शुक्रवार, 29 जून 2018


तंत्र-विद्या : कितनी बुरी और कितनी भली

तंत्र-विद्या : कितनी बुरी और कितनी भली                                           __'_________                         तंत्र का जगत बौद्धिक नहीं है, दार्शनिक नहीं है। सिद्धांत इसके लिए अर्थ नहीं रखता। यह उपाय की, विधि की चिंता करता है। तंत्र शब्द का अर्थ ही है विधि, उपाय, मार्ग। तंत्र का अर्थ विधि है। इसलिए यह एक विज्ञान  है। विज्ञान ‘क्यों’ की नहीं, ‘कैसे’ की फिक्र करता है। दर्शन और विज्ञान में यही बुनियादी भेद है। दर्शन पूछता है: यह अस्तित्व क्यों है? विज्ञान पूछता है: यह अस्तित्व कैसे है? तंत्र विज्ञान है, दर्शन नहीं।वैसे देखा जाए तो तंत्र कि परिभाषा लोग अलग अलग देते हैं लेकिन उसमे एक बात सामान्य है और वो है शरीर को साधना | तंत्र-विद्या, को अंग्रेजी में ‘ऑकल्ट’ कहते हैं
|तंत्र-विद्या को आम बोलचाल की भाषा में जादू-टोना समझ सकते हैं। यह विद्या महज एक टेक्नोलॉजी है। आज आप भारत में अपना मोबाइल फोन उठा कर जब चाहें अमेरिका में किसी से बात कर सकते हैं। तंत्र-विद्या भी कुछ ऐसा ही है - अंतर बस यही है कि इसमें आप सेलफोन के बिना ही अमेरिका में किसी से बात कर सकते हैं। यह थोड़ी ज्यादा उन्नत टेक्नोलॉजी है। वक्त के साथ जब आधुनिक टेक्नोलॉजी का और विकास होगा, तब उसके साथ भी ऐसा ही होगा। अभी ही मेरे पास एक ब्लू -टूथ मेकेनिज्म है, जिसमें किसी का नाम बोलने भर से मेरा फोन उसका नंबर डायल करने लगता है। एक दिन ऐसा आएगा, जब इसकी भी जरूरत नहीं रह जाएगी। बस, शरीर में एक छोटा-सा इम्प्लांट लगाने से सारा काम हो जाएगा।तंत्र-विद्या भी इसी तरह एक टेक्नोलॉजी है, लेकिन एक अलग स्तर की, पर है भौतिक ही। यह सब करने के लिए आप अपने शरीर, मन और ऊर्जा का इस्तेमाल कर रहे हैं। टेक्नोलॉजी चाहे जो हो, आप अपने शरीर, मन और ऊर्जा का ही इस्तेमाल करते हैं। आम तौर पर आप अपनी जरूरतों के लिए दूसरे पदार्थों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन एक सेलफोन या किसी टेक्नोलॉजी के उत्पादन के लिए जिन बुनियादी पदार्थों का उपयोग होता है, वे शरीर, मन और ऊर्जा ही होते हैंचूंकि लोगों ने ऐसे बुरे तांत्रिकों के बारे में सुन रखा है, जिन्होंने लोगों की जिंदगी बरबाद करने की कोशिश की या जिन्होंने लोगों को बीमार बनाया और मार डाला, इसलिए जब आप तंत्र-विद्या या जादू-टोने का नाम लेते हैं, तो वे समझते हैं कि यह हमेशा बुरा होता है। सामाजिक दृष्टि से संभव है आपने ऐसे ही लोगों को देखा हो। मगर तंत्र-विद्या बहुत ऊंची श्रेणी की भी होती है। शिव एक तांत्रिक हैं। जादू-टोना एक अच्छी और लाभकारी शक्ति हो सकता है। यह अच्छा है या बुरा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि इसका उपयोग कौन और किस मकसद से कर रहा है।
तंत्र-विद्या योग का सबसे निम्न रूप है, लेकिन लोग सबसे पहले यही करना चाहते हैं। वे कुछ ऐसा देखना या करना चाहते हैं, जो दूसरे नहीं कर सकते।
जब हम योग कहते हैं, तो किसी भी संभावना को नहीं छोड़ते |  इसके अंदर सब कुछ है। अगर आप अपने दिमाग को इतना धारदार बना लें कि वह हर चीज को आरपार देख-समझ सके, तो यह भी एक प्रकार का तंत्र है । अगर आप अपनी सारी ऊर्जा को अपने दिल पर केंद्रित कर दें ताकि आपमें इतना प्यार उमड़ सके कि आप हर किसी को उसमें सराबोर कर दें, तो वह भी तंत्र है। अगर आप अपने भौतिक शरीर को जबरदस्त रूप से शक्तिशाली बना लें कि उससे आप कमाल के करतब कर सकें, तो यह भी तंत्र है। या अगर आप अपनी ऊर्जा को इस काबिल बना लें कि शरीर, मन या भावना का उपयोग किए बिना ये खुद काम कर सके, तो यह भी तंत्र है।
तो तंत्र कोई अटपटी या बेवकूफी की बात नहीं है। यह एक खास तरह की काबिलियत है।  आप जो “बाजार” में घूमते जिन ढोंगी तांत्रिक बाबाओं को देखते हैं,, जो की आम जनता की आँखों में धुल झोंक के उन्हें ताबीज,यन्त्र बाँटते चलते हैं,,,,, मैं उनकी बात नहीं कर रहा | वह सच्चा तंत्र नहीं है | वह केवल ढोंग, छलवा हैतंत्र- शास्त्र से तात्पर्य उन गूढ़ साधनाओं से है जिनके द्वारा इस संसार को संचालित करने वाली विभिन्न दैवीय शक्तियों का आव्हान किया जाता है । तंत्र साधना के समय उच्चारित मंत्र, विभिन्न मुद्रायें एवं क्रियाएं अत्यंत व्यस्थित, नियमित एवं नियंत्रित तरीके से होती हैं ।  तंत्र में श्मशान, उजाड़ स्थान आदि को इसलिए चुना जाता है जिससे कि साधक का जीवन के अंतिम सत्य से साक्षात्कार हो सके तथा उसे ईश्वर की सार्वभौमिकता एवं जीवन की निरर्थकता का आभास हो। यह एक तरह की ऐसी विद्या है जो व्यक्ति के शरीर को अनुशासित बनाती है, शरीर पर खुद का नियंत्रण बढ़ाती है।
एक बार “माता पार्वतीजी” ने “परमपिता महादेव शिव” से प्रश्न किया की—— ” हे महादेव, कलयुग मे धर्म या मोक्ष प्राप्ति का क्या मार्ग होगा ” ?
उनके इस प्रश्न के उत्तर मे महादेव शिव ने उन्हे समझते हुए जो भी व्यक्त किया तंत्र उसी को कहते हैं।
योगिनी तंत्र मे वर्णन है की कलयुग में लोग वेद में बताये गए नियमो का पालन नही करेंगे। इसलिए नियम और शुद्धि रहित वैदिक मंत्र का उच्चारण करने से कोई लाभ नही होगा। जो व्यक्ति वैदिक मंत्रो का कलयुग में उच्चारण करेगा उसकी व्यथा एक ऐसे प्यासे मनुष्य के समान होगी जो गंगा नदी के समीप प्यासे होने पर कुआँ खोद कर अपनी प्यास बुझाने की कोशिश में अपना समय और उर्जा को व्यर्थ करता है। कलयुग में वैदिक मंत्रो का प्रभाव ना के बराबर रह जाएगा। और गृहस्त लोग जो वैसे ही बहुत कम नियमो को जानते हैं उनकी पूजा का फल उन्हे पूर्णतः नही मिल पायेगा ।
महादेव ने बताया की वैदिक मंत्रो का पूर्ण फल सतयुग, द्वापर तथा त्रेता युग में ही मिलेगा.
तब माँ पार्वती ने महादेव से पुछा की कलयुग में मनुष्य अपने पापों का नाश कैसे करेंगे? और जो फल उन्हे पूजा अर्चना से मिलता है वह उन्हे कैसे मिलेगा?
इस पर “शिव जी” ने कहा की कलयुग में तंत्र साधना ही सतयुग की वैदिक पूजा की तरह फल देगा। तंत्र में साधक को बंधन मुक्त कर दिया जाएगा। वह अपने तरीके से इश्वर को प्राप्त करने के लिए अनेको प्रकार के विज्ञानिक प्रयोग करेगा।परन्तु ऐसा करने के लिए साधक के अन्दर इश्वर को पाने का नशा और प्रयोगों से कुछ प्राप्त करने की तीव्र इच्षा होनी चाहिए।तंत्र के प्रायोगिक क्रियाओं को करने के लिए एक तांत्रिक अथवा साधक को सही मंत्र, तंत्र और यन्त्र का ज्ञान जरुरी है। मंत्र एक सिद्धांत को कहते हैं। किसी भी आविष्कार को सफल बनाने के लिए एक सही मार्ग और सही नियमों की आवश्यकता होती है। मंत्र वही सिद्धांत है जो एक प्रयोग को सफल बनाने में तांत्रिक को मदद करता है। मंत्र द्वारा ही यह पता चलता है की कौन से तंत्र को किस यन्त्र में समिलित कर के लक्ष्य तक पंहुचा जा सकता है । मंत्र के सिद्ध होने पर ही पूरा प्रयोग सफल होता है।जैसे “क्रिंग ह्रंग स्वाहा” एक सिद्ध मंत्र है। श्रृष्टि में इश्वर ने हरेक समस्या का समाधान स्वयम दिया हुआ है। ऐसी कोई बीमारी या परेशानी नही जिसका समाधान इश्वर ने इस धरती पर किसी न किसी रूप में न दिया हो। तंत्र श्रृष्टि में पाए गए रासायनिक या प्राकृतिक वस्तुओं के सही समाहार की कला को कहते हैं।मंत्र और तंत्र को यदि सही से प्रयोग किया जाए तो वह प्राणियों के कष्ट दूर करने में सफल है। पर तंत्र के रसायनों को एक उचित पात्र को आवश्यकता होती है। ताकि साधारण मनुष्य उस पात्र को आसानी से अपने पास रख सके या उसका प्रयोग कर सके। इस पात्र या साधन को ही यन्त्र कहते हैं। एक ऐसा पात्र जो तंत्र और मन्त्र को अपने में समिलित कर के आसानी से प्राणियों के कष्ट दूर करे वही यन्त्र है। हवन कुंड को सबसे श्रेष्ठ यन्त्र मन गया है। “आसन”, इत्यादि भी यंत्र माने जाते है। कई प्रकार की आकृति को भी यन्त्र मन गया है,, जैसे “श्री यन्त्र”, “काली यन्त्र”, “महामृतुन्जय यन्त्र” इत्यादि यन्त्र” शब्द “यं” तथा “त्र” के मिलाप से बना है। “यं” को पुर्व में “यम” अर्थात “काल” कहा जाता था। इसलिए जो यम से हमारी रक्षा करे उसे ही यन्त्र कहा जाता है। इसी से समझा जा सकता है कि तंत्र को प्राचीनकाल के बुद्धिजीवियों ने कितने शोध के बाद आम आदमी के लिए प्रतिपादित किया |

