शुक्रवार, 29 मार्च 2019

महाशक्तिशाली बगलामुखी यन्त्र /कवच

https://youtu.be/rLabGPgeiFUमहाशक्तिशाली बगलामुखी यन्त्र /कवच महाविद्याओं में से एक प्रमुख महाविद्या और शक्ति हैं ,जिन्हें ब्रह्मास्त्र विद्या या शक्ति भी कहा जाता है |यह परम तेजोमय शक्ति है जिनकी शक्ति का मूल सूत्र -प्राण सूत्र है |प्राण सूत्र ,प्रत्येक प्राणी में सुप्त अवस्था में होता है जो इनकी साधना से चैतन्य होता है ,इसकी चैतन्यता से समस्त षट्कर्म भी सिद्ध हो सकते है ,,बगलामुखी को सिद्ध विद्या भी कहा जाता है ,मूलतः यह स्तम्भन की देवी है पर समस्त षट्कर्म इनके द्वारा सिद्ध होते है और अंततः यह मोक्ष प्रदान करने में सक्षम है …

ताबीज आदि में एक बृहद उर्जा विज्ञानं काम करता है ,जो ब्रह्मांडीय उर्जा संरचना ,क्रिया ,तरंगों ,उनसे निर्मित भौतिक इकाइयों की उर्जा संरचना का विज्ञानं है ,,,इस उर्जा संरचना को ही तंत्र कहा जाता है |इसकी तकनीक प्रकृति की स्वाभाविक तकनीक है ,,,यही तकनीक तंत्र ,योग ,सिद्धि ,साधना में प्रयुक्त की जाती है ,-ताबीज में प्राणी के शारीर और प्रकृति की उर्जा संरचना ही कार्य करती है ,,इनका मुख्या आधार मानसिक शक्ति का केंद्रीकरण और भावना होता है ,,,,प्रकृति में उपस्थित वनस्पतियों और जन्तुओ में एक उर्जा परिपथ कार्य करता है ,मृत्यु के बाद भी इनमे तरंगे कार्य करती है ,,,,इनमे विभिन्न तरंगे स्वीकार की जाती है और निष्कासित की जाती है |जब किसी वास्तु या पदार्थ पर मानसिक शक्ति और भावना को केंद्रीकृत करके विशिष्ट क्रिया की जाती है तो उस पदार्थ से तरंगों का उत्सर्जन होने लगता है ,,,,जिस भावना से उनका प्रयोग जिसके लिए किया जाता है ,वह इच्छित स्थान पर वैसा कार्य करने लगता है,,ताबीज बनाने वाला जब अपने ईष्ट में सचमुच डूबता है तो वह अपने ईष्ट के अनुसार भाव को प्राप्त होता है ,,भाव गहन है तो मानसिक शक्ति एकाग्र होती है ,जिससे वह शक्तिशाली होती है ,यह शक्तिशाली हुई तो उसके उर्जा परिपथ का आंतरिक तंत्र शक्तिशाली होता है और शक्तिशाली तरंगे उत्सर्जित करता है |ऐसा व्यक्ति यदि किसी विशेष समय,ऋतू-मॉस में विशेष तरीके से ,विशेष पदार्थो को लेकर अपनी मानसिक शक्ति और मन्त्र से उसे सिद्ध करता है तो वह ताबीज धारक व्यक्ति को उस भाव की तरंगों से लिप्त कर देता है |यह समस्त क्रिया शारीर के उर्जा चक्र को प्रभावित करती है और तदनुसार व्यक्ति को उनका प्रभाव दिखाई देता है ,साथ ही इनका प्रभाव आस पास के वातावरण पर भी पड़ता है क्योकि तरंगों का उत्सर्जन आसपास भी प्रभावित करता है | बगलामुखी यन्त्र माता बगलामुखी का निवास माना जाता है जिसमे वह अपने अंग विद्याओ ,शक्तियों ,देवों के साथ निवास करती है ,अतः यन्त्र के साथ इन सबका जुड़ाव और सानिध्य प्राप्त होता है ,,यन्त्र के अनेक उपयोग है ,यह धातु अथवा भोजपत्र पर बना हो सकता है ,पूजन में धातु के यन्त्र का ही अधिकतर उपयोग होता है ,पर सिद्ध व्यक्ति से प्राप्त भोजपत्र पर निर्मित यन्त्र बेहद प्रभावकारी होता है ,,धारण हेतु भोजपत्र के यन्त्र को धातु के खोल में बंदकर उपयोग करते है ,,जब व्यक्ति स्वयं साधना करने में सक्षम न हो तो यन्त्र धारण मात्र से उसे समस्त लाभ प्राप्त हो सकते है ,| यन्त्र /कवच धारण से लाभ ---------------------------------.. १. बगलामुखी की कृपा से व्यक्ति की सार्वभौम उन्नति होती है |, २. शत्रु पराजित होते है ,सर्वत्र विजय मिलती है | ३. ,मुकदमो में विजय मिलती है ,वाद विवाद में सफलता मिलती है | ४. अधिकारी वर्ग की अनुकूलता प्राप्त होती है ,| ५. विरोधी की वाणी ,गति का स्तम्भन होता है |, ६. शत्रु की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है ,उसका स्वयं विनाश होने लगता है |,, ७. ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है ,|हर कार्य और स्थान पर सफलता बढ़ जाती है | ८. व्यक्ति के आभामंडल में परिवर्तन होने से लोग आकर्षित होते है |, ९. प्रभावशालिता बढ़ जाती है ,वायव्य बाधाओं से सुरक्षा होती है |, १०. तांत्रिक क्रियाओं के प्रभाव समाप्त हो जाते है ,सम्मान प्राप्त होता है ,| ११. ,परीक्षा ,प्रतियोगिता आदि में सफलता बढ़ जाती है |, १२. भूत-प्रेत-वायव्य बाधा की शक्ति क्षीण होती है क्योकि इसमें से निकलने वाली सकारात्मक तरंगे उनके नकारात्मक ऊर्जा का ह्रास करते हैं और उन्हें कष्ट होता है |, १३. मांगलिक और उग्र देवी होने से नकारात्मक शक्तियां इनसे दूर भागती हैं | १४. मांगलिक ,पारिवारिक कार्यों में आ रही रुकावट दूर होती है | १५. धारक पर से किसी भी तरह के नकारात्मक दोष दूर होते हैं | १६. शरीर में सकारात्मक ऊर्जा प्रवाह बढने से आत्मबल और कार्यशीलता में वृद्धि होती है | १७. आलस्य ,प्रमाद का ह्रास होता है |व्यक्ति की सोच में परिवतन आता है ,उत्साह में वृद्धि होती है | १८. किसी भी व्यक्ति के सामने जाने पर सामने वाला प्रभावित हो बात मानता है और उसका विरोध क्षीण होता है |, १९. घर -परिवार में स्थित नकारात्मक ऊर्जा की शक्ति क्षीण होती है | २०. नौकरी ,व्यवसाय ,कार्य में स्थायित्व प्राप्त होता है | यह समस्त प्रभाव यन्त्र धारण से भी प्राप्त होते है और साधना से भी ,साधना से व्यक्ति में स्वयं यह शक्ति उत्पन्न होती है |,यन्त्र धारण से यन्त्र के कारण यह उत्पन्न होता है |,यन्त्र में उसे बनाने वाले साधक का मानसिक बल ,उसकी शक्ति से अवतरित और प्रतिष्ठित भगवती की पारलौकिक शक्ति होती है जो वह सम्पूर्ण प्रभाव प्रदान करती है जो साधना में प्राप्त होती है |,अतः आज के समय में यह साधना अथवा यन्त्र धारण बेहद उपयोगी है |............................................................

सोमवार, 25 मार्च 2019

शुक्र ग्रह (Venus planet)

शुक्र ग्रह                                                  ग्रहों का असर जिस तरह प्रकृति पर दिखाई देता है ठीक उसी तरह मनुष्यों पर यह असर देखा जा सकता है। आपकी कुंडली में ग्रह स्थिति बेहतर होने से बेहतर फल प्राप्त होते हैं। वहीं ग्रह स्थिति अशुभ होने की दशा में अशुभ फल भी प्राप्त होते हैं। बलवान ग्रह स्थिति स्वस्थ सुंदर आकर्षण की स्थितियों की जन्मदाता बनती हैं तो निर्बल ग्रह स्थिति शोक संताप विपत्ति की प्रतीक बनती हैं। लोगों के मध्य में आकर्षित होने की कला के मुख्य कारक शुक्र ग्रह हैं। कहा जाता है कि शुक्र जिसके जन्मांश लग्नेश केंद्र में त्रिकोणगत हों वह आकर्षक प्रेम सौंदर्य का प्रतीक बन जाता है।

https://youtu.be/imrKJp6BDkkhttps://youtu.be/imrKJp6BDkkह शुक्र जी क्या है और बनाने व बिगाड़ने में माहिर शुक्र देव का पृथ्वी लोक में कहां तक प्रभाव हैशुक्र मुख्यतः स्त्रीग्रह, कामेच्छा, वीर्य, प्रेम वासना, रूप सौंदर्य, आकर्षण, धन संपत्ति, व्यवसाय आदि सांसारिक सुखों के कारक है। गीत संगीत, ग्रहस्थ जीवन का सुख, आभूषण, नृत्य, श्वेत और रेशमी वस्त्र, सुगंधित और सौंदर्य सामग्री, चांदी, हीरा, शेयर, रति एवं संभोग सुख, इंद्रिय सुख, सिनेमा, मनोरंजन आदि से संबंधी विलासी कार्य, शैया सुख, काम कला, कामसुख, कामशक्ति, विवाह एवं प्रेमिका सुख, होटल मदिरा सेवन और भोग विलास के कारक ग्रह शुक्र जी माने जाते हैं।वैभव का कारक होने की वजह से शुक्र  राजा की तरह बर्ताव करता है। जनरली इसका फेवरेट कलर पिंक, ब्लू आदि होते हैं जो अमूमन स्त्रियों के मनपसंद कलर माने जाते हैं। अगर हम वाहनादि की बात करें तो कुण्डली में शुक्र की मजबूती चौपाए वाहन का सुख उपलब्ध कराता है जबकि कमजोर शुक्र होने से जीवन में इनका अभाव बना रहता है।सांसारिक व भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए मनुष्य की कुण्डली का शुक्र मजबूत व शुभ प्रभाव युक्त होना ही चाहिए। इसके अलावा शुक्र की विविध भावों में मौजूदगी भी उसकी किस्मत को खास ढंग से प्रभावित करती है। सांसारिक सुखों से है। यह रास, रंग, भोग, ऐश्वर्य, आकर्षण तथा लगाव का कारक है। शुक्र दैत्यों के गुरु हैं और कार्य सिद्घि के लिए साम-दाम-दण्ड-भेद के प्रयोग से भी नहीं चूकते। सौन्दर्य में शुक्र की सहायता के बिना सफलता असंभव है।

 य, रंग-बिरंगे वस्त्र धारण करने का शौकीन होता है। आजकल फैशन से वशीभूत ऐसे वस्त्रों का प्रचलन स्त्री वर्ग में बढ़ रहा है जो शरीर को ढंकने में अपर्याप्त होते हैं। यह संभवत: शीत प्रधान शुक्र-चन्द्र के प्रभाव क्षेत्रों की देन है। महिला वर्ग का चर्म परिधान शुक्र-चन्द्र एवं मंगल की परतों से बना होता है अर्थात् कोमलता तेज, रक्तिमा एवं सौन्दर्य का सम्मिश्रण ही उसकी विशेष आकर्षण शक्ति होती है।शुक्र ग्रह से प्रभावित युवतियां ही प्रतियोगिता के अंतिम राउंड तक पहुंच पाती है। कुछ ग्रह ऐसे भी होते हैं जो कुछ दूर तक तो युवतियों का सहयोग करते हैं, लेकिन जैसे ही दूसरे प्रतिभागियों के ग्रह भारी पड़ते हैं, कमजोर ग्रह वाली युवतियां पिछड़ने लगती है। यह भी ज्ञात हुआ है कि प्रतियोगिताओं के निर्णायक भी शनि, मंगल, गुरु जैसे ग्रहों से प्रभावित होते हैं। सौन्दर्य शास्त्र का विधान पूरी तरह से ज्योतिषकर्म और चिकित्सकों के पेशे जैसा ही है। अगर किसी निर्णायक को सौन्दर्य ज्ञान नहीं हो तो वह निर्णय भी नहीं कर पाएगा। ऐसे में निर्णायक शुक्र से प्रभावित तो होते हैं लेकिन उन पर गुरु-चंद्रमा का भी प्रभाव होता है जो उन्हें विवेकवान बनाता है।

