सोमवार, 30 जनवरी 2017

आज की आपाधापी के पीछे अगर ज्योतिषीय कारण जानने की कोशिश करें तो सबसे पहले और मुख्य रूप से राहु का रूप सामने आता है..आप जीवन के किसी भी क्षेत्र की कल्पना राहु के बिना नहीं कर सकते...राहु आकाश हे .विस्तार है सीमायें है व मुख्य रूप से नशा है जूनून है .किसी भी वस्तु का किसी भी चीज का नशा धन का,रूप का ताकत का,राजनीति का,गुस्से का,हवस का,दिखावे का.ज्योतिष भी एक नशा है यह भी सौ प्रतिशत सत्य माना जा सकता है। बिना राहु के ज्योतिष नही की जा सकती है। अगर कुंडली मे राहु का रूप बुध के साथ सही सामजस्य बैठाये है तो ज्योतिष आराम से की जा सकती है,और राहु का सामजस्य अगर बुध के साथ सही नही है तो ज्योतिष करने में कठिनाई मानी जा सकती है। राहु का प्रयोग अगर बेलेंस करने मे ठीक है तो भी ज्योतिष का प्रकार अपने ही रूप मे होगा और बेलेंस नही किया जा सके तो वह रूप अपने दूसरे रूप मे होगा। जो लोग ज्योतिष को करना जानते है सबसे पहले वे अपने आसपास के माहौल के साथ अपने रूप को भी बदलना जरूरी समझते महिलाओं के अन्दर एक भावना देखी जाती है,ज्योतिष करते समय तथा ज्योतिष मे अधिक समय देने के कारण उनकी शरीर की अन्य गतिया रुक जाती है उनके शरीर मे राहु का प्रवेश हो जाता है और वे अपने कम उम्र के जीवन काल मे ही मोटी होनी शुरु हो जाती है। ज्योतिषी महिलाओं के लिये एक बात और देखी जाती है कि वे मोटी किनारी की उत्तेजक रंगो से भरी हुयी साडी का चुनाव करती है,अगर वे अपने को अधिक विद्वान प्रदर्शित करना चाहती है तो अपने आसपास के माहौल को भी राहु से पूर्ण कर लेती है जैसे भगवान का चित्र किसी देवी देवता को बहुत ही आकर्षित रंग से सजा लेना,अपने बैठने वाले कमरे मे बहुत सी आकर्षक वस्तुयों को सजा लेना आदि माना जा सकता है। यही बात पुरुषों के लिये देखी जाती है वे अपने शरीर की गति को सामान्य नही रख पाने के कारण मोटे होते जाते है या उनकी तोंद बाहर की तरफ़ निकल जाती है वे अपने शरीर को एक अलग किस्म का दिखाने के लिये लम्बा कुर्ता या एक ऐसी धोती का स्तेमाल करने लगते है जो उन्हे खुद को अच्छी लगती हो भले ही वे किसी को पहिनावे मे अच्छे लगते हो या नही। एक बात जो सबसे अधिक जानी जाती है वह होती कि कौन कितना ज्योतिषी का आदर करता है,अगर आदर मे कमी होती है तो बजाय ज्योतिष के ज्योतिषी का अहम बोलने लगता है और वह जो कुछ भी मन मे आता है कहना शुरु कर देता है,कोई अपने को किसी देवता का और कोई अपने को किसी देवता का पुजारी बताकर उस देवता के नाम से अपने कार्य को पूरा करने के लिये भी मानते है।अक्सर अपने सम्मान की बातो को ज्योतिषी बढ चढ कर बखान करने की कोशिश भी करते है,अपने सम्बन्धो को राजनीतिक लोगों से और अच्छी जान पहिचान बनाने के लिये किसी न किसी प्रकार से मीडिया के साथ भी अपने सम्बन्धो को रखने की कोशिश भी ज्योतिषियों की होती है,मीडिया भी राहु के अन्दर अपनी हैसियत को अच्छी तरह से प्रदर्शित करने की बात रखता है,जहां बारहवां शुक्र और राहु आपस में मिले छठा केतु भीतर की बातो को सम्वाद दाता के रूप मे प्रदर्शित करने की कला को राहु को सौंपना शुरु कर देता है,उसी प्रकार से जो धन से सम्बन्धित बाते होती है आडम्बर जैसी बाते होती है या किसी प्रकार की छल वाली बाते होती है मीडिया वाले ज्योतिषी के प्रति अपना प्रभाव बहुत जल्दी से देना शुरु कर देते है,अगर ज्योतिषी को बारहवे भाव का बेलेन्स बनाने की कला आती है तो वह मीडिया और जनता तथा जोखिम वाले कारण तथा अपमान करने रिस्क लेने मृत्यु सम्बन्धी कारण बताने तथा जो जनता तथा समाज मे गूढ रूप से चल रहा है उसे प्रकट करने का काम मीडिया का संवाददाता और ज्योतिषी अपने अपने अनुमान को प्रकट करने का काम भी राहु के द्वारा ही करते है। जब ज्योतिषी किसी भी प्रश्न कर्ता के लिये अपनी भावना को प्रकट करने का कार्य करता है तो वह किसी न किसी प्रकार के साधन से अपनी बात को प्रकट करने की कोशिश करता है जैसे अगर उसे कुछ जातक के प्रति कुछ कहना है तो वह या तो अपने ज्ञान से कुंडली बनाकर अपने ज्ञान के द्वारा जातक के प्रति कथन शुरु करेगा या फ़ेस रीडिंग को देखकर अपने भाव प्रदर्शित करेगा,या कोई न कोई ज्योतिष से सम्बन्धित कारक का बल लेकर ही जातक के भाव को प्रदर्शित करेगा। कई लोग जो बिना पढे लिखे होते है वे किसी न किसी प्रकार की साधनाओ का रूप अपने साथ लेकर चलते है और अपने कथन को सही करने के लिये वे दूसरी शक्तियों पर अपना विश्वास बनाकर चलते है। कई ज्योतिषी एक प्रकार का ही कथन सभी के साथ भावानुसार करते है उस भाव का रूप अलग अलग कारको पर फ़लीभूत होने पर वह अपने शब्दो का जाल जातक के सामने प्रस्तुत करते है और समय पर बताने की कोशिश मे वे अपने कथन को सही साबित करने की बात भी करते है। कई ज्योतिषी जुये जैसा कार्य भी करते है जैसे पासे फ़ेंकने का काम कोडी को पलटने का काम आदि भी देखा जाता है उसके अन्दर उनकी भावना भी कौडियों या पासों के अनुसार होती है। जितना राहु जिसका बलवान होता है उतना ही ज्योतिषी अपनी भाषा को प्रकट करता चला जाता है। मित्रो अगर आपकी कोई समस्या है ओर हल चाहते है या कुणङली वनवाना या दिखाना चाहते है तो सम्पर्क कर सकते है 07597718725 0914481324 माँकली ज्योतिष hanumangar paid service आचार्य राजेश

शुक्रवार, 27 जनवरी 2017

मित्रो 01-01-2017 को प्रातः 11:30 पर सपा के विशेष प्रतिनिधि सम्मेलन में मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव को पार्टी अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ जो सर्व - सम्मति से स्वीकृत हुआ। यह समय चंद्र महादशा में गुरु की अंतर्दशा का हुआ जो सामान्य है और 13 दिसंबर 2017 तक रहा , इसीलिए उनके लिए स्थितियाँ भी सामान्य ही बनी रहीं और बनी रहेंगी। फिर 13 जूलाई 2019 तक शुभ समय रहेगा। 13 मार्च 2023 तक श्रेष्ठ समय भी रहेगा लेकिन 13 जूलाई 2019 से 12 दिसंबर 2020 तक बीच के समय में ज़रूर सतर्कता पूर्वक चलना होगा। उस समय लखनऊ में कुम्भ लग्न चल रही थी जो एक स्थिर राशि की लग्न है ।यही कारण है कि, यह पद चुनाव स्थिर रहने वाला है और सभी सम्झौता प्रस्ताव किसी भी कारण से असफल रहे हैं। लग्न में ही मंगल, केतू व शुक्र ग्रह स्थित हैं। जहां मंगल, केतु नेतृत्व क्षमता में दृढ़ता के परिचायक हैं वहीं शुक्र सौम्यता, मधुरता व दूरदर्शिता के लक्षण बताता है जिस कारण वह किसी दबाव या प्रलोभन में झुक न सके दुसरे भाव में जो राज्यकृपा का होता है मीन लग्न स्थित है जिसका स्वामी ब्रहस्पति अष्टम भाव में बैठ कर पूर्ण सप्तम दृष्टि से उसे देख रहा है अतः उन पर आगे भी राज्य - योग कृपा बनाए रखेग। तृतीय भाव में जो जनमत, पराक्रम व स्वाभिमान का होता है मेष लग्न स्थित है जिसका स्वामी मंगल लग्न में ही बैठ कर अनुकूलता प्रदान कर रहा है और इसी कारण पार्टी पदाधिकारियों के 90 प्रतिशत का समर्थन ही उनको न केवल मिला वरन जनमत सर्वेक्षणों में भी लोकप्रियता हासिल रही है। इस प्रकार उनका स्वाभिमान आगे भी बरकरार रहने की संभावनाएं बनी हुई हैं। चोथा भाव में जो लोकप्रियता व मान -सम्मान का होता है वृष राशि स्थित है जिसका स्वामी लग्न में बैठ कर उनमें दूरदर्शिता का संचार कर रहा है अतः आगामी चुनावों में भी उनको इसका लाभ मिलने की संभावनाएं मौजूद हैं। पंचम भाव में जो लोकतन्त्र का होता है मिथुन लग्न स्थित है जिसका स्वामी बुध लाभ के एकादश भाव में सूर्य के साथ स्थित है। बुध सूर्य के साथ होने पर और अधिक बलशाली हो जाता है तथा सूर्य - बुध मिल कर आदित्य योग भी बनाते हैं जो कि, राज्य योग होता है। अतः चुनावों में अखिलेश जी की सफलता लोकतन्त्र को मजबूत करने वाली ही होगी क्योंकि इससे फासिस्ट शक्तियों को मुंह की खानी पड़ेगी। सातवा भाव में जो सहयोगियों, राजनीतिक साथियों व नेतृत्व का होता है सिंह राशि स्थित है जिसका स्वामी सूर्य एकादश भाव में गुरु की राशि धनु में बुध के साथ स्थित है। इसके अतिरिक्त इस भाव में राहू भी बैठ कर कुम्भ लग्न को देख रहा है जो उसकी अपनी राशि भी मानी जाती है। इस प्रकार अखिलेश जी अपनी पार्टी के बुद्धिजीवियों, नेताओं और साथियों में अधिकांश का समर्थन पाने में सफल रहे हैं जो फिलहाल जनतंत्र व जनता के लिए उत्तम स्थितियों का ही संकेत करता है। उम्मीद है कि, अपने बुद्धि कौशल से वह ग्रहों की अनुकूलता का पूर्ण लाभ उठाने में सफल रहेंगे।

