रविवार, 30 दिसंबर 2018

जीते जी मरने की कला

प्रत्येक व्यक्ति अलग इंद्रिय से मरता है। किसी की मौत आंख से होती है, तो आंख खुली रह जाती है

—हंस आंख से उड़ा। किसी की मृत्यु कान से होती है। किसी की मृत्यु मुंह से होती है, तो मुंह खुला रह जाता है। अधिक लोगों की मृत्यु जननेंद्रिय से होती है, क्योंकि अधिक लोग जीवन में जननेंद्रिय के आसपास ही भटकते रहते हैं, उसके ऊपर नहीं जा पाते। हम्हारी जिंदगी जिस इंद्रिय के पास जीयी गई है, उसी इंद्रिय से मौत होगी। औपचारिक रूप से हम मरघट ले जाते हैं किसी को तो उसकी कपाल—क्रिया करते हैं, उसका सिर तोड़ते हैं। वह सिर्फ प्रतीक है। समाधिस्थ व्यक्ति की मृत्यु उस तरह होती है। समाधिस्थ व्यक्ति की मृत्यु सहस्रार से होती है।

जननेंद्रिय सबसे नीचा द्वार है। जैसे कोई अपने घर की नाली में से प्रवेश करके बाहर निकले। सहस्रार, जो हम्हारे मस्तिष्क में है द्वार, वह श्रेष्ठतम द्वार है। जननेंद्रिय पृथ्वी से जोड़ती है, सहस्रार आकाश से। जननेंद्रिय देह से जोड़ती है, सहस्रार आत्मा से। जो लोग समाधिस्थ हो गए हैं, जिन्होंने ध्यान को अनुभव किया है, जो बुद्धत्व को उपलब्ध हुए हैं,जो जिते जी मरे है उनकी मृत्यु सहस्रार से होती है।

उस प्रतीक में हम अभी भी कपाल—क्रिया करते हैं। मरघट ले जाते हैं, बाप मर जाता है, तो बेटा लकड़ी मारकर सिर तोड़ देता है। मरे—मराए का सिर तोड़ रहे हो! प्राण तो निकल ही चुके, अब काहे के लिए दरवाजा खोल रहे हो? अब निकलने को वहां कोई है ही नहीं। मगर प्रतीक, औपचारिक, आशा कर रहा है बेटा कि बाप सहस्रार से मरे; मगर बाप तो मर ही चुका है। यह दरवाजा मरने के बाद नहीं खोला जाता, यह दरवाजा जिंदगी में खोलना पड़ता है। जीते जी मरना पड़ता है इसी दरवाजे की तलाश में सारे योग, तंत्र की विद्याओं का जन्म हुआ। इसी दरवाजे को खोलने की कुंजियां हैं योग में, तंत्र में। इसी दरवाजे को जिसने खोल लिया, जिसने पे कला सीख ली वह परमात्मा को जानकर मरता है। जिते जी मरता है यह कहूं कि जीते जी मरने की कला सीख लेता है जान लेता है  उसकी मृत्यु समाधि हो जाती है। इसलिए हम साधारण आदमी की कब्र को कब्र कहते हैं, फकीर की कब्र को समाधि कहते हैं—समाधिस्थ होकर जो मरा है।

प्रत्येक व्यक्ति उस इंद्रिय से मरता है, जिस इंद्रिय के पास जीया। जो लोग रूप के दीवाने हैं, वे आंख से मरेंगे; इसलिए चित्रकार, मूर्तिकार आंख से मरते हैं। उनकी आंख खुली रह जाती है। जिंदगी—भर उन्होंने रूप और रंग में ही अपने को तलाशा, अपनी खोज की। संगीतज्ञ कान से मरते हैं। उनका जीवन कान के पास ही था। उनकी सारी संवेदनशीलता वहीं संगृहीत हो गई थी। मृत्यु देखकर कहा जा सकता है—आदमी का पूरा जीवन कैसा बीता। अगर  मृत्यु को पढ़ने का ज्ञान हो, तो मृत्यु पूरी जिंदगी के बाबत खबर दे जाती है कि आदमी कैसे जीया; क्योंकि मृत्यु सूचक है, सारी जिंदगी का सार—निचोड़ है—आदमी कहां जीया।

हरि हां, वाजिद, ज्यूं तीतर कूं बाज झपट ले जाहिंगे।।

जल्दी ही बाज तो आएगा, उसके पहले तैयारी कर लो। अगर  सहस्रार पर पहुंच जाओ, तो फिर मौत का बाज हमे झपटकर नहीं ले जा सकता। फिर तो परमात्मा तलाशता आता है। अगर कोई किसी और इंद्रिय से मरे, तो वापिस लौट आना पड़ेगा देह में; क्योंकि बाकी सब द्वार देह में हैं। सहस्रार देह का द्वार नहीं है, आत्मा का द्वार है। सहस्रार ग्यारहवां द्वार है, बाकी दस द्वार शरीर के हैं। ग्यारहवें द्वार को तलाशो—हम्हारे भीतर है, बंद पड़ा है

बुधवार, 5 दिसंबर 2018

शिव ओर शिवलिग

शिव ओर शिवलिग.           ,                      ,मिञो् शिवलिंग, का अर्थ है भगवान शिव का आदि-अनादी स्वरुप। शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है। स्कन्द पुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है। धरती उसका पीठ या आधार है और सब अनन्त शून्य से पैदा हो 

उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है | वातावरण सहित घूमती धरती या सारे अनन्त ब्रह्माण्ड (ब्रह्माण्ड गतिमान है) का अक्ष/धुरी ही लिंग हैhttps://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/8/8f/Shivling_in_Abu.JPG


पुराणो में शिवलिंग को कई अन्य नामो से भी संबोधित किया गया है जैसे : प्रकाश स्तंभ/लिंग, अग्नि स्तंभ/लिंग, उर्जा स्तंभ/लिंग, ब्रह्माण्डीय स्तंभ/लिंगशिवलिंग भगवान शिव और देवी शक्ति (पार्वती) का आदि-आनादी एकल रूप है तथा पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतिक भी अर्थात इस संसार में न केवल पुरुष का और न केवल प्रकृति (स्त्री) का वर्चस्व है अर्थात दोनों सामान है | हम जानते है की सभी भाषाओँ में एक ही शब्द के कई अर्थ निकलते है जैसे: सूत्र के - डोरी/धागा, गणितीय सूत्र, कोई भाष्य, लेखन को भी सूत्र कहा जाता है जैसे नासदीय सूत्र, ब्रह्म सूत्र आदि | अर्थ :- सम्पति, मतलब  उसी प्रकार यहाँ लिंग शब्द से अभिप्राय चिह्न, निशानी या प्रतीक है, लिङ्ग का यही अर्थ वैशेषिक शास्त्र में कणाद मुनि ने भी प्रयोग किया। ब्रह्माण्ड में दो ही चीजे है : ऊर्जा और पदार्थ। हमारा शरीर प्रदार्थ से निर्मित है और आत्मा ऊर्जा है। इसी प्रकार शिव पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक बन कर शिवलिंग कहलाते है | ब्रह्मांड में उपस्थित समस्त ठोस तथा उर्जा शिवलिंग में निहित है। वास्तव में शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड की आकृति है | अब जरा आईंसटीन का सूत्र देखिये जिस के आधार पर परमाणु बम बनाया गया, परमाणु के अन्दर छिपी अनंत ऊर्जा की एक झलक दिखाई जो कितनी विध्वंसक थी 

इसके अनुसार पदार्थ को पूर्णतयः ऊर्जा में बदला जा सकता है अर्थात दो नही एक ही है पर वो दो हो कर स्रष्टि का निर्माण करता है। हमारे ऋषियो ने ये रहस्य हजारो साल पहले ही ख़ोज लिया था | हम अपने देनिक जीवन में भी देख सकते है कि जब भी किसी स्थान पर अकस्मात् उर्जा का उत्सर्जन होता है तो उर्जा का फैलाव अपने मूल स्थान के चारों ओर एक वृताकार पथ में तथा उपर व निचे की ओर अग्रसर होता है अर्थात दशोदिशाओं की प्रत्येक डिग्री (360 डिग्री)+ऊपर व निचे) होता है, फलस्वरूप एक क्षणिक शिवलिंग आकृति की प्राप्ति होती है जैसे बम विस्फोट से प्राप्त उर्जा का प्रतिरूप, शांत जल में कंकर फेंकने पर प्राप्त तरंग (उर्जा) का प्रतिरूप आदि।

स्रष्टि के आरम्भ में महाविस्फोट  के पश्चात् उर्जा का प्रवाह वृत्ताकार पथ में तथा ऊपर व नीचे की ओर हुआ फलस्वरूप एक महाशिवलिंग का प्राकट्त  जिसका वर्णन हमें लिंगपुराण, शिवमहापुराण, स्कन्द पुराण आदि में मिलता  भगवान शिव की जगह-जगह पूजा हो रही है, लेकिन पूजा की वात नहीं है। शिवत्व उपलब्धि की बात है। वह जो शिवलिंग हमने देखा है बाहर मंदिरों में, वृक्षों के नीचे, हमने कभी ख्याल नहीं किया, उसका आकार ज्योति का आकार है। जैसे दीये की ज्योति का आकार होता है। शिवलिंग अंतर्ज्योति का प्रतीक है। जव हम्हारे भीतर का दीया जलेगा तो ऐसी ही ज्योति प्रगट होती है, ऐसी ही शुभ्र! यही रूप होता है उसका। और ज्योति बढ़ती जाती है, बढ़ती जाती है। और धीरे  धीरे ज्योतिर्मय व्यक्ति के चारों तरफ एक आभामंडल होता है; उस आभामंडल की आकृति भी अंडाकार होती है।

स.तो इस सत्य को सदियों पहले जान लिया था। लेकिन इसके लिए कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं थे। लेकिन  रूस में एक बड़ा वैज्ञानिक प्रयाग ची नहा है-किरलियान फोटोग्राफी। मनुष्य के आसपास जो ऊर्जा का मंडल होता है, अब उसके चित्र लिये जा सकते हैं। इतनी सूक्ष्म फिल्में बनाई जा चुकी हैं, जिनसे न केवल तुम्हारी देह का चित्र बन जाता है, बल्कि देह के आसपास जो विद्युत प्रगट होती है, उसका भी चित्र बन जाता है। और किरलियान चकित हुआ है, क्योंकि जैसे -जैसे व्यक्ति शांत होकर बैठता है, वैसे – वैसे उसके आसपास का जो विद्युत मंडल है, उसकी आकृति अंडाकार हो जाती है। उसको तो शिवलिंग का कोई पता नहीं है, लेकिन उसकी आकृति अंडाकार हो जाती है। शांत व्यक्ति जब बैठता है ध्यान तो उसके आसपास की ऊर्जा अंडाकार हो जाता है। अशांत व्यक्ति के आसपास की ऊर्जा अंडाकार नहीं होती, खंडित होती है, टुकड़े -टुकड़े होती है। उसमें कोई संतुलन नहीं होता। एक हिस्सा छोटा- कुरूप होती है।में निर्मित शिवलिंग इतना विशाल तथा की देवता आदि मिल कर भी उस लिंग के आदि और अंत का छोर या शास्वत अंत न पा सके हमारे शरीर मे भी सात चक्रो की    Akriti आकृति muladhar chakkar से यात्रा शुरू होती है  शिवलिंग के अकार की तरह है बात करते हैं शिवलिंग पर जल सहित, भांग, धतूरा, बेलपत्र आदि चढ़ाने की। आपको जानकर हैरानी होगी कि शिवलिंग खुद में न्यूक्लियर रिएक्टर का सबसे बड़ा सिम्बल है। इसकी पौराणिक कथा तो ब्रह्मा और विष्णु के बीच एक शर्त से जुड़ी है। शिवलिंग ब्रह्माण्ड का प्रतिनिधि है। जितने भी ज्योतिर्लिंग हैं, उनके आसपास सर्वाधिक न्यूक्लियर सक्रियता पाई जाती हैयही कारण है कि शिवलिंग की तप्तता को शांत रखने के लिए उन पर जल सहित बेलपत्र, धतूरा जैसे रेडियो धर्मिता को अवशोषित करने वाले पदार्थों को चढ़ाया जाता है।

आप देखेंगे कि कई ऐसी मान्यताएं केवल परंपरा व धर्म के नाम पर निभाई जाती हैं किंतु यदि उनकी गहराई से छानबीन की जाए  Rajesh Kumar 07597718725 09414481324

रविवार, 2 दिसंबर 2018

शेयर बाजार ओर ज्योतिष

ज्योतिष का अच्छा ज्ञान होने के कारण मैंने अक्सर कुंडली (kundli, horoscope) और शेयर मार्किट में होने वाले फायदे और नुक्सान के संबंधों पर विशेष ध्यान दिया है. इसके साथ ही मुझे कई लोगों को स्टॉक मार्किट में ट्रेडिंग सिखाने का मौका मिला.

 इस दौरान मैंने उनकी कुंडली का भी अध्ययन किया और यह पाया की ग्रहों की दशा का असर, आपकी ट्रेडिंग और निवेशक के द्वारा लिए जाने वाले निर्णय पर पड़ता है. मेरे कई जातकोऔर साथी ट्रेडर्स, निवेशकों ने कई बार ऐसे स्टॉक्स (stocks), फ्यूचर या आप्शन (पुट और कॉल) ख़रीदे और नुक्सान उठाया जिनमें की सामान्य दशा में वह कभी भी ट्रेड नहीं करते. ऐसे में मेरे पास सलाह के लिए आने पर मुझे उनकी कुंडली (kundali, kundli, horoscope) देखने का मौका मिला और यह पाया की ज्यादातर ऐसे निर्णयों के लिए उनकी ग्रह दशा जिम्मेदार थी. भारतीय ज्योतिष (में नौ ग्रहों सत्ताईस नक्षत्रों  बारह राशियों  और कुंडली के बारह भावों या घर  आदि की स्तिथियों के अनुसार व्यक्ति का भूत, भविष्य और वर्तमान का पता लगाया जा सकता है इसके साथ ही कुंडली में लग्न, भाव, दशा, महादशा आदि का विचार करके जातक (वह व्यक्ति जिसकी कुंडली का अध्ययन किया जा रहा है) को फायदा होगा या नुक्सान आदि का पता लगाया जा सकता है.गोचर की स्थिति पर भी शेयर बाजार की मंदी तेजी प्रभाव रखती है  जैसे शेयर बाजार की तेजी शनि के वक्री होने के बाद होती है.शेयर बाजार की मन्दी शनि के मार्गी होने के दो माह बाद होती हैबुध वक्री,शनि मंगल का साथ शानि राहु का साथ शेयर बाजार को तेज रखता है.वक्री बुध शेयर बाजार में तेजी लाता हैबुध अस्त समय मे मन्दी का कारक होता है.सूर्य से बुध की युति में अस्त और उदय होने की स्थिति शेयर बाजार के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है। जब बुध का अस्त पूर्व दिशा में होता है तब शेयर के भाव तेजी की तरफ होते हैं, किंतु जब बुध का अस्त पश्चिम दिशा में होता है, तब बाजार में मंदी का माहौल बनता है। इसी तरह जब बुध का उदय पूर्व दिशा में होता है, तब बाजार में तेजी का और जब पश्चिम दिशा में होता है, तब मंदी का माहौल बनता है। सूर्य का गोचर भ्रमण विभिन्न नक्षत्रों से होता है, तब तेजीकारक या मंदीकारक या मिश्रफल कारक नक्षत्रों के प्रभाव से शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव आते हैं। सूर्य को एक राशि का भ्रमण पूरा करने में एक माह लगता है। शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव में गोचर  की भूमिका अहम होती है।मंगल के वक्री होने के समय सोने में तेजी आती है,धन का कारक  शुक्र है बुध धन की छाप है,गुरु उसकी कीमत है,सूर्य राजकीय नियंत्रण है,मंगल उसका तकनीकी रूप से विकसित करने का काम है,चन्द्रमा प्रचलन में है,केतु खाली स्थान है और राहु भरने वाला कारक है,जिस ग्रह के साथ होगा उसे केतु खाली करेगा और राहु जिस स्थान और ग्रह के साथ होगा उसे उसी प्रभाव से भरेगा.दूसरे का चौथा पंचम,पंचम का चौथा अष्टम,अष्टम का चौथा ग्यारहवां भाव,धन के व्यापार से देखा जाता है,अगर केतु इन स्थानो मे है तो इन भावो को खाली करेगा और इसके विपरीत वाले भाव राहु के बल से भरने का काम करेंगे,बाकी के ग्रह अपने अपने अनुसार शक्ति देंगे.नकद पूंजी दूसरे भाव से पंचम की बुद्धि से व्यवसाय का रूप और स्थान लेकर अष्टम की जोखिम से लाभ वाले स्थान की पूर्ति और इनसे एक घर भी आगे निकल गये तो हानि का घर ही सामने आयेगाआप चाहे छत्तीस प्रकार की टेक्निकल एनालिसिस कर ले या दुनिया भर की रिसर्च, चार्ट्स आदि का अध्ययन कर ले, बड़े से बड़ा मार्किट एक्सपर्ट या टिप्स, सब चीज़े बेकार हो जाती है अगर आपकी किस्मत में पैसा नहीं लिखा है. जैसे ही आप ट्रेड लगाते है या निवेश करते है, आपका अपना अनुभव होगा की बाजार में ऐसी खबर आएगी जिससे की आपका शेयर या बाजार पलट जायेगा और आप घाटे  या नुक्सान में चले जायेंगे. इसका एक कारण आपकी मनस्थिति है. नव ग्रहों का आपकी मनस्थिति पर ऐसा असर पड़ता है की आप मूर्खतापूर्ण निर्णय लेते है और बाद में पछताते है.

