सप्ताह के सात दिनों का क्या रहस्य ?www.acharyarajesh.in
इतना तो सबको मालूम है कि सप्ताह के दिनों के नाम ग्रहों की संज्ञाओं के आधार पर रखे गए हैं अर्थात जो नाम ग्रहों के हैं, वही नाम इन दिनों के भी हैं. जैसे सूर्य के दिन का नाम रविवार, आदित्यवार, अर्कवार, भानुवार इत्यादि. शनिश्चर के दिन का नाम शनिवार, सौरिवार आदि. चाहे आप संस्कृ्त मे य़ा अन्य किसी भी भाषा में देख लें, साप्ताहिक दिनों के नाम सात ग्रहों के नाम पर भी आपको रखे मिलेंगें. संस्कृ्त में ग्रह के नाम के आगे वार या वासर या कोई ओर प्रयायवाची शब्द रख दिया जाता है. इससे यह सूचित होता है कि अमुक दिन का अमुक ग्रह है.पश्चिमी भाषाओं में भी, इसी प्रकार ग्रहों के नामों के साथ दिन का वाचक शब्द लगा दिया जाता है. जैसे कि लेटिन में सोमवार को Lunae, मंगलवार को Martis, बुधवार के लिए Mercurii इत्यादि.अब प्रश्न यह उत्पन होता है कि यह क्रम कैसे चला और अमुक दिन अमुक ग्रह का है—-इसका अभिप्राय क्या है?. ज्योतिष के ग्रन्थों के अनुसार प्राचीन समय में ग्रहों का क्रम इस प्रकार माना जाता था—शनि, बृ्हस्पति, मंगल, सूर्य, शुक्र, बुध और चन्द्रमा. अर्थात पृ्थ्वी की अपेक्षा शनि सबसे ऊपर या दूर माना जाता था और चन्द्रमा सबसे नीचे अर्थात नजदीक. इन ग्रहों को, जैसा कि सूर्य सिद्धान्त आदि ग्रन्थों से सिद्ध है, ज्योतिषियों नें दिनों का स्वामी माना है.
सूर्योदय से सूर्यादय तक के समय की संज्ञा दिन है. हमारे पूर्वजों नें इस काल को 60 भागों में विभक्त किया और एक-एक भाग का नाम घडी(घटी या घटिका) रखा. दूसरों नें उसे 24 भागों में बाँट दिया और एक एक भाग का नाम घंटा( Hour) रखा. फिर उन्होने एक-एक घंटे के समय को एक-एक ग्रह को बाँट दिया अर्थात उन्होने मान लिया कि एक-एक घंटा क्रमश: एक-एक ग्रह के आधिपत्य में रहता है. . सूर्यदेव को पूरे विश्व में सभी जगह(इस्लाम को छोडकर) ग्रहों का राजा ही माना गया है. इसलिए पहले दिन की पहली घडी या घंटे का स्वामी उन्होने सूर्य को ठहराया. अतएव पहले दिन को उन्होने सूर्य का दिन माना. इसी तरह यदि हम प्रत्येक ग्रह को एक-एक घंटे का स्वामी मानते चलें तो दिनों का वही क्रम होगा जो आजकल प्रचलित है. साठ घडी के हिसाब से रोहक्रम अर्थात नीचे से ऊपर की ओर चलना होगा. अंग्रेजी Hour या घंटे के हिसाब से चलें तो ऊपर से नीचे की ओर उतरना होगा. चाहे हम सूर्य से प्रारम्भ करें, चाहे शनि से, चाहे चन्द्रमा से क्रम वही होगा. घडियों की गणना में यदि हम सूर्य से चलें तो 61वीं घडी चन्द्रमा की होगी, 121वीं मंगल की इत्यादि. अर्थात सूर्य के दिन के अनन्तर चन्द्रमा का दिन आएगा, फिर मंगल का. इसी तरह अन्य भी समझिए. घंटों के हिसाब से 25वाँ चन्द्रमा का, 49वाँ मंगल का होगा. तदुनसार ही दिन भी होगा.अब प्रश्न यह है कि पहले पहल दिनों( Week Days) के नाम कब रखे गए और सबसे पहले किस जाति नें उसका प्रयोग किया. इसके बारे में फिर कभी किसी अन्य पोस्ट के माध्यम से जानकारी प्रदान की जायेगी… अपने मुद्दे पर वापस बात करते हैं समाज में देखा जाए , तो अधिकांश लोग मंगलवार और शनिवार को इस तरह के जैसे बाल कटवाना या जो बृहस्पतिवार को कपड़े का ना घोना मां अन्य दिनों को अन्य किसी प्रकार के कायों के लिए अशुभ मानते हैं। उनका ऐसा विश्वास है कि गलत दिनों में किया गया कार्य अनिष्टकर फल भी प्रदान कर सकता है। इसे कोरा अंधविश्वास ही कहा जा सकता है , क्योंकि भले ही ग्रहों के नाम पर इन वारों का नामकरण हो गया हो ,किन्तु सच्ची बात यह है कि ग्रहों की स्थिति से इन वारों का कोई संबंध है ही नहीं। न तो रविवार को सूर्य आकाश के किसी खास भाग में होता है ,और न ही इस दिन सूर्य की गति में कोई परिवर्तन होता है , और न ही रविवार को सूर्य केवल शुभ या अशुभ फल ही देता है। जब ऐसी बाते है ही नही तो फिर रविवार से सूर्य का कौन सा संबंध है ?