शुक्रवार, 8 दिसंबर 2017

संकल्प की शक्ति

                            बहुत समय पहले की बात है. जापान में एक युवा समुराई रहता था जो अपनी मंगेतर से बहुत प्रेम करता था. एक दिन जब उसकी मंगेतर जंगल से गुज़र रही थी, तब एक आदमखोर बाघ ने उसपर प्राणघातक हमला कर दिया. समुराई ने अपनी प्रेयसी को बचाने के भरसक प्रयास किए उसकी मृत्यु हो गई.
दुःख में आकंठ डूबे समुराई ने यह संकल्प लिया कि वह अपनी प्रिया की असमय मृत्यु का प्रतिशोध लेगा और उस बाघ को खोजकर खत्म कर देगा.
इस प्रकार समुराई अपने धनुष-बाण लेकर गहरे जंगल में चला गया और बहुत लंबे समय तक उस बाघ की खोज करता रहा. एक दिन उसे वह एक बाघ कुछ दूरी पर सोता दिखाई दिया. समुराई उसे देखकर समझ गया कि उसी बाघ ने उसकी प्रेयसी के प्राण लिए थे.
उसने अपना धनुष उठाया और निशाना लगाकर बाण छोड़ दिया. बाण बिजली की गति से छूटकर बाघ के शरीर को भेद गया. प्रत्यंचा पर दूसरा बाण चढ़ाकर वह बाघ की मृत्यु सुनिश्चित करने के लिए सतर्कतापूर्वक उसकी ओर बढ़ा… लेकिन वह यह देखकर अचंभित था कि उसके तीर ने किसी बाघ को नहीं बल्कि उसके जैसे दिखनेवाले धारीदार पत्थर को भेद दिया था!
इस घटना का बाद गांव में हर ओर उसकी धनुर्विद्या की चर्चा थी… कि उसने किस तरह एक पत्थर को तीर से भेद दिया, और लोग उसकी परीक्षा लेना चाहते थे.
लेकिन अनेक बार प्रयास करने के बाद भी समुराई के तीर चट्टानों और पत्थरों से टकराकर टूटते रहे. वह उन्हें भेदने का करिश्मा दुहरा नहीं सका.
क्योंकि इस बार समुराई जानता था कि वह पत्थर पर तीर चला रहा है. विगत में उसका संकल्प इतना गहन था कि वह वास्तव में पत्थर को तीर से भेद सका. परिस्तिथियों के बदलते ही उसका अद्भुत कौशल लुप्त हो गया.


शनिवार, 2 दिसंबर 2017

मल मास का वैज्ञानिक रहस्य

आचार्य राजेश

ईस बार मलमास 15 दिसंबर से आरंभ हो रहा है जो 14 जनवरी 2018तक रहेगा। मलमास के चलते दिसंबर के महीने में अब केवल 5 दिन और विवाह मुहूर्त रहेंगे जो कि 8, 9,12,13 व 14 दिसंबर है। इसके बाद अगले महीने 23 जनवरी के बाद ही शादियां होंगी। 15 दिसंबर को ग्रहों का राजा सूर्य रात 8:53 पर धनु राशि में प्रवेश करेगा। इसी के साथ मलमास प्रारंभ हो जाएगा। मलमास प्रारंभ होते ही सभी प्रकार के शुभकार्य मसलन शादी-विवाह, मुंडन, जनेऊ, गृह प्रवेश जैसे कार्यों पर रोक लग जाएगी। 15 जनवरी को सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करते ही मलमास समाप्त हो जाएगा और शुभ कार्य पुनः आरंभ हो जाएंगे। हालांकि 15 से 22 जनवरी के बीच शादियों के लिए शुभ मुहूर्त नहीं होने के कारण शहनाईयों की गूंज 23 जनवरी से ही सुनाई देगी।भारतीय ज्योतिष गणनाओं के आधार पर मलमास अधिक मास या तेरहवें मास के रूप में वर्णित है। सूर्य 12 राशियों में साल भर भ्रमण करते हैं, इसी क्रम में 32 महीना 16 दिन 4 घड़ी के बाद सूर्य की कोई संक्रांति नहीं होती है। जिस माह में सूर्य की संक्रांति नहीं होती है वह मलमास, अधिक मास कहलाता है। यानि लगभग हर तीन वर्ष बाद मलमास पड़ता है.
मान्यता है कि मलमास का वर्ष 396 दिन का होता है, जबकि अन्य वर्ष 365 दिन 5 घंटे 45 मिनट और 12 सैकंड का होता है। धर्माचार्यों के अनुसार भारत में मलमास में केवल राजगीर ही पवित्र रहता है इसीलिए इस अवधि में राजगीर में तैंतीस कोटिदेवी-देवता निवास करते हैं।
इस अवधि में शादी-विवाह, मुंडन, उपनयन आदि को छोड़कर सभी तरह के शुभ कार्य केवल राजगीर में ही होते हैं। आखिर खर मास में क्यों नहीं होते वैवाहिक शुभ कार्य 
इस जगत की आत्मा का केंद्र सूर्य है। बृहस्पति की किरणें अध्यात्म नीति व अनुशासन की ओर प्रेरित करती हैं। लेकिन एक-दूसरे की राशि में आने से समर्पण व लगाव की अपेक्षा त्याग, छोड़ने जैसी भूमिका अधिक देती है। उद्देश्य व निर्धारित लक्ष्य में असफलताएं देती हैं। जब विवाह, गृहप्रवेश, यज्ञ आदि करना है तो उसका आकर्षण कैसे बन पाएगा? क्योंकि बृहस्पति और सूर्य दोनों ऐसे ग्रह हैं जिनमें व्यापक समानता हैं।
सूर्य की तरह यह भी हाइड्रोजन और हीलियम की उपस्थिति से बना हुआ है। सूर्य की तरह इसका केंद्र भी द्रव्य से भरा है, जिसमें अधिकतर हाइड्रोजन ही है जबकि दूसरे ग्रहों का केंद्र ठोस है। इसका भार सौर मंडल के सभी ग्रहों के सम्मिलित भार से भी अधिक है। यदि यह थोड़ा और बड़ा होता तो दूसरा सूर्य बन गया होता। पृथ्वी से 15 करोड़ किलोमीटर दूर सूर्य तथा 64 करोड़ किलोमीटर दूर बृहस्पति वर्ष में एक बार ऐसे जमाव में आते हैं कि सौर चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं के माध्यम से बृहस्पति के कण काफी मात्रा में पृथ्वी के वायुमंडल में पहुँचते हैं, जो एक-दूसरे की राशि में आकर अपनी किरणों को आंदोलित करते हैं।सूर्य जब बृहस्पति की राशि धनु या फिर मीन में होता है तो ये दोनों राशियां सूर्य की मलीन राशि मानी जाती है. वर्ष में दो बार सूर्य बृहस्पति की राशियों के संपर्क में आता है. प्रथम दृष्टा 15-16 दिसंबर से 14-15 जनवरी और द्वितीय दृष्टा 14 मार्च से 13 अप्रैल. द्वितीय दृष्टि में सूर्य मीन राशि में रहते हैं.
इस कारण धनु व मीन राशि के सूर्य को खरमास/मलमास की संज्ञा देकर व सिंह राशि के बृहस्पति में सिंहस्थ दोष दर्शाकर भारतीय भूमंडल के विशेष क्षेत्र गंगा और गोदावरी के मध्य (धरती के कंठ प्रदेश से हृदय व नाभि को छूते हुए) गुह्य तक उत्तर भारत के उत्तरांचल, उत्तरप्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, राजस्थान, राज्यों में मंगल कर्म व यज्ञ करने का निषेध किया गया है, जबकि पूर्वी व दक्षिण प्रदेशों में इस तरह का दोष नहीं माना गया है।
वनवासी अंचल में क्षीण चन्द्रमा अर्थात वृश्चिक राशि के चन्द्रमा (नीच राशि के चन्द्रमा) की अवधि भर ही टालने में अधिक विश्वास रखते हैं, क्योंकि चंद्रमा मन का अधिपति होता है तथा पृथ्वी से बहुत निकट भी है, लेकिन धनु संक्रांति खर मास यानी मलमास में वनवासी अंचलों में विवाह आयोजनों की भरमार देखी जा सकती है, किंतु सामाजिक स्तर पर उनका अनुसंधान किया जाए तो इस समय में किए जाने वाले विवाह में एक-दूसरे के प्रति संवेदना व समर्पण की अपेक्षा यौन विकृति व अपराध का स्तर अधिक दिखाई देता है।उत्तरभारत में यज्ञ-अनुष्ठान का बड़ा महत्व रहा है। इस महत्व पर संस्कार के निमित्त एक कथा इस प्रकार है कि पौष मास में ब्रह्मा ने पुष्य नक्षत्र के दिन अपनी पुत्री का विवाह किया, लेकिन विवाह समय में ही धातु क्षीण हो जाने के कारण ब्रह्मा द्वारा पौष मास व पुष्य नक्षत्र श्रापित किए गए।
इस तरह के विज्ञान की कई रहस्यमय बातों को कथानक द्वारा बताई जाने के पौराणिक आख्यानों में अनेक प्रसंग मिलते हैं, इसलिए धनु संक्रांति सूर्य पौष मास में रहने व मीन सूर्य चैत्र मास में रहने से यह मास व पुष्य नक्षत्र भी विवाह में वर्जित किया गया है।ह अधिक मास क्या है और क्यों आता है? यह जिज्ञासा स्वाभाविक है। अधिक मास से तात्पर्य है वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद आदि महीनों में किसी का दो बार उसी एक वर्ष में आ जाना यानी किसी वर्ष में दो आषाढ़ हो जाना या दो श्रावण हो जाना।
इस प्रकार उस वर्ष में बारह महीनों के बजाय तेरह महीने हो जाना यानी एक माह बढ़ जाना। यह घटना
(तेरह महीने आ जाने की) प्रति तीसरे वर्ष क्यों हो जाती है, यह जानना रोचक रहेगा। इसके पीछे के कुछ वैज्ञानिक कारण भी नजर आते हैं।
सूर्य-चंद्रमा हैं कारण
विज्ञानवेत्ता मानते हैं कि विश्वभर में वर्षगणना के कैलेंडर का महीनों वाला हिसाब विभिन्न धर्मों और विभिन्न क्षेत्रों में या तो सूर्य के या चंद्रमा के आधार पर होता है। इस प्रकार भारतीय कैलेंडर सूर्य, चंद्र तथा नक्षत्र तीनों को संतुलित करके चलता है, इसलिए इसे सौर-चांद्र वर्षमान या ल्यूनी सोलर कैलेंडर कहते हैं। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार सूर्य पूरे वर्ष मे 12 राशियों से गुजरता है. सूर्य का इन राशियों में भ्रमण 365 दिन में पूर्ण होता है. सूर्य के एक राशि में समय बिताकर दूसरी राशि में प्रवेश करने तक का काल सौर मास कहलाता है. अत: सूर्य की इस गति के आधार पर की जाने वाली वर्ष गणना सौर वर्ष कहलाती है. इसी प्रकार चंद्रमा पृथ्वी का उपग्रह होने से सूर्य के सापेक्ष गति बनाने के लिए 29 दिन 12 घंटे और 44 मिनट समय लेता है. चंद्रमा की गति का यह काल चंद्रमास कहलाता है.
इस अवधि के आधार पर पूरे वर्ष के दिनों की गणना करें तो एक चंद्रवर्ष 354 दिनों का होता है. जबकि सौर वर्ष 365 दिनों का होता है. इस प्रकार चंद्रवर्ष में 11 दिन कम होते हैं. सनातन धर्म में प्राचीन ऋषि-मुनियों, ग्रह-नक्षत्रों और ज्योतिष विद्या के मनीषियों ने काल गणना त्रुटिरहित बनाने की दृष्टि से ही चंद्रवर्ष और सौरवर्ष की अवधि में इस अंतर को दूर करने के लिए 32 माह 16 दिन और चार घड़ी के अंतर से यानि हर तीसरे चंदवर्ष में एक ओर चंद्रमास जोड़कर 11 दिनों के अंतर को पूरा किया जाता है. सूर्य और चंद्र दोनों के समन्वय के कारण वर्ष में दिनों की गणना का जो अंतर आता है, वह प्रतिवर्ष लगभग ग्यारह दिन का होता है
इस प्रकार सूर्य और चंद्र दोनों की पूरी पड़ताल निरंतर रखने की वैज्ञानिक ललक का परिणाम है हर तीस महीनों के बाद एक अधिक मास की गणना द्वारा सौर-चांद्र गणना का समन्वय बिठाने क
े मार्ग की परिकल्पना।कि है2018 में 16 मई से अधिकमास शुरू होगा, जो 13 जून तक चलेगा। अधिकमास में ही 24 मई को गंगा दशहरा पर्व भी मनाया जाएगा। अधिकमास के कारण देवशयनी एकादशी 9 जुलाई को आएगी।


बुधवार, 29 नवंबर 2017

गंड मूल का सच ओर वैज्ञानिक आधार

वैसे तो बच्चे का जन्म किसी के भी घर में खुशियों को लाने वाला होता है, लेकिन अगर बच्चे का जन्म ‘गण्ड-मूल नक्षत्र’ में हुआ हो; तो लोगों की खुशियाँ ये सुनते ही काफ़ूर हो जाती हैं। क्या होते हैं गण्ड-मूल नक्षत्र? इनकी संख्या कितनी होती है? क्या ये वाकई इतने खतरनाक होते हैं? आज तक आप इन्हीं सब सवालों से जूझते आये होंगे। आइये, आज हम इन्हीं के बारे में बात करते हैं संधि क्षेत्र हमेशा नाजुक और अशुभ होते हैं। जैसे मार् इसी प्रकार गंड-मूल नक्षत्र भी संधि क्षेत्र में आने से नाजुक और दुष्परिणाम देने वाले होते हैं। शास्त्रों के अनुसार इन नक्षत्रों में जन्म लेने वाले बच्चों के सुखमय भविष्य के लिए इन नक्षत्रों की शांति जरूरी है। मूल शांति कराने से इनके कारण लगने वाले दोष शांत हो जाते हैं।
क्या हैं गंड मूल नक्षत्र
ये आप भी जानते हैं कि नक्षत्रों की संख्या 27 होती है; इनमें से ही 6 नक्षत्र गण्ड-मूल नक्षत्र माने जाते हैं, जो कि अश्विनी, आश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मूल और रेवती हैं। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार इन 6 गण्ड-मूल नक्षत्रों में से किसी एक नक्षत्र में जन्म लेने पर जातक को ‘गण्ड-मूल दोष’ से युक्त मान लिया जाता है; जबकि सच्चाई कुछ और है, जिससे हर कोई नावाकिफ़ है। इसी बात का फ़ायदा धूर्त ज्योतिषी और ढोंगी पण्डित उठाते हैं।सच तो ये है कि ये नक्षत्र पूरी तरह से खराब नहीं होते, बल्कि इनका एक छोटा सा अंश ही दोषयुक्त होता है। संधि क्षेत्र हमेशा नाजुक और अशुभ होते हैं। जैसे मार्ग संधि (चौराहे-तिराहे), दिन-रात का संधि काल, ऋतु, लग्र और ग्रह के संधि स्थल आदि को शुभ नहीं मानते हैं। इसी प्रकार गंड-मूल नक्षत्र भी संधि क्षेत्र में आने से नाजुक और दुष्परिणाम देने वाले होते हैं। शास्त्रों के अनुसार इन नक्षत्रों में जन्म लेने वाले बच्चों के सुखमय भविष्य  लिए इन नक्षत्रों की शांति जरूरी है। मूल शांति कराने से इनके कारण लगने वाले दोष शांत हो जाते हैं।राशि और नक्षत्र दोनों जब एक स्थान पर समाप्त होते हैं तब यह स्थित गण्ड नक्षत्र कहलाती है और इस समापन स्थिति से ही नवीन राशि और नक्षत्र के प्रारम्भ होने के कारण ही यह नक्षत्र मूल संज्ञक नक्षत्र कहलाते हैं।राशि चक्र में ऐसी तीन स्थितियां होती हैं जब राशि और नक्षत्र दोनों एक साथ समाप्त होते हैं। यह स्थिति ‘गंड नक्षत्र’ कहलाती है। इन्हीं समाप्ति स्थल से नई राशि और नक्षत्र की शुरूआत होती है। लिहाजा इन्हें ‘मूल नक्षत्र’ कहते हैं। इस तरह तीन नक्षत्र गंड और तीन नक्षत्र मूल कहलाते हैं। गंड और मूल नक्षत्रों को इस प्रकार देखा जा सकता है।
कर्क राशि जल राशि व अश्लेषा नक्षत्र एक साथ समाप्त होते हैं। यहीं से मघा नक्षत्र और सिंह राशिअग्न का उद्गम होता है। लिहाजा अश्लेषा गंड और मघा मूल नक्षत्र है।
वृश्चिक राशि में ज्येष्ठा नक्षत्र एक साथ समाप्त होते हैं, यहीं से मूल नक्षत्र और धनु राशि की शुरूआत होने के कारण ज्येष्ठा ‘गंड’ और ‘मूल’ का नक्षत्र होगा।
मीन राशि और रेवती नक्षत्र का एक साथ समाप्त होकर यहीं से मेष राशि व अश्विनी नक्षत्र की शुरूआत होने से रेवती, गंड तथा अश्विनी मूल नक्षत्र कहलाते हैं।
उक्त तीन गंड नक्षत्र अश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती का स्वामी ग्रह बुध है तथा तीन मूल नक्षत्र मघा, मूल व अश्विनी का स्वामी ग्रह केतु हैसच तो ये है कि ये नक्षत्र पूरी तरह से खराब नहीं होते, बल्कि इनका एक छोटा सा अंश ही दोषयुक्त होता है। अश्विनी, मघा और मूल की प्रारम्भिक 2 घटी तथा रेवती, आश्लेषा और ज्येष्ठा की अन्तिम 2 घटी ही दोषयुक्त होती हैं। चूँकि 1 घटी 24 मिनट की होती है, इसलिए प्रत्येक नक्षत्र में 48 मिनट और इनकी सन्धि के दौरान कुल 96 मिनट अर्थात्‌ 1 घण्टा 36 मिनट ही दोषपूर्ण होते हैं। जबकि  कुछ पण्डित लोग दोनों नक्षत्रों के दौरान अर्थात्‌ पूरे ्2 दिनों (48 घण्टे) के दौरान हुये जन्म को खराब बता कर लोगों को डराते हैं और पूजा-पाठ का जाल फ़ैलाकर उन्हें लूटते हैं।ज्योतिष में कुछ विशेष आधारों पर राशि और नक्षत्र को तीन-२ चक्रों में विभाजित किया गया है। ये चक्र एक विशेष सन्धि-स्थल पर आपस में जुड़े होते हैं। इस तरह इन तीन सन्धि-स्थलों पर जो 6 नक्षत्र आपस में जुड़ते हैं, उन्हें ही ‘गण्ड-मूल नक्षत्र’ कहा जाता है। चूँकि सन्धि या संक्रमण काल को सामान्य रूप से अशुभ या कष्टकारक माना जाता है, अत: ऐसा माना जाता है कि गण्ड-मूल दोष में उत्पन्न बच्चे पर कुछ ना कुछ नकारात्मक प्रभाव अवश्य पड़ता है।चूँकि नक्षत्र का प्रभाव नकारात्मक है, इसलिए 27 दिन पश्चात्‌ पुन: उसी नक्षत्र के आने पर किसी विद्वान ब्राह्मण को बुलवा कर आप् शान्ति के लिए पूजा-पाठ, दान-दक्षिणा आदि करने में कोई बुराई नहीं है; परन्तु 27 दिन तक पिता को अपने बच्चे का मुँह ना देखने देना एक बेकार की बात ही है। लेकिन एक बात का ध्यान रखें कि ये शान्ति वगैरह तभी करवायें, जब बच्चे का जन्म उस विशेष 2 घटी में ही हुआ हो मतलव जल और आग का एक साथ मिलने का समय । वरना मेरे इस लेख को लिखने का कोई फ़ायदा नहीं होगा।शतपथ ब्राह्मण और तैत्तरीय ब्राह्मण नामक ग्रंथ में बताया गया है कि कुछ स्‍थितियों में यह दोष अपने आप समाप्त हो जाता है और इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति खुद के लिए भाग्यशाली होते हैं।व्यक्ति का जन्म अगर वृष, सिंह, वृश्चिक अथवा कुंभ लग्न में हो, तब मूल नक्षत्र में जन्म होने पर भी इसका अशुभ फल प्राप्त नहीं होता है।
गंडमूल नक्षत्र में जन्म लेने पर भी अगर लड़के का जन्म रात में और लड़की का जन्म दिन में हो, तब मूल नक्षत्र का प्रभाव समाप्त हो जाता है। गंडमूल नक्षत्र मघा के चौथे चरण में जन्म लेने वाला बच्चा धनवान और भाग्यशाली होतागंडमूल दोष 28 साल बाद अपने आप समाप्त हो जाता है। ऐसा हमारे जातक शास्त्रों में लिखा है E3। है।Gandmool गंडमूल दोष के बारे में यह article यदि आपको पसंद आया हो, तो इसे like और दूसरों को share करें। आप Comment box में Comment जरुर करें, ताकि यह जानकारी और लोगों तक भी पहुंच सके।
चलते-२ एक बात अवश्य कहूँगा कि बेवजह घबरायें नहीं। आपका बच्चा भी अन्य बच्चों की तरह भाग्यशाली है। उसका भविष्य उसकी कुण्डली के अन्य योगों पर निर्भर करेगा, ना कि केवल ‘गण्ड-मूल दोष’ में बँधकर रह जायेगा। हमेशा की तरह खुश रहिये।


सोमवार, 27 नवंबर 2017

अनुभव की वात

अनुभव की बात समझ-समझ की बात होती है। कुछ लोग हैं जो अपनी बुद्धि से भगवान को पकड़ना चाहते हैं। यह मन और बुद्धि से परे की चीज़ है। अगर हाथी को बाँधने वाली ज़ंजीर से हम चींटी को बाँधना चाहें तो कैसे बंधेगी?
तो समझने की बात है- ज्ञान की बात, भगवान की बात, हम अपनी बुद्धि से नहीं पकड़ सकते हैं। हम सिर्फ अनुभव से इस चीज़ को पकड़ सकते हैं। लोग समझते हैं कि आज स्कूल में यह पढ़ा, परंतु जिस चीज़ का अनुभव नहीं किया, वह कैसे समझ में आ जाएगी? अंगूर मीठे होते हैं, यह सीखने के लिए किसी को स्कूल जाने की ज़रूरत नहीं है। जिस दिन अंगूर मुँह में डालेंगे, अपने आप पता लग जायेगा कि अंगूर मीठे होते हैं।
हम भगवान की बात करते हैं, ज्ञान की बात करते हैं, मुक्ति की बात करते हैं। पर इसको अनुभव में बदलना ज़रूरी है। कोई दस घंटे तक भाषण दे सकता है, कि चीनी क्या होती है, मीठा क्या होता है, पर, अगर वह मिठास ज़बान पर रख दी जाये तो मनुष्य एक ही पल में समझ जायेगा। फिर उसके प्रश्न बाकी नहीं रहेंगे, फिर वह दुविधा में नहीं रहेगा, फिर उसको जगह-जगह भटकने की ज़रूरत नहीं रहेगी। वह उस चीज़ का अनुभव अपने जीवन में, अपने अंदर कर सकेगा।
ये है बात अनुभव की। इस संसार में ‘शांति-शांति’ कहने वालों की कोई कमी नहीं है, पर कोई बिरला ही मिलेगा जो शांति का अनुभव करा दे। और जबतक ये अनुभव नहीं होगा, तबतक हम पहचान नहीं पायेंगे कि हमको क्या मिला है।
अनुभव एक ऐसी चीज़ है कि उसके बाद फिर कुछ कहने के लिए बाकी नहीं रह जाता। अनुभव करो, अनुभव से वह चीज़ समझ में आएगी। अनुभव से इस चीज़ को पकड़ पाओगे, और तभी अपने जीवन को सफल कर पाओगे।
दुनिया में गुरु की महिमा भूल-भाल गये। भूल-भाल गये गुरु का महत्व! अंधविश्वास में फंसे रहते हैं। गुरु तो तुम्हारा कोई न कोई ज़रूर होगा। कोई न कोई तुमको पाठ ज़रूर पढ़ायेगा। पर इतनी बात है कि अगर सच्चा पाठ पढ़ गये तो यह जीवन की नैया उस पार लग जायेगी। अगर सच्चा पाठ नहीं पढ़ पाये तो यह डूबेगी। तो ऐसा गुरु चाहिए, जो अनुभव की बात करे।जिसने खुद अनुभव किया हो


रविवार, 26 नवंबर 2017

सवाल आपके




मित्रों आप वोहोत से मित्र राशीफल के वारे मे सवाल करते है अति ध्यातव्य बात यह है कि सार्वजनिक तौर पर राशिफल,ग्रहों का निवारण और उपचार आदि जो बतलाने और करने का प्रचलन आज कल चल पड़ा है,यह गम्भीर विचारणीय है। चिंता और चिन्तन का विषय भी। इतनी बड़ी आबादी है विश्व की।उसमें तरह-तरह के लोग हैं।भविष्य वक्ता के पास सिर्फ राशियों के आधार पर बारह पैमाने हैं- यानि पूरी मानवता को सिर्फ बारह भागों में बाँट दिया गया।विचारणीय है कि करोड़ों का भाग्य एक समान कैसे हो सकता है?
अब उपचार सम्बन्धी एक उदाहरण- राशि या लग्न के आधार पर किसी ने सुझाव दे दिया- अमुक वस्तु दान करें,अमुक रत्न धारण करें।अब यहाँ भी वही प्रश्न है।क्यों कि सबकी कुण्डली में ग्रहों की स्थिति एक समान नहीं हो सकती।ग्रहों की अवस्था,दृष्टि आदि अनेक बातों का सूक्ष्म विचार करके ही कुछ निर्णय लिया जाना चाहिए।सभी उपचार समय-स्थान-व्यक्ति सापेक्ष हैं।अतः सार्वजनिक सुझाव से व्यक्तिगत सुझाव की कोई तुलना नहीं हो सकती।इसमें वही अन्तर है जो दुकानदार से बुखार की दवा पूछ कर खाने और डॉक्टर से जाँच करा कर दवा लेने में अन्तर है।नब्बे प्रतिशत मामले में हो सकता है- दुकानदार की बतलायी दवा से रोग निवारण हो जाए; किन्तु इसका क्या अर्थ है? डॉक्टर व्यर्थ हैं? आपकी जन्मकुंडली ओर गोचर दोनो का मिलान हो
एक और बात – श्रद्धा, विश्वास और भक्ति बड़ी अच्छी बात है।किन्तु इन तीनों के आगे ‘अन्ध’ शब्द जुड़ जाए तो बड़ा ही घातक सिद्ध होता है।अतः अन्धश्रद्धा,अन्धविश्वास,और अन्धभक्ति से सदा परहेज करना चाहिए।अन्यथा लूटने वाले बैठे हैं,आप यदि लुटाने के लिए तैयार हैं।
ईश्वर सबको सदबुद्धि दें।

शुक्रवार, 1 सितंबर 2017

जन्मकुंडली से जाने अपना घर कव वनेगा

acharyarajesh.iacharyarajesh.in/जन्मकुंडली-से-जाने-कव-वने/


आराम और महलों की मस्तियां हैं,

फिर भी भटकते हैं, जहाँ में।

कुटिया हो या घास-फूस का आशियाना,

अपने घर से बढ़कर कुछ नहीं॥`

अपने घर मे रहने की सभी की चाहत होती है लेकिन घर किस्मत से ही बनता है जब योग बनता है योग के साथ अन्य कारको का संयोग बनता है तो घर बनना शुरु हो जाता है।घर बनने का समय अलग अलग जातक की जन्मकुंडली देख कर पता लगाया जाता है घर भी रोटी और कपडा की तरह से जरूरी है,मनुष्य अपने लिये रहने और व्यापार आदि के लिये घर बनाता है,पक्षी अपने लिये प्रकृति से अपनी बुद्धि के अनुसार घोंसला बनाते है,जानवर अपने निवास के लिये गुफ़ा और मांद का निर्माण करते है। जलचर अपने लिये जल में हवा मे रहने वाले वृक्ष आदि पर और जमीनी जीव अपने अपने अनुसार जमीन पर अपना निवास करते है। अपने अपने घर बनाने के लिये योग बनते है। गुरु का योग घर बनाने वाले कारकों से होता है तो रहने के लिये घर बनता है शनि का योग जब घर बनाने वाले कारकों से होता है तो कार्य करने के लिये घर बनने का योग होता है जिसे व्यवसायिक स्थान भी कहा जाता है। बुध किराये के लिये बनाये जाने वाले घरों के लिये अपनी सूची बनाता है तो मंगल कारखाने और डाक्टरी स्थान आदि बनाने के लिये अपनी अपनी तरह से बल देता है। लेकिन घर बनाने के लिये मुख्य कारक शुक्र का अपना बल देना भी मुख्य है,स्वयं की भूमि अथवा मकान बनाने के लिए चतुर्थ भाव का बली होना आवश्यक होता है,. भूमि का कारक ग्रह मंगल है। जन्मपत्री के चौथे भाव से भूमि व भवन सुख का विचार किया जाता है। वैसे तो चौथे भाव के स्वामी (चतुर्थेश) का केंद्र ( कुंडली का लग्न, चौथा, सातवां व दसवां घर) या त्रिकोण ( कुंडली का लग्न, पांचवां व नौवां घर) में होना उत्तम भवन प्राप्ति का योग बनाता है। मंगल के साथ चौथे भाव का स्वामी, पहले भाव का स्वामी व नौवे भाव का स्वामी अच्छी स्थिति में हो व शुभ ग्रहों के साथ हो तो भवन प्राप्ति का अच्छा संकेत है। इसलिए अपना मकान बनाने के लिए मंगल की स्थिति कुंडली में शुभ तथा बली होनी चाहिए.मकान सुख के लिये मंगल और चतुर्थ भाव का ही अध्ययन पर्याप्त नहीं है। भवन सुख के लिये लग्न व लग्नेश का बल होना भी अनिवार्य है। इसके साथ ही दशमेंश, नवमेंश और लाभेश का सहयोग होना भी जरूरी है।* मंगल को भूमि तो शनि को निर्माण का कारक माना गया है। इसलिए जब भी दशा/अन्तर्दशा में मंगल व शनि का संबंध चतुर्थ/चतुर्थेश से बनता है, तब व्यक्ति अपना घर बनाता है उसे भूमि , प्रापर्टी डीलिंग के कार्यों में श्रेष्ठ सफलता मिलती है ।आप अपनी जन्मकुण्डली में देखें और यहाँ दिए गए प्रमुख योगों की संरचना को पहचानें। आप स्वयं जान जायेंगे की घर बनाने का सामर्थ्य आप में कितना है-यदि भाव का स्वामी अकेले या किसी शुभ ग्रह के साथ 1,4,7,10 वें भाव में हो तो जातक माता-पिता द्वारा अर्जित जायदाद में भवन -निर्माण करता है।यदि चौथे भाव का स्वामी 1,5,9 वें भाव में हो तो जातक सरकार से प्राप्त या अपने पूण्य-प्रताप और भाग्य से प्राप्त भुमि पर भवन निर्माण करवाता है।अगर चौथे भाव का स्वामी 3,6,8,12 वें भाव में हो तो जातक अपनी संपदा को छोड़कर लंबी आयु के बाद अपने ही बलबूते पर मकान बनाता है।अ सबगर चौथे भाव का स्वामी लग्न में हो और लग्नेष चौथे भाव में हो तो जातक अपने ही धन संचय से मकान बनवाता है।उपरोक्त संकेतों के आधार पर कुंडली का विवेचन कर घर खरीदने या निर्माण करने की शुरुआत की जाए तो लाभ हो सकता है। इसी तरह पति, पत्नी या घर के जिस सदस्य की कुंडली में गृह-सौख्य के शुभ योग हों, उसके नाम से घर खरीदकर भी कई परेशानियों से बचा जा सकता है।आचार्य राजेश 

गुरुवार, 24 अगस्त 2017

ज्योतिष की वात एक ऐसा विषय है जिससे प्राचीन कोई और विषय नहीं।इतिहास गवाह है कि ऐसा कोई भी समय नहीं था जब ज्योतिष का अस्तित्व नहीं थाआधुनिक विज्ञान के कसौटी पर भी इस बात की पुष्टि हो जाती है। क्योंकि ईसा से भी 25 हजार वर्ष पूर्व की कुछ ऐसी अस्थियां मिली हैं जिन पर सूर्यादि ग्रहों के ज्योतिषीय चिह्नों का अंकन पाया गया है।प्रसन्नता की बात है कि आज जैसे -जैसे आधुनिक विज्ञान का विकास हो रहा है, उसकी पिछली धारणाओं का नयी धारणाओं से अपने आप खंडन होता जा रहा है। फलस्वरूप आज नौबत यहां तक आ पहुंची है कि वैज्ञानिकों का भी एक बड़ा वर्ग ज्योतिष को विज्ञान का दर्जा दिये जाने का पक्षधर बनता जा रहा है। लेकिन ऐक सच यह भी है कि अध्यातिमक क्षेत्र मन्दिर गुरूद्वारा इत्यादि से जुड़े हुए अधिकतर सन्त ज्योतिष विधाा के प्रति नकारात्मक दृषिटकोण रखते हैं। आश्चर्य तो इस बात से होता है कि उन सन्त महापुरूषों वेद-पुराणों में पूर्ण आस्था एवं विश्वास होता है परन्तु वेदों के नेत्र माने जाने वाले ज्योतिष का अपनी बुद्धि के अनुसार खण्डन करते हैं इसके पीछे कौन सा कारण है। यह विचारणीय एवं। खोज का विषय है कि मेरे अपने जीवन में ऐसे कर्इ सन्तों से सामना हुआ है जिनका कहना है कि कुछ भी है सब परमात्मा है ज्योतिष बकवास है तथा इस मंत्र्र का जप करो सब ठीक हो जायेगा। अंगूर खट्टे हैं वाली कहावत याद आती हैसमाज में एक लोकोकित बहुत प्रचलित है कि नीम, हकीम खतरा ए जान संसार में जड़-चेतन जो कुछ भी है उसका अपना एक अर्थ तथा प्रभाव है लेकिन उसका लाभ किस प्रकार से लिया जा सकता है। इसे कोर्इ विरला ही जान पाता है परमात्मा का स्थान जीवन में सर्वोच्च है। इसमें शक करने का कोइ कारण नहीं परन्तु जो एक बात हम भूल जाते हैं वो यह है कि परमात्मा हम सबका स्वामी है, सेवक नहीं सांसार में जो कुछ भी घटित होता है वह परमात्मा की इच्छा से होता है।लेकिन परमात्मा अपनी इच्छा विशेष सेवकों को उत्पन्न करके उनके माध्यम से पूरी करता है। गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि मनुष्य को केवल कर्म करने का अधिकार है फल देने का अधिकार केवल परमात्मा के हाथों में है। ज्योतिष शास्त्र एक ऐसा दर्पण है जिसमें मनुष्य अपने कर्मों के फल को देख सकता है तथा परमात्मा की इच्छा से नवग्रहों के माध्यम से मनुष्य अपने कर्मों का अच्छा या बुरा फल भोगता है।ज्योतिष शास्त्र बहुत ही गूढ और जटिल विज्ञान हैहमें यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि ज्योतिष भाग्य या किस्मत बताने का कोई खेल-तमाशा नहीं है। यह विशुद्ध रूप से एक विज्ञान है। ज्योतिष शास्त्र वेद का अंग है। ज्योतिष शब्द की उत्पत्ति ‘द्युत दीप्तों’ धातु से हुई है। इसका अर्थ, अग्नि, प्रकाश व नक्षत्र होता है। शब्द कल्पद्रुम के अनुसार ज्योतिर्मय सूर्यादि ग्रहों की गति, ग्रहण इत्यादि को लेकर लिखे गए वेदांग शास्त्र का नाम ही ज्योतिष है।ज्योतिष शास्त्र के द्वारा मनुष्य आकाशीय-चमत्कारों से परिचित होता है। फलतः वह जनसाधारण को सूर्योदय, सूर्यास्त, चन्द्र-सूर्य ग्रहण, ग्रहों की स्थिति, ग्रहों की युति, ग्रह युद्ध, चन्द्र श्रृगान्नति, ऋतु परिवर्तन, अयन एवं मौसम के बारे में सही-सही व महत्वपूर्ण जानकारी दे सकता है। इसलिए ज्योतिष विद्या का बड़ा महत्व है । हमारा मस्तिष्क शरीर के विभिन्न अंगों का संचालन करता है। यह बात सिद्ध की जा चुकी है कि शरीर में किसी अव्यव का संचालन मस्तिष्क का कौन-सा भाग करता है। यदि मस्तिष्क का वह भाग किन्हीं कारणों से कार्य करना बंद कर दे तो उससे संबंधित भाग भी कार्य करना बंद कर देता है। मस्तिष्क के विभिन्न भागों का संबंध व्यक्ति की आकांक्षाओं, काम-प्रवृत्तियों, इच्छाओं आदि पर भी होता है। इसी कारण से शरीर-लक्षण विशेष रुप से हस्त रेखाओं द्वारा व्यक्ति की मानसिक क्रियाओं का भी पता चल जाता है। सामुद्रिक शास्त्र का संबंध नक्षत्र, पृथ्वी तथा उसके निवासियों पर उनके प्रभाव तथा उनकी दूर स्थित आभा से निकलने वाली चुम्बकीय दे्रव धारा से है। हमारा स्नायु तंत्र मस्तिष्क तथा हथेली के मध्य एक कड़ी का कार्य करता है और यह दोनों सूक्ष्मतम संवेदनाओं के भंडारागार हैं।चिकित्सा विज्ञान मानता है कि गर्भावस्था से ही बच्चा मुट्ठी बंद किए रहता है, इसलिए हथेली की त्वचा सिकुड़ने से उसमें रेखाएं बन जाती हैं। यह स्वाभाविक है और प्राकृतिक भी। परंतु यह धारणा मिथ्या है। यदि ऐसा होता तो रेखाओं का क्रम व्यवस्थित नहीं होता।नाखून, त्वचा का रंग, नाखून में उपस्थित चन्द्र स्थिति आदि का अध्ययन कर रोग बताने का उपक्रम करते आपने वरिष्ठ चिकित्सकों तक को देखा होगा। विज्ञान भी मानने लगा है कि ग्रह-नक्षत्र जन-जीवन पर प्रभाव डालते हैं। ज्योतिष का मूल है यद् ब्रह्मांडे तत्पिंडे अर्थात् जिन तत्वों से ब्रह्मांड का निर्माण हुआ है, उन्हीं तत्वों से ब्रह्मांडगत सभी पिण्डों का सृजन हुआ है। इसलिए वराहमिहिर ने लिखा है कि प्राणियों एवं जीव-जन्तुओं के अलावा पृथ्वी की प्रत्येक वस्तु पर भी ग्रह-नक्षत्रों का प्रभाव पड़ता है। कुमुदनी चन्द्रकिरणों से खिलती है तो सूर्यमुखी सूर्य से। पृथ्वी पर अन्य खगोलिय पिण्डों की तुलना में सूर्य और चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण बलों के फलस्वरुप समुद्र का पानी ऊपर उठता है। ज्वार-भाटे उत्पन्न होते है। चन्द्रमा और सूर्य के सम्मिलित प्रभावों के फलस्वरुप ही पूर्णिमा और अमावस्या के दिन ज्वार अन्य दिनों की तुलना अधिक ऊंचा होता है। यही स्थिति शुक्ल और कृष्ण पक्ष की सप्तमी और अष्टमी के दिन सबसे कम होती है। दूसरे शब्दों में कहें कि चन्द्रमा की कलाओं के साथ ही ज्वार घटता या बढ़ता रहता है।मानसिक रुप से विक्षिप्त लोगों के अध्ययन से यह निष्कर्ष निकाला गया कि पूर्णिमा के दिन ऐसे लोगों की स्थिति विकराल रुप ले लेती है। सैकड़ों वर्षो के शोध के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया कि सूरज पर प्रत्येक ग्यारह वर्ष में आणविक विस्फोट होता है। इसके प्रभाव का व्यक्ति, देश, वनस्पति आदि पर स्पष्ट अध्ययन किया गया। स्विस चिकित्सक पैरासिलिसस ने अपने अनुसंधानों से यह सिद्ध किया कि कोई व्यक्ति तब ही बीमार होता है जब उसके और उसके जन्म नक्षत्र के साथ जुड़े हुए ग्रह-नक्षत्रों के बीच तारतम्य टूट जाता है। पाइथागोरस ने यह सिद्ध किया था कि प्रत्येक ग्रह-नक्षत्र अपने निश्चित परिपथ पर चलते हुए एक ध्वनि पैदा करता है। इन सब ग्रह-नक्षत्रों की ध्वनि में एक ताल मेल है, एक संगीतबद्धता है। प्रत्येक व्यक्ति की इसी प्रकार की संगीतबद्धता और नक्षत्रों की संगीतबद्धता में भी एक व्यवस्था है। जब यह टूटती है तो व्यक्ति प्रभावित होता है। सन् 1950 में कॉस्मिक कैमिस्ट्री नाम की एक नई शाखा पैदा हुई। उसमें इस बात पर बल दिया गया कि पूरा ब्रह्मांड एक शरीर है। यदि एक कण भी प्रभावित होगा तो पूरा ब्रह्मांड तरंगित हो जाएगा।एक अन्य प्रयोग से यह सिद्ध किया गया कि सूर्य पर आणविक विस्फोट होते हैं तो मनुष्य का खून भी पतला हो जाता है। आप संभवतः नहीं जानते हों कि व्यक्ति का खून सदैव एक सा रहता है, परंतु स्त्रियों का खून उनके मासिक धर्म के दिनों में पतला हो जाता है। ज्योतिष को लोग अंधविश्वास इसलिए कहते हैं कि हम उसके पीछे के वैज्ञानिक कारणों को स्पष्ट नहीं कर पाते। हम कार्य और कारण के बीच संबंध तलाश नहीं कर पाते। परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है। समयाभाव में, धन लोलुपता और अज्ञानतावश हम आगे नहीं बढ़ पा रहे। दरअसल विज्ञान किसी अतिविकसित सभ्यता द्वारा दिया हुआ अविकसित ज्ञान है जिसे हम आगे नहीं बढ़ा पाये। हमारा भविष्य हमारे अतीत से अलग नहीं हो सकता, उससे जुड़ा हुआ होगा। हम कल जो भी होगें, वह आज का ही जोड़ होगा। आज तक हम जो है वह बीते हुए कलों का जोड़ है। भविष्य सदा अतीत से निकलेगा। हमारा आज कल से ही निकलेगा और आने वाला कल आज से। इसलिए जो कल होने वाला है वह आज भी कहीं सूक्ष्म रुप से छुपा है। उसे खोजना ही विज्ञान है।एक छोटे बीज में उसके पेड़ बन कर फल देने और नष्ट हो जाने का पूरा प्रोग्राम लिखा है। वह अंकुरित होगा, पौध बनेगा, बड़ा होगा, फिर पेड़ बन जाएगा आदि। इसी प्रकार गर्भ से ही बच्चे का पूरा प्रोग्राम निश्चित हो जाता है। यह बात अलग है कि पुरूषार्थ से वह उस प्रोग्राम में थोड़ा बहुत परिवर्तन कर लें। प्रत्येक ग्रह-नक्षत्र अपने स्वभाव और गुण अनुसार व्यक्ति को प्रभावित करता है, यह अकाट्य सत्य है। विज्ञान भी इसको मानता है। वह कहता है कि यह सत्य है कि ग्रह-नक्षत्र व्यक्ति, पशु-पक्षी, जल, वनस्पति, जलवायु आदि को प्रभावित अवश्य करते हैं, परन्तु यह अभी स्पष्ट नहीं कहा जा सकता कि कोई व्यक्ति विशेष इनके प्रभाव से प्रभावित होगा ही। इस पर निरंतर शोध कार्य चल रहे है और एक दिन विज्ञान को झुकना ही होगा इस सत्य की ओर।मैं सोचता हूँ कि सरकार और बुद्धिजीवियों को आगे आकर इस विधा पर और खोज करना चाहिए, क्योंकि जो करना चाहते हैं उनके पास संसाधन नहीं हैं। केवल इसे धर्म से जोड़कर और भ्रम बोलकर इसका उपहास करना उचित नहीं है। आज अधिकतर ज्योतिषी इसे धन कमाने का साधन मात्र समझने लगे हैं, बहुत सी विधाएँ अपनी सुविधा अनुसार पैदा कर ली हैं, जिसके कारण इस महान विद्या का दिन प्रतिदिन ह्रास होता जा रहा है। आचार्य राजेश


सोमवार, 21 अगस्त 2017

,जेल मुकद्दमा ओर ज्योतिष


आचार्य राजेश
जेल मुकद्दमा ओर ज्योतिष
By acharyarajesh21/08/2017 No Comments
आचार्य राजेश (ज्योतिष,वास्तु , रत्न , तंत्र, और यन्त्र विशेषज्ञ ) जन्म कुंडली के द्वारा , विद्या, कारोबार, विवाह, संतान सुख, विदेश-यात्रा, लाभ-हानि, गृह-क्लेश , गुप्त- शत्रु , कर्ज से मुक्ति, सामाजिक, आर्थिक, राजनितिक ,पारिवारिक विषयों पर वैदिक व लाल किताबकिताब के उपाय ओर और महाकाली के आशीर्वाद से प्राप्त करें

कानून दो प्रकार के होते है एक तो प्रकृति का कानून जिसे प्रकृति खुद बनाती बिगाडती है दूसरा इंसानी कानून जो इंसान खुद के बचाव और रक्षा के लिये बनाता है। प्रकृति का कानून सर्वोपरि है। प्रकृति को जो दंड देना है या बचाव करना वह स्वयं अपना निर्णय लेती है। अंत गति सो मति कहावत के अनुसार जीव उन कार्यों के लिये अपनी बुद्धि को बनाता चला जाता है जो उसे अंत समय मे खुद के अनुसार प्राप्त हों। कानून के अनुसार भी जीव को तीन तरह की सजाये दी जाती है पहली सजा मानसिक होती है जो व्यक्ति खुद के अन्दर ही अन्दर रहकर सोचता रहता है और वह अपने शरीर मन और दैनिक जीवन को बरबाद करता रहता है दूसरी सजा शारीरिक होती है जो प्रकृति के अनुसार गल्ती करने पर मिलती है और उस गल्ती की एवज मे अपंग हो जाना पागल हो जाना भ्रम मे आकर अपने सभी व्यक्तिगत कारको का त्याग कर देना और तीसरी सजा होती है जो हर किसी को नही मिलती है वह शारीरिक मानसिक और कार्य रूप से बन्धन मे डाल देना,इसे आज की भाषा मे जेल होना भी कहा जाता है। बन्धन योग के लिये एक बात और भी कही जाती है कि व्यक्ति अगर खुद को एक स्थान मे पैक कर लेता है या कोई सामाजिक पारिवारिक कारण सामने होता है वह अपनी इज्जत मान मर्यादा या लोगो की नजरो से बचाव के लिये अपना खुद का रास्ता एकान्त मे चुनता है तो वह भी स्वबन्धन योग की सीमा मे आजाता है किसी भी व्यक्ति के जीवन में कई बार दुखद स्थिति का सामना करना पड़ता है एवं पुलिसिया के जेल जाना कारावास और इस तरह के योग बनते हैं. इंद्रियों के पीछे ग्रहों का खेल होता है. शनि मंगल एवं राहु इन ग्रहों के बुरे योग एवं दृष्टि कारावास को इंगित करती है. लग्न कुंडली में छठे आठवें एवं बारहवें भाव वह उनके स्वामी ग्रह कारावास के लिए जिम्मेवार होते हयदि कोई शुभ ग्रहों की उपस्थिति या दृष्टि दशम भाव पर नव हो एवं शनि मंगल राहु शनि राहु मंगल का योग दशम स्थान पर होने से व्यक्ति को अपराध एवं और समाजिक कार्यों में लिप्त करता है कुंडली अथवा प्रश्न कुंडली में छठे स्थान एवं आठवें स्थान का स्वामी एवं राहु का बारहवे स्थान या 12 वे स्थान के स्वामी के साथ संबंध रहने पर व्यक्ति को जेल की सजा होती है.
दुष्प्रभावों अर्थात छठे आठवें एवं 12वें में शनि राहु एवं मंगल के अलावा केतु के साथ एवं शनि केतु का संबंध होने पर लंबी सजा होती है राहु ग्रह के 12 वे घर में होने या दृष्टि होने से एवं बारहवे घर के स्वामी के कमजोर होने से कारावास या बंधन योग बनता है बृहद जातक एवं जातक तत्व के अनुसार अगर लग्न स्वामी और छठे घर का स्वामी साथ में हो एवं शनि केंद्र या त्रिकोण में हो तो व्यक्ति को कैद की सजा होती है. कुंडली का षष्टम भाव व्यक्ति की आंतरिक क्षमता और निर्बलता को बताता है. मंगल इस भाव का नैसर्गिक कारक है. जब यह आंतरिक शक्ति प्रकृति की विघटनकारी और दुखद स्थितियों का सामना नहीं कर पाती तो व्यक्ति शत्रुओं और कानूनी दिक्कतों का शिकार हो जाता है. कब और कैसे वह इन शत्रुओं और कानूनी समस्याओं से मुक्ति पायेगा इसे षष्टम भाव और उसपर पड़ने वाले दूसरे ग्रहों के प्रभाव द्वारा जाना जाता है. अष्टम भाव का अध्ययन भी इस समस्या में किया जाता है. इस विषय में कौन से उपाय उसे राहत देंगे इसका विश्लेषण होता है. कृष्णमूर्ति पद्धति के अनुसार दूसरे तीसरे 8 वीं एवं 12 वे का उपनक्षत्र स्वामी एवं दूसरे तीसरे 8 वीं एवं 12 वे भाव का कार्य हो तो व्यक्ति को जीवन में कारावास की सजा होती है. दिल मिलना यदि छठे ग्यारहवें भाव का उपनक्षत्र स्वामी छठे और ग्यारहवें भाव का कार्य किया उसके स्वामी से जुड़ा हो तथा दशा एवं अंतर्दशा छठे एवं ग्यारहवें भाव में से किसी रूप में जुड़ा हो तो

गुरुवार, 17 अगस्त 2017

क्या काला जादू एक हकीकत है? हां और शायद नहीं। जो दूसरे लोग हम पर कर सकते हैं और साथ ही उसके बारे में भी, जो हम अपने आप पर करते हैं। अक्सर हम अपनी जान-पहचान के लोगों द्वारा तांत्रिक शक्तियों (काले जादू) के वशीकरण तथा मारण प्रयोगों के बारे में सुनते हैंअक्सर हम अपनी जान-पहचान के लोगों द्वारा तांत्रिक शक्तियों के वशीकरण तथा मारण प्रयोगों के बारे में सुनते हैं।तांत्रिकों तथा योगियों के अनुसार दुनिया की हर चीज चाहे वो सजीव हो या निर्जीव हो ब्रहमाण्ड की विशाल ऊर्जा का ही रूपांतरित रूप है। वे अक्सर शत्रुओं का बुरा करने के लिए नकारात्मक ऊर्जाओं को प्रयोग करते हैं जिसे पहचानना बेहद आसान होता है।यह सव खेल उर्जा का हैआपको यह समझना होगा कि ऊर्जा सिर्फ ऊर्जा होती है, वह न तो दैवी होती है, न शैतानी। आप उससे कुछ भी बना सकते हैं – देवता या शैतान। यह बिजली की तरह होती है। क्या बिजली दैवी या शैतानी, अच्छी या बुरी होती है? जब वह आपके घर को रोशन करती है, तो वह दिव्य होती है। एक वेद, अथर्ववेद सिर्फ सकारात्मक और नकारात्मक चीजों के लिए ऊर्जाओं के इस्तेमाल को ही समर्पित है। अगर वह एक इलेक्ट्रिक चेयर बन जाती है, तो वह शैतानी होती है। यह बस इस बात पर निर्भर करता है कि उस पल उसे कौन संचालित कर रहा है।असल में, पांच हजार साल पहले, अर्जुन ने भी कृष्ण से यही सवाल पूछा था‘आपका यह कहना है कि हर चीज एक ही ऊर्जा से बनी है और हरेक चीज दैवी है, अगर वही देवत्व दुर्योधन में भी है, तो वह ऐसे काम क्यों कर रहा है?’ कृष्ण हंसे क्योंकि इतना उपदेश देने के बाद भी अर्जुन इस साधारण, बुनियादी और बचकाने सवाल पर अटका था। कृष्ण ने जवाब दिया, ‘ईश्वर निर्गुण है, दिव्यता निर्गुण है। उसका अपना कोई गुण नहीं है।’ इसका अर्थ है कि वह बस विशुद्ध ऊर्जा है। आप उससे कुछ भी बना सकते हैं किसीको वचाया भी जा सकता है ओर मारा भी जा सकता है तो फिर लोग काला जादू कर सकते हैं जी हा बिल्कुल कर सकते हैं। अगर ऊर्जा का सकारात्मक इस्तेमाल है, तो नकारात्मक इस्तेमाल भी है। एक वेद, अथर्ववेद सिर्फ सकारात्मक और नकारात्मक चीजों के लिए ऊर्जाओं के इस्तेमाल को ही समर्पित है। नकारात्मक तंत्र-मंत्र को वो लोग अपनाते हैं जोकि दूसरों की सफलता से ईर्ष्या करते हैं। इस तरह के व्यक्तियों के अंदर नकारात्मकता, ईर्ष्या, लालच, निराशा, कुंठा इस तरह से घर कर जाती है कि वे दूसरों की सफलता, उन्नति, समृद्धि को स्वीकार नहीं कर पाते हैं तथा वे उस व्यक्ति से प्रतिशोध लेने के लिए काले जादू के द्वारा उसके लिए परेशानियां पैदा कर आनंद का अनुभव करते हैं। काले जादू का प्रयोग दूसरे व्यक्ति को हानि पहुंचाने या चोट पहुंचाने के लिए कुछ विशेष तरह की क्रियाओं के द्वारा सम्पन्न किया जाता है। इस प्रथा का प्रभाव हजारों मील दूर बैठे व्यक्ति पर भी देखा जा सकता है।र्म शास्त्रों में काले जादू को अभिचार के नाम से भी जाना जाता है अर्थात ऐसा तंत्र-मंत्र जिससे नकारात्मक शक्तियों को जागृत किया जाता है। काले जादू अर्थात नकारात्मक तंत्र-मंत्र का मुख्य उद्देश किसी व्यक्ति को उस स्थान से भगाना, उसे परेशान करना या उसे अपने वश में करके उसका इस्तेमाल करना या उसे बर्बाद करना होता है। काले जादू अर्थात नकारात्मक तंत्र-मंत्र से ग्रसित व्यक्ति के कुछ साधारण लक्षण हैं जैसे मानसिक अवरोध, श्वांसों में भारीपन तथा तेज चलना, गले में खिंचाव, जांघ पर नीले रंग के निशान बिना किसी चोट के, घर में बिना किसी विशेष कारण के कलह या लड़ाई-झगड़ा, घर के किसी सदस्य की अप्राकृतिक मृत्यु, व्यवसाय में अचानक हानि का होना आदि। कुछ और लक्षण भी हैं जैसे कि हृदय में भारीपन महसूस होना, निद्रा पर्याप्त न आना, किसी की मौजूदगी का भ्रम होना, कलह आदि साधारणतया देखने में आते हैं। व्यक्ति अशांत सा रहता है तथा उसको किसी भी तरह से शांति नहीं मिलती। निराशा, कुंठा तथा उत्साह की कमी भी इसी का परिणाम है। यदि काले जादू का समय रहते उपाय न किया जाए तो यह अत्यंत विनाशकारी, भयानक तथा घातक हो सकता है जिसके परिणामस्वरूप जातक की जिंदगी तबाह तथा बर्बाद हो सकती है या फिर उसे कोई भयानक बीमारी अपने अधिन कर सकती है। काले जादू का एक लक्षण ये भी होता है की आप चीड़ चिढ़े सभाव के हो जायेगे आपका किसी के साथ भी बाते करने का मन नहीं करेगासुख का अनुभव नहीं होगा अगर आपके पास भरपूर सुख है और फिरभी आप दुखी ह आपको किसी भी प्रकार का कोई भी सुख आनंद नहीं दे सकतायदि जीवन में अचानक उथल-पुथल मच जाए तो झट से उसे जादू-टोना समझने की बजाय, प्रारंभिक तौर पर कुंडली जांच अवश्य करवाएं। कभी-कभी ग्रह दोषों के कारण भी विपरीत समय का दौर प्रारंभ हो जाता है। यदि कुंडली दोषमुक्त हो तो निम्नलिखित लक्षणों पर ध्यान दें-मित्रों इस दुनिया में अस्तित्ववान सभी वस्तुएं सकारात्मक अथवा नकारात्मक ऊर्जा से प्रभावित हैं। हम ऐसे किसी तत्व की कल्पना ही नहीं कर सकते जो इनसे परे हो। अभिप्राय यह है कि जादू-टोना भी नकारात्मक ऊर्जा का ही उत्सर्जन ही है, जो सायास दूसरों के अहित की कामना से किये जाते हैं। हम सभी जानते हैं, टोने-टोटके अपनी भलाई के साथ-साथ दूसरों का अहित करने के लिए भी किया जा सकता है। यद्यपि तंत्र शास्त्र में वर्णित समस्त अभिक्रियाएं आध्यात्मिक उत्कर्ष प्राप्त करने के निमित्त से ही प्रथम बार की गई होंगी। तथापि, गलत हाथों में पड़ जाने के कारण इनके घातक परिणाम सामने आने लगे। उसी प्रकार तंत्र विद्या में मार और सम्हाल दोनो उपलब्ध है। अर्थात इसमें तांत्रिक क्रियाओं से बचाव हेतु उसका काट भी मौजूद है। यदि आपको लगता है की किसी ने आपके ऊपर कला जादू का प्रयोग किया है तो फिकर मत करे कोई भी साधक यहाँ पर काला जादू करने वाले की पहचान और उसकी काट/तोड़ का समाधान प्राप्त कर सकता है| काला जादू खत्म करने हटाने तथा टोन टोटके से बचने का हर प्रकार समाधान है यहां पर| किसी भी काली परछाई और बुरी आत्माओ को भागने की सिद्धि का प्रयोग कर किसी भी तरह की समस्याओ का समाधान प्राप्त किया जा सकता है| काला जादू का प्रयोग प्रेम और दुश्मन दोनों के लिए कर सकते है| यदि किसी भी काला जादू समस्या का समाधान चाहते है तो अवश्य सलाह लेवे और उचित मार्गदर्सन प्राप्त कर सकते है

रविवार, 13 अगस्त 2017

आचार्य राजेश (ज्योतिष,वास्तु , रत्न , तंत्र, और यन्त्र विशेषज्ञ ) जन्म कुंडली के द्वारा , विद्या, कारोबार, विवाह, संतान सुख, विदेश-यात्रा, लाभ-हानि, गृह-क्लेश , गुप्त- शत्रु , कर्ज से मुक्ति, सामाजिक, आर्थिक, राजनितिक ,पारिवारिक विषयों पर वैदिक उपायों व लाल किताब के द्वारा समाधान प्राप्त करें, आप ऐहमें अपना जन्म की तारीख , समय और जन्म स्थान , के साथ हमारी फीस हमारे bank ac pnb babk 0684000100192356 ifc punb 0068400 मे जमा करानी होगी email maakaali46@gmail.com, Mo. 09414481324. 07597718725 paytm no 07597718725 मित्रों बाद बात करते हैं तो रोगों के बारे में प्राचीन काल में जीवन जीने के भौतिक सुख के साधन कम थे तब रोग व बीमारियां भी कम हुआ करती थीं। जैसे-जैसे मनुष्य ने उन्नति की, भौतिक सुख-सुविधाओं की वस्तुओं में भी वृद्धि हुई, जिससे व्यक्ति आरामदायक जीवन बिताने लगा। इसके परिणामस्वरूप मेहनत कम होने से कई बीमारियों जैसे- मोटापा, मधुमेह, हृदय रोग, नेत्र रोग, कैंसर, अस्थमा आदि ने जन्म लिया। फिल्मी भाषाओं व माॅडलिंग, फैशन एवं बढ़ती भौतिक चीजों के कारण व्यक्ति की मानसिकता उŸोजित होने लगी जिससे कामुकता बढ़ने लगी परिणामस्वरूप यौन-अपराध बढ़ने लगे, जिससे यौन-रोगों में वृद्धि हुई। ये सभी आधुनिक युग के रोग कहलाते हैं अर्थात् प्राचीनकाल में ये रोग नहीं थे। चाहे आज विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली हैं।। सूक्ष्म से सूक्ष्म रोग को मशीन द्वारा पहचान लिया जाता हैं। परंतु फिर भी कई रोग एंव लक्षण आज भी रहस्य बने हुये हैं।। ज्योतिष शास्त्र द्वारा समस्त रोग पूर्व से ही जाने समझे जा सकते हैं, तथा उनका निदान किया जा सकता हैं।ज्योतिष शास्त्र के अनुसार लग्न कुण्डली के प्रथम भाव के नाम आत्मा, शरीर, होरा, देह, कल्प, मूर्ति, अंग, उदय, केन्द्र, कण्टक और चतुष्टय है। इस भाव से रूप, जातिजा आयु, सुख-दुख, विवेक, शील, स्वभाव आदि बातों का अध्ययन किया जाता है। लग्न भाव में मिथुन, कन्या, तुला व कुम्भ राशियाँ बलवान मानी जाती हैं।ग्रह जब भ्रमण करते हुए संवेदनशील राशियों के अंगों से होकर गुजरता है तो वह उनको नुकसान पहुंचाता है। नकारात्मक ग्रहों के प्रभाव को ध्यान में रखकर आप अपने भविष्य को सुखद बना सकते हैं। वैदिक वाक्य है कि पिछले जन्म में किया हुआ पाप इस जन्म में रोग के रूप में सामने आता है। शास्त्रों में बताया है-पूर्व जन्मकृतं पापं व्याधिरूपेण जायते अत: पाप जितना कम करेंगे, रोग उतने ही कम होंगे। अग्नि, पृथ्वी, जल, आकाश और वायु इन्हीं पांच तत्वों से यह नश्वर शरीर निर्मित हुआ है। यही पांच तत्व 360 की राशियों का समूह है। इन्हीं में मेष, सिंह और धनु अग्नि तत्व, वृष, कन्या और मकर पृथ्वी तत्व, मिथुन, तुला और कुंभ वायु तत्व तथा कर्क, वृश्चिक और मीन जल तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। कालपुरुष की कुंडली में मेष का स्थान मस्तक, वृष का मुख, मिथुन का कंधे और छाती तथा कर्क का हृदय पर निवास है जबकि सिंह का उदर (पेट), कन्या का कमर, तुला का पेडू और वृश्चिक राशि का निवास लिंग प्रदेश है। धनु राशि तथा मीन का पगतल और अंगुलियों पर वास है। इन्हीं बारह राशियों को बारह भाव के नाम से जाना जाता है। इन भावों के द्वारा क्रमश: शरीर, धन, भाई, माता, पुत्र, ऋण-रोग, पत्नी, आयु, धर्म, कर्म, आय और व्यय का चक्र मानव के जीवन में चलता रहता है। इसमें जो राशि शरीर के जिस अंग का प्रतिनिधित्व करती है, उसी राशि में बैठे ग्रहों के प्रभाव के अनुसार रोग की उत्पत्ति होती है। कुंडली में बैठे ग्रहों के अनुसार किसी भी जातक के रोग के बारे में जानकारी हासिल कर सकते हैं।मनुष्य का जन्म ग्रहों की शक्ति के मिश्रण से होता है. यदि यह मिश्रण उचित मात्रा में न हो अर्थात किसी तत्व की न्यूनाधिकता हो तो ही शरीर में विभिन्न प्रकार के रोगों का जन्म होता है. शरीर के समस्त अव्यवों,क्रियाकलापों का संचालन करने वाले सूर्यादि यही नवग्रह हैं तो जब भी शरीर में किसी ग्रह प्रदत तत्व की कमी या अधिकता हो, तो व्यक्ति को किसी रोग-व्याधि का सामना करना पडता है. कोई भी ग्रह जब भ्रमण करते हुए संवेदनशील राशियों के अंगों से होकर गुजरता है तो वह उन अंगों को नुकसान पहुंचाता है। जैसे आज कल सिंह राशि में शनि और मंगल चल रहे हैं तो मीन लग्न मकर और कन्या लग्न में पैदा लोगों के लिए यह समय स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा नहीं कहा जा सकता। अब सिंह राशि कालपुरुष की कुंडली में हृदय, पेट (उदर) के क्षेत्र पर वास करती है तो इन लग्नों में पैदा लोगों को हृदयघात और पेट से संबंधित बीमारियों का खतरा बना रहेगा। इसी प्रकार कुंडली में यदि सूर्य के साथ पापग्रह शनि या राहु आदि बैठे हों तो जातक में विटामिन ए की कमी रहती है। साथ ही विटामिन सी की कमी रहती है जिससे आंखें और हड्डियों की बीमारी का भय रहता है। चंद्र और शुक्र के साथ जब भी पाप ग्रहों का संबंध होगा तो जलीय रोग जैसे शुगर, मूत्र विकार और स्नायुमंडल जनित बीमारियां होती है। मंगल शरीर में रक्त का स्वामी है। यदि ये नीच राशिगत, शनि और अन्य पाप ग्रहों से ग्रसित हैं तो व्यक्ति को रक्तविकार और कैंसर जैसी बीमारियां होती हैं। यदि इनके साथ चंद्रमा भी हो जाए तो महिलाओं को माहवारी की समस्या रहती है जबकि बुध का कुंडली में अशुभ प्रभाव चर्मरोग देता है। चंद्रमा का पापयुक्त होना और शुक्र का संबंध व्यसनी एवं गुप्त रोगी बनाता है। शनि का संबंध हो तो नशाखोरी की लत पड़ती है। इसलिए कुंडली में बैठे ग्रहों का विवेचन करके आप अपने शरीर को निरोगी रख सकते हैं। किंतु इसके लिए सच्चरित्रता आवश्यक है। आरंभ से ही नकारात्मक ग्रहों के प्रभाव को ध्यान में रखकर आप अपने भविष्य को सुखद बना सकते हैं। योग-रत्नाकर में कहा है कि- औषधं मंगलं मंत्रो, हयन्याश्च विविधा: क्रिया। यस्यायुस्तस्य सिध्यन्ति न सिध्यन्ति गतायुषि।। अर्थात औषध, अनुष्ठान, मंत्र यंत्र तंत्रादि उसी रोगी के लिये सिद्ध होते हैं जिसकी आयु शेष होती है। जिसकी आयु शेष नहीं है; उसके लिए इन क्रियाओं से कोई सफलता की आशा नहीं की जा सकती। यद्यपि रोगी तथा रोग को देख-परखकर रोग की साध्या-साध्यता तथा आसन्न मृत्यु आदि के ज्ञान हेतु चरस संहिता, सुश्रुत संहिता, भेल संहिता, अष्टांग संग्रह, अष्टांग हृदय, चक्रदत्त, शारंगधर, भाव प्रकाश, माधव निदान, योगरत्नाकर तथा कश्यपसंहिता आदि आयुर्वेदीय ग्रन्थों में अनेक सूत्र दिये गए हैं परन्तु रोगी या किसी भी व्यक्ति की आयु का निर्णय यथार्थ रूप में बिना ज्योतिष की सहायता के संभव नहीं है।

गुरुवार, 10 अगस्त 2017

  आचार्य राजेश (ज्योतिष,वास्तु , रत्न , तंत्र, और यन्त्र विशेषज्ञ ) जन्म कुंडली के द्वारा , विद्या, कारोबार, विवाह, संतान सुख, विदेश-यात्रा, लाभ-हानि, गृह-क्लेश , गुप्त- शत्रु , कर्ज से मुक्ति, सामाजिक, आर्थिक, राजनितिक ,पारिवारिक विषयों पर वादिक उपायों के द्वारा समाधान प्राप्त करें, आप हमें अपना जन्म की तारीख , समय और जन्म स्थान , के साथ हमारी फीस हमारे bank ac pnb babk 0684000100192356 ifc punb 0068400 मे जमा करानी होगी email maakaali46@gmail.com, Mo. 09414481324. 07597718725 paytm no 07597718725 [ ज्योतिष विज्ञान नहीं सुपरै विज्ञानं है!! जीवन में मनुष्य जन्म लेते ही ज्योतिष शास्त्र से जुड़ जाता है। कुछ व्यक्ति ज्योतिष को कला शास्त्र और कुछ विज्ञान की संज्ञा देते हैं। वास्तव में ज्योतिष विज्ञान नहीं, अपितु सुपर विज्ञान है। आज सब देख रहे है की समाज में ज्योतिष की लोकप्रियता बढती जा रही है, मांग और पूर्ति का भी एक सिधांत है की जब किसी चीज की मांग ज्यादा बढ़ जाती है तो वहां कुछ न कुछ गलत होने लगता है इसी प्रकार आज जब ज्योतिष का प्रचार - प्रसार तथा लोकप्रियता बढ़ रही है तो कुछ लोग धन के लोभवश ज्योतिष के अधकचरे ज्ञान का उपयोग कर स्वयं तो अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं पर ज्योतिष जो वैदिकप्रामाणिक विज्ञान और सशक्त शास्त्र है। समूची ज्योतिष विद्या पर प्रश्न चिन्ह भारतीय संस्कृति पर प्रश्नचिन्ह है, .... नारद, आर्यभट्ट, वराहमिहिर, पराशर, गर्गाचार्य, लोमश ऋषि, निबंकाचार्य, पृथुयश, कल्याण वर्मा, लल्लाचार्य, भास्कराचार्य (प्रथम), ब्रह्मगुप्त, श्रीधराचार्य, मुंजाल यह सिर्फ नाम नहीं है ज्योतिष शास्त्र में इनका अपना गौरवमयी यशस्वी योगदान रहा है। ज्योतिष ऋषियों तथा वेदों का अमूल्य ज्ञान है उसकी लोकप्रियता तथा विश्वसनीयता को छति हो रही है ! आज समाज में यह देखने को मिलता है की वैज्ञानिक तथा अन्य नास्तिक लोग देश के विख्यात ज्योतिषियों से टीवी के प्रोग्रामो में चुनौती देते हैं की वह ज्योतिष की विश्वसनीयता सिद्ध करें टीवी प्रोग्राम में पुरे जनमानस के सामने ज्योतिषी यह सिद्ध नहीं कर पाते की ज्योतिष विज्ञानं है क्यों कारण सिर्फ इतना सा है की उनके ज्ञान पर भौतिकता और लालच का पर्दा पड़ा है ! ज्योतिष धन उपार्जन का साधन हो सकती है पर ज्योतिष साधना का विषय है और साधना वातानुकूलित कमरों में रहकर नहीं हो सकती टीवी पर प्रोग्राम देखकर इन ज्योतिषियों को तो शरम नहीं आइ होगी पर प्रोग्राम देखकरमुझ जैसे या जो भी ज्योतिष प्रेमी हैं उनको जरुर दर्द होता होगा ,होना भी चाहिए , इस जगत में कोई भी विज्ञानं पूर्ण नहीं है पूर्ण सिर्फ परमात्मा है जिस तरह से मीडिया ज्योतिष को अंधविश्वास बताने पर तूला है लगता ही नहीं है कि यही वह मीडिया है जो नास्त्रेदेमस पर 6-6 एपिसोड चलाता है। दिन-दिन भर पंडितों को बैठा कर एस्ट्रो टिप्स बताने वाला मीडिया अचानक से स्मृति ईरानी के हाथ दिखाने भर से इसी विद्या के खिलाफ खड़ा हो जाता है। तो फिर ज्योतिष विज्ञानं की ही प्रमाणिकता क्यों मांगी जा रही है कारण ये जो भी कथाकथित ज्योतिष के विद्वान हैं सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के चक्कर में राशिफल , भविष्यवानियाँ टीवी , पत्रिकाओं, अखबारों आदि में करते है जिन्हें हल्दी का रंग मालूम नहीं है पंसारी बने धूम रहे है दस्तखत करना आता नहीं कलक्टर बनाने का फार्म भर रहे हैं ! अरे भाई एक राशी के करोडो लोग हैं आप एक लाठी से सभी को हांके जा रहे हो ..मुर्खता करना अब भी बंद कर दो अपना नहीं तो कम से कम जिस ज्योतिष से तुम्हारी रोटी चल रही है उसकी ही खातिर सही . अरे भाई फल खाओ तो खाओ वृक्ष पर तो तरस खाओ प्यारे ! अब रही बात ज्योतिष की तो भई एक अस्पताल में एक ही मर्ज के पाँच मरीज भर्ती हुए एक ही कमरे में भर्ती किये गए एक ही डाक्टर इलाज करता है परिणाम ... एक मरीज दो दिन में , दूसरा तीन दिन में , चौथा चार दिन में ठीक हो जाते है पांचवा ठीक नहीं होता ओपरेशन करना पड़ता है फिर भी मर जाता है तो क्या अस्पताल की विश्वसनीयता पर या डाक्टर की विश्वसनीयता पर या दवाइयों की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लगाना चाहिए .. नहीं .. बिलकुल नहीं ,, प्रत्येक मरीज की अपनी रोग प्रतिकारक शक्तियां है जो की भिन्न भिन्न हैं ठीक उसी तरह ज्योतिष विद्या भी है जो की भिन्न भिन्न जातको की भिन्न भिन्न समस्याओं का इलाज़ ज्योतिष्य तरीके से करती है लेकिन किसी भी जातक के प्रारब्ध दुसरे जातक जैसे नहीं हो सकते और इसी विशेष कारण उसकी समस्या के निदान में समय लगना या कई बात लाइलाज भी रह जाना स्वाभाविक है ! यही कारण से ज्् ज्योतिष सवालों के कटघरे में खड़ा है!जब राजनीति विज्ञान हो सकता है, समाज विज्ञान हो सकता है मन का भी मनोविज्ञान हो सकता है तो ज्योतिष विज्ञान क्यों नहीं हो सकता? मैं स्मृति ईरानी का ज्योतिषी के पास जाना वैसा ही मानता हूं जैसे कोई डॉक्टर के पास जाता है। हर युग में हर किसी किसी के अपने ज्योतिषी और आचार्य रहे हैं। राजा-महाराजाओं के काल में भी, विदेशों में भी और भारत में भी। रेगन, बुश,क्लिंटन से लेकर हर दौर के मंत्री और नेताओं के ज्योतिषी थे और हैं। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, प्रधानमंत्री पं. नेहरू, डॉ. राधाकृष्णन से लेकर सभी बड़े राजनेता, क्रांतिकारी और समाजसेवी ज्योतिषाचार्य जी के पास आते रहे हैं। भारत की आजादी का मुहूर्त भी उन्हीं से पूछकर निकाला गया था। ब्रह्माण्‍ड की उत्‍पत्ति बिग बैंग से हुई या यह शुरू से ही ऐसा था, प्रकाश से तेज रफ्तार में क्‍या होता है, ब्‍लैक होल क्‍या है, हीरे की बाहरी संरचना में तीन-तीन फ्री कार्बन क्‍यों नहीं होते और अगर होते हैं तो वह अक्रिय कैसे होता है। सैकड़ों सवाल है जो अनुत्‍तरित हैं। फिर भी पश्चिम द्वारा थोपे गए विज्ञान को सिर पर बैठाया जाता है और हमारे ऋषियों द्वारा अर्जित ज्ञान को नीचा दिखाया जाता है। मेरी समझ में तो यह गुलामी की मानसिकता से अधिक और कुछ नहीं है। मैं निजी तौर पर योग सिखाने वाले बाबा रामदेव का फैन हूं। इसका कारण यह नहीं है कि वे अपनी योग कक्षाओं में बैठने की फीस लेते हैं बल्कि इसके बावजूद उन्‍होंने सहज योगासनों और सामान्‍य प्राणायामों से लोगों को सक्रिय कर दिया है। आज स्थिति यह है कि किसी चिकित्‍सक को जब यह कहा जाता है कि इस बीमारी का हल तो बाबा रामदेव ने इस योग में बताया है तो चिकित्‍सक मारने को दौड़ता है। पश्चिमी शिक्षा का प्रभाव है कि चिकित्‍सक यह मानने को तैयार नहीं होता कि सांस लेने से भी कोई ठीक हो सकता है। श्‍वास के साथ जुड़े प्राण को अंग्रेजों ने नकारा तो भारतीयों ने भी नकार दिया। अब विदेशी लोग योग करते हैं और ग्‍लेज पेपर वाली मैग्‍जीन्‍स में भारतीय उनके फोटो देखते हैं।वापस विषय पर आता हूं ,इतिहास के संदर्भ में ही देखें तो प्रयोग, प्रेक्षण और परिणाम की कसौटी पर इतिहास के किसी तथ्‍य को नहीं रखा जा सकता। जैसी दुनिया आज है वैसी दस साल पहले नहीं थी और जैसी दस साल पहले थी वैसी सौ साल पहले नहीं थी। तो कैसे तो प्रयोग होगा, किस पर प्रेक्षण किया जाएगा और आने वाले परिणामों को किस कसौटी पर जांचा जाएगा। मेरा मानना है कि ज्‍योतिष के साथ भी कुछ ऐसा ही है। पूर्व में ग्रहों और राशियों की स्थिति की पुनरावृत्ति के साथ घटनाओं का तारतम्‍य देखकर उसके सांख्यिकीय आंकड़ों के आधार पर योगों का निर्माण किया गया होगा। सालों, दशकों या शताब्दियों के निरन्‍तर प्रयास से योगों को स्‍थापित किया गया और आज के संदर्भ में इन योगों का इस्‍तेमाल भविष्‍य में झांकने के लिए किया जाता है। अब जो लैण्‍डमार्क पीछे से आ रहे रास्‍ते को दिखा रहे हैं उनसे आगे का रास्‍ता बता पाना न तो गणित के सामर्थ्‍य की बात है और न कल्‍पना के। ऐसे में ज्‍योतिषी के अवचेतन को उतरना पड़ता है। जैसा कि मौसम विभाग के सुपर कम्‍प्‍यूटर करते हैं। अब तक हुई भूगर्भीय गतिविधियों को लेकर आगामी दिनों में होने वाली घटनाओं की व्‍याख्‍या करने का प्रयास। इसके साथ ही बदलावों को तेजी से समझना और उन्‍हें आज के परिपेक्ष्‍य में ढालना भी एक अलग चुनौती होती है। पचास साल पहले कोई ज्‍योतिषी यह कह सकता था कि अमुक घटना हुई है या नहीं इसकी सूचना आपको एक सप्‍ताह के भीतर मिल जाएगी वहीं अब मोबाइल और इंटरनेट ने सूचनाओं के प्रवाह को इतना प्रबल बना दिया है कि घटना और सूचना में महज सैकण्‍डों का अन्‍तर होता है। अब देखें कि इससे क्‍या फर्क पड़ा। सबसे बड़ा फर्क पड़ा बुध के प्रभाव के बढ़ने का। दूसरा फर्क मोबाइल और इंटरनेट के इस्‍तेमाल के दौरान व्‍यक्ति पर आ रही किरणों के असर का। इसे बुध राहू के रूप में लेंगे या शनि चंद्रमा के रूप में, ये निर्णय होने से अभी बाकी है। ऐसे में कोई ज्‍योतिषी करीब-करीब सही फलादेश कर देता है तो उसे और उसके अवचेतन को धन्‍यवाद देना चाहिए् रही वात ज्योतिष की विज्ञान और ज्योतिष के सर्वमान्य सिद्धांत के अनुसार कोई भी ग्रह हमेशा किसी के ऊपर नहीं रहता बल्कि अपनी चाल के अनुसार अलग अलग राशियों में जाता रहता है| जब एक निश्चित समयानुसार ग्रहों की स्थिति बदलती रहती है आकाश में मौजूद 9 ग्रह अपनी अपनी गति से चलते है और गणित के अनुसार एक खास समय पर अलग अलग राशियों में प्रवेश करते हैं| एक खास समय तक उस राशि में रहते हैं और फिर अगली राशि में चले जाते हैं| अलग अलग राशि में उनके अलग अलग प्रभाव होते हैं| कैसे आइए जानते हैं : आचार्य लोंगों ने आकाश को समझने के लिए इसे 12 भागों में बाँट दिया| हर भाग को एक नाम दे दिया जिसे हम राशियों के नाम से जानते हैं| इस प्रकार हम आकाश के 12 भागों को 12 राशियों के नाम से जानते हैं| पूरा सौर मंडल इन्हीं 12 राशियों के अंदर आता है| सूर्य इन्हीं 12 भागों से होकर गुज़रता है| और जब कोई भी ग्रह किसी भी राशि में आता है तो उस पर सूर्य और अन्य ग्रहों की प्रकाश किरणें पड़ने लगती हैं| और ये प्रकाश किरणें प्रकाश के प्रत्यावर्तन सिद्धांतों के अनुसार विभिन्न कोणों से विभिन्न ग्रहों से टकराकर धरती मंडल में प्रवेश करती हैं और उस समय ये प्रकाश किरणें जिस राशि में से होकर धरती मंडल पर आती हैं उस राशि में जन्म पाने वाले लोगों के शरीर में मौजूद लाल रक्त कण उस राशि में प्रवेश कर रहीं राशिष्ठ किरणों को अपने में अवशोषित कर लेती है| और वह प्राणी उस ग्रह के कास्मिक किरणों के प्रभाव में आ जाता है| हर आदमी के शरीर में 12 तरह की किरणें होती हैं| अब अगर किसी के शरीर में 10 पॉइंट किसी खास ग्रह की ज़रूरत है और उसमें 8 पॉइंट ही हैं तो उसे 2 पॉइंट और चाहिए| अब अगर वह 4 पॉइंटस और ले लेगा तो 2 पायंट्स जो ज़्यादा हो जाएगा वह उसे नुकसान ही पहुँचाएगा न कि फायदा| इसी को लोग कहते हैं कि ग्रह दशा खराब हो गई है| अब हमें उपाय करने चाहिए जिससे कि ये 2 पायंट्स समाप्त हो जाएँ| कितने पायंट्स किरणों की ज़रूरत किसे है उसमें कितने पायंट्स उसमें हैं उसे और कितने पायंट्स और चाहिए इसकी जाँच ज्योतिष् और विज्ञान दोनों में है शेष अगले पोस्ट में:

रविवार, 6 अगस्त 2017

आचार्य राजेश (ज्योतिष,वास्तु , रत्न , तंत्र, और यन्त्र विशेषज्ञ ) जन्म कुंडली के द्वारा , विद्या, कारोबार, विवाह, संतान सुख, विदेश-यात्रा, लाभ-हानि, गृह-क्लेश , गुप्त- शत्रु , कर्ज से मुक्ति, सामाजिक, आर्थिक, राजनितिक ,पारिवारिक विषयों पर वादिक उपायों के द्वारा समाधान प्राप्त करें, आप हमें अपना जन्म की तारीख , समय और जन्म स्थान , के साथ हमारी फीस हमारे bank ac pnb babk 0684000100192356 ifc punb 0068400 मे जमा करानी होगी email maakaali46@gmail.com, Mo. 09414481324. 07597718725 paytm no 07597718725

स्त्री-पुरुष जीवन रथ के दो पहिए हैं।
स्त्री-पुरुष जीवन रथ के दो पहिए हैं।सृष्टि सृजन में दोनों का समान योगदान होता है। नारी जननी, माँ, बेटी, पत्नी, बहन, नानी, दादी बन समाज, परिवार को पोषित करती है। नारी को कई दैवीय रूपों में पूजा जाता है। ऐश्वर्य के लिए लक्ष्मी, शक्ति के लिए दुर्गा, ज्ञान के लिए सरस्वती।
संस्कृत का श्लोक है – "यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते, रमन्ते तत्र देवताः" अर्थात जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं। वैदिक काल में गार्गी जैसी विदूषी स्त्री ने यज्ञवलक्य को शास्त्रार्थ में हरा दिया था। कहने का तात्पर्य यह है कि उस ज़माने में स्त्रियों को पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त थे। स्वतंत्रता-स्वच्छंदता थीमध्यकालीन युग में नारियों की दशा बरबस, बेचारी-सी हो गई। उसे पाँव की जूती मानने लगे और नारी परिवार-समाज की संकुचित सीमाओं में बँध कर रह गई। पुरुष प्रधान समाज में नारी के नारीत्व का हरण होने लगा।। अनादि काल से महिलायें तिरस्कार झेलती आयीं है। पति के रूप में प्राप्त पुरुष स्त्री को कामना के रूप में स्वीकार करने के बजाय अवमानना के रूप में प्रयोग करता है,जब कि प्रकृति ने स्त्री को निराकार और पुरुष को साकार रूप में इस संसार में उपस्थित किया है। निराकार और साकार का रूप समझे बिना स्त्री पुरुष कभी भी अपने को सामजस्यता में नही रख पायेंगे,पहले आपको बता देना चाहता हूँ कि साकार और निरकार का अर्थ क्या है ? इस संसार में धनात्मक कारक साकार है,और ऋणात्मक कारक निराकार है,पुरुष का अर्थ एक तरह से है – मर्दाना। प्रकृति का अर्थ है स्त्री। तो सृष्टि जिस तरह से है, उसे समझाने के लिए सृष्टि के सृजन के बीज को पुरुष कहा गया है। यह नर है, लेकिन उसकी जीवन-निर्माण में कोई सक्रिय भूमिका नहीं है। यह बिलकुल मनुष्य के जन्म जैसी है। पुरुष सिर्फ बीज डालता है, लेकिन बाकी सारा सृजन नारी द्वारा होता है। इसलिए, देवी मां या पार्वती या काली को प्रकृति कहा गया है। वह संपूर्ण सृजन करती हैं, लेकिन इस सृजन का बीज है शिव या पुरुष। इसे शिव-शक्ति या पुरुष-प्रकृति, या यिन-यैंग या और भी कई तरह से समझा जा सकता हैस सृष्टि के आधार और रचयिता यानी स्त्री-पुरुष शिव और शक्ति के ही स्वरूप हैं। इनके मिलन और सृजन से यह संसार संचालित और संतुलित है। दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं। नारी प्रकृति है और नर पुरुष। प्रकृति के बिना पुरुष बेकार है और पुरुष के बिना प्रकृति। दोनों का अन्योन्याश्रय संबंध है।।दोनो का अनुपात समान रूप से प्रयोग में लाने पर जीवन बिना किसी अवरोध के चला करता है,और इनके अन्दर जरा सा भी अनुपात बिगाड लिया जाये तो जीवन कष्टकारक हो जाता है। एक स्त्री एक पुरुष का अनुपाती रूप धनात्मक शक्ति को ऋणात्मक शक्ति में विलीन करने के लिये काफ़ी है,एक पुरुष अगर कई ऋणात्मक शक्तियों की पूर्ति करने के लिये उद्धत होता है तो वह जानबूझ कर अपनी जीवन की गति को असमान्य करता है,या तो वह जीवन को कम करता है अथवा वह जीवन भर अभावों में जीता है। उसी प्रकार से अगर एक स्त्री अगर कई सकारात्मक कारकों को अपने जीवन में प्रयोग करती है तो वह अपने जीवन को जल्दी समाप्त करने की चाहत करती है साथ ही जीवन को बरबाद करने के अलावा और कुछ नही करना चाहती है। इस बात को समझने के लिये आपको कहीं नही जाना है केवल अपने आसपास के माहौल को देखना है,आप किसी विधवा स्त्री या विधुर को देखिये,उसके जीवन को देखिये,उसकी आयु को देखिये,एक महिला का पति अगर चालीस साल की उम्र में गुजर गया है तो वह महिला अपनी वास्तविक उम्र से बीस साल और अधिक जिन्दा रहती है,अगर एक पुरुष चालीस साल में विधुर हो गया है तो वह अपनी वास्तविक उम्र से बीस साल और अधिक जिन्दा रहता है,इस अधिक उम्र को प्राप्त करने का कारण क्या है। इसे कोई भी बालिग आराम से समझ सकता है। अगर पुरुष अधिक स्त्रियों की कामना करता है और अधिक से अधिक कई स्त्रियों के साथ समागम करता है तो उसकी उम्र हर पहलू में कम होती चली जाती है,वह चाहे कितना ही धनी हो,कितना ही खाने पीने वाला हो,उसके पास चाहे कितने ही शरीर को बलवान बनाने वाले तत्वों की अधिकता हो,वह अपनी उम्र को कम ही करेगा। उसी प्रकार से कोई स्त्री अगर एक से अधिक पुरुषों के साथ समागम करती है तो वह भी अपनी उम्र की एक एक सीढी कम करती चली जाती है। इस बात को समझने के बाद भी अगर कोई स्त्री या पुरुष अधिक स्त्री या पुरुष की कामना करता है तो वह, वास्तव में सोसाइट करने वाली बात ही करता है।स्त्री पुरुष को ईश्वर ने संसार में निर्माण के लिये भेजा है यह तो एक साधारण व्यक्ति भी जानता है,लेकिन भावनाओं की गति को पकड कर चलने के साथ ही अगर दोनो अपने अपने कार्यों को करते चले जाते है,और वे जीवन की गति को निर्बाध चलाने के लिये एक के बाद एक निर्बाध (Resistance) पैदा करते जाते है तो जीवन आराम से निकल जाता है। इस स्त्री और पुरुष की गति को अगर रोजाना के प्रयोग में ली जाने वाली बिजली से तुलना करें तो आराम से समझ में आ सकता है,फ़ेस और न्यूटल दो भाग में घरेलू बिजली प्रयोग में ली जाती है,फ़ेस को न्यूटल से सीधा जोडने पर फ़्यूज उड जाता है,और फ़ेस को किसी रजिस्टेंस के माध्यम से न्यूटल तक पहुंचाने से उस रजिस्टेंस से जीवन की भौतिकता में सुख भी प्राप्त किया जा सकता है,और फ़्यूज भी नही उडता है,बिजली की गति सामान्य भी रहती है। स्त्री को न्यूटल और पुरुष को फ़ेस समझे जाने पर दोनो की आपसी शक्ति को प्रकृति ने बच्चे रूपी रजिस्टेंस पैदा किये है,दोनो अपनी अपनी शक्ति को बच्चों के माध्यम से खर्च करें तो बच्चे तरक्की करते जायेंगे,और दोनो का जीवन भी सार्थक होता चला जायेगा। लेकिन दोनो के बीच बीच में होने वाले शार्ट सर्किट से भी बचना पडेगा। भगवान रूपी पावर हाउस,तार और खम्भों रूपी माता पिता,आन आफ़ करने वाले स्विच रूपी रोजाना के कार्य और व्यवसाय,इन्डीकेटर रूपी नाम और समाज में वेल्यू,एम सी बी रूपी भाग्य और भगवान के प्रति श्रद्धा भी ध्यान में रखनी जरूरी है।

स्त्री-पुरुष जीवन रथ के दो पहिएस्त्री-पुरुष जीवन रथ के दो पहिए हैं। स्त्री-पुरुष जीवन रथ के दो पहिए हैं।सृष्टि सृजन में दोनों का समान योगदान होता है। नारी जननी, माँ, बेटी, पत्नी, बहन, नानी, दादी बन समाज, परिवार को पोषित करती है। नारी को कई दैवीय रूपों में पूजा जाता है। ऐश्वर्य के लिए लक्ष्मी, शक्ति के लिए दुर्गा, ज्ञान के लिए सरस्वती। संस्कृत का श्लोक है – "यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते, रमन्ते तत्र देवताः" अर्थात जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं। वैदिक काल में गार्गी जैसी विदूषी स्त्री ने यज्ञवलक्य को शास्त्रार्थ में हरा दिया था। कहने का तात्पर्य यह है कि उस ज़माने में स्त्रियों को पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त थे। स्वतंत्रता-स्वच्छंदता थीमध्यकालीन युग में नारियों की दशा बरबस, बेचारी-सी हो गई। उसे पाँव की जूती मानने लगे और नारी परिवार-समाज की संकुचित सीमाओं में बँध कर रह गई। पुरुष प्रधान समाज में नारी के नारीत्व का हरण होने लगा।। अनादि काल से महिलायें तिरस्कार झेलती आयीं है। पति के रूप में प्राप्त पुरुष स्त्री को कामना के रूप में स्वीकार करने के बजाय अवमानना के रूप में प्रयोग करता है,जब कि प्रकृति ने स्त्री को निराकार और पुरुष को साकार रूप में इस संसार में उपस्थित किया है। निराकार और साकार का रूप समझे बिना स्त्री पुरुष कभी भी अपने को सामजस्यता में नही रख पायेंगे,पहले आपको बता देना चाहता हूँ कि साकार और निरकार का अर्थ क्या है ? इस संसार में धनात्मक कारक साकार है,और ऋणात्मक कारक निराकार है,पुरुष का अर्थ एक तरह से है – मर्दाना। प्रकृति का अर्थ है स्त्री। तो सृष्टि जिस तरह से है, उसे समझाने के लिए सृष्टि के सृजन के बीज को पुरुष कहा गया है। यह नर है, लेकिन उसकी जीवन-निर्माण में कोई सक्रिय भूमिका नहीं है। यह बिलकुल मनुष्य के जन्म जैसी है। पुरुष सिर्फ बीज डालता है, लेकिन बाकी सारा सृजन नारी द्वारा होता है। इसलिए, देवी मां या पार्वती या काली को प्रकृति कहा गया है। वह संपूर्ण सृजन करती हैं, लेकिन इस सृजन का बीज है शिव या पुरुष। इसे शिव-शक्ति या पुरुष-प्रकृति, या यिन-यैंग या और भी कई तरह से समझा जा सकता हैस सृष्टि के आधार और रचयिता यानी स्त्री-पुरुष शिव और शक्ति के ही स्वरूप हैं। इनके मिलन और सृजन से यह संसार संचालित और संतुलित है। दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं। नारी प्रकृति है और नर पुरुष। प्रकृति के बिना पुरुष बेकार है और पुरुष के बिना प्रकृति। दोनों का अन्योन्याश्रय संबंध है।।दोनो का अनुपात समान रूप से प्रयोग में लाने पर जीवन बिना किसी अवरोध के चला करता है,और इनके अन्दर जरा सा भी अनुपात बिगाड लिया जाये तो जीवन कष्टकारक हो जाता है। एक स्त्री एक पुरुष का अनुपाती रूप धनात्मक शक्ति को ऋणात्मक शक्ति में विलीन करने के लिये काफ़ी है,एक पुरुष अगर कई ऋणात्मक शक्तियों की पूर्ति करने के लिये उद्धत होता है तो वह जानबूझ कर अपनी जीवन की गति को असमान्य करता है,या तो वह जीवन को कम करता है अथवा वह जीवन भर अभावों में जीता है। उसी प्रकार से अगर एक स्त्री अगर कई सकारात्मक कारकों को अपने जीवन में प्रयोग करती है तो वह अपने जीवन को जल्दी समाप्त करने की चाहत करती है साथ ही जीवन को बरबाद करने के अलावा और कुछ नही करना चाहती है। इस बात को समझने के लिये आपको कहीं नही जाना है केवल अपने आसपास के माहौल को देखना है,आप किसी विधवा स्त्री या विधुर को देखिये,उसके जीवन को देखिये,उसकी आयु को देखिये,एक महिला का पति अगर चालीस साल की उम्र में गुजर गया है तो वह महिला अपनी वास्तविक उम्र से बीस साल और अधिक जिन्दा रहती है,अगर एक पुरुष चालीस साल में विधुर हो गया है तो वह अपनी वास्तविक उम्र से बीस साल और अधिक जिन्दा रहता है,इस अधिक उम्र को प्राप्त करने का कारण क्या है। इसे कोई भी बालिग आराम से समझ सकता है। अगर पुरुष अधिक स्त्रियों की कामना करता है और अधिक से अधिक कई स्त्रियों के साथ समागम करता है तो उसकी उम्र हर पहलू में कम होती चली जाती है,वह चाहे कितना ही धनी हो,कितना ही खाने पीने वाला हो,उसके पास चाहे कितने ही शरीर को बलवान बनाने वाले तत्वों की अधिकता हो,वह अपनी उम्र को कम ही करेगा। उसी प्रकार से कोई स्त्री अगर एक से अधिक पुरुषों के साथ समागम करती है तो वह भी अपनी उम्र की एक एक सीढी कम करती चली जाती है। इस बात को समझने के बाद भी अगर कोई स्त्री या पुरुष अधिक स्त्री या पुरुष की कामना करता है तो वह, वास्तव में सोसाइट करने वाली बात ही करता है।स्त्री पुरुष को ईश्वर ने संसार में निर्माण के लिये भेजा है यह तो एक साधारण व्यक्ति भी जानता है,लेकिन भावनाओं की गति को पकड कर चलने के साथ ही अगर दोनो अपने अपने कार्यों को करते चले जाते है,और वे जीवन की गति को निर्बाध चलाने के लिये एक के बाद एक निर्

शनिवार, 5 अगस्त 2017

.शनी वक्री वक्री शनिआचार्य राजेश (ज्योतिष,वास्तु , रत्न , तंत्र, और यन्त्र विशेषज्ञ ) जन्म कुंडली के द्वारा , विद्या, कारोबार, विवाह, संतान सुख, विदेश-यात्रा, लाभ-हानि, गृह-क्लेश , गुप्त- शत्रु , कर्ज से मुक्ति, सामाजिक, आर्थिक, राजनितिक ,पारिवारिक विषयों पर वादिक उपायों के द्वारा समाधान प्राप्त करें, आप हमें अपना जन्म की तारीख , समय और जन्म स्थान , के साथ हमारी फीस हमारे bank ac pnb babk 0684000100192356 ifc punb 0068400 मे जमा करानी होगी email maakaali46@gmail.com, Mo. 09414481324. 07597718725 paytm no 07597718725शनिग्रह के बारे मे माना जाता है कि शनि ग्रह चाहे तो राजा बना दे या रंक। जिसकी जन्म कुण्डली में शनि बहुत अच्छी स थिति में होता है उसे शनि विशेष हानि नहीं पहुंचाता बल्कि लाभ देता है। जिन जातको की कुण्डली में शनि, नीच स्थिति पर होता है, उन्हें शनि से हानि होती है। परन्तु यह हानि जीवन भर नहीं रहती, क्योंकि हमारे जीवन में दशा और गोचर का भी महत्व होता है।सबसे पहले तो यह जान लें कि किसी भी वक्री ग्रह का व्यवहार उसके सामान्य होने की स्थिति से अलग होता है तथा वक्री और सामान्य ग्रहों को एक जैसा नही मानना चाहिए। किन्तु यहां पर यह जान लेना भी आवश्यक है कि अधिकतर मामलों में किसी ग्रह के वक्री होने से कुंडली में उसके शुभ या अशुभ होने की स्थिति में कोई फर्क नही पड़ता अर्थात अधिकतर मामलों में ग्रह के वक्री होने की स्थिति में उसके स्वभाव में कोई फर्क नहीं आता किन्तु उसके व्यवहार में कुछ बदलाव अवश्य आ जाते हैं। यहा स्वभाव ओर व्यवहार दोनो को समझने की आवश्यकता हैज्‍योतिष में हर ग्रह और राशि (नक्षत्रों के समूह) की प्रकृति के बारे में विस्‍तार से जानकारी दी गई है। ग्रहों के रंग, दिशा, स्‍त्री-पुरुष भेद, तत्‍व और धातु के अलावा राशियों के गुणों के बारे में भी बताया गया है। ग्रहों और राशियों की प्रकृति स्‍थाई होती है। इनके प्रभाव में कमी या बढ़ोतरी हो सकती है, लेकिन मूल प्रकृति में कभी बदलाव नहीं होता।जब कोई ग्रह अपनी नीच राशि में जाता है तो यह माना जाता है कि इस राशि में ग्रह का प्रभाव अपेक्षाकृत कम होता है और उच्‍च राशि में अपना सर्वाधिक प्रभाव देता है। अब प्रभावों में बढ़ोतरी हो या कमी, न तो ग्रह की और न ही राशि की प्रकृतिमें कोई बदलाव आता है। उदाहरण के लिए शनि यदि अपनी सामान्य गति से कन्या राशि में भ्रमण कर रहे हैं तो इसका अर्थ यह होता है कि शनि कन्या से तुला राशि की तरफ जा रहे हैं, किन्तु वक्री होने की स्थिति में शनि उल्टी दिशा में चलना शुरू कर देते हैं अर्थात शनि कन्या से तुला राशि की ओर न चलते हुए कन्या राशि से सिंह राशि की ओर चलना शुरू कर देते हैं और जैसे ही शनि का वक्र दिशा में चलने का यह समय काल समाप्त हो जाता है, वे पुन: अपनी सामान्य गति और दिशा में कन्या राशि से तुला राशि की तरफ चलना शुरू कर देते हैं। वक्र दिशा में चलने वाले अर्थात वक्री होने वाले बाकि के सभी ग्रह भी इसी तरह का व्यवहार करते हैं। यानी उसका मुल स्वभाव वही रहेग पर व्यवहार मे फर्क होगा जब शनि कुंडली में मार्गी होता है तो शरीर से मेहनत करवाता है और जो भी काम करवाता है उसके अन्दर पसीने को निकाले बिना भोजन भी नहीं देता है और जब किया सौ का जाय तो मिलता दस ही है,इसके साथ ही शरीर के जोड़ जोड़ को तोड़ने के लिए अपनी पूरी की पूरी कोशिश भी करता है,रहने के लिए अगर निवास का बंदोबस्त किया जाए तो मजदूरों से काम करवाने की बजाय खुद से भी मेहनत करवाता है तब जाकर कोई छोटा सा रहने वाला मकान बनवा पाता है,जब कोई कार्य करने के लिए अपने को साधनों की तरफ ले जाता है तो साधन या तो वक्त पर खराब हो जाते है या साधन मिल ही नहीं पाते है,मान लीजिये किसी को घर बनवाने के लिए सामान लाना है,सामान लाते हुए घर के पास ही या तो साधन खराब हो जाएगा जिससे आने वाले सामान को घर तक लाना भी है और साधन भी ख़राब है या रास्ता ही खराब है उस समय मजदूरी से अगर उस सामान को लाया जाता है तो वह मजदूरी इतनी देनी पड़ती है जिससे मकान को बनवाने के लिए जो बजट है वह फेल हो रहा है इस लोभ के कारण सामान को खुद ही घर बनाने के स्थान तक ढोने के लिए मजबूर होना पड़ता है,इसके बाद अगर किसी बुद्धि का प्रयोग भी किया जाए तो कोई न कोई रोड़ा आकर अपनी कलाकारी कर जाता है,जैसे कोई आकर कह जाता है कि अमुक समय पर उसका वह काम करवा देगा लेकिन खुद भी नहीं आता है और भरोसे में रखकर काम को करने भी नहीं देता है,यह मार्गी शनि का कार्य होता है,इसी प्रकार से मार्गी शनि एक विषहीन सांप की भांति भी काम करता है,विषहीन सांप से कोई डरता नहीं है उसे लकड़ी से उछल कर हाथ से पकड़ कर शरीर को तोड़ने का काम करता है उसी जगह वक्री शनि बुद्धि से काम करने वाला होता है जैसे जातक को घर बनवाना है तो वह अपनी बुद्धि से साधनों का प्रयोग करेगा,पहले किसी व्यक्ति को नियुक्त कर देगा फिर उसे अपनी बुद्धि के अनुसार किये जाने वाले काम का मेहनताना देगा,जो मेहनताना दिया जा रहा है उसकी जगह पर वह दूसरा कोई काम बुद्धि से करेगा जिससे दिया जाने वाला मेहनताना आने भी लगेगा और दिया भी जाएगा जिससे खुद के लिए भी मेहनत नहीं करनी पडी और नियुक्त किये गए व्यक्ति के द्वारा काम भी हो गया,इस प्रकार से बुद्धि का प्रयोग करने के बाद जातक खुद मेहनत नहीं करता है दूसरो से बुद्धि से करवाकर धन को भी बचाता है,वक्री शनि का रूप जहरीले सांप की तरह से होता है वह पहले तो सामने आता ही नहीं है और अगर छेड़ दिया जाए तो वह अपने जहर का भी प्रयोग करता है और छेड़ने वाले व्यक्ति को हमेशा के लिए याद भी करता है,इस शनि के द्वारा मेहनत कास लोगों के लिए भी समय समय पर आराम करने और मेहनत करने के लिए अपने बल को देता है जैसे मार्गी शनि जब वक्री होता है तो मेहनत करने वाले लोग भी दिमागी काम को करने लगते है और जब वक्री शनि वाले जातको की कुंडली में वक्री होता है तो दिमागी काम की जगह पर मेहनत वाले काम करने की योजना को बनाकर परेशानी में डाल देता है.जब शनि अपने ही घर में वक्री होकर बैठा हो तो वह पैदा होने वाले स्थान से उम्र की दूसरे शनि वाले दौर में शनि का एक दौर पैंतीस साल का माना जाता है विदेश में फेंक देता है,जब कभी जातक को पैदा होने वाले स्थान में भेजता है और जल्दी ही वापस बुलाकर फिर से विदेश में अपनी जिन्दगी को जीने के लिए मजबूर कर देता है,इसके साथ ही शनि की आदत है कि वह कभी भी स्त्री जातक के साथ बुरा नहीं करता है वह हमेशा पुरुष जातक और अपने ऊपर धन बल शरीर बल बुद्धि बल रखने वाले लोगों पर बुरा असर उनके बल को घटाने और वक्त पर उनके बल को नीचा करने का काम भी करता है,घर में जितना असर पुत्र जातक को खराब देता है उतना ही अच्छा बल पुत्री जातक को देता है,लेकिन वक्री शनि से पुत्री जातक अपने देश काल और परिस्थिति से दूर रहकर विदेशी परिवेश को ही सम्मान और चलन में रखने के लिए भी माना जाता है. आचार्य राजेशDid you find apk for android? You can find new Free Android Games and apps.Love1 Share Tweet ShareNext Post्वक्री शुक्र्वक्री शुक्र© 2017 आचार्य राजेश कुमार. Site by Parav Singlaआचार्य जीकलम सेआओ ज्योतिष सीखेंसंपर्क


शुक्रवार, 7 जुलाई 2017

रविवार, 2 जुलाई 2017

लाल किताब मे

http://acharyarajesh.in/2017/07/01/%e0%a4%b2%e0%a4%be%e0%a4%b2-%e0%a4%95%e0%a4%bf%e0%a4%a4%e0%a4%be%e0%a4%ac-%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%89%e0%a4%aa%e0%a4%be%e0%a4%af-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%a4%e0%a4%b0%e0%a5%80%e0%a4%95/