सोमवार, 23 जनवरी 2017

मित्रो पिछे कुछ लेख रतनो पर मैने पोस्ट किये थे मेरे वहुँत से मित्र ईस्लाम घर्म को मानते है उन्होंने रतनो के वारे मे जानकारी अपने हिसाव से चाही है। सलमान खान ने फिरोजा पहन रखा है पर ईस से पहले भी फिरोजा फारुख शेख ने पहना है ।फिल्म उमराव जान के एक सीन में यह रेखा के बालों में ऊँगलियाँ फिरा रहे हैं। इस बे सीन में रेखा की काली जुल्फों के साथ जिस चीज पर कैमरा फोकस कर रहा है वह फारुख शेख के हाथ की एक ऊँगली में जगमगा रहा नैशापुरी फिरोजा है। लखनऊ में शूटिंग के दौरान नवाब मीर जाफर अब्दुल्ला की ऊँगली से उतरवाकर फिल्म के निर्देशक मुजफ्फर अली ने यह अँगूठी खास तौर पर फारुख शेख को पहनाईथी मुजफ्फर अली शिया मुसलमान हैं और कहीं न कहीं वह यह जरूर दिखाना चाहते थे कि शियाओं की एक पहचान फिरोजा रत्न भी है क्योंकि चौथे खलीफा हजरत अली और आठवें इमाम रजा फिरोजे की अँगूठी पहनते थे। ईरान स्थित नौशापुर का फिरोजा सबसे बेहतरीन माना जाता है। इराक के नजफ में हजरत अली के रौजे और ईरान के मशद में इमाम रजा की कब्र से छुआकर फिरोजा पहनना शियाओं में सवाब पुण्य माना जाता है।फिरोजे का इस्तेमाल सोने के जेवरों में भी हमेशा से खूब होता आया है। इसकी नीली चमक पीले सोने में खूब फबती है। इसे जवाहरात की श्रेणी में दूसरे नंबर पर रखा गया है। इस पर न तो तेजाब का असर होता है और न आग में पिघलता है। इसे पहनने से दिल के मर्ज में फायदा होता है। तबीयत को राहत और ताजगी बख्शता है। आँखों की रोशनी बढ़ाता है और गुर्दे की पथरी निकालता है। साफ और खुली फिजा में इसका रंग और ज्यादा खिल जाता है। फिरोजा ही नहीं, अकीक पहनना भी मुसलमानों में सवाब माना जाता है। मक्का में ‘संगे असवद’ को बोसा (चूमना) देना हज और उमरे की जरूरी रस्म मानी जाती है। हजरत मूसा और हजरत ईसा से पहले हजरत इब्राहीम के जमाने में यह पत्थर आसमान से उतरा। इसी ने हजरत इब्राहीम को रास्ता दिखाया। जहाँ पर गिरा वहीं पर मक्के की बुनियाद रखी गई। यह काला पत्थर अकीक (पुखराज की तरह) की नस्ल का बताया जाता है। मुसलमानों के सारे फिरकों में अकीक पहनना इसीलिए सवाब माना जाता है। अकीक को मुसलमानों में पवित्र और मजहबी नगीना इसलिए भी माना जाता है पैगंबर मोहम्मद साहब भी अकीक की अँगूठी पहनते थे। यमन का अकीक सबसे महँगा और पवित्र माना जाता है। अकीक एकमात्र रत्न है जो धूप या अन्य किरणों को जज्ब कर जिस्म के अंदर पहुँचाता है। इसे पहनने से दिमाग को ताकत मिलती है और नजर को भी बढ़ाता है। रहस्यमयी नगीने नीलम को उर्दू में भी नीलम ही कहा जाता है। मुसलमानों में यह शनि का रत्न न होकर जिस्म और आँखों को ताकत, पेट के सिस्टम को ठीक कर तबीयत को नर्म करने वाला नगीना है। इसको पहनने से अच्छी आदतें पैदा होती हैं। कमजोर आदमी भी अपने अंदर ताकत महसूस करता है। इसको पहनने वाले पर जादू का असर नहीं होता। प्लेटो ने भी नीलम की तारीफ की है।की है। हीरे को उर्दू में भी हीरा ही कहते हैं। मुसलमानों में हीरा भी उतना ही लोकप्रिय है जितना हिंदुओं या ईसाइयों में। यह अकेला रत्न है जिसकी कुछ हिंदू अभी भी पूजा करते हैं। पुखराज को उर्दू में भी पुखराज ही कहते हैं। यह जिस्म में तेज और ताकत को बढ़ाता है। इसको पहनने से कोढ़ तक ठीक हो जाता है। खून की खराबी में भी फायदा करता है। जहर को मारता है और बवासीर में भी लाभकारी है। इच्छाशक्ति को तेज करता है और घन की तंगी व्यापार की उलझनें दूर करता है। दया भाव पैदा करने के साथ ही परोपकारी और स्वाभिमानी भी बनाता है। पुखराज चूँकि बहुत महँगा होता है इसलिए भी कुछ लोग अकीक पहनते हैं लेकिन वह इस बात से इनकार करते हैं कि मुसलमानों में नगीनों का इस्तेमाल कम होता है। गोमेद को उर्दू में जरकंद कहते हैं। मुसलमानों में मान्यता है कि इसको पहनने से सामाजिक प्रतिष्ठा में इजाफा होता है और तरक्की भी होती है। यह पौरुष शक्ति भी बढ़ाता है और गहरी नींद सुलाता है। लकवाग्रस्त व्यक्ति को फायदा पहुँचाता है। लहसुनिया को इंग्लिश में कैट्स आई और उर्दू में यशब कहते हैं। यहूदी इस नगीने का इस्तेमाल सबसे ज्यादा करते हैं। इस्राइल में यह बहुत लोकप्रिय है। पुराने जमाने में इसे गर्भ निरोधक के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। कहा जाता है कि दूध में कुछ देर डालकर वह दूध पिलाने से औरत को गर्भ नहीं ठहरता। इस पर तेजाब का असर नहीं होता। मोती को उर्दू में मरवारीद कहते हैं। इसका इस्तेमाल जितना पहनने में होता है उतना ही दवा बनाने में। यूनानी दवाओं में खमीरा मरवारीद काफी मशहूर है। इसको पहनने से ईमानदारी पैदा होती है। दिमाग ठंडा रखता है। खसरा और चेचक में बहुत लाभदायक माना जाता है। आँखों की रोशनी बढ़ाने में भी सहायक है। पन्ने को उर्दू में जमुर्रद कहते हैं और तमाम हरे पत्थरों में इसे सबसे बेहतरीन बताया गया है। ‘तोहफा-ए-आलमे शाही’ किताब में लिखा है कि पैगंबर मोहम्मद साहब ने किसी से फरमाया कि जमुर्रद की अँगूठी से तमाम मुश्किलात आसान हो जाती हैं।हजरत अली कहते थे कि जमुर्रद किसी नागहानी संकट का संकेत भी देता है। लेकिन देवबंद फिरके से ताल्लुक रखने वाले मुसलमान इस तरह की बातों के सख्त खिलाफ हैं। उनका कहना है कि एक पत्थर की क्या बिसात कि वह किसी का फायदा या नुकसान करेगा। जो कुछ करेगा अल्लाह करेगा। इमाम मौलाना नईम अंसारी इस तरह की बातों को शिर्क बताते हैं। कहते हैं कि जरूरी नहीं कि किताबों की हर बात सही ही हो। कौन सी किताब सही है या गलत यह भी देखने की जरूरत है। पन्ने को लेकर चाहें जितने भ्रम हों लेकिन इसकी माँग हर जगह बराबर है। मुस्लिम औरतें इसे खूब पहनती हैं। खासतौर पर इसका लॉकेट। मिलने-जुलने की प्रवृत्ति पैदा करता है। दिल की बीमारी के अलावा मेदे में ठंडक पैदा कर पाचन क्रिया को सुदृढ़ करता है। पुराने जमाने में महारानियों की रान में बाँधा जाता था जिससे बच्चे की पैदाइश आसान हो जाती थी। किसी भी मुसीबत आने से पहले ही बुरी तरह से चिटक जाता है। मूँगे को उर्दू में मरजान कहते हैं। कुरान शरीफ में इसके गुणों की चर्चा सूरे रहमान में है। सारे रत्न पहाड़ों की खदानों से निकलते हैं लेकिन मूँगा समुद्र की तलहटी के पत्थरों से चिपटी हुई एक प्रकार की वनस्पति है जो पत्थर के आस-पास शहद के छत्ते की शक्ल की पैदा होती है। माना जाता है कि इसको पहनने से लकवा-फालिज नहीं होता। शरीर में कंपन की बीमारी नहीं होने देता। लिवर और पाचन क्रिया को सुदृढ़ करता है। दिल की धड़कन को काबू में रखने के अलावा गठिया में भी फायदा पहुँचाता है। इसको धारण करने वाले को आर्थिक तंगी से भी नहीं जूझना पड़ता। हकीम जालीनूस ने लिखा है कि कट जाने पर शरीर से खून न रुक रहा हो तो मूँगे का पाउडर लगाने से तत्काल रुक जाता है। माणिक को अंग्रेजी में रूबी और उर्दू में याकूत कहते हैं। मशहूर इस्लामी स्कॉलर सैयद इब्राहीम सैफी ने लिखा है कि जब हजरत आदम को जन्नत से निकाला गया तो सबसे पहले उनका पैर श्रीलंका के सेरेनद्वीप पर पड़ा। उनके कदम मुबारक के छूने से याकूत पैदा हुआ। माणिक के प्याले में शराब डालकर पीने से उसकी तेजी और नशा लगभग खत्म हो जाता है। कुछ मुस्लिम शहंशाहों के बारे में कहा जाता है कि वह याकूत के प्याले में ही शराब पीते थे क्योंकि इस्लाम में शराब नहीं नशे को हराम करार दिया गया है। राजा और शहंशाह इसी के बर्तनों में खाना भी खाते थे क्योंकि माणिक के बर्तन में जहर का असर नहीं होता।कबूतर की आँख की पुतली में जो सुर्ख रंग होता है उस रंग का माणिक सबसे बेहतरीन माना जाता है। शादियों में इसकी अँगूठी बेहतरीन तोहफा माना जाता है। इसे धारण करने वाला किसी से भी ताल्लुकात बनाने में निपुण हो जाता है। दिमागी फिक्र और परेशानी भी दूर करता है। जिस्म में फुर्ती रहती है। मिर्गी, गठिया और प्लेग में फायदा पहुँचाता है। इसकी सबसे खास बात यह है कि यह प्यास की शिद्दत को कम करता है। मूँगा-मोती अल्लाह का वरदान : कुरान शरीफ में मूँगा और मोती को अल्लाह की खास नेमतों वरदानमें शुमार बताया गया है। इसे जन्नत की भी रहमत (आशीर्वाद) बताया गया है। कुरान की सूरे रहमान में आयत नंबर 22 में अल्लाह ने मरजान यानी मूँगे का जिक्र अपनी खास नेमतों में किया है। याकूत यानी माणिक की खूबसूरती और गुणों के बारे में भी सूरे रहमान की आयत नंबर 58 में जिक्र है। यहूदी लोगों का प्रिय रत्न लहसुनिया और यशब हैं। लहसुनिया को अंग्रेजी में कैट्स आई और यशब को जेड कहते हैं।यह इस्राइल के लोकप्रिय रत्न हैं। यशब का जिक्र बाइबिल में भी आया है। माना जाता है कि यशब पहनने वाले पर दुश्मन का जोर नहीं चलता। जैसपर भी यहूदियों में खूब प्रचलित है। यह जेड की नस्ल का ही मुलायम रत्न है। यहूदी रब्बी इन्हें इस्तेमाल करते आए हैं। उनके सीने पर जेड और जैसपर की प्लेटें लगी रहती थीं जिन पर उनके धर्म ग्रंथ के उद्धरण दर्ज होते थे। शिया मुसलमानों में भी जेड और जैसपर गले में पहनने का चलन है। शिया इस पर नादे अली और पंजतन पाक नक्श कराकर पहनते हैं।- संगे सुलेमानी अंग्रेजी में अगेट के नाम से मशहूर है। मुसलमानों, यहूदियों और ईसाइयों में इस पत्थर के धार्मिक महत्व को स्वीकार किया गया है। मित्रो यहा फिर यही कहुगा रतन हमेशा कुंङली के हिसाव से पहने अगर मुझ से कुंङली दिखा कर रतन पहनना चाहते है तो ईन नम्वरो पर सम्पर्क करे 07597718725 09414481324 paid service

