शश योग फलित ज्योतिष में एक बहुत महत्वपूर्ण योग है जो की पंच-महापुरुष योगों में से एक है शश योग शनि से सम्बंधित एक योग है जो जन्मकुंडली में शनि की एक विशेष स्थिति में होने पर बनता है तथा शश योग को बहुत शुभ परिणाम देने वाला भी माना गया है......
.. ज्योतिषीय नियमानुसार जन्मकुंडली में यदि शनि अपनी स्व या उच्च राशि (मकर, कुम्भ, तुला) में होकर केंद्र (पहला, चौथा, सातवां, दसवां भाव) में स्थित हो तो इसे "शश योग" कहते हैं इस प्रकार कुंडली में शश योग बनने पर शनि बहुत बली व मजबूत स्थिति में होता है जिससे यह योग व्यक्ति को बहुत शुभ परिणाम देता है। ...माना जाता है कि जिनकी कुण्डली में यह योग होता है वह उच्च पद प्राप्त करते हैं। सम्मान और धन दोनों इनके पास होता है। ज्योतिषशास्त्री आचार्य राजेश के अनुसार जिनका जन्म मेष, कर्क, तुला अथवा मकर लग्न में होता है उनकी कुण्डली में यह उच्च कोटि का राजयोग बनता है।लेकिन वैवाहिक जीवन की दृष्टि से कर्क लग्न वालों की कुण्डली में शश योग प्रतिकूल फल देता हैभगवान रामकी जन्मकुण्डली इस लिहाज से उल्लेखनीय है। चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को दोपहर में भगवान राम का जन्म कर्क लग्न में हुआ।वाल्मीकि रामायण के अनुसार राम के जन्म के समय सूर्य, मंगल, शनि, गुरु और शुक्र ग्रह अपनी-अपनी उच्च राशि में थे। चंद्रमा अपनी ही राशि कर्क में था जिसके साथ बृहस्पति भी मौजूद थे। कर्क राशि में बृहस्पति सबसे अधिक मजबूत स्थिति में होते हैं। बुध अपने मित्र शुक्र की वृष राशि में था।बृकहस्पति के उच्च राशि में होने कारण इनकी कुण्डली में हंस योग, शनि के तुला राशि में होने से शश योग, मंगल उच्च राशि में होने से रूचक योग बन रहा था। लेकिन शनि का शुभ योग इनके वैवाहिक जीवन के लिए अशुभ योग बन गया।शश योग की प्रचलित परिभाषा का यदि ध्यानपूर्वक अध्ययन करें तो यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि लगभग हर 12वीं कुंडली में शश योग का निर्माण होता है। कुंडली में 12 घर तथा 12 राशियां होती हैं तथा इनमें से किसी भी एक घर में शनि के स्थित होने की संभावना 12 में से 1 रहेगी तथा इसी प्रकार 12 राशियों में से भी किसी एक राशि में शनि के स्थित होने की संभावना 12 में से एक ही रहेगी। इस प्रकार 12 राशियों तथा बारह घरों के संयोग से किसी कुंडली में शनि के किसी एक विशेष राशि में ही किसी एक विशेष घर में स्थित होने का संयोग 144 में से एक कुंडलियों में बनता है जैसे कि लगभग प्रत्येक 144वीं कुंडली में शनि दसवें घर में मकर राशि में स्थित होते हैं। शश योग के निर्माण पर ध्यान दें तो यह देख सकते हैं कि कुंडली के दसवें घर में शनि तीन राशियों तुला, मकर तथा कुंभ में स्थित होने पर शश योग बनाते हैं। इसी प्रकार शनि के किसी कुंडली के चौथे, सातवें अथवा पहले घर में भी शश योग का निर्माण करने की संभावना 