शनिवार, 24 जून 2017

क्यों काम नहीं करते हैं ज्योतिष के अनुसार किए उपाय मित्रों हमारा उद्देश्य किसी भी विद्वान को आहत करने का नहीं है, अतः अनजाने में भी यदि किसी को कष्ट हो तो बात प्रारंभ करने से पहले ही क्षमा चाहेंग हम उस आदमी को धोखा देने का असफल प्रयास कर रहे हैं, जो देवता तुल्य हमें सम्मान दे रहा है, अपनी सामर्थ्य के अनुसार धन भी, क्या हमें ऐसा करके हमेशा के लिए उसकी नजरों से गिरने का काम करना चाहिए, केवल पैसे की भूख हमारी छवि को हमेशा के लिए समाप्त करने के साथ ज्योतिष शास्त्र की आस्था को भी राहत न मिलने पर समाप्त कर देती है सामान्य परेशान लोगों में से अधिकतर की शिकायत होती है कि ,उनकी समस्या के लिए वे बहुतेरे ज्योतिषियो ,तांत्रिकों ,पंडितों से संपर्क करते हैं किन्तु उन्हें कोई लाभ नहीं मिलता या बहुत कम लाभ दृष्टिगोचर होता है ,तथा उनकी परेशानी यथावत रहती है अथवा केवल कुछ समय राहत देकर फिर वैसी ही हो जाती है |वे यहाँ वहां अपनी समस्या का समाधान पाने के चक्कर में घूमते रहते हैं पर कोई सही समाधान नहीं मिलता अंततः थक हारकर मान लेते हैं की जो किस्मत में होता है वाही होता है ,या कोई उपाय काम नहीं करता ,यह सब बेकार हैकुछ तो यहाँ वहां घूमते हुए खुद थोड़ी बहुत ज्योतिष समझने लगते हैं ,टोने -टोटके आजमाते आजमाते ,शाबर मंत्र ,तांत्रिक मंत्र आदि पढ़कर , थोड़े बहुत टोने -टोटके जान जाते हैं ,कुछ मंत्र जान जाते हैं ,कुछ पूजा पाठ ,स्तोत्र आदि जान जाते हैं ,फिर ज्योतिष ,तंत्र -मंत्र की कुछ सडक छाप किताबों को पढ़कर ,नेट पर खोज कर अपनी समस्या का समाधान ढूंढते हुए खुद को ज्योतिषी और तांत्रिक मान लेते हैं |समस्या उनकी ख़त्म हो न हो ,उन्हें खुद राहत मिले या न मिले पर लोगों को उपाय जरूर लता ने लग जाते हैं और लोग भी ऐसे हैं यहां मुफ़्त का चाहते हैं वुखार भी क्यों ना होऐक तरफ मेरे जैसे ठग ज्योतिषी तांत्रिक आचार्य वन कर और लोगों को टोटके ,उपाय ,मंत्र बांटने लगते हैं ,धन लेकर उनके लिए अनुष्ठान ,क्रिया करने को कहने लगते हैं और फिर इसे व्यवसाय बना लूटने का धंधा बना लेते हैं |यह काम सोसल मीडिया ,इंटरनेट ,वेबसाईट के माध्यम से खूब होता है सामान्य लोग समझ नहीं पाते अथवा वास्तविक ज्योतिषी ,तांत्रिक ,पंडित और इन छद्म नामो वाले ज्योतिषी ,पंडित ,तांत्रिक में अंतर नहीं कर पाते ,अंततः वे खुद के धन का नुक्सान' हानि पाते हैं ,खुद की किस्मत को कोसते हैं अथवा ज्योतिष ,तंत्र -मंत्र ,उपायों को ही बेकार मान लेते हैं |उनका विश्वास हिल जाता है ,कभी कभी भगवान् पर से भी विश्वास उठने लगता हएक समस्या लोगों की नासमझी से भी उत्पन्न होती है लोग कर्मकांड ,पूजा पाठ ,शादी विवाह ,कथा कराने वाले पंडित जी से .प्रवचन करने वाले व्यास या शास्त्री जी से ,भागवत ,रामायण कथा वाचकों से भविष्य जानने की कोशिश करते हैं और उपाय पूछते हैं उनकी विशेषज्ञता पूजा पाठ ,कर्मकांड ,प्रवचन ,कथा ,भाषण कला में है न की ज्योतिष ,तंत्र आदि भविष्य जानने वाली गूढ़ विद्याओं में इनके उपाय पूजा पाठ ,दान ,गौ ,नदी ,पीपल ,अनुष्ठान तक सीमित रहेंगे न की मूल समस्या को पकड़ वहां प्रतिक्रिया करने वाले उपायों पर आजकल ज्योतिष ,तंत्र को व्यसाय और लाभ का स्रोत मान ही अधिकतर लोग आकर्षित हो रहे |साधुओं ,मठाधीशों के आसपास भीड़ देखकर लोग आकर्षित हो रहेतो यह कितना लाभ पहुंचाएंगे सोचने की बात है जानने समझने की अतः रटे रटाये उपाय ,पूजा पाठ ,दान बता दिए |न क्षमता है समस्या पकड़ने की न रूचि है कुछ समझने में अतः अक्सर तीर तुक्के साबित होते हैं ,पर इनके प्रभामंडल के आगे व्यक्ति कुछ सोच भी नहीं पाता और अपने भाग्य को ही दोषी मानता रह जाता है |अब इतने बड़े आडम्बर वाले गुरु जी ,ज्योतिषी जी ,पंडित जी ,तांत्रिक अघोरी महाराज गलत थोड़े ही बोलेंगे ,हमारा ही भाग्य खराब है जो कोई उपाय काम नहीं कर रहा |ज्योतिष ,कर्मकांड ,पूजा पाठ ,साधना एक श्रम साध्य ,शोधोन्मुख कार्य है |इनमे समय ,एकाग्रता लगती है |गहन अध्ययन ,मनन ,चिन्तन और साधना करनी होती है |पुराने समय से देखें तो किसी गुरु के केवल एक दो शिष्य ही उनसे पर्याप्त ज्ञान ले पाते थे धीरे धीरे क्रमिक गुरु परम्परा में योग्य शिष्यों ,साधकों की कमी होती गयी ,जो थे वे चुपचाप अपनी साधना ,अध्ययन करते ,ज्ञान खोज में सुख पाते गुमनाम रहे और कम ज्ञान वाले अथवा स्वार्थी ,भौतिक लिप्सा युक्त शिष्यों की भरमार होती गयी |आज तक आते आते ,वास्तविक साधक खोजे नहीं मिलता ,सही गुरु की तलाश वर्षों करनी होती है जबकि हर गली और हर शहर में ढेरों गुरु और साधक मिल जाते हैं |बड़े बड़े नाम ,उपाधि वाले साधक ,ज्योतिषी ,गुरु मिल जाते हैं जिनके पास लाखों हजारों की भीड़ भी होती है ,अनुयायी होते हैं |फिर भी लोगों की समस्याएं बढती ही जा रही ,उनको सही उपाय नहीं मिल पा रहे ,वे भटक भटक कर अंततः ज्योतिष ,तंत्र ,पूजा पाठ ,कर्मकांड ,साधना को अविश्वसनीय मान लेते हैं ,ज्योतिष गलत होती है ,न कर्मकांड अनुपयोगी हैं ,यहाँ समस्या केवल इतनी होती है की सही समस्या पर सही पकड़ नहीं होती और सही उपाय नहीं किये अथवा बताये गए होते |तंत्र ,मंत्र ,ज्योतिष ,पूजा पाठ ,कर्मकांड का अपना एक पूरा विज्ञान होता है और यह शत प्रतिशत प्रभावी होते हैं |इनके पीछे हजारों वर्षों का शोध होता है |इनकी अपनी तकनिकी ,ऊर्जा और प्रतिक्रियाएं होती हैं ,पर यह सब पकड़ने और जानने के लिए कई वर्षों तक समझना पड़ता है ,खुद शोध करना पड़ता है ,खुद परीक्षित करना होता है खुद प्रेक्टिकल करना होता है |जाहिर है इन सबमे कई वर्ष लगते हैं |तब जाकर कुछ हाथ लगना शुरू होता हैसमस्या यह होती है की ज्योतिषी गहन विश्लेष्ण नहीं करता ,सूक्ष्म अध्ययन नहीं करता ,रटे रटाये और सरसरी तौर पर कुंडली देख घिसे पिटे उपाय घुमा फिराकर बता दिया |सब जगह शनी ,राहू केतु को ही समस्या का कारण मान लिया |काल सर्प ,साढ़ेसाती ,मांगलिक दोष का हौवा खड़ा किया और उपाय बता दिए |अब सूक्ष्म विश्लेषण में समय लगेगा ,ज्ञान चाहिए ,अनुभव चाहिए |समय कौन खर्च करे उतने में दुसरे क्लाइंट को देखेंगे |वर्षों का खुद का शोध ,अनुभव है नहीं ,जो रटा रटाया है बता दिया| कब दान करना चाहिए ,कब किसका रत्न पहनना चाहिए ,कब किस तरह का क्या हवन ,जप ,मन्त्र ,शक्ति आराधना करनी चाहिए ,किस शक्ति उपाय का कहाँ क्या प्रभाव होगा और उसका अन्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा यह समझे बिन उपाय काम नहीं करेगे |कितनी शक्ति से कौन ग्रह प्रभावित कर रहा ,उसके लिए कितनी शक्ति का उपाय करना करना चाहिए ,इस उपाय से अन्य ग्रहों के संतुलन पर क्या प्रभाव होगा देखना आवश्यक होता है |आज भी वास्तविक ज्ञानी ज्योतिषी पैसा नहीं कमा पाता क्योकि उसे विश्लेष्ण को समय चाहिए ,अध्ययन को समय चाहिए ,शोध को समय चाहिए ,चिंतन मनन समझने को समय चाहिए |इनके बिन उसे संतुष्टि ही नहीं मिलेगी ,इसलिए अक्सर वह शांत और गुमनाम रह जाता हैइन सबका ठीक से विश्लेष्ण किये बिना उपाय बताना व्यक्ति को लाभ नहीं पहुचाता |जितनी शक्ति किसी समस्या के पीछे है उससे अधिक शक्ति अगर उसके विपरीत लगाईं जायेगी तभी वह समस्या समाप्त होगी |कम शक्ति लगाने पर समस्या समाप्त भी नहीं होगी ,और विपरीत प्रतिक्रया से और समस्या बढ़ा भी सकती है |सांप को छेड़ कर छोड़ देने पर वह काटेगा ही |कभी कभी समस्या किसी और कारण और उपाय किसी और का होने से भी उपाय काम नहीं करते या एक ही तरह की शक्ति ,देवता ,ऊर्जा से सभी को संतुलित करने का प्रयास भी काम नहीं करता |नकारात्मकता के उपयुक्त ऊर्जा लगाने पर ही परिणाम मिलता है |कभी कभी गलत उपाय एक नई समस्या उत्पन्न कर देते हैं |हर उपाय के पीछे ऊर्जा विज्ञानं होता है और अलग उर्जा असंतुलन उत्पन्न कर देती है |एक साथ कई उपाय करने से भी समस्या ठीक नहीं होती क्योकि कई तरह की उर्जायें असंतुलन उत्पन्न करती है और अलग अलग कार्य करती हैं जिससे उलझन बढने की सम्भावना होती है |कई शक्तियों का एक साथ प्रयोग भी असंतुलन उत्पन्न करता है ,कभी कभी प्रतिक्रिया भी मिलती है अधिक करने में गलतियों की सम्भावना भी अधिक होती है जिसके अधिक घातक दुस्परिनाम होते हैं हमारा सभी मित्रों से अनुरोध है कि जिस तरह हम बीमारी से ग्रस्त होने पर अच्छे डाक्टर का चुनाव करते हैं, वैसे ही जन्म कुंडली भी विद्वान को ही दिखाए,कुछ समय भी दे उसे उपचार के लिए,ज्योतिष उपाय अंग्रेजी दवा की भांति काम नहीं करते, फ्री सेवा लेने से बचें, तभी कल्याण सम्भव है आचार्य राजेश

शुक्रवार, 23 जून 2017

तंत्र क्या ऊर्जा को एक नकारात्मक रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, जैसे किसी पर काला जादू करना या तंत्र करना ? आपको यह समझना होगा कि ऊर्जा सिर्फ ऊर्जा होती है, वह न तो दैवी होती है, न शैतानी। आप उससे कुछ भी बना सकते हैं – देवता या शैतान। यह बिजली की तरह होती है। क्या बिजली दैवी या शैतानी, अच्छी या बुरी होती है? जब वह आपके घर को रोशन करती है, तो वह दिव्य होती है। एक वेद, अथर्ववेद सिर्फ सकारात्मक और नकारात्मक चीजों के लिए ऊर्जाओं के इस्तेमाल को ही समर्पित है। अगर वह एक इलेक्ट्रिक चेयर बन जाती है, तो वह शैतानी होती है। यह बस इस बात पर निर्भर करता है कि उस पल उसे कौन संचालित कर रहा है। असल में, पांच हजार साल पहले, अर्जुन ने भी कृष्ण से यही सवाल पूछा था‘उनका यह कहना है कि हर चीज एक ही ऊर्जा से बनी है और हरेक चीज दैवी है तो , ‘ईश्वर निर्गुण है, दिव्यता निर्गुण है। उसका अपना कोई गुण नहीं है।’ इसका अर्थ है कि वह बस विशुद्ध ऊर्जा है। आप उससे कुछ भी बना सकते हैं। जो बाघ आपको खाने आता है, उसमें भी वही ऊर्जा है और कोई देवता, जो आकर आपको बचा सकता है, उसमें भी वही ऊर्जा है। बस वे अलग-अलग तरीकों से काम कर रहे हैं। जब आप अपनी कार चलाते हैं, तो क्या वह अच्छी या बुरी होती है? वह आपका जीवन बना सकती है या किसी भी पल आपका जीवन समाप्त कर सकती है, है नअगर ऊर्जा का सकारात्मक इस्तेमाल है, तो नकारात्मक इस्तेमाल भी है। एक वेद, अथर्ववेद सिर्फ सकारात्मक और नकारात्मक चीजों के लिए ऊर्जाओं के इस्तेमाल को ही समर्पित है। मगर मैंने यह देखा है कि अक्सर ये चीजें मनोवैज्ञानिक या ज़हनी होती हैं। यह थोड़ी-बहुत मात्रा में हो सकती मगर केवल दस फीसदी असली चीज होगी। बाकी आप खुद ही अपने आप को नुकसान पहुंचा रहे हैं। ऐसी कला ।ऐसा विज्ञान जरूर है, जहां कोई अपनी ऊर्जा का नकारात्मक इस्तेमाल करके किसी और को नुकसान पहुंचा सकता है। क्यों होता है यह भगवान शिव ने तंत्र विद्या का प्रयोग करने के लिए कई शर्तें निर्धारित की हैं। यदि कोई किसी की हत्या कर देता है, किसी की संपत्ति का हरण करता है, किसी की पत्नी का हरण करता है या कुछ और, तब ही तंत्र विद्या का प्रयोग किया जा सकता है। महिलाओं पर तंत्र विद्या का प्रयोग करने की मनाही है। लेकिन, कुछ लोग इन विद्याओं का दुरुपयोग करते हैं। यदि कभी किसी का मजाक उड़ाया गया हो या उसके मां-बाप आदि से किसी की दुश्मनी है, तब भी कुछ लोग तंत्र विद्या का प्रयोग कर देते हैं। कई बार किसी के शरीर पर दूसरी आत्माओं का प्रवेश कराने के लिए भी ऐसा होता है। पूर्व जन्म की दुश्मनी या जमीन-जायदाद के झगड़े में भी ऐसा किया जाता है। हर व्यक्ति के आस-पास एक सुरक्षा घेरा होता है जिसे तेज या औरा कहते हैं। कई बड़े संतों की चित्रों में यह तेज स्पष्ट तौर पर दिखाई देता है। कई बार कुछ गलत काम करने से यह तेज समाप्त हो जाता है। यदि आप किसी ठग या पथभ्रष्ट तांत्रिक के पास जाते हैं तो उसके गलत प्रयोग से यह हो सकता है। अक्सर लोग परेशान होने के बाद मदद के लिए किसी के पास जाते हैं। यदि वह व्यक्ति योग्य नहीं है तो वह आपको और परेशानी में डाल सकता है। दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में ऐसी चीजों से निपटने के लिए हजारों तरीके मौजूद हैं। हर एक तरीके की अपनी विशेषता है। फिर भी कुछ बुनियादी बातों का ध्यान रखें तो यह समस्या दूर हो सकती है। सुरक्षित रहें, अंधविश्वास से बचें। अपने ईष्ट में पूरा विश्वास रखें। एक भगवान ही है जिसकी ताकत के सामने किसी की नहीं चलती। यदि आपकी पुकार उसके पास पहुंच गई तो फिर आपकी परेशानी हर हाल में दूर होगी। भगवान की पूजा कर उनका कोई प्रतीक जैसी मौली, माला आदि पहन लें। इससे आपका विश्वास जगेगा। यदि इन चीजों पर आपका भरोसा नहीं है तो जैसे ही कोई अंदेशा हो, अपने ईष्ट का नाम मन में जपना शुरू कर दें। - किसी दूसरे का दिया हुआ कुछ नहीं खाएं। खास कर मीठा, पान, लौंग-ईलायची, ईत्र आदि से परहेज करें। कुंवारी लड़कियों को अपने बाल खुले नहीं रखने चाहिए। मासिक धर्म के खून लगे कपड़े को ऐसी जगह नहीं फेंकें जहां से कोई उसे उठा ले।अपने पहने गए कपड़ों, बाल, नाखून या किसी भी वस्तु को दूसरे के हाथों में किसी कीमत पर नहीं जाने दें। इसी कारण यह नियम है कि रात में कपड़ों को बाहर सूखने के लिए नहीं छोड़ा जाता है। किसी का उपहास ना करें। किसी को कटु वचन नहीं बोले यदि आप शादीशुदा महिला हैं तो जिस साड़ी में आपकी शादी हुई है, उसका एक धागा भी किसी के पास नहीं जाने दें। रुद्राक्ष धारण करना भीइन चीजो से बचाव का एक अच्छा उपाय है घर में गोमूत्र का छिड़काव करना भी अच्छा रहता है कुछ जड़ी बूटियोंऐसी होती है जिन को मिला कर घुनी या घुप वना ले जिसे से जला लें जिस को जलाने से घर में यह शक्तियां अपना असर नहीं कर पाती आचार्य राजेश

बुधवार, 21 जून 2017

तंत्रहमारे प्राचीन हिन्दु-शास्त्रों में कुंडलिनी साधना' का उल्लेख आता है। ऐसे प्राचीन ग्रंथों में साधना के कई मार्ग दिखाए गए हैं। हमारे ऋषि-मुनियों ने हमारे शरीर के भीतर छह चक्रों की खोज की थी। वे छह चक्र क्रमशः मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्धि तथा आज्ञा चक्र हैं। मूलाधार चक्र में एक सर्पिणी ढाई कुंडल मारकर बैठी रहती है, जिसे कुंडलिनी कहते हैं। हमारे मेरुदण्ड में तीन मुख्य नाडियाँ होती हैं, इडा, पिंगला और सुषुम्ना। जैसे-जैसे योगाभ्यास द्वारा जब कुंडलिनी जागृत होकर इन छह चक्रों का भेदन करती हुई आगे बढ़ती है, वैसे-वैसे साधक को तरह-तरह की सिद्धियाँ प्राप्त होती जाती है। अंत में कुंडलिनी आज्ञा चक्र को भेदते हुए सहस्रार बिंदुजिसे कुछ साघक सातव चक्र पर पहुँच जाती है तो वहाँ साधक को आलौकिक ज्ञान की प्राप्ति होने लगती है. यही एक बार इंसान की ऊर्जा सहस्रार तक पहुँच जाती है, तो वह पागलों की तरह परम आनंद में झूमता है। अगर आप बिना किसी कारण ही आनंद में झूमते हैं, तो इसका मतलब है कि आपकी ऊर्जा ने उस चरम शिखर को छू लिया है।दरअसल, किसी भी आध्यात्मिक यात्रा को हम मूलाधार से सहस्रार की यात्रा कह सकते हैं। यह एक आयाम से दूसरे आयाम में विकास की यात्रा है, इसमें तीव्रता के सात अलग-अलग स्तर होते हैं।आपकी ऊर्जा को मूलाधार से आज्ञा चक्र तक ले जाने के लिए कई तरह की आध्यात्मिक प्रक्रियाएं और साधनाएं हैं, लेकिन आज्ञा से सहस्रार तक जाने के लिए कोई रास्ता नहीं है। कोई भी एक खास तरीका नहीं है। आपको या तो छलांग लगानी पड़ती है या फिर आपको उस गड्ढे में गिरना पड़ता है, जो अथाह है, जिसका कोई तल नहीं होता। इसे ही ‘ऊपर की ओर गिरना‘ कहते हैं। योग में कहा जाता है कि जब तक आपमें ऊपर की ओर गिरने’ की ललक नहीं है, तब तक आप वहां पहुँच नहीं सकते।यही वजह है कि कई तथाकथित आध्यात्मिक लोग इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि शांति ही परम संभावना है, क्योंकि वे सभी आज्ञा में ही अटके पडे़ हैं। वास्तव में शांति परम संभावना नहीं है। आप आनंद में मग्न हो सकते हैं, इतने मग्न कि पूरा विश्व आपके अनुभव और समझ में एक मजाक जैसा लगने लगता है। जो चीजें दूसरों के लिए बड़ी गंभीर है, वह आप के लिए एक मजाक होती है।लोग अपने मन को छलांग के लिए तैयार करने में लंबे समय तक आज्ञा चक्र पर रुके रहते हैं। यही वजह है कि आध्यात्मिक परंपरा में गुरु-शिष्य के संबधों को महत्व दिया गया है। उसकी वजह सिर्फ इतनी है कि जब आपको छलांग मारनी हो, तो आपको अपने गुरु पर अथाह विश्वास होना चाहिए। 99.9 फीसदी लोगों को इस विश्वास की जरूरत पड़ती है, नहीं तो वे छलांग मार ही नहीं सकते। यही वजह है कि गुरु-शिष्य के संबंधों पर इतना महत्व दिया गया है, क्योंकि बिना विश्वास कोई भी कूदने को तैयार नहीं होगा।


सोमवार, 19 जून 2017

मां काली ज्योतिष की आज की पोस्ट कुछ मित्रों के प्रश्न है । इन पर पहले भी हम कई बार प्रकाश डाल चुके हैं। यह पोस्ट किसी बहस के लिए नहीं है। यह सूचना है और मैं उस प्रत्येक व्यक्ति को उसके भविष्य को बताने या समस्या सुधारने के लिए बाध्य नहीं हूँ, जो मेरी विवशता को नहीं समझते। ज्योतिष के दो रूप है। एक नक्षत्र विज्ञान से सम्बन्धित है, जिसका स्वरुप पंचांगों में देखा जा सकता है। दूसरा रूप ‘होरा’ का है। इसमें भविष्य कथन किया जाता है। दोनों में जड़ के सूत्रों का सम्बन्ध है ; पर ‘ होरा’ एक अलग विद्या है। दोनों ही विद्या जटिल गणितीय सूत्रों पर आधारित है, जो अलजेब्रा और स्टैटिक्स से भी अधिक जटिल है। दोनों के विद्वान भी अलग-अलग होते है। जो एक विद्या का जानकार , आवश्यक नहीं कि दूसरे का भी हो। जिस प्रकार गणित , फिजिक्स , कैमेस्ट्री आदि के प्रयोगों के निष्कर्ष के गणितीय समीकरणों के हल का रिजल्ट उस प्रयोग कर्त्ता की योग्यता पर निर्भर करता है ; उसी प्रकार इन दोनों विद्याओं का रिजल्ट ज्योतिषी की योग्यता पर निर्भर करता है। एक बात तो साफ़ है कि ज्योतिषी के लिए गणित का मास्टर होना जरूरी है वरना वह न तो ‘होरा’ का विशेषज्ञ हो सकता है , न ही नक्षत्र ज्योतिष का। यह अत्यंत कठिन विद्या है और सटीक गणितीय कैलकुलेशन करने वाला ही इसे समझकर इसे सीख सकता है। पर वर्तमान युग में हाल क्या है? गली- गली चन्दन टिका माला पहनकर ज्योतिषी बैठे हुए है । सामान्य जनता इस विद्या के सम्बन्ध में कुछ नहीं जानती ; इसलिए ये राशी , खानों और ग्रहों और कुंडली में पहले से बने महादशा के चार्ट को देखकर सामान्य जानकारियों को भुनाते हैं । जिसका आडम्बर जितना बड़ा है , वह उतना ही बड़ा ज्योतिषी कहलाता है। आईये इस विद्या को और इसके नाम पर की जा रही व्यवसायिक चालाकी को समझें – लगभग हर चैनल , हर अखबार , हर पत्रिका में राशिफल बताने वालों की भरमार है ; परन्तु शास्त्रीय निर्देश क्या है? प्रत्येक ज्योतिषी को यह निर्देश दिया गया है कि फल पूरी कुंडली का होता है । कभी भी किसी को एक खाना , एक ग्रह , लग्न या चन्द्रमा की राशि के अनुसार फल न बताएं । इनसे भ्रम पैदा होता है और जातक का नुक्सान हो सकता है। चलिए शास्त्र को छोडिये। यदि आप पढ़े-लिखे हैं और गणित एवं विज्ञान के बारें में थोड़ा भी जानते है , तो निम्नलिखित गणितीय स्थिति को देखें। जन्मकुण्डली में यदि लग्न राशि में चन्द्रमा कि राशि कर्क (4) है, तो इसकी १० परिवर्तित स्थितियां बनती है , जिनका फल सर्वथा विपरीत भी हो सकता है। एक खाली होने की स्थिति में , शेष 9 , यहाँ 9 में से कोई एक ग्रह होने की स्थिति में। प्रत्येक राशि 30 डिग्री की होती है। प्रत्येक डिग्री पर परिवर्तन होता है; क्योंकि इस एक राशि के भोगकाल में सभी ग्रहों का भोग काल माना जाता है। इसी आधार पर नवांश कुंडली बनाई जाती है । पर यह केवल इतना ही नहीं है। प्रत्येक डिग्री पर परिवर्तन होता है। इस प्रकार यह 10 x 30 = 300 परिस्थितियाँ हो गयी।इसके बाद यह भी देखा जाएगा कि सातवें खाने में क्या है? क्योंकि खाना – 7 की पूरी दृष्टि इस पर पडती है ; जो लग्न की तरह 300 प्रकार की हो सकती है। अब यह 300 x 300 = 90,000 हो गये। फिर यह मान्य सिद्धांत है कि 1, 4, 7, 10 इन चारों का प्रभाव ज्योतिष विद्या में मूल रूप से एक माना जाता है। फिर तीसरी, पांचवी, सातवीं , नवमी – ये चार दृष्टियाँ भी होती है । ग्रहों का शत्रु और मित्र का समीकरण होता है , उच्च और नीच स्थिति का समीकरण होता है। अब कोई कैसे एक राशि के आधार पर दिन, मास या वर्ष का फल बता सकता है? नक्षत्र ज्योतिष में भी सम्पूर्ण पृथ्वी पर राशियों के प्रभाव एक जैसे ही होते। एक राशी में तीन नछत्तर इसी कारण जन्म कुंडली में बनाने में स्थान का महत्त्व होता है। पर ऐसा होता है । लोग राशि से ही वर्ष भर का फल बताने लगते है। एक दूसरी समस्या महादशा चक्र की है। यह केवल यह बताता है कि आपकी उम्र का कौन सा समय किस ग्रह के प्रभाव में रहेगा; पर उसका प्रभाव क्या होगा, यह तो कुंडली की गणना के बाद ही पता चलेगा। लेकिन कोई इस गणना को नहीं करता। आपको समस्या हुई। आप न जाकर बताया। ज्योतिष ने महादशा चार्ट देखा और बताया कि आपकी फलाने ग्रह की महादशा या अन्तर्दशा है। इसी के कारण ऐसा हो रहा है। उपाय बताया, तो अर्थ का अनर्थ हो गया। त्रुटी ज्योतिष विद्या में नहीं है।त्रुटी हममें है। कभी हम नकली होते है, कभी अनाड़ी होते है , कभी कामचोर और कभी बेईमान। इसके लिए जातक –जातिका भी जिम्मेदार होते है। शास्त्रों में निर्देश है कि ज्योतिष के पास जाएँ , तो फल-मिठाई-वस्त्र-दक्षिणा लेकर जाए अन्यथा आपका अभीष्ट पूरा नहीं होगा; हानि भी हो सकता अहि। स्पष्ट है कि वे विद्वान जानते थे कि तब ज्योतिष ध्यान नहीं देगा। आज की दशा यह है कि लोग जन्मदिन का डिटेल्स अपनी समस्या भेज देते है। कोई उपाय बता दीजिये। अब यदि बता दू , तो वह अनुमान का तीर-तुक्का होगा। हानि का पाप सिर चढ़ेगा। न बताऊं , तो ऐसे लोग कहने लगते है “ वे तो फीस मांगते है” न मांगे तो हम क्या करें? हम जानते है कि यह 1० घंटे का काम है। दिन में 12 घंटे लगे रहे , तो भी 5,,% व्यक्ति को भी नहीं बता सकते। क्योंकि ये प्रतिदिन 10-15 की संख्या में होते है और हमारे पास समय का हाल यह है कि जो फीस जमा करवाते है ; उनका फल भी समय पर नहीं जा पाता। कभी 14 दिन तो कभी महीना भी लग जाता है। वैसै भी कुछ मित्रों मेरे जो ज्योतिषी है और टीवी पर अपना प्रोग्राम करते हे वो नाराज़ हो ग्रे कि आप ऐसा ना कहे मित्रों एक तरफ हम ज्योतिष को विज्ञान कहते हैं फिर इसको सही से उसका प्रचार करना चाहिए ओर जो कमी है उसे दुर करना चाहिए मेरा किसी से कोई विशेष नहीं यह मेरी अपने विचार हैं

रविवार, 18 जून 2017

नक्षत्र,राशि तथा ग्रहो का आपसी संबंध--- ताराओ का समुदाय अर्थात तारों का समूह नक्षत्र कहलाता हैं |विभिन्न रूपो और आकारो मे जो तारा पुंज दिखाई देते हैं उन्हे नक्षत्रो की संज्ञा दी गयी हैं | सम्पूर्ण आकाश को 27 भागो मे बांटकर प्रत्येक भाग का एक नक्षत्र मान लिया गया हैं | पृथ्वी अपना घूर्णन करते समय जब एक नक्षत्र से दूसरे पर जाती हैं या होती हैं तो इससे यह पता चलता हैं की हमारी पृथ्वी कितना चल चुकी हैं अब चूंकि नक्षत्र अपने नियत स्थान मे स्थिर रहते हैं धरती पर हम यह मानते हैं की नक्षत्र गुज़र रहे हैं | गणितीय दृस्टी से कहे तो जिस मार्ग से पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाती हैं उसी मार्ग के आसपास ही “नक्षत्र गोल”मे समस्त ग्रहो का भी मार्ग हैं,जो क्रांतिव्रत से अधिक से अधिक सात अंश का कोण बनाते हुये चक्कर लगाते हैं |इस विशिष्ट मार्ग का आकाशीय विस्तार “राशि” हैं जिसके 12 भाग हैं और प्रत्येक भाग 30 अंशो का हैं | यह 12 राशि भाग धरती से देखने पर जैसे नज़र आते हैं उसी आधार पर इनके नाम रखे गए हैं |इस प्रकार मेष से लेकर मीन तक राशिया मानी गयी हैं | रशिपथ एक अंडाकार वृत की तरह हैं जिसके 360 अंश हैं | इन अंशो को 12 भागो मे बांटकर(प्रत्येक 30 अंश) राशि नाम दिया गया हैं | अब यदि 360 अंशो को 27 से भाग दिया जाये तो प्रत्येक भाग 13 अंश 20 मिनट का होता हैं जिसे गणितिय दृस्टी से एक “नक्षत्र” माना जाता हैं |प्रत्येक नक्षत्र को और सूक्ष्म रूप से जानने के लिए 4 भागो मे बांटा गया हैं (13 अंश 20 मिनट/4=3 अंश 20 मिनट) जिसे नक्षत्र के चार चरण कहाँ जाता हैं | इस प्रकार सरल भाषा मे कहे तो पूरे ब्रह्मांड को 12 राशि व 27 नक्षत्रो मे बांटा गया हैं जिनमे हमारे 9 ग्रह भ्रमण करते रहते हैं | अब यदि इन 27 नक्षत्रो को 12 राशियो से भाग दिया जाये तो हमें एक राशि मे सवा दो नक्षत्र प्राप्त होते हैं अर्थात दो पूर्ण नक्षत्र तथा तीसरे नक्षत्र का एक चरण कुल 9 चरण, यानि ये कहाँ जा सकता हैं की एक राशि मे सवा दो नक्षत्र होते हैं या नक्षत्रो के 9 चरण होते हैं | हर राशि का एक स्वामी ग्रह होता हैं जिसे हम राशि स्वामी कहते हैं इस प्रकार कुल मिलाकर यह कहाँ जा सकता हैं की एक राशि जिसका स्वामी कोई ग्रह हैं उसमे 9 नक्षत्र चरण अर्थात सवा दो नक्षत्र होते हैं | किस राशि मे कौन से नक्षत्र व नक्षत्र चरण होते हैं और उनके स्वामी ग्रह कौन होते हैं इसको ज्ञात करने का एक सरल तरीका इस प्रकार से हैं | सभी 27 नक्षत्रो को क्रमानुसार लिखकर उनके स्वामियो के आधार पर याद करले | अब नक्षत्र चरण के लिए निम्न सूत्र याद करे | [नक्षत्र चरण – राशिया 4 4 1- { मेष,सिंह,धनु } 3 4 2 – { वृष,कन्या,मकर } 2 4 3- { मिथुन,तुला,कुम्भ } 1 4 4- { कर्क,वृश्चिक,मीन } आरंभ के 3 नक्षत्र केतू,शुक्र व सूर्य ग्रह के हैं ज़ो क्रमश; मेष,सिंह व धनु राशि मे ही आएंगे | इसके बाद तीसरा नक्षत्र (शेष 3 चरणो की वजह से ),चौथा व पांचवा नक्षत्र सूर्य,चन्द्र व मंगल के हैं जो क्रमश; वृष, कन्या व मकर राशि मे ही आएंगे |अब अगले(शेष)नक्षत्र मंगल,राहू व गुरु के हैं जो मिथुन,तुला व कुम्भ राशि मे ही आएंगे तथा अंत मे गुरु(शेष),शनि व बुध के नक्षत्र कर्क,वृश्चिक व मीन राशि मे ही आएंगे | जन्म नक्षत्र का व्यक्तित्व पर प्रभाव-- आकाश मंडल में 27 नक्षत्र और अभिजीत को मिलाकर कुल 28 नक्षत्र होते हैं। राशियों पर 27 नक्षत्रों का ही प्रभाव माना गया है। जन्म के समय हम किस नक्षत्र में जन्में हैं, उसका स्वामी कौन है व उसकी जन्म कुंडली में किस प्रकार की स्थिति है। जन्म के समय का नक्षत्र उदित है या अस्त, वक्री है या मार्गी किन ग्रहों की दृष्टि युति संबंध है व राशि स्वामी का संबंध कैसा है।नक्षत्र स्वामी का राशि स्वामी में बैर तो नही जन्म कुंडली में उन दोनों ग्रहों की स्थिति किस प्रकार है। यह सब ध्यान में रखकर हमारे बारे में जाना जा सकता है ज्योतिषशास्त्र के अन्तर्गत बताया गया है कि नक्षत्रों की कुल संख्या२7 है विशेष परिस्थिति में अभिजीत को लेकर इनकी संख्या २८ हो जाती है। गोचरवश नक्षत्र दिवस परिवर्तित होता रहता है। ज्योतिष सिद्धान्त के अनुसार हर नक्षत्र का अपना प्रभाव होता है। जिस नक्षत्र में व्यक्ति का जन्म होता है उसके अनुरूप उसका व्यक्तित्व, व्यवहार और आचरण होता है।

ज्योतिष भविष्य में होने वाली घटनाओं तथा कार्यों की जानकारी प्राप्त करने की विद्या को ज्योतिष कहा जाता है । ज्योतिष के मुख्य दो आधार हैं नक्षत्र ज्ञान एंव सामुद्रिक शास्त्र । ज्योतिष शास्त्र के जानकारों द्वारा कई प्रकार की विधियों से भविष्य की जानकारियों का पता लगाने का प्रयास करा जाता है परन्तु नक्षत्र ज्ञान व सामुद्रिक शास्त्र के अतिरिक्त सभी विधियां अनुमानों पर आधारित होती हैं जिनका कोई ठोस प्रमाण नहीं होता । नक्षत्र ज्ञान व सामुद्रिक शास्त्र ज्योतिष विद्या के मुख्य स्तम्भ माने जाते हैं जिनके द्वारा किसी भी इन्सान के भविष्य की जानकारी सरलता से प्राप्त करी जा सकती है । ज्योतिष का उदय भी इन दोनों के कारण ही हुआ है । ज्योतिष में नक्षत्र ज्ञान सूर्य की कक्षा में भ्रमण करने वाले ग्रहों की स्थिति का ज्ञात होना एंव उनके प्रभाव से इन्सान के जीवन में होने वाले कार्यों तथा घटनाओं की जानकारी प्राप्त करने की विद्या है । ज्योतिष ने कुल नौ ग्रहों को इंसानी जीवन के लिए प्रभावशाली माना है तथा इन नव ग्रहों की गणना से ही ज्योतिष की प्रत्येक भविष्यवाणी करी जाती है । ज्योतिष में सर्व प्रथम ग्रहों की स्थिति ज्ञात की जाती है जो वर्तमान में बहुत सरल कार्य है क्योंकि कम्प्यूटर ने ग्रहों की स्थिति स्पष्ट करने के अतिरिक्त ज्योतिष कुंडली बनाना तथा सभी प्रकार की गणना करना सरल कर दिया है । कोई भी कम्प्यूटर से अपनी ज्योतिष कुंडली सरलता से बना सकता है । नव ग्रह की गणना करना जितना सरल कार्य है ज्योतिष की भविष्य वाणी उतनी ही कठिन है क्योंकि ग्रहों का प्रभाव तथा उनकी शक्ति की परख हुए बगैर किसी भी प्रकार की भविष्य वाणी नादानी है । ग्रहों का प्रभाव इन्सान पर उनके द्वारा प्राप्त उर्जा से होता है तथा ग्रहों की दूरी व गति के कारण प्रतिपल उनके प्रभाव में परिवर्तन होता रहता है । हमारे सौर मंडल में सूर्य ही उर्जा का मुख्य श्रोत है जिसकी किरणें पूरे संसार को उर्जा प्रदान करती हैं परन्तु दूसरे ग्रहों से टकराकर किरणों के प्रभाव में परिवर्तन हो जाता है तथा उन्हें रश्मियाँ कहकर पुकारा जाता है । सभी ग्रहों की रश्मियों का प्रभाव भिन्न है जो इन्सान के शरीर व मस्तिक को प्रभावित करती हैं विभिन्न प्रभाव से इंसानी सोच व कार्य क्षमता भी विभिन्न प्रकार की होती है । सूर्य की उर्जा मस्तिक की याददास्त शक्ति को प्रभावित करती है इसी प्रकार चन्द्रमा मन को, मंगल भावनाओं को, बुध ग्रह बुद्धि को, गुरु विवेक को, शुक्र कल्पना शक्ति को, शनी इच्छा शक्ति को प्रभावित करते हैं । राहू केतु की नकारात्मक उर्जा सम्पूर्ण मस्तिक को प्रभावित करती है जो इन्सान के लिए संतुलित रूप में अति आवश्यक उर्जा है क्योंकि बुद्धि में नकारात्मक उर्जा ना हो तो किसी बुरे कार्य अथवा धोखे की परख करने की क्षमता नहीं होती जिसके फलस्वरूप कोई भी इन्सान मूर्ख बना कर अपना स्वार्थ सिद्ध कर सकता है । बुद्धि मानसिक तंत्र में जानकारियां प्राप्त करने की मुख्य भूमिका अदा करती है इसलिए सभी ग्रहों में बुद्ध ग्रह का नैसर्गिक बल सदा समान रहता है बाकि सभी ग्रहों का नैसर्गिक बल प्रतिपल कम व अधिक होता रहता है । सभी उर्जाएं संतुलित हों तो इन्सान सुख पूर्वक जीवन निर्वाह करता है परन्तु उर्जाओं का असंतुलन जीवन नर्क समान बना देता है । ज्योतिष द्वारा भविष्य जानने का कार्य कुछ महान आविष्कारकों के कारण सफल हो सका जिन्होंने नक्षत्र ज्ञान प्राप्त करके ज्योतिष शास्त्र की रचना की तथा ग्रहों के प्रभाव से संसार को अवगत कराया । ज्योतिष का दूसरा आधार सामुद्रिक शास्त्र इन्सान की शरीर की बनावट तथा हस्त रेखा विज्ञान उसके भविष्य को ज्ञात करने की ज्योतिष विद्या है । सभी इंसानों के शरीर की बनावट तथा रेखाओं में स्पष्ट अंतर होता है जो ग्रहों से प्राप्त उर्जा के प्रभाव से है और रेखाओं को देखकर अनुमान लगाया जाता है कि किस ग्रह के प्रभाव से इस इन्सान पर होने वाला असर इसके जीवन को प्रभावित करके सफल होने में बाधा उत्पन्न कर रहा है । ज्योतिष से कारणों का पता लगाकर निवारण करने की किर्या इन्सान को सफल जीवन प्रदान करे इसलिए असफल इन्सान ज्योतिष द्वारा अपने भविष्य की जानकारी और निवारण के लिए प्रयास करते रहते हैं । इन्सान द्वारा अपने जीवन सुधार के लिए ज्योतिष का सहारा लेना स्वाभाविक कार्य है तथा इसके लिए वह ज्योतिषियों के चक्कर लगाता है जहाँ उसे सिवाय लूट के कुछ प्राप्त नहीं होता क्योंकि नब्बे प्रति शत ज्योतिष के नाम पर सिर्फ लूट होती है । कोई भी विद्या बेकार नहीं होती परन्तु उसकी सम्पूर्ण जानकारी के बगैर उसका प्रयोग गलत अंजाम देता है इसलिए किसी भी निर्णय के लिए सावधानी आवश्यक होती है । किसी कार्य की सफलता के लिए गलत प्रकार के ज्योतिष शास्त्रियों के चक्कर में फंसकर नुकसान उठाने से अच्छा है खुद पर तथा अपनी कार्य क्षमता पर विश्वास किया जाए क्योंकि ज्योतिषी सिर्फ कुछ कारणों का अनुमान लगा सकता है परन्तु कार्य एवं कार्य की सफलता इन्सान को अपने परिश्रम से ही प्राप्त करनी पडती है । ज्योतिष द्वारा भविष्य के विषय में ऐसा होगा सोचना या कहना उचित हो सकता है परन्तु ऐसा ही होगा यह कहना सर्वदा अनुचित है क्योंकि जो होगा वह सिर्फ प्राकृति को ज्ञात है किसी इन्सान का खुद को प्राकृति का ज्ञाता समझना मूर्खता का कार्य है । आचार्य राजेश

शनिवार, 17 जून 2017

इच्छा शक्तिसंसार में प्रत्येक व्यक्ति सदैव यही कामना करता रहता है कि उसे मन फल मिले| उसे उसकी इच्छित वस्तु की प्राप्ति हो| जो वह सोचता है कल्पना करता है, वह उसे मिल जाये| भगवान् से जब यह प्रार्थना करते है तो यही कहते हैं, कि हमें यह दे वह दे| प्रार्थना और भजनों में ऐसे भाव छुपे होते हैं, जिनमें इश्वर से बहुत कुछ मांगा ही जाता है| यह तो ठीक है कि कोई या आप इश्वर से कुछ मंगाते है; प्रार्थना करते हैं| लेकिन इसके साथ ही यदि आप उस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए प्रयत्न नहीं करते और अपनी असफलताओं; गरीबी या परेशानियों के विषय में सोच-सोचकर इश्वर की मूर्ती के सामने रोते-गिडगिडाते हैं उससे कुछ होने वाला नहीं है| क्योंकि आपके मन में गरीबी के विचार भरे हैं, असफलता भरी है, आपके ह्रदय में परेशानियों के भाव भरे हैं और उस असफलता को आप किसी दैवी चमत्कार से दूर भगाना चाहते हैं| जो कभी संभव नहीं है|आपके पास जो कुछ है, वह क्यों है? वह इसलिए तो हैं कि मन में उनके प्रति आकर्षण है| आप उन सब चीजों को चाहते हैं| जो आपके पास हैं| मन में जिन चीजों के प्रति आकर्षण होता है, उन्हें मनुष्य पा लेता है| किन्तु शर्त यह भी है कि वह मनुष्य उसी विषय पर सोचता है, उसके लिये प्रयास करता हो और आत्मविश्वास भी हो| जो वह पाना चाहता है उसके प्रति आकर्षण के साथ-साथ वह उसके बारे में गंभीरता से सोचता भी हो|जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिये, जिन गुणों की आवश्यकता होती है, उनमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण है—”दृढ़ इच्छा शक्ति।” अन्य गुण, जैसे ईमानदारी, साहस, परिश्रम और लगन आदि, दृढ़ इच्छा-शक्ति के अभाव में व्यर्थ हो जाते हैं। प्रायः ऐसा देखा गया है कि एक व्यक्ति के पास धन है, बल है और विद्या है परन्तु वह अपने जीवन-काल में कुछ भी नहीं कर पाता। यदि ऐसे व्यक्तियों के मानसिक जीवन का विश्लेषण किया जाय, तो स्पष्ट पता चल जायगा कि उनमें इसी दृढ़ इच्छा-शक्ति का अभाव था। इसके विपरीत ऐसे अनेक व्यक्ति इतिहास प्रसिद्ध हो गये हैं जो साधनविहीन थे परन्तु अपने मनोबल के कारण, वे कुछ का कुछ बन गये।दृढ आत्मविश्वास और परिश्रम की शक्ति से आप भी सफलता को अपनी ओर खींच सकते हैं| ईश्वरीय प्रेरणाओं से आप शक्ति ले सकते हैं और अपनी अभिलाषाओं को पुरी कर सकते हैं|यह दृढ़ इच्छा-शक्ति क्या है? इसका अर्थ है—”मैं यह काम करूंगा और करके ही रहूँगा चाहे जो कुछ हो।” ऐसी बलवती इच्छा को जिसकी ज्योति अहर्निश कभी मंद न हो, दृढ़ इच्छा-शक्ति कहते हैं। यह ‘ढुलमुलयकीनी’ की विरोधी प्रवृत्ति है। बहुत से लोग ठीक से निश्चय नहीं कर पाते कि वे क्या करें। उनका मन हजार दिशाओं में दौड़ता है। वे दृढ़ इच्छा-शक्ति के चमत्कार को क्या समझ सकते हैं? इस शक्ति के अंतर्गत दृढ़ निश्चय, आत्मविश्वास कार्य करने की अनवरत चेष्टा और अध्यवसाय आदि गुण आ जाते हैं। यह शक्ति मनुष्य के मुखमंडल पर अपूर्व तेज उत्पन्न करती है और आँखों में सम्मोहन का जादू लाती है। यही कारण है कि दृढ़ इच्छा-शक्ति संपन्न व्यक्ति के संपर्क में आते ही निर्बल चित्त वाले मनुष्य उसी प्रकार उसकी ओर आकर्षित होते हैं जैसे चुँबक की शिला की ओर लौह कण। उसके मस्तिष्क से मानसिक तरंगें निकल कर वायुमंडल में लहराती हैं ओर आस-पास के व्यक्तियों को अज्ञात रूप से प्रभावित करती हैं। रूप-रंग, धन-यौवन में उतना आकर्षण नहीं होता जितना दृढ़ इच्छा-शक्ति में होता है।अब प्रश्न यह है कि ऐसी सम्मोहक दृढ़ इच्छाशक्ति को उत्पन्न कैसे किया जाय? उत्तर है-अभ्यास के द्वारा। अब से एक शताब्दी पूर्व तक मनोवैज्ञानिकों का विचार था, दृढ़ इच्छा-शक्ति एक सहज अर्थात् प्रकृति-प्रदत्त गुण है। आज यह विश्वास बदल रहा है। वह गुण मस्तिष्क के किसी अंग की सबलता या निर्बलता से संबन्धित नहीं है। वास्तव में यह मनुष्य की परिस्थितियों, आदतों और अभ्यास के अनुसार बनता अथवा बिगड़ता है। इस गुण का बीजारोपण जन्म से लेकर लालन-पालन के काल से ही हो जाता है। ऐसे परिवार में जो साधन संपन्न है, जिसमें बालक की प्रत्येक इच्छा पूरी की जाती है या जिसमें बालक माता-पिता की एक मात्र संतान होने के कारण प्रेम का भाजन होता है, पलने पर एक बालक में दृढ़-इच्छा शक्ति का उत्पन्न होना स्वाभाविक है, परन्तु हर दशा में ऐसा ही होता हो, यह नहीं कहा जा सकता। इच्छा शक्ति में दृढ़ता लाने के लिये यह आवश्यक है कि बालक कुछ अवरोधों का अनुभव करता रहे। साथ ही यह अवरोध ऐसे भी न हों जिन्हें बालक पार न कर सके और हतोत्साह हो जाय। अस्तु, बालक के लालन-पालन में माता-पिता को बहुत जागरुक रहना चाहिये। अज्ञानतावश या दुलार के कारण बालक की प्रत्येक इच्छा पूरी करने पर, उसमें ‘जिद’ करने का अवगुण पैदा हो जाता है। यह ठीक है कि बालक हर प्रकार से अपनी बात मनवाने का प्रयत्न करता है परन्तु ‘जिद’ के साथ अविवेक और स्वार्थ का अंश मिल जाने के कारण उसे दृढ़ इच्छाशक्ति कहना अनुचित है। दृढ़-इच्छाशक्ति के साथ विवेक सद्प्रयत्न और न्याय का संभोग होना चाहिये।आप अपने जीवन स्वप्न को पूरा करते की दिशा में प्रयास करें| उसे ईश्वरीय प्रेरणा मानकर आगे बढे|दृढ़ इच्छा-शक्ति के विकास में सबसे बड़ी बाधा भय और दुश्चिंता से उत्पन्न होती है। इसलिये बचपन से ही बच्चों को इन कुभावों से बचाना चाहिये। इच्छा की दृढ़ता से मनुष्य की ‘स्वतन्त्र सत्ता’ का बोध होता है, भय पराधीनता का सूचक है। जब बच्चों को हर प्रकार से भयग्रस्त रक्खा जाता है, तो उनमें दबने की आदत पैदा हो जाती है। वे दूसरों की इच्छा के आगे झुकने लगते हैं और उनकी स्वयं की इच्छाशक्ति निर्बल हो जाती है। इसी प्रकार चिंता भी एक दूषित मनोभाव है। यह चित्त में अस्थिरता और विभ्रम पैदा करती है। चिन्ता से मनुष्य किंकर्तव्यविमूढ़ होकर किसी भी निर्णय पर पहुँचने में असमर्थ हो जाता है। बच्चों के लालन-पालन में इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि उन्हें यथासंभव दुश्चिंता से दूर रक्खा जाय। दुश्चिंता का मूलकारण है बालक की शक्ति और उसकी सफलता के बीच समन्वय का न होना। जब बालक किसी वस्तु को प्राप्त करना चाहता है परन्तु इस कार्य में उसकी शक्ति अपर्याप्त होती है, तो वह चिंता से पीड़ित हो उठता है। यह बात मनोरंजन, पढ़ाई और घरेलू कामों के विषय में भी लागू होती है। जहाँ तक संभव हो, बालक को कोई भी ऐसा कठिन काम न देना चाहिये, जिसे पूरा करने में वह सर्वथा असमर्थ हो। इसके अतिरिक्त घर का वातावरण भी शुद्ध और पवित्र होना चाहिये। अभाव, गृह-कलह और अनैतिकता भी बालकों के मन में भीषण अन्तर्द्वन्द्व पैदा करते हैं और बालकों की दृढ़ इच्छाशक्ति को निर्बल बनाते हैं। बालकों को इनसे दूर रखना उचित है।वयस्क होने पर हम स्वयं अपनी आदतों के लिये जिम्मेदार होते हैं। दृढ़ इच्छाशक्ति को बनाये रखना हमारे अपने हाथ में है। सर्वप्रथम हमें तुरंत निश्चय करने तथा लक्ष्य चुनने की आदत डालनी चाहिये। जब हमारे सामने दो या दो से अधिक प्रबल आकर्षण हों, तो हमें उनके बीच में लटके नहीं रहना चाहिये या तो स्वयं या अपने किसी अन्तरंग मित्र से सलाह लेकर यह निश्चय कर लेना चाहिये कि हमें कौन-सा मार्ग अपनाना है। दो घोड़ों पर एक साथ सवार होकर चलना असंभव है। हमें एक हमारे परम आत्मीयजन ने इस प्रकार की दुविधापूर्ण स्थिति से निकलने का एक बड़ा ही व्यावहारिक उपाय बताया। वे स्वयं एक ऐसी ही स्थिति में पड़ गये जिसमें उनके सामने दो प्रबल आकर्षण थे। उनका मन कभी एक ओर दौड़ता, कभी दूसरी ओर। उनका स्वास्थ्य गिरने लगा और वह बड़े संकट में फँस गये। अन्त में वह कागज-कलम लेकर बैठ गये। उन्होंने दोनों आकर्षणों के पक्ष और विपक्ष में सारे तर्क लिख डाले। बाद में दोनों की तुलना करने पर जो आकर्षण उन्हें न्यायोचित और उपयोगी जान पड़ा, उसी को मानकर वे चलने लगे। बस उनके मन में जो संघर्षण था, शाँत हो गया और वे अपने उद्देश्य की पूर्ति में सफल हो गये। उनकी इच्छाशक्ति भी सबल हो गई।किसी भी पक्ष को ग्रहण करने के पूर्व यह अवश्य सोचना चाहिये कि इस काम को करने में मेरी अधिक से अधिक कितनी हानि हो सकती है। फिर उस हानि को सहन करने के लिये तैयार हो जाना चाहिये और कार्य आरम्भ कर देना चाहिये। इससे मन में दृढ़ता उत्पन्न होती है और मनुष्य प्रलोभनों से बचा रहता है। प्रायः ऐसा भी होता है कि एक निश्चय पर पहुँचने के बाद कार्य आरम्भ किया गया, परन्तु कुछ समय बाद ही कोई अन्य प्रलोभन सामने आ जाती है। फिर वही पहले वाली अनिश्चय की स्थिति उत्पन्न हो गई। यदि मनुष्य इस नये प्रलोभन का शिकार हो गया तो उसकी इच्छाशक्ति निर्बल पड़ जाता है। अतः अपने प्रथम निश्चय से कभी भी डिगना नहीं चाहिये। प्रलोभनों के अतिरिक्त अपने निश्चय पर अटल रहने में दूसरे प्रकार की बाधाएँ भी उत्पन्न हो सकती हैं। वे हैं अप्रत्याशित कठिनाइयाँ। मनुष्य कितना ही दूरदर्शी एवं कल्पनाशील हो परन्तु किसी कार्य में सामने आने वाली कठिनाइयों का शतप्रतिशत अनुमान लगा लेना असंभव है। किसी निश्चय पर पहुँचने के बाद जब हम कार्य आरंभ करते हैं, तो अनेक ऐसी कठिनाइयाँ सामने आ जाती हैं, जिनकी हमने कल्पना भी न की थी। बस हमारा मन डाँवाडोल होने लगता है। हमें ऐसी स्थिति का सामना करने के लिये तैयार रहना चाहिये। कार्य सिद्धि के मार्ग में न जाने कौन बाधा कहाँ से आ जाय, अस्तु उसका सामना धैर्यपूर्वक करना चाहिये तभी दृढ़ इच्छा-शक्ति बनी रह सकती है।

शुक्रवार, 16 जून 2017

तंत्र मानव शरीर को संचरित रखने वाली दो मुख्य वस्तुएं हैं तन एवं प्राण। पांच तत्वों अग्रि, पृथ्वी, वायु, जल एवं आकाश के सामूहिक निश्चित अनुपात से बना यह पंच भौतिक शरीर-प्राण वायु से संचरित होने के कारण क्रियाशील रहता है अथवा निष्क्रिय होने पर मृत घोषित कर दिया जाता है। जब किसी कारणवश इन तत्वों के अनुपात में गड़बड़ आ जाए तो यह अस्वस्थ अथवा रोगी हो जाता है। इस पंच भौतिक शरीर को निरोग हृष्ट-पुष्ट एवं सक्रिय रखने के लिए हम जो भी उपयोग अथवा सेवन करते हैं उसी से शरीर के अवयव सुचारू रूप से क्रियाशील रहते हैं तथा प्राण वायु द्वारा हमारे शरीर में प्राण सुचारू रूप से संचरित रहते हैं। जो दुःख आया नहीं है उसे टाला जाना चाहिए | कोशिश करनी चाहिए उसे टालने की| जो दुःख वर्त्तमान में मिल रहा है उसे तो सहकर ही समाप्त किया जा सकता है| कर्म सिद्धांत के अनुसार भी जो कर्म परिपक्व हों दुःख देते हैं| उनसे किसी भी प्रकार से बच पाना संभव नहीं होता| उनसे छुटकारा पाने का एकमात्र रास्ता उन्हें भोग कर ही समाप्त करना होता है| परन्तु जो अभी आया नहीं है हम उसके आगमन को अवश्य रोक सकते हैं| जब तक शरीर विद्यमान है, दुःख तो लगे ही रहेंगे, परन्तु भविष्य को बदलना हमारे हाथ में होता है| उदाहरण के लिये आपने खेत में जो कुछ बोया है उसकी फसल तो काटना आनिवार्य है क्योंकि अब उसे बदल पाना आपके हाथ में नहीं होता| परन्तु जहां तक भविष्य की फसलों का सवाल है, आप पूरी तरह स्वतंत्र है कि किन परिस्थितियों में कैसी फसल हों| बन्दूक से एक बार छूटी गोली पुनः उसमें वापिस नहीं लाइ जा सकती| परन्तु अभी उसमें जो गोली बची है उसे न दागना आपके हाथ में होता है| इसके लिये अपने वर्त्तमान कर्मों को सही ढंग से इच्छित फल के अनुरूप करना आवश्यक होता है|मनुष्य जीवन में कुछ कर्म ऐसे होते हैं जो अपना फल देना प्रारम्भ करने के निकट होते हैं| उनके फल को प्रारब्ध कहते हैं जिसे सुख अथवा दुःख के रूप में प्रत्येक को भोगना आनिवार्य होता है| तपस्या, विवेक और साधना द्वारा उनका सामना करना चाहिए| परन्तु ऐसे कर्म जो भविष्य में फल देंगे, आप उनसे बच सकते हैं| इसके लिये आपको वर्त्तमान में, जो आपके हाथ में है, सुकर्म करना होगा| कर्म के सिद्धांत के अनुसार कर्मों का एक समूह ऐसा है जिससे आप लाख उपाय करने पर भी बच नहीं सकते| परन्तु दुसरा समूह ऐसा है जिसे आप इच्छानुसार बदल अथवा स्थगित कर सकते हैं| इस प्रकार यह सूत्र घोषणापूर्वक बताता है कि आने वाले दुःख (कर्मफल) को रोकना व्यक्ति के अपने हाथ में होता हैं|आचार्य राजेश

गुरुवार, 15 जून 2017

तंत्र तत्र एक ऐसा कल्‍पवृक्ष है, जिससे छोटी-से-छोटी और बड़ी-से-बड़ी कामनाओं की पूर्ति संभव है। श्रद्धा और विश्‍वास के बल पर लक्ष्‍य की ओर बढ़ने वाला तंत्र साधक अतिशीघ्र निश्चित लक्ष्‍य प्राप्‍त कर लेता है। भावों को प्रकट करने के साधनों का आदि स्‍त्रोत यंत्र-तंत्र ही है। यंत्र-तंत्र के विकास से ही अंक और अक्षरों की सृष्टि हुई। अत रेखा, अंक एवं अक्षरों का मिला-जुला रूप तंत्रों में व्‍याप्‍त हो गया। साधकों ने इष्‍टदेव की अनुकम्‍पा से बीज मंत्र तथा अन्‍य मंत्रों को प्राप्‍त किया और उनके जप से सिदि्धयां पायीं तो यंत्र-तंत्र में उन्‍हें भी अंकित कर लिया। तंत्र का विशाल प्राचीन साहित्‍य इसकी वैज्ञानिक सत्‍यता का प्रमाण है। भगवान शंकर की चार पत्नियां में से एक मां काली को सबसे जाग्रत देवी माना गया है। शिव की पहली पत्नी दक्ष-प्रसूति कन्या सती थी। दूसरी हिमालय पुत्री पार्वती थी। तीसरी उमा और चौथी कालिका।कालिका की उपासना जीवन में सुख, शांति, शक्ति, विद्या देने वाली बताई गई है, लेकिन यदि उनकी उपासना में कोई भूल होती है तो फिर इसका परिणाम भी भुगतना होता है।कालका के दरबार में जो एक बार चला जाता है उसका नाम-पता दर्ज हो जाता है। यहां यदि दान मिलता है तो दंड भी। आशीर्वाद मिलता है तो शाप भी। यदि मन्नत पूर्ण होने के बदले में जो भी वचन दिया है तो उसे तुरंत ही पूरा कर दें। जिस प्रकार अग्नि के संपर्क में आने के पश्चात् पतंगा भस्म हो जाता है, उसी प्रकार काली देवी के संपर्क में आने के उपरांत साधक के समस्त राग, द्वेष, विघ्न आदि भस्म हो जाते हैं।महाकाली की साधना को सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली मानते हैं, जो किसी भी कार्य का तुरंत परिणाम देती हैं। साधना को सही तरीके से करने से साधकों को अष्टसिद्धि प्राप्त होती है। काली की पूजा या साधना के लिए किसी गुरु या जानकार व्यक्ति की मदद लेना जरूरी है।मां काली के 4 रूप हैं:- दक्षिणा काली, शमशान काली, मातृ काली और महाकाली। हालांकि मां कालिका की साधना के कई रूप हैं लेकिन भक्तों को केवल सात्विक भक्ति ही करना चाहिए। शमशान काली, काम कला काली, गुह्य काली, अष्ट काली, दक्षिण काली, सिद्ध काली, भद्र काली आदि कई मान से मां की साधना होती है। महाकाली को खुश करने के लिए उनकी फोटो या प्रतिमा के साथ महाकाली के मंत्रों का जाप भी किया जाता है। इस पूजा में महाकाली यंत्र का प्रयोग भी किया जाता है। इसी के साथ चढ़ावे आदि की मदद से भी मां को खुश करने की कोशिश की जाती है। अगर पूरी श्रद्धा से मां की उपासना की जाए तो आपकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो सकती हैं। अगर मां प्रसन्न हो जाती हैं तो मां के आशीर्वाद से आपका जीवन पलट सकता है, भाग्य खुल सकता है और आप फर्श से अर्श पर पहुंच सकते हो।माँ दुर्गा' कि 'संहार' रुप हे माँ काली। देवी माँ काली विशेष रुप से शत्रुसंहार, विघ्ननिवारण, संकटनाश और सुरक्षा की अधीश्वरी देवी है।भक्त आपने ज्ञान, सम्पति, यश और अन्य सभी भौतिक सुखसमृद्धि के साधन प्राप्त ओर विशेष रुप से सुरक्षा, शौर्य, पराक्रम, युद्ध, विवाद और प्रभाव विस्तर के संदर्भ के माता कि पूजन, आराधना की जाती है। माँ काली की रुपरेखा भयानक है। पर वह उनका दुष्टदलन रुप है।माँ काली भक्तों के प्रति सदैव ही परम दयालु और ममतामयी रहती है। उनकी पूजा के द्वारा व्यक्ति हर प्रकार की सुरक्षा और समृद्धि प्राप्त कर सकता है।वैसे तो इस साधना के बहुतेरे गोपनीय पक्ष साधक समाज के सामने आ चुके है परन्तु आज भी हम इस महाविद्या के कई रहस्यों से परिचित नहीं है. काम कला काली, गुह्य काली, अष्ट काली, दक्षिण काली, सिद्ध काली आदि के कई गोपनीय विधान आज भी अछूते ही रह गए साधकों के समक्ष आने से,जितना लिखा गया है ये कुछ भी नहीं उन रहस्यों की तुलना में जो की अभी तक प्रकाश में नहीं आया है और इसका महत्वपूर्ण कारण है इन विद्याओं के रहस्यों का श्रुति रूप में रहना,अर्थात ये ज्ञान सदैव सदैव से गुरु गम्य ही रहा है,मात्र गुरु ही शिष्य को प्रदान करता रहा है और इसका अंकन या तो ग्रंथों में किया ही नहीं गया या फिर उन ग्रंथों को ही लुप्त कर दिया काल के प्रवाह और हमारी असावधानी और आलस्य ने. तीव्र साधनाओं का प्रकटीकरण भी,तभी तो साधक पशुभाव से ऊपर उठकर वीर और तदुपरांत दिव्य भाव में प्रवेश कर अपने जीवन को सार्थक कर पाता है.

सोमवार, 12 जून 2017

अस्त गृह .............. सूर्य के निकट डिग्री वाले गृह अस्त माने जाते है। अस्त गृह को लेकर लोगो मे भ्रम है की इसके कारक तत्व कमजोर हो जाते है जबकी वास्तविकता ये है कि अस्त गृह राजा के खास मन्त्री और पिता का सबसे लाडला बेटा है। किन्तु जैसे वट वृक्ष के नीचे उगे वाले पोधे आसानी से अस्तित्व नही बना पाते वैसे ही अस्त गृह देर से फल देते है किन्तु जब देते है तो अच्छा फल देते है या यू कह सकते है की सूर्य राजा है और अस्त गृह के कारकतत्वो को समझ कर इस्तेमाल करना आये तो इनकी सरकार मे चलती बहुत है। ..................... ग्रहों के अस्त होने के अंश: --------------------------- आकाश मंडल में जब भी कोई ग्रह सूर्य से एक निश्चित दूरी में या उसके अंदर आ जाता है तो सूर्य के तेज से वह ग्रह अपना तेज व शक्ति खोने लगता है जिसके कारण वह आकाश मंडल में दिखाई देना बंद हो जाता है, उस समय इसे अस्त ग्रह की संज्ञा दी जाती है। प्रत्येक ग्रह की सूर्य से यह समीपता का मापन अंशों में किया जाता है तथा इस मापन के अनुसार प्रत्येक ग्रह सूर्य से निम्नलिखित दूरी के अंदर आने पर अस्त हो जाता है : १. चन्द्रमा सूर्य के दोनों ओर 12 डिग्री या इससे अधिक समीप आने पर अस्त माने जाते हैं। २. मंगल सूर्य के दोनों ओर 17 डिग्री या इससे अधिक समीप आने पर अस्त माने जाते हैं। ३. बुध सूर्य के दोनों ओर 14 डिग्री या इससे अधिक समीप आने पर अस्त माने जाते हैं। किन्तु यदि बुध अपनी सामान्य गति की बनिस्पत वक्र गति से चल रहे हों तो वह सूर्य के दोनों ओर 12 डिग्री या इससे अधिक समीप आने पर अस्त माने जाते हैं। ४. गुरू सूर्य के दोनों ओर 11 डिग्री या इससे अधिक समीप आने पर अस्त माने जाते हैं। ५. शुक्र सूर्य के दोनों ओर 10 डिग्री या इससे अधिक समीप आने पर अस्त माने जाते हैं। किन्तु यदि शुक्र अपनी सामान्य गति की बनिस्पत वक्र गति से चल रहे हों तो वह सूर्य के दोनों ओर 8 डिग्री या इससे अधिक समीप आने पर अस्त माने जाते हैं। ६. शनि सूर्य के दोनों ओर 15 डिग्री या इससे अधिक समीप आने पर अस्त माने जाते हैं। ७. राहु-केतु छाया ग्रह होने के कारण कभी भी अस्त नहीं होते हैं। अस्त ग्रह निर्बल हो जाता है और वह अपना फल सूर्य के माध्यम से प्रदान करता है। अस्त ग्रहो का अपना एक विशेष महत्व होता है। इसलिए अस्त ग्रहो की ओर ध्यान देना आवश्यक है अब बात करते है ग्रह अस्त कैसे होता है? कोई भी ग्रह जब सूर्य से एक निश्चित दुरी के अंदर आ जाता है तो सूर्य के तेज से वह ग्रह अपना तेज और शक्ति खोने लगता है जिसके कारण वह सौर मंडल में दिखाई देना बंद हो जाता है ऐसे ग्रह को अस्त ग्रह कहते है।प्रत्येक ग्रह की सूर्य से यह समीपता अंशो में मापी जाती है इस मापदंड के अनुसार हर एक ग्रह सूर्य से निम्नलिखित दुरी के अंदर आ जाने से अस्त हो जाता है: चंद्रमा सूर्य के दोनों और 12 अंश या इससे अधिक समीप आने पर अस्त हो जाता है।बुध सूर्य के दोनों ओर 14 अंश या इससे अधिक समीप आने पर अस्त हो जाता है।लेकिन बुध अपनी सामान्य गति की बनिस्पत वक्र गति से चल रहे हो तो वह सूर्य के दोनों और 12 अंश या इससे अधिक समीप आने पर अस्त होता है।गुरु सूर्य के दोनों ओर 11 अंश या इससे अधिक समीप आने पर अस्त हो जाता है।शुक्र सूर्य के दोनों और 10 अंश या इससे अधिक समीप आने पर अस्त हो जाता है।बुध की तरह शुक्र भी यदि अपनी सामान्य गति की बनिस्पत वक्र गति से चल रहे हो तो वह सूर्य के दोनों ओर 8 अंश या इससे अधिक समीप आने पर अस्त हो जाते है।शनि सूर्य के दोनों ओर 15 अंश या इससे अधिक समीप आने पर अस्त हो जाता है।राहु-केतु छाया ग्रह होने के कारण कभी अस्त नही होते।हमेशा वक्री रहते है। किसी भी ग्रह के अस्त हो जाने से उसके प्रभाव में कमी आ जाती है तथा वह ग्रह कुंडली में ठीक तरह से कार्य करने में सक्षम नही रह जाता।किसी भी अस्त ग्रह की प्रभावहीनता का सही अनुमान लगाने के लिए उस ग्रह का कुंडली में स्थिति के कारण बल, सूर्य का उसी कुंडली में विशेष बल व अस्त ग्रह की सूर्य से दुरी देखना आवश्यक होता है।उसके बाद ही उस ग्रह की कार्य क्षमता के बारे में सही जानकारी प्राप्त होती है।उदाहरण के लिए, किसी कुंडली में गुरु सूर्य से 11 अंश दूर होने पर अस्त ही कहलाएंगे तथा 1 अंश दूर पर भी अस्त कहलाएंगे लेकिन पहली स्थिति में कुंडली में गुरु का बल दूसरी स्थिति के मुकाबले अधिक होगा क्योंकि जितना ही कोई ग्रह सूर्य के पास आ जाता है उतना ही उसका बल कम होता जाता है।

माँ काली ज्योतिष की आज की पोस्ट पहले विवाह 20 से लेकर 25 साल तक हो जाता था पर आज समय मे वदलाव आ चुका है आज नोजवान पीङी जो शिक्षा गृहन करके जव तक अपने पैरो पर खङे नही होते तव तक विवाह नही करते हजारो कुन्ङलीया मेरे पास आती कई तरह के सवाल जातक जातिका पुछती है पर यह सवाल भी पुछा जाता है हमारा विवाह कौन सी दिशा में होगा जन्म कुंडली में प्रथम भाव लग्न को पूर्व दिशा ,सप्तम भाव को पश्चिम ,चतुर्थ भाव को उत्तर एवं दशम भाव को दक्षिण दिशा समझें , अतः इसी क्रम में शुक्र से सप्तमेश की जो दिशा हो ,उसी दिशा में प्रायः वर का घर होता है | चन्द्रमा एवं सप्तमेश जिस दिशा में हों इनमें जो बलवान हो जातक की ससुराल उसी दिशा में होगी | चन्द्रमा सातवें भाव में हो तथा चन्द्र राशि का स्वामी मंगल या अन्य पापग्रहों से दृष्ट हो अथवा पापग्रह चन्द्रमा से त्रिकोण में हों तो जातक का विवाह जन्म स्थान से दूर होता हैयदि पंचमेश ,सप्तमेश एवं शुक्र का शुभ संयोग हो अथवा पंचमेश और सप्तमेश एक साथ हो तो प्रेम विवाह होता है, यदि पराक्रमेश तृतीय भाव का स्वामी सप्तम भाव में हो तो भी जातक के प्रयत्न से विवाह होता है अर्थात प्रेम विवाह की संभावना होती है , नीच राशिस्थ सूर्य की शुक्र के साथ युति हो तो प्रेम विवाह होता है,मिथुन राशि में चन्द्र और बुध की युति हो या चन्द्रमा मिथुन राशि में शुक्र से युत हो तो प्रेम विवाह का योग बनता है, पंचमेश एवं सप्तमेश का राशि परिवर्तन राज योग एवं प्रेम का सूचक भी है वाकी आप अपने अनुभव से परखे मेरी यही कोशिश है की आप ज्योतिष का ज्यादा से ज्यादा ज्योतिष का ज्ञान हासिल करे मित्रो आप से अगर कोई कुंङली दिखाना या वनवाना या हमसे किसी भी समस्या का उपाय जानना चाहते है तो हमसे सम्पर्क करे हमारी सेवा दक्षिणा के साथ है 09414481324 07597718725 आचार्य राजेश

आओ ज्योतिष सीखें पूरी ज्‍योतिष नौ ग्रहों, बारह राशियों, सत्ताईस नक्षत्रों और बारह भावों पर टिकी हुई है। सारे भविष्‍यफल का मूल आधार इनका आपस में संयोग है। नौ ग्रह इस प्रकार हैं - ग्रहअन्‍य नामअंग्रेजी नामसूर्यरविसनचंद्रसोममूनमंगलकुजमार्सबुध मरकरीगुरूबृहस्‍पतिज्‍यूपिटरशुक्रभार्गववीनसशनिमंदसैटर्नराहु नॉर्थ नोडकेतु साउथ नोड आधुनिक खगोल विज्ञान (एस्‍ट्रोनॉमी) के हिसाब से सूर्य तारा और चन्‍द्रमा उपग्रह है, लेकिन भारतीय ज्‍योतिष में इन्‍हें ग्रहों में शामिल किया गया है। राहु और केतु गणितीय बिन्‍दु मात्र हैं और इन्‍हें भी भारतीय ज्‍योतिष में ग्रह का दर्जा हासिल है।  भारतीय ज्‍योतिष पृथ्‍वी को केन्द्र में मानकर चलती है। राशिचक्र वह वृत्त है जिसपर नौ ग्रह घूमते हुए मालूम होते हैं। इस राशिचक्र को अगर बारह भागों में बांटा जाये, तो हर एक भाग को एक राशि कहते हैं। इसी तरह जब राशिचक्र को सत्‍ताईस भागों में बांटा जाता है, तब हर एक भाग को नक्षत्र कहते हैं। हम नक्षत्रों की चर्चा आने वाले समय में करेंगे।  एक वृत्त को गणित में 360 कलाओं (डिग्री) में बाँटा जाता है। इसलिए एक राशि, जो राशिचक्र का बारहवाँ भाग है, 30 कलाओं की हुई। फ़िलहाल ज़्यादा गणित में जाने की बजाय बस इतना जानना काफी होगा कि हर राशि 30 कलाओं की होती है। आज आप ग्रह के नाम अच्छी तरह सेयाद कर ले   ग्रह       अन्‍य नाम          अंग्रेजी नाम सूर्य       रवि              सन चंद्र      सोम               मून मंगल    कुज               मार्स बुध                       मरकरी गुरू     बृहस्‍पति            ज्‍यूपिटर शुक्र     भार्गव              वीनस शनि     मंद                सैटर्न राहु     नॉर्थ                नोड केतु     साउथ               नो्: ग्रह       अन्‍य नाम          अंग्रेजी नाम सूर्य       रवि              सन चंद्र      सोम               मून मंगल    कुज               मार्स बुध                       मरकरी गुरू     बृहस्‍पति            ज्‍यूपिटर शुक्र     भार्गव              वीनस शनि     मंद                सैटर्न राहु     नॉर्थ                नोड केतु     साउथ               नोड

रविवार, 11 जून 2017

कर्म और भाग्य और ज्योतिष जीवन में पुरूषार्थ और भाग्य दोनों का ही अलग-अलग महत्व है। ये ठीक है कि पुरूषार्थ की भूमिका भाग्य से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है लेकिन इससे भाग्य का महत्व किसी भी तरह से कम नहीं हो जाता।कर्म के साथ भाग्य जोड़ दोगे तो उसका मान 10 गुना बढ़ता ही जाएगा। लेकिन केवल भाग्य भरोसे बैठकर कर्म भी क्षीण होने लगते हैं। मित्रों, जीवन में पुरूषार्थ और भाग्य.दोनों अपने-अपने स्थान पर श्रेष्ठ हैं । पांडवों की माता कुन्ती भगवान श्री कृष्ण से कहती है, कि मेरे सभी पुत्र महापराक्रमी एवं विद्वान है । किन्तु हम लोग फिर भी वनों में भटकते हुए जीवन गुजार रहे हैं, क्यों ? क्योंकि भाग्य ही सर्वत्र फल देता है भाग्यहीन व्यक्ति की विद्या और उसका पुरूषार्थ निरर्थक है वैसे देखा जाए तो भाग्य एवं पुरूषार्थ दोनों का ही अपना-अपना महत्व है । लेकिन इतिहास पर दृष्टी डाली जाए तो सामने आएगा कि जीवन में पुरूषार्थ की भूमिका भाग्य से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है । भाग्य की कुंजी सदैव हमारे कर्म के हाथ में होती है, अर्थात कर्म करेंगे तो ही भाग्योदय होगा जबकि पुरूषार्थ इस विषय में पूर्णत: स्वतंत्र है । माना कि पुरूषार्थ सर्वोपरी है, किन्तु इतना कहने मात्र से भाग्य की महता तो कम नहीं हो जाती । आप देख सकते हैं, कि दुनिया में ऎसे मनुष्यों की कोई कमी नहीं है जो कि दिन-रात मेहनत करते हैं, लेकिन फिर भी उनका सारा जीवन अभावों में ही व्यतीत हो जाता है । अब इसे आप क्या कहेंगें ? उन लोगों नें पुरूषार्थ करने में तो कोई कमी नहीं की फिर उन लोगों को वो सब सुख सुविधाएं क्यों नहीं मिल पाई ? जो कि आप और हम भोग रहे हैं । एक इन्सान इन्जीनियरिंग, डाक्टरी या मैनेजमेन्ट की पढाई करके भी नौकरी के लिए मारा मारा फिर रहा है, लेकिन उसे कोई चपरासी की नौकरी पर भी रखने को भी तैयार नहीं है वहीं दूसरी ओर एक कम पढा लिखा इन्सान किसी काम धन्धे में लग कर बडे मजे से अपने परिवार का पेट पाल रहा है । अब इसे आप क्या कहेंगें ? एक मजदूर जो दिन भर भरी दुपहर में पत्थर तोडने का काम करता है, क्या वो कम पुरूषार्थ कर रहा है ? अब कुछ लोग कहेंगें कि उसका वातावरण, उसके हालात, उसकी समझबूझ इसके लिए दोषी है, या फिर उसमें इस तरह की कोई प्रतिभा नहीं है, कि वो अपने जीवन स्तर को सुधार सके अथवा उसे जीवन में ऎसा कोई उचित अवसर नहीं मिल पाया कि वो जीवन में आगे बढ सके या फिर उसमें शिक्षा की कमी है आदि आदि...ऎसे सैकंडों प्रकार के तर्क हो सकते हैं मैं मानता हूँ कि इस के पीछे जरूर उसके हालात, वातावरण, शिक्षा- दीक्षा, उसकी प्रतिभा इत्यादि कोई भी कारण हो सकता है । लेकिन ये सवाल फिर भी अनुत्तरित रह जाता है, कि क्या ये सब उसके अपने हाथ में था ? यदि नहीं तो फिर कौन सा ऎसा कारण है, कि उसने किसी अम्बानी, टाटा-बिरला के घर जन्म न लेकर एक गरीब के घर में जन्म लिया । किसी तर्कवादी के पास इस बात का कोई उत्तर है ? ये निर्भर करता है इन्सान के भाग्य पर जिसे चाहे तो आप luck कह लीजिए या मुक्कदर या किस्मत या फिर कुछ भी यह सत्य है, कि इन्सान द्वारा किए गए कर्मों से ही उसके भाग्य का निर्माण होता है । लेकिन कौन सा कर्म, कैसा कर्म और किस दिशा में कर्म करने से मनुष्य अपने भाग्य का सही निर्माण कर सकता है ये जानने का जो माध्यम है, उसी का नाम ज्योतिष है ज्योतिष शास्त्र का महत्व वेदों से है. ज्योतिष शास्त्र एक ऐसा विज्ञान है जो आपके जीवन के हर रास्तो पर शुभता लाने में समर्थ है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मनुष्य की कुंडली के नवम भाव को भाग्य भाव माना जाता है. अपने भाग्य की वृद्धि के लिए आपको कुंडली के नवम भाव, भाग्येश और भाग्य राशि पर अधिक विचार करना चाहियें और अपके भाग्य वृद्धि में अवरोध कर रहे ग्रहों को ज्योतिष के उपायों के अनुसार दूर करना चाहियें. आप ज्योतिष शास्त्र को ऐसे समझ सकते हो कि परमात्मा हमारा हाथ पकड़कर हमे भाग्य तक नही पहुंचता बल्कि हमे रास्ता दिखा देता है. उसी तरह ज्योतिष शास्त्र आपके भाग्य वृद्धि के लिए अनेक रास्ते बनता है और आपको अनेक उपाय देता है जिनकी मदद से आप अपने भाग्य में वृद्धि कर सको. ग्रह, नक्षत्र, राशियाँ एवं अन्य ब्रह्मांड स्थित पिंड को सतत प्रभावित करते रहते हैं और इसी कारण उसके कर्म को प्रभावित करते रहते हैं, कर्म के प्रभाव से ही भाग्य प्रभावित होता है और यही कारण है कि जिससे ज्योतिषीय ग्रह स्थितियाँ मनुष्य के भाग्यदर्शन में सहायक सिद्ध होती है। स्थूल रूप से कुंडली के 12 भावों को तीन भागों में विभक्त किया गया है, ये हैं केन्द्र (1/4/7/10 भाव), पणकर (2/5/8/11) तथा आपोक्लिम (3/6/9/12) जो ग्रह केंद में बैठा है वह पूर्वजन्मकृत कर्मों के फल का प्रदाता है तथा आपोक्लिम स्थान के ग्रहों से स्थान व दृष्टि संबंध बना रहा हो तो अपरिवर्तनशील कर्मफल को दर्शाता है। पणकर स्थान के ग्रह इहजन्मोपार्जित कर्मों का इसी जन्म में भोग करने वाले होते हैं तथा यह सुनिश्चित भी किया जा सकता है कि इस कर्म को किन कर्मों एवं प्रयोगों से बदला जा सकता है। लग्न से द्वादश भावों कि राशियाँ अपने पीछे के कर्म एवं योनि का दिग्दर्शन करती है। द्वादशांश चक्र में लग्नेश एवं लग्न राशि से कर्म के फल फल एवं संचित कर्म तथा प्रारब्ध निर्माण कि बाधाओं का बोध होता है। आज इतना ही आचार्य राजेश 07597718725 09414481324

शनिवार, 10 जून 2017

अस्त ग्रहो का अपना एक विशेष महत्व होता है। इसलिए अस्त ग्रहो की ओर ध्यान देना आवश्यक है अब बात करते है ग्रह अस्त कैसे होता है? कोई भी ग्रह जब सूर्य से एक निश्चित दुरी के अंदर आ जाता है तो सूर्य के तेज से वह ग्रह अपना तेज और शक्ति खोने लगता है जिसके कारण वह सौर मंडल में दिखाई देना बंद हो जाता है ऐसे ग्रह को अस्त ग्रह कहते है।प्रत्येक ग्रह की सूर्य से यह समीपता अंशो में मापी जाती है इस मापदंड के अनुसार हर एक ग्रह सूर्य से निम्नलिखित दुरी के अंदर आ जाने से अस्त हो जाता है: चंद्रमा सूर्य के दोनों और 12 अंश या इससे अधिक समीप आने पर अस्त हो जाता है।बुध सूर्य के दोनों ओर 14 अंश या इससे अधिक समीप आने पर अस्त हो जाता है।लेकिन बुध अपनी सामान्य गति की बनिस्पत वक्र गति से चल रहे हो तो वह सूर्य के दोनों और 12 अंश या इससे अधिक समीप आने पर अस्त होता है।गुरु सूर्य के दोनों ओर 11 अंश या इससे अधिक समीप आने पर अस्त हो जाता है।शुक्र सूर्य के दोनों और 10 अंश या इससे अधिक समीप आने पर अस्त हो जाता है।बुध की तरह शुक्र भी यदि अपनी सामान्य गति की बनिस्पत वक्र गति से चल रहे हो तो वह सूर्य के दोनों ओर 8 अंश या इससे अधिक समीप आने पर अस्त हो जाते है।शनि सूर्य के दोनों ओर 15 अंश या इससे अधिक समीप आने पर अस्त हो जाता है।राहु-केतु छाया ग्रह होने के कारण कभी अस्त नही होते।हमेशा वक्री रहते है। किसी भी ग्रह के अस्त हो जाने से उसके प्रभाव में कमी आ जाती है तथा वह ग्रह कुंडली में ठीक तरह से कार्य करने में सक्षम नही रह जाता।किसी भी अस्त ग्रह की प्रभावहीनता का सही अनुमान लगाने के लिए उस ग्रह का कुंडली में स्थिति के कारण बल, सूर्य का उसी कुंडली में विशेष बल व अस्त ग्रह की सूर्य से दुरी देखना आवश्यक होता है।उसके बाद ही उस ग्रह की कार्य क्षमता के बारे में सही जानकारी प्राप्त होती है।उदाहरण के लिए, किसी कुंडली में गुरु सूर्य से 11 अंश दूर होने पर अस्त ही कहलाएंगे तथा 1 अंश दूर पर भी अस्त कहलाएंगे लेकिन पहली स्थिति में कुंडली में गुरु का बल दूसरी स्थिति के मुकाबले अधिक होगा क्योंकि जितना ही कोई ग्रह सूर्य के पास आ जाता है उतना ही उसका बल कम होता जाता है।

शुक्रवार, 9 जून 2017

आओ ज्योतिष सीखे ,ज्योतिष वेद का ही अन्ग है,समय की परिभाषा को देने बाला ग्रन्थ है्पृथ्वी की दैनिक गति और उसके पर्याय घड़ी के 24 घंटे को समझने के बाद उस ब्रह्मांड को समझने की चेष्‍टा करें , जो ,महीने ऋतु , वर्ष, युग, मन्वंतर , सृष्टि , प्रलय का लेखा-जोखा और संपूर्ण जगत की गतिविधि को विराट कम्प्यूटर की तरह अपने-आपमें संजोए हुए है। निस्संदेह इन वर्णित संदर्भों का लेखा-जोखा विभिन्न ग्रहों की गतिविधियों पर निर्भर है। उसकी सही जानकारी आत्मविश्वास में वृद्धि करेगी , उसकी एक झलक मात्र से किसी का कल्याण हो सकता है , दिव्य चक्षु खुल जाएगा , आत्मज्ञान बढ़ेगा और संसार में बेहतर ढंग से आप अपने को नियोजित कर पाएंगे। भविष्‍य को सही ढंग से समझ पाना , उसमें अपने आपको खपाते हुए सही रंग भरना सकारात्मक दृष्टिकोण है। समय की सही जानकारी साधन और साध्य दोनो ही है। पहली दृष्टि में देखा जाए , तो घड़ी मात्र एक साधन है , किन्तु गंभीरता से देखें , तो वह मौन रहकर भी कई समस्याओं का इलाज कर देती है। इसी तरह ग्रहों के माध्यम से भविष्‍य की जानकारी रखनेवाला मौन रहकर भी अपनी समस्याओं का समाधान प्राप्त कर लेता है , पर इसके लिए एक सच्‍चे ज्‍योतिषी से आपका परिचय आवश्‍यक है। अति सामान्य व्यक्ति के लिए घड़ी या फलित ज्योतिष शौक का विषय हो सकता है , किन्तु जीवन के किसी क्षेत्र में उंचाई पर रहनेवाले व्यक्ति के लिए घड़ी और भविष्‍य की सही जानकारी की जरुरत अधिक से अधिक है। यह बात अलग है कि सही मायने में भविष्‍यद्रष्‍टा की कमी अभी भी बनी हुई है। ' दशा पद्धति' संपूर्ण जीवन के तस्वीर को घड़ी की तरह स्पष्‍ट बताता है। ग्रह ऊर्जा लेखाचित्र से यह स्पष्‍ट हो जाता है कि कब कौन सा काम किया जाना चाहिए। एक घड़ी की तरह ही ज्योतिष की जानकारी भी समय की सही जानकारी प्राप्त करने का साधन मात्र नहीं , वरन् अप्रत्यक्षत: बहुत सारी सूचनाएं प्रदान करके , समुचित कार्य करने की दिशा में बड़ी प्रेरणा-स्रोत है। जो कहते हैं कि घड़ी मैंने यों ही पहन रखी है या ज्योतिषी के पास मैं यों ही चला गया था , निश्चित रुप से बहुत ही धूर्त्‍त या अपने को या दूसरों को ठगनेवाले होते हैं। यह सही है कि आज के व्यस्त और अनिश्चित संसार में हर व्यक्ति को एक अच्छी घड़ी या फलित ज्योतिष की जानकारी की आवश्यकता है। इससे उसकी कार्यक्षमता काफी हद तक बढ़ सकती है । जीवन के किसी क्षेत्र में बहुत ऊंचाई पर रहनेवाला हर व्यक्ति यह महसूस करता है कि महज संयोग के कारण ही वह इतनी ऊंचाई हासिल कर सका है , अन्यथा उससे भी अधिक परिश्रमी और बुद्धिमान व्यक्ति संसार में भरे पड़े हैं , जिनकी पहचान भी नहीं बन सकी है। उस बड़ी चमत्कारी शक्ति की जानकारी के लिए फुरसत के क्षणों में उनका प्रयास जारी रहता है। यही कारण है कि बडे बडे विद्वान भी जीवन के अंतिम क्षणों में सर्वशक्तिमान को समझने की कोशिश करते हैं। ऐसे लोगों को फलित ज्योतिष की जानकारी से कई समस्याओं को सुलझा पाने में मदद मिल सकती है , किन्तु इसके लिए अपने विराट उत्तरदायितव को समझते हुए समय निकालने की जरुरत है। अपनी कीमती जीवन-शैली में से कुछ समय निकालकर इस विद्या का ज्ञान प्राप्त करेंगे , तो इसके लिए भी एक घड़ी की आवश्यकता अनिवार्य होगी। आचार्य राजेश

आओ ज्योतिष सीखे ,ज्योतिष वेद का ही अन्ग है,समय की परिभाषा को देने बाला ग्रन्थ है्पृथ्वी की दैनिक गति और उसके पर्याय घड़ी के 24 घंटे को समझने के बाद उस ब्रह्मांड को समझने की चेष्‍टा करें , जो ,महीने ऋतु , वर्ष, युग, मन्वंतर , सृष्टि , प्रलय का लेखा-जोखा और संपूर्ण जगत की गतिविधि को विराट कम्प्यूटर की तरह अपने-आपमें संजोए हुए है। निस्संदेह इन वर्णित संदर्भों का लेखा-जोखा विभिन्न ग्रहों की गतिविधियों पर निर्भर है। उसकी सही जानकारी आत्मविश्वास में वृद्धि करेगी , उसकी एक झलक मात्र से किसी का कल्याण हो सकता है , दिव्य चक्षु खुल जाएगा , आत्मज्ञान बढ़ेगा और संसार में बेहतर ढंग से आप अपने को नियोजित कर पाएंगे। भविष्‍य को सही ढंग से समझ पाना , उसमें अपने आपको खपाते हुए सही रंग भरना सकारात्मक दृष्टिकोण है। समय की सही जानकारी साधन और साध्य दोनो ही है। पहली दृष्टि में देखा जाए , तो घड़ी मात्र एक साधन है , किन्तु गंभीरता से देखें , तो वह मौन रहकर भी कई समस्याओं का इलाज कर देती है। इसी तरह ग्रहों के माध्यम से भविष्‍य की जानकारी रखनेवाला मौन रहकर भी अपनी समस्याओं का समाधान प्राप्त कर लेता है , पर इसके लिए एक सच्‍चे ज्‍योतिषी से आपका परिचय आवश्‍यक है। अति सामान्य व्यक्ति के लिए घड़ी या फलित ज्योतिष शौक का विषय हो सकता है , किन्तु जीवन के किसी क्षेत्र में उंचाई पर रहनेवाले व्यक्ति के लिए घड़ी और भविष्‍य की सही जानकारी की जरुरत अधिक से अधिक है। यह बात अलग है कि सही मायने में भविष्‍यद्रष्‍टा की कमी अभी भी बनी हुई है। ' दशा पद्धति' संपूर्ण जीवन के तस्वीर को घड़ी की तरह स्पष्‍ट बताता है। ग्रह ऊर्जा लेखाचित्र से यह स्पष्‍ट हो जाता है कि कब कौन सा काम किया जाना चाहिए। एक घड़ी की तरह ही ज्योतिष की जानकारी भी समय की सही जानकारी प्राप्त करने का साधन मात्र नहीं , वरन् अप्रत्यक्षत: बहुत सारी सूचनाएं प्रदान करके , समुचित कार्य करने की दिशा में बड़ी प्रेरणा-स्रोत है। जो कहते हैं कि घड़ी मैंने यों ही पहन रखी है या ज्योतिषी के पास मैं यों ही चला गया था , निश्चित रुप से बहुत ही धूर्त्‍त या अपने को या दूसरों को ठगनेवाले होते हैं। यह सही है कि आज के व्यस्त और अनिश्चित संसार में हर व्यक्ति को एक अच्छी घड़ी या फलित ज्योतिष की जानकारी की आवश्यकता है। इससे उसकी कार्यक्षमता काफी हद तक बढ़ सकती है । जीवन के किसी क्षेत्र में बहुत ऊंचाई पर रहनेवाला हर व्यक्ति यह महसूस करता है कि महज संयोग के कारण ही वह इतनी ऊंचाई हासिल कर सका है , अन्यथा उससे भी अधिक परिश्रमी और बुद्धिमान व्यक्ति संसार में भरे पड़े हैं , जिनकी पहचान भी नहीं बन सकी है। उस बड़ी चमत्कारी शक्ति की जानकारी के लिए फुरसत के क्षणों में उनका प्रयास जारी रहता है। यही कारण है कि बडे बडे विद्वान भी जीवन के अंतिम क्षणों में सर्वशक्तिमान को समझने की कोशिश करते हैं। ऐसे लोगों को फलित ज्योतिष की जानकारी से कई समस्याओं को सुलझा पाने में मदद मिल सकती है , किन्तु इसके लिए अपने विराट उत्तरदायितव को समझते हुए समय निकालने की जरुरत है। अपनी कीमती जीवन-शैली में से कुछ समय निकालकर इस विद्या का ज्ञान प्राप्त करेंगे , तो इसके लिए भी एक घड़ी की आवश्यकता अनिवार्य होगी। आचार्य राजेश

गुरुवार, 8 जून 2017

क्या है ज्योतिष मित्रोंज्योतिष का अर्थ है.ज्योति यानी प्रकाश ,इस प्रकार ज्योतिषी का अर्थ हुआ जो प्रकाशमान हो .और दूसरों को भी अपने ज्ञान के प्रकाश से रास्ता दिखा सके.वर्तमान समय में ज्योतिषी वह व्यक्ति है जो ,धोती कुरता या कुरता पायजामा पहनता हो तिलक लगाता हो शिखा रखता हो और तमाम श्लोक, मंत्र गिना सकता हैउसका पहनावा और दिखावा निश्चित हो .चाहे उसके अन्दर मर्यादा ,आध्यात्म,आचरण और शुचिता हो, या न हो आचार्य वराहमिहिर ने ,जो की ज्योतिष के प्रणेता थे ,ने एक ज्योतिषी होने की तमाम शर्तें बताई है.जिनमे मूल रूप से आचरण और संस्कारों की बात ही कही गयी है वराहमिहिर ने कोई " ड्रेस कोड" नहीं बताया हैअहंकार तो सर्वथा त्याज्य है उनकी परिभाषा में जबकि वर्त्तमान समय के माननीय ज्योतिषी किसी व्यक्ति के भविष्य के बारे में ऐसे चुनौतियां देते हैं मानो उन्होंने ही उस व्यक्ति का जीवन नियत किया है और जनता यह समझती है ज्योतिषी तो स्वयं भगवान का सोलह कला युक्त अवतार है और वह उसके जीवन की तमाम समस्याओं को नष्ट कर देगा जनता और ज्योतिषी दोनों ही ज्योतिष जैसे महान पराविज्ञान के महत्व को समझे बिना इसका प्रयोग कर रहे हैं और असफलता की दशा में एक दूसरे पर दोषारोपण भी कर रहे हैं कहाँ हैं आध्यात्मिक और वैज्ञानिक ज्योतिषी और कहाँ है वह जनता जो इस बात को समझ सके ?हमें हमारी प्राचीन सभ्यता का गौरव है और इसी लिए हमें इसे सभ्यता की अर्वाचीन चुनौतियों से तराशना जरुरी हो जाता है| ज्योतिष शास्त्र भी हमारी वेदिक संस्कृति का एक अनमोल उपहार है| जब हम ज्योतिष के प्राचीन ग्रंथों का अवलोकन करते हैं तो हमें समयांतर पर शास्त्र में किये गए संशोधन नजर आते है| इससे यह प्रतिपादित होता है की संशोधित विचारों को शास्त्र में मान्यता देने में उस काल में कोई छोछ नहीं था| दुर्भाग्य वश जिस समयकाल में शास्त्रों की रचना हुई, हमारे महषींओं ने अपने शिष्यों की मेघा के अनुरूप अपने ज्ञान को सूत्रबद्ध किया| विचारों को मुद्रित करने के साधनों की मर्यादा, अपने ज्ञान को अनुचित हाथों में जाने से रोकने की चेष्ठा एवं कुछ हद तक वर्ण सम्बन्धी धारणाओं की वजह से सूत्रबध्ध ग्रंथों को जन-साधारण स्तर पर लोक-भोग्य स्वरूप में प्रकाशित नहीं किया जा सका| जब बाहरी जगत ने विज्ञान युग में प्रवेश किया, हमारी पुरातन ज्ञान की धरोहर को विदेशी शासन के दुर्व्यवहार से काफी क्षति हुई| इस संधिकाल में ज्योतिष शास्त्र भी अवरुद्ध हुआ| ज्योतिष भी मेघावी मनुष्यों के हाथों से निकल कर धीरे धीरे लालची, कूप-मुन्डको के हाथों का खिलौना बनाता जा रहा है| जो लोग अन्य व ऐसे लोग आज ज्योतिषी के मुखौटे पहन कर साधारण लोगों के ज्योतिष विषयक अज्ञान का भरपूर फायदा उठा रहें हैं| यह धन पीपसुओ ने ऐसे कई दुर्योगों को शास्त्रोमे घुसा दिया जिस का कोई शास्त्रोक्त प्रमाण न हो न ही कोई तार्किक समाधान|ऐसा इसलिए क्योंकि भारतवर्ष में ज्‍योतिष के क्षेत्र में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के कम लोग हैं, अधिकांश का आस्था‍वान चिंतन है , वे हमारे ऋषि महर्षियों को भगवान और ज्योतिष को धर्मशास्त्र समझते है, जबकि ऋषिमुनियों को वैज्ञानिक तथा ज्योतिष शास्त्र् को विज्ञान मानना चाहिएे हैं, जिसमे समयानुकूल बदलाव की आवश्यंकता है। इस प्रकार ज्योतिष विशेषज्ञों के साथ ही वैज्ञानिक दृष्टिकोणवालों के लिए यह विज्ञान ही है ऐसी ही परिस्थितियों में हम यह मानने को मजबूर हो जाते हैं कि वास्तव में प्रकृति के नियम ही सर्वोपरि हैं। हमलोग पाषाण-युग, चक्र-युग, लौह-युग, कांस्य-युग ......... से बढ़ते हुए आज आई टी युग में प्रवेश कर चुकें हैं, पर अभी भी हम कई दृष्टि से लाचार हैं। नई-नई असाध्य बीमारियॉ ,जनसंख्या-वृद्धि का संकट, कहीं अतिवृष्टि तो कहीं अनावृष्टि, कहीं बाढ़ तो कहीं सूखा ,कहीं भूकम्प तो कहीं ज्वालामुखी-विस्फोट--प्रकृति की कई गंभीर चुनौतियों से जूझ पाने में विश्व के अव्वल दर्जे के वैज्ञानिक भी असमर्थ होकर हार मान बैठे हैं। यह सच है कि प्रकृति के इन रहस्यों को खुलासा कर हमारे सम्मुख लाने में इन वैज्ञानिकों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, जिससे हमें अपना बचाव कर पाने में सुविधा होती है। प्रकृति के ही नियमो का सहारा लेकर कई उपयोगी औजारों को बनाकर भी हमने अपनी वैज्ञानिक उपलब्धियों का झंडा गाडा है , किन्तु वैज्ञानिकों ने किसी भी प्रकार प्रकृति के नियमों को बदलने में सफलता नहीं पायी है। इसलिए मेरा मानना है ज्योतिष भी एक विज्ञान है पर अभी बहुत शोध बाकी है आचार्य राजेश

रविवार, 4 जून 2017

आओ ज्योतिष सीखे ग्रुप से वैदिक ज्योतिष वैदिक ज्योतिष भारतीय ज्योतिष ग्रहों के प्रभाव पर, प्राचीन भारतीय ऋषियों और संतों द्वारा प्राप्त ज्ञान पर आधारित एक प्राचीन विज्ञान है | यह विज्ञान पश्चिमी खगोलविदों और ज्योतिषो के पैदा होने के भी काफी लम्बे समय से पहले भारत में विकसित कर लिया गया था | १५०० ई.पू. ही इसकी जड़ों ने वेदों में कदम रख लिया था | .ज्योतिष की कार्यप्रणली हम सभी जानते है की वैदिक ज्योतिष का सम्बन्ध १२ घर १२ राशियाँ और नौ ग्रहों से है, लेकिन में यहाँ पर ज्योतिष की कार्यप्रणली के बारे में चर्चा करना चाहता हूँ ! चलो जानने की कोशिश करते है की ज्योतिष किन सिद्धांतो पर कार्य करता है और इसके पीछे छिपे क्या तथ्य है तथा लाखों लोग इस विज्ञानं से किस प्रकार जुड़े हुए है ! जहाँ तक में समझता हूँ ज्योतिष एक ऐसी कार्य प्रणली है जिसके द्वारा मनुष्यों को अपने पिछले जन्मो के कर्मो का फल प्राप्त होता है ! अच्छे कर्मो का अच्छा फल तथा बुरे कर्मो का बुरा फल ! मान लो यदि आपने अपने पिछले जन्म में अच्छे कर्म किये है तो इस जन्म में आप एक सुखी जीवन व्यतीत करेंगे ! कम परिश्रम से भी अधिक फल की प्राप्ति करेंगे, परन्तु यदि आपने यदि अपने पिछले जन्म में सिर्फ बुरे ही बुरे कर्म किये है तो अगला जन्म आपके बुरे कर्मो का फल देगा ! पूरा जीवन दुःख और परेशानियों से भरा और अधिक से अधिक महनत करने पर भी फल की प्रति नहीं होगी ! और यही कारण है की लाखों लोग जीवन भर संघर्ष करने पर भी कुछ प्राप्त नहीं कर पाते और दूसरी तरफ कम परिश्रमी लोग अपने जीवन में बैठे बीठाय बहुत कुछ हांसिल कर लेते है!

