शुक्रवार, 11 दिसंबर 2020

सही astrologer ज्योतिषी का चयन किस तरह से करें


 
बदलने का नाम ही जीवन है, और जीवन रोज करवट बदलता है, जिससे हम सभी के जीवन की घट्नाओं में भी हर रोज बदलाव होता है। यह बदलाव हम सभी अपने दैनिक जीवन में सहजता से देख सकते है, इस बदलाव को महसूस कर सकते है।कर्म व्यक्ति को जीने की वजह और जीने के साधन उपलब्ध कराता है।
 मित्रों ज्योतिष  विज्ञान  की मदद के माध्यम से हर कोई जीवन में बहुत जल्द प्रगति करना चाहता है। शहर में या social media पर कई लोग अपनी अर्धकचरी ज्योतिष जानकारी से समाज को गुमराह कर रहें हैं। ऐसे में थोड़ी सी सावधानी से आप, ज्योतिष  विज्ञानं में आपकी आस्था से किया जाने खिलवाड़ को रोक सकतें हैं। साथ ही साथ ज्योतिष पवित्र शास्त्र की गरिमा संरक्षित रखने में भी आपका पुण्य योगदान हो सकेगा।
सदैव ध्यान रखें:
जो astrologer राशि फल के माध्यम से कोई भी उपाय करवाते  हैं उनको ज्योतिष की जानकारी नहीं हो सकती आप यह घ्यान रखें उसके वहकावे में ना आएं अपनी भविष्यवाणी को बढ़ाचढ़ा कर कर पेश करने वालों को दूर से ही नमस्कार कर लें।
निशुल्क या स्वेच्छाशुल्क द्वारा ज्योतिष परामर्श देने वाले महान पंडित जी से किसी भी तरह का परामर्श लेने के पहले समझ लें ये आपके जीवन में उपयोगी नहीं सिद्ध होगा।
अपनी समस्या या जन्म कुंडली को सोशल साइट्स पर ज्यादा पंडित को दिखाने के फेर में न रहें। इससे भ्रम की स्तिथि का शिकार होकर अपने कर्म में दिशाहीनता को प्राप्त हो सकने की सम्भावना प्रबल ही करेंगे।
जन्मपत्रिका, फलित, समय की विवेचना किसी ऐसे ज्योतिष जानकर से ही प्राप्त करें जो कम से कम एक निर्धारित मात्रा में आपकी पत्रिका और आपको समय दे सकने की स्तिथि में हो।
फ्री परामर्श के वजाय शुल्क / दक्षिणा के साथ ही ज्योतिष परामर्श प्राप्त करने का नियम बांध लें।व्यक्तिगत परामर्श के दौरान होने वाला discussion अपनी एक या दो तात्कालिक समस्या तक ही सिमित रखें।
ज्योतिष जानकर भाई से अपनी जीवन में हुए कुछ recent progress/downfall का accurate samay आधारित विवरण discussion के शुरुआत में जानने का प्रयास करें। ध्यान रखें इस के द्वारा आप पंडित जी की विषय कुशलता तो समझ ही लेंगें साथ ही साथ कुंडली ठीक बनी है या नहीं, ये भी पुष्ट हो सकेगा।
ज्योतिष परामर्श के दौरान सभी बातचीत के तथ्य नोट जरुर करें।
अच्छा समय कब बन रहा है ?
ये जानकारी अवश्य ले। ध्यान रखें आपका वक्त और जन्म पत्रिका कितनी भी दुर्बल क्यों न हो, आने वाला "अच्छा समय की जानकारी मात्र ही आपके हौसले को बुलन्द् कर आपके समय को आज से ही बदल सकने में पूर्णतया सक्षम है"।
यदि आप दुर्बल समय के चलते ग्रह सम्बंधित कोई उपाय करने हेतु गम्भीर, प्रबल इच्छायुक्त एवं द्रर्ण संकल्पित हैं तो आपकी जीवनशैली अनुरूप उपाय की जानकारी हेतु निवेदन अवश्य करें। 
हर उपाय हर किसी के लिए सामान रूप से उपयोगी नहीं साबित होते हैं। व्यक्तिगत परामर्श में बातचीत की संजीदगी के माध्यम से आपकी जीवनशैली के अनुसार ही उपाय बताने की सम्भावना बनती है।
बताये गए उपाय पर कम से कम तीन माह अमल जरुर करें। कुछ शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक उर्जा बदलने के शुरुआती संकेत होते हैं जो आप खुद भी notic कर सकने में समर्थ हैं।
उर्जा संतुलन हेतु किये जा रहें उपाय मन्त्र जप, हवन,   वर्जन, जल सेवन वर्जन, दान, यन्त्र धारण रत्न धारण स्रोत/ कवच पाठ के द्वारा बनने वाले आत्मिक वैचारिक बल बदलाव को कैसे समझा जाये ये आपका सलाहकार आपको पूर्व में ही guide कर सकने में समर्थवान हो सकता है।
धयान रखें की उपाय शुरू करते ही 2 हफ्ते के भीतर ( चंद्रमा 180 डिग्री, सूर्य 15 डिग्री गोचर भ्रमण दौरान) ही ग्रहबल वर्धन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। अश्थापूर्वक उपाय करने के बावजूद भी लाभ न मिलने की दशा में अपने astrologer को पुनः संपर्क कर इस बारे में जरुर बताएं।
एक कर्मकांड करने वाले पंडित और ज्योतिषी में फर्क करना सीखें
कलियुग में कोई भी इन्सान किसी भी रूप में आपकी मदद को पूर्णतया तभी तैयार होगा जब आप पूर्ण श्रद्धा भाव से व्यक्तिगत रूप से मिलकर कुछ निवेदन करेगें।
गुरु का स्थान गोविन्द से भी बड़ा है। 

सही नीयत और जानकारी वाले गुरु तक पहुचना एक अनिवार्य नियम है। इसकी अवहेलना से बचकर रहना ही सुमति का परिचायक है, बाकि आपकी मर्जी

बुधवार, 9 दिसंबर 2020

www.acharyarajesh.in14 Dec 2020 Surya Grahan Time: सूर्य लगने जा रहा है. साल का आखिरी सूर्य ग्रहण कई मामलों में बहुत ही महत्वपूर्ण माना जा रहा है.


मित्रों 14 दिसंबर अमावस्या की रात को खंडग्रास सूर्य ग्रहण होगा। ग्रहण भारतीय समयानुसार रात में होगा इसलिए यह न तो भारत में दिखाई देगा, न ही इसका कोई प्रभाव भारत में पड़ेगा। सूतक भी नहीं लगेगा। सूर्य ग्रहण शाम 7:03 बजे से प्रारंभ होकर रात 12:23 बजे तक अर्थात लगभग पांच घंटे 20 मिनट का होगा। इसे दक्षिण अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका और प्रशांत महासागर के कुछ हिस्सों में देखा जा सकेगा।सूर्य ग्रहण वृश्चिक राशि और ज्येष्ठा नक्षत्र में लगने जा रहा है.  सूर्य ग्रहण के समय पांच ग्रह एक साथ होंगे ज्योतिष शास्त्र में सूर्य ग्रहण को एक महत्वपूर्ण घटना माना जाता है. किसी भी तरह के ग्रहण को शुभ नहीं माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि ग्रहण के दौरान सूर्य की शक्ति क्षीण हो जाती है, यानि सूर्य कमजोर और पीड़ित हो जाता है. पौराणिक कथा के अनुसार राहु और केतु ग्रहण के दौरान सूर्य को जकड़ लेते हैं, जिस कारण सूर्य पीड़ित हो जाता है. इस दौरान सूर्य पर तेज आंधी चलती हैं. जिससे कई प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा निकलती है.आपकी कुंडली में भी सूर्यग्रहण होता है. इसे ज्योतिष के सबसे बुरे योगों में से एक माना गया है जातक की कुंडली में यदि सूर्य और राहू ग्रह एक साथ हों तो इसे जातक के लिए अच्छा नहीं माना जाता है. कुंडली में सूर्य और राहू के योग को ग्रहण दोष के नाम से जाना जाता है. सूर्य जिस भाव में हो  ककुंडली में सूर्यग्रहण की इस स्थिति को पितृदोष भी मानते हैं।
कुंडली में यदि सूर्यग्रहण हो अर्थात ग्रहण दोष हो तो जातक के जीवन पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पडता है. ग्रहण दोष के कारण जातक के जीवन में हमेशा अस्थिरता बनी रहती है। घर में कलह बनी रहती है, विवाह और संतान प्राप्ति में देरी होती है, कैरियर में भी असफलता मिलती है। इतना ही नहीं उसे बीमारियां घेर लेती हैं, और उसमें आत्मविश्वास की बेहद कमी रहती हैं। जातक को नजदीकी रिश्तों, पारिवारिक संबंधों में भी कष्ट और धोखा मिलता है।.ज्योतिष में जब इसका उल्लेख आता है तो सामान्य रूप से हम इसे सूर्य व चन्द्र देव का किसी प्रकार से राहु व केतु से प्रभावित होना मानते हैं . .पौराणिक कथाओं के अनुसार अमृत के बंटवारे के समय एक दानव धोखे से अमृत का पान कर गया .सूर्य व चन्द्र की दृष्टी उस पर पड़ी और उन्होंने मोहिनी रूप धरे विष्णु जी को संकेत कर दिया ,जिन्होंने तत्काल अपने चक्र से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया .इस प्रकार राहु व केतु दो आकृतियों का जन्म हो गया . अब राहु व केतु के बारे में एक नयी दृष्टी से सोचने का प्रयास करें .राहु इस क्रम में वो ग्रह बन जाता है जिस के पास मात्र  सिर है ,व केतु वह जिसके अधिकार में मात्र धड़ है .अब ग्रहण क्या होता है ?राहु व केतु का सूर्य या चन्द्र के साथ युति करना आमतौर पर ग्रहण मान लिया जाता है .किन्तु वास्तव में सूर्य ग्रहण मात्र राहु से बनता है व चन्द्र ग्रहण केतु द्वारा .ज्योतिष में बड़े जोर शोर से इसकी चर्चा होती है .बिना सोचे समझे इस दोष के निवारण बताये जाने लगते हैं .बिना यह जाने की ग्रहण दोष बन रहा है तो किस स्तर का और वह क्या हानि जातक के जीवन में दे रहा है या दे सकता है .बात अगर आकड़ों की करें तो राहु केतु एक राशि का भोग 18 महीनो तक करते हैं .सूर्य एक माह एक राशि पर रहते हैं .इस हिसाब से वर्ष भर में जब जब सूर्य राहु व केतु एक साथ पूरा एक एक महीना रहेंगे तब तब उस समय विशेष में जन्मे जातकों की कुंडली ग्रहण दोष से पीड़ित होगी .इसी में चंद्रमा को भी जोड़ लें तो एक माह में लगभग चन्द्र पांच दिन ग्रहण दोष बनायेंगे .वर्ष भर में साठ दिन हो गए .यानी कुल मिलाकर वर्ष भर में चार महीने तो ग्रहण दोष हो ही जाता है .यानी दुनिया की एक तिहाई आबादी ग्रहण दोष से पीड़ित है .अब कई ज्योतिषियों द्वारा राहु केतु की दृष्टि भी सूर्य चन्द्र पर हो तो ग्रहण दोष होता है .हम जानते हैं की राहु केतु अपने स्थान से पांच सात व नौवीं दृष्टि रखते हैं .यानी आधे से अधिक आबादी ग्रहण दोष से पीड़ित है .अब ये आंकड़ा कम से कम मुझे तो विश्वसनीय नहीं लगता मित्रों .इसी लिए फिर से स्पष्ट कर दूं की मेरी नजर में ग्रहण दोष वहीँ तक है जहाँ राहु सूर्य से युति कर रहे हैं व केतु चंद्रमा से .इस में भी जब दोनों ग्रह  एक ही अंश -कला -विकला पर हैं तब ही उस समय विशेष पर जन्म लेने वाला जातक वास्तव में ग्रहण दोष से पीड़ित है ,और इस टर्मिनोलॉजी के अनुसार संसार के लगभग दस प्रतिशत से कम जातक ही ग्रहण दोष का कुफल भोगते हैं .हाँ आंकड़ा अब मेरी पसंद का बन रहा है. अन्य प्रकार की युतियाँ कुछ असर डाल सकती है जिनके बारे में आगे जिक्र करूँगा।किन्तु किसी भी भ्रमित करने वाले ज्योतिषी से सावधान रहें जो ग्रहण दोष के नाम पर आपको ठग रहा है .दोष है तो उपाय अवश्य है किन्तु यह बहुत संयम के साथ करने वाला कार्य है .मात्र  तीस सेकंड में टी .वी पर बिना आपकी कुंडली देखे ग्रहण दोष सम्बन्धी यंत्र आपको बेचने वाले ठगों से सचेत रहें ,शब्दों पर मित्रों से थोडा रिआयत चाहूँगा ,बेचने  वाले नहीं अपितु भेड़ने वाले महा ठगों से बचना दोस्तों.एक पाठक का पैसा भी बचा तो जो भी प्रयास आज तक ब्लॉग के जरिये कर रहा हूँ ,समझूंगा काम आया .   जैसा की हमें ज्ञात है सूर्य हमारी कार्य करने की क्षमता का ग्रह है,हमारे सम्मान ,हमारी प्रगति का कारक है यह जगतपिता है,इसी की शक्ति से समस्त ग्रह चलायमान है,यह आत्मा कारक और पितृ कारक है,पुत्र राज्य सम्मान पद भाई शक्ति दायीं आंख चिकित्सा पितरों की आत्मा शिव और राजनीति का कारक है..राहु के साथ जब भी यह ग्रहण दोष बनाता है तो देखिये इसके क्या परिणाम होते हैं राहु की आदत को समझने के लिये केवल छाया को समझना काफ़ी है। राहु अन्दरूनी शक्ति का कारक है,राहु सीमेन्ट के रूप में कठोर बनाने की शक्ति रखता है,राहु शिक्षा का बल देकर ज्ञान को बढाने और दिमागी शक्ति को प्रदान करने की शक्ति देता है,राहु बिजली के रूप में तार के अन्दर अद्रश्य रूप से चलकर भारी से भारी मशीनो को चलाने की हिम्मत रखता है,राहु आसमान में बादलों के घर्षण से उत्पन्न अद्रश्य शक्ति को चकाचौन्ध के रूप में प्रस्तुत करने का कारक होता है,राहु जड या चेतन जो भी संसार में उपस्थित है और जिसकी छाया बनती है उसके अन्दर अपने अपने रूप में अद्रश्य रूप में उपस्थित होता है।.राहु जाहिर रूप से बिना धड का ग्रह  है ,जिस के पास स्वाभाविक रूप से दिमाग का विस्तार है .यह सोच सकता है,सीमाओं के पार सोच सकता है .बिना किसी हद के क्योंकि यह बादल है ..जिस कुंडली में यह सूर्य को प्रभावित करता है वहाँ जातक बिना कोई सार्थक प्रयास किये ,कल्पनाओं के घोड़े  पर सवार रहता है .बार बार अपनी बुद्धि बदलता है .आगे बढने के लिए हजारों तरह की तरकीबों को आजमाता है किन्तु एक बार भी सार्थक पहल उस कार्य के लिए नहीं करता, कर ही नहीं पाता क्योंकि प्लान को मूर्त रूप देने वाला धड उसके पास नहीं है .अब वह खिसियाने लगता है .पैतृक  धन  बेमतलब के कामों में लगाने लगता है .आगे बड़ने की तीव्र लालसा के कारण चारों तरफ हाथ डालने लगता है और इस कारण किसी भी कार्य को पूरा ही नहीं कर पाता .हाथ में लिए गए कार्य को (किसी भी कारण) पूरा नहीं कर पाता ,जिस कारण कई बार अदालत आदि के चक्कर उसे काटने पड़ते हैंसूर्य की सोने जैसी चमक होते हुए भी धूम्रवर्णी  राहु के कारण उसकी काबिलियत समाज के सामने मात्र लोहे की रह जाती है. उसकी क्षमताओं का उचित मूल्यांकन नहीं हो पाता .अब अपनी इसी आग को दिल में लिए वह इधर उधर झगड़ने लगता है.पूर्व दिशा उसके लिए शुभ समाचारों को बाधित कर देती है .पिता से उसका मतभेद बढने लगता है .स्वयं को लाख साबित करने की कोशिश भी उसे परिवार की निगाह में सम्मान का हक़दार नहीं होने देती .घर बाहर दोनों जगह उसकी विश्वसनीयता पर आंच आने लगती है सूर्य के साथ राहु का होना भी पितामह के बारे में प्रतिष्ठित होने की बात मालुम होती है ,जातक के पास कानून से विरुद्ध काम करने की इच्छायें चला करती है,पिता की मौत दुर्घटना में होती है,या किसी दवाई के रियेक्सन या शराब के कारण होती है,या वीमारी सेजातक के जन्म के समय पिता को चोट लगती है,जातक को नर  सन्तान भी कठिनाई से मिलती है,पत्नी के अन्दर गुप चुप रूप से सन्तान को प्राप्त करने की लालसा रहती है,पिता के किसी भाई को जातक के जन्म के बाद मौत जैसी स्थिति होती है।.वहीँ दूसरी और केतु (जिस के पास सिर नहीं है ) से सूर्य की युति होने पर  जातक बिना सोचे समझे कार्य करने लगता है .यहां वहां मारा मारा फिरता है .बिना लाभ हानि की गणना किये कामों में स्वयं को उलझा देता है .लोगों के बहकावे में तुरंत आ जाता है . मित्र ही उसका बेवक़ूफ़ बनाने लगते हैं केतु और सूर्य का साथ होने पर जातक और उसका पिताधार्मिक होता है,दोनो के कामों के अन्दर कठिनाई होती है,पिता के पास कुछ इस प्रकार की जमीन होती है,जहां पर खेती नही हो सकती है,नाना की लम्बाई अधिक होती है,और पिता के नकारात्मक प्रभाव के कारण जातक का अधिक जीवन नाना के पास ही गुजरता है या नाना से ख़र्च में मदद मिलती है .(यहाँ कुंडली में लग्नेश कीस्थिति व कारक होकर गुरु का लग्न को प्रभावित करना समीकरणों में फर्क उत्पन्न करने में सक्षम है).जिस जातक की कुंडली में द ग्रहण दोष हों वो सामान्य जीवन व्यतीत नहीं कर पाता ,ये निश्चित है .कई उतार-चड़ाव अपने जीवन में उसे देखने होते हैं .मनुष्य जीवन के पहले दो सर्वाधिक महत्वपूर्ण  ग्रहों का दूषित होना वास्तव में दुखदायी हो जाता है .ध्यान दें की सूर्य -चन्द्र के आधिपत्य में एक एक ही राशि है व ये कभी वक्री नहीं होते . अर्थात हर जातक के जीवन में इनका एक निश्चित रोल होता है एक ज्योतिषी की जिम्मेदारी है की जब भी किसी कुंडली का अवलोकन करे तो इस दोष पर लापरवाही ना करे .उचित मार्गदर्शन द्वारा क्लाइंट को इस के उपचारों से परिचित कराये .किस दोष के कारण जातक को सदा जीवन में किन किन स्थितियों में क्या क्या सावधानियां रखनी हैं ताकि इस का बुरा प्रभाव कम से कम हो , इन बातों से परिचित कराये .  अगर असल में आपकी कुंडली में ग्रहन  दोष हो तो पह कुंडली दिखाकर जानकारी हासिल् कर ले यहां पर कुछ उपाय  करके लाभ ले सकते हैं आचार्य राजेश -

