सोमवार, 28 नवंबर 2016

सच्चा सुलेमिनी पत्थर भी नजर पुराने जमाने मे राजा महाराजा अपने अपने अनुसार सुलेमान की चीजो का प्रयोग करना जानते थे,सुलेमान के पत्थर सुलेमान की खासियत है,कारण सुलेमान की जमीन ही पुराने जमाने के पीर फ़कीरो की साधना जमीन रही है,बडे बडे जिन्नात वाले साधन सुलेमान से ही प्राप्त होते है। सुलेमानी तलवार के बारे मे खूब किस्से कहानी मिलते है,वह तलवार किसी भी शैतानी ताकत को काटने की हिम्मत रखती थी। खैर अब तीर तलवार का जमाना चला गया है लेकिन सुलेमान का तरासा हुआ पत्थर जो खास किस्म का होता है,आज भी नजर दोष पति पत्नी की अनबन दुकान घर मे लगी नजर आदि के काम आता है। जो लोग शमशानी स्थानो के आसपास रहते है या जो महिलाये अधिकतर पर्दे मे रहती है,या जो लोग किसी न किसी कारण से मशहूर हो गये होते है,उन लोगो के लिये शैतानी आंख अनदेखे हथियार की तरह से मारने के काम आती है,महिलाओ मे सिरदर्द की बीमारी हो जाना,उल्टी आदि होने लगना,अनाप सनाप बकने लगना,किसी को कुछ भी कहने लग जाना,अगर बच्चे को दूध पिलाने वाली महिलाये है तो उनके दूध का अचानक सूखने लग जाना,भूख नही लगना,हमेशा बुरे बुरे ख्याल आते रहना,कामुकता का अधिक पैदा हो जाना,जननांग को खुजलाने की आदत लग जाना,योनि का हमेशा गीला रहना,बाथरूम मे अधिक समय का लगना,बाल खुल्ले रखने की आदत बन जाना,किसी न किसी अंग का लगातार फ़डकते रहना,अचानक रोने का मन करना,कभी अचानक बिना बात के ही हंसी आजाना,किसी के गिरने पडने पर मजा आना,ऊंचे स्थान पर जाने के बाद नीचे कूद जाने का मन करना,खतरे से खेलने के लिये मन मे उतावलापन होना,अपने ही रखवालो को अपने से दूर करने के लिये कठोर बात करने लग जाना,लडने झगडने की आदत बन जाना,भोजन मे अधिक खटाई का प्रयोग करने लग जाना,छाछ आदि की पीने की इच्छा रखना,घर की महिलाओ से अकारण ही बैर भाव पाल लेना,अपनी सन्तान का ख्याल नही रखना,दूसरो की बातो मे समय को निकालना,नाखून चबाते रहना आदि बाते देखने को मिलती है। इसी प्रकार से दुकानदारी के चलते चलते अचानक बन्द हो जाना,ग्राहक का आना लेकिन कुछ समय बाद उसका मन बदल जाना और बिना कुछ खरीदे वापस चले जाना,खुद की दुकान से सस्ता सामान नही खरीदना अगल बगल वाली दुकान से महंगा सामान खरीद कर ले जाना,दुकान के सामने किसी न किसी प्रकार से गंदगी का होना,कुत्तो का अधिक आना जाना लग जाना,दुकान या व्यवसाय स्थान के गेट पर कुत्तो का पेशाब करने लग जाना,वाहन पर कुत्तों का पेशाब करने लग जाना,घर के अन्दर काली बिल्ली का रात को आना,छत पर बिल्लिया आपस में लडने लग जाना,अचानक बुखार का आना और अचानक ही उतर भी जाना,किसी अच्छे काम को शुरु करते ही किसी न किसी प्रकार की बाधा का आजाना कुछ नही तो टेलीफ़ोन का ही बजने लग जाना और जब तक उसे उठाओ बन्द हो जाना,गलत नम्बर का बार बार आना,किसी महत्वपूर्ण बात को करने के समय किसी बेकार के व्यक्ति का आजाना और बात का पूरा नही हो पाना,किसी बडे सौदे के समय मे या तो अधिकारी का नही आना या खुद के परिवार की कोई दिक्कत का पैदा हो जाना,सोने वाले बिस्तर पर लाल या काली चींटियों का घूमने लग जाना,ओढने बिछाने वाले कपडो मे अजीब सी बदबू का आना शुरु हो जाना,त्वचा मे बिना किसी कारण के खुजलाहट होने लगना आदि बाते देखने को मिलती है तो सुलेमानी पत्थर को पहिनने से इनमे आराम मिलने लगता है। अक्सर यह भी देखा जाता है कि इस पत्थर को पहिन कर अगर कोई शमशान कब्रिस्तान या मौत वाले स्थान पर जाता है तो यह पत्थर अपनी शक्तियों से विहीन हो जाता है और बेकार हो जाता है,कारण ऐसे स्थानो पर शैतानी आत्मायें अधिक होती है और इस पत्थर मे उतनी ही ताकत होती है जितनी व्यक्ति के द्वारा इसे शक्तिवान किया जाता है। इस पत्थर के पहिनने से रात को खराब स्वप्न भी नही आते है आराम की नींद आती है भूख भी लगने लगती है। इसे काले रंग के धागे मे पहिना जाता है और बहुत ही संभाल कर रखा जाता है,कारण जब बुरी आत्माओं को परेशान करना होता है तो वे इस पत्थर को दूर करने के लिये दिमाग पैदा करने लगती है.