आपको जानकर आश्चर्य होगा कि रविवार से सूर्य का कोई संबंध है ही नहीं । रविवार से सूर्य का संबंध दिखा पाना किसी भी ज्योतिषी के लिए न केवल कठिन वरन् असंभव कार्य है। सुविधा के अनुसार किसी भी बच्चे का कुछ भी नाम रखा जा सकता है , परंतु उस बच्चे में नाम के अनुसार गुण भी आ जाएं , ऐसा नििश्चत नहीं है। यथानाम तथागुण लोगों की संख्याय कम ही होती है , इस संयोग की सराहना की जा सकती है पर किसी व्यक्ति का कोई नाम रखकर उसके अनुरुप ही विशेषताओं को प्राप्त करने की इच्छा रखें तो यह हमारी भूल होगी । इस बात से आम लोग भिज्ञ भी हैं , तभी ही यह कहावत मशहूर है `
इसी तरहनाम हैं नाम घनीराम पास फुटी कोड़ी नहीं कभी-कभी पृथ्वीपति नामक व्यक्ति के पास कोई जमीन नहीं होती तथा दमड़ीलाल के पास करोड़ों की संपत्ति होती है। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि किसी नामकरण का कोई वैज्ञानिक अर्थ हो या नाम के साथ गुणों का भी संबंध हो , यह आवश्यक नहीं है। कोई व्यक्ति अपने पुत्र का नाम रवि रख दे तथा उसमें सूर्य की विशेषताओं की तलाश करे , उसकी पूजा कर सूर्य भगवान को खुश रखने की चेष्टा करे तो ऐसा संभव नहीं है। इस तरह न तो रविवार से सूर्य का , न सोमवार से चंद्र का , मंगलवार से मंगल का , बुधवार से बुध का , बृहस्पतिवार से बृहस्पति का , शुक्रवार से शुक्र का और न ही शनिवार से शनि का ही संबंध होता है।इसी तरह मंगलवार का व्रत करके सुखद परिस्थितियों में मन और शरीर को चाहे जिस हद तक स्वस्थ , चुस्त , दुरुस्त या विपरीत परिस्थितियों में शरीर को कमजोर कर लिया जाए , हनुमानजी या मंगल ग्रह का कितना भी स्मरण कर लिया जाए , हनुमान या मंगल पर इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रभाव नहीं पड़ता। पूजा करने से ये खुश हो जाएंगे , ऐसा विज्ञान नहीं कहता , किन्तु पुजारी ये समझ लें और बहुत आस्था के साथ पूजापाठ में तल्लीन हो जाएं , तो मनोवैज्ञानिक रुप से इसका भले ही कुछ लाभ उन्हें मिल जाए , वे कुछ क्षणों के लिए राहत की सॉस अवश्य ले लेते हैं।कभी कभी नामकरण विशेषताओं के आधार पर भी किया जाता है और कभी कुछ चित्रों और तालिकाओं के अनुसार किया जाता है। ऋतुओं का नामकरण इनकी विशेषताओं की वजह से है , इसे हम सभी जानते हैं। ग्रीष्मऋतु कहने से ही प्रचंड गमी का बोध होता है , वर्षा ऋतु से मूसलाधार बारिश का तथा शरदऋतु कहने से उस मौसम का बोध होता है , जब अत्यधिक ठंड से लोग रजाई के अंदर रहने में सुख महसूस करें। इसी तरह माह के नामकरण के साथ भी कुछ विशेषताएं जुड़ी हुई है। आिश्वन महीने का नामकरण इसलिए हुआ , क्योंकि इस महीने में अिश्वनी नक्षत्र में पूणिमा का चॉद होता है। बैशाख नाम इसलिए पड़ा , क्योंकि इस महीने में विशाखा नक्षत्र में पूणिमा का चॉद होता है।
इस तरह हर महीने की विशेषता भिन्न-भिन्न इसलिए हुई ,क्योंकि सूर्य की स्थिति प्रत्येक महीने आकाश में भिन्न-भिन्न जगहों पर होती है। ज्योतिषीय दृश्टी से भी हर महीने की अलग-अलग विशेषताएं हैं। इसी तरह शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में उजाले और अंधेरे का अनुपात बराबर बराबर होने के बावजूद एक को कृष्ण और दूसरे को शुक्ल पक्ष कहा गया है। दोनों पक्षों के मौलिक गुणों में कोई भी अंतर नहीं होता है। बड़ा या छोटा चॉद दोनो पक्षों में होता है। अष्टमी दोनों पक्षों में होती है। किन्तु ये नाम अलग ही दृिष्टकोण से दिए गए हैं । जिस पक्ष में शाम होने के साथ ही अंधेरा हो , उसे कृष्ण पक्ष और जिस पक्ष में शाम पर उजाला रहे , उसे शुक्ल पक्ष कहते हैं।
शुक्ल पक्ष के आरंभ में चंद्रमा सूर्य के अत्यंत निकट होता है। प्रत्येक दिन सूर्य से उसकी दूरी बढ़ती चली जाती है
सप्ताह के सात दिनों का क्या रहस्य ?
