शनिवार, 13 मई 2017

नीच ग्रहों का डरमित्रों आप सब ने सुना होगा कुंडली दिखवाते समय ज्योतिषी महाराज बोलते है अपनी कुंडली में फला फला ग्रह नीच का है या उच्च का है, नीच ग्रह से मतलब है की उस ग्रह में ताकत कम है।मतलब ग्रह कमजोर है.दरअसल नीच के ग्रह को लेकर अधिक्तर ज्योतिष अक्सर लोगों को बहुत ही भयमित कर देते हैं। यह सच भी है कि नीचस्थ ग्रह जातक को अक्सर परेशानी में डाल देता है। लेकिन कई छुटभैये ज्योतिषों को यह पता नहीं होता कि कई बार कुंडली में स्वयं ग्रहों की स्थिति के कारण नीच भंग योग बनता है। ऐसे योग के कारण ग्रह की नीचता स्वयं ही समाप्त हो जाती है। और कभी-कभी तो यह नीचता भंग होकर राजयोग की तरह प्रभाव देता है। लेकिन पूजा, पाठ, अनुष्ठान या उपाय के नाम पर पैसा ऐंठने वाले लोग नीचस्थ ग्रह का सिर्फ भय दिखाते हैं। एक सच तो यह भी है कि ज्योतिष के नाम पर धंधा करने वाले कइयों को खुद पता नहीं होता कि कुंडली में नीच भंग करने वाले योग भी बनता है। या बन सकता है। ऐसे में नाहक ही सलाह लेने गये लोगों को डरना पड़ता है और कभी-कभी उपाय के नाम पर अनावश्यक खर्च करना पड़ता है।ग्रह कब नीच की स्थिति में होता है और कैसे उसकी नीचता भंग होती है। सूर्य तुला राशि में, चंद्रमा वृश्चिक राशि में, मंगल कर्क राशि गुरु मकर राशि, बुध मीन राश में, शुक्र कन्या राशि में नीचस्थ माना गया है। इसके साथ राहु मीन राशि, धनु राशि और वृश्चिक राशि में तथा ठीक इसके विपरित राशियों कन्या, मिथुन और वृष राशि में केतु की उपस्थिति को नीच माना गया है। कुंडली में आखिर ऐसी क्या स्थिति बनती है कि ग्रहों की नीचता भंग होकर वह शुभ फल देने लगता है। खास बात ये है कि अगर ग्रहों का नीचत्व भंग होता है तो वह ग्रह निर्बल हो जाता है और जिस राशि में वह अवस्थित होता है उस राशि स्वामी को दो गुणा बल भी मिलता है जिससे वह अपने भावों के फल में वृद्धि भी करता है।किसी ग्रह की नीचता तब बड़ी आसानी से भंग हो जाती है जब कुंडली में उस नीच राशि का स्वामी लग्न या चंद्रमा से केंद्र में अवस्थित हो। दूसरी स्थिति में नीचत्व तब भंग होता है जब नीच राशि का स्वामी और उसी के उच्च राशि स्वामी परस्पर एक-दूसरे से केन्द्र में हों। यह भी माना गया है कि नीच ग्रह अगर लग्न और चंद्र से केन्द्र में अवस्थित हो तो भी ग्रहों का नीचत्व भंग हो जाता है। अष्टमेश ग्रह को नीचत्व का दोष स्वयं भंग हो जाता है। और नीच ग्रह को उसके उच्च राशि स्वामी अगर पूर्ण दृष्टि देख रहा है।इन स्थितियों में ग्रहों की नीचता स्वयं भंग हो जाती है। इसलिए ग्रहों की नीच राशि में बैठे रहने से घबराना या हड़बड़ाना नहीं चाहिए बल्कि बारिकी से कुंडली में यह देखने की जरूरत होती है कि कहीं नीच भंग योग है कि नहीं​ है। दूसरी बात लोगों के मन में उच्च तथा नीच राशियों में स्थित ग्रहों को लेकर एक प्रबल धारणा बनी हुई है कि अपनी उच्च राशि में स्थित ग्रह सदा शुभ फल देता है तथा अपनी नीच राशि में स्थित ग्रह सदा नीच फल देता है। उदाहरण के लिए शनि ग्रह को तुला राशि में स्थित होने से अतिरिक्त बल प्राप्त होता है तथा इसीलिए तुला राशि में स्थित शनि को उच्च का शनि कह कर संबोधित किया जाता है और अधिकतर ज्योतिषियों का यह मानना है कि तुला राशि में स्थित शनि कुंडली धारक के लिए सदा शुभ फलदायी होता है।