शुक्रवार, 30 सितंबर 2016

दोस्तो काल पुरुष की कुन्ङली से 4 भाव मे कर्क राशी है ओर ईस राशी का स्वामी चन्द्र है चौथे घर से शिक्षा , घर , संपत्ति , माँ , घरेलू सुख, वाहन सुख इत्यादि देखते है माँ माँ - 4वे घर का उप नक्षत्र स्वामी मरक और बाधक घर से सम्बंधित नहीं होते है तो माँ कि उम्र लंबी होती है माँ के साथ सम्बन्ध - 4वे घर का उप नक्षत्र स्वामी 2 5 9 या 11 घरों के साथ सम्बंधित हो तो माँ के साथ अच्छे सम्बन्ध होते है । और 4वे घर का उप नक्षत्र स्वामी 3,6,8,12 घरों के साथ सम्बंधित हो तो माँ के साथ अच्छे सम्बन्ध नहीं होते है शिक्षा अच्छी शिक्षा ,- 4वे घर का उप नक्षत्र स्वामी २, 4 , 6 ,9 ,11 घरों जुड़ा हैऔर बुद्ध या गुरु से सम्बंधित हो तो अच्छी शिक्षा होती है यदि 4वे घर का उप नक्षत्र स्वामी 3 5 8 12 घरों के साथ जुड़ा हुआ है तो अच्छी शिक्षा नहीं होती घर घर - 4वे घर का उप नक्षत्र स्वामी 3 5 8 12 घरों से सम्बंधित है तो एक भी घर नहीं बना पाते 4वे घर का उप नक्षत्र स्वामी 4,11,12 घरों से सम्बंधित है तो घर खरीद सकते हैं और 6वें घर से भी सम्बंधित हो तो घर खरीदने के लिए ऋण की सुविधा मिल जाती है 4वे घर का उप नक्षत्र स्वामी 4,8,11 घरों से सम्बंधित है तो पैतृक संपत्ति मिलने का योग है वाहन 4वे घर का उप नक्षत्र स्वामी 4,9,11,12 घरों से सम्बंधित है और शुक्र से सम्बंधित हो तो वाहन खरीदने का योग बनता है. 4वे घर का उप नक्षत्र स्वामी 3 , 8 ,12 घरों से सम्बंधित है और 8वे घर का उप नक्षत्र स्वामी 4वे घर से सम्बंधित हो वाहन दुर्घटना कि सम्भावना बढ़ जाती है . वाकी फीर जय माता दी मित्रो अगर आप मुझ से कुन्ङली दिखाना वनवाना या किसी समस्या का हल चाहते है तो आप ईन नम्वरो पर सम्पर्क करे आचार्य राजेश 07597718725 09414481324