By acharyarajeshDecember 27, 2019No Comments
इतना तो सबको मालूम है कि सप्ताह के दिनों के नाम ग्रहों की संज्ञाओं के आधार पर रखे गए हैं अर्थात जो नाम ग्रहों के हैं, वही नाम इन दिनों के भी हैं. जैसे सूर्य के दिन का नाम रविवार, आदित्यवार, अर्कवार, भानुवार इत्यादि. शनिश्चर के दिन का नाम शनिवार, सौरिवार आदि. चाहे आप संस्कृ्त मे य़ा अन्य किसी भी भाषा में देख लें, साप्ताहिक दिनों के नाम सात ग्रहों के नाम पर भी आपको रखे मिलेंगें. संस्कृ्त में ग्रह के नाम के आगे वार या वासर या कोई ओर प्रयायवाची शब्द रख दिया जाता है. इससे यह सूचित होता है कि अमुक दिन का अमुक ग्रह है. पश्चिमी भाषाओं में भी, इसी प्रकार ग्रहों के नामों के साथ दिन का वाचक शब्द लगा दिया जाता है. जैसे कि लेटिन में सोमवार को Lunae, मंगलवार को Martis, बुधवार के लिए Mercurii इत्यादि.अब प्रश्न यह उत्पन होता है कि यह क्रम कैसे चला और अमुक दिन अमुक ग्रह का है—-इसका अभिप्राय क्या है?. ज्योतिष के ग्रन्थों के अनुसार प्राचीन समय में ग्रहों का क्रम इस प्रकार माना जाता था—शनि, बृ्हस्पति, मंगल, सूर्य, शुक्र, बुध और चन्द्रमा. अर्थात पृ्थ्वी की अपेक्षा शनि सबसे ऊपर या दूर माना जाता था और चन्द्रमा सबसे नीचे अर्थात नजदीक. इन ग्रहों को, जैसा कि सूर्य सिद्धान्त आदि ग्रन्थों से सिद्ध है, ज्योतिषियों नें दिनों का स्वामी माना है.
सूर्योदय से सूर्यादय तक के समय की संज्ञा दिन है. हमारे पूर्वजों नें इस काल को 60 भागों में विभक्त किया और एक-एक भाग का नाम घडी(घटी या घटिका) रखा. दूसरों नें उसे 24 भागों में बाँट दिया और एक एक भाग का नाम घंटा( Hour) रखा. फिर उन्होने एक-एक घंटे के समय को एक-एक ग्रह को बाँट दिया अर्थात उन्होने मान लिया कि एक-एक घंटा क्रमश: एक-एक ग्रह के आधिपत्य में रहता है. सूर्यदेव को पूरे विश्व में सभी जगह(इस्लाम को छोडकर) ग्रहों का राजा ही माना गया है. इसलिए पहले दिन की पहली घडी या घंटे का स्वामी उन्होने सूर्य को ठहराया. अतएव पहले दिन को उन्होने सूर्य का दिन माना. इसी तरह यदि हम प्रत्येक ग्रह को एक-एक घंटे का स्वामी मानते चलें तो दिनों का वही क्रम होगा जो आजकल प्रचलित है. साठ घडी के हिसाब से रोहक्रम अर्थात नीचे से ऊपर की ओर चलना होगा. अंग्रेजी Hour या घंटे के हिसाब से चलें तो ऊपर से नीचे की ओर उतरना होगा. चाहे हम सूर्य से प्रारम्भ करें, चाहे शनि से, चाहे चन्द्रमा से क्रम वही होगा. घडियों की गणना में यदि हम सूर्य से चलें तो 61वीं घडी चन्द्रमा की होगी, 121वीं मंगल की इत्यादि. अर्थात सूर्य के दिन के अनन्तर चन्द्रमा का दिन आएगा, फिर मंगल का. इसी तरह अन्य भी समझिए. घंटों के हिसाब से 25वाँ चन्द्रमा का, 49वाँ मंगल का होगा. तदुनसार ही दिन भी होगा.अब प्रश्न यह है कि पहले पहल दिनों( Week Days) के नाम कब रखे गए और सबसे पहले किस जाति नें उसका प्रयोग किया. इसके बारे में फिर कभी किसी अन्य पोस्ट के माध्यम से जानकारी प्रदान की जायेगी… अपने मुद्दे पर वापस बात करते हैं समाज में देखा जाए , तो अधिकांश लोग मंगलवार और शनिवार को इस तरह के जैसे बाल कटवाना या जो बृहस्पतिवार को कपड़े का ना घोना मां अन्य दिनों को अन्य किसी प्रकार के कायों के लिए अशुभ मानते हैं। उनका ऐसा विश्वास है कि गलत दिनों में किया गया कार्य अनिष्टकर फल भी प्रदान कर सकता है। इसे कोरा अंधविश्वास ही कहा जा सकता है , क्योंकि भले ही ग्रहों के नाम पर इन वारों का नामकरण हो गया हो ,किन्तु सच्ची बात यह है कि ग्रहों की स्थिति से इन वारों का कोई संबंध है ही नहीं। न तो रविवार को सूर्य आकाश के किसी खास भाग में होता है ,और न ही इस दिन सूर्य की गति में कोई परिवर्तन होता है , और न ही रविवार को सूर्य केवल शुभ या अशुभ फल ही देता है। जब ऐसी बाते है ही नही तो फिर रविवार से सूर्य का कौन सा संबंध है ?