रविवार, 27 नवंबर 2016

क्या नजर दोष होता है अगर है तो क्या है उपाय शैतान की आंख का प्रयोग अक्सर एक ऐसी बीमारी के लिये किया जाता है जिसके अन्दर किसी भी दवा उपाय डाक्टर समझदार व्यक्ति समझने मे असमर्थ हो जाते है इस के लिये जो दुर्भावना रखता है,जलन रखता है और किसी प्रकार से आगे नही बढने देता है,आदि कारणों से युक्त व्यक्ति से नजर लगना कहा जाता है,इसे नजर-दोष भी कहा जाता है,हर्ब्यू के शब्दों में ’अयन हारा’ जिसके अन्दर यद्धिश लोग अयन-होरो,अयन होरा या अयन हारा भी कहते है,इटली मे इसे ’मालओसियो’ और स्पेन मे ’माल ओजो’ या ’एल ओजो’ के नाम से जाना जाता है,सिसली लोग ’जैट्टोर जिसका शाब्दिक अर्थ आंख के द्वारा प्रोजेक्सन करना,माना जाता है,फ़ारसी लोग ’ब्लाबन्द’यानी शैतान की आंख कहते है। शैतान की आंख उस व्यक्ति के लिये भी मानी जाती है जो किसी भी प्रकार से नुकसान पहुंचाने वाला या किसी भी प्रकार से जलन या दुर्भावना नही रखता है उसके पास भी हो सकती है,और उसके द्वारा भी आपके बच्चे को,आपको,आपके पास रखे किसी वस्तु विशेष के भन्डार को,आपके पास रखे फ़लों को,आपके फ़लवाले वृक्षों को आपके दूध देने वाले पशुओं को,आपकी सुन्दरता को आपके व्यवसाय को,आपके प्राप्त होने वाले धन के स्तोत्र को नुकसान पहुंचा सकती है। और यह सब केवल उस व्यक्ति के द्वारा देखने और उसके द्वारा किसी भी प्रकार के लालच करने से हो सकता है। अक्सर इस प्रकार का असर उन लोगों के द्वारा भी होता है जो ओवर-लुकिन्ग की मान्यता को रखते हैं उनके द्वारा उनकी आंखों से अधिकतम अनुमान लगाने किसी वस्तु,मकान,इन्सान आदि को आंखों से ही नापने और उसकी क्षमता का अनुमान लगाने से भी प्रभाव पडता है इस बीमारी को देने वाले व्यक्ति अगर किसी प्रकार से खाना खाते वक्त पास में हों,तो उनके देखते ही हाथ का ग्रास नीचे गिर जाता है किसी मकान की सुन्दरता को वे अपनी नजर से परख लें तो मकान मे दरार आना,या मकान का गिर जाना भी सम्भव होता है,अधिकतर असर छोटे बच्चों पर अधिक होता है नजर या शैतान की आंख को खराब ही माना जाता है और यह जलन रखने वाले और सही किसी भी प्रकार के व्यक्ति के पास हो सकती है इसका कारण एक और माना जाता है कि जो बच्चे किसी प्रकार से बचपन में अपना ही मल खा जाते है उनकी आंख भी शैतान की आंख का काम करती हैआगे जारी

क्या नजर दोष होता है अगर है तो क्या है उपाय शैतान की आंख का प्रयोग अक्सर एक ऐसी बीमारी के लिये किया जाता है जिसके अन्दर किसी भी दवा उपाय डाक्टर समझदार व्यक्ति समझने मे असमर्थ हो जाते है इस के लिये जो दुर्भावना रखता है,जलन रखता है और किसी प्रकार से आगे नही बढने देता है,आदि कारणों से युक्त व्यक्ति से नजर लगना कहा जाता है,इसे नजर-दोष भी कहा जाता है,हर्ब्यू के शब्दों में ’अयन हारा’ जिसके अन्दर यद्धिश लोग अयन-होरो,अयन होरा या अयन हारा भी कहते है,इटली मे इसे ’मालओसियो’ और स्पेन मे ’माल ओजो’ या ’एल ओजो’ के नाम से जाना जाता है,सिसली लोग ’जैट्टोर जिसका शाब्दिक अर्थ आंख के द्वारा प्रोजेक्सन करना,माना जाता है,फ़ारसी लोग ’ब्लाबन्द’यानी शैतान की आंख कहते है। शैतान की आंख उस व्यक्ति के लिये भी मानी जाती है जो किसी भी प्रकार से नुकसान पहुंचाने वाला या किसी भी प्रकार से जलन या दुर्भावना नही रखता है उसके पास भी हो सकती है,और उसके द्वारा भी आपके बच्चे को,आपको,आपके पास रखे किसी वस्तु विशेष के भन्डार को,आपके पास रखे फ़लों को,आपके फ़लवाले वृक्षों को आपके दूध देने वाले पशुओं को,आपकी सुन्दरता को आपके व्यवसाय को,आपके प्राप्त होने वाले धन के स्तोत्र को नुकसान पहुंचा सकती है। और यह सब केवल उस व्यक्ति के द्वारा देखने और उसके द्वारा किसी भी प्रकार के लालच करने से हो सकता है। अक्सर इस प्रकार का असर उन लोगों के द्वारा भी होता है जो ओवर-लुकिन्ग की मान्यता को रखते हैं उनके द्वारा उनकी आंखों से अधिकतम अनुमान लगाने किसी वस्तु,मकान,इन्सान आदि को आंखों से ही नापने और उसकी क्षमता का अनुमान लगाने से भी प्रभाव पडता है इस बीमारी को देने वाले व्यक्ति अगर किसी प्रकार से खाना खाते वक्त पास में हों,तो उनके देखते ही हाथ का ग्रास नीचे गिर जाता है किसी मकान की सुन्दरता को वे अपनी नजर से परख लें तो मकान मे दरार आना,या मकान का गिर जाना भी सम्भव होता है,अधिकतर असर छोटे बच्चों पर अधिक होता है नजर या शैतान की आंख को खराब ही माना जाता है और यह जलन रखने वाले और सही किसी भी प्रकार के व्यक्ति के पास हो सकती है इसका कारण एक और माना जाता है कि जो बच्चे किसी प्रकार से बचपन में अपना ही मल खा जाते है उनकी आंख भी शैतान की आंख का काम करती हैआगे जारी

शुक्रवार, 25 नवंबर 2016

नाडी ज्योतिष में दशायें नाडी ज्योतिष के अनुसार जो दशायें सामने आती है वे इस प्रकार से मानी जाती हैं:- पहली दशा जन्म दशा कहलाती है. दूसरी दशा सम्पत्ति की दशा कहलाती है. तीसरी दशा विपत्ति की दशा होते है. चौथी दशा कुशल क्षेम की दशा होती है. पांचवी दशा शरीर या परिवार से पृथक होने की दशा होती है. छठी दशा शरीर या मन को साधने की दशा कही जाती है. सातवीं दशा में मृत्यु योग को अन्य के द्वारा प्रस्तुत किया जाता है. आठवीं दशा में जो कारक मृत्यु योग प्रस्तुत करना चाहते वे मित्रता करते हैं. नौवीं दशा परममित्र की दशा होती है,जिसके अन्दर मनसा वाचा कर्मणा सभी मित्र होते है.

