गुरुवार, 30 मार्च 2017

चंद्रग्रह पोस्ट नंबर दो चन्द्रमा शुभ ग्रह है.यह शीतल और सौम्य प्रकृति धारण करता है.ज्योतिषशास्त्र में इसे स्त्री ग्रह के रूप में स्थान दिया गया है.यह वनस्पति, यज्ञ एवं व्रत का स्वामी ग्रह है. लाल किताब में सूर्य के समान चन्द्रमा को भी प्रभावशाली और महत्वपूर्ण माना गया हैटेवे में अपनी स्थिति एवं युति एवं ग्रहों की दृष्टि के अनुसार यह शुभ और मंदा फल देता है. लाल किताब में खाना नम्बर चार को चन्द्रमा का घर कहा गया है चन्द्रमा सूर्य और बुध के साथ मित्रपूर्ण सम्बन्ध रखता है.शुक्र, शनि एवं राहु के साथ चन्द्रमा शत्रुता रखता है.केतु के साथ यह समभाव रखता है.मिथुन और कर्क राशि में यह उच्च होता है एवं वृश्चिक में नीच.सोमवार चन्द्रमा का दिन होता है.लाल किताब के टेवे में 1, 2, 3, 4, 5, 7 एवं 9 नम्बर खाने में चन्द्रमा श्रेष्ठ होता है जबकि 6,7, 10, 11 एवं 12 नम्बर खाने में मंदा होता है. राशि के साथ सप्तम खाने में चन्द्रमा होने से धन एवं जीवन के सम्बन्ध में उत्तम फल मिलता है.कुण्डली में चतुर्थ भाव यानी चन्द्र का पक्का घर अगर खाली हो और इस पर उच्च ग्रहों की दृष्टि भी न हो और अन्य ग्रह अशुभ स्थिति में हों तब भी चन्द्रमा व्यक्ति को अशुभ स्थितियों से बचाता और शुभता प्रदान करता है. जब चन्द्रमा पर शुक्र, बुध, शनि, राहु केतु की दृष्टि होती है तो मंदा फल होता हैं जबकि इसके विपरीत चन्द्र की दृष्टि इन ग्रहों पर होने से ग्रहों के मंदे फल में कमी आती है और शुभ फल मिलता है.चन्द्र के घर का स्थायी ग्रह शत्रु होने पर भी मंदा फल नहीं देता है. इस विधा में कहा गया है कि चन्द्रमा अगर टेवे में किसी शत्रु ग्रह के साथ हो तब दोनों नीच के हो जाते हैं जिससे चन्द्रमा का शुभ फल नहीं मिलता है.लाल किताब में खाना नम्बर 1, 4, 7 और 10 को बंद मुट्ठी का घर कहा गया है.इन घरो में स्थित ग्रह अपनी दशा में व्यक्ति को अपनी वस्तुओं से सम्बन्धित लाभ प्रदान करते हैं.चन्द्रमा देव ग्रह है,तथा सूर्य का मित्र है,मंगल भी गुरु भीसूर्य और चन्द्रमा अगर किसी भाव में एक साथ होते है,तो कारकत्व के अनुसार फ़ल देते है,सूर्य पिता है और चन्द्र यात्रा है,पुत्र को भी यात्रा हो सकती है,एक संतान की उन्नति बाहर होती है।अगर जन्मकुंडली में अकेला चंद्र हो और उस पर किसी दूसरे ग्रह की नजर (दृष्टि) न हो तो जातक हर हालत में अपने कुल की हिफजत करता है। उसका बर्ताव दया और नम्रतापूर्ण रहता है। जातक में अपने ऊपर आने वाले किसी भी आघात, दोष, यहां तक कि फांसी की सजा भी खारिज करवाने की बेमिसाल ताकत होती है। चंद्र कर्क राशि का स्वामी है। यह अपने मित्र ग्रह बृहस्पति, मंगल एवं सूर्य पर अपना कुछ प्रभाव डालकर स्वयं बुरी स्थिति से बच जाता है। चंद्र चौथे घर का हर तरह से मालिक है। यह शनि के शत्रु सूर्य से मित्रता निभाने के लिए शनि के समय रात को भी सूर्य की तरह प्रकाश फैलाता है और शनि के अंधेरे को नष्ट करने का प्रयास करता है।मन की शांति और दिल में चैन पैदा करने वाला, गंगा की तरह सबकी गंदगी को अपने अंदर समेटकर साफ-सुथरा रूप देने वाला तथा गर्मी को ठंडक में बदल देने वाला ग्रह चंद्र है। इसे माता का प्रतीक माना गया है, इसलिए सभी ग्रह इसके कदमों में सिर झुकाकर बुराई न करने की कसम खाते है। चंद्र के शत्रु राहु, केतु और शनि है। यदि पापी ग्रह शनि, राहु और केतु कुंडली के चौथे घर (जो च्रंद का घर है) में हो तो जातक का बुरा नहीं कर पाते। चंद्र के संपर्क में आने के बाद इनकी बुराई खुद-ब-खुद खत्म हो जाती है।ज्योतिष में चन्द्र और शनि का योग विष योग के नाम से प्रसिद्ध है। इसका कारण ज्योतिष में शनि को जहर का कारक माना जाना है। चन्द्र पानी का कारक होता है और जब उसमे शनि का जहर मिल जाता है तो वो जहरीला हो जाता है। चंद्र दूध का भी कारक होता है और जब दूध में जहर मिलता है तो सफेद से नीला हो जाता है और नीला रंग राहु का माना गया है और शनि का भी अर्थात इन दोनों ग्रहों का पूर्ण प्रभाव जातक पर पड़ता है।चंद्र हमारे मन और मानसिक सुख का कारक है तो शनि उदासी और वैराग्य के कारक होते है। जब चंद्र को शनि का साथ मिलता है तो उस जातक में चंद्र की चंचलता समाप्त हो जाती है। इस पर शनि की उदासी हावी हो जाती है। जातक मानसीक रूप से अशांत रहने लग जाता है और उसमे एक वै राग्य की भावना का जन्म होने लग जाता है। सभी जानते हैं की चंद्रमा हमारी माता का भी कारक होता है और शनि का प्रभाव जातक की माता को भी स्वास्थ्य से सम्बंधित समस्या प्रदान करता है। यदि आपने ध्यान दिया होगा तो अमावस्या की काली रात जो की शनि की होती है उसमे चन्द्र नही निकलता है । शनि के अंधेरे में चंद्र गुम हो जाता है। यानी जब शनि का पूर्ण अशुभ प्रभाव चन्द्र पर हो तो जातक को चन्द्र से संबंधित समस्या का सामना करना पड़ जाता है। लाल किताब में भी चंद्र को धन और शनि को खजांची कहा गया है और जब इन दोनों का साथ हो तो जातक के धन की रखवाली जहरीला सांप करता है। यानी जातक के पास धन हो तो भी वो उसका प्रयोग नही कर सकता यानी धन की थैली पर सांप कुण्डली मार कर बैठ जाता है।यदि चन्द्रमा की दृष्टि शनि पर हो तो चन्द्रमा पर दुष्प्रभाव नही होता। यदि शनि की दृष्टि चन्द्रमा पर हो तो चन्द्रमा के फल का विपरीत प्रभाव पड़ता है। चन्द्रमा में शनि का विष आये बिना नही रहेगा।शनि द्वारा शासित जातक शुक्र से सम्ब्नधित वस्तुए के व्यापार में लाभ प्राप्त नही कर सकेगा। यदि राहु - केतु या शनि की दृष्टि चन्द्रमा पर हो तो द्रष्टा ग्रह से सम्बंधित जातक के सबंधी पर अशुभ फलो का प्रभाव होगा। जब सूर्य और मंगल साथ साथ एक ही भाव में हो तो चन्द्रमा प्राय: लाभ का ग्रह नही होता। जब चन्द्रमा की दृष्टि गुरु पर हो तो 2 में बुध, 5 में शुक्र, 9 में राहु तथा 12 में शनि हो तो चन्द्रमा शुभ फल नही देता। यदि 2, 4 या 8 खली होने के कारण सुप्त हो तो चन्द्रमा का उपाए करना चाहिए। ग्रहों के 35 साला दौरे में चन्द्रमा को एक साल मिला है। चंद्र बुरे घरों में हों और उनको शनि, राहू, केतू पीड़ित कर रहे हों तो ऐसे जातक के रूपये पैसे या प्रॉपर्टी पर दुसरे लोग मौज करते हैं। चंद्र भी मन्दे हों और उसी समय बुध भी मन्दे हाल हों और दोनों नीच या अपने दुश्मन ग्रहों से संबंध (कन्सर्न) करें तो सोच ख़राब हो जाती है और इज्जत मान भी नष्ट हो जाता है। जिस व्यक्ति की कुंडली में चन्द्र नीच के या मन्दे हाल हों तो ऐसे व्यक्ति को समझाना या नसीहत देने का कोई लाभ नहीं मिलता क्योंकि ऐसा व्यक्ति जिद्दी हो जाता है और अपने आगे किसी की नही सुनता। जिस कुंडली में चन्द्र और गुरु दोनों मन्दे नीच या दुश्मन ग्रहों से पीड़ित हो रहे हों तो ऐसा जातक दो नम्बर के कामों की तरफ जल्दी आकर्षित हो जाता है। वाकी आगे मित्रों अगर आप की ज़िंदगी में कोई भी समस्या चल रही है और आप उससे निजाद पाना चाहते है तो मुझ से समर्पक कर सकते हैऔर मैं पूरी कोशिश करूंगा कि उसके बारे में अधिक से अधिक जानकारी आप लोगों को मुहैया करवा सकूँ। हमारी service paid है आचार्य राजेश 09414481324 07597718725

बुधवार, 29 मार्च 2017

: चंद्र ग्रह मित्रोंअसल में चंद्र कोई ग्रह नहीं बल्कि धरती का उपग्रह माना गया है। पृथ्वी के मुकाबले यह एक चौथाई अंश के बराबर है। पृथ्वी से इसकी दूरी 406860 किलोमीटर मानी गई है। चंद्र पृथ्वी की परिक्रमा 27 दिन में पूर्ण कर लेता है। इतने ही समय में यह अपनी धुरी पर एक चक्कर लगा लेता है। 15 दिन तक इसकी कलाएं क्षीण होती है तो 15 दिन यह बढ़ता रहता है। चंद्रमा सूर्य से प्रकाश लेकर धरती को प्रकाशित करता है। देव और दानवों द्वारा किए गए सागर मंथन से जो 14 रत्न निकले थे उनमें से एक चंद्रमा भी थे जिन्हें भगवान शंकर ने अपने सिर पर धारण कर लिया था।चंद्र को देव ग्रह माना गया है और जा जल तत्व का प्रतिनिधित्व करता है कर्क राशि का यह स्वामी है। चंद्रमा के अधिदेवता अप्‌ और प्रत्यधिदेवता उमा देवी हैं। श्रीमद्भागवत के अनुसार चंद्रदेव महर्षि अत्रि और अनुसूया के पुत्र हैं। इनको सर्वमय कहा गया है। ये सोलह कलाओं से युक्त हैं। चंद्रमा का विवाह राजा दक्ष की सत्ताईस कन्याओं से हुआ। ये कन्याएं सत्ताईस नक्षत्रों के रूप में भी जानी जाती हैं, पत्नी रोहिणी से उनको एक पुत्र मिला जिनका नाम बुध है। पृथ्वी से जुड़े प्राणियों की प्रभा (ऊर्जा पिंडों) और मन को ग्रह प्रभावित करते हैं। प्रत्येक ग्रह में एक विशिष्ट ऊर्जा गुणवत्ता होती है, जिसे उसके ग्रहों की ऊर्जा किसी व्यक्ति के भाग्य के साथ एक विशिष्ट तरीके से उस वक्त जुड़ जाती है जब वे अपने जन्मस्थान पर अपनी पहली सांस लेते हैं। यह ऊर्जा जुड़ाव धरती के निवासियों के साथ तब तक रहता है जब तक उनका वर्तमान शरीर जीवित रहता है।ग्रह आद्यप्ररुपीय ऊर्जा के संचारक हैं। प्रत्येक ग्रह के गुण स्थूल जगत और सूक्ष्म जगत वाले ब्रह्मांड ्रुवाभिसारिता के समग्र संतुलन को बनाए रखने में मदद करते हैं, जैसे नीचे वैसे ही ऊपरमाँ का सुख क्योंकि चन्द्र प्राण का कारक और मनुष्य रूप में माँ ही प्राण तुल्य है।जब किसी भी मनुष्य को किसी भी प्रकार से कष्ट होता है।तो उसे माँ ही याद आती है।और माँ को भी अपनी संतान के दुख का अभास हो जाता है।और अपनी संतान के दुख को दूर करने का प्रयत्न मन से वचन से और कर्म से करती है।यदि माँ मनसा, वाचा,कर्मणा अपनी संतान की रक्षा नहीं कर पाती तो तब इस स्थिति में माँ अपने हृदय से अपने प्राणों से प्यारी संतान की रक्षा के लिए भगवान से प्रार्थना करती है। और भगवान उस माँ की प्रार्थना को सुन लेते हैं।और उसकी संतान के प्राणों की पुनः रक्षा करते हैं।और प्रभु प्रार्थना उसका जीवन आनंदमय कर देती है। चन्द्र ग्रह का भी यही काम प्राणों की रक्षा करना है।मनुष्यों में माँ प्राण और नव ग्रहो में चन्द्र प्राण है। चन्द्र ग्रह शान्ति का प्रतीक है।सफेद रंग है।जल तत्व है।यदि किसी भी मनुष्य की जन्म कुण्डली में जीवन में चन्द्र ग्रह शुभ हो तो जातक बहुत शांत स्वभाव का,मातृ -सुख की प्राप्ति, प्रत्येक कार्य को बहुत स्थिर बुद्धि से करने वाला, जल संबंधित पानी, चाय-कोफी,जूस,फिनाइल - तेजाब कोल्ड ड्रिंक की एजेंसी कम्पनी, आईस क्रीम, आईस क्यूब की फैक्ट्री, दूध बेचने का काम शराब के ठेके का काम लेना, बेचना, खरीदना, इत्यादि ( लिक्विड ) का व्यापार करने वाला होता है।अगर आप की कुण्डली मे चन्द्र ग्रह की स्थिति उतम और यहाँ बताये हुआ कोई भी व्यपार, व्यवसाय आप करते है। तो आप अपने इस व्यपार मे बहुत लाभ कमा रहे है।या इनमे से कोई भी व्यपार करके आप धन, ऐश्वर्य, नाम कमाने वाले हो बस आप को अपने काम मे सत्य निष्ठा,ध्यान, स्थिरता, योग्यता, अपना व्यवहार और वाणी को उतम,और थोड़ा परिश्रम की अवश्यकता है। बाकी चन्द्र ग्रह अपना शुभ फल दे के आप की मेहनत को सफल करके ख्याति नाम प्राप्त करवायेगा।लेकिन ये व्यपार, व्यवसाय, प्रारम्भ करने से पहले आप को पता होना चाहिए। कि आप की जन्म कुण्डली मे चन्द्र ग्रह की स्थिति शुभ होनी चाहिए। और यदि चन्द्र ग्रह की स्थिति आप की जन्म पत्रिका में अशुभ हैं।तो आप को चन्द्र ग्रह से संबंधित कोई भी व्यपार, व्यवसाय नहीं करना चाहिए। यदि आप करेगे तो आप को लाभ नहीं हानि होगी। Modern Science भी इस बात को पूरी तरह से स्‍वीकार करता है कि पूर्णिमा व अमावस्‍या के समय जब चन्‍द्रमा, पृथ्‍वी के सर्वाधिक नजदीक होता है, तब पृथ्‍वी के समुद्रों में सबसे बड़े ज्‍वार-भाटा होते हैं और इतने बड़े ज्‍यार-भाटा का मूल कारण चन्‍द्रमा की गुरूत्‍वाकर्षण शक्ति ही है, जो कि मूल रूप से पृथ्‍वी के समुद्री जल काे ही सर्वाधिक आकर्षित करता है।सम्‍पूर्ण पृथ्‍वी पर लगभग 75% भू-भाग पर समुद्र का खारा जल है और इन्‍हे Scientists ने से भी सिद्ध किया है कि मनुष्‍य का शरीर भी लगभग 75% पानी से बना है तथा ये पानी भी लगभग उसी अनुपात में और उतना ही खारा है, जितना कि समुद्री जल। यानी सरलतम शब्‍दों में कहें तो हमारा शरीर लगभए एक छोटे समुद्र के समान है। तो जब चन्‍द्रमा के गुरूत्‍वाकर्षण का प्रभाव समुद्र के पानी पर पड़ता है, तो उसी मात्रा में वैसा ही प्रभाव मानव शरीर पर क्‍यों नहीं पड़ेेगा मानव का दिमाग मूल रूप से 80% पानी से बना होता है और हमारे भोजन द्वारा जीवन जीने के लिए जितनी भी उर्जा ये शरीर Generate करता है, उसकी 80% उर्जा का उपयोग केवल दिमाग द्वारा किया जाता है क्‍योंकि शरीर के काम करना बन्‍द कर देनेसो जाने, बेहोश हो जाने अथवा शिथिल हो जाने पर भी दिमाग यानी मन अपना काम करता रहता है। यानी मन, मनुष्‍य के शरीर का सबसे महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा है, जिसकी वजह से ये तय होता है कि व्‍यक्ति जीवित है या नहीं। यदि व्‍यक्ति का मन मर जाए, तो शरीर जीवित होने पर भी उसे मृत समान ही माना जाता है, जिसे सामान्‍य बोलचाल की भाषा में कोमा की स्थिति कहते हैं और भारतीय फलित ज्‍योतिष के अनुसार मन का कारक ग्रह चन्‍द्रमा है।जिस प्रकार से जीवन मे लगन प्रभावी होती है उसी प्रकार से चन्द्र राशि भी जीवन मे प्रभावी होती है। चन्द्रमा एक तो मन का कारक है दूसरे जब तक मन नही है तब कुछ भी नही है,दूसरे चन्द्रमा माता का भी कारक है और माता के रक्त के अनुसार जातक का जीवन जब शुरु होता है तो माता का प्रभाव जातक के अन्दर जरूर मिलता है,हमारे भारत वर्ष मे जातक का नाम चन्द्र राशि से रखा जाता है यानी जिस भाव का चन्द्रमा होता है जिस राशि मे चन्द्रमा होता है उसी भाव और राशि के प्रभाव से जातक का नाम रखा जाता है मैने पहले भी कहा है कि चन्द्रमा मन का कारक है और जब मन सही है तो जीवन अपने आप सही होने लगता है जो सोच सोचने के बाद कार्य मे लायी जायेगी वह सोच अगर उच्च कोटि की है तो जरूर ही कार्य जो भी होगा वह उच्च कोटि का ही होगा,सूर्य देखता है चन्द्र सोचता है और शनि करता है बाकी के ग्रह हमेशा सहायता देने के लिये माने जाते है। कोई ग्रह समय पर मित्र बनकर सहायता देता है तो कोई ग्रह शत्रु बनकर एक प्रकार की शिक्षा के लिये अपना प्रयोग दे कर चला जाता है जो ग्रह आज शत्रु है तो कल वही ग्रह मित्र बनकर अपना प्रभाव प्रदर्शित करता है आदि बाते जरूर देखने मे आती है।मेरा यह सतत प्रयास रहा है कि आप ज्योतिष के अन्दर अन्धेरे मे नही रहे और आपको जितनी अच्छी ज्योतिष सीखने का कारण मिलेगा मुझे उतना ही आनन्द आयेगा कि भारत के ऋषियों मनीषियों की शोध की बाते आप तक पहुंची और आपने उन बातो को सीख कर अपने ग्यान को भी बढाया साथ मे उन लोगो की भी सहायता की जो आज के भौतिक युग मे केवल धन को ही महत्ता देते है और उस महत्ता के कारण जो वास्तव मे जरूरत वाले है उन्हे ज्योतिष का प्रभाव समझ मे नही आता है उसके बाद भी तामसी प्रवृत्ति के लोग उन्हे बरगलाते है और उन्हे हमारे ज्योतिष को जो वेद का छठा अंग है और सूर्य बनकर देख रहा है चन्द्रमा बनकर सोच रहा है मंगल बनकर पराक्रम दे रहा है बुध बनकर एक दूसरे को जोड रहा है गुरु बनकर रिस्ते स्थापित कर रहा है शुक्र बनकर जीवन को सजा रहा है शनि बनकर कार्य की तरफ़ बढा रहा है राहु बनकर आकस्मिक अच्छा कर रहा है और केतु बनकर साथ के सहायक कारको को प्रदान कर रहा है मित्रों चन्द्रमा राशि के अनुसार क्या क्या सोचने के लिये मन के अन्दर लहरो को उठाता है यह लहरे भावना के अनुसार किस प्रकार से ऊपर नीचे जाती है और जीवन मे सोच आना और सोच का जाना कैसे होता है। इतना ध्यान रखना है कि लगन शरीर है तो चन्द्र राशि सोच है,सूर्य लगन पिता की तरफ़ से मिले संस्कार है। वाकी आगे मित्रों अगर आप भी मुझसे अपनी कुंडली बनवाना क्या दिखाना चाहते हैं तो आप मुझसे संपर्क करें हमारे फोन नंबर पर पूरी जानकारी ले paid service 09414481324 07597718725

