शुक्रवार, 31 दिसंबर 2021

कभी भी चणा कभी मुट्ठी भर चना

घी का रूप दूध से बनता है पहले दूध को जमाया जाता है फ़िर दही बनाकर उसे बिलोकर दूध का सार रूप घी को निकाला जाता है.चौथे भाव का रूप दूध से है तो दूध का बदला हुआ रूप नवे भाव से है और नवे भाव का सार घी रूप मे बारहवा भाव है,बारहवा भाव हकीकत मे राहु से जोड कर देखा जाता है और राहु जो अद्रश्य रूप से अपनी शक्ति को रखता है कहने को तो घी तरल पदार्थ है लेकिन वह भोजन मे लेने से शरीर को तन्दुरुस्त बनाता है,चौथे भाव के राहु की नजर पहले तो अष्टम पर भी होती है फ़िर नवी नजर बारहवे भाव पर भी होती है इस भाव का राहु अगर राजी हो गया तो घी ही पैदा करता जाता है और राजी नही है तो वह छठे भाव से कडी मेहनत करवाने के बाद केवल मुट्ठी भर चने खिलाकर ही पेट पालने के लिये अपनी शक्ति को दे पाता है वैसे चना भी शनि के लिये कहा जाता है राहु शनि जब आमने सामने हो जाते है तो दसवे भाव का शनि जातक को कडी मेहनत के बाद भी मेहनत का फ़ल सही नही दे पाता है.

शुक्रवार, 24 दिसंबर 2021

दिन का स्वामी सूर्य रात का मालिक शनि

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दिन का स्वामी सूर्य रात का स्वामी शनि
दिन को कामकाज करना चाहिये रात को सोना चाहिये
सूर्य दिन का स्वामी है,शनि रात का स्वामी है,सूर्य शरीर मे फ़ुर्ती और ताकत को भरने वाला है और जब शरीर कार्य करते समय थक जाता है तो शनि शरीर को आराम देने के लिये रात को प्रदान करता है,दिन की थकान को रात को सोने बाद समाप्त हो जाती है। दिन के तीन भाग मुख्य माने जाते है,पहला दिन का उदय होना दूसरा दिन का मध्य जिसे दोपहर कहते है और तीसरा दिन की समाप्ति का समय जिसे सन्ध्या काल काल कहा जाता है,दिन के उदय होने और दिन के समाप्त के समय को शनि और सूर्य की मिलन की सीमा में लाते है,सुबह को शनि जीव को सूर्य को सौंपता है,और सन्ध्या को सूर्य जीव शनि को सौंपता है। शनि के द्वारा जातक के अन्दर जो तत्व भरे जाते है उन्हे सूर्य उपभोग में लेता है और दिन को जो तत्व शरीर मे भरे जाते है वे शनि रात को उपयोग करता है। जैसे दिन को किये जाने वाले कार्यों से शरीर मे फ़ुर्ती रहती है और शाम होते होते शरीर की ककक थक जाती है,थकी हुयी ग्रंथियों की रूप रेखा और कार्य करने की क्षमता को अगर थका हुआ ही रखा जाये तो जीव दूसरे दिन कार्य करने के लायक ही नही रहेगा,इसलिये सूर्य शनि को शरीर सौप देता है,शनि उन थकी हुयी ग्रंथियों को अपनी शक्ति से फ़िर से संभालता है जो ग्रंथिया निढाल होकर कार्य करने से बिलग हो गयी होती है उन्हे शरीर से शनि के तत्वों को प्रदान किया जाता है जैसे हाथ का थक जाना और जब रात होती है तो शनि की आराम करने वाली अवस्था में उस हाथ को कार्यविहीन करने के बाद जमे हुये खून के थक्के को एन्जाइम के द्वारा फ़िर हटाना और हाथ के अन्दर दुबारा से स्फ़ूर्ति को भरना जो नशे काम नही कर पाती है खून की चाल से दुबारा से काम करने के काबिल बनाने का काम शनि का ही होता है।इस प्रकार से शनि जब कार्य करने की शक्ति को पूरा करता है तो सूर्य सुबह को तरोताजा शरीर से कार्य करवाने के लिये अपने अनुसार नयी सोच और नयी रास्ता देता है,जिससे जीव अपने पालन पोषण के लिये संसार के कार्य करने के लिये और नये निर्माण के लिये अपने शरीर को संसार के हवाले कर देता है शाम तक वह पूरी शक्ति से कार्य करता है और दुबारा से शनि के पास चला जाता है इस प्रकार से जीव के क्रम को शनि और सूर्य अपने अपने अनुसार पालते है,जैसे ही जीव की शक्ति का खात्मा हो जाता है जीव की गति को दूसरे जीवन में ले जाने के लिये अन्य ग्रह अपना अपना कार्य करने के बाद शांति देते है।जन्म लेना ही सूर्य है और मृत्यु को प्राप्त करना ही शनि है
तमसो मा ज्योतिर्गमय कहावत के अनुसार अन्धकार से निकलकर प्रकाश में जाने का उदाहरण दिया गया है,बन्द आंखों को खोलने के बाद जब जीव को चेतना मिलती है तो उसे प्रकाश की प्राप्ति होती है। जैसे ही प्रकाश की प्राप्ति होती है जीव अपनी चेतना को जगत के हित के लिये उपयोग में लाने की क्रियायें करने लगता है,इन क्रियाओं में जो शक्ति मिलती है वह दूसरों के हित के लिये ही मानी जाती है,देखने में भले ही सूर्य के सामने किसी का अहित किया जाता हो लेकिन उसे किसी न किसी प्रकार से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हित ही मिलता है। जीव अपनी शक्ति को प्राप्त करने के लिये तरह तरह की हिंसा को करता है,जैसे एक शेर हिरन को मारता है,हिरन का रूप शेर के लिये भोजन के लिये होता है उसी हिरन के लिये वनस्पति भोजन के रूप में होती है,वनस्पति के लिये भोजन के रूप में धरती के अन्दर के तत्व जो कीणों मकोडों और सडे हुये जीवाश्मों के रूप में होते है,जो कृषि विज्ञान में ह्यूमस के रूप में माने जाते है होते है कीणों मकोडों के लिये दूसरे तरह की प्राणी जगत को भोजन के रूप में प्रयोग किया जाता है,का भोजन के रूप में प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार से देखने में तो शेर हिरन के लिये हिंसक होता है लेकिन हिरन भी वनस्पति के लिये हिंसक होता है,यह क्रम लगातार चला करता है,सूर्य अपनी शक्ति से प्रकृति को पैदा करता है और प्रकृति अपनी शक्ति से जीवों को पैदा करती है जीवन चक्र को चलाने के लिये एक दूसरे की हिंसा को करती है,उस हिंसा को समझ से दूर रखने के लिये शनि का प्रयोग होता है,कारण अगर सामने हर जीव की हिंसा होती है और शनि के द्वारा उसे दुबारा से पूर्ण नही किया जाता है तो दूसरे दिन जीव के लिये आहार मिलना नही होगा और संसार चक्र रुक जायेगा। इस नही रुकने देने की क्रिया को पूरा करने के लिये शनि और सूर्य दोनो ही अपनी अपनी गति को निर्बाध रूप से चलाये जा रहे है। प्रकट करना सूर्य का काम होता है और समाप्त करना शनि का कार्य होता है,जो प्रकट होता है वह जन्म है और जो समाप्त होता है वह मृत्यु है।

जीवन की गति गुरु के द्वारा दिये गये मूल्य पर निर्भर है
सूर्य के द्वारा जीवन को दिया जाता है लेकिन गुरु उस जीव का मूल्य प्रदान करता है,जैसे जब जीव ने जन्म लिया उस समय जीव के शरीर को पूर्ण करने वाले कौन कौन से तत्व थे जो शरीर को पूर्णता और कमी की सीमा को दर्शाते है,जीव जन्म लेने के बाद कितनी निर्माण करने की ताकत को रखता है वह अपनी बुद्धि को कैसे प्रयोग कर सकता है उसे जो शक्ति मिली है उसे वह कहां और कैसे प्रयोग कर सकता है,उसके द्वारा प्रयोग करने वाली शक्ति का मूल्य विकास के लिये किया जाता है तो जीव का मूल्य बढ जाता है एक जीव का कार्य दूसरे जीवों केलिये बहुत समय तक और बहुत प्रकार से फ़ायदा देने वाला होता है तो जीव की चाहत बढ जाती है और जीव का मूल्य बढ जाता है उस जीव की रक्षा करने के लिये प्रकृति अपने अपने प्रकार से सहायता करती है,जीव को शक्ति से जीव को बुद्धि से और जीव को प्राकृतिक रूप से अपनी सहायता करने की हिम्मत प्रकृति देती है।

गुरु के साथ सूर्य का होना जीव का चेतन होना और दिन का प्रकार माना जाता है
गुरु के साथ जब सूर्य का प्रकट रूप मिलता है तो जीव चेतन अवस्था के कारकों में आजाता है जीव के अन्दर आत्मा का संयोग मिल जाता है जीव की बुद्धि प्रखरता की सीमा से ऊपर चली जाती है,वह दूसरों के हित और अनहित की बात को सोचने और करने लगता है उसे केवल अपने शरीर की सन्तुष्टि से लगाव नही होकर दूसरे की भलाई के लिये भी अपनी गति अपने आप ही बनानी पडती है,उसे उस भलाई करने के लिये अलग अलग कारक अपनी अलग अलग शक्ति से सहायता भी करने लगते है। जब तक जीव चेतन अवस्था में अपने प्रखर ज्ञान को प्रकट करने के बाद उस ज्ञान को प्रयोग में लाने लगता है उसका दिन माना जाता है,जैसे ही तामसी कारणों से जीव अपने ज्ञान को अज्ञान के रूप में प्रकट करने लगता है जीव की रात मानी जाती है।

शुक्रवार, 17 दिसंबर 2021

सूर्य की अष्टम द्रिष्टि

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सूर्य की अष्टम द्रिष्टि भी उसी तरह से मानी जाती है जैसे बाकी के ग्रहों की लेकिन साधारण ज्योतिष मे इसका फ़लकथन नही किया गया है,लालकिताब के अनुसार यह कथन मिलता है कि किसी भी भाव की लगन अपने से सप्तम से मंत्रणा करती है अष्टम से देखती है और ग्यारहवे से नतीजा देती है,यानी लगन सिंहासन है सप्तम मंत्री है अष्टम आंखे है ग्यारहवा चलने वाले पैर माने जाते है उसी प्रकार से गुरु के लिये भी एक बात जरूरी मानी जाती है कि वह वह अगर नीच है और नीच भाव को भी अपनी द्रिष्टि से देखता है तथा उस नीच का फ़ल भी तब और खराब हो जाता है जब गुरु एक चोर भाव मे बैठ कर चोरी से ग्यारहवे भाव को देखे,(छठे से छठा) और इस तरह की बाते तब और भी समझ मे आती है कि गुरु जो सम्बन्ध का कारक है और वह चोरी से अपने साथ काम करने वाले लोगो से मित्रता को बढाकर उनसे अपनी अनैतिकता को पूर्ण करता है तो वह बहुत ही खतरनाक हो जाता है.सूर्य और चन्द्रमा के लिये भी माना जाता है कि वे जिस स्थान पर होते है उस स्थान से अपने अष्टम को उखाड कर फ़ेंकने के लिये और अपने से दसवे स्थान के साथ विश्वासघात करने के लिये योजना जरूर बनाते है बशर्ते कोई उनका दुश्मन राहु केतु शुक्र शनि उन्हे रोक नही रहा हो तो.

सोमवार, 13 दिसंबर 2021

Tantra (तंत्र क्या है)


तंत्र- भी इसी तरह एक टेक्नोलॉजी है, लेकिन एक अलग स्तर की, पर है भौतिक ही। यह सब करने के लिए इंसान अपने शरीर, मन और ऊर्जा का इस्तेमाल करता है टेक्नोलॉजी चाहे जो हो, हम अपने शरीर, मन और ऊर्जा का ही इस्तेमाल करते हैं। आम तौर पर हम अपनी जरूरतों के लिए दूसरे पदार्थों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन एक mobile फोन या किसी टेक्नोलॉजी के उत्पादन के लिए जिन बुनियादी पदार्थों का उपयोग होता है, वे शरीर, मन और ऊर्जा ही होते हैं
आज जबकि तंत्र या तांत्रिक को पढे लिखे लोग धोखा,पाखण्ड तथा अन्धविश्वास कहते है तो तन्त्र प्रयोग लिखने का औचित्य क्या है? आप किसी भी चीज को दिखाना चाहते है या उसे समझाना चाहते है, यदि वह व्यक्ति उस विषय की गहराई या उस चीज की विशेषता को नहीं जानता इसलिये वह आपका आपकी चीज का तथा आपकी बात का मजाक उडाता है,व्यंग बाण छोडता है तथा अन्धविश्वास कहता है,यही स्थिति पढे लिखे लोगों की हो गयी है,वे अपने अपने विषय के अलावा और कुछ समझने की कोशिश ही नही करते है,उन्हे यह भी पता नही होता है कि वे जब अपनी माँ के पेट में आये होते है उस समय भी दाई ने या डाक्टर ने कोई तंत्र ही किया होता है,अगर दाई या डाक्टर नही होगा तो घर की किसी बढी बूढी महिला के द्वारा तंत्र बताया गया होगा कि इस प्रकार से इतने दिन के पीरियड के समय में बच्चा गर्भ मे आ सकता है,और इतने दिन के पीरियेड के बाद कन्या गर्भ में आ सकती है,इतने दिन के पहले या इतने दिन के बाद गर्भ धारण किया तो बच्चा या तो गर्भपात से गिर जायेगा या पैदा होते ही मर जायेगा,जो लोग तंत्र को नही जानते है वे या तो बच्चों के लिये जीवन भर पछताते रहते है या फ़िर किसी का बच्चा गोद लेकर अपना काम चलाते है,इसके लिये भी अस्पतालों एक फ़र्टिलिटी सेंटर खुल गये है वे आसानी से किसी के वीर्य को किसी के गर्भ में स्थापित कर देते है और एक की जगह दो दो बच्चे जुडवां तक दे देते है। यह सब तंत्र नही है तो क्या है,डाक्टर को दवाई और शरीर विज्ञान का तंत्र आता है उसे आता है कि किस स्थान की कमी है और उस कमी को पूरा करने के लिये कौन सी नश को काट कर या नकली नश को लगाकर काम चलाया जा सकता है,आजकल तो तंत्र के बलबूते पर डाक्टर नकली वाल्व लगाकर दस बारह साल के लिये ह्रदय को चालू कर देते है।
जिस पश्चिमी सभ्यता के पीछे आज के भारतीय लोग दौडे चले जा रहे है,उन लोगों को पता नही था कि भारत में हनुमान जी की पूजा आदि काल से की जाती रही है,वे जब भारत में घूमने के लिये आते तो वे भारत में मंगलवार के दिन हनुमान जी के मंदिर में जाकर लोगों को चिढाया करते थे,Oh ! here is monkey Go? क्या बात है यहां तो बन्दर भी भगवान हैं। जब उन्होने ही मंगल पर वाइकिंग भेजा और जब पहली मंगल की तस्वीर वाइकिंग ने भेजी तो उन्हे यह देखकर महान आश्चर्य हुआ कि जो तस्वीर बंदर के रूप में भारत में पूजी जाती है वह कोई बन्दर की तस्वीर नही होकर "Face of Mars" मंगल का चेहरा है।हमारे यहाँ हनुमान जी की पूजा का महत्व मंगलवार के दिन ही माना जाता है,और मंगल ग्रह की शांति के लिये ही हनुमानजी की पूजा की जाती हैऔर जब भी कोई बाधा आती है तो एक ही दोहा उनकी आराधना के लिये मसहूर माना जाता है,-"लाल देह लाली लसे,और धरि लाललंगूर,बज्र देह दानव दलन जय जय जय कपि शूर",आज जब वैज्ञानिक इस तस्वीर को पा गये है तो उनको आश्चर्य होने लगा है कि यह चेहरा भारत में कैसे पूजा जाने लगा,भारत के लोगों को कैसे पता लगा कि मंगल का चेहरा बन्दर जैसा है,वे बिना किसी यान या विमान के वहाँ कैसे पहुंच गये,जब लोगों को पता लगा कि भारतीयों के पास तांत्रिक विद्या है और उस विद्या से वे किसी भी ग्रह की परिक्रमा आराम से कर लेते है और किसी भी विषय को तंत्र द्वारा आराम समझ सकते है तो उन्हे भारी ग्लानि हुयी,सन दो हजार में मिली फ़ेस आफ़ मार्स की फ़ोटो उन्होने दो हजार दो में इसलिये ही प्रकाशित की थी कि कहीं पूरे विश्व में ही हनुमान जी की आराधना शुरु न हो जाये और जिन लोगों की वे खिल्ली उडाया करते थे वे ही अब उनकी खिल्ली नही उडाने लगें। भारत के अन्दर जो भी संस्कृत और हिन्दी के अक्षर है उनकी कलात्मक रचना ही देवी और देवता का रूप माना गया है,छोटा "अ" अगर सजा दिया जाये तो वह धनुष बाण लेकर खडे हुये व्यक्ति का रूप बन जाता है,शनि जी का रंग काला है और शनि के मंत्र के जाप के समय "शं" बीज का उच्चारण करते है,अगर शं के रूप को सजा दिया जाये तो वह सीधा श्रीकृष्ण भगवान का रूप बन जाता है। इसी प्रकार से "शिव" शब्द को सजाने से भगवान शंकर का रूप बनता है,विष्णु शब्द को सजाने पर वह भगवान विष्णु का रूप बनता है,""क्रीं" शब्द को सजाने पर शेर पर सवार माता दुर्गा का रूप बनता है,आदि रूप आप खुद परख सकते है। जब उन्हे भारत की तंत्र क्रिया पर विश्वास हो गया तो उन्होने भारत से हिन्दी भाषा को ही भारत से गायब करवाने की सोची न रहेगा बांस और न ही बजेगी बांसुरी।