शनिवार, 28 नवंबर 2020

चंद्र ग्रहण Chandra Grahan (Lunar Eclipse) 30 November 2020


मित्रों साल 2020 का आखरी चंद्रगहण 30 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा के दिन लगने जा रहा है. साल 2020 का आखरी चंद्रगहण 30 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा के दिन लगने जा रहा है. वैसे  30 नवंबर के दिन दोपहर 1.04 बजे से ग्रहण लगना शुरू होगा और 5.22 मिनट कर रहेगाजबकि, इस बीच दोपहर 3 बजकर 13 मिनट पर यह चरम पर होगा. उपछाया ग्रहण कुल 04 घंटे 18 मिनट 11 सेकंड तक   दिखेगा कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि यानी  सोमवार लगने वाला चंद्र ग्रहण रोहिणी नक्षत्र और वृषभ राशि में लगेगा.30 नवंबर को पड़ने वाला ग्रहण उपच्छाया चंद्र ग्रहण है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार उपच्छाया चंद्र ग्रहण का कोई सूतक काल नहीं होगा यह चंद्र ग्रहण उपछाया चंद्र ग्रहण है जो भारत में दिखाई नहीं देगा. शास्त्रों में उपछाया चंद्र ग्रहण को ग्रहण नहीं माना जाता है. इसलिए ना तो यहां सूतक काल माना जाएगा और ना ही किसी तरह के कार्यों पर पाबंदी होगी. हालांकि नक्षत्र और राशि में लगने का असर जातकों पर जरूर पड़ेगा. ये ग्रहण वृषभ राशि में लगेगा मित्रों ग्रहण के दौरान नकारात्मक शक्तियां ज्यादा हावी रहती हैं, मित्रों हमारी जन्म कुंडली के अंदर भी ग्रहण दोष पाया जाता है अतः इस चंद्रग्रहण पर हम उसके उपाय करके उस दोष को उसके द्वारा दी जाने वाली पीड़ा को कम कर सकते हैं मित्रों अगर कुंडली में चंद्र ग्रहण हो तो उसके कई दुष्परिणाम बुरे प्रभाव हमें देखने को मिलते यह दोष भाग्य कमजोर कर देते है ,बहुत ख़राब कर देते है लाइफ में हर चीज़ संघर्ष से बनती है या संघर्ष से मिलती है  हमारे चन्द्र ग्रह से वाहन का सुख सम्पति का सुख विशेष रूप से माता और दादी का सुख और घर का रूपया पैसा और मकान आदि सुख देखा जाता है. जन्म कुंडली में यदि चन्द्र राहू या केतु के साथ आ जाये तो वे शुभ फल नहीं देता है.ज्योतिष ने इसे चन्द्र ग्रहण माना है, यदि जन्म कुंडली में ऐसा योग हो तो चंद्रमा से सम्बंधित सभी फल नष्ट हो जाते है माता को कष्ट मिलता है घर में शांति का वातावरण नहीं रहता जमीन और मकान सम्बन्धी समस्या आती है.चन्द्र ग्रहण योग की अवस्था में जातक डर व घबराहट महसूस करता है,चिडचिडापन उसके स्वभाव का हिस्सा बन जाता है,माँ के सुख में कमी आती है, कार्य को शुरू करने के बाद उसे अधूरा छोड़ देना लक्षण हैं, फोबिया,मानसिक बीमारी, डिप्रेसन ,सिज्रेफेनिया,इसी योग के कारण माने गए हैं, मिर्गी ,चक्कर व मानसिक संतुलन खोने का डर भी होता है.
.इसी प्रकार जब चंद्रमा की युति राहु या केतु से हो जाती है तो जातक लोगों से छुपाकर अपनी दिनचर्या में काम करने लगता है . किसी पर भी विश्वास करना उसके लिए भारी हो जाता है .मन में सदा शंका लिए ऐसा जातक कभी डाक्टरों तो कभी पण्डे पुजारियों के चक्कर काटने लगता है .अपने पेट के अन्दर हर वक्त उसे जलन या वायु गोला फंसता हुआ लगता हैं .डर -घबराहट ,बेचैनी हर पल उसे घेरे रहती है .हर पल किसी अनिष्ट की आशंका से उसका ह्रदय कांपता रहता है .भावनाओं से सम्बंधित ,मनोविज्ञनससम्बंधित ,चक्कर व अन्य किसी प्रकार के रोग इसी योग के कारण माने जाते हैं 
कुंडली चंद्रमा यदि अधिक दूषित हो जाता है तो मिर्गी ,पागलपन ,डिप्रेसन,आत्महत्या आदि के कारकों का जन्म होने लगता हैं । चूँकि चंद्रमा भावनाओं का प्रतिनिधि ग्रह होता है .इसकी राहु से युति जातक को अपराधिक प्रवृति देने में सक्षम होती है ,विशेष रूप से ऐसे अपराध जिसमें क्षणिक उग्र मानसिकता कारक बनती है . जैसे किसी को जान से मार देना , लूटपाट करना ,बलात्कार आदि .वहीँ केतु से युति डर के साथ किये अपराधों को जन्म देती है . जैसे छोटी मोटी चोरी .ये कार्य छुप कर होते है,किन्तु पहले वाले गुनाह बस भावेश में खुले आम हो जाते हैं ,उनके लिए किसी विशेष नियम की जरुरत नहीं होती .यही भावनाओं के ग्रह चन्द्र के साथ राहु -केतु की युति का फर्क होता है  मित्रों आप की कुंडली में भी चंद्र ग्रहण दोष है तो आप मुझसे या किसी अच्छै astrologer से मिलकर  उपाय करें यह आपके लिऐ अच्छा होता https://youtu.be/bV7kSwr8i3wकुछ उपाय मैंने अपने पुराने यूट्यूब वीडियो में बताएं थे जिसका लिंक में जहां दे रहा हूं उसकोopen करके सूने  उसको करके आप लाभ उठा सकते हैं  

गुरुवार, 26 नवंबर 2020

प्रकृति अनुसार मकान की बनावट और वास्तु

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प्रकृति अनुसार मकान की बनावट और वास्तु
आज की दुनिया में, हम में से हर एक सफल और शक्तिशाली होने की दौड़ में है। सकारात्मक ऊर्जा और सहयोगी घर  कार्यस्थल से ईंधन की जा रही एक आनंदित और सफल जीवन की महत्वपूर्ण अवधियां हैं। और यहां, वास्तु एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस क्षेत्र में किए गए वैज्ञानिक अध्ययन ने यह साबित किया है कि सकारात्मक परिवेश और अच्छे वाइब्स व्यक्तियों की सफलता के लिए अधिकतम योगदान करते हैं। हालांकि ज्यादातर लोग असंतोष और दुःख के लिए अपने सितारों को दोषी मानते हैं; आपके असफल जीवन की ओर काम करने वाली अन्य शक्तियां हैं जो आपको मानसिक तनाव और बुरे स्वास्थ्य का कारण देती हैं जब आप वास्तु सिद्धांतों के खिलाफ जाते हैं वास्तु शास्त्र, ऊर्जा, सौर ऊर्जा, चंद्र ऊर्जा, तापीय ऊर्जा, चुंबकीय ऊर्जा, प्रकाश ऊर्जा, और पवन ऊर्जा से वातावरण से आने वाली विभिन्न ऊर्जा पर आधारित है। इन ऊर्जा को शांति, समृद्धि और सफलता बढ़ाने के लिए संतुलित किया जा सकता है यदि घर वास्तु सिद्धांतों के अनुसार किया जाता है, तो  जीवन में सभी सुख का आनंद होता है, लेकिन अगर यह सिद्धांतों के खिलाफ है, तो यह सभी प्रकार की समस्याओं, चिंताओं और बेचैनी का स्थान होगा। वास्तु ने धरती, जल, वायु, अग्नि और आकाश के पांच तत्वों से जुड़े प्रकृति की विभिन्न शक्तियों के परस्पर क्रिया को माना और इन तत्वों को प्रभावित करने, मार्गदर्शन करने और मनुष्यों के न केवल मनुष्यों की जीवित शैलियों को बदलने के लिए प्रयास किया, लेकिन पृथ्वी पर रहने वाले हर जीव वास्तु को सुधारने के लिए स्वयं करें, हम सभी अपने घरों की देखभाल करते हैं और समय, प्रयास और पैसा खर्च करते हैं, उन्हें और अधिक आरामदायक बनाने की कोशिश करते हैं। एक बार घर का निर्माण हो जाने पर, संरचनात्मक परिवर्तन करना इतना आसान नही कहावत है कि "कमाना हर किसी को आता है खर्च करना किसी किसी को आता है",शरीर और मकान की रूपरेखा को समझना और सजाना संवारना एक जैसा ही है। आज के जमाने में जब व्यक्ति को एक समय का भोजन जुटाना भारी है उसके बाद मकान का बन्दोबस्त करना कितनी टेढी खीर होगी इसका अन्दाज एक मध्यम वर्गीय परिवार आराम से लगा सकता है। हाँ उन लोगों को कोई फ़र्क नही पडता है जिनके बाप दादा कमा कर रख गये है और वे अपने जीवन में मनमाने तरीके से खर्च कर रहे है,लेकिन उनकी औलादों के लिये भी सोचना तो पडेगा ही। मकान बनाने के लिये जीवन की गाढी कमाई को प्रयोग में लेना पडता है,उस गाढी कमाई को अगर समझ बूझ कर खर्च नही किया तो वह एक दिन अपने ही कारण से रोना बन कर रह जाती है। मकान का ढांचा इस प्रकार से बनाना चाहिये कि वह किसी भी तरह के बोझ को टआराम से सहन कर ले। जून की गर्मी हो या अगस्त की बरसात अथवा दिसम्बर का जाडा,सभी ऋतुओं की जलवायु को मकान का ढांचा सहन कर लेता है तो वह आराम से निवास करने वालों के लिये दिक्कत वाला नही होता है। प्रकृति के नियम के अनुसार अक्सर जाडे में बनाये हुये मकान गर्मी में अपनी बनावट में परिवर्तन करते है,अक्सर भारत के मध्य में जो मकान गर्मी में बन जाते है वे दिसम्बर में अपने अन्दर बदलाव करते है। मकान का ढांचा अपने स्थान से कुछ ना कुछ घटता है,इस घटाव के कारण अगर मकान का ढांचा बनाकर फ़टाफ़ट पलस्तर कर दिया गया है और उसके बाद फ़टाफ़ट रंग रोगन कर दिया गया है तो वह कहीं ना कहीं से चटक दिखायेगा जरूर,मकान की चटक किसी भी तरह से रंग रोगन के बाद दबाने से नही दबती है,वह अगली साल में अपनी फ़िर से रंगत दिखा देती है और अच्छा पैसा लगाने के बाद भी समझ में नही आता है कि मकान की चटक को कैसे दबाया जाये। अक्सर बडे बडे कारीगर और मकान का निर्माण करने वाले कह देते है कि मकान ने सांस ले ली है। भूतकाल में जो मकान बनाये जाते थे,वे धीरे धीरे बनाये जाते थे,जैसे जैसे हाथ फ़ैलता था मकान का निर्माण कर लिया जाता था,और जब मकान धीरे धीरे बनता था जो लाजिमी है कि मकान का पहले ढांचा बनता था फ़िर कुछ समय बाद पलस्तर होता था उसके बाद महीनो या सालों के बाद उसके अन्दर रंग रोगन किया जाता था। वे मकान आज भी सही सलामत है कोई उनके अन्दर दरार या कमी नही मिलती है। किसी प्रकार से वास्तु का प्रभाव भी होता था तो उसे समय रहते बदल दिया जाता था,लेकिन आज के भागम भाग युग में हर कोई आज ही मकान बनाकर उसके अन्दर ग्रह-प्रवेश कर लेना चाहता है। कई मंजिला मकान बनाने के लिये जो ढांचा बनाना पडता है उसके लिये पहले जमीन में जाल भरा जाता है,उस जाल को भरने के बाद बीम भरे जाते है,उन बीमों को भरने के बाद कुछ समय के लिये उन्हे छोड दिया जाता है,उसके बाद उनकी कार्य लेने की गति के अनुसार बाकी का साज सज्जा वाला काम किया जाता है। बीम के अन्दर या जाल के अन्दर जो सरिया सीमेंट बजरी और रोडी आदि प्रयोग में ली जाती है उसे मानक दंडों से माप कर ही प्रयोग में लाया जाता है,बडे बडे जो पुल बनाये जाते है उनके अन्दर भले ही दो इन्च की जगह रखी जाये लेकिन जगह जरूर छोडी जाती है,जिससे गर्मी के मौसम में अगर बीम अपने स्थान से बढता है तो वह अपनी जगह पर ही बना रहे,नीचे नही गिरे,जैसे रेलवे लाइनों के बीच में जगह छोडी जाती है,उसी प्रकार से घर बनाने के समय डाले गये बीम में किसी ना किसी प्रकार की जगह छोडी जाती है,इसके अलावा गर्मी और सर्दी का असर देखने के लिये रोजाना की तराई भी अपना काफ़ी काम करती है,जून के महिने में अगर मकान को बनाया जाता है तो रोजाना की जाने वाली पानी की तराई उस लगे हुये सीमेंट और सरिया के अन्दर अपना घटाने और बढाने वाला औसत बनाने के लिये काफ़ी अच्छा माना जाता है,तराई करते वक्त सीमेंट बजरी और सरिया रोडी अपने स्थान से सिकुडते भी है और पानी की तरावट पाकर सीमेंट अपने अन्दर पानी के बुलबुलों से जगह भी बनाता है,इस प्रकार से दिवाल में एक फ़ोम जैसा माहौल बन जाता है जो किसी भी मौसम में उसी प्रकार से काम करता है जैसे फ़ोम को दिशा के अनुसार घटाया बढाया जा सकता है। यह ध्यान रखना चाहिये कि मकान का झुकाव हमेशा ईशान की तरफ़ होता है,कितनी ही डिग्री को संभाल कर बनाया जाये लेकिन कुछ समय उपरान्त मकान ईशान की तरफ़ कुछ ना कुछ डिग्री में झुकेगा जरूर,इसका कारण सूर्य की गर्मी वाली किरणें शाम के साम पश्चिम दिशा की तरफ़ से पडती है और रात हो जाने के बाद ईशान दिशा सबसे पहले ठंडी हो जाती है,गर्मी हमेशा ठंड की तरफ़ भागती है,इसी प्रक्रिया के कारण मकान का झुकाव ईशाव की तरफ़ हो जाता है।