सोमवार, 27 मार्च 2017

शुक्र ग्रह पोस्ट नंबर 3 मित्रों आज भी हम शुक्र पर ही बात करेंगे फिल्मी दुनिया की चकाचौंध, फेशनेबल वस्त्रों में घूमते युवा, विपरीत लिंगियों की तरफ बढ़ता आकर्षण अदभुत सा लगता है न ये संसार, ये सारी चीजें शुक्र के प्रतिनिधित्व में आती है. अगर शुक्र का अच्छा प्रभाव कुंडली में हो तो व्यक्ति को दुनिया की बुलंदियों पर पंहुचा देता है लेकिन शुक्र का फ़ायदा भी आपको तभी मिल सकता है, जब कुंडली में अन्य ग्रह आपकी आर्थिक मदद कर सकें और ऐसा करने से आपकी जिन्दगी पूरी तरह से ही बदल जायेगीशुक्रदेव का हमारी कुंडली में बड़ा ही अलग सा किरदार होता है। शुक्र गुरु है उन दैत्यों का जो निद्रा और वासना के पुतले है। उन्हें धर्म या दर्शन से कोई दरोकर नही में शुक्र को उन्ही वासना और विश्राम कारक मन गया है। अकेला शुक्र किसी भी भाव में बुरा नही।वुघ शुक्र के साथ मित्रता रखता है लेकिन मुसीबत के वक्त मित्रता की बलि दे देता है यदि बुध शुक्र से 1, 2, 3 भावों में स्थित हो तो दोनों के फल संयुक्त रूप से शुभ होते है अलग अलग भी अच्छे ही होते है। इन स्थानों में केतु भी शुभ फल देता है। यदि भाव स्तिथि इससे भिन्न हो तो राहु फल को विषाक्त कर देता है। यदि शुक्र और बुध 2-8, 3-9, 6-12, 8-2 हों तो खराब फल देता है, किन्तु ऐसा बहुत कम होता है। शुक्र और बुध एक दूसरे से 150 की दुरी पर प्राय नही जाते। यदि बुध षष्ठ भाव में और शुक्र द्वादश भाव में हो तो दोनों उच्च के होते है। अतः शुभ फल देते है। यदि राहु की दृष्टि शुक्र पर हो तो या शुक्र की दृष्टि राहु पर हो तो शुक्र के फल शून्य जाते है। यदि जन्म कुंडली में शुक्र पर किसी प्रकार का विपरीत प्रभाव होतो गोचर से जब भी वह अशुभ घर में आयेगातो उसके फल शून्य हो जायेंगे। शुक्र की अधिस्ठात्री देवी लक्ष्मी है। उसकी धातु चांदी और रत्न हीरा माने गए है। वह पत्नी और प्रेमिका की कारक है। कपूर, घी, दही, रुई और सुगंध देने वाले पौधे शुक्र के छेत्र अधिकार में आते है। देहंगो में वह चेहरे का कारक है। भाव को सक्रिय करता है और चतुर्थ में राशिफल का ग्रह बन जाता है। ग्रहों को 35 साला दौरे में उसे 3 साल मिले है। शुक्र सफेद रंग (दही) दुनिया की मिट्टी, ज़माने की लक्ष्मी, गऊ माता, मर्द की औरत ने किसी को नीच न किया। इसलिये हर एक ने पसन्द किया और खुद नीच किया। ''बदी खुफिया तू जिससे दिन रात करता, वक्त मन्दा तेरे वही सर पर चढ़ता। शुक्र के ग्रह को दुनियावी किस्मत से कोई ताल्लुक नहीं। सिर्फ इश्क व मुहब्बत की फालतू दो से एक ही आंख हो जाने की ताकत शुक्र कहलाती है। स्त्री ताल्लुक, गृहस्थ आश्रम, बाल बच्चों की बरकत और बड़े परिवार का 25 साला ज़माना शुक्र का अहद है। इस ग्रह में पाप करने कराने की नस्ल का खून और गृहस्थी हालत में मिट्टी और माया का वजूद है। मर्द के टेवे में शुक्र से मुराद स्त्री और औरत के टेवे में उसका खाविन्द मुराद होगी। अकेला बैठा हुआ शुक्र टेवे वाले पर कभी भी बुरा असर न देगा और न ही ऐसे टेवे वाला गृहस्थी ताल्लुक में किसी का बुरा कर सकेगा। जब दृष्टि के हिसाब से आमने सामने के घरों में बैठे हों तो चमकती हुई चांदनी रात में चकवे चकवी की तरह अकेले अकेले होने का असर मन्दरज़ा जैल होगा। अगर बुध कुण्डली में शुक्र से पहले घरों में बैठा हो तो इस तरह दोनों के मिले हुए असर में केतु की नेक नीयत का उम्दा असर शामिल होगा। लेकिन अगर शुक्र कुण्डली में बुध से पहले घरों में हो तो इस तरह मिले हुए दोनों के असर में राहु की बुरी नीयत का असर शामिल होगा। दृष्टि वाले घरों में बैठे होने के वक्त शुक्र का असर प्रबल होगा। लेकिन जब बुध पहले घरों में हो और मन्दा होवे तो शुक्र में बुध का मन्दा असर शामिल हो जायेगा। जिसे शुक्र नही रोक सकता व गृहस्थ मन्दे नतीजे हाेंगे। जब अकेले अकेले बन्द मुट्ठी के खानों से बाहर एक दूसरे से 7वें बैठे हो तो दोनो ही ग्रहों और घरों का फल निकम्मा होगा। मगर शुक्र 12 और बुध 6 में दोनों का उच्च होगा जिसमें केतु का उत्तम फल शामिल होगा। ऐसी हालत में बैठे होने के वक्त दोनों का असर बाहम न मिल सकेगा। जब दोनो ग्रह जुदा जुदा मगर आपस में दृष्टि के खानों की शर्त से बाहर हों तो जिस घर शुक्र हो वहां बुध अपना असर अपनी खाली नाली के ज़रिए लाकर मिला देगा और शुक्र के फल को कई दफ़ा बुरे से भला कर देगा। लेकिन बुध के साथ अगर दुश्मन ग्रह हों तो ऐसी हालत में शुक्र कभी भी बुध को ऐसी नाली लगाकर अपना असर उसमें मिलाने नही देगा। ऐसी हालत में बुध किसी तरह भी शुक्र को निकम्मा या बरबाद नही कर सकता। जन्म कुण्डली में शुक्र अगर अपने दुश्मन ग्रहों को देख रहा हो तो जब कभी बमुजिब वर्ष फल शुक्र मन्दा हो या मन्दे घरों में जा बैठे, वह दुश्मन ग्रह जिनको कि शुक्र जन्म कुण्डली में देख रहा था, शुक्र के असर को ज़हरीला और मन्दा करेंगे ख्वाह वह शुक्र को अब देख भी न सकते हों । ऐसे टेवे वाला जिससे खुफिया बदी किया करता था अब वही दुश्मनी और बरबादी का सबब होगा। .यहा सुर्य के साथ शुक्र ,सूर्य गर्मी है और शुक्र रज है सूर्य की गर्मी से रज जल जाता है,और संतान होने की गुंजायस नही रहती है,इसी लिये सूर्य का शत्रु है,जब कभी भी कुंडली में सूर्यूर्और शनि का झगड़ा होगा, ऐसी हालत में न सूर्य बर्बाद होगा न शनि, क्योकि वे दोनों बाप-बेटे है लेकिन इसका असर शुक्र पर जरूर पड़ेगा। बेशक शुक्र उस समय अच्छी स्थिति में हो। कहने का भाव यह है कि सूर्य शनि के झगडे में व्यक्ति की स्त्री पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ सकता है। इसी तरह बुध ने भी अपने बचाव के लिए शुक्र से दोस्ती कर रखी है, लेकिन चालाक बुध अपने वफ़ादारी के फर्ज को नही निभाता। जब कभी बुध पर कष्ट आता है तो वो अपने ही दोस्त शुक्र को मुशीबत में डाल देगा। ऐसा नहीं की हर जगह शुक्र ही मरते है। बल्कि जब कभी चन्द्र और शुक्र मुकाबले पर होखासकर शुक्र चन्द्र मुश्तरका खाना न 7 या शुक्र अकेला खाना न 7 और चन्द्र खाना न 1 तो माता पर या माता की नजर पर इसका बुरा प्रभाव पड़ सकता है । शुक्र देव नीच मंदे या दुश्मन ग्रहो के साथ बैठ जाये या दृष्टि आदि से पीड़ित हो तो शुक्र के बुरे फल मिलते है और ऎसे जातक के स्वाभाव में यह भी देखा जाता है की वह जल्दी बिस्तर नही छोड़ता और वह शुक्र के फल को और भी बुरा कर लेता है। शुक्र का सम्बन्ध राहु के साथ हो जाये तो पति पत्नी के सम्बन्ध में शक वहम मारपीट तक होती है। ऎसे जातक को गुप्त रोग तक हो जाते है यहाँ तक की जातक नपुंसक तक हो जाते है। ऐसा व्यक्ति अपने साथी को तंग ही करता रहता है। शुक्र का सम्बन्ध सूर्य के साथ होने से सम्भोग की इच्छा बहुत काम हो जाती है। वो भी जीवनसाथी को खुश नही रख पता। खुद के व साथी के शरीर में अंदरुनी कमजोरी हो जाती है जो की आसानी से पकड़ में नही आती। जब शुक्र का सम्बन्ध चन्द्र के साथ हो जाये तो ऎसे जातक का सम्बन्ध अपनी सास के साथ अच्छा नही होता। अगर ऐसा योग अगर लड़की की कुंडली में हो तो उसे सास की तरफ से कभी सुख नही मिलता। ऎसे जातक की माँ की आँखों में तकलीफ रहती है और साथ ही चमड़ी के रोग भी हो जाते है। यहाँ तक की जातक को भी इन्ही परेशानियो का सामना करना पड़ता है। शुक्र देव 2, 3, 7, 10, 12 में अच्छे फल देते है लेकिन यह भी जरूरी होता है की वे अपने सत्रु गृह सूर्य ,चन्द्र ,राहु के साथ युक्ति द्वारा या दृष्टि द्वारा ख़राब तो नही हो रहे। शुक्र देव के बारे में एक आश्चर्यजनक बात यह है की खाना 6 ,8 ,12 में तो इसका भेद ही बहुत रहस्यमय हो जाता है।यही अगर ,शुक्र के साथ राहु के मिलने से कामुकता में इतनी अधिकता आजाती है कि हर बात में ही कामुकता का रूप दिखाई देने लगता है। यह बात हर जगह नही मानी जाती है,कुंडली की राशि और भाव पर भी निर्भर करता है। शुक्र का प्रभाव अगर दसवे भाव में राहु के साथ हो जाता है तो कार्य करने के लिये शाही चमक दमक वाला दफ़्तर ही रास आता है चाहे सैलरी कितनी ही कम क्यों न हो। घर में भोजन की दिक्कत बनी रहे लेकिन पत्नी की सजावट और कास्मेटिक का बोलबाला जरूर होगा,पेट्रोल के लिये धन कमाने में दिक्कत होगी लेकिन गाडी चमक दमक वाली होगी। घर के अन्दर टूटा पलंग होगा लेकिन दरवाजे की सजावट निराली होगी,यह होता है शुक्र और राहु का इकट्ठा रूप।अक्सर लोगों की धारणा होती है कि अमुक ग्रह कुंडली में दिक्कत देने वाला है इसलिये इसकी उपयोगिता नही है। अमुक ग्रह का उपाय किया जाये उसका रत्न पहिना जाये या पूजा पाठ से उसे उपयोगी बनाया जाये। यह भी सभी को पता होता है कि ग्रह भी समय समय से अपना फ़ल प्रदान करता है,यह भी पता है कि ग्रह अगर जन्म से ही खराब है तो वह कितना अच्छा फ़ल दे पायेगा।मित्रों मैंने कभी नहीं कहा कि मैं फ्री देखता हूं क्या मैंने आप लोगों से कहा की आपमुझसे ही अपनी कुंडली दिखाएं यह बात मुझे कहने पड़ रही है कि कुछ लोग उल्टे सीधे सवाल करते हैं या आप मेरी Facebook से जुड़े अगर आप मुझसे अपनी कुंडली दिखाना या बनवाना चाहते हैं तो हमारी सर्विस,paid हे्है आचार्य राजेश