शुक्रवार, 22 जून 2018

ग्रह से घोखा पोस्ट नंबर दो

समय के दो पहलू है. पहले प्रकार का समय व्यक्ति को ठीक समय पर काम करने के लिये प्रेरित करता है. तो दूसरा समय उस काम को किस समय करना चाहिए पहला समय मार्गदर्शक की तरह काम करता है.

 जबकि  जबकि दूसरा पल-पल का ध्यान रखते हुए आपकी कुंडली दशा अंतर्दशा ग्रहों की चाल और ग्रह से मिलने वाले फल को पहचान कर उसका उपचार करकेे कैसे आगे बढ़ा जाए यह जानकारी देता है कहते हैं समय बड़ा बलवान होता है उस समय को पहचानेका काम  ज्योतिष ही कर सकता है अक्सर भ्रम कनफ़्यूजन धोखा फ़रेब चीटिंग अफ़वाह भटकाव नशा बेबजह आदि शब्द राहु के अनुसार ही कहे गये है,जो है उसके प्रति जो नही है उसके भी प्रति राहु अपने अपने स्थान से अपना अपना प्रकार प्रकट करता है साथ ही अगर व्यक्ति की सोच केन्द्रित नही है तो वह अपने सोचने वाले घेरे को लगातार बढाता जाता है और यही सोच उसे जीवन मे धोखा आदि देने के लिये मानी जाती है.लगन मे राहु के होने से जीवन के साथ ही धोखा होता है धन भाव मे होने से धन आदि की चीटिंग और खुद की आंखो के सामने धूल झोंकने वाली बात कही जाती है,तीसरे भाव मे नाटकीय ढंग से अपने विचार प्रकट करने के बाद स्वांग बनाकर ठगने वाली बात मानी जाती है,चौथे भाव मे मानसिक रूप से भावना आदि से ठगी की जाती है पंचम भाव मे मनोरंजन का नशा देकर या लाटरी सट्टॆ खेलकूद मे दिमाग मे लगा कर बुद्धि को भ्रम मे डाला जाता है,छठे भाव से कोई बीमारी नही होने पर बीमारीका भ्रम होनाया वहम होना सातवे भाव मे जीवन साथी और साझेदारी के प्रति तादात से अधिक विश्वास कर लेना और जब भ्रम टूटे तो कही कुछ नही होना जीवन साथी से ही अक्सर धोखा दिलवा देना आठबे भाव मे उन शक्तियों के प्रति भम रहना जो शक्तिया न तो देखी गयी है और न ही उनके प्रति कभी विश्वास किया गया है इस भाव के राहु के द्वारा अक्सर गूढ कारणो की खोज के प्रति भ्रम ही बना रहता है और रेत के पहाड से हीरे की कणी निकालने जैसा होता है और जब रेत का पहाड़  बहुत  जाता है तो कुछ पल्ले नहीं आता नवे भाव के राहु से खुद के खानदान और पूर्वजो के प्रति ही भ्रम बना रहना दसवे भाव मे काम के होते हुये भी और काम के करते हुये भी कभी काम पूरा नही होना ग्यारहवे भाव के प्रति चाहे पीछे से हानि ही हो रही हो लेकिन भ्रम से उसी काम को करते जाना जब पता लगना तब तक दिवालिया हो जाना या किसी मित्र पर इतना विश्वास करते जाना कि वह जीवन के हर क्षेत्र से सब कुछ बरबाद कर रहा है लेकिन फ़िर भी उसके प्रति विश्वास को बनाये रखना बाद मे दगा बाजी का रूप दे देना बारहवे भाव से जीवन के प्रति हमेशा डर लगा रहना आक्स्मिक चल देना हवाई किले बनाते रहना और खुद की स्थिति को जमीन पर आने ही नही देना जबकि है कुछ नही फ़िर भी सब कुछ होने का आभास होते रहना और जब हकीकत का पर्दा उठे तो कही कुछ नही आदि की बाते मानी जाती है.paid service 09414481324