बुधवार, 28 नवंबर 2018

चुनाव को जीतने का तरीका

चुनाव को जीतने का तरीका
चुनाव के अन्दर प्रत्याशी बनने और चुनाव को जीतने मे बहुत जद्दोजहद करनी पडती है,कोई धन का बल लेकर चुनाव जीतना चाहता है कोई अपने बल और दादागीरी पर चुनाव जीतना चाहता है,किसी के पास दादागीरी और धन दोनों ही नही है तो वह भलमन्साहत से चुनाव जीतने की कवायद करता है। 

लेकिन सभी कुछ होने के बाद भी जब व्यक्ति चुनाव हार जाता है,तो उसकी जनता ही नही अपनी खुद की आत्मा भी धिक्कारती है कि अमुक कारण का निवारण अगर हो जाता तो चुनाव जीता जा सकता था। चुनाव का जीतना और राज करना दोनो ही अलग अलग बातें है,एक साधारण और कम पढा लिखा आदमी भी चुनाव जीत सकता है,और बहुत पढा व्यक्ति भी किसी नेता की चपरासी के अलावा कुछ नही कर सकता है,यह सब आदमी के बस की बात नहीं,यह सब होता है सितारों का खेल,अगर सितारे माफ़िक हों तो सभी कुछ हो सकता है,और अगर सितारे बस में नही है और खिलाफ़ है तो वह बना बनाया काम भी बरबाद होते देर नहीं लगती है। कोई भी ज्योतिषी सितारे खराब है या अच्छे है बता सकता है,खिलाफ़ सितारों के लिये उपाय के अन्दर सितारों को माफ़िक करने का रत्न धारण करवा सकता है टोटका करवा सकता है,लेकिन सितारे तो ठहरे सितारे,अगर किसी प्रकार के टोटके से सितारे बस में हो जायें तो आदमी की मृत्यु भी आती है,ज्योतिषी की भी आती है,अगर कोई रत्न या टोटका काम करता होता तो मौत तो आती ही नहीं,महर्षियों ने मृत्यु पर विजय प्राप्त की थी,लेकिन किसी रत्न या टोटके से नही की थी,उन्होने सितारों पर बिना किसी यान के यात्रा की थी,उन्होने आज से हजार साल पहले बता दिया था कि अमुक सितारा किस प्रकार का है,अमुक सितारे का मालिक कौन है आदि।कौन खिलाफ़ है और कौन माफ़िक
जन्म कुंडली से पता किया जा सकता है कि सितारे माफ़िक है,या खिलाफ़,और खिलाफ़ है तो किस कारण से है,राज करने का सितारा अगर खराब है तो किस कारण से खराब है,खराबी सितारे के बैठने के स्थान पर है,या सितारा जहां बैठा है वहां पर किसी खराब सितारे की निगाह है,या पडौस में कोई खराब सितारा अपनी नजर रखकर की जाने वाली सभी हरकतें दुश्मनों को सप्लाई कर रहा है,अथवा समय आने पर कोई दुश्मन सितारा अपने राज करने के सितारे से आकर टकराने वाला है,अथवा सितारा जिस स्थान पर बैठा है,वहां पर राज करने के लिये ठंडे माहौल की जरूरत है,और राज करने के लिये टकराने के समय में कोई गर्म सितारा आकर अपने अनुसार गर्मी का माहौल पैदा करने वाला है।

चुनाव जीतने के तीन बल
इन सब कारणों का पता करने के बाद तीन बलों का सामजस्य बैठाना जरूरी है,वैसे तो यह तीन बल सभी काम के लिये उत्तम माने जाते है लेकिन राज करने वाले के लिये यह तीनो बल हमेशा जरूरी है,इन तीन बलों को पहिचानना बहुत जरूरी होता है,जो इन तीन बलों का सामजस्य बनाकर चल दिया है वह सबसे अधिक तरक्की के रास्ते पर चला गया,और जिसे इन तीनों बलों का सामजस्य नहीं करना आता है वह सब कुछ होते भी बरबाद होता चला जाता है,आइये आपको इन तीनों बलों का ज्ञान करवा देते हैं,अपनी कुंडली को खोल कर देखिये कि यह तीनों बल आपके किस किस भाव में अपनी शोभा बढा रहे है,और यह तीनो बल आपकी किन किन सफ़लता वाली कोठरियों के बंद तालों को खोल सकते है।

मानव बल
मानव बल संसार का पहला बल है,किसी भी स्थान पर आपको देखने से पता चलता है,कि जिसके साथ जितने हाथ ऊपर हो जाते वह ही अपनी प्रतिष्ठा को कायम कर लेता है,लेकिन मानव बल भी दो प्रकार का होता है,एक देह बल होता है और दूसरा जीव बल होता है,देह बल की गिनती की जाती है लेकिन जीव बल की गिनती नहीं की जा सकती है,दबाब में आकर देह बल तो साथ रहने की कसम खा लेता है,लेकिन जीव बल का ठिकाना नहीं होता है कि वह अपनी चाहत किसके साथ रखे है,शरीर का किस्सा है कि इसके अन्दर बारह प्रकार के जीव बल विद्यमान है,और जो जीव बल आपके जीव बल से सामजस्य रखता है वही आपको किनारे पर ले जा सकता है,देह बल तो कभी भी बिना जीव बल के दूर हो सकता है,किसी देह के अन्दर किसी प्रकार का जीव बल अपना स्थान बना सकता है,लेकिन जीव बल के अन्दर देह बल अपना कुछ प्रभाव नही दे सकता है। जब मनुष्य जन्म लेता है तो जीव बल एक ही स्थान पर रहता है,अन्य बल अपना प्रभाव बदल सकते है,लेकिन जीव बल कभी भी अपना स्थान नही बदलता है,केवल स्वभाव के अन्दर कुछ समय के लिये अपना बदलाव कर सकता है।भौतिक बल
मानव बल के बाद दूसरा नम्बर भौतिक बल का आता है,बिना मानव बल के भौतिक बल का कोई महत्व नही है,भौतिक बल के अन्दर घर द्वार सम्पत्ति सोना चांदी रुपया पैसा आदि आते है,भौतिक बल भी बारह प्रकार का होता है,और इन बारह प्रकार के भौतिक बलों को पहिचानने के बाद मानव बल और भी परिपूर्ण हो जाता है।

दैव बल
मानव बल और भौतिक बलों के अलावा जो सबसे आवश्यक बल है वह दैव बल कहलाता है,बिना दैव बल के न तो मानव बल का कोई आस्तित्व है और न ही भौतिक बल की कोई कीमत है,मानव बल और भौतिक बल समय पर फ़ेल हो सकता है लेकिन दैव बल इन दोनो बलों के समाप्त होने के बाद भी अपनी शक्ति से बचाकर ला सकता है। दैव बल के अन्दर जो बल आते हैं उनके अन्दर विद्या का स्थान सर्वोपरि है,विद्या के बाद ही शब्द शक्ति की पहिचान होती है,और शब्द शक्ति के पहिचानने के बाद उसी शरीर से या भौतिक बल से किसी प्रकार से भी प्रयोग किया जा सकता है,शब्द शक्ति से व्यक्ति की जीवनी बदल जाती है,शब्द शक्ति से माता बच्चे को आजन्म नहीं त्याग पाती है,और शब्द शक्ति के सुनने के बाद आहत को लेकर लोग अस्पताल चले जाते है।

तीनों बलों को प्राप्त करने का तरीका
इन तीनो बलों को केवल विद्या और शब्द शक्ति से ही प्राप्त किया जा सकता है,लेकिन अन्तर रूप से जीव बल का होना भी जरूरी है,केवल देह बल का घमंड नही करना चाहिये,देह तो कमजोर भी काम कर जाती है,लेकिन जीव बल कमजोर होने पर विद्या और भौतिक बल भी कमजोर हो जाते है। इन तीनो बलों का सामजस्य बैठाना ही एक समझदार की कला होती है,आइये आपको इन तीनो बलों को प्राप्त करने के तरीके बताता हूँ। भगवान गणेश मानव बल के देवता है,माता लक्ष्मी भौतिक बल की दाता है,और माता सरस्वती विद्या तथा शब्द बल की प्रदाता है,इन तीनों देव शक्तियों का उपयोग चुनाव में शर्तिया सफ़लता दिला सकती है। इन तीनो शक्तियों को प्राप्त करने के लिये आज के युग में गणेश जी के रूप में संगठनों के मुखिया,लक्षमी के रूप में धनिक लोगों का साथ,और सरस्वती मैया के रूप में कालेज और स्कूलों के अध्यापकों को साथ रखने का लाभ पूरी तरह से मिल सकता है। रिस्तेदारी में गणेशजी के रूप में साला,बहनोई,भान्जा,भतीजा चुनाव मे अन्दर काम आ सकते है,लक्ष्मी के रूप में हर घर की गृहणियां काम आ सकती है,इनके लिये पति को पत्नी का और पत्नी को पति का साथ लेना चाहिये,सरस्वती के रूप में बडे बूढे और घर के परिवार के रिस्तेदारों का साथ जरूरी है। ग्रहों के अन्दर केतु गणेशजी के शुक्र लक्ष्मी के और राहु सरस्वती का कारक है। जातियों के अन्दर केतु एस सी और एस टी के अन्दर,शुक्र महिला संगठनो और मीडिया के अन्दर,सरस्वती मुस्लिम और शब्द-धर्मी लोगों के साथ काम आ सकता है।

बिना राहु की सहायता के चुनाव नही जीता जा सकता है
जिस प्रकार से आसमान सभी के सिर पर छाया हुआ है और इसी आसमान से सूर्य भी उदय होता है तारे भी दिखाई देते है तथा चन्द्रमा का उदय होना और अस्त होना भी देखा जाता है.राहु सभी को धारण भी करता है और बरबाद भी करता है इसलिये राहु को विराट रूप मे देखा जाता है,महाभारत के युद्ध मे अर्जुन को मोह से दूर करने के लिये भगवान श्रीकृष्ण ने विराटरूप का प्रदर्शन किया था जिसके द्वारा उन्होने दिखाया था कि संसार उनके मुंह के अन्दर समा भी रहा है और संसार की उत्पत्ति भी उन्ही के द्वारा हो रही है,इस रूप का नाम ही विराट रूप में देखा जाता है.राजनीतिक क्षेत्र मे एक प्रकार का प्रभाव जनता के अन्दर प्रदर्शित करना होता है जिसके अन्दर जनता के मन मस्तिष्क मे केवल उसी प्रत्याशी की छवि विद्यमान रहती है जिसका राहु बहुत ही प्रबल होता है,अक्सर राजनीतिक पार्टिया राहु को प्रयोग करती है उस राहु को वे अपने नाम से और नाम को समुदाय विशेष से जोड कर रखती है.अगर पार्टी समुदाय विशेष से जोड कर नही चलेगी या किसी भी समुदाय को अपने हित के लिये प्रयोग मे लाना चाहेगी तो वह कभी भी किसी भी समय समुदाय विशेष के रूठने पर या किसी भी बात के बनने से वह दूर हो सकता है तथा जीती हुयी जीत भी हार मे बदल सकती है.कोई भी पार्टी चाहे कि वह धन की बदौलत जीत हासिल कर ले यह नही हो सकता है कभी कभी आपने देखा होगा कि एक पार्टी लाखो करोडो खर्च करने के बाद भी जीत हासिल नही कर पाती है और एक बिना पैसे को खर्च किये पार्टी अपनी छवि को सुधारती चली जाती है,इस बात को प्रभाव मे लाने के लिये राहु को विशेष दर्जा दिया जाता है.राहु उल्टा चलता है और इस उल्टी गति को समाज मे फ़ैलाने के लिये लोग पहले जनता के अन्दर भय का माहौल भरते है और उसके बाद अपनी गतियों से जनता मे उल्टे कामो को दूर करने के लिये अपनी स्थिति को दर्शाते है और इसी प्रकार से जनता के अन्दर अपनी छवि को बनाकर अपनी उपस्थिति को प्रदान करते है परिणाम मे वे जीत कर सामने आजाते है.राहु कभी भी अपनी स्थिति को जीवन मे प्रदान कर सकता है सूर्य और राहु के अन्दर यह देखा जाता है कि सूर्य के अन्दर बल कितना है अगर सूर्य की रश्मिया तेज है तो राहु उन्हे चमकाने के लियेतोराहु उन्हे चमकाने के लिये अपनी गति को प्रदान करता है और राहु अगर मजबूत है और सूर्य की गति अगर धीमी है तो जरूरी होता है कि सूर्य अपनी स्थिति को नही दिखा पाता है इस बात को अक्सर देखा होगा कि जन्म लेने के समय यानी सूर्य उदय होने के समय राहु अपनी स्थिति को एक धुंधले प्रकाश के रूप मे सामने रखता है यह बात उन लोगों के लिये मानी जाती है जो अपने बचपने के कारण राजनीति से जुड तो जाते है लेकिन अपने को केवल एक दिशा विशेष से ही सामने ला पाते है अगर बीच का सूर्य यानी दोपहर का सूर्य जो जवानी के रूप मे माना जाता है और वह अपना प्रकाश राहु के द्वारा क्षितिज पर फ़ैला कर आया है तो लोग उस व्यक्ति पर चारों तरफ़ से आकर्षित होकर उसे ही देखने के लिये फ़िर से अपना प्रयास करने लगते है.राहु बुध के साथ मिलकर बोलने की क्षमता देता है तो राहु मंगल के साथ मिलकर अपनी शक्ति से जनता के अन्दर नाम कमाने की हैसियत देता है राहु सूर्य के साथ मिलकर राजकीय कानूनो और राजकीय क्षेत्र के बारे मे बडी नालेज देता है वही राहु गुरु के साथ मिलकर उल्टी हवा को प्रवाहित करने के लिये भी देखा जाता है,राहु शनि के साथ मिलकर मजदूर संगठनो का मुखिया बना कर सामने लाता है तो राहु शुक्र के साथ मिलकर लोगों के अन्दर चमक दमक से प्रसारित होने अपने को समाज मे दिखाने और अपने द्वारा मनोरंजक बातों के प्रति सामने रखने से माना जा सकता है.

 राहु हर अठारह साल मे मानसिक गति को बदल देता है इस राहु के द्वारा ही दक्षिण का शासन भारत पर हुआ है और जो भी चलने वाली प्रथा समाज आदि है उनके प्रति भयंकर बदलाव देने के लिये अपनी शक्ति को देने वाला बना है.उपनी स्थिति को बनाकर सामने लाने के लिये पहले शासन करता है और वही केतु अपनी युति से राहु के द्वारा खर्च कर दिया जाता है,जैसे आपरेशन ब्लू स्टार को ही देख लीजिये,भाजपा का पतन भी देखा होगा कांग्रेस का अक्समात सफ़ाया भी देखा भाजपा पार्टीीी का फिर  उठना यह  सब राहु की ही करामात का परिणाम था.अक्सर  लोग एक नशे के अन्दर आजाते है और उन्हे केवल अपने अहम के अलावा और कुछ नही दिखाई देता है वे समझते है कि वे ही अपने धन और बाहुबल से सब कुछ कर सकते है राहु उनकी शक्ति को अपने ही कारण बनवा कर उन्हे ग्रहण दे देता है,लेकिन जो सामाजिक मर्यादा से चलते है समाज को राजनीति से सुधारने के लिये अपने प्रयासो को करते है राहु उन्हे भी ग्रहण देता जरूर है पर कुछ समय बाद उन्हे उसी प्रकार से उगल कर बाहर कर देता है जैसे हनुमान जी लंका मे जाते समय सुरसा के पेट मे गये जरूर थे लेकिन अपने बुद्धि और पराक्रम के बल पर बाहर भी आ गये थे,वहां पर उनकी यह धारणा बिलकुल नही थी कि वे अपने काम के लिये जा रहे है या अपने ही हित के लिये कोई साधन बना रहे है,वे राम के कार्य के लिये जा रहे थे और राम कार्य ही उनके लिये सर्वोपरि था.यह भी इतिहास बताता है कि जब भी राहु ने राजनीतिक लोगो को ग्रहण दिया है वे कभी भी उस ग्रहण से नही निकल पाये है उनके साथ चलने वाले लोग ही उनके दुश्मन बनकर सामने आये है और उन्हे डुबोकर खुद को सामने करते देखे गये है.