गुरुवार, 9 दिसंबर 2021

मन का राजा चन्द्रमा


चन्द्रमा मन का राजा है,"मन है तो जहान है मन नही है तो शमशान है",यह कहावत चन्द्रमा के लिये बहुत अच्छी तरह से जानी जाती है। पल पल की सोच चन्द्रमा के अनुसार ही बदलती है चन्द्रमा जब अच्छे भाव मे होता है तो वह अच्छी सोच को कायम करता है और बुरे भाव मे जाकर बुरे प्रभाव को प्रकट करता है। लेकिन जब चन्द्रमा कन्या वृश्चिक और मीन का होता है तो अपने अपने फ़ल के अनुसार किसी भी भाव मे जाकर राशि और भाव के अनुसार ही सोच को पैदा करता है। जैसे मेष लगन का चन्द्रमा अगर कर्क राशि मे है तो वह भावनात्मक सोच को ही कायम करेगा अगर वह लगन मे है तो अपनी काया के प्रति भावनात्मक सोच को पैदा करेगा और वृष राशि मे है तो अपने परिवार के लिये धन के लिये और भौतिक साधनो के लिये भावनात्मक सोच को पैदा करेगा वही चन्द्रमा अगर मिथुन राशि का होकर तीसरे भाव मे चला गया है तो वह केवल अपने पहिनावे लिखने पढने और इसी प्रकार की सोच को पैदा करेगा,अष्टम मे है तो वह अपनी भावनात्कम सोच को अपमान होने और गुप्त रूप से प्राप्त होने वाले धन अथवा सम्मान के प्रति अपनी सोच को रखने के साथ साथ वह मौत के बाद के जीवन के प्रति भी अपनी सोच अपनी भावना मे स्थापित कर लेगा। इसी प्रकार से कन्या राशि का चन्द्रमा अगर अच्छे भाव मे है तो वह अच्छी सोच को पैदा करने के लिये सेवा वाले कारणो को सोचेगा और बुरे भाव मे है तो वह केवल चोरी कर्जा करना और नही चुकाना दुश्मनी को पैदा कर लेना और हमेशा घात लगाकर काम करना आदि के लिये ही सोच को कायम रख पायेगा।

गुरुवार, 2 दिसंबर 2021

Solar eclipse (सूर्य) ग्रहण)ओर काल सर्प

Solar eclipse (सूर्य) ग्रहण)ओर काल सर्पSolar eclipse (सूर्य) ग्रहण)ओर काल सर्प Acharya Rajesh:
मित्रो साल 2021का आखिरी ग्रहण सुर्य ग्रहण4 दिसंबर को होने वाला ग्रहण पूर्ण सूर्यग्रहण होगा। यह साल का दूसरा और अंतिम सूर्यग्रहण होगा।
- हिंदू पंचांग की ज्योतिषीय गणना के आधार पर यह सूर्यग्रहण विक्रम संवत 2078 के कार्तिक माह की अमावस्या तिथि पर वृश्चिक राशि और अनुराधा नक्षत्र में लगेगा।
- भारत में इस सूर्य ग्रहण को नहीं देखा जा सकेगा इस कारण से इसका सूतक काल भी मान्य नहीं होगा।क्योकिभारत में इस सूर्य ग्रहण को देखा नहीं जा सकेगा। इसी दिन शनि अमावस्या भी है   जब भी अमावस्या की तिथि शनिवार के आती है इसे शनि अमावस्या कहा जाता है सूर्य ग्रहण सुबह लगभग 11 बजे शुरू हो जाएगा। दोपहर 03 बजकर 07 मिनट पर ग्रहण खत्म हो जाएगा। करीब 01 बजकर 57 मिनट पर यह ग्रहण पूर्ण रूप से चंद्रमा की छाया में रहेगाबीते दो वर्षों में दिसंबर के महीने में सूर्यग्रहण लगता आ रहा है। इस साल दिसंबर में सूर्य ग्रहण की हैट्रिक लगने जा रही है। यानी लगातार 3 वर्षो से दिसंबर में सूर्यग्रहण का संयोग बना रहा है। लेकिन इस बार के सूर्यग्रहण की खास बात यह है कि इस बार सूर्यग्रहण धनु राशि में नहीं बल्कि वृश्चिक शाशि में लगने जा रहा है। इससे पहले के दोनों सूर्यग्रहण धनु राशि में घटित हुए थे। मित्रों 4 दिसंबर को सूर्य ग्रहण होगा औरसूर्य ग्रहण के अगले दिन ही मंगल अपनी राशि वृश्चिक में आकर सूर्य से मिलेंगेओर उसके साथ ही 5 दिसंबर को सभी ग्रह राहु और केतु के बीच में आ जाएंगे जिसको ज्योतिष भाषा में कालसर्प योग कहा जाता है

आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि 2019 में भी ऐसा सूर्य ग्रहण लगा था और उस समय भी कालसर्प योग का निर्माण हुआ था उसके बाद कोरोना वायरस पुरी दुनिया में भयंकर रूप से फैल गया इस वायरस से कई लोगों की जान ले गई इसीलिए दोस्तों अभी भी यह समय काफी दिक्कत वाला कहा जा सकता है इसीलिए हमें जो भी सरकार की तरफ से निर्देश है उसका पालन करते रहना चाहिए मित्रों सूर्य और चंद्र ग्रहण के समय बनने वाली कुंडली का विशेष महत्व दिया गया है। इसमें बताया गया है कि ग्रहण का प्रभाव उन स्थानों पर अधिक होता है जहां वह दृष्टिगोचर यानी दिखाई देते हैं किन्तु गोचर में बन रही विशेष ग्रह स्थिति के कारण ग्रहण का कुछ प्रभाव लगभग सर्वत्र ही दिखाई देता है। अभी हाल ही में 19 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा के दिन पड़ा आंशिक चंद्र ग्रहण भारत में केवल पूर्वोत्तर के कुछ क्षेत्र में आंशिक रूप से दृश्य था, किन्तु इसी दिन ‘कृषि-कानूनों’ को रद्द करने की प्रधानमंत्री मोदी की घोषणा ने देश की राजनीति में बड़ा बदलाव ला दिया।अब आगे 4 दिसंबर के सूर्य ग्रहण के बादओर 5 दिसम्बर के गोचर को देखते हुए सर्दी के मौसम के तेज़ी से करवट लेने के साथ-साथ भारत की राजनीति में कुछ ‘गरमा-गर्मी’ और अप्रिय-संवाद के चलते कुछ बड़ी हलचल होगी। किसान आंदोलन के कारण उत्तर-प्रदेश की राजनीति में बड़ी उथल-पुथल होगी।सरकार के द्वारा जनता के हित में कुछ कल्याणकारी कदम उठाने का संकेत है। पेट्रोल और डीज़ल के दामों में कुछ कमी से जनता को महंगाई से राहत मिलेगी। 5 दिसंबर को मंगल के वृश्चिक राशि में आने के कुछ दिनों के भीतर खाने-पीने  के सामान के दामों में कमी का लाभ भी जनता को मिलेगा।  कुछ बड़े निर्णयों से जनता को लाभ होगा। सुप्रीम कोर्ट के दबाव में केंद्र सरकार को प्रदूषण नियंत्रण को लेकर कोई नई नीति बनानी पड़ सकती है। सूर्य ग्रह यहां भी दिखाई देगा जहां एक बड़े समुद्री तूफान और बेमौसमी वर्षा से देश के पश्चिमी हिस्से में भारी क्षति पहुंच सकती है। जल तत्व की राशि वृश्चिक में पड़ रहे इस सूर्य ग्रहण की राशि को 7 दिसंबर से मंगल प्रभावित करेंगे जिसके 45 दिन के भीतर जहां कुछ बड़े तूफान आएंगे तो भारत में रिकॉर्डतोड़ सर्दी जनता को कष्ट देगी। इस वर्ष सर्दी के मौसम में सामान्य से अधिक वर्षा गेहूं और मक्के के किसानों को लाभ देगी।

रविवार, 31 अक्तूबर 2021

Sambandhon ka karak Guru (सम्बन्धों का कारक गुरु)-

सम्बन्धों का कारक गुरु)- Astro Guru Acharyarajesh(सम्बन्धों का कारक गुरु)------------___------------____मित्रों हमारी
जिंदगी पर ग्रहों का बहुत प्रभाव पड़ता है जीवन मैं सुख-दुख उतार-चढ़ाव सब ग्रहण किया प्रभाव के कारण ही है। मित्रों सभी ग्रह आपको आपकी कुंडली के अनुसार अच्छा या बुरा प्रभाव दे सकते हैं ऐसे बरस पति को एक नैसर्गिक शुभ ग्रह माना जाता है। लेकिन अगर बृहस्पति ही कुंडली में खराब हो तो बहुत ही बुरा प्रभाव दे देता है । गुरु जो जीव का कारक है।
गुरु को सम्बन्धों का कारक माना जाता है। माता पिता भाई बहिन पुत्र पुत्री और जितने भी रिस्ते नाते है सभी गुरु की श्रेणी में ही आते है,किसी भी रिस्ते को पहिचानने के लिये गुरु को ही देखना जरूरी है,यहाँ तक कि खुद के शरीर के साथ खुद का सम्बन्ध भी गुरु से ही जाना जाता है। शिक्षा में गुरु को आध्यात्मिक शिक्षा के रूप में धर्म और मृत्यु के बाद के जीवन के लिये भी गुरु को पहिचाना जाता है। गुरु जब कुंडली में अपनी विरोधी नीति को किसी भी सम्बन्धी के भाव से व्यक्त करता है तो सम्बन्धों में बिगाड आता है लेकिन सम्बन्धों को बनाने के लिये किये जाने वाले प्रयासों में अगर सूर्य आडे आता है तो सम्बन्ध बनने के बजाय और बिगडते जाते है। कारण गुरु और सूर्य के मिलने से जीवात्मा योग तो मिलता है लेकिन अहम की वृत्ति भी दिमाग में भरती है,यह तब और भारी होता है जब मंगल सूर्य और गुरु का आपसी संयोग मिलता है। गुरु विभिन्न भावों के अनुसार विभिन्न बैर भाव बनाता है,और जब गुरु का प्रभाव केन्द्र और त्रिकोण के लिये आघात देता है तो सम्बन्ध जन्म से ही खराब हो जाते है,और जब गोचर से आघात देता है तो सम्बन्ध कुछ समय के लिये खराब होते है लेकिन फ़िर बन जाते है। पाराशर के नियम के अनुसार कि हर भाव का बारहवां भाव उसका विनाशक होता है। और हर भाव का आठवां भाव उस भाव का रिस्क लेने का स्थान होता है,विनाशक बनने पर अगर विनाशक ग्रह के विरोध में ग्रह को कृत्रिम रूप से उत्पन्न कर लिया जाता है तो विनाशक ग्रह या भाव से छुटकारा मिल जाता है,उसी प्रकार से रिस्क वाले स्थान को सही रूप से समझ कर अगर विनाशक स्थिति को अन्य स्थान और निर्माण वाले कारक में प्रयोग कर लिया जाये तो रिस्क का सही मतलब और फ़ल मिल जाता है। गुरु का बैर भाव और कोर्ट केश का व्यविधान केवल पारिवारिक मामलों के लिये ही देखा जाता है,लेकिन सम्बन्ध चाहे वह व्यवसायिक हों या पारिवारिक सम्बन्ध तो सम्बन्ध ही कहे जायेंगे। गुरु का भावानुसार सम्बन्धों के साथ विरोध बहुत ही तीखा देखने को मिलता है,जैसे गुरु लगन में है तो वह सप्तम तीसरे और ग्यारहवें भाव से विरोध करेगा,गुरु अगर धन भाव मे है तो वह चौथे आठवें और बारहवे भाव से विरोध करेगा,गुरु अगर पराक्रम में है तो वह सन्तान धर्म और लगन से विरोध करेगा,गुरु अगर चौथे भाव मे है तो वह छठे दसवें और दूसरे भाव से विरोध करेगा,गुरु अगर पंचम मे है तो वह जीवन साथी लाभ और पराक्रम से विरोध करेगा,गुरु अगर छठे भाव मे है तो वह रिस्क वाले भाव खर्चे वाले भाव और सुख भाव से विरोध करेगा,इसी प्रकार से सप्तम का गुरु धर्म लगन और सन्तान भाव से विरोधात्मक प्रभाव देगा। विरोध करवाने वाले कारकों में राहु केतु रोजाना की चिक चिक करवाते है,मंगल मारकाट और फ़ौजदारी वाली बातें करवाता है,शनि कोल्ड वार करवाने के लिये माना जाता है,शुक्र धन सम्पत्ति और बंट्वारे वाले कारणों में बैर करवाने वाला होता है बुध बहिन बुआ बेटी के रूप में बैर को बढवाने वाला होता है आदि कारक भी सामने आते है।

रविवार, 13 जून 2021

राहु चोथा

राहु चोथा

तखत पावे जब चौथा टेवे राहु मंदा खुद होता हो.

