रविवार, 30 अप्रैल 2017

: वक्री बुघ आमतौर पर ग्रहों के संबोधन को ही उनका असर मान लिया जाता है। जैसे नीच के ग्रह को नीच यानि घटिया और उच्‍च के ग्रह को उच्‍च यानि श्रेष्‍ठ मान लिया जाता है। यही स्थिति कमोबेश वक्री ग्रह के साथ भी होती है। उसे उल्‍टी चाल वाला मान लिया जाता है। यानि वक्री ग्रह की दशा में जो भी परिणाम आएंगे वे उल्‍टे ही आएंगे। ऐसा नहीं है कि केवल नौसिखिए या शौकिया ज्‍योतिषी ही यह गलती करते हैं बल्कि मैंने कई स्‍थापित ज्‍योतिषियों को भी यही गलती करते हुए देखा है।बुध का। बुध कभी भी सूर्य से तीसरे घर से दूर नहीं जा पाता है। यानि 28 डिग्री को पार नहीं कर पाता है। इसी के साथ दूसरा तथ्‍य यह है कि सूर्य के दस डिग्री से अधिक नजदीक आने वाला ग्रह अस्‍त हो जाता है। अब बुध नजदीक होगा तो अस्‍त हो जाएगा और दूर जाएगा तो वक्री हो जाएगा। ऐसे में बुध का रिजल्‍ट तो हमेशा ही नेगेटिव ही आना चाहिए। शब्‍दों के आधार पर देखें तो ग्रह के अस्‍त होने का मतलब हुआ कि ग्रह की बत्‍ती बुझ गई, और अब वह कोई प्रभाव नहीं देगा और वक्री होने का अर्थ हुआ कि वह नेगेटिव प्रभाव देगा। वास्‍तव में दोनों ही स्थितियां नहीं होती। टर्मिनोलॉजी से दूर आकर वास्‍तविक स्थिति में देखें तो सूर्य के बिल्‍कुल पास आया बुध अस्‍त तो हो जाता है लेकिन अपने प्रभाव सूर्य में मिला देता है। यही तो होता है बुधादित्‍य योग। ऐसे जातक सामान्‍य से अधिक बुद्धिमान होते हैं। यानि सूर्य के साथ बुध का प्रभाव मिलने पर बुद्धि अधिक पैनी हो जाती है। दूसरी ओर वक्री ग्रह का प्रभाव। सूर्य से दूर जाने पर बुध अपने मूल स्‍वरूप में लौट आता है। जब वह वक्री होता है तो पृथ्‍वी पर खड़े अन्‍वेषक को अधिक देर तक अपनी रश्मियां देता है। यहां अपनी रश्मियों से अर्थ यह नहीं है कि बुध से कोई रश्मियां निकलती हैं, वरन् बुध के प्रभाव वाली तारों की रश्मियां अधिक देर तक अन्‍वेषक को मिलती है। ऐसे में कह सकते हैं बुध उच्‍च के परिणाम देगा। अब यहां उच्‍च का अर्थ अच्‍छे से नहीं बल्कि अधिक प्रभाव देने से है। सुबह यह है कि बुद्ध कब अच्‍छे या खराब प्रभाव देगा इसका जवाब बहुत आसान है। जिस कुण्‍डली में बुध कारक हो और अच्‍छी पोजिशन पर बैठा हो वहां अच्‍छे परिणाम देगा और जिस कुण्‍डली में खराब पोजिशन पर बैठा हो वहां खराब परिणाम देगा। इसके अलावा जिन कुण्‍डलियों में बुध अकारक है उनमें बुध कैसी भी स्थिति में हो, उसके अधिक प्रभाव देखने को नहीं मिलेंगे। [सारावली के अनुसार वक्री ग्रह सुख प्रदान करने वाले होते हैं लेकिन यदि जन्म कुंडली में वक्री ग्रह शत्रु राशि में है या बलहीन अवस्था में हैं तब वह व्यक्ति को बिना कारण भ्रमण देने वाले होते हैं. यह व्यक्ति के लिए अरिष्टकारी भी सिद्ध होते हैं.फल दीपिका में मंत्रेश्वर जी का कथन है कि ग्रह की वक्र गति उस ग्रह विशेष के चेष्टाबल को बढ़ाने का काम करती है. कृष्णमूर्ति पद्धति के अनुसार प्रश्न के समय संबंधित ग्रह का वक्री होना अथवा वक्री ग्रह के नक्षत्र में होना नकारात्मक माना जाता है. काम के ना होने की संभावनाएँ अधिक बनती हैं. यदि संबंधित ग्रह वक्री नहीं है लेकिन प्रश्न के समय वक्री ग्रह के नक्षत्र में स्थित है तब कार्य पूर्ण नहीं होगा जब तक कि ग्रह वक्री अवस्था में स्थित रहेगा. सर्वार्थ चिन्तामणि में आचार्य वेंकटेश ने वक्री ग्रहों की दशा व अन्तर्दशा का बढ़िया विवरण किया है. सर्वार्थ चिन्तामणि के अनुसार ही वक्री बुध अपनी दशा/अन्तर्दशा में शुभ फल प्रदान करता है. व्यक्ति अपने साथी व परिवार का सुख भोगता है. व्यक्ति की रुचि धार्मिक कार्यों की ओर भी बनी रहतीहै बुद्ध बक्री वर्ष में तीन बार होता है,और यह ग्रह केवल चौबीस दिन के लिये बक्री होता है,इस ग्रह के द्वारा अपने फ़लों में बाहरी प्राप्तियों के लिये लाभकारी माना जाता है,अन्दरूनी चाहतों के लिये यह समय नही होता है,यह दिमाग में झल्लाहट पैदा करता है,इन झल्लाहटों का मुख्य कारण कार्यों और कही बातों में देरी होना,पिछली बातों का अक्समात सामने आ जाना वे बाते कही गयीं हो या लिखी गयीं हो,इसके साथ ही इस बक्री बुध का प्रभाव आखिरी मिनट में अपना फ़ैसला बदल सकता है। यह समय किसी भी कारण को क्रियान्वित करने के लिये सही नही माना जाता है,जैसे किसी एग्रीमेंट पर साइन करना,और अधिकतर उन मामलों में जहां पर लम्बी अवधि के लिये चलने वाले कार्यों के लिये एग्रीमेंट तो कतई सफ़ल नही हो सकते हैं। इस समय में साधारण मामले जो लगातार दिमाग में टेंसन दे रहे होते है,उनको निपटाने के लिये अच्छे माने जाते है,उन कारकों के लिये अधिक सफ़ल माने जाते हैं जिनके अन्दर संचार वाले साधन और कारण ट्रांसपोर्ट और आने जाने के प्लान,जो साधारण टेंसन वाले कारण माने जाते है वे किसी प्रकार के कमन्यूकेशन को बनाने और संधारण करने वाले काम,किसी से बातचीत करने वाले काम,आने जाने के साधन को रिपेयर करने वाले काम टेलीफ़ोन के अन्दर बेकार की खराबियां उन समाचारों को जो काफ़ी समय से डिले चल रहे हों,जिन सामानों और पत्रावलियों को वितरित नही किया गया हो उन्हे वितरित करने वाले काम,मशीने जो जानबूझ कर बन्द की गयी हो उन्हे चलाने वाले काम,और जो किसी के साथ अक्समात अपोइटमेंट के कारण बनाये गये हों,और अधिकतर उन मामलों जो आखिरी समय में बनाये गये हों या बनाकर कैंसिल किये गये हों। यह समय उन बातों के लिये भी मुख्य माना जाता है,जो पिछले समय में प्लान बनाये गये हों,और उन प्लानों पर काम किया जाना हो,और प्लानों के अन्दर की बातों को सही किया जाना हो,यह समय उन कारकों को के लिये भी प्रभावी माना जा सकता है जिनके लिये दिमागी रूप से कार्य किया जाना हो,जैसे किसी बात की खोजबीन करना,रीसर्च करना, जो कोई बात लिखी गयी हो या लिखकर उसे सुधारने का काम हो,लिखावट के अन्दर की जाने वाली गल्तियों को सुधारने का काम,यह समय ध्यान लगाने समाधि में जाने और ध्यान लगाकर सोचने वाले कामों के लिये भी उत्तम माना जाता है,अपने अन्दर की बुराइयों को पढने का यह सही समय माना जाता है,मनोवैज्ञानिक तरीके से किसी बात को मनवाने के लिये यह समय उत्तम माना जाता है। नये तरीके के विचार बनाये जा सकते है लेकिन उनको क्रियान्वित नही किया जा सकता है,और उन कामों को करने का उत्तम समय है जो पिछले समय में नही किये जा सके है। इस प्रकार से बक्री बुध शेयर बाजार की गतिविधियों के मामले में भी खोजबीन करने के लिये काफ़ी है,किसी भी प्रकार के तामसी कारकों को प्रयोग करने के बाद की जाने वाली क्रियान्वनयन की बातों के ऊपर भी यह बक्री बुध जिम्मेदार माना जाता है। इस बुध के कारणों में उन बातों को भी शामिल किया जाता है जो पहले कही गयी हों या संचार द्वारा सूचित की गयीं हो,उनके लिये फ़ैसला देने के लिये यह बुध उत्तरदायी माना जा सकता है।

शुक्रवार, 28 अप्रैल 2017

यही जीवन है :- मैं दीपक निरंतर जल रहा हूं, दूर करता हूँ अँधेरा , सुबह होगी मैं मिटूंगा , ख़ाक में मिल जाऊंगा । सूर्य के उजाले के आगे, मैं कहां टिक पाऊंगा। यही मेरा जीवन है। दूसरों की खातिर,खुद मिट जाना, कुछ भी पाने की चाह किए बगैर, हर पल जलना, अंधेरा दूर करने को। मानव जीवन का चरम और सार्थक रूप मोक्ष है। उसे पाने के लिए व्यक्ति तप या पुरुषार्थ करता है। इसलिए मृत्यु के भय से मुक्त होकर व्यक्ति को अपने जीवन का सर्वोत्तम उपयोग करना चाहिए। जहां पर मै अटकता हूँ तो जिंदगी गम़गीन हो जाती है। हर ओर सन्नाटा सा होता है न कोई आता है न कोई जाता है बस मैं ही ‘अकेला’ चलता चला जा रहा हूं। मंजिलों की दूरी का एहसास है मुझे फिर भी सपनों की दुनिया में खोया सा अपनी धुन में मश़गूल मैं चल रहा हूं। कुछ तो ख़ास है, इस सफ़र में, जिसके पूरे होने का भरोसा, न जाने कहां गुम सा हो गया है, फिर भी एक रा़ग सुन रहा हूं। इस जिंदगी की कठिन डगर पे, मैं ‘अकेला’ चल रहा हूं। कभी यादों की छाँव से खेले कभी पेड़ों से शीतलता का मज़ा लो,तो कभी सूरज में आंखे डालो कभी अपनों को गले लगा लो, कभी संभालो अपने पागल दिल को तो कभी गगन मैं दूर उड़ा दो, प्यार हमेशा दिल मैं पालो कभी रास्ते में यूँ ही मुस्करा भी दो | कभी आँखों से बात भी कर लो , कभी सांसों की ताल सुनो तो कभी प्यार भी आभार जाता दो | कभी सपनों मैं उन्हें निहारो कोई खिलौना हाथ मैं लेकर कभी उन्ही की नींद चुरा लो, उसे ही दिल की बात बता दो| कभी तो अपने दिल को खोलो किसी को अपने राज बता दो, दर्द छिपा है दिल मैं जो भी आँखों के रस्ते उसे बहा दो| जिंदगी भर जाएगी खुशियों से यूँ ही कभी दुश्मन को भी गले लगा लो, प्यार रखो इन आँखों मैं अब तुम दिल मैं भी भगवान् बसा लो| वो तो दर्पण है अतीत का ,जब बचपन की यादें आती,तो मैं बच्चा बन जाता हूँ,माँ के आंचल में खेल रहा, मैं मृग शावक बन जाता हूँ, जब बहुत याद आता बचपन, पुलकित होता मेरा तनमन, मैं फिर से बच्चा बन जाऊं,ऐसा कहता है मेरा मन ना भोजन को समय है, ना सोने को समय है, ना कोई सोच ना कोई उद्देश्य , बस भागते रहना , क्या यही जिन्दगी है , कल ये करना है , कल वो करना है , कल क्या क्या करना है बस सोचते रहना कल – कल के चक्कर में , आज का रोना , क्या यही जिंदगी है , कभी सब भूलकर पैसा कमाने की ललक में , बस सोचते रहना , क्या यही जिन्दगी है ? जीवन भगवान के द्वारा हमें दिया गया सबसे बेहतरीन तोहफा है, लेकिन जब कभी जीवन की सुंदरता के पीछे छुपे बदसूरत चेहरे मन को भटकने पर मजबूर कर देता है I मेरा मानना है कि हर आदमी के अंदर एक और आदमी रहता है जो वाह्य दुनिया से सीधे वार्तालाप नही करता किंतु वाह्य दुनिया के कुछ घटनाओ को बहुत बारीकी से महसूस करता है । हमें बाहर का आदमी तो दिखाई देता है किंतु अन्दर का आदमी दिखाई नहीं देता । बाहर का आदमी भौतिक रूप से विद्यमान रहता है किन्तु अन्दर का आदमी का भौतिक अस्तित्व नहीं होता । उसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है । कुछ संवेदनशील व्यक्तियों का इसका एहसास जरुर हो जाता है कि उसके अन्दर कोई और है जो उसे समय समय पर सचेत करता रहता है । जिन्दगी में बहुत से कार्य ऐसे होते है जिसे हम करना नहीं चाहते किन्तु करना पड़ता है । वह कोई और नहीं अन्दर का आदमी ही होता है जो ऐसा करने से रोकता है । निश्चित रूप से अन्दर का आदमी, बाहर के आदमी से ज्यादा न्यायायिक होता है । कुछ करने से पहले उस आदमी का सहमति ज्यादा जरुरी है जो हमारे अन्दर है । इस उम्मीद में कि, आने वाला कल, आज से बेहतर होगा ,जिए जाता हूँ |मुसीबतों का जंगल कभी तो कटेगा, यह सोच कर हर गम को पिए जाता हूँ |इस उम्मीद में कि आने वाला कल आज से बेहतर होगा,जिए जाता हू |दो पहर का उज्जाला हो या रातों का अंधेरा, बर्फों की गलन हो या गर्मी का थपेड़ा प्यासी धरती हो या सावन का बसेरा, हर वक्त दिल के अरमानों को सिये जाता हू इस उम्मीद में कि.... आने वाला कल आज से बेहतर होगा जिए जाता हू | न जाने कब, वो घड़ी आयेगी इंतज़ार की सारी जख्मों को मिटा जायेगी, एक सुकून मिलेगा, जिंदगी भी खूबसूरत होती है वो सब कुछ मिलेगा जिसकी जरुरत होती है, इन्ही तमन्नाओं के डोर से खुद को बांधे जाता हू, इस उम्मीद में कि..... आने वाला कल आज से बेहतर होगा जिए जाता हू |आखिर कब तक झूलता इन ख़्वाबों के हवा महल पर, यह सोचकर उतर आया एक दिन, हकीक़त की धरातल पर, दिल में आया, जिंदगी का हिसाब कर लू अब तक क्या किया, आगे क्या करना है इसे एक बार याद कर लू यह सोच कर पहुँच गया अतीत के झरोखों में गुजरा हुआ वक्त दिखता है कोरे कागज़ में फिसली हुई उम्र डूब चुकी है सागर में जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा इंतज़ार खा गया, पूरब का सूरज भी अब पश्चिम में आ गया, अब तक तो कुछ कर न पाया आगे क्या कुछ कर पायेंगे ? ज़मीन तो खिसक चुकी है क्या शिखर को छू पायेंगे ? नीव तो टूट चुकी है क्या महल खड़ा कर पायेंगे ? इन्ही प्रश्नों में उलझ कर रह जाता हू आने वाला कल आज से बेहतर होगा यह सोच कर जिए जाता हू | खामोश तन्हा चल रहा है जिन्दगी का सफर । तय हो रही हैं बहुत-सी दूरियां हासिल किए जा रहे हैं नए-नए मुकाम स्थापित हो रही हैं नई-नई मान्यताएं हर दिन , हर पल । यही जिन्दगी है यही जिन्दगी का सफर है जो चल रहा है चुपके - चुपके - आहिस्ता - आहिस्ता । जब जिन्दगी, किसी सीधी सड़क से उतर कर पकदंडी की ओर मुड़ जाती है | लक्ष्य पाने की तमन्ना जब टुकड़ों में बट जाती है, हर सोच व ख्यालात का मतलब, जब विपरीत हो जाता है, वजह इन बदलाओं का जब कलम के रास्ते से कागज़ पर उतर आता है, कविता शायद इसी का नाम होता है |एक व्यक्ति, वातानुकूलित महल में, एक दौलत की ढेर पर बैठ कर, असंतुष्ट नजर आता है |दूसरा इससे से दूर रहकर भी, संतुष्ट नजर आता है | दृष्टिकोण के इन बिंदुओं के बीच, सच्चाई को दर्शाना, कविता कुछ और नहीं शायद इसी का नाम होता है | जिन्दगी छोटी है इसके बीच में छुपी जवानी, और भी छोटी है | यह कब शुरू होकर कब ख़त्म हो जाती है एक अतृप्त प्रश्न है यह कभी बदसूरत है तो कभी सुहानी है, समय को मापता उम्र जिन्दगी की कहानी है | बचपन, खेल-खेल में निकल जाता है, जवानी, मदहोशी में फिसल जाता है बुढापा, बचपन और जवानी के पश्चाताप में जल जाता है, यह छोटी सी जिन्दगी तीन खण्डों में बट जाती है तमन्नाओं की तादाद बड़ी है पर जिन्दगी बहुत छोटी है | क्यों बहकते हो भ्रम की हवाओं में ? क्यों जाते हो अंधेरी गुफाओं में ? क्यों भटकते हो कोरी कल्पनाओं में जिन्दगी अनंत नहीं चाँद साँसों की एक लड़ी है यह कोई समंदर नहीं एक छोटी सी नदी है | रास्ते लम्बे किन्तु जिन्दगी छोटी है | जीवन स्वयं व्यापार बना हैं मोल - तोल का भाव बना हैं क्रय - विक्रय जो करना चाहो इसके वास्ते संसार बना हैं फिर भी कुछ अनमोल है इसमें जिसका कोई मोल नहीं भक्त की भक्ती हो हो साकी की हाला दाम से नही मिलती सम्मान से मिलती मधुशाला। यह एक बेहतरीन कविता किसी कवि ने आजकल के भागती-दौड़ती जिंदगी को लेकर लिखी है. ज़िन्दगी है छोटी, हर पल में खुश रहो , ऑफिस में भी खुश रहो और घर में खुश भी रहो । आज नहीं है,पनीर दाल में ही खुश रहो। आज जिम जाने का समय नहीं तो पैदल चल के ही खुश रहो । आज दोस्तों का साथ नहीं, टीवी देख के ही खुश रहो । घर जा नहीं सकते, फोन कर के ही खुश रहो। आज कोई नाराज़ है, उसके इस अन्दाज़ में भी खुश रहो । जिसे देख नहीं सकते, उसकी आवाज़ में ही खुश रहो।जिसे पा नहीं सकते, उसकी याद में ही खुश रहो। लेपटोप न मिला तो क्या, डेस्कटोप में ही खुश रहो। बीता हुआ कल जा चुका है, उससे मीठी-मीठी यादें हैं, उनमें ही खुश रहो। आने वाले पल का पता नहीं … सपनों में ही खुश रहो। हँसते-हँसते ये पल बीतेंगे, आज में ही खुश रहो। ज़िन्दगी है छोटी, हर पल में खुश रहो … यें ज़िन्दगी भी अजीब सी हैं , हर मोड़ पर अपना रंग बदल देती हैंकोई अपने बेगाने हो जाते हैं ,तो कोई पराया अपना हो जाता हैंयें ज़िन्दगी भी अजीब सी हैं , हर मोड़ पर कुछ नया सिखाती हैं कभी खुशिया भर -भर के आती है, तो कभी-कभी दुःख के बादल हर रोज बरसते हैं यें ज़िन्दगी भी अजीब सी हैं ,हरमोड़ पर एक नया मुकाम बनाती हैंइस ज़िन्दगी से हर रोज किसी न किसी को शिकायत होती है ,तो कोई इसकी प्रशंसा करता हैं यें ज़िन्दगी कभी खामोश रहती हैं ,तो कभी-कभी बिन कहे कुछ कह जाती हैं यें ज़िन्दगी दुश्मनों के साथ रहकर, अपनों को धोका दे जाती हैं यें ज़िन्दगी भी अजीब सी हैं , हर मोड़ पर एक नया रंग दे जाती हैं

