शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2016

मित्रो दिपावाली दीयो के विना अघुरी है दियो वेचने वाले से तोलमोल मत करे ऐक गरीव थोङा पैसा ज्यादा भी ले तो कोई फर्क नही पङेगा दोस्तो दियो को पँच तत्व व गृहो से क्यामेल है आऐ देखते है दीया मिटृटी से वनता है यानी तत्व पृथ्वी ओर मिटृटी को शुक्र गृह से भी जोडा गया मिटृटी को मथा जाता है पानी के साथ तत्व पानी ओर गृह चन्द्र ओर मिटृटी को मथने वाला कुम्हार यानी शनी यहा मेहनत होगी वहा शनी का ही माना जा सकता है दीयो का अकार वुघ का माना जा सकता है दीयो को पकने के लिऐ आग की जरुरत होगी यानी मंगल ओर अग्नी तत्व आग को जलाने के लिऐ लकङी यानी शनीआग को जलने के लिऐ हवा यानी आक्सीजन की जरुरता होगी यानी वृहस्पती दीयो के अन्दर खाली स्थान यानी अकाश तत्व पकने के वाद दीयो का लाल होना यानी मंगल ओर कही से काला होना राहु ओर तेल सरसो का ङाले शनी देसी घी ङाले तो शुक्र ओर राहु जव दीयो को जलाते है तो प्रकाश यानी सुरज गृह वात्ती केतु गृह दीयो से उठने वाला घुँआ राहु दीये तले अन्घेरा राहु ओर शनी घर लक्ष्मी दीये जगाऐ तो यह वेटी जगाऐ तो वुघ घरवाली जगाऐ तो शुक्र मंगल कार्य मे मंगल ओर घर्म कार्य मे गुरु गृह अव आप देखे दीयो को पाँच तत्व ओर नो गृह का साथ है आचार्य राजेश

बुधवार, 26 अक्तूबर 2016

मित्रो आज वात करते है दीपावाली की अमावस की रात गहरा गहन अंघेरा हम दीये जलाते है ओर पुरी रोशनी करते है ओर सोचते है दीये जलाकर अंघेरा दुर हो गया है कोन सा अंघेरा अव अंघेरा भी दो तरह का है वाहर भी ओर भीतर भी वाहर तो रोशनी हो गई पर भीतर तो ओर गहरा अंघेरा है यह तो कभी सोचा ही नही भीतर का दीया कैसे जगेगा कोन सा तेल डालना होगा ओर तेल कहा मिलेगा वाहर के दीये तो तेल से जलते है ओर वाती भी चाहिये भीतर के दीवे के लिऐ ना तेल चाहिऐ ना वाती ईस लिऐ पलटु साहिव ने कहा उलटा कुँआ गगन मे दीया जले वीन वाती वीन तेल दीया सतत जल रहा है वस पर्दा हटाना होगा जव हमे हमारा दीया मिलेगा तव असल मे दिवाली होगी ओर हर क्षण ओर हर पल दीवाली आओ दीया जलाऐ जय माँता दी जय माँकाली आचार्य राजेश

सोमवार, 24 अक्तूबर 2016

मित्रो आपने दीपावाली की पुजा को लेकर शुभसमय पुछा है जो ईस तरह है2016, रविवार के दिनयह पर्व मनाया जायेगा। जिसका समय सायं 06:27 से लेकर रात्रि 08:09 का है इस मुहूर्त की अवधि 1 घंटे 42 मिनट की है। श्री लक्ष्मी-गणेश पूजन का ये मुहूर्त अत्यंत शुभ मुहूर्त है। जिसमे श्री लक्ष्मी-गणेश की पूजा करना बहुत लाभकारी सिद्ध होगा ऊपर बताया गया मुहूर्त प्रदोष काल मुहूर्त है। जिसमे प्रदोष काल सायं 05:33 से प्रारंभ होकर रात्रि 08:09 तक रहेगा। जबकि वृषभ काल सायं 6:27 से प्रारंभ होकर रात्रि 08:22 तक रहेगा।अमावस्या दिनांक 29 अक्टूबर, 2016 शनिवार रात्रि 10:40 से प्रारंभ होकर दिनांक 30 अक्टूबर, 2016 रविवार रात्रि 11:08 पर समाप्त होगीजबकि सिंह काल रात्रि 12 :57 से प्रारंभ होकर प्रातः 03:14 तक रहेगा दिवाली लक्ष्मी पूजन के लिए चौघड़िया के मुताबिक शुभ मुहूर्त प्रातः मुहूर्त (चार, लाभ, अमृत) – सुबह 07:58 से दोपहर 12:05 तक। दोपहर मुहूर्त (शुभ) – दोपहर 1:27 से दोपहर 02:49 तक। सायं मुहूर्त (शुभ, अमृत, चार) – सायं 05:33 से 10:27 तक।