रविवार, 26 मार्च 2017

शुक्रग्रह भाग नंबर २ मित्रों आज भी हम शुक्र के बारे में ही बात करेंगे ज्योतिष की इस विधा में वैवाहिक जीवन के सुख विवाह और वैवाहिक सुख के लिए शुक्र सबसे अधिक जिम्मेवार होता है. इस विषय में लाल किताब और भी बहुत कुछ कहता है. यदि शुक्र जन्म कुण्डली में सोया हुआ है तो स्त्री सुख में कमी आती है. राहु अगर सूर्य के साथ योग बनाता है तो शुक्र मंदा हो जाता है जिसके कारण आर्थिक परेशानियों के साथ साथ स्त्री सुख भी बाधित होता है. लाल किताब में लग्न, चतुर्थ, सप्तम एवं दशम भाव बंद मुट्ठी का घर है. इन भाव के अतिरिक्त किसी भी अन्य भाव में शुक्र और बुध एक दूसरे के आमने सामने बैठे हों तो शुक्र पीड़ित होकर मन्दा प्रभाव देने लगता है. इस स्थिति में शुक्र यदि खाना १२ में होता है तो मन्दा फल नहीं देता है.कुण्डली में खाना संख्या 1 में शुक्र हो और सप्तम में राहु तो शुक्र को मंदा करता है जिसके कारण दाम्पत्य जीवन का सुख नष्ट होता हे अगर एक दूसरे से छठे और आठवें घर में होते हैं तो टकराव के ग्रह बनते हैं. सूर्य और शनि कुण्डली में टकराव के ग्रह बनते हैं तब भी शुक्र मंदा फल देता है जिससे गृहस्थी का सुख प्रभावित होता है. पति पत्नी के बीच वैमनस्य और मनमुटाव रहता है.पीड़ित शुक्र से प्रभावित जातक की जिंदगी में सुख की बेहद न्यूनता हो जाती है, उसे पग-पग पर संघर्ष करना पड़ता है, भोग-वैभव उससे कोसों दूर रहते हैं, मानसिक रूप से ऐसे व्यक्ति एक नीरस इंसान की तरह लोगों के बीच जाना जाता है ज्योतिष मे स्त्री ग्रह का दर्जा दिया है। शुक्र को वास्तव में स्त्री ग्रह का दर्जा तो दिया गया है,लेकिन इसका वास्तविक प्रभाव प्रत्येक जीवधारी में बराबर का मिलता है,पुरुष के अन्दर स्त्री अंगों की उपस्थिति भी इस ग्रह का भान करवाती है। जिस प्रकार से मंगल की गर्मी गुस्सा और उत्तेजना को पुरुष और स्त्री दोनो के अन्दर समान भाव में पाया जाना है,उसी प्रकार से शुक्र का प्रभाव स्त्री और पुरुष दोनो के अन्दर समान भाव में पाया जाता है।शुक्र को आनन्द का ग्रह कहा जाता है,वैसे सभी ग्रह अपने अपने प्रकार का आनन्द प्रदान करते है,सूर्य राज्य का आनन्द प्रदान करवाता है,मंगल वीरता और पराक्रम का आनन्द प्रदान करवाता है,चन्द्र भावुकता का आनन्द देता है,बुध गाने बजाने का आनन्द देता है,गुरु ज्ञानी होने का आनन्द देता है,शनि समय पर कार्य को पूरा करने का आनन्द देता है। शुक्र आनन्द की अनुभूति जब देता है,जब किसी सुन्दरता के अन्दर प्रवेश हो,भौतिक रूप से या महसूस करने के रूप से,जैसे भौतिक रूप से किसी वस्तु या व्यक्ति को सुन्दरता के साथ देखा जाये,महसूस करने के रूप से जैसे किसी की कला का प्रभाव दिल और दिमाग पर हावी हो जावे।शुक्र आनन्द के साथ दर्द का कारक भी है,जब हम किसी प्रकार से सुन्दरता के अन्दर प्रवेश करते हैं तो आनन्द की अनुभूति होती है,और जब किसी भद्दी जगह या बुरे व्यक्ति से सम्पर्क करते है तो कष्ट भी होता है। स्त्री कारक ग्रह है। इसलिए इस घर (खाना नं 6) में शुक्र होने पर जो वैर - विरोध पैदा होता है वो अधिकतर स्त्रिओं की ओर से और स्त्रिओं के कारण होता है। उसके शत्रु भी स्त्री स्वभाव के होंगे। ये शत्रु उस व्यक्ति के साथ बहुत ईर्ष्या रखते है और उसके बारे में दूसरे लोगों के पास झूठी - सच्ची बातों से उसे बदनाम करने की कोशिश करते है और किसी हद तक अपनी कोशिशों में सफल भी होते है। इस घर का शुक्र मीठा मीठा बोलने वाले दुश्मन पैदा करता है। जो की ठीक ही प्रतीत होता है। इसका कारण यह है की छठा घर बुध का पक्का घर है और बुध एक स्त्री गृह होने के साथ चुस्ती और होशियारी का ग्रह भी हैं जिसकी जुबान में मिठास है। अतः शुक्र जैसे ग्रह का छठे घर में होना स्वाभाविक ही है कि वो ऐसे शत्रु पैदा करेगा, जिनकी बोली में शहद और बगल में छुपा हुआ खंजर जैसे ही किसी का छठे घर का शुक्र अपना बुरा फल देना शुरू करता हैं वैसे ही उसके दायें या बाएं हाथ का अंगूठा बिना किसी चोट के ही दर्द करने लगता है। ऐसी हालत में साधारण सा ये उपाय हैं कि फटे पुराने गंदे कपडे न पहने, साफ़ सुथरे कपडे पहने अगर हो सके तो दिन में दो बार कपडे बदले और इत्र परफ्यूम आदि का प्रयोग करे। यदि यहाँ का शुक्र पत्नी की सेहत के बारे में , औलाद के बारे में या व्यक्ति के अपने सम्मान के बारे में अशुभ फल दे रहा हो तो यह सबसे उपयुक्त उपाय होगा की उस व्यक्ति की पत्नी कभी भी नंगे पाँव जमीन पर न चले। कारण यह है की इस घर का शुक्र पाताल का शुक्र है। छठे घर को पाताल कहा गया है, इसलिए जमीन की तह के नीचे पड़ा हुआ है। लेकिन जब उसकी कारक स्त्री के नंगे पाँव जमीन को छु लेंगे तो पाताल में पड़ा हुआ प्रभाव ऊपर जमीन पर आ जाएगा। हो सके तो कोई भी व्यक्ति अपनी पत्नी को नंगे पाँव कभी न चलने दे।जातक का शुक्र कुंडली में अस्त होता है,तो तमाम प्रकार के वीर्य विकार पाये जाते है,पुरुष की कुन्डली में सूर्य के साथ शुक्र होने पर संतान बडी मुश्किल से पैदा होती है,और अधिकतर गर्भपात के कारण देखे जाते है,स्त्री की कुन्डली में शुक्र और मंगल की युति होने पर पति पत्नी हमेशा एक दूसरे से झगडते रहते है,और जीवन भर दूरियां ही बनी रहती है। अक्सर शुक्र अस्त वाला जातक पागलों जैसी हरकतें किया करता है,उसके दिमाग में बेकार के विकार पैदा हुआ करते है,वह बेफ़जूल के संकल्प मन में ग्रहण किया करता है,और उन संकल्पं के माध्यम से अपने आसपास के लोगों को परेशान किया करता है। शुक्र की धातु के लिये कोई भी धातु जिस पर कलाकारी और खूबशूरती का जामा पहिनाया गया हो मानी जाती है,अनाजों और सब्जियों तथा फ़लों में इसके स्वाद के साथ पकाने और प्रयोग करने की क्रिया को माना गया है। खैर वात करते हैं लाल किताब में अष्टम शुक्र की कालपुरुष की दूसरी राशि के स्वामी के मौत के घर में चला जाना अतः ऐसे इंसान के यहां क़र्ज़ की संभावना बनी रहती है। ऐसा इंसान का अपने पार्टनर से कभी भी अच्छा सम्बन्ध नहीं होता। इसको ऐसे कहा जा सकता हैं कि ऐसे शुक्र वाले का जायज सम्बन्ध तो सूली पे चढ़ जाता हैं उसे संतुष्टि नहीं मिलती लेकिन नाजायज सम्बन्ध ही उसको संतुष्टि देते हैं। ऐसे लोगों को काले रंग की गाय को 8 रविवार आटे का पेड़ा देना चाहिए। अगर हो सके तो आगे भी करते रहे। क्योंकि शुक्र गाय हैं , पर आठवें घर में अर्थात अँधेरे के घर में , यह गाय काले रंग की हो जाती हैं। आटे का पेड़ा सूर्य की वस्तु हैं और रविवार सूर्य का वार है। सो इस शुक्र के अँधेरे को, उसके दुश्मन ग्रह सूर्य से रोशन करना हैं।आठवें शुक्र को जली मिटटी की चांडाल औरत कहा गया है। आठवें शुक्र वाले की पत्नी सख्त स्वभाव की होती हैं। औरत की जुबान से निकला हर शब्द पत्थर की लकीर होगा।अगर किसी के लिए बुरा कहेगी तो तुरंत सच हो जाता हैं। लेकिन अछा कहने पे जरूरी नहीं। अगर ऐसा इंसान अपनी पत्नी को तंग करेगा तो शुक्र का फल दोनों के के लिऐ मंदा होगा। ऐसे इंसान की शादी यदि 25 वर्ष तक हो जाये तो तो बहुत अशुभ होगा। शुक्र 8 के समय यदि खाना नंबर २ खाली हो तो देखा जाता हैं की बुजर्गों का सर पे साया नहीं होता। चन्द्र - मंगल या बुध अच्छी हालत होने पे ही शुक्र का असर कम हो सकता हैं।जब सूर्य के साथ या सूर्य की दृष्टि में शनि आ जाएँ तब शुक्र से मिलने वाले सुखों में कमी होती है। जब सूर्य के साथ शुक्र एक ही घर में या किसी वर्ष फल में सूर्य की दृष्टि शुक्र के ऊपर पड़ रही हो तब भी शुक्र के सुखो में कमी हो जाती है। जब सूर्य शुक्र के पक्के घर 7 में बैठ जाएँ तब भी शुक्र के फलों में परेशानी होतीहै जब सूर्य घर 12 जोकि बिस्तर के सुखों का घर है बंहा पर सूर्य बैठ कर शुक्र के सुखो का नाश करते हैं। क्योंकि बिस्तर के सुख का कारण शुक्र हैं। साथ ही शुक्र को फूल भी बोला जाता है और सूर्य तो आग का विशाल गोला है तो आग के पास फूल जल जाता है और हाँ एक बात और कि सूर्य 12 बाले जातक का जीवन साथी बिस्तर पर प्यार कम और झगड़ा ज्यादा करता है। इस प्रकार से सूरय शुक्र को हानि पहुंचाते हैं।मित्रों अगर आपकी भी कोई समस्या है जहां आप अपनी कुंडली के बारे में कोई उपाय पूछना चाहते हैं जहां आप अपनी कुंडली बनवाना जा दिखाना चाहते हैं तो आप संपर्क करें हमारी सर्विस paid है अधिक जानकारी के लिए हमारे इन नंबरों पर संपर्क करें 09414481324 07597718725