मुट्ठी चंद्र 8 या 11 बैठे अकेला चौथे न मंदा हो.

चार समुद्र ग्रह 9 नाभि मुद्रा कोई न रखता हो.

तीनों मित्र नर ग्रह शरण माता की पेट के अंदर कुल पलता हो.
जब टेवे में चतुर्थ घर मुख्य हो सिंहासन अधिपति हो तो राहु का प्रभाव मंदा हो जाता है. इस घर को केन्द्र स्थानों में से एक माना जाता है. लाल किताब में इस केन्द्र स्थानों को बंद मुट्ठी का भाव कहा जाता है. इसे बंद मुट्ठी का भाव कहने से तात्पर्य य्ह भी है कि इस भाव से गर्भस्थ शिशु का विचार भी किया जाता है.इस भावसेमाता मन मकान की बाते सभी करते है और माता मन मकान से सभी का लगाव होता है। बचपन से जवानी तक माता से और जवानी से लेकर बुढापे तक मकान से तथा बुढापे से लेकर मौत आने तक मन के साथ जुडा रहना जरूरी होता है। यह बात सही है कि आदमी कहीं पर स्वतंत्र नही है लेकिन मन के साथ तो वह हमेशा ही बन्धा हुआ है,मन का स्थान कुंडली मे चौथे भाव मे होता है और चौथे भाव से मन शंकाओं से तब भर जाता है जब उसके साथ राहु का भी सम्बन्ध स्थापित हो जाये। संसार में कई लोग आपको तर्क और कुतर्क करते हुये मिल जायेंगे। जैसे चौथे भाव के राहु वाले व्यक्ति से कोई बात की जाये तो उसके अन्दर हजारों शंकाये एक बात के लिये पैदा हो जायेंगी वह उन बातों के लिये तरह तरह की जानकारिया और उन जानकारियों के पीछे और कई जानकारियां लेने की कोशिश करेगा,समझाना भारी केवल चौथे राहु वाले के लिये ही पडता है यह बहुत ही समझने वाली बात है। ज्योतिष के अनुसार राहु को रूह का दर्जा दिया गया है,राहु केवल रूह के रूप में शरीर पर हावी होता है लोग इसकी गणना कई तरह की छाया रूपी शक्ति के लिये किया करते है। गुरु के साथ राहु का साथ होना भी खतरनाक माना जाता है गुरु जीव होता है तो राहु रूह जीव के ऊपर रूह हावी हो जाये तो जीव की स्वतंत्र सत्ता रह ही नही पाती है जैसा रूह चाहती है जीव उसी प्रकार से कार्य करता है। अगर राहु के साथ मंगल स्थापित हो जाता है जीव के अन्दर नीची सोच के साथ खून की चाल धीमी हो जाती है वह जरा सी बात को सोचने लगता है और अपने ही अन्दर घूमने लगता है। अक्सर चौथा राहु स्त्री की कुंडली में बहुत बुरा प्रभाव डाला करता है। किसी महिला के दिमाग में उसके परिवार के प्रति अगर राहु नाम की रूह कोई भ्रम डाल दे और वह उस भ्रम को निकालने के लिये अपने सारे प्रयास शुरु कर देगी,और जब तक उसका जीवन है वह उसी भ्रम के अन्दर फ़ंसी रहेगी,हर रहने वाले स्थान को वह शक की नजर से देखेगी,और जो भी उसके परिवारी जन है उनके लिये उसके मन में शक की बीमारी ही रहेगी,उसके लिये कितना ही जतन किया जाये कि उसे सत्यता का पता मिल जाये लेकिन वह सत्य के अन्दर से भी असत्यता का आभास करवाने लगेगी। एक पति के लिये इससे खतरनाक बात क्या हो सकती है कि उसके सही रहने के बाद भी उसकी पत्नी उसे शाम को प्रताणित केवल इसलिये करे कि वह देर से घर आया तो जरूर उसके अन्दर कोई न कोई राज है,या गाडी रास्ते में खराब हुयी तो उसके अन्दर भी उसकी कोई चाल है,या वह खाना कम खा रहा है या वह किसी के साथ जा रहा है या कोई महिला उससे बात करने लगी है आदि बातें यह रूह बहुत बुरी तरह से प्रकट करती है। कई लोगों को देखा है कि वे अपने इसी ख्याल के कारण घंटो बाथरूम में पानी बहाया करती है कि उनका वस्त्र गंदा है उनके ब्रस को किसी ने छू लिया होगा,उनके नहाने वाले साबुन को किसी ने प्रयोग में लिया होगा या किसी ने उसकी चप्पलों को ही प्रयोग में लिया होगा। चौथा राहु सदैव कर्जा दुश्मनी और बीमारी के भाव को देखता है और जो भी बाते इन कारकों से जुडती है,वे सभी चौथे राहु के लिये मसला बन जाती है,किसी से दुश्मनी बन जाने पर चौथा राहु वाला व्यक्ति दुश्मनी से कम अपने शक वाले ख्यालों से जल्दी मरने की कोशिश करेगा,जैसे वह रात को सो रहा है और चूहा आकर किसी प्रकार से कोई सामान को बजा दे तो वह यह नही सोचेगा कि चूहे ने उसके सामान को गिराया है वह पूरे घर के अन्दर कोहराम इसलिये मचा देगा कि कोई उसके घर में था और वह उसे मारने आया था। कारण चौथा भाव अपनी युति से अष्टम मौत के भाव को भी देखता है। इसके अलावा बाहरी आफ़तों के लिये इस भाव को भी अधिक माना जाता है किसी धर्म स्थान या किसी अस्पताली कारण को अगर वह व्यक्ति समझ गया है तो वह अपने मरीजों केवल शक के आधार पर ही दवाइयां देगा और मरीज जीने वाला भी होगा तो भी शक के आधार पर दी जाने वाली दवाइयों से वह समय से पहले ही परलोक सिधार जायेगा। अक्सर चौथे राहु वाले व्यक्ति की पहिचान यात्रा में सही रूप से की जा सकती है,इस प्रकार का व्यक्ति जब भी यात्रा करेगा अपने स्थान के अलावा भी अपने सामान को फ़ैलाने का काम करेगा,उसकी कोई वस्तु जरा सी इधर उधर हुयी और वह अपने शक वाले स्वभाव को आसपास वाले यात्रियों पर करना शुरु कर देगा,इसके अलावा वह रास्ते भर किसी से बात नही करेगा,अपने ही ख्यालों में खोया हुआ यात्रा करेगा,जहां उसे उतरना है उसके साथ वाले सहयात्री उसे उतारने की कोशिश करेंगे तो ही वह उतरेगा अन्यथा उसे ध्यान नही होगा कि उसे उतरना भी है या नही। चौथे राहु वाला व्यक्ति प्रेम करने के मामले भी शक करने वाला माना जाता है,किसी ज्योतिष जानने वाले के पास वह शादी के पहले ही जाना शुरु कर देगा और शादी से पहले ही वह पूरी जानकारी अपने पति या पत्नी के लिये करना शुरु कर देगा,यह भी देखा गया है कि इन्ही कारणों से अधिकतर इस प्रकार के लोगों की शादी या तो हो नही पाती है और हो भी जाती है तो वह वैवाहिक जीवन को सही नही चला पाते है,उनको अधिक सोचने के कारण टीबी या सांस वाले रोग पैदा हो जाते है और अस्पताल की तरह से घर का माहौल भी बन जाता है। दमा स्वांस आदि की बीमारी होने के बाद वे अधिकतर मामले में सांस की गति को सामान्य रखने के इन्हेलर आदि का प्रयोग करते हुये देखे जाते है। महिलाओं में चौथे राहु का असर एक प्रकार से और देखा जा सकता है कि वे अपने घर के फ़र्स को साफ़ से साफ़ रखना चाहती है उन्हे गंदगी बहुत जल्दी दिखाई देने लगती है,कोई जरा सा घर के अन्दर घुसा और उसके पैरों के निशान बने तो वह जल्दी से ही पौंछा लेकर उस स्थान को पोंछने का कार्य करने लगेगी,उन्हे घर के माहौल में एक अजीब सी बदबू का होना मिलेगा और वे अधिक समय घर की साफ़ सफ़ाई में ही बिताना पसंद करती है।

रविवार, 16 मई 2021

Gemstone रत्न किस तरह चारण करें

Gemstone रत्न किस तरह चारण करें 
 
मित्रों ग्रहों को मजबूत करने के लिए रत्‍नों का प्रयोग किया जाता है। कुंडली में कमजोर ग्रहों के शुभ प्रभाव को पाने के लिए भी रत्‍न धारण किए जाते हैं.liकुंडली में कमजोर ग्रहों के शुभ प्रभाव को पाने के लिए भी रत्‍न धारण किए जाते हैं. आइए जानते हैं कि वैदिक ज्‍योतिष में रत्‍नों को किस तरह से धारण करना उत्तम माना गया है।

रत्‍न नौ प्रकार के होते हैं

ग्रहों के आधार पर रत्‍नों को नौ भागों में बांटा गया है। हर एक ग्रह को मजबूती प्रदान करने के लिए एक रत्‍न निर्धारित किया गया है। सूर्य के लिए माणिक, चंद्रमा के लिए मोती, बुध के लिए पन्‍ना, मंगल के लिए मूंगा, गुरु के लिए पुखराज, शुक्र के लिए हीरा, शनि के लिए नीलम, राहु के लिए गोमेद और केतु के लिए लहसुनिया पहना जाताहै मित्रों एक रतन कई किसानों का कई प्रजातियों का और उसमें अलग-अलग बंद होते हैं तब तब होते हैं यह सब एक एस्ट्रोलॉजर जातक की कुंडली को देख कर ही निर्धारित करता है कि उसको कौन सा नीलम या कौन सा पुखराज बनाया जाए गलत नीलम या गलत पुखराज पहनाने से भी परेशान आ सकते परेशानी आ सकती है। इसलिए एक अच्छा रत्न expert ही बता सकता है
 रत्‍न राशि अनुसार नहीं बल्कि कुंडली में ग्रहों की स्थिति के अनुसार पहनने चाहिए। कौन-सा रत्‍न कब पहना जाएं इसके लिए कुंडली का सूक्ष्‍म विश्‍लेषण करना जरूरी होता है। लग्‍न कुंडली के अनुसार कारक ग्रहों के रत्न ही पहनने चाहिए। अगर कुंडली में कोई भी कारक ग्रह शुभ ग्रह किसी भी तरह पीड़ित हो रहा हो  अस्त हो रहा तो उसको उस ग्रह को मजबूत करने के लिए रत्न धारण करना चाहिए। जो ग्रह कुडली में उपयोगी है उसकी ताकत को बढ़ाया जाए 
 सामान्यत: लग्न कुंडली के अनुसार कारकर ग्रहों के  रत्न पहने जा सकते हैं जो ग्रह शुभ भावों के स्वामी होकर पाप प्रभाव में हो, अस्त हो या श‍त्रु क्षेत्री हो उन्हें प्रबल बनाने के लिए भी उनके रत्न पहनना प्रभाव देता है।
किसी भी व्यक्ति के जीवन में रंग और तरंग का सर्वाधिक महत्व होता है. रत्न भी इन्ही रंगों और तरंगों के माध्यम से प्रभाव डालते हैं. व्यक्ति के शरीर के सात चक्र इन्ही रंगों और तरंगों को ग्रहण करते हैं. रत्नों के प्रयोग से व्यक्ति की मानसिक स्थिति में तुरंत बदलाव हो जाता है. रत्नों का असर शरीर के साथ ही मन और कार्यों पर भी पड़ता है. रत्नों का लाभ तो थोड़ी देर में होता है लेकिन गलत रत्न पहनने का नुकसान जल्दी होने लगता है.मित्रो इन लेखों में मैंने वर्तमान में रत्‍न को लेकर चल रहे कई सिद्धांतों और उनके कारण पैदा हो रहे व्‍याघात को समझाने का प्रयास किया है। निर्बल और उच्‍च ग्रह का उपचार भी ऐसा ही एक और व्‍याघात है। इसे एक उदाहरण कुण्‍डली से समझने का प्रयास करते हैं। मान लीजिए एक तुला लग्‍न की कुंडली है। उसमें शुक्र लग्‍न का अधिपति हुआ। एक केन्‍द्र और एक त्रिकोण का अधिपति होने के कारण शनि इस कुंडली में कारक ग्रह है। नवम भाव का अधिपति होने के कारण बुध का उपचार भी किया जा सकता है।
अब कृष्‍णामूर्ति की माने तो इस कुंडली के शुक्र, शनि और बुध ग्रह का ही इलाज किया जा सकता है। अब इस कुंडली में अगर गुरू, सूर्य या मंगल खराब स्थिति में है तो उनके इलाज की जरूरत ही नहीं है। एक व्‍यक्ति राजमहल में रह रहा हो तो उसे ज्ञान, आधिपत्‍य, और ताकत स्‍वत: मिलती है, और अगर न भी मिले तो उसके लिए प्रयास करने की जरूरत भी नहीं है।
ऐसा जातक अगर ज्‍योतिषी से यह मांग करे कि उसे अपने आधिपत्‍य, ताकत और ज्ञान में बढ़ोतरी की जरूरत है तो मान लीजिए कि वह केवल किसी लालसा की वजह से कुछ समय के लिए भटककर यह सवाल कर रहा है। वास्‍तव में उसे जो चाहिए वह ऐश्‍वर्य, विरासत, कंफर्ट, कम्‍युनिकेशन स्किल और अपनी चाही गई चीजों के लिए ईज ऑफ एक्‍सस की जरूरत है। यानि वह अपनी जरूरतों के लिए लम्‍बी लड़ाई लड़ने के लिए भी तैयार नहीं है।
अगर वह जातक किसी साधन या व्‍यवस्‍था को पाने का प्रयास कर रहा है या रही है तो यह कुछ समय की बात हो सकती है दीर्घकालीन जरूरत नहीं। ऐसे में तुला लग्‍न में बैठे नीच के सूर्य को ताकतवर बनाने के लिए माणिक्‍य भी पहना दिया तो फायदा करने के बजाय नुकसान अधिक करेगा।
यही बात अन्‍य लग्‍नों के लिए भी लागू होती है। तो जातक का इलाज करते समय यह ध्‍यान रखने वाली बात है कि वास्‍तव में जातक का मूल स्‍वभाव क्‍या है। उसे अपनी मूल स्थिति में लौटाने से अधिक सुविधाजनक कुछ भी नहीं है। भाग्‍य को धोखा नहीं दिया जा सकता, लेकिन मानसिक स्थिति में सुधार कर खराब समय की पीड़ा को दूर किया जा सकता है। ऐसे में किसी एक जातक की लालसा का पोषण करने के बजाय उसे सही रास्‍ते की ओर भेजना मेरी समझ में सबसे सही उपाय है। ऐसे में मेष से लेकर मीन राशि और लग्‍न वाले जातकों के लिए अलग-अलग उपचार होंगे। आप गौर करेंगे कि कुछ ग्रहों को कारक तो कुछ को अकारक भी बताया गया है।
इसका अर्थ यह नहीं है कि किसी कुंडली में कारक ग्रहों का प्रभाव होता है और अकारक का नहीं होता। प्रभाव तो सभी ग्रहों का होगा, लेकिन मूल स्‍वभाव कारक ग्रह के अनुसार ही होगा। ऐसे में उपचार के समय भी कारक ग्रहों का ही ध्‍यान रखा जाए।
रही बात उच्‍च और नीच की… यह तो रश्मियों का प्रभाव है। नीच ग्रह की कम रश्मियां जातक तक पहुंचती है और उच्‍च ग्रह की अधिक रश्मियां। ऐसे में अगर कारक ग्रह अच्‍छी स्थिति यानि अच्‍छे भाव में बैठकर कम रश्मियां दे रहा है तो उसके लिए उपचार करना चाहिए। और अकारक ग्रह खराब स्थिति में या नीच का भी है तो उसे छेड़ने की जरूरत नहीं है। मित्रों एक राजा होकर अगर वह किसी खड्डे में गिर जाए तो उसको से आसन पर बैठा देने में ही समझदारी होती है अगर आप भी अपनी कुंडली दिखा कर रतन धारण करना चाहते हैं या अपने ग्रहों का चार करवाना चाहते हैं तो आप संपर्क कर सकते हैं