रविवार, 22 जनवरी 2017

मित्रो मेरा विचार यह है कि ज्योतिष एक ऐसा ज्ञान है जो बहुत उपयोगी है जिसे सिर्फ वह मनुष्य जानता है जो श्रेष्ठ आचरण और धर्म का पालन करते हुये इसकि बारीकियों को सिखे और फिर अपने उस ज्ञान की सिद्धी से वह कई उन बातों को जान लेता है जो साधारण मनुष्य के लिये उपयोगी हो सकता है . जैसे अगर कोई वृक्ष पर कोई फल लगा है जो कच्चा है अगर उसे बच्चा तोडना चाहे तो मां बाप कहते है अभी रुको एक सप्ताह बाद यह पक जायेगा तब तोडना, ये ज्ञान भी ज्योतिष ही तो है. इसलिये ज्योतिष ज्ञान को आजकल के साइंस से तुलना करके नकार नही सकते. रही बात आजकल के ज्योतिषियों की तो उन लोगों ने अधकचरे ज्ञान से अपने बोलने की कला का प्रयोग करके लोगों को उल्लू बना के अपना काम चला रहे है और सही ज्योतिष का ज्ञान रखने वाले भी उनके चक्कर मे वदनाम होते है साधु का चोला बहुत ही पवित्र माना जाता है वो अपने अंदर समस्त कोटी अपराधों को हर लेता है. रावण भी इसी भेष मे आया था और आजकल समाज में कुटील, कामी, लोलूप लोग भी इसी चोले को अपना कर उसकी आढ में गलत काम करते है परंतु साधु का वो चोला फिर भी श्रेश्ठ माना जाता है क्युंकि वो उस खोटे ब्यक्ति की बुराई को ढक लेता है और फिर वो गलत आदमी उस चोले की आढ में लोगों से दुराचार भी करता है. परंतु उसकी महीमा को तो मानना ही पढेगा. उसी तरह हो सकता है अनपढ भविष्य वेत्ता आते हों किसी ब्राहम्ण के भेष में या ज्योतिषि के वेश मे परन्तु इसका मतलब यह नही का ज्योतिष का ज्ञान ही गलत है. मेरा विचार यह है कि ज्योतिष एक ऐसा ज्ञान है जो बहुत उपयोगी है जिसे सिर्फ वह मनुष्य जानता है जो श्रेष्ठ आचरण और धर्म का पालन करते हुये इसकि बारीकियों को सेखे और फिर अपने उस ज्ञान की सिद्धी से वह कई उन बातों को जान लेता है जो साधारण मनुष्य के लिये उपयोगी हो सकता है . जैसे अगर कोई वृक्ष पर कोई फल लगा है जो कच्चा है अगर उसे बच्चा तोडना चाहे तो मां बाप कहते है अभी रुको एक सप्ताह बाद यह पक जायेगा तब तोडना, ये ज्ञान भी ज्योतिष ही तो है. इसलिये ज्योतिष ज्ञान को आजकल के साइंस से तुलना करके नकार नही सकते. रही बात आजकल के ज्योतिषियों की तो उन लोगों ने अधकचरे ज्ञान से अपने बोलने की कला का प्रयोग करके लोगों को उल्लू बना के अपना काम चला रहे है साधु का चोला बहुत ही पवित्र माना जाता है वो अपने अंदर समस्त कोटी अपराधों को हर लेता है. रावण भी इसी भेष मे आया था और आजकल समाज में कुटील, कामी, लोलूप लोग भी इसी चोले को अपना कर उसकी आढ में गलत काम करते है परंतु साधु का वो चोला फिर भी श्रेश्ठ माना जाता है क्युंकि वो उस खोटे ब्यक्ति की बुराई को ढक लेता है और फिर वो गलत आदमी उस चोले की आढ में लोगों से दुराचार भी करता है. परंतु उसकी महीमा को तो मानना ही पढेगा. उसी तरह हो सकता है अनपढ भविष्य वेत्ता आते हों किसी ब्राहम्ण के भेष में या ज्योतिषि के वेश मे पर्न्तु इसका मतलब यह नही कि ज्योतिष का ज्ञान ही गलत है.क्युंकि ज्योतिषी का मतलब सबसे अधिक पढा लिखा और विद्वान होता है. मै आपसे अनुरोध करुंगा आप भी ज्योतिष कि बुराई के बजायउनकी वुराई करे जो वेसिर पैर की वाते ज्योतिष के नाम पर कर रहे है जैसहैसियत राशीफल फला राशी वाले आज यह करे फलां राशी वाले आज काले कपङे पहने या 2 अंक वाले आज चावल ना खाऐ 4 वाले आज मत नहाऐ नही तो नजले की शकायत हो सकती है कन्या लग्न वाले हरे रंग के रुमाल जेव मे रखे या मेष लग्न वाले किसी के आगे झुकते नही आप मित्रो यह ज्योतिष नही है ना ही ऐसा करने वाले ज्योतिषी आप खुल कर ईसका विरोघ करे ओर हमारे समाज मे ईस वुराई को खत्म करे ताकि आने वाली पीडीया हमे दोषी ना ठहराऐ

