गुरुवार, 27 सितंबर 2018

जीवन चलने का नाम

जिंदगी है तो संघर्ष हैं, तनाव है, ख़ुशी है, डर है।  लेकिन अच्छी बात यह है कि ये सभी अनित्य हैं। समयरूपी नदी के प्रवाह में सब प्रवाहमान हैं। 

इसलिए कोई भी परिस्थिति चाहे ख़ुशी की हो या ग़म की, कभी स्थाई नहीं होती,

 वह समय के अविरल प्रवाह में विलीन हो जाती है

ऐसा अधिकतर होता है कि जीवन की यात्रा के दौरान हम अपने आप को कई बार दुःख, तनाव, चिंता, डर, हताशा, निराशा,भय, रोग इत्यादि के मकडजाल में फंसा हुआ पाते हैं।

और  हम तत्कालिक परिस्थितियों के इतने वशीभूत हो जाते हैं कि दूर-दूर तक देखने पर भी हमें कोई प्रकाश की किरण मात्र भी दिखाई नहीं देती। दूर से चींटी की तरह महसूस होने वाली परेशानी हमारे नजदीक आते-आते हाथी के जैसा रूप धारण कर लेती है।  हम उसकी विशालता और भयावहता के आगे समर्पण कर परिस्थितियों को अपने ऊपर हावी हो जाने देते हैं । यही परिस्थिति हमारे पूरे वजूद को हिला डालती है, हमें हताशा, निराशा के भंवर में उलझा जाती है। हमे एक-एक क्षण पहाड़ सा प्रतीत होता है  और हम में से ज्यादातर लोग आशा की कोई किरण ना देख पाने के कारण हताश होकर परिस्थिति के आगे अपने हथियार डाल देते हैं।

इसलिए मैं यही कहूँगा की अगर हम किसी भी अनजान, निर्जन रेगिस्तान मे फँस जाएँ तो उससे निकलने का एक ही उपाय है, बस हम चलते रहें। क्योंकि अगर हम नदी के बीच जाकर अपने हाथ पैर नहीं चलाएँगे तो निश्चित ही डूब जाएंगे।

इसलिये हमारे जीवन मे कभी ऐसे क्षण भी आते है, जब लगता है की बस अब कुछ भी बाकी नहीं है, तब हमें ऐसी परिस्थिति में अपने आत्मविश्वास और साहस से सिर्फ डटे रहना चाहिए क्योंकि हर चीज का हल होता हैं,आज नहीं तो कल आता हैं ।जय माता दी शुभरात्रि मित्रों

रविवार, 16 सितंबर 2018

रूचक योग

रूचक योग

रूचक योग वैदिक ज्योतिष में वर्णित एक अति , शुभ तथा दुर्लभ योग हैमंगल अपनी उच्च राशि, मूल त्रिकोण अथवा स्वराशि में होने पर रूचक (Ruchak Yoga) योग का निर्माण करता है.ज्योतिषशास्त्र में पंच महापुरूष नामक योग के अन्तर्गत इस योग का उल्लेख किया गया है.

 आपकी कुण्डली में यह योग है और आपको इसका क्या फल मिल रहा है. तथा इसके द्वारा प्रदान किए जाने वाले शुभ फल  यह कहा जा सकता है कि केवल मंगल की कुंडली के किसी घर तथा किसी राशि विशेष के आधार पर ही इस योग के निर्माण का निर्णय नहीं किया जा सकता तथा किसी कुंडली में रूचक योग के निर्माण के कुछ अन्य नियम भी होने चाहिएं। किसी भी अन्य शुभ योग के निर्माण के भांति ही रूचक योग के निर्माण के लिए भी यह अति आवश्यक है कि कुंडली में मंगल शुभ हों क्योंकि कुंडली में मंगल के अशुभ होने से मंगल के उपर बताए गए विशेष घरों तथा राशियों में स्थित होने पर भी रूचक योग नहीं बनेगा अपितु इस स्थिति में मंगल कुंडली में किसी गंभीर दोष का निर्माण कर सकते हैं। कुंडली के जिन चार घरों में शुभ मंगल के किसी राशि विशेष में स्थित होने से रूचक योग बनता है, उनमें से तीन घरों 1, 4 तथा 7 में अशुभ मंगल के स्थित होने से मांगलिक दोष भी बन सकता है जो अपनी स्थिति के आधार पर जातक को विभिन्न प्रकार के अशुभ फल दे सकता है। यहां पर यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि मेंष, वृश्चिक अथवा मकर में स्थित होने से मंगल को अतिरिक्त बल प्राप्त होता है तथा इस स्थिति में इतने बलशाली मंगल के अशुभ होने के कारण बनने वाला मांगलिक दोष भी सामान्यतया बहुत बलशाली होता है जिसके कारण इस प्रकार के बलवान मांगलिक दोष के प्रभाव में आने वाले जातक को अपने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में बहुत हानि उठानी पड़ सकती है।

इस प्रकार किसी कुंडली में रूचक योग बनने अथवा मांगलिक दोष बनने के बीच का अंतर मुख्यतया कुंडली में मंगल का शुभ अथवा अशुभ होना ही होता है जिसके कारण रूचक योग बनाने के लिए मंगल का कुंडली में शुभ होना अति आवश्यक है क्योंकि अशुभ मंगल कुंडली में रूचक योग के स्थान पर मांगलिक दोष बना सकता है। कुंडली में मंगल के शुभ होने के पश्चात यह भी देखना चाहिए कि कुंडली में मंगल को कौन से शुभ अथवा अशुभ ग्रह प्रभावित कर रहे हैं क्योंकि किसी कुंडली में शुभ मंगल पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव मंगल द्वारा बनाए जाने वाले रूचक योग के शुभ फलों को कम कर सकता है तथा किसी कुंडली में शुभ मंगल पर दो या दो से अधिक अशुभ ग्रहों का प्रबल प्रभाव कुंडली में बनने वाले रूचक योग को प्रभावहीन भी बना सकता है। इसके विपरीत किसी कुंडली में शुभ मंगल पर शुभ ग्रहों का प्रभाव कुंडली में बनने वाले रूचक योग के शुभ फलों को और भी बढ़ा सकता है जिससे जातक को प्राप्त होने वाले शुभ फलों में बहुत वृद्धि हो जाएगी। 


इसके अतिरिक्त कुंडली में बनने वाले अन्य शुभ अशुभ योगों अथवा दोषों का भी भली भांति अध्ययन करना चाहिए क्योंकि कुंडली में बनने वाले पित्र दोष, मांगलिक दोष तथा काल सर्प दोष जैसे दोष रूचक योग के प्रभाव को कम कर सकते हैं जबकि कुंडली में बनने वाले अन्य शुभ योग इस योग के प्रभाव को और अधिक बढ़ा सकते हैं। इसलिए किसी कुंडली में रूचक योग के निर्माण तथा इसके शुभ फलों का निर्णय करने से पहले इस योग के निर्माण तथा फलादेश से संबंधित सभी नियमों का उचित रूप से अध्ययन कर लेना चाहिए।मोदी के जन्म के समय लग्न का स्वामी मंगल लग्न में ही था। यदि स्वराशि का मंगल केंद्र में हो तो पंचमहापुरुष योग में से एक रूचक योग बनता है। रूचक योग के बारे में कहा जाता है कि यह योग जिस जातक की पत्रिका में होता है, वह जातक साहसी, पराक्रमी, दृढ़ निश्चय वाला, प्रबल रूप से शत्रुहंता होता है। कुंडली के पहले घर में बनने वाला रूचक योग जातक को शारीरिक बल, स्वास्थय, पराक्रम, व्यवासायिक सफलता, सुखी वैवाहिक जीवन आदि जैसे शुभ फल प्रदान कर सकता है। कुंडली के चौथे घर में बनने वाला रूचक योग जातक को संपत्ति, वैवाहिक सुख, वाहन, घर तथा वयवसायिक सफलता जैसे शुभ फल प्रदान कर सकता है। सातवें घर का रूचक योग जातक को वैवाहिक सुख, व्यवसायिक सफलता तथा प्रतिष्ठा और प्रभुत्व वाला कोई पद प्रदान कर सकता है। दसवें घर का रूचक योग जातक को उसके व्यवसायिक क्षेत्र में बहुत अच्छे परिणाम दे सकता है तथा इस योग के प्रभाव में आने वाले जातक अपने समय के बहुत प्रसिद्ध सेनानायक, योद्धा, पुलिस अधिकारी तथा रक्षा विभाग से जुड़े अन्य अधिकारी हो सकते हैं।इस योग वाले व्यक्ति को कमजोर और गरीब लोगों की मदद करनी चाहिए लेखक आचार्य राजेश

Malavya yog) मालव्य योग

मालव्य योग को यदि लक्ष्मी योगों का शिरोमणी कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं। मालव्य योग की प्रशंसा सभी ज्योतिष ग्रन्थों में की गई है। यह योग शुक्र से बनता है तथा शुक्र को लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। अतः लक्ष्मी योग के रूप मेें इसकी महता और भी बढ़ जाती है।

मालव्य योग (Malavya yog) मालव्य योग का निर्माण शुक्र करते हैं जब शुक्र वृषभ और तुला जो कि स्वराशि हैं या फिर मीन जो कि इनकी उच्च राशि है में होकर प्रथम, चतुर्थ, सप्तम या फिर दसवें भाव में विराजमान हों तो यह योग मालव्य महापुरुष योग कहलाता है। मित्रों कोई भी योग तब बलवान होता है जब वह ग्रह जिससे योग बन रहा हो बलि हो लग्न से शुभ हो शुभ भाव शुभ राशि और वह ग्रह पीड़ित ना हो  पूर्ण बली हों तो ही उत्‍कृष्‍ट फल मिलते हैं। दूसरे ग्रहों का प्रभाव आने पर फल में उच्‍चता अथवा न्‍यूनता देखी जाती है। ऐसे में पंचमहापुरुष योगों में अधिकतम फल तब गिनना चाहिए जब बताया गया योग पूरी तरह दोषमुक्‍त हो। इन पांचों योगों में अगर मंगल आदि के साथ सूर्य एवं चंद्रमा भी हो तो जातक राजा नहीं होता, केवल उन ग्रहों की दशा में उसे उत्‍तम फल मिलते हैं। इन पांच योगों में से यदि किसी की कुण्‍डली में एक योग हो तो वह भाग्‍यशाली दो हो तो राजा तुल्‍य, तीन हो तो राजा, चार हो तो राजाओं में प्रधान राजा और यदि पांचों हो तो चक्रवर्ती राजा होता है। इस कथन में यह स्‍पष्‍ट नहीं होता कि ये पांचों योग किस प्रकार मिल सकते हैं। क्योंकि शुक्र ग्रह से बनता है इसलिए उस जातक में शुक्र ग्रह के शुभ गुण आएंगे ऐसे  योग में जन्‍म लेने वाला जातक सुंदर, कोमल एवं कांतियुक्‍त आकृति का होता है। उसके शरीर के अंग सुडौल, भृकुटी सुंदर, काले केश, ग्रीवा शंख के समान, रक्‍त श्‍यामवर्ण, कमर पतली।मालव्य योग में जन्म लेने वाले व्यक्ति भाग्यशाली, धैर्यवान, आकर्षित एवं ऐश्वर्य दायक जीवन जीने वाले, बहुत जिंदादिल, अच्छे से अच्छी गाड़ी, मकान व सभी सांसारिक सुखों को भोगने वाले सुगन्धित द्रव्यों के शौकिन, घूमने के शौकिन, कम प्रयासों के ही जीवन में सारे भोग इन्हें प्राप्त होते है। इस योग वाले लक्ष्मीवान से भी ज्यादा वैभवान होते है। इनके चेहरे पर विलक्षण, सौम्य आभा रहती है। सिनेपटल के राजकपूर की कुण्डली में भी तुला राशि में सुख, वैभव के भाव में विराजित शुक्र मालव्य योग घटित कर विराजित है। अद्वितीय प्रतिभा के धनी राजकपूर ने हिन्दी सिनेमा को नए आयाम दिए। उनके आकर्षक व चुम्बकीय व्यक्तित्व पर मालव्य योग का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है। इसके अलावा भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, स्मिता पाटील, तब्बू आदि अनेक प्रसिद्ध हस्तियों की कुण्डली में यह योग घटित हो रहा है।मालव्य योग की प्रचलित परिभाषा का यदि ध्यानपूर्वक अध्ययन करें तो यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि लगभग हर 12वीं कुंडली में मालव्य योग का निर्माण होता है। कुंडली में 12 घर तथा 12 राशियां होती हैं तथा इनमें से किसी भी एक घर में शुक्र के स्थित होने की संभावना 12 में से 1 रहेगी तथा इसी प्रकार 12 राशियों में से भी किसी एक राशि में शुक्र के स्थित होने की संभावना 12 में से एक ही रहेगी। इस प्रकार 12 राशियों तथा बारह घरों के संयोग से किसी कुंडली में शुक्र के किसी एक विशेष राशि में ही किसी एक विशेष घर में स्थित होने का संयोग 144 में से एक कुंडलियों में बनता है जैसे कि लगभग प्रत्येक 144वीं कुंडली में शुक्र पहले घर में मीन राशि में स्थित होते हैं। मालव्य योग के निर्माण पर ध्यान दें तो यह देख सकते हैं कि कुंडली के पहले घर में शुक्र तीन राशियों वृष, तुला तथा मीन में स्थित होने पर मालव्य योग बनाते हैं। इसी प्रकार शुक्र के किसी कुंडली के चौथे, सातवें अथवा दसवें घर में भी मालव्य योग का निर्माण करने की संभावना 144 में से 3 ही रहेगी तथा इन सभी संभावनाओं का योग 12 आता है जो कुल संभावनाओं अर्थात 144 का 12वां भाग है जिसका अर्थ यह हुआ कि मालव्य योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार लगभग हर 12वीं कुंडली में इस योग का निर्माण होता है ज्योतिष मे

