गुरुवार, 24 अगस्त 2017

ज्योतिष की वात एक ऐसा विषय है जिससे प्राचीन कोई और विषय नहीं।इतिहास गवाह है कि ऐसा कोई भी समय नहीं था जब ज्योतिष का अस्तित्व नहीं थाआधुनिक विज्ञान के कसौटी पर भी इस बात की पुष्टि हो जाती है। क्योंकि ईसा से भी 25 हजार वर्ष पूर्व की कुछ ऐसी अस्थियां मिली हैं जिन पर सूर्यादि ग्रहों के ज्योतिषीय चिह्नों का अंकन पाया गया है।प्रसन्नता की बात है कि आज जैसे -जैसे आधुनिक विज्ञान का विकास हो रहा है, उसकी पिछली धारणाओं का नयी धारणाओं से अपने आप खंडन होता जा रहा है। फलस्वरूप आज नौबत यहां तक आ पहुंची है कि वैज्ञानिकों का भी एक बड़ा वर्ग ज्योतिष को विज्ञान का दर्जा दिये जाने का पक्षधर बनता जा रहा है। लेकिन ऐक सच यह भी है कि अध्यातिमक क्षेत्र मन्दिर गुरूद्वारा इत्यादि से जुड़े हुए अधिकतर सन्त ज्योतिष विधाा के प्रति नकारात्मक दृषिटकोण रखते हैं। आश्चर्य तो इस बात से होता है कि उन सन्त महापुरूषों वेद-पुराणों में पूर्ण आस्था एवं विश्वास होता है परन्तु वेदों के नेत्र माने जाने वाले ज्योतिष का अपनी बुद्धि के अनुसार खण्डन करते हैं इसके पीछे कौन सा कारण है। यह विचारणीय एवं। खोज का विषय है कि मेरे अपने जीवन में ऐसे कर्इ सन्तों से सामना हुआ है जिनका कहना है कि कुछ भी है सब परमात्मा है ज्योतिष बकवास है तथा इस मंत्र्र का जप करो सब ठीक हो जायेगा। अंगूर खट्टे हैं वाली कहावत याद आती हैसमाज में एक लोकोकित बहुत प्रचलित है कि नीम, हकीम खतरा ए जान संसार में जड़-चेतन जो कुछ भी है उसका अपना एक अर्थ तथा प्रभाव है लेकिन उसका लाभ किस प्रकार से लिया जा सकता है। इसे कोर्इ विरला ही जान पाता है परमात्मा का स्थान जीवन में सर्वोच्च है। इसमें शक करने का कोइ कारण नहीं परन्तु जो एक बात हम भूल जाते हैं वो यह है कि परमात्मा हम सबका स्वामी है, सेवक नहीं सांसार में जो कुछ भी घटित होता है वह परमात्मा की इच्छा से होता है।लेकिन परमात्मा अपनी इच्छा विशेष सेवकों को उत्पन्न करके उनके माध्यम से पूरी करता है। गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि मनुष्य को केवल कर्म करने का अधिकार है फल देने का अधिकार केवल परमात्मा के हाथों में है। ज्योतिष शास्त्र एक ऐसा दर्पण है जिसमें मनुष्य अपने कर्मों के फल को देख सकता है तथा परमात्मा की इच्छा से नवग्रहों के माध्यम से मनुष्य अपने कर्मों का अच्छा या बुरा फल भोगता है।ज्योतिष शास्त्र बहुत ही गूढ और जटिल विज्ञान हैहमें यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि ज्योतिष भाग्य या किस्मत बताने का कोई खेल-तमाशा नहीं है। यह विशुद्ध रूप से एक विज्ञान है। ज्योतिष शास्त्र वेद का अंग है। ज्योतिष शब्द की उत्पत्ति ‘द्युत दीप्तों’ धातु से हुई है। इसका अर्थ, अग्नि, प्रकाश व नक्षत्र होता है। शब्द कल्पद्रुम के अनुसार ज्योतिर्मय सूर्यादि ग्रहों की गति, ग्रहण इत्यादि को लेकर लिखे गए वेदांग शास्त्र का नाम ही ज्योतिष है।ज्योतिष शास्त्र के द्वारा मनुष्य आकाशीय-चमत्कारों से परिचित होता है। फलतः वह जनसाधारण को सूर्योदय, सूर्यास्त, चन्द्र-सूर्य ग्रहण, ग्रहों की स्थिति, ग्रहों की युति, ग्रह युद्ध, चन्द्र श्रृगान्नति, ऋतु परिवर्तन, अयन एवं मौसम के बारे में सही-सही व महत्वपूर्ण जानकारी दे सकता है। इसलिए ज्योतिष विद्या का बड़ा महत्व है । हमारा मस्तिष्क शरीर के विभिन्न अंगों का संचालन करता है। यह बात सिद्ध की जा चुकी है कि शरीर में किसी अव्यव का संचालन मस्तिष्क का कौन-सा भाग करता है। यदि मस्तिष्क का वह भाग किन्हीं कारणों से कार्य करना बंद कर दे तो उससे संबंधित भाग भी कार्य करना बंद कर देता है। मस्तिष्क के विभिन्न भागों का संबंध व्यक्ति की आकांक्षाओं, काम-प्रवृत्तियों, इच्छाओं आदि पर भी होता है। इसी कारण से शरीर-लक्षण विशेष रुप से हस्त रेखाओं द्वारा व्यक्ति की मानसिक क्रियाओं का भी पता चल जाता है। सामुद्रिक शास्त्र का संबंध नक्षत्र, पृथ्वी तथा उसके निवासियों पर उनके प्रभाव तथा उनकी दूर स्थित आभा से निकलने वाली चुम्बकीय दे्रव धारा से है। हमारा स्नायु तंत्र मस्तिष्क तथा हथेली के मध्य एक कड़ी का कार्य करता है और यह दोनों सूक्ष्मतम संवेदनाओं के भंडारागार हैं।चिकित्सा विज्ञान मानता है कि गर्भावस्था से ही बच्चा मुट्ठी बंद किए रहता है, इसलिए हथेली की त्वचा सिकुड़ने से उसमें रेखाएं बन जाती हैं। यह स्वाभाविक है और प्राकृतिक भी। परंतु यह धारणा मिथ्या है। यदि ऐसा होता तो रेखाओं का क्रम व्यवस्थित नहीं होता।नाखून, त्वचा का रंग, नाखून में उपस्थित चन्द्र स्थिति आदि का अध्ययन कर रोग बताने का उपक्रम करते आपने वरिष्ठ चिकित्सकों तक को देखा होगा। विज्ञान भी मानने लगा है कि ग्रह-नक्षत्र जन-जीवन पर प्रभाव डालते हैं। ज्योतिष का मूल है यद् ब्रह्मांडे तत्पिंडे अर्थात् जिन तत्वों से ब्रह्मांड का निर्माण हुआ है, उन्हीं तत्वों से ब्रह्मांडगत सभी पिण्डों का सृजन हुआ है। इसलिए वराहमिहिर ने लिखा है कि प्राणियों एवं जीव-जन्तुओं के अलावा पृथ्वी की प्रत्येक वस्तु पर भी ग्रह-नक्षत्रों का प्रभाव पड़ता है। कुमुदनी चन्द्रकिरणों से खिलती है तो सूर्यमुखी सूर्य से। पृथ्वी पर अन्य खगोलिय पिण्डों की तुलना में सूर्य और चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण बलों के फलस्वरुप समुद्र का पानी ऊपर उठता है। ज्वार-भाटे उत्पन्न होते है। चन्द्रमा और सूर्य के सम्मिलित प्रभावों के फलस्वरुप ही पूर्णिमा और अमावस्या के दिन ज्वार अन्य दिनों की तुलना अधिक ऊंचा होता है। यही स्थिति शुक्ल और कृष्ण पक्ष की सप्तमी और अष्टमी के दिन सबसे कम होती है। दूसरे शब्दों में कहें कि चन्द्रमा की कलाओं के साथ ही ज्वार घटता या बढ़ता रहता है।मानसिक रुप से विक्षिप्त लोगों के अध्ययन से यह निष्कर्ष निकाला गया कि पूर्णिमा के दिन ऐसे लोगों की स्थिति विकराल रुप ले लेती है। सैकड़ों वर्षो के शोध के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया कि सूरज पर प्रत्येक ग्यारह वर्ष में आणविक विस्फोट होता है। इसके प्रभाव का व्यक्ति, देश, वनस्पति आदि पर स्पष्ट अध्ययन किया गया। स्विस चिकित्सक पैरासिलिसस ने अपने अनुसंधानों से यह सिद्ध किया कि कोई व्यक्ति तब ही बीमार होता है जब उसके और उसके जन्म नक्षत्र के साथ जुड़े हुए ग्रह-नक्षत्रों के बीच तारतम्य टूट जाता है। पाइथागोरस ने यह सिद्ध किया था कि प्रत्येक ग्रह-नक्षत्र अपने निश्चित परिपथ पर चलते हुए एक ध्वनि पैदा करता है। इन सब ग्रह-नक्षत्रों की ध्वनि में एक ताल मेल है, एक संगीतबद्धता है। प्रत्येक व्यक्ति की इसी प्रकार की संगीतबद्धता और नक्षत्रों की संगीतबद्धता में भी एक व्यवस्था है। जब यह टूटती है तो व्यक्ति प्रभावित होता है। सन् 1950 में कॉस्मिक कैमिस्ट्री नाम की एक नई शाखा पैदा हुई। उसमें इस बात पर बल दिया गया कि पूरा ब्रह्मांड एक शरीर है। यदि एक कण भी प्रभावित होगा तो पूरा ब्रह्मांड तरंगित हो जाएगा।एक अन्य प्रयोग से यह सिद्ध किया गया कि सूर्य पर आणविक विस्फोट होते हैं तो मनुष्य का खून भी पतला हो जाता है। आप संभवतः नहीं जानते हों कि व्यक्ति का खून सदैव एक सा रहता है, परंतु स्त्रियों का खून उनके मासिक धर्म के दिनों में पतला हो जाता है। ज्योतिष को लोग अंधविश्वास इसलिए कहते हैं कि हम उसके पीछे के वैज्ञानिक कारणों को स्पष्ट नहीं कर पाते। हम कार्य और कारण के बीच संबंध तलाश नहीं कर पाते। परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है। समयाभाव में, धन लोलुपता और अज्ञानतावश हम आगे नहीं बढ़ पा रहे। दरअसल विज्ञान किसी अतिविकसित सभ्यता द्वारा दिया हुआ अविकसित ज्ञान है जिसे हम आगे नहीं बढ़ा पाये। हमारा भविष्य हमारे अतीत से अलग नहीं हो सकता, उससे जुड़ा हुआ होगा। हम कल जो भी होगें, वह आज का ही जोड़ होगा। आज तक हम जो है वह बीते हुए कलों का जोड़ है। भविष्य सदा अतीत से निकलेगा। हमारा आज कल से ही निकलेगा और आने वाला कल आज से। इसलिए जो कल होने वाला है वह आज भी कहीं सूक्ष्म रुप से छुपा है। उसे खोजना ही विज्ञान है।एक छोटे बीज में उसके पेड़ बन कर फल देने और नष्ट हो जाने का पूरा प्रोग्राम लिखा है। वह अंकुरित होगा, पौध बनेगा, बड़ा होगा, फिर पेड़ बन जाएगा आदि। इसी प्रकार गर्भ से ही बच्चे का पूरा प्रोग्राम निश्चित हो जाता है। यह बात अलग है कि पुरूषार्थ से वह उस प्रोग्राम में थोड़ा बहुत परिवर्तन कर लें। प्रत्येक ग्रह-नक्षत्र अपने स्वभाव और गुण अनुसार व्यक्ति को प्रभावित करता है, यह अकाट्य सत्य है। विज्ञान भी इसको मानता है। वह कहता है कि यह सत्य है कि ग्रह-नक्षत्र व्यक्ति, पशु-पक्षी, जल, वनस्पति, जलवायु आदि को प्रभावित अवश्य करते हैं, परन्तु यह अभी स्पष्ट नहीं कहा जा सकता कि कोई व्यक्ति विशेष इनके प्रभाव से प्रभावित होगा ही। इस पर निरंतर शोध कार्य चल रहे है और एक दिन विज्ञान को झुकना ही होगा इस सत्य की ओर।मैं सोचता हूँ कि सरकार और बुद्धिजीवियों को आगे आकर इस विधा पर और खोज करना चाहिए, क्योंकि जो करना चाहते हैं उनके पास संसाधन नहीं हैं। केवल इसे धर्म से जोड़कर और भ्रम बोलकर इसका उपहास करना उचित नहीं है। आज अधिकतर ज्योतिषी इसे धन कमाने का साधन मात्र समझने लगे हैं, बहुत सी विधाएँ अपनी सुविधा अनुसार पैदा कर ली हैं, जिसके कारण इस महान विद्या का दिन प्रतिदिन ह्रास होता जा रहा है। आचार्य राजेश