मित्रो एक सच यह भी हैं… (ज्योतिष अपने आप में एक सम्पूर्ण विज्ञानं हैं…ज्योतिषी गलत हो सकता हैं,ज्योतिष नहीं मित्रों जहाँ सभी विज्ञानं का ज्ञान समाप्त हो जाता हैं वह से ज्योतिष विज्ञानं आरम्भ होती हैं यह काफी पुरानी घटना हैं,मै ट्रेन मे रिजर्वेशन की तलाश मे भटक रहा था। ट्रेन मे तिल रखने तक की जगह नही थीमेरा मित्र मेरे साथ था जगह ना मिलने के कारन हम टायलेट के पास बैठे अपने ही जैसे यात्रियो के साथ बैठ गये एक सहयात्री समय काटने के लिये लोगो का हाथ देख रहा था और विस्तार से सब कुछ बता रहा था। पास बैठे पिता-पुत्र की बारी आयी। पुत्र का हाथ देखते ही उसके माथे पर चिंता की लकीर उभर आयी। वह कुछ नही बोला। पिता को आशंका हुयी। वह पुत्र के बारे मे जानने व्यग्र हो उठा। एक कोने मे ले जाकर उस सहयात्री ने धीरे से बताया कि आपके पुत्र के हाथ को देखकर लगता है कि इसका कुछ समय पहले किसी से झग़डा हुआ है और ऐसा भी लगता है कि यह मर्डर करके भागा है। मै ने सोचा अब तो उस ज्योतिषी की खैर नही। ऐसा पिटेगा कि दम निकल जायेगा। पर हुआ उल्टा। पिता उनके पैरो मे गिर गया और बताया कि चम्वा मे दोस्तो के साथ किसी झग़डे मे इन सब से किसी की हत्या हो गयी। कैसे भी मैने अपने बेटे को निकाला है। अब इसे मुम्बई ले जा रहा हूँ ताकि कुछ काम सीखने के बाद वाहर के देशो मे नौकरी मिल सके। मेरे आश्चर्य का ठिकाना नही रहा। मैने बहुत बार भविष्य़वाणियो के बारे मे सुना और पढा था पर उन्हे सच होते इतने करीब से नही देखा था। उस ज्योतिषी के दिव्य ज्ञान ने मुझे प्रेरित किया कि मै इस प्राचीन विज्ञान का विस्तार से अध्ययन करुँ। मैने ढेरो पुस्तके खरीदी पर बिना गुरु केसही ज्ञानृ नही मिलता फिर पत्राचार से भी पङाई की तव भी वात नही वनी प्यास ज्यो की त्यो वनी रही जब भी हमे अखबारो मे किसी ज्योतिषी का विज्ञापन दिखता हम उसके ठिकने पर पहुँच जातेओर उनसे सीखने को कहते ओर कईयो से सीखा भी पर सव अघकचरे ज्ञानी थे कुछ समय तक यह सिलसिला चला यह तक कि इसी तरह जो शहर के ज्योतिषी थे या आस पास के उनके पास भी जा जा कर सीखा धीरे-धीरे समझ विकसित हुयी और जब एक ज्योतिष सम्मेलन मे दुनिया भर से आये विद्वानो से मिलवाने मेरे ऐक मित्र मुझे जबरदस्ती ले गये तो मेरी आँखे खुली। मैने ज्योतिष को एक समृद्ध पारम्परिक ज्ञान की तरह पाया। उन्ही विद्वानो से पता चला कि कैसे भारतीय ज्योतिष के आगे सारी दुनिया नतमस्तक है। उसके बाद से मैने शहर के ज्योतिषी ङेरे नाथ संत महात्मा किसी को नही छोङा सभी के पास ज्ञान के लिऐ भटकता रहा !खैर मेरी अघ्यातम यात्रा के किस्से काफी लम्वे हे फिर कभी आप को वताउगा कुछ वर्षो पहले एक ऐसे हस्तरेखा विशेषज्ञ से मिलने का अबसर मिला जो लोगो को टीवी पर या मंच से सुनकर उनकी हू-बहू हस्तरेखाए बना देता है। हस्तरेखा से लोगो के बारे मे बताना तो ठीक है पर लोगो को सुनकर भला कैसे कोई हस्तरेखा बना सकता है? यह विशेषज्ञ अपनी मर्जी से ही व्यक्ति का चुनाव करता है और इस ज्ञान से अर्थ लाभ नही करता है। वह इसके प्रदर्शन के भी खिलाफ है। मुझे पता है कि यदि वह इस ज्ञान के साथ बाजार मे आये तो उसे लोगो के सिर आँखो मे बैठने मे जरा भी देर नही लगेगी। डिस्कवरी चैनल मे एक बार एक फिल्म आ रही थी जिसमे बताया गया था कि शीत युद्ध के दिनो मे अमेरीकी सेना ने एक ऐसे लोगो की टोली बनायी थी जो कल्पना के सहारे एक बन्द कमरे मे बैठकर दुश्मनो के बारे मे विशिष्ट जानकारी देते थे। आज ऐसी कोई बात भारत मे करे तो हमारा आधुनिक समाज इसे अन्ध-विश्वास घोषित करने मे जरा भी देर नही करेगा। इसी तरह की सोच ने आज भारतीय पारम्परिक ज्ञान को उसके अपने घर मे बेसहारा कर दिया है। मै ज्योतिष को विज्ञान मानता हूँ। आम तौर पर ज्योतिषीयो द्वारा की जाने वाली भविष्यवाणियो पर तरह-तरह के सवाल किये जाते है। ये भविष्य़वाणियाँ व्यवसायिक ज्योतिष से जुडे लोग अर्थार्जन के लिये करते है। इसी आधार पर ज्योतिष के विज्ञान होने पर सन्देह किया जाता है। लोगो के इस तर्क को सुनकर मुझे बरबस ही एक और विज्ञान की याद आ जाती है। वह है हम सब का प्यारा मौसम विज्ञान जिसकी भविष्य़वाणियाँ शायद की कभी सही होती है। शहर से लेकर गाँवो तक सब जानते है इस विज्ञान को और इसकी उल्टी भविष्य़वाणियो को। पर फिर भी कोई इसे ज्योतिष की तरह कटघरे मे खडा नही करता। देश मे इस विज्ञान के विकास के लिये अरबो खर्च किये जा रहे है। इसका एक प्रतिशत भी भारतीय ज्योतिष के उत्थान मे खर्च किया जाता तो इसे नया जीवन मिल जाता। कुछ वर्षो पहले एक किसान की हवाले से यह जानकारी स्थानीय अखबार मे छपी कि इस बार मछरिया नामक खरपतवार की संख्या को देखकर लगता है कि बारिश कम होगी। जैसी कि उम्मीद थी दूसरे ही दिन इसे अन्ध-विश्वास बताते हुये एक समाचार छप गया। किसान ने ठान लिया कि चुप रहने मे ही भलाई है। उस साल सचमुच बारिश कम हुयी। ऐसे ही वनस्पतियो और पशुओ के व्यवहार से मौसम की परम्परागत भविष्य़वाणी का विज्ञान अपने देश मे समृद्ध है। मौसम विज्ञानी इसे महत्व नही देते है पर जानकारी मिलने पर इस पर शोध-पत्र तैयार कर विदेशो मे प्रस्तुत करने का अवसर भी नही छोडते है। किसानो के पारम्परिक ज्ञान पर वाह-वाही लूटकर अवार्ड भी पा जाते है कौआ-कैनी नामक खरपतवार जो कि बरसात मे खेतो मे उगता है, के फूलो को बन्द होता देखकर किसान यह पूर्वानुमान लगा लेते है कि मौसम बिगडने वाला है। इसी तरह सर्दियो मे उगने वाले कृष्णनील नामक खरपतवारो के फूलो से भी ऐसी ही जानकारी एकत्र की जाती है।अब भी यह सागर मे एक बूँद के समान है। कभी-कभी लगता है कि पारम्परिक भारतीय ज्ञान की रक्षा के लिये और परम्पराओ और संस्कारो को नयी पीढी तक पहुँचाने के लिये लोगो को जोडकर एक ऐसा संगठन बनाऊँ जो इस विषय मे उपलब्ध तमाम जानकारियो को आम लोग तक तो पहुँचाये ही साथ ही इन्हे अन्ध-विश्वास बताकर अपनी दुकान चलाने वाले तथाकथित समाजसेवियो के खिलाफ भी आवाज उठाये। आखिर भारत मे रहकर उसकी परम्पराओ और संस्कारो को गलत ठहराना किसी अपराध से कम नही है।मित्रो आज जो भी मांकाली की कृप्पा से ही हु मुझ मे मेरा कुछ भी नही है आचार्य राजेश

शुक्रवार, 20 जनवरी 2017

मैने पहले राशी फल पर आपको जागरुक करने की कोशिश की पता नही फिर भी लोग राशी फल की मांग करते है तब से अब तक परिस्थितियां बदल चुकी हैं. हमारी पूर्णतया वैज्ञानिक यह कला, कम्प्यूटर का सहारा लेकर और भी निखर गई है. पहले की भी बहुत-सी भविष्यवाणियां सत्यापित हुई हैं और अब भी हो रही हैं, लेकिन कुछ लोग ज्योतिष व भविष्यवाणी में पूर्ण आस्था रखते हैं और कुछ लोग किसी राशिफल, अंक-ज्योतिष, बोलें सितारे, टैरो कॉर्ड, आर्थिक भविष्यफल,अंग फड़कने आदि में ही अटके है मेरा अपना विचार है, कि जन्मपत्री में एक पल की भी हेरफेर होने से भविष्यवाणी में भी हेरफेर हो सकता है. एक ही राशि के करोड़ों लोगों के लिए एक ही भविष्यवाणी कैसे सत्य हो सकती है? आजकल हर कला का व्यावसायीकरण हो गया है, ऐसे मे ज्योतिषी लोगो को कोवोगस राशी फल पङना छोङना होगा वहुँत से मित्रो को मेरी वात समझ मे आ रही है ओर वो खुलेआम ईसका विरोध भी कर रहे है आपका क्याविचार है कृप्पा जरुर वताऐ कही मै गलत तो नही आचार्य राजेश

बुधवार, 18 जनवरी 2017

मनुष्य के आचरण पर उसके विचारों का सीधा प्रभाव पड़ता है। इसलिए मनुष्य को लगातार अपने विचारों का विश्लेषण करते रहना चाहिए कि उसके मन में किस तरह के विचार मौजूद हैं ? मन में ज़्यादा समय से जमे हुए विचार गहरी जड़े जमा लेते हैं, उनसे मुक्ति पाना आसान नहीं होता। ईश्वर और महापुरूषों के बारे में हमारे जो विचार होते हैं, वे भी हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव डालते हैं। किसी बात को ईश्वर का आदेश या किसी बात को महापुरूष का कर्म मानते हुए यह ज़रूर चेक कर लें कि कहीं वह ‘पवित्रता‘ के विपरीत तो नहीं है ईश्वर पवित्र है और महापुरूषों का आचरण भी पवित्र होता है। जो बात पवित्रता के विरूद्ध होगी, वह ईश्वर के स्वरूप और महापुरूष के आचरण विपरीत भी होगी, यह स्वाभाविक है। इस बात को जानना निहायत ज़रूरी है। ऐसा करने के बाद चोरी, जारी और अन्याय की वे सभी बातें ग़लत सिद्ध हो जाती हैं, जिन्हें अपने स्वार्थ पूरा करने के लिए ग़लत तत्वों ने धर्मग्रन्थों में लिख दिया है। जो ग़लत काम महापुरूषों ने कभी किए ही नहीं हैं, उन्हें उनके लिए दोष देना ठीक नहीं है। उन कामों का अनुसरण करना भी ठीक नहीं है। सही बात को सही कहना जितना ज़रूरी है, उतना ही ज़रूरी है ग़लत बात को ग़लत कहना। ऐसा करने के बाद ही हम ग़लत बात के प्रभाव से बच सकते हैं। हम ईश्वर और महापुरूषों के बारे में पवित्र विचार रखेंगे तो हमारा आचरण भी पवित्र हो जाएगा। यदि हमारे व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में चोरी, झूठ, अन्याय और भ्रष्टाचार मौजूद है तो हम सब को अपने अपने विचारों पर नज़र डाल कर देखनी चाहिए कि ईश्वर और महापुरूषों के बारे में हमारी मान्यताएं क्या हैं ? यह जीवन तो फिर भी किसी न किसी तरह कट जाएगा लेकिन अगर इसी अपवित्रता की दशा में हमारी मौत हो जाती है तो हम पवित्र लोक के दिव्य जीवन में प्रवेश न कर सकेंगे, जिसके बारे में हरेक महापुरूष ने बताया है और जिसे पाना इस जीवन के कर्म का मूल उददेश्य है।