गर्भाधान कब और कैसे चार पुरुषार्थ सामने आते है,पहले धर्म उसके बाद अर्थ फ़िर काम और अन्त में मोक्ष, धर्म का मतलब पूजा पाठ और अन्य धार्मिक क्रियाओं से पूरी तरह से नही पोतना चाहिये,धर्म का मतलब मर्यादा में चलने से होता है,माता को माता समझना पिता को पिता का आदर देना अन्य परिवार और समाज को यथा स्थिति आदर सत्कार और सबके प्रति आस्था रखना ही धर्म कहा गया है,अर्थ से अपने और परिवार के जीवन यापन और समाज में अपनी प्रतिष्ठा को कायम रखने का कारण माना जाता है,काम का मतलब अपने द्वारा आगे की संतति को पैदा करने के लिये स्त्री को पति और पुरुष को पत्नी की कामना करनी पडती है,पत्नी का कार्य धरती की तरह से है और पुरुष का कार्य हवा की तरह या आसमान की तरह से है,गर्भाधान भी स्त्री को ही करना पडता है,वह बात अलग है कि पादपों में अमर बेल या दूसरे हवा में पलने वाले पादपों की तरह से कोई पुरुष भी गर्भाधान करले। धरती पर समय पर बीज का रोपड किया जाता है,तो बीज की उत्पत्ति और उगने वाले पेड का विकास सुचारु रूप से होता रहता है,और समय आने पर उच्चतम फ़लों की प्राप्ति होती है,अगर वर्षा ऋतु वाले बीज को ग्रीष्म ऋतु में रोपड कर दिया जावे तो वह अपनी प्रकृति के अनुसार उसी प्रकार के मौसम और रख रखाव की आवश्यकता को चाहेगा,और नही मिल पाया तो वह सूख कर खत्म हो जायेगा,इसी प्रकार से प्रकृति के अनुसार पुरुष और स्त्री को गर्भाधान का कारण समझ लेना चाहिये।गर्भाधान का समय शोध से पता चला है कि ज्योतिष से गर्भाधान के लिये एक निश्चित समय होता है। इस समय में स्त्री पुरुष के सहसवास से गर्भाधान होने के अस्सी प्रतिशत मौके होते है। इन समयों में एक बात और भी महत्वपूर्ण है कि स्त्री को रजस्वला होने के चौदह दिन तक ही यह समय प्रभावी होता है,उसके बाद का समय संज्ञा हीन हो जाता है,जो व्यक्ति अलावा संतान नही चाहते हों,उनके लिये भी यह समय बहुत ही महत्वपूर्ण इसलिये होता है क्योंकि अगर इस समय को छोड दिया जाये तो गर्भाधान होने की कोई गुंजायश नही रहती है। लेकिन अपनी जन्म तिथि के अनुसार बिलकुल सही समय को जानने के लिये आप हम से सम्पर्क कर सकते है।समयानुसार प्रत्येक जन्म पत्री के द्वारा जिसके अन्दर सही समय और स्थान का नाम होना जरूरी है,से जन्म समय को निकालने के लिये आप सम्पर्क कर सकते है।समय निकालने की फ़ीस मात्र Rs.1100/- है.सम्पर्क करने के लिये maakaali46 jyotish Hanumagarh town 07597718725 09414481324पर सम्पर्क करें. गर्भाधान के समय ध्यान में सावधानियां ईश्वर ने जन्म चार पुरुषार्थों को पूरा करने के लिये दिया है। पहला पुरुषार्थ धर्म नामका पुरुषार्थ है,इस पुरुषार्थ का मतलब पूजा पाठ और ध्यान समाधि से कदापि नही मानना चाहिये। शरीर से सम्बन्धित जितने भी कार्य है वे सभी इस पुरुषार्थ में शामिल है। शरीर को बनाना ताकत देना रोग आदि से दूर रहना अपने नाम को दूर दूर तक प्रसिद्ध करना,अपने कुल समाज की मर्यादा के लिये प्रयत्न करना,अपने से बडे लोगों का मान सम्मान और व्यवहार सही रखना आदि बातें मानी जाती है। इसके बाद माता पिता का सम्मान उनके द्वारा दिये गये जन्म का सही रूप समझना अपने को स्वतंत्र रखकर किसी अनैतिक काम को नही करना जिससे कि उनकी मर्यादा को दाग लगे आदि बातें इस धर्म नाम के पुरुषार्थ में आती है शरीर के बाद बुद्धि को विकसित करने के लिये शिक्षा को प्राप्त करना,धन कमाने के साधनों को तैयार करना और धन कमाकर जीवन को सही गति से चलाना,उसके बाद जो भी भाग्य बढाने वाली पूजा पाठ रत्न आदि धारण करना आदि माना जाता है। इस पुरुषार्थ के बाद अर्थ नामका पुरुषार्थ आता है इसके अन्दर अपने पिता और परिवार से मिली जायदाद को बढाना उसमे नये नये तरीकों से विकसित करना,उस जायदाद को संभालना किसी प्रकार से उस जायदाद को घटने नही देना,जायदाद अगर चल है तो उसे बढाने के प्रयत्न करना,रोजाना के कार्यों को करने के बाद अर्थ को सम्भालना अगर कोई कार्य पीछे से नही मिला है तो अपने बाहुबल से कार्यों को करना नौकरी पेशा और साधनो को खोजना जमा पूंजी का सही निस्तारण करना जो खर्च किया गया है उसे दुबारा से प्राप्त करने के लिये प्रयोग करना,खर्च करने से पहले सोचना कि जो खर्च किया जा रहा है उसकी एवज में कुछ वापस भी आयेगा या जो खर्च किया है वह मिट्टी हो जायेगा,फ़िर रोजाना के कामों के अन्दर लगातार इनकम आने के साधनो को बनाना और उन साधनों के अन्दर विद्या और धन के साथ अपनी बुद्धि का प्रयोग करना और लगातार इनकम को लेकर अपने परिवार की उन जरूरतों को पूरा करना जो हमेशा के लिये भलाई दें,अर्थ नामके पुरुषार्थ के बाद काम नामका पुरुषार्थ आता है,पुरुष के लिये स्त्री और स्त्री के लिये पुरुष का होना एक दूसरे की जरूरतों को पूरा करने के लिये माना जाता है,जिस प्रकार से आपके माता पिता ने संतान की इच्छा करने के बाद आपके शरीर को उत्पन किया है उसी प्रकार से अपनी इच्छा करने के बाद नये शरीरों को उत्पन्न करना पितृ ऋण को उतारना भी कहा जाता है। संतान की इच्छा करने के बाद ही सहसवास करना,कारण जो अन्न या भोजन किया जाता है वह चालीस दिन की खुराक सही रूप से खाने के बाद एक बूंद वीर्य या रज का निर्माण करता है,अगर व्यक्ति अपनी कामेच्छा से या किसी आलतू फ़ालतू कारणों में जाकर प्यार मोहब्बत के नाम पर या स्त्री भोग या पुरुष भोग की इच्छा से अपने वीर्य या रज को समाप्त कर लेता है तो शरीर में कोई नया कारण वीर्य और रज जो उत्पन्न करने के लिये नही बनता है.शरीर के सूर्य को समाप्त कर लेने के बाद शरीर चेतना शून्य हो जाता है,शराब कबाब आदिके प्रयोग के बाद जो उत्तेजना आती है और उस उत्तेजना के बाद संभोग में रुचि ली जाती है वह शरीर में विभिन्न बीमारियों को पैदा करने के लिये काफ़ी माना जाता है।भारतीय पद्धति में शरीर में वीर्य और रज को पैदा करने वाले कारक भारत में भोजन के रूप में चावल और गेंहूं को अधिक मात्रा में खाया जाता है,चावल को खाने के बाद शरीर में कामोत्तेजना पुरुषों के अन्दर अधिक बढती है और गेंहूं को खाने के बाद स्त्रियों में कामोत्तेजना अधिक बढती है,लेकिन वीर्य को बधाने के लिये ज्वार पुरुषों के लिये और मैथी रज बढाने के लिये स्त्रियों में अधिक प्रभाव युक्त होती है.प्रकृति ने जो अनाजों का निर्माण किया है उनके अन्दर जो तस्वीर बनाई है वह भी समझने के लिये काफ़ी है,जैसे चने के अन्दर पुरुष जननेन्द्रिय का रूप स्पष्ट दिखाई देता है,इसे खाने से पुरुष की जननेन्द्रिय की वृद्धि और नितम्बों का विकास स्त्री जातकों में होता है। गेंहूं को अगर देखा जाये तो स्त्री जननेन्द्रिय का निशान प्रत्यक्ष रूप से देखने को मिलता है,सरसों के अन्दर खून के रवों का निशान पाया जाता है,मूंग के अन्दर खून की चलित कणिकाओं का रूप देखने को मिलता है आदि विचार सोच कर भोजन को करना चाहिये. सन्तान की इच्छा के समय चिन्ता मुक्त रहना भी जरूरी है मानसिक चिन्ता से शरीर की गति बेकार हो जाती है,नींद और भोजन का कोई समय नही रह पाता है,नींद नही आने से और भोजन को सही समय पर नही लेने से शरीर की रक्त वाहिनी शिरायें अपना कार्य सुचारु रूप से नही कर पाती है,दिमागी प्रेसर अधिक होने से मानसिक भावना सेक्स की तरफ़ नही जा पाती है,स्त्री और पुरुष दोनो के मामले में यह बात समान रूप से लागू होती है। खुशी का वारावरण भी सन्तान की प्राप्ति के लिये जरूरी है,माहौल के अनुसार ही संभोग करने के बाद जो संतान पैदा होता है,वह उसी प्रकार की संतान के लिये मानी जाती है,जैसा माहौल संभोग के समय में था। मित्रों अगर आप मुझसे ज्योतिष सीखना चाहते हैं या अपनी कुंडली दिखाना जब बनवाना चाहते हैं या अच्छी क्वालिटी के रतन लेना चाहते हैं तो आप हमसे संपर्क कर सकते हैं07597718725 09414481324 आचार्य राजेश

शनिवार, 3 जून 2017

आओ ज्योतिष सीखे ग्रुप से अध्याय 1 आज से शुरू करते हैं ज्योतिष सीखने की इच्छा अधिकतर लोगों में होती है। लेकिन उनके सामने समस्या यह होती है कि ज्योतिष की शुरूआत कहाँ से की जाये? कुछ जिज्ञासु मेहनत करके किसी ज्यातिषी को पढ़ाने के लिये राज़ी तो कर लेते हैं, लेकिन गुरूजी कुछ इस तरह ज्योतिष पढ़ाते हैं कि जिज्ञासु ज्योतिष सीखने की बजाय भाग खड़े होते हैं। बहुत से पढ़ाने वाले ज्योतिष की शुरुआत कुण्डली-निर्माण से करते हैं। ज़्यादातर जिज्ञासु कुण्डली-निर्माण की गणित से ही घबरा जाते हैं। वहीं बचे-खुचे “भयात/भभोत” जैसे मुश्किल शब्द सुनकर भाग खड़े होते हैं। अगर कुछ छोटी-छोटी बातों पर ग़ौर किया जाए, तो आसानी से ज्योतिष की गहराइयों में उतरा जा सकता है। ज्योतिष सीखने के इच्छुक नये विद्यार्थियों को कुछ बातें ध्यान में रखनी चाहिए- शुरूआत में थोड़ा-थोड़ा पढ़ें। जब तक पहला पाठ समझ में न आये, दूसरे पाठ या पर न जायें। जो कुछ भी पढ़ें, उसे आत्मसात कर लें। बिना गुरू-आज्ञा या मार्गदर्शक की सलाह के अन्य ज्योतिष पुस्तकें न पढ़ें। शुरूआती दौर में कुण्डली-निर्माण की ओर ध्यान न लगायें, बल्कि कुण्डली के विश्लेषण पर ध्यान दें। शुरूआती दौर में अपने मित्रों और रिश्तेदारों से कुण्डलियाँ मांगे, उनका विश्लेषण करें। जहाँ तक हो सके हिन्दी के साथ-साथ ज्योतिष की अंग्रेज़ी की शब्दावली को भी समझें। अगर ज्योतिष सीखने के इच्छुक लोग उपर्युक्त बिन्दुओं को ध्यान में रखेंगे, तो वे जल्दी ही इस विषय पर अच्छी पकड़ बना सकते हैं। ज्‍योतिष के मुख्‍य दो विभाग हैं - गणित और फलित। गणित के अन्दर मुख्‍य रूप से जन्‍म कुण्‍डली बनाना आता है। इसमें समय और स्‍थान के हिसाब से ग्रहों की स्थिति की गणना की जाती है। दूसरी ओर, फलित विभाग में उन गणनाओं के आधार पर भविष्‍यफल बताया जाता है। इस शृंखला में हम ज्‍यो‍तिष के गणित वाले हिस्से की चर्चा बाद में करेंगे और पहले फलित ज्‍योतिष पर ध्यान लगाएंगे। किसी बच्चे के जन्म के समय अन्तरिक्ष में ग्रहों की स्थिति का एक नक्शा बनाकर रख लिया जाता है इस नक्शे केा जन्म कुण्डली कहते हैं। आजकल बाज़ार में बहुत-से कम्‍प्‍यूटर सॉफ़्टवेयर उपलब्‍ध हैं और उन्‍हे जन्‍म कुण्‍डली निर्माण और अन्‍य गणनाओं के लिए प्रयोग किया जा सकता है। पूरी ज्‍योतिष नौ ग्रहों, बारह राशियों, सत्ताईस नक्षत्रों और बारह भावों पर टिकी हुई है। सारे भविष्‍यफल का मूल आधार इनका आपस में संयोग है।अगर आप भ।मैं से कोई भी ज्योतिष सीखना चाहता है तो वह मुझसे संपर्क कर सकता हैफीस पुरे कोर्स की 2100है WhatsApp पर यह गरूप है 075977187250 9414481324

शुक्रवार, 2 जून 2017

राशिफल की वास्‍तविकता क्‍या है ?? जहां एक ओर ज्‍योतिष को बहुत ही सूक्ष्‍म तौर पर गणना करने वाला शास्‍त्र माना जाता है , वहीं दूसरी ओर पूरी जनसंख्‍या को 12 भागों में बांटकर उनकी राशि के आधार पर राशिफल के रूप में भविष्‍यवाणी करने का प्रचलन भी है। राशिफल के द्वारा दुनियाभर के लोगों को 12 भागों में बांटकर उनके बारे में भविष्‍यवाणी करने का प्रयास आमजनों को गुमराह करने के इलावा कुछ नहीं मेरे ख्याल सेराशिफल की शुरूआत उस वक्‍त की मानी जा सकती है , जब आम लोगों के पास उनके जन्‍म विवरण न हुआ करते हों पर अपने भविष्‍य के बारे में जानने की कुछ इच्‍छा रहती हो। पंडितो द्वारा रखे गए नाम में से उनकी राशि को समझ पाना आसान था, इसलिए ज्‍योतिषियों ने उनकी राशि के आधार पर गोचर के ग्रहों को देखते हुए भविष्‍यवाणी करने की परंपरा शुरू की हो। चूकि प्राचीन काल में अधिकांश लोगों की जन्‍मकुंडलियां नहीं हुआ करती थी , इसलिए राशिफल की लोकप्रियता निरंतर बढती गयी। गोचर तभी प्रभावशाली​ होगा जव आप अपनी जन्मतिथि के हिसाब से अपनी कुंडली वनाकरओर कुंडली के साथ गोचर को मिला कर भविष्य देखे ज्‍योतिष' मानता है कि भले ही किसी व्‍यक्ति के जन्‍मकालीन ग्रह उसके जीवन की एक रूप रेखा निश्चित कर देते हें , पर समय समय पर आनेवाले गोचर के ग्रह भी उसके दिलोदिमाग पर कम प्रभाव नहीं डालते - संभवतः परम्परागत ज्योतिष भी यही मानता है जन्‍मकुंडली को देखने से यह सटीक ढंग से कहा जा सकता है कि जातक के लिए कौन सी पंक्ति अधिक या कम प्रभावी होगी। इसके लिए इस बात को ध्‍यान में रखा जाता है कि गोचर के ग्रहों की खास स्थिति जातक की जन्‍मकुंडली के अनुकूल है या प्रतिकूल ?? - अर्थात केवल सूर्य राशि, चन्द्र राशि या लग्न राशि के आधार पर की गयी भविष्यवाणियों (जो पत्र पत्रिकाओं में छपती रहती हैं या टीवी पर वोली जाती है ) का बहुत अधिक महत्त्व नहीं है |आचार्य राजेश

गुरुवार, 1 जून 2017

आओ ज्योतिष सीखें ग्रुप से कुंडली में फ़लादेश करने के तरीके भारतीय ज्योतिष में जो फ़लादेश किया जाता है उसके लिये कई तरह के तरीके अपने अपने अनुसार अपनाये जाते है,लेकिन मै जो तरीका प्रयोग में लाता हूँ वह अपने प्रकार का है. राशि चक्र में गुरु जहाँ हो उसे लगन मानना जरूरी है कुंडली का विश्लेषण करते वक्त गुरु जहाँ भी विराजमान हो उसे लगन मानना ठीक रहता है,कारण गुरु ही जीव का कारक है और गुरु का स्थान ही बता देता है कि व्यक्ति की औकात क्या है,इसके साथ ही गुरु की डिग्री भी देखनी जरूरी है,गुरु अगर कम या बहुत ही अधिक डिग्री का है तो उसका फ़ल अलग अलग प्रकार से होगा,उदाहरण के लिये कन्या लगन की कुण्डली है और गुर मीन राशि में सप्तम में विराजमान है तो फ़लादेश करते वक्त गुरु की मीन राशि को लगन मानकर गुरु को लगन में स्थापित कर लेंगे,और फ़लादेश गुरु की चाल के अनुसार करने लगेंगे। ग्रहों की दिशाओं को भी ध्यान में रखना जरूरी है कालचक्र के अनुसार राशियों के अनुसार दिशायें भी बताई जाती है,जैसे मेष सिंह और धनु को पूर्व दिशा की कारक और मिथुन तुला तथा कुम्भ को पश्चिम दिशा की कारक वृष कन्या और मकर को दक्षिण दिशा की कारक तथा कर्क वृश्चिक और मीन को उत्तर दिशा की कारक राशियों में माना जाता है। इन राशियों में स्थापित ग्रहों के बल और उनके द्वारा दिये गये प्रभाव को अधिक ध्यान में रखना पडेगा। ग्रहों की द्रिष्टि का ध्यान रखना जरूरी है ग्रह अपने से सप्तम स्थान को देखता है,यह सभी शास्त्रों में प्रचिलित है,साथ ग्रह अपने से चौथे भाव को अपनी द्रिष्टि से शासित रखता है और ग्रह अपने से दसवें भाव के लिये कार्य करता है,लेकिन सप्तम के भाव और ग्रह से ग्रह का जूझना जीवन भर होता है,इसके साथ ही शनि और राहु केतु के लिये बहुत जरूरी है कि वह अपने अनुसार वक्री में दिमागी बल और मार्गी में शरीर बल का प्रयोग जरूर करवायेंगे,लेकिन जन्म का वक्री गोचर में वक्री होने पर तकलीफ़ देने वाला ग्रह माना जायेगा. ग्रहों का कारकत्व भी समझना जरूरी है ग्रह की परिभाषा के अनुसार तथा उसके भाव के अनुसार उसका रूप समझना बहुत जरूरी होता है,जैसे शनि वक्री होकर अगर अष्टम में अपना स्थान लेगा तो वह बजाय बुद्धू के बहुत ही चालाक हो जायेगा,और गुरु जो भाग्य का कारक है वह अगर भाग्य भाव में जाकर बक्री हो जायेगा तो वह जल्दबाजी के कारण सभी तरह के भाग्य को समाप्त कर देगा और आगे की पुत्र संतान को भी नही देगा जिससे आने वाले वंश की क्षति का कारक भी माना जायेगा. जन्म के ग्रह और गोचर के ग्रहों का आपसी तालमेल ही वर्तमान की घटनायें होती है जन्म के समय के ग्रह और गोचर के ग्रहों का आपसी तालमेल ही वर्तमान की घटनाओं को बताने के लिये माना जाता है,अगर शनि जन्म से लगन में है और गोचर से शनि कर्म भाव में आता है तो खुद के कर्मों से ही कार्यों को अन्धेरे में और ठंडे बस्ते मे लेकर चला जायेगा। इसके बाद लगन का राहु गोचर से गुरु को अष्टम में देखता है तो जीवन को बर्फ़ में लगाने के लिये मुख्य माना जायेगा,जीव का किसी न किसी प्रकार की धुंआ तो निकलना ही है। गुरु के आगे और पीछे के ग्रह भी अपना अपना असर देते है गुरु के पीछे के ग्रह गुरु को बल देते है और आगे के ग्रहों को गुरु बल देता है,जैसी सहायता गुरु को पीछे से मिलती है वैसी ही सहायता गुरु आगे के ग्रहो को देना शुरु कर देता है,यही हाल गोचर से भी देखा जाता है,गुरु के पीछे अगर मंगल और गुरु के आगे बुध है तो गुरु मंगल से पराक्रम लेकर बुध को देना शुरु कर देगा,अगर मंगल धर्म मय है तो बुध को धर्म की परिभाषा देना शुरु कर देगा और और अगर मंगल बद है तो गाली की भाषा देना शुरु कर देगा,गुरु के पीछे शनि है तो जातक को घर में नही रहने देगा और गुरु के आगे शनि है तो गुरु घर बाहर निकलने में ही डरेगा। शनि चन्द्रमा की युति जन्म की साढेशाती शनि और चन्द्रमा का कुंडली में कही भी योगात्मक प्रभाव है तो जन्म से ही साढेशाती का समय माना जाता है,इस युति का सीधा सा प्रभाव है कि जातक अपने अनुसार काम कभी नही कर पायेगा,उसे स्वतत्र काम करने में दिक्कत होगी उसे खूब बता दिया जाये कि वह इस प्रकार से रास्ता पकड कर चले जाना लेकिन वह कहीं पर अपने रास्ते को जरूर भूल जायेगा,इसलिये कुंडली में गुरु के साथ चन्द्रमा की स्थिति भी देखनी जरूरी होती है,वैसे चन्द्रमा को माता का कारक भी मानते है,लेकिन अलग अलग भावों में चन्द्रमा का अलग अलग रूप बन जाता है,जैसे धन भाव में चन्द्रमा कुटुम्ब की माता,तीसरे भाव में चन्द्रमा पिता के बिना नही रहने वाली माता चौथे भाव में चन्द्रमा से बचपन के सभी कष्टों को दूर करने वाली माता,पंचम स्थान से स्कूल की अध्यापिका माता,छठे भाव में मौसी भी मानी जाती है और चाची भी मानी जाती है,सप्तम में माता के रहते पत्नी या पति के लिये विनासकारी माता,अष्टम में माता का स्थान ताई की नही बनेगी,नवे भाव में दादी का रूप यह चन्द्रमा ले लेता है,दसवें भाव में पिता से परित्याग की गयी माता,और ग्यारहवे भाव में जब तक स्वार्थ पूरा नही होता है तब तक की माता और बारहवें भाव में जन्म के बाद भूल जाने वाली माता के रूप में माना जाता है,इस चन्द्रमा के साथ जहां भी शनि होगा जातक के लिये वही स्थान फ़्रीज करने के लिये काफ़ी माना जायेगा। कुंडली का सूर्य पिता की स्थिति को बयान करता है गुरु को जीव की उपाधि दी गयी है तो सूर्य को पिता की उपाधि दी गयी है,उसी सूर्य को बाद में पुत्र की उपाधि से विभूषित किया गया है,लेकिन पिता के लिये नवा भाव ही देखना बेहतर तरीका होता है और पिता के ऊपर आने वाले कष्टों के लिये कुंडली के चौथे भाव में जब भी कोई क्रूर ग्रह गोचर करेगा या शनिका गोचर होगा पिता के लिये कष्ट का समय माना जायेगा। इसके अलावा राहु का गोचर पिता के लिये असावधानी से कोई दुर्घटना और केतु के गोचर से अचानक सांस वाली बीमारी या सांस की रुकावट वाली बीमारी को माना जायेगा,चन्द्रमा से जल से भय और मंगल से वाहन या अस्पताल या पुलिस से भय माना जायेगा। सूर्य और गुरु की युति से पिता पुत्र का एक जैसा हाल होगा,और जातक को जीवात्मा की उपाधि दी जायेगी,साथ ही अगर धर्म के भाव में स्थापित है तो ईश्वर अंश से अवतार माना जायेगा। राहु सूर्य और गुरु का साथ पुराने पूर्वज के रूप में जातक का जन्म माना जायेगा,और गुरु से तीन भाव पहले की राशि के काम करने के लिये जातक को वापस अपने परिवार में आने को माना जायेगा। सूर्य शुक्र का साथ बलकारी पिता और जातक के लिये भी बलकारी योग का रूप देगा,इसके अन्दर कितनी ही बलवान स्त्री क्यों न हो लेकिन जातक के वीर्य को अपनी कोख बडी मुश्किल से धारण कर पायेगी,जैसे ही पुत्र संतान का योग आयेगा,जातक की पत्नी किसी न किसी कारण से मिस कैरिज जैसे कारण पैदा कर देगी,लेकिन जैसे ही सूर्य का समय समाप्त होगा जातक के एक पुत्र की उत्पत्ति होगी। इसी प्रकार से सूर्य और चन्द्र का साथ जातक के जीवन में अमावस्या का योग पैदा करता है। जातक के बचपन में माता को पिता के कारणों से फ़ुर्सत ही नही मिल पायेगी,जो वह जातक का ध्यान रख सके। इसी तरह से चन्द्रमा और सूर्य का आमना सामना जातक के जीवन में पूर्णिमा का योग पैदा करेगा,जातक को छोड कर माता का दूर जाना कैसे भी सम्भव नही है और माता के लगातार साथ रहने के कारण जातक को किसी भी कष्ट का अनुभव नही होगा लेकिन वह अपने जीवन में माता जैसा सभी को समझने पर छला जरूर जायेगा,यहां तक कि उसकी शादी के बाद भी लोग उसे छलना नही छोडेंगे,उसकी पत्नी भी उसके साथ भावनाओं में छल करके उससे लाभ लेकर अपने मित्रों को देती रहेगी या अपने परिवार की भलाई का काम सोचती रहेगी अगर आप को नहीं दिखाना चाहते हैं या बनवाना चाहते हैं यहां ज्योति सीखना चाहते हैं तो हमारे नंबरों पर संपर्क करें 0759771872509414481324 आचार्य राजेश

बुधवार, 31 मई 2017

आओ ज्योतिष सीखे ग्रुप से ज्योतिष शास्त्र एक बहुत ही वृहद ज्ञान है। इसे सीखना आसान नहीं है। ज्योतिष शास्त्र को सीखने से पहले इस शास्त्र को समझना आवश्यक है। सामान्य भाषा में कहें तो ज्योतिष माने वह विद्या या शास्त्र जिसके द्वारा आकाश स्थित ग्रहों, नक्षत्रों आदि की गति, परिमाप, दूरी इत्या‍दि का निश्चय किया जाता है। हमें यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि ज्योतिष भाग्य या किस्मत बताने का कोई खेल-तमाशा नहीं है। यह विशुद्ध रूप से एक विज्ञान है। ज्योतिष शास्त्र वेद का अंग है। ज्योतिष शब्द की उत्पत्ति 'द्युत दीप्तों' धातु से हुई है। इसका अर्थ, अग्नि, प्रकाश व नक्षत्र होता है। शब्द कल्पद्रुम के अनुसार ज्योतिर्मय सूर्यादि ग्रहों की गति, ग्रहण इत्यादि को लेकर लिखे गए वेदांग शास्त्र का नाम ही ज्योतिष है। छः प्रकार के वेदांगों में ज्योतिष मयूर की शिखा व नाग की मणि के समान सर्वोपरी महत्व को धारण करते हुए मूर्धन्य स्थान को प्राप्त होता है। सायणाचार्य ने ऋग्वेद भाष्य भूमिका में लिखा है कि ज्योतिष का मुख्य प्रयोजन अनुष्ठेय यज्ञ के उचित काल का संशोधन करना है। यदि ज्योतिष न हो तो मुहूर्त, तिथि, नक्षत्र, ऋतु, अयन आदि सब विषय उलट-पुलट हो जाएँ। ज्योतिष शास्त्र के द्वारा मनुष्य आकाशीय-चमत्कारों से परिचित होता है। फलतः वह जनसाधारण को सूर्योदय, सूर्यास्त, चन्द्र-सूर्य ग्रहण, ग्रहों की स्थिति, ग्रहों की युति, ग्रह युद्ध, चन्द्र श्रृगान्नति, ऋतु परिवर्तन, अयन एवं मौसम के बारे में सही-सही व महत्वपूर्ण जानकारी दे सकता है। इसलिए ज्योतिष विद्या का बड़ा महत्व है् : अगर आप भी मुझसे वैदिक ज्योतिष सीखना चाहते हैं वह WhatsApp पर मैंने ग्रुप बनाए हैं जिसमें ज्योतिष ज्योतिष की पूरी जानकारी और अच्छी तरह से आपको फ़लादेश करना सिखाया जाएगा अगर आप ज्योतिष सीखना चाहते हैं मुझे ग्रुप ज्वाइन कर सकते हैं और इसमें आपको फीस2100 देकर रजिस्ट्रेशन करवाना होगा यह हमारे बैंक अकाउंट में जमा होगी Rajeshkumar pnb bank ac no 0684000100192346 ifc punb 0068400 hanumangarh townbranch 07597718725 [29/05 7:55 am] Acharya Rajesh kumar: किसी के जन्‍मांग चक्र या जन्‍मकुंडली को देखने से हमें जातक के बारे में बहुत जानकारियां मिल जाती है , ये रही एक व्‍यक्ति की जन्‍मकुंडली ... जन्‍मुकंडली में सबसे ऊपर मौजूद अंक हमें जातक के लग्‍न की जानकारी देता है , इस कुंडली में 5 अंक सिंह राशि का सूचक है , इसलिए जन्‍म लग्‍न सिंह हुआ , इसका अर्थ यह है कि जातक का जन्‍म उस वक्‍त हुआ , जब आसमान में 120 डिग्री से 150 डिग्री का उदय हो रहा था , जो भचक्र की पांचवी राशि है। चंद्रमा 9 अंक में मौजूद है , इसलिए चंद्रराशि धनु हुई। सूर्य 1 अंक में मौजूद है , इसलिए सूर्य राशि मेष हुई। सूर्य 1 अंक में है , इसका अर्थ यह भी है कि जातक का जन्‍म 15 अप्रैल से 15 मई के मध्‍य हुआ है। लग्‍न से चौथे खाने में मौजूद सूर्य से हमें यह जानकारी मिल रही है कि जातक का जन्‍म रात 10 के वाद हुआे हुआ होगा। सूर्य से पहले चंद्र की स्थिति होने से हमें जानकारी मिल रही है कि जातक का जन्‍म कृष्‍ण पक्ष में हुआ है। सूर्य से चार खाने चंद्रमा की स्थिति से मालूम हो रहा है कि जातक का जनम षष्‍ठी के आसपास का है। मान लो अभी शनि कन्‍या राशि में यानि 6 अंक में चल रहा है , जबकि जन्‍मकुंडली में 12 अंक में शनि है। इसका अर्थ यह है कि शनि ने अपना आधा या डेढ या ढाई या साढे तीन चक्र पूरा किया है। इस हिसाब से जातक का जन्‍म लगभग 15 वर्ष या 45 वर्ष या 75 वर्ष पहले हुआ होगा। मान लो अभी बृहस्‍पति मीन राशि में यानि 12 अंक में चल रहा है , जबकि जन्‍मकुंडली में बृहस्‍पति 4 अंक में है। इसका अर्थ यह है कि जातक का जन्‍म लगभग 8 या 20 या 32 या 44 या 56 या 68 या 80 वर्ष पहले हुआ है। शनि और बृहस्‍पति दोनो की संभावना 44 के आसपास बनती है , इस हिसाब से जातक की उम्र 44 के आसपास होने का पता चल जाता है। इसी प्रकार बिना पंचांग के ही अन्‍य जन्‍मकुंडली से भी जातक के बारे में ये दसों जानकारियां प्राप्‍त की जा् सकती है

रविवार, 28 मई 2017

आओ ज्योतिष सीखे ग्रुपसे ज्‍योतिष' को अच्‍छी तरह समझने के लिए जन्‍मकुंडली में एक ग्रह की दूसरे से कोणिक दूरी और उनकी अपनी गति के साथ साथ राशिश की सापेक्षिक गति को भी जानना आवश्‍यक होता है , इसलिए सबसे पहले जन्‍मकुंडली में एक ग्रह से दूसरे की कोणिक दूरी के बारे में जानना आवश्‍यक है। वैसे तो इसकी जानकारी के लिए जातक के जन्‍म के समय के पंचांग की आवश्‍यकता पडती है, चूंकि आसमान का फैलाव 360 डिग्री तक का है , इसलिए किसी भी ग्रह की स्थिति 360 डिग्री तक ही होती है। पंचांग से किन्‍हीं भी दो ग्रहों के मध्‍य की डिग्री के अंतर को देखना आसान होता है। चूंकि सूर्य पूरे सौरमंडल की उर्जा का स्रोत है , ज्‍योतिष' ग्रहों की शक्ति को निकालने के लिए सभी ग्रहों की सूर्य से कोणिक दूरी पर ही धन देता है। पिछले पाठ में बताया गया था कि चंद्रमा की शक्ति का निर्धारण करने के लिए उसके आकार का ध्‍यान रखा जाता है , वह भी इसलिए कि सूर्य से दूरी के घटने बढने से उसके आकार में घटत बढत होती रहती है , इसी आधार पर चंद्रमा की शक्ति भी घटती बढती है। चंद्र की तरह ही सभी ग्रह सूर्य से ही ऊर्जा लेते हैं , इसलिए उनकी शक्ति का निर्धारण भी हम सूर्य से दूरी के आधार पर ही करते हैं। वैसे तो पंचांग को देखकर सूर्य से सभी ग्रहों की दूरी निकाली जा सकती है , पर यदि पंचांग न हो तो , जन्‍मकुंडली को देखकर भी हम बुध और शुक्र के अलावे अन्‍य ग्रहों जैसे मंगल , बृहस्‍पति और शनि की सूर्य से दूरी और उसकी गत्‍यात्‍मक शक्ति का आकलन कर सकते हैं। पिछले पाठ में बताया गया है और हम भी आसमान में देखा करते हैं कि चंद्रमा की कोणिक दूरी ज्‍यों ज्‍यों सूर्य से बढती जाती है , त्‍यों त्‍यों उसका आकार बढता है और वह मजबूत होता जाता है। जन्‍मकुंडली में भी सूर्य के सामने होने पर चंद्रमा पूर्णिमा का होता है , जबकि सूर्य के साथ होने पर अमावस्‍या का होता है। पर मंगल , बृहस्‍पति और शनि के साथ विपरीत स्थिति होती है। जन्‍मकुंडली में ये तीनों ग्रह सूर्य के साथ हो तो अधिक शक्ति संपन्‍न होते हैं और जैसे जैसे सूर्य से इनकी दूरी बढती जाती है , अपेक्षाकृत शक्ति‍ में कमी आती है। सूर्य के सामने वाले जगहों पर तो ये शक्तिहीन हो जाते हैं और इनकी गति तक वक्री हो जाती है। पुन: आगे बने पर जैसे जैसे वे सूर्य की दिशा में प्रवृत्‍त होते उनकी शक्ति बढने लगती है , क्रमश: मार्गी होने लगते हैं और सूर्य के समीप आते आते पुन: उसकी शक्ति बढ जाती है।मंगल , बृहस्‍पति या शनि जिस जिस भाव के स्‍वामी होते हैं , उससे संबंधित सुख या दुख उनकी शक्ति‍ के अनुरूप ही जातक को मिल पाता है। यदि मंगल मजबूत हो , तो मेष और वृश्चिक राशि से संबंधित मामलों को जातक अपने जीवन में सुखद पाता है , जबकि मंगल के कमजोर होने पर मेंष और वृश्चिक राशि से संबंधित मामले जातक के जीवन में कष्‍टकर होते हैं। मंगल सामान्‍य हो तो मेष और वृश्चिक राशि से संबंधित जबाबदेही रहा करती है। इसी प्रकार यदि बृहस्‍पति मजबूत हो , तो धनु और मीन राशि से संबंधित मामलों को जातक अपने जीवन में सुखद पाता है , जबकि बृहस्‍पति के कमजोर होने पर धनु और मीन राशि से संबंधित मामले जातक के जीवन में कष्‍टकर होते हैं। बृहस्‍पति सामान्‍य हो तो धनु और मीन राशि से संबंधित जबाबदेही रहा करती है। इसी तरह यदि शनि मजबूत हो , तो मकर और कुंभ राशि से संबंधित मामलों को जातक अपने जीवन में सुखद पाता है , जबकि शनि के कमजोर होने पर मकर और कुंभ राशि से संबंधित मामले जातक के जीवन में कष्‍टकर होते हैं। शनि सामान्‍य हो तो मकर और कुंभ राशि से संबंधित जबाबदेही रहा करती है। Acharya Rajesh kumar: अगर आप भी मुझसे वैदिक ज्योतिष सीखना चाहते हैं वह WhatsApp पर मैंने ग्रुप बनाए हैं जिसमें ज्योतिष ज्योतिष की पूरी जानकारी और अच्छी तरह से आपको फ़लादेश करना सिखाया जाएगा अगर आप ज्योतिष सीखना चाहते हैं यह ग्रुप ज्वाइन कर सकते हैं और इसमें आपको फीस2100 देकर रजिस्ट्रेशन करवाना होगा यह हमारे बैंक अकाउंट में जमा होगी Rajeshkumar pnb bank ac no 0684000100192346 ifc punb 0068400 hanumangarh townbranch 07597718725 अवघी 3महीना ओर जव तक सीखना चाहो तव तक

शुक्रवार, 26 मई 2017

आओ ज्योतिष सीखे ग्रुप से भारत में ज्योतिष का अपना एक विशेष स्थान है बाकी दुनिया में ज्योतिष को किस नज़र से देखते है इसका मुझे जायदा पता नहीं है ! लेकिन इतना ज़रूर लगता है चुकी ये जिज्ञासा देता है एक कोतुहल दिमाग में पैदा करता है ! इसे विज्ञानं की श्रेणी में रखा गया है ! यह भी गणना पे आधारित है इसलिए मुझे लगता है की विश्व में सभी ज़गह इसका अपना महत्व होगा ! नाम देखने का तरीका एवं बनाने का तरीका हो सकता है ! देश और स्थान के अनुसार हो !ये बहस का मुद्दा नहीं है आज तो हम इसके लग्न को केसे बनाया जाता है वो भी बिना जादा समय और गणना के ! में समय और गणना की बात इस लिए कर रहा हु क्योकि जब कम्पूटर का इतना उपियोग नहीं होता था ! उस समय ये एक उबाऊ प्रक्रिया लगती थी ! अब ये सारी गणनाए रेडीमेड कम्पूटर में मिल जाती है ! आपको सिर्फ समय दिन ज़गह और नाम कम्पूटर को बताना या उसपे लिखना होता है ! आपकी कुण्डली इस्क्रीन पे आ जाती है ! कुंडली में बारह घर होते है इन बारह घरो से ही सारी गणनाए की जाती है हर घर का अपना अपना महत्व होता है ! इसमें लग्न में क्या नंबर आया है ! उस पे कोन सा ग्रह विराजित है और ये किस आधार पर आधारित है ! में बहुत ही थोड़े से शब्दों में बताऊंगा क्योकि लग्न का कुंडली में बहुत ही महत्व है ! लग्न से व्यक्तित्व/शरीर की संरचना/स्वभाव/आदते एवं लग्न के बाद की सारी गणनाए लग्न पे ही आधारित होती है इस लिए ज्योतिष में लग्न सबसे महत्त्व पूण घर होता है! सबसे पहले लग्न ही कुंडली में आता है ! लग्न में कोन सा ग्रह आएगा ये केसे निर्धारित होता है ये बताता हू भारतीय ज्योतिष में गणनाए सूर्य उदय से सूर्य उदय तक की लिजाती है सूर्य उदय से सूर्य अस्त तक की गढ़ना साधारण तया नहीं ली जाती है !सूर्य उदय के समय सूर्य किस नंबर की राशि में है सबसे पहले ये देखा जाता है ! मान लीजिये सूर्य उदय के समय सूर्य 5 नंबर की राशी में है तो लग्न में 5 नंबर डाल देते है यानि की लग्न सिंह हुई लग्न में 5 नंबर डाला जायेगा और सूर्य लिखा जायेगा !या फिर मान ले की सूर्य 8नंबर की राशी में है तो लग्न वृश्चिक होगी तब लग्न में 8नंबर डालेगा और सूर्य लिखा जायेगा ! ये लग्न साधारण तया दो से ढाई घंटे तक चलती है !आधा घंटा ऊपर नीचे हो सकती है ये उस दिन के नझत्रो की चाल पे आधारित होगा !उसके पश्चात अगला नंबर डल जाएगा यानि सूर्य उदय के समय अगर मान ले की सिंह लग्न थी तो फिर 6नंबर यानि की कन्या राशि आजायेगी सिंह राशी सूर्य के साथ एक घर पीछे बारहवे घर में होगी और लग्न में 6नंबर डाला होगा और लग्न कन्या हो जाएगी अगर उस समय कन्या राशी में कोई ग्रह होगा तो वो ग्रह लिख दिया जायेगा मान ले की उस दिन उस समय कन्या राशी में मंगल एव बुध हो तो मंगल बुध लिख देगे !इस प्रकार 24 घटे में 12लग्न बन जाती है जो की समय और दिन पे आधारित होती है अब ये सब बहुत आसान हो गया है कम्पूटर पे समय दिन साल ज़गह और नाम डाल दीजये लग्न सहित कुंडली बन जाती है! मुझ से करीब करीब हर इन्सान ये पूछ ही लेता है लग्न क्या होता है इसको बदला नहीं जा सकता क्या ! तब मेरे मन में ये ख्याल आया की लग्न पे कुछ लिखू लग्न के महत्व को निचे दिए आधार के द्वारा और समझा जा सकता है जब शुरू शुरू मेनेें कुंडली देखनी शुरू किया तो मुझे ये समझने में दिक्कत आ रही थी की किन ग्रहों को आप आधार माने ! कई ज्योतिषियों की गड़ना मे इस त्रुटी को साफ़ देखा जा सकता है वो सीधे भाव पर बेठे ग्रहों के आधार से उस भाव के बारे में बोलना या लिखना शुरू कर देते है जिसके बारे में कुंडली दिखाने वाला आया है जेसे की तीसरे भाव का उधारण देकर बताता हु तीसरे भाव से साधारणतया भाई बहन पुरषार्थ पराक्रम के बारे में बताया जाता है किसी ने पूछा की मेरी भाइयो से केसी रहेगी उन्होंने तीसरे भाव में बेठे ग्रहों को देखा और बताना शुरू कर दिया या फिर तीसरे भाव के गृह स्वामी की इस्थिति देखी और उसके अनुसार बता दिया ये साधाण प्रेक्टिस की बात कर रहा हू पर इससे साधारण तया अनुमानित या आंशिक ही फलादेश मिलता है !लेकिन अगर आप उपरोक्त ग्रहों को लग्नाधिपति और लग्न में बेठे ग्रहों से मिलाकर या फिर उनसे सामंजस्य बिठा कर फलादेश बतायेगे तो मेरे अनुभव से कही सटीक और सही बता पाएंगे आपकी कही हुई बात ज्यादा पुख्ता साबित होगी ! मेरे हिसाब से किसी भी भाव का फलादेश बताने में इन दी हुई बातो का ध्यान रख लिया जाए तो देखने और दिखाने वाले दोनों को ही मज़ा आ जाएगा उदहारण के लिए में फिर तीसरे भाव को ही ले रहा हु मे अगर तीसरे भाव का फलादेश बता रहा हू तो सबसे पहले में देखूगा तीसरा भाव साधारण तया से किस किस का है ! ये तो में ऊपर बता चुका हु फिर किस राशि का है ये देखूगा जेसे की तीसरा भाव मिथुन राशि का हें ! फिर देखूगा तीसरे भाव में कोन सा गृह बेठा है या फिर कोन कोन से ग्रह बेठे है फिर देखूगा की उन पर किन किन ग्रहों की द्रष्टी पड़ रही है फिर इन सभी उपरोक्त बातो (ग्रहों की) का लग्नाधिपती और लग्न में बेठे ग्रहों के साथ केसा सामंजस्य बेठ रहा है देखने के पश्चात ही तीसरे भाव की भविष्यवाणी करूगा या फिर उनके स्वभाव के बारे में दिखाने वाले के साथ केसा रहेगा के बारे में बता पाउँगा ! ये मेरे अपने विचार है अगर हो सके तो इन्हें अजमा के देखे फलादेश देने में संतुष्टी मिलेगी और दिखाने वाले का विश्वाश भी बढेगा आज से में सोच रहा हु की योग के बारे में भी लिखू ! यै क्या होते है केसे बनते है इनका जीवन या फिर ये कहू जिस कुंडली में जितने योग होते है उनपर भविष्यवाणी करना उतना मुश्किल होता है !खेर इस सब पर हम आने वाले समय पे धीरे धीरे समझेगे लेकिन में ऐक बात ज़रूर कहता हूँ की कुंडली में योग का बहुत महत्व है इसके बिना कुंडली को समझाना समझना भविष्यवाणी करना बहुत मुश्किल है चलिए धीरे धीरे चर्चा करेगे समझेगे समझायेगे !लेकिन अब एक बात करने की कोशिश ज़रूर करेगे वो ये की जब भी पेजे आज में जिस योग के बारे में लिख रहा हूँ वह जीवन के लिए अती महत्वपूण योग यह योग है किसी इन्सान की शादी का ना होना ये भी एक प्रकार का श्राप है ! लेकिन दुनिया में है ऐसे लोग जिनका विवाह नही होता जीवन इस श्राप को भोगता है वो इसके बारे में कुझ भी बोले कोई भी दलील दे इसे कोई भी कुंडली विशेषग्य कुंडली का दुर्भाग्य ही मानेगा !यह योग कुंडली में ग्रहों एवम ग्रहों के द्रष्टि संबंध किसी विशेष स्थान पर होने से बनता है जब सप्तम भाव,सप्तमेश तथा शुक्र तीनो पीडित हो तथा निर्बल हो और इनमे किसी पर भी कोई शुभ युति अथवा द्रष्टि न हो तो मनुष्य को पत्नी की प्राप्ति नहीं होती !यहाँ बिलकुल स्पष्ट है की विवाह के तीनो अंग (फेक्टर्स )निर्बल होने से विवाह नहीं होगा लग्न में गोचर का महत्व कुंडली में गोचर का महत्व उतना ही होता है जितना की कुंडली देखते वक्त लग्न कुंडली में बेठे ग्रहों का पहले में आप को बताता हूँ गोचर होता क्या हैं असल में गोचर उसे कहते है जितने समय का आप अपनी कुंडली का फलादेश निकालते है उतने समय तक ग्रहों की स्तिथि किस राशि में केसी हैं उसे साधारण तया गोचर कहते हैं याने की लग्न हुई ज़न्म के समय में ग्रहों की स्तिथि की किस घर और किस भाव में ग्रह बेठे है और गोचर हुआ आज की स्तिथि में ग्रहों की राशी और किन भावो में बेठे हैं इसे साधारण तया चन्द्र की चाल से तथा लग्न की उत्पत्ति से निकालते हैं क्योकी ग्रहों में सबसे तेज चाल चन्द्र की होती है यह दो से ढाई दिन में अपनी राशि बदल लेता है और लग्न भी दो से ढाई घंटे में बदल जाती हैं साधारण तया !अब में अपने ज्ञान के अनुसार आगे लिख रहा हूँ क्योकि ज़्यादातर ज्योतिष कुंडली के लग्न चक्र को देख कर फलादेश निकाल देते है लेकिन इसमें मेरे अनुमान से फलादेश अनुमानित या फिर संभावित ही आयेगा आप एक अंदाज का ही फलादेश निकाल पायेगें !फलादेश जायदा सही निकालने के लिए इस सूत्र को लगाना की किसी भी कुंडली को विचारते समय लग्न कुंडली के साथ साथ गोचर भी बना लेना कुंडली में ग्रह कितना ही अच्छा हो अगर शनी तुला राशि में बेठे हैं तो साधारण तय ज्योतिषी शनी की महादशा को बहुत बढिया मान कर बताना शुरू कर देते है ज़ब्की दिखाने वाला इंसान बार बार उनकी बात काट कर कहता हैं की गुरूजी ऐसा तो नहीं हो रहा है या फिर दिखाने वाला इंसान गुरूजी के बताये समय के आगे पीछे आकर कहता हैं की आपने तो कहा था की यहाँ से अच्छा समय सुरु हो जायेगा लेकिन ऐसा तो कुछ नहीं हुआ आप उसको कुछ न कुछ बहाना बना कर दस पन्द्रह दिन के लिए टाल देते हैं लेकिन बार बार उसके आने से परेसान भी होते है आपकी साक या सम्मान में जो कमी आती है वो भी कम नही होती लेकिन इस सबसे बड़ी बात ये होती हैं की उस इन्सान का इस विज्ञान या फिर इस ज्ञान से भरोसा उठ जाता हैं और ये मेरा मानना हैं की यही वो जाने अन जाने में आप को कही श्राप देता है जो उस समय तो आप को सही समझ में नहीं आता लेकिन धीरे धीरे सब समझ में आ जाता है कुंडली देखते समय कुछ बातो का ध्यान रख ले तो परिणाम बहुत अच्छे आ जायेगे मेरा मानना है किसी भी कुंडली को देखते समय लग्न चक्र के साथ साथ गोचर चक्र का भी ध्यान रखो या फिर उसे भी बना लो उसके पश्चात उस महादशा का या फिर जिस ग्रह की भविष्यवाणी कर रहे हो उसका लग्न से केसा संबन्ध बन रहा है लग्न की स्तिथि गृहकी स्तिथि महादशा की स्तिथि का गोचर की स्तिथि के साथ मिलाकर उनमे सामंजस बनाकर सामंजस केसा बन रहा हैं उसके हिसाब से फलादेश बतावोगे तो ज्यदा सटीक और सुखद आयेगा अब अगर ऊपर वाली स्थिति के अनुसार शनि तुला राशि में बेठे है और गोचर में भी शनि तुला राशि में या फिर अपनी खुद की राशि मकर या कुम्भ राशि में बेठे है अथवा किसी मित्र ग्रह की राशि में है तो ऊपर आपके ही दिए अनुसार फलादेश आयेगा शनि की महादशा आते ही दिखाने वाले इंसान के अच्छे दिन सुरु हो जायेगे लेकिन अगर शनि गोचर में किसी शत्रु राशि में बेठे है तो फिर शनि के फलादेश उतने अच्छे नहीं आयेगे इसलिए गोचर और लग्न कुंडली में सामंज्यस बिठाकर बताने पर फलादेश जायदा सटिक आयेगा और देखने वाले और दिखाने वाले दोनों ही को मज़ा आयेगा आपकी ख्याति बढेगी वो अलग यही वो जाने अनजाने में आप को दुआ देता हैं जिसका असर उस समय तो आपको नहीं समज आ्येग उसके अलावा गृह के , अंश वर्क उच्च निच आदी भी देखें योगिनी दशा अष्टवरग षोडस चार्ट नछत्तर आदि का भी फलादेश करते समय अघ्यन करना चाहिए

सोमवार, 22 मई 2017

आओ ज्योतिष सीखें ज्योतिषमान जागृत जगत की एक ज्योति का नाम ही जीवन है। ज्योति का पर्याय ज्योतिष है अथवा ज्योतिस्वरूप ब्रह्म की व्याख्या का नाम ज्योतिष है। वेदरूप ज्योतिष ब्रह्मरूप ज्योति का ज्योतिष है जिसका द्वितीय नाम संवत्कर ब्रह्म या महाकाल है। ब्रह्म सृष्टि के मूल बीजाक्षरों या मूल अनन्त कलाओं को एक-एक कर जानना वैदिक दार्शनिक ज्योतिष कहा जाता है। इसका दूसरा स्वरूप लौकिक ज्योतिष है जिसे खगोलीय या ब्रह्माण्डीय़ ज्योतिष कहा जाता है। व्यक्त या अव्यक्त इन दोनों के आकार, दोनों की कलायें एक समान हैं। वैदिक दर्शन के लिए यह वेदांगी ज्योतिष दर्शन सूर्य के समान प्रकाश देने का काम करता है इसी कारण इसे ब्रह्मपुरुष का चक्षु कहा गया है। ज्योतिषशास्त्र की व्युत्पत्ति ‘‘ज्योतिषां सूर्यादि ग्रहाणां बोधकं शास्त्रम’’ की गई है। अर्थात् सूर्यादि ग्रह और काल का बोध कराने वाले शास्त्र को ज्योतिषशास्त्र कहा जाता है । भारतीय ज्योतिषशास्त्र की परिभाषा के स्कन्ध-त्रय-होरा, सिद्धान्त और संहिता अथवा स्कन्ध पंच होरा, सिद्धान्त, संहिता, प्रश्न और शकुन ये अंग माने गये हैं।यदि विराट पंचस्कन्धात्मक परिभाषा का विश्लेषण किया जाये तो आज का मनोविज्ञान, जीवविज्ञान, पदार्थ विज्ञान, रसायन विज्ञान एवं चिकित्साशास्त्र इत्यादि इसी के अन्तर्भूत हो जाते हैं। बिना आँख के जैसे दृश्य जगत का दर्शन असम्भव है वैसे ही ज्योतिष के बिना ज्ञान के विश्वकोश वेद भगवान् का दर्शन भी असम्भव है। ‘सा प्रथमा संस्कृति विश्ववारा।’ का उद्घोष करने वाले वेद ने भारतीय संस्कृति को विश्व की सर्वप्रथम संस्कृति माना है। यदि हम इस प्राचीनतम श्रेष्ठ संस्कृति से पुनः जुड़ना चाहते हैं तो हमें ज्योतिष का ज्ञान अनिवार्य रूप से प्राप्त करना होगा। हमें हमारी संस्कृति से जोड़ने का सेतु ज्योतिष ही है। यदि हमारे सभी देशवासी अपनी संस्कृति से जुड़ गये तो धरती पर देवत्व का अवतरण करके रहेंगे। ज्योतिष ज्ञान सबका मंगल करे। विकृत मान्यताओं से उबारे। इसी लक्ष्य को लेकर ‘आओ ज्योतिषसिखे ग्रुप बनाया इससे आप उन प्रारम्भिक सोपानों पर तो चढ़ ही सकते हैं जो हममें अमित शक्ति का प्रादुर्भाव कर सकते हैं। इस ज्योतिष ग्रुप’ में भारतीय ज्योतिष का इतिहास व प्रमुख ज्योतिर्विदों एवं उनकी कृतियों का परिचय जिससे हमें यह स्पष्ट ज्ञान हो जाये कि ऋग्वेद की रचना से लेकर अब तक हमने इस विज्ञान के द्वारा विश्व को क्या-क्या दिया ? ज्योतिष के प्रायः सभी अंगों का इस ‘गरुप में सिखेगे जटिल गणनाओं पर अधिक ध्यान न देते हुए ज्योतिष के व्यावहारिक स्वरूप का जनसाधारण को परिचय कराना ही प्रस्तुत ‘गरुप’ का उद्देश्य है। आचार्य राजेश

रविवार, 21 मई 2017

राज योग राजयोग भी एक ऐसा पक्ष है जहाँ स्वयं ज्योतिष वर्ग भी विभाजित है। कारण एक ही है “मैं नहीं मानता”। तो हम भी कहाँ मना रहे हैं। केवल अपनी बात कहेंगे। वास्तविकता में परख करें।राजयोग के सही मायने क्या हैं! राजयोग है राजा के समान लाभ करने वाला योग – अगर भौतिक जीवन में देखें तो। अब यहां दो बातें और हैं – पहली कि योग फलेगा कितना और दूसरी कि फलीभूत कब होगाजहाँ तक सवाल है फलने का – तो स्पष्ट उत्तर है संबंधित दशाओं में। अगर संबंधित दशा नहीं आई तो योग धरा का धरा रह जाएगाएक उदाहरण से समझना सरल होगा – एक मजदूर का अपना एक कमरा बना लेना राजयोग है, आम आय के व्यक्ति का अपना सुख-सुविधाओं से लैस मकान बना लेना भी रजयोग है। पर एक धनाड्य का बंगला खरीद लेना भी एक साधारण बात हो सकती है। केवल फल ही नहीं संदर्भ समझना भी आवश्यक है। आखिरकार हमारा यह जन्म है तो पूर्वजन्मों के कर्मों की नींव पर ही बना हुआ। राज योग दो शब्दों से मिलकर बना है राज और योग. ज्योतिष की दृष्टि में राजयोग का अर्थ है ऐसा योग है जो राजा के समान सुख प्रदान करे. हम सभी जीवन में सुख की कामना करते हैं परंतु सभी के भाग्य में सुख नहीं लिखा होता है. कुण्डली में ग्रहों एवं योगों की स्थिति पर सुख दुख निर्भर होता है. राज योग भी इन्हीं योगों में से है जो जीवन को सुखी बनाता है. राजयोग कोई विशिष्ट योग नहीं है यह कुण्डली में बनने वाले कई योगों का प्रतिफल है. कुण्डली में जब शुभ ग्रहों का योग बनता है तो उसके आधार पर राजयोग का आंकलन किया जाता है. इस ग्रह के आंकलन के लिए लग्न के अनुसार ग्रहों की शुभता, अशुभता, कारक, अकारक, विशेष योगकारक ग्रहो को देखना होता है साथ ही ग्रहों की नैसर्गिक शुभता/अशुभता का ध्यान रखना होता है. राज योग के लिए केन्द्र स्थान में उच्च ग्रहों की उपस्थिति, भाग्य स्थान पर उच्च का शुक्र, नवमेश एवं दशमेश का सम्बन्ध बहुत महत्वपूर्ण होता है. कुण्डली में अगर कोई ग्रह अपनी नीच राशि में मौजूद है तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह फलदायी नहीं होगा क्योंकि जहां नीच राशि में ग्रह की स्थिति होगी वहीं से सप्तम उस ग्रह की दृष्टि अपने स्थान पर रहेगी. गौर करने के बात यह है कि इसका क्या फल होगा यह अन्य ग्रहों से सम्बन्ध पर निर्भर करेगा. कुण्डली में राजयोग किसी ग्रह विशेष से नहीं बनता है बल्कि इसमें सभी ग्रहों की भूमिका होती है. कई बार जब आप ज्योतिषी को कुंडली दिखाने जाते हैं तब “राजयोग“ शब्द उनके मुँह से सुनाई देता है. कुंडली की भाषा तो ज्योतिषी ही सही से समझ सकता है लेकिन इस शब्द से राजा जैसा योग तो समझ में आता ही है. प्राचीन मुनियों ने अनगिनत योगों की व्याख्या जन्म कुंडली में की है. उनमें से ही एक योग राजयोग है – राज + योग. राज देने वाला योग. इस योग के बनने में ग्रहों की युति शामिल होती है. जन्म कुंडली में केन्द्र स्थान को विष्णु स्थान कहा गया है और त्रिकोण भावों को लक्ष्मी स्थान कहा गया है. जब केन्द्र व त्रिकोण स्वामियों का कुंडली में परस्पर संबंध बनता है तब यह राजयोग बनता है. यदि जन्म कुंडली में कोई ग्रह एक साथ त्रिकोण व केन्द्र का स्वामी है तब उसे योगकारी ग्रह कहा जाता है जो व्यक्ति को अपनी दशा/अन्तर्दशा में अच्छे फल प्रदान करता है यदि वह शुभ स्थिति में हो तो. आगे जारी

गुरुवार, 18 मई 2017

ज्योतिष: अद्वैत का विज्ञान_1 जोतिष शायद सबसे पुराना विषय है और एक अर्थ में सबसे ज्यादा तिरस्कृत विषय भी है। सबसे पुराना इसलिए कि मनुष्य-जाति के इतिहास की जितनी खोजबीन हो सकी है उसमें ज्योतिष, ऐसा कोई भी समय नहीं था, जब मौजूद न रहा हो। जीसस से पच्चीस हजार वर्ष पूर्व सुमेर में मिले हुए हड्डी के अवशेषों पर ज्योतिष के चिह्न अंकित हैं। पश्चिम में पुरानी से पुरानी जो खोजबीन हुई है, वह जीसस से पच्चीस हजार वर्ष पूर्व इन हड्डियों की है, जिन पर ज्योतिष के चिह्न और चंद्र की यात्रा के चिह्न अंकित हैं। लेकिन भारत में तो बात और भी पुरानी है। ऋग्वेद में, पंचानबे हजार वर्ष पूर्व ग्रह-नक्षत्रों की जैसी स्थिति थी, उसका उल्लेख है। इसी आधार पर लोकमान्य तिलक ने यह तय किया था कि ज्योतिष नब्बे हजार वर्ष से ज्यादा पुराने तो निश्चित ही होने चाहिए। क्योंकि वेद में यदि पंचानबे हजार वर्ष पहले जैसी नक्षत्रों की स्थिति थी उसका उल्लेख है, तो वह उल्लेख इतना पुराना तो होगा ही। क्योंकि उस समय जो स्थिति थी नक्षत्रों की उसे बाद में जानने का कोई भी उपाय नहीं था। अब हमारे पास ऐसे वैज्ञानिक साधन उपलब्ध हो सके हैं कि हम जान सकें अतीत में कि नक्षत्रों की स्थिति कब कैसी रही होगी। ज्योतिष की सर्वाधिक गहरी मान्यताएं भारत में पैदा हुईं। सच तो यह है कि ज्योतिष के कारण ही गणित का जन्म हुआ। ज्योतिष की गणना के लिए ही सबसे पहले गणित का जन्म हुआ। और इसीलिए अंकगणित के जो अंक हैं वे भारतीय हैं, सारी दुनिया की भाषाओं में। एक से लेकर नौ तक जो गणना के अंक हैं, वे समस्त भाषाओं में जगत की, भारतीय हैं। और सारी दुनिया में नौ डिजिट, नौ अंक स्वीकृत हो गए, उसका भी कुल कारण इतना है कि वे नौ अंक भारत में पैदा हुए और धीरे-धीरे सारे जगत में फैल गए। जिसे आप अंग्रेजी में नाइन कहते हैं वह संस्कृत के नौ का ही रूपांतरण है। जिसे आप एट कहते हैं वह संस्कृत के अष्ट का ही रूपांतरण है। एक से लेकर नौ तक जगत की समस्त सभ्य भाषाओं में गणित के जो अंकों का प्रचलन है वह भारतीय ज्योतिष के प्रभाव में हुआ। भारत से ज्योतिष की पहली किरणें सुमेर की सभ्यता में पहुंचीं। सुमेरियंस ने सबसे पहले, ईसा से छह हजार वर्ष पूर्व, पश्चिम के जगत के लिए ज्योतिष का द्वार खोला। सुमेरियंस ने सबसे पहले नक्षत्रों के वैज्ञानिक अध्ययन की आधारशिलाएं रखीं। उन्होंने बड़े ऊंचे, सात सौ फीट ऊंचे मीनार बनाए। और उन मीनारों पर सुमेरियन पुरोहित चौबीस घंटे आकाश का अध्ययन करते थे--दो कारणों से। एक तो सुमेरियंस को इस गहरे सूत्र का पता चल गया था कि मनुष्य के जगत में जो भी घटित होता है, उस घटना का प्रारंभिक स्रोत नक्षत्रों से किसी न किसी भांति संबंधित है। जीसस से छह हजार वर्ष पहले सुमेरियंस की यह धारणा कि पृथ्वी पर जो भी बीमारी पैदा होती है, जो भी महामारी पैदा होती है, वह सब नक्षत्रों से संबंधित है। अब तो इसके लिए वैज्ञानिक आधार मिल गए हैं। और जो लोग आज के विज्ञान को समझते हैं वे कहते हैं सुमेरियंस ने मनुष्य-जाति का असली इतिहास प्रारंभ किया। इतिहासज्ञ कहते हैं कि सब तरह का इतिहास सुमेर से शुरू होता है। उन्नीस सौ बीस में चीजेवस्की नाम के एक रूसी वैज्ञानिक ने इस बात की खोजबीन की कि जब भी सूरज पर--सूरज पर हर ग्यारह वर्षों में पीरियाडिकली बहुत बड़ा विस्फोट होता है। सूर्य पर हर ग्यारह वर्ष में आणविक विस्फोट होता है। और चीजेवस्की ने यह खोजबीन की कि जब भी सूरज पर ग्यारह वर्षों में आणविक विस्फोट होता है तभी पृथ्वी पर युद्ध और क्रांतियों के सूत्रपात होते हैं। और उसने कोई सात सौ वर्ष के लंबे इतिहास में सूर्य पर जब भी दुर्घटना घटती है, तभी पृथ्वी पर दुर्घटना घटती है, इसका इतना वैज्ञानिक विश्लेषण किया कि स्टैलिन ने उसे उन्नीस सौ बीस में उठा कर जेल में डाल दिया। वह स्टैलिन के मरने के बाद ही चीजेवस्की छूट सका। क्योंकि स्टैलिन के लिए तो अजीब बात हो गई! माक्र्स का और कम्युनिस्टों का खयाल है कि पृथ्वी पर जो क्रांतियां होती हैं उनका कारण मनुष्य के बीच आर्थिक वैभिन्य है। और चीजेवस्की कहता है कि क्रांतियों का कारण सूरज पर हुए विस्फोट हैं। अब सूरज पर हुए विस्फोट और मनुष्य के जीवन की गरीबी और अमीरी का क्या संबंध? अगर चीजेवस्की ठीक कहता है तो माक्र्स की सारी की सारी व्याख्या मिट्टी में चली जाती है। तब क्रांतियों का कारण वर्गीय नहीं रह जाता, तब क्रांतियों का कारण ज्योतिषीय हो जाता है। चीजेवस्की को गलत तो सिद्ध नहीं किया जा सका, क्योंकि सात सौ साल की जो गणना उसने दी थी वह इतनी वैज्ञानिक थी और सूरज में हुए विस्फोटों के साथ इतना गहरा संबंध उसने पृथ्वी पर घटने वाली घटनाओं का स्थापित किया था कि उसे गलत सिद्ध करना तो कठिन था। लेकिन उसे साइबेरिया में डाल देना आसान था। स्टैलिन के मर जाने के बाद ही चीजेवस्की को ख्रुश्चेव साइबेरिया से मुक्त कर पाया। इस आदमी के जीवन के कीमती पचास साल साइबेरिया में नष्ट हुए। छूटने के बाद भी वह चार-छह महीने से ज्यादा जीवित नहीं रह सका। लेकिन छह महीने में भी वह अपनी स्थापना के लिए और नये प्रमाण इकट्ठे कर गया है। पृथ्वी पर जितनी महामारियां फैलती हैं, उन सबका संबंध भी वह सूरज से जोड़ गया है। सूरज, जैसा हम साधारणतः सोचते हैं, ऐसा कोई निष्क्रिय अग्नि का गोला नहीं है, अत्यंत सक्रिय है। और प्रतिपल सूरज की तरंगों में रूपांतरण होते रहते हैं। और सूरज की तरंगों का जरा सा रूपांतरण भी पृथ्वी के प्राणों को कंपित करता है। इस पृथ्वी पर कुछ भी ऐसा घटित नहीं होता जो सूरज पर घटित हुए बिना घटित हो जाता हो। जब सूर्य का ग्रहण होता है तो पक्षी जंगलों में गीत गाना चौबीस घंटे पहले से बंद कर देते हैं। पूरे ग्रहण के समय तो सारी पृथ्वी मौन हो जाती है, पक्षी गीत गाना बंद कर देते हैं, सारे जंगलों के जानवर भयभीत हो जाते हैं, किसी बड़ी आशंका से पीड़ित हो जाते हैं। बंदर वृक्षों को छोड़ कर नीचे आ जाते हैं। भीड़ लगा कर किसी सुरक्षा का उपाय करने लगते हैं। और एक आश्चर्य कि बंदर, जो निरंतर बातचीत और शोरगुल में लगे रहते हैं, सूर्यग्रहण के वक्त बंदर इतने मौन हो जाते हैं जितने साधु और संन्यासी भी नहीं होते! चीजेवस्की ने ये सारी की सारी बातें स्थापित की हैं। सुमेर में सबसे पहले यह खयाल पैदा हुआ। उसके बाद स्विस पैरासेलीसस नाम का एक चिकित्सक, उसने एक बहुत अनूठी मान्यता स्थापित की। और वह मान्यता आज नहीं कल सारे मेडिकल साइंस को बदलने वाली सिद्ध होगी। अब तक उस मान्यता पर बहुत जोर नहीं दिया जा सका, क्योंकि ज्योतिष तिरस्कृत विषय है--सर्वाधिक पुराना, लेकिन सर्वाधिक तिरस्कृत, यद्यपि सर्वाधिक मान्य भी। अभी फ्रांस में पिछले वर्ष गणना की गई तो सैंतालीस प्रतिशत लोग ज्योतिष में विश्वास करते हैं कि वह विज्ञान है--फ्रांस में! अमरीका में मौजूद पांच हजार बड़े ज्योतिषी दिन-रात काम में लगे रहते हैं और उनके पास इतने कस्टमर्स हैं कि वे काम निपटा नहीं पाते। करोड़ों डालर अमरीका प्रतिवर्ष ज्योतिषियों को चुकाता है। अंदाज है कि सारी पृथ्वी पर कोई अठहत्तर प्रतिशत लोग ज्योतिष में विश्वास करते हैं। लेकिन वे अठहत्तर प्रतिशत लोग सामान्य हैं। वैज्ञानिक, विचारक, बुद्धिवादी ज्योतिष की बात सुन कर ही चौंक जाते हैं। सी जी जुंग ने कहा है कि तीन सौ वर्षों से विश्वविद्यालयों के द्वार ज्योतिष के लिए बंद हैं, यद्यपि आने वाले तीस वर्षों में ज्योतिष तुम्हारे दरवाजों को तोड़ कर विश्वविद्यालयों में पुनः प्रवेश पाकर रहेगा। पाकर रहेगा प्रवेश इसलिए कि ज्योतिष के संबंध में जो-जो दावे किए गए थे उनको अब तक सिद्ध करने का उपाय नहीं था, लेकिन अब उनको सिद्ध करने का उपाय है।

रविवार, 14 मई 2017

केमद्रुम योग [केमद्रुम योग ज्योतिष में चंद्रमा से निर्मित एक महत्वपूर्ण योग है. वृहज्जातक में वाराहमिहिर के अनुसार यह योग उस समय होता है जब चंद्रमा के आगे या पीछे वाले भावों में ग्रह न हो अर्थात चंद्रमा से दूसरे और चंद्रमा से द्वादश भाव में कोई भी ग्रह नहीं हो. यह योग इतना अनिष्टकारी नहीं होता जितना कि वर्तमान समय के ज्योतिषियों ने इसे बना दिया है. व्यक्ति को इससे भयभीत नहीं होना चाहिए क्योंकि यह योग व्यक्ति को सदैव बुरे प्रभाव नहीं देता अपितु वह व्यक्ति को जीवन में संघर्ष से जूझने की क्षमता एवं ताकत देता है, जिसे अपनाकर जातक अपना भाग्य निर्माण कर पाने में सक्षम हो सकता है और अपनी बाधाओं से उबर कर आने वाले समय का अभिनंदन कर सकता है. [चन्द्र को मन का कारक कहा गया है. सामान्यत: यह देखने में आता है कि मन जब अकेला हो तो वह इधर-उधर की बातें अधिक सोचता है और ऎसे में सोच सकारात्मक होनी चाहिए अच्छे कार्य में ध्यान लगाए ऐसे जातक अपने बलबूते पर कामयाब होते हैं किसी के अघीन रहना उनके लिए अच्छा नहीं रहता ऐसे जातक देखी है कि यह सृजनातमक होते हैं कलाकार होते हैं कलात्मक होतैे हैं कुछ बुराइयां से बच कर रहे जैसे जुआ सटा शराब आदिकेमद्रुम योग के बारे में ऐसी मान्यता है कि यह योग संघर्ष और अभाव ग्रस्त जीवन देता है. इसीलिए ज्योतिष के अनेक विद्वान इसे दुर्भाग्य का सूचक कहते हें. परंतु लेकिन यह अवधारणा पूर्णतः सत्य नहीं है. केमद्रुम योग से युक्त कुंडली के जातक कार्यक्षेत्र में सफलता के साथ-साथ यश और प्रतिष्ठा भी प्राप्त करते हैं. वस्तुतः अधिकांश विद्वान इसके नकारात्मक पक्ष पर ही अधिक प्रकाश डालते हैं. यदि इसके सकारात्मक पक्ष का विस्तार पूर्वक विवेचन करें तो हम पाएंगे कि कुछ विशेष योगों की उपस्थिति से केमद्रुम योग भंग होकर राजयोग में परिवर्तित हो जाता है. इसलिए किसी जातक की कुंडली देखते समय केमद्रुम योग की उपस्थिति होने पर उसको भंग करने वाले योगों पर ध्यान देना आवश्यक है तत्पश्चात ही फलकथन करना चाहिएव्यवहार में ऐसा पाया गया है कि कुंडली में गजकेसरी, पंचमहापुरुष जैसे शुभ योगों की अनुपस्थिति होने पर भी केमद्रुम योग से युक्त कुंडली के जातक कार्यक्षेत्र में सफलता के साथ-साथ यश और प्रतिष्ठा भी प्राप्त करते हैं। ऐसे में क्या कहा जाये। क्या शास्त्रों में लिखी बातों को असत्य या निर्मूल कहकर केमद्रुम योग की परिभाषा पर प्रश्न चिह्न लगा दिया जाये। वस्तुतः सत्यता यह है कि केमद्रुम योग के बारे में बताने वाले अधिकांश विद्वान इसके नकारात्मक पक्ष पर ही अधिक प्रकाश डालते हैं। जो पूर्णतः असैद्धांतिक एवं अवैज्ञानिक है। यदि हम इसके सकारात्मक पक्ष का गंभीरतापूर्वक विवेचन करें तो हम पाएंगे कि कुछ विशेष योगों की उपस्थिति से केमद्रुम योग भंग होकर राजयोग में परिवर्तित हो जाता है। शास्त्रों में ऐसे योगों का उल्लेख भी मिलता है जिनके प्रभाव से केमद्रुम योग भंग होकर राजयोग में बदल जाता है। केमद्रुम योग को भंग करने वाले प्रमुख योग निम्नलिखित हैं।जब कुण्डली में लग्न से केन्द्र में चन्द्रमा या कोई ग्रह हो तो केमद्रुम योग भंग माना जाता है. योग भंग होने पर केमद्रुम योग के अशुभ फल भी समाप्त होते है. कुण्डली में बन रही कुछ अन्य स्थितियां भी इस योग को भंग करती है, जैसे चंद्रमा सभी ग्रहों से दृष्ट हो या चंद्रमा शुभ स्‍थान में हो या चंद्रमा शुभ ग्रहों से युक्‍त हो या पूर्ण चंद्रमा लग्‍न में हो या चंद्रमा दसवें भाव में उच्‍च का हो या केन्‍द्र में चंद्रमा पूर्ण बली हो अथवा कुण्डली में सुनफा, अनफा या दुरुधरा योग बन रहा हो, तो केमद्रुम योग भंग हो जाता है. यदि चन्द्रमा से केन्द्र में कोई ग्रह हो तब भी यह अशुभ योग भंग हो जाता है और व्यक्ति इस योग के प्रभावों से मुक्त हो जाता है. कुछ अन्य शास्त्रों के अनुसार- यदि चन्द्रमा के आगे-पीछे केन्द्र और नवांश में भी इसी प्रकार की ग्रह स्थिति बन रही हो तब भी यह योग भंग माना जाता है. केमद्रुम योग होने पर भी जब चन्द्रमा शुभ ग्रह की राशि में हो तो योग भंग हो जाता है. शुभ ग्रहों में बुध्, गुरु और शुक्र माने गये है. ऎसे में व्यक्ति संतान और धन से युक्त बनता है तथा उसे जीवन में सुखों की प्राप्ति होती है. इसके इलावा गुरु और चंद्र की दृष्टि एक ही भाव पर पढ़ रही हो या त्रिकोण में सभी ग्रहो का होना जहां केंद्र में सभी ग्रह हो तब भी यह योग भंग हो जाता है केमद्रुम योग जिसे एक अशुभ योग माना जाता है, यदि किसी प्रकार भंग हो जाता है तो यह पूर्ण रूप से राजयोग में बदल जाता है। इसलिए किसी जातक की कुंडली देखते समय केमद्रुम योग की उपस्थिति होने पर उसको भंग करने वाले उपर्युक्त योगों पर निश्चय ही ध्यान देना चाहिए। उसके बाद ही फलकथन करना चाहिए। केमद्रुम योग को भंग कर राजयोग में परिवर्तित करने वाले उपर्युक्त योगों की सत्यता की पुष्टि महात्मा गांधी, नेल्सन मंडेला, जुल्फिकार अली भुट्टो, भैरों सिंह शेखावत, बिल गेट्स, देवानंद, राजकपूर, ऋषि कपूर, शत्रुध्न सिन्हा, अमीषा पटेल, अजय देवगन, राहुल गांधी, शंकर दयाल शर्मा, ईजमाम उल हक, जवागल श्री नाथ, पीचिदंबरम, मेनका गांधी, वसुंधरा राजे, अर्जुन सिंह तथा अनुपम खेर आदि सुप्रसिद्ध जातकों की कुंडलियों में स्वतः कर सकते हैं। ज्योतिषी एच. एन. काटवे जन्म दिनांक : 6 फरवरी 1892 जन्म समय : 4 : 20 बजे जन्म स्थान : बेलगाव इस योग को लेकर भयभीत नहीं होना चाहिए कुंडली को गहराई से देखना चाहिए तब जाकर किसी वात का निर्णय करना चाहिए यहां कुछ तथाकथित ज्योतिषयो न ेईस योग को लेकर बहुत भ्रांतियां और गलतफहमियां पैदा ्की है। कुछ ज्योतिषी अपनी लालच के कारण लोगों को गुमराह करते हैं। पहले तो कुंडली फ्री में देखने लोकसेवा कहकर लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते ह।ैं और बाद में उन को डराकर पूजा पाठ के नाम पर यत्र मंत्र तंत्र के नाम पर लूटने का काम करते हैं पर हम लोगों मे भी यह कमी है कि वो भी सब कुछ मुफ्त में चाहते हैं अतः हमें भी इससे बचना चाहिए मित्रों अगर आप मुझसे अपनी कुंडली बनवाना जा दिखाना चाहते हैं तो निमनलिखित नंबरों पर संपर्क कर सकतेहै 07597718725/09414481324

शनिवार, 13 मई 2017

नीच ग्रहों का डरमित्रों आप सब ने सुना होगा कुंडली दिखवाते समय ज्योतिषी महाराज बोलते है अपनी कुंडली में फला फला ग्रह नीच का है या उच्च का है, नीच ग्रह से मतलब है की उस ग्रह में ताकत कम है।मतलब ग्रह कमजोर है.दरअसल नीच के ग्रह को लेकर अधिक्तर ज्योतिष अक्सर लोगों को बहुत ही भयमित कर देते हैं। यह सच भी है कि नीचस्थ ग्रह जातक को अक्सर परेशानी में डाल देता है। लेकिन कई छुटभैये ज्योतिषों को यह पता नहीं होता कि कई बार कुंडली में स्वयं ग्रहों की स्थिति के कारण नीच भंग योग बनता है। ऐसे योग के कारण ग्रह की नीचता स्वयं ही समाप्त हो जाती है। और कभी-कभी तो यह नीचता भंग होकर राजयोग की तरह प्रभाव देता है। लेकिन पूजा, पाठ, अनुष्ठान या उपाय के नाम पर पैसा ऐंठने वाले लोग नीचस्थ ग्रह का सिर्फ भय दिखाते हैं। एक सच तो यह भी है कि ज्योतिष के नाम पर धंधा करने वाले कइयों को खुद पता नहीं होता कि कुंडली में नीच भंग करने वाले योग भी बनता है। या बन सकता है। ऐसे में नाहक ही सलाह लेने गये लोगों को डरना पड़ता है और कभी-कभी उपाय के नाम पर अनावश्यक खर्च करना पड़ता है।ग्रह कब नीच की स्थिति में होता है और कैसे उसकी नीचता भंग होती है। सूर्य तुला राशि में, चंद्रमा वृश्चिक राशि में, मंगल कर्क राशि गुरु मकर राशि, बुध मीन राश में, शुक्र कन्या राशि में नीचस्थ माना गया है। इसके साथ राहु मीन राशि, धनु राशि और वृश्चिक राशि में तथा ठीक इसके विपरित राशियों कन्या, मिथुन और वृष राशि में केतु की उपस्थिति को नीच माना गया है। कुंडली में आखिर ऐसी क्या स्थिति बनती है कि ग्रहों की नीचता भंग होकर वह शुभ फल देने लगता है। खास बात ये है कि अगर ग्रहों का नीचत्व भंग होता है तो वह ग्रह निर्बल हो जाता है और जिस राशि में वह अवस्थित होता है उस राशि स्वामी को दो गुणा बल भी मिलता है जिससे वह अपने भावों के फल में वृद्धि भी करता है।किसी ग्रह की नीचता तब बड़ी आसानी से भंग हो जाती है जब कुंडली में उस नीच राशि का स्वामी लग्न या चंद्रमा से केंद्र में अवस्थित हो। दूसरी स्थिति में नीचत्व तब भंग होता है जब नीच राशि का स्वामी और उसी के उच्च राशि स्वामी परस्पर एक-दूसरे से केन्द्र में हों। यह भी माना गया है कि नीच ग्रह अगर लग्न और चंद्र से केन्द्र में अवस्थित हो तो भी ग्रहों का नीचत्व भंग हो जाता है। अष्टमेश ग्रह को नीचत्व का दोष स्वयं भंग हो जाता है। और नीच ग्रह को उसके उच्च राशि स्वामी अगर पूर्ण दृष्टि देख रहा है।इन स्थितियों में ग्रहों की नीचता स्वयं भंग हो जाती है। इसलिए ग्रहों की नीच राशि में बैठे रहने से घबराना या हड़बड़ाना नहीं चाहिए बल्कि बारिकी से कुंडली में यह देखने की जरूरत होती है कि कहीं नीच भंग योग है कि नहीं​ है। दूसरी बात लोगों के मन में उच्च तथा नीच राशियों में स्थित ग्रहों को लेकर एक प्रबल धारणा बनी हुई है कि अपनी उच्च राशि में स्थित ग्रह सदा शुभ फल देता है तथा अपनी नीच राशि में स्थित ग्रह सदा नीच फल देता है। उदाहरण के लिए शनि ग्रह को तुला राशि में स्थित होने से अतिरिक्त बल प्राप्त होता है तथा इसीलिए तुला राशि में स्थित शनि को उच्च का शनि कह कर संबोधित किया जाता है और अधिकतर ज्योतिषियों का यह मानना है कि तुला राशि में स्थित शनि कुंडली धारक के लिए सदा शुभ फलदायी होता है।किंतु यह धारणा एक भ्रांति से अधिक कुछ नहीं है तथा इसका वास्तविकता से कोई सरोकार नहीं है और इसी भ्रांति में विश्वास करके बहुत से ज्योतिष प्रेमी जीवन भर नुकसान उठाते रहते हैं क्योंकि उनकी कुंडली में तुला राशि में स्थित शनि वास्तव में अशुभ फलदायी होता है तथा वे इसे शुभ फलदायी मानकर अपने जीवन में आ रही समस्याओं का कारण दूसरे ग्रहों में खोजते रहते हैं तथा अपनी कुंडली में स्थित अशुभ फलदायी शनि के अशुभ फलों में कमी लाने का कोई प्रयास तक नहीं करतेप्रत्येक ग्रह को किसी एक राशि विशेष में स्थित होने से अतिरिक्त बल प्राप्त होता है जिसे इस ग्रह की उच्च की राशि कहा जाता है। इसी तरह अपनी उच्च की राशि से ठीक सातवीं राशि में स्थित होने पर प्रत्येक ग्रह के बल में कमी आ जाती है तथा इस राशि को इस ग्रह की नीच की राशि कहा जाता है। उदाहरण के लिए शनि ग्रह की उच्च की राशि तुला है तथा इस राशि से ठीक सातवीं राशि अर्थात मेष राशि शनि ग्रह की नीच की राशि है तथा मेष में स्थित होने से शनि ग्रह का बल क्षीण हो जाता है। इसी प्रकार हर एक ग्रह की 12 राशियों में से एक उच्च की राशि तथा एक नीच की राशि होती है।किंतु यहां पर यह समझ लेना अति आवश्यक है कि किसी भी ग्रह के अपनी उच्च या नीच की राशि में स्थित होने का संबंध केवल उसके बलवान या बलहीन होने से होता है न कि उसके शुभ या अशुभ होने से। तुला में स्थित शनि भी कुंडली धारक को बहुत से अशुभ फल दे सकता है जबकि मेष राशि में स्थित नीच राशि का शनि भी कुंडली धारक को बहुत से लाभ दे सकता है। इसलिए ज्योतिष में रूचि रखने वाले लोगों को यह बात भली भांति समझ लेनी चाहिए कि उच्च या नीच राशि में स्थित होने का प्रभाव केवल ग्रह के बल पर पड़ता है न कि उसके स्वभाव पर।शनि नवग्रहों में सबसे धीमी गति से भ्रमण करते हैं तथा एक राशि में लगभग अढ़ाई वर्ष तक रहते हैं अर्थात शनि अपनी उच्च की राशि तुला तथा नीच की राशि मेष में भी अढ़ाई वर्ष तक लगातार स्थित रहते हैं। यदि ग्रहों के अपनी उच्च या नीच राशियों में स्थित होने से शुभ या अशुभ होने की प्रचलित धारणा को सत्य मान लिया जाए तो इसका अर्थ यह निकलता है कि शनि के तुला में स्थित रहने के अढ़ाई वर्ष के समय काल में जन्में प्रत्येक व्यक्ति के लिए शनि शुभ फलदायी होंगे क्योंकि इन वर्षों में जन्में सभी लोगों की जन्म कुंडली में शनि अपनी उच्च की राशि तुला में ही स्थित होंगे। यह विचार व्यवहारिकता की कसौटी पर बिलकुल भी नहीं टिकता क्योंकि देश तथा काल के हिसाब से हर ग्रह अपना स्वभाव थोड़े-थोड़े समय के पश्चात ही बदलता रहता है तथा किसी भी ग्रह का स्वभाव कुछ घंटों के लिए भी एक जैसा नहीं रहता, फिर अढ़ाई वर्ष तो बहुत लंबा समय है।इसलिए ग्रहों के अपनी उच्च या नीच की राशि में स्थित होने का मतलब केवल उनके बलवान या बलहीन होने से समझना चाहिए न कि उनके शुभ या अशुभ होने से। मैने अपने ज्योतिष अभ्यास के कार्यकाल में ऐसी बहुत सी कुंडलियां देखी हैं जिनमें अपनी उच्च की राशि में स्थित कोई ग्रह बहुत अशुभ फल दे रहा होता है क्योंकि अपनी उच्च की राशि में स्थित होने से ग्रह बहुत बलवान हो जाता है, इसलिए उसके अशुभ होने की स्थिति में वह अपने बलवान होने के कारण सामान्य से बहुत अधिक हानि करता है। इसी तरह मेरे अनुभव में ऐसीं भी बहुत सी कुंडलियां आयीं हैं जिनमें कोई ग्रह अपनी नीच की राशि में स्थित होने पर भी स्वभाव से शुभ फल दे रहा होता है किन्तु बलहीन होने के कारण इन शुभ फलों में कुछ न कुछ कमी रह जाती है। ऐसे लोगों को अपनी कुंडली में नीच राशि में स्थित किन्तु शुभ फलदायी ग्रहों के रत्न धारण करने से बहुत लाभ होता है क्योंकि ऐसे ग्रहों के रत्न धारण करने से इन ग्रहों को अतिरिक्त बल मिलता है तथा यह ग्रह बलवान होकर अपने शुभ फलों में वृद्धि करने में सक्षम हो जाते हैं। मित्रों अब आप यह देखें आपकी कुंडली में कौन सा ग्रह कारक है शुभ है जो भाव से संबंधित है लेकिन वह अस्त है या नीच है या बलहीन है पर कारक है या योग कारक है तो रतन घारन करें फिर भी किसी अच्छे ज्योतिषी से अपनी कुंडली दिखाकर यह निश्चित करें आज इतना ही आचार्य राजेश 07597718725

गुरुवार, 11 मई 2017

ज्योतिष से वैदिक काल से ज्योतिष का प्रचलन रहा है समय की पहिचान बिना ज्योतिष के ज्ञान के नही हो सकती है।आज का विज्ञान प्राचीन ज्योतिष का लघु शिष्य है और आयुर्वेद ज्योतिष का चचेरा भाई। ज्योतिष एक रितंभरा प्रज्ञा है। ज्योतिष का इतिहास मानव सभ्यता का इतिहास है जिसका आधार पूर्णतः गणितीय एवं वैज्ञानिक है। हमारे मनिषियों ने इस “पराविज्ञान” के प्रत्येक पक्ष का गहनतम अध्ययन किया है। ज्योतिष शास्त्र एक गुढ़ वैज्ञानिक चिंतन है। यह ग्रह-नक्षत्रों का चिंतन मात्र नहीं, बल्कि भविष्य को टटोलकर अपने अनुकूल बनाने की चेस्टा है। वस्तुतः ज्योतिष भविष्य की तलाश है।इसी प्रकार से आसमानी गह भी ज्योतिष से ही कालान्तर के लगातार ज्ञान को प्राप्त करने के कारण ही पहिचाने जाते है। जब तक ज्योतिष का ज्ञान नही था तब तक पृथ्वी स्थिर थी और सूर्य चन्द्रमा और तारे चला करते थे। जैसे ही ज्योतिष का ज्ञान होने लगा तो पता लगा कि सूर्य तो अपनी ही कक्षा मे स्थापित है बाकी के ग्रह चल रहे है। लेकिन ऋषियों और मनीषियों को बहुत पहले से ज्योतिष का ज्ञान था उन्हे प्रत्येक ग्रह के बारे मे जानकारी थी,यहां तक कि मंगल ग्रह के बारे मे भी उनका ज्ञान प्रचुर मात्रा मे था और उन्होने मंगल ग्रह की पूरी गाथा पहले ही लिख दी थी। पुराने जमाने से सुनता आया हूँ- "लाल देह लाली लसे और धरि लाल लंगूर,बज्र देह दानव दलन जय जय कपि शूर",इस दोहे को लिखा तो तुलसीदास जी है लेकिन उन्हे इस बारे मे कैसे पता लगा कि मंगल का रंग लाल है और जब मंगल को खुली आंख से देखा जाये तो लाल रंग का ही दिखाई देता है सूखा ग्रह है इसलिये बज्र की तरह से कठोर है,साथ ही ध्वजा पर लाल रंग का होना मंगल का उपस्थिति का कारण भी बनाता है,मंगल के देवता हनुमान जी के विषय मे उन्होने लिखा था। इस बात का सटीक पता तब और चला जब अमेरिका के नासा स्पेस से वाइकिंग नामका उपग्रह यान मंगल पर भेजा गया और उसने जब सन दो हजार में मंगल के ऊपर की कुछ तस्वीरे भेजी तो उसके अन्दर एक फ़ेस आफ़ मार्स के नाम से भी तस्वीर आयी। यह तस्वीर बिलकुल हनुमान जी की तस्वीर की तरह थी,इस तस्वीर को उन्होने सन दो हजार दो तक नही प्रसारित की,इसका भी कारण था,वे अपने को बहुत ही उन्नत और वैज्ञानिक भाषा मे दक्ष मानते थे और जब भी उनका कोई टूरिस्ट भारत आता था और भारत मे जब हनुमानजी के मंदिर को देखता तो वह मजाक करता था और "मंकी टेम्पिल" कह के चला जाता था। इस फ़ेस आफ़ मार्स ने अमेरिका के वैज्ञानिक धारणा को चौपट कर दिया और उन्हे यह पता लग गया कि भारत मे तो आदि काल से ही मंगल को हनुमान जी के रूप मे माना जा रहा है। विज्ञान जहाँ समाप्त हो जाता है वहाँ से ज्योतिष विज्ञान शुरु होता है ! जिस प्रकार से विज्ञान के अन्दर जो भी धारणा पैदा की जाती है उसके अनुसार रसायन शास्त्र भौतिक शास्त्र चिकित्सा शास्त्र आदि बनाये गये है। लेकिन जितनेी तत्व विज्ञान की कसौटी पर खरे उतरते है उनके अन्दर केवल चार तत्व की मीमांसा ही की जा सकती है। बाकी का एक तत्व जो गुरु के रूप मे है वह विज्ञान न तो कभी प्रकट कर पाया है और न ही कभी अपनी धारणा से प्रकट कर सकता है। शरीर विज्ञान को ही ले लीजिये,सिर से लेकर पैर तक सभी अंगो का विश्लेषण कर सकता है,हड्डी से लेकर मांस मज्जा खून वसा धडकन की नाप आदि सभी को प्रकट कर सकता है कृत्रिम अंग बनाकर एक बार शरीर के अंग को संचालित कर सकता है। फ़ाइवर ब्लड को बनाकर कुछ समय के लिये खून की मात्रा को बढा सकता है लेकिन जो सबसे मुख्य बात है वह है प्राण वायु यानी गुरु की वह पैदा नही कर सकता है जब प्राण वायु को शरीर से जाना होता है तो वह चली जाती है और शरीर मृत होकर पडा रह जाता है उसके बाद शरीर वैज्ञानिक केवल पोस्ट्मार्टम रिपोर्ट को ही पेश कर सकता है कि ह्रदय रुक गया मस्तिष्क ने काम करना बन्द कर दिया अमुक चीज की कमी रह गयी और अमुक कारण नही बन पाया। नही समझ पाये आज तक कि गुरु क्या है लेकिन ज्योतिष शास्त्र मे सर्वप्रथम गुरु का विवेचन समझना पडता है गुरु जिस स्थान से शुरु होता है अपने अन्तिम समय तक केवल काल की अवधि तक ही सीमित रहता है उसे कोई पकड नही पाया अपने अनुसार पैदा नही कर पाया और न ही विज्ञान के अन्दर इतनी दम है कि वह भौतिक रूप से गुरु को प्रदर्शित कर सके। जिस दिन यह गुरु भौतिकता मे समझ मे आने लगेगा उस दिन विज्ञान की परिभाषा पराविज्ञान के रूप मे जानी जायेगी।

शुक्रवार, 5 मई 2017

मां काली ज्योतिष की आज की पोस्ट ज्योतिष तो अपने आप में पूर्णतः सही गणना है, परन्तु भविष्य वक्‍ता की गणना सही है या गलत यह इस बात पर निर्भर करता है कि जो व्यक्‍ति गणना कर रहा है, उसके पास ज्योतिष का कितना ज्ञान है, जिस प्रकार एक प्रशिक्षित डॉक्टर या वैद्य किसी बीमारी को डा‌इग्नोस करने में पहले उसके लक्षण व स्वभाव को समझता है फिर उसका इलाज करता है । हालांकि यह और बात है कि आज के मशीनी युग में हम मशीनी परीक्षण पर निर्भर हैं, लेकिन दोनों ही स्थितियों में डॉक्टर व वैद्य का ज्ञान और परीक्षण रिपोर्ट के आधार पर ही मरीज़ को सही इलाज मिलना सम्भव है । थोड़ी सी लापरवाही या अल्पज्ञान मरीज़ के लिये घातक सिद्ध हो सकता है ठीक उसी प्रकार ज्योतिष में ग्रहों के स्वभाव, भाव और राशि तथा आपसी ग्रहों के संबंधों के आधार पर भविष्य कथन होता है जो पूर्णतः सही होता है । परन्तु यदि ज्योतिष शास्त्री अगर ग्रहों की स्थिति व भावगत स्वभाव को समझने में थोड़ी सी भी भूल कर देते हैं तो उनका कथन गलत हो जाता है । ज्योतिष शास्त्र जीवन का आ‌ईना दिखाने के साथ - साथ जीवन का मार्गदर्शन भी करता है । व्यक्‍ति का जीवन किस दिशा में निर्धारित है और उसे को किस दिशा में प्रयास करना चाहि‌ए । जैसे कि ज्योतिष में पहले से निर्धारित है कि अमुक समस्या का समय अमुक तारीख से अमुक तारीख तक रहेगा, उसके लि‌ए व्यक्‍ति मानसिक तौर पर तैयार हो जाता है और उस समय धैर्य नहीं खोता है । अगर समस्या का समय पता न हो तो व्यक्‍ति धैर्य खो देता है । अतः समस्या का कारण पता होने से सकारात्मक दिशा में सुधार हेतु प्रयास भी काफी हद तक व्यक्‍ति को समस्या‌ओं से निजात दिलाने में सार्थक होते हैं । जहाँ तक नौकरी की बात है तो बच्चे के जन्म के समय से ही पता लग जाता है कि वह नौकरी करेगा या व्यवसाय तो उस दिशा में उसके स्वभाव के अनुरूप दिशा देना उसके कैरियर में काफी महत्वपूर्ण साबित होता है । ठीक उसी प्रकार से बीमारी की जहां तक बात है तो ज्योतिष द्वारा यह आंकलन होता है कि कौन सी बीमारी कब और शरीर के किस हिस्से में होगी उसके अनुरूप ज्योतिष द्वारा कौन से उपाय करने चाहि‌ए यह तय करना आसान हो जाता है । जैसे की अगर किसी को पाचन की समस्या हो रही है तो कुण्डली में यह पता चल जाता है कि उसे यह समस्या मंदाग्नि या जठराग्नि के कारण है । मंदाग्नि, जठराग्नि पित्तज प्रवृति के ग्रहों की प्रबलता या निर्बलता पर निर्भर करते हैं । ऐसी स्थिति में उन ग्रहों को सन्तुलित करने का उपाय स्वास्थ्य के लि‌ए कारगर साबित हो सकता है ।इसमें कहीं को‌ई दो राय नहीं कि मनुष्य का भाग्य और पुरूषार्थ दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। परन्तु यह भी सच है कि भाग्य से मनुष्य जो पाता है उसे कायम रखने के लि‌ए उसे प्रयास करने होते हैं लेकिन जो भाग्य में नहीं है उसे कर्मयोगी व्यक्‍ति पुरूषार्थ से हासिल कर लेते हैं। जीवन के अनेक पहलु‌ओं को प्रभावित करने वाला ज्योतिष शास्त्र हमारी समस्या‌ओं के हल तो अवश्य देता है परन्तु ज्योतिष विद्या भी कर्म पर बल देती है । इसलि‌ए यदि हम स्वयं पर भरोसा रखेंगे तो भ्रम और भ्रान्तियों के मकड़जाल में भी कम फसेंगे ।किसी भी व्यक्‍ति की कुण्डली का अध्ययन भी ज्योतिषीय गणना‌ओं के आधार पर ही किया जाता है । आज बदलते दौर के साथ हम जितना आधुनिक होते जा रहे हैं उतना ही ज़्यादा हम भविष्य को जानने के लि‌ऐ भी आतुर रहने लगे हैं । शायद यही वजह है कि आज ज्योतिष विद्या को अनेक भ्रान्तियों ने आ घेरा है जिस कारण समाज में अन्धविश्‍वास भी बढ़ने लग है अब सवाल यह है कि सही ज्योतिषी और गलत ज्योतिषी मैं फर्क कैसे जाने क्या जो ज्योतिषी अपनी फीस लेकर आपको कुंडली देखकर पसंद करते हैं वह गलत है या फ्री अभी देखकर बताते हैं पूजा पाठ के नाम से आपक डरा् कर आपसे पैसे लेते्हैं। मुफ्त में कोई कुछ नहीं देता मित्रों अतः ऐसे लोगो से दूर रहे उसके बाद दूसरे ज्योतिषियों में से आप चुनाव करें,आचार्य राजेश

मां काली ज्योतिष की आज की पोस्ट ज्योतिष तो अपने आप में पूर्णतः सही गणना है, परन्तु भविष्य वक्‍ता की गणना सही है या गलत यह इस बात पर निर्भर करता है कि जो व्यक्‍ति गणना कर रहा है, उसके पास ज्योतिष का कितना ज्ञान है, जिस प्रकार एक प्रशिक्षित डॉक्टर या वैद्य किसी बीमारी को डा‌इग्नोस करने में पहले उसके लक्षण व स्वभाव को समझता है फिर उसका इलाज करता है । हालांकि यह और बात है कि आज के मशीनी युग में हम मशीनी परीक्षण पर निर्भर हैं, लेकिन दोनों ही स्थितियों में डॉक्टर व वैद्य का ज्ञान और परीक्षण रिपोर्ट के आधार पर ही मरीज़ को सही इलाज मिलना सम्भव है । थोड़ी सी लापरवाही या अल्पज्ञान मरीज़ के लिये घातक सिद्ध हो सकता है ठीक उसी प्रकार ज्योतिष में ग्रहों के स्वभाव, भाव और राशि तथा आपसी ग्रहों के संबंधों के आधार पर भविष्य कथन होता है जो पूर्णतः सही होता है । परन्तु यदि ज्योतिष शास्त्री अगर ग्रहों की स्थिति व भावगत स्वभाव को समझने में थोड़ी सी भी भूल कर देते हैं तो उनका कथन गलत हो जाता है । ज्योतिष शास्त्र जीवन का आ‌ईना दिखाने के साथ - साथ जीवन का मार्गदर्शन भी करता है । व्यक्‍ति का जीवन किस दिशा में निर्धारित है और उसे को किस दिशा में प्रयास करना चाहि‌ए । जैसे कि ज्योतिष में पहले से निर्धारित है कि अमुक समस्या का समय अमुक तारीख से अमुक तारीख तक रहेगा, उसके लि‌ए व्यक्‍ति मानसिक तौर पर तैयार हो जाता है और उस समय धैर्य नहीं खोता है । अगर समस्या का समय पता न हो तो व्यक्‍ति धैर्य खो देता है । अतः समस्या का कारण पता होने से सकारात्मक दिशा में सुधार हेतु प्रयास भी काफी हद तक व्यक्‍ति को समस्या‌ओं से निजात दिलाने में सार्थक होते हैं । जहाँ तक नौकरी की बात है तो बच्चे के जन्म के समय से ही पता लग जाता है कि वह नौकरी करेगा या व्यवसाय तो उस दिशा में उसके स्वभाव के अनुरूप दिशा देना उसके कैरियर में काफी महत्वपूर्ण साबित होता है । ठीक उसी प्रकार से बीमारी की जहां तक बात है तो ज्योतिष द्वारा यह आंकलन होता है कि कौन सी बीमारी कब और शरीर के किस हिस्से में होगी उसके अनुरूप ज्योतिष द्वारा कौन से उपाय करने चाहि‌ए यह तय करना आसान हो जाता है । जैसे की अगर किसी को पाचन की समस्या हो रही है तो कुण्डली में यह पता चल जाता है कि उसे यह समस्या मंदाग्नि या जठराग्नि के कारण है । मंदाग्नि, जठराग्नि पित्तज प्रवृति के ग्रहों की प्रबलता या निर्बलता पर निर्भर करते हैं । ऐसी स्थिति में उन ग्रहों को सन्तुलित करने का उपाय स्वास्थ्य के लि‌ए कारगर साबित हो सकता है ।इसमें कहीं को‌ई दो राय नहीं कि मनुष्य का भाग्य और पुरूषार्थ दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। परन्तु यह भी सच है कि भाग्य से मनुष्य जो पाता है उसे कायम रखने के लि‌ए उसे प्रयास करने होते हैं लेकिन जो भाग्य में नहीं है उसे कर्मयोगी व्यक्‍ति पुरूषार्थ से हासिल कर लेते हैं। जीवन के अनेक पहलु‌ओं को प्रभावित करने वाला ज्योतिष शास्त्र हमारी समस्या‌ओं के हल तो अवश्य देता है परन्तु ज्योतिष विद्या भी कर्म पर बल देती है । इसलि‌ए यदि हम स्वयं पर भरोसा रखेंगे तो भ्रम और भ्रान्तियों के मकड़जाल में भी कम फसेंगे ।किसी भी व्यक्‍ति की कुण्डली का अध्ययन भी ज्योतिषीय गणना‌ओं के आधार पर ही किया जाता है । आज बदलते दौर के साथ हम जितना आधुनिक होते जा रहे हैं उतना ही ज़्यादा हम भविष्य को जानने के लि‌ऐ भी आतुर रहने लगे हैं । शायद यही वजह है कि आज ज्योतिष विद्या को अनेक भ्रान्तियों ने आ घेरा है जिस कारण समाज में अन्धविश्‍वास भी बढ़ने लग है अब सवाल यह है कि सही ज्योतिषी और गलत ज्योतिषी मैं फर्क कैसे जाने क्या जो ज्योतिषी अपनी फीस लेकर आपको कुंडली देखकर पसंद करते हैं वह गलत है या फ्री अभी देखकर बताते हैं पूजा पाठ के नाम से आपको ब्रोकर आपसे पैसे लेते्हैं। मुफ्त में कोई कुछ नहीं देता मित्रों अतः ऐसे लोगो से दूर रहे उसके बाद दूसरे ज्योतिषियों में से आप चुनाव करें,आचार्य राजेश

बुधवार, 3 मई 2017

रिश्ते और ग्रह नक्षत्तर मित्तरो ग्रह नक्षत्रों व रिश्तों का एक अनोखा व अटूट सम्बन्ध होता है. आपके पारिवारिक रिश्ते ग्रह व नक्षत्रों से प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े होते हैं. नक्षत्र यानि आकाश के तारों का समूह व ग्रह यानि आकाश में स्थापित अन्य पिंड. ग्रह व नक्षत्र हमारे आपसी रिश्ते / नातों पर प्रभाव डालते हैं. ये बिल्कुल सत्य है. लाल किताब के अनुसार हमारी जिंदगी से जुड़ने वाला हर रिश्ता किसी ना किसी ग्रह का सूचक है. हमारी कुंडली में जो ग्रह जहाँ स्थित है, वो रिश्ता वहीँ से हमारी ज़िन्दगी में भी आता हैयदि किसी ग्रह की दशा खराब चल रही है तो उस से जुड़े रिश्ते पर ध्यान देने से लाभ प्राप्त होगा. कुंडली का प्रत्येक भाव किसी ना किसी रिश्ते अथवा रिश्तेदार से प्रभावित होता है और इसीलिए कुंडली में यदि कोई ग्रह कमजोर है तो उस से जुड़े रिश्ते को मजबूत बनाने की कोशिश करें व अपने आपसी संबंधों में सुधार व बदलाव लायें.. जिंदगी की आपाधापी में रिश्ते कहीं खो गए हैं शायद इसीलिए अब लोग दुखी है सो तरा के उपाय हम कर रहे हैं लेकिन अपने रिश्तो को नहीं सुधारतेमाता-पिता, भाई-बहिन,पति पत्नी, मित्र पड़ोसी सगे-सम्बन्धी इत्यादि संसार के अजितने भी रिश्ते नाते है। सब मिलते है। क्योंकि इन सबको हमें या तो कुछ देना होता है या इनसे कुछ लेना होता है।जन्म पत्रिका के बाहर भावों में ग्रह और सामाजिक रिश्ते अलग-अलग भाव से होते है।व्यक्ति की कुंडली में ग्रहों ग्रह स्वामी ,ग्रहों के आपसी संबंध, ग्रहों की दृष्टि, आदि का प्रभाव व्यक्ति के संबंधों पर पड़ता है। जो की परिवारजनों के संबंधों को अनुकूल बनाता है। रिश्ते की बुनियाद प्यार और विश्वास हर टिकी होती है। इसलिए अाजकल के समय में जितना रिश्तों को बनाना अासान है उतना ही बनाएं रखना मुश्किल हो गया है। इसके लिए आपको हर रिश्ते की अच्छे से देखभाल करने के लिए अपने रिश्ते को ज्यादा समय देकर और समझदारी से बना कर रखना चाहिए ताकि अापका रिश्ता कमजोर न हों। ऐसे में अगर आपके रिश्ते में कोई गलतफहमी हो या फिर दूरिया हो तो अापके अापकी प्यार से इन्हें दूर करेबदलते जमाने के साथ हर किसी की सोच बदल गई है, तो एेसे ही हर परिवार में बदलती सोच के साथ परिवार भी बिखर गए हैं। पुराने समय में सभी एक साथ एक परिवार बन कर रहते थें पर अब अलग-अलग रहने लगे हैं। एेसे में हर किसी के लिए उन रिश्तों की अहमियत बढ़ जाती है जो खून के न हों, जैसे दोस्ती, व्यापारिक या आसपड़ोस के रिश्ते। एेसे रिश्ते हमारी जरूरतों की वजह से बनते हैं। एेसे में हमें खून के रिश्तों को भी समय देकर और समझदारी से निभाना चाहिएइसलिए दोस्तों अगर आपके ग्रह छप्पर ठीक नहीं चलोगे तो सबसे पहले आपसे बंधुओं को सुधारें उसके बाद ही ज्योतिष उपाय काम करेंगे जब तक आपके अपने आप से दूर है यानी माता-पिता भाई-बहन पड़ोसीं।इनसे आप अपने रिश्ते की करें और इन से मधुर संबंध बनाएंग्रह और संबंध :ग्रह अनुकूल होने पर ग्रहों के अनुसार संबंध ठीक रहते हैं। अपने रिस्तो पर नजर डाले । देखें आपका कौन सा सम्बन्धी आपसे संतुस्ट नही है ,उससे सम्बंधित ग्रह आपका ख़राब होगा। जैसे आपकी माँ आपसे रूठी है तो चन्द्रमाँ आपका अच्छा फल नही कर रहा है। इसी प्रकार पिता से आपके सम्बन्धं अगर ठीक नही है तो सूर्य अच्छा फल नही दे रहा है । पत्नी से अनबन चल रही होतो समझले आप का शुक्र ग्रह ख़राब फल कर रहा है । बहने अगर आपसे खफा हैं तो बुध आप से खफा है। भाई आपके साथ नहीं है तो मंगल आपके साथ नही है । आपके गुरुजन आपसे रुष्ट है तो गुरु ग्रह आपसे रुष्ट है । और जब शनि की टेड़ी नजर आप पर है तो आपके नौकर चाकर आप का नुकसान करते रहेंगे । रहू अपनी सैतानी आपके दुष्ट मित्रो के रूप में दिखा सकता है । केतु आपके पालतू जानवर पर प्रभाव दिखता है । इसके आलावा भी आलग आलग रिस्तो के लिए आलग आलग ग्रह प्रभाव रख ते है । इस तथ्य को जानकर आप आसानी से जान सकते है की ,कौन सा ग्रह आप का ख़राब है और कौन सा अच्छा है आज इतना ही आचार्य राजेश

सोमवार, 1 मई 2017

ज्योतिष क्या है आज के दौर में ज्योतिष एक फैशन बन गया है. ज्योतिष व्यवसायीकरण के युग में एक प्रोडक्ट बन गया है जिसका उपाय किसी इंस्टंट नूडल की तरह बताया जा रहा है .मन की मनुष्य के जीवन में लाभ-हानि, अनुकूलता-प्रतिकूलता, शुभता-अशुभता या अच्छा-बुरा कब-कब होगा इसको ज्योतिष के माध्यम से ही जाना जा सकता है. लेकिन वास्तव में ज्योतिष का अर्थ होता है व्यक्ति को जागरुक/ सचेत करना, परन्तु समाज में इसके गलत प्रयोग करने ,लोगो को सही जानकारी देने की बजाए उनको भयभीत कर धन कमाने के कारण कई बार इस बिद्या की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है. ज्योतिष समय का विज्ञानं है . तिथि , वार, नक्षत्र , योग और कर्म इन पांच चीजों का अध्ययन कर भविष्य में होने वाली घटनायों का आकलन किया जाता है . संभावनायों और भविष्यवाणी के बजाय ज्योतिष शास्त्र का सही उपयोग परामर्श , मानव जीवन को अनुशासित और जिंदगी के हर पल का एक समुचित मार्गदर्शन के साधन के तौर पर समाज में प्रस्तुत करने की अंत्यत आवश्यकता है . केवल भविष्यवाणियों में सिमित न रह कर , ज्योतिष का आधार लेकर मनुष्य की जीवन की कई समस्यायों का हल निकाला जा सकता है. ज्योतिष भविष्य को बदलता नहीं बल्कि मनुष्य को सही और उचित सलाह देता है . प्रथम तो हमें यह समझ लेना चाहिए की ज्योतिष है क्या ? ज्योतिष प्रकाश का नाम है | प्रकाश अँधेरे को दूर करता है अँधेरा लाता नहीं | ज्योतिष कर्म को निश्चित करता है कर्म से भटकाता नहीं | ज्योतिष व्यर्थ के प्रयासों से बचते हुए सफलता के लिए मदद करता है व्यर्थ के कार्य नहीं करवाता है | वस्तुतः ज्योतिष हमें हमारे अन्तर्निहित शक्ति का ज्ञान करवाते हुए सही दिशा प्रदान करता है | 12 राशि, 9 ग्रह और 27 नक्षत्रों को लेकर कुंडली बनाई जाती है। सही गणना के लिए तारीख, वक्त, स्थान तीनों सही होने चाहिए। ग्रहों के अलावा पिछले पूर्वजन्म भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जन्मकुंडली के अलावा हस्तरेखा, प्रश्नकुंडली आदि तरीकों से भी भाग्य बांचा जाता है। बाहरी दुनिया के साथ हमारे संपर्कों को जानने-समझने का तरीका है ज्योतिष। यह ऐसा विज्ञान है, जो वातावरण द्वारा मनुष्य पर पड़नेवाले प्रभावों की स्टडी करता है। इसमें समुद्र तल से ऊंचाई, देशांतर-अक्षांश, पर्यावरण, स्तंभन, चुंबकत्व, गुरुत्वाकर्षण, रेडिएशन ईश्वर, पुनर्जन्म, पूर्वजन्म और मनुष्य का विवेक मायने रखता है।ज्योतिष महज संकेत करता है, उससे जानना और समझना हमारे ऊपर है। इसके लिए देश-पात्र-काल जरूरी है लेकिन कर्म और संगत का भी असर होता है। प्रश्नकर्ता को घरवालों के ग्रह भी प्रभावित करते हैं। साथ ही, आप कैसा सोचते हैं, क्या करते हैं, ये सब बातें भी प्रभावित करती हैं। हर दो घंटे में लग्न बदलता है। कई बार एक मिनट के अंतर से भी लग्न बदल जाता है, मसलन अगर 2 बजे लग्न बदल रहा है और जन्म 1:59 मिनट पर हुआ तो दूसरा लग्न होगा। तब जन्म समय में 1 मिनट के फर्क से ही गणना में बहुत ज्यादा अंतर आ जाएगा। अगर लग्न नहीं बदला है तो थोड़ा अंतर हो सकता है।दो तरह से असर होता है। एक राशि या लग्न बदल जाना और दूसरे ग्रह की ताकत बदल जाना। लेकिन वक्त काफी मायने रखता है। 3.40 सेकंड में नवांश (नवां हिस्सा) बदल जाता है और एक मिनट के फर्क से गणना में 20-25 फीसदी बदलाव आ जाता है। मिनटों का अंतर भी गणना में फर्क ला देता है। सही गणना के लिए सही वक्त और जगह का होना जरूरी है। लेकिन यह भी सच है कि एक ही वक्त पर एक ही जगह जन्मे सभी बच्चों का भविष्य एक नहीं होगा। कर्मयोग और वातावरण से बदलाव आ सकता है। ज्योतिष में ECMCDIP का फॉर्म्युला चलता है, यानी एजुकेशन, करियर, मैरिज, चिल्ड्रन, डेथ, इलनेस और प्रॉपर्टी के बारे में जानने में लोगों की सबसे ज्यादातर दिलचस्पी होती है। लेकिन ज्योतिष महासागर है। बीते या आनेवाले वक्त की सभी बातें सटीक बताना नामुमकिन नहीं हैं।करियर, रिश्ते, कामयाबी, एजुकेशन, बच्चों आदि के बारे में बता सकते हैं लेकिन अगर कोई यह पूछे कि आज मैंने क्या खाया था तो यह नहीं बताया जा सकता।प्रफेशन, बीमारी, देश-विदेश का योग, विवाह, बच्चे, रिश्ते सभी के बारे में बता सकते हैं लेकिन ये सिर्फ संभावनाएं झहोंगी। कर्म तो करना ही पड़ेगा। अगर कोई ये कहे कि इस बंजर जमीन पर फसल कब उगेगी तो बताना मुश्किल है।बस मार्गदर्शक या संकेतक का काम कर सकता है ज्योतिष। अगर ईश्वर न चाहे या किसी ने अपना आत्मबल काफी मजबूत किया हुआ है तो ग्रह चाल का असर काफी कम होगा। : हठयोग के आगे ज्योतिष हार जाता है। अगर किसी को बताया जाए कि बुरा वक्त है और वह सावधान हो जाता है तो वक्त टल सकता है लेकिन तब वही व्यक्ति कहेगा कि ज्योतिषी का बताया गलत साबित हुआ। लोग अक्सर इंटरप्रेट भी गलत कर लते हैं।ज्योतिष बस दिशा दिखाता है। कर्म किए बिना फल की उम्मीद बेकार है।सब कुछ लिखा है। हर बारीक से बारीक बात लिखी है। उपायों से थोड़ा-बहुत बदल सकते हैं। अगर हल्का मारक है यानी ग्रह की पावर कम है तो टाला जा सकता है, प्रबल मारक को रोका नहीं जा सकता। रेखाएं बनती-बिगड़ती हैं। भाग्य भी बदलता है। कर्म और दूसरे उपायों से 50 फीसदी तक बदलाव मुमकिन है। काफी बदलाव किया जा सकता है। हालांकि भाग्य का लिखा मिटता नहीं है सिर्फ कुछ हद तक फेरबदल किया जा सकता है। मसलन, एक बच्चे के ग्रह अच्छे हैं लेकिन बुरी संगति में पड़कर बिगड़ सकता है।बाजारू ज्योतिषी उपाय बताएगा और उपाय खुद करने के नाम पर पैसे एंठेगा। आपकी कुंडली देखकर जो आपके बारे में मोटी-मोटी बातें सही बता दे, उसे विषय का जानकार मान सकते हैं। अच्छे ज्योतिषी के पास तकनीकी, बौद्धिक और नैतिक उत्कृष्टता होती है।जो अपने विषय का जानकार हो, पढ़ा-लिखा हो और तार्किक तरीके से सोचे। तामझाम और आडंबर के चक्कर में नहीं आना चाहिए। उपाय भी ऐसे होने चाहिए, जो आप खुद कर सकें। अच्छा ज्योतिषी सामने बिठाकर या चित्र देखकर फैमिली बैकग्राउंड जानकर बताएगा। किसी की गणनाएं कितनी सही निकलती हैं, इस आधार पर भी पता लगाया जा सकता है। वैसे, दूसरे क्षेत्रों की तरह ज्योतिषियों के लिए डिग्री जरूरी होनी चाहिए। 12 राशियां हैं और 600 करोड़ लोग हैं। ऐसे में एक राशि में आए 50 करोड़ लोग। तो भला इतने लोगों का भविष्य एक जैसा कैसे हो सकता है। दैनिक राशिफल बेकार होते हैं। राशिफल करने वाले लोग को मैं ज्योतिष नहीं मानता ज्योतिष से उन लोगों का नाता हो ही नहीं सकता आचार्य राजेश

