शनिवार, 25 जून 2016

मित्रो जन्म कुंडली का विश्लेषण करने से पूर्व किसी भी कुशल ज्योतिषी को पहले कुंडली की कुछ बातो का अध्ययन करना चाहिए. जैसे ग्रह का पूरा अध्ययन, भावों का अध्ययन, दशा/अन्तर्दशा, गोचर आदि बातों को देखकर ही फलकथन कहना चाहिए. आज हम कुंडली का अध्ययन कैसे किया जाए सीखने का प्रयास करेगें. जन्म कुंडली में ग्रह को समझने के लिए कुछ बातों पर विचार किया जाता है, जो निम्नलिखित हैं. सबसे पहले यह देखें कि ग्रह किस भाव में स्थित है और किन भावों का स्वामी है. ग्रह के कारकत्व क्या-क्या होते हैं. ग्रहों का नैसर्गिक रुप से शुभ व अशुभ होना देखेगें. ग्रह का बलाबल देखेगें. ग्रह की महादशा व अन्तर्दशा देखेगें कि कब आ रही है. जन्म कालीन ग्रह पर गोचर के ग्रहों का प्रभाव. ग्रह पर अन्य किन ग्रहों की दृष्टियाँ प्रभाव डाल रही हैं. ग्रह जिस राशि में स्थित है उस राशि स्वामी की जन्म कुण्डली में स्थिति देखेगें और उसका बल भी देखेगें. ग्रह की जन्म कुंडली में स्थिति के बाद जन्म कुंडली के साथ अन्य कुछ और कुंडलियों का अवलोकन किया जाएगा, जो निम्न हैं. जन्म कुंडली के साथ चंद्र कुंडली का अध्ययन किया जाना चाहिए. भाव चलित कुंडली को देखें कि वहाँ ग्रहों की क्या स्थिति बन रही है. जन्म कुंडली में स्थित ग्रहों के बलों का आंकलन व योगों को नवांश कुंडली में देखा जाना चाहिए. जिस भाव से संबंधित फल चाहिए होते हैं उससे संबंधित वर्ग कुंडलियों का अध्ययन किया जाना चाहिए. जैसे व्यवसाय के लिए दशमांश कुंडली और संतान प्राप्ति के लिए सप्ताँश कुंडली. ऎसे ही अन्य कुंडलियों का अध्ययन किया जाना चाहिए. वर्ष कुंडली का अध्ययन करना चाहिए जिस वर्ष में घटना की संभावना बनती हो. ग्रहों का गोचर जन्म से व चंद्र लग्न से करना चाहिए. अंत में कुछ बातें जो कि महत्वपूर्ण हैं उन्हें एक कुशल ज्योतिषी अथवा कुंडली का विश्लेषण करने वाले को अवश्य ही अपने मन-मस्तिष्क में बिठाकर चलना चाहिए. जन्म कुंडली में स्थित सभी ग्रहो की अंशात्मक युति देखनी चाहिए और भावों की अंशात्मक स्थित भी देखनी चाहिए कि क्या है. जैसे कि ग्रह का बल, दृष्टि बल, नक्षत्रों की स्थिति और वर्ष कुंडली में ताजिक दृष्टि आदि देखनी चाहिए. जिस समय कुंडली विश्लेषण के लिए आती है उस समय की महादशा/अन्तर्दशा/प्रत्यन्तर दशा को अच्छी तरह से जांचा जाना चाहिए. जिस समय कुंडली का अवलोकन किया जाए उस समय के गोचर के ग्रहों की स्थिति का आंकलन किया जाना चाहिए. आइए अब भावों के विश्लेषण में महत्वपूर्ण तथ्यों की बात करें. जब भी किसी कुंडली को देखना हो तब उपरोक्त बातों के साथ भावों का भी अपना बहुत महत्व होता है. आइए उन्हें जाने कि वह कौन सी बाते हैं जो भावों के सन्दर्भ में उपयोगी मानी जाती है. जिस भाव के फल चाहिए उसे देखें कि वह क्या दिखाता है. उस भाव में कौन से ग्रह स्थित हैं. भाव और उसमें बैठे ग्रह पर पड़ने वाली दृष्टियाँ देखें कि कौन सी है. भाव के स्वामी की स्थिति लग्न से कौन से भाव में है अर्थात शुभ भाव में है या अशुभ भाव में है, इसे देखें. जिस भाव की विवेचना करनी है उसका स्वामी कहाँ है, कौन सी राशि व भाव में गया है, यह देखें. भाव स्वामी पर पड़ने वाली दृष्टियाँ देखें कि कौन सी शुभ तो कौन सी अशुभ है. भाव स्वामी की युति अन्य किन ग्रहों से है, यह देखें और जिनसे युति है वह शुभ हैं या अशुभ हैं, इस पर भी ध्यान दें. भाव तथा भाव स्वामी के कारकत्वों का निरीक्षण करें. भाव का स्वामी किस राशि में है, उच्च में है, नीच में है या मित्र भाव में स्थित है, यह देखें. भाव का स्वामी अस्त या गृह युद्ध में हारा हुआ तो नहीं है या अन्य किन्हीं कारणों से निर्बली अवस्था में तो स्थित नहीं है, इन सब बातों को देखें. भाव, भावेश तथा भाव के कारक तीनों का अध्ययन भली - भाँति करना चाहिए. इससे संबंधित भाव के प्रभाव को समझने में सुविधा होती है. उपरोक्त बातोंके साथसाथ हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि किसी भी कुंडली का सामान्य रुप से अध्ययन करने के लिए लग्न, लग्नेश, राशिश, इन पर पड़ने वाली दृष्टियाँ और अन्य ग्रहो के साथ होने वाली युतियों पर ध्यान देना चाहिए. इसके बाद नवम भाव व नवमेश को देखना चाहिए कि उसकी कुंडली में क्या स्थिति है क्योकि यही से व्यक्ति के भाग्य का निर्धारण होता है. लग्न के साथ चंद्रमा से भी नवम भाव व नवमेश का अध्ययन किया जाना चाहिए. इससे कुंडली के बल का पता चलता है कि कितनी बली है. जन्म कुंडली में बनने वाले योगो का बल नवाँश कुंडली में भी देखा जाना चाहिए. नवाँश कुंडली के लग्नतथा लग्नेश का बल भी देखना चाहिए हम जव कोई पोस्ट गरुप मे करते है तो कुछ मित्र लग्न कुन्ङली की फोटो भेजते है कि हमारे वारे मे वताऐ यह कहैगे की हमारा तो ऐक ही प्रशन है मित्रो आपका जिवन अनमोल है थोङी सी दक्षिणा वचाने के चक्कर मे आप भटकते है ऐसा ना करे जव तक सही ढंग से आपकी कुंङली कोई ज्योतिषी नही देखेगा तव तक कुछ नही वता सकता जो वताते है वो गलत है मेरी वात से आगर दुख हुआ हो तो मुझे माफ करना आप मुझ से ईन नम्वर पर वात कर सकते है चेट या मैसज ना करे घन्यावाद आचार्य राजेश