जन्म कुण्डली में तृतीय एवं एकादश भाव स्त्री का वक्षस्थल माना जाता है। गुरु-शुक्र इन भावों में बैठे हों या ये दोनों ग्रह इन्हें देख रहे हों, साथ में बली भी हों तो यह भाव सुन्दर, पुष्ट एवं आकर्षक होता है और आंतरिक सौन्दर्य परिधान सुशोभित करते हैं। पंचम एवं नवम भाव कटि प्रदेश से नीचे का होता है जो स्त्री को शनि गुरु प्रधान कृषता तथा स्थूलता सुशोभित करती है। अभिनय एवं संगीत में दक्षता प्रदान करने वाला ग्रह शुक्र ही है। शुक्र सौन्दर्य, प्रेम, कलात्मक अभिरुचि, नृत्य, संगीतकला एवं बुद्घि प्रदान करता है।

शुक्र यदि बली होकर नवम, दशम, एकादश भाव अथवा लग्न से संबंध करें तो जातक सौन्दर्य के क्षेत्र में धन-मान और यश प्राप्त करता है। लग्न जातक का रूप, रंग, स्वभाव एवं व्यक्तित्व को दर्शाता है। चोथाभाव  चन्द्रमा का जनता का प्रतिनिधित्व करता है। पंचम भाव बुद्घि, रुचि एवं मित्र बनाने की क्षमता को दर्शाता है। तुला राशि का स्वग्रही शुक्र मंच कलाकार या जनता के सम्मुख अपनी कला का प्रदर्शन कर धन एवं यश योग देता है। मीन राशि के शुक्र कलात्मक प्रतिभा को पुष्ट करता है

तृतीय भाव सृजनात्मक योग्यता का सूचक है। इसका बली होना एवं लग्न से संबंध सौन्दर्यता में निपुणता लाता है। कुशल अभिनय के लिए चंद्रमा एवं संवाद अदायगी के लि

शनिवार, 23 मार्च 2019

क्या हीरा और गोमेद एक साथ पहिना जा सकता है ?

क्या हीरा और गोमेद एक साथ पहिना जा सकता है ?

किसी भी व्यक्ति के जीवन में रंगों और तरंगों का सर्वाधिक महत्व होता है। किसी भी व्यक्ति के शरीर में 7 चक्र होतें हैं और ये सातों चक्र रंगों और तरंगों कों ग्रहण करते हैं ।

https://youtu.be/3Uvq4Hc6BTMhttps://youtu.be/3Uvq4Hc6BTM रत्न भी इन्ही रंगों और तरंगों के माध्यम से व्यक्ति पर अपना प्रभाव डालतें हैं । रत्न का प्रभाव मानसिक स्थितिमें तुरन्त बदलावं लाता हैं उसके बाद शरीर पर प्रभाव डालता हैं फिर उसके बाद व्यक्ति के काम पर असर डालता हैं ।रत्नो का लाभ थोड़ी देर से होता हैं लेकिन नुकसान तुरंत हो जाता हैं। अलग - अलग रत्नो के अलग -अलग साइड इफेक्ट होतें हैं। अगर आपको रत्न धारण करनें के बाद लगे की रत्न  नुकसान कर रहा हैं तो रत्न कों तुरन्त निकाल दें।हीरा शुक्र का रत्न कहा जाता है और गोमेद राहु का रत्न कहा जाता है,राहु और शुक्र की युति अभी मैने आपके लिये लिखीहै और आप लोगों ने उसे फ़ेसबुक के माध्यम से सराहा भी है। पहले हीरा को समझना बहुत जरूरी है.

शुक्र का रत्न हीरा है और शुक्र के अलग अलग भाव और अलग अलग राशि से हीरे का रूप बदल जाता है,हीरे की कटिंग और उसकी धातु का परिवर्तन हो जाता है। मेष राशि के लिये हीरा जीवन साथी का और धन के क्षेत्र का मालिक है इसलिये हीरा १४४० धारी का सफ़ेद रंग का स्वर्ण धातु में अकेला पहिना जा सकता है।

लेकिन मेष राशि का शुक्र अगर लगन पंचम नवम मे है तो अन्यथा अन्य भावो में इस राशि के लिये हीरा अपनी प्रकृति को बेलेन्स नही कर पायेगा,और बजाय फ़ायदा के नुकसान देना शुरु हो जायेगा। जैसे इस राशि में शुक्र का स्थान अष्टम मे वृश्चिक राशि मे है तो हीरा किसी भी प्रकार से पहिनने के बाद खो जायेगा या चुरा लिया जायेगा या किसी प्रकार की दुर्घटना को दे कर वह चला जायेगा। इस बात के लिये कोहिनूर हीरे के इतिहास को देखकर समझा जा सकता है। महाराजा रंजीत सिंह तुला राशि के थे और उनका शुक्र वृश्चिक राशि का होकर दोसरे भाव में था। इस भाव मे शुक्र के होने के कारण उन्ही के हाथो से कोहिनूर का उनके हाथ से ही नही बल्कि देश से भी जाना हो गया,वह किसी प्रकार से मिल नही सकता है। इस शुक्र के लिये जो हीरा काम करता है वह कत्थई रंग का होने पर और लम्बे ओवल सेव का ही काम करेगा उसकी कटिंग भी ६४ धारी की होनी जरूरी है। इसी प्रकार से अगर राहु शुक्र के साथ है और शुक्र राहु की युति अगर पंचम स्थान में है तो मेष राशि का व्यक्ति राहु शुक्र के दोष को दूर करने के लिये तथा जातक की आदत जो हाथ मे दिल लेकर घूमने वाली होती है उसमे फ़ायदा देने के लिये पहिना जा सकता है, अथवा नहीं गोमेद का रंग भी सफ़ेद आभा वाला ही होना चाहिये और गोमेद को भी हीरे की कटिंग में ही कटा होना चाहिये। इसी प्रकार से अन्य राशियों के लिये अलग अलग तरह से हीरे को पहिना जा सकता है। अधिक जानकारी के लिये आप  अपनी कुंडली दिखा कर हम से सलाह लें सकते हैं आचार्य राजेश

मंगलवार, 19 मार्च 2019

#होली पर राहु का उतारा करे

होली जैसा उत्सव पृथ्वी पर खोजने से न मिलेगा। रंग गुलाल है। आनंद उत्सव है। तल्लीनता का, मदहोशी का, मस्ती का, नृत्य का, नाच  का—बड़ा सतरंगी  उत्सव है। हंसी के फव्वारों का, उल्लास का, एक महोत्सव है। ऐसा नृत्य करता उत्सव पृथ्वी पर कहीं भी नहीं  

      मित्रों लोग एक दूसरे से आपसी रंजिस मान लेते है कोई किसी बात पर कोई किसी बात पर इन सब बातो से दूर जाने के लिये राहु को उतारना जरूरी होता है। संवत की समाप्ति पर हिन्दू त्यौहारों में दुश्मनी को समाप्त करने के लिये भी एक त्यौहार का प्रचलन आदि काल से भारत मे चल रहा है जिसे होली के नाम से जाना जाता है। होली का शाब्दिक अर्थ हो +ली यानी जो होना था वह हो चुका,और जो हो चुका है उसे साथ लेकर चलने से कोई फ़ायदा नही है इसी बात को ध्यान मे रखकर रंगो का त्यौहार होली मनाया जाता है।होली का प्रचलन कब हुआ किसी को पता नही है लेकिन आदि काल से होली के लिये कई प्रकार के वृतांत लिखे और प्रचलन मे चलते हुये देखे जाते है। होली का एक रूप भगवान शिव के बदन पर उपस्थित भभूत को भी माना जा सकता है। साथ ही भक्त प्रहलाद की बुआ होलिका के द्वारा उन्हे जलाने के लिये किये जाने वाले प्रयास से भी माना जा सकता है। राहु का उदाहरण देखने के बाद पता चलता है कि जो अपने प्रभाव से ग्रहण में ले ले उसे राहु की उपाधि से विभूषित किया जाता है। होलिका को वरदान था कि वह अपने आंचल से जिसे ढक लेगी वह भस्म हो जायेगा और वह खुद बच जायेगी,इस बात को भी तांत्रिक रूप से देखा जा सकता है। दूसरे प्रकार को भी माना जाता है कि भगवान शिव अपने शरीर को भस्म से ढक कर रखते है,यह भस्म और कुछ नही बल्कि उनकी पूर्व पत्नी सती के शरीर की भस्म ही है जो उन्होने अपने पिता दक्ष की यज्ञ मे पिता के द्वारा अपमान के कारण आहुति देकर शरीर को जला डाला था। इस बात मे भी सती की ह्रदय से चाहत ही उन्हे सती की भस्म से विभूषित होने के लिये मानी जा सकती है। रंगो के द्वारा लोग एक दूसरे को रंगते है तो इसका भी मतलब होता है 

https://youtu.be/5QlK8Oa_lmkhttps://youtu.be/5QlK8Oa_lmkकि लोग अपने अपने अनुसार लोगों को अपने अपने पसंद के रंगो से रंगने के देखकर खुश होते है। भले ही जिसके रंग लगाया जा रहा है वह उसे पसंद नही हो लेकिन दूसरा व्यक्ति अपने रंग से रंगने के बाद देखकर खुश होता है। राहु के इस रंगो के रूप को देखकर भी एक प्रकार से जो व्यक्ति होली के रंगो से रंगने के पहले होता है वह रंगने के बाद उसकी शक्ल मे परिवर्तन होना भी इसी राहु की स्थिति से ग्रहण मे आया हुआ माना जाता है। आज के युग मे जब रंगो की उपलब्धि आराम से हो जाती है पुराने जमाने मे कैमिकल रंगो की अनुपस्थिति से और पेड पौधो की उपस्थिति से प्राकृतिक रंगो से संयोजन से जो होली मनाई जाती थी वह एक प्रकार से उपयुक्त भी होती थी और लोगो के लिये उनके शरीर से कोई दिक्कत नही देने वाली होती थी बल्कि उन रंगो से मौसम के अनुसार त्वचा और मन को पसंद करने वाले रंगो के कारण शरीर और मन को खुशिया देने के लिये भी मानी जा सकती थी। जब शरीर पर मल मल कर रंगो को पोता जाता है तो शरीर से उन रंगो को छुटाने के लिये शरीर को साफ़ भी करना होता है जब शरीर को साफ़ किया जाता है तो सर्दी के मौसम मे रोम कूपों मे जमा मैल भी छूटता है और त्वचा की बीमारिया तथा हर्षोल्लास के कारण मन् का ग्रहण भी कुछ समय के लिये दूर होता है यह बदलाव व्यक्ति के लिये चिन्ता आदि से दूर रहने का मुख्य कारण भी माना जाता है।

सोमवार, 18 मार्च 2019

ग्रहों की शांति के सरल उपाय भाग 2

https://youtu.be/1En3SQUPk_Eग्रहो की  शांति के सरल उपाय 2(चन्द्रमा)

