बुधवार, 28 नवंबर 2018

चुनाव को जीतने का तरीका

चुनाव को जीतने का तरीका
चुनाव के अन्दर प्रत्याशी बनने और चुनाव को जीतने मे बहुत जद्दोजहद करनी पडती है,कोई धन का बल लेकर चुनाव जीतना चाहता है कोई अपने बल और दादागीरी पर चुनाव जीतना चाहता है,किसी के पास दादागीरी और धन दोनों ही नही है तो वह भलमन्साहत से चुनाव जीतने की कवायद करता है। 

लेकिन सभी कुछ होने के बाद भी जब व्यक्ति चुनाव हार जाता है,तो उसकी जनता ही नही अपनी खुद की आत्मा भी धिक्कारती है कि अमुक कारण का निवारण अगर हो जाता तो चुनाव जीता जा सकता था। चुनाव का जीतना और राज करना दोनो ही अलग अलग बातें है,एक साधारण और कम पढा लिखा आदमी भी चुनाव जीत सकता है,और बहुत पढा व्यक्ति भी किसी नेता की चपरासी के अलावा कुछ नही कर सकता है,यह सब आदमी के बस की बात नहीं,यह सब होता है सितारों का खेल,अगर सितारे माफ़िक हों तो सभी कुछ हो सकता है,और अगर सितारे बस में नही है और खिलाफ़ है तो वह बना बनाया काम भी बरबाद होते देर नहीं लगती है। कोई भी ज्योतिषी सितारे खराब है या अच्छे है बता सकता है,खिलाफ़ सितारों के लिये उपाय के अन्दर सितारों को माफ़िक करने का रत्न धारण करवा सकता है टोटका करवा सकता है,लेकिन सितारे तो ठहरे सितारे,अगर किसी प्रकार के टोटके से सितारे बस में हो जायें तो आदमी की मृत्यु भी आती है,ज्योतिषी की भी आती है,अगर कोई रत्न या टोटका काम करता होता तो मौत तो आती ही नहीं,महर्षियों ने मृत्यु पर विजय प्राप्त की थी,लेकिन किसी रत्न या टोटके से नही की थी,उन्होने सितारों पर बिना किसी यान के यात्रा की थी,उन्होने आज से हजार साल पहले बता दिया था कि अमुक सितारा किस प्रकार का है,अमुक सितारे का मालिक कौन है आदि।कौन खिलाफ़ है और कौन माफ़िक
जन्म कुंडली से पता किया जा सकता है कि सितारे माफ़िक है,या खिलाफ़,और खिलाफ़ है तो किस कारण से है,राज करने का सितारा अगर खराब है तो किस कारण से खराब है,खराबी सितारे के बैठने के स्थान पर है,या सितारा जहां बैठा है वहां पर किसी खराब सितारे की निगाह है,या पडौस में कोई खराब सितारा अपनी नजर रखकर की जाने वाली सभी हरकतें दुश्मनों को सप्लाई कर रहा है,अथवा समय आने पर कोई दुश्मन सितारा अपने राज करने के सितारे से आकर टकराने वाला है,अथवा सितारा जिस स्थान पर बैठा है,वहां पर राज करने के लिये ठंडे माहौल की जरूरत है,और राज करने के लिये टकराने के समय में कोई गर्म सितारा आकर अपने अनुसार गर्मी का माहौल पैदा करने वाला है।

चुनाव जीतने के तीन बल
इन सब कारणों का पता करने के बाद तीन बलों का सामजस्य बैठाना जरूरी है,वैसे तो यह तीन बल सभी काम के लिये उत्तम माने जाते है लेकिन राज करने वाले के लिये यह तीनो बल हमेशा जरूरी है,इन तीन बलों को पहिचानना बहुत जरूरी होता है,जो इन तीन बलों का सामजस्य बनाकर चल दिया है वह सबसे अधिक तरक्की के रास्ते पर चला गया,और जिसे इन तीनों बलों का सामजस्य नहीं करना आता है वह सब कुछ होते भी बरबाद होता चला जाता है,आइये आपको इन तीनों बलों का ज्ञान करवा देते हैं,अपनी कुंडली को खोल कर देखिये कि यह तीनों बल आपके किस किस भाव में अपनी शोभा बढा रहे है,और यह तीनो बल आपकी किन किन सफ़लता वाली कोठरियों के बंद तालों को खोल सकते है।

मानव बल
मानव बल संसार का पहला बल है,किसी भी स्थान पर आपको देखने से पता चलता है,कि जिसके साथ जितने हाथ ऊपर हो जाते वह ही अपनी प्रतिष्ठा को कायम कर लेता है,लेकिन मानव बल भी दो प्रकार का होता है,एक देह बल होता है और दूसरा जीव बल होता है,देह बल की गिनती की जाती है लेकिन जीव बल की गिनती नहीं की जा सकती है,दबाब में आकर देह बल तो साथ रहने की कसम खा लेता है,लेकिन जीव बल का ठिकाना नहीं होता है कि वह अपनी चाहत किसके साथ रखे है,शरीर का किस्सा है कि इसके अन्दर बारह प्रकार के जीव बल विद्यमान है,और जो जीव बल आपके जीव बल से सामजस्य रखता है वही आपको किनारे पर ले जा सकता है,देह बल तो कभी भी बिना जीव बल के दूर हो सकता है,किसी देह के अन्दर किसी प्रकार का जीव बल अपना स्थान बना सकता है,लेकिन जीव बल के अन्दर देह बल अपना कुछ प्रभाव नही दे सकता है। जब मनुष्य जन्म लेता है तो जीव बल एक ही स्थान पर रहता है,अन्य बल अपना प्रभाव बदल सकते है,लेकिन जीव बल कभी भी अपना स्थान नही बदलता है,केवल स्वभाव के अन्दर कुछ समय के लिये अपना बदलाव कर सकता है।भौतिक बल
मानव बल के बाद दूसरा नम्बर भौतिक बल का आता है,बिना मानव बल के भौतिक बल का कोई महत्व नही है,भौतिक बल के अन्दर घर द्वार सम्पत्ति सोना चांदी रुपया पैसा आदि आते है,भौतिक बल भी बारह प्रकार का होता है,और इन बारह प्रकार के भौतिक बलों को पहिचानने के बाद मानव बल और भी परिपूर्ण हो जाता है।

दैव बल
मानव बल और भौतिक बलों के अलावा जो सबसे आवश्यक बल है वह दैव बल कहलाता है,बिना दैव बल के न तो मानव बल का कोई आस्तित्व है और न ही भौतिक बल की कोई कीमत है,मानव बल और भौतिक बल समय पर फ़ेल हो सकता है लेकिन दैव बल इन दोनो बलों के समाप्त होने के बाद भी अपनी शक्ति से बचाकर ला सकता है। दैव बल के अन्दर जो बल आते हैं उनके अन्दर विद्या का स्थान सर्वोपरि है,विद्या के बाद ही शब्द शक्ति की पहिचान होती है,और शब्द शक्ति के पहिचानने के बाद उसी शरीर से या भौतिक बल से किसी प्रकार से भी प्रयोग किया जा सकता है,शब्द शक्ति से व्यक्ति की जीवनी बदल जाती है,शब्द शक्ति से माता बच्चे को आजन्म नहीं त्याग पाती है,और शब्द शक्ति के सुनने के बाद आहत को लेकर लोग अस्पताल चले जाते है।