गुरुवार, 29 सितंबर 2016

मित्रो आज ऐसी पोस्ट ङाल रहा हु जिसे पङ कर काफी लाभ हो सकता है कल ऐक गरुप मे पेङ पोघो पर चर्चा हो रही थी की कोन सा पैङ वृक्ष यावनस्पती कोन से गृह से सवन्घित है यहपोस्ट उसी से दिमाग मे आई जय गुरु देव पहला सुख निरोगी काया ग्रहों के जन्म से अथवा गोचर से शरीर पर प्रभाव पडता रहता है और उस प्रभाव के कारण या तो शरीर की क्षति होती रहती है या शरीर काम करने के योग्य नही रहता है। जब शरीर ही स्वस्थ नही है तो दिमाग मी स्वस्थ नही रहेगा और मानसिक सोच मे भी बदलाव आजायेगा या तो चिढचिढापन आजायेगा या किसी भी काम को करने का मन नही करेगा अच्छी शिक्षा के बावजूद भी जब समय पर शिक्षा का प्रयोग नही हो पायेगा तो धन और मान सम्मान की कमी बनी रहेगी। अक्सर यह भी देखा जाता है कि दो कारण एक साथ जीवन मे जवान होने के समय मे उपस्थित होते है पहला कारण अच्छी तरह से कमाई के साधन बनाने के और दूसरे रूप मे जीवन साथी के प्राप्ति के लिये,दोनो कारणो से शरीर मे कोई न कोई व्याधि लगना जरूरी हो जाता है जैसे कमाई के साधनो की प्राप्ति के लिये अधिक दिमाग का और मेहनत का प्रयोग किया जाना वही जीवन साथी और उम्र के चढाव के साथ कामसुख की प्राप्ति के लिये सहसवास आदि से शरीर के सूर्य रूपी वीर्य या रज का नष्ट होने लगना कुछ समय तो यह हालत सम्भाल कर रखी जा सकती है लेकिन अधिक समय तक इसे सम्भालना भी दिक्कत देने वाला होता है इसी कारण से अक्सर धन की प्राप्ति तो हो सकती है वह भी अगर पहले से कोई पारिवारिक या व्यक्तिगत सहायता मिली हुयी है और नही मिली है तो पारिवारिक जीवन भी खतरे मे होता है धन कमाने का कारण भी दिक्कत देने लगता है जीवन साथी से बिगडने लगती है और अक्सर यह कारण संतानहीनता के लिये भी देखे जाते है। इन सबके लिये शरीर का सही रहना जरूरी होता है,शरीर को सम्भाल कर रखने के लिये और मानसिक शांति के लिये लोग कई प्रकार के नशे की आदतो मे भी चले जाते है वे समझते है कि उनकी मानसिक शांति अमुक नशा करने से प्राप्त होती है लेकिन उन्हे यह पता नही होता है नशा कोई भी अपना घर अगर शरीर के अन्दर बना लेता है तो वह आगे जाकर आदी बना देता है बजाय लाभ के वह हानि देने लगता है आदि बाते भी पैदा होती है। ग्रहो से सहायता लेकर अगर सभी ग्रहों की मिश्रित चिकित्सा की जाती रहे तो ग्रह अपने अनुसार बल नही देंगे तब भी शरीर के अन्दर उस ग्रह की उपस्थिति होने से खराब कारण पैदा करने वाला ग्रह भी अपनी शक्ति से शरीर और मन के साथ बुद्धि को खराब नही होने देगा। मैने अपने अनुसार जो आयुर्वेदिक रूप ग्रहों के लिये प्रयोग मे लिया है उसके अनुसार पुराने समय के बीमार सिर के रोगी संतान हीन लोग ह्रदय और सांस के मरीज पेट की पाचन क्रिया से ग्रसित लोग कमजोरी से अंगो के प्रभाव मे नही रहने से अपंगता वाले लोग अपने वास्तविक जीवन मे लौटते देखे है। जब कोई भी आयुर्वेदिक दवाई का लिया जाना होता है तो पहले किसी भी प्रकार के नशे की लत को छोडना जरूरी होता है तामसी भोजन से भी बचना होता है जैसे अधिक खटाई मिठाई चरपरी चीजे त्यागनी होती है। इस आयुर्वेदिक चिकित्सा का प्रयोग करने से पहले यह ध्यान रखना भी जरूरी है कि किसी प्रकार से अन्य औषिधि जो डाक्टरो के द्वारा दी जा रही है,उसके साथ लेने से और भी दिक्कत हो सकती है साथ ही अगर पास मे कोई आयुर्वेदिक चिकित्सा का केन्द्र है या कोई वैद्य है तो उससे भी इस चिकित्सा के लिये परामर्श लेना जरूरी है।