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि रविवार से सूर्य का कोई संबंध है ही नहीं । रविवार से सूर्य का संबंध दिखा पाना किसी भी ज्योतिषी के लिए न केवल कठिन वरन् असंभव कार्य है। सुविधा के अनुसार किसी भी बच्चे का कुछ भी नाम रखा जा सकता है , परंतु उस बच्चे में नाम के अनुसार गुण भी आ जाएं , ऐसा नििश्चत नहीं है। यथानाम तथागुण लोगों की संख्याय कम ही होती है , इस संयोग की सराहना की जा सकती है पर किसी व्यक्ति का कोई नाम रखकर उसके अनुरुप ही विशेषताओं को प्राप्त करने की इच्छा रखें तो यह हमारी भूल होगी । इस बात से आम लोग भिज्ञ भी हैं , तभी ही यह कहावत मशहूर है `
इसी तरहनाम हैं नाम घनीराम पास फुटी कोड़ी नहीं कभी-कभी पृथ्वीपति नामक व्यक्ति के पास कोई जमीन नहीं होती तथा दमड़ीलाल के पास करोड़ों की संपत्ति होती है। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि किसी नामकरण का कोई वैज्ञानिक अर्थ हो या नाम के साथ गुणों का भी संबंध हो , यह आवश्यक नहीं है। कोई व्यक्ति अपने पुत्र का नाम रवि रख दे तथा उसमें सूर्य की विशेषताओं की तलाश करे , उसकी पूजा कर सूर्य भगवान को खुश रखने की चेष्टा करे तो ऐसा संभव नहीं है। इस तरह न तो रविवार से सूर्य का , न सोमवार से चंद्र का , मंगलवार से मंगल का , बुधवार से बुध का , बृहस्पतिवार से बृहस्पति का , शुक्रवार से शुक्र का और न ही शनिवार से शनि का ही संबंध होता है।इसी तरह मंगलवार का व्रत करके सुखद परिस्थितियों में मन और शरीर को चाहे जिस हद तक स्वस्थ , चुस्त , दुरुस्त या विपरीत परिस्थितियों में शरीर को कमजोर कर लिया जाए , हनुमानजी या मंगल ग्रह का कितना भी स्मरण कर लिया जाए , हनुमान या मंगल पर इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रभाव नहीं पड़ता। पूजा करने से ये खुश हो जाएंगे , ऐसा विज्ञान नहीं कहता , किन्तु पुजारी ये समझ लें और बहुत आस्था के साथ पूजापाठ में तल्लीन हो जाएं , तो मनोवैज्ञानिक रुप से इसका भले ही कुछ लाभ उन्हें मिल जाए , वे कुछ क्षणों के लिए राहत की सॉस अवश्य ले लेते हैं।
कभी कभी नामकरण विशेषताओं के आधार पर भी किया जाता है और कभी कुछ चित्रों और तालिकाओं के अनुसार किया जाता है। ऋतुओं का नामकरण इनकी विशेषताओं की वजह से है , इसे हम सभी जानते हैं। ग्रीष्मऋतु कहने से ही प्रचंड गमी का बोध होता है , वर्षा ऋतु से मूसलाधार बारिश का तथा शरदऋतु कहने से उस मौसम का बोध होता है , जब अत्यधिक ठंड से लोग रजाई के अंदर रहने में सुख महसूस करें। इसी तरह माह के नामकरण के साथ भी कुछ विशेषताएं जुड़ी हुई है। आिश्वन महीने का नामकरण इसलिए हुआ , क्योंकि इस महीने में अिश्वनी नक्षत्र में पूणिमा का चॉद होता है। बैशाख नाम इसलिए पड़ा , क्योंकि इस महीने में विशाखा नक्षत्र में पूणिमा का चॉद होता है।
इस तरह हर महीने की विशेषता भिन्न-भिन्न इसलिए हुई ,क्योंकि सूर्य की स्थिति प्रत्येक महीने आकाश में भिन्न-भिन्न जगहों पर होती है। ज्योतिषीय दृश्टी से भी हर महीने की अलग-अलग विशेषताएं हैं। इसी तरह शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में उजाले और अंधेरे का अनुपात बराबर बराबर होने के बावजूद एक को कृष्ण और दूसरे को शुक्ल पक्ष कहा गया है। दोनों पक्षों के मौलिक गुणों में कोई भी अंतर नहीं होता है। बड़ा या छोटा चॉद दोनो पक्षों में होता है। अष्टमी दोनों पक्षों में होती है। किन्तु ये नाम अलग ही दृिष्टकोण से दिए गए हैं । जिस पक्ष में शाम होने के साथ ही अंधेरा हो , उसे कृष्ण पक्ष और जिस पक्ष में शाम पर उजाला रहे , उसे शुक्ल पक्ष कहते हैं।
