शनिवार, 28 दिसंबर 2019

कुंडली मिलान कंप्यूटर बाबा से

 
जन्म, विवाह एवं मृ्त्यु ये तीनों ही जीवन के अति महत्वपूर्ण पडाव या कहें कि अंग माने गये हैं। बेशक जन्म और मृ्त्यु पर तो किसी का भी वश नहीं,किन्तु विवाह एक ऎसा माँगलिक कार्य है जिसके प्रति पुरातन एवं आधुनिक परिस्थितियों को ध्यान में रख कर यदि थोडी सी समझदारी दिखाई जाए तो जीवन को सुखपूर्वक व्यतीत किया जा सकता है। विवाह जिसका मर्म दो आत्माओं का स्वरैक्य है,जीवन में प्रेम, सहानुभूति,कोमलता,पवित्रता तथा भावनाओं का विकास है।आजकल समयाभाव के कारण विवाह की अत्यन्त जटिल विधि को भी बहुत थोडे समय में तुरत फुरत निपटाने की एक परम्परा ही चल पडी है। लेकिन इन सब में भी एक बात जो सबसे अधिक महत्व रखती है,वो है विवाह पूर्व लडका-लडकी की जन्म पत्रिका का मिलान किया जाना। इससे परिणय सूत्र में बँधने वाले वर-वधू के जन्मकालीन ग्रहों तथा नक्षत्रों में परस्पर साम्यता, मित्रता तथा संबंध पर विचार किया जाता है। शास्त्रों में मेलापक के दो भेद बताए गए हैं। एक ग्रह मेलापक तथा दूसरा नक्षत्र मेलापक। इन दोनों के आधार पर वर-वधू की शिक्षा, चरित्र,भाग्य,आयु तथा प्रजनन क्षमता का आकलन किया जाता है। नक्षत्रों के "अष्टकूट"(वर्ण,वश्य,तारा,योनि,ग्रह मैत्री,गण,भकुट,नाडी) तथा नौ ग्रह इत्यादि इस रहस्य को व्यक्त करते हैं।वैसे तो अक्सर ये भी देखने सुनने में आ जाता है कि कुण्डली मिलान के पश्चात भी पति-पत्नि में आपसी तनाव,गृ्हस्थ सुख में न्यूनता,सम्बन्ध विच्छेद रुपी दुष्परिणाम भोगने पड जाते हैं। आखिर ऎसा क्यूं होता है। इसका सबसे बडा कारण तो वो आधे अधूरे ज्योतिषी हैं, जो अपना अधकचरा ज्ञान लेकर सिर्फ गुण मिलान की संख्या को ही मेलापक की इतिश्री समझ लेते हैं। इन लोगों की नजर में यदि गुण संख्या 18 से कम हुई तो मिलान ठीक नहीं है ओर यदि संख्या 18 से अधिक हुई तो समझिये मिलान अच्छा है। गुण संख्या के अतिरिक्त मेलापक में ग्रह मिलान एवं अन्य बहुत सी बातें देखी जाती हैं,जिसका कि एक ज्योतिषी को पूर्णत: ज्ञान होना अति आवश्यक है। यदि कोई व्यक्ति सिर्फ गुणों के आधार पर मेलापक निष्कर्ष निकालता है तो समझिए वो ज्योतिषी नहीं बल्कि कोई घसियारा है,जिसने जीवन में ज्योतिष के नाम पर सिर्फ घास ही खोदी है एक ओर कारण जो कि इस विषय में उतरदायी है--वो है तकनीक पर अति निर्भरता।आजकल एक बात बहुत प्रचलन में आ गयी है कि शादी विवाह के मामले में कम्पयूटर से फ़टाफ़ट गुण मिलाकर शादी करने या नही कर देने के कारण कितने ही रिस्ते या तो शादी के बाद बिगड जाते है या जो रिस्ते कम्पयूटर से नही बनते है वे अपनी अपनी औकात को लेकर सभी प्रकार की शिक्षा को बेकार समझ कर एक तरफ़ कर दिये जाते है। हमेशा जरूरी नही है कि कम्पयूटर अपनी समझ को सही रूप में प्रकट करेगा।भई विज्ञान अभी इतना सूझवान नहीं हो पाया है कि कम्पयूटर जैसी मशीन के जरिये इन्सानी बुद्धि का काम ले सके। इसके जरिये सिर्फ कुंडली में ग्रह नक्षत्रों की स्थिति व गुण दोष ही स्पष्ट हो पाते हैं। विवाह के लिये जरूरी जन्मपत्री का वास्तविक मिलान नहीं हो पाता। कम्पयूटर के जरिये आप सिर्फ गुण मिलान की संख्या के बारे में जान सकते हैं,जीवन पर कुंडली का क्या प्रभाव रहेगा, यह बताने में अभी कंप्यूटर बाबा जी समर्थ नहीं हो पाये हैं। दरअसल यह तो एक ज्योतिष विद्वान के अनुभव आधारित ज्ञान में ही छिपा रहता है,जिसका स्थान कम्पयूटर कदापि नहीं ले सकता।

सबसे बडी बात जब और समझ में आती है जब कम्पयूटर से अष्टकूट गुण मिलान कर दिया जाता है और किसी न किसी प्रकार का नाडी भकूट वश्य आदि दोष लगाकर पत्रिका मिलान को कर दिया जाता है,राशि के अनुसार ही पत्री को मिलाया जाता है और नाम को दरकिनार कर दिया जाता है।

पिछले कुछ साल से यह प्रचलन काफ़ी बढा है उसके पहले शादी को नाम से मिला दिया जाता था और जो शादिया नाम से मिलाकर की गयी वे आज तक सलामत है और पूरी की पूरी वैवाहिक जिन्दगी को पूरा किया है। इसके साथ ही चाहे गुण पूरे छत्तिस मिले लेकिन दो माह बाद तलाक का मामला या तो अदालत में चला गया या फ़िर पत्नी या पति ने अपने ध्यान को दुष्कर्म की तरफ़ बढा दिया।

चन्द्रमा की वैसे तो चौसठ कलायें है और हर कला को कम्पयूटर से नही निकाला जा सकता है। इसका भी कारण है कि नक्षत्र भेद को दूर किया जा सकता है भकूट दोष को भी दूर किया जा सकता है लेकिन राशि भेद को सामने रखकर भी लोग एक दूसरे पर आक्षेप देने के लिये जाने जाते है।

कम्पयूटर अस्त चन्द्रमा से दूर रहेगा,वह तो केवल चन्द्रमा की गति को ही अपने केलकुलेशन में लायेगा। कम्पयूटर से अक्सर वक्री ग्रह का भेद भी नही बखान किया जाता है सूर्य और चन्द्रमा की गति पर भी निर्भरता नही दी जाती है।

जातक के जो भी नाम शुरु से प्रसिद्धि में चले गये होते है उनके बारे में दक्षिण भारत की नाडी प्रथा के अनुसार गणना करने पर अक्सर सही नाडी में ही देखे गये है और जो भी नाम से शादी विवाह मिलाये जाते है वे अक्सर सही और आजीवन साथ निभाने के लिये चलते देखे गये है।विवाह पश्चात वर एवम कन्या की परस्पर अनुकूलता तथा परिवारिक सामंजस्य हो,दोनों ही दीर्घायु हो,धन-संपत्ति एवम संतान का उत्तम सुख प्राप्त हो, इसी उद्देश्य से हमारे ऋषि-मुनिओं ने अपने ज्ञान एवम अनुसन्धान के आधार पर जन्मकुण्डली मेलापन की इस श्रेष्ठ पद्दति का विकास किया था। लेकिन शायद इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि जहाँ एक ओर आधे अधूरे ज्योतिषी,गलत मिलान के परिणामस्वरूप भावी दम्पति के वैवाहिक जीवन से खिलवाड कर रहे हैं। वहीं कुछ विद्वान अपने अल्पज्ञान का परिचय देते हुए विवाह पूर्व कुण्डली मिलान के औचित्य को ही नकार रहे हैं। मैं इन लोगों से सिर्फ इतना कहना चाहूँगा कि मुहूर्त तथा विवाह इत्यादि जो कि वैदिक ज्योतिष के मुख्य अंग है---इनमें से यदि किसी एक भी अंग को अलग किया गया तो ये विधा ही पंगु हो जाएगी। अंगहीन तो मनुष्य भी किसी काम का नहीं रहता,फिर ये तो विधा है। जरूरत है तो सिर्फ उसे समझने की ओर ज्ञान को उसकी पूर्णता के साथ स्वीकार करने की।

शुक्रवार, 27 दिसंबर 2019

सप्ताह के सात दिनों का क्याहै रहस्य ?

www.acharyarajesh.inआचार्य राजेश कुमार
सप्ताह के सात दिनों का क्या रहस्य ?www.acharyarajesh.in




इतना तो सबको मालूम है कि सप्ताह के दिनों के नाम ग्रहों की संज्ञाओं के आधार पर रखे गए हैं अर्थात जो नाम ग्रहों के हैं, वही नाम इन दिनों के भी हैं. जैसे सूर्य के दिन का नाम रविवार, आदित्यवार, अर्कवार, भानुवार इत्यादि. शनिश्चर के दिन का नाम शनिवार, सौरिवार आदि. चाहे आप संस्कृ्त मे य़ा अन्य किसी भी भाषा में देख लें, साप्ताहिक दिनों के नाम सात ग्रहों के नाम पर भी आपको रखे मिलेंगें. संस्कृ्त में ग्रह के नाम के आगे वार या वासर या कोई ओर प्रयायवाची शब्द रख दिया जाता है. इससे यह सूचित होता है कि अमुक दिन का अमुक ग्रह है.पश्चिमी भाषाओं में भी, इसी प्रकार ग्रहों के नामों के साथ दिन का वाचक शब्द लगा दिया जाता है. जैसे कि लेटिन में सोमवार को Lunae, मंगलवार को Martis, बुधवार के लिए Mercurii इत्यादि.अब प्रश्न यह उत्पन होता है कि यह क्रम कैसे चला और अमुक दिन अमुक ग्रह का है—-इसका अभिप्राय क्या है?. ज्योतिष के ग्रन्थों के अनुसार प्राचीन समय में ग्रहों का क्रम इस प्रकार माना जाता था—शनि, बृ्हस्पति, मंगल, सूर्य, शुक्र, बुध और चन्द्रमा. अर्थात पृ्थ्वी की अपेक्षा शनि सबसे ऊपर या दूर माना जाता था और चन्द्रमा सबसे नीचे अर्थात नजदीक. इन ग्रहों को, जैसा कि सूर्य सिद्धान्त आदि ग्रन्थों से सिद्ध है, ज्योतिषियों नें दिनों का स्वामी माना है.
सूर्योदय से सूर्यादय तक के समय की संज्ञा दिन है. हमारे पूर्वजों नें इस काल को 60 भागों में विभक्त किया और एक-एक भाग का नाम घडी(घटी या घटिका) रखा. दूसरों नें उसे 24 भागों में बाँट दिया और एक एक भाग का नाम घंटा( Hour) रखा. फिर उन्होने एक-एक घंटे के समय को एक-एक ग्रह को बाँट दिया अर्थात उन्होने मान लिया कि एक-एक घंटा क्रमश: एक-एक ग्रह के आधिपत्य में रहता है. . सूर्यदेव को पूरे विश्व में सभी जगह(इस्लाम को छोडकर) ग्रहों का राजा ही माना गया है. इसलिए पहले दिन की पहली घडी या घंटे का स्वामी उन्होने सूर्य को ठहराया. अतएव पहले दिन को उन्होने सूर्य का दिन माना. इसी तरह यदि हम प्रत्येक ग्रह को एक-एक घंटे का स्वामी मानते चलें तो दिनों का वही क्रम होगा जो आजकल प्रचलित है. साठ घडी के हिसाब से रोहक्रम अर्थात नीचे से ऊपर की ओर चलना होगा. अंग्रेजी Hour या घंटे के हिसाब से चलें तो ऊपर से नीचे की ओर उतरना होगा. चाहे हम सूर्य से प्रारम्भ करें, चाहे शनि से, चाहे चन्द्रमा से क्रम वही होगा. घडियों की गणना में यदि हम सूर्य से चलें तो 61वीं घडी चन्द्रमा की होगी, 121वीं मंगल की इत्यादि. अर्थात सूर्य के दिन के अनन्तर चन्द्रमा का दिन आएगा, फिर मंगल का. इसी तरह अन्य भी समझिए. घंटों के हिसाब से 25वाँ चन्द्रमा का, 49वाँ मंगल का होगा. तदुनसार ही दिन भी होगा.अब प्रश्न यह है कि पहले पहल दिनों( Week Days) के नाम कब रखे गए और सबसे पहले किस जाति नें उसका प्रयोग किया. इसके बारे में फिर कभी किसी अन्य पोस्ट के माध्यम से जानकारी प्रदान की जायेगी… अपने मुद्दे पर वापस बात करते हैं समाज में देखा जाए , तो अधिकांश लोग मंगलवार और शनिवार को इस तरह के जैसे बाल कटवाना या जो बृहस्पतिवार को कपड़े का ना घोना मां अन्य दिनों को अन्य किसी प्रकार के कायों के लिए अशुभ मानते हैं। उनका ऐसा विश्वास है कि गलत दिनों में किया गया कार्य अनिष्टकर फल भी प्रदान कर सकता है। इसे कोरा अंधविश्वास ही कहा जा सकता है , क्योंकि भले ही ग्रहों के नाम पर इन वारों का नामकरण हो गया हो ,किन्तु सच्ची बात यह है कि ग्रहों की स्थिति से इन वारों का कोई संबंध है ही नहीं। न तो रविवार को सूर्य आकाश के किसी खास भाग में होता है ,और न ही इस दिन सूर्य की गति में कोई परिवर्तन होता है , और न ही रविवार को सूर्य केवल शुभ या अशुभ फल ही देता है। जब ऐसी बाते है ही नही तो फिर रविवार से सूर्य का कौन सा संबंध है ?आपको जानकर आश्चर्य होगा कि रविवार से सूर्य का कोई संबंध है ही नहीं । रविवार से सूर्य का संबंध दिखा पाना किसी भी ज्योतिषी के लिए न केवल कठिन वरन् असंभव कार्य है। सुविधा के अनुसार किसी भी बच्चे का कुछ भी नाम रखा जा सकता है , परंतु उस बच्चे में नाम के अनुसार गुण भी आ जाएं , ऐसा नििश्चत नहीं है। यथानाम तथागुण लोगों की संख्याय कम ही होती है , इस संयोग की सराहना की जा सकती है पर किसी व्यक्ति का कोई नाम रखकर उसके अनुरुप ही विशेषताओं को प्राप्त करने की इच्छा रखें तो यह हमारी भूल होगी । इस बात से आम लोग भिज्ञ भी हैं , तभी ही यह कहावत मशहूर है `
इसी तरहनाम हैं नाम घनीराम पास फुटी कोड़ी नहीं कभी-कभी पृथ्वीपति नामक व्यक्ति के पास कोई जमीन नहीं होती तथा दमड़ीलाल के पास करोड़ों की संपत्ति होती है। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि किसी नामकरण का कोई वैज्ञानिक अर्थ हो या नाम के साथ गुणों का भी संबंध हो , यह आवश्यक नहीं है। कोई व्यक्ति अपने पुत्र का नाम रवि रख दे तथा उसमें सूर्य की विशेषताओं की तलाश करे , उसकी पूजा कर सूर्य भगवान को खुश रखने की चेष्टा करे तो ऐसा संभव नहीं है। इस तरह न तो रविवार से सूर्य का , न सोमवार से चंद्र का , मंगलवार से मंगल का , बुधवार से बुध का , बृहस्पतिवार से बृहस्पति का , शुक्रवार से शुक्र का और न ही शनिवार से शनि का ही संबंध होता है।इसी तरह मंगलवार का व्रत करके सुखद परिस्थितियों में मन और शरीर को चाहे जिस हद तक स्वस्थ , चुस्त , दुरुस्त या विपरीत परिस्थितियों में शरीर को कमजोर कर लिया जाए , हनुमानजी या मंगल ग्रह का कितना भी स्मरण कर लिया जाए , हनुमान या मंगल पर इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रभाव नहीं पड़ता। पूजा करने से ये खुश हो जाएंगे , ऐसा विज्ञान नहीं कहता , किन्तु पुजारी ये समझ लें और बहुत आस्था के साथ पूजापाठ में तल्लीन हो जाएं , तो मनोवैज्ञानिक रुप से इसका भले ही कुछ लाभ उन्हें मिल जाए , वे कुछ क्षणों के लिए राहत की सॉस अवश्य ले लेते हैं।कभी कभी नामकरण विशेषताओं के आधार पर भी किया जाता है और कभी कुछ चित्रों और तालिकाओं के अनुसार किया जाता है। ऋतुओं का नामकरण इनकी विशेषताओं की वजह से है , इसे हम सभी जानते हैं। ग्रीष्मऋतु कहने से ही प्रचंड गमी का बोध होता है , वर्षा ऋतु से मूसलाधार बारिश का तथा शरदऋतु कहने से उस मौसम का बोध होता है , जब अत्यधिक ठंड से लोग रजाई के अंदर रहने में सुख महसूस करें। इसी तरह माह के नामकरण के साथ भी कुछ विशेषताएं जुड़ी हुई है। आिश्वन महीने का नामकरण इसलिए हुआ , क्योंकि इस महीने में अिश्वनी नक्षत्र में पूणिमा का चॉद होता है। बैशाख नाम इसलिए पड़ा , क्योंकि इस महीने में विशाखा नक्षत्र में पूणिमा का चॉद होता है।

इस तरह हर महीने की विशेषता भिन्न-भिन्न इसलिए हुई ,क्योंकि सूर्य की स्थिति प्रत्येक महीने आकाश में भिन्न-भिन्न जगहों पर होती है। ज्योतिषीय दृश्टी से भी हर महीने की अलग-अलग विशेषताएं हैं। इसी तरह शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में उजाले और अंधेरे का अनुपात बराबर बराबर होने के बावजूद एक को कृष्ण और दूसरे को शुक्ल पक्ष कहा गया है। दोनों पक्षों के मौलिक गुणों में कोई भी अंतर नहीं होता है। बड़ा या छोटा चॉद दोनो पक्षों में होता है। अष्टमी दोनों पक्षों में होती है। किन्तु ये नाम अलग ही दृिष्टकोण से दिए गए हैं । जिस पक्ष में शाम होने के साथ ही अंधेरा हो , उसे कृष्ण पक्ष और जिस पक्ष में शाम पर उजाला रहे , उसे शुक्ल पक्ष कहते हैं।

शुक्ल पक्ष के आरंभ में चंद्रमा सूर्य के अत्यंत निकट होता है। प्रत्येक दिन सूर्य से उसकी दूरी बढ़ती चली जाती है 
सप्ताह के सात दिनों का क्या रहस्य ?
By acharyarajeshDecember 27, 2019No Comments


