गुरुवार, 27 फ़रवरी 2020

#क्या राशिफल सही होता है ?क्या है सच#

https://youtu.be/sXMcp0IapGE
मित्रोंआमतौर पर हम अपनी सुविधा के लिए रोज सुबह टीवी पर ही अपना राशिफल देखते हैं कई अखबार का भी इस्तेमाल करते हैं बहुत सारे लोग अपने मोबाइल मेंyoutube या किसी अन्य सोशल साइट्स पर भी  राशिफल देखते हैं ।
क्या वो टीवी या कही और देखा हुवा राशीफल सभी के लिए एकसमान होता हैं ?
इसमें प्रश्न उठना स्वाभाविक है ऐसा क्यों? मान लीजिए किसी व्यक्ति का मेष राशि है मेष राशि वाले सिर्फ आप ही होंगे! मेष राशि लाखों-करोड़ों लोगों का हो सकता  हैं
कोई गरीब हो सकता है कोई अमीर हो सकता है कोई सामान्य वर्ग का हो सकता है अब इसमें जो भविष्यवाणियां बताई जाती है क्या वह सभी के लिए सही होती है?
नहीं हो सकती क्योंकि जन्म कुंडली में ग्रहों की भिन्न-भिन्न स्थितियां होती हैं सब का विचार  बहुत जरूरी है आपके ऊपर किस ग्रह की महादशा चल रही है हो सकता हैहो सकता है किसी की शनि की चल रही हो किसी की गुरु की किसी की राहु की
 वैसे भी 12 राशियां हैं और 600 करोड़ लोग हैं। ऐसे में एक राशि में आए 50 करोड़ लोग। तो भला इतने लोगों का भविष्य एक जैसा कैसे हो सकता है। हमारे भारत देश की जनसंख्या है 130 करोड़ से ज्यादा है तो एक राशि के अंदर कितने लोग हो गए सब के अलग-अलग कर्म है उन कर्मों के आधार पर ही आपकी जन्मकुंडली का निर्माण होता है और जन्म कुंडली से ही आपका सही भूत भविष्य और वर्तमान का फल कथन किया जा सकता हैसबसे पहले आइए आप समझे कि दैनिक राशिफल और सप्ताह का राशिफल कैसे निकाला जाता है? राशिफल का फलादेश मुख्यत: चंद्रमा के भ्रमण पर निर्भर रहता है। चंद्रमा सप्ताह भर में लग्न या राशि से जिस भाव में भ्रमण करता है, उस तरह से दैनिक/साप्ताहिक राशिफल निर्धारित किया जाता है। ठीक अब यह तो आप समझ गए जैसे कि आपको यह भी बता दूं कि 27 नछतर होते हैं  12 राशियां और जिस तरह सूर्य मेष से लेकर मीन तक भ्रमण करता है, उसी तरह चन्द्रमा अश्‍विनी से लेकर रेवती तक के नक्षत्र में विचरण करता है तथा वह काल नक्षत्र मास कहलाता है। यह लगभग 27 दिनों का होता है इसीलिए 27 दिनों का एक नक्षत्र मास कहलाता हैप्रत्येक नक्षत्र को चार चरणों में बांटा गया है | एक नक्षत्र13डीग्री20| का होता है अतः नक्षत्र के एक चरण की दूरी 13/20|/4 = 30/20| होती है | सवा दो नक्षत्र अर्थात ९ चरण (30/0 ) की एक राशि होती है | चंद्रमा सवा दो दिन में एक राशि पार कर लेता है अर्थात 30/0 आगे बढ़ जाता है यानी सवा दो दिन तक चंद्रमा एक ही राशि में रहता है | 27 दिन में सभी १२ राशियाँ और नक्षत्र पार कर लेता है | इन चरणों के लिए कुछ अक्षर निश्चित किये गए हैं, जिसके हिसाब से किसी जातक का नामकरण किया जाता है |
क्रमांक नक्षत्र नक्षत्र चरण चरणाक्षर राशि
1 अश्विनी 1,2,3,4 चू, चे, चो, ला मेष मेष राशि में तीन नछतर होते हैं और 9चरणआप ज्योतिष की थोड़ी समझ रखते हैं तो सोचिए विचार करिए इस तरह अन्य राशियां आजकल अधिकांश व्यक्ति प्रात:काल समाचार पत्र में सर्वप्रथम दैनिक राशिफल वाले स्तंभ में अपनी राशि का फलित देखकर अपने दिन का पूर्वानुमान लगाने में उत्सुक रहते हैं और सांझ ढलते ही महसूस करते हैं कि उनकी राशि का जो फलित दैनिक राशिफल में बताया गया था, वह तो असत्य निकला। इसके बाद वे ज्योतिष शास्त्र को कोसने लगते हैं। यह एक सामान्य प्रक्रिया है। तो मैं उन ज्योतिषीयों को   दोषी मानता हूं  जो अपने नाम के आगे आचार्य  या Dr लगाते हैं और जनता को ऐसा लगता कि यह बहुत ही विद्वान और पढ़े लिखे ज्योतिष शास्त्र के ज्ञाता होंगे लेकिन जो लोग दैनिक राशिफल का काम करते हैं ऐसे लोगों को ज्योतिष आता ही नहीं है मित्रों यह आपको समझना होगा आजकल जिस प्रकार दैनिक राशिफल बताया जाता है, वह पूर्णत: भ्रामक व अप्रामाणिक होता है। उसका कोई शास्त्रोक्त व ज्योतिषीय आधार नहीं होता।
 ज्योतिष शास्त्र में फलित के लिए ग्रह स्थिति मुख्यरूपेण उत्तरदायी होती है, चाहे वह जन्म पत्रिका की ग्रह स्थिति हो या गोचर की। ज्योतिष शास्त्र में किसी जातक के फलित के लिए उसकी जन्म पत्रिका की लग्न कुंडली को सर्वाधिक महत्ता प्रदान की गई है तत्पश्चात नवमांश कुंडली, उसके बाद वर्ग कुंडली, फिर विंशोत्तरी दशाएं, उसके बाद योगिनी दशाएं और सबसे अंत में गोचर को मान्यता दी गई है। जब गोचर को ही फलित करते समय सबसे अंतिम पायदान पर रखा जाता है तो केवल चंद्र के गोचर व नक्षत्र से दैनिक राशिफल निकालना कहां तक उचित व प्रामाणिक है?
अब उपर्युक्त आधार पर क्या यह मान लिया जाए कि ज्योतिष शास्त्र में दैनिक राशिफल होता ही नहीं है? 
नहीं, ऐसा कदापि नहीं है। दैनिक राशिफल भी ज्योतिष शास्त्र के अंतर्गत ही आता है किंतु वह प्रत्येक जातक का निजी होता है और उसका आधार प्रश्न कुंडली व नष्टजातकम् पद्धति होता है।
 उस दैनिक राशिफल के लिए व्यक्ति को ज्योतिषी से प्रश्न करना होता है कि 'मेरा आज का दिन कैसा रहेगा?
' तब ज्योतिषी प्रश्न कुंडली के आधार पर अथवा उस व्यक्ति से कोई अंक पूछकर उसके दिन के बारे गणना कर उस दिन का भविष्य संकेत उसे देता है।
इस प्रकार का दैनिक राशिफल व्यक्तिगत होता है, न कि सार्वजनिक। अत: हमारे मतानुसार समाचार पत्रों व न्यूज चैनलों में प्रसारित-प्रकाशित होने वाले दैनिक राशिफल के फलित को गंभीरता से न लेते हुए अपनी जन्म पत्रिका की ग्रह स्थितियों, दशाओं व अपनी राशि गोचर पर ही विश्वास करना चाहिए। आचार्य राजेश