शुक्ल पक्ष के आरंभ में चंद्रमा सूर्य के अत्यंत निकट होता है। प्रत्येक दिन सूर्य से उसकी दूरी बढ़ती चली जाती है और पूर्णमासी के दिन यह सूर्य से सर्वाधिक दूरी पर पूर्ण प्रकाशमान देखा जाता है। इस समय सूर्य से इसकी कोणिक दूरी 180 डिग्री होती है। इस दिन सूर्यास्त से सूयोदय तक रोशनी होती है। इसके बाद कृष्ण पक्ष का प्रारंभ होता है। प्रत्येक दिन सूर्य और चंद्रमा की कोणिक दूरी घटने लगती है। इसका प्रकाशमान भाग घटने लगता है और कृष्ण पक्ष के अंत में अमावश तिथि के दिन सूर्य चंद्रमा एक ही विन्दु पर होते हैं। सूयोदय से सूर्यास्त तक अंधेरा ही अंधेरा होता है।इस तरह ऋतु , महीने और पक्षों की वैज्ञानिकता समझ में आ जाती है। भचक्र में सूर्य , चंद्रमा और नक्षत्र – सभी का एक दूसरे के साथ परस्पर संबंध है , किन्तु सप्ताह के सात दिनों का नामकरण ग्रहों के गुणों पर आधारित न होकर याद रख पाने की सुविधा से प्रमुख सात आकाशीय पिंडों के नाम के आधार पर किया गया लगता है , महीनें को दो हिस्सों में बॉटकर एक-एक पखवारे का शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष बनाया गया है। दोनो ही पक्ष सूर्य और चंद्रमा की वििभ्न्न स्थितियों के सापेक्ष हैं , किन्तु एक पखवारे को दो हिस्सों में बॉटकर दो सप्ताह में समझने की विधि केवल सुविधावादी दृिष्टकोण का परिचायक है। जब सप्ताह का निर्माण ही ग्रहों पर आधारित नहीं है , तो उसके अंदर आनेवाले सात अलग अलग दिनों का भी कोई वैज्ञानिक अर्थ नहीं है।
सौरमास और चंद्रमास दोनों की परिकल्पनाओं का आधार भिन-भिन्न है। पृथ्वी 365 दिन और कुछ घंटों में एक बार सूर्य की परिक्रमा कर लेती है। इसे सौर वर्ष कहतें हैं, इसके बारहवें भाग को एक महीना कहा जाता है। सौरमास से अभिप्राय सूर्य का एक रािश में ठहराव या आकाश में 30 डिग्री की दूरी तय करना होता है। चंद्रमास उसे कहते हैं , जब चंद्रमा एक बार पूरी पृथ्वी की परिक्रमा कर लेता है। यह लगभग 29 दिनों का होता है । बारह महीनों में बारह बार सूर्य की परिक्रमा करने में चंद्रमा को लगभग 354 दिन लगते हैं। इसलिए चंद्रवर्ष 354 दिनों का होता है। सौर वष्र और चंद्रवर्ष के सवा ग्यारह दिनों के अंतर को प्रत्येक तीन वषो के पश्चात् चंद्रवर्ष में एक अतिरिक्त महीनें मलमास को जोड़कर पाट दिया जाताहै।सौर वर्ष में भी 365 दिनों के अतिरिक्त के 5 घंटों को चार वषे बाद लीप ईयर वर्ष में फरवरी महीने को 29 दिनों का बनाकर समन्वय किया जाता है , किन्तु सप्ताह के सात दिन , जो पखवारे के 15 दिन , महीने के 30 दिन , चांद्र वर्ष के 354 दिन और सौर वर्ष के 365 दिन में से किसी का भी पूर्ण भाजक या अपवत्र्तांक नहीं है , के समन्वय या समायोजन का ज्योतिष शास्त्र में कहीं भी उल्लेख नहीं है , जिससे स्वयंमेव ही ज्योतिषीय संदर्भ में सप्ताह की अवैज्ञानिकता सिद्ध हो जाती है। अत: मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि रविवार को सूर्य का , सोमवार को चंद्र का , मंगलवार को मंगल का , बुधवार को बुध का , बृहस्पतिवार को बृहस्पति का , शुक्रवार को शुक्र का तथ शनिवार को शनि का पर्याय मान लेना एक बहुत बड़ी गल्ती है। ग्रहों का सप्ताह के सातो दिनों से कोई लेना-देना नहीं है।
सात दिनों का सप्ताह मानकर पक्ष को लगभग दो हिस्सों में बॉटकर सात दिनों के माध्यम से सातो ग्रहों को याद करने की चेष्टा की गयी होगी। लोग कभी यह महसूस नहीं करें कि ग्रहों का प्रभाव नहीं होता ।शायद इसी शाश्वत सत्य के स्वीकर करने और कराने के लिए ऋषि मुनियो द्वारा सप्ताह के सात दिनों को ग्रहों के साथ जोड़ना एक बड़े सूत्र के रुप में काम आया हो। एक ज्योतिषी होने के नाते सप्ताह के इन सात दिनों से मुझे अन्य कुछ सुविधाएं प्राप्त हैं। आज मंगलवार को चंद्रमा सिंह रािश में स्थित है , तो बिना पंचांग देख ही यह अनुमान लगाना संभव है कि आगामी मंगलवार को चंद्रमा वृिश्चक राशि में , उसके बाद वाले मंगलवार को कुंभ राशि में तथ उसके बादवाले मंगलवार को वृष राशि में या उसके अत्यंत निकट होगा।मानकर इसे 4 भागों में बॉट दिया गया हो तो हिसाब सुविधा की दृिष्ट से अच्छा ही है। मंगलवार को स्थिर राशि में चंद्रमा है तो कुछ सताहों तक आनेवाले मंगलवार को चंद्रमा स्थिर राशि में ही रहेगा। कुछ दिनों बाद चंद्रमा द्विस्वभाव राशि में चला जाएगा तो फिर कुछ सप्ताहों तक मंगलवार को चंद्रमा द्विस्वभाव राशि में ही रहेगा।आचार्य राजेश कुमार
सप्ताह के सात दिनों का क्या रहस्य ?
