर्य और चंद्र एक हो जाते हैं, वह परम रूप से आनंदित और संतृप्त हो जाता है  और फिर वह हमेशा आनंदित और संतृप्त बना रहता है, क्योंकि इसको खोने का कोई उपाय ही नहीं है। यह आनंद और मिलन सनातन है।अगर आप  स्त्री हो तो अपनी संपूर्ण चेतना को हारा तक ले आना होगा, और तब तुम्हारी ऊर्जा सूर्य केंद्र की ओर बढ़ने लगेगी। प्रत्येक व्यक्ति में एक केंद्र निष्किय होता है और एक केंद्र सक्रिय होता है। सक्रिय केंद्र को निष्किय केंद्र के साथ जोड़ दो, तो निष्‍क्रिय केंद्र सक्रिय हो जाता है।और जब दोनों ऊर्जाओं का मिलन होता है जब सूर्यऊर्जा और चंद्रऊर्जा एक हो रहे होते हैं, तो ऊर्जा ऊपर की ओर उठती है। तब व्यक्ति ऊर्ध्वगमन की ओर बढ़ने लगता है।जिज्ञासु व्यक्ति अनुभवी स्वर साधक से स्वरोदय विज्ञान का अवश्य गहन अध्ययन करें। क्योंकि स्वर विज्ञान से न केवल रोगों से ही बचा जा सकता है, अपितु प्रकृति के अदृष्य रहस्यों का भी पता लगाया जा सकता है। मानव देह में स्वरोदय एक ऐसी आश्चर्यजनक, सरल, स्वावलम्बी, प्रभावशाली, बिना किसी खर्च वाली चमत्कारी विद्या होती है, जिसका ज्ञान और सम्यक् पालना होने पर किसी भी सांसारिक कार्यो में असफलता की प्रायः संभावना नहीं रहती। स्वर विज्ञान के अनुसार प्रवृत्ति करने से साक्षात्कार में सफलता, भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं का पूर्वाभ्यास, सामने वाले व्यक्ति के अन्तरभावों को सहजता से समझा जा सकता है। जिससे प्रतिदिन उपस्थित होने वाली प्रतिकूल परिस्थितियों से सहज बचा जा सकता है। अज्ञानवश स्वरोदय की जानकारी के अभाव से ही हम हमारी क्षमताओं से अनभिज्ञ होते हैं। रोगी बनते हैं तथा अपने कार्यो में असफल होते हैं। स्वरोदय विज्ञान प्रत्यक्ष फलदायक है, जिसको ठीक-ठीक लिपीबद्ध करना संभव नहीं। केवल जनसाधारण के उपयोग की कुछ मुख्य सैद्धान्तिक बातों की आंशिक और संक्षिप्त जानकारी ही यहां दी गई है।

रविवार, 3 फ़रवरी 2019

चंद्र ग्रह

: चंद्र ग्रह मित्रोंअसल में चंद्र कोई ग्रह नहीं बल्कि धरती का उपग्रह माना गया है। पृथ्वी के मुकाबले यह एक चौथाई अंश के बराबर है। पृथ्वी से इसकी दूरी 406860 किलोमीटर मानी गई है। चंद्र पृथ्वी की परिक्रमा 27 दिन में पूर्ण कर लेता है। इतने ही समय में यह अपनी धुरी पर एक चक्कर लगा लेता है। 15 दिन तक इसकी कलाएं क्षीण होती है तो 15 दिन यह बढ़ता रहता है। चंद्रमा सूर्य से प्रकाश लेकर धरती को प्रकाशित करता है। 