दीपावालीकी सव को राम राम अरे आज तो दीपावाली नही है जी आने वाली 30 तारीख को दीपावाली की सवको राम राम मित्रो मन हुआ दियो के पर्व पर पर कुछ कहु हे माँ सवके जीवन रोशनी से भरदे हमे अंघेरे से उजयारे की ओर लेकर आओ माँ तुम ही शक्ती रुपा हो शक्ति ही जीवन है,और जब शक्ति नही है तो जीवन भी निरर्थक है। जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त विभिन्न प्रकार की शक्तियां मानव जीवन के साथ चलती है,शक्तियों के तालमेल से ही व्यक्ति आगे बढता है,नाम कमाता है,प्रसिद्धि प्राप्त करता है,जब शक्ति पर विश्वास नही होता है तो जीवन भी हवा के सहारे की तरह से चलता जाता है,और जरा भी विषम परिस्थिति पैदा होती है तो जीवन के लिये संकट पैदा हो जाते हैं। किस प्रकार की शक्तियों का होना जरूरी है हर व्यक्ति के लिये तीन प्रकार की शक्तियों को प्राप्त करना जरूरी होता है,पहली मानव शक्ति,दूसरी है भौतिक शक्ति,और तीसरी है देव शक्ति। मानव शक्ति भी दिखाई देती है,भौतिक शक्ति भी दिखाई देती है लेकिन देव शक्ति दिखाई नही देती है बल्कि अद्रश्य होकर अपना बल देती है। कौन देवता किस शक्ति का मालिक है? भगवान गणेशजी मानव शक्ति के प्रदाता है,माता लक्ष्मी भौतिक शक्ति की प्रदाता है और माता सरस्वती पराशक्ति यानी देव शक्ति की प्रदाता हैं,इन्ही तीन शक्तियों की पूजा का समय दीपावली के दिन प्राचीन काल से माना जाता रहा है। दीपावली का त्यौहार कार्तिक कृष्ण-पक्ष की अमावस्या को ही मनाया जाता है भारत मे तीन ऋतुओं का समय मुख्य माना जाता है,सर्दी गर्मी और बरसात,सर्दी की ऋतु कार्तिक अमावस्या से चैत्र की अमावस्या तक,गर्मी की ऋतु चैत्र अमावस्या से श्रावण अमावस्या तक,और बरसात की ऋतु श्रावण अमावस्या से कार्तिक अमावस्या तक मानी जाती है।बरसात के बाद सभी वनस्पतियां आकाश से पानी को प्राप्त करने के बाद अपने अपने फ़लों को दीवाली तक प्रदान करती है,इन वनस्पतियों के भण्डारण के समय की शुरुआत ही दीपावली के दिन से की जाती है,आयुर्वेद में दवाइयां और जीवन वर्धक वनस्पतियों को पूरी साल प्रयोग करने के लिये इसी दिन से भण्डारण करने का औचित्य ऋग्वेद के काल से किया जाता है। इसके अलावा उपरोक्त तीनो शक्तियों का समीकरण इसी दिन एकान्त वास मे बैठ कर किया जाता है,मनन और ध्यान करने की क्रिया को ही पूजा कहते है,एक समानबाहु त्रिभुज की कल्पना करने के बाद,साधन और मनुष्य शक्ति के देवता गणेशजी,धन तथा भौतिक सम्पत्ति की प्रदाता लक्ष्मीजी,और विद्या तथा पराशक्तियों की प्रदाता सरस्वतीजी की पूजा इसी दिन की जाती है तीनो कारणों का समीकरण बनाकर आगे के व्यवसाय और कार्य के लिये योजनाओं का रूप दिया जाता है,मानव शक्ति और धन तथा मानवशक्ति के अन्दर व्यवसायिक या कार्य करने की विद्या तथा कार्य करने के प्रति होने वाले धन के व्यय का रूप ही तीनों शक्तियों का समीकरण बिठाना कहा जाता है। जैसे साधन के रूप में फ़ैक्टरी का होना,धन के रूप में फ़ैक्टरी को चलाने की क्षमता का होना,और विद्या के रूप में उस फ़ैक्टरी की जानकारी और पैदा होने वाले सामान का ज्ञान होना जरूरी है साधन विद्या और लक्ष्मी तीनो का सामजस्य बिठाना ही दीपावली की पूजा कहा जाता है विभिन्न राशियों के विभिन्न गणेश,लक्ष्मी,और सरस्वती रूप संसार का कोई एक काम सभी के लिये उपयुक्त नही होता है,प्रकृति के अनुसार अलग अलग काम अलग अलग व्यक्ति के लिये लाभदायक होते है,कोई किसी काम को फ़टाफ़ट कर लेता है और कोई जीवन भर उसी काम को करने के बाद भी नही कर पाता है,इस बाधा के निवारण के लिये ज्योतिष के अनुसार अगर व्यक्ति अपने काम और विद्या के साथ अपने को साधन के रूप में समझना शुरु कर दे तो वह अपने मार्ग पर निर्बाध रूप से आगे बढता चला जायेगा,व्यक्ति को मंदिर के भोग,अस्पताल में रोग और ज्योतिष के योग को समझे बिना किसी प्रकार के कार्य को नही करना चाहिये।आम आदमी को लुभावने काम बहुत जल्दी आकर्षित करते है,और वह उन लुभावने कामों के प्रति अपने को लेकर चलता है,लेकिन उसकी प्रकृति के अनुसार अगर वह काम नही चल पाता है तो वह मनसा वाचा कर्मणा अपने को दुखी कर लेता है। आगे हम आपको साधन रूपी गणेशजी,धन रूपी लक्ष्मी जी और विद्या रूपी सरस्वतीजी का ज्ञान करवायेंगे,कि वह किस प्रकार से केवल आपकी ही प्रकृति के अनुसार आपके लिये काम करेगी,और किस प्रकार से विरोधी प्रकृति के द्वारा आप को नेस्तनाबूद करने का काम कर सकती है जय माता दी जय माँ काली माकाली ज्योतिष आचार्य राजेश 09414481324 07597718725

