गुरुवार, 13 सितंबर 2018

बुध और शुक्र की युति से बनने वाला लक्ष्मीनारायण योग

लक्ष्मी योग शुभ ग्रह बुध और शुक्र की युति से बनने वाला योग है।बुध बुद्धि-विवेक, हास्य का कारक है तो शुक्र सौंदर्य, भोग विलास कारक है।अब ये देखिये की लग्न के दोनों तरफ ओर सामने शुक्र का पूर्ण तरह प्रभाव रहता है।

 काल पुरुष की कुंडली मे 2 भाव शुक्र का अपना घर है वृषभ राशि का। 7 भाव तुला राशि का। 12 भाव जहां शुक्र उच्च का। अब आप लोग देख लीजिए शुक्र जातक के चारो तरफ मंडराता रहता है। ज्योतिष का, डॉक्टर का, नेतागिरी का, धन का, पत्नी का, ऐश्वर्य का, गायन का, नृत्य का आदि सब का कारक शुक्र है। मतलब जिसको ज्ञान के साथ भौतिक जीवन की चाह है उसका शुक्र का बलवान होना बहुत जरूरी। नेता हो या अभिनेता किसी की भी कुंडली देख लीजिए शुक्र बलि मिलेगा ही।लेकिन यही शुक्र यदि जातक खराब कर ले टी जातक किसी काम का न रहे क्योंकि बिना वीर्य शक्ति के चरित्र निर्माण नही ओर इसके बिना पुरुसार्थ ही कहा होता है क्योंकि गीता में तो साफ लिखा है कि जिसका चरित्र गया उसका सब कुछ गया। बलि ओर शुभ का शुक्र बहुत अच्छी जीवन संगिनी प्रदान करता है। और घर मे साक्षात महालक्ष्मी आ जाये तो कुल का बहुत सुंदर निर्माण करती है।शुक्र सिर्फ भोग के लिए ही नही अपितु ज्ञान, चरित्र निर्माण में भी बहुत बड़ी  भूमिका अदा करता है। बुध के बाद सूर्य के सबसे समीप ग्रह है अतः सूर्य का तेज भी इसमें निहित है। और बुध के साथ हो तो उसको अपना सारा बल दे देता है मतलब बुद्धि में भी शुक्र की बहुत बड़ी भूमिका है। ओर शुक्र तभी बलि होता जब आप अपनी पत्नी के साथ सामन्जशय बनाये। उसकी इज्जत करे।लक्ष्मी योग में बुध को विष्णु शुक्र को लक्ष्मी की श्रेणी दी गई है।इन दोनों ग्रहो का आपसी सम्बन्ध जातक को रोमांटिक और कलात्मक प्रवृत्ति का बनाता है।यह योग जैसे की नाम से ही पता चल रहा है एक बहुत शुभ योग है।यह योग सुख सोभाग्य को बढ़ाने वाला योग है, लक्ष्मी नारायण योग पर गुरु की दृष्टि सोने पर सुहागा जैसी स्थिति होती है।हरा  पोधा  बुद्ध  होता  है  और  जब  तक  उसे  मिटटी  शुक्र  की मदद  मिलती  रहती  है  वो हर  रहता  है  याने  की  जब  पोधे  बुद्ध  को जमीन  शुक्र  से निकाल  दिया  जाए  तो  वो  पिला यानी  की  गुरु  का  रंग  लेने  लग जाता  है  दुसरे  शब्दों में बुद्ध  खत्म होने  लगता  है  | इसी  प्रकार  दांत  बुद्ध  होते  है  तो जब  मुह  में दांत  न रहे  तो  शुक्र  यानी  की पत्नी  दुसरे  शब्दों में काम  भावना   भी जातक  से मुह  फेरने  लगती  है  |  सिंग  बुद्ध  न रहे  तो  सांड शुक्र  भी  अपनी काम   शक्ति  गंवा  देता है  | साज  बाज  के  साधन  यानी   की वाध्य  यंत्र   { बुध } जब  बजने  लगते  है  तो  शरीर  में शुक्र  यानी  की काम  भावना  हिलोरें  लेने  लगती है  |  टोपी  बुद्ध  बिना  कुरते  शुक्र  के पहनी जाए  तो  भद्दी  लगने  लगती है  | जब  लडकी  बुद्ध में काम  वाशना  यानी  की  शुक्र  न हो  तो  वो बाँझ  हो जाती  है  | इस  प्रकार  हम समझ  सकते  है  की ये  दोनों  एक दुसरे  की मदद  करने  वाले  और  सहयोगी  है |लाल   किताब कहती  है  की  जब ये  दोनों  एक  साथ  हो तो  मस्नोई  सूर्य  यानी की सूर्य के समान जातक को  फल  देते  है |  एक   लाइन  लिखी हुई  है  जो इस  प्रकार है” बुद्ध  शुक्र  जब हो  इक्कठे  शनी  भी उम्दा  होता  है  ,धन  दौलत  की  कमी  न कोई  घी मिटटी  से  निकलता हैलेकिन  कुंडली में कुछ  भाव में इनका  अच्छ  फल  नही  मिलता  जैसे  की  चोथे  भाव  में इन दोनों  का  योग लाल  किताब में  अच्छा  नही  बताया  गया  है | इस  घर में इन  दोनों  का योग  होने  पर  माता  और मामा  खानदान  को  समस्या बनी  रहती है साथ  ही  जातक  के ससुराल  पक्ष  को भी  दिक्कत रहती है और  जातक का चाल चलन शक्की  होगा  लेकिन  यदि कुंडली