अंक ज्योतिष और हम अब ज्‍योतिष का ब्‍लॉग है और मैं यह बात लिख रहा हूं तो आप सोचेंगे कि आखिर आ ही गया अपनी औकात पर। आप कुछ ऐसा समझ सकते हैं। क्‍योंकि मैंने सीखने में कभी कंजूसी नहीं बरती सो हर ऐसे इंसान से सीखने की कोशिश की जिसके बारे में कहा जाता था कि इसे कुछ आता है। सही कहूं तो आज भी यही स्थिति है। जिस तरह कला के जवान होने तक कलाकार बूढा हो जाता है वैसे ही ज्‍योतिष की समझ आने तक फलादेश करने का महत्‍व भी खो सा जाता है। खैर में आता हूं विषय पर आज मित्रों में बात करना चाहता हूं Ank ज्योतिष पर फलित ज्योतिष हमारे ऋषि-मुनियों की देन है तो इस पर उन्होंने बहुत खोज की और रिसर्च की है और भारत से यह विघा विदेशों में भी में फेली लेकिन हम भारतीय अपनी विद्या को संभाल नहीं सके और जब तक उसमें पश्चिम ठप्पा नहीं लगता तब तक उसको हम मानते नहीं और पश्चिम में विकसित आधा अधूरा ज्ञान को हम भारतीय अपना लेते हैं अपने अपने ज्ञान को भूलकर, हमारा भारतीय संवत बिक्रम संवत हिजरी संवत शाखा संवत आदि पहले तो यही तय कर लिया जाय कि परम्परावादी भारतीयों को अपना जन्मदिन कि पद्धति से मानना चाहिए, पारंपरिक हिन्दू कैलेण्डर को (जो भिन्न-भिन्न हैं) या आधुनिक कैलेण्डर को. मेरे जीवन को वर्त्तमान में जो तिथियाँ नियंत्रित करती हैं वे आधुनिक है परन्तु मेरे घर में ही बहुत सी बातों के लिए पारंपरिक कैलेण्डर को आगे कर देते हैं. फिर यह लोचा कि जन्मतिथि मात्र मानी जाय या जन्मतिथि, महीने, और वर्ष के अंकों का जोड़, इसमें भी कई विधियाँ हैं जिनसे योग पृथक आता है. फिर इसमें वर्णमाला के अक्षरों को भी शामिल कर लेना पचड़े को और ज्यादा बढ़ा देता है.वैदिक ज्योतिष, जो महर्षि पराशर, जैमनी, कृष्णमूर्ति आदि की उत्कृष्ट परम्परा पर आधारित है, उसमें जातक के जन्म की तिथि, समय और स्थान को लेकर, एक वैज्ञानिक तरीके से जन्म के समय, आकाश में ग्रहों व नक्षत्रों की स्थिति का निर्धारण कर समय का आकलन किया जाता है। तत्पश्चात ज्योतिष के शास्त्रीय ग्रन्थों के आधार पर फलित कहा जाता है। ज्योतिषीय गणनाएँ पूर्णतः खगोलीय सिद्धांतों पर आधारित होती हैं, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने जिस तरह घर-घर अपनी पैठ बना ली है, उसका एक दुष्प्रभाव यह हुआ कि मदारी ज्योतिषियों की संख्या बढ़ी है। आप कोई भी चैनल देखें, इन मदारी ज्योतिषियों की एक पूरी जमात अपने लैपटॉप पर त्वरित समाधान बाँचती नज़र आयेगी।उपभोक्तावाद की इस रेलमपेल में कहीं तिलक चुटियाधारी खाँटी पंडित जी दिखते हैं, तो कहीं टाई-सूट में सजे फ़र्राटा अंग्रेज़ी बोलने वाले एस्ट्रोलोजर। इन सबके बीच एक प्रचलित विद्या है अंक ज्योतिष। इस प्रचलित अंक ज्योतिष में व्यक्ति की जन्मतिथि (ईसवी कलेंडर के अनुसार) के अंकों को जोड़कर एक मूलांक बना दिया जाता है और फिर उसे आधार बनाकर अधकचरा भविष्य बाँच दिया जाता है। इसी तरह अंग्रेजी के अक्ष्ररों (ए, बी, सी, डी आदि) को एक एक अंक दिया है. और लोगों के नाम के अंग्रेजी अक्षरों के अंकों के योग से उसका मूलांक निकाला जाता है. फिर उसी आधार पर उसका भी भविष्य बाँच दिया जाता है।अंक ज्योतिष ईसवी कलेंडर की तिथि के अनुसार चलता है जिसका एक सौर वर्ष मापने के अलावा कोई सार्वभौमिक आधार नहीं है। समय के अनंत प्रवाह में ईसवी कलेंडर मात्र 20 शताब्दी पुराना है। जिसमें अचानक एक दिन को 1 जनवरी लेकर वर्ष की शुरुआत कर दी गयी और शुरु हो गया 1 से 9 अंकों की श्रेणी में जातक को बाँटने का सिलसिला। यह सर्वविदित है कि इतिहास की धारा में अनेक सभ्यताओं तथा राजाओं ने अपने अपने कलेंडर विकसित किये जिन सबके वर्ष और तिथियों में कोई तालमेल नहीं है। तब सवाल यह उठता कि अंक ज्योतिष का आधार ईसवी कलेन्डर ही क्यों? अंग्रेज़ों ने चुँकि विश्व के एक बड़े हिस्से पर राज किया, इसलिये ईसवी कलेंडर का प्रचलन बढ़ गया। यहाँ तक कि विभिन्न गिरजाघरों ने इस कैलेंडर के दिनों की मान्यताओं पर प्रश्न चिह्न लगाए हैं. और तो और, जो सबसे अवैज्ञानिक बात इसकी सार्वभौमिकता को चुनौती देती है, वो यह है कि भिन्न भिन्न देशों ने इस कैलेंडर को भिन्न भिन समय पर अपनाया.ईसवी कलेंडर की शुरुआत 1 ए.डी. से होती है जो 1बी.सी. के समाप्त होने के तुरत बाद आ जाता है, यह तथ्य मज़ेदार है, क्योंकि इस बीच किसी ज़ीरो वर्ष का प्रावधान नहीं है। देखा जाये तो ईसवी कलेंडर की तिथियाँ, मूलत: सौर वर्ष को मापने का एक मोटा मोटा तरीका भर है। जब हम ईसवी कलेंडर के विकास पर दृष्टि डालतें हैं तो पाते हैं कि कलेंडर के बारह महीनों के दिन समान नहीं हैं और इनमें अंतर होने का कारण भी स्पष्ट नहीं है. यदि इस कलेंडर का इतिहास देखें तो इतनी उथल पुथल है कि इसकी सारी वैज्ञानिक मान्यताएँ समाप्त हो जाती हैं. इस कलेंडर पर कई राजघरानों का भी प्रभाव रहा, जैसे जुलियस और ऑगस्टस सीज़र. 13 वीं सदी के इतिहासकार जोहान्नेस द सैक्रोबॉस्को का कहना है कि कलेंडर के शुरुआती दिनों में अगस्त में 30 व जुलाई में 31 दिन हुआ करते थे। बाद में ऑगस्टस नाम के राजा ने (जिसके नाम पर अगस्त माह का नाम पड़ा) इस पर आपत्ति जतायी कि जुलाई (जो ज्यूलियस नाम के राजा के नाम पर था) में 31 दिन हैं, तो अगस्त में भी 31 दिन होने चाहिये. इस कारण फरवरी (जिसमें लीप वर्ष में 30 व अन्य वर्षॉं में 29 दिन होते थे) से एक दिन निकालकर अगस्त में डाल दिया गया। अब क्या वे अंक ज्योतिषी कृपा कर यह बताएँगे कि दिनों को आगे पीछे करने से कालांतर में तो सभी अंक बदल गये, तो इनका परिमार्जन क्या और कैसे किया गया?सारी सृष्टि एक चक्र में चलती है सारे अंक एक चक्र में चलते हैं जैसे 1 से 9 के बाद पुन: 1 (10=1+0=1) आता है. ईसवी कलेंडर के आधार पर अंक ज्योतिष में अजब तमाशा होता है जैसे 30 जून (मूलांक 3) के बाद 1 जुलाई (मूलांक 1) आता है। इसी तरह 28 फरवरी (2+8=10=1) के बाद 1 मार्च (1 अंक) आता है। नाम के अक्षरों के आधार पर की जाने वाली भविष्यवाणियाँ अंगरेज़ी (आजकल हिंदी वर्णमाला के अक्षरों को भी) के अक्षरों के अंकों को जोड़कर की जाती हैं. अब यह तो सर्वविदित है कि नाम के हिज्जे उस भाषा का अंग है जो जातक के देश या प्रदेश में बोली जाती है और जो साधारणतः निर्विवाद होता है. जैसे ही इसका अंगरेज़ी लिप्यांतरण किया जाता है, वैसे ही विरोध प्रारम्भ हो जाता है. ऐसे में सारे अंक बिगड़ सकते हैं और साथ ही जातक का भविष्य भी इसी अधूरे ज्ञान का सहारा लेकर आजकल लोग इन ज्योतोषियों की सलाह पर अपने नाम की हिज्जे बदलने लगे हैं.अंक ज्योतिष के यह अंतविरोध, इसके पूरे विज्ञान को तथाकथित की श्रेणी में ले आते हैं। एक सवाल यह भी रह जाता है कि क्या पूरी मानव सभ्यता को मात्र 9 प्रकार के व्यक्तियों में बांट कर इस प्रकार का सरलीकृत भविष्य बाँचा जा सकता है? ऐसे में इस नितांत अवैज्ञानिक सिद्धांत को, ज्योतिष के नाम पर चलाने के इस करतब को क्या कहेंगे आप? भारतीय अंक ज्योतिष अपने आप में एक विज्ञान है और हमारी वर्णमाला मैं बहुत से रहस्य छुपे है हमारी तिथियां अपने आप में संपूर्ण है उपरोक्त विचार मात्र अंक-ज्योतिष के विषय में हैं। ज्योतिष शास्त्र के विषय में नहीं क्योंकि उसके सिद्धांत और पद्धतियाँ, खगोल शास्त्र पर आधारित हैं और कई अर्थो में वैज्ञानिकता लिये हैं। ज्योतिष शास्त्र में अभी और गहन शोध होने बाकी हैं भक्ति सिर को भी इस पर बात जारी रहेगी दोस्तों हो सकते मेरी बातों से तो ताकत के दोषियों को नाराजगी पैदा हो पर मुझे इस पर कोई फर्क नहीं पड़ता सच तो सच्च ही होता है आचार्य राजेश

रविवार, 23 अप्रैल 2017

ज्योतिष और ज्योतिषी बचपन से ज्योतिष में रूचि होने के कारण साधु संतो में रूचि के कारण और कुछ पूर्व जन्मों के संस्कारों के कारण मुझे ऐसे विद्वद्जनों से संपर्क में सदा आनंद की अनुभूति होती थी. परन्तु सत्य ये भी है की इस खोज में मैंने ऐसे लोगों से भी मुलाकात की जो केवल ज्योतिष के किताबी ज्ञान में पारंगत थे. वास्तव में बहुत से ज्योतिषी मिथ्या ज्ञानी हैं (ध्यान रहे की मैं स्वयं एक ज्योतिषी हूँ). बहुत से ज्योतिषी केवल लोगों को डरा धमका कर पैसे उगाने का कार्य करते हैं. वास्तव में ज्योतिष ज्ञान बहुत दुरूह साधना की तरह है. केवल पुस्तक पाठ से ज्योतिष का ज्ञान नहीं होता और ज्योतिषी को केवल पढ़ने पर भी ये हांसिल नहीं होता है. ज्योतिष के लिए स्वयं का चरित्र व अंतर्मन पूर्ण शुद्ध होना आवश्यक है. दंभ, शिथिल चरित्र. लोभ, अशुद्ध मन, सदा माया में लीन व्यक्ति ज्योतिषी नहीं बन सकता. वो नाम कमा सकता है, आमजन को मूर्ख बनाकर पैसे ऐंठ सकता है पर जब उसका सामना असली विद्वद्जनों से होता है तो ऐसा व्यक्ति अक्सर खिस्यानी बिल्ली के तरह हो जाता है. ज्योतिष के मानद ग्रंथों में ज्योतिषी के लिए जो नियम बताये गए हैं उनके लिए तपश्चर्या की आवश्यकता है जो आजकल के शॉर्टकट वाले युग में ज्योतिषियों के गले नहीं उतरती.धन वैभव प्राप्ति के लिए मनुष्य अत्यंत प्रयत्नशील रहता है. आप पत्रिकायों और टीवी चैनलों को देख लें तो हजारों तरीकों से ज्योतिष और धर्म शास्त्र का सहारा लेकर कई तरह के विधि-विधान और अनुष्ठान बताएं जा रहे हैं . कई तरह के मंत्र - यन्त्र से वैभव और धन प्राप्ति के अचूक उपाय दिए जा रहे हैं. हर विधि विधान और मंत्र-यन्त्र की अपना महत्व और लाभ है . सही , उचित और शास्त्रोक्त रीतियों के अनुसार किये जाने वाले अनुष्ठानो का महत्व है और मनुष्य लाभान्वित भी होता है . हमारे प्राचीन शास्त्रों ने इसका विधिवत उल्लेख किया है. पर यह बात बहुत आवश्यक है की जिस तरह इसे आज समाज में प्रस्तुत किया जा रहा है क्या वह उचित और सही है और क्या हम सर्व प्रकार से प्राचीन ज्ञान को समाज में प्रस्तुत कर रहे हैं. हमारी संस्कृति , सभ्यता और सनातन धर्म कर्म प्रधान रहा है . ज्योतिष और वेदों में उल्लेखित उपाय या अनुष्ठान कोई इन्स्टंट नूडल बनाने के नुस्खे नहीं थे. ज्योतिष को बढ़ावा देने में मीडिया का भी बहुत अधिक हाथ है. हर कोई ज्योतिषी टी.वी चैनल पर आना चाहता है क्योंकि लोगों के मन में भी यह बात बैठ गई है कि टी.वी पर दिखने वाला व्यक्ति बहुत ज्ञानी है लेकिन वह यह नहीं जानते कि उनकी दुखती नस को दबाने का पूर इन्तजाम किया जा रहा है. टी.वी के पर्दे पर आने वाला एक ज्योतिषी दूसरे से आगे निकलने की होड़ में लगा हुआ है. जिस तरह से भू माफिया या कालाबाजारी ने अपना जाल बिछाया हुआ है ठीक उसी तरह से ज्योतिष माफिया भी तेजी से फैल रहा है. इन्टरनेट की दुनिया पर तो ज्योतिष ने अच्छा खासा कब्जा कर रखा है. किस समस्या का समाधान उनके पास नहीं है….बस प्रश्न करने की देर है. हर तरह के उपायों से व्यक्ति का दुख दूर करने की कोशिश आरंभ कर दी जाती है.आजकल एक अच्छे ज्योतिषी में अपने सभी प्रोडक्ट बेचने की खूबी होती है. किस तरह से सामने वाले को इमोशनली ब्लैकमेल करनाहै इसकी स्टडी अच्छी तरह से की जाती है. किस तरह से अधिक से अधिक लोगों को आकर्षित किया जाए इसी चिन्ता में दिन रात एक किया जाता है. बस समस्या बताने की देरी है फिर तो रेस के सभी घोड़े दौडा दिए जाते हैं. प्रेम संबंधी मामलों में तो यह ज्योतिषी धृतराष्ट्र के संजय की भाँति काम करते हैं.ज्योतिष के इस व्यापार में सच्चे तथा ईमानदार व्यक्तियों का गुजारा नहीं हो सकता है. मैं इस विद्या के ऊपर किसी प्रकार की कोई अंगुली नहीं उठा रहा हूँ क्योंकि मैं जानता हूँ कि यह अत्यधिक विश्वसनीय विद्या है. इस विद्या के सही उपयोग से परेशानी व्यक्ति को तिनके का सहारा मिल सकता है. हम ज्योतिष से अपना भाग्य नहीं बदल सकते लेकिन परेशानियों का सामना करने का बल अवश्य प्राप्त कर सकते हैं. जब आदमी चारों ओर से परेशानियों से घिर जाता है तब उसे ज्योतिषी की याद आती है. ऎसे व्यक्तियों को परामर्श की आवश्यकता होती है. ऎसे समय में ज्योतिषी का कर्तव्य है कि डराने की बजाय वह उचित मार्गदर्शन करें. ज्योतिष अपने आप में संपूर्ण था संपूर्ण है और संपूर्ण रहेग Acharya Rajesh 07597718725

शनिवार, 22 अप्रैल 2017

मंगल और राहु


मंगल और राहूजब राहु और मंगल एक ही भाव में युति बनाते हैं, तो वह मंगल राहु अंगारक योग कहलाता है। मंगल ऊर्जा का स्रोत है, जो अग्नि तत्व से संबद्घ है,htt जबकि राहु भ्रम व नकारात्मक भावनाओं से जुड़ा हुआ है। जब दोनों ग्रह एक ही भाव में एकत्र होते हैं तो उनकी शक्ति पहले से अधिक हो जाती है। लाल किताब में इस योग को पागल हाथी या बिगड़ा शेर का नाम दिया गया है। राहु से विस्तार की बात केवल इसलिये की जाती है क्योंकि राहु जिस भाव और ग्रह में अपना प्रवेश लेता है उसी के विस्तार की बात जीव के दिमाग में शुरु हो जाती है,कुंडली में जब यह व्यक्ति की लगन में होता है तो वह व्यक्ति को अपने बारे में अधिक से अधिक सोचने के लिये भावानुसार और राशि के अनुसार सोचने के लिये बाध्य कर देता है जो लोग लगातार अपने को आगे बढाने के लिये देखे जाते है उनके अन्दर राहु का प्रभाव कहीं न कहीं से अवश्य देखने को मिलता है। लेकिन भाव का प्रभाव तो केवल शरीर और नाम तथा व्यक्ति की बनावट से जोड कर देखा जाता है लेकिन राशि का प्रभाव जातक को उस राशि के प्रति जीवन भर अपनी योग्यता और स्वभाव को प्रदर्शित करने के लिये मजबूर हो जाता है। राहु विस्तार का कारक है,और विस्तार की सीमा कोई भी नही होती है,मंगल शक्ति का दाता है,और राहु असीमितिता का कारक है,मंगल की गिनती की जा सकती है लेकिन राहु की गिनती नही की जा सकती है।राहु अनन्त आकाश की ऊंचाई में ले जाने वाला है और मंगल केवल तकनीक के लिये माना जाता है,हिम्मत को देता है,कन्ट्रोल पावर के लिये जाना जाता है।अगर मंगल को राहु के साथ इन्सानी शरीर में माना जाये तो खून के अन्दर इन्फ़ेक्सन की बीमारी से जोडा जा सकता है,ब्लड प्रेसर से जोडा जा सकता है,परिवार में लेकर चला जाये तो पिता के परिवार से माना जा सकता है,और पैतृक परिवार में पूर्वजों के जमाने की किसी चली आ रही दुश्मनी से माना जा सकता है। समाज में लेकर चला जाये तो गुस्से में गाली गलौज के माना जा सकता है,लोगों के अन्दर भरे हुये फ़ितूर के लिये माना जा सकता है। अगर बुध साथ है तो अनन्त आकाश के अन्दर चढती हुयी तकनीक के लिये माना जा सकता है। गणना के लिये उत्तम माना जा सकता है। गुरु के द्वारा कार्य रूप में देखा जाने वाला मंगल राहु के साथ होने पर सैटेलाइट के क्षेत्र में कोई नया विकास भी सामने करता है,मंगल के द्वारा राहु के साथ होने पर और बुध के साथ देने पर कानून के क्षेत्र में भ्रष्टाचार फ़ैलाने वाले साफ़ हो जाते है,उनके ऊपर भी कानून का शिकंजा कसा जाने लगता है,बडी कार्यवाहियों के द्वारा उनकी सम्पत्ति और मान सम्मान का सफ़ाया किया जाना सामने आने लगता है,जो लोग डाक्टरी दवाइयों के क्षेत्र में है उनके लिये कोई नई दवाई ईजाद की जानी मानी जाती है,जो ब्लडप्रेसर के मामले में अपनी ही जान पहिचान रखती हो। धर्म स्थानों पर बुध के साथ आजाने से मंगल के द्वारा कोई रचनात्मक कार्यवाही की जाती है,इसके अन्दर आग लगना विस्फ़ोट होना और तमाशाइयों की जान की आफ़त आना भी माना जाता है। वैसे राहु के साथ मंगल का होना अनुसूचित जातियों के साथ होने वाले व्यवहार से मारकाट और बडी हडताल के रूप में भी माना जाता है। सिख सम्प्रदाय के साथ कोई कानूनी विकार पैदा होने के बाद अक्समात ही कोई बडी घटना जन्म ले लेती है। दक्षिण दिशा में कोई बडी विमान दुर्घटना मिलती है,जो आग लगने और बाहरी निवासियों को भी आहत करती है,आदि बाते मंगल के साथ राहु के जाने से मिलती है।मेरा यह मानना है कि इस योग का प्रभाव व्यक्ति के लग्न और ग्रहों की स्थिति के अनुसार अलग-अलग होगा और उपाय भी. मुझ से बहुत मित्र उपाय पूछते रहते हैं. मैंने ऐसे उपाय कई बार लिखे हैं, जो सभी कर सकते हैं. पर कुछ उपाय कुंडली के अनुसार ही होते हैं. यह उसी प्रकार है कि हर एक को हल्दी, लहसुन खाने को कहना, या उस व्यक्ति कि प्रकृति इत्यादि जानकर उसके लिए उसको एकदम फिट बैठने वाली दवा यह योग अच्छा और वुरा दोनो तरह का फल देने वाला है। अता मित्रों आप अपनी कुंडली किसी अच्छे ज्योतिषी को दिखा कर ही उपाय करें अपने आप देखादेखी कोई उपाय है ना करें वरना लाभ के स्थानपर हानी हो सकती है् Acharya Rajesh 09414481324 07597718725