सोमवार, 21 अगस्त 2017

,जेल मुकद्दमा ओर ज्योतिष


आचार्य राजेश
जेल मुकद्दमा ओर ज्योतिष
By acharyarajesh21/08/2017 No Comments
आचार्य राजेश (ज्योतिष,वास्तु , रत्न , तंत्र, और यन्त्र विशेषज्ञ ) जन्म कुंडली के द्वारा , विद्या, कारोबार, विवाह, संतान सुख, विदेश-यात्रा, लाभ-हानि, गृह-क्लेश , गुप्त- शत्रु , कर्ज से मुक्ति, सामाजिक, आर्थिक, राजनितिक ,पारिवारिक विषयों पर वैदिक व लाल किताबकिताब के उपाय ओर और महाकाली के आशीर्वाद से प्राप्त करें

कानून दो प्रकार के होते है एक तो प्रकृति का कानून जिसे प्रकृति खुद बनाती बिगाडती है दूसरा इंसानी कानून जो इंसान खुद के बचाव और रक्षा के लिये बनाता है। प्रकृति का कानून सर्वोपरि है। प्रकृति को जो दंड देना है या बचाव करना वह स्वयं अपना निर्णय लेती है। अंत गति सो मति कहावत के अनुसार जीव उन कार्यों के लिये अपनी बुद्धि को बनाता चला जाता है जो उसे अंत समय मे खुद के अनुसार प्राप्त हों। कानून के अनुसार भी जीव को तीन तरह की सजाये दी जाती है पहली सजा मानसिक होती है जो व्यक्ति खुद के अन्दर ही अन्दर रहकर सोचता रहता है और वह अपने शरीर मन और दैनिक जीवन को बरबाद करता रहता है दूसरी सजा शारीरिक होती है जो प्रकृति के अनुसार गल्ती करने पर मिलती है और उस गल्ती की एवज मे अपंग हो जाना पागल हो जाना भ्रम मे आकर अपने सभी व्यक्तिगत कारको का त्याग कर देना और तीसरी सजा होती है जो हर किसी को नही मिलती है वह शारीरिक मानसिक और कार्य रूप से बन्धन मे डाल देना,इसे आज की भाषा मे जेल होना भी कहा जाता है। बन्धन योग के लिये एक बात और भी कही जाती है कि व्यक्ति अगर खुद को एक स्थान मे पैक कर लेता है या कोई सामाजिक पारिवारिक कारण सामने होता है वह अपनी इज्जत मान मर्यादा या लोगो की नजरो से बचाव के लिये अपना खुद का रास्ता एकान्त मे चुनता है तो वह भी स्वबन्धन योग की सीमा मे आजाता है किसी भी व्यक्ति के जीवन में कई बार दुखद स्थिति का सामना करना पड़ता है एवं पुलिसिया के जेल जाना कारावास और इस तरह के योग बनते हैं. इंद्रियों के पीछे ग्रहों का खेल होता है. शनि मंगल एवं राहु इन ग्रहों के बुरे योग एवं दृष्टि कारावास को इंगित करती है. लग्न कुंडली में छठे आठवें एवं बारहवें भाव वह उनके स्वामी ग्रह कारावास के लिए जिम्मेवार होते हयदि कोई शुभ ग्रहों की उपस्थिति या दृष्टि दशम भाव पर नव हो एवं शनि मंगल राहु शनि राहु मंगल का योग दशम स्थान पर होने से व्यक्ति को अपराध एवं और समाजिक कार्यों में लिप्त करता है कुंडली अथवा प्रश्न कुंडली में छठे स्थान एवं आठवें स्थान का स्वामी एवं राहु का बारहवे स्थान या 12 वे स्थान के स्वामी के साथ संबंध रहने पर व्यक्ति को जेल की सजा होती है.
दुष्प्रभावों अर्थात छठे आठवें एवं 12वें में शनि राहु एवं मंगल के अलावा केतु के साथ एवं शनि केतु का संबंध होने पर लंबी सजा होती है राहु ग्रह के 12 वे घर में होने या दृष्टि होने से एवं बारहवे घर के स्वामी के कमजोर होने से कारावास या बंधन योग बनता है बृहद जातक एवं जातक तत्व के अनुसार अगर लग्न स्वामी और छठे घर का स्वामी साथ में हो एवं शनि केंद्र या त्रिकोण में हो तो व्यक्ति को कैद की सजा होती है. कुंडली का षष्टम भाव व्यक्ति की आंतरिक क्षमता और निर्बलता को बताता है. मंगल इस भाव का नैसर्गिक कारक है. जब यह आंतरिक शक्ति प्रकृति की विघटनकारी और दुखद स्थितियों का सामना नहीं कर पाती तो व्यक्ति शत्रुओं और कानूनी दिक्कतों का शिकार हो जाता है. कब और कैसे वह इन शत्रुओं और कानूनी समस्याओं से मुक्ति पायेगा इसे षष्टम भाव और उसपर पड़ने वाले दूसरे ग्रहों के प्रभाव द्वारा जाना जाता है. अष्टम भाव का अध्ययन भी इस समस्या में किया जाता है. इस विषय में कौन से उपाय उसे राहत देंगे इसका विश्लेषण होता है. कृष्णमूर्ति पद्धति के अनुसार दूसरे तीसरे 8 वीं एवं 12 वे का उपनक्षत्र स्वामी एवं दूसरे तीसरे 8 वीं एवं 12 वे भाव का कार्य हो तो व्यक्ति को जीवन में कारावास की सजा होती है. दिल मिलना यदि छठे ग्यारहवें भाव का उपनक्षत्र स्वामी छठे और ग्यारहवें भाव का कार्य किया उसके स्वामी से जुड़ा हो तथा दशा एवं अंतर्दशा छठे एवं ग्यारहवें भाव में से किसी रूप में जुड़ा हो तो