वैसे तो चन्द्र देव का स्वभाव स्वभाव बहुत शांत और ठंडा होता है और यही वजह है कि वो हम सभी को शीतलता प्रदान करते है किन्तु जब वे पीड़ित पाप ग्रह के प्रभाव में  आते है तो उसके परिणाम बहुत भयंकर और विनाशकारी होसकते है.चन्द्रमा को प्रभावित करने वाले ग्रह बुध गुरु शुक्र शनि राहु केतु मंगल है। बुध अगर चन्द्रमा को बुरा फ़ल देता है तो बुरे लोगों से सम्पर्क बढने लगते है और व्यवसाय आदि के लिये मानसिक कष्ट मिलने लगते है। चन्द्रमा स्त्री ग्रह है और भावुकता के लिये भी जाना जाता है। शिवजी ने चन्द्रमा को सिर पर धारण किया है इसलिये चन्द्रमा के लिये आराध्य देव शिवजी को ही माना जाता है। राहु केतु चन्द्रमा को ग्रहण देने वाले है जब भी राहु के साथ जन्म कुंडली में चन्द्रमा गोचर करता है किसी न किसी प्रकार की भ्रम वाली स्थिति पैदा हो जाती है और वही समय चिन्ता करने वाला समय माना जाता है। कुंडली के जिस भाव में राहु होता है उसी भाव की बाते दिमाग में तैरने लगती है,अक्सर इसी समय में बडी बडी अनहोनी होती देखी गयीं है। केतु के साथ गोचर करने पर एक तरह का नकारात्मक भाव दिमाग में आजाता है किसी भी साधन के लिये लम्बी सोच दिमाग में बन जाती है और जैसे ही चन्द्रमा केतु से दूर होता है वह सोच केवल ख्याली पुलाव की तरह से समाप्त हो जाती है। चन्द्रका का गोचर जैसे ही मंगल के साथ होता है दिमाग में तामसी विचार मंगल के स्थापित होने वाली राशि के अनुसार पनपने लगते है,अगर मंगल वृश्चिक राशि में है तो उस कारक को समाप्त करने के लडाई करने के झगडा करने के मारने के कत्ल करने के विचार दिमाग में आने लगते है,अगर मंगल धनु राशि में होता है तो न्याय कानून विदेश धर्म आदि के लिये उत्तेजना पनपने लगती है,अगर चन्द्रमा गुरु के साथ होता है तो सम्बन्धो के मामले में गुरु के स्थान वाले प्रभाव के अनुसार मिलने लगता है,बुध के साथ होने पर बुध जैसा और बुध के स्थान के अनुसार मिलता रहता है,जन्म के चन्द्रमा पर अगर राहु ग्रहण देने लगा है तो चन्द्रमा के बल को बढाना चाहिये और राहु के बल को समाप्त करना चाहिये। राहु अगर वायु राशि में है तो मन्त्रों के द्वारा जाप करने पर और अग्नि राशि में है तो हवन आदि के द्वारा भूमि राशि में है तो राहु के देवता सरस्वती की मूर्ति की पूजा करने के बाद जो मूर्ति पूजन में विश्वास नही रखते है उनके लिये शिक्षा स्थान या मिलकर इबादत करने वाले स्थान में राहु के रूप को नमन करना चाहिये,पानी वाली राशि में होने पर पानी के किनारे राहु का तर्पण करना चाहिये। केतु के द्वारा चन्द्रमा पर असर होने पर चन्द्रमा के बल को रत्न और वस्तुयों के द्वारा बढाकर केतु के बल को क्षीण करना चाहिये। चन्द्रमा की धातु चांदी है और रत्न मोती तथा चन्द्रमणि है। जडी बूटियों में चन्द्रमा के लिये करोंदा का कांटे वाला पेड माना जाता है।

नियम :-

1.   चंद्रमा पानी का कारक है। इसलिए कुएं, तालाब, नदी में या उसके आसपास गंदगी को न फैलाएं। घर में किसी भी स्थान पर पानी का जमाव न होने पाए ।

2.   अंडे, शराब, मांस, मछली, तम्बाकू, एवं धूम्रपान का सेवन न करें । नशा नहीं करें ।

3.   झूठ बोलने से परहेज करें, बेईमानी और लालच ना करें 

4.   दूध पीकर या कोई सफेद मिठाई खाकर किसी चौराहे पर नहीं जाये 

5.   चंद्रमा के बलहीन होने पर माता और माता पक्ष से सम्बंधित रिश्तेदारों की सेवा सेवा करें ।

6.   व्यक्ति को देर रात्रि तक नहीं जागना चाहिए। रात्रि के समय घूमने-फिरने तथा यात्रा से बचना चाहिए।

7.   चंद्रमा पानी का संबन्ध माता से होता है, इसलिए मां की सेवा करें और किसी भी प्रकार से उनका दिल ना दुखाएं। माता के पांव छूकर आशीर्वाद लें ।

8.   6ठे भाव का चंद्रमा दोष होने पर भूलकर भी दूध या पानी की छवील लगा कर  दान ना करें। 

9.   यदि कुंडली में चंद्रमा केतु के साथ विराजित हो तब जीविकोपार्जन में बाधा डालता है अतः ऐसे जातको को गणेश जी की पूजा करनी चाहिए।

10. सफेद और स्लेटी रंग चंद्रमा का प्रतीक होते हैं इसके अलावा चमकीला नीला, हरा और गुलाबी रंग, आसमानी रंग भी लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं। जिन लोगों का चंद्रमा कमजोर होता है उन्हें काले और लाल रंग से परहेज रखना चाहिए।

11. अपनी बेटी के पैसे और धन का उपयोग न करे

12चांदी का चोकोर टुकडा अपने पास रखें

13.   चारपाई के चारों पायों पर चांदी की कीले लगाएं

14   शरीर पर चांदी धारण करें , चांदी का कड़ा धारण करें

15  मकान की नीव में चांदी दबाएं

नोटचौथे भाव में स्थित चंद्रमा पर केवल चंद्रमा का ही पूर्णरूपेण प्रभाव होता है क्योंकि वह चौथे भाव और चौथी राशि दोनो का स्वामी होता है. यहां चन्द्रमा हर प्रकार से बहुत मजबूत और शक्तिशाली हो जाता है. चंद्रमा से संबन्धित वस्तुएं जातक के लिए बहुत फायदेमंद साबित होती हैं. मेहमानों को पानी की के स्थान पर दूध भेंट करें. मां या मां के जैसी स्त्रियों का पांव छूकर आशिर्वाद लें. चौथा भाव आमदनी की नदी है जो व्यय बढानें के लिए जारी रहेगी. दूसरे शब्दों में खर्चे आमदनी को बढाएंगे

2.   श्वेत तथा गोल मोती चांदी की अंगूठी में रोहिणी ,हस्त ,श्रवण नक्षत्रों में जड़वा कर सोमवार या पूर्णिमा तिथि में पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की अनामिका या कनिष्टिका अंगुली में धारण करें। धारण करने से पहले अच्छी तरह से प्राण प्रतिष्ठित शुद्ध व सिद्ध करके धारण करेंचंद्रमा की स्थिति को संतुलित करना हो या फिर उसकी ताकत को बढ़ाना हो, दोनों ही मामलों में रत्न उपयोगी सिद्ध होते हैं। मसलन अगर आपकी कुंडली में चंद्रमा कमजोर  है तो आपको कम से कम 11रत्ती का मोती धारण करना चाहिए।

रविवार, 17 मार्च 2019

ग्रहो की शांति के सरल उपाय

ग्रहो की शांति के सरल उपाय

ज्योतिषी मित्रों को अक्सर यह समस्या आती है कि कोई सरल उपाय जो सभी के लिये उपयोगी वह कैसे ग्रहों के प्रति बताया जाये ? 

https://youtu.be/QE0ad0pGkAUhttps://youtu.be/QE0ad0pGkAUक्सर जो समर्थ होते है वे तो अपने अनुसार ग्रहों की पीडा का निवारण कर लेते है या करवा लेते है लेकिन जो असमर्थ होते है वे एक तो परेशान होते है ऊपर से अगर उन्हे कोई रत्न या महंगी पूजा पाठ को बता दिया जाये तो कोढ में खाज जैसी हालत हो जाती है। ज्योतिष की मान्यता के अनुसार इसका क्षेत्र अथाह समुद्र की तरह से है,और मान्यताओं के अनुसार जो वैदिक जमाने से चली आ रही है अगर ग्रहों के उपाय किये जायें तो वे सचमुच में फ़लीभूत होते है। ज्योतिषी उपाय में रत्न एक अहम भूमिका रखते हैं

रत्न कब और कैसे धारण किये जायें

रत्न धारण करने के लिये पहले यह देख लेना चाहिये कि कौन सा ग्रह कुंडली में योगकारक और शुभ है किस क्रूर या पापी या त्रिक भाव के ग्रह से पीडित है,जो ग्रह पीडित है कुंडली में वो  ग्रह लग्न के हिसाब से योगकारक है शुभ है शुभ फलदाई है उसको बल देने के लिए उसके लिये तो रत्न धारण करना चाहिये और जो पीडा दे रहा है उसके लिये जाप और पाठ पूजा विधान तर्पण आदि से मुक्ति लेनी चाहिये। जैसे राहु सूर्य बुध कुंडली में लगन में है और चन्द्रमा ग्यारहवे भाव में विद्यमान है,केतु सप्तम में है,तो केतु सप्तम स्थान से ग्यारहवे चन्द्रमा को पीडित करेगा,लगन के सूर्य और बुध को भी पीडित करेगा,राहु भी सूर्य और बुध को पीडित करेगा सूर्य के आगे बुध वैसे ही नेस्तनाबूद हो जायेगा। इस युति में सूर्य बुध और चन्द्रमा के रत्नों को धारण करना चाहिये और राहु केतु के शांति के लिये पूजा पाठ और तर्पण आदि करना ठीक रहेगा। अगर मंगल किसी प्रकार से केतु को देख रहा है तो मंगल को शांत करने के उपाय करने चाहिये,अन्यथा मिलने वाले साधन समाप्त होते चले जायेंगे।

जाप करने के तरीके

जब मन में आया और जाप करना शुरु कर दिया या कभी जाप कर लिये और कभी नही किये तो फ़ल मिलना मुश्किल है,कुछ समय की शांति तो मानी जा सकती है लेकिन हमेशा के लिये शांति मिलनी असम्भव है।जिस ग्रह के जाप करने है उसके लिये पहले ग्रह के समय में संकल्प लेना जरूरी है उसके बाद नियमित रूप से निश्चित समय पर जाप करना चाहिये। भूमि तत्व वाले ग्रहों का जाप निश्चित स्थान पर करना होता है,वायु तत्व वाले ग्रहों का जाप किसी भी स्थान पर किये जा सकते है,अग्नि तत्व वाले जाप बिना आहुति के नही किये जा सकते तथा जल तत्व वाले ग्रहों के जाप जल स्थान के किनारे या पास में पानी रखकर ही किये जा सकते है,राहु केतु के जाप सुबह या शाम को ही किये जा सकते है।  इस प्रकार से राहु केतु शनि के लिये कितने ही जाप कर लिये जायें जब तक उनका जाप करने के साथ दान नही किया जायेगा वे शांत नही हो सकते है।         सूर्य

लाल किताब के अनुसार शुक्र और बुद्ध एक ही जगह हैं, तो वे सूर्य हैं। सूर्य गुरु के साथ है, तो चन्द्र है। सूर्य बुध के साथ है, तो मंगल नेक है। सूर्य शनि के साथ है, तो मंगल बद राहु होगा।सूर्य के लिये भगवान विष्णु की पूजा निश्चित की गयी है,जो मूर्ति पूजक नही है वे सुनहले अक्षरों में लिखे अपने शब्दों की पूजा मानसिक रूप से कर सकते है,जो लोग नास्तिक है वे लोगों को रोशनी का दान भी कर सकते है। रविवार को हरिवंश पुराण का पाठ या सत्यनारायण की कथा भी सूर्य पूजा के लिये श्रेष्ठ मानी गयी है,गायत्री मंत्र का जाप भी नियमित संकल्प करने के बाद ग्यारह माला या श्रद्धानुसार किया जा सकता है। सूर्य जब कुंडली में राहु केतु से ग्रसित हो तो मन्दिरों में दीपक का दान करना चाहिये,राजनीति में अपने कार्यों को दान के स्वरूप देकर लोगों का हित करना चाहिये,घर में मुख्य दरवाजे पर रोशनी का बन्दोबस्त करना चाहिये,घर के बीच का भाग खुला रखना चाहिये,दक्षिण पश्चिम के दरवाजे के घरों में नही रहना चाहिये। समर्थ है तो माणिक को स्वर्ण धातु में पहिनना चाहिये। अगर समर्थ नही है तो तेजपात जो मसाले में प्रयोग किया जाता है के सात पत्ते दोपहर के समय गुलाबी कपडे में तरीके से लपेट कर सिरहाने रखना चाहिये और एक पत्ते को गुलाबी कपडे में ही लपेट कर अपने दाहिने हाथ की भुजा में बांध लेना चाहिये। राहु के लिए तर्पण करना चाहिए,बिना राहु का तर्पण किये सूर्य का ग्रहण समाप्त नही हो सकता है,चाहे कितने ही रत्न और उपाय किये जायें। कारण जब सूर्य को राहु ग्रहण दे रहा होता है तो केतु भी अपनी युति को प्रदान कर रहा होता है। अगर सूर्य वायु राशि में है तो सूर्य मंत्र का जाप,अगर भूमि तत्व वाली राशि में है तो सूर्य से सम्बन्धित मूर्ति पूजा अगर अग्नि तत्व वाली राशि में है तो दीपदान रोशनी दान और हवन आदि से फ़ायदा होता है। अगर राहु बहुत ही बलवान है तो हवन आदि में भ्रम देगा और बजाय ज्वाला बनने के धुंआ ही प्रदान करेगा,इसलिये हवन करते समय धुंआ नही हो इसका भी ध्यान रखना चाहिये। जब सूर्य कमजोरहै तो  धारण करने की क्षमता है तो माणिक को सोने में पहिनना चाहिये। सूर्य जब बुरा फ़ल देता है तो योग्यता होने के बाद भी सरकारी क्षेत्र में नही जाने देता है,किसी भी सरकारी कारण से हानि देने लगता है,घर में पिता और पुत्र को कष्ट मिलने लगते है कारावास की सजा मिल जाती है आंखों में रोशनी कम हो जाती है,ह्रदय की बीमारी हो जाती है आत्मा कलुषित हो जाती है और लोगों के लिये थोथी राजनीति में मन लगने लगता है। पेट के अन्दर किसी न किसी प्रकार की गैस आदि बनने लगती है,शरीर में गर्मी बढने से बैचेनी होने लगती है रात को नींद भी नही आती है भोजन का पाचन सही नही हो पाता है हड्डियों वाली बीमारी हो जाती है दांतों में तकलीफ़ होने लगती है। सूर्य यंत्र  सिद्ध कीया हुआ पहन सकते हैं मित्रों कुछ उपाय ऐसे होते हैं जो यहा नहीं बताऐक जा सकते वह आपकी कुंडली के द्वारा ही देख कर आप को बताए जा सकते हैं