शा शरीर को स्वस्थ रखने के लिये आयुर्वेदिक चिकित्सा का नुस्खा ग्रहों की रश्मियों के बिना वनस्पति भी अपने अनुसार नही उग सकती है,वनस्पति को पैदा करने मे ग्रहों का भी बहुत बडा योगदान है,जैसे सूर्य की अच्छी स्थिति मे ही गेंहू की पैदावार होती है,जब सूर्य पर किसी शत्रु ग्रह की छाया होती है या साथ होता है तो फ़सल मे किसी न किसी प्रकार की दिक्कत आजाती है,इसके अलावा भी शनि चने का कारक है और चना तभी सही रूप से पैदा हो पाता है जब जमीन मे नमी हो लेकिन बारिस ऊपरी कम हो अगर शनि की फ़सल मे पानी की अधिक मात्रा का प्रयोग कर दिया जाता है तो फ़सल मे पैदावार कम हो जाती है उसी प्रकार से चन्द्रमा की फ़सल चावल के समय मे अगर राहु का प्रकोप चन्द्रमा पर अधिक हो या किसी प्रकार से दु:स्थान पर हो तो फ़सल मे कीडे लग जाते है या खाद आदि के प्रयोग से फ़सल जल जाती है या कम हो जाती है इसके अलावा राहु की अधिकता होने पर जैसे कर्क के राहु मे चावल की पैदावार कम होती है लेकिन चावल के पुआल की मात्रा बढ जाती है। शरीर मे सभी प्रकार के ग्रहो के तत्वो को पूरा करने के लिये आयुर्वेद मे जडी बूटियों का प्रयोग किया जाता है।यह नुस्खा इस प्रकार से है: दक्षिणी गोखुरू (सूर्य बुध राहु) 1०० ग्राम असगंध (शनि केतु) 1०० ग्राम शुद्ध कौंच (गुरु शनि) 1०० ग्रम शतावरी (मंगल गुरु) 1०० ग्राम बिदारी कंद (चन्द्र शनि) 1०० ग्राम सतगिलोय (राहु मंगल) 125ग्राम चित्रक की छाल (मंगल शनि) 3० ग्राम तिल काले (शनि केतु) 1०० ग्राम मिश्री (चन्द्र मंगल) 450 ग्राम शहद (चौथा मंगल) 225ग्राम गाय का घी (शुक्र राहु) 150ग्राम काली मूसली (अष्टम शनि चन्द्र) 100 ग्राम सफ़ेद मूसली (चौथा चन्द्र शनि) 100ग्राम खरैंटी (राहु गुरु) 100ग्राम तालमखाना (अष्टम चन्द्र शुक्र) 100 ग्राम मकरध्वज (बारहवां मंगल) 10ग्राम प्रवाल पिष्टी (लगन का मंगल) 20ग्राम बसंत कुसुमाकर (बुध शनि केतु) 20 ग्राम इन अठारह जडी बूटियों को साफ़ सफ़ाई से पीस कर आटा चालने वाली छलनी से बडी परात में छान कर मिला लेना चाहिये बाद में घी और शहद को मिला लेना चाहिये,इन्हे मिलाकर किसी साफ़ स्टील के बडे बर्तम मे रख लेना चाहिये। यह दवाई किसी भी उम्र के लिये अत्यन्त फ़ायदे वाली है,बच्चों के दिमागी रूप से कमजोर होने पर दी जा सकती है जिन बच्चो की आंखो की कमजोरी है याददास्त कमजोर है उन्हे भी दी जा सकती है। चिन्ता करने वाले लोग भी इसे प्रयोग मे लाकर दिमागी काम कर सकते है नि:सन्तान लोग भी इस दवाई के लगातार प्रयोग से संतान को प्राप्त कर सकते है,जिनके जननांग मे कमजोरी है और वे सन्तान पैदा करने मे असमर्थ है वे लोग रोजाना सुबह शाम को डाबर का सांडे का तेल और मल्ल तेल मिलाकर या श्री गोपाल तेल जननांग पर चार बूंद मालिस करते रहे तो जननांग की कमजोरी मे फ़ायदा होता है। दिमागी काम करने वाले लोग इसे लेते रहे तो किसी भी प्रकार के दिमागी काम मे उनकी उन्नति देखी जा सकती है। इस दवाई को बच्चे आधा चम्मच फ़ीके गुनगुने दूध के साथ ले सकते है,बडे लोग एक चम्मच फ़ीके गुनगुने दूध के साथ तथा बुजुर्ग लोग डेढ चम्मच फ़ीके दूध गुनगुने दूध के साथ ले सकते है। इस दवाई के लेने के समय मे युवा लोग मैथुन आदि से एक महिने दूरी रखे,बुजुर्गों के घुटनों का दर्द पीठ का दर्द मास पेशियों का दर्द सभी मे यह रामबाण औषिधि की तरह से काम करती है।माँ काली ज्योतिष hanumaangarh dabwali 09414481324 07597718725