रविवार, 16 अप्रैल 2017

मां काली ज्योतिष की आज की पोस्ट इन मित्रों के लिए है जो रतन ज्योतिष के बारे में जानकारी चाहतेहै या रतन हनना चाहते हैं जीवन की दो गतियां होती है एक तो भौतिक होती है जो दिखाई देती है और एक अद्रश्य होती है जिसे देखने की चाहत जीव जन्तु जड चेतन सभी के अन्दर होती है। ज्योतिष मे शरीर को लगन से देखा जाता है.लगन एक प्रकार से द्रश्य है जो शरीर के रूप मे सामने दिखाई देती है,अगर लगन मे कोई ग्रह नही है तो इसका मतलब है कि शरीर का मालिक यानी लगनेश जिस भाव मे विराजमान है वह भाव लगन के लिये देखा जायेगा। इसी प्रकार से लगनेश द्रश्य होता है तो लगनेश जिस भाव को देखता है और वहां कोई ग्रह है तो लगनेश को जीवन में आमना सामना करने के लिये द्रश्य प्रभाव मिल जाता है और आजीवन लगनेश सामने वाले ग्रह से जूझता रहता है अगर सामने वाला बलवान होता है तो लगनेश हार कर जीवन को जल्दी समाप्त कर लेता है और लगनेश बलवान होता है तो सामने वाले ग्रहो को परास्त करने के बाद लम्बे जीवन को भी जीने के लिये शक्ति को प्राप्त करता है और गोचर से चलने वाले ग्रहो को भी समयानुसार प्रभाव मे लाकर अपने को मन से वाणी से कर्म से फ़लीभूत कर लेता है। यह पहले ही बताया जा चुका है कि शनि एक ठंडा और अन्धेरा ग्रह है और इसके प्रभाव से जीवन मे जो भी प्रभाव आता है वह केवल अपनी सिफ़्त के अनुसार ही मिलता है लेकिन वही शनि अगर वक्री है तो वह जीवन को उत्तरोत्तर आगे बढाने के लिये भी अपनी शक्ति को देता है। एक व्यक्ति शनि के मार्गी रहने पर केवल काम करना जानता है और एक व्यक्ति शनि के वक्री रहने पर लोगो से काम करवाना जानता है। सफ़लता उसी को मिलती है जो काम को करवाना जानता है काम को करने वाला अगर एक वस्तु का निर्माण कर सकता है तो काम को करवाने वाला कई वस्तुओं का निर्माण भी कर लेता है और काम करने वाले से काम करवाने के कारण अपना नाम धन मान सम्मान आदि को बढाता है। कुंडली के किसी भी भाव मे शनि के वक्री हो यह कुंडली एक व्यक्ति की है जिसने नीलम पन्ना जिरकान मूंगा पहिन रखा है और उसकी इच्छा है कि वह सूर्य रत्न माणिक को भी पहिने। लगनेश शनि मित्र भाव मे वकी होकर विराज रहे है,वक्री शनि के सामने द्रश्य कोई भी ग्रह नही है और बुद्धि का भाव खाली है गोचर से कभी कभी जो भी ग्रह सामने आजाता है जातक उसी के अनुसार अपनी बुद्धि को प्रयोग मे लाता है और गोचर के ग्रह का समय समाप्त होने पर जातक की बुद्धि फ़िर से खालीपन को महसूस करने लगती है। उदाहरण के लिये इस बात को ऐसे भी देखा जा सकता है कि लगन एक प्रकार से कार की तरह से है और पंचम स्थान कार को चलाने के लिये सीखी गयी विद्या ड्राइवरी की तरह से और कार के अन्दर कार को चलाने के लिये पेट्रोल की जरूरत को पूरा करने के लिये नवम का रूप भाग्य के रूप मे मिलता है,अगर तीनो भावो में ग्रह उपस्थित है तो कार अपनी उम्र के अनुसार चलती रहेगी और ग्रह नही है तो कार केवल तभी चलेगी जब गोचर से कोई ग्रह स्थान पर आयेगा। लेकिन जरूरी नही है कि कार के रूप मे शरीर सामने ही हो या बुद्धि के रूप मे ड्राइवर उपस्थित ही या पेट्रोल के रूप मे भाग्येश भी साथ हो जब तीने स्थानो के मालिक अपने अपने स्थान पर होंगे तभी कार रूपी शरीर की यात्रा शुरु हो सकेगी। अन्यथा गोचर से चलाने के कारण चन्द्रमा मासिक गति सूर्य वार्षिक गति में तथा अन्य ग्रह भी अपनी अपनी गति के अनुसार आते जायेंगे और जीवन को उम्र के अनुसार चलाते जायेंगे। लगनेश शनि वक्री है और शनि के लिये लगभग सभी ज्योतिष ग्रंथ विद्वान आदि नीलम के प्रति धारणा रखते है,नीलम शब्द से ही मान्य है कि नीलम नीला होता है,शनि का रंग काला होता है,राहु का रंग नीला होता है,फ़िर शनि के लिये राहु का रंग नीला क्यों ? इसके बाद भी एक किंवदंती कि शनि मार्गी है तो भी नीलम और शनि वक्री है तो भी नीलम ? मार्गी शनि मेहनत करने वाला व्यक्ति है तो वक्री शनि बुद्धि को प्रयोग मे लाकर काम करवाने वाला व्यक्ति है,मेहनत करने वाले और मेहनत करवाने वाले के बीच के भेद को समझे बिना ही एक साथ दोनो के लिये एक ही रत्न को बताना क्या बेमानी नही है ? बुद्धिमान के लिये कोई रत्न काम नही करता है और बेवकूफ़ के लिये भी कोई रत्न काम नही करता है यह भी जानना जरूरी है,जैसे सपूत अगर है तो उसके लिये धन संचय करने से कोई फ़ायदा नही है वह अपने बाहुबल से धन को संचित कर लेगा और कपूत के लिये भी धन संचय से कोई फ़ायदा नही है वह अपनी बेवकूफ़ी से संचित धन को बरबाद कर देगा ! "पूत सपूत तो का धन संचय और पूत कपूत तो का धन संचय" वाली कहावत को भी समझना चाहिये। वक्री शनि वाला व्यक्ति बुद्धि को सही स्थान पर प्रयोग करे इसके लिये उसे ज्ञान की आवश्यकता होगी और ज्ञान के लिये हर कोई जानता है कि बुद्धि के भाव यानी पंचम का रत्न धारण करना उपयुक्त है,इसलिये जातक को कुंडली के अनुसार पंचम के लिये हीरा या जिरकान उपयुक्त रत्न है,जिसे चांदी या सफ़ेद धातु मे बनवाकर शनि की उंगली मध्यमा में शुक्रवार के दिन धारण करना चाहिये। नीलम को पहिनने से चलने वाली बुद्धि वक्री शनि वाले व्यक्ति के लिये मार्गी होने पर कुंद हो जायेगी और वक्री समय मे जो कुछ समय के लिये है काम करती रहेगी। शनि को राहु के द्वारा सकरात्मक होने पर और केतु के द्वारा नकारात्मक होने पर ही संभाला जा सकता है,बाकी शनि को संभालने के लिये किसी भी ग्रह का प्रयोग रत्न के द्वारा करना एक प्रकार से बुद्धिमानी की श्रंखला मे नही माना जा सकता है।जीवन की गति के लिये तीन कारण बहुत जरूरी होते है। एक तो शरीर को द्रश्य रखना,दूसरा बुद्धि को जाग्रत रखना और प्रयोग करते रहना तीसरे भाग्य की बढोत्तरी से ऊंची सोच शिक्षा परिवेश से बाहर निकल कर कानून धर्म समाज जाति देश आदि के द्वारा लगातार उन्नति का बल लेते रहना। अगर लगन खाली है तो लगनेश का रत्न,पंचम खाली है तो पंचमेश का रत्न और नवम खाली है तो नवमेश का रत्न धारण करना चाहिये। अगर तीनो भावो मे कोई ग्रह शत्रु या मित्र है तो उसके लिये ग्रह के अनुसार मिक्स प्रभाव देने वाला रत्न धारण करना जरूरी है। जैसे उपरोक्त लगन मकर है,और मकर लगन का मालिक शनि है,लेकिन लगन के समय मे सूक्षम रूप से देखे जाने पर श्रवण नक्षत्र की उपस्थिति जिसका मालिक चन्द्रमा है और इस नक्षत्र के चौथे पाये मे जातक का जन्म हुआ है तो उसका मालिक सूर्य बन जाता है इस प्रकार से सूर्य चन्द्र और शनि की मिश्रित आभा वाले रत्न को धारण करना लगन को द्रश्य करने के लिये काफ़ी है। सूर्य से गुलाबी चन्द्रमा से पानी की तरह से चमकीला और शनि के लिये काली आभा से पूर्ण रत्न का प्रयोग करना जरूरी है इस प्रभाव को प्रत्यक्ष रूप से एलेक्जेंडरा नामक रत्न मे तीनो आभा मिलती है,जातक को लगन को द्रश्य करने के लिये एलेक्जेन्डरा को सोने की अंगूठी मे बनवाकर दाहिने हाथ की बीच वाली उंगली मे पहिना जाना जरूरी है कारण पुरुष जातक है और उसी स्थान पर अगर स्त्री जातक होता तो बायें हाथ की बीच वाली उंगली मे यह रत्न काम करने लगता। इस जातक का पंचम स्थान भी खाली है,पंचम स्थान वृष राशि का है और यह स्थान वृष राशि का तेईस अंश बीता हुआ भाग है,इस अंश का मालिक रोहिणी नक्षत्र है और रोहिणी का मालिक चन्द्रमा है,इस प्रकार से बुद्धि की जाग्रति के लिये और द्रश्य प्रभाव देने के लिये शुक्र चन्द्र की युति वाला रत्न धारण करना जरूरी है। चांदी में जिरकान या हीरा पहिना जाना उपयुक्त है लेकिन पंचम का स्थान कालपुरुष के अनुसार सूर्य की राशि मे होने से सोने मे पहिने जाने से और भी फ़लदायी माना जा सकता है। इसी कुंडली मे जातक का नवा भाव भी खाली है इस भाव के लिये जातक तेईस अंश के मालिक हस्त नक्षत्र जिसका मालिक चन्द्रमा है के लिये गुरु कालपुरुष बुध राशि और नक्षत्र मालिक चन्द्रमा के अनुसार रत्न का उपयोग करने के बाद भाग्य जीवन की उन्नति और सहयोग के लिये आगे बढ सकता है। जातक केवल एलेक्जेन्डरा को ही प्रयोग करता है तो जातक को लगन पंचम और नवम का प्रभाव द्रश्य होने लगता है बाकी के रत्न धारण करने से गोचर से ग्रह के विपरीत अवस्था मे जाने से शनि के वक्री होने के समय में दिक्कत का कारण पैदा करने के लिये काफ़ी है। इसी तरह एक रतन कई कई प्रकार का होता है कैसे नीलम पुखराज कई कई रंगों में मिक्स आता है वह सब देख कर ही पहना जाता है अगर आप भी कोई रतन पहनना चाहते हैं तो किसी देवज्ञ को अपनी कुंडली दिखाकर ही करेंगे अगर आप मुझसे अपनी कुंडली दिखाना जब बनवाना चाहते हैं या कोई रतन पहनना चाहते हैं तो आप मुझसे संपर्क करें बॉडी सर्विस paid है Acharya Rajesh07597718725 09414481324

Gemlogy post no 2

शनिवार, 15 अप्रैल 2017

ज्योतिष विद्या ज्योतिषीय ज्ञान के रचनाकार और यहां तक की इसके सागर कहे जाने वाले महर्षि भृगु ने भी कहा है कि ‘ज्योतिष एक ऐसी गणितीय साधना है जो किसी प्रचंड तप से भी बड़ी है, जिसके द्वारा जन्मकाल के अनुसार भूत, वर्तमान और भविष्य के बारे में सही अनुमान लगाया जा सकता है, लेकिन अंतिम सच तो त्रिलोकी की महान शक्ति को ही पता है, जिसके मार्ग दर्शन में ब्रह्मांड की समस्त रहस्यमयी अलौकिक गतिविधियां संचालित होती हैं।’ कंप्यूटर से गणना के कारण आज भविष्यवाणियां पहले से ज्यादा सटीक होनी चाहिए थीं, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। ज्योतिषियों में कमी है या जन्मकाल और घटनाओं के सही समय में अंतर। आज आदमी अपनी निजी और व्यवसायिक समस्याओं का समाधान ज्योतिष में ज्यादा ही तलाश रहा है। उसके पास एक नहीं दो नहीं अपनी तीन-तीन कुंडलियां हैं। उसके किस समय और तिथि पर यकीन किया जाए? यह भी तथ्य है कि पहले इतने ज्योतिषी नहीं थे, जितने आज पैदा हो गए हैं। ज्योतिष विधा को अब लोग व्यवसाय के रूप में चुनने लगे हैं। यह पाठ्यक्रम में भी शामिल हो गई है। इस पर शोध भी चल रहे हैं। ऐसे लोग भी बहुत हैं, जो सफलता या मनवांछित फल की प्राप्ति के लिए ज्योतिषियों और तांत्रिकों को मुंह मांगा धन देते हैं। देश और विदेश की पत्र-पत्रिकाओं, विभिन्न इलेक्ट्रानिक चैनलों पर लैपटॉप लिए बैठे तथाकथित ज्योतिषियों का साम्राज्य चल रहा है। यदि किसी टीवी चैनल या समाचार पत्र के पास कोई नामधारी ज्योतिषी नहीं है तो दर्शक उस चैनल को शायद ही खोलें और समाचार पत्र शायद ही पढ़ें। प्रत्येक रविवार को बहुत से लोग केवल इसलिए समाचार पत्र खरीदते हैं कि उन्हें अपना साप्ताहिक भविष्यफल देखना होता है। -गलियों​ मे ओर फुटपाथ पर जगह-जगह ज्योतिषियों के तंबू लगे मिलते हैं, जिनमें लोग लाइन लगाकर अपनी किस्मत का हाल एवं कष्टों का सामाधान पूछते हैं। ज्योतिषी केवल साप्ताहिक और दैनिक भविष्यवाणी तक ही सीमित नहीं हैं, आम लोगों के लिए अब उन्होंने ज्योतिषीय आधार पर मकान दुकान, सामान तक की खरीददारी, विवाह संयोग, प्रेमसंबंध, नौकरी और राजनीति के बारे में डाक्टर की तरह सलाह देनी शुरू कर दी है। ऐसे भी समाचार सुनने को मिलते हैं कि ज्योतिषियों और तांत्रिक महानुभावों ने झूंठी-गढ़ी सलाह देकर, तंत्र के नाम डराकर अनेक लोगों के शानदार बंगले मिट्टी के मोल बिकवा दिए। कारखाने, फैक्ट्रियां बिकवा दीं और राजघरानों से लेकर राजनीतिक परिवारों और औद्योगिक घरानों तक में विभाजन करा दिया। ऐसा भी हुआ कि बहू को घर से बाहर निकलवा दिया। यह एक ऐसा विषय है जिसमें आदमी का अपना विवेक ज्योतिष के हाथों गिरवी सा हो जाता है, तब फिर सब कुछ ज्योतिषी और घर के गुरुजी, स्वामीजी पर निर्भर करता है कि वह क्या और कैसे गुल खिलाए। परिवारों और राजघरानों में ऐसे लालची ज्योतिषियों, गुरुजी और तांत्रिकबाबा के खिलाए हुए गुल बहुत सुनने को मिलते हैं। आज हर एक नौकरशाह, हर एक राजनेता, हर एक औद्योगिक घराने या विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले बड़े लोगों के पास एक ज्योतिषी है और एक गुरुजी हैं, जो अपने हिसाब से विशिष्टजनों के परिवारों और औद्योगिक घरानों को चला रहे हैं। अगर कोई विशिष्ट व्यक्ति शासन में मौजूद है तो उसके फैसलों तक को भी प्रभावित कर रहे हैं। जब जब कहीं चुनाव की गतविधियां जोर पकड़ती है और वैसे ही ज्योतिषियों और तांत्रिकबाबाओं का विजयी तंत्र सक्रिय हो उठता है। नेता नगरी में बहरहाल ज्योतिष विषय पर लिखने को बहुत कुछ है पर इतना जरूर है कि ज्योतिष आपका बहुत अच्छा मार्गदर्शक हो सकता है, वह आपको भविष्य की अनहोनियों से सचेत कर सकता है, मगर इस आधार पर अपनी योजनाएं बनाने में अपने विवेक का भी जरूर इस्तेमाल करें और झूंठे और पाखंडी ज्योतिषियों, तांत्रिकबाबाओं के चक्कर में न पड़कर उन लोगों को संतोष प्रदान करें जो आपमें कर्मफल पर अपने सुनहरे सपने देखते हैं

Acharya Rajesh: जैमोलॉजीजैमोलॉजी वास्‍तव में एक विज्ञान है और इस ...

Acharya Rajesh: जैमोलॉजी
जैमोलॉजी वास्‍तव में एक विज्ञान है और इस ...