रविवार, 23 अक्तूबर 2016

शरीर एक नाव है एँव आत्मा एक यात्री यही सत्य है सभी कहते हैँ यदि यह सत्य भी है महान तो शरीर ही हुआ ना जीवन भर ढोता रहा जो इस यात्री का बोझ जो केवल मूक साथी था इस घाट से उस घाट की बीच की दूरी का इस आशा मेँ इस पर सवार किंचित यह नाव समय के धारे के विपरीत बह कर उसे मिला देगी उस परम से जिसका वो एक अँश है उसे क्या बोध कि इस नाव के साथ बँधी हैँ और बहुत सी नाँवेँ जो विवश करती है उसे सिर्फ बहाव के साथ बहने को और उन नावोँ पर सवार उस जैसे यात्री अनसुना कर देते है इस नाव के अंत्रनाद को जय माता दी

सोमवार, 17 अक्तूबर 2016

मित्रो मेरी पिछली पोस्ट वास्तु पर थी आप लोगो ने वहुँत पसन्द की मेरी कोशिश है ज्यादा से ज्यादा आप को श्ज्ञान मिले ताकि कुछ अंघविश्वास जो हमारे समाज मे फैले है उससे दुर हो सके मित्रो मेरी आने वाली कुछ पोस्ट वास्तु पर ही होगी दक्षिण मुखी मकान को लेकर ना जाने कितनी गलत फहमी है की यह शुभ है या कितना वुरा है वास्तु जीवन को प्रभावित करता है यह कई प्रकार से देखने मे भी आता है और समझने मे भी आता है.लेकिन हर दिशा हर व्यक्ति के लिये अशुभ हो यह समझ मे नही आता है.अक्सर लोगो को कहते सुना है कि दक्षिण मुखी मकान अशुभ होता है और उसी जगह पर पूर्व फ़ेसिंग और उत्तर फ़ेसिंग मकान की कीमत अच्छी मिल जाती है लेकिन दक्षिण मुखी मकान का पूरा मूल्य नही मिल पाता है.आखिर ऐसा क्या है जो दक्षिण मुखी मकान से लोग घबरा जाते है यहा तक कुछ सुत्र को समझने के वाद दक्षिण मुखी मकान में दोपहर का सूर्य अपनी रश्मियों को प्रसारित करता है इन रश्मियों को वही सहन कर सकता है जो दिमाग शरीर और भौतिकता मे बलवान होता है.कारण जो गर्मी और ऊष्मा सूर्य से प्रसारित होती है वह साधारण लोग हजम नही कर पाते है.जिनका मंगल शुभ हो वो दक्षिण मुखी मकान मे रह सकते है पुलिस सेना तकनीके क्षेत्र के लोग डाक्टर दवाई बनाने वाले होटल और आग वाला काम करने वाले मिठाई बनाने वाले दक्षिण मुखी मकान मे सफ़ल हो जाते है और उनकी बराबरी का कार्य अलावा दिशाओ वाले नही कर पाते है. तकनीकी दिमाग का होना और गर्म दिमाग का होना इसी दिशा मे रहने वाले लोगों के पास होता है,अधिकतर देह बल का प्रयोग करने वाले और शरीर को धन औकात और नाम के लिये प्रयोग करने वाले लोग इसी दिशा को पसन्द करते है. जो लोग विपरीत कार्यों से जुडे होते है वे उपरोक्त कारणो के कारण परेशान होते है,पूजा घर भी दक्षिण फ़ेस वाले सही माने गये है अगर उन घरो में हवन अखण्ड ज्योति को जलाकर रखा गया है. अगर दक्षिण मुखी मकान का दरवाजा लाल रंग का है तो व्यक्ति आराम से रह सकता है. लाल रंग के स्वास्तिक भी इस दिशा के दरवाजे वाले मकानो के लिये शुभ होते है. मिर्च मसाले के व्यवसाय वाले इस दिशा के दरवाजों के मकान मे रहने के बाद अक्सर पनपते देखे गये है. कर्जा देने वाले बैंकिंग का काम करने वाले और ब्याज तथा किराये से रहने वाले लोग इस दिशा के मकानो से हमेशा दुखी देखे गये है उनके धन को या सम्मान को शरीर को किसी न किसी प्रकार से आघात ही लगते देखे गये है. अगर दक्षिण मुखी मकान के आगे टी क्रास भी है तो अक्सर मकान मालिक और किरायेदार के बीच मे लम्बी लडाई भी होती देखी गयी है,अक्सर मकान मालिक बाहर भटकता है और किरायेदार ऐश करता है. हर किसी के लिऐ दक्षिण दिशा वुरी नही हो सकती मित्रो अगर आप अपनी कुंङली दिखाना या कोई समस्या का उपाय चाहते है तो सम्पर्क करे आचार्य राजेश 09414481324 07597718725 paid service