देव और दानवों द्वारा किए गए सागर मंथन से जो 14 रत्न निकले थे उनमें से एक चंद्रमा भी थे जिन्हें भगवान शंकर ने अपने सिर पर धारण कर लिया था।चंद्र को देव ग्रह माना गया है और जा जल तत्व का प्रतिनिधित्व करता है कर्क राशि का यह स्वामी है। चंद्रमा के अधिदेवता अप्‌ और प्रत्यधिदेवता उमा देवी हैं। श्रीमद्भागवत के अनुसार चंद्रदेव महर्षि अत्रि और अनुसूया के पुत्र हैं। इनको सर्वमय कहा गया है। ये सोलह कलाओं से युक्त हैं। चंद्रमा का विवाह राजा दक्ष की सत्ताईस कन्याओं से हुआ। ये कन्याएं सत्ताईस नक्षत्रों के रूप में भी जानी जाती हैं, पत्नी रोहिणी से उनको एक पुत्र मिला जिनका नाम बुध है। पृथ्वी से जुड़े प्राणियों की प्रभा (ऊर्जा पिंडों) और मन को ग्रह प्रभावित करते हैं। प्रत्येक ग्रह में एक विशिष्ट ऊर्जा गुणवत्ता होती है, जिसे उसके ग्रहों की ऊर्जा किसी व्यक्ति के भाग्य के साथ एक विशिष्ट तरीके से उस वक्त जुड़ जाती है जब वे अपने जन्मस्थान पर अपनी पहली सांस लेते हैं। यह ऊर्जा जुड़ाव धरती के निवासियों के साथ तब तक रहता है जब तक उनका वर्तमान शरीर जीवित रहता है।ग्रह आद्यप्ररुपीय ऊर्जा के संचारक हैं। प्रत्येक ग्रह के गुण स्थूल जगत और सूक्ष्म जगत वाले ब्रह्मांड ्रुवाभिसारिता के समग्र संतुलन को बनाए रखने में मदद करते हैं, जैसे नीचे वैसे ही ऊपरमाँ का सुख क्योंकि चन्द्र प्राण का कारक और मनुष्य रूप में माँ ही प्राण तुल्य है।जब किसी भी मनुष्य को किसी भी प्रकार से कष्ट होता है।तो उसे माँ ही याद आती है।और माँ को भी अपनी संतान के दुख का अभास हो जाता है।और अपनी संतान के दुख को दूर करने का प्रयत्न मन से वचन से और कर्म से करती है।यदि माँ मनसा, वाचा,कर्मणा अपनी संतान की रक्षा नहीं कर पाती तो तब इस स्थिति में माँ अपने हृदय से अपने प्राणों से प्यारी संतान की रक्षा के लिए भगवान से प्रार्थना करती है। और भगवान उस माँ की प्रार्थना को सुन लेते हैं।और उसकी संतान के प्राणों की पुनः रक्षा करते हैं।और प्रभु प्रार्थना उसका जीवन आनंदमय कर देती है। चन्द्र ग्रह का भी यही काम प्राणों की रक्षा करना है।मनुष्यों में माँ प्राण और नव ग्रहो में चन्द्र प्राण है। चन्द्र ग्रह शान्ति का प्रतीक है।सफेद रंग है।जल तत्व है।यदि किसी भी मनुष्य की जन्म कुण्डली में जीवन में चन्द्र ग्रह शुभ हो तो जातक बहुत शांत स्वभाव का,मातृ -सुख की प्राप्ति, प्रत्येक कार्य को बहुत स्थिर बुद्धि से करने वाला, जल संबंधित पानी, चाय-कोफी,जूस,फिनाइल - तेजाब कोल्ड ड्रिंक की एजेंसी कम्पनी, आईस क्रीम, आईस क्यूब की फैक्ट्री, दूध बेचने का काम शराब के ठेके का काम लेना, बेचना, खरीदना, इत्यादि ( लिक्विड ) का व्यापार करने वाला होता है।अगर आप की कुण्डली मे चन्द्र ग्रह की स्थिति उतम और यहाँ बताये हुआ कोई भी व्यपार, व्यवसाय आप करते है। तो आप अपने इस व्यपार मे बहुत लाभ कमा रहे है।या इनमे से कोई भी व्यपार करके आप धन, ऐश्वर्य, नाम कमाने वाले हो बस आप को अपने काम मे सत्य निष्ठा,ध्यान, स्थिरता, योग्यता, अपना व्यवहार और वाणी को उतम,और थोड़ा परिश्रम की अवश्यकता है। बाकी चन्द्र ग्रह अपना शुभ फल दे के आप की मेहनत को सफल करके ख्याति नाम प्राप्त करवायेगा।लेकिन ये व्यपार, व्यवसाय, प्रारम्भ करने से पहले आप को पता होना चाहिए। कि आप की जन्म कुण्डली मे चन्द्र ग्रह की स्थिति शुभ होनी चाहिए। और यदि चन्द्र ग्रह की स्थिति आप की जन्म पत्रिका में अशुभ हैं।तो आप को चन्द्र ग्रह से संबंधित कोई भी व्यपार, व्यवसाय नहीं करना चाहिए। यदि आप करेगे तो आप को लाभ नहीं हानि होगी। Modern Science भी इस बात को पूरी तरह से स्‍वीकार करता है कि पूर्णिमा व अमावस्‍या के समय जब चन्‍द्रमा, पृथ्‍वी के सर्वाधिक नजदीक होता है, तब पृथ्‍वी के समुद्रों में सबसे बड़े ज्‍वार-भाटा होते हैं और इतने बड़े ज्‍यार-भाटा का मूल कारण चन्‍द्रमा की गुरूत्‍वाकर्षण शक्ति ही है, जो कि मूल रूप से पृथ्‍वी के समुद्री जल काे ही सर्वाधिक आकर्षित करता है।