मंगलवार, 24 नवंबर 2020

वास्तुशास्त्र के नियम

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वास्तु के इन नियमों को मानकर परिवार में सुख, शांति और व्यापारिक संस्थानों को श्रीसमृद्धि से युक्त बनाया जा सकता है।कहावत है कि आधा भाग्य मनुष्य का और आधा भाग्य रहने वाले स्थान का काम करता है,अगर किसी प्रकार से मनुष्य का भाग्य खराब हो जावे तो रहने वाले घर का भाग्य सहारा दे देता है,और जब घर का भाग्य भी खराब हो और मनुष्य का भाग्य भी खराब हो जावे तो फ़िर सम्स्या पर समस्या आकर खडी हो जाती है और मनुष्य नकारात्मकता के चलते सिवाय परेशानी के और कुछ नही प्राप्त कर पाता है.मैने अपने वीस साल के ज्योतिषीय जीवन में जो अद्भुत गुर वास्तु के स्वयं अंजवाकर देखे है,और लोगों को बता कर उनकी परेशानियों का हल निकालने में सहायता दी है,यह कोई ढकोसला या प्रोप्गंडा नही है.
वास्तु क्या है
कम्पास को देखने के बाद और पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव के बारे में सभी जानते है,कम्पास की सुई हमेशा उत्तर की तरफ़ रहती है,कारण खिंचाव केवल सकारात्मक चुम्बकत्व ही करता है और विपरीत दिशा में धक्का देने का काम नकारात्मक चुम्बकत्व करता है,कभी आपेन चुम्बक को देखा होगा,उसकी उत्तरी सीमा में लोहे को ले जाते ही वह चुम्बक की तरफ़ खिंचता है और नकारात्मक सीमा में ले जाते ही वह चुम्बक विपरीत दिशा की तरफ़ धक्का देता है,उत्तरी ध्रुव पर सकारात्मक चुम्बकत्व है,और दक्षिणी ध्रुव की तरफ़ नकारात्मक चुम्बकत्व है,उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव की तरफ़ लगातार बिना किसी रुकावट के प्रवाहित होती रहती है,यही जीवधारियों के अन्दर जो जैविक करेन्ट उपस्थित होता है,वह इस प्रवाहित होने वाले चुम्बकीय प्रभाव से अपनी गति को बदलता है,सकारात्मक प्रभाव के कारण दिमाग में सकारात्मक विचार उत्पन्न होते है और नकारात्मक प्रभाव के कारण नकारात्मक प्रभाव पैदा होते है.
सकारात्मकता के होते भी नकारात्मक प्रभाव
मनुष्य शरीर के पैर के तलवे,और हाथों की हथेलियां दोनो ही शरीर के करेंट को प्रवाहित करने और सोखने के काम आती हैं,हाथ मिलाना भी एक ऊर्जा को अपने शरीर से दूसरे के शरीर में प्रवाहित करने की क्रिया है,चुम्बन लेना और देना भी अत्यन्त प्रभावशाली ऊर्जा को प्रवाहित करने और सोखने का उत्तम साधन है,बिना चप्पल के घूमना शरीर की अधिक सकारात्मक ऊर्जा को ग्राउंड करने का काम है जबकि लगातार चप्पल पहिन कर और घर में रबर का अधिक प्रयोग करने पर व्यक्ति अधिक उत्तेजना में आ जाता है,और नंगे पैर रहने वाला व्यक्ति अधिकतर कम उत्तेजित होता है.नकारात्मक पभाव का असर अधिकतर स्त्रियों में अधिक केवल इसलिये देखने को मिलता है कि वे अपने निवास स्थान में नंगे पैर अधिक रहना पसम्द करती है,और जो स्त्रियां पुरुषॊ की तरह से चप्पले या जूतियां पहना करती है वे सकारात्मक काम करना और सकारात्मक बोलना अधिक पसंद करती है.सूर्य सकरात्मकता का प्रतीक है,सूर्योदय के समय जो प्रथम किरण निवास स्थान में प्रवेश करती है,वह ऊर्जा का पूरा असर निवास स्थान में भरती है,और जो भी लोग उस निवास स्थान में रहते है,चाहे वह पशु पक्षी हो या मनुष्य सभी को उसका प्रभाव महसूस होता है.भारत के पुराने जमाने के जो भी किले बनाये जाते थे,उनका सबका सामरिक महत्व केवल इसलिये ही अधिक माना जाता था कि,उनके दरवाजे दक्षिण की तरफ़ ही अधिकतर खुलते थे,मन्दिर जिनके भी दरवाजे दक्षिण की तरफ़ खुलते है,वे सभी मन्दिर प्रसिद्ध है,अस्पताल भी दक्षिण मुखी प्रसिद्ध इसी लिये हो जाते है कि उनका वास्तविक प्रभाव मंगल से जुड जाता है.
साउथ फ़ेसिंग मकान और कार्य स्थलों मे अन्तर
साउथ को मंगल का क्षेत्र कहा गया है,उज्जैन में मंगलनाथ नामक स्थान पर जो मंगल का यंत्र स्थापित है उसकी आराधना करने पर आराधना करने वाले का फ़ेस दक्षिण की तरफ़ ही रहता है,मन्दिर का मुख्य दरवाजा भी दक्षिण की तरफ़ है,मंगल का रूप दो प्रकार का ज्योतिष में कहा गया है,पहला मंगल नेक और दूसरा मंगल बद,मंगल नेक के देवता हनुमानजी,और मंगल बद के देवता भूत,प्रेत,पिसाच आदि माने गये है.इसी लिये जिनके परिवारों में पितर और प्रेतात्मक शक्तियों की उपासना की जाती है,अधिकतर उन लोगों के घर में शराब कबाब और भूत के भोजन का अधिक प्रचलन होता है,जबकि नेक मंगल के देवता हनुमानजी की उपासना वाले परिवारों के अन्दर मीठी और सुदर भोग की वस्तुओं के द्वारा पूजा की जाती है.साउथ फ़ेसिंग मकान में रहने वाले लोग अगर तीसरे,सातवें,और ग्यारहवें शनि से पूरित हैं तो भी वे अच्छी तरह से निवास करते हैं.साउथ फ़ेसिंग भवन केवल डाक्टरी कार्यों,इन्जीनियरिन्ग वाले कार्यों,बूचडखानों,और भवन निर्माण और ढहाने वाले कार्यों, के प्रति काफ़ी उत्साह वर्धक देखे गये हैं,धार्मिक कार्यों का विवेचन करना,पूजा पाठ हवन यज्ञ वाले कार्यों,आदि के लिये भी सुखदायी साबित हुए हैं,टेक्नीकल शिक्षा और बैंक आदि जो उधारी का काम करते हैं,भी सफ़ल होते देखे गये है,गाडियों के गैरेज और वर्कशाप आदि का मुख दक्षिण दिशा का फ़लदायी होता है,होटल और रेस्टोरेंट भी दक्षिण मुखी अपना फ़ल अच्छा ही देते है.
वास्तु के नियमों का विवेचन
कुंडली को देखने के बाद पहले कर्म के कारक शनि को देखने के बाद ही मकान या दुकान का वास्तु पहिचाना जाता है,राहु जो कि मुख्य द्वार का कारक है,को अगर मंगल के आधीन किया जाता है तो वह शक्ति से और राहु वाली शक्तियों से अपने को मंगल के द्वारा शासित कर लिया जाता है,राहु जो कि फ़्री रहने पर अपने को अन्जानी दिशा में ले जाता है,और पता नही होता कि वह अगले क्षण क्या करने वाला है,इस बात को केवल मंगल के द्वारा ही सफ़ल किया जा सकता है.हर ग्रह को समझने के लिये और हर ग्रह का प्रभाव देखने के बाद ही मुख्य दरवाजे का निर्माण उत्तम रहता है,अग्नि-मुखी दरवाजा आग और चोरी का कारक होता है,यह नियम सर्व विदित है,लेकिन उसी अग्नि मुखी दरवाजे वाले घर की मालिक अगर कोई स्त्री है और वह घर स्त्री द्वारा शासित हि तो यह दिशा जो कि शुक्र के द्वारा शासित है,और स्त्री भी शुक्र का ही रूप है,उस घर को अच्छी तरह से संभाल सकती है,लेकिन उस घर में पुरुष का मूल्य न के बराबर हो जाता है,दूसरी विवाहित स्त्री के घर में स्थान पाते ही और उसके पुत्र की पैदायस के बाद ही वह घर या तो बिक जाता है,या फ़िर खाली पडा रहता है,उस घर का पैसा भी स्त्री सम्बन्धी परेशानियों में जिसका शनि और केतु उत्तरदायी होता है,के प्रति कोर्ट केशों और वकीलों की फ़ीस के प्रति खर्च कर दिया जाता है.ईशान दिशा सूर्योदय की पहली सकारात्मक किरण को घर के अन्दर प्रवेश देती है,अगर किसी प्रकार से इस पहली किरण को बाधित कर दिया जाये और उस किरण को जिस भी ग्रह से मिलाकर घर के अन्दर प्रवेश दिया जाता है,उसी ग्रह का प्रभाव घर के अन्दर चालू हो जाता है,पहली किरण के प्रवेश के समय अगर कोई बिजली का या टेलीफ़ोन का खम्भा है,तो पहली किरण केतु को साथ लेकर घर में प्रवेश करेगी,और केतु के 180 अंश विपरीत दिशा में राहु अपने आप स्थापित हो जाता है,यह राहु उस घर को संतान विहीन कर देगा,या फ़िर वहां पर बने किसी भी प्रकार कृत्रिम निर्माण को समाप्त करके शमशान जैसी वीरानी दे देगा,इस बात का सौ प्रतिशत फ़ल आप किसी भी मन्दिर या मीनार की पहली सूर्योदय की किरण के पडने वाले स्थान को देखकर लगा सकते है,उस मंदिर या मीनार के दक्षिण-पश्चिम दिशा में वीराना ही पडा होगा. मित्रों वास्तु विज्ञान का स्पष्ट अर्थ है चारों दिशाओं से मिलने वाली ऊर्जा तरंगों का संतुलन. यदि ये तरंगें संतुलित रूप से आपको प्राप्त हो रही हैं, तो घर में स्वास्थ्य व शांति बनी रहेगी। अत: ढेरों वर्जनाओं में बँधने के बजाय दिशाओं को संत‍ुलित करें तो लाभ मिल सकता है।

शुक्रवार, 20 नवंबर 2020

गुरु शनि का गोचर युति योग।(Jupiter)Guru Transit 2020


मित्रों देव गुरु बृहस्पति अपनी राशि धनु से निकलकर मकर राशि में आ गऐ हैं। जहां पर न्याय के देवता शनिदेव पहले से मौजूद हैं। मकर राशि में शनि और गुरु का आना दो ग्रहों का अद्भत संयोग है। गुरु यहां पर 20 नवंबर से लेकर 6 अप्रैल 2021 तक रहेंगे। मकर और कुंभ राशि शनि देव की राशि है और शनि स्वयं वर्तमान समय में इसी राशि पर गोचर कर रहे हैं ऐसे में बृहस्पति के आ जाने से शनि और गुरु की एक साथ युति फलित ज्योतिष में अप्रत्याशित परिणाम दिलाने वाली सिद्ध होगी।  ज्योतिष शास्त्र के अनुसार गुरु और शनि एक दूसरे प्रति एक समान संबंध रखते हैं। ऐसे में गुरु और शनि का मकर राशि में मिलन कुछ लोगों के लिए अच्छा तो कुछ के लिए अशुभ और कुछ के लिए मिलाजुला रह सकता है। यह सब आपकी अपनी कुंडली पर निर्भर होगा गुरुग्रह के विषय में कहा गया है की जिस प्रकार शरीर में प्राण के निकल जाने पर शरीर मृत हो जाता उसी प्रकार जन्मकुंडली विना गुरु मृतप्राय ही है। जन्मकुंडली में गुरु ग्रह ज्ञान, न्याय दर्शन शास्त्र, विष्णु, ज्योतिष, शिक्षा, इत्यादि का कारक है।  यदि आपकी कुंडली में गुरु उच्च का, अपने घर का, केंद्र या त्रिकोण स्थान में है तो आप अपने जीवन काल में मनोनुकूल सुख सुविधा का उपभोग करेंगे गुरु ग्रह जीव, ज्ञान, धर्म, न्याय, धन, संतान इत्यादि का कारक ग्रह है। जिस जातक की कुंडली में गुरु और शनि कुंडली के बारह भावो में युति होने से फल में भी अंतर आ जाता है।और उस हिसाब से गोचर फल भी उसी तरह जातक को फल देगागुरु-शनि में कई विपरीत समानताएं है।गुरु वृद्धि कारक है तो शनि कमी का कारक है।गुरु की दृष्टि सुखकारक होती है तो शनि की दृष्टि दुःखकारक और शुभ फल में कमी करती है जहां बृहस्पति / गुरु की गणना नैसर्गिक रूप से शुभ ग्रह में होती है, तो वहीं शनि को क्रूर ग्रहों में प्रमुख माना जाता है। यह दोनों ही न्याय के पक्षधर होते हैं और जहां शनि क्रूरता से कर्म फल प्रदान करते हैं, वहीं बृहस्पति देव उदारता का परिचय देते हुए व्यक्ति को सही मार्ग पर आने का रास्ता दिखाते हैं।गुरु और शनि का मिलन होना सम संबंध को दर्शाता है। यानी ये दोनों ही ग्रह एक-दूसरे से किसी प्रकार का बैर नहीं रखते। अर्थात ये किसी प्रकार से एक-दूसरे को नुकसान नहीं पहुंचाते। शनि गुरु का सम्‍मान करते हैं। शनि को कर्मों का देवता माना जाता है, तो वहीं गुर आपके कॅरियर की दशा और दिशा तय करते हैं मित्रों 19 से 20 वर्षों के बाद एक राशि में युति कर संपूर्ण विश्व में बड़े बदलाव लाने के योग बनाते हैं   पिछले 100 वर्षों के इतिहास पर नजर डालें तो द्वितीय विश्व युद्ध में वर्ष 1941 में गुरु-शनि की युति वृष राशि में हुई थी, उस समय अमरीका ने जापान के द्वारा पर्ल हार्बर पर किए हमले के बाद युद्ध में उतर कर निर्णायक रूप से विजय दिलाकर स्वयं के लिए विश्वशक्ति का खिताब अर्जित किया था
   शनि के साथ गुरु की युति भारत और दुनिया के अन्य देशों में बड़े परिवर्तन लाएगी। आपको बता दें कि ये दोनों बड़े ग्रह लगभग 19 से 20 वर्षों के बाद एक राशि में युति कर पुरी दुनिया में बड़े बदलाव लाने के योग बनाते हैं। पिछले 100 वर्षों के इतिहास पर नजर डालें तो द्वितीय विश्व युद्ध में वर्ष 1941 में गुरु-शनि की युति वृष राशि में हुई थी, उस समय अमरीका ने जापान के द्वारा पर्ल हार्बर पर किए हमले के बाद युद्ध में उतर कर निर्णायक रूप से विजय दिलाकर स्वयं के लिए विश्वशक्ति का खिताब अर्जित किया था।
गुरु शनि मकर राशि में चलेंगे साथ, इन्हें रहना होगा सजग, सावधान
भारत-चीन के बीच हुआ था युद्ध
ठीक 20 वर्ष के बाद गुरु-शनि की युति मकर राशि में हुई तब क्यूबा मिसाइल संकट के समय अमरीका और तात्कालिक सोवियत संघ के बीच युद्ध की ठन गयी थी। भारत को तो चीन से उस समय एक भयानक युद्ध का सामना करना पड़ा था। बाद में 1980-81 में गुरु-शनि के महायुति कन्या राशि में बनी, जिसने ईरान और इराक के बीच घमासान युद्ध हुए जिसने में 10 लाख लोगों के प्राण लील लिए।
आर्थिक बदलाव के भी बन रहे हैं योग
वर्ष 2000-01 में गुरु-शनि की युति वृष राशि में हुई, जिसने अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर हमले के बाद पूरे विश्व में उथल-पुथल मचा दी। अब गुरु-शनि की महायुति फिर से हो रही है। इससे पहले इस साल जून तक इन दिनों ग्रहों ने मकर राशि में मिलकर पूरी दुनिया को कोरोना संकट में उलझा रखा और बड़ी संख्या में जन-धन की हानि करवाई। अब इन दिनों ग्रहों के संयोग से दुनिया के कई देशों में राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक बदलाव के योग बन रहे हैं।
पाकिस्तान और मध्य-एशिया में मच सकती है बड़ी उथल-पुथल बृहत संहिता के अनुसार मकर राशि का प्रभाव क्षेत्र पंजाब, सिंध, गांधार और यवन देश तक माना जाता है। आधुनिक परिपेक्ष में इसे देखें तो मकर राशि के प्रभाव में वर्तमान उत्तर भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान आता है। मकर राशि में होने वाली शनि-गुरु की यह महायुति हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान के  वहां अगले वर्ष सत्ता परिवर्तन के लिए बड़े जन-आंदोलन करवा सकती है। शनि-गुरु की यह युति  भारत की  धार्मिक उन्माद को बढ़ा सकती है। सामान नागरिक कानून, राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर और नागरिकता संशोधन कानून का विवाद अगले वर्ष के आरंभ में बड़ा मुद्दा बना सकता है, इसके लिए जन-आंदोलन भी हो सकता है। ईरान और मध्य-एशिया में कोरोना महामारी एवं आर्थिक-मंदी से परेशान जनता सत्ता पक्ष के विरुद्ध उठ खड़ी हो सकती है।शनि को ज्योतिषशास्त्र में कृषक और मजदूर भी कहा जाता है। शनि खेती-बाड़ी, पशुपालन और छोटी नौकरी का कारक ग्रह है। मकर राशि में शनि के साथ शुभ ग्रह गुरु की महायुति जैविक कृषि और अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में प्रगति लेकर आएगी। शनि और गुरु की यह युति मकर राशि में पहले उत्तराषाढ़ा नक्षत्र और बाद में श्रवण नक्षत्र में होगी जिनके प्रभाव क्षेत्र में बड़े नेता, उद्योगपति, धर्मगुरु, धार्मिक जन, पहलवान, खिलाडी, पेड़-पौधे और वनस्पति आदि आते हैं। शनि और गुरु की युति के समय अगले 4 माह में इन क्षेत्रों से जुड़े लोगों को कष्ट और परेशानी हो सकती है। शनि-गुरु की महायुति के समय राहु के वृष राशि में होने के कारण दुनिया के कई देशों में धर्म के नाम पर लोग आंदोलन भी कर सकते हैं।