मारक बुद्ध बुध का रूप बहुत ही कोमल नाजुक माना जाता है फ़ूल में पंखुडियां बुध की होती है पंखुडियों की सजावट शुक्र करता है और राहु खुशबू देता है,फ़ूल को साधने का काम भी बुध करता है वह हरे पत्तों के रूप में भी और हरे रंग के रूप में भी,केतु उसकी टहनी होती है,जड शनि और गुरु खुशबू को फ़ैलाने वाली वायु.फ़ूल के रंग अलग अलग ग्रहों के आधार पर देखे जाते है चन्द्रमा सफ़ेद सूर्य गुलाबी मंगल लाल गुरु से पीला शनि से काला राहु से धूमिल और केतु से चितकबरा.कई रंगो का मिलावटी रूप भी देखा जाता है जैसे गुलाब में गुलाबी भी होता है तो सफ़ेद भी होता है काला भी होता है लाल गुलाब भी होता है। समय कुंडली के नवांस से मन का कारक चन्द्रमा जिस भाव में होता है उस भाव और उस राशि का रंग ही दिमाग मे रहता है अक्सर चालाक ज्योतिषी पहले से ही फ़ूल का नाम लिख लेते है और जातक से जब फ़ूल का नाम पूंछा जाता है तो जातक उसी फ़ूल का नाम बताता है जो ज्योतिषी ने लिख लिया होता है,यह आश्चर्य की सीमा मे आजाता है और जातक का विश्वास ज्योतिषी पर पूरी तरह से हो जाता है। बुध जब मारक ग्रह का काम करता है तो मेष राषि वाले के लिये छठे भाव की बीमारियां देता है वृष राशि वाले को पेट की बीमारी देता है मिथुन राशि वाले को सांस की बीमारी देता है,कर्क राशि वाले को लकवा की बीमारी देता है सिंह राशि वाले को जुबान के रोग देता है कन्या राशि वाले को सिर के रोग देता है तुला राशि वाले को यात्राओं से इन्फ़ेक्सन देता है वृश्चिक राशि वालो को दाहिने हिस्से में सुन्नता देता है धनु राशि वाले को रीढ की हड्डी की बीमारी देता है मकर राशि वालो को पुट्ठों और नितम्बो की बीमारी देता है कुम्भ राशि वालो को जननांग सम्बन्धी बीमारी देता है,मीन राशि वालो को शरीर के नीचे के हिस्से यानी नाभि के नीचे की बीमारी देता है। आक्स्मिक हादसे में बुध जब राहु का साथ लेता है तो मेष राशि का जातक या तो बहुत सा धन इकट्ठा कर लेता है और डकैती आदि के कारण मारा जाता है अथवा बहुत बडी दुश्मनी अलावा जातियों से कर लेता है और सामाजिक दुश्मनी के कारण मारा जाता है अथवा वह अपने प्रयासो से इतना कर्जा कर लेता है कि कर्जा वसूलने वाले उसे मार डालते है,अथवा वह नौकरी आदि में अपनी बहादुरी दिखाने के चक्कर में मारा जाता है।कन्या लगन मे मीन राशि का बुध चन्द्र शुक्र एक छलावा की तरह से काम करते है,यहाँ बुध एक ऐसी लडकी के रूप मे काम करता है कि वह कहलाने को तो बहिन कहलाये और समय आने पर पत्नी का हक भी पूरा कर दे,इसके साथ ही चन्द्रमा भी यहा बुध के साथ मिलकर जीवन साथी के रूप मे छलावा करता है,शादी के बाद मतलब परस्ती और रिस्ता एक व्यापारी की भांति निभाना भी माना जा सकता है,शुक्र उच्च राशि का होकर केवल जीवन साथी की आराम परस्ती के लिये अपना हक अदा करता है,जातक के लिये यात्राओ वाले काम देता है माता बहिन और पत्नी के बीच मे सामजस्य बैठाने मे दिक्कत आती है,रोजाना के कामो मे कभी कभी एन वक्त पर खोपडी घूमने पर काम का खराब कर दिया भी माना जा सकता है.इस दोष को दूर करने के लिये केवल पहाडी क्षेत्रो की देवी यात्रायें ही लाभदायक होती है ज्योतिष आदि के काम भी फ़लीभूत होते है. अगर आप में से कोई भी मुझसे अपनी कुंडली बनवाना दिखाना या कोई समस्या का हल चाहता है तो आप मुझसे निबंध नंबरों पर संपर्क कर सकते हैं 07597718725 094144813240 paid service

रविवार, 30 अप्रैल 2017

: वक्री बुघ आमतौर पर ग्रहों के संबोधन को ही उनका असर मान लिया जाता है। जैसे नीच के ग्रह को नीच यानि घटिया और उच्‍च के ग्रह को उच्‍च यानि श्रेष्‍ठ मान लिया जाता है। यही स्थिति कमोबेश वक्री ग्रह के साथ भी होती है। उसे उल्‍टी चाल वाला मान लिया जाता है। यानि वक्री ग्रह की दशा में जो भी परिणाम आएंगे वे उल्‍टे ही आएंगे। ऐसा नहीं है कि केवल नौसिखिए या शौकिया ज्‍योतिषी ही यह गलती करते हैं बल्कि मैंने कई स्‍थापित ज्‍योतिषियों को भी यही गलती करते हुए देखा है।बुध का। बुध कभी भी सूर्य से तीसरे घर से दूर नहीं जा पाता है। यानि 28 डिग्री को पार नहीं कर पाता है। इसी के साथ दूसरा तथ्‍य यह है कि सूर्य के दस डिग्री से अधिक नजदीक आने वाला ग्रह अस्‍त हो जाता है। अब बुध नजदीक होगा तो अस्‍त हो जाएगा और दूर जाएगा तो वक्री हो जाएगा। ऐसे में बुध का रिजल्‍ट तो हमेशा ही नेगेटिव ही आना चाहिए। शब्‍दों के आधार पर देखें तो ग्रह के अस्‍त होने का मतलब हुआ कि ग्रह की बत्‍ती बुझ गई, और अब वह कोई प्रभाव नहीं देगा और वक्री होने का अर्थ हुआ कि वह नेगेटिव प्रभाव देगा। वास्‍तव में दोनों ही स्थितियां नहीं होती। टर्मिनोलॉजी से दूर आकर वास्‍तविक स्थिति में देखें तो सूर्य के बिल्‍कुल पास आया बुध अस्‍त तो हो जाता है लेकिन अपने प्रभाव सूर्य में मिला देता है। यही तो होता है बुधादित्‍य योग। ऐसे जातक सामान्‍य से अधिक बुद्धिमान होते हैं। यानि सूर्य के साथ बुध का प्रभाव मिलने पर बुद्धि अधिक पैनी हो जाती है। दूसरी ओर वक्री ग्रह का प्रभाव। सूर्य से दूर जाने पर बुध अपने मूल स्‍वरूप में लौट आता है। जब वह वक्री होता है तो पृथ्‍वी पर खड़े अन्‍वेषक को अधिक देर तक अपनी रश्मियां देता है। यहां अपनी रश्मियों से अर्थ यह नहीं है कि बुध से कोई रश्मियां निकलती हैं, वरन् बुध के प्रभाव वाली तारों की रश्मियां अधिक देर तक अन्‍वेषक को मिलती है। ऐसे में कह सकते हैं बुध उच्‍च के परिणाम देगा। अब यहां उच्‍च का अर्थ अच्‍छे से नहीं बल्कि अधिक प्रभाव देने से है। सुबह यह है कि बुद्ध कब अच्‍छे या खराब प्रभाव देगा इसका जवाब बहुत आसान है। जिस कुण्‍डली में बुध कारक हो और अच्‍छी पोजिशन पर बैठा हो वहां अच्‍छे परिणाम देगा और जिस कुण्‍डली में खराब पोजिशन पर बैठा हो वहां खराब परिणाम देगा। इसके अलावा जिन कुण्‍डलियों में बुध अकारक है उनमें बुध कैसी भी स्थिति में हो, उसके अधिक प्रभाव देखने को नहीं मिलेंगे। [सारावली के अनुसार वक्री ग्रह सुख प्रदान करने वाले होते हैं लेकिन यदि जन्म कुंडली में वक्री ग्रह शत्रु राशि में है या बलहीन अवस्था में हैं तब वह व्यक्ति को बिना कारण भ्रमण देने वाले होते हैं. यह व्यक्ति के लिए अरिष्टकारी भी सिद्ध होते हैं.फल दीपिका में मंत्रेश्वर जी का कथन है कि ग्रह की वक्र गति उस ग्रह विशेष के चेष्टाबल को बढ़ाने का काम करती है. कृष्णमूर्ति पद्धति के अनुसार प्रश्न के समय संबंधित ग्रह का वक्री होना अथवा वक्री ग्रह के नक्षत्र में होना नकारात्मक माना जाता है. काम के ना होने की संभावनाएँ अधिक बनती हैं. यदि संबंधित ग्रह वक्री नहीं है लेकिन प्रश्न के समय वक्री ग्रह के नक्षत्र में स्थित है तब कार्य पूर्ण नहीं होगा जब तक कि ग्रह वक्री अवस्था में स्थित रहेगा. सर्वार्थ चिन्तामणि में आचार्य वेंकटेश ने वक्री ग्रहों की दशा व अन्तर्दशा का बढ़िया विवरण किया है. सर्वार्थ चिन्तामणि के अनुसार ही वक्री बुध अपनी दशा/अन्तर्दशा में शुभ फल प्रदान करता है. व्यक्ति अपने साथी व परिवार का सुख भोगता है. व्यक्ति की रुचि धार्मिक कार्यों की ओर भी बनी रहतीहै बुद्ध बक्री वर्ष में तीन बार होता है,और यह ग्रह केवल चौबीस दिन के लिये बक्री होता है,इस ग्रह के द्वारा अपने फ़लों में बाहरी प्राप्तियों के लिये लाभकारी माना जाता है,अन्दरूनी चाहतों के लिये यह समय नही होता है,यह दिमाग में झल्लाहट पैदा करता है,इन झल्लाहटों का मुख्य कारण कार्यों और कही बातों में देरी होना,पिछली बातों का अक्समात सामने आ जाना वे बाते कही गयीं हो या लिखी गयीं हो,इसके साथ ही इस बक्री बुध का प्रभाव आखिरी मिनट में अपना फ़ैसला बदल सकता है। यह समय किसी भी कारण को क्रियान्वित करने के लिये सही नही माना जाता है,जैसे किसी एग्रीमेंट पर साइन करना,और अधिकतर उन मामलों में जहां पर लम्बी अवधि के लिये चलने वाले कार्यों के लिये एग्रीमेंट तो कतई सफ़ल नही हो सकते हैं। इस समय में साधारण मामले जो लगातार दिमाग में टेंसन दे रहे होते है,उनको निपटाने के लिये अच्छे माने जाते है,उन कारकों के लिये अधिक सफ़ल माने जाते हैं जिनके अन्दर संचार वाले साधन और कारण ट्रांसपोर्ट और आने जाने के प्लान,जो साधारण टेंसन वाले कारण माने जाते है वे किसी प्रकार के कमन्यूकेशन को बनाने और संधारण करने वाले काम,किसी से बातचीत करने वाले काम,आने जाने के साधन को रिपेयर करने वाले काम टेलीफ़ोन के अन्दर बेकार की खराबियां उन समाचारों को जो काफ़ी समय से डिले चल रहे हों,जिन सामानों और पत्रावलियों को वितरित नही किया गया हो उन्हे वितरित करने वाले काम,मशीने जो जानबूझ कर बन्द की गयी हो उन्हे चलाने वाले काम,और जो किसी के साथ अक्समात अपोइटमेंट के कारण बनाये गये हों,और अधिकतर उन मामलों जो आखिरी समय में बनाये गये हों या बनाकर कैंसिल किये गये हों। यह समय उन बातों के लिये भी मुख्य माना जाता है,जो पिछले समय में प्लान बनाये गये हों,और उन प्लानों पर काम किया जाना हो,और प्लानों के अन्दर की बातों को सही किया जाना हो,यह समय उन कारकों को के लिये भी प्रभावी माना जा सकता है जिनके लिये दिमागी रूप से कार्य किया जाना हो,जैसे किसी बात की खोजबीन करना,रीसर्च करना, जो कोई बात लिखी गयी हो या लिखकर उसे सुधारने का काम हो,लिखावट के अन्दर की जाने वाली गल्तियों को सुधारने का काम,यह समय ध्यान लगाने समाधि में जाने और ध्यान लगाकर सोचने वाले कामों के लिये भी उत्तम माना जाता है,अपने अन्दर की बुराइयों को पढने का यह सही समय माना जाता है,मनोवैज्ञानिक तरीके से किसी बात को मनवाने के लिये यह समय उत्तम माना जाता है। नये तरीके के विचार बनाये जा सकते है लेकिन उनको क्रियान्वित नही किया जा सकता है,और उन कामों को करने का उत्तम समय है जो पिछले समय में नही किये जा सके है। इस प्रकार से बक्री बुध शेयर बाजार की गतिविधियों के मामले में भी खोजबीन करने के लिये काफ़ी है,किसी भी प्रकार के तामसी कारकों को प्रयोग करने के बाद की जाने वाली क्रियान्वनयन की बातों के ऊपर भी यह बक्री बुध जिम्मेदार माना जाता है। इस बुध के कारणों में उन बातों को भी शामिल किया जाता है जो पहले कही गयी हों या संचार द्वारा सूचित की गयीं हो,उनके लिये फ़ैसला देने के लिये यह बुध उत्तरदायी माना जा सकता है।

शुक्रवार, 28 अप्रैल 2017

यही जीवन है :- मैं दीपक निरंतर जल रहा हूं, दूर करता हूँ अँधेरा , सुबह होगी मैं मिटूंगा , ख़ाक में मिल जाऊंगा । सूर्य के उजाले के आगे, मैं कहां टिक पाऊंगा। यही मेरा जीवन है। दूसरों की खातिर,खुद मिट जाना, कुछ भी पाने की चाह किए बगैर, हर पल जलना, अंधेरा दूर करने को। मानव जीवन का चरम और सार्थक रूप मोक्ष है। उसे पाने के लिए व्यक्ति तप या पुरुषार्थ करता है। इसलिए मृत्यु के भय से मुक्त होकर व्यक्ति को अपने जीवन का सर्वोत्तम उपयोग करना चाहिए। जहां पर मै अटकता हूँ तो जिंदगी गम़गीन हो जाती है। हर ओर सन्नाटा सा होता है न कोई आता है न कोई जाता है बस मैं ही ‘अकेला’ चलता चला जा रहा हूं। मंजिलों की दूरी का एहसास है मुझे फिर भी सपनों की दुनिया में खोया सा अपनी धुन में मश़गूल मैं चल रहा हूं। कुछ तो ख़ास है, इस सफ़र में, जिसके पूरे होने का भरोसा, न जाने कहां गुम सा हो गया है, फिर भी एक रा़ग सुन रहा हूं। इस जिंदगी की कठिन डगर पे, मैं ‘अकेला’ चल रहा हूं। कभी यादों की छाँव से खेले कभी पेड़ों से शीतलता का मज़ा लो,तो कभी सूरज में आंखे डालो कभी अपनों को गले लगा लो, कभी संभालो अपने पागल दिल को तो कभी गगन मैं दूर उड़ा दो, प्यार हमेशा दिल मैं पालो कभी रास्ते में यूँ ही मुस्करा भी दो | कभी आँखों से बात भी कर लो , कभी सांसों की ताल सुनो तो कभी प्यार भी आभार जाता दो | कभी सपनों मैं उन्हें निहारो कोई खिलौना हाथ मैं लेकर कभी उन्ही की नींद चुरा लो, उसे ही दिल की बात बता दो| कभी तो अपने दिल को खोलो किसी को अपने राज बता दो, दर्द छिपा है दिल मैं जो भी आँखों के रस्ते उसे बहा दो| जिंदगी भर जाएगी खुशियों से यूँ ही कभी दुश्मन को भी गले लगा लो, प्यार रखो इन आँखों मैं अब तुम दिल मैं भी भगवान् बसा लो| वो तो दर्पण है अतीत का ,जब बचपन की यादें आती,तो मैं बच्चा बन जाता हूँ,माँ के आंचल में खेल रहा, मैं मृग शावक बन जाता हूँ, जब बहुत याद आता बचपन, पुलकित होता मेरा तनमन, मैं फिर से बच्चा बन जाऊं,ऐसा कहता है मेरा मन ना भोजन को समय है, ना सोने को समय है, ना कोई सोच ना कोई उद्देश्य , बस भागते रहना , क्या यही जिन्दगी है , कल ये करना है , कल वो करना है , कल क्या क्या करना है बस सोचते रहना कल – कल के चक्कर में , आज का रोना , क्या यही जिंदगी है , कभी सब भूलकर पैसा कमाने की ललक में , बस सोचते रहना , क्या यही जिन्दगी है ? जीवन भगवान के द्वारा हमें दिया गया सबसे बेहतरीन तोहफा है, लेकिन जब कभी जीवन की सुंदरता के पीछे छुपे बदसूरत चेहरे मन को भटकने पर मजबूर कर देता है I मेरा मानना है कि हर आदमी के अंदर एक और आदमी रहता है जो वाह्य दुनिया से सीधे वार्तालाप नही करता किंतु वाह्य दुनिया के कुछ घटनाओ को बहुत बारीकी से महसूस करता है । हमें बाहर का आदमी तो दिखाई देता है किंतु अन्दर का आदमी दिखाई नहीं देता । बाहर का आदमी भौतिक रूप से विद्यमान रहता है किन्तु अन्दर का आदमी का भौतिक अस्तित्व नहीं होता । उसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है । कुछ संवेदनशील व्यक्तियों का इसका एहसास जरुर हो जाता है कि उसके अन्दर कोई और है जो उसे समय समय पर सचेत करता रहता है । जिन्दगी में बहुत से कार्य ऐसे होते है जिसे हम करना नहीं चाहते किन्तु करना पड़ता है । वह कोई और नहीं अन्दर का आदमी ही होता है जो ऐसा करने से रोकता है । निश्चित रूप से अन्दर का आदमी, बाहर के आदमी से ज्यादा न्यायायिक होता है । कुछ करने से पहले उस आदमी का सहमति ज्यादा जरुरी है जो हमारे अन्दर है । इस उम्मीद में कि, आने वाला कल, आज से बेहतर होगा ,जिए जाता हूँ |मुसीबतों का जंगल कभी तो कटेगा, यह सोच कर हर गम को पिए जाता हूँ |इस उम्मीद में कि आने वाला कल आज से बेहतर होगा,जिए जाता हू |दो पहर का उज्जाला हो या रातों का अंधेरा, बर्फों की गलन हो या गर्मी का थपेड़ा प्यासी धरती हो या सावन का बसेरा, हर वक्त दिल के अरमानों को सिये जाता हू इस उम्मीद में कि.... आने वाला कल आज से बेहतर होगा जिए जाता हू | न जाने कब, वो घड़ी आयेगी इंतज़ार की सारी जख्मों को मिटा जायेगी, एक सुकून मिलेगा, जिंदगी भी खूबसूरत होती है वो सब कुछ मिलेगा जिसकी जरुरत होती है, इन्ही तमन्नाओं के डोर से खुद को बांधे जाता हू, इस उम्मीद में कि..... आने वाला कल आज से बेहतर होगा जिए जाता हू |आखिर कब तक झूलता इन ख़्वाबों के हवा महल पर, यह सोचकर उतर आया एक दिन, हकीक़त की धरातल पर, दिल में आया, जिंदगी का हिसाब कर लू अब तक क्या किया, आगे क्या करना है इसे एक बार याद कर लू यह सोच कर पहुँच गया अतीत के झरोखों में गुजरा हुआ वक्त दिखता है कोरे कागज़ में फिसली हुई उम्र डूब चुकी है सागर में जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा इंतज़ार खा गया, पूरब का सूरज भी अब पश्चिम में आ गया, अब तक तो कुछ कर न पाया आगे क्या कुछ कर पायेंगे ? ज़मीन तो खिसक चुकी है क्या शिखर को छू पायेंगे ? नीव तो टूट चुकी है क्या महल खड़ा कर पायेंगे ? इन्ही प्रश्नों में उलझ कर रह जाता हू आने वाला कल आज से बेहतर होगा यह सोच कर जिए जाता हू | खामोश तन्हा चल रहा है जिन्दगी का सफर । तय हो रही हैं बहुत-सी दूरियां हासिल किए जा रहे हैं नए-नए मुकाम स्थापित हो रही हैं नई-नई मान्यताएं हर दिन , हर पल । यही जिन्दगी है यही जिन्दगी का सफर है जो चल रहा है चुपके - चुपके - आहिस्ता - आहिस्ता । जब जिन्दगी, किसी सीधी सड़क से उतर कर पकदंडी की ओर मुड़ जाती है | लक्ष्य पाने की तमन्ना जब टुकड़ों में बट जाती है, हर सोच व ख्यालात का मतलब, जब विपरीत हो जाता है, वजह इन बदलाओं का जब कलम के रास्ते से कागज़ पर उतर आता है, कविता शायद इसी का नाम होता है |एक व्यक्ति, वातानुकूलित महल में, एक दौलत की ढेर पर बैठ कर, असंतुष्ट नजर आता है |दूसरा इससे से दूर रहकर भी, संतुष्ट नजर आता है | दृष्टिकोण के इन बिंदुओं के बीच, सच्चाई को दर्शाना, कविता कुछ और नहीं शायद इसी का नाम होता है | जिन्दगी छोटी है इसके बीच में छुपी जवानी, और भी छोटी है | यह कब शुरू होकर कब ख़त्म हो जाती है एक अतृप्त प्रश्न है यह कभी बदसूरत है तो कभी सुहानी है, समय को मापता उम्र जिन्दगी की कहानी है | बचपन, खेल-खेल में निकल जाता है, जवानी, मदहोशी में फिसल जाता है बुढापा, बचपन और जवानी के पश्चाताप में जल जाता है, यह छोटी सी जिन्दगी तीन खण्डों में बट जाती है तमन्नाओं की तादाद बड़ी है पर जिन्दगी बहुत छोटी है | क्यों बहकते हो भ्रम की हवाओं में ? क्यों जाते हो अंधेरी गुफाओं में ? क्यों भटकते हो कोरी कल्पनाओं में जिन्दगी अनंत नहीं चाँद साँसों की एक लड़ी है यह कोई समंदर नहीं एक छोटी सी नदी है | रास्ते लम्बे किन्तु जिन्दगी छोटी है | जीवन स्वयं व्यापार बना हैं मोल - तोल का भाव बना हैं क्रय - विक्रय जो करना चाहो इसके वास्ते संसार बना हैं फिर भी कुछ अनमोल है इसमें जिसका कोई मोल नहीं भक्त की भक्ती हो हो साकी की हाला दाम से नही मिलती सम्मान से मिलती मधुशाला। यह एक बेहतरीन कविता किसी कवि ने आजकल के भागती-दौड़ती जिंदगी को लेकर लिखी है. ज़िन्दगी है छोटी, हर पल में खुश रहो , ऑफिस में भी खुश रहो और घर में खुश भी रहो । आज नहीं है,पनीर दाल में ही खुश रहो। आज जिम जाने का समय नहीं तो पैदल चल के ही खुश रहो । आज दोस्तों का साथ नहीं, टीवी देख के ही खुश रहो । घर जा नहीं सकते, फोन कर के ही खुश रहो। आज कोई नाराज़ है, उसके इस अन्दाज़ में भी खुश रहो । जिसे देख नहीं सकते, उसकी आवाज़ में ही खुश रहो।जिसे पा नहीं सकते, उसकी याद में ही खुश रहो। लेपटोप न मिला तो क्या, डेस्कटोप में ही खुश रहो। बीता हुआ कल जा चुका है, उससे मीठी-मीठी यादें हैं, उनमें ही खुश रहो। आने वाले पल का पता नहीं … सपनों में ही खुश रहो। हँसते-हँसते ये पल बीतेंगे, आज में ही खुश रहो। ज़िन्दगी है छोटी, हर पल में खुश रहो … यें ज़िन्दगी भी अजीब सी हैं , हर मोड़ पर अपना रंग बदल देती हैंकोई अपने बेगाने हो जाते हैं ,तो कोई पराया अपना हो जाता हैंयें ज़िन्दगी भी अजीब सी हैं , हर मोड़ पर कुछ नया सिखाती हैं कभी खुशिया भर -भर के आती है, तो कभी-कभी दुःख के बादल हर रोज बरसते हैं यें ज़िन्दगी भी अजीब सी हैं ,हरमोड़ पर एक नया मुकाम बनाती हैंइस ज़िन्दगी से हर रोज किसी न किसी को शिकायत होती है ,तो कोई इसकी प्रशंसा करता हैं यें ज़िन्दगी कभी खामोश रहती हैं ,तो कभी-कभी बिन कहे कुछ कह जाती हैं यें ज़िन्दगी दुश्मनों के साथ रहकर, अपनों को धोका दे जाती हैं यें ज़िन्दगी भी अजीब सी हैं , हर मोड़ पर एक नया रंग दे जाती हैं

अंक ज्योतिष और हम अब ज्‍योतिष का ब्‍लॉग है और मैं यह बात लिख रहा हूं तो आप सोचेंगे कि आखिर आ ही गया अपनी औकात पर। आप कुछ ऐसा समझ सकते हैं। क्‍योंकि मैंने सीखने में कभी कंजूसी नहीं बरती सो हर ऐसे इंसान से सीखने की कोशिश की जिसके बारे में कहा जाता था कि इसे कुछ आता है। सही कहूं तो आज भी यही स्थिति है। जिस तरह कला के जवान होने तक कलाकार बूढा हो जाता है वैसे ही ज्‍योतिष की समझ आने तक फलादेश करने का महत्‍व भी खो सा जाता है। खैर में आता हूं विषय पर आज मित्रों में बात करना चाहता हूं Ank ज्योतिष पर फलित ज्योतिष हमारे ऋषि-मुनियों की देन है तो इस पर उन्होंने बहुत खोज की और रिसर्च की है और भारत से यह विघा विदेशों में भी में फेली लेकिन हम भारतीय अपनी विद्या को संभाल नहीं सके और जब तक उसमें पश्चिम ठप्पा नहीं लगता तब तक उसको हम मानते नहीं और पश्चिम में विकसित आधा अधूरा ज्ञान को हम भारतीय अपना लेते हैं अपने अपने ज्ञान को भूलकर, हमारा भारतीय संवत बिक्रम संवत हिजरी संवत शाखा संवत आदि पहले तो यही तय कर लिया जाय कि परम्परावादी भारतीयों को अपना जन्मदिन कि पद्धति से मानना चाहिए, पारंपरिक हिन्दू कैलेण्डर को (जो भिन्न-भिन्न हैं) या आधुनिक कैलेण्डर को. मेरे जीवन को वर्त्तमान में जो तिथियाँ नियंत्रित करती हैं वे आधुनिक है परन्तु मेरे घर में ही बहुत सी बातों के लिए पारंपरिक कैलेण्डर को आगे कर देते हैं. फिर यह लोचा कि जन्मतिथि मात्र मानी जाय या जन्मतिथि, महीने, और वर्ष के अंकों का जोड़, इसमें भी कई विधियाँ हैं जिनसे योग पृथक आता है. फिर इसमें वर्णमाला के अक्षरों को भी शामिल कर लेना पचड़े को और ज्यादा बढ़ा देता है.वैदिक ज्योतिष, जो महर्षि पराशर, जैमनी, कृष्णमूर्ति आदि की उत्कृष्ट परम्परा पर आधारित है, उसमें जातक के जन्म की तिथि, समय और स्थान को लेकर, एक वैज्ञानिक तरीके से जन्म के समय, आकाश में ग्रहों व नक्षत्रों की स्थिति का निर्धारण कर समय का आकलन किया जाता है। तत्पश्चात ज्योतिष के शास्त्रीय ग्रन्थों के आधार पर फलित कहा जाता है। ज्योतिषीय गणनाएँ पूर्णतः खगोलीय सिद्धांतों पर आधारित होती हैं, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने जिस तरह घर-घर अपनी पैठ बना ली है, उसका एक दुष्प्रभाव यह हुआ कि मदारी ज्योतिषियों की संख्या बढ़ी है। आप कोई भी चैनल देखें, इन मदारी ज्योतिषियों की एक पूरी जमात अपने लैपटॉप पर त्वरित समाधान बाँचती नज़र आयेगी।उपभोक्तावाद की इस रेलमपेल में कहीं तिलक चुटियाधारी खाँटी पंडित जी दिखते हैं, तो कहीं टाई-सूट में सजे फ़र्राटा अंग्रेज़ी बोलने वाले एस्ट्रोलोजर। इन सबके बीच एक प्रचलित विद्या है अंक ज्योतिष। इस प्रचलित अंक ज्योतिष में व्यक्ति की जन्मतिथि (ईसवी कलेंडर के अनुसार) के अंकों को जोड़कर एक मूलांक बना दिया जाता है और फिर उसे आधार बनाकर अधकचरा भविष्य बाँच दिया जाता है। इसी तरह अंग्रेजी के अक्ष्ररों (ए, बी, सी, डी आदि) को एक एक अंक दिया है. और लोगों के नाम के अंग्रेजी अक्षरों के अंकों के योग से उसका मूलांक निकाला जाता है. फिर उसी आधार पर उसका भी भविष्य बाँच दिया जाता है।अंक ज्योतिष ईसवी कलेंडर की तिथि के अनुसार चलता है जिसका एक सौर वर्ष मापने के अलावा कोई सार्वभौमिक आधार नहीं है। समय के अनंत प्रवाह में ईसवी कलेंडर मात्र 20 शताब्दी पुराना है। जिसमें अचानक एक दिन को 1 जनवरी लेकर वर्ष की शुरुआत कर दी गयी और शुरु हो गया 1 से 9 अंकों की श्रेणी में जातक को बाँटने का सिलसिला। यह सर्वविदित है कि इतिहास की धारा में अनेक सभ्यताओं तथा राजाओं ने अपने अपने कलेंडर विकसित किये जिन सबके वर्ष और तिथियों में कोई तालमेल नहीं है। तब सवाल यह उठता कि अंक ज्योतिष का आधार ईसवी कलेन्डर ही क्यों? अंग्रेज़ों ने चुँकि विश्व के एक बड़े हिस्से पर राज किया, इसलिये ईसवी कलेंडर का प्रचलन बढ़ गया। यहाँ तक कि विभिन्न गिरजाघरों ने इस कैलेंडर के दिनों की मान्यताओं पर प्रश्न चिह्न लगाए हैं. और तो और, जो सबसे अवैज्ञानिक बात इसकी सार्वभौमिकता को चुनौती देती है, वो यह है कि भिन्न भिन्न देशों ने इस कैलेंडर को भिन्न भिन समय पर अपनाया.ईसवी कलेंडर की शुरुआत 1 ए.डी. से होती है जो 1बी.सी. के समाप्त होने के तुरत बाद आ जाता है, यह तथ्य मज़ेदार है, क्योंकि इस बीच किसी ज़ीरो वर्ष का प्रावधान नहीं है। देखा जाये तो ईसवी कलेंडर की तिथियाँ, मूलत: सौर वर्ष को मापने का एक मोटा मोटा तरीका भर है। जब हम ईसवी कलेंडर के विकास पर दृष्टि डालतें हैं तो पाते हैं कि कलेंडर के बारह महीनों के दिन समान नहीं हैं और इनमें अंतर होने का कारण भी स्पष्ट नहीं है. यदि इस कलेंडर का इतिहास देखें तो इतनी उथल पुथल है कि इसकी सारी वैज्ञानिक मान्यताएँ समाप्त हो जाती हैं. इस कलेंडर पर कई राजघरानों का भी प्रभाव रहा, जैसे जुलियस और ऑगस्टस सीज़र. 13 वीं सदी के इतिहासकार जोहान्नेस द सैक्रोबॉस्को का कहना है कि कलेंडर के शुरुआती दिनों में अगस्त में 30 व जुलाई में 31 दिन हुआ करते थे। बाद में ऑगस्टस नाम के राजा ने (जिसके नाम पर अगस्त माह का नाम पड़ा) इस पर आपत्ति जतायी कि जुलाई (जो ज्यूलियस नाम के राजा के नाम पर था) में 31 दिन हैं, तो अगस्त में भी 31 दिन होने चाहिये. इस कारण फरवरी (जिसमें लीप वर्ष में 30 व अन्य वर्षॉं में 29 दिन होते थे) से एक दिन निकालकर अगस्त में डाल दिया गया। अब क्या वे अंक ज्योतिषी कृपा कर यह बताएँगे कि दिनों को आगे पीछे करने से कालांतर में तो सभी अंक बदल गये, तो इनका परिमार्जन क्या और कैसे किया गया?सारी सृष्टि एक चक्र में चलती है सारे अंक एक चक्र में चलते हैं जैसे 1 से 9 के बाद पुन: 1 (10=1+0=1) आता है. ईसवी कलेंडर के आधार पर अंक ज्योतिष में अजब तमाशा होता है जैसे 30 जून (मूलांक 3) के बाद 1 जुलाई (मूलांक 1) आता है। इसी तरह 28 फरवरी (2+8=10=1) के बाद 1 मार्च (1 अंक) आता है। नाम के अक्षरों के आधार पर की जाने वाली भविष्यवाणियाँ अंगरेज़ी (आजकल हिंदी वर्णमाला के अक्षरों को भी) के अक्षरों के अंकों को जोड़कर की जाती हैं. अब यह तो सर्वविदित है कि नाम के हिज्जे उस भाषा का अंग है जो जातक के देश या प्रदेश में बोली जाती है और जो साधारणतः निर्विवाद होता है. जैसे ही इसका अंगरेज़ी लिप्यांतरण किया जाता है, वैसे ही विरोध प्रारम्भ हो जाता है. ऐसे में सारे अंक बिगड़ सकते हैं और साथ ही जातक का भविष्य भी इसी अधूरे ज्ञान का सहारा लेकर आजकल लोग इन ज्योतोषियों की सलाह पर अपने नाम की हिज्जे बदलने लगे हैं.अंक ज्योतिष के यह अंतविरोध, इसके पूरे विज्ञान को तथाकथित की श्रेणी में ले आते हैं। एक सवाल यह भी रह जाता है कि क्या पूरी मानव सभ्यता को मात्र 9 प्रकार के व्यक्तियों में बांट कर इस प्रकार का सरलीकृत भविष्य बाँचा जा सकता है? ऐसे में इस नितांत अवैज्ञानिक सिद्धांत को, ज्योतिष के नाम पर चलाने के इस करतब को क्या कहेंगे आप? भारतीय अंक ज्योतिष अपने आप में एक विज्ञान है और हमारी वर्णमाला मैं बहुत से रहस्य छुपे है हमारी तिथियां अपने आप में संपूर्ण है उपरोक्त विचार मात्र अंक-ज्योतिष के विषय में हैं। ज्योतिष शास्त्र के विषय में नहीं क्योंकि उसके सिद्धांत और पद्धतियाँ, खगोल शास्त्र पर आधारित हैं और कई अर्थो में वैज्ञानिकता लिये हैं। ज्योतिष शास्त्र में अभी और गहन शोध होने बाकी हैं भक्ति सिर को भी इस पर बात जारी रहेगी दोस्तों हो सकते मेरी बातों से तो ताकत के दोषियों को नाराजगी पैदा हो पर मुझे इस पर कोई फर्क नहीं पड़ता सच तो सच्च ही होता है आचार्य राजेश

रविवार, 23 अप्रैल 2017

ज्योतिष और ज्योतिषी बचपन से ज्योतिष में रूचि होने के कारण साधु संतो में रूचि के कारण और कुछ पूर्व जन्मों के संस्कारों के कारण मुझे ऐसे विद्वद्जनों से संपर्क में सदा आनंद की अनुभूति होती थी. परन्तु सत्य ये भी है की इस खोज में मैंने ऐसे लोगों से भी मुलाकात की जो केवल ज्योतिष के किताबी ज्ञान में पारंगत थे. वास्तव में बहुत से ज्योतिषी मिथ्या ज्ञानी हैं (ध्यान रहे की मैं स्वयं एक ज्योतिषी हूँ). बहुत से ज्योतिषी केवल लोगों को डरा धमका कर पैसे उगाने का कार्य करते हैं. वास्तव में ज्योतिष ज्ञान बहुत दुरूह साधना की तरह है. केवल पुस्तक पाठ से ज्योतिष का ज्ञान नहीं होता और ज्योतिषी को केवल पढ़ने पर भी ये हांसिल नहीं होता है. ज्योतिष के लिए स्वयं का चरित्र व अंतर्मन पूर्ण शुद्ध होना आवश्यक है. दंभ, शिथिल चरित्र. लोभ, अशुद्ध मन, सदा माया में लीन व्यक्ति ज्योतिषी नहीं बन सकता. वो नाम कमा सकता है, आमजन को मूर्ख बनाकर पैसे ऐंठ सकता है पर जब उसका सामना असली विद्वद्जनों से होता है तो ऐसा व्यक्ति अक्सर खिस्यानी बिल्ली के तरह हो जाता है. ज्योतिष के मानद ग्रंथों में ज्योतिषी के लिए जो नियम बताये गए हैं उनके लिए तपश्चर्या की आवश्यकता है जो आजकल के शॉर्टकट वाले युग में ज्योतिषियों के गले नहीं उतरती.धन वैभव प्राप्ति के लिए मनुष्य अत्यंत प्रयत्नशील रहता है. आप पत्रिकायों और टीवी चैनलों को देख लें तो हजारों तरीकों से ज्योतिष और धर्म शास्त्र का सहारा लेकर कई तरह के विधि-विधान और अनुष्ठान बताएं जा रहे हैं . कई तरह के मंत्र - यन्त्र से वैभव और धन प्राप्ति के अचूक उपाय दिए जा रहे हैं. हर विधि विधान और मंत्र-यन्त्र की अपना महत्व और लाभ है . सही , उचित और शास्त्रोक्त रीतियों के अनुसार किये जाने वाले अनुष्ठानो का महत्व है और मनुष्य लाभान्वित भी होता है . हमारे प्राचीन शास्त्रों ने इसका विधिवत उल्लेख किया है. पर यह बात बहुत आवश्यक है की जिस तरह इसे आज समाज में प्रस्तुत किया जा रहा है क्या वह उचित और सही है और क्या हम सर्व प्रकार से प्राचीन ज्ञान को समाज में प्रस्तुत कर रहे हैं. हमारी संस्कृति , सभ्यता और सनातन धर्म कर्म प्रधान रहा है . ज्योतिष और वेदों में उल्लेखित उपाय या अनुष्ठान कोई इन्स्टंट नूडल बनाने के नुस्खे नहीं थे. ज्योतिष को बढ़ावा देने में मीडिया का भी बहुत अधिक हाथ है. हर कोई ज्योतिषी टी.वी चैनल पर आना चाहता है क्योंकि लोगों के मन में भी यह बात बैठ गई है कि टी.वी पर दिखने वाला व्यक्ति बहुत ज्ञानी है लेकिन वह यह नहीं जानते कि उनकी दुखती नस को दबाने का पूर इन्तजाम किया जा रहा है. टी.वी के पर्दे पर आने वाला एक ज्योतिषी दूसरे से आगे निकलने की होड़ में लगा हुआ है. जिस तरह से भू माफिया या कालाबाजारी ने अपना जाल बिछाया हुआ है ठीक उसी तरह से ज्योतिष माफिया भी तेजी से फैल रहा है. इन्टरनेट की दुनिया पर तो ज्योतिष ने अच्छा खासा कब्जा कर रखा है. किस समस्या का समाधान उनके पास नहीं है….बस प्रश्न करने की देर है. हर तरह के उपायों से व्यक्ति का दुख दूर करने की कोशिश आरंभ कर दी जाती है.आजकल एक अच्छे ज्योतिषी में अपने सभी प्रोडक्ट बेचने की खूबी होती है. किस तरह से सामने वाले को इमोशनली ब्लैकमेल करनाहै इसकी स्टडी अच्छी तरह से की जाती है. किस तरह से अधिक से अधिक लोगों को आकर्षित किया जाए इसी चिन्ता में दिन रात एक किया जाता है. बस समस्या बताने की देरी है फिर तो रेस के सभी घोड़े दौडा दिए जाते हैं. प्रेम संबंधी मामलों में तो यह ज्योतिषी धृतराष्ट्र के संजय की भाँति काम करते हैं.ज्योतिष के इस व्यापार में सच्चे तथा ईमानदार व्यक्तियों का गुजारा नहीं हो सकता है. मैं इस विद्या के ऊपर किसी प्रकार की कोई अंगुली नहीं उठा रहा हूँ क्योंकि मैं जानता हूँ कि यह अत्यधिक विश्वसनीय विद्या है. इस विद्या के सही उपयोग से परेशानी व्यक्ति को तिनके का सहारा मिल सकता है. हम ज्योतिष से अपना भाग्य नहीं बदल सकते लेकिन परेशानियों का सामना करने का बल अवश्य प्राप्त कर सकते हैं. जब आदमी चारों ओर से परेशानियों से घिर जाता है तब उसे ज्योतिषी की याद आती है. ऎसे व्यक्तियों को परामर्श की आवश्यकता होती है. ऎसे समय में ज्योतिषी का कर्तव्य है कि डराने की बजाय वह उचित मार्गदर्शन करें. ज्योतिष अपने आप में संपूर्ण था संपूर्ण है और संपूर्ण रहेग Acharya Rajesh 07597718725

शनिवार, 22 अप्रैल 2017

मंगल और राहु


मंगल और राहूजब राहु और मंगल एक ही भाव में युति बनाते हैं, तो वह मंगल राहु अंगारक योग कहलाता है। मंगल ऊर्जा का स्रोत है, जो अग्नि तत्व से संबद्घ है,htt जबकि राहु भ्रम व नकारात्मक भावनाओं से जुड़ा हुआ है। जब दोनों ग्रह एक ही भाव में एकत्र होते हैं तो उनकी शक्ति पहले से अधिक हो जाती है। लाल किताब में इस योग को पागल हाथी या बिगड़ा शेर का नाम दिया गया है। राहु से विस्तार की बात केवल इसलिये की जाती है क्योंकि राहु जिस भाव और ग्रह में अपना प्रवेश लेता है उसी के विस्तार की बात जीव के दिमाग में शुरु हो जाती है,कुंडली में जब यह व्यक्ति की लगन में होता है तो वह व्यक्ति को अपने बारे में अधिक से अधिक सोचने के लिये भावानुसार और राशि के अनुसार सोचने के लिये बाध्य कर देता है जो लोग लगातार अपने को आगे बढाने के लिये देखे जाते है उनके अन्दर राहु का प्रभाव कहीं न कहीं से अवश्य देखने को मिलता है। लेकिन भाव का प्रभाव तो केवल शरीर और नाम तथा व्यक्ति की बनावट से जोड कर देखा जाता है लेकिन राशि का प्रभाव जातक को उस राशि के प्रति जीवन भर अपनी योग्यता और स्वभाव को प्रदर्शित करने के लिये मजबूर हो जाता है। राहु विस्तार का कारक है,और विस्तार की सीमा कोई भी नही होती है,मंगल शक्ति का दाता है,और राहु असीमितिता का कारक है,मंगल की गिनती की जा सकती है लेकिन राहु की गिनती नही की जा सकती है।राहु अनन्त आकाश की ऊंचाई में ले जाने वाला है और मंगल केवल तकनीक के लिये माना जाता है,हिम्मत को देता है,कन्ट्रोल पावर के लिये जाना जाता है।अगर मंगल को राहु के साथ इन्सानी शरीर में माना जाये तो खून के अन्दर इन्फ़ेक्सन की बीमारी से जोडा जा सकता है,ब्लड प्रेसर से जोडा जा सकता है,परिवार में लेकर चला जाये तो पिता के परिवार से माना जा सकता है,और पैतृक परिवार में पूर्वजों के जमाने की किसी चली आ रही दुश्मनी से माना जा सकता है। समाज में लेकर चला जाये तो गुस्से में गाली गलौज के माना जा सकता है,लोगों के अन्दर भरे हुये फ़ितूर के लिये माना जा सकता है। अगर बुध साथ है तो अनन्त आकाश के अन्दर चढती हुयी तकनीक के लिये माना जा सकता है। गणना के लिये उत्तम माना जा सकता है। गुरु के द्वारा कार्य रूप में देखा जाने वाला मंगल राहु के साथ होने पर सैटेलाइट के क्षेत्र में कोई नया विकास भी सामने करता है,मंगल के द्वारा राहु के साथ होने पर और बुध के साथ देने पर कानून के क्षेत्र में भ्रष्टाचार फ़ैलाने वाले साफ़ हो जाते है,उनके ऊपर भी कानून का शिकंजा कसा जाने लगता है,बडी कार्यवाहियों के द्वारा उनकी सम्पत्ति और मान सम्मान का सफ़ाया किया जाना सामने आने लगता है,जो लोग डाक्टरी दवाइयों के क्षेत्र में है उनके लिये कोई नई दवाई ईजाद की जानी मानी जाती है,जो ब्लडप्रेसर के मामले में अपनी ही जान पहिचान रखती हो। धर्म स्थानों पर बुध के साथ आजाने से मंगल के द्वारा कोई रचनात्मक कार्यवाही की जाती है,इसके अन्दर आग लगना विस्फ़ोट होना और तमाशाइयों की जान की आफ़त आना भी माना जाता है। वैसे राहु के साथ मंगल का होना अनुसूचित जातियों के साथ होने वाले व्यवहार से मारकाट और बडी हडताल के रूप में भी माना जाता है। सिख सम्प्रदाय के साथ कोई कानूनी विकार पैदा होने के बाद अक्समात ही कोई बडी घटना जन्म ले लेती है। दक्षिण दिशा में कोई बडी विमान दुर्घटना मिलती है,जो आग लगने और बाहरी निवासियों को भी आहत करती है,आदि बाते मंगल के साथ राहु के जाने से मिलती है।मेरा यह मानना है कि इस योग का प्रभाव व्यक्ति के लग्न और ग्रहों की स्थिति के अनुसार अलग-अलग होगा और उपाय भी. मुझ से बहुत मित्र उपाय पूछते रहते हैं. मैंने ऐसे उपाय कई बार लिखे हैं, जो सभी कर सकते हैं. पर कुछ उपाय कुंडली के अनुसार ही होते हैं. यह उसी प्रकार है कि हर एक को हल्दी, लहसुन खाने को कहना, या उस व्यक्ति कि प्रकृति इत्यादि जानकर उसके लिए उसको एकदम फिट बैठने वाली दवा यह योग अच्छा और वुरा दोनो तरह का फल देने वाला है। अता मित्रों आप अपनी कुंडली किसी अच्छे ज्योतिषी को दिखा कर ही उपाय करें अपने आप देखादेखी कोई उपाय है ना करें वरना लाभ के स्थानपर हानी हो सकती है् Acharya Rajesh 09414481324 07597718725

रविवार, 16 अप्रैल 2017

मां काली ज्योतिष की आज की पोस्ट इन मित्रों के लिए है जो रतन ज्योतिष के बारे में जानकारी चाहतेहै या रतन हनना चाहते हैं जीवन की दो गतियां होती है एक तो भौतिक होती है जो दिखाई देती है और एक अद्रश्य होती है जिसे देखने की चाहत जीव जन्तु जड चेतन सभी के अन्दर होती है। ज्योतिष मे शरीर को लगन से देखा जाता है.लगन एक प्रकार से द्रश्य है जो शरीर के रूप मे सामने दिखाई देती है,अगर लगन मे कोई ग्रह नही है तो इसका मतलब है कि शरीर का मालिक यानी लगनेश जिस भाव मे विराजमान है वह भाव लगन के लिये देखा जायेगा। इसी प्रकार से लगनेश द्रश्य होता है तो लगनेश जिस भाव को देखता है और वहां कोई ग्रह है तो लगनेश को जीवन में आमना सामना करने के लिये द्रश्य प्रभाव मिल जाता है और आजीवन लगनेश सामने वाले ग्रह से जूझता रहता है अगर सामने वाला बलवान होता है तो लगनेश हार कर जीवन को जल्दी समाप्त कर लेता है और लगनेश बलवान होता है तो सामने वाले ग्रहो को परास्त करने के बाद लम्बे जीवन को भी जीने के लिये शक्ति को प्राप्त करता है और गोचर से चलने वाले ग्रहो को भी समयानुसार प्रभाव मे लाकर अपने को मन से वाणी से कर्म से फ़लीभूत कर लेता है। यह पहले ही बताया जा चुका है कि शनि एक ठंडा और अन्धेरा ग्रह है और इसके प्रभाव से जीवन मे जो भी प्रभाव आता है वह केवल अपनी सिफ़्त के अनुसार ही मिलता है लेकिन वही शनि अगर वक्री है तो वह जीवन को उत्तरोत्तर आगे बढाने के लिये भी अपनी शक्ति को देता है। एक व्यक्ति शनि के मार्गी रहने पर केवल काम करना जानता है और एक व्यक्ति शनि के वक्री रहने पर लोगो से काम करवाना जानता है। सफ़लता उसी को मिलती है जो काम को करवाना जानता है काम को करने वाला अगर एक वस्तु का निर्माण कर सकता है तो काम को करवाने वाला कई वस्तुओं का निर्माण भी कर लेता है और काम करने वाले से काम करवाने के कारण अपना नाम धन मान सम्मान आदि को बढाता है। कुंडली के किसी भी भाव मे शनि के वक्री हो यह कुंडली एक व्यक्ति की है जिसने नीलम पन्ना जिरकान मूंगा पहिन रखा है और उसकी इच्छा है कि वह सूर्य रत्न माणिक को भी पहिने। लगनेश शनि मित्र भाव मे वकी होकर विराज रहे है,वक्री शनि के सामने द्रश्य कोई भी ग्रह नही है और बुद्धि का भाव खाली है गोचर से कभी कभी जो भी ग्रह सामने आजाता है जातक उसी के अनुसार अपनी बुद्धि को प्रयोग मे लाता है और गोचर के ग्रह का समय समाप्त होने पर जातक की बुद्धि फ़िर से खालीपन को महसूस करने लगती है। उदाहरण के लिये इस बात को ऐसे भी देखा जा सकता है कि लगन एक प्रकार से कार की तरह से है और पंचम स्थान कार को चलाने के लिये सीखी गयी विद्या ड्राइवरी की तरह से और कार के अन्दर कार को चलाने के लिये पेट्रोल की जरूरत को पूरा करने के लिये नवम का रूप भाग्य के रूप मे मिलता है,अगर तीनो भावो में ग्रह उपस्थित है तो कार अपनी उम्र के अनुसार चलती रहेगी और ग्रह नही है तो कार केवल तभी चलेगी जब गोचर से कोई ग्रह स्थान पर आयेगा। लेकिन जरूरी नही है कि कार के रूप मे शरीर सामने ही हो या बुद्धि के रूप मे ड्राइवर उपस्थित ही या पेट्रोल के रूप मे भाग्येश भी साथ हो जब तीने स्थानो के मालिक अपने अपने स्थान पर होंगे तभी कार रूपी शरीर की यात्रा शुरु हो सकेगी। अन्यथा गोचर से चलाने के कारण चन्द्रमा मासिक गति सूर्य वार्षिक गति में तथा अन्य ग्रह भी अपनी अपनी गति के अनुसार आते जायेंगे और जीवन को उम्र के अनुसार चलाते जायेंगे। लगनेश शनि वक्री है और शनि के लिये लगभग सभी ज्योतिष ग्रंथ विद्वान आदि नीलम के प्रति धारणा रखते है,नीलम शब्द से ही मान्य है कि नीलम नीला होता है,शनि का रंग काला होता है,राहु का रंग नीला होता है,फ़िर शनि के लिये राहु का रंग नीला क्यों ? इसके बाद भी एक किंवदंती कि शनि मार्गी है तो भी नीलम और शनि वक्री है तो भी नीलम ? मार्गी शनि मेहनत करने वाला व्यक्ति है तो वक्री शनि बुद्धि को प्रयोग मे लाकर काम करवाने वाला व्यक्ति है,मेहनत करने वाले और मेहनत करवाने वाले के बीच के भेद को समझे बिना ही एक साथ दोनो के लिये एक ही रत्न को बताना क्या बेमानी नही है ? बुद्धिमान के लिये कोई रत्न काम नही करता है और बेवकूफ़ के लिये भी कोई रत्न काम नही करता है यह भी जानना जरूरी है,जैसे सपूत अगर है तो उसके लिये धन संचय करने से कोई फ़ायदा नही है वह अपने बाहुबल से धन को संचित कर लेगा और कपूत के लिये भी धन संचय से कोई फ़ायदा नही है वह अपनी बेवकूफ़ी से संचित धन को बरबाद कर देगा ! "पूत सपूत तो का धन संचय और पूत कपूत तो का धन संचय" वाली कहावत को भी समझना चाहिये। वक्री शनि वाला व्यक्ति बुद्धि को सही स्थान पर प्रयोग करे इसके लिये उसे ज्ञान की आवश्यकता होगी और ज्ञान के लिये हर कोई जानता है कि बुद्धि के भाव यानी पंचम का रत्न धारण करना उपयुक्त है,इसलिये जातक को कुंडली के अनुसार पंचम के लिये हीरा या जिरकान उपयुक्त रत्न है,जिसे चांदी या सफ़ेद धातु मे बनवाकर शनि की उंगली मध्यमा में शुक्रवार के दिन धारण करना चाहिये। नीलम को पहिनने से चलने वाली बुद्धि वक्री शनि वाले व्यक्ति के लिये मार्गी होने पर कुंद हो जायेगी और वक्री समय मे जो कुछ समय के लिये है काम करती रहेगी। शनि को राहु के द्वारा सकरात्मक होने पर और केतु के द्वारा नकारात्मक होने पर ही संभाला जा सकता है,बाकी शनि को संभालने के लिये किसी भी ग्रह का प्रयोग रत्न के द्वारा करना एक प्रकार से बुद्धिमानी की श्रंखला मे नही माना जा सकता है।जीवन की गति के लिये तीन कारण बहुत जरूरी होते है। एक तो शरीर को द्रश्य रखना,दूसरा बुद्धि को जाग्रत रखना और प्रयोग करते रहना तीसरे भाग्य की बढोत्तरी से ऊंची सोच शिक्षा परिवेश से बाहर निकल कर कानून धर्म समाज जाति देश आदि के द्वारा लगातार उन्नति का बल लेते रहना। अगर लगन खाली है तो लगनेश का रत्न,पंचम खाली है तो पंचमेश का रत्न और नवम खाली है तो नवमेश का रत्न धारण करना चाहिये। अगर तीनो भावो मे कोई ग्रह शत्रु या मित्र है तो उसके लिये ग्रह के अनुसार मिक्स प्रभाव देने वाला रत्न धारण करना जरूरी है। जैसे उपरोक्त लगन मकर है,और मकर लगन का मालिक शनि है,लेकिन लगन के समय मे सूक्षम रूप से देखे जाने पर श्रवण नक्षत्र की उपस्थिति जिसका मालिक चन्द्रमा है और इस नक्षत्र के चौथे पाये मे जातक का जन्म हुआ है तो उसका मालिक सूर्य बन जाता है इस प्रकार से सूर्य चन्द्र और शनि की मिश्रित आभा वाले रत्न को धारण करना लगन को द्रश्य करने के लिये काफ़ी है। सूर्य से गुलाबी चन्द्रमा से पानी की तरह से चमकीला और शनि के लिये काली आभा से पूर्ण रत्न का प्रयोग करना जरूरी है इस प्रभाव को प्रत्यक्ष रूप से एलेक्जेंडरा नामक रत्न मे तीनो आभा मिलती है,जातक को लगन को द्रश्य करने के लिये एलेक्जेन्डरा को सोने की अंगूठी मे बनवाकर दाहिने हाथ की बीच वाली उंगली मे पहिना जाना जरूरी है कारण पुरुष जातक है और उसी स्थान पर अगर स्त्री जातक होता तो बायें हाथ की बीच वाली उंगली मे यह रत्न काम करने लगता। इस जातक का पंचम स्थान भी खाली है,पंचम स्थान वृष राशि का है और यह स्थान वृष राशि का तेईस अंश बीता हुआ भाग है,इस अंश का मालिक रोहिणी नक्षत्र है और रोहिणी का मालिक चन्द्रमा है,इस प्रकार से बुद्धि की जाग्रति के लिये और द्रश्य प्रभाव देने के लिये शुक्र चन्द्र की युति वाला रत्न धारण करना जरूरी है। चांदी में जिरकान या हीरा पहिना जाना उपयुक्त है लेकिन पंचम का स्थान कालपुरुष के अनुसार सूर्य की राशि मे होने से सोने मे पहिने जाने से और भी फ़लदायी माना जा सकता है। इसी कुंडली मे जातक का नवा भाव भी खाली है इस भाव के लिये जातक तेईस अंश के मालिक हस्त नक्षत्र जिसका मालिक चन्द्रमा है के लिये गुरु कालपुरुष बुध राशि और नक्षत्र मालिक चन्द्रमा के अनुसार रत्न का उपयोग करने के बाद भाग्य जीवन की उन्नति और सहयोग के लिये आगे बढ सकता है। जातक केवल एलेक्जेन्डरा को ही प्रयोग करता है तो जातक को लगन पंचम और नवम का प्रभाव द्रश्य होने लगता है बाकी के रत्न धारण करने से गोचर से ग्रह के विपरीत अवस्था मे जाने से शनि के वक्री होने के समय में दिक्कत का कारण पैदा करने के लिये काफ़ी है। इसी तरह एक रतन कई कई प्रकार का होता है कैसे नीलम पुखराज कई कई रंगों में मिक्स आता है वह सब देख कर ही पहना जाता है अगर आप भी कोई रतन पहनना चाहते हैं तो किसी देवज्ञ को अपनी कुंडली दिखाकर ही करेंगे अगर आप मुझसे अपनी कुंडली दिखाना जब बनवाना चाहते हैं या कोई रतन पहनना चाहते हैं तो आप मुझसे संपर्क करें बॉडी सर्विस paid है Acharya Rajesh07597718725 09414481324

Gemlogy post no 2

शनिवार, 15 अप्रैल 2017

ज्योतिष विद्या ज्योतिषीय ज्ञान के रचनाकार और यहां तक की इसके सागर कहे जाने वाले महर्षि भृगु ने भी कहा है कि ‘ज्योतिष एक ऐसी गणितीय साधना है जो किसी प्रचंड तप से भी बड़ी है, जिसके द्वारा जन्मकाल के अनुसार भूत, वर्तमान और भविष्य के बारे में सही अनुमान लगाया जा सकता है, लेकिन अंतिम सच तो त्रिलोकी की महान शक्ति को ही पता है, जिसके मार्ग दर्शन में ब्रह्मांड की समस्त रहस्यमयी अलौकिक गतिविधियां संचालित होती हैं।’ कंप्यूटर से गणना के कारण आज भविष्यवाणियां पहले से ज्यादा सटीक होनी चाहिए थीं, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। ज्योतिषियों में कमी है या जन्मकाल और घटनाओं के सही समय में अंतर। आज आदमी अपनी निजी और व्यवसायिक समस्याओं का समाधान ज्योतिष में ज्यादा ही तलाश रहा है। उसके पास एक नहीं दो नहीं अपनी तीन-तीन कुंडलियां हैं। उसके किस समय और तिथि पर यकीन किया जाए? यह भी तथ्य है कि पहले इतने ज्योतिषी नहीं थे, जितने आज पैदा हो गए हैं। ज्योतिष विधा को अब लोग व्यवसाय के रूप में चुनने लगे हैं। यह पाठ्यक्रम में भी शामिल हो गई है। इस पर शोध भी चल रहे हैं। ऐसे लोग भी बहुत हैं, जो सफलता या मनवांछित फल की प्राप्ति के लिए ज्योतिषियों और तांत्रिकों को मुंह मांगा धन देते हैं। देश और विदेश की पत्र-पत्रिकाओं, विभिन्न इलेक्ट्रानिक चैनलों पर लैपटॉप लिए बैठे तथाकथित ज्योतिषियों का साम्राज्य चल रहा है। यदि किसी टीवी चैनल या समाचार पत्र के पास कोई नामधारी ज्योतिषी नहीं है तो दर्शक उस चैनल को शायद ही खोलें और समाचार पत्र शायद ही पढ़ें। प्रत्येक रविवार को बहुत से लोग केवल इसलिए समाचार पत्र खरीदते हैं कि उन्हें अपना साप्ताहिक भविष्यफल देखना होता है। -गलियों​ मे ओर फुटपाथ पर जगह-जगह ज्योतिषियों के तंबू लगे मिलते हैं, जिनमें लोग लाइन लगाकर अपनी किस्मत का हाल एवं कष्टों का सामाधान पूछते हैं। ज्योतिषी केवल साप्ताहिक और दैनिक भविष्यवाणी तक ही सीमित नहीं हैं, आम लोगों के लिए अब उन्होंने ज्योतिषीय आधार पर मकान दुकान, सामान तक की खरीददारी, विवाह संयोग, प्रेमसंबंध, नौकरी और राजनीति के बारे में डाक्टर की तरह सलाह देनी शुरू कर दी है। ऐसे भी समाचार सुनने को मिलते हैं कि ज्योतिषियों और तांत्रिक महानुभावों ने झूंठी-गढ़ी सलाह देकर, तंत्र के नाम डराकर अनेक लोगों के शानदार बंगले मिट्टी के मोल बिकवा दिए। कारखाने, फैक्ट्रियां बिकवा दीं और राजघरानों से लेकर राजनीतिक परिवारों और औद्योगिक घरानों तक में विभाजन करा दिया। ऐसा भी हुआ कि बहू को घर से बाहर निकलवा दिया। यह एक ऐसा विषय है जिसमें आदमी का अपना विवेक ज्योतिष के हाथों गिरवी सा हो जाता है, तब फिर सब कुछ ज्योतिषी और घर के गुरुजी, स्वामीजी पर निर्भर करता है कि वह क्या और कैसे गुल खिलाए। परिवारों और राजघरानों में ऐसे लालची ज्योतिषियों, गुरुजी और तांत्रिकबाबा के खिलाए हुए गुल बहुत सुनने को मिलते हैं। आज हर एक नौकरशाह, हर एक राजनेता, हर एक औद्योगिक घराने या विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले बड़े लोगों के पास एक ज्योतिषी है और एक गुरुजी हैं, जो अपने हिसाब से विशिष्टजनों के परिवारों और औद्योगिक घरानों को चला रहे हैं। अगर कोई विशिष्ट व्यक्ति शासन में मौजूद है तो उसके फैसलों तक को भी प्रभावित कर रहे हैं। जब जब कहीं चुनाव की गतविधियां जोर पकड़ती है और वैसे ही ज्योतिषियों और तांत्रिकबाबाओं का विजयी तंत्र सक्रिय हो उठता है। नेता नगरी में बहरहाल ज्योतिष विषय पर लिखने को बहुत कुछ है पर इतना जरूर है कि ज्योतिष आपका बहुत अच्छा मार्गदर्शक हो सकता है, वह आपको भविष्य की अनहोनियों से सचेत कर सकता है, मगर इस आधार पर अपनी योजनाएं बनाने में अपने विवेक का भी जरूर इस्तेमाल करें और झूंठे और पाखंडी ज्योतिषियों, तांत्रिकबाबाओं के चक्कर में न पड़कर उन लोगों को संतोष प्रदान करें जो आपमें कर्मफल पर अपने सुनहरे सपने देखते हैं

Acharya Rajesh: जैमोलॉजीजैमोलॉजी वास्‍तव में एक विज्ञान है और इस ...

Acharya Rajesh: जैमोलॉजी
जैमोलॉजी वास्‍तव में एक विज्ञान है और इस ...

शुक्रवार, 14 अप्रैल 2017

जैमोलॉजी जैमोलॉजी वास्‍तव में एक विज्ञान है और इस पर अच्‍छा खासा काम हो रहा है। यह बात अलग है कि कीमती पत्‍थरों ने अपना यह स्‍थान खुद बनाया है। ठीक सोने, चांदी और प्‍लेटिनम की तरह। इसमें ज्‍योतिष का कोई रोल नहीं है। तीन प्रकार के रत्नो का प्रयोग आमतौर पर लोग करते है,शरीर के लिये परिवार और सन्तान के लिये तथा भाग्य के लिये,यही कारण प्राण रक्षा के लिये बुद्धि के विकास के लिये और समय पर कार्य हो जाने के लिये भी माना जाता है। आमतौर पर एक ही रत्न को लोग पहिनने की राय देते है,और उस रत्न के पहिनने के बाद कुछ सीमा मे फ़ायदा और कुछ सीमा मे नुकसान होने की बात से भी मना नही किया जा सकता है।पर यकीन मानिए भाग्‍य के साथ रत्‍नों का जुड़ाव मोहनजोदड़ो सभ्‍यता के दौरान भी रहा है। उस जमाने में भी भारी संख्‍या में गोमेद रत्‍न प्राप्‍त हुए हैं। यह सामान्‍य अवस्‍था में पाया जाने वाला रत्‍न नहीं है, इसके बावजूद इसकी उत्‍तरी पश्चिमी भारत में उपस्थिति पुरातत्‍ववेत्‍ताओं के लिए भी आश्‍चर्य का विषय रही। पता नहीं उस दौर में इतने अधिक लोगों ने गोमेद धारण करने में रुचि क्‍यों दिखाई, या गोमेद का रत्‍न के रूप में धारण करने के अतिरिक्‍त भी कोई उपयोग होता था, यह स्‍पष्‍ट नहीं है, लेकिन वर्तमान में राहू की दशा भोग रहे जातक को राहत दिलाने के लिए गोमेद पहनाया जाता है।जो मेरे हिसाब से गलत है इंटरनेट और किताबों में रत्‍नों के बारे में विशद जानकारी देने वालों की कमी नहीं है। इसके वारे मेरी पोस्‍ट इसकी वास्‍तविक आवश्‍यकता के बारे में है। मैं एक ज्‍योतिष विद्यार्थी होने के नाते रत्‍नों को पहनने का महत्‍व बताने नहीं बल्कि इनकी वास्‍तविक आवश्‍यकता बताने का प्रयास करूंगा। वास्तव में दो विधाओं में उलझा है रत्‍न विज्ञान वर्तमान दौर में हस्‍तरेखा और परम्‍परागत ज्‍योतिष एक-दूसरे में इस तरह घुलमिल गए हैं कि कई बार एक विषय दूसरे में घुसपैठ करता नजर आता है। रत्‍नों के बारे में तो यह बात और भी अधिक शिद्दत से महसूस होती है। हस्‍तरेखा पद्धति ने हाथ की सभी अंगुलियों के हथेली से जुड़े भागों पर ग्रहों का स्‍वामित्‍व दर्शाया है। ऐसे में कुण्‍डली देखकर रत्‍न पहनने की सलाह देने वाले लोग भी हस्‍तरेखा की इन बातों को फॉलो करते दिखाई देते हैं। जैसे बुध के लिए बताया गया पन्‍ना हाथ की सबसे छोटी अंगुली में पहनने, गुरु के लिए पुखराज तर्जनी में पहनने और शनि मुद्रिका सबसे बड़ी अंगुली में पहनने की सलाहें दी जाती हैं। बाकी ग्रहों के लिए अनामिका तो है ही, क्‍योंकि यह सबसे शुद्ध है। मुझे इस शुद्धि का स्‍पष्‍ट आधार नहीं पता लेकिन शुक्र का हीरा, मंगल का मूंगा, चंद्रमा का मोती जैसे रत्‍न इसी अंगुली में पहनने की सलाह दी जाती है। अब रत्‍न किसे पहनाना आवश्‍यक है, इन सब बातों को लेकर कालान्‍तर में मैंने कुछ तय नियम बना लिए… अब ये कितने सही है कितने गलत यह तो नहीं बता सकता, लेकिन इससे जातक को धोखे में रखने की स्थिति से बच जाता हूं।वास्‍तव में जैम स्‍टोन से किस ग्रह का उपचार कैसे किया जाए इस बारे में कई तरह के मत हैं। कोई ग्रह के कमजोर होने पर रत्‍न पहनाने की सलाह देता है तो कोई केवल कारक ग्रह अथवा लग्‍नेश संबंधी ग्रह का रत्‍न पहनने की सलाह देता है। ऐसे में किसे क्‍या पहनाया जाए, यह बताना टेढ़ी खीर है। यहां के.एस. कृष्‍णामूर्ति को कोट करूं तो स्‍पष्‍ट है कि लग्‍नेश या नवमेश अथवा इनसे जुड़े ग्रहों का ही उपचार किया जा सकता है। ऐसे में कई दूसरे ग्रह जो फौरी तौर पर कुण्‍डली में बहुत स्‍ट्रांग पोजिशन में दिखाई भी दें तो उनसे संबंधित उपचार नहीं कराए जा सकते। मैं उदाहरण से समझाने का प्रयास करता हूं। तुला लग्‍न के जातक की कुण्‍डली में लग्‍न का अधिपति हुआ शुक्र, कारक ग्रह हुआ शनि और नवमेश हुआ बुध। अब कृष्‍णामूर्ति के अनुसार जब तक शनि का संबंध शुक्र या बुध से न हो तो उससे संबंधित उपचार नहीं किए जा सकते, यानि उपचार प्रभावी नहीं होगा, लेकिन परम्‍परागत ज्‍योतिष के अनुसार तुला लग्‍न के जातक को शनि संबंधी रत्‍न प्रमुखता से पहनाया जा सकता है। यह शरीर पंच भूतों से बना है और इन्ही के अधिकार मे सम्पूर्ण जीवन का विस्तार होता है। इन पंचभूतो मे किसी भी भूत की कमी या अधिकता जीवन के विस्तार मे अपने अपने प्रकार से दिक्कत देने के लिये अपना प्रभाव देने लगते है। ग्रहों के दो प्रकार सूर्य और चन्द्रमा के साथ देखे जाते है,जैसे मेष राशि का स्वामी मंगल है तो वह लगनेश के लिये मूंगा को पहिनने का कारक बनता है जो शरीर और प्राण रक्षा के लिये अपना प्रभाव देता है,लेकिन उसका असर धन के प्रति सही नही माना जा सकता है जैसे मंगल और शुक्र मे आपस मे नही बनती है,उसी प्रकार से बुध के साथ भी मंगल की नही बनती है,चन्द्रमा के साथ बराबर का असर रहता है सूर्य के साथ उसकी बहुत अधिक बढोत्तरी हो जाती है गुरु के साथ होने से अहम की मात्रा बढ जाती है और शनि के साथ मिलने से कसाई जैसी प्रकृति बन जाती है। तो मूंगा मेष लगन वालो के लिये धन व्यवहार कार्य जीवन साथी उन्नति के साधनो मे तो गलत असर देगा और शरीर मन आयु के साथ भलाई करेगा,अहम ज्ञान और शांति के साधनो मे बढोत्तरी करने से दिक्कत देने वाला बनेगा। अगर शनि लगन मे ही विराजमान है तो वह सिर दर्द की बीमारी देगा और जो भी सोचा जाता है उसके लिये अपनी तर्क शक्ति के विकास होने से तर्क वितर्क करने से होते हुये कार्य को भी बिगाडने की कोशिश करेगा। कार्य तकनीकी बन जायेगा और जो भी कार्य होगा वह मनुष्य शक्ति के अन्दर ही माना जायेगा जैसे शरीर विज्ञान मे रुचि,जो भी कार्य किया जायेगा उसके अन्दर नये नये आविष्कार होने के कारण कार्यों के अन्दर कठिनाई आने लगेगी,एक भाई को बहुत ही कठिनाई केवल इसलिये हो जायेगी कि वह परिवार मे सामजस्य बनाने की कोशिश करेगा और तामसी कारण बढ जाने से परिवार मे अशान्ति का माहौल बना रहेगा। युवावस्था मे अपनी ही चलाने के कारण घर के लोगो से दूरिया बन जायेंगी और विरोधी युवावस्था के बाद हावी हो जायेंगे,दुश्मनी अधिक बन जायेगी और जो भला भी करना चाहेंगे वे डर की बजह से दूर होते चले जायेंगे नाक पर गुस्सा होगा,यानी जरा सी बात का बतंगड बनाने में देर नही लगेगी। यही मंगल जब राहु पर गोचर से अपना असर दिखायेगा या जन्म के समय से ही राहु के सानिध्य मे होगा तो मूंगा का असर दिमाग को पहिया की तरह से घुमाने से बाज नही आयेगा,क्या कहना है किससे कैसे बात करनी है यह सोच विचार बिलकुल ही खत्म हो जायेगी,पारिवारिक कारणो मे भी अक्सर पैतृक सम्पत्ति के पीछे नये नये विवाद बनते जायेंगे और घर के सदस्य ही किसी न किसी प्रकार की घात लगाने लगेंगे,व्यवहार भी तानाशाही जैसा बन जायेगा,जो भी बात की जायेगी वह हुकुम जैसी होगी,इस बात का असर भाई पर भी जायेगा और वह अधिक चिन्ता के cc कारण या आन्तरिक दुश्मनी से दुर्घटना का शिकार भी हो जायेगा,अगर व्यक्ति का बडा भाई भी है तो उसकी चलेगी नही या मूंगा को धारण करने के बाद वह घर से अलग हो जायेगा,अधिक सोच के कारण से व्यक्ति के अन्दर ब्लड प्रेसर की बीमारी पैदा हो जायेगी। किसी प्रकार से मंगल की युति कुंडली मे केतु से है तो स्त्री जातक के लिये परेशानी का कारण बन जायेगा यानी पति का व्यवहार बिलकुल सन्यासी जैसा हो जायेगा,वह अकेला बैठ कर जाने क्या क्या सोचने लगेगा और दूर रहकर ही अपने जीवन को बिताने का कारण सोचने लगेगा,पति का इन्तजार पत्नी को और पत्नी का इन्तजार पति को रहेगा दोनो कभी इकट्ठे नही रह पायेंगे और रहेंगे भी तो जैसे कुत्ते बिल्ली लडते है वैसे आपस के विचारों की लडाई शुरु हो जायेगी,केतु के साथ मंगल के होने से कुंडली में मंगल दोष भले ही नही हो लेकिन मूंगा को पहिनने के बाद जबरदस्ती मे मंगली दोष को पैदा कर लिया जायेगा,शादी मे देरी हो जायेगी,घर मे किसी को भी मानसिक बीमारी पैदा हो सकती है लो ब्लड प्रेसर की बीमारी भी पैदा हो सकती है। अगर दो तीन भाई है तो एक तो किसी प्रकार से अनैतिक कार्यों की तरफ़ भागने लगेगा,और दूसरा किसी प्रकार से घर को त्याग कर ही चला जायेगा,कई बार लोगों के द्वारा अनर्गल बयान दिये जाते है कि अमुक पत्थर के पहिनते ही उन्हे आशातीत लाभ हो गया,अमुक ज्योतिषी ने अमुक रत्न दिया था उससे उन्हे बहुत लाभ हो गया,लेकिन यह क्यों नही सोचा जाता है कि ज्योतिषी केवल तत्व की मीमांशा का ही हाल देता है कभी भी ज्योतिषी केवल रत्न पहिने के बाद आराम मिलना नही बोलता है,रत्न एक यंत्र की तरह से है,रत्न का मंत्र रत्न की विद्या की तरह से है और रत्न का कब प्रयोग करना है कैसे प्रयोग करना है कैसे उसे सम्भालना है आदि की जानकारी तंत्र है। केवल रत्न के पहिनने से कोई लाभ नही होता है ऐसा मैने अपने ज्योतिषीय जीवन मे नही देखा है,वैसे अपने श्रंगार के लिये कितनी ही अंगूठिया पहिने रहो हार मे कितने ही रत्न जडवा दो लेकिन इस मान्यता मे रत्न पहिन लिया जाये कि केवल रत्न ही काम करेगा यह असम्भव बात ही मिलती है।मनुष्य जब भ्रम मे चला जाता है तो उसके लिये ध्यान को भंग करना जरूरी होता है यह मनोवैज्ञानिक कारण है,जब किसी के सामने अपनी समस्या को बताया जाता है तो वह समस्या को सुनता है समस्या की शुरुआत का समय सितारों से निकाला जाता है,समस्या के अन्त का समय भी सितारों से निकाला जाता है,अगर सितारा जो गलत फ़र्क दे रहा है तो उस सितारे के लिये रत्न का पहिना जाना उत्तम माना जाता है,सबसे पहले अच्छे रत्न की पहिचान करना जरूरी होता है,इसे कोई जानने वाला ही पहिचान करवा सकता है वैसे आजकल रत्न परीक्षणशाला बन गयी है और रत्न का परीक्षण करने के लिये रत्नो की कठोरता रत्न के अन्दर की कारकत्व वाली स्थिति को बताया जाता है,जब प्रयोगशाला बन गयी है तो प्रयोगशाला से किन किन तत्वो का निराकरण मिलता है उसके बारे मे रत्न का व्यवसाय करने वालो के लिये जानकारी भी मिल गयी है कि मशीन से कितना और क्या बताया जा सकता है,आजकल की वैज्ञानिक सोच को समझने वाले लोग यह भी समझते है कि रत्न जो भूमि के नीचे से प्राप्त होता है की परिस्थितिया भी सर्दी गर्मी बरसात पर निर्भर होकर और जीवांश के मिश्रण से ही बनी होती है मारे शरीर के चारों ओर एक आभामण्डल होता है, जिसे वे AURA कहते हैं। ये आभामण्डल सभी जीवित वस्तुओं के आसपास मौजूद होता है। मनुष्य शरीर में इसका आकार लगभग 2 फीट की दूरी तक रहता है। यह आभामण्डल अपने सम्पर्क में आने वाले सभी लोगों को प्रभावित करता है। हर व्यक्ति का आभामण्डल कुछ लोगों को सकारात्मक और कुछ लोगों को नकारात्मक प्रभाव होता है, जो कि परस्पर एकदूसरे की प्रकृति पर निर्भर होता है। विभिन्न मशीनें इस आभामण्डल को अलग अलग रंगों के रूप में दिखाती हैं । वैज्ञानिकों ने रंगों का विश्लेषण करके पाया कि हर रंग का अपना विशिष्ट कंपन या स्पंदन होता है। यह स्पन्दन हमारे शरीर के आभामण्डल, हमारी भावनाओं, विचारों, कार्यकलाप के तरीके, किसी भी घटना पर हमारी प्रतिक्रिया, हमारी अभिव्यक्तियों आदि को सम्पूर्ण रूप से प्रभावित करते है। वैज्ञानिकों के अनुसार हर रत्न में अलग क्रियात्मक स्पन्दन होता है। इस स्पन्दन के कारण ही रत्न अपना विशिष्ट प्रभाव मानव शरीर पर छोड़ते हैं। आचार्य राजेश

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जैमोलॉजी जैमोलॉजी वास्‍तव में एक विज्ञान है और इस पर अच्‍छा खासा काम हो रहा है। यह बात अलग है कि कीमती पत्‍थरों ने अपना यह स्‍थान खुद बनाया है। ठीक सोने, चांदी और प्‍लेटिनम की तरह। इसमें ज्‍योतिष का कोई रोल नहीं है। तीन प्रकार के रत्नो का प्रयोग आमतौर पर लोग करते है,शरीर के लिये परिवार और सन्तान के लिये तथा भाग्य के लिये,यही कारण प्राण रक्षा के लिये बुद्धि के विकास के लिये और समय पर कार्य हो जाने के लिये भी माना जाता है। आमतौर पर एक ही रत्न को लोग पहिनने की राय देते है,और उस रत्न के पहिनने के बाद कुछ सीमा मे फ़ायदा और कुछ सीमा मे नुकसान होने की बात से भी मना नही किया जा सकता है।पर यकीन मानिए भाग्‍य के साथ रत्‍नों का जुड़ाव मोहनजोदड़ो सभ्‍यता के दौरान भी रहा है। उस जमाने में भी भारी संख्‍या में गोमेद रत्‍न प्राप्‍त हुए हैं। यह सामान्‍य अवस्‍था में पाया जाने वाला रत्‍न नहीं है, इसके बावजूद इसकी उत्‍तरी पश्चिमी भारत में उपस्थिति पुरातत्‍ववेत्‍ताओं के लिए भी आश्‍चर्य का विषय रही। पता नहीं उस दौर में इतने अधिक लोगों ने गोमेद धारण करने में रुचि क्‍यों दिखाई, या गोमेद का रत्‍न के रूप में धारण करने के अतिरिक्‍त भी कोई उपयोग होता था, यह स्‍पष्‍ट नहीं है, लेकिन वर्तमान में राहू की दशा भोग रहे जातक को राहत दिलाने के लिए गोमेद पहनाया जाता है।जो मेरे हिसाब से गलत है इंटरनेट और किताबों में रत्‍नों के बारे में विशद जानकारी देने वालों की कमी नहीं है। इसके वारे मेरी पोस्‍ट इसकी वास्‍तविक आवश्‍यकता के बारे में है। मैं एक ज्‍योतिष विद्यार्थी होने के नाते रत्‍नों को पहनने का महत्‍व बताने नहीं बल्कि इनकी वास्‍तविक आवश्‍यकता बताने का प्रयास करूंगा। वास्तव में दो विधाओं में उलझा है रत्‍न विज्ञान वर्तमान दौर में हस्‍तरेखा और परम्‍परागत ज्‍योतिष एक-दूसरे में इस तरह घुलमिल गए हैं कि कई बार एक विषय दूसरे में घुसपैठ करता नजर आता है। रत्‍नों के बारे में तो यह बात और भी अधिक शिद्दत से महसूस होती है। हस्‍तरेखा पद्धति ने हाथ की सभी अंगुलियों के हथेली से जुड़े भागों पर ग्रहों का स्‍वामित्‍व दर्शाया है। ऐसे में कुण्‍डली देखकर रत्‍न पहनने की सलाह देने वाले लोग भी हस्‍तरेखा की इन बातों को फॉलो करते दिखाई देते हैं। जैसे बुध के लिए बताया गया पन्‍ना हाथ की सबसे छोटी अंगुली में पहनने, गुरु के लिए पुखराज तर्जनी में पहनने और शनि मुद्रिका सबसे बड़ी अंगुली में पहनने की सलाहें दी जाती हैं। बाकी ग्रहों के लिए अनामिका तो है ही, क्‍योंकि यह सबसे शुद्ध है। मुझे इस शुद्धि का स्‍पष्‍ट आधार नहीं पता लेकिन शुक्र का हीरा, मंगल का मूंगा, चंद्रमा का मोती जैसे रत्‍न इसी अंगुली में पहनने की सलाह दी जाती है। अब रत्‍न किसे पहनाना आवश्‍यक है, इन सब बातों को लेकर कालान्‍तर में मैंने कुछ तय नियम बना लिए… अब ये कितने सही है कितने गलत यह तो नहीं बता सकता, लेकिन इससे जातक को धोखे में रखने की स्थिति से बच जाता हूं।वास्‍तव में जैम स्‍टोन से किस ग्रह का उपचार कैसे किया जाए इस बारे में कई तरह के मत हैं। कोई ग्रह के कमजोर होने पर रत्‍न पहनाने की सलाह देता है तो कोई केवल कारक ग्रह अथवा लग्‍नेश संबंधी ग्रह का रत्‍न पहनने की सलाह देता है। ऐसे में किसे क्‍या पहनाया जाए, यह बताना टेढ़ी खीर है। यहां के.एस. कृष्‍णामूर्ति को कोट करूं तो स्‍पष्‍ट है कि लग्‍नेश या नवमेश अथवा इनसे जुड़े ग्रहों का ही उपचार किया जा सकता है। ऐसे में कई दूसरे ग्रह जो फौरी तौर पर कुण्‍डली में बहुत स्‍ट्रांग पोजिशन में दिखाई भी दें तो उनसे संबंधित उपचार नहीं कराए जा सकते। मैं उदाहरण से समझाने का प्रयास करता हूं। तुला लग्‍न के जातक की कुण्‍डली में लग्‍न का अधिपति हुआ शुक्र, कारक ग्रह हुआ शनि और नवमेश हुआ बुध। अब कृष्‍णामूर्ति के अनुसार जब तक शनि का संबंध शुक्र या बुध से न हो तो उससे संबंधित उपचार नहीं किए जा सकते, यानि उपचार प्रभावी नहीं होगा, लेकिन परम्‍परागत ज्‍योतिष के अनुसार तुला लग्‍न के जातक को शनि संबंधी रत्‍न प्रमुखता से पहनाया जा सकता है। यह शरीर पंच भूतों से बना है और इन्ही के अधिकार मे सम्पूर्ण जीवन का विस्तार होता है। इन पंचभूतो मे किसी भी भूत की कमी या अधिकता जीवन के विस्तार मे अपने अपने प्रकार से दिक्कत देने के लिये अपना प्रभाव देने लगते है। ग्रहों के दो प्रकार सूर्य और चन्द्रमा के साथ देखे जाते है,जैसे मेष राशि का स्वामी मंगल है तो वह लगनेश के लिये मूंगा को पहिनने का कारक बनता है जो शरीर और प्राण रक्षा के लिये अपना प्रभाव देता है,लेकिन उसका असर धन के प्रति सही नही माना जा सकता है जैसे मंगल और शुक्र मे आपस मे नही बनती है,उसी प्रकार से बुध के साथ भी मंगल की नही बनती है,चन्द्रमा के साथ बराबर का असर रहता है सूर्य के साथ उसकी बहुत अधिक बढोत्तरी हो जाती है गुरु के साथ होने से अहम की मात्रा बढ जाती है और शनि के साथ मिलने से कसाई जैसी प्रकृति बन जाती है। तो मूंगा मेष लगन वालो के लिये धन व्यवहार कार्य जीवन साथी उन्नति के साधनो मे तो गलत असर देगा और शरीर मन आयु के साथ भलाई करेगा,अहम ज्ञान और शांति के साधनो मे बढोत्तरी करने से दिक्कत देने वाला बनेगा। अगर शनि लगन मे ही विराजमान है तो वह सिर दर्द की बीमारी देगा और जो भी सोचा जाता है उसके लिये अपनी तर्क शक्ति के विकास होने से तर्क वितर्क करने से होते हुये कार्य को भी बिगाडने की कोशिश करेगा। कार्य तकनीकी बन जायेगा और जो भी कार्य होगा वह मनुष्य शक्ति के अन्दर ही माना जायेगा जैसे शरीर विज्ञान मे रुचि,जो भी कार्य किया जायेगा उसके अन्दर नये नये आविष्कार होने के कारण कार्यों के अन्दर कठिनाई आने लगेगी,एक भाई को बहुत ही कठिनाई केवल इसलिये हो जायेगी कि वह परिवार मे सामजस्य बनाने की कोशिश करेगा और तामसी कारण बढ जाने से परिवार मे अशान्ति का माहौल बना रहेगा। युवावस्था मे अपनी ही चलाने के कारण घर के लोगो से दूरिया बन जायेंगी और विरोधी युवावस्था के बाद हावी हो जायेंगे,दुश्मनी अधिक बन जायेगी और जो भला भी करना चाहेंगे वे डर की बजह से दूर होते चले जायेंगे नाक पर गुस्सा होगा,यानी जरा सी बात का बतंगड बनाने में देर नही लगेगी। यही मंगल जब राहु पर गोचर से अपना असर दिखायेगा या जन्म के समय से ही राहु के सानिध्य मे होगा तो मूंगा का असर दिमाग को पहिया की तरह से घुमाने से बाज नही आयेगा,क्या कहना है किससे कैसे बात करनी है यह सोच विचार बिलकुल ही खत्म हो जायेगी,पारिवारिक कारणो मे भी अक्सर पैतृक सम्पत्ति के पीछे नये नये विवाद बनते जायेंगे और घर के सदस्य ही किसी न किसी प्रकार की घात लगाने लगेंगे,व्यवहार भी तानाशाही जैसा बन जायेगा,जो भी बात की जायेगी वह हुकुम जैसी होगी,इस बात का असर भाई पर भी जायेगा और वह अधिक चिन्ता के cc कारण या आन्तरिक दुश्मनी से दुर्घटना का शिकार भी हो जायेगा,अगर व्यक्ति का बडा भाई भी है तो उसकी चलेगी नही या मूंगा को धारण करने के बाद वह घर से अलग हो जायेगा,अधिक सोच के कारण से व्यक्ति के अन्दर ब्लड प्रेसर की बीमारी पैदा हो जायेगी। किसी प्रकार से मंगल की युति कुंडली मे केतु से है तो स्त्री जातक के लिये परेशानी का कारण बन जायेगा यानी पति का व्यवहार बिलकुल सन्यासी जैसा हो जायेगा,वह अकेला बैठ कर जाने क्या क्या सोचने लगेगा और दूर रहकर ही अपने जीवन को बिताने का कारण सोचने लगेगा,पति का इन्तजार पत्नी को और पत्नी का इन्तजार पति को रहेगा दोनो कभी इकट्ठे नही रह पायेंगे और रहेंगे भी तो जैसे कुत्ते बिल्ली लडते है वैसे आपस के विचारों की लडाई शुरु हो जायेगी,केतु के साथ मंगल के होने से कुंडली में मंगल दोष भले ही नही हो लेकिन मूंगा को पहिनने के बाद जबरदस्ती मे मंगली दोष को पैदा कर लिया जायेगा,शादी मे देरी हो जायेगी,घर मे किसी को भी मानसिक बीमारी पैदा हो सकती है लो ब्लड प्रेसर की बीमारी भी पैदा हो सकती है। अगर दो तीन भाई है तो एक तो किसी प्रकार से अनैतिक कार्यों की तरफ़ भागने लगेगा,और दूसरा किसी प्रकार से घर को त्याग कर ही चला जायेगा,कई बार लोगों के द्वारा अनर्गल बयान दिये जाते है कि अमुक पत्थर के पहिनते ही उन्हे आशातीत लाभ हो गया,अमुक ज्योतिषी ने अमुक रत्न दिया था उससे उन्हे बहुत लाभ हो गया,लेकिन यह क्यों नही सोचा जाता है कि ज्योतिषी केवल तत्व की मीमांशा का ही हाल देता है कभी भी ज्योतिषी केवल रत्न पहिने के बाद आराम मिलना नही बोलता है,रत्न एक यंत्र की तरह से है,रत्न का मंत्र रत्न की विद्या की तरह से है और रत्न का कब प्रयोग करना है कैसे प्रयोग करना है कैसे उसे सम्भालना है आदि की जानकारी तंत्र है। केवल रत्न के पहिनने से कोई लाभ नही होता है ऐसा मैने अपने ज्योतिषीय जीवन मे नही देखा है,वैसे अपने श्रंगार के लिये कितनी ही अंगूठिया पहिने रहो हार मे कितने ही रत्न जडवा दो लेकिन इस मान्यता मे रत्न पहिन लिया जाये कि केवल रत्न ही काम करेगा यह असम्भव बात ही मिलती है।मनुष्य जब भ्रम मे चला जाता है तो उसके लिये ध्यान को भंग करना जरूरी होता है यह मनोवैज्ञानिक कारण है,जब किसी के सामने अपनी समस्या को बताया जाता है तो वह समस्या को सुनता है समस्या की शुरुआत का समय सितारों से निकाला जाता है,समस्या के अन्त का समय भी सितारों से निकाला जाता है,अगर सितारा जो गलत फ़र्क दे रहा है तो उस सितारे के लिये रत्न का पहिना जाना उत्तम माना जाता है,सबसे पहले अच्छे रत्न की पहिचान करना जरूरी होता है,इसे कोई जानने वाला ही पहिचान करवा सकता है वैसे आजकल रत्न परीक्षणशाला बन गयी है और रत्न का परीक्षण करने के लिये रत्नो की कठोरता रत्न के अन्दर की कारकत्व वाली 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विचारों, कार्यकलाप के तरीके, किसी भी घटना पर हमारी प्रतिक्रिया, हमारी अभिव्यक्तियों आदि को सम्पूर्ण रूप से प्रभावित करते है। वैज्ञानिकों के अनुसार हर रत्न में अलग क्रियात्मक स्पन्दन होता है। इस स्पन्दन के कारण ही रत्न अपना विशिष्ट प्रभाव मानव शरीर पर छोड़ते हैं। आचार्य राजेश

Rattan jyotish

गुरुवार, 13 अप्रैल 2017

ग्रहों से चोखा पोस्ट नंबर ३ मित्रोंजो भी हमारे साथ होता है उसके पीछे भाग्य तो होता ही है परन्तु कुंडली में ग्रहों का अध्ययन करके हम घटनाओं के कारणों का पता लगा सकते हैं और बहुत से घटनाओं के प्रति सचेत हो सकते हैं.हमारे जन्म होते ही हम कई प्रकार के संबंधो से घिर जाते हैं जैसे, माता-पिता के साथ सम्बन्ध, उनसे जुड़े लोगो से सम्बन्ध , जिन्हें हम अलग अलग नामो से पुकारते हैंउम्र बढ़ने के साथ ही और भी बहुत से सम्बन्ध बनते चले जाते हैं जैसे दोस्त, प्रेमी, पति-पत्नी, गुरु, साथी आदि. परन्तु इससे भी हम मना नहीं कर सकते हैं की कुछ लोग जीवन में कुछ रिश्तो से धोखा खा जाते हैं या फिर यूँ कहे की कुछ संबंधो के साथ लोगो के अनुभव नकारात्मक होते हैं.किसी पे भरोसा करने का कोई एक सिधांत नहीं है, कोई भी जीवन में धोखा दे सकता है, कोई भी हमे नुक्सान दे सकता है. हम सोच भी नहीं सकते हैं की कौन हमे क्या दे जाएगा जीवन में और कौन क्या ले जाएगा.कैसे हम जाने की कौन व्यक्ति हमारे लिए फायदेमंद है, शुभ है और कौन नुक्सान दे सकता है. कैसे कोई अपने माता-पिता से अच्छा समर्थन प्राप्त करता है कैसे कोई किसी व्यक्ति से नुक्सान या धोखा खा जाता है. कुंडली के बारह भाव पर प्रत्येक भाव कुछ ना कुछ कहता है हर भाव से अपने रिश्ते नाते जुड़े हुए हैं और भी बहुत से कारण भाव से देखे जातेहैं जन्म हो गया तो शरीर है और शरीर है तो किसी ने तो जन्म दिया ही है,जन्म के कारक ग्रह का धोखे मे होना भी एक प्रकार से जन्म देने का धोखा माना गया है,जैसे माता को ध्यान ही नही था कि उसे गर्भ रह सकता है,और धोखे से गर्भ रह गया और जन्म भी हो गया,जन्म के बाद माता ने त्याग कर दिया और किसी अस्पताल या किसी अन्य प्रकार से शरीर को दूसरो के हवाले कर दिया यह धोखा लगनेश के साथ धोखा होना माना जाता है और लगनेश के द्वारा राहु की छत्रछाया मे रहना तथा जिसे अपना समझा गया है वह अपना है ही नही और जिसे अपना नही माना गया है वह अपना है इस प्रकार की भ्रांति जीवन मे चलती रहती है,जैसे अक्सर दत्तक संतान के मामले मे जाना जाता है,जब बच्चे को छोटी उम्र मे ही गोद दे दिया जाता है और उस बच्चे का पालन पोषण दूसरे स्थान पर होता है,वह बच्चा बडा होकर किसी भी प्रकार से यह मानने के लिये तैयार नही होता है कि वह जिसको माता कह रहा था वह माता है ही नही या गोद देने के बाद जब जातक बडा होने लगा और जिसने गोद दे दिया,कालान्तर मे गोद लेने और गोद देने वाले के बीच मे शत्रुता हो जाती है तो बालक जिसके पास गोद गया है वह अपने खुद के माता पिता से शत्रुता तो कर ही लेगा,लेकिन उसे पता नही है कि वह अपने से ही शत्रुता कर रहा है और जो उसका शत्रु है उससे अपनी मित्रता को किये बैठा है. दूसरे भाव के बारे मे धोखा भी देने वाला दूसरे भाव का ग्रह होता है अक्सर जो पूंजी माता पिता के द्वारा इकट्टी की जातीहै और कहा जाता है कि यह पूंजी जातक के लिये ही है वह चाहे सोना चांदी हो हीरा मोती हो या नगद धन हो,अथवा खुद के परिवार के लोग ही हो,लेकिन जैसे ही जातक बडा होता है खुद के लोग ही उस धन को यह कहकर हडप लेते है कि वह उस परिवार मे केवल पालने पोषने के लिये ही रखा गया था और उस धन पर अधिकार अलावा लोगो का है,जैसे ननिहाल मे पला जातक,किसी अन्य रिस्तेदार के पास पला जातक किसी दोस्त के घर पर पला जातक आदि इसी श्रेणी मे आते है। तीसरे भाव के धोखे के बारे मे कहा जाता है कि जातक जहां है वही के लोगो के साथ अपनी दिनचर्या को बना रहा है,उसी प्रकार की जलवायु मे अपने समय को निकाल रहा है खान पान रहन सहन भोजन कपडा आदि उसी स्थान के प्रति ग्रहण कर रहा है,उसने अपने द्वारा प्रदर्शित करने वाले कारक जैसे ड्रेस आदि जो अपनाये है वह उसी रहने वाले स्थान के अनुरूप अपनाये है जो धर्म अपनाया जा रहा है रहने वाले स्थान के अनुसार ही अपनाया जा रहा है,लेकिन बाद मे पता चलता है कि वह केवल अपने माता पिता की कार्य की रूप रेखा की वजह से वहां निवास कर रहा था और उसे जब सभी कुछ बदलने के लिये बताया जाता है तो वह तीसरे भाव का धोखा माना जाता है. चौथे भाव का धोखा सबसे अधिक खराब माना जाता है,अक्सर इस भाव के स्वामी का राहु के साथ होने पर हमेशा ही मानसिक भ्रम दिया करता है जातक को कभी भी किसी भी स्थान पर चैन से नही रहने देता है जब भी जातक यात्रा करता है तो अक्सर उसकी यात्रा की रास्ता किसी न किसी प्रकार से बदल जाती है वह पानी पी रहा होता है तो उसे यह ध्यान ही नही रहता है कि उसे कितना पानी पीना है,अथवा वह अपने इस दोष के कारण शराब आदि पेय पदार्थो को अपने लिये प्रयोग करना इसीलिये शुरु कर देता है कि वह अपने इस भ्रम वाले स्वभाव से थोडा आराम ले सके लेकिन यह प्रभाव उसे अक्सर बडी बीमारियों से ग्रस्त कर देता है और ऊपरी बीमारियों के साथ जनन तंत्रों वाली बीमारियां भी उसे परेशान करने लगती है. पंचम भाव का धोखा बहुत ही दिक्कत वाला माना जाता है,जातक को या तो अपने प्रति इतना भरोसा हो जाता है कि किसी को कुछ भी नही गिनता है हमेशा अपने को ही आगे गिनने के चक्कर मे किसी समय बहुत बडे संकट मे आजाता है,या फ़िर अपने लिये आगे की सन्तति से दूर रखने वाला इसलिये ही माना जाता है कि उसके जीवन साथी के प्रति हमेशा ही किसी न किसी प्रकार से बनाव बिगाड चलते रहते है जब भी सन्तान पैदा करने का समय आता है जातक के प्रति कई प्रकार की धारनाये या तो जीवन साथी बदल देता है या जातक खुद ही जीवन साथी से भ्रम से दूर हो जाता है। इस प्रकार के धोखा देने वाले कारण अक्सर राजनीति से सम्बन्ध रखने वाले लोगों फ़िल्म मीडिया मे काम करने वालो लोगों शिक्षा के क्षेत्र मे या मनोरंजन के क्षेत्र मे काम करने वाले लोगो के साथ होता देखा जाता है इस बात से सन्तान का आना केवल पुत्र संतान के लिये ही माना जाता है स्त्री संतान मे यह धोखा कभी भी अपना कार्य नही रोकता है। इसी प्रकार से जातक के अन्दर अधिक अहम आने के कारण जातक अपनी परिवार की स्थिति को भी बरबाद करने के लिये माना जाता है जैसे पीछे अठारह साल की कमाई को वह केवल अठारह महिने के अन्दर ही बरबाद करने की अपनी युति को पैदा कर लेता है जैसे वह लाटरी सट्टा जुआ आदि वाले कामो के अन्दर अपनी औकात को छठे भाव का धोखा अक्सर बीमारी के मामले मे कर्जा के मामले मे ब्याज कमाने के मामले मे दुश्मनी करने के मामले मे नौकरी के मामले मे या नौकरो के मामले मे देखा जाता है। इस भाव मे आकर कोई भी ग्रह अपनी युति से धोखा देता है। वह राहु से सम्बन्ध रखे या नही रखे। अक्सर बीमारी के मामले मे भी धोखा देखा जाता है कि मामूली सा बुखार समझते समझते पता चलता है कि वह तो बहुत बडा वायरल या डेंगू जैसा बुखार है,किसी हल्की सी फ़ुन्सी को समझने के बाद पता चलता है कि वह एक केंसर का रूप है या किसी प्रकार के रोजाना के काम को लगातार करने के बाद पता चलता है कि वह काम केवल दिखावा ही था उस काम को करने के बाद कोई फ़ायदा भी नही है और नुकसान भी खूब लग गया है,किसी को कर्जा देने के बाद पहले यानी कर्जा लेने तक तो वह व्यक्ति अपने आसपास घूमने वाला अपनी हर हां मे हां मिलाने वाला था लेकिन जैसे ही कर्जा दिया वह अक्समात ही दूर भी होने लगा और उसने दुश्मनी भी बना ली,या जिस बैंक या किसी फ़ाइनेंस के क्षेत्र मे ब्याज के लोभ से धन को जमा किया जा रहा था वह बैंक या फ़ाइनेंस कम्पनी ही धोखा देकर धन को बरबाद करने के बाद जाने कहां चली गयी। इसके अलावा भी कोई अपनी जुगत लगाकर अन्दरूनी दुश्मनी को निकालने के लिये पहले अपने घर आता था और बहुत अच्छे से सम्बोधन को प्रयोग करता था,जैसे कोई अपने मित्र की पत्नी को बहिन के रूप मे तो मानता था लेकिन उसके अन्दर धोखे को देने वाली बात थी वह बहिन का दर्जा देकर एक दिन पत्नी को लेकर ही फ़रार हो गया,अथवा कोई घर मे आकर अपनी पैठ बनाकर घर के वातावरण को समझता रहा और एक दिन मौका पाकर वह घर का महंगा सामान समेट कर चलता बना आदि बाते देखी जाती है,इसके अलावा भी नौकर को बहुत ही अच्छी तरह से रखा गया था,वह अपनी चाल से एक दिन कोई बडा अहित करने के बाद चलता बना,किसी की नौकरी करते करते बहुत समय हो गया और वह नौकरी करवाने वाला व्यक्ति एक दिन किसी बडे फ़रेब को देकर दूर हो गया और जेल आदि की बाते खुद को झेलनी पडी अथवा नौकरी करने के बाद जब सैलरी को मांगा गया तो कोई दूसरा आरोप देकर बाहर का रास्ता दिखा दिया गया आदि बाते मानी जाती है. सप्तम का धोखा भी नौकरी और जीवन साथी के अलावा साझेदार के लिये माना जाता है,सप्तम का मालिक राहु के साथ है या शनि के साथ है तो धोखा मिलना जरूरी है उसे जीवन साथी से भी धोखा मिलता है उसे साझेदार से भी धोखा मिलता है उसे जो भी काम अपने जीवन यापन के लिये करना होता है वहां से भी धोखा मिलता है,किसी प्रकार के लेन देन के समय के अन्दर किसी की जमानत आदि करने मे भी धोखा मिलता है किसी का बीच बचाव करने या किसी रिस्ते के प्रति बेलेन्स बैठाने के अन्दर भी धोखा मिलता है। इसी प्रकार से जब जातक के साथ किसे एका मुकद्दमा आदि चलता है तो उसके द्वारा भी धोखा दिया जाता है,किसी प्रकार के कागजी धोखे को भी इसी क्षेत्र से माना जाता है। पुरुषा जाति के लिये शुक्र राहु और स्त्री जाति के लिये गुरु राहु का साथ हमेशा ही धोखा देने वाला माना जाता है। अष्टम भाव का धोखा अक्सर किये जाने वाले कामो से देखने को मिलते है,पहले आशा लगी रहती है कि इस काम को करने के बाद बहुत लाभ होगा और एक समय ऐसा आता है कि पूरी मेहनत भी लग चुकी होती है पास का धन भी चला गया होता है पता चलता है कि काम का मूल्य ही समाप्त हो चुका है,इसी प्रकार का धोखा अधिकतर मंत्र तंत्र और यंत्र बनाने वाले अद्भुत चीजो का व्यापार करने वाले शमशान सिद्धि का प्रयोग करने वाले भी करते है जब राहु का स्थान किसी के अष्टम मे होता है या अष्टम का स्वामी किसी प्रकार से राहु केतु शनि के घेरे मे होता है तो वह इन्ही लोगो के द्वारा धोखा खाने वाला माना जाता है यह कारण दशा के अन्दर भी देखा जाता है जैसे धनेश और राहु की दशा मे या अष्टमेश और राहु की दशा मे इसी प्रकार की धोखे वाली बात होती देखी जाती है.अक्सर इसी प्रकार के धोखे शीलहरण के लिये स्त्रियों मे भी देखे जाते है जब भी कोई अपनी रसभरी बातो को कहता है या अपने प्रेम जाल मे ले जाने के लिये चौथे भाव या बारहवे भाव की बातो को प्रदर्शित करता है तो उन्हे समझ लेना चाहिये कि उनके लिये कोई बडा धोखा केवल उनके शील को हरने के लिये किया जा रहा है,इस धोखे के बाद उनका मन मस्तिष्क और ईश्वरीय शक्तिओं से भरोसा उठना भी माना जा सकता है,इस भाव का धोखा उन लोगो के लिये भी दिक्कत देने वाला होता है जो डाक्टरी काम करते है वह अपने धोखे के अन्दर आकर किसी बीमारी को समझ कर कोई दवाई दे देते है और उस दवाई को देने के बाद मरीज बजाय बीमारी से ठीक होने के ऊपर का रास्ता पकड लेता है। यही बात इन्जीनियर का काम करने वाले लोगो के साथ भी होता है वह धोखे मे आकर अपनी रिपेयर करने वाली चीज मे या तो अधिक वोल्टेज की सप्लाई देकर उसे बजाय ठीक करने के फ़ूंक देते या सोफ़्टवेयर को गलत रूप से डालकर पूरे प्रोग्राम ही समाप्त कर लेते है। नवे भाव के ग्रह के लिये धोखा देने वाली बाते अक्सर धर्म स्थान मे धोखा होना यात्रा जो बडे रूप से की जा रही है या विदेश का रूप बनाया जा रहा है के लिये माना जाता है यह बात ऊंची शिक्षा के मामले मे भी देखी जाती है कानून के अन्दर भी देखी जाती है और सही रूप मे माने तो जाति बिरादरी और समाज के लिये भी मानी जाती है। कभी कभी एक धर्म स्थान के लिये लगातार प्रचार किया जाता है और उस प्रचार के अन्दर एक भावना धोखा देने वाली छुपी होती है.उस धोखे मे वही लोग अधिक ठगे जाते है जिनके नवम भाव के मालिक का कारक या तो राहु की चपेट मे होता है या त्रिक स्थानो के स्वामी के साथ अपने गोचर से चल रहा होता है अथवा दशा का प्रभाव चल रहा होता है। दसवे भाव के धोखे वाली बातो के लिये माना जाता है कि कार्य करने के बाद या सरकरी क्षेत्र की सेवा करने के बाद नौकरी आदि के लिये किसी बडी जानकारी के बाद जीवन भर लाभ के लिये की जाने वाली किसी कार्य श्रेणी को शुरु करने वाली बात के लिये माना जाता है. ग्यारहवे भाव के लिये मित्रो से अपघात बडे भाई या बहिन से अपघात लाभ के क्षेत्र मे की जाने वाली अपघात माता के गुप्त धन के प्रति अपघात पिता के पत्नी के परिवार से जुडी या उसकी संगति से मिलने वाली अपघात के लिये जाना जाता है. बारहवे भाव की जाने वाली खरीददारी मे धोखा यात्रा के अन्दर सामान या मंहगे कारक का गुम जाना कही जाना था और कही पहुंचाने वाली बात का धोखा किसी धर्म स्थान मे ठहरने के बाद कोई धोखा होना किसी बडी संस्था को सम्भालने के बाद मिलने वाला धोखा आदि की बाते मानी जाती है अगर आप अपनी कुंडली दिखाना जब बनवाना चाहते हैंतो तो आप मुझसे निम्न नंबरों पर संपर्क कर सकते हैं हमारी सर्विस पेड़ है 07597718725 09414481324