सम्‍पूर्ण पृथ्‍वी पर लगभग 75% भू-भाग पर समुद्र का खारा जल है और इन्‍हे Scientists ने से भी सिद्ध किया है कि मनुष्‍य का शरीर भी लगभग 75% पानी से बना है तथा ये पानी भी लगभग उसी अनुपात में और उतना ही खारा है, जितना कि समुद्री जल। यानी सरलतम शब्‍दों में कहें तो हमारा शरीर लगभए एक छोटे समुद्र के समान है। तो जब चन्‍द्रमा के गुरूत्‍वाकर्षण का प्रभाव समुद्र के पानी पर पड़ता है, तो उसी मात्रा में वैसा ही प्रभाव मानव शरीर पर क्‍यों नहीं पड़ेेगा मानव का दिमाग मूल रूप से 80% पानी से बना होता है और हमारे भोजन द्वारा जीवन जीने के लिए जितनी भी उर्जा ये शरीर Generate करता है, उसकी 80% उर्जा का उपयोग केवल दिमाग द्वारा किया जाता है क्‍योंकि शरीर के काम करना बन्‍द कर देनेसो जाने, बेहोश हो जाने अथवा शिथिल हो जाने पर भी दिमाग यानी मन अपना काम करता रहता है। यानी मन, मनुष्‍य के शरीर का सबसे महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा है, जिसकी वजह से ये तय होता है कि व्‍यक्ति जीवित है या नहीं। यदि व्‍यक्ति का मन मर जाए, तो शरीर जीवित होने पर भी उसे मृत समान ही माना जाता है, जिसे सामान्‍य बोलचाल की भाषा में कोमा की स्थिति कहते हैं और भारतीय फलित ज्‍योतिष के अनुसार मन का कारक ग्रह चन्‍द्रमा है।जिस प्रकार से जीवन मे लगन प्रभावी होती है उसी प्रकार से चन्द्र राशि भी जीवन मे प्रभावी होती है। चन्द्रमा एक तो मन का कारक है दूसरे जब तक मन नही है तब कुछ भी नही है,दूसरे चन्द्रमा माता का भी कारक है और माता के रक्त के अनुसार जातक का जीवन जब शुरु होता है तो माता का प्रभाव जातक के अन्दर जरूर मिलता है,हमारे भारत वर्ष मे जातक का नाम चन्द्र राशि से रखा जाता है यानी जिस भाव का चन्द्रमा होता है जिस राशि मे चन्द्रमा होता है उसी भाव और राशि के प्रभाव से जातक का नाम रखा जाता है मैने पहले भी कहा है कि चन्द्रमा मन का कारक है और जब मन सही है तो जीवन अपने आप सही होने लगता है जो सोच सोचने के बाद कार्य मे लायी जायेगी वह सोच अगर उच्च कोटि की है तो जरूर ही कार्य जो भी होगा वह उच्च कोटि का ही होगा,सूर्य देखता है चन्द्र सोचता है और शनि करता है बाकी के ग्रह हमेशा सहायता देने के लिये माने जाते है। कोई ग्रह समय पर मित्र बनकर सहायता देता है तो कोई ग्रह शत्रु बनकर एक प्रकार की शिक्षा के लिये अपना प्रयोग दे कर चला जाता है जो ग्रह आज शत्रु है तो कल वही ग्रह मित्र बनकर अपना प्रभाव प्रदर्शित करता है आदि बाते जरूर देखने मे आती है।मेरा यह सतत प्रयास रहा है कि आप ज्योतिष के अन्दर अन्धेरे मे नही रहे और आपको जितनी अच्छी ज्योतिष सीखने का कारण मिलेगा मुझे उतना ही आनन्द आयेगा कि भारत के ऋषियों मनीषियों की शोध की बाते आप तक पहुंची और आपने उन बातो को सीख कर अपने ग्यान को भी बढाया साथ मे उन लोगो की भी सहायता की जो आज के भौतिक युग मे केवल धन को ही महत्ता देते है और उस महत्ता के कारण जो वास्तव मे जरूरत वाले है उन्हे ज्योतिष का प्रभाव समझ मे नही आता है उसके बाद भी तामसी प्रवृत्ति के लोग उन्हे बरगलाते है और उन्हे हमारे ज्योतिष को जो वेद का छठा अंग है और सूर्य बनकर देख रहा है चन्द्रमा बनकर सोच रहा है मंगल बनकर पराक्रम दे रहा है बुध बनकर एक दूसरे को जोड रहा है गुरु बनकर रिस्ते स्थापित कर रहा है शुक्र बनकर जीवन को सजा रहा है शनि बनकर कार्य की तरफ़ बढा रहा है राहु बनकर आकस्मिक अच्छा कर रहा है और केतु बनकर साथ के सहायक कारको को प्रदान कर रहा है मित्रों चन्द्रमा राशि के अनुसार क्या क्या सोचने के लिये मन के अन्दर लहरो को उठाता है यह लहरे भावना के अनुसार किस प्रकार से ऊपर नीचे जाती है और जीवन मे सोच आना और सोच का जाना कैसे होता है। इतना ध्यान रखना है कि लगन शरीर है तो चन्द्र राशि सोच है,सूर्य लगन पिता की तरफ़ से मिले संस्कार है। वाकी आगे मित्रों अगर आप भी मुझसे अपनी कुंडली बनवाना क्या दिखाना चाहते हैं तो आप मुझसे संपर्क करें हमारे फोन नंबर पर पूरी जानकारी ले paid service 09414481324 07597718725

लाल का किताब के अनुसार मंगल शनि

मंगल शनि मिल गया तो - राहू उच्च हो जाता है -              यह व्यक्ति डाक्टर, नेता, आर्मी अफसर, इंजीनियर, हथियार व औजार की मदद से काम करने वा...