शुक्रवार, 14 अप्रैल 2017

जैमोलॉजी जैमोलॉजी वास्‍तव में एक विज्ञान है और इस पर अच्‍छा खासा काम हो रहा है। यह बात अलग है कि कीमती पत्‍थरों ने अपना यह स्‍थान खुद बनाया है। ठीक सोने, चांदी और प्‍लेटिनम की तरह। इसमें ज्‍योतिष का कोई रोल नहीं है। तीन प्रकार के रत्नो का प्रयोग आमतौर पर लोग करते है,शरीर के लिये परिवार और सन्तान के लिये तथा भाग्य के लिये,यही कारण प्राण रक्षा के लिये बुद्धि के विकास के लिये और समय पर कार्य हो जाने के लिये भी माना जाता है। आमतौर पर एक ही रत्न को लोग पहिनने की राय देते है,और उस रत्न के पहिनने के बाद कुछ सीमा मे फ़ायदा और कुछ सीमा मे नुकसान होने की बात से भी मना नही किया जा सकता है।पर यकीन मानिए भाग्‍य के साथ रत्‍नों का जुड़ाव मोहनजोदड़ो सभ्‍यता के दौरान भी रहा है। उस जमाने में भी भारी संख्‍या में गोमेद रत्‍न प्राप्‍त हुए हैं। यह सामान्‍य अवस्‍था में पाया जाने वाला रत्‍न नहीं है, इसके बावजूद इसकी उत्‍तरी पश्चिमी भारत में उपस्थिति पुरातत्‍ववेत्‍ताओं के लिए भी आश्‍चर्य का विषय रही। पता नहीं उस दौर में इतने अधिक लोगों ने गोमेद धारण करने में रुचि क्‍यों दिखाई, या गोमेद का रत्‍न के रूप में धारण करने के अतिरिक्‍त भी कोई उपयोग होता था, यह स्‍पष्‍ट नहीं है, लेकिन वर्तमान में राहू की दशा भोग रहे जातक को राहत दिलाने के लिए गोमेद पहनाया जाता है।जो मेरे हिसाब से गलत है इंटरनेट और किताबों में रत्‍नों के बारे में विशद जानकारी देने वालों की कमी नहीं है। इसके वारे मेरी पोस्‍ट इसकी वास्‍तविक आवश्‍यकता के बारे में है। मैं एक ज्‍योतिष विद्यार्थी होने के नाते रत्‍नों को पहनने का महत्‍व बताने नहीं बल्कि इनकी वास्‍तविक आवश्‍यकता बताने का प्रयास करूंगा। वास्तव में दो विधाओं में उलझा है रत्‍न विज्ञान वर्तमान दौर में हस्‍तरेखा और परम्‍परागत ज्‍योतिष एक-दूसरे में इस तरह घुलमिल गए हैं कि कई बार एक विषय दूसरे में घुसपैठ करता नजर आता है। रत्‍नों के बारे में तो यह बात और भी अधिक शिद्दत से महसूस होती है। हस्‍तरेखा पद्धति ने हाथ की सभी अंगुलियों के हथेली से जुड़े भागों पर ग्रहों का स्‍वामित्‍व दर्शाया है। ऐसे में कुण्‍डली देखकर रत्‍न पहनने की सलाह देने वाले लोग भी हस्‍तरेखा की इन बातों को फॉलो करते दिखाई देते हैं। जैसे बुध के लिए बताया गया पन्‍ना हाथ की सबसे छोटी अंगुली में पहनने, गुरु के लिए पुखराज तर्जनी में पहनने और शनि मुद्रिका सबसे बड़ी अंगुली में पहनने की सलाहें दी जाती हैं। बाकी ग्रहों के लिए अनामिका तो है ही, क्‍योंकि यह सबसे शुद्ध है। मुझे इस शुद्धि का स्‍पष्‍ट आधार नहीं पता लेकिन शुक्र का हीरा, मंगल का मूंगा, चंद्रमा का मोती जैसे रत्‍न इसी अंगुली में पहनने की सलाह दी जाती है। अब रत्‍न किसे पहनाना आवश्‍यक है, इन सब बातों को लेकर कालान्‍तर में मैंने कुछ तय नियम बना लिए… अब ये कितने सही है कितने गलत यह तो नहीं बता सकता, लेकिन इससे जातक को धोखे में रखने की स्थिति से बच जाता हूं।वास्‍तव में जैम स्‍टोन से किस ग्रह का उपचार कैसे किया जाए इस बारे में कई तरह के मत हैं। कोई ग्रह के कमजोर होने पर रत्‍न पहनाने की सलाह देता है तो कोई केवल कारक ग्रह अथवा लग्‍नेश संबंधी ग्रह का रत्‍न पहनने की सलाह देता है। ऐसे में किसे क्‍या पहनाया जाए, यह बताना टेढ़ी खीर है। यहां के.एस. कृष्‍णामूर्ति को कोट करूं तो स्‍पष्‍ट है कि लग्‍नेश या नवमेश अथवा इनसे जुड़े ग्रहों का ही उपचार किया जा सकता है। ऐसे में कई दूसरे ग्रह जो फौरी तौर पर कुण्‍डली में बहुत स्‍ट्रांग पोजिशन में दिखाई भी दें तो उनसे संबंधित उपचार नहीं कराए जा सकते। मैं उदाहरण से समझाने का प्रयास करता हूं। तुला लग्‍न के जातक की कुण्‍डली में लग्‍न का अधिपति हुआ शुक्र, कारक ग्रह हुआ शनि और नवमेश हुआ बुध। अब कृष्‍णामूर्ति के अनुसार जब तक शनि का संबंध शुक्र या बुध से न हो तो उससे संबंधित उपचार नहीं किए जा सकते, यानि उपचार प्रभावी नहीं होगा, लेकिन परम्‍परागत ज्‍योतिष के अनुसार तुला लग्‍न के जातक को शनि संबंधी रत्‍न प्रमुखता से पहनाया जा सकता है। यह शरीर पंच भूतों से बना है और इन्ही के अधिकार मे सम्पूर्ण जीवन का विस्तार होता है। इन पंचभूतो मे किसी भी भूत की कमी या अधिकता जीवन के विस्तार मे अपने अपने प्रकार से दिक्कत देने के लिये अपना प्रभाव देने लगते है। ग्रहों के दो प्रकार सूर्य और चन्द्रमा के साथ देखे जाते है,जैसे मेष राशि का स्वामी मंगल है तो वह लगनेश के लिये मूंगा को पहिनने का कारक बनता है जो शरीर और प्राण रक्षा के लिये अपना प्रभाव देता है,लेकिन उसका असर धन के प्रति सही नही माना जा सकता है जैसे मंगल और शुक्र मे आपस मे नही बनती है,उसी प्रकार से बुध के साथ भी मंगल की नही बनती है,चन्द्रमा के साथ बराबर का असर रहता है सूर्य के साथ उसकी बहुत अधिक बढोत्तरी हो जाती है गुरु के साथ होने से अहम की मात्रा बढ जाती है और शनि के साथ मिलने से कसाई जैसी प्रकृति बन जाती है। तो मूंगा मेष लगन वालो के लिये धन व्यवहार कार्य जीवन साथी उन्नति के साधनो मे तो गलत असर देगा और शरीर मन आयु के साथ भलाई करेगा,अहम ज्ञान और शांति के साधनो मे बढोत्तरी करने से दिक्कत देने वाला बनेगा। अगर शनि लगन मे ही विराजमान है तो वह सिर दर्द की बीमारी देगा और जो भी सोचा जाता है उसके लिये अपनी तर्क शक्ति के विकास होने से तर्क वितर्क करने से होते हुये कार्य को भी बिगाडने की कोशिश करेगा। कार्य तकनीकी बन जायेगा और जो भी कार्य होगा वह मनुष्य शक्ति के अन्दर ही माना जायेगा जैसे शरीर विज्ञान मे रुचि,जो भी कार्य किया जायेगा उसके अन्दर नये नये आविष्कार होने के कारण कार्यों के अन्दर कठिनाई आने लगेगी,एक भाई को बहुत ही कठिनाई केवल इसलिये हो जायेगी कि वह परिवार मे सामजस्य बनाने की कोशिश करेगा और तामसी कारण बढ जाने से परिवार मे अशान्ति का माहौल बना रहेगा। युवावस्था मे अपनी ही चलाने के कारण घर के लोगो से दूरिया बन जायेंगी और विरोधी युवावस्था के बाद हावी हो जायेंगे,दुश्मनी अधिक बन जायेगी और जो भला भी करना चाहेंगे वे डर की बजह से दूर होते चले जायेंगे नाक पर गुस्सा होगा,यानी जरा सी बात का बतंगड बनाने में देर नही लगेगी। यही मंगल जब राहु पर गोचर से अपना असर दिखायेगा या जन्म के समय से ही राहु के सानिध्य मे होगा तो मूंगा का असर दिमाग को पहिया की तरह से घुमाने से बाज नही आयेगा,क्या कहना है किससे कैसे बात करनी है यह सोच विचार बिलकुल ही खत्म हो जायेगी,पारिवारिक कारणो मे भी अक्सर पैतृक सम्पत्ति के पीछे नये नये विवाद बनते जायेंगे और घर के सदस्य ही किसी न किसी प्रकार की घात लगाने लगेंगे,व्यवहार भी तानाशाही जैसा बन जायेगा,जो भी बात की जायेगी वह हुकुम जैसी होगी,इस बात का असर भाई पर भी जायेगा और वह अधिक चिन्ता के cc कारण या आन्तरिक दुश्मनी से दुर्घटना का शिकार भी हो जायेगा,अगर व्यक्ति का बडा भाई भी है तो उसकी चलेगी नही या मूंगा को धारण करने के बाद वह घर से अलग हो जायेगा,अधिक सोच के कारण से व्यक्ति के अन्दर ब्लड प्रेसर की बीमारी पैदा हो जायेगी। किसी प्रकार से मंगल की युति कुंडली मे केतु से है तो स्त्री जातक के लिये परेशानी का कारण बन जायेगा यानी पति का व्यवहार बिलकुल सन्यासी जैसा हो जायेगा,वह अकेला बैठ कर जाने क्या क्या सोचने लगेगा और दूर रहकर ही अपने जीवन को बिताने का कारण सोचने लगेगा,पति का इन्तजार पत्नी को और पत्नी का इन्तजार पति को रहेगा दोनो कभी इकट्ठे नही रह पायेंगे और रहेंगे भी तो जैसे कुत्ते बिल्ली लडते है वैसे आपस के विचारों की लडाई शुरु हो जायेगी,केतु के साथ मंगल के होने से कुंडली में मंगल दोष भले ही नही हो लेकिन मूंगा को पहिनने के बाद जबरदस्ती मे मंगली दोष को पैदा कर लिया जायेगा,शादी मे देरी हो जायेगी,घर मे किसी को भी मानसिक बीमारी पैदा हो सकती है लो ब्लड प्रेसर की बीमारी भी पैदा हो सकती है। अगर दो तीन भाई है तो एक तो किसी प्रकार से अनैतिक कार्यों की तरफ़ भागने लगेगा,और दूसरा किसी प्रकार से घर को त्याग कर ही चला जायेगा,कई बार लोगों के द्वारा अनर्गल बयान दिये जाते है कि अमुक पत्थर के पहिनते ही उन्हे आशातीत लाभ हो गया,अमुक ज्योतिषी ने अमुक रत्न दिया था उससे उन्हे बहुत लाभ हो गया,लेकिन यह क्यों नही सोचा जाता है कि ज्योतिषी केवल तत्व की मीमांशा का ही हाल देता है कभी भी ज्योतिषी केवल रत्न पहिने के बाद आराम मिलना नही बोलता है,रत्न एक यंत्र की तरह से है,रत्न का मंत्र रत्न की विद्या की तरह से है और रत्न का कब प्रयोग करना है कैसे प्रयोग करना है कैसे उसे सम्भालना है आदि की जानकारी तंत्र है। केवल रत्न के पहिनने से कोई लाभ नही होता है ऐसा मैने अपने ज्योतिषीय जीवन मे नही देखा है,वैसे अपने श्रंगार के लिये कितनी ही अंगूठिया पहिने रहो हार मे कितने ही रत्न जडवा दो लेकिन इस मान्यता मे रत्न पहिन लिया जाये कि केवल रत्न ही काम करेगा यह असम्भव बात ही मिलती है।मनुष्य जब भ्रम मे चला जाता है तो उसके लिये ध्यान को भंग करना जरूरी होता है यह मनोवैज्ञानिक कारण है,जब किसी के सामने अपनी समस्या को बताया जाता है तो वह समस्या को सुनता है समस्या की शुरुआत का समय सितारों से निकाला जाता है,समस्या के अन्त का समय भी सितारों से निकाला जाता है,अगर सितारा जो गलत फ़र्क दे रहा है तो उस सितारे के लिये रत्न का पहिना जाना उत्तम माना जाता है,सबसे पहले अच्छे रत्न की पहिचान करना जरूरी होता है,इसे कोई जानने वाला ही पहिचान करवा सकता है वैसे आजकल रत्न परीक्षणशाला बन गयी है और रत्न का परीक्षण करने के लिये रत्नो की कठोरता रत्न के अन्दर की कारकत्व वाली स्थिति को बताया जाता है,जब प्रयोगशाला बन गयी है तो प्रयोगशाला से किन किन तत्वो का निराकरण मिलता है उसके बारे मे रत्न का व्यवसाय करने वालो के लिये जानकारी भी मिल गयी है कि मशीन से कितना और क्या बताया जा सकता है,आजकल की वैज्ञानिक सोच को समझने वाले लोग यह भी समझते है कि रत्न जो भूमि के नीचे से प्राप्त होता है की परिस्थितिया भी सर्दी गर्मी बरसात पर निर्भर होकर और जीवांश के मिश्रण से ही बनी होती है मारे शरीर के चारों ओर एक आभामण्डल होता है, जिसे वे AURA कहते हैं। ये आभामण्डल सभी जीवित वस्तुओं के आसपास मौजूद होता है। मनुष्य शरीर में इसका आकार लगभग 2 फीट की दूरी तक रहता है। यह आभामण्डल अपने सम्पर्क में आने वाले सभी लोगों को प्रभावित करता है। हर व्यक्ति का आभामण्डल कुछ लोगों को सकारात्मक और कुछ लोगों को नकारात्मक प्रभाव होता है, जो कि परस्पर एकदूसरे की प्रकृति पर निर्भर होता है। विभिन्न मशीनें इस आभामण्डल को अलग अलग रंगों के रूप में दिखाती हैं । वैज्ञानिकों ने रंगों का विश्लेषण करके पाया कि हर रंग का अपना विशिष्ट कंपन या स्पंदन होता है। यह स्पन्दन हमारे शरीर के आभामण्डल, हमारी भावनाओं, विचारों, कार्यकलाप के तरीके, किसी भी घटना पर हमारी प्रतिक्रिया, हमारी अभिव्यक्तियों आदि को सम्पूर्ण रूप से प्रभावित करते है। वैज्ञानिकों के अनुसार हर रत्न में अलग क्रियात्मक स्पन्दन होता है। इस स्पन्दन के कारण ही रत्न अपना विशिष्ट प्रभाव मानव शरीर पर छोड़ते हैं। आचार्य राजेश

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जैमोलॉजी जैमोलॉजी वास्‍तव में एक विज्ञान है और इस पर अच्‍छा खासा काम हो रहा है। यह बात अलग है कि कीमती पत्‍थरों ने अपना यह स्‍थान खुद बनाया है। ठीक सोने, चांदी और प्‍लेटिनम की तरह। इसमें ज्‍योतिष का कोई रोल नहीं है। तीन प्रकार के रत्नो का प्रयोग आमतौर पर लोग करते है,शरीर के लिये परिवार और सन्तान के लिये तथा भाग्य के लिये,यही कारण प्राण रक्षा के लिये बुद्धि के विकास के लिये और समय पर कार्य हो जाने के लिये भी माना जाता है। आमतौर पर एक ही रत्न को लोग पहिनने की राय देते है,और उस रत्न के पहिनने के बाद कुछ सीमा मे फ़ायदा और कुछ सीमा मे नुकसान होने की बात से भी मना नही किया जा सकता है।पर यकीन मानिए भाग्‍य के साथ रत्‍नों का जुड़ाव मोहनजोदड़ो सभ्‍यता के दौरान भी रहा है। उस जमाने में भी भारी संख्‍या में गोमेद रत्‍न प्राप्‍त हुए हैं। यह सामान्‍य अवस्‍था में पाया जाने वाला रत्‍न नहीं है, इसके बावजूद इसकी उत्‍तरी पश्चिमी भारत में उपस्थिति पुरातत्‍ववेत्‍ताओं के लिए भी आश्‍चर्य का विषय रही। पता नहीं उस दौर में इतने अधिक लोगों ने गोमेद धारण करने में रुचि क्‍यों दिखाई, या गोमेद का रत्‍न के रूप में धारण करने के अतिरिक्‍त भी कोई उपयोग होता था, यह स्‍पष्‍ट नहीं है, लेकिन वर्तमान में राहू की दशा भोग रहे जातक को राहत दिलाने के लिए गोमेद पहनाया जाता है।जो मेरे हिसाब से गलत है इंटरनेट और किताबों में रत्‍नों के बारे में विशद जानकारी देने वालों की कमी नहीं है। इसके वारे मेरी पोस्‍ट इसकी वास्‍तविक आवश्‍यकता के बारे में है। मैं एक ज्‍योतिष विद्यार्थी होने के नाते रत्‍नों को पहनने का महत्‍व बताने नहीं बल्कि इनकी वास्‍तविक आवश्‍यकता बताने का प्रयास करूंगा। वास्तव में दो विधाओं में उलझा है रत्‍न विज्ञान वर्तमान दौर में हस्‍तरेखा और परम्‍परागत ज्‍योतिष एक-दूसरे में इस तरह घुलमिल गए हैं कि कई बार एक विषय दूसरे में घुसपैठ करता नजर आता है। रत्‍नों के बारे में तो यह बात और भी अधिक शिद्दत से महसूस होती है। हस्‍तरेखा पद्धति ने हाथ की सभी अंगुलियों के हथेली से जुड़े भागों पर ग्रहों का स्‍वामित्‍व दर्शाया है। ऐसे में कुण्‍डली देखकर रत्‍न पहनने की सलाह देने वाले लोग भी हस्‍तरेखा की इन बातों को फॉलो करते दिखाई देते हैं। जैसे बुध के लिए बताया गया पन्‍ना हाथ की सबसे छोटी अंगुली में पहनने, गुरु के लिए पुखराज तर्जनी में पहनने और शनि मुद्रिका सबसे बड़ी अंगुली में पहनने की सलाहें दी जाती हैं। बाकी ग्रहों के लिए अनामिका तो है ही, क्‍योंकि यह सबसे शुद्ध है। मुझे इस शुद्धि का स्‍पष्‍ट आधार नहीं पता लेकिन शुक्र का हीरा, मंगल का मूंगा, चंद्रमा का मोती जैसे रत्‍न इसी अंगुली में पहनने की सलाह दी जाती है। अब रत्‍न किसे पहनाना आवश्‍यक है, इन सब बातों को लेकर कालान्‍तर में मैंने कुछ तय नियम बना लिए… अब ये कितने सही है कितने गलत यह तो नहीं बता सकता, लेकिन इससे जातक को धोखे में रखने की स्थिति से बच जाता हूं।वास्‍तव में जैम स्‍टोन से किस ग्रह का उपचार कैसे किया जाए इस बारे में कई तरह के मत हैं। कोई ग्रह के कमजोर होने पर रत्‍न पहनाने की सलाह देता है तो कोई केवल कारक ग्रह अथवा लग्‍नेश संबंधी ग्रह का रत्‍न पहनने की सलाह देता है। ऐसे में किसे क्‍या पहनाया जाए, यह बताना टेढ़ी खीर है। यहां के.एस. कृष्‍णामूर्ति को कोट करूं तो स्‍पष्‍ट है कि लग्‍नेश या नवमेश अथवा इनसे जुड़े ग्रहों का ही उपचार किया जा सकता है। ऐसे में कई दूसरे ग्रह जो फौरी तौर पर कुण्‍डली में बहुत स्‍ट्रांग पोजिशन में दिखाई भी दें तो उनसे संबंधित उपचार नहीं कराए जा सकते। मैं उदाहरण से समझाने का प्रयास करता हूं। तुला लग्‍न के जातक की कुण्‍डली में लग्‍न का अधिपति हुआ शुक्र, कारक ग्रह हुआ शनि और नवमेश हुआ बुध। अब कृष्‍णामूर्ति के अनुसार जब तक शनि का संबंध शुक्र या बुध से न हो तो उससे संबंधित उपचार नहीं किए जा सकते, यानि उपचार प्रभावी नहीं होगा, लेकिन परम्‍परागत ज्‍योतिष के अनुसार तुला लग्‍न के जातक को शनि संबंधी रत्‍न प्रमुखता से पहनाया जा सकता है। यह शरीर पंच भूतों से बना है और इन्ही के अधिकार मे सम्पूर्ण जीवन का विस्तार होता है। इन पंचभूतो मे किसी भी भूत की कमी या अधिकता जीवन के विस्तार मे अपने अपने प्रकार से दिक्कत देने के लिये अपना प्रभाव देने लगते है। ग्रहों के दो प्रकार सूर्य और चन्द्रमा के साथ देखे जाते है,जैसे मेष राशि का स्वामी मंगल है तो वह लगनेश के लिये मूंगा को पहिनने का कारक बनता है जो शरीर और प्राण रक्षा के लिये अपना प्रभाव देता है,लेकिन उसका असर धन के प्रति सही नही माना जा सकता है जैसे मंगल और शुक्र मे आपस मे नही बनती है,उसी प्रकार से बुध के साथ भी मंगल की नही बनती है,चन्द्रमा के साथ बराबर का असर रहता है सूर्य के साथ उसकी बहुत अधिक बढोत्तरी हो जाती है गुरु के साथ होने से अहम की मात्रा बढ जाती है और शनि के साथ मिलने से कसाई जैसी प्रकृति बन जाती है। तो मूंगा मेष लगन वालो के लिये धन व्यवहार कार्य जीवन साथी उन्नति के साधनो मे तो गलत असर देगा और शरीर मन आयु के साथ भलाई करेगा,अहम ज्ञान और शांति के साधनो मे बढोत्तरी करने से दिक्कत देने वाला बनेगा। अगर शनि लगन मे ही विराजमान है तो वह सिर दर्द की बीमारी देगा और जो भी सोचा जाता है उसके लिये अपनी तर्क शक्ति के विकास होने से तर्क वितर्क करने से होते हुये कार्य को भी बिगाडने की कोशिश करेगा। कार्य तकनीकी बन जायेगा और जो भी कार्य होगा वह मनुष्य शक्ति के अन्दर ही माना जायेगा जैसे शरीर विज्ञान मे रुचि,जो भी कार्य किया जायेगा उसके अन्दर नये नये आविष्कार होने के कारण कार्यों के अन्दर कठिनाई आने लगेगी,एक भाई को बहुत ही कठिनाई केवल इसलिये हो जायेगी कि वह परिवार मे सामजस्य बनाने की कोशिश करेगा और तामसी कारण बढ जाने से परिवार मे अशान्ति का माहौल बना रहेगा। युवावस्था मे अपनी ही चलाने के कारण घर के लोगो से दूरिया बन जायेंगी और विरोधी युवावस्था के बाद हावी हो जायेंगे,दुश्मनी अधिक बन जायेगी और जो भला भी करना चाहेंगे वे डर की बजह से दूर होते चले जायेंगे नाक पर गुस्सा होगा,यानी जरा सी बात का बतंगड बनाने में देर नही लगेगी। यही मंगल जब राहु पर गोचर से अपना असर दिखायेगा या जन्म के समय से ही राहु के सानिध्य मे होगा तो मूंगा का असर दिमाग को पहिया की तरह से घुमाने से बाज नही आयेगा,क्या कहना है किससे कैसे बात करनी है यह सोच विचार बिलकुल ही खत्म हो जायेगी,पारिवारिक कारणो मे भी अक्सर पैतृक सम्पत्ति के पीछे नये नये विवाद बनते जायेंगे और घर के सदस्य ही किसी न किसी प्रकार की घात लगाने लगेंगे,व्यवहार भी तानाशाही जैसा बन जायेगा,जो भी बात की जायेगी वह हुकुम जैसी होगी,इस बात का असर भाई पर भी जायेगा और वह अधिक चिन्ता के cc कारण या आन्तरिक दुश्मनी से दुर्घटना का शिकार भी हो जायेगा,अगर व्यक्ति का बडा भाई भी है तो उसकी चलेगी नही या मूंगा को धारण करने के बाद वह घर से अलग हो जायेगा,अधिक सोच के कारण से व्यक्ति के अन्दर ब्लड प्रेसर की बीमारी पैदा हो जायेगी। किसी प्रकार से मंगल की युति कुंडली मे केतु से है तो स्त्री जातक के लिये परेशानी का कारण बन जायेगा यानी पति का 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है,रत्न एक यंत्र की तरह से है,रत्न का मंत्र रत्न की विद्या की तरह से है और रत्न का कब प्रयोग करना है कैसे प्रयोग करना है कैसे उसे सम्भालना है आदि की जानकारी तंत्र है। केवल रत्न के पहिनने से कोई लाभ नही होता है ऐसा मैने अपने ज्योतिषीय जीवन मे नही देखा है,वैसे अपने श्रंगार के लिये कितनी ही अंगूठिया पहिने रहो हार मे कितने ही रत्न जडवा दो लेकिन इस मान्यता मे रत्न पहिन लिया जाये कि केवल रत्न ही काम करेगा यह असम्भव बात ही मिलती है।मनुष्य जब भ्रम मे चला जाता है तो उसके लिये ध्यान को भंग करना जरूरी होता है यह मनोवैज्ञानिक कारण है,जब किसी के सामने अपनी समस्या को बताया जाता है तो वह समस्या को सुनता है समस्या की शुरुआत का समय सितारों से निकाला जाता है,समस्या के अन्त का समय भी सितारों से निकाला जाता है,अगर सितारा जो गलत फ़र्क दे रहा है तो उस सितारे के लिये रत्न का पहिना जाना उत्तम माना जाता है,सबसे पहले अच्छे रत्न की पहिचान करना जरूरी होता है,इसे कोई जानने वाला ही पहिचान करवा सकता है वैसे आजकल रत्न परीक्षणशाला बन गयी है और रत्न का परीक्षण करने के लिये रत्नो की कठोरता रत्न के अन्दर की कारकत्व वाली स्थिति को बताया जाता है,जब प्रयोगशाला बन गयी है तो प्रयोगशाला से किन किन तत्वो का निराकरण मिलता है उसके बारे मे रत्न का व्यवसाय करने वालो के लिये जानकारी भी मिल गयी है कि मशीन से कितना और क्या बताया जा सकता है,आजकल की वैज्ञानिक सोच को समझने वाले लोग यह भी समझते है कि रत्न जो भूमि के नीचे से प्राप्त होता है की परिस्थितिया भी सर्दी गर्मी बरसात पर निर्भर होकर और जीवांश के मिश्रण से ही बनी होती है मारे शरीर के चारों ओर एक आभामण्डल होता है, जिसे वे AURA कहते हैं। ये आभामण्डल सभी जीवित वस्तुओं के आसपास मौजूद होता है। मनुष्य शरीर में इसका आकार लगभग 2 फीट की दूरी तक रहता है। यह आभामण्डल अपने सम्पर्क में आने वाले सभी लोगों को प्रभावित करता है। हर व्यक्ति का आभामण्डल कुछ लोगों को सकारात्मक और कुछ लोगों को नकारात्मक प्रभाव होता है, जो कि परस्पर एकदूसरे की प्रकृति पर निर्भर होता है। विभिन्न मशीनें इस आभामण्डल को अलग अलग रंगों के रूप में दिखाती हैं । वैज्ञानिकों ने रंगों का विश्लेषण करके पाया कि हर रंग का अपना विशिष्ट कंपन या स्पंदन होता है। यह स्पन्दन हमारे शरीर के आभामण्डल, हमारी भावनाओं, विचारों, कार्यकलाप के तरीके, किसी भी घटना पर हमारी प्रतिक्रिया, हमारी अभिव्यक्तियों आदि को सम्पूर्ण रूप से प्रभावित करते है। वैज्ञानिकों के अनुसार हर रत्न में अलग क्रियात्मक स्पन्दन होता है। इस स्पन्दन के कारण ही रत्न अपना विशिष्ट प्रभाव मानव शरीर पर छोड़ते हैं। आचार्य राजेश