रविवार, 23 फ़रवरी 2020

gemlogy# रत्न कैसे काम करते हैं?

कुछ मित्रों ने रत्नों को लेकर कुछ सवाल पूछे हैं कि क्या रत्न काम करते हैं ज्ञान के धारण करने से लाभ मिलता है मित्रोंयह शरीर पंच भूतों से बना है और इन्ही के अधिकार मे सम्पूर्ण जीवन का विस्तार होता है। इन पंचभूतो मे किसी भी भूत की कमी या अधिकता जीवन के विस्तार मे अपने अपने प्रकार से दिक्कत देने के लिये अपना प्रभाव देने लगते है
 और हमारा शरीर जिन पांच तत्वों से बना है, क्रमानुसार वे हैं- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। पृथ्वी तत्व से हमारा भौतिक शरीर बनता है। जिन तत्वों, धातुओं और अधातुओं से पृथ्वी (धरती) बनी उन्हीं से हमारे भौतिक शरीर की भी रचना हुई है।तत्व से मतलब तरलता से है।ग्नि तत्व ऊर्जा, ऊष्मा, शक्ति और ताप का प्रतीक है। हमारे शरीर में जितनी गर्माहट है, सब अग्नि तत्व से है।नमें प्राण है, उन सबमें वायु तत्व है। हम सांस के रूप में हवा (ऑक्सीजन) लेते हैं, जिससे हमारा जीवन है।काश तत्व अभौतिक रूप में मन है। जैसे आकाश अनंत है वैसे ही मन की भी कोई सीमा नहीं है। जैसे आकाश अनंत ऊर्जाओं से भरा है, वैसे ही मन की शक्ति की कोई सीमा नहीं हैमिट्टी: पृथ्वी या मिट्टी, हमारे शरीर के उन अंगों के निर्माण से जुड़ी है, जो कठोर और भारी हैं। जैसे हड्डियां, दांत, मांस, त्वचा, बाल, मूंछें, नाक आदि। 
अग्नि: अग्नि उन अंगों के निर्माण के लिए आवश्यक है, जो गर्म और तीव्र प्रकृति के हैं। दृष्टि, नजर, शरीर की ऊष्मा, तापमान, रंग, चमक, क्रोध, साहस आदिज्योतिष विज्ञान भी इस बात को स्वीकारता है कि व्यक्ति के जीवन तथा चरित्र को मूलतत्व किस प्रकार प्रभावित करते हैं। जहाँ ज्योतिष के अनुसार तत्व एक ब्रह्मांडीय कंपन के लक्षण बताते हैं
 ।इन सभी तत्वों को समझ कर हम तत्वों को कुछ प्रयोग के द्वारा संतुलन में कर सकते हैं जिससे हमारे आगे की यात्रा बढ़ सके। जैसे-जैसे हम क्रिया करेंगे उसका अनुभव हमें प्रत्यक्ष मिलेगा। हमारी हाथ की उंगलियों में तत्व संदेश देंगे कि कौन सा तत्व आपके भीतर कम है और कौन सा अधिक है। हम जानते हैं कि हाथ की पांच उंगलियां इन्हीं पांच तत्वों का प्रतिनिधत्व करती हैं। अंगूठा अग्नि का, तर्जनी वायु का, मध्यमा आकाश का, अनामिका पृथ्वी का और कनिष्का जल का प्रधिनिधित्व करती हैं। इन उंगलियों में विद्युत धारा प्रवाहित होती रहती है।
मानव शरीर प्रकृति द्वारा तैयार की गई एक मशीन है जिसके सूक्ष्म संसाधनों व तंत्रों और तत्वों के प्रयोग की सटीक सहज क्रिया के जरिए हम अपनी ऊर्जा को निरंतर गति दे सकते हैं।
.इन पाँच तत्वों के साथ शरीर चलता है .किसी में ज्यादा ,किसी में कम यह देखने को मिलता है  और इनपाँच तत्वों के से ही ब्रह्मांड बना है और उसी पर ज्योतिष शास्त्र आधारित हैसभी बारह राशियों को तत्वों के आधार पर  चार भागों में बाँटा गया है.और उसी प्रकार ग्रहो की यौगिक विज्ञान के अनुसार हमारा शरीर और यह सारा अस्तित्व पांच तत्वों से मिलकर बना है। ऐसे में खुद को रूपांतरित करने का मतलब होगा - बस इन पांच तत्वों को अपने लिए फायदेमंद बना लेना। हमारे ऋषि-मुनियों में इस पर काफी शोध की रिसर्च की उन्होंने ने अपनी दूरदर्शिता और अनुभूति के आधार पर तथा जन्मकुंडली में ग्रह-राशियों के विन्यास से यह आकलन करने का प्रयास किया कि किस रत्न के प्रयोग से मनुष्य की दैहिक और मानसिक विसंगतियां दूर होती हैं। ज्योतिष शास्त्र के अतिरिक्त आयुर्वेद शास्त्र में भी रत्न प्रयोग से दैहिक रोग मुक्ति का विधान है। रत्न सिद्धांत: आकाश, अग्नि, जल, वायु और पृथ्वी नामक पंचमहाभूतों से प्राणी देह का ही नहीं, बल्कि संपूर्ण प्रकृति का निर्माण हुआ है। समन्वित पंचमहाभूतों के स्थापन से हमारी देह स्वस्थ रहती है, मगर इनमें समन्वय के अभाव से देह अनेक व्याधियों से प्रकुपित होने लगती है। ग्रहों की किसी विशेष अवस्था और उनसे उत्सर्जित ऊर्जा की किसी विशेष मात्रा से दैहिक और मानसिक पुष्टता होती है, जो उत्साह, उमंग, वीरता, विवेकशीलता और पराक्रम की द्योतक है तथा ग्रहों की किसी विपरीत अवस्था में दैहिक और मानसिक दुर्बलता होती है, जो, निराशा, हताशा और असफलता की द्योतक है। ऐसी दुर्बलता की अवस्था जिन ग्रह और नक्षत्रों के कारण होती है, उससे संबंधित रत्न धारण करने से मुक्ति मिलती है। इस प्रकार रत्न संबंधित ग्रह की रश्मियों को एकत्र करके हमारी देह में समावेश करा कर उस ग्रह को अनुकूल करने का महत्वपूर्ण कार्य करते हैं। इसके लिए रत्न जड़ित मुद्रिका इस प्रकार बनाई जाती है कि रत्न दैहिक त्वचा को स्पर्श करता रहे। विभिन्न रत्नों को विभिन्न उंगलियों में धारण किया जाता है, क्योंकि प्रत्येक उंगली से निकलने वाली संदेश संवाहिक तंत्रिका मस्तिष्क के विभिन्न हिस्सों में जाती है। इसलिए रत्न विशेष का प्रभाव उंगली विशेष के माध्यम से मस्तिष्क की विशेष कोशिकाओं को संवेदित करती है। ज्योतिष के अनुसार जब जन्म कुंडली, गोचर कुंडली योगकारक कोई ग्रह निर्बल होता है और उसकी निर्बलता से शरीर में रोग उत्पन्न होता है, तब उस ग्रह से संबंधित रत्न धारण करके या उस रत्न की भस्म का सेवन करके उस ग्रह को बलवान किया जाता है। यह रत्न चिकित्सा का मूलभूत आधार है। यह विज्ञान सम्मत है कि रत्न एक लेंस और प्रिज्म की भांति कार्य करते हैं, जो आकाशीय प्रकाश किरणों को संग्रह करके अपवर्तित करते हैं, जिनसे हमारे कोशिकीय तंतुओं का पोषण होता है। हमारे शरीर में जिस तत्व की कमी हो जाती है या  कहें कि जिस ग्रह के बल की कमी हो जाती है  तो आपकी कुंडली के आधार पर उस ग्रह को बल देने के लिए रतन धारण करवाए जाते हैं यहां मैं एक बात स्पष्ट कर दूं कि रत्न कभी भी राशि के आधार पर नहीं पहने जाते और ना ही दशा महादशा के आधार पर रत्न हमेशा आप अपनी जन्म कुंडली हस्तरेखा के आधार पर ही पहनें  आचार्य राजेश