शुक्रवार, 15 मार्च 2019

(जन्मकुंडली )#कब तक होगी शादी, ?

https://youtu.be/5QlK8Oa_lmkमनुष्य का जन्म हो जाता है शिक्षा होजाती धन कमाने के रास्ते मिल जाते है लेकिन विवाह के बारे मे जीवन अनिश्चितता की तरफ़ ही रहता है। अगर कहा जाये कि धनी बनकर शादी जल्दी हो जाती है या सम्बन्ध अच्छा मिल जाता है तो गलत ही माना जा सकता है,खूब पढ लिख कर अगर सम्बन्ध अच्छा बन जाये पत्नी मन या पति मनचाहा मिल जाये तो भी गलत बात ही मानी जाती है,


शादी सम्बन्ध हमेशा संस्कारों से पूर्व के कृत पाप पुन्य से और समाज आदि के द्वारा समर्थन से ही सही मिलते है। यह कुंडली वृश्चिक लगन की है.मंगल इस कुण्डली मे लगनेश है और सप्तमेश शुक्र बुध के साथ तीसरे भाव मे विद्यमान है,शुक्र को कुंडली के अष्टम मे बैठा राहु मारक द्रिष्टि से देख रहा है। राहु ने चन्द्रमा को भी ग्रहण दिया हुया है और अपनी नवी द्रिष्टि से सूर्य को भी ग्रहण दिया है। सूर्य चन्द्र को ग्रहण देने के बाद राहु से वक्री गुरु का सम्बन्ध भी बन गया है।

वक्री गुरु ने भी सूर्य को असर दिया है। गुरु मार्गी होना ही सम्बन्ध का उत्तम रूप से फ़लदायी माना जाता है,गुरु के मार्गी होते ही जातक के अन्दर स्वार्थी भावना आजाती है वह सम्बन्ध को नफ़ा नुकसान के रूप मे सोचने लगता है,कारण वक्री गुरु का प्रभाव जीवन मे नर संतान नही देने अथवा देने के बाद भी नर संतान का सुख नही देने के लिये माना जाता है। शनि और मंगल के बारे मे भी अगर देखा जाये तो शनि भी कन्या राशि का होकर वक्री है और मंगल भी कन्या राशि मे वक्री हो गया है मंगल पौरुष का कारक है और शनि मेहनत करने वाले कामो का कारक है जातक के अन्दर जब पौरुष ही नही होगा तो वह मेहनत वाले कामो को नही कर पायेगा। इस प्रकार से जातक के अन्दर मेहनत वाले कामो को नही करने से दिमागी बुद्धि का विकास अधिक हो जायेगा और वह अपने को हर सीमा मे बुद्धिमान समझने की कोशिश करेगा जिस समाज या परिवार से वह शादी विवाह की बात को चलाने की कोशिश करेगा उसी समाज या परिवार से अति आधुनिकता मे होने के कारण या विदेशी परिवेश मे रहने या नियमो को अपनानेके कारण भी समाज या परिवार शादी विवाह के लिये हिचकिचायेगा।शुक्र के बारे मे भी कहा जाता है कि जब यह बुध के साथ मकर राशि का तीसरे भाव मे होता है तो जातक के पास शादी विवाह के प्रपोजल खूब आते है लगता भी है कि शादी हो जायेगी लेकिन बात किसी न किसी बात से टूट जाती है अक्सर सोच यह भी होती है कि पत्नी काम करने वाली हो और वह घर संभालने के साथ साथ कमाई भी करे। केतु जिन साधनो से परिवार को आगे बढाने की कोशिश करता है राहु उन्ही साधनो की पूर्ति से परिवार को छोटा करता चला जाता है। जातक के रिस्ते की दो बाते चलेंगी लेकिन एक बात इस साल मे अगर बैठ भी जाती है तो वह किसी न किसी बात से टूट भी सकती है इस कारण को दूर करने के लिये अपने को अपनी मर्यादा समाज और परिवार के बारे मे खुल कर बात करनी चाहिये,विदेशी नीति रीति या अधिक आधुनिकता है तो उसे त्यागने मे ही भलाई है.राहु के द्वारा सूर्य और चन्द्र को ग्रहण देने की नीति से दूर रहने के लिये जातक को अपने पूर्वजो के प्रति श्रद्धा रखकर महिने या साल मे उनके नाम से किसी न किसी धर्म स्थान पर उनकी मान्यता का ध्यान भी रखकर अपने जीवन के क्षेत्र को आगे बढाने का प्रयास करते रहना चाहिये.

गुरुवार, 14 मार्च 2019

सूर्य के सात घोड़े और क्या है उसका रहस्य?

सूर्य देव हर सुबह अपने रथ पर सवार होकर पूर्व दिशा से दिन का प्रकाश लेकर आते हैं। पुराणों में बताया गया है कि सूर्य देव के रथ के सारथी अरुण हैं। अरुण भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ के भाई हैं।

ऋग्वेद में कहा गया है कि 'सप्तयुज्जंति रथमेकचक्रमेको अश्वोवहति सप्तनामा' यानी सूर्य चक्र वाले रथ पर सवार होते हैं जिसे सात नामों वाले घोड़े खींचते हैं।

पुराणों में उल्लेख मिलता है कि सूर्य के रथ में जुते हुए घोड़े के नाम हैं 'गायत्री, वृहति, उष्णिक, जगती, त्रिष्टुप, अनुष्टुप और पंक्ति।' यह सात नाम सात छंद हैं। यानी सात छंत हैं जो अश्व रुप में सूर्य के रथ को खींचते हैं।सूर्य के रथ की खूबियों के विषय में शास्त्रों में बताया गया है कि इस रथ का विस्तार नौ हजार योजन है। इसका धुरा डेड़ करोड़ सात लाख योजन लम्बा है।

संवत्सर इसके पहिये हैं जिसमें छः ऋतुएं नेमी रुप से लगे हुए हैं। बारह महीने इसमें आरे के रुप में स्थित हैं।

शास्त्रों और पुराणों के मत से अलग वैज्ञानिक दृष्टि यह कहती है कि सूर्य हमारी पृथ्वी से बहुत दूर स्थित है। सूर्य में वहन करने वाली सात किरणें जो इंद्र धनुष में भी मौजूद होता है। इन्हीं किरणों को शास्त्रों में सूर्य के सात अश्व  कहा गया जैसे क्या आप जानते है । सूर्य देव को सात घोड़े जो हमारे शास्त्रों मे लिखा है ।कि सात घोड़े सूर्य देव के रथ को खींचते हैं।न्यूटन ने इसकी खोज की न्यूटन प्रिज्म द्वारा सूर्य के प्रकाश को सलेश्न किया प्रिज्म काँच से बना एक उपकरण होता है न्यूटन के मतानुसार जब सूर्य की सफ़ेद किरण को इसके अंदर से गुजारा गया तो वो सात रंगों में विभाजित हो गई और उसने देखा कि लाल रंग की किरन सबसे कम मुडती है बैंगनी सवसे अघिक मुडती है न्यूटन ने फिर से सात किरनो को उपकरन से निकाला तो किरने सफेद हो गई अतःजब सफेद प्रकाश से उत्पन्न सात रंग की किरने हुई तो इससे यह स्पष्ट होता है कि सूर्य ग्रहो का राजा है और जो सात .रंग की किरने है और जो बाकी ग्रहो की किरने से यानी सात रंग की किरने ओर वो उसकी सेना हुई पोप ने 1890 मे यह सिद्ब किया कि सूर्य के प्रकाश की कमी के कारण हडियो के रोग हो जाते हैं आपने देखा होगा कि बालकों को सर्दियों में यह रोग ज्यादा होते हैं और गर्मियों में यह रोग नामत्र के बराबर होते हैं हड्डियों में कैंलशिम की कमी के कारण यह रोग होता है आजकल हमरे घर भी अंधेरे वाले हो गए हैं जो उन लोगों को भी यह रोग हो जाते हैं जो ओरते पर्दे में रहती है हमारे शरीर के लिऐ जरुरी हैइसके दो तरीके हैं अपने शरीर को लेने के या भोजन के दॉरा या चमडी के दॉरा प्राकृतिक चिकित्सा में भी सूर्य की कितनों के द्वारा उपचार किया जाता है लःंदन के प्रसिद्ध डॉक्टर पॉल वरङन ने लिखा है अपने ऐक कृति में उन्होंने स्वामी विशुद्धनदा परमहंस जी का जिकृ दिया है कि वह सुरजी किरणों से बड़े-बड़े इलाज करते थे याहा तक की वह शुश्क वस्तु मैं भी उस में सुगंध पैदा कर देते है सूरजी किरनों के द्वारा और भी बहुत कुछ उस से कर सकते थे असल में जो सूर्य की किरणें हैं वह अलग-अलग ग्रहों की  किरणें है सात घोड़े साथ ग्रह है