शनिवार, 25 मार्च 2017

शुक्र ग्रह ग्रहों का असर जिस तरह प्रकृति पर दिखाई देता है ठीक उसी तरह मनुष्यों पर यह असर देखा जा सकता है। आपकी कुंडली में ग्रह स्थिति बेहतर होने से बेहतर फल प्राप्त होते हैं। वहीं ग्रह स्थिति अशुभ होने की दशा में अशुभ फल भी प्राप्त होते हैं। बलवान ग्रह स्थिति स्वस्थ सुंदर आकर्षण की स्थितियों की जन्मदाता बनती हैं तो निर्बल ग्रह स्थिति शोक संताप विपत्ति की प्रतीक बनती हैं। लोगों के मध्य में आकर्षित होने की कला के मुख्य कारक शुक्र ग्रह हैं। कहा जाता है कि शुक्र जिसके जन्मांश लग्नेश केंद्र में त्रिकोणगत हों वह आकर्षक प्रेम सौंदर्य का प्रतीक बन जाता है। यह शुक्र जी क्या है और बनाने व बिगाड़ने में माहिर शुक्र देव का पृथ्वी लोक में कहां तक प्रभाव हैशुक्र मुख्यतः स्त्रीग्रह, कामेच्छा, वीर्य, प्रेम वासना, रूप सौंदर्य, आकर्षण, धन संपत्ति, व्यवसाय आदि सांसारिक सुखों के कारक है। गीत संगीत, ग्रहस्थ जीवन का सुख, आभूषण, नृत्य, श्वेत और रेशमी वस्त्र, सुगंधित और सौंदर्य सामग्री, चांदी, हीरा, शेयर, रति एवं संभोग सुख, इंद्रिय सुख, सिनेमा, मनोरंजन आदि से संबंधी विलासी कार्य, शैया सुख, काम कला, कामसुख, कामशक्ति, विवाह एवं प्रेमिका सुख, होटल मदिरा सेवन और भोग विलास के कारक ग्रह शुक्र जी माने जाते हैं।वैभव का कारक होने की वजह से शुक्र राजा की तरह बर्ताव करता है। जनरली इसका फेवरेट कलर पिंक, ब्लू आदि होते हैं जो अमूमन स्त्रियों के मनपसंद कलर माने जाते हैं। अगर हम वाहनादि की बात करें तो कुण्डली में शुक्र की मजबूती चौपाए वाहन का सुख उपलब्ध कराता है जबकि कमजोर शुक्र होने से जीवन में इनका अभाव बना रहता है।सांसारिक व भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए मनुष्य की कुण्डली का शुक्र मजबूत व शुभ प्रभाव युक्त होना ही चाहिए। इसके अलावा शुक्र की विविध भावों में मौजूदगी भी उसकी किस्मत को खास ढंग से प्रभावित करती है। सांसारिक सुखों से है। यह रास, रंग, भोग, ऐश्वर्य, आकर्षण तथा लगाव का कारक है। शुक्र दैत्यों के गुरु हैं और कार्य सिद्घि के लिए साम-दाम-दण्ड-भेद के प्रयोग से भी नहीं चूकते। सौन्दर्य में शुक्र की सहायता के बिना सफलता असंभव है। य, रंग-बिरंगे वस्त्र धारण करने का शौकीन होता है। आजकल फैशन से वशीभूत ऐसे वस्त्रों का प्रचलन स्त्री वर्ग में बढ़ रहा है जो शरीर को ढंकने में अपर्याप्त होते हैं। यह संभवत: शीत प्रधान शुक्र-चन्द्र के प्रभाव क्षेत्रों की देन है। महिला वर्ग का चर्म परिधान शुक्र-चन्द्र एवं मंगल की परतों से बना होता है अर्थात् कोमलता तेज, रक्तिमा एवं सौन्दर्य का सम्मिश्रण ही उसकी विशेष आकर्षण शक्ति होती है।शुक्र ग्रह से प्रभावित युवतियां ही प्रतियोगिता के अंतिम राउंड तक पहुंच पाती है। कुछ ग्रह ऐसे भी होते हैं जो कुछ दूर तक तो युवतियों का सहयोग करते हैं, लेकिन जैसे ही दूसरे प्रतिभागियों के ग्रह भारी पड़ते हैं, कमजोर ग्रह वाली युवतियां पिछड़ने लगती है। यह भी ज्ञात हुआ है कि प्रतियोगिताओं के निर्णायक भी शनि, मंगल, गुरु जैसे ग्रहों से प्रभावित होते हैं। सौन्दर्य शास्त्र का विधान पूरी तरह से ज्योतिषकर्म और चिकित्सकों के पेशे जैसा ही है। अगर किसी निर्णायक को सौन्दर्य ज्ञान नहीं हो तो वह निर्णय भी नहीं कर पाएगा। ऐसे में निर्णायक शुक्र से प्रभावित तो होते हैं लेकिन उन पर गुरु-चंद्रमा का भी प्रभाव होता है जो उन्हें विवेकवान बनाता है। जन्म कुण्डली में तृतीय एवं एकादश भाव स्त्री का वक्षस्थल माना जाता है। गुरु-शुक्र इन भावों में बैठे हों या ये दोनों ग्रह इन्हें देख रहे हों, साथ में बली भी हों तो यह भाव सुन्दर, पुष्ट एवं आकर्षक होता है और आंतरिक सौन्दर्य परिधान सुशोभित करते हैं। पंचम एवं नवम भाव कटि प्रदेश से नीचे का होता है जो स्त्री को शनि गुरु प्रधान कृषता तथा स्थूलता सुशोभित करती है। अभिनय एवं संगीत में दक्षता प्रदान करने वाला ग्रह शुक्र ही है। शुक्र सौन्दर्य, प्रेम, कलात्मक अभिरुचि, नृत्य, संगीतकला एवं बुद्घि प्रदान करता है। शुक्र यदि बली होकर नवम, दशम, एकादश भाव अथवा लग्न से संबंध करें तो जातक सौन्दर्य के क्षेत्र में धन-मान और यश प्राप्त करता है। लग्न जातक का रूप, रंग, स्वभाव एवं व्यक्तित्व को दर्शाता है। चोथाभाव चन्द्रमा का जनता का प्रतिनिधित्व करता है। पंचम भाव बुद्घि, रुचि एवं मित्र बनाने की क्षमता को दर्शाता है। तुला राशि का स्वग्रही शुक्र मंच कलाकार या जनता के सम्मुख अपनी कला का प्रदर्शन कर धन एवं यश योग देता है। मीन राशि के शुक्र कलात्मक प्रतिभा को पुष्ट करता है तृतीय भाव सृजनात्मक योग्यता का सूचक है। इसका बली होना एवं लग्न से संबंध सौन्दर्यता में निपुणता लाता है। कुशल अभिनय के लिए चंद्रमा एवं संवाद अदायगी के लिए बुध बली हो तथा शुभ स्थानों में चन्द्र-बुध का होना अभिनय, संगीत एवं नृत्य इत्यादि में सफलता दिलाता है। जन्म लग्न, चन्द्र लग्न एवं सूर्य लग्न से दशम भाव पर शुक्र का प्रभाव सफलता का योग बनाता है।बुध एवं शुक्र का बली होकर शुभ स्थानों विशेषकर लग्न, पंचम दशम या एकादश भाव से संबंध सौन्दर्य क्षेत्र में सफलता देता है। चन्द्र कुण्डली में लग्नेश-धनेश की युति लाभ-स्थान में धन वृद्घि का संकेत देती है। साथ ही शुक्र व बुध का दशम व दशमेश से संबंध जातक को भाग्य बल प्रदान कर सफलता एवं प्रसिद्घि देता है।चन्द्र, शुक्र एवं बुध का संबंध चतुर्थभाव, चतुर्थेश धन भाव व धनेश, पंचम भाव व पंचमेश, नवमभाव व नवमेश से होने पर सफलता के योग देगा पंच महापुरुष योगों के अन्तर्गत शश योग (उच्च का शनि केन्द्र में) एवं मालव्य योग (उच्च व स्वराशि का केन्द्र में) एवं लग्नेश का स्वराशि व उच्च राशि का होना। कुण्डली में सभी शुभ ग्रह लग्न में एवं सभी पाप ग्रह अष्टम भाव में होने पर यह योग यश का भागीदार बनाता है कुण्डली में द्वितीय, नवम और एकादश के स्वामी ग्रह अपने-अपने स्थान पर होने से यह योग बनता है जो जातक को प्रसिद्धि के द्वार कुण्डली में सप्तमेश दशम स्थान में और दशमेश के साथ भाग्येश हो तो श्रीनाथ योग बनता है। कुछ विद्वानों के अनुसार दशमेश उच्च का होने पर ही यह योग बन जाता है, जो जातक को आकर्षक, सुखी और सम्माननीय बनाता है। आंतरिक परिधान के कारक शुक्र, चंद्र और केतु हैं तथा बाह्य परिधान के कारक सूर्य, राहु, बुध, गुरु व शनि हैं। अलग-अलग चन्द्र राशियों एवं सूर्य राशियों के अनुसार अपने प्रभाव दिखाते हैं। इस क्षेत्र में सफलता के लिए बुद्घि, चातुर्य, कला-कौशल के साथ कठोर परिश्रम जरूरी है। इसके लिए लग्न, चतुर्थ व पंचम भाव बली होना महžवपूर्ण है। सिंह राशि का शुक्र अभिनय कौशल देता है।तुला राशि का स्वग्रही शुक्र मंच कलाकार या जनता के सम्मुख अपनी कला का प्रदर्शन कर धन एवं यश योग प्रदान करता है। मीन राशि का शुक्र व्यक्ति की कलात्मक प्रतिभा को पुष्ट करता है। किसी व्यक्ति की भौतिक समृद्धि एवं सुखों का भविष्य ज्ञान प्राप्त करन हो तो उसके लिए उस व्यक्ति की जन्म कुंडली में शुक्र ग्रह की स्थिति एवं शक्ति (बल) का अध्ययन करना अत्यंत महत्वपूर्ण एवं आवश्यक है। अगर जन्म कुंडली में शुक्र की स्थिति सशक्त एवं प्रभावशाली हो तो जातक को सब प्रकार के भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। इसके विपरीत यदि शुक्र निर्बल अथवा दुष्प्रभावित (अपकारी ग्रहों द्वारा पीड़ित) हो तो भौतिक अभावों का सामना करना पड़ता है। इस ग्रह को जीवन में प्राप्त होने वाले आनंद का प्रतीक माना गया है। प्रेम और सौंदर्य से आनंद की अनुभूति होती है और श्रेष्ठ आनंद की प्राप्ति स्त्री से होती है। अत: इसे स्त्रियों का प्रतिनिधि भी माना गया है और दाम्पत्य जीवन के लिए ज्योतिषी इस महत्वपूर्ण स्थिति का विशेष अध्ययन करते हैं। अगर शक्तिशाली शुक्र स्वराशि, उच्च राशि का मूल त्रिकोन) केंद्र में स्थित हो और किसी भी अशुभ ग्रह से युक्त अथवा दृष्ट न हो तो जन्म कुंडली के समस्त दुष्प्रभावों अनिष्ट) को दूर करने की सामर्थ्य रखता है। किसी कुंडली में जब शुक्र लग्न्र द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, नवम, दशम और एकादश भाव में स्थित हो तो धन, सम्पत्ति और सुखों के लिए अत्यंत शुभ फलदायक है। सशक्त शुक्र अष्टम भाव में भी अच्छा फल प्रदान करता है। शुक्र अकेला अथवा शुभ ग्रहों के साथ शुभ योग बनाता है। चतुर्थ स्थान में शुक्र बलवान होता है। इसमें अन्य ग्रह अशुभ भी हों तो भी जीवन साधारणत: सुख कर होता है। स्त्री राशियों में शुक्र को बलवान माना गया है। यह पुरुषों के लिए ठीक है किंतु स्त्री की कुंडली में स्त्री राशि में यह अशुभ फल देता है ग्रह नक्षत्रों के प्रभाव से व्यक्ति समाज पशु पक्षी और प्रकृति तक प्रभावित होते हैं। ग्रहों का असर जिस तरह प्रकृति पर दिखाई देता है ठीक उसी तरह मनुष्यों पर सामान्यतः यह असर देखा जा सकता है। आपकी कुंडली में ग्रह स्थिति बेहतर होने से बेहतरफल प्राप्त होते हैं। वहीं ग्रह स्थिति अशुभ होने की दशा में अशुभफल भी प्राप्त होते हैं। बलवान ग्रह स्थिति स्वस्थ सुंदर आकर्षण की स्थितियों का जन्मदाता बनती है तो निर्बल ग्रह स्थिति शोक संताप विपत्ति की प्रतीक बनती है। लोगों के मध्य में आकर्षित होने की कला के मुख्य कारक शुक्र जी है। कहा जाता है कि शुक्र जिसके जन्मांश लग्नेश केंद्र में त्रिकोणगत हों वह आकर्षक प्रेम सौंदर्य का प्रतीक बन जाता है। यह शुक्र जी क्या है और बनाने व बिगाडने में माहिर शुक्र जी का पृथ्वी लोक में कहां तक प्रभाव है बृहद पराशर होरा शास्त्र में कहा गया कि शुक्र बलवान होने पर सुंदर शरीर, सुंदर मुख, अतिसुंदर नेत्रों वाला, पढने लिखने का शौकीन कफ वायु शुक्र का वैभवशाली स्वरूपः- यह ग्रह सुंदरता का प्रतीक, मध्यम शरीर, सुंदर विशाल नेत्रों वाला, जल तत्व प्रधान, दक्षिण पूर्व दिशा का स्वामी, श्वेत वर्ण, युवा किशोर अवस्था का प्रतीक है। चर प्रकृति, रजोगुणी, स्वाथी, विलासी भोगी, मधुरता वाले स्वभाव के साथ चालबाज, तेजस्वी स्वरूप, श्याम वर्ण केश और स्त्रीकारक ग्रह है। शुक्र ग्रह सप्तम भाव अर्थात दाम्पत्य सुख का कारक ग्रह माना गया है पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शुक्र दैत्यों के गुरु हैं। ये सभी विद्याओं व कलाओं तथा संजीवनी विद्या के भी ज्ञाता हैं। यह ग्रह आकाश में सूर्योदय से ठीक पहले पूर्व दिशा में तथा सूर्यास्त के बाद पश्चिम दिशा में देखा जाता है। यह कामेच्छा का प्रतीक है तथा धातु रोगों में वीर्य का पोषक होकर स्त्री व पुरुष दोनों के जनानांगों पर प्रभावी रहता है।।शुक्र ग्रह से स्त्री, आभूषण, वाहन, व्यापार तथा सुख का विचार किया जाता है। शुक्र ग्रह अशुभ स्थिति में हो तो कफ, बात, पित्त विकार, उदर रोग, वीर्य रोग, धातु क्षय, मूत्र रोग, नेत्र रोग, आदि हो सकते हैं वेदिक ज्योतिष शास्त्र में शुक्र ग्रह बुध, शनि व राहु से मैत्री संबंध रखता है। सूर्य व चंद्रमा से इसका शत्रुवत संबंध है। मंगल, केतु व गुरु से सम संबंध है। यह मीन राशि में 27 अंश पर परमोच्च तथा कन्या राशि में 27 अंश पर परम नीच का होता है। तुला राशि में 1 अंश से 15 अंश तक अपनी मूल त्रिकोण राशि तथा तुला में 16 अंश से 30 अंश तक स्वराशि में स्थित होता है। इसका तुला राशि से सर्वोत्तम संबंध, वृष तथा मीन राशि से उत्तम संबंध, मिथुन, कर्क व धनु राशि से मध्यम संबंध, मेष, मकर, कुंभ से सामान्य व कन्या तथा वृश्चिक राशि से प्रतिकूल संबंध है। भरणी, पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ नक्षत्र पर इसका आधिपत्य है। यह अपने स्थान से सप्तम भाव पर पूर्ण दृष्टि डालता है। शुक्र जातक को ललित कलाओं, पर्यटन और चिकित्सा विज्ञान से जोड़ता है। जब किसी जातक की कुंडली में शुक्र सर्वाधिक प्रभावकारी ग्रह के रूप में होता है तो शिक्षा के क्षेत्र में पदाधिकारी, कवि, लेखक, अभिनेता, गीतकार, संगीतकार, वाद्ययंत्रों का निर्माता, शृंगार का व्यवसायी बनाता है। जब यही शुक्र जन्म पत्रिका में सप्तम या 12 वें भाव में वृष राशि में स्थित रहता है तो यह प्रेम में आक्रामक बनाता है। ये दोनों भाव विलासिता के हैं।जब यही शुक्र लग्न में है और शुभ प्रभाव से युक्त है तो व्यक्ति को बहुत सुंदर व आकर्षक बनाता है। शुक्र ग्रह पत्नी का कारक ग्रह है। और जब यही शुक्र ग्रह सप्तम भाव में रहकर पाप प्रभाव में हो और सप्तमेश की स्थिति भी उत्तम न हो तो पत्नी को रुग्ण या आयु की हानि करता है। तीसरे भाव पर यदि शुक्र है और स्वगृही या मित्रगृही हो तो व्यक्ति को दीर्घायु बनाता है। यह भाव भाई का स्थान होने से और शुक्र स्त्रीकारक ग्रह होने से बहनों की संख्या में वृद्धि करता है। जब किसी कुंडली में शुक्र द्वितीय यानी धन व परिवार भाव में उत्तम स्थिति में बैठा है तो व्यापार से तथा स्त्री पक्ष अर्थात ससुराल से आर्थिक सहयोग मिलता है। यदि उत्तम स्थिति में नहीं होता है तो व्यापार में लाभ नहीं मिल पाताइस भौतिक संसार में हर चीज शुक्र से जनित है। हर प्रकार के भौतिक सुख देने वाला शुक्र ग्रह ही है अतः शुक्र ग्रह का कुंडली में बलिष्ट होना बहुत आवश्यक है। ग्रहों में शुक्र को विवाह व वाहन का कारक ग्रह कहा गया है (इसलिये वाहन दुर्घटना से बचने के लिये भी इसको शुभ करना चाहिए ऐसे उपाय किये जा सकते है। शुक्र ग्रह के उपाय करने से वैवाहिक सुख की प्राप्ति की संभावनाएं बनती है। वाहन से जुडे मामलों में भी यह उपाय लाभकारी रहते है।आगे शुक्र के वारे ओर वात करेगै पोस्ट काफी लम्वी हो गई है ।