गुरुवार, 17 अगस्त 2017

क्या काला जादू एक हकीकत है? हां और शायद नहीं। जो दूसरे लोग हम पर कर सकते हैं और साथ ही उसके बारे में भी, जो हम अपने आप पर करते हैं। अक्सर हम अपनी जान-पहचान के लोगों द्वारा तांत्रिक शक्तियों (काले जादू) के वशीकरण तथा मारण प्रयोगों के बारे में सुनते हैंअक्सर हम अपनी जान-पहचान के लोगों द्वारा तांत्रिक शक्तियों के वशीकरण तथा मारण प्रयोगों के बारे में सुनते हैं।तांत्रिकों तथा योगियों के अनुसार दुनिया की हर चीज चाहे वो सजीव हो या निर्जीव हो ब्रहमाण्ड की विशाल ऊर्जा का ही रूपांतरित रूप है। वे अक्सर शत्रुओं का बुरा करने के लिए नकारात्मक ऊर्जाओं को प्रयोग करते हैं जिसे पहचानना बेहद आसान होता है।यह सव खेल उर्जा का हैआपको यह समझना होगा कि ऊर्जा सिर्फ ऊर्जा होती है, वह न तो दैवी होती है, न शैतानी। आप उससे कुछ भी बना सकते हैं – देवता या शैतान। यह बिजली की तरह होती है। क्या बिजली दैवी या शैतानी, अच्छी या बुरी होती है? जब वह आपके घर को रोशन करती है, तो वह दिव्य होती है। एक वेद, अथर्ववेद सिर्फ सकारात्मक और नकारात्मक चीजों के लिए ऊर्जाओं के इस्तेमाल को ही समर्पित है। अगर वह एक इलेक्ट्रिक चेयर बन जाती है, तो वह शैतानी होती है। यह बस इस बात पर निर्भर करता है कि उस पल उसे कौन संचालित कर रहा है।असल में, पांच हजार साल पहले, अर्जुन ने भी कृष्ण से यही सवाल पूछा था‘आपका यह कहना है कि हर चीज एक ही ऊर्जा से बनी है और हरेक चीज दैवी है, अगर वही देवत्व दुर्योधन में भी है, तो वह ऐसे काम क्यों कर रहा है?’ कृष्ण हंसे क्योंकि इतना उपदेश देने के बाद भी अर्जुन इस साधारण, बुनियादी और बचकाने सवाल पर अटका था। कृष्ण ने जवाब दिया, ‘ईश्वर निर्गुण है, दिव्यता निर्गुण है। उसका अपना कोई गुण नहीं है।’ इसका अर्थ है कि वह बस विशुद्ध ऊर्जा है। आप उससे कुछ भी बना सकते हैं किसीको वचाया भी जा सकता है ओर मारा भी जा सकता है तो फिर लोग काला जादू कर सकते हैं जी हा बिल्कुल कर सकते हैं। अगर ऊर्जा का सकारात्मक इस्तेमाल है, तो नकारात्मक इस्तेमाल भी है। एक वेद, अथर्ववेद सिर्फ सकारात्मक और नकारात्मक चीजों के लिए ऊर्जाओं के इस्तेमाल को ही समर्पित है। नकारात्मक तंत्र-मंत्र को वो लोग अपनाते हैं जोकि दूसरों की सफलता से ईर्ष्या करते हैं। इस तरह के व्यक्तियों के अंदर नकारात्मकता, ईर्ष्या, लालच, निराशा, कुंठा इस तरह से घर कर जाती है कि वे दूसरों की सफलता, उन्नति, समृद्धि को स्वीकार नहीं कर पाते हैं तथा वे उस व्यक्ति से प्रतिशोध लेने के लिए काले जादू के द्वारा उसके लिए परेशानियां पैदा कर आनंद का अनुभव करते हैं। काले जादू का प्रयोग दूसरे व्यक्ति को हानि पहुंचाने या चोट पहुंचाने के लिए कुछ विशेष तरह की क्रियाओं के द्वारा सम्पन्न किया जाता है। इस प्रथा का प्रभाव हजारों मील दूर बैठे व्यक्ति पर भी देखा जा सकता है।र्म शास्त्रों में काले जादू को अभिचार के नाम से भी जाना जाता है अर्थात ऐसा तंत्र-मंत्र जिससे नकारात्मक शक्तियों को जागृत किया जाता है। काले जादू अर्थात नकारात्मक तंत्र-मंत्र का मुख्य उद्देश किसी व्यक्ति को उस स्थान से भगाना, उसे परेशान करना या उसे अपने वश में करके उसका इस्तेमाल करना या उसे बर्बाद करना होता है। काले जादू अर्थात नकारात्मक तंत्र-मंत्र से ग्रसित व्यक्ति के कुछ साधारण लक्षण हैं जैसे मानसिक अवरोध, श्वांसों में भारीपन तथा तेज चलना, गले में खिंचाव, जांघ पर नीले रंग के निशान बिना किसी चोट के, घर में बिना किसी विशेष कारण के कलह या लड़ाई-झगड़ा, घर के किसी सदस्य की अप्राकृतिक मृत्यु, व्यवसाय में अचानक हानि का होना आदि। कुछ और लक्षण भी हैं जैसे कि हृदय में भारीपन महसूस होना, निद्रा पर्याप्त न आना, किसी की मौजूदगी का भ्रम होना, कलह आदि साधारणतया देखने में आते हैं। व्यक्ति अशांत सा रहता है तथा उसको किसी भी तरह से शांति नहीं मिलती। निराशा, कुंठा तथा उत्साह की कमी भी इसी का परिणाम है। यदि काले जादू का समय रहते उपाय न किया जाए तो यह अत्यंत विनाशकारी, भयानक तथा घातक हो सकता है जिसके परिणामस्वरूप जातक की जिंदगी तबाह तथा बर्बाद हो सकती है या फिर उसे कोई भयानक बीमारी अपने अधिन कर सकती है। काले जादू का एक लक्षण ये भी होता है की आप चीड़ चिढ़े सभाव के हो जायेगे आपका किसी के साथ भी बाते करने का मन नहीं करेगासुख का अनुभव नहीं होगा अगर आपके पास भरपूर सुख है और फिरभी आप दुखी ह आपको किसी भी प्रकार का कोई भी सुख आनंद नहीं दे सकतायदि जीवन में अचानक उथल-पुथल मच जाए तो झट से उसे जादू-टोना समझने की बजाय, प्रारंभिक तौर पर कुंडली जांच अवश्य करवाएं। कभी-कभी ग्रह दोषों के कारण भी विपरीत समय का दौर प्रारंभ हो जाता है। यदि कुंडली दोषमुक्त हो तो निम्नलिखित लक्षणों पर ध्यान दें-मित्रों इस दुनिया में अस्तित्ववान सभी वस्तुएं सकारात्मक अथवा नकारात्मक ऊर्जा से प्रभावित हैं। हम ऐसे किसी तत्व की कल्पना ही नहीं कर सकते जो इनसे परे हो। अभिप्राय यह है कि जादू-टोना भी नकारात्मक ऊर्जा का ही उत्सर्जन ही है, जो सायास दूसरों के अहित की कामना से किये जाते हैं। हम सभी जानते हैं, टोने-टोटके अपनी भलाई के साथ-साथ दूसरों का अहित करने के लिए भी किया जा सकता है। यद्यपि तंत्र शास्त्र में वर्णित समस्त अभिक्रियाएं आध्यात्मिक उत्कर्ष प्राप्त करने के निमित्त से ही प्रथम बार की गई होंगी। तथापि, गलत हाथों में पड़ जाने के कारण इनके घातक परिणाम सामने आने लगे। उसी प्रकार तंत्र विद्या में मार और सम्हाल दोनो उपलब्ध है। अर्थात इसमें तांत्रिक क्रियाओं से बचाव हेतु उसका काट भी मौजूद है। यदि आपको लगता है की किसी ने आपके ऊपर कला जादू का प्रयोग किया है तो फिकर मत करे कोई भी साधक यहाँ पर काला जादू करने वाले की पहचान और उसकी काट/तोड़ का समाधान प्राप्त कर सकता है| काला जादू खत्म करने हटाने तथा टोन टोटके से बचने का हर प्रकार समाधान है यहां पर| किसी भी काली परछाई और बुरी आत्माओ को भागने की सिद्धि का प्रयोग कर किसी भी तरह की समस्याओ का समाधान प्राप्त किया जा सकता है| काला जादू का प्रयोग प्रेम और दुश्मन दोनों के लिए कर सकते है| यदि किसी भी काला जादू समस्या का समाधान चाहते है तो अवश्य सलाह लेवे और उचित मार्गदर्सन प्राप्त कर सकते है