राहु का मुख्य उपाय आप अपनी कुंडली दिखा कर हमसे संपर्क करके आप प्राप्त कर सकते हैं

राहु के लिये कितने ही यज्ञ किये जाये राहु के लिये कितने ही रत्न धारण किये जाये लेकिन राहु कभी भी शांत नही होता है जिस प्रकार से एक शराबी का नशा दूर करने के लिये कितने ही उपाय किये जाये वह अपनी शराब का नशा दूर नही जाने देता है उसी प्रकार से राहु जो राजनीति का नशा देता है या किसी प्रकार से अपनी योग्यता को जाहिर करने के लिये अपने बल को देता है अगर राहु का तर्पण नही किया जाता है वह कभी भी अपने दुष्परिणामो को नही रोक सकता है.व्यक्ति के पास जब तक अपने पूर्वजो का बल नही है वह अपने आसपास के रहने वाले अद्रश्य शक्ति के कारणो पर विश्वास नही करता है जैसे स्थान देवता वास्तु देवता पास की नदी समुद्र गंवादेवी स्थान योगिनी समुदायिक शक्ति को प्रदान करने वाली गणयोगिनी राजलक्ष्मी के रूप मे सहायता करने वाली तारासुन्दरी आदि व्यक्ति की सहायक नही होती है तो राजनीति मे प्रवेश पाना बहुत ही मुश्किल ही नही असम्भव माना जाता है,अक्सर जो राजनीति मे ऊपर उठने के लिये अपने प्रयास करते है उनके आसपास कोई न कोई तांत्रिक जरूर देखा जाता है उस तांत्रिक के पास वह सब कारण बनाने के लिये योग्यता होती है जो व्यक्ति को आने वाले खतरे से दूर भी करती है और उसके द्वारा किये गये जरा से काम को बहुत ऊंचा करने के  में विजय प्राप्ति हेतु बगलामुखी कवच और त्रिशक्ति कवच प्राप्त करके गले में धारण करें। इसके धारण से विरोधियों  को नर्वस करने में सुविधा मिलेगी। माहौल भी मजबूत बनेगा। ग्रहों  को कंट्रोल करना भी इनका काम है  अधिक जानकारी हेतु आप हमसे संपर्क कर सकते हैं

सोमवार, 26 नवंबर 2018

कौन बनेगा प्रधानमंत्री 2019 में राहुल गांधी या नरेंद्र मोदी

2019 मेदेश की राजनीति में क्या उथल-पुथल होगी, 

अगले चुनाव में कौन प्रधानमंत्री बनेगा क्या कहती है पीएम मोदी की कुंडली ओर राहुल गांधी की पहले वात करते हैं नरेन्द्र मोदी जी की  मित्रो बहुत ही सरल भाषा में दोनों की कुंडली का विश्लेषण कर रहा हूं आप खुद ही अंदाजा लगा सकते है कि अगला प्रधानमंत्री कौन होगा यहां मैं कोई भविष्यवाणी नहीं कर रहा सिर्फ ज्योतिषी नजर से कुंडलियों का विश्लेषण सरल भाषा में सिंपल भाषा में कर रहा हूं पूरा फल इतना नहीं कर रहा हूं मित्रों बस थोड़ा कुंडलीयोको आप समझे और पूरी पोस्ट को पढ़ें

अब बात की जी रही है पीएम मोदी की कुंडली की। पीएम मोदी की कुंडली वृश्चिक लग्न वृश्चिक राशि की है। साथ ही पीएम मोदी की कुंडली में चंद्रमा की महादशा चल रही है। जो वर्ष 2021 तक चलेगी। चंद्र अनुराधा नक्षत्र में बैठा है जो शनि का है शनि का संबंध दंसव भाव से हो रहा है दसवे घर में बैठे शनि, शुक्र का मेल इन्सान को एक अच्छा राजनेता वनाता  है  पीएम मोदी की कुंडली में चन्द्रमा की महादशा में बुध का अंतर चल रहा है, यह स्थिति 3 मार्च 2019 तक रहेगी।वुघ का संवघ भी दंसव से हो रहा है इसके ठीक बाद कुंडली में केतु का अतर आयेगा।  इसके अतिरिक्त वृश्चिक लग्र के लिए बृहस्पति पंचमेश में होता है। यह स्थिति बहुत अच्छी मानी गई है। तो बता दें  जिसका फायदा पीएम मोदी को 2019 चुनाव में होगा और एक बार पीएम नरेन्द्र मोदी के चलते बीजेपी को बहुमत या फिर सबसे अधिक सीट मिल सकती है।

पीएम मोदी के कारण ही बीजेपी को लाभ होगा। तो यहां बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिलने का दावा कर  सकता हु,  बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनेगी और फिर से देश की सत्ता पीएम मोदी के हाथों में होगी। 

  अब बात करते हैं राहुल गांधी जी की कुंडली की कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की कुंडली बताती है कि वे दमदार नेतृत्व के साथ उभरेंगे, लेकिन कुछ कमियों से वे पीछे रह सकते हैं । जाने राहुल गांधी के कुंडली के ग्रहों के अनुसार क्या होगा उनका कराजनीतिक भविष्य(Rahul Gandhi) का जन्म भारत वर्ष के दिल्ली प्रदेश में दिनांक 18 जून 1970 को को रात्रि 9 बज कर 52 मिनट पर हुआ राहुल गाँधी जी के जीवन में अनेकों परिस्थितियों जैसे उतार-चढ़ाव दिखने को मिलते हैं आज बात करते हैं इस समय उनकी कुंडली में चंद्रमा की महादशा में शनि का अंतर चल रहा हैचन्द्रमा ( Moon) उनकी कुंडली में नीच  राशि में छठे स्थान में बैठा है , साथ ही छठे भाव का स्वामी मंगल लग्न में और मिथुन लग्न होने से लग्न का  स्वामी बुध ग्रह बनता है बारहवे स्थान में , मैंने हमेशा कहा है की अगर लग्न या दशम का बारहवे भाव से सम्बन्ध बन रहा है तो राजभंग  योग का निर्माण होता है इनके कुंडली के 5 भाव में शुक्र (venus) भी नवमांश कुंडली में नीच का है अतः राजभंग योग के जितने कारण बन सकते है सब कुंडली में उपलब्ध है।

इस समय में उनके बारहवा और छठा (12th house और 6th House) भाव पूरी तरह से Active थे , साथ ही चन्द्रमा बुध के नक्षत्र में (12th house से connection ) और बुध चन्द्रमा के नक्षत्र में (6th house से connection) , चन्द्रमा आत्मकारक ग्रह भी है और हमेशा मैंने कहा है की दशा बहुत कड़वे अनुभवों वाली रहती है

राहुल गाँधी जी का वर्तमान समय ग्रहों के हिसाब से   कुंडली में बैठे ग्रहो जैसे सर्व प्रथम कुंडली में बैठे वाणी करक गृह बुध को प्रबल व समाधान करना होगा और साथ ही राजनितिक का स्वामी शनि गृह जो कुंडली में नीच राशि का हे कुंडली में  मे चंद्र भी नीच राशि का स्थित हैअव भारत की कुंडली 

15/08/1947रात 12वजे अव मित्रों मोदी जी कुंडली राहुल गांधी जी कुंडली ओर भारत की कुंडली में आप देखेंगे की एक वात कोमन है कि सभी की चंद की माहादश चल रही है अभी उस समय मोदी की कुंडली राहुल गांधी की कुंडली पर काफी भारी दिखाई दे रही है यही बात मैं इस पोस्ट में समझाना चाहता था कि मोदी के सामने राहुल ही क्यों?  

शनिवार, 24 नवंबर 2018

वक्री ग्रह

वक्री ग्रह

आज वक्री ग्रहों के बारे में बात करते हैकी बक्री.वक्री का सामान्य अर्थ उल्टा होता है वबक्री का अर्थ टेढ़ा..साधारण दृष्टि से देखें या कहेंतो सूर्य,बुध आदि ग्रह धरती से कोसों दूर हैं.भ्रमणचक्र मेंअपने परिभ्रमण की प्रक्रिया में भ्रमणचक्र के अंडाकारहोने से कभी ये ग्रह धरती से बहुत दूर चले जाते हैं

तो कभी नजदीक आ जाते हैं.जब जब ग्रह पृथ्वी केअधिक निकट आ जाता है तो पृथ्वी की गति अधिकहोने से वह ग्रह उलटी दिशा की और जाता महसूसहोता है.उदाहरण के लिए मान लीजिये की आप एक तेजरफ़्तार कार में बैठे हैं,व आपके बगल में आप ही की जानेकी दिशा में कोई साईकल से जा रहा है तो जैसेही आप उस साईकल सवार से आगे निकलेंगेतो आपको वह यूँ दिखाई देगा मानो वो आपसेविपरीत दिशा में जा रहा है.जबकि वास्तव में वहभी आपकी दिशा की और ही जा रहा होता है.आपकी गति अधिक होने से एकएक दूसरे को क्रोस करने के समय आगे आने के बावजूद वह

आपको पीछे यानि की उल्टा जाता दिखाई देता है.और जाहिर रूप से आप इस प्रभाव को उसी गाडी सवार ,या साईकिल सवार के साथ

महसूस कर पाते है जो आपके नजदीक होता है,दूर केकिसी वाहन के साथ आप इस क्रिया को महसूस

नहीं कर सकते. ज्योतिष की भाषा में इसे कहा जायेगा की साईकिल सवार आप से वक्री हो रहा है.यही ग्रहों का पृथ्वी से

वक्री होना कहलाता है.सीधे अर्थों में समझें की वक्री ग्रह पृथ्वी से अधिक निकट हो जाता है.अब निकट होने से क्या होता होगा भला?

यही होता है की ग्रह का असर ,ग्रह का प्रभाव बढ जाता है. कई ज्योतिषियों का इस विषय पर अलगअलग मत है.कहा यह भी जाता है की वक्री होने से ग्रह उल्टा असर देने लगता है.आप जलती हुई भट्टी से दूरबैठे हैं,जैसे ही आप भट्टी के निकट जाते हैं

तो आपको अधिक गर्मी लगने लगती है.क्यों?क्योंककिआपके और भट्टी के बीच की दूरी कम हो गयी है.भट्टी में तो आग तब भी उतनी ही थी जबआप उससे दूर थे,व अब भी उतनी ही है जब आप उसके नजदीक हैं.आग में कोई भी फर्क नहीं आया है बस नजदीक होने से हमें उसका प्रभाव अब प्रबलता से महसूस हो रहा है. एक अन्य उदाहरण लीजिये, आप किसी पंखे

से दूर बैठे हैं जहाँ पंखे की बहुत कम हवा आप तक आ रही है,आप अपनी कुर्सी उठा कर पंखे के निकट आ जाते हैं,अब आप पंखे की हवा को अधिक जोर से महसूस कर रहे

हैं.जबकि पंखा अब भी उसी स्पीड पर चल रहा है जिस पर पहले चल रहा था.प्रभाव में अंतर दूरी घटने से हुआ है,अवस्था में कोई फर्क नहीं आया है.इसी प्रकार यहमानना की वक्री होने से ग्रह अपना उल्टा असर देने लगेगा यह मान लेना है की भट्टी के निकट जाने से वह ठंडी हवा देने लगेगी,या निकट आने पर पंखा आग उगलने लगेगा.ग्रह के वक्री होने से उसके नैसर्गिक गुण में ,उसके व्यवहार में किसी प्रकार का कोई अंतर नहीं आता अपितु उसके

प्रभाव में ,उसकी शक्ति में प्रबलता आ जाती है.देव गुरु ब्रह्स्पत्ति जिस कुंडली में वक्री हो जाते हैं वह जातक अधिक बोलने लगता है,लोगों को बिन मांगे सलाह देने लगता है.गुरु ज्ञान का कारक है,ज्ञान का ग्रह जब वक्री हो जाता है तो जातक अपनी आयु के अन्य जातकों से आगे भागने लगता है,हर समय उसका दिमाग नयी नयी बातों की और जाता है.सीधी भाषा में कहूँ

तो ऐसा जातक अपनी उम्र से पहले

बड़ा हो जाता है,वह उन बातों ,उन विषयों को आज जानने का प्रयास करने लगता है,सामान्य रूप से जिन्हें

उसे दो साल बाद जानना चाहिए.समझ लीजिये की एक टेलीविजन चलाने के किये उसे घर के सामान्य वाट के बदले सीधे हाई टेंसन से तार मिल जाती है.परिणाम क्या होगा?यही होगा की अधिक

पावर मिलने से टेलीविजन फुंक जाएगा.इसी प्रकार गुरु का वक्री होना जातक को बार बार अपने ज्ञान

का प्रदर्शन करने को उकसाता है.जानकारी ना होने के बावजूद वह हर विषय से छेड़ छाड़ करने की कोशिश करता है.अपने ऊपर उसे आवश्यकता से अधिक विश्वास होने लगता है जिस कारण वह ओवर कोंनफीडेंट अर्थातअति आत्म विश्वास का शिकार होकर पीछे रह

जाता है. कई जातक ऐसे देखे होंगे की जो हर जगहअपनी बात को ऊपर रखने का प्रयास करते हैं,जिन्हें

अपने ज्ञान पर औरों से अधिक भरोसा होता है,जो हरबात में सदा आगे रहने का प्रयास करते हैं,ऐसे जातक वक्री गुरु से प्रभावित होते हैं.जिस आयु में गुरुका जितना प्रभाव उन्हें चाहिए वो उससे अधिक

प्रभाव मिलने के कारण स्वयं को नियंत्रित नहीं कर पाते.कई बार आपने बहुत छोटी आयु में बालक बालिकाओं को चरित्र से से भटकते हुए देखा होगा.विपरीत लिंगी की ओर उनका आकर्षण एक निश्चित आयु से पहले ही होने लगता है.कभी कारण सोचा है आपने इसबात का ?विपरीत लिंग की और आकर्षण एक

सामान्य प्रक्रिया है,शरीर में होने वाले हार्मोनल परिवर्तन के बाद एक निश्चित आयु के बाद यह आकर्षण

होने लगना सामान्य सी कुदरती अवस्था है.शरीर में मंगल व शुक्र रक्त,हारमोंस,सेक्स ,व आकर्षण

को नियंत्रित करने वाले कहे गए हैं.इन दोनों में सेकिसी भी ग्रह का वक्री होना इस प्रभाव को आवश्यकता से अधिक बढ़ा देता है. यही प्रभाव जाने अनजाने उन्हें उम्र से पहले वो शारीरिक बदलाव     महसूस करने को मजबूर कर देता है जो सामान्य रूप सेउन्हें काफी देर बाद करना चाहिए था.शनि महाराज हर कार्य में अपने स्वभाव के अनुसार परिणाम को देर से देने,रोक देने ,या कहें सुस्त रफ़्तार में बदल देने को मशहूर हैं.कभी आपने किसी ऐसे बच्चे को देखा है जो अपने आयु वर्ग के बच्चों से अधिक सुस्त

है,जा जिस को आप हर बात में आलस करते पाते हैं.खेलने में ,शैतानियाँ करने में,धमाचौकड़ी मचाने में जिसvका मन नहीं लग रहा. उसके सामान्य रिफ़लेकसन

कहीं कमजोर तो नहीं हैं . जरा उस

की कुंडली का अवलोकन कीजिये,कहीं उसके लग्न में

शनि देव जी वक्री होकर तो विराजमान नहीं हैं.

इसी प्रकार  वक्री ग्रह कुंडली में आपने भाव व अपने नैसर्गिक स्वभाव के अनुसार अलग अलग परिणाम देते

हैं.अततः कुंडली की विवेचना करते समय ग्रहों की वक्रता का ध्यान देना अति आवश्यक है.अन्यथा जिस ग्रह को अनुकूल मान कर आप समस्या में नजरंदाज कर रहे हो होते हैं ,वही समस्या का वास्तविक कारण होता है,व आप उपाय दूसरे ग्रह का कर रहे होते हैं.परिणामस्वरूप समस्या का सही समाधान नहीं हो पाता.