 वर्णित एक अति शुभ तथा दुर्लभ योग है तथा इसके द्वारा प्रदान किए जाने वाले शुभ फल प्रत्येक 12वें व्यक्ति में देखने को नहीं मिलते जिसके कारण यह कहा जा सकता है कि केवल शुक्र की कुंडली के किसी घर तथा किसी राशि विशेष के आधार पर ही इस योग के निर्माण का निर्णय नहीं किया जा सकता तथा किसी कुंडली में मालव्य योग के निर्माण के कुछ अन्य नियम भी होने चाहिएं। किसी भी अन्य शुभ योग के निर्माण के भांति ही मालव्य योग के निर्माण के लिए भी यह अति आवश्यक है कि कुंडली में शुक्र शुभ हों क्योंकि कुंडली में शुक्र के अशुभ होने से शुक्र के उपर बताए गए विशेष घरों तथा राशियों में स्थित होने पर भी मालव्य योग नहीं बनेगा अपितु इस स्थिति में शुक्र कुंडली में किसी गंभीर दोष का निर्माण कर सकते हैं। उदाहरण के लिए किसी कुंडली में अशुभ शुक्र यदि वृष, तुला अथवा मीन राशि में कुंडली के पहले घर में स्थित हो तो ऐसी कुंडली में माल्वय योग नहीं बनेगा अपितु इस कुंडली में अशुभ शुक्र दोष बना सकता है जिसके कारण जातक के चरित्र, व्यक्तित्व तथा व्यवसाय आदि पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है जिसके चलते इस दोष के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातक भौतिक सुखों की चरम लालसा रखने वाले होते हैं तथा अपनी इन लालसाओं की पूर्ति के लिए ऐसे जातक किसी अवैध अथवा अनैतिक कार्य में सलंग्न हो सकते हैं जिसके कारण इन्हें समय समय पर मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता है तथा समाज में अपयश भी मिल सकता है। इसी प्रकार कुंडली के उपर बताए गए अन्य घरों में स्थित अशुभ शुक्र भी मालव्य योग न बना कर कोई दोष बना सकता है जो अपनी स्थिति और बल के अनुसार जातक को अशुभ फल दे सकता है। इसलिए किसी कुंडली में मालव्य योग बनाने के लिए शुक्र का उस कुंडली में शुभ होना अति आवश्यक है।शुक्र की कुंडली के किसी घर तथा किसी राशि विशेष के आधार पर ही इस योग के निर्माण का निर्णय नहीं किया जा सकता तथा किसी कुंडली में मालव्य योग के निर्माण के कुछ अन्य नियम भी होने चाहिएं। किसी भी अन्य शुभ योग के निर्माण के भांति ही मालव्य योग के निर्माण के लिए भी यह अति आवश्यक है कि कुंडली में शुक्र शुभ होंऐसे पुरुष जातक स्त्रियों को तथा स्त्री जातक पुरुषों को बहुत पसंद आते हैं। माल्वय योग के विशेष प्रभाव में आने वाले कुछ जातक अपनी सुंदरता तथा कलात्मकता के चलते सिनेमा जगत, माडलिंग आदि क्षेत्रों में भी सफलता प्राप्त करते हैं। माल्वय योग के प्रबल तथा विशेष प्रभाव में आने वालीं स्त्रियां बहुत सुंदर तथा आकर्षक होतीं है क्योंकि कुंडली में शुक्र के अशुभ होने से शुक्र के उपर बताए गए विशेष घरों तथा राशियों में स्थित होने पर भी मालव्य योग नहीं बनेगा अपितु इस स्थिति में शुक्र कुंडली में किसी गंभीर दोष का निर्माण कर सकते हैं। उदाहरण के लिए किसी कुंडली में अशुभ शुक्र यदि वृष, तुला अथवा मीन राशि में कुंडली के पहले घर में स्थित हो तो ऐसी कुंडली में माल्वय योग नहीं बनेगा अपितु इस कुंडली में अशुभ शुक्र दोष बना सकता है जिसके कारण जातक के चरित्र, व्यक्तित्व तथा व्यवसाय आदि पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है जिसके चलते इस दोष के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातक भौतिक सुखों की चरम लालसा रखने वाले होते हैं तथा अपनी इन लालसाओं की पूर्ति के लिए ऐसे जातक किसी अवैध अथवा अनैतिक कार्य में सलंग्न हो सकते हैं जिसके कारण इन्हें समय समय पर मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता है तथा समाज में अपयश भी मिल सकता है। इसी प्रकार कुंडली के उपर बताए गए अन्य घरों में स्थित अशुभ शुक्र भी मालव्य योग न बना कर कोई दोष बना सकता है जो अपनी स्थिति और बल के अनुसार जातक को अशुभ फल दे सकता है। इसलिए किसी कुंडली में मालव्य योग बनाने के लिए शुक्र का उस कुंडली में शुभ होना अति आवश्यक है।यह योग जातक को राजयोग कारक ग्रहो की तरह फल देता है।मालव्य योग बनाये हुए शुक्र की महादशा, किसी अनुकूल ग्रह की महादशा में शुक्र की अन्तर्दशा सुख, उन्नति, अच्छे सांसारिक उपभोग कराती है।जातक समाज में उच्च स्तर का जीवन जीता है।मालव्य योग के साथ अन्य शुभ योग और ग्रह अनुकूल हो तब इस योग के शुभ फल देने की ताकत ओर ज्यादा बढ़ जाती है।शुक्र खुद केंद्र या त्रिकोण का स्वामी होकर केंद्र या त्रिकोण त्रिकोण में बैठ जाये तब इस योग के फल कई ज्यादा अच्छी तरह से मिलते है।इस योग में शुक्र अस्त, बहुत ज्यादा पाप ग्रहो से पीड़ित नही होना चाहिए, न ही यह राशि अंशो में बहुत कम या आखरी अंशो पर होना चाहिए।नवमांश कुंडली में भी शुक्र नीच या पीड़ित नही होना चाहिए वरना लग्न कुंडली में मालव्य योग बनने पर भी शुक्र ठीक तरह से मालव्य योग के फल नही दे पायेगा।शुक्र मालव्य योग बनाकर वर्गोत्तम हो जाय तब इसके फल सोने पर सुहागा की तरह मिलते है। लेखक आचार्य राजेश

हंस योग

पंचमहापुरुष योग में से एक हंस योग होता है। पंच मतलब पांच, महा मतलब महान और पुरुष मतलब सक्षम व्यक्ति। कुंडली में पंच महापुरुष मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि होते हैं। इन पांच ग्रहों में से कोई भी मूल त्रिकोण या केंद्र में बैठे हैं तो श्रेष्ठ हैं। केंद्र को विष्णु का स्थान कहा गया है। महापुरुष योग तब सार्थक होते हैं जबकि ग्रह केंद्र में हों।विष्णु भगवान के पांच गुण होते हैं। भगवान राम चंद्र और श्रीकृष्ण की कुंडली के केंद्र में यही पंच महापुरुष विराजमान थे।

 उपरोक्त पांच ग्रहों से संबंधित पांच महायोग के नाम इस तरह हैं:- 1.मंगल का रूचक योग, 2.बुध का भद्र योग, 3.गुरु का हंस योग, 4.शुक्र का माल्वय योग और 5.शनि का शश योग आज वात करेंगे हंस योग कियह योग गुरु अर्थात बृहस्पति से संबंधित है। कर्क में 5 डिग्री तक ऊंच मुल त्रिकोण धनु राशि 10 डिग्री तक और स्वयं का घर धनु और मीन होता है। पहले भाव में कर्क, धनु और मीन, 7वें भाव में मकर, मिथुन और कन्या, 10वें भाव में तुला, मीन और मिथुन एवं चौथे भाव में मेष, कन्या और धनु में होना चाहिए तो हंस योग बनेगा। जब जब बृहस्पति ऊंच का  या मूल त्रिकोना में, खुद के घर में या केंद्र में कहीं स्थित है तो भी विशेष परिस्थिति में यह योग बनेगा।बृहस्पति यदि किसी कुंडली में लग्न अथवा चन्द्रमा से 1, 4, 7 अथवा 10वें घर में कर्क, धनु अथवा मीन राशि में स्थित हों तो ऐसी कुंडली में हंस योग बनता है जिसका शुभ प्रभाव जातक को सुख, समृद्धि, संपत्ति, आध्यात्मिक विकास तथा कोई आध्यात्मिक शक्ति भी प्रदान कर सकता है

लगभग हर 12वीं कुंडली में हंस योग का निर्माण होता है। कुंडली में 12 घर तथा 12 राशियां होती हैं तथा इनमें से किसी भी एक घर में गुरु के स्थित होने की संभावना 12 में से 1 रहेगी तथा इसी प्रकार 12 राशियों में से भी किसी एक राशि में गुरु के स्थित होने की संभावना 12 में से एक ही रहेगी।इस प्रकार 12 राशियों तथा बारह घरों के संयोग से किसी कुंडली में गुरु के किसी एक विशेष राशि में ही किसी एक विशेष घर में स्थित होने का संयोग 144 में से एक कुंडलियों में बनता है जैसे कि लगभग प्रत्येक 144वीं कुंडली में गुरु पहले घर में मीन राशि में स्थित होते हैं।हंस योग के निर्माण पर ध्यान दें तो यह देख सकते हैं कि कुंडली के पहले घर में गुरु तीन राशियों कर्क, धनु तथा मीन में स्थित होने पर हंस योग बनाते हैं। इसी प्रकार गुरु के किसी कुंडली के चौथे, सातवें अथवा दसवें घर में भी हंस योग का निर्माण करने की संभावना 144 में से 3 ही रहेगी तथा इन सभी संभावनाओं का योग 12 आता है जो कुल संभावनाओं अर्थात 144 का 12वां भाग है जिसका अर्थ यह हुआ कि हंस योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार लगभग हर 12वीं कुंडली में इस योग का निर्माण होता है मित्रों यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि गुरु के पास शुभ हो आपको लग्न के हिसाब से वह शुभ हो तब ही हंस योग पुरन शुभ फल देगा किसी तरह गुरु पीड़ित ना हो यह बातें ध्यान देने योग्य होती है यह कुंडली देखते समय

हंस योग का जातक सुंदर व्यक्तित्व का धनी होगा और उसका रंग साफ एवं चेहरे पर तेज होगा। उसका माथा चौड़ा और लंबी नाक होगी। छाती भी चौड़ी और अच्छी होगी। आंखें चमकदार होगी। त्वचा चमकदार स्वर्ण की तरह होगी। दूसरों के लिए अच्छी बातें करने और बोलने वाला व्यक्ति होगा एवं उसके मित्रों संख्या अधिक होगी। वह हमेशा सकारात्मक भाव और विचारों से भरा होगा।

हंस योग के कुछ जातक किसी धार्मिक अथवा आध्यात्मिक संस्था में उच्च पद पर आसीन होते हैं, जबकि कुछ अन्य जातक व्यवसाय, उत्तराधिकार, वसीयत, सराहकार अथवा किसी अन्य माध्यम से बहुत धन संपत्ति प्राप्त कर सकते हैं। वह ज्योतिष, पंडित या दार्शनिक भी हो सकता है। उच्चशिक्षित न भी हो तो भी वह ज्ञानी होता हैसुख, समृद्धि और ऐश्वर्य होताहै तथा साथ ही साथ ऐसे जातक समाज की भलाई तथा जन कल्याण के लिए भी निरंतर कार्यरत रहते हैं तथा इन जातको में भी प्रबल धार्मिक अथवा आध्यात्मिक अथवा दोनों ही रुचियां देखीं जातीं हैं। अपने उत्तम गुणों तथा विशेष चरित्र के चलते हंस योग के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातक समाज में सम्मान तथा प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं।हंस का अध्ययन करते समय गुरु ग्रह के अंश पर भी ध्यान देना चाहिए। गुरु का अंश कम हो तो हंस योग के शुभ फल में कमी आती है। यदि गुरु के साथ चंद्र भी हो तो गजकेसरी योग बनता है। इस योग से गुरु के शुभ फल काफी अधिक बढ़ जाते हैं।

श्रीराम की कुंडली में है हंस योग और गजकेसरी योगभगवान श्रीराम की कुंडली की कर्क राशि में चंद्रमा और गुरु दोनों स्थित हैं। इससे हंस योग और गजकेसरी योग बनता है। राजा  विक्रमादित्य की कुंडली में भी ऐसी ही युति थी।

