रविवार, 16 सितंबर 2018

Malavya yog) मालव्य योग

मालव्य योग को यदि लक्ष्मी योगों का शिरोमणी कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं। मालव्य योग की प्रशंसा सभी ज्योतिष ग्रन्थों में की गई है। यह योग शुक्र से बनता है तथा शुक्र को लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। अतः लक्ष्मी योग के रूप मेें इसकी महता और भी बढ़ जाती है।

मालव्य योग (Malavya yog) मालव्य योग का निर्माण शुक्र करते हैं जब शुक्र वृषभ और तुला जो कि स्वराशि हैं या फिर मीन जो कि इनकी उच्च राशि है में होकर प्रथम, चतुर्थ, सप्तम या फिर दसवें भाव में विराजमान हों तो यह योग मालव्य महापुरुष योग कहलाता है। मित्रों कोई भी योग तब बलवान होता है जब वह ग्रह जिससे योग बन रहा हो बलि हो लग्न से शुभ हो शुभ भाव शुभ राशि और वह ग्रह पीड़ित ना हो  पूर्ण बली हों तो ही उत्‍कृष्‍ट फल मिलते हैं। दूसरे ग्रहों का प्रभाव आने पर फल में उच्‍चता अथवा न्‍यूनता देखी जाती है। ऐसे में पंचमहापुरुष योगों में अधिकतम फल तब गिनना चाहिए जब बताया गया योग पूरी तरह दोषमुक्‍त हो। इन पांचों योगों में अगर मंगल आदि के साथ सूर्य एवं चंद्रमा भी हो तो जातक राजा नहीं होता, केवल उन ग्रहों की दशा में उसे उत्‍तम फल मिलते हैं। इन पांच योगों में से यदि किसी की कुण्‍डली में एक योग हो तो वह भाग्‍यशाली दो हो तो राजा तुल्‍य, तीन हो तो राजा, चार हो तो राजाओं में प्रधान राजा और यदि पांचों हो तो चक्रवर्ती राजा होता है। इस कथन में यह स्‍पष्‍ट नहीं होता कि ये पांचों योग किस प्रकार मिल सकते हैं। क्योंकि शुक्र ग्रह से बनता है इसलिए उस जातक में शुक्र ग्रह के शुभ गुण आएंगे ऐसे  योग में जन्‍म लेने वाला जातक सुंदर, कोमल एवं कांतियुक्‍त आकृति का होता है। उसके शरीर के अंग सुडौल, भृकुटी सुंदर, काले केश, ग्रीवा शंख के समान, रक्‍त श्‍यामवर्ण, कमर पतली।मालव्य योग में जन्म लेने वाले व्यक्ति भाग्यशाली, धैर्यवान, आकर्षित एवं ऐश्वर्य दायक जीवन जीने वाले, बहुत जिंदादिल, अच्छे से अच्छी गाड़ी, मकान व सभी सांसारिक सुखों को भोगने वाले सुगन्धित द्रव्यों के शौकिन, घूमने के शौकिन, कम प्रयासों के ही जीवन में सारे भोग इन्हें प्राप्त होते है। इस योग वाले लक्ष्मीवान से भी ज्यादा वैभवान होते है। इनके चेहरे पर विलक्षण, सौम्य आभा रहती है। सिनेपटल के राजकपूर की कुण्डली में भी तुला राशि में सुख, वैभव के भाव में विराजित शुक्र मालव्य योग घटित कर विराजित है। अद्वितीय प्रतिभा के धनी राजकपूर ने हिन्दी सिनेमा को नए आयाम दिए। उनके आकर्षक व चुम्बकीय व्यक्तित्व पर मालव्य योग का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है। इसके अलावा भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, स्मिता पाटील, तब्बू आदि अनेक प्रसिद्ध हस्तियों की कुण्डली में यह योग घटित हो रहा है।मालव्य योग की प्रचलित परिभाषा का यदि ध्यानपूर्वक अध्ययन करें तो यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि लगभग हर 12वीं कुंडली में मालव्य योग का निर्माण होता है। कुंडली में 12 घर तथा 12 राशियां होती हैं तथा इनमें से किसी भी एक घर में शुक्र के स्थित होने की संभावना 12 में से 1 रहेगी तथा इसी प्रकार 12 राशियों में से भी किसी एक राशि में शुक्र के स्थित होने की संभावना 12 में से एक ही रहेगी। इस प्रकार 12 राशियों तथा बारह घरों के संयोग से किसी कुंडली में शुक्र के किसी एक विशेष राशि में ही किसी एक विशेष घर में स्थित होने का संयोग 144 में से एक कुंडलियों में बनता है जैसे कि लगभग प्रत्येक 144वीं कुंडली में शुक्र पहले घर में मीन राशि में स्थित होते हैं। मालव्य योग के निर्माण पर ध्यान दें तो यह देख सकते हैं कि कुंडली के पहले घर में शुक्र तीन राशियों वृष, तुला तथा मीन में स्थित होने पर मालव्य योग बनाते हैं। इसी प्रकार शुक्र के किसी कुंडली के चौथे, सातवें अथवा दसवें घर में भी मालव्य योग का निर्माण करने की संभावना 144 में से 3 ही रहेगी तथा इन सभी संभावनाओं का योग 12 आता है जो कुल संभावनाओं अर्थात 144 का 12वां भाग है जिसका अर्थ यह हुआ कि मालव्य योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार लगभग हर 12वीं कुंडली में इस योग का निर्माण होता है ज्योतिष मे