रविवार, 16 फ़रवरी 2020

#महाशिवरात्रि#2020 पर विशेष

भगवान शिव के विवाह का दिन फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को माना जाता है। शिवपुराण में इस चतुर्दशी को महाशिवरात्रि कहा गया है। इस शिवरात्रि में महा इसलिए लगा है क्योंकि शिवरात्रि तो हर महीने में एक बार आती है लेकिन फाल्गुन मास की शिवरात्रि साल में केवल एक बार आती है। महाशिवरात्रि का महत्व इसलिए हैमहाशिवरात्रि भारत के सबसे बड़े और पवित्र रात्रि उत्सवों से एक है। महाशिवरात्रि साल की सबसे अँधेरी रात होती है, और इस रात शिव की कृपा का उत्सव मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि शिव आदिगुरू या पहले गुरु हैं, क्योंति यह शिव और शक्ति की मिलन की रात है। आध्यात्मिक रूप से इसे प्रकृति और पुरुष के मिलन की रात के रूप में बताया जाता है। इस रात में आध्यात्मिक शक्तियां अधिक जागृत होती हैं इसलिए शास्त्रों में कहा गया है कि इस रात का उपयोग ध्यान, योग, तप और साधना में करना चाहिए।इस रात ग्रहों की विशेष स्थिति होने के कारण, मानव शरीर में ऊर्जा खुद ब खुद ऊपर की ओर चढ़ती है, और पूरी रात रीढ़ को सीढ़ी खड़ी रखकर जागना और जागरूक रहना शारीरिक और आध्यात्मिक खुशहाली के लिए बहुत फायदेमंद होता है। इस वर्ष महाशिवरात्रि 21फरवरी को है। इस अवसर पर कई दुर्लभ संयोग बने हैं ऐसे में इसदिन का महत्व और बढ़ गया है।शिवरात्रि पर्व इस बार 21 फरवरी को मनाया जायेगा। हिंदू धर्म में इस दिन को बेहद ही खास माना जाता है।यहमहाशिवरात्रि कई मायनों में खास रहने वाली है। क्योंकि इस दिन 59 साल बाद विशेष संयोग बन रहा है इस दिन विशेष संयोग बन रहा है जो पर्व को और भी खास बनाएगा। इसमें विष योग, बुधादित्य और सर्प योग, अंगारक योग भी रहेगा। साथ ही पंचमहापुरुष योग में से एक मालव्य योग व गुरु कुलदीपक योग बनाएंगे। माल्वय व कुलदीपक योग 21फरवरी की रात्रि 2.15 बजे से भोर में 4.19 बजे तक रहेगा।

ये सभी योग महाशिवरात्रि पर्व को और भी खास बना रहे हैं। इस विशेष योग में जन्म लेने वाले जातक पर भगवान शिव की विशेष कृपा बरसेगी। महाशिवरात्रि 21 तारीख फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को पड़ेगी।

इस दिन शाम 5.20 बजे से शुरू होकर अगले दिन 22 फरवरी दिन शनिवार को शाम सात बजकर दो मिनट तक रहेगी। रात्रि प्रहर की पूजा शाम को 6.41 बजे से रात 12.52 बजे तक होगी। अगले दिन सुबह मंदिरों में भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा की जाएगी।