ऐसे होते हैं हंस योग से प्रभावित व्यक्ति

जिन लोगों की कुंडली में हंस योग रहता है, वे बहुत बुद्धिमान होते हैं। जिस प्रकार हंस दूध और पानी को अलग कर देता है, , ठीक उसी प्रकार ये लोग भी हर बात को बहुत जल्दी समझ लेते हैं। इन्हें धर्म की काफी जानकारी रहती है। ये न्यायप्रिय होते हैं।आध्यात्मिक दृष्टि से मनुष्य के नि:श्वास में ‘हं’ और श्वास में ‘स’ ध्वनि सुनाई पड़ती है। मनुष्य का जीवन क्रम ही ‘हंस’ है, क्योंकि उसमें ज्ञान का अर्जन संभव है। अत: हंस ‘ज्ञान’ विवेक, कला की देवी सरस्वती का वाहन है।पक्षियों में हंस एक ऐसा पक्षी है, जहां देव आत्माएं आश्रय लेती हैं। यह उन आत्माओं का ठिकाना है जिन्होंने अपने ‍जीवन में पुण्य-कर्म किए हैं और जिन्होंने यम-नियम का पालन किया है। कुछ काल तक हंस योनि में रहकर आत्मा अच्छे समय का इंतजार कर पुन: मनुष्य योनि में लौट आती है या फिर वह देवलोक चली जाती है।इसके अतिरिक्त कुंडली में बनने वाले अन्य शुभ अशुभ योगों अथवा दोषों का भी भली भांति अध्ययन करना चाहिए क्योंकि कुंडली में बनने वाले पित्र दोष, मांगलिक दोष तथा काल सर्प दोष जैसे दोष हंस योग के प्रभाव को कम कर सकते हैं जबकि कुंडली में बनने वाले अन्य शुभ योग इस योग के प्रभाव को और अधिक बढ़ा सकते हैं। इसलिए किसी कुंडली में हंस योग के निर्माण तथा इसके शुभ फलों का निर्णय करने से पहले इस योग के निर्माण तथा फलादेश से संबंधित सभी नियमों का उचित रूप से अध्ययन कर लेना चाहिए। कुंडली के पहले घर में बनने वाला हंस योग जातक को उसके व्यवसाय, धन, संपत्ति, प्रतिष्ठा तथा आध्यात्म से संबंधित शुभ फल प्रदान कर सकता है। कुंडली के चौथे घर में बनने वाला हंस योग जातक को किसी धार्मिक अथवा आध्यात्मिक संस्था में किसी प्रतिष्ठा तथा प्रभुत्व वाले पद की प्राप्ति करवा सकता है तथा ऐसे जातक आध्यात्मिक रूप से भी बहुत विकसित हो सकते हैं। सातवें घर का हंस योग जातक को एक धार्मिक तथा निष्ठावान पत्नि प्रदान कर सकता है तथा ऐसा जातक अपनी धार्मिक अथवा आध्यात्मिक उपलब्धियों के चलते राष्ट्रीय अथवा अंतर राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त कर सकता है। दसवें घर का हंस योग जातक को उसके व्यवसायिक क्षेत्र में बहुत अच्छे परिणाम दे सकता है तथा इस योग के प्रभाव में आने वाले जातक अपने व्यवसायिक क्षेत्रों में नई उंचाईयों को छूते हैं और नए कीर्तिमान स्थापित करते हैं।     लेखक आचार्य राजेश

शनिवार, 15 सितंबर 2018

भद्र योग

भद्र योग (Bhadra yog) बुद्धि के कारक बुध इस योग का निर्माण उस समय करते हैं जब वे स्वराशि जो कि मिथुन एवं कन्या हैं के होकर केंद्र भाव यानि प्रथम, चतुर्थ, सप्तम अथवा दशम स्थान में बैठे हों तो भद्र महापुरुष योग का निर्माण करते हैं।यह योग जातक को बुद्धिमान तो बनाता ही

 साथ ही इनकी संप्रेषण कला भी कमाल की होती है। रचनात्मक कार्यों में इनकी रूचि अधिक होते हैं ये अच्छे वक्ता, लेखक आदि हो सकते हैं। इनके व्यवहार में ही भद्रता झलकती है जिससे सबको अपना मुरीद बनाने का मादा रखते हैं। बातों में उनके सामने कोई भी नहीं ठहर सकता। ऐसे जातक आंकडो से सम्बधित कार्य, बैंक, चार्टेड अकाउंट, क्‍लर्क, अध्ययन कार्यों से सम्बंधित तथा विदेश सम्बंधी कार्य करते हैं। भद्र योग वाला व्यक्ति बहुत व्यवहार कुशल होता है और किसी को भी अपनी तरफ आकर्षित करने में माहिर होते है। आज के समय में ऐसे लोग बड़े मित्र वर्ग वाले और सबसे सतत संपर्क में रहने वाले होते है। आधुनिक युग में देखें तो इन्‍हें दूर संचार के संसाधनों का बहुत शौक होता है।Bill Gates के horoscope में ये योग है जिसने उन्हें IT के क्षेत्र का दिग्गज बनाया, इसके अलावा Lalbahadur Shastri और Dr Rajendra Prasad भी इसी योग के जन्मे महापुरुष है लाल बहादुरभद्र योग (Bhadra yog) बुद्धि के कारक बुध इस योग का निर्माण उस समय करते हैं जब वे स्वराशि जो कि मिथुन एवं कन्या हैं के होकर केंद्र भाव यानि प्रथम, चतुर्थ, सप्तम अथवा दशम स्थान में बैठे हों तो भद्र महापुरुष योग का निर्माण करते हैं।यह योग जातक को बुद्धिमान तो बनाता ही साथ ही इनकी संप्रेषण कला भी कमाल की होती है। रचनात्मक कार्यों में इनकी रूचि अधिक होते हैं ये अच्छे वक्ता, लेखक आदि हो सकते हैं। इनके व्यवहार में ही भद्रता झलकती है जिससे सबको अपना मुरीद बनाने का मादा रखते हैं। बातों में उनके सामने कोई भी नहीं ठहर सकता। ऐसे जातक आंकडो से सम्बधित कार्य, बैंक, चार्टेड अकाउंट, क्‍लर्क, अध्ययन कार्यों से सम्बंधित तथा विदेश सम्बंधी कार्य करते हैं। भद्र योग वाला व्यक्ति बहुत व्यवहार कुशल होता है और किसी को भी अपनी तरफ आकर्षित करने में माहिर होते है। आज के समय में ऐसे लोग बड़े मित्र वर्ग वाले और सबसे सतत संपर्क में रहने वाले होते है। आधुनिक युग में देखें तो इन्‍हें दूर संचार के संसाधनों का बहुत शौक होता है।Bill Gates के horoscope में ये योग है जिसने उन्हें IT के क्षेत्र का दिग्गज बनाया, इसके अलावा Lalbahadur Shastri और Dr Rajendra Prasad भी इसी योग के जन्मे महापुरुष है।भद्र योग के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातक अपनी आयु की तुलना में युवा दिखाई देते हैं । इस योग का प्रबल प्रभाव जातक को लंबी आयु भी प्रदान करता है । भद्र योग के विशेष प्रभाव में आने वाले कुछ जातक सफल राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ तथा खिलाड़ी भी बनते हैं मित्रों, भद्र योग का यदि ध्यानपूर्वक अध्ययन करें तो यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है, कि लगभग हर 16वीं कुंडली में भद्र योग का निर्माण होता ही है  भद्र योग वैदिक ज्योतिष में वर्णित एक अति शुभ तथा दुर्लभ योग है इसके द्वारा प्रदान किए जाने वाले शुभ फल प्रत्येक 16वें व्यक्ति में देखने को नहीं मिलते । जिसके कारण यह कहा जा सकता है, कि केवल बुध की कुण्डली के किसी घर तथा किसी राशि विशेष के आधार पर ही इस योग के निर्माण का निर्णय नहीं किया जा सकता है अपितु मेरे विचार से किसी भी अन्य शुभ योगों कि तरह ही भद्र योग के निर्माण के लिए भी यह आवश्यक है, कि कुडली में बुध शुभ हों । क्योंकि कुण्डली में बुध के अशुभ होने से बुध के उपर बताए गए विशेष घरों तथा राशियों में स्थित होने पर भी भद्र योग का शुभ फल लगभग नहीं मिलेगा अपितु इस स्थिति में बुध कुंडली में किसी गंभीर दोष का निर्माण कर सकते हैं । उदाहरण के लिए किसी कुंडली के सातवें घर में मिथुन राशि में स्थित अशुभ बुध भद्र योग नहीं बनाएंगे बल्कि ऐसी कुंडली में अशुभ बुध की स्थिति के कारण कई दोष बन सकता है । जिसके कारण जातक के वैवाहिक जीवन तथा व्यवसायिक क्षेत्र में समस्याएं उत्पन्न हो सकतीं हैं इस लिए किसी कुंडली में भद्र योग के लिए बुध का कुंडली में शुभ होना अति आवश्यक है । कुंडली में बुध के शुभ होने के पश्चात यह भी देखना चाहिए कि कुंडली में बुध को कौन से शुभ अथवा अशुभ ग्रह प्रभावित कर रहे हैं क्योंकि किसी कुंडली में शुभ बुध पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव बुध द्वारा बनाए जाने वाले भद्र योग के शुभ फलों को कम कर सकता है । किसी कुंडली में शुभ बुध पर दो या दो से अधिक अशुभ ग्रहों का प्रबल प्रभाव कुंडली में बनने वाले भद्र योग को प्रभावहीन भी बना सकता है इसके विपरीत किसी कुण्डली में शुभ बुध पर शुभ ग्रहों का प्रभाव कुण्डली में बनने वाले भद्र योग के शुभ फलों को और भी बढ़ाता है । परिणामतः जातक को प्राप्त होने वाले शुभ फलों में बहुत वृद्धि हो जाती है इसके अतिरिक्त कुंडली में बनने वाले अन्य शुभ-अशुभ योगों अथवा दोषों का भी भली भांति अध्ययन करना चाहिए । क्योंकि कुंडली में बनने वाले पित्र दोष, मांगलिक दोष तथा काल सर्प दोष जैसे दोष भद्र योग के प्रभाव को कम कर सकते हैं जबकि कुंडली में बनने वाले अन्य शुभ योग इस योग के प्रभाव को और अधिक बढ़ा सकते हैं । इसलिए किसी कुंडली में भद्र योग के निर्माण तथा इसके शुभ फलों का निर्णय करने से पहले इस योग के निर्माण तथा फलादेश से संबंधित सभी नियमों का उचित रूप से अध्ययन कर लेना चाहिए कुंडली के लग्न में बनने वाला भद्र योग जातक को स्वास्थय, व्यवासायिक सफलता, ऐश्वर्य तथा ख्याति आदि जैसे शुभ फल प्रदान करता है ।।

कुंडली के चौथे घर में बनने वाला भद्र योग जातक को संपत्ति, वैवाहिक सुख, वाहन, घर, विदेश भ्रमण तथा वयवसायिक सफलता जैसे शुभ फल प्रदान करता है ।।कुण्डली के सातवें घर का भद्र योग जातक को वैवाहिकसुख,व्यवसायिक सफलता तथा प्रतिष्ठा और प्रभुत्व वाला कोई पद प्रदान करता है ।।दसवें घर का भद्र योग जातक को उसके व्यवसायिक क्षेत्र में बहुत अच्छे परिणाम देता है । इस योग के प्रभाव में आने वाले जातक किसी सरकारी अथवा निजी संस्था में लाभ, प्रभुत्व तथा प्रतिष्ठा वाला पद प्राप्त कर सकते हैं भद्र योग के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातक अपनी आयु की तुलना में युवा दिखाई देते हैं । इस योग का प्रबल प्रभाव जातक को लंबी आयु भी प्रदान करता है । भद्र योग के विशेष प्रभाव में आने वाले कुछ जातक सफल राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ तथा खिलाड़ी भी बनते हैं मित्रों, भद्र योग का यदि ध्यानपूर्वक अध्ययन करें तो यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है, कि लगभग हर 16वीं कुंडली में भद्र योग का निर्माण होता ही है  भद्र योग वैदिक ज्योतिष में वर्णित एक अति शुभ तथा दुर्लभ योग है इसके द्वारा प्रदान किए जाने वाले शुभ फल प्रत्येक 16वें व्यक्ति में देखने को नहीं मिलते । जिसके कारण यह कहा जा सकता है, कि केवल बुध की कुण्डली के किसी घर तथा किसी राशि विशेष के आधार पर ही इस योग के निर्माण का निर्णय नहीं किया जा सकता है अपितु मेरे विचार से किसी भी अन्य शुभ योगों कि तरह ही भद्र योग के निर्माण के लिए भी यह आवश्यक है, कि कुडली में बुध शुभ हों । क्योंकि कुण्डली में बुध के अशुभ होने से बुध के उपर बताए गए विशेष घरों तथा राशियों में स्थित होने पर भी भद्र योग का शुभ फल लगभग नहीं मिलेगा अपितु इस स्थिति में बुध कुंडली में किसी गंभीर दोष का निर्माण कर सकते हैं । उदाहरण के लिए किसी कुंडली के सातवें घर में मिथुन राशि में स्थित अशुभ बुध भद्र योग नहीं बनाएंगे बल्कि ऐसी कुंडली में अशुभ बुध की स्थिति के कारण कई दोष बन सकता है । जिसके कारण जातक के वैवाहिक जीवन तथा व्यवसायिक क्षेत्र में समस्याएं उत्पन्न हो सकतीं हैं इस लिए किसी कुंडली में भद्र योग के लिए बुध का कुंडली में शुभ होना अति आवश्यक है । कुंडली में बुध के शुभ होने के पश्चात यह भी देखना चाहिए कि कुंडली में बुध को कौन से शुभ अथवा अशुभ ग्रह प्रभावित कर रहे हैं क्योंकि किसी कुंडली में शुभ बुध पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव बुध द्वारा बनाए जाने वाले भद्र योग के शुभ फलों को कम कर सकता है । किसी कुंडली में शुभ बुध पर दो या दो से अधिक अशुभ ग्रहों का प्रबल प्रभाव कुंडली में बनने वाले भद्र योग को प्रभावहीन भी बना सकता है इसके विपरीत किसी कुण्डली में शुभ बुध पर शुभ ग्रहों का प्रभाव कुण्डली में बनने वाले भद्र योग के शुभ फलों को और भी बढ़ाता है । परिणामतः जातक को प्राप्त होने वाले शुभ फलों में बहुत वृद्धि हो जाती है इसके अतिरिक्त कुंडली में बनने वाले अन्य शुभ-अशुभ योगों अथवा दोषों का भी भली भांति अध्ययन करना चाहिए । क्योंकि कुंडली में बनने वाले पित्र दोष, मांगलिक दोष तथा काल सर्प दोष जैसे दोष भद्र योग के प्रभाव को कम कर सकते हैं जबकि कुंडली में बनने वाले अन्य शुभ योग इस योग के प्रभाव को और अधिक बढ़ा सकते हैं । इसलिए किसी कुंडली में भद्र योग के निर्माण तथा इसके शुभ फलों का निर्णय करने से पहले इस योग के निर्माण तथा फलादेश से संबंधित सभी नियमों का उचित रूप से अध्ययन कर लेना चाहिए कुंडली के लग्न में बनने वाला भद्र योग जातक को स्वास्थय, व्यवासायिक सफलता, ऐश्वर्य तथा ख्याति आदि जैसे शुभ फल प्रदान करता है 