इतना तो सबको मालूम है कि सप्ताह के दिनों के नाम ग्रहों की संज्ञाओं के आधार पर रखे गए हैं अर्थात जो नाम ग्रहों के हैं, वही नाम इन दिनों के भी हैं. जैसे सूर्य के दिन का नाम रविवार, आदित्यवार, अर्कवार, भानुवार इत्यादि. शनिश्चर के दिन का नाम शनिवार, सौरिवार आदि. चाहे आप संस्कृ्त मे य़ा अन्य किसी भी भाषा में देख लें, साप्ताहिक दिनों के नाम सात ग्रहों के नाम पर भी आपको रखे मिलेंगें. संस्कृ्त में ग्रह के नाम के आगे वार या वासर या कोई ओर प्रयायवाची शब्द रख दिया जाता है. इससे यह सूचित होता है कि अमुक दिन का अमुक ग्रह है. पश्चिमी भाषाओं में भी, इसी प्रकार ग्रहों के नामों के साथ दिन का वाचक शब्द लगा दिया जाता है. जैसे कि लेटिन में सोमवार को Lunae, मंगलवार को Martis, बुधवार के लिए Mercurii इत्यादि.अब प्रश्न यह उत्पन होता है कि यह क्रम कैसे चला और अमुक दिन अमुक ग्रह का है—-इसका अभिप्राय क्या है?. ज्योतिष के ग्रन्थों के अनुसार प्राचीन समय में ग्रहों का क्रम इस प्रकार माना जाता था—शनि, बृ्हस्पति, मंगल, सूर्य, शुक्र, बुध और चन्द्रमा. अर्थात पृ्थ्वी की अपेक्षा शनि सबसे ऊपर या दूर माना जाता था और चन्द्रमा सबसे नीचे अर्थात नजदीक. इन ग्रहों को, जैसा कि सूर्य सिद्धान्त आदि ग्रन्थों से सिद्ध है, ज्योतिषियों नें दिनों का स्वामी माना है.
सूर्योदय से सूर्यादय तक के समय की संज्ञा दिन है. हमारे पूर्वजों नें इस काल को 60 भागों में विभक्त किया और एक-एक भाग का नाम घडी(घटी या घटिका) रखा. दूसरों नें उसे 24 भागों में बाँट दिया और एक एक भाग का नाम घंटा( Hour) रखा. फिर उन्होने एक-एक घंटे के समय को एक-एक ग्रह को बाँट दिया अर्थात उन्होने मान लिया कि एक-एक घंटा क्रमश: एक-एक ग्रह के आधिपत्य में रहता है. सूर्यदेव को पूरे विश्व में सभी जगह(इस्लाम को छोडकर) ग्रहों का राजा ही माना गया है. इसलिए पहले दिन की पहली घडी या घंटे का स्वामी उन्होने सूर्य को ठहराया. अतएव पहले दिन को उन्होने सूर्य का दिन माना. इसी तरह यदि हम प्रत्येक ग्रह को एक-एक घंटे का स्वामी मानते चलें तो दिनों का वही क्रम होगा जो आजकल प्रचलित है. साठ घडी के हिसाब से रोहक्रम अर्थात नीचे से ऊपर की ओर चलना होगा. अंग्रेजी Hour या घंटे के हिसाब से चलें तो ऊपर से नीचे की ओर उतरना होगा. चाहे हम सूर्य से प्रारम्भ करें, चाहे शनि से, चाहे चन्द्रमा से क्रम वही होगा. घडियों की गणना में यदि हम सूर्य से चलें तो 61वीं घडी चन्द्रमा की होगी, 121वीं मंगल की इत्यादि. अर्थात सूर्य के दिन के अनन्तर चन्द्रमा का दिन आएगा, फिर मंगल का. इसी तरह अन्य भी समझिए. घंटों के हिसाब से 25वाँ चन्द्रमा का, 49वाँ मंगल का होगा. तदुनसार ही दिन भी होगा.अब प्रश्न यह है कि पहले पहल दिनों( Week Days) के नाम कब रखे गए और सबसे पहले किस जाति नें उसका प्रयोग किया. इसके बारे में फिर कभी किसी अन्य पोस्ट के माध्यम से जानकारी प्रदान की जायेगी… अपने मुद्दे पर वापस बात करते हैं समाज में देखा जाए , तो अधिकांश लोग मंगलवार और शनिवार को इस तरह के जैसे बाल कटवाना या जो बृहस्पतिवार को कपड़े का ना घोना मां अन्य दिनों को अन्य किसी प्रकार के कायों के लिए अशुभ मानते हैं। उनका ऐसा विश्वास है कि गलत दिनों में किया गया कार्य अनिष्टकर फल भी प्रदान कर सकता है। इसे कोरा अंधविश्वास ही कहा जा सकता है , क्योंकि भले ही ग्रहों के नाम पर इन वारों का नामकरण हो गया हो ,किन्तु सच्ची बात यह है कि ग्रहों की स्थिति से इन वारों का कोई संबंध है ही नहीं। न तो रविवार को सूर्य आकाश के किसी खास भाग में होता है ,और न ही इस दिन सूर्य की गति में कोई परिवर्तन होता है , और न ही रविवार को सूर्य केवल शुभ या अशुभ फल ही देता है। जब ऐसी बाते है ही नही तो फिर रविवार से सूर्य का कौन सा संबंध है ?
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि रविवार से सूर्य का कोई संबंध है ही नहीं । रविवार से सूर्य का संबंध दिखा पाना किसी भी ज्योतिषी के लिए न केवल कठिन वरन् असंभव कार्य है। सुविधा के अनुसार किसी भी बच्चे का कुछ भी नाम रखा जा सकता है , परंतु उस बच्चे में नाम के अनुसार गुण भी आ जाएं , ऐसा नििश्चत नहीं है। यथानाम तथागुण लोगों की संख्याय कम ही होती है , इस संयोग की सराहना की जा सकती है पर किसी व्यक्ति का कोई नाम रखकर उसके अनुरुप ही विशेषताओं को प्राप्त करने की इच्छा रखें तो यह हमारी भूल होगी । इस बात से आम लोग भिज्ञ भी हैं , तभी ही यह कहावत मशहूर है `
इसी तरहनाम हैं नाम घनीराम पास फुटी कोड़ी नहीं कभी-कभी पृथ्वीपति नामक व्यक्ति के पास कोई जमीन नहीं होती तथा दमड़ीलाल के पास करोड़ों की संपत्ति होती है। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि किसी नामकरण का कोई वैज्ञानिक अर्थ हो या नाम के साथ गुणों का भी संबंध हो , यह आवश्यक नहीं है। कोई व्यक्ति अपने पुत्र का नाम रवि रख दे तथा उसमें सूर्य की विशेषताओं की तलाश करे , उसकी पूजा कर सूर्य भगवान को खुश रखने की चेष्टा करे तो ऐसा संभव नहीं है। इस तरह न तो रविवार से सूर्य का , न सोमवार से चंद्र का , मंगलवार से मंगल का , बुधवार से बुध का , बृहस्पतिवार से बृहस्पति का , शुक्रवार से शुक्र का और न ही शनिवार से शनि का ही संबंध होता है।इसी तरह मंगलवार का व्रत करके सुखद परिस्थितियों में मन और शरीर को चाहे जिस हद तक स्वस्थ , चुस्त , दुरुस्त या विपरीत परिस्थितियों में शरीर को कमजोर कर लिया जाए , हनुमानजी या मंगल ग्रह का कितना भी स्मरण कर लिया जाए , हनुमान या मंगल पर इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रभाव नहीं पड़ता। पूजा करने से ये खुश हो जाएंगे , ऐसा विज्ञान नहीं कहता , किन्तु पुजारी ये समझ लें और बहुत आस्था के साथ पूजापाठ में तल्लीन हो जाएं , तो मनोवैज्ञानिक रुप से इसका भले ही कुछ लाभ उन्हें मिल जाए , वे कुछ क्षणों के लिए राहत की सॉस अवश्य ले लेते हैं।
कभी कभी नामकरण विशेषताओं के आधार पर भी किया जाता है और कभी कुछ चित्रों और तालिकाओं के अनुसार किया जाता है। ऋतुओं का नामकरण इनकी विशेषताओं की वजह से है , इसे हम सभी जानते हैं। ग्रीष्मऋतु कहने से ही प्रचंड गमी का बोध होता है , वर्षा ऋतु से मूसलाधार बारिश का तथा शरदऋतु कहने से उस मौसम का बोध होता है , जब अत्यधिक ठंड से लोग रजाई के अंदर रहने में सुख महसूस करें। इसी तरह माह के नामकरण के साथ भी कुछ विशेषताएं जुड़ी हुई है। आिश्वन महीने का नामकरण इसलिए हुआ , क्योंकि इस महीने में अिश्वनी नक्षत्र में पूणिमा का चॉद होता है। बैशाख नाम इसलिए पड़ा , क्योंकि इस महीने में विशाखा नक्षत्र में पूणिमा का चॉद होता है।

इस तरह हर महीने की विशेषता भिन्न-भिन्न इसलिए हुई ,क्योंकि सूर्य की स्थिति प्रत्येक महीने आकाश में भिन्न-भिन्न जगहों पर होती है। ज्योतिषीय दृश्टी से भी हर महीने की अलग-अलग विशेषताएं हैं। इसी तरह शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में उजाले और अंधेरे का अनुपात बराबर बराबर होने के बावजूद एक को कृष्ण और दूसरे को शुक्ल पक्ष कहा गया है। दोनों पक्षों के मौलिक गुणों में कोई भी अंतर नहीं होता है। बड़ा या छोटा चॉद दोनो पक्षों में होता है। अष्टमी दोनों पक्षों में होती है। किन्तु ये नाम अलग ही दृिष्टकोण से दिए गए हैं । जिस पक्ष में शाम होने के साथ ही अंधेरा हो , उसे कृष्ण पक्ष और जिस पक्ष में शाम पर उजाला रहे , उसे शुक्ल पक्ष कहते हैं।

शुक्ल पक्ष के आरंभ में चंद्रमा सूर्य के अत्यंत निकट होता है। प्रत्येक दिन सूर्य से उसकी दूरी बढ़ती चली जाती है और पूर्णमासी के दिन यह सूर्य से सर्वाधिक दूरी पर पूर्ण प्रकाशमान देखा जाता है। इस समय सूर्य से इसकी कोणिक दूरी 180 डिग्री होती है। इस दिन सूर्यास्त से सूयोदय तक रोशनी होती है। इसके बाद कृष्ण पक्ष का प्रारंभ होता है। प्रत्येक दिन सूर्य और चंद्रमा की कोणिक दूरी घटने लगती है। इसका प्रकाशमान भाग घटने लगता है और कृष्ण पक्ष के अंत में अमावश तिथि के दिन सूर्य चंद्रमा एक ही विन्दु पर होते हैं। सूयोदय से सूर्यास्त तक अंधेरा ही अंधेरा होता है।इस तरह ऋतु , महीने और पक्षों की वैज्ञानिकता समझ में आ जाती है। भचक्र में सूर्य , चंद्रमा और नक्षत्र – सभी का एक दूसरे के साथ परस्पर संबंध है , किन्तु सप्ताह के सात दिनों का नामकरण ग्रहों के गुणों पर आधारित न होकर याद रख पाने की सुविधा से प्रमुख सात आकाशीय पिंडों के नाम के आधार पर किया गया लगता है , महीनें को दो हिस्सों में बॉटकर एक-एक पखवारे का शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष बनाया गया है। दोनो ही पक्ष सूर्य और चंद्रमा की वििभ्न्न स्थितियों के सापेक्ष हैं , किन्तु एक पखवारे को दो हिस्सों में बॉटकर दो सप्ताह में समझने की विधि केवल सुविधावादी दृिष्टकोण का परिचायक है। जब सप्ताह का निर्माण ही ग्रहों पर आधारित नहीं है , तो उसके अंदर आनेवाले सात अलग अलग दिनों का भी कोई वैज्ञानिक अर्थ नहीं है।

सौरमास और चंद्रमास दोनों की परिकल्पनाओं का आधार भिन-भिन्न है। पृथ्वी 365 दिन और कुछ घंटों में एक बार सूर्य की परिक्रमा कर लेती है। इसे सौर वर्ष कहतें हैं, इसके बारहवें भाग को एक महीना कहा जाता है। सौरमास से अभिप्राय सूर्य का एक रािश में ठहराव या आकाश में 30 डिग्री की दूरी तय करना होता है। चंद्रमास उसे कहते हैं , जब चंद्रमा एक बार पूरी पृथ्वी की परिक्रमा कर लेता है। यह लगभग 29 दिनों का होता है । बारह महीनों में बारह बार सूर्य की परिक्रमा करने में चंद्रमा को लगभग 354 दिन लगते हैं। इसलिए चंद्रवर्ष 354 दिनों का होता है। सौर वष्र और चंद्रवर्ष के सवा ग्यारह दिनों के अंतर को प्रत्येक तीन वषो के पश्चात् चंद्रवर्ष में एक अतिरिक्त महीनें मलमास को जोड़कर पाट दिया जाताहै।सौर वर्ष में भी 365 दिनों के अतिरिक्त के 5 घंटों को चार वषे बाद लीप ईयर वर्ष में फरवरी महीने को 29 दिनों का बनाकर समन्वय किया जाता है , किन्तु सप्ताह के सात दिन , जो पखवारे के 15 दिन , महीने के 30 दिन , चांद्र वर्ष के 354 दिन और सौर वर्ष के 365 दिन में से किसी का भी पूर्ण भाजक या अपवत्र्तांक नहीं है , के समन्वय या समायोजन का ज्योतिष शास्त्र में कहीं भी उल्लेख नहीं है , जिससे स्वयंमेव ही ज्योतिषीय संदर्भ में सप्ताह की अवैज्ञानिकता सिद्ध हो जाती है। अत: मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि रविवार को सूर्य का , सोमवार को चंद्र का , मंगलवार को मंगल का , बुधवार को बुध का , बृहस्पतिवार को बृहस्पति का , शुक्रवार को शुक्र का तथ शनिवार को शनि का पर्याय मान लेना एक बहुत बड़ी गल्ती है। ग्रहों का सप्ताह के सातो दिनों से कोई लेना-देना नहीं है।

सात दिनों का सप्ताह मानकर पक्ष को लगभग दो हिस्सों में बॉटकर सात दिनों के माध्यम से सातो ग्रहों को याद करने की चेष्टा की गयी होगी। लोग कभी यह महसूस नहीं करें कि ग्रहों का प्रभाव नहीं होता ।शायद इसी शाश्वत सत्य के स्वीकर करने और कराने के लिए ऋषि मुनियो द्वारा सप्ताह के सात दिनों को ग्रहों के साथ जोड़ना एक बड़े सूत्र के रुप में काम आया हो। एक ज्योतिषी होने के नाते सप्ताह के इन सात दिनों से मुझे अन्य कुछ सुविधाएं प्राप्त हैं। आज मंगलवार को चंद्रमा सिंह रािश में स्थित है , तो बिना पंचांग देख ही यह अनुमान लगाना संभव है कि आगामी मंगलवार को चंद्रमा वृिश्चक राशि में , उसके बाद वाले मंगलवार को कुंभ राशि में तथ उसके बादवाले मंगलवार को वृष राशि में या उसके अत्यंत निकट होगा।मानकर इसे 4 भागों में बॉट दिया गया हो तो हिसाब सुविधा की दृिष्ट से अच्छा ही है। मंगलवार को स्थिर राशि में चंद्रमा है तो कुछ सताहों तक आनेवाले मंगलवार को चंद्रमा स्थिर राशि में ही रहेगा। कुछ दिनों बाद चंद्रमा द्विस्वभाव राशि में चला जाएगा तो फिर कुछ सप्ताहों तक मंगलवार को चंद्रमा द्विस्वभाव राशि में ही रहेगा।आचार्य राजेश कुमार
सप्ताह के सात दिनों का क्या रहस्य ?
By acharyarajeshDecember 27, 2019No Comments


इतना तो सबको मालूम है कि सप्ताह के दिनों के नाम ग्रहों की संज्ञाओं के आधार पर रखे गए हैं अर्थात जो नाम ग्रहों के हैं, वही नाम इन दिनों के भी हैं. जैसे सूर्य के दिन का नाम रविवार, आदित्यवार, अर्कवार, भानुवार इत्यादि. शनिश्चर के दिन का नाम शनिवार, सौरिवार आदि. चाहे आप संस्कृ्त मे य़ा अन्य किसी भी भाषा में देख लें, साप्ताहिक दिनों के नाम सात ग्रहों के नाम पर भी आपको रखे मिलेंगें. संस्कृ्त में ग्रह के नाम के आगे वार या वासर या कोई ओर प्रयायवाची शब्द रख दिया जाता है. इससे यह सूचित होता है कि अमुक दिन का अमुक ग्रह है. पश्चिमी भाषाओं में भी, इसी प्रकार ग्रहों के नामों के साथ दिन का वाचक शब्द लगा दिया जाता है. जैसे कि लेटिन में सोमवार को Lunae, मंगलवार को Martis, बुधवार के लिए Mercurii इत्यादि.अब प्रश्न यह उत्पन होता है कि यह क्रम कैसे चला और अमुक दिन अमुक ग्रह का है—-इसका अभिप्राय क्या है?. ज्योतिष के ग्रन्थों के अनुसार प्राचीन समय में ग्रहों का क्रम इस प्रकार माना जाता था—शनि, बृ्हस्पति, मंगल, सूर्य, शुक्र, बुध और चन्द्रमा. अर्थात पृ्थ्वी की अपेक्षा शनि सबसे ऊपर या दूर माना जाता था और चन्द्रमा सबसे नीचे अर्थात नजदीक. इन ग्रहों को, जैसा कि सूर्य सिद्धान्त आदि ग्रन्थों से सिद्ध है, ज्योतिषियों नें दिनों का स्वामी माना है.
सूर्योदय से सूर्यादय तक के समय की संज्ञा दिन है. हमारे पूर्वजों नें इस काल को 60 भागों में विभक्त किया और एक-एक भाग का नाम घडी(घटी या घटिका) रखा. दूसरों नें उसे 24 भागों में बाँट दिया और एक एक भाग का नाम घंटा( Hour) रखा. फिर उन्होने एक-एक घंटे के समय को एक-एक ग्रह को बाँट दिया अर्थात उन्होने मान लिया कि एक-एक घंटा क्रमश: एक-एक ग्रह के आधिपत्य में रहता है. सूर्यदेव को पूरे विश्व में सभी जगह(इस्लाम को छोडकर) ग्रहों का राजा ही माना गया है. इसलिए पहले दिन की पहली घडी या घंटे का स्वामी उन्होने सूर्य को ठहराया. अतएव पहले दिन को उन्होने सूर्य का दिन माना. इसी तरह यदि हम प्रत्येक ग्रह को एक-एक घंटे का स्वामी मानते चलें तो दिनों का वही क्रम होगा जो आजकल प्रचलित है. साठ घडी के हिसाब से रोहक्रम अर्थात नीचे से ऊपर की ओर चलना होगा. अंग्रेजी Hour या घंटे के हिसाब से चलें तो ऊपर से नीचे की ओर उतरना होगा. चाहे हम सूर्य से प्रारम्भ करें, चाहे शनि से, चाहे चन्द्रमा से क्रम वही होगा. घडियों की गणना में यदि हम सूर्य से चलें तो 61वीं घडी चन्द्रमा की होगी, 121वीं मंगल की इत्यादि. अर्थात सूर्य के दिन के अनन्तर चन्द्रमा का दिन आएगा, फिर मंगल का. इसी तरह अन्य भी समझिए. घंटों के हिसाब से 25वाँ चन्द्रमा का, 49वाँ मंगल का होगा. तदुनसार ही दिन भी होगा.अब प्रश्न यह है कि पहले पहल दिनों( Week Days) के नाम कब रखे गए और सबसे पहले किस जाति नें उसका प्रयोग किया. इसके बारे में फिर कभी किसी अन्य पोस्ट के माध्यम से जानकारी प्रदान की जायेगी… अपने मुद्दे पर वापस बात करते हैं समाज में देखा जाए , तो अधिकांश लोग मंगलवार और शनिवार को इस तरह के जैसे बाल कटवाना या जो बृहस्पतिवार को कपड़े का ना घोना मां अन्य दिनों को अन्य किसी प्रकार के कायों के लिए अशुभ मानते हैं। उनका ऐसा विश्वास है कि गलत दिनों में किया गया कार्य अनिष्टकर फल भी प्रदान कर सकता है। इसे कोरा अंधविश्वास ही कहा जा सकता है , क्योंकि भले ही ग्रहों के नाम पर इन वारों का नामकरण हो गया हो ,किन्तु सच्ची बात यह है कि ग्रहों की स्थिति से इन वारों का कोई संबंध है ही नहीं। न तो रविवार को सूर्य आकाश के किसी खास भाग में होता है ,और न ही इस दिन सूर्य की गति में कोई परिवर्तन होता है , और न ही रविवार को सूर्य केवल शुभ या अशुभ फल ही देता है। जब ऐसी बाते है ही नही तो फिर रविवार से सूर्य का कौन सा संबंध है ?
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि रविवार से सूर्य का कोई संबंध है ही नहीं । रविवार से सूर्य का संबंध दिखा पाना किसी भी ज्योतिषी के लिए न केवल कठिन वरन् असंभव कार्य है। सुविधा के अनुसार किसी भी बच्चे का कुछ भी नाम रखा जा सकता है , परंतु उस बच्चे में नाम के अनुसार गुण भी आ जाएं , ऐसा नििश्चत नहीं है। यथानाम तथागुण लोगों की संख्याय कम ही होती है , इस संयोग की सराहना की जा सकती है पर किसी व्यक्ति का कोई नाम रखकर उसके अनुरुप ही विशेषताओं को प्राप्त करने की इच्छा रखें तो यह हमारी भूल होगी । इस बात से आम लोग भिज्ञ भी हैं , तभी ही यह कहावत मशहूर है `
इसी तरहनाम हैं नाम घनीराम पास फुटी कोड़ी नहीं कभी-कभी पृथ्वीपति नामक व्यक्ति के पास कोई जमीन नहीं होती तथा दमड़ीलाल के पास करोड़ों की संपत्ति होती है। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि किसी नामकरण का कोई वैज्ञानिक अर्थ हो या नाम के साथ गुणों का भी संबंध हो , यह आवश्यक नहीं है। कोई व्यक्ति अपने पुत्र का नाम रवि रख दे तथा उसमें सूर्य की विशेषताओं की तलाश करे , उसकी पूजा कर सूर्य भगवान को खुश रखने की चेष्टा करे तो ऐसा संभव नहीं है। इस तरह न तो रविवार से सूर्य का , न सोमवार से चंद्र का , मंगलवार से मंगल का , बुधवार से बुध का , बृहस्पतिवार से बृहस्पति का , शुक्रवार से शुक्र का और न ही शनिवार से शनि का ही संबंध होता है।इसी तरह मंगलवार का व्रत करके सुखद परिस्थितियों में मन और शरीर को चाहे जिस हद तक स्वस्थ , चुस्त , दुरुस्त या विपरीत परिस्थितियों में शरीर को कमजोर कर लिया जाए , हनुमानजी या मंगल ग्रह का कितना भी स्मरण कर लिया जाए , हनुमान या मंगल पर इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रभाव नहीं पड़ता। पूजा करने से ये खुश हो जाएंगे , ऐसा विज्ञान नहीं कहता , किन्तु पुजारी ये समझ लें और बहुत आस्था के साथ पूजापाठ में तल्लीन हो जाएं , तो मनोवैज्ञानिक रुप से इसका भले ही कुछ लाभ उन्हें मिल जाए , वे कुछ क्षणों के लिए राहत की सॉस अवश्य ले लेते हैं।
कभी कभी नामकरण विशेषताओं के आधार पर भी किया जाता है और कभी कुछ चित्रों और तालिकाओं के अनुसार किया जाता है। ऋतुओं का नामकरण इनकी विशेषताओं की वजह से है , इसे हम सभी जानते हैं। ग्रीष्मऋतु कहने से ही प्रचंड गमी का बोध होता है , वर्षा ऋतु से मूसलाधार बारिश का तथा शरदऋतु कहने से उस मौसम का बोध होता है , जब अत्यधिक ठंड से लोग रजाई के अंदर रहने में सुख महसूस करें। इसी तरह माह के नामकरण के साथ भी कुछ विशेषताएं जुड़ी हुई है। आिश्वन महीने का नामकरण इसलिए हुआ , क्योंकि इस महीने में अिश्वनी नक्षत्र में पूणिमा का चॉद होता है। बैशाख नाम इसलिए पड़ा , क्योंकि इस महीने में विशाखा नक्षत्र में पूणिमा का चॉद होता है।