संसार में प्रथम तो वैराग्य होना कठिन है। यदि वैराग्य हो भी गया तो कर्मकाण्ड का छूटना कठिन है। यदि कर्मकाण्ड से छुटकारा मिल गया तो काम क्रोधादि से छूटकर दैवी सम्पत्ति प्राप्त करना कठिन है। यदि दैवी संपत्ति भी आ गई तो भी सदगुरु मिलना कठिन है। यदि सदगुरु भी मिल जाय तो भी उनके वाक्य में श्रद्धा होकर ज्ञान होना कठिन है। और यदि ज्ञान भी हो जाय तो भी चित्त- वृत्ति का स्थिर रहना कठिन है। यह स्थिति तो केवल भगवत्कृपा से ही होती है, इसका कोई अन्य साधन नही है

अकेला ऐक गृह कुछ नही कर सकता हा दशा अन्तरदशा गृहवल नछत्तर दृष्टि चन्द्र लगन ओर वाकी chart ओर वहुँत से विन्दु है जिससे सटीक फलकथन किया जाना चाहिऐ आजकल ज्योतिष का वेङा गर्क हो गया है जेसे फला गृह लग्न मे तो याह फल दुसरे भाव मे तो ह यह फल अगर तुला लगन वाले ऐसे होते है मेष वाले ऐसे होते है या आज कन्या राशीवाले यह करे घनु राशी का यह फल क्या यह ज्योतिष है सव को पता है की यह गलत है फिर भी सवी चुप है

सोमवार, 21 नवंबर 2016

मित्रो वक्री ग्रह हो को लेकर पहले भी काफी पोस्ट fb पर post कर चुका हु वक्री ग्रह सदा हानी या वुरा नहीं करते वह कभी-कभी बहुत शुभ फल भी जातक को देते है खास स्थान में वक्री ग्रह जातक को उच्च शिखर पर पहुंचाने में अत्यंत सहायक होते हैं ऐसी स्थिति में जातक को धन, यश व अच्छी सेहत की प्राप्ति होती है किसी के जन्म में यदि कोई ग्रह वक्री होता है और जीवन में वह वक्री ग्रह जब गोचर में आता है, तो बहुत शुभ फल देता है। खास बात यह है कि सूर्य और चंद्रमा कभी वक्री नहीं होते मंगल : यह ग्रह यदि वक्री है तो व्यक्ति शीघ्र क्रोधी तथा उत्तेजित होने वाला हो सकता है जब मंगल का वक्रत्व समाप्त होता है, तभी उसके सभी कार्य पूर्ण होना माना जा सकता है वक्री मंगल वाले व्यक्ति प्राय: डॉक्टर, वैज्ञानिक या रहस्यमयी विधाओं के ज्ञाता देखे गऐ है वाकी योग भी कुंङली मे हो तो वैसे वक्री मंगल वाले मजदूर कार्यस्थल पर काम के बजाय हड़ताल पर रहना ज्यादा पसंद करते हैं। ऐसे जातक अधिकतर कामचोर होते हैंपुरा फल कथन पुरी कुंङली पर ही देखा जाता है यह सिर्फ जनरल जानकारी है हर ग्रह के लिऐ ऐसा ही माने क्योकि कोई भी ऐक ऐकल ग्रह से फल संभव नही बुध : जिनकी जन्मकुंडली में बुध वक्री होता है, वह कमजोर स्वाभाव वाले अथवा मुसीबत में घबरा जाने वाले व्यक्ति होते हैं। जब गोचर में बुध वक्री हो जाता है तो व्यक्ति तीक्ष्ण बुद्धि वाले होते हैं। समाज की विभिन्न समस्याओं को आश्चर्यजनक ढंग से सुलझाने में वे सक्षम होते हैं वुघ जव भी गोचर मे वक्री हो तव वो अपना लेपटोप या कम्प्यूटर मे ङाटा को संभाल कर रखे या backup वना कर रखे बृहस्पति : वक्री बृहस्पति भी शुभ फल देता है। इसके जातकों के पास अद्भुत क्षमता होती है और वे विलक्षण कार्यशैली वाले होते हैं। भले ही उनका कोई काम अधूरा रह जाए, पर आखिरकार वह अपने अधूरे कार्यों को पूरा जरूर करते हैं। उदाहरण के लिए, यदि भवन निर्माण का कार्य रुका हुआ हो अथवा फैक्टरी बंद पड़ी हो, तो दोबारा गोचर में वक्री आने पर रुका हुआ काम पुन: शुरू हो जाता है और पूरा भी होता है शुक्र : जन्म के समय शुक्र के वक्री होने पर जातक धार्मिक स्वभाव का होता है। धर्म पर विश्वास रखने के कारण ऐसे जातकों को लोकप्रियता मिलती है। गोचर में शुक्र जब वक्री होता है, तो उस दौरान वह व्यक्ति सत्यवादी, पर क्रूर हो जाता है। यदि वक्री शुक्र वाले जातक को प्यार, स्नेह या सम्मान नहीं मिलता, तो वह विद्रोही हो जाता है। वक्री शुक्र वाले जातक यदि कलाकार, संगीतज्ञ, कवि या ज्योतिषी हैं, तो उनकी शक्ति बढ़ जाती है और अपने व्यवसायों में वे शिखर पर पहुंच जाते हैं। साथ ही वे काफी नाम भी कमाते हैं। शनि : जन्म में शनि जब वक्री होता है और युवा होने पर जब वह वक्री गोचर में आता है, तो व्यक्ति शक्की स्वभाव का हो जाता है और साथ ही स्वार्थी भी हो जाता है। ऐसे व्यक्ति दिखते कुछ और हैं, पर वास्तव में कुछ और होते हैं। ऐसे व्यक्ति ऊपर से साहसी, कठोर, सिद्धांतवादी और अनुशासनप्रिय होने का ढोंग करते हैं। हकीकत यह होती है कि वे अंदर से डरपोक, खोखले और लचीले स्वभाव के होते हैं। वैसे तो वक्री ग्रहों को अच्छा नहीं माना जाता, पर कुछ खास परिस्थितियों में इनका प्रभाव जातकों के लिए शुभ होता है। ज्योतिष शास्त्र में वक्री ग्रहों को भी शुभ की संज्ञा दी गई है, जिनसे जातकों का जीवन सुखमय हो सकता है।मै फिर यही कहुगा कोई फल पुरी कुंङली देख कर ही संभव हो सकता है वक्री ग्रह अगर कुंङली मे शुभ है या अशुभ है तो उसके फलो मे अघिकता होगी आचार्य राजेश