144 में से 3 ही रहेगी तथा इन सभी संभावनाओं का योग 12 आता है जो कुल संभावनाओं अर्थात 144 का 12वां भाग है जिसका अर्थ यह हुआ कि शश योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार लगभग हर 12वीं कुंडली में इस योग का निर्माण होता है शश योग वैदिक ज्योतिष में वर्णित एक अति शुभ तथा दुर्लभ योग है तथा इसके द्वारा प्रदान किए जाने वाले शुभ फल प्रत्येक 12वें व्यक्ति में देखने को नहीं मिलते जिसके कारण यह कहा जा सकता है कि केवल शनि की कुंडली के किसी घर तथा किसी राशि विशेष के आधार पर ही इस योग के निर्माण का निर्णय नहीं किया जा सकता तथा किसी कुंडली में शश योग के निर्माण के कुछ अन्य नियम भी होने चाहिएं। किसी भी अन्य शुभ योग के निर्माण के भांति ही शश योग के निर्माण के लिए भी यह अति आवश्यक है कि कुंडली में शनि शुभ हों क्योंकि कुंडली में शनि के अशुभ होने से शनि के उपर बताए गए विशेष घरों तथा राशियों में स्थित होने पर भी शश योग नहीं बनेगा अपितु इस स्थिति में शनि कुंडली में किसी गंभीर दोष का निर्माण कर सकते हैं। शनि को ज्योतिष में हिंसा, घृणा, रोग तथा निर्धनता आदि के साथ भी जोड़ा जाता है तथा किसी कुंडली में शनि के अशुभ होकर उपरोक्त राशियों तथा उपरोक्त घरों में से किसी एक में स्थित होने की स्थिति में ऐसे अशुभ शनि महाराज कुंडली में किसी भयंकर दोष का निर्माण भी कर सकते हैं। उदाहरण के लिए इस प्रकार के अशुभ शनि के कुंडली के पहले घर में स्थित होने से जातक को किसी गंभीर रोग का सामना करना पड़ सकता है जबकि इस प्रकार के अशुभ शनि के कुंडली के दसवें घर में स्थित होने से जातक अनैतिक तथा अवैध कार्यों में संलग्न हो सकता है तथा इस प्रकार के अशुभ शनि के कुंडली में दोष बनाने की स्थिति में जातक कुख्यात तस्कर, भू माफिया अथवा शस्त्र माफिया अथवा नशीले पदार्थों का तस्कर भी हो सकता है। इस प्रकार के शनि का अशुभ प्रभाव जातक को निर्धनता अथवा अति निर्धनता से पीड़ित भी कर सकता है। इसलिए किसी कुंडली में शश योग बनाने के लिए कुंडली में शनि का शुभ होना अति आवश्यक है। कुंडली में शनि के शुभ होने के पश्चात यह भी देखना चाहिए कि कुंडली में शनि को कौन से शुभ अथवा अशुभ ग्रह प्रभावित कर रहे हैं क्योंकि किसी कुंडली में शुभ शनि पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव शनि द्वारा बनाए जाने वाले शश योग के शुभ फलों को कम कर सकता है तथा किसी कुंडली में शुभ शनि पर दो या दो से अधिक अशुभ ग्रहों का प्रबल प्रभाव कुंडली में बनने वाले शश योग को प्रभावहीन भी बना सकता है। इसके विपरीत किसी कुंडली में शुभ शनि पर शुभ ग्रहों का प्रभाव कुंडली में बनने वाले शश योग के शुभ फलों को और भी बढ़ा सकता है जिससे जातक को प्राप्त होने वाले शुभ फलों में बहुत वृद्धि हो जाएगी।