रविवार, 9 अप्रैल 2017

ग्रह से दोखा पोस्ट नंबर दो समय के दो पहलू है. पहले प्रकार का समय व्यक्ति को ठीक समय पर काम करने के लिये प्रेरित करता है. तो दूसरा समय उस काम को किस समय करना चाहिए पहला समय मार्गदर्शक की तरह काम करता है. जबकि जबकि दूसरा पल-पल का ध्यान रखते हुए आपकी कुंडली दशा अंतर्दशा ग्रहों की चाल और ग्रह से मिलने वाले फल को पहचान कर उसका उपचार करकेे कैसे आगे बढ़ा जाए यह जानकारी देता है कहते हैं समय बड़ा बलवान होता है उस समय को पहचानेका काम ज्योतिष ही कर सकता है अक्सर भ्रम कनफ़्यूजन धोखा फ़रेब चीटिंग अफ़वाह भटकाव नशा बेबजह आदि शब्द राहु के अनुसार ही कहे गये है,जो है उसके प्रति जो नही है उसके भी प्रति राहु अपने अपने स्थान से अपना अपना प्रकार प्रकट करता है साथ ही अगर व्यक्ति की सोच केन्द्रित नही है तो वह अपने सोचने वाले घेरे को लगातार बढाता जाता है और यही सोच उसे जीवन मे धोखा आदि देने के लिये मानी जाती है.लगन मे राहु के होने से जीवन के साथ ही धोखा होता है धन भाव मे होने से धन आदि की चीटिंग और खुद की आंखो के सामने धूल झोंकने वाली बात कही जाती है,तीसरे भाव मे नाटकीय ढंग से अपने विचार प्रकट करने के बाद स्वांग बनाकर ठगने वाली बात मानी जाती है,चौथे भाव मे मानसिक रूप से भावना आदि से ठगी की जाती है पंचम भाव मे मनोरंजन का नशा देकर या लाटरी सट्टॆ खेलकूद मे दिमाग मे लगा कर बुद्धि को भ्रम मे डाला जाता है,छठे भाव से कोई बीमारी नही होने पर बीमारीका भ्रम होनाया वहम होना सातवे भाव मे जीवन साथी और साझेदारी के प्रति तादात से अधिक विश्वास कर लेना और जब भ्रम टूटे तो कही कुछ नही होना जीवन साथी से ही अक्सर धोखा दिलवा देना आठबे भाव मे उन शक्तियों के प्रति भम रहना जो शक्तिया न तो देखी गयी है और न ही उनके प्रति कभी विश्वास किया गया है इस भाव के राहु के द्वारा अक्सर गूढ कारणो की खोज के प्रति भ्रम ही बना रहता है और रेत के पहाड से हीरे की कणी निकालने जैसा होता है और जब रेत का पहाड़ बहुत जाता है तो कुछ पल्ले नहीं आता नवे भाव के राहु से खुद के खानदान और पूर्वजो के प्रति ही भ्रम बना रहना दसवे भाव मे काम के होते हुये भी और काम के करते हुये भी कभी काम पूरा नही होना ग्यारहवे भाव के प्रति चाहे पीछे से हानि ही हो रही हो लेकिन भ्रम से उसी काम को करते जाना जब पता लगना तब तक दिवालिया हो जाना या किसी मित्र पर इतना विश्वास करते जाना कि वह जीवन के हर क्षेत्र से सब कुछ बरबाद कर रहा है लेकिन फ़िर भी उसके प्रति विश्वास को बनाये रखना बाद मे दगा बाजी का रूप दे देना बारहवे भाव से जीवन के प्रति हमेशा डर लगा रहना आक्स्मिक चल देना हवाई किले बनाते रहना और खुद की स्थिति को जमीन पर आने ही नही देना जबकि है कुछ नही फ़िर भी सब कुछ होने का आभास होते रहना और जब हकीकत का पर्दा उठे तो कही कुछ नही आदि की बाते मानी जाती है.paid service 09414481324 07597718725

बुधवार, 5 अप्रैल 2017

चंद्र ग्रह पोस्ट नंबर 6 मित्रों आज भी हम बात करेंगे चंद्रमा परकुंडली भी एक अजीब पहेली मानी जाती है,कौन सा ग्रह कहाँ पर धोखा दे रहा है या कब धोखा देगा,अथवा खुद ही धोखा बनकर संसार में विचरण करने के लिये जीवन को प्रदान कर रहा है इस बात की जानकारी करना बहुत जरूरी होता है। कौन कैसे कहाँ धोखा देता है इस बात की जानकारी मनुष्य रूप मे समझने के लिये मनुष्य जीवन के कारक ग्रहों का जानना भी जरूरी है। धोखे का भाव कौन सा है किस ग्रह के साथ कौन सा धोखा हो सकता है इस बात को भी जानना जरूरी है,किस स्थान पर कैसे कौन धोखा देगा,वह मित्र के रूप मे धोखा देगा,दोस्त के रूप मे धोखा देगा या खुद ही अपने मन से धोखा खाने के लिये अपने चेहरे पर बोर्ड लगाकर घूमेगा कि आओ मुझे धोखा दो, और जो देखो वही धोखा देकर चलता बने खुद धोखा खा कर अपने आप चुपचाप बैठ जाओ।[05/04 7:05 pm] Acharya Rajesh kumar: चन्द्रमा मन का कारक है केवल सोचने का काम करता है,जब सोच मे ही धोखा पैदा हो जाये तो धोखा देखना भी पडेगा और धोखा देकर काम भी करने का काम चन्द्रमा का होगा। लगन का चन्द्रमा राहु से ग्रसित है,हर सोच भ्रमित हो जायेगी,किसी का विश्वास करना तो दूर अपना खुद का भी विश्वास नही किया जा सकता । गति के पकडते ही आत्मविश्वास डगमगा उठेगा,गति भी बिगड जायेगी और जो कार्य होना था वह भी नही हो पायेगा। दूसरे भाव का चन्द्रमा जब भी अपनी गति मे आयेगा केवल सोच से ही कार्य करने के बाद धन की प्राप्ति को करने मे लगा रहेगा वह कार्य कभी सम्बन्ध के बारे मे भी सोच के लिये माना जा सकता है तो जीवन के सम्बन्धो के लिये भी माना जा सकता है। ख्वाबी जिन्दगी को जीने के लिये दूसरा चन्द्रमा काफ़ी है। एक भावना से भरा हुआ चेहरा और किसी भी बात को सोचने के लिये अचानक चेहरे का सफ़ेद होना इसी चन्द्रमा की निशानी है। पानी पी पी कर जीवन को निकाला जाना यानी गले का सूखना भी इसी चन्द्रमा के द्वारा माना जा सकता है। दोहरे सम्बन्ध को स्थापित कर लेना इसी चन्द्रमा के कारण होता है यानी पहले किसी सम्बन्ध ने धोखा दिया है तभी दूसरे सम्बन्ध के बारे मे सोचा जा सकता है अन्यथा नही। तीसरा चन्द्रमा भी अपनी गति को आसपास के माहौल से मानसिकता को लगाकर रखता है। कोई भी कुछ भी कह दे,अचानक आंसू निकलना इसी चन्द्रमा की निशानी है,कोई भी कहीं जाये उसके बारे मे आशंका का बना रहना कि वह कहां जायेगा कब आयेगा कैसे आयेगा कैसे जायेगा और इसी बात को जानने के लिये कई उपक्रम किये जायेंगे और इसी दौरान किसी भी कारक से धोखा मिल जायेगा। कहने सुनने के लिये आत्मीय सम्बन्ध बनाना और जब आत्मीय सम्बन्ध बन जाते है तो विश्वास का पूरा होना भी माना जाता है विश्वास भी वही करेगा जो आत्मीय हो और इसी आत्मीयता मे जब किसी भी प्रकार से धोखा मिलेगा तो समझ मे आयेगा कि आत्मीयता की कितनी औकात जीवन मे रह जाती है। चौथा चन्द्रमा वैसे भी दिमाग को आसपास के लोगो को जानने पहिचानने के लिये और हमेशा अपने को यात्रा वाले कारणो से जोड कर रखने वाला होता है,कभी कभी देखा जाता है कि ख्वाब इतने गहरे हो जाते है कि यात्रा मे अपने ही अन्दर की सोच लगाकर बैठे रहते है और अचानक जब ख्याल आता है तो कोई सामान या जोखिम को लेकर चलता हो जाता है फ़िर सिवाय और अधिक सोचने के कुछ भी सामने नही रहता है। एक बात और इस चन्द्रमा के बारे मे सोची जाती है कि व्यक्ति का प्रभाव आसपास के लोगो से अधिक होता है और जब भी कोई कैसी भी बात करता है तो उस व्यक्ति के बारे मे चिन्ता चलती रहती है कि आखिर उसने यह कहा क्यों ? यह बात भी होती है कि चौथा चन्द्रमा अपनी पंचम गति से अष्टम की बातो को अधिक सोचता है कि उसके पूर्वज कैसे थे क्या करते थे उसकी मान्यता कैसी थी वह मान्यता के अनुसार कितने शाही दिमाग से रहन सहन से अपने जीवन को बिताने के लिये चला करता था लेकिन जैसे ही पूर्वजो का आस्तिव समाप्त होता है अचानक केवल ख्वाब ही रह जाते है,इन पूर्वजो की मान्यता को समाप्त करने का कारण खुद के ही कार्य माने जाते है जैसे किसी ने कह दिया अमुक स्थान पर अमुक वाहन सस्ते मे मिल रहा है फ़िर क्या था जोर लगाकर उस वाहन को ले लिया गया और पता लगा कि वह वाहन कुछ ही समय मे कबाडा हो गया,यह सोच पूर्वजो के धन को समाप्त करने वाली और जो भी पास मे था उसे भी समाप्त करने के लिये केवल एक लोभ जो सस्ते के रूप मे था धोखा खाने के लिये काफ़ी माना जाता है। अगर चौथे भाव मे बुध शनि का योग हो तो यह चन्द्रमा अधिक कामुकता को भी देता है और बातो मे एक वाचालता का कारण भी पैदा करता है,जिसके अन्दर पुरानी बातो का ख्याल अधिक रखा जाता है किसी के भी प्रश्न का उत्तर बिना तर्क के समझ मे भी नही आता हैपंचम का चन्द्रमा भी धोखा देने मे पीछे नही रहता है,किसी ने जरा सी बात की और अक्समात दिल उस पर आ गया और कुछ समय बाद सामने वाले के लिये कुछ भी करने के लिये तैयार हो जाना मामूली सी बात होती है। यह बात अक्सर पुरुष स्त्रियों के प्रति और स्त्री पुरुषों के प्रति जानबूझ कर करने वाले होते है। किसी ने भावुकता से भरा गाना गा दिया बस उसके साथ साथ आंसू चलने लग गये और सामने वाले ने तो अपने अनुसार केवल नौटंकी की थी और खुद जाकर उस नौटंकी का शिकार बन गये।धन्यवाद कहना तो दूर कही कही पर बुरा ही बना दिया,जिस कन्या का विवाह किया था वह कभी वापस आकर रक्षाबंधन आदि के अवसर पर धागा भी बांधने नही आयी। यह धोखा भी पांचवे चन्द्रमा के कारण ही माना जा सकता है छठे भाव का चन्द्रमा भी प्लान बनाकर काम करने के लिये अपनी गति को देता है लेकिन सौ मे से एक भी प्लान सफ़ल कभी नही होता है केवल रास्ता चलते जो काम होने वाले होते है वह हो जाते है और जो काम प्लान बनाकर किया जाता है वह नही होता है। सोचा था कि अमुक काम को अमुक समय पर कर लिया जायेगा और अमुक समय पर काम करने के बाद अमुक मात्रा मे धन आयेगा और अमुक मात्रा मे खर्च करने के बाद अमुक सामान की प्राप्ति हो जायेगी और उस सामान से अमुक प्रकार का कष्ट समाप्त हो जायेगा,पता लगा कि वह काम नही हुआ और बीच की सभी कडियां पता नही कहां चली गई छठे भाव का चन्द्रमा मौसी और चाची का कारक होता है,अगर इनके प्रति सेवा भाव रखा जाये तथा खुद की माता की बीमारियों और रोजाना के कामो के बारे मे सहायता की जाये तो यह चन्द्रमा अच्छे फ़ल देने लगता है,इस चन्द्रमा को सफ़ेद खरगोश की उपाधि भी दी जाती है जो लोग खरगोश को पालने और उन्हे दाना पानी देने का काम करते है उनके लिये भी चन्द्रमा का सहयोग मिलता रहता है,छठे भाव का चन्द्रमा अपनी सप्तम द्रिष्टि से बारहवे भाव को देखता है बारहवा भाव नवे भाव का चौथा यानी भाग्य का घर होता है अगर धर्म स्थानो मे जाकर श्रद्धा से धार्मिक कार्य किये जाते रहे तो भी चन्द्रमा साथ देता है,नमी वाले स्थानो मे रहने से पानी के क्षेत्रो मे कार्य करने से यात्रा आदि के कार्यों मे कार्य करने से यह चन्द्रमा दिक्कत देने वाला बन जाता है.इस चन्द्रमा मे बुध का प्रभाव आने से माता को उनके मायके मे यानी ननिहाल मे सम्मान मिलता है अगर ननिहाल से बनाकर रखी जाये तो भी चन्द्रमा सहायक हो जाता है.छठे घर का चन्द्रमा के बारे मे कहा जाता है,कि जो भी प्रयत्न किया जाता है जो इच्छा पालकर कार्य किया जाता है सभी प्रयत्नो को असफ़ल कर देता है,"विकलं विफ़लं प्रयत्नं",लेकिन जो भी कार्य रास्ते चलते किया जाता है वह सफ़ल हो जाता है या थक कर जब कार्य को बन्द करने का मन करता है कार्य पूरा होने लगता है आदि बाते आती है,यह भाव श्रम करने के बाद जीविका चलाने के लिये अपनी योजना को देता है,जितना श्रम किया जायेगा उतना ही यह अच्छा फ़ल देगा,जितना आलस किया जायेगा उतना ही खराब फ़ल देगा.लोगों की सेवा करना और रोजाना के कार्यों को सुचारु रूप से समाप्त करना ही इस घर के चन्द्रमा का अच्छा उपाय है.सबसे खतरनाक तो सातवे भाव का चन्द्रमा को माना गया है। शादी करने के बाद मिलने वाला धोखा ! बडी धूमधाम से शादी की गयी और यह सोचा गया कि पति या पत्नी आकर घर को सम्भालेगी,पता लगा कि पत्नी का पीछे किसी से अफ़ेयर था वह अपने साथ घर की जमा पूंजी भी लेकर चली गयी या पति जिसे यह माना था कि बहुत ही सदाचारी है भावनाओ को समझने वाला है सभी भावनाओ को समझेगा और पता लगा कि उसका पहले से ही कोई अफ़ेयर आदि चल रहा था और वह एक दिन लापता हो गया मिला तब जब उसके साथ एक दो बच्चे भी थे। इस चन्द्रमा के द्वारा लोगो को जो नौकरी करने वाले होते है उन्हे भी खूब बना दिया जाता है नौकरी करवाने वाला कहता है कि अमुक काम की ट्रेनिंग करनी है और उस ट्रेनिंग मे अमुख खर्चा होगा उस खर्चे को पहले दो विर नौकरी करो नौकरी भी ऐसी अच्छी होगी कि ट्रेनिंग के समय मे ही नौकरी करवाने वाला अपनी कम्पनी को बन्द कर के भाग जायेगा और आधी ट्रेनिंग और दिया गया रुपया खड्डे मे चला जायेगा इस प्रकार से समय भी बेकार हुआ और धन भी गया मानसिक शांति भी गयी साथ मे जो पढाई के कागज भी लिये गये थे फ़ोटो भी ली गयी थी वह भी गयी और पता नही किसकी आई डी बनाकर किस बैंक से कर्जा और लिया जायेगा अथवा कौन से मोबाइल की कौन सी सिम फ़र्जी आई डी से लेकर किसके के लिये किस प्रकार की बात की जायेगी और जब पकडा जायेगा तो वही कारण जो नौकरी के लोभ मे था सामने आयेगा। एक बात और भी इस चन्द्रमा के कारण बनती है कि माता भी अपनी राय को भावुकता मे देती है और जो भी काम बनने का होता है उसके अन्दर रिस्क लेने से साफ़ मना किया जाता है। बिना रिस्क के फ़ायदा और नुकसान और तजुर्बा भी कहां से मिलेगा सप्तम का चन्द्रमा बुध और शुक्र के साथ होने से सास और उसकी बहिने या तो एक ही खानदान गांव या स्थान पर होती है साथ ही पत्नी और पत्नी की बहिन दूसरी माता से पैदा होती है,अथवा पत्नी का परिवार खेती आदि का काम करता है अथवा खेती सम्बन्धित फ़सलो का कारोबार करता है. अष्टम का चंद्रमा,अपने गति को देने वाला है,कुये के पानी की तरह से अपना काम करता है काफ़ी मेहनत करने के बाद कोई काम किया जाता है और जब परिणाम सामने आता है तो खारे पानी के तरह से आता है। गूढ बातो को अपनाने मे मन लगना अक्सर इसी भाव के चन्द्रमा के द्वारा होता है,कोई भी गुप्त कार्य किया जाना इसी चन्द्रमा के कारण से ही होता है। यह चन्द्रमा अक्सर चोर की मां के रूप मे काम करता है यानी चोर की मां पहले तो अपने पुत्र को बल देती रहती है कि शाबाश वह जिसका भी सामान चुरा कर लाया वह ठीक है जब उसका पुत्र पकड लिया जाता है तो वह कोने मे सिर देकर रोने के लिये मजबूर हो जाती है वह खुले रूप मे किसी के सामने रो भी नही सकती है। व्यक्ति की मानसिकता उन कार्यों को करने के लिये होती है जो गुप्त रूप से किये जाते है वह काम अक्सर बेकार की सोच से पूर्ण ही होते है वे कभी किसी के लिये भलाई करने वाले नही होते है,हां धोखे से भलाई वाले बन जाये वह दूसरी बात है। सोच मे उन्ही लोगो से काम लिया जाता है जो या तो मरे है या मर चुके है यानी मरे लोगों की आत्मा से काम करवाना।अक्सर इस चन्द्रमा वाले लोग अपनी बातो को इस प्रकार से करते है कि वे किसी न किसी की नजर मे चढने के लिये मजबूर हो जाते है वे या तो दुश्मनी मे ऊपर हो जाते है या किसी के मन मे इस प्रकार से बस जाते है कि लोग उनसे सारे भेदो को जान लेने के लिये उनकी हर कीमत पर पहले तो सहायता करते है उन्हे मन से और वाणी से बहुत प्यार देने का दिखावा करते है जैसे ही उनकी सभी गति विधियों को प्राप्त कर लेते है वे अक्सर दूर हो जाते है और बदनाम भी करने लगतेहैजब जब अष्टम चन्द्रमा से राहु अपनी युति मिलायेगा वह मानसिक तनाव अनजाने भय आदि के प्रति देगा,इसके उपाय के लिये अपने सामने लोगो से बात करने और परिवार से वैमनस्यता आदि को नही रखना चाहिये पराशक्तियों के प्रति खर्चा नही करना चाहिये ह्रदय सम्बन्धी बीमारी का ख्याल रखना चाहिये,गुप्त कार्य करना और सोचना तथा हमेशा यौन सम्बन्धो के प्रति ध्यान रखना भी स्वास्थ्य और जीवन के अमूल्य समय को बरबाद करना होता है,अक्सर कुये का पानी सोने वाले स्थान मे कांच की बोतल मे रखने से और विधवा माता जैसी स्त्रियों की सेवा करना फ़लदायी होता है. नवे भाव के चन्द्रमा का प्रभाव भी कम नही होता है लोग विदेश के लोगो से मानसिकता को लगाने के लिये देखे जाते है बाहर जाते है और अपने यहां की रीति रिवाजो को थोपने की कोशिश करते है जैसे ही उनकी चाल को लोग समझ लेते है फ़िर उनकी ही मानसिकता का फ़ायदा उठाकर उन्हे ही आराम से धोखा दिया जाता है अक्सर इस प्रकार के लोग अपने कार्यों से यात्रा वाले काम या कानून वाले काम या विदेशी लोगो से खरीद बेच के काम करते हुये देखे जा सकते है यही चन्द्रमा उन्हे अधिक पूजा पाठ या लोगो की धार्मिक भावनाओ से खेलने के लिये भी देखने मे आया है कभी कभी तो वे लोगों को इतना मानसिक रूप से बरबाद कर देते है कि लोग अपने घर द्वार को छोड कर उनके पास ही आकर बस जाते है लेकिन जब उन्हे सच्चाई का पता चलता है तो वे उनसे उसी प्रकार से नफ़रत करने लगते है जैसे कल का खाया हुआ जब आज लैट्रिन मे जाता है तो उसे छूना तो दूर बदबू की बजह से नाक भी बन्द करके रखनी पडती है। दसवे भाव का चन्द्रमा अक्सर जीवन के कार्यों के लिये दिक्कत देने वाला माना जाता है इस चन्द्रमा वालो को अपने पिता की गति का पता नही होता है और पिता की गति जब तक जातक को नही मिलती है तब तक जातक किसी भी लिंग का हो वह अपने को पराक्रम मे आगे नही ले जा पाता है वह माता के द्वारा या माता के स्वभाव पर चलने वाला होता है उसके अन्दर केवल घर की और रिस्तो वाली बाते ही परेशान करने के लिये होती है जब भी कोई बात होती है तो उसका ध्यान अलावा दुनिया के रिस्क लेने की अपेक्षा घर के लोगों के बीच मे ही उलझा रहना माना जाता है यह भी देखा गया है कि इस प्रकार के लोग अपनी शिक्षा मे या काम करने के अन्दर अपनी लगन इस प्रकार के लोगो से लगा लेते है जो इस बात की घात मे इन्तजार करने वाले होते है कि उन्हे कोई तीतर मिले जिसे अपनी शिकार वाली नीति से पंख उधेड कर काम मे लिया जा सके। अक्सर देखा जाता है कि इस चन्द्रमा वाले जातक कभी भी अपने पहले शुरु किये गये काम मे सफ़ल नही होते है जब उन्हे दूसरी बार उसी काम को करने का अवसर मिलता है तो वे समझ जाते है कि पहले उन्हे मानसिक रूप से समझ नही होने के कारण धोखे मे रखा गया था और उनका चलता हुआ काम पूरा नही हो पाया था वह काम अचानक शुरु कर देने के बाद वे सफ़ल भी हो जाते है लेकिन काम के मिलने वाले लाभ को वे या तो धर्म स्थानो मे खर्च करने के बाद अपने को दुबारा से चिन्ता मे ले जाते है या फ़िर किये जाने वाले खर्चे के प्रति अपनी सोच को कायम रखने के कारण अन्दर ही अन्दर घुलते रहते है।ग्यारहवा चन्द्रमा जब धोखा देने वाला होता है तो उसके लिये अक्सर दोस्त बनकर लोग उसे लूट खाते है जब भी कोई काम खुद का होता है तो दोस्त दूर हो जाते है और जब कोई काम दोस्तो का होता है तो अपनी भावनाओ से इस प्रकार से सम्मोहित करते है कि जातक जिसका ग्यारहवा चन्द्रमा होता है उनकी सहायता करने के लिये मजबूर हो जाता है वह मजबूरी चाहे जाति से सम्बन्धित हो या समाज से सम्बन्धित हो या किसी प्रकार के बडे लाभ की सोच के कारण हो,जब वापसी मे उस की गयी सहायता का मायना देखा जाता है तो उसी प्रकार से समझ मे आता है जैसे आशा दी जाये कि आने वाले समय मे बरसात होगी तो रेत मे पानी आयेगा फ़िर उसके अन्दर फ़सल को पैदा करने के बाद लिया गया चुकता कर दिया जायेगा। बारहवा चंद्रमा अक्सर दिमाग को पराशक्तियों की सोच मे ले जाता है आदमी का दिमाग इसी सोच मे रहता है कि आदमी मरने के बाद भी कही जिन्दा रहता है और रहता भी है तो वह क्या करता है यानी भूत प्रेत पर विश्वास करने वाला और इसी प्रकार की सोच के कारण वह आजीवन किसी न किसी प्रकार से ठगा जाता है,चाहे वह तांत्रिकों के द्वारा ठगा जाये या आश्रम बनाकर अपनी दुकानदारी चलाने वाले लोगों से ठगा जाये यह कारण अक्सर उन लोगो के साथ अवश्य देखा जाता है जिनके पास एक अजीब सोच जो उनके खुद के शरीर से सम्बन्ध रखती है देखी जा सकती है। लोग इस चन्द्र्मा से आहत होने के कारण बोलने मे चतुर होते है अपनी भावना को प्रदर्शित करने मे माहिर होते है उनकी भावना की सोच मे उस प्रकार के तत्व जान लेने की इच्छा होती है जो किसी अन्य की समझ से बाहर की बात हो। इस बात मे वे बहुत ही बुरी तरह से तब और ठगाये जाते है जब उन्हे यह सोच परेशान करती है कि योग और भोग मे क्या अन्तर होता है वे योग की तलास मे भटकते है और जहां भी बडा नाम देखा उनके सोच वही जाकर अटक जाती है लेकिन जब उनके सामने आता है कि रास्ता चलते मनचले और जेब कट की जो औकात होती है वही औकात उनके द्वारा सोचे गये और नाम के सहारे चलने वाले व्यक्ति के प्रति होती है तो वे अक्समात ही विद्रोह पर उतर आते है। और विद्रोह पर उतरने के बाद ऐसा भी अवसर आता है जब उन्हे इन बातो से इतनी नफ़रत पैदा हो जाती है कि वे किसी भी ऐसे स्थान को देखने के बाद खुले रूप मे गालिया दे या न दें लेकिन मन ही मन गालियां जरूर देते देखे गये है।बारहवा चन्द्रमा राशि के अनुसार और अन्य ग्रहों की द्रिष्टि से अपने फ़ल को देता है,मन के भाव से नवा भाव होने से श्रद्धा वाले स्थान पर चन्द्रमा के होने से जिस भी कारक की तरफ़ श्रद्धा होती है यहीं से पता किया जाता है,मन की श्रद्धा से जो खर्चा यात्रा या किसी भी कार्य को किया जाता है वह यहीं से चन्द्रमा के अनुसार ही देखा जाता है वायु का घर होने के कारण अगर चन्द्रमा इस भाव मे है तो हवाई यात्राओं की अधिकता होती है अगर केतु से सम्बन्ध होता है और त्रिक राशि का सम्बन्ध भी होता है तो फ़ांसी जैसे कारण भी बन जाते है चौथा मंगल अगर अष्टम राहु से ग्रसित होकर इस भाव के चन्द्रमा को देखता है तो जेल जाने या बन्धन मे रहने के कारण को भी पैदा करता है और भूत दोष के कारण शरीर को अस्पताल मे भी भर्ती रखने के लिये अपनी युति को देता है बारहवा चन्द्रमा राशि के अनुसार और अन्य ग्रहों की द्रिष्टि से अपने फ़ल को देता है,मन के भाव से नवा भाव होने से श्रद्धा वाले स्थान पर चन्द्रमा के होने से जिस भी कारक की तरफ़ श्रद्धा होती है यहीं से पता किया जाता है,मन की श्रद्धा से जो खर्चा यात्रा या किसी भी कार्य को किया जाता है वह यहीं से चन्द्रमा के अनुसार ही देखा जाता है वायु का घर होने के कारण अगर चन्द्रमा इस भाव मे है तो हवाई यात्राओं की अधिकता होती है अगर केतु से सम्बन्ध होता है और त्रिक राशि का सम्बन्ध भी होता है तो फ़ांसी जैसे कारण भी बन जाते है चौथा मंगल अगर अष्टम राहु से ग्रसित होकर इस भाव के चन्द्रमा को देखता है तो जेल जाने या बन्धन मे रहने के कारण को भी पैदा करता है और भूत दोष के कारण शरीर को अस्पताल मे भी भर्ती रखने के लिये अपनी युति को देता हैं चन्द्रमा नीची सोच रखता है तो अच्छी शिक्षा और अच्छे सम्बन्ध उच्च का गुरु किसी काम का नही है,"मन के हारे हार है मन के जीते जीत,मन से होती शत्रुता मन से होती प्रतीत".

मंगलवार, 4 अप्रैल 2017

चंद्र ग्रह पोस्ट नंबर 5मित्रों आज की पोस्ट भी चंद्रमा पर ही है काल पुरुष की कुंडली में चंद्रमा चौथे भाव का स्वामी हैकुंडली का चौथा भाव मानसिक गति का होता है और दूसरा भाव उस गति को लाभान्वित करने के लिये देखा जाता है। मानसिक गति को सोचने के बाद की प्राप्त करने की क्रिया को पंचम से देखा जाता है यानी जो सोचा जाये उसे प्राप्त कर लिया जाये। मानसिक गति को प्राप्त करने के लिये जो भी क्रिया करनी पडती है वह कुंडली के लगन भाव से देखा जाता है या चन्द्रमा के स्थापित स्थान से दसवे भाव के अनुसार समझा जाता है चन्द्रमा पर पडने वाले प्रभाव के साथ साथ चौथे भाव के स्वामी की गति को भी देखा जाता है और चौथे भाव का मालिक अगर चन्द्रमा का शत्रु है या चन्द्रमा से किसी प्रकार से गोचर से शत्रुता रख रहा है या त्रिक भाव से अपनी क्रिया को प्रदर्शित कर रहा है तो वह क्रिया भी प्रयास करने या प्रयास के दौरान अपनी प्रयोग की जाने वाली शक्ति को समझने के लिये मानी जा सकती है।बुद्धि और सोच को एकात्मक करने की क्रिया मे अगर बल की कमी है,बल बुद्धि और सोच मे किसी प्रकार का भ्रम है,बुद्धि बल और सोच मे कोई न कोई नकारात्मक प्रभाव है तो क्रिया पूर्ण नही हो पायेगी। जब कोई भी क्रिया पूरी नही हो पाती है तो बुद्धि पर बल पर और सोच पर इन तीनो के प्रभाव मे एक प्रकार से जल्दी से प्राप्त करने की कोशिश शुरु हो जायेगी और जब अक्समात उस शक्ति को प्राप्त करने की क्रिया होगी तो यह जरूरी है कि उसके लिये पूर्ण रूप से बुद्धि बल शरीर बल और सोचने की शक्ति के बल मे से किसी पर भी या तीनो पर ही केन्द्र बन जायेगा और उस केन्द्र से अगर किसी प्रकार की बाहरी अलावा कारण को उपस्थिति किया जायेगा तो मानसिक क्रिया एक प्रकार से उद्वेग मे चली जायेगी परिणाम में वाणी व्यवहार और कार्य के अन्दर एक झल्लाहट का प्रभाव सामने आने लगेगायह मानसिक गति है और इसे तीन से चार तक पहुंचाने के लिये तीन का भाव जो भावुकता के साथ प्रदर्शन करने से होता है वह भाव भावनाओ को समझने से सात की गति को आठ मे पहुंचाने के लिये सम्बन्धो को शुरु करने से पहले सम्बन्धो के परिणाम को समझना ग्यारह से बारह मे पहुंचाने के लिये मानसिक गति को बजाय हर समय लाभ के सोचने के उसे पराशक्ति के सहारे छोडना सही है। उदाहरण के लिये अगर शुक्र के साथ चन्द्रमा का सम्बन्ध एक बारह का है और वह भी तीन चार मे है तो शुक्र के प्रति चन्द्रमा सोच हमेशा यात्रा आदि के कारको सम्बन्धो मे स्त्री जातको की भावनाओ को देखने मानसिकता मे उन्ही बातो को कहने जो भावना से पूर्ण हो से शुक्र को चन्द्रमा से जोडना बेहतर होगा,इसके लिये जो भी भौतिक सम्पत्तियों में घर मकान जमीन वाहन आदि है उनके लिये व्यवहारिकता मे सोचना और उन पर व्यवहारिकता से अमल करना किसी की भावना को देखकर उसकी सहायता करने से पहले उस भावना को अपनी हैसियत आदि से परखना बजाय रूप के प्रति ध्यान भटकाने के उस रूप को समझकर उसके प्रति प्रतिक्रिया को व्यक्त करना सही होगा.आदि बातो से गति को बदला जा सकता है.इसे अगर तंत्र के रूप मे देखा जाये तो शुक्र चौथे भाव का रहने का भवन है और उस भवन की बाहरी साज सज्जा जो ऊपरी और सबसे नीचे की सज्जा को बनाने मे ध्यान जाता है ,लेकिन उसी प्रकार को अगर बीच के कारको मे पैदा कर दिया जाये और मकान आदि के बाहरी आवरण को अन्दर के आवरण मे स्थापित कर दिया जाये तो उस स्थान की मजबूती और लोगो के लिये मानसिक शांति का कारक बन जायेगा एक महीने के अन्दर चन्द्रमा सवा बारह दिन राहू के घेरे में रहता है और इसी बीच में मनुष्य के हाव भाव चिंता आदि अपनी अपनी राशि के अनुसार बनते रहते है,राहू जिस भाव में होता है उसी प्रकार की चिंता बनी रहती है और जिसके जिस भाव में चन्द्रमा राहू से ग्रसित होता है उसी भाव की चिंता बनाना एक आम बात मानी जाती है.जैसे राहू वृश्चिक मे है इस राशि का भाव या तो अस्पताल होगा या मौत वाले कारण होंगे या इन्फेक्सन होगा या राख से साख निकालने वाली बात होगी किसी प्रकार की खोजबीन में अंदरूनी जानकारी करने वाली बात मानी जायेगी,यह भाव मेष राशि वालो के लिए जब चन्द्रमा राहू के साथ अष्टम में होगा तभी मानी जायेगी,जैसे ही वृष राशि की बात आयेगी उस राशि का चन्द्रमा राहू के साथ सप्तम में होगा और सप्तम के अनुसार नौकरी करना नौकरी से मिलाने वाला लाभ जीवन साथी के मामले में चिंता करना जो भी सलाह देने वाला है उसकी बात का विशवास नहीं करना यहाँ तक की आगे जाने वाले रास्ते में भी कनफ्यूजन को देखना माना जाएगा,कहाँ से कैसे गुप्त धन मिले कैसे गुपचुप रूप से कोइ सम्बन्ध बने आदि की चिंता लगी रहेगी,इसी प्रकार से जैसे ही मिथुन राशि का चन्द्रमा छठे भाव में वृश्चिक के राहू के साथ आयेगा जो भी रोग होंगे वे गुप्त रोगोके साथ इन्फेक्सन वाले रोग होंगे पानी का इन्फेक्सन होगा कर्जा जहां से लिया होगा वह लेने वाला नहीं ले पायेगा जो कर्जा दिया होगा वह भी राख का ढेर दिखेगा जहां नौकरी आदि की जायेगी वह भी गंदा स्थान होगा या कोइ फरेब का कारण होगा नहीं तो किसी कबाड़ के स्टोर वाला ही काम होगा इसके बाद कई प्रकार की अन्य तकलीफे भी देखने को मिलेगी जैसे आपरेशन आदि होना कारण वृश्चिक का राहू इन्फेक्सन भी देता है तो डाक्टरी हथियारों को चलाने का कारण भी पैदा करता है.दुश्मनी भी होगी तो एक दूसरे को समाप्त करने वाली होगी कानूनी लड़ाई भी होगी तो वह राहू के छठे भाव में रहने तक कमजोर ही होगी इसी प्रकार से अन्य कारणों को भी समझा जा सकता है,वही चन्द्रमा जब मेष राशि का कार्य भाव में आयेगा तो भी राहू की नजर में आयेगा वह कार्य भी करने के लिए वही कार्य अधिकतर करेगा की या तो वह बीमार हो जाए या किसी प्रकार की जोखिम के डर से कार्य ही नहीं करे और करे भी तो उसे कोइ न कोइ इस बात का डर बना रहे की कार्य तो किया है लेकिन कार्य फल किस प्रकार का मिलेगा,वही चन्द्रमा जब बारहवे भाव में आयेगा तो भी राहू के घेरे में होगा और उस विचार से यात्रा आदि में किसी प्रकार के जोखिम वाले काम में या किसी प्रकार की नौकरी आदि की योजना में लोन लेने में कर्जा चुकाने में किसी बड़े संस्थान को देखने में वह अपनी गति को प्रदान करेगा उसी प्रकार से जब चन्द्रमा मेष राशि का ही दूसरे भाव में आयेगा तो नगद धन के लिए एक ही चिंता दिमाग में रहेगी की किस प्रकार से मुफ्त का माल मिल जाए या किस प्रकार से जादू यंत्र मन्त्र तंत्र से धन की प्राप्ति हो जाए कोइ ऐसा काम किया जाए जो आगे जाकर लाभ भी दे और मेहनत भी नहीं लगे या धन कमा भी लिया गया है तो राहू की गुप्त नजर से या तो वह चोरी हो जाए या किसी फरेब के शिकार में फंस जाए,वही चन्द्रमा जब चौथे भाव में जाएगा तो मन के अन्दर ज़रा भी जल्दी से कोइ काम करने के लिए दिक्कत का कारण ही जाना जाएगा जो भी पहले से वीरान स्थान है या जो भी पिता माता से समबन्धित स्थान है वे जाकर अपनी युति से बनाए भी जायेंगे और रहने के काम में भी नहीं आयेंगे,इसी प्रकार से माता का स्वास्थ जो पेट वाली बीमारियों से भी जुडा हो सकता है माता के अन्दर पाचन क्रिया का होना भी हो सकता है आदि कारणों के लिए देखा जाएगा अक्सर इस युति में यह भी देखा जाता है की या तो यात्रा के लिए फ्री के साधन मिल जाते है या कबाड़ से जुगाड़ बनाकर यात्रा करनी पड़ती .अव यह समस्या आती है कि कोई सरल उपाय जो सभी के लिये उपयोगी वह कैसे ग्रहों के प्रति बताया जाये ? अक्सर जो समर्थ होते है वे तो अपने अनुसार ग्रहों की पीडा का निवारण कर लेते है या करवा लेते है लेकिन जो असमर्थ होते है वे एक तो परेशान होते है ऊपर से अगर उन्हे कोई रत्न या महंगी पूजा पाठ को बता दिया जाये तो कोढ में खाज जैसी हालत हो जाती है। ज्योतिष की मान्यता के अनुसार इसका क्षेत्र अथाह समुद्र की तरह से है,और मान्यताओं के अनुसार जो वैदिक जमाने से चली आ रही है अगर ग्रहों के उपाय किये जायें तो वे सचमुच में फ़लीभूत होते है। लाल किताब के उपाय भी बहुत प्रभावशाली है लेकिन जय उपाय पूरी तरह कुंडली दिखाकर किसी अच्छे ज्योतिष से पर ही उपाय करें ऐसा ना हो कि एक भाव में ग्रह बैठकर देख कर हिसाब से आपको उपाय करें बिना सोचे-समझे किताब पढ़ कर मित्रोंचन्द्रमा को प्रभावित करने वाले ग्रह बुध गुरु शुक्र शनि राहु केतु मंगल है। बुध अगर चन्द्रमा को बुरा फ़ल देता है तो बुरे लोगों से सम्पर्क बढने लगते है और व्यवसाय आदि के लिये मानसिक कष्ट मिलने लगते है। चन्द्रमा स्त्री ग्रह है और भावुकता के लिये भी जाना जाता है। शिवजी ने चन्द्रमा को सिर पर धारण किया है इसलिये चन्द्रमा के लिये आराध्य देव शिवजी को ही माना जाता है। राहु केतु चन्द्रमा को ग्रहण देने वाले है जब भी राहु के साथ जन्म कुंडली में चन्द्रमा गोचर करता है किसी न किसी प्रकार की भ्रम वाली स्थिति पैदा हो जाती है और वही समय चिन्ता करने वाला समय माना जाता है। कुंडली के जिस भाव में राहु होता है उसी भाव की बाते दिमाग में तैरने लगती है,अक्सर इसी समय में बडी बडी अनहोनी होती देखी गयीं है। केतु के साथ गोचर करने पर एक तरह का नकारात्मक भाव दिमाग में आजाता है किसी भी साधन के लिये लम्बी सोच दिमाग में बन जाती है और जैसे ही चन्द्रमा केतु से दूर होता है वह सोच केवल ख्याली पुलाव की तरह से समाप्त हो जाती है। चन्द्रका का गोचर जैसे ही मंगल के साथ होता है दिमाग में तामसी विचार मंगल के स्थापित होने वाली राशि के अनुसार पनपने लगते है,अगर मंगल वृश्चिक राशि में है तो उस कारक को समाप्त करने के लडाई करने के झगडा करने के मारने के कत्ल करने के विचार दिमाग में आने लगते है,अगर मंगल धनु राशि में होता है तो न्याय कानून विदेश धर्म आदि के लिये उत्तेजना पनपने लगती है,अगर चन्द्रमा गुरु के साथ होता है तो सम्बन्धो के मामले में गुरु के स्थान वाले प्रभाव के अनुसार मिलने लगता है,बुध के साथ होने पर बुध जैसा और बुध के स्थान के अनुसार मिलता रहता है,जन्म के चन्द्रमा पर अगर राहु ग्रहण देने लगा है तो चन्द्रमा के बल को बढाना चाहिये और राहु के बल को समाप्त करना चाहिये। राहु अगर वायु राशि में है तो मन्त्रों के द्वारा जाप करने पर और अग्नि राशि में है तो हवन आदि के द्वारा भूमि राशि में है तो राहु के देवता सरस्वती की मूर्ति की पूजा करने के बाद जो मूर्ति पूजन में विश्वास नही रखते है उनके लिये शिक्षा स्थान या मिलकर इबादत करने वाले स्थान में राहु के रूप को नमन करना चाहिये,पानी वाली राशि में होने पर पानी के किनारे राहु का तर्पण करना चाहिये। केतु के द्वारा चन्द्रमा पर असर होने पर चन्द्रमा के बल को रत्न और वस्तुयों के द्वारा बढाकर केतु के बल को क्षीण करना चाहिये। चन्द्रमा की धातु चांदी है और रत्न मोती तथा चन्द्रमणि है। जडी बूटियों में चन्द्रमा के लिये करोंदा का कांटे वाला पेड माना जाता है।मित्रों अगर आपको मेरी पोस्ट अच्छी लगती है तो आप उसे 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सोमवार, 3 अप्रैल 2017

चंद्र ग्रह पोस्ट नंबर 4 जीवन के शुरु होते ही सुख दुख पाप पुण्य हारी बीमारी लाभ हानि आदि अच्छे और बुरे परिणाम सामने आने लगते है,सुख को महसूस करने के बाद दुखों से डर लगने लगता है हानि को समझ कर लाभ को ही अच्छा माना जाता है,जीवन के शुरु होने के बाद मौत से डर लगने लगता है। यही बात कुंडली में समझी जा सकती है,ग्रह की प्रकृति हानिकारक है या लाभ को प्रदान कराने वाली है। अगर ग्रह हानि देने वाला है तो उसे लाभदायक बनाने के प्रयत्न किये जाते है और लाभदायक तो लाभदायक है ही। खराब ग्रह के बारे में लालकिताब में लिखा है,-"बसे बुराई जासु तन,ताही को सम्मान,भलो भलो कहि छोडिये खोटिन को जप दान",बुराई करने से तात्पर्य है अनुभव करवाना,अगर किसी बुरी वस्तु का अनुभव ही नही होगा तो उसके अच्छे या बुरे होने का मतलब भी समझ में नही आयेगा,कई बार कई कारकों को हम सुनकर या पढकर या दूर से समझ कर ही त्याग देने से मतलब रखते है,जब कहा जाता है कि अमुक वस्तु जहरीली है और उसे अगर खा लिया गया तो मौत हो सकती है,और जब भी उस वस्तु को सामने देखा जाता है तो उससे केवल सुनकर या पढकर या दूर से समझ कर ही दूर रहने में भलाई समझी जाती है और जब कोई अपना या ना समझ व्यक्ति उस वस्तु की तरफ़ आमुख होता है तो उससे वही कहा जाता है जो हमने सुना या पढा या समझा या दूर से देखा। ग्रह कुंडली में जब सही तरह से मान्यता के रूप में देखा जाये तो जीवन के चार पुरुषार्थों में चारों ही अपने अपने स्थान पर सही माने जाते है। धर्म के रूप में शरीर परिवार और पुरानी वंशावली के प्रति मान्यता को समझा जाता है,अर्थ के रूप में मिला हुआ जो परिवार और हमारे कुटुम्ब ने हमे दिया है,हमारे द्वारा रोजाना के कार्यों से जो प्राप्त होता है और जो हमारे वंश से या हमारी उच्च शिक्षा के बाद प्राप्त होता है के प्रति माना जा सकता है। काम के रूप में हमारे से छोटे बडे भाई बहिन हमारे जीवन में कदम से कदम मिलाकर साथ चलने वाले लोग एवं वे लोग जिनके लिये हम आजीवन अपनी जद्दोजहद को जारी रखते है,चाहे वह पति पत्नी के रूप में हो,या संतान के रूप में या फ़िर संतान की संतान के प्रति हो,जब सही मायनों में हमने जीवन को समझ लिया है और तीनो पुरुषार्थों को पूरा कर लिया है तो बाकी का बचा एक मोक्ष यानी शांति नामका पुरुषार्थ अपने आप ही अपनी उपस्थिति को उत्पन्न कर देगा बात चंद्र ग्रह​ की चल रही है और चन्द्रमा के लिये केवल शनि ही पल्ले पडा है। जैसे कर्क और सिंह के सप्तम के स्वामी शनि होता है एक सकारात्मक होता है एक नकारात्मक होता है वैसे ही शनि की दोनो राशियों के लिये भी सूर्य और चन्द्रमा ही सप्तम के स्वामी भी होते है और सकारात्मक और नकारात्मक का प्रभाव देते है। चन्द्रमा का रूप जब शनि की राशि मकर से सप्तम का होता है तो वह केवल सोच को पैदा करने के लिये ही अपना फ़ल देता है तथा सप्तम का स्वामी जिस भाव मे होता है उसी भाव का फ़ल भी प्रदान करता है। राशि भी अपना फ़ल प्रदान करती है और सप्तम के स्वामी पर जो भी ग्रह अपनी नजर देते है उन ग्रहों का असर भी सप्तम के स्वामी पर पडता है आगे पीछे के ग्रहो का प्रभाव भी बहुत अदर देता है जिस तरह एक मकान में सभी सदस्यों का अपना अपना प्रभाव होता है उसी तरह हमारी कुंडली में प्रत्येक ग्रह का अपना अपना प्रभाव एक सदस्य के कभी घर घर नहीं बनता उसी तरह एक ग्रह के फल से कभी फल कथन कुंडली में नहीं किया जा सकता अब यहां मैं चंद्र की कुछ बुराइयां जब चंद्र अशुभ होता है उसके बारे में आपको बताऊंगा फिर भी पूरी कुंडली देखकर ही यह समझना चाहिए कि चंद्र शुभ है या अशुभ है और उसके फल को ज्ञात करना चाहिएचन्द्रमा खराब होने की निशानी होती है कि मन की सोच बदल जाती है झूथ बोलना आजाता है,चलता हुआ रास्ता भूला जाता है माता बीमार रहने लगती है जुकाम और ह्रदय वाली बीमारिया शुरु हो जाती है वाहन जो भी पास मे है सभी किसी न किसी कारण से बन्द हो जाते है बडी या छोटी बहिन भी दिक्कत मे आजाती है घर मे पानी मे कही न कही से गन्दगी पैदा हो जाती है भोजन करते समय पसीना अधिक निकलने लगता है किसी भी काम को करते समय खांसी आने लगती है गले मे ठसका लगने लगता है चावल को मशाले वाले पदार्थो मे मिलाकर खाने का जी करने लगता है। घर मे कन्या संतति की बढोत्तरी होने लगती है,कोई बहिन बुआ बेटी विधवा जैसा जीवन जीने लगती है,पडौसी नाली के लिये और घर मे आने वाली पानी के लिये लडने लगते है,मूत्र रोग पैदा हो जाते है,घर मे सुबह शाम की सफ़ाई भी नही हो पाती है,पानी का सदुपयोग नही किया जाता है घर मे पानी का साधन खुले मे नही होकर अन्धेरे मे कर दिया जाता है,पानी को बेवजह बहाना शुरु कर दिया जाता है,लान मे लगी घास सूख जाती है अधिक पानी वाले पेड नही पनप पाते है घर के एक्वेरियम मे मछलिया जल्दी जल्दी मरने लगती है,जुकाम वाले रोगो से पीडा होने पर सिर हमेशा तमकता रहता है अच्छे काम को करने के समय भी बुरा काम अपने आप हो जाता है मन की गति कन्ट्रोल नही होने पर एक्सीडेन्ट हो जाता है पुलिस और कानूनी क्षेत्र का दायरा बढने लगता है घर के अन्दर दवाइयों का अम्बार लगने लगता है। आंखो से अपने आप ही आंसू आने लगते है,आसपास के लोग तरह तरह की बाते करने लगते है हितू नातेदार रिस्तेदार सभी कुछ न कुछ कहते हुये सुने जाते है जिन लोगो के साथ अच्छा काम किया है वह भी अपनी जीभ से उसे उल्टा बताने लगते है जो अधिक चाहने वाले होते है उनके अन्दर भी बुराइया आने लगती है आदि बाते देखने को मिलती है।ज्योतिषी जी से पूंछो तो वह कहने लगेंगे कि मोती की माला पहिन लो चन्द्र मणि को पहिन लो चांदी को पहिन लो चांदी को दान मे दे दो,चन्द्रमा के जाप कर लो,यह सब खूब करो लेकिन जो कल किया है उसे आज भुगतने के लिये ज्योतिषी जी अपने सामान के साथ सहायता नही दे पायेंगे,कितने ही मंत्र बोल लो लेकिन मंत्र भी तब तक काम नही करेगा जब तक चित्त वृत्ति सही काम नही करेगी,घर मे रखी चांदी को या खरीद कर दान मे देने से किसी और का भला हो सकता है बिना चित्त वृत्ति बदले खुद का भला तो हो नही सकता है,मोती की माला भी तभी काम करेगी जब चित्त वृत्ति बदलेगी,अगर आज से चित्त वृत्तिको बदलने की हिम्मत है तो कल अपने आप ही सही होने लगेगा नही मानो तो अंजवा कर देख लो। चन्द्रमा का काम तुरत फ़ल देना होता है वह आज धन के भाव मे रहकर धन को देगा लेकिन जैसे ही वह खर्चे के भाव मे जायेगा तो धन को खर्च भी करवा लेगा,जो भी कारक उसके साथ होगा उसी के अनुसार वैसे ही काम करने लगेगा जैसे पानी मे मिठाई मिला दो तो मिठाई जैसा काम करने लगेगा गर्मी मे रख तो गर्म हो जायेगा फ़्रिज मे रख तो ठंडा हो जायेगा,मिर्ची मिला तो कडवा हो जायेगा जहर मिला तो जहरीला हो जायेगा,लेकिन चित्त वृति नही बदलती है तो वह जहरीला पानी मार सकता है और चित्त वृत्ति बदली है तो वह किसी जहरीले जानवर के काटने पर उसे बचा भी सकता है,मिर्ची वाला पानी सब्जी मे दाल मे भोजन के काम आ सकता है गर्म पानी चाय मे काम आ सकता है और ठंडा पानी शर्बत मे काम आ सकता है,लेकिन यह सब होगा तभी जब चित्त वृत्ति को बदल लो,बिना चित्त वृत्ति को बदले कुछ भी नही हो सकता है। चन्द्रमा भावुकता कारक है,अधिक भावना मे आकर यह रोना भी शुरु कर देता है और जब प्रहसन पर आये तो हँसना भी चालू कर देता है,जब गम की श्रेणी मे आजाये तो अकेला बैठ कर सोचने के लिये भी मजबूर कर सकता है,डरने की कारकता मे चला जाये तो थरथर कांपने भी लगता है। यह सब कारण अच्छी और बुरी भावना को साथ लेकर चलने से ही होता है,अन्यथा नही होता है।जब मन के अन्दर बदले की भावना नही पैदा होगी तो किसी से बैर भाव भी नही होगा और जब बैर भाव नही होगा तो लोग अच्छा ही सोचेंगे जो मन की भावनाये है उनका अच्छा और बुरा रूप दोनो सोच कर निकालेंगे तो हो ही नही सकता है कि कोई बुराई मान ले। लेकिन यह भी ध्यान रखना है कि फ़ूल और तलवार का रूप भी दिमाग से समझना पडेगा अन्यथा तलवार का काम काटना होता है और फ़ूल का काम सुन्दर भावना को देना होता है,कसाई तलवार की भाषा को समझता है और सन्त फ़ूल की भावना को समझता है।जैसे ही मन की भावना बदली मोती की माला भी काम करने लगेगी,लोगो को एक गिलास पानी पिलाने से भी चांदी के दान से बडा फ़ल मिलने लगेगा,एक सफ़ेद कपडा पहिनने से भी चन्द्रमणि का फ़ल मिलने लगेगा। यह सब कल की बुराई को आज निकालने पर कल अच्छाई से ही मुकाबला होगा इसमे कोई दोराय नही है,अक्सर जिस राशि मे चन्द्रमा होता है उस राशि मे व्यक्ति की पहुंच पर ही सोच को देने के लिये और लोगो के अन्दर जानकारी देने के लिये माना जा सकता है,जब तक व्यक्ति चन्द्रमा तक नही पहु़ंचता है तब तक वह जनता के बारे मे सोचता है जैसे ही वह चन्द्रमा की सीमा को लांघ जाता है जनता उसके बारे मे सोचने लगती है मित्रोंज्योतिष अपने रूप में कालचक्र को देखने वाली है। ज्योतिष मनुष्य की गुलाम नही है वह जो है उसे ही बखान करना जानती है। ग्रह को अपने भाव से प्रकट करना सभी की आदत है,भाव को ग्रह से जोडना भी अपने अपने भाव के बात है,भाव को बदला जा सकता है,ग्रह को भाव में रूप के अनुसार अनुमान लगाकर बताया जा सकता है,मनुष्य अपनी गति को बदल सकता है लेकिन ग्रह अपनी गति को नही बदल सकता है। जिस पृथ्वी पर हम टिके है उसकी गति को अगर दूर से देख लें तो घिग्घी बंध जायेगी,किस शक्ति से हम धरती पर टिके है उसकी गति कितनी भयानक है यह हम धरती की परिक्रमा करने की चाल से समझ सकते है।आज आज इतना ही आचार्य राजेश

शनिवार, 1 अप्रैल 2017

चंद्र ग्रह पोस्ट नंबर 3 हम सूर्य से अहं और चन्द्रमा से मन ग्रहण करते हैं और अहं व मन का संयोग हमारे व्यवहार में सुधार लाता है। ये दोनों ग्रह सूर्य और चन्द्र ज्योतिष में ऐसे ग्रह हैं जिनसे व्यक्ति के चरित्र और व्यवहार का निरूपण आसानी से किया जा सकता है। ज्योतिष में चन्द्रमा पर बहुत बल दिया गया है।रूठा हुआ भाग्य पुन: मनाया जा सकता है, खोई हुई प्रतिष्ठा और धन पुन: अर्जित किए जा सकते हैं। एक साधारण एवं गरीब व्यक्ति भी मानसिक रूप से बहुत प्रसन्न एवं प्रफुल्लित हो सकता है अथवा वही व्यक्ति बहुत अधिक दु:खी, पीड़ित और कष्ट से भरा जीवन व्यतीत करता है। ये सभी परिस्थितियां विभिन्न प्रकार के चंद्र राशि ओर स्थान बल पर आधारित हे |सूर्य और चन्द्र अकेले ही सकारात्मक और नकारात्मक होते है बाकी के ग्रह अपनी अपनी अलग अलग प्रकृति अलग अलग राशियों में देने के लिये माने जाते है। सूर्य अयन में सकारात्मक और नकारात्मक का परिणाम देता है और चन्द्रमा पक्ष में अपने सकारात्मक और नकारात्मक रूप में उपस्थित होता है। उत्तरायण और दक्षिणायन का रूप सूर्य का है तो कृष्ण और शुक्ल पक्ष चन्द्रमा का है। यह प्रभाव कुंडली के सभी ग्रहों और राशियों के लिये इन दोनो ग्रहों का माना जाता है।चन्द्रमा मन का राजा है,"मन है तो जहान है मन नही है तो शमशान है",यह कहावत चन्द्रमा के लिये बहुत अच्छी तरह से जानी जाती है। पल पल की सोच चन्द्रमा के अनुसार ही बदलती है चन्द्रमा जब अच्छे भाव मे होता है तो वह अच्छी सोच को कायम करता है और बुरे भाव मे जाकर बुरे प्रभाव को प्रकट करता है। लेकिन जब चन्द्रमा कन्या वृश्चिक और मीन का होता है तो अपने अपने फ़ल के अनुसार किसी भी भाव मे जाकर राशि और भाव के अनुसार ही सोच को पैदा करता है। जैसे मेष लगन का चन्द्रमा अगर कर्क राशि मे है तो वह भावनात्मक सोच को ही कायम करेगा अगर वह लगन मे है तो अपनी काया के प्रति भावनात्मक सोच को पैदा करेगा और वृष राशि मे है तो अपने परिवार के लिये धन के लिये और भौतिक साधनो के लिये भावनात्मक सोच को पैदा करेगा वही चन्द्रमा अगर मिथुन राशि का होकर तीसरे भाव मे चला गया है तो वह केवल अपने पहिनावे लिखने पढने और इसी प्रकार की सोच को पैदा करेगा,अष्टम मे है तो वह अपनी भावनात्कम सोच को अपमान होने और गुप्त रूप से प्राप्त होने वाले धन अथवा सम्मान के प्रति अपनी सोच को रखने के साथ साथ वह मौत के बाद के जीवन के प्रति भी अपनी सोच अपनी भावना मे स्थापित कर लेगा। इसी प्रकार से कन्या राशि का चन्द्रमा अगर अच्छे भाव मे है तो वह अच्छी सोच को पैदा करने के लिये सेवा वाले कारणो को सोचेगा और बुरे भाव मे है तो वह केवल चोरी कर्जा करना और नही चुकाना दुश्मनी को पैदा कर लेना और हमेशा घात लगाकर काम करना आदि के लिये ही सोच को कायम रख पायेगा।चन्द्रमा जगत की उत्पत्ति का कारक है यह माता बनकर जीव को पैदा करता है और पानी बनकर जीव को पालता है तथा भावना बनकर जीव को अच्छे और बुरे काम करवाता है जीवन देने का कारक भी बनता तो मारने का भी कारक बनता है। भौतिक रूप से सभी ग्रहो के साथ मिलकर अपने रूप को बदलता है तथा राशि के अनुसार अपना स्वभाव बना लेता है भाव के अनुसार ही भावना को बनाने का कारक है. जब चन्द्रमा की जाग्रत अवस्था जीव मे होती है तो वह चेतन अवस्था मे होता है चन्द्र्मा की सुषुप्त अवस्था मे जीव जागते हुये भी अचेतन अवस्था मे चला जाता है। हिन्दी के चेतन शब्द का अर्थ देखने पर च जो चन्द्रमा का कारक है मे ऐ की मात्रा शक्ति उसी प्रकार से प्रदान करती है जैसे शब्द शव मे इ की मात्रा लगाने पर शिव का रूप बन जाता है। अक्षर तक के शामिल होने पर चेत यानी सजगता शुरु हो जाती है और अक्षर न जब जाग्रत अवस्था मे गुप्त रहस्यों को भी समझा जा सके। अर्थात जाग्रत अवस्था मे जब गुप्त रहस्य को भी समझा जा सके तभी चेतन अवस्था का होना माना जाता है।एक बात चेतन अवस्था के लिये और भी मानी जाती है कि जब सूर्य के साथ चन्द्रमा होता है तो चन्द्रमा की औकात नही होती है वह सूर्य के अहम के आगे अपने प्रभाव रूपी भावना को प्रदर्शित भी नही कर सकता है और कोई भी रहस्य समझने की उसमे ताकत भी नही होती है। जैसे जैसे चन्द्रमा सूर्य से दूर होता जाता है वैसे वैसे उसके अन्दर ताकत आती जाती है जैसे जैसे चन्द्रमा सूर्य के पास आता जाता है उसकी ताकत कम होती जाती है। शुक्ल या कृष्ण पक्ष की सप्तमी से अष्टमी के बीच मे चन्द्रमा की ताकत निश्चित मात्रा मे होती है और पूर्णिमा के दिन जब चन्द्रमा सूर्य से एक सौ अस्सी अंश की दूरी पर होता है तो चन्दमा पूर्ण बलवान होता है अक्सर बडे काम इसी तिथि को पूर्ण होते है और प्रत्येक जीव की अच्छी या बुरी ताकत बढ जाती है। अक्सर इस तिथि को भावना रूपी बल के कारण ही मंगल राहु आदि ग्रहों की सहायता से बलात्कार जैसे केश अधिक होते है और मंगल शनि के बीच मे चन्द्रमा के आने से एक्सीडेन्ट और हत्या जैसे मामले भी होते देखे गये है,पुलिस रिकार्ड को अगर खंगाला जाये तो सबसे अधिक दुर्घटना या बुरे काम पूर्णिमा के दिन ही होते और अगर तीर्थ स्थानो पर या धार्मिक स्थानो पर भीड को देखा जाये तो पूर्णिमा के दिन ही अधिक भीड देखी जा सकती है।मंगल के साथ चन्द्रमा की स्थिति या तो क्रूरता पूर्ण हो जाती है या वह बिलकुल ही मन्द गति की हो जाती है खून को शक्ति का कारक माना जाता है और शक्ति मे अगर पानी की मात्रा अधिक है तो वह भावनात्मक शक्ति बन जाती है और नीच के मंगल के होने से मन की स्थिति बहुत ही कमजोर मानी जाती है वही चन्दमा जब मंगल के शनि के घर मे होने से मकर राशि का होता है तो वह अपनी मंगल की शक्ति को दस गुनी चन्द्रमा को दे देता है शनि की चालाकी और भावना का विनाश भी मंगल को मिल जाता,और यह भाव चन्दमा को भी उच्चता मे ले जाता है जो कहना है करना है वह कडक भाषा मे कहा जाता है और खरे स्वभाव से काम भी किया जाता है।बुध के साथ चन्द्र्मा के मिलने से ह्रदय मे एक मजाकिया का प्रभाव बन जाता है प्रहसन करना जो भी ह्रदय मे आता है कह देना और जो भी काम मन को प्रफ़ुल्लित करे उसे बखान कर देना लिखने के अन्दर मन को प्रदर्शित करने वाली बातो को कहना आदि भी माना जाता है चन्द्र बुध का व्यक्ति हमेशा खुले मन का होता है वह अपने अद्नर कोई बात छुपा नही पाता है अगर वही बुध खराब राशि जैसे मीन राशि मे या वृश्चिक राशि मे चला जाता है और चन्द्रमा का साथ हो जाता है बात का गूढ पन तथा मन के अन्दर एक प्रकार की इतिहास बखान करने वाली बात या गडे मुर्दे उखाडने की बात भी मानी जा सकती है। यह मन को जो अचेतन अवस्था मे होता है को तीखे शब्दो और तीखे कामो के द्वारा जाग्रत करने का अजीब रूप भी बन जाता है। योगी की बुद्धि भी चन्द्रमा के वृश्चिक राशि मे जाने से हो जाता है और किसी प्रकार से राहु का साथ भी हो जाये तो आने वाले समय की आशंका भी व्यक्त कर दिया जाता है। जो नही है वह भी उसके साथ हो जाता है और जो है उसे नही भी बताया जा सकता है। यही चन्द्रमा जब सूर्य के साथ अगर वृश्चिक राशि का हो जाता है तो व्यक्ति अपने मन की व्यथा को किसी के सामने व्यक्त भी नही कर सकता है।नो आंखो की द्रिष्टि को नाक के ऊपर वाले हिस्से मे टिका कर बन्द आंखो से मिलने वाले अन्धेरे को देखा जाये तो एक अचेतन अवस्था भी चेतन अवस्था मे बदल जाती है। साथ ही यह क्रिया अगर लगातार की जाती रहे तो वे रहस्य जो हमेशा साथ नही होते है या मरते वक्त तक पता नही चल पाते है वह भी सामने आ जाते है मौत के बाद की अवस्था या पिछले जीवन की अवस्था भी सामने आजाती है या जो भी व्यक्ति सामने आता है उसके आगे पीछे के सभी कार्य व्यवहार रीति रिवाज और अच्छे बुरे काम सामने आजाते है।अक्सर अधिक सोचने के कारण या मोह लोभ आदि के भ्रम मे आकर चेतन मन भी अचेतन हो जाता है व्यक्ति जागता हुआ भी सोता रहता है यानी अपने ख्यालो मे इतना खो जाता है,कि उसे होश भी नही रहता है कि कोई व्यक्ति क्या कह गया है या उसने अपने ख्यालो मे रहकर कोई ऐसा काम कर दिया जिससे खुद की या किसी अन्य की जोखिम की बात भी हो गयी है,यह बात उन लोगो से भी समझी जा सकती है जो हत्या आदि करने के बाद जब व्यक्ति जेल मे जाता है और जब उसका चेतन रूप जाग्रत होता है उस समय उसे खुद के ऊपर भी विश्वास नही रहता है कि उसने वह काम कैसे कर दिया है।मित्रोंकुंडली की परिभाषा बनाते समय एक एक ग्रह का ध्यान रखना जरूरी होता है। एक ग्रह एक भाव मे एक सौ चवालीस भाव रखता है,हर भाव का रूप राशि के अनुसार अपनी अपनी भावना से ग्रह शक्ति की विवेचना करता है। वही ग्रह मित्र होता है तो समय पर वही ग्रह शत्रु भी हो जाता है जो ग्रह बचाने वाला होता है वही मारने वाला भी बन जाता है मित्रों अगर आपकी भी कोई समस्या है और आप उसका समाधान चाहते हैं जब कुंडली बनवाना दिखाना चाहते हैं तो आप मुझसे मेरे नंबरों पर संपर्क करें और पूरी-पूरी जानकारी ले सकते हैं09414481324 07597718725 मां काली ज्योतिष आचार्य राजेश बाकी आगे

गुरुवार, 30 मार्च 2017

चंद्रग्रह पोस्ट नंबर दो चन्द्रमा शुभ ग्रह है.यह शीतल और सौम्य प्रकृति धारण करता है.ज्योतिषशास्त्र में इसे स्त्री ग्रह के रूप में स्थान दिया गया है.यह वनस्पति, यज्ञ एवं व्रत का स्वामी ग्रह है. लाल किताब में सूर्य के समान चन्द्रमा को भी प्रभावशाली और महत्वपूर्ण माना गया हैटेवे में अपनी स्थिति एवं युति एवं ग्रहों की दृष्टि के अनुसार यह शुभ और मंदा फल देता है. लाल किताब में खाना नम्बर चार को चन्द्रमा का घर कहा गया है चन्द्रमा सूर्य और बुध के साथ मित्रपूर्ण सम्बन्ध रखता है.शुक्र, शनि एवं राहु के साथ चन्द्रमा शत्रुता रखता है.केतु के साथ यह समभाव रखता है.मिथुन और कर्क राशि में यह उच्च होता है एवं वृश्चिक में नीच.सोमवार चन्द्रमा का दिन होता है.लाल किताब के टेवे में 1, 2, 3, 4, 5, 7 एवं 9 नम्बर खाने में चन्द्रमा श्रेष्ठ होता है जबकि 6,7, 10, 11 एवं 12 नम्बर खाने में मंदा होता है. राशि के साथ सप्तम खाने में चन्द्रमा होने से धन एवं जीवन के सम्बन्ध में उत्तम फल मिलता है.कुण्डली में चतुर्थ भाव यानी चन्द्र का पक्का घर अगर खाली हो और इस पर उच्च ग्रहों की दृष्टि भी न हो और अन्य ग्रह अशुभ स्थिति में हों तब भी चन्द्रमा व्यक्ति को अशुभ स्थितियों से बचाता और शुभता प्रदान करता है. जब चन्द्रमा पर शुक्र, बुध, शनि, राहु केतु की दृष्टि होती है तो मंदा फल होता हैं जबकि इसके विपरीत चन्द्र की दृष्टि इन ग्रहों पर होने से ग्रहों के मंदे फल में कमी आती है और शुभ फल मिलता है.चन्द्र के घर का स्थायी ग्रह शत्रु होने पर भी मंदा फल नहीं देता है. इस विधा में कहा गया है कि चन्द्रमा अगर टेवे में किसी शत्रु ग्रह के साथ हो तब दोनों नीच के हो जाते हैं जिससे चन्द्रमा का शुभ फल नहीं मिलता है.लाल किताब में खाना नम्बर 1, 4, 7 और 10 को बंद मुट्ठी का घर कहा गया है.इन घरो में स्थित ग्रह अपनी दशा में व्यक्ति को अपनी वस्तुओं से सम्बन्धित लाभ प्रदान करते हैं.चन्द्रमा देव ग्रह है,तथा सूर्य का मित्र है,मंगल भी गुरु भीसूर्य और चन्द्रमा अगर किसी भाव में एक साथ होते है,तो कारकत्व के अनुसार फ़ल देते है,सूर्य पिता है और चन्द्र यात्रा है,पुत्र को भी यात्रा हो सकती है,एक संतान की उन्नति बाहर होती है।अगर जन्मकुंडली में अकेला चंद्र हो और उस पर किसी दूसरे ग्रह की नजर (दृष्टि) न हो तो जातक हर हालत में अपने कुल की हिफजत करता है। उसका बर्ताव दया और नम्रतापूर्ण रहता है। जातक में अपने ऊपर आने वाले किसी भी आघात, दोष, यहां तक कि फांसी की सजा भी खारिज करवाने की बेमिसाल ताकत होती है। चंद्र कर्क राशि का स्वामी है। यह अपने मित्र ग्रह बृहस्पति, मंगल एवं सूर्य पर अपना कुछ प्रभाव डालकर स्वयं बुरी स्थिति से बच जाता है। चंद्र चौथे घर का हर तरह से मालिक है। यह शनि के शत्रु सूर्य से मित्रता निभाने के लिए शनि के समय रात को भी सूर्य की तरह प्रकाश फैलाता है और शनि के अंधेरे को नष्ट करने का प्रयास करता है।मन की शांति और दिल में चैन पैदा करने वाला, गंगा की तरह सबकी गंदगी को अपने अंदर समेटकर साफ-सुथरा रूप देने वाला तथा गर्मी को ठंडक में बदल देने वाला ग्रह चंद्र है। इसे माता का प्रतीक माना गया है, इसलिए सभी ग्रह इसके कदमों में सिर झुकाकर बुराई न करने की कसम खाते है। चंद्र के शत्रु राहु, केतु और शनि है। यदि पापी ग्रह शनि, राहु और केतु कुंडली के चौथे घर (जो च्रंद का घर है) में हो तो जातक का बुरा नहीं कर पाते। चंद्र के संपर्क में आने के बाद इनकी बुराई खुद-ब-खुद खत्म हो जाती है।ज्योतिष में चन्द्र और शनि का योग विष योग के नाम से प्रसिद्ध है। इसका कारण ज्योतिष में शनि को जहर का कारक माना जाना है। चन्द्र पानी का कारक होता है और जब उसमे शनि का जहर मिल जाता है तो वो जहरीला हो जाता है। चंद्र दूध का भी कारक होता है और जब दूध में जहर मिलता है तो सफेद से नीला हो जाता है और नीला रंग राहु का माना गया है और शनि का भी अर्थात इन दोनों ग्रहों का पूर्ण प्रभाव जातक पर पड़ता है।चंद्र हमारे मन और मानसिक सुख का कारक है तो शनि उदासी और वैराग्य के कारक होते है। जब चंद्र को शनि का साथ मिलता है तो उस जातक में चंद्र की चंचलता समाप्त हो जाती है। इस पर शनि की उदासी हावी हो जाती है। जातक मानसीक रूप से अशांत रहने लग जाता है और उसमे एक वै राग्य की भावना का जन्म होने लग जाता है। सभी जानते हैं की चंद्रमा हमारी माता का भी कारक होता है और शनि का प्रभाव जातक की माता को भी स्वास्थ्य से सम्बंधित समस्या प्रदान करता है। यदि आपने ध्यान दिया होगा तो अमावस्या की काली रात जो की शनि की होती है उसमे चन्द्र नही निकलता है । शनि के अंधेरे में चंद्र गुम हो जाता है। यानी जब शनि का पूर्ण अशुभ प्रभाव चन्द्र पर हो तो जातक को चन्द्र से संबंधित समस्या का सामना करना पड़ जाता है। लाल किताब में भी चंद्र को धन और शनि को खजांची कहा गया है और जब इन दोनों का साथ हो तो जातक के धन की रखवाली जहरीला सांप करता है। यानी जातक के पास धन हो तो भी वो उसका प्रयोग नही कर सकता यानी धन की थैली पर सांप कुण्डली मार कर बैठ जाता है।यदि चन्द्रमा की दृष्टि शनि पर हो तो चन्द्रमा पर दुष्प्रभाव नही होता। यदि शनि की दृष्टि चन्द्रमा पर हो तो चन्द्रमा के फल का विपरीत प्रभाव पड़ता है। चन्द्रमा में शनि का विष आये बिना नही रहेगा।शनि द्वारा शासित जातक शुक्र से सम्ब्नधित वस्तुए के व्यापार में लाभ प्राप्त नही कर सकेगा। यदि राहु - केतु या शनि की दृष्टि चन्द्रमा पर हो तो द्रष्टा ग्रह से सम्बंधित जातक के सबंधी पर अशुभ फलो का प्रभाव होगा। जब सूर्य और मंगल साथ साथ एक ही भाव में हो तो चन्द्रमा प्राय: लाभ का ग्रह नही होता। जब चन्द्रमा की दृष्टि गुरु पर हो तो 2 में बुध, 5 में शुक्र, 9 में राहु तथा 12 में शनि हो तो चन्द्रमा शुभ फल नही देता। यदि 2, 4 या 8 खली होने के कारण सुप्त हो तो चन्द्रमा का उपाए करना चाहिए। ग्रहों के 35 साला दौरे में चन्द्रमा को एक साल मिला है। चंद्र बुरे घरों में हों और उनको शनि, राहू, केतू पीड़ित कर रहे हों तो ऐसे जातक के रूपये पैसे या प्रॉपर्टी पर दुसरे लोग मौज करते हैं। चंद्र भी मन्दे हों और उसी समय बुध भी मन्दे हाल हों और दोनों नीच या अपने दुश्मन ग्रहों से संबंध (कन्सर्न) करें तो सोच ख़राब हो जाती है और इज्जत मान भी नष्ट हो जाता है। जिस व्यक्ति की कुंडली में चन्द्र नीच के या मन्दे हाल हों तो ऐसे व्यक्ति को समझाना या नसीहत देने का कोई लाभ नहीं मिलता क्योंकि ऐसा व्यक्ति जिद्दी हो जाता है और अपने आगे किसी की नही सुनता। जिस कुंडली में चन्द्र और गुरु दोनों मन्दे नीच या दुश्मन ग्रहों से पीड़ित हो रहे हों तो ऐसा जातक दो नम्बर के कामों की तरफ जल्दी आकर्षित हो जाता है। वाकी आगे मित्रों अगर आप की ज़िंदगी में कोई भी समस्या चल रही है और आप उससे निजाद पाना चाहते है तो मुझ से समर्पक कर सकते हैऔर मैं पूरी कोशिश करूंगा कि उसके बारे में अधिक से अधिक जानकारी आप लोगों को मुहैया करवा सकूँ। हमारी service paid है आचार्य राजेश 09414481324 07597718725

बुधवार, 29 मार्च 2017

: चंद्र ग्रह मित्रोंअसल में चंद्र कोई ग्रह नहीं बल्कि धरती का उपग्रह माना गया है। पृथ्वी के मुकाबले यह एक चौथाई अंश के बराबर है। पृथ्वी से इसकी दूरी 406860 किलोमीटर मानी गई है। चंद्र पृथ्वी की परिक्रमा 27 दिन में पूर्ण कर लेता है। इतने ही समय में यह अपनी धुरी पर एक चक्कर लगा लेता है। 15 दिन तक इसकी कलाएं क्षीण होती है तो 15 दिन यह बढ़ता रहता है। चंद्रमा सूर्य से प्रकाश लेकर धरती को प्रकाशित करता है। देव और दानवों द्वारा किए गए सागर मंथन से जो 14 रत्न निकले थे उनमें से एक चंद्रमा भी थे जिन्हें भगवान शंकर ने अपने सिर पर धारण कर लिया था।चंद्र को देव ग्रह माना गया है और जा जल तत्व का प्रतिनिधित्व करता है कर्क राशि का यह स्वामी है। चंद्रमा के अधिदेवता अप्‌ और प्रत्यधिदेवता उमा देवी हैं। श्रीमद्भागवत के अनुसार चंद्रदेव महर्षि अत्रि और अनुसूया के पुत्र हैं। इनको सर्वमय कहा गया है। ये सोलह कलाओं से युक्त हैं। चंद्रमा का विवाह राजा दक्ष की सत्ताईस कन्याओं से हुआ। ये कन्याएं सत्ताईस नक्षत्रों के रूप में भी जानी जाती हैं, पत्नी रोहिणी से उनको एक पुत्र मिला जिनका नाम बुध है। पृथ्वी से जुड़े प्राणियों की प्रभा (ऊर्जा पिंडों) और मन को ग्रह प्रभावित करते हैं। प्रत्येक ग्रह में एक विशिष्ट ऊर्जा गुणवत्ता होती है, जिसे उसके ग्रहों की ऊर्जा किसी व्यक्ति के भाग्य के साथ एक विशिष्ट तरीके से उस वक्त जुड़ जाती है जब वे अपने जन्मस्थान पर अपनी पहली सांस लेते हैं। यह ऊर्जा जुड़ाव धरती के निवासियों के साथ तब तक रहता है जब तक उनका वर्तमान शरीर जीवित रहता है।ग्रह आद्यप्ररुपीय ऊर्जा के संचारक हैं। प्रत्येक ग्रह के गुण स्थूल जगत और सूक्ष्म जगत वाले ब्रह्मांड ्रुवाभिसारिता के समग्र संतुलन को बनाए रखने में मदद करते हैं, जैसे नीचे वैसे ही ऊपरमाँ का सुख क्योंकि चन्द्र प्राण का कारक और मनुष्य रूप में माँ ही प्राण तुल्य है।जब किसी भी मनुष्य को किसी भी प्रकार से कष्ट होता है।तो उसे माँ ही याद आती है।और माँ को भी अपनी संतान के दुख का अभास हो जाता है।और अपनी संतान के दुख को दूर करने का प्रयत्न मन से वचन से और कर्म से करती है।यदि माँ मनसा, वाचा,कर्मणा अपनी संतान की रक्षा नहीं कर पाती तो तब इस स्थिति में माँ अपने हृदय से अपने प्राणों से प्यारी संतान की रक्षा के लिए भगवान से प्रार्थना करती है। और भगवान उस माँ की प्रार्थना को सुन लेते हैं।और उसकी संतान के प्राणों की पुनः रक्षा करते हैं।और प्रभु प्रार्थना उसका जीवन आनंदमय कर देती है। चन्द्र ग्रह का भी यही काम प्राणों की रक्षा करना है।मनुष्यों में माँ प्राण और नव ग्रहो में चन्द्र प्राण है। चन्द्र ग्रह शान्ति का प्रतीक है।सफेद रंग है।जल तत्व है।यदि किसी भी मनुष्य की जन्म कुण्डली में जीवन में चन्द्र ग्रह शुभ हो तो जातक बहुत शांत स्वभाव का,मातृ -सुख की प्राप्ति, प्रत्येक कार्य को बहुत स्थिर बुद्धि से करने वाला, जल संबंधित पानी, चाय-कोफी,जूस,फिनाइल - तेजाब कोल्ड ड्रिंक की एजेंसी कम्पनी, आईस क्रीम, आईस क्यूब की फैक्ट्री, दूध बेचने का काम शराब के ठेके का काम लेना, बेचना, खरीदना, इत्यादि ( लिक्विड ) का व्यापार करने वाला होता है।अगर आप की कुण्डली मे चन्द्र ग्रह की स्थिति उतम और यहाँ बताये हुआ कोई भी व्यपार, व्यवसाय आप करते है। तो आप अपने इस व्यपार मे बहुत लाभ कमा रहे है।या इनमे से कोई भी व्यपार करके आप धन, ऐश्वर्य, नाम कमाने वाले हो बस आप को अपने काम मे सत्य निष्ठा,ध्यान, स्थिरता, योग्यता, अपना व्यवहार और वाणी को उतम,और थोड़ा परिश्रम की अवश्यकता है। बाकी चन्द्र ग्रह अपना शुभ फल दे के आप की मेहनत को सफल करके ख्याति नाम प्राप्त करवायेगा।लेकिन ये व्यपार, व्यवसाय, प्रारम्भ करने से पहले आप को पता होना चाहिए। कि आप की जन्म कुण्डली मे चन्द्र ग्रह की स्थिति शुभ होनी चाहिए। और यदि चन्द्र ग्रह की स्थिति आप की जन्म पत्रिका में अशुभ हैं।तो आप को चन्द्र ग्रह से संबंधित कोई भी व्यपार, व्यवसाय नहीं करना चाहिए। यदि आप करेगे तो आप को लाभ नहीं हानि होगी। Modern Science भी इस बात को पूरी तरह से स्‍वीकार करता है कि पूर्णिमा व अमावस्‍या के समय जब चन्‍द्रमा, पृथ्‍वी के सर्वाधिक नजदीक होता है, तब पृथ्‍वी के समुद्रों में सबसे बड़े ज्‍वार-भाटा होते हैं और इतने बड़े ज्‍यार-भाटा का मूल कारण चन्‍द्रमा की गुरूत्‍वाकर्षण शक्ति ही है, जो कि मूल रूप से पृथ्‍वी के समुद्री जल काे ही सर्वाधिक आकर्षित करता है।सम्‍पूर्ण पृथ्‍वी पर लगभग 75% भू-भाग पर समुद्र का खारा जल है और इन्‍हे Scientists ने से भी सिद्ध किया है कि मनुष्‍य का शरीर भी लगभग 75% पानी से बना है तथा ये पानी भी लगभग उसी अनुपात में और उतना ही खारा है, जितना कि समुद्री जल। यानी सरलतम शब्‍दों में कहें तो हमारा शरीर लगभए एक छोटे समुद्र के समान है। तो जब चन्‍द्रमा के गुरूत्‍वाकर्षण का प्रभाव समुद्र के पानी पर पड़ता है, तो उसी मात्रा में वैसा ही प्रभाव मानव शरीर पर क्‍यों नहीं पड़ेेगा मानव का दिमाग मूल रूप से 80% पानी से बना होता है और हमारे भोजन द्वारा जीवन जीने के लिए जितनी भी उर्जा ये शरीर Generate करता है, उसकी 80% उर्जा का उपयोग केवल दिमाग द्वारा किया जाता है क्‍योंकि शरीर के काम करना बन्‍द कर देनेसो जाने, बेहोश हो जाने अथवा शिथिल हो जाने पर भी दिमाग यानी मन अपना काम करता रहता है। यानी मन, मनुष्‍य के शरीर का सबसे महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा है, जिसकी वजह से ये तय होता है कि व्‍यक्ति जीवित है या नहीं। यदि व्‍यक्ति का मन मर जाए, तो शरीर जीवित होने पर भी उसे मृत समान ही माना जाता है, जिसे सामान्‍य बोलचाल की भाषा में कोमा की स्थिति कहते हैं और भारतीय फलित ज्‍योतिष के अनुसार मन का कारक ग्रह चन्‍द्रमा है।जिस प्रकार से जीवन मे लगन प्रभावी होती है उसी प्रकार से चन्द्र राशि भी जीवन मे प्रभावी होती है। चन्द्रमा एक तो मन का कारक है दूसरे जब तक मन नही है तब कुछ भी नही है,दूसरे चन्द्रमा माता का भी कारक है और माता के रक्त के अनुसार जातक का जीवन जब शुरु होता है तो माता का प्रभाव जातक के अन्दर जरूर मिलता है,हमारे भारत वर्ष मे जातक का नाम चन्द्र राशि से रखा जाता है यानी जिस भाव का चन्द्रमा होता है जिस राशि मे चन्द्रमा होता है उसी भाव और राशि के प्रभाव से जातक का नाम रखा जाता है मैने पहले भी कहा है कि चन्द्रमा मन का कारक है और जब मन सही है तो जीवन अपने आप सही होने लगता है जो सोच सोचने के बाद कार्य मे लायी जायेगी वह सोच अगर उच्च कोटि की है तो जरूर ही कार्य जो भी होगा वह उच्च कोटि का ही होगा,सूर्य देखता है चन्द्र सोचता है और शनि करता है बाकी के ग्रह हमेशा सहायता देने के लिये माने जाते है। कोई ग्रह समय पर मित्र बनकर सहायता देता है तो कोई ग्रह शत्रु बनकर एक प्रकार की शिक्षा के लिये अपना प्रयोग दे कर चला जाता है जो ग्रह आज शत्रु है तो कल वही ग्रह मित्र बनकर अपना प्रभाव प्रदर्शित करता है आदि बाते जरूर देखने मे आती है।मेरा यह सतत प्रयास रहा है कि आप ज्योतिष के अन्दर अन्धेरे मे नही रहे और आपको जितनी अच्छी ज्योतिष सीखने का कारण मिलेगा मुझे उतना ही आनन्द आयेगा कि भारत के ऋषियों मनीषियों की शोध की बाते आप तक पहुंची और आपने उन बातो को सीख कर अपने ग्यान को भी बढाया साथ मे उन लोगो की भी सहायता की जो आज के भौतिक युग मे केवल धन को ही महत्ता देते है और उस महत्ता के कारण जो वास्तव मे जरूरत वाले है उन्हे ज्योतिष का प्रभाव समझ मे नही आता है उसके बाद भी तामसी प्रवृत्ति के लोग उन्हे बरगलाते है और उन्हे हमारे ज्योतिष को जो वेद का छठा अंग है और सूर्य बनकर देख रहा है चन्द्रमा बनकर सोच रहा है मंगल बनकर पराक्रम दे रहा है बुध बनकर एक दूसरे को जोड रहा है गुरु बनकर रिस्ते स्थापित कर रहा है शुक्र बनकर जीवन को सजा रहा है शनि बनकर कार्य की तरफ़ बढा रहा है राहु बनकर आकस्मिक अच्छा कर रहा है और केतु बनकर साथ के सहायक कारको को प्रदान कर रहा है मित्रों चन्द्रमा राशि के अनुसार क्या क्या सोचने के लिये मन के अन्दर लहरो को उठाता है यह लहरे भावना के अनुसार किस प्रकार से ऊपर नीचे जाती है और जीवन मे सोच आना और सोच का जाना कैसे होता है। इतना ध्यान रखना है कि लगन शरीर है तो चन्द्र राशि सोच है,सूर्य लगन पिता की तरफ़ से मिले संस्कार है। वाकी आगे मित्रों अगर आप भी मुझसे अपनी कुंडली बनवाना क्या दिखाना चाहते हैं तो आप मुझसे संपर्क करें हमारे फोन नंबर पर पूरी जानकारी ले paid service 09414481324 07597718725

सोमवार, 27 मार्च 2017

शुक्र ग्रह पोस्ट नंबर 3 मित्रों आज भी हम शुक्र पर ही बात करेंगे फिल्मी दुनिया की चकाचौंध, फेशनेबल वस्त्रों में घूमते युवा, विपरीत लिंगियों की तरफ बढ़ता आकर्षण अदभुत सा लगता है न ये संसार, ये सारी चीजें शुक्र के प्रतिनिधित्व में आती है. अगर शुक्र का अच्छा प्रभाव कुंडली में हो तो व्यक्ति को दुनिया की बुलंदियों पर पंहुचा देता है लेकिन शुक्र का फ़ायदा भी आपको तभी मिल सकता है, जब कुंडली में अन्य ग्रह आपकी आर्थिक मदद कर सकें और ऐसा करने से आपकी जिन्दगी पूरी तरह से ही बदल जायेगीशुक्रदेव का हमारी कुंडली में बड़ा ही अलग सा किरदार होता है। शुक्र गुरु है उन दैत्यों का जो निद्रा और वासना के पुतले है। उन्हें धर्म या दर्शन से कोई दरोकर नही में शुक्र को उन्ही वासना और विश्राम कारक मन गया है। अकेला शुक्र किसी भी भाव में बुरा नही।वुघ शुक्र के साथ मित्रता रखता है लेकिन मुसीबत के वक्त मित्रता की बलि दे देता है यदि बुध शुक्र से 1, 2, 3 भावों में स्थित हो तो दोनों के फल संयुक्त रूप से शुभ होते है अलग अलग भी अच्छे ही होते है। इन स्थानों में केतु भी शुभ फल देता है। यदि भाव स्तिथि इससे भिन्न हो तो राहु फल को विषाक्त कर देता है। यदि शुक्र और बुध 2-8, 3-9, 6-12, 8-2 हों तो खराब फल देता है, किन्तु ऐसा बहुत कम होता है। शुक्र और बुध एक दूसरे से 150 की दुरी पर प्राय नही जाते। यदि बुध षष्ठ भाव में और शुक्र द्वादश भाव में हो तो दोनों उच्च के होते है। अतः शुभ फल देते है। यदि राहु की दृष्टि शुक्र पर हो तो या शुक्र की दृष्टि राहु पर हो तो शुक्र के फल शून्य जाते है। यदि जन्म कुंडली में शुक्र पर किसी प्रकार का विपरीत प्रभाव होतो गोचर से जब भी वह अशुभ घर में आयेगातो उसके फल शून्य हो जायेंगे। शुक्र की अधिस्ठात्री देवी लक्ष्मी है। उसकी धातु चांदी और रत्न हीरा माने गए है। वह पत्नी और प्रेमिका की कारक है। कपूर, घी, दही, रुई और सुगंध देने वाले पौधे शुक्र के छेत्र अधिकार में आते है। देहंगो में वह चेहरे का कारक है। भाव को सक्रिय करता है और चतुर्थ में राशिफल का ग्रह बन जाता है। ग्रहों को 35 साला दौरे में उसे 3 साल मिले है। शुक्र सफेद रंग (दही) दुनिया की मिट्टी, ज़माने की लक्ष्मी, गऊ माता, मर्द की औरत ने किसी को नीच न किया। इसलिये हर एक ने पसन्द किया और खुद नीच किया। ''बदी खुफिया तू जिससे दिन रात करता, वक्त मन्दा तेरे वही सर पर चढ़ता। शुक्र के ग्रह को दुनियावी किस्मत से कोई ताल्लुक नहीं। सिर्फ इश्क व मुहब्बत की फालतू दो से एक ही आंख हो जाने की ताकत शुक्र कहलाती है। स्त्री ताल्लुक, गृहस्थ आश्रम, बाल बच्चों की बरकत और बड़े परिवार का 25 साला ज़माना शुक्र का अहद है। इस ग्रह में पाप करने कराने की नस्ल का खून और गृहस्थी हालत में मिट्टी और माया का वजूद है। मर्द के टेवे में शुक्र से मुराद स्त्री और औरत के टेवे में उसका खाविन्द मुराद होगी। अकेला बैठा हुआ शुक्र टेवे वाले पर कभी भी बुरा असर न देगा और न ही ऐसे टेवे वाला गृहस्थी ताल्लुक में किसी का बुरा कर सकेगा। जब दृष्टि के हिसाब से आमने सामने के घरों में बैठे हों तो चमकती हुई चांदनी रात में चकवे चकवी की तरह अकेले अकेले होने का असर मन्दरज़ा जैल होगा। अगर बुध कुण्डली में शुक्र से पहले घरों में बैठा हो तो इस तरह दोनों के मिले हुए असर में केतु की नेक नीयत का उम्दा असर शामिल होगा। लेकिन अगर शुक्र कुण्डली में बुध से पहले घरों में हो तो इस तरह मिले हुए दोनों के असर में राहु की बुरी नीयत का असर शामिल होगा। दृष्टि वाले घरों में बैठे होने के वक्त शुक्र का असर प्रबल होगा। लेकिन जब बुध पहले घरों में हो और मन्दा होवे तो शुक्र में बुध का मन्दा असर शामिल हो जायेगा। जिसे शुक्र नही रोक सकता व गृहस्थ मन्दे नतीजे हाेंगे। जब अकेले अकेले बन्द मुट्ठी के खानों से बाहर एक दूसरे से 7वें बैठे हो तो दोनो ही ग्रहों और घरों का फल निकम्मा होगा। मगर शुक्र 12 और बुध 6 में दोनों का उच्च होगा जिसमें केतु का उत्तम फल शामिल होगा। ऐसी हालत में बैठे होने के वक्त दोनों का असर बाहम न मिल सकेगा। जब दोनो ग्रह जुदा जुदा मगर आपस में दृष्टि के खानों की शर्त से बाहर हों तो जिस घर शुक्र हो वहां बुध अपना असर अपनी खाली नाली के ज़रिए लाकर मिला देगा और शुक्र के फल को कई दफ़ा बुरे से भला कर देगा। लेकिन बुध के साथ अगर दुश्मन ग्रह हों तो ऐसी हालत में शुक्र कभी भी बुध को ऐसी नाली लगाकर अपना असर उसमें मिलाने नही देगा। ऐसी हालत में बुध किसी तरह भी शुक्र को निकम्मा या बरबाद नही कर सकता। जन्म कुण्डली में शुक्र अगर अपने दुश्मन ग्रहों को देख रहा हो तो जब कभी बमुजिब वर्ष फल शुक्र मन्दा हो या मन्दे घरों में जा बैठे, वह दुश्मन ग्रह जिनको कि शुक्र जन्म कुण्डली में देख रहा था, शुक्र के असर को ज़हरीला और मन्दा करेंगे ख्वाह वह शुक्र को अब देख भी न सकते हों । ऐसे टेवे वाला जिससे खुफिया बदी किया करता था अब वही दुश्मनी और बरबादी का सबब होगा। .यहा सुर्य के साथ शुक्र ,सूर्य गर्मी है और शुक्र रज है सूर्य की गर्मी से रज जल जाता है,और संतान होने की गुंजायस नही रहती है,इसी लिये सूर्य का शत्रु है,जब कभी भी कुंडली में सूर्यूर्और शनि का झगड़ा होगा, ऐसी हालत में न सूर्य बर्बाद होगा न शनि, क्योकि वे दोनों बाप-बेटे है लेकिन इसका असर शुक्र पर जरूर पड़ेगा। बेशक शुक्र उस समय अच्छी स्थिति में हो। कहने का भाव यह है कि सूर्य शनि के झगडे में व्यक्ति की स्त्री पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ सकता है। इसी तरह बुध ने भी अपने बचाव के लिए शुक्र से दोस्ती कर रखी है, लेकिन चालाक बुध अपने वफ़ादारी के फर्ज को नही निभाता। जब कभी बुध पर कष्ट आता है तो वो अपने ही दोस्त शुक्र को मुशीबत में डाल देगा। ऐसा नहीं की हर जगह शुक्र ही मरते है। बल्कि जब कभी चन्द्र और शुक्र मुकाबले पर होखासकर शुक्र चन्द्र मुश्तरका खाना न 7 या शुक्र अकेला खाना न 7 और चन्द्र खाना न 1 तो माता पर या माता की नजर पर इसका बुरा प्रभाव पड़ सकता है । शुक्र देव नीच मंदे या दुश्मन ग्रहो के साथ बैठ जाये या दृष्टि आदि से पीड़ित हो तो शुक्र के बुरे फल मिलते है और ऎसे जातक के स्वाभाव में यह भी देखा जाता है की वह जल्दी बिस्तर नही छोड़ता और वह शुक्र के फल को और भी बुरा कर लेता है। शुक्र का सम्बन्ध राहु के साथ हो जाये तो पति पत्नी के सम्बन्ध में शक वहम मारपीट तक होती है। ऎसे जातक को गुप्त रोग तक हो जाते है यहाँ तक की जातक नपुंसक तक हो जाते है। ऐसा व्यक्ति अपने साथी को तंग ही करता रहता है। शुक्र का सम्बन्ध सूर्य के साथ होने से सम्भोग की इच्छा बहुत काम हो जाती है। वो भी जीवनसाथी को खुश नही रख पता। खुद के व साथी के शरीर में अंदरुनी कमजोरी हो जाती है जो की आसानी से पकड़ में नही आती। जब शुक्र का सम्बन्ध चन्द्र के साथ हो जाये तो ऎसे जातक का सम्बन्ध अपनी सास के साथ अच्छा नही होता। अगर ऐसा योग अगर लड़की की कुंडली में हो तो उसे सास की तरफ से कभी सुख नही मिलता। ऎसे जातक की माँ की आँखों में तकलीफ रहती है और साथ ही चमड़ी के रोग भी हो जाते है। यहाँ तक की जातक को भी इन्ही परेशानियो का सामना करना पड़ता है। शुक्र देव 2, 3, 7, 10, 12 में अच्छे फल देते है लेकिन यह भी जरूरी होता है की वे अपने सत्रु गृह सूर्य ,चन्द्र ,राहु के साथ युक्ति द्वारा या दृष्टि द्वारा ख़राब तो नही हो रहे। शुक्र देव के बारे में एक आश्चर्यजनक बात यह है की खाना 6 ,8 ,12 में तो इसका भेद ही बहुत रहस्यमय हो जाता है।यही अगर ,शुक्र के साथ राहु के मिलने से कामुकता में इतनी अधिकता आजाती है कि हर बात में ही कामुकता का रूप दिखाई देने लगता है। यह बात हर जगह नही मानी जाती है,कुंडली की राशि और भाव पर भी निर्भर करता है। शुक्र का प्रभाव अगर दसवे भाव में राहु के साथ हो जाता है तो कार्य करने के लिये शाही चमक दमक वाला दफ़्तर ही रास आता है चाहे सैलरी कितनी ही कम क्यों न हो। घर में भोजन की दिक्कत बनी रहे लेकिन पत्नी की सजावट और कास्मेटिक का बोलबाला जरूर होगा,पेट्रोल के लिये धन कमाने में दिक्कत होगी लेकिन गाडी चमक दमक वाली होगी। घर के अन्दर टूटा पलंग होगा लेकिन दरवाजे की सजावट निराली होगी,यह होता है शुक्र और राहु का इकट्ठा रूप।अक्सर लोगों की धारणा होती है कि अमुक ग्रह कुंडली में दिक्कत देने वाला है इसलिये इसकी उपयोगिता नही है। अमुक ग्रह का उपाय किया जाये उसका रत्न पहिना जाये या पूजा पाठ से उसे उपयोगी बनाया जाये। यह भी सभी को पता होता है कि ग्रह भी समय समय से अपना फ़ल प्रदान करता है,यह भी पता है कि ग्रह अगर जन्म से ही खराब है तो वह कितना अच्छा फ़ल दे पायेगा।मित्रों मैंने कभी नहीं कहा कि मैं फ्री देखता हूं क्या मैंने आप लोगों से कहा की आपमुझसे ही अपनी कुंडली दिखाएं यह बात मुझे कहने पड़ रही है कि कुछ लोग उल्टे सीधे सवाल करते हैं या आप मेरी Facebook से जुड़े अगर आप मुझसे अपनी कुंडली दिखाना या बनवाना चाहते हैं तो हमारी सर्विस,paid हे्है आचार्य राजेश

रविवार, 26 मार्च 2017

शुक्रग्रह भाग नंबर २ मित्रों आज भी हम शुक्र के बारे में ही बात करेंगे ज्योतिष की इस विधा में वैवाहिक जीवन के सुख विवाह और वैवाहिक सुख के लिए शुक्र सबसे अधिक जिम्मेवार होता है. इस विषय में लाल किताब और भी बहुत कुछ कहता है. यदि शुक्र जन्म कुण्डली में सोया हुआ है तो स्त्री सुख में कमी आती है. राहु अगर सूर्य के साथ योग बनाता है तो शुक्र मंदा हो जाता है जिसके कारण आर्थिक परेशानियों के साथ साथ स्त्री सुख भी बाधित होता है. लाल किताब में लग्न, चतुर्थ, सप्तम एवं दशम भाव बंद मुट्ठी का घर है. इन भाव के अतिरिक्त किसी भी अन्य भाव में शुक्र और बुध एक दूसरे के आमने सामने बैठे हों तो शुक्र पीड़ित होकर मन्दा प्रभाव देने लगता है. इस स्थिति में शुक्र यदि खाना १२ में होता है तो मन्दा फल नहीं देता है.कुण्डली में खाना संख्या 1 में शुक्र हो और सप्तम में राहु तो शुक्र को मंदा करता है जिसके कारण दाम्पत्य जीवन का सुख नष्ट होता हे अगर एक दूसरे से छठे और आठवें घर में होते हैं तो टकराव के ग्रह बनते हैं. सूर्य और शनि कुण्डली में टकराव के ग्रह बनते हैं तब भी शुक्र मंदा फल देता है जिससे गृहस्थी का सुख प्रभावित होता है. पति पत्नी के बीच वैमनस्य और मनमुटाव रहता है.पीड़ित शुक्र से प्रभावित जातक की जिंदगी में सुख की बेहद न्यूनता हो जाती है, उसे पग-पग पर संघर्ष करना पड़ता है, भोग-वैभव उससे कोसों दूर रहते हैं, मानसिक रूप से ऐसे व्यक्ति एक नीरस इंसान की तरह लोगों के बीच जाना जाता है ज्योतिष मे स्त्री ग्रह का दर्जा दिया है। शुक्र को वास्तव में स्त्री ग्रह का दर्जा तो दिया गया है,लेकिन इसका वास्तविक प्रभाव प्रत्येक जीवधारी में बराबर का मिलता है,पुरुष के अन्दर स्त्री अंगों की उपस्थिति भी इस ग्रह का भान करवाती है। जिस प्रकार से मंगल की गर्मी गुस्सा और उत्तेजना को पुरुष और स्त्री दोनो के अन्दर समान भाव में पाया जाना है,उसी प्रकार से शुक्र का प्रभाव स्त्री और पुरुष दोनो के अन्दर समान भाव में पाया जाता है।शुक्र को आनन्द का ग्रह कहा जाता है,वैसे सभी ग्रह अपने अपने प्रकार का आनन्द प्रदान करते है,सूर्य राज्य का आनन्द प्रदान करवाता है,मंगल वीरता और पराक्रम का आनन्द प्रदान करवाता है,चन्द्र भावुकता का आनन्द देता है,बुध गाने बजाने का आनन्द देता है,गुरु ज्ञानी होने का आनन्द देता है,शनि समय पर कार्य को पूरा करने का आनन्द देता है। शुक्र आनन्द की अनुभूति जब देता है,जब किसी सुन्दरता के अन्दर प्रवेश हो,भौतिक रूप से या महसूस करने के रूप से,जैसे भौतिक रूप से किसी वस्तु या व्यक्ति को सुन्दरता के साथ देखा जाये,महसूस करने के रूप से जैसे किसी की कला का प्रभाव दिल और दिमाग पर हावी हो जावे।शुक्र आनन्द के साथ दर्द का कारक भी है,जब हम किसी प्रकार से सुन्दरता के अन्दर प्रवेश करते हैं तो आनन्द की अनुभूति होती है,और जब किसी भद्दी जगह या बुरे व्यक्ति से सम्पर्क करते है तो कष्ट भी होता है। स्त्री कारक ग्रह है। इसलिए इस घर (खाना नं 6) में शुक्र होने पर जो वैर - विरोध पैदा होता है वो अधिकतर स्त्रिओं की ओर से और स्त्रिओं के कारण होता है। उसके शत्रु भी स्त्री स्वभाव के होंगे। ये शत्रु उस व्यक्ति के साथ बहुत ईर्ष्या रखते है और उसके बारे में दूसरे लोगों के पास झूठी - सच्ची बातों से उसे बदनाम करने की कोशिश करते है और किसी हद तक अपनी कोशिशों में सफल भी होते है। इस घर का शुक्र मीठा मीठा बोलने वाले दुश्मन पैदा करता है। जो की ठीक ही प्रतीत होता है। इसका कारण यह है की छठा घर बुध का पक्का घर है और बुध एक स्त्री गृह होने के साथ चुस्ती और होशियारी का ग्रह भी हैं जिसकी जुबान में मिठास है। अतः शुक्र जैसे ग्रह का छठे घर में होना स्वाभाविक ही है कि वो ऐसे शत्रु पैदा करेगा, जिनकी बोली में शहद और बगल में छुपा हुआ खंजर जैसे ही किसी का छठे घर का शुक्र अपना बुरा फल देना शुरू करता हैं वैसे ही उसके दायें या बाएं हाथ का अंगूठा बिना किसी चोट के ही दर्द करने लगता है। ऐसी हालत में साधारण सा ये उपाय हैं कि फटे पुराने गंदे कपडे न पहने, साफ़ सुथरे कपडे पहने अगर हो सके तो दिन में दो बार कपडे बदले और इत्र परफ्यूम आदि का प्रयोग करे। यदि यहाँ का शुक्र पत्नी की सेहत के बारे में , औलाद के बारे में या व्यक्ति के अपने सम्मान के बारे में अशुभ फल दे रहा हो तो यह सबसे उपयुक्त उपाय होगा की उस व्यक्ति की पत्नी कभी भी नंगे पाँव जमीन पर न चले। कारण यह है की इस घर का शुक्र पाताल का शुक्र है। छठे घर को पाताल कहा गया है, इसलिए जमीन की तह के नीचे पड़ा हुआ है। लेकिन जब उसकी कारक स्त्री के नंगे पाँव जमीन को छु लेंगे तो पाताल में पड़ा हुआ प्रभाव ऊपर जमीन पर आ जाएगा। हो सके तो कोई भी व्यक्ति अपनी पत्नी को नंगे पाँव कभी न चलने दे।जातक का शुक्र कुंडली में अस्त होता है,तो तमाम प्रकार के वीर्य विकार पाये जाते है,पुरुष की कुन्डली में सूर्य के साथ शुक्र होने पर संतान बडी मुश्किल से पैदा होती है,और अधिकतर गर्भपात के कारण देखे जाते है,स्त्री की कुन्डली में शुक्र और मंगल की युति होने पर पति पत्नी हमेशा एक दूसरे से झगडते रहते है,और जीवन भर दूरियां ही बनी रहती है। अक्सर शुक्र अस्त वाला जातक पागलों जैसी हरकतें किया करता है,उसके दिमाग में बेकार के विकार पैदा हुआ करते है,वह बेफ़जूल के संकल्प मन में ग्रहण किया करता है,और उन संकल्पं के माध्यम से अपने आसपास के लोगों को परेशान किया करता है। शुक्र की धातु के लिये कोई भी धातु जिस पर कलाकारी और खूबशूरती का जामा पहिनाया गया हो मानी जाती है,अनाजों और सब्जियों तथा फ़लों में इसके स्वाद के साथ पकाने और प्रयोग करने की क्रिया को माना गया है। खैर वात करते हैं लाल किताब में अष्टम शुक्र की कालपुरुष की दूसरी राशि के स्वामी के मौत के घर में चला जाना अतः ऐसे इंसान के यहां क़र्ज़ की संभावना बनी रहती है। ऐसा इंसान का अपने पार्टनर से कभी भी अच्छा सम्बन्ध नहीं होता। इसको ऐसे कहा जा सकता हैं कि ऐसे शुक्र वाले का जायज सम्बन्ध तो सूली पे चढ़ जाता हैं उसे संतुष्टि नहीं मिलती लेकिन नाजायज सम्बन्ध ही उसको संतुष्टि देते हैं। ऐसे लोगों को काले रंग की गाय को 8 रविवार आटे का पेड़ा देना चाहिए। अगर हो सके तो आगे भी करते रहे। क्योंकि शुक्र गाय हैं , पर आठवें घर में अर्थात अँधेरे के घर में , यह गाय काले रंग की हो जाती हैं। आटे का पेड़ा सूर्य की वस्तु हैं और रविवार सूर्य का वार है। सो इस शुक्र के अँधेरे को, उसके दुश्मन ग्रह सूर्य से रोशन करना हैं।आठवें शुक्र को जली मिटटी की चांडाल औरत कहा गया है। आठवें शुक्र वाले की पत्नी सख्त स्वभाव की होती हैं। औरत की जुबान से निकला हर शब्द पत्थर की लकीर होगा।अगर किसी के लिए बुरा कहेगी तो तुरंत सच हो जाता हैं। लेकिन अछा कहने पे जरूरी नहीं। अगर ऐसा इंसान अपनी पत्नी को तंग करेगा तो शुक्र का फल दोनों के के लिऐ मंदा होगा। ऐसे इंसान की शादी यदि 25 वर्ष तक हो जाये तो तो बहुत अशुभ होगा। शुक्र 8 के समय यदि खाना नंबर २ खाली हो तो देखा जाता हैं की बुजर्गों का सर पे साया नहीं होता। चन्द्र - मंगल या बुध अच्छी हालत होने पे ही शुक्र का असर कम हो सकता हैं।जब सूर्य के साथ या सूर्य की दृष्टि में शनि आ जाएँ तब शुक्र से मिलने वाले सुखों में कमी होती है। जब सूर्य के साथ शुक्र एक ही घर में या किसी वर्ष फल में सूर्य की दृष्टि शुक्र के ऊपर पड़ रही हो तब भी शुक्र के सुखो में कमी हो जाती है। जब सूर्य शुक्र के पक्के घर 7 में बैठ जाएँ तब भी शुक्र के फलों में परेशानी होतीहै जब सूर्य घर 12 जोकि बिस्तर के सुखों का घर है बंहा पर सूर्य बैठ कर शुक्र के सुखो का नाश करते हैं। क्योंकि बिस्तर के सुख का कारण शुक्र हैं। साथ ही शुक्र को फूल भी बोला जाता है और सूर्य तो आग का विशाल गोला है तो आग के पास फूल जल जाता है और हाँ एक बात और कि सूर्य 12 बाले जातक का जीवन साथी बिस्तर पर प्यार कम और झगड़ा ज्यादा करता है। इस प्रकार से सूरय शुक्र को हानि पहुंचाते हैं।मित्रों अगर आपकी भी कोई समस्या है जहां आप अपनी कुंडली के बारे में कोई उपाय पूछना चाहते हैं जहां आप अपनी कुंडली बनवाना जा दिखाना चाहते हैं तो आप संपर्क करें हमारी सर्विस paid है अधिक जानकारी के लिए हमारे इन नंबरों पर संपर्क करें 09414481324 07597718725