रविवार, 25 सितंबर 2016

मित्रो ज्योतिष में कुछ कुरीतियां हैं जैसे- कालसर्प योग, साढ़ेसाती तथा मांगलिक दोष आदि। हमारे ज्योतिषी कलसर्प दोष से जनता को भयभीत करते हैं जबकि यह पूरी तरह भ्रामक है। किसी सर्वमान्य ग्रंथ में इसका उल्लेख नहीं है। दुनिया में यह तथाकथित योग जिनकी कुण्डली में है, वे अन्य लोगों की तरह सफलता के उच्चतम शिखर पर पहुंचे हैं। इन लोगों ने कभी कोई ग्रह शांति नहीं करवाई। ऐसे जातकों का पूरा परिचय ‘जर्नल आफ एस्ट्रोलाजी’ के डॉ. केएन राव द्वारा लिखित लेख में पढ़ा जा सकता है।दूसरा है शनि की साढ़ेसाती। जिसके नाम से जनमानस डर जाता है। यह भी सच है कि शनि की साढ़ेसाती में कितनों का जीवन चरमोत्कर्ष पर होता है। साढ़ेसाती के साथ हम दशाओं के प्रभाव का अध्ययन नहीं करते हैं। तीसरा हैं मांगलिक दोष। इसके द्वारा जनता को गुमराह किया जाता है और विशिष्ट पूजन के नाम पर खर्चे की एक लिस्ट थमा दी जाती है मंगल 1 4 7 8 12 मे हो तो मांगलिक योग वनता है दक्षिण मे 2 भाव मे ही मांगलिक योग हो जाता है फिर चंद्र लग्न से फिर शुक्र से देखा जाता है अव वचा क्या आप सोचे फिर विना यह सोचे समझे मांगलीक योग है या दोष वस पुजा के नाम पर ठगी चल रही है तोरूढ़िवादी परंपराएं हमने समाज को दे दी हम विद्वानों से यह जानना चाहते हैं कि कालसर्प योग का जब किसी ग्रंथ में उल्लेख नहीं है तो इसकी उपज कहां से हुई और इसको क्यों फैलाया जा रहा है। जब ज्योतिषी काल का अर्थ ‘मृत्यु’ और सर्प का अर्थ ‘सांप’ बताते हुए कालसर्प योग को दोनों का समन्वय बताते हैं, तो सामान्य लोग भय के कारण मृत्प्राय हो जाते हैं। आजकल कालसर्प योग पर पुस्तकें लिखने वाले लेखकों की यह प्रवृत्ति बनती जा रही है कि कालसर्प योग की तरह राहु-केतु के दुष्प्रभाव को कुछ जन्मकुण्डलियों के आधार पर कम करने के लिए मिथ्या और निरर्थक धार्मिक अनुष्ठान करवाए जाते हैं। वे पीड़ादायक प्रभाव बिना राहु-केतु के भी जन्मकुण्डलियों में अधिक स्पष्ट दिखाई देते हैं। वे पुस्तकें साहित्यिक अधिकार के आडम्बर के साथ लिखी जाती हैं। परन्तु इन पुस्तकों में ज्योतिषीय और धार्मिक शब्दावली का प्रयोग जन्मकुण्डलियों की सतही और धूर्ततापूर्ण व्याख्या के लिए किया जाता है। इससे उन ज्योतिषियों के मन में भय पैदा हो गया है जिन्होंने इस विषय पर गहन अध्ययन नहीं किया है। ज्योतिष के प्रसिद्ध ग्रंथों में वृहत्पाराशर होराशास्त्र, मानसागरी, जातकपारिजात, जातकाभरण, फलदीपिका व सारावली आदि प्रमुख हैं। इनमें से किसी भी ग्रंथ में कालसर्प योग का उल्लेख नहीं है। जो भी ज्योतिषी कालसर्प योग की बात करता है, उसने कालसर्प योग के भय को जीवित रखना अपने ज्योतिषीय जीवन का उद्देश्य बना लिया है।उन्होंने कहा कि हर 15 साल में राहु-केतु के बीच में जब बाकी ग्रह पड़ जाते हैं तो साल में तीन से छह महीने यह स्थिति बनी होती है। जिसका अर्थ संसार में छह सौ करोड़ लोगों में से 80-90 करोड़ लोगों की कुण्डली में तथाकथित कालसर्प योग रहता है। जो लोग यह कहते हैं कि जिन्होंने पूर्व जन्म में सांप को मारा, उनकी कुण्डली में यह योग रहता है, तो इसका अर्थ होगा कि इन लोगों ने कम से कम 90 करोड़ सर्पों को मारा होगा। जनगणना की तरह सर्पगणना नहीं होती है, इसलिए यह नहीं मालूम कि दुनिया में 80-90 करोड़ सांप है भी या नहीं।कुछ वाते सोचने की समझने की है मेरी वाते कुछ लोगो को पसन्द नही आऐगी पर मेरा दावा है किसी भी मंच पर आकर मुझ से तर्क करे की कालसर्प पर ओर सावित करे की ईसकी वेदो से लेकर हमारे ज्योतिष अघार माने गऐ शास्त्र मे ईसकी कहा पर व्याख्या है या फिर आपका अपना रिसर्च हो हर सिक्के के दो पहलु होते है जरुरी है उसको जाचने का जय माता दी आचार्य राजेश