 फिर बता दूं की वक्री होने से ग्रह के

स्वभाव में कोई अंतर नहीं आता,बस उसकी शक्ति बढ़जाती है.अब कुंडली के किस भाव को ग्रह

की कितनी शक्ति की आवश्यकता थी व वास्तव में वह कितनी तीव्रता से उस भाव को प्रभावित कर

रहा है,इस से परिणामो में अंतर आ जाता है व कुंडली का रूप व दिशा ही बदल जाती हैआप भी अपनी कुन्ङली  अपने शहर के अच्छे  ज्योतिषी  को दिखा कर सलाह लेआप हम से भी सम्पर्क  कर सकते है 07597718725  09414481324

रविवार, 18 नवंबर 2018

कुंडली विवेचन मे चतुर्थांशका महत्त्व

कुंडली विवेचन मे चतुर्थांश के बिना फ़लादेश करना उसी प्रकार से है जैसे गर्मी की ऋतु में दूर रेगिस्तान में मृग मारीचिका को जल समझ कर भागना। लगन कुंडली शरीर के लिये चन्द्र कुंडली मानसिक रूप से संसार के लिये नवमांश कुंडली जीवन साथी और जीवन की जद्दोजहद के लिये सप्तांश कुंडली संतान सुख के लिये होरा कुंडली धन सम्पत्ति के लिये देखी जाती है उसी प्रकार से चतुर्थांश कुंडली को भाग्य के लिये देखना बहुत जरूरी होता है। एक जातिका की कुंडली का विवेचन प्रस्तुत है,यह जातिका आगरा दिनांक 24 दिसम्बर 1978 को शाम 6 बजकर 30 मिनट पर पैदा हुयी है। जातिका की मिथुन लगन है और चन्द्र राशि कन्या है,

लेकिन जातिका का नाम तुला राशि से रखा गया है। इस कुंडली मे लगन को बल देने वाले ग्रह सूर्य मंगल और केतु है.सूर्य छोटे भाई बहिन का कारक है और मंगल चाचा और बडे भाई का कारक है,केतु जातिका की दादी और नानी के लिये माना जायेगा.जातिका के शरीर की पालन पोषण की जिम्मेदारी इन्ही तीनो पर है.लगनेश बुध छठे भाव मे है और बुध के साथ वक्री गुरु अपनी स्थिति को दे रहा है। लगनेश का स्थान वृश्चिक राशि मे होने के कारण जातिका को नौकरी और गूढ ज्ञान की अच्छी जानकारी है। शरीर का मालिक बुध छठे भाव मे होने के कारण जातिका को अनुवांशिक बीमारी से भी ग्रस्त माना जाता है। चन्द्र शुक्र और बुध तीनो ही राहु शनि सूर्य मंगल के बीच मे होने के कारण यह अनुवांशिक बीमारी माता के परिवार से मानी जा सकती है। वैसे ज्योतिष के अनुसार सूर्य हड्डियों का कारक होता है चन्द्रमा शरीर के पानी का कारक है,मंगल रक्त का कारक है,बुध स्नायु का और नसों का कारक है,गुरु शरीर की वायु का कारक है,शुक्र शरीर की सुन्दरता का कारक है शनि बाल खाल त्वचा का कारक है,राहु जिस ग्रह के साथ होता है उसी की बीमारी को देता है,केतु का असर जहां तक होता है वहां तक वह अपना असर सहायता के लिये देना माना जाता है। वैसे केतु को भी शरीर के जोड प्रयोग किये जाने वाले अंगो केलिये माना जाता है। राहु का शनि के साथ होने से जातिका को त्वचा की बीमारी है,शनि से आगे चन्द्रमा के होने से त्वचा में सफ़ेद रंग के दाग माने जाते है राहु शनि की तीसरी पूर्ण द्रिष्टि शुक्र पर पडने के कारण शरीर की सुन्दरता पर ग्रहण दिया हुआ है,इसी के साथ केवल राहु की पंचम द्रिष्टि मंगल और सूर्य पर पडने के कारण खून के अन्दर इन्फ़ेक्सन और शरीर के ढांचे में भी ग्रहण दिया माना जाता है यह राहु का प्रभाव जातिका के बडे और छोटे भाई बहिनो पर भी है। लेकिन एक बात का और भी सोचना जरूरी होता है कि राहु के पास वाले ग्रह और भाव अगर दिक्कत देने वाले होते है तो केतु के आसपास वाले ग्रह और भाव दिक्कतो से बचे रहने वाले भी माने जाते है। अगर राहु शरीर के प्रति अपनी सुन्दरता मे कमी देने का कारक है तो केतु उस सुन्दरता में अपनी योग्यता से उसे बुद्धिमान बनाने के लिये भी अपनी योग्यता को दे रहा है। सबसे अधिक प्रभाव जातिका के जीवन मे भाग्य के प्रति माना जा सकता है,

अगर चतुर्थांश की कुंडली को बनाया जाये तो इस प्रकार से कुंडली का निर्माण होगा जातिका के चतुर्थांश में कालपुरुष की दो त्रिक राशियां मीन और वृश्चिक जातिका के लगन और नवे भाव मे है,तथा तीसरी त्रिक राशि सप्तम यानी पति के स्थान मे है। इन तीनो त्रिक राशियों का प्रभाव जातिका के जीवन में आजीवन रहना निश्चित है।लगन कुंडली मे जैसे राहु का प्रकोप जातिका के प्रदर्शन यानी तीसरे भाव मे शनि के साथ है तो भाग्य मे भी राहु का प्रकोप बुध के साथ तीसरे भाव मे ही है। यहां शरीर की सुन्दरता पर असर देने वाले राहु और केतु दोनो ही है,गुरु के वक्री होने के कारण और बारहवे शनि से गुरु की युति होने के साथ साथ गुरु का प्रभाव मंगल और चन्द्र पर भी है। भाग्य मे चन्द्रमा का साथ मंगल के साथ होने से और चन्द्रमा से गुरु वक्री के साथ पंचम सम्बन्ध होने तथा चन्द्रमा से भाग्य में नवे भाव मे शनि के होने से माता के दोष से ही जातिका का भाग्य विदीर्ण होना माना जायेगा। माता के बारहवे भाव में बुध राहु के होने से झूठ बोलना और फ़रेब से अपना काम बनाने की युति रखना तथा बुध से सप्तम में वृश्चिक का केतु होना इस बात की तरफ़ इशारा करता है कि कोई जायदाद जो मृत्यु के बाद किसी को मिलनी थी वह जायदाद झूठे कारण से खुद के लिये प्राप्त करने के कारण यह राहु का दोष बुध यानी लडकी पर स्थापित हो गया। यह एक प्रकार का अभिशाप भी कहा जाता है जो अन्तर्मन से दिया जाता है। चन्द्रमा के आगे शुक्र के होने से जातिका की माता ने अपने स्वार्थ के लिये व्यापार करने वाला स्थान या रहने वाला घर अथवा कोई सरकारी क्षेत्र का अधिकार झूठ से प्राप्त किया जाना भी मिलता है इस कारण से सन्तान यानी वक्री गुरु पर राहु का असर होने से और गुरु वक्री से आगे केतु के होने से सन्तान को सब कुछ प्राप्त होने के बाद भी कुछ नही होना माना जा सकता है,अक्सर चन्द्रमा से वक्री गुरु के पंचम मे होने से गुरु अपने पुरुष प्रभाव को छोड कर वक्री होने पर स्त्री प्रभाव को बली कर देता है और बजाय पुरुष सन्तान के स्त्री संतान का होना माना जाता है। इस प्रभाव से जातिका की माता को भी छठा केतु होने के कारण शरीर के जोडो और जननांग सम्बन्धी बीमारियां इन्फ़ेक्सन और गुदा सम्बन्धी बीमारियां भी परेशान करने के लिये मानी जा सकती है।

गुरु के वक्री होने से एक बात और भी समझी जा सकती है कि जो व्यक्ति अपनी चालाकी से किसी असहाय की सम्पत्ति को हडप कर उसे अपनी संतान के लिये प्रयोग मे लाना चाहते है समय की मार शुरु होते ही वह असहाय की हाय जातक के जीवन को तबाह करके रख देती है। चतुर्थांश में गुरु के अष्टम में वक्री होने के इस रूप को भली भांति समझा जा सकता है। जातिका पूर्ण रूप से दिमागी ताकत से पूर्ण है,जातिका को बुद्धि वाले काम करने की पूरी योग्यता है,जातक के सभी अंग सुरक्षित है लेकिन त्वचा पर सफ़ेद दाग होने से जातिका की शादी विवाह और सम्बन्धो के मामले मे दिक्कत है। इस गुरु के वक्री होने पर अक्सर जातक के सन्तान में पहले तो सन्तान सुख होता ही नही है और होता भी है तो केवल पुत्री सन्तान हो जाती है जो शादी के बाद अपने ससुराल जाकर माता पिता को अकेले छोड जाती है। गुरु की सिफ़्त के अनुसार अगर वक्री गुरु होता है तो वह जल्दबाजी का कारक भी होता है इस गुरु के आगे घर मे बजाय पुरुष वर्ग के चलने के स्त्री वर्ग की अधिक चलती है और वह अपनी ही सन्तान और परिवार को अधिक देखने के कारण तथा अन्य लोगों के साथ दुर्व्यवहार रखने से भी अपनी भाग्य की शैली को अन्धेरे मे डाल कर रखती है।

रविवार, 4 नवंबर 2018

दियेके संग दिवाली

दीपावली रोशनी का पर्व है और दीया प्रकाश का प्रतीक है और तमस को दूर करता है। दीये से ज्यादा प्रकृति के सर्वाधिक निकट कौन होगा।

 मिट्टी का शुद्ध रूप। म का शुद्ध रूप। सादगी का शुद्ध रूप। और क्षणभंगुरता का भी शुद्ध रूप। अपने अकेले होने पर गर्व भी और पंक्ति से जुड़ने की चाह भी और यह दार्शनिकता भी कि जीवन क्षणभंगुर है। मिट्टी को मिट्टी में मिल जाना है। तेल को जल जाना है और बाती को अंततः नष्ट हो जाना है। इसलिए जब तक हूँ रोशनी बिखेरूँ। प्रकाशित करूँ, सबसे पहले अपने आपको। फिर संभवतः आसपास भी प्रकाशित हो जाए।  भगवान महावीर का निर्वाण दिवस-दीपावली, मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का आसुरी शक्तियों पर विजय के पश्चात अयोध्या आगमन का ज्योति दिवस-दीपावली, तंत्रोपासना एवं शक्ति की आराधक माँ काली की उपासना का पर्व-दीपावली, धन की देवी महालक्ष्मी की आराधना का पर्व-दीपावली, ऋद्धि-सिद्धि, श्री और समृद्धि का पर्व-दीपावली, आनंदोत्सव का प्रतीक वात्सायन का श्रृंगारोत्सव-दीपावली, ज्योति से ज्योति जलाने का पर्व-दीपावली।दीपावली का यह पर्व प्रत्येक भारतीय की रग-रग में रच-बस गया है। इस पर्व पर हर घर, हर आंगन, हर बस्ती, हर गाँव में सब कुछ रोशनी से जगमगा जाया करता है। आदमी मिट्टी के दीए में स्नेह की बाती और परोपकार का तेल डालकर उसे जलाते हुए भारतीय संस्कृति को गौरव और सम्मान देता है, क्योंकि दीया भले मिट्टी का हो मगर वह हमारे जीने का आदर्श है, हमारे जीवन की दिशा है, संस्कारों की सीख है, संकल्प की प्रेरणा है और लक्ष्य तक पहुँचने का माध्यम है। दीपावली मनाने की सार्थकता तभी है जब भीतर का अंधकार दूर हो। अंधकार जीवन की समस्या है और प्रकाश उसका समाधान। जीवन जीने के लिए सहज प्रकाश चाहिए। प्रारंभ से ही मनुष्य की खोज प्रकाश को पाने की रही।अंधकार हमारे अज्ञान का, दुराचरण का, दुष्टप्रवृत्तियों का, आलस्य और प्रमाद का, बैर और विनाश का, क्रोध और कुंठा का, राग और द्वेष का, हिंसा और कदाग्रह का अर्थात अंधकार हमारी राक्षसी मनोवृत्ति का प्रतीक है। प्रकाश हमारी सद् प्रवृत्तियों का, सद्ज्ञान का, संवेदना एवं करुणा का, प्रेम एवं भाईचारे का, त्याग एवं सहिष्णुता का, सुख और शांति का, ऋद्धि और समृद्धि का, शुभ और लाभ का, श्री और सिद्धि का अर्थात् दैवीय गुणों का प्रतीक है। यही प्रकाश मनुष्य की अंतर्चेतना से जब जागृत होता है, तभी इस धरती पर सतयुग का अवतरण होने लगता है।प्रत्येक व्यक्ति के अंदर एक अखंड ज्योति जल रही है। उसकी लौ कभी-कभार मद्धिम जरूर हो जाती है, लेकिन बुझती नहीं है। उसका प्रकाश शाश्वत प्रकाश है। वह स्वयं में बहुत अधिक देदीप्यमान एवं प्रभामय है। इसी संदर्भ में महात्मा कबीरदासजी ने कहा था- ‘बाहर से तो कुछ न दीसे, भीतर जल रही जोत’। जो व्यक्ति उस भीतरी ज्योति तक पहुँच गए, वे स्वयं ज्योतिर्मय बन गए। जो अपने भीतरी आलोक से आलोकित हो गए, वे सबके लिए आलोकमय बन गए। जिन्होंने अपनी भीतरी शक्तियों के स्रोत को जगाया, वे अनंत शक्तियों के स्रोत बन गए और जिन्होंने अपने भीतर की दीवाली को मनाया, लोगों ने उनके उपलक्ष्य में दीवाली का पर्व मनाना प्रारंभ कर दिया।दीपावली का पर्व ज्योति का पर्व है। दीपावली का पर्व पुरुषार्थ का पर्व है। यह आत्म साक्षात्कार का पर्व है। यह अपने भीतर सुषुप्त चेतना को जगाने का अनुपम पर्व है। यह हमारे आभामंडल को विशुद्ध और पर्यावरण की स्वच्छता के प्रति जागरूकता का संदेश देने का पर्व है। भगवान महावीर ने दीपावली की रात जो उपदेश दिया उसे हम प्रकाश पर्व का श्रेष्ठ संदेश मान सकते हैं। भगवान महावीर की यह शिक्षा मानव मात्र के आंतरिक जगत को आलोकित करने वाली है। तथागत बुद्ध की अमृत वाणी ‘अप्पदीवो भव’ अर्थात ‘आत्मा के लिए दीपक बन’ वह भी इसी भावना को पुष्ट कर रही है। इतिहासकार कहते हैं कि जिस दिन ज्ञान की ज्योति लेकर नचिकेता यमलोक से मृत्युलोक में अवतरित हुए वह दिन भी दीपावली का ही दिन था। यद्यपि लोक मानस में दीपावली एक सांस्कृतिक पर्व के रूप में अपनी व्यापकता सिद्ध कर चुका है। फिर भी यह तो मानना ही होगा कि जिन ऐतिहासिक महापुरुषों के घटना प्रसंगों से इस पर्व की महत्ता जुड़ी है, वे अध्यात्म जगत के शिखर पुरुष थे। इस दृष्टि से दीपावली पर्व लौकिकता के साथ-साथ आध्यात्मिकता का अनूठा पर्व है।यह बात सच है कि मनुष्य का रूझान हमेशा प्रकाश की ओर रहा है। अंधकार को उसने कभी न चाहा न कभी माँगा। ‘तमसो मा ज्योतिगर्मय’ भक्त की अंतर भावना अथवा प्रार्थना का यह स्वर भी इसका पुष्ट प्रमाण है। अंधकार से प्रकाश की ओर ले चल- इस प्रशस्त कामना की पूर्णता हेतु मनुष्य ने खोज शुरू की। उसने सोचा कि वह कौन-सा दीप है जो मंजिल तक जाने वाले पथ को आलोकित कर सकता है। अंधकार से घिरा हुआ आदमी दिशाहीन होकर चाहे जितनी गति करे

गुरुवार, 1 नवंबर 2018

मां लक्ष्मी

मां लक्ष्मी                                संसार मे जन्म लेने वाले बुद्धिधारी जीवो मे मनुष्य का रूप सर्वोपरि है और बुद्धि से काम लेने के कारण मनुष्य को कोई भी शारीरिक शस्त्र जानवरो की तरह से पंजा नाखून सींग चीरने फ़ाडने वाले दांत आदि को प्रकृति ने प्रदान नही किया है। बुद्धि को ही मंत्र के रूप मे जगाया जाता है और जैसे ही बुद्धि काम करने लगती है मनुष्य अपने बल से यंत्रो का निर्माण करना शुरु कर देता है और बुद्धि तथा साधन प्राप्त होते ही मनुष्य जीवन मे अपने सुख साधनो के प्रयोग के लिये अपनी रक्षा के लिये भविष्य की समृद्धि के लिये रास्ते बनाने लगता है ।

 बुद्धि को जागृत करने के लिये एक समय विशेष का चुनाव किया जाता है साधन बनाने के लिये भी एक समय विशेष का मूल्य होता है और साधन बनने के बाद उनसे अपने जीवन के कारको की प्राप्ति के लिये भी समय विशेष का कारण माना गया है। एक कहावत कही जाती है कि अस्पताल मे रोग के अनुसार जाना चाहिये,जैसे रोग तो ह्रदय रोग के रूप मे है और टीबी के अस्पताल मे जाया जाये तो रोग की पहिचान भी नही हो पायेगी जो दवा देनी है वह दवा नही मिलकर दूसरी दवाओ के लेने से रोग खत्म भी नही हो पायेगा और दूसरा रोग और पैदा होने की बात बन सकती है। उसी प्रकार से कहावत का दूसरा भाग बताया गया है कि मन्दिर मे भोग,यानी मन्दिर दुर्गा जी का है और वहां पर लड्डू का भोग लगाया जाये तो वह भोग लगेगा ही नही कारण दुर्गा के लिये तामसी भोग की जरूरत होती है और लड्डू तो केवल गणेश जी के लिये ही चढाने का प्रयोग है,उसी प्रकार से अगर हनुमान जी के मन्दिर मे तामसी भोग को चढाया जायेगा तो बजाय लाभ के नुकसान भी हो सकता है,कहावत का तीसरा भाग ज्योतिष मे योग के रूप मे समझना चाहिये,जब तक योग नही हो कोई काम करने से फ़ायदा नही हो पाता है,योग मे तीनो कारक बुद्धि साधन और साधनो से प्राप्त होने वाले लाभ मिलना लाजिमी होता है।