रविवार, 10 मार्च 2019

लाल किताब के अनुसार उम्र का पैंसठवां साल

लाल किताब के अनुसार उम्र का पैंसठवां साल 

ग्यारह जमता गद्दी पर सम्मुख अष्टम आजाता,

घर दूसरा तीजे से अपने आप ही जुड जाता,

धर्म तीसरे जाकर बैठे कर्म धर्म को पनपाता,

चौथा अपने ही घर में रहता सम्मुख खर्चा दिखलाता,

गद्दी पंचम में लग जाती,बीमारी ग्यारह भाव भरे,

पंचम छुपजाता छ: में जाकर सप्तम बारहबाट करे,

लालकिताबी वर्षफ़ली का रूप अनौखा देखा है,

मानव जीवन की गाथा है किये कर्म का लेखा है॥ ‌

https://youtu.be/3qu9NkJ-vRshttps://youtu.be/3qu9NkJ-vRsर्थ:- पैंसठवें साल में ग्यारहवा भाव पहले भाव में आजाता है,मित्रमंडली से खूब छनने लगती है,जीवन के दूसरे पडाव की मित्रमंडली न तो कुछ लेने वाली होती है और न ही कुछ देने वाली होती है। छुपे रहस्यों को खोजने में सहायता भी करती है,और बात बात में अपमान भी करती है,जितनी भी दूर की बातें होती है सामने आकर खडी हो जाती है। ग्यारहवां भाव बडे भाई की गद्दी भी कहलाता है,जब पहले भाव में यह गद्दी लग जाती है तो अपने को बडे भाई होने का अहसास होने लगता है और जो भी कार्य छोटों के लिये मानसिक रूप से किये जाने होते है वे किये जाते है,पहली गद्दी पर ग्यारह के आसीन होते ही कुटुम्ब सामने आने लगता है,वह कुटुम्ब जो पिता परिवार से जुडा होता है,अन्य रिस्तेदारों की कोई मौका परस्ती काम नही आती है,दखल भी नही होता है। ग्यारह के गद्दी पर आसीन होते ही सातवां घर यानी पत्नी या पति सीधे बारह का रास्ता अपना लेते है,वे या तो यात्रा में रहते है या अपने को दुनिया से कूच करने का कारण पैदा कर लेते है। ग्यारह के गद्दी पर आते ही सातवां सीधे से ग्यारह से लेने की फ़िराक में रहने लगता है वह जो भी लेता है वह केवल लाभ के कारणों के लिये ही माना जाता है,और बारह के अन्दर जो सातवां घर विद्यमान है वह खर्चा भी किराये में बीमारी में रहन सहन में अपनी सन्तान के लिये बीमारी में सन्तान के कर्जा को चुकाने में पुत्र वधू वाले कारणों में खर्चा करने लगता है। ग्यारह के गद्दी पर आते ही आठवां सप्तम में आजाता है,जीवन साथी के कुटुम्ब में किसी प्रकार की मृत्यु या अपमान के बारे में राय देने या लेने की बात सामने आती है,जो भी अपमान जोखिम जीवन साथी के कुटुम्ब से पूर्व में मिला होता है सबके लिये चुकाने का समय सामने होता है,जीवन साथी का प्रभाव शमशानी प्रभाव सा हो जाता है।अगर सामने होता है तो बिच्छू जैसा बर्ताव करने का कारण भी मिलता है। ग्यारहवे के गद्दी पर जाने के बाद धर्म भाग्य का भाव तीसरे में जाकर बैठ जाता है। छोटे भाई बहिनो के पास में पूर्वजों से सम्बन्धित कार्य करने का कारण बनने लगता है,छोटी यात्रायें केवल धार्मिक स्थानों या न्याय वाले घरों में ही होती है। चौथा घर चौथे ही घर में विद्यमान होता है इसलिये एक बार पैदा होने वाले स्थान पर जरूर जाना पडता है। गद्दी पंचम में स्थापित हो जाती है इसलिये सन्तान के घर में निवास करना और सन्तान की सन्तान के प्रति बीमारी आदि से जूझने का समय भी मिलता है,सन्तान के जीवन साथी के प्रति दुश्मनी कर्जा बीमारी से छुटकारे का कारण भी सोचना पडता है। छठे घर में पंचम के बैठने से सन्तान को किये जाने वाले कार्यो में दिक्कत का सामना करना पडता है,अस्पताली कारण बनते रहते है। सन्तान की सन्तान को जीवन साथी के द्वारा आश्रय दिया जाना भी मिलता है। अष्टम का स्थान सप्तम में आजाने से जीवन साथी के प्रति नकारात्मक भाव ही मिलता है,जीवन साथी जीवन के गूढ कारण खोजने और अपमान देने जीवन को क्षति देने के कारणों के प्रति लगाव रखता है,जीवन साथी का किसी प्रकार से तंत्र मंत्र या शमशानी शक्तियों के प्रति लगाव का होना भी माना जाता है। अष्टम भाव में तीसरे घर के आजाने से जो भी अपमान और बीमारी तथा जोखिम वाले कारण होते है उनके अन्दर छोटे भाई बहिन ही छुटकारा दिलवाने के लिये गुप्त रूप से कार्य करते रहते है,अपने को प्रदर्शन के मामले में गुप्त रूप से रहकर ही समय को निकालना पडता है। दसवां घर धर्म के घर में आजाने से कार्यों को धर्म से सम्बन्धित भाग्य से सम्बन्धित कानून से विदेश से सम्बन्धित ही करने पडते है। बारहवें घर का दसवें घर में बैठने से जो भी कार्य किये जाते है उनके अन्दर यात्रा का होना जरूरी होता है खर्चा कार्यों की मुख्य श्रेणी में आजाता है,पिछले पांच साल से रहने वाले स्थान के प्रति खर्चा भी करना पडता है चाहे वह निर्माण के कार्यों के लिय हो या वाहन सम्बन्धी हो या सामाजिक रूप से अपनी प्रतिष्ठा को बनाने के लिये ही हो। ग्यारहवें भाव में छठा घर बैठ जाने से लाभ की जगह पर अस्पताली खर्चा करना अथवा किसी ब्याज का आना किराये के प्रति कोई बुराई ले लेना आदि भी माना जाता है।

शुक्रवार, 8 मार्च 2019

49 वां साल और क्या कहती है लालकिताब

49 वां साल और लालकिताब

पंचम चेता बारह से,साख मिलेगी ग्यारह से,

ग्यारह नवां विराजे जो,गद्दी सूनी होगी तो,

चौथा बिगड़े दोनों ओर,बजे खोपडा सन सन शोर,

छठे में आकर दूजा बैठा,नवा कर्म का मांगे लेखा,

सप्तम दूजा दे पहिचान,दसवा देता अपनी तान,

तीजा लाभ दिखाता है,अष्टम सप्तम जाता है,

पंचम खाता तीजा देता,दसवा कहता ग्यारह भाग,

छठा सोचता घर में रहकर,नवा दसम में गाये राग.

उनंचास की रीति कही है,लालाकिताबी बात सही है.


अर्थ:-

पांचवे भाव में बारहवा भाव आकर बैठ गया है,जो भी बढ़ोत्तरी होनी है वह नवे घर में जाकर बैठे ग्यारहवे घर से मिलेगी,जब ग्यारहवा घर नवे घर में बैठ जाए और वह खाली हो तो केवल सोच कर ही काम चलाना पड़ता है,कारण पांचवे के अन्दर बैठा बारहवा घर और उसके अन्दर बैठे ग्रह अपनी पूर्ती के लिए खर्चा तो मांगेगे,और जब नहीं मिलेगा तो दूसरा घर जो छठे घर में बैठ गया है,उससे और उसके अन्दर बैठे ग्रह से मांगना शुरू कर देंगे,उसी समय में अगर पहला घर अपने ही घर में विराजमान है यानी जहां पैदा हुए थे वही आकर रहना जरूरी है,अगर गद्दी सूनी है यानी पहला घर खाली है,साथ ही चौथा घर इस समय में आठवे भाव में चला जाता है,जिससे जद्दी मकान,पुराने जान पहिचान वाले जो उम्र की पच्चीसवी साल तक बहुत अच्छे जानकार थे केवल माँगने के लिए आने लगेंगे और अपने बारे में जानकारी करने के बाद कुछ न कुछ मानिसक अपमान देकर चले जायेंगे,उधर चौथे घर में छठा घर विराजमान हो गया,यानी जहां पैदा हुए थे वही आकर रहे तो मानसिक रूप से शारीरिक रूप से पहिचान के रूप से पारिवारिक अक्समात खर्चे के रूप से अधिक सोचने के कारण बीमार होना शरीर में चलने फिरने में दिक्कत का आना,रात की नींद और दिन का चैन समाप्त होना आदि शुरू हो जाएगा,कारण चौथा घर दोनों तरफ से बिगड़ जाता है,इस 49 वी साल में अच्छे का खोपडा बारहवे के पंचम में जाने से रहने के लिए यात्रा के लिए परिवार के लिए केवल खर्चा ही सामने आने लगता है,इस कारण से छठा घर जब चौथे में आजाये तो सोचने के कारण मन से बीमारी तो मानी ही जा सकती है,दूसरा घर जो धन को देने वाला है कुटुंब से सहायता करने वाला है वह जाकर जब छठे घर में बैठ जाए तो केवल कर्जा के बारे में सोचना होता है किये जाने वाले कामो के बदले में धन प्राप्त करने के लिए माना जाता है,बीमारी के लिए खर्चा करना और मानसिक शानित के लिए खर्चा करना माना जाता है,इसके साथ ही जो भाग्य का घर था वह इस उम्र में आकर दसवे घर में बैठ जाता है,यहाँ बैठते ही लाभ को प्राप्त करने के लिए धर्म को देखने लगते है जो भी जानकार और पहिचान वाले होते है वे भाग्य को प्राप्त करने के लिए लाभ देने वाले बन जाते है,कर्म का रूप दसवे में नवा बैठने से धर्म के रूप में बन जाता है,यहाँ गुरु भी अपनी चालाकी से अपने कार्य को करने के लिए अपनी शक्ति को देने लगता है और अपने गुरु धर्म को भूल कर व्यापारी के रूप में सामने आता है,सातवां घर जो सलाह देने के लिए मंत्री का रूप माना जाता है वह भी किसी भी सलाह को देने के लिए फीस की फरामायास करने लगता है,इधर आगे के कार्य को करने के लिए दसवा तीसरे में बैठ जाता है और लिखने बोलने प्रकाशित करने के लिए अपनी शक्ति को प्रकाशित तो करना चाहता है लेकिन जिस चौथे से वह कार्य के लिए सहायता को चाहता है वही बजाय सहायता देने के अस्पताली कारणों से और किये जाने वाले कामो की एवज में नौकरों और काम करने के साधनों के रूप में माँगने लगता है,जो कार्य करने का फल मिलता है वह इसी प्रकार के कारणों में खर्च हो जाता है,देखने के लिए तो तीसरा घर लाभ के घर में जाकर बैठ गया है और जो भी जान पहिचान के लोग और कुटुंब के लोग है समझते है कि बहुत धन आ रहा है और खूब लाभ का कारण बन रहा है लेकिन नवा जो दसवे में जाकर बैठा है वह केवल कहता है देने के लिए कभी कभी के अलावा अपने को असमर्थ बता देता है,जो गुप्त रूप से जानकारी होती है और जो भी जीवन साथी या खुद के जोखिम से काम करने के लिए पहले से बचा कर रखा गया होता है वह कार्य के रूप में कार्य स्थान के रूप में कार्य स्थान पर गुप्त वस्तुओं की खरीद बेच से किये जाने वाले कार्यों के रूप में जाना जाता है,जो कुछ भी कहने से प्रकाशित करने से बताने से और दूसरे की आफत को दूर करने से मिलता है वह परिवार के बाहर रहने से यानी पिछले समय में रहने वाले स्थान के लिए चला जाता है,परिवार और संतान के मामले में केवल खर्चे दिखाई देते है और परिवार के लिए एक ही रूप में देखना पड़ता है कि वह अपने अपने प्रदर्शन से केवल माँगने के लिए माना जाता है,जब भी कोई काम करने के लिए सोचा जाता है या राय माँगी जाती है तो नवे भाव में बैठे ग्यारहवे की तरफ इशारा कर दिया जाता है कि वह ही सहायता करेगा,नवे में ग्यारहवे के होने से इशारा दोस्तों और पहले के कमाए गए धन  तथा मूल्यों से माना जाता है.छठा घर जब रहने वाले स्थान में और मन में होता है तो वह कार्य और कार्य के स्थान के मामले में सोचता है और जब कार्य के लिए कोई कारण सोचता है तो दसवा सामने होने से और दसवे में विराजमान नवा होने से वह अपने राग को कहना शुरू कर देता है कि धर्म को प्रयोग करने के बाद कमाना शुरू कर दो,यह लालाकिताबी कथन उनंचासवी साल के लिए कहा गया है.

गुरुवार, 7 मार्च 2019

क्या रत्न(Gemstone) धारण करना ठीक ?

https://youtu.be/2GqMEVBeo_Yक्या रत्न(Gemstone) धारण करना ठीक ?
हर मनुष्य की जन्मपत्री में ग्रहों की कमजोर और बलवान दशा के अनुसार ही मनुष्य के भाग्य में परिवर्तन आता रहता है। अशुभ ग्रहों को शुभ बनाना या शुभ ग्रहों को और 