बुधवार, 18 नवंबर 2020

कैसे काम करते हैं ज्योतिषय उपाय

कैसे काम करते हैं ज्योतिषय उपाय

मित्रों अक्सर कुछ लोगों को कहते सुना है की भाग्य में जो लिखा है वो होकर रहेगा उसे कोई टाल नही सकता यानी हम कुछ करे या न करे होनी है तो वो होकर ही रहेगी  तो फिर ज्योतिषय उपाय करने से क्या होगा क्या हमारी क़िस्मत वदल सकती हे। मित्रों हमारे ऋषियों-मुनियों ने अपने चिन्तन द्वारा यह प्रमाणित किया है कि मनुष्य के जीवन में कर्म का स्थान अत्यन्त महत्वपूर्ण है। प्राणियों का सम्पूर्ण जीवन तथा मरणोत्तर जीवन कर्म-तन्तुओं से बंधा हुआ है। कर्म ही प्राणियों के जन्म, जरा, मरण तथा रोगादि विकारों का मूल है। दर्शन भी जन्म और दु:खों का हेतु कर्म को ही स्वीकार करता हैं। संसार के समस्त भूत, भविष्य एवं वर्तमान घटनाओं का सूत्रधार यह कर्म ही हैं। आस्तिक दर्शनों में तो यहाँ तक कहा गया है कि कर्म के भूभंगमात्र से ही सृष्टि एवं प्रलय होते हैं।
ग्रह, नक्षत्र, तारागणों की स्थिति, गति और विनाश भी कर्माधीन ही है। भगवान शंकर के घर में अन्नपूर्णा जी है तथापि भिक्षाटन करना पड़ता है। यह कर्म की ही विडम्बना हैं। जन्मान्तर में उपार्जित कर्त से ही जीवात्मा को शरीर धारणा करना पडता हैं। जन्म प्राप्त कर वह नित्य नये कर्मो को करता रहता है। जो उसके आगले जन्म का कारण बन जाते है। इस प्रकार कर्म से जीवात्मा की तथा जीवात्मा से ही पुन: कर्म की उत्पत्ति होती है। यदि पूर्वजन्म में कर्मो का सम्बन्ध न माना जाय तब नवजात शिशु के हस्त-पाद-ललाट आदि में शंख, चक्र, मत्स्य आदि चिन्ह कैसे आ जाते हैं। स्वकृत कर्म के कारण ही ग्रह-नक्षत्रज्ञदि जन्म कुण्डली में तत्तह स्थानों में अवस्थित होकर अनुकूल-प्रतिमूल फलदाता बन जाते है। तब जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि कर्म एवं ग्रह-दोनों कैसे सुख-दु:ख के हेतु हो सकते है। उत्तर होगा-सुख दु:खात्मक फल का उपादानकारण कर्म है, जबकि ग्रह-नक्षत्रादि निमित्त कारण हैं।कर्मो ने अनुसार ही जातकों की ग्रहस्थितियाँ बनती हैं। कर्मो से कुछ कर्म दृढ़ होते है, कुछ अदृढ़ तथा कुछ दृढ़ा दृढ़। इन कर्मफलों की व्याख्या करते हुए आचार्य श्रीपति कहते है कि विंशोत्तरी आदि दशओं द्वारा दृढ़ कर्मफलों का ज्ञान, अष्टकवर्ण तथा गोचर द्वारा अदृढ़ कर्मफलों का ज्ञान होता है, जबकि नाभसादि योगो द्वारा दृढ़ादृढ़ कर्मफलों का ज्ञान फलित ज्योतिष द्वारा जाना जाता हैं।और उसके अनुसार उपाय जैसे हलवा बनाते समय चीनी या घी की मात्रा यदि कम हो या फिर पानी अधिक या कम हो तो उसे ठीक किया जा सकता है। पर हलवा पक जाने पर उसे फिर से सूजी में नहीं बदला जा सकता। मट्ठा यदि अधिक खट्टा हो, उसमें दूध या नमक मिलाकर पीने लायक बनाया जा सकता है। पर उसे वापस दूध में बदला नहीं जा सकता। प्रारब्ध कर्म बदले नहीं जा सकते। कुंडली या इसके ग्रहों की स्थिति को बदला नहीं जा सकता है। लेकिन हम ग्रह परिवर्तन, दशा और गोचर का लाभ उठा सकते हैं। ये सभी समय के साथ बदलते रहते हैं। और यहीं से हमारे कर्मों की भूमिका सामने आती है। हमारे वर्तमान जीवन के कर्म हमारे हाथ से बदले या प्रतिबंधित किये जा सकते हैं ! और यही एक जातक जहाँ एक कुशल ज्योतिषी से सही समय सलाह ले ज्योतिषी के मार्गदर्शन से फर्क पड़ सकता है।
 ज्योतिष हमारी कुंडली के विभिन्न पहलुओं को एक-दूसरे के पिछले जन्म और उसमें संचित कर्म के साथ सह-संबंधित करता है। पिछले जन्म के कर्म हमारी जन्मकुंडली का निर्माण करते हैं और जन्म कुंडली  हमारे पिछले जन्म कर्म अच्छे या बुरे  का बहुत स्पष्ट और निश्चित प्रतिबिंब होता  हैं !हम सकारात्मक रूप से रखे गए ग्रहों (सकारात्मक पूर्वा जन्म कर्म, या सकारात्मक पिछले जन्म कर्म) के लाभों का आनंद लेते हैं और कुंडली में नकारात्मक रूप से रखे गए ग्रहों (नकारात्मक पूर्व जन्म कर्म, या नकारात्मक पिछले जन्म कर्म) के लिए भुगतान करते हैं ! और हम तब तक आनंद लेते रहते हैं या तब तक पीड़ित रहते हैं जब तक कि पिछले जीवन से अर्जित शेष राशि समाप्त नहीं हो जाती। लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती है, इसमें थोड़ा मोड़ है जिसे कर्म सुधार कहा जाता है। याद रखें ज्योतिषीय उपाय आपके जीवन से समस्याओं को पूरी तरह से दूर नहीं करेंगे, लेकिन आपको इसके प्रभाव से राहत दिला सकते हैं। हैरानी की बात है, ज्योतिष न केवल भाग्य के बारे में जीवन के पहलुओं की भविष्यवाणी करता है, बल्कि यह वास्तव में जीवन को सुधारनेक और परेशानियों का हल निकालने में भी मदद कर सकता है। बहुत से लोग ज्योतिष और ज्योतिषियों से इस समस्या को पूरी तरह से जड़ से मिटाने की उम्मीद करते हैं। दुर्भाग्य से, वे मनुष्य भी हैं और किसी व्यक्ति की नियति को बदल नहीं सकते हैं। वे केवल मार्गदर्शन प्रदान कर सकते हैं, समस्याओं को ट्रैक कर सकते हैं, इसके प्रभाव का विश्लेषण कर सकते हैं और अपने जीवन में इसके प्रभाव को कम करने के लिए उन्हें हल करने में मदद कर सकते हैं।

गुरुवार, 12 नवंबर 2020

दिवाली पर खास तंत्र शक्ति साघना घन की देवी लक्ष्मीसाघना

दिवाली पर खास तंत्र शक्ति साघना घन की देवी लक्ष्मीसाघना
दीपावली की रात तंत्र की महारात्रि होती है। दिवाली पर तंत्र और तांत्रिक वस्तुओं का महत्व कुछ खास ही माना जाता है। दिवाली की रात वैसे भी अमावस्या होती है। और अमावस्या को वैसे भी बहुत रहस्यमयी माना जाता है। दिवाली का पर्व विशेष रूप से शाक्तों का पर्व है। शाक्त यानि तांत्रिक,ये वे होते हैं जो विभिन्न दस महाविद्याओं या महाशक्तियों में से किसी एक की उपासना करते हैं।
ये दीपावली की रात को शाक्त शक्ति का विशेष रूप से आवाहन करते हैं, ताकि पूजा करके अपनी शक्तियों को बढ़ा सकें।इसदिन सन्यासी-अघोरी लोग परा शक्तियों को सिद्ध कर विजय हासिल करते है। मित्रो वैज्ञानिक चांद से लेकर मंगल तक पहुंच गए, लेकिन तंत्र-मंत्र की गुप्त विद्या उन्हे विचार करने के लिए विवश कर देती है।
इसका बानगी दीपावली की रात्रि दिखाई देता है। जब कई संपन्न परिवार के सदस्य अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए तंत्र विद्या का सहारा लेते है। :


दिवाली के अमावस्या वाली काली रात्रि तांत्रिकों के लिए एक सर्वश्रेष्ठ अवसर है। इसे जिंदगी का वह अमिट तांत्रिक पन्ना भी माना जाता है। वहीं तंत्र की देवी माता काली जिनके आशीर्वाद के बिना कोई भी तांत्रिक अनुष्ठान अधूरा है। वे ही मां काली इस दिन अपने तांत्रिक भक्तों की इस काली भयावह रात्रि में परीक्षा लेती हैं। संसार की रचना के साथ ही कई चीजों का अविष्कार हुआ है। जैसे-जैसे मनुष्य ने उन्नति की अपने स्वार्थं, पुरुषार्थं, परोपकार के लिए कुछ न कुछ खोजता रहा, ये जिज्ञासा संसार में सदैव प्रबल रही है। कई ऐसे सिद्धिप्रद मुहुर्तं होते हैं जिनमें तंत्रशास्त्र में रुचि लेने वाले तथा इसके प्रकांड ज्ञाता तंत्र-मंत्र की सिद्धि, प्रयोग, व अनेक क्रियाएं करते हैं। इन मुहूर्तों में सर्वांधिक प्रबल महूर्तं हैं धनतेरस, दीपावली की रात, दशहरा, नवरात्र व महाशिवरात्री। इसमें दीपावली की रात्र को तंत्रशास्त्र की महारात्रि कहा जाता है। मित्रों ! तंत्र के अनुसार '' जपात सिद्धि जपात सिद्धि जपात सिंह न संशय:है !जाप से सिद्धि प्राप्त हो सकती है और बिना जप के सिद्धि संभव हो नहीं सकती है ! इसलिए तंत्र मार्ग में मन्त्र को चैतन्य करने के लिए मंत्र जाप के अनेक उपाय बतलाये गए हैं ! दीपावली की रात भी हम पहले मन्त्र जप और बाद में तांत्रिक हवन करते हैं ! दीपावली की रात अमावस की रात जब दूर दूर तक प्रकाश का नाम नहीं होता है ,उस रात तांत्रिक,अघोरी,ओघढ़ या कोई अन्य साधक सिद्धि के लिए जप कर रहा होता है ! रात जितनी काली अर्थात गहरी होती है सिद्धि का सवेरा उतना ही समीप होता है ! क्योंकि अति ही अंत को दर्शाती है ! कार्तिक मास की अमावस्या की रात इसी बात की पुष्टि करती है की साधना की भोर ( प्रात: ) होने को है ,साधकों जागो !बहुत सो लिए ,बहुत जला लिए मिटटी के दिए अब साधना का समय आ गया है ,सिद्घी के लिए प्रयत्न करो ! दीपावली का दिया तो केवल एक रात जलेगा और फिर बुझ जायगा परन्तु सिद्धि का साधना का दिप तो सदेव जलेगा ! यदि यह एक बार जल गया तो सब मिल जायगा फिर कोई अँधेरा नहीं,फिर कोई भटकाव नहीं फिर हर दिन और हर रात दिवाली होगी ! वैसे भी दीप तांत्रिक साधना में बहुत महत्व रखता है अगर दीपों का पर्व दीपावली हो तो फिर कहना क्या ? दीप अग्नि का प्रतीक है ! साधना के समय दीप अवश्य जलाया जाता है ! तंत्र शास्त्रों के अनुसार दीप का प्रयोग विधान के अनुसार करना चाहिए ! दीप दान से 'षट्कर्म ' साधना सरल हो जाती है ! दीपावली की रात में साधना कुछ विशेष मन्त्रों से करनी चाहए ! दिवाली की रात वाम मार्गी साधना ,कापालिक, पाशुपत, वीर शैव,जंगम शैव, सिद्धांत ,रोद्र, भैरव साधना करने का चलन है !ये हैं दस महाविद्याएं या महाशक्तियां:
1. महाकाली 2. मां तारा 3. मां षोडशी 4. मां भुवनेश्वरी 5. मां छिन्नमस्तिका 6. मां त्रिपुर भैरवी 7. मां धूमावती 8. माता श्री बगलामुखी 9. मां मातंगी 10. मां कमला