इस तरह हर महीने की विशेषता भिन्न-भिन्न इसलिए हुई ,क्योंकि सूर्य की स्थिति प्रत्येक महीने आकाश में भिन्न-भिन्न जगहों पर होती है। ज्योतिषीय दृश्टी से भी हर महीने की अलग-अलग विशेषताएं हैं। इसी तरह शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में उजाले और अंधेरे का अनुपात बराबर बराबर होने के बावजूद एक को कृष्ण और दूसरे को शुक्ल पक्ष कहा गया है। दोनों पक्षों के मौलिक गुणों में कोई भी अंतर नहीं होता है। बड़ा या छोटा चॉद दोनो पक्षों में होता है। अष्टमी दोनों पक्षों में होती है। किन्तु ये नाम अलग ही दृिष्टकोण से दिए गए हैं । जिस पक्ष में शाम होने के साथ ही अंधेरा हो , उसे कृष्ण पक्ष और जिस पक्ष में शाम पर उजाला रहे , उसे शुक्ल पक्ष कहते हैं।

शुक्ल पक्ष के आरंभ में चंद्रमा सूर्य के अत्यंत निकट होता है। प्रत्येक दिन सूर्य से उसकी दूरी बढ़ती चली जाती है और पूर्णमासी के दिन यह सूर्य से सर्वाधिक दूरी पर पूर्ण प्रकाशमान देखा जाता है। इस समय सूर्य से इसकी कोणिक दूरी 180 डिग्री होती है। इस दिन सूर्यास्त से सूयोदय तक रोशनी होती है। इसके बाद कृष्ण पक्ष का प्रारंभ होता है। प्रत्येक दिन सूर्य और चंद्रमा की कोणिक दूरी घटने लगती है। इसका प्रकाशमान भाग घटने लगता है और कृष्ण पक्ष के अंत में अमावश तिथि के दिन सूर्य चंद्रमा एक ही विन्दु पर होते हैं। सूयोदय से सूर्यास्त तक अंधेरा ही अंधेरा होता है।इस तरह ऋतु , महीने और पक्षों की वैज्ञानिकता समझ में आ जाती है। भचक्र में सूर्य , चंद्रमा और नक्षत्र – सभी का एक दूसरे के साथ परस्पर संबंध है , किन्तु सप्ताह के सात दिनों का नामकरण ग्रहों के गुणों पर आधारित न होकर याद रख पाने की सुविधा से प्रमुख सात आकाशीय पिंडों के नाम के आधार पर किया गया लगता है , महीनें को दो हिस्सों में बॉटकर एक-एक पखवारे का शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष बनाया गया है। दोनो ही पक्ष सूर्य और चंद्रमा की वििभ्न्न स्थितियों के सापेक्ष हैं , किन्तु एक पखवारे को दो हिस्सों में बॉटकर दो सप्ताह में समझने की विधि केवल सुविधावादी दृिष्टकोण का परिचायक है। जब सप्ताह का निर्माण ही ग्रहों पर आधारित नहीं है , तो उसके अंदर आनेवाले सात अलग अलग दिनों का भी कोई वैज्ञानिक अर्थ नहीं है।

सौरमास और चंद्रमास दोनों की परिकल्पनाओं का आधार भिन-भिन्न है। पृथ्वी 365 दिन और कुछ घंटों में एक बार सूर्य की परिक्रमा कर लेती है। इसे सौर वर्ष कहतें हैं, इसके बारहवें भाग को एक महीना कहा जाता है। सौरमास से अभिप्राय सूर्य का एक रािश में ठहराव या आकाश में 30 डिग्री की दूरी तय करना होता है। चंद्रमास उसे कहते हैं , जब चंद्रमा एक बार पूरी पृथ्वी की परिक्रमा कर लेता है। यह लगभग 29 दिनों का होता है । बारह महीनों में बारह बार सूर्य की परिक्रमा करने में चंद्रमा को लगभग 354 दिन लगते हैं। इसलिए चंद्रवर्ष 354 दिनों का होता है। सौर वष्र और चंद्रवर्ष के सवा ग्यारह दिनों के अंतर को प्रत्येक तीन वषो के पश्चात् चंद्रवर्ष में एक अतिरिक्त महीनें मलमास को जोड़कर पाट दिया जाता है।

सौर वर्ष में भी 365 दिनों के अतिरिक्त के 5 घंटों को चार वषे बाद लीप ईयर वर्ष में फरवरी महीने को 29 दिनों का बनाकर समन्वय किया जाता है , किन्तु सप्ताह के सात दिन , जो पखवारे के 15 दिन , महीने के 30 दिन , चांद्र वर्ष के 354 दिन और सौर वर्ष के 365 दिन में से किसी का भी पूर्ण भाजक या अपवत्र्तांक नहीं है , के समन्वय या समायोजन का ज्योतिष शास्त्र में कहीं भी उल्लेख नहीं है , जिससे स्वयंमेव ही ज्योतिषीय संदर्भ में सप्ताह की अवैज्ञानिकता सिद्ध हो जाती है। अत: मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि रविवार को सूर्य का , सोमवार को चंद्र का , मंगलवार को मंगल का , बुधवार को बुध का , बृहस्पतिवार को बृहस्पति का , शुक्रवार को शुक्र का तथ शनिवार को शनि का पर्याय मान लेना एक बहुत बड़ी गल्ती है। ग्रहों का सप्ताह के सातो दिनों से कोई लेना-देना नहीं है।

सात दिनों का सप्ताह मानकर पक्ष को लगभग दो हिस्सों में बॉटकर सात दिनों के माध्यम से सातो ग्रहों को याद करने की चेष्टा की गयी होगी। लोग कभी यह महसूस नहीं करें कि ग्रहों का प्रभाव नहीं होता ।शायद इसी शाश्वत सत्य के स्वीकर करने और कराने के लिए ऋषि मुनियो द्वारा सप्ताह के सात दिनों को ग्रहों के साथ जोड़ना एक बड़े सूत्र के रुप में काम आया हो। एक ज्योतिषी होने के नाते सप्ताह के इन सात दिनों से मुझे अन्य कुछ सुविधाएं प्राप्त हैं। आज मंगलवार को चंद्रमा सिंह रािश में स्थित है , तो बिना पंचांग देख ही यह अनुमान लगाना संभव है कि आगामी मंगलवार को चंद्रमा वृिश्चक राशि में , उसके बाद वाले मंगलवार को कुंभ राशि में तथ उसके बादवाले मंगलवार को वृष राशि में या उसके अत्यंत निकट होगा।मानकर इसे 4 भागों में बॉट दिया गया हो तो हिसाब सुविधा की दृिष्ट से अच्छा ही है। मंगलवार को स्थिर राशि में चंद्रमा है तो कुछ सताहों तक आनेवाले मंगलवार को चंद्रमा स्थिर राशि में ही रहेगा। कुछ दिनों बाद चंद्रमा द्विस्वभाव राशि में चला जाएगा तो फिर कुछ सप्ताहों तक मंगलवार को चंद्रमा द्विस्वभाव राशि में ही रहेगा।

मैं वैज्ञानिक तथ्यों को सहज ही स्वीकार करता हूं। पंचांग में तिथि , नक्षत्र , योग और करण की चर्चा रहती है। ये सभी ग्रहों की स्थिति पर आधारित हैं। किसी ज्योतिषी को बहुत दिनों तक अंधेरी कोठरी में बंद कर दिया जाए , ताकि महीने और दिनों के बीतने की कोई सूचना उसके पास नहीं हो । कुछ महीनों बाद जिस दिन उसे आसमान को निहारने का मौका मिल जाएगा , केवल सूर्य और चंद्रमा की स्थिति को देखकर वह समझ जाएगा कि उस दिन कौन सी तिथि है , कौन से नक्षत्र में चंद्रमा है , सामान्य गणना से वह योग और करण की भी जानकारी प्राप्त कर सकेगा , किन्तु उसे सप्ताह के दिन की जानकारी कदापि संभव नहीं हो पाएगी , ऐसा इसलिए क्योंकि सूर्य , चंद्रमा या अन्य ग्रहों की स्थिति के सापेक्ष सप्ताह के सात के दिनों का नामकरण नहीं है।

शनिवार, 21 दिसंबर 2019

#सुर्य ग्रहण(Surya Grahan)Solar Eclipse


मित्रों साल का आखिरी ग्रहण लगने में अब कुछ ही दिन शेष रह गये हैं। ये वलयाकार सूर्य ग्रहण होगा। 26 दिसंबर को लगने जा रहे ग्रहण में सूर्य के बीच के भाग को चंद्रमा पूरी तरह से ढक देगा। जिस कारण सूर्य एक आग की अंगूठी की तरह दिखाई देगा। भारत में वलयाकार सूर्य ग्रहण दक्षिण भाग कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के हिस्सों में दिखाई देगा जबकि देश के बाकी हिस्सों में आंशिक सूर्य ग्रहण का नजारा दिखा जा सकेगा।
कहां दिखेगा आंशिक सूर्य ग्रहण: आंशिक सूर्य ग्रहण नई दिल्ली, मुम्बई, हैदराबाद, बंगलौर, कोलकाता, चेन्नई, अहमदाबाद, सूरत, पुणे, जयपुर, लखनऊ, कानपुर, नागपुर, इन्दौर, ठाणे, भोपाल, विशाखापट्टनम, पटना, लुधियाना, आगरा, रियाद, कराची, कुआलालम्पुर में लगेगा।
 मंगलौर, कोयम्बटूर, ऊटी, शिवगंगा, तिरुवनन्तपुरम, टेलिचेरी, अल होफुफ, सिंगापुर में दिखेगा।
 भारत में ग्रहण काल का प्रारंभ 26 दिसंबर को सुबह 8 बजकर 05 मिनट पर हो जायेगा। हर शहर के समय में इसका थोड़ा बहुत अंतर हो सकता है। ग्रहण का परमग्रास 9 बजकर 31 am पर होगा जबकि ग्रहण का समाप्ति काल 10 बजकर 57 a m. पर होगा। इस तरह ग्रहण की कुल अवधि लगभग 2 घंटे 40 मिनट की होगी।
ग्रहण सूतक काल: सूतक काल की बात करें तो इसका प्रारंभ 25 दिसंबर की शाम को 5 बजकर 27 मिनट पर हो जायेगा। जिसकी समाप्ति 26 दिसंबर सुबह 10 बजकर 57 मिनट पर ग्रहण की समाप्ति के साथ होगी। भारत में सूतक काल का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सूतक काल लगते ही किसी भी तरह के शुभ कार्य नहीं किये जाते और ना ही किसी नये काम की शुरुआत। यहां तक की मंदिरों के कपाट भी सूतक में बंद कर दिये जाते हैं। पूजा पाठ के कार्य भी इस दौरान निषेध माने गये है। लेकिन सूतक में मन ही मन आप अपने ईष्ट देव की अराधना कर सकते हैं। गर्भवती महिलाओं, बच्चों और बुजुर्ग लोगों को सूतक काल में विशेष ध्यान रखना होता है।

वलयाकार सूर्य ग्रहण कब होता है? ये ग्रहण तब घटित होता है जब चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है। लेकिन चंद्रमा इस दौरान पृथ्वी को पूरी तरह से अपनी छाया में नहीं ले पाता और सूर्य का बाहरी हिस्सा प्रकाशित रह जाता है। इसी घटना को वलयाकार सूर्य ग्रहण कहा गया है। इस ग्रहण के समय सूर्य एक आग की अंगूठी की तरह दिखाई देता हैज्योतिष में जब इसका उल्लेख आता है तो सामान्य रूप से हम इसे सूर्य व चन्द्र देव का किसी प्रकार से राहु व केतु से प्रभावित होना मानते हैं . .पौराणिक कथाओं के अनुसार अमृत के बंटवारे के समय एक दानव धोखे से अमृत का पान कर गया .सूर्य व चन्द्र की दृष्टी उस पर पड़ी और उन्होंने मोहिनी रूप धरे विष्णु जी को संकेत कर दिया ,जिन्होंने तत्काल अपने चक्र से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया .इस प्रकार राहु व केतु दो आकृतियों का जन्म हो गया . अब राहु व केतु के बारे में एक नयी दृष्टी से सोचने का प्रयास करें .राहु इस क्रम में वो ग्रह बन जाता है जिस के पास मात्र  सिर है ,व केतु वह जिसके अधिकार में मात्र धड़ है .अब ग्रहण क्या होता है ?राहु व केतु का सूर्य या चन्द्र के साथ युति करना आमतौर पर ग्रहण मान लिया जाता है .किन्तु वास्तव में सूर्य ग्रहण मात्र राहु से बनता है व चन्द्र ग्रहण केतु द्वारा .ज्योतिष में बड़े जोर शोर से इसकी चर्चा होती है .बिना सोचे समझे इस दोष के निवारण बताये जाने लगते हैं .बिना यह जाने की ग्रहण दोष बन रहा है तो किस स्तर का और वह क्या हानि जातक के जीवन में दे रहा है! या दे सकता है .बात अगर आकड़ों की करें तो राहु केतु एक राशि का भोग १८ महीनो तक करते हैं .सूर्य एक माह एक राशि पर रहते हैं .इस हिसाब से वर्ष भर में जब जब सूर्य राहु व केतु एक साथ पूरा एक एक महीना रहेंगे तब तब उस समय विशेष में जन्मे जातकों की कुंडली ग्रहण दोष से पीड़ित होगी .इसी में चंद्रमा को भी जोड़ लें तो एक माह में लगभग चन्द्र पांच दिन ग्रहण दोष बनायेंगे .वर्ष भर में साठ दिन हो गए .यानी कुल मिलाकर वर्ष भर में चार महीने तो ग्रहण दोष हो ही जाता है .यानी दुनिया की एक तिहाई आबादी ग्रहण दोष से पीड़ित है .अब कई ज्योतिषियों द्वारा राहु केतु की दृष्टि भी सूर्य चन्द्र पर हो तो ग्रहण दोष होता है .हम जानते हैं की राहु केतु अपने स्थान से पांच सात व नौवीं दृष्टि रखते हैं .यानी आधे से अधिक आबादी ग्रहण दोष से पीड़ित है .अब ये आंकड़ा कम से कम मुझे तो विश्वसनीय नहीं लगता मित्रों .इसी लिए फिर से स्पष्ट कर दूं की मेरी नजर में ग्रहण दोष वहीँ तक है जहाँ राहु सूर्य से युति कर रहे हैं व केतु चंद्रमा से .इस में भी जब दोनों ग्रह  एक ही अंश -कला -विकला पर हैं तब ही उस समय विशेष पर जन्म लेने वाला जातक वास्तव में ग्रहण दोष से पीड़ित है ,और इस टर्मिनोलॉजी के अनुसार संसार के लगभग दस प्रतिशत से कम जातक ही ग्रहण दोष का कुफल भोगते हैं .हाँ आंकड़ा अब मेरी पसंद का बन रहा है. अन्य प्रकार की युतियाँ कुछ असर डाल सकती है जिनके बारे में आगे जिक्र करूँगा।किन्तु किसी भी भ्रमित करने वाले ज्योतिषी से सावधान रहें जो ग्रहण दोष के नाम पर आपको ठग रहा है .दोष है तो उपाय अवश्य है किन्तु यह बहुत संयम के साथ करने वाला कार्य है .मात्र  तीस सेकंड में टी .वी पर बिना आपकी कुंडली देखे ग्रहण दोष सम्बन्धी यंत्र आपको बेचने वाले ठगों से सचेत रहें ,शब्दों पर मित्रों से थोडा रिआयत चाहूँगा ,बेचने  वाले नहीं अपितु भेड़ने वाले महा ठगों से बचना दोस्तों.एक पाठक का पैसा भी बचा तो जो भी प्रयास आज तक ब्लॉग के जरिये कर रहा हूँ ,समझूंगा काम आया .   जैसा की हमें ज्ञात है सूर्य हमारी कार्य करने की क्षमता का ग्रह है,हमारे सम्मान ,हमारी प्रगति का कारक है यह जगतपिता है,इसी की शक्ति से समस्त ग्रह चलायमान है,यह आत्मा कारक और पितृ कारक है,पुत्र राज्य सम्मान पद भाई शक्ति दायीं आंख चिकित्सा पितरों की आत्मा शिव और राजनीति का कारक है..राहु के साथ जब भी यह ग्रहण दोष बनाता है तो देखिये इसके क्या परिणाम होते हैं राहु की आदत को समझने के लिये केवल छाया को समझना काफ़ी है। राहु अन्दरूनी शक्ति का कारक है,राहु सीमेन्ट के रूप में कठोर बनाने की शक्ति रखता है,राहु शिक्षा का बल देकर ज्ञान को बढाने और दिमागी शक्ति को प्रदान करने की शक्ति देता है,राहु बिजली के रूप में तार के अन्दर अद्रश्य रूप से चलकर भारी से भारी मशीनो को चलाने की हिम्मत रखता है,राहु आसमान में बादलों के घर्षण से उत्पन्न अद्रश्य शक्ति को चकाचौन्ध के रूप में प्रस्तुत करने का कारक होता है,राहु जड या चेतन जो भी संसार में उपस्थित है और जिसकी छाया बनती है उसके अन्दर अपने अपने रूप में अद्रश्य रूप में उपस्थित होता है।.राहु जाहिर रूप से बिना धड का ग्रह  है ,जिस के पास स्वाभाविक रूप से दिमाग का विस्तार है .यह सोच सकता है,सीमाओं के पार सोच सकता है .बिना किसी हद के क्योंकि यह बादल है ..जिस कुंडली में यह सूर्य को प्रभावित करता है वहाँ जातक बिना कोई सार्थक प्रयास किये ,कल्पनाओं के घोड़े  पर सवार रहता है .बार बार अपनी बुद्धि बदलता है .आगे बढने के लिए हजारों तरह की तरकीबों को आजमाता है किन्तु एक बार भी सार्थक पहल उस कार्य के लिए नहीं करता, कर ही नहीं पाता क्योंकि प्लान को मूर्त रूप देने वाला धड उसके पास नहीं है .अब वह खिसियाने लगता है .पैतृक  धन  बेमतलब के कामों में लगाने लगता है .आगे बड़ने की तीव्र लालसा के कारण चारों तरफ हाथ डालने लगता है और इस कारण किसी भी कार्य को पूरा ही नहीं कर पाता .हाथ में लिए गए कार्य को (किसी भी कारण) पूरा नहीं कर पाता ,जिस कारण कई बार अदालत आदि के चक्कर उसे काटने पड़ते हैं 