सोमवार, 16 जनवरी 2017

कुछ मित्रो ने नीलम के वारे मे पुछा नीलम नीलम शनि ग्रह का रत्न है। नीलम का अंग्रेज़ी नाम 'सैफायर' है। नीलम रत्न गहरे नीले और हल्के नीले रंग का होता है। यह भी कई रंगों में पाया जाता है; मसलन- मोर की गर्दन जैसा, हल्का नीला, पीला आदि। मोर की गर्दन जैसे रंग वाला नीलम उत्तम श्रेणी का माना जाता है। नीलम पारदर्शी, चमकदार और लोचदार रत्न है। नवरत्न में नीलम भी होता है। शनि का रत्न नीलम एल्यूमीनियम और ऑक्सिजन के मेल से बनता है।ईसके कारन ही ईसका रंग वनता है इसे कुरुंदम समूह का रत्न माना जाता हैयह जम्मू कश्मीरी जो आज कल नीही के वरावर मीलते है श्रींलका के शहर सलोन मे ऐक जगह है रतनपुरा आस्ट्रेलिया वर्मा थाईलैंड स्विट्जरलैंड वर्जील ओ जावा कावूल अमेरिका भी वहुत से देशो मे पाया जाता हैमाणिक्‍य और नीलम की वैज्ञानिक संरचना बिल्‍कुल एक जैसी है। वैज्ञानिक भाषा में कहें तो माणिक्‍य की तरह ही नीलम भी एक एल्‍युमीनियम ऑक्‍साइड है। एल्‍युमीनियम ऑक्‍साइड में आइरन, टाइटेनियम, क्रोमियम, कॉपर और मैग्‍नीशियम की शुद्धियां मिली होती हैं जि‍ससे इनमें नीला,पीला, बैंगनी, नारंगी और हरा रंग आता है। इन्‍हें ही नीलम कहा जाता है। इसमें ही अगर क्रोमियम हो तो यह क्रिस्‍टल को लाल रंग देता है जिसे रूबी या माणिक्‍य कहते हैं।समूह में लाल रत्‍न को माणिक तथा दूसरे सभी को नीलम कहते हैं। इसलिए नीलम हरे, बैंगनी, नीले आदि रंगों में प्राप्‍त होता है। सबसे अच्‍छा नीलम नीले रंग का होता है जैसे आसमानी, गहरा नीला, चमकीला नीला आदि कोलंबो। श्रीलंका की एक खान में 1404.49 कैरेट का नीलम रत्न मिला है। दुनिया के इस सबसे बड़े रत्न का मूल्य 10 करोड़ डालर है। श्रीलंका के रत्न विशेषज्ञों का कहना है कि देश के दक्षिणी भाग में रत्नपुर में यह रत्न प्राप्त किया गया। रत्नपुर को ‘सिटी आफ जेम्स’ के नाम से जाना जाता है। दुनिया के इस सबसे बड़े रत्न का मूल्य 10 करोड़ डालर (6 अरब 66 करोड़) आंका गया है। नीलामी में इसके 17.5 करोड़ डालर में बिकने की संभावना है। नीलम के मालिक ने कहा कि जिस वक्त मैंने इसे देखा, उसी वक्त इसे खरीदने का फैसला किया। नाम प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर उसने कहा कि रत्न को जब मेरे पास लाया गया, तभी मुझे लगा कि यह दुनिया का सबसे बड़ा नीलम रत्न हो सकता है। इसीलिए मैंने जोखिम लिया और इसे खरीद लिया। रिपोर्ट के अनुसार नीलम के मामले में मौजूदा रिकार्ड 1,395 कैरेट का है।

रविवार, 15 जनवरी 2017

Acharya rajesh: वैसे तो भारत में ज्योतिष शास्त्र पर विश्वास करने वाले लोगो की कमी नहीं है. हिंदू धर्म में शादी का मुहुर्त निकालना हो, या शादी के लिए लड़के और लड़की की कुड़ंली का मिलान करवाना हो या फिर नामकरण जैसे रिवाज, इनमें ज्योतिष शास्त्र की मदद ली जाती हैं. ज्योतिष के जादू से ना सिर्फ आम जनता बल्की बॉलीवुड स्टार्स भी अछुते नहीं है. कई बॉलीवुड स्टार्स ने अपनी जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए रत्नों की मदद ली हैं. आईए बात करते है बॉलीवुड सेलीब्रिटीज और उनके रत्न प्रेम की– ऐश्वर्या रॉय – ऐश्वर्या ने अपनी खूबसूरती के दम पर विश्वसुदंरी की खिताब अपने नाम पर किया. जब उन्होंने बॉलीवुड में अपने करियर का आगाज किया तो उन्हें कोई खास सक्सेस नहीं मिली लेकिन ताल और हम दिल दे चुके सनम जैसी फ़िल्मों ने उन्हें सक्सेस का स्वाद चखा ही दिया लेकिन उन्होंने अपने करियर में कई चढ़ाव के साथ उतार भी देखे. ऐसे में उन्हे जरुरत महसूस हुई ऐसे जेमस्टोन्स की जो उन्हे एक शक्ति महसूस कराए. वो अपनी उंगली में एक नीलम रिंग पहनती है. इसके अलावा वो हीरा भी पहन चुकी है. कहा जाता है कि हीरा शुक्र ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है जो ग्लैमर की दुनिया में सक्सेस दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इमरान हाशमी– लाल मूंगा, माणिक, पुखराज और ओपल जैसे रत्नों को धारण कर चुके है इमरान हाशमी. माना जाता है कि इन्हे मर्डर-2 और जन्नत टू जैसी फ़िल्मों में सक्सेस इन्हीं को पहनने की वजह से मिली है. ऐसे नहीं है कि इनकी फ़िल्में फ्लॉप नहीं हुई है अगर रत्नों का साथ हो तो नुकसान थोड़ा कम होता है प्रियंका चोपड़ा- प्रियंका चोपड़ा भी रत्नों में विश्वास रखती है. वो अपने हाथों की उंगलियों को कई रत्नों से सजा चुकी है. हालांकी वो कई कारणों से रत्नों को बदलती भी रही है अमिताभ बच्चन– सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने अपने अपने करियर में सबसे बेहतरीन और सबसे खराब दौर भी देखा है. अपने कठिनाइओं से भरी जिंदगी में उनका झुकान रत्न-विज्ञान की तरफ हुआ. माना जाता है कि जब से उन्होंने नीलम रत्न पहना है उनके स्वास्थ और करियर में भी सुधार आया हैं.हालांकि नीलम पहनने के दो साल वाद उसका असर दिखना शुरु हुआ ऐसा उन्होने Stardast नामक फिल्मी मैग्जीन के ऐक intervew मे कहा: सलमान खान– सलमान ख़ान की तो जैसे पहचान ही बन चुका है उनका फिरोजा ब्रेसलेट ये गिफ्ट के तौर पर उनके पिता ने उन्हें दिया था ये ब्रेसलेट उनके लिए काफी लकी भी रहा है सुनीलगवास्कर प्रकाश सिहवादल सुखवीर वादल नीता अंम्वानी मुलायम सिह यादव नवजोतसिह सिद्दूतो देखा आपने की कई बॉलीवुड सेलिब्रिटीज़ रत्नो की शक्ति को किसी चमत्कार से कम नहीं मानते है. तो कुछ बॉलीवुड सेलिब्रिटीज इसमें बिल्कुल विश्वास नहीं रखते है.यह पोस्ट मेरे अजीज दिल्ली से रोहीत जी की हो उन्होनो फोटो के साथ यह मुझे भेजी ऐसा नहीं है कि सिर्फ रत्न धारण करने से ही सक्सेस मिलती है लेकिन ऐसा माना जाता है कि कठिन दौर में भी ये रत्न एक सहारे की तरह काम करते है, ये ग्रहों के बुरे प्रभाव को कम करने में मदद करते है और अच्छे प्रभाव को बढ़ाने में मदद करते हैं.

सोमवार, 9 जनवरी 2017

सरस्वती योग यह योग आपकी कुंडली में तभी बनता है जब शुक्र, बृहस्पति और बुध ग्रह एक-दूसरे के साथ हों अथवा केंद्र में बैठकर एक-दूसरे से संबंध बना रहे हों। युति अथवा दृष्टि किसी प्रकार से संबंध बनने पर यह योग बनता है। यह योग जिस व्यक्ति की कुंडली में बनता है उस पर विद्या की देवी मां सरस्वती की कृपा खूब बरसती है। सरस्वती योग वाले व्यक्ति कला, संगीत, लेखन एवं विद्या से संबंधित किसी भी क्षेत्र में काफी नाम और धन कमाते हैं। नृप योग अपने नाम के अनुरूप ही अज्ञात होता है। यह योग जिस भी व्यक्ति की कुंडली में बनता है वह राजा के समान जीवन जीता है। इस योग का निर्माण तब होता है जब व्यक्ति की जन्म कुंडली में तीन या उससे अधिक ग्रह उच्च स्थिति में रहते हैं। अमला योग भी शुभ और महान योगों में माना जाता है। यह योग तब बनता है जब जन्म पत्रिका में चंद्रमा से दशम स्थान पर कोई शुभ ग्रह स्थित होता है। इस योग वाला व्यक्ति अपने धन, यश और र्कीत हासिल करता है।

स्थान परिवर्तन योग स्थान परिवर्तन योग से जीवन सुखमय बन जाता है! आप यह जान लें कि उच्चाधिकारी, मन्त्री, मुख्यमन्त्री, राष्ट्रपति, राज्यपाल बनने के लिए अल्पतम एक स्थान परिवर्तन योग आवश्यक है। अधिकतम तीन स्थान परिवर्तन योग एक जातक की कुण्डली में हो सकते हैं। यदि ये हों तो जातक उच्चाधिकारी, मन्त्री या प्रधानमन्त्री बनता है। इन्दिरा गांधी की कुण्डली में लग्नेश-सप्तमेश, षष्ठेश-लाभेश, धनेश-पंचमेश स्थान परिवर्तन योग थे। यहां स्थान परिवर्तन के तीस योग दे रहे हैं। इनमें से यदि दूसरे, चौथे, पांचवें, सप्तम, नौवें, दसवें योग बनें तो अधिक शुभता रहती है। जातक धनी, उच्चाधिकारी, मन्त्री, प्रधानमन्त्री एवं राजा सदृश जीवन जीता है। यहां तीस स्थान परिवर्तन योग की चर्चा कर रहे हैं जोकि इस प्रकार है- 1. भाग्येश एवं लाभेश का स्थान परिवर्तन योग 2. लाभेश एवं धनेश का स्थान परिवर्तन योग 3. भाग्येश एवं दशमेश का स्थान परिवर्तन योग 4. चतुर्थेश एवं लाभेश का स्थान परिवर्तन योग 5. भाग्येश एवं चतुर्थेश का स्थान परिवर्तन योग 6. लग्नेश एवं लाभेश का स्थान परिवर्तन योग 7. पंचमेश एवं लाभेश का स्थान परिवर्तन योग 8. भाग्येश एवं पंचमेश का स्थान परिवर्तन योग 9. भाग्येश एवं लग्नेश का स्थान परिवर्तन योग 10. लग्नेश एवं धनेश का स्थान परिवर्तन योग 11. भाग्येश एवं धनेश का स्थान परिवर्तन योग 12. लग्नेश एवं चतुर्थेश का स्थान परिवर्तन योग 13. दशमेश एवं लाभेश का स्थान परिवर्तन योग 14. धनेश एवं चतुर्थेश का स्थान परिवर्तन योग 15. धनेश एवं पंचमेश का स्थान परिवर्तन योग 16. चतुर्थेश एवं पेचमेश का स्थान परिवर्तन योग 17. दशमेश एवं द्वितीयेश का स्थान परिवर्तन योग 18. दशमेश एवं पंचमेश का स्थान परिवर्तन योग 19. दशमेश एवं लग्नेश का स्थान परिवर्तन योग 20. दशमेश एवं चतुर्थेश का स्थान परिवर्तन योग 21. लग्नेश एवं पंचमेश का स्थान परिवर्तन योग 22. पंचमेश एवं सप्तमेश का स्थान परिवर्तन योग 23. सप्तमेश एवं चतुर्थेश का स्थान परिवर्तन योग 24. सप्तमेश एवं दशमेश का स्थान परिवर्तन योग 25. सप्तमेश एवं नवमेश का स्थान परिवर्तन योग 26. तृतीयेश एवं लग्नेश का स्थान परिवर्तन योग 27. पराक्रमेश एवं लाभेश का स्थान परिवर्तन योग 28. पराक्रमेश एवं षष्ठेश का स्थान परिवर्तन योग 29. षष्ठेश एवं लाभेश का स्थान परिवर्तन योग 30. द्वादशेश एवं अष्टमेश का स्थान परिवर्तन योग उक्त योगों को आप अपनी कुण्डली में ढूंढिए और देखिए कि कितने स्थान परिवर्तन योग आपकी कुण्डली में विद्यमान हैं। एक से अधिक हैं तो समझ लीजिए इन योगों के कारक ग्रहों की दशान्तर्दशा में आप उच्चाधिकारी बन सकते हैं। यदि इनके अतिरिक्त अन्य राजयोग भी विद्यमान हैं तो सोने में सुहागे वाली बात है। आप अवश्य उच्चाधिकारी, मन्त्री बनकर राजा सदृश जीवनयापन कर सकते हैं। ये योग अधिकारियों की कुण्डली में अवश्य होता है। योग बनाने वाले ग्रह योगकारक होते हैं, इनकी दशा आने पर ही इनका फल मिलता है। श्रीमती इन्दिरा गांधी जी की कुण्डली में तीन स्थान परिवर्तन योग थे।