By acharyarajeshDecember 27, 2019No Comments
इतना तो सबको मालूम है कि सप्ताह के दिनों के नाम ग्रहों की संज्ञाओं के आधार पर रखे गए हैं अर्थात जो नाम ग्रहों के हैं, वही नाम इन दिनों के भी हैं. जैसे सूर्य के दिन का नाम रविवार, आदित्यवार, अर्कवार, भानुवार इत्यादि. शनिश्चर के दिन का नाम शनिवार, सौरिवार आदि. चाहे आप संस्कृ्त मे य़ा अन्य किसी भी भाषा में देख लें, साप्ताहिक दिनों के नाम सात ग्रहों के नाम पर भी आपको रखे मिलेंगें. संस्कृ्त में ग्रह के नाम के आगे वार या वासर या कोई ओर प्रयायवाची शब्द रख दिया जाता है. इससे यह सूचित होता है कि अमुक दिन का अमुक ग्रह है. पश्चिमी भाषाओं में भी, इसी प्रकार ग्रहों के नामों के साथ दिन का वाचक शब्द लगा दिया जाता है. जैसे कि लेटिन में सोमवार को Lunae, मंगलवार को Martis, बुधवार के लिए Mercurii इत्यादि.अब प्रश्न यह उत्पन होता है कि यह क्रम कैसे चला और अमुक दिन अमुक ग्रह का है—-इसका अभिप्राय क्या है?. ज्योतिष के ग्रन्थों के अनुसार प्राचीन समय में ग्रहों का क्रम इस प्रकार माना जाता था—शनि, बृ्हस्पति, मंगल, सूर्य, शुक्र, बुध और चन्द्रमा. अर्थात पृ्थ्वी की अपेक्षा शनि सबसे ऊपर या दूर माना जाता था और चन्द्रमा सबसे नीचे अर्थात नजदीक. इन ग्रहों को, जैसा कि सूर्य सिद्धान्त आदि ग्रन्थों से सिद्ध है, ज्योतिषियों नें दिनों का स्वामी माना है.
सूर्योदय से सूर्यादय तक के समय की संज्ञा दिन है. हमारे पूर्वजों नें इस काल को 60 भागों में विभक्त किया और एक-एक भाग का नाम घडी(घटी या घटिका) रखा. दूसरों नें उसे 24 भागों में बाँट दिया और एक एक भाग का नाम घंटा( Hour) रखा. फिर उन्होने एक-एक घंटे के समय को एक-एक ग्रह को बाँट दिया अर्थात उन्होने मान लिया कि एक-एक घंटा क्रमश: एक-एक ग्रह के आधिपत्य में रहता है. सूर्यदेव को पूरे विश्व में सभी जगह(इस्लाम को छोडकर) ग्रहों का राजा ही माना गया है. इसलिए पहले दिन की पहली घडी या घंटे का स्वामी उन्होने सूर्य को ठहराया. अतएव पहले दिन को उन्होने सूर्य का दिन माना. इसी तरह यदि हम प्रत्येक ग्रह को एक-एक घंटे का स्वामी मानते चलें तो दिनों का वही क्रम होगा जो आजकल प्रचलित है. साठ घडी के हिसाब से रोहक्रम अर्थात नीचे से ऊपर की ओर चलना होगा. अंग्रेजी Hour या घंटे के हिसाब से चलें तो ऊपर से नीचे की ओर उतरना होगा. चाहे हम सूर्य से प्रारम्भ करें, चाहे शनि से, चाहे चन्द्रमा से क्रम वही होगा. घडियों की गणना में यदि हम सूर्य से चलें तो 61वीं घडी चन्द्रमा की होगी, 121वीं मंगल की इत्यादि. अर्थात सूर्य के दिन के अनन्तर चन्द्रमा का दिन आएगा, फिर मंगल का. इसी तरह अन्य भी समझिए. घंटों के हिसाब से 25वाँ चन्द्रमा का, 49वाँ मंगल का होगा. तदुनसार ही दिन भी होगा.अब प्रश्न यह है कि पहले पहल दिनों( Week Days) के नाम कब रखे गए और सबसे पहले किस जाति नें उसका प्रयोग किया. इसके बारे में फिर कभी किसी अन्य पोस्ट के माध्यम से जानकारी प्रदान की जायेगी… अपने मुद्दे पर वापस बात करते हैं समाज में देखा जाए , तो अधिकांश लोग मंगलवार और शनिवार को इस तरह के जैसे बाल कटवाना या जो बृहस्पतिवार को कपड़े का ना घोना मां अन्य दिनों को अन्य किसी प्रकार के कायों के लिए अशुभ मानते हैं। उनका ऐसा विश्वास है कि गलत दिनों में किया गया कार्य अनिष्टकर फल भी प्रदान कर सकता है। इसे कोरा अंधविश्वास ही कहा जा सकता है , क्योंकि भले ही ग्रहों के नाम पर इन वारों का नामकरण हो गया हो ,किन्तु सच्ची बात यह है कि ग्रहों की स्थिति से इन वारों का कोई संबंध है ही नहीं। न तो रविवार को सूर्य आकाश के किसी खास भाग में होता है ,और न ही इस दिन सूर्य की गति में कोई परिवर्तन होता है , और न ही रविवार को सूर्य केवल शुभ या अशुभ फल ही देता है। जब ऐसी बाते है ही नही तो फिर रविवार से सूर्य का कौन सा संबंध है ?