तीनों बलों को प्राप्त करने का तरीका
इन तीनो बलों को केवल विद्या और शब्द शक्ति से ही प्राप्त किया जा सकता है,लेकिन अन्तर रूप से जीव बल का होना भी जरूरी है,केवल देह बल का घमंड नही करना चाहिये,देह तो कमजोर भी काम कर जाती है,लेकिन जीव बल कमजोर होने पर विद्या और भौतिक बल भी कमजोर हो जाते है। इन तीनो बलों का सामजस्य बैठाना ही एक समझदार की कला होती है,आइये आपको इन तीनो बलों को प्राप्त करने के तरीके बताता हूँ। भगवान गणेश मानव बल के देवता है,माता लक्ष्मी भौतिक बल की दाता है,और माता सरस्वती विद्या तथा शब्द बल की प्रदाता है,इन तीनों देव शक्तियों का उपयोग चुनाव में शर्तिया सफ़लता दिला सकती है। इन तीनो शक्तियों को प्राप्त करने के लिये आज के युग में गणेश जी के रूप में संगठनों के मुखिया,लक्षमी के रूप में धनिक लोगों का साथ,और सरस्वती मैया के रूप में कालेज और स्कूलों के अध्यापकों को साथ रखने का लाभ पूरी तरह से मिल सकता है। रिस्तेदारी में गणेशजी के रूप में साला,बहनोई,भान्जा,भतीजा चुनाव मे अन्दर काम आ सकते है,लक्ष्मी के रूप में हर घर की गृहणियां काम आ सकती है,इनके लिये पति को पत्नी का और पत्नी को पति का साथ लेना चाहिये,सरस्वती के रूप में बडे बूढे और घर के परिवार के रिस्तेदारों का साथ जरूरी है। ग्रहों के अन्दर केतु गणेशजी के शुक्र लक्ष्मी के और राहु सरस्वती का कारक है। जातियों के अन्दर केतु एस सी और एस टी के अन्दर,शुक्र महिला संगठनो और मीडिया के अन्दर,सरस्वती मुस्लिम और शब्द-धर्मी लोगों के साथ काम आ सकता है।

बिना राहु की सहायता के चुनाव नही जीता जा सकता है
जिस प्रकार से आसमान सभी के सिर पर छाया हुआ है और इसी आसमान से सूर्य भी उदय होता है तारे भी दिखाई देते है तथा चन्द्रमा का उदय होना और अस्त होना भी देखा जाता है.राहु सभी को धारण भी करता है और बरबाद भी करता है इसलिये राहु को विराट रूप मे देखा जाता है,महाभारत के युद्ध मे अर्जुन को मोह से दूर करने के लिये भगवान श्रीकृष्ण ने विराटरूप का प्रदर्शन किया था जिसके द्वारा उन्होने दिखाया था कि संसार उनके मुंह के अन्दर समा भी रहा है और संसार की उत्पत्ति भी उन्ही के द्वारा हो रही है,इस रूप का नाम ही विराट रूप में देखा जाता है.राजनीतिक क्षेत्र मे एक प्रकार का प्रभाव जनता के अन्दर प्रदर्शित करना होता है जिसके अन्दर जनता के मन मस्तिष्क मे केवल उसी प्रत्याशी की छवि विद्यमान रहती है जिसका राहु बहुत ही प्रबल होता है,अक्सर राजनीतिक पार्टिया राहु को प्रयोग करती है उस राहु को वे अपने नाम से और नाम को समुदाय विशेष से जोड कर रखती है.अगर पार्टी समुदाय विशेष से जोड कर नही चलेगी या किसी भी समुदाय को अपने हित के लिये प्रयोग मे लाना चाहेगी तो वह कभी भी किसी भी समय समुदाय विशेष के रूठने पर या किसी भी बात के बनने से वह दूर हो सकता है तथा जीती हुयी जीत भी हार मे बदल सकती है.कोई भी पार्टी चाहे कि वह धन की बदौलत जीत हासिल कर ले यह नही हो सकता है कभी कभी आपने देखा होगा कि एक पार्टी लाखो करोडो खर्च करने के बाद भी जीत हासिल नही कर पाती है और एक बिना पैसे को खर्च किये पार्टी अपनी छवि को सुधारती चली जाती है,इस बात को प्रभाव मे लाने के लिये राहु को विशेष दर्जा दिया जाता है.राहु उल्टा चलता है और इस उल्टी गति को समाज मे फ़ैलाने के लिये लोग पहले जनता के अन्दर भय का माहौल भरते है और उसके बाद अपनी गतियों से जनता मे उल्टे कामो को दूर करने के लिये अपनी स्थिति को दर्शाते है और इसी प्रकार से जनता के अन्दर अपनी छवि को बनाकर अपनी उपस्थिति को प्रदान करते है परिणाम मे वे जीत कर सामने आजाते है.राहु कभी भी अपनी स्थिति को जीवन मे प्रदान कर सकता है सूर्य और राहु के अन्दर यह देखा जाता है कि सूर्य के अन्दर बल कितना है अगर सूर्य की रश्मिया तेज है तो राहु उन्हे चमकाने के लियेतोराहु उन्हे चमकाने के लिये अपनी गति को प्रदान करता है और राहु अगर मजबूत है और सूर्य की गति अगर धीमी है तो जरूरी होता है कि सूर्य अपनी स्थिति को नही दिखा पाता है इस बात को अक्सर देखा होगा कि जन्म लेने के समय यानी सूर्य उदय होने के समय राहु अपनी स्थिति को एक धुंधले प्रकाश के रूप मे सामने रखता है यह बात उन लोगों के लिये मानी जाती है जो अपने बचपने के कारण राजनीति से जुड तो जाते है लेकिन अपने को केवल एक दिशा विशेष से ही सामने ला पाते है अगर बीच का सूर्य यानी दोपहर का सूर्य जो जवानी के रूप मे माना जाता है और वह अपना प्रकाश राहु के द्वारा क्षितिज पर फ़ैला कर आया है तो लोग उस व्यक्ति पर चारों तरफ़ से आकर्षित होकर उसे ही देखने के लिये फ़िर से अपना प्रयास करने लगते है.राहु बुध के साथ मिलकर बोलने की क्षमता देता है तो राहु मंगल के साथ मिलकर अपनी शक्ति से जनता के अन्दर नाम कमाने की हैसियत देता है राहु सूर्य के साथ मिलकर राजकीय कानूनो और राजकीय क्षेत्र के बारे मे बडी नालेज देता है वही राहु गुरु के साथ मिलकर उल्टी हवा को प्रवाहित करने के लिये भी देखा जाता है,राहु शनि के साथ मिलकर मजदूर संगठनो का मुखिया बना कर सामने लाता है तो राहु शुक्र के साथ मिलकर लोगों के अन्दर चमक दमक से प्रसारित होने अपने को समाज मे दिखाने और अपने द्वारा मनोरंजक बातों के प्रति सामने रखने से माना जा सकता है.