शनिवार, 25 मार्च 2017

शुक्र ग्रह ग्रहों का असर जिस तरह प्रकृति पर दिखाई देता है ठीक उसी तरह मनुष्यों पर यह असर देखा जा सकता है। आपकी कुंडली में ग्रह स्थिति बेहतर होने से बेहतर फल प्राप्त होते हैं। वहीं ग्रह स्थिति अशुभ होने की दशा में अशुभ फल भी प्राप्त होते हैं। बलवान ग्रह स्थिति स्वस्थ सुंदर आकर्षण की स्थितियों की जन्मदाता बनती हैं तो निर्बल ग्रह स्थिति शोक संताप विपत्ति की प्रतीक बनती हैं। लोगों के मध्य में आकर्षित होने की कला के मुख्य कारक शुक्र ग्रह हैं। कहा जाता है कि शुक्र जिसके जन्मांश लग्नेश केंद्र में त्रिकोणगत हों वह आकर्षक प्रेम सौंदर्य का प्रतीक बन जाता है। यह शुक्र जी क्या है और बनाने व बिगाड़ने में माहिर शुक्र देव का पृथ्वी लोक में कहां तक प्रभाव हैशुक्र मुख्यतः स्त्रीग्रह, कामेच्छा, वीर्य, प्रेम वासना, रूप सौंदर्य, आकर्षण, धन संपत्ति, व्यवसाय आदि सांसारिक सुखों के कारक है। गीत संगीत, ग्रहस्थ जीवन का सुख, आभूषण, नृत्य, श्वेत और रेशमी वस्त्र, सुगंधित और सौंदर्य सामग्री, चांदी, हीरा, शेयर, रति एवं संभोग सुख, इंद्रिय सुख, सिनेमा, मनोरंजन आदि से संबंधी विलासी कार्य, शैया सुख, काम कला, कामसुख, कामशक्ति, विवाह एवं प्रेमिका सुख, होटल मदिरा सेवन और भोग विलास के कारक ग्रह शुक्र जी माने जाते हैं।वैभव का कारक होने की वजह से शुक्र राजा की तरह बर्ताव करता है। जनरली इसका फेवरेट कलर पिंक, ब्लू आदि होते हैं जो अमूमन स्त्रियों के मनपसंद कलर माने जाते हैं। अगर हम वाहनादि की बात करें तो कुण्डली में शुक्र की मजबूती चौपाए वाहन का सुख उपलब्ध कराता है जबकि कमजोर शुक्र होने से जीवन में इनका अभाव बना रहता है।सांसारिक व भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए मनुष्य की कुण्डली का शुक्र मजबूत व शुभ प्रभाव युक्त होना ही चाहिए। इसके अलावा शुक्र की विविध भावों में मौजूदगी भी उसकी किस्मत को खास ढंग से प्रभावित करती है। सांसारिक सुखों से है। यह रास, रंग, भोग, ऐश्वर्य, आकर्षण तथा लगाव का कारक है। शुक्र दैत्यों के गुरु हैं और कार्य सिद्घि के लिए साम-दाम-दण्ड-भेद के प्रयोग से भी नहीं चूकते। सौन्दर्य में शुक्र की सहायता के बिना सफलता असंभव है। य, रंग-बिरंगे वस्त्र धारण करने का शौकीन होता है। आजकल फैशन से वशीभूत ऐसे वस्त्रों का प्रचलन स्त्री वर्ग में बढ़ रहा है जो शरीर को ढंकने में अपर्याप्त होते हैं। यह संभवत: शीत प्रधान शुक्र-चन्द्र के प्रभाव क्षेत्रों की देन है। महिला वर्ग का चर्म परिधान शुक्र-चन्द्र एवं मंगल की परतों से बना होता है अर्थात् कोमलता तेज, रक्तिमा एवं सौन्दर्य का सम्मिश्रण ही उसकी विशेष आकर्षण शक्ति होती है।शुक्र ग्रह से प्रभावित युवतियां ही प्रतियोगिता के अंतिम राउंड तक पहुंच पाती है। कुछ ग्रह ऐसे भी होते हैं जो कुछ दूर तक तो युवतियों का सहयोग करते हैं, लेकिन जैसे ही दूसरे प्रतिभागियों के ग्रह भारी पड़ते हैं, कमजोर ग्रह वाली युवतियां पिछड़ने लगती है। यह भी ज्ञात हुआ है कि प्रतियोगिताओं के निर्णायक भी शनि, मंगल, गुरु जैसे ग्रहों से प्रभावित होते हैं। सौन्दर्य शास्त्र का विधान पूरी तरह से ज्योतिषकर्म और चिकित्सकों के पेशे जैसा ही है। अगर किसी निर्णायक को सौन्दर्य ज्ञान नहीं हो तो वह निर्णय भी नहीं कर पाएगा। ऐसे में निर्णायक शुक्र से प्रभावित तो होते हैं लेकिन उन पर गुरु-चंद्रमा का भी प्रभाव होता है जो उन्हें विवेकवान बनाता है। जन्म कुण्डली में तृतीय एवं एकादश भाव स्त्री का वक्षस्थल माना जाता है। गुरु-शुक्र इन भावों में बैठे हों या ये दोनों ग्रह इन्हें देख रहे हों, साथ में बली भी हों तो यह भाव सुन्दर, पुष्ट एवं आकर्षक होता है और आंतरिक सौन्दर्य परिधान सुशोभित करते हैं। पंचम एवं नवम भाव कटि प्रदेश से नीचे का होता है जो स्त्री को शनि गुरु प्रधान कृषता तथा स्थूलता सुशोभित करती है। अभिनय एवं संगीत में दक्षता प्रदान करने वाला ग्रह शुक्र ही है। शुक्र सौन्दर्य, प्रेम, कलात्मक अभिरुचि, नृत्य, संगीतकला एवं बुद्घि प्रदान करता है। शुक्र यदि बली होकर नवम, दशम, एकादश भाव अथवा लग्न से संबंध करें तो जातक सौन्दर्य के क्षेत्र में धन-मान और यश प्राप्त करता है। लग्न जातक का रूप, रंग, स्वभाव एवं व्यक्तित्व को दर्शाता है। चोथाभाव चन्द्रमा का जनता का प्रतिनिधित्व करता है। पंचम भाव बुद्घि, रुचि एवं मित्र बनाने की क्षमता को दर्शाता है। तुला राशि का स्वग्रही शुक्र मंच कलाकार या जनता के सम्मुख अपनी कला का प्रदर्शन कर धन एवं यश योग देता है। मीन राशि के शुक्र कलात्मक प्रतिभा को पुष्ट करता है तृतीय भाव सृजनात्मक योग्यता का सूचक है। इसका बली होना एवं लग्न से संबंध सौन्दर्यता में निपुणता लाता है। कुशल अभिनय के लिए चंद्रमा एवं संवाद अदायगी के लिए बुध बली हो तथा शुभ स्थानों में चन्द्र-बुध का होना अभिनय, संगीत एवं नृत्य इत्यादि में सफलता दिलाता है। जन्म लग्न, चन्द्र लग्न एवं सूर्य लग्न से दशम भाव पर शुक्र का प्रभाव सफलता का योग बनाता है।बुध एवं शुक्र का बली होकर शुभ स्थानों विशेषकर लग्न, पंचम दशम या एकादश भाव से संबंध सौन्दर्य क्षेत्र में सफलता देता है। चन्द्र कुण्डली में लग्नेश-धनेश की युति लाभ-स्थान में धन वृद्घि का संकेत देती है। साथ ही शुक्र व बुध का दशम व दशमेश से संबंध जातक को भाग्य बल प्रदान कर सफलता एवं प्रसिद्घि देता है।चन्द्र, शुक्र एवं बुध का संबंध चतुर्थभाव, चतुर्थेश धन भाव व धनेश, पंचम भाव व पंचमेश, नवमभाव व नवमेश से होने पर सफलता के योग देगा पंच महापुरुष योगों के अन्तर्गत शश योग (उच्च का शनि केन्द्र में) एवं मालव्य योग (उच्च व स्वराशि का केन्द्र में) एवं लग्नेश का स्वराशि व उच्च राशि का होना। कुण्डली में सभी शुभ ग्रह लग्न में एवं सभी पाप ग्रह अष्टम भाव में होने पर यह योग यश का भागीदार बनाता है कुण्डली में द्वितीय, नवम और एकादश के स्वामी ग्रह अपने-अपने स्थान पर होने से यह योग बनता है जो जातक को प्रसिद्धि के द्वार कुण्डली में सप्तमेश दशम स्थान में और दशमेश के साथ भाग्येश हो तो श्रीनाथ योग बनता है। कुछ विद्वानों के अनुसार दशमेश उच्च का होने पर ही यह योग बन जाता है, जो जातक को आकर्षक, सुखी और सम्माननीय बनाता है। आंतरिक परिधान के कारक शुक्र, चंद्र और केतु हैं तथा बाह्य परिधान के कारक सूर्य, राहु, बुध, गुरु व शनि हैं। अलग-अलग चन्द्र राशियों एवं सूर्य राशियों के अनुसार अपने प्रभाव दिखाते हैं। इस क्षेत्र में सफलता के लिए बुद्घि, चातुर्य, कला-कौशल के साथ कठोर परिश्रम जरूरी है। इसके लिए लग्न, चतुर्थ व पंचम भाव बली होना महžवपूर्ण है। सिंह राशि का शुक्र अभिनय कौशल देता है।तुला राशि का स्वग्रही शुक्र मंच कलाकार या जनता के सम्मुख अपनी कला का प्रदर्शन कर धन एवं यश योग प्रदान करता है। मीन राशि का शुक्र व्यक्ति की कलात्मक प्रतिभा को पुष्ट करता है। किसी व्यक्ति की भौतिक समृद्धि एवं सुखों का भविष्य ज्ञान प्राप्त करन हो तो उसके लिए उस व्यक्ति की जन्म कुंडली में शुक्र ग्रह की स्थिति एवं शक्ति (बल) का अध्ययन करना अत्यंत महत्वपूर्ण एवं आवश्यक है। अगर जन्म कुंडली में शुक्र की स्थिति सशक्त एवं प्रभावशाली हो तो जातक को सब प्रकार के भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। इसके विपरीत यदि शुक्र निर्बल अथवा दुष्प्रभावित (अपकारी ग्रहों द्वारा पीड़ित) हो तो भौतिक अभावों का सामना करना पड़ता है। इस ग्रह को जीवन में प्राप्त होने वाले आनंद का प्रतीक माना गया है। प्रेम और सौंदर्य से आनंद की अनुभूति होती है और श्रेष्ठ आनंद की प्राप्ति स्त्री से होती है। अत: इसे स्त्रियों का प्रतिनिधि भी माना गया है और दाम्पत्य जीवन के लिए ज्योतिषी इस महत्वपूर्ण स्थिति का विशेष अध्ययन करते हैं। अगर शक्तिशाली शुक्र स्वराशि, उच्च राशि का मूल त्रिकोन) केंद्र में स्थित हो और किसी भी अशुभ ग्रह से युक्त अथवा दृष्ट न हो तो जन्म कुंडली के समस्त दुष्प्रभावों अनिष्ट) को दूर करने की सामर्थ्य रखता है। किसी कुंडली में जब शुक्र लग्न्र द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, नवम, दशम और एकादश भाव में स्थित हो तो धन, सम्पत्ति और सुखों के लिए अत्यंत शुभ फलदायक है। सशक्त शुक्र अष्टम भाव में भी अच्छा फल प्रदान करता है। शुक्र अकेला अथवा शुभ ग्रहों के साथ शुभ योग बनाता है। चतुर्थ स्थान में शुक्र बलवान होता है। इसमें अन्य ग्रह अशुभ भी हों तो भी जीवन साधारणत: सुख कर होता है। स्त्री राशियों में शुक्र को बलवान माना गया है। यह पुरुषों के लिए ठीक है किंतु स्त्री की कुंडली में स्त्री राशि में यह अशुभ फल देता है ग्रह नक्षत्रों के प्रभाव से व्यक्ति समाज पशु पक्षी और प्रकृति तक प्रभावित होते हैं। ग्रहों का असर जिस तरह प्रकृति पर दिखाई देता है ठीक उसी तरह मनुष्यों पर सामान्यतः यह असर देखा जा सकता है। आपकी कुंडली में ग्रह स्थिति बेहतर होने से बेहतरफल प्राप्त होते हैं। वहीं ग्रह स्थिति अशुभ होने की दशा में अशुभफल भी प्राप्त होते हैं। बलवान ग्रह स्थिति स्वस्थ सुंदर आकर्षण की स्थितियों का जन्मदाता बनती है तो निर्बल ग्रह स्थिति शोक संताप विपत्ति की प्रतीक बनती है। लोगों के मध्य में आकर्षित होने की कला के मुख्य कारक शुक्र जी है। कहा जाता है कि शुक्र जिसके जन्मांश लग्नेश केंद्र में त्रिकोणगत हों वह आकर्षक प्रेम सौंदर्य का प्रतीक बन जाता है। यह शुक्र जी क्या है और बनाने व बिगाडने में माहिर शुक्र जी का पृथ्वी लोक में कहां तक प्रभाव है बृहद पराशर होरा शास्त्र में कहा गया कि शुक्र बलवान होने पर सुंदर शरीर, सुंदर मुख, अतिसुंदर नेत्रों वाला, पढने लिखने का शौकीन कफ वायु शुक्र का वैभवशाली स्वरूपः- यह ग्रह सुंदरता का प्रतीक, मध्यम शरीर, सुंदर विशाल नेत्रों वाला, जल तत्व प्रधान, दक्षिण पूर्व दिशा का स्वामी, श्वेत वर्ण, युवा किशोर अवस्था का प्रतीक है। चर प्रकृति, रजोगुणी, स्वाथी, विलासी भोगी, मधुरता वाले स्वभाव के साथ चालबाज, तेजस्वी स्वरूप, श्याम वर्ण केश और स्त्रीकारक ग्रह है। शुक्र ग्रह सप्तम भाव अर्थात दाम्पत्य सुख का कारक ग्रह माना गया है पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शुक्र दैत्यों के गुरु हैं। ये सभी विद्याओं व कलाओं तथा संजीवनी विद्या के भी ज्ञाता हैं। यह ग्रह आकाश में सूर्योदय से ठीक पहले पूर्व दिशा में तथा सूर्यास्त के बाद पश्चिम दिशा में देखा जाता है। यह कामेच्छा का प्रतीक है तथा धातु रोगों में वीर्य का पोषक होकर स्त्री व पुरुष दोनों के जनानांगों पर प्रभावी रहता है।।शुक्र ग्रह से स्त्री, आभूषण, वाहन, व्यापार तथा सुख का विचार किया जाता है। शुक्र ग्रह अशुभ स्थिति में हो तो कफ, बात, पित्त विकार, उदर रोग, वीर्य रोग, धातु क्षय, मूत्र रोग, नेत्र रोग, आदि हो सकते हैं वेदिक ज्योतिष शास्त्र में शुक्र ग्रह बुध, शनि व राहु से मैत्री संबंध रखता है। सूर्य व चंद्रमा से इसका शत्रुवत संबंध है। मंगल, केतु व गुरु से सम संबंध है। यह मीन राशि में 27 अंश पर परमोच्च तथा कन्या राशि में 27 अंश पर परम नीच का होता है। तुला राशि में 1 अंश से 15 अंश तक अपनी मूल त्रिकोण राशि तथा तुला में 16 अंश से 30 अंश तक स्वराशि में स्थित होता है। इसका तुला राशि से सर्वोत्तम संबंध, वृष तथा मीन राशि से उत्तम संबंध, मिथुन, कर्क व धनु राशि से मध्यम संबंध, मेष, मकर, कुंभ से सामान्य व कन्या तथा वृश्चिक राशि से प्रतिकूल संबंध है। भरणी, पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ नक्षत्र पर इसका आधिपत्य है। यह अपने स्थान से सप्तम भाव पर पूर्ण दृष्टि डालता है। शुक्र जातक को ललित कलाओं, पर्यटन और चिकित्सा विज्ञान से जोड़ता है। जब किसी जातक की कुंडली में शुक्र सर्वाधिक प्रभावकारी ग्रह के रूप में होता है तो शिक्षा के क्षेत्र में पदाधिकारी, कवि, लेखक, अभिनेता, गीतकार, संगीतकार, वाद्ययंत्रों का निर्माता, शृंगार का व्यवसायी बनाता है। जब यही शुक्र जन्म पत्रिका में सप्तम या 12 वें भाव में वृष राशि में स्थित रहता है तो यह प्रेम में आक्रामक बनाता है। ये दोनों भाव विलासिता के हैं।जब यही शुक्र लग्न में है और शुभ प्रभाव से युक्त है तो व्यक्ति को बहुत सुंदर व आकर्षक बनाता है। शुक्र ग्रह पत्नी का कारक ग्रह है। और जब यही शुक्र ग्रह सप्तम भाव में रहकर पाप प्रभाव में हो और सप्तमेश की स्थिति भी उत्तम न हो तो पत्नी को रुग्ण या आयु की हानि करता है। तीसरे भाव पर यदि शुक्र है और स्वगृही या मित्रगृही हो तो व्यक्ति को दीर्घायु बनाता है। यह भाव भाई का स्थान होने से और शुक्र स्त्रीकारक ग्रह होने से बहनों की संख्या में वृद्धि करता है। जब किसी कुंडली में शुक्र द्वितीय यानी धन व परिवार भाव में उत्तम स्थिति में बैठा है तो व्यापार से तथा स्त्री पक्ष अर्थात ससुराल से आर्थिक सहयोग मिलता है। यदि उत्तम स्थिति में नहीं होता है तो व्यापार में लाभ नहीं मिल पाताइस भौतिक संसार में हर चीज शुक्र से जनित है। हर प्रकार के भौतिक सुख देने वाला शुक्र ग्रह ही है अतः शुक्र ग्रह का कुंडली में बलिष्ट होना बहुत आवश्यक है। ग्रहों में शुक्र को विवाह व वाहन का कारक ग्रह कहा गया है (इसलिये वाहन दुर्घटना से बचने के लिये भी इसको शुभ करना चाहिए ऐसे उपाय किये जा सकते है। शुक्र ग्रह के उपाय करने से वैवाहिक सुख की प्राप्ति की संभावनाएं बनती है। वाहन से जुडे मामलों में भी यह उपाय लाभकारी रहते है।आगे शुक्र के वारे ओर वात करेगै पोस्ट काफी लम्वी हो गई है ।

गुरुवार, 23 मार्च 2017

मां काली ज्योतिष की आज की पोस्ट उन मित्रों के लिए है जो ज्योतिष सिख रहे हैं. ज्योतिष के अनुसार इंसानों को जन्म के समय और ग्रहों की स्थिति के अनुसार 12 राशियों में विभाजित किया गया है। हर राशि के व्यक्ति का स्वभाव और आदतें दूसरी राशि के लोगों से एकदम अलग होती हैं। किसी भी इंसान को समझने के लिए ज्योतिष सटीक विद्या है। राशि चक्र की यह पहली राशि है, इस राशि का चिन्ह ”मेढा’ या भेडा है, इस राशि का विस्तार चक्र राशि चक्र के प्रथम 30 अंश तक (कुल 30 अंश) है। राशि चक्र का यह प्रथम बिन्दु प्रतिवर्ष लगभग 50 सेकेण्ड की गति से पीछे खिसकता जाता है। इस बिन्दु की इस बक्र गति ने ज्योतिषीय गणना में दो प्रकार की पद्धतियों को जन्म दिया है। भारतीय ज्योतिषी इस बिन्दु को स्थिर मानकर अपनी गणना करते हैं। इसे निरयण पद्धति कहा जाता है। और पश्चिम के ज्योतिषी इसमे अयनांश जोडकर ’सायन’ पद्धति अपनाते हैं। किन्तु हमे भारतीय ज्योतिष के आधार पर गणना करनी चाहिये। क्योंकि गणना में यह पद्धति भास्कर के अनुसार सही मानी गई है। मेष राशि पूर्व दिशा की द्योतक है, तथा इसका स्वामी ’मंगल’ है। इसके तीन द्रेष्काणों (दस दस अंशों के तीन सम भागों) के स्वामी क्रमश: मंगल-मंगल, मंगल-सूर्य, और मंगल-गुरु हैं। मेष राशि के अन्तर्गत अश्विनी नक्षत्र के चारों चरण और कॄत्तिका का प्रथम चरण आते हैं। प्रत्येक चरण 3.20' अंश का है, जो नवांश के एक पद के बराबर का है। इन चरणों के स्वामी क्रमश: अश्विनी प्रथम चरण में केतु-मंगल, द्वितीय चरण में केतु-शुक्र, तॄतीय चरण में केतु-बुध, चतुर्थ चरण में केतु-चन्द्रमा, भरणी प्रथम चरण में शुक्र-सूर्य, द्वितीय चरण में शुक्र-बुध, तॄतीय चरण में शुक्र-शुक्र, और भरणी चतुर्थ चरण में शुक्र-मंगल, कॄत्तिका के प्रथम चरण में सूर्य-गुरु हैं।मेष राशि भचक्र की पहली राशि है और इस राशि मे एक से लेकर तीस अंश तक चन्द्रमा अपने अपने प्रकार सोच को प्रदान करता है। नाडी ज्योतिष मे यह तीस अंश एक सौ पचास सोच को देता है,और एक अंश की पांच सोच अपने आप ही पांच प्रकार के तत्वो के ऊपर निर्भर होकर चलती है। सवा दो दिन के अन्दर एक सौ पचास तरफ़ की सोच जब व्यक्ति के अन्दर एक राशि की पैदा हो जायेंगी तो एक महिने के अन्दर अपने आप चाढे चार हजार सोच बन जायेंगी,एक एक सोच का अगर निरूपण किया जाये तो एक व्यक्ति की सोच बताने मे ही साढे चार हजार लोगो को लगना पडेगा,तब जाकर जीवन की एक महिने की सोच को पैदा किया जा सकता है,वह भी सोच केवल समय काल परिस्थिति के अनुसार बनेगी जैसी जलवायु होगी उसी प्रकार की सोच बनेगी यह जरूरी नही है कि थार के रेगिस्तान की सोच आसाम के अधिक पानी वाले क्षेत्र मे जाकर एक ही हो जाये। या अमेरिका के व्यक्ति की सोच भारत के व्यक्ति की सोच से मेल खा जाये अथवा ब्रिटेन के व्यक्ति की मानसिकता भारत के व्यक्ति के मानसिकता से जुड कर ही चल पाये। चन्द्रमा जब मेष राशि मे प्रवेश करता है तो पहले अश्विनी नक्षत्र में प्रवेश करता है,नक्षत्र का पहला पाया होता है इस नक्षत्र का मालिक भी केतु होता है और पहले पाये का मालिक भी केतु होता है। राहु केतु वैसे चन्द्रमा की गति के अनुसार सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव देने वाले होते है चन्द्रमा की उत्तरी ध्रुव वाली सीमा को राहु के घेरे मे मानते है और दक्षिणी ध्रुव वाली सीमा को केतु के घेरे वाली सीमा को मानते है। इस प्रकार से जातक के अन्दर जो स्वभाव पैदा होगा वह मूल संज्ञक नक्षत्र के रूप मे होगा उसके अन्दर मंगल का प्रभाव राशि से होगा केतु का प्रभाव नक्षत्र से होगा और केतु का ही प्रभाव पद के अनुसार होगा। नकारात्मक भाव देने और केवल अपनी ही हांकने के कारण इस पद मे पैदा होने वाला जातक अधिक तरक्की नही कर पाता है मंगल के क्षेत्र मे आने से जातक के अन्दर एक प्रकार का पराक्रम जो लडाई झगडे से सम्बन्धित हो सकता है एक इंजीनियर के रूप मे हो सकता है एक भोजन पकाने वाले रसोइये के रूप मे हो सकता है एक भवन बनाने वाले कारीगर के रूप मे भी हो सकता है लेकिन वह अपने दिमाग का प्रयोग नही कर पायेगा,वह जो भी काम करेगा वह दूसरो की आज्ञा के अनुसार ही करेगा जैसे वह फ़ौज मे भर्ती होगा तो उसे अपने अफ़सर की आदेश की पालना करनी होगी वह अगर इंजीनियर होगा तो वह केवल बिजली आदि मे पहले से बनी रूप रेखा मे ही काम कर पायेगा यानी वह अपने दिमाग का प्रयोग केवल पहले से बने नियम के अन्दर ही करने का अधिकार होगा वह अपने मन से काम नही कर सकता है। केतु का रूप धागे के रूप मे है लेकिन गर्म मंगल के साथ सूत आदि का धागा जल जायेगा यहां पर केवल धातु जो मंगल की कारक होगी वह तांबा ही होगी और जातक तांबे के तार से मंगल बिजली की रूप मे प्रयोग करने का कारण जानता होगा वह धातु मे केतु जो पत्ती के रूप मे भी होगा और तार जो क्वाइल के रूप मे भी होगा से क्वाइल बनाकर मोटर भरने का काम भी कर सकता है और बिजली आदि की सहायता से मोटर को चलाने का काम भी कर सकता है इसी प्रकार से मंगल के साथ केतु के मिल जाने से तथा केतु के ही सहायक होने के कारण केतु यहां पर बिजली को बनाने वाला या ठीक करने वाला पेचकस भी माना जा सकता है किसी प्रकार से बुध की नजर अगर पड रही है तो बिजली आदि को चैक करने वाला मीटर भी काम मे लिया जा सकता है आदि बाते देख सकते है उसी प्रकार से जब जातक के पास रक्षा सेवा जैसे काम होगे तो वह एक जवान की हैसियत से काम करने वाला होगा उसे केतु यानी अपने पर एक सहायक होने और आदेश को पालन करने की क्रिया भी पता होगी वह मंगल केतु के रूप मे राइफ़ल को भी प्रयोग मे लायेगा और राहु रूपी बारूद से अपने द्वारा युद्ध के मैदान मे अपने पराक्रम को भी दिखा सकता है। इसी प्रकार से अगर जातक वावरची का काम करता है तो वह भोजन बनाने के हथियारो से सब्जी काटने आग पर पकाने आदि के काम भी केतु यानी तवा कलछुली आदि से काम करने का कारक बन सकता है अगर वह डाक्टर है तो वह इंजेकसन आदि से दवाइया देने तथा केवल हाथ देखकर पर्ची आदि काटने का काम कर सकता है या मशीनी जांच के द्वारा अपने अनुभव को मरीज के साथ भी बांट सकता है,लेकिन वह जो भी इलाज करेगा वह केवल केतु यानी शरीर के अवयवो के लिये ही करेगा यानी हाथ पैर उंगलिया दांत आंत आदि के लिये वह अपने प्रकार को ठीक करने के लिये तथा सिर के अन्दर के अवयव यानी कान आंख नाक मुंह के रोग ही ठीक करने के लिये अपने अनुभव को प्रदर्शित करेगा। इस राशि के चन्द्रमा की निगाह अपने से सप्तम भाव मे जाती है अगर चन्द्रमा को कोई खराब ग्रह नही देख रहा है या कोई क्रूर ग्रह चन्द्रमा को आहत नही कर रहा है तो जातक के अन्दर जो भी काम होगा वह व्यापारिक नीति से इसलिये होगा वह व्यापारिक नीति से इसलिये होगा क्योंकि चन्द्रमा के सप्तम मे तुला राशि है और चन्द्रमा की निगाह तुला राशि के आखिरी नक्षत्र विशाखा और और उसके पद जो शनि का है पर जाने के कारण अपनी स्थिति को एक प्रकार से ठंडे माहौल के अनुसार ही रख पायेगा उसे जो भी मिलता है उसी पर अपना समय निकालना और अपने अनुसार ही जो भी कार्य सम्बन्ध को निभाने और घर आदि बनाने तथा जीवन साथी के प्रति किये जाने वाले कामो के लिये भी अपना असर देगा। केतु के नक्षत्र अश्विनी के अन्दर चन्द्रमा मेष्र राशि मे जब एक अंश से कुछ अधिक समय तक केवल अपना असर मंगल और केतु का देता है लेकिन सवा अंश से आगे जाते ही केतु के अन्दर शुक्र का असर मिलना शुरु हो जाता है। चन्द्रमा जो सोच का कारक है जातक के अन्दर मंगल की हिम्मत मेष से मिलती है केतु से सहायता वाले काम करने का अवसर केतु के साथ होने मिलना होता है केतु मे शुक्र का असर आने से जातक को कलाकारी की तरफ़ ले जाने के लिये शुक्र अपना असर देने लगता है। इस असर के कारण जातक के अन्दर एक प्रकार से भौतिकता भी भर जाती है वह सहायता के रूप मे स्त्री रूप को भी धारण कर सकता है और कलाकारी को प्रदर्शित करने के लिये एक ब्रुस का रूप भी ले सकता है वह केनवास पर चित्रकारी भी कर सकता है हथोडे की सहायता से पत्थर पर मूर्ति को भी बना सकता है जमीन जहां फ़सले पैदा होती हो मंगल के रूप मे मशीनरी का प्रयोग केतु सहारे के रूप मे ले सकता है और खेती की जमीन से फ़सले भी पैदा कर सकता है कारण चन्दमा यहा शुक्र के साथ मिलकर मंगल और केतु का सहारा लेकर किसान के रूप मे भी अपनी छवि दिखा सकता है। यही केतु अगर एक्टिंग मे चला जाता है तो कलाकार के रूप मे पराक्रम दिखाने वाला कलाकार भी बन जाता है जब भी कोई कारण अपनी कला का दिखाने का मिलता है तो जातक हिम्मत वाले रोल अदा करने के लिये खूबशूरती से प्रस्तुत करने की योग्यता को भी प्रदर्शित कर सकता है,यही केतु के साथ मिला चन्द्रमा शुक्र की सहायता और मंगल के प्रयोग से भवन आदि की सजावट भी करने के लिये अपनी वास्तुकारी का कारण भी पैदा कर सकता है अगर कोई अच्छा ग्रह सहारा नही दे रहा हो तो स्ट्रीट लाइट ठीक करने का आदमी भी यही केतु बना सकता है और स्त्री है तो धागे के काम को करने वाला भी बना सकता है जो लाल कपडे पर काले धागे से शुक्र की सजावट वाली चित्रकारी करने के बाद अपनी कलाकारी को प्रदर्शित करने की योग्यता को बना ले। सवा तीन अंश के अन्दर मेष राशि मे चन्द्रमा के जाने के बाद राशि मेष में मंगल का असर अश्विनी नक्षत्र मे केतु का असर और इसी नक्षत्र के अन्दर सूर्य का असर मिल जाता है। कायदे से अगर ग्रहो का मिश्रण किया जाता है तो चन्द्रमा माता से मेष राशि सिर से मंगल गर्मी से या उत्तेजना से गुस्सा से केतु कान से सूर्य बनावट से भी देखा जा सकता है इसी जगह चन्द्रमा सोच से मेष शरीर से किये जाने वाले काम जैसे मेहनत करना अपने ही प्रयास से उद्देश्य की पूर्ति करना आदि मंगल से रक्षा सेवा के लिये तकनीकी सेवा के लिये अस्प्ताली सेवा के लिये भोजन पकाने और इसी प्रकार की सेवा के लिये निर्माण कार्य करने के लिये जमीन के अन्दर के काम करने के लिये केतु सहायक के रूप मे और सूर्य सरकारी रूप से भी माना जा सकता है। मेष राशि का चन्द्रमा माता को प्रभावशाली बनाता है मंगल का प्रभाव होने से भाई की यात्रा का कार्यक्रम भी बनता रहता है यानी भाई के पास यात्रा वाले काम होते है चन्द्रमा सोच से देखा जाये तो मंगल गुस्सा का भी कारक है इसलिये गुस्सा अधिक आता हो और विचार भी ठीक नही होते हो,यही बात शादी के बाद की स्त्री के लिये देखा जाये तो सास साहसी हो और वह अपनी सास से परेशान हो.इसी बात को भौतिक मे लेकर देखे तो चन्द्र पानी वाला स्थान हो मेष राशि जहां लोग अपना निवास करते हो मंगल वहां पर चलने वाले उद्योग धन्धे और बिजली आदि से चलने वाली मशीने हो केतु सूर्य से सरकारी अधिकारी के रूप में कार्य करने वाला हो यही बात यात्रा मे भी देखी जाती है और चन्द्रमा वाले जितने भी कारक होते है उनके लिये मानी जाती है।चन्द्रमा का मेष राशि मे साढे पांच अंश तक पहुंचने के बाद मंगल के साथ केतु और राहु दोनो का असर पैदा हो जाता है जातक के अन्दर के प्रकार का जुनून सवार रहता है वह जिस काम के लिये अपना मानस बना लेता है वह उसी काम की धुन मे लगा रहता है अक्सर जो लोग कालान्तर की दुश्मनी को मानने वाले होते है और अपने विरोधी को खूनी संघर्ष से समाप्त करने वाले होते है वे इसी काल मे पैदा होते है मंगल से रक्षा सेवा और केतु से बन्दूक तथा राहु से बारूदी काम लेने वाले होते है इस युति मे पैदा होने वाले जातक वाहन आदि के अच्छे सम्भालने वाले होते है वह किसी भी प्रकार के इंजन वाले काम को करने के लिये अपनी योग्यता को जाहिर करते है। इस युति मे पैदा होने वाले जातक अगर होटल लाइन को अपना व्यवसाय बना लेते है तो उनके लिये यह कार्य बहुत ही उत्तम माना जाता है और उनकी धुन के आगे वह लगातार आजीवन आगे बढते रहते है लेकिन पुरुष है तो ससुराल परिवार और स्त्री है तो उसकी अधिक कामुकता उसे बरबाद करने के लिये मानी जाती है इसी प्रकार से जो लोग पूजा पाठ या धर्म आदि के कामो मे व्यस्त रहते है वह भी अपने को अधिक चालाकी और झूठे प्रयोग के कारण लोगो को ठगना पसंद करते है भावनाओ के साथ खिलवाड करना खाना पीना ऐश करना आदि काम होते है समुदाय के साथ मिलकर किसी भी काम को बलपूर्वक करना भी माना जाता है अक्सर मंगल राहु और केतु के साथ चन्द्रमा के मिलने से पुराने जमाने के रजवाडों के प्रति भी देखा जा सकता है जौहर आदि करना भी इसी युति का कारण माना जाता है अक्सर इस युति मे पैदा होने वाले जातक जब अधिक परेशान हो जाते है तो जहर खाकर आग लगाकर आत्म हत्या भी करते देखे गये है वैसे अधिकतर लोग वाहन आदि से दुर्घटना मे मारे जाते हुये देखे गये है,अस्पताली काम करने वाले लोग अक्सर जनता के हित की बात करते हुये भी देखे गये है किसी भी प्रकार की नयी औषिधि का आविष्कार करना और उस औषिधि को जन हित के लिये प्रसारित करना भी देखा गया है नये इंजन या बिजली के उपकरण का आविष्कार करना भी माना जाता है।चन्दमा के पोने आठ डिग्री पर पहुंचते ही मंगल केतु के साथ गुरु का असर जातक को मिल जाता है वह मंगल केतु के जिस भी कार्य मे जाता है तो भाग्य उसके साथ हो जाता है और वह आराम की जिन्दगी जीने के लिये भी माना जा सकता है किसी भी विषय मे महारत हासिल करना भी देखा जाता है अधिक से अधिक शिक्षा का प्राप्त करना अलावा डिग्री लेकर भी अपनी योग्यता को प्रदर्शित करना भी माना जाता है,जातक अपने परिवार समुदाय का मुखिया बनकर भी रहता है और जो भी कारण उसके पूर्वजो के जमाने के होते है उन्हे प्रयोग करना और उन्ही कारणोपर अपने समुदाय को इकट्ठा करना भी माना जाता है। इन अंशो पर गुरु का साथ जातक को मन इच्छित फ़ल प्रदान करने के लिये भी अपनी योग्यता को देता है अगर कोई खराब ग्रह आकर अपनी शक्ति से इन्हे बरबाद नही करता है तो पोने दस डिग्री पर पहुंचते ही चन्द्रमा मंगल केतु और शनि के घेरे मे पहुंच जाता है,चन्द्रमा मंगल की गर्मी और शनि की ठंडक के बीच मे फ़ंस कर उमस देने वाले माहौल जैसा बन जाता है जातक हर पल किसी न किसी बात के लिये कल्पता रहता है और वह अपने को शनि के साथ फ़्रीज करता रहता है तथा मंगल के साथ गर्म करता रहता है जातक को अगर नानवेज आदि प्रयोग करने का कारण बनता है तो जातक के अन्दर खून के थक्के जमने की बीमारी का होना भी माना जाता है नानवेज अगर प्रयोग नही करता है तो जातक अधिक मिर्च मशाले और जमीनी कंद वाली सब्जियां भी प्रयोग मे अधिक करता है। जातक के कामो के अन्दर अक्सर वही काम देखे जा सकते है जो लोगो की सेवा करने वाले काम नाई आदि के काम चमडा को काटने छीलने के काम अक्सर इस युति के जातक को सिर की बीमारियां भी बहुत होती है। पोने ग्यारह डिग्री पर चन्द्रमा के पहुंचने के बाद जातक के अन्दर कमन्यूकेशन वाले कामो का करना व्यक्तिगत सम्पर्क बनाने के बाद किये जाने वाले कामो को करना समुदाय का बनाना लोगो के अन्दर प्रचार प्रसार को करना दिमागी इलाज को करना पुलिस और रक्षा सेवा के कार्यो मे वकालत जैसे काम करना फ़ौजी कानूनो को बनाना और पालन करवाना आदि बाते देखी जाती है जातक के बोल चाल की भाषा मे कर्कश भाव मिलने लगते है वह बात करने के समय आदेशात्मक बात करना जानता है और लोगो को अपने अनुसार चलने के लिये बाध्य करना भी जानता है,नक्सा देखना जमीन की बातो को कागज पर उकेरना आदि भी बाते देखी जा सकती है. इसी प्रकार से अन्य अंश के लिये चन्द्रमा की गणना की जाती है्जिस प्रकार से जीवन मे लगन प्रभावी होती है उसी प्रकार से चन्द्र राशि भी जीवन मे प्रभावी होती है। चन्द्रमा एक तो मन का कारक है दूसरे जब तक मन नही है तब कुछ भी नही है,दूसरे चन्द्रमा माता का भी कारक है और माता के रक्त के अनुसार जातक का जीवन जब शुरु होता है तो माता का प्रभाव जातक के अन्दर जरूर मिलता है,हमारे भारत वर्ष मे जातक का नाम चन्द्र राशि से रखा जाता है यानी जिस भाव का चन्द्रमा होता है जिस राशि मे चन्द्रमा होता है उसी भाव और राशि के प्रभाव से जातक का नाम रखा जाता है इस प्रकार से जातक के जीवन मे माता का सर्वोच्च स्थान दिया जाता है,विदेशों आदि मे माता के नाम को जातक के नाम के पीछे जोडा जाता है लेकिन भारत मे माता के ऊपर ही पूर्ण जीवन टिकाकर रखा जाता है। मैने पहले भी कहा है कि चन्द्रमा मन का कारक है और जब मन सही है तो जीवन अपने आप सही होने लगता है जो सोच सोचने के बाद कार्य मे लायी जायेगी वह सोच अगर उच्च कोटि की है तो जरूर ही कार्य जो भी होगा वह उच्च कोटि का ही होगा,सूर्य देखता है चन्द्र सोचता है और शनि करता है बाकी के ग्रह हमेशा सहायता देने के लिये माने जाते है

सोमवार, 20 मार्च 2017

रिश्ते और ग्रह नक्षत्तर मित्तरो ग्रह नक्षत्रों व रिश्तों का एक अनोखा व अटूट सम्बन्ध होता है. आपके पारिवारिक रिश्ते ग्रह व नक्षत्रों से प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े होते हैं. नक्षत्र यानि आकाश के तारों का समूह व ग्रह यानि आकाश में स्थापित अन्य पिंड. ग्रह व नक्षत्र हमारे आपसी रिश्ते / नातों पर प्रभाव डालते हैं. ये बिल्कुल सत्य है. लाल किताब के अनुसार हमारी जिंदगी से जुड़ने वाला हर रिश्ता किसी ना किसी ग्रह का सूचक है. हमारी कुंडली में जो ग्रह जहाँ स्थित है, वो रिश्ता वहीँ से हमारी ज़िन्दगी में भी आता हैयदि किसी ग्रह की दशा खराब चल रही है तो उस से जुड़े रिश्ते पर ध्यान देने से लाभ प्राप्त होगा. कुंडली का प्रत्येक भाव किसी ना किसी रिश्ते अथवा रिश्तेदार से प्रभावित होता है और इसीलिए कुंडली में यदि कोई ग्रह कमजोर है तो उस से जुड़े रिश्ते को मजबूत बनाने की कोशिश करें व अपने आपसी संबंधों में सुधार व बदलाव लायें.. जिंदगी की आपाधापी में रिश्ते कहीं खो गए हैं शायद इसीलिए अब लोग दुखी है सो तरा के उपाय हम कर रहे हैं लेकिन अपने रिश्तो को नहीं सुधारतेमाता-पिता, भाई-बहिन,पति पत्नी, मित्र पड़ोसी सगे-सम्बन्धी इत्यादि संसार के अजितने भी रिश्ते नाते है। सब मिलते है। क्योंकि इन सबको हमें या तो कुछ देना होता है या इनसे कुछ लेना होता है।जन्म पत्रिका के बाहर भावों में ग्रह और सामाजिक रिश्ते अलग-अलग भाव से होते है।व्यक्ति की कुंडली में ग्रहों ग्रह स्वामी ,ग्रहों के आपसी संबंध, ग्रहों की दृष्टि, आदि का प्रभाव व्यक्ति के संबंधों पर पड़ता है। जो की परिवारजनों के संबंधों को अनुकूल बनाता है। रिश्ते की बुनियाद प्यार और विश्वास हर टिकी होती है। इसलिए अाजकल के समय में जितना रिश्तों को बनाना अासान है उतना ही बनाएं रखना मुश्किल हो गया है। इसके लिए आपको हर रिश्ते की अच्छे से देखभाल करने के लिए अपने रिश्ते को ज्यादा समय देकर और समझदारी से बना कर रखना चाहिए ताकि अापका रिश्ता कमजोर न हों। ऐसे में अगर आपके रिश्ते में कोई गलतफहमी हो या फिर दूरिया हो तो अापके अापकी प्यार से इन्हें दूर करेबदलते जमाने के साथ हर किसी की सोच बदल गई है, तो एेसे ही हर परिवार में बदलती सोच के साथ परिवार भी बिखर गए हैं। पुराने समय में सभी एक साथ एक परिवार बन कर रहते थें पर अब अलग-अलग रहने लगे हैं। एेसे में हर किसी के लिए उन रिश्तों की अहमियत बढ़ जाती है जो खून के न हों, जैसे दोस्ती, व्यापारिक या आसपड़ोस के रिश्ते। एेसे रिश्ते हमारी जरूरतों की वजह से बनते हैं। एेसे में हमें खून के रिश्तों को भी समय देकर और समझदारी से निभाना चाहिएइसलिए दोस्तों अगर आपके ग्रह छप्पर ठीक नहीं चलोगे तो सबसे पहले आपसे बंधुओं को सुधारें उसके बाद ही ज्योतिष उपाय काम करेंगे जब तक आपके अपने आप से दूर है यानी माता-पिता भाई-बहन पड़ोसीं।इनसे आप अपने रिश्ते की करें और इन से मधुर संबंध बनाएंग्रह और संबंध :ग्रह अनुकूल होने पर ग्रहों के अनुसार संबंध ठीक रहते हैं। अपने रिस्तो पर नजर डाले । देखें आपका कौन सा सम्बन्धी आपसे संतुस्ट नही है ,उससे सम्बंधित ग्रह आपका ख़राब होगा। जैसे आपकी माँ आपसे रूठी है तो चन्द्रमाँ आपका अच्छा फल नही कर रहा है। इसी प्रकार पिता से आपके सम्बन्धं अगर ठीक नही है तो सूर्य अच्छा फल नही दे रहा है । पत्नी से अनबन चल रही होतो समझले आप का शुक्र ग्रह ख़राब फल कर रहा है । बहने अगर आपसे खफा हैं तो बुध आप से खफा है। भाई आपके साथ नहीं है तो मंगल आपके साथ नही है । आपके गुरुजन आपसे रुष्ट है तो गुरु ग्रह आपसे रुष्ट है । और जब शनि की टेड़ी नजर आप पर है तो आपके नौकर चाकर आप का नुकसान करते रहेंगे । रहू अपनी सैतानी आपके दुष्ट मित्रो के रूप में दिखा सकता है । केतु आपके पालतू जानवर पर प्रभाव दिखता है । इसके आलावा भी आलग आलग रिस्तो के लिए आलग आलग ग्रह प्रभाव रख ते है । इस तथ्य को जानकर आप आसानी से जान सकते है की ,कौन सा ग्रह आप का ख़राब है और कौन सा अच्छा है आज इतना ही आचार्य राजेश

शनिवार, 18 मार्च 2017

गुण मिलान या कुंडली मिलान आज के कंप्यूटर के युग में बहुत सामान्य की बात हो गयी है हर दूसरा जातक अपने कंप्यूटर पर सॉफ्टवेर के माध्यम से कुंडली मिलान कर बोल देता है की इनके तो 28 गुण मिल गए या 33 गुण मिल गए अब विवाह में कोई व्यवधान नहीं आएगा आगे बात की जा सकती है मंगल दोष को भी अधिकतर ज्योतिष के सॉफ्टवेर बता ही देते है भकुट और नाडी दोष के बारे में भी सभी सॉफ्टवेर में दिया ही होता है एसे में जातक अपने आप में ही संतुष्ट हो जाता है ये अवस्था तब है जब गुण 26 से ऊपर मिले होते है इसके विपरीत यदि कभी 12या 14गुण मिलते है तो जातक आपनी ही बात से पलट जाते है हम कुंडली मिलान को विशेष महत्त्व ही नहीं देते कुंडली कुछ नहीं होती सिर्फ अपनी सोच है एसे में क्या तत्व दर्शन जातक को अपने पार्टनर का सही चुनाव देने में संभव है तो तो आंशिक रूप से खुद को ही छलावा देना हुआ गणितीय आकडे तो हर सॉफ्टवेर से आसानी से निकल आते है कुंडली मिलान इतना आसान नहीं होता जितना की एक जातक समझता है हर विषय को गंभीरता से जब तक न लिया जाये सही उत्तर मिलना आसान नहीं होते एसे में विवाह तो हो जाते है पर कितने समय तक चलेगे ये अपने आप में प्रश्न चिन्ह बन जाता है वाहिक बंधन जीवन का सबसे महत्वपूर्ण बंधन है। विवाह प्यार और स्नेह पर अधारित एक संस्था है। यह वह पवित्र बंधन है, जिसपर पूरे परिवार का भविष्य निर्भर करता है। समान्यत: कुंडली में अष्ट कुट एवं मांगलिक दोष ही देखा जाता है, लेकिन यह जान लेना अनिवार्य है कि कुंडली मिलान की अपेक्षा कुंडली की मूल संरचना अति महत्वपूर्ण है। एक व्यक्ति में बाहरी आकर्षण तो हो सकता है, लेकिन भीरत से वह पत्थर हृदय वाला और स्वार्थी भी हो सकता है, जाहिर है कि कुंडली की विस्तृत व्याख्या अनिवार्य मानी जाती है। कुंडली के बारह भावों में सप्तम भाव दांपत्य का है, इस भाव के अलावे आयु, भाग्य, संतान, सुख, कर्म, स्थान का पूर्णत: विश्लेषण एक सीमा में अनिवार्य है। नवमांश कुंडली सप्तांश, चतुर्विशांश, सप्तविशांश के अलावा रोग के लिए त्रिशांश कुंडली भी देखी जाती है। लड़कों के लिए शुक्र एवं लड़कियों के लिए गुरु कारक ग्रह है, इसकी स्थिति देखना अनिवार्य है। पुन: गुरु से सप्तम, चंद्र से सप्तम एवं सप्तम भाव के अधिपति की शुभ स्थिति देखी जाती है। शुक्र जो की व्यक्तिगत जीवन का करक है उसकी स्थिति देखे. मांगलिक होने पर मंगल की शक्ति भी देखे, कई बार मांगलिक होने पर भी मंगल का बुरा असर नहीं पड़ता क्यूंकि मंगल बलहीन होता है. . संतान भाव की स्थिति और सम्बंधित ग्रहों का अध्ययन भी अलग से करें . विवाह स्थान और सम्बंधित ग्रहों का अध्ययन करे. कुंडली में मौजूद अच्छे योगो का अध्ययन भी करे. दोनों की कुंडली में मौजूद बुरे योगों का अध्ययन भी करें और उसका समाधान निकाले. लग्न की स्थिति का भी पूरा अध्ययन जरुरी है. इसी के साथ चन्द्र कुंडली, नवमांश कुंडली आदि का अध्ययन भी जरुरी है. अतः किसी भी निष्कर्ष पर ऐसे ही मत पहुचे, अच्छे रिश्तो को ऐसे ही मत छोड़ दीजिये. याद रखे –स्वगृही, मित्रगृही या उच्च हो उसे शुभ ग्रह कहते हैं और कारक और अकारक को भी देखना चाहिए आजकल शादी में सिर्फ लड़की का रूप-रंग ही देखा जाता है, जबकि सामान्य कद-काठी और रूप-रंग के बच्चे भी यदि अत्यंत भाग्यशाली हुए, तो घर की स्थिति उत्तरोत्तर अच्छी होती जाती है और घर में चार चांद लग जाते हैं। कई मामलों में मांगलिक दोष भी भंग हो जाता है, लेकिन उसे मांगलिक मान लिया जाता है और शादियां कट जाती हैं।किसी भी कुंडली में हर ग्रह भाव राशि की एक विशेष अवस्था होती है जो जातक की जीवन की प्रकृति का निर्माण करती है एसे में दो जातको की कुंडली को देख कर उसके सामान्य और असामान्य क्रम को देखना और जीवन की अवस्था में बदलव पर दोनों के स्थायित्व को देखने का क्रम ही कुंडली मिलान होता है चंद्र की अवस्था का आकलन ही 36 गुणों में अभिव्यक्त किया गया है जो सही मायेने में सही भी है चंद्र जातक के मन का कारक है चंद्र की विशिष्ट अवस्थाओ के आधार पर दो कुंडलियो में गुण दोषों को देखा जाता है ये सामान्य रूप से बहुत हद तक सही भी है ज्योतिष में मंगल को भी विवाह के समय विशेष रूप से देखा जाता है मंगल के अच्छा होने पर विघ्न कम आते है एसा माना गया है जबकि वास्तविकता कितनी है ये अनुभवी जन ही जानते है इस क्रम में कुछ एसे विषयों को जोड़ना चाहुगा जिसको सामान्य जन नहीं जानते और न ही विवाह के समय उतना विचार करते है जातक की कुंडली में सप्तम भाव जीवन साथी बसका होता है इसके स्वामी का अस्त होना क्रूर ग्रह सूर्य के साथ होना, राहू या केतु के साथ होना सप्तम भाव पर गुरु या शुक्र की द्रष्टि न होना, मंगल या शनि की द्रष्टि होना जातक के वैवाहिक जीवन में नीरसता लाता है हमारे ज्योतिषीय जीवन में अनेकानेक विचित्र अनुभव होते रहे हैं। कुछ महानुभाव ऐसे भी आते हैं, जो कहते हैं कि मेरी कन्या के लिए एक अच्छा रिश्ता आया है। कृपा करके कुण्डली मिला दें। वर-कन्या की कुण्डली मिलाने से उनका आशय केवल इतना होता है कि आप गुण मिलान कर दें,बाकी वेस्वयंनिपटालेगे ये पूरी तरह हास्यपद बात होने के साथ ही उनके अल्पज्ञान का प्रदर्शन भी है।किंतु गांव-गिरांव और कस्बाई इलाकों में महानुभाव पंडितों ने अपने पेशेवर अन्दाज के कारण लोगों को भ्रम में डाला और मेट्रो शहरों के सिलेब्रिट्री ज्योतिर्विदों ने अंधाधुंध कमाई के चक्कर में सच को सामने आने ही नहीं दिया। केवल गुण मिलान के कारण लाखों दाम्पत्य जीवन पूरी तरह बर्बाद हो जाते हैं। छत्तीस गुणों में से कम से कम सोलह गुण मिल गए और वर-कन्या का आंख मूंदकर विवाह सम्पन्न करा दिया जाता है। भोगते तो बेचारे वे हैं जो अब शादी के वचन में व`घ गयै। जन्मकुंडली मिलान करने के पुरा समय लगना चाहिए यदि ज्योतिषाचार्य आपको पांच मिनट में कुंडली मिलान करके दे देते हैं तो यह चिंता का विषय है | सबसे पहले जन्म लग्न से जातक जातिका के चरित्र का पता चलता है | चरित्र सबसे पहले हैं बाकी चीजें बाद की हैं | लग्न के बाद राशी और फिर होरा चक्र देखा जाता है | मांगलिक दोष है या नहीं यह सुनने में आसान लगता है परन्तु कई बार गलती से मांगलिक की अमांगलिक से शादी करवा दी जाती है | मांगलिक योग की तीव्रता में यदि 70 से अधिक अंकों का फर्क हो तो कुंडली मिलान उत्तम नहीं है | जन्मकुंडली का पांचवां घर यह बता सकता है कि भावी पति / पत्नी के भविष्य में संतान सुख है या नहीं | इस पर विचार वे लोग कर सकते हैं जो शादी केवल संतान की इच्छा से करना चाहते हैं | कई बार वंश को आगे बढाने के लिए दुबारा शादी की जाती है | आज भी कुछ लोग ऐसे मिलते हैं जो संतान सुख से वंचित हैं और रजामंदी से दुसरे विवाह के लिए प्रयासरत रहते हैं | अजीब लगेगा परन्तु यह सुनिश्चित कर लें कि एक से अधिक विवाह का योग तो नहीं है ? आयु का विचार ज्योतिष में निषिद्ध है परन्तु मैं मानता हूँ कि यदि कुछ ऐसा दिखाई दे तो संकेत अवश्य दिया जा सकता है | अब मिलान की बारी आती है | कुंडली मिलान करते समय ऊपर लिखे सभी सिद्धांत यदि ध्यान में रखे जाएँ तो उत्त्तम जीवन साथी आपको अवश्य मिलेगा | मैं दावे से कह सकता हूँ कि उपरोक्त बातें सुनिश्चित करने के बाद तलाक जैसी समस्याओं से बचा जा सकता है | यदि हर व्यक्ति ज्योतिष के नियमों का पालन करता है तो आने वाले समय में वैवाहिक समस्याओं पर किसी अदालत में कोई केस नहीं बचेगा |आचार्य राजेश paid service 09414481324 07597718725

शुक्रवार, 17 मार्च 2017

ज्योतिष एक ऐसा शब्द है, जिसका प्रारदूरभाव हमारे जीवन मे हमारे पैदा होने से पहले ही हो जाता है। हमारे जीवन के हर क्षेत्र मे ज्योतिष एक विशेष भूमिका निभाने लगा है। इस शब्द का प्रभाव हमारे जीवन मे इतना है की, हम इससे दूर नहीं जा पाते मेरा मानना है की यदि कोई मत हमे सकारात्म्क ऊर्जा दे रहा है तो उसका पालन करने मे कोई हर्ज नहीं है कहा जाता है की ज्योतिष विज्ञान है, “जो लोग ज्योतिष क्षेत्र में अपने फन आजमा रहे हैं या जिनकी आजीविका का आधार ही ज्योतिष है उन सभी लोगों को चाहिए कि जनता का विश्वास अर्जित करें और इस बात के लिए अपनी प्रामाणिकता सिद्ध करें कि इनकी वाणी से निकला अथवा इनके ज्योतिषीय ज्ञान से उपजी भविष्यवाणी निश्चय ही खरी निकलती है मेरा अनुभव कहता है। ज्योतिष शास्त्र की भविष्य वाणी वैसी ही होती है; जैसे अर्थ शास्त्र की भविष्य वाणी होती है लेकिन इसका मतलब यह भी नही यह मान कर बैठ जाएं कि जो भाग्य में लिखा है वही मिलेगा तो जीवन ज्यादा संघर्षमय हो जाएगा। हमारा स्वभाव स्वयं का भाग्य बनाने का होना चाहिए ना कि यह मान लेने का कि जो किस्मत में होगा वह तो मिलेगा ही। कई बार लोग इस विश्वास में कर्म में मुंह मोड़ लेते हैं। फिर हाथ में आती है सिर्फ असफलता। भाग्य को मानने वालों को कर्म में विश्वास होना चाहिए। भाग्य के दरवाजे का रास्ता कर्म से ही होकर गुजरता है। कोई कितना भी किस्मतवाला क्यों ना हो, कर्म के सहारे की आवश्यकता उसे पड़ती ही है। बिना कर्म के यह संभव ही नहीं है कि हम किस्मत से ही सब कुछ पा जाएं। हां, यह तय है कि अगर कर्म बहुत अच्छे हों तो भाग्य को बदला जा सकता है बिना कर्म कोई ज्योतिष काम नहीं करेगा। हम अक्सर सड़कों से गुजरते हुए ट्राफिक सिग्रल देखते हैं। वे हमें रुकने और चलने का सही समय बताते हैं। ज्योतिष या भाग्य भी बस इसी ट्राफिक सिग्रल की तरह होता है। कर्म तो आपको हर हाल में करना ही पड़ेगा। भाग्य यह संकेत कर सकता है कि हमें कब कर्म की गति बढ़ानी है, कब, कैसे और क्या करना है। आकाश मंडल में ग्रहों की चाल और गति का मानव जीवन पर सूक्ष्म प्रभाव पड़ता है। इस प्रभाव का अध्ययन जिस विधि से किया जाता है उसे ज्योतिष कहते हैं। भारतीय ज्योतिष वेद का एक भाग है। वेद के छ अंगों में इसे आंख यानी नेत्र कहा गया है जो भूत, भविष्य और वर्तमान को देखने की क्षमता रखता है। वेदों में ज्योतिष को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। भारतीय ज्योतिष फल प्राप्ति के विषय में जानकारी देता है साथ ही अशुभ फलों और प्रभावो से बचाव का मार्ग भी देता है पर इसके साथ साथ स्वयं पर और अपने ईश्वर पर विश्वास करें। सही कार्य करें, सही निर्णय लें, दयालु बनें और कभी हार न मानें। फिर आप कठिनाइयों एवं रुकावटों के बीच अपनी राह बना लेंगे जैसे कि एक नदी धरती व चट्टानों के बीच बहती आज इतना ही आचार्य राजेश

ज्योतिष एक ऐसा शब्द है, जिसका प्रारदूरभाव हमारे जीवन मे हमारे पैदा होने से पहले ही हो जाता है। हमारे जीवन के हर क्षेत्र मे ज्योतिष एक विशेष भूमिका निभाने लगा है। इस शब्द का  प्रभाव हमारे जीवन मे इतना है की, हम  इससे दूर नहीं जा पाते मेरा मानना है की यदि कोई मत हमे सकारात्म्क ऊर्जा दे रहा है तो उसका पालन करने मे कोई हर्ज नहीं है  कहा जाता है की ज्योतिष विज्ञान है, “जो लोग ज्योतिष क्षेत्र में अपने फन आजमा रहे हैं या जिनकी आजीविका का आधार ही ज्योतिष है उन सभी लोगों को चाहिए कि जनता का विश्वास अर्जित करें और इस बात के लिए अपनी प्रामाणिकता सिद्ध करें कि इनकी वाणी से निकला अथवा इनके ज्योतिषीय ज्ञान से उपजी भविष्यवाणी निश्चय ही खरी निकलती है
मेरा अनुभव कहता है। ज्योतिष शास्त्र की भविष्य वाणी वैसी ही होती है; जैसे अर्थ शास्त्र की भविष्य वाणी होती है लेकिन इसका मतलब यह भी नही यह मान कर बैठ जाएं कि जो भाग्य में लिखा है वही मिलेगा तो जीवन ज्यादा संघर्षमय हो जाएगा। हमारा स्वभाव स्वयं का भाग्य बनाने का होना चाहिए ना कि यह मान लेने का कि जो किस्मत में होगा वह तो मिलेगा ही। कई बार लोग इस विश्वास में कर्म में मुंह मोड़ लेते हैं। फिर हाथ में आती है सिर्फ असफलता।
भाग्य को मानने वालों को कर्म में विश्वास होना चाहिए। भाग्य के दरवाजे का रास्ता कर्म से ही होकर गुजरता है। कोई कितना भी किस्मतवाला क्यों ना हो, कर्म के सहारे की आवश्यकता उसे पड़ती ही है। बिना कर्म के यह संभव ही नहीं है कि हम किस्मत से ही सब कुछ पा जाएं। हां, यह तय है कि अगर कर्म बहुत अच्छे हों तो भाग्य को बदला जा सकता है बिना कर्म कोई ज्योतिष काम नहीं करेगा। हम अक्सर सड़कों से गुजरते हुए ट्राफिक सिग्रल देखते हैं। वे हमें रुकने और चलने का सही समय बताते हैं। ज्योतिष या भाग्य भी बस इसी ट्राफिक सिग्रल की तरह होता है। कर्म तो आपको हर हाल में करना ही पड़ेगा। भाग्य यह संकेत कर सकता है कि हमें कब कर्म की गति बढ़ानी है, कब, कैसे और क्या करना है।
आकाश मंडल में ग्रहों की चाल और गति का मानव जीवन पर सूक्ष्म प्रभाव पड़ता है। इस प्रभाव का अध्ययन जिस विधि से किया जाता है उसे ज्योतिष कहते हैं। भारतीय ज्योतिष वेद का एक भाग है। वेद के छ अंगों में इसे आंख यानी नेत्र कहा गया है जो भूत, भविष्य और वर्तमान को देखने की क्षमता रखता है। वेदों में ज्योतिष को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है।  भारतीय ज्योतिष फल प्राप्ति के विषय में जानकारी देता है साथ ही अशुभ फलों और प्रभावो से बचाव का मार्ग भी देता है पर इसके साथ साथ स्वयं पर और अपने ईश्वर पर विश्वास करें। सही कार्य करें, सही निर्णय लें, दयालु बनें और कभी हार न मानें। फिर  आप कठिनाइयों एवं रुकावटों के बीच अपनी राह बना लेंगे जैसे कि एक नदी धरती व चट्टानों के बीच बहती आज इतना ही     आचार्य राजेश

गुरुवार, 16 मार्च 2017

ज्योतिष या ठगी का धंधा ज्योतिष वैज्ञानिक समाज का बहुत बड़ा सहारा बन सकते हैं किंतु फ्रॉड लोग उन लोगों तक समाज को पहुँचने ही नहीं देते इससे टूट रहे हैं सम्बन्ध बिखर रहे हैं परिवार ,चौपट हो रहा है व्यापार ,बढ़ रहे हैं अपराध और हो रहे हैं जीवनशास्त्र की जीवन में बहुत बड़ी भूमिका होती है जो जीवन और संबंधों को सँभाले रखती है किंतु पाखंडी लोग इतने आडंबर करते हैं कि ज्योतिष वैज्ञानिकों तक लोगों को पहुँचने ही नहीं देते हैं बीच में ही लूट ले्ते इसलिए ऐसी सभी प्रकार की घुसपैठ ज्योतिष एवं वास्तु आदि में रोकने के लिए अब भविष्य बताने वाले फर्जी लोगोंपर लगाम लगनी चाहीये पहले आयुर्वेद में भी डिग्रियों का प्रावधान नहीं था किंतु अब है !उसी प्रकार ज्योतिष के नाम पर आज करोड़ों अरबों का धंधा हो रहा है अयोग्य ज्योतिषी भविष्य का भय दिखाकर लूट रहे हैं लोगों को फैला रहे हैं अंध विश्वास इतने बड़े कारोबार को सरकार ने हवा में छोड़ रखा है आखिर क्योंसमझ से परे हैहमारे यहाँ उन हैरान परेशान लोगों के फोन आते हैं उन महिलाओं के फोन आते हैं जिन्होंने घर से चोरी करके पैसा दे रखा होता है ज्योतिषियों को ,कई ने तो अपनी ज्वैलरी तक बेच दी होती है ऐसे ही चक्करों में ,कई ने अपने पति या पत्नी के बशीकरण आदि के लिए ऐसे पाखंडों का सहारा लिया हुआ होता है जिससे इन पाखंडियों के द्वारा दी गई ऊटपटाँग चीजें अपने पति या पत्नी को खिला रखी होती हैं जिनसे गंभीर बीमारियाँ भुगत रहे होते हैं लोग किंतु आज वो किसी से कहने लायक भी नहीं होते कई महिलाओं के मन में उनके पति के चरित्र पर संशय पैदा करके कि उसके किसी और से सम्बन्ध हैं और जब वो किसी से जुड़ सकता है तो तुम क्यों नहीं ऐसे तर्कों को हवा देकर खुद जुड़ जाते हैं उनसे ज्योतिषी लोग और खा जाते हैं उनकी मेहनत की की सारी संपत्ति ऐसी छल कपट से इकठ्ठा की गई अकूत संपत्ति ये उड़ाते हैं टीवी और अखवारों में दिए जा रहे भारी भरकम विज्ञापनों में मित्रो एक दिन एक टीवी चैनल पर 20 मिनट बोलने का खर्च हजारों में देना होता है कई लोग तो एक ही दिन में कई कई चैनलों पर वर्षों से करते चले आ रहे हैं बकवास आखिर क्या हैं इनकी आय के स्रोत कहाँ से और कैसे आता है ये धन जो टीवी चैनलों को देते हैं ये लोग ईमानदारी पूर्वक ऐसे धन का संग्रह कर पाना कठिन लगता है और यदि हो भी तो अपनी खून पसीने की कमाई कोई यूँ ही क्यों नष्ट करेगा वो भी केवल वो दैनिक राशिफल और कालसर्पदोष बताने के लिए जो सौ प्रतिशत झूठ होते हैं जिनका शास्त्रों में कहीं उल्लेख नहीं है वैसे भी जब रोज कोई ग्रह नहीं बदलता तो इनका राशिफल कैसे बदल जाता है वो भी अलग अलग चैनलों पर एक ही राशि का फल अलग अलग बताया जा रहा होता है कई बार तो एक ही चैनल पर लोग अलग अलग लोग बक रहे होते हैं एक ही राशि का अलग अलग भविष्य कई तो ऐसे बकते हैं कि कोई शराबी इतनी जल्दी गालियाँ नहीं दे सकता जैसे वो राशिफल बक देते हैं ।समझ में नहीं आता है यह जानकारी जानकारी ज्योतिष की है या एंटरटेनमेंट करने की अरे भाई साहब कुछ तो ज्योतिष की लाज रखो क्यों इसकी लुटिया डुबोने पर लगे हो इसी प्रकार यंत्र तंत्र ताबीजों के धंधों में भारी फ्रॉड है यंत्र तंत्र ताबीज बनाने की जो विधियाँ हैं वो इतनी कठिन होती हैं कि वो बनाना हर किसी के बश की बात नहीं है और बाजारों में तो वो उपलब्ध हो ही नहीं सकते सौ प्रतिशत असंभव क्योंकि देवी देवता किसी तांत्रिक के गुलाम नहीं होते कि उसके ताबीज में बँधे चले जाएँगे और जो जो काम तांत्रिक बताकर भेजेगा वो देवी देवता लोग करने लगेंगे क्या अंधेर है ये शास्त्र विद्याओं का मजाक नहीं तो क्या हैहोली चली गयी आगे नवरात्र उसके बाद दिवाली आ रही है यंत्र तंत्र ताबीजों के धंधों में अभी से कमर कस कर तैयार हो रहे हैं लोग मित्रों इसका मतलब ये भी नहीं कि यंत्र तंत्र ताबीजों की विधा गलत है किंतु जिन तपस्वी साधकों के पास ऐसी साधना है उनके बनाए हुए यंत्र तंत्र ताबीजों में अद्भुत शक्ति होती है किंतु वे लोग दुर्लभ हैं !उनकी कृपा को पैसों से नहीं खरीदा जा सकता ज्योतिष के द्वारा हमें उसके जीवन पर रिसर्च करना होता है और खोजना होता है कि ये व्यक्ति जीवन के किस क्षेत्र में कितना सफल हो सकता है उसी के अनुरूप सलाह दे दी जाती है साथ ही ये भी ध्यान रखना होता है इनका काम भी हो जाए और बहम भी न पड़ने पाए साथ उपाय भी इतने महँगे और कठिन न हों कि सामने वाला कर ही न सके कुलमिलाकर सभी प्रकार से समाज के सुख दुखों में मित्र भावना से जुड़कर ही स्व हो सकता है यहाँ तक कि वास्तु जैसे विषयों में भी घरों में इसी प्रकार की बड़ी बड़ी समस्याएँ होते देखी जाती हैं किंतु घर वालों को पता नहीं लग पाता है , जबकि वास्तु स्पेशलिस्ट या वास्तु एक्सपर्ट टाइप के लोग प्रायः ज्योतिष वास्तु आदि पढ़े लिखे तो होते नहीं हैं ये केवक कुछ नग नगीने यंत्र तंत्र ताबीज पेंडुलम आदि बेचने के लिए कुछ देर बकवास करना इनकी मजबूरी होती है वहाँ शास्त्रीय वास्तु विद्या की तो कोई संभावना ही नहीं होती है ऐसे फ्रॉड लोग भोली भाली जनता को वास्तुशास्त्र के नाम पर अपने ही चक्करों में उलझाए लूटते रहते हैं वास्तुशास्त्र वैज्ञानिको ज्योतिष जैसे गंभीर विषय को सँवार कर फलित करने की सारी जिम्मेदारी केवल ज्योतिष वैज्ञानिकों की ही नहीं है आम समाज को इसमें सहयोग करने की आवश्यकता है ।कई बार जन्म पत्रियाँ गलत होती हैं या कम्प्यूटर से बनी हुई होती हैं उनमें उतनी शुद्धता न होने के कारण वो पूर्ण विश्वनीय नहीं होती हैं कई बार जिसकी जन्मपत्री लोग दिखाते हैं किन्तु दोष उसमें नहीं होता दोष घर के किसी अन्य सदस्य की कुण्डली या वास्तु आदि का होता है जिसे भुगत वो रहा होता है ऐसी परिस्थिति में उन सारी चीजों की गहन जाँच करनी होगी ,उसका खर्च भी अधिक आएगा और समय भी अधिक लगेगा ये स्वाभाविक है किन्तु जो लोग अज्ञान,कंजूसी या चालाकी के कारण उस पर लगने वाला खर्च वहन नहीं करना चाहते हैं इसका मतलब यह नहीं होता है कि हम अपनी श्रद्धा से जो चाहें सो दें पंडित जी वो लेंगे और पंडित जी मेहनत पूरी करेंगे किन्तु ऐसा कभी नहीं होता है ज्योतिषी के साथ जैसा व्यवहार आप करेंगे ज्योतिषी भी वैसा ही व्यवहार आपके साथ करेगा ये कभी नहीं सोचना चाहिए कि ज्योतिषी यदि विद्वान है तो वो तो हमारा भाग्य सही सही बताएगा ही उसे परिश्रम चाहें जितना करना पड़े ये भ्रम है जैसे बिजली किसी जगह चाहें जितनी हो किन्तु जितने बाड का बल्व लगा होता है प्रकाश उतना ही होता है ।इसी प्रकार से समुद्र में पानी चाहे जितना हो किन्तु पानी उतना ही देता है जितना बड़ा बर्तन होगा ठीक इसी प्रकार से कोई ज्योतिषी विद्वान चाहे जितना हो और किसी से सम्बन्ध चाहे जितने अच्छे हों किन्तु जितना आपका धन लगता है उतना ही ज्योतिषी का मन लगता है यदि धन नहीं तो मन नहीं, हाँ ,जैसे और जितनी चिकनी चुपड़ी बातें आप करके चले आओगे उतनी ही चिकनी चुपड़ी बातें करके ज्योतिषी लोग आपको प्रेम पूर्वक भेज देंगे यदि आप सोचते हैं कि मैंने चतुराई से काम निकाल लिया तो ज्योतिषी सोचता है कि मैंने परन्तु पैसे कम देने में आप भले सफल हो गए हों किन्तु जिस काम के लिए आप ज्योतिषी के पास गए थे वो काम आप बिलकुल बिगाड़ कर चले आए हो लेकर कई लोग अपनी समस्याओं से निपटने के लिए ज्योतिष पर उतना विश्वास नहीं कर पाते हैं जितना अन्य माध्यमों पर जैसे कोई बीमार है तो डाक्टर जाँच पर जाँच बताते जाएँगे इलाज पर इलाज बदलते जाएँगे उसमें धन खर्च करने में उतनी दिक्कत नहीं होती है किन्तु ज्योतिष विद्वान यदि उस हिसाब से समस्या की जड़ तक पहुँचना चाहे तो काम बढ़ जाएगा जिसका खर्च भी बढ़ेगा जिसके लिए लोग तैयार नहीं होते ऐसी परिस्थिति में ज्योतिषी भी उस कठिन परिश्रम से बचते हुए उतने में ही जो कुछ संभव हो पता है वो बता कर अपना पीछा छुड़ा लेता है ऐसे लोग बाद में सोचते हैं कि भविष्यवाणी गलत हो गई जो गलत है। मेरी तो सलाह ऐसे लोगों को है कि आधी अधूरी श्रद्धा लेकर किसी ज्योतिष वैज्ञानिक के पास जाना क्यों आखिर कोई विद्वान किसी के घर बुलाने तो जाता नहीं है कि हमें दिखा लो अपनी कुंडली ! दोस्त यह कुछ बातें जो मैंने लिखी है मुझे कुछ सच्चाई लगी इसमें जो मैंने लिख दिया आपको इसमें कुछ गलत लगता है तो माफी चाहता हूं यह मेरे अपने विचार है सो जरूरी नहीं है कि सभी इससे सहमत हो आज बस इतना ही आचार्य राजेश मित्रों कोई भी सवाल जवाब करना हो तो सीधा मेरे नंबरों पर करें WhatsApp पर Facebook या Messenger पर सवाल ना करें आपकी कोई भी जिज्ञासा है तो सीधा फोन पर बात करें 09414481324 07597718725

मंगलवार, 14 मार्च 2017

लाल किताव ओर केत लाल किताब में केतु को 'दरवेश' माना गया है। इसका सम्बन्ध इस लोक से कम, परलोक से ज्यादा है। केतु इस भव सागर से मुक्ति/मोक्ष/निर्वाण का प्रतीक है। केतु दया का सन्देश वाहक है, यात्राओं का कारक है और जीवन यात्रा के गंतव्य तक जातक का सहायक है। बृहस्पत, मंगल बद और बुध तीनों ही केतु के सम है। लाल किताब के अनुसार ये केतु के भाग है। केतु में तीन कुत्ते समाहित है ये तीन केतु के भाग है। केतु के तीन कुत्ते है: बहिन के घर भाई कुत्ता, ससुराल में जमाई और मामा के घर भांजा कुत्ता। केतु का पालतू कुत्ता सफेद ओर काले रग का हैहै। कुत्ता खूँखार भी हो सकता है और गीदड़ भी। यदि समझदार है तो रक्षक का कार्य करेगा।ै सफ़ेद रंग दिन का प्रतीक है और काला रात्रि का। इसका तात्पर्य यह हुआ कि केतु दिवा - रात्रि - बलि है, जबकि अन्य ग्रह या तो दिवा बलि होते है या केवल रात्रि बलि होते है। उसमे यदि कही और फलों की अवधि केतु निर्दिष्ट समय तक होती है मित्रो ज्योतिष में केतु अच्छी व बुरी आध्यात्मिकता एवं पराप्राकृतिक प्रभावों का कार्मिक संग्रह का द्योतक हैकेतु भावना भौतिकीकरण के शोधन के आध्यात्मिक प्रक्रिया का प्रतीक है और हानिकर और लाभदायक, दोनों ही ओर माना जाता है, क्योंकि ये जहां एक ओर दुःख एवं हानि देता है, वहीं दूसरी ओर एक व्यक्ति को देवता तक बना सकता है। यह व्यक्ति को आध्यात्मिकता की ओर मोड़ने के लिये भौतिक हानि तक करा सकता है। यह ग्रह तर्क, बुद्धि, ज्ञान, वैराग्य, कल्पना, अंतर्दृष्टि, मर्मज्ञता, विक्षोभ और अन्य मानसिक गुणों का कारक है। माना जाता है कि केतु भक्त के परिवार को समृद्धि दिलाता है, सर्पदंश या अन्य रोगों के प्रभाव से हुए विष के प्रभाव से मुक्ति दिलाता है। ये अपने भक्तों को अच्छा स्वास्थ्य, धन-संपदा व पशु-संपदा दिलाता है। मनुष्य के शरीर में केतु अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। ज्योतिष गणनाओं के लिए केतु को कुछ ज्योतिषी तटस्थ अथवा नपुंसक ग्रह मानते हैं जबकि कुछ अन्य इसे नर ग्रह मानते हैं। केतु स्वभाव से मंगल की भांति ही एक क्रूर ग्रह हैं तथा मंगल के प्रतिनिधित्व में आने वाले कई क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व केतु भी करता है। यह ग्रह तीन नक्षत्रों का स्वामी है: अश्विनी, मघा एवं मूल केतु के अधीन आने वाले जातक जीवन में अच्छी ऊंचाइयों पर पहुंचते हैं, जिनमें से अधिकांश आध्यात्मिक ऊंचाईयों पर होते हैव्यक्ति के जीवन-क्षेत्र तथा समस्त सृष्टि को यह प्रभावित करता है। आकाश मण्डल में इसका प्रभाव वायव्यकोण में माना गया है राहु की अपेक्षा केतु विशेष सौम्य तथा व्यक्ति के लिये हितकारी है। कुछ विशेष परिस्थितियों में यह व्यक्ति को यश के शिखर पर पहुँचा देता है। केतु का मण्डल ध्वजाकार माना गया है। कदाचित यही कारण है कि यह आकाश में लहराती ध्वजा के समान दिखायी देता है। इसका माप केवल छ: अंगुल है केतु के अधीन आने वाले जातक जीवन में अच्छी ऊंचाइयों पर पहुंचते हैं, जिनमें से अधिकांश आध्यात्मिक ऊंचाईयों पर होते हैं। संसार में दो तरह के केतु पारिवारिक रिस्तों में मिलते है,एक तो वे जो अपने द्वारा पारिवारिक स्थिति को बढाने में सहायक होते है,और दूसरे जो पारिवारिक स्थिति से सहायता लेकर अपनी खुद की स्थिति बनाते है,यानी दो एक तो लेने वाले होते है दूसरे देने वाले होते है,मामा भान्जा साला दामाद यह चार तरह के केतु पारिवारिक रिस्तों में मिलते है,मामा से माँ मिलती है,जिसके द्वारा पिता और खुद स्थिति बनती है,साले के द्वारा पत्नी की प्राप्ति होती है,जिससे आगे का वंश और काम सुख की प्राप्ति होती है,यह दो तो हमेशा देने वाले होते है,और दूसरे भान्जा बहिन का पुत्र होता है,और बहिन के साथ आकर हमेशा ले जाने वाला होता है,मामा सकारात्मक है तो भान्जा नकारात्मक,पुत्री के पति को दामाद कहा जाता है,दामाद अपनी औकात बनाने के लिये पुत्री को ले जाता है,और अपनी औकात बनाता है,इस प्रकार से दोनो प्रकार के केतु से आना और जाना बना रहता है पारिवारिक रिस्तों के अलावा घर के अन्दर दो तरह के जीव मिलते है,एक तो घर की रखवाली करते है,और दूसरे घर के अन्दर छुपकर बरबाद करने का काम करते है,घर की रखवाली करने वाला कुत्ता होता है,और घर के अन्दर छुपकर बरबादी करने वाला चूहा होता है,एक का काम बचाना और दूसरे का काम बरबाद करना,इस प्रकार चूहा और कुत्ता को भी नकारात्मक और सकारात्मक केतु कहा गया केतु गुरु के साथ हो तो गुरु के सात्विक गुणों को समाप्त कर देता है और जातक को परंपरा विरोधी बनाता है। यह योग यदि किसी शुभ भाव में हो तो जातक ज्योतिष शास्त्र में रुचि रखता है गुरु के साथ नकारात्मक केतु अपंगता का इशारा करता है,उसी तरह से सकारात्मक केतु साधन सहित और जिम्मेदारी वाली जगह पर स्थापित होना कहता है,मीन का केतु उच्च का माना जाता है,और कन्या का केतु नकारात्मक कहा जाता है,मीन राशि गुरु की राशि है और कन्या राशि बुध की राशि है,गुरु ज्ञान से सम्बन्ध रखता है,और बुध जुबान से,ज्ञान और जुबान में बहुत अन्तर है,कह देना ढपोल शंख की बात है और कहकर कर देना मान्यता वाली बात हैशनि केतु के साथ हो तो आत्महत्या तक कराता है। ऐसा जातक आतंकवादी प्रवृति का होता है। अगर बृहस्पति की दृष्टि हो तो अच्छा योगी होता है।,इसी के साथ अगर शनि के साथ केतु है तो काला कुत्ता कहा जाता है,शनि ठंडा भी है और अन्धकार युक्त भी है,गुरु की महरबानी से काला कुत्ता भी पीला कत्थई हो जाता है,और गुरु अगर गर्मी का एहसास करवा दे तो ठंडक भी गर्मी में बदल जाती द्र यदि केतु के साथ हो और उस पर किसी अन्य शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो व्यक्ति मानसिक रोग, वातरोग, पागलपन आदि का शिकार होता है।चन्द्र केतु मिलकर दर्जी का काम करते है,दर्जी की कई श्रेणियां है,एक दर्जी कपडे को कई टुकडों में काटकर जोडता है,और पहिनने के लिये सूट पाजामा कुर्ता पेंट और न जाने क्या क्या बना देता है,यह तो हुयी साधारण तरीके के दर्जी वाली बात,उसी प्रकार से चन्द्र केतु एक दर्जी वकील के रूप में भी तैयार करता है,कई तरह की अर्जियां जोड कर एक केस बना देता है,जिसे व्यक्ति या तो पहिन कर कुछ प्राप्त कर लेता है,या फ़िर अपना उतार कर चला आता है,पहिनता वही जिसके ऊपर गुरु महरबान होता है। वही वकील सकारात्मक हो जाता है जिसके ऊपर गुरु की कृपा होती है,और वही वकील कानून जानने के बाद भी नकारात्मक हो जाता है,जिसके ऊपर गुरु की महरबानी नही होती है,इसी प्रकार से चन्द्र केतु एक दर्जी और तैयार करता है,जिसे मार्केटिंग मैनेजर कहते है,कितने ही ग्राहकों को मिलाकर,एक फ़र्म तैयार करना उसका काम होता है,जिसके ऊपर गुरु महरबान होता है,वह सफ़ल मार्केटिंग मैनेजर कहलाता है,इसी काम के लिये लोग विभिन्न विषयों में एम.बी.ए और न जाने कौन कौन सी उपाधियां प्राप्त करने की होड में लगे रहते है,लेकिन जिसके ऊपर गुरु महरबान नही होता है,वह एम.बी.ए. करने के बाद भी विभिन्न फ़र्मों के चक्कर लगाता रहता है,वह अपनी अर्जी को देकर तो आता है,लेकिन दर्जी की तरह से किसी भी फ़र्म में कपडे के पैबंद की तरह से लगने लायक नही होती इसलिये रद्दी की टोकरी में चली जाती है। चन्द्र केतु के साथ गुरु की महरबानी प्राप्त करने के लिये जातक को धर्म कर्म पर विश्वास करना जरूरी होता है,सबसे पहले वह अपने परिवार के गुरु यानी पिता की महरबानी प्राप्त करे,फ़िर वह अपने कुल के पुरोहित की महरबानी प्राप्त करे,फ़िर वह अपने शरीर में विद्यमान दिमाग नामक गुरु की महरबानी प्राप्त करे,और अपने दिमाग नामक गुरु के अन्दर राहु नामक भ्रम या शनि नामक नकारात्मकता को प्रवेश नही होने दे,राहु नामक भ्रम तभी प्रवेश करते है,जब राहु और केतु को साथ साथ मिलाया जाये,जैसे राहु शराब है तो केतु बोतल भी है,राहु गांजा है तो चिलम केतु है,इसी प्रकार से गुरु में शनि नकारत्मकता तभी देगा,जब वह शनि से आमिष भोजन और गुरु से दिमागी इच्छा को प्रकट किया जाना,राहु शुक्र मिलकर जब गुरु पर प्रभाव डालते है,तो शुक्र से स्त्री और राहु से बदचलन इस प्रकार का संसय दिमाग के अन्दर प्रवेश करजाने के बाद गुरु के अन्दर एक अफ़ेयर वाला प्रभाव दिमाग में हमेशा मंडराता रहता है,जिसे दूर करने की किसी के अन्दर भी हिम्मत नही होती है,अगर जातक खुद प्रयास करे तो वह अपने को मुक्त कर सकता है।मंगल केतु के साथ हो तो जातक को हिंसक बना देता है। इस योग से प्रभावित जातक अपने क्रोध पर नियंत्रण नहीं रख पाते और कभी-कभी तो कातिल भी बन जाते हैं। बुध केतु के साथ हो तो व्यक्ति लाइलाज बीमारी ग्रस्त होता है। यह योग उसे पागल, सनकी, चालाक, कपटी या चोर बना देता है। वह धर्म विरुद्ध आचरण करता है।मंगल के साथ यही हाल केतु का सकारात्मक और नकारात्मक रूप में माना जाता है,चौथे भाव में केतु और मंगल सकारात्मक है तो वे एक अच्छे पुलिस अफ़सर की तरफ़ इशारा करते है,और अगर वे नकारात्मक है तो एक गली के दादा के रूप में दिखाने की कोशिश करते है,इसके साथ शनि मिल जाता है तो वह चोर का रूप हो जाता है,और चौथे भाव के मकान या दुकान के अन्दर औजारों की सहायता से सेंध लगाने का काम भी कर सकता है,और यही मंगल और केतु चन्द्र के साथ सकारात्मक हो जाते है,सूर्य और गुरु का जोर इनके साथ लग जाता है,तो गृहमंत्री भी बना सकते है,लेकिन आदतों के अन्दर कमी नही आती हैसूर्य जब केतु के साथ होता है तो जातक के व्यवसाय, पिता की सेहत, मान-प्रतिष्ठा, आयु, सुख आदि पर बुरा प्रभाव डालता है।केतु का इशारा सूर्य के साथ मिलकर सकारात्मक प्रभाव के अन्दर राष्टपति की तरफ़ इशारा करता है,केतु सूर्य और मंगल के साथ शनि का प्रभाव मिल जाये तो बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री श्री लालूप्रसाद की तरह भी बनाने से नही चूकता है,जिसके अनुसार शनि मंगल सूर्य और शुक्र की दशा के अन्दर आपको रेल मंत्री बना दिया,आगे आने वाले समय में शनि का प्रभाव राहु के प्रति हमदर्दी दिखाने के चक्कर में बहुत बुरा फ़ंसा भी सकता है।शुक्र केतु के साथ हो तो जातक दूसरों की स्त्रियों या पर पुरुष के प्रति आकर्षित होता है।शनि राहु केतु के साथ के बिना कोई शुक्र सडक पर नही चल सकता है,शुक्र गाडी है,खाली शुक्र शनि है तो भार वाहक गाडी है,शुक्र के साथ राहु है तो सजी हुई गाडी है,गुरु का प्रभाव है तो हवाई जहाज भी है,केतु अगर कर्क के संचरण में है तो चार पहिये की गाडी है,वृश्चिक के संचरण में है तो आठ पहिये की गाडी है,और अगर किसी प्रकार से तुला या वृष का है तो दो पहिये के अलावा कुछ सामने नही आता है,गुरु केतु और शुक्र सही जगह पर है तो जातक हवाई जहाज उडाने की हैसियत रखता है,और अगर वह नकारात्मक पोजीसन में है तो जातक को पतंग उडाना सही रूप से आता होगा,तो देखा आपने केतु को बिना केतु की सहायता के jio के फ़ोन नही चल सकते थे,बिना सूर्य राहु और नवें भाव के केतु के बीएसएनएल भारत में टेलीफ़ोन नही चला सकता था,और बिना गुरु केतु के टावर खडे करने के बाद मोबाइल का काम नही कर सकता था,शुक्र महंगे मोबाइल दे रहा है,तो शुक्र केतु ही सूर्य के असर से सस्ते मोबाइल बाजार में लाने की हिमाकत कर रहा है,शुक्र मंगल और बुध केतु को सहारा बनाकर दुनिया की बडी बडी बैंको के अन्दर दिवालियापन ला रहे है,लेकिन यही कारण उन कम्पनियों को बहुत आशा देगा,जो राहु नामकी रिस्वत को न देकर अपने काम को ईमानदारी से कर रहे है,और उनके लिये बहुत बढिया समय सामने आ रहा है।शनि गाडी है,राहु पैट्रोल है और केतु पहिये है,इसी प्रयोग को अगर शरीर के अन्दर लाया जाय तो शनि शरीर राहु विद्या और केतु हाथ पैर,बताइये इनके बिना गाडी कैसे चल सकती है मित्रों अगर आप भी मुझसे अपनी कुंडली बनवाना जा दिखाना चाहते हैं जकी समस्या का हल चाहते हैं तो आप मुझसे संपर्क करें हमारे नंबरों पर कॉल करके पूरी जानकारी ले हमारे नंबर हैं 07597718725 81324094144 paid service

सोमवार, 13 मार्च 2017

मित्रों आज त्योहार 2 दिन होने लग गया है आखिर ऐसा क्योहै।आज होली है और होली परं यह बात मेरे ध्यान में आई है सोचा आप लोगों से शेयर करुपहले लोग जानते थे कि वसंत ऋतु में फागुन का महींना आता है और फागुन के आखिरी दिन पूर्णमासी को हिरणाकश्यम की बहन ने प्रहलाद को अपनी गोद में बिठाकर जलाने का प्रयास किया था क्योंकि हिरणाकश्यम अपने बेटे प्रहलाद को मार डालना चाहता था और होलिका को वरदान था वह नहीं जलेगी । हुआ था उल्टा। होलिका जल गई और प्रहलाद बीच में खड़े रह गए । उसके दूसरे दिन हिरणाकश्यप मारा गया था । फागुन का अन्तिम दिन एक ही होगा, दो नहीं हो सकते।इसी प्रकार मकर संक्रान्ति 14 जनवरी को होती थी क्योंकि इस दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में जाते हैं । हमेशा से सुनते आए हैं कि भीष्मपितामह को इच्छामृत्यु का वरदान था और उन्होंने मकर संक्रान्ति के ही दिन अपने प्राण त्यागे थे । यदि आज वाले ज्योतिषी होते तो 14 की जगह 15 को संक्रान्ति बता देते तो भीष्म को एक दिन और शरसैया पर यानी वाणों की नोक पर लेटे रहना पड़ता ।रामचन्द्र जी लंका जीत कर अयोध्या लौटे तो वहां खुशियां मनाई गईं थी, दीपमालिका सजी थी और समय के साथ यह दीपावली का पर्व बन गया । यह पर्व क्वार के महीने में अमावस्या के दिन पड़ता है लेकिन अब इस अमावस्या को भी ज्योतिषी लोग इधर उधर खिसका देते है । ब होली, दीवाली और मकर संक्रान्ति इधर उधर खिसकते हैं तो स्वाभाविक है शेष सभी त्योहार अपनी जगह बदलेंगे । लेकिन जगह बदलने से उतनी तकलीफ नहीं जितनी दो दिन त्योहार मनाने से होती है मुस्लिम त्योहारों में ज्योतिष ज्ञान का अहंकार नहीं है । चांद दिखेगा तो त्योहार होगा और नहीं दिखेगा तो नहीं होगा । हिन्दू ज्योतिषी तो ग्रहों की चाल जानने का दम भरते हैं तब क्या आजकल उनकी चाल बदल गई है।हार दो दिन मनाने का कोई औचित्य नहीं, केवल पचाग वनाने वाले ज्योतिषियों का अहंकार है । हम जानते हैं कि त्योहार तिथियों के हिसाब से होते हैं और तिथ का आरम्भ सूर्योदय से होता है और उदया तिभि मानी जाती है । तब दो दिन एक ही तिथि हो ही नहीं सकती । यदि हिन्दू समाज के ज्योतिषी अपना अहंकार नहीं छोड़ेंगे तो त्योहारों के प्रति आस्था समाप्त हो जाएगी । आशा है वे ऐसा नहीं चाहेंगे हमारे त्यौहारों का एक ही दिन निश्चित हो और पूरा भारत मिलकर ब त्योहार मनाए ।परक्या हो रहा है उज्जैन से कुछ प्रचार निकल रहा है बनारस से कुछ निकल रहा है पंजाब में किसी दिन त्यौहार होता है तो उत्तर प्रदेश में उसके अगले दिन इसी तरह अलग अलग तरह से सारे त्योहार भी दो दिन में वट जाता है यह हमारे हिंदूओं मे ऐसा क्यों हो रहा है मेरी पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें send करें ताकि औरो तक यह मैसेज पहुंच सके. आचार्य राजेश

गुरुवार, 9 मार्च 2017

मित्रो आज की पोस्ट भी राहु पर ही है राहु खुफिया पाप तो केतु ज़ाहिरा पाप है। सूरज डूबने के बाद शाम मगर शनि की रात शुरू होने से पहले का वक्त राहु और रात खत्म होने के बाद सुबह मगर सूरज निकलने से पहले का वक्त केतु है। राहु सिर का साया तो केतु सिर के बिना धड़ (जिस्म) का साया है। लेकिन इन्सानी जिस्म में नाभि के ऊपर सिर की तरफ का हिस्सा राहु का राज्य और नाभि के नीचे पांव की तरफ के हिस्से पर केतु का राज होगा। राहु कुंडली के खाना नं 12 में आसमानी हद बृहस्पाति के साथ हुआ तो केतु खाना नं 6 पाताल के बुध का साथी हुआ। दोनों की मुश्तरका बैठक कुंडली का खाना नं 2 है। दोनों के बाहम मिलने की जगह शारा आम यानि जिस जगह दो तरफ से आकर रास्ता बन्द हो जाता हो, वहां दोनों ग्रहों का ज़रूर मंदा असर या दोनों मन्दे या पाप की वारदातें या नाहक तोहमत और बदनामी के वाक्यात या ग्रहस्थी के बेगुनाह धक्के लग रहे होंगे '' केतु कुत्ता हो पापी घड़ी का, चाबी राहु जा बनता हो। चन्द्र सूरज से भेद हो खुलता, ज़ेर शनि दो होता हो राहु केतु हमेशा बुध (घड़ी) के दायरे में घूमते हैं। अगर यह देखना हो कि राहु कैसा है तो चन्द्र का उपाय करें इऔर केतु की नीयत का पता लगाने के लिये सूरज का उपायें करें इस तरह दोनों ग्रहों का दिली पाप खुद व खुद पकड़ा जायेगा। यानि उस ग्रह के ताल्लुक के वाक्यात होने लगेगें। राहु और केतु में से अगर कोई भी खाना नं 8 में हो तो शनि भी उस वक्त खाना नं 8 में गिना जायेगा। यानि जैसा शनि वैसा ही फैसला समझा जायेगा। अगर राहु केतु दोनों खराब असर करना शुरू कर दें तो राहु 42 साल और केतु 48 साल तक और दोनो मुश्तरका 45 साल का मन्दा असर कर सकतें हैं। कुंडली में सूरज राहु मुश्तरका से सूरज ग्रहण और चन्द्र केतु मुश्तरका से चन्द्र ग्रहण होगा। लिहाज़ा ग्रहण से राहु केतु के मन्दे असर का ज़माना लम्बा हो सकता है। जिसके लिये ग्रहण के वक्त और वैसे भी पापी ग्रहों की चीज़ें नारियल वगैरह चलते पानी (्दरिया या नदी) में बहाते रहना फायदा होगा राहु चन्द्रमा का पात है। अंग्रेजी में इसकी संज्ञा ड्रैगन्स हेड (सांप के फन) से है। लाल किताब में इसे यही नाम दिया गया है। इसे शनि का एजेंट (प्रतिनिधि) कहा गया है शनि एक विशालकाय सांप है और राहु उसका फन राहु का रंग नीला माना गया है। नीला आकाश और नीला समुद्र राहु के अधिकार छेत्र में आते है। गुरु को हवा या पंख माना गया है जो ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर सतत प्रवाहमान है। द्वादश गुरु के साथ द्वादश में ही राहु भी हो तो वह गुरु से बलवत्तर हो जाता है। तब गुरु पूर्णतः सांसारिक मनुष्य बन जाता है। राहु उसे ऊंचाइयों पर नही जाने देता।है केतु से यदि राहु सूर्य से युक्त/दृस्ट हो तो वह जिस भाव में स्थित होता है उस भाव का फल विकृत कर देता है। इतना ही नही, उससे आगे वाले भाव को भी प्रभावित करके दूषित कर देता हैराहु मन्दे के वक्त इसका मन्दा असर राहु की कुल मियाद 42 साला उम्र के पूरा होने पर दूर होगा। फालतू धन दौलत, दुनियावी आराम व बरकत 42 के बाद फौरन बहाल हाेंगे। कड़कती हुई बिजली, भूचाल, आतिशी खेज़ मादा पाप की एजेन्सी में बदी का मालिक हर मन्दे काम में मौत का बहाना घड़ने वाली ताकत, ठगी, चोरी और अयारी का सरगना चोट मारके नीला रंग कर देने वाली गैबी लहर का नामी फ़रिशता कभी छिपा नही रहता। कुंडली में सूरज शुक्र मुश्तरका होंतो राहु अमूमन मन्दा असर देगा। अगर सूरज शनि मुश्तरका और मन्दे हों तो राहु नीच फल बल्कि मंगल भी मंगल बद ही होगा। अगर केतु पहले घरों में और राहु बाद के घरों में हो तो राहु का असर मन्दा और केतु सिफर होगा। अगर राहु अपने दुश्मन ग्रहों (सूरज, शुक्र, मंगल) को साथ लेकर केतु को देखे तो नर औलाद, केतु की चीज़ें, कारोबार या रिश्तेदार मतल्का केतु बर्बाद होंगे। सूरज की दृष्टि या साथ से राहु का असर न सिर्फ बैठा होने वाले घर पर मन्दा होगा बल्कि साथ लगता हुआ घर भी बर्बाद होगा। मन्दे राराहू कूटनीति का सबसे बड़ा ग्रह है राहू संगर्ष के बाद सफलता दिलाता है यह कई महापुरशो की कुंडलियो से सपष्ट है|राहू का 12 वे घर में बैठना बड़ा अशुभ होता है क्योकि यह जेल और बंधन का मालिक है 12वे घर में बैठकर अपनी दशा, अंतरदशा में या तो पागलखाने में या अस्पताल और जेल में जरूर भेजता हैराहू चन्द्र जब भी एक साथ किसी भी खाने में बैठे हुए हो तो चिंता का योग बनाते है| राहु के कारण व्यक्ति को निम्नांकित परेषानियों का सामना करना पड़ता हैं: – 1 नौकरी व व्यवसाय में बाधा हु के वक्त दक्षिण के दरवाज़े का साथ न सिफ माली नुक्सान देगा बल्कि इसका ताकतवार हाथी भी मामली चींटी से मरजाता है लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है कि वे सभी के लिए अशुभ फल देते हों। जिसका राहु अच्छा होता है उसे छप्पर फाड़कर देता है। राहु का राजनीति से भी खास लगाव है। राहु अच्छा हो और सटीक बैठ जाए तो नेता को मंत्री तक बना देता है। ओर सँतरी को कमीश्नर इसकी अनुकूलता में अकस्मात धन प्राप्ति के योग बनते हैं। लाटरी खुलना, पूर्वजों की वसीयत प्राप्त होना आदि अचानक धन लाभ राहू ग्रह कराता हैराहु को हाथी की उपाधि दी गई है। कुंडली के प्रत्येक भाव या खाने अनुसार राहु के शुभ-अशुभ प्रभाव को लाल किताब में विस्तृत रूप से समझाकर उसके उपाय बताए गए हैं।प्रत्येक भाव में राहु की स्थित और सावधानी के बारे में संक्षिप्त और सामान्य जानकारी।अगली पोस्ट मै करूगामित्राप भी अपनी कुंडली निकालें और देखें अगर आप की कुंडली में ऐसे योग हों तोआप किसी अच्छे ज्योतिषाचार्य से संपर्क करें और उपायों द्वारा बुरे योगों के दुशप्रभाव को कम करने का प्रयास करें और अपने जीवन को अधिक से अधिक खुशहाल बनायें। मित्रो अगर आप मुझसे अपनी कुंडली बनवाना क्या दिखाना चाहते हैं तो आप मुझसे संपर्क करें नंबर है0941448132407597718725