 वर्णित एक अति शुभ तथा दुर्लभ योग है तथा इसके द्वारा प्रदान किए जाने वाले शुभ फल प्रत्येक 12वें व्यक्ति में देखने को नहीं मिलते जिसके कारण यह कहा जा सकता है कि केवल शुक्र की कुंडली के किसी घर तथा किसी राशि विशेष के आधार पर ही इस योग के निर्माण का निर्णय नहीं किया जा सकता तथा किसी कुंडली में मालव्य योग के निर्माण के कुछ अन्य नियम भी होने चाहिएं। किसी भी अन्य शुभ योग के निर्माण के भांति ही मालव्य योग के निर्माण के लिए भी यह अति आवश्यक है कि कुंडली में शुक्र शुभ हों क्योंकि कुंडली में शुक्र के अशुभ होने से शुक्र के उपर बताए गए विशेष घरों तथा राशियों में स्थित होने पर भी मालव्य योग नहीं बनेगा अपितु इस स्थिति में शुक्र कुंडली में किसी गंभीर दोष का निर्माण कर सकते हैं। उदाहरण के लिए किसी कुंडली में अशुभ शुक्र यदि वृष, तुला अथवा मीन राशि में कुंडली के पहले घर में स्थित हो तो ऐसी कुंडली में माल्वय योग नहीं बनेगा अपितु इस कुंडली में अशुभ शुक्र दोष बना सकता है जिसके कारण जातक के चरित्र, व्यक्तित्व तथा व्यवसाय आदि पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है जिसके चलते इस दोष के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातक भौतिक सुखों की चरम लालसा रखने वाले होते हैं तथा अपनी इन लालसाओं की पूर्ति के लिए ऐसे जातक किसी अवैध अथवा अनैतिक कार्य में सलंग्न हो सकते हैं जिसके कारण इन्हें समय समय पर मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता है तथा समाज में अपयश भी मिल सकता है। इसी प्रकार कुंडली के उपर बताए गए अन्य घरों में स्थित अशुभ शुक्र भी मालव्य योग न बना कर कोई दोष बना सकता है जो अपनी स्थिति और बल के अनुसार जातक को अशुभ फल दे सकता है। इसलिए किसी कुंडली में मालव्य योग बनाने के लिए शुक्र का उस कुंडली में शुभ होना अति आवश्यक है।शुक्र की कुंडली के किसी घर तथा किसी राशि विशेष के आधार पर ही इस योग के निर्माण का निर्णय नहीं किया जा सकता तथा किसी कुंडली में मालव्य योग के निर्माण के कुछ अन्य नियम भी होने चाहिएं। किसी भी अन्य शुभ योग के निर्माण के भांति ही मालव्य योग के निर्माण के लिए भी यह अति आवश्यक है कि कुंडली में शुक्र शुभ होंऐसे पुरुष जातक स्त्रियों को तथा स्त्री जातक पुरुषों को बहुत पसंद आते हैं। माल्वय योग के विशेष प्रभाव में आने वाले कुछ जातक अपनी सुंदरता तथा कलात्मकता के चलते सिनेमा जगत, माडलिंग आदि क्षेत्रों में भी सफलता प्राप्त