 राहु हर अठारह साल मे मानसिक गति को बदल देता है इस राहु के द्वारा ही दक्षिण का शासन भारत पर हुआ है और जो भी चलने वाली प्रथा समाज आदि है उनके प्रति भयंकर बदलाव देने के लिये अपनी शक्ति को देने वाला बना है.उपनी स्थिति को बनाकर सामने लाने के लिये पहले शासन करता है और वही केतु अपनी युति से राहु के द्वारा खर्च कर दिया जाता है,जैसे आपरेशन ब्लू स्टार को ही देख लीजिये,भाजपा का पतन भी देखा होगा कांग्रेस का अक्समात सफ़ाया भी देखा भाजपा पार्टीीी का फिर  उठना यह  सब राहु की ही करामात का परिणाम था.अक्सर  लोग एक नशे के अन्दर आजाते है और उन्हे केवल अपने अहम के अलावा और कुछ नही दिखाई देता है वे समझते है कि वे ही अपने धन और बाहुबल से सब कुछ कर सकते है राहु उनकी शक्ति को अपने ही कारण बनवा कर उन्हे ग्रहण दे देता है,लेकिन जो सामाजिक मर्यादा से चलते है समाज को राजनीति से सुधारने के लिये अपने प्रयासो को करते है राहु उन्हे भी ग्रहण देता जरूर है पर कुछ समय बाद उन्हे उसी प्रकार से उगल कर बाहर कर देता है जैसे हनुमान जी लंका मे जाते समय सुरसा के पेट मे गये जरूर थे लेकिन अपने बुद्धि और पराक्रम के बल पर बाहर भी आ गये थे,वहां पर उनकी यह धारणा बिलकुल नही थी कि वे अपने काम के लिये जा रहे है या अपने ही हित के लिये कोई साधन बना रहे है,वे राम के कार्य के लिये जा रहे थे और राम कार्य ही उनके लिये सर्वोपरि था.यह भी इतिहास बताता है कि जब भी राहु ने राजनीतिक लोगो को ग्रहण दिया है वे कभी भी उस ग्रहण से नही निकल पाये है उनके साथ चलने वाले लोग ही उनके दुश्मन बनकर सामने आये है और उन्हे डुबोकर खुद को सामने करते देखे गये है.

राहु का मुख्य उपाय आप अपनी कुंडली दिखा कर हमसे संपर्क करके आप प्राप्त कर सकते हैं

राहु के लिये कितने ही यज्ञ किये जाये राहु के लिये कितने ही रत्न धारण किये जाये लेकिन राहु कभी भी शांत नही होता है जिस प्रकार से एक शराबी का नशा दूर करने के लिये कितने ही उपाय किये जाये वह अपनी शराब का नशा दूर नही जाने देता है उसी प्रकार से राहु जो राजनीति का नशा देता है या किसी प्रकार से अपनी योग्यता को जाहिर करने के लिये अपने बल को देता है अगर राहु का तर्पण नही किया जाता है वह कभी भी अपने दुष्परिणामो को नही रोक सकता है.व्यक्ति के पास जब तक अपने पूर्वजो का बल नही है वह अपने आसपास के रहने वाले अद्रश्य शक्ति के कारणो पर विश्वास नही करता है जैसे स्थान देवता वास्तु देवता पास की नदी समुद्र गंवादेवी स्थान योगिनी समुदायिक शक्ति को प्रदान करने वाली गणयोगिनी राजलक्ष्मी के रूप मे सहायता करने वाली तारासुन्दरी आदि व्यक्ति की सहायक नही होती है तो राजनीति मे प्रवेश पाना बहुत ही मुश्किल ही नही असम्भव माना जाता है,अक्सर जो राजनीति मे ऊपर उठने के लिये अपने प्रयास करते है उनके आसपास कोई न कोई तांत्रिक जरूर देखा जाता है उस तांत्रिक के पास वह सब कारण बनाने के लिये योग्यता होती है जो व्यक्ति को आने वाले खतरे से दूर भी करती है और उसके द्वारा किये गये जरा से काम को बहुत ऊंचा करने के  में विजय प्राप्ति हेतु बगलामुखी कवच और त्रिशक्ति कवच प्राप्त करके गले में धारण करें। इसके धारण से विरोधियों  को नर्वस करने में सुविधा मिलेगी। माहौल भी मजबूत बनेगा। ग्रहों  को कंट्रोल करना भी इनका काम है  अधिक जानकारी हेतु आप हमसे संपर्क कर सकते हैं

सोमवार, 26 नवंबर 2018

कौन बनेगा प्रधानमंत्री 2019 में राहुल गांधी या नरेंद्र मोदी

2019 मेदेश की राजनीति में क्या उथल-पुथल होगी, 

अगले चुनाव में कौन प्रधानमंत्री बनेगा क्या कहती है पीएम मोदी की कुंडली ओर राहुल गांधी की पहले वात करते हैं नरेन्द्र मोदी जी की  मित्रो बहुत ही सरल भाषा में दोनों की कुंडली का विश्लेषण कर रहा हूं आप खुद ही अंदाजा लगा सकते है कि अगला प्रधानमंत्री कौन होगा यहां मैं कोई भविष्यवाणी नहीं कर रहा सिर्फ ज्योतिषी नजर से कुंडलियों का विश्लेषण सरल भाषा में सिंपल भाषा में कर रहा हूं पूरा फल इतना नहीं कर रहा हूं मित्रों बस थोड़ा कुंडलीयोको आप समझे और पूरी पोस्ट को पढ़ें

अब बात की जी रही है पीएम मोदी की कुंडली की। पीएम मोदी की कुंडली वृश्चिक लग्न वृश्चिक राशि की है। साथ ही पीएम मोदी की कुंडली में चंद्रमा की महादशा चल रही है। जो वर्ष 2021 तक चलेगी। चंद्र अनुराधा नक्षत्र में बैठा है जो शनि का है शनि का संबंध दंसव भाव से हो रहा है दसवे घर में बैठे शनि, शुक्र का मेल इन्सान को एक अच्छा राजनेता वनाता  है  पीएम मोदी की कुंडली में चन्द्रमा की महादशा में बुध का अंतर चल रहा है, यह स्थिति 3 मार्च 2019 तक रहेगी।वुघ का संवघ भी दंसव से हो रहा है इसके ठीक बाद कुंडली में केतु का अतर आयेगा।  इसके अतिरिक्त वृश्चिक लग्र के लिए बृहस्पति पंचमेश में होता है। यह स्थिति बहुत अच्छी मानी गई है। तो बता दें  जिसका फायदा पीएम मोदी को 2019 चुनाव में होगा और एक बार पीएम नरेन्द्र मोदी के चलते बीजेपी को बहुमत या फिर सबसे अधिक सीट मिल सकती है।