दीपावली को लक्ष्मी की आराधना का त्यौहार बताया जाता है। इस त्यौहार को वणिज कुल के लिये माना जाता है,चारो वर्णो मे तृतीय वर्ण वैश्य  वर्ण के लिये दीपावली का त्यौहार बताया गया है,जैसे क्षत्रिय के लिये दशहरा ब्राहमण के लिये रक्षाबन्धन वैश्य के लिये दीपावली और शूद्र वर्ण के लिये होली का त्यौहार बताया जाता है। अर्थ यानी धन सम्पत्ति का कारण आज के युग मे सभी के लिये जरूरी हो गया है और बिना अर्थ की प्राप्ति के शायद ही किसी का जीवन सही चल पाये,अगर बिना अर्थ के कोई भी जिन्दा रहना चाहता है तो वह या तो किसी गुफ़ा कन्दरा मे अपना जीवन निकाल रहा हो या वह सन्यासी बनकर मांग कर भोजन आदि का बन्दोबस्त अपने लिये कर रहा हो आदि कारण माने जा सकते है।,कूर्म पुराण के अनुसार लक्ष्मी का रूप तीन प्रकार का माना जाता है सत के रूप मे अचल लक्ष्मी रज के रूप में चलित लक्ष्मी और तम के रूप मे झटति लक्ष्मी। इन तीनो प्रकार के लिये हर व्यक्ति के धन भाव के तीनो भावो को एक साथ जोडा गया है,और तीनो भावो के अनुसार सत से जोडी गयी लक्ष्मी दूसरे भाव से रज से जोडी गयी लक्ष्मी छठे भाव से और तम से जोडी गयी लक्ष्मी को द्सवे भाव से जोड कर देखा जाता है। प्रत्येक युग मे लक्ष्मी को प्राप्त करने के लिये चारो पुरुषार्थो का प्रयोग किया जाता रहा है। धर्म नाम का पुरुषार्थ मेष सिंह और धनु राशियों के लिये अर्थ नाम का पुरुषार्थ वृष कन्या और मकर राशियों के लिये काम नाम का पुरुषार्थ मिथुन तुला और कुम्भ राशियों के लिये तथा मोक्ष नामका पुरुषार्थ कर्क वृश्चिक और मीन राशियों के लिये माना जाता है।मत मतांतर से अष्टलक्ष्मी के भिन्न- भिन्न नाम व रूपों के बारे में बताया गया है, जो इस प्रकार भी हैं - 

1 धनलक्ष्मी या वैभवलक्ष्मी  2 गजलक्ष्मी  3 अधिलक्ष्मी  4 विजयालक्ष्मी  5 ऐश्वर्य लक्ष्मी  6 वीर लक्ष्मी  7 धान्य लक्ष्मी  8 संतान लक्ष्मी ।

इसके अलावा कहीं-कहीं पर 1 आद्यलक्ष्मी  2 विद्यालक्ष्मी  3 सौभाग्यलक्ष्मी  4 अमृतलक्ष्मी 5 कामलक्ष्मी  5 सत्यलक्ष्मी, 6 विजयालक्ष्मी , भोगलक्ष्मी एवं योगलक्ष्मी के रूप में पूजा जाता है

मंगलवार, 30 अक्तूबर 2018

शक्ति को इकट्ठा कीजिये

शक्ति को इकट्ठा कीजिये


बचपन से ही एक बात तो माता पिता ने भी बताई थी कि जितनी हो सके विद्या की शक्ति को बटोर लो,यह बिना कीमत के मिलती है,हर जगह मिलती है,मनचाही मिलती है,इसे जितना खर्च करो उतनी बढती है,क से कमाना सिखाती है,ख से खाना बताती है,ग से गाना बताती है,घ से भरपूर रहने की सहमति देती है और ड. से याचना का भाव देती है,च से चाहत देती है,छ से उत्तम और घटिया की पहिचान बताती है,ज से नयी उत्पत्ति की तरफ़ जाने का संकेत करती है,झ से फ़ालतू की विद्या को भूलने के लिये अपनी क्रिया देती है,ट से महसूस करने की क्रिया का रूप समझाती है,ठ से किये जाने वाले कार्य के अन्दर कलाकारी लाने को कहती है,ड से कार्य के अन्दर जमे रहने के लिये अपनी योग्यता को देती है,ढ से खराब अवधारणाओं से दूर रहने के लिये कहती है,ण से अपने को सुरक्षित रखने के लिये आसपास के वातावरण को सम्भालने के लिये कहती है,त से अच्छे और बुरे के बीच का अन्तर समझने की शक्ति देती है,थ से जो अच्छा है उसे प्राप्त करने की कला देती है,द से अपने हिस्से से दूसरों की सहायता के लिये भी कहती है,न से जो भी करना है उसका सार कभी अटल नही है इसका भी ज्ञान देती है,प से मानसिकता को शुद्ध रखने के लिये फ़ से अपनी विचारधारा को अक्समात बदलने के लिये ब से प्राप्त विद्या के प्रयोग में लेने के लिये और म से अपने प्रभाव को वातावरण में व्याप्त करने के लिये कहती है,य से जो है वह इसी जगत में है, र से जीव है तो जगत है,ल से जीव है तो शाखा है,व से जीव की औकात केवल धरती पर रहने वाले अणुओं के ऊपर ही निर्भर है,श से इन्तजार का फ़ल प्राप्त करने के लिये ष से कई दिशाओं में अपने रुख को हमेशा तैयार रखने के लिये स से अपने आप को नरम रखने के लिये ह से ब्रह्माण्ड की तरफ़ भी ध्यान रखने के लिये क्ष से जीवों की रक्षा और दया करने के लिये त्र से ईश्वर की शक्ति पर विश्वास रखने के लिये ज्ञ से अन्त में जहां से जो आया वहीं समा जाने की विद्या को प्रकट करने के लिये कहा गया है।उत्तम मध्यम और निम्न गति को प्रदान करने के लिये स्वरों का प्रयोग किया गया है,अ कहने में तो साधारण है लेकिन इसके बिना कोई भी गति नही है,आ से बडप्पन पैदा करने के लिये इ से मुर्दा को जीवित करने के लिये ई से स्त्रीत्व और भूमि का निरूपण करने के लिये ए से साधारण विचार को मध्यम गति देने के लिये,ऐ से मारक शक्ति को पैदा करने के लिये और ओ से शान्त रहने तथा वीभत्सता को रोकने के लिये औ से चालाकी और बुद्धिमानी को प्रकट करने के लिये अं से ऊपर की तरफ़ सोचने के लिये और अ: से जो भी प्राप्त किया है उसे यहीं छोड देने के लिये शक्ति का सिद्धान्त कहा गया है।

मंत्रयुति के लिये अक्षर को जोडा गया वाक्य युति के लिये शब्द को जोडा गया। भावना की युति के लिये वाक्यों को जोडा गया,ब्रह्माण्ड की युति को प्राप्त करने के लिये भावना की युति को जोडा गया। भावना को भौतिकता में लाने के लिये पदार्थ को जोडा गया। पदार्थ को साकार करने के लिये जीव को जोडा गया,पदार्थ को निराकार करने के लिये भावना और पदार्थ के मिश्रण से मूर्ति को बनाया गया। मूर्ति से फ़ल को प्राप्त करने के लिये श्रद्धा को साथ में लिया गया,श्रद्धा और विश्वास को साथ लेकर कार्य की पूर्णता को लिया गया।जीव से जीव की उत्पत्ति की गयी। जड से चेतन का रूप प्रदान किया गया। रूप और भाव बदल कर विचित्रता की भावना को प्रकट किया गया,पंचभूतो के मिश्रण से कल्पना दी गयी,भूतों के कम या अधिक प्रयोग से स्वभाव का निर्माण किया गया,जड अधिक करने पर चेतन की कमी की गई और चेतन को अधिक करने पर जडता को कम किया गया। जड और चेतन का साथ किया गया। बिना एक दूसरे के औकात को समाप्त किया गया जहां आग पैदा की गयी उसके दूसरे कोण पर पानी को पैदा किया गया,जहां बुद्धि को प्रकट किया गया वहीं दूसरी ओर मन को प्रकट किया गया,बुद्धि के विस्तार के लिये द्रश्य श्रव्य घ्राण अनुभव को प्रकट किया गया,चेतन होकर ग्रहण करने की क्षमता का विकास करने पर हिंसकता को दूर किया गया,जहां ग्रहण करने की क्षमता नही दी गयी वहां हिंसकता का प्रभाव दिया गया,एक को पालने के लिये बनाया गया दूसरे को मारने के लिये बनाया गया,दोनो के बीच में फ़ंसाकर जीव को पैदा किया गया।

उम्र को कम करने के लिये चिन्ता को दिया गया,उम्र को अधिक करने के लिये विचार शून्य होकर रहने को बोला गया,पदार्थ की अधिकता को ताकत के रूप में प्रकट किया गया,क्षमता को अधिक या कम करने के लिये कई भावनाओं को एक साथ जोडा गया। जीव को पदार्थ के सेवन का अवसर दिया गया,मिट्टी को मिट्टी खाने के लिये रूप में परिवर्तन किया गया,मिट्टी को ही मीठा खट्ठा चरपरा कसैला बनाया गया। मिट्टी को ही मारने के लिये और मिट्टी को ही जीने के लिये दवाइयों के रूप में परिवर्तित किया गया,मिट्टी से मिट्टी को लडाने के लिये जीव की उत्पत्ति की गयी।

रविवार, 28 अक्तूबर 2018

कर्म के क्षेत्र का बदलाव और सफ़लता

जीवन की दो गतिया प्रमुख मानी जाती है एक सकारात्मक और एक नकारात्मक।

  स्त्री पुरुष के भेद को समझने के बाद जीवन की दोनो गतियों का रूप सामने आजाता है। जो लोग सम्पूर्ण होते है वे अपने को नकारात्मक प्रभाव की तरफ़ ले जाकर अपने को और सकारात्मक करने की कोशिश करते है और जो लोग नकारात्मक होते है वह अपने को और अधिक सकारात्मक रूप मे ले जाने के लिये प्रयत्न करने के लिये माने जाते है एक समय आता है कि जो खलई है वह और भी खाली हो जाते है और जो भरे वे और भर जाते है। प्रकृति के नियम के अनुसार जब गर्मी अधिक होती है तो वह नमी को सोखने के लिये मानी जाती है और जब सर्दी होती है तो वह नमी को और अधिक पैदा करने के लिये मानी जाती है। लेकिन अलावा तत्व जब अपना असर देते है तो सर्दी भी गर्मी मे बदल जाती है और गर्मी भी सर्दी मे बदल जाती है। जैसे अधिक नमी होने पर अगर हवा का बहाव शुरु हो जाये तो वह नमी को भी सर्द रूप मे बदल सकता है और जब सर्द माहौल मे हवा का बहाव रुक जाये तो गर्मी की अनुभूति होने लगती है। यही भाव हर प्रकार से जीव के अन्दर भी होता है और जो भी स्थिर और अस्थिर कारक इस संसार मे है सभी का रूप इसी प्रकार से उदय और अस्त होता रहता है। व्यक्ति को सफ़लता के लिये धरातल पर उतरना बहुत ही जरूरी होता है जब तक वह धरातल पर नही उतरेगा उसकी सफ़लता सम्भव नही है। धरातल का चुनाव प्रकृति खुद भी करती है और कभी कभी व्यक्ति अपने धरातल का चुनाव समय के अनुसार भी कर लेता है। इसके विपरीत भी देखा जाता है कि अधिक गर्मी के क्षेत्र मे पैदा होने वाला व्यक्ति अगर अधिक सर्द जगह पर अपना धरातल बना लेता है तो वह अधिक सफ़ल हो जाता है जबकि उस सर्द जगह पर पैदा होने वाला जातक अपने को सिको डाड कर ही रखने के लिये माना जाता है यह बात अक्सर तब और समझ मे आती है जब रेगिस्तानी क्षेत्र का व्यक्ति अगर अधिक पानी वाले क्षेत्र मे अपना स्थान बना लेता है तो वह अधिक सफ़ल हो जाता है उसे पानी की एक एक बूंद का मूल्य पता है जबकि पानी वाले क्षेत्र मे रहने वाले व्यक्ति के लिये पानी कुछ भी नही जब वह अपने धरातल को बदल कर अगर रेगिस्तानी इलाके मे चला जाता है तो वह अपने जीवन को बदलने लगता है और अपने अन्य लोगो की अपेक्षा अधिक सफ़ल होता चला जाता है । यही बात एक प्रकार से और भी देखी जा सकती है कि ग्रामीण क्षेत्र का निवासी जब शहरी क्षेत्र मे जाकर बस जाता है तो उसकी सोच जो पहले मान सम्मान इज्जत मर्यादा मे रहती है वह बदल कर अपने खुद के स्वार्थ के लिये बन जाती है और वह जहां पहले सभी के लिये सोचने वाला होता है वहीं पर वह खुद के लिये ही सोचने वाला बन जाता है। यही बात अगर शहरी व्यक्ति के लिये मानी जाये तो वह जब ग्रामीण क्षेत्र मे जाकर अपने को बसाने की कोशिश करता है तो वह पहले तो अपने निजी स्वार्थ की पूर्ति के लिये प्रयास करता है और जब उसके निजी स्वार्थो की बजह से ग्रामीण परिवेश उसे नकारना शुरु कर देता है तो वह उन्ही की क्रिया शैली मे लाने की कोशिश करने लगता हैक रसता समरसता और विषमरसता तीन प्रकार के भाव हर व्यक्ति के अन्दर पाये जाते है जब एक ही काम को करने के लिये एक व्यक्ति को विवश कर दिया जाता है तो काम तो किया जाता है लेकिन उस काम के अन्दर जो रुचि होती है,वह उस तरह से नही रह पाती है जो समरसता वाले कारणो मे होती है,इसी प्रकार से हर मनुष्य की सोच मे अगर कोई विषमरसता नही हो तो काम करने के लिये मन नही करेगा,एक बार किसी काम को कर लिया जाये और उस काम के अन्दर कोई सोचने समझने मेहनत करने या जोखिम लेने के लिये कारण नही बन रहे हो तो वह काम नही माना जाता है। लेकिन जो अपने जीवन मे केवल खाना पीना सोना और मौज मस्ती के साधनो मे रहना चाहता है वह किसी प्रकार से विषमरसता के काम करना पसन्द नही करेगा अक्सर इसी कारण से सरकारी क्षेत्र की नौकरियों मे लोगो का रिझान होता है कारण यह होता है कि वहां पर उन्हे लगता है कि उनका भविष्य धन आदि से भी सुरक्षित है और उनके परिवार मे भी कोई दिक्कत आती है तो उन्हे सरकार की तरफ़ से लाभ मिल सकते है। लेकिन जो हमेशा विषमरसता के कारणो मे रहना चाहते है और रोज एक रिस्क लेकर काम करना चाहते है उनके अन्दर एक प्रकार का भाव यह होता है कि वे कुछ भी करे अपने ग्यान और बुद्धि के बल पर करे उन्हे किसी की भी सहायता की जरूरत नही होती है तो वे विषमरसता के काम आसानी से कर भी सकते है और जब भी उन्हे लगता है कि उनकी जरूरत पूरी नही हो पा रही है तो वे बडे रूप से अपने को जोखिम मे ले जा सकते है यहां तक उन्हे अपने जीवन की परवाह भी नही होती है जैसे रक्षा सेवा और खतरे वाले काम करने वाले लोग अपने अनुसार अपनाने के लिये आगे आते है।बदलाव की स्थिति के लिये आप अच्छी तरह से समझ सकते है कि जब कोई व्यक्ति राजस्थान से आसाम या दक्षिण भारत की तरफ़ पलायन करता है तो वह अपनी स्थिति को जीरो से हीरो बनाने की रखता है,वह अपने को जमीन से उगाकर आगे बढने के लिये अपनी योग्यता को दिखाने और सम्पूर्ण गति को प्रदान करने के बाद पानी की कीमत को समझने वाला होता है वह विकट परिस्थिति मे काम को कर सकता है कारण वह सूखे और रेगिस्तानी इलाके मे पैदा हुआ है उसने जन्म से लेकर बडे होने तक अपने को अभावो के क्षेत्र मे रखा है उसके द्वारा जो भी कमाया जायेगा वह जोड कर रखा जायेगा और उस जोडे हुये धन तथा ग्यान से वह और आगे बढने की योग्यता को बनाने की कोशिश करता रहेगा इसके अलावा भी कई कारण और भी है जैसे उसे किसी प्रकार के ग्यान और मनुष्य शक्ति की जरूरत पडेगी तो वह अपने ही इलाके के व्यक्ति को पहली मान्यता देगा जिससे उसे एक तो अपने एरिया के व्यक्ति पर भरोशा भी होगा और वह उस एरिया के व्यक्ति को समझता भी होगा कि अगर वह कोई बेईमानी करता है तो वह उसे अपने स्थान पर जाकर पकड सकता है इसी प्रकार से जब जब कोई व्यक्ति सरसब्ज इलाके से रेगिस्तानी इलाके मे जायेगा तो उसे भीड और चालाकी वाले कारणो से दूर होना पडेगा जहां वह अपनी बुद्धि को प्रकट करने के बाद अपनी योग्यता को दिखाने से डरत था वह रेगिस्तानी इलाके मे लम्बी सोच को रखने के बाद अपनी बुद्धि को अच्छी तरह से प्रकट भी करेगा और मन चाहा काम करने के बाद मेहनत करने वाले लोगो का फ़ायदा भी लेगा तथा पनप भी जायेगा इसके लिये एक बात और भी समझी जा सकती है कि जो व्यक्ति अभावो वाले क्षेत्र मे पैदा होता है वह अपने स्थान बदलाव के बाद एक ऐसी स्थिति को देखता है जहां पर कोई अन्य व्यक्ति उसी प्रकार के काम को नही कर रहा हो। यह बात अक्सर मारवाडी जाति के लिये कही जाती है कि वह जहां कोई साधन नही जा सकता है वहां पर मारवाडी आराम से पहुंच कर अपनी योग्यता को प्रयोग मे ला सकता है इसलिये कहा भी गया है कि - "जहाँ न पहुँचे घोडी,वहाँ पहुँचे मारवाडी".उसी प्रकार से सेवा के मामले मे और बुद्धि के मामले मे भी कहा गया है कि -"जहाँ पहुँचे बंगाली,वहाँ न रहे कंगाली",एक काम के अन्दर एक बिहारी व्यक्ति सौ काम निकालने की हिम्मत रखता है और जो साधारण लोग होते है केवल एक ही काम को करने मे विश्वास रखते है वह कहने लगते है कि -"एक बिहारी सौ बीमारी",आदि कहावते समाज मे चल रही है।क बात और भी मानी जाती है कि जब व्यक्ति एक ही स्थान पर रहता है तो उसे कोई भी छोटा काम करने मे शर्म महसूस होने लगती है या उसी के परिवार मे या घर मे कोई व्यक्ति जब बडी पोस्ट पर पहुंच जाता है तो छोटी बुद्धि या कमजोर व्यक्ति अपने को आगे नही बढा पाता है उसे लगता है कि अगर वह कोई छोटा काम करता है तो वह अपने समाज मे ही छोटा गिना जायेगा वह अपने को स्थान बदलाव मे ले जाता है और अपनी शक्ति से अपने को आगे बढाने के लिये शुरु हो जाता है तो वह आगे बढने लगता है।