सोमवार, 3 मई 2021

Importance of number in life(जीवन में नम्बर का महत्व

Importance of number in life(जीवन में नम्बर का महत्व

 

जीवन में नम्बर का महत्व
जैसे हम जीवन की शुरुआत मे शब्दो को प्रयोग मे लाने के लिये अक्षरों का ज्ञान करते है वैसे ही जीवन मे गिनती करने के लिये नम्बरों को सीखते है। जीरो से लेकर नौ के अंक तक सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड समाया हुआ है। हर  व्यक्ति एक नम्बर के आधार पर चला करता है उस नम्बर के बिना उसका जीवन अधूरा सा रहता है,कोई नम्बर भाग्य को देने वाला होता है और कोई नम्बर बहुत ही दुर्भाग्यशाली भी होता है। जन्म के नम्बर से ही पता लग जाता है कि जीवन कितने समय का है और जीवन मे किस किस वक्त कौन सी आफ़त आयेगी या जायेगी साथ ही अगर सूक्ष्म रूप से भी देखा जाये तो हर साल महिना दिन और दिन का एक एक घंटा अपनी गति को प्रदान करता है। नम्बर का जो रूप जीवन मे काम आता है वह इस प्रकार से है :-

जीवन को चलाने वाला नम्बर
जीवन जिस दिन से शुरु हुआ होता उस दिन के नम्बर से ही गति का पता लग जाता है जीवन को चलाने के लिये माता के गर्भ मे आने से ही इस नम्बर की शुरुआत हो जाती है और महिने दिन तथा घंटे से इस नम्बर का पता लगाया जाता है,पैदा होने का समय भी इसी नम्बर से प्राप्त किया जाता है।

ह्रदय की चाहत वाला नम्बर

समय समय पर मनुष्य की चाहत बदलती रहती है और जीवन मे अगर एक ही चाहत बनी रहे तो जीवन का चलना दूभर हो जाता,जब हम जन्म लेते है उसी दिन से गणना शुरु हो जाती है और इस नम्बर के लिये यह भी कहा जाता है बच्चा भी अपने दिल मे चाहत रखता है लेकिन शरीर के परिपक्वता पर आधारित होने के कारण इस नम्बर का एक प्रभाव हमारे दिल मे हमेशा रहता है अगर हमे पता लग जाये कि किस नम्बर के दिन मे हमारी चाहत बदलेगी और इस चाहत के बदलने का समय क्या होगा तो हमे काफ़ी आसानी हो सकती है.

एक नम्बर जो हमेशा मन मे रहे
कहा जाता है कि मन हमेशा चलायमान है लेकिन मन का क्षेत्र भी एक केन्द्र पर जुडा होता है जब तक केन्द्र का संचालक मन के अन्दर भाव नही भरेगा तब तक मन का चलायमान होना हो ही नही सकता है। इस नम्बर के लिये यह भी कहा जा सकता है कि जब भी कोई बात अच्छी या बुरी मन के अन्दर आयेगी उसी नम्बर के अनुसार ही आयेगी.

जन्म दिनांक
जिस दिन जातक का जन्म होता है अपनी अपनी भाषा और संस्कृति के अनुसार उस दिन का एक नम्बर भी होता है जैसे अंग्रेजी मे अगर तारीख को दिन का नम्बर मानते है तो हिन्दी मे तिथि को नम्बर के रूप मे प्रयोग किया जाता है उसी प्रकार से मुसलमानी कलेण्डर मे चन्द्रमा की तारीख को ही मान दिया जाता है.वैसे दिन की मान्यता भी दी जाती है और जातक के जन्म के दिन के अनुसार ही उसका नम्बर काम मे लिया जाता है जैसे केरल मे जिस दिन व्यक्ति का जन्म होता है उसी दिन के नम्बर के अनुसार उसका फ़लादेश दिया जाता है।
मिलने वाले चेलेंज का नम्बर
जीवन मे जो भी काम करना पडता है उन सभी के लिये एक चेलेन्ज मिलता है जिस दिन काम करने का वह अच्छा हो या बुरा चेलेन्ज मिल जाता है उसी दिन से उस काम के लिये मानसिकता बन जाती है कई नम्बर तो इतने ओड होते है कि उनके लिये आजीवन एक ही प्रकार का चेलेंज स्वीकार करने के लिए व्यतीत करना पडता है।

व्यक्तिगत साल का नम्बर
हिन्दी मे हिन्दी महिनो का नम्बर और अंग्रेजी मे अंग्रेजी महिनो का नम्बर प्रयोग मे लाया जाता है। इसी प्रकार से अलग अलग देशो मे अपने अपने अनुसार महिनो की गणना के अनुसार नम्बर का प्रयोग किया जाता है। नम्बरो के आधार से ही किसी भी अल्प मध्य और उच्च गति का विश्लेषण साल के नम्बर से किया जाता है.
व्यक्तिगत महिने का नम्बर
साल के बाद महिने का नम्बर केवल शरीर की बारह गतियों पर निर्भर करता है जो गति छ: महिने पहले अच्छी थी वही गति छ: महिने बाद खराब हो जाती है जो इन गतियों को पहिचानते है वह अपने लिये पहले से ही इन्तजाम कर लेते है और वे आने वाली मुसीबत से बचकर अपने कार्य को उस मिलने वाली आफ़त से भी अपने को फ़ायदा मे ले जाते है। 

व्यक्तिगत दिन का नम्बर

सूर्य का रोजाना एक अंश का मान देखा गया है चाहे साल का समय या महिने का समय एक बार गडबडा जाये लेकिन दिन का मान उतना ही रहेगा और निश्चित समय मे ही दिन का मान बदल जायेगा,यह मान अच्छे के लिये भी और बुरे के लिये भी माना जाता है। दिन के नम्बर से अक्सर रोजाना के किये जाने वाले कामो की सफ़लता असफ़लता के लिये देखा जाता है और जिस दिन का नम्बर खराब होता है या धोखा देने वाला होता है उसी के अनुसार सम्भाल लेने पर गति के अनुसार नम्बर का प्रयोग कर लिया जाता है।
जीवन की शुरुआत का नम्बर
जीवन की शुरुआत का मतलब पैदा होने से नही है जब व्यक्ति जीवन की प्रोग्रेस मे अपने को ले जाने के लिये आगे जाना शुरु होजाता है वह ही जीवन की शुरुआत मानी जाती है कभी कभी यह भी देखा गया है कि व्यक्ति पैदा होता है खाता पीता सोता जागता है और एक दिन वह चला जाता है लेकिन उसके जीवन मे किसी प्रोग्रेस का अध्याय जुड ही नही पाता है वह दूसरो के भरोसे रहकर ही पूरे जीवन को निकाल जाता है।
जीवन के परिपक्व होने का नम्बर
जीवन के तीन प्रकार माने गये है एक कच्चा जीवन होता है जिसका मान न के बराबर होता है कि कब कहां किस मोड पर जीवन जाकर रुक जाये या किस मोड पर जाकर जीवन का अन्तिम सफ़र ही पूरा हो जाये दूसरा प्रकार अल्प परिपक्व होता है जो जीवन को आगे भी चलाता है और जब चलाने के लिये शुरु हुआ जाये तो वह कार्य या व्यवहार से अपने को नेस्तनाबूद कर ले,तीसरा प्रकार वह होता है कि जीवन पूरी तरह से हर क्षेत्र की जानकारी से पूर्ण हो गया है व्यक्ति के सामने कोई भी बात अच्छी या बुरी आये वह उसे पूरी तरह से निपटाने के लिये अपने व्यवहार को सामने कर देगा इसके लिये भी एक नम्बर होता है जो निश्चित समय का बखान करता है।
अपने को प्रदर्शित करने का नम्बर
व्यक्ति को एक नाम जन्म के बाद दिया जाता है जो नाम पूरे जीवन साथ रहता है और मरने के बाद भी कुछ काल तक भी बना रहता है और मरने के कुछ समय बाद भी समाप्त हो जाता है,नाम का पहला शब्द जीवन को प्रदर्शित करने के लिये माना जाता है इस शब्द के अक्षर और उन अक्षर से बनने वाले नम्बर के बाद ही इस कारण को जाना जाता है।

किये जाने वाले कार्यों का नम्बर
जीवन मे कितने ही कार्य किये जाते है हर कार्य का एक नम्बर होता है जो नम्बर जीवन की शुरुआती हालत मे होता है उसे जीवन के कुछ क्षेत्र के लिये मानते है फ़िर आगे बढने पर दूसरा कोई नम्बर साथ हो जाता है उस नम्बर को भी देखना जरूरी हो जाता है,जितने भी कार्य जीवन मे किये जाने है वह कार्य एक सम्बन्धित नम्बर से जुडे होते है उस नम्बर के आसपास घूमने वाले नम्बरो के आधार पर गिना जाता है कि व्यक्ति कितने प्रकार के कार्य करने के लिये समर्थ है और कितने कार्य वह नही कर सकता है।

किसलिये कार्य करने है का नम्बर
कोई भी कार्य करने का एक कारण होता है और जो कारण बनता है उसका भी एक नम्बर होता है जब तक कार्य के लिये कारण नही बनेगा तब कार्य किया जाना या उसके अच्छे बुरे होने का कोई प्रभाव भी नही जाना जा सकेगा,जीवन मे अलग अलग समय जो कारण बनेगा उसके लिये भी एक नम्बर का प्रकार बनेगा लेकिन उस कारण वाले नम्बर को जानने के लिये बाकी के नम्बरो के अनुसार ही कारण का होना माना जायेगा.

दिमाग को स्थिर रखने का नम्बर
समय काल और दूरी के नियम के अनुसार दिमाग को स्थिर रखने का भी एक नम्बर होता है जैसे समय है लेकिन काम करने का कारण नही बना है काम करने का कारण भी बना है लेकिन काम मे कठिनता आ रही है इन तीनो से तभी फ़ायदा मिलना माना जा सकता है जब दिमाग मे काम करने की स्थिरता है यह स्थिरता भी नम्बर के अनुसार ही आ पाती है।

आत्मीय नम्बर
कभी कभी देखा होगा कि किसी फ़ोन के आने से उसके साथ नया होने के बाद भी मन जुड जाता है और उस नम्बर से बात करने वाले से लगातार बात करने का मन करता है भले ही वह बात करने वाला किसी भी प्रकार से छ्ल कर दे,और कभी यह भी होता है कि कोई फ़ायदा देने वाला बात कर रहा है लेकिन उसके फ़ोन का नम्बर कुछ इस प्रकार का है कि उससे चाहते हुये भी बात नही हो पाती है आदि बाते आत्मीय नम्बर के बारे मे देखी जाती है जैसे फ़ोन का नम्बर घर का नम्बर वाहन का नम्बर और घर मे रहने वाले लोगो का नम्बर आदि.

जीवन के प्रति योजना बनाने का नम्बर
जिस समय कोई कार्य करना होता है वह चाहे घर से सम्बन्धित हो या बाहर से सम्बन्ध रखता हो वह शादी विवाह के लिये हो या किसी प्रकार के इलाज आदि के लिये किसी शिक्षा से जुडा हो या किसी प्रकार से अन्य कारण से उस समय के नम्बर पर आधारित होता है कि जो योजना कार्य के लिये बनायी जा रही है अगर वह योजना ही गलत नम्बर के समय मे बना दी गयी है तो योजना के लिये भले ही सभी साधन मिल जाये लेकिन वह योजना चाह कर भी पूरी नही होती है,यही बात अक्सर प्रेम करने वाले लोगो के लिये भी देखी जाती है प्रेम का अन्त शादी से होता है और प्रेम करने के समय से अगर शादी के समय मे फ़ेर है और बिना विचार के किये गये ही किसी गलत नम्बर के समय मे शादी की बात चलायी जाती है तो प्रेम होने के बावजूद भी शादी नही हो पाती है आदि बाते इस नम्बर से देखी जाती है।

छुपे रूप में की जाने वाली घात का नम्बर
हम अपने जीवन के प्रति सुरक्षा को लेकर चलते है और कभी कभी यह भी होता है कि हम जिस व्यक्ति से अपना सम्पर्क बना रहे होते है या जिसके ऊपर भरोसा करके चल रहे होते है वह व्यक्ति गुप्त रूप से घात करके चला जाता है या किसी प्रकार से हमने गलत नम्बर का मकान खरीद लिया है और अपनी घात का नम्बर नही पता है तो किसी न किसी प्रकार से वह मकान या वाहन हमारे लिये गुप्त रूप से हानि देने के लिये माना जायेगा चाहे वह वाहन के रूप मे एक्सीडेंट करवाये या घर के नम्बर के रूप मे आजीवन कमाने के बाद भी एक दिन डकैती डलवा दे या वह शिक्षा की शुरुआत करने के बाद ही अपनी योजना को हटाकर शिक्षा के बाद भी काम धन्धे के लिये भटकाव पैदा हो जाये.