ऐसे में भगवान चंद्रमौलीश्वर का पूजन अवश्य करना चाहिए। शश योग। इस दिन चंद्र शनि की मकर राशि में युति हो रही है।चंद्रमा मन का कारक है। वहीं शनि दुख कर कारक है। ऐसे में चंद्र-शनि की युक्ति को विष योग कहते हैं। इसका एक पक्ष यह भी है कि मन जब भी अवसाद में आता है तो विरक्त होने लगता है।इस साल शनि ने 23 जनवरी को मकर राशि में प्रवेश किया है। शिवरात्रि यानि इस साल से पहले करीब 28 साल पहले शिवरात्रि पर विष योग 2 मार्च 1992 को बना था। इस योग में शनि और चंद्र के लिए विशेष पूजा करनी चाहिए। शिवरात्रि पर ये योग बनने से इस दिन शिव पूजा का महत्व और अधिक बढ़ गया है। कुंडली में शनि और चंद्र के दोष दूर करने के लिए शिव पूजा करने की सलाह दी जाती है।

साथ ही ये योग ज्ञान की खोज भी कराता है। भगवान शिव का दुग्ध, दही, मधुरस, घृत, गन्ना रस, शक्कर समेत विभिन्न प्रकार से अभिषेक करना चाहिए। इससे भगवान शिव की कृपा मिलेगी। इसलिए इस योग के बनने से साधना सिद्धि के लिए ये दिन खास रहेगामहाशिवरात्रि पर बनने वाले विष योग में दूध और तिल मिलाकर अभिषेक करने से शनि देव का आशीष मिलेगा। इस संवत्सर के राजा शनि अपनी स्वराशि है। साथ चंद्रदेव व सूर्यदेव भी शनि की राशि में है। शनिदेव और चंद्रदेव के आराध्य भगवान शिव हैं।

इससे शिवरात्रि पर बनने वाले इस विशेष योग में भगवान शिव के साथ ही शनिदेव और चंद्रदेव का भी आशीष मिलेगा। पूजन से शनि और चंद्रदेव की कृपा भी मिलेगी। दूसरी खास बात ये है कि महाशिवरात्रि के पावन दिन पर सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहा है। जिसमें शुभ कार्य संपन्न करने से लाभ मिलता है। इसी के साथ 117 साल बाद शनि और शुक्र का दुर्लभ योग भी महाशिवरात्रि के दिन बन रहा है। इस शिवरात्रि शनि अपनी राशि मकर में मौजूद रहेंगे और शुक्र अपनी उच्च राशि मीन में रहेगे रबुधादित्य और सर्प योग भी रहेंगे शिवरात्रि पर
21 फरवरी को बुध और सूर्य कुंभ राशि में एक साथ रहेंगे, इस वजह से बुध-आदित्य योग बनेगा।शिवरात्रि पर बुध अपने मित्र और सूर्य अपने पुत्र के घर में एक साथ रहेंगे, इस वजह से बुध-आदित्य योग बनेगा। इसके अलावा इस दिन सभी ग्रह राहु- केतु के मध्य रहेंगे, इस वजह से सर्प योग भी बन रहा है।

केतु व मंगल एक ही भाव में युति बना रहे हैं, इसे मंगल केतु अंगारक योग कहते हैं। मंगल अग्नि तत्व से संबद्ध है, जबकि केतु काम वासना व लालसा का वाचक है। यह स्पर्शनीय शक्ति उत्पन्न् करते हैं, जो नकारात्मक नतीजे प्रदान करती हैं। शिव पूजन से ग्रहों के नकारात्मक प्रभाव से भी मुक्ति मिलेगी। इसके अलावा इस दिन  शिवरात्रि पर राहु मिथुन राशि में और केतु धनु राशि में रहेगा। शेष सभी ग्रह राहु-केतु के बीच रहेंगे। सूर्य और बुध कुंभ राशि में, शनि और चंद्र मकर राशि में, मंगल और गुरु धनु राशि में, शुक्र मीन राशि में रहेगा। सभी ग्रह राहु-केतु के बीच होने से सर्प योग बनेगा।इस साल शिवरात्रि पर शनि अपनी स्वयं की राशि मकर में और शुक्र ग्रह अपनी उच्च राशि मीन में रहेगा।  ये एक दुर्लभ योग है, जब ये दोनों बड़े ग्रह शिवरात्रि पर इस स्थिति में रहेंगे। 2020 से पहले 25 फरवरी 1903 को ठीक ऐसा ही योग बना था और शिवरात्रि मनाई गई थी। इस साल गुरु भी अपनी स्वराशि धनु राशि में स्थित है। इस योग में शिव पूजा करने पर शनि, गुरु, शुक्र के दोषों से भी मुक्ति मिल सकती है। 21 फरवरी को सर्वार्थ सिद्धि योग भी रहेगा। पूजन के लिए और नए कार्यों की शुरुआत करने के लिए ये योग बहुत ही शुभ माना गया है।जिन लोगो को केरियर से संबंधित परेशानी आ रही है करियर में सफलता और असफलता के लिए कुडंली में बुध ग्रह को जिम्मेदार माना गया है। नौकरी, बिजनेस और पढ़ाई में आने वाली बाधा को दूर करने के लिए इस महाशिवरात्रि पर  शिवलिंग पर पारद भस्म का लेपन करें व दूर्वा घास चढ़ाएं।। ऐसे में भगवान शिव का सरल विधि से किया गया पूजन आपके दुख दूर कर सकता है। भोलेनाथ को दही एवं मिश्री अर्पित करें। बुध का दोष दूर हो  इस उपाय से करियर संबंधी बाधा दूर हो जाती है।