कुंडली के चौथे घर में बनने वाला भद्र योग जातक को संपत्ति, वैवाहिक सुख, वाहन, घर, विदेश भ्रमण तथा वयवसायिक सफलता जैसे शुभ फल प्रदान करता है ।।कुण्डली के सातवें घर का भद्र योग जातक को वैवाहिक सुख,व्यवसायिक सफलता तथा प्रतिष्ठा और प्रभुत्व वाला कोई पद प्रदान करता है दसवें घर का भद्र योग जातक को उसके व्यवसायिक क्षेत्र में बहुत अच्छे परिणाम देता है । इस योग के प्रभाव में आने वाले जातक किसी सरकारी अथवा निजी संस्था में लाभ, प्रभुत्व तथा प्रतिष्ठा वाला पद प्राप्त कर सकते हैं आचार्य राजेश

शुक्र ग्रह के सरल व आसान उपाय

शुक्रवार, 14 सितंबर 2018

शनि ग्रह से बनने वाला शश योग

शश योग फलित ज्योतिष में एक बहुत महत्वपूर्ण योग है जो की पंच-महापुरुष योगों में से एक है शश योग शनि से सम्बंधित एक योग है जो जन्मकुंडली में शनि की एक विशेष स्थिति में होने पर बनता है तथा शश योग को बहुत शुभ परिणाम देने वाला भी माना गया है......

.. ज्योतिषीय नियमानुसार जन्मकुंडली में यदि शनि अपनी स्व या उच्च राशि (मकर, कुम्भ, तुला) में होकर केंद्र (पहला, चौथा, सातवां, दसवां भाव) में स्थित हो तो इसे "शश योग" कहते हैं इस प्रकार कुंडली में शश योग बनने पर शनि बहुत बली व मजबूत स्थिति में होता है जिससे यह योग व्यक्ति को बहुत शुभ परिणाम देता है। ...माना जाता है कि जिनकी कुण्डली में यह योग होता है वह उच्च पद प्राप्त करते हैं। सम्मान और धन दोनों इनके पास होता है। ज्योतिषशास्त्री आचार्य राजेश के अनुसार जिनका जन्म मेष, कर्क, तुला अथवा मकर लग्न में होता है उनकी कुण्डली में यह उच्च कोटि का राजयोग बनता है।लेकिन वैवाहिक जीवन की दृष्टि से कर्क लग्न वालों की कुण्डली में शश योग प्रतिकूल फल देता हैभगवान रामकी जन्मकुण्डली इस लिहाज से उल्लेखनीय है। चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को दोपहर में भगवान राम का जन्म कर्क लग्न में हुआ।वाल्मीकि रामायण के अनुसार राम के जन्म के समय सूर्य, मंगल, शनि, गुरु और शुक्र ग्रह अपनी-अपनी उच्च राशि में थे। चंद्रमा अपनी ही राशि कर्क में था जिसके साथ बृहस्पति भी मौजूद थे। कर्क राशि में बृहस्पति सबसे अधिक मजबूत स्थिति में होते हैं। बुध अपने मित्र शुक्र की वृष राशि में था।बृकहस्पति के उच्च राशि में होने कारण इनकी कुण्डली में हंस योग, शनि के तुला राशि में होने से शश योग, मंगल उच्च राशि में होने से रूचक योग बन रहा था। लेकिन शनि का शुभ योग इनके वैवाहिक जीवन के लिए अशुभ योग बन गया।शश योग की प्रचलित परिभाषा का यदि ध्यानपूर्वक अध्ययन करें तो यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि लगभग हर 12वीं कुंडली में शश योग का निर्माण होता है। कुंडली में 12 घर तथा 12 राशियां होती हैं तथा इनमें से किसी भी एक घर में शनि के स्थित होने की संभावना 12 में से 1 रहेगी तथा इसी प्रकार 12 राशियों में से भी किसी एक राशि में शनि के स्थित होने की संभावना 12 में से एक ही रहेगी। इस प्रकार 12 राशियों तथा बारह घरों के संयोग से किसी कुंडली में शनि के किसी एक विशेष राशि में ही किसी एक विशेष घर में स्थित होने का संयोग 144 में से एक कुंडलियों में बनता है जैसे कि लगभग प्रत्येक 144वीं कुंडली में शनि दसवें घर में मकर राशि में स्थित होते हैं। शश योग के निर्माण पर ध्यान दें तो यह देख सकते हैं कि कुंडली के दसवें घर में शनि तीन राशियों तुला, मकर तथा कुंभ में स्थित होने पर शश योग बनाते हैं। इसी प्रकार शनि के किसी कुंडली के चौथे, सातवें अथवा पहले घर में भी शश योग का निर्माण करने की संभावना 144 में से 3 ही रहेगी तथा इन सभी संभावनाओं का योग 12 आता है जो कुल संभावनाओं अर्थात 144 का 12वां भाग है जिसका अर्थ यह हुआ कि शश योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार लगभग हर 12वीं कुंडली में इस योग का निर्माण होता है  शश योग वैदिक ज्योतिष में वर्णित एक अति शुभ तथा दुर्लभ योग है तथा इसके द्वारा प्रदान किए जाने वाले शुभ फल प्रत्येक 12वें व्यक्ति में देखने को नहीं मिलते जिसके कारण यह कहा जा सकता है कि केवल शनि की कुंडली के किसी घर तथा किसी राशि विशेष के आधार पर ही इस योग के निर्माण का निर्णय नहीं किया जा सकता तथा किसी कुंडली में शश योग के निर्माण के कुछ अन्य नियम भी होने चाहिएं। किसी भी अन्य शुभ योग के निर्माण के भांति ही शश योग के निर्माण के लिए भी यह अति आवश्यक है कि कुंडली में शनि शुभ हों क्योंकि कुंडली में शनि के अशुभ होने से शनि के उपर बताए गए विशेष घरों तथा राशियों में स्थित होने पर भी शश योग नहीं बनेगा अपितु इस स्थिति में शनि कुंडली में किसी गंभीर दोष का निर्माण कर सकते हैं। शनि को ज्योतिष में हिंसा, घृणा, रोग तथा निर्धनता आदि के साथ भी जोड़ा जाता है तथा किसी कुंडली में शनि के अशुभ होकर उपरोक्त राशियों तथा उपरोक्त घरों में से किसी एक में स्थित होने की स्थिति में ऐसे अशुभ शनि महाराज कुंडली में किसी भयंकर दोष का निर्माण भी कर सकते हैं। उदाहरण के लिए इस प्रकार के अशुभ शनि के कुंडली के पहले घर में स्थित होने से जातक को किसी गंभीर रोग का सामना करना पड़ सकता है जबकि इस प्रकार के अशुभ शनि के कुंडली के दसवें घर में स्थित होने से जातक अनैतिक तथा अवैध कार्यों में संलग्न हो सकता है तथा इस प्रकार के अशुभ शनि के कुंडली में दोष बनाने की स्थिति में जातक कुख्यात तस्कर, भू माफिया अथवा शस्त्र माफिया अथवा नशीले पदार्थों का तस्कर भी हो सकता है। इस प्रकार के शनि का अशुभ प्रभाव जातक को निर्धनता अथवा अति निर्धनता से पीड़ित भी कर सकता है। इसलिए किसी कुंडली में शश योग बनाने के लिए कुंडली में शनि का शुभ होना अति आवश्यक है। कुंडली में शनि के शुभ होने के पश्चात यह भी देखना चाहिए कि कुंडली में शनि को कौन से शुभ अथवा अशुभ ग्रह प्रभावित कर रहे हैं क्योंकि किसी कुंडली में शुभ शनि पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव शनि द्वारा बनाए जाने वाले शश योग के शुभ फलों को कम कर सकता है तथा किसी कुंडली में शुभ शनि पर दो या दो से अधिक अशुभ ग्रहों का प्रबल प्रभाव कुंडली में बनने वाले शश योग को प्रभावहीन भी बना सकता है। इसके विपरीत किसी कुंडली में शुभ शनि पर शुभ ग्रहों का प्रभाव कुंडली में बनने वाले शश योग के शुभ फलों को और भी बढ़ा सकता है जिससे जातक को प्राप्त होने वाले शुभ फलों में बहुत वृद्धि हो जाएगी।कालिदास विरचित ज्योतिष के ग्रंथ उत्तरकालामृत में शनिदेव के कारकत्वों का विशद वर्णन मिलता है जिनमें से कुछ प्रमुख हैं- काला रंग, काले वस्त्र, धान्य, लौह, मलिनता, भयानक स्वरूप, दासता, अंत्यज, विकृत अंग, आलसी, चर्म उद्योग, रोग, न्यायप्रिय, चांडाल प्रवृत्ति, वन भ्रमण, कंबल, उदार, शूद्र वर्ण, पश्चिमाभिमुख, काम प्रिय, कुत्ता, चोरी एवं हठ आदि। साथ ही मंदगति होने के कारण विलंब से कार्य करना, दीर्घायु एवं लंबी अवधि के रोगों से ग्रस्त होकर, मरण होना भी शनि के कारकों में आते हैं। शनि के इन नैसर्गिक कारकत्वों का विश्लेषण करते हैं तो ऎसा लगता है कि शनिदेव, जीवन के अधिकतम नकारात्मक कर्मो का प्रतिनिधित्व करते हैं परंतु ऎसा नहीं है। यदि हम देखें तो शनिदेव महापौरूषत्व के गुणों को, शनि प्रधान व्यक्ति में भर देते हैं। यदि हम यह कहें कि :धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।माली खींचे सौ ƒ़ाडा, ऋतु आय फल होयHअर्थात् शनिदेव अपार सुख-संपदा, वैभव, पद-प्रतिष्ठा, नेतृत्व जैसे सभी भौतिक पदार्थ देते हैं परन्तु शनै: शनै:। शश योग में जन्मे व्यक्ति अपने जीवन में धीरे-धीरे चर्मोत्कर्ष तक पहुँचते हैं। शनिदेव निर्मित्त शश योग में जन्मे जे.