सोमवार, 20 जून 2016

जीवन को प्रेम से भरें आप कहेंगे, हम सब प्रेम करते हैं। मैं आपसे कहूं, आप शायद ही प्रेम करते हों; आप प्रेम चाहते होंगे। और इन दोनों में जमीन-आसमान का फर्क है। प्रेम करना और प्रेम चाहना, ये बड़ी अलग बातें हैं। हममें से अधिक लोग बच्चे ही रहकर मर जाते हैं। क्योंकि हरेक आदमी प्रेम चाहता है। प्रेम करना बड़ी अदभुत बात है। प्रेम चाहना बिलकुल बच्चों जैसी बात है। छोटे-छोटे बच्चे प्रेम चाहते हैं। मां उनको प्रेम देती है। फिर वे बड़े होते हैं। वे और लोगों से भी प्रेम चाहते हैं, परिवार उनको प्रेम देता है। फिर वे और बड़े होते हैं। अगर वे पति हुए, तो अपनी पत्नियों से प्रेम चाहते हैं। अगर वे पत्नियां हुईं, तो वे अपने पतियों से प्रेम चाहती हैं। और जो भी प्रेम चाहता है, वह दुख झेलता है। क्योंकि प्रेम चाहा नहीं जा सकता, प्रेम केवल किया जाता है। चाहने में पक्का नहीं है, मिलेगा या नहीं मिलेगा। और जिससे तुम चाह रहे हो, वह भी तुमसे चाहेगा। तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी। दोनों भिखारी मिल जाएंगे और भीख मांगेंगे। दुनिया में जितना पति-पत्नियों का संघर्ष है, उसका केवल एक ही कारण है कि वे दोनों एक-दूसरे से प्रेम चाह रहे हैं और देने में कोई भी समर्थ नहीं है। इसे थोड़ा विचार करके देखना आप अपने मन के भीतर। आपकी आकांक्षा प्रेम चाहने की है हमेशा। चाहते हैं, कोई प्रेम करे। और जब कोई प्रेम करता है, तो अच्छा लगता है। लेकिन आपको पता नहीं है, वह दूसरा भी प्रेम करना केवल वैसे ही है जैसे कि कोई मछलियों को मारने वाला आटा फेंकता है। आटा वह मछलियों के लिए नहीं फेंक रहा है। आटा वह मछलियों को फांसने के लिए फेंक रहा है। वह आटा मछलियों को दे नहीं रहा है, वह मछलियों को चाहता है, इसलिए आटा फेंक रहा है। इस दुनिया में जितने लोग प्रेम करते हुए दिखायी पड़ते हैं, वे केवल प्रेम पाना चाहने के लिए आटा फेंक रहे हैं। थोड़ी देर वे आटा खिलाएंगे, फिर...। और दूसरा व्यक्ति भी जो उनमें उत्सुक होगा, वह इसलिए उत्सुक होगा कि शायद इस आदमी से प्रेम मिलेगा। वह भी थोड़ा प्रेम प्रदर्शित करेगा। थोड़ी देर बाद पता चलेगा, वे दोनों भिखमंगे हैं और भूल में थे; एक-दूसरे को बादशाह समझ रहे थे! और थोड़ी देर बाद उनको पता चलेगा कि कोई किसी को प्रेम नहीं दे रहा है और तब संघर्ष की शुरुआत हो जाएगी। दुनिया में दाम्पत्य जीवन नर्क बना हुआ है, क्योंकि हम सब प्रेम मांगते हैं, देना कोई भी जानता नहीं है।