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि रविवार से सूर्य का कोई संबंध है ही नहीं । रविवार से सूर्य का संबंध दिखा पाना किसी भी ज्योतिषी के लिए न केवल कठिन वरन् असंभव कार्य है। सुविधा के अनुसार किसी भी बच्चे का कुछ भी नाम रखा जा सकता है , परंतु उस बच्चे में नाम के अनुसार गुण भी आ जाएं , ऐसा नििश्चत नहीं है। यथानाम तथागुण लोगों की संख्याय कम ही होती है , इस संयोग की सराहना की जा सकती है पर किसी व्यक्ति का कोई नाम रखकर उसके अनुरुप ही विशेषताओं को प्राप्त करने की इच्छा रखें तो यह हमारी भूल होगी । इस बात से आम लोग भिज्ञ भी हैं , तभी ही यह कहावत मशहूर है `
इसी तरहनाम हैं नाम घनीराम पास फुटी कोड़ी नहीं कभी-कभी पृथ्वीपति नामक व्यक्ति के पास कोई जमीन नहीं होती तथा दमड़ीलाल के पास करोड़ों की संपत्ति होती है। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि किसी नामकरण का कोई वैज्ञानिक अर्थ हो या नाम के साथ गुणों का भी संबंध हो , यह आवश्यक नहीं है। कोई व्यक्ति अपने पुत्र का नाम रवि रख दे तथा उसमें सूर्य की विशेषताओं की तलाश करे , उसकी पूजा कर सूर्य भगवान को खुश रखने की चेष्टा करे तो ऐसा संभव नहीं है। इस तरह न तो रविवार से सूर्य का , न सोमवार से चंद्र का , मंगलवार से मंगल का , बुधवार से बुध का , बृहस्पतिवार से बृहस्पति का , शुक्रवार से शुक्र का और न ही शनिवार से शनि का ही संबंध होता है।इसी तरह मंगलवार का व्रत करके सुखद परिस्थितियों में मन और शरीर को चाहे जिस हद तक स्वस्थ , चुस्त , दुरुस्त या विपरीत परिस्थितियों में शरीर को कमजोर कर लिया जाए , हनुमानजी या मंगल ग्रह का कितना भी स्मरण कर लिया जाए , हनुमान या मंगल पर इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रभाव नहीं पड़ता। पूजा करने से ये खुश हो जाएंगे , ऐसा विज्ञान नहीं कहता , किन्तु पुजारी ये समझ लें और बहुत आस्था के साथ पूजापाठ में तल्लीन हो जाएं , तो मनोवैज्ञानिक रुप से इसका भले ही कुछ लाभ उन्हें मिल जाए , वे कुछ क्षणों के लिए राहत की सॉस अवश्य ले लेते हैं।
कभी कभी नामकरण विशेषताओं के आधार पर भी किया जाता है और कभी कुछ चित्रों और तालिकाओं के अनुसार किया जाता है। ऋतुओं का नामकरण इनकी विशेषताओं की वजह से है , इसे हम सभी जानते हैं। ग्रीष्मऋतु कहने से ही प्रचंड गमी का बोध होता है , वर्षा ऋतु से मूसलाधार बारिश का तथा शरदऋतु कहने से उस मौसम का बोध होता है , जब अत्यधिक ठंड से लोग रजाई के अंदर रहने में सुख महसूस करें। इसी तरह माह के नामकरण के साथ भी कुछ विशेषताएं जुड़ी हुई है। आिश्वन महीने का नामकरण इसलिए हुआ , क्योंकि इस महीने में अिश्वनी नक्षत्र में पूणिमा का चॉद होता है। बैशाख नाम इसलिए पड़ा , क्योंकि इस महीने में विशाखा नक्षत्र में पूणिमा का चॉद होता है।
इस तरह हर महीने की विशेषता भिन्न-भिन्न इसलिए हुई ,क्योंकि सूर्य की स्थिति प्रत्येक महीने आकाश में भिन्न-भिन्न जगहों पर होती है। ज्योतिषीय दृश्टी से भी हर महीने की अलग-अलग विशेषताएं हैं। इसी तरह शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में उजाले और अंधेरे का अनुपात बराबर बराबर होने के बावजूद एक को कृष्ण और दूसरे को शुक्ल पक्ष कहा गया है। दोनों पक्षों के मौलिक गुणों में कोई भी अंतर नहीं होता है। बड़ा या छोटा चॉद दोनो पक्षों में होता है। अष्टमी दोनों पक्षों में होती है। किन्तु ये नाम अलग ही दृिष्टकोण से दिए गए हैं । जिस पक्ष में शाम होने के साथ ही अंधेरा हो , उसे कृष्ण पक्ष और जिस पक्ष में शाम पर उजाला रहे , उसे शुक्ल पक्ष कहते हैं।
शुक्ल पक्ष के आरंभ में चंद्रमा सूर्य के अत्यंत निकट होता है। प्रत्येक दिन सूर्य से उसकी दूरी बढ़ती चली जाती है और पूर्णमासी के दिन यह सूर्य से सर्वाधिक दूरी पर पूर्ण प्रकाशमान देखा जाता है। इस समय सूर्य से इसकी कोणिक दूरी 180 डिग्री होती है। इस दिन सूर्यास्त से सूयोदय तक रोशनी होती है। इसके बाद कृष्ण पक्ष का प्रारंभ होता है। प्रत्येक दिन सूर्य और चंद्रमा की कोणिक दूरी घटने लगती है। इसका प्रकाशमान भाग घटने लगता है और कृष्ण पक्ष के अंत में अमावश तिथि के दिन सूर्य चंद्रमा एक ही विन्दु पर होते हैं। सूयोदय से सूर्यास्त तक अंधेरा ही अंधेरा होता है।