मित्रो यह संसार बहुत ही रहस्य्मय है ! इस ने अपने सीने में न जाने कितने रहस्यों को दवा कर रखा है ! इंसान उन्हें अभी तक न तो खोज पाया है और न ही शायद उस के लिए यह इतना सम्भव ही है ! और फिर यहाँ इस धरती पर जिस दिन यह रहस्य खुल जाएंगे , उस दिन होगा एक नए युग का आगाज़ !
और उस युग में होगा तो केवल और केवल सुख दुःख का कहीं नाम नहीं होगा !
निश्चित तौर पर दुखों का अंत हो ही जाएगा ! पर क्या यह संभव है ?
बस यही माया है ! और यहीं से शुरू होता है हमारा कार्य हमारा उसी विषय पर आप से बात करना चाहता हूं !
इस घरत पर ऐसे ऐसे लोगों का ऐसे ऐसे महापुरषों का आना हुआ कि हम यदि चाहें भी तो उन की देनो का कभी क़र्ज़ नहीं उतार पाएंगे ! उन का एहसान जीवन भर नहीं उतार पाएंगे !
चाहे उन सभी के कार्य -क्षेत्र और विषय अलग अलग ही क्यों न रहे हों पर वो सभी बढ़ तो एक ही दिशा की तरफ ही रहे थे ! और वो दिशा थी मानव जीवन की भलाई
किसी ने न्यूटन बन कर अपने नाम के सिद्धांत बना डाले और उन सिद्धांतों से संसार को अचम्भे में डाल दिया ! तो किसी ने आर्य भट्ट के नाम से जन्म लेकर अपने सिद्धांतों से संसार को अचम्भे में डाले रखा ! कुछ लोगों की देन से मानव ने चाँद -मंगल पर कदम रखने के सहस जुटाए तो कुछ की देन से आज मानव , इंसानी हृदय को शरीर से निकाल , उसे टेबल पर रख, उस का ऑपरेशन करने की सोच बैठा ! इन सब देनो को देने वाले आज चाहे हमारे बीच में नहीं हैं परन्तु आज भी वो भगवान की तरह जिन्दा हैं इंसानी दिलों में ! और उन की कभी मौत नहीं होगी ! उन के कार्यों के लिए उन्हें संसार सदा याद रखेगा ! उन की शरीरिक मौत चाहे हो गई हो परन्तु आध्यात्मिक मौत कभी भी न होगी !
बस यही माया है !
एक शक्ति आकाश से किसी न किसी रूप में उतरती है और इस धरा पर अपना कार्य पूरा कर के चली जाती है ! फिर इस शक्ति के आलोप होते ही इंसान उसे बस एक ही नाम से जानने को व्याकुल हो उठता है ! और वह नाम जो वह उस शक्ति को देता है , वह कहलाता है..केवल और केवल ..." भगवान
बस यही माया है !
शक्तियों का संगम भूत में भी होता आया है , वर्तमान में भी हो रहा है और भविष्य में भी होता ही रहेगा ! पर हम फिर वहीँ अपनी बात पर लौट कर आते हैं ! इन शक्तियों की देन के तो इतने विषय बन जाएंगे की शायद हम गिन भी न पाएं ! हम तो बस आप को केवल एक ही शक्ति का एहसास मात्र कराना चाहेंगे ! वह शक्ति जिसे हम सब आज से नहीं बल्कि सनातन काल से युगों युगों से जानते भी आए है , जानते भी हैं और आगे भी जानते रहेंगे ! उस महान शक्ति का नाम है "आध्यात्म और फिर आध्यात्म से इतने विषय निकल आएँगे की शायद हम उन्हें भी न गिन पाएं !
बस यही माया है !
तो आप को आज ऐसे विषय पर ले जाना चाहता हूं जो अपने आप में अत्यंत ही आलौकिक है !और इतना ही नहीं वह बहुत रहस्य्मय भी है ! उस के रहस्य आज भी अनसुलझे पड़े हैं ! जब कभी भी उस के रहस्यों की बात का आगाज़ होता है तो बस इंसान केवल और केवल असमंजस्य की स्थिति में अवाक् सा रह जाता है ! और फिर उस के होठों से केवल यही शब्द निकलता है क्या ऐसा हो सक्ता है ?.क्या ऐसा संभव है ?