आंसुओं से कभी भी भयभीत मत होना। तथाकथित सभ्यता ने तुम्हें आंसुओं से अत्यंत भयभीत कर दिया है। इसने तुम्हारे भीतर एक तरह का अपराध भाव पैदा कर दिया है। जब आंसू आते हैं तो तुम शर्मिंदा महसूस करते हो। तुम्हें लगता है कि लोग क्या सोचते होंगे? मैं पुरुष होकर रो रहा हूं!यह कितना स्त्रैण और बचकाना लगता है। ऐसा नहीं होना चाहिये। तुम उन आंसुओं को रोक लेते हो… और तुम उसकी हत्या कर देते हो जो तुम्हारे भीतर पनप रहा होता है। जो भी तुम्हारे पास है, आंसू उनमें सबसे अनूठी बात है, क्योंकि आंसू तुम्हारे अंतस के छलकने का परिणाम हैं। आंसू अनिवार्यत: दुख के ही द्योतक नहीं हैं; कई बार वे भावातिरेक से भी आते हैं, कई बार वे अपार शांति के कारण आते हैं, और कई बार वे आते हैं प्रेम व आनंद से। वास्तव में उनका दुख या सुख से कोई लेना-देना नहीं है। कुछ भी जो तुमारी ह्रदय को छू जाये, कुछ भी जो तुम्हें अपने में आविष्ट कर ले, कुछ भी जो अतिरेक में हो, जिसे तुम समाहित न कर सको, बहने लगता है, आंसुओं के रूप में । इन्हें अत्यंत अहोभाव से स्वीकार करो, इन्हें जीयो, उनका पोषण करो, इनका स्वागत करो, और आंसुओं से ही तुम जान पाओगे प्रार्थना करने की कला।

रविवार, 19 जून 2016

मित्रो ‘ज्योतिषशास्त्र’ आयुर्वेद और अन्य ग्रंथो की तरह हमारे प्राचीन ग्रंथो मे से एक है ! लेकिन पिछले कुछ वर्षो मे तथाकथित ज्योतिषों ने इसे धंधा बनाकर छोड़ दिया है ! और यही कारण है आज बहुत से लोगो का इस पर से विश्वास उठ गया है और सब यही समझने लगे है की हर कोई ज्योतिष के नाम पर लोगो को मूर्ख बनाने पर उनसे पैसा एंठने पर लगा है ! एक बाद याद रखे मित्रो ज्योतिष सनातन धर्म का एक अंग है करोड़ो वर्षो से चला आ रहा है ,आज भी सच्चे ज्योतिष गणित की गणना से ग्रहो की स्थिति और चंद्र ग्रहण ,सूर्य ग्रहण आदि का पता लगा लेते हैं वो बात अलग है धंधा करने वालों ने इसे कुछ का कुछ बना कर छोड़ दिया है जिस कारण हमारा इससे विश्वास उठता चला जा रहा है कोई ताश के पत्ते लेकर सुबह-सुबह टीवी पर बैठ जाता है ,और कोई लक्ष्मी यंत्र ,आदि बेचकर आपको मूर्ख बना रहा है !