किंतु यह धारणा एक भ्रांति से अधिक कुछ नहीं है तथा इसका वास्तविकता से कोई सरोकार नहीं है और इसी भ्रांति में विश्वास करके बहुत से ज्योतिष प्रेमी जीवन भर नुकसान उठाते रहते हैं क्योंकि उनकी कुंडली में तुला राशि में स्थित शनि वास्तव में अशुभ फलदायी होता है तथा वे इसे शुभ फलदायी मानकर अपने जीवन में आ रही समस्याओं का कारण दूसरे ग्रहों में खोजते रहते हैं तथा अपनी कुंडली में स्थित अशुभ फलदायी शनि के अशुभ फलों में कमी लाने का कोई प्रयास तक नहीं करतेप्रत्येक ग्रह को किसी एक राशि विशेष में स्थित होने से अतिरिक्त बल प्राप्त होता है जिसे इस ग्रह की उच्च की राशि कहा जाता है। इसी तरह अपनी उच्च की राशि से ठीक सातवीं राशि में स्थित होने पर प्रत्येक ग्रह के बल में कमी आ जाती है तथा इस राशि को इस ग्रह की नीच की राशि कहा जाता है। उदाहरण के लिए शनि ग्रह की उच्च की राशि तुला है तथा इस राशि से ठीक सातवीं राशि अर्थात मेष राशि शनि ग्रह की नीच की राशि है तथा मेष में स्थित होने से शनि ग्रह का बल क्षीण हो जाता है। इसी प्रकार हर एक ग्रह की 12 राशियों में से एक उच्च की राशि तथा एक नीच की राशि होती है।किंतु यहां पर यह समझ लेना अति आवश्यक है कि किसी भी ग्रह के अपनी उच्च या नीच की राशि में स्थित होने का संबंध केवल उसके बलवान या बलहीन होने से होता है न कि उसके शुभ या अशुभ होने से। तुला में स्थित शनि भी कुंडली धारक को बहुत से अशुभ फल दे सकता है जबकि मेष राशि में स्थित नीच राशि का शनि भी कुंडली धारक को बहुत से लाभ दे सकता है। इसलिए ज्योतिष में रूचि रखने वाले लोगों को यह बात भली भांति समझ लेनी चाहिए कि उच्च या नीच राशि में स्थित होने का प्रभाव केवल ग्रह के बल पर पड़ता है न कि उसके स्वभाव पर।शनि नवग्रहों में सबसे धीमी गति से भ्रमण करते हैं तथा एक राशि में लगभग अढ़ाई वर्ष तक रहते हैं अर्थात शनि अपनी उच्च की राशि तुला तथा नीच की राशि मेष में भी अढ़ाई वर्ष तक लगातार स्थित रहते हैं। यदि ग्रहों के अपनी उच्च या नीच राशियों में स्थित होने से शुभ या अशुभ होने की प्रचलित धारणा को सत्य मान लिया जाए तो इसका अर्थ यह निकलता है कि शनि के तुला में स्थित रहने के अढ़ाई वर्ष के समय काल में जन्में प्रत्येक व्यक्ति के लिए शनि शुभ फलदायी होंगे क्योंकि इन वर्षों में जन्में सभी लोगों की जन्म कुंडली में शनि अपनी उच्च की राशि तुला में ही स्थित होंगे। यह विचार व्यवहारिकता की कसौटी पर बिलकुल भी नहीं टिकता क्योंकि देश तथा काल के हिसाब से हर ग्रह अपना स्वभाव थोड़े-थोड़े समय के पश्चात ही बदलता रहता है तथा किसी भी ग्रह का स्वभाव कुछ घंटों के लिए भी एक जैसा नहीं रहता, फिर अढ़ाई वर्ष तो बहुत लंबा समय है।इसलिए ग्रहों के अपनी उच्च या नीच की राशि में स्थित होने का मतलब केवल उनके बलवान या बलहीन होने से समझना चाहिए न कि उनके शुभ या अशुभ होने से। मैने अपने ज्योतिष अभ्यास के कार्यकाल में ऐसी बहुत सी कुंडलियां देखी हैं जिनमें अपनी उच्च की राशि में स्थित कोई ग्रह बहुत अशुभ फल दे रहा होता है क्योंकि अपनी उच्च की राशि में स्थित होने से ग्रह बहुत बलवान हो जाता है, इसलिए उसके अशुभ होने की स्थिति में वह अपने बलवान होने के कारण सामान्य से बहुत अधिक हानि करता है। इसी तरह मेरे अनुभव में ऐसीं भी बहुत सी कुंडलियां आयीं हैं जिनमें कोई ग्रह अपनी नीच की राशि में स्थित होने पर भी स्वभाव से शुभ फल दे रहा होता है किन्तु बलहीन होने के कारण इन शुभ फलों में कुछ न कुछ कमी रह जाती है। ऐसे लोगों को अपनी कुंडली में नीच राशि में स्थित किन्तु शुभ फलदायी ग्रहों के रत्न धारण करने से बहुत लाभ होता है क्योंकि ऐसे ग्रहों के रत्न धारण करने से इन ग्रहों को अतिरिक्त बल मिलता है तथा यह ग्रह बलवान होकर अपने शुभ फलों में वृद्धि करने में सक्षम हो जाते हैं। मित्रों अब आप यह देखें आपकी कुंडली में कौन सा ग्रह कारक है शुभ है जो भाव से संबंधित है लेकिन वह अस्त है या नीच है या बलहीन है पर कारक है या योग कारक है तो रतन घारन करें फिर भी किसी अच्छे ज्योतिषी से अपनी कुंडली दिखाकर यह निश्चित करें आज इतना ही आचार्य राजेश 07597718725

1 टिप्पणी:


  1. आपने बहुत अच्छी जानकारी दी है पर क्या हमारी कुंडली में मारक गृह ही होते है जो हमेशा खराब फल ही देते है.
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