आर.डी. टाटा भारत के महान उद्योगपतियों में से एक हैं, जो विपरीत परिस्थितियों में भी अंग्रेजी साम्राज्य के समय परिश्रम और लगन की हठधर्मिता के कारण सफलता के सर्वोच्चा सोपान तक पहुंचे इनके चतुर्थ भाव में मकर राशि में, स्थित होकर शनिदेव ने शश योग का निर्माण कर उन्हें अपार धन संपदा, लोकप्रियता, जनसहयोग, राजकृपा दी। वे देश का मूलभूत ढाँचा स्थापित कराने में सफल रहे। प्रसिद्घ उद्योगपति टाटा एक महापुरूष के रूप में याद किए जाते हैं। ब्रिटेन की पूर्व प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर की जन्मकुण्डली में शनि तुला लगनस्थ होकर उच्च हैं। तुला लग्न का व्यक्तित्व बहुत गंभीर और संतुलित होता है। शुक्रदेव की राशि में, शनिदेव उच्च के होकर जब शश योग बनाते हैं तो मानो शुक्र जनित काम का, शनिजनित न्याय में परिवर्तन हो जाता है और ऎसा व्यक्ति देश को नया एवं जोशीला नेतृत्व देने में सफल रहता है, वही किया है मार्गरेट थेचर ने। वे दीर्घकाल तक ब्रिटेन की प्रधानमंत्री रहीं उनकी लोकप्रियता, प्रतिष्ठा एवं पद में कभी ह्रास नहीं हुआ। शनिदेव की नैसर्गिक प्रकृति के अनुसार वे लंबे समय तक पद पर बनी रहीं और सुना जाता है वे 20 से 22 घंटे तक कार्य करती थीं। तो क्या यह शनिदेव के परिश्रम, तप एवं साधना करने का साक्षात् उदाहरण नहीं है। इतना परिश्रम शनिदेव ही करा सकते हैं। महापुरूष बनने के लिए महान कार्य करना भी एक शर्त होती है और शनिदेव ऎसा करा पाने में ही सफल रहते हैं। यदि हम ज्ञान, तप, साधना और गूढ़ रहस्यों का नैयायिक उद्घाटन होते देखें तो हमें कुछ महान् संतों की जन्मपत्रिकाओं की ओर भी ध्यान देना होगा। संत शिरोमणि जननायक तुलसीदास की जन्मपत्रिका में शश योग का निर्माण, तुला राशि में शनिदेव की अवस्थिति से हो रहा है। यहाँ ज्ञान की अमृत वर्षा करने वाले बृहस्पति लग्न में शनि से युति कर, शश योग में वैशिष्टय उत्पन्न कर रहे हैं। संत कवि तुलसीदास की महानता, अमर साहित्य और दास भक्ति से कौन परिचित नहीं है तुलसीदास का जन्म ऎसे काल में हुआ था जब मुगल राजाओं का शासन था और चारोओर ईस्लाम धर्म का प्रचार-प्रसार हो रहा था, लोग तेजी से हिंदू धर्म को छो़डकर मुस्लिम धर्म ग्रहण कर रहे थे। ऎसे में तुलसीदास ने अपनी कठोर तपस्या, लगन, परिश्रम, एवं अटूट भक्ति के कारण एक महान ग्रंथ रामचरित मानस की रचना लोकभाषा में की, जो आज तक भी जन-जन की श्रद्घा और भक्ति का केन्द्र है। ये शशयोग की फलान्विति ही है कि इतनी विषम एवं प्रतिकूल परिस्थितियों में भी वे हिंदू धर्म की रक्षा अपने परिश्रम, ज्ञान, भक्ति और साधना के बल पर करने में सफल रहे। शनिदेव के नैसर्गिक धर्म न्याय की रक्षा करने मेें सफल सिद्घ हुए। त्याग, तपस्या, साधना, वैराग्य, भक्ति, न्याय, विवेक, परिश्रम, उद्देश्य के प्रति अगाध एवं अटूट संबंध इन सब गुणों के लिए हमें शनिदेव की शरण में ही जाना प़डता है। जन्म-जन्मांतरों के कर्मो के फलों का निर्वहन एवं समाçप्त शनिदेव की असीम कृपा के बिना संभव नहीं है। जहाँ एक ओर हम शश योग में त्याग, तपस्या, भक्ति की पराकाष्ठा पाते हैं, वहीं दूसरी ओर वे शुक्रदेव की कला, शालीनता, लावण्य, नृत्य आदि साधनाओं के भी प्रबल पारखी हैं। सिने जगत की महान हस्तियों की जन्मपत्रिकाओं को यदि हम देखें तो हम यह पाएंगे कि शनिदेव, शुक्र के साथ मिलकर भी व्यक्ति को बुलंंदियाेंं पर पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनमें प्रमुख हैं, धर्मेद्र, मीनाकुमारी, के.एल. सहगल, मालासिन्हा, शाहरूख खान आदि आदि जो शनिदेव निर्मित्त शशयोग के कारण अपनी अभिनय कला में तप और साधना के बल पर सफलता की बुलंदियों पर पहुँच पाए। अभिनय कला के ही क्षेत्र में हम देखते हैं कि सिने जगत की एक महान् अदाकारा मीनाकुमारी की जन्म पत्रिका के चतुर्थ भाव में शनि स्थित होकर शशयोग का सृजन कर रहे हैं। मीनाकुमारी संवेदनशील अभिनेत्री थीं तथा उन्होंने अपने भाव पूर्ण अभिनय कला के प्रदर्शन से न जाने कितने ही दिलों पर राज किया। अपने पूरे जीवनकाल में वे केवल कला की साधना में रत रहीं और सर्वस्व त्यागकर भी कला का दक्षतापूर्वक निर्वाह करती रहीं। अपने जमाने में शनिदेव ने उन्हें लोगों की पलकों पर बिठाया और वे अभिनय के एक ऎसे शिखर पर पहुँचीं जहाँ से आज भी उन्हें पदच्युत कर पाना किसी अन्य अभिनेत्री के लिए उतना संभव नहीं है। त्याग, तपस्या, परिश्रम और कठोर साधना के कारण वे सिने इतिहास में आज भी श्रद्घा और आदर के भाव से पूज्य हैं। शशयोग के परिणाम जीवन के किसी भी क्षेत्र में मिल सकते हैं, चाहे वह राजनीतिज्ञ, भक्ति, त्याग, अभिनय और पराक्रम के क्षेत्र में भी शनिदेव सृजित शशयोग ने उत्तम परिणाम दिए हैं। हमारे देश की श्रेष्ठतम एवं सुप्रसिद्घ धाविका पी.टी. उषा की जन्मपत्रिका में शनिदेव ने स्वराशि कुंभ में लग्न में स्थित होकर शशयोग का सृजन किया है। पी.टी. उषा के खेलों में दिए गए महान् योगदान को देश एक अंतराल तक स्मरण रखेगा और उनकी इस लग्न एवं साधना के कारण ही भारत सरकार ने उन्हें खेलों के क्षेत्र में दिए जाने वाले प्रतिष्ठित एवं सर्वोच्चा सम्मान अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया। ज्योतिष ग्रंथों में विवेचना मिलती है कि शनिदेव अन्वेषणी बुद्घि के दाता भी हैं और यदि शशयोग निर्मित्त कर किसी जातक को अन्वेषणी बुद्घि प्रदान करते हैं तो ऎसा व्यक्ति सुकर्म एवं सुकृत्य कर जाता है जिसे लोग लंबे समय तक स्मरण करते हैं। इसका हमें श्रेष्ठतम उदाहरण मिलता है महान वैज्ञानिक अलेक्जेडंर ग्राहम बैल की कुंडली में। जिन्होंने संचार की दुनिया में एक महानतम आविष्कार किया था - वह था टेलीफोन। आज का युग केवल दूरसंचार के साधनों यथा मोबाइल, टेलीफोन, फैक्स,. आदि पर अवलंबित सा हो गया है। आज समाज का प्रत्येक वर्ग संचार क्रांति का अभिन्न अंग है और महान वैज्ञानिक ग्राहम बैल का ऋणी है। यहाँ हम सूक्ष्म अन्वेषण करें तो पाएंगे कि शनिदेव ने ग्राहम बैल की कुंडली में लग्न में कुंभ राशि में सूर्य के साथ स्थित होकर शशयोग के निर्माण को सर्वव्यापक कर दिया और वे ऎसा आविष्कार करने में सफल रहे, जिससे राजा से लेकर रंक तक देखें। यहाँ शनिदेव अपने नैसर्गिक धर्म का पूर्णत: पालन कराने में समर्थ रहे कि सबको न्याय मिले तथा वहीं दूसरी ओर इस महान आविष्कार टेलीफोन का उपयोग शनिदेव के नैसर्गिक अनुयायी या प्रतिनिधि श्रमिकगण भी कर रहे हैं। सिने जगत की ऎसी महान शख्सियत जो संगीत का बादशाह होकर लोगों के दिलों पर राज करती रही, वे हैं संगीतकार के.एल. सहगल। वे न केवल मधुर और सरस स्वर के धनी थे, बल्कि अभिनय कला में भी उतने ही प्रवीण थे। लग्न में स्वराशि कुंभ में, केतु से युत शनिदेव ने उनकी जन्म पत्रिका में उत्तम श्रेणी के शश योग की सर्जना कर, उन्हें इतनी इज्जत बख्शी कि वे महान् सितारा बन गए। आज भी लोग उनके गीतों को दिलो-दिमाग में संजोये गुनगुनाते रहते हैं। उनके दर्द भरे गीत, आत्मा तक से परिचय कराते हैं, यही तो विशेषता है शनिदेव की कि वे किसी भी क्षेत्र में जातक को डूब जाने की प्रेरणा देते हैं और व्यक्ति महान हो जाता है। खगोल में शनिदेव का परिक्रमा पथ अन्य ग्रहाें के परिक्रमा पथ से बाहर एवं दीर्घ है और ज्योतिष ग्रथो  में कहा भी गया है कि  किसी क्षेत्र की पराकाष्ठा का नाम शनिदेव है। शनिदेव व्यक्ति को विषय विशेष का इतना गहन अनुरागी बना देते हैं कि वह उस विषय की पराकाष्ठा तक पहुँचने के लिए साधनारत रहता है और सफलता प्राप्त करता है। शशयोग की मीमांसा जितना की जाए, समुद्र में बूंद के समान ही रहेगी। आचार्य राजेश