.सूर्य की सोने जैसी चमक होते हुए भी धूम्रवर्णी  राहु के कारण उसकी काबिलियत समाज के सामने मात्र लोहे की रह जाती है. उसकी क्षमताओं का उचित मूल्यांकन नहीं हो पाता .अब अपनी इसी आग को दिल में लिए वह इधर उधर झगड़ने लगता है.पूर्व दिशा उसके लिए शुभ समाचारों को बाधित कर देती है .पिता से उसका मतभेद बढने लगता है .स्वयं को लाख साबित करने की कोशिश भी उसे परिवार की निगाह में सम्मान का हक़दार नहीं होने देती .घर बाहर दोनों जगह उसकी विश्वसनीयता पर आंच आने लगती है सूर्य के साथ राहु का होना भी पितामह के बारे में प्रतिष्ठित होने की बात मालुम होती है ,जातक के पास कानून से विरुद्ध काम करने की इच्छायें चला करती है,पिता की मौत दुर्घटना में होती है,या किसी दवाई के रियेक्सन या शराब के कारण होती है,या वीमारी सेजातक के जन्म के समय पिता को चोट लगती है,जातक को नर  सन्तान भी कठिनाई से मिलती है,पत्नी के अन्दर गुप चुप रूप से सन्तान को प्राप्त करने की लालसा रहती है,पिता के किसी भाई को जातक के जन्म के बाद मौत जैसी स्थिति होती है।.वहीँ दूसरी और केतु (जिस के पास सिर नहीं है ) से सूर्य की युति होने पर  जातक बिना सोचे समझे कार्य करने लगता है .यहां वहां मारा मारा फिरता है .बिना लाभ हानि की गणना किये कामों में स्वयं को उलझा देता है .लोगों के बहकावे में तुरंत आ जाता है . मित्र ही उसका बेवक़ूफ़ बनाने लगते हैं केतु और सूर्य का साथ होने पर जातक और उसका पिता धार्मिक होता है,दोनो के कामों के अन्दर कठिनाई होती है,पिता के पास कुछ इस प्रकार की जमीन होती है,जहां पर खेती नही हो सकती है,नाना की लम्बाई अधिक होती है,और पिता के नकारात्मक प्रभाव के कारण जातक का अधिक जीवन नाना के पास ही गुजरता है या नाना से ख़र्च में मदद मिलती है इसी प्रकार जब चंद्रमा की युति राहु या केतु से हो जाती है तो जातक लोगों से छुपाकर अपनी दिनचर्या में काम करने लगता है . किसी पर भी विश्वास करना उसके लिए भारी हो जाता है .मन में सदा शंका लिए ऐसा जातक कभी डाक्टरों तो कभी पण्डे पुजारियों के चक्कर काटने लगता है .अपने पेट के अन्दर हर वक्त उसे जलन या वायु गोला फंसता हुआ लगता हैं .डर -घबराहट ,बेचैनी हर पल उसे घेरे रहती है .हर पल किसी अनिष्ट की आशंका से उसका ह्रदय  कांपता रहता है .भावनाओं से सम्बंधित ,मनोविज्ञान से सम्बंधित ,चक्कर व अन्य किसी प्रकार के रोग इसी योग के कारण माने जाते हैं . चंद्रमा यदि अधिक दूषित हो जाता है तो मिर्गी ,पागलपन ,डिप्रेसन,आत्महत्या आदि के कारकों का जन्म होने लगता हैं .चंद्रमा भावनाओं का प्रतिनिधि ग्रह होता है .इसकी  राहु से युति जातक को अपराधिक प्रवृति देने में सक्षम होती है ,विशेष रूप से ऐसे अपराध जिसमें क्षणिक उग्र मानसिकता कारक बनती है . जैसे किसी को जान से मार देना , लूटपाट करना ,बलात्कार आदि .वहीँ केतु से युति डर के साथ किये अपराधों को जन्म देती है . जैसे छोटी मोटी चोरी .ये कार्य छुप कर होते है,किन्तु पहले वाले गुनाह बस भावेश में खुले आम हो जाते हैं ,उनके लिए किसी ख़ास नियम की जरुरत नहीं होती .यही भावनाओं के ग्रह चन्द्र के साथ राहु -केतु की युति का फर्क होता है. ध्यान दीजिये की राहु आद्रा -स्वाति -शतभिषा इन तीनो का आधिपत्य रखता है ,ये तीनो ही नक्षत्र स्वयं जातक के लिए ही चिंताएं प्रदान करते हैं किन्तु केतु से सम्बंधित नक्षत्र अश्विनी -मघा -मूल दूसरों के लिए भी भारी माने गए हैं .राहु चन्द्र की युति गुस्से का कारण बनती है तो चन्द्र - केतु जलन का कारण बनती है .(यहाँ कुंडली में लग्नेश की स्थिति व कारक होकर गुरु का लग्न को प्रभावित करना समीकरणों में फर्क उत्पन्न करने में सक्षम है).जिस जातक की कुंडली में दोनों ग्रह ग्रहण दोष बना रहे हों वो सामान्य जीवन व्यतीत नहीं कर पाता ,ये निश्चित है .कई उतार-चड़ाव अपने जीवन में उसे देखने होते हैं .मनुष्य जीवन के पहले दो सर्वाधिक महत्वपूर्ण  ग्रहों का दूषित होना वास्तव में दुखदायी हो जाता है .ध्यान दें की सूर्य -चन्द्र के आधिपत्य में एक एक ही राशि है व ये कभी वक्री नहीं होते . अर्थात हर जातक के जीवन में इनका एक निश्चित रोल होता है .अन्य ग्रह कारक- अकारक ,शुभ -अशुभ हो सकते हैं किन्तु सूर्य -चन्द्र सदा कारक व शुभ ही होते हैं .अतः इनका प्रभावित होना मनुष्य के लिए कई प्रकारप की दुश्वारियों का कारण बनता है . अतः एक ज्योतिषी की जिम्मेदारी है की जब भी किसी कुंडली का अवलोकन करे तो इस दोष पर लापरवाही ना करे .उचित मार्गदर्शन द्वारा क्लाइंट को इस के उपचारों से परिचित कराये .किस दोष के कारण जातक को सदा जीवन में किन किन स्थितियों में क्या क्या सावधानियां रखनी हैं ताकि इस का बुरा प्रभाव कम से कम हो , इन बातों से परिचित कराये . यहां पर कुछ उपाय वता रहा हु जो आप कर सकते हैं अगर असल में आपकी कुंडली में ग्रहन  दोष हो तो पहले यह कुंडली दिखाकर जानकारी हासिल कर ले कोशिश करूँगा की कभी भविष्य में इन योगों को कुंडलियों का उदाहरण देकर बताऊँ .उपाय :- 1) यह योग जन्मपत्रिका के जिस भाव में हो, उतनी ही मात्रा में सूर्य के शत्रु ग्रहो (शनि, राहू और केतु) का समान ले, और ग्रहण अवधि में मध्यकाल में अपने सिर से सात बार एंटीक्लॉक वाइज उसारा करके किसी भी नदी के तेज बहते जल में प्रवाहित दे। जैसे की इस पत्रिका में यह युति सप्तम भाव में है तो इसलिए जातक या जातिका को  700 ग्राम जौ को दुघ का छींटा लगाकर 700 ग्राम सरसो का तेल, 700 ग्राम साबुत बादाम, 700 ग्राम लकड़ी के कोयले, 700 ग्राम सफ़ेद व काले तिल मिलेजुले, 7 नारियल सूखे जटावले और बजने वाले तथा 70 सिगरेट बगैर फ़िल्टर वाली ले। 
2) कम से कम 60 ग्राम का शुद्ध चांदी का हाथी जिसकी सूंड नीचे की और हो, अपने घर पर लाकर चांदी या स्टील की कटोरी में गंगाजल भरकर उसमे खड़ा करके अपने बेड रूम में रखें। ध्यान रखे की इस हाथी पर सूर्य की रौशनी न पहुँचे। 
3) सूर्य की किरणें सीधे अपने सिर पर न पड़ने दे अर्थात अपना सिर ढक कर रखें।
4) अपने पुश्तैनी मकान की दहलीज के नीचे चांदी का पतरा या तार बिछाए। 
5) राहु से सम्बंधित कोई भी वस्तु अपने घर पर न रखें और न ही उनका सेवन/ग्रहण करे। जैसे कि : नीला और सलेटी रंग, तलवार, अभ्रक, खोटे सिक्के (जो आज चलन में नही है), बंद घड़ियाँ, बारिश में भीगी लकड़ी, जंग लगा लोहा, ख़राब बिजली का समान, रद्दी, लकड़ी के कोयले, धुँआ, टूटे-फूटे खिलौने, टूटी-फूटी चप्पलें, टूटे-फूटे बर्तन, खली डिब्बे, टूटा हुआ शिक्षा, ससुराल पक्ष, मूली या इससे बनी  वस्तु, जौ या इससे बनी कोई वस्तु, नारियल (कच्चा या पक्का) या इससे बनी कोई भी वस्तु, नीले जीव, नीले फूल या नीले रंग के कोई भी वस्तु आदि।   
6) अपने घर की छत, सीढ़ियों के नीचे का स्थान और लेट्रिंग-बाथरूम सदा साफ़ रखें। 
7) लाल और नीले कलर का कॉम्बिनेशन या ये दोनों कलर अलग अलग कभी भी धारण न करे। 
8) अपने जीवन में कभी भी मांस-मदिरा, बीयर, तम्बाकू आदि का सेवन न करें। आशा करता हु आप को लेख पसंद आया होगा मित्रों आप भी अपनी कुंडली दिखाना चाहते हैं या अपनी समस्या का हल चाहते हैं तो आप समर्पक करें हमारी फीस हमारे bank ac में जमा करानी होगी अघिक जानकारी के लिए हमारे नम्वरो पर वात करें 7597718725-9414481324 आचार्य राजेश कुमार

मंगलवार, 17 दिसंबर 2019

जीवन में भटकाव के कारतत्व


मित्रों ऊपर दी गई कुंडली  मीन लगन की है और लगनेश गुर पंचम भाव मे केतु के साथ है,लगनेश का केतु के साथ होने का अर्थ जीवन मे भटकाव के अलावा और कुछ भी प्राप्त नही होता है जिस भाव का केतु होता है उसी भाव के फ़लो मे जातक को भटकाने का काम करता है वह चाहे अच्छे रूप मे हो या खराब रूप में। गुरु का स्थान पंचम मे होने से विद्या और बुद्धि के क्षेत्र मे है,जल्दी से धन कमाने के क्षेत्र मे है खेलकूद और रोजाना की जिन्दगी मे असीमित लालसाओं तथा प्राप्तियों के प्रति चिन्ता करने के क्षेत्र मे है। ग्यारहवे भाव में स्थित राहु भी गुरु को अपनी युति प्रदान कर रहा है। केतु का भटकाव नौकरी के लिये जल्दी से जल्दी धन कमाकर अपने को समाज मे प्रदर्शित करने के लिये शादी और कार्य करने वाली पत्नी की प्राप्ति के लिये गुरु केतु की तीसरी द्रिष्टि सप्तम मे होने से है,और सप्तम मे स्थापित शुक्र जो हिम्मत देने का भी मालिक है और अपमान करने के साथ साथ रोजाना की जिन्दगी मे जोखिम भी लेने के लिये माना जा सकता है। गुरु केतु की पंचम द्रिष्टि नवे भाव पर है और नवे मे होने से जातक का जो भी ऊंचे शिक्षा का क्षेत्र है वह भी बाधित हो गया है और धन आदि कमाने के चक्कर मे तथा शिक्षा के क्षेत्र मे जाने से अपनी वास्तविक कार्यप्रणाली को बदलने के भी उत्तरदायी है। गुरु कर्क राशि का उच्च का है इसलिये जीवन मे उन्नति साधारण मार्ग से अपने को इज्जत और मान मर्यादा मे रखकर चलने से भी मानी जायेगी केतु के साथ होने से और गुरु केतु के द्वारा अष्टम स्थान पर चन्द्र सूर्य बुध को व्यापारिक बल देने के कारण जातक को धन सम्बन्धी काम जैसे व्यापारिक धन को जोखिम से बचाना सरकारी कारणो से धन की बरबादी को बचाना व्यापारिक कानूनो के प्रयोग से जनता को धन सम्बन्धी बचाव का रास्ता देना आदि कारण जातक के लिये वास्तविक उद्देश्य का रास्ता बताते है लेकिन राहु पिछले चौवन महिने से जातक के दुसरे भाव तीसरे भाव और अब चोथे भाव मे गोचर करने से जातक के अन्दर एक प्रकार का जल्दी से कमाने और धन की जरूरत को पूरा करने के लिये तथा छोटी सी उमर मे ही लोगो के लिये आदर्श बनने का भूत सवार कर रहा है। इस राहु के कारण जातक अपनी वास्तविक मर्यादा को भूल गया है वह अपने को कभी तो इतना व्यस्त कर लेता है कि खाने पीने सोने और मौज मस्ती से दूर चला जाता है,घर मे एक प्रकार का सन्नाटा प्रदान करने के लिये पिता के लिये माता के लिये सेहत सम्बन्धी कष्ट प्रदान करने का कारण चिन्ता से देने के लिये और जो भी कारण शिक्षा सम्बन्धित है वह केवल कनफ़्यूजन मे लेकर उन्हे समय से नही पूरा करने की बात से भी माने जाते है। जातक केवल घर की प्राथमिक अवस्थाओ को पूरा करने के बाद चाहता तो वह अपने वास्तविक उद्देश्य जो ऊपर धन सम्बन्धी कारणो की शिक्षा के लिये बताई गयी है एक चार्टेड एकाउन्टेन्ट की हैसियत से जीवन को निकालने के लिये प्रकृति ने जो साधन बुद्धि और ज्ञान दिया था वह प्रयोग नही करके केवल धन के प्रति सोचने और अपने को बेकार के कनफ़्यूजन मे ले जाकर समय और सेहत के साथ मूल्यवान समय को बरबाद करने का कारण ही तो जातक को मिल रहा है दोस्ती के भाव मे राहु के होने से जो भी जातक के दोस्त है वह जातक को कभी तो राजकीय सेवा मे जाने के लिये कभी स्कूली काम करवाकर बिना किसी लाभ के भटकाने के लिये कभी कुछ और कभी कुछ करने का भूत सवार करने के बाद जातक के टारगेट से दूर जाने का उपक्रम करने के लिये अपनी शक्ति को प्रदान कर रहा है।गुरु से शनि की स्थिति छठे भाव मे होने से जातक के लिये कहा जा सकता है कि जातक का जीवन कठिन से कठिन मेहनत करने के बाद जो भी प्राप्त करेगा वह धन ग्यारहवे मंगल के प्रभाव के कारण जिस पर मित्र भाव के राहु का असर है अचानक खर्च करने के कारको मे अपना सब कुछ खर्च कर देगा और फ़िर वृष राशिका मंगल अपने कारको से परिवार की जिम्मेदारी के प्रभाव को साथ मे लाकर जातक को कर्जा दुश्मनी बीमारी से ग्रस्त करने के कारको को पैदा करेगा।
शुक्र जो मंगल के घेरे मे है साथ ही मित्र भाव के राहु के घेरे मे है जातक की शादी के बाद उसके मित्रो का प्रभाव पारिवारिक जीवन पर भी जायेगा और शुक्र जो पत्नी के रूप मे है जातक की अन्देखी के कारण वह अपने वैवाहिक जीवन को नही सम्भाल पायेगा जैसे ही शुक्र को मौका मिलेगा वह धन या खानपान के प्रभाव से अथवा उत्तेजना मे अपने को गुप्त रूप से परिवार के साथ विश्वासघात करने के लिये अपने असर को प्रदान करेगा।
जातक का यह कारण जातक के दादा से शुरु हुआ है जैसे जातक के दादा दो भाई थे और दोनो मे एक की ही पारिवारिक वंशावली आगे चली,दो दादिया एक दादा के रही घर का परिवार का जो भी संचालन था वह किसी धर्म या शिक्षा या घरेलू व्यापारिक कारण से बरबाद होता रहा जातक के दादा या पिता अपने परिवार को पैत्रिक माना जाता है को छोड कर दूसरी जगह पर जाकर बसे और उस बसावट मे न्याय आदि के कारण अपने पूर्वजो के प्रति धारणा जो चलनी चाहिये थी वह नही मिल पायी और पिता के कारणो से जातक को आजीवन भटकाव का रास्ता सामने मिल गया। जातक के पिता का रूप दो बहिने और दो भाई के रूप मे माना जाता है। मित्रों अगर आप भी अपनी कुंडली हमको दिखाना जब बनवाना चाहते हैं! तो आप हमसे संपर्क कर सकते हैं! मित्रों हमारी सारी सेवाएं  paid हैं!

शनिवार, 7 दिसंबर 2019

क्यों काम नहीं करते हैं ज्योतिष के अनुसार किए उपाय?