रविवार, 8 जनवरी 2017

मित्रो ज्‍योतिष सिर्फ नक्षत्रों का शीयो का अध्‍ययन नहीं हे। वह तो है ही वह तो हम बात करेंगे साथ ही ज्‍योतिष और अलग अलग आयामों से मनुष्‍य के भविष्‍य को टटोलने की चेष्‍टा है कि वह भविष्‍य कैसे पकड़ा जा सके। उसे पकड़ने के लिए अतीत को पकड़ना जरूरी है। उसे पकड़ने के लिए अतीत के जो चिन्‍ह है, आपके शरीर पर और आपके मन पर भी छुट गये है। उन्‍हें पहचानना जरूरी हे। और जब से ज्‍योतिषी शरीर के चिन्‍हों पर बहुत अटक गए है तब से ज्‍योतिष की गिराई खो गई है, क्‍योंकि शरीर के चिन्‍ह बहुत उपरी है आपके हाथ की रेखा तो आपके मन के बदलने से इसी वक्‍त भी बदल सकती हे। आपके आयु की जो रेखा है, अगर आपको भरोसा दिलवा दिया जाए हिप्रोटाइज करके की आप पन्‍द्रह दिन बाद मर जाएंगे और आपको रोज बेहोश करके पन्‍द्रह दिन तक यह भरोसा पक्‍का बिठा दिया जाए की आप पन्‍द्रह दिन बाद मर जाओगे, आप चाहे मरो या न मरो,आपके उम्र की रेखा पन्‍द्रह दिन के समय पहुंचकर टूट जाएगी। आपकी अम्र की रेखा में गैप आ जाएगा। शरीर स्‍वीकार कर लेता है कि ठीक है, मौत आती है शरीर पा जो रेखाएं है वह तो बहुत ऊपरी घटनाएं है। भीतर गहरे में मन है और जिस मन को आप जानते है वही गहरे में नहीं है। वह तो बहुत ऊपर है बहुत गहरे तो वह मन है जिसका आपको पता नहीं है। इस शरीर में भी गहरे में जो चक्र है,जिनको योग चक्र कहते है, वह चक्र आपकी जन्‍मों-जन्‍मों की संपदा की संग्रहीत रूप है। आपके चक्र पर हाथ रखकर जो जानता है वह जान सकता है कि कितनी गति है उस चक्र की। आपके सातों चक्रों को छूकर जाना जा सकता है कि आपने कुछ अनुभव किए है कभी या नहीं। ज्‍योतिष मूलत: चूंकि भविष्‍य की तलाश है। और विज्ञान चूंकि मूलत: अतीत की तलाश है—विज्ञान इसी बात की खोज है कि काज क्‍या है, कारण क्‍या है ज्‍योतिष इसी बात की खोज है कि एफेक्ट क्‍या होगा। परिणाम क्‍या होगा? इन दोनों के बीच बड़ा भेद है। इन दोनों के बीच बड़ा भेद है। लेकिन फिर भी विज्ञान को रोज-रोज अनुभव होता है। कुछ बातें जो अनहोनी लगती थी, लगती थीं—कभी सही नहीं हो सकतीं, वह सही होती हुई मालूम पड़ती है। जैसा मैंने पीछे आपको कहा, अब वैज्ञानिक इसको स्‍वीकार कर लिए है कि प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति अपने जन्‍म के साथ बिल्‍ट-इन अपना व्‍यक्‍तित्‍व लेकर पैदा होता है। इसको पहले वह मानने को राज़ी नहीं थे। ज्‍योतिष इसे सदा से कहता रहा है। जैसे समझो, एक बीज है—आम का बीज, आम के बीज के भीतर किसी न किसी रूप में जब हम आम के बीज को वो देंगे तो जो वृक्ष पैदा होता है उसकी बिल्‍ट-इन प्रोग्राम होना चाहिए। उसका ब्ल्यू प्रिंट होना चाहिऐ नहीं, तो यह आम का बीज बेचारान कोई विशेषज्ञों की सलाह लेता हे, न किसी यूनिवर्सिटी में शिक्षा पाता है यह आम के वृक्ष को कैसे पैदा कर लेता है। फिर इसमें वैसे ही पत्‍ते जाते है, फिर इसमें वैसे ही आम लग जाते है। इस बीज, गुठली के भीतर छिपा हुआ कोई पूरा का पूरा प्रोग्राम चाहिए,नहीं तो बिना प्रोग्राम के यह बीज क्‍या कर पायेगा। इसके भीतर सब मौजूद चाहिए । जो भी वृक्ष में होगा वह कहीं न कहीं छिपा ही होना चाहिए। हमें दिखाई नहीं पड़ता काट पीट कर हम देख लेते है। कहीं दिखाई नहीं पड़ता। लेकिन होना तो चाहिए। अन्‍यथा आम के बीज से फिर नीम निकल सकती है। भूल-चूक हो सकती है। लेकिन कभी भूल-चूक होती दिखाई नहीं पड़ती। आम ही निकल आता है सब रिपिट हो जाता है फिर वही पुनरुक्त रह जाता है। इस छोटे से बीज में अगर सारी की सारी सूचनाएं छिपी हुई नहीं है कि इस बीज को क्‍या करना है , कैसे अंकुरित होना है, कैसे पत्‍ते, कैसे शाखाएं, कितना बड़ा वृक्ष, कितनी उम्र का वृक्ष, कितना ऊँचा उठना है। यह सब इस में छिपा होना चाहिए। कितने फल लगेंगे, कितने मीठे होंगे पकें गे कि नहीं पकें गे, यह सब इसके भीतर छिपा होना चाहिए। अगर आम के बीज के भीतर यह सब छिपा है तो आप जब मां के पेट में आते है तो आपके बीज में सब छिपा नहीं होगा अब वैज्ञानिक स्‍वीकार करते है कि आँख का रंग छिपा होगा,बाल का रंग छिपा होगा। शरीर की ऊँचाई छिपी होगी। स्‍वास्‍थ्‍य-अस्‍वास्‍थ्‍य की सम्‍भावनाएं छिपी होगी। बुद्धि का अंक छिपा होगा, क्‍योंकि इसके सिवाय कोई उपाय नहीं है कि आप विकसित कैसे होंगे। आपके पास अग्रिम प्रोग्राम चाहिए—कोई हड्डी कैसे हाथ बन जाएगी, कोई हड्डी कैसे पैर बन जाएगी। चमड़ी का एक हिस्‍सा आँख बन जाएगा, एक हिस्‍सा कैसे कान बन जायेगा। एक हड्डी सुनने लगेगी,एक हड्डी देखने लगेगी। ये सब कैसे होगा वैज्ञानिक पहले कहते थे, सब संयोग है, लेकिन संयोग शब्‍द बहुत अवैज्ञानिक मालूम पड़ता हे। संयोग का मतलब है चांस, तो फिर कभी पैर देखने लगे और कभी हाथ सुनने लगे। और इतना संयोग नहीं मालूम पड़ता। इतना व्‍यवस्‍थित मालूम पड़ता है...ज्‍योतिष ज्‍यादा वैज्ञानिक बात कहता है। ज्‍योतिष कहता है। सब बीज को उपलब्‍ध है। हम अगर बीज को पढ़ पाये,अगर हम डी-कोड कर पाएँ, अगर हम बीज से पूछ सकें कि तेरे इरादे क्‍या हे—तो हम आदमी के बाबत भी पूर्व घोषणाएँ कर सकते है वृक्ष के बाबत तो वैज्ञानिक घोषणाएँ करने लगें है। बीस साल में आदमी के बाबत बहुत सी घोषणाएँ वे करने लगेंगे। और अब तक हम सब समझते रहे कि सूपरस्‍टीटस है ज्‍योतिष, एक विश्‍वास मात्र हे। लेकिन यदि घोषणाएँ विज्ञान करेगा तो वह ज्‍योतिष भी हो जाएगा। और विज्ञान घोषणा करने लगेगा। बहुत पुराने ज्‍योतिषी, ज्‍योतिष का पुराने से पुराना इजिप्‍शियन एक ग्रंथ है जिसको पाइथागोरस ने पढ़कर और यूनान में ज्‍योतिष को पहुंचाया यह ग्रंथ कहता है—काश हम सब जान सकें, तो भविष्‍य बिलकुल नहीं है। चूंकि हम सब नहीं जानते कुछ ही जानते है—इसलिए जो हम नहीं जानते,वह भविष्‍य बन जाता है। हमें कहना पड़ता है, शायद ऐसा हो, क्‍योंकि बहुत कुछ है जो अनजाने है। अगर सब जाना हुआ हो तो हम कह सकते है कि ऐसा ही होगा। फिर इस में रति भर फर्क नहीं होगा। आदमी के बीज में भी अगर सब छिपा है जन्‍म कुंडली या होरोस्‍कोप उसका ही टटोलना है। हजारों वर्ष से हमारी कोशिश यही है कि जो बच्‍चा पैदा हो रहा है वह क्‍या हो सकता हे। या क्‍या हो सकेगा? हमें कुछ तो अन्‍दाज मिल जाए तो हम उसे शायद हम उसे सुविधा दे पाएँ। शायद हम उससे आशाएं बाँध पाएँ ज्‍योतिष बहुत बातों की खोज थी। उसमें जो अनिवार्य है, उसके साथ सहयोग—वह जो होने ही वाला है, उसके साथ व्‍यर्थ का संघर्ष नहीं, जो नहीं होने वाला है उसकी व्‍यर्थ की मांग नहीं, उसकी आकांशा नहीं, ज्‍योतिष मनुष्‍य को धार्मिक बनाने के लिए, तथाता में ले जाने के लिए, परम स्‍वीकार में ले जाने के लिए उपाय था। उसके बहु आयाम हैजैसे कि चाँद-तारों से हम प्रभावित होते है। ज्‍योतिष का और दूसरा ख्‍याल है कि चाँद-तारे भी हमारे प्रभावित होत है, क्‍योंकि प्रभाव कभी भी एक तरफा नहीं होता। जब कभी बुद्ध जैसा आदमी जमीन पर पैदा होता है तो चाँद यह न सोचे कि चाँद पर उनकी वजह से कोई तूफान नहीं उठते। बुद्ध की वजह से कोई तूफान चाँद पर शांत नहीं होते अगर सूरज पर धब्‍बे आते है और तूफान उठते है। तो जमीन पर बीमारियां फैल जाती हैतो जमीन पर जब बुद्ध जैसे व्यक्ति पैदा होते है। और शांति की धारा बहती है। और ध्‍यान का गहन रूप पृथ्‍वी पर पैदा होता है। तो सूरज पर भी तूफान फैलने में कठिनाई होती हैसब संयुक्‍त है एक छोटा सा घास का तिनका भी सूरज को प्रभावित करता हैऔर सूरज भी घास के तिनके को प्रभावित करता हे। न तो घास का तिनका इतना छोटा है कि सूरज कहे कि जा हम तेरी फ्रिक नहीं करते। और न सूरज इतना बड़ा है कि यह कह सके कि घास का तिनका मेरे लिए क्‍या कर सकता हे। जीवन संयुक्‍त है यहां छोटा-बड़ा कोई भी नहीं है। एक आर्गैनिक यूनिटी है—इस एकात्‍म का बोध अगर ख्‍याल में आए तो ही ज्‍योतिष समझ में आ सकता है। अन्‍यथा ज्‍योतिष समझ में नहीं आ सकता हे माँ काली ज्योतिष hanumangarh आचार्य राजेश