क्या इस धरा पर कोई ऐसी शक्ति हो भी सक्ती है ? क्या है यह बात संभव कि किसी का केवल जन्म समय लेकर उस के भविष्य में होने वाली बेशुमार घटनाओं के बारे में जाना जा सके ?
शायद "हाँऔर फिर शायद .... "ना " भी ! ऐसे ही चलता आया है और चलता भी रहेगा ! चले भी क्यों न ? यह चलता रहेगा और तब तक चलता रहेगा जब तक इस धरा पर दो किस्म के इंसान रहेंगे ! एक वह जो आँख मूँद कर विश्वास कर लें और दूसरे वो जो हर बात का तर्क मांगे ! बिना तर्क के विश्वास न करें !
हम नही कहते कि आप विश्वास करें हमारी बात पर और हम यह भी नही कहते कि आप विश्वास ही न करें हमारी बात पर ! यह तो तय करना केवल और केवल आप पर निर्भर करता है ! बातों का सिलसिला बढ़ा कर हम शायद अपने विषय से दूर चले जाएं ! इस लिए हम एक ही बात जानते हैं और बार बार कहते भी हैं कि .
अध्यात्म से बहुत सारे विषयों का जन्म हुआ ! सम्मोहन , आकर्षण ,पुनर्जन्म ,आत्मा , परमात्मा ,समाधि ,और ऐसे कितने ही विषयों के बाद एक सर्वोच्च शक्ति पर जा कर अध्यात्म खड़ा हो जाता है ! और उस सर्वोच्च और महा शाक्ति का नाम है ........भगवान..!....ईश्वर ...! पर इस को भी फिर इंसान वहां से खड़ा हो कर देखता है जहाँ से उस के मष्तिष्क पर रह रह कर दो ही बातें हथोड़े कि तरह प्रहार करती हैं !..... पहली यह कि ...." वह है "......और दूसरी यह भी कि वह ..."नहीं है" !
बस यही माया है !
इसी कश्मकश के बीचो बीच हम अब चलेंगे उस शक्ती की तरफ ..जिस की हालत बिलकुल ऐसी ही है जैसी हम ने ऊपर ईश्वर के होने न होने की बताई है !
उस शक्ती का नाम है .."ज्योतिष " !
हम यहाँ पर यह कह देना उचित समझते है कि अब हम यहाँ तनिक भी उस तरफ नहीं जाएंगे कि हम यह समझाएं आप को कि यह विषय .....उचित और सत्य है या फिर बिलकुल निराधार .. मित्रों
ईश्वर के पास जाने के लिए , या मोक्ष पाने के लिए , या फिर जीवन में सफलता को प्राप्त करने के लिए केवल तीन ही मार्ग बताए गए हैं !
पहला मार्ग है आध्यात्म या ज्ञान मार्ग ! यानि कि अपने ज्ञान को उस सीमा तक बढ़ा लेना कि जहाँ पहुँच कर दुःख सुख के अनुभव से हमारी आत्मा विचलित न हो ! यानि आत्मा- परमात्मा का पूर्ण ज्ञान पा लेना ! लेकिन यह मार्ग बहुत कठिन है ! यह तो बहुत बड़े महापुरुष ही कर पाते हैं !
दूसरा मार्ग है भक्ति मार्ग ! यानि मीरा की भांति भक्ति में इतना डूब जाना कि जहर भी पीना पड़े तो मृत्यु न हो ! लेकिन यह भी कठिन मार्ग है !
तीसरा मार्ग है कर्म मार्ग !...जो सब से सरल और सुगम है ! कर्मो को इतना अच्छा बना लेना कि एक देवता जैसी छवि हो जाए आप की.! अस्पताल या धर्मशालाएं बनवा देना ........... ! ...कुआँ खुदवा देना .......!... भूखों को भोजन खिला देना इत्यादि कितने ही कर्म हैं जिन के करते भगवान को प्राप्त किया जा सके ! राजा हरीशचंद्र की तरह !....और सुगम मार्ग होने से आज संसार के अधिकतर लोग इसी रस्ते पर चल पड़े हैं ! और निश्चित ही इंसान का भला भी हुआ है ! और जीवों का भी भला हुआ है !
बस यही माया है !