रविवार, 20 नवंबर 2016

वहुँत सी मेरी माताऐ मुझ से वच्चो को लेकर सवाल करती है की हमारे वच्चे पङते नही ना ही कहना मानते है सारा दिन फोन पर या Tv पर लगे रहते है मै मानता हु आज का वातावरण ऐसा हो रहा है उसका प्रभाव वच्चो पर आना माना जा सकता है जिस मां के मन में अध्यात्मिक भाव हो वही अपने बच्चे के लिये भी यही चाहती है कि उसमें अच्छे संस्कार आयें और इसके लिये बकायदा प्रयत्नशील रहती है। यहां यह भी याद रखें कि मां अगर ऐसे प्रयास करे तो वह सफल रहती है। अब यहां कुछ लोग सवाल उठा सकते हैं कि अध्यात्मिक भाव रखने से क्या होता है? श्रीमद्भागवत गीता कहती है कि इंद्रियां ही इंद्रियों में और गुण ही गुणों में बरत रहे हैं। साथ ही यह भी कि हर मनुष्य इस त्रिगुणमयी माया में बंधकर अपने कर्म के लिये बाध्य होता है। इस त्रिगुणमयी माया का मतलब यह है कि सात्विक, राजस तथा तामस प्रवृत्तियों मनुष्य में होती है और वह जो भी कर्म करता है उनसे प्रेरित होकर करता है। जब बच्चा छोटा होता है तो माता पिता का यह दायित्व होता है कि वह देखे कि उसका बच्चे में कौनसी प्रवृत्ति डालनी चाहिए। हर बच्चा अपने माता पिता के लिये गीली मिट्टी की तरह होता है-यह भी याद रखें कि यह केवल मनुष्य जीव के साथ ही है कि उसके बच्चे दस बारह साल तक तो पूर्ण रूप से परिपक्व नहीं हो पाते और उन्हें दैहिक, बौद्धिक, तथा मानसिक रूप से कर्म करने के लिये दूसरे पर निर्भर रहना ही होता है। इसके विपरीत पशु, पक्षियों तथा अन्य जीवों में बच्चे कहीं ज्यादा जल्दी आत्मनिर्भर हो जाते हैं। यह तो प्रकृति की महिमा है कि उसने मनुष्य को यह सुविधा दी है कि वह न केवल अपने बल्कि बच्चों के जीवन को भी स्वयं संवार सके। ऐसे में माता पिता अगर लापरवाही बरतते हैं तो बच्चों में तामस प्रवृत्ति आ ही जाती है। मनुष्य का यह स्वभाव है कि वह व्यसन, दुराचरण तथा अभद्र भाषा की तरफ स्वाभाविक रूप ये आकर्षित होता है। अगर उसे विपरीत दिशा में जाना है तो अपनी बुद्धि को सक्रिय रखना आवश्यक है। उसी तरह बच्चों के लालन पालन में भी यह बात लागू होती है। जो माता पिता यह सोचकर बच्चों से बेपरवाह हो जाते हैं कि बड़ा होगा तो ठीक हो जायेगा। ऐसे लोग बाद में अपनी संतान के दृष्कृत्यों पर पछताते हुए अपनी किस्मत और समाज को दोष देते हैं। यह इसलिये होता है क्योंकि जब बच्चों में सात्विक या राजस पृवत्ति स्थापित करने का प्रयास नहीं होता तामस प्रवृत्तियां उसमें आ जाती हैं। बाहरी रूप से हम किसी बुरे काम के लिये इंसान को दोष देते हैं पर उसके अंदर पनपी तामसी प्रवृत्ति पर नज़र नहीं डालते। अध्यात्मिक ज्ञान में रुचि रखने वालों में स्वाभाविक रूप से सात्विकता का गुण रहते हैं और उनका तेज चेहरे और व्यवहार में दिखाई देता है