शनिवार, 7 जनवरी 2017

मित्रों जहाँ विज्ञानं का क्षेत्र समापत होता है वहां से ज्योतिष विज्ञान की शुरुआत होती है हम रोज अख़बारों में पढ़ते है की आज किसी बेटे ने पिता को मार डाला अथवा माता को मार डाला ! और कभी यह भी की पिता ने बेटे को मार डाला ! कितना भयानक होता होगा यह मंज़र उफ़ वो पिता जो कभी बेटे की एक किलकारी सुनते ही ख़ुशी से मदहोश हो जाता हो और वह बेटा जो पिता के आने की एक आहट से ही झूम उठता हो फिर क्यों हो जाते हैं मजबूर इस भयानक मंज़र को अंजाम देने के लिए !जिस माँ की छवि जीवन भर जिस बेटे ने मन में बसा रखी हो वह फिर ऐसा कर दे कितना भयानक सा लगता है ! कुछ लोग कहते हैं खून तो पानी होता जा रहा है आज ! और कुछ कहते हैं की खून तो आज सफ़ेद होता जा रहा है ! इस भयानक अंजाम के तात्कालिक कारण कुछ भी हों पर कहीं न कहीं इस सब की जिम्मेवार तो है मनो दशा जब मानव के जीवन में राहु जैसे ग्रहों का भूचाल आता है तो मनो दशा तो बिगड़ ही जाती है मानव की फिर वह चाहे रावण जैसा ज्ञानी ही क्यों न हो ! ग्रहों के इस असर पर ओशो ने तो यह कहा है की मानव का जब जनम होता है तो ग्रहों की जिस धुन को वह जनम लेते ही सुनता है वही धुन जीवन भर उस पर अपना प्रभाव रखती है ! ज्यों ही इस में विपरीत धुन शामिल होती है तो शुरू होता है जीवन में भयानक बदलाव ! और ज्यों ही पक्ष में यह धुन पैदा होती है तो मूर्खों को भी ज्ञानी होते देखा गयाहो है जब इस संगीत में बदलाव आता है तो इस का सब से अधिक असर इंसान के दिमाग पर होता है पागलख़ानो की वहां सबसे ज्यादा उत्पात पागल तब मचाते हैं जब आकाश में पूर्ण चाँद होता है ! फिर यदि चाँद से मानव दिमाग पर इतना प्रभाव हो सकता है तो बाकी ग्रहों का तो कहना ही क्या ! वह तो चाँद से हज़ारों गुना बड़े हैं !तो इस का कोई हल है भी या नहीं ? मेरे ख्याल से इस का जवाब ज्योतिष में है ! एक बचे को सभी डाक्टरों ने जवाब दे दिया की इस का बचना मुश्किल है ! पर वह बचा बच गया ! आज भी वह तंदरुस्त है.! आप यकीन माने या न माने पर यह सत्य है ! जहाँ विज्ञानं का क्षेत्र समापत होता है वहां से ज्योतिष की शुरुआत होती है ! उस बचे को एक ज्योतिषी ने एक छोटे से उपाए से बचा लिआ ! पर हाँ न तो हर बार डाक्टर ही सफल होने की गरंटी दे सकता है और न ही कोई ज्योतिषीयह तो बस प्रभु का रचा हुआ खेल है जय माता दी माँ काली ज्योतिष आचार्य राजेश