क्यों काम नहीं करते हैं ज्योतिष के अनुसार किए उपाय?
मित्रों हमारा उद्देश्य किसी भी विद्वान को आहत करने का नहीं है, अतः अनजाने में भी यदि किसी को कष्ट हो तो बात प्रारंभ करने से पहले ही क्षमा चाहेंग हम उस आदमी को धोखा देने का असफल प्रयास कर रहे हैं, जो देवता तुल्य हमें सम्मान दे रहा है, अपनी सामर्थ्य के अनुसार धन भी, क्या हमें ऐसा करके हमेशा के लिए उसकी नजरों से गिरने का काम करना चाहिए, केवल पैसे की भूख हमारी छवि को हमेशा के लिए समाप्त करने के साथ ज्योतिष शास्त्र की आस्था को भी राहत न मिलने पर समाप्त कर देती है सामान्य परेशान लोगों में से अधिकतर की शिकायत होती है कि ,उनकी समस्या के लिए वे बहुतेरे ज्योतिषियो ,तांत्रिकों ,पंडितों से संपर्क करते हैं किन्तु उन्हें कोई लाभ नहीं मिलता या बहुत कम लाभ दृष्टिगोचर होता है ,तथा उनकी परेशानी यथावत रहती है अथवा केवल कुछ समय राहत देकर फिर वैसी ही हो जाती है |वे यहाँ वहां अपनी समस्या का समाधान पाने के चक्कर में घूमते रहते हैं पर कोई सही समाधान नहीं मिलता अंततः थक हारकर मान लेते हैं की जो किस्मत में होता है वाही होता है ,या कोई उपाय काम नहीं करता ,यह सब बेकार हैकुछ तो यहाँ वहां घूमते हुए खुद थोड़ी बहुत ज्योतिष समझने लगते हैं ,टोने -टोटके आजमाते आजमाते ,शाबर मंत्र ,तांत्रिक मंत्र आदि पढ़कर , थोड़े बहुत टोने -टोटके जान जाते हैं ,कुछ मंत्र जान जाते हैं ,कुछ पूजा पाठ ,स्तोत्र आदि जान जाते हैं ,फिर ज्योतिष ,तंत्र -मंत्र की कुछ सडक छाप किताबों को पढ़कर ,नेट पर खोज कर अपनी समस्या का समाधान ढूंढते हुए खुद को ज्योतिषी और तांत्रिक मान लेते हैं |समस्या उनकी ख़त्म हो न हो ,उन्हें खुद राहत मिले या न मिले पर लोगों को उपाय जरूर लता ने लग जाते हैं और लोग भी ऐसे हैं यहां मुफ़्त का चाहते हैं वुखार भी क्यों ना होऐक तरफ मेरे जैसे ठग ज्योतिषी तांत्रिक आचार्य वन कर और लोगों को टोटके ,उपाय ,मंत्र बांटने लगते हैं ,धन लेकर उनके लिए अनुष्ठान ,क्रिया करने को कहने लगते हैं और फिर इसे व्यवसाय बना लूटने का धंधा बना लेते हैं |यह काम सोसल मीडिया ,इंटरनेट ,वेबसाईट के माध्यम से खूब होता है सामान्य लोग समझ नहीं पाते अथवा वास्तविक ज्योतिषी ,तांत्रिक ,पंडित और इन छद्म नामो वाले ज्योतिषी ,पंडित ,तांत्रिक में अंतर नहीं कर पाते ,अंततः वे खुद के धन का नुक्सान' हानि पाते हैं ,खुद की किस्मत को कोसते हैं अथवा ज्योतिष ,तंत्र -मंत्र ,उपायों को ही बेकार मान लेते हैं |उनका विश्वास हिल जाता है ,कभी कभी भगवान् पर से भी विश्वास उठने लगता हएक समस्या लोगों की नासमझी से भी उत्पन्न होती है लोग कर्मकांड ,पूजा पाठ ,शादी विवाह ,कथा कराने वाले पंडित जी से .प्रवचन करने वाले व्यास या शास्त्री जी से ,भागवत ,रामायण कथा वाचकों से भविष्य जानने की कोशिश करते हैं और उपाय पूछते हैं उनकी विशेषज्ञता पूजा पाठ ,कर्मकांड ,प्रवचन ,कथा ,भाषण कला में है न की ज्योतिष ,तंत्र आदि भविष्य जानने वाली गूढ़ विद्याओं में इनके उपाय पूजा पाठ ,दान ,गौ ,नदी ,पीपल ,अनुष्ठान तक सीमित रहेंगे न की मूल समस्या को पकड़ वहां प्रतिक्रिया करने वाले उपायों पर आजकल ज्योतिष ,तंत्र को व्यसाय और लाभ का स्रोत मान ही अधिकतर लोग आकर्षित हो रहे |साधुओं ,मठाधीशों के आसपास भीड़ देखकर लोग आकर्षित हो रहेतो यह कितना लाभ पहुंचाएंगे सोचने की बात है जानने समझने की अतः रटे रटाये उपाय ,पूजा पाठ ,दान बता दिए |न क्षमता है समस्या पकड़ने की न रूचि है कुछ समझने में अतः अक्सर तीर तुक्के साबित होते हैं ,पर इनके प्रभामंडल के आगे व्यक्ति कुछ सोच भी नहीं पाता और अपने भाग्य को ही दोषी मानता रह जाता है |अब इतने बड़े आडम्बर वाले गुरु जी ,ज्योतिषी जी ,पंडित जी ,तांत्रिक अघोरी महाराज गलत थोड़े ही बोलेंगे ,हमारा ही भाग्य खराब है जो कोई उपाय काम नहीं कर रहा |ज्योतिष ,कर्मकांड ,पूजा पाठ ,साधना एक श्रम साध्य ,शोधोन्मुख कार्य है |इनमे समय ,एकाग्रता लगती है |गहन अध्ययन ,मनन ,चिन्तन और साधना करनी होती है |पुराने समय से देखें तो किसी गुरु के केवल एक दो शिष्य ही उनसे पर्याप्त ज्ञान ले पाते थे धीरे धीरे क्रमिक गुरु परम्परा में योग्य शिष्यों ,साधकों की कमी होती गयी ,जो थे वे चुपचाप अपनी साधना ,अध्ययन करते ,ज्ञान खोज में सुख पाते गुमनाम रहे और कम ज्ञान वाले अथवा स्वार्थी ,भौतिक लिप्सा युक्त शिष्यों की भरमार होती गयी |आज तक आते आते ,वास्तविक साधक खोजे नहीं मिलता ,सही गुरु की तलाश वर्षों करनी होती है जबकि हर गली और हर शहर में ढेरों गुरु और साधक मिल जाते हैं |बड़े बड़े नाम ,उपाधि वाले साधक ,ज्योतिषी ,गुरु मिल जाते हैं जिनके पास लाखों हजारों की भीड़ भी होती है ,अनुयायी होते हैं |फिर भी लोगों की समस्याएं बढती ही जा रही ,उनको सही उपाय नहीं मिल पा रहे ,वे भट

शुक्रवार, 6 दिसंबर 2019

फलित ज्योतिष की अवधारणा


फलित ज्योतिष की अवधारणा को समझने के लिए समय रेखा और उस पर भूत वर्तमान और भविष्य के बिन्दुओं की मूल प्रकृति को समझना आवश्यक है.अपने नैसर्गिक गुणों के कारण अतीत निश्चित और अपरिवर्तनीय होता है जो वीत गया उसको वदला नही जा सकता ,वर्तमान प्रत्यक्ष होता है और भविष्य अनिश्चित और परिवर्तनीय होता है.जहाँ तक विज्ञान के भी जानने की बात है अपने पूर्ण रूप में अतीत(क्या होचुका हैऔर वर्तमान(क्या हो रहा है को भी जान नहीं पाया है तो भविष्य के बारे में वताना कठीन है को सही बताने का दावा करना विज्ञान और ज्योतिष दोनों के लिए कठिनाई भरा ही होगा.मगर इससे न तो विज्ञान मौसम,प्रगति, अर्थव्यवस्था और भविष्य में होने वाले परिवर्तनों के बारे में जानने के लिए होने वाले अनुसंधान रोकेगा और न ही ज्योतिष के आधार पर भविष्यवाणियां करना रुकेगा.मगर विज्ञान अपने एकत्र आंकडों के आधार पर अपनी भविष्यवाणियों को ज्यादा सशक्त आधार दे पा रहा है और ज्योतिष अपनी अवधारणाओं और उनके परिक्षण के अभाव में अतार्किक होता जारहा है.मेरा जोर इस बात पर है कि ज्योतिष के अंतर्भूत तत्वों के आधार पर निश्चित अवधारणाएं बना कर उनका वैज्ञानिक परिक्षण किया जावे.और प्रयोग प्रेक्षण और निष्कर्ष विधि से वर्तमान नियमों का परिक्षण किया जाेये और आवश्यक हो तो संशोधन किया जावे. भारतीय फलित ज्योतिष में चेतन और अचेतन की महत्वपूर्ण भूमिका है.क्योंकि चेतना के प्रकट होने के क्षण(जन्म)से ही जन्म कुंडली का निर्माण कर फलित निकाला जाता है.समस्त जड़ और अचेतन जगत तो वैसे ही अत्यंत सटीक वैज्ञानिक नियमों से संचालित होता है.अनु परमाणु और क्वार्क से लेकर विशाल गेलेक्सियाँ क्षणांश के लिए भी नियम नहीं तोड़ती.फिर भी हम उनके बारे में क्षणांश ही जान पाए है.इनके भविष्य के बारे में वैज्ञानिक नियमो से जाना जासकता है.पर जहाँ तक चेतन जगत का सवाल है उसके नियम अधिक जटिल है इतने जटिल कि हम उनके बारे में वैज्ञानिक तौर पर कुछ नहीं जानते है.अतः इसकी भविष्यवाणी किया जाना कठिन है.इसकारण से भी भविष्यवाणी और कठिन हो जाती है कि चेतना से संचालित होने वाली इकाइयों के पैरामीटर अनगिनत होते है.इन सब पैरामीटर को समाहित करते हुए नियम खोजना कठिन होता है. फिर शायद चेतना से संचालित इकाइयों के बारे में भविष्य वाणी किया जाना अवैज्ञानिक है. इसको उदहारण से समझा जा सकता है.एक जड़ वस्तु जैसे पत्थर आदि को गिराने या फेंकने पर उसकी प्रारंभिक सूचनाओं के आधार पर उसकी गति, तय की जाने वाली दूरी, प्रभाव आदि की सही सही भविष्य वाणी की जासकती है पर एक चेतन प्राणी जैसे कुत्ता आदि जानवर के व्यवहार के बारें में भविष्यवाणी कम सटीकता से की जा सकेगी.मानवीय चेतना का उच्चतम स्तर व्यवहार के बारे में सटीकता और कम हो जायेगी.और फिर समाज की सामूहिक चेतना के बारे में यह संभावना और कम हो जायेगी.यहाँ तक हम वर्तमान की बात कर रहे है फिर चेतन इकाइयों के भविष्य के बारे में जो अनिश्चित और परिवर्तनीय है कह पाना अति कठिन है.फिर निश्चित ही फलित वैज्ञानिक दायरे से दूर की वस्तु है. मानव सभ्यता के आरम्भ से लेकर आज तक कई जीनियस,प्रोफेट,भविष्यवक्ता और संत हुए है जिनकी भविष्यवाणी सटीकता तक सही हुई है. एडगर कैसी और जूल वर्न बीसवीं सदी के प्रसिद्द भविष्यवक्ता है.(एडगर कैसी के बारे में और उनकी सात प्रसिद्द भविष्यवानियों के बारे में लिंक जूल्स वर्न ने अपने फिक्शन में सटीक भविष्यवानियाँ की थी.नस्त्रदामस से आजतक के भविष्यवक्ताओं ने चेतन इकाइयों और उनसे प्रभावित घटनाओं के बारें में तन्द्रा में भविष्यवानियाँ की है.रमल,तेरोकार्ड शकुन, ओमेन और जन्म कुंडली ये सब माध्यम है भविष्य जानने के उपकरण है.इसका उपयोग करके लोग अवचेतनता और समाधि में जाकर भविष्यवाणी करते है.सपष्ट रूप से इन्हें अवैज्ञानिक कहा जासकता है. पर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि मानव जाति ने जितना समय बाहर के संसार का विज्ञान जानने के लिए बिताया है उससे कई गुना अधिक समय उसने अपने आंतरिक संसार और अवचेतन के अध्ययन के लिए दिया है. भारतीय ऋषियों ने सर्व प्रथम पृथवी के सापेक्ष खगोलीय गणनाओं के माध्यम से सटीक समय रेखा का पता लगाया.उस समय रेखा पर ग्रहों की स्थिति के आधार पर जन्म कुंडली का आविष्कार किया.ग्रहों की स्थिति के आधार पर ब्रह्मांड की उस तात्क्षणिक स्थिति को खोजा जो जातक के इस ब्रह्माण्ड में प्रथम चेतन क्षण को दर्शाता है.ऊर्जसके.कुलमिलाकर सबसे पहले भविष्यवानियों की आधारभूत अवधारणाओं का निर्माण भारतीय ज्योतिषाचार्यों ने किया.और समय के साथ हुए अनुभविक प्रयोगों से भ्रगुसंहिता जैसे ग्रंथो को लिखा गया.अफसोस यह रहा की बाद में लोगों ने इसे चरम विद्या बनाकर इसके प्रगति के द्वार बंद कर दिए.आज ज्योतिष और उसकी भविष्यवानियाँ तो है पर भारतीय ज्योतिष का वैज्ञानिक आधार लुप्त हो चुका है.भविष्यवक्ता यह घोषणा तो कर देते है की दूसरे भाव पर गुरु की पूर्ण दृष्टि व्यक्ति को धनवान बनाते है.पर गुरु की खगोलीय स्थिति का समग्र चित्र उनके मस्तिष्क में कभी नहीं बन पाता है.नहीं ऐसी कोई अवधारणा निर्मित कर परीक्षण करने का प्रयास होता है.उसके बिना ज्योतिष को विज्ञान कहने का दावा मजबूत आधार नहीं प्राप्त कर सकता है. मैं फिर भी इसे विज्ञान के रूप में मान कर इसकी गणनाओं और भविष्य कथनों का वैज्ञानिक आधार परिक्षण करना चाहा  रेखाओं के प्रवाह और दिशा के आधार पर वह परास निर्धारित की जो किसी भविष्यवक्ता को संभावना की दिशा बता सके ओर फिर दिशा से दशा वदली जा सके जय मा काली

रविवार, 1 दिसंबर 2019

राहु मंगल के बीच शनिदेव यानि तीखी मिर्चे का स्वाद


मीन लगन में गुरु दूसरा वक्री तीसरे केतु वृष राशि के चन्द्रमा चौथा मिथुन राशि का पंचम में मंगल कर्क राशि का और सप्तम मे कन्या का शनि अष्टम भाव मे सूर्य शुक्र बुध नवे भाव मे राहु के समय रसोई की व्याख्या अगर की जाये तो कुछ इस प्रकार से होगी। दूसरा भाव मुख का कारक है,तीसरा भाव खाने वाली चीज की बनावट का कारक है,चौथा भाव मुंह की अवस्था का कारक है पंचम भाव स्वाद का कारक है,छठा भाव रुचि का कारक है सप्तम भाव खाने वाले भोजन के रखने का स्थान है,अष्टम भाव भोजन मे मिलाये जाने वाले मशालो का कारक है नवम भाव भोजन के बाद मिलने वाले प्रभाव का कारक माना जाता है,दसवा भाव भोजन के करने का तरीका ग्यारहवा भाव भोजन के बाद मिलने वाले फ़र्क के लिये और बारहवा भाव भोजन के बाद मिलने सन्तुष्टि असंतुष्टि का कारक है। मीन राशि आराम का स्थान है,इस स्थान को सप्तम का शनि का जो कन्या राशि का है स्टील की प्लेट का कारक है,गुरु जो वक्री होकर प्लेट मे रखे सामान का कारक है,कारण मार्गी गुरु सम्पूर्णता का कारक है यानी जो प्लेट मे होना चाहिये वह पूरी तरह से पीली सामग्री से ही बना हुया होना चाहिये,लेकिन वक्री गुरु को केवल रखे सामान में ऊपरी पर्त के मामले मे ही जाना जायेगा,तीसरे केतु को तीन की संख्या में लम्बी वस्तु के रूप मे देखा जायेगा,उस वस्तु को दूसरे भाव मे ले जाने के पहले मुख की स्थिति में चौथा चन्द्रमा अपने अनुसार खाने के पहले लार को प्रकट करने वाला है,पंचम का मंगल गर्म तासीर से और तीखा स्वाद देने वाला है,छठे भाव का कारण भूख तो लगी है और भूख मे भोजन का समय नही है यानी शाम का समय है,लेकिन भोजन के लिये खाना जरूरी है,खाने मे तीन लोग साथ साथ है,पहले दो ही थे लेकिन एक बाद मे आ गया।