हमेशा कष्ट देने वाला नम्बर
कई नम्बर हमारे जीवन मे ऐसे भी होते है जो बिना कारण के ही कष्ट दिया करते है,अक्सर देखा होगा कि जब हम अपने वाहन से आगे जा रहे होते है तो जिस वाहन को कष्ट देना वह किसी भी तरह से आगे जाने की प्रतिस्पर्धा मे सामने आने की कोशिश करेगा,या यह भी देखा होगा कि मकान का नम्बर अगर सही नही है तो गलत नम्बर वाला पडौसी बेकार मे ही परेशान करने लगेगा या कोई फ़ोन का नम्बर ही बेकार मे ही परेशान करने के लिये अपनी काल करने लगेगा आदि इस नम्बर को पहिचान कर पता की जाती है. मित्रों इसी तरह के और लेख आप पढ सकते है.acharyarajesh.in पर जाकर पढ़ सकते हैं मित्रों आचार्य राजेश

मंगलवार, 13 अप्रैल 2021

नवरात्री 2021 और ज्योतिष


चैत्र मास के नवरात्रा की शुरुआत आज से हो रही है,जनमानस की भावना दैवी शक्तियों के प्रति अपने अपने भाव के अनुसार शुरु हो गयी है। आज दिन मंगलवार है,चन्द्रमा,शुक्र मेष राशि में है मंगल वृष राशि में है,राहु वृष राशि में है केतु वृश्चिक राशि में है, शनि मकर राशि में है गुरु कुंभ राशि में है। गुरु ही जगत का जीव है सूर्य जगत की आत्मा है,शनि जगत के कार्य है,राहु जगत की शक्ति है केतु जगत के साधन है,बुध जगत का प्रदर्शन है,मंगल जगत की शक्ति है,चन्द्रमा जगत की मानसिक गति है। इन सब ग्रहों के अनुसार कालचक्र की भावना बहुत ही सुन्दर बनती है।

वृष राशि में कालचक्र की शक्ति विराजमान है,वृप राशि स्थिर कार्यों के लिये मानी जाती है,यह धन की राशि मानी जाती है वैभव की राशि भी मानी जाती हैलाभ या हानि के लिये व्यापारी सोचता है। पास या फ़ेल होने के लिये विद्यार्थी सोचता है। सभी सोचों के पीछे अपने अपने अनुसार शनि से कार्यों के प्रति खर्चा कैसा होना चाहिये रहने के प्रति खर्चा कैसा होना चाहिये,शरीर और घर द्वार के सामन की रक्षा कैसे होनी चाहिये,घर के बुजुर्गों पर खर्चा कैसा हो इस प्रकार की भावनायें वृष राशि में स्थापित कालचक्र की शक्ति सोच रही है। मन जो चन्द्रमा का कारक है मेष राशि में है और कालचक्र की शक्ति के पहले भाव में है,मन शुक्रके साथ होने से तथा दिमाग में एक साथ कई काम होने से अव्यवस्थित सा हो गया है। जनता का ध्यान अपने अपने व्यापार कार्य और घर की शान्ति के लिये दैवी शक्तियों के प्रति जा रहा है। लेकिन शक्ति का निवास वृष राशि में होने से जो भी पूजा और पाठ की तरफ़ मन ले जा रहा है वह केवल परिवार के कुनबे के कार्यों से ही अपने अपने अनुसार पूजा पाठ के लिये अपना ध्यान ले जा रहा है।
शुक्र लक्ष्मी का कारक है,मंगल शक्ति का कारक है,धन की शक्ति का रूप सामान्य रूप से माना जा सकता है। दुर्गा की शक्ति का वृष राशि मे होने से शक्ति भी अपने को घन संबंधित ऐशों आराम के साधनों के रूप से व्यक्त करने के लिये मानी जा सकती है,वृष राशि की दिशा दक्षिणी पूर्वी में है,जितने भी इस दिशा के देश राज्य स्थान है वहाँ और घर के अन्दर जो भी दिशा दक्षिण- पूर्व से सम्बन्ध रखती है सभी जगह दुर्गा का कोई न कोई रूप उपस्थित रहने के लिये जरूरी माना जा सकता है। कितने रूप माता दुर्गा के इस राशि में बनते है उनके लिये अगर सोचा जाये तो पूरे नवरात्रा ही नही कितने साल उनका वर्णन करने के लिये लगेंगे। मेरे ख्याल से बहुत मुश्किल काम है,माता की सेवा तो की जा सकती है माता के बारे में व्याख्या करना मेरे वश की बात नही है,बडे बडे तपस्वी मुनि देव दनुज सभी लगे रहे फ़िर भी उनकी व्याख्या नही कर पाये तो मेरे वश की बात कहाँ हो सकती है। अभी व्यवसाय और दक्षिण पूर्व की बात चल ही रही थी कि फ़ोन की घंटी बज गयी,चमत्कारिक रूप से माता ने अपना प्रभाव बताया कि एक भक्त राजस्थान की प्रसिद्ध करणी माता के स्थान में आया है। शुक्र मंगल का प्रभाव सीधा धर्म स्थान पर जाने से साथ में राहु की उपस्थिति माननी पडती है,कारण अश्टम भाव में केतु है। करणीमाता जिनके मन्दिर में चूहों की भरमार है,मुझे भी पिछले साल गर्मियों में उनके दर्शन करने के लिये जाना पडा था। और अबकी बार दुर्गा का स्थान करणीमाता के रूप में मानना जरूरी हो गया है। जय करणीमाता,सभी भक्तों के दुख हरो,सभी को सुख समृद्धि दो जो भी दुखिया आपको माने उसके सभी कष्ट हरो,जगत के कल्याण की भावना से चलने के लिये सभी के अन्दर बुद्धि का प्रभाव दो। रूप के बारे में दुर्गा की सवारी ही भक्त की पहिचान करवाती है। जिस सवारी पर दुर्गा सवार है उस सवारी का रूप अपने दिमाग में अपने लिये बना लेने से ही माता की भक्ति की भावना मन के अन्दर अपने आप ही पैदा हो जाती है। उनकी सवारी और उनका रूप तथा उनकी सेवा के लिये तो समझ में आ ही गया है। माता के रूप की बात दिमाग में आयी थी रूप का प्रभाव जब तक दिमाग में नही आयेगा उनके बारे में पहिचान करना मुश्किल का काम होगा। शुक्र सजा हुआ है,मन्गल से लाल रंग का शुक्र से कपडा मंगल से धर्म के लिये प्रयुक्त होने वाला। माता का आशीर्वाद किसके लिये है,माता का आशीर्वाद की शक्ति राहु के रूप में मिल रही है,उनके खजाने में राहु का रूप मिल रहा है। राहु घन की शक्ति के रूप में विराजमान है,शक्ति को देने वाला भी केतु है, राहु अनन्त आकाश की ऊंचाइयों के रूप में माना जाता है,राहु से ही आसमानी ग्रहों की शक्ति जनजीवन तक पहुंचती है। केतु उस शक्ति को संभालने और प्रयोग करने के रूप में माना जाता है,केतु के ऊपर ही जिम्मेदारी आजाती है उस शक्ति तक पहुंचा देने की। केतु ही अश्टम भाव में विराजमान है,केतु ही धर्म स्थान तक पहुंचायेगा। केतु ही धर्म का पताका है तो माता तक जाने के लिये केतु को कैसे पहिचाना जाये ? यह प्रश्न दिमाग के अन्दर उत्पन्न होता है।है जो अपने शरीर में पूंछ रखते है। पूंछ जीवों की गति को संभालने के लिये प्रयोग में ली जाती है। मछली की पूंछ जल के अन्दर मछली को गति देती है,चूहे की पूंछ चूहे को भागने दौडने और पीछे के अनुमान लगाने के लिये मानी जाती है। छिपकली की पूंछ छिपकली को आगे भागने के लिये अपनी गति देती है। लेकिन इन जीवों से देवी तक कैसे पहुंचा जा सकता है,मनुष्य को इन जीवों से पहिचान करनी है कि वे अपने को इसी प्रकार के जीवों की गति को पहिचान कर ही देवी तक जा सकते है। मनुष्य रूप में भी केतु की मान्यता है,केतु जो साधन का प्रयोग करना जानता हो,जैसे ड्राइवर को ही ले लीजिये,वह गाडी चलाकर माता के दरबार तक ले जा सकता है। केतु की मान्यता धर्म स्थान के पुजारी के रूप में माना जा सकता है,पुजारी देवी के मन्दिर में पूजा और उनके वास्तविक रूप को बताने में समर्थ है। आसमान में उडने वाले वाहनों में हवाई जहाज की भी पूँछ काम में आती है,वह अपनी पूंछ के सहारे से ही अपनी गति को बदलने के लिये माना जाता है,उसकी सवारी करने के बाद देवी तक जाया जा सकता है। घर के अन्दर देवी तक पहुंचाने के लिये केतु से भान्जे को भी माना जा सकता है,मामा को भी माना जा सकता है,जंवाई को भी माना जा सकता है,नाना को भी माना जा सकता है।
जिसका फ़ोन करणीमाता से आया था वह एक ड्राइवर है,वाहर की एक पार्टी को करणीमाता तक लेकर गया है। जो पार्टी गयी है वह भी मेरी जानकार है,उसके लडके के साथ उसके भान्जे और भतीजे गये है,हवाई जहाज से जयपुर तक आये और जयपुर सेओर फिर करणीमाता तक उस ड्राइवर के साथ गये है। करणीमाता तक जाने के लिये जो साधन है वे हमने आपको बताये है,लेकिन माता तक आज जाने का कारण भी क्या है ? इस बात का उत्तर समझने के लिये उदाहरण देखना पडेगा। जो साथ में गया है वह माता करणी का पूरा भक्त है,उसने अपने निवास स्थान में  करणीमाता का मन्दिर स्थापित कर रखा है। रोजाना भाव भक्ति से वह पूजा अर्चना करता है। लेकिन भावना की पूजा होती है,वह अपने लडकों के लिये सुख साधनों की प्राप्ति के लिये माता की पूजा के लिये पुजारी को रखता है,उसके बडे लडके ने पुजारी को अपशब्द कहे,और यह कह कर अपमानित कर दिया कि वह कुछ नही करता है हराम की खाता है और देवी के नाम से घंटी बजाकर दक्षिणा ले जाता है। पुजारी ने कोई जबाब नही दिया,वह दूसरे दिन से पूजा करने के लिये भी नही आया,जिस मन्दिर को वह अपने पूरे मनोवेग से सजा रहा था,मूर्ति के सामने दीपक जलाकर आरती और भजन गा रहा था वह सब बन्द हो गये। इधर माता का प्रकोप चालू होता है,जीवन की गति जो चलती है उसके अन्दर बदलाव आता है,जब मन्दिर के पुजारी को निकाला तो उस लडके को कुछ भी पता नही चला,वह अपने कामों में लगा रहा,भोजन के समय पर भोजन मिल गया सोनेके समय पर सोना मिल गया,पत्नी की जगह पर पत्नी और पुत्र की जगह पर पुत्र,व्यवसाय चल ही रहा है,कोई बदलाव सामान्य जीवन में नही आया।

कुछ नही होता है भगवान की पूजा आराधना से यह बात तभी तक कही जा सकती है जब तक कि भगवान की शक्ति को समझ नही लिया जाये। उस लडके का काम चलता रहा और पुजारी ने अपने लिये दूसरी जगह पर अपना काम शुरु कर लिया होगा या और कुछ करने लगा होगा उसके बारे में कुछ भी पता नही चला। एक दिन उस लडके की गाडी चलाने वाले ड्राइवर ने अपने घर के किसी काम के लिये कुछ पैसे की मांग की,आदत के अन्दर नास्तिकता हो तो दया का भाव पहले समाप्त हो जाता है,वही हाल उस लडके का था। उसने उस ड्राइवर को पैसे तो दिये नही बल्कि उसे नौकरी से निकाल कर अपमानित भी किया और यह कह कर उसे नौकरी से निकाल दिया कि उस जैसे हजारों ड्राइवर सडक पर मारे मारे घूमते है। वह ड्राइवर घर से परेशान था और नौकरी की टेन्सन  भी आजाने वह एक चिट्ठी लिखकर घर में रख गया और सीधा जाकर कलकत्ता की गंगा में छलांग लगा गया। उसका शव निकाला गया,पुलिस को उसके घर वालों ने उसके लिखे सोसाइट नोट को दिया,उसके अन्दर वह साफ़ साफ़ उस लडके के साथ उसके अन्य घर वालों का नाम भी लिख गया कि उन्होने उसे अपमानित किया नौकरी के पैसे भी नही दिये और नौकरी से भी निकाल दिया,इसलिये वह आत्महत्या कर रहा है। तीनो लोगों के लिये पुलिस गिरफ़्तार करने के लिये घूमने लगी,तीनो लोग ही घर से बेघर हो गये। बूढा बाप आजीवन माता की सेवा में रहा,माता ने उसे मन चाही सम्पत्ति और औलाद का सुख दिया। वह सीधा करणीमाता के लिये रवाना हो गया,मन्दिर में माफ़ी मांगी और पूरे महिने उनकी अर्चना की,तब जाकर उनकी जमानत हो पायी,जमानत होने के बाद उन तीनों को सबसे पहले उस बूढे बाप ने करणी माता भेजा,जहाँ से आज फ़ोन आया था।
शक्ति अपने रूप को अलग अलग स्थान पर प्रकट करती है,शक्ति कभी भी धन बल और दिखावा नही चाहती है,शक्ति को याद रखने से वह अपने अनुसार अपना बल देती रहती है,किस व्यक्ति के रूप में वह अपना बल देती है यह समझने वाली बात है। साधन शक्ति से मिलते है,व्यक्ति शक्ति से मिलते है कार्य और सफ़लता असफ़लता के साधन शक्ति से मिलते है,इन्हे पहिचान कर ही नवरात्रा की सेवा अर्चना करना  सही होगा। जय माता दी

शुक्रवार, 26 मार्च 2021

उच्च के ग्रह


्उच्च के ग्रह ््
सूर्य
सूर्य यानी पिता जिसने जीवन दिया। लग्न में उच्च का कर दिया।
           चन्द्रमा

फिर चन्द्रमा माता। द्वितीय भाव भोजन, परिवार। हो गया यहां उच्च का।

             राहु
फिर तीसरा भाव राहु भाई शारीरिक ग्रोथ, भावनाएं। सब कुछ बढ़ने लगी। हो गया राहु उच्च का।

              गुरु
फिर आये गुरु महाराज ज्ञान देने को चतुर्थ में। समझदारी, विवेक, विद्या। हो गए चतुर्थ में उच्च के।
            बुध      

अब बुध बाबू प्रतियोगिता में। हर चीज में प्रथम आने की चाह। हो गए बुध बाबू यहां उच्च के।
              शनि