रविवार, 18 सितंबर 2016

जय माता दी जय मा काली नाडी में मंगलकी वात लगन मेष की होने पर और मंगल का मेष राशि में उपस्थित होने पर जब कोई ग्रह बुरा फ़ल देता है तो उसके बारे में इस प्रकार से जाना जाता है,मंगल के विरोधी ग्रह बुध शुक्र शनि माने जाते है,राहु और केतु भी मंगल को बुरा असर देते है। इसके अलावा कोई ग्रह त्रिक भाव में हो और उसके ऊपर भी कोई बुरा ग्रह असर दे रहा होता है तो वह भी अपना बुरा असर मंगल को देता है। जैसे ग्यारहवें भाव में गुरु स्थापित है,और गुरु को नवें भाव में विराजमान राहु देख रहा है,इसके साथ ही केतु जो तीसरे भाव में होगा वह भी गुरु को अपनी द्रिष्टि दे रहा होगा,इस प्रकार से मंगल गुरु के द्वारा ही बाधित होने लगेगा,ग्यारहवा भाव बडे भाई का है,सबसे पहले बडा भाई ही जातक के ऊपर असर देना शुरु करेगा,वह जातक को केतु का असर लेकर केवल साधन के रूप में प्रयोग करेगा,और उसके बाद जातक को राहु के गुरु पर असर होने के कारण जातक का बडा भाई उसकी ओलाद पुत्रों को पैदा करने के बाद जल्दी ही गुजर जाऐ ऐसा हो सकता है और जातक को भाई के पुत्रों के साथ वही व्यवहार करना पडेगा,यानी पालन पोषण और शिक्षा से लेकर शादी सम्बन्ध उनको जीविका में लगाना,उनके लिये घर और बाहर की नआफ़तों से लडना भी माना जा सकता है। नवां भाव का राहु बडे भाई को बालारिष्ट का प्रकोप देगा और किसी तरह के नवें भाव के कारण से बडे भाई को आफ़त आयेगी,अक्सर इन मामलों मे बडा भाई अपनी पत्नी यानी जातक की भाभी के पराक्रम से दुखी होगा,और वह उसके द्वारा किसी प्रकार के बनाये कारण से अपने को जोखिम में डाल लेगा,और उसका अन्त हो जायेगा। इन मामलों में उसकी भाभी द्वारा दिये गये भोजन के रूप में भी माना जा सकता है,वह किसी प्रकार से विषैला भोजन उसके बडे भाई को दे सकती है,अन्जाने में कोई दवा जो रियेक्सन वाली हो दे सकती है,परिणाम में उसकी मृत्यु निश्चित मानी जा सकती है। राहु का प्रभाव हवाई यात्रा और विदेश में जाने से भी है,बडा भाई किसी कारण से विदेश जाये और वहीं पर जाकर रुक जाये,उसका वापस आना ही नही हो सके,अथवा उसके ऊपर विदेशी संस्कृति का प्रभाव पडना शुरु हो जाये,और वह वहीं पर शादी करके बैठ जावे। मंगल पर गुरु का असर आने पर जातक का दिमाग भी घूम सकता है और वह अपने जीवन साथी के अलावा किसी अन्य की स्त्री या पुरुष की तरफ़ आकर्षित हो जाये और अपने जीवन को उसी के साथ बिताने का संकल्प ले ले,इस प्रकार से भी जातक का पूरा जीवन ही खतरे में जा सकता है। गुरु का असर मंगल पर जाने से जातक के सिर में हमेशा एक प्रकार का भूत भरा रहे कि वह किसी अनदेखी शक्ति का धारक है और वह जो कुछ भी करना चाहता है वह कर सकता है,उसे कोई रोकने वाला नही है। गुरु विद्या का कारक है जातक के अन्दर कमाने वाली विद्या का असर पैदा हो जाये और वह अपने पुराने संस्कारों को छोड कर विदेश से कमाने वाले कार्य करना शुरु कर दे,उन कार्यों के अन्दर कोई गलत कार्य होता हो,इस प्रकार से राहु जो जेल जाने का कारक है जातक को जेल भेज कर जातक की पुरानी सामाजिक स्थिति में ग्रहण भी लगा सकता है,जातक के शरीर से यह हिस्सा पुट्ठों का कारक है,जातक के अन्दर गुरु यानी वायु और राहु यानी कैमिकल वाली हवा का प्रवेश पुट्ठों में हो जाने से वह चलने फ़िरने के लिये परेशान होने लगे,उसके लिये एक एक पग चलना मुश्किल हो जाये। राहु का सीधा असर मंगल पर जाने से और मंगल का सिर के स्थान में रहने के कारण सिर के अन्दर खून का प्रवाह कभी तेज और कभी कम होने के कारण वह जातक की जीने वाली जिन्दगी में अपना असर देना शुरु कर दे,जातक को अक्समात क्रोध आना शुरु हो जाये,जातक का को पता नही चले कि वह क्या करने जा रहा है,और जब कोई काम खराब कर ले तो उसे बाद में सोचने के लिये बाध्य होना पडे,जातक का प्रभाव बडे अस्पताली संस्थानो से जुडा हो,उसे किसी भी बीमारी के लिये बडे अस्पतालों में जाना पडे,जातक का दाहिना हाथ अक्समात रह जाये,अर्धांग की बीमारी हो जाये,जातक के सिर में अचानक चोट लगे और जातक की दाहिनी बांह या कान में चोट लग जाये। इसके अलावा जातक की शिक्षा वाले स्थान में नियुक्ति हो जाये और जातक वहां पर कोई अनैतिक काम करना शुरु कर दे। जातक का सामाजिक जीवन केवल एक अन्जान जगह पर बसने का भी माना जा सकता है,राहु का नवें स्थान में जाने का कारण और गुरु यानी जीव का ग्यारहवे भाव में जाने से जातक का जीवन लाभ वाले कमाने के क्षेत्र में चला जाये और जातक कमाने के लिये किसी अन्जानी जगह पर उसी प्रकार से जाकर बस जाये जैसे कोई भगोडा जाकर