ब्रह्मांड की अति सूक्षम हलचल का प्रभाव भी पृथ्वी पर पडता है,सूर्य और चन्द्र का प्रत्यक्ष प्रभाव हम आसानी से देख और समझ सकते है,सूर्य के प्रभाव से ऊर्जा और चन्द्रमा के प्रभाव से समुद में ज्वार-भाटा को भी समझ और देख सकते है,जिसमे अष्ट्मी के लघु ज्वार और पूर्णमासी के दिन बृहद ज्वार का आना इसी प्रभाव का कारण है,पानी पर चन्द्रमा का प्रभाव अत्याधिक पडता है,मनुष्य के अन्दर भी पानी की मात्रा अधिक होने के कारण चन्द्रमा का प्रभाव मानव मस्तिष्क पर भी पडता है,पूर्णमासी के दिन होने वाले अपराधों में बढोत्तरी को आसानी से समझा जा सकता है, जो पागल होते है उनके असर भी इसी तिथि को अधिक बढते है,आत्महत्या वाले कारण भी इसी तिथि को अधिक होते है,इस दिन स्त्रियों में मानसिक तनाव भी अधिक दिखाई देता है,इस दिन आपरेशन करने पर खून अधिक बहता है,शुक्ल पक्ष मे वनस्पतियां अधिक बढती है,सूर्योदय के बाद वन्स्पतियों और प्राणियों में स्फ़ूर्ति का प्रभाव अधिक बढ जाता है,आयुर्वेद भी चन्द्रमा का विज्ञान है जिसके अन्तर्गत वनस्पति जगत का सम्पूर्ण मिश्रण है,कहा भी जाता है कि “संसार का प्रत्येक अक्षर एक मंत्र है,प्रत्येक वनस्पति एक औषधि है,और प्रत्येक मनुष्य एक अपना गुण रखता है,आवश्यकता पहिचानने वाले की होती है”,’ ग्रहाधीन जगत सर्वम”,विज्ञान की मान्यता है कि सूर्य एक जलता हुआ आग का गोला है,जिससेसभी ग्रह पैदा हुए है,गायत्री मन्त्र मे सूर्य को सविता या परमात्मा माना गया है,रूस के वैज्ञानिक “चीजेविस्की” ने सन १९२० में अन्वेषण किया था,कि हर ११ साल में सूर्य में विस्फ़ोट होता है,जिसकी क्षमता १००० अणुबम के बराबर होती है,इस विस्फ़ोट के समय पृथ्वी पर उथल-पुथल,लडाई झगडे,मारकाट होती है,युद्ध भी इसी समय मे होते है,पुरुषों का खून पतला हो जाता है,पेडों के तनों में पडने वाले वलय बडे होते है,श्वास रोग सितम्बर से नबम्बर तक बढ जाता है,मासिक धर्म के आरम्भ में १४,१५,या १६ दिन गर्भाधान की अधिक सम्भावना होती है.इतने सब कारण क्या ज्योतिष को विज्ञान कहने के लिये पर्याप्त नही है?

दान करना वहुँत अच्छा वात है पर दान हमेशा फलदायी हो ऐसा नहीं है। शास्त्रों में भी अतिदान वर्जित माना गया है। दान के कारण ही कर्ण, बलि आदि महान हुए लेकिन गलत वस्तु के दान से उन्हें नुक्सान भी भुगतना पड़ा। लाल किताब के अनुसार इन स्थितियों में दान नहीं करना चाहिए-जातक की कुंडली में जो ग्रह उच्च का है उससे सम्बन्धित दान नहीं देना चाहिए। नीच ग्रह से सम्बन्धित दान कभी लेना नहीं चाहिए यदि गुरु सप्तम भाव में हो तो साधु या धर्म स्थल के पुजारी को नए कपड़ों का दान नहीं करना चाहिए, इससे संतान पर बुरा असर पड़ता है। जिस जातक की कुंडली में चंद्रमा छठे घर में हो तो उसे आम जन के लिए कुआं, तालाब के लिए दान नहीं देना चाहिए। यदि चंद्रमा बारहवें घर में हो तो भिखारियों को नित्य भोजन न कराएं, समयांतराल में कर सकते हैं। ऐसा करने से स्वास्थ्य में गिरावट आ सकती है। यदि शुक्र भाग्य भाव में हो तो ऐसे जातक को पढ़ाई के लिए छात्रवृति, पुस्तकें व दवा के लिए पैसे दान नहीं करने चाहिएं (पुस्तकें व दवा दी जा सकती है)। यदि शनि अष्टम भाव में हो तो ऐसे जातक को किसी के लिए मुफ्त प्रयोगार्थ आवास का निर्माण नहीं कराना चाहिए। शनि लग्न में व गुरु पंचम भाव में हो तो ऐसे जातकों को कभी भी ताम्बे का दान नहीं करना चाहिए, अशुभ समाचार प्राप्त होते हैं। हालांकि दान देने में कोई मनाही नहीं है लेकिन कुछ बातों का ध्यान रखते हुए वर्जित वस्तुओं का दान करने से बचना चाहिए।

लाल का किताब के अनुसार मंगल शनि

मंगल शनि मिल गया तो - राहू उच्च हो जाता है -              यह व्यक्ति डाक्टर, नेता, आर्मी अफसर, इंजीनियर, हथियार व औजार की मदद से काम करने वा...