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गुरुवार, 21 जून 2018

चंन्द्र ग्रह पोस्ट 4

चंद्र ग्रह पोस्ट नंबर 4

जीवन के शुरु होते ही सुख दुख पाप पुण्य हारी बीमारी लाभ हानि आदि अच्छे और बुरे परिणाम सामने आने लगते है,सुख को महसूस करने के बाद दुखों से डर लगने लगता है हानि को समझ कर लाभ को ही अच्छा माना जाता है,जीवन के शुरु होने के बाद मौत से डर लगने लगता है। यही बात कुंडली में समझी जा सकती है,ग्रह की प्रकृति हानिकारक है

 या लाभ को प्रदान कराने वाली है। अगर ग्रह हानि देने वाला है तो उसे लाभदायक बनाने के प्रयत्न किये जाते है और लाभदायक तो लाभदायक है ही। खराब ग्रह के बारे में लालकिताब में लिखा है,-"बसे बुराई जासु तन,ताही को सम्मान,भलो भलो कहि छोडिये खोटिन को जप दान",बुराई करने से तात्पर्य है अनुभव करवाना,अगर किसी बुरी वस्तु का अनुभव ही नही होगा तो उसके अच्छे या बुरे होने का मतलब भी समझ में नही आयेगा,कई बार कई कारकों को हम सुनकर या पढकर या दूर से समझ कर ही त्याग देने से मतलब रखते है,जब कहा जाता है कि अमुक वस्तु जहरीली है और उसे अगर खा लिया गया तो मौत हो सकती है,और जब भी उस वस्तु को सामने देखा जाता है तो उससे केवल सुनकर या पढकर या दूर से समझ कर ही दूर रहने में भलाई समझी जाती है और जब कोई अपना या ना समझ व्यक्ति उस वस्तु की तरफ़ आमुख होता है तो उससे वही कहा जाता है जो हमने सुना या पढा या समझा या दूर से देखा। ग्रह कुंडली में जब सही तरह से मान्यता के रूप में देखा जाये तो जीवन के चार पुरुषार्थों में चारों ही अपने अपने स्थान पर सही माने जाते है। धर्म के रूप में शरीर परिवार और पुरानी वंशावली के प्रति मान्यता को समझा जाता है,अर्थ के रूप में मिला हुआ जो परिवार और हमारे कुटुम्ब ने हमे दिया है,हमारे द्वारा रोजाना के कार्यों से जो प्राप्त होता है और जो हमारे वंश से या हमारी उच्च शिक्षा के बाद प्राप्त होता है के प्रति माना जा सकता है। काम के रूप में हमारे से छोटे बडे भाई बहिन हमारे जीवन में कदम से कदम मिलाकर साथ चलने वाले लोग एवं वे लोग जिनके लिये हम आजीवन अपनी जद्दोजहद को जारी रखते है,चाहे वह पति पत्नी के रूप में हो,या संतान के रूप में या फ़िर संतान की संतान के प्रति हो,जब सही मायनों में हमने जीवन को समझ लिया है और तीनो पुरुषार्थों को पूरा कर लिया है तो बाकी का बचा एक मोक्ष यानी शांति नामका पुरुषार्थ अपने आप ही अपनी उपस्थिति को उत्पन्न कर देगा बात चंद्र ग्रह​ की चल रही है और चन्द्रमा के लिये केवल शनि ही पल्ले पडा है। जैसे कर्क और सिंह के सप्तम के स्वामी शनि होता है एक सकारात्मक होता है एक नकारात्मक होता है वैसे ही शनि की दोनो राशियों के लिये भी सूर्य और चन्द्रमा ही सप्तम के स्वामी भी होते है और सकारात्मक और नकारात्मक का प्रभाव देते है। चन्द्रमा का रूप जब शनि की राशि मकर से सप्तम का होता है तो वह केवल सोच को पैदा करने के लिये ही अपना फ़ल देता है तथा सप्तम का स्वामी जिस भाव मे होता है उसी भाव का फ़ल भी प्रदान करता है। राशि भी अपना फ़ल प्रदान करती है और सप्तम के स्वामी पर जो भी ग्रह अपनी नजर देते है उन ग्रहों का असर भी सप्तम के स्वामी पर पडता है आगे पीछे के ग्रहो का प्रभाव भी बहुत अदर देता है जिस तरह एक मकान में सभी सदस्यों का अपना अपना प्रभाव होता है उसी तरह हमारी कुंडली में प्रत्येक ग्रह का अपना अपना प्रभाव एक सदस्य के कभी घर घर नहीं बनता उसी तरह एक ग्रह के फल से कभी फल कथन कुंडली में नहीं किया जा सकता अब यहां मैं चंद्र की कुछ बुराइयां जब चंद्र अशुभ होता है उसके बारे में आपको बताऊंगा फिर भी पूरी कुंडली देखकर ही यह समझना चाहिए कि चंद्र शुभ है या अशुभ है और उसके फल को ज्ञात करना चाहिएचन्द्रमा खराब होने की निशानी होती है कि मन की सोच बदल जाती है झूथ बोलना आजाता है,चलता हुआ रास्ता भूला जाता है माता बीमार रहने लगती है जुकाम और ह्रदय वाली बीमारिया शुरु हो जाती है वाहन जो भी पास मे है सभी किसी न किसी कारण से बन्द हो जाते है बडी या छोटी बहिन भी दिक्कत मे आजाती है घर मे पानी मे कही न कही से गन्दगी पैदा हो जाती है भोजन करते समय पसीना अधिक निकलने लगता है किसी भी काम को करते समय खांसी आने लगती है गले मे ठसका लगने लगता है चावल को मशाले वाले पदार्थो मे मिलाकर खाने का जी करने लगता है। घर मे कन्या संतति की बढोत्तरी होने लगती है,कोई बहिन बुआ बेटी विधवा जैसा जीवन जीने लगती है,पडौसी नाली के लिये और घर मे आने वाली पानी के लिये लडने लगते है,मूत्र रोग पैदा हो जाते है,घर मे सुबह शाम की सफ़ाई भी नही हो पाती है,पानी का सदुपयोग नही किया जाता है घर मे पानी का साधन खुले मे नही होकर अन्धेरे मे कर दिया जाता है,पानी को बेवजह बहाना शुरु कर दिया जाता है,लान मे लगी घास सूख जाती है अधिक पानी वाले पेड नही पनप पाते  है घर के एक्वेरियम मे मछलिया जल्दी जल्दी मरने लगती है,जुकाम वाले रोगो से पीडा होने पर सिर हमेशा तमकता रहता है अच्छे काम को करने के समय भी बुरा काम अपने आप हो जाता है मन की गति कन्ट्रोल नही होने पर एक्सीडेन्ट हो जाता है पुलिस और कानूनी क्षेत्र का दायरा बढने लगता है घर के अन्दर दवाइयों का अम्बार लगने लगता है। आंखो से अपने आप ही आंसू आने लगते है,आसपास के लोग तरह तरह की बाते करने लगते है हितू नातेदार रिस्तेदार सभी कुछ न कुछ कहते हुये सुने जाते है जिन लोगो के साथ अच्छा काम किया है वह भी अपनी जीभ से उसे उल्टा बताने लगते है जो अधिक चाहने वाले होते है उनके अन्दर भी बुराइया आने लगती है आदि बाते देखने को मिलती है।ज्योतिषी जी से पूंछो तो वह कहने लगेंगे कि मोती की माला पहिन लो चन्द्र मणि को पहिन लो चांदी को पहिन लो चांदी को दान मे दे दो,चन्द्रमा के जाप कर लो,यह सब खूब करो लेकिन जो कल किया है उसे आज भुगतने के लिये ज्योतिषी जी अपने सामान के साथ सहायता नही दे पायेंगे,कितने ही मंत्र बोल लो लेकिन मंत्र भी तब तक काम नही करेगा जब तक चित्त वृत्ति सही काम नही करेगी,घर मे रखी चांदी को या खरीद कर दान मे देने से किसी और का भला हो सकता है बिना चित्त वृत्ति बदले खुद का भला तो हो नही सकता है,मोती की माला भी तभी काम करेगी जब चित्त वृत्ति बदलेगी,अगर आज से चित्त वृत्तिको बदलने की हिम्मत है तो कल अपने आप ही सही होने लगेगा नही मानो तो अंजवा कर देख लो। चन्द्रमा का काम तुरत फ़ल देना होता है वह आज धन के भाव मे रहकर धन को देगा लेकिन जैसे ही वह खर्चे के भाव मे जायेगा तो धन को खर्च भी करवा लेगा,जो भी कारक उसके साथ होगा उसी के अनुसार वैसे ही काम करने लगेगा जैसे पानी मे मिठाई मिला दो तो मिठाई जैसा काम करने लगेगा गर्मी मे रख तो गर्म हो जायेगा फ़्रिज मे रख तो ठंडा हो जायेगा,मिर्ची मिला तो कडवा हो जायेगा जहर मिला तो जहरीला हो जायेगा,लेकिन चित्त वृति नही बदलती है तो वह जहरीला पानी मार सकता है और चित्त वृत्ति बदली है तो वह किसी जहरीले जानवर के काटने पर उसे बचा भी सकता है,मिर्ची वाला पानी सब्जी मे दाल मे भोजन के काम आ सकता है गर्म पानी चाय मे काम आ सकता है और ठंडा पानी शर्बत मे काम आ सकता है,लेकिन यह सब होगा तभी जब चित्त वृत्ति को बदल लो,बिना चित्त वृत्ति को बदले कुछ भी नही हो सकता है। चन्द्रमा भावुकता कारक है,अधिक भावना मे आकर यह रोना भी शुरु कर देता है और जब प्रहसन पर आये तो हँसना भी चालू कर देता है,जब गम की श्रेणी मे आजाये तो अकेला बैठ कर सोचने के लिये भी मजबूर कर सकता है,डरने की कारकता मे चला जाये तो थरथर कांपने भी लगता है। यह सब कारण अच्छी और बुरी भावना को साथ लेकर चलने से ही होता है,अन्यथा नही होता है।जब मन के अन्दर बदले की भावना नही पैदा होगी तो किसी से बैर भाव भी नही होगा और जब बैर भाव नही होगा तो लोग अच्छा ही सोचेंगे जो मन की भावनाये है उनका अच्छा और बुरा रूप दोनो सोच कर निकालेंगे तो हो ही नही सकता है कि कोई बुराई मान ले। लेकिन यह भी ध्यान रखना है कि फ़ूल और तलवार का रूप भी दिमाग से समझना पडेगा अन्यथा तलवार का काम काटना होता है और फ़ूल का काम सुन्दर भावना को देना होता है,कसाई तलवार की भाषा को समझता है और सन्त फ़ूल की भावना को समझता है।जैसे ही मन की भावना बदली मोती की माला भी काम करने लगेगी,लोगो को एक गिलास पानी पिलाने से भी चांदी के दान से बडा फ़ल मिलने लगेगा,एक सफ़ेद कपडा पहिनने से भी चन्द्रमणि का फ़ल मिलने लगेगा। यह सब कल की बुराई को आज निकालने पर कल अच्छाई से ही मुकाबला होगा इसमे कोई दोराय नही है,अक्सर जिस राशि मे चन्द्रमा होता है उस राशि मे व्यक्ति की पहुंच पर ही सोच को देने के लिये और लोगो के अन्दर जानकारी देने के लिये माना जा सकता है,जब तक व्यक्ति चन्द्रमा तक नही पहु़ंचता है तब तक वह जनता के बारे मे सोचता है जैसे ही वह चन्द्रमा की सीमा को लांघ जाता है जनता उसके बारे मे सोचने लगती है मित्रोंज्योतिष अपने रूप में कालचक्र को देखने वाली है। ज्योतिष मनुष्य की गुलाम नही है वह जो है उसे ही बखान करना जानती है। ग्रह को अपने भाव से प्रकट करना सभी की आदत है,भाव को ग्रह से जोडना भी अपने अपने भाव के बात है,भाव को बदला जा सकता है,ग्रह को भाव में रूप के अनुसार अनुमान लगाकर बताया जा सकता है,मनुष्य अपनी गति को बदल सकता है लेकिन ग्रह अपनी गति को नही बदल सकता है। जिस पृथ्वी पर हम टिके है उसकी गति को अगर दूर से देख लें तो घिग्घी बंध जायेगी,किस शक्ति से हम धरती पर टिके है उसकी गति कितनी भयानक है यह हम धरती की परिक्रमा करने की चाल से समझ सकते है।आज आज इतना ही आचार्य राजेश