मानसिक परेशानी को दुर करने के लिए
कुंडली में ग्रह दोष होने से व्यक्ति की मानसिक परेशानी बढ़ जाती है। ज्योतिष में मानसिक परेशानी का संबंध चंद्रमा से संबंधित ग्रह दोष के कारण होता है। इस परेशानी को दूर करने के लिए महाशिवरात्रि पर शिवलिंग पर दूध ओर चावल मिलाकर अभिषेक करें व चांदी भस्म का लेपन करें भोले नाथ को खीर का भोगअर्पित करना चाहिए। मान-सम्मान में आई गिरावट को दूर करने के उपाय
अगर किसी की कुंडली में सूर्य ग्रह से संबंधित कोई दोष हो तो व्यक्ति के मान-सम्मान में गिरावट होने लगती है और अपयश का सामना करना पड़ता है। मान-सम्मान को बढ़ाने के लिए महाशिवरात्रि पर शिवलिंग पर चंदन का लेप लगाएं और शिवलिंग पर जल चढ़ाएं।हत संबंधी परेशानियों से छुटकारा पाने के उपाय
कुंडली में राहु-केतु के अशुभ घर में बैठने पर स्वस्थ्य संबंधी परेशानियां आने लगती है। सेहत को ठीक करने के लिए महाशिवरात्रि पर भगवान शिव को धतूरा चढ़ाएं।विल्व पत्र चढाऐ
विवाह संबंधी दोष को दूर करने के उपाय
कुंडली में बृहस्पति ग्रह के कमजोर और दोष होने से विवाह होने में तमाम तरह की परेशानियां आने लगती है। साथ ही पति-पत्नी में मनमुटाव भी बढ़ने लगता है। कुंडली में इस दोष को दूर करने के लिए इस पवित्र महाशिवरात्रि पर शिवलिंग  दुघ में ग़ज़ल मिलाकर अभिषेक करें तथा पीले फूल और केले अर्पित करें   
संतान प्राप्ति में विलंब हो रहा है अथवा संतान पर संकट आ रहे हैं, वैवाहिक रिश्तों में कड़वाहट घुल रही है तो यह शुक्र का दोष हो सकता है। इसके लिए पंचामृत से भोलेनाथ का अभिषेक कीजिए। शिवकृपा से सब मंगल होगा
 शनिदेव का दोष जातक को अनेक कष्ट देता है। हालांकि हनुमानजी के पूजन एवं शनि को तेल चढ़ाने से भी कोप शांत होता है लेकिन शिवरात्रि पर भगवान शिव का गन्ने के रस से किया गया अभिषेक भी श संगनि को शांत कर सकता है। इससे आपके बिगड़े काम बनने लगेंगे। और शिवलिंग पर बदाम चढ़ाएं  ्महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव पर एक लोटा जल चढ़ाने से ही भगवान शिव अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। भगवान शिव अपने भक्तों पर जितनी जल्दी प्रसन्न होते हैं उतनी ही जल्दी उनसे रुष्ट भी हो सकते हैं। ऐसे में आइए जानते वो वाते  जिसे भूलकर भी भगवान शिव की पूजा के दौरान नहीं करना चाहिए। 
शंख जल- भगवान शिव ने शंखचूड़ नाम के असुर का वध किया था। शंख को उसी असुर का प्रतीक माना जाता है जो भगवान विष्णु का भक्त था। इसलिए विष्णु भगवान की पूजा शंख से होती है शिव की नहीं।
 पुष्प- भगवान शिव जी की पूजा में केसर, दुपहरिका, मालती, चम्पा, चमेली, कुन्द, जूही आदि के पुष्प नहीं चढ़ाने चाहिए।
करताल- भगवान शिव के पूजन के समय करताल नहीं बजाना चाहिए।
तुलसी पत्ता- जलंधर नामक असुर की पत्नी वृंदा के अंश से तुलसी का जन्म हुआ था जिसे भगवान विष्णु ने पत्नी रूप में स्वीकार किया है। इसलिए तुलसी से शिव जी की पूजा नहीं होती।
तिल- यह भगवान विष्णु के मैल से उत्पन्न हुआ मान जाता है इसलिए इसे भगवान शिव को नहीं अर्पित किया जाना चाहिए।
टूटे हुए चावल- भगवान शिव को अक्षत यानी साबूत चावल अर्पित किए जाने के बारे में शास्त्रों में लिखा है। टूटा हुआ चावल अपूर्ण और अशुद्ध होता है इसलिए यह शिव जी को नही चढ़ता।
कुमकुम- यह सौभाग्य का प्रतीक है जबकि भगवान शिव वैरागी हैं इसलिए शिव जी को कुमकुम नहीं चढ़ता।