करते हैं। माल्वय योग के प्रबल तथा विशेष प्रभाव में आने वालीं स्त्रियां बहुत सुंदर तथा आकर्षक होतीं है क्योंकि कुंडली में शुक्र के अशुभ होने से शुक्र के उपर बताए गए विशेष घरों तथा राशियों में स्थित होने पर भी मालव्य योग नहीं बनेगा अपितु इस स्थिति में शुक्र कुंडली में किसी गंभीर दोष का निर्माण कर सकते हैं। उदाहरण के लिए किसी कुंडली में अशुभ शुक्र यदि वृष, तुला अथवा मीन राशि में कुंडली के पहले घर में स्थित हो तो ऐसी कुंडली में माल्वय योग नहीं बनेगा अपितु इस कुंडली में अशुभ शुक्र दोष बना सकता है जिसके कारण जातक के चरित्र, व्यक्तित्व तथा व्यवसाय आदि पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है जिसके चलते इस दोष के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातक भौतिक सुखों की चरम लालसा रखने वाले होते हैं तथा अपनी इन लालसाओं की पूर्ति के लिए ऐसे जातक किसी अवैध अथवा अनैतिक कार्य में सलंग्न हो सकते हैं जिसके कारण इन्हें समय समय पर मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता है तथा समाज में अपयश भी मिल सकता है। इसी प्रकार कुंडली के उपर बताए गए अन्य घरों में स्थित अशुभ शुक्र भी मालव्य योग न बना कर कोई दोष बना सकता है जो अपनी स्थिति और बल के अनुसार जातक को अशुभ फल दे सकता है। इसलिए किसी कुंडली में मालव्य योग बनाने के लिए शुक्र का उस कुंडली में शुभ होना अति आवश्यक है।यह योग जातक को राजयोग कारक ग्रहो की तरह फल देता है।मालव्य योग बनाये हुए शुक्र की महादशा, किसी अनुकूल ग्रह की महादशा में शुक्र की अन्तर्दशा सुख, उन्नति, अच्छे सांसारिक उपभोग कराती है।जातक समाज में उच्च स्तर का जीवन जीता है।मालव्य योग के साथ अन्य शुभ योग और ग्रह अनुकूल हो तब इस योग के शुभ फल देने की ताकत ओर ज्यादा बढ़ जाती है।शुक्र खुद केंद्र या त्रिकोण का स्वामी होकर केंद्र या त्रिकोण त्रिकोण में बैठ जाये तब इस योग के फल कई ज्यादा अच्छी तरह से मिलते है।इस योग में शुक्र अस्त, बहुत ज्यादा पाप ग्रहो से पीड़ित नही होना चाहिए, न ही यह राशि अंशो में बहुत कम या आखरी अंशो पर होना चाहिए।नवमांश कुंडली में भी शुक्र नीच या पीड़ित नही होना चाहिए वरना लग्न कुंडली में मालव्य योग बनने पर भी शुक्र ठीक तरह से मालव्य योग के फल नही दे पायेगा।शुक्र मालव्य योग बनाकर वर्गोत्तम हो जाय तब इसके फल सोने पर सुहागा की तरह मिलते है। लेखक आचार्य राजेश

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