गुरुवार, 23 मार्च 2017

मां काली ज्योतिष की आज की पोस्ट उन मित्रों के लिए है जो ज्योतिष सिख रहे हैं. ज्योतिष के अनुसार इंसानों को जन्म के समय और ग्रहों की स्थिति के अनुसार 12 राशियों में विभाजित किया गया है। हर राशि के व्यक्ति का स्वभाव और आदतें दूसरी राशि के लोगों से एकदम अलग होती हैं। किसी भी इंसान को समझने के लिए ज्योतिष सटीक विद्या है। राशि चक्र की यह पहली राशि है, इस राशि का चिन्ह ”मेढा’ या भेडा है, इस राशि का विस्तार चक्र राशि चक्र के प्रथम 30 अंश तक (कुल 30 अंश) है। राशि चक्र का यह प्रथम बिन्दु प्रतिवर्ष लगभग 50 सेकेण्ड की गति से पीछे खिसकता जाता है। इस बिन्दु की इस बक्र गति ने ज्योतिषीय गणना में दो प्रकार की पद्धतियों को जन्म दिया है। भारतीय ज्योतिषी इस बिन्दु को स्थिर मानकर अपनी गणना करते हैं। इसे निरयण पद्धति कहा जाता है। और पश्चिम के ज्योतिषी इसमे अयनांश जोडकर ’सायन’ पद्धति अपनाते हैं। किन्तु हमे भारतीय ज्योतिष के आधार पर गणना करनी चाहिये। क्योंकि गणना में यह पद्धति भास्कर के अनुसार सही मानी गई है। मेष राशि पूर्व दिशा की द्योतक है, तथा इसका स्वामी ’मंगल’ है। इसके तीन द्रेष्काणों (दस दस अंशों के तीन सम भागों) के स्वामी क्रमश: मंगल-मंगल, मंगल-सूर्य, और मंगल-गुरु हैं। मेष राशि के अन्तर्गत अश्विनी नक्षत्र के चारों चरण और कॄत्तिका का प्रथम चरण आते हैं। प्रत्येक चरण 3.20' अंश का है, जो नवांश के एक पद के बराबर का है। इन चरणों के स्वामी क्रमश: अश्विनी प्रथम चरण में केतु-मंगल, द्वितीय चरण में केतु-शुक्र, तॄतीय चरण में केतु-बुध, चतुर्थ चरण में केतु-चन्द्रमा, भरणी प्रथम चरण में शुक्र-सूर्य, द्वितीय चरण में शुक्र-बुध, तॄतीय चरण में शुक्र-शुक्र, और भरणी चतुर्थ चरण में शुक्र-मंगल, कॄत्तिका के प्रथम चरण में सूर्य-गुरु हैं।मेष राशि भचक्र की पहली राशि है और इस राशि मे एक से लेकर तीस अंश तक चन्द्रमा अपने अपने प्रकार सोच को प्रदान करता है। नाडी ज्योतिष मे यह तीस अंश एक सौ पचास सोच को देता है,और एक अंश की पांच सोच अपने आप ही पांच प्रकार के तत्वो के ऊपर निर्भर होकर चलती है। सवा दो दिन के अन्दर एक सौ पचास तरफ़ की सोच जब व्यक्ति के अन्दर एक राशि की पैदा हो जायेंगी तो एक महिने के अन्दर अपने आप चाढे चार हजार सोच बन जायेंगी,एक एक सोच का अगर निरूपण किया जाये तो एक व्यक्ति की सोच बताने मे ही साढे चार हजार लोगो को लगना पडेगा,तब जाकर जीवन की एक महिने की सोच को पैदा किया जा सकता है,वह भी सोच केवल समय काल परिस्थिति के अनुसार बनेगी जैसी जलवायु होगी उसी प्रकार की सोच बनेगी यह जरूरी नही है कि थार के रेगिस्तान की सोच आसाम के अधिक पानी वाले क्षेत्र मे जाकर एक ही हो जाये। या अमेरिका के व्यक्ति की सोच भारत के व्यक्ति की सोच से मेल खा जाये अथवा ब्रिटेन के व्यक्ति की मानसिकता भारत के व्यक्ति के मानसिकता से जुड कर ही चल पाये। चन्द्रमा जब मेष राशि मे प्रवेश करता है तो पहले अश्विनी नक्षत्र में प्रवेश करता है,नक्षत्र का पहला पाया होता है इस नक्षत्र का मालिक भी केतु होता है और पहले पाये का मालिक भी केतु होता है। राहु केतु वैसे चन्द्रमा की गति के अनुसार सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव देने वाले होते है चन्द्रमा की उत्तरी ध्रुव वाली सीमा को राहु के घेरे मे मानते है और दक्षिणी ध्रुव वाली सीमा को केतु के घेरे वाली सीमा को मानते है। इस प्रकार से जातक के अन्दर जो स्वभाव पैदा होगा वह मूल संज्ञक नक्षत्र के रूप मे होगा उसके अन्दर मंगल का प्रभाव राशि से होगा केतु का प्रभाव नक्षत्र से होगा और केतु का ही प्रभाव पद के अनुसार होगा। नकारात्मक भाव देने और केवल अपनी ही हांकने के कारण इस पद मे पैदा होने वाला जातक अधिक तरक्की नही कर पाता है मंगल के क्षेत्र मे आने से जातक के अन्दर एक प्रकार का पराक्रम जो लडाई झगडे से सम्बन्धित हो सकता है एक इंजीनियर के रूप मे हो सकता है एक भोजन पकाने वाले रसोइये के रूप मे हो सकता है एक भवन बनाने वाले कारीगर के रूप मे भी हो सकता है लेकिन वह अपने दिमाग का प्रयोग नही कर पायेगा,वह जो भी काम करेगा वह दूसरो की आज्ञा के अनुसार ही करेगा जैसे वह फ़ौज मे भर्ती होगा तो उसे अपने अफ़सर की आदेश की पालना करनी होगी वह अगर इंजीनियर होगा तो वह केवल बिजली आदि मे पहले से बनी रूप रेखा मे ही काम कर पायेगा यानी वह अपने दिमाग का प्रयोग केवल पहले से बने नियम के अन्दर ही करने का अधिकार होगा वह अपने मन से काम नही कर सकता है। केतु का रूप धागे के रूप मे है लेकिन गर्म मंगल के साथ सूत आदि का धागा जल जायेगा यहां पर केवल धातु जो मंगल की कारक होगी वह तांबा ही होगी और जातक तांबे के तार से मंगल बिजली की रूप मे प्रयोग करने का कारण जानता होगा वह धातु मे केतु जो पत्ती के रूप मे भी होगा और तार जो क्वाइल के रूप मे भी होगा से क्वाइल बनाकर मोटर भरने का काम भी कर सकता है और बिजली आदि की सहायता से मोटर को चलाने का काम भी कर सकता है इसी प्रकार से मंगल के साथ केतु के मिल जाने से तथा केतु के ही सहायक होने के कारण केतु यहां पर बिजली को बनाने वाला या ठीक करने वाला पेचकस भी माना जा सकता है किसी प्रकार से बुध की नजर अगर पड रही है तो बिजली आदि को चैक करने वाला मीटर भी काम मे लिया जा सकता है आदि बाते देख सकते है उसी प्रकार से जब जातक के पास रक्षा सेवा जैसे काम होगे तो वह एक जवान की हैसियत से काम करने वाला होगा उसे केतु यानी अपने पर एक सहायक होने और आदेश को पालन करने की क्रिया भी पता होगी वह मंगल केतु के रूप मे राइफ़ल को भी प्रयोग मे लायेगा और राहु रूपी बारूद से अपने द्वारा युद्ध के मैदान मे अपने पराक्रम को भी दिखा सकता है। इसी प्रकार से अगर जातक वावरची का काम करता है तो वह भोजन बनाने के हथियारो से सब्जी काटने आग पर पकाने आदि के काम भी केतु यानी तवा कलछुली आदि से काम करने का कारक बन सकता है अगर वह डाक्टर है तो वह इंजेकसन आदि से दवाइया देने तथा केवल हाथ देखकर पर्ची आदि काटने का काम कर सकता है या मशीनी जांच के द्वारा अपने अनुभव को मरीज के साथ भी बांट सकता है,लेकिन वह जो भी इलाज करेगा वह केवल केतु यानी शरीर के अवयवो के लिये ही करेगा यानी हाथ पैर उंगलिया दांत आंत आदि के लिये वह अपने प्रकार को ठीक करने के लिये तथा सिर के अन्दर के अवयव यानी कान आंख नाक मुंह के रोग ही ठीक करने के लिये अपने अनुभव को प्रदर्शित करेगा। इस राशि के चन्द्रमा की निगाह अपने से सप्तम भाव मे जाती है अगर चन्द्रमा को कोई खराब ग्रह नही देख रहा है या कोई क्रूर ग्रह चन्द्रमा को आहत नही कर रहा है तो जातक के अन्दर जो भी काम होगा वह व्यापारिक नीति से इसलिये होगा वह व्यापारिक नीति से इसलिये होगा क्योंकि चन्द्रमा के सप्तम मे तुला राशि है और चन्द्रमा की निगाह तुला राशि के आखिरी नक्षत्र विशाखा और और उसके पद जो शनि का है पर जाने के कारण अपनी स्थिति को एक प्रकार से ठंडे माहौल के अनुसार ही रख पायेगा उसे जो भी मिलता है उसी पर अपना समय निकालना और अपने अनुसार ही जो भी कार्य सम्बन्ध को निभाने और घर आदि बनाने तथा जीवन साथी के प्रति किये जाने वाले कामो के लिये भी अपना असर देगा। केतु के नक्षत्र अश्विनी के अन्दर चन्द्रमा मेष्र राशि मे जब एक अंश से कुछ अधिक समय तक केवल अपना असर मंगल और केतु का देता है लेकिन सवा अंश से आगे जाते ही केतु के अन्दर शुक्र का असर मिलना शुरु हो जाता है। चन्द्रमा जो सोच का कारक है जातक के अन्दर मंगल की हिम्मत मेष से मिलती है केतु से सहायता वाले काम करने का अवसर केतु के साथ होने मिलना होता है केतु मे शुक्र का असर आने से जातक को कलाकारी की तरफ़ ले जाने के लिये शुक्र अपना असर देने लगता है। इस असर के कारण जातक के अन्दर एक प्रकार से भौतिकता भी भर जाती है वह सहायता के रूप मे स्त्री रूप को भी धारण कर सकता है और कलाकारी को प्रदर्शित करने के लिये एक ब्रुस का रूप भी ले सकता है वह केनवास पर चित्रकारी भी कर सकता है हथोडे की सहायता से पत्थर पर मूर्ति को भी बना सकता है जमीन जहां फ़सले पैदा होती हो मंगल के रूप मे मशीनरी का प्रयोग केतु सहारे के रूप मे ले सकता है और खेती की जमीन से फ़सले भी पैदा कर सकता है कारण चन्दमा यहा शुक्र के साथ मिलकर मंगल और केतु का सहारा लेकर किसान के रूप मे भी अपनी छवि दिखा सकता है। यही केतु अगर एक्टिंग मे चला जाता है तो कलाकार के रूप मे पराक्रम दिखाने वाला कलाकार भी बन जाता है जब भी कोई कारण अपनी कला का दिखाने का मिलता है तो जातक हिम्मत वाले रोल अदा करने के लिये खूबशूरती से प्रस्तुत करने की योग्यता को भी प्रदर्शित कर सकता है,यही केतु के साथ मिला चन्द्रमा शुक्र की सहायता और मंगल के प्रयोग से भवन आदि की सजावट भी करने के लिये अपनी वास्तुकारी का कारण भी पैदा कर सकता है अगर कोई अच्छा ग्रह सहारा नही दे रहा हो तो स्ट्रीट लाइट ठीक करने का आदमी भी यही केतु बना सकता है और स्त्री है तो धागे के काम को करने वाला भी बना सकता है जो लाल कपडे पर काले धागे से शुक्र की सजावट वाली चित्रकारी करने के बाद अपनी कलाकारी को प्रदर्शित करने की योग्यता को बना ले। सवा तीन अंश के अन्दर मेष राशि मे चन्द्रमा के जाने के बाद राशि मेष में मंगल का असर अश्विनी नक्षत्र मे केतु का असर और इसी नक्षत्र के अन्दर सूर्य का असर मिल जाता है। कायदे से अगर ग्रहो का मिश्रण किया जाता है तो चन्द्रमा माता से मेष राशि सिर से मंगल गर्मी से या उत्तेजना से गुस्सा से केतु कान से सूर्य बनावट से भी देखा जा सकता है इसी जगह चन्द्रमा सोच से मेष शरीर से किये जाने वाले काम जैसे मेहनत करना अपने ही प्रयास से उद्देश्य की पूर्ति करना आदि मंगल से रक्षा सेवा के लिये तकनीकी सेवा के लिये अस्प्ताली सेवा के लिये भोजन पकाने और इसी प्रकार की सेवा के लिये निर्माण कार्य करने के लिये जमीन के अन्दर के काम करने के लिये केतु सहायक के रूप मे और सूर्य सरकारी रूप से भी माना जा सकता है। मेष राशि का चन्द्रमा माता को प्रभावशाली बनाता है मंगल का प्रभाव होने से भाई की यात्रा का कार्यक्रम भी बनता रहता है यानी भाई के पास यात्रा वाले काम होते है चन्द्रमा सोच से देखा जाये तो मंगल गुस्सा का भी कारक है इसलिये गुस्सा अधिक आता हो और विचार भी ठीक नही होते हो,यही बात शादी के बाद की स्त्री के लिये देखा जाये तो सास साहसी हो और वह अपनी सास से परेशान हो.इसी बात को भौतिक मे लेकर देखे तो चन्द्र पानी वाला स्थान हो मेष राशि जहां लोग अपना निवास करते हो मंगल वहां पर चलने वाले उद्योग धन्धे और बिजली आदि से चलने वाली मशीने हो केतु सूर्य से सरकारी अधिकारी के रूप में कार्य करने वाला हो यही बात यात्रा मे भी देखी जाती है और चन्द्रमा वाले जितने भी कारक होते है उनके लिये मानी जाती है।चन्द्रमा का मेष राशि मे साढे पांच अंश तक पहुंचने के बाद मंगल के साथ केतु और राहु दोनो का असर पैदा हो जाता है जातक के अन्दर के प्रकार का जुनून सवार रहता है वह जिस काम के लिये अपना मानस बना लेता है वह उसी काम की धुन मे लगा रहता है अक्सर जो लोग कालान्तर की दुश्मनी को मानने वाले होते है और अपने विरोधी को खूनी संघर्ष से समाप्त करने वाले होते है वे इसी काल मे पैदा होते है मंगल से रक्षा सेवा और केतु से बन्दूक तथा राहु से बारूदी काम लेने वाले होते है इस युति मे पैदा होने वाले जातक वाहन आदि के अच्छे सम्भालने वाले होते है वह किसी भी प्रकार के इंजन वाले काम को करने के लिये अपनी योग्यता को जाहिर करते है। इस युति मे पैदा होने वाले जातक अगर होटल लाइन को अपना व्यवसाय बना लेते है तो उनके लिये यह कार्य बहुत ही उत्तम माना जाता है और उनकी धुन के आगे वह लगातार आजीवन आगे बढते रहते है लेकिन पुरुष है तो ससुराल परिवार और स्त्री है तो उसकी अधिक कामुकता उसे बरबाद करने के लिये मानी जाती है इसी प्रकार से जो लोग पूजा पाठ या धर्म आदि के कामो मे व्यस्त रहते है वह भी अपने को अधिक चालाकी और झूठे प्रयोग के कारण लोगो को ठगना पसंद करते है भावनाओ के साथ खिलवाड करना खाना पीना ऐश करना आदि काम होते है समुदाय के साथ मिलकर किसी भी काम को बलपूर्वक करना भी माना जाता है अक्सर मंगल राहु और केतु के साथ चन्द्रमा के मिलने से पुराने जमाने के रजवाडों के प्रति भी देखा जा सकता है जौहर आदि करना भी इसी युति का कारण माना जाता है अक्सर इस युति मे पैदा होने वाले जातक जब अधिक परेशान हो जाते है तो जहर खाकर आग लगाकर आत्म हत्या भी करते देखे गये है वैसे अधिकतर लोग वाहन आदि से दुर्घटना मे मारे जाते हुये देखे गये है,अस्पताली काम करने वाले लोग अक्सर जनता के हित की बात करते हुये भी देखे गये है किसी भी प्रकार की नयी औषिधि का आविष्कार करना और उस औषिधि को जन हित के लिये प्रसारित करना भी देखा गया है नये इंजन या बिजली के उपकरण का आविष्कार करना भी माना जाता है।चन्दमा के पोने आठ डिग्री पर पहुंचते ही मंगल केतु के साथ गुरु का असर जातक को मिल जाता है वह मंगल केतु के जिस भी कार्य मे जाता है तो भाग्य उसके साथ हो जाता है और वह आराम की जिन्दगी जीने के लिये भी माना जा सकता है किसी भी विषय मे महारत हासिल करना भी देखा जाता है अधिक से अधिक शिक्षा का प्राप्त करना अलावा डिग्री लेकर भी अपनी योग्यता को प्रदर्शित करना भी माना जाता है,जातक अपने परिवार समुदाय का मुखिया बनकर भी रहता है और जो भी कारण उसके पूर्वजो के जमाने के होते है उन्हे प्रयोग करना और उन्ही कारणोपर अपने समुदाय को इकट्ठा करना भी माना जाता है। इन अंशो पर गुरु का साथ जातक को मन इच्छित फ़ल प्रदान करने के लिये भी अपनी योग्यता को देता है अगर कोई खराब ग्रह आकर अपनी शक्ति से इन्हे बरबाद नही करता है तो पोने दस डिग्री पर पहुंचते ही चन्द्रमा मंगल केतु और शनि के घेरे मे पहुंच जाता है,चन्द्रमा मंगल की गर्मी और शनि की ठंडक के बीच मे फ़ंस कर उमस देने वाले माहौल जैसा बन जाता है जातक हर पल किसी न किसी बात के लिये कल्पता रहता है और वह अपने को शनि के साथ फ़्रीज करता रहता है तथा मंगल के साथ गर्म करता रहता है जातक को अगर नानवेज आदि प्रयोग करने का कारण बनता है तो जातक के अन्दर खून के थक्के जमने की बीमारी का होना भी माना जाता है नानवेज अगर प्रयोग नही करता है तो जातक अधिक मिर्च मशाले और जमीनी कंद वाली सब्जियां भी प्रयोग मे अधिक करता है। जातक के कामो के अन्दर अक्सर वही काम देखे जा सकते है जो लोगो की सेवा करने वाले काम नाई आदि के काम चमडा को काटने छीलने के काम अक्सर इस युति के जातक को सिर की बीमारियां भी बहुत होती है। पोने ग्यारह डिग्री पर चन्द्रमा के पहुंचने के बाद जातक के अन्दर कमन्यूकेशन वाले कामो का करना व्यक्तिगत सम्पर्क बनाने के बाद किये जाने वाले कामो को करना समुदाय का बनाना लोगो के अन्दर प्रचार प्रसार को करना दिमागी इलाज को करना पुलिस और रक्षा सेवा के कार्यो मे वकालत जैसे काम करना फ़ौजी कानूनो को बनाना और पालन करवाना आदि बाते देखी जाती है जातक के बोल चाल की भाषा मे कर्कश भाव मिलने लगते है वह बात करने के समय आदेशात्मक बात करना जानता है और लोगो को अपने अनुसार चलने के लिये बाध्य करना भी जानता है,नक्सा देखना जमीन की बातो को कागज पर उकेरना आदि भी बाते देखी जा सकती है. इसी प्रकार से अन्य अंश के लिये चन्द्रमा की गणना की जाती है्जिस प्रकार से जीवन मे लगन प्रभावी होती है उसी प्रकार से चन्द्र राशि भी जीवन मे प्रभावी होती है। चन्द्रमा एक तो मन का कारक है दूसरे जब तक मन नही है तब कुछ भी नही है,दूसरे चन्द्रमा माता का भी कारक है और माता के रक्त के अनुसार जातक का जीवन जब शुरु होता है तो माता का प्रभाव जातक के अन्दर जरूर मिलता है,हमारे भारत वर्ष मे जातक का नाम चन्द्र राशि से रखा जाता है यानी जिस भाव का चन्द्रमा होता है जिस राशि मे चन्द्रमा होता है उसी भाव और राशि के प्रभाव से जातक का नाम रखा जाता है इस प्रकार से जातक के जीवन मे माता का सर्वोच्च स्थान दिया जाता है,विदेशों आदि मे माता के नाम को जातक के नाम के पीछे जोडा जाता है लेकिन भारत मे माता के ऊपर ही पूर्ण जीवन टिकाकर रखा जाता है। मैने पहले भी कहा है कि चन्द्रमा मन का कारक है और जब मन सही है तो जीवन अपने आप सही होने लगता है जो सोच सोचने के बाद कार्य मे लायी जायेगी वह सोच अगर उच्च कोटि की है तो जरूर ही कार्य जो भी होगा वह उच्च कोटि का ही होगा,सूर्य देखता है चन्द्र सोचता है और शनि करता है बाकी के ग्रह हमेशा सहायता देने के लिये माने जाते है