Rattan jyotish

गुरुवार, 13 अप्रैल 2017

ग्रहों से चोखा पोस्ट नंबर ३ मित्रोंजो भी हमारे साथ होता है उसके पीछे भाग्य तो होता ही है परन्तु कुंडली में ग्रहों का अध्ययन करके हम घटनाओं के कारणों का पता लगा सकते हैं और बहुत से घटनाओं के प्रति सचेत हो सकते हैं.हमारे जन्म होते ही हम कई प्रकार के संबंधो से घिर जाते हैं जैसे, माता-पिता के साथ सम्बन्ध, उनसे जुड़े लोगो से सम्बन्ध , जिन्हें हम अलग अलग नामो से पुकारते हैंउम्र बढ़ने के साथ ही और भी बहुत से सम्बन्ध बनते चले जाते हैं जैसे दोस्त, प्रेमी, पति-पत्नी, गुरु, साथी आदि. परन्तु इससे भी हम मना नहीं कर सकते हैं की कुछ लोग जीवन में कुछ रिश्तो से धोखा खा जाते हैं या फिर यूँ कहे की कुछ संबंधो के साथ लोगो के अनुभव नकारात्मक होते हैं.किसी पे भरोसा करने का कोई एक सिधांत नहीं है, कोई भी जीवन में धोखा दे सकता है, कोई भी हमे नुक्सान दे सकता है. हम सोच भी नहीं सकते हैं की कौन हमे क्या दे जाएगा जीवन में और कौन क्या ले जाएगा.कैसे हम जाने की कौन व्यक्ति हमारे लिए फायदेमंद है, शुभ है और कौन नुक्सान दे सकता है. कैसे कोई अपने माता-पिता से अच्छा समर्थन प्राप्त करता है कैसे कोई किसी व्यक्ति से नुक्सान या धोखा खा जाता है. कुंडली के बारह भाव पर प्रत्येक भाव कुछ ना कुछ कहता है हर भाव से अपने रिश्ते नाते जुड़े हुए हैं और भी बहुत से कारण भाव से देखे जातेहैं जन्म हो गया तो शरीर है और शरीर है तो किसी ने तो जन्म दिया ही है,जन्म के कारक ग्रह का धोखे मे होना भी एक प्रकार से जन्म देने का धोखा माना गया है,जैसे माता को ध्यान ही नही था कि उसे गर्भ रह सकता है,और धोखे से गर्भ रह गया और जन्म भी हो गया,जन्म के बाद माता ने त्याग कर दिया और किसी अस्पताल या किसी अन्य प्रकार से शरीर को दूसरो के हवाले कर दिया यह धोखा लगनेश के साथ धोखा होना माना जाता है और लगनेश के द्वारा राहु की छत्रछाया मे रहना तथा जिसे अपना समझा गया है वह अपना है ही नही और जिसे अपना नही माना गया है वह अपना है इस प्रकार की भ्रांति जीवन मे चलती रहती है,जैसे अक्सर दत्तक संतान के मामले मे जाना जाता है,जब बच्चे को छोटी उम्र मे ही गोद दे दिया जाता है और उस बच्चे का पालन पोषण दूसरे स्थान पर होता है,वह बच्चा बडा होकर किसी भी प्रकार से यह मानने के लिये तैयार नही होता है कि वह जिसको माता कह रहा था वह माता है ही नही या गोद देने के बाद जब जातक बडा होने लगा और जिसने गोद दे दिया,कालान्तर मे गोद लेने और गोद देने वाले के बीच मे शत्रुता हो जाती है तो बालक जिसके पास गोद गया है वह अपने खुद के माता पिता से शत्रुता तो कर ही लेगा,लेकिन उसे पता नही है कि वह अपने से ही शत्रुता कर रहा है और जो उसका शत्रु है उससे अपनी मित्रता को किये बैठा है. दूसरे भाव के बारे मे धोखा भी देने वाला दूसरे भाव का ग्रह होता है अक्सर जो पूंजी माता पिता के द्वारा इकट्टी की जातीहै और कहा जाता है कि यह पूंजी जातक के लिये ही है वह चाहे सोना चांदी हो हीरा मोती हो या नगद धन हो,अथवा खुद के परिवार के लोग ही हो,लेकिन जैसे ही जातक बडा होता है खुद के लोग ही उस धन को यह कहकर हडप लेते है कि वह उस परिवार मे केवल पालने पोषने के लिये ही रखा गया था और उस धन पर अधिकार अलावा लोगो का है,जैसे ननिहाल मे पला जातक,किसी अन्य रिस्तेदार के पास पला जातक किसी दोस्त के घर पर पला जातक आदि इसी श्रेणी मे आते है। तीसरे भाव के धोखे के बारे मे कहा जाता है कि जातक जहां है वही के लोगो के साथ अपनी दिनचर्या को बना रहा है,उसी प्रकार की जलवायु मे अपने समय को निकाल रहा है खान पान रहन सहन भोजन कपडा आदि उसी स्थान के प्रति ग्रहण कर रहा है,उसने अपने द्वारा प्रदर्शित करने वाले कारक जैसे ड्रेस आदि जो अपनाये है वह उसी रहने वाले स्थान के अनुरूप अपनाये है जो धर्म अपनाया जा रहा है रहने वाले स्थान के अनुसार ही अपनाया जा रहा है,लेकिन बाद मे पता चलता है कि वह केवल अपने माता पिता की कार्य की रूप रेखा की वजह से वहां निवास कर रहा था और उसे जब सभी कुछ बदलने के लिये बताया जाता है तो वह तीसरे भाव का धोखा माना जाता है. चौथे भाव का धोखा सबसे अधिक खराब माना जाता है,अक्सर इस भाव के स्वामी का राहु के साथ होने पर हमेशा ही मानसिक भ्रम दिया करता है जातक को कभी भी किसी भी स्थान पर चैन से नही रहने देता है जब भी जातक यात्रा करता है तो अक्सर उसकी यात्रा की रास्ता किसी न किसी प्रकार से बदल जाती है वह पानी पी रहा होता है तो उसे यह ध्यान ही नही रहता है कि उसे कितना पानी पीना है,अथवा वह अपने इस दोष के कारण शराब आदि पेय पदार्थो को अपने लिये प्रयोग करना इसीलिये शुरु कर देता है कि वह अपने इस भ्रम वाले स्वभाव से थोडा आराम ले सके लेकिन यह प्रभाव उसे अक्सर बडी बीमारियों से ग्रस्त कर देता है और ऊपरी बीमारियों के साथ जनन तंत्रों वाली बीमारियां भी उसे परेशान करने लगती है. पंचम भाव का धोखा बहुत ही दिक्कत वाला माना जाता है,जातक को या तो अपने प्रति इतना भरोसा हो जाता है कि किसी को कुछ भी नही गिनता है हमेशा अपने को ही आगे गिनने के चक्कर मे किसी समय बहुत बडे संकट मे आजाता है,या फ़िर अपने लिये आगे की सन्तति से दूर रखने वाला इसलिये ही माना जाता है कि उसके जीवन साथी के प्रति हमेशा ही किसी न किसी प्रकार से बनाव बिगाड चलते रहते है जब भी सन्तान पैदा करने का समय आता है जातक के प्रति कई प्रकार की धारनाये या तो जीवन साथी बदल देता है या जातक खुद ही जीवन साथी से भ्रम से दूर हो जाता है। इस प्रकार के धोखा देने वाले कारण अक्सर राजनीति से सम्बन्ध रखने वाले लोगों फ़िल्म मीडिया मे काम करने वालो लोगों शिक्षा के क्षेत्र मे या मनोरंजन के क्षेत्र मे काम करने वाले लोगो के साथ होता देखा जाता है इस बात से सन्तान का आना केवल पुत्र संतान के लिये ही माना जाता है स्त्री संतान मे यह धोखा कभी भी अपना कार्य नही रोकता है। इसी प्रकार से जातक के अन्दर अधिक अहम आने के कारण जातक अपनी परिवार की स्थिति को भी बरबाद करने के लिये माना जाता है जैसे पीछे अठारह साल की कमाई को वह केवल अठारह महिने के अन्दर ही बरबाद करने की अपनी युति को पैदा कर लेता है जैसे वह लाटरी सट्टा जुआ आदि वाले कामो के अन्दर अपनी औकात को छठे भाव का धोखा अक्सर बीमारी के मामले मे कर्जा के मामले मे ब्याज कमाने के मामले मे दुश्मनी करने के मामले मे नौकरी के मामले मे या नौकरो के मामले मे देखा जाता है। इस भाव मे आकर कोई भी ग्रह अपनी युति से धोखा देता है। वह राहु से सम्बन्ध रखे या नही रखे। अक्सर बीमारी के मामले मे भी धोखा देखा जाता है कि मामूली सा बुखार समझते समझते पता चलता है कि वह तो बहुत बडा वायरल या डेंगू जैसा बुखार है,किसी हल्की सी फ़ुन्सी को समझने के बाद पता चलता है कि वह एक केंसर का रूप है या किसी प्रकार के रोजाना के काम को लगातार करने के बाद पता चलता है कि वह काम केवल दिखावा ही था उस काम को करने के बाद कोई फ़ायदा भी नही है और नुकसान भी खूब लग गया है,किसी को कर्जा देने के बाद पहले यानी कर्जा लेने तक तो वह व्यक्ति अपने आसपास घूमने वाला अपनी हर हां मे हां मिलाने वाला था लेकिन जैसे ही कर्जा दिया वह अक्समात ही दूर भी होने लगा और उसने दुश्मनी भी बना ली,या जिस बैंक या किसी फ़ाइनेंस के क्षेत्र मे ब्याज के लोभ से धन को जमा किया जा रहा था वह बैंक या फ़ाइनेंस कम्पनी ही धोखा देकर धन को बरबाद करने के बाद जाने कहां चली गयी। इसके अलावा भी कोई अपनी जुगत लगाकर अन्दरूनी दुश्मनी को निकालने के लिये पहले अपने घर आता था और बहुत अच्छे से सम्बोधन को प्रयोग करता था,जैसे कोई अपने मित्र की पत्नी को बहिन के रूप मे तो मानता था लेकिन उसके अन्दर धोखे को देने वाली बात थी वह बहिन का दर्जा देकर एक दिन पत्नी को लेकर ही फ़रार हो गया,अथवा कोई घर मे आकर अपनी पैठ बनाकर घर के वातावरण को समझता रहा और एक दिन मौका पाकर वह घर का महंगा सामान समेट कर चलता बना आदि बाते देखी जाती है,इसके अलावा भी नौकर को बहुत ही अच्छी तरह से रखा गया था,वह अपनी चाल से एक दिन कोई बडा अहित करने के बाद चलता बना,किसी की नौकरी करते करते बहुत समय हो गया और वह नौकरी करवाने वाला व्यक्ति एक दिन किसी बडे फ़रेब को देकर दूर हो गया और जेल आदि की बाते खुद को झेलनी पडी अथवा नौकरी करने के बाद जब सैलरी को मांगा गया तो कोई दूसरा आरोप देकर बाहर का रास्ता दिखा दिया गया आदि बाते मानी जाती है. सप्तम का धोखा भी नौकरी और जीवन साथी के अलावा साझेदार के लिये माना जाता है,सप्तम का मालिक राहु के साथ है या शनि के साथ है तो धोखा मिलना जरूरी है उसे जीवन साथी से भी धोखा मिलता है उसे साझेदार से भी धोखा मिलता है उसे जो भी काम अपने जीवन यापन के लिये करना होता है वहां से भी धोखा मिलता है,किसी प्रकार के लेन देन के समय के अन्दर किसी की जमानत आदि करने मे भी धोखा मिलता है किसी का बीच बचाव करने या किसी रिस्ते के प्रति बेलेन्स बैठाने के अन्दर भी धोखा मिलता है। इसी प्रकार से जब जातक के साथ किसे एका मुकद्दमा आदि चलता है तो उसके द्वारा भी धोखा दिया जाता है,किसी प्रकार के कागजी धोखे को भी इसी क्षेत्र से माना जाता है। पुरुषा जाति के लिये शुक्र राहु और स्त्री जाति के लिये गुरु राहु का साथ हमेशा ही धोखा देने वाला माना जाता है। अष्टम भाव का धोखा अक्सर किये जाने वाले कामो से देखने को मिलते है,पहले आशा लगी रहती है कि इस काम को करने के बाद बहुत लाभ होगा और एक समय ऐसा आता है कि पूरी मेहनत भी लग चुकी होती है पास का धन भी चला गया होता है पता चलता है कि काम का मूल्य ही समाप्त हो चुका है,इसी प्रकार का धोखा अधिकतर मंत्र तंत्र और यंत्र बनाने वाले अद्भुत चीजो का व्यापार करने वाले शमशान सिद्धि का प्रयोग करने वाले भी करते है जब राहु का स्थान किसी के अष्टम मे होता है या अष्टम का स्वामी किसी प्रकार से राहु केतु शनि के घेरे मे होता है तो वह इन्ही लोगो के द्वारा धोखा खाने वाला माना जाता है यह कारण दशा के अन्दर भी देखा जाता है जैसे धनेश और राहु की दशा मे या अष्टमेश और राहु की दशा मे इसी प्रकार की धोखे वाली बात होती देखी जाती है.अक्सर इसी प्रकार के धोखे शीलहरण के लिये स्त्रियों मे भी देखे जाते है जब भी कोई अपनी रसभरी बातो को कहता है या अपने प्रेम जाल मे ले जाने के लिये चौथे भाव या बारहवे भाव की बातो को प्रदर्शित करता है तो उन्हे समझ लेना चाहिये कि उनके लिये कोई बडा धोखा केवल उनके शील को हरने के लिये किया जा रहा है,इस धोखे के बाद उनका मन मस्तिष्क और ईश्वरीय शक्तिओं से भरोसा उठना भी माना जा सकता है,इस भाव का धोखा उन लोगो के लिये भी दिक्कत देने वाला होता है जो डाक्टरी काम करते है वह अपने धोखे के अन्दर आकर किसी बीमारी को समझ कर कोई दवाई दे देते है और उस दवाई को देने के बाद मरीज बजाय बीमारी से ठीक होने के ऊपर का रास्ता पकड लेता है। यही बात इन्जीनियर का काम करने वाले लोगो के साथ भी होता है वह धोखे मे आकर अपनी रिपेयर करने वाली चीज मे या तो अधिक वोल्टेज की सप्लाई देकर उसे बजाय ठीक करने के फ़ूंक देते या सोफ़्टवेयर को गलत रूप से डालकर पूरे प्रोग्राम ही समाप्त कर लेते है। नवे भाव के ग्रह के लिये धोखा देने वाली बाते अक्सर धर्म स्थान मे धोखा होना यात्रा जो बडे रूप से की जा रही है या विदेश का रूप बनाया जा रहा है के लिये माना जाता है यह बात ऊंची शिक्षा के मामले मे भी देखी जाती है कानून के अन्दर भी देखी जाती है और सही रूप मे माने तो जाति बिरादरी और समाज के लिये भी मानी जाती है। कभी कभी एक धर्म स्थान के लिये लगातार प्रचार किया जाता है और उस प्रचार के अन्दर एक भावना धोखा देने वाली छुपी होती है.उस धोखे मे वही लोग अधिक ठगे जाते है जिनके नवम भाव के मालिक का कारक या तो राहु की चपेट मे होता है या त्रिक स्थानो के स्वामी के साथ अपने गोचर से चल रहा होता है अथवा दशा का प्रभाव चल रहा होता है। दसवे भाव के धोखे वाली बातो के लिये माना जाता है कि कार्य करने के बाद या सरकरी क्षेत्र की सेवा करने के बाद नौकरी आदि के लिये किसी बडी जानकारी के बाद जीवन भर लाभ के लिये की जाने वाली किसी कार्य श्रेणी को शुरु करने वाली बात के लिये माना जाता है. ग्यारहवे भाव के लिये मित्रो से अपघात बडे भाई या बहिन से अपघात लाभ के क्षेत्र मे की जाने वाली अपघात माता के गुप्त धन के प्रति अपघात पिता के पत्नी के परिवार से जुडी या उसकी संगति से मिलने वाली अपघात के लिये जाना जाता है. बारहवे भाव की जाने वाली खरीददारी मे धोखा यात्रा के अन्दर सामान या मंहगे कारक का गुम जाना कही जाना था और कही पहुंचाने वाली बात का धोखा किसी धर्म स्थान मे ठहरने के बाद कोई धोखा होना किसी बडी संस्था को सम्भालने के बाद मिलने वाला धोखा आदि की बाते मानी जाती है अगर आप अपनी कुंडली दिखाना जब बनवाना चाहते हैंतो तो आप मुझसे निम्न नंबरों पर संपर्क कर सकते हैं हमारी सर्विस पेड़ है 07597718725 09414481324

रविवार, 9 अप्रैल 2017

ग्रह से दोखा पोस्ट नंबर दो समय के दो पहलू है. पहले प्रकार का समय व्यक्ति को ठीक समय पर काम करने के लिये प्रेरित करता है. तो दूसरा समय उस काम को किस समय करना चाहिए पहला समय मार्गदर्शक की तरह काम करता है. जबकि जबकि दूसरा पल-पल का ध्यान रखते हुए आपकी कुंडली दशा अंतर्दशा ग्रहों की चाल और ग्रह से मिलने वाले फल को पहचान कर उसका उपचार करकेे कैसे आगे बढ़ा जाए यह जानकारी देता है कहते हैं समय बड़ा बलवान होता है उस समय को पहचानेका काम ज्योतिष ही कर सकता है अक्सर भ्रम कनफ़्यूजन धोखा फ़रेब चीटिंग अफ़वाह भटकाव नशा बेबजह आदि शब्द राहु के अनुसार ही कहे गये है,जो है उसके प्रति जो नही है उसके भी प्रति राहु अपने अपने स्थान से अपना अपना प्रकार प्रकट करता है साथ ही अगर व्यक्ति की सोच केन्द्रित नही है तो वह अपने सोचने वाले घेरे को लगातार बढाता जाता है और यही सोच उसे जीवन मे धोखा आदि देने के लिये मानी जाती है.लगन मे राहु के होने से जीवन के साथ ही धोखा होता है धन भाव मे होने से धन आदि की चीटिंग और खुद की आंखो के सामने धूल झोंकने वाली बात कही जाती है,तीसरे भाव मे नाटकीय ढंग से अपने विचार प्रकट करने के बाद स्वांग बनाकर ठगने वाली बात मानी जाती है,चौथे भाव मे मानसिक रूप से भावना आदि से ठगी की जाती है पंचम भाव मे मनोरंजन का नशा देकर या लाटरी सट्टॆ खेलकूद मे दिमाग मे लगा कर बुद्धि को भ्रम मे डाला जाता है,छठे भाव से कोई बीमारी नही होने पर बीमारीका भ्रम होनाया वहम होना सातवे भाव मे जीवन साथी और साझेदारी के प्रति तादात से अधिक विश्वास कर लेना और जब भ्रम टूटे तो कही कुछ नही होना जीवन साथी से ही अक्सर धोखा दिलवा देना आठबे भाव मे उन शक्तियों के प्रति भम रहना जो शक्तिया न तो देखी गयी है और न ही उनके प्रति कभी विश्वास किया गया है इस भाव के राहु के द्वारा अक्सर गूढ कारणो की खोज के प्रति भ्रम ही बना रहता है और रेत के पहाड से हीरे की कणी निकालने जैसा होता है और जब रेत का पहाड़ बहुत जाता है तो कुछ पल्ले नहीं आता नवे भाव के राहु से खुद के खानदान और पूर्वजो के प्रति ही भ्रम बना रहना दसवे भाव मे काम के होते हुये भी और काम के करते हुये भी कभी काम पूरा नही होना ग्यारहवे भाव के प्रति चाहे पीछे से हानि ही हो रही हो लेकिन भ्रम से उसी काम को करते जाना जब पता लगना तब तक दिवालिया हो जाना या किसी मित्र पर इतना विश्वास करते जाना कि वह जीवन के हर क्षेत्र से सब कुछ बरबाद कर रहा है लेकिन फ़िर भी उसके प्रति विश्वास को बनाये रखना बाद मे दगा बाजी का रूप दे देना बारहवे भाव से जीवन के प्रति हमेशा डर लगा रहना आक्स्मिक चल देना हवाई किले बनाते रहना और खुद की स्थिति को जमीन पर आने ही नही देना जबकि है कुछ नही फ़िर भी सब कुछ होने का आभास होते रहना और जब हकीकत का पर्दा उठे तो कही कुछ नही आदि की बाते मानी जाती है.paid service 09414481324 07597718725