पीएम मोदी के कारण ही बीजेपी को लाभ होगा। तो यहां बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिलने का दावा कर  सकता हु,  बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनेगी और फिर से देश की सत्ता पीएम मोदी के हाथों में होगी। 

  अब बात करते हैं राहुल गांधी जी की कुंडली की कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की कुंडली बताती है कि वे दमदार नेतृत्व के साथ उभरेंगे, लेकिन कुछ कमियों से वे पीछे रह सकते हैं । जाने राहुल गांधी के कुंडली के ग्रहों के अनुसार क्या होगा उनका कराजनीतिक भविष्य(Rahul Gandhi) का जन्म भारत वर्ष के दिल्ली प्रदेश में दिनांक 18 जून 1970 को को रात्रि 9 बज कर 52 मिनट पर हुआ राहुल गाँधी जी के जीवन में अनेकों परिस्थितियों जैसे उतार-चढ़ाव दिखने को मिलते हैं आज बात करते हैं इस समय उनकी कुंडली में चंद्रमा की महादशा में शनि का अंतर चल रहा हैचन्द्रमा ( Moon) उनकी कुंडली में नीच  राशि में छठे स्थान में बैठा है , साथ ही छठे भाव का स्वामी मंगल लग्न में और मिथुन लग्न होने से लग्न का  स्वामी बुध ग्रह बनता है बारहवे स्थान में , मैंने हमेशा कहा है की अगर लग्न या दशम का बारहवे भाव से सम्बन्ध बन रहा है तो राजभंग  योग का निर्माण होता है इनके कुंडली के 5 भाव में शुक्र (venus) भी नवमांश कुंडली में नीच का है अतः राजभंग योग के जितने कारण बन सकते है सब कुंडली में उपलब्ध है।

इस समय में उनके बारहवा और छठा (12th house और 6th House) भाव पूरी तरह से Active थे , साथ ही चन्द्रमा बुध के नक्षत्र में (12th house से connection ) और बुध चन्द्रमा के नक्षत्र में (6th house से connection) , चन्द्रमा आत्मकारक ग्रह भी है और हमेशा मैंने कहा है की दशा बहुत कड़वे अनुभवों वाली रहती है

राहुल गाँधी जी का वर्तमान समय ग्रहों के हिसाब से   कुंडली में बैठे ग्रहो जैसे सर्व प्रथम कुंडली में बैठे वाणी करक गृह बुध को प्रबल व समाधान करना होगा और साथ ही राजनितिक का स्वामी शनि गृह जो कुंडली में नीच राशि का हे कुंडली में  मे चंद्र भी नीच राशि का स्थित हैअव भारत की कुंडली 

15/08/1947रात 12वजे अव मित्रों मोदी जी कुंडली राहुल गांधी जी कुंडली ओर भारत की कुंडली में आप देखेंगे की एक वात कोमन है कि सभी की चंद की माहादश चल रही है अभी उस समय मोदी की कुंडली राहुल गांधी की कुंडली पर काफी भारी दिखाई दे रही है यही बात मैं इस पोस्ट में समझाना चाहता था कि मोदी के सामने राहुल ही क्यों?  

शनिवार, 24 नवंबर 2018

वक्री ग्रह

वक्री ग्रह

आज वक्री ग्रहों के बारे में बात करते हैकी बक्री.वक्री का सामान्य अर्थ उल्टा होता है वबक्री का अर्थ टेढ़ा..साधारण दृष्टि से देखें या कहेंतो सूर्य,बुध आदि ग्रह धरती से कोसों दूर हैं.भ्रमणचक्र मेंअपने परिभ्रमण की प्रक्रिया में भ्रमणचक्र के अंडाकारहोने से कभी ये ग्रह धरती से बहुत दूर चले जाते हैं

तो कभी नजदीक आ जाते हैं.जब जब ग्रह पृथ्वी केअधिक निकट आ जाता है तो पृथ्वी की गति अधिकहोने से वह ग्रह उलटी दिशा की और जाता महसूसहोता है.उदाहरण के लिए मान लीजिये की आप एक तेजरफ़्तार कार में बैठे हैं,व आपके बगल में आप ही की जानेकी दिशा में कोई साईकल से जा रहा है तो जैसेही आप उस साईकल सवार से आगे निकलेंगेतो आपको वह यूँ दिखाई देगा मानो वो आपसेविपरीत दिशा में जा रहा है.जबकि वास्तव में वहभी आपकी दिशा की और ही जा रहा होता है.आपकी गति अधिक होने से एकएक दूसरे को क्रोस करने के समय आगे आने के बावजूद वह

आपको पीछे यानि की उल्टा जाता दिखाई देता है.और जाहिर रूप से आप इस प्रभाव को उसी गाडी सवार ,या साईकिल सवार के साथ

महसूस कर पाते है जो आपके नजदीक होता है,दूर केकिसी वाहन के साथ आप इस क्रिया को महसूस

नहीं कर सकते. ज्योतिष की भाषा में इसे कहा जायेगा की साईकिल सवार आप से वक्री हो रहा है.यही ग्रहों का पृथ्वी से

वक्री होना कहलाता है.सीधे अर्थों में समझें की वक्री ग्रह पृथ्वी से अधिक निकट हो जाता है.अब निकट होने से क्या होता होगा भला?

यही होता है की ग्रह का असर ,ग्रह का प्रभाव बढ जाता है. कई ज्योतिषियों का इस विषय पर अलगअलग मत है.कहा यह भी जाता है की वक्री होने से ग्रह उल्टा असर देने लगता है.आप जलती हुई भट्टी से दूरबैठे हैं,जैसे ही आप भट्टी के निकट जाते हैं

तो आपको अधिक गर्मी लगने लगती है.क्यों?क्योंककिआपके और भट्टी के बीच की दूरी कम हो गयी है.भट्टी में तो आग तब भी उतनी ही थी जबआप उससे दूर थे,व अब भी उतनी ही है जब आप उसके नजदीक हैं.आग में कोई भी फर्क नहीं आया है बस नजदीक होने से हमें उसका प्रभाव अब प्रबलता से महसूस हो रहा है. एक अन्य उदाहरण लीजिये, आप किसी पंखे

से दूर बैठे हैं जहाँ पंखे की बहुत कम हवा आप तक आ रही है,आप अपनी कुर्सी उठा कर पंखे के निकट आ जाते हैं,अब आप पंखे की हवा को अधिक जोर से महसूस कर रहे