सोमवार, 20 मार्च 2017

रिश्ते और ग्रह नक्षत्तर मित्तरो ग्रह नक्षत्रों व रिश्तों का एक अनोखा व अटूट सम्बन्ध होता है. आपके पारिवारिक रिश्ते ग्रह व नक्षत्रों से प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े होते हैं. नक्षत्र यानि आकाश के तारों का समूह व ग्रह यानि आकाश में स्थापित अन्य पिंड. ग्रह व नक्षत्र हमारे आपसी रिश्ते / नातों पर प्रभाव डालते हैं. ये बिल्कुल सत्य है. लाल किताब के अनुसार हमारी जिंदगी से जुड़ने वाला हर रिश्ता किसी ना किसी ग्रह का सूचक है. हमारी कुंडली में जो ग्रह जहाँ स्थित है, वो रिश्ता वहीँ से हमारी ज़िन्दगी में भी आता हैयदि किसी ग्रह की दशा खराब चल रही है तो उस से जुड़े रिश्ते पर ध्यान देने से लाभ प्राप्त होगा. कुंडली का प्रत्येक भाव किसी ना किसी रिश्ते अथवा रिश्तेदार से प्रभावित होता है और इसीलिए कुंडली में यदि कोई ग्रह कमजोर है तो उस से जुड़े रिश्ते को मजबूत बनाने की कोशिश करें व अपने आपसी संबंधों में सुधार व बदलाव लायें.. जिंदगी की आपाधापी में रिश्ते कहीं खो गए हैं शायद इसीलिए अब लोग दुखी है सो तरा के उपाय हम कर रहे हैं लेकिन अपने रिश्तो को नहीं सुधारतेमाता-पिता, भाई-बहिन,पति पत्नी, मित्र पड़ोसी सगे-सम्बन्धी इत्यादि संसार के अजितने भी रिश्ते नाते है। सब मिलते है। क्योंकि इन सबको हमें या तो कुछ देना होता है या इनसे कुछ लेना होता है।जन्म पत्रिका के बाहर भावों में ग्रह और सामाजिक रिश्ते अलग-अलग भाव से होते है।व्यक्ति की कुंडली में ग्रहों ग्रह स्वामी ,ग्रहों के आपसी संबंध, ग्रहों की दृष्टि, आदि का प्रभाव व्यक्ति के संबंधों पर पड़ता है। जो की परिवारजनों के संबंधों को अनुकूल बनाता है। रिश्ते की बुनियाद प्यार और विश्वास हर टिकी होती है। इसलिए अाजकल के समय में जितना रिश्तों को बनाना अासान है उतना ही बनाएं रखना मुश्किल हो गया है। इसके लिए आपको हर रिश्ते की अच्छे से देखभाल करने के लिए अपने रिश्ते को ज्यादा समय देकर और समझदारी से बना कर रखना चाहिए ताकि अापका रिश्ता कमजोर न हों। ऐसे में अगर आपके रिश्ते में कोई गलतफहमी हो या फिर दूरिया हो तो अापके अापकी प्यार से इन्हें दूर करेबदलते जमाने के साथ हर किसी की सोच बदल गई है, तो एेसे ही हर परिवार में बदलती सोच के साथ परिवार भी बिखर गए हैं। पुराने समय में सभी एक साथ एक परिवार बन कर रहते थें पर अब अलग-अलग रहने लगे हैं। एेसे में हर किसी के लिए उन रिश्तों की अहमियत बढ़ जाती है जो खून के न हों, जैसे दोस्ती, व्यापारिक या आसपड़ोस के रिश्ते। एेसे रिश्ते हमारी जरूरतों की वजह से बनते हैं। एेसे में हमें खून के रिश्तों को भी समय देकर और समझदारी से निभाना चाहिएइसलिए दोस्तों अगर आपके ग्रह छप्पर ठीक नहीं चलोगे तो सबसे पहले आपसे बंधुओं को सुधारें उसके बाद ही ज्योतिष उपाय काम करेंगे जब तक आपके अपने आप से दूर है यानी माता-पिता भाई-बहन पड़ोसीं।इनसे आप अपने रिश्ते की करें और इन से मधुर संबंध बनाएंग्रह और संबंध :ग्रह अनुकूल होने पर ग्रहों के अनुसार संबंध ठीक रहते हैं। अपने रिस्तो पर नजर डाले । देखें आपका कौन सा सम्बन्धी आपसे संतुस्ट नही है ,उससे सम्बंधित ग्रह आपका ख़राब होगा। जैसे आपकी माँ आपसे रूठी है तो चन्द्रमाँ आपका अच्छा फल नही कर रहा है। इसी प्रकार पिता से आपके सम्बन्धं अगर ठीक नही है तो सूर्य अच्छा फल नही दे रहा है । पत्नी से अनबन चल रही होतो समझले आप का शुक्र ग्रह ख़राब फल कर रहा है । बहने अगर आपसे खफा हैं तो बुध आप से खफा है। भाई आपके साथ नहीं है तो मंगल आपके साथ नही है । आपके गुरुजन आपसे रुष्ट है तो गुरु ग्रह आपसे रुष्ट है । और जब शनि की टेड़ी नजर आप पर है तो आपके नौकर चाकर आप का नुकसान करते रहेंगे । रहू अपनी सैतानी आपके दुष्ट मित्रो के रूप में दिखा सकता है । केतु आपके पालतू जानवर पर प्रभाव दिखता है । इसके आलावा भी आलग आलग रिस्तो के लिए आलग आलग ग्रह प्रभाव रख ते है । इस तथ्य को जानकर आप आसानी से जान सकते है की ,कौन सा ग्रह आप का ख़राब है और कौन सा अच्छा है आज इतना ही आचार्य राजेश

शनिवार, 18 मार्च 2017

गुण मिलान या कुंडली मिलान आज के कंप्यूटर के युग में बहुत सामान्य की बात हो गयी है हर दूसरा जातक अपने कंप्यूटर पर सॉफ्टवेर के माध्यम से कुंडली मिलान कर बोल देता है की इनके तो 28 गुण मिल गए या 33 गुण मिल गए अब विवाह में कोई व्यवधान नहीं आएगा आगे बात की जा सकती है मंगल दोष को भी अधिकतर ज्योतिष के सॉफ्टवेर बता ही देते है भकुट और नाडी दोष के बारे में भी सभी सॉफ्टवेर में दिया ही होता है एसे में जातक अपने आप में ही संतुष्ट हो जाता है ये अवस्था तब है जब गुण 26 से ऊपर मिले होते है इसके विपरीत यदि कभी 12या 14गुण मिलते है तो जातक आपनी ही बात से पलट जाते है हम कुंडली मिलान को विशेष महत्त्व ही नहीं देते कुंडली कुछ नहीं होती सिर्फ अपनी सोच है एसे में क्या तत्व दर्शन जातक को अपने पार्टनर का सही चुनाव देने में संभव है तो तो आंशिक रूप से खुद को ही छलावा देना हुआ गणितीय आकडे तो हर सॉफ्टवेर से आसानी से निकल आते है कुंडली मिलान इतना आसान नहीं होता जितना की एक जातक समझता है हर विषय को गंभीरता से जब तक न लिया जाये सही उत्तर मिलना आसान नहीं होते एसे में विवाह तो हो जाते है पर कितने समय तक चलेगे ये अपने आप में प्रश्न चिन्ह बन जाता है वाहिक बंधन जीवन का सबसे महत्वपूर्ण बंधन है। विवाह प्यार और स्नेह पर अधारित एक संस्था है। यह वह पवित्र बंधन है, जिसपर पूरे परिवार का भविष्य निर्भर करता है। समान्यत: कुंडली में अष्ट कुट एवं मांगलिक दोष ही देखा जाता है, लेकिन यह जान लेना अनिवार्य है कि कुंडली मिलान की अपेक्षा कुंडली की मूल संरचना अति महत्वपूर्ण है। एक व्यक्ति में बाहरी आकर्षण तो हो सकता है, लेकिन भीरत से वह पत्थर हृदय वाला और स्वार्थी भी हो सकता है, जाहिर है कि कुंडली की विस्तृत व्याख्या अनिवार्य मानी जाती है। कुंडली के बारह भावों में सप्तम भाव दांपत्य का है, इस भाव के अलावे आयु, भाग्य, संतान, सुख, कर्म, स्थान का पूर्णत: विश्लेषण एक सीमा में अनिवार्य है। नवमांश कुंडली सप्तांश, चतुर्विशांश, सप्तविशांश के अलावा रोग के लिए त्रिशांश कुंडली भी देखी जाती है। लड़कों के लिए शुक्र एवं लड़कियों के लिए गुरु कारक ग्रह है, इसकी स्थिति देखना अनिवार्य है। पुन: गुरु से सप्तम, चंद्र से सप्तम एवं सप्तम भाव के अधिपति की शुभ स्थिति देखी जाती है। शुक्र जो की व्यक्तिगत जीवन का करक है उसकी स्थिति देखे. मांगलिक होने पर मंगल की शक्ति भी देखे, कई बार मांगलिक होने पर भी मंगल का बुरा असर नहीं पड़ता क्यूंकि मंगल बलहीन होता है. . संतान भाव की स्थिति और सम्बंधित ग्रहों का अध्ययन भी अलग से करें . विवाह स्थान और सम्बंधित ग्रहों का अध्ययन करे. कुंडली में मौजूद अच्छे योगो का अध्ययन भी करे. दोनों की कुंडली में मौजूद बुरे योगों का अध्ययन भी करें और उसका समाधान निकाले. लग्न की स्थिति का भी पूरा अध्ययन जरुरी है. इसी के साथ चन्द्र कुंडली, नवमांश कुंडली आदि का अध्ययन भी जरुरी है. अतः किसी भी निष्कर्ष पर ऐसे ही मत पहुचे, अच्छे रिश्तो को ऐसे ही मत छोड़ दीजिये. याद रखे –स्वगृही, मित्रगृही या उच्च हो उसे शुभ ग्रह कहते हैं और कारक और अकारक को भी देखना चाहिए आजकल शादी में सिर्फ लड़की का रूप-रंग ही देखा जाता है, जबकि सामान्य कद-काठी और रूप-रंग के बच्चे भी यदि अत्यंत भाग्यशाली हुए, तो घर की स्थिति उत्तरोत्तर अच्छी होती जाती है और घर में चार चांद लग जाते हैं। कई मामलों में मांगलिक दोष भी भंग हो जाता है, लेकिन उसे मांगलिक मान लिया जाता है और शादियां कट जाती हैं।किसी भी कुंडली में हर ग्रह भाव राशि की एक विशेष अवस्था होती है जो जातक की जीवन की प्रकृति का निर्माण करती है एसे में दो जातको की कुंडली को देख कर उसके सामान्य और असामान्य क्रम को देखना और जीवन की अवस्था में बदलव पर दोनों के स्थायित्व को देखने का क्रम ही कुंडली मिलान होता है चंद्र की अवस्था का आकलन ही 36 गुणों में अभिव्यक्त किया गया है जो सही मायेने में सही भी है चंद्र जातक के मन का कारक है चंद्र की विशिष्ट अवस्थाओ के आधार पर दो कुंडलियो में गुण दोषों को देखा जाता है ये सामान्य रूप से बहुत हद तक सही भी है ज्योतिष में मंगल को भी विवाह के समय विशेष रूप से देखा जाता है मंगल के अच्छा होने पर विघ्न कम आते है एसा माना गया है जबकि वास्तविकता कितनी है ये अनुभवी जन ही जानते है इस क्रम में कुछ एसे विषयों को जोड़ना चाहुगा जिसको सामान्य जन नहीं जानते और न ही विवाह के समय उतना विचार करते है जातक की कुंडली में सप्तम भाव जीवन साथी बसका होता है इसके स्वामी का अस्त होना क्रूर ग्रह सूर्य के साथ होना, राहू या केतु के साथ होना सप्तम भाव पर गुरु या शुक्र की द्रष्टि न होना, मंगल या शनि की द्रष्टि होना जातक के वैवाहिक जीवन में नीरसता लाता है हमारे ज्योतिषीय जीवन में अनेकानेक विचित्र अनुभव होते रहे हैं। कुछ महानुभाव ऐसे भी आते हैं, जो कहते हैं कि मेरी कन्या के लिए एक अच्छा रिश्ता आया है। कृपा करके कुण्डली मिला दें। वर-कन्या की कुण्डली मिलाने से उनका आशय केवल इतना होता है कि आप गुण मिलान कर दें,बाकी वेस्वयंनिपटालेगे ये पूरी तरह हास्यपद बात होने के साथ ही उनके अल्पज्ञान का प्रदर्शन भी है।किंतु गांव-गिरांव और कस्बाई इलाकों में महानुभाव पंडितों ने अपने पेशेवर अन्दाज के कारण लोगों को भ्रम में डाला और मेट्रो शहरों के सिलेब्रिट्री ज्योतिर्विदों ने अंधाधुंध कमाई के चक्कर में सच को सामने आने ही नहीं दिया। केवल गुण मिलान के कारण लाखों दाम्पत्य जीवन पूरी तरह बर्बाद हो जाते हैं। छत्तीस गुणों में से कम से कम सोलह गुण मिल गए और वर-कन्या का आंख मूंदकर विवाह सम्पन्न करा दिया जाता है। भोगते तो बेचारे वे हैं जो अब शादी के वचन में व`घ गयै। जन्मकुंडली मिलान करने के पुरा समय लगना चाहिए यदि ज्योतिषाचार्य आपको पांच मिनट में कुंडली मिलान करके दे देते हैं तो यह चिंता का विषय है | सबसे पहले जन्म लग्न से जातक जातिका के चरित्र का पता चलता है | चरित्र सबसे पहले हैं बाकी चीजें बाद की हैं | लग्न के बाद राशी और फिर होरा चक्र देखा जाता है | मांगलिक दोष है या नहीं यह सुनने में आसान लगता है परन्तु कई बार गलती से मांगलिक की अमांगलिक से शादी करवा दी जाती है | मांगलिक योग की तीव्रता में यदि 70 से अधिक अंकों का फर्क हो तो कुंडली मिलान उत्तम नहीं है | जन्मकुंडली का पांचवां घर यह बता सकता है कि भावी पति / पत्नी के भविष्य में संतान सुख है या नहीं | इस पर विचार वे लोग कर सकते हैं जो शादी केवल संतान की इच्छा से करना चाहते हैं | कई बार वंश को आगे बढाने के लिए दुबारा शादी की जाती है | आज भी कुछ लोग ऐसे मिलते हैं जो संतान सुख से वंचित हैं और रजामंदी से दुसरे विवाह के लिए प्रयासरत रहते हैं | अजीब लगेगा परन्तु यह सुनिश्चित कर लें कि एक से अधिक विवाह का योग तो नहीं है ? आयु का विचार ज्योतिष में निषिद्ध है परन्तु मैं मानता हूँ कि यदि कुछ ऐसा दिखाई दे तो संकेत अवश्य दिया जा सकता है | अब मिलान की बारी आती है | कुंडली मिलान करते समय ऊपर लिखे सभी सिद्धांत यदि ध्यान में रखे जाएँ तो उत्त्तम जीवन साथी आपको अवश्य मिलेगा | मैं दावे से कह सकता हूँ कि उपरोक्त बातें सुनिश्चित करने के बाद तलाक जैसी समस्याओं से बचा जा सकता है | यदि हर व्यक्ति ज्योतिष के नियमों का पालन करता है तो आने वाले समय में वैवाहिक समस्याओं पर किसी अदालत में कोई केस नहीं बचेगा |आचार्य राजेश paid service 09414481324 07597718725