गुरुवार, 17 नवंबर 2016

अक्षरो की यात्रा मित्रो जिसका क्षरण नही हो सकता है अक्षर कहलाता है किसी भी भाषा का बना हो,किसी भी देश में लिखा या बोला जाता हो अक्षर ही अपनी योग्यता को शब्द बनाकर दिखलाने का काम करता है। मान लीजिये गाली एक शब्द है और गाली में ग आ ल और ई अक्षरों का प्रयोग किया गया है,अब ग का उच्चारण किया तो गले से ही निकलेगा आ का उच्चारण किया तो मुंह पूरा खोलना ही पडेगा,ल का उच्चारण किया तो लपलपी जीभ को प्रयोग में लाना ही पडेगा और ई का प्रयोग करने पर सभी मुंह के अंगो के साथ शरीर की भी गति को संभाल कर बोलना पडेगा,तभी केवल गाली शब्द को बोलना पडेगा। अब खतरनाक गाली है तो गले की नौबत है,थोडी कम खतरनाक है तो मुंह को बाजा की तरह बजाने का कारण बन सकता है,अन्यथा बदले में ली तो जायेगी ही चाहे वह इज्जत के रूप में हो या औकात के रूप में इसलिये गाली शब्द को बडी गम्भीरता से बनाया गया होगा,लेकिन अक्षर का चुनाव करने के समय कितना दिमाग पूर्वजों ने लगाया होगा इसका भी अनुमान लगाना बडा कठिन काम है। बावन अक्षर वेदों मे नियत किये गये है,अन्ग्रेजी में तो केवल चौबीस अक्षर ही प्रयोग में लाये गये है,अक्षरों को मिला मिलाकर कितने करोड शब्द बन गये कि उनकी गणना करने में कितना समय लगेगा। म अक्षर के शुरु में लगने से किसी प्रकार की ममता का भान तो होना ही है,जैसे महान म हान में नही होता तो वह बेकार ही था,म के लगते ही हान महान हो गया। कर में म के लगते ही मकर हो गया,यानी म नही लगती तो केवल कर यानी कर्म रह जाता या कर यानी हाथ का ही रूप होता। इसी प्रकार से मचल को ही देख लीजिये म नही होता तो चला चली का ही खेला था,क्या फ़ायदा था जो मचलना भी नही हो पाता। ध्वनि का कारण अक्षर से ही सम्भव है। जो ध्वनि हमारे शरीर से पैदा की जाती है उस ध्वनि को निकालना और सुनना बहुत ही महत्व की बात है। गला जीभ तालू होंठ दांत सभी अक्षर पर ही निर्भर है। ग से गला ज से जीभ त से तालू द से दांत और बिना किसी इन अंगो के प्रयोग के ह तो बोला ही जा सकता है। इसी लिये कहा जाता है कि हंसने के लिये किसी भी अंग को श्रम नही करना पडता है वह हंसा सिर्फ़ ह्रदय से ही जा सकता है लेकिन रोने के लिये जीभ को थर्राना जरूरी है और नाक मुंह तालू सभी को काम करना पडता है,अब बताइये अक्षर हंसने में अच्छे लगते है या रोने में। जो लोग हमेशा रोते ही रहते है वे सही है या जो लोग हमेशा हंसते रहते है वे ही अच्छे है,हंसने वाले ह्रदय से काम लेते है और रोने वाले अपने शरीर को काम मे लेते है शरीर से काम लेने वाले तो गलत काम भी कर सकते है लेकिन ह्रदय से काम लेने वाले कभी गलत काम भी नही कर सकते है। क्ष अक्षर की विशेषता को समझने के लिये किसी को तो बरबाद करना ही पडेगा,जैसे अच्छी भली लार मुंह में आ रही थी,क्ष को कहते ही तालू को सुखाना जरूरी हो गया,उसी तरह से अ को कहने से ही किसी न किसी को तो आना ही पडेगा चाहे वह भावना का आना हो या इन्सान का अथवा जानवर को पुकारने के समय अ अक्षर अपना काम तो करता ही है। आप भी सोच कर देखिये,इसमें कोई पाप नही नही है

सोमवार, 14 नवंबर 2016

धन का शास्त्र ****************************** धन का शास्त्र समझना चाहिए। धन जितना चले उतना बढ़ता है। चलन से बढ़ता है। समझो कि यहां हम सब लोग हैं, सबके पास सौ—सौ रुपए हैं। सब अपने सौ—सौ रुपए रखकर बैठे रहें! तो बस प्रत्येक के पास सौ—सौ रुपए रहे। लेकिन सब चलाएं। चीजें खरीदें, बेचें। रुपए चलते रहें। तो कभी तुम्हारे पास हजार होंगे, कभी दस हजार होंगे। कभी दूसरे के पास दस हजार होंगे, कभी तीसरे के पास दस हजार होंगे। रुपए चलते रहें, रुकें न कहीं। रुके रहते, तो सबके पास सौ—सौ होते। चलते रहें, तो अगर यहां सौ आदमी हैं तो सौ गुने रुपए हो जाएंगे। इसलिए अंग्रेजी में रुपए के लिए जो शब्द है वह करेंसी है। करेंसी का अर्थ होता है: जो चलती रहे, बहती रहे। धन बहे तो बढ़ता है। अमरीका अगर धनी है, तो उसका कुल कारण इतना है कि अमरीका अकेला मुल्क है जो धन के बहाव में भरोसा करता है। कोई रुपए को रोकता नहीं। तुम चकित होओगे जानकर यह बात कि उस रुपए को तो लोग रोकते ही नहीं जो उनके पास है, उस रुपए को भी नहीं रोकते जो कल उनके पास होगा, परसों उनके पास होगा! उसको भी, इंस्टालमेंट पर चीजें खरीद लेते हैं। है ही नहीं रुपए, उससे भी खरीद लेते हैं। इसका तुम अर्थ समझो। एक आदमी ने कार खरीद ली। पैसा उसके पास है ही नहीं। उसने लाख रुपए की कार खरीद ली। यह लाख रुपया वह चुकाएगा आने वाले दस सालों में। जो रुपया नहीं है वह रुपया भी उसने चलायमान कर दिया। वह भी उसने गतिमान कर दिया। लाख रुपए चल पड़े। ये लाख रुपए अभी हैं नहीं, लेकिन चल पड़े। इसने कार खरीद ली लाख की। इसने इंस्टालमेंट पर रुपए चुकाने का वायदा कर दिया। जिसने कार बेची है, उसने लाख रुपए बैंक से उठा लिए। कागजात रखकर। लाख रुपए चल पड़े। लाख रुपयों ने यात्रा शुरू कर दी! अमरीका अगर धनी है, तो करेंसी का ठीक—ठीक अर्थ समझने के कारण धनी है। भारत अगर गरीब है, तो धन का ठीक अर्थ न समझने के कारण गरीब है। धन का यहां अर्थ है बचाओ! धन का अर्थ होता है चलाओ। जितना चलता रहे उतना धन स्वच्छ रहता है। और बहुत लोगों के पास पहुंचता है। इसलिए जो है, उसका उपयोग करो। खुद के उपयोग करो, दूसरों के भी उपयोग आएगा। लेकिन यहां लोग हैं, न खुद उपयोग करते हैं, न दूसरों के उपयोग में आने देते हैं! और धीरे—धीरे हमने इस बात को बड़ा मूल्य दे दिया। हम इसको सादगी कहते हैं। यह सादगी बड़ी मूढ़तापूर्ण है। यह सादगी नहीं है। यह सादगी दरिद्रता है। यह दरिद्रता का मूल आधार है। चलाओ! कुछ उपयोग करो। बांट सको बांटो। खरीद सको खरीदो। धन को बैठे मत रहो दबाकर! यह तो तुम्हें करना है तो मरने के बाद, जब सांप हो जाओ, तब बैठ जाना गड़ेरी मारकर अपने धन के ऊपर! अभी तो आदमी हो, अभी आदमी जैसा व्यवहार करो