गुरुवार, 25 अक्तूबर 2018

प्रकृति का बैलेंस

प्रकृति का बैलेंस

कहा जाता है कि जब अनेक राम पैदा हो जाते है तो रावण को भी जन्म लेना पडता है और अनेक रावण पैदा हो जाते है तो राम को भी जन्म लेना पडता है। जब खूब घास पैदा होने लगती है तो बहुत से हिरन पैदा हो जाते है और जब बहुत से हिरन पैदा हो जाते है तो शेर भी पैदा होने लगते है। इसी का नाम प्रकृति का बलैंस बनाना कहा जाता है,यह प्रकृति अपने बैलेंस को बनाकर चलती है,कोई कितनी ही मर्जी कर ले लेकिन यह अपना रास्ता नही छोडती है,जब जमीन पर भार बढ जाता है तो यह भूकंप पैदा करती है,जब जगह खाली हो जाती है तो जीवों को पैदा करती है,जो स्थान खाली होता है उसे भरती है और जो भरा है उसे खाली करती है। एक व्यक्ति जब धर्म की तरफ़ जाता है तो प्रकृति उसके अन्दर अहम को भी भरती है और जब अहम पैदा हो जाता है तो वह धार्मिकता को छोड कर आसुरी वृत्ति में जाने के लिये तैयार हो जाता है। जब वह धर्म से रहना चाहता है तो उसका ध्यान माया से जुडे लोगों में चला जाता है और जब वह माया में जाता है तो उसका ध्यान धर्म की तरफ़ चला जाता है,इस बदलने वाले प्रकृति के टेस्ट के कारण जीव अपनी अपनी करनी का फ़ल प्राप्त करता है। ग्रह नक्षत्र इस बात को अपनी अपनी प्रभाव देने वाली बात को बताते है और साधु सन्यासी लोग इसे ईश्वर की महिमा बताते है साधारण लोग इसे अपनी अपनी करनी का फ़ल बताते है,जो लोग कुछ नही जानते वे अपने को जैसे लोगों और प्रकृति के द्वारा चलाया जाता है उसी प्रकार से चलते जाते है और जो भी कार्य उनके लिये पहले से तय किया गया है उसे पूरा करते है और अपने रास्ते से निकल जाते है।

भिन्नता को देखने के लिये अपने शाकाहारी और मांसाहारी जीवों को ही नही देखना पडता है यह वृत्ति मनुष्य के अन्दर भी मिलती है,कितने लोग केवल घास पात खाकर अपने जीवन को चलाना जानते है और कितने लोग चिकन और मटन से ही अपने उदर को भरने में विश्वास करते है। कोई दूध पीकर पहलवानी और शरीर के बल को प्रदर्शित करता है तो कोई शराब पीकर दस मिनट में ही अपने आतंक को प्रदर्शित करने से नही चूकता है। कोई परायी बहिन बेटी को अपनी बहिन बेटी समझता है तो कोई सभी को कामुकता की नजर से ही देखता है,अगर सभी की समान द्रिष्टि हो जाती तो कोई न्याय करने की जरूरत नही पडती,सभी अपने अपने रास्ते से चले जा रहे होते और कोई युद्ध नही होता कोई मारकाट नही होती और कोई एक दूसरे से जलन नही रखता,लेकिन इस बात में भी प्रकृति को दिक्कत आने लगती,जब एक दूसरे को जलन नही होती तो वह आगे ही आगे बढते जाते,एक प्रकार की मानसिकता होती तो वे आसमान में सीढियां भी लगा चुके होते। या तो एक ही मानसिकता से सभी बढ चढकर खुश हो गये होते या एक ही मानसिकता से समाप्त भी हो गये होते। आखिर में इस प्रकृति को इतना क्यों करना पडता है,क्यों वह जीव को पैदा करती है और उसे पालती है उसकी रक्षा करती है और जरा सी देर में कोई न कोई कारण पैदा करने के बाद उसे समाप्त कर देती है,या तो वह पैदा ही नही करे,और पैदा करे तो मारे नही,परेशान नही करे,लेकिन इतनी बात को समझने के लिये प्रकृति के पास समय कहां है उसे तो कुछ करना है,जो करना है हमें भी पता नही है,जब हम जमीन के नीचे से कोयला और पेट्रोल आदि निकालते है तो वैज्ञानिक कहते है यह सब जीवांशो के द्वारा ही सम्भव है,अन्यथा जमीन के नीचे कोयला कैसे बन गया,जहां जहां कोयले की खाने है वहां वहां पूर्वकाल में बडी बडी बस्तियां रही होंगी,बडे बडे जंगल रहे होंगे,वे किसी न किसी कारण से समाप्त हो गये और उनके अवषेश कोयला या पेट्रोल के रूप में नीचे रह गये,वे ही मनुष्य निकाल निकाल कर जलाने और शक्ति के रूप में प्रयोग करने के लिये अपना रहा है। समुद्रों के नीचे भी पेट्रोल और कोयले की खाने है,मीलों गहरे पानी के नीचे भी पेट्रोल की खोज की गयी है और मनुष्य वहां से भी पेट्रोल और खनिज निकालने के लिये प्रयासरत है।ह जमीन की मिट्टी जो देखने में पत्थर लगती है बालू लगती है चिकनी मिट्टी लगती है,भुरभुरी लगती है दोमट लगती है लाल पीली काली हरी सभी तरह की मिट्टी दिखाई देती है यह कोई साधारण वस्तु नही है,यह अटल मिट्टी है इसके अन्दर से जो चाहो प्राप्त कर सकते हो,लेकिन प्राप्त करने की कला होनी चाहिये,जैसे इस मिट्टी से मीठा रस पीना है तो पहले इसके अन्दर गन्ना बोया जायेगा,और जब इस मिट्टी से चरपरा कुछ खाना है तो मिर्ची बोयी जायेगी और एक प्रकार की मिट्टी से ही मीठा और चरपरा दोनो प्रकार का स्वाद पैदा हो जायेगा,इसे अगर वैसे ही चाखो तो कैसी भी नही लगती है। इसी मिट्टी में गंधक है इसी में पारा है इसी में अगरस है इसी में मगरस है और जब इन्हे तपा दिया गया तो इसी मिट्टी में सोना भी बना है,मगरस हटा दिया तो लोहा ही रह गया,एक सौ उनसठ तत्व मिट्टी के सोना बना देते है तो एक सौ अट्ठावन तत्व लोहा ही रहने देते है। इस मिट्टी को गीला कर दो और सही तापमान में रखो पता नही कहां से आकर इसके अन्दर कोई न कोई जीव या वनस्पति अपने आप पैदा होने लगेगी,कोई इस मिट्टी को नही जाने लेकिन धरती के अन्दर रहने वाले जीव तो इसे जानते ही है। जो इस धरती के अन्दर जीव रहते है उन्हे ऊपर का सभी कुछ पता होता है,अगर समझना है तो कभी चीटी को देखो,जैसे ही पानी बरसने वाला होता है वह समझ जाती है कि उसके बिल में पानी आयेगा और वह अपने अंडे बच्चे लेकर सुरक्षित स्थान की ओर भागलेती है और वह जाती भी वहीं है जहां पानी किसी तरह से नही पहुंचेगा,आदमी के पास तो बैरोमीटर है लेकिन चीटी के पास कौन सा बैरोमीटर है ? आदमी के पास बुद्धि है लेकिन सेंस नही है,वह अपनी बुद्धि से बना तो बहुत कुछ सकता है लेकिन उसे यह सेंस नही है कि उस बने हुये का आगे प्रयोगात्मक पहलू सकारात्मक होगा या नकारात्मक.

मनुष्य की पसंद तो खुशबू होती है लेकिन वह उस खुशबू को बदलकर बदबू में परिवर्तित कर देता है,वह भोजन तो स्वादिष्ट खाता है,लेकिन पाखाना बदबू वाला ही करता है,आदमी का पाखाना किसी काम का नही है जबकिएक अदनी से जीव गाय का पाखाना कम से कम लीपने पोतने और जलाने के लिये छैने तो बनाने के काम आता है,मनुष्य का शरीर भी किसी काम का नही है,वह मन्दिरों में जाता है तो अपने को पवित्र बताता है,मस्जिद में जाता है तो अपने को पवित्र बताता है,और जब उसकी अन्तगति होती है तो उसे लोग छूने से डरते है,और कोई भूल से छू भी लेता है तो उसे नहाना पडता है और कई और भी क्रिया कर्म करने पडते है,किस काम का है यह मनुष्य ?

शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2018

गुरु का राशि परिवर्तन (वृश्चिक)मे

ज्योतिष के नौ ग्रहों के द्वारा हम सभी का जीवन संचालित होता है। हम सभी के जीवन की छोटी-बड़ी सभी घटनाओं में बदलते हुए ग्रहों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। यही कारण है

 कि किसी एक समय के दो अच्छे मित्र ग्रह, गोचर और दशा बदलने पर शत्रु बन जाते हैं। वास्तव में देखा जाए तो सभी जीवमात्र उस सर्वशक्तिमान सत्ता के हाथों की कठपुतलियां हैं, जिनमें धागों का कार्य नवग्रह कर रहे हैं। इसलिए धागों की दिशा अर्थात ग्रहों का गोचर बदलने पर जीवन स्वतः बदल जाता है। कभी एक और कभी एक से अधिक ग्रह वैसे तो प्रत्येक माह अपनी राशि बदलते ही रहते हैं, परन्तु जब एक साथ कई ग्रह राशि परिवर्तन करते हैं, तो परिणाम विशेष प्रभावशाली हो जाते हैं।गुरु (बृहस्पति) ज्योतिष के नवग्रहों में सबसे अधिक शुभ ग्रह माने जाते हैं। गुरु मुख्य रूप से आध्यात्मिकता को विकसित करने के कारक ग्रह हैं। ये तीर्थ स्थानों, मंदिरों, पवित्र नदियों तथा धार्मिक क्रिया-कलाप से जोड़ते हैं। साथ ही गुरु ग्रह अध्यापकों, ज्योतिषियों, दार्शनिकों, संतान, जीवन-साथी, धन-सम्पत्ति, शैक्षिक गुरु, बुद्धिमत्ता, शिक्षा, ज्योतिष, तर्क, शिल्पज्ञान, अच्छे गुण, श्रद्धा, त्याग, समृद्धि, धर्म, विश्वास, धार्मिक कार्यों, राजसिक और सम्मान के सूचक ग्रह भी हैंज्योतिष के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि गुरु की कृपा से कुंडली में कई दोषों का प्रभाव कम होता है। मनुष्य जीवन में इस ग्रह का बड़ा महत्व है गुरु गोचर में वृश्चिक राशि ( Scorpio Sign )मंगल की राशी जल तत्व में गुरु और मंगल दोनों मित्र ग्रह हैं।  11 अक्टूबर 2018 को प्रवेश कीया और इसी राशि में वे 5 नवम्बर 2019 तक भ्रमण करते रहेंगे। गुरु / बृहस्पति का वृश्चिक में गोचर का प्रभाव विभिन्न भावो/ घर / House पर अलग-अलग रूप में पड़ेगा। मित्रोंआपकी कुंडली के अनुसार ग्रहों की दशा क्या कहती है, क्योंकि आपकी कुंडली के अनुसार ही गोचर फल होग आपकी कुंडली में ग्रह कहां बैठा है कौन से घर में बैठा है किसके साथ में बैठा है कौन सी राशि में बैठा है कौन से नक्षत्र में बैठा है कितने अंश पर बैठा है इसके साथ जूती कर रहा है यह सब बातें देखकर ही गोचर फल बताया जाता है और मित्रों जब भी कोई ग्रह गोचर में परिवर्तन होता है तो उससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह हमारे देश पर वातावरण पर  प्रदेश का हमारे शहर का संयुक्त रूप से क्या प्रभाव पड़ेगा मित्रों सबसे पहले हम वृश्चिक राशि की ही बात करेंगे क्योंकि गुरु वृश्चिक राशि में आया है वृश्चिक राशि यानी बिच्छू बिच्छू का स्वभाव उन्ही को समझ मे आता है जो बिच्छू से आमने सामने दो दो हाथ किये होते है। बिच्छू एक धरती का जीव है जो अपने विषैले डंक के साथ जमीन के नीचे निवास करता है,उसकी उपस्थिति गर्मियों के दिनो में ही देखने को मिलती है और दिन के समय अन्धेरे स्थानों में छुपे रहना तथा रात्रि के समय जहां कीट पतंगो और मच्छरों का जमाव होता है वहां से अपने आहार को प्राप्त करने की कोशिश में लगे रहना होता है। अपने पीछे पूंछ की आकार में सुई से भी महीन डंक को प्रयोग में लाता है जैसे इंजेक्सन से दवाई को शरीर में प्रवेश करवाया गया होता है उसी तरह से बिच्छू अपने जहर को खतरे के समय और अपनी रक्षा के लिये प्राणियॊं शरीर में प्रवेश करवाकर भाग लेता है,जिससे जिस प्राणी के अन्दर इसका जहर गया होता है वह तडपने लगता है और कमजोर होता है तो मर भी जाता है,बलवान होता है तो पूरे चौबीस घंटे के बाद इसके जहर से मुक्ति मिलती है। शमशानी जीव भी इसे कहा जाता है क्योंकि यह आबादी से बाहर बाले क्षेत्र में जंगलों में पर्वतों पर और चिकनी मिट्टी वाले क्षेत्रों में मिलता है। इसका रंग काला और पीला भी होता है,सबसे खतरनाक काला बिच्छू होता है। वृश्चिक राशि के जातक भी इसी स्वभाव के होते है,उनके द्वारा की जाने वाली बात ह्रदय के अन्दर अपना पूरा असर देती है,इस राशि वाले लोग जिससे भी एक बार अपने को मिलालेते है वे हमेशा उसे अपनी कोई न कोई पहिचान दे देते है,और उस पहिचान से लोग इस राशि वाले जातक को याद रखते है। कर्क और मीन राशि से अपनी शक्ति को इकट्ठी करने के कारण इनके पास मोक्ष देने के उपाय भी होते है और भावना से अपनी पहिचान बनाने और ह्रदय के अन्दर उतरने की हिम्मत भी रखते है। दवाइयों को कई रूप में प्रयोग किया जाता है,कई दवाइयां बहुत कडवी होती है और कई दवाइयां बहुत मीठी होती है,जहर चाहे मीठा हो या कडवा कहलाया जहर ही जायेगा। भावनाओं का दरिया जब इस राशि वाले बहाने के लिये तैयार होते है तो किसी को भी अपनी भावना का प्रभाव देकर उसे अपनी तरफ़ आकर्षित कर लेते है उस समय इनके मन में कतई बैर भाव वाली बात नही होती है,इनके भावनात्मक प्रभाव को प्रदान करने वाली बुद्धि बहुत ही अजीब मानी जाती है,कारण इनकी बुद्धि की मालिक ही मीन राशि होती है और जब भी अपने को प्रदर्शित करने की कोशिश करते है तो लगता है कि यह पूरी तरह से अपने में संतुष्ट है लेकिन इनके नवें भाव में जो इकट्ठा होता है वह कर्क राशि का प्रभाव होता है,इस प्रभाव को जब यह दूसरों पर उडेलते है तो लगता है इनके पास समुद्र इकट्ठा है,लेकिन कर्क राशि के पीछे इस राशि के अष्टम की राशि मिथुन होने से और मिथुन राशि के मृत प्रभाव को जब कर्क राशि में इकट्ठा किया जाता है उसी को यह अपने लिये बडे रूप में प्रदर्शित करते है। इनकी बातों में कभी कभी बहुत ही रूखापन भी मिलता है। यह अपने अन्दर शक्ति रखते है वह शक्ति मृत शरीर में भी जान डाल देने के लिये काफ़ी मानी जाती है भौतिकता में आने के बाद यह बडी से बडी मशीनरी को अपने प्रयास से ठीक करने की इन्जीनियरिंग वाली हैसियत भी रखते है तो अस्पताली कार्यों के अन्दर दक्षता लेकर यह मरने वाले को भी अपनी शक्ति से जिसे तकनीकी शक्ति भी कहा जा सकता है जिन्दा रखने की औकात रखते है। यह अपने प्रभाव को साधारण आदमी के अन्दर अगर किसी तरह से प्रवेश करवा देते है तो वह आदमी इनसे मिले बिना भी नही रह सकता है और इनके पास भी नही रह सकता है।गुरु इस राशि मे लग्न में है और पंचम और नवम दृष्टि से प्रभावी दे रहा है गुरु की दृष्टि अमृत के समान काम भी करती है पंचम में मीन राशियह मोक्ष की भी राशि कहलाती है जैसे कर्क राशि को जन्म स्थान के नाम से जाना जाता है तो वृश्चिक राशि को मौत के स्थान से भी माना जाता है मीन राशि को आसमानी निवास भी बताया जाता है। जिसे रूह का निवास स्थान भी कहाजाता है। इस राशि के लग्न में में इस राशि के आने से इस गुरु पिछले समय से चले आ रहे धन और परिवार के सुखों से पूर्ण करने के लिये अपना असर देना शुरु करेगा,इस राशि वालों के पास जो संतान की कमी थी उसके लिये यह गुरु अपने पूरे असर के साथ अपना असर देगा और नि:संतान लोगों को अपने अस्पताली कारणों से अपने प्रभाव देकर भूण प्रत्यारोपड आदि तरीके से संतान सुलभ करवाने की कोशिश करेगा,इसके अलावा जिन लोगों के बारहवें भाव का चन्द्रमा था वे भी इस राशि के प्रभाव से अपने को लाभान्वित कर सकते है। जो लोग जल्दी से धन कमाने के साधनों के बारे में नही समझते थे उनके लिये यह गुरु कैसे और किन साधनों से धन को जल्दी कमाया जा सकता है का कारण पैदा करेगा,जो लोग पिछले समय में अपनी कविता या भावना से अपने को संसार के सामने प्रस्तुत करते रहे है उनके सामने किसी बाहरी व्यक्ति की दखलंदाजी से प्यार मोहब्बत वाली बात भी पनपेगी और वे अपने को इस साल में प्यार की जीत का साल मानने से भी दूर नही रहेंगे,इस साल के वेलेंटाइन डे पर वृश्चिक राशि वालों के द्वारा ही सबसे अधिक सन्देश देखने को मिलेंगे। मंगल की नकारात्मक राशि होने के कारण और भूत प्रेत पिशाच की शक्ति को जानने के कारण तथा अपने पूर्वजों के अन्दर अधिक विश्वास करने के कारण इस राशि के रहन सहन में भी बदलाव देखने को मिलेगा,यह गुरु धनी लोगों की संगति भी दिलवायेगा,धन के प्रति साझेदारी के मौके भी आयेंगे,वृष राशि वाले इस राशि के इस प्रकार के प्रभाव में जल्दी आयेंगे। वृश्चिक राशि के गुरु का की दृष्टि पंचम प्रभाव नवे भाव में जाने से और कर्क राशि की उपस्थिति होने से इन्हे जनता से सम्बन्धित मकान जायदाद और अपनी भावनाओं की लडाई में वाहन वाले कारणों से पानी वाले कारणों से न्याय के लिये भी जाना पड सकता है,साथ ही इनके लिये घूमने और मौज मस्ती के लिये पानी के किनारे वाले स्थान भी रास आ सकते है,हवाई यात्रायें करवाने के लिये और घूमने के मामले में जो लोग अपनी सेवायें प्रदान करते है उनके लिये भी इस गुरु का प्रभाव बहुत ही प्रभावी रहेगा।जो मित्र कर्जा दुश्मनी बीमारी और शरीर की तकलीफ़ों से जूझ रहे है वे इस राशि की बुद्धि का सहारा लेकर अपने में राहत महसूस करेंगे, बारहवें भाव में तुला राशि के होने से जो भी फ़ैसला इनके द्वारा बाहरी सामजस्य बैठाने के लिये किया जायेगा उसके अन्दर केवल त्याग की भावना ही समझ में आयेगी इनके द्वारा जो भी फ़ैसला बाहरी आफ़तों के लिये दिया जायेगा वह केवल त्याग के प्रति ही माना जा सकता है। इन्हे बाहरी कार्यों से ब्रोकर वाला कार्य करने के बाद भी धन और ऐश्वर्य की प्राप्ति होने के कारण बनेंगे,जो लोग अपने व्यवसायिक प्रतिष्ठानों को बाहरी क्षेत्रों में स्थापित करने के लिये अपने प्रयास कर रहे है उनके प्रयासों भी सफ़लतायें सामने आयेंगी। वृश्चिक राशि के बुद्धि वाले भाव में गुरु की Drishti दृष्टि होने के कारण जो विद्यार्थी पहले से अपने को किसी भी विषय में कमजोर मानते आये है उनके लिये यह गुरु सुनहरा अवसर प्रदान कर रहा है वे अगर अपनी बुद्धि को जरा सा भी समय देकर फ़ैलाने की कोशिश करते है और अपने अन्दर पैदा होने वाले विपरीत लिंगी के प्रति आकर्षण में कमी कर लेते है तो उन्हे उच्च सफ़लता में जाने से कोई रोक नही सकता है। इस राशि के पंचम में गुरु गुरु की दृष्टि पढ़ने का एक प्रभाव और भी सामने आता है वह होता है उनके अन्दर जो पहले से भावनात्मक मित्र जुडे होते है उनसे परित्याग की भावना इस गुरु के द्वारा पैदा होती है,जो लोग पहले से किसी जनता से जुडी कमन्युटी से अपने को बांधे बैठे है वे अपने कार्यों की अधिकता से अब अधिक वक्त इस प्रकार की कमन्युटी के प्रति नही पायेंगे। मित्रों बाकी आपकी कुंडली के द्वारा फल  आचार्य राजेश