लेकिन हमारा रास्ता तो ज्योतिष है न , इस लिए हम फिर वहीं चलते हैं !एक बार हमें एक सज्जन हमारे घर पर हमें कुंडली दिखलाने आए .! और हम से मिल कर बोले कि .."अपने जीवन में हम आचार्य जी बहुत सा दान करते आए है परन्तु फिर भी परिवार में सभी भाइयों से अधिक परेशानी में हम ही हैं कारोबार खत्म हो गया है मकान भी बिकने की कगार पर है ! क्या यही फल दिया है हमें भगवान ने हमारे दान पुण्य का ? हमारे दूसरे भाई जिन्हों ने कभी कोई दान ही नहीं किया वह हम से आज कहीं बहुत ही आगे हैं ! बताइए ऐसा क्यों ? क्या गुनाह हुआ है हम से ?
एक बार तो हम भी सोच में ही पड़ कर रह गए ! अब क्या जवाब दें उन को ? दान को शायद वो अमीर बनने का फार्मूला समझ बैठे थे ! बस यही अज्ञान है , यही माया है ! इस से निकलना ही होगा !
हम ने उन को तसल्ली दी ! और उन को यह बतलाना उचित समझा कि दान करने के कुछ नियम हैं ! लालच , दान को अमीरी का फार्मूला समझ कर करना जल्दी अमीर हो जाने की चाह रखते दान करना... मित्रों
हम फिर कहते हैं कि दान करने के लिए भी कुछ नियम हैं ज्योतिष में। आप कौन सा दान कर सक्ते हैं और कौन सा नहीं , इस के लिए भी कुछ नियम हैं ज्योतिष में। । जो लोग इस नियम को नहीं मानते उन्हें भोगना पड़ता है तब दुखों का दंश.
ज्योतिष में आज एक नया विचार उभर कर सामने आया है !
वो यह कि " क्या दान करने से जीवन की मुश्किलों से बाहर आया जा सक्ता है " ?
क्या जीवन में इस से कोई बदलाव लाया जा सक्ता है !
विज्ञान कहता है ..नहीं " !
पर आध्यात्म कहता है ......" हाँ
ऐसा चल भी रहा है और चलता भी रहेगा ! यह फ़ासला तो यूँ ही बरकरार रहेगा ! यही माया है ! बस इसे ही नहीं जान पाया कोई !
अब हम फिर अपनी बात पर वापिस लौट कर आते हैं !
हाँ.........! हम ने फिर उन सज्जन से बात की ! उन से कुछ जानकारियां लीं ! फिर अपने ज्ञान का भी उपयोग किया ! उन की कुंडली भी देखी ! और फिर हम यह देख कर तो दंग ही रह गए कि वो तो इतने बरसों से गलत दान ही करते आ रहे थे ! और ऐसा करते रहने के कारण ही आज वह सज्जन उस स्थिति में पहुँच चुके थे उन से हमें हमदर्दी भी हो आई थी ! और एक जिज्ञासा भी की उन के कष्टों को दूर करने का कोई उपाए अगर ज्योतिष में है तो वह हम उन को बतला दें ! पर न जाने हमें भीतर ही भीतर क्या हो गया था कि हम अपने मन की बात उन से करने का साहस ही नहीं जुटा पा रहे थे बस यही माया है ..
फिर हम ने साहस कर के उन को समझाने का निर्णय लिया ! हम ने उन से कुछ यूँ कहना शुरू किया .
एक बार जब रामसेतु बनाया जा रहा था तो हनुमान जी ने श्री राम जी से बताया कि.."हे भगवन, ...जिस पत्थर पर आप का नाम लिख कर समुद्र में छोड़ दिया जाता है वो तैरने लगता है ।" तब इस पर श्री राम जी ने कहा कि हनुमान जी यह आप का वहम है । तब हनुमान जी ने एक पत्थर पर श्री राम लिखा और समुद्र में छोड़ दिया। वो तैरने लगा। राम जी फिर मुस्कराए और बोले हम भी ऐसा क़र के देखते हैं। उन्हों ने भी एक पथर पर श्री राम लिखा और समुद्र में छोड़ दिया। वो पत्थर डूब गया। तब राम जी ने हनुमान जी से कहा की देखो हनुमान जी वो आप का वहम था ! देखो ..! हम ने भी पत्थर पर श्री " राम " लिख कर ही समुद्र में आप के सामने छोड़ा पर वोह डूब गया ! कपवह पत्थर नही तैरा !
इस पर तब हनुमान जी तनिक मुस्करा दिए !
फिर मुस्कराकर कहा " हे प्रभु..! जिस को भला आप ही त्याग देंगे तो उसे डूबने से फिर कौन बचा सकता है ?"