कालिदास विरचित ज्योतिष के ग्रंथ उत्तरकालामृत में शनिदेव के कारकत्वों का विशद वर्णन मिलता है जिनमें से कुछ प्रमुख हैं- काला रंग, काले वस्त्र, धान्य, लौह, मलिनता, भयानक स्वरूप, दासता, अंत्यज, विकृत अंग, आलसी, चर्म उद्योग, रोग, न्यायप्रिय, चांडाल प्रवृत्ति, वन भ्रमण, कंबल, उदार, शूद्र वर्ण, पश्चिमाभिमुख, काम प्रिय, कुत्ता, चोरी एवं हठ आदि। साथ ही मंदगति होने के कारण विलंब से कार्य करना, दीर्घायु एवं लंबी अवधि के रोगों से ग्रस्त होकर, मरण होना भी शनि के कारकों में आते हैं। शनि के इन नैसर्गिक कारकत्वों का विश्लेषण करते हैं तो ऎसा लगता है कि शनिदेव, जीवन के अधिकतम नकारात्मक कर्मो का प्रतिनिधित्व करते हैं परंतु ऎसा नहीं है। यदि हम देखें तो शनिदेव महापौरूषत्व के गुणों को, शनि प्रधान व्यक्ति में भर देते हैं। यदि हम यह कहें कि :धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।माली खींचे सौ ƒ़ाडा, ऋतु आय फल होयHअर्थात् शनिदेव अपार सुख-संपदा, वैभव, पद-प्रतिष्ठा, नेतृत्व जैसे सभी भौतिक पदार्थ देते हैं परन्तु शनै: शनै:। शश योग में जन्मे व्यक्ति अपने जीवन में धीरे-धीरे चर्मोत्कर्ष तक पहुँचते हैं। शनिदेव निर्मित्त शश योग में जन्मे जे.आर.डी. टाटा भारत के महान उद्योगपतियों में से एक हैं, जो विपरीत परिस्थितियों में भी अंग्रेजी साम्राज्य के समय परिश्रम और लगन की हठधर्मिता के कारण सफलता के सर्वोच्चा सोपान तक पहुंचे इनके चतुर्थ भाव में मकर राशि में, स्थित होकर शनिदेव ने शश योग का निर्माण कर उन्हें अपार धन संपदा, लोकप्रियता, जनसहयोग, राजकृपा दी। वे देश का मूलभूत ढाँचा स्थापित कराने में सफल रहे। प्रसिद्घ उद्योगपति टाटा एक महापुरूष के रूप में याद किए जाते हैं। ब्रिटेन की पूर्व प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर की जन्मकुण्डली में शनि तुला लगनस्थ होकर उच्च हैं। तुला लग्न का व्यक्तित्व बहुत गंभीर और संतुलित होता है। शुक्रदेव की राशि में, शनिदेव उच्च के होकर जब शश योग बनाते हैं तो मानो शुक्र जनित काम का, शनिजनित न्याय में परिवर्तन हो जाता है और ऎसा व्यक्ति देश को नया एवं जोशीला नेतृत्व देने में सफल रहता है, वही किया है मार्गरेट थेचर ने। वे दीर्घकाल तक ब्रिटेन की प्रधानमंत्री रहीं उनकी लोकप्रियता, प्रतिष्ठा एवं पद में कभी ह्रास नहीं हुआ। शनिदेव की नैसर्गिक प्रकृति के अनुसार वे लंबे समय तक पद पर बनी रहीं और सुना जाता है वे 20 से 22 घंटे तक कार्य करती थीं। तो क्या यह शनिदेव के परिश्रम, तप एवं साधना करने का साक्षात् उदाहरण नहीं है। इतना परिश्रम शनिदेव ही करा सकते हैं। महापुरूष बनने के लिए महान कार्य करना भी एक शर्त होती है और शनिदेव ऎसा करा पाने में ही सफल रहते हैं। यदि हम ज्ञान, तप, साधना और गूढ़ रहस्यों का नैयायिक उद्घाटन होते देखें तो हमें कुछ महान् संतों की जन्मपत्रिकाओं की ओर भी ध्यान देना होगा। संत शिरोमणि जननायक तुलसीदास की जन्मपत्रिका में शश योग का निर्माण, तुला