इस तरह ऋतु , महीने और पक्षों की वैज्ञानिकता समझ में आ जाती है। भचक्र में सूर्य , चंद्रमा और नक्षत्र – सभी का एक दूसरे के साथ परस्पर संबंध है , किन्तु सप्ताह के सात दिनों का नामकरण ग्रहों के गुणों पर आधारित न होकर याद रख पाने की सुविधा से प्रमुख सात आकाशीय पिंडों के नाम के आधार पर किया गया लगता है , महीनें को दो हिस्सों में बॉटकर एक-एक पखवारे का शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष बनाया गया है। दोनो ही पक्ष सूर्य और चंद्रमा की वििभ्न्न स्थितियों के सापेक्ष हैं , किन्तु एक पखवारे को दो हिस्सों में बॉटकर दो सप्ताह में समझने की विधि केवल सुविधावादी दृिष्टकोण का परिचायक है। जब सप्ताह का निर्माण ही ग्रहों पर आधारित नहीं है , तो उसके अंदर आनेवाले सात अलग अलग दिनों का भी कोई वैज्ञानिक अर्थ नहीं है।
सौरमास और चंद्रमास दोनों की परिकल्पनाओं का आधार भिन-भिन्न है। पृथ्वी 365 दिन और कुछ घंटों में एक बार सूर्य की परिक्रमा कर लेती है। इसे सौर वर्ष कहतें हैं, इसके बारहवें भाग को एक महीना कहा जाता है। सौरमास से अभिप्राय सूर्य का एक रािश में ठहराव या आकाश में 30 डिग्री की दूरी तय करना होता है। चंद्रमास उसे कहते हैं , जब चंद्रमा एक बार पूरी पृथ्वी की परिक्रमा कर लेता है। यह लगभग 29 दिनों का होता है । बारह महीनों में बारह बार सूर्य की परिक्रमा करने में चंद्रमा को लगभग 354 दिन लगते हैं। इसलिए चंद्रवर्ष 354 दिनों का होता है। सौर वष्र और चंद्रवर्ष के सवा ग्यारह दिनों के अंतर को प्रत्येक तीन वषो के पश्चात् चंद्रवर्ष में एक अतिरिक्त महीनें मलमास को जोड़कर पाट दिया जाता है।
सौर वर्ष में भी 365 दिनों के अतिरिक्त के 5 घंटों को चार वषे बाद लीप ईयर वर्ष में फरवरी महीने को 29 दिनों का बनाकर समन्वय किया जाता है , किन्तु सप्ताह के सात दिन , जो पखवारे के 15 दिन , महीने के 30 दिन , चांद्र वर्ष के 354 दिन और सौर वर्ष के 365 दिन में से किसी का भी पूर्ण भाजक या अपवत्र्तांक नहीं है , के समन्वय या समायोजन का ज्योतिष शास्त्र में कहीं भी उल्लेख नहीं है , जिससे स्वयंमेव ही ज्योतिषीय संदर्भ में सप्ताह की अवैज्ञानिकता सिद्ध हो जाती है। अत: मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि रविवार को सूर्य का , सोमवार को चंद्र का , मंगलवार को मंगल का , बुधवार को बुध का , बृहस्पतिवार को बृहस्पति का , शुक्रवार को शुक्र का तथ शनिवार को शनि का पर्याय मान लेना एक बहुत बड़ी गल्ती है। ग्रहों का सप्ताह के सातो दिनों से कोई लेना-देना नहीं है।
सात दिनों का सप्ताह मानकर पक्ष को लगभग दो हिस्सों में बॉटकर सात दिनों के माध्यम से सातो ग्रहों को याद करने की चेष्टा की गयी होगी। लोग कभी यह महसूस नहीं करें कि ग्रहों का प्रभाव नहीं होता ।शायद इसी शाश्वत सत्य के स्वीकर करने और कराने के लिए ऋषि मुनियो द्वारा सप्ताह के सात दिनों को ग्रहों के साथ जोड़ना एक बड़े सूत्र के रुप में काम आया हो। एक ज्योतिषी होने के नाते सप्ताह के इन सात दिनों से मुझे अन्य कुछ सुविधाएं प्राप्त हैं। आज मंगलवार को चंद्रमा सिंह रािश में स्थित है , तो बिना पंचांग देख ही यह अनुमान लगाना संभव है कि आगामी मंगलवार को चंद्रमा वृिश्चक राशि में , उसके बाद वाले मंगलवार को कुंभ राशि में तथ उसके बादवाले मंगलवार को वृष राशि में या उसके अत्यंत निकट होगा।मानकर इसे 4 भागों में बॉट दिया गया हो तो हिसाब सुविधा की दृिष्ट से अच्छा ही है। मंगलवार को स्थिर राशि में चंद्रमा है तो कुछ सताहों तक आनेवाले मंगलवार को चंद्रमा स्थिर राशि में ही रहेगा। कुछ दिनों बाद चंद्रमा द्विस्वभाव राशि में चला जाएगा तो फिर कुछ सप्ताहों तक मंगलवार को चंद्रमा द्विस्वभाव राशि में ही रहेगा।
मैं वैज्ञानिक तथ्यों को सहज ही स्वीकार करता हूं। पंचांग में तिथि , नक्षत्र , योग और करण की चर्चा रहती है। ये सभी ग्रहों की स्थिति पर आधारित हैं। किसी ज्योतिषी को बहुत दिनों तक अंधेरी कोठरी में बंद कर दिया जाए , ताकि महीने और दिनों के बीतने की कोई सूचना उसके पास नहीं हो । कुछ महीनों बाद जिस दिन उसे आसमान को निहारने का मौका मिल जाएगा , केवल सूर्य और चंद्रमा की स्थिति को देखकर वह समझ जाएगा कि उस दिन कौन सी तिथि है , कौन से नक्षत्र में चंद्रमा है , सामान्य गणना से वह योग और करण की भी जानकारी प्राप्त कर सकेगा , किन्तु उसे सप्ताह के दिन की जानकारी कदापि संभव नहीं हो पाएगी , ऐसा इसलिए क्योंकि सूर्य , चंद्रमा या अन्य ग्रहों की स्थिति के सापेक्ष सप्ताह के सात के दिनों का नामकरण नहीं है।