में चन्द्र  कायम हो तो फिर इनका  इस  भाव में दुस्प्रभाव  नही मिलता  |छ्टे  भाव  में इनका  योग  स्किन  की समस्या  पेशाब  कमर  दर्द  की  समस्या  और  पुत्र  सन्तान  के  पैदा  होने में दिक्कत  देता  है  लेकिन  बुद्ध  से  सम्बन्धित  कारोबार में  जातक   को  विशेष  लाभ  मिलता है |अस्ठ्म  भाव  के  बारे  में  एक लाइन  है है  की रब्ब  ने बनाई  ऐसी  जोड़ी  एक अंधा  एक कोढ़ी  दुसरे  शब्दों में  जातक  के विवाह  और औलाद  से  सम्बन्धित  समस्या  का  सामना करना  पड़ता  है  |नवम  भाव में  भी इनका  योग  अच्छा  नही मना गया  | व्यय भाव  में इन दोनों  का फल बहुत  अशुभ  फल बताया  गया है |  बुद्ध  बकरी  गाय  शुक्र  a पेट  फाड़ने की  कोसिस  करती है | ग्रहस्थ जीवन  खराब  हो जाता  है |  जब  ऐसे  जातक के लडकी का  जन्म होता  है  उसके  बाद   ग्रहस्थ जीवन में ज्यादा  समस्या  आती  है  जातक  की  पत्नी  को  स्वास्थ्य  की  समस्या  का  सामना करना  पड़ता है  | बाकि  के  भावों में इनका  योग  अच्छा  फल  देने  वाला  माना गया  है | मित्रों  ये लाल  किताब  पर  आधारित  विवेचना  है  वैदिक के हिसाब से इनका  फल देखने के लिय  आपको  ये  देखना होगा  की  किस  लग्न  की कुंडली में किस भाव  में कितने  अंशो  पर इनका योग  बन रहा है  |  कुंडली में अन्य  ग्रहों  की   सिथ्ती और  ग्रहों  का  इनके  साथ  सम्बन्ध  होने  पर  इनके  फल अलग  हो  सकते  है  इसिलिय  पूर्ण  रूप  से  फल  पूरी  कुंडली पर निर्भर  करेंगे |शुक्र के साथ बुध और बुध के साथ शुक्र की युतिअगर शुभ हो शुभ हो शुभ राशि में हो तो इन दोनों के शुभ प्रभाव को बहुत ज्यादा बढ़ा देती है।धन धन्य योगो में से यह योग एक योग है।यह योग वृष, मिथुन, कन्या, तुला मीन राशि में बहुत बली होता है अन्य राशियों में सामान्य बली होता है।वृष, मिथुन, कन्या, तुला, मकर, कुम्भ लग्न में बनने वाला बलवान लक्ष्मी नारायण योग उच्च स्तर का राजयोग कारक फल व कई तरह के शुभ फल देता है।इस योग में अन्य किसी पाप क्रूर ग्रह का सम्बन्ध होना इस योग की शुभता में कमी कर देता है क्योंकि दोनों ही ग्रह शुभ ग्रह है जिस कारण से इस योग की खासियत अपने आप में कुछ ज्यादा ही बढ़ जाती है बुध शुक्र युति में चंद्र का युति दृष्टि सम्बन्ध विशेष शुभफल कारक होता है क्योंकि चन्द्र का स्वभाव है किसी भी शुभ योग से सम्बन्ध बनाने पर यह उस योग की शुभता में वृद्धि कर देता है।जिस तरह विष्णु लक्ष्मी शीर सागर के जल में विराजमान होकर जल की शोभा बढ़ाते है जल पर विराजमान रहकर उसी तरह बुध शुक्र युति में चन्द्र का सम्बन्ध लक्ष्मी नारायण योग की शुभता में वृद्धि कर देता है।मेष लग्न में बुध दो 3, 6 दो अशुभ भावो साथ ही शुक्र मारक होने से और मीन लग्न में शुक्र तृतीयेश- अष्टमेश दो अशुब् भावो का स्वामी होकर चतुर्थेश सप्तमेश केंद्र के स्वामी बुध से सम्बन्ध इस योग के साधारण फल मिलते है।शुक्र बुध का पाप ग्रहो से दूषित या पीड़ित होना इस योग की शुभता को कम कर देता है।यदि नवमांश कुंडली में भी बुध शुक्र का आपस में सम्बन्ध हो या ये दोनों नवमांश कुंडली में बली और शुभ स्थिति में हो तो पूरी तरह शुभ फल जन्मलग्न कुंडली में बनने वाले लक्ष्मी नारायण योग के जातक को मिलते है।यह योग जिस भाव में बनता है जिस भाव पर दृष्टि डालता है उन भाव संबंधी विशेष तरह से शुभ फल भाव और भावेश की स्थिति के अनुसार देता है।इस योग के फल फल शुक्र बुध की महादशा अन्तर्दशा, जिस राशि में बुध शुक्र हो वह ग्रह बली हो तो उस ग्रह की दशा अन्तर्दशा या किसी शुभफल देने वाले की दशा में विशेष रूप से मिलते है।शुक्र बुध में से कोई अशुभ जैसे अस्त, पीड़ित हो तो शुक्र बुध संबंधी उपाय करके इस योग के शुभत्व और शुभ फल में वृद्धि करके शुभ फल प्राप्त किये जा सकते है।

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