रविवार, 13 अगस्त 2017

आचार्य राजेश (ज्योतिष,वास्तु , रत्न , तंत्र, और यन्त्र विशेषज्ञ ) जन्म कुंडली के द्वारा , विद्या, कारोबार, विवाह, संतान सुख, विदेश-यात्रा, लाभ-हानि, गृह-क्लेश , गुप्त- शत्रु , कर्ज से मुक्ति, सामाजिक, आर्थिक, राजनितिक ,पारिवारिक विषयों पर वैदिक उपायों व लाल किताब के द्वारा समाधान प्राप्त करें, आप ऐहमें अपना जन्म की तारीख , समय और जन्म स्थान , के साथ हमारी फीस हमारे bank ac pnb babk 0684000100192356 ifc punb 0068400 मे जमा करानी होगी email maakaali46@gmail.com, Mo. 09414481324. 07597718725 paytm no 07597718725 मित्रों बाद बात करते हैं तो रोगों के बारे में प्राचीन काल में जीवन जीने के भौतिक सुख के साधन कम थे तब रोग व बीमारियां भी कम हुआ करती थीं। जैसे-जैसे मनुष्य ने उन्नति की, भौतिक सुख-सुविधाओं की वस्तुओं में भी वृद्धि हुई, जिससे व्यक्ति आरामदायक जीवन बिताने लगा। इसके परिणामस्वरूप मेहनत कम होने से कई बीमारियों जैसे- मोटापा, मधुमेह, हृदय रोग, नेत्र रोग, कैंसर, अस्थमा आदि ने जन्म लिया। फिल्मी भाषाओं व माॅडलिंग, फैशन एवं बढ़ती भौतिक चीजों के कारण व्यक्ति की मानसिकता उŸोजित होने लगी जिससे कामुकता बढ़ने लगी परिणामस्वरूप यौन-अपराध बढ़ने लगे, जिससे यौन-रोगों में वृद्धि हुई। ये सभी आधुनिक युग के रोग कहलाते हैं अर्थात् प्राचीनकाल में ये रोग नहीं थे। चाहे आज विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली हैं।। सूक्ष्म से सूक्ष्म रोग को मशीन द्वारा पहचान लिया जाता हैं। परंतु फिर भी कई रोग एंव लक्षण आज भी रहस्य बने हुये हैं।। ज्योतिष शास्त्र द्वारा समस्त रोग पूर्व से ही जाने समझे जा सकते हैं, तथा उनका निदान किया जा सकता हैं।ज्योतिष शास्त्र के अनुसार लग्न कुण्डली के प्रथम भाव के नाम आत्मा, शरीर, होरा, देह, कल्प, मूर्ति, अंग, उदय, केन्द्र, कण्टक और चतुष्टय है। इस भाव से रूप, जातिजा आयु, सुख-दुख, विवेक, शील, स्वभाव आदि बातों का अध्ययन किया जाता है। लग्न भाव में मिथुन, कन्या, तुला व कुम्भ राशियाँ बलवान मानी जाती हैं।ग्रह जब भ्रमण करते हुए संवेदनशील राशियों के अंगों से होकर गुजरता है तो वह उनको नुकसान पहुंचाता है। नकारात्मक ग्रहों के प्रभाव को ध्यान में रखकर आप अपने भविष्य को सुखद बना सकते हैं। वैदिक वाक्य है कि पिछले जन्म में किया हुआ पाप इस जन्म में रोग के रूप में सामने आता है। शास्त्रों में बताया है-पूर्व जन्मकृतं पापं व्याधिरूपेण जायते अत: पाप जितना कम करेंगे, रोग उतने ही कम होंगे। अग्नि, पृथ्वी, जल, आकाश और वायु इन्हीं पांच तत्वों से यह नश्वर शरीर निर्मित हुआ है। यही पांच तत्व 360 की राशियों का समूह है। इन्हीं में मेष, सिंह और धनु अग्नि तत्व, वृष, कन्या और मकर पृथ्वी तत्व, मिथुन, तुला और कुंभ वायु तत्व तथा कर्क, वृश्चिक और मीन जल तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। कालपुरुष की कुंडली में मेष का स्थान मस्तक, वृष का मुख, मिथुन का कंधे और छाती तथा कर्क का हृदय पर निवास है जबकि सिंह का उदर (पेट), कन्या का कमर, तुला का पेडू और वृश्चिक राशि का निवास लिंग प्रदेश है। धनु राशि तथा मीन का पगतल और अंगुलियों पर वास है। इन्हीं बारह राशियों को बारह भाव के नाम से जाना जाता है। इन भावों के द्वारा क्रमश: शरीर, धन, भाई, माता, पुत्र, ऋण-रोग, पत्नी, आयु, धर्म, कर्म, आय और व्यय का चक्र मानव के जीवन में चलता रहता है। इसमें जो राशि शरीर के जिस अंग का प्रतिनिधित्व करती है, उसी राशि में बैठे ग्रहों के प्रभाव के अनुसार रोग की उत्पत्ति होती है। कुंडली में बैठे ग्रहों के अनुसार किसी भी जातक के रोग के बारे में जानकारी हासिल कर सकते हैं।मनुष्य का जन्म ग्रहों की शक्ति के मिश्रण से होता है. यदि यह मिश्रण उचित मात्रा में न हो अर्थात किसी तत्व की न्यूनाधिकता हो तो ही शरीर में विभिन्न प्रकार के रोगों का जन्म होता है. शरीर के समस्त अव्यवों,क्रियाकलापों का संचालन करने वाले सूर्यादि यही नवग्रह हैं तो जब भी शरीर में किसी ग्रह प्रदत तत्व की कमी या अधिकता हो, तो व्यक्ति को किसी रोग-व्याधि का सामना करना पडता है. कोई भी ग्रह जब भ्रमण करते हुए संवेदनशील राशियों के अंगों से होकर गुजरता है तो वह उन अंगों को नुकसान पहुंचाता है। जैसे आज कल सिंह राशि में शनि और मंगल चल रहे हैं तो मीन लग्न मकर और कन्या लग्न में पैदा लोगों के लिए यह समय स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा नहीं कहा जा सकता। अब सिंह राशि कालपुरुष की कुंडली में हृदय, पेट (उदर) के क्षेत्र पर वास करती है तो इन लग्नों में पैदा लोगों को हृदयघात और पेट से संबंधित बीमारियों का खतरा बना रहेगा। इसी प्रकार कुंडली में यदि सूर्य के साथ पापग्रह शनि या राहु आदि बैठे हों तो जातक में विटामिन ए की कमी रहती है। साथ ही विटामिन सी की कमी रहती है जिससे आंखें और हड्डियों की बीमारी का भय रहता है। चंद्र और शुक्र के साथ जब भी पाप ग्रहों का संबंध होगा तो जलीय रोग जैसे शुगर, मूत्र विकार और स्नायुमंडल जनित बीमारियां होती है। मंगल शरीर में रक्त का स्वामी है। यदि ये नीच राशिगत, शनि और अन्य पाप ग्रहों से ग्रसित हैं तो व्यक्ति को रक्तविकार और कैंसर जैसी बीमारियां होती हैं। यदि इनके साथ चंद्रमा भी हो जाए तो महिलाओं को माहवारी की समस्या रहती है जबकि बुध का कुंडली में अशुभ प्रभाव चर्मरोग देता है। चंद्रमा का पापयुक्त होना और शुक्र का संबंध व्यसनी एवं गुप्त रोगी बनाता है। शनि का संबंध हो तो नशाखोरी की लत पड़ती है। इसलिए कुंडली में बैठे ग्रहों का विवेचन करके आप अपने शरीर को निरोगी रख सकते हैं। किंतु इसके लिए सच्चरित्रता आवश्यक है। आरंभ से ही नकारात्मक ग्रहों के प्रभाव को ध्यान में रखकर आप अपने भविष्य को सुखद बना सकते हैं। योग-रत्नाकर में कहा है कि- औषधं मंगलं मंत्रो, हयन्याश्च विविधा: क्रिया। यस्यायुस्तस्य सिध्यन्ति न सिध्यन्ति गतायुषि।। अर्थात औषध, अनुष्ठान, मंत्र यंत्र तंत्रादि उसी रोगी के लिये सिद्ध होते हैं जिसकी आयु शेष होती है। जिसकी आयु शेष नहीं है; उसके लिए इन क्रियाओं से कोई सफलता की आशा नहीं की जा सकती। यद्यपि रोगी तथा रोग को देख-परखकर रोग की साध्या-साध्यता तथा आसन्न मृत्यु आदि के ज्ञान हेतु चरस संहिता, सुश्रुत संहिता, भेल संहिता, अष्टांग संग्रह, अष्टांग हृदय, चक्रदत्त, शारंगधर, भाव प्रकाश, माधव निदान, योगरत्नाकर तथा कश्यपसंहिता आदि आयुर्वेदीय ग्रन्थों में अनेक सूत्र दिये गए हैं परन्तु रोगी या किसी भी व्यक्ति की आयु का निर्णय यथार्थ रूप में बिना ज्योतिष की सहायता के संभव नहीं है।