शुक्रवार, 11 नवंबर 2016

मांकाली ज्योतिष की आज की पोस्ट उन मित्रो के लिऐ है जो ज्योतिष सिख रहे है या जो ज्योतिष की जानकारी रखते है ओर ज्यादा से ज्यादा ज्ञान पाना चाहते है मित्रो पोस्ट थोङी लम्वी है माफी चाहुगा मेरा तो यही उदेश्य है की ज्ञान वाटा जाऐ ज्ञान वाटने से ओर वङता है आचार्य राजेश मिथुन लगन की कुंडली और केतु लगन में है,राहु का सप्तम में होना बाजिव है,चौथा शनि वक्री है,लगनेश वक्री बुध दसवे भाव में मंगल गुरु शुक्र के साथ विराजमान है,सूर्य ग्यारहवा और चन्द्र पंचम में विराजमान है। केतु का कार्य प्राप्त करना होता है और राहु का कार्य इकट्ठा करके देना होता है। राहु जिस भाव में है उस भाव के आसपास से और जहां जहां उसकी द्रिष्टि यानी स्थापित होने वाले स्थान से स्थापित होने वाले स्थान से तीसरे स्थान से पंचम स्थान से सातवें स्थान से और नवें स्थान से यह लेता है, (सातवें स्थान के केतु से यह भाव का नकारात्मक प्रभाव लेता है) और सकारात्मक रूप से यह केवल केतु को ही प्रदान करता है। केतु राहु से प्राप्त किये गये प्रभाव और कारण को अपने स्थान पर खर्च करता है तीसरे स्थान पर खर्च करता है पंचम स्थान पर खर्च करता है और नवें स्थान पर खर्च करता है। इस बात के लिये यह भी जानना आवश्यक है कि जब राहु अपने से तीसरे स्थान से पराक्रम को इकट्ठा करके केतु को देता है तो केतु बदले में उस पराक्रम के स्थान पर भाग्य की बातों को देता है। जैसे राहु ने अपने से तीसरे स्थान से व्यक्ति की कपडे पहिनने की जानकारी को इकट्ठा किया और केतु को प्रदान कर दिया,बदले में केतु ने उस तीसरे स्थान पर अपने समाज और मर्यादा के अनुरूप गुण प्रदान कर दिया यानी जातक को बजाय कपडे को ओढने के उसे सिलवा कर तरीके से पहिना दिया,उसी प्रकार से राहु ने जातक के द्वारा शिक्षा की शक्ति को लिया और केतु को प्रसारित कर दिया,केतु ने धीरे से उस शक्ति को लाभ के मामले में लेकर उसे अपने लिये साधन बना लिया और जीविकोपार्जन के लिये प्रदान करने लगा। राहु ने सप्तम के प्रभाव को जातक से लिया और वासना के रूप में केतु को प्रदान कर दिया,जातक ने अफ़ेयर और शादी विवाह के सम्बन्ध के द्वारा उस शक्ति को प्रयोग में लिया और अपने लिये आजीवन व्यस्त रहने का साधन बना लिया। राहु ने अपने से नवें भाव के प्रभाव को भाग्य के रूप में प्राप्त किया,केतु ने उस भाग्य के प्रभाव को अपनी शक्ति बनाकर समाज मे चलने के लिये योग्य बना लिया।राहु केतु की सीमा रेखा एक दूसरे के प्रति एक सौ अस्सी डिग्री की मानी जाती है,दोनो ही छाया ग्रह है इसलिये अपनी अपनी योग्यता को स्वभाव और ज्ञान के रूप में तो प्रदर्शित करते है,लेकिन सामने नही आते है,जैसे बिजली का तार लम्बा है तो केतु का रूप देता है,चौकोर है तो मंगल केतु का रूप देता है,गोल है तो बुध केतु का रूप देता है,लचीला है तो बुध के साथ गुरु का प्रभाव भी शामिल है कठोर है तो शनि का प्रभाव भी शामिल है,उस तार का प्रयोग अगर कपडे लटकाने वाली अलगनी के रूप में लिया जाता है तो वह शक्ति की भावना को तभी तक अपने अन्दर संजोकर रखेगा जब तक कपडे के अन्दर पानी यानी चन्द्रमा की मात्रा अधिक है,अगर शनि का प्रभाव चन्द्रमा के साथ है तो केतु को अधिक समय तक बोझ को लादकर रखना पडेगा,और सूर्य का चन्द्रमा के साथ अधिक प्रभाव है तो जरा सी देर के लिये बोझ को लादना पडेगा,साथ ही मंगल का प्रभाव अधिक है तो कपडे को जला भी सकता है और खुद भी मंगल के साथ जल कर खत्म हो सकता है। लेकिन राहु का प्रभाव उस केतु के अन्दर समय के अनुसार ही बनेगा। जैसे बिजली का तार देखने में तो वह आस्तित्वहीन मालुम होगा लेकिन उसे छूते ही वह करेंट को अपने बल के द्वारा प्रदर्शित करेगा मिथुन राशि का बुध दसवें भाव में वक्री है,राहु से चौथा है और केतु से दसवां,साथ ही शनि वक्री होकर चौथे भाव में लगनेश से विरोधाभास का कारण भी पैदा कर रहा है। अगर यह युति प्रश्न कुंडली के अनुसार देखी जाती तो वक्री बुध के लिये यह माना जाता कि प्रश्न कर्ता कुछ भूल कर आया है और उसे वापस फ़िर से प्रश्न पूंछने के लिये आना पडेगा,यहां बुध वक्री किसी गणित की जानकारी जैसे तारीख या हिसाब