माना जाता है कि इन महाविद्याओं की श्रृद्धापूर्वक साधना करने से सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं। आत्म-ज्ञान बढ़ता है, अलौकिकता आती है मां कालीने तो मेरा परिचय दीपावली की रात '' भैरवी चक्र और चोली चक्र '' से कराया था ! ये साधनाए तंत्र की ना केवल गुप्त वरन उच्चतम साधनाएं हैं ! दीपावली की रात तांत्रिक तंत्र गुरु की आज्ञानुसार -अघोर,चीनाचार,विक,प्रत्येविघ्या ,स्पंद और महार्त आदि साधना भी करते हैं ! मित्रों! पुस्तकों के पीछे मत भागो ,वो जानने का प्रयत्न करो जो तांत्रिको के ह्रदय में छुपा है ! जो छुपा है वोही असली तंत्र है जो प्रकाशित है वो तंत्र साहित्य है। कार्तिक अमावस्या की साधना पूजा से सभी विघ्न बाधाएं दूर होने के अलावे सिर्फ धन संपत्ति की प्राप्ति होती ही है। बल्कि रोग, शोक, शक्ति शत्रु का दमन भी होता है। वहीं तंत्र मंत्र सिद्धि करने वालों के लिए यह रात शक्ति प्रदान करती है।, इस दिन यज्ञ, जप की तैयारी कर रहा तो कोई ताबीजों-यंत्रों को सिद्ध करेंगे यानि गणेश-लक्ष्मी पूजन के अलावा तंत्र-मंत्र-यंत्र की सिद्धि भी दीपावली की रात परवान चढ़ेगी।
गृहस्थ लोग भी अपने घरों में लक्ष्मी पूजन के बाद इस तरह की सिद्धि कर सकते हैं सिद्घ मंत्रों व यंत्रों के ताबीज व यंत्र वना सकतें हैं
श्री यंत्र सिद्ध करना सबसे आसान है। इसके लिए पूजन के बाद लक्ष्मी मंत्र-ऊं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्री ह्रीं श्रीं ऊं महालक्ष्म्ये नम: की 11 माला का जाप करें। साथ ही श्री यंत्र की स्थापना कर उसका पूजन करें तो वह सिद्ध हो जाएगा।
इसी प्रकार लक्ष्मी के बीज मंत्र ऊं श्रीं ह्रीं महालक्ष्म्ये नम: की 21 माला कमलगंट्टे अथवा स्फटिक की माला पर जाप करें और दशांश हवन करें तो यंत्र ऊर्जा से भर जाता है। हवन में कमल गंट्टा अथवा कमल पुष्प की आहूति दी जानी चाहिए दीपावली की रात में लक्ष्मी यंत्र, श्री यंत्र, बीसा यंत्र, पंद्रह का यंत्र, हनुमान यंत्र आदि नजर, रक्षा, मुकदमा विजय एवं वशीकरण यंत्र भी इस रात सिद्घ कर सकते हैं मित्रों वर्ष के मान से उत्तरायण में और माह के मान से शुक्ल पक्ष में देव आत्माएं सक्रिय रहती हैं तो दक्षिणायन और कृष्ण पक्ष में दैत्य आत्माएं ज्यादा सक्रिय रहती हैं।

जब दानवी आत्माएं ज्यादा सक्रिय रहती हैं, तब मनुष्यों में भी दानवी प्रवृत्ति का असर बढ़ जाता है इसीलिए उक्त दिनों के महत्वपूर्ण दिन में व्यक्ति के मन-मस्तिष्क को धर्म की ओर मोड़ दिया जाता है।
वहीं ये भी माना जाता है कि अमावस्या के दिन भूत-प्रेत, पितृ, पिशाच, निशाचर जीव-जंतु और दैत्य ज्यादा सक्रिय और उन्मुक्त रहते हैं। ऐसे दिन की प्रकृति को जानकर विशेष सावधानी रखनी चाहिएं। प्रेत के शरीर की रचना में 25 प्रतिशत फिजिकल एटम और 75 प्रतिशत ईथरिक एटम होता है। इसी प्रकार पितृ शरीर के निर्माण में 25 प्रतिशत ईथरिक एटम और 75 प्रतिशत एस्ट्रल एटम होता है। अगर ईथरिक एटम सघन हो जाए तो प्रेतों का छायाचित्र लिया जा सकता है और इसी प्रकार यदि एस्ट्रल एटम सघन हो जाए तो पितरों का भी छायाचित्र लिया जा सकता है।
ज्योतिष में चन्द्र को मन का कारक माना गया है। अमावस्या के दिन चन्द्रमा दिखाई नहीं देता। इस दिन चन्द्रमा नहीं दिखाई देता तो ऐसे में हमारे शरीर में हलचल अधिक बढ़ जाती है। जिस व्यक्ति का ओरा कमजोरहोता है उसकी सोच नकारात्मक वाली हो जाती है उसे नकारात्मक शक्ति अपने प्रभाव में ले लेती है।शेष फिर कभी आचार्य राजेश

दिवाली पर खास तंत्र शक्ति साघना घन की देवी लक्ष्मीसाघना


दीपावली की रात तंत्र की महारात्रि होती है। दिवाली पर तंत्र और तांत्रिक वस्तुओं का महत्व कुछ खास ही माना जाता है। दिवाली की रात वैसे भी अमावस्या होती है। और अमावस्या को वैसे भी बहुत रहस्यमयी माना जाता है। दिवाली का पर्व विशेष रूप से शाक्तों का पर्व है। शाक्त यानि तांत्रिक,ये वे होते हैं जो विभिन्न दस महाविद्याओं या महाशक्तियों में से किसी एक की उपासना करते हैं।
ये दीपावली की रात को शाक्त शक्ति का विशेष रूप से आवाहन करते हैं, ताकि पूजा करके अपनी शक्तियों को बढ़ा सकें।इसदिन सन्यासी-अघोरी लोग परा शक्तियों को सिद्ध कर विजय हासिल करते है। मित्रो वैज्ञानिक चांद से लेकर मंगल तक पहुंच गए, लेकिन तंत्र-मंत्र की गुप्त विद्या उन्हे विचार करने के लिए विवश कर देती है।
इसका बानगी दीपावली की रात्रि दिखाई देता है। जब कई संपन्न परिवार के सदस्य अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए तंत्र विद्या का सहारा लेते है। :


दिवाली के अमावस्या वाली काली रात्रि तांत्रिकों के लिए एक सर्वश्रेष्ठ अवसर है। इसे जिंदगी का वह अमिट तांत्रिक पन्ना भी माना जाता है। वहीं तंत्र की देवी माता काली जिनके आशीर्वाद के बिना कोई भी तांत्रिक अनुष्ठान अधूरा है। वे ही मां काली इस दिन अपने तांत्रिक भक्तों की इस काली भयावह रात्रि में परीक्षा लेती हैं। संसार की रचना के साथ ही कई चीजों का अविष्कार हुआ है। जैसे-जैसे मनुष्य ने उन्नति की अपने स्वार्थं, पुरुषार्थं, परोपकार के लिए कुछ न कुछ खोजता रहा, ये जिज्ञासा संसार में सदैव प्रबल रही है। कई ऐसे सिद्धिप्रद मुहुर्तं होते हैं जिनमें तंत्रशास्त्र में रुचि लेने वाले तथा इसके प्रकांड ज्ञाता तंत्र-मंत्र की सिद्धि, प्रयोग, व अनेक क्रियाएं करते हैं। इन मुहूर्तों में सर्वांधिक प्रबल महूर्तं हैं धनतेरस, दीपावली की रात, दशहरा, नवरात्र व महाशिवरात्री। इसमें दीपावली की रात्र को तंत्रशास्त्र की महारात्रि कहा जाता है। मित्रों ! तंत्र के अनुसार '' जपात सिद्धि जपात सिद्धि जपात सिंह न संशय:है !जाप से सिद्धि प्राप्त हो सकती है और बिना जप के सिद्धि संभव हो नहीं सकती है ! इसलिए तंत्र मार्ग में मन्त्र को चैतन्य करने के लिए मंत्र जाप के अनेक उपाय बतलाये गए हैं ! दीपावली की रात भी हम पहले मन्त्र जप और बाद में तांत्रिक हवन करते हैं ! दीपावली की रात अमावस की रात जब दूर दूर तक प्रकाश का नाम नहीं होता है ,उस रात तांत्रिक,अघोरी,ओघढ़ या कोई अन्य साधक सिद्धि के लिए जप कर रहा होता है ! रात जितनी काली अर्थात गहरी होती है सिद्धि का सवेरा उतना ही समीप होता है ! क्योंकि अति ही अंत को दर्शाती है ! कार्तिक मास की अमावस्या की रात इसी बात की पुष्टि करती है की साधना की भोर ( प्रात: ) होने को है ,साधकों जागो !बहुत सो लिए ,बहुत जला लिए मिटटी के दिए अब साधना का समय आ गया है ,सिद्घी के लिए प्रयत्न करो ! दीपावली का दिया तो केवल एक रात जलेगा और फिर बुझ जायगा परन्तु सिद्धि का साधना का दिप तो सदेव जलेगा ! यदि यह एक बार जल गया तो सब मिल जायगा फिर कोई अँधेरा नहीं,फिर कोई भटकाव नहीं फिर हर दिन और हर रात दिवाली होगी ! वैसे भी दीप तांत्रिक साधना में बहुत महत्व रखता है अगर दीपों का पर्व दीपावली हो तो फिर कहना क्या ? दीप अग्नि का प्रतीक है ! साधना के समय दीप अवश्य जलाया जाता है ! तंत्र शास्त्रों के अनुसार दीप का प्रयोग विधान के अनुसार करना चाहिए ! दीप दान से 'षट्कर्म ' साधना सरल हो जाती है ! दीपावली की रात में साधना कुछ विशेष मन्त्रों से करनी चाहए ! दिवाली की रात वाम मार्गी साधना ,कापालिक, पाशुपत, वीर शैव,जंगम शैव, सिद्धांत ,रोद्र, भैरव साधना करने का चलन है !ये हैं दस महाविद्याएं या महाशक्तियां:
1. महाकाली 2. मां तारा 3. मां षोडशी 4. मां भुवनेश्वरी 5. मां छिन्नमस्तिका 6. मां त्रिपुर भैरवी 7. मां धूमावती 8. माता श्री बगलामुखी 9. मां मातंगी 10. मां कमला

माना जाता है कि इन महाविद्याओं की श्रृद्धापूर्वक साधना करने से सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं। आत्म-ज्ञान बढ़ता है, अलौकिकता आती है मां कालीने तो मेरा परिचय दीपावली की रात '' भैरवी चक्र और चोली चक्र '' से कराया था ! ये साधनाए तंत्र की ना केवल गुप्त वरन उच्चतम साधनाएं हैं ! दीपावली की रात तांत्रिक तंत्र गुरु की आज्ञानुसार -अघोर,चीनाचार,विक,प्रत्येविघ्या ,स्पंद और महार्त आदि साधना भी करते हैं ! मित्रों! पुस्तकों के पीछे मत भागो ,वो जानने का प्रयत्न करो जो तांत्रिको के ह्रदय में छुपा है ! जो छुपा है वोही असली तंत्र है जो प्रकाशित है वो तंत्र साहित्य है। कार्तिक अमावस्या की साधना पूजा से सभी विघ्न बाधाएं दूर होने के अलावे सिर्फ धन संपत्ति की प्राप्ति होती ही है। बल्कि रोग, शोक, शक्ति शत्रु का दमन भी होता है। वहीं तंत्र मंत्र सिद्धि करने वालों के लिए यह रात शक्ति प्रदान करती है।, इस दिन यज्ञ, जप की तैयारी कर रहा तो कोई ताबीजों-यंत्रों को सिद्ध करेंगे यानि गणेश-लक्ष्मी पूजन के अलावा तंत्र-मंत्र-यंत्र की सिद्धि भी दीपावली की रात परवान चढ़ेगी।
गृहस्थ लोग भी अपने घरों में लक्ष्मी पूजन के बाद इस तरह की सिद्धि कर सकते हैं सिद्घ मंत्रों व यंत्रों के ताबीज व यंत्र वना सकतें हैं
श्री यंत्र सिद्ध करना सबसे आसान है। इसके लिए पूजन के बाद लक्ष्मी मंत्र-ऊं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्री ह्रीं श्रीं ऊं महालक्ष्म्ये नम: की 11 माला का जाप करें। साथ ही श्री यंत्र की स्थापना कर उसका पूजन करें तो वह सिद्ध हो जाएगा।
इसी प्रकार लक्ष्मी के बीज मंत्र ऊं श्रीं ह्रीं महालक्ष्म्ये नम: की 21 माला कमलगंट्टे अथवा स्फटिक की माला पर जाप करें और दशांश हवन करें तो यंत्र ऊर्जा से भर जाता है। हवन में कमल गंट्टा अथवा कमल पुष्प की आहूति दी जानी चाहिए दीपावली की रात में लक्ष्मी यंत्र, श्री यंत्र, बीसा यंत्र, पंद्रह का यंत्र, हनुमान यंत्र आदि नजर, रक्षा, मुकदमा विजय एवं वशीकरण यंत्र भी इस रात सिद्घ कर सकते हैं मित्रों वर्ष के मान से उत्तरायण में और माह के मान से शुक्ल पक्ष में देव आत्माएं सक्रिय रहती हैं तो दक्षिणायन और कृष्ण पक्ष में दैत्य आत्माएं ज्यादा सक्रिय रहती हैं।

जब दानवी आत्माएं ज्यादा सक्रिय रहती हैं, तब मनुष्यों में भी दानवी प्रवृत्ति का असर बढ़ जाता है इसीलिए उक्त दिनों के महत्वपूर्ण दिन में व्यक्ति के मन-मस्तिष्क को धर्म की ओर मोड़ दिया जाता है।
वहीं ये भी माना जाता है कि अमावस्या के दिन भूत-प्रेत, पितृ, पिशाच, निशाचर जीव-जंतु और दैत्य ज्यादा सक्रिय और उन्मुक्त रहते हैं। ऐसे दिन की प्रकृति को जानकर विशेष सावधानी रखनी चाहिएं। प्रेत के शरीर की रचना में 25 प्रतिशत फिजिकल एटम और 75 प्रतिशत ईथरिक एटम होता है। इसी प्रकार पितृ शरीर के निर्माण में 25 प्रतिशत ईथरिक एटम और 75 प्रतिशत एस्ट्रल एटम होता है। अगर ईथरिक एटम सघन हो जाए तो प्रेतों का छायाचित्र लिया जा सकता है और इसी प्रकार यदि एस्ट्रल एटम सघन हो जाए तो पितरों का भी छायाचित्र लिया जा सकता है।
ज्योतिष में चन्द्र को मन का कारक माना गया है। अमावस्या के दिन चन्द्रमा दिखाई नहीं देता। इस दिन चन्द्रमा नहीं दिखाई देता तो ऐसे में हमारे शरीर में हलचल अधिक बढ़ जाती है। जिस व्यक्ति का ओरा कमजोरहोता है उसकी सोच नकारात्मक वाली हो जाती है उसे नकारात्मक शक्ति अपने प्रभाव में ले लेती है।शेष फिर कभी आचार्य राजेश