गुरुवार, 10 अगस्त 2017

  आचार्य राजेश (ज्योतिष,वास्तु , रत्न , तंत्र, और यन्त्र विशेषज्ञ ) जन्म कुंडली के द्वारा , विद्या, कारोबार, विवाह, संतान सुख, विदेश-यात्रा, लाभ-हानि, गृह-क्लेश , गुप्त- शत्रु , कर्ज से मुक्ति, सामाजिक, आर्थिक, राजनितिक ,पारिवारिक विषयों पर वादिक उपायों के द्वारा समाधान प्राप्त करें, आप हमें अपना जन्म की तारीख , समय और जन्म स्थान , के साथ हमारी फीस हमारे bank ac pnb babk 0684000100192356 ifc punb 0068400 मे जमा करानी होगी email maakaali46@gmail.com, Mo. 09414481324. 07597718725 paytm no 07597718725 [ ज्योतिष विज्ञान नहीं सुपरै विज्ञानं है!! जीवन में मनुष्य जन्म लेते ही ज्योतिष शास्त्र से जुड़ जाता है। कुछ व्यक्ति ज्योतिष को कला शास्त्र और कुछ विज्ञान की संज्ञा देते हैं। वास्तव में ज्योतिष विज्ञान नहीं, अपितु सुपर विज्ञान है। आज सब देख रहे है की समाज में ज्योतिष की लोकप्रियता बढती जा रही है, मांग और पूर्ति का भी एक सिधांत है की जब किसी चीज की मांग ज्यादा बढ़ जाती है तो वहां कुछ न कुछ गलत होने लगता है इसी प्रकार आज जब ज्योतिष का प्रचार - प्रसार तथा लोकप्रियता बढ़ रही है तो कुछ लोग धन के लोभवश ज्योतिष के अधकचरे ज्ञान का उपयोग कर स्वयं तो अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं पर ज्योतिष जो वैदिकप्रामाणिक विज्ञान और सशक्त शास्त्र है। समूची ज्योतिष विद्या पर प्रश्न चिन्ह भारतीय संस्कृति पर प्रश्नचिन्ह है, .... नारद, आर्यभट्ट, वराहमिहिर, पराशर, गर्गाचार्य, लोमश ऋषि, निबंकाचार्य, पृथुयश, कल्याण वर्मा, लल्लाचार्य, भास्कराचार्य (प्रथम), ब्रह्मगुप्त, श्रीधराचार्य, मुंजाल यह सिर्फ नाम नहीं है ज्योतिष शास्त्र में इनका अपना गौरवमयी यशस्वी योगदान रहा है। ज्योतिष ऋषियों तथा वेदों का अमूल्य ज्ञान है उसकी लोकप्रियता तथा विश्वसनीयता को छति हो रही है ! आज समाज में यह देखने को मिलता है की वैज्ञानिक तथा अन्य नास्तिक लोग देश के विख्यात ज्योतिषियों से टीवी के प्रोग्रामो में चुनौती देते हैं की वह ज्योतिष की विश्वसनीयता सिद्ध करें टीवी प्रोग्राम में पुरे जनमानस के सामने ज्योतिषी यह सिद्ध नहीं कर पाते की ज्योतिष विज्ञानं है क्यों कारण सिर्फ इतना सा है की उनके ज्ञान पर भौतिकता और लालच का पर्दा पड़ा है ! ज्योतिष धन उपार्जन का साधन हो सकती है पर ज्योतिष साधना का विषय है और साधना वातानुकूलित कमरों में रहकर नहीं हो सकती टीवी पर प्रोग्राम देखकर इन ज्योतिषियों को तो शरम नहीं आइ होगी पर प्रोग्राम देखकरमुझ जैसे या जो भी ज्योतिष प्रेमी हैं उनको जरुर दर्द होता होगा ,होना भी चाहिए , इस जगत में कोई भी विज्ञानं पूर्ण नहीं है पूर्ण सिर्फ परमात्मा है जिस तरह से मीडिया ज्योतिष को अंधविश्वास बताने पर तूला है लगता ही नहीं है कि यही वह मीडिया है जो नास्त्रेदेमस पर 6-6 एपिसोड चलाता है। दिन-दिन भर पंडितों को बैठा कर एस्ट्रो टिप्स बताने वाला मीडिया अचानक से स्मृति ईरानी के हाथ दिखाने भर से इसी विद्या के खिलाफ खड़ा हो जाता है। तो फिर ज्योतिष विज्ञानं की ही प्रमाणिकता क्यों मांगी जा रही है कारण ये जो भी कथाकथित ज्योतिष के विद्वान हैं सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के चक्कर में राशिफल , भविष्यवानियाँ टीवी , पत्रिकाओं, अखबारों आदि में करते है जिन्हें हल्दी का रंग मालूम नहीं है पंसारी बने धूम रहे है दस्तखत करना आता नहीं कलक्टर बनाने का फार्म भर रहे हैं ! अरे भाई एक राशी के करोडो लोग हैं आप एक लाठी से सभी को हांके जा रहे हो ..मुर्खता करना अब भी बंद कर दो अपना नहीं तो कम से कम जिस ज्योतिष से तुम्हारी रोटी चल रही है उसकी ही खातिर सही . अरे भाई फल खाओ तो खाओ वृक्ष पर तो तरस खाओ प्यारे ! अब रही बात ज्योतिष की तो भई एक अस्पताल में एक ही मर्ज के पाँच मरीज भर्ती हुए एक ही कमरे में भर्ती किये गए एक ही डाक्टर इलाज करता है परिणाम ... एक मरीज दो दिन में , दूसरा तीन दिन में , चौथा चार दिन में ठीक हो जाते है पांचवा ठीक नहीं होता ओपरेशन करना पड़ता है फिर भी मर जाता है तो क्या अस्पताल की विश्वसनीयता पर या डाक्टर की विश्वसनीयता पर या दवाइयों की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लगाना चाहिए .. नहीं .. बिलकुल नहीं ,, प्रत्येक मरीज की अपनी रोग प्रतिकारक शक्तियां है जो की भिन्न भिन्न हैं ठीक उसी तरह ज्योतिष विद्या भी है जो की भिन्न भिन्न जातको की भिन्न भिन्न समस्याओं का इलाज़ ज्योतिष्य तरीके से करती है लेकिन किसी भी जातक के प्रारब्ध दुसरे जातक जैसे नहीं हो सकते और इसी विशेष कारण उसकी समस्या के निदान में समय लगना या कई बात लाइलाज भी रह जाना स्वाभाविक है ! यही कारण से ज्् ज्योतिष सवालों के कटघरे में खड़ा है!जब राजनीति विज्ञान हो सकता है, समाज विज्ञान हो सकता है मन का भी मनोविज्ञान हो सकता है तो ज्योतिष विज्ञान क्यों नहीं हो सकता? मैं स्मृति ईरानी का ज्योतिषी के पास जाना वैसा ही मानता हूं जैसे कोई डॉक्टर के पास जाता है। हर युग में हर किसी किसी के अपने ज्योतिषी और आचार्य रहे हैं। राजा-महाराजाओं के काल में भी, विदेशों में भी और भारत में भी। रेगन, बुश,क्लिंटन से लेकर हर दौर के मंत्री और नेताओं के ज्योतिषी थे और हैं। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, प्रधानमंत्री पं. नेहरू, डॉ. राधाकृष्णन से लेकर सभी बड़े राजनेता, क्रांतिकारी और समाजसेवी ज्योतिषाचार्य जी के पास आते रहे हैं। भारत की आजादी का मुहूर्त भी उन्हीं से पूछकर निकाला गया था। ब्रह्माण्‍ड की उत्‍पत्ति बिग बैंग से हुई या यह शुरू से ही ऐसा था, प्रकाश से तेज रफ्तार में क्‍या होता है, ब्‍लैक होल क्‍या है, हीरे की बाहरी संरचना में तीन-तीन फ्री कार्बन क्‍यों नहीं होते और अगर होते हैं तो वह अक्रिय कैसे होता है। सैकड़ों सवाल है जो अनुत्‍तरित हैं। फिर भी पश्चिम द्वारा थोपे गए विज्ञान को सिर पर बैठाया जाता है और हमारे ऋषियों द्वारा अर्जित ज्ञान को नीचा दिखाया जाता है। मेरी समझ में तो यह गुलामी की मानसिकता से अधिक और कुछ नहीं है। मैं निजी तौर पर योग सिखाने वाले बाबा रामदेव का फैन हूं। इसका कारण यह नहीं है कि वे अपनी योग कक्षाओं में बैठने की फीस लेते हैं बल्कि इसके बावजूद उन्‍होंने सहज योगासनों और सामान्‍य प्राणायामों से लोगों को सक्रिय कर दिया है। आज स्थिति यह है कि किसी चिकित्‍सक को जब यह कहा जाता है कि इस बीमारी का हल तो बाबा रामदेव ने इस योग में बताया है तो चिकित्‍सक मारने को दौड़ता है। पश्चिमी शिक्षा का प्रभाव है कि चिकित्‍सक यह मानने को तैयार नहीं होता कि सांस लेने से भी कोई ठीक हो सकता है। श्‍वास के साथ जुड़े प्राण को अंग्रेजों ने नकारा तो भारतीयों ने भी नकार दिया। अब विदेशी लोग योग करते हैं और ग्‍लेज पेपर वाली मैग्‍जीन्‍स में भारतीय उनके फोटो देखते हैं।वापस विषय पर आता हूं ,इतिहास के संदर्भ में ही देखें तो प्रयोग, प्रेक्षण और परिणाम की कसौटी पर इतिहास के किसी तथ्‍य को नहीं रखा जा सकता। जैसी दुनिया आज है वैसी दस साल पहले नहीं थी और जैसी दस साल पहले थी वैसी सौ साल पहले नहीं थी। तो कैसे तो प्रयोग होगा, किस पर प्रेक्षण किया जाएगा और आने वाले परिणामों को किस कसौटी पर जांचा जाएगा। मेरा मानना है कि ज्‍योतिष के साथ भी कुछ ऐसा ही है। पूर्व में ग्रहों और राशियों की स्थिति की पुनरावृत्ति के साथ घटनाओं का तारतम्‍य देखकर उसके सांख्यिकीय आंकड़ों के आधार पर योगों का निर्माण किया गया होगा। सालों, दशकों या शताब्दियों के निरन्‍तर प्रयास से योगों को स्‍थापित किया गया और आज के संदर्भ में इन योगों का इस्‍तेमाल भविष्‍य में झांकने के लिए किया जाता है। अब जो लैण्‍डमार्क पीछे से आ रहे रास्‍ते को दिखा रहे हैं उनसे आगे का रास्‍ता बता पाना न तो गणित के सामर्थ्‍य की बात है और न कल्‍पना के। ऐसे में ज्‍योतिषी के अवचेतन को उतरना पड़ता है। जैसा कि मौसम विभाग के सुपर कम्‍प्‍यूटर करते हैं। अब तक हुई भूगर्भीय गतिविधियों को लेकर आगामी दिनों में होने वाली घटनाओं की व्‍याख्‍या करने का प्रयास। इसके साथ ही बदलावों को तेजी से समझना और उन्‍हें आज के परिपेक्ष्‍य में ढालना भी एक अलग चुनौती होती है। पचास साल पहले कोई ज्‍योतिषी यह कह सकता था कि अमुक घटना हुई है या नहीं इसकी सूचना आपको एक सप्‍ताह के भीतर मिल जाएगी वहीं अब मोबाइल और इंटरनेट ने सूचनाओं के प्रवाह को इतना प्रबल बना दिया है कि घटना और सूचना में महज सैकण्‍डों का अन्‍तर होता है। अब देखें कि इससे क्‍या फर्क पड़ा। सबसे बड़ा फर्क पड़ा बुध के प्रभाव के बढ़ने का। दूसरा फर्क मोबाइल और इंटरनेट के इस्‍तेमाल के दौरान व्‍यक्ति पर आ रही किरणों के असर का। इसे बुध राहू के रूप में लेंगे या शनि चंद्रमा के रूप में, ये निर्णय होने से अभी बाकी है। ऐसे में कोई ज्‍योतिषी करीब-करीब सही फलादेश कर देता है तो उसे और उसके अवचेतन को धन्‍यवाद देना चाहिए् रही वात ज्योतिष की विज्ञान और ज्योतिष के सर्वमान्य सिद्धांत के अनुसार कोई भी ग्रह हमेशा किसी के ऊपर नहीं रहता बल्कि अपनी चाल के अनुसार अलग अलग राशियों में जाता रहता है| जब एक निश्चित समयानुसार ग्रहों की स्थिति बदलती रहती है आकाश में मौजूद 9 ग्रह अपनी अपनी गति से चलते है और गणित के अनुसार एक खास समय पर अलग अलग राशियों में प्रवेश करते हैं| एक खास समय तक उस राशि में रहते हैं और फिर अगली राशि में चले जाते हैं| अलग अलग राशि में उनके अलग अलग प्रभाव होते हैं| कैसे आइए जानते हैं : आचार्य लोंगों ने आकाश को समझने के लिए इसे 12 भागों में बाँट दिया| हर भाग को एक नाम दे दिया जिसे हम राशियों के नाम से जानते हैं| इस प्रकार हम आकाश के 12 भागों को 12 राशियों के नाम से जानते हैं| पूरा सौर मंडल इन्हीं 12 राशियों के अंदर आता है| सूर्य इन्हीं 12 भागों से होकर गुज़रता है| और जब कोई भी ग्रह किसी भी राशि में आता है तो उस पर सूर्य और अन्य ग्रहों की प्रकाश किरणें पड़ने लगती हैं| और ये प्रकाश किरणें प्रकाश के प्रत्यावर्तन सिद्धांतों के अनुसार विभिन्न कोणों से विभिन्न ग्रहों से टकराकर धरती मंडल में प्रवेश करती हैं और उस समय ये प्रकाश किरणें जिस राशि में से होकर धरती मंडल पर आती हैं उस राशि में जन्म पाने वाले लोगों के शरीर में मौजूद लाल रक्त कण उस राशि में प्रवेश कर रहीं राशिष्ठ किरणों को अपने में अवशोषित कर लेती है| और वह प्राणी उस ग्रह के कास्मिक किरणों के प्रभाव में आ जाता है| हर आदमी के शरीर में 12 तरह की किरणें होती हैं| अब अगर किसी के शरीर में 10 पॉइंट किसी खास ग्रह की ज़रूरत है और उसमें 8 पॉइंट ही हैं तो उसे 2 पॉइंट और चाहिए| अब अगर वह 4 पॉइंटस और ले लेगा तो 2 पायंट्स जो ज़्यादा हो जाएगा वह उसे नुकसान ही पहुँचाएगा न कि फायदा| इसी को लोग कहते हैं कि ग्रह दशा खराब हो गई है| अब हमें उपाय करने चाहिए जिससे कि ये 2 पायंट्स समाप्त हो जाएँ| कितने पायंट्स किरणों की ज़रूरत किसे है उसमें कितने पायंट्स उसमें हैं उसे और कितने पायंट्स और चाहिए इसकी जाँच ज्योतिष् और विज्ञान दोनों में है शेष अगले पोस्ट में:

रविवार, 6 अगस्त 2017

आचार्य राजेश (ज्योतिष,वास्तु , रत्न , तंत्र, और यन्त्र विशेषज्ञ ) जन्म कुंडली के द्वारा , विद्या, कारोबार, विवाह, संतान सुख, विदेश-यात्रा, लाभ-हानि, गृह-क्लेश , गुप्त- शत्रु , कर्ज से मुक्ति, सामाजिक, आर्थिक, राजनितिक ,पारिवारिक विषयों पर वादिक उपायों के द्वारा समाधान प्राप्त करें, आप हमें अपना जन्म की तारीख , समय और जन्म स्थान , के साथ हमारी फीस हमारे bank ac pnb babk 0684000100192356 ifc punb 0068400 मे जमा करानी होगी email maakaali46@gmail.com, Mo. 09414481324. 07597718725 paytm no 07597718725

स्त्री-पुरुष जीवन रथ के दो पहिए हैं।
स्त्री-पुरुष जीवन रथ के दो पहिए हैं।सृष्टि सृजन में दोनों का समान योगदान होता है। नारी जननी, माँ, बेटी, पत्नी, बहन, नानी, दादी बन समाज, परिवार को पोषित करती है। नारी को कई दैवीय रूपों में पूजा जाता है। ऐश्वर्य के लिए लक्ष्मी, शक्ति के लिए दुर्गा, ज्ञान के लिए सरस्वती।
संस्कृत का श्लोक है – "यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते, रमन्ते तत्र देवताः" अर्थात जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं। वैदिक काल में गार्गी जैसी विदूषी स्त्री ने यज्ञवलक्य को शास्त्रार्थ में हरा दिया था। कहने का तात्पर्य यह है कि उस ज़माने में स्त्रियों को पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त थे। स्वतंत्रता-स्वच्छंदता थीमध्यकालीन युग में नारियों की दशा बरबस, बेचारी-सी हो गई। उसे पाँव की जूती मानने लगे और नारी परिवार-समाज की संकुचित सीमाओं में बँध कर रह गई। पुरुष प्रधान समाज में नारी के नारीत्व का हरण होने लगा।। अनादि काल से महिलायें तिरस्कार झेलती आयीं है। पति के रूप में प्राप्त पुरुष स्त्री को कामना के रूप में स्वीकार करने के बजाय अवमानना के रूप में प्रयोग करता है,जब कि प्रकृति ने स्त्री को निराकार और पुरुष को साकार रूप में इस संसार में उपस्थित किया है। निराकार और साकार का रूप समझे बिना स्त्री पुरुष कभी भी अपने को सामजस्यता में नही रख पायेंगे,पहले आपको बता देना चाहता हूँ कि साकार और निरकार का अर्थ क्या है ? इस संसार में धनात्मक कारक साकार है,और ऋणात्मक कारक निराकार है,पुरुष का अर्थ एक तरह से है – मर्दाना। प्रकृति का अर्थ है स्त्री। तो सृष्टि जिस तरह से है, उसे समझाने के लिए सृष्टि के सृजन के बीज को पुरुष कहा गया है। यह नर है, लेकिन उसकी जीवन-निर्माण में कोई सक्रिय भूमिका नहीं है। यह बिलकुल मनुष्य के जन्म जैसी है। पुरुष सिर्फ बीज डालता है, लेकिन बाकी सारा सृजन नारी द्वारा होता है। इसलिए, देवी मां या पार्वती या काली को प्रकृति कहा गया है। वह संपूर्ण सृजन करती हैं, लेकिन इस सृजन का बीज है शिव या पुरुष। इसे शिव-शक्ति या पुरुष-प्रकृति, या यिन-यैंग या और भी कई तरह से समझा जा सकता हैस सृष्टि के आधार और रचयिता यानी स्त्री-पुरुष शिव और शक्ति के ही स्वरूप हैं। इनके मिलन और सृजन से यह संसार संचालित और संतुलित है। दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं। नारी प्रकृति है और नर पुरुष। प्रकृति के बिना पुरुष बेकार है और पुरुष के बिना प्रकृति। दोनों का अन्योन्याश्रय संबंध है।।दोनो का अनुपात समान रूप से प्रयोग में लाने पर जीवन बिना किसी अवरोध के चला करता है,और इनके अन्दर जरा सा भी अनुपात बिगाड लिया जाये तो जीवन कष्टकारक हो जाता है। एक स्त्री एक पुरुष का अनुपाती रूप धनात्मक शक्ति को ऋणात्मक शक्ति में विलीन करने के लिये काफ़ी है,एक पुरुष अगर कई ऋणात्मक शक्तियों की पूर्ति करने के लिये उद्धत होता है तो वह जानबूझ कर अपनी जीवन की गति को असमान्य करता है,या तो वह जीवन को कम करता है अथवा वह जीवन भर अभावों में जीता है। उसी प्रकार से अगर एक स्त्री अगर कई सकारात्मक कारकों को अपने जीवन में प्रयोग करती है तो वह अपने जीवन को जल्दी समाप्त करने की चाहत करती है साथ ही जीवन को बरबाद करने के अलावा और कुछ नही करना चाहती है। इस बात को समझने के लिये आपको कहीं नही जाना है केवल अपने आसपास के माहौल को देखना है,आप किसी विधवा स्त्री या विधुर को देखिये,उसके जीवन को देखिये,उसकी आयु को देखिये,एक महिला का पति अगर चालीस साल की उम्र में गुजर गया है तो वह महिला अपनी वास्तविक उम्र से बीस साल और अधिक जिन्दा रहती है,अगर एक पुरुष चालीस साल में विधुर हो गया है तो वह अपनी वास्तविक उम्र से बीस साल और अधिक जिन्दा रहता है,इस अधिक उम्र को प्राप्त करने का कारण क्या है। इसे कोई भी बालिग आराम से समझ सकता है। अगर पुरुष अधिक स्त्रियों की कामना करता है और अधिक से अधिक कई स्त्रियों के साथ समागम करता है तो उसकी उम्र हर पहलू में कम होती चली जाती है,वह चाहे कितना ही धनी हो,कितना ही खाने पीने वाला हो,उसके पास चाहे कितने ही शरीर को बलवान बनाने वाले तत्वों की अधिकता हो,वह अपनी उम्र को कम ही करेगा। उसी प्रकार से कोई स्त्री अगर एक से अधिक पुरुषों के साथ समागम करती है तो वह भी अपनी उम्र की एक एक सीढी कम करती चली जाती है। इस बात को समझने के बाद भी अगर कोई स्त्री या पुरुष अधिक स्त्री या पुरुष की कामना करता है तो वह, वास्तव में सोसाइट करने वाली बात ही करता है।स्त्री पुरुष को ईश्वर ने संसार में निर्माण के लिये भेजा है यह तो एक साधारण व्यक्ति भी जानता है,लेकिन भावनाओं की गति को पकड कर चलने के साथ ही अगर दोनो अपने अपने कार्यों को करते चले जाते है,और वे जीवन की गति को निर्बाध चलाने के लिये एक के बाद एक निर्बाध (Resistance) पैदा करते जाते है तो जीवन आराम से निकल जाता है। इस स्त्री और पुरुष की गति को अगर रोजाना के प्रयोग में ली जाने वाली बिजली से तुलना करें तो आराम से समझ में आ सकता है,फ़ेस और न्यूटल दो भाग में घरेलू बिजली प्रयोग में ली जाती है,फ़ेस को न्यूटल से सीधा जोडने पर फ़्यूज उड जाता है,और फ़ेस को किसी रजिस्टेंस के माध्यम से न्यूटल तक पहुंचाने से उस रजिस्टेंस से जीवन की भौतिकता में सुख भी प्राप्त किया जा सकता है,और फ़्यूज भी नही उडता है,बिजली की गति सामान्य भी रहती है। स्त्री को न्यूटल और पुरुष को फ़ेस समझे जाने पर दोनो की आपसी शक्ति को प्रकृति ने बच्चे रूपी रजिस्टेंस पैदा किये है,दोनो अपनी अपनी शक्ति को बच्चों के माध्यम से खर्च करें तो बच्चे तरक्की करते जायेंगे,और दोनो का जीवन भी सार्थक होता चला जायेगा। लेकिन दोनो के बीच बीच में होने वाले शार्ट सर्किट से भी बचना पडेगा। भगवान रूपी पावर हाउस,तार और खम्भों रूपी माता पिता,आन आफ़ करने वाले स्विच रूपी रोजाना के कार्य और व्यवसाय,इन्डीकेटर रूपी नाम और समाज में वेल्यू,एम सी बी रूपी भाग्य और भगवान के प्रति श्रद्धा भी ध्यान में रखनी जरूरी है।