शनिवार, 6 अक्तूबर 2018

मंत्र विज्ञान और भौतिक विज्ञान

मंत्र होते है असीम शक्तियों के स्वामी अब विज्ञान भी है मानता“मन्त्र” से तात्पर्य  एक विशिष्ट प्रकार के संयोजित वर्णों के उच्चारण से उत्पन्न ध्वनि सेभौ है… और, वह ध्वनि ही हमारे शरीर के विभिन्न स्थानों में स्थिति अन्तश्चक्रों को ध्वनित कर…. जाग्रत एवं प्रखर ऊर्जावान बनाकर आत्मशक्ति एवं जीवनी शक्ति का विकास करती है.सारे मंत्र सारे संस्‍कृत के अक्षरों से बने है। और प्रत्‍येक अक्षर मूलत: ध्‍वनि है, और प्रत्‍येक ध्‍वनि एक तरंग है।

भोतिक विज्ञान मानती है कि आस्‍तित्‍व तरंगों से बना हुआ है। ध्‍वनि दो प्रकार की होती है। आहत और अनाहत। मन से जैसे ही विचार उठा, कल्‍पना उभरी, वैसे ही ध्‍वनि पैदा होती है: लेकिन यह ध्‍वनि सुनाई नहीं देती दूसरी ध्‍वनि है जो दो वस्‍तुओं के आघात से उत्‍पन्‍न होती है। यह ध्‍वनि आहत है, श्रवणीय है। सूक्ष्‍म तल पर ध्‍वनि आहत है, श्रवणीय है। सूक्ष्‍म तल पर ध्‍वनि प्रकाश बन जाती है। इसलिए उसे पश्‍यन्‍ती कहते है।तंत्र कहता है, प्रत्‍येक वस्‍तु गहरे में ध्‍वनि तरंग है। इस लिए पूरी साकार सृष्‍टि ध्‍वनियों के विभिन्‍न मिश्रणों का परिणाम है। ध्‍वनि के इस सिद्धांत से ही मंत्र शास्‍त्र पैदा हुआ है। मंत्र की शक्‍ति उसके शब्‍दों के अर्थ में नहीं है। उसकी तरंगों की सघनता में है। ध्‍वनि सूक्ष्‍म तल पन प्रकाशबन जाती है। और उसके रंग भी होते है। जो सामान्‍य चक्षु को नहीं दिखाई देते। तांत्रिक यंत्र ऊपर से देखने पर ज्‍यामिति की भिन्‍न-भिन्‍न आकृतियां दिखाई देती है। लेकिन यंत्र का रहस्‍य समझने के लिए ज्‍यामिति की रेखाओं के पार जाना पड़ेगा। यंत्र एक शक्‍ति का रेखांकन है। वह विशिष्‍ट वैशिवक शक्‍ति का एक प्रकटीकरण है।यंत्र की रेखाएं, कोण, बिंदु और इनका आपसी संबंध, इनका राग-रागिनियों से गहरा रिश्ता है। जैसे हर राम के सुनिश्‍चित सुर होते है, उनका परस्‍पर मेल होता है वैसे यंत्र की रेखाओं का आपसी स्‍वमेल होता है।ध्यान रखें कि मंत्रों की शक्ति असीम है क्योंकि, मंत्र एक वैज्ञानिक विचारधारा हैइस विज्ञान को ठीक से समझने के लिए…. आप किसी गाने का उदाहरण ले सकते हो जिस प्रकार हम किसी रोमांटिक गाने को सुनकर प्यार की दुखद गाने को सुनकर दुःख की और, देशभक्ति गाने को सुनकर ओज का अनुभव करते हैं उसी प्रकार विभिन्न मंत्रोच्चार का प्रभाव भी भिन्न-भिन्न होता हैअसल में आधुनिक भौतिक विज्ञान के सिद्धांतों के अनुसार मन्त्रों को हम दो भागों में विभक्त कर सकते हैं

(1) शब्दों की ध्वनि

(2) आंतरिक विद्युत धारा… इसे विज्ञान की पारिभाषित शब्दावली में “अल्फा तरंग” भी कहा जा सकता है।

गौर करने लायक बात यह है जब किसी मंत्र का उच्चारण किया जाता हैतो  उस से ध्वनि उत्पन्न होती हैऔर, उस ध्वनि के उत्पन्न होने पर अंत:करण में कंपन उत्पन्न होता है तथा, यह ध्वनि कंपन के कारण तरंगों में परिवर्तित होकर वातावरण में व्याप्त हो जाती है  एवं, इसके साथ ही आंतरिक विद्युत भी (तरंगों में) इसमें व्याप्त रहती है।इस तरह यह आंतरिक विद्युत जो शब्द उच्चारण से उत्पन्न तरंगों में निहित रहती है.शब्द की लहरों को व्यक्ति विशेष तथा दिशा विशेष की ओर भेजती है अथवा , इच्छित कार्य में सिद्धि दिलाने में सहायक होती है।यह बात वैज्ञानिक अनुसंधान द्वारा भी मान ली गई है कि  ध्यान, मनन, चिंतन आदि की अवस्था में जब रासायनिक क्रियाओं के फलस्वरूप शरीर में विद्युत जैसी एक धारा प्रवाहित होती है (इसे हम शारीरिक विद्युत कह सकते हैं) तथा, मस्तिष्क से विशेष प्रकार का विकिरण उत्पन्न होता है . जिसका नाम “अल्फा तरंग” रखा गया है (इसे हम मानसिक विद्युत कह सकते हैं)यही अल्फा तरंग मंत्रों के उच्चारण करने पर निकलने वाली ध्वनि के साथ गमन कर दूसरे व्यक्ति को प्रभावित कर या इच्छित कार्य करने में सहायक होती हैऔर, वो मंत्र जिस उद्देश्य से जपा जा रहा है, उसमें सफलता दिलाने में यह सहायक सिद्ध होते हैं।g इसे हम वैज्ञानिक भाषा मेंमानसिक विद्युत” या “अल्फा तरंग” को “ज्ञानधारा” भी कह सकते हैं। मनोविज्ञान के विद्वानों ने प्रयोगों और परीक्षणों के उपरांत यह निष्कर्ष निकाला है कि मनुष्य के मस्तिष्क में बार-बार जिन विचारों अथवा शब्दों का उदय होता है उन शब्दों की एक स्थाई छाप मानस पटल पर अंकित हो जाती है और एक समय ऐसा भी आता है  जब वह स्वयं ही मंत्रमय हो जाता (मंत्र की लय में खो जाता) है और यदि यह विचार आनंददायक हों, मंत्र कल्याणकारी हो,तो इन्हीं के परिणाम मनुष्य को आनंदानुभूति करवाने वाले सिद्ध होते हैं fक्योंकि, कभी-कभी मनुष्य के जीवन में ऐसी परिस्थितियां भी आती हैं जब उसका मन खिन्न एवं दुखी होता है।तो , ऐसा उस मनुष्य के अपने ही पूर्व संचित कर्म के परिणामस्वरूप ही होता हैआपको यह जानकार काफी ख़ुशी होगी कि. अमेरिका के ओहियो यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के अनुसार.सरयुक्त फेफड़ों, आंत, मस्तिष्क, स्तन, त्वचा और फाइब्रो ब्लास्ट की लाइनिंग्स पर जब सामवेद के मंत्रों और हनुमान चालीसा के पाठ का प्रभाव परखा गया. तो , कैंसर की कोशिकाओं की वृद्धि में भारी गिरावट आई.जबकि, इसके विपरीत तेज गति वाले पाश्चात्य और तेज ध्वनि वाले रॉक संगीत से कैंसर की कोशिकाओं में तेजी के साथ बढ़ोतरी हुई।सिर्फ इतना ही नहीं मंत्र चिकित्सा के लगभग पचास रोगों के पांच हजार मरीजों पर किए गए क्लीनिकल परीक्षणों के अनुसार. दमा एवं अस्थमा रोग में सत्तर प्रतिशत स्त्री रोगों में 65 प्रतिशत.त्वचा एवं चिंता संबंधी रोगों में साठ प्रतिशत.उच्च रक्तदाब यानी हाइपरटेंशन से पीड़ितों में पचपन प्रतिशत.आर्थराइटिस में इक्यावन प्रतिशत.डिस्क संबंधी समस्याओं मेंइकतालीसप्रतिशत,. आंखों के रोगों में इकतालीस प्रतिशत तथा एलर्जी की विविध अवस्थाओं में चालीस प्रतिशत का औसत लाभ हुआ.इस तरह हम गर्व से कह सकते हैं किनिश्चित ही हमारे हिन्दू सनातन धर्म के मंत्र चिकित्सा उन लोगों के लिए तो वरदान है . जो पुराने और जीर्ण क्रॉनिक रोगों से ग्रस्त हैंकहा गया है कि जब भी कोई व्यक्ति गायत्री मंत्र का पाठ करता है.तो अनेक प्रकार नाएं इस मंत्र से होती हुई व्यक्ति के मस्तिष्क को प्रभावित करती हैं...!यहाँ तककि जर्मन वैज्ञानिक भी कहते हैं कि जब भी कोई व्यक्ति अपने मुंह से कुछ बोलता है तो , उसके बोलने में सिर्फ 175 प्रकार के आवाज का जो स्पंदन और कंपन होता है.जव, कोई कोयल पंचम स्वर में गाती है तो उसकी आवाज में 500 प्रकार का प्रकंपन होता है ......लेकिन जब दक्षिण भारत के विद्वानों से जब विधिपूर्वक गायत्री मंत्र का पाठ कराया गया......तो यंत्रों के माध्यम से यह ज्ञात हुआ कि गायत्री मंत्र का पाठ करने से संपूर्ण स्पंदन के जो अनुभव हुए. वे 700 प्रकार के थे।इस शोध के बाद. जर्मन वैज्ञानिकों का कहना है कि........ अगर कोई व्यक्ति पाठ नहीं भी करे... और, सिर्फ पाठ सुन भी ले तो भी उसके शरीर पर इसका प्रभाव पड़ता है .क्योंकि इसके अंदर जो वाइब्रेशन है, वह अदभुत है.आप एक प्रयोग करे, किसी राह चलते आदमी को माँ बहन की गाली दे, ये भी एक तरह का भड़काऊ मंत्र है, आप उसका फल 2 मिनिट मे ही अपने गाल पर तमाचे के रूप मे देख लेगे॥हमेशा याद रखें हमारा हिन्दू सनातन धर्म .मानव प्रकृति की सर्वश्रेष्ठ रचना है.क्योंकि यही एक ऐसा धर्म है , जो बुद्धि-विवेक से .और, वैज्ञानिकता से युक्त युक्त है.एवं पुरे समाज के कल्याण हेतु है ! आचार्य राजेश

नवार्ण मंत्र ओर ज्योतिष

भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म में त्योहारों एवं उत्सवों का आदि काल से ही ज्योतिषीय महत्व रहा है। हमारी वैदिक भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहाँ पर मनाये जाने वाले सभी त्यौहार व्यावहारिक और वैज्ञानिक तौर पर खरे उतरते है।“ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे”