सोमवार, 9 नवंबर 2020

दिवाली पर खास शुभ मुहूर्त2020

दिवाली पर www.acharyarsjesh.inखास शुभ मुहूर्त2020

दिवाली अमावस्या को ही आती है और इस त्यौहार को अक्सर लक्ष्मी पूजा के लिये माना जाता है। लेकिन यह त्यौहार खासरूप से पितरो के लिये जाना जाता है,कई कहानिया कई मिथिहासिक सिद्धान्त अपने अपने रूप मे सबके लिये प्रस्तुत होते है लेकिन यह त्यौहार पूर्वजो के लिये ही खास है,इस त्यौहार के बाद ही देव शयन समाप्त होता है और धर्म कर्म से सम्बन्धित सभी कार्य शुरु हो जाते है,इस दिन पूर्वजो की मान्यता के जो सिद्धान्त ह वे इस प्रकार से माने गये है.
इस त्यौहार को दीपदान के लिये माना जाता है और घर बाहर बाग बगीचा धर्म स्थान तथा पूर्वजो के निमित्त भोग आदि का वर्गीकरण अलग अलग रूप मे किया जाता है.
अन्धकार को प्रकश मे परिवर्तित करने के बाद लोग आपसी मेल जोल तथा एक दूसरे के प्रति सद्भभावना को प्रस्तुत करते है.
गोबर्धन के रूप मे गाय को मान्यता भी पूर्वजो के हित को ध्यान मे रखकर ही की गयी है.
गोबर जो आस्तित्व हीन है उसके लिये भी पूजा की मान्यता केवल हिन्दू धर्म मे ही देखने को मिलती है कारण वही गोबर जब खाद के रूप मे अपना बल प्रदर्शित करता है तो जीव को अन्न और वनस्पति के विकास मे सहायक माना जाता है.
चावल की खील और बतासो का भोग अक्सर पूर्वजो के निमित्त ही किया जाता है.
तीन देवताओ की मान्यता भी पूर्वजो के प्रति की जाती है सन्तान के रूप मे गणेश जी स्त्री सम्बन्धी कारको के लिये लक्ष्मी जी और आसमानी हवाओ और अक्समात बचाव करने वाली देवी सरस्वती की पूजा का दिन भी यही है.
इसी कारण से दीवाली का महत्व पूर्वजो की पूजा के लिये मान्य है.पूर्वजो के लिये दीपदान से पहले अगर सात या नौ दीपक पूर्वजो के नाम से जला कर एक पंगत मे रखे जाये तथा उनकी मान्यता करने के बाद जो भी भोग चढाने के लिये रखे गये है उन्हे चढाना भाग्य और पूर्वजो की कृपा के लिए मावा जाता हैइस बार दिवाली शनिवार, 14 नवंबर के दिन मनाई जा रही है। कई वर्षों के बाद शनिवार के दिन दिवाली मनाई जाएगी जो एक दुर्लभ संयोग है।अगर ग्रहों की चाल के बात करें तो  शनिवार को शनि स्वयं की राशि में होने से दिवाली बहुत ही शुभ लाभकारी होगी। इस बार दीपावली में सन् 1521 यानी 499 साल बाद ग्रहों का दुलर्भ योग देखने को मिलेगा. माना जाता है कि आर्थिक स्थिति को मजबूत करने वाला ग्रह गुरु और शनि है. ऐसे में इस वर्ष दीपावली पर धन संबंधी कार्यों में बड़ी उपलब्धि मिल सकती है, क्योंकि ये दोनों ग्रह अपनी राशि में होंगे. दरअसल, दीपावली में गुरु ग्रह अपनी राशि धनु में और शनि अपनी राशि मकर में रहेंगे. वहीं, शुक्र ग्रह कन्या राशि में नीच रहेगा. इन तीनों ग्रहों का यह दुर्लभ योग वर्ष 2020 से पहले सन 1521 में 9 नवंबर को देखने को मिला था. इसी दिन उस वर्ष दीपावली मनाई गई थी. गुरु और शनि ग्रह आर्थिक स्थिति को मजबूत करने वाले माने जाते हैं.17 साल के बाद सर्वार्थ सिद्धि योग में दिवाली पूजन और उत्सव मनाया जाएगा। दिवाली पर भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी की विधिवत रूप से पूजा करने की परंपरा होती है। आइए जानते हैं इस दिवाली लक्ष्मी-गणेश पूजन करने का शुभ मुहूर्त क्या रहेगा। पहले हम शुरुआत
अभिजीतमुहूर्त से करते हैं जो इस प्रकार है  सर्वश्रेष्ठ अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 12 बजकर 09  मिनट से शाम  को  4 बजकर 5 मिनट तक
चौघड़िया मुहूर्त 
लक्ष्मी पूजन
दोपहर का समय:  2 बजकर 18 से शाम 4 बजकर 7 मिनट तक
शाम: शाम को 5 बजकर 30 मिनट से शाम 7 बजकर 8 मिनट तक
रात्रि: रात 8 बजक 50 मिनट से देर रात 1 बजकर 45 मिनट तक
प्रात:काल: 15 नवंबर को सुबह 5 बजकर 4 मिनट से 6 बजकर 44 मिनट तक अमृत की चौघड़िया –14 सांय 20 बजकर 22 मिनट से रात्रि 22 बजकर 58  मिनट तक । यह मुहूर्त शुभ रहेगा।
उसके बाद प्रदोष काल : शाम 5 बजकर 27 मिनट से 8 बजकर 06 मिनट तक
जो लोगवृषभ काल : में पुजा करना चाहते हैं उनके लिए
वृषभ काल :  शाम 5 बजकर 30 मिनट से लेकर 7 बजकर 25 मिनट तक और सिंह लग्न लग्न मुहूर्त, 14 नवंबर:  आधी रात 12 बजकर 05 मिनट से देर रात 2 बजकर 20 बजकर मिनट तक रहेगा

महानिशीथकाल
रात्रि 23 बजकर 39 मिनट से सुबह 24 बजकर 32 मिनट तक महानिशीथकाल रहेगा।  रात्रि के 24:05:40 से 26:19:19  तक सिंह लग्न है और सिंह लग्न में पूजा करना बहुत अच्छा माना गया है।पर  सिंह लग्न में अमावस्या तिथि समाप्त हो जाती है यह भी ठीक नहीं है। तथा इसी लग्न में काल की चौघड़िया मुहूर्त है अतः मेरे अनुसार यह काल सामान्य गृहस्थजीवन के लिए उपयुक्त नहीं है। हाँ महानिशीथकाल में महाशक्ति काली की उपासना, यंत्र-मन्त्र तथा तांत्रिक अनुष्ठान और साधना करने के लिए यह काल विशेष रूप से प्रशस्त है।
महानिशीथकाल में तांत्रिक कार्य करना अच्छा माना जाता है। इस काल में कर्मकांडी  कर्मकाण्ड, अघोरी यंत्र-मंत्र-तंत्र आदि कार्य व विभिन्न शक्तियों का पूजन करते हैं। अवधि में दीपावली पूजा करने के बाद घर में एक चौमुखा दीपक रात भर जलते रहना चाहिए। यह दीपक लक्ष्मी, सौभाग्य रिद्धि सिद्धि   के प्रतीक रूप में माना गया है।

गुरुवार, 29 अक्तूबर 2020

नवंबर में बदल रही है कई ग्रहों की स्थिति, जानें तिथि और प्रभाव।।जानते हैं कौन से ग्रहों की स्थिति में बदलाव हो रहाऔर उसका प्रभाव कैसा रहेगा

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नवंबर में बदल रही है कई ग्रहों की स्थिति, जानें तिथि और प्रभाव।।जानते हैं कौन से ग्रहों की स्थिति में बदलाव हो रहाऔर उसका प्रभाव कैसा रहेगा
 नवंबर का महीना त्‍योहारों की दृष्टि से भी बेहद महत्‍वपूर्ण है बल्कि इस महीने को ज्‍योतिष के लिहाज से भी बेहद खास माना जा रहा है। इस महीने कई ग्रहों की स्थि‍ति में फेरबदल होने जा रहा है और कुछ ग्रह मार्गी होने जा रहे हैं तो कुछ ग्रहों का गोचर देखने को मिलेगा। धनतेरस और दीपावली के चलते आर्थिक दृष्टि से यह महीना बहुत खास माना जा रहा है और ऐसे में ग्रहों का राशि परिवर्तन बड़ा प्रभाव डाल सकता है। आइए जानते हैं कौन से ग्रहों की स्थिति में बदलाव हो रहा है और इसका क्या प्रभाव हो सकता है।
  वक्री अवस्था में तुला राशि पर गोचर करते हुए 31 अक्टूबर शनिवार की रात्रि 11 बजकर 38 मिनट पर उदय हो रहे हैं। इस राशि पहले से ही सूर्यदेव विराजमान हैं इसलिए बुध के उदय होते ही फलित ज्योतिष में अति शुभफलदायक बुधादित्य योग का प्रभाव आरंभ हो जाएगा। जिन जातकों की जन्मकुंडलियों में ये शुभभाव में रहेंगे, उनके लिए अति शुभ फल कारक सिद्ध होंगे। नवंबर को ग्रहों के राजकुमार और सभी राशि के जातकों को बुद्धि प्रदान करने वाले बुध की राशि तुला में मार्गी होने जा रहे हैं. यानी सीधी चाल से चलना शुरू करेंगे. बुध की सीधी चाल को बहुत ही शुभ माना जाता है. इसके प्रभाव से कुछ जातक करियर और दांपत्‍य जीवन में सफलता प्राप्‍त करते हैं तो कुछ जातकों की रिलेशनशिप सुधर जाती है. वहीं इसके बाद 28 नवंबर को बुध वृश्चिक में गोचर करेंगे.
14,नवंबर को  सेनापति माने जाने वाले मंगल गुरु की राशि मीन में मार्गी होने जा रहे हैं, यानी सीधी चाल से चलना शुरू करेंगे. दीपावली पर यह मंगल की स्थिति में होने वाला यह बदलावा आर्थिक दृष्टि से बेहद अहम माना जा रहा है. मंगल का यह बदलाव कुछ जातकों के लिए मंगलकारी होगा तो  को इससे नुकसान भी हो सकता है.यह अपकी कुंडली पर निर्भर है।
 ग्रहों का राजा माने जाने वाले सूर्यदेव 16 नवंबर को अपनी निच राशि छोड़ वृश्चिक राशि में प्रवेश करेंगे. सूर्य देवता को करियर और समाज में मान सम्‍मान की दृष्टि से बेहद अहम माना जाता है. सूर्य की स्थिति में बदलाव का कुछ राशियों पर खासा प्रभाव पड़ सकता है. मंगल को वृश्चिक का स्‍वामी माना जाता है, इस वजह से इसे वृश्चिक को उग्र ग्रह की राशि माना जाता है. इस राशि में सूर्य का आना गोचर में काफी उथल-पुथल मचाने वाला साबित हो सकता ।
भौतिक सुख-सुविधाओं के साथ दांपत्‍य जीवन को प्रभावित करने वाले शुक्र अपनी ही राशि तुला में 16 नवंबर को प्रवेश करेंगे. शुक्र को प्रेम और रोमांस के मामले में भी काफी महत्‍वपूर्ण माना जाता है. वहीं इससे कुछ राशियों का यौन जीवन भी प्रभावित होता है. आपके ऊपर इस गोचर का क्‍या प्रभाव होता है, यह देखना जरूरी है.

करियर और संपत्ति प्रदान करने वाले गुरु 20 नवंबर को शनि की राशि मकर में जाने वाले हैं. मकर में गुरु के आने से मकर राशिओर लग्न के जातकों का करियर के मामले में भला हो सकता है तो वहीं अन्‍य जातकों को भी इससे लाभ हो सकता है. हालांकि गुरु और शनि को एक-दूसरे का विरोधी माना जाता है. ऐसे में गुरु का मकर में गोचर काफी महत्‍वूपर्ण माना जा रहा है.
मा- चंद्रमा का राशि परिवर्तन हर ढाई दिन में होता है। सभी ग्रहों में चंद्रमा ही एक ऐसा ग्रह है जो सबसे तेज गति से राशि परिवर्तन करता है।
केतु- इस महीने में राहु-केतु में कोई परिवर्तन नहीं होगा। राहु को अनैतिक कृत्यों का कारक भी माना जाता है। शनि के बाद राहु-केतु ऐसा ग्रह है जो एक राशि में लंबे समय तक रहता है। राहु को शनि से भी अधिक अशुभ परिणाम देने वाला ग्रह माना जाता है। दोनों ग्रह हमेशा वक्री अवस्था में रहते हैं। पूरे माह राहु वृष में और केतु वृश्चिक में रहेगा।

सोमवार, 26 अक्तूबर 2020

ग्रहों की गति चाल को बदल सकतें है meditation से,घ्यान से? Can meditation change the movement of planets?


ग्रहों की गति चाल को बदल सकतें है meditation से? Can meditation change the movement of planets?
ज्योतिष सिर्फ ग्रह नक्षत्रों का अध्‍ययन ही नहीं हे। वह तो है ही साथ ही ज्‍योतिष और अलग-अलग आयामों से मनुष्‍य के भविष्‍य को टटोलने की चेष्‍टा है कि वह भविष्‍य कैसे पकड़ा जा सके। उसे पकड़ने के लिए अतीत को पकड़ना जरूरी है। उसे पकड़ने के लिए अतीत के जो चिन्‍ह है, आपके शरीर पर और आपके मन पर भी छुट गये है। उन्‍हें पहचानना जरूरी हे। और जब से ज्‍योतिषी शरीर के चिन्‍हों पर बहुत अटक गए है तब से ज्‍योतिष की गिराई खो गई है, क्‍योंकि शरीर के चिन्‍ह बहुत उपरी है। प्रत्‍येक आत्‍मा अपना गर्भा धारण चुनती है, कि कब उसे गर्भ स्‍वीकार करना है, किस क्षण में। क्षण छोटी घटना नहीं है। क्षण का अर्थ है कि पूरा विश्‍व उस क्षण में कैसा है। और उस क्षण में पूरा विश्‍व किस तरह की सम्‍भावनाओं के द्वार खोलता है। जब कोई मनुष्‍य जन्‍म लेता है तब उस जन्‍म के क्षण में इन नक्षत्रों के बीच जो संगीत की व्‍यवस्‍था होती है। वह उस मनुष्‍य के प्राथमिक, सरल तम, संवेदनशील चित पर अंकित हो जाती है। वही उसे जीवन भर स्‍वस्‍थ और अस्‍वस्‍थ करती है। जब भी वह अपनी उस मौलिक जन्‍म के साथ पायी गई, संगीत व्‍यवस्‍था के साथ ताल मेल बना लेता है तो स्‍वस्‍थ हो जाता है। और जब उसका ताल मेल उस मूल संगीत से छूट जाता है तो वह अस्‍वस्‍थ हो जाता है। मित्रोआप देखें कुछ लोग अपनी पढाई 22 साल की उम्र में पूर्ण कर लेते हैं मगर उनको कई सालों तक कोई अच्छी नौकरी नहीं मिलती,
कुछ लोग 25 साल की उम्र में किसी कंपनी के सीईओ बन जाते हैं और 50 साल की उम्र में हमें पता चलता है वह नहीं रहे, जबकि कुछ लोग 50 साल की उम्र में सीईओ बनते हैं और 90 साल तक आनंदित रहते हैं,
बेहतरीन रोज़गार होने के बावजूद कुछ लोग अभी तक ग़ैर शादीशुदा है और कुछ लोग बग़ैर रोज़गार के भी शादी कर चुके हैं और रोज़गार वालों से ज़्यादा खुश हैं,
बराक ओबामा 55 साल की उम्र में रिटायर हो गये... जबकि ट्रंप 70 साल की उम्र में शुरुआत करते है,
कुछ लोग परीक्षा में फेल हो जाने पर भी मुस्कुरा देते हैं और कुछ लोग एक नंबर कम आने पर भी रो देते हैं, किसी को बग़ैर कोशिश के भी बहुत कुछ मिल गया और कुछ सारी ज़िंदगी बस एड़ियां ही रगड़ते रहे,तो इस दुनिया में हर शख़्स अपने ग्रह नछत्र के अधीन है और उसी अघार पर ही टाइम जोन काम करता है ।
ज़ाहिरी तौर पर हमें ऐसा लगता है कुछ लोग हमसे बहुत आगे निकल चुके हैं,
और शायद ऐसा भी लगता हो कुछ हमसे अभी तक पीछे हैं,
लेकिन हर व्यक्ति अपनी अपनी जगह ठीक है अपने अपने वक़्त के मुताबिक़....!!
किसी से भी अपनी तुलना मत कीजिए..
अपने टाइम ज़ोन में रहें
इंतज़ार कीजिए और
इत्मीनान रखिए...
ना ही आपको देर हुई है और ना ही जल्दी,
परमपिता परमेश्वर ने हम सबको अपने हिसाब से डिजा़इन किया है डिजा़इनसे देखें तो वो है आप के कर्म भगवान ने हमें कितनी स्‍वतंत्रता दी है, इसका कोई निश्चित मापदण्‍ड नहीं है। ज्‍योतिष के मूल में यही सिद्धांत है कि जो कुछ घटित हो रहा है, वह सबकुछ पूर्वनिर्धारित है। जिस प्रकार फर्श पर गिरा पानी ढलते हुए नाली तक पहुंचता है, अब नाली तक उस पानी के पहुंचने की धारा एक हो सकती है, दो हो सकती है, सैकड़ों हो सकती अथवा धारा दिशा बदल बदलकर नाली तक पहुंच सकती है। पानी का गिरना निर्धारित है और नाली तक पहुंचना निर्धारित है, इसके बीच की सभी अवस्‍थाएं स्‍वतंत्र की श्रेणी में आ सकती हैं।
यह धारा किस प्रकार गति करेगी, यह फलादेश ज्‍योतिषी अपनी सहज बुद्धि, अंतर्ज्ञान और ज्‍योतिषीय ज्ञान के बूते पर करने का प्रयास करता है।किसी भी जातक के जीवन को ग्रह कभी प्रभावित नहीं करते। जातक के जीवन को उसके कर्म ही प्रभावित करते हैं। हमारे शास्त्रों के अनुसार कर्म तीन प्रकार के होते हैं, संचित कर्म जो कि हमारे सभी पूर्वजन्‍मों के कर्मों का संचय है, प्रारब्‍ध कर्म जो हमें इस जन्‍म में भोगने के लिए मिले कर्म हैं और क्रियमाण कर्म जो हमें इस जन्‍म में करने हैं वे कर्म। जातक जो जीवन जीता है वह इन्‍हीं कर्मों के बीच रहता है। ग्रहों की चाल से जातक के प्रारब्‍ध और इस जन्‍म के कर्मों की संभावनाओं से भाग्‍य देखने का प्रयास होता है।
जब यह कहा जाता है कि फलां ग्रह की बाधा है, तो किसी यह कहा जाता है कि ग्रह की बाधा है, तो यहां ग्रह किसी प्रकार की बाधा नहीं दे रहा है, ग्रह यह इंगित कर रहा है कि पूर्वजन्‍म के किसी कर्म के कारण, इस जन्‍म में अमुक प्रकार की बाधा आ सकती है, जब कहा जाता है कि राहु की समस्‍या है तो वह राहू द्वारा पैदा की गई समस्‍या नहीं होती, बल्कि पूर्वजन्‍म के कर्म और प्रारब्‍ध में मिले कर्म के अनुसार इस जन्‍म में भोगने वाले कर्म की गति है, जिसका राहु की स्थिति से आकलन किया जा रहा है।
ज्‍www.acharyarsjesh.inयोतिष की सभी गणनाएं और फलादेश जातक के सांसारिक जीवन से ही संबंधित होते हैं। ज्‍योतिष से पूर्वजन्‍म देखने का प्रयास किया जा सकता है, या कहें कि कुछ सिद्धांतों के आधार पर ग्रहों की बाधा का कारण पूर्वजन्‍म के किसी कर्म पर आधारित बता दिया जाता है, लेकिन उससे पूर्वजन्‍म न तो देखा जा सकता है, न बदला जा सकता है। जो कुछ घटित हुआ है, इसी जन्‍म में घटित हुआ है और आगे जो भी होना है, वह इसी जन्‍म में होगा।
ज्‍योतिष के अधिकांश कारक सांसारिक कार्य कारण संबंध और साधनों का ही प्रतिनिधित्‍व करते हैं।जैसे ही
हम बात करते हैं साधना की, तो हम वास्‍तव में ज्‍योतिष से परे चले जाते हैं। सांसारिक कार्य कारण संबंधों से परे हमें ऐसा सूत्र हाथ लगता है जो कि हमें इस बंधन से मुक्‍त कर सकता है। साधक का प्रयास जितना तीव्र होगा, बंधन से मुक्ति भी उतनी ही तीव्र होगी। एक ओर जहां तंत्र इस बंधन से मुक्‍त होने में सहायक है तो दूसरी ओर योग।
महर्षि पतंजलि ने योगसूत्र की व्‍याख्‍या शुरू करने के साथ ही कहा है “योगश्चित वृत्ति निरोधः” यानी चित की वृत्तियों का निरोध ही योग है। सांसारिक साधनों से जोड़ने वाली चित की वृत्तियों का योग की शुरूआत में ही निरोध कर दिया गया है। योग के आठ अंग बताए गए हैं, यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्‍याहार, धारणा, ध्‍यान और समाधि।
इनमें से यम और नियम योग के लिए साधक को तैयार करने की विधि है, आसन देह की स्थिरता के लिए जरूरी है, प्राणायाम श्‍वास को स्थिर करने के लिए आवश्‍यक है, प्रत्‍याहार से आत्‍मा और मन पर वजन कम होगा, इसके बाद किसी एक संकल्‍प की धारणा करनी होगी, उस धारणा को स्थिर करने पर ध्‍यान होगा।
ध्‍यान से पूर्व की सभी विधियों को छोटा बड़ा किया जा सकता है, लेकिन ध्‍यान अपने आप में एक गहन पद्धति है। स्‍वामी विवेकानन्‍द ने अनुलोम-विलोम प्राणायाम के जरिए निर्विकल्‍प ध्‍यान को राजयोग बताया है। यानी हमें किसी विषय, वस्‍तु और देवता तक का ध्‍यान नहीं करना, बस जैसा है वैसा ही ध्‍यान करना है।
ध्‍यान की सैकड़ों विधियां हैं, हर जातक अपने लिए विशिष्‍ट प्रकार का ध्‍यान चुन सकता है। ओशो के लिए विपश्‍यना प्रिय थी तो विवेकानन्‍द के लिए निर्विकल्‍प ध्‍यान। बौद्ध तंत्र के अपने ध्‍यान के तरीके हैं और जैन तंत्र के अपने। सनातनी ध्‍यान की पद्धतियां तो सैकड़ों की संख्‍या में हैं। एक सामान्‍य योग गुरू आपको ध्‍यान के लिए दीक्षित कर सकता है।एक बार ध्‍यान की प्रक्रिया शुरू हो जाए तो मैं एक ज्‍योतिषी के रूप में अपने अनुभव के साथ कह सकता हूं कि ध्‍यान आपको ग्रहों द्वारा बताए गए परिणाम से दूर ले जा सकता है। दूसरे शब्‍दों में कर्म बंधनों को काटने में ध्‍यान की महत्‍वपूर्ण भूमिका है।