किताब को खोज कर वापस आयेगा। सप्तम में शनि वक्री के लिये माना जाता है कि उसकी पत्नी या जीवन साथी नही है,कारण राहु ने दसवीं नजर से शनि वक्री को देखा है,केतु ने चौथे भाव से देखा है इसलिये पत्नी या जीवन साथी का इन्तकाल तभी हो गया होगा जब शनि वक्री हुआ होगा। केतु से दसवें भाव में लगनेश के होने से लगनेश को मानसिक चिंता केतु के लिये ही होगी। लगनेश जो भी कार्य करेगा वह केतु को ध्यान में रखकर ही करेगा लगनेश से सम्बन्ध रखने वाले ग्रहों में जैसे शुक्र है तो लगनेश को चिन्ता स्त्री की अपने लिये नही होगी,कारण लगनेश वक्री है कभी भी वक्री लगनेश अपने लिये चिन्ता करने वाला नही होता है उसे अपने से चौथे भाव की चिन्ता का सामना ही करना पडता है। लगनेश को चिन्ता अपने केतु के लिये शुक्र को पैदा करने की है,वह चाहता है कि उसके पुत्र की शादी हो जाये जो उसके लिये घर संभालने वाली बात को कर सके। लगनेश् से दसवें भाव में राहु के होने से पिता का भी अन्तकाल हो चुका है,और लगनेश से चौथे केतु पर शनि की दसवी नजर पडने के कारण माता का भी अन्तकाल हो गया है। केतु से पंचम में चन्द्रमा के होने से और राहु से ग्यारहवे भाव में चन्द्रमा होने से लगनेश को दो माताओं ने एक साथ पाला है,एक माता अष्टम चन्द्र होने के कारण ताई की हैसियत वाली होगी,और लगनेश से दूसरे भाव में सूर्य के होने से जातक का पिता दो भाई था लेकिन राहु का असर दूसरे भाव के सूर्य पर पडने से जातक की ताई विधवा का जीवन निकालने के समय में ही जातक के पालन पोषण के प्रति अपनी आस्था रखने वाली होगी। वक्री बुध के साथ मंगल के होने से जातक रक्षा सेवा में कार्य करने वाला होगा,लगनेश के साथ गुरु के होने से जातक का एक भाई बडा भी होगा जो चौथे केतु की करामात से अपंग रहा होगा और गुरु के साथ वक्री बुध के कारण अविवाहित ही रहा होगा,तथा लगनेश के वक्री होने से और सूर्य के बीच में गुरु के होने से वह अनदेखी के कारण चन्द्रमा के पीछे शनि होने से ठंड के कारण अन्तिम गति को प्राप्त हुआ होगा। सूर्य से तीसरे भाव में केतु के होने से जातक के पिता को लाठी या सहारा लेकर चलने की आदत भी होगी सूर्य से सप्तम में चन्द्रमा के होने से जातक की दो बुआ हमेशा पिता को सहारा देने वाली होंगी लेकिन प्रश्न के समय वे दोनो ही बुआ विधवा जीवन को निकाल रहीं होंगी। चन्द्रमा से छठे भाव में बुध के वक्री होने से दोनो बुआ अपनी अपनी कमर को झुकाकर चलने वाली होंगी और जातक की ताई भी कमर झुकाकर ही मरी होंगी। मंगल के चौथे भाव में केतु के होने से और बुध के वक्री होने से गुरु के साथ होने से जातक की पत्नी को केंसर जैसी बीमारी रही होगी,तथा एक बुआ को भी केंसर की बीमारी रही होगी। जो केंसर की बीमारी जातक के गुरु यानी गले में रही होगी तो जातक की एक बुआ को गर्भाशय जो चन्द्रमा से पंचम स्थान को वक्री शनि के द्वारा देखा जा रहा है,की बीमारी रही होगी।लगन से सप्तम का राहु अगर धनु राशि का है तो जातक बदचलन होगा,वह अपनी मर्यादा को नही जानता होगा और उसका विश्वास नही किया जा सकता है। साथ ही जातक के जो भी सन्तान होगी वह या तो शराब आदि के कारणों मे व्यस्त होगी जो कार्य जातक के द्वारा किया जायेगा वही कार्य जातक के बडे पुत्र के द्वारा किया जायेगा,अन्य सन्तान भी राहु के असर से ग्रसित होगी या तो विक्षिप्त अवस्था में होगी या पिता का कहना नही मानती होगी। राहु ग्यारहवा चन्द्रमा जातक को भौतिक धन के रूप में खेती वाली जमीने ही इकट्ठी करने के लिये अपनी युति देगा,साथ ही केतु से दसवा मंगल रक्षा सेवा देगा मंगल बुध मिलकर एक सन्तान को मारकेटिंग में अग्रणी बनायेगा,शुक्र से सम्बन्धित होने के कारण एक सन्तान को पत्नी भक्त बनायेगा। जैसे ही गुरु चन्द्रमा के साथ गोचर करेगा जातक अपने जीवन साथी की जगह पर एक स्त्री को लाकर घर में रखेगा,जो विधवा होगी और वह जातक की ताई की भांति ही अपने जीवन को निकालेगी वहुँत से मित्र फोन करते है कुंङली के लिऐ मित्रो हमारी paid service है अगर आपका मन हो तो ही वात करे हा कोई लाचार है या गरीव है उसके लिऐ free हैकृप्पा msgना करे हमारे नम्वरो पर वात करे 07597718725 09414481324