शुक्रवार, 17 मार्च 2017

ज्योतिष एक ऐसा शब्द है, जिसका प्रारदूरभाव हमारे जीवन मे हमारे पैदा होने से पहले ही हो जाता है। हमारे जीवन के हर क्षेत्र मे ज्योतिष एक विशेष भूमिका निभाने लगा है। इस शब्द का प्रभाव हमारे जीवन मे इतना है की, हम इससे दूर नहीं जा पाते मेरा मानना है की यदि कोई मत हमे सकारात्म्क ऊर्जा दे रहा है तो उसका पालन करने मे कोई हर्ज नहीं है कहा जाता है की ज्योतिष विज्ञान है, “जो लोग ज्योतिष क्षेत्र में अपने फन आजमा रहे हैं या जिनकी आजीविका का आधार ही ज्योतिष है उन सभी लोगों को चाहिए कि जनता का विश्वास अर्जित करें और इस बात के लिए अपनी प्रामाणिकता सिद्ध करें कि इनकी वाणी से निकला अथवा इनके ज्योतिषीय ज्ञान से उपजी भविष्यवाणी निश्चय ही खरी निकलती है मेरा अनुभव कहता है। ज्योतिष शास्त्र की भविष्य वाणी वैसी ही होती है; जैसे अर्थ शास्त्र की भविष्य वाणी होती है लेकिन इसका मतलब यह भी नही यह मान कर बैठ जाएं कि जो भाग्य में लिखा है वही मिलेगा तो जीवन ज्यादा संघर्षमय हो जाएगा। हमारा स्वभाव स्वयं का भाग्य बनाने का होना चाहिए ना कि यह मान लेने का कि जो किस्मत में होगा वह तो मिलेगा ही। कई बार लोग इस विश्वास में कर्म में मुंह मोड़ लेते हैं। फिर हाथ में आती है सिर्फ असफलता। भाग्य को मानने वालों को कर्म में विश्वास होना चाहिए। भाग्य के दरवाजे का रास्ता कर्म से ही होकर गुजरता है। कोई कितना भी किस्मतवाला क्यों ना हो, कर्म के सहारे की आवश्यकता उसे पड़ती ही है। बिना कर्म के यह संभव ही नहीं है कि हम किस्मत से ही सब कुछ पा जाएं। हां, यह तय है कि अगर कर्म बहुत अच्छे हों तो भाग्य को बदला जा सकता है बिना कर्म कोई ज्योतिष काम नहीं करेगा। हम अक्सर सड़कों से गुजरते हुए ट्राफिक सिग्रल देखते हैं। वे हमें रुकने और चलने का सही समय बताते हैं। ज्योतिष या भाग्य भी बस इसी ट्राफिक सिग्रल की तरह होता है। कर्म तो आपको हर हाल में करना ही पड़ेगा। भाग्य यह संकेत कर सकता है कि हमें कब कर्म की गति बढ़ानी है, कब, कैसे और क्या करना है। आकाश मंडल में ग्रहों की चाल और गति का मानव जीवन पर सूक्ष्म प्रभाव पड़ता है। इस प्रभाव का अध्ययन जिस विधि से किया जाता है उसे ज्योतिष कहते हैं। भारतीय ज्योतिष वेद का एक भाग है। वेद के छ अंगों में इसे आंख यानी नेत्र कहा गया है जो भूत, भविष्य और वर्तमान को देखने की क्षमता रखता है। वेदों में ज्योतिष को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। भारतीय ज्योतिष फल प्राप्ति के विषय में जानकारी देता है साथ ही अशुभ फलों और प्रभावो से बचाव का मार्ग भी देता है पर इसके साथ साथ स्वयं पर और अपने ईश्वर पर विश्वास करें। सही कार्य करें, सही निर्णय लें, दयालु बनें और कभी हार न मानें। फिर आप कठिनाइयों एवं रुकावटों के बीच अपनी राह बना लेंगे जैसे कि एक नदी धरती व चट्टानों के बीच बहती आज इतना ही आचार्य राजेश

ज्योतिष एक ऐसा शब्द है, जिसका प्रारदूरभाव हमारे जीवन मे हमारे पैदा होने से पहले ही हो जाता है। हमारे जीवन के हर क्षेत्र मे ज्योतिष एक विशेष भूमिका निभाने लगा है। इस शब्द का  प्रभाव हमारे जीवन मे इतना है की, हम  इससे दूर नहीं जा पाते मेरा मानना है की यदि कोई मत हमे सकारात्म्क ऊर्जा दे रहा है तो उसका पालन करने मे कोई हर्ज नहीं है  कहा जाता है की ज्योतिष विज्ञान है, “जो लोग ज्योतिष क्षेत्र में अपने फन आजमा रहे हैं या जिनकी आजीविका का आधार ही ज्योतिष है उन सभी लोगों को चाहिए कि जनता का विश्वास अर्जित करें और इस बात के लिए अपनी प्रामाणिकता सिद्ध करें कि इनकी वाणी से निकला अथवा इनके ज्योतिषीय ज्ञान से उपजी भविष्यवाणी निश्चय ही खरी निकलती है
मेरा अनुभव कहता है। ज्योतिष शास्त्र की भविष्य वाणी वैसी ही होती है; जैसे अर्थ शास्त्र की भविष्य वाणी होती है लेकिन इसका मतलब यह भी नही यह मान कर बैठ जाएं कि जो भाग्य में लिखा है वही मिलेगा तो जीवन ज्यादा संघर्षमय हो जाएगा। हमारा स्वभाव स्वयं का भाग्य बनाने का होना चाहिए ना कि यह मान लेने का कि जो किस्मत में होगा वह तो मिलेगा ही। कई बार लोग इस विश्वास में कर्म में मुंह मोड़ लेते हैं। फिर हाथ में आती है सिर्फ असफलता।
भाग्य को मानने वालों को कर्म में विश्वास होना चाहिए। भाग्य के दरवाजे का रास्ता कर्म से ही होकर गुजरता है। कोई कितना भी किस्मतवाला क्यों ना हो, कर्म के सहारे की आवश्यकता उसे पड़ती ही है। बिना कर्म के यह संभव ही नहीं है कि हम किस्मत से ही सब कुछ पा जाएं। हां, यह तय है कि अगर कर्म बहुत अच्छे हों तो भाग्य को बदला जा सकता है बिना कर्म कोई ज्योतिष काम नहीं करेगा। हम अक्सर सड़कों से गुजरते हुए ट्राफिक सिग्रल देखते हैं। वे हमें रुकने और चलने का सही समय बताते हैं। ज्योतिष या भाग्य भी बस इसी ट्राफिक सिग्रल की तरह होता है। कर्म तो आपको हर हाल में करना ही पड़ेगा। भाग्य यह संकेत कर सकता है कि हमें कब कर्म की गति बढ़ानी है, कब, कैसे और क्या करना है।
आकाश मंडल में ग्रहों की चाल और गति का मानव जीवन पर सूक्ष्म प्रभाव पड़ता है। इस प्रभाव का अध्ययन जिस विधि से किया जाता है उसे ज्योतिष कहते हैं। भारतीय ज्योतिष वेद का एक भाग है। वेद के छ अंगों में इसे आंख यानी नेत्र कहा गया है जो भूत, भविष्य और वर्तमान को देखने की क्षमता रखता है। वेदों में ज्योतिष को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है।  भारतीय ज्योतिष फल प्राप्ति के विषय में जानकारी देता है साथ ही अशुभ फलों और प्रभावो से बचाव का मार्ग भी देता है पर इसके साथ साथ स्वयं पर और अपने ईश्वर पर विश्वास करें। सही कार्य करें, सही निर्णय लें, दयालु बनें और कभी हार न मानें। फिर  आप कठिनाइयों एवं रुकावटों के बीच अपनी राह बना लेंगे जैसे कि एक नदी धरती व चट्टानों के बीच बहती आज इतना ही     आचार्य राजेश

गुरुवार, 16 मार्च 2017

ज्योतिष या ठगी का धंधा ज्योतिष वैज्ञानिक समाज का बहुत बड़ा सहारा बन सकते हैं किंतु फ्रॉड लोग उन लोगों तक समाज को पहुँचने ही नहीं देते इससे टूट रहे हैं सम्बन्ध बिखर रहे हैं परिवार ,चौपट हो रहा है व्यापार ,बढ़ रहे हैं अपराध और हो रहे हैं जीवनशास्त्र की जीवन में बहुत बड़ी भूमिका होती है जो जीवन और संबंधों को सँभाले रखती है किंतु पाखंडी लोग इतने आडंबर करते हैं कि ज्योतिष वैज्ञानिकों तक लोगों को पहुँचने ही नहीं देते हैं बीच में ही लूट ले्ते इसलिए ऐसी सभी प्रकार की घुसपैठ ज्योतिष एवं वास्तु आदि में रोकने के लिए अब भविष्य बताने वाले फर्जी लोगोंपर लगाम लगनी चाहीये पहले आयुर्वेद में भी डिग्रियों का प्रावधान नहीं था किंतु अब है !उसी प्रकार ज्योतिष के नाम पर आज करोड़ों अरबों का धंधा हो रहा है अयोग्य ज्योतिषी भविष्य का भय दिखाकर लूट रहे हैं लोगों को फैला रहे हैं अंध विश्वास इतने बड़े कारोबार को सरकार ने हवा में छोड़ रखा है आखिर क्योंसमझ से परे हैहमारे यहाँ उन हैरान परेशान लोगों के फोन आते हैं उन महिलाओं के फोन आते हैं जिन्होंने घर से चोरी करके पैसा दे रखा होता है ज्योतिषियों को ,कई ने तो अपनी ज्वैलरी तक बेच दी होती है ऐसे ही चक्करों में ,कई ने अपने पति या पत्नी के बशीकरण आदि के लिए ऐसे पाखंडों का सहारा लिया हुआ होता है जिससे इन पाखंडियों के द्वारा दी गई ऊटपटाँग चीजें अपने पति या पत्नी को खिला रखी होती हैं जिनसे गंभीर बीमारियाँ भुगत रहे होते हैं लोग किंतु आज वो किसी से कहने लायक भी नहीं होते कई महिलाओं के मन में उनके पति के चरित्र पर संशय पैदा करके कि उसके किसी और से सम्बन्ध हैं और जब वो किसी से जुड़ सकता है तो तुम क्यों नहीं ऐसे तर्कों को हवा देकर खुद जुड़ जाते हैं उनसे ज्योतिषी लोग और खा जाते हैं उनकी मेहनत की की सारी संपत्ति ऐसी छल कपट से इकठ्ठा की गई अकूत संपत्ति ये उड़ाते हैं टीवी और अखवारों में दिए जा रहे भारी भरकम विज्ञापनों में मित्रो एक दिन एक टीवी चैनल पर 20 मिनट बोलने का खर्च हजारों में देना होता है कई लोग तो एक ही दिन में कई कई चैनलों पर वर्षों से करते चले आ रहे हैं बकवास आखिर क्या हैं इनकी आय के स्रोत कहाँ से और कैसे आता है ये धन जो टीवी चैनलों को देते हैं ये लोग ईमानदारी पूर्वक ऐसे धन का संग्रह कर पाना कठिन लगता है और यदि हो भी तो अपनी खून पसीने की कमाई कोई यूँ ही क्यों नष्ट करेगा वो भी केवल वो दैनिक राशिफल और कालसर्पदोष बताने के लिए जो सौ प्रतिशत झूठ होते हैं जिनका शास्त्रों में कहीं उल्लेख नहीं है वैसे भी जब रोज कोई ग्रह नहीं बदलता तो इनका राशिफल कैसे बदल जाता है वो भी अलग अलग चैनलों पर एक ही राशि का फल अलग अलग बताया जा रहा होता है कई बार तो एक ही चैनल पर लोग अलग अलग लोग बक रहे होते हैं एक ही राशि का अलग अलग भविष्य कई तो ऐसे बकते हैं कि कोई शराबी इतनी जल्दी गालियाँ नहीं दे सकता जैसे वो राशिफल बक देते हैं ।समझ में नहीं आता है यह जानकारी जानकारी ज्योतिष की है या एंटरटेनमेंट करने की अरे भाई साहब कुछ तो ज्योतिष की लाज रखो क्यों इसकी लुटिया डुबोने पर लगे हो इसी प्रकार यंत्र तंत्र ताबीजों के धंधों में भारी फ्रॉड है यंत्र तंत्र ताबीज बनाने की जो विधियाँ हैं वो इतनी कठिन होती हैं कि वो बनाना हर किसी के बश की बात नहीं है और बाजारों में तो वो उपलब्ध हो ही नहीं सकते सौ प्रतिशत असंभव क्योंकि देवी देवता किसी तांत्रिक के गुलाम नहीं होते कि उसके ताबीज में बँधे चले जाएँगे और जो जो काम तांत्रिक बताकर भेजेगा वो देवी देवता लोग करने लगेंगे क्या अंधेर है ये शास्त्र विद्याओं का मजाक नहीं तो क्या हैहोली चली गयी आगे नवरात्र उसके बाद दिवाली आ रही है यंत्र तंत्र ताबीजों के धंधों में अभी से कमर कस कर तैयार हो रहे हैं लोग मित्रों इसका मतलब ये भी नहीं कि यंत्र तंत्र ताबीजों की विधा गलत है किंतु जिन तपस्वी साधकों के पास ऐसी साधना है उनके बनाए हुए यंत्र तंत्र ताबीजों में अद्भुत शक्ति होती है किंतु वे लोग दुर्लभ हैं !उनकी कृपा को पैसों से नहीं खरीदा जा सकता ज्योतिष के द्वारा हमें उसके जीवन पर रिसर्च करना होता है और खोजना होता है कि ये व्यक्ति जीवन के किस क्षेत्र में कितना सफल हो सकता है उसी के अनुरूप सलाह दे दी जाती है साथ ही ये भी ध्यान रखना होता है इनका काम भी हो जाए और बहम भी न पड़ने पाए साथ उपाय भी इतने महँगे और कठिन न हों कि सामने वाला कर ही न सके कुलमिलाकर सभी प्रकार से समाज के सुख दुखों में मित्र भावना से जुड़कर ही स्व हो सकता है यहाँ तक कि वास्तु जैसे विषयों में भी घरों में इसी प्रकार की बड़ी बड़ी समस्याएँ होते देखी जाती हैं किंतु घर वालों को पता नहीं लग पाता है , जबकि वास्तु स्पेशलिस्ट या वास्तु एक्सपर्ट टाइप के लोग प्रायः ज्योतिष वास्तु आदि पढ़े लिखे तो होते नहीं हैं ये केवक कुछ नग नगीने यंत्र तंत्र ताबीज पेंडुलम आदि बेचने के लिए कुछ देर बकवास करना इनकी मजबूरी होती है वहाँ शास्त्रीय वास्तु विद्या की तो कोई संभावना ही नहीं होती है ऐसे फ्रॉड लोग भोली भाली जनता को वास्तुशास्त्र के नाम पर अपने ही चक्करों में उलझाए लूटते रहते हैं वास्तुशास्त्र वैज्ञानिको ज्योतिष जैसे गंभीर विषय को सँवार कर फलित करने की सारी जिम्मेदारी केवल ज्योतिष वैज्ञानिकों की ही नहीं है आम समाज को इसमें सहयोग करने की आवश्यकता है ।कई बार जन्म पत्रियाँ गलत होती हैं या कम्प्यूटर से बनी हुई होती हैं उनमें उतनी शुद्धता न होने के कारण वो पूर्ण विश्वनीय नहीं होती हैं कई बार जिसकी जन्मपत्री लोग दिखाते हैं किन्तु दोष उसमें नहीं होता दोष घर के किसी अन्य सदस्य की कुण्डली या वास्तु आदि का होता है जिसे भुगत वो रहा होता है ऐसी परिस्थिति में उन सारी चीजों की गहन जाँच करनी होगी ,उसका खर्च भी अधिक आएगा और समय भी अधिक लगेगा ये स्वाभाविक है किन्तु जो लोग अज्ञान,कंजूसी या चालाकी के कारण उस पर लगने वाला खर्च वहन नहीं करना चाहते हैं इसका मतलब यह नहीं होता है कि हम अपनी श्रद्धा से जो चाहें सो दें पंडित जी वो लेंगे और पंडित जी मेहनत पूरी करेंगे किन्तु ऐसा कभी नहीं होता है ज्योतिषी के साथ जैसा व्यवहार आप करेंगे ज्योतिषी भी वैसा ही व्यवहार आपके साथ करेगा ये कभी नहीं सोचना चाहिए कि ज्योतिषी यदि विद्वान है तो वो तो हमारा भाग्य सही सही बताएगा ही उसे परिश्रम चाहें जितना करना पड़े ये भ्रम है जैसे बिजली किसी जगह चाहें जितनी हो किन्तु जितने बाड का बल्व लगा होता है प्रकाश उतना ही होता है ।इसी प्रकार से समुद्र में पानी चाहे जितना हो किन्तु पानी उतना ही देता है जितना बड़ा बर्तन होगा ठीक इसी प्रकार से कोई ज्योतिषी विद्वान चाहे जितना हो और किसी से सम्बन्ध चाहे जितने अच्छे हों किन्तु जितना आपका धन लगता है उतना ही ज्योतिषी का मन लगता है यदि धन नहीं तो मन नहीं, हाँ ,जैसे और जितनी चिकनी चुपड़ी बातें आप करके चले आओगे उतनी ही चिकनी चुपड़ी बातें करके ज्योतिषी लोग आपको प्रेम पूर्वक भेज देंगे यदि आप सोचते हैं कि मैंने चतुराई से काम निकाल लिया तो ज्योतिषी सोचता है कि मैंने परन्तु पैसे कम देने में आप भले सफल हो गए हों किन्तु जिस काम के लिए आप ज्योतिषी के पास गए थे वो काम आप बिलकुल बिगाड़ कर चले आए हो लेकर कई लोग अपनी समस्याओं से निपटने के लिए ज्योतिष पर उतना विश्वास नहीं कर पाते हैं जितना अन्य माध्यमों पर जैसे कोई बीमार है तो डाक्टर जाँच पर जाँच बताते जाएँगे इलाज पर इलाज बदलते जाएँगे उसमें धन खर्च करने में उतनी दिक्कत नहीं होती है किन्तु ज्योतिष विद्वान यदि उस हिसाब से समस्या की जड़ तक पहुँचना चाहे तो काम बढ़ जाएगा जिसका खर्च भी बढ़ेगा जिसके लिए लोग तैयार नहीं होते ऐसी परिस्थिति में ज्योतिषी भी उस कठिन परिश्रम से बचते हुए उतने में ही जो कुछ संभव हो पता है वो बता कर अपना पीछा छुड़ा लेता है ऐसे लोग बाद में सोचते हैं कि भविष्यवाणी गलत हो गई जो गलत है। मेरी तो सलाह ऐसे लोगों को है कि आधी अधूरी श्रद्धा लेकर किसी ज्योतिष वैज्ञानिक के पास जाना क्यों आखिर कोई विद्वान किसी के घर बुलाने तो जाता नहीं है कि हमें दिखा लो अपनी कुंडली ! दोस्त यह कुछ बातें जो मैंने लिखी है मुझे कुछ सच्चाई लगी इसमें जो मैंने लिख दिया आपको इसमें कुछ गलत लगता है तो माफी चाहता हूं यह मेरे अपने विचार है सो जरूरी नहीं है कि सभी इससे सहमत हो आज बस इतना ही आचार्य राजेश मित्रों कोई भी सवाल जवाब करना हो तो सीधा मेरे नंबरों पर करें WhatsApp पर Facebook या Messenger पर सवाल ना करें आपकी कोई भी जिज्ञासा है तो सीधा फोन पर बात करें 09414481324 07597718725