राशि में शनिदेव की अवस्थिति से हो रहा है। यहाँ ज्ञान की अमृत वर्षा करने वाले बृहस्पति लग्न में शनि से युति कर, शश योग में वैशिष्टय उत्पन्न कर रहे हैं। संत कवि तुलसीदास की महानता, अमर साहित्य और दास भक्ति से कौन परिचित नहीं है तुलसीदास का जन्म ऎसे काल में हुआ था जब मुगल राजाओं का शासन था और चारोओर ईस्लाम धर्म का प्रचार-प्रसार हो रहा था, लोग तेजी से हिंदू धर्म को छो़डकर मुस्लिम धर्म ग्रहण कर रहे थे। ऎसे में तुलसीदास ने अपनी कठोर तपस्या, लगन, परिश्रम, एवं अटूट भक्ति के कारण एक महान ग्रंथ रामचरित मानस की रचना लोकभाषा में की, जो आज तक भी जन-जन की श्रद्घा और भक्ति का केन्द्र है। ये शशयोग की फलान्विति ही है कि इतनी विषम एवं प्रतिकूल परिस्थितियों में भी वे हिंदू धर्म की रक्षा अपने परिश्रम, ज्ञान, भक्ति और साधना के बल पर करने में सफल रहे। शनिदेव के नैसर्गिक धर्म न्याय की रक्षा करने मेें सफल सिद्घ हुए। त्याग, तपस्या, साधना, वैराग्य, भक्ति, न्याय, विवेक, परिश्रम, उद्देश्य के प्रति अगाध एवं अटूट संबंध इन सब गुणों के लिए हमें शनिदेव की शरण में ही जाना प़डता है। जन्म-जन्मांतरों के कर्मो के फलों का निर्वहन एवं समाçप्त शनिदेव की असीम कृपा के बिना संभव नहीं है। जहाँ एक ओर हम शश योग में त्याग, तपस्या, भक्ति की पराकाष्ठा पाते हैं, वहीं दूसरी ओर वे शुक्रदेव की कला, शालीनता, लावण्य, नृत्य आदि साधनाओं के भी प्रबल पारखी हैं। सिने जगत की महान हस्तियों की जन्मपत्रिकाओं को यदि हम देखें तो हम यह पाएंगे कि शनिदेव, शुक्र के साथ मिलकर भी व्यक्ति को बुलंंदियाेंं पर पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनमें प्रमुख हैं, धर्मेद्र, मीनाकुमारी, के.एल. सहगल, मालासिन्हा, शाहरूख खान आदि आदि जो शनिदेव निर्मित्त शशयोग के कारण अपनी अभिनय कला में तप और साधना के बल पर सफलता की बुलंदियों पर पहुँच पाए। अभिनय कला के ही क्षेत्र में हम देखते हैं कि सिने जगत की एक महान् अदाकारा मीनाकुमारी की जन्म पत्रिका के चतुर्थ भाव में शनि स्थित होकर शशयोग का सृजन कर रहे हैं। मीनाकुमारी संवेदनशील अभिनेत्री थीं तथा उन्होंने अपने भाव पूर्ण अभिनय कला के प्रदर्शन से न जाने कितने ही दिलों पर राज किया। अपने पूरे जीवनकाल में वे केवल कला की साधना में रत रहीं और सर्वस्व त्यागकर भी कला का दक्षतापूर्वक निर्वाह करती रहीं। अपने जमाने में शनिदेव ने उन्हें लोगों की पलकों पर बिठाया और वे अभिनय के एक ऎसे शिखर पर पहुँचीं जहाँ से आज भी उन्हें पदच्युत कर पाना किसी अन्य अभिनेत्री के लिए उतना संभव नहीं है। त्याग, तपस्या, परिश्रम और कठोर साधना के कारण वे सिने इतिहास में आज भी श्रद्घा और आदर के भाव से पूज्य हैं। शशयोग के परिणाम जीवन के किसी भी क्षेत्र में मिल सकते हैं, चाहे वह राजनीतिज्ञ, भक्ति, त्याग, अभिनय और पराक्रम के क्षेत्र में भी शनिदेव सृजित शशयोग ने उत्तम परिणाम दिए हैं। हमारे देश की श्रेष्ठतम एवं सुप्रसिद्घ धाविका पी.