स्त्री-पुरुष जीवन रथ के दो पहिएस्त्री-पुरुष जीवन रथ के दो पहिए हैं। स्त्री-पुरुष जीवन रथ के दो पहिए हैं।सृष्टि सृजन में दोनों का समान योगदान होता है। नारी जननी, माँ, बेटी, पत्नी, बहन, नानी, दादी बन समाज, परिवार को पोषित करती है। नारी को कई दैवीय रूपों में पूजा जाता है। ऐश्वर्य के लिए लक्ष्मी, शक्ति के लिए दुर्गा, ज्ञान के लिए सरस्वती। संस्कृत का श्लोक है – "यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते, रमन्ते तत्र देवताः" अर्थात जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं। वैदिक काल में गार्गी जैसी विदूषी स्त्री ने यज्ञवलक्य को शास्त्रार्थ में हरा दिया था। कहने का तात्पर्य यह है कि उस ज़माने में स्त्रियों को पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त थे। स्वतंत्रता-स्वच्छंदता थीमध्यकालीन युग में नारियों की दशा बरबस, बेचारी-सी हो गई। उसे पाँव की जूती मानने लगे और नारी परिवार-समाज की संकुचित सीमाओं में बँध कर रह गई। पुरुष प्रधान समाज में नारी के नारीत्व का हरण होने लगा।। अनादि काल से महिलायें तिरस्कार झेलती आयीं है। पति के रूप में प्राप्त पुरुष स्त्री को कामना के रूप में स्वीकार करने के बजाय अवमानना के रूप में प्रयोग करता है,जब कि प्रकृति ने स्त्री को निराकार और पुरुष को साकार रूप में इस संसार में उपस्थित किया है। निराकार और साकार का रूप समझे बिना स्त्री पुरुष कभी भी अपने को सामजस्यता में नही रख पायेंगे,पहले आपको बता देना चाहता हूँ कि साकार और निरकार का अर्थ क्या है ? इस संसार में धनात्मक कारक साकार है,और ऋणात्मक कारक निराकार है,पुरुष का अर्थ एक तरह से है – मर्दाना। प्रकृति का अर्थ है स्त्री। तो सृष्टि जिस तरह से है, उसे समझाने के लिए सृष्टि के सृजन के बीज को पुरुष कहा गया है। यह नर है, लेकिन उसकी जीवन-निर्माण में कोई सक्रिय भूमिका नहीं है। यह बिलकुल मनुष्य के जन्म जैसी है। पुरुष सिर्फ बीज डालता है, लेकिन बाकी सारा सृजन नारी द्वारा होता है। इसलिए, देवी मां या पार्वती या काली को प्रकृति कहा गया है। वह संपूर्ण सृजन करती हैं, लेकिन इस सृजन का बीज है शिव या पुरुष। इसे शिव-शक्ति या पुरुष-प्रकृति, या यिन-यैंग या और भी कई तरह से समझा जा सकता हैस सृष्टि के आधार और रचयिता यानी स्त्री-पुरुष शिव और शक्ति के ही स्वरूप हैं। इनके मिलन और सृजन से यह संसार संचालित और संतुलित है। दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं। नारी प्रकृति है और नर पुरुष। प्रकृति के बिना पुरुष बेकार है और पुरुष के बिना प्रकृति। दोनों का अन्योन्याश्रय संबंध है।।दोनो का अनुपात समान रूप से प्रयोग में लाने पर जीवन बिना किसी अवरोध के चला करता है,और इनके अन्दर जरा सा भी अनुपात बिगाड लिया जाये तो जीवन कष्टकारक हो जाता है। एक स्त्री एक पुरुष का अनुपाती रूप धनात्मक शक्ति को ऋणात्मक शक्ति में विलीन करने के लिये काफ़ी है,एक पुरुष अगर कई ऋणात्मक शक्तियों की पूर्ति करने के लिये उद्धत होता है तो वह जानबूझ कर अपनी जीवन की गति को असमान्य करता है,या तो वह जीवन को कम करता है अथवा वह जीवन भर अभावों में जीता है। उसी प्रकार से अगर एक स्त्री अगर कई सकारात्मक कारकों को अपने जीवन में प्रयोग करती है तो वह अपने जीवन को जल्दी समाप्त करने की चाहत करती है साथ ही जीवन को बरबाद करने के अलावा और कुछ नही करना चाहती है। इस बात को समझने के लिये आपको कहीं नही जाना है केवल अपने आसपास के माहौल को देखना है,आप किसी विधवा स्त्री या विधुर को देखिये,उसके जीवन को देखिये,उसकी आयु को देखिये,एक महिला का पति अगर चालीस साल की उम्र में गुजर गया है तो वह महिला अपनी वास्तविक उम्र से बीस साल और अधिक जिन्दा रहती है,अगर एक पुरुष चालीस साल में विधुर हो गया है तो वह अपनी वास्तविक उम्र से बीस साल और अधिक जिन्दा रहता है,इस अधिक उम्र को प्राप्त करने का कारण क्या है। इसे कोई भी बालिग आराम से समझ सकता है। अगर पुरुष अधिक स्त्रियों की कामना करता है और अधिक से अधिक कई स्त्रियों के साथ समागम करता है तो उसकी उम्र हर पहलू में कम होती चली जाती है,वह चाहे कितना ही धनी हो,कितना ही खाने पीने वाला हो,उसके पास चाहे कितने ही शरीर को बलवान बनाने वाले तत्वों की अधिकता हो,वह अपनी उम्र को कम ही करेगा। उसी प्रकार से कोई स्त्री अगर एक से अधिक पुरुषों के साथ समागम करती है तो वह भी अपनी उम्र की एक एक सीढी कम करती चली जाती है। इस बात को समझने के बाद भी अगर कोई स्त्री या पुरुष अधिक स्त्री या पुरुष की कामना करता है तो वह, वास्तव में सोसाइट करने वाली बात ही करता है।स्त्री पुरुष को ईश्वर ने संसार में निर्माण के लिये भेजा है यह तो एक साधारण व्यक्ति भी जानता है,लेकिन भावनाओं की गति को पकड कर चलने के साथ ही अगर दोनो अपने अपने कार्यों को करते चले जाते है,और वे जीवन की गति को निर्बाध चलाने के लिये एक के बाद एक निर्