शनिवार, 8 फ़रवरी 2020

शनि देते हैं आपके किए गए कार्मो का फल?


शनिदेव को सूर्य पुत्र एवं कर्मफल दाता माना जाता है। लेकिन साथ ही पितृ शत्रु भी.शनि ग्रह के सम्बन्ध मे अनेक भ्रान्तियां और इस लिये उसे मारक, अशुभ और दुख कारक माना जाता है। पाश्चात्य ज्योतिषी भी उसे दुख देने वाला मानते हैं। लेकिन शनि उतना अशुभ और मारक नही है, जितना उसे माना जाता है।सत्य तो यह ही है कि शनि प्रकृति में संतुलन पैदा करता है, और हर प्राणी के साथ उचित न्याय करता है। जो लोग अनुचित विषमता और अस्वाभाविक समता को आश्रय देते हैं, शनि केवल उन्ही कोउनके कर्मो के अनुसार दण्डिंत (प्रताडित) करते हैं। अनुराधा नक्षत्र के स्वामी शनि हैं।नि के दो घर माने जाते है एक करने वाला और एक सोचने वाला। जो लोग काम को करने के बाद सोचते है वे मकर की श्रेणी मे आते है और जो सोच कर करते है वे कुम्भ की श्रेणी में आते है। कार्य को करने के बाद सोचने की क्रिया को करके सीखने का होता है और सीख कर करने की क्रिया को शिक्षा को पूर्ण करने के बाद कर्म की क्रिया को कहा जाता है। कार्य को करने के बाद जो सीखता है वह कार्य के बारे में गूढ रूप से जानता है कारण उसके द्वारा प्रेक्टिकल में कार्य किया जाता है। लेकिन सीख कर कार्य को जो करता है वह कार्य में अनुभव के बिना कहीं न कहीं अटक जाता है। , मित्रों शनि कर्म का कारक है,कर्म करने के लिये शनि अपनी पूरी ताकत देता है,कितना ही आलसी व्यक्ति हो शनि अपने अनुसार वक्त पर कर्म करने के लिये अपनी ताकत को दे ही देता है। व्यक्ति को शनि जमीनी ताकत का बोध करवाता है,कैसे जमीन से उगा जाता है और उगने के बाद समय के थपेडे किस प्रकार से खाये जाते है,तब जाकर किस प्रकार से कर्म की कसौटी पर उसे खरा उतरना पडता है। शनि के तीन रूप माने जाते है और तीनो रूपों को जन्म कुंडली के अनुसार परखा जाता है। शनि मार्गी होता है तो सम्बन्धित भाव के कार्य वह पूरे जीवन करवाता रहता है,चाहे वह अच्छा हो या बुरा कर्म तो मनुष्य को करने ही पडेंगे,वह गोचर से भी जिस भाव में प्रवेश करेगा,जन्म कुंडली के भाव के अनुसार ही अपनी शिफ़्त को प्रदान करेगा। मार्गी शनि शारीरिक मेहनत करवाता है और वक्री शनि दिमागी काम करवाता है,दिमागी कार्य करने के लिये वह अपने फ़ल भावानुसार ही देता है। व्यक्ति को अगर कहीं शारीरिक मेहनत करने के अवसर आते है और वह अपने द्वारा शारीरिक मेहनत करने के लिये उद्दत होता है तो वह शारीरिक मेहनत के अन्दर असफ़लता देता है,लेकिन दिमागी मेहनत के अन्दर अपने बल को प्रदान करता रहता है। उसी प्रकार से अगर शनि कुंडली में मार्गी है,और व्यक्ति अगर दिमागी मेहनत करने के कारण कही भी प्रस्तुत करता है तो उसे सफ़लता नही मिलती है। लेकिन वह अपने अनुसार शारीरिक मेहनत को करने के बाद सफ़ल होता जाता है। शनि अस्त का प्रभाव अपने में बहुत महत्व रखता है,जन्म स्थान का शनि अगर अस्त है तो वह गोचर से जिस भी भाव में प्रवेश करेगा,उस भाव के जन्म के भाव से सम्बन्धित कार्यों को बन्द कर देगा,चलते हुये कार्य बन्द होने के कारण मनुष्य को बैचेनी हो जाती है,वह सोचने लगता है कि उसके द्वारा कोई भूल हुयी है और उसी भूल से उसका कार्य बन्द हुआ है,लेकिन जैसे ही शनि अपने समय के अनुसार आगे बढेगा वह बन्द किये गये कार्य को शुरु कर देगा और आगे के कार्य बन्द कर देगा,इस तरह से व्यक्ति के जीवन में शनि का जो योगदान मिलता है वह समझकर ही अगर किया जाता है तो व्यक्ति की सफ़लता मिलनी निश्चित होती है। उदाहरण के तौर पर अगर शनि बारहवे भाव में जाकर वक्री हो गया है,बारहवां भाव जेल जाने का कारण भी बनाता है,अगर शनि मार्गी होता है तो जेल में जाकर जेल के कार्य करना और जेल सम्बन्धी दुख भोगना जरूरी होता है,लेकिन शनि अगर बारहवें भाव में वक्री है तो वह दूसरों को जेल जाने के कारणॊं से बचाता है,उसके अन्दर दिमागी ताकत आजाती है और वह कानून या अन्य कारणों से दूसरों को अपने द्वारा जेल जाने की नौबत से दूर रखने में अपनी सहायता करता है। बारहवा भाव मोक्ष का भाव भी कहा जाता है,जातक की कुन्डली में वह जहां भी गोचर करेगा मोक्ष के भावों को प्रस्तुत करता चला जायेगा। शनि के साथ,शनि से पंचम नवम भाव में जो भी ग्रह होंगे वे शनि को सहायता देने वाले ग्रह होंगे,अगर वह अच्छे ग्रह है तो अच्छी सहायता करेंगे और खराब ग्रह है तो खराब सहायता करेंगे। जैसे शनि अगर बारहवां है और शनि से नवें भाव यानी अष्टम भाव में सूर्य है तो शनि को सरकारी और पिता सम्बन्धी सहायता मिलेगी,वह सरकारी कारणों में जो कि कानूनी भी हो सकते है,साथ ही शनि अगर बारहवें भाव में वृष राशि का है तो वह धन सम्बन्धी कारणों से लोगों को जेल जाने और पारिवारिक कारणॊं से जेल जाने और बडी मुशीबत से फ़ंसने में सहायता करेगा। इसी शनि के अगर नवें भाव में सूर्य है तो कार्यों के मामले में पिता और बडे सरकार से सम्बन्धित बडे अधिकारियों और राजनीतिक लोगों से लाभ देने के मामले में भी जाना जायेगा,पिता के द्वारा धन सम्बन्धी कारणों को सुलझाने के दिमागी कारणों को जातक ने अपने जन्म से ही सीखा