और ठीक ऐसा ही नियम तो वर्जित दान के सम्बन्ध में भी लागु होता है। यदि आप घर आई हुई लक्ष्मी का यूँ ही त्याग करते चले जाएंगे तो वो फिर आप के पास आएगी ही क्यों ? या फिर आप के गृहस्थ में रहना चाहेगी ही क्यों ?
हमारी बात सुन कर वो तनिक ठिठक से गए !
लेकिन हम ने अपनी बात जारी रखी ! और उन्हें बताना शुरू किया कि वास्तव में सत्य क्या है !
ज्योतिष कहता है कि ..जो ग्रह हमारी कुंडली में उच्च के होंगे या फिर बहुत ही अच्छी अवस्था के होंगे यदि हम उन्हीं का ही दान करते रहे ,उन्हें त्यागते रहे तो वो फिर हमें छोड़ कर ही तो जाएंगे ! क्यों करेंगे हमारा भला ?
दान तो केवल उन ग्रहों का ही किया जाए जो हमारी कुंडली में खराब हालात में हों या खराब घरों के स्वामी बन कर बैठे हों ! ज्योतिष तो यही कहता है ! और बस यही नियम है ! जो इसे समझ लेता है वह तो जीवन में कामयाब हो जाता है और जो नहीं समझ पाता वो बस डूबता और डूबता ही चला जाता है भंवर में...........एक अनजानी सी खाई में ....!
और फिर शायद आप नहीं जानते कि ऐसा सिलसिला लगातार जारी रहने से क्या हो सक्ता है !
शायद आप नहीं जानते कि लगातार ऐसा सिलसिला जारी रहने से आप कंगाल हो सक्ते हैं ..!
ज्योतिष के अनुसार यही ही तो है ..... " आप के जीवन को हिला देने वाला सत्य ..!"
परन्तु वास्तव में क्या यह संभव है ? ... इस में कई दलीलें ....कई तर्क हो सकते हैं ! पर एक बात तो निश्चित तौर पर सभी मानते ही हैं ! चाहे आध्यात्मिक धारा के लोग हों या फिर वैज्ञानिक धारा के ! एक बात तो सभी मानते भी हैं और मानेंगे भी कि प्रत्येक क्रिया के विपरीत एक प्रतिक्रिया होती ही है !
न्यूटन का दिया गया यह सिद्धांत कोई भी मानने से इंकार नहीं कर सक्ता कि जिस किसी दिशा में हम जितना बल लगाते हैं उतना ही प्रतिक्रिया के रूप में समान अनुपात का बल विपरीत दिशा में भी लौटता है ! बस एक यही नियम ही संसार का सब से बड़ा नियम है ! एक गेंद को जितनेबल से हम किसी दीवार पर मारेंगे ठीक उसी बल से वो गेंद विपरीत दिशा में लौट कर आती ही है ! इस को सभी मानते ही हैं ! ज्योतिष इस से कहीं आगे निकल जाता है ! वो कहता है कि किसी भी गेंद को टकरा कर वापिस लौटने से नियम यहीं समाप्त कहाँ हो जाता है ? यदि उस गेंद को दीवार पर न मारा जाए पर बल तो लगाया ही जाएगा ! तब क्या होगा ? तब प्रतिबल का क्या होगा ? न्यूटन ने कहा था कि यदि हम अपनी एक ऊँगली हिलाते हैं तो पूरा ब्रह्माण्ड ही हिल जाता है ! प्रतिबल के कारण ! पर हमें दिखाई नहीं देता ! बस यही अध्यात्म है ...! यही ज्योतिष है ...और यही नियम **********
यह अनियम है तो इस का प्रभाव भी होना निश्चित है !
पर आध्यात्म और ज्योतिष यहाँ संतुष्ट नहीं होता !
एक पानी के किसी तालाब में पानी में पत्थर फेंकने से पानी की लहर चारों तरफ गोलाकार चक्र के रूप में पैदा होती है और फ़ैल जाती है ! फिर आप देखेंगे कि उसी तरह वह फैलती फैलती निश्चल हो कर आलोप हो जाती है ! वास्तव में अपनी सीमाओं को छूने तक उस का बल कम हो कर इतना रह जाता है कि वो अपनी उसी वास्तविक शक्ती से वापिस लौटता हमें दिखाई नहीं देता ! पर लौटता तो है ! वह लहर वापिस तो आती है ! अब समय और साधन कि विभन्नता के कारण उस का रूप बदल गया है और वह लहर ठीक उसी रूप में न लौट कर किसी और रूप में उसी तालाब की गर्त में कहीं समा जाती है ! बस यही माया है ! यही आध्यात्म है ! यही नियम दान के सम्बन्ध में है !