गुरुवार, 14 जून 2018

राशिफल की वास्तविकता क्या है

शिफल की वास्‍तविकता क्‍या है ?? जहां एक ओर ज्‍योतिष को बहुत ही सूक्ष्‍म तौर पर गणना करने वाला शास्‍त्र माना जाता हैhttps://youtu.be/sXMcp0IapGE
 , वहीं दूसरी ओर पूरी जनसंख्‍या को 12 भागों में बांटकर उनकी राशि के आधार पर राशिफल के रूप में भविष्‍यवाणी करने का प्रचलन भी है। राशिफल के द्वारा दुनियाभर के लोगों को 12 भागों में बांटकर उनके बारे में भविष्‍यवाणी करने का प्रयास आमजनों को गुमराह करने के इलावा कुछ नहीं मेरे ख्याल सेराशिफल की शुरूआत उस वक्‍त की मानी जा सकती है , जब आम लोगों के पास उनके जन्‍म विवरण न हुआ करते हों पर अपने भविष्‍य के बारे में जानने की कुछ इच्‍छा रहती हो। पंडितो द्वारा रखे गए नाम में से उनकी राशि को समझ पाना आसान था, इसलिए ज्‍योतिषियों ने उनकी राशि के आधार पर गोचर के ग्रहों को देखते हुए भविष्‍यवाणी करने की परंपरा शुरू की हो। चूकि प्राचीन काल में अधिकांश लोगों की जन्‍मकुंडलियां नहीं हुआ करती थी , इसलिए राशिफल की लोकप्रियता निरंतर बढती गयी। https://youtu.be/sXMcp0IapGEगोचर तभी प्रभावशाली​ होगा जव आप अपनी जन्मतिथि के हिसाब से अपनी कुंडली वनाकरओर कुंडली के साथ गोचर को मिला कर भविष्य देखे ज्‍योतिष’ मानता है कि भले ही किसी व्‍यक्ति के जन्‍मकालीन ग्रह उसके जीवन की एक रूप रेखा निश्चित कर देते हें , पर समय समय पर आनेवाले गोचर के ग्रह भी उसके दिलोदिमाग पर कम प्रभाव नहीं डालते – संभवतः परम्परागत ज्योतिष भी यही मानता है जन्‍मकुंडली को देखने से यह सटीक ढंग से कहा जा सकता है कि जातक के लिए कौन सी पंक्ति अधिक या कम प्रभावी होगी। इसके लिए इस बात को ध्‍यान में रखा जाता है कि गोचर के ग्रहों की खास स्थिति जातक की जन्‍मकुंडली के अनुकूल है या प्रतिकूल ?? – अर्थात केवल सूर्य राशि, चन्द्र राशि या लग्न राशि के आधार पर की गयी भविष्यवाणियों (जो पत्र पत्रिकाओं में छपती रहती हैं या टीवी पर वोली जाती है ) का बहुत अधिक महत्त्व नहीं है |आचार्य राजेश