होगा और वह पिता की छत्रछाया में ही बडे बडे अफ़सरों से मिलता रहा होगा तथा समय पर अपने लिये उन्ही लोगों और पिता से सम्बन्धित ज्ञान को समय समय पर प्रकट करने के बाद अपने कार्यों को करने में अपनी योग्यता को प्रकट करेगा। इसके साथ ही अगर इस शनि को अगर गुरु का प्रभाव भी शनि से नवें भाव से मिला होगा तो वह कानूनी रूप से अपने कार्यों को करने वाला होगा,वैसे साधारण ज्योतिष के अनुसार वृष राशि के नवें भाव में मकर राशि का स्थान है और यहां पर कई लोग गुरु को नीच का मान लेते है लेकिन गुरु अगर अष्टम में है तो वह नीचता को त्याग देगा,कारण बारहवें भाव में वृष राशि होने का मतलब होता है कि लगन मिथुन लगन की है और मिथुन लगन से अष्टम में गुरु का स्थान मकर राशि में होने से वह अपनी नीच प्रकृति को त्याग कर विपरीत राजयोग की श्रेणी को प्रस्तुत करेगा। इसके लिये कई विद्वानों ने अपने अपने भाव प्रदान किये है लेकिन नीच के गुरु की मान्यता तभी तक मान्य थी जब तक वर्ण व्यवस्था कायम थी और लोग अपने अपने वर्ण के अनुसार ही कार्य किया करते थे, आज किसी भी वर्ण का व्यक्ति कोई भी कार्य करने के लिये स्वतंत्र है,ब्राह्मण हरिजन के भी कार्य कर रहा है और हरिजन ब्राह्मण के भी कार्य कर रहा है,पानी भरने के लिये पहले भिस्ती का काम हुआ करता था आज कोई भी पानी भरने के लिये अपने कर्म को प्रदान कर सकता है,पहले राजपूतों का कार्य केवल रक्षा करना होता था तो आज राजपूत आराम से कृषि वाले कार्य भी कर रहे है और पूजा पाठ के कार्यों में भी लगे है। इस प्रकार से गुरु की नीचता का प्रभाव अब उस तरीके से नही माना जाता है। चूंकि मकर राशि का प्रभाव अष्टम में जाने से धन सम्बन्धी कार्यों की विवेचना करने से भी माना जाता है जो धन अनैतिक रूप से लोग अपने पास अण्डर ग्राउंड बेस में रखते है लेकिन किसी प्रकार के मंगल के दखल के कारण उस धन को सही रूप में साबित करने और धन के मामले में उचित सलाह देने तथा राजकीय अधिकारियों से जान पहिचान होने से और कानूनी बातों का पता होने से इस स्थान के गुरु और बारहवें भाव के बक्री शनि की ताकत से वह अपने दिमागी बल से अफ़सरों से जान पहिचान करने के बाद जो भी जेल जाने या बरबाद होने की स्थिति में आता है उसे जातक के द्वारा बचा लिया जाना माना जाता है। इसी प्रकार से अगर गुरु को बल देने के लिये अन्य ग्रह भी जैसे सूर्य भी है गुरु भी है और शुक्र भी है तो जातक की महिमा अपने समय के अनुसार आगे से आगे बढ जाती है। केवल सूर्य गुरु के कारण यह शनि कानूनी मान्यता को ही अपने जाल से निकालने में सहायता करता है लेकिन शुक्र के साथ हो जाने से सम्पत्ति से भी दूर करने में सहायता करता है जो भी सम्पत्ति है उसे जातक के प्रयास से दूसरी रास्ताओं के द्वारा सूचित किया जाता है और इस प्रयास से जातक खुद के अलावा राजकीय अधिकारियों और जिसकी गल्ती पकडी गयी उसे भी फ़ायदा देने के लिये उत्तम माना जाता है। वक्री शनि का दूसरा प्रयास होता है दिमागी रूप से लगातार आगे बढना,कारण लगन को बल देने के लिये यह शनि बहुत अच्छे प्रयास करता है,शनि बालों का और चमडी का कारक भी है,अगर बारहवां शनि मार्गी है तो जातक की खोपडी में घने बाल होंगे और शनि बारहवें भाव में वक्री है तो जातक की खोपडी गंजी होती है। इस शनि का प्रभाव जातक की कुंडली में दूसरे भाव में भी होता है,दूसरा भाव जातक के लिये धन और अपने ही परिवार के लिये माना जाता है,इसके अलावा भी यह देखा जाता है कि जब भी जातक को किसी प्रकार से धन की जरूरत महसूस होती है तो जातक को गुप्त रूप से सूर्य और गुरु के साथ शुक्र की सहायता मिल जाती है,कारण इस शनि से नवें भाव में विराजमान ग्रह उसे वक्त पर सहायता देने के लिये हमेशा आगे रहते है।
शनि के कर्म भाव में यानी शनि से दसवें भाव में जो भी भाव होता है वह कानूनी और विदेश से सम्बन्धित होता है जातक के लिये वह भाव भाग्य वाली बातों के लिये भी जाना जाता है,जैसे शनि के दसवें भाव में अगर कुम्भ राशि है,तो जातक के लिये लाभ और मित्रों की सहायता कानूनी रूप से मिलनी जरूरी है,अगर उस भाव में चन्द्रमा है तो जातक जनता से जनता वाली मुशीबतों का कार्य करने के बाद अपने क्षेत्र में नाम करने के लिये माना जायेगा,इसके अलावा अगर मंगल है तो वह कानूनी रूप से लडी जाने वाली लडाइया और बडे रक्षा वाले पदों के लिये अपनी मान्यता को दिमागी रूप से रखेगा और अगर बुध है तो जातक के लिये कानून वाले काम तथा कमन्यूकेशन वाले काम और धर्म से सम्बन्धित लोगों को दान देने वाले काम हमेशा आगे बढाते रहने के लिये अपना योगदान करते रहेंगे,गुरु के होने से जातक के लिये जन्म स्थान से दूर जाकर बडे बडे कार्य करने का अवसर मिलता है,यात्राओं वाले कार्यों के लिये और रहने आदि के लिये स्थान प्रदान करवाने के लिये जातक की समय पर सहायता मिलती रहती है शुक्र के होने से जातक के पास पारिवारिक सम्पत्ति होती तो बहुत है लेकिन उसे प्रयोग करने के लिये उसे अपने पारिवारिक जनों से दिक्कत मिलती है,इस तरह से शनि को कर्म के रूप में मान्यता दी गयी है। आ ज इतना ही आचार्य राजेश