गुरुवार, 3 नवंबर 2016

काफी पुरानी ऐक पोस्ट कर रहा हु कुन्ङली की फोटो के साथ ताकि जो ज्योतिष सिख रहै है उनको लाभ मिले मेरी यही कोशिश रही है ज्यादा से ज्यादा ज्ञान हम सव को प्राप्त हो क्योंकि ज्ञान वाटने से ओर वङता है आचार्य राजेश यहकुंडली कर्क लगन की है और लगनेश चन्द्रमा दूसरे भाव में है। गुरु लगनेश चन्द्रमा से सप्तम भाव में वक्री होकर विराजमान उच्च का मंगल सप्तम मे विराजमान हैपंचम शनि ने मंगल को आहत किया है। पंचम शनि के पास नवे भाव मे विराजमान राहु का असर भी है। सूर्य केतु का पूरा बल सप्तम के मंगल को मिल रहा हैजो कारण ग्रह अपने अनुसार वैवाहिक जीवन को छिन्न भिन्न करने के लिये उत्तरदायी है वे इस प्रकार से है:- गुरु सम्बन्ध का कारक है चन्द्रमा से सप्तम में विराजमान है मार्गी गुरु समानन्तर में रिस्ता चलाने के लिये माना जाता है लेकिन वक्री गुरु जल्दबाजी के कारण रिस्ता बदलने के लिये माना जाता है। मार्गी गुरु समानन्तर में रिस्ता चलाने के लिये माना जाता है लेकिन वक्री गुरु जल्दबाजी के कारण रिस्ता बदलने के लिये माना जाता है। मार्गी गुरु स्वार्थ भावना को लेकर नही चलता है लेकिन वक्री गुरु स्वार्थ की भावना से रिस्ता बनाता भी है और जल्दी से तोड भी देता है। बार बार मानसिक प्रभाव रिस्ते से बदलने के कारण और एक से अधिक जीवन साथी प्राप्त करने के लिये अपनी मानसिक शक्ति को समाप्त करने के कारण अक्सर वक्री गुरु पुरुष सन्तान को भी पैदा करने से असमर्थ रहता है। उस समय में गुरु नवे भाव में जन्म के राहु के साथ गोचर कर रहा था और राहु का असर गुरु पर आने से जीवन साथी पर कनफ़्यूजन की छाया पूरी तरह से है गोचर के गुरु के सामने जन्म समय के सूर्य केतु भी है,जो पिता और पिता परिवार से लगातार गुप्त रूप से कमन्यूकेशन और राजनीति करने तथा गुप्त रूप से जातिका को रिमोट करने से आहत भी है. पंचम का शनि वृश्चिक राशि का है,साथ ही चन्द्रमा और लगन से सप्तमेश शनि के होने के कारण तथा शनि का शमशानी राशि में स्थापित होने के कारण जातिका के परिवार के द्वारा शादी के बाद से ही पति को नकारा समझा जाने लगा,इसके साथ ही जातक की अन्तर्बुद्धि भी परिवार के कारणों से खोजी बनी हुयी है,जातिका का समय पर भोजन नही करना शनि की सिफ़्त के कारण लगातार चिन्ता में रहना,पति पत्नी के सम्बन्ध के समय में अपने को ठंडा रखना,जननांग में इन्फ़ेक्सन की बीमारी गंदगी के कारण रहना और सन्तान के लिये या तो असमर्थ होना या भोजन के अनियमित रहने के कारण शरीर में कमजोरी होना भी माना जाता है,इसी के साथ पंचम शनि के प्रभाव से सप्तम स्थान का आहत होना जब भी कोई घरेलू बात होना या परिवार को सम्भालने की बात होना तो गुपचुप रहना घरेलू कार्यों में वही काम करना जो परिवार से दूरिया बनाते हो,वैवाहिक जीवन को ठंडा बनाने के लिये काफ़ी होते है,शनि का लाभ भाव में भी अपने असर को देना,अर्थात रोजाना के कार्यों में सुबह से ही घरेलू चिन्ताओं का पैदा किया जाना और इन कारणों से होने वाली लाभ वाली स्थिति में दिक्कत आना भी वैवाहिक कारणों के नही चलने के लिये माना जाता है,शनि की दसवीं द्रिष्टि दूसरे भाव में चन्द्रमा पर होने से नगद धन और पति परिवार की महिलाओं से पारिवारिक बातों का बुराई के रूप में बताया जाना भी वैवाहिक कारणों को समाप्त करने के लिये काफ़ी है। वक्री गुरु का सीधा नवम पंचम का सम्बन्ध शुक्र और बुध से होने से पति के द्वारा पहले किसी अन्य स्त्री से अफ़ेयर का चलाना और बाद मे शादी करना भी एक कारण माना जा सकता है,इस प्रभाव से जो मर्यादा पत्नी की होती है वह अन्य स्त्रियों से काम सुख की प्राप्ति के बाद पति के अन्दर केवल पत्नी मौज मस्ती के लिये मानी जाती है,लेकिन जैसे जैसे पत्नी का ओज घटता जाता है पति का दिमाग पत्नी से हट्कर दूसरी स्त्रियों की तरफ़ जाना शुरु हो जाता है,इस कारण में अक्सर सन्तान के रूप में केवल पुत्री सन्तान का होना ही माना जाता है,और पुरुष को वैवाहिक जीवन से दूर जाने के लिये यह आकांक्षा भी शामिल होती है कि वह पुत्र हीन है और उसकी पत्नी पुत्र सन्तान पैदा करने में असमर्थ है,शुक्र बुध के एक साथ तुला राशि में चौथे भाव में होने से शादी के बाद भी पति का रुझान अन्य स्त्रियों से होता है। केतु का शनि को बल देना और केतु को सूर्य का बल प्राप्त होना तथा शनि का परिवार में स्थापित होना वैवाहिक जीवन को पारिवारिक न्यायालय से समाप्त करने का कारण तैयार होता है। अष्टम गुरु से दूसरे भाव में राहु के होने से पति के द्वारा बनायी गयी बातों से और झूठे कारण बनाकर अदालती कारण जातिका के लिये बनाये जाते है,राहु के द्वारा शुक्र बुध को अष्टम भाव से देखने के कारण जातिका पर चरित्र के मामले में भी झूठे कारण बनाकर लगाये जाते है.इन कारणों से चन्द्रमा जो राहु से षडाष्टक योग बनाकर विराजमान है,परिवार पर झूठे चरित्र सम्बन्धी आक्षेप सहन नही कर पाता है और विवाह विच्छेद का कारण बनना जरूरी हो जाता है. इन कारणों को जातिका के द्वारा रोका जा सकता है। उच्च के मंगल की स्थिति के कारण जातिका को कटु वचन बोलने से बचना चाहिये। राहु के मीन राशि में होने से जातिका को जितना डर लगेगा उतना ही ससुराल खानदान उसके ऊपर सवार होगा मित्रो अगर आप मुझ से अपनी कुंङली दिखाना या कुंङली वनवाना चाहते है तो मेरे नम्वर पर सम्पर्क करे माकाली ज्योतिष आचार्य राजेश 07597718725 09414481324

लाल का किताब के अनुसार मंगल शनि

मंगल शनि मिल गया तो - राहू उच्च हो जाता है -              यह व्यक्ति डाक्टर, नेता, आर्मी अफसर, इंजीनियर, हथियार व औजार की मदद से काम करने वा...