रविवार, 10 जून 2018

भविष्यवाणी ओर ज्योतिष

मित्रों यथार्थ के बहुत करीब तक भविष्यवाणियां की जा सकती हैं लेकिन आवश्यकता है ज्योतिष के गूढ़ रहस्यों की जानकारी एवं ग्रहों की चाल समझने की। यदि भविष्य में होने वाली घटनाओं की जानकारी हमें वर्तमान में मिल जाए तो हम भविष्य के लिए बहुत कुछ तैयारियां कर सकते हैं। 

भविष्य में होने वाली दुर्घटना को टाल सकते हैं अथवा उसके दुष्प्रभाव को कम कर सकते हैं। अधिकांशत: देखा गया है कि ज्योतिषी लोग अपनी विद्या का सही इस्तेमाल नहीं कर पाते या यूं कहें कि पूर्ण उपयोग नहीं कर पाते और सही भविष्यवाणी में कई बार चूक जाते हैं। सही मायने में देखा जाए तो ज्योतिष विद्या मनुष्य के पिछले कर्मों का दंड-पुरस्कार बताने वाला विज्ञान है।  अव मन मे यह सवाल आएगा किभाग्य में जो लिखा है वह होना ही है तो उसे जानने से क्या लाभ? मित्रो उस जानकारी के आधार पर अपने भविष्य को सुधारा जा सकता है। कम से कम यह तो किया जा सकता है कि हम अपने किए हुए कर्मों का परिणाम भुगतने के लिए मानसिक रूप से तैयार रहें। दुखद संभावनाएं टाली नहीं जा सकतीं तो कम से कम उनसे निपटने की तैयारी तो कर ही सकते हैं।भविष्य को जान लेने के बाद उसे बदला भी जा सकता है। निचली अदालत में कोई जुर्म सिद्ध होने और सजा सुनाई जाने के बाद ऊंची अदालतों में अपील की जाती है। वहां भी अपराध सिद्ध हो जाए तो दो स्थितियां होती हैं। एक सजा बहाल रहे और दूसरे उसमें कुछ छूट मिल जाए या दंड का स्वरूप बदल जाए। निचली अदालतों में फांसी की सजा सुनाए लोगों को बड़ी अदालतों से अक्सर राहत मिलती है। उनकी फांसी अक्सर आजीवन कारावास में बदल जाती है। भाग्य में उलट-फेर की संभावना इसी तरह मौजूद रहती है। उस संभावना का उपयोग किया जाना चाहिए। चेतना के एक स्तर पर पहुंचने के बाद भावी घटनाओं का न केवल पूर्वाभास होता है बल्कि उन्हें नियंत्रित भी किया जा सकता है। उनकी दिशाधारा बदली जा सकती है।मेरा मानना है कि ‘ज्योतिषी को दुखद भविष्यवाणियां करने से बचना चाहिए। हो सकता है नियति का विधान किसी और तरह काम करे और होनी जिस रूप में दिखाई दे रही है, वह टल जाए लेकिन एक बार दुखद भविष्यवाणी कर दी गई और जातक ने उसे मान लिया तो दुख की आशंका और भी घनीभूत हो जाती है। वह संभावना टल रही हो तो भी वापस बुला ली जाती है।रोग, नुक्सान, मृत्यु, विग्रह आदि भविष्यवाणियों के सही होने में सिर्फ होनहार ही कारण नहीं है, उनकी घोषणा भी एक अंश में जिम्मेदार है जो दुर्घटनाओं के लिए आवश्यक पृष्ठभूमि रचती है। इस तरह की घोषणाएं कभी-कभार जातक के मन में प्रतिरोध क्षमता उत्पन्न करती हैं। वह उन्हें रोकने के लिए कमर कसता है, उन्हें टालता भी है लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता। भाग्य को जान लेने के बाद उसे बदलने का उपक्रम किया जा सके तो यह ज्योतिष का सही उपयोग है। सवाल हो सकता है कि भाग्य को बदला कैसे जाए? मित्रों होनी को टालने अथवा नियति को बदलने वाले उपायों में तीन प्रमुख हैं-एक इच्छा शक्ति, दूसरा विनय और तीसरा नियति को समझने और तद्नुकूल अपने आपको ढाल लेने वाला ज्ञान। तीसरे उपाय को एक ही शब्द में ‘गुह्य ज्ञान’ भी कहा जा सकता है। अपने आपको बदलने और विश्व को अधिक सुंदर, उन्नत, व्यवस्थित बनाने के लिए समर्पण का मन बना लिया जाए तो नियति में बदलाव आने लगता है। तब प्रकृति एक अवसर देती है। जिन लोगों की नियति में बदलाव आया, उनके लिए नियति ने उद्देश्यपूर्ण उदारता ही बरती मित्र इच्छाशक्ति का उपयोग वुरी  भावना से नहीं किया जा सकता। बदलने या सुधरने का ढोंग कर अपने लिए क्षमा नहीं बटोरी जा सकती है। बाहरी दुनिया में काम करने वाली न्याय व्यवस्था को झांसा देना कितना ही आसान हो, दिव्य प्रकृति में कोई झांसेबाजी नहीं चलती। वहां शुद्ध ईमानदारी और प्राथमिकता ही काम आती है

दूसरा आवश्यक गुण है ‘विनय’। अपने आपको परम  चेतना के हवाले छोड़ देने और अकिंचन हो जाने की मन: स्थिति ही विनय है। उस स्थिति में अहंकार का नाम-निशान नहीं बचता। एक बार तो यह परवाह भी छोड़ देनी पड़ती है कि नियति से उदार परिवर्तन भी आएंगे। अपने आपको कठोर तथा और अधिक क्रूर परिवर्तनों के लिए भी उसी कृतज्ञ भाव से तैयार रखना पड़ताहै यह बात स्पष्ट है कि जन्म पत्रिका के माध्यम से हम आने वाले समय में अर्थात भविष्य में होने वाली घटनाओं के संबंध में महत्वपूर्ण बातों को जान सकते हैं। यदि हमारे साथ कोई दुर्घटना घटने वाली है तो हम उसके बचाव के उपाय कर सकते हैं और नहीं तो कम से कम उस दुर्घटना के प्रभाव को तो कम कर ही सकते हैं।

शुक्रवार, 8 जून 2018

 क्या अंक ज्योतिष कारगर है? 