सोमवार, 3 फ़रवरी 2020

सप्ताह के साथ दिनों का क्या है रहस्य? (2)

पहली पोस्ट का link http://acharyarajesh.in/2019/12/27/%E0%A4%B8%E0%A4

मित्रों मैंने हाल ही में एक पोस्ट डाली थी 7 सप्ताह के साथ दिनों पर पर कुछ एक मित्रों ने उस पर कुछ टीका टिप्पणी की बेसिर पैर की बातें की बिना कोई तथ्य दिए-मित्र बहुत ही मेहनत करने के बाद पत्थर आदि को काट छांट कर बहुत ही सुन्दर तरीके से घर सप्ताह के साथ दिनों का क्या है रहस्य? (2)को बनाया जाता है,उसे सजा कर संवार कर रखा जाता है,लेकिन चीटी का स्वभाव सभी को पता है वह अपनी आदत के अनुसार उस घर के अन्दर हमेशा भाग भाग कर छेद को खोजा करती है। उसे लगने वाली मेहनत और भावना का पता नही होता है वह केवल छेद की भावना को लेकर ही अपने पूरे जीवन को व्यतीत कर देती है। यह भावना अक्सर उन्ही लोगों के अन्दर भी पायी जाती है खैर छोड़िए हम अपनी बात पर आते है जैसे मैंने पहले ही कहा हैआपको जानकर आश्चर्य होगा कि रविवार से सूर्य का कोई संबंध है ही नहीं । रविवार से सूर्य का संबंध दिखा पाना किसी भी ज्योतिषी के लिए न केवल कठिन वरन् असंभव कार्य है।विवार सोमवार मंगलवार बुधवार गुरुवार शुक्रवार शनिवार यह साथ दिन बनाये गये है,इन दिनों को बनाने का उद्देश्य केवल सप्ताह के समय को विभाजित करना ही था,साथ ही कल और आज तथा आज और कल के भेद को समझना भी था। इन दोनो के पीछे जो थ्योरी छिपी थी वह शायद हर किसी को पता नही है,बहुत बडा गूढ विषय है,इस विषय पर प्रकाश डालने की कोशिश तो की है,किसी प्रकार की त्रुटि अगर हो जाये तो क्षमा भी करना आपका ही काम है।
सूर्य को पिता के रूप में चन्द्र को माता के रूप में मंगल को पराक्रम के रूप में बुध को बुद्धि के रूप में गुरु को जीव के रूप में ज्ञान के रूप में सम्बन्ध के रूप में शुक्र को धन सम्पत्ति और पत्नी के रूप में शनि को कार्यों के रूप में अधिकतर माना जाता
है। पिता ने माता की सहायता से जीव के पराक्रम को प्रकट किया,हिम्मत दी और संसार में बुद्धि प्राप्त करने के लिये उतार दिया,बुद्धि का कारक बुध है और बुध से इस जीव की उत्पत्ति को मानते है,बुध का रूप गोल है मतलब तीन सौ साठ डिग्री का है पूरा बुध,दुनिया भी गोल है,यानी पूरी तीन सौ साठ डिग्री की। इस संसार में तीन सौ साठ प्रकार की बुद्धि पायी जाती है,आगे कभी इन सभी बुद्धियों का विवेचन करूंगा। अक्सर इन्ही तीन सौ साठ प्रकार की बुद्धियों के मामले में कहावत कही जाती है कि- "तुम्हारे जैसे तीन सौ साठ लोग बेवकूफ़ बनाने वाले मिलते हैं",अक्सर यह बात लोगों के मुँह से कहावत के रूप में सुनी जाती है। बुध को मुख्य माना जाता है इसी के आसपास सभी ग्रह घूमते है। अगर पराक्रम और हिम्मत माता पिता ने सही दी है तो बुद्धि सही काम करेगी,और माता पिता के द्वारा ही पराक्रम और हिम्मत को गलत दिया गया है तो बुद्धि अपने आप कुत्सित होकर गलत काम करेगी। बुध से आगे गुरु आता है और बुध के पीछे मंगल,मंगल पराक्रम और हिम्मत का मालिक है बुध बुद्धि का और गुरु सम्बन्ध का,अगर हिम्मत और पराक्रम सही है तो बुद्धि अच्छी तरह से काम करेगी और सम्बन्ध भी अच्छे बनेंगे,इसके विपरीत सम्बन्ध खराब हो जायेंगे। सूर्य अनाज का कारक है चन्द्र पानी का,अगर अनाज और पानी सही लिया है तो शरीर में खून अच्छा बनेगा और वह बुद्धि को भी सही पैदा करेगा,साथ ही बुद्धि के सही होने पर ज्ञान की मात्रा भी अधिक से अधिक प्राप्त की जायेगी। लेकिन सूर्य के पीछे भी शनि लगा है,अगर सही कर्म करने के बाद अनाज को पैदा किया गया है तो अनाज भी आगे सही परिणाम देगा,शनि के पीछे भी शुक्र विराजमान है,अगर शुक्र से अपनी सही रीति नीति शनि को दी है तो शनि भी सही कार्य करेगा,और पीछे से शुक्र भी खराब है तो शनि अपने आप खराब हो जायेगा। शुक्र के पीछे भी गुरु लगा है,अगर ज्ञान की मात्रा समुचित है और वह शुक्र के लिये प्रयोग किये जाने योग्य है तो शुक्र सही काम करेगा,अगर गुरु ही खराब है तो शुक्र अपने आप खराब हो जायेगा। गुरु के पीछे बुध लगा हुआ है यानी बुद्धि को सही प्रयोग में लाया गया है तो गुरु अपना सही काम करेगा,यह थी साधारण रूप में दिनो की समीक्षा। इस समीक्षा को अगर उदाहरणों के रूप में प्रकट करें तो इस प्रकार से प्रकट होगा:-बुद्धि को सही रूप से प्रकट करने के बाद गुरु यानी समबन्ध को सही बनाया गया है तो शुक्र यानी पत्नी उस सम्बन्ध को निभाकर शनि यानी अच्छे कर्म करेगी,और जब अच्छे कर्म होंगे तो सूर्य यानी पैदा होने वाली संतान भी सूर्य यानी पुत्र और चन्द्र यानी पुत्री अपने अपने अनुसार सही होंगे,और वे अच्छे अच्छे पराक्रम पैदा करने वाले होंगे उनकी बुद्धि भी सही होगी,और वे भी गुरु की सम्बन्ध वाली नीति को सही लेकर चलेंगे।
बुध को सही रूप से प्रकट नही किया गया है तो सम्बन्ध भी सही नही बनेगा,सम्बन्ध सही नही बनेगा तो वह वापस जहां से शुरु हुये थे वहीं जाकर पटक देगा,बुध से पीछे का दिन मंगल है,मंगल की सिफ़्त तीन जगह पर पायी जाती है,पहली तो धर्म स्थान में है जहां पर अपने किये गये माइनर पापों के लिये प्रायश्चित किया जा सकता है,दूसरी जगह पुलिस है जहां पापों का प्रायश्चित नही करने पर भी करवा लिया जाता है और सीधा जेल का रास्ता दिखा दिया जाता है वहां बैठ कर अपने पापों का प्रायश्चित आराम से करते रहो,तीसरा स्थान अस्पताल का होता है,डाक्टर पेट भी फ़ाडेगा और पेट फ़ाडने का धन भी लेगा,अथवा अपने ही घर पर उसका प्रायश्चित मिलेगा,डकैत आयेगा वह पेट भी फ़ाडेगा और धन भी ले जायेगा,अथवा रास्ते में प्रायश्चित करना पडेगा,एक्सीडेन्ट होगा अस्पताल जाना पडेगा,धन भी जायेगा और प्रायश्चित भी करना होगा,अगर किसी प्रकार से बुद्धि ने अपनी जगह सही नही प्राप्त की तो डाक्टर बजाय दाहिने हाथ के बायें हाथ का आपरेशन कर देगा,और भी बुद्धि ने काम नही किया तो वह सही किडनी को खराब और खराब को सही बताकर ऊपर का रास्ता दिखा देगा,इसलिये सबसे पहले अपनी बुद्धि को सुधारना जरूरी है तब दिनों के नाम लेने और दिनो को गिनने का फ़ल सही मिलेगा। मित्रों आगे हम बात करेंगे कि सृष्टि कैसे बनीं हमारे वेद क्या कहते हैं। आगे हमारे ऋषि मुनि की बानी क्या कहती है हमारे पुराणों में क्या लिखा है उन सब पर मैं आपको बताने की कोशिश करूंगा ताकि जो हमारा सनातन धर्म है हिंदू धर्म है। उसके बारे में ज्यादा से ज्यादा लोगों को ज्ञान प्राप्त हो क्योंकि ज्ञान बांटने से ही वड़ता है, इसलिए अगर आपके पास भी कोई ऐसी जानकारी है तो आप जरूर शेयर करें, धन्यवाद मित्रों

लाल का किताब के अनुसार मंगल शनि

मंगल शनि मिल गया तो - राहू उच्च हो जाता है -              यह व्यक्ति डाक्टर, नेता, आर्मी अफसर, इंजीनियर, हथियार व औजार की मदद से काम करने वा...