सोमवार, 6 मार्च 2017

मित्रो कल मैने राहू पर पोस्ट की थी थोडा ओर वात करते है ज्योतष में राहु को मायावी ग्रह के नाम से भी जाना जाता है तथा मुख्य रूप से राहु मायावी विद्याओं तथा मायावी शक्तियों के ही कारक माने जाते हैं। इसके अतिरिक्त राहु को बिना सोचे समझे मन में आ जाने वाले विचार, बिना सोचे समझे अचानक मुंह से निकल जाने वाली बात, क्षणों में ही भारी लाभ अथवा हानि देने वाले क्षेत्रों जैसे जुआ, लाटरी, घुड़दौड़ पर पैसा लगाना, इंटरनैट तथा इसके माध्यम से होने वाले व्यवसायों तथा ऐसे ही कई अन्य व्यवसायों तथा क्षेत्रों का कारक माना जाता है।यह अकेला ही ऐसा ग्रह है जो सबसे कम समय में किसी व्यक्ति को करोड़पति, अरबपति या फिर कंगाल भी बना सकता है तथा इसी लिए इस ग्रह को मायावी ग्रह के नाम से जाना जाता है। अगर आज के युग की बात करें तो इंटरनैट पर कुछ वर्ष पहले साधारण सी दिखने वाली कुछ वैबसाइटें चलाने वाले लोगों को पता भी नहीं था की कुछ ही समय में उन वैबसाइटों के चलते वे करोड़पति अथवा अरबपति बन जाएंगे। किसी लाटरी के माध्यम से अथवा टैलीविज़न पर होने वाले किसी गेम शो के माध्यम से रातों रात कुछ लोगों को धनवान बना देने का काम भी इसी ग्रह का है।इंटरनैट से जुड़े हुए व्यवसाय तथा इन्हें करने वाले लोग, साफ्टवेयर क्षेत्र तथा इससे जुड़े लोग, तम्बाकू का व्यापार तथा सेवन, राजनयिक, राजनेता, राजदूत, विमान चालक, विदेशों में जाकर बसने वाले लोग, अजनबी, चोर, कैदी, नशे का व्यापार करने वाले लोग, सफाई कर्मचारी, कंप्यूटर प्रोग्रामर, ठग, धोखेबाज व्यक्ति, पंछी तथा विशेष रूप से कौवा, ससुराल पक्ष के लोग तथा विशेष रूप से ससुर तथा साला, बिजली का काम करने वाले लोग, कूड़ा-कचरा उठाने वाले किसी जातक की कुण्‍डली में राहू की दशा या अंतरदशा चल रही हो तो उसे क्‍या समस्‍या आएगी। अपनी कुण्‍डली विश्‍लेषण के दौरान जातक का यह सबसे कॉमन सवाल होता है और किसी भी ज्‍योतिषी के लिए इस सवाल का जवाब देना सबसे मुश्किल काम होता है। इस लेख में हम चर्चा करेंगे कि राहू की मुख्‍य समस्‍याएं क्‍या हैं और जातक का इस पर क्‍या प्रभाव पड़ता है। राहू क्‍या समस्‍या पैदा करता है, यह जानने से पूर्व यह जानने का प्रयास करते हैं कि राहू खुद क्‍या है। समुद्र मंथन की मिथकीय कथा के साथ राहू और केतू का संबंध जुड़ा हुआ है। देवताओं और राक्षसों की लड़ाई का दौर चल ही रहा था कि यह तय किया गया कि शक्ति को बढ़ाने के लिए समुद्र का मंथन किया जाए। अब समुद्र का मंथन करने के लिए कुछ आवश्‍यक साधनों की जरूरत थी, मसलन एक पर्वत जो कि मंथन करे, सुमेरू पर्वत को यह जिम्‍मेदारी दी गई, शेषनाग रस्‍सी के रूप में मंथन कार्य से जुड़े, सुमेरू पर्वत जिस आधार पर खड़ा था, वह आधार कूर्म देव यानी कछुए का था और मंथन शुरू हो गया यह कथा तो आप सभ जानते ही है दरअसल यह कथा हमारे भीतर की है यह साघको समझ मे ही आ सकती है क्योंकि कुंडली जागरण के लिए भी यह कथा मायने रखती है क्या ध्यान में जो डूबते हैं भीतर अलख लगाते हैं उनको भी जह समझ में आती है कुंडली साप के कृति की तरह हमारे शरीर में है मेरु पर्वत से यात्रा शुभ होती है नीचे से ऊपर की ओर राहु को जैसे सर्प कह दिया जाता है और कुंडली भी सर्प की तरह कुडंल मारे मारे भीतर वेठी हुई है और राहु अघेरे का भी का भी प्रतीक है यानि भीतर के अंधेरे में डूबना होगा। और मंथन भीतर जाकर मंथन करना होगा खैर यह बातें थोड़ी लंबी हो जाएंगी।पोस्ट तो फिर कभी यह मैं आपसे यह बातें शेयर करूंगा मिथकीय घटना के इतर देखा जाए तो राहू और केतू वास्‍तव में सूर्य और चंद्रमा के संपात कोणों पर बनने वाले दो बिंदू हैं। पृथ्‍वी पर खड़ा जातक अगर आकाश की ओर देखता है तो सूर्य और चंद्रमा दोनों ही पृथ्‍वी का चक्‍कर लगाते हुए नजर आत हैं। वास्‍तव में ऐसा नहीं है, लेकिन एक ऑब्‍जर्वर के तौर पर यह घटना ऐसी ही होती है। ऐसे में दोनों ग्रहों (यहां सूर्य तारा है और चंद्रमा उपग्रह इसके बावजूद हम ज्‍योतिषीय कोण से इन्‍हें ग्रह से ही संबोधित करेंगे) की पृथ्‍वी के प्रेक्षक के लिए एक निर्धारित गति है। चूंकि पृथ्‍वी उत्‍तरी और दक्षिणी ध्रुवों पर केन्द्रित हो पश्चिम से पूर्व की ओर घूर्णन करती है, सो उत्‍तर की ओर बनने वाले संपात कोण को राहू (नॉर्थ नोड) और दक्षिण की ओर बनने वाले संपात कोण को केतू (साउथ नोड) कहा गया।कहानी के अनुसार राहू केवल सिर वाला भाग है। राहू गुप्‍त रहता है, राहू गूढ़ है, छिपा हुआ है, अपना भेष बदल सकता है, जो ढ़का हुआ वह सबकुछ राहू के अधीन है। भले ही पॉलीथिन से ढकी मिठाई हो या उल्‍टे घड़े के भीतर का स्‍पेस, कचौरी के भीतर का खाली स्‍थान हो या अंडरग्राउण्‍ड ये सभी राहू के कारकत्‍व में आते हैं। राहू की दशा अथवा अंतरदशा में जातक की मति ही भ्रष्‍ट होती है। चूं‍कि राहू का स्‍वभाव गूढ़ है, सो यह समस्‍याएं भी गूढ़ देता है। जातक परेशानी में होता है, लेकिन यह परेशानी अधिकांशत: मानसिक फितूर के रूप में होती है। उसका कोई जमीनी आधार नहीं होता है। राहू के दौर में बीमारियां होती हैं, अधिकांशत: पेट और सिर से संबंधित, इन बीमारियों का कारण भी स्‍पष्‍ट नहीं हो पाता है।कहानी के अनुसार राहू केवल सिर वाला भाग है। राहू गुप्‍त रहता है, राहू गूढ़ है, छिपा हुआ है, अपना भेष बदल सकता है, जो ढ़का हुआ वह सबकुछ राहू के अधीन है। भले ही पॉलीथिन से ढकी मिठाई हो या उल्‍टे घड़े के भीतर का स्‍पेस, कचौरी के भीतर का खाली स्‍थान हो या अंडरग्राउण्‍ड ये सभी राहू के कारकत्‍व में आते हैं। राहू की दशा अथवा अंतरदशा में जातक की मति ही भ्रष्‍ट होती है। चूं‍कि राहू का स्‍वभाव गूढ़ है, सो यह समस्‍याएं भी गूढ़ देता है। जातक परेशानी में होता है, लेकिन यह परेशानी अधिकांशत: मानसिक फितूर के रूप में होती है। उसका कोई जमीनी आधार नहीं होता है। राहू के दौर में बीमारियां होती हैं, अधिकांशत: पेट और सिर से संबंधित, इन बीमारियों का कारण भी स्‍पष्‍ट नहीं हो पाता राहू से पीडि़त व्‍यक्ति जब चिकित्‍सक के पास जाता है तो चिकित्‍सक प्रथम दृष्‍टया य निर्णय नहीं कर पाते हैं कि वास्‍तव में रोग क्‍या है, ऐसे में जांचें कराई जाती है, और आपको जानकर आश्‍चर्य होगा कि ऐसी मरीज जांच रिपोर्ट में बिल्‍कुल दुरुस्‍त पाए जाते हैं। बार बार चिकित्‍सक के चक्‍कर लगा रहे राहू के मरीज को आखिर चिकित्‍सक मानसिक शांति की दवाएं दे देते है राहू बिगड़ने पर जातक को मुख्‍य रूप से वात रोग विकार घेरते हैं, इसका परिणाम यह होता है कि गैस, एसिडिटी, जोड़ों में दर्द और वात रोग से संबंधित अन्‍य समस्‍याएं खड़ी हो जाती हैं।किसी भी जातक की कुण्‍डली में राहू की महादशा 18 साल की आती है। विश्‍लेषण के स्‍तर पर देखा जाए तो राहू की दशा के मुख्‍य रूप से तीन भाग होते हैं। ये लगभग छह छह साल के तीन भाग हैं। राहू की महादशा में अंतरदशाएं इस क्रम में आती हैं राहू-गुरू-शनि-बुध-केतू-शुक्र-सूर्य- चंद्र और आखिर में मंगल। किसी भी महादशा की पहली अंतरदशा में उस महादशा का प्रभाव ठीक प्रकार नहीं आता है। इसे छिद्र दशा कहते हैं। राहू की महादशा के साथ भी ऐसा ही होता है। राहू की महादशा में राहू का अंतर जातक पर कोई खास दुष्‍प्रभाव नहीं डालता है। अगर कुण्‍डली में राहू कुछ अनुकूल स्थिति में बैठा हो तो प्रभाव और भी कम दिखाई देता है। राहू की महादशा में राहू का अंतर अधिकांशत: मंगल के प्रभाव में ही बीत जाता है।राहू में राहू के अंतर के बाद गुरु, शनि, बुध आदि अंतरदशाएं आती हैं। किसी जातक की कुण्‍डली में गुरु बहुत अधिक खराब स्थिति में न हो तो राहू में गुरू का अंतर भी ठीक ठाक बीत जाता है, शनि की अंतरदशा भी कुण्‍डली में शनि की स्थिति पर निर्भर करती है, लेकिन अधिकांशत: शनि और बुध की अंतरदशाएं जातक को कुछ धन दे जाती हैं। इसके बाद राहू की महादशा में केतू का अंतर आता है, यह खराब ही होता है, मैंने आज तक किसी जातक की कुण्‍डली में राहू की महादशा में केतू का अंतर फलदायी नहीं देखा है। राहू में शुक्र कार्य का विस्‍तार करता है और कुछ क्षणिक सफलताएं देता है। इसके बाद का दौर सबसे खराब होता है। राहू में सूर्य, राहू में चंद्रमा और राहू में मंगल की अंतरदशाएं 90 प्रतिशत जातकों की कुण्‍डली में खराब ही होती हैंराहू के आखिरी छह साल सबसे खराब होते हैं, इस दौर में जब जातक ज्‍योतिषी के पास आता है तब तक उसकी नींद प्रभावित हो चुकी होती है, यहां नींद प्रभावित का अर्थ केवल नींद उड़ना नहीं है, नींद लेने का चक्र प्रभावित होता है और नींद की क्‍वालिटी में गिरावट आती है। मंगल की दशा में जहां जातक बेसुध होकर सोता है, वहीं राहू में जातक की नींद हल्‍की हो जाती है, सोने के बावजूद उसे लगता है कि आस पास के वातावरण के प्रति वह सजग है, रात को देरी से सोता है और सुबह उठने पर हैंगओवर जैसी स्थिति रहती है। तुरंत सक्रिय नहीं हो पाता है।राहू की तीनों प्रमुख समस्‍याएं यानी वात रोग, दिमागी फितूर और प्रभावित हुई नींद जातक के निर्णयों को प्रभावित करने लगते हैं। इसका नतीजा यह होता है कि जातक के प्रमुख निर्णय गलत होने लगते हैं। एक गलती को सुधारने की कोशिश में जातक दूसरी और तीसरी गलतियां करता चला जाता है और काफी गहरे तक फंस जाता हैएकमात्र राहू की ही समस्‍याए ऐसी है जो दीर्धकाल तक चलती है। राहू के समाधान के लिए कोई एकल ठोस उपाय कारगर नहीं होता है। ऐसे में जातक को न केवल ज्‍योतिषी की मदद लेनी चाहिए, बल्कि लगातार संपर्क में रहकर उपचारों को क्रम को पूरे अनुशासन के साथ फॉलो करना चाहिए। मेरा निजी अनुभव यह है कि राहू के उपचार शुरू करने के बाद कई जातक जैसे ही थोड़ा आराम की मुद्रा में आते हैं, वे उपचारों में ढील करनी शुरू कर देते हैं, इसका नतीजा यह होता है कि जातक फिर से फिसलकर पहले पायदान पर पहुंच जाता है।अपने सालों के अनुभव में मुझे राहू की समस्‍या वाले जातक ही अधिक मिले हैं। सालों तक हजारो जातकों के राहू के उपचार करते करते मैंने एक पैटर्न बनाया है, जो राहू के बदलते स्‍वभाव और प्रभावों को नियंत्रित कर सकने मे कामयाब साबित हुआ है। ऐसे में प्रभावी उपचार जातक को राहू की पीड़ा से बहुत हद तक बाहर ले के जा सकते है इसके बावजूद भी मैंने हमेशा यही कहा है कि राहू की समस्‍या का 80 प्रतिशत समाधान गारंटी से होता है, राहू की समस्‍या का पूरी तरह समाधान नहीं किया जा सकता, चाहें आप एक हजार ज्‍योतिषियों की सलाह ही क्‍यों न ले लें वाकी कुन्डली मे देख कर कौन सा लग्न है राहु कोन से भाव मे है कितने अ.श का है किसके नछत्तंर मे किसकी राशी मेहै या उप नछत्तर या किसके साथ युती है ओर दृश्टया यह सव वाते गोर करके ही फल देखे Acharya rajesh kumar 07597718725 09414481324 Paid services

रविवार, 5 मार्च 2017

लाल किताब और राहु मित्रों आज बात करते हैं कुंडली मेराहु देव की जब कुन्डली में राहु खराब होता है,तो दिमागी तकलीफ़ें बढ जाती है,बिना किसी कारण के दिमाग में पता नही कितनी टेन्सन पैदा हो जाती है,बिना किसी कारण के सामने वाले पर शक किया जाने लगता है,और जो अपने होते हैं वे पराये हो जाते है,और जो पराये और घर को बिगाडने वाले होते है,उन पर जानबूझ कर विश्वास किया जाता है,घर के मुखिया का राहु खराब होता है,तो पूरा घर ही बेकार सा हो जाता है,संतान अपने कारणो से आत्महत्या तक कर लेती है,पुत्र या पुत्र वधू का स्वभाव खराब हो जाता है,वह अपने शंकित दिमाग से किसी भी परिवार वाले पर विश्वास नही कर पाती है,घर के अन्दर साले की पत्नी,पुत्रवधू,मामी,भानजे की पत्नी,और नौकरानी इन सबकी उपाधि राहु से दी जाती है,कारण केतु का सप्तम राहु होता है,और राहु के खराब होने की स्थिति में इन सब पर असर पडना चालू हो जाता है,राहु के समय में इन लोगों का प्रवेश घर के अन्दर हो जाता है,और यह लोग ही घर और परिवार में फ़ूट डालना इधर की बात को उधर करना चालू कर देते है,साले की पत्नी घर में आकर पत्नी को परिवार के प्रति उल्टा सीधा भरना चालू कर देती है,और पत्नी का मिजाज गर्म होना चालू हो जाता है,वह अपने सामने वाले सदस्यों को अपनी गतिविधियों से परेशान करना चालू कर देती है,उसके दिमाग में राहु का असर बढना चालू हो जाता है,और राहु का असर एक शराब के नशे के बराबर होता है,वह समय पर उतरता ही नही है,केवल अपनी ही झोंक में आगे से आगे चला जाता है,उसे सोचने का मौका ही नही मिलता है,कि वह क्या कर रहा है,जबकि सामने वाला जो साले की पत्नी और पुत्रवधू के रूप में कोई भी हो सकता है,केवल अपने स्वार्थ के लिये ही अपना काम निकालने के प्रति ही अपना रवैया घर के अन्दर चालू करता है,उसका एक ही उद्देश्य होता है,कि राहु की माफ़िक घर के अन्दर झाडू लगाना और किसी प्रकार के पारिवारिक दखलंदाजी को समाप्त कर देना,गाली देना,दवाइयों का प्रयोग करने लग जाना,शराब और तामसी कारणो का प्रयोग करने लग जाना,लगातार यात्राओं की तरफ़ भागते रहने की आदत पड जाना,जब भी दिमाग में अधिक तनाव हो तो जहर आदि को खाने या अधिक नींद की गोलियों को लेने की आदत डाल लेना,अपने ऊपर मिट्टी का तेल या पैट्रोल डालकर आग लगाने की कोशिश करना,राहु ही वाहन की श्रेणी में आता है,उसका चोरी हो जाना,शराब और शराब वाले कामो की तरफ़ मन का लगना,शहर या गांव की सफ़ाई कमेटी का सदस्य बन जाना,नगर पालिका के चुनावों की तरफ़ मन लगना,घर के किसी पूर्वज का इन्तकाल हो जाना और अपने कामों की बजह से उसके क्रिया कर्म के अन्दर शामिल नही कर पाना आदि बातें सामने आने लगती है,जब व्यक्ति इतनी सभी बातो से ग्रसित हो जाता है,तो राहु के लिये वैदिक रीति से काफ़ी सारी बातें जैसे पूजा पाठ और हवन आदि काम बताये जाते है,जाप करने के लिये राहु के मन्त्रों को बताया जाता है,राहु के लिये गोमेद आदि को पहिनने के लिये रत्नोको पहनें का काम बताया जाता हैजो राहु को ओर भी वल देता हैराहु का पहला कार्य होता है झूठ बोलना और झूठ बोलकर अपनी ही औकात को बनाये रखना,वह किसी भी गति से अपने वर्चस्व को दूसरों के सामने नीचा नही होना चाहता है। अधिकतर जादूगरों की सिफ़्त में राहु का असर बहुत अधिक होता है,वे पहले अपने शब्दों के जाल में अपनी जादूगरी को देखने वाली जनता को लेते है फ़िर उन्ही शब्दों के जाल के द्वारा जैसे कह कुछ रहे होते है जनता का ध्यान कहीं रखा जाता है और अपनी करतूत को कहीं अंजाम दे रहे होते है,इस प्रकार से वे अपने फ़ैलाये जाल में जनता को फ़ंसा लेते है. राहु का कार्य अपने प्रभाव में लेकर अपना काम करना होता है,सम्मोहन का नाम भी दिया जाता है,जो लोग अपने प्रभाव को फ़ैलाना चाहते है वे अपने सम्मोहन को कई कारणों से फ़ैलाना भी जानते है,जैसे ही सम्मोहन फ़ैल जाता है लोगों का काम अपने अपने अनुसार चलने लगता है। जैसे पुलिस के द्वारा अक्सर शक्ति प्रदर्शन किया जाता है,उस शक्ति प्रदर्शन की भावना में लोगों के अन्दर पुलिस का खौफ़ भरना होता है,यही खौफ़ अपराधी को अपराध करने से रोकता है,यह खौफ़ नाम का सम्मोहन फ़ायदा देने वाला होता है। इसी प्रकार से अपने कार्यालय आफ़िस गाडी घर शरीर को सजाने संवारने के पीछे जो सम्मोहन होता है वह अपने को समाज में बडा प्रदर्शित करने का सम्मोहन होता है,अपने को बडा प्रदर्शित करना भी शो नामका सम्मोहन राहु की श्रेणी में आता है. राहु की जादूगरी से अक्सर लोग अपने को दुर्घटना में भी ले जाते है,जैसे उनके अन्दर किसी अच्छे या बुरे काम को करने का विचार लगातार दिमाग में चल रहा है,अथवा घर या कोई विशेष टेंसन उनके दिमाग में लगातार चल रही है,उस टेंशन के वशीभूत होकर जहां उनको जाना है उस स्थान पर जाने की वजाय अन्य किसी स्थान पर पहुंच जाते है,अक्सर गाडी चलाते वक्त जब इस प्रकार का कारण दिमाग में चलता है तो अक्समात ही अपनी गाडी या वाहन को मोडना या साइड में ले जाना या वचारों की तंद्रा में खो कर चलना दुर्घटना को जन्म देता है,राहु शराब के रूप में शरीर के खून में उत्तेजना देता है,मानसिक गति को भुलाने का काम करता है लेकिन शरीर पर अधिक दबाब आने के कारण शरीर के अन्दरूनी अंग अपना अपना बल समाप्त करने के बाद बेकार हो जाते है,यह राहु अपने कारणों से व्यक्ति की जिन्दगी को समाप्त कर देता है. लाटरी जुआ सट्टा के समय राहु केवल अपने ख्यालों में रखता है और जो अंक या कार्य दिमाग में छाया हुआ है उस विचार को दिमाग से नही निकलने देता है,सौ मे से दस को वह कुछ देता है और नब्बे का नुकसान करता है. ज्योतिष के मामले में राहु अपनी चलाने के चक्कर में ग्रह और भावों को गलत बताकर भय देने के बाद पूंछने वाले से धन या औकात को छीनने का कार्य करता है. वैसे राहु की देवी सरस्वती है और अपने समय पर व्यक्ति को सत्यता भी देती है लेकिन सरस्वती और लक्ष्मी में बैर है,जहां सरस्वती होती है वहां लक्ष्मी नही और जहां लक्ष्मी होती है वहां सरस्वती नही.जो लोग दोनो को इकट्ठा करने के चक्कर में होते है वे या तो कुछ समय तक अपने झूठ को चलाकर चुप हो जाते है या फ़िर सरस्वती खुद उन्हे शरीर धन और समाज से दूर कर देती है,अथवा किसी लक्ष्मी के कारण से उन्हे खुद राहु के साये में जैसे जेल या बन्दी गृह में अपना जीवन निकालना पडता है. राहु अलग अलग भावों में अपनी अलग अलग शक्ति देता है,अलग अलग राशि से अपना अलग अलग प्रभाव देता है,तुला राशि के दूसरे भाव में अगर राहु विद्यमान है तो इस राशि वाला जातक विष जैसी वस्तुओं को आराम से सेवन कर सकता है,और मृत्यु भी इसी प्रकार के कारकों से होती है,उसके बोलने पर गालियों का समिश्रण होता है,मतलब जो भी बात करता है वह बिच्छू के जहर जैसी लगती है,अगर गुरु या कोई सौम्य ग्रह सहायता में नही है तो अक्सर इस प्रकार के लोग शमशान के कारकों के लिये मशहूर हो जाते है,चिता जलाने का काम घुऐ का रुप देता हैराहु गाने बजाने की विद्या के साथ में अपनी गति भी देता है और मनोरंजन के रूप में भी माना जाता है,जैसे किसी सिनेमा मनोरंजन के काम में महारत हासिल करना,भद्दी बातें कहकर अपने को मनोरंजन की दुनिया में शामिल कर लेना और उन बातों को मजाक में कह देना जो बातें अगर सभ्रांत परिवार में कही जायें तो लोग लड मर राहु खून की बीमारियां और इन्फ़ेक्सन भी देता है,जैसे मंगल नीच के साथ अगर मंगल की युति है तो जातक को लो ब्लड प्रेसर की बीमारी होगी,वही बात अगर उच्च के मंगल के साथ है तो हाई ब्लड प्रेसर की बीमारी होगी,और मंगल राहु के साथ गुरु भी कन्या राशि के साथ या छठे भाव के मालिक के साथ मिल गया है तो शुगर की बीमारी भी साथ में होगी. राहु मंगल गुरु अगर बारहवें भाव में है तो केतु अपने आप छठे भाव में होगा,जातक को समाज में कहा तो जायेगा कि वह बहुत विद्वान है लेकिन छुपे रूप में वह शराब मांस का शौकीन होगा,या फ़िर अस्पताल की नौकरी करता होगा या जेल के अन्दर खाना बनाने का काम करता होगा. तीसरे भाव का राहु अपने पराक्रम और चालाकी के लिये माना जायेगा इस प्रकार के व्यक्ति के अन्दर अपनी छा जाने वाली प्रकृति से कोई रोक नही सकता है,वह जिसके सामने भी बात करेगा,उस पर वह अपने कार्यों से बातों से और अपने शौक आदि से छा जाने वाली प्रकृति को अपनायेगा,इसके साथ बुद्धि के अन्दर केवल अपने को प्रदर्शित करने की कला का ही विकास होगा,उसका जीवन साथी अक्सर समाज से अलग और गृहस्थ जीवन कभी सुखी नही होगा। चौथे भाव का राहु शक की बीमारी को देता है रहने वाले स्थान को सुनसान रखने के लिये माना जाता है,मन के अन्दर आशंकाये हमेशा अपने प्रभाव को बनाये रखती है,यहां तक कि रोजाना के किये जाने वाले कामों के अन्दर भी शंका होती है,जो भी काम किया जाता है उसके अन्दर अपमान मृत्यु और जान जोखिम का असर रहता है,बडे भाई और मित्र के साथ कब अपघात कर दे कोई पता नही होता है,जो भी लाभ के साधन होते है उनके लिये हमेशा शंका वाली बातें ही होती है,माता के लिये अपमान और जोखिम देने वाला घर में रहते हुये अपने प्रयासों से कोई न कोई आशंका को देते रहना उसका काम हो जाता है,लेकिन बाहर रहकर अपने को अपने अनुसार किये जाने वाले कामों में वह सुरक्षित रखता है पिता के लिये कलंक देने वाला होता है. पंचम भाव का राहु संतान और बुद्धि को बरबार रखता है,जल्दी से जल्दी हर काम को करने के चक्कर में वह अपनी विद्या को बीच में तोड लेता है,नकल करने की आदत या चोरी से विद्या वाली बातों को प्रयोग करने के कारण वह बुद्धि का विकास नही कर पाता है,जब भी कभी विद्या वाली बात को प्रकट करने का अवसर आता है कोई न कोई बहाना बनाकर अपने को बचाने का प्रयास करता है पत्नी या जीवन साथी के प्रति वह प्रेम प्रदर्शित नही कर पाता है और आत्मीय भाव नही होने से संतान के उत्पन्न होने में बाधा होती है. छठा राहु बुद्धि के अन्दर भ्रम देता है,लेकिन उसके मित्रों या बडे भाई बहिनो के प्रयास से उसे मुशीबतों से बचा लिया जाता है,अपमान लेने में उसे कोई परहेज नही होता है,कोई भी रिस्क को ले सकता है,किसी भी कुये खाई पहाड से कूदने में उसे कोई डर नही लगता है,वह किसी भी कार्य को करने के लिये भूत की तरह से काम कर सकता है और किसी भी धन को बडे आराम से अपने कब्जे में कर सकता है,गूढ ज्ञान के लिये वह अपने को आगे रखता है,राहु को दवाइयों के रूप में भी माना जाता है,जो दवाइयां शरीर में एल्कोहल की मात्रा को बनाती है और जो दवाइयां दर्द आदि से छुटकारा देती है वे राहु की श्रेणी में आती है. राहु की आशंका कभी कभी बहुत बडा कार्य कर जाती है जैसे कि अपना प्रभाव फ़ैलाने के लिये कोई झूठी अफ़वाह फ़ैला कर अपना काम बना ले जाना. धर्म स्थान पर राहु का रूप साफ़ सफ़ाई करने वाले व्यक्ति के रूप में होता है,धन के स्थान में राहु का रूप आई टी फ़ील्ड की सेवाओं के रूप में माना जाता है,जहां असीमित मात्रा की गणना होती है वहां राहु का निवास होता है.बाहरी लोगों से और पराशक्तियों के प्रति उसे विश्वास होता है,अपने खुद के परिवार के लिये आफ़तें और शंकाये पैदा करता रहता है लालकिताब के अन्दर साधारण सा उपाय दिया गया है,कि घर के अन्दर सभी खोटे सिक्के और न प्रयोग में आने वाले बेकार के राहु वाले सामान जैसे कि झाडू और दवाइयों को बहते हुए पानी के अन्दर प्रवाहित कर देना चाहिये,इस छोटे से उपाय के बाद जब राहत मिल जाती है लाल किताब में वह सब है जो एक आदमी को बीमारियों से निजात दिला सकता है और छोटे से छोटे उपाय उसमें दिए गए हैं यहां तक कि लाल किताब की बुराई करने वाले ज्योतिषी भी उसी से उपाय बताते हैं लाल किताब एक जीवनदायिनी और मै इस को को किताब ना कहकर इसको नयमत कहूंगा इसको वख्शीश कहूंगा आचार्य राजेश

शुक्रवार, 3 मार्च 2017

Holli मित्रो कुछ मित्रो ने होली पर लिखने की माँग की है मित्रो फाल्गुन जहां हिन्दू नव वर्ष का अंतिम महीना होता है तो फाल्गुन पूर्णिमा वर्ष की अंतिम पूर्णिमा के साथ-साथ वर्ष का अंतिम दिन भी होती है। फाल्गुनी पूर्णिमा का धार्मिक रूप से तो महत्व है ही साथ ही सामाजिक-सांस्कृतिक नजरिये से भी बहुत महत्व है। पूर्णिमा पर उपवास भी किया जाता है जो सूर्योदय से आरंभ कर चंद्रोदय तक रखा जाता है। वहीं इस त्यौहार की सबसे खास बात यह है कि यह दिन होली पर्व का दिन होता है जिसे बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में मनाया जाता है और तमाम लकड़ियों को इकट्ठा कर सभी प्रकार की नकारात्मकताओं की होली जलाई जाती है। दिवाली के बाद होली दूसरा बड़ा त्योहार होता है। होली को रंगों के त्योहार के नाम से भी जाना जाता है। होली का त्योहार दो दिन मनाया जाता है, एक दिन होलिका दहन के रुप में और अगले दिन धुलंडी के रुप में। पूरे देश में होली का आनंद इसी दिन लिया जाता है। भारत में इस साल होलिका दहन 12 मार्च को किया जाएगा और 13 मार्च को लोग रंगों के इस त्योहार का आनंद उठाएंगे। होली की कहानी का प्रतीक देखें तो हिरण्यकश्यप पिता है। पिता बीज है, पुत्र उसी का अंकुर है। हिरण्यकश्यप जैसी दुष्टात्मा को पता नहीं कि मेरे घर आस्तिक पैदा होगा, मेरे प्राणों से आस्तिकता जन्मेगी। इसका विरोधाभास देखें। इधर नास्तिकता के घर आस्तिकता प्रकट हुई और हिरण्यकश्यप घबड़ा गया। जीवन की मान्यताएं, जीवन की धारणाएं दांव पर लग गई 'हर बाप बेटे से लड़ता है। हर बेटा बाप के खिलाफ बगावत करता है। और ऐसा बाप और बेटे का ही सवाल नहीं है -हर 'आज' 'बीते कल' के खिलाफ बगावत है। वर्तमान अतीत से छुटकारे की चेष्टा करता है। अतीत पिता है, वर्तमान पुत्र है। हिरण्यकश्यप मनुष्य के बाहर नहीं है, न ही प्रहलाद बाहर है। हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद दो नहीं हैं - प्रत्येक व्यक्ति के भीतर घटने वाली दो घटनाएं हैं। जब तक मन में संदेह है, हिरण्यकश्यप मौजूद है। तब तक अपने भीतर उठते श्रद्धा के अंकुरों को हम पहाड़ों से गिराऐगे, पत्थरों से दबाऐगे, पानी में डुबाऐगे, आग में जलाऐगे- लेकिन हम जला न पाऐगे। जहां संदेह के राजपथ हैं; वहां भीड़ साथ है। जहां श्रद्धा की पगडंडियां हैं; वहां ुहम एकदम अकेले हो जाते है एकाकी। संदेह की क्षमता सिर्फ विध्वंस की है, सृजन की नहीं है। संदेह मिटा सकता है, बना नहीं सकता। संदेह के पास सृजनात्मक ऊर्जा नहीं है। आस्तिकता और श्रद्धा कितनी ही छोटी क्यों न हो, शक्तिशाली होती है। प्रह्लाद के भक्ति गीत हिरण्यकश्यप को बहुत बेचैन करने लगे होंगे। उसे एकबारगी वही सूझा जो सूझता है- नकार, मिटा देने की इच्छा। नास्तिकता विध्वंसात्मक है, उसकी सहोदर है आग। इसलिए हिरण्यकश्यप की बहन है अग्नि, होलिका। लेकिन अग्नि सिर्फ अशुभ को जला सकती है, शुद्ध तो उसमें से कुंदन की तरह निखरकर बाहर आता है। इसीलिए आग की गोद में बैठा प्रह्लाद अनजला बच गया। उस परम विजय के दिन को हमने अपनी जीवन शैली में उत्सव की तरह शामिल कर लिया। फिर जन सामान्य ने उसमें रंगों की बौछार जोड़ दी। बड़ा सतरंगी उत्सव है। पहले अग्नि में मन का कचरा जलाओ, उसके बाद प्रेम रंग की बरसात करो। यह होली का मूल स्वरूप था। इसके पीछे मनोविज्ञान है अचेतन मन की सफाई करना। इस सफाई को पाश्चात्य मनोविज्ञान में कैथार्सिस या रेचन कहते हैं।कोथेरेपी का अनिवार्य हिस्सा होता है मन में छिपी गंदगी की सफाई। उसके बाद ही भीतर प्रवेश हो सकता है।होली जैसे वैज्ञानिक पर्व का हम थोड़ी बुद्धिमानी से उपयोग कर सकें तो इस एक दिन में बरसों की सफाई हो सकती है। फिर निर्मल मन के पात्र में, सद्दवों की सुगंध में घोलकर रंग खेलें तो होली वैसी होगी जैसी मीराबाई ने खेली थी : बिन करताल पखावज बाजै, अनहद की झनकार रे फागुन के दिन चार रे, होली खेल मना रे बिन सुर राग छत्तीसों गावै, रोम-रोम रस कार रे होली खेल मना रे Acharya Rajesh Kumar

गुरुवार, 2 मार्च 2017

मित्रो ज्योतिष यों तो हमेशा लोकप्रिय रहा है लेकिन इन दिनों इसके प्रति कुछ ज्यादा ही लगाव देखा जा रहा है। जब से टीवी पर ज्योतिष और चमत्कारों की चर्चाएं बढ़ी हैं तब से तो ज्योतिष का ग्लैमर ही कुछ विचित्र होता जा रहा है। लेकिन जिस अनुपात में ज्योतिष का वर्चस्व बढ़ा है उस अनुपात में ज्योतिषीय सच्चापन नहीं बढ़ पाया है। ज्योतिष ने सेवा से कहीं आगे बढ़कर धंधे का स्वरूप इख़्तियार कर लिया है। जब से ज्योतिष ने घंधे की चकाचौंध भरी गलियों में प्रवेश कर लिया है तभी से ज्योतिषी और इससे जुड़े सभी क्षेत्रों के लोगों से दैवत्व और दिव्यत्व ने पलायन किया है और इसके स्थान पर बिजनैस टेक्ट और मनी अर्निंग स्टंट फल-फूल रहा है। जब मन में मलीनता आ जाए और ईश्वरीय विद्याओं के जरिये व्यापार का भाव जग जाए तभी से प्राच्यविद्याएं अपना प्रभाव दिखाना छोड़ देती हैं। यही वजह है कि आज ज्योतिषियों की भारी भीड़ और चमक-दमक भरी दुकानों की बेतहाशा बढ़ती संख्या और बाजारों के बीच ज्योतिष से सच्चाई गायब है। भविष्यवाणियां खोटी निकलने लगी हैं और ज्योतिषियों में मत भिन्नता चरम पर है। आस्था और अनास्था के इसी भंवर के बीच वह आम आदमी है जिसकी ज्योतिष शास्त्र के प्रति श्रद्धा है और उसे अज्ञात और भावी के संकेत प्राप्त करने की आतुरता है। इसी श्रद्धा का दोहन ही तो आजकल के ज्योतिषी कर रहे हैं। अधिकतर ज्योतिषी या तो सच्चाई जान सकते नहीं अथवा सच्चाई कहने का अधिकार नहीं है। इन्हें लगता है कि जातक को अच्छी-अच्छी बातें नहीं कही जाएं तो पैसा कैसे निकलेगा। जबकि सच्चा ज्योतिषी वही है जो साफ-साफ बात कहे और उसकी प्रत्येक बात स्पष्ट विचारों से भरी हुई होनी चाहिए न कि अपने स्वार्थ के लिए चिकनी चुपड़ी या गोलमाल। ज्योतिषियों का दायित्व है कि ज्योतिष की साख को बढ़ाने के लिए पूरी प्रामाणिकता के साथ गणित और फलित बताएं और जीवन में शुचिता के साथ ही स्पष्टवादिता कायम रखें।ज्योतिष वैज्ञानिक रहस्यों से भरा गणना पर आधारित विज्ञान है जिसका दुनिया में कोई मुकाबला नहीं। विश्व ब्रह्माण्ड का संविधान वेद है और चारों ज्योतिष चारों वेदों का नेत्र है। ज्योतिष समष्टि और व्यष्टि के लिए कदम-कदम पर उपयोगी है। सकाम हित श्रेष्ठ रश्मियों और श्रेष्ठ समय में करने का ज्ञान यही ज्योतिष ही देता है। ज्योतिष पर निरन्तर शोध और अनुसंधान का नियमित क्रम बने रहना चाहिए। ज्योतिष की मान्यता तभी है जब फलित सटीक और स्पष्ट हो। आज अधिकतर ज्योतिषी जातक का कोई रिकार्ड अपने पास नहीं रखते। जबकि होना यह चाहिए कि वे जिस किसी की जन्मपत्री देखें, उसे कही गई बात को अंकित कर रखें और इसके निष्कर्षों पर चिन्तन करते रहें। इसी से अनुभवों का भण्डार समृद्ध होता है जिसका लाभ समाज को प्राप्त होता है। ज्योतिषियों को चाहिए कि वे आधे अधूरे ज्ञान और पूर्वाग्रहों से ग्रस्त होकर ज्योतिष का कोई काम न करें बल्कि जो कुछ कहें-लिखें, वह ज्योतिषीय ज्ञान और गणना के आधार पर सही और सटीक होना चाहिए। आज एक कुण्डली चार ज्योतिषी देखते हैं और चारों के कथन में भिन्नता होती है और यहीं से शुरू होता है ज्योतिष विज्ञान के प्रति अविश्वास का दौर। इस स्थिति को समाप्त करने की जरूरत है और इसके लिए यह जरूरी है कि ज्योतिष का पूरा पाठ्यक्रम और प्रशिक्षण विधिपूर्वक लिया जाए ताकि जन विश्वास में कमी न आए। इसके साथ ही ज्योतिषियों को अपनी किसी भी प्रकार की गलती को भी स्वीकार करना होगा। इसी प्रकार पंचांगों में भी विभिन्नताओं को दूर करने की जरूरत है। ऐसे में ज्योतिषियों को चाहिए कि वे मिल-बैठ कर चिन्तन करें और ज्योतिष के आधारों को मजबूती दें। ज्योतिष को चमत्कार मानना भूल है क्योंकि यह गणनाओं पर आधारित विज्ञान है। ज्योतिषियों को यह भी चाहिए कि वे ज्योतिष कार्य संपादन में कम्प्यूटर और आधुनिक संचार सुविधाओं का इस्तेमाल करें और ज्योतिषीय अनुसंधानों पर विशेष ध्यान दें। ज्योतिष का विकास तभी संभव है जब इस क्षेत्र से जुड़े विद्वान उदारतापूर्वक आगे आएं और ज्योतिष की सेवा को सर्वोपरि रखकर राजनीति और दुराग्रहों तथा पूर्वाग्रहों से ऊपर उठकर सार्वभौम और व्यापक दृष्टिकोण अपनाते हुए ज्योतिष के विकास पर ध्यान दें। आज देश में समाज-जीवन और सत्ता से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों में रोजाना उतार-चढ़ावों और परिवर्तनों के साथ ही कई अप्रत्याशिक घटनाक्रम अचानक सामने आ जाते हैं। इन सारे हालातों में भावी के बारे में भविष्यवाणी करने में बहुसंख्य ज्योतिषी कतराते रहते हैं और चुप्पी साधे रहते हैं। कुछ दैवीय ऊर्जाओं से सम्पन्न ज्योतिषी जरूर हैं लेकिन वे ज्योतिष की सारी मर्यादाओं और विधाता के विधान में विश्वास रखते हैं। जबकि बहुसंख्य ज्योतिषी अपनी साख बचाने या अपने ज्ञान की अनभिज्ञता को छिपाने के लिए सम सामयिक हालातों पर भविष्यवाणी करने से घबराते हैं। आज देश में कितने ज्योतिषी हैं जो भौगोलिक, सामाजिक, राजनैतिक परिवर्तनों की सम सामयिक और समय पूर्व सटीक भविष्यवाणी कर सकने में समर्थ हैं। इसका जवाब देने का सामर्थ्य किसी में है नहीं। ज्योतिष के नाम पर अधिकांश लोग अधकचरा ज्ञान रखते हैं और अपना धंधा चलाने भर के लिए झूठी-सच्ची मनगढ़ंत बातों और गप्पों का सहारा लेकर जैसे-तैसे अपनी दुकानदारी चला रहे हैं। अगर देश के स्वनामधन्य ज्योतिषियों में इतना दम है तो वे उलुलजुलूल बातों और अपने बेतुके भ्रामक तर्कों की बजाय एकदम स्पष्ट, सटीक और भविष्यवाणी क्यों नहीं कर पा रहे हैं अथवा क्यों नहीं करना चाहते। अधिकांश ज्योतिषियों का धर्म, सदाचार और ईष्टबल से कोई मतलब नहीं रह गया है। सिर्फ प्रोफेशनल की तरह अपने आपको स्थापित कर देने मात्र से ज्योतिष का भला नहीं हो सकता। ‘लगा तो तीर, नहीं तो तुक्का’ वाली बातें अब लोगों को हजम नहीं हो पा रही हैं। जो लोग ज्योतिष क्षेत्र में अपने फन आजमा रहे हैं या जिनकी आजीविका का आधार ही ज्योतिष है उन सभी लोगों को चाहिए कि जनता का विश्वास अर्जित करें और इस बात के लिए अपनी प्रामाणिकता सिद्ध करें कि इनकी वाणी से निकला अथवा इनके ज्योतिषीय ज्ञान से उपजी भविष्यवाणी निश्चय ही खरी निकलती है। अन्यथा इनके पास जमा ज्योतिषीय डिग्रियों और वैध-अवैध ढंग से हड़पे गए प्रमाण पत्रों, सम्मानों और पुरस्कारों का कोई अर्थ नहीं है।

रविवार, 26 फ़रवरी 2017

मित्रो आज बात करते हैं सूर्य देव की। जैसे क्या आप जानतेहै । सूर्य देव को सात घोड़े जो हमारे शास्त्रों मे लिखा है ।कि सात घोड़े सूर्य देव के रथ को खींचते हैं।न्यूटन ने इसकी खोज की न्यूटन प्रिज्म द्वारा सूर्य के प्रकाश को सलेश्न किया प्रिज्म काँच से बना एक उपकरण होता ह।ै न्यूटन के मतानुसार जब सूर्य की सफ़ेद किरण को इसके अंदर से गुजारा गया तो वो सात रंगों में विभाजित हो गई और उसने देखा कि लाल र.ग की किरन सबसे कम मुडती है बैंगनी सवसे अघिक मुडती है न्यूटन ने फिर से सात किरनो को उपकरन से निकाला तो किरने सफेद हो गई अतःजब सफेद प्रकाश से उत्पन्न सात रंग की किरने हुई तो इससे यह स्पष्ट होता है कि सूर्य ग्रहो का राजा है और जो सात र.ग की किरने ह।ै और जो बाकी ग्रहो की किरने ह।ै जानी सात रंग की किरने ओर वो उसकी सेना हुई पोप ने 1890 मे यह सिद्ब किया कि सूर्य के प्रकाश की कमी के कारण हडियो के रोग हो जाते हैं आपने देखा होगा कि बालकों को सर्दियों में यह रोग ज्यादा होते हैं और गर्मियों में यह रोग नामत्र के बराबर होते हैं हड्डियों में कैंलशिम की कमी के कारण यह रोग होता है आजकल हमरे घर भी अंधेरे वाले हो गए हैं जो उन लोगों को भी जे रोग हो जाते हैं जो ओरतेपर्दे में रहती है ड3हमारे शरीर के लिऐ जरुरी हैइसके दो तरीके हैं अपने शरीर को लेने के या भोजन के दॉरा या चमडी के दॉरा प्राकृतिक चिकित्सा में भी सूर्य की कितनों के द्वारा उपचार किया जाता है लःंदन के प्रसिद्ध डॉक्टर पॉल वरङन ने लिखा है अपने ऐक कृति में उन्होंने स्वामी विशुद्धनदा परमहंस जी का जिकृ दिया है कि वह सुरजी किरणों से बड़े-बड़े इलाज करते थे याहा तक की वह शुश्क वस्तु मैं भी उस में सुगंध पैदा कर देते है सूरजी किरनों के द्वारा और भी बहुत कुछ उसे कर सकते थे यह वाते आप से इस लिऐ कह रहा हूं कि आगे चलकर मैं इसी तरह की पोस्ट करुंगा आप की बीमारियों के बारे में कुंडली मेंदेख कर रोग को कैसे दूर किया जाऐ आचार्य राजेश07597718725 09414481324

शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2017

कर्म और ज्योतिष व्यवसाय या कारोवार का मतलब घरवार चलाने के लिये मनुष्य को कर्म करना जरूरी होता है। बिना कर्म किये कोई भी इस जगत में नहीं रह सकता है,तो हम मनुष्य की बिसात ही क्या ,इसलिये मनुष्य को कर्म करना जरूरी है। मनुष्य अपने पिछले जीवन के कर्मों के अनुसार उन कर्म फ़ल का भुगतान लेने के लिये इस जन्म में आता है,और जो कर्म इस जीवन में किये जाते है उनको आगे के जीवन में प्राप्त करना होता है। कर्म की श्रेणियां भूतकाल के कर्मों के अनुसार ही बनती है,जैसे पिछले समय में अगर किसी से फ़ालतू में दासता का कर्म करवा कर जातक आया है तो उसे इस जीवन में जिससे दासता करवायी थी उसके प्रति दासता तो करनी ही पडेगी। उस दासता का रूप कुछ भी हो सकता है। अक्सर जब एक धनी व्यक्ति का पुत्र अपने कर्मों के अनुसार धन कमाने के बजाय धन को बेकार के कामों के अन्दर खर्च करने लगता है तो उसका मतलब यही होता है कि धनी व्यक्ति के परिवार में जन्म लेने के बावजूद भी दासता वाले काम करने है। लोग कहने लगते है कि बेचारा कितने धनी परिवार में पैदा हुआ था और भाग्य की बिडम्बना के कारण दासता के काम करने पड रहे है। यह भाग्य का लेख है कि काम तो करना ही पडेगा। कार्य के तीन रूप हैं,नौकरी करना व्यवसाय करवाना,और व्यवसाय के साथ नौकरी करना। व्यवसाय करने के साथ नौकरी करना भी एक साथ नही होता है। ग्रह और भाव नौकरी व्यवसाय और व्यक्ति के द्वारा जीवन मे किये जाने वाले जीविकोपार्जन के लिये प्रयासों का लेखा जोखा बतलाते है। ग्रहों के प्रभाव से अच्छे अच्छे व्यवसायी पलक झपकते धराशायी हो जाते और ग्रहों के ही प्रभाव से गरीब से गरीब कहां से कहां पहुंच जाते है। ग्रहों के बारे में ज्ञान हर किसी को नही होता है,और जो ग्रह और अपने जन्म के भाव को साथ लेकर चलता है और अपने ग्रह और भाव को पहिचान कर चलता है वह जीवन मे आने वाली समस्या को तुरत फ़ुरत मे समाधान कर लेता है,वह बुरे दिनों मे अपने व्यवसाय को स्थिर करने के बाद दूसरे कामों को निपटा लेता है,जबकि ग्रहों और भावों को नही जानने वाला समस्याओं के अन्दर फ़ंस कर और अधिक फ़ंसता चला जाता है। समझदार लोग वही होते है जो कल की सोच कर चलते है,और जो लोग आज मौज करो कल का क्या भरोसा के हिसाब से चलते है उनके लिये कोई चांस नही होता है कि वे आगे बढेंगे भी। आपको बताते है कि ग्रह किस राशि पर अपना प्रभाव कब गलत और कब सही डालते है। व्यवसाय के लिये कौन सी राशि "नाम राशि या जन्म राशि"? जन्म नाम को कई प्रकार से रखा जाता है,भारत में जन्म नाम को चन्द्र राशि से रखने का रिवाज है,चन्द्र राशि को महत्वपूर्ण इसलिये माना जाता है कि शरीर मन के अनुसार चलने वाला होता है,बिना मन के कोई काम नही किया जा सकता है यह अटल है,बिना मन के किया जाने वाला काम या तो दासता में किया जाता है या फ़िर परिस्थिति में किया जाता है। दासता को ही नौकरी कहते है और परिस्थिति में जभी काम किया जाता है जब कहीं किसी के दबाब में आकर या प्रकृति के द्वारा प्रकोप के कारण काम किया जाये। जन्म राशि के अनुसार चन्द्रमा का स्थान जिस राशि में होता है,उस राशि का नाम जातक का रखा जाता है,नामाक्षर को रखने के लिये नक्षत्र को देखा जाता है और नक्षत्र में उसके पाये को देखा जाता है,पाये के अनुसार एक ही राशि में कई अक्षरों से शुरु होने वाले नामाक्षर होते है। राशि का नाम तो जातक के घर वाले या पंडितों से रखवाया जाता है,लेकिन नामाक्षर को प्रकृति रखती है,कई बार देखा जाता है कि जातक का जो नामकरण हुआ है उसे कोई नही जानता है,और घर के अन्दर या बाहर का व्यक्ति किसी अटपटे नाम से पुकारने लग जाये तो उस नाम से व्यक्ति प्रसिद्ध हो जाता है। यह नाम जो प्रकृति के द्वारा रखा जाता है,ज्योतिष में अपनी अच्छी भूमिका प्रदान करता है। अक्सर देखा जाता है कि कन्या राशि वालों का नाम कन्या राशि के त्रिकोण में या लगन के त्रिकोण में से ही होता है,वह जातक के घर वालों या किसी प्रकार से जानबूझ कर भी नही रखा गया हो लेकिन वह नाम कुंडली बनाने के समय त्रिकोण में या नवांश में जरूर अपना स्थान रखता है। मैने कभी कभी किसी व्यक्ति की कुंडली को उसकी पचास साल की उम्र में बनाया है और पाया कि उसका नाम राशि या लगन से अथवा नवांश के त्रिकोण से अपने आप प्रकृति ने रख दिया है। कोई भी व्यवसाय करने के लिये नामाक्षर को देखना पडता है,और नामाक्षर की राशि का लाभ भाव का दूसरा अक्षर अगर सामने होता है तो लाभ वाली स्थिति होती है,अगर वही दूसरा अक्षर अगर त्रिक भावों का होता है तो किसी प्रकार से भी लाभ की गुंजायस नही रहती है। उदाहरण के लिये अगर देखा जाये तो नाम "अमेरिका" में पहला नामाक्षर मेष राशि का है और दूसरा अक्षर सिंह राशि का होने के कारण पूरा नाम ही लाभ भाव का है,और मित्र बनाने और लाभ कमाने के अलावा और कोई उदाहरण नही मिलता है,उसी प्रकार से "चीन" शब्द के नामाक्षर में पहला अक्षर मीन राशि का है और दूसरा अक्षर वृश्चिक राशि का होने से नामानुसार कबाड से जुगाड बनाने के लिये इस देश को समझा जा सकता है,वृश्चिक राशि का भाव पंचमकारों की श्रेणी में आने से चीन में जनसंख्या बढने का कारण मैथुन से,चीन में अधिक से अधिक मांस का प्रयोग,चीन में अधिक से अधिक फ़ेंकने वाली वस्तुओं को उपयोगी बनाने और जब सात्विकता में देखा जाये तो वृश्चिक राशि के प्रभाव से ध्यान समाधि और पितरों पर अधिक विश्वास के लिये मानने से कोई मना नही कर सकता है। उसी प्रकार से भारत के नाम का पहला नामाक्षर धनु राशि का और दूसरा नामाक्षर तुला राशि का होने से धर्म और भाग्य जो धनु राशि का प्रभाव है,और तुला राशि का भाव अच्छा या बुरा सोचने के बाद अच्छे और बुरे के बीच में मिलने वाले भेद को प्राप्त करने के बाद किये जाने वाले कार्यों से भारत का नाम सिरमौर रहा है। इसी तरह से अगर किसी व्यक्ति का नाम "अमर" अटल आदि है तो वह किसी ना किसी प्रकार से अपने लिये लाभ का रास्ता कहीं ना कहीं से प्राप्त कर लेगा यह भी एक ज्योतिष का चमत्कार ही माना जा सकता है।उदाहरणता"एयरटेल" यह नाम अपने मे विशेषता लेकर चलता है,और इस नाम को भारतीय ज्योतिष के अनुसार प्रयोग करने के लिये जो भाव सामने आते है उनके आनुसार अक्षर "ए" वृष राशि का है और "य" वृश्चिक राशि का है,वृष से वृश्चिक एक-सात की भावना देती है,जो साझेदारी के लिये माना जाता है,इस नाम के अनुसार कोई भी काम बिना साझेदारी के नही किया जा सकता है,लेकिन साझेदारी के अन्दर भी लाभ का भाव होना जरूरी है,इसलिये दूसरा शब्द "टेल" में सिंह राशि का "ट" प्रयोग में लिया गया है,एक व्यक्ति साझेदारी करता है और लाभ कमाता है,अधिक गहरे में जाने से वृष से सिंह राशि एक चार का भाव देती है,लाभ कमाने के लिये इस राशि को जनता मे जाना पडेगा,कारण वृष से सिंह जनता के चौथे भाव में विराजमान है। [24/02 11:15 am] Acharya Rajesh kumar: मित्रों अगर आप भी मुझसे अपनी कुंडली दिखाना जब बनवाना चाहते हैं तो हमसे संपर्क करें हमारे नंबर है 07597718725 09414481324 मां काली ज्योतिष रिसर्च सेंटर हनुमानगढ़ टाउन आचार्य राजेश मित्रों हमारी सारी सर्विस paid है

गुरुवार, 23 फ़रवरी 2017

ज्योतिष ओर फल मित्रो फल कथन करते समय देश काल परिस्थतीक का भी महत्व एक लग्न और एक लग्न की डिग्री में महत्वपूर्ण व्यक्ति का जन्म एक स्थान में कभी नहीं होता। यदि किसी दूरस्थ देश में किसी दूसरे व्यक्ति का जन्म इस समय हो भी , तो आक्षांस और देशांतर में परिवर्तन होने से उसके लग्न और लग्न की डिग्री में परिवर्तन आ जाएगा। फिर भी जब जन्म दर बहुत अधिक हो , तो या बहुत सारे बच्चे भिन्न-भिन्न जगहों पर एक ही दिन एक ही लग्न में या एक ही लग्न डिग्री में जन्म लें , तो क्या सभी के कार्यकलाप , चारित्रिक विशेशताएं , व्यवसाय , शिक्षा-दीक्षा , सुख-दुख एक जैसे ही होंगे ? मेरी समझ से उनके कार्यकलाप , उनकी बौद्धिक तीक्ष्णता , सुख-दुख की अनुभूति , लगभग एक जैसी ही होगी। किन्तु इन जातकों की शिक्षा-दीक्षा , व्यवसाय आदि संदर्भ भौगोलिक और सामाजिक परिवेश के अनुसार भिन्न भी हो सकते हैं। यहॉ लोगों को इस बात का संशय हो सकता है कि ग्रहों की चर्चा के साथ अकस्मात् भौगोलिक सामाजिक परिवेश की चर्चा क्यो की जा रही है ? स्मरण रहे , पृथ्वी भी एक ग्रह है और इसके प्रभाव को भी इंकार नहीं किया जा सकता। आकाश के सभी ग्रहों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है , परंतु भिन्न-भिन्न युगों सत्युग , त्रेतायुग , द्वापर और कलियुग में मनुष्‍यों के भिनन-भिन्न स्वभाव की चर्चा है। मनुष्‍य ग्रह से संचालित है , तो मनुष्‍य के सामूहिक स्वभाव परिवर्तन को भी ग्रहों से ही संचालित समझा जा सकता है , जो किसी युग विशेष को ही जन्म देता है। लेकिन सोंचने वाली बात तो यह है कि जब ग्रहों की गति , स्थिति , परिभ्रमण पथ , स्वरुप और स्वभाव आकाश में ज्यो का त्यो बना हुआ है , फिर इन युगों की विशेषताओं को किन ग्रहों से जोड़ा जाए । युग-परिवर्तन निश्चित तौर पर पृथ्वी के परिवेश के परिवर्तन का परिणाम है। पृथ्वी पर जनसंख्या का बोझ बढ़ता जाना , मनुष्‍य की सुख-सुविधाओं के लिए वैज्ञानिक अनुसंधानों का तॉता लगना , मनुष्‍य का सुविधावादी और आलसी होते चले जाना , भोगवादी संस्कृति का विकास होना , जंगल-झाड़ का साफ होते जाना , उद्योगों और मशीनों का विकास होते जाना , पर्यावरण का संकट उपस्थित होना , ये सब अन्य ग्रहों की देन नहीं। यह पृथ्वी के तल पर ही घट रही घटनाएं हैं। पृथ्वी का वायुमंडल प्रतिदिन गर्म होता जा रहा है। आकाश में ओजोन की परत कमजोर पड़ रही है , दोनो ध्रुवों के बर्फ अधिक से अधिक पिघलते जा रहे हैं , हो सकता है , पृथ्वी में किसी दिन प्रलय भी आ जाए ,इन सबमें अन्य ग्रहों का कोई प्रभाव नहीं है। ग्रहों के प्रभाव से मनुष्‍य की चिंतनधाराएं बदलती रहती हैं , किन्तु पृथ्वी के विभिन्न भागों में रहनेवाले एक ही दिन एक ही लग्न में पैदा होनेवाले दो व्यक्तियों के बीच काफी समानता के बावजूद अपने-अपने देश की सभ्यता , संस्कृति , सामाजिक , राजनीतिक और भौगोलिक परिवेश से प्रभावित होने की भिन्नता भी रहती है। संसाधनों की भिन्नता व्यवसाय की भिन्नता का कारण बनेगी समुद्र के किनारे रहनेवाले लोग , बड़े शहरों में रहनेवाले लोग , गॉवो में रहनेवाले संपन्न लोग और गरीबी रेखा के नीचे रहनेवाले लोग अपने देशकाल के अनुसार ही व्यवसाय का चुनाव अलग-अलग ढंग से करेंगे। एक ही प्रकार के आई क्यू रखनेवाले दो व्यक्तियों की शिक्षा-दीक्षा भिन्न-भिन्न हो सकती है , किन्तु उनकी चिंतन-शैली एक जैसी ही हो इस तरह पृथ्वी के प्रभाव के अंतर्गत आनेवाले भौगोलिक प्रभाव को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इस कारण एक ही लग्न में एक ही डिग्री में भी जन्म लेनेवाले व्यक्ति का शरीर भौगोलिक परिवेश के अनुसार गोरा या काला हो सकता है। लम्बाई में कमी-अधिकता कुछ भी हो सकती है , किन्तु स्वास्थ्य , शरीर को कमजोर या मजबूत बनानेवाली ग्रंथियॉ , शारीरिक आवश्यकताएं और शरीर से संबंधित मामलों का आत्मविश्वास एक जैसा हो सकता है। सभी के धन और परिवार विशयक चिंतन एक जैसे माने जा सकते है सभी में पुरुषार्थ-क्षमता या शक्ति को संगठित करने की क्षमता एक जैसी होगी सभी के लिए संपत्ति , स्थायित्व और संस्था से संबंधित एक ही प्रकार के दृष्टिकोण होंगे। सभी अपने बाल-बच्चों से एक जैसी लगाव और सुख प्राप्त कर सकेंगे। सभी की सूझ-बूझ एक जैसी होगी। सभी अपनी समस्याओं को हल करने में समान धैर्य और संघर्ष क्षमता का परिचय देंगे। सभी अपनी जीवनसाथी से एक जैसा ही सुख प्राप्त करेंगे। अपनी-अपनी गृहस्थी के प्रति उनका दृष्टिकोण एक जैसा ही होगा। सभी का जीवन दर्शन एक जैसा ही होगा , जीवन-शैली एक जैसी ही होगी। भाग्य , धर्म , मानवीय पक्ष के मामलों में उदारवादिता या कट्टरवादिता का एक जैसा रुख होगा। सभी के सामाजिक राजनीतिक मामलों की सफलता एक जैसी होगी। सभी का अभीष्‍ट लाभ एक जैसा होगा। सभी में खर्च करने की प्रवृत्ति एक जैसी ही होगी। किन्तु शरीर का वजन , रंग या रुप एक जैसा नहीं होगा। संयुक्त परिवार की लंबाई , चौड़ाई एक जैसी न वास्तव में कुंडली में बनते योग को बांच कर उसे ही 100% मानने की भूल ही इस विवाद का कारण बनती है.जातक के जीवन में इस योग को 20% उसके सामाजिक व् पारिवारिक दशा पर निर्भर होना पड़ता है.20% जातक से जुड़े रक्त सम्बन्धियों का रोल इस योग में होता है ,20% उसका स्वयं का प्रयास अर्थात कर्म यहाँ प्रभावित करने वाला कारक बनता है,बाकि का 20% हम हासिल शाश्त्रों के सुझाये उपायों(जिनमे ज्योतिष आदि सामिल हैं) द्वारा इसे प्रभावित करते हैं.तब जाकर योग का वास्तविक प्रतिशत प्राप्त होने की गणना करना बेहतर निर्णय देने में सहायक बनता है. सामान योग में जन्मा जातक अफ्रीका के जंगलों में आदिवासी कबीले का मुखिया बनता है.यही योग अमेरिका में उसे बराक ओबामा भी बना सकता है.सरकारी विभाग से धन प्राप्ति का योग एक चपरासी की कुंडली में भी विराजमान होता है व् अधिकारी की भी.अत यह सव वाते फलकथन करते समय जरुर maakaali jyotish hanumangarh अर्चाय राजेश 07597718725 09414481324

मंगलवार, 21 फ़रवरी 2017

कभी कभी किसी कारणवश जन्म तारीख और दिन माह वार आदि का पता नही होता है,कितनी ही कोशिशि की जावे लेकिन जन्म तारीख का पता नही चल पाता है,जातक को सिवाय भटकने के और कुछ नही प्राप्त होता है,किसी ज्योतिषी से अगर अपनी जन्म तारीख निकलवायी भी जावे तो वह क्या कहेगा,इसका भी पता नही होता है,इस कारण के निवारण के लिये आपको कहीं और जाने की जरूरत नही है,किसी भी दिन उजाले में बैठकर एक सूक्षम दर्शी सीसा लेकर बैठ जावें,और अपने दोनो हाथों बताये गये नियमों के अनुसार देखना चालू कर दें,साथ में एक पेन या पैंसिल और कागज भी रख लें,तो देखें कि किस प्रकार से अपना हाथ जन्म तारीख को बताता है। अपनी वर्तमान की आयु का निर्धारण करें हथेली मे चार उंगली और एक अगूंठा होता है,अंगूठे के नीचे शुक्र पर्वत,फ़िर पहली उंगली तर्जनी उंगली की तरफ़ जाने पर अंगूठे और तर्जनी के बीच की जगह को मंगल पर्वत,तर्जनी के नीचे को गुरु पर्वत और बीच वाली उंगली के नीचे जिसे मध्यमा कहते है,शनि पर्वत,और बीच वाली उंगले के बाद वाली रिंग फ़िंगर या अनामिका के नीचे सूर्य पर्वत,अनामिका के बाद सबसे छोटी उंगली को कनिष्ठा कहते हैं,इसके नीचे बुध पर्वत का स्थान दिया गया है,इन्ही पांच पर्वतों का आयु निर्धारण के लिये मुख्य स्थान माना जाता है,उंगलियों की जड से जो रेखायें ऊपर की ओर जाती है,जो रेखायें खडी होती है,उनके द्वारा ही आयु निर्धारण किया जाता है,गुरु पर्वत से तर्जनी उंगली की जड से ऊपर की ओर जाने वाली रेखायें जो कटी नही हों,बीचवाली उंगली के नीचे से जो शनि पर्वत कहलाता है,से ऊपर की ओर जाने वाली रेखायें,की गिनती करनी है,ध्यान रहे कि कोई रेखा कटी नही होनी चाहिये,शनि पर्वत के नीचे वाली रेखाओं को ढाई से और बृहस्पति पर्वत के नीचे से निकलने वाली रेखाओं को डेढ से,गुणा करें,फ़िर मंगल पर्वत के नीचे से ऊपर की ओर जाने वाली रेखाओं को जोड लें,इनका योगफ़ल ही वर्तमान उम्र होगी। अपने जन्म का महिना और राशि को पता करने का नियम अपने दोनो हाथों की तर्जनी उंगलियों के तीसरे पोर और दूसरे पोर में लम्बवत रेखाओं को २३ से गुणा करने पर जो संख्या आये,उसमें १२ का भाग देने पर जो संख्या शेष बचती है,वही जातक का जन्म का महिना और उसकी राशि होती है,महिना और राशि का पता करने के लिये इस प्रकार का वैदिक नियम अपनाया जा सकता है:- १-बैशाख-मेष राशि २.ज्येष्ठ-वृष राशि ३.आषाढ-मिथुन राशि ४.श्रावण-कर्क राशि ५.भाद्रपद-सिंह राशि ६.अश्विन-कन्या राशि ७.कार्तिक-तुला राशि ८.अगहन-वृश्चिक राशि ९.पौष-धनु राशि १०.माघ-मकर राशि ११.फ़ाल्गुन-कुम्भ राशि १२.चैत्र-मीन राशि इस प्रकार से अगर भाग देने के बाद शेष १ बचता है तो बैसाख मास और मेष राशि मानी जाती है,और २ शेष बचने पर ज्येष्ठ मास और वृष राशि मानी जाती है। हाथ में राशि का स्पष्ट निशान भी पाया जाता है प्रकृति ने अपने द्वारा संसार के सभी प्राणियों की पहिचान के लिये अलग अलग नियम प्रतिपादित किये है,जिस प्रकार से जानवरों में अपनी अपनी प्रकृति के अनुसार उम्र की पहिचान की जाती है,उसी प्रकार मनुष्य के शरीर में दाहिने या बायें हाथ की अनामिका उंगली के नीचे के पोर में सूर्य पर्वत पर राशि का स्पष्ट निशान पाया जाता है। उस राशि के चिन्ह के अनुसार महिने का उपरोक्त तरीके से पता किया जा सकता है। पक्ष और दिन का तथा रात के बारे में ज्ञान करना वैदिक रीति के अनुसार एक माह के दो पक्ष होते है,किसी भी हिन्दू माह के शुरुआत में कृष्ण पक्ष शुरु होता है,और बीच से शुक्ल पक्ष शुरु होता है,व्यक्ति के जन्म के पक्ष को जानने के लिये दोनों हाथों के अंगूठों के बीच के अंगूठे के विभाजित करने वाली रेखा को देखिये,दाहिने हाथ के अंगूठे के बीच की रेखा को देखने पर अगर वह दो रेखायें एक जौ का निशान बनाती है,तो जन्म शुक्ल पक्ष का जानना चाहिये,और जन्म दिन का माना जाता है,इसी प्रकार अगर दाहिने हाथ में केवल एक ही रेखा हो,और बायें हाथ में अगर जौ का निशान हो तो जन्म शुक्ल पक्ष का और रात का जन्म होता है,अगर दाहिने और बायें दोनो हाथों के अंगूठों में ही जौ का निशान हो तो जन्म कृष्ण पक्ष रात का मानना चाहिये,साधारणत: दाहिने हाथ में जौ का निशान शुक्ल पक्ष और बायें हाथ में जौ का निशान कृष्ण पक्ष का जन्म बताता है। जन्म तारीख की गणना मध्यमा उंगली के दूसरे पोर में तथा तीसरे पोर में जितनी भी लम्बी रेखायें हों,उन सबको मिलाकर जोड लें,और उस जोड में ३२ और मिला लें,फ़िर ५ का गुणा कर लें,और गुणनफ़ल में १५ का भाग देने जो संख्या शेष बचे वही जन्म तारीख होती है। दूसरा नियम है कि अंगूठे के नीचे शुक्र क्षेत्र कहा जाता है,इस क्षेत्र में खडी रेखाओं को गुना जाता है,जो रेखायें आडी रेखाओं के द्वारा काटी गयीं हो,उनको नही गिनना चाहिये,इन्हे ६ से गुणा करने पर और १५ से भाग देने पर शेष मिली संख्या ही तिथि का ज्ञान करवाती है,यदि शून्य बचता है तो वह पूर्णमासी का भान करवाती है,१५ की संख्या के बाद की संख्या को कृष्ण पक्ष की तिथि मानी जाती है। जन्म वार का पता करना अनामिका के दूसरे तथा तीसरे पोर में जितनी लम्बी रेखायें हों,उनको ५१७ से जोडकर ५ से गुणा करने के बाद ७ का भाग दिया जाता है,और जो संख्या शेष बचती है वही वार की संख्या होती है। १ से रविवार २ से सोमवार तीन से मंगलवार और ४ से बुधवार इसी प्रकार शनिवार तक गिनते जाते है। जन्म समय और लगन की गणना सूर्य पर्वत पर तथा अनामिका के पहले पोर पर,गुरु पर्वत पर तथा मध्यमा के प्रथम पोर पर जितनी खडी रेखायें होती है,उन्हे गिनकर उस संख्या में ८११ जोडकर १२४ से गुणा करने के बाद ६० से भाग दिया जाता है,भागफ़ल जन्म समय घंटे और मिनट का होता है,योगफ़ल अगर २४ से अधिक का है,तो २४ से फ़िर भाग दिया जाता है। इस तरह से कोई भी अपने जन्म समय को जान सकता है।

शनिवार, 18 फ़रवरी 2017

कुंडली का आठवां भाव मौत का भाव कहलाता है.बहुत सी गणानाओ का प्रयोग ज्योतिष से उम्र की लम्बाई के लिये किया जाता है लेकिन कुछ गणनाये बहुत ही सटीक मानी जाती है,उन गणनाओ के बारे मे आपको बताने की कोशिश कर रहा हूँ,आशा है आप इस प्रकार की गणना से और भी कुण्डलियों की गणना करेंगे और मुझे लिखेंगे.यह कुंडली एक स्वर्गीय सज्जन की है,अधिक शिक्षित होने के कारण तथा अपने ऊपर बहुत भरोसा होने के कारण धर्म कर्म पूजा पाठ परिवार समाज भाई बन्धु से सभी से एलर्जी थी,उनका कहना था कि जो वे करते है वही होता है ईश्वर तो केवल लोगों को बहलाने का तरीका है,उनकी बातों को सुनकर उस समय तो बहुत बुरा लगा था लेकिन प्रकृति की मीमांसा को समझने के बाद खुद पर सयंम रखना जरूरी समझ कर कुछ नही कहा,उन्हे केवल एक बात जरूर समझा दी थी कि मृत्यु दुनिया का सबसे बडा सत्य है जिसे लोग झुठला सकते है,केवल ज्योतिष को अंजवाने के लिये उन्हे तीन बातें मैने बतायी थी जो उनके दिमाग के अन्दर घर कर गयीं और वे जीवन के अंत मे ईश्वर के प्रति नरम रुख का प्रयोग करने लग गये थे. मैने पहले बताया कि आठवे भाव से आयु का विचार किया जाता है,जीवन मे जो योग शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले होते है उन्हे अरिष्ट योग के नाम से जाना जाता है.जो मुख्य अरिष्ट योग बनते है उनके अन्दर एक तो जब चन्द्रमा कमजोर होकर पाप ग्रह (सूर्य मंगल शनि राहु केतु) या छठे आठवे बारहवें भाव के स्वामी के साथ या तो उनसे द्रष्ट हो अथवा आठवें स्थान मे चला गया हो तब पैदा होता है या चारो केन्द्र स्थानो १,४,७,१०, चन्द्र मंगल सूर्य शनि बैठे हों,या लगन मे चन्द्रमा बारहवे शनि नवे सूर्य आठवें मंगल हो या चन्द्रमा पाप ग्रह से युत होकर १,४,६,८,१२ भाव मे हो.इसके साथ ही इस प्रकार के अरिष्ट योग की समाप्ति भी ग्रहों के द्वारा देखनी जरूरी होती है कि राहु शनि मंगल अगर ३,६,११ मे विराजमान हो तो अरिष्ट भंग योग कहलाता है गुरु और शुक्र अगर केन्द्र यानी १,४,७,१० मे विराजमान हो तो भी अरिष्ट भंग योग बन जाता है. आयु की लम्बाई नापने का सबसे उत्तम तरीका इस प्रकार से है:- सबसे पहले केन्द्र की राशियों की गणना करना,उन्हे जोडना. त्रिकोण की राशियों का जोड. केन्द्र मे और त्रिकोण मे स्थित ग्रहों के अंको का जोड,ग्रहों के अंको को सीधे सीधे दिनो के नाम के अनुसार जोड लेते है जैसे सूर्य का १ चन्द्रमा का २ मंगल का ३ बुध का ४ गुरु का ५ शुक्र का ६ शनि का ७ राहु का ८ केतु का ९. इन सबका योगफ़ल करने के बाद १२ से गुणा किया जाता है और १० से भाग देने के बाद कुल संख्या से १२ घटा दिया जाता है,यह आयु प्रमाण माना जाता है. लेकिन आयु प्रमाण को एक ही रीति से सटीक नही माना जाता है इसे तीन बार सटीकता के लिये देखा जाता है. उदाहरण के लिये आप उपरोक्त कुंडली को समझने की कोशिश करे. केन्द्र मे कन्या धनु मीन और मिथुन राशिया है,उनकी संख्या ६+९+१२+३=३० होती है.त्रिकोण की राशिया पंचम और नवम भाव मे मकर और वृष है उनकी संख्या को भी मिलाया जाता है १०+२=१२,३०+१२=४२ संख्या राशियों का जोड कहलाया.इसके बाद ग्रहो का जोड करना है,लगन मे चन्द्रमा चौथे मे शनि नवे मे सूर्य दसवे मे शुक्र बुध है.इनकी संख्या २+७+१+६+४=२० होती है.राशियों की संख्या और ग्रहों की संख्या को जोडा तो ४२+२०=६२ योगफ़ल आया.इस संख्या मे १२ का गुणा किया तो ७४४ योग आया,इस योग मे १० का भाग दिया तो योगफ़ल ७४.४ आया इसमे से १२ को घटाया तो कुल आयु ६२.४ साल की आयी. दूसरा प्रकार कुंडली के अन्दर जिन राशियों मे ग्रह विद्यमान है उन राशियों के ध्रुवांक जोडकर देखने पर भी आयु का प्रमाण मिलता है,राशियों के ध्रुवांक मेष का १० वृष का ६ मिथुन का २० कर्क का ५ सिंह का ८ कन्या का २ तुला का २० वृश्चिक का ६ धनु का १० मकर का १४ कुम्भ का ३ और मीन का १० होता है.उपरोक्त कुंडली में जिन राशियों ग्रह विद्यमान है वे इस प्रकार से है-मेष वृष मिथुन सिंह कन्या धनु और कुम्भ.राशियों के ध्रुवांक १०+६+२०+८+१०+३=५७ साल. तीसरा प्रकार इस प्रकार से है कुंडली के केन्द्र की राशियों का जोड करने के बाद जिस राशि मे मंगल और राहु विद्यमान है उन राशियों की संख्या का योग केन्द्र की राशियों के योग से घटाने पर तथा उसमे तीन का गुणा करने पर जो आयु बनती है उसे देखना जरूरी होता है,जैसे उपरोक्त कुंडली मे केन्द्र का ३० है मंगल और राहु जिस राशि मे विराजमान है वह कुम्भ है जिसकी संख्या ११ है,३०-११=१९ की संख्या को तीन से गुणा करने पर जोड ५७ साल का आया. उपरोक्त कुंडली जिस जातक की है वह उम्र की ५७ साल मे बीमार हुया और लगातार बीमारी से जूझने के बाद ६२ साल और ३ महिने का का समय पूरा होते ही चल बसा.

रत्नों की शक्ति रत्नों में अद्भूत शक्ति होती है. रत्न अगर किसी के भाग्य को आसमन पर पहुंचा सकता है तो किसी को आसमान से ज़मीन पर रत्न जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने का कार्य करते किस प्रकार हम अपने आस-पास व्यक्तियों को भिन्न-भिन्न रत्न पहने हुए देखते हैं। ये रत्न वास्तव में कार्य कैसे करते हैं और हमारी जन्मकुंडली में बैठे ग्रहों पर क्या प्रभाव डालते हैं और किस व्यक्ति को कौन से विशेष रत्न धारण करने चाहिये, ये सब बातें अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। रत्नों का प्रभाव: रत्नों में एक प्रकार की दिव्य शक्ति होती है। वास्तव में रत्नों का जो हम पर प्रभाव पड़ता है वह ग्रहों के रंग व उनके प्रकाश की किरणों के कंपन के द्वारा पड़ता है। हमारे प्राचीन ऋषियों ने अपने प्रयोगों, अनुभव व दिव्यदृष्टि से ग्रहों के रंग को जान लिया था और उसी के अनुरूप उन्होंने ग्रहों के रत्न निर्धारित किये। जब हम कोई रत्न धारण करते हैं तो वह रत्न अपने ग्रह द्वारा प्रस्फुटित प्रकाश किरणों को आकर्षित करके हमारे शरीर तक पहुंचा देता है और अनावश्यक व हानिकारक किरणों के कंपन को अपने भीतर सोख लेता है। अतः रत्न ग्रह के द्वारा ब्रह्मांड में फैली उसकी विशेष किरणों की ऊर्जा को मनुष्य को प्राप्त कराने में एक विशेष फिल्टर का कार्य करते हैं। जितने भी रत्न या उपरत्न है वे सब किसी न किसी प्रकार के पत्थर है। चाहे वे पारदर्शी हो, या अपारदर्शी, सघन घनत्व के हो या विरल घनत्व के, रंगीन हो या सादे और ये जितने भी पत्थर है वे सब किसी न किसी रासायनिक पदार्थों के किसी आनुपातिक संयोग से बने है आधुनिक विज्ञान ने अभी तक मात्र शुद्ध एवं एकल 128 तत्वों को पहचानने में सफलता प्राप्त की है। जिसका वर्णन मेंडलीफ की आधुनिक आवर्त सारणी (Periodic Table) में किया गया है। किन्तु ये एकल तत्व है अर्थात् इनमें किसी दूसरे तत्व या पदार्थ का मिश्रण नहीं प्राप्त होता है। किन्तु एक बात अवश्य है कि इनमें कुछ एक को समस्थानिक (Isotopes) के नाम से जाना जाता है। वैज्ञानिक भी मानते हैं कि हमारे शरीर के चारों ओर एक आभामण्डल होता है, जिसे वे AURA कहते हैं। ये आभामण्डल सभी जीवित वस्तुओं के आसपास मौजूद होता है। मनुष्य शरीर में इसका आकार लगभग 2 फीट की दूरी तक रहता है। यह आभामण्डल अपने सम्पर्क में आने वाले सभी लोगों को प्रभावित करता है। हर व्यक्ति का आभामण्डल कुछ लोगों को सकारात्मक और कुछ लोगों को नकारात्मक प्रभाव होता है, जो कि परस्पर एकदूसरे की प्रकृति पर निर्भर होता है। विभिन्न मशीनें इस आभामण्डल को अलग अलग रंगों के रूप में दिखाती हैं । वैज्ञानिकों ने रंगों का विश्लेषण करके पाया कि हर रंग का अपना विशिष्ट कंपन या स्पंदन होता है। यह स्पन्दन हमारे शरीर के आभामण्डल, हमारी भावनाओं, विचारों, कार्यकलाप के तरीके, किसी भी घटना पर हमारी प्रतिक्रिया, हमारी अभिव्यक्तियों आदि को सम्पूर्ण रूप से प्रभावित करते है। वैज्ञानिकों के अनुसार हर रत्न में अलग क्रियात्मक स्पन्दन होता है। इस स्पन्दन के कारण ही रत्न अपना विशिष्ट प्रभाव मानव शरीर पर छोड़ते हैं। प्राचीन संहिता ग्रंथों में जो उल्लेख मिलता है, उसमें एकल तत्व मात्र 108 ही बताए गए हैं। इनसे बनने वाले यौगिकों एवं पदार्थों की संख्या 39000 से भी ऊपर बताई गई हैं। इनमें कुछ एक आज तक या तो चिह्नित नहीं हो पाए है, या फिर अनुपलब्ध हैं। इनका विवरण, रत्नाकर प्रकाश, तत्वमेरू, रत्न वलय, रत्नगर्भा वसुंधरा, रत्नोदधि आदि उदित एवं अनुदित ग्रंथों में दिया गया है। कज्जलपुंज, रत्नावली, अथर्वप्रकाश, आयुकल्प, रत्नाकर निधान, रत्नलाघव, Oriental Prism, Ancient Digiana तथा Indus Catalog आदि ग्रंथों में भी इसका विषद विवरण उपलब्ध है। कुछ रत्न बहुत ही उत्कट प्रभाव वाले होते है। कारण यह है कि इनके अंदर उग्र विकिरण क्षमता होती है। अतः इन्हें पहनने से पहले इनका रासायनिक परिक्षण आवश्यक है। जैसे- हीरा, नीलम, लहसुनिया, मकरंद, वज्रनख आदि। यदि यह नग तराशदिए गए हैं, तो इनकी विकिरण क्षमता का नाश हो जाता है। ये प्रतिष्ठापरक वस्तु (स्टेट्‍स सिंबल) या सौंदर्य प्रसाधन की वस्तु बन कर रह जाते हैं। इनका रासायनिक या ज्योतिषीय प्रभाव विनष्ट हो जाता है। कुछ परिस्थितियों में ये भयंकर हानि का कारण बन जाते हैं। जैसे- यदि तराशा हुआ हीरा किसी ने धारण किया है तथा कुंडली में पांचवें, नौवें या लग्न में गुरु का संबंध किसी भी तरह से राहु से होता है, तो उसकी संतान कुल परंपरा से दूर मान-मर्यादा एवं अपनी वंश-कुल की इज्जत डुबाने वाली व्यभिचारिणी हो जाएगी। दूसरी बात यह कि किसी भी रत्न कि किसी भी रत्न को पहनने के पहले उसे जागृत अवश्य कर लेना चाहिए। अन्यथा वह प्राकृत अवस्था में ही पड़ा रह जाता है व निष्क्रिय अवस्था में उसका कोई प्रभाव नहीं हो पाता है। रत्नों के प्रभाव को प्रकट करने के लिए सक्रिय किया जाता है। इसे ही जागृत करना कहते हैं। ज्योतिष शास्त्र में बतायें गये विभिन्न उपायों में रत्नों का भी बड़ा विशेष महत्व है और रत्नों के द्वारा बहुत सकारात्मक परिवर्तन जीवन में आते हैं। परंतु वर्तमान में रत्न धारण करने के विषय में बहुत सी भा्रंतियां देखने को मिलती हैं जिससे बड़ी समस्याएं और दिक्कते उठानी पड़ती है। ज्यादातर व्यक्ति अपनी राशि के अनुसार रत्न धारण कर लेते हैं परंतु उन्हें समाधान मिलने के बजाय और समस्याएं आ जाती हैं। सर्वप्रथम हमें यह समझना चाहिये कि रत्न धारण करने से होता क्या है। इसके विषय में हमेशा यह स्मरण रखें कि रत्न पहनने से किसी ग्रह से मिल रही पीड़ा समाप्त नहीं होती या किसी ग्रह की नकारात्मकता समाप्त नहीं होती है बल्कि किसी भी ग्रह का रत्न धारण करने से उस ग्रह की शक्ति बढ़ जाती है अर्थात् आपकी कुंडली का वह ग्रह बलवान बन जाता है। उससे मिलने वाले तत्वों में वृद्धि हो जाती है। हमारी कुंडली में सभी ग्रह शुभ फल देने वाले नहीं होते। कुछ ग्रह ऐसे होते हैं जो हमारे लिये अशुभकारक होते हैं और उनका कार्य केवल हमें समस्याएं देना होता है। प्रकृति ने अपने विकार निवारण हेतु हमें बहुत ही अनमोल उपहार के रूप में विविध रत्न प्रदान किए हैं, जो हमें भूमि (रत्न खद्दानौ, समुद्र आदि विविध स्त्रोतों से ये रत्न हमारे हर विकार को दूर करने में सक्षम हैं। चाहे विकार भौतिक हो या आध्यात्मिक। इसी बात को ध्यान में रखते हुए महामति आचार्य वराह मिहिर ने बृहत्संहिता के 79वें अध्याय में लिखा है- ‘रत्नेन शुभेन शुभं भवति नृपाणामनिष्टमषुभेन। यस्मादतः परीक्ष्यं दैवं रत्नाश्रितं तज्ज्ञै अर्थात्‌ शुभ, स्वच्छ व उत्तम श्रेणी का रत्न धारण करने से राजाओं का भाग्य शुभ तथा अनिष्ट कारक रत्न पहनने से अशुभ भाग्य रत्नकी गुणवत्ता पर अवश्य ध्यान देसामान्यत: रत्नों के बारे में भ्रांति होती है जैसे विवाह न हो रहा हो तो पुखराज पहन लें, मांगलिक हो तो मूँगा पहन लें, गुस्सा आता हो तो मोती पहन लें। मगर कौन सा रत्न कब पहना जाए इसके लिए कुंडली का सूक्ष्म निरीक्षण जरूरी होता है। लग्न कुंडली, नवमांश, ग्रहों का बलाबल, दशा-महादशाएँ आदि सभी का अध्ययन करने के बाद ही रत्न पहनने की सलाह दी जाती है। यूँ ही रत्न पहन लेना नुकसानदायक हो सकता है। मोती डिप्रेशन भी दे सकता है, मूँगा रक्तचाप गड़बड़ा सकता है और पुखराज अहंकार बढ़ा सकता है, पेट गड़बड़ कर सकता है। समस्त पृथ्वी से मूल रूप में प्राप्त होने वाले मात्र 21 ही हैं किन्तु जिस प्रकार से 18 पुराणों के अलावा इनके 18 उपपुराण भी हैं ठीक उसी प्रकार इन 21 मूल रत्नों के अलावा इनके 21 उपरत्न भी हैं। इन रत्नों की संख्या 21 तक ही सीमित होने का कारण है। जिस प्रकार दैहिक, दैविक तथा भौतिक रूप से तीन तरह की व्याधियाँ तथा इन्हीं तीन प्रकार की उपलब्धियाँ होती हैं और इंगला, पिंगला और सुषुम्ना इन तीन नाड़ियों से इनका उपचार होता है। इसी प्रकार एक-एक ग्रह से उत्पन्न तीनों प्रकार की व्याधियों एवं उपलब्धियों को आत्मसात्‌ या परे करने के लिए एक-एक ग्रह को तीन-तीन रत्न प्राप्त हैं। ध्यान रहे, ग्रह भी मूल रूप से मात्र तीन ही हैं। सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र एवं शनि, राहु एवं केतु की अपनी कोई स्वतन्त्र सत्ता न होने से इनकी गणना मूल ग्रहों में नहीं होती है। इन्हें छाया ग्रह कहा जाता है। इस प्रकार एक-एक ग्रह के तीन-तीन रत्न के हिसाब से सात ग्रहों के लिए 21 मूल रत्न निश्चित हैं। ये मूल रत्न जिस रूप में पृथ्वी से प्राप्त होते हैं, उसके बाद इन्हें परिमार्जित करके शुद्ध करना पड़ता है तथा बाद में इन्हें तराशा जाता है। सामान्यत: लग्न कुंडली के अनुसार कारकर ग्रहों के (लग्न, नवम, पंचम) रत्न पहने जा सकते हैं जो ग्रह शुभ भावों के स्वामी होकर पाप प्रभाव में हो, अस्त हो या श‍त्रु क्षेत्री हो उन्हें प्रबल बनाने के लिए भी उनके रत्न पहनना प्रभाव देता है। सौर मंडल के भी हर ग्रह की अपनी ही आभा है, जैसे सूर्य स्वर्णिम, चन्द्रमा दूधिया, मंगल लाल, बुध हरा प्रत्येक ग्रह की अलग अलग आभा भी मानव शरीर के सातों चक्रों को अलग अलग तरह से प्रभावित करती है। रत्न इन्हीं का प्रतिनिधित्व करते हैं। शरीर पर धारण करने पर ये रत्न इन ग्रहों की रश्मियों के प्रभाव को कई रत्नों की पहचान सामान्य व्यक्ति के वश में नहीं है। रत्न सम्बन्धी अभी तक प्राप्त पुस्तकों में पूर्णजानकारी का अभाव देखने को मिलता हे सबी book ऐक दुसरे की नकल हे रत्नों पर मैनै काफी शोघ रत्न खदानों एवं विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियों का अध्ययन किया। इस कार्य के दौरान ऐसे कई आश्चर्यजनक अनुभव प्राप्त हुए जिनका वर्णन करना संभव ही नहीं है, वर्तमान में उनके बारे में सोचने पर स्वयं को भी विश्वास नहीं होता है किन्तु वह भी आँखों देखा सच था। मेरा दावा है कि पृथ्वी के गर्भ में भी ऐसे कई रत्न छुपे हुए हैं जिनकी जानकारी जन साधारण को अभी तक उपलब्ध ही नहीं है। . रत्न के विपरीत प्रभाव से बचने के लिए सही प्रकर से कुन्ङली कीजांच करवाकर ही रत्न धारण करना चाहिए.रत्न हमेशा शुभ महुरत मे ही पहनेओरप्राण प्रतिश्ठा करबा कर ही पहने हर रत्न की ऐक उमर होती है उसके बाद बदल कर पहने किसी के पहने हुये या उतारे हुये मत पहने

सोमवार, 13 फ़रवरी 2017

मित्रो कुछ बातें हम लोग देख सुन कर अनजान हैं। उसमे एक है चरण स्पर्शमित्रो जव मै छोटा था तो घर मे कोई भी आस पङोस की महिला या मेहमान आता तो हमारी दादी माँ मुझे पैरीपैना करने को कहती मित्रो हम पंजावी है। पंजावी मे चरण स्पर्श को पैरी पैना कहते है। यह आदत आज भी वनी हुई है। पैरों में विष्णु निवास माना जाता है। चरण स्पर्श करने वाले को ना केवल जिसके सामने झुका गया है बल्कि विष्णु भगवान का आशीर्वाद भी स्वतः मिल जाता है। लेकिन आज Hello hi का जमाना आ गया है मित्रो वच्चो को हमे यह संस्कार देने चाहिऐ ऐक तो तो हमे आशीर्वाद मिलता है। दुसरा हम झुकना सिखते है। आशीर्वाद मे वङी ताकत होती है। इसका भी तरीका - नियम होता है चरण स्पर्श का १) भोजन करते हुए स्त्री /पुरुष के चरण स्पर्श नही करना चाहिए। जैसे हम किसी के घर जाते हैं और सामने वाला भोजन कर रहा हो। सभ्यता तो यही है कि अगर सामने वाला उम्र में बड़ा है , आशीर्वाद के लिए झुका जाये। यहाँ पर हम सिर्फ प्रणाम कर के बैठ जाएँ और सामने वाले के भोजन खत्म करके हाथ धोने का इंतज़ार करें तो बेहतर है। क्यूंकि जूठे हाथों से आशीर्वाद देना उचित नहीं है। २) जब हम मंदिर में जाएँ और कोई उम्र से बड़ा मिल जाये , या कोई जागरण - सत्संग हो रहा हो वहां भी चरण स्पर्श उचित नहीं है। सत्संग के वाद आप चरण स्पर्श कर सकते है

रविवार, 12 फ़रवरी 2017

, ,,,,,,।,,, ग्रहण , मित्रो 11 फरवरी को चन्द्र ग्रहण लगा तो वहुँत से मित्रो ने ग्रहण के वारे जानकारी चाही मित्रो 2017 में कुल चार ग्रहण लग रहे है ऐक निकल गया अव तीन वचे है दो सूर्य ग्रहण और 1 चन्द्र ग्रहण होंगे , वैज्ञानिक दृस्टि से जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक ही सीध में आते है तो उसे ग्रहण का नाम दिया जाता है , भारतीय ज्योतिष शास्त्र में ग्रहण का व्यापक प्रभाव बताया गया है सबसे पहले देश दुनिया में 11 फरवरी को लगने वाले उपच्छाया था चंद्रग्रहण से शुरू होगा2017 ।ग्रहण का प्रभाव उस देश में ही होता है जहाँ पर यह पूर्ण रूप से दिखाई देता है | इन ग्रहण का असर वहां के लोगों पर होगा जहां ये दिखाई देंगे। सूर्य ग्रहण हो या चंद्र ग्रहण, खगोलविदों के लिये दोनों ही आकर्षण का केंद्र होते हैं। रही बात आम लोगों की, तो कुछ लोग इसे भौगोलिक घटना से जोड़ते हैं तो वहीं तमाम लोग ऐसे हैं, जो इसे धर्म-कर्म से जुुड़ी घटना मानते हैं। सूर्य संपूर्ण जगत की आत्मा का कारक ग्रह है। वह संपूर्ण चराचर जगत को आवश्यक ऊर्जा प्रदान करता है इसलिए कहा जाता है कि सूर्य से ही सृष्टि है। अतः बिना सूर्य के जीवन की कल्पना करना असंभव है। चंद्रमा पृथ्वी का प्रकृति प्रदत्त उपग्रह है। यह स्वयं सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित होकर भी पृथ्वी को अपने शीतल प्रकाश से शीतलता देता है। यह मानव के मन मस्तिष्क का कारक व नियंत्रणकर्ता भी है। सारांश में कहा जा सकता है कि सूर्य ऊर्जा व चंद्रमा मन का कारक है। प्रिय मित्रों राहु-केतु इन्हीं सूर्य व चंद्र मार्गों के कटान के प्रतिच्छेदन बिंदु हैं जिनके कारण सूर्य व चंद्रमा की मूल प्रकृति, गुण, स्वभाव में परिवर्तन आ जाता है। यही कारण है कि राहु-केतु को हमारे कई पौराणिक शास्त्रों में विशेष स्थान प्रदान किया गया है। राहु की छाया को ही केतु की संज्ञा दी गई है। राहु जिस राशि में होता है उसके ठीक सातवीं राशि में उसी अंशात्मक स्थिति पर केतु होता है। मूलतः राहु और केतु सूर्य और चंद्रमा की कक्षाओं के संपात बिंदु हैं जिन्हें खगोलशास्त्र में चंद्रपात कहा जाता है। प्रिय मित्रों, ज्योतिष के खगोल शास्त्र के अनुसार राहु-केतु खगोलीय बिंदु हैं जो चंद्र के पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाने से बनते हैं। राहू-केतू द्वारा बनने वाले खगोलीय बिंदु गणित के आधार पर बनते हैं तथा इनका कोई भौतिक अस्तित्व नहीं है। अतः ये छाया ग्रह कहलाते हैं। छाया ग्रह का अर्थ किसी ग्रह की छाया से नहीं है अपितु ज्योतिष में वे सब बिंदु जिनका भौतिक अस्तित्व नहीं है, लेकिन ज्योतिषीय महत्व है, छाया ग्रह कहलाते हैं जैसे गुलिक, मांदी, यम, काल, मृत्यु, यमघंटक, धूम आदि। ये सभी छाया ग्रह की श्रेणी में आते हैं और इनकी गणना सूर्य व लग्न की गणना पर आधारित होती है।मित्रो ज्योतिष में छाया ग्रह का महत्व अत्यधिक हो जाता है क्योंकि ये ग्रह अर्थात बिंदु मनुष्य के जीवन पर विषेष प्रभाव डालते हैं। राहु-केतु का प्रभाव केवल मनुष्य पर ही नहीं बल्कि संपूर्ण भूमंडल पर होता है। जब भी राहु या केतु के साथ सूर्य और चंद्र आ जाते हैं तो ग्रहण योग बनता है। ग्रहण के समय पूरी पृथ्वी पर कुछ अंधेरा छा जाता है एवं समुद्र में ज्वार उत्पन्न होते हैं। मित्रों इस वर्ष, कुल 4 ग्रहण लगेंगे। पहला ग्रहण उपच्छाया चंद्रग्रहण 11 फरवरी को लगा फिर 26 फरवरी को सूर्यग्रहण लगेगा, जो भारत में दिखाई नहीं देगा। फिर सात अगस्त को आंशिक चंद्रग्रहण का नजारा भारत में दिखेगा। 21 अगस्त को 2017 का पूर्ण सूर्य ग्रहण आखिरी ग्रहण होगा, जो हला सूर्य ग्रहण: 26 फरवरी (रविवार ) , 2017 को है कहां-कहां दिखेगा ग्रहण यह एक आंशिक ग्रहण होगा जो कि भारत, दक्षिण / पश्चिम अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, प्रशांत, अटलांटिक, हिंद महासागर, अंटार्कटिका की ज्यादातर हिस्सों में इसका प्रभाव नहीं रहेगा ग्रहण का समय आंशिक सूर्यग्रहण शुरू: 26 फरवरी, 17:40 pm पूर्ण सूर्यग्रहण शुरू: 26 फरवरी, 18:45 pm अधिकतम ग्रहण : 26 फरवरी, 20:28 pm पूर्ण ग्रहण: 26 फरवरी, 22:01 pm ग्रहण अंत: 26 फरवरी, 23:05 pm भारत मे यह फरवरी माह में होने वाला यह सूर्य ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा अतः भारत में सूतक मान्य नहीं है.मित्रो पर अगर आपकी कुन्ङली मे सूर्य के साथ राहु-केतु आ जाने पर ग्रहण माना जायेगा। सूर्य का राहु से संयोग होने पर गंदे विचार, केतु संयोग होने पर पैरों में रोग जातक या जातिका के जन्मपत्रिका में यह योग चाहे किसी भी भाव में हो, नुक्सान ही करता है। इस योग के होने पर जातक या जातिका के पास सब कुछ होते हुए भी हमेशा यही लगता है कि उसके पास कुछ भी नहीं है। यह योग जातक या जातिका के आत्मविश्वास में कमी करता है और साथ ही ये योग जॉब सिक्योर नहीं होने देता। यदि जातक या जातिका सरकारी नौकरी करता है, और पत्रिका में इस योग के विशेष प्रभावी होने पर अपनी सरकारी नौकरी भी छोड़ कर आ सकता है। ऐसे जातक या जातिका का पिता और खुद या तो बहुत तेज तर्रार होते है और या बिलकुल ही शांत होते है। ऐसा जातक या जातिका ताउम्र आत्मपीड़ित रहता है यदि पत्रिका में यह युति सप्तम भाव में है जो की जातिका के वैवाहिक जीवन में कष्ट प्रदान करती है। अतः इसका उपाय अवश्य करवाना चाहिये। उपाय :- 1) यह योग जन्मपत्रिका के जिस भाव में हो, उतनी ही मात्रा में सूर्य के शत्रु ग्रहो (शनि, राहू और केतु) का समान ले, और ग्रहण अवधि में मध्यकाल में अपने सिर से सात बार एंटीक्लॉक वाइज उसारा करके किसी भी नदी के तेज बहते जल में प्रवाहित दे। जैसे की पत्रिका में यह युति सप्तम भाव में है तो इसलिए जातक या जातिका को 700 ग्राम सरसो का तेल, 700 ग्राम साबुत बादाम, 700 ग्राम लकड़ी के कोयले, 700 ग्राम सफ़ेद व काले तिल मिलेजुले, 7 नारियल सूखे जटावले और बजने वाले तथा 70 सिगरेट बगैर फ़िल्टर वाली ले 700 ग्राम जो ले 2) कम से कम 60 ग्राम का शुद्ध चांदी का हाथी जिसकी सूंड नीचे की और हो, अपने घर पर लाकर चांदी या स्टील की कटोरी में गंगाजल भरकर उसमे खड़ा करके अपने बेड रूम में रखें। ध्यान रखे की इस हाथी पर सूर्य की रौशनी न पहुँचे। 3) सूर्य की किरणें सीधे अपने सिर पर न पड़ने दे अर्थात अपना सिर ढक कर रखें। 4) अपने पुश्तैनी मकान की दहलीज के नीचे चांदी का पतरा या तार बिछाए। 5) राहु से सम्बंधित कोई भी वस्तु अपने घर पर न रखें और न ही उनका सेवन/ग्रहण करे। जैसे कि : नीला और सलेटी रंग, तलवार, अभ्रक, खोटे सिक्के (जो आज चलन में नही है), बंद घड़ियाँ, बारिश में भीगी लकड़ी, जंग लगा लोहा, ख़राब बिजली का समान, रद्दी, लकड़ी के कोयले, धुँआ, टूटे-फूटे खिलौने, टूटी-फूटी चप्पलें, टूटे-फूटे बर्तन, खली डिब्बे, टूटा हुआ शिक्षा, ससुराल पक्ष, मूली या इससे बनी वस्तु, जौ या इससे बनी कोई वस्तु, नारियल (कच्चा या पक्का) या इससे बनी कोई भी वस्तु, नीले जीव, नीले फूल या नीले रंग के कोई भी वस्तु आदि। 6) अपने घर की छत, सीढ़ियों के नीचे का स्थान और लेट्रिंग-बाथरूम सदा साफ़ रखें। 7) लाल और नीले कलर का कॉम्बिनेशन या ये दोनों कलर अलग अलग कभी भी धारण न करे। 8) अपने जीवन में कभी भी मांस-मदिरा, बीयर, तम्बाकू आदि का सेवन न करें। 9) यदि सूर्य नीच का हो तो पूर्व की और मुख करके कभी भी पूजा न करे। 10) पूर्व की और मुख करके शौच क्रिया न करें मित्रो आप भी अपनी कुन्ङली दिखाना या वनवाना या कोअई अच्छी क्वालिटी का रतन या कोई समस्या का हल चाहते है तो सम्पर्क करे 07597718725 0914481324 मित्रो हमारी paid services है कोई भी जानकारी के लिऐ हमारे नम्वरो पर वात करे आचार्य राजेश

बुधवार, 8 फ़रवरी 2017

मित्रो आज पन्ना रतन के वारे वात करते है यह रतन खानो मे पाया जाता है यह किसी सागर या समुन्द्र मे नही निकलता है अक्सर मैने देखा है ंगंगा सागर यह यहा भी लोग घुमने जाते है वहा गोताखोर पैसा लेकर लोगो को गोता लगाकर सागर से रतन निकालने का नाटक करते है दोस्तो सागर से मोती ओरमुंगा मिल सकता है हीरा पन्ना या अन्या रतन नही अगर आप मे से किसी ने यह ले रखा है तो 1००% नकली है आप लैव से टैस्ट करवा लो तो पता चलेगा । पन्ने का वर्ग Beryl variety रासायनिक सूत्र Beryllium aluminium silicate with chromium, Be3Al2(SiO3)6::Cr पहचान वर्ण Green हल्का या गहरा पारदर्शी क्रिस्टल हैबिट Hexagonal Crystals क्रिस्टल प्रणाली Hexagonal क्लीवेज Poor Basal Cleavage (Seldom Visible) फ्रैक्चर Conchoidal मोह्ज़ स्केल सख्तता 7.5–8.0 चमक Vitreous रिफ्रैक्टिव इंडेक्स 1.576–1.582 प्लेओक्रोइज्म़ Distinct, Blue-Green/Yellow-Green स्ट्रीक White स्पैसिफिक ग्रैविटी 2.70–2.78 पन्ना, बेरिल (Be3Al2(SiO3)6) नामक खनिज का एक प्रकार है जो हरे रंग का होता है और जिसे क्रोमियम और कभी-कभी वैनेडियम की मात्रा से पहचाना जाता है।खनिज की कठोरता मापने वाले 10 अंकीय मोहस पैमाने पर बेरिल की कठोरता 7.5 से 8 तक होती है। अधिकांश पन्ने बहुत अधिक अंतर्विष्ट होते हैं, इसलिए उनकी मजबूती (टूटने की प्रतिरोधक क्षमता) का वर्गीकरण आम तौर पर निम्न कोटि के रूप में किया जाता है। शब्द "एमरल्ड" या पन्ना) का आगमन (पुरातन मध्यकालीन ("हरित मणि") के माध्यम से इसको वोला जाता है सभी रंगीन रत्नों की तरह पन्नों को भी चार आधारभूत मानकों का प्रयोग करके वर्गीकृत किया जाता है, जिन्हें परख के चार C कहते हैं, जो इस प्रकार है; Color (रंग), Cut (कटाई), Clarity और Crystal (स्फ़टिक) . अंतिम C, स्फ़टिक को केवल एक पर्याय के रूप में प्रयोग किया जाता है जो पारदर्शिता के लिए C से शुरू होता है या जिसे रत्न-वैज्ञानिक पारदृश्यता कहते हैं। 20वीं सदी से पहले जौहरी दो गुणवत्ता, रंग और स्फ़टिक के संयोजन को व्यक्त करने के लिए जल शब्द, जैसे - "बेहतरीन जल का रत्न का प्रयोग करते थे। आम तौर पर, रंगीन रत्नों के वर्गीकरण में रंग ही सबसे महत्वपूर्ण कसौटी है। हालांकि, पन्ने के वर्गीकरण में स्फ़टिक को दूसरा सबसे महत्वपूर्ण मानदंड माना जाता है। दोनों आवश्यक शर्तें हैं। एक उत्कृष्ट रत्न के रूप में मान्यता हासिल करने के लिए एक बेहतर पन्ने में, केवल एक शुद्ध सब्ज़ वर्ण ही नहीं होना चाहिए, बल्कि एक उच्च स्तरीय पारदर्शिता भी होनी चाहिए.वैज्ञानिक तौर पर कहा जाता है कि रंग तीन घटकों: वर्ण, संतृप्ति और रंगत में विभाजित है। पीले और नीले रंग, वर्णक्रमीय रंग चक्र के हरे रंग के निकट पाए जाने वाले वर्ण, पन्ने में पाए जाने वाले सामान्य द्वितीयक वर्ण हैं। पन्ने, पीले-हरे से लेकर नीले-हरे वर्णों के होते हैं। निस्संदेह, प्राथमिक वर्ण हरा ही होना चाहिए. केवल उन्हीं रत्नों को पन्ना माना जाता है जिनकी रंगत मध्यम से लेकर गाढ़ी होती है। प्रकाशीय रंगत वाले रत्नों को प्रजातियों के नाम, हरित बेरिल के नाम से जाना जाता है। इसके अतिरिक्त, वर्ण अवश्य चमकीला (उज्ज्वल) होना चाहिए. भूरा, पन्ना में पाया जाने वाला सामान्य पन्ना होता है अक्सर गहरे हरे रःग के पन्ने नकली भी वनाऐ जाते है ईस लिऐ लैव से जाच करवा कर पहनना चाहिऐ पन्नों को मिस्र और ऑस्ट्रिया में खनन करके निकाला जाता था पन्ने का एक दुर्लभ प्रकार, जिसे ट्रैपिच पन्ना के नाम से जाना जाता है, जो कभी-कभी कोलंबिया के खानों में पाया जाता है। एक ट्रैपिच पन्ना एक 'स्टार' पैटर्न प्रदर्शित करता है; इसमें काले कार्बन की अशुद्धताओं के किरणों जैसी तिल्लियां होती हैं जो पन्ने को छः-नोंक वाला एक रेडियल पैटर्न प्रदान करता है पन्ने कोलंबिया के तीन मुख्य पन्नों के खनन क्षेत्रों: मुज़ो, कोस्कुएज़ और चिवोर, से आते हैं पन्ने अन्य देशों, जैसे - अफ़ग़ानिस्तान, ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रिया, ब्राज़ील, बुल्गेरिया, कनाडा, चीन, मिस्र, इथियोपिया, फ़्रांस, जर्मनी, भारत, इटली, कज़ाखस्तान, मैडागास्कर, मोज़ाम्बिक, नामीबिया, नाइजीरिया, नॉर्वे, पाकिस्तान, रूस, सोमालिया, दक्षिण अफ़्रीका, स्पेन, स्विट्ज़रलैंड, तंज़ानिया, संयुक्त राज्य अमेरिका, ज़ाम्बिया और ज़िम्बाब्वे, में भी पाया जाता है। अमेरिका में, पन्ने कनेक्टिकट, मोंटाना, नेवादापन्‍ना कई दूसरे रत्‍नों की तरह खानों में पाया जाता है जहां ये कई अशुद्धियों के साथ होते हैं। खानों से निकाल कर सबसे पहले उनकी अशुद्धि‍यां दूर की जाती है। इसके बाद इन्‍हें विभिन्‍न आकार में तराश कर बाजार में भेजा जाता है। वर्तमान में कोलम्‍बिया की खानों में सबसे अच्‍छा पन्‍ना पाया जाता है। इसके बाद रूस और ब्राजील में मिलने वाले पन्‍ने सबसे बेहतर माने जाते हैं। मिश्र, नार्वे, भारत, इटली, आस्‍ट्रेलिया, अफ्रीका और आस्‍ट्रिया में भी पन्‍ने की खाने हैं यह मैने पहले वता ही दिया है भारत में यह मुख्‍यत: दक्षिण महानदी, हिमालय, सोमनदी व गिरनार में पाया जाता है।, उत्तर कैरोलिना और दक्षिण कैरोलिना में पाए गए हैं।पन्‍ना ग्रेनाइट, पेग्‍मेटाइट व चूने के पत्‍थरों के मिश्रण से बनता है। इसका रासायनिक फार्मुला Be3Al2(SiO3)6 होता है। इसकी कठोरता 7.75 होती है और आपेक्षिक घनत्‍व 2.69 से 2.80 तक होता है। यह प्रकाश के परावर्तन की भी क्षमता रखता है इसकी परावर्तन क्षमता 1.57 से 1.58 के बीच होती है। ये एक पारदर्शक रत्‍न है जो प्राय: हरा और नीला-हरा पीला हरा सफेद हरा तरह के रंगों में पाया जाता हैयदि कुंडली में बुध ग्रह शुभ प्रभाव में हो तो पन्ना अवश्य धारण करना चाहिए ! पन्ना धारण करने से दिमाग की कार्य क्षमता तीव्र हो जाती है और जातक पढ़ाई , लिखाई, व्यापार जैसे कार्यो में सफलता प्राप्त करता है! विधार्थियों को अपनी कुंडली का निरिक्षण किसी अच्छे ज्योतिषी से करवाकर पन्ना अवश्य धारण करना चाहिए क्योकि हमारे शैक्षिक जीवन में बुध ग्रह की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है अच्छी शिक्षा बुध की कार्यकुशलता पर निर्भर है! यदि आप एक व्यापारी है और अपने व्यापार में उन्नति चाहते है तो आप पन्ना धारण कर सकते है! हिसाब किताब के कामो से जुड़े जातको को भी पन्ना अवश्य धारण करना चाहिए क्योकि एक अच्छे गणितज्ञ की योग्यता बुध के बल पर निर्भर करती है! अभिनय और फ़िल्मी क्षेत्र से जुड़े जातको को भी पन्ना धारण करना चाहिए क्योकि बुध ग्रह इन क्षेत्रो से जुड़े जातको के जीवन में एक बहुत बड़ी भूमिका निभाता है ओर अपनी कुन्ङली दिखा कर ही पन्ना घारण करना सही होगा मित्रो देखा देखी कोई भी रतन ना पहने यदि आप बुध देव के रत्न, पन्ने को धारण करना चाहते है, तो 3 से 6 कैरेट के पन्ने को स्वर्ण या चाँदी मे पहनेबुध के अच्छे प्रभावों को प्राप्त करने के लिए उच्च कोटि का असली पन्ना ही धारण करे, पन्ना धारण करने के 40 दिनों में प्रभाव देना आरम्भ कर देता है और लगभग 3 वर्ष तक पूर्ण प्रभाव देता है और फिर निष्क्रिय हो जाता है ! निष्क्रिय होने के बाद पुन: नया पन्ना घारन करे वाकी अगले लेखो में और विस्तार से चर्चा करूँगा!मेरा उदेश्य सही जानकारी देना है जो पङे उसका भी भला जो ना पङे उसका भी भला हो जय माता दी 0914481324 07597718725 आचार्य राजेश