जीवन मन्त्र ...............अपनी आवश्यकता को कंट्रोल में रखिये, फिजूल खर्ची और दिखावे से बचिए अपने जीवन को सिर्फ पैसों की दौड़ में ही व्यर्थ ना कीजिये, पैसे के अलावा भी बहुत कुछ.......बहुत कुछ है जीवन में जीने का पूरा-पूरा लुत्फ़ भी उठाईये. तभी हमारा जीवन सार्थक होगा जब हम हवन द्वारा पूजा करते हैं तो हवन सामग्री थोड़ी-थोड़ी देर में हवन कुंड में डालते है. यदि उस हवन कुंड में सामाग्री बहुत देर से डालें तो अग्नि ही ख़त्म हो जायेगी लेकिन यदि सारी सामाग्री हमनें इसलिए बचाए रखा कि आख़िर में सामग्री काम आएगी तो उसे अंत में डालने पर इतना धुवां फैलेगा कि आँखें जलने लगेगी और गर्मी से वहाँ बैठना ही मुश्किल हो जायेगा. पर ऐसा ही हम करते हैं. यही हमारी फितरत है. या तो हम इतनी कंजूसी से जीते हैं कि जीने का रस ही नहीं ले पाते. और या हम अंत के लिए बहुत कुछ बचाए रखते हैं. हम समझ ही नहीं पाते कि हर पूजा खत्म होनी होती है. हम ज़िंदगी जीने की तैयारी में ढेरों चीजें जुटाते रहते हैं, पर उनका इस्तेमाल नहीं कर पाते. हम कपड़े खरीद कर रखते हैं कि फलां दिन पहनेंगे, फलां दिन कभी नहीं आता. हम पैसों का संग्रह करते रहते हैं ताकि एक दिन हमारे काम आएगा, वो एक दिन नहीं आता और फिर एक दिन अचानक ही ऊपर से बुलावा आ जाता है. ज़िंदगी की पूजा खत्म हो जाती है और हवन सामग्री बची ही रह जाती है. हम बचाने में इतने खो जाते हैं कि हम समझ ही नहीं पाते कि जब सब कुछ होना हवन कुंड के हवाले है, उसे बचा कर क्या करना? बाद में तो वो सिर्फ धुंआ ही देगा अगर ज़िंदगी की हवन सामग्री का इस्तेमाल हम पूजा के समय सही अनुपातम में करते चले जाएं, तो न धुंआ होगी, न गर्मी न आंखें जलेंगी ध्यान रहे, संसार हवन कुंड है और जीवन पूजा. एक दिन सब कुछ हवन कुंड में समाहित होना है. अच्छी पूजा वही होती है, जिसमें हवन सामग्री का सही अनुपात में इस्तेमाल हो जाता है. अच्छी ज़िंदगी वही होती है, जिसमें हमें संग्रह करने के लिए मेहनत न करनी पड़े. हमारी मेहनत तो बस ज़िंदगी को जीने भर जुटाने की होनी चाहिए और थोड़ा इमरजेंसी जितना बचाकर रखना चाहिए और कुछ अपनी अगली पीढी के लिए.

शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2016

मित्रो आप मे से वहुँत से मित्र मुझसे वास्तु के वारे मे सवाल पुछ रहे थे ईसके वारे मुझे जानकारी तो थी पर समझ मे नही आ रहा था की कहा से शुरु करु सो छोटी सी कोशिश की है लेख थोङा लम्वा जरुर है पर आपको जानकारी जरुर मिलेगी वास्तु क्या है वास्तु विज्ञान को समझने के लिये निम्न सिद्धान्तों को ध्यान में रखना पृथ्वी की गति पृथ्वी के घूर्णन और अन्य ग्रहों के चुम्बकीय प्रभाव सूर्य से प्रदत्त ऊर्जा सूर्य से मिलने वाली विभिन्न रंगों की ऊर्जा ऊर्जा को प्रभावी-अप्रभावी बनाने वाले नियम अलग अलग स्थानों की ऊर्जा और मानवीय स्वभाव ऋतुओं के अनुसार अलग अलग ऊर्जा के प्रकार स्थल पठार पहाड जलीय वन भूमि से प्राप्त अलग अलग ऊर्जा के प्रकार अलग अलग ऊर्जा से शरीर का अलग अलग विकास और सभ्यता की नई और पुरानी विकास की गति मस्तिष्क को मिलने वाली नई और पुरानी ऊर्जा के अनुसार किये जाने वाले निर्माण और विध्वंशकारी कार्य तथा सृजन क्षमता का विकास या विदीर्ण दिमाग की गति. भूगोल में आप लोगों ने पढा होगा कि पृथ्वी अपनी धुरी पर साढे तेइस अंश झुकी हुयी है,अगर यह झुकाव नही होता तो सभी दिन रात आचार विचार व्यवहार मानव जीव जन्तु सभी एक जैसे होते। दिन रात का माप बराबर का होगा,उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव पर छ: छ: महिने के दिन और रात नही होते। भूमध्य रेखा पर बारह महीने लगातार पानी नही बरसता और भयंकर गर्मी नहीं पडती आदि कारण मिलते। लेकिन हवाओं का प्रवाह नही होता,ऋतुओं का परिवर्तन नही होता,पानी की गति नही होती नदियां बहती नही पहाड बनते नहीं यह सब भी पृथ्वी की गति और उसके झुके होने का फ़ल है। उत्तरी ध्रुव का फ़ैल कर घूमना और दक्षिणी ध्रुव का एक ही स्थान पर सिमट कर घूमना,यह दोनो बातें धरती के लिये एक भराव और जमाव वाली बातों के लिये मानी जा सकती है,जिस तरह से एक पंखा अपनी हवा को उल्टी तरफ़ से खींच कर सीधी तरफ़ यानी सामने फ़ेंकता है उसी तरह से धरती उत्तरी ध्रुव से अन्य ग्रहों की चुम्बकीय शक्ति को इकट्ठा करने के बाद धरती के अन्य भागों को प्रेषित करता है। अक्सर आपने देखा होगा कि उत्तरी ध्रुव के पास रहने वाले लोग अपने आप में विलक्षण बुद्धि के मालिक होते है उनके शरीर सुडौल और दिमागी ताकत अधिक होती है। पूर्वी भागों में रहने वाले लोग शरीर से कमजोर ठिगने और बुद्धि से चालाक होते है,पानी के अन्दर रहने या उष्ण जलवायु के कारण उनका शरीर काले रंग का होता है। इसके विपरीत दक्षिणी ध्रुव की तरफ़ रहने वाले लोग अत्याचारी और अपनी बुद्धि को मारकाट की तरफ़ ले जाने वाले हिंसक प्रवृत्ति वाले होते है।यह सकारात्मक और नकारात्मक गति का प्रभाव माना जाता है। नदियों का पानी अधिकतर पश्चिम से पूर्व की तरफ़ उत्तरी ध्रुव की तरफ़ तथा कर्क रेखा के आसपास के क्षेत्रों में बहता हुआ पाया जाता है,लेकिन जैसे जैसे मकर रेखा के पास पहुंचते जाते है पानी की गति पश्चिम की तरफ़ जाती हुयी मिलती है। समुद्र के पानी की गति भी अक्सर देखने को मिलती है कि जैसे जैसे सूर्य कर्क रेखा की तरफ़ चलता जाता है,समुद्र का पानी दक्षिणी ध्रुव की तरफ़ सिमटता जाता है और जैसे ही सूर्य मकर रेखा की तरफ़ बढता जाता है समुद्र का पानी उत्तरी ध्रुव की तरफ़ बढना शुरु हो जाता है। सपाट मैदानी भागों में हवा का रुख काफ़ी तेज होता है और पहाडी भागों में तथा हिमालय के तराई वाले भागों में हवा का बहाव कम ही मिलता है। तूफ़ान पहाडी चोटियों और समुद्री किनारों की तरफ़ अधिक चलते है,पृथ्वी का पानी उत्तरी ध्रुव की तरफ़ अधिक जमता हुआ चला जाता है,और सूर्य के कर्क रेखा की तरफ़ आने पर वह पिघल कर नदियों के रास्ते दक्षिण की तरफ़ के समुद्रों को भरने लगता है। जैसे ही सूर्य मकर रेखा की तरफ़ आता है समुद्रों का पानी वाष्पीकरण द्वारा हवा में नमी के रूप में आता है बादलों की शक्ल में बदलता है और उत्तरी भागों की तरफ़ बढता चला जाता है,हिमालय पहाड की चोटियों से टकराकर कुछ बादल तो भारत में बरस जाते है और जो बाहर उत्तर की तरफ़ निकल जाते है वे बर्फ़ के रूप में जम कर उत्तरी ध्रुव में पानी को जमाकर बर्फ़ में बढोत्तरी करते हैं। यह गति धरती की असमान्य गति है,जब भी कोई भूमण्डलीय बदलाव की स्थिति होती है अथवा मानवीय कारणों से कोई विकृति धरती के अन्दर पैदा की जाती है तो अचानक भूकम्प टीसुनामी आदि से धरती के ही वासियों को प्रकोप को भुगतना पडता है। सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा सकारात्मक ऊर्जा के लिये पहले क्षितिज पर उदय होते सूर्य को देखना चाहिये,घर का दरवाजा अगर उदय होने वाले सूर्य के सामने आता है तो सूर्य से निकलने वाली रश्मियां सीधे रूप से घर के अन्दर प्रवेश करती है। लेकिन अस्त होने के समय सूर्य की विघटित ऊर्जा घर के अन्दर प्रवेश करती है अगर घर का द्वार नैऋत्य में होता है। सुबह का मौसम नमी युक्त होता है और जो भी ऊर्जा आती है वह द्रव अवस्था मे होती है लेकिन शाम के समय की ऊर्जा सूखी और निरीह होती है,इसी कारन से पूर्व मुखी द्वार वालो को अक्सर पूजा पाठ और ध्यान समाधि के साथ उत्तरोत्तर आगे बढता हुआ देखा जाता है तथा पश्चिम मुखी दरवाजे वालों के यहां भौतिक साधन तो खूब होंगे लेकिन मन की शांति नही होगी,वे तामसी खाने पीने की आदत में जरूर चले गये होंगे,अगर वे किसी प्रकार से तामसी खाने पीने के साधनो में नही गये होंगे तो उनके घरों में सबसे अधिक खर्चा दवाइयों में ही होता होगा। रिस्तेदारी और प्रेम वाले मामलो में ईशान मुखी दरवाजे वाले व्यक्ति अधिक भरोसे वाले होते है,और नैऋत्य मुखी दरवाजे वाले लोग कभी भी किसी प्रकार की भी रिस्तेदारी तोड सकते है। भूमि का चयन जब मकान बनाना होता है तो सबसे पहले भूमि की जरूरत पडती है,भूमि को लेने के पहले उसके चारों ओर की बसावट पर्यावरण दोष आदि की परीक्षा,शमशान के पास वाली जमीन,गंदा नाला या नदी अथवा गंदा भरा हुआ पानी,वर्कशाप के पास वाली जमीन,जमीन पर किसी प्रकार का चलने वाला कोर्ट केश आदि, बिजली की लाइनों के नीचे वाली जमीन,झोपड-पट्टी वाली जमीन,जो जमीन डूब क्षेत्र में हो,बीहड या जंगल वाली जमीन,जिस जमीन पर कोई अपराध वाली घटनायें गोली कांड या दुर्घटना आदि हुयी हो,भूखण्ड का आकार चित्र विचित्र हो, दलदली भूमि,पानी वाले स्थान को मिट्टी भर कर पाट कर बनायी गयी जमीन,आदि दोष वाली जमीन लेने से बचना चाहिये। जमीन लेने के पहले देखलें कि जमीन पर निर्माण करने के बाद तथा बाद में निर्माण होने के बाद प्राकृतिक रूप से मिलने वाले प्रकाश में कमी तो नही हो जायेगी। रहने वाली जमीन के आसपास कोई आगे चल कर व्यवसायिक रूप तो नही रख लेगा,आने जाने के मार्ग को कोई अतिक्रमित तो नही कर लेगा,जिस बस्ती या मुहल्ले में जमीन क्रय की जा रही है वह नाम राशि के अनुकूल है कि नही,इस प्रकार से खरीदी गयी जमीन हमेशा सुखदायी होती है।