बुधवार, 5 अप्रैल 2017

चंद्र ग्रह पोस्ट नंबर 6 मित्रों आज भी हम बात करेंगे चंद्रमा परकुंडली भी एक अजीब पहेली मानी जाती है,कौन सा ग्रह कहाँ पर धोखा दे रहा है या कब धोखा देगा,अथवा खुद ही धोखा बनकर संसार में विचरण करने के लिये जीवन को प्रदान कर रहा है इस बात की जानकारी करना बहुत जरूरी होता है। कौन कैसे कहाँ धोखा देता है इस बात की जानकारी मनुष्य रूप मे समझने के लिये मनुष्य जीवन के कारक ग्रहों का जानना भी जरूरी है। धोखे का भाव कौन सा है किस ग्रह के साथ कौन सा धोखा हो सकता है इस बात को भी जानना जरूरी है,किस स्थान पर कैसे कौन धोखा देगा,वह मित्र के रूप मे धोखा देगा,दोस्त के रूप मे धोखा देगा या खुद ही अपने मन से धोखा खाने के लिये अपने चेहरे पर बोर्ड लगाकर घूमेगा कि आओ मुझे धोखा दो, और जो देखो वही धोखा देकर चलता बने खुद धोखा खा कर अपने आप चुपचाप बैठ जाओ।[05/04 7:05 pm] Acharya Rajesh kumar: चन्द्रमा मन का कारक है केवल सोचने का काम करता है,जब सोच मे ही धोखा पैदा हो जाये तो धोखा देखना भी पडेगा और धोखा देकर काम भी करने का काम चन्द्रमा का होगा। लगन का चन्द्रमा राहु से ग्रसित है,हर सोच भ्रमित हो जायेगी,किसी का विश्वास करना तो दूर अपना खुद का भी विश्वास नही किया जा सकता । गति के पकडते ही आत्मविश्वास डगमगा उठेगा,गति भी बिगड जायेगी और जो कार्य होना था वह भी नही हो पायेगा। दूसरे भाव का चन्द्रमा जब भी अपनी गति मे आयेगा केवल सोच से ही कार्य करने के बाद धन की प्राप्ति को करने मे लगा रहेगा वह कार्य कभी सम्बन्ध के बारे मे भी सोच के लिये माना जा सकता है तो जीवन के सम्बन्धो के लिये भी माना जा सकता है। ख्वाबी जिन्दगी को जीने के लिये दूसरा चन्द्रमा काफ़ी है। एक भावना से भरा हुआ चेहरा और किसी भी बात को सोचने के लिये अचानक चेहरे का सफ़ेद होना इसी चन्द्रमा की निशानी है। पानी पी पी कर जीवन को निकाला जाना यानी गले का सूखना भी इसी चन्द्रमा के द्वारा माना जा सकता है। दोहरे सम्बन्ध को स्थापित कर लेना इसी चन्द्रमा के कारण होता है यानी पहले किसी सम्बन्ध ने धोखा दिया है तभी दूसरे सम्बन्ध के बारे मे सोचा जा सकता है अन्यथा नही। तीसरा चन्द्रमा भी अपनी गति को आसपास के माहौल से मानसिकता को लगाकर रखता है। कोई भी कुछ भी कह दे,अचानक आंसू निकलना इसी चन्द्रमा की निशानी है,कोई भी कहीं जाये उसके बारे मे आशंका का बना रहना कि वह कहां जायेगा कब आयेगा कैसे आयेगा कैसे जायेगा और इसी बात को जानने के लिये कई उपक्रम किये जायेंगे और इसी दौरान किसी भी कारक से धोखा मिल जायेगा। कहने सुनने के लिये आत्मीय सम्बन्ध बनाना और जब आत्मीय सम्बन्ध बन जाते है तो विश्वास का पूरा होना भी माना जाता है विश्वास भी वही करेगा जो आत्मीय हो और इसी आत्मीयता मे जब किसी भी प्रकार से धोखा मिलेगा तो समझ मे आयेगा कि आत्मीयता की कितनी औकात जीवन मे रह जाती है। चौथा चन्द्रमा वैसे भी दिमाग को आसपास के लोगो को जानने पहिचानने के लिये और हमेशा अपने को यात्रा वाले कारणो से जोड कर रखने वाला होता है,कभी कभी देखा जाता है कि ख्वाब इतने गहरे हो जाते है कि यात्रा मे अपने ही अन्दर की सोच लगाकर बैठे रहते है और अचानक जब ख्याल आता है तो कोई सामान या जोखिम को लेकर चलता हो जाता है फ़िर सिवाय और अधिक सोचने के कुछ भी सामने नही रहता है। एक बात और इस चन्द्रमा के बारे मे सोची जाती है कि व्यक्ति का प्रभाव आसपास के लोगो से अधिक होता है और जब भी कोई कैसी भी बात करता है तो उस व्यक्ति के बारे मे चिन्ता चलती रहती है कि आखिर उसने यह कहा क्यों ? यह बात भी होती है कि चौथा चन्द्रमा अपनी पंचम गति से अष्टम की बातो को अधिक सोचता है कि उसके पूर्वज कैसे थे क्या करते थे उसकी मान्यता कैसी थी वह मान्यता के अनुसार कितने शाही दिमाग से रहन सहन से अपने जीवन को बिताने के लिये चला करता था लेकिन जैसे ही पूर्वजो का आस्तिव समाप्त होता है अचानक केवल ख्वाब ही रह जाते है,इन पूर्वजो की मान्यता को समाप्त करने का कारण खुद के ही कार्य माने जाते है जैसे किसी ने कह दिया अमुक स्थान पर अमुक वाहन सस्ते मे मिल रहा है फ़िर क्या था जोर लगाकर उस वाहन को ले लिया गया और पता लगा कि वह वाहन कुछ ही समय मे कबाडा हो गया,यह सोच पूर्वजो के धन को समाप्त करने वाली और जो भी पास मे था उसे भी समाप्त करने के लिये केवल एक लोभ जो सस्ते के रूप मे था धोखा खाने के लिये काफ़ी माना जाता है। अगर चौथे भाव मे बुध शनि का योग हो तो यह चन्द्रमा अधिक कामुकता को भी देता है और बातो मे एक वाचालता का कारण भी पैदा करता है,जिसके अन्दर पुरानी बातो का ख्याल अधिक रखा जाता है किसी के भी प्रश्न का उत्तर बिना तर्क के समझ मे भी नही आता हैपंचम का चन्द्रमा भी धोखा देने मे पीछे नही रहता है,किसी ने जरा सी बात की और अक्समात दिल उस पर आ गया और कुछ समय बाद सामने वाले के लिये कुछ भी करने के लिये तैयार हो जाना मामूली सी बात होती है। यह बात अक्सर पुरुष स्त्रियों के प्रति और स्त्री पुरुषों के प्रति जानबूझ कर करने वाले होते है। किसी ने भावुकता से भरा गाना गा दिया बस उसके साथ साथ आंसू चलने लग गये और सामने वाले ने तो अपने अनुसार केवल नौटंकी की थी और खुद जाकर उस नौटंकी का शिकार बन गये।धन्यवाद कहना तो दूर कही कही पर बुरा ही बना दिया,जिस कन्या का विवाह किया था वह कभी वापस आकर रक्षाबंधन आदि के अवसर पर धागा भी बांधने नही आयी। यह धोखा भी पांचवे चन्द्रमा के कारण ही माना जा सकता है छठे भाव का चन्द्रमा भी प्लान बनाकर काम करने के लिये अपनी गति को देता है लेकिन सौ मे से एक भी प्लान सफ़ल कभी नही होता है केवल रास्ता चलते जो काम होने वाले होते है वह हो जाते है और जो काम प्लान बनाकर किया जाता है वह नही होता है। सोचा था कि अमुक काम को अमुक समय पर कर लिया जायेगा और अमुक समय पर काम करने के बाद अमुक मात्रा मे धन आयेगा और अमुक मात्रा मे खर्च करने के बाद अमुक सामान की प्राप्ति हो जायेगी और उस सामान से अमुक प्रकार का कष्ट समाप्त हो जायेगा,पता लगा कि वह काम नही हुआ और बीच की सभी कडियां पता नही कहां चली गई छठे भाव का चन्द्रमा मौसी और चाची का कारक होता है,अगर इनके प्रति सेवा भाव रखा जाये तथा खुद की माता की बीमारियों और रोजाना के कामो के बारे मे सहायता की जाये तो यह चन्द्रमा अच्छे फ़ल देने लगता है,इस चन्द्रमा को सफ़ेद खरगोश की उपाधि भी दी जाती है जो लोग खरगोश को पालने और उन्हे दाना पानी देने का काम करते है उनके लिये भी चन्द्रमा का सहयोग मिलता रहता है,छठे भाव का चन्द्रमा अपनी सप्तम द्रिष्टि से बारहवे भाव को देखता है बारहवा भाव नवे भाव का चौथा यानी भाग्य का घर होता है अगर धर्म स्थानो मे जाकर श्रद्धा से धार्मिक कार्य किये जाते रहे तो भी चन्द्रमा साथ देता है,नमी वाले स्थानो मे रहने से पानी के क्षेत्रो मे कार्य करने से यात्रा आदि के कार्यों मे कार्य करने से यह चन्द्रमा दिक्कत देने वाला बन जाता है.इस चन्द्रमा मे बुध का प्रभाव आने से माता को उनके मायके मे यानी ननिहाल मे सम्मान मिलता है अगर ननिहाल से बनाकर रखी जाये तो भी चन्द्रमा सहायक हो जाता है.छठे घर का चन्द्रमा के बारे मे कहा जाता है,कि जो भी प्रयत्न किया जाता है जो इच्छा पालकर कार्य किया जाता है सभी प्रयत्नो को असफ़ल कर देता है,"विकलं विफ़लं प्रयत्नं",लेकिन जो भी कार्य रास्ते चलते किया जाता है वह सफ़ल हो जाता है या थक कर जब कार्य को बन्द करने का मन करता है कार्य पूरा होने लगता है आदि बाते आती है,यह भाव श्रम करने के बाद जीविका चलाने के लिये अपनी योजना को देता है,जितना श्रम किया जायेगा उतना ही यह अच्छा फ़ल देगा,जितना आलस किया जायेगा उतना ही खराब फ़ल देगा.लोगों की सेवा करना और रोजाना के कार्यों को सुचारु रूप से समाप्त करना ही इस घर के चन्द्रमा का अच्छा उपाय है.सबसे खतरनाक तो सातवे भाव का चन्द्रमा को माना गया है। शादी करने के बाद मिलने वाला धोखा ! बडी धूमधाम से शादी की गयी और यह सोचा गया कि पति या पत्नी आकर घर को सम्भालेगी,पता लगा कि पत्नी का पीछे किसी से अफ़ेयर था वह अपने साथ घर की जमा पूंजी भी लेकर चली गयी या पति जिसे यह माना था कि बहुत ही सदाचारी है भावनाओ को समझने वाला है सभी भावनाओ को समझेगा और पता लगा कि उसका पहले से ही कोई अफ़ेयर आदि चल रहा था और वह एक दिन लापता हो गया मिला तब जब उसके साथ एक दो बच्चे भी थे। इस चन्द्रमा के द्वारा लोगो को जो नौकरी करने वाले होते है उन्हे भी खूब बना दिया जाता है नौकरी करवाने वाला कहता है कि अमुक काम की ट्रेनिंग करनी है और उस ट्रेनिंग मे अमुख खर्चा होगा उस खर्चे को पहले दो विर नौकरी करो नौकरी भी ऐसी अच्छी होगी कि ट्रेनिंग के समय मे ही नौकरी करवाने वाला अपनी कम्पनी को बन्द कर के भाग जायेगा और आधी ट्रेनिंग और दिया गया रुपया खड्डे मे चला जायेगा इस प्रकार से समय भी बेकार हुआ और धन भी गया मानसिक शांति भी गयी साथ मे जो पढाई के कागज भी लिये गये थे फ़ोटो भी ली गयी थी वह भी गयी और पता नही किसकी आई डी बनाकर किस बैंक से कर्जा और लिया जायेगा अथवा कौन से मोबाइल की कौन सी सिम फ़र्जी आई डी से लेकर किसके के लिये किस प्रकार की बात की जायेगी और जब पकडा जायेगा तो वही कारण जो नौकरी के लोभ मे था सामने आयेगा। एक बात और भी इस चन्द्रमा के कारण बनती है कि माता भी अपनी राय को भावुकता मे देती है और जो भी काम बनने का होता है उसके अन्दर रिस्क लेने से साफ़ मना किया जाता है। बिना रिस्क के फ़ायदा और नुकसान और तजुर्बा भी कहां से मिलेगा सप्तम का चन्द्रमा बुध और शुक्र के साथ होने से सास और उसकी बहिने या तो एक ही खानदान गांव या स्थान पर होती है साथ ही पत्नी और पत्नी की बहिन दूसरी माता से पैदा होती है,अथवा पत्नी का परिवार खेती आदि का काम करता है अथवा खेती सम्बन्धित फ़सलो का कारोबार करता है. अष्टम का चंद्रमा,अपने गति को देने वाला है,कुये के पानी की तरह से अपना काम करता है काफ़ी मेहनत करने के बाद कोई काम किया जाता है और जब परिणाम सामने आता है तो खारे पानी के तरह से आता है। गूढ बातो को अपनाने मे मन लगना अक्सर इसी भाव के चन्द्रमा के द्वारा होता है,कोई भी गुप्त कार्य किया जाना इसी चन्द्रमा के कारण से ही होता है। यह चन्द्रमा अक्सर चोर की मां के रूप मे काम करता है यानी चोर की मां पहले तो अपने पुत्र को बल देती रहती है कि शाबाश वह जिसका भी सामान चुरा कर लाया वह ठीक है जब उसका पुत्र पकड लिया जाता है तो वह कोने मे सिर देकर रोने के लिये मजबूर हो जाती है वह खुले रूप मे किसी के सामने रो भी नही सकती है। व्यक्ति की मानसिकता उन कार्यों को करने के लिये होती है जो गुप्त रूप से किये जाते है वह काम अक्सर बेकार की सोच से पूर्ण ही होते है वे कभी किसी के लिये भलाई करने वाले नही होते है,हां धोखे से भलाई वाले बन जाये वह दूसरी बात है। सोच मे उन्ही लोगो से काम लिया जाता है जो या तो मरे है या मर चुके है यानी मरे लोगों की आत्मा से काम करवाना।अक्सर इस चन्द्रमा वाले लोग अपनी बातो को इस प्रकार से करते है कि वे किसी न किसी की नजर मे चढने के लिये मजबूर हो जाते है वे या तो दुश्मनी मे ऊपर हो जाते है या किसी के मन मे इस प्रकार से बस जाते है कि लोग उनसे सारे भेदो को जान लेने के लिये उनकी हर कीमत पर पहले तो सहायता करते है उन्हे मन से और वाणी से बहुत प्यार देने का दिखावा करते है जैसे ही उनकी सभी गति विधियों को प्राप्त कर लेते है वे अक्सर दूर हो जाते है और बदनाम भी करने लगतेहैजब जब अष्टम चन्द्रमा से राहु अपनी युति मिलायेगा वह मानसिक तनाव अनजाने भय आदि के प्रति देगा,इसके उपाय के लिये अपने सामने लोगो से बात करने और परिवार से वैमनस्यता आदि को नही रखना चाहिये पराशक्तियों के प्रति खर्चा नही करना चाहिये ह्रदय सम्बन्धी बीमारी का ख्याल रखना चाहिये,गुप्त कार्य करना और सोचना तथा हमेशा यौन सम्बन्धो के प्रति ध्यान रखना भी स्वास्थ्य और जीवन के अमूल्य समय को बरबाद करना होता है,अक्सर कुये का पानी सोने वाले स्थान मे कांच की बोतल मे रखने से और विधवा माता जैसी स्त्रियों की सेवा करना फ़लदायी होता है. नवे भाव के चन्द्रमा का प्रभाव भी कम नही होता है लोग विदेश के लोगो से मानसिकता को लगाने के लिये देखे जाते है बाहर जाते है और अपने यहां की रीति रिवाजो को थोपने की कोशिश करते है जैसे ही उनकी चाल को लोग समझ लेते है फ़िर उनकी ही मानसिकता का फ़ायदा उठाकर उन्हे ही आराम से धोखा दिया जाता है अक्सर इस प्रकार के लोग अपने कार्यों से यात्रा वाले काम या कानून वाले काम या विदेशी लोगो से खरीद बेच के काम करते हुये देखे जा सकते है यही चन्द्रमा उन्हे अधिक पूजा पाठ या लोगो की धार्मिक भावनाओ से खेलने के लिये भी देखने मे आया है कभी कभी तो वे लोगों को इतना मानसिक रूप से बरबाद कर देते है कि लोग अपने घर द्वार को छोड कर उनके पास ही आकर बस जाते है लेकिन जब उन्हे सच्चाई का पता चलता है तो वे उनसे उसी प्रकार से नफ़रत करने लगते है जैसे कल का खाया हुआ जब आज लैट्रिन मे जाता है तो उसे छूना तो दूर बदबू की बजह से नाक भी बन्द करके रखनी पडती है। दसवे भाव का चन्द्रमा अक्सर जीवन के कार्यों के लिये दिक्कत देने वाला माना जाता है इस चन्द्रमा वालो को अपने पिता की गति का पता नही होता है और पिता की गति जब तक जातक को नही मिलती है तब तक जातक किसी भी लिंग का हो वह अपने को पराक्रम मे आगे नही ले जा पाता है वह माता के द्वारा या माता के स्वभाव पर चलने वाला होता है उसके अन्दर केवल घर की और रिस्तो वाली बाते ही परेशान करने के लिये होती है जब भी कोई बात होती है तो उसका ध्यान अलावा दुनिया के रिस्क लेने की अपेक्षा घर के लोगों के बीच मे ही उलझा रहना माना जाता है यह भी देखा गया है कि इस प्रकार के लोग अपनी शिक्षा मे या काम करने के अन्दर अपनी लगन इस प्रकार के लोगो से लगा लेते है जो इस बात की घात मे इन्तजार करने वाले होते है कि उन्हे कोई तीतर मिले जिसे अपनी शिकार वाली नीति से पंख उधेड कर काम मे लिया जा सके। अक्सर देखा जाता है कि इस चन्द्रमा वाले जातक कभी भी अपने पहले शुरु किये गये काम मे सफ़ल नही होते है जब उन्हे दूसरी बार उसी काम को करने का अवसर मिलता है तो वे समझ जाते है कि पहले उन्हे मानसिक रूप से समझ नही होने के कारण धोखे मे रखा गया था और उनका चलता हुआ काम पूरा नही हो पाया था वह काम अचानक शुरु कर देने के बाद वे सफ़ल भी हो जाते है लेकिन काम के मिलने वाले लाभ को वे या तो धर्म स्थानो मे खर्च करने के बाद अपने को दुबारा से चिन्ता मे ले जाते है या फ़िर किये जाने वाले खर्चे के प्रति अपनी सोच को कायम रखने के कारण अन्दर ही अन्दर घुलते रहते है।ग्यारहवा चन्द्रमा जब धोखा देने वाला होता है तो उसके लिये अक्सर दोस्त बनकर लोग उसे लूट खाते है जब भी कोई काम खुद का होता है तो दोस्त दूर हो जाते है और जब कोई काम दोस्तो का होता है तो अपनी भावनाओ से इस प्रकार से सम्मोहित करते है कि जातक जिसका ग्यारहवा चन्द्रमा होता है उनकी सहायता करने के लिये मजबूर हो जाता है वह मजबूरी चाहे जाति से सम्बन्धित हो या समाज से सम्बन्धित हो या किसी प्रकार के बडे लाभ की सोच के कारण हो,जब वापसी मे उस की गयी सहायता का मायना देखा जाता है तो उसी प्रकार से समझ मे आता है जैसे आशा दी जाये कि आने वाले समय मे बरसात होगी तो रेत मे पानी आयेगा फ़िर उसके अन्दर फ़सल को पैदा करने के बाद लिया गया चुकता कर दिया जायेगा। बारहवा चंद्रमा अक्सर दिमाग को पराशक्तियों की सोच मे ले जाता है आदमी का दिमाग इसी सोच मे रहता है कि आदमी मरने के बाद भी कही जिन्दा रहता है और रहता भी है तो वह क्या करता है यानी भूत प्रेत पर विश्वास करने वाला और इसी प्रकार की सोच के कारण वह आजीवन किसी न किसी प्रकार से ठगा जाता है,चाहे वह तांत्रिकों के द्वारा ठगा जाये या आश्रम बनाकर अपनी दुकानदारी चलाने वाले लोगों से ठगा जाये यह कारण अक्सर उन लोगो के साथ अवश्य देखा जाता है जिनके पास एक अजीब सोच जो उनके खुद के शरीर से सम्बन्ध रखती है देखी जा सकती है। लोग इस चन्द्र्मा से आहत होने के कारण बोलने मे चतुर होते है अपनी भावना को प्रदर्शित करने मे माहिर होते है उनकी भावना की सोच मे उस प्रकार के तत्व जान लेने की इच्छा होती है जो किसी अन्य की समझ से बाहर की बात हो। इस बात मे वे बहुत ही बुरी तरह से तब और ठगाये जाते है जब उन्हे यह सोच परेशान करती है कि योग और भोग मे क्या अन्तर होता है वे योग की तलास मे भटकते है और जहां भी बडा नाम देखा उनके सोच वही जाकर अटक जाती है लेकिन जब उनके सामने आता है कि रास्ता चलते मनचले और जेब कट की जो औकात होती है वही औकात उनके द्वारा सोचे गये और नाम के सहारे चलने वाले व्यक्ति के प्रति होती है तो वे अक्समात ही विद्रोह पर उतर आते है। और विद्रोह पर उतरने के बाद ऐसा भी अवसर आता है जब उन्हे इन बातो से इतनी नफ़रत पैदा हो जाती है कि वे किसी भी ऐसे स्थान को देखने के बाद खुले रूप मे गालिया दे या न दें लेकिन मन ही मन गालियां जरूर देते देखे गये है।बारहवा चन्द्रमा राशि के अनुसार और अन्य ग्रहों की द्रिष्टि से अपने फ़ल को देता है,मन के भाव से नवा भाव होने से श्रद्धा वाले स्थान पर चन्द्रमा के होने से जिस भी कारक की तरफ़ श्रद्धा होती है यहीं से पता किया जाता है,मन की श्रद्धा से जो खर्चा यात्रा या किसी भी कार्य को किया जाता है वह यहीं से चन्द्रमा के अनुसार ही देखा जाता है वायु का घर होने के कारण अगर चन्द्रमा इस भाव मे है तो हवाई यात्राओं की अधिकता होती है अगर केतु से सम्बन्ध होता है और त्रिक राशि का सम्बन्ध भी होता है तो फ़ांसी जैसे कारण भी बन जाते है चौथा मंगल अगर अष्टम राहु से ग्रसित होकर इस भाव के चन्द्रमा को देखता है तो जेल जाने या बन्धन मे रहने के कारण को भी पैदा करता है और भूत दोष के कारण शरीर को अस्पताल मे भी भर्ती रखने के लिये अपनी युति को देता है बारहवा चन्द्रमा राशि के अनुसार और अन्य ग्रहों की द्रिष्टि से अपने फ़ल को देता है,मन के भाव से नवा भाव होने से श्रद्धा वाले स्थान पर चन्द्रमा के होने से जिस भी कारक की तरफ़ श्रद्धा होती है यहीं से पता किया जाता है,मन की श्रद्धा से जो खर्चा यात्रा या किसी भी कार्य को किया जाता है वह यहीं से चन्द्रमा के अनुसार ही देखा जाता है वायु का घर होने के कारण अगर चन्द्रमा इस भाव मे है तो हवाई यात्राओं की अधिकता होती है अगर केतु से सम्बन्ध होता है और त्रिक राशि का सम्बन्ध भी होता है तो फ़ांसी जैसे कारण भी बन जाते है चौथा मंगल अगर अष्टम राहु से ग्रसित होकर इस भाव के चन्द्रमा को देखता है तो जेल जाने या बन्धन मे रहने के कारण को भी पैदा करता है और भूत दोष के कारण शरीर को अस्पताल मे भी भर्ती रखने के लिये अपनी युति को देता हैं चन्द्रमा नीची सोच रखता है तो अच्छी शिक्षा और अच्छे सम्बन्ध उच्च का गुरु किसी काम का नही है,"मन के हारे हार है मन के जीते जीत,मन से होती शत्रुता मन से होती प्रतीत".