नव अक्षरों वाले इस अद्भुत नवार्ण मंत्र के हर अक्षर में देवी दुर्गा कि एक-एक शक्ति समायी हुई हैं, जिस का संबंध एक-एक ग्रहों से हैं।आप भी पङे ओर लाभ उठाऐ दुर्गा दुखों का नाश करने वाली देवी है। दुर्गा की इन नौ शक्तियों को जागृत करने के लिए दुर्गा के 'नवार्ण मंत्र' का जाप किया जाता है। इसलिए नवरात्रि में जब उनकी पूजा आस्था, श्रद्धा से की जाती है तो उनकी नौ शक्तियां जागृत होकर नौ ग्रहों को नियंत्रित कर देती हैं। फलस्वरूप प्राणियों का कोई अनिष्ट नहीं हो पाता। दुर्गा की इन नौ शक्तियों को जागृत करने के लिए दुर्गा के 'नवार्ण मंत्र' का जाप किया जाता है। नव का अर्थ 'नौ' तथा अर्ण का अर्थ 'अक्षर' होता है। अतः नवार्ण नौ अक्षरों वाला वह मंत्र है । नवार्ण मंत्र- 'ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चै ।' नौ अक्षरों वाले इस नवार्ण मंत्र के एक-एक अक्षर का संबंध दुर्गा की एक-एक शक्ति से है और उस एक-एक शक्ति का संबंध एक-एक ग्रह से है। नवार्ण मंत्र के नौ अक्षरों में पहला अक्षर ' ऐं ' है जो सूर्य ग्रह को नियंत्रित करता है। ऐं का संबंध दुर्गा की पहली शक्ति शैलपुत्री से है, जिसकी उपासना 'प्रथम नवरात्रि' को की जाती है। दूसरा अक्षर ' ह्रीं ' है, जो चंद्रमा ग्रह को नियंत्रित करता है। इसका संबंध दुर्गा की दूसरी शक्ति ब्रह्मचारिणी से है, जिसकी पूजा दूसरे नवरात्रि को होती है। तीसरा अक्षर ' क्लीं ' है, जो मंगल ग्रह को नियंत्रित करता है।इसका संबंध दुर्गा की तीसरी शक्ति चंद्रघंटा से है, जिसकी पूजा तीसरे नवरात्रि को होती है। चौथा अक्षर 'चा' है जो बुध को नियंत्रित करता है। इनकी देवी कुष्माण्डा है जिनकी पूजा चौथे नवरात्री को होती है। पांचवां अक्षर 'मुं' है जो गुरु ग्रह को नियंत्रित करता है। इनकी देवी स्कंदमाता है पांचवे नवरात्रि को इनकी पूजा की जाती है। छठा अक्षर 'डा' है जो शुक्र ग्रह को नियंत्रित करता है। छठे नवरात्री को माँ कात्यायिनी की पूजा की जाती है। सातवां अक्षर 'यै' है जो शनि ग्रह को नियंत्रित करता है। इस दिन माँ कालरात्रि की पूजा की जाती है। आठवां अक्षर 'वि' है जो राहू को नियंत्रित करता है । नवरात्री के इस दिन माँ महागौरी की पूजा की जाती है। नौवा अक्षर 'च्चै ' है। जो केतु ग्रह को नियंत्रित करता है। नवरात्री के इस दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है।

शुक्रवार, 5 अक्तूबर 2018

करीना कपूर की जन्मकुंडली

करीना कपूर का जन्म सन् 21 सितंबर 1980 चंद्र की महादशा के अंतरगत हुआ है इस दशा में चंद्रमा खराब कोने के कारण उनकी माँ को स्वास्थ ख़राब व मानसिक परेशानी का सामना करना पड़ा करीना कपूर 

की जन्म कुंडली के अनुसार उनकी माता को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा और अपनी पढ़ाई - लिखाई की भी परेसाहनीयो का सामना करना पड़ा। करीना कपूर को स्वम की जिन्दगी में खर्चों की अधिकता व घूमने फिरने का शौक रहा तथा उनके खर्चे भी अधिक रहे। यह थोड़ा इसलिए रहा क्योकि इनकी जन्म कुनल्दी में शुक्र - राहु के मेल 8 वे घर में इनको मौज मस्ती व शौक प्रदान किये। यह थोड़ा कभी कभी इंसान जीवन में गलत संगती भी पैदा करता है।बुध ग्रह ने दी आकर्षण शक्ति....करीना की कुंडली में सूर्य जिस भाव में बैठा है। उसके फल से करीना आर्थिक रूप से सुखी है। परंतु ग्रह के अनुसार स्वयं की दुर्बलता के कारण करीना को क्रोध आता है। गुरु ने भी करीना का भाग्योदय किया। लेकिन गुरु शारीरिक कष्ट दे सकता है कुंडली में शुक्र की स्थिति करीना को विलासी बनाती है साथ ही पारिवारिक सुख देती है। शुक्र घमंडी भी बनता है। शनि करीना को तीव्र बुद्धि ओर मृदु स्वभाव वाला बनाता है। राहु-केतु मध्यम फल देते हैं।करीना का जन्म चन्द्र की महादशा में हुआ है गुरु की महादशा चल रही हैकुंडली में चन्द्र की स्थिति ने करीना को शारीरिक सुन्दरता प्रदान की। मंगल ने फिल्मी दुनिया में उच्च स्थान प्राप्त कराया। कुंडली में बुध स्व-राशि पर विराजमान होने से भी करीना आर्थिक, भौतिक रूप से सुखी है एवं बुध के प्रभाव से करीना दर्शकों को आकर्षित करने का गुण रखती है।इनकी जन्म कुंडली में बैठे 10 वे घर में सूर्य, शनि व बुध के मेल में इनको काम काज व अपने पिता के सुखो में खराबी का सामना करवाया साथ ही स्वभाव में गुस्सा व चिड़चिड़ापन की स्थिति भी पैदा कराई। करीना कपूर के जिंदगी में मान सम्मान व पिता के सुखों में बढ़ोतरी तब हुई जब गुरु की महादशा उनके जीवन में लगी तथा संस्कारों में रहकर व अपने घर - परिवार से जुड़कर इन्होंने अपने कैरियर काम किया व सफल अभिनेत्री का मुकाम भी पाया साथ ही साथ बुध की उत्तरदशा में एक विवाह सम्पन हुआ परंतु आज की दशा के अनुसार इनकी शारारिक समस्याओं से ग्रस्त होना पड़ सकता है।  (जुलाई 2017 के बाद इनकेसितारे सही चल रहे है जीवन में प्रसिद्धि, यश और मान सम्मान प्राप्त   2019 में  माता तथा खुद को मानसिक व धन सम्बंधित परेशानियों का सामना करवा सकता है।फिलहाल करीना पर गुरु की महादशा चल रही है। करीना पर गुरु की महादशा 18-9-2026 तक रहेगी। वहीं राहु ग्रह के कारण करीना को पैरों में दर्द का सामना भी करना पड़ सकता है।करीना कपूर को माणिक, पुखराज व हीरे का संयुक्त लॉकेट धारण करना चाहिए। यह उनके लिए शुभ साबित हो सकता है।

नवरात्र का विज्ञान

'मित्रो नवरात्र' शब्द से नव अहोरात्रों (विशेष रात्रियों) का बोध होता है। इस समय शक्ति के नवरूपों की उपासना की जाती है। 'रात्रि' शब्द सिद्धि का प्रतीक हैहमारे ऋषि-मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है इसलिए दीपावली, होलिका, शिवरात्रि और नवरात्र आदि उत्सवों को रात में ही मनाने की परंपरा है। यदि रात्रि का कोई विशेष रहस्य न होता तो ऐसे उत्सवों को 'रात्रि' न कहकर 'दिन' ही कहा जाता लेकिन नवरात्र के दिन, 'नवदिन' नहीं कहे जाते।हमारे मनीषियों ने वर्ष में 2 बार नवरात्रों का विधान बनाया है। विक्रम संवत के पहले दिन अर्थात चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (पहली तिथि) से 9 दिन अर्थात नवमी तक और इसी प्रकार ठीक 6 मास बाद आश्विन मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी अर्थात विजयादशमी के 1 दिन पूर्व तक। परंतु सिद्धि और साधना की दृष्टि से शारदीय नवरात्रों को ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है।इन नवरात्रोंमे साघक अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति संचय करने के लिए अनेक प्रकार के व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, भजन, पूजन, योग-साधना आदि  कुछ साधक इन रात्रियों में पूरी रात पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर आंतरिक त्राटक या बीज मंत्रों के जाप द्वारा विशेष सिद्धियां प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। लेकिन आजकल अधिकांश उपासक शक्ति पूजा रात्रि में नहीं, पुरोहित को दिन में ही बुलाकर संपन्न करा देते हैं। सामान्य भक्त ही नहीं, पंडित और साधु-महात्मा भी अब नवरात्रों में पूरी रात जागना नहीं चाहते और न ही कोई आलस्य को त्यागना चाहता है। बहुत कम उपासक आलस्य को त्यागकर आत्मशक्ति, मानसिक शक्ति और यौगिक शक्ति की प्राप्ति के लिए रात्रि के समय का उपयोग करते देखे जाते हैं।

मनीषियों ने नवरात्रि के महत्व को अत्यंत सूक्ष्मता के साथ वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में समझने और समझाने का प्रयत्न किया। रात्रि में प्रकृति के बहुत सारे अवरोध खत्म हो जाते हैं। आधुनिक विज्ञान भी इस बात से सहमत है। हमारे ऋषि-मुनि आज से कितने ही हजारों वर्ष पूर्व ही प्रकृति के इन वैज्ञानिक रहस्यों को जान चुके थे।दिन में आवाज दी जाए तो वह दूर तक नहीं जाएगी किंतु रात्रि को आवाज दी जाए तो वह बहुत दूर तक जाती है। इसके पीछे दिन के कोलाहल के अलावा एक वैज्ञानिक तथ्य यह भी है कि दिन में सूर्य की किरणें आवाज की तरंगों और रेडियो तरंगों को आगे बढ़ने से रोक देती हैं। रेडियो इस बात का जीता-जागता उदाहरण है। कम शक्ति के रेडियो स्टेशनों को दिन में पकड़ना अर्थात सुनना मुश्किल होता है, जबकि सूर्यास्त के बाद छोटे से छोटा रेडियो स्टेशन भी आसानी से सुना जा सकता है।वैज्ञानिक सिद्धांत यह भी है कि सूर्य की किरणें दिन के समय रेडियो तरंगों को जिस प्रकार रोकती हैं, उसी प्रकार मंत्र जाप की विचार तरंगों में भी दिन के समय रुकावट पड़ती है इसीलिए ऋषि-मुनियों ने रात्रि का महत्व दिन की अपेक्षा बहुत अधिक बताया है। मंदिरों में घंटे और शंख की आवाज के कंपन से दूर-दूर तक वातावरण कीटाणुओं से रहित हो जाता है। यह रात्रि का वैज्ञानिक रहस्य है। जो इस वैज्ञानिक तथ्य को ध्यान में रखते हुए रात्रियों में संकल्प और उच्च अवधारणा के साथ अपने शक्तिशाली विचार तरंगों को वायुमंडल में भेजते हैं, उनकी कार्यसिद्धि अर्थात मनोकामना सिद्धि, उनके शुभ संकल्प के अनुसार उचित समय और ठीक विधि के अनुसार करने पर अवश्य होती है। मित्रों सही मायने में यह समय आत्म निरीक्षण और अपने स्रोत की ओर वापिस जाने का समय है। परिवर्तन के इस काल के दौरान प्रकृति भी पुराने को झाड़ कर नवीन हो जाती है; जानवर शीतनिद्रा में चले जाते हैं और बसंत के मौसम में जीवन वापिस नए सिरे से खिल उठता है।विज्ञान के अनुसार पदार्थ अपने मूल रूप में वापिस आकर फिर से अपनी रचना करता है। यह सृष्टि सीधी रेखा में नहीं चल रही है बल्कि यह चक्रीय है, प्रकृति के द्वारा हर वस्तु का नवीनीकरण हो रहा है- कायाकल्प की यह एक सतत प्रक्रिया है। नवरात्रि का त्यौहार अपने मन को वापिस अपने स्रोत की ओर ले जाने के लिए है।प्रार्थना, मौन, उपवास और ध्यान के माध्यम से जिज्ञासु अपने सच्चे स्रोत की ओर यात्रा करता है। रात को भी रात्रि कहते हैं क्योंकि वह भी नवीनता और ताज़गी लाती है। वह हमारे अस्तित्व के तीन स्तरों पर राहत देती है- स्थूल शरीर को, सूक्ष्म शरीर को, और कारण शरीर को। उपवास के द्वारा शरीर विषाक्त पदार्थ से मुक्त हो जाता है, मौन के द्वारा हमारे वचनों में शुद्धता आती है और बातूनी मन शांत होता है, और ध्यान के द्वारा अपने अस्तित्व की गहराइयों में डूबकर हमें आत्मसाक्षात्कार मिलता है।यह आंतरिक यात्रा हमारे बुरे कर्मों को समाप्त करती है। नवरात्रि प्राणों का उत्सव है जिसके द्वारा ही महिषासुर (अर्थात जड़ता), शुम्भ-निशुम्भ (अहंकार और शर्म) और मधु-कैटभ (अत्यधिक राग-द्वेष) को नष्ट किया जा सकता है। वे एक दूसरे से पूर्णत: विपरीत हैं, फिर भी एक दूसरे के पूरक हैं। जड़ता, गहरी नकारात्मकता और मनोग्रस्तियाँ (रक्तबीजासुर), बेमतलब का वितर्क (चंड-मुंड) और धुँधली दृष्टि (धूम्रलोचन्) को केवल प्राण ऊर्जा के स्तर को ऊपर उठाकर ही दूर किया जा सकता है।नवरात्रि के नौ दिन तीन मौलिक गुणों से बने इस ब्रह्मांड में आनन्दित रहने का भी एक अवसर है। यद्यपि हमारा जीवन इन तीन गुणों के द्वारा ही संचालित है, हम उन्हें कम ही पहचान पाते हैं या उनके बारे में विचार करते हैं। नवरात्रि के पहले तीन दिन तमोगुण के हैं, दूसरे तीन दिन रजोगुण के और आखिरी तीन दिन सत्त्व के लिये हैं। हमारी चेतना इन तमोगुण और रजोगुण के बीच बहती हुई सत्वगुण के आखिरी तीन दिनों में खिल उठती है। जब भी जीवन में सत्व बढ़ता है नवरात्र का विज्ञान, तब हमें विजय मिलती है। इस ज्ञान का सारतत्व जश्न के रूप में दसवें दिन विजयदश्मी द्वारा मनाया जाता है।

यह तीन मौलिक गुण हमारे भव्य ब्रह्मांड की स्त्री शक्ति माने गये हैं। नवरात्रि के दौरान देवी माँ की पूजा करके हम त्रिगुणों में सामंजस्य लाते हैं और वातावरण में सत्व के स्तर को बढ़ाते हैं। हालाकि नवरात्रि बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में मनायी जाती है, परंतु वास्तविकता में यह लड़ाई अच्छे और बुरे के बीच में नहीं है। वेदांत की दृष्टि से यह द्वैत पर अद्वैत की जीत है। जैसा अष्टावक्र ने कहा था - लहर अपनी पहचान को समुद्र से अलग रखने की लाख कोशिश करती है, लेकिन कोई लाभ नहीं होता।हालाकि इस स्थूल संसार के भीतर ही सूक्ष्म संसार समाया हुआ है, लेकिन उनके बीच अलगाव की भावना ही द्वंद का कारण है। एक ज्ञानी के लिए पूरी सृष्टि जीवंत है। जैसे बच्चों को सब कुछ जीवित ही जान पड़ता है, ठीक उसी प्रकार उसे भी सब में जीवन दिखता है। देवी माँ या शुद्ध चेतना ही हर नाम और रूप में व्याप्त हैं। हर नाम और हर रूप में एक ही देवत्व को जानना ही नवरात्रि का उत्सव है। आखिर के तीन दिनों के दौरान विशेष पूजाओं के द्वारा जीवन और प्रकृति के सभी पहलुओं का सम्मान किया जाता है।काली माँ प्रकृति की सबसे भयानक अभिव्यक्ति हैं। प्रकृति सौंदर्य का प्रतीक है, फिर भी उसका एक भयानक रूप भी है। इस द्वैत यथार्थ को मानकर मन में एक स्वीकृति आ जाती है और मन को आराम मिलता है।देवी माँ को सिर्फ बुद्धि के रूप में ही नहीं जाना जाता, बल्कि भ्रांति के रूप में भी; वह न सिर्फ लक्ष्मी (समृद्धि) है, वह भूख (क्षुधा) भी हैं और प्यास (तृष्णा) भी है। सम्पूर्ण सृष्टि में देवी माँ के इस दोहरे पहलू को पहचान कर एक गहरी समाधि लग जाती है। यह पश्चिम में चले आ रहे सदियों के पुराने धार्मिक संघर्ष का भी एक उत्तर है। ज्ञान, भक्ति और निष्काम कर्म के द्वारा अद्वैत सिद्धि प्राप्त की जा सकती है अथवा इस अद्वैत चेतना में पूर्णता की स्थिति प्राप्त की जा सकती है।शेष अगले लेख में आचार्य राजेश

लाल का किताब के अनुसार मंगल शनि

मंगल शनि मिल गया तो - राहू उच्च हो जाता है -              यह व्यक्ति डाक्टर, नेता, आर्मी अफसर, इंजीनियर, हथियार व औजार की मदद से काम करने वा...