बुधवार, 12 अक्तूबर 2016

मित्रो अस्त गृहो लेकर वहुँत सी गलतफहमीया है ज्‍योतिष में सौरमण्‍डल के अन्‍य ग्रहों के साथ सूर्य को भी एक ग्रह मान लिया गया है, लेकिन वास्‍तव में सूर्य ग्रह न होकर एक तारा है। ग्रह जहां सूर्य की रोशनी से चमकते हैं वहीं सूर्य खुद की रोशनी से दमकता है। पृथ्‍वी से परीक्षण के दौरान हम देखते हैं कि कई बार ग्रह सूर्य के बहुत करीब आ जाते हैं। किसी भी ग्रह के सूर्य के करीब आने पर ज्‍योतिष में उसे अस्‍त मान लिया जाता है। आमतौर पर दस डिग्री से घेरे में सभी ग्रह अस्‍त रहते हैं। सिद्धांत ज्‍योतिष के अस्‍त के कथन को भी फलित ज्‍योतिष में गलत तरीके से लिया जाने लगा है। अस्‍त ग्रह के लिए यह मान लिया जाता है कि अमुक ग्रह ने अपना प्रभाव खो दिया, लेकिन वास्‍तव में ऐसा नहीं होता। ग्रह खुद की किरणें भेजने के बजाय नक्षत्रों से मिली किरणें जातकों तक भेजते हैं। बुध और शुक्र सूर्य के सबसे करीबी ग्रह हैं। छोटे कक्ष में लगातार चक्‍कर लगा रहे ये ग्रह सर्वाधिक अस्‍त होते हैं। अन्‍य ग्रह भी समय समय पर अस्‍त और उदय होते रहते हैं। फलित ज्‍योतिष के अनुसार इन ग्रहों के अस्‍त होने का वास्‍तविक अर्थ यह है कि नक्षत्रों (तारों के समूह) से मिल रहे किरणों के प्रभाव को अब ग्रह सीधा भेजने के बजाय सूर्य के प्रभाव के साथ मिलाकर भेज रहे हैं। ऐसे में ग्रह का प्रभाव यथावत तो रहेगा ही उसमें सूर्य का प्रभाव भी आ मिलेगा। इसी वजह से तो बुधादित्‍य के योग को हमेशा बेहतरीन माना गया है। लेकिन यह योग 4 5 9 भाव मे अपना प्रभाव ही माना जा सकता है