बसता है। इसके अलावा जातक का परिवार ननिहाल खान्दान के समाप्त हो जाने या ननिहाल परिवार के कही और चले जाने के बाद ननिहाल में बसना पड जाये। यह तो सब था राहु के असर के द्वारा,इसके बाद अगर मंगल पर शनि अगर असर दे रहा हो तो शनि मंगल की युति में खोपडे का केंसर भी माना जा सकता है,खोपडे के खून के अन्दर खून का जमना भी माना जाता है,जिससे जातक मंद बुद्धि का भी हो सकता है,जातक की कुंडली में अगर शनि मंगल की युति लगन में हो जाती है तो जातक को कसाई का रूप प्रदान करता है जातक के अन्दर दया नामकी चीज नही होती है,वह किसी को भी किसी भी कारण के लिये काट सकता है,किसी को भी मार सकता है,किसी को भी अपाहिज कर सकता है,किसी के प्रति भी दुर्भावना बनी रह सकती है। केतु का प्रभाव होने के लिये वह दूसरों के आदेश का पालन करता होता है,वह किसी के कहने से किसी को भी मार सकता है,और अक्सर इस प्रकार के जातकों के अन्दर आदमी को हथियार के रूप में प्रयोग करने की पूरी योग्यता होती है वह जानता है कि कौन सा आदमी कौन से हथियार के रूप में काम आ सकता है। उसके अलावा उसे अन्य प्रकार की दवाइयों और शरीर को ठीक करने वाले कारणों का ज्ञान भी होता है। सिर की शक्ति होता है लगन का मंगल लग्न का मंगल एक तरह की स्टाम्प की तरह से होता है,जो कह दिया वह कह दिया,फ़िर बाद में कोई भी कुछ कहे,उससे लेना देना नही जो कह दिया है उसे ही करना है। अक्सर देखा गया है कि लगन के मंगल वाले के माथे में निशान जरूर बनता है। वह निशान चाहे किसी तिल या मस्से के रूप में हो या फ़िर किसी प्रकार की चोट के रूप में व्यक्ति की पहिचान बनाने के लिये लगन का मंगल निशान जरूर देता है। मंगल एक सेनापति की तरह अगर माना जाये तो लगन का मंगल पूरे शरीर के साथ अपने घर अपने जीवन साथी और अपने लिये भविष्य में आने वाले अपमान जानजोखिम के कारणों को जरूर कन्ट्रोल रखता है,लगन के मंगल का एक बहुत बडा अधिकार अपने दुश्मनो की तरफ़ जरूर होता है,वे पहले बडी आसानी से उन्हे सामने लाने की कोशिश करते है और बहुत ही मीठी और बहादुरी से उसकी रक्षा करते है,लेकिन जैसे ही वे समझते है कि अब उनके अलावा और कोई उस व्यक्ति का धनी धोरी नही है तो वह आराम से उसे हलाल करने में बहुत मजा लेते है। अक्सर देखा जाता है कि लगन के मंगल पर अगर किसी प्रकार से शनि की अष्टमेश के साथ युति बन जाये तो वह खिला खिलाकर मारने में विश्वास रखते है,उनके अन्दर जरा सी भी क्षोभ नही होता है कि जिसे वे सता रहे है,वह तडप रहा है वह अपनी जान से जा रहा है,लेकिन उनके लिये मात्र वह एक मनोरंजन का साधन होता है।मंगल के साथ केतु का आना भी एक तरह से आफ़त की पुडिया को बांधना होता है,जातक हिंसा मे इतना उतारू हो जाता है कि वह गिनने लगता है कि उसने इतनों को मारा है। मंगल अग्नि से सम्बन्धित है तो केतु हथियार से बन्दूक तोप मिशाइल यह सभी मंगल केतु के द्वारा ही समझी जाती है। हिंसक लोग अधिकतर मामलों में सिर की चोट देकर ही मारना पसंद करते हैं। लगन के मंगल को विस्फ़ोट वाली खोपडी कही जाये तो भी कोई अनापत्ति नही होगी। इस मंगल के रूप शरीर के अलावा अगर दूसरे स्थानों देखें तो अलग अलग रूप मिलते हैं। शनि-मंगल को साथ मिला लें तो वह काली पत्थर की मूर्ति बन जाती है,जिसपर लाल रंग का सिन्दूर चढा दिया तो वह देवता का रूप बन जाता है,केतु-शनि-मंगल की आपस की युति में वह लोहे का सरिया बन जाता है जो आग में गर्म होकर लाल रंग का रूप धारण कर लेता है,सूर्य-शनि-मंगल-केतु का योगात्मक रूप बन जाये तो वह शमशान में जलाने वाला बांस का रूप ले लेता है जिससे अन्तिम संस्कार के समय कपाल क्रिया करते है। बुध-मंगल-शनि को साथ में जोड लिया जाये तो वह कुम्हार के अवा में पकता हुआ घडा बन जाता है। बुध मंगल शनि के साथ अगर राहु का मेल हो जाता है तो वह महाकाली की मूर्ति बन जाती है,जिस पर जाने अन्जाने में बलि चढाई जाती है,और खून से इस पत्थर को लाल किया जाता है। कसाई खाने का पत्थर भी इसी श्रेणी में लाया जा सकता है। शनि-राहु-मंगल को अगर कार्य के रूप में देखा जाये तो वह कोयले से चलने वाली भट्टी में काम करता हुआ आदमी भी माना जा सकता है। शुक्र का प्रभाव अगर इन कारकों में जुड जाये तो स्थान के अनुसार वह काले लाल रंग के कपडे के रूप में भी माना जा सकता है। मित्रो कुछ मित्रो के वार वार कहने के कारन अभी फीस वहुँत कम कर दी है अगर आप कुंङली की मुझसे विवेचना कराना चाहते है या कोई सम्सया का हल चाहते है तो मेरे ईन नम्वरो पर जानकारी ले 09414481324 07597718725 आचार्य राजेश