दान का प्रभाव हमारे जीवन में निश्चित ही होता है !अच्छा हो ..चाहे बुरा ! पर होता तो है उच्च के ग्रह का दान करते रहने से यह दान आप के लिए हानिकारक होगा !
बुरे ग्रह का दान ले लेने से आप के लिए धीमे जहर की तरह होगा !दान का अधिकार तो केवल और केवल पात्र को ही है। जो ग्रह जन्म कुंडली में उच्च राशि या अपनी स्वयं की राशि में स्थित हों, (स्वग्रही) उनसे संबंधित वस्तुओं का दान व्यक्ति को कभी भूलकर भी नहीं करना चाहिए।
सूर्य मेष राशि में होने पर उच्च तथा सिंह राशि में होने पर अपनी स्वराशि अका होता है अत:1/3/5/9/4 घर अमें हो
लाल या गुलाबी रंग के पदार्थों का दान न करें।
गुड़, आटा, गेहूं, अतांबा आदि किसी को न दें। नहीं तो लाभ की जगह हानी होनी निश्चित है
चंद्र वृष राशि में अउच्च तथा कर्क राशि में स्वगृही होता है। यदि आपकी जन्म कुंडली ऐसी स्थिति में हो अतो-1,2.4.6.8.9 घर में हो तो
दूध, चावल, चांदी, मोती एवं अन्य जलीय पदार्थों का दान कभी नहीं करें।हां कुंडली देखकर दांत दिए जा सकते हैं हां पहले घर में कुंडली देखकर दान किए जा सकते हैं
मंगल देव के बारे में कहा जाता है कि जितना मीठा बांटोंगे उतना ही अच्छा फल मिलेगा कुंडली में मंगल कहीं भी किसी भी भाव में हो आपको पूछने की जरूरत नहीं है मीठे का दान और पके हुए खाने का दान आप कभी भी कहीं भी किसी भी वक्त कर सकते हो यहां तक कि आप खून का दान भी कर सकते हो जिससे मंगल बहुत ही शुभ फल देता है बुध मिथुन राशि में तो स्वराशि तथा कन्या राशि में हो तो उच्च राशि का कहलाता है। यदि किसी जातक की जन्मपत्रिका में बुध शुभ फल देने वाली किसी स्थिति में है तो, उसे हरे रंग के पदार्थ और वस्तुओं का दान कभी नहीं करना चाहिए।
हरे रंग के वस्त्र
हरे रंग के वस्त्र, वस्तु और यहां तक कि हरे रंग के खाद्य पदार्थों का दान में ऐसे जातक के लिए निषेध है। इसके अलावा इस जातक को न तो घर में मछलियां पालनी चाहिए और न ही स्वयं कभी मछलियों को कभी दाना डालना चाहिए। नहीं तोलेने के देने पड़ जाएंगे आपका व्यापार चौपट हो जाएगा कारोबार नष्ट हो जाएगा आपकी बहन बुआ बेटी को सुख की बजाय दुख झेलने पड़ेंगे इसी तरह बृहस्पति अगर कुंडली में अच्छे घरों में अपने पक्के घर में उच घर में शुभ फलदायक है तो गुरु ग्रह के दान कभी मत करें ग्रह
बृहस्पति जब धनु या मीन राशि में हो तो स्वगृही तथा कर्क राशि में होने पर उच्चता को प्राप्त होता है। जिस जातक की कुण्डली में बृहस्पति ग्रह ऐसी स्थिति में हो तो, उसे पीले रंग के पदार्थ दान नहीं करना चाहिए। सोना, पीतल, केसर, धार्मिक साहित्य या वस्तुओं आदि का दान नहीं करना चाहिए। इन वस्तुओं का दान करने से समाज में सम्मान कम होता है कुछ लोग कुत्ते को लड्डू भी खिला खिला कर अपना कारोबार घन मान सम्मान खराव कर रहे हैइसी तरह उपाय या दान पुन किसी अच्छे एस्ट्रोलॉजर को पूछ कर ही करें है मित्रों.! बातें और भी हैं आप से शेयर करने के लिए !
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