गुरुवार, 5 जनवरी 2017

माँ काली ज्योतिष की आज की पोस्ट , मित्रो दुनियां अगर सराय है तो आदमी क्या है मुसाफिर या दम है तो जीवन है जीवन से हम है यानी जब जनता की शिकायत अधिकारी के पास पहुंचने लगती है तो पहले तो वह शिकायत को नजरंदाज करता रहता है कि हो सकता है किसी ने कोई भूल से काम किया हो और वह उस भूल को सुधार ले लेकिन जब शिकायते अधिक आने लगती है तो अधिकारी जांच के लिये निकल देता है,वह सभी प्रकार के अपने जांच के कारको को प्रयोग मे लाता है और जब देखता है कि गल्ती अधिक हो रही है तो गल्ती करने वाले को दंड देने और जिनके साथ गल्ती हुयी है उन्हे सहायता देने का काम करता है। कभी कभी ऐसा भी होता है कि शिकायत करने के लिये भीड तो जाती है लेकिन अधिकारी या तो नियुक्त नही हुआ होता है और जब तक नियुक्त होता है तब तक जनता चली जाती है,उस बीच मे उस अधिकारी से भी बडे अधिकारी को शिकायते दूसरे मार्ग से मिलती है वह अपनी योग्यता से अपने कार्यों को पूरा करने के लिये अन्य साधनो का प्रयोग करता है। इसी प्रकार से परम पिता परमात्मा इस धरती पर आत्माओं को भेज कर जांच करवाता है कि धरती पर कितना अधर्म हो रहा है कितना धर्म हो रहा है कितना जीव को सताया जा रहा है और कितना जीव के साथ प्रकृति इंसाफ़ कर रही है कि नही कर रही है जीव का उद्देश्य परहित मे है कि नही आदि की जानकारी लेने के लिये वह मानवीय रूप मे आत्मा को धरती पर भेज कर उसके जाने के बाद उसके सुकर्मो और दुष्कर्मो की मीमांशा करता है भेजी जाने वाली आत्मा को तो सुकर्मो और दुष्कर्मो की सजा मिलती ही है लेकिन उसके कर्मो और के प्रति भी परमात्मा को पता चल जाता है कि धरती पर किस प्रकार से पाप और पुण्य घट बढ रहे है। यह कुंडली एक जातिका की है,पंचम भाव मे गुरु और नवम भाव मे सूर्य का होना जीवात्मा योग होने की बात को प्रकट करता है,यह जीवात्मा योग ईश्वर अंश से जन्म लेने की क्रिया जाहिर करने लगता है। सूर्य के धर्म के भाव मे रहने से जातिका का अहम केवल धर्म और मर्यादा के प्रति माना जाता है साथ ही सूर्य पर गुरु की नजर होने से जातिका अपने परिवेश और परिवार मे भी धर्म और संस्कृति के प्रति अटल विश्वास रखने वाली होती है वह किसी भी सम्बन्ध को केवल धर्म और पारिवारिक सम्बन्ध की द्रिष्टि से देखती है उसे अपने परिवेश का पूरा ग्यान है कि वह कहां से आयी है उसे क्या करना है उसकी धारणा क्या है उसे जीवन मे किस प्रकार के कार्य करने है और वह किस प्रकार से दूसरो से किस प्रकार के कार्य करवाने की क्षमता को रखती है। अक्सर देखा जाता है कि बहुत कम लोग ही इस बात से सम्बन्ध रखते है कि गुरु और नेपच्यून जब एक राशि मे हो और उस राशि का सम्बन्ध अगर धर्म संस्कृति और जीवन के साथ साथ न्याय दर्शन महापुरुषो के विचार उन विचारो के द्वारा समाज और धर्म के प्रति चलने वाले विश्वास आदि भी नेपच्यून और गुरु की संगति से जातिका के पास मिलते है। एक संत की आत्मा का प्रादुर्भाव भी इसी गुरु और नेपच्यून की संगति पर जाना मिलता है और इस प्रकार की युति यही वर्णन करती है कि जातिका रूप भले ही संसार मे साधारण मनुष्य के रूप मे है लेकिन वह आत्मा से एक संत की आत्मा को लेकर ही इस धरती पर आयी है। इसी बात से एक प्रश्न और बनता है कि आखिर आत्मा का इस धरती पर आने का कारण क्या है ? इस बात को देखने के लिये :- गुरु ने बल दिया सूर्य और वक्री बुध को तथा सूर्य और वक्री बुध ने अपने बल को वक्री शनि और प्लूटो को दे दिया,वक्री शनि ने अपने बल को प्लूटो की सहायता से वापस गुरु को अपना बल दे दिया। वक्री शनि और प्लूटो ने अपना बल गुरु नेपच्यून को दिया गुरु ने उस बल को सूर्य और बुध पर दे दिया और सूर्य बुध (व) ने अपना बल वापस शनि प्लूटो को दे दिया। सूर्य और वक्री बुध ने अपना बल शनिवक्री और प्लूटो को दिया शनि वक्री और प्लूटो ने अपना बल गुरु और नेपच्यून को दे दिया,गुरु वह बल वापस सूर्य बुध वक्री को दे दिया. यह तीनो मीमांशा केवल शरीर और पहिचान (लगनेश से) शिक्षा संतान बुद्धि जीवन की सोच (पंचमेश से) जीवन साथी जीवन मे आने का उद्देश्य और जीवन के कार्य लोगों को दी जाने वाली सलाह (सप्तमेश से) मिलती है,साथ मे जिन और शक्तियों ने बल दिया है उनके अन्दर भौतिक धन कुटुम्ब पहिचान तथा अपने से बडे मित्र भाई बहिन आदि के मालिक बुध (व) ही बाकी का किसी का कोई लेना देना नही है यह भी है कि जो भी बुध वक्री ने दिया है वह जातिका वापस भी कर देगी किसी का कोई अहसान भी अपने पर नही रख सकती है। कहा जाता है और जो कारण इस जन्म के लिये माने जाते है वह गुरु का शिक्षा के भाव मे और सूर्य का धर्म के भाव मे होना भी यह प्रकट करता है कि जातिका का उद्देश्य शिक्षा से धर्म और मीमांशा के प्रति लोगों को बताना तथा उस सूर्य रूपी आत्मा को जो अपने नि:स्वार्थ भाव से धर्म के प्रति समर्पित है का गुणगान करना भी है। बुध वक्री है और मार्गी बुध तो दूसरो से कहने सुनने और अपने प्रभाव को प्रसारित करने के लिये माना जाता है जब कि वक्री बुध केवल दूसरो के भावो को सुनने के बाद उसका प्रभाव धार्मिक रूप से विवेचन मे लाकर प्रयोग करने के लिये माना जाता है। वैसे तो कहा जाता है कि बुध वक्री उल्टी बात करता है लेकिन उल्टी बात का मतलब यह नही होता है कि वह गाली देता है बल्कि बुध वक्री का मतलब परमात्मा भी अपनी कला को किस प्रकार से बदल कर प्रस्तुत करता है उसकी मिशाल नही मानी जाती है,पुरुष राशि मे पुरुष ग्रह के साथ अगर बुध मार्गी होता तो वह पुरुष रूप मे इस जगत मे प्रकट होता,लेकिन बुध के वक्री होने के कारण वह स्त्री रूप मे प्रकट हो गया। यही बात जीवन साथी के लिये भी मानी जा सकती है कि स्त्री राशि मे सप्तमेश शनि स्त्री रूप मे प्रकट होने थे लेकिन वक्री होने के कारण पुरुष रूप मे प्रकट हो गये। इस प्रकार की युति एक पूर्व जन्म के द्वन्द के रूप मे माना जा सकता है कि दोनो आत्माओ के अन्दर यह भाव रहा कि अगर वह स्त्री होती तो वह कुछ कार्य जो पुरुष रूप मे नही कर पाये वह कर सकती थी,तथा यही पति के लिये भी माना जा सकता है कि वह जो कार्य स्त्री रूप मे नही कर पाया वह कार्य वह पुरुष रूप मे कर सकता था और प्रकृति ने जन्म विपरीत लिंगी बनाकर दे दिया। यह भाव प्रकृति के द्वारा दिये गये नामो से भी प्रकट हो जाता है जैसे स्त्री नाम को पुरुष के साथ और पुरुष नाम को स्त्री के साथ,विनय विजय विनीत विह्वल आदि पुरुष वाचक नाम है और किरण किमी आदि स्त्री नाम है। सूर्य बुध वक्री ने कालेज शिक्षा दी और राहु ने शिक्षा के क्षेत्र मे जाने की अलावा डिग्री दी यह साधारण आदमी के लिये सोचा जा सकता है। जब इसे कालपुरुष की कुंडली के अनुसार देखा जायेगा तो गुरु कालेज शिक्षा मे चला जाता है और राहु धन भाव मे आकर शिक्षा देने वाले अलावा कारको के लिये अपना बल देने लगता है। राहु और चन्द्र मिलकर चिन्ता मे लीन व्यक्तियों को धर्म और न्याय तथा कानून के अलावा ज्योतिष कर्मकाण्ड आदि की शिक्षा दे सकता है,यही राहु कभी तो बहुत से कार्य दे दे और कभी बिलकुल ही नही दे,जो कह दिया जाये वह सत्य हो जाये और लोग सत्य के रूप मे स्वीकार करने लग जायें,तथा यही राहु कार्य के रूप मे चिन्ता का विषय हमेशा प्रस्तुत करना शुरु कर दे। जो सूर्य अपने प्रभाव को सरकारी रूप से या राजनीति के रूप मे प्रस्तुत करना चाहे वह चन्द्रमा की चिन्ता के कारण कुछ कर भी नही पाये और संसार हित के लिये अपने को प्रस्तुत करना शुरु कर दे। जीवन की जद्दोजहद मे शामिल होने के लिये भी परमात्मा कारणो को पहले ही बनाकर भेज देता है,पति के लिये कार्य भाव खाली और पत्नी के लिये रोजाना के कार्यों और सेवा वाला भाव खाली,इन्ही दोनो भावो के लिये पति पत्नी अगर अपनी जीवन की जद्दोजहद को करते रहते है तो उनके लिये जीवन का सार्थक करने का प्रभाव पूरा नही हो पाता है अगर वह अपने अनुसार इन्ही कारणो को जो सामने है उन्हे पूरा करने की कोशिश करते रहे तो वह अपने अनुसार अपने जन्म को सार्थक भी कर सकते है और दुनिया मे नाम तथा लोक हित के लिये मशहूर भी हो सकते है। चन्द्रमा को गुरु बारहवा दे दिया है और सूर्य के लिये गुरु नवा दे दिया है,लोक हित मे गुरु सन्तुष्ट रहने का काम कर रहा है और स्वहित के लिये गुरु भाग्य का काम कर रहा है,जातिका जनता के लिये आश्रय का स्थान देने का काम करती है तो वह प्रसिद्धि की तरफ़ बढ जाती है और वह अगर राज्य या राजनीति से जुड जाती है तो वह एक सम्माननीय व्यक्ति के रूप मे प्रसिद्धि प्राप्त करती है। है कि वह प्रश्न करने वाला होता है और उत्तर देने के लिये वह जिस भाव पर अपनी नजर रखता है वही भाव अपनी योग्यता के अनुसार बुध को जबाब देते है,लेकिन बुध वही प्रश्न करता है जिस ग्रह के साथ होता है तथा जिस ग्रह का असर द्रिष्टि से बुध को मिलता है इसके साथ ही उसके प्रश्न अमिट रूप से वही रहते है जो जन्म के समय मे बुध के प्रति अपनी धारणा को प्रकट करते थे,इसके अलावा भी सांसारिक गतिविधि का रूप भी तब और समझ मे आता है जब बुध गोचर से विभिन्न भावो मे गोचर करता है और जो भी उस भाव का सामयिक कारण और रूप होता है उसके बारे मे भी अपनी धारणा को जन्म के बुध की प्रकृति को साथ रखने से और केवल प्रश्न करने की क्रिया को ही प्रस्तुत करने की मान्यता से समझा जा सकता है। इस बुध से यही माना जाता है कि जातिका को प्रश्न करने की आदत है वह किसी भी बात को उल्टा इसलिये कहती है कि सामने वाला जबाब दे सके लेकिन सामने वाला जबाब तभी दे पायेगा जब वह दिमागी रूप से बुद्धिमान है और उसे बजाय करके दिखाने के समझाने की पूरी जानकारी है। करके दिखाने के लिये तो वही लोग सामने आते है जिनके पास शरीर का बल होता है लेकिन समझाकर दिखाने का कार्य वही करते है जिनके पास दिमागी बल होता है और वह अपने समझाने के तरीको को विभिन्न रूप मे सामने लाकर प्रस्तुत कर सकते है। कभी कभी यह भी देखा जाता है कि जो व्यक्ति कहना चाहता है वह सामने वाला समझ रहा है कि नही अगर कहने वाला उल्टा बोलता है और सामने वाला भी उल्टे को उल्टे रूप मे ही प्रस्तुत रखने की कला को जानता है तो दोनो अपनी अपनी बात को एक दूसरे को समझा कर सन्तुष्ट होजायेंगे और सामने वाला उल्टी बात का जबाब जब समझाने की बजाय ताकत से देना शुरु कर देता है तो उल्टा बोलने वाला या तो कभी उल्टी बात को करता ही नही है या वह हमेशा के लिये शांत हो जाता है।उल्टी बात करने का भी एक असर होता है कभी कभी कोई बात उल्टी की जाये और वह शास्त्र सम्मत हो तो उस उल्टी बात का भी आदर किया जायेगा और जब कोई उल्टी बात की जाये लेकिन वह गाली जैसी लगे तो जो सुनेगा वह बजाय उत्तर देने के या तो अपनी दिमागी शक्ति से कोई कानूनी काम करने के लिये राजी हो जायेगा या फ़िर अपने देह बल को प्रयोग करने के बाद दांत तोड देगा। इस कुंडली से भी यही समझ मे आता है कि बुध के वक्री होने का असर तो है लेकिन बुध पर गुरु के प्रभाव के कारण जो भी बात बुध करना चाहता है वह धर्म से सम्बन्धित है शिक्षा से सम्बन्धित है जीवन साथी से सम्बन्धित है बुध के राजकीय ग्रह के साथ होने से तथा राज्य के ग्रह सूर्य पर अपना असर देने के कारण सरकारी कानून से सम्बन्धित है के कारण जो भी बात बुध के द्वारा उल्टे रूप मे की जायेगी वह सुनी भी जायेगी और उसका उत्तर भी बजाय शरीर की शक्ति का प्रयोग करके दिमागी शक्ति को प्रयोग करने के बाद ही दिया जायेगा। इस बात को समझने के लिये जातिका के तीसरे भाव मे विराजमान वक्री शनि से देखा जा सकता है। मार्गी शनि शरीर की शक्ति से काम लेने वाला होता है लेकिन वक्री शनि दिमागी शक्ति से काम लेने वाला होता है जब मशीनी ग्रह और तकनीक का मालिक प्लूटो भी साथ हो जाता है तो वह शानि मशीनी रूप से दिमागी उत्तर प्रस्तुत करने के लिये अपनी योग्यता को जाहिर करने लगता है। मित्रो अगर आप भी मुझ से अपनी समस्या का उपायचाहते नम्वरो पर सम्पर्क करे 07597718725 09414481324 आचार्य राजेश माँ काली ज्योतिष या कुन्ङली दिखाना चाहते है हमारी paid service है

लाल का किताब के अनुसार मंगल शनि

मंगल शनि मिल गया तो - राहू उच्च हो जाता है -              यह व्यक्ति डाक्टर, नेता, आर्मी अफसर, इंजीनियर, हथियार व औजार की मदद से काम करने वा...