शनिवार, 17 सितंबर 2016

जय माता दी मित्रो बचपन से ही एक बात तो माता पिता ने भी समझाई थी कि जितनी हो सके विद्या की शक्ति को बटोर लो,यह बिना कीमत के मिलती है,हर जगह मिलती है,मनचाही मिलती है,इसे जितना खर्च करो उतनी बढती है,क से कमाना सिखाती है,ख से खाना बताती है,ग से गाना बताती है,घ से भरपूर रहने की सहमति देती है और ड. से याचना का भाव देती है,च से चाहत देती है,छ से उत्तम और घटिया की पहिचान बताती है,ज से नयी उत्पत्ति की तरफ़ जाने का संकेत करती है,झ से फ़ालतू की विद्या को भूलने के लिये अपनी क्रिया देती है,ट से महसूस करने की क्रिया का रूप समझाती है,ठ से किये जाने वाले कार्य के अन्दर कलाकारी लाने को कहती है,ड से कार्य के अन्दर जमे रहने के लिये अपनी योग्यता को देती है,ढ से खराब अवधारणाओं से दूर रहने के लिये कहती है,ण से अपने को सुरक्षित रखने के लिये आसपास के वातावरण को सम्भालने के लिये कहती है,त से अच्छे और बुरे के बीच का अन्तर समझने की शक्ति देती है,थ से जो अच्छा है उसे प्राप्त करने की कला देती है,द से अपने हिस्से से दूसरों की सहायता के लिये भी कहती है,न से जो भी करना है उसका सार कभी अटल नही है इसका भी ज्ञान देती है,प से मानसिकता को शुद्ध रखने के लिये फ़ से अपनी विचारधारा को अक्समात बदलने के लिये ब से प्राप्त विद्या के प्रयोग में लेने के लिये और म से अपने प्रभाव को वातावरण में व्याप्त करने के लिये कहती है,य से जो है वह इसी जगत में है, र से जीव है तो जगत है,ल से जीव है तो शाखा है,व से जीव की औकात केवल धरती पर रहने वाले अणुओं के ऊपर ही निर्भर है,श से इन्तजार का फ़ल प्राप्त करने के लिये ष से कई दिशाओं में अपने रुख को हमेशा तैयार रखने के लिये स से अपने आप को नरम रखने के लिये ह से ब्रह्माण्ड की तरफ़ भी ध्यान रखने के लिये क्ष से जीवों की रक्षा और दया करने के लिये त्र से ईश्वर की शक्ति पर विश्वास रखने के लिये ज्ञ से अन्त में जहां से जो आया वहीं समा जाने की विद्या को प्रकट करने के लिये कहा गया है।उत्तम मध्यम और निम्न गति को प्रदान करने के लिये स्वरों का प्रयोग किया गया है,अ कहने में तो साधारण है लेकिन इसके बिना कोई भी गति नही है,आ से बडप्पन पैदा करने के लिये इ से मुर्दा को जीवित करने के लिये ई से स्त्रीत्व और भूमि का निरूपण करने के लिये ए से साधारण विचार को मध्यम गति देने के लिये,ऐ से मारक शक्ति को पैदा करने के लिये और ओ से शान्त रहने तथा वीभत्सता को रोकने के लिये औ से चालाकी और बुद्धिमानी को प्रकट करने के लिये अं से ऊपर की तरफ़ सोचने के लिये और अ: से जो भी प्राप्त किया है उसे यहीं छोड देने के लिये शक्ति का सिद्धान्त कहा गया है मंत्रयुति के लिये अक्षर को जोडा गया वाक्य युति के लिये शब्द को जोडा गया। भावना की युति के लिये वाक्यों को जोडा गया,ब्रह्माण्ड की युति को प्राप्त करने के लिये भावना की युति को जोडा गया। भावना को भौतिकता में लाने के लिये पदार्थ को जोडा गया पदार्थ को साकार करने के लिये जीव को जोडा गया,पदार्थ को निराकार करने के लिये भावना और पदार्थ के मिश्रण से मूर्ति को बनाया गया। मूर्ति से फ़ल को प्राप्त करने के लिये श्रद्धा को साथ में लिया गया,श्रद्धा और विश्वास को साथ लेकर कार्य की पूर्णता को लिया गया जीव से जीव की उत्पत्ति की गयी जड से चेतन का रूप प्रदान किया गया। रूप और भाव बदल कर विचित्रता की भावना को प्रकट किया गया,पंचभूतो के मिश्रण से कल्पना दी गयी,भूतों के कम या अधिक प्रयोग से स्वभाव का निर्माण किया गया,जड अधिक करने पर चेतन की कमी की गई और चेतन को अधिक करने पर जडता को कम किया गया। जड और चेतन का साथ किया गया। बिना एक दूसरे के औकात को समाप्त किया गया जहां आग पैदा की गयी उसके दूसरे कोण पर पानी को पैदा किया गया,जहां बुद्धि को प्रकट किया गया वहीं दूसरी ओर मन को प्रकट किया गया,बुद्धि के विस्तार के लिये द्रश्य श्रव्य घ्राण अनुभव को प्रकट किया गया,चेतन होकर ग्रहण करने की क्षमता का विकास करने पर हिंसकता को दूर किया गया,जहां ग्रहण करने की क्षमता नही दी गयी वहां हिंसकता का प्रभाव दिया गया,एक को पालने के लिये बनाया गया दूसरे को मारने के लिये बनाया गया,दोनो के बीच में फ़ंसाकर जीव को पैदा किया गया उम्र को कम करने के लिये चिन्ता को दिया गया,उम्र को अधिक करने के लिये विचार शून्य होकर रहने को बोला गया,पदार्थ की अधिकता को ताकत के रूप में प्रकट किया गया,क्षमता को अधिक या कम करने के लिये कई भावनाओं को एक साथ जोडा गया। जीव को पदार्थ के सेवन का अवसर दिया गया,मिट्टी को मिट्टी खाने के लिये रूप में परिवर्तन किया गया,मिट्टी को ही मीठा खट्ठा चरपरा कसैला बनाया गया। मिट्टी को ही मारने के लिये और मिट्टी को ही जीने के लिये दवाइयों के रूप में परिवर्तित किया गया,मिट्टी से मिट्टी को लडाने के लिये जीव की उत्पत्ति की गयी मित्रो आपके निवेदन पर कुछ समय के लिऐ मैने अपनी फीस वहुँत कम कर दी है जो लोग मुझ से कुंङली दिखाना चाहते है या कोई समस्या का समाघान चाहते है तो ईन नम्वरो पर सम्पर्क कर सकते है आचार्य राजेश 09414481324 07597718725