हैं.जबकि पंखा अब भी उसी स्पीड पर चल रहा है जिस पर पहले चल रहा था.प्रभाव में अंतर दूरी घटने से हुआ है,अवस्था में कोई फर्क नहीं आया है.इसी प्रकार यहमानना की वक्री होने से ग्रह अपना उल्टा असर देने लगेगा यह मान लेना है की भट्टी के निकट जाने से वह ठंडी हवा देने लगेगी,या निकट आने पर पंखा आग उगलने लगेगा.ग्रह के वक्री होने से उसके नैसर्गिक गुण में ,उसके व्यवहार में किसी प्रकार का कोई अंतर नहीं आता अपितु उसके

प्रभाव में ,उसकी शक्ति में प्रबलता आ जाती है.देव गुरु ब्रह्स्पत्ति जिस कुंडली में वक्री हो जाते हैं वह जातक अधिक बोलने लगता है,लोगों को बिन मांगे सलाह देने लगता है.गुरु ज्ञान का कारक है,ज्ञान का ग्रह जब वक्री हो जाता है तो जातक अपनी आयु के अन्य जातकों से आगे भागने लगता है,हर समय उसका दिमाग नयी नयी बातों की और जाता है.सीधी भाषा में कहूँ

तो ऐसा जातक अपनी उम्र से पहले

बड़ा हो जाता है,वह उन बातों ,उन विषयों को आज जानने का प्रयास करने लगता है,सामान्य रूप से जिन्हें

उसे दो साल बाद जानना चाहिए.समझ लीजिये की एक टेलीविजन चलाने के किये उसे घर के सामान्य वाट के बदले सीधे हाई टेंसन से तार मिल जाती है.परिणाम क्या होगा?यही होगा की अधिक

पावर मिलने से टेलीविजन फुंक जाएगा.इसी प्रकार गुरु का वक्री होना जातक को बार बार अपने ज्ञान

का प्रदर्शन करने को उकसाता है.जानकारी ना होने के बावजूद वह हर विषय से छेड़ छाड़ करने की कोशिश करता है.अपने ऊपर उसे आवश्यकता से अधिक विश्वास होने लगता है जिस कारण वह ओवर कोंनफीडेंट अर्थातअति आत्म विश्वास का शिकार होकर पीछे रह

जाता है. कई जातक ऐसे देखे होंगे की जो हर जगहअपनी बात को ऊपर रखने का प्रयास करते हैं,जिन्हें

अपने ज्ञान पर औरों से अधिक भरोसा होता है,जो हरबात में सदा आगे रहने का प्रयास करते हैं,ऐसे जातक वक्री गुरु से प्रभावित होते हैं.जिस आयु में गुरुका जितना प्रभाव उन्हें चाहिए वो उससे अधिक

प्रभाव मिलने के कारण स्वयं को नियंत्रित नहीं कर पाते.कई बार आपने बहुत छोटी आयु में बालक बालिकाओं को चरित्र से से भटकते हुए देखा होगा.विपरीत लिंगी की ओर उनका आकर्षण एक निश्चित आयु से पहले ही होने लगता है.कभी कारण सोचा है आपने इसबात का ?विपरीत लिंग की और आकर्षण एक

सामान्य प्रक्रिया है,शरीर में होने वाले हार्मोनल परिवर्तन के बाद एक निश्चित आयु के बाद यह आकर्षण

होने लगना सामान्य सी कुदरती अवस्था है.शरीर में मंगल व शुक्र रक्त,हारमोंस,सेक्स ,व आकर्षण

को नियंत्रित करने वाले कहे गए हैं.इन दोनों में सेकिसी भी ग्रह का वक्री होना इस प्रभाव को आवश्यकता से अधिक बढ़ा देता है. यही प्रभाव जाने अनजाने उन्हें उम्र से पहले वो शारीरिक बदलाव     महसूस करने को मजबूर कर देता है जो सामान्य रूप सेउन्हें काफी देर बाद करना चाहिए था.शनि महाराज हर कार्य में अपने स्वभाव के अनुसार परिणाम को देर से देने,रोक देने ,या कहें सुस्त रफ़्तार में बदल देने को मशहूर हैं.कभी आपने किसी ऐसे बच्चे को देखा है जो अपने आयु वर्ग के बच्चों से अधिक सुस्त

है,जा जिस को आप हर बात में आलस करते पाते हैं.खेलने में ,शैतानियाँ करने में,धमाचौकड़ी मचाने में जिसvका मन नहीं लग रहा. उसके सामान्य रिफ़लेकसन

कहीं कमजोर तो नहीं हैं . जरा उस

की कुंडली का अवलोकन कीजिये,कहीं उसके लग्न में

शनि देव जी वक्री होकर तो विराजमान नहीं हैं.

इसी प्रकार  वक्री ग्रह कुंडली में आपने भाव व अपने नैसर्गिक स्वभाव के अनुसार अलग अलग परिणाम देते

हैं.अततः कुंडली की विवेचना करते समय ग्रहों की वक्रता का ध्यान देना अति आवश्यक है.अन्यथा जिस ग्रह को अनुकूल मान कर आप समस्या में नजरंदाज कर रहे हो होते हैं ,वही समस्या का वास्तविक कारण होता है,व आप उपाय दूसरे ग्रह का कर रहे होते हैं.परिणामस्वरूप समस्या का सही समाधान नहीं हो पाता.

 फिर बता दूं की वक्री होने से ग्रह के

स्वभाव में कोई अंतर नहीं आता,बस उसकी शक्ति बढ़जाती है.अब कुंडली के किस भाव को ग्रह

की कितनी शक्ति की आवश्यकता थी व वास्तव में वह कितनी तीव्रता से उस भाव को प्रभावित कर

रहा है,इस से परिणामो में अंतर आ जाता है व कुंडली का रूप व दिशा ही बदल जाती हैआप भी अपनी कुन्ङली  अपने शहर के अच्छे  ज्योतिषी  को दिखा कर सलाह लेआप हम से भी सम्पर्क  कर सकते है 07597718725  09414481324

रविवार, 18 नवंबर 2018

कुंडली विवेचन मे चतुर्थांशका महत्त्व

कुंडली विवेचन मे चतुर्थांश के बिना फ़लादेश करना उसी प्रकार से है जैसे गर्मी की ऋतु में दूर रेगिस्तान में मृग मारीचिका को जल समझ कर भागना। लगन कुंडली शरीर के लिये चन्द्र कुंडली मानसिक रूप से संसार के लिये नवमांश कुंडली जीवन साथी और जीवन की जद्दोजहद के लिये सप्तांश कुंडली संतान सुख के लिये होरा कुंडली धन सम्पत्ति के लिये देखी जाती है उसी प्रकार से चतुर्थांश कुंडली को भाग्य के लिये देखना बहुत जरूरी होता है। एक जातिका की कुंडली का विवेचन प्रस्तुत है,यह जातिका आगरा दिनांक 24 दिसम्बर 1978 को शाम 6 बजकर 30 मिनट पर पैदा हुयी है। जातिका की मिथुन लगन है और चन्द्र राशि कन्या है,