विभिन्न ग्रहों की महादशाओं में आने वाली व्यवसाय, स्वास्थ्य, धन, दांपत्य जीवन, प्रेम संबंध, कानूनी, पारिवारिक समस्याओं आदि के ज्योतिषीय समाधान के लिए आप मुझ से फोन अथवा व्हाट्सएप द्वारा संपर्क कर सकते हैं । Call 7597718725-9414481324

नवरात्रि का रहस्य*

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नवरात्रि का रहस्य*
चान्द्रमास के अनुसार चार नवरात्रि होते है ------

*" नवशक्तिसमायुक्तां  नवरात्रं तदुच्यते*"

 नौ शक्तियोंसे युक्त होनेसे इसे नवरात्र कहा गया है। 

*"नविभि: रात्रिभि: सम्पद्यते य: स नवरात्र:"*

आषाढ शुक्लपक्ष मे आषाढी नवरात्रि।

आश्विन शुक्लपक्ष मे शारदीय नवरात्रि।

माघशुक्ल पक्ष में शिशिर नवरात्रि।

 चैत्र शुक्ल पक्ष मे बासिन्तक नवरात्रि ।

तथापि परंपरा से दो नवरात्रि -----

 चैत्र एवं आश्विन मास मे सर्वमान्य है ।

चैत्रमास मधुमास एवं आश्विनमास ऊर्ज मास नाम से प्रसिद्ध है----

जो शक्ति के पर्याय है ---

अतः शक्ति आराधना हेतु इस काल खण्ड को नवरात्र शब्द से सम्बोधित किया गया है 

 *नवानां रात्रीणां समाहारः*
 अर्थात नौ रात्रियो का समूह"

रात्रि का तात्पर्य है "विश्रामदात्री , सुखदात्री के साथ एक अर्थ जगदम्बा" भी है।

" *रात्रिरुपयतो देवी दिवारुपो महेश्वरः*"

तंत्रग्रन्थो मे तीन रात्रि ----

कालरात्रि (महाशिवरात्रि ) -----फाल्गुन कृष्णपक्ष चतुर्दशी 
महाकाली की रात्रि ।

मोहरात्रि ----आश्विन शुक्लपक्ष अष्टमी महासरस्वती की रात्रि ।

महारात्रि----- कार्तिक कृष्णपक्ष अमावश्या महालक्ष्मी की रात्रि।

एक अंक से सृष्टि का आरम्भ है । सम्पूर्ण मायिक सृष्टि का विस्तार आठ अंक तक ही है---

इससे परे ब्रह्म है जो नौ अंक का प्रतिनिधित्व करता है --

अस्तु नवमी तिथि के आगमन पर शिव शक्ति का मिलन
होता है ।

शक्ति सहित शक्तिमान को प्राप्त करने हेतु भक्त को नवधा भक्ति का आश्रय लेना पडता है ।

जीवात्मा नौ द्वार वाले पुर(शरीर) का स्वामी है -
  
" *नवछिद्रमयो देहः*" .

इन छिद्रो को पार करता हुआ जीव ब्रह्मत्व को प्राप्त करता है ---

अतः नवरात्र की प्रत्येक तिथि के लिए कुछ साधन ज्ञानियो द्वारा नियत किये गये है .....

*प्रतिपदा* ----
 इसे शुभेच्छा कहते है । जो प्रेम जगाती है प्रेम बिना सब साधन व्यर्थ है ,अस्तु प्रेम को अबिचल अडिग बनाने हेतु "शैलपुत्री" का आवाहन पूजन किया जाता है ।
 अचल पदार्थो मे पर्वत सर्वाधिक अटल होता है ।

*द्वितीया* -----
 धैर्यपूर्वक द्वैतबुद्धि का त्याग करके ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए माँ "ब्रह्मचारिणी" का पूजन करना चाहिए ।

*तृतीया* -----
 त्रिगुणातीत (सत , रज ,तम से परे) होकर "माँ चन्द्रघण्टा" का पूजन करते हुए मन की चंचलता को बश मे करना चाहिए ।

*चतुर्थी* ----
 अन्तःकरण चतुष्टय मन ,बुद्धि , चित्त एवं अहंकार
का त्याग करते हुए मन, बुद्धि को "कूष्माण्डा देवी" के चरणो मे अर्पित करे ।

*पंचमी* ----
 इन्द्रियो के पाँच विषयो अर्थात् शब्द रुप रस गन्ध स्पर्श का त्याग करते हुए "स्कन्दमाता" का ध्यान करे।

*षष्ठी* ----
 काम क्रोध मद मोह लोभ एवं मात्सर्य का परित्याग करके "कात्यायनी देवी' का ध्यान करे ।

*सप्तमी* --- 
रक्त , रस माँस मेदा अस्थि मज्जा एवं शुक्र इन सप्त धातुओ से निर्मित क्षण भंगुर दुर्लभ मानव देह को सार्थक करने के लिए "कालरात्रि देवी" की आराधना करे।

*अष्टमी* -----
 ब्रह्म की अष्टधा प्रकृति पृथ्वी जल.अग्नि वायु आकाश मन बुद्धि एवं अहंकार से परे "महागौरी" के स्वरुप का ध्यान करता हुआ ब्रह्म से एकाकार होने की प्रार्थना करे ।

*नवमी* ----
 "माँ सिद्धिदात्री" की आराधना से नवद्वार वाले शरीर की प्राप्ति को धन्य बनाता हुआ आत्मस्थ हो जाय ।

 पौराणिक दृष्टि से आठ लोकमाताएँ हैं ,तथा तन्त्रग्रन्थो मे आठ शक्तियाँ है----

1 *ब्राह्मी* - सृष्टिक्रिया प्रकाशित करती है ।

2 *माहेश्वरी* - यह प्रलय शक्ति है ।

3 *कौमारी* - आसुरी वृत्तियो का दमन करके दैवीय
गुणो की रक्षा करती है ।

4 *वैष्णवी* - सृष्टि का पालन करती है ।

5 *वाराही* - आधार शक्ति है इसे काल शक्ति कहते है ।

6 *नारसिंही* - ये ब्रह्म विद्या के रुप मे ज्ञान को प्रकाशित करती है

7 *ऐन्द्री* - ये विद्युत शक्ति के रुप मे जीव के कर्मो को प्रकाशित करती है ।

8 *चामुण्डा* - पृवृत्ति (चण्ड) निवृत्ति (मुण्ड) का विनाश करने वाली है ।

*आठ आसुरी शक्तियाँ* ----

1 मोह - महिषासुर

2 काम - रक्तबीज

3 क्रोध - धूम्रलोचन

4 लोभ - सुग्रीव

5 मद;मात्सर्य - चण्ड-मुण्ड

6 राग-द्वेष - मधु-कैटभ

7 ममता - निशुम्भ

8 अहंकार - शुम्भ

अष्टमी तिथि तक इन दुगुर्णो रुपी दैत्यो का संहार करके
नवमी तिथि को प्रकृति पुरुष का एकाकार होना ही नवरात्रि का आध्यात्मिक रहस्य है ।l🙏

शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2020

गलत दानकरने से जीवन वर्वाद हो सकता है

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गलतदानकरने से जीवन वर्वाद हो सकता है
मित्रो यह संसार बहुत ही रहस्य्मय  है !  इस ने अपने सीने में न जाने कितने रहस्यों को दवा कर रखा है !  इंसान उन्हें अभी तक न तो खोज पाया है और न ही शायद उस के लिए यह इतना सम्भव  ही है ! और फिर यहाँ इस धरती पर जिस दिन यह रहस्य खुल जाएंगे , उस दिन होगा एक नए युग का आगाज़ !
और उस युग में होगा तो केवल और केवल सुख दुःख का कहीं नाम नहीं होगा !
निश्चित तौर पर दुखों का अंत हो ही जाएगा ! पर क्या यह संभव है ?
बस यही माया है ! और यहीं से शुरू होता है हमारा कार्य हमारा उसी विषय पर  आप से बात करना चाहता हूं !
 इस घरत पर ऐसे ऐसे लोगों का ऐसे ऐसे महापुरषों का आना हुआ कि हम यदि चाहें भी तो उन की देनो का कभी क़र्ज़ नहीं उतार पाएंगे ! उन का एहसान जीवन भर नहीं उतार पाएंगे !
चाहे उन सभी के कार्य -क्षेत्र और विषय अलग अलग ही क्यों न रहे  हों पर वो सभी बढ़ तो एक ही दिशा की  तरफ ही रहे थे  ! और वो दिशा थी मानव जीवन की भलाई 
 किसी ने न्यूटन  बन कर अपने नाम के सिद्धांत बना डाले और उन  सिद्धांतों से संसार को अचम्भे में डाल दिया ! तो  किसी ने आर्य भट्ट के नाम  से जन्म लेकर  अपने सिद्धांतों से संसार को अचम्भे में डाले रखा   !  कुछ लोगों की देन से मानव ने  चाँद -मंगल पर कदम रखने के सहस  जुटाए तो  कुछ की देन से आज मानव , इंसानी हृदय को शरीर से निकाल , उसे  टेबल पर रख,  उस का ऑपरेशन करने की सोच बैठा ! इन सब  देनो को देने वाले आज चाहे हमारे बीच में नहीं हैं परन्तु आज भी वो भगवान  की तरह  जिन्दा हैं इंसानी दिलों में !  और उन की कभी मौत नहीं होगी ! उन के कार्यों के लिए उन्हें संसार सदा याद रखेगा ! उन की शरीरिक मौत चाहे हो गई हो परन्तु आध्यात्मिक मौत कभी भी न होगी !
बस यही माया है !
एक शक्ति आकाश से किसी न किसी रूप में उतरती है और इस धरा पर अपना कार्य पूरा कर के चली जाती है ! फिर इस शक्ति के आलोप होते ही इंसान उसे   बस एक ही नाम से जानने को व्याकुल हो उठता है ! और वह नाम जो  वह उस शक्ति को  देता है ,  वह   कहलाता  है..केवल और केवल ..." भगवान 
बस यही माया है !
शक्तियों का संगम भूत में भी होता आया है , वर्तमान में भी हो रहा है और भविष्य में भी होता ही रहेगा !  पर हम फिर वहीँ  अपनी बात पर लौट कर  आते हैं ! इन शक्तियों की देन के तो इतने विषय बन जाएंगे की शायद हम गिन भी न पाएं ! हम तो बस  आप को केवल एक ही शक्ति का एहसास मात्र कराना चाहेंगे ! वह शक्ति जिसे हम सब  आज से नहीं बल्कि सनातन काल से युगों युगों से जानते भी आए है , जानते भी हैं और आगे भी जानते रहेंगे ! उस महान शक्ति का नाम है "आध्यात्म और फिर आध्यात्म से इतने विषय निकल आएँगे की शायद हम उन्हें भी न गिन पाएं !
बस यही माया है !
 तो आप को आज ऐसे विषय पर ले जाना चाहता हूं जो अपने आप में अत्यंत ही आलौकिक  है !और इतना ही नहीं वह बहुत रहस्य्मय भी है ! उस के रहस्य आज भी  अनसुलझे पड़े हैं ! जब कभी भी उस के रहस्यों की बात का आगाज़ होता है तो बस  इंसान केवल और केवल असमंजस्य की स्थिति में  अवाक् सा रह जाता है ! और फिर उस के होठों से केवल यही शब्द निकलता है  क्या ऐसा हो सक्ता है ?.क्या ऐसा संभव है ?
क्या इस धरा पर कोई ऐसी शक्ति हो भी  सक्ती है ?  क्या  है यह बात संभव कि किसी का केवल जन्म समय लेकर उस के भविष्य में होने वाली बेशुमार घटनाओं के बारे में जाना जा सके ?
शायद "हाँऔर फिर शायद .... "ना " भी ! ऐसे ही चलता आया है और चलता भी रहेगा ! चले भी क्यों न ? यह चलता रहेगा और तब तक चलता रहेगा जब तक इस धरा पर दो किस्म के इंसान रहेंगे ! एक वह जो आँख मूँद कर विश्वास कर लें और दूसरे वो जो हर बात का तर्क मांगे ! बिना तर्क के विश्वास न करें !
  हम नही कहते कि आप विश्वास करें हमारी बात पर और हम यह भी नही कहते कि आप विश्वास ही न करें हमारी बात पर ! यह तो तय करना केवल और केवल आप पर निर्भर करता है ! बातों का सिलसिला बढ़ा कर हम शायद अपने विषय से दूर चले जाएं ! इस लिए हम एक ही बात जानते हैं और बार बार कहते भी हैं कि .
अध्यात्म से बहुत सारे विषयों का जन्म हुआ ! सम्मोहन , आकर्षण ,पुनर्जन्म ,आत्मा , परमात्मा ,समाधि ,और ऐसे कितने ही विषयों के बाद एक सर्वोच्च शक्ति पर जा कर अध्यात्म खड़ा हो जाता है ! और उस सर्वोच्च और महा शाक्ति का नाम है ........भगवान..!....ईश्वर ...!  पर इस को भी फिर इंसान  वहां से खड़ा हो कर देखता है जहाँ से उस के मष्तिष्क पर रह रह कर दो ही बातें हथोड़े कि तरह प्रहार  करती हैं !..... पहली यह कि ...." वह है "......और दूसरी यह भी कि वह ..."नहीं है" !
बस यही माया है !
इसी कश्मकश के बीचो बीच हम अब चलेंगे उस शक्ती  की  तरफ ..जिस की  हालत बिलकुल ऐसी ही है जैसी हम ने ऊपर ईश्वर के होने न होने की  बताई है !
उस शक्ती का नाम है    .."ज्योतिष " !
हम यहाँ पर यह कह देना उचित समझते है कि अब हम यहाँ तनिक भी उस तरफ नहीं जाएंगे कि हम यह समझाएं आप को कि यह विषय .....उचित और सत्य है या फिर बिलकुल निराधार .. मित्रों
ईश्वर के पास जाने के लिए , या मोक्ष पाने के लिए , या फिर जीवन में सफलता को प्राप्त करने के लिए  केवल तीन ही मार्ग बताए गए हैं !
पहला मार्ग है आध्यात्म या ज्ञान मार्ग  ! यानि कि अपने ज्ञान को उस  सीमा तक  बढ़ा  लेना कि जहाँ पहुँच कर दुःख सुख के अनुभव से हमारी आत्मा विचलित न हो !   यानि  आत्मा- परमात्मा का पूर्ण ज्ञान पा लेना ! लेकिन यह मार्ग बहुत कठिन है ! यह तो बहुत बड़े महापुरुष  ही कर पाते हैं !
दूसरा मार्ग है  भक्ति मार्ग ! यानि मीरा की भांति  भक्ति में इतना डूब जाना कि जहर भी पीना पड़े तो मृत्यु न हो ! लेकिन यह भी कठिन मार्ग है !
तीसरा मार्ग है कर्म मार्ग !...जो सब से सरल और सुगम है ! कर्मो को इतना अच्छा बना लेना  कि एक देवता जैसी छवि हो जाए आप की.! अस्पताल या धर्मशालाएं   बनवा देना ........... ! ...कुआँ खुदवा देना  .......!... भूखों को भोजन खिला देना  इत्यादि कितने ही कर्म हैं जिन के करते भगवान को प्राप्त किया जा सके ! राजा हरीशचंद्र  की तरह !....और  सुगम मार्ग होने से आज संसार के अधिकतर लोग इसी रस्ते पर चल पड़े हैं ! और निश्चित ही इंसान का भला भी हुआ है ! और जीवों का भी भला हुआ है !
बस यही माया है !
लेकिन हमारा  रास्ता तो ज्योतिष है न , इस लिए  हम फिर वहीं चलते हैं !एक बार हमें एक सज्जन हमारे घर पर हमें कुंडली दिखलाने  आए  .! और हम से मिल कर बोले  कि .."अपने जीवन में  हम आचार्य जी बहुत  सा दान करते  आए  है परन्तु फिर भी परिवार में सभी भाइयों से अधिक परेशानी में हम ही हैं  कारोबार खत्म हो गया है मकान भी बिकने की कगार पर है ! क्या यही फल दिया है हमें  भगवान ने हमारे  दान पुण्य का ? हमारे दूसरे भाई जिन्हों ने कभी कोई दान ही नहीं किया वह हम से आज कहीं बहुत ही  आगे हैं  ! बताइए  ऐसा क्यों ? क्या गुनाह हुआ है हम से ?
 एक बार तो हम  भी सोच में ही पड़ कर  रह गए ! अब क्या जवाब दें उन को ? दान को शायद वो अमीर बनने का फार्मूला समझ बैठे थे  ! बस यही अज्ञान है , यही माया है ! इस से निकलना ही होगा !
हम ने  उन  को तसल्ली दी ! और  उन  को यह बतलाना उचित समझा कि दान करने के कुछ नियम हैं ! लालच ,  दान को अमीरी का फार्मूला समझ कर करना  जल्दी अमीर हो जाने की चाह रखते दान करना... मित्रों
हम फिर कहते हैं  कि दान करने  के लिए भी कुछ नियम हैं ज्योतिष में। आप कौन सा दान कर सक्ते हैं और कौन सा नहीं , इस के लिए भी  कुछ नियम हैं ज्योतिष में। । जो लोग इस नियम को नहीं मानते उन्हें भोगना पड़ता है तब दुखों  का दंश. 
ज्योतिष में आज एक नया विचार उभर कर   सामने आया है !
वो यह कि  " क्या  दान करने से जीवन की मुश्किलों से बाहर आया जा सक्ता है " ?
क्या जीवन में इस से कोई बदलाव लाया जा सक्ता है !
विज्ञान कहता है ..नहीं " !
पर आध्यात्म कहता है ......" हाँ 
ऐसा चल भी रहा है और चलता भी रहेगा ! यह फ़ासला तो यूँ ही बरकरार रहेगा ! यही माया है ! बस इसे ही नहीं जान पाया कोई  !
अब हम फिर अपनी बात पर वापिस लौट कर आते हैं !
हाँ.........!  हम ने फिर उन  सज्जन से बात की ! उन से कुछ जानकारियां लीं ! फिर अपने ज्ञान का भी उपयोग किया ! उन की कुंडली भी देखी ! और फिर हम यह देख कर तो दंग ही रह गए कि वो तो इतने बरसों से गलत दान ही करते आ रहे थे ! और ऐसा करते रहने के कारण ही आज वह सज्जन उस स्थिति में पहुँच चुके थे   उन से हमें हमदर्दी भी हो आई थी ! और एक जिज्ञासा भी की उन   के कष्टों को दूर करने का कोई उपाए अगर ज्योतिष में है तो वह हम उन   को बतला दें  ! पर न जाने हमें भीतर ही भीतर क्या हो गया था कि हम अपने मन की बात उन से करने का साहस   ही नहीं जुटा पा रहे थे  बस यही माया है ..
फिर हम ने   साहस कर के उन  को समझाने का निर्णय लिया ! हम ने उन से कुछ यूँ कहना शुरू किया .
एक बार जब रामसेतु बनाया जा रहा था तो हनुमान जी ने श्री राम जी से बताया कि.."हे  भगवन, ...जिस पत्थर पर आप का नाम लिख कर समुद्र में छोड़ दिया जाता है वो तैरने लगता है ।"  तब इस पर श्री राम जी ने कहा कि हनुमान जी यह आप का वहम है । तब हनुमान जी ने एक पत्थर पर श्री राम लिखा और समुद्र में छोड़ दिया। वो तैरने लगा। राम जी फिर मुस्कराए और बोले हम भी ऐसा क़र के देखते हैं। उन्हों ने भी एक पथर पर श्री राम लिखा और समुद्र में छोड़ दिया। वो पत्थर डूब गया। तब राम जी ने हनुमान जी से कहा की देखो हनुमान जी वो आप का वहम था ! देखो ..! हम ने भी पत्थर पर श्री " राम "  लिख कर ही समुद्र में आप के सामने छोड़ा पर वोह डूब गया !  कपवह पत्थर  नही तैरा !
इस पर तब हनुमान जी तनिक मुस्करा दिए !
फिर मुस्कराकर कहा  " हे प्रभु..! जिस को भला आप ही त्याग देंगे तो उसे डूबने से फिर कौन बचा सकता है ?"
और ठीक ऐसा ही नियम तो  वर्जित दान के सम्बन्ध में भी  लागु होता है।  यदि आप घर आई हुई लक्ष्मी का   यूँ ही त्याग  करते चले जाएंगे  तो वो फिर आप के पास आएगी ही क्यों ? या फिर आप के गृहस्थ में रहना चाहेगी ही क्यों ?
हमारी  बात सुन कर वो तनिक ठिठक से गए  !
लेकिन हम ने अपनी बात जारी रखी ! और उन्हें  बताना शुरू किया कि वास्तव में सत्य क्या है !
ज्योतिष कहता है कि ..जो ग्रह हमारी कुंडली में उच्च के होंगे या फिर बहुत ही अच्छी अवस्था के होंगे यदि हम उन्हीं का ही दान करते रहे ,उन्हें त्यागते रहे तो वो फिर हमें छोड़ कर ही तो जाएंगे ! क्यों करेंगे हमारा भला ?
दान तो केवल उन ग्रहों का ही किया जाए जो हमारी कुंडली में खराब हालात में हों या खराब घरों के स्वामी बन कर बैठे हों ! ज्योतिष तो यही कहता है ! और बस यही नियम है ! जो इसे समझ लेता है वह तो जीवन में कामयाब हो जाता है और जो नहीं समझ पाता वो बस डूबता और डूबता ही चला जाता है भंवर में...........एक अनजानी सी खाई में ....! 
और फिर शायद आप नहीं जानते  कि ऐसा सिलसिला लगातार जारी रहने से क्या हो सक्ता है !
शायद आप नहीं जानते कि लगातार  ऐसा सिलसिला जारी रहने से आप कंगाल हो  सक्ते हैं ..!
ज्योतिष के अनुसार यही ही तो है ..... " आप के जीवन को हिला देने वाला सत्य ..!"
परन्तु  वास्तव में  क्या यह संभव है ? ... इस में कई दलीलें ....कई तर्क हो सकते हैं ! पर एक बात तो निश्चित तौर पर सभी मानते ही हैं ! चाहे आध्यात्मिक धारा  के लोग हों या  फिर वैज्ञानिक धारा के ! एक बात तो सभी मानते भी हैं और मानेंगे भी कि प्रत्येक क्रिया के विपरीत एक प्रतिक्रिया होती ही है !
न्यूटन का दिया गया यह सिद्धांत कोई भी मानने से इंकार नहीं कर सक्ता कि जिस किसी दिशा में हम जितना बल लगाते हैं उतना ही प्रतिक्रिया के रूप में समान अनुपात का बल विपरीत दिशा में भी लौटता है ! बस एक यही नियम ही संसार का सब से बड़ा नियम है ! एक गेंद को  जितनेबल से हम किसी दीवार पर मारेंगे ठीक उसी बल से वो गेंद विपरीत दिशा में लौट कर आती ही है ! इस को सभी मानते ही हैं ! ज्योतिष इस से कहीं आगे निकल जाता है ! वो कहता है कि किसी भी गेंद को टकरा कर वापिस लौटने से नियम यहीं समाप्त कहाँ हो जाता है ? यदि उस गेंद को दीवार पर न मारा जाए पर बल तो लगाया ही जाएगा ! तब क्या होगा ? तब प्रतिबल का क्या होगा ? न्यूटन ने कहा था कि यदि हम अपनी एक ऊँगली हिलाते हैं तो पूरा ब्रह्माण्ड ही हिल जाता है ! प्रतिबल के कारण ! पर हमें दिखाई नहीं देता ! बस यही अध्यात्म है ...! यही ज्योतिष है ...और यही नियम **********
 यह अनियम है तो इस का प्रभाव भी होना निश्चित है !
पर आध्यात्म और ज्योतिष यहाँ संतुष्ट नहीं होता !
एक पानी के किसी तालाब में पानी में पत्थर फेंकने से पानी की लहर चारों तरफ गोलाकार चक्र  के रूप में पैदा होती है और फ़ैल जाती है ! फिर आप देखेंगे कि उसी तरह वह फैलती फैलती  निश्चल हो कर आलोप हो जाती है ! वास्तव में अपनी सीमाओं को छूने तक उस का बल कम हो कर इतना रह जाता है कि वो अपनी उसी वास्तविक शक्ती  से वापिस लौटता हमें दिखाई नहीं देता ! पर लौटता तो है ! वह लहर वापिस तो आती है ! अब समय और साधन कि विभन्नता के कारण उस का रूप बदल गया है और वह लहर  ठीक उसी रूप में न लौट कर किसी और रूप में उसी तालाब की गर्त में कहीं समा जाती है ! बस यही माया है ! यही आध्यात्म है ! यही नियम दान  के सम्बन्ध में है !
दान का प्रभाव हमारे जीवन में निश्चित ही होता है !अच्छा हो ..चाहे बुरा ! पर होता तो है उच्च के ग्रह का दान करते रहने से यह  दान आप के लिए हानिकारक होगा !
बुरे ग्रह का दान ले लेने से आप के लिए धीमे जहर की तरह होगा !दान का अधिकार तो केवल और केवल पात्र को ही है। जो ग्रह जन्म कुंडली में उच्च राशि या अपनी स्वयं की राशि में स्थित हों, (स्वग्रही) उनसे संबंधित वस्तुओं का दान व्यक्ति को कभी भूलकर भी नहीं करना चाहिए।
 सूर्य मेष राशि में होने पर उच्च तथा सिंह राशि में होने पर अपनी स्वराशि अका होता है अत:1/3/5/9/4 घर अमें हो
 लाल या गुलाबी रंग के पदार्थों का दान न करें।
 गुड़, आटा, गेहूं, अतांबा आदि किसी को न दें। नहीं तो लाभ की जगह हानी होनी निश्चित है
 चंद्र वृष राशि में अउच्च तथा कर्क राशि में स्वगृही होता है। यदि आपकी जन्म कुंडली ऐसी स्थिति में हो अतो-1,2.4.6.8.9 घर में हो तो 
 दूध, चावल, चांदी, मोती एवं अन्य जलीय पदार्थों का दान कभी नहीं करें।हां कुंडली देखकर दांत दिए जा सकते हैं हां पहले घर में कुंडली देखकर दान किए जा सकते हैं
मंगल देव के बारे में कहा जाता है कि जितना मीठा बांटोंगे उतना ही अच्छा फल मिलेगा कुंडली में मंगल कहीं भी किसी भी भाव में हो आपको पूछने की जरूरत नहीं है मीठे का दान और पके हुए खाने का दान आप कभी भी कहीं भी किसी भी वक्त कर सकते हो यहां तक कि आप खून का दान भी कर सकते हो जिससे मंगल बहुत ही शुभ फल देता है बुध मिथुन राशि में तो स्वराशि तथा कन्या राशि में हो तो उच्च राशि का कहलाता है। यदि किसी जातक की जन्मपत्रिका में बुध शुभ फल देने वाली किसी स्थिति में है तो, उसे हरे रंग के पदार्थ और वस्तुओं का दान कभी नहीं करना चाहिए।
हरे रंग के वस्त्र
हरे रंग के वस्त्र, वस्तु और यहां तक कि हरे रंग के खाद्य पदार्थों का दान में ऐसे जातक के लिए निषेध है। इसके अलावा इस जातक को न तो घर में मछलियां पालनी चाहिए और न ही स्वयं कभी मछलियों को कभी दाना डालना चाहिए। नहीं तोलेने के देने पड़ जाएंगे आपका व्यापार चौपट हो जाएगा कारोबार नष्ट हो जाएगा आपकी बहन बुआ बेटी को सुख की बजाय दुख झेलने पड़ेंगे इसी तरह बृहस्पति अगर कुंडली में अच्छे घरों में अपने पक्के घर में उच घर में शुभ फलदायक है तो गुरु ग्रह के दान कभी मत करें ग्रह
बृहस्पति जब धनु या मीन राशि में हो तो स्वगृही तथा कर्क राशि में होने पर उच्चता को प्राप्त होता है। जिस जातक की कुण्डली में बृहस्पति ग्रह ऐसी स्थिति में हो तो, उसे पीले रंग के पदार्थ दान नहीं करना चाहिए। सोना, पीतल, केसर, धार्मिक साहित्य या वस्तुओं आदि का दान नहीं करना चाहिए। इन वस्तुओं का दान करने से समाज में सम्मान कम होता है कुछ लोग कुत्ते को लड्डू भी खिला खिला कर अपना कारोबार घन मान सम्मान खराव कर रहे हैइसी तरह उपाय या दान पुन किसी अच्छे एस्ट्रोलॉजर को पूछ कर ही करें है मित्रों.! बातें और भी हैं आप से शेयर करने के लिए !
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लाल का किताब के अनुसार मंगल शनि

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