शुक्रवार, 16 सितंबर 2016

धर्म कर्म और पूजा पाठ के लिये देश काल और परिस्थिति को समझना जरूरी है। अगर लोग सुबह चार बजे नहाने के लिये अपने को शुरु से तैयार रखते है और वे अगर किसी ठंडे स्थान में जाकर नहाने का उपक्रम करते है तो उन्हे शर्तिया अपने शरीर को बीमार करना पडेगा,और नही तो वे अपने को ठंडे मौसम की वजह से कुछ न कुछ तो परेशान करेंगे ही,इसके अलावा अगर उनके रहने वाले स्थान में समय की अधिकता है और बाहर जाकर समय की कमी है तो भी जो कार्य उन्हे देर में करने की आदत है उन्हे वह जल्दी से करने के लिये भी तैयार होना चाहिये। साथ ही ध्यान में रखना जरूरी है कि अगर परिस्थिति वश कोई सामान जो पूजा पाठ के लिये नही मिलता है तो निम्न या मानसिक पूजा पाठ ही करना सही रहेगा। देश काल और परिस्थिति को समझ कर ही आराधना के कितने ही नियम बनाये गये है। जो लोग बहुत समय रखते है उनके लिये भजन गाना और कीर्तन करना बताया गया है,जो लोग समय कम रखते है उनके लिये सुबह शाम की पूजा और आरती आदि ही बहुत होती है और जिनके पास कर्म करने के बाद समय की बहुत ही कमी है उन्हे सोते और जगते समय अपने आराध्य के नाम लेने से भी वही फ़ल प्राप्त होगा जो लोग पूरे दिन भजन कीर्तन आदि करने के बाद प्राप्त करते है। इस भाव के लिये एक मिथिहासिक कहानी कही गयी है,एक बार ब्रह्मा पुत्र नारद जी को घंमंड हो गया कि वे भगवान विष्णु के बहुत बडे भक्त है और उनके अलावा इस संसार में कोई बडा भक्त नही है,कारण उनकी जुबान पर हर क्षण नारायण नाम का शब्द रहता है,और जब इस नारायण नाम का शब्द प्रति स्वांस में साथ है तो कौन उनसे बडा भक्त पैदा हो सकता है। भगवान अन्तर्यामी है और अपने भक्तों के भाव को समझते भी है,भगवान विष्णु जो नारायण रूप में है उन्हे मालुम चला कि नारद को घमंड पैदा हो गया है। उन्होने अपने पास नारद को बुलाया और समझाया कि तुम अपने में घमंड नही पालो,तुमसे बडे भी भक्त इस संसार में है। नारद ने एक का पता पूंछा और उसके पास जा पहुंचे,देखा वह एक साधारण किसान है और सुबह अपने खेतों पर काम पर चला जाता है और शाम को अपने घर आकर सो जाता है। बीच में जो भी घर के काम होते है उन्हे करता है अपने परिवार के पालन पोषण के लिये जो भी कार्य उसके वश के है उन्हे करता है। जागने के बाद केवल तीन बार नारायण नारायण नारायण का नाम लेता है और सोने के समय तीन बार नारायण नारायण नारायण का नाम लेता है और सो जाता है। नारद जी को बहुत गुस्सा आया और वे नारायण के पास जा पहुंचे और कहने लगे प्रभू वह एक किसान है और केवल दिन भर में छ: बार नारायण नारायण नारायण नारायण नारायण नारायण कहता है वह उस भक्त से बडा हो गया है तो चौबीस घंटे में इक्कीस हजार छ: सौ बार नारायण का नाम लेता है। विष्णु रूप नारायण समझ गये कि नारद को समझ कम है,उन्होने अपनी माया से एक उपक्रम का निर्माण किया और एक ज्योतिषी को बुलाया,अपने ऊपर राहु केतु और शनि की स्थिति को समझने के लिये प्रश्न किया,ज्योतिषी ने अपने प्रतिउत्तर में जबाब दिया कि आने वाले समय में शनि देव का ठंडा और अन्धकार युक्त समय का आना हो रहा है,इसलिये शनि का उपाय करना जरूरी है,उसने एक कटोरा सरसों का तेल मंगवाया, और नारायण की प्रदिक्षणा करने के लिये पास में उपस्थित नारद जी को इशारा किया साथ ही यह भी उपदेश दिया कि प्रदक्षिणा में तेल की बूंद जमीन पर नही गिर पाये। नारद जी ने बडी सावधानी से तेल का कटोरा लेकर धीरे धीरे प्रदिक्षणा करना शुरु कर दिया,और कुछ समय में पूरी करने के बाद व कटोरा ज्योतिषी को पकडा दिया,वह ज्योतिषी कटोरे को लेकर पास में खडे एक कीकर के पेड पर चढाने के लिये चला गया । नारायण ने नारद से पूंछा कि जितने समय में तुमने मेरी प्रदक्षिणा की उतने समय में तुमने मेरा कितनी बार नाम लिया ? इतना सुनकर नारद जी ने कहा कि अगर वे अपने ध्यान को नाम में ले जाते तो जरूरी था कि तेल कटोरे से नीचे जमीन पर गिर जाता ! नारायण ने नारद से जबाब दिया कि वह किसान अपने गृहस्थी रूपी तेल के कटोरे को लेकर चल रहा है और फ़िर भी छ: बार नारायण का नाम ले लेता है,तो तुम्ही सोचो कि कौन बडा भक्त है,नारद को समझ आ गयी थी कि कौन बडा भक्त है।

गुरुवार, 8 सितंबर 2016

कुछ मित्रो ने पुछा गनेश विर्सजन के वारे मे वताऐ आचार्य जी मित्रो ईसके पिछे वहुँत गहरा राज छुपा है जो शायद अघिकतर लोग नही जानते मित्रो जिवन मे हर वस्तु विरोघावास हैजिवन है तो मृत्यु है रात है तो दिन है अव जिवन ओर मृत्यु के विच की जो यात्रा हमकर रहे है ईसको ईस तरह ले कि हमे सदा के लिऐ यहा नही रहना है ना तो यह संसार ओर ना ही हम यहा सदा के लिऐ रहेगे फिर क्यो ना यह जिवन हंसी खुशी ओर उत्सव मनाते हुऐ यात्रापुरी करे महीनो पहले ईसउत्सव के लिऐ गनेश जी की मुर्तीया वननी शुरु होती है सुन्दर से सुन्दर रंग वरंगी गनेश जी को हम नाचते गाते फुले से सजाकर घर लाते है पुरी श्रदा से पुजा पाठ करते है ओर फिर उसे हम नाचते गाते ही विर्सजन भी करते है विल्कुल वेसे ही भगवान ही हमे वनाता है ओर जिवन देता है ओर भगवान ही मृत्यु यही हम करते है पहले मुर्ती घर लाते है पुजा पाठ करते है ओर फिर विर्सजन कर देते है यह सिख हमे भी सिखनी है यह संसार नाशवान है हमे किसी वस्तु से वंघना नही है वस उसका उपयोग करना है ओर फिर उसे छोङ देना है आचार्य राजेश

लाल का किताब के अनुसार मंगल शनि

मंगल शनि मिल गया तो - राहू उच्च हो जाता है -              यह व्यक्ति डाक्टर, नेता, आर्मी अफसर, इंजीनियर, हथियार व औजार की मदद से काम करने वा...