लेकिन जातिका का नाम तुला राशि से रखा गया है। इस कुंडली मे लगन को बल देने वाले ग्रह सूर्य मंगल और केतु है.सूर्य छोटे भाई बहिन का कारक है और मंगल चाचा और बडे भाई का कारक है,केतु जातिका की दादी और नानी के लिये माना जायेगा.जातिका के शरीर की पालन पोषण की जिम्मेदारी इन्ही तीनो पर है.लगनेश बुध छठे भाव मे है और बुध के साथ वक्री गुरु अपनी स्थिति को दे रहा है। लगनेश का स्थान वृश्चिक राशि मे होने के कारण जातिका को नौकरी और गूढ ज्ञान की अच्छी जानकारी है। शरीर का मालिक बुध छठे भाव मे होने के कारण जातिका को अनुवांशिक बीमारी से भी ग्रस्त माना जाता है। चन्द्र शुक्र और बुध तीनो ही राहु शनि सूर्य मंगल के बीच मे होने के कारण यह अनुवांशिक बीमारी माता के परिवार से मानी जा सकती है। वैसे ज्योतिष के अनुसार सूर्य हड्डियों का कारक होता है चन्द्रमा शरीर के पानी का कारक है,मंगल रक्त का कारक है,बुध स्नायु का और नसों का कारक है,गुरु शरीर की वायु का कारक है,शुक्र शरीर की सुन्दरता का कारक है शनि बाल खाल त्वचा का कारक है,राहु जिस ग्रह के साथ होता है उसी की बीमारी को देता है,केतु का असर जहां तक होता है वहां तक वह अपना असर सहायता के लिये देना माना जाता है। वैसे केतु को भी शरीर के जोड प्रयोग किये जाने वाले अंगो केलिये माना जाता है। राहु का शनि के साथ होने से जातिका को त्वचा की बीमारी है,शनि से आगे चन्द्रमा के होने से त्वचा में सफ़ेद रंग के दाग माने जाते है राहु शनि की तीसरी पूर्ण द्रिष्टि शुक्र पर पडने के कारण शरीर की सुन्दरता पर ग्रहण दिया हुआ है,इसी के साथ केवल राहु की पंचम द्रिष्टि मंगल और सूर्य पर पडने के कारण खून के अन्दर इन्फ़ेक्सन और शरीर के ढांचे में भी ग्रहण दिया माना जाता है यह राहु का प्रभाव जातिका के बडे और छोटे भाई बहिनो पर भी है। लेकिन एक बात का और भी सोचना जरूरी होता है कि राहु के पास वाले ग्रह और भाव अगर दिक्कत देने वाले होते है तो केतु के आसपास वाले ग्रह और भाव दिक्कतो से बचे रहने वाले भी माने जाते है। अगर राहु शरीर के प्रति अपनी सुन्दरता मे कमी देने का कारक है तो केतु उस सुन्दरता में अपनी योग्यता से उसे बुद्धिमान बनाने के लिये भी अपनी योग्यता को दे रहा है। सबसे अधिक प्रभाव जातिका के जीवन मे भाग्य के प्रति माना जा सकता है,

अगर चतुर्थांश की कुंडली को बनाया जाये तो इस प्रकार से कुंडली का निर्माण होगा जातिका के चतुर्थांश में कालपुरुष की दो त्रिक राशियां मीन और वृश्चिक जातिका के लगन और नवे भाव मे है,तथा तीसरी त्रिक राशि सप्तम यानी पति के स्थान मे है। इन तीनो त्रिक राशियों का प्रभाव जातिका के जीवन में आजीवन रहना निश्चित है।लगन कुंडली मे जैसे राहु का प्रकोप जातिका के प्रदर्शन यानी तीसरे भाव मे शनि के साथ है तो भाग्य मे भी राहु का प्रकोप बुध के साथ तीसरे भाव मे ही है। यहां शरीर की सुन्दरता पर असर देने वाले राहु और केतु दोनो ही है,गुरु के वक्री होने के कारण और बारहवे शनि से गुरु की युति होने के साथ साथ गुरु का प्रभाव मंगल और चन्द्र पर भी है। भाग्य मे चन्द्रमा का साथ मंगल के साथ होने से और चन्द्रमा से गुरु वक्री के साथ पंचम सम्बन्ध होने तथा चन्द्रमा से भाग्य में नवे भाव मे शनि के होने से माता के दोष से ही जातिका का भाग्य विदीर्ण होना माना जायेगा। माता के बारहवे भाव में बुध राहु के होने से झूठ बोलना और फ़रेब से अपना काम बनाने की युति रखना तथा बुध से सप्तम में वृश्चिक का केतु होना इस बात की तरफ़ इशारा करता है कि कोई जायदाद जो मृत्यु के बाद किसी को मिलनी थी वह जायदाद झूठे कारण से खुद के लिये प्राप्त करने के कारण यह राहु का दोष बुध यानी लडकी पर स्थापित हो गया। यह एक प्रकार का अभिशाप भी कहा जाता है जो अन्तर्मन से दिया जाता है। चन्द्रमा के आगे शुक्र के होने से जातिका की माता ने अपने स्वार्थ के लिये व्यापार करने वाला स्थान या रहने वाला घर अथवा कोई सरकारी क्षेत्र का अधिकार झूठ से प्राप्त किया जाना भी मिलता है इस कारण से सन्तान यानी वक्री गुरु पर राहु का असर होने से और गुरु वक्री से आगे केतु के होने से सन्तान को सब कुछ प्राप्त होने के बाद भी कुछ नही होना माना जा सकता है,अक्सर चन्द्रमा से वक्री गुरु के पंचम मे होने से गुरु अपने पुरुष प्रभाव को छोड कर वक्री होने पर स्त्री प्रभाव को बली कर देता है और बजाय पुरुष सन्तान के स्त्री संतान का होना माना जाता है। इस प्रभाव से जातिका की माता को भी छठा केतु होने के कारण शरीर के जोडो और जननांग सम्बन्धी बीमारियां इन्फ़ेक्सन और गुदा सम्बन्धी बीमारियां भी परेशान करने के लिये मानी जा सकती है।