अधिक शुभ बनाने की मनुष्य की सर्वदा चेष्टा रही है जिसके लिए वो अनेक उपाय करता है जैसे मंत्र जाप, दान, औषधि स्नान, रत्न धारण, धातु एवं यंत्र धारण, देव दर्शन आदि। रत्न धारण एक महत्वपूर्ण एवं असरदार उपाय है।अक्सर देखा जाता है कि किसी भी कारण के निवारण के लिये ज्योतिषी द्वारा रत्न को धारण करने लिये सलाह दी जाती है,रत्न को धारण करने के बाद भी जब जातक को फ़ायदा नही मिलता है तो ज्योतिष और ज्योतिषी के लिये जातक के मन में आस्था हटने लगती है। रत्न को भी धारण किया और फ़ायदा भी नही हुया तो यह रत्न का जंजाल क्या है ? अक्सर इसी बात पर लोगों के दिमाग में रत्नो के प्रति आपाधापी का समय मान लिया जाता है। इस बात की पुष्टि के लिये जातक अपने रत्न को लेकर विभिन्न रत्न व्यवसाइयों के पास भागता है,कोई उसे सही बताता है कोई गलत बताता है,गलत बताने का एक कारण और भी माना जाता है कि हर रत्न व्यवसायी अपने को उच्च कोटि का व्यवसायी मानता है और अपने माल के अलावा किसी के भी माल को खरा बताने में संकोच करता है। इस बात के पीछे जिसने रत्न जातक को दिया है वह और रत्न दोनो ही जातक के दिमाग में गलतफ़हमी डाल देते है,जातक या तो वह रत्न वापस करने के लिये व्यवसायी के पास जाता है या उसे अपने पास रख कर केवल यही मान कर बैठ जाता है कि उसे ठगा गया है।
रत्न क्या है ?
रत्न को समझने के लिये अगर कोई कितना ही बडा पारखी है कभी समझ नही सकता है,कारण कोई भी रत्न जमीन से निकला केवल जमीन का ही टुकडा है। लाल हरा पीला नीला काला जैसा भी रंग है वह जमीन का दिया हुआ है। जिस वक्त में वह रत्न जमीन से निकाला गया है वह किसी को तो फ़ायदा देने वाले और किसी को नुकसान देने के लिये ही माना जायेगा। रत्न को काट छांट कर अलग अलग आकार में बनाना और अलग अलग रूप से धारण करने के योग्य बनाना भी रत्न के आकार को सजाना संवारना होता है।
कैसे दी जाती है रत्न को शक्ति ?
रत्न को जमीन से निकालना ही रत्न का गर्भ धारण है। रत्न का आकार प्रदान करना उसे अलग अलग रूप मे बनाना रत्न का प्रकृति के अनुसार गर्भकाल में उसी प्रकार से आकार प्रदान करना है जैसे किसी बच्चे का गर्भकाल में आकार प्रकार बनता है। रत्न जब बनकर तैयार हो जाता है पूरी तरह से परखने के बाद जौहरी के पास आजाता है तो वह एक जन्मे हुये बच्चे की तरह से माना जाता है। जब किसी को रत्न की जरूरत पडती है तो वह उस रत्न को अपने पास ले जाता है,और उसे जिस कारण के लिये जरूरत पडती है तो वह उसी कारण के अनुसार अभिमन्त्रित करता है। अभिमन्त्रित करने का अभिप्राय उसी प्रकार से जैसे किसी बच्चे को शिक्षा दी जाती है,उसे बुद्धिबल से पूर्ण बनाया जाता है। अक्सर लोग यह कहकर रत्न जातक को पकडा देते है कि इसे लेजाकर अमुक मंत्र को पढ कर पहिन लेना,जातक ले जाता है बताये गये मंत्र को पढ कर रत्न को धारण कर लेता है,लेकिन जब काम नही करता है तो दोष रत्न को दिया जाता है,और अगर रत्न धारण करने के समय के आसपास से दिन सुधरने लग गये और फ़ायदा होने लगा तो रत्न देने वाले और रत्न दोनो के प्रति जातक के दिमाग में आस्था जगना स्वभाविक है। अक्सर यह भी देखा जाता है कि रत्न को बेचने वाले अपने अपने प्रकार को बहुत ही बढा चढाकर बोलते है और बेचने के लिये कितने ही तरह के ठगी वाले कारण पैदा करते है,लेकिन बिना शक्ति की पूर्णता को प्राप्त किये रत्न कार्य करने में हमेशा असमर्थ होता है। रत्न को प्रभावी बनाने के लिये ग्रह के अनुसार अभिषेख किया जाता है,रत्न को ग्रह मानकर उसे ग्रह की प्रकृति के अनुसार ही सम्बन्धित स्थान पर स्थापित किया जाता है,ग्रह के अनुसार ही समय पर उस रत्न को स्थापित किया जाता है,ग्रह के अनुरूप ही उसे नियत समय पर शक्ति देने का कार्य मन्त्रित विधि से किया जाता है। यह मन्त्रित विधि कोई एक दिन की या एक अल्प समय की नही होती है,अलग अलग जातक के लिये अलग अलग प्रकार के ग्रह के खराब समय के दिनो अथवा वर्षों के अथवा आजीवन के लिये अभिमन्त्रित करना पडता है,यह भी नही कि एक साथ कई रत्नो को रख लिया और अभिमन्त्रित कर दिया,कारण जिस जातक के लिये रत्न को अभिमन्त्रित करना है उसके अनुसार ही उस रत्न को सन्कल्पित करना होता है,जब तक रत्न को सन्कल्पित नही किया गया है उसे किसी प्रकार से प्रयोग में नही लाया जा सकता है। जातक की कुंडली के अनुसार ग्रह की दशा को देखा जाता है,और जिस ग्रह की दशा चल रही है,या कोई खराब ग्रह जातक के लगनेश पर गोचर कर रहा है,तो दशा के समय के अनुसार वह दशा खराब ग्रह की है,या त्रिक भाव के कारक की दशा है,तो उसके लिये किस समय में किस भाव मे वह दशा वाला ग्रह अधिक कुप्रभाव देगा उस समय के लिये उस रत्न को उतने ही समय के लिये अभिमन्त्रित करना जरूरी होता है। जैसे शनि की दशा मे यह जरूरी नही है कि शनि खराब ही फ़ल देगा वह भाव के अनुसार अपना फ़ल देने के लिये माना जायेगा। अलग अलग समय के लिये अलग अलग श्रेणी में रत्न को मंत्रों से अभिमन्त्रित करना पडता है,जैसे शनि की दशा मे यह जरूरी नही है कि शनि खराब ही फ़ल देगा वह भाव के अनुसार अपना फ़ल देने के लिये माना जायेगा। अलग अलग समय के लिये अलग अलग श्रेणी में रत्न को मंत्रों से अभिमन्त्रित करना पडता है,जैसे शनि रत्न नीलम को तभी तक प्रभावी माना जाता है जब तक शनि कारक ग्रह या कारक भाव पर अपना असर दे रहा होता है। जैसे ही शनि की रश्मियां उस कारक ग्रह या कारक भाव से दूर होती है,वही नीलम बजाय फ़ायदा के नुकसान देने लगता है। इसके अलावा भी जैसे शनि बुद्धि के कारक ग्रह बुद्ध पर अपना असर दे रहा है तो एक उपाय बुध की शक्ति को बढाने से माना जाता है दूसरा उपाय शनि की शक्ति को घटाने से माना जाता है,शनि की शक्ति नीलम के द्वारा तभी घटाई जा सकती है जब उसे सम्बन्धित समय के लिये अभिमन्त्रित किया गया है,बिना अभिमन्त्रित नीलम उसी प्रकार से माना जायेगा जैसे किसी पागल को अच्छे अच्छे कपडे आभूषण पहिना कर खडा कर दिया जाये। रत्नों के मामले में आज भी देखा जाता है कि यह एक झूठ का बाजार बन कर रह गया है,जोहरी रत्न को काट कर उसे विभिन्न आकार देकर,केवल बेचने से अपने को सामने रखते है,फ़ायदा देना या नुक्सान देना उनके द्वारा नही देखा जाता है। रत्न को अभिमंत्रित करवाने के लिये नाम और गोत्र के अनुसार ही अभिमंत्रित करवाना जरूरी होता है,रत्न को कितने समय के लिये पहिना जाना है उसी समय के अनुसार रत्न को अभिमंत्रित करना पडता है,जैसे शनि का समय ढाई साल के लिये एक भाव पर और दस महिने सम्बन्धित ग्रह पर गोचर करने का होता है,उस समय के लिये ही नीलम को अभिमन्त्रित करना पडता है,अभिमत्रित करने का तात्पर्य रत्न के अन्दर प्राण प्रतिष्ठा करने से होता है। जैसे नीलम को ढाई साल के लिये अभिमन्त्रित करना है तो उसे पहले शनि के नक्षत्र में खरीदना पडता है,फ़िर उसे भावानुसार वस्तु के अन्दर स्थापित करना होता है,या ग्रह के अनुरूप वस्तु पर स्थापित करना होता है,फ़िर एक साल के लिये तीन लाख मंत्र के जाप सन्कल्पित व्यक्ति के लिये शनि मंत्र से करने पडते है,इस प्रकार से ढाई साल के लिये साढे सात लाख मंत्रों का जाप करने के बाद जातक को पहिनने के लिये कारक भाव और कारक ग्रह के अनुसार धातु में पहिनने के लिये राय दी जाती है,इस प्रकार से पहिने जाने वाले रत्न का प्रभाव जीवन जरूर पडता है। इस प्रकार से अभिमंत्रित रत्न की कीमत साधारण रत्न की कीमत से कई सौ गुना बढ जाती है,लेकिन उस एक बात और भी ध्यान रखने योग्य है कि किसी अन्य व्यक्ति के लिये सन्कल्पित मन्त्र से अभिमन्त्रित रत्न किसी दूसरे को पहिनाने से बडी बडी दुर्घटनाये भी होती देखी गयी है। रत्न को पहिनने पर अगर अचानक कोई अनहोनी होती है तो यह अक्समात नही मानना चाहिये कि वह अनहोनी खराब थी,जैसे किसी नीलम को पहिनते ही किसी बहुत पहले से जानकार व्यक्ति से लडाई हो जाती है तो यह मान लेना चाहिये कि वह व्यक्ति किसी प्रकार से बडा अहित करने वाला था इस कारण से उससे लडाई हो गयी है,अथवा कोई वस्तु खत्म हो जाती है तो वह वस्तु किसी प्रकार से जानजोखिम में देने वाली भी हो सकती थी,अक्समात रत्न जो अभिमंत्रित है से विश्वास नही उठा लेना चाहिये। मित्रोंकौन सा रत्न कब पहना जाए इसके लिए कुंडली का सूक्ष्म निरीक्षण जरूरी होता है। लग्न कुंडली, नवमांश, ग्रहों का बलाबल, दशा-महादशाएँ आदि सभी का अध्ययन करने के बाद ही रत्न पहनें। आचार्य राजेश

बुधवार, 6 मार्च 2019

बुध-गुरु की युति | Mercury Jupiter Conjunctionhttps://youtu.be/3qu9NkJ-vRs

https://youtu.be/3qu9NkJ-vRsबुध-गुरु की युति | Mercury Jupiter Conjunction  मित्रों आज वात करते हैं वुघ ओर गुरु एवं एक साथ एक ही भाव मैं हो या युति में है मित्रों कोई भी दो ग्रह का मेल शुभ भी हो सकता है और अशुभ भी हो सकता है यह आपकी कुंडली में देख कर ही फल कथन किया जाता है लालकिताब में गुरु को सूर्य से भी अधिक महत्व दिया गया है,

सूर्य सौर मंडल के ग्रहों का राजा है,तो गुरु को देवताऒ का का गुरु कहा गया हैब्रहस्पति को राजगुरु तथा संयम बोला गया है

भारतीय परम्परा के शासक भी गुरु के शासन में रहा करते थे,ज्योतिष के अनुसार ग्रहों को कालपुरुष के नौ अंगों का रूप बताया गया है,इस अंग विभाजन में गुरु को शरीर की गर्दन का प्रतिनिधि माना जाता है,कालपुरुष ने गर्दन को गुरु के रूप में अपने हाथ में पकड रखा हो,फ़िर अन्य ग्रहों की बिसात ही क्या रह जाती है,लालकिताब ने गुरु को आकाश का रूप दिया है,जिसका कोई आदि और अन्त नही है,गुरु ही भौतिक और आध्यात्मिक जगत का विकास करता है,उसके ऊपर अपनी निगरानी रखता है,गुरु से ज्ञान का विचार कहा गया है और बुध को मंत्री, दुनियावी हिसाब-किताब बोला गया है बुध से बुद्धि का. ज्ञान और बुद्धि दोनों अलग हैं और एक दूसरे के पूरक भी परन्तु ज्ञान श्रेष्ठ है क्योंकि ज्ञान बुद्धि को सन्मार्ग दिखाता है. ज्ञान बुद्धि को पोषित करता है. ज्ञान हो तो व्यक्ति बुद्धि से ऊपर उठ जाता है और इसके लिए गुरु का पत्रिका में बलवान होना आवश्यक है. बलवान गुरु बुध के दोषों को ढकने की क्षमता रखता है परन्तु गुरु वास्तव में बलवान होना चाहिए.सोचने वाली बात यह है कि बृहस्पति तो बुध को शत्रु समझता है परन्तु बुध बृहस्पति को सम (न मित्र न शत्रु) समझता है. बुध को ज्ञान से कोई परहेज नहीं. बुध का तो एक ही शत्रु है - चन्द्रमा. उसके अतिरिक्त उसको किसी से शत्रुता नहीं. भावनाओं में बहना बुध को नहीं भाता अपितु बुद्धि से प्रत्येक विषय में ऊहापोह करना अच्छा लगता है.  जो तर्क की कसौटी पर खरा उतरे वह सत्य ऐसा प्रायः इन लोगों का मानना होता है. यूँ ही समर्पण कर देना इन्हें नहीं आता.