मंगलवार, 14 मार्च 2017

लाल किताव ओर केत लाल किताब में केतु को 'दरवेश' माना गया है। इसका सम्बन्ध इस लोक से कम, परलोक से ज्यादा है। केतु इस भव सागर से मुक्ति/मोक्ष/निर्वाण का प्रतीक है। केतु दया का सन्देश वाहक है, यात्राओं का कारक है और जीवन यात्रा के गंतव्य तक जातक का सहायक है। बृहस्पत, मंगल बद और बुध तीनों ही केतु के सम है। लाल किताब के अनुसार ये केतु के भाग है। केतु में तीन कुत्ते समाहित है ये तीन केतु के भाग है। केतु के तीन कुत्ते है: बहिन के घर भाई कुत्ता, ससुराल में जमाई और मामा के घर भांजा कुत्ता। केतु का पालतू कुत्ता सफेद ओर काले रग का हैहै। कुत्ता खूँखार भी हो सकता है और गीदड़ भी। यदि समझदार है तो रक्षक का कार्य करेगा।ै सफ़ेद रंग दिन का प्रतीक है और काला रात्रि का। इसका तात्पर्य यह हुआ कि केतु दिवा - रात्रि - बलि है, जबकि अन्य ग्रह या तो दिवा बलि होते है या केवल रात्रि बलि होते है। उसमे यदि कही और फलों की अवधि केतु निर्दिष्ट समय तक होती है मित्रो ज्योतिष में केतु अच्छी व बुरी आध्यात्मिकता एवं पराप्राकृतिक प्रभावों का कार्मिक संग्रह का द्योतक हैकेतु भावना भौतिकीकरण के शोधन के आध्यात्मिक प्रक्रिया का प्रतीक है और हानिकर और लाभदायक, दोनों ही ओर माना जाता है, क्योंकि ये जहां एक ओर दुःख एवं हानि देता है, वहीं दूसरी ओर एक व्यक्ति को देवता तक बना सकता है। यह व्यक्ति को आध्यात्मिकता की ओर मोड़ने के लिये भौतिक हानि तक करा सकता है। यह ग्रह तर्क, बुद्धि, ज्ञान, वैराग्य, कल्पना, अंतर्दृष्टि, मर्मज्ञता, विक्षोभ और अन्य मानसिक गुणों का कारक है। माना जाता है कि केतु भक्त के परिवार को समृद्धि दिलाता है, सर्पदंश या अन्य रोगों के प्रभाव से हुए विष के प्रभाव से मुक्ति दिलाता है। ये अपने भक्तों को अच्छा स्वास्थ्य, धन-संपदा व पशु-संपदा दिलाता है। मनुष्य के शरीर में केतु अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। ज्योतिष गणनाओं के लिए केतु को कुछ ज्योतिषी तटस्थ अथवा नपुंसक ग्रह मानते हैं जबकि कुछ अन्य इसे नर ग्रह मानते हैं। केतु स्वभाव से मंगल की भांति ही एक क्रूर ग्रह हैं तथा मंगल के प्रतिनिधित्व में आने वाले कई क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व केतु भी करता है। यह ग्रह तीन नक्षत्रों का स्वामी है: अश्विनी, मघा एवं मूल केतु के अधीन आने वाले जातक जीवन में अच्छी ऊंचाइयों पर पहुंचते हैं, जिनमें से अधिकांश आध्यात्मिक ऊंचाईयों पर होते हैव्यक्ति के जीवन-क्षेत्र तथा समस्त सृष्टि को यह प्रभावित करता है। आकाश मण्डल में इसका प्रभाव वायव्यकोण में माना गया है राहु की अपेक्षा केतु विशेष सौम्य तथा व्यक्ति के लिये हितकारी है। कुछ विशेष परिस्थितियों में यह व्यक्ति को यश के शिखर पर पहुँचा देता है। केतु का मण्डल ध्वजाकार माना गया है। कदाचित यही कारण है कि यह आकाश में लहराती ध्वजा के समान दिखायी देता है। इसका माप केवल छ: अंगुल है केतु के अधीन आने वाले जातक जीवन में अच्छी ऊंचाइयों पर पहुंचते हैं, जिनमें से अधिकांश आध्यात्मिक ऊंचाईयों पर होते हैं। संसार में दो तरह के केतु पारिवारिक रिस्तों में मिलते है,एक तो वे जो अपने द्वारा पारिवारिक स्थिति को बढाने में सहायक होते है,और दूसरे जो पारिवारिक स्थिति से सहायता लेकर अपनी खुद की स्थिति बनाते है,यानी दो एक तो लेने वाले होते है दूसरे देने वाले होते है,मामा भान्जा साला दामाद यह चार तरह के केतु पारिवारिक रिस्तों में मिलते है,मामा से माँ मिलती है,जिसके द्वारा पिता और खुद स्थिति बनती है,साले के द्वारा पत्नी की प्राप्ति होती है,जिससे आगे का वंश और काम सुख की प्राप्ति होती है,यह दो तो हमेशा देने वाले होते है,और दूसरे भान्जा बहिन का पुत्र होता है,और बहिन के साथ आकर हमेशा ले जाने वाला होता है,मामा सकारात्मक है तो भान्जा नकारात्मक,पुत्री के पति को दामाद कहा जाता है,दामाद अपनी औकात बनाने के लिये पुत्री को ले जाता है,और अपनी औकात बनाता है,इस प्रकार से दोनो प्रकार के केतु से आना और जाना बना रहता है पारिवारिक रिस्तों के अलावा घर के अन्दर दो तरह के जीव मिलते है,एक तो घर की रखवाली करते है,और दूसरे घर के अन्दर छुपकर बरबाद करने का काम करते है,घर की रखवाली करने वाला कुत्ता होता है,और घर के अन्दर छुपकर बरबादी करने वाला चूहा होता है,एक का काम बचाना और दूसरे का काम बरबाद करना,इस प्रकार चूहा और कुत्ता को भी नकारात्मक और सकारात्मक केतु कहा गया केतु गुरु के साथ हो तो गुरु के सात्विक गुणों को समाप्त कर देता है और जातक को परंपरा विरोधी बनाता है। यह योग यदि किसी शुभ भाव में हो तो जातक ज्योतिष शास्त्र में रुचि रखता है गुरु के साथ नकारात्मक केतु अपंगता का इशारा करता है,उसी तरह से सकारात्मक केतु साधन सहित और जिम्मेदारी वाली जगह पर स्थापित होना कहता है,मीन का केतु उच्च का माना जाता है,और कन्या का केतु नकारात्मक कहा जाता है,मीन राशि गुरु की राशि है और कन्या राशि बुध की राशि है,गुरु ज्ञान से सम्बन्ध रखता है,और बुध जुबान से,ज्ञान और जुबान में बहुत अन्तर है,कह देना ढपोल शंख की बात है और कहकर कर देना मान्यता वाली बात हैशनि केतु के साथ हो तो आत्महत्या तक कराता है। ऐसा जातक आतंकवादी प्रवृति का होता है। अगर बृहस्पति की दृष्टि हो तो अच्छा योगी होता है।,इसी के साथ अगर शनि के साथ केतु है तो काला कुत्ता कहा जाता है,शनि ठंडा भी है और अन्धकार युक्त भी है,गुरु की महरबानी से काला कुत्ता भी पीला कत्थई हो जाता है,और गुरु अगर गर्मी का एहसास करवा दे तो ठंडक भी गर्मी में बदल जाती द्र यदि केतु के साथ हो और उस पर किसी अन्य शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो व्यक्ति मानसिक रोग, वातरोग, पागलपन आदि का शिकार होता है।चन्द्र केतु मिलकर दर्जी का काम करते है,दर्जी की कई श्रेणियां है,एक दर्जी कपडे को कई टुकडों में काटकर जोडता है,और पहिनने के लिये सूट पाजामा कुर्ता पेंट और न जाने क्या क्या बना देता है,यह तो हुयी साधारण तरीके के दर्जी वाली बात,उसी प्रकार से चन्द्र केतु एक दर्जी वकील के रूप में भी तैयार करता है,कई तरह की अर्जियां जोड कर एक केस बना देता है,जिसे व्यक्ति या तो पहिन कर कुछ प्राप्त कर लेता है,या फ़िर अपना उतार कर चला आता है,पहिनता वही जिसके ऊपर गुरु महरबान होता है। वही वकील सकारात्मक हो जाता है जिसके ऊपर गुरु की कृपा होती है,और वही वकील कानून जानने के बाद भी नकारात्मक हो जाता है,जिसके ऊपर गुरु की महरबानी नही होती है,इसी प्रकार से चन्द्र केतु एक दर्जी और तैयार करता है,जिसे मार्केटिंग मैनेजर कहते है,कितने ही ग्राहकों को मिलाकर,एक फ़र्म तैयार करना उसका काम होता है,जिसके ऊपर गुरु महरबान होता है,वह सफ़ल मार्केटिंग मैनेजर कहलाता है,इसी काम के लिये लोग विभिन्न विषयों में एम.बी.ए और न जाने कौन कौन सी उपाधियां प्राप्त करने की होड में लगे रहते है,लेकिन जिसके ऊपर गुरु महरबान नही होता है,वह एम.बी.ए. करने के बाद भी विभिन्न फ़र्मों के चक्कर लगाता रहता है,वह अपनी अर्जी को देकर तो आता है,लेकिन दर्जी की तरह से किसी भी फ़र्म में कपडे के पैबंद की तरह से लगने लायक नही होती इसलिये रद्दी की टोकरी में चली जाती है। चन्द्र केतु के साथ गुरु की महरबानी प्राप्त करने के लिये जातक को धर्म कर्म पर विश्वास करना जरूरी होता है,सबसे पहले वह अपने परिवार के गुरु यानी पिता की महरबानी प्राप्त करे,फ़िर वह अपने कुल के पुरोहित की महरबानी प्राप्त करे,फ़िर वह अपने शरीर में विद्यमान दिमाग नामक गुरु की महरबानी प्राप्त करे,और अपने दिमाग नामक गुरु के अन्दर राहु नामक भ्रम या शनि नामक नकारात्मकता को प्रवेश नही होने दे,राहु नामक भ्रम तभी प्रवेश करते है,जब राहु और केतु को साथ साथ मिलाया जाये,जैसे राहु शराब है तो केतु बोतल भी है,राहु गांजा है तो चिलम केतु है,इसी प्रकार से गुरु में शनि नकारत्मकता तभी देगा,जब वह शनि से आमिष भोजन और गुरु से दिमागी इच्छा को प्रकट किया जाना,राहु शुक्र मिलकर जब गुरु पर प्रभाव डालते है,तो शुक्र से स्त्री और राहु से बदचलन इस प्रकार का संसय दिमाग के अन्दर प्रवेश करजाने के बाद गुरु के अन्दर एक अफ़ेयर वाला प्रभाव दिमाग में हमेशा मंडराता रहता है,जिसे दूर करने की किसी के अन्दर भी हिम्मत नही होती है,अगर जातक खुद प्रयास करे तो वह अपने को मुक्त कर सकता है।मंगल केतु के साथ हो तो जातक को हिंसक बना देता है। इस योग से प्रभावित जातक अपने क्रोध पर नियंत्रण नहीं रख पाते और कभी-कभी तो कातिल भी बन जाते हैं। बुध केतु के साथ हो तो व्यक्ति लाइलाज बीमारी ग्रस्त होता है। यह योग उसे पागल, सनकी, चालाक, कपटी या चोर बना देता है। वह धर्म विरुद्ध आचरण करता है।मंगल के साथ यही हाल केतु का सकारात्मक और नकारात्मक रूप में माना जाता है,चौथे भाव में केतु और मंगल सकारात्मक है तो वे एक अच्छे पुलिस अफ़सर की तरफ़ इशारा करते है,और अगर वे नकारात्मक है तो एक गली के दादा के रूप में दिखाने की कोशिश करते है,इसके साथ शनि मिल जाता है तो वह चोर का रूप हो जाता है,और चौथे भाव के मकान या दुकान के अन्दर औजारों की सहायता से सेंध लगाने का काम भी कर सकता है,और यही मंगल और केतु चन्द्र के साथ सकारात्मक हो जाते है,सूर्य और गुरु का जोर इनके साथ लग जाता है,तो गृहमंत्री भी बना सकते है,लेकिन आदतों के अन्दर कमी नही आती हैसूर्य जब केतु के साथ होता है तो जातक के व्यवसाय, पिता की सेहत, मान-प्रतिष्ठा, आयु, सुख आदि पर बुरा प्रभाव डालता है।केतु का इशारा सूर्य के साथ मिलकर सकारात्मक प्रभाव के अन्दर राष्टपति की तरफ़ इशारा करता है,केतु सूर्य और मंगल के साथ शनि का प्रभाव मिल जाये तो बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री श्री लालूप्रसाद की तरह भी बनाने से नही चूकता है,जिसके अनुसार शनि मंगल सूर्य और शुक्र की दशा के अन्दर आपको रेल मंत्री बना दिया,आगे आने वाले समय में शनि का प्रभाव राहु के प्रति हमदर्दी दिखाने के चक्कर में बहुत बुरा फ़ंसा भी सकता है।शुक्र केतु के साथ हो तो जातक दूसरों की स्त्रियों या पर पुरुष के प्रति आकर्षित होता है।शनि राहु केतु के साथ के बिना कोई शुक्र सडक पर नही चल सकता है,शुक्र गाडी है,खाली शुक्र शनि है तो भार वाहक गाडी है,शुक्र के साथ राहु है तो सजी हुई गाडी है,गुरु का प्रभाव है तो हवाई जहाज भी है,केतु अगर कर्क के संचरण में है तो चार पहिये की गाडी है,वृश्चिक के संचरण में है तो आठ पहिये की गाडी है,और अगर किसी प्रकार से तुला या वृष का है तो दो पहिये के अलावा कुछ सामने नही आता है,गुरु केतु और शुक्र सही जगह पर है तो जातक हवाई जहाज उडाने की हैसियत रखता है,और अगर वह नकारात्मक पोजीसन में है तो जातक को पतंग उडाना सही रूप से आता होगा,तो देखा आपने केतु को बिना केतु की सहायता के jio के फ़ोन नही चल सकते थे,बिना सूर्य राहु और नवें भाव के केतु के बीएसएनएल भारत में टेलीफ़ोन नही चला सकता था,और बिना गुरु केतु के टावर खडे करने के बाद मोबाइल का काम नही कर सकता था,शुक्र महंगे मोबाइल दे रहा है,तो शुक्र केतु ही सूर्य के असर से सस्ते मोबाइल बाजार में लाने की हिमाकत कर रहा है,शुक्र मंगल और बुध केतु को सहारा बनाकर दुनिया की बडी बडी बैंको के अन्दर दिवालियापन ला रहे है,लेकिन यही कारण उन कम्पनियों को बहुत आशा देगा,जो राहु नामकी रिस्वत को न देकर अपने काम को ईमानदारी से कर रहे है,और उनके लिये बहुत बढिया समय सामने आ रहा है