मित्रो लेख थोङा लंवा खिच गया क्षमा चाहुगा माना जाता है जो अंक हमसे जुड़े होते हैं, वे हमारी किस्मत पर प्रभाव डालते हैं। क्या ऐसा सच में होता है? क्या अंक ज्योतिष कारगर है? या फिर हमें खुद की क्षमता को बढाने पर ध्यान देना चाहिए? : एक दिन कोई उद्योगपति मुझसे मिलने आए थे उन्होंने अपना विजिटिंग कार्ड दिया। थोड़ी देर बातें करते रहे विदा लेकर निकलते हुए जरा हिचकते हुए खड़े रहे। आखिर पूछ ही दिया : आचार्य जी मेरे साथ बात करते समय आप बीच बीच में ‘रमियान’ ‘रमियान’ कह रहे थे। उस मंत्र का क्या अर्थ है मैं चौंक उठा उनका दिया विजिटिंग कार्ड दिखाते हुए मैंने कहा : यही तो आपका नाम है कार्ड में Rhamean ही तो लिखा है ‘‘नहीं महाराज मेरा नाम रमन है। न्यूमरालॅजी के ज्योतिषी ने परामर्श दिया था कि मेरे नाम को अँग्रेजी में इस तरह लिखा जाए तो व्यवसाय में सफलता मिलेगी मैं अपनी हँसी रोक नहीं पाया। मनुष्य ने ही तो अंकों और अक्षरों को रूप दिया है। फिर वे कैसे मानव की किस्मत बना सकते हैं? बताइए, आप अपनी क्षमता के बूते पर उद्योग खड़ा करेंगे या अंकों पर विश्वास करके? नंबर क्या कर सकते हैं?अगर किसी ने कहा दिया कि अंक दो आपके लिए भाग्यशाली है तो क्या आप आँख मूँदकर उस पर विश्वास कर बैठेंगे ज्योतिषी के कहने पर अपना हाथ या पैर काट डालेंगे? कितनी मुरखो वाली वात हमने अपनी सुविधा के लिए दिन, वार और संख्याओं की व्यवस्था की थी। क्या ये सब चीजें हमारे जीवन को तय कर सकती हैं प्राणवान होकर आप लोग जो बेवकूफियाँ करते हैं उनके लिए बेजान ग्रहों को जिम्मेदार ठहराना कितनी बड़ी कायरता है। ग्रहों में जो स्पंदन होते हैं, उनका असर पृथ्वी पर पड़ सकता है। लेकिन जिन लोगों का मन संतुलित है, उन पर इन स्पंदन झेलने की ताकत हो सकती है कार्य आरंभ करने से पहले आप ज्योतिषी के पास जाएँगे। अगर वे कह दें कि कार्य में सफलता मिलेगी तो आप उसी पर विश्वास करते हुए पूरी क्षमता के साथ काम नहीं करेंगे। अगर वे कहें कि सफलता नहीं मिलेगी तब निराशा के मारे लगन के साथ काम नहीं करेंगे। तब ज्योतिषी के पास जाने का मतलब ही क्या है?आधे-अधूरे काम करेंगे तो सफलता कहाँ से मिलेगी इच्छित वस्तु को पाना हो तो अपनी क्षमता बढ़ा लीजिए। खेलने के लिए उतरने से पहले ही परिणाम पाने की इच्छा न करें। अपने काम की जिम्मेदारी स्वयं लेने की आदत डालें।फिर भी पुरी दुनियामे कितनी भाषा वोली जाती है ओर कितने तरह के अक्षर है इसलिए अंक ज्योतिष, रामशलाका, भैरव ज्ञान, नंदी नाड़ी, स्वर ज्योतिष, क्रिस्टल बॉल, रमल ज्योतिष जैसे उपाय चलन में आए। भविष्य जाने की इन विधाओं के बावजूद फलित ज्योतिष ज्यादा xलोकप्रिय रहा है, वजह उसकी समझ में आने वाला वैज्ञानिक आधार और लम्बी परंपरा वैदिक ज्योतिष भारतीय ज्योतिष विधि में सबसे प्रमुख है। यह वेद का हिस्सा है जिसे वेद की आंखें भी कहते हैं। इसमें जन्म कुण्डली के आधार पर भविष्य कथन किया जाता है। इस विधि से भविष्य जानने के लिए जन्म समय, जन्मतिथि एवं जन्म स्थान का ज्ञान होना आवश्यक होता है। महर्षि पराशर और जैमिनी दोनों ही समकालीन थे। इन दोनों ऋषियों ने वैदिक ज्योतिष के आधार पर भविष्य आंकलन की नई विधि को जन्म दिया।जैमिनी पद्धति दक्षिण भारत में अधिक प्रचलित है। यह पद्धति वैदिक ज्योतिष से मिलती-जुलती है परंतु इसके कुछ अपने सिद्धांत और नियम हैं। जो ज्योतिषशास्त्री जैमिनी और पराशरी ज्योतिष दोनों से मिलाकर भविष्य कथन करते हैं उन्हें परिणाम काफी सटीक मिलते हैं। प्रश्न कुण्डली प्रश्न पर आधारित ज्योतिषीय विधि है; जिन्हें अपनी जन्मतिथि, समय और स्थान का ज्ञान नहीं होता उनके लिए यह ज्योतिष विधि श्रेष्ठ मानी जाती है। इन विधियों की सच्चाई या विश्वसनीयता के बारे मे मेरा मानना यह हे ‘ कि ज्योतिष के रहस्य प्रामाणिक व्यक्ति के सामने ही खुल कर आते है, जो विद्या भूत भविष्य के बारे में सटीक जानकारी देती हो वह इतनी कमजोर और सहज नहीं हो सकती की जिस तिस के सामने उसके गूढ़ अर्थ उजागर हो जाएं। गणित या भूगोल जैसे प्रतिदिन काम आने वाले विषयों के बारे में आधिकारिक प्रवेश के लिए एक न्यूनतम अनुशासन होना जरूरी है। उसके बिना इन विद्याओं का क ख ग भी पता नहीं चलता इसलिए ज्योतिष जैसे गूढ़ विषय में अधिकार की शर्तें या पात्रता तो और भी गंभीर है। ईमानदारी और निस्वार्थ भावना पहली शर्त है, इसके बिना कोई व्यक्ति इस विषय का जानकार तो हो सकता है पर आधिकारिक विद्वान नहीं, की उसकी की हुई गवेषणा सही निकले। भविष्य जानने की अन्य विधाओं का भी अलग-अलग नियम है, उन पर भी गौर किया जाना चाहिए।आज ईतना ही । आचार्य राजेश 07597718725 09414481324