सोमवार, 10 अक्तूबर 2016

मित्रों ज्योतिष एक विज्ञान है परन्तु इस विज्ञान का इस्तेमाल एक विज्ञानिक ही कर सकता है जिसने इस ज्योतिष विज्ञान पर कुछ शोध किया हो इसके सिद्धान्तो के बारे मे स्वयं अनुभव किया हो कहने का तात्पर्य सिर्फ़ इतना है कि पुस्तकीय सिद्धान्त जब प्रयोगिक तौर पर अनुभव मे आते है तभी सिद्धन्तो के मूल की जानकारी होती है ! ज्योतिष के बारे में लोगो में अलग अलग धारणाये है जैसे लोग इसे ज्ञान, शास्र, विद्या, हुनर या एक कला के रूप में जानते है होता ये है की अधिकांशतः ज्योतिषी सिर्फ़ साधारण तौर पर कुछ पुस्तकीय ज्ञान के आधार पर ही फ़लदेश करते है और फ़लदेश गलत साबित हो जाता है कारण सिर्फ़ इतना है कि यदि थोडा सा गहन अध्यन किया गया होता तो फ़लादेश गलत साबित नही होता एक जातक एक ज्योतिषी से सलाह लेता है ज्योतिषी सिर्फ़ दशम भाव मे स्थित एक कारक ग्रह देखता है जिसकी दशा प्रारम्भ होने वाली थी ! ज्योतिषी ने फ़लादेश किया कि आने वाले छः माह के दौरान नौकरी मे पदोन्नति, व्यापार मे तरक्की या लाभ प्राप्त होगा ! समय बीतता गया जातक के जीवन मे कोई शुभ बदलाव होने के बजाय, उसे हानि हुई ! एक फ़लादेश गलत साबित होता है कुछ ज्योतिष को दोष देते है कुछ ज्योतिषी को ! आखिर दोषी है कौन ज्योतिष या ज्योतिषी ! वास्तव मे अगर गहन मन्थन किया जाये तो ना ज्योतिष दोषी है ना ही ज्योतिषी ! हां ज्योतिषी का इतना कसूर है कि उसने सिर्फ़ किताबी ज्ञान का इस्तेमाल किया जब कि पुस्तकीय सिद्धन्तों की गहराई समझने की आवश्यकता है उन्हे अनुभव मे लाने से पूर्व प्रयोगात्मक रूप से ग्रह, राशि एवम नक्षत्र का वास्तविक एवम तत्कालिक स्वभाव एवम गुण का अध्यन करना चाहिये था इसी तरह अन्य मामलों में ज्योतिषी भविष्यवाणी करते हैं कि समय बुरा चल रह है दुर्घटना हो सकती है आप अस्पताल में भर्ती हो सकते है ! शादी हो सकती है ! तलाक होगी ! अपनी नौकरी खो सकते हैं ! लेकिन यह कभी नहीं हुआ, भविष्यवाणी गलत हो गयी इन सभी मामलों में ज्योतिषी सहित सब हैरान रह गये परन्तु ज्योतिषी अभी भी सफ़ाई देते है कि विपरीत राज योग के कारण ऐसा हुआ आदि आदि यदि ज्योतिषी ग्रह राशियों एवम नक्षत्रों के गुण स्वभाव का गहन अध्यन करने के साथ साथ वैदिक ज्योतिष के सिधन्तो का अध्यन करें तो सत प्रतिशत शुद्ध फ़लादेश या भविष्यवाणी की जा सकती है हमारी ज्योतिषी पुस्तकों मेभी किसी ग्रह को लेकर या योग को लेकर अलग अलग मत है सो यह सव अनुभव से ही आता है दुसरा यह फला ग्रह यहा वैठा है तो यह फल वहा वैठा तो यह फल या फला राशी वाले लाल रंग के कपङे पहने या कन्या राशी वालो का आज का दिन खराव है मित्रो मे राशीयो को नकार नही रहा सिरफ ईतना कहना चाहता हु ज्योतिष वहुँत वङी देन है जो हमे हमारे श्रृषीयो मुनीयो ने हमे दी ईसे हमे ओर उपर लेकर जाऐ यह राशीयो के हाल पङकर ईसे वौना मत वनाऐ मित्रो राम ओर रावण की राशीया ऐक थी कृश्न ओर कंस की भी ऐक ने मारा ओर ऐक मरा यह घटना ऐक साथ घटी माया वती ओर मुलायम सिंहा ऐक के गले मे हार दुसरा वैसे ही हारा मे यह मेरे अपने विचार है मेरा किसे से कोई वैर नही ना ही विरोघ आचार्य राजेश

शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2016

मिट्टी दीया मुरता नू मिट्टी दा खुमार है मिट्टी दीया टेरीया ते वैठा सांसार है मिट्टी दा व्यपार सारा ते मिट्टी कारोवार है हर वंदे दी इको पिछे वस ऐनी तकरार है काला गोरा जात पात सव मिट्टी दा अंहकार है मिट्टी जो मिट गई उस मिट्टी नु सलाम है जिते जी जो ना मिटी वो मिट्टी ही वेकार है

मंगल को लेकर कई तरह की वाते व अंघविश्वास फेले है या फैलाऐ है अव कुछ मित्र पुछते 28 साल के वाद क्या मंगल दोष मंगल का बुरा प्रभाव समाप्त हो जाता है ? बहुत जिसका उत्तर बड़े धैर्य से समझने की जरुरत है ग्रहों की भी अपनी एक उम्र है और इसका तालमेल एक सुलझा हुआज्योतिष ही बैठा सकता है , नहीं तो बातें गड्ड-मड्ड हो जाती है। हर ग्रह की परिपक्व होने की एक उम्र होती है उस निश्चित समय के बाद वो अपना बुरा प्रभाव कुछ हद्द तक कम कर देता है यानि उग्रता कम हो जाती है। जैसे--- बृहस्पति 15से 20की उम्र को अपने दखल में लेता है , यही वक्त है जब शिक्षा ग्रहण का महत्वपूर्ण समय होता है। { यहाँ ये तर्क कि शिक्षा ग्रहण की कोई उम्र नहीं होती बेमानी है } आप समझिए इस तथ्य को कि शिक्षा का यही समय महत्वपूर्ण होता है। बाकी ज्यादा उम्र में सभी नहीं पढ़ते कोई कोई जिसकी ग्रह दशा इजाजत देती है वही बुढ़ापे में पढाई करते हैं। सूर्य का समय 22 साल की उम्र का। चन्द्रमा का समय है 24साल का वक्फा यानि ये peak टाइम कहलाता है। शुक्र का समय 25 से 27. मंगल का समय 28 से 31peak समय 28. का कहलाता है। बुध का समय 31 से 34peak समय 32 शनि 36 से 39peak समय 36 राहु 42 से 47peak समय 42का केतु का परिपक्व होने का समय 48 से 54peak 48का यानि यहाँ ग्रहो की जो उम्र लिखी हुई है उस उम्र के बाद ग्रह अपनी उग्रता खोता है अपने बुरे फल को देने में कमी आ जाती है। अब यहाँ इस तथ्य को ध्यान दे कि जिस ग्रह की जो उम्र यहाँ दी हुई है उसी दौरान विंशोत्तरी महादशा के के अनुसार उसी ग्रह की दशा-अन्तर्दशा आ जाए तो ग्रहो का अच्छा बुरा फल दोनों तीब्रता से मिलता है। अब लौटे मंगल की तरफ , जै एक ख़ास उम्र के बाद ग्रह परिपक्व होते हैं , यानि एक इंसान जब 40 की उम्र के बाद परिपक्व होता है तो बच्चो जैसी गलतियाँ नहीं करता , इसी तरह एक ख़ास उम्र के बाद ग्रह भी समझदार होते हैं , अब इसे जरा दूसरे तरीके से देखे कि एक बीस साल का लड़का जितना उग्र होगा तीस साल वाला उतना उग्र नहीं हो सकता और मंगल उग्रता का ही मुख्य ग्रह है , इसलिए जिनकी कुण्डली में मांगलिक दोष का सचमुच प्रभाव है वो 28 साल की उम्र के बाद विवाह करे तो मंगल का बुरा फल उनको कुछ कम मिलता है , इसे यूँ समझे कि चौबीस साल की उम्र का लड़का अगर मार कर सर फोड़ देगा तो -तीस साल वाला मारने को उठेगा मगर गालियाँ देकर ही शांत हो जाएगा , हाँ यहाँ एक बात है -मंगल के बुरे प्रभाव की वजह से शारीरिक हिंसा में ही कमी आएगी -अगर मंगल सचमुच बुरा फल देने वाला है तो - गालीगलौज और झगड़ा होता रहेगा सिर्फ शारीरिक हिंसा में कमी आएगी - अब कुंडली का गुरु अच्छा है तो और कमी आएगी -शनि मजबूत है तो झगड़ा होगा। मंगल का 28 के बाद मूल रूप से हिंसक होना कम हो जाता है मंगल की तासीर को समझे मंगल जोश का कारक है उतेजना का कारक है जव आदमी मेच्योर होता होता जाता है तो जोश के साथ होश भी आता है खुन की गर्मी नरम होने लगती है मित्रो मेरी यही कोशिश रहती है कि आप को ज्यादा से ज्यादा ज्ञान मिले ताकि आप अन्घविश्वास से रहित जीवन जीये आचार्य राजेश 09414481324 07597718725

लाल का किताब के अनुसार मंगल शनि

मंगल शनि मिल गया तो - राहू उच्च हो जाता है -              यह व्यक्ति डाक्टर, नेता, आर्मी अफसर, इंजीनियर, हथियार व औजार की मदद से काम करने वा...