अब आये शनि महाराज जिंदगी को बैलेंस करने के लिए। सप्तम में उच्च के। सोचने के लिए की क्या करना है जिंदगी में आगे।
             केतु

फिर केतु महाराज ने नवम में धर्म, उच्च कोटि की बुद्धि दे दी कि अब जीवन जी लिया आगे का क्या सोचा है।


मंगल
दसम में तो मंगल महावीर ने दिखा दिया अपने पराक्रम का दम उच्च का होक की कर्म किये जा फल की चिंता मत कर।

            शुक्र
ओर सबसे अंत मे नंबर आया शुक्र का की बहुत भोग, भोग लिया अब निर्वाण की तैयारी करो।




शनिवार, 20 मार्च 2021

देव गुरु बृहस्पति ग्रह का गोचर 2021की पुरी जानकारी

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देवगुरु बृहस्पति अपनी नीच राशि मकर की यात्रा समाप्त करके 05 अप्रैल 2021 की मध्यरात्रि कुंभ राशि में प्रवेश कर रहे हैं। इस राशि पर 13 सितंबर तक रहने के बाद वक्री अवस्था में पुनः मकर राशि में प्रवेश कर जाएंगे, जहां 20 नवंबर 2021 तक रहेंगे। उसके बाद पुनः मार्गी अवस्था में कुंभ राशि में प्रवेश कर जाएंगे। इनके राशि परिवर्तन का प्रभाव सभी प्राणियों के कार्य-व्यापार में हानि-लाभ के अतिरिक्त शासन सत्ता और न्यायिक प्रक्रिया को भी प्रभावित करता है।तुलसीदास जी ने एक चौपाई रामचरितमानस में लिखी है -"धर्म से विरति योग से ग्याना,ग्यान मोक्ष प्रद वेद बखाना",अर्थात जब व्यक्ति अपने को न्याय समाज जलवायु और मर्यादा में लेकर चलने लगता है तो उसके सामने हजारों कारण व्यस्त रहने के बन जाते है,जब वह अपने को कारण रूप से बने कार्यों के अन्दर व्यस्त कर लेता है तो वह एक योगी की भांति अपने जीवन को चलाने लगता है। उसे केवल भोजन अगर समय से मिल जाये तो ठीक है नही मिलता है तो ठीक है वह अपने को कार्यों में हमेशा ही लगाकर रखता है। कार्य की अधिकता के कारण और अपने शरीर को शरीर नही समझने पर इस प्रकार के जातक को एक योगी की भांति ही माना जा सकता है। जब व्यक्ति विरति यानी कर्म में अपने को लगा लेता है और संसार में केवल अपना कर्म ही धर्म के रूप में देखता है तो उसे योग अर्थात समय की पहिचान और कार्यों के दक्षता के साथ दुनियादारी के प्रति जानकार समझ लिया जाता है। उसे ज्ञानी की श्रेणी में रखा जाने लगता है और जब ज्ञान को खर्च करने के बाद उसका उपयोग किया जाता है,तो वह मोक्ष का अधिकारी माना जाता है। कुम्भ राशि वालों को कार्य के बाद प्राप्त फ़लों के रूप में माना जाता है,कालपुरुष के अनुसार यह राशि मित्रता और बडे भाई के रूप में माना जाता है। यह कार्य करने के बाद मिलने वाले फ़लों से भी माना जाता है,यह राशि घर बनाने और जनता से सम्बन्ध स्थापित करने के लिये प्राप्त की जाने वाली रिस्क से भी माना जाता है। यह भाव सन्तान के जीवन से चलने वाली जद्दोजहद से भी माना जा सकता है। पिता के द्वारा प्राप्त नगद आय से भी माना जाता है,पिता के द्वारा जोडे गये कुटुम्बी जनों के प्रति और उनसे मिलने वाली सहायता से भी माना जा सकता है। इस राशि का स्वभाव अपने कार्यों और पीछे की जिन्दगी से जुडे कार्यों से माना जाता है यानी जो कल किया है उससे मिलने वाले फ़लों से भी माना जा सकता है। यह राशि बडे रूप में हर कार्य को करना चाहती है छोटे रूप में कार्य करने पर यह केवल जनता के अन्दर रहकर जनता की सेवा करने के बाद और जनता से जुडी समस्याओं के प्रति अपनी वफ़ादारी को रखती है लेकिन इस प्रकार के जातकों का मोह कर्क राशि के छठे भाव में होने के कारण अन्दरूनी रूप से जनता के अन्दर की जानकारियां भी सही समय पर लेने की उत्कंठा रहती है,जब उन्हे जनता के अन्दर के भेद मिल जाते है तो उन्हे दुनियादारी में प्रसारित करने में भी अच्छा लगता है। इस राशि वाले अगर किसी प्रकार से मीडिया या इसी प्रकार के वायु वाले कमन्यूकेशन से जुड जाते है तो अपना अच्छा नाम कर लेते है और कभी कभी यह भी देखा गया है कि इनकी रुचि आलसी होने के कारण और पूर्व में अपने द्वारा फ़रेब आदि करने से गुरु के समय में दिक्कत भी आती है। इस राशि में गोचर किया है गुरु ने कुंभ राशि जो शनि की राशि है और काल पुरुष की कुंडली के अनुसार यह खाना नंबर 11 है।पिछले समय से चली आ रही अपमान मौत और जोखिम के लिये जो शनि बार बार अपनी शक्ति को दे रहा था उसके अन्दर कमी आएगी शनि मकर में है पहले गुरु के साथ था अब गुरु उसके आगे एक घर आ जाएगा गुरु के कुंभ राशि में आ जाने से धन वाली और परिवार कुटुम्ब वाली परेशानियों में अन्त होने का समय माना जाता है,जो लोग पहले अपनी रिस्क के अनुसार जनता के धन को प्रयोग में लाने के बाद जनता के कर्जी बन गये थे और उन्हे कोई रास्ता चुकाने का नही मिल रहा था वह इस गुरु की कृपा से कोई न कोई रास्ता मिल जाता है चाहे वह रास्ता किसी प्रापर्टी को बेचने के बाद मिलता हो या कोई प्रापर्टी वाला कार्य करने के बाद मिलने वाले कमीशन आदि से जाना जाता हो। कुंभ को अगर लगन मानकर चलें तो गुरु की पांचवीं द्रिष्टि पंचम भाव यहां पर मिथुन राशि आती है जो कि काल पुरुष की कुंडली के अनुसार तीसरी राशि भी है मिथुन राशि वालों के लिए गुरु की दृष्टि अमृत के समान है।मिथुन राशि कमन्यूकेशन और प्रदर्शन की राशि है,इस राशि से कालपुरुष अपनी प्रकृति को दर्शित करता है,संसार में जितने भी कमन्यूकेशन के साधन है और जैसा भी स्थान देश और जलवायु के अनुसार बोलचाल रहन सहन अपने को लोगों को दिखाने की कला है,वह सब मिथुन राशि के ऊपर ही निर्भर करती है। गुरु इस राशि से सप्तम भाव और दसवें भाव का मालिक है। सप्तम जीवन साथी और साझेदारी के नाम से जाना जाता है और व्यक्ति अपने जीवन में जो भी करने के लिये आता है वह सब सप्तम के साथ आमना सामना करने के बाद ही करता है। मिथुन राशि का स्वभाव होता है कि वह गर्म के सामने ठंडी हो जाती है और ठंडे के सामने अपनी गर्मी को प्रस्तुत करती है। यह स्वभाव व्यक्ति स्थान वस्तु के लिये भी देखा जाता है,जैसे घर बनवाते समय बरसात के मौसम में उसकी सुरक्षा के लिये छत बनाना और बिना बरसात वाले स्थान में जहां धूप गर्मी और जाडे की आवश्यकता नही समझी जाती है वहां खुला छोड दिया जाता है। उसी प्रकार से मनुष्य के पहिनावे के लिये भी देखा जाता है,मनुष्य के बोलचाल की भाषा में भी देखा जाता है,भाषा और भाषा के विश्लेषण के लिये भी देखा जाता है। इस राशि का प्रभाव हर मनुष्य के अन्दर किसी न किसी रूप में मिलता है.

इस राशि वालों के जीवन साथी के मामले में माना जाता है कि जीवन साथी तो ज्ञान और मर्यादा के साथ बंध कर रहता है लेकिन इस राशि वाले का स्वभाव जो है उसे बोल देने और केवल बातें करने से माना जाता है। इस राशि वाले गाने बजाने और संगीत आदि के प्रेमी होते है जब कि उनके जीवन साथी अपने अनुसार हमेशा चुप रहने और बडी बातें सोचने के कारण अपने को गुप्त ही रखा करते है। इस राशि के दसवें भाव का मालिक गुरु है जो ज्योतिष के अनुसार नीच का कहलता है,और इस गुरु की शिफ़्त के अनुसार जो भी कार्य इस राशि वालों से प्रकृति करवाती है वह सभी किसी न किसी प्रकार से घर और बाहर की बातें ध्यान में रखकर तथा सबसे पहले धन के मामले में सोच कर ही की जाती है,अक्सर इस राशि वालों की मुख्य कमाइया किराया ब्याज से लेना या देना और जनता से अपनी इच्छाओं की पूर्ति में रहता है,इस राशि वाले अपना भावनात्मक रूप इस प्रकार से प्रस्तुत करते है कि सामने वाला इनकी बातों में जरूर आजाता है,और जो भी इन्हे अपने अनुसार करना होता है कर जाते है और अपने लिये जो भी चाहत होती है पूरी कर लेते है,इनके अष्टम में शनि की मकर राशि होने से यह अपने प्रभाव को अन्दरूनी गुप्त रिस्तों में बहुत ही छिपाकर रखते है और अक्सर बडी उम्र वाले हमेशा अपनी उम्र से कम लगने के कारण अपने से कम उम्र वालों के साथ मिलकर चलते देखे जा सकते है। इस राशि वालों की सिफ़्त एक प्रकार से बडी खतरनाक भी होती है यह अपने घर की बात किसी को नही बताते लेकिन इनके पास सबकी खबर रहती है कि कब किसके यहां क्या हो रहा है। गुरु को दोहरे धन और धन के द्वारा बनायी जाने वाली सम्पत्ति से तथा घर आदि केरहने के स्थान के परिवर्तन से भी माना जाता है। जनता के अन्दर से ही धन को लेने के बाद जनता के लिये ही कमाने का उपक्रम भी सामने आने लगता है जो लोग शेयर बाजार कमोडिटी आदि का कार्य करते है उन्हे जनता से धन प्राप्त करने और जनता के लिये कमाकर देने के लिये अच्छा समय माना जा सकता है लेकिन अगर वही लोग अपने कमाये धन को अचल सम्पत्ति के रूप में इकट्ठा करते रहे तो आगे के समय उनके लिये अपनी औकात दिखाने का और अपने नाम को बनाने का सही अवसर भी माना जाता है। जो भी रिस्क लेने वाले साधन है उनके अन्दर यह राशि वाले अगर अपनी बुद्धि को जरा भी प्रयोग में लाते है तो उन्हे धन के कमाने से कोई रोक नही सकता है,इसके लिये उन्हे यह भी ध्यान रखना पडेगा कि वारहवे विराजमान राहु उन्हे अचानक ऐसे खर्चे करवाएगा जिसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की होगीऔरअपनोद्वारा कपट पूर्ण व्यवहार से भी बाधित करेगा,मित्रो से झूठ और फ़रेब से बचकर भी जातक को चलना पडेगा.समय समय पर अपने द्वारा कमाये गये लाभ को अगर वह किसी दूसरे की मंत्रणा से खर्च करता है तो उसे अचानक हानि का भी सामना करना पडेगा। इस गुरु की सप्तम द्रिष्टि सिंह राशि पर जाने से भी अगर वह अपना मोह नौकरी आदि के लिये करता है तो उसके द्वारा किये जाने वाले कोई भी प्रयास जोखिम तो ले सकते है लेकिन सभी जोखिम लेने के पीछे सरकारी अफसरोसे सहयोग मिलने के ही आसार मिलते है,अगर हो सके तो इस गुरु के प्रभाव की गर्म हवाओं से बचने के लिये दूसरे की नौकरी में कोई रिस्क लेना बेकार ही माना जायेगा। इस गुरु की नवीं द्रिष्टि कर्म भाव में जाने से और कर्म भाव में तुला राशि में होने से जोतुला राशि तुलनात्मक कार्यों के लिये उत्तम राशि है,यह धर्म अर्थ काम और मोक्ष के बारे में तुलनात्मक अध्ययन करना जानती है.बिना शुक्र की भौतिकता के इस राशि वाले अपने कार्यों को प्रदर्शित नही कर सकते है। तुला राशि वाले अपने अन्दर ही हमेशा सिमटे रहने वाले होते है और वक्त पडने पर उसी राय को प्रदान करते है जो उनके अनुसार सर्वश्रेष्ठ होती है। इस राशि वालों को हमेशा नकारात्मक परिस्थितियों से जूझना पडता है,जो भी खुद के लोग होते है वे केवल शमशानी क्रियाओं तक ही साथ रहते है,जिन्हे सहायता दी जावे वे अपने को दूर करने के बाद पीछे से बुराइयां ही प्रदान करते है,गुरु इस राशि के तीसरे और छठे भाव का मालिक होता है,तीसरा भाव धनु राशि होने से इस राशि वालों को अपने को प्रदर्शित करने के लिये केवल न्याय वाले क्षेत्र,धर्म और भाग्य से सम्बन्धित क्षेत्र, समाज मर्यादा और देश के प्रति किये जाने वाले प्रयासों के लिये लिखने पढने और बोलने के अन्दर सामाजिकता प्रभाव रखने वाले आदि स्थान माने जाते है,मीन राशि जो गुरु की नकारात्मक राशि है इस राशि के छठे भाव मे अपना स्थान रखती है,यह भाव भी नकारात्मक है और यह राशि भी नकारात्मक है,नियम के अनुसार जब दो नकारात्मक शक्तियां आपस में मिलती है तो कोई न कोई सकारात्मक परिणाम ही निकलता है। किसी भी नकारात्मक स्थान की सेवा करने के बाद उस स्थान को सकारात्मक बनाना इस राशि वालों के लिये इसी मीन राशि से सहायता मिलती है। इस राशि वालों के पास या तो कर्जा होगा नही और होगा तो इतना बडा होगा कि आजीवन उसे चुकाने में लगे रहना पडेगा,या तो कोई बीमारी होगी नहे और होगी भी तो इतनी बडी कि आजीवन उस बीमारी के लिये सोचना ही पडेगा,या तो इस राशि वाले सेवा करेंगे नही और करेंगे तो आजीवन सेवा के कार्य ही करते रहेंगे। भी कबाड से जुगाड बनाने की कला होती है वह जातक के अन्दर आराम से काम करने लगती है और व्यक्ति अपने दिमाग से राख से भी सोना पैदा करने की जानकारी रख सकता है। उसके द्वारा ब्रोकर वाले कार्य किसी भी तरह की कमीशन खोरी के कार्य करने वालों को धन लाभ होगा और इस काम से उससे अधिक धन पैदा करने के कार्य पिछले समय में अपनी योग्यता से जो हानि प्राप्त की है उस योग्यता को प्रदर्शित करने और उसके प्रयोग करने के बाद गयी हुयी प्रतिष्ठा को हासिल किया जा सकता है।