सोमवार, 6 फ़रवरी 2017

लघु पाराशरी सिद्धांत – सभी 42 सूत्र (Laghu Parashari Siddhant) Home/Astrology, Astrology Books, Jyotish/लघु पाराशरी सिद्धांत – सभी 42 सूत्र ज्‍योतिष की एक नहीं बल्कि कई धाराएं साथ साथ चलती रही हैं। वर्तमान में दशा गणना की जिन पद्धतियों का हम इस्‍तेमाल करते हैं, उनमें सर्वाधिक प्रयुक्‍त होने वाली विधि पाराशर पद्धति है। सही कहें तो पारशर की विंशोत्‍तरी दशा के इतर कोई दूसरा दशा सिस्‍टम दिखाई भी नहीं देता है। महर्षि पाराशर के फलित ज्‍योतिष संबंधी सिद्धांत लघु पाराशरी (Laghu Parashari Siddhant) में मिलते हैं। इनमें कुल जमा 42 सूत्र (42 sutras) हैं। मैंने सभी सिद्धांतों को लेकर नोट्स बनाए थे। उन्‍हीं नोट्स में हर नोट के शीर्ष पर मैंने सिद्धांत का हिंदी अनुवाद सरल हिंदी में लिखा था। अगर आप केवल इन मूल सिद्धांतों को पढ़ें तो आपके दिमाग में भी ज्‍योतिष फलित के संबंध में कई विचार स्‍पष्‍ट हो जाएंगे। मैं केवल मूल सिद्धांत के हिंदी अनुवाद को पेश कर रहा हूं, इसमें न तो टीका शामिल है, न मूल सूत्र… 1. यह श्रुतियों का सिद्धांत है जिसमें में प्रजापति के शुद्ध अंत:करण, बिम्‍बफल के समान लाल अधर वाले और वीणा धारण करने वाले तेज, जिसकी अराधना करता हूं, को समर्पित करता हूं। 2. मैं महर्षि पाराशर के होराशास्‍त्र को अपनी मति के अनुसार विचारकर ज्‍योतिषियों के आनन्‍द के लिए नक्षत्रों के फलों को सूचित करने वाले उडूदायप्रदीप ग्रंथ का संपादन करता हूं। 3. हम इसमें नक्षत्रों की दशा के अनुसार ही शुभ अशुभ फल कहते हैं। इस ग्रंथ के अनुसार फल कहने में विशोंतरी दशा ही ग्रहण करनी चाहिए। अष्‍टोतरी दशा यहां ग्राह्य नहीं है। 4. सामान्‍य ग्रंथों पर से भाव, राशि इत्‍यादि की जानकारी ज्‍योति शास्‍त्रों से जानना चाहिए। इस ग्रंथ में जो विरोध संज्ञा है वह शास्‍त्र के अनुरोध से कहते हैं। 5. सभी ग्रह जिस स्‍थान पर बैठे हों, उससे सातवें स्‍थान को देखते हैं। शनि तीसरे व दसवें, गुरु नवम व पंचम तथा मंगल चतुर्थ व अष्‍टम स्‍थान को विशेष देखते हैं। 6. (अ) कोई भी ग्रह त्रिकोण का स्‍वामी होने पर शुभ फलदायक होता है। (लग्‍न, पंचम और नवम भाव को त्रिकोण कहते हैं) तथा त्रिषडाय का स्‍वामी हो तो पाप फलदायक होता है (तीसरे, छठे और ग्‍यारहवें भाव को त्रिषडाय कहते हैं।) 6. (ब) अ वाली स्थिति के बावजूद त्रिषडाय के स्‍वामी अगर त्रिकोण के भी स्‍वामी हो तो अशुभ फल ही आते हैं। (मेरा नोट: त्रिषडाय के अधिपति स्‍वराशि के होने पर पाप फल नहीं देते हैं- काटवे।) 7. सौम्‍य ग्रह (बुध, गुरु, शुक्र और पूर्ण चंद्र) यदि केन्‍द्रों के स्‍वामी हो तो शुभ फल नहीं देते हैं। क्रूर ग्रह (रवि, शनि, मंगल, क्षीण चंद्र और पापग्रस्‍त बुध) यदि केन्‍द्र के अधिपति हों तो वे अशुभ फल नहीं देते हैं। ये अधिपति भी उत्‍तरोतर क्रम में बली हैं। (यानी चतुर्थ भाव से सातवां भाव अधिक बली, तीसरे भाव से छठा भाव अधिक बली) 8. लग्‍न से दूसरे अथवा बारहवें भाव के स्‍वामी दूसरे ग्रहों के सहचर्य से शुभ अथवा अशुभ फल देने में सक्षम होते हैं। इसी प्रकार अगर वे स्‍व स्‍थान पर होने के बजाय अन्‍य भावों में हो तो उस भाव के अनुसार फल देते हैं। (मेरा नोट: इन भावों के अधिपतियों का खुद का कोई आत्‍मनिर्भर रिजल्‍ट नहीं होता है। 9. अष्‍टम स्‍थान भाग्‍य भाव का व्‍यय स्‍थान है (सरल शब्‍दों में आठवां भाव नौंवे भाव से बारहवें स्‍थान पर पड़ता है), अत: शुभफलदायी नहीं होता है। यदि लग्‍नेश भी हो तभी शुभ फल देता है (यह स्थिति केवल मेष और तुला लग्‍न में आती है)। 10. शुभ ग्रहों के केन्‍द्राधिपति होने के दोष गुरु और शुक्र के संबंध में विशेष हैं। ये ग्रह केन्‍द्राधिपति होकर मारक स्‍थान (दूसरे और सातवें भाव) में हों या इनके अधिपति हो तो बलवान मारक बनते हैं। 11. केन्‍द्राधिपति दोष शुक्र की तुलना में बुध का कम और बुध की तुलना में चंद्र का कम होता है। इसी प्रकार सूर्य और चंद्रमा को अष्‍टमेष होने का दोष नहीं लगता है। 12. मंगल दशम भाव का स्‍वामी हो तो शुभ फल देता है। किंतु यही त्रिकोण का स्‍वामी भी हो तभी शुभफलदायी होगा। केवल दशमेष होने से नहीं देगा। (यह स्थिति केवल कर्क लग्‍न में ही बनती है) 13. राहू और केतू जिन जिन भावों में बैठते हैं, अथवा जिन जिन भावों के अधिपतियों के साथ बैठते हैं तब उन भावों अथवा साथ बैठे भाव अधिपतियों के द्वारा मिलने वाले फल ही देंगे। (यानी राहू और केतू जिस भाव और राशि में होंगे अथवा जिस ग्रह के साथ होंगे, उसके फल देंगे।)। फल भी भावों और अधिपतियो के मु‍ताबिक होगा। 14. ऐसे केन्‍द्राधिपति और त्रिकोणाधिपति जिनकी अपनी दूसरी राशि भी केन्‍द्र और त्रिकोण को छोड़कर अन्‍य स्‍थानों में नहीं पड़ती हो, तो ऐसे ग्रहों के संबंध विशेष योगफल देने वाले होते हैं। 15. बलवान त्रिकोण और केन्‍द्र के अधिपति खुद दोषयुक्‍त हों, लेकिन आपस में संबंध बनाते हैं तो ऐसा संबंध योगकारक होता है। 16. धर्म और कर्म स्‍थान के स्‍वामी अपने अपने स्‍थानों पर हों अथवा दोनों एक दूसरे के स्‍थानों पर हों तो वे योगकारक होते हैं। यहां कर्म स्‍थान दसवां भाव है और धर्म स्‍थान नवम भाव है। दोनों के अधिपतियों का संबंध योगकारक बताया गया है। 17. नवम और पंचम स्‍थान के अधिपतियों के साथ बलवान केन्‍द्राधिपति का संबंध शुभफलदायक होता है। इसे राजयोग कारक भी बताया गया है। 18. योगकारक ग्रहों (यानी केन्‍द्र और त्रिकोण के अधिपतियों) की दशा में बहुधा राजयोग की प्राप्ति होती है। योगकारक संबंध रहित ऐसे शुभ ग्रहों की दशा में भी राजयोग का फल मिलता है। 19. योगकारक ग्रहों से संबंध करने वाला पापी ग्रह अपनी दशा में तथा योगकारक ग्रहों की अंतरदशा में जिस प्रमाण में उसका स्‍वयं का बल है, तदअनुसार वह योगज फल देगा। (यानी पापी ग्रह भी एक कोण से राजयोग में कारकत्‍व की भूमिका निभा सकता है।) 20. यदि एक ही ग्रह केन्‍द्र व त्रिकोण दोनों का स्‍वामी हो तो योगकारक होता ही है। उसका यदि दूसरे त्रिकोण से संबंध हो जाए तो उससे बड़ा शुभ योग क्‍या हो सकता है ? 21. राहू अथवा केतू यदि केन्‍द्र या त्रिकोण में बैइे हों और उनका किसी केन्‍द्र अथवा त्रिकोणाधिपति से संबंध हो तो वह योगकारक होता है। 22. धर्म और कर्म भाव के अधिपति यानी नवमेश और दशमेश यदि क्रमश: अष्‍टमेश और लाभेश हों तो इनका संबंध योगकारक नहीं बन सकता है। (उदाहरण के तौर पर मिथुन लग्‍न)। इस स्थिति को राजयोग भंग भी मान सकते हैं। 23. जन्‍म स्‍थान से अष्‍टम स्‍थान को आयु स्‍थान कहते हैं। और इस आठवें स्‍थान से आठवां स्‍थान आयु की आयु है अर्थात लग्‍न से तीसरा भाव। दूसरा भाव आयु का व्‍यय स्‍थान कहलाता है। अत: द्वितीय एवं सप्‍तम भाव मारक स्‍थान माने गए हैं। 24. द्वितीय एवं सप्‍तम मारक स्‍थानों में द्वितीय स्‍थान सप्‍तम की तुलना में अधिक मारक होता है। इन स्‍थानों पर पाप ग्रह हों और मारकेश के साथ युक्ति कर रहे हों तो उनकी दशाओं में जातक की मृत्‍यु होती है। 25. यदि उनकी दशाओं में मृत्‍यु की आशंका न हो तो सप्‍तमेश और द्वितीयेश की दशाओं में मृत्‍यु होती है। 26. मारक ग्रहों की दशाओं में मृत्‍यु न होती हो तो कुण्‍डली में जो पापग्रह बलवान हो उसकी दशा में मृत्‍यु होती है। व्‍ययाधिपति की दशा में मृत्‍यु न हो तो व्‍ययाधिपति से संबंध करने वाले पापग्रहों की दशा में मरण योग बनेगा। व्‍ययाधिपति का संबंध पापग्रहों से न हो तो व्‍ययाधिपति से संबंधित शुभ ग्रहों की दशा में मृत्‍यु का योग बताना चाहिए। ऐसा समझना चाहिए। व्‍ययाधिपति का संबंध शुभ ग्रहों से भी न हो तो जन्‍म लग्‍न से अष्‍टम स्‍थान के अधिपति की दशा में मरण होता है। अन्‍यथा तृतीयेश की दशा में मृत्‍यु होगी। (मारक स्‍थानाधिपति से संबंधित शुभ ग्रहों को भी मारकत्‍व का गुण प्राप्‍त होता है 27. मारक ग्रहों की दशा में मृत्‍यु न आवे तो कुण्‍डली में जो बलवान पापग्रह हैं उनकी दशा में मृत्‍यु की आशंका होती है। ऐसा विद्वानों को मारक कल्पित करना चाहिए। 28. पापफल देने वाला शनि जब मारक ग्रहों से संबंध करता है तब पूर्ण मारकेशों को अतिक्रमण कर नि:संदेह मारक फल देता है। इसमें संशय नहीं है। 29. सभी ग्रह अपनी अपनी दशा और अंतरदशा में अपने भाव के अनुरूप शुभ अथवा अशुभ फल प्रदान करते हैं। (सभी ग्रह अपनी महादशा की अपनी ही अंतरदशा में शुभफल प्रदान नहीं करते हैं 30. दशानाथ जिन ग्रहों के साथ संबंध करता हो और जो ग्रह दशानाथ सरीखा समान धर्मा हो, वैसा ही फल देने वाला हो तो उसकी अंतरदशा में दशानाथ स्‍वयं की दशा का फल देता है। 31. दशानाथ के संबंध रहित तथा विरुद्ध फल देने वाले ग्रहों की अंतरदशा में दशाधिपति और अंतरदशाधिपति दोनों के अनुसार दशाफल कल्‍पना करके समझना चाहिए। (विरुद्ध व संबंध रहित ग्रहों का फल अंतरदशा में समझना अधिक महत्‍वपूर्ण है – लेख 32. केन्‍द्र का स्‍वामी अपनी दशा में संबंध रखने वाले त्रिकोणेश की अंतरदशा में शुभफल प्रदान करता है। त्रिकोणेश भी अपनी दशा में केन्‍द्रेश के साथ यदि संबंध बनाए तो अपनी अंतरदशा में शुभफल प्रदान करता है। यदि दोनों का परस्‍पर संबंध न हो तो दोनों अशुभ फल देते हैं। 33. यदि मारक ग्रहों की अंतरदशा में राजयोग आरंभ हो तो वह अंतरदशा मनुष्‍य को उत्‍तरोतर राज्‍याधिकार से केवल प्रसिद्ध कर देती है। पूर्ण सुख नहीं दे पाती है। 34. अगर राजयोग करने वाले ग्रहों के संबंधी शुभग्रहों की अंतरदशा में राजयोग का आरंभ होवे तो राज्‍य से सुख और प्रतिष्‍ठा बढ़ती है। राजयोग करने वाले से संबंध न करने वाले शुभग्रहों की दशा प्रारंभ हो तो फल सम होते हैं। फलों में अधिकता या न्‍यूनता नहीं दिखाई देगी। जैसा है वैसा ही बना रहेगा। 35. योगकारक ग्रहों के साथ संबंध करने वाले शुभग्रहों की महादशा के योगकारक ग्रहों की अंतरदशा में योगकारक ग्रह योग का शुभफल क्‍वचित देते हैं। 36. राहू केतू यदि केन्‍द्र (विशेषकर चतुर्थ और दशम स्‍थान में) अथवा त्रिकोण में स्थित होकर किसी भी ग्रह के साथ संबंध नहीं करते हों तो उनकी महादशा में योगकारक ग्रहों की अंतरदशा में उन ग्रहों के अनुसार शुभयोगकारक फल देते हैं। (यानी शुभारुढ़ राहू केतू शुभ संबंध की अपेक्षा नहीं रखते। बस वे पाप संबंधी नहीं होने चाहिए तभी कहे हुए अनुसार फलदायक होते हैं।) राजयोग रहित शुभग्रहों की अंतरदशा में शुभफल होगा, ऐसा समझना चाहिए। 37-38. यदि महादशा के स्‍वामी पापफलप्रद ग्रह हों तो उनके असंबंधी शुभग्रह की अंतरदशा पापफल ही देती है। उन महादशा के स्‍वामी पापी ग्रहों के संबंधी शुभग्रह की अंतरदशा मिश्रित (शुभ एवं अशुभ) फल देती है। पापी दशाधिप से असंबंधी योगकारक ग्रहों की अंतरदशा अत्‍यंत पापफल देने वाली होती है 39. मारक ग्रहों की महादशा में उनके साथ संबंध करने वाले शुभग्रहों की अंतरदशा में दशानाथ मारक नहीं बनता है। परन्‍तु उसके साथ संबंध रहित पापग्रह अंतरदशा में मारक बनते हैं 40. शुक्र और शनि अपनी अपनी महादशा में अपनी अपनी अंतरदशा में अपने अपने शुभ फल देते हैं। यानी शनि महादशा में शुक्र की अंतरदशा हो तो शनि के फल मिलेंगे। शुक्र की महादशा में शनि के अंतर में शुक्र के फल मिलेंगे। इस फल के लिए दोनों ग्रहों के आपसी संबंध की अपेक्षा भी नहीं करनी चाहिए। 41. दशम स्‍थान का स्‍वामी लग्‍न में और लग्‍न का स्‍वामी दशम में, ऐसा योग हो तो वह राजयोग समझना चाहिए। इस योग पर विख्‍यात और विजयी ऐसा मनुष्‍य होता है। 42. नवम स्‍थान का स्‍वामी दशम में और दशम स्‍थान का स्‍वामी नवम में हो तो ऐसा योग राजयोग होता है। इस योग पर विख्‍यात और विजयी पुरुष होता है। महर्षि पाराशर के लघु पाराशरी फलित सिद्धांत सूत्र में कुल जमा ये ही 42 सूत्र दिए गए हैं। बाद में मनीषियों ने इन फलित सूत्रों के आधार पर कई बड़े ग्रंथ रचे हैं, जिनमें भाव कारकों, दशाओं, राजयोग, मृत्‍युयोग आदि पर विशद वर्णन किया है। निजी तौर पर मुझे मेजर एसजी खोत की लघु पाराशरी सिद्धांत पुस्‍तक प्रिय है। इसमें खोत ने हर बिंदू का विस्‍तार से वर्णन कीया गया है

फलित ज्योतिष की अवधारणा को समझने के लिए समय रेखा और उस पर भूत वर्तमान और भविष्य के बिन्दुओं की मूल प्रकृति को समझना आवश्यक है.अपने नैसर्गिक गुणों के कारण अतीत निश्चित और अपरिवर्तनीय होता है जो वीत गया उसको वदला नही जा सकता ,वर्तमान प्रत्यक्ष होता है और भविष्य अनिश्चित और परिवर्तनीय होता है.जहाँ तक विज्ञान के भी जानने की बात है अपने पूर्ण रूप में अतीत(क्या होचुका हैऔर वर्तमान(क्या हो रहा है को भी जान नहीं पाया है तो भविष्य के बारे में वताना कठीन है को सही बताने का दावा करना विज्ञान और ज्योतिष दोनों के लिए कठिनाई भरा ही होगा.मगर इससे न तो विज्ञान मौसम,प्रगति, अर्थव्यवस्था और भविष्य में होने वाले परिवर्तनों के बारे में जानने के लिए होने वाले अनुसंधान रोकेगा और न ही ज्योतिष के आधार पर भविष्यवाणियां करना रुकेगा.मगर विज्ञान अपने एकत्र आंकडों के आधार पर अपनी भविष्यवाणियों को ज्यादा सशक्त आधार दे पा रहा है और ज्योतिष अपनी अवधारणाओं और उनके परिक्षण के अभाव में अतार्किक होता जारहा है.मेरा जोर इस बात पर है कि ज्योतिष के अंतर्भूत तत्वों के आधार पर निश्चित अवधारणाएं बना कर उनका वैज्ञानिक परिक्षण किया जावे.और प्रयोग प्रेक्षण और निष्कर्ष विधि से वर्तमान नियमों का परिक्षण किया जाेये और आवश्यक हो तो संशोधन किया जावे. भारतीय फलित ज्योतिष में चेतन और अचेतन की महत्वपूर्ण भूमिका है.क्योंकि चेतना के प्रकट होने के क्षण(जन्म)से ही जन्म कुंडली का निर्माण कर फलित निकाला जाता है.समस्त जड़ और अचेतन जगत तो वैसे ही अत्यंत सटीक वैज्ञानिक नियमों से संचालित होता है.अनु परमाणु और क्वार्क से लेकर विशाल गेलेक्सियाँ क्षणांश के लिए भी नियम नहीं तोड़ती.फिर भी हम उनके बारे में क्षणांश ही जान पाए है.इनके भविष्य के बारे में वैज्ञानिक नियमो से जाना जासकता है.पर जहाँ तक चेतन जगत का सवाल है उसके नियम अधिक जटिल है इतने जटिल कि हम उनके बारे में वैज्ञानिक तौर पर कुछ नहीं जानते है.अतः इसकी भविष्यवाणी किया जाना कठिन है.इसकारण से भी भविष्यवाणी और कठिन हो जाती है कि चेतना से संचालित होने वाली इकाइयों के पैरामीटर अनगिनत होते है.इन सब पैरामीटर को समाहित करते हुए नियम खोजना कठिन होता है. फिर शायद चेतना से संचालित इकाइयों के बारे में भविष्य वाणी किया जाना अवैज्ञानिक है. इसको उदहारण से समझा जा सकता है.एक जड़ वस्तु जैसे पत्थर आदि को गिराने या फेंकने पर उसकी प्रारंभिक सूचनाओं के आधार पर उसकी गति, तय की जाने वाली दूरी, प्रभाव आदि की सही सही भविष्य वाणी की जासकती है पर एक चेतन प्राणी जैसे कुत्ता आदि जानवर के व्यवहार के बारें में भविष्यवाणी कम सटीकता से की जा सकेगी.मानवीय चेतना का उच्चतम स्तर व्यवहार के बारे में सटीकता और कम हो जायेगी.और फिर समाज की सामूहिक चेतना के बारे में यह संभावना और कम हो जायेगी.यहाँ तक हम वर्तमान की बात कर रहे है फिर चेतन इकाइयों के भविष्य के बारे में जो अनिश्चित और परिवर्तनीय है कह पाना अति कठिन है.फिर निश्चित ही फलित वैज्ञानिक दायरे से दूर की वस्तु है. मानव सभ्यता के आरम्भ से लेकर आज तक कई जीनियस,प्रोफेट,भविष्यवक्ता और संत हुए है जिनकी भविष्यवाणी सटीकता तक सही हुई है. एडगर कैसी और जूल वर्न बीसवीं सदी के प्रसिद्द भविष्यवक्ता है.(एडगर कैसी के बारे में और उनकी सात प्रसिद्द भविष्यवानियों के बारे में लिंक जूल्स वर्न ने अपने फिक्शन में सटीक भविष्यवानियाँ की थी.नस्त्रदामस से आजतक के भविष्यवक्ताओं ने चेतन इकाइयों और उनसे प्रभावित घटनाओं के बारें में तन्द्रा में भविष्यवानियाँ की है.रमल,तेरोकार्ड शकुन, ओमेन और जन्म कुंडली ये सब माध्यम है भविष्य जानने के उपकरण है.इसका उपयोग करके लोग अवचेतनता और समाधि में जाकर भविष्यवाणी करते है.सपष्ट रूप से इन्हें अवैज्ञानिक कहा जासकता है. पर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि मानव जाति ने जितना समय बाहर के संसार का विज्ञान जानने के लिए बिताया है उससे कई गुना अधिक समय उसने अपने आंतरिक संसार और अवचेतन के अध्ययन के लिए दिया है. भारतीय ऋषियों ने सर्व प्रथम पृथवी के सापेक्ष खगोलीय गणनाओं के माध्यम से सटीक समय रेखा का पता लगाया.उस समय रेखा पर ग्रहों की स्थिति के आधार पर जन्म कुंडली का आविष्कार किया.ग्रहों की स्थिति के आधार पर ब्रह्मांड की उस तात्क्षणिक स्थिति को खोजा जो जातक के इस ब्रह्माण्ड में प्रथम चेतन क्षण को दर्शाता है.ऊर्जसके.कुलमिलाकर सबसे पहले भविष्यवानियों की आधारभूत अवधारणाओं का निर्माण भारतीय ज्योतिषाचार्यों ने किया.और समय के साथ हुए अनुभविक प्रयोगों से भ्रगुसंहिता जैसे ग्रंथो को लिखा गया.अफसोस यह रहा की बाद में लोगों ने इसे चरम विद्या बनाकर इसके प्रगति के द्वार बंद कर दिए.आज ज्योतिष और उसकी भविष्यवानियाँ तो है पर भारतीय ज्योतिष का वैज्ञानिक आधार लुप्त हो चुका है.भविष्यवक्ता यह घोषणा तो कर देते है की दूसरे भाव पर गुरु की पूर्ण दृष्टि व्यक्ति को धनवान बनाते है.पर गुरु की खगोलीय स्थिति का समग्र चित्र उनके मस्तिष्क में कभी नहीं बन पाता है.नहीं ऐसी कोई अवधारणा निर्मित कर परीक्षण करने का प्रयास होता है.उसके बिना ज्योतिष को विज्ञान कहने का दावा मजबूत आधार नहीं प्राप्त कर सकता है. मैं फिर भी इसे विज्ञान के रूप में मान कर इसकी गणनाओं और भविष्य कथनों का वैज्ञानिक आधार परिक्षण करना चाहा रेखाओं के प्रवाह और दिशा के आधार पर वह परास निर्धारित की जो किसी भविष्यवक्ता को संभावना की दिशा बता सके ओर फिर दिशा से दशा वदली जा सके जय मा काली

रविवार, 5 फ़रवरी 2017

मित्रो आज की पोस्टउन लोगो के लिऐ जो ज्योतिष सिख रहे है या जो ज्योतिष मे रुची रखते है पोस्ट थोङी लम्वी है ईस लिऐ क्षमा चाहुगाचन्द्रमा मन का कारक है केवल सोचने का काम करता है,जब सोच मे ही धोखा पैदा हो जाये तो धोखा देखना भी पडेगा और धोखा देकर काम भी करने का काम चन्द्रमा का होगा। लगन का चन्द्रमा राहु से ग्रसित हैतो ,हर सोच भ्रमित हो जायेगी,किसी का विश्वास करना तो दूर अपना खुद का भी विश्वास नही किया जा सकता । गति के पकडते ही आत्मविश्वास डगमगा उठेगा,गति भी बिगड जायेगी और जो कार्य होना था वह भी नही हो पायेगा। दूसरे भाव का चन्द्रमा जब भी अपनी गति मे आयेगा केवल सोच से ही कार्य करने के बाद धन की प्राप्ति को करने मे लगा रहेगा वह कार्य कभी सम्बन्ध के बारे मे भी सोच के लिये माना जा सकता है तो जीवन के सम्बन्धो के लिये भी माना जा सकता है। ख्याली जिन्दगी को जीने के लिये दूसरा चन्द्रमा काफ़ी है। एक भावना से भरा हुआ चेहरा और किसी भी बात को सोचने के लिये अचानक चेहरे का सफ़ेद होना इसी चन्द्रमा की निशानी है। पानी पी पी कर जीवन को निकाला जाना यानी गले का सूखना भी इसी चन्द्रमा के द्वारा माना जा सकता है। दोहरे सम्बन्ध को स्थापित कर लेना इसी चन्द्रमा के कारण होता है यानी पहले किसी सम्बन्ध ने धोखा दिया है तभी दूसरे सम्बन्ध के बारे मे सोचा जा सकता है अन्यथा नही। तीसरा चन्द्रमा भी अपनी गति को आसपास के माहौल से मानसिकता को लगाकर रखता है। कोई भी कुछ भी कह दे,अचानक आंसू निकलना इसी चन्द्रमा की निशानी है,कोई भी कहीं जाये उसके बारे मे आशंका का बना रहना कि वह कहां जायेगा कब आयेगा कैसे आयेगा कैसे जायेगा और इसी बात को जानने के लिये कई उपक्रम किये जायेंगे और इसी दौरान किसी भी कारक से धोखा मिल जायेगा। कहने सुनने के लिये आत्मीय सम्बन्ध बनाना और जब आत्मीय सम्बन्ध बन जाते है तो विश्वास का पूरा होना भी माना जाता है विश्वास भी वही करेगा जो आत्मीय हो और इसी आत्मीयता मे जब किसी भी प्रकार से धोखा मिलेगा तो समझ मे आयेगा कि आत्मीयता की कितनी औकात जीवन मे रह जाती है। चौथा चन्द्रमा वैसे भी दिमाग को आसपास के लोगो को जानने पहिचानने के लिये और हमेशा अपने को यात्रा वाले कारणो से जोड कर रखने वाला होता है,कभी कभी देखा जाता है कि ख्वाब इतने गहरे हो जाते है कि यात्रा मे अपने ही अन्दर की सोच लगाकर बैठे रहते है और अचानक जब ख्याल आता है तो कोई सामान या जोखिम को लेकर चलता हो जाता है फ़िर सिवाय और अधिक सोचने के कुछ भी सामने नही रहता है। एक बात और इस चन्द्रमा के बारे मे सोची जाती है कि व्यक्ति का प्रभाव आसपास के लोगो से अधिक होता है और जब भी कोई कैसी भी बात करता है तो उस व्यक्ति के बारे मे चिन्ता चलती रहती है कि आखिर उसने यह कहा क्यों ? यह बात भी होती है कि चौथा चन्द्रमा अपनी पंचम गति से अष्टम की बातो को अधिक सोचता है कि उसके पूर्वज कैसे थे क्या करते थे उसकी मान्यता कैसी थी वह मान्यता के अनुसार कितने शाही दिमाग से रहन सहन से अपने जीवन को बिताने के लिये चला करता था लेकिन जैसे ही पूर्वजो का आस्तिव समाप्त होता है अचानक केवल ख्वाब ही रह जाते है,इन पूर्वजो की मान्यता को समाप्त करने का कारण खुद के ही कार्य माने जाते है जैसे किसी ने कह दिया अमुक स्थान पर अमुक वाहन सस्ते मे मिल रहा है फ़िर क्या था जोर लगाकर उस वाहन को ले लिया गया और पता लगा कि वह वाहन कुछ ही समय मे कबाडा हो गया,यह सोच पूर्वजो के धन को समाप्त करने वाली और जो भी पास मे था उसे भी समाप्त करने के लिये केवल एक लोभ जो सस्ते के रूप मे था धोखा खाने के लिये काफ़ी माना जाता है पंचम का चन्द्रमा भी धोखा देने मे पीछे नही रहता है,किसी ने जरा सी बात की और अक्समात दिल उस पर आ गया और कुछ समय बाद सामने वाले के लिये कुछ भी करने के लिये तैयार हो जाना मामूली सी बात होती है। यह बात अक्सर पुरुष स्त्रियों के प्रति और स्त्री पुरुषों के प्रति जानबूझ कर करने वाले होते है। किसी ने भावुकता से भरा गाना गा दिया बस उसके साथ साथ आंसू चलने लग गये और सामने वाले ने तो अपने अनुसार केवल नौटंकी की थी और खुद जाकर उस नौटंकी का शिकार बन गये लोग अपनी व्यथा को लेकर आये और उस व्यथा के अन्दर यहघोखे का शिकार हो गऐ धोखा भी पांचवे चन्द्रमा के कारण ही माना जा सकता है छठे भाव का चन्द्रमा भी प्लान बनाकर काम करने के लिये अपनी गति को देता है लेकिन सौ मे से एकभी प्लान सफ़ल कभी नही होता है केवल रास्ता चलते जो काम होने वाले होते है वह हो जाते है और जो काम प्लान बनाकर किया जाता है वह नही होता है। सोचा था कि फला काम को अमुक समय पर कर लिया जायेगा और अमुक समय पर काम करने के बाद अमुक मात्रा मे धन आयेगा और अमुक मात्रा मे खर्च करने के बाद अमुक सामान की प्राप्ति हो जायेगी और उस सामान से अमुक प्रकार का कष्ट समाप्त हो जायेगा,पता लगा कि वह काम नही हुआ और बीच की सभी कडियां पता नही कहां चली गयी छठे भाव का चन्द्रमा मौसी और चाची का कारक होता है,अगर इनके प्रति सेवा भाव रखा जाये तथा खुद की माता की बीमारियों और रोजाना के कामो के बारे मे सहायता की जाये तो यह चन्द्रमा अच्छे फ़ल देने लगता है,इस चन्द्रमा को सफ़ेद खरगोश की उपाधि भी दी जाती है जो लोग खरगोश को पालने और उन्हे दाना पानी देने का काम करते है उनके लिये भी चन्द्रमा का सहयोग मिलता रहता है,छठे भाव का चन्द्रमा अपनी सप्तम द्रिष्टि से बारहवे भाव को देखता है बारहवा भाव नवे भाव का चौथा यानी भाग्य का घर होता है अगर धर्म स्थानो मे जाकर श्रद्धा से धार्मिक कार्य किये जाते रहे तो भी चन्द्रमा साथ देता है,नमी वाले स्थानो मे रहने से पानी के क्षेत्रो मे कार्य करने से यात्रा आदि के कार्यों मे कार्य करने से यह चन्द्रमा दिक्कत देने वाला बन जाता है.इस चन्द्रमा मे बुध का प्रभाव आने से माता को उनके मायके मे यानी ननिहाल मे सम्मान मिलता है अगर ननिहाल से बनाकर रखी जाये तो भी चन्द्रमा सहायक हो जाता है.छठे घर का चन्द्रमा के बारे मे कहा जाता है,कि जो भी प्रयत्न किया जाता है जो इच्छा पालकर कार्य किया जाता है सभी प्रयत्नो को असफ़ल कर देता है,"विकलं विफ़लं प्रयत्नं",लेकिन जो भी कार्य रास्ते चलते किया जाता है वह सफ़ल हो जाता है या थक कर जब कार्य को बन्द करने का मन करता है कार्य पूरा होने लगता है आदि बाते आती है,यह भाव श्रम करने के बाद जीविका चलाने के लिये अपनी योजना को देता है,जितना श्रम किया जायेगा उतना ही यह अच्छा फ़ल देगा,जितना आलस किया जायेगा उतना ही खराब फ़ल देगा.लोगों की सेवा करना और रोजाना के कार्यों को सुचारु रूप से समाप्त करना ही इस घर के चन्द्रमा का अच्छा उपाय है.मित्रो सबसे खतरनाक तो सातवे भाव का चन्द्रमा को माना गया है। शादी करने के बाद मिलने वाला धोखा ! बडी धूमधाम से शादी की गयी और यह सोचा गया कि पति या पत्नी आकर घर को सम्भालेगी,पता लगा कि पत्नी का पीछे किसी से अफ़ेयर था वह अपने साथ घर की जमा पूंजी भी लेकर चली गयी या पति जिसे यह माना था कि बहुत ही सदाचारी है भावनाओ को समझने वाला है सभी भावनाओ को समझेगा और पता लगा कि उसका पहले से ही कोई अफ़ेयर आदि चल रहा था और वह एक दिन लापता हो गया मिला तब जब उसके साथ एक दो बच्चे भी थे। इस चन्द्रमा के द्वारा लोगो को जो नौकरी करने वाले होते है उन्हे भी खूब बना दिया जाता है नौकरी करवाने वाला कहता है कि अमुक काम की ट्रेनिंग करनी है और उस ट्रेनिंग मे अमुख खर्चा होगा उस खर्चे को पहले दो विर नौकरी करो नौकरी भी ऐसी अच्छी होगी कि ट्रेनिंग के समय मे ही नौकरी करवाने वाला अपनी कम्पनी को बन्द कर के भाग जायेगा और आधी ट्रेनिंग और दिया गया रुपया खड्डे मे चला जायेगा इस प्रकार से समय भी बेकार हुआ और धन भी गया मानसिक शांति भी गयी साथ मे जो पढाई के कागज भी लिये गये थे फ़ोटो भी ली गयी थी वह भी गयी और पता नही किसकी आई डी बनाकर किस बैंक से कर्जा और लिया जायेगा अथवा कौन से मोबाइल की कौन सी सिम फ़र्जी आई डी से लेकर किसके के लिये किस प्रकार की बात की जायेगी और जब पकडा जायेगा तो वही कारण जो नौकरी के लोभ मे था सामने आयेगा। एक बात और भी इस चन्द्रमा के कारण बनती है कि माता भी अपनी राय को भावुकता मे देती है और जो भी काम बनने का होता है उसके अन्दर रिस्क लेने से साफ़ मना किया जाता है। बिना रिस्क के फ़ायदा और नुकसान और तजुर्बा भी कहां से मिलेगासप्तम का चन्द्रमा बुध और शुक्र के साथ होने से सास और उसकी बहिने या तो एक ही खानदान गांव या स्थान पर होसकती है साथ ही पत्नी और पत्नी की बहिन दूसरी माता से पैदा मानी जा सकती है,अथवा पत्नी का परिवार खेती आदि का काम करता है अथवा खेती सम्बन्धित फ़सलो का कारोबार करता है. आठवे भाव का चन्द्रमा भी अपने गति को देने परिणाम सामने आता है तो खारे पानी के तरह से आता है। गूढ बातो को अपनाने मे मन लगना अक्सर इसी भाव के चन्द्रमा के द्वारा होता है,कोई भी गुप्त कार्य किया जाना इसी चन्द्रमा के कारण से ही होता है। यह चन्द्रमा अक्सर चोर की मां के रूप मे काम करता है यानी चोर की मां पहले तो अपने पुत्र को बल देती रहती है कि शाबाश वह जिसका भी सामान चुरा कर लाया वह ठीक है जब उसका पुत्र पकड लिया जाता है तो वह कोने मे सिर देकर रोने के लिये मजबूर हो जाती है वह खुले रूप मे किसी के सामने रो भी नही सकती है। व्यक्ति की मानसिकता उन कार्यों को करने के लिये होती है जो गुप्त रूप से किये जाते है वह काम अक्सर बेकार की सोच से पूर्ण ही होते है वे कभी किसी के लिये भलाई करने वाले नही होते है,हां धोखे से भलाई वाले बन जाये वह दूसरी बात है। सोच मे उन्ही लोगो से काम लिया जाता है जो या तो मरे है या मर चुके है यानी मरे लोगों की आत्मा से काम करवाना अक्सर इस चन्द्रमा वाले लोग अपनी बातो को इस प्रकार से करते है कि वे किसी न किसी की नजर मे चढने के लिये मजबूर हो जाते है वे या तो दुश्मनी मे ऊपर हो जाते है या किसी के मन मे इस प्रकार से बस जाते है कि लोग उनसे सारे भेदो को जान लेने के लिये उनकी हर कीमत पर पहले तो सहायता करते है उन्हे मन से और वाणी से बहुत प्यार देने का दिखावा करते है जैसे ही उनकी सभी गति विधियों को प्राप्त कर लेते है वे अक्सर दूर हो जाते है और बदनाम भी करने लगते है। जब जब अष्टम चन्द्रमा से राहु अपनी युति मिलायेगा वह मानसिक तनाव अनजाने भय आदि के प्रति देगा,इसके उपाय के लिये अपने सामने लोगो से बात करने और परिवार से वैमनस्यता आदि को नही रखना चाहिये पराशक्तियों के प्रति खर्चा नही करना चाहिये ह्रदय सम्बन्धी बीमारी का ख्याल रखना चाहिये,गुप्त कार्य करना और सोचना तथा हमेशा यौन सम्बन्धो के प्रति ध्यान रखना भी स्वास्थ्य और जीवन के अमूल्य समय को बरबाद करना होता है,अक्सर कुये का पानी सोने वाले स्थान मे कांच की बोतल मे रखने से और विधवा माता जैसी स्त्रियों की सेवा करना फ़लदायी होता है. नवे भाव के चन्द्रमा का प्रभाव भी कम नही होता है लोग विदेश के लोगो से मानसिकता को लगाने के लिये देखे जाते है बाहर जाते है और अपने यहां की रीति रिवाजो को थोपने की कोशिश करते है जैसे ही उनकी चाल को लोग समझ लेते है फ़िर उनकी ही मानसिकता का फ़ायदा उठाकर उन्हे ही आराम से धोखा दिया जाता है अक्सर इस प्रकार के लोग अपने कार्यों से यात्रा वाले काम या कानून वाले काम या विदेशी लोगो से खरीद बेच के काम करते हुये देखे जा सकते है यही चन्द्रमा उन्हे अधिक पूजा पाठ या लोगो की धार्मिक भावनाओ से खेलने के लिये भी देखने मे आया है कभी कभी तो वे लोगों को इतना मानसिक रूप से बरबाद कर देते है कि लोग अपने घर द्वार को छोड कर उनके पास ही आकर बस जाते है लेकिन जब उन्हे सच्चाई का पता चलता है तो वे उनसे उसी प्रकार से नफ़रत करने लगते है जैसे कल का खाया हुआ जब आज लैट्रिन मे जाता है तो उसे छूना तो दूर बदबू की बजह से नाक भी बन्द करके रखनी पडती है। दसवे भाव का चन्द्रमा अक्सर जीवन के कार्यों के लिये दिक्कत देने वाला माना जाता है इस चन्द्रमा वालो को अपने पिता की गति का पता नही होता है और पिता की गति जब तक जातक को नही मिलती है तब तक जातक किसी भी लिंग का हो वह अपने को पराक्रम मे आगे नही ले जा पाता है वह माता के द्वारा या माता के स्वभाव पर चलने वाला होता है उसके अन्दर केवल घर की और रिस्तो वाली बाते ही परेशान करने के लिये होती है जब भी कोई बात होती है तो उसका ध्यान अलावा दुनिया के रिस्क लेने की अपेक्षा घर के लोगों के बीच मे ही उलझा रहना माना जाता है यह भी देखा गया है कि इस प्रकार के लोग अपनी शिक्षा मे या काम करने के अन्दर अपनी लगन इस प्रकार के लोगो से लगा लेते है जो इस बात की घात मे इन्तजार करने वाले होते है कि उन्हे कोई तीतर मिले जिसे अपनी शिकार वाली नीति से पंख उधेड कर काम मे लिया जा सके। अक्सर देखा जाता है कि इस चन्द्रमा वाले जातक कभी भी अपने पहले शुरु किये गये काम मे सफ़ल नही होते है जब उन्हे दूसरी बार उसी काम को करने का अवसर मिलता है तो वे समझ जाते है कि पहले उन्हे मानसिक रूप से समझ नही होने के कारण धोखे मे रखा गया था और उनका चलता हुआ काम पूरा नही हो पाया था वह काम अचानक शुरु कर देने के बाद वे सफ़ल भी हो जाते है लेकिन काम के मिलने वाले लाभ को वे या तो धर्म स्थानो मे खर्च करने के बाद अपने को दुबारा से चिन्ता मे ले जाते है या फ़िर किये जाने वाले खर्चे के प्रति अपनी सोच को कायम रखने के कारण अन्दर ही अन्दर घुलते रहते है।कुये के पानी की तरह से अपना काम करता है काफ़ी मेहनत करने के बाद कोई काम किया जाता है और जब काम से पैसा कमा लेता है है तो वो खर्च कर लेता है ग्यारहवा चन्द्रमा जब धोखा देने वाला होता है तो उसके लिये अक्सर दोस्त बनकर लोग उसे लूट खाते है जब भी कोई काम खुद का होता है तो दोस्त दूर हो जाते है और जब कोई काम दोस्तो का होता है तो अपनी भावनाओ से इस प्रकार से सम्मोहित करते है कि जातक जिसका ग्यारहवा चन्द्रमा होता है उनकी सहायता करने के लिये मजबूर हो जाता है वह मजबूरी चाहे जाति से सम्बन्धित हो या समाज से सम्बन्धित हो या किसी प्रकार के बडे लाभ की सोच के कारण हो,जब वापसी मे उस की गयी सहायता का मायना देखा जाता है तो उसी प्रकार से समझ मे आता है जैसे आशा दी जाये कि आने वाले समय मे बरसात होगी तो रेत मे पानी आयेगा फ़िर उसके अन्दर फ़सल को पैदा करने के बाद लिया गया चुकता कर दिया जायेगा। बारहवा चंद्रमा अक्सर दिमाग को पराशक्तियों की सोच मे ले जाता है आदमी का दिमाग इसी सोच मे रहता है कि आदमी मरने के बाद भी कही जिन्दा रहता है और रहता भी है तो वह क्या करता है यानी भूत प्रेत पर विश्वास करने वाला और इसी प्रकार की सोच के कारण वह आजीवन किसी न किसी प्रकार से ठगा जाता है,चाहे वह तांत्रिकों के द्वारा ठगा जाये या आश्रम बनाकर अपनी दुकानदारी चलाने वाले लोगों से ठगा जाये यह कारण अक्सर उन लोगो के साथ अवश्य देखा जाता है जिनके पास एक अजीब सोच जो उनके खुद के शरीर से सम्बन्ध रखती है देखी जा सकती है। लोग इस चन्द्र्मा से आहत होने के कारण बोलने मे चतुर होते है अपनी भावना को प्रदर्शित करने मे माहिर होते है उनकी भावना की सोच मे उस प्रकार के तत्व जान लेने की इच्छा होती है जो किसी अन्य की समझ से बाहर की बात हो। इस बात मे वे बहुत ही बुरी तरह से तब और ठगाये जाते है जब उन्हे यह सोच परेशान करती है कि योग और भोग मे क्या अन्तर होता है वे योग की तलास मे भटकते है और जहां भी बडा नाम देखा उनके सोच वही जाकर अटक जाती है लेकिन जब उनके सामने आता है कि रास्ता चलते मनचले और जेब कट की जो औकात होती है वही औकात उनके द्वारा सोचे गये और नाम के सहारे चलने वाले व्यक्ति के प्रति होती है तो वे अक्समात ही विद्रोह पर उतर आते है। और विद्रोह पर उतरने के बाद ऐसा भी अवसर आता है जब उन्हे इन बातो से इतनी नफ़रत पैदा हो जाती है कि वे किसी भी ऐसे स्थान को देखने के बाद खुले रूप मे गालिया दे या न दें लेकिन मन ही मन गालियां जरूर देते देखे गये बारहवा चन्द्रमा राशि के अनुसार और अन्य ग्रहों की द्रिष्टि से अपने फ़ल को देता है,मन के भाव से नवा भाव होने से श्रद्धा वाले स्थान पर चन्द्रमा के होने से जिस भी कारक की तरफ़ श्रद्धा होती है यहीं से पता किया जाता है,मन की श्रद्धा से जो खर्चा यात्रा या किसी भी कार्य को किया जाता है वह यहीं से चन्द्रमा के अनुसार ही देखा जाता है वायु का घर होने के कारण अगर चन्द्रमा इस भाव मे है तो हवाई यात्राओं की अधिकता होती है अगर केतु से सम्बन्ध होता है और त्रिक राशि का सम्बन्ध भी होता है तो फ़ांसी जैसे कारण भी बन जाते है चौथा मंगल अगर अष्टम राहु से ग्रसित होकर इस भाव के चन्द्रमा को देखता है तो जेल जाने या बन्धन मे रहने के कारण को भी पैदा करता है और भूत दोष के कारण शरीर को अस्पताल मे भी भर्ती रखने के लिये अपनी युति को देता है अगर चौथे भाव मे बुध शनि का योग हो तो यह चन्द्रमा अधिक कामुकता को भी देता है और बातो मे एक वाचालता का कारण भी पैदा करता है,जिसके अन्दर पुरानी बातो का ख्याल अधिक रखा जाता है मित्त्रो मन (चन्द्रमा) नीची सोच रखता है तो अच्छी शिक्षा और अच्छे सम्बन्ध (उच्च का गुरु) किसी काम का नही है,"मन के हारे हार है मन के जीते जीत,मन से होती शत्रुता मन से होती प्रतीति मित्रो अगर आप मे से कोई अपनी समस्या का उपाय चाहता है या कुणङली वनवाना या दिखाना या फोन पर अपनी कुणङली की विवेचना चाहते है तो सम्पर्क करे मित्रो हमारी services paid है अगर अच्छी क्वालिटी के रतन लैव टेस्ट रिपोर्ट कार्ङ के साथ मंगवाना चाहते है तो ईन नम्वरो पर सम्पर्क करे 0914481324 07597718725

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2017

मित्रो ज्योतिषियों के विषय में लोगों में जो सबसे बडी गलतफहमी है वो ये है कि लोग उन्हें त्रिकालज्ञ मानते हैं और ऐसा सोचते हैँ कि जैसे ही उसने कोई कुण्डली उठाई वैसे ही वह उस कुण्डली का भूत, वर्तमान और भविष्य सब देख लिया. पर वास्तव में ये सम्भव ही नहीं है. सबसे पहली बात, किसी जन्मपत्री को दस मिनट में देखी ही नहीं जा सकती. प्रत्येक कुण्डली में इतनी गहराई होती है कि जिंदगी भर उसे देखा जाये फिर भी वो पूरी नहीं होती है. आज इस विषय पर इसलिए लिख रहा हूँ इस विषय पर वर्षों शोध किया हूँ, ज्योतिष की एक नहीं अनेकों विधाओं पर काम किया हूँ. जल्दी किसी की कुण्डली नहीं देखता पर जब देखता हूँ घंटों डूबकर देखता हूँमेंने ज्योतिष का अध्ययन शुरू किया| दिन में अक्सर ६ घंटे में ज्योतिष की किताबे या सामयिक पढ़ने या कुंडली के रहस्यों को समझने में व्यतीत करता आया हूँ| ज्योतिष मेरे लिए शोख का विषय था ना की व्यवसाय| इसी लिए मेरे पास मार्ग-दर्शन के हेतु आने वाले मुख्यत: मेरे निजी सम्बन्धी, सहकर्मचारी व् पडोसी होते थे| लोग आते अपनी कुंडली ले कर और में उनका वही कुंडली से मार्गदर्शन करता था| कुंडली की बनावट सही सही हुई है या नहींपहले यह देखना जरुरी समझा इसका मुख्या कारण यह था की मेरे पास पुरानी वनी यो हाथ से वनी हुई होती थी अक्कर गलत होती थी उस समय कुणङली पंचाग से वनाई जाती थी जो काफी मेहनत का काम होता था ओर उसमे कभी कभार गलती भी हो सकती है जब कम्पूटर पर चुटकी में कुंडली बनाना संभव हो गया तब ऐसे संशयात्मक किस्सोमें कुंडली फिर से बना कर देखना मुमकिन हो गया | और मालुम हुआ की जातक जो कुंडली ले कर आज तक आता रहा था वह कुंडली ही सच्ची नहीं बनी थी| तब प्रश्न यह खडा हुआ की कुंडली अगर पहले से ही गलत बनी थी तो फीर आज तक वही कुंडली से की हुई बातें कैसे सही हो रही थी दूसरी और कभी कभी ऐसी घटनाए सामने आती रही जिससे मुझे अंत: चेताना (इन्ट्यूशन) )से आती हुई बातों पर विश्वास करने की प्रेरणा हुई| कई बार ऐसा हुआ की किसी व्यक्ति की कुंडली देखते देखते कुछ एसी बाते मनसे उठी जिसे में उस व्यक्ति को कहने की हिम्मत नहीं कर सका | क्यो की वो अंदर से आती हुई बात, व्यक्ति को में जिस तरह से जानता था उससे बहुत भिन्न थी| इतना ही नहीं मुझे वह बातों के लिए कुंडली में से वैसे ग्रह योग भी नहीं मिले जिसके आधार पर मन में से उठी बातों को सच माना जा सके| ऐसे में अंदर से आई बातों को जाहिर नहीं करना ही समझदारी मानी गई| समय बितने पर जब एसी घटना ए सच हो कर उजागर होने लगी तब मुझे एहसास होने लगा की ज्योतिष के बारिक से बारिक अभ्यास कर के निकाली गई संभावनाओ से भी ज्यादा सटीक हो सकती है मन के अंदर से आने वाली बातें| मैंने पाया की जब पूछने वाला पूरी निष्ठा से पेश हुआ हो और उसको मददगारसावित हो सकती है लेकिन ज्योतिषी की भावना भी सहृदयी हो तब अंत:करण से निकली बातें आश्चर्यजनक ढंग से सच होती है अब एक संभावना बन गई की ज्योतिष का जब बहुत अभ्यास हो जाता है, कुंडली देखने मात्र में अचेतन मन उसका बहुत शीघ्र ही विश्लेषण कर लेता है और उसी में से जन्म लेता है इनटयुशन जो ज्योतिषिक तर्क से परे होता है| दूसरी संभावना यह हो सकती है की एक कोई ऐसी अदृष्ट शक्ति भी है जो भविष्य की जानकारी को उजागर होने या न होने देने को संकलित करती हो| इसी लिए कुंडली गलत भी बनी हो तबभी उसमे से सच्ची बातें भी बताई जाती है.. और तभी तो बिना कोई ज्योतिषीय तर्क के भी निष्पादित कथन सच्चे होते है | यह बात में अच्छी तरह मानने लगा हू की भविष्य कथन कुंडली का मोहताज नहीं होता| कुंडली का ज्ञान व् ग्रह-नक्षत्र तो निमित्त मात्र है असली जवाब तो अंदर से आते है| में यह भी मानने लगा की उच्चत्तर साधन का प्रयोग रोज मर्रा की छोटी मोटी इच्छाओं की पूर्ति के लिए करना ठीक नहीं होगा | इच्छित उद्देश्य की प्राप्ति के लिए करने योग्य सभी पुरुषार्थ कर लेने के बावजूद भी जब परिणाम न मिले और इस वजह से इंसान सचमुच काफी दुखी हो रहा हो तब ही इस रास्ते मार्गदर्शन हेतु प्रयास करना उचित होगा| अंत:स्फ्रुणा कोई निजी सिद्धी नहीं होती| आप उसे बुद्धि से समझा या सिखा नहीं सकते और इसी लिए उसका उपयोग निजी स्वार्थ के लिए नहीं कर सकते न ही उसको कोई चैलेन्ज का हिस्सा बनाना चाहिए| मार्गदर्शन के हेतु आपके पास आए व्यक्ति को मदद करने में आप सुष्टि की उच्चतम प्रणाली (सिस्टम के एक पुर्जे मात्र हो एसी मनोभावना को कायम रख कर अपने अहंकार को उठने नहीं देने की चौकसी रख पाना बहोत जरुरी है| सिस्टम को जितना मंजूर होगा इतना ही और जब मंजूर होगा तब ही आप की बात सच हो सकेगी यह बात हमेशा याद रखनी होगी खैर अव तो पुरा समय ज्योतिष को ही देता हु आज जो भी हु अपने गुरु की कृप्पा ओर मा ँ काली की वदोलत हु मेरा मुझ कुछ नही मित्रो आचार्य राजेश 09 07597718725

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2017

[ maakaali ज्योतिष की आज की पोस्ट टीम इंडिया ने इंग्लैंड को वनडे सीरीज में 2-1 से हराया था टेस्ट सीरीज में उसने इंग्लैंड पर 4-0 से जीत दर्ज की थी इंडिया ने अब टी-20 सीरीज में 2-1 से पहली बार जीत दर्ज की है बेंगलुरू: टेस्ट सीरीज में इंग्लैंड को 4-0 से करारी मात देने के बाद विराट कोहली ने कप्तान के रूप में एक और उपलब्धि हासिल कर ली. टीम इंडिया ने इंग्लैंड को किसी भी टी-20 सीरीज में पहली बार हराया है. विराट के लिए टी-20 में कप्तानी की इससे बेहतर शुरुआत कुछ नहीं हो सकती. टीम इंडिया ने इंग्लैंड को बेंगलुरू के एम चिन्नास्वामी स्टेडियम में 75 रन से हराकर तीन मैचों की सीरीज पर 2-1 से कब्जा कर लिया. विराट की कुंडली की छानबीन करने कि वर्तमान में ग्रहों का प्लेनेटरी एलाइनमेंट विराट कोहली के पक्ष में काम कर रहा है। शक्ति, प्रतिष्ठा, महत्वाकांक्षा और सफलता से जुड़े भाव के ऊपर से गुरू का पारगमन और इसके ऊपर अन्य ग्रहों की दृष्टियां पड़ने से इनके लिए दैवी आशीर्वाद की भांति साबित हो रहा है। याद रखें-इसी हौसले व जुनून की वजह से पहले भी इन्हें कैप्टन बनाया जा चुका है। ज्योतिषीय दृष्टिकोण से देखा जाए तो वर्ष 2017 की अवधि विराट के लिए सबसे यादगार अवधि साबित हो सकती है ऐसा मेरा मानना है कुणङली का एक मुख्य आकर्षण यह है कि विराट राहु की महादशा और शनि की अंतर्दशा में से होकर गुजर रहे हैं जो इनके पक्ष में काम करती दिखाई पड़ रही है इस ज्योतिषीय पहलू और बृहस्पति के लाभकारी पारगमन के प्रभाव के वजह से ये उपरी स्थान तक पहुंचे हैं इस कालावधि के दौरान हम भारतीय क्रिकेट में एक विशेष प्रकार की तीव्रता, जुनून और आक्रामकता का रेला आने की उम्मीद मानी जा सकती है यहां यह बात हमें याद रखनी होगी कि विराट की घनु लगन है चन्द्र राशी कन्या सूर्य राशि वृश्चिक है और इनके चार्ट में मंगल की एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है अगर हम कुछ अन्य फैक्टर्स को भी साथ में लें तो यही विशेषताएं विराट को एक एेसे नायक के तौर पर सबके समक्ष खड़ा करती है जो निडर होने के साथ-साथ जोखिम उठाने और अपरंपरागत रणनीति अपनाने से भी गुरेज नहीं करता है। इस प्रकार से इस दृढ़ संकल्प शक्ति और इच्छा से लैस होने से ये क्रिकेट जगत में एक नया रिकॉर्ड स्थापित करने में सक्षम हो सकते है गोचर का गुरू बृहस्पति सफलता और प्रसिद्धि हासिल करने में निरंतर इनकी मदद करेगा हालांकि, गोचर का शनि समय-समय पर इनकी सूझ-बूझ, जिम्मेदारी और व्यावहारिकता की भावना का परीक्षण लेकर इनको लक्ष्य के प्रति केंद्रित बनाए रखेगा कभी जोश मे होश भी खो सकते है ऐसी वातो से वचना होगा 90दिन की अवधि इनके लिए एक शानदार अवधि नवग्रहों में मंगल ही एक एेसा ग्रह है जो स्पोर्ट्स के लोगों के लिए काफी अहम स्थान रखता है। अपनी यात्रा काल में इसका भ्रमण इनके महत्पूर्ण भावों में से होना कार्यवाहियों की गति को और अधिक बढ़ाएगा। इन ग्रहीय शक्तियों की बदौलत विराट और अधिक दृढ़ संकल्प और आक्रामकता के साथ प्रदर्शन करेंगे। 20 जनवरी 2017 और 13 अप्रैल, 2017 के बीच की अवधि में मंगल का पूरा-पूरा समर्थन इन्हें हासिल होगा। इस तरह से यह अवधि इनकी प्रगति के लिहाज से एक महत्वपूर्ण चरणहो सकती है इनके नेतृत्व कौशल कौशल को जबरदस्त बढ़ावा मिलेगा। इस अवधि के दौरान इनके परफॉरमेंस में भी उत्कृष्टता देखने को मिलेगी। कम से कम अगले 4-5 साल तक कोहली एक सुनहरे समय का आनंद लेंगे। इनकी जन्मकुंडली इनके अंदर एक विलक्षण क्षमता छिपी होने को दर्शाती है और इनको एक अभी लंबा रास्ता तय करना है। अपनी इस विजय यात्रा के दौरान इनको अपने फैन्स की ओर से काफी सराहनाएं, वाहवाही और तालियां मिलेंगी। ये शान और गरिमा के साथ भारतीय क्रिकेट टीम का नेतृत्व करने में समर्थ रहेगे

[ maakaali ज्योतिष की आज की पोस्ट टीम इंडिया ने इंग्लैंड को वनडे सीरीज में 2-1 से हराया था टेस्ट सीरीज में उसने इंग्लैंड पर 4-0 से जीत दर्ज की थी इंडिया ने अब टी-20 सीरीज में 2-1 से पहली बार जीत दर्ज की है बेंगलुरू: टेस्ट सीरीज में इंग्लैंड को 4-0 से करारी मात देने के बाद विराट कोहली ने कप्तान के रूप में एक और उपलब्धि हासिल कर ली. टीम इंडिया ने इंग्लैंड को किसी भी टी-20 सीरीज में पहली बार हराया है. विराट के लिए टी-20 में कप्तानी की इससे बेहतर शुरुआत कुछ नहीं हो सकती. टीम इंडिया ने इंग्लैंड को बेंगलुरू के एम चिन्नास्वामी स्टेडियम में 75 रन से हराकर तीन मैचों की सीरीज पर 2-1 से कब्जा कर लिया. विराट की कुंडली की छानबीन करने कि वर्तमान में ग्रहों का प्लेनेटरी एलाइनमेंट विराट कोहली के पक्ष में काम कर रहा है। शक्ति, प्रतिष्ठा, महत्वाकांक्षा और सफलता से जुड़े भाव के ऊपर से गुरू का पारगमन और इसके ऊपर अन्य ग्रहों की दृष्टियां पड़ने से इनके लिए दैवी आशीर्वाद की भांति साबित हो रहा है। याद रखें-इसी हौसले व जुनून की वजह से पहले भी इन्हें कैप्टन बनाया जा चुका है। ज्योतिषीय दृष्टिकोण से देखा जाए तो वर्ष 2017 की अवधि विराट के लिए सबसे यादगार अवधि साबित हो सकती है ऐसा मेरा मानना है कुणङली का एक मुख्य आकर्षण यह है कि विराट राहु की महादशा और शनि की अंतर्दशा में से होकर गुजर रहे हैं जो इनके पक्ष में काम करती दिखाई पड़ रही है इस ज्योतिषीय पहलू और बृहस्पति के लाभकारी पारगमन के प्रभाव के वजह से ये उपरी स्थान तक पहुंचे हैं इस कालावधि के दौरान हम भारतीय क्रिकेट में एक विशेष प्रकार की तीव्रता, जुनून और आक्रामकता का रेला आने की उम्मीद मानी जा सकती है यहां यह बात हमें याद रखनी होगी कि विराट की घनु लगन है चन्द्र राशी कन्या सूर्य राशि वृश्चिक है और इनके चार्ट में मंगल की एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है अगर हम कुछ अन्य फैक्टर्स को भी साथ में लें तो यही विशेषताएं विराट को एक एेसे नायक के तौर पर सबके समक्ष खड़ा करती है जो निडर होने के साथ-साथ जोखिम उठाने और अपरंपरागत रणनीति अपनाने से भी गुरेज नहीं करता है। इस प्रकार से इस दृढ़ संकल्प शक्ति और इच्छा से लैस होने से ये क्रिकेट जगत में एक नया रिकॉर्ड स्थापित करने में सक्षम हो सकते है गोचर का गुरू बृहस्पति सफलता और प्रसिद्धि हासिल करने में निरंतर इनकी मदद करेगा हालांकि, गोचर का शनि समय-समय पर इनकी सूझ-बूझ, जिम्मेदारी और व्यावहारिकता की भावना का परीक्षण लेकर इनको लक्ष्य के प्रति केंद्रित बनाए रखेगा कभी जोश मे होश भी खो सकते है ऐसी वातो से वचना होगा 90दिन की अवधि इनके लिए एक शानदार अवधि नवग्रहों में मंगल ही एक एेसा ग्रह है जो स्पोर्ट्स के लोगों के लिए काफी अहम स्थान रखता है। अपनी यात्रा काल में इसका भ्रमण इनके महत्पूर्ण भावों में से होना कार्यवाहियों की गति को और अधिक बढ़ाएगा। इन ग्रहीय शक्तियों की बदौलत विराट और अधिक दृढ़ संकल्प और आक्रामकता के साथ प्रदर्शन करेंगे। 20 जनवरी 2017 और 13 अप्रैल, 2017 के बीच की अवधि में मंगल का पूरा-पूरा समर्थन इन्हें हासिल होगा। इस तरह से यह अवधि इनकी प्रगति के लिहाज से एक महत्वपूर्ण चरणहो सकती है इनके नेतृत्व कौशल कौशल को जबरदस्त बढ़ावा मिलेगा। इस अवधि के दौरान इनके परफॉरमेंस में भी उत्कृष्टता देखने को मिलेगी। कम से कम अगले 4-5 साल तक कोहली एक सुनहरे समय का आनंद लेंगे। इनकी जन्मकुंडली इनके अंदर एक विलक्षण क्षमता छिपी होने को दर्शाती है और इनको एक अभी लंबा रास्ता तय करना है। अपनी इस विजय यात्रा के दौरान इनको अपने फैन्स की ओर से काफी सराहनाएं, वाहवाही और तालियां मिलेंगी। ये शान और गरिमा के साथ भारतीय क्रिकेट टीम का नेतृत्व करने में समर्थ रहेगे

सोमवार, 30 जनवरी 2017

आज की आपाधापी के पीछे अगर ज्योतिषीय कारण जानने की कोशिश करें तो सबसे पहले और मुख्य रूप से राहु का रूप सामने आता है..आप जीवन के किसी भी क्षेत्र की कल्पना राहु के बिना नहीं कर सकते...राहु आकाश हे .विस्तार है सीमायें है व मुख्य रूप से नशा है जूनून है .किसी भी वस्तु का किसी भी चीज का नशा धन का,रूप का ताकत का,राजनीति का,गुस्से का,हवस का,दिखावे का.ज्योतिष भी एक नशा है यह भी सौ प्रतिशत सत्य माना जा सकता है। बिना राहु के ज्योतिष नही की जा सकती है। अगर कुंडली मे राहु का रूप बुध के साथ सही सामजस्य बैठाये है तो ज्योतिष आराम से की जा सकती है,और राहु का सामजस्य अगर बुध के साथ सही नही है तो ज्योतिष करने में कठिनाई मानी जा सकती है। राहु का प्रयोग अगर बेलेंस करने मे ठीक है तो भी ज्योतिष का प्रकार अपने ही रूप मे होगा और बेलेंस नही किया जा सके तो वह रूप अपने दूसरे रूप मे होगा। जो लोग ज्योतिष को करना जानते है सबसे पहले वे अपने आसपास के माहौल के साथ अपने रूप को भी बदलना जरूरी समझते महिलाओं के अन्दर एक भावना देखी जाती है,ज्योतिष करते समय तथा ज्योतिष मे अधिक समय देने के कारण उनकी शरीर की अन्य गतिया रुक जाती है उनके शरीर मे राहु का प्रवेश हो जाता है और वे अपने कम उम्र के जीवन काल मे ही मोटी होनी शुरु हो जाती है। ज्योतिषी महिलाओं के लिये एक बात और देखी जाती है कि वे मोटी किनारी की उत्तेजक रंगो से भरी हुयी साडी का चुनाव करती है,अगर वे अपने को अधिक विद्वान प्रदर्शित करना चाहती है तो अपने आसपास के माहौल को भी राहु से पूर्ण कर लेती है जैसे भगवान का चित्र किसी देवी देवता को बहुत ही आकर्षित रंग से सजा लेना,अपने बैठने वाले कमरे मे बहुत सी आकर्षक वस्तुयों को सजा लेना आदि माना जा सकता है। यही बात पुरुषों के लिये देखी जाती है वे अपने शरीर की गति को सामान्य नही रख पाने के कारण मोटे होते जाते है या उनकी तोंद बाहर की तरफ़ निकल जाती है वे अपने शरीर को एक अलग किस्म का दिखाने के लिये लम्बा कुर्ता या एक ऐसी धोती का स्तेमाल करने लगते है जो उन्हे खुद को अच्छी लगती हो भले ही वे किसी को पहिनावे मे अच्छे लगते हो या नही। एक बात जो सबसे अधिक जानी जाती है वह होती कि कौन कितना ज्योतिषी का आदर करता है,अगर आदर मे कमी होती है तो बजाय ज्योतिष के ज्योतिषी का अहम बोलने लगता है और वह जो कुछ भी मन मे आता है कहना शुरु कर देता है,कोई अपने को किसी देवता का और कोई अपने को किसी देवता का पुजारी बताकर उस देवता के नाम से अपने कार्य को पूरा करने के लिये भी मानते है।अक्सर अपने सम्मान की बातो को ज्योतिषी बढ चढ कर बखान करने की कोशिश भी करते है,अपने सम्बन्धो को राजनीतिक लोगों से और अच्छी जान पहिचान बनाने के लिये किसी न किसी प्रकार से मीडिया के साथ भी अपने सम्बन्धो को रखने की कोशिश भी ज्योतिषियों की होती है,मीडिया भी राहु के अन्दर अपनी हैसियत को अच्छी तरह से प्रदर्शित करने की बात रखता है,जहां बारहवां शुक्र और राहु आपस में मिले छठा केतु भीतर की बातो को सम्वाद दाता के रूप मे प्रदर्शित करने की कला को राहु को सौंपना शुरु कर देता है,उसी प्रकार से जो धन से सम्बन्धित बाते होती है आडम्बर जैसी बाते होती है या किसी प्रकार की छल वाली बाते होती है मीडिया वाले ज्योतिषी के प्रति अपना प्रभाव बहुत जल्दी से देना शुरु कर देते है,अगर ज्योतिषी को बारहवे भाव का बेलेन्स बनाने की कला आती है तो वह मीडिया और जनता तथा जोखिम वाले कारण तथा अपमान करने रिस्क लेने मृत्यु सम्बन्धी कारण बताने तथा जो जनता तथा समाज मे गूढ रूप से चल रहा है उसे प्रकट करने का काम मीडिया का संवाददाता और ज्योतिषी अपने अपने अनुमान को प्रकट करने का काम भी राहु के द्वारा ही करते है। जब ज्योतिषी किसी भी प्रश्न कर्ता के लिये अपनी भावना को प्रकट करने का कार्य करता है तो वह किसी न किसी प्रकार के साधन से अपनी बात को प्रकट करने की कोशिश करता है जैसे अगर उसे कुछ जातक के प्रति कुछ कहना है तो वह या तो अपने ज्ञान से कुंडली बनाकर अपने ज्ञान के द्वारा जातक के प्रति कथन शुरु करेगा या फ़ेस रीडिंग को देखकर अपने भाव प्रदर्शित करेगा,या कोई न कोई ज्योतिष से सम्बन्धित कारक का बल लेकर ही जातक के भाव को प्रदर्शित करेगा। कई लोग जो बिना पढे लिखे होते है वे किसी न किसी प्रकार की साधनाओ का रूप अपने साथ लेकर चलते है और अपने कथन को सही करने के लिये वे दूसरी शक्तियों पर अपना विश्वास बनाकर चलते है। कई ज्योतिषी एक प्रकार का ही कथन सभी के साथ भावानुसार करते है उस भाव का रूप अलग अलग कारको पर फ़लीभूत होने पर वह अपने शब्दो का जाल जातक के सामने प्रस्तुत करते है और समय पर बताने की कोशिश मे वे अपने कथन को सही साबित करने की बात भी करते है। कई ज्योतिषी जुये जैसा कार्य भी करते है जैसे पासे फ़ेंकने का काम कोडी को पलटने का काम आदि भी देखा जाता है उसके अन्दर उनकी भावना भी कौडियों या पासों के अनुसार होती है। जितना राहु जिसका बलवान होता है उतना ही ज्योतिषी अपनी भाषा को प्रकट करता चला जाता है। मित्रो अगर आपकी कोई समस्या है ओर हल चाहते है या कुणङली वनवाना या दिखाना चाहते है तो सम्पर्क कर सकते है 07597718725 0914481324 माँकली ज्योतिष hanumangar paid service आचार्य राजेश

शुक्रवार, 27 जनवरी 2017

मित्रो 01-01-2017 को प्रातः 11:30 पर सपा के विशेष प्रतिनिधि सम्मेलन में मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव को पार्टी अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ जो सर्व - सम्मति से स्वीकृत हुआ। यह समय चंद्र महादशा में गुरु की अंतर्दशा का हुआ जो सामान्य है और 13 दिसंबर 2017 तक रहा , इसीलिए उनके लिए स्थितियाँ भी सामान्य ही बनी रहीं और बनी रहेंगी। फिर 13 जूलाई 2019 तक शुभ समय रहेगा। 13 मार्च 2023 तक श्रेष्ठ समय भी रहेगा लेकिन 13 जूलाई 2019 से 12 दिसंबर 2020 तक बीच के समय में ज़रूर सतर्कता पूर्वक चलना होगा। उस समय लखनऊ में कुम्भ लग्न चल रही थी जो एक स्थिर राशि की लग्न है ।यही कारण है कि, यह पद चुनाव स्थिर रहने वाला है और सभी सम्झौता प्रस्ताव किसी भी कारण से असफल रहे हैं। लग्न में ही मंगल, केतू व शुक्र ग्रह स्थित हैं। जहां मंगल, केतु नेतृत्व क्षमता में दृढ़ता के परिचायक हैं वहीं शुक्र सौम्यता, मधुरता व दूरदर्शिता के लक्षण बताता है जिस कारण वह किसी दबाव या प्रलोभन में झुक न सके दुसरे भाव में जो राज्यकृपा का होता है मीन लग्न स्थित है जिसका स्वामी ब्रहस्पति अष्टम भाव में बैठ कर पूर्ण सप्तम दृष्टि से उसे देख रहा है अतः उन पर आगे भी राज्य - योग कृपा बनाए रखेग। तृतीय भाव में जो जनमत, पराक्रम व स्वाभिमान का होता है मेष लग्न स्थित है जिसका स्वामी मंगल लग्न में ही बैठ कर अनुकूलता प्रदान कर रहा है और इसी कारण पार्टी पदाधिकारियों के 90 प्रतिशत का समर्थन ही उनको न केवल मिला वरन जनमत सर्वेक्षणों में भी लोकप्रियता हासिल रही है। इस प्रकार उनका स्वाभिमान आगे भी बरकरार रहने की संभावनाएं बनी हुई हैं। चोथा भाव में जो लोकप्रियता व मान -सम्मान का होता है वृष राशि स्थित है जिसका स्वामी लग्न में बैठ कर उनमें दूरदर्शिता का संचार कर रहा है अतः आगामी चुनावों में भी उनको इसका लाभ मिलने की संभावनाएं मौजूद हैं। पंचम भाव में जो लोकतन्त्र का होता है मिथुन लग्न स्थित है जिसका स्वामी बुध लाभ के एकादश भाव में सूर्य के साथ स्थित है। बुध सूर्य के साथ होने पर और अधिक बलशाली हो जाता है तथा सूर्य - बुध मिल कर आदित्य योग भी बनाते हैं जो कि, राज्य योग होता है। अतः चुनावों में अखिलेश जी की सफलता लोकतन्त्र को मजबूत करने वाली ही होगी क्योंकि इससे फासिस्ट शक्तियों को मुंह की खानी पड़ेगी। सातवा भाव में जो सहयोगियों, राजनीतिक साथियों व नेतृत्व का होता है सिंह राशि स्थित है जिसका स्वामी सूर्य एकादश भाव में गुरु की राशि धनु में बुध के साथ स्थित है। इसके अतिरिक्त इस भाव में राहू भी बैठ कर कुम्भ लग्न को देख रहा है जो उसकी अपनी राशि भी मानी जाती है। इस प्रकार अखिलेश जी अपनी पार्टी के बुद्धिजीवियों, नेताओं और साथियों में अधिकांश का समर्थन पाने में सफल रहे हैं जो फिलहाल जनतंत्र व जनता के लिए उत्तम स्थितियों का ही संकेत करता है। उम्मीद है कि, अपने बुद्धि कौशल से वह ग्रहों की अनुकूलता का पूर्ण लाभ उठाने में सफल रहेंगे।

सोमवार, 23 जनवरी 2017

मित्रो पिछे कुछ लेख रतनो पर मैने पोस्ट किये थे मेरे वहुँत से मित्र ईस्लाम घर्म को मानते है उन्होंने रतनो के वारे मे जानकारी अपने हिसाव से चाही है। सलमान खान ने फिरोजा पहन रखा है पर ईस से पहले भी फिरोजा फारुख शेख ने पहना है ।फिल्म उमराव जान के एक सीन में यह रेखा के बालों में ऊँगलियाँ फिरा रहे हैं। इस बे सीन में रेखा की काली जुल्फों के साथ जिस चीज पर कैमरा फोकस कर रहा है वह फारुख शेख के हाथ की एक ऊँगली में जगमगा रहा नैशापुरी फिरोजा है। लखनऊ में शूटिंग के दौरान नवाब मीर जाफर अब्दुल्ला की ऊँगली से उतरवाकर फिल्म के निर्देशक मुजफ्फर अली ने यह अँगूठी खास तौर पर फारुख शेख को पहनाईथी मुजफ्फर अली शिया मुसलमान हैं और कहीं न कहीं वह यह जरूर दिखाना चाहते थे कि शियाओं की एक पहचान फिरोजा रत्न भी है क्योंकि चौथे खलीफा हजरत अली और आठवें इमाम रजा फिरोजे की अँगूठी पहनते थे। ईरान स्थित नौशापुर का फिरोजा सबसे बेहतरीन माना जाता है। इराक के नजफ में हजरत अली के रौजे और ईरान के मशद में इमाम रजा की कब्र से छुआकर फिरोजा पहनना शियाओं में सवाब पुण्य माना जाता है।फिरोजे का इस्तेमाल सोने के जेवरों में भी हमेशा से खूब होता आया है। इसकी नीली चमक पीले सोने में खूब फबती है। इसे जवाहरात की श्रेणी में दूसरे नंबर पर रखा गया है। इस पर न तो तेजाब का असर होता है और न आग में पिघलता है। इसे पहनने से दिल के मर्ज में फायदा होता है। तबीयत को राहत और ताजगी बख्शता है। आँखों की रोशनी बढ़ाता है और गुर्दे की पथरी निकालता है। साफ और खुली फिजा में इसका रंग और ज्यादा खिल जाता है। फिरोजा ही नहीं, अकीक पहनना भी मुसलमानों में सवाब माना जाता है। मक्का में ‘संगे असवद’ को बोसा (चूमना) देना हज और उमरे की जरूरी रस्म मानी जाती है। हजरत मूसा और हजरत ईसा से पहले हजरत इब्राहीम के जमाने में यह पत्थर आसमान से उतरा। इसी ने हजरत इब्राहीम को रास्ता दिखाया। जहाँ पर गिरा वहीं पर मक्के की बुनियाद रखी गई। यह काला पत्थर अकीक (पुखराज की तरह) की नस्ल का बताया जाता है। मुसलमानों के सारे फिरकों में अकीक पहनना इसीलिए सवाब माना जाता है। अकीक को मुसलमानों में पवित्र और मजहबी नगीना इसलिए भी माना जाता है पैगंबर मोहम्मद साहब भी अकीक की अँगूठी पहनते थे। यमन का अकीक सबसे महँगा और पवित्र माना जाता है। अकीक एकमात्र रत्न है जो धूप या अन्य किरणों को जज्ब कर जिस्म के अंदर पहुँचाता है। इसे पहनने से दिमाग को ताकत मिलती है और नजर को भी बढ़ाता है। रहस्यमयी नगीने नीलम को उर्दू में भी नीलम ही कहा जाता है। मुसलमानों में यह शनि का रत्न न होकर जिस्म और आँखों को ताकत, पेट के सिस्टम को ठीक कर तबीयत को नर्म करने वाला नगीना है। इसको पहनने से अच्छी आदतें पैदा होती हैं। कमजोर आदमी भी अपने अंदर ताकत महसूस करता है। इसको पहनने वाले पर जादू का असर नहीं होता। प्लेटो ने भी नीलम की तारीफ की है।की है। हीरे को उर्दू में भी हीरा ही कहते हैं। मुसलमानों में हीरा भी उतना ही लोकप्रिय है जितना हिंदुओं या ईसाइयों में। यह अकेला रत्न है जिसकी कुछ हिंदू अभी भी पूजा करते हैं। पुखराज को उर्दू में भी पुखराज ही कहते हैं। यह जिस्म में तेज और ताकत को बढ़ाता है। इसको पहनने से कोढ़ तक ठीक हो जाता है। खून की खराबी में भी फायदा करता है। जहर को मारता है और बवासीर में भी लाभकारी है। इच्छाशक्ति को तेज करता है और घन की तंगी व्यापार की उलझनें दूर करता है। दया भाव पैदा करने के साथ ही परोपकारी और स्वाभिमानी भी बनाता है। पुखराज चूँकि बहुत महँगा होता है इसलिए भी कुछ लोग अकीक पहनते हैं लेकिन वह इस बात से इनकार करते हैं कि मुसलमानों में नगीनों का इस्तेमाल कम होता है। गोमेद को उर्दू में जरकंद कहते हैं। मुसलमानों में मान्यता है कि इसको पहनने से सामाजिक प्रतिष्ठा में इजाफा होता है और तरक्की भी होती है। यह पौरुष शक्ति भी बढ़ाता है और गहरी नींद सुलाता है। लकवाग्रस्त व्यक्ति को फायदा पहुँचाता है। लहसुनिया को इंग्लिश में कैट्स आई और उर्दू में यशब कहते हैं। यहूदी इस नगीने का इस्तेमाल सबसे ज्यादा करते हैं। इस्राइल में यह बहुत लोकप्रिय है। पुराने जमाने में इसे गर्भ निरोधक के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। कहा जाता है कि दूध में कुछ देर डालकर वह दूध पिलाने से औरत को गर्भ नहीं ठहरता। इस पर तेजाब का असर नहीं होता। मोती को उर्दू में मरवारीद कहते हैं। इसका इस्तेमाल जितना पहनने में होता है उतना ही दवा बनाने में। यूनानी दवाओं में खमीरा मरवारीद काफी मशहूर है। इसको पहनने से ईमानदारी पैदा होती है। दिमाग ठंडा रखता है। खसरा और चेचक में बहुत लाभदायक माना जाता है। आँखों की रोशनी बढ़ाने में भी सहायक है। पन्ने को उर्दू में जमुर्रद कहते हैं और तमाम हरे पत्थरों में इसे सबसे बेहतरीन बताया गया है। ‘तोहफा-ए-आलमे शाही’ किताब में लिखा है कि पैगंबर मोहम्मद साहब ने किसी से फरमाया कि जमुर्रद की अँगूठी से तमाम मुश्किलात आसान हो जाती हैं।हजरत अली कहते थे कि जमुर्रद किसी नागहानी संकट का संकेत भी देता है। लेकिन देवबंद फिरके से ताल्लुक रखने वाले मुसलमान इस तरह की बातों के सख्त खिलाफ हैं। उनका कहना है कि एक पत्थर की क्या बिसात कि वह किसी का फायदा या नुकसान करेगा। जो कुछ करेगा अल्लाह करेगा। इमाम मौलाना नईम अंसारी इस तरह की बातों को शिर्क बताते हैं। कहते हैं कि जरूरी नहीं कि किताबों की हर बात सही ही हो। कौन सी किताब सही है या गलत यह भी देखने की जरूरत है। पन्ने को लेकर चाहें जितने भ्रम हों लेकिन इसकी माँग हर जगह बराबर है। मुस्लिम औरतें इसे खूब पहनती हैं। खासतौर पर इसका लॉकेट। मिलने-जुलने की प्रवृत्ति पैदा करता है। दिल की बीमारी के अलावा मेदे में ठंडक पैदा कर पाचन क्रिया को सुदृढ़ करता है। पुराने जमाने में महारानियों की रान में बाँधा जाता था जिससे बच्चे की पैदाइश आसान हो जाती थी। किसी भी मुसीबत आने से पहले ही बुरी तरह से चिटक जाता है। मूँगे को उर्दू में मरजान कहते हैं। कुरान शरीफ में इसके गुणों की चर्चा सूरे रहमान में है। सारे रत्न पहाड़ों की खदानों से निकलते हैं लेकिन मूँगा समुद्र की तलहटी के पत्थरों से चिपटी हुई एक प्रकार की वनस्पति है जो पत्थर के आस-पास शहद के छत्ते की शक्ल की पैदा होती है। माना जाता है कि इसको पहनने से लकवा-फालिज नहीं होता। शरीर में कंपन की बीमारी नहीं होने देता। लिवर और पाचन क्रिया को सुदृढ़ करता है। दिल की धड़कन को काबू में रखने के अलावा गठिया में भी फायदा पहुँचाता है। इसको धारण करने वाले को आर्थिक तंगी से भी नहीं जूझना पड़ता। हकीम जालीनूस ने लिखा है कि कट जाने पर शरीर से खून न रुक रहा हो तो मूँगे का पाउडर लगाने से तत्काल रुक जाता है। माणिक को अंग्रेजी में रूबी और उर्दू में याकूत कहते हैं। मशहूर इस्लामी स्कॉलर सैयद इब्राहीम सैफी ने लिखा है कि जब हजरत आदम को जन्नत से निकाला गया तो सबसे पहले उनका पैर श्रीलंका के सेरेनद्वीप पर पड़ा। उनके कदम मुबारक के छूने से याकूत पैदा हुआ। माणिक के प्याले में शराब डालकर पीने से उसकी तेजी और नशा लगभग खत्म हो जाता है। कुछ मुस्लिम शहंशाहों के बारे में कहा जाता है कि वह याकूत के प्याले में ही शराब पीते थे क्योंकि इस्लाम में शराब नहीं नशे को हराम करार दिया गया है। राजा और शहंशाह इसी के बर्तनों में खाना भी खाते थे क्योंकि माणिक के बर्तन में जहर का असर नहीं होता।कबूतर की आँख की पुतली में जो सुर्ख रंग होता है उस रंग का माणिक सबसे बेहतरीन माना जाता है। शादियों में इसकी अँगूठी बेहतरीन तोहफा माना जाता है। इसे धारण करने वाला किसी से भी ताल्लुकात बनाने में निपुण हो जाता है। दिमागी फिक्र और परेशानी भी दूर करता है। जिस्म में फुर्ती रहती है। मिर्गी, गठिया और प्लेग में फायदा पहुँचाता है। इसकी सबसे खास बात यह है कि यह प्यास की शिद्दत को कम करता है। मूँगा-मोती अल्लाह का वरदान : कुरान शरीफ में मूँगा और मोती को अल्लाह की खास नेमतों वरदानमें शुमार बताया गया है। इसे जन्नत की भी रहमत (आशीर्वाद) बताया गया है। कुरान की सूरे रहमान में आयत नंबर 22 में अल्लाह ने मरजान यानी मूँगे का जिक्र अपनी खास नेमतों में किया है। याकूत यानी माणिक की खूबसूरती और गुणों के बारे में भी सूरे रहमान की आयत नंबर 58 में जिक्र है। यहूदी लोगों का प्रिय रत्न लहसुनिया और यशब हैं। लहसुनिया को अंग्रेजी में कैट्स आई और यशब को जेड कहते हैं।यह इस्राइल के लोकप्रिय रत्न हैं। यशब का जिक्र बाइबिल में भी आया है। माना जाता है कि यशब पहनने वाले पर दुश्मन का जोर नहीं चलता। जैसपर भी यहूदियों में खूब प्रचलित है। यह जेड की नस्ल का ही मुलायम रत्न है। यहूदी रब्बी इन्हें इस्तेमाल करते आए हैं। उनके सीने पर जेड और जैसपर की प्लेटें लगी रहती थीं जिन पर उनके धर्म ग्रंथ के उद्धरण दर्ज होते थे। शिया मुसलमानों में भी जेड और जैसपर गले में पहनने का चलन है। शिया इस पर नादे अली और पंजतन पाक नक्श कराकर पहनते हैं।- संगे सुलेमानी अंग्रेजी में अगेट के नाम से मशहूर है। मुसलमानों, यहूदियों और ईसाइयों में इस पत्थर के धार्मिक महत्व को स्वीकार किया गया है। मित्रो यहा फिर यही कहुगा रतन हमेशा कुंङली के हिसाव से पहने अगर मुझ से कुंङली दिखा कर रतन पहनना चाहते है तो ईन नम्वरो पर सम्पर्क करे 07597718725 09414481324 paid service

रविवार, 22 जनवरी 2017

मित्रो मेरा विचार यह है कि ज्योतिष एक ऐसा ज्ञान है जो बहुत उपयोगी है जिसे सिर्फ वह मनुष्य जानता है जो श्रेष्ठ आचरण और धर्म का पालन करते हुये इसकि बारीकियों को सिखे और फिर अपने उस ज्ञान की सिद्धी से वह कई उन बातों को जान लेता है जो साधारण मनुष्य के लिये उपयोगी हो सकता है . जैसे अगर कोई वृक्ष पर कोई फल लगा है जो कच्चा है अगर उसे बच्चा तोडना चाहे तो मां बाप कहते है अभी रुको एक सप्ताह बाद यह पक जायेगा तब तोडना, ये ज्ञान भी ज्योतिष ही तो है. इसलिये ज्योतिष ज्ञान को आजकल के साइंस से तुलना करके नकार नही सकते. रही बात आजकल के ज्योतिषियों की तो उन लोगों ने अधकचरे ज्ञान से अपने बोलने की कला का प्रयोग करके लोगों को उल्लू बना के अपना काम चला रहे है और सही ज्योतिष का ज्ञान रखने वाले भी उनके चक्कर मे वदनाम होते है साधु का चोला बहुत ही पवित्र माना जाता है वो अपने अंदर समस्त कोटी अपराधों को हर लेता है. रावण भी इसी भेष मे आया था और आजकल समाज में कुटील, कामी, लोलूप लोग भी इसी चोले को अपना कर उसकी आढ में गलत काम करते है परंतु साधु का वो चोला फिर भी श्रेश्ठ माना जाता है क्युंकि वो उस खोटे ब्यक्ति की बुराई को ढक लेता है और फिर वो गलत आदमी उस चोले की आढ में लोगों से दुराचार भी करता है. परंतु उसकी महीमा को तो मानना ही पढेगा. उसी तरह हो सकता है अनपढ भविष्य वेत्ता आते हों किसी ब्राहम्ण के भेष में या ज्योतिषि के वेश मे परन्तु इसका मतलब यह नही का ज्योतिष का ज्ञान ही गलत है. मेरा विचार यह है कि ज्योतिष एक ऐसा ज्ञान है जो बहुत उपयोगी है जिसे सिर्फ वह मनुष्य जानता है जो श्रेष्ठ आचरण और धर्म का पालन करते हुये इसकि बारीकियों को सेखे और फिर अपने उस ज्ञान की सिद्धी से वह कई उन बातों को जान लेता है जो साधारण मनुष्य के लिये उपयोगी हो सकता है . जैसे अगर कोई वृक्ष पर कोई फल लगा है जो कच्चा है अगर उसे बच्चा तोडना चाहे तो मां बाप कहते है अभी रुको एक सप्ताह बाद यह पक जायेगा तब तोडना, ये ज्ञान भी ज्योतिष ही तो है. इसलिये ज्योतिष ज्ञान को आजकल के साइंस से तुलना करके नकार नही सकते. रही बात आजकल के ज्योतिषियों की तो उन लोगों ने अधकचरे ज्ञान से अपने बोलने की कला का प्रयोग करके लोगों को उल्लू बना के अपना काम चला रहे है साधु का चोला बहुत ही पवित्र माना जाता है वो अपने अंदर समस्त कोटी अपराधों को हर लेता है. रावण भी इसी भेष मे आया था और आजकल समाज में कुटील, कामी, लोलूप लोग भी इसी चोले को अपना कर उसकी आढ में गलत काम करते है परंतु साधु का वो चोला फिर भी श्रेश्ठ माना जाता है क्युंकि वो उस खोटे ब्यक्ति की बुराई को ढक लेता है और फिर वो गलत आदमी उस चोले की आढ में लोगों से दुराचार भी करता है. परंतु उसकी महीमा को तो मानना ही पढेगा. उसी तरह हो सकता है अनपढ भविष्य वेत्ता आते हों किसी ब्राहम्ण के भेष में या ज्योतिषि के वेश मे पर्न्तु इसका मतलब यह नही कि ज्योतिष का ज्ञान ही गलत है.क्युंकि ज्योतिषी का मतलब सबसे अधिक पढा लिखा और विद्वान होता है. मै आपसे अनुरोध करुंगा आप भी ज्योतिष कि बुराई के बजायउनकी वुराई करे जो वेसिर पैर की वाते ज्योतिष के नाम पर कर रहे है जैसहैसियत राशीफल फला राशी वाले आज यह करे फलां राशी वाले आज काले कपङे पहने या 2 अंक वाले आज चावल ना खाऐ 4 वाले आज मत नहाऐ नही तो नजले की शकायत हो सकती है कन्या लग्न वाले हरे रंग के रुमाल जेव मे रखे या मेष लग्न वाले किसी के आगे झुकते नही आप मित्रो यह ज्योतिष नही है ना ही ऐसा करने वाले ज्योतिषी आप खुल कर ईसका विरोघ करे ओर हमारे समाज मे ईस वुराई को खत्म करे ताकि आने वाली पीडीया हमे दोषी ना ठहराऐ

मित्रो एक सच यह भी हैं… (ज्योतिष अपने आप में एक सम्पूर्ण विज्ञानं हैं…ज्योतिषी गलत हो सकता हैं,ज्योतिष नहीं मित्रों जहाँ सभी विज्ञानं का ज्ञान समाप्त हो जाता हैं वह से ज्योतिष विज्ञानं आरम्भ होती हैं यह काफी पुरानी घटना हैं,मै ट्रेन मे रिजर्वेशन की तलाश मे भटक रहा था। ट्रेन मे तिल रखने तक की जगह नही थीमेरा मित्र मेरे साथ था जगह ना मिलने के कारन हम टायलेट के पास बैठे अपने ही जैसे यात्रियो के साथ बैठ गये एक सहयात्री समय काटने के लिये लोगो का हाथ देख रहा था और विस्तार से सब कुछ बता रहा था। पास बैठे पिता-पुत्र की बारी आयी। पुत्र का हाथ देखते ही उसके माथे पर चिंता की लकीर उभर आयी। वह कुछ नही बोला। पिता को आशंका हुयी। वह पुत्र के बारे मे जानने व्यग्र हो उठा। एक कोने मे ले जाकर उस सहयात्री ने धीरे से बताया कि आपके पुत्र के हाथ को देखकर लगता है कि इसका कुछ समय पहले किसी से झग़डा हुआ है और ऐसा भी लगता है कि यह मर्डर करके भागा है। मै ने सोचा अब तो उस ज्योतिषी की खैर नही। ऐसा पिटेगा कि दम निकल जायेगा। पर हुआ उल्टा। पिता उनके पैरो मे गिर गया और बताया कि चम्वा मे दोस्तो के साथ किसी झग़डे मे इन सब से किसी की हत्या हो गयी। कैसे भी मैने अपने बेटे को निकाला है। अब इसे मुम्बई ले जा रहा हूँ ताकि कुछ काम सीखने के बाद वाहर के देशो मे नौकरी मिल सके। मेरे आश्चर्य का ठिकाना नही रहा। मैने बहुत बार भविष्य़वाणियो के बारे मे सुना और पढा था पर उन्हे सच होते इतने करीब से नही देखा था। उस ज्योतिषी के दिव्य ज्ञान ने मुझे प्रेरित किया कि मै इस प्राचीन विज्ञान का विस्तार से अध्ययन करुँ। मैने ढेरो पुस्तके खरीदी पर बिना गुरु केसही ज्ञानृ नही मिलता फिर पत्राचार से भी पङाई की तव भी वात नही वनी प्यास ज्यो की त्यो वनी रही जब भी हमे अखबारो मे किसी ज्योतिषी का विज्ञापन दिखता हम उसके ठिकने पर पहुँच जातेओर उनसे सीखने को कहते ओर कईयो से सीखा भी पर सव अघकचरे ज्ञानी थे कुछ समय तक यह सिलसिला चला यह तक कि इसी तरह जो शहर के ज्योतिषी थे या आस पास के उनके पास भी जा जा कर सीखा धीरे-धीरे समझ विकसित हुयी और जब एक ज्योतिष सम्मेलन मे दुनिया भर से आये विद्वानो से मिलवाने मेरे ऐक मित्र मुझे जबरदस्ती ले गये तो मेरी आँखे खुली। मैने ज्योतिष को एक समृद्ध पारम्परिक ज्ञान की तरह पाया। उन्ही विद्वानो से पता चला कि कैसे भारतीय ज्योतिष के आगे सारी दुनिया नतमस्तक है। उसके बाद से मैने शहर के ज्योतिषी ङेरे नाथ संत महात्मा किसी को नही छोङा सभी के पास ज्ञान के लिऐ भटकता रहा !खैर मेरी अघ्यातम यात्रा के किस्से काफी लम्वे हे फिर कभी आप को वताउगा कुछ वर्षो पहले एक ऐसे हस्तरेखा विशेषज्ञ से मिलने का अबसर मिला जो लोगो को टीवी पर या मंच से सुनकर उनकी हू-बहू हस्तरेखाए बना देता है। हस्तरेखा से लोगो के बारे मे बताना तो ठीक है पर लोगो को सुनकर भला कैसे कोई हस्तरेखा बना सकता है? यह विशेषज्ञ अपनी मर्जी से ही व्यक्ति का चुनाव करता है और इस ज्ञान से अर्थ लाभ नही करता है। वह इसके प्रदर्शन के भी खिलाफ है। मुझे पता है कि यदि वह इस ज्ञान के साथ बाजार मे आये तो उसे लोगो के सिर आँखो मे बैठने मे जरा भी देर नही लगेगी। डिस्कवरी चैनल मे एक बार एक फिल्म आ रही थी जिसमे बताया गया था कि शीत युद्ध के दिनो मे अमेरीकी सेना ने एक ऐसे लोगो की टोली बनायी थी जो कल्पना के सहारे एक बन्द कमरे मे बैठकर दुश्मनो के बारे मे विशिष्ट जानकारी देते थे। आज ऐसी कोई बात भारत मे करे तो हमारा आधुनिक समाज इसे अन्ध-विश्वास घोषित करने मे जरा भी देर नही करेगा। इसी तरह की सोच ने आज भारतीय पारम्परिक ज्ञान को उसके अपने घर मे बेसहारा कर दिया है। मै ज्योतिष को विज्ञान मानता हूँ। आम तौर पर ज्योतिषीयो द्वारा की जाने वाली भविष्यवाणियो पर तरह-तरह के सवाल किये जाते है। ये भविष्य़वाणियाँ व्यवसायिक ज्योतिष से जुडे लोग अर्थार्जन के लिये करते है। इसी आधार पर ज्योतिष के विज्ञान होने पर सन्देह किया जाता है। लोगो के इस तर्क को सुनकर मुझे बरबस ही एक और विज्ञान की याद आ जाती है। वह है हम सब का प्यारा मौसम विज्ञान जिसकी भविष्य़वाणियाँ शायद की कभी सही होती है। शहर से लेकर गाँवो तक सब जानते है इस विज्ञान को और इसकी उल्टी भविष्य़वाणियो को। पर फिर भी कोई इसे ज्योतिष की तरह कटघरे मे खडा नही करता। देश मे इस विज्ञान के विकास के लिये अरबो खर्च किये जा रहे है। इसका एक प्रतिशत भी भारतीय ज्योतिष के उत्थान मे खर्च किया जाता तो इसे नया जीवन मिल जाता। कुछ वर्षो पहले एक किसान की हवाले से यह जानकारी स्थानीय अखबार मे छपी कि इस बार मछरिया नामक खरपतवार की संख्या को देखकर लगता है कि बारिश कम होगी। जैसी कि उम्मीद थी दूसरे ही दिन इसे अन्ध-विश्वास बताते हुये एक समाचार छप गया। किसान ने ठान लिया कि चुप रहने मे ही भलाई है। उस साल सचमुच बारिश कम हुयी। ऐसे ही वनस्पतियो और पशुओ के व्यवहार से मौसम की परम्परागत भविष्य़वाणी का विज्ञान अपने देश मे समृद्ध है। मौसम विज्ञानी इसे महत्व नही देते है पर जानकारी मिलने पर इस पर शोध-पत्र तैयार कर विदेशो मे प्रस्तुत करने का अवसर भी नही छोडते है। किसानो के पारम्परिक ज्ञान पर वाह-वाही लूटकर अवार्ड भी पा जाते है कौआ-कैनी नामक खरपतवार जो कि बरसात मे खेतो मे उगता है, के फूलो को बन्द होता देखकर किसान यह पूर्वानुमान लगा लेते है कि मौसम बिगडने वाला है। इसी तरह सर्दियो मे उगने वाले कृष्णनील नामक खरपतवारो के फूलो से भी ऐसी ही जानकारी एकत्र की जाती है।अब भी यह सागर मे एक बूँद के समान है। कभी-कभी लगता है कि पारम्परिक भारतीय ज्ञान की रक्षा के लिये और परम्पराओ और संस्कारो को नयी पीढी तक पहुँचाने के लिये लोगो को जोडकर एक ऐसा संगठन बनाऊँ जो इस विषय मे उपलब्ध तमाम जानकारियो को आम लोग तक तो पहुँचाये ही साथ ही इन्हे अन्ध-विश्वास बताकर अपनी दुकान चलाने वाले तथाकथित समाजसेवियो के खिलाफ भी आवाज उठाये। आखिर भारत मे रहकर उसकी परम्पराओ और संस्कारो को गलत ठहराना किसी अपराध से कम नही है।मित्रो आज जो भी मांकाली की कृप्पा से ही हु मुझ मे मेरा कुछ भी नही है आचार्य राजेश

शुक्रवार, 20 जनवरी 2017

मैने पहले राशी फल पर आपको जागरुक करने की कोशिश की पता नही फिर भी लोग राशी फल की मांग करते है तब से अब तक परिस्थितियां बदल चुकी हैं. हमारी पूर्णतया वैज्ञानिक यह कला, कम्प्यूटर का सहारा लेकर और भी निखर गई है. पहले की भी बहुत-सी भविष्यवाणियां सत्यापित हुई हैं और अब भी हो रही हैं, लेकिन कुछ लोग ज्योतिष व भविष्यवाणी में पूर्ण आस्था रखते हैं और कुछ लोग किसी राशिफल, अंक-ज्योतिष, बोलें सितारे, टैरो कॉर्ड, आर्थिक भविष्यफल,अंग फड़कने आदि में ही अटके है मेरा अपना विचार है, कि जन्मपत्री में एक पल की भी हेरफेर होने से भविष्यवाणी में भी हेरफेर हो सकता है. एक ही राशि के करोड़ों लोगों के लिए एक ही भविष्यवाणी कैसे सत्य हो सकती है? आजकल हर कला का व्यावसायीकरण हो गया है, ऐसे मे ज्योतिषी लोगो को कोवोगस राशी फल पङना छोङना होगा वहुँत से मित्रो को मेरी वात समझ मे आ रही है ओर वो खुलेआम ईसका विरोध भी कर रहे है आपका क्याविचार है कृप्पा जरुर वताऐ कही मै गलत तो नही आचार्य राजेश

बुधवार, 18 जनवरी 2017

मनुष्य के आचरण पर उसके विचारों का सीधा प्रभाव पड़ता है। इसलिए मनुष्य को लगातार अपने विचारों का विश्लेषण करते रहना चाहिए कि उसके मन में किस तरह के विचार मौजूद हैं ? मन में ज़्यादा समय से जमे हुए विचार गहरी जड़े जमा लेते हैं, उनसे मुक्ति पाना आसान नहीं होता। ईश्वर और महापुरूषों के बारे में हमारे जो विचार होते हैं, वे भी हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव डालते हैं। किसी बात को ईश्वर का आदेश या किसी बात को महापुरूष का कर्म मानते हुए यह ज़रूर चेक कर लें कि कहीं वह ‘पवित्रता‘ के विपरीत तो नहीं है ईश्वर पवित्र है और महापुरूषों का आचरण भी पवित्र होता है। जो बात पवित्रता के विरूद्ध होगी, वह ईश्वर के स्वरूप और महापुरूष के आचरण विपरीत भी होगी, यह स्वाभाविक है। इस बात को जानना निहायत ज़रूरी है। ऐसा करने के बाद चोरी, जारी और अन्याय की वे सभी बातें ग़लत सिद्ध हो जाती हैं, जिन्हें अपने स्वार्थ पूरा करने के लिए ग़लत तत्वों ने धर्मग्रन्थों में लिख दिया है। जो ग़लत काम महापुरूषों ने कभी किए ही नहीं हैं, उन्हें उनके लिए दोष देना ठीक नहीं है। उन कामों का अनुसरण करना भी ठीक नहीं है। सही बात को सही कहना जितना ज़रूरी है, उतना ही ज़रूरी है ग़लत बात को ग़लत कहना। ऐसा करने के बाद ही हम ग़लत बात के प्रभाव से बच सकते हैं। हम ईश्वर और महापुरूषों के बारे में पवित्र विचार रखेंगे तो हमारा आचरण भी पवित्र हो जाएगा। यदि हमारे व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में चोरी, झूठ, अन्याय और भ्रष्टाचार मौजूद है तो हम सब को अपने अपने विचारों पर नज़र डाल कर देखनी चाहिए कि ईश्वर और महापुरूषों के बारे में हमारी मान्यताएं क्या हैं ? यह जीवन तो फिर भी किसी न किसी तरह कट जाएगा लेकिन अगर इसी अपवित्रता की दशा में हमारी मौत हो जाती है तो हम पवित्र लोक के दिव्य जीवन में प्रवेश न कर सकेंगे, जिसके बारे में हरेक महापुरूष ने बताया है और जिसे पाना इस जीवन के कर्म का मूल उददेश्य है।

सोमवार, 16 जनवरी 2017

कुछ मित्रो ने नीलम के वारे मे पुछा नीलम नीलम शनि ग्रह का रत्न है। नीलम का अंग्रेज़ी नाम 'सैफायर' है। नीलम रत्न गहरे नीले और हल्के नीले रंग का होता है। यह भी कई रंगों में पाया जाता है; मसलन- मोर की गर्दन जैसा, हल्का नीला, पीला आदि। मोर की गर्दन जैसे रंग वाला नीलम उत्तम श्रेणी का माना जाता है। नीलम पारदर्शी, चमकदार और लोचदार रत्न है। नवरत्न में नीलम भी होता है। शनि का रत्न नीलम एल्यूमीनियम और ऑक्सिजन के मेल से बनता है।ईसके कारन ही ईसका रंग वनता है इसे कुरुंदम समूह का रत्न माना जाता हैयह जम्मू कश्मीरी जो आज कल नीही के वरावर मीलते है श्रींलका के शहर सलोन मे ऐक जगह है रतनपुरा आस्ट्रेलिया वर्मा थाईलैंड स्विट्जरलैंड वर्जील ओ जावा कावूल अमेरिका भी वहुत से देशो मे पाया जाता हैमाणिक्‍य और नीलम की वैज्ञानिक संरचना बिल्‍कुल एक जैसी है। वैज्ञानिक भाषा में कहें तो माणिक्‍य की तरह ही नीलम भी एक एल्‍युमीनियम ऑक्‍साइड है। एल्‍युमीनियम ऑक्‍साइड में आइरन, टाइटेनियम, क्रोमियम, कॉपर और मैग्‍नीशियम की शुद्धियां मिली होती हैं जि‍ससे इनमें नीला,पीला, बैंगनी, नारंगी और हरा रंग आता है। इन्‍हें ही नीलम कहा जाता है। इसमें ही अगर क्रोमियम हो तो यह क्रिस्‍टल को लाल रंग देता है जिसे रूबी या माणिक्‍य कहते हैं।समूह में लाल रत्‍न को माणिक तथा दूसरे सभी को नीलम कहते हैं। इसलिए नीलम हरे, बैंगनी, नीले आदि रंगों में प्राप्‍त होता है। सबसे अच्‍छा नीलम नीले रंग का होता है जैसे आसमानी, गहरा नीला, चमकीला नीला आदि कोलंबो। श्रीलंका की एक खान में 1404.49 कैरेट का नीलम रत्न मिला है। दुनिया के इस सबसे बड़े रत्न का मूल्य 10 करोड़ डालर है। श्रीलंका के रत्न विशेषज्ञों का कहना है कि देश के दक्षिणी भाग में रत्नपुर में यह रत्न प्राप्त किया गया। रत्नपुर को ‘सिटी आफ जेम्स’ के नाम से जाना जाता है। दुनिया के इस सबसे बड़े रत्न का मूल्य 10 करोड़ डालर (6 अरब 66 करोड़) आंका गया है। नीलामी में इसके 17.5 करोड़ डालर में बिकने की संभावना है। नीलम के मालिक ने कहा कि जिस वक्त मैंने इसे देखा, उसी वक्त इसे खरीदने का फैसला किया। नाम प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर उसने कहा कि रत्न को जब मेरे पास लाया गया, तभी मुझे लगा कि यह दुनिया का सबसे बड़ा नीलम रत्न हो सकता है। इसीलिए मैंने जोखिम लिया और इसे खरीद लिया। रिपोर्ट के अनुसार नीलम के मामले में मौजूदा रिकार्ड 1,395 कैरेट का है।

रविवार, 15 जनवरी 2017

Acharya rajesh: वैसे तो भारत में ज्योतिष शास्त्र पर विश्वास करने वाले लोगो की कमी नहीं है. हिंदू धर्म में शादी का मुहुर्त निकालना हो, या शादी के लिए लड़के और लड़की की कुड़ंली का मिलान करवाना हो या फिर नामकरण जैसे रिवाज, इनमें ज्योतिष शास्त्र की मदद ली जाती हैं. ज्योतिष के जादू से ना सिर्फ आम जनता बल्की बॉलीवुड स्टार्स भी अछुते नहीं है. कई बॉलीवुड स्टार्स ने अपनी जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए रत्नों की मदद ली हैं. आईए बात करते है बॉलीवुड सेलीब्रिटीज और उनके रत्न प्रेम की– ऐश्वर्या रॉय – ऐश्वर्या ने अपनी खूबसूरती के दम पर विश्वसुदंरी की खिताब अपने नाम पर किया. जब उन्होंने बॉलीवुड में अपने करियर का आगाज किया तो उन्हें कोई खास सक्सेस नहीं मिली लेकिन ताल और हम दिल दे चुके सनम जैसी फ़िल्मों ने उन्हें सक्सेस का स्वाद चखा ही दिया लेकिन उन्होंने अपने करियर में कई चढ़ाव के साथ उतार भी देखे. ऐसे में उन्हे जरुरत महसूस हुई ऐसे जेमस्टोन्स की जो उन्हे एक शक्ति महसूस कराए. वो अपनी उंगली में एक नीलम रिंग पहनती है. इसके अलावा वो हीरा भी पहन चुकी है. कहा जाता है कि हीरा शुक्र ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है जो ग्लैमर की दुनिया में सक्सेस दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इमरान हाशमी– लाल मूंगा, माणिक, पुखराज और ओपल जैसे रत्नों को धारण कर चुके है इमरान हाशमी. माना जाता है कि इन्हे मर्डर-2 और जन्नत टू जैसी फ़िल्मों में सक्सेस इन्हीं को पहनने की वजह से मिली है. ऐसे नहीं है कि इनकी फ़िल्में फ्लॉप नहीं हुई है अगर रत्नों का साथ हो तो नुकसान थोड़ा कम होता है प्रियंका चोपड़ा- प्रियंका चोपड़ा भी रत्नों में विश्वास रखती है. वो अपने हाथों की उंगलियों को कई रत्नों से सजा चुकी है. हालांकी वो कई कारणों से रत्नों को बदलती भी रही है अमिताभ बच्चन– सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने अपने अपने करियर में सबसे बेहतरीन और सबसे खराब दौर भी देखा है. अपने कठिनाइओं से भरी जिंदगी में उनका झुकान रत्न-विज्ञान की तरफ हुआ. माना जाता है कि जब से उन्होंने नीलम रत्न पहना है उनके स्वास्थ और करियर में भी सुधार आया हैं.हालांकि नीलम पहनने के दो साल वाद उसका असर दिखना शुरु हुआ ऐसा उन्होने Stardast नामक फिल्मी मैग्जीन के ऐक intervew मे कहा: सलमान खान– सलमान ख़ान की तो जैसे पहचान ही बन चुका है उनका फिरोजा ब्रेसलेट ये गिफ्ट के तौर पर उनके पिता ने उन्हें दिया था ये ब्रेसलेट उनके लिए काफी लकी भी रहा है सुनीलगवास्कर प्रकाश सिहवादल सुखवीर वादल नीता अंम्वानी मुलायम सिह यादव नवजोतसिह सिद्दूतो देखा आपने की कई बॉलीवुड सेलिब्रिटीज़ रत्नो की शक्ति को किसी चमत्कार से कम नहीं मानते है. तो कुछ बॉलीवुड सेलिब्रिटीज इसमें बिल्कुल विश्वास नहीं रखते है.यह पोस्ट मेरे अजीज दिल्ली से रोहीत जी की हो उन्होनो फोटो के साथ यह मुझे भेजी ऐसा नहीं है कि सिर्फ रत्न धारण करने से ही सक्सेस मिलती है लेकिन ऐसा माना जाता है कि कठिन दौर में भी ये रत्न एक सहारे की तरह काम करते है, ये ग्रहों के बुरे प्रभाव को कम करने में मदद करते है और अच्छे प्रभाव को बढ़ाने में मदद करते हैं.

लाल का किताब के अनुसार मंगल शनि

मंगल शनि मिल गया तो - राहू उच्च हो जाता है -              यह व्यक्ति डाक्टर, नेता, आर्मी अफसर, इंजीनियर, हथियार व औजार की मदद से काम करने वा...