गुरुवार, 13 सितंबर 2018

बुध और शुक्र की युति से बनने वाला लक्ष्मीनारायण योग

लक्ष्मी योग शुभ ग्रह बुध और शुक्र की युति से बनने वाला योग है।बुध बुद्धि-विवेक, हास्य का कारक है तो शुक्र सौंदर्य, भोग विलास कारक है।अब ये देखिये की लग्न के दोनों तरफ ओर सामने शुक्र का पूर्ण तरह प्रभाव रहता है।

 काल पुरुष की कुंडली मे 2 भाव शुक्र का अपना घर है वृषभ राशि का। 7 भाव तुला राशि का। 12 भाव जहां शुक्र उच्च का। अब आप लोग देख लीजिए शुक्र जातक के चारो तरफ मंडराता रहता है। ज्योतिष का, डॉक्टर का, नेतागिरी का, धन का, पत्नी का, ऐश्वर्य का, गायन का, नृत्य का आदि सब का कारक शुक्र है। मतलब जिसको ज्ञान के साथ भौतिक जीवन की चाह है उसका शुक्र का बलवान होना बहुत जरूरी। नेता हो या अभिनेता किसी की भी कुंडली देख लीजिए शुक्र बलि मिलेगा ही।लेकिन यही शुक्र यदि जातक खराब कर ले टी जातक किसी काम का न रहे क्योंकि बिना वीर्य शक्ति के चरित्र निर्माण नही ओर इसके बिना पुरुसार्थ ही कहा होता है क्योंकि गीता में तो साफ लिखा है कि जिसका चरित्र गया उसका सब कुछ गया। बलि ओर शुभ का शुक्र बहुत अच्छी जीवन संगिनी प्रदान करता है। और घर मे साक्षात महालक्ष्मी आ जाये तो कुल का बहुत सुंदर निर्माण करती है।शुक्र सिर्फ भोग के लिए ही नही अपितु ज्ञान, चरित्र निर्माण में भी बहुत बड़ी  भूमिका अदा करता है। बुध के बाद सूर्य के सबसे समीप ग्रह है अतः सूर्य का तेज भी इसमें निहित है। और बुध के साथ हो तो उसको अपना सारा बल दे देता है मतलब बुद्धि में भी शुक्र की बहुत बड़ी भूमिका है। ओर शुक्र तभी बलि होता जब आप अपनी पत्नी के साथ सामन्जशय बनाये। उसकी इज्जत करे।लक्ष्मी योग में बुध को विष्णु शुक्र को लक्ष्मी की श्रेणी दी गई है।इन दोनों ग्रहो का आपसी सम्बन्ध जातक को रोमांटिक और कलात्मक प्रवृत्ति का बनाता है।यह योग जैसे की नाम से ही पता चल रहा है एक बहुत शुभ योग है।यह योग सुख सोभाग्य को बढ़ाने वाला योग है, लक्ष्मी नारायण योग पर गुरु की दृष्टि सोने पर सुहागा जैसी स्थिति होती है।हरा  पोधा  बुद्ध  होता  है  और  जब  तक  उसे  मिटटी  शुक्र  की मदद  मिलती  रहती  है  वो हर  रहता  है  याने  की  जब  पोधे  बुद्ध  को जमीन  शुक्र  से निकाल  दिया  जाए  तो  वो  पिला यानी  की  गुरु  का  रंग  लेने  लग जाता  है  दुसरे  शब्दों में बुद्ध  खत्म होने  लगता  है  | इसी  प्रकार  दांत  बुद्ध  होते  है  तो जब  मुह  में दांत  न रहे  तो  शुक्र  यानी  की पत्नी  दुसरे  शब्दों में काम  भावना   भी जातक  से मुह  फेरने  लगती  है  |  सिंग  बुद्ध  न रहे  तो  सांड शुक्र  भी  अपनी काम   शक्ति  गंवा  देता है  | साज  बाज  के  साधन  यानी   की वाध्य  यंत्र   { बुध } जब  बजने  लगते  है  तो  शरीर  में शुक्र  यानी  की काम  भावना  हिलोरें  लेने  लगती है  |  टोपी  बुद्ध  बिना  कुरते  शुक्र  के पहनी जाए  तो  भद्दी  लगने  लगती है  | जब  लडकी  बुद्ध में काम  वाशना  यानी  की  शुक्र  न हो  तो  वो बाँझ  हो जाती  है  | इस  प्रकार  हम समझ  सकते  है  की ये  दोनों  एक दुसरे  की मदद  करने  वाले  और  सहयोगी  है |लाल   किताब कहती  है  की  जब ये  दोनों  एक  साथ  हो तो  मस्नोई  सूर्य  यानी की सूर्य के समान जातक को  फल  देते  है |  एक   लाइन  लिखी हुई  है  जो इस  प्रकार है” बुद्ध  शुक्र  जब हो  इक्कठे  शनी  भी उम्दा  होता  है  ,धन  दौलत  की  कमी  न कोई  घी मिटटी  से  निकलता हैलेकिन  कुंडली में कुछ  भाव में इनका  अच्छ  फल  नही  मिलता  जैसे  की  चोथे  भाव  में इन दोनों  का  योग लाल  किताब में  अच्छा  नही  बताया  गया  है | इस  घर में इन  दोनों  का योग  होने  पर  माता  और मामा  खानदान  को  समस्या बनी  रहती है साथ  ही  जातक  के ससुराल  पक्ष  को भी  दिक्कत रहती है और  जातक का चाल चलन शक्की  होगा  लेकिन  यदि कुंडली में चन्द्र  कायम हो तो फिर इनका  इस  भाव में दुस्प्रभाव  नही मिलता  |छ्टे  भाव  में इनका  योग  स्किन  की समस्या  पेशाब  कमर  दर्द  की  समस्या  और  पुत्र  सन्तान  के  पैदा  होने में दिक्कत  देता  है  लेकिन  बुद्ध  से  सम्बन्धित  कारोबार में  जातक   को  विशेष  लाभ  मिलता है |अस्ठ्म  भाव  के  बारे  में  एक लाइन  है है  की रब्ब  ने बनाई  ऐसी  जोड़ी  एक अंधा  एक कोढ़ी  दुसरे  शब्दों में  जातक  के विवाह  और औलाद  से  सम्बन्धित  समस्या  का  सामना करना  पड़ता  है  |नवम  भाव में  भी इनका  योग  अच्छा  नही मना गया  | व्यय भाव  में इन दोनों  का फल बहुत  अशुभ  फल बताया  गया है |  बुद्ध  बकरी  गाय  शुक्र  a पेट  फाड़ने की  कोसिस  करती है | ग्रहस्थ जीवन  खराब  हो जाता  है |  जब  ऐसे  जातक के लडकी का  जन्म होता  है  उसके  बाद   ग्रहस्थ जीवन में ज्यादा  समस्या  आती  है  जातक  की  पत्नी  को  स्वास्थ्य  की  समस्या  का  सामना करना  पड़ता है  | बाकि  के  भावों में इनका  योग  अच्छा  फल  देने  वाला  माना गया  है | मित्रों  ये लाल  किताब  पर  आधारित  विवेचना  है  वैदिक के हिसाब से इनका  फल देखने के लिय  आपको  ये  देखना होगा  की  किस  लग्न  की कुंडली में किस भाव  में कितने  अंशो  पर इनका योग  बन रहा है  |  कुंडली में अन्य  ग्रहों  की   सिथ्ती और  ग्रहों  का  इनके  साथ  सम्बन्ध  होने  पर  इनके  फल अलग  हो  सकते  है  इसिलिय  पूर्ण  रूप  से  फल  पूरी  कुंडली पर निर्भर  करेंगे |शुक्र के साथ बुध और बुध के साथ शुक्र की युतिअगर शुभ हो शुभ हो शुभ राशि में हो तो इन दोनों के शुभ प्रभाव को बहुत ज्यादा बढ़ा देती है।धन धन्य योगो में से यह योग एक योग है।यह योग वृष, मिथुन, कन्या, तुला मीन राशि में बहुत बली होता है अन्य राशियों में सामान्य बली होता है।वृष, मिथुन, कन्या, तुला, मकर, कुम्भ लग्न में बनने वाला बलवान लक्ष्मी नारायण योग उच्च स्तर का राजयोग कारक फल व कई तरह के शुभ फल देता है।इस योग में अन्य किसी पाप क्रूर ग्रह का सम्बन्ध होना इस योग की शुभता में कमी कर देता है क्योंकि दोनों ही ग्रह शुभ ग्रह है जिस कारण से इस योग की खासियत अपने आप में कुछ ज्यादा ही बढ़ जाती है बुध शुक्र युति में चंद्र का युति दृष्टि सम्बन्ध विशेष शुभफल कारक होता है क्योंकि चन्द्र का स्वभाव है किसी भी शुभ योग से सम्बन्ध बनाने पर यह उस योग की शुभता में वृद्धि कर देता है।जिस तरह विष्णु लक्ष्मी शीर सागर के जल में विराजमान होकर जल की शोभा बढ़ाते है जल पर विराजमान रहकर उसी तरह बुध शुक्र युति में चन्द्र का सम्बन्ध लक्ष्मी नारायण योग की शुभता में वृद्धि कर देता है।मेष लग्न में बुध दो 3, 6 दो अशुभ भावो साथ ही शुक्र मारक होने से और मीन लग्न में शुक्र तृतीयेश- अष्टमेश दो अशुब् भावो का स्वामी होकर चतुर्थेश सप्तमेश केंद्र के स्वामी बुध से सम्बन्ध इस योग के साधारण फल मिलते है।शुक्र बुध का पाप ग्रहो से दूषित या पीड़ित होना इस योग की शुभता को कम कर देता है।यदि नवमांश कुंडली में भी बुध शुक्र का आपस में सम्बन्ध हो या ये दोनों नवमांश कुंडली में बली और शुभ स्थिति में हो तो पूरी तरह शुभ फल जन्मलग्न कुंडली में बनने वाले लक्ष्मी नारायण योग के जातक को मिलते है।यह योग जिस भाव में बनता है जिस भाव पर दृष्टि डालता है उन भाव संबंधी विशेष तरह से शुभ फल भाव और भावेश की स्थिति के अनुसार देता है।इस योग के फल फल शुक्र बुध की महादशा अन्तर्दशा, जिस राशि में बुध शुक्र हो वह ग्रह बली हो तो उस ग्रह की दशा अन्तर्दशा या किसी शुभफल देने वाले की दशा में विशेष रूप से मिलते है।शुक्र बुध में से कोई अशुभ जैसे अस्त, पीड़ित हो तो शुक्र बुध संबंधी उपाय करके इस योग के शुभत्व और शुभ फल में वृद्धि करके शुभ फल प्राप्त किये जा सकते है।

गजकेसरी योग कितना शुभ कितना अशुभ

https://youtu.be/9WaPJ7ofLsgज्योतिष योगों में एक सुवि यात योग गजकेसरी योग है। जन्मपत्री देखते हुए जातक को जब ज्योतिषी कहता है कि आपके दुर्लभ गजकेसरी योग हैतो जातक के होंठ ही नहीं आँखें भी मुस्कुराने लगती हैं। जातक या जानेकि हाथी के दांँत खाने के और तथा दिखाने के और है 

।गजकेसरी योग का अगर शाविदक अर्थ लें तो यह योग गज एवं केसरीके संयुक्त होने से बना है। गज का अर्थ हाथी एवं केसरी का अर्थ शेर से हैयानि जंगल में जो स्थिति गज अथवा सिंह की होती है वही स्थिति जातककी समाज में होती है। पुरातन ग्रंथ इसके बारे में लिखते हैं किचन्द्र-मन, गुरु-ज्ञान तो जब मन को ज्ञान रूपी प्रकाश मिल जाता है तो जातक को अध्यात्मिक शान्ति मिलती है चन्द्र माता और गुरु घर के बड़े बुजुर्ग इन दोनों कासाथ यदि जातक को मिल जाए तो जातक केजीवन में हर प्रकार से लाभ देने वाले सिद्ध होते है| चन्द्र के दूध में जब गुरु का केसर मिल जाता है तो वो दूध कई गुना ताकतवरऔर लाभ देने वाला बन जाता है| लेकिन इन दोनों केपूर्ण रूपसे शुभ लाभ जातक को प्राप्त हो उसके लिय इन दोनों की सिथ्ती काफी मायने रखती है जैसे की इन दोनों में से कोई मारक भाव का स्वामी न हो और इन दोनों में से कोई एक नीच का न हो क्योंकि ऐसे में इनका ये योग मान्य नही होगा क्योंकि जैसे शरीर में जिगर गुरु होता है औरपानी चन्द्र जब भी हम दूषित पानी पियेंगे धीरे धीरे वो हमारे लीवर में खराबी करेगा उसी प्रकार यदि एक खराब अवस्था मेंहुआ तो दुसरे के फल में भी कमी करेगा|

दूसरा उदाहरण जैसे की चन्द्र यानी हमारी माता बहुत अच्छी है लेकिन घर के जो बुजुर्ग है उनको गलत लत लगी हुई है तो वो धन दौलत का भी मिटा देंगे यानी जातक को धन तो मिलेगा नही साथ ही जातक की माता भी दुखी रहेगी |कहने का अभिप्राय है की दोनों ग्रहों का पूर्णरूप से शुभ फल जातक को प्राप्त होने के लिय दोनों की सिथ्ती अच्छी होनी जरुरी है| साथ ही आपको ये देखना भी जरुरी है की कुंडली के किस भाव में इनदोनों का योग बन रहा है| त्रिक भाव में इन दोनों का योगमान्य नही होता शुभ रूप में| साथ इनदोनों ग्रहों में डिग्री केहिसाब से बलि होना जरुरी है इनमे से कोई मिर्त अवस्था मेंहो तो योग मान्य नही होगा |दोनों जितने ज्यादा बलि होंगे जातक को उतने ही ज्यादा शुभ फल जातक को मिलेगे ऐसा जातक विनम्र, उदार, मित्र-रिश्तों एवं समाज में स मान पाने वालाहोता है। ऐसा जातक किसी गांँव, शहर अथवा राष्ट्र का जननायक होता है एवं उसका यश मृत्यु के पश्चात भी अक्षुण्ण रहता है। यदि यह युति शुभभाव  राशि में हो तोमेरी राय में योग की यह विशद् व्या या वृहद् स्तर पर ठीक है लेकिनसूक्ष्म स्तर पर चूंकि हर गजकेसरी योग समान रूप से शक्तिशाली नहीं होताअत: ऐसे योगधारी विभिन्न जातकों के लिए यह कितना फलदायी होगा यहअनुसंधान का विषय है। नि:संदेह जंगल में शेर की स्थिति अहम है लेकिनफिर भी शिशुसिंह, युवासिंह एवं वृद्धसिंह की शक्ति में अंतर होता है। स्वस्थएवं लंगड़े शेर की शक्ति में भी आमूलचूल अंतर होता है। ठीक यही बातगजकेसरी पर लागू होती है। लग्न एवं चौथे घर से बनने वाले गजकेसरी केपरिणाम आठवें-ग्यारहवें से बनने वाले गजकेसरी से सर्वथा भिन्न होंगे।गजकेसरी योग है या? जब बृहस्पति चन्द्रमा से केंद्र में अर्थात् साथ मेंअथवा चौथे, सातवें एवं दशवें घर में होता है तो गजकेसरी योग का निर्माणहोता है। यह योग जैसा कि मैंने पहले लिखा है इस बात पर निर्भर करेगा कियह किन-किन लग्नो मेंऔर घरों से बन रहा है। ग्रह कारक है अथवा अकारक, या वहमित्र घर में है एवं किन-किन ग्रहों के साथ है आदि-आदि। इस योग की रेटिंगहर जातक के लिए भिन्न होगी। कहीं यह शतप्रतिशत तो कहीं मात्र पांच प्रतिशतप्रभावी हो सकता है। एक कुशल ज्योतिषी को इसका विवेचन गंभीरता सेकरना चाहिए। एक और बात जो मैंने इस योग के बारे में देखा है कि यहयोग दुर्लभ नहीं है वरन् एक सीधी गणित यह कहती है कि यह योग तैंतीसप्रतिशत जातकों की पत्रिका में मिलता है। बारह राशियों का भ्रमण करते हुएचन्द्रमा एक माह में चार बार बृहस्पति से केंद्र में आता है। ऐसे सभी जातकतो फिर राजातुल्य नहीं होते। गजकेसरी का प्रभाव भोगने वाले जातक तोसैंकड़ों-हजारों में एक होते हैं। यही कारण है कि इस योग की रेटिंग काआंकलन सर्वाधिक मह वपूर्ण है। मात्र इस योग से ही भविष्य बताना गलतहोगा। गजकेसरी अन्य योगों विशेषत: पंचमहापुरुष योगों एवं अन्य अनेकराजयोगों एवं धनयोगों के साथ अधिक फलदायी होते देखा गया है। जैसेविभिन्न ऋतुओं में सूर्य की शक्ति भिन्न है, यही बात गजकेसरी के साथ है।