मंगलवार, 4 अप्रैल 2017

चंद्र ग्रह पोस्ट नंबर 5मित्रों आज की पोस्ट भी चंद्रमा पर ही है काल पुरुष की कुंडली में चंद्रमा चौथे भाव का स्वामी हैकुंडली का चौथा भाव मानसिक गति का होता है और दूसरा भाव उस गति को लाभान्वित करने के लिये देखा जाता है। मानसिक गति को सोचने के बाद की प्राप्त करने की क्रिया को पंचम से देखा जाता है यानी जो सोचा जाये उसे प्राप्त कर लिया जाये। मानसिक गति को प्राप्त करने के लिये जो भी क्रिया करनी पडती है वह कुंडली के लगन भाव से देखा जाता है या चन्द्रमा के स्थापित स्थान से दसवे भाव के अनुसार समझा जाता है चन्द्रमा पर पडने वाले प्रभाव के साथ साथ चौथे भाव के स्वामी की गति को भी देखा जाता है और चौथे भाव का मालिक अगर चन्द्रमा का शत्रु है या चन्द्रमा से किसी प्रकार से गोचर से शत्रुता रख रहा है या त्रिक भाव से अपनी क्रिया को प्रदर्शित कर रहा है तो वह क्रिया भी प्रयास करने या प्रयास के दौरान अपनी प्रयोग की जाने वाली शक्ति को समझने के लिये मानी जा सकती है।बुद्धि और सोच को एकात्मक करने की क्रिया मे अगर बल की कमी है,बल बुद्धि और सोच मे किसी प्रकार का भ्रम है,बुद्धि बल और सोच मे कोई न कोई नकारात्मक प्रभाव है तो क्रिया पूर्ण नही हो पायेगी। जब कोई भी क्रिया पूरी नही हो पाती है तो बुद्धि पर बल पर और सोच पर इन तीनो के प्रभाव मे एक प्रकार से जल्दी से प्राप्त करने की कोशिश शुरु हो जायेगी और जब अक्समात उस शक्ति को प्राप्त करने की क्रिया होगी तो यह जरूरी है कि उसके लिये पूर्ण रूप से बुद्धि बल शरीर बल और सोचने की शक्ति के बल मे से किसी पर भी या तीनो पर ही केन्द्र बन जायेगा और उस केन्द्र से अगर किसी प्रकार की बाहरी अलावा कारण को उपस्थिति किया जायेगा तो मानसिक क्रिया एक प्रकार से उद्वेग मे चली जायेगी परिणाम में वाणी व्यवहार और कार्य के अन्दर एक झल्लाहट का प्रभाव सामने आने लगेगायह मानसिक गति है और इसे तीन से चार तक पहुंचाने के लिये तीन का भाव जो भावुकता के साथ प्रदर्शन करने से होता है वह भाव भावनाओ को समझने से सात की गति को आठ मे पहुंचाने के लिये सम्बन्धो को शुरु करने से पहले सम्बन्धो के परिणाम को समझना ग्यारह से बारह मे पहुंचाने के लिये मानसिक गति को बजाय हर समय लाभ के सोचने के उसे पराशक्ति के सहारे छोडना सही है। उदाहरण के लिये अगर शुक्र के साथ चन्द्रमा का सम्बन्ध एक बारह का है और वह भी तीन चार मे है तो शुक्र के प्रति चन्द्रमा सोच हमेशा यात्रा आदि के कारको सम्बन्धो मे स्त्री जातको की भावनाओ को देखने मानसिकता मे उन्ही बातो को कहने जो भावना से पूर्ण हो से शुक्र को चन्द्रमा से जोडना बेहतर होगा,इसके लिये जो भी भौतिक सम्पत्तियों में घर मकान जमीन वाहन आदि है उनके लिये व्यवहारिकता मे सोचना और उन पर व्यवहारिकता से अमल करना किसी की भावना को देखकर उसकी सहायता करने से पहले उस भावना को अपनी हैसियत आदि से परखना बजाय रूप के प्रति ध्यान भटकाने के उस रूप को समझकर उसके प्रति प्रतिक्रिया को व्यक्त करना सही होगा.आदि बातो से गति को बदला जा सकता है.इसे अगर तंत्र के रूप मे देखा जाये तो शुक्र चौथे भाव का रहने का भवन है और उस भवन की बाहरी साज सज्जा जो ऊपरी और सबसे नीचे की सज्जा को बनाने मे ध्यान जाता है ,लेकिन उसी प्रकार को अगर बीच के कारको मे पैदा कर दिया जाये और मकान आदि के बाहरी आवरण को अन्दर के आवरण मे स्थापित कर दिया जाये तो उस स्थान की मजबूती और लोगो के लिये मानसिक शांति का कारक बन जायेगा एक महीने के अन्दर चन्द्रमा सवा बारह दिन राहू के घेरे में रहता है और इसी बीच में मनुष्य के हाव भाव चिंता आदि अपनी अपनी राशि के अनुसार बनते रहते है,राहू जिस भाव में होता है उसी प्रकार की चिंता बनी रहती है और जिसके जिस भाव में चन्द्रमा राहू से ग्रसित होता है उसी भाव की चिंता बनाना एक आम बात मानी जाती है.जैसे राहू वृश्चिक मे है इस राशि का भाव या तो अस्पताल होगा या मौत वाले कारण होंगे या इन्फेक्सन होगा या राख से साख निकालने वाली बात होगी किसी प्रकार की खोजबीन में अंदरूनी जानकारी करने वाली बात मानी जायेगी,यह भाव मेष राशि वालो के लिए जब चन्द्रमा राहू के साथ अष्टम में होगा तभी मानी जायेगी,जैसे ही वृष राशि की बात आयेगी उस राशि का चन्द्रमा राहू के साथ सप्तम में होगा और सप्तम के अनुसार नौकरी करना नौकरी से मिलाने वाला लाभ जीवन साथी के मामले में चिंता करना जो भी सलाह देने वाला है उसकी बात का विशवास नहीं करना यहाँ तक की आगे जाने वाले रास्ते में भी कनफ्यूजन को देखना माना जाएगा,कहाँ से कैसे गुप्त धन मिले कैसे गुपचुप रूप से कोइ सम्बन्ध बने आदि की चिंता लगी रहेगी,इसी प्रकार से जैसे ही मिथुन राशि का चन्द्रमा छठे भाव में वृश्चिक के राहू के साथ आयेगा जो भी रोग होंगे वे गुप्त रोगोके साथ इन्फेक्सन वाले रोग होंगे पानी का इन्फेक्सन होगा कर्जा जहां से लिया होगा वह लेने वाला नहीं ले पायेगा जो कर्जा दिया होगा वह भी राख का ढेर दिखेगा जहां नौकरी आदि की जायेगी वह भी गंदा स्थान होगा या कोइ फरेब का कारण होगा नहीं तो किसी कबाड़ के स्टोर वाला ही काम होगा इसके बाद कई प्रकार की अन्य तकलीफे भी देखने को मिलेगी जैसे आपरेशन आदि होना कारण वृश्चिक का राहू इन्फेक्सन भी देता है तो डाक्टरी हथियारों को चलाने का कारण भी पैदा करता है.दुश्मनी भी होगी तो एक दूसरे को समाप्त करने वाली होगी कानूनी लड़ाई भी होगी तो वह राहू के छठे भाव में रहने तक कमजोर ही होगी इसी प्रकार से अन्य कारणों को भी समझा जा सकता है,वही चन्द्रमा जब मेष राशि का कार्य भाव में आयेगा तो भी राहू की नजर में आयेगा वह कार्य भी करने के लिए वही कार्य अधिकतर करेगा की या तो वह बीमार हो जाए या किसी प्रकार की जोखिम के डर से कार्य ही नहीं करे और करे भी तो उसे कोइ न कोइ इस बात का डर बना रहे की कार्य तो किया है लेकिन कार्य फल किस प्रकार का मिलेगा,वही चन्द्रमा जब बारहवे भाव में आयेगा तो भी राहू के घेरे में होगा और उस विचार से यात्रा आदि में किसी प्रकार के जोखिम वाले काम में या किसी प्रकार की नौकरी आदि की योजना में लोन लेने में कर्जा चुकाने में किसी बड़े संस्थान को देखने में वह अपनी गति को प्रदान करेगा उसी प्रकार से जब चन्द्रमा मेष राशि का ही दूसरे भाव में आयेगा तो नगद धन के लिए एक ही चिंता दिमाग में रहेगी की किस प्रकार से मुफ्त का माल मिल जाए या किस प्रकार से जादू यंत्र मन्त्र तंत्र से धन की प्राप्ति हो जाए कोइ ऐसा काम किया जाए जो आगे जाकर लाभ भी दे और मेहनत भी नहीं लगे या धन कमा भी लिया गया है तो राहू की गुप्त नजर से या तो वह चोरी हो जाए या किसी फरेब के शिकार में फंस जाए,वही चन्द्रमा जब चौथे भाव में जाएगा तो मन के अन्दर ज़रा भी जल्दी से कोइ काम करने के लिए दिक्कत का कारण ही जाना जाएगा जो भी पहले से वीरान स्थान है या जो भी पिता माता से समबन्धित स्थान है वे जाकर अपनी युति से बनाए भी जायेंगे और रहने के काम में भी नहीं आयेंगे,इसी प्रकार से माता का स्वास्थ जो पेट वाली बीमारियों से भी जुडा हो सकता है माता के अन्दर पाचन क्रिया का होना भी हो सकता है आदि कारणों के लिए देखा जाएगा अक्सर इस युति में यह भी देखा जाता है की या तो यात्रा के लिए फ्री के साधन मिल जाते है या कबाड़ से जुगाड़ बनाकर यात्रा करनी पड़ती .अव यह समस्या आती है कि कोई सरल उपाय जो सभी के लिये उपयोगी वह कैसे ग्रहों के प्रति बताया जाये ? अक्सर जो समर्थ होते है वे तो अपने अनुसार ग्रहों की पीडा का निवारण कर लेते है या करवा लेते है लेकिन जो असमर्थ होते है वे एक तो परेशान होते है ऊपर से अगर उन्हे कोई रत्न या महंगी पूजा पाठ को बता दिया जाये तो कोढ में खाज जैसी हालत हो जाती है। ज्योतिष की मान्यता के अनुसार इसका क्षेत्र अथाह समुद्र की तरह से है,और मान्यताओं के अनुसार जो वैदिक जमाने से चली आ रही है अगर ग्रहों के उपाय किये जायें तो वे सचमुच में फ़लीभूत होते है। लाल किताब के उपाय भी बहुत प्रभावशाली है लेकिन जय उपाय पूरी तरह कुंडली दिखाकर किसी अच्छे ज्योतिष से पर ही उपाय करें ऐसा ना हो कि एक भाव में ग्रह बैठकर देख कर हिसाब से आपको उपाय करें बिना सोचे-समझे किताब पढ़ कर मित्रोंचन्द्रमा को प्रभावित करने वाले ग्रह बुध गुरु शुक्र शनि राहु केतु मंगल है। बुध अगर चन्द्रमा को बुरा फ़ल देता है तो बुरे लोगों से सम्पर्क बढने लगते है और व्यवसाय आदि के लिये मानसिक कष्ट मिलने लगते है। चन्द्रमा स्त्री ग्रह है और भावुकता के लिये भी जाना जाता है। शिवजी ने चन्द्रमा को सिर पर धारण किया है इसलिये चन्द्रमा के लिये आराध्य देव शिवजी को ही माना जाता है। राहु केतु चन्द्रमा को ग्रहण देने वाले है जब भी राहु के साथ जन्म कुंडली में चन्द्रमा गोचर करता है किसी न किसी प्रकार की भ्रम वाली स्थिति पैदा हो जाती है और वही समय चिन्ता करने वाला समय माना जाता है। कुंडली के जिस भाव में राहु होता है उसी भाव की बाते दिमाग में तैरने लगती है,अक्सर इसी समय में बडी बडी अनहोनी होती देखी गयीं है। केतु के साथ गोचर करने पर एक तरह का नकारात्मक भाव दिमाग में आजाता है किसी भी साधन के लिये लम्बी सोच दिमाग में बन जाती है और जैसे ही चन्द्रमा केतु से दूर होता है वह सोच केवल ख्याली पुलाव की तरह से समाप्त हो जाती है। चन्द्रका का गोचर जैसे ही मंगल के साथ होता है दिमाग में तामसी विचार मंगल के स्थापित होने वाली राशि के अनुसार पनपने लगते है,अगर मंगल वृश्चिक राशि में है तो उस कारक को समाप्त करने के लडाई करने के झगडा करने के मारने के कत्ल करने के विचार दिमाग में आने लगते है,अगर मंगल धनु राशि में होता है तो न्याय कानून विदेश धर्म आदि के लिये उत्तेजना पनपने लगती है,अगर चन्द्रमा गुरु के साथ होता है तो सम्बन्धो के मामले में गुरु के स्थान वाले प्रभाव के अनुसार मिलने लगता है,बुध के साथ होने पर बुध जैसा और बुध के स्थान के अनुसार मिलता रहता है,जन्म के चन्द्रमा पर अगर राहु ग्रहण देने लगा है तो चन्द्रमा के बल को बढाना चाहिये और राहु के बल को समाप्त करना चाहिये। राहु अगर वायु राशि में है तो मन्त्रों के द्वारा जाप करने पर और अग्नि राशि में है तो हवन आदि के द्वारा भूमि राशि में है तो राहु के देवता सरस्वती की मूर्ति की पूजा करने के बाद जो मूर्ति पूजन में विश्वास नही रखते है उनके लिये शिक्षा स्थान या मिलकर इबादत करने वाले स्थान में राहु के रूप को नमन करना चाहिये,पानी वाली राशि में होने पर पानी के किनारे राहु का तर्पण करना चाहिये। केतु के द्वारा चन्द्रमा पर असर होने पर चन्द्रमा के बल को रत्न और वस्तुयों के द्वारा बढाकर केतु के बल को क्षीण करना चाहिये। चन्द्रमा की धातु चांदी है और रत्न मोती तथा चन्द्रमणि है। जडी बूटियों में चन्द्रमा के लिये करोंदा का कांटे वाला पेड माना जाता है।मित्रों अगर आपको मेरी पोस्ट अच्छी लगती है तो आप उसे 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सोमवार, 3 अप्रैल 2017