गुरुवार, 21 नवंबर 2019

शनिदेव पर तेल चढ़ाना

जब कोई भी ग्रह अपने खराब फ़ल को प्रदान करता है तो ज्योतिषी अपने अनुसार उस ग्रह के बारे मे उपाय बताने लगते है। इन्ही उपायों मे एक उपाय है
शनि पर तेल चढाना,इस उपाय का वास्तविक कारण और मिलने वाले फ़लो के बारे मे विस्तार से जानना जरूरी है।
शनि ग्रह कठोर और ठंडे स्वभाव के लिये कहा गया है,शनि की द्शा अन्तर्दशा मे शनि के गोचर मे साढे शाती के समय मे शनि अपने फ़लो को देता है,इन फ़लो मे वह जातक को कठोर जीवन जीने और विषम परिस्थितियों मे रहने तथा काम करने की बुद्धि को भी प्रदान करता है और स्वविवेक से जीवन जीने के लिये भी अपने अनुसार परिस्थिति को प्रदान करता है।लाखो किस्से कहानिया आपबीती आदि बाते पढने और सुनने को मिलती है। मैने  इसमे शनि की दशा को भी भोगा है अन्य ग्रहो के साथ की अन्तर्दशा को भी भोगा है साढेशाती भी भोगी है और शनि को नजदीक से पहिचाना भी है। शनि करके सिखाने वाला ग्रह है जैसे स्कूल कालेज मे पढा भी जाता है और करके सीखा भी जाता है प्रेक्टिकल नाम की शिक्षा करके सीखने की क्रिया ही मानी जाती है। केवल पढने से और देखने से कोई भी काम नही किया जा सकता है जब उस काम को करने के लिये मानस नही बने और काम को किया नही जायेगा वह किसी भी प्रकार से न तो दिमाग मे बैठेगा और न ही किये गये काम का उचित फ़ल ही मिल पायेगा। शनि की कठोरता को समझने के लिये किये जाने वाले काम का रूप और काम को करने के प्रति लगाव तथा काम करने के लिये प्रयोग की जाने वाली शक्ति का प्रयोग जानना जरूरी होता है। किसी काम को नही करने और बिना किये ही उसका फ़ल प्राप्त होने का मतलब है कि मन के अन्दर या शरीर के अन्दर कार्य करने की क्षमता का विकास नही हो पाया है और उस कारण को एक प्रकार से ऐसे भी जाना जाता है कि जो कार्य करना था उसके अन्दर अन्य कारको को सामने लाकर कार्य शक्ति का क्षीण हो जाना भी माना जाता है,यानी जो शक्ति कार्य करने मे लगानी थी उस शक्ति को अन्यत्र कहीं प्रयोग मे लाया गया है जो भी कार्य किया जा रहा है वह नही हो पा रहा है।शक्ति का प्रयोग करने के लिये
तथा शक्ति को प्रयोग करने के बाद फ़लाफ़ल का भेद जानने के लिये खुद पर नियंत्रण करना जरूरी है। मिट्टी पत्थर लोहा आदि सभी जमीनी तत्व है इन जमीनी तत्वो को अन्दर ही तैलीय तत्व भी विद्यमान है,जैसे सरसों का तेल मूंगफ़ली का तेल कोई हवा मे उडकर तो आता नही है जमीन के अन्दर की गर्मी और जमीन के तत्वो का वैज्ञानिक विकास सरसों के दाने मे तेल भी लाता है और मूंगफ़ली के अन्दर भी तेल की मात्रा को प्रदान करता है। संसार का कोई भी अनाज लिया जाये सभी के अन्दर तैलीय पदार्थ यानी वसा का उपस्थित होना जरूरी होता है,किसी भी जीव को देखा जाये सभी के अन्दर वसा का होना देखा जाता है बिना वसा के या तैलीय पदार्थ के जीवन का रहना नही माना जाता है और जितना तैलीय पदार्थ शरीर अनाज फ़ल वनस्पति मे होता है उतनी ही वह शक्तिशाली भी होती है और अधिक दिन तक चलने वाली भी होती है। साधारण रूप से वसा या तैलीय पदार्थ को कठोर काम करने और अधिक समय तक काम करने के लिये प्रयोग मे लाना उचित माना जाता है लेकिन यह उन्ही लोगो के लिये माना जाता है जो शरीर से श्रम करने वाले होते है अगर किसी एसी मे बैठने वाले व्यक्ति को अधिक वसा या तैलीय पदार्थ का सेवन अधिक करवा दिया जाये या उसके अन्दर वसा की मात्रा अधिक हो जायेगी तो काम नही करने शरीर मे गर्मी नही पैदा करने के कारण वसा शरीर मे जगह जगह जम जायेगी और जो भी शरीर का तंत्रिका तंत्र है उसके कार्यों में अवरोध का पैदा होना हो जायेगा फ़लस्वरूप ह्रदय सम्बन्धी बीमारी आदि का होना शुरु हो जायेगा।
जब शनि देव परेशान करते है तो मनुष्य को मेहनत करने का समय आता है,मेहनत करने का कारण भी जीवन के प्रति मिलने वाले फ़लो की प्राप्ति से जुडा होता है। जैसे पेड पौधे जीव जन्तु आहार विहार से तैलीय पदार्थो को प्राप्त करते रहते है वैसे ही मनुष्य भी आहार विहार और भोजन आदि से चिकनाई प्राप्त करता रहता है,शरीर मे जितनी चिकनाई को प्रयोग करने की क्षमता होती है उतना वह प्रयोग मे ले लेता है बाकी का हिस्सा उसे जहां खाली जगह मिलती है जमा कर लेता है,जब उसे कहीं जमा करने की जगह नही मिलती है तो वह खाल को बढाकर खाली जगह मे चर्बी को इकट्ठा कर देता है। यह बात अक्सर उन लोगो के अन्दर देखी जाती है जो बैठे रहते है दिमागी काम को करते है और ठंडे माहौल मे रहते है। यह चर्बी यानी वसा उन्हे शरीर के अन्दर अधिक ठंड से बचाने और शरीर का तापमान नियंत्रित करने के काम भी आता है,साथ ही भूख प्यास मे शरीर को मिलने वाली ऊर्जा को भी प्रदान करने के काम आता है जैसे समय कुसमय भोजन आदि नही मिलता है पानी नही मिलता है तो यह चर्बी अपनी पूर्ति से प्यास और भूख को पूर्ति मे लाती है। इस बात के लिये जीवो के अन्दर आप देख सकते है कि उत्तरी धुर्वीय प्रदेशो मे रहने वाले जीव सील वालरस आदि अपनी चर्बी की सहायता से बर्फ़ के जमे रहने तक बिना कुछ खाये पिये तापमान के प्रभाव को झेलते रहते है,ठंडे प्रदेश मे रहने वाले लोग जीवो का आहार करते रहते है कारण उन्हे वनस्पति की अपेक्षा जीव के अन्दर से अधिक वसा मिल जाती है और वे अपने जीवन को सुचारु रूप से चलाते रहते है इसलिये ही ठंडे प्रदेशो मे रहने वाले लोग मांसाहारी अधिक मात्रा मे होते है। इसी प्रकार से गर्म प्रदेशो मे भी चर्बी का प्रयोग प्यास को शांत रखने के लिये किया जाता है,जैसे रेगिस्तानी इलाको मे भी अधिक घी और तेल का प्रयोग किया जाता है साथ ही ऊंट इसका अच्छा उदाहरण है वह कई दिनो तक बिना पानी को पिये रह सकता है।मनुष्य के शरीर मे जब अधिक वसा एकत्रित हो जाती है तो वह कार्य करने मे आलस का भाव ले आता है वह और अधिक सुस्त होता चला जाता है उसे किसी प्रकार से भी काम करने का मन नही करता है,जब शरीर की ग्रंथिया शिथिल हो जाती है तो यह भी जरूरी है कि शरीर का तंत्र भी गडबडा जाता है,इस गडबड मे और आलस के अधिक आने से न तो शरीर ही काम करता है और न ही दिमाग ही काम करता है कारण दिमाग भी शरीर के अनुसार ही काम करता है जितना शरीर बिना चर्बी के होता है उतना ही वह गर्म भी होता है और कार्य करने के अन्दर उत्तेजना भी आती है कार्य के अन्दर फ़ुर्ती भी आती है लेकिन अधिक कमजोरी के कारण गुस्से की मात्रा भी बढ जाती है। अक्सर यह भी देखा होगा कि जो लोग अधिक भारी होते है और शरीर से बलवान होते है उन्हे गुस्सा आती ही नही है या आती है तो जरा सी देर के लिये आती है,जितना अधिक शरीर बलवान होता है भारी होता है बुद्धि की कमी आजाती है,जितना शरीर हल्का होता है बुद्धि भी उतना ही काम करती है। जब आलस आता है तो चर्बी को घटाने की जरूरत पडती है,उस चर्बी को मेहनत करने के द्वारा ही घटाया जा सकता है शरीर को चलाने फ़िराने से चर्बी घट सकती है इसी लिये जिन लोगो के पास कोई काम नही होता है या दिमागी काम को करने वाले होते है उन्हे योग व्यायाम आदि करने की सलाह दी जाती है विभिन्न हिस्सो की चर्बी को हटाने और य्ववस्थित रखने के लिये योगो के कई रूप बनाये गये है.जब शरीर मे चर्बी की मात्रा का फ़ैलाव अधिक हो जाता है तो काम नही बन पाते है और उन कामो के नही बनने का कारण यह भी होता है कि आलस का आना समय पर क्रिया को पूरा नही कर पाना उचित समय पर उचित काम को नही करपाना आदि। इस प्रकार की बाते होने पर शरीर को जो तैलीय पदार्थ सेवन करने के लिये कहे गये है उनके अन्दर कमी कर दी जाती है। अक्सर मनुष्य की भावना जोड कर रखने और नियमित रूप से हर वस्तु को प्रयोग करने की होती है,उसी प्रकार से घर के अन्दर रसोई के अन्दर तैलीय पदार्थ भी रखे जाते है जब घर के अन्दर रखे हुये है और पूडी बनाकर खाने की इच्छा होगी तो वह तो बनायी जायेंगी और मन के आजाने से कितने ही तेल की मात्रा शरीर मे बढी हुयी हो वह खायी भी जायेंगी,इस बात को लोगो ने धार्मिक पहलू मे जोडा और शनिवार के दिन तेल का दान करवाना शुरु कर दिया तथा शनिवार को तेल से बने पदार्थ आदि खाने से मना भी किया कर दिया। कई स्थानो पर तेल को दान मे लेने वाले नही मिलते है इसलिये धार्मिक भावना मे यह निश्चित कर दिया गया कि अमुक स्थान पर शनि के रूप मे काले पत्थर पर तेल को चढाया जाये,लोगो की आस्था के अन्दर यह बात घर कर गयी कि तेल को शनि पर चढाने से शनि का प्रभाव कम होता है,और लोग इस बात को लेकर चलने लग गये। लेकिन जब खुद के घर मे तेल नही हो और शरीर की अन्य कमी के कारण शरीर काम नही कर रहा हो तो मनोवैज्ञानिक आधार पर भी लोग खरीद कर तेल को चढाने लग गये,जो लोग शरीर से कमजोर है और उनके अन्दर चलने फ़िरने की हिम्मत नही है वे भी तेल को खरीद कर धार्मिक आस्था के चलते शनि के नाम से किसी भी स्थान पर तेल को चढाने लग गये। इस प्रकार से चालाक लोगो की अपनी चलने लगी और उन्होने शनि को तेल चढाने की क्रिया करवाना शुरु कर दिया।शनि के रूप मे किये जाने वाले दान पुण्य आदि के नाम से लोगो के लिये एक प्रकार से उद्योग बन गये और गली मे मुहल्ले मे शहर मे कई कई स्थान बना दिये गये,किसी को कोई स्थान नही मिला तो शनि का पेड शमी को बताकर उसके ऊपर ही तेल को चढाया जाने लगा,कई लोगो ने शनि के लिये काले अनाज को दान करवाना शुरु कर दिया कोई लोहे को दान करने के लिये कहने लगा और कोई अपने अपने मत से कई कारण बताकर समस्या को तो देखा नही लेकिन समस्या की पूर्ति के लिये अपनी वाहवाही के लिये शनि के लिये तेल को चढाना आदि बाते शुरु करवा दी,तथा एक प्रकार से भय का भी प्रदान करना शुरु कर दिया कि जो भी शनि के लिये उल्टा बोलता है जो भी शनि की बुराई करता है उसे शनि अपनी वक्र द्रिष्टि देकर बरबाद कर देते है। यह बात कहां साबित होनी थी और कहां उसे प्रयोग कर दिया। जो लोग अधिक मोटे हो जाते है उनका शरीर कोई काम नही करता है जो आलस से घिर जाते है जिन्हे केवल खाने और अपनी शारीरिक क्रियाओं को पूरा करने के लिये रोजाना की जरूरत के लिये धन और वस्तुओं की आवश्यकता होती है,वे अपनी चालाकी वाली वक्र द्रिष्टि से तलासा करते है कि कौन सा ऐसा काम किया जाये जिससे वे अधिक से अधिक साधन प्राप्त करने के लिये अधिक से अधिक चालाकी वाले काम करके अधिक से अधिक लोगो को अपनी वक्र द्रिष्टि से कोपभाजन बनाये। लेकिन यह बात भी शनि देव को प्रदान कर दी। जो लोग मेहनत करते है मजदूरी करते है अपने रोजाना के पेट पालने के उपक्रम करते है शरीर को तोडते है जिन लोगो के अन्दर किसी भी काम करने के लिये अद्भुत शरीर की शक्ति होती है उन्हे शनि के लोगो मे गिना जाने लगा,यह केवल लोगो के अन्दर गलत धारणा के लिये माना जा सकता है और यह धारणा केवल इसी लिये पैदा की जाने लगी कि कैसे भी अपनी वक्र द्रिष्टि से लोगो को निशाना बनाकर लूटा जा सके और अपनी पेट भराई को किया जाता रहे।
शनि को कार्य का रूप भी दिया गया है,जो कार्य करता है वह शनि के रूप मे माना जाता है,जबकि शनि वसा की अधिकता से कार्य करने के लिये कतई मजबूर है,कार्य को करने के लिये शक्ति देने के लिये मंगल को माना जाता है,मंगल की शक्ति से खून के अन्दर बल होगा तो वह अपने आप काम करने लगेगा वह किसी की सहारे की जरूरत को कभी प्रयोग मे नही लेगा,लेकिन शनि वाले व्यक्ति को सहारे की भी जरूरत होगी और अपने लिये जरूरतो को पूरा करने के लिये वह मंगल की सहायता के लिये भी भागेगा। जैसे ही वह अपनी वक्र द्रिष्टि देने मे कामयाब हो जायेगा वह अपने काम को चतुराई से करने भी लगेगा और अपना आक्षेप दूसरो पर देकर मेहनत करने वाले लोगो को शनि की उपाधि भी देने लगेगा। जिन लोगो मे शनि की अधिकता है और जो लोग काम नही कर पाते है जिनकी बुद्धि समय पर काम नही करती है जिन लोगो के अन्दर चतुराई की आदत नही है वे लोग शनि के उपाय करने के लिये तेल भी चढा सकते है और शनि की पूजा पाठ के लिये अपने शरीर के कई कारणो को समाप्त भी कर सकते है,इसलिये जरूरत होती है कि शरीर को मंगल की पूर्ति की जाये यानी शरीर को गर्म रखने के लिये और शरीर के अन्दर पैदा हुये तैलीय पदार्थो की कमी के लिये निश्चित समय पर योग किये जाये जो लोग खुले स्थान मे है वे लोग सुबह शाम की दौड लगाये,मेहनत वाले कामो को करने के बाद तेल जमीन और पत्थरो को दान करे लेकिन वह तेल वास्तविक तेल होना चाहिये यानी वह मनुष्य के शरीर से निकला हुआ तेल पसीने के रूप मे होना चाहिये,वह तेल खरीदा नही होना चाहिये वह घर के अन्दर से नही लेना चाहिये वह तेल मेहनत करने के बाद शरीर से पसीने के रूप मे निकाल कर दान करना चाहिये तब जाकर शनि देव प्रसन्न भी होंगे और दिमाग भी चलेगा,सभी काम चाहे वह शिक्षा का हो चाहे वह नौकरी का हो चाहे वह व्यापार का हो सभी पूरे होने लगेंगे। मित्रों मेरी तो यही कोशिश रहती है कि मैं आपको ज्योतिष के जो वैज्ञानिक तथ्य है, पहलू है। उस की जानकारी दू, और इस में फैले हुए अंधविश्वास को दूर कर सकें ।आचार्य राजेश

शुक्रवार, 1 नवंबर 2019

क्या है अंक13 का रहस्य कितना शुभ और कितना अशुभ

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मित्रों धनतेरस के दिन यह मन में विचार आया कि हम लोग 13 अंक को अशुभ क्यों मानते हैं। एक तरफ तो हम धनतेरस के दिन खरीदारी करते हैं। घर में कुछ ना कुछ लेकर आते हैं 13 का अंक अगर देखें तो एकांत सूर्या का और चीन अंक गुरु का गुरु और सूर्य का मेल गुरु ज्ञान का कारक है और सूर्य रोशनी का जीवन देने का कारक है। हमारी आत्मा का कारक है या रोशनी है ज्ञान है तो इस अंक को राहु के साथ जोड़कर इस अंक के साथ नाइंसाफी की जाती है हम लोग पश्चिम की देखा देखी हर उस बात को मानना शुरू कर देते हैं। जो बात वहां के समाज में मानी हो हम अपने सनातन धर्म की संस्कृति को भूलकर दूसरों के विचारों को मानना शुरू कर देते हैं। और यह कुछ बात अंक तेरा की करते हैं मित्रों एक पोस्ट लिखने पर बहुत मेहनत होती है। अगर अच्छी लगे तो लाइक करें शेयर करें अगर कुछ कमी रह गए तो अपने विचार लिखें।
हमारे कुछ मित्र 13 अंक के बारे में बहुत बार बात करते है। 
 दुनिया के कई दूसरे देशों में 13 नंबर को अपशगुन मा्ना जाता है नम्बर तेरह को अक्सर बुरी नजर से देखा जाता है लोग अपने मकान के नम्बर को भी नम्बर को भी तेरह के साथ जोड कर नही रखना चाहते है किसी होटल आदि मे जाना हो तो आप देख सकते है नम्बर तेरह का कमरा बडी मुश्किल से देखने को मिलता है। हिब्रू ने भी बडी तन्मयता से इस नम्बर के बारे मे लिखा है कि एक नरकंकाल जो मनुष्यों के रूप की फ़सल को काट रहा है,नर कंकाल के हाथ में एक हंसिया है और वह मनुष्यों के सिर को काटने का उपक्रम कर रहा है। भारत में हमारे सिख मित्रों ने नंबर 13 को बहुत ही शुभ माना है क्योंकि गुरु नानक देव ने कहा था कि तेरा ही तेरा। लेकिन तेरा ही तेरा और 13 ही 13 में बहूत फर्क है । उन्होंने कुछ और कहा था ।
आपने कुछ और समझ लिया। उनके कहने का अर्थ था कि सब कुछ तेरा ही तेरा है। हमारा कुछ भी नहीं। लेकिन इस बात का 13 नंबर से कोई संबंध नहीं। लेकिन चाइना के साथ-साथ दूसरे कई देशों ने 13 नंबर को मनहूस या अपशगुन माना है।
उसका कारण यह है कि आदमी के शरीर में नौ छेद हैं; उन्हीं नौ छेदों से जीवन प्रवेश करता है। और उन्हीं नौ छेदों से जीवन बाहर जाता है। और चार अंग हैं। सब मिला कर तेरह। दो आंखें, दो नाक के स्वर, मुंह, दो कान, जननेंद्रिय, गुदा, ये नौ तो छिद्र है 
 और चार--दो हाथ और दो पैर। ये तेरह जीवन के भी साथी हैं और यही तेरह मृत्यु के भी साथी हैं। और यही तेरह तुम्हें जीवन में लाते हैं और यही तेरह तुम्हें जीवन से बाहर ले जाते हैं।
तेरह का मतलब यह पूरा शरीर। इन्हीं से तुम भोजन करते हो; इन्हीं से तुम जीवन पाते हो; इन्हीं से उठते-बैठते-चलते हो; ये ही तुम्हारे स्वास्थ्य का आधार हैं। और ये ही तुम्हारी मृत्यु के भी आधार होंगे। क्योंकि जीवन और मृत्यु एक ही चीज के दो नाम हैं। इन्हीं से जीवन तुम्हारे भीतर आता, इन्हीं से बाहर जाएगा। इन्हीं से तुम शरीर के भीतर खड़े हो। इन्हीं के साथ शरीर टूटेगा, इनके द्वारा ही टूटेगा।
यह बड़ी हैरानी की बात है, ये ही तुम्हें सम्हालते हैं, ये ही तुम्हें मिटाएंगे। भोजन तुम्हें जीवन देता है, शक्ति देता है। और भोजन की शक्ति के ही माध्यम से तुम अपने भीतर की मृत्यु को बड़ा किए चले जाते हो। भोजन ही तुम्हें बुढ़ापे तक पहुंचा देगा, मृत्यु तक पहुंचा देगा। आंख से, कान से, नाक से, जीवन की श्वास भीतर आती है, उन्हीं से बाहर जाती है। नौ द्वार और चार अंग।
तेरह ही जीवन के साथी, तेरह ही मौत के साथी। ये तेरह ही लाते हैं, ये तेरह ही ले जाते हैं।
तेरह की संख्या के कारण चीन में, और फिर धीरे-धीरे सारी दुनिया में, तेरह का आंकड़ा अपशकुन हो गया। वह चीन से ही फैला। पश्चिम में जहां तेरह का आंकड़ा अपशकुन है उनको पता भी नहीं कि क्यों अपशकुन है। उसका जन्म चीन में हुआ।तो आज तो हालत ऐसी है कि अमरीका में होटलें हैं जिनमें तेरह नंबर का कमरा नहीं होता; तेरह नंबर की मंजिल भी नहीं होती। क्योंकि कोई ठहरने को तेरह नंबर की मंजिल पर राजी नहीं है। तो बारह के बाद चौदह नंबर होता है। क्योंकि तेरह शब्द से ही घबड़ाहट पैदा होती है।
तेरह नंबर का कमरा नहीं होता; बारह नंबर के कमरे के बाद चौदह नंबर का आता है। होता तो वह तेरहवां ही है, लेकिन जो ठहरता है उसको नंबर चौदह याद रहता है; तेरह की उसे चिंता नहीं पकड़ती।
इसका जन्म हुआ चीन में, और बड़े अर्थपूर्ण कारण से यह विश्वास फैला। अगर तुम इन तेरह के प्रति सजग हो जाओगे, तो शरीर से तुम्हारा फासला बढ़ेगा। तुम देख पाओगे, मैं पृथक हूं, मैं अन्य हूं। शरीर अलग, मैं अलग।
और यह जो भीतर भिन्नता, इसकी न कोई मृत्यु है, न इसका कोई जीवन है। न यह कभी पैदा हुआ, न कभी यह मरेगा ।आज के ही दिन भारत मे जलियांवाला कांड हुआ था और जनरल डायर जिसकी वास्तविक जन्म तारीख तेरह ही थी,और उस दिन शुक्रवार का ही दिन था। वैसे इतिहासिक रूप से उसकी जन्म तारीख नौ अक्टूबर अठारह सौ चौसठ बताई गयी है,वास्तविक जन्म तारीख १३ नवम्बर १८६३ मिलती है.तुला राशि का सूर्य मंगल गुरु बुध था तथा वृश्चिक राशि का चन्द्रमा और राहु तथा वृष राशि का केतु गन पाइंट से भीड की हत्या करने के लिये एक दुरात्मा की तरह से काम करता है। अक्सर इस दिन पैदा होने वाले लोग मारक शक्ति को लेकर पैदा होते है लेकिन यह वही लोग होते है जो सामाजिक व्यवस्था से दूर होते है और मनमर्जी के अधिकारी भी माने जाते है धर्म कर्म संस्कार आदि जिनके वश की बात नही होती है। यह दिन कई देशो मे बहुत ही प्रसन्नता से मनाये जाता है और कई देशो मे यह भूतो का दिन माना जाता है लेकिन जहां संस्कार और विद्या का प्रयोग करना आता है उन स्थानो मे यह बहुत ही शुभता की द्रिष्टि से मनाया जाता है। मित्रों , संसार क्षण-भंगुर है। उस पर रोचक तथ्य यह टटहै कि क्षण के हजारवें अंश की भी गणना होती है। यह कालचक्र के रहस्यों से भरे खेल का हिस्सा मात्र है। समय की गति का अध्ययन करने वाले और इसके गूढ़ रहस्यों को समझने-समझाने वाले तमाम विज्ञान-शास्त्र नंबरों के इस खेल को और भी रोचक रूप में हमारे सामने प्रस्तुत करते हैं।
ज्योतिष शास्त्र को तो मनुष्य के जन्म के समय, तिथि और अन्य सबंधित टआंकड़ों की गणना मात्र से उसके संपूर्ण जीवनकाल की गणना करने में सक्षम माना गया है। 60 सेकंड का एक मिनट, 60 मिनट का एक घंटा, 12 घंटों का दिन, 12 घंटों की रात, 12 महीनों का एक साल। इस तरह 365-1/4 दिनों के एक साल में जीवन एक-एक सेकंड कर घटित होता है। रोचक बात यह है कि सटीक 12-12 घंटों के दिन-रात और 12 महीनों का कहे जाने के बावजूद एक साल का अंत सटीक 12 पर नहीं होता है। 13 पर होता है। क्योंकि एक साल 365+1/4 यानी 365 दिन + चौथाई दिन का होता है। इससे अंदाजा लगा सकते हैं आप अंक 13 के जलवे का 
जहां कुछ संस्कृतियों में 13 को नंबर ऑफ डेथ कहा गया है वहीं कुछ में इसे "नंबर ऑफ लाइफ" माना गया है। ब्राजील में कोपेरस धर्म को मानने वाले 13 को शुभ मानते हैं। वहां इसे नंबर ऑफ लाइफ माना जाता है। वे कहते हैं कि यह मानवता की रक्षा का परिचायक है। वे इसे नंबर ऑफ गॉड यानी भगवान का अंक मानते हैं। 
हमारे भारत में सिख मतावलंबी 13 को शुभ मानते हैं।  वैशाखी अप्रैल की 13 तारीख को मनाया जाता है।  इसी तरह इस्लाम, यहूदी, रोमन कैथोलिक धर्म में भी कुछ ऎसे विवरण मिलते हैं जो 13 को नंबर ऑफ गॉड यानी भगवान का अंक निरूपित करते हैं। शिया धर्म में रज्जब माह की 13 तारीख को पवित्र माना जाता है।
प्राचीन मिस्त्र सभ्यता में, जहां मौत के बाद भी जीवन की मान्यता थी, 13 को जीवन और मौत के बीच की कड़ी माना गया था। इसी तरह यदि अल्फाबेट से जोड़ कर देखें तो अल्फाबेट का 13वां लैटर है "एम"। दुनिया एम के ही इर्द-गिर्द घूमती है। मिस्र में तो मौत के बाद मरने वाले को आलीशान पिरामिड में ममी के रूप में सुरक्षित रखा जाता था। इस पिरामिड को कुल 13 दिन में ही बनाया जाता था। 
शैतान का अंक 
ईसाइ धर्म में ऎसे कुछ घटनाक्रमों का उल्लेख है, जिससे 13 का अंक इस धर्म को मानने वालों के लिए शैतान का अंक है । कहा जाता है कि उस दिन 13 तारीख थी जब ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाया गया था। उन्हें जिन लोगों ने सूली पर चढ़ाया था उनकी संख्या 13 थी। यही नहीं, ईसा मसीह ने खुद को सूली पर चढ़ाए जाने से पहले जो अंतिम भोजन किया था, जिसे लास्ट-सपर कहा गया है, उस मेज पर ईसा सहित कुल 13 लोग ही शामिल थे। लिहाजा ईसाई 13 को अशुभ मानते हैं।   
लेकिन कीरो कहते हैं बेहद शुभ है 13 अंक !
अ नुकूल योग होने पर 13 को बेहद करिश्माई अंक बताया गया है। ज्योतिष शास्त्र और अंक शास्त्र में इसे कर्म का प्रतीक भी कहा गया है। यानी जैसा कर्म, वैसा फल। 13 का मूल अंक 4 है, जिसे निर्माण का प्रतीक भी बताया गया है। इस अंक को न्यूमेरोलोजी में पमास्टर-नंबर की पदवी दी गई है। कहा गया है की अनुकूल होने पर यह सबसे करिश्माई अंक साबित होता है पऔर इसे न केवल सौर मंडल बल्कि सम्पूर्ण सृष्टि का सहयोग मिलता अंक तेरह का योग चार मे आता है और चार का अंक भारतीय गणना के अनुसार केतु की परिभाषा मे आता है,केतु को साधनो का कारक और गणेश जी के रूप मे पूजा जाना भी माना जाता है  जो लोग तांत्रिक कारणो को समझते है और उनका प्रयोग करना जानते है वे लोग तांत्रिक वस्तुओं की स्थापना भी करते है,तेरह अप्रैल को यह तारीख और दिन आने से तथा सूर्य का बारहवा स्थान बदलने के बाद मेष राशि मे आने से भी यह दिन बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन लोग केतु से सम्बन्धित तांत्रिक वस्तुओ को स्थापित करने से भी उनकी अद्रश्य शक्ति से सफ़लताओ का मिलना जाना जाता है। लोग आज के दिन दक्षिणावर्ती शंख हड्डी तथा नाखून से बनी वस्तुये केतकी जडी कांटे और वनस्पति जगत की तांत्रिक वस्तुये स्थापित करते है। आज के दिन नाव की कील से बने छल्ले शनि सम्बन्धित तकलीफ़ो जैसे जोडों के दर्द शरीर मे चर्बी का इकट्ठा हो जाना पेशाब वाली बीमारिया हो जाना आदि रोगो के लिये सही माने जाते है।