गजकेसरी योग की रेटिंगनिर्मल आकाश पर दुपहरी में चमकने वाले सूर्य एवं काले बादलों में ढँकेसांझ के सूर्य में होता है। ,जिस तरह सिक्के के दो पहलुलु होते है उसी कोई भी योग अशुभ शुभ हो सकता है देखना होगा का योग कोन से लग्न मे कोन सी राशी या भाव मे है उस हिसाव भाव फल हो जाऐगा शुभ युति का फल - यदि यह युति शुभ राशि मेंहै जकेसरी योग अथवा कोई ाी अन्य योग मात्रतकनीकी स्तर पर उपस्थित होने से प्रभावी एवंशक्तिशाली नहीं होता, अंतत: हर योग की अंतरनिहितपॉवर ही अधिक मह वपूर्ण है। एक प्रतिशत से शतप्रतिशतके मध्य कौन-सा योग कितना शक्तिशाली हैइसका आकलन उसकी पत्री देख कर समझदार ज्योतिषी ही लगा सकता हैउदारन अव तुला ल्गन मे गुरु 3 ओर 6 है वही करकृ मे 6 ओर 9 यानी भाग्य का तो दोनो लगनो मे वनने वाले योग मे अन्तर होगाथोङा ओरा समझते है यदि बृहस्पति किसी समय विशेष में मेष राशि में गोचर कर रहे हैं अथवा मेष राशि में स्थित हैं तो इस राशि में बृहस्पति एक वर्ष तक रहेंगे तथा इस एक वर्ष के बीच जब जब चन्द्रमा मेष, कर्क, तुला अथवा मकर में गोचर करेंगे, जो इनमें से प्रत्येक राशि में लगभग 2-3 दिन तक रहेंगे, तो इस अवधि में जन्म लेने वाले सभी जातकों की कुंडली में गज केसरी योग बनेगा क्योंकि चन्द्रमा के उपरोक्त चारों राशियों में से किसी भी राशि में स्थित होने से मेष राशि में स्थित बृहस्पति प्रत्येक कुंडली में चन्द्रमा से गिनने पर केंद्र में ही आएंगे। इस प्रकार यह सिद्ध हो जाता है कि अपनी प्रचलित परिभाषा के अनुसार गज केसरी योग प्रत्येक तीसरी कुंडली में बनता है तथा एक बार आकाश में उदय होने के पश्चात यह योग लगभग 2-3 तक उदय ही रहता है। इन दोनों में से कोई भी तथ्य व्यवहारिक रूप से सत्य नहीं हो सकता क्योंकि गज केसरी जैसा शुभ फल दायक योग दुर्लभ होता है तथा प्रत्येक तीसरे व्यक्ति की कुंडली में नहीं बन सकता तथा कोई भी दुर्लभ योग बहुत कम समय के लिए ही आकाश में उदित होता है तथा ऐसे योग सामान्यतया कुछ घंटों या फिर कुछ बार तो कुछ मिनटों में ही उदय होकर विलीन भी हो जाते हैं फिर 2-3 दिन तो बहुत लंबा समय है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि गज केसरी योग की परिचलित परिभाषा में बताई गई शर्त इस योग के किसी कुंडली में निर्माण के लिए पर्याप्त नहीं है तथा इस योग के किसी कुंडली मे बनने के लिए कुछ अन्य शर्तें भी आवश्यक होंगीं।किसी कुंडली में किसी भी शुभ योग के बनने के लिए यह आवश्यक है कि उस योग का निर्माण करने वाले सभी ग्रह कुंडली में शुभ रूप से काम कर रहे हों क्योंकि अशुभ ग्रह शुभ योगों का निर्माण नहीं करते अपितु अशुभ योगों अथवा दोषों का निर्माण करते हैं। इसी आधार पर यह कहा जा सकता है कि किसी कुंडली में गज केसरी योग के निर्माण के लिए कुंडली में बृहस्पति तथा चंद्रमा दोनों का ही शुभ होना आवश्यक है तथा इन दोनों में से किसी भी एक ग्रह के अथवा दोनों के ही किसी कुंडली में अशुभ होने पर उस कुंडली में गज केसरी योग नहीं बन सकता बल्कि इस प्रकार के अशुभ बृहस्पति तथा चन्द्रमा के संयोग से कुंडली में कोई अशुभ योग बन सकता है। उदाहरण के लिए यदि किसी कुंडली में शुभ चन्द्रमा अशुभ गुरु के साथ एक ही घर में स्थित हैं तो इस स्थिति में कुंडली में गज केसरी योग नहीं बनेगा बल्कि शुभ चन्द्रमा के साथ अशुभ गुरु के बैठने से चन्द्रमा को दोष लग जाएगा जिसके कारण जातक को चन्द्रमा की विशेषताओं से संबंधित क्षेत्रों में हानि उठानी पड़ सकती है तथा इसी प्रकार किसी कुंडली में शुभ गुरू का अशुभ चन्द्रमा के साथ केन्द्रिय संबंध होने पर भी कुंडली में गज केसरी योग नहीं बनता बल्कि शुभ गुरू को अशुभ चन्द्रमा के कारण दोष लग सकता है जिससे जातक को गुरु की विशेषताओं से संबंधित क्षेत्रों में हानि उठानी पड़ सकती है। किसी कुंडली में सबसे बुरी स्थिति तब पैदा हो सकती है जब कुंडली में गुरु तथा चन्द्रमा दोनों ही अशुभ हों तथा इनमें परस्पर केन्द्रिय संबंध बनता हो क्योंकि इस स्थिति में गुरु चन्द्रमा का यह संयोग कुंडली में गज केसरी योग न बना कर भयंकर दोष बनाएगा जिसके कारण जातक को अपने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में बहुत हानि उठानी पड़ सकती है।इसलिए किसी कुंडली में गज केसरी योग के निर्माण का निश्चय करने से पहले कुंडली में चन्द्रमा तथा गुरु दोनों के स्वभाव का भली भांति निरीक्षण कर लेना चाहिए तथा दोनों के शुभ होने पर ही इनका संयोग कुंडली में होने पर गज केसरी योग का निश्चय करना चाहिए। यहां पर यह बात ध्यान रखने योग्य है कि किसी कुंडली में वास्तव में गज केसरी योग बन जाने पर भी इस योग से जुड़े सभी उत्तम फल जातक कों मिल हीं जाएं, ऐसा आवश्यक नहीं क्योंकि विभिन्न कुंडलियों में बनने वाला गज केसरी योग कुंडलियों में उपस्थित अनेक तथ्यों तथा संयोगो के कारण भिन्न भिन्न प्रकार के फल दे सकता है। उदाहरण के लिए किसी कुंडली में शुभ चन्द्रमा तथा शुभ गुरु के कर्क राशि में स्थित होने पर बनने वाला गज केसरी योग उत्त्म फलदायी हो सकता है जबकि किसी कुंडली में शुभ चन्द्रमा तथा शुभ गुरु के वृश्चिक अथवा मकर राशि में स्थित होने से बनने वाला गज केसरी योग उतना अधिक फलदायी नहीं होता क्योंकि वृश्चिक में स्थित होने से चन्द्रमा बलहीन हो जाते हैं तथा मकर में स्थित होने से गुरु बलहीन हो जाते हैं जिसके कारण इस संयोग से बनने वाला गज केसरी योग भी अधिक बलशाली नहीं होता। इसी प्रकार किसी कुंडली में शुभ चन्द्रमा तथा शुभ गुरु के एक ही घर में स्थित होने पर बनने वाला गज केसरी योग ऐसे चन्द्रमा तथा गुरु के परस्पर सातवें घरों में स्थित होने से बनने वाले गज केसरी योग की तुलना में अधिक प्रभाव डालता है।

शुक्रवार, 7 सितंबर 2018

शनि ग्रह की जानकारी और गोचर

शनिदेव कर्मफल दाता और मोक्ष प्रदान करने वाले ग्रह माने गए हैं। कुछ ज्योतिषी शनिदेव को न्यायधीश कहते  है। दरअसल शनि देव न्यायधीश नहीं है बल्कि वह मुजरिम को पकड़कर वह जलाद है जो फांसी पर चढ़ा कर सजा देता है

 न्यायधीश फैसला सुनाता है और शनिदेव पकड़ कर  उसको उसके कर्मों की सजा देता  है अभी  शनि धनु राशि में स्थित है मित्रों शनिदेवल बक्री होकर चल रहे हैं शुक्रवार को शनि पुन: वक्री से मार्गी होंगे।24 जनवरी 2020 को धनु राशि से मकर राशि में जाएंगे जिसके कारण  जैसा कि शनि प्राकृतिक राशि चक्र में धर्म-कर्म के नवें भाव से गोचर कर रहा हैआपकी जिंदगी में बहुत फेरबदल होनेवाला है. लगभग साढ़े चार महीना से शनि ग्रह वक्री थे यानी उल्टी चाल में थे और इंसान की जिंदगी को सबउलट पलट के रख दिया था. पिछले 18  अप्रैल को वक्री हुए थे. 6 सितम्बर को मार्गी होकर सीधी चाल में आएंगे. गुरुवार से सब अच्छा होगा यानी एक सप्ताह सब कष्ट कम होंगे. जिनका शनि भारी है, उनको इससे आराम मिलेगा.शनि के कष्टों से आराम मिलेगा. इसलिए वह आपके बुरे कर्मों के संचय को दूर करने और जीवन में सकारात्मकता लाने में मदद करेगा। सकारात्मकता बढ़ने के कारण आपको कार्यक्षेत्र, भाग्य, लंबी दूरी की यात्रा व विदेश यात्राओं में अधिक आसानी से सफलता प्राप्त हो सकती है| इस अवधि के दौरान आपकी ज़िम्मेदारी की भावना बढ़ेगी और आप मात्रा की अपेक्षा गुणवत्ता को अधिक पसंद करेंगे| जीवन में एक नई वास्तविकता का अनुभव करने हेतु शुभ बृहस्पति की धनु राशि में शनि का यह गोचर आपके सकारात्मक विचारों को बढ़ाने में मदद करेगा|06 सितम्बर 2018 को शनि मार्गी होकर 27 नवम्बर 2018 को फिर से पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में आ जायेंगे। करीब 154 दिन पूर्वाषाढ़ा में मार्गी रहकर शनि 30 अप्रैल 2019 को वक्री हो जाएंगे और करीब 141 दिन पूर्वाषाढ़ा में वक्री रहकर 18 सितम्बर 2019 को मार्गी हो जाएंगे। 26 दिसम्बर 2019 को शनि उत्तराषाढा नक्षत्र में प्रवेश करेंगे और 24 जनवरी 2020 को मकर राशि में प्रवेश कर जाएंगे। 

लोगों को यह जानने की उत्सुकता है की शनि के गोचर से उनके जीवन में क्या प्रभाव पड़ेगा। मित्रों आपकी कुंडली और गोचर मिलाकर ही फलकथन किया जा सकता है अकेला गोचर कभी भी फलदाई नहीं होता  फलदीपिका, जातक पारिजात जैसे महान ज्योतिष ग्रंथों में एक बहुत सरल तरीका बताया हुआ है की जन्म चन्द्रराशि से 3, 6, 11 राशि में शनि का गोचर शुभ होता है यदि क्रमशः वेध स्थान 12, 9, 5 में कोई अन्य ग्रह न हो। उदाहरणार्थ तुला राशि के लिए धनु का शनि 3वे होकर शुभ होना चाहिए अगर 12वे कन्या में कोई ग्रह (सूर्य के अतिरिक्त) गोचर न कर रहा हो।

परन्तु किसी ग्रह के गोचर का मनुष्य पर प्रभाव सिर्फ जन्म लग्न अथवा जन्म राशि देखकर बताना असंभव है। इसके लिए कुंडली का सूक्ष्म अध्ययन आवश्यक है। साथ ही शनि के अलावा 8 और ग्रह हैं जिनके गोचर का प्रभाव आपको देखना होगा।

मैं आपको एक छोटा सा सूत्र देता हूँ जिसको आप खुद अपनी कुंडली में देख सकते हैं की शनि का गोचर आपको कैसा फल देगा। इसके लिए आप अपनी कुंडली में शनि का अष्टकवर्ग देखिये। इस अष्टक वर्ग में देखिये की धनु राशि में कितने बिंदु/रेखा/अंक हैं। अगर यह संख्या 0, 1, 2, 3 है तो सामान्यतः अशुभ फल मिलेगा, अगर संख्या 4 है तो मिला जुला, 5, 6, 7, 8 है तो शुभ फल मिलेगा। ऐसा आप अनुमान लगा सकते हैं।

अतः अगर आपकी चन्द्र राशि तुला, कर्क, कुम्भ है और आपकी कुंडली में शनि के अष्टक वर्ग में 5 से 8 बिंदु हैं तो आप शनि के धनु राशि में गोचर से अच्छे फल की आशा कर सकते हो।

धनु राशि अग्नितत्व, द्विस्वभाव राशि है . धनु राशि में स्थित होकर शनि तृतीय दृष्टि से कुम्भ राशि को प्रभावित करेंगे जो उनकी मूलत्रिकोण राशि है। ज्यादा अशुभ प्रभाव नहीं रहेगा। सप्तम दृष्टि से मिथुन राशि को देखेंगे जो उनके मित्र बुध की राशि है। शनि की दशम दृष्टि कन्या पर रहेगी जो फिर से बुध की ही राशि है । 

यह याद रखियेगा की शनि ग्रह गोचरवश राशि के अंतिम भाग में अर्थात 20 डिग्री से 30 डिग्री विशेष प्रभाव या फल उत्पन्न करते हैं

शनि गोचर अरिष्ट जानने की कुछ विशेष विधि 

षष्ठेश, अष्टमेश और द्वादशेश के स्फुटों को जोड़कर जो राशि आये उस राशि में अथवा त्रिकोण राशि में जब गोचर का शनि आता है तो अरिष्ट होता है। 

उदाहरणार्थ किसी जातक का कर्क लग्न है और षष्ठेश गुरु तुला राशि में 07 डिग्री 20 मिनट 24 सेकंड में स्थित है अतः गुरु का स्फुट हुआ 187। 20। 24 . अष्टमेश शनि कन्या राशि में और द्वादशेश बुध मिथुन राशि में हैं जिनके स्फुट क्रमशः 172। 32। 04 तथा 78। 55। 42 है . इनको जोड़कर योग बनता है 438। 48। 10 अर्थात मिथुन राशि मीन नवमांश . ऐसे जातक के लिए शनि का तुला राशि, कुम्भ राशि तथा मिथुन राशि में गोचर विशेष अरिष्टदायक होगा एक उदाहरण से  समझे. नवम्बर 2011 से नवम्बर 2014 जब शनि तुला राशि में गोचर कर रहे थे उस समय जातक को मृत्युतुल्य कष्ट हुआ . 