रविवार, 14 मार्च 2021

तंत्र-मंत्र-यंत्र और नारी


लोग ज्योतिष को जब अपनी कुंडली दिखाते हैं तो अक्सर एक सवाल पूछते हैं कि कुंडली में किसी तंत्र-मंत्र का असर तो नहीं है. दरअसल, तंत्र एक प्रक्रिया है जिससे हम अपनी आत्मा और मन को बंधन मुक्त करते हैं. तंत्र की प्रक्रिया से मन और शरीर शुद्ध होता है.
इससे ईश्वर का अनुभव करने में सहायता मिलती है. तंत्र की प्रक्रिया से भौतिक और आध्यात्मिक जीवन की समस्या का हल निकाल सकते हैं. तंत्र में पुरुष को को हवा और स्त्री को धरती का रूप दिया गया है। पुरुष की प्रवृत्ति होती है कि वह किसी भी दिशा में गर्मी की तरफ़ बढ लेता है और स्त्री का कार्य किसी भी वस्तु को सहेज कर रख लेने का होता है। स्त्री के अन्दर सहेज कर रखने की प्रवृत्ति अक्सर पुरुषों को समय पर काम भी देती है और जो समझदार नही होते है वे स्त्री के द्वारा सहेज कर रखने वाली वस्तु को नकारते है या बिना समझे उसका दुरुपयोग करते है। सभी स्त्रियों की प्रकृति एक समान होती है,लेकिन जिस प्रकार से एक ही तरह की मिट्टी से कई तरह के मीठे खट्टे चरपरे नमकीन स्वाद अन्य वस्तुओं के सहयोग से निकाल लिये जाते है उसी प्रकार से स्त्री भी अपने स्वभाव से सभी तरह के विषय अपने पास जमा करने के बाद समय पर उन सभी का प्रभाव अपने परिवार को देने का काम करती है। धन की कामना भी स्त्री को इसीलिये अधिक होती है कि वह सभी तरह के विषयों को अपने पास इकट्ठा कर सके। वैसे स्त्री को प्रकृति के अनुसार सोलह जगह से बांधा गया है,और जो स्त्रियां अपने बंधनो से मुक्त है तो वे किसी भी दिशा में अपने विषयों की प्राप्ति के लिये गलत या सही जैसा भी मार्ग अपना सकती हैं। स्त्री का दिमाग कभी भी एक जैसा नही होता है,वह अपने दिमाग को लाखों तरीके से प्रयोग करने की कोशिश करती है। महिलायें किस प्रकार से अपने तंत्र को प्रयोग करती है जो उन्होने प्राचीन या किसी के द्वारा प्रयोग करने के लिये दिये गये तंत्रों से समाधान मिलता है।
स्वप्न तंत्र की प्रक्रिया
सबसे पहले इस तंत्र का बखान करना इसलिये मुख्य समझा है कि यह हर किसी महिला के साथ अक्सर देखा जाता है,सुबह की चाय का स्वाद अगर अधिक मीठा या चाय में शक्कर नही है तो पहिचान लेना चाहिये कि रात को श्रीमती के द्वारा स्वप्न देखा गया है और उसी स्वप्न की उधेड बुन में चाय का स्वाद अधिक मीठा या फ़ीका रह गया है। स्वप्न की बातों का सीधा असर महिलाओं में इसलिये और अधिक जाता है कि वे केवल अपने आसपास के माहौल से काफ़ी सशंकित रहती हैं। पडौसी के घर पर क्या हो रहा है,पडौसिन ने किस से क्या बात की है,पडौसी के घर पर कौन सा नया काम हुआ है,आदि बातें केवल महिलाओं के द्वारा जल्दी से जानी जा सकती है,यह केवल प्रकृति के द्वारा दिया गया एक तोहफ़ा ही माना जायेगा जिनके प्रति हम कभी जागरूक नही होते है वह बातें महिलाओं को जल्दी पता चल जाती है। पति के प्रति अगर उन्हे संदेह होता है तो वे फ़ौरन अपने स्वप्न का अर्थ पता नही किन किन बातों से लगाना शुरु कर देती है और जब स्वप्न में उन्हे कोई अप्रिय बात देखने को मिलती है तो वे किसी ना किसी बहाने से पूंछना शुरु कर देतीं है और अगर पति उन बातों का सही उत्तर देता है तो वे अक्सर समय पर आश्वस्त नही होती है,और इन्तजार भी करती है कि आखिर में यह बात उन्होने देखी क्यों? एक महिला ने स्वप्न में देखा कि उसकी मरी हुई सास उसके आभूषणों को अन्य किसी महिला को पहिना रही है,महिला ने सुबह से ही उन आभूषणों के बारे में सोचना चालू कर दिया,पति से कई सवाल किये गये कि लाकर में जो आभूषण रखे है वे सही सलामत तो है,उन्हे निकाल कर कहीं गिरवी आदि तो नही रखा गया है,अथवा आज चल कर अपने लाकर के आभूषण चैक करने है। पति को कोई जरूरी काम है और उसने ना नुकर की तो बस घर के अन्दर क्लेश चालू हो गया,आखिर में पति महोदय उन्हे लेकर लाकर में रखे आभूषणों को दिखाने के लिये गये,सभी आभूषणों को चैक किया गया तो हार गायब था। पत्नी को शक सबसे पहले अपने पति पर गया और उनसे पूंछा कि उसकी अनुपस्थिति में लाकर को खोला था,बैंक के मैनेजर से जानकारी मांगी कि कब कब लाकर खुला है,लेकिन पता लगा कि लाकर उसकी अनुपस्थिति में खोला ही नही गया है। बहुत सोचने के बाद कि आखिर हार लाकर से कहाँ गया। पति तो अपने कामों में व्यस्त हो गये लेकिन श्रीमती जी का खाना पीना सब हराम हो गया। वे तरह से तरह से सोचने लगीं कि आखिर में हार गया कहाँ ? आखिरी बार उसे पहिना था और पहिन कर फ़लां की शादी में गये थे,उसके बाद उसे पहिना था तो दूसरे दिन ही लाकर में रख कर आ गये थे। उस हार की चिन्ता में शहर के जाने माने ज्योतिषी जी के पास वे गयीं और उनसे पूंछा,ज्योतिषी जी ने अपनी ज्योतिष से बताया कि हार उन्ही की घर की महिला के पास है। लेकिन यह पता कैसे लगे कि महिला घर की कौन है? वे चिन्ता में घर आयीं,और पलंग पर पडकर सोचने लगीं। रात को पति काम से वापस आये,अनमने ढंग से भोजन आदि दिया गया,और फ़िर पति की खोपडी खाने का समय मिला था,अचानक पति को ध्यान आया कि एक बार उनकी भाभी ने कहीं जाने के लिये गहने मांगे थे,और वे वापस भी कर गयीं थी,लेकिन यह नही देखा था कि हार उन गहनों में है या नही। उन्होने अपनी भाभी से पूंछने के लिये फ़ोन उठाया और पूंछा,-"भाभी आपने जो गहने लिये थे,उस समय हार तो आपके पास नही रह गया था,आज जब लाकर चैक किया तो हार उसके अन्दर नही मिला है",भाभी ने सीधे से उत्तर दिया कि हार वे इसलिये वापस नही कर पायीं थी कि उनकी बडी वाली लडकी पहिन कर अपने ससुराल चली गयी थी और तब से अभी तक आयी नही है,उन्होने सोचा था कि आयेगी तभी जाकर दे आयेंगी। पूरा भेद खुल गया,कि हार जो उस महिला की सास दूसरी औरत को पहिना रही थी,वह बात सही थी,इससे उन श्रीमती का विश्वास स्वप्न के प्रति पक्का हो गया था। इस प्रकार से महिलायें अपने स्वप्नो का अर्थ विभिन्न तरीकों से लगाया करती है,अक्सर उनके स्वप्नों का फ़ल भी सही ही निकलता है।
अंग फ़डकने का फ़ल
महिलाओं में रोजाना यही बात और की जाती है कि आज उनकी दाहिनी आंख फ़डक रही है,दाहिनी आंख महिलाओं की फ़डकने के से अक्सर खराब असर ही मिलते हैं। बेकार की आशंका से पीडित होने पर या घर में किसी के बीमार होने पर अथवा किसी नये किये जाने वाले काम के प्रति आशंकायें की जाती है,घर का कोई सदस्य बाहर होता है तो उसके बारे में अच्छे बुरे विचार किये जाते है,और जब कोई आसपास के लोगों में या परिवार में कोई दुर्घटना घट जाती है तो वह आंख भी फ़डकना बंद हो जाता है,और इस प्रकार से अंग फ़डकने की क्रिया को भी अक्सर महिलाओं में सत्य माना जाने लगता है

गुरुवार, 11 मार्च 2021

तंत्र विद्या- तांत्रिक और आम आदमी

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धर्म ग्रंथों में तंत्र विद्या का महत्व दर्शाया गया है। जो लोग रामायण, महाभारत, शिव पुराण या अन्य ग्रंथों के अस्तित्व को स्वीकारते हैं वे तंत्र विद्या को नकार नहीं सकते। जिस तरह किसी बीमारी को दूर करने दवाई का सेवन जरूरी है उसी तरह जीवन की कुछ समस्याएं ऐसी होती है, जिनका समाधान तंत्र विद्या में है, जिसे विधिवत किया जाए तो फल अवश्य मिलता है। लेकिनअज्ञानी लोगों का यह दुर्भाग्य है कि वे अपनी समस्याओं के निवारण के चक्कर में ढोंगी तांत्रिकों का सहारा लेते हैं। वास्तव में जिस तांत्रिक को तंत्र विद्या का सच्चा ज्ञान होगा वह भोलेभाले लोगों की भावनाओं के साथ कभी खिलवाड़ नहीं करेगा। तंत्र विद्या की यह पहली शर्त होती है कि इसके जरिए समाज के दुखी लोगों को राहत पहुंचाई जाए।
तंत्र का उपयोग मानव कल्याण के लिये किया जाता है,लेकिन मानव ही मानव को तंत्र के तरीके से लूटे तो वह तंत्र कदापि भला नही हो सकता है,जैसे एक डाक्टर का काम मरीज को बचाकर उसकी जिन्दगी देना होता है,कारण उसे शरीर के तंत्र के बारे में सभी बातें ज्ञात होती है,लेकिन वही डाक्टर अगर अपनी विद्या का उल्टा प्रयोग करना चालू कर दे,और बजाय मरीज को बचाने के मरीज के अन्दर अपने धन का भंडार देखना चालू कर दे,अच्छे भले मरीज को जिसे केवल कुछ समय के लिये पेट का दर्द है और उसे अपनी जान पहिचान की लेब्रोटरी से कुछ टेस्ट करवा कर किडनी का मरीज घोषित कर दे,और किडनी को निकाल कर बेच दे तथा मरीज के रिस्तेदार की किडनी को निकाल कर मरीज के लगा दे,तो इसके अन्दर तंत्र दोषी नही माना जा सकता है,तंत्र को प्रयोग करने वाले दोषी माने जा सकते है।भौतिक तथा आजकी उठापटक के अन्दर अपने अन्दर हर व्यक्ति एक भावना पाल कर चल रहा है कि किस प्रकार से वह अधिक से अधिक धन को कमा सकने में समर्थ हो सकता है और उस कमाये हुये धन को मन चाहे तरीके से दूसरों को नीचा दिखाने केलिये प्रयोग करना चालू कर सकता है,उसे जो करना है वह उन बातों को पूरा करने के लिये मानसिक रूप से सोचा करता है कि कब उसकी चाहत वाली बातें पूरी हो सकती है। उन मानसिक बातों को पूरा करने केलिये वह तरह तरह की बातें करना तरह तरह के प्रयोग करना और तरह तरह के साधन बनाकर इन्सान के दिमाग को इन्सान की बुराइयों और इन्सान को ही खत्म करने वाली वस्तुओं को पैदा करना आदि यह सब एक जानवर से अधिक कुछ नही हो सकता है जैसे एक कुत्ते के सामने कोई मांस का टुकडा डाल दिया तो वह अन्य कुत्तों को पास नही फ़टकने देना चाहता है वह चाहता है कि कोई उसके मांस के टुकडे को कोई ले नही जाये।
शिक्षा का अर्थ
शिक्षा का वास्तविक अर्थ विकास होता है,वह शिक्षा चाहे शरीर की हो,धन की हो,व्यक्ति या समाज की हो या फ़िर राजनीति की हो,या फ़िर तकनीक से सम्बन्ध रखती हो,शिक्षा का मूल उद्देश्य विकास ही होता है,अगर शिक्षा से विकास का रास्ता खुलता है तो बेकार का दिमाग जिसके अन्दर कचडा बचपन से भरा होता है उसके समाज और परिवार में जो शुरु से होता रहा है उसके प्रति वह जो शिक्षा को प्राप्त करने वाला है तो उसका दुरुपयोग करने की सोचता है। बहुत ही मुश्किल और कई दसक लगातार काम करने के बाद पहले गणना के यन्त्र बनाये गये फ़िर कम्पयूटर का निर्माण हुआ,यह केवल इसलिये हुआ कि आदमी जल्दी से काम करना सीखे,उसे जो एक साल मे काम करना है उसे वह एक दिन में कर ले,बडी बडी फ़ाइलों को सम्भालने के लिये बडे बडे स्टोर और उनकी देखभाल रख रखाव और प्राकृतिक आपदा के कारण खराब होने से बचाया जा सके,लेकिन उसी जगह कचडा रखने वाले दिमागी लोगों ने पूरा सिस्टम खराब करने के लिये वाइरस का निर्माण ही कर डाला जो दस साल मेहनत की गयी उसे एक सेकेण्ड में बरबाद करने लग गया। शिक्षा का मतलब यह नही होता कि व्यक्ति अपने नैतिक मूल्यों से ही गिर जाये,और प्राचीन महाऋषियों और ज्ञानियों को ही गालियां देने लगे,वह भूल जाये कि जिस विद्या को समझदार समाज खोज रहा है उसे लेने के लिये मारा मारा घूम रहा है,वह सर्वप्रथम हमारे भारत में ही प्राप्त हुयी थी। और उसी शिक्षा की बदौलत हमारा नाम विश्व के कौने में प्रसिद्ध है। जिन्हे हम गंवार जाहिल और बेवकूफ़ की संज्ञा देते है उनके परिवार आज भी सही सलामत और बंधे हुये चल रहे है लेकिन जो आज अलग थलग है और अपनी ही सभ्यता को भूल कर घूम रहे है उन्हे जवानी में तो भोग मिल सकते है लेकिन बुढापे के लिये उन्हे वृद्धाश्रम की ही खोज करनी पडती है।
कौन है तंत्र को बदनाम करने वाला
कहा जाता है कि जब लोमडी को अंगूर नही मिले तो वह कहने लगी कि खट्टे अंगूर है,वही हाल मध्यम परिवारों का है,पुराने जमाने की शिक्षा की बदौलत उनके परिवार कुछ अमीर बन गये,उनकी शिक्षा को जब पूरा किया गया तो वे अपने को शहंशाह समझने लगे और खुद के ही बाप को जब गाली दी जा सकती है,पूर्वजों की बात ही कौन कहे,जब घर के अन्दर आते ही अपने घर वालों की बात का उल्टा जबाब दिया जाये,घर के बडे बूढों के अन्दर जनरेशन गेप बता कर उन्हे बातचीत से दूर किया जाये,एक कोने में कुछ साधन देकर लिटा दिया जाये,पत्नी को काम और बच्चों से फ़ुर्सत नही हो,घर का बुजुर्ग अपने हाल में पडा पडा कराहता रहता हो,और वे ही अगर तंत्र को बेकार बतायें तो वह किस मायने में सही कहा जा सकता है।