जो लोग बात बात में कारण खोजते हैं प्रायः ऐसे लोग बुध प्रभावित होते हैं. ईश्वर को तो समर्पण चाहिए, संदेह नहीं. जहाँ संशय हो वहाँ ईश्वर का क्या काम. इसलिए बुध को बृहस्पति शत्रु समझता है. बुध यदि अशुभ प्रभाव में हो तो बुद्धि संशय युक्त हो जाती है और ऐसे व्यक्ति की खोज (संशय अथवा भ्रम) कभी समाप्त ही नहीं होती - यदि पत्रिका में गुरु बली न हो तो.ज्योतिष के अनुसार गुरु को धनु और मीन राशि का स्वामी बताया है,लालकिताब के अनुसार गुरु को नवें और बारहवें भाव का स्वामी बताया गया है,लालकिताब के अनुसार ही गुरु को भचक्र की बारह राशियों के अनुसार बारहवें भाव को राहु और गुरु की साझी गद्दी बताया गया है,बारहवे भाव में गुरु और राहु अगर टकराते है,तो राहु गुरु पर भारी पडता है,और गुरु के साथ राहु के भारी पडने के कारण जो गुर संसार को ज्ञान बांटने वाला है,वह एक साधारण सा मनुष्य बन कर अपना जीवन चलाता है,गुरु के भी मित्र और शत्रु होते है,गुरु जो आध्यात्मिक है ,उसे भौतिक कारणों को ही गौढ मानने वाले लोग जो शुक्र के अनुयायी होते है,उनसे नही पटती है,और अक्सर आध्यात्मिक व्यक्ति की भौतिक कारणों को ही गौढ मानने वाले लोगों के साथ नही बनती है,इसी को शत्रुता कहते है,बुध जो वाणी का राजा है,और अपने भाव को वाणी के द्वारा ही प्रकट करने की योग्यता रखता है,की आध्यात्मिक सिफ़्त रखने वाले गुरु से नही पटती है,लेकिन वही बुध अगर किसी प्रकार से गुरु के मुंह पर विराजमान होता है,जो गुरु के मुखारबिन्दु से आध्यात्मिक बातों का निकलना चालू हो जाता है,यह बात बुध के कुन्डली के दूसरे भाव में विराजमान होने पर ही मिलती है,बुध जब पंचम में होता है,तो भी गुरु के घर पर जाकर शिक्षात्मक बातों को प्रसारित करने में अपना मानस रखता है,और गुरु का मित्र बन जाता है,नवें भाव में गुरु का मित्र केवल आध्यात्मिक बातों को प्रसारित करने के लिये भौतिक साधनो के द्वारा या गाने बजाने के साधनो के द्वारा कीर्तन भजन और अन्य साधनो मे अपनी गति गुरु को देकर गुरु का सहायक बन जाता है,ग्यारहवें भाव में जाकर वह गुरु के प्रति वफ़ादार दोस्त की भूमिका अदा करता है,इस लिये वह हर तरह से गुरु का शत्रु नही रहता है,जबकि वैदिक ज्योतिष में गुरु का शत्रु ही बुध को माना गया है.


गीता में भगवान कृष्ण ने कहा भी है, "नायं लोकोSस्ति न परो सुखं संशयात्मनः". अर्थात् संशयग्रस्त व्यक्ति के लिए न तो इस जन्म (लोक) में और न ही परलोक में कोई सुख है. ध्यान देने वाली बात यह है कि बृहस्पति को सुख का कारक भी माना जाता है. उस सुख का जो भौतिक के अतिरिक्त है. भौतिक सुखों का कारक तो शुक्र है.


बुद्धि यदि भ्रमित हो जाये तो अच्छा नहीं इसलिए राहु के साथ बुध की स्थिति को बहुत से ज्योतिषी अच्छा नहीं समझते. साथ ही ज्ञान शुद्ध होना चाहिए. ज्ञान का भ्रष्ट होना अच्छा नहीं इसलिए राहु के साथ गुरु की स्थिति का विचार भी सोच समझकर करने को कहा जाता है.


अचला ह तो वह तो यही है कि बुध और गुरु दोनों ही पत्रिका में बलवान तथा शुभ स्थिति में हों. ऐसा व्यक्ति कैसी भी परिस्थिति में अपने ज्ञान और विवेक से सफलता का मार्ग ढूँढ ही निकलता है. पत्रिका में बुध तो बलवान हो परन्तु गुरु अशुभ प्रभाव में हो अथवा बलहीन हो तो ऐसा व्यक्ति, ज्ञान हो न हो, चतुर बहुत होता है. उन्हें दूसरों को चुप कराना खूब आता है. बहस में उनसे जीतना कठिन होता है परन्तु भीतर तो खोखलापन रहता ही है.

नवग्रहों में बुध से गुरु बली है. गुरु से बली केवल सूर्य और चन्द्र हैं. यदि सूर्य, चन्द्र अथवा दोनों पत्रिका में महाबली हों तो व्यक्ति अपना उचित अनुचित खूब समझता है. उसके आत्मबल अथवा मनोबल से बुद्धि उसके वश में रहती है. अपने लिए सही मार्ग क्या है यह जानने के लिए उसे किसी पुस्तक की अथवा बाहरी गुरु की आवश्यकता नहीं होती. उसे भीतर ही गुरु मिल जाता है अथवा प्रकृति ही उसे ज्ञान का मार्ग/साधन, सही गुरु उपलब्ध कराती चलती है.

रविवार, 3 मार्च 2019

ग्रहों के चलते फिरते रुप

https://youtu.be/rLabGPgeiFUज्योतिष अर्थात ज्योति + इश अर्थात इश की ज्योति अर्थात इश के नेत्र जिनसे इश इस श्रृष्टि का संचार व नियंत्रण करते है | ये आज का अध्युनिक विज्ञानं भी मानता है के हर ग्रह की हर जीव की हर प्राणी की हर अणु की (atom) अपनी एक निश्चित नकारात्मक व सकारात्मक उर्जा होती है | अगर हम उस उर्जा का सही संतुलन अपने जीवन में बना ले तो वही ईश्वर की प्राप्ति का सच्चा साधन है  यहाँ हम चर्चा करेंगे ग्रहों  के चलते फिरते रुप की कई बार दिमाग मे धारणा आती हैकि ज्योतिषी अपने द्वारा जब देखो तब ग्रहों के बारे बताते रहते है जब देखो तब सूर्य खराब है चन्द्रमा खराब है मंगल खराब है आदि बातो से दिमाग को बहलाने की कोशिश करते है सूर्य तो सभी के लिये उदय होता है चन्द्रमा भी सभी के जैसा ही दिखाई देता है फ़िर यह ग्रह केवल एक आदमी को ही क्यों परेशान करते है.वास्तव मे एक साधारण आदमी की इससे अधिक सोच हो भी क्या सकती है। कई बार तो लोग झल्लाकर कह ही उठते है कि आखिर मे आचार्य जी यह शनि हमे ही क्यों परेशान कर रहा है ऐसा कोई रास्ता नही है कि इस शनि को हमसे दूर कर दिया जाये जिससे हम बिना शनि के कम से कम आराम से तो रह सकते है। लोगों की बात सुनकर काफ़ी गुस्सा भी आता है और हंसी भी आती है कि पहले तो शनि को दूर किया ही नही जा सकता है और शनि अगर साथ मे नही है तो आदमी अपने हाथ पैर हिलाना भी भूल जायेगा,उसे शेर मारे या नही मारे उसे चीटियां ही चुन जायेंगी। सही बात है बिना समझे ग्रह को हर कोई नही समझ सकता है।आकाश मे ग्रह दिखाई देते है,वह पिण्ड ग्रह माने जाते है सूर्य दिखाई देता है भले ही वह कम या अधिक दिखाई देता हो लेकिन दिखाई जरूर देता है इसलिये सूर्य को सूर्य कहा जाता है,काली अन्धेरी रात मे चन्द्रमा का दर्शन जरूर होता है भले ही वह पन्द्रह दिन बढता हुआ दिखाई दे और पन्द्रह दिन घटता हुआ दिखाई दे,इसी प्रकार से मंगल बुध शुक्र शनि गुरु अदि ग्रह है जो बहुत ही दूर होने के कारण कभी छोटे और कभी कुछ बडे दिखाई देते है। इन ग्रहो की शक्तियां हमे उसी प्रकार से मिलती है जैसे सूर्य से प्रकाश भी मिलता है और ऊर्जा भी मिलती है चन्द्रमा से पानी पर असर मिलता है यानी चन्द्रमा के कारण ही धरती पर पानी का होना पाया जाता है,मंगल है दूर जरूर लेकिन उसकी लाल रश्मिया हमे धरती पर लाल रंग के रूप मे मिलती है बुध सूर्य के पास है इसलिये यह हमे धरती पर हरीतिमा का आभास देता है सूर्य के रहने तक हरा और सूर्य के छुपने के बाद बुध का रूप काले रंग मे दिखाई देने लगता है जैसे दिन मे कोई भी हरा भरा पेड हरा दिखाई देता है लेकिन रात होते ही वह हरा रंग काला दिखाई देने लगता है। गुरु की पीली आभा हमे मिलती है और गुरु के द्वारा ही हमे पीला रंग मिलता है,गुरु की पीली रश्मिया ही वायु को इधर उधर घुमाने के लिये और गुरु के उनन्चास उपग्रह हवा के उनचास रूप देने के लिये माने जाते है,शुक्र का रूप मे हमे प्रकृति की कलाकारी के रूप  मे मिलता है बुध के आसपास रहने से सूर्य से प्राप्त ऊर्जा को वह सुन्दरता के रूप मे प्रकट करता है इसलिये शुक्र हमे बल देने वाले कारको मे अपनी शक्ति को बिखेरता हुआ मिलता है शनि हमारे से बहुत दूर है लेकिन सूर्य और शनि की सीमा बन्धी हुयी है जिधर शनि होता है उसके विपरीत शनि की स्थिति होती है यानी जब सूर्य छुप जाता है तो शनि की सीमा अन्धेरे और ठंडी प्रकृति देने के लिये सामने होता है। इन सबकी शक्ति को लाने के लिये राहु और इनकी शक्ति को प्रयोग करने के लिये केतु का कार्य होता है। यह बात तो हुयी आसमानी शक्तियों के बारे में लेकिन वही शक्तिया हर व्यक्ति के अन्दर भी उपस्थित है।

बच्चे के लिये पिता सूर्य है माता चन्द्रमा है मंगल भाई है बुध बहिन बुआ बेटी है गुरु खुद जीव है शुक्र जीवन साथी है पुरुष के लिये स्त्री और स्त्री के लिये पुरुष मे है शनि बुजुर्ग लोग भी है राहु ससुराल है केतु साले भानजे भतीजे लडके आदि है। यह ग्रह चलते फ़िरते है। यही ग्रह शरीर के अन्दर है सूर्य से पहिचान हड्डियों का ढांचा नाम पहिचान आंखो की द्रिष्टि है तो चन्द्रमा से शरीर मे पानी की मात्रा और मन है जो हमेशा पानी और चन्द्र्मा की तरह से चलायमान है,मंगल शरीर मे खून मे शामिल है जितना अच्छा मंगल होता है उतनी ही अच्छी शक्ति मिलती है अच्छी जाति और अच्छी कुल की बात भी मंगल से देखी जाती है इसी प्रकार से बुध जो शरीर मे बोलने के लिये वाणी के रूप मे सुनने के लिये कानो के रूप मे समझने के लिये बुद्धि के रूप मे और सूंघने के लिये नाक के रूप मे भी शामिल है गुरु वायु के रूप मे जिन्दा रखने के लिये समझने के लिये रिस्तो के रूप मे और जीवित रहने के लिये प्राण वायु के द्वारा कार्य करने के लिये है शुक्र का रूप शरीर मे जननेन्द्रिय के रूप मे है शरीर की पहिचान को सुन्दर या बदशूरत बनाने के लिये है,शनि शरीर मे खाल और बालो के रूप मे है जिससे शरीर की सर्दी गर्मी बरसात मे रक्षा होती है बाहरी वातावरण के अनुसार शनि ही रक्षा करने वाला होता है। राहु आकस्मिक बचाव करने वाला है जिसे विचार की श्रंखला मे बदलाव करने वाला किसी एक या अधिक क्षेत्रो मे जाने की धुन सवार करने के लिये और केतु शरीर मे जोडों के रूप मे हाथ पैर शरीर के अंगो को प्रयोग करने के लिये अपनी शक्ति को देने वाला है।

शरीर परिवार के अलावा कुछ ग्रह ऐसे भी है जो केवल आभास देते है कुछ हर स्थान पर मजबूत होते है,जैसे तरबूज के अन्दर जो डंठल होता है वह बुध है तरबूज की बनावट सूर्य है,तरबूज के अन्दर पानी चन्द्रमा है तरबूज का गूदा शुक्र है तरबूज के बीज केतु है तरबूज का शरीर के लिये फ़ायदा या नुकसान देने का कारक राहु है तरबूज का छिलका शनि है। इसी प्रकार से किसी भी कारक मे ग्रहो का होना जरूरी है।