प्राण स्फुट (लग्न स्फुट को 5 से गुणा कर उसमें मान्दि स्फुट जोड़कर जो फल आये), देह स्फुट (चन्द्र स्फुट को 8 से गुणा कर उसमें मान्दि स्फुट जोड़कर जो फल आये) और मृत्यु स्फुट (मान्दि स्फुट को 7 से गुणा कर उसमें सूर्य स्फुट जोड़कर जो फल आये) को जोड़कर जो राशि आये उस राशि पर जब गोचरवश शनि आता है तो धन का क्षय होता है तथा उस राशि के त्रिकोण में अथवा नवांश में जब शनि आता है तो अरिष्ट होता है। 

गुलिक स्फुट से शनि स्फुट घटाकर जो राश्यादि हो नवांश वा त्रिकोण में जब शनि आता है तो अरिष्ट होता है।  अगर आपको सटीक फलादेश चाहिए तो आपको अपने जन्म कुंडली का किसी विद्वान से सूक्ष्म अध्ययन कराना चाहिए। आपका जन्म लग्न, जन्म नक्षत्र, शनि नक्षत्र, बाकी 8 ग्रहों की स्तिथि, अष्टकवर्ग आदि देखने के बाद ही सटीक फलादेश संभव है। आचार्य राजेश

गुरुवार, 6 सितंबर 2018

ज्योतिषीय उपाय और उसका असर

उपायों का असर ज्‍योतिष में उपायों के असर पर सालों से मंथन चल रहा है। एक ओर जहां भाग्‍य को पूर्व नियत मानकर बहुत से ज्‍योतिषियों ने उपायों को सिरे से खारिज कर दिया है, वहीं वैदिक ज्‍योतिष से लाल किताब तक हर स्‍तर पर उपायों की चर्चा की गई है। अगर तंत्र वाले हिस्‍से को छोड़ दिया जाए तो हम देखते हैं

कि उपाय को फलित ज्‍योतिष के एक भाग के रूप में स्‍वीकार किया गया है। अब सवाल यह उठता है कि क्‍या उपायों का असर होता है। अब तक के मेरे अभ्‍यास में मैंने देखा है कि उपायों का असर होता है। अब भले ही यह प्रारब्ध में ही क्‍यों न बंधा हो। जातक का ज्‍योतिषी के पास आना, ज्‍योतिषी का उपाय बताना और उस उपाय का लागू होना तक प्रारब्‍ध का हिस्‍सा हो सकता है। मैं उपचार बताता हूं और जातक को इसका लाभ दिखाई देता है, मैं इसका अर्थ लगाता हूं कि उपचार प्रभावी होते हैं। ज्‍योतिष सीखने के शुरूआती दौर में मैंने खुद ने कई रत्‍नों और लाल किताब के उपचारों को अपनाया। भले ही अपेक्षित परिणाम नहीं आया, लेकिन अवस्‍था और मानसिकता में भारी अंतर महसूस किया। पहला असर मानसिकता पर उपायों का पहला असर मैं जातक की मानसिकता पर देखता हूं। इसका एक कारण यह भी है कि जिन जातकों ने एक ज्‍योतिषी के तौर पर मुझे मान्‍यता दी और मेरे बताए उपचारों को पूरी श्रद्धा के साथ किया उन्‍हें तुरंत और अच्‍छे परिणाम हासिल हुए। कई बार तो इतने जल्‍दी कि मुझे खुद भी आश्‍चर्य हुआ। मैं किसी भी जातक को उपचार बताने के साथ एक तय अवधि भी देता हूं, जिसमें उस उपचार का लाभ न होने पर उपचार बंद करने की नसीहत शामिल होती है। तय तिथि से पहले उपचार का असर मिलना हर बार मेरे लिए सुखद अनुभूति होती है। अगर ज्‍योतिष यह कहती है कि जो भाग्‍य में लिखा है वह होकर रहेगा, तो इसी विषय ने यह भी सिखाया है कि जो कुछ पहले से बदा है उसके प्रभाव में कमी या बढ़ोतरी करना संभव है। अब यह कमी या बढ़ोतरी कितनी और कैसे होती है, इस बारे में कहीं स्‍पष्‍ट नहीं किया गया है। संभवत: यह जातक की श्रद्धा और प्रयासों पर भी निर्भर करता है। ऐसे में ज्‍योतिषी की भूमिका कुछ कम हो जाती है। उपचार ही नहीं कर पाते ऐसा नहीं है कि एक जातक ज्‍योतिषी के पास जाए, उससे उपचार के बारे में जानकारी ले और वापस आकर उपचार कर ले और आगत समस्‍याओं से बच जाए। कई बार उपचार बता देने के बाद भी जातक उपचार नहीं कर पाते हैं। ऐसा नहीं है कि जातक के मन में श्रद्धा नहीं है अथवा जातक उपचार करना नहीं चाहता, लेकिन उपचार करने में विफल रहने वाले अधिकांश जातक लौटकर बताते हैं कि घटनाओं का चक्र कुछ इस तरह चला कि वे उपचार कर नहीं पाए। वैदिक ज्‍योतिष में जहां केवल दान, पूजा और जप वाले ही उपचार थे, वहीं लाल किताब और सुनहरी किताबों में ऐसे सरल और वैकल्पिक उपाय बताए गए हैं जो हर कोई आसानी से कर सकता है। इसके लिए अधिक प्रयास करने की जरूरत भी नहीं है। इसके बावजूद जातक उपाय नहीं कर पाते हैं। कहां से क्‍या उपचार वैदिक ज्‍योतिष में उपचार के लिए दान और जप के उपचार बताए गए हैं। सूर्य के लिए सूर्य, बुध के गणेश, गुरु के लिए सरस्‍वती, शुक्र के लिए देवी उपासना, शनि के लिए शनि महाराज, मंगल के लिए हनुमानजी और चंद्रमा के लिए शिव आराधना के उपचार बताए गए हैं। इससे खराब ग्रहों का प्रभाव कम होता है और अच्‍छे ग्रहों का प्रभाव बढ़ता है। दूसरी ओर दान के लिए ग्रहों से संबंधित वस्‍तुओं का दान करने से खराब प्रभाव का असर कम हो जाता है। अच्‍छे ग्रहों से संबंधित रत्‍नों और वस्‍तुओं को धारण करने की सलाह दी जाती है। जप के संबंध में ग्रहों की युति को लेकर भी देवताओं और अराधना के नियम तय किए गए हैं। इन्‍हें करने से शीघ्र लाभ होता है। अगले लेख में हम उपचारों के संबंध में लाल किताब की भूमिका पर बात करेंगे। हालांकि लाल किताब को ज्‍योतिष की मुख्‍य ध्‍यारा से अलग माना गया है, लेकिन फिर भी उपचारों के मामले में लाल किताब की कोई तुलना नहीं है।

रविवार, 2 सितंबर 2018

पानी रे पानी पानी और ज्योतिष

पानी किसका है आब का रंग कोन सापानीनी तेरा रंग कैसा जिसमे मिला दो लगे उस जेसा जल के कारक कई है । पानी के रुप कई है रंग कई है।पानी शुद्ध रुप मे चन्द्र गृह से सवन्घित है 1. सीधा शरीर के अंदर जाता है । जैसे पीने के वक़्त तब ये चंद्रमा का है 2. जब शरीर को छु कर ज़मीन पर जाता है जैसे नहाने धोने के वक़्त , तब राहु का है हाथ धोने कुल्ला करने के लिए बुध का है 3. जब सीधा जमींन पर जाता है । पोंछे साफ सफाईके लिए जाये तो शनि , 4.खाने पिने की चीज़ बनाने में जाये तो गर्म के लिए मंगल का है 

, ठन्डे के लिए शुक्र का है 5. किसी को देने के लिए भगवान को अर्पण के लिये सूर्य का है मेहमान को देने के लिए केतु का है । और हज़ारो सूक्ष्म भेद है । सिर्फ जल ही नहीं हर चीज़ के कारक बदल जाते है । ज्योतिष बहुत वैज्ञानिक अवधारणा है । ज्योतिष उपाय सूक्ष्म स्तर पर बहुत रहस्यमयी होते है । और सबसे बड़ा रहस्यमयी राहु है

शुक्र ग्रह की पूरी जानकारी

शनिवार, 1 सितंबर 2018

ज्योतिषी और उनके लक्षण

ज्योतिषी और उनके लक्षण ज्योतिष शास्त्र का अध्ययन करने वाले व्यक्ति को ज्योतिषी, ज्योतिर्विद, कालज्ञ, त्रिकालदर्शी, सर्वज्ञ आदि शब्दों से संबोधित किया जाता है। सांवत्सर, गुणक देवज्ञ, ज्योतिषिक, ज्योतिषी, मोहूर्तिक, सांवत्सरिक आदि शब्द भी ज्योतिषी के लिए प्रयुक्त किए जाते हैं। ज्योतिष व ज्योतिषी के संबंध में सभी परिभाषाओं का सुन्दर समाहार हमें वराहमिहिर की वृहद संहिता से प्राप्त होता है। वराहमिहिर लिखते हैं

 ग्रह गणित (सिद्धांत) विभाग में स्थित पौलिश, रोमक, वरिष्ट सौर, पितामह इन पाँच सिद्धांतों में प्रतिपादित युग, वर्ष, अयन, ऋतु, मास, पक्ष, अहोरात्र, प्रहर, मुहूर्त, घटी, पल, प्राण, त्रुटि आदि के क्षेत्र का सौर, सावन, नक्षत्र, चन्द्र इन चारों मानों को तथा अधिक मास, क्षय मास, इनके उत्पत्ति कारणों के सूर्य आदि ग्रहों को शीघ्र तुन्द दक्षिणा उत्तर, नीच और उच्च गतियों के कारणों को सूर्य-चन्द्र ग्रहण में स्पर्श, मोक्ष इनके दिग्ज्ञान, स्थिति, विभेद वर्ग को बताने में दक्ष, पृथ्वी, नक्षत्रों के भ्रमण, संस्थान अक्षांश, चरखण्ड, राश्योदय, छाया, नाड़ी, करण आदि को जानने वाला, ज्योतिष विषयक समस्त प्रकार की शंकाओं व प्रश्न भेदों को जानने वाला तथा परीक्षा की काल की कसौटी में, आग और शरण से परीक्षित शुद्ध स्वर्ण की तरह स्वच्छ, साररूप वाणी बोलने वाला, निश्चयात्मक ज्ञान से सम्पन्न व्यक्ति ज्योतिषी कहलाता है। इस प्रकार से शास्त्र ज्ञान से सम्पन्न ज्योतिषी को होरा शास्त्र में भी अच्छी तरह से निष्णात होना चाहिए, तभी गुण सम्पन्न ज्योतिषी की वाणी कभी भी खाली नहीं जाती। ज्योतिषी के लक्षण एक ज्योतिषी के लक्षण बताते हुए आचार्य वराहमिहिर कहते हैं कि ज्योतिषी को देखने में प्रिय, वाणी में संयत, सत्यवादी, व्यवहार में विनम्र होना चाहिए। इसके अतिरिक्त वह दुर्व्यसनों से दूर, पवित्र अन्तःकरण वाला, चतुर, सभा में आत्मविश्वास के साथ बोलने वाला, प्रतिभाशाली, देशकाल व परिस्थिति को जानने वाला, निर्मल हृदय वाला, ग्रह शान्ति के उपायों को जानने वाला, मन्त्रपाठ में दक्ष, पौष्टिक कर्म को जानने वाला, अभिचार मोहन विद्या को जानने वाला, देवपूजन, व्रत-उपवासों को निरंतर, प्राकृतिक शुभाशुभों के संकेतों को समझाने वाला, ग्रहों की गणित, सिद्धांत संहिता व होरा तीनों में निपुण ग्रंथी के अर्थ को जानने वाला व मृदुभाषी होना चाह

लाल का किताब के अनुसार मंगल शनि

मंगल शनि मिल गया तो - राहू उच्च हो जाता है -              यह व्यक्ति डाक्टर, नेता, आर्मी अफसर, इंजीनियर, हथियार व औजार की मदद से काम करने वा...