रविवार, 13 अक्तूबर 2019

ग्रहों के उपाय



मित्रों ज्योतिष मे ग्रहों का रूप अलग अलग बताया गया है,ग्रह प्रयक्ष और अप्रतक्ष रूप से अपना असर देते है।ज्योतिषी अपने अपने ज्ञान के अनुसार ग्रह के खराब होने के उपाय बतलाते है। अलग अलग ग्रहो के अलग अलग उपाय बताये जाते है,लोग अपनी अपनी कुंडली लेकर ज्योतिषियों के पास जाते है अपने बारे मे पूंछते है,ज्योतिषी द्वारा कुंडली को देखा जाता है जो भी ग्रह अपना खराब असर दे रहा होता है उसी के अनुसार गणना करने के बाद उपाय बता दिया जाता है। लेकिन उपाय हमेशा के लिये नही होते है,उपाय कुछ समय के लिये करने के लिये कहा जाता है। कारण ग्रह नुकसान का देने वाला होता है वही ग्रह कुछ समय बाद फ़ायदा देने के लिये भी माना जाता है,जो ग्रह फ़ायदा देता है वही ग्रह कुछ समय बाद नुकसान देने के लिये भी अपनी क्रिया को शुरु कर देता है। यह बात और भी मानी जा सकती है कि जैसे ड्राइवर अपनी योग्यता के सहारे ही गाडी को चलाता है,कभी कभी वही योग्यता भी खतरनाक बन जाती है और वही गाडी जो वह आराम से सम्भाल सकता है उसकी जान लेने के लिये भी अपना काम करती है। महावत जिस हाथी को चलाने की सामर्थ्य रखता है वही हाथी जब अपनी पर आता है तो पहले वह अपने महावत को ही मारता है,उसी प्रकार से जो सपेरा सांप को पालता है और सांपो के द्वारा ही अपने जीवन को चलाना जानता है कभी कभी वही सांप उसकी मौत का कारण बन जाता है,जो तांत्रिक अपने तंत्र से सभी को वश मे करने के बाद अपने द्वारा प्राप्त की गयी आसुरी शक्तियों का प्रयोग करता है लेकिन वही तांत्रिक अपने द्वारा पाली गयी आसुरी शक्तियों से ही मारा जाता है। तो यह जरूरी नही है कि जो कारक फ़ायदा दे रहा है वह नुकसान नही दे,इसलिये हमेशा ख्याल यह रखकर चलना चाहिये कि अगर आज सूर्य नुकसान दे रहा है तो वह हमेशा ही नुकसान देता रहेगा वह फ़ायदा भी देगा,लेकिन फ़ायदा के समय मे भी नुकसान वाला उपाय किया जाता रहा तो वह बजाय फ़ायदा के नुकसान भी देने लगेगा। इस बात के लिये लोगो को भ्रम मे डाल दिया जाता है कि यह सूर्य आजीवन परेशान करने वाला है और उसका उपाय आजीवन करना चाहिये।सबसे पहले जिन्दा ग्रहों का उपाय करना जरूरी होता है,पिता से बिगड गयी है तो समझ लीजिये सूर्य खराब है बेटा कहे मे नही चल रहा है और ऊल जलूल काम करने के बाद घर मे क्लेश को फ़ैला रहा है तो समझ लीजिये कि सूर्य खराब है,सभी ग्रह अपना खराब तभी देते है जब कोई न कोई खराब ग्रह उस ग्रह से अपनी युति लेता है जैसे बेटा घर मे क्लेश फ़ैला रहा है तो देखना यह पडेगा कि बेटे को शनि या राहु या केतु जैसे कारक साथ मे लेकर चलने की आदत तो नही पड गयी है,कही पिता के पास भी इसी प्रकार के कारक तो नही शुरु हो गये है। सूर्य के साथ शनि का मिलना हो गया होगा तो वह सूर्य की चमक को धीमा कर देगा जो सूर्य की गर्मी है उसे ठंडा कर देगा,इस शनि को दूर करने के लिये सूर्य के बल मे बढोत्तरी करनी पडेगी उसे शनि के कारको से दूर करना पडेगा,सूर्य जो शरीर मे बल का कारक है अपनी पहिचान को देने वाला है अगर वह शनि के तामसी कारणो मे मिल जायेगा तो शरीर की चमक समाप्त होने लगेगी,अगर शरीर मे कई प्रकार के रोग लग गये है तो भी सूर्य का धीमा हो जाना माना जायेगा.लेकिन सूर्य के खराब होने के पहले चन्द्रमा को भी देखना पडेगा जब तक चन्द्रमा पर कोई ग्रह अपना असर नही देगा सूर्य खराब नही हो सकता है,चन्द्र यानी मन पर कोई कारण नही आने पर सूर्य का खराब होना नही माना जाता है,जैसे मन मे किसी प्रकार की शंका आ गयी है और वह शंका समाप्त नही हो रही है जब तक मन की शंका को दूर नही किया जायेगा शरीर का सूर्य व्यवस्थिति नही हो सकता है। जैसे चन्द्रमा के साथ मंगल का प्रकोप शुरु हो जाये तो माता को गुस्सा आना शुरु हो जायेगा और माता जब गुस्सा करेगी तो पिता का दैनिक क्लेश के कारण तामसी कारणो मे जाना जरूरी हो जायेगा,उसी प्रकार से जब बेटे की मां घर मे क्लेश नही करेगी या बेटे पर अनावश्यक कारण नही थोपेगी बेटा तामसी कारणो मे नही जायेगा। यह उम्र और जलवायु के कारण भी होता है,जब तक इन सभी बातो का ख्याल नही किया जायेगा तब तक कोई भी कारण क्लेश का नही बनेगा। समस्या आने के पहले समस्या की हवा चलनी शुरु हो जाती है। जैसे कोई एक्सीडेंट होना है तो पहले एक्सीडेंट करने वाला कारण शुरु हो जायेगा फ़िर एक निश्चित स्थान पर दोनो कारण जब इकट्ठे होंगे तभी एक्सीडेंट होगा,बिना कारण की उत्पत्ति के एक्सीडेंट नही हो सकता है। राहु अब ही सूर्य के साथ गोचर करेगा उस समय पिता या पुत्र के प्रति अनावश्यक सोच का आना माना जायेगा,उस सोच का रास्ता नही मिलने पर शरीर मे कई प्रकार के रोग लगने शुरु हो जायेंगे वह रोग या तो चिन्ता से बाहर जाने के प्रति होंगे या अचानक आने वाली विपत्ति से बचने के लिये सोचे जाने वाले उपाय होंगे उपाय नही मिलने पर सूर्य अपने को समय के घेरे मे ले जाकर तामसी कारणो मे शुरु हो जायेगा उसे चिन्ता होगी कि अमुक समय पर अमुक कारण बन सकता है उतने समय के लिये वह अगर अपने को अपने से बाहर रखेगा तो वह बच सकता है या उस समय पर उसे कुछ भी कहने या सुनने अथवा कार्य को करने मे असमर्थ होना पडेगा इसलिये वह अपने को उस कारण से दूर रखकर ही चलना ठीक होगा इसलिये वह अपने शराब आदि तामसी कारणो मे लेकर चला जायेगा या अपनी समस्या से छुटकारा लेने के लिये किसी अनावश्यक कारण को पकडने और अपनी समस्या से दूर जाने का उपक्रम रचने लगेगा,उस समय अगर केतु का सहारा मिल जाता है और उसकी कार्य प्रणाली को सहायक बनकर हल कर दिया जाता है तो सूर्य डूबने से बच भी जायेगा और समस्या का अन्त भी हो जायेगा। बेटा अगर बाप से बनाकर चलता है तो दोनो का सूर्य हमेशा के लिये ही उदय रहेगा जैसे ही बाप बेटे मे किसी भी बात से अनबन हो गयी दोनो का सूर्य खतरे मे चला जायेगा,इसी प्रकार से जब तक सूर्य यानी सरकार के कानूनो और मर्यादाओ का पालन किया जाता रहेगा शरीर के सूर्य पर कोई दिक्कत नही आयेगी जैसे ही अहम के अन्दर आकर या शनि सम्बन्धित चतुराई को लाकर अपने को सरकार के समक्ष पेश किया गया सरकार शरीर के सूर्य पर कारावास या किसी प्रकार के दंड देने की प्रक्रिया से सूर्य को ग्रहण दे देगी। एक कहावत और भी सुनी होगी कि लोहा लोहे को ही काटता है इसी प्रकार से बाप बेटे की अनबन बाप और बेटे दोनो को ही काट देती है,इसलिये पहले अपने सूर्य को सही रखने के लिये अपने पिता और अपने पुत्र से कभी अनबन बनाकर नही रखना चाहिये इस प्रकार से जिन्दा ग्रह के साथ मित्रता करने के बाद चालीस प्रतिशत तक लाभ लिया जा सकता है बाकी का अपने कार्यों से रत्न धारण करने से और सूर्य वाली मर्यादा को निभाने से भी सूर्य अपना काम करता रहेगा।शनि को कुंडली मे बडे भाई की उपाधि से विभूषित किया गया है वही शनि बुजुर्ग की हैसियत से भी अपने को सामने रखता है। बडे भाई और पुत्र का साथ शनि सूर्य की युति मे लेकर जायेगा अगर इस कारण मे केवल केतु का सहारा लिया जाता रहेगा तो बडे भाई के द्वारा पुत्र को सहारा मिलता रहेगा और पुत्र अपनी मर्यादा से बाहर नही जायेगा लेकिन बीच मे शुक्र का आना हो गया तो सूर्य और शनि दोनो ही बरबाद हो जायेंगे,जैसे बडे भाई के द्वारा पुत्र को किसी प्रकार की सहायता दी जाती है वह सहायता तभी तक सही मानी जायेगी जब तक बीच मे लेन देन का कारण नही पैदा होता है यही बात इस प्रकार से भी मानी जा सकती है कि जब घर की औरतो मे सूर्य पैदा हो जायेगा तो एक दूसरे के प्रति राजनीति की बाते पैदा हो जायेंगीऔर कहा जाने लगेगा कि अमुक समय मे अमुक प्रकार की सहायता उन्हो ने नही की थी लेकिन हमने सहायता की थी इस प्रकार से मानसिक कष्ट का कारण पैदा होगा और हो सकता है सूर्य खराब हो जाये यानी पुत्र अपनी सहायता बडे भाई से लेना बन्द कर दे या बडा भाई अपनी दी जाने वाली सहायता को बन्द कर दे,इसी प्रकार से जब घर मे शादी सम्बन्ध वाले कारण बनते है और उस समय अगर सूर्य शनि की मान्यता को कायम नही रखा गया तो भी एक दूसरे के प्रति अनबन होने का कारण पैदा हो जायेगा और वह शादी सम्बन्ध होगा जरूर लेकिन जीवन मे आगे के लिये खतरनाक ही बन जायेगा वह किसी भी प्रकार से सूर्य की तरक्की का रास्ता इसलिये नही बन पायेगा क्योंकि जीवित ग्रह की सहायता नही मिलने पर सूर्य खुद को शनि वाले कारणो मे ले जाकर या तो अपनी मर्जी से शनि जो शराब कबाब आदि के कारणो मे या घर से मर्यादा से विपरीत कामो को करने के बाद शनि को ग्रहण करेगा इसलिये सबसे पहले जहां तक हो सके जिन्दा ग्रह को सम्मुख रखकर चलना ठीक होगा।

सभी ग्रहो से फ़ायदा लेने का अचूक उपाय जो ज्योतिष और पुराने जमाने से प्रयोग मे आता हुआ देखा गया है वह बहुत ही सुन्दर और बलकारी तथा खुद का और परिवार का नाम चलाने के लिये माना जाता रहा है,सूर्य को खराब नही होने देने के लिये घर के पिता और पुत्र का सम्मान अपने अपने स्थान पर रखना चाहिये तथा समय समय पर मिलने वाले कनफ़्यूजन को दूर करते रहना चाहिये,चन्द्रमा के उपाय के लिये घर के बुजुर्ग स्त्री सदस्यों का सम्मान करते रहना चाहिये और उनके आशीर्वाद को लेते रहना चाहिये बडी बहिन भी चन्द्रमा के अधिकार मे आजाती है लेकिन उसकी शादी के बाद केवल मर्यादा तक जी सीमित रहना चाहिये अन्यथा या तो बडी बहिन का जीवन चौपट हो जायेगा या खुद को कोई आगे बढने का रास्ता नही मिल पायेगा इसी प्रकार से बुध की सहायता के लिये बहिन बुआ बेटी का सम्मान करना और उनके लिये जो भी सहायता मिलती है देते रहना चाहिये बहिन बुआ बेटी से आजीवन का एक सम्पर्क का रास्ता मिलता है जैसे वह अनजाने लोगो के बीच मे शादी के बाद मे जाती है और उन अन्जाने लोगो से सम्पर्क का बनना एक प्रकार से बडे कमन्यूकेशन के रूप मे माना जाता है अगर अपनी तरफ़ से मान सम्मान तथा सम्पर्क को कायम रखा जाता है किसी भी मिलने वाली बुराई या भलाई मे मिल बैठ कर और आदर सम्मान से उस कारण को समझ लिया जाता है तो जो सम्पर्क बना है उससे भी और सम्पर्क को भी दुख मे सुख मे साथ लिया जा सकता है,साथ ही बहिन बुआ बेटी का सम्मान भी सुरक्षित रहेगा और अहम के कारण या एक दूसरे की प्रतिस्पर्धा के कारण उन्हे कष्ट भी नही होगा पारिवारिक जीवन भी सही चलता रहेगा। गुरु का साधने का सबसे अच्छा तरीका है किसी भी सम्बन्ध के प्रति आत्मीय लगाव होना चाहिये इसी बात को उच्च का गुरु यानी कर्क राशि का गुरु माना जाता है क्योंकि कर्क राशि चन्द्रमा की राशि है और इस राशि मे गुरु का आस्तित्व उच्च का हो जाता है यह इसलिये होता है कि सम्बन्ध को मानसिक रूप से इज्जत के रूप से देखा जाता है लेकिन जो लोग सम्बन्ध को केवल स्वार्थ हित तक ही सीमित रखते है वह व्यवहार के रूप मे आजाता है और वह अपने सम्बन्ध को आजीवन कायम नही रख पाते है। इसका परिणाम यह होता है कि जैसे ही काम निकला वे दूर हो जाते है और अपने या उनके आगे के कामो मे बाधा भी आजाती है साथ ही एक दूसरे के प्रति लोकरीति और आक्षेप विक्षेप भी मिलने लगते है। शुक्र के लिये भी यही माना जाता है कि जितना हो सके पति पत्नी को और पत्नी पति को अगर भौतिकता से दूर रखकर अपने को केवल इसी भावना मे लेकर चलते है कि उन्हे हाथ से हाथ मिलाकर जीवन की तरक्की मे आगे जाना है या जो भी काम करना है वह दोनो की रजामन्दी से ही होना है तो शुक्र अपने असर को देता रहेगा जैसे ही शुक्र के अन्दर कानून का भाव पैदा हो जाता है शुक्र खराब हो जाता है यह बात उन लोगो से सीखनी चाहिये जो अपने सम्बन्ध महिलाओ से केवल कामेक्षा की पूर्ति के लिये रखते है या जो लोग विवादित जमीन जायदाद को खरीदने या बेचने मे सम्बन्धित होते है उनके लिये खुद का जीवन भी बरबाद होना माना जाता है साथ ही जिससे वह सम्बन्ध स्थापित करते है उनका जीवन भी बरबाद होना माना जाता है,इसी प्रकार से शनि के लिये मैने ऊपर लिखा ही है जिसे शनि के बारे मे बेलेन्स करना आता है जो समय के साथ कार्य की योजना और महत्व को समझते है जो लोग बुजुर्गो से समय पर राय लेना जानते है और जो लोग अपने लिये हमेशा के लिये चलने वाले कार्य को पकडने की सोचते है भले ही वह कम फ़ायदा देने वाला हो लेकिन लगातार पकड कर चलने और आने वाली कमाई को निश्चित तरीके से समझने के लिये उनके अन्दर बुद्धि है तो वे आगे बढ जाते है,इसी बात को कहावत के रूप मे भी कहा जाता है कि पांच कमाओ लेकिन रोज कमाओ दाल रोटी खाओ लेकिन रोज खाओ,राहु केतु के लिये भी यही मान्यता होती है अक्सर राहु के आने से किसी भी ग्रह के साथ सामजस्य नही बन पाता है कनफ़्यूजन पैदा हो जाते है और उन कनफ़्यूजन को अगर मंगल की तकनीक से निकाल दिया जाता है या अचानक मिलने वाले मुसीबत के कारणो को तकनीकी रूप से प्रयोग मे लाया जाता है तो कनफ़्यूजन भी फ़ायदा देने वाला बन जायेगा लेकिन उसी कनफ़्यूजन मे रहकर और अधिक कनफ़्यूजन को बढा दिया जायेगा तो वही कनफ़्यूजन आगे के सभी रास्ते भी बन्द कर देगा और कोई भी दुर्घटना देने के लिये माना जायेगा। मित्रों ज्योतिष्  के ऐसे पोस्ट आप हमारै website www.acharyarajesh.in पर पढ़ सकते हैं