गुरु के वक्री होने से एक बात और भी समझी जा सकती है कि जो व्यक्ति अपनी चालाकी से किसी असहाय की सम्पत्ति को हडप कर उसे अपनी संतान के लिये प्रयोग मे लाना चाहते है समय की मार शुरु होते ही वह असहाय की हाय जातक के जीवन को तबाह करके रख देती है। चतुर्थांश में गुरु के अष्टम में वक्री होने के इस रूप को भली भांति समझा जा सकता है। जातिका पूर्ण रूप से दिमागी ताकत से पूर्ण है,जातिका को बुद्धि वाले काम करने की पूरी योग्यता है,जातक के सभी अंग सुरक्षित है लेकिन त्वचा पर सफ़ेद दाग होने से जातिका की शादी विवाह और सम्बन्धो के मामले मे दिक्कत है। इस गुरु के वक्री होने पर अक्सर जातक के सन्तान में पहले तो सन्तान सुख होता ही नही है और होता भी है तो केवल पुत्री सन्तान हो जाती है जो शादी के बाद अपने ससुराल जाकर माता पिता को अकेले छोड जाती है। गुरु की सिफ़्त के अनुसार अगर वक्री गुरु होता है तो वह जल्दबाजी का कारक भी होता है इस गुरु के आगे घर मे बजाय पुरुष वर्ग के चलने के स्त्री वर्ग की अधिक चलती है और वह अपनी ही सन्तान और परिवार को अधिक देखने के कारण तथा अन्य लोगों के साथ दुर्व्यवहार रखने से भी अपनी भाग्य की शैली को अन्धेरे मे डाल कर रखती है।

रविवार, 4 नवंबर 2018

दियेके संग दिवाली

दीपावली रोशनी का पर्व है और दीया प्रकाश का प्रतीक है और तमस को दूर करता है। दीये से ज्यादा प्रकृति के सर्वाधिक निकट कौन होगा।

 मिट्टी का शुद्ध रूप। म का शुद्ध रूप। सादगी का शुद्ध रूप। और क्षणभंगुरता का भी शुद्ध रूप। अपने अकेले होने पर गर्व भी और पंक्ति से जुड़ने की चाह भी और यह दार्शनिकता भी कि जीवन क्षणभंगुर है। मिट्टी को मिट्टी में मिल जाना है। तेल को जल जाना है और बाती को अंततः नष्ट हो जाना है। इसलिए जब तक हूँ रोशनी बिखेरूँ। प्रकाशित करूँ, सबसे पहले अपने आपको। फिर संभवतः आसपास भी प्रकाशित हो जाए।  भगवान महावीर का निर्वाण दिवस-दीपावली, मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का आसुरी शक्तियों पर विजय के पश्चात अयोध्या आगमन का ज्योति दिवस-दीपावली, तंत्रोपासना एवं शक्ति की आराधक माँ काली की उपासना का पर्व-दीपावली, धन की देवी महालक्ष्मी की आराधना का पर्व-दीपावली, ऋद्धि-सिद्धि, श्री और समृद्धि का पर्व-दीपावली, आनंदोत्सव का प्रतीक वात्सायन का श्रृंगारोत्सव-दीपावली, ज्योति से ज्योति जलाने का पर्व-दीपावली।दीपावली का यह पर्व प्रत्येक भारतीय की रग-रग में रच-बस गया है। इस पर्व पर हर घर, हर आंगन, हर बस्ती, हर गाँव में सब कुछ रोशनी से जगमगा जाया करता है। आदमी मिट्टी के दीए में स्नेह की बाती और परोपकार का तेल डालकर उसे जलाते हुए भारतीय संस्कृति को गौरव और सम्मान देता है, क्योंकि दीया भले मिट्टी का हो मगर वह हमारे जीने का आदर्श है, हमारे जीवन की दिशा है, संस्कारों की सीख है, संकल्प की प्रेरणा है और लक्ष्य तक पहुँचने का माध्यम है। दीपावली मनाने की सार्थकता तभी है जब भीतर का अंधकार दूर हो। अंधकार जीवन की समस्या है और प्रकाश उसका समाधान। जीवन जीने के लिए सहज प्रकाश चाहिए। प्रारंभ से ही मनुष्य की खोज प्रकाश को पाने की रही।अंधकार हमारे अज्ञान का, दुराचरण का, दुष्टप्रवृत्तियों का, आलस्य और प्रमाद का, बैर और विनाश का, क्रोध और कुंठा का, राग और द्वेष का, हिंसा और कदाग्रह का अर्थात अंधकार हमारी राक्षसी मनोवृत्ति का प्रतीक है। प्रकाश हमारी सद् प्रवृत्तियों का, सद्ज्ञान का, संवेदना एवं करुणा का, प्रेम एवं भाईचारे का, त्याग एवं सहिष्णुता का, सुख और शांति का, ऋद्धि और समृद्धि का, शुभ और लाभ का, श्री और सिद्धि का अर्थात् दैवीय गुणों का प्रतीक है। यही प्रकाश मनुष्य की अंतर्चेतना से जब जागृत होता है, तभी इस धरती पर सतयुग का अवतरण होने लगता है।प्रत्येक व्यक्ति के अंदर एक अखंड ज्योति जल रही है। उसकी लौ कभी-कभार मद्धिम जरूर हो जाती है, लेकिन बुझती नहीं है। उसका प्रकाश शाश्वत प्रकाश है। वह स्वयं में बहुत अधिक देदीप्यमान एवं प्रभामय है। इसी संदर्भ में महात्मा कबीरदासजी ने कहा था- ‘बाहर से तो कुछ न दीसे, भीतर जल रही जोत’। जो व्यक्ति उस भीतरी ज्योति तक पहुँच गए, वे स्वयं ज्योतिर्मय बन गए। जो अपने भीतरी आलोक से आलोकित हो गए, वे सबके लिए आलोकमय बन गए। जिन्होंने अपनी भीतरी शक्तियों के स्रोत को जगाया, वे अनंत शक्तियों के स्रोत बन गए और जिन्होंने अपने भीतर की दीवाली को मनाया, लोगों ने उनके उपलक्ष्य में दीवाली का पर्व मनाना प्रारंभ कर दिया।दीपावली का पर्व ज्योति का पर्व है। दीपावली का पर्व पुरुषार्थ का पर्व है। यह आत्म साक्षात्कार का पर्व है। यह अपने भीतर सुषुप्त चेतना को जगाने का अनुपम पर्व है। यह हमारे आभामंडल को विशुद्ध और पर्यावरण की स्वच्छता के प्रति जागरूकता का संदेश देने का पर्व है। भगवान महावीर ने दीपावली की रात जो उपदेश दिया उसे हम प्रकाश पर्व का श्रेष्ठ संदेश मान सकते हैं। भगवान महावीर की यह शिक्षा मानव मात्र के आंतरिक जगत को आलोकित करने वाली है। तथागत बुद्ध की अमृत वाणी ‘अप्पदीवो भव’ अर्थात ‘आत्मा के लिए दीपक बन’ वह भी इसी भावना को पुष्ट कर रही है। इतिहासकार कहते हैं कि जिस दिन ज्ञान की ज्योति लेकर नचिकेता यमलोक से मृत्युलोक में अवतरित हुए वह दिन भी दीपावली का ही दिन था। यद्यपि लोक मानस में दीपावली एक सांस्कृतिक पर्व के रूप में अपनी व्यापकता सिद्ध कर चुका है। फिर भी यह तो मानना ही होगा कि जिन ऐतिहासिक महापुरुषों के घटना प्रसंगों से इस पर्व की महत्ता जुड़ी है, वे अध्यात्म जगत के शिखर पुरुष थे। इस दृष्टि से दीपावली पर्व लौकिकता के साथ-साथ आध्यात्मिकता का अनूठा पर्व है।यह बात सच है कि मनुष्य का रूझान हमेशा प्रकाश की ओर रहा है। अंधकार को उसने कभी न चाहा न कभी माँगा। ‘तमसो मा ज्योतिगर्मय’ भक्त की अंतर भावना अथवा प्रार्थना का यह स्वर भी इसका पुष्ट प्रमाण है। अंधकार से प्रकाश की ओर ले चल- इस प्रशस्त कामना की पूर्णता हेतु मनुष्य ने खोज शुरू की। उसने सोचा कि वह कौन-सा दीप है जो मंजिल तक जाने वाले पथ को आलोकित कर सकता है। अंधकार से घिरा हुआ आदमी दिशाहीन होकर चाहे जितनी गति करे