जिस घर मे हम रहते है उस घर की सामने की बनावट ऊंचाई नाम नम्बर आदि सूर्य है,घर के अन्दर पानी का स्थान चन्द्रमा है,घर के अन्दर मंगल रसोई है रोशनी का कारक भी सूर्य है,गुरु हवा आने के रास्तो से है,बुध घर के अन्दर संचार के साधनो से है शुक्र घर की सजावट है शनि घर की दिवालो मे लगे ईंट पत्थर सीमेट प्लास्टर और बाहरी दिवालो के रूप मे है राहु घर मे संडास और सीढिया है केतु घर के अन्दर खिडकी और झरोखों के रूप मे है।जिस आफ़िस मे हम काम करत है उस आफ़िस का नाम सूर्य है उस आफ़िस के अन्दर काम करने वाले लोग चन्द्रमा है उस आफ़िस की कम्पटीशन मे शक्ति मंगल है आफ़िस के अन्दर टेलीफ़ोन इंटरनेट कम्पयूटर आदि बुध है आफ़िस का मालिक गुरु है आफ़िस की साज सज्जा शुक्र है आफ़िस की रक्षा करने वाले चौकीदार चपरासी आदि शनि है,साफ़ सफ़ाई करने वाले राहु आफ़िस मे कार्य करने के साधन केतु के रूप मे है,वह चाहे टूर  से काम कर रहे हो या बाहर की डाक लाने ले जाने का काम कर रहे हो।

पूजा पाठ मे भी ग्रह अपने अपने अनुसार विराजमान है,देवी देवता की बनावट सूर्य है देवी देवता के लिये सोची जाने वाली क्रिया शैली चन्द्रमा है हवन यज्ञ आदि दीपक अगरबत्ती की आग मंगल है बोली जाने वाली मंत्रो की भाषा प्रार्थना मानसिक प्रार्थना आदि बुध है,धारणा बनाना गुरु है मूर्ति आदि की बनावट पूजा की सजावट शुक्र है पूजा के अन्दर रक्षा करने वाले गेट कमरा अलमारी आदि शनि है फ़ोटो बिजली की सजावट फ़ूलो की सजावट आदि राहु हैऔर इसी राहु को देवता का आक्स्मिक दर्शन या दिया जाने वाला प्रभाव राहु है जितने भी कारक पूजा पाठ आदि के लिये प्रयोग मे लाये जाते है वह केतु के रूप में है।

हिन्दू देवी देवताओं मे सूर्य विष्णु है चन्द्रमा अर्धनारीश्वर शिव है बुध दुर्गा है गुरु ब्रह्मा है और बारह भावो के अनुसार इन्द्र के रूप मे पूजे जाते है शुक्र लक्ष्मी है और एक सौ आठ रूप मे यानी हर भाव मे बारह बारह प्रकार की सोच से अपनी कृपा को देने वाली है शनि भैरों के रूप मे भी है भौमिया के रूप मे भी है और शनि ही काले रंग के देवताओं के रूप मे है राहु सरस्वती भी है बोले जाने वाले जाप किये जाने वाले मंत्र है केतु गणेश भी है तो देवी देवताओं के वाहन के रूप मे भी देखे जाते है।जातियों में सूर्य राजपूत है चन्द्रमा किसान है मंगल सैनिक है बुध व्यापारी है गुरु धर्म पुजारी है हिन्दू है शुक्र कलाकार है जो सजावट प्रिय है,शनि नौकरी करने वाली जातिया है राहु मुस्लिम भी है और खुशी मे खुशी की भावना देने वाले दुख मे दुख की भावना देने वालेहै यह डर के रूप मे भी है तो उत्साह के रूप मे भी है केतु जाति से सिक्ख भी है तो जाति हर ग्रह के साथ मिलकर अनेक प्रकार की सहायक जातियों के रूप मे भी देखी जाती है।

शनिवार, 2 मार्च 2019

Lottery , शेयर-सट्टा व लॉटरी से धनार्जन कैसे करें?https://youtu.be/5QlK8Oa_lmk

https://youtu.be/5QlK8Oa_lmkप्रायः हर व्यक्ति यह चाहता है कि उसे अचानक भारी धन-लाभ हो, चाहे वह किसी भी प्रकार से हो। 

इस अचानक लाभ के लिए व्यक्ति अपनी जमापूँजी को भी लॉटरी, रेस, सट्टा आदि में लगा देते हैं। सृजनात्मक होना श्रम मांगता है, लंबा चिंतन और प्रतिभा मांगता है, जीवन भर की साधना मांगता है। तब अंत में धन पैदा होगा। धन के विरोधी सरल तरकीब निकालते हैं। जुआ खेल, सट्टा खेल, लाटरी निकाल कर ज्यादा पाने की कोशिश करते हैं।इस तरह अपनी परिश्रम से कमाई हुई दौलत को बर्बाद करना सर्वथा अनुचित है। यह भी जान लेना जरूरी है कि वास्तव में आपके भाग्य में आकस्मिक धन-लाभ प्राप्त होना है या नहीं। मित्रों लाभ को प्राप्त करने के लिये दो कारण संसार में चलते है एक मेहनत करने के बाद किये गये कार्यों की एवज में लाभ का प्राप्त करना और दूसरा बिना मेहनत करने के दिमाग को प्रयोग करने के बाद धन को प्राप्त करने की क्रिया को करना। हानि के कारण दोनो ही पक्षों को देखने को मिलते है जैसे मेहनत करने के बाद जब फ़ल लेने का समय हुआ तो कार्य का मूल्य ही समाप्त हो गया,अथवा बना हुआ कार्य खराब हो गया,साथ ही बुद्धि को अपनाने के बाद जब धन को प्राप्त करने का समय आया तो अचानक धन बजाय आने के चला भी गया। शेयर बाजार कमोडिटी वाले काम पूंजी बाजार वाले काम बुद्धि वाले काम है,यह काम धन के उतार चढाव से सम्बन्ध रखते है,जैसे हमेशा के लिये जिन्स बाजार से उपार्जन करने के लिये वस्तु के बढने के समय उसे खरीद लिया जाता है और वस्तु के घटने के समय उसे अच्छे दामों मे बेच दिया जाता है,अर्थशास्त्र का नियम ह्रासमान तुष्टिगुण नियम,वस्तु का बढ्ना यानी कीमत का घटना और वस्तु का घटना यानी कीमत क बढना जिन्स के बाजार में देखा जाता है। यह कार्य शनि के मार्गी वाले स्थानों और जातकों के लिये देखा जाता है। लेकिन शेयर बाजार में भी प्रतिस्पर्धा के कारण बनने का समय खोजा जाता है,यह कार्य बुध पर निर्भर करता है,कुंडली में बुध जितना बलवान होगा उसके अन्दर समय और प्रतिस्पर्धा को जोडने घटाने की बुद्धि अच्छी होगी वह अपने समय कारण और स्थान के साथ जलवायु वाले कारणों से पता रखेगा कि उसका शेयर को खरीदने और बेचने का समय कब आयेगा। अक्सर यह कार्य वही लोग कर पाते है जो धनु कन्या और मकर के मंगल से पूर्ति होते है और उनकी कुंडली में बुध स्वतंत्र होता है,यानी सूर्य के साथ होने पर अस्त नही होता,कुंडली में वक्री है तो मार्गी में फ़ायदा देने वाला और मार्गी है तो वक्री होने में फ़ायदा देने वाला होगा है। शनि मेहनत करने का ग्रह है यह दो प्रकार से मेहनत को करवाता है,एक शरीर से मेहनत करवाने वाले को मार्गी शनि के नाम से जाना जाता है और बुद्धि से काम करने वाले को वक्री शनि के रूप मे जाना जाता है। इस शनि के बारे में आप पीछे की पोस्ट को पढ सकते है। ज्योतिष से लाटरी सट्टा और जुआ का भाव पंचम है,इस भाव को बुद्धि का भाव माना जाता है साथ ही इससे नगद में धन देने वाला भाव छठा है और और हमेशा के लिये लाभ देने वाला भाव तीसरा है। अगर इन भावों पर राहु अपना असर दे रहा है,तो लाभ की मात्राअनिश्चित मानी जाती है,लाभ भारी मात्रा में भी हो सकता है,और हानि भी भारी मात्रा में हो सकती है। लेकिन कुंडली में राहु अगर शुक्र या गुरु से अपनी युति जीवन के कारक भावों में बनाकर बैठा है तो लाभ की निश्चितता को माना जा सकता है। इस प्रकार की युति के कारणों मे भी अगर गुरु राहु के साथ मिलकर शुक्र से भी युति बनाकर बैठा है,तो जातक का दिमाग चमक दमक में अधिक चला जाता है और जो भी वह कमाता है उसे छिपाने के लिये उन रास्तों को अपना लेता है जहां पर सरकारी या नीच हरकत रखने वाले लोग उसके धन को किसी न किसी कारण हडप कर लेते है। केतु का प्रभाव भी लाटरी सट्टा और जुआ पर अधिक देखा जाता है,केतु अगर कमन्यूकेशन के कारक भावों में है या किसी प्रकार से तीसरे सातवें या ग्यारहवें भाव से युति बनाता है तो व्यक्ति किसी व्यक्ति की सहायता से टेलीफ़ोन से इन्टरनेट से या सूचना के माध्यम से यह कार्य कर सकता है,अगर केतु सूर्य के साथ युति लेता है तो सरकारी लाटरी या स्कीमो से धन को कमाने वाला होता है,केतु बुध से युति लेता है तो व्यक्ति का रुझान खेल कूद वाले सट्टों से माना जाता है राहु का सम्बन्ध दूसरे और पांचवें स्थान पर होने पर जातक को सट्टा लाटरी और शेयर बाजार से धन कमाने का बहुत शौक होता है,राहु के साथ बुध हो तो वह सट्टा लाटरी कमेटी जुआ शेयर आदि की तरफ़ बहुत ही लगाव रखता है,अधिकतर मामलों में देखा गया है कि इस प्रकार का जातक निफ़्टी और आई.टी. वाले शेयर की तरफ़ अपना झुकाव रखता है। अगर इसी बीच में जातक का गोचर से बुध अस्त हो जाये तो वह उपरोक्त कारणों से लुट कर सडक पर आजाता है,और इसी कारण से जातक को दरिद्रता का जीवन जीना पडता है,उसके जितने भी सम्बन्धी होते है,वे भी उससे परेशान हो जाते है,और वह अगर किसी प्रकार से घर में प्रवेश करने की कोशिश करता है,तो वे आशंकाओं से घिर जाते है।,केतु का असर अगर शुक्र पर होता है तो जातक कानूनी कार्यों से बचकर अनैतिक रूप से चलने वाले जुआ या विदेशी जुआ खानों से धन प्राप्त करने की बात देखी जाती है,लेकिन यह धन अक्सर सरकार या सम्बन्धित लोगों के प्रति अक्समात खर्च होने का कारण भी बनता है। केतु का शुक्र पर असर होने के कारण जातक का दिमाग अगर औरतों के प्रति या सजने संवरने के प्रति चला जाता है अपनी शान शौकत को दिखाने के अहम में चला जाता है अथवा अपने को कबूतरबाजी के कार्यों में ले जाता है तो धन के कारण दूर चले जाते है। जिसकी लगन में गुरु राहु नवे भाव में शुक्र होता है उनके लिये लक्ष्मी अपना स्थान केवल घर की स्त्री की इज्जत करने से और बढ जाती है,अगर जातक किसी प्रकार से विदेशी लोगो और बाहर की स्त्रियों में अपने मन को लगा लेता है तो उसके लिये पहले लक्ष्मी अपना स्थान तो देती है लेकिन अक्समात ही जातक को कंगाल कर जाती है। मंगल का स्थान अगर दसवें भाव में कन्या राशि में हो और शनि का स्थान छठे स्थान में हो और शनि अगर वक्री हो तो जातक अपनी बुद्धि से धन की तकनीक को प्रयोग करने के बाद अथाह धन को प्राप्त करने वाला होता है लेकिन इस ग्रह युति के जातक को वक्री शनि के समय तथा बुध के अस्त होने और वक्री होने के समय अपने धन को इन कारणों में प्रयोग नही करना चाहिये।

लाल का किताब के अनुसार मंगल शनि

मंगल शनि मिल गया तो - राहू उच्च हो जाता है -              यह व्यक्ति डाक्टर, नेता, आर्मी अफसर, इंजीनियर, हथियार व औजार की मदद से काम करने वा...