तंत्र विद्या- तांत्रिक और आम आदमी

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धर्म ग्रंथों में तंत्र विद्या का महत्व दर्शाया गया है। जो लोग रामायण, महाभारत, शिव पुराण या अन्य ग्रंथों के अस्तित्व को स्वीकारते हैं वे तंत्र विद्या को नकार नहीं सकते। जिस तरह किसी बीमारी को दूर करने दवाई का सेवन जरूरी है उसी तरह जीवन की कुछ समस्याएं ऐसी होती है, जिनका समाधान तंत्र विद्या में है, जिसे विधिवत किया जाए तो फल अवश्य मिलता है। लेकिनअज्ञानी लोगों का यह दुर्भाग्य है कि वे अपनी समस्याओं के निवारण के चक्कर में ढोंगी तांत्रिकों का सहारा लेते हैं। वास्तव में जिस तांत्रिक को तंत्र विद्या का सच्चा ज्ञान होगा वह भोलेभाले लोगों की भावनाओं के साथ कभी खिलवाड़ नहीं करेगा। तंत्र विद्या की यह पहली शर्त होती है कि इसके जरिए समाज के दुखी लोगों को राहत पहुंचाई जाए।
तंत्र का उपयोग मानव कल्याण के लिये किया जाता है,लेकिन मानव ही मानव को तंत्र के तरीके से लूटे तो वह तंत्र कदापि भला नही हो सकता है,जैसे एक डाक्टर का काम मरीज को बचाकर उसकी जिन्दगी देना होता है,कारण उसे शरीर के तंत्र के बारे में सभी बातें ज्ञात होती है,लेकिन वही डाक्टर अगर अपनी विद्या का उल्टा प्रयोग करना चालू कर दे,और बजाय मरीज को बचाने के मरीज के अन्दर अपने धन का भंडार देखना चालू कर दे,अच्छे भले मरीज को जिसे केवल कुछ समय के लिये पेट का दर्द है और उसे अपनी जान पहिचान की लेब्रोटरी से कुछ टेस्ट करवा कर किडनी का मरीज घोषित कर दे,और किडनी को निकाल कर बेच दे तथा मरीज के रिस्तेदार की किडनी को निकाल कर मरीज के लगा दे,तो इसके अन्दर तंत्र दोषी नही माना जा सकता है,तंत्र को प्रयोग करने वाले दोषी माने जा सकते है।भौतिक तथा आजकी उठापटक के अन्दर अपने अन्दर हर व्यक्ति एक भावना पाल कर चल रहा है कि किस प्रकार से वह अधिक से अधिक धन को कमा सकने में समर्थ हो सकता है और उस कमाये हुये धन को मन चाहे तरीके से दूसरों को नीचा दिखाने केलिये प्रयोग करना चालू कर सकता है,उसे जो करना है वह उन बातों को पूरा करने के लिये मानसिक रूप से सोचा करता है कि कब उसकी चाहत वाली बातें पूरी हो सकती है। उन मानसिक बातों को पूरा करने केलिये वह तरह तरह की बातें करना तरह तरह के प्रयोग करना और तरह तरह के साधन बनाकर इन्सान के दिमाग को इन्सान की बुराइयों और इन्सान को ही खत्म करने वाली वस्तुओं को पैदा करना आदि यह सब एक जानवर से अधिक कुछ नही हो सकता है जैसे एक कुत्ते के सामने कोई मांस का टुकडा डाल दिया तो वह अन्य कुत्तों को पास नही फ़टकने देना चाहता है वह चाहता है कि कोई उसके मांस के टुकडे को कोई ले नही जाये।
शिक्षा का अर्थ
शिक्षा का वास्तविक अर्थ विकास होता है,वह शिक्षा चाहे शरीर की हो,धन की हो,व्यक्ति या समाज की हो या फ़िर राजनीति की हो,या फ़िर तकनीक से सम्बन्ध रखती हो,शिक्षा का मूल उद्देश्य विकास ही होता है,अगर शिक्षा से विकास का रास्ता खुलता है तो बेकार का दिमाग जिसके अन्दर कचडा बचपन से भरा होता है उसके समाज और परिवार में जो शुरु से होता रहा है उसके प्रति वह जो शिक्षा को प्राप्त करने वाला है तो उसका दुरुपयोग करने की सोचता है। बहुत ही मुश्किल और कई दसक लगातार काम करने के बाद पहले गणना के यन्त्र बनाये गये फ़िर कम्पयूटर का निर्माण हुआ,यह केवल इसलिये हुआ कि आदमी जल्दी से काम करना सीखे,उसे जो एक साल मे काम करना है उसे वह एक दिन में कर ले,बडी बडी फ़ाइलों को सम्भालने के लिये बडे बडे स्टोर और उनकी देखभाल रख रखाव और प्राकृतिक आपदा के कारण खराब होने से बचाया जा सके,लेकिन उसी जगह कचडा रखने वाले दिमागी लोगों ने पूरा सिस्टम खराब करने के लिये वाइरस का निर्माण ही कर डाला जो दस साल मेहनत की गयी उसे एक सेकेण्ड में बरबाद करने लग गया। शिक्षा का मतलब यह नही होता कि व्यक्ति अपने नैतिक मूल्यों से ही गिर जाये,और प्राचीन महाऋषियों और ज्ञानियों को ही गालियां देने लगे,वह भूल जाये कि जिस विद्या को समझदार समाज खोज रहा है उसे लेने के लिये मारा मारा घूम रहा है,वह सर्वप्रथम हमारे भारत में ही प्राप्त हुयी थी। और उसी शिक्षा की बदौलत हमारा नाम विश्व के कौने में प्रसिद्ध है। जिन्हे हम गंवार जाहिल और बेवकूफ़ की संज्ञा देते है उनके परिवार आज भी सही सलामत और बंधे हुये चल रहे है लेकिन जो आज अलग थलग है और अपनी ही सभ्यता को भूल कर घूम रहे है उन्हे जवानी में तो भोग मिल सकते है लेकिन बुढापे के लिये उन्हे वृद्धाश्रम की ही खोज करनी पडती है।
कौन है तंत्र को बदनाम करने वाला
कहा जाता है कि जब लोमडी को अंगूर नही मिले तो वह कहने लगी कि खट्टे अंगूर है,वही हाल मध्यम परिवारों का है,पुराने जमाने की शिक्षा की बदौलत उनके परिवार कुछ अमीर बन गये,उनकी शिक्षा को जब पूरा किया गया तो वे अपने को शहंशाह समझने लगे और खुद के ही बाप को जब गाली दी जा सकती है,पूर्वजों की बात ही कौन कहे,जब घर के अन्दर आते ही अपने घर वालों की बात का उल्टा जबाब दिया जाये,घर के बडे बूढों के अन्दर जनरेशन गेप बता कर उन्हे बातचीत से दूर किया जाये,एक कोने में कुछ साधन देकर लिटा दिया जाये,पत्नी को काम और बच्चों से फ़ुर्सत नही हो,घर का बुजुर्ग अपने हाल में पडा पडा कराहता रहता हो,और वे ही अगर तंत्र को बेकार बतायें तो वह किस मायने में सही कहा जा सकता है।

सोमवार, 8 मार्च 2021

तंत्र विज्ञान-तंत्र क्या है?

www.acharyarajesh.inतंत्र क्या है

तंत्र- भी इसी तरह एक टेक्नोलॉजी है, लेकिन एक अलग स्तर की, पर है भौतिक ही। यह सब करने के लिए इंसान अपने शरीर, मन और ऊर्जा का इस्तेमाल करता है टेक्नोलॉजी चाहे जो हो, हम अपने शरीर, मन और ऊर्जा का ही इस्तेमाल करते हैं। आम तौर पर हम अपनी जरूरतों के लिए दूसरे पदार्थों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन एक mobile फोन या किसी टेक्नोलॉजी के उत्पादन के लिए जिन बुनियादी पदार्थों का उपयोग होता है, वे शरीर, मन और ऊर्जा ही होते हैं
आज जबकि तंत्र या तांत्रिक को पढे लिखे लोग धोखा,पाखण्ड तथा अन्धविश्वास कहते है तो तन्त्र प्रयोग लिखने का औचित्य क्या है? आप किसी भी चीज को दिखाना चाहते है या उसे समझाना चाहते है, यदि वह व्यक्ति उस विषय की गहराई या उस चीज की विशेषता को नहीं जानता इसलिये वह आपका आपकी चीज का तथा आपकी बात का मजाक उडाता है,व्यंग बाण छोडता है तथा अन्धविश्वास कहता है,यही स्थिति पढे लिखे लोगों की हो गयी है,वे अपने अपने विषय के अलावा और कुछ समझने की कोशिश ही नही करते है,उन्हे यह भी पता नही होता है कि वे जब अपनी माँ के पेट में आये होते है उस समय भी दाई ने या डाक्टर ने कोई तंत्र ही किया होता है,अगर दाई या डाक्टर नही होगा तो घर की किसी बढी बूढी महिला के द्वारा तंत्र बताया गया होगा कि इस प्रकार से इतने दिन के पीरियड के समय में बच्चा गर्भ मे आ सकता है,और इतने दिन के पीरियेड के बाद कन्या गर्भ में आ सकती है,इतने दिन के पहले या इतने दिन के बाद गर्भ धारण किया तो बच्चा या तो गर्भपात से गिर जायेगा या पैदा होते ही मर जायेगा,जो लोग तंत्र को नही जानते है वे या तो बच्चों के लिये जीवन भर पछताते रहते है या फ़िर किसी का बच्चा गोद लेकर अपना काम चलाते है,इसके लिये भी अस्पतालों एक फ़र्टिलिटी सेंटर खुल गये है वे आसानी से किसी के वीर्य को किसी के गर्भ में स्थापित कर देते है और एक की जगह दो दो बच्चे जुडवां तक दे देते है। यह सब तंत्र नही है तो क्या है,डाक्टर को दवाई और शरीर विज्ञान का तंत्र आता है उसे आता है कि किस स्थान की कमी है और उस कमी को पूरा करने के लिये कौन सी नश को काट कर या नकली नश को लगाकर काम चलाया जा सकता है,आजकल तो तंत्र के बलबूते पर डाक्टर नकली वाल्व लगाकर दस बारह साल के लिये ह्रदय को चालू कर देते है।
जिस पश्चिमी सभ्यता के पीछे आज के भारतीय लोग दौडे चले जा रहे है,उन लोगों को पता नही था कि भारत में हनुमान जी की पूजा आदि काल से की जाती रही है,वे जब भारत में घूमने के लिये आते तो वे भारत में मंगलवार के दिन हनुमान जी के मंदिर में जाकर लोगों को चिढाया करते थे,Oh ! here is monkey Go? क्या बात है यहां तो बन्दर भी भगवान हैं। जब उन्होने ही मंगल पर वाइकिंग भेजा और जब पहली मंगल की तस्वीर वाइकिंग ने भेजी तो उन्हे यह देखकर महान आश्चर्य हुआ कि जो तस्वीर बंदर के रूप में भारत में पूजी जाती है वह कोई बन्दर की तस्वीर नही होकर "Face of Mars" मंगल का चेहरा है।हमारे यहाँ हनुमान जी की पूजा का महत्व मंगलवार के दिन ही माना जाता है,और मंगल ग्रह की शांति के लिये ही हनुमानजी की पूजा की जाती हैऔर जब भी कोई बाधा आती है तो एक ही दोहा उनकी आराधना के लिये मसहूर माना जाता है,-"लाल देह लाली लसे,और धरि लाललंगूर,बज्र देह दानव दलन जय जय जय कपि शूर",आज जब वैज्ञानिक इस तस्वीर को पा गये है तो उनको आश्चर्य होने लगा है कि यह चेहरा भारत में कैसे पूजा जाने लगा,भारत के लोगों को कैसे पता लगा कि मंगल का चेहरा बन्दर जैसा है,वे बिना किसी यान या विमान के वहाँ कैसे पहुंच गये,जब लोगों को पता लगा कि भारतीयों के पास तांत्रिक विद्या है और उस विद्या से वे किसी भी ग्रह की परिक्रमा आराम से कर लेते है और किसी भी विषय को तंत्र द्वारा आराम समझ सकते है तो उन्हे भारी ग्लानि हुयी,सन दो हजार में मिली फ़ेस आफ़ मार्स की फ़ोटो उन्होने दो हजार दो में इसलिये ही प्रकाशित की थी कि कहीं पूरे विश्व में ही हनुमान जी की आराधना शुरु न हो जाये और जिन लोगों की वे खिल्ली उडाया करते थे वे ही अब उनकी खिल्ली नही उडाने लगें। भारत के अन्दर जो भी संस्कृत और हिन्दी के अक्षर है उनकी कलात्मक रचना ही देवी और देवता का रूप माना गया है,छोटा "अ" अगर सजा दिया जाये तो वह धनुष बाण लेकर खडे हुये व्यक्ति का रूप बन जाता है,शनि जी का रंग काला है और शनि के मंत्र के जाप के समय "शं" बीज का उच्चारण करते है,अगर शं के रूप को सजा दिया जाये तो वह सीधा श्रीकृष्ण भगवान का रूप बन जाता है। इसी प्रकार से "शिव" शब्द को सजाने से भगवान शंकर का रूप बनता है,विष्णु शब्द को सजाने पर वह भगवान विष्णु का रूप बनता है,""क्रीं" शब्द को सजाने पर शेर पर सवार माता दुर्गा का रूप बनता है,आदि रूप आप खुद परख सकते है। जब उन्हे भारत की तंत्र क्रिया पर विश्वास हो गया तो उन्होने भारत से हिन्दी भाषा को ही भारत से गायब करवाने की सोची न रहेगा बांस और न ही बजेगी बांसुरी।

लाल का किताब के अनुसार मंगल शनि

मंगल शनि मिल गया तो - राहू उच्च हो जाता है -              यह व्यक्ति डाक्टर, नेता, आर्मी अफसर, इंजीनियर, हथियार व औजार की मदद से काम करने वा...