टी. उषा की जन्मपत्रिका में शनिदेव ने स्वराशि कुंभ में लग्न में स्थित होकर शशयोग का सृजन किया है। पी.टी. उषा के खेलों में दिए गए महान् योगदान को देश एक अंतराल तक स्मरण रखेगा और उनकी इस लग्न एवं साधना के कारण ही भारत सरकार ने उन्हें खेलों के क्षेत्र में दिए जाने वाले प्रतिष्ठित एवं सर्वोच्चा सम्मान अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया। ज्योतिष ग्रंथों में विवेचना मिलती है कि शनिदेव अन्वेषणी बुद्घि के दाता भी हैं और यदि शशयोग निर्मित्त कर किसी जातक को अन्वेषणी बुद्घि प्रदान करते हैं तो ऎसा व्यक्ति सुकर्म एवं सुकृत्य कर जाता है जिसे लोग लंबे समय तक स्मरण करते हैं। इसका हमें श्रेष्ठतम उदाहरण मिलता है महान वैज्ञानिक अलेक्जेडंर ग्राहम बैल की कुंडली में। जिन्होंने संचार की दुनिया में एक महानतम आविष्कार किया था - वह था टेलीफोन। आज का युग केवल दूरसंचार के साधनों यथा मोबाइल, टेलीफोन, फैक्स,. आदि पर अवलंबित सा हो गया है। आज समाज का प्रत्येक वर्ग संचार क्रांति का अभिन्न अंग है और महान वैज्ञानिक ग्राहम बैल का ऋणी है। यहाँ हम सूक्ष्म अन्वेषण करें तो पाएंगे कि शनिदेव ने ग्राहम बैल की कुंडली में लग्न में कुंभ राशि में सूर्य के साथ स्थित होकर शशयोग के निर्माण को सर्वव्यापक कर दिया और वे ऎसा आविष्कार करने में सफल रहे, जिससे राजा से लेकर रंक तक देखें। यहाँ शनिदेव अपने नैसर्गिक धर्म का पूर्णत: पालन कराने में समर्थ रहे कि सबको न्याय मिले तथा वहीं दूसरी ओर इस महान आविष्कार टेलीफोन का उपयोग शनिदेव के नैसर्गिक अनुयायी या प्रतिनिधि श्रमिकगण भी कर रहे हैं। सिने जगत की ऎसी महान शख्सियत जो संगीत का बादशाह होकर लोगों के दिलों पर राज करती रही, वे हैं संगीतकार के.एल. सहगल। वे न केवल मधुर और सरस स्वर के धनी थे, बल्कि अभिनय कला में भी उतने ही प्रवीण थे। लग्न में स्वराशि कुंभ में, केतु से युत शनिदेव ने उनकी जन्म पत्रिका में उत्तम श्रेणी के शश योग की सर्जना कर, उन्हें इतनी इज्जत बख्शी कि वे महान् सितारा बन गए। आज भी लोग उनके गीतों को दिलो-दिमाग में संजोये गुनगुनाते रहते हैं। उनके दर्द भरे गीत, आत्मा तक से परिचय कराते हैं, यही तो विशेषता है शनिदेव की कि वे किसी भी क्षेत्र में जातक को डूब जाने की प्रेरणा देते हैं और व्यक्ति महान हो जाता है। खगोल में शनिदेव का परिक्रमा पथ अन्य ग्रहाें के परिक्रमा पथ से बाहर एवं दीर्घ है और ज्योतिष ग्रथो में कहा भी गया है कि किसी क्षेत्र की पराकाष्ठा का नाम शनिदेव है। शनिदेव व्यक्ति को विषय विशेष का इतना गहन अनुरागी बना देते हैं कि वह उस विषय की पराकाष्ठा तक पहुँचने के लिए साधनारत रहता है और सफलता प्राप्त करता है। शशयोग की मीमांसा जितना की जाए, समुद्र में बूंद के समान ही रहेगी। आचार्य राजेश