गुरुवार, 10 अक्तूबर 2019

सिंह लग्न की कुंडली और उसकी विवेचना


कुंडली मे गुरु जीव का अधिकारी होता है सूर्य आत्मा का अधिकारी माना जाता है मंगल आत्मीय शक्ति को बढाने वाला होता है बुध आत्मीय प्रभाव को प्रसारित करने का कारक होता है शुक्र जीव को सजाने और आत्मा के भावो को प्रकट करने मे अपनी सुन्दरता को प्रकट करता है तो चन्द्रमा आत्मीय मन को सृजित करने का भाव पैदा करता है.शनि भौतिक रूप को प्रकट करता है और जीव के कर्म को करने के लिये अपनी योग्यता को प्रकट करता है। यूरेनस दिमाग के संचार को प्रकट करने और भौतिक संचार को बनाने बिगाडने का काम करता है प्लूटो मिट्टी को मशीन मे परिवर्तित करने का कार्य करता है नेपच्यून आत्मा के विकास का अधिकारी माना जाता है.समय के अनुसार जीव का रूप परिवर्तन होता रहता है जैसे आदिम युग मे जीव का रूप कुछ और होता था पाषाण युग मे कुछ था मध्य युग मे कुछ और था और वर्तमान मे कुछ और है तथा आने वाले भविष्य मे जीव का रूप कुछ हो जायेगा। जीव वही रहता है रूप परिवर्तन मे सहायक प्लूटो को मुख्य माना गया है,जो आधुनिकता से लेकर अति अधुनिकता को विकसित करने के लिये लगातार अपने प्रभाव को बढाता जा रहा है और हम क्या से क्या होते जा रहे है,लेकिन जीव के विकास की कहानी के साथ आत्मा का रूप नही बदल पाता है जीव कितना ही आधुनिक हो जाये आत्मा वही रहती है। जो भी कर्म किये जाते है उनका प्रभाव आत्मा पर उसी प्रकार से पडता रहता है जैसे एक चिट्टी विभिन्न डाकघरो मे जाकर डाकघर की उपस्थिति को दर्शाने के लिये अपने ऊपर उन डाकघरो की मुहर अपने चेहरे पर लगाकर प्रस्तुत करती है।

ऊपर दी गई कुंडली सिंह लगन की है और सूर्य विद्या से प्राप्त बुद्धि के भाव मे विराजमान है,सूर्य का साथ देने के लिये बुध जो लगन का चेहरा और भौतिक प्राप्ति तथा कार्य के प्रभाव का नाम प्रस्तुत करने की भावना को भी देता है। सूर्य का प्रभाव धरती तक लाने के लिये सूर्य किरण ही जिम्मेदार होती है। बिना सूर्य किरण के सूर्य का प्रभाव धरती पर आ ही नही सकता है,बुध को किरण का रूप मानने पर यही पता चलता है कि बुध सूर्य की गरमी रोशनी जीवन की प्रस्तुति को धरती तक लाने के लिये संचार का काम करता है इसलिये बुध को संचार का ग्रह कहा गया है। पंचम भाव विद्या के भाव से दूसरा भाव होने से विद्या से प्राप्त बुद्धि को प्रयोग करने का भाव भी कहा गया है और जब इस भाव मे गुरु की धनु राशि का समागम होता है तो ऊंची शिक्षा वाली बुद्धि को प्राथमिक शिक्षा जैसा माना जाता है। कानून की कारक यह राशि विदेशो से भी सम्बन्ध रखती है धर्म और भाग्य से भी यह राशि जुडी होती है साथ ही यात्रा और धार्मिकता को फ़ैलाने या उस धार्मिकता से लोकहित के कार्य करने के लिये भी अपनी युति को प्रस्तुत करती है। इस राशि के प्रभाव को अगर पंचम मे लाया जाता है तो ऊंची जानकारी को खेल खेल मे प्रस्तुत करने की कला भी मानी जाते है,सूर्य भी हकीकत मे कालपुरुष की कुंडली के अनुसार इसी भाव का मालिक है,राज्य और राजनीति से भी सम्बन्ध रखता है। लेकिन उद्देश्य कुछ भी हो मतलब शिक्षा से ही होता है।पुराने जमाने की जो कहानी कही जाती है कि गुरुओं मे इतनी दम होती थी कि वे मिट्टी को चलाने फ़िराने लगते थे,वे कहानिया अविश्वसनीय लगती है,हम कभी कभी कह देते है कि यह सब कपोल कल्पित है,लेकिन आज जिधर भी नजर घुमाई जाती है उधर ही मरी हुयी मिट्टी दौड रही है जिस इंसान को देखो मरी मिट्टी से ही खेल रहा है काम कर रहा है उसी मिट्टी को प्रयोग मे लाकर कमा रहा खा रहा है उसी मिट्टी पर बैठ कर भागा जा रहा है उसी मिट्टी से एक दूसरे से संचार कर रहा है,लेकिन उस जमाने की बातें कपोल कल्पित लगती है ! पुराने गुरु पीले कपडे पहिन कर विद्या को प्रदान किया करते थे लेकिन आधुनिक गुरु कम कपडे पहिन कर कम काम करके अधिक बुद्धि का प्रयोग करके जो कारक पैदा कर रहे है उन्हे गुरु की उपाधि से दूर करने के बाद वैज्ञानिक की उपाधि दे रहे है,वास्तविकता भी है कि जब गुरु सुपर गुरु हो जाता है और मरी मिट्टी मे इतनी जान डाल देता है कि उसका जीवन बिना मरी मिट्टी के बेकार सा हो जाता है तो वह दिमाग को हर पल हर क्षण हर मौके पर दौडाने का काम भी करता है और अपने को वैज्ञानिक कहलाने लगता है। वैज्ञानिक शब्द की व्याख्या को देखा जाये तो वह व+ऐ+ज्ञान+इक से ही देखा जायेगा और इसे अगर विच्छेद करने के बाद जाना जाये तो वाममार्गी तांत्रिको से कम नही समझा जा सकता है। व को मुर्दा कहा जाता है ऐ की मात्रा लगाते है मुर्दे मे जान डालने की क्रिया बन जाती है और जो इस क्रिया को प्रयोग करना जानता हो उसे ज्ञानी की उपाधि दी जाती है लेकिन वह सिद्धान्त के ऊपर ही निर्भर है इसलिये इक यानी एक ही के प्रति समर्पित हो जाती है,तो कौन कहता है कि वैज्ञानिक तांत्रिक नही होता है। जीव यानी गुरु को अपने तंत्र से मरी हुयी मिट्टी मे जान डाल कर लोक हित मे प्रयोग किया जाने लगे और लोग उस मरी मिट्टी जिसमे जान डाल दी गयी है उसे प्रयोग मे लेकर अपने को धन्य समझ ले तथा अपनी आवश्यकताओ को पूरा करने के लिये अपनी योग्यता को जाहिर कर दे तो जिसने उस मई मिट्टी मे जान डाल दी है वह किसी संत से कम कहा जा सकता है क्या ?

राहु फ़ैलाव देता है फ़ैलना भी सीमित नही होता है,असीमित होता है और जो व्यक्ति एक साधारण व्यक्ति से कई गुनी योग्यता सीखने की रखता हो तथा अपने को बजाय साधारण आदमी के अलग थलग दिखाने की औकात को रखता हो उसी को वक्री कहा जाता है। राहु हमेशा उल्टा चलता है,राहु को शक्ति के रूप मे देखा जाता है और जब यह राहु गुरु के साथ हो जाये तो खराब भाव मे जाकर यह जहरीली हवा बन जाता है लेकिन अच्छे भाव मे जाकर यह अमृत प्रदान करने वाली हवा भी बन जाता है और जिस व्यक्ति की कुंडली मे राहु लगन मे हो अच्छी राशि मे हो तो बात ही कुछ और होती है। लेकिन सीधा आदमी उल्टे को नही सुधार सकता है केवल उल्टा आदमी ही उल्टे को सुधार सकता है,उसी प्रकार से राहु को सुधार मे लाने के लिये गुरु को भी उल्टा कर दिया जाये तो राहु आसानी से सुधार मे लाया जा सकता है,इस कुंडली को भी देखिये राहु लगन मे है शिक्षा की राशि मे है और गुरु भी वक्री होकर राहु की गति मे बदल गया है साथ ही नवे भाव के मालिक मंगल का तकनीकी सहारा भी ले लिया है तो राहु को सुधार कर अच्छे रूप मे बदलना जाना जा सकता है। जो राहु दूसरो को डराने का काम करता है एक प्रकार से काली आंधी बनकर लोगो को परेशान करता है तो वह राहु वक्री गुरु के सानिध्य मे आकर और मंगल का साथ लेकर असीमित ज्ञान के क्षेत्र को दिखाने प्रकाश मे लाने के लिये और संसार को सामने रखने के लिये अपनी योग्यता को जाहिर कर रहा है। इसी बात को अगर राहु को सिलीकोन माना जाये गुरु को सिलीकोन को तरीके से जोडना और सर्किट आदि बनाने के काम मे लिया जाये तथा मंगल को शक्ति की कारक बिजली के रूप मे देखा जाये तो यह कम्पयूटर का रूप धारण कर सकता है सर्किट बोर्ड पर लगे हुये आई सी कण्डेन्सर रजिस्टेंस ट्रांजिस्टर डायोड आदि की जानकारी भी देता है और उस के अन्दर अपने ज्ञान का प्रयोग करने के बाद लोगो के लिये उस मशीन का तैयार करना हो जाता है जिससे लोग अपने जीवन की जरूरतो को बाहरी लोगो से लिखने पढने से लेकर आने जाने तथा कितने ही प्रकार के कार्य करने के लिये स्वतंत्र हो सकते है। यह वक्री गुरु का ही काम है कि वह शनि प्लूटो यानी मरी हुयी मशीन को हार्डवेयर आदि डालकर उसे सिस्टम से चलाने की क्रिया मे राहु नामका सोफ़्टवेयर डालकर कई प्रकार की मशीनी श्रेणी मे बदल सकता है। अगर इसी जगह पर मार्गी गुरु होता तो वह दूसरे के द्वारा बनाये गये सामान को प्रयोग करने वाला होता लेकिन वक्री गुरु होने के कारण वह अपने द्वारा बनाये गये सामान को दूसरो के हित के लिये प्रयोग करने वाला बन जाता है।सिंह लगन का चौथा भाव वृश्चिक राशि का होता है यह राशि बहुत गूढ होती है कभी प्रकट रूप से सामने नही होती है जैसा कि मेष राशि का स्वभाव होता है कि उसके मन के अन्दर कुछ भी है वह सामने रख देती है इसलिय ही दूसरो के लिये बलि का बकरा बन जाती है उसी स्थान पर सिंह लगन का जातक अपने विचार बहुत गूढ रखता है और उस बुद्धि का प्रयोग करता है जो बुद्धि साधारण आदमी के पास नही होती है वह अपने भाव को प्रकट करने के लिये गूढ तंत्र का प्रयोग करता है उसे तकनीकी विद्या को प्राप्त करने की आदत होती है साथ ही वह अपने को इतने भेद की नीति के अन्दर रखता है कि मन के अन्दर क्या है जान लेने के लिये अपनी पूरी योग्यता को प्रस्तुत कर सकने के बाद भी यह जाहिर नही होने देता है कि आखिर मे उसकी मंशा क्या थी ? यह राशि तकनीकी राशि भी है और किसी भी प्रकार की तकनीक को दिमाग मे रखने और तकनीकी विद्या के प्रति हमेशा मन को लगाकर चलने के लिये भी मानी जा सकती है यह राशि तकनीक के अलावा दुनिया के भेद मृत्यु के बाद का जीवन पराशक्तियों और शमशानी सिद्धियों के प्रति भी जान लेने की भावना को रखती है। हकीकत मे इस भाव का मालिक चन्द्रमा होता है और जनता का मालिक भी चन्द्रमा होता है दिशाओं से यह दक्षिण पश्चिम दिशा की कारक भी कही गयी है इस प्रकार से जातक की मानसिक रुचि अन्तर की जानकारी के लिये भी मानी जा सकती है।यह राशि नकारात्मक मंगल की राशि भी कही गयी है सकारात्मक मंगल जीव के अन्दर की शक्ति कही जाती है और नकारात्मक मंगल जीव के मरने के बाद उसकी पराशक्ति का कारक होता है। सकारात्मक मंगल जीव के जिन्दा रहने तक साथ देने वाला होता है और नकारात्मक मंगल जीव के मरने के बाद उसकी शक्तियों को दूसरे लोगों के प्रति प्रयोग करने के लिये भी माना जाता है,अक्सर सामाजिक परिवेश मे इस मंगल को लोग भूत प्रेत तंत्र आदि के रूप मे कहते सुने जा सकते है।

यूरेनस इस राशि मे उपस्थित होता है तो जातक के मन के अन्दर एक तो उन शक्तियों को प्रकट करने की इच्छा होती है जो मरने के बाद की जानी जा सकती है दूसरे जातक के अन्दर मरी हुयी मिट्टी के अन्दर से यह जान लेने की कला का विकास भी होता है कि वह कैसे मरी किस अवयव की खराबी से मरी और उस मरी हुई शक्ति के अवयब को जांच लेने की और उसे बदल कर नया जीवन मरी हुयी मिट्टी को देने से भी जानी जा सकती है इस बात को अगर डाक्टरी रूप मे देखा जाता है तो एक प्राणी की मौत के पहले के जीवन को प्राप्त करने के लिये खराब हुये अवयब को बदलने का काम किया जाता है जबकि यूरेनस को संचार का ग्रह माने जाने पर जातक के अन्दर कमन्यूकेशन की चीजों के खराब होने पर उन्हे जांच लेने और उन्हे ठीक करने की क्रिया को जान लेने का कारण भी कहा जाता है इस कारण को अगर देखा जाये तो आज के जमाने मे इन्हे इन्फ़ोर्मेशन तकनीक का जानकार भी कहा जाता है और कम्पयूटर इंजीनियर के रूप मे भी देखा जाता है। नेपच्यून के इस भाव मे होने से यह भी देखा जाता है कि जातक के अन्दर राख से साख निकालने की क्षमता का होना भी होता है वह समझ सकता है कि जो कबाडा हो चुका है उस कबाडे से क्या क्या वस्तु निकाली जा सकती है जो काम की है और उस वस्तु को दूसरी वस्तुओं मे प्रयोग करने के बाद उन्हे काम मे लिया जा सकता है। नेपच्यून का रूप अक्सर आत्मा के रूप मे पाश्चात्य ज्योतिष मे प्रयोग मे लाया गया है लेकिन हमारी संस्कृति के अनुसार से मन के आगे नही मान सकते है मन और आत्मा मे भेद को समझने वाले लोग इस बात को समझ सकते है। जो आत्मा कबाड से जुगाड बनाकर उन्हे काम का सिद्ध कर सके वही एक अच्छे इंजीनियर की श्रेणी मे भी गिना जाता है।

सूर्य और बुध का पंचम भाव मे होना आत्मा का मिलन शिक्षा के क्षेत्र मे जाने का होता है यहा जातक अपनी उपस्थिति को शिक्षा के क्षेत्र मे ले जाने और वहीं से अपनी उन्नति को शुरु करने के लिये भी माना जाता है लेकिन यह बात तभी सिद्ध हो सकती है जब जातक के पुत्र संतान की प्राप्ति हो,उसके पहले सूर्य का उदय होना और सरकारी क्षेत्र मे अपने प्रभाव को दिखाने का कारण नही बनता है,सूर्य से तीसरे भाव मे केतु के होने से भी एक कारण यह भी माना जाता है कि कुम्भ राशि का केतु उन्ही लोगो से मित्रता को बनाता है जब वह मित्रता किसी भी प्रकार से कमन्यूकेशन के मामले मे हो पुरानी ज्योतिष के अनुसार बडे भाई की पत्नी या दोस्त की पत्नी के या बडी बहिन के पति के सहायक कार्यों से जोड कर भी देखा जाता है और  इस केतु को अक्सर सहायक के रूप मे भी माना जाता है चाचा भतीजे का सम्बन्ध भी कायम करता है जीवन के अन्दर एक व्यक्ति की सलाह और शिक्षा जातक को आगे बढाने के लिये भी मानी जाती है।यह केतु पत्नी के रूप मे भी सामने आता है और जातक को अपनी सहायता से आगे बढाने के लिये भी देखा जा सकता है। यह केतु मानसिक रूप से भीअपनी सहायता को देने वाला माना जाता है और जीवन मे जो भी सहायक कार्य है उन्हे करने के लिये भी देखा जा सकता है। संतान मे यह दूसरे नम्बर की संतान का रूप भी समझा जा सकता है और पुत्री संतान के प्रति भी अपनी भावना को रखता है।

जातक एक शिक्षक के रूप मे भी जाना जा सकता है जो लोगो को आधुनिक युग मे विभिन्न प्रकार की मशीनोको उपयोग मे लाने का रूप बताये,जो लोग विद्या से जुडे है उनके लिये कार्य करने का रूप भी प्रस्तुत करता है,साथ ही कालेज शिक्षा मे कार्य को करने का रूप भी दे सकता है जो राजनीति से सम्बन्धित विषयों की जानकारी कानूनी जानकारी और विदेशी परिवेश से जुडी जानकारी को प्रदान करना जानता हो,एक संत जो अपने स्वार्थ की पूर्ति के बिना अपनी सहायता को सेवा के रूप मे लोगों को प्रदान करे भी माना जा सकता है। शनि अपनी नजर से की जाने वाली सेवा से जीवन यापन के लिये कार्य करना भी माना जाता है साथ ही प्लूटो के साथ होने से वह उतना धन नही इकट्ठा कर पाता है जो जीवन मे धन का मोह रखने वाले करते है और बिना उपयोग मे लाये मर जाते है। चन्द्रमा का ग्यारहवे भाव मे होना जातक को उतना ही लाभ दे पाता है जो अपने शरीर की पूर्ति कर ले और कहने के लिये तो उसके कोई भी काम नही बिगडते है जो भी कार्य होता है वह मित्रो की सहायता से पत्नी की सहायता से साथ मे चलने वाले दो लोगो से जो मित्रता की सीमा मे ही होते है के प्रति माना जा सकता है। आचार्य राजेश कुमार

लाल का किताब के अनुसार मंगल शनि

मंगल शनि मिल गया तो - राहू उच्च हो जाता है -              यह व्यक्ति डाक्टर, नेता, आर्मी अफसर, इंजीनियर, हथियार व औजार की मदद से काम करने वा...