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गुरुवार, 7 जून 2018

पैसा और ज्योतिष

Paisa…. कहाँ है पैसा कोई व्यक्ति अपने जीवन में कितना धनी हो पाएगा, यह उसकी कुंडली में लिखा होता है। आइए जानते हैं कुंडली में धन-योग को कैसे पहचानें? कुण्‍डली में दूसरे भाव को ही धन भाव कहा गया है
। दूसरे भाव और इसके अधिपति की स्थिति हमारे संग्रह किए जाने वाले धन के बारे में संकेत देती है। कुण्‍डली का चौथा भाव हमारे सुखमय जीवन जीने के बारे में संकेत देता है। पांचवा भाव हमारी उत्‍पादकता के बारे में बताता है, छठे भाव से ऋणों और उत्‍तरदायित्‍वों को देखा जाएगा। सातवां भाव व्‍यापार में साझेदारों को देखने के लिए बताया गया है। इसके अलावा ग्‍यारहवां भाव आय और बारहवां भाव व्‍यय से संबंधित है। वास्तव में हम एकादश व चतुर्थ भाव के ऑपरेटिंग फंक्शन में कंफ्यूज हो जाते हैं। जिस मकान वाहन आदि की बात आप कर रहे हैं ये मानसिक सुख का कारक हैं। भौतिकता भी तभी सुख देगी जब मन शांत होगा। लाल किताब या कालपुरुष की बात करें तो चतुर्थ भाव सुख का भाव है। ये चन्द्रमा के आधीन विषय है एक झोपडी में भी भी आप वही भौतिक सुख का एहसास कर सकते हैं जो आपको लाखों खर्च किए हुए बंगले में भी नहीं आये। .28 बंगले होकर भी विजय माल्या आज भगोड़ा घोषित है। क्योंकि उसने सुख को एकादश से पाने का प्रयास किया ,एकादश भाव चतुर्थ सुख के लिए मारक आठवां भाव वन जाता है.जैसे ही आपने अपने सुख को भौतिकता में खोजा आपने अपने सुख को ही समझ लीजिए आग लगा दी। एकादश भाव काल पुरुष में शनि का स्थान है व वायुकारक प्रभाव लिए होता है। शनि त्याग ,विछोह का कारक है व वायु का कोई आकार नहीं .वायुकोई स्थिरता नहीं फिर भला यहाँ से प्राप्त आधार स्थाई सुख का कारक कैसे होगा ??फिर ये तो अंत से एक कदम पहले का भाव हैयहाँ से प्राप्त आधार द्वादश मोक्ष को प्राप्त करने की सीढ़ी के रूप में देखा जाता है ,और जाहिर रूप से मोक्ष प्राप्ति के लिए चतुर्थ ,भौतिक सुख (एकादश से छठा ) शत्रु है पैसे से प्राप्त बड़े बड़े भौतिक सुखों को त्यागकर हमने कई लोग अंत में अध्यात्म की तलाश में भटकते देखे बड़े बड़े लोगों को वृद्धाश्रम में पाया .बड़ी बड़ी अभिनेत्रियों को फांसी खाते देखा कारण वही एकादश के पीछे की अंधी दौड़ ,,,, और इस दौड़ में वो नहीं दिखा जो सहज रूप से चतुर्थ में हासिल था ,चन्द्रमा का ठिकाना ,मानसिक सुख का आधार, ज्योतिष में हर ग्रह की १०८ गतियां हैं व हर भाव १०८ तरीके से प्रभाव देने के लिए माना जाता है हाँ अगर कई जातक पैसे को ही आधार मान कर प्रश्न कर रहे हैं तो सामूहिक रूप से जवाब देकर बताने का प्रयास करता हूँ। धन (पैसा )कमाने के आधार प्रत्येक कुंडली में अलग अलग होते हैं साधन अलग अलग होते हैं भाव भी अलग अलग होते है मात्र एक भाव को ही प्राप्ति के लिए देखा जाना सही निर्णय का आधार किसी भी गणक के लिए नहीं बन सकता धन यानि ध +न कुंडलियों मे सामान्यतः धन का आगमन वहीँ से होता है जहाँ वृश्चिक व धनु राशि होती है आठवें के रूप में वृश्चिक राशि से पैसा कमाने के साधनों पर रिस्क लिया जाता है ,,वो रिस्क शरीर का हो ,धन का हो ,ज्ञान का हो किसी भी चीज का हो सकता है रिस्क आयेगा तो स्वयं को साबित करने के लिए नवम भाग्य के रूप में धनु राशि को आपरेट करना ही होगा जब रिस्क लिया जाएगा तभी भाग्य को अपनी हैसियत दिखाने का मौका मिलेगा अब अगर हम आय (पैसा ) एकादश में ही सुख तलाश कर रहे हैं तो देखिये कि ये एकादश आठवें भाव का सुख (चतुर्थ ) भाव है। काल पुरुष के अनुसार आठवां यानि रिस्क का भाव ,आठवां यानि वृश्चिक राशि कर्म अर्थात दशम इस रिस्क का पराक्रम (तीसरा)तथा एकादश अर्थात इस आठवें का सुख (चतुर्थ) अतः ज्योतिषी व जातक दोनों को चाहिए कि पैसा खोज रहे हैं तो भाव से भ्रमित न होकर एकादश के त्रिकोण को खंगालें एकादश का त्रिकोण जाहिर रूप से इसे उत्पादन का सहयोग (पंचम का प्रभाव )देने के लिए तृतीय तथा इस तृतीय (पराक्रम )को उत्पादन (पंचम का प्रभाव) देने के लिए सप्तम को पकड़ें (सम्भवतः अब ईसे समझें कि सातवें दाम्पत्य भाव के लिए क्यों कहा जाता है कि जातक अपनी लक्ष्मी घर लाया है ) सीधी सी बात है कि सप्तम भाव एकादश का भाग्य भाव है। इस त्रिकोण की तलाश के बाद कालपुरुष का प्रभाव लिए वृश्चिक व धनु को खंगालने हेतु जो जातक व गणक ज्योतिष के महासागर में गोता लगाएगा ,वो शर्तिया खाली हाथ नहीं लौटेगा ईस के ईलावा धन प्राप्त करने के लिये जो नियम है उनके अनुसार वह ग्रह जो केन्द्र तथा त्रिकोण का स्वामी हो अथवा अन्य शुभ भावों का स्वामी हो तो वह धन पदवी आदि वांछित पदार्थों की उपलब्धि करवाता है। इसके अलावा जो भाव पापी है,और उनके स्वामी यदि केवल पाप प्रभाव में हों तो पापत्व के नाश के द्वारा धन की सृष्टि करते हैं। ग्रहों के द्वारा यह पता लग सकता है कि ग्रह की कीमत कितने रुपये की है,और एक ही लगन में अगर अलग अलग प्रकार के ग्रह हैं तो वे अलग अलग कीमत का बखान करेंगे,लेकिन उस ग्रह की कीमत तब और बढ जायेगी,जब वह साधारण बली से अति बली स्थिति में पहुंच जायेगा। किसी कुन्डली के धनेश की दशा में कोई भी बात कहने से पहले यह पता कर लेंगे कि कुन्डली का स्तर क्या है,यह बात शुभ धन दायक ग्रहों के योगों के द्वारा पता लगेगी। इन योगों की संख्या जितनी अधिक होती है उतना ही अधिक धन मिलता है। धन दायक योगों के लिये पहले शुक्र को देखना होगा,कि वह एक या एक से अधिक लगनों में बैठा है।लगन दूसरे भाव नवम भाव और एकादस भाव के बलवान स्वामियों की परस्पर युति अथवा द्रिष्टि द्वारा हो,नवम दसम के स्वामियों का सम्बन्ध,चौथे और पांचवें भाव के स्वामियों का सम्बन्ध शुभ सप्तमेश तथा नवमेश का संबन्ध पंचमेश और सप्तमेश का शुभ सम्बन्ध भी धन का कारक बनता है। तीन छ: आठ और बारह भावों के स्वामी अगर अपनी राशियों से बुरे भावों में बैठें और बुरे ही ग्रहों द्वारा देखे जावें तो भी धन की सृष्टि होती है। उदाहरण मेष राशि का बुध वृश्चिक राशि में अष्टम स्थान में है,और शनि के पाप प्रभाव में हो,तो बुध बहुत निर्बल हो जायेगा,कारण- वह अनिष्टदायक भाव में है, वह शत्रु राशि में स्थित है, वह शनि द्वारा द्रष्ट है, वह तृतीय स्थान से छठे स्थान में विराजमान है, वह छठे स्थान से तीसरा होकर बुरा है, तीनो लगनों के स्वामी आपस में युति कर लेते है तो भी धन दायक योग बन जाता है। शुक्र गुरु से बारहवें भाव में बैठ जावे तो भी धन दायक हो जाता है,चार या चार से अधिक भावों का अपने स्वामियों से द्र्ष्ट होने पर भी धनदायक योग बन जाता है। किसी ग्रह का तीनों लगनों से शुभ बन जाना भी धनदायक योग बना देता है,सूर्य या चन्द्र का नीच भंग हो जाना भी धनदायक बन जाता है। कोई उच्च का ग्रह शुभ स्थान में चला जाये,और जिस स्थान में वह उच्च का ग्रह गया उसका स्वामी भी उच्च में चला जाये तो भी धनदायक योग बन जाता है। शुभ भाव का स्वामी अगर बक्री हो जाये तो भी धनदायक योग बन जाता है,यदि यह सब कारण तीनों लगनों में आजाये तो शुभता कई गुनी बढ जाती है। आपका धन किस क्षेत्र से और कब आयेगा इस संसार में अपवादों को छोड़कर हर व्यक्ति धनवान होना चाहता है। धन व्यक्ति को सुख, आनंद, सुविधा और सामाजिक सुरक्षा देता है। आज दुनिया में धनवान लोगों की संख्या इतनी कम है कि उनकी सूची बनाई जा सकती है। इसकी तुलना में गरीब लोगों की संख्या अधिक है। कुछ लोगों की आय इतनी है कि वह समाज में सम्मान और आदर्श जिंदगी जीते हैं। लेकिन तीनों ही वर्ग को देखें तो पाएंगे कि सभी में समान रू प से धन पाने की चाह होती है। धन और आय के आधार पर लोगों को अलग-अलग श्रेणियों में बांटा जा सकता है अत्यधिक धनी, उच्च मध्यम वर्ग, मध्यम वर्ग, गरीब और बहुत गरीब। यह अंतर देखकर यह विचार आना स्वाभाविक है कि आखिर ऐसा क्यो प्रत्येक व्यक्ति अपना-अपना भाग्य लेकर जन्म लेता है। एक ही परिवार में जन्मे बच्चों की किस्मत भी अलग होती है। ऐसा जन्म के समय की ग्रह स्थितियों में भिन्नता के कारण होता है। जन्मकुंडली में कौन सी स्थितियां व्यक्ति को धनवान वनाती है व संसार में कुछ लोग अपने जीवन में जल्दी तरक्की कर जाते हैं जबकि कुछ लोगों को इसके लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है। कई बार इतना संघर्ष करने के बावजूद सफलता नहीं मिल पाती है। कुछ बहुत ही अमीर घर में पैदा होते हैं और कुछ लोग बहुत ही गरीब घर में। कुछ अमीर घर में पैदा होकर धीरे-धीरे गरीब हो जाते हैं और कुछ लोग गरीब घर में पैदा होकर धीरे-धीरे अमीर हो जाते हैं। कुछ लोग बहुत अच्छा पढ़ लिखकर बेरोजगार रहते हैं और कुछ लोग थोड़ा पढ़े लिखे होने पर भी अच्छे काम काज में लग जाते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि बच्चे के जन्म के बाद घर में बहुत तरक्की हुई और सब कुछ अच्छा हो गया जबकि कुछ लोग कहते हैं कि जब से बच्चा पैदा हुआ मां बाप बीमार रहते हैं और घर में परेशानी आ गई है। कुछ लोग कहते हैं कि शादी के बाद पत्नी के आने से तरक्की और उन्नति होती गई जबकि कुछ लोग कहते हैं कि शादी के बाद दिन प्रतिदिन काम खराब हो रहा है। इस संसार में अधि¬कतर लोग चढ़ते हुए सूर्य को नमस्कार करते हैं। अगर आप अच्छे पद पर हैं या आपको सब प्रकार की सुख सुविधा है तो आपके अनेक मित्र होंगे, अगर कुछ नहीं तो आपको कोई पूछने वाला नहीं होगा। ज्योतिष में नवम स्थान को भाग्य एवं धर्म स्थान माना जाता है। जन्मपत्री देखते समय सभी विषयों पर विस्तार पूर्वक विचार करना चाहिए। सबसे पहले अपनी जन्मपत्री किसी अच्छे ज्योतिषी को दिखा कर अपनी समस्या का समाधान करे आप हम से भी सम्पर्क कर सकते है 07597718725। 09414481324