गुरुवार, 1 नवंबर 2018

मां लक्ष्मी

मां लक्ष्मी                                संसार मे जन्म लेने वाले बुद्धिधारी जीवो मे मनुष्य का रूप सर्वोपरि है और बुद्धि से काम लेने के कारण मनुष्य को कोई भी शारीरिक शस्त्र जानवरो की तरह से पंजा नाखून सींग चीरने फ़ाडने वाले दांत आदि को प्रकृति ने प्रदान नही किया है। बुद्धि को ही मंत्र के रूप मे जगाया जाता है और जैसे ही बुद्धि काम करने लगती है मनुष्य अपने बल से यंत्रो का निर्माण करना शुरु कर देता है और बुद्धि तथा साधन प्राप्त होते ही मनुष्य जीवन मे अपने सुख साधनो के प्रयोग के लिये अपनी रक्षा के लिये भविष्य की समृद्धि के लिये रास्ते बनाने लगता है ।

 बुद्धि को जागृत करने के लिये एक समय विशेष का चुनाव किया जाता है साधन बनाने के लिये भी एक समय विशेष का मूल्य होता है और साधन बनने के बाद उनसे अपने जीवन के कारको की प्राप्ति के लिये भी समय विशेष का कारण माना गया है। एक कहावत कही जाती है कि अस्पताल मे रोग के अनुसार जाना चाहिये,जैसे रोग तो ह्रदय रोग के रूप मे है और टीबी के अस्पताल मे जाया जाये तो रोग की पहिचान भी नही हो पायेगी जो दवा देनी है वह दवा नही मिलकर दूसरी दवाओ के लेने से रोग खत्म भी नही हो पायेगा और दूसरा रोग और पैदा होने की बात बन सकती है। उसी प्रकार से कहावत का दूसरा भाग बताया गया है कि मन्दिर मे भोग,यानी मन्दिर दुर्गा जी का है और वहां पर लड्डू का भोग लगाया जाये तो वह भोग लगेगा ही नही कारण दुर्गा के लिये तामसी भोग की जरूरत होती है और लड्डू तो केवल गणेश जी के लिये ही चढाने का प्रयोग है,उसी प्रकार से अगर हनुमान जी के मन्दिर मे तामसी भोग को चढाया जायेगा तो बजाय लाभ के नुकसान भी हो सकता है,कहावत का तीसरा भाग ज्योतिष मे योग के रूप मे समझना चाहिये,जब तक योग नही हो कोई काम करने से फ़ायदा नही हो पाता है,योग मे तीनो कारक बुद्धि साधन और साधनो से प्राप्त होने वाले लाभ मिलना लाजिमी होता है।

दीपावली को लक्ष्मी की आराधना का त्यौहार बताया जाता है। इस त्यौहार को वणिज कुल के लिये माना जाता है,चारो वर्णो मे तृतीय वर्ण वैश्य  वर्ण के लिये दीपावली का त्यौहार बताया गया है,जैसे क्षत्रिय के लिये दशहरा ब्राहमण के लिये रक्षाबन्धन वैश्य के लिये दीपावली और शूद्र वर्ण के लिये होली का त्यौहार बताया जाता है। अर्थ यानी धन सम्पत्ति का कारण आज के युग मे सभी के लिये जरूरी हो गया है और बिना अर्थ की प्राप्ति के शायद ही किसी का जीवन सही चल पाये,अगर बिना अर्थ के कोई भी जिन्दा रहना चाहता है तो वह या तो किसी गुफ़ा कन्दरा मे अपना जीवन निकाल रहा हो या वह सन्यासी बनकर मांग कर भोजन आदि का बन्दोबस्त अपने लिये कर रहा हो आदि कारण माने जा सकते है।,कूर्म पुराण के अनुसार लक्ष्मी का रूप तीन प्रकार का माना जाता है सत के रूप मे अचल लक्ष्मी रज के रूप में चलित लक्ष्मी और तम के रूप मे झटति लक्ष्मी। इन तीनो प्रकार के लिये हर व्यक्ति के धन भाव के तीनो भावो को एक साथ जोडा गया है,और तीनो भावो के अनुसार सत से जोडी गयी लक्ष्मी दूसरे भाव से रज से जोडी गयी लक्ष्मी छठे भाव से और तम से जोडी गयी लक्ष्मी को द्सवे भाव से जोड कर देखा जाता है। प्रत्येक युग मे लक्ष्मी को प्राप्त करने के लिये चारो पुरुषार्थो का प्रयोग किया जाता रहा है। धर्म नाम का पुरुषार्थ मेष सिंह और धनु राशियों के लिये अर्थ नाम का पुरुषार्थ वृष कन्या और मकर राशियों के लिये काम नाम का पुरुषार्थ मिथुन तुला और कुम्भ राशियों के लिये तथा मोक्ष नामका पुरुषार्थ कर्क वृश्चिक और मीन राशियों के लिये माना जाता है।मत मतांतर से अष्टलक्ष्मी के भिन्न- भिन्न नाम व रूपों के बारे में बताया गया है, जो इस प्रकार भी हैं - 

1 धनलक्ष्मी या वैभवलक्ष्मी  2 गजलक्ष्मी  3 अधिलक्ष्मी  4 विजयालक्ष्मी  5 ऐश्वर्य लक्ष्मी  6 वीर लक्ष्मी  7 धान्य लक्ष्मी  8 संतान लक्ष्मी ।

इसके अलावा कहीं-कहीं पर 1 आद्यलक्ष्मी  2 विद्यालक्ष्मी  3 सौभाग्यलक्ष्मी  4 अमृतलक्ष्मी 5 कामलक्ष्मी  5 सत्यलक्ष्मी, 6 विजयालक्ष्मी , भोगलक्ष्मी एवं योगलक्ष्मी के रूप में पूजा जाता है

लाल का किताब के अनुसार मंगल शनि

मंगल शनि मिल गया तो - राहू उच्च हो जाता है -              यह व्यक्ति डाक्टर, नेता, आर्मी अफसर, इंजीनियर, हथियार व औजार की मदद से काम करने वा...