चंद्र ग्रह पोस्ट नंबर 4 जीवन के शुरु होते ही सुख दुख पाप पुण्य हारी बीमारी लाभ हानि आदि अच्छे और बुरे परिणाम सामने आने लगते है,सुख को महसूस करने के बाद दुखों से डर लगने लगता है हानि को समझ कर लाभ को ही अच्छा माना जाता है,जीवन के शुरु होने के बाद मौत से डर लगने लगता है। यही बात कुंडली में समझी जा सकती है,ग्रह की प्रकृति हानिकारक है या लाभ को प्रदान कराने वाली है। अगर ग्रह हानि देने वाला है तो उसे लाभदायक बनाने के प्रयत्न किये जाते है और लाभदायक तो लाभदायक है ही। खराब ग्रह के बारे में लालकिताब में लिखा है,-"बसे बुराई जासु तन,ताही को सम्मान,भलो भलो कहि छोडिये खोटिन को जप दान",बुराई करने से तात्पर्य है अनुभव करवाना,अगर किसी बुरी वस्तु का अनुभव ही नही होगा तो उसके अच्छे या बुरे होने का मतलब भी समझ में नही आयेगा,कई बार कई कारकों को हम सुनकर या पढकर या दूर से समझ कर ही त्याग देने से मतलब रखते है,जब कहा जाता है कि अमुक वस्तु जहरीली है और उसे अगर खा लिया गया तो मौत हो सकती है,और जब भी उस वस्तु को सामने देखा जाता है तो उससे केवल सुनकर या पढकर या दूर से समझ कर ही दूर रहने में भलाई समझी जाती है और जब कोई अपना या ना समझ व्यक्ति उस वस्तु की तरफ़ आमुख होता है तो उससे वही कहा जाता है जो हमने सुना या पढा या समझा या दूर से देखा। ग्रह कुंडली में जब सही तरह से मान्यता के रूप में देखा जाये तो जीवन के चार पुरुषार्थों में चारों ही अपने अपने स्थान पर सही माने जाते है। धर्म के रूप में शरीर परिवार और पुरानी वंशावली के प्रति मान्यता को समझा जाता है,अर्थ के रूप में मिला हुआ जो परिवार और हमारे कुटुम्ब ने हमे दिया है,हमारे द्वारा रोजाना के कार्यों से जो प्राप्त होता है और जो हमारे वंश से या हमारी उच्च शिक्षा के बाद प्राप्त होता है के प्रति माना जा सकता है। काम के रूप में हमारे से छोटे बडे भाई बहिन हमारे जीवन में कदम से कदम मिलाकर साथ चलने वाले लोग एवं वे लोग जिनके लिये हम आजीवन अपनी जद्दोजहद को जारी रखते है,चाहे वह पति पत्नी के रूप में हो,या संतान के रूप में या फ़िर संतान की संतान के प्रति हो,जब सही मायनों में हमने जीवन को समझ लिया है और तीनो पुरुषार्थों को पूरा कर लिया है तो बाकी का बचा एक मोक्ष यानी शांति नामका पुरुषार्थ अपने आप ही अपनी उपस्थिति को उत्पन्न कर देगा बात चंद्र ग्रह​ की चल रही है और चन्द्रमा के लिये केवल शनि ही पल्ले पडा है। जैसे कर्क और सिंह के सप्तम के स्वामी शनि होता है एक सकारात्मक होता है एक नकारात्मक होता है वैसे ही शनि की दोनो राशियों के लिये भी सूर्य और चन्द्रमा ही सप्तम के स्वामी भी होते है और सकारात्मक और नकारात्मक का प्रभाव देते है। चन्द्रमा का रूप जब शनि की राशि मकर से सप्तम का होता है तो वह केवल सोच को पैदा करने के लिये ही अपना फ़ल देता है तथा सप्तम का स्वामी जिस भाव मे होता है उसी भाव का फ़ल भी प्रदान करता है। राशि भी अपना फ़ल प्रदान करती है और सप्तम के स्वामी पर जो भी ग्रह अपनी नजर देते है उन ग्रहों का असर भी सप्तम के स्वामी पर पडता है आगे पीछे के ग्रहो का प्रभाव भी बहुत अदर देता है जिस तरह एक मकान में सभी सदस्यों का अपना अपना प्रभाव होता है उसी तरह हमारी कुंडली में प्रत्येक ग्रह का अपना अपना प्रभाव एक सदस्य के कभी घर घर नहीं बनता उसी तरह एक ग्रह के फल से कभी फल कथन कुंडली में नहीं किया जा सकता अब यहां मैं चंद्र की कुछ बुराइयां जब चंद्र अशुभ होता है उसके बारे में आपको बताऊंगा फिर भी पूरी कुंडली देखकर ही यह समझना चाहिए कि चंद्र शुभ है या अशुभ है और उसके फल को ज्ञात करना चाहिएचन्द्रमा खराब होने की निशानी होती है कि मन की सोच बदल जाती है झूथ बोलना आजाता है,चलता हुआ रास्ता भूला जाता है माता बीमार रहने लगती है जुकाम और ह्रदय वाली बीमारिया शुरु हो जाती है वाहन जो भी पास मे है सभी किसी न किसी कारण से बन्द हो जाते है बडी या छोटी बहिन भी दिक्कत मे आजाती है घर मे पानी मे कही न कही से गन्दगी पैदा हो जाती है भोजन करते समय पसीना अधिक निकलने लगता है किसी भी काम को करते समय खांसी आने लगती है गले मे ठसका लगने लगता है चावल को मशाले वाले पदार्थो मे मिलाकर खाने का जी करने लगता है। घर मे कन्या संतति की बढोत्तरी होने लगती है,कोई बहिन बुआ बेटी विधवा जैसा जीवन जीने लगती है,पडौसी नाली के लिये और घर मे आने वाली पानी के लिये लडने लगते है,मूत्र रोग पैदा हो जाते है,घर मे सुबह शाम की सफ़ाई भी नही हो पाती है,पानी का सदुपयोग नही किया जाता है घर मे पानी का साधन खुले मे नही होकर अन्धेरे मे कर दिया जाता है,पानी को बेवजह बहाना शुरु कर दिया जाता है,लान मे लगी घास सूख जाती है अधिक पानी वाले पेड नही पनप पाते है घर के एक्वेरियम मे मछलिया जल्दी जल्दी मरने लगती है,जुकाम वाले रोगो से पीडा होने पर सिर हमेशा तमकता रहता है अच्छे काम को करने के समय भी बुरा काम अपने आप हो जाता है मन की गति कन्ट्रोल नही होने पर एक्सीडेन्ट हो जाता है पुलिस और कानूनी क्षेत्र का दायरा बढने लगता है घर के अन्दर दवाइयों का अम्बार लगने लगता है। आंखो से अपने आप ही आंसू आने लगते है,आसपास के लोग तरह तरह की बाते करने लगते है हितू नातेदार रिस्तेदार सभी कुछ न कुछ कहते हुये सुने जाते है जिन लोगो के साथ अच्छा काम किया है वह भी अपनी जीभ से उसे उल्टा बताने लगते है जो अधिक चाहने वाले होते है उनके अन्दर भी बुराइया आने लगती है आदि बाते देखने को मिलती है।ज्योतिषी जी से पूंछो तो वह कहने लगेंगे कि मोती की माला पहिन लो चन्द्र मणि को पहिन लो चांदी को पहिन लो चांदी को दान मे दे दो,चन्द्रमा के जाप कर लो,यह सब खूब करो लेकिन जो कल किया है उसे आज भुगतने के लिये ज्योतिषी जी अपने सामान के साथ सहायता नही दे पायेंगे,कितने ही मंत्र बोल लो लेकिन मंत्र भी तब तक काम नही करेगा जब तक चित्त वृत्ति सही काम नही करेगी,घर मे रखी चांदी को या खरीद कर दान मे देने से किसी और का भला हो सकता है बिना चित्त वृत्ति बदले खुद का भला तो हो नही सकता है,मोती की माला भी तभी काम करेगी जब चित्त वृत्ति बदलेगी,अगर आज से चित्त वृत्तिको बदलने की हिम्मत है तो कल अपने आप ही सही होने लगेगा नही मानो तो अंजवा कर देख लो। चन्द्रमा का काम तुरत फ़ल देना होता है वह आज धन के भाव मे रहकर धन को देगा लेकिन जैसे ही वह खर्चे के भाव मे जायेगा तो धन को खर्च भी करवा लेगा,जो भी कारक उसके साथ होगा उसी के अनुसार वैसे ही काम करने लगेगा जैसे पानी मे मिठाई मिला दो तो मिठाई जैसा काम करने लगेगा गर्मी मे रख तो गर्म हो जायेगा फ़्रिज मे रख तो ठंडा हो जायेगा,मिर्ची मिला तो कडवा हो जायेगा जहर मिला तो जहरीला हो जायेगा,लेकिन चित्त वृति नही बदलती है तो वह जहरीला पानी मार सकता है और चित्त वृत्ति बदली है तो वह किसी जहरीले जानवर के काटने पर उसे बचा भी सकता है,मिर्ची वाला पानी सब्जी मे दाल मे भोजन के काम आ सकता है गर्म पानी चाय मे काम आ सकता है और ठंडा पानी शर्बत मे काम आ सकता है,लेकिन यह सब होगा तभी जब चित्त वृत्ति को बदल लो,बिना चित्त वृत्ति को बदले कुछ भी नही हो सकता है। चन्द्रमा भावुकता कारक है,अधिक भावना मे आकर यह रोना भी शुरु कर देता है और जब प्रहसन पर आये तो हँसना भी चालू कर देता है,जब गम की श्रेणी मे आजाये तो अकेला बैठ कर सोचने के लिये भी मजबूर कर सकता है,डरने की कारकता मे चला जाये तो थरथर कांपने भी लगता है। यह सब कारण अच्छी और बुरी भावना को साथ लेकर चलने से ही होता है,अन्यथा नही होता है।जब मन के अन्दर बदले की भावना नही पैदा होगी तो किसी से बैर भाव भी नही होगा और जब बैर भाव नही होगा तो लोग अच्छा ही सोचेंगे जो मन की भावनाये है उनका अच्छा और बुरा रूप दोनो सोच कर निकालेंगे तो हो ही नही सकता है कि कोई बुराई मान ले। लेकिन यह भी ध्यान रखना है कि फ़ूल और तलवार का रूप भी दिमाग से समझना पडेगा अन्यथा तलवार का काम काटना होता है और फ़ूल का काम सुन्दर भावना को देना होता है,कसाई तलवार की भाषा को समझता है और सन्त फ़ूल की भावना को समझता है।जैसे ही मन की भावना बदली मोती की माला भी काम करने लगेगी,लोगो को एक गिलास पानी पिलाने से भी चांदी के दान से बडा फ़ल मिलने लगेगा,एक सफ़ेद कपडा पहिनने से भी चन्द्रमणि का फ़ल मिलने लगेगा। यह सब कल की बुराई को आज निकालने पर कल अच्छाई से ही मुकाबला होगा इसमे कोई दोराय नही है,अक्सर जिस राशि मे चन्द्रमा होता है उस राशि मे व्यक्ति की पहुंच पर ही सोच को देने के लिये और लोगो के अन्दर जानकारी देने के लिये माना जा सकता है,जब तक व्यक्ति चन्द्रमा तक नही पहु़ंचता है तब तक वह जनता के बारे मे सोचता है जैसे ही वह चन्द्रमा की सीमा को लांघ जाता है जनता उसके बारे मे सोचने लगती है मित्रोंज्योतिष अपने रूप में कालचक्र को देखने वाली है। ज्योतिष मनुष्य की गुलाम नही है वह जो है उसे ही बखान करना जानती है। ग्रह को अपने भाव से प्रकट करना सभी की आदत है,भाव को ग्रह से जोडना भी अपने अपने भाव के बात है,भाव को बदला जा सकता है,ग्रह को भाव में रूप के अनुसार अनुमान लगाकर बताया जा सकता है,मनुष्य अपनी गति को बदल सकता है लेकिन ग्रह अपनी गति को नही बदल सकता है। जिस पृथ्वी पर हम टिके है उसकी गति को अगर दूर से देख लें तो घिग्घी बंध जायेगी,किस शक्ति से हम धरती पर टिके है उसकी गति कितनी भयानक है यह हम धरती की परिक्रमा करने की चाल से समझ सकते है।आज आज इतना ही आचार्य राजेश

शनिवार, 1 अप्रैल 2017

चंद्र ग्रह पोस्ट नंबर 3 हम सूर्य से अहं और चन्द्रमा से मन ग्रहण करते हैं और अहं व मन का संयोग हमारे व्यवहार में सुधार लाता है। ये दोनों ग्रह सूर्य और चन्द्र ज्योतिष में ऐसे ग्रह हैं जिनसे व्यक्ति के चरित्र और व्यवहार का निरूपण आसानी से किया जा सकता है। ज्योतिष में चन्द्रमा पर बहुत बल दिया गया है।रूठा हुआ भाग्य पुन: मनाया जा सकता है, खोई हुई प्रतिष्ठा और धन पुन: अर्जित किए जा सकते हैं। एक साधारण एवं गरीब व्यक्ति भी मानसिक रूप से बहुत प्रसन्न एवं प्रफुल्लित हो सकता है अथवा वही व्यक्ति बहुत अधिक दु:खी, पीड़ित और कष्ट से भरा जीवन व्यतीत करता है। ये सभी परिस्थितियां विभिन्न प्रकार के चंद्र राशि ओर स्थान बल पर आधारित हे |सूर्य और चन्द्र अकेले ही सकारात्मक और नकारात्मक होते है बाकी के ग्रह अपनी अपनी अलग अलग प्रकृति अलग अलग राशियों में देने के लिये माने जाते है। सूर्य अयन में सकारात्मक और नकारात्मक का परिणाम देता है और चन्द्रमा पक्ष में अपने सकारात्मक और नकारात्मक रूप में उपस्थित होता है। उत्तरायण और दक्षिणायन का रूप सूर्य का है तो कृष्ण और शुक्ल पक्ष चन्द्रमा का है। यह प्रभाव कुंडली के सभी ग्रहों और राशियों के लिये इन दोनो ग्रहों का माना जाता है।चन्द्रमा मन का राजा है,"मन है तो जहान है मन नही है तो शमशान है",यह कहावत चन्द्रमा के लिये बहुत अच्छी तरह से जानी जाती है। पल पल की सोच चन्द्रमा के अनुसार ही बदलती है चन्द्रमा जब अच्छे भाव मे होता है तो वह अच्छी सोच को कायम करता है और बुरे भाव मे जाकर बुरे प्रभाव को प्रकट करता है। लेकिन जब चन्द्रमा कन्या वृश्चिक और मीन का होता है तो अपने अपने फ़ल के अनुसार किसी भी भाव मे जाकर राशि और भाव के अनुसार ही सोच को पैदा करता है। जैसे मेष लगन का चन्द्रमा अगर कर्क राशि मे है तो वह भावनात्मक सोच को ही कायम करेगा अगर वह लगन मे है तो अपनी काया के प्रति भावनात्मक सोच को पैदा करेगा और वृष राशि मे है तो अपने परिवार के लिये धन के लिये और भौतिक साधनो के लिये भावनात्मक सोच को पैदा करेगा वही चन्द्रमा अगर मिथुन राशि का होकर तीसरे भाव मे चला गया है तो वह केवल अपने पहिनावे लिखने पढने और इसी प्रकार की सोच को पैदा करेगा,अष्टम मे है तो वह अपनी भावनात्कम सोच को अपमान होने और गुप्त रूप से प्राप्त होने वाले धन अथवा सम्मान के प्रति अपनी सोच को रखने के साथ साथ वह मौत के बाद के जीवन के प्रति भी अपनी सोच अपनी भावना मे स्थापित कर लेगा। इसी प्रकार से कन्या राशि का चन्द्रमा अगर अच्छे भाव मे है तो वह अच्छी सोच को पैदा करने के लिये सेवा वाले कारणो को सोचेगा और बुरे भाव मे है तो वह केवल चोरी कर्जा करना और नही चुकाना दुश्मनी को पैदा कर लेना और हमेशा घात लगाकर काम करना आदि के लिये ही सोच को कायम रख पायेगा।चन्द्रमा जगत की उत्पत्ति का कारक है यह माता बनकर जीव को पैदा करता है और पानी बनकर जीव को पालता है तथा भावना बनकर जीव को अच्छे और बुरे काम करवाता है जीवन देने का कारक भी बनता तो मारने का भी कारक बनता है। भौतिक रूप से सभी ग्रहो के साथ मिलकर अपने रूप को बदलता है तथा राशि के अनुसार अपना स्वभाव बना लेता है भाव के अनुसार ही भावना को बनाने का कारक है. जब चन्द्रमा की जाग्रत अवस्था जीव मे होती है तो वह चेतन अवस्था मे होता है चन्द्र्मा की सुषुप्त अवस्था मे जीव जागते हुये भी अचेतन अवस्था मे चला जाता है। हिन्दी के चेतन शब्द का अर्थ देखने पर च जो चन्द्रमा का कारक है मे ऐ की मात्रा शक्ति उसी प्रकार से प्रदान करती है जैसे शब्द शव मे इ की मात्रा लगाने पर शिव का रूप बन जाता है। अक्षर तक के शामिल होने पर चेत यानी सजगता शुरु हो जाती है और अक्षर न जब जाग्रत अवस्था मे गुप्त रहस्यों को भी समझा जा सके। अर्थात जाग्रत अवस्था मे जब गुप्त रहस्य को भी समझा जा सके तभी चेतन अवस्था का होना माना जाता है।एक बात चेतन अवस्था के लिये और भी मानी जाती है कि जब सूर्य के साथ चन्द्रमा होता है तो चन्द्रमा की औकात नही होती है वह सूर्य के अहम के आगे अपने प्रभाव रूपी भावना को प्रदर्शित भी नही कर सकता है और कोई भी रहस्य समझने की उसमे ताकत भी नही होती है। जैसे जैसे चन्द्रमा सूर्य से दूर होता जाता है वैसे वैसे उसके अन्दर ताकत आती जाती है जैसे जैसे चन्द्रमा सूर्य के पास आता जाता है उसकी ताकत कम होती जाती है। शुक्ल या कृष्ण पक्ष की सप्तमी से अष्टमी के बीच मे चन्द्रमा की ताकत निश्चित मात्रा मे होती है और पूर्णिमा के दिन जब चन्द्रमा सूर्य से एक सौ अस्सी अंश की दूरी पर होता है तो चन्दमा पूर्ण बलवान होता है अक्सर बडे काम इसी तिथि को पूर्ण होते है और प्रत्येक जीव की अच्छी या बुरी ताकत बढ जाती है। अक्सर इस तिथि को भावना रूपी बल के कारण ही मंगल राहु आदि ग्रहों की सहायता से बलात्कार जैसे केश अधिक होते है और मंगल शनि के बीच मे चन्द्रमा के आने से एक्सीडेन्ट और हत्या जैसे मामले भी होते देखे गये है,पुलिस रिकार्ड को अगर खंगाला जाये तो सबसे अधिक दुर्घटना या बुरे काम पूर्णिमा के दिन ही होते और अगर तीर्थ स्थानो पर या धार्मिक स्थानो पर भीड को देखा जाये तो पूर्णिमा के दिन ही अधिक भीड देखी जा सकती है।मंगल के साथ चन्द्रमा की स्थिति या तो क्रूरता पूर्ण हो जाती है या वह बिलकुल ही मन्द गति की हो जाती है खून को शक्ति का कारक माना जाता है और शक्ति मे अगर पानी की मात्रा अधिक है तो वह भावनात्मक शक्ति बन जाती है और नीच के मंगल के होने से मन की स्थिति बहुत ही कमजोर मानी जाती है वही चन्दमा जब मंगल के शनि के घर मे होने से मकर राशि का होता है तो वह अपनी मंगल की शक्ति को दस गुनी चन्द्रमा को दे देता है शनि की चालाकी और भावना का विनाश भी मंगल को मिल जाता,और यह भाव चन्दमा को भी उच्चता मे ले जाता है जो कहना है करना है वह कडक भाषा मे कहा जाता है और खरे स्वभाव से काम भी किया जाता है।बुध के साथ चन्द्र्मा के मिलने से ह्रदय मे एक मजाकिया का प्रभाव बन जाता है प्रहसन करना जो भी ह्रदय मे आता है कह देना और जो भी काम मन को प्रफ़ुल्लित करे उसे बखान कर देना लिखने के अन्दर मन को प्रदर्शित करने वाली बातो को कहना आदि भी माना जाता है चन्द्र बुध का व्यक्ति हमेशा खुले मन का होता है वह अपने अद्नर कोई बात छुपा नही पाता है अगर वही बुध खराब राशि जैसे मीन राशि मे या वृश्चिक राशि मे चला जाता है और चन्द्रमा का साथ हो जाता है बात का गूढ पन तथा मन के अन्दर एक प्रकार की इतिहास बखान करने वाली बात या गडे मुर्दे उखाडने की बात भी मानी जा सकती है। यह मन को जो अचेतन अवस्था मे होता है को तीखे शब्दो और तीखे कामो के द्वारा जाग्रत करने का अजीब रूप भी बन जाता है। योगी की बुद्धि भी चन्द्रमा के वृश्चिक राशि मे जाने से हो जाता है और किसी प्रकार से राहु का साथ भी हो जाये तो आने वाले समय की आशंका भी व्यक्त कर दिया जाता है। जो नही है वह भी उसके साथ हो जाता है और जो है उसे नही भी बताया जा सकता है। यही चन्द्रमा जब सूर्य के साथ अगर वृश्चिक राशि का हो जाता है तो व्यक्ति अपने मन की व्यथा को किसी के सामने व्यक्त भी नही कर सकता है।नो आंखो की द्रिष्टि को नाक के ऊपर वाले हिस्से मे टिका कर बन्द आंखो से मिलने वाले अन्धेरे को देखा जाये तो एक अचेतन अवस्था भी चेतन अवस्था मे बदल जाती है। साथ ही यह क्रिया अगर लगातार की जाती रहे तो वे रहस्य जो हमेशा साथ नही होते है या मरते वक्त तक पता नही चल पाते है वह भी सामने आ जाते है मौत के बाद की अवस्था या पिछले जीवन की अवस्था भी सामने आजाती है या जो भी व्यक्ति सामने आता है उसके आगे पीछे के सभी कार्य व्यवहार रीति रिवाज और अच्छे बुरे काम सामने आजाते है।अक्सर अधिक सोचने के कारण या मोह लोभ आदि के भ्रम मे आकर चेतन मन भी अचेतन हो जाता है व्यक्ति जागता हुआ भी सोता रहता है यानी अपने ख्यालो मे इतना खो जाता है,कि उसे होश भी नही रहता है कि कोई व्यक्ति क्या कह गया है या उसने अपने ख्यालो मे रहकर कोई ऐसा काम कर दिया जिससे खुद की या किसी अन्य की जोखिम की बात भी हो गयी है,यह बात उन लोगो से भी समझी जा सकती है जो हत्या आदि करने के बाद जब व्यक्ति जेल मे जाता है और जब उसका चेतन रूप जाग्रत होता है उस समय उसे खुद के ऊपर भी विश्वास नही रहता है कि उसने वह काम कैसे कर दिया है।मित्रोंकुंडली की परिभाषा बनाते समय एक एक ग्रह का ध्यान रखना जरूरी होता है। एक ग्रह एक भाव मे एक सौ चवालीस भाव रखता है,हर भाव का रूप राशि के अनुसार अपनी अपनी भावना से ग्रह शक्ति की विवेचना करता है। वही ग्रह मित्र होता है तो समय पर वही ग्रह शत्रु भी हो जाता है जो ग्रह बचाने वाला होता है वही मारने वाला भी बन जाता है मित्रों अगर आपकी भी कोई समस्या है और आप उसका समाधान चाहते हैं जब कुंडली बनवाना दिखाना चाहते हैं तो आप मुझसे मेरे नंबरों पर संपर्क करें और पूरी-पूरी जानकारी ले सकते हैं09414481324 07597718725 मां काली ज्योतिष आचार्य राजेश बाकी आगे

लाल का किताब के अनुसार मंगल शनि

मंगल शनि मिल गया तो - राहू उच्च हो जाता है -              यह व्यक्ति डाक्टर, नेता, आर्मी अफसर, इंजीनियर, हथियार व औजार की मदद से काम करने वा...