शनिवार, 2 जून 2018

जन्म कुंडली मिलान

कुन्डली मिलान
हम सभी चाहते हैं कि वैवाहिक जीवन में सौहार्द एवं परस्पर सामंजस्य बना (Astrology for marriage compatibility) रहे। परंतु कई बार वैवाहिक जीवन में इस तरह गतिरोध उत्पन्न होने लगता है कि पति पत्नी के बीच दूरियां बढ़ती चली जाती हैं और सम्बन्ध विच्छेद तक हो जाता है।
इस तरह की स्थिति न आये और वैवाहिक जीवन सुखमय रहे इसके लिए हमारे समाज में कुण्डली मिलान (Marriage kundali matching) किया जाता है। ज्योतिषशास्त्री बताते हैं कि विवाह के संदर्भ में जब कुण्डली मिलान किया जाता है तब इसमें मुख्य रूप से अष्टकूट मिलान किया जाता है और इसी से निष्कर्ष निकाला जाता है कि जिन दो स्त्री-पुरूष की कुण्डली मिलायी जा रही है उनका वैवाहिक जीवन सफल रहेगा अथवा नहीं।
ज्योतिर्विद कहते हैं कि हमारे प्राचीन ऋषि मुनियों ने अपनी साधना एवं योग शक्ति के आधार पर जिन सूत्रों एवं सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया उन्हें अष्टकूट के नाम से जाना जाता है। अष्टकूटों में 36 गुणों का योग होता है। अष्टकूट (Asht Kuta) कौन-कौन से एवं कितने प्रकार के होते हैं तथा किस प्रकार वैवाहिक जीवन को प्रभावित करते हैं, आइये इसकी व्याख्या करते हैं।
1. वर्णकूट विचार: (Varna kuta Consideration)
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार राशियों के चार वर्ण होते हैं ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र। राशियों में वर्ण विभाजन क्रमश: इस प्रकार से किया गया है, कर्क, वृश्चिक एवं मीन राशियों को ब्राह्मण वर्ण की श्रेणी में रखा गया है। सिंह, धनु एवं मेष राशियों का वर्ण क्षत्रीय होता है, कन्या, मकर एवं वृष राशियों को वैश्य वर्ण का नाम दिया गया है जबकि तुला, कुम्भ एवं मिथुन राशियों को शूद्र वर्ण की संज्ञा दी गयी है।
विवाह के सम्बन्ध में जब कुण्डली मिलायी जाती है तब राशिगत तौर पर पुरूष का वर्ण स्त्री के वर्ण से पहले होने पर वैवाहिक जीवन में तारतम्य बने रहने का संकेत मिलता है अर्थात राशिगत तौर पर यह स्थिति होने पर विवाह संस्कार सम्पन्न किया जा सकता है। उपरोक्त स्थिति के विपरीत अगर कन्या की राशि पुरूष की राशि से पहले हो तो इसे शुभ नहीं माना जाता है अत: इस स्थिति में ज्योतिषशास्त्र विवाह की आज्ञा नहीं देता है।
अगर कन्या (Bride) की राशि (Zodic Sign) "वैश्य" है और पुरूष (Groom) की राशि (Zodic Sign) "ब्राह्मण" है तो इस स्थिति में स्त्री अपने पति पर हावी नहीं रहती है अर्थात अपने पति की बातों को मानती व समझती है। कुण्डली मिलान करते समय अगर कन्या उच्च राशि यानी क्षत्रीय हो और पुरूष की राशि शूद्र हो तो इस स्थिति में शादी होने पर स्त्री अपने पति पर प्रभावी होती है यानी घर में पति की नहीं, पत्नी की कही चलती है। ज्योतिषशास्त्रियों के अनुसार राशियों के इस अनुलोम विवाह में वैवाहिक जीवन सुखमय रहने की संभावना कम रहती है अर्थात पति पत्नी में सामंजस्य की कमी रहती है इस तरह की समस्या से बचने के लिए ही कुण्डली (Birth Chart) में अष्टकूट (Astkut) मिलान करते समय राशियों के वर्ण (Cast) का विचार किया जाता है।

लाल का किताब के अनुसार मंगल शनि

मंगल शनि मिल गया तो - राहू उच्च हो जाता है -              यह व्यक्ति डाक्टर, नेता, आर्मी अफसर, इंजीनियर, हथियार व औजार की मदद से काम करने वा...