शनिवार, 5 अगस्त 2017

.शनी वक्री वक्री शनिआचार्य राजेश (ज्योतिष,वास्तु , रत्न , तंत्र, और यन्त्र विशेषज्ञ ) जन्म कुंडली के द्वारा , विद्या, कारोबार, विवाह, संतान सुख, विदेश-यात्रा, लाभ-हानि, गृह-क्लेश , गुप्त- शत्रु , कर्ज से मुक्ति, सामाजिक, आर्थिक, राजनितिक ,पारिवारिक विषयों पर वादिक उपायों के द्वारा समाधान प्राप्त करें, आप हमें अपना जन्म की तारीख , समय और जन्म स्थान , के साथ हमारी फीस हमारे bank ac pnb babk 0684000100192356 ifc punb 0068400 मे जमा करानी होगी email maakaali46@gmail.com, Mo. 09414481324. 07597718725 paytm no 07597718725शनिग्रह के बारे मे माना जाता है कि शनि ग्रह चाहे तो राजा बना दे या रंक। जिसकी जन्म कुण्डली में शनि बहुत अच्छी स थिति में होता है उसे शनि विशेष हानि नहीं पहुंचाता बल्कि लाभ देता है। जिन जातको की कुण्डली में शनि, नीच स्थिति पर होता है, उन्हें शनि से हानि होती है। परन्तु यह हानि जीवन भर नहीं रहती, क्योंकि हमारे जीवन में दशा और गोचर का भी महत्व होता है।सबसे पहले तो यह जान लें कि किसी भी वक्री ग्रह का व्यवहार उसके सामान्य होने की स्थिति से अलग होता है तथा वक्री और सामान्य ग्रहों को एक जैसा नही मानना चाहिए। किन्तु यहां पर यह जान लेना भी आवश्यक है कि अधिकतर मामलों में किसी ग्रह के वक्री होने से कुंडली में उसके शुभ या अशुभ होने की स्थिति में कोई फर्क नही पड़ता अर्थात अधिकतर मामलों में ग्रह के वक्री होने की स्थिति में उसके स्वभाव में कोई फर्क नहीं आता किन्तु उसके व्यवहार में कुछ बदलाव अवश्य आ जाते हैं। यहा स्वभाव ओर व्यवहार दोनो को समझने की आवश्यकता हैज्‍योतिष में हर ग्रह और राशि (नक्षत्रों के समूह) की प्रकृति के बारे में विस्‍तार से जानकारी दी गई है। ग्रहों के रंग, दिशा, स्‍त्री-पुरुष भेद, तत्‍व और धातु के अलावा राशियों के गुणों के बारे में भी बताया गया है। ग्रहों और राशियों की प्रकृति स्‍थाई होती है। इनके प्रभाव में कमी या बढ़ोतरी हो सकती है, लेकिन मूल प्रकृति में कभी बदलाव नहीं होता।जब कोई ग्रह अपनी नीच राशि में जाता है तो यह माना जाता है कि इस राशि में ग्रह का प्रभाव अपेक्षाकृत कम होता है और उच्‍च राशि में अपना सर्वाधिक प्रभाव देता है। अब प्रभावों में बढ़ोतरी हो या कमी, न तो ग्रह की और न ही राशि की प्रकृतिमें कोई बदलाव आता है। उदाहरण के लिए शनि यदि अपनी सामान्य गति से कन्या राशि में भ्रमण कर रहे हैं तो इसका अर्थ यह होता है कि शनि कन्या से तुला राशि की तरफ जा रहे हैं, किन्तु वक्री होने की स्थिति में शनि उल्टी दिशा में चलना शुरू कर देते हैं अर्थात शनि कन्या से तुला राशि की ओर न चलते हुए कन्या राशि से सिंह राशि की ओर चलना शुरू कर देते हैं और जैसे ही शनि का वक्र दिशा में चलने का यह समय काल समाप्त हो जाता है, वे पुन: अपनी सामान्य गति और दिशा में कन्या राशि से तुला राशि की तरफ चलना शुरू कर देते हैं। वक्र दिशा में चलने वाले अर्थात वक्री होने वाले बाकि के सभी ग्रह भी इसी तरह का व्यवहार करते हैं। यानी उसका मुल स्वभाव वही रहेग पर व्यवहार मे फर्क होगा जब शनि कुंडली में मार्गी होता है तो शरीर से मेहनत करवाता है और जो भी काम करवाता है उसके अन्दर पसीने को निकाले बिना भोजन भी नहीं देता है और जब किया सौ का जाय तो मिलता दस ही है,इसके साथ ही शरीर के जोड़ जोड़ को तोड़ने के लिए अपनी पूरी की पूरी कोशिश भी करता है,रहने के लिए अगर निवास का बंदोबस्त किया जाए तो मजदूरों से काम करवाने की बजाय खुद से भी मेहनत करवाता है तब जाकर कोई छोटा सा रहने वाला मकान बनवा पाता है,जब कोई कार्य करने के लिए अपने को साधनों की तरफ ले जाता है तो साधन या तो वक्त पर खराब हो जाते है या साधन मिल ही नहीं पाते है,मान लीजिये किसी को घर बनवाने के लिए सामान लाना है,सामान लाते हुए घर के पास ही या तो साधन खराब हो जाएगा जिससे आने वाले सामान को घर तक लाना भी है और साधन भी ख़राब है या रास्ता ही खराब है उस समय मजदूरी से अगर उस सामान को लाया जाता है तो वह मजदूरी इतनी देनी पड़ती है जिससे मकान को बनवाने के लिए जो बजट है वह फेल हो रहा है इस लोभ के कारण सामान को खुद ही घर बनाने के स्थान तक ढोने के लिए मजबूर होना पड़ता है,इसके बाद अगर किसी बुद्धि का प्रयोग भी किया जाए तो कोई न कोई रोड़ा आकर अपनी कलाकारी कर जाता है,जैसे कोई आकर कह जाता है कि अमुक समय पर उसका वह काम करवा देगा लेकिन खुद भी नहीं आता है और भरोसे में रखकर काम को करने भी नहीं देता है,यह मार्गी शनि का कार्य होता है,इसी प्रकार से मार्गी शनि एक विषहीन सांप की भांति भी काम करता है,विषहीन सांप से कोई डरता नहीं है उसे लकड़ी से उछल कर हाथ से पकड़ कर शरीर को तोड़ने का काम करता है उसी जगह वक्री शनि बुद्धि से काम करने वाला होता है जैसे जातक को घर बनवाना है तो वह अपनी बुद्धि से साधनों का प्रयोग करेगा,पहले किसी व्यक्ति को नियुक्त कर देगा फिर उसे अपनी बुद्धि के अनुसार किये जाने वाले काम का मेहनताना देगा,जो मेहनताना दिया जा रहा है उसकी जगह पर वह दूसरा कोई काम बुद्धि से करेगा जिससे दिया जाने वाला मेहनताना आने भी लगेगा और दिया भी जाएगा जिससे खुद के लिए भी मेहनत नहीं करनी पडी और नियुक्त किये गए व्यक्ति के द्वारा काम भी हो गया,इस प्रकार से बुद्धि का प्रयोग करने के बाद जातक खुद मेहनत नहीं करता है दूसरो से बुद्धि से करवाकर धन को भी बचाता है,वक्री शनि का रूप जहरीले सांप की तरह से होता है वह पहले तो सामने आता ही नहीं है और अगर छेड़ दिया जाए तो वह अपने जहर का भी प्रयोग करता है और छेड़ने वाले व्यक्ति को हमेशा के लिए याद भी करता है,इस शनि के द्वारा मेहनत कास लोगों के लिए भी समय समय पर आराम करने और मेहनत करने के लिए अपने बल को देता है जैसे मार्गी शनि जब वक्री होता है तो मेहनत करने वाले लोग भी दिमागी काम को करने लगते है और जब वक्री शनि वाले जातको की कुंडली में वक्री होता है तो दिमागी काम की जगह पर मेहनत वाले काम करने की योजना को बनाकर परेशानी में डाल देता है.जब शनि अपने ही घर में वक्री होकर बैठा हो तो वह पैदा होने वाले स्थान से उम्र की दूसरे शनि वाले दौर में शनि का एक दौर पैंतीस साल का माना जाता है विदेश में फेंक देता है,जब कभी जातक को पैदा होने वाले स्थान में भेजता है और जल्दी ही वापस बुलाकर फिर से विदेश में अपनी जिन्दगी को जीने के लिए मजबूर कर देता है,इसके साथ ही शनि की आदत है कि वह कभी भी स्त्री जातक के साथ बुरा नहीं करता है वह हमेशा पुरुष जातक और अपने ऊपर धन बल शरीर बल बुद्धि बल रखने वाले लोगों पर बुरा असर उनके बल को घटाने और वक्त पर उनके बल को नीचा करने का काम भी करता है,घर में जितना असर पुत्र जातक को खराब देता है उतना ही अच्छा बल पुत्री जातक को देता है,लेकिन वक्री शनि से पुत्री जातक अपने देश काल और परिस्थिति से दूर रहकर विदेशी परिवेश को ही सम्मान और चलन में रखने के लिए भी माना जाता है. आचार्य राजेशDid you find apk for android? You can find new Free Android Games and apps.Love1 Share Tweet ShareNext Post्वक्री शुक्र्वक्री शुक्र© 2017 आचार्य राजेश कुमार. Site by Parav Singlaआचार्य जीकलम सेआओ ज्योतिष सीखेंसंपर्क


लाल का किताब के अनुसार मंगल शनि

मंगल शनि मिल गया तो - राहू उच्च हो जाता है -              यह व्यक्ति डाक्टर, नेता, आर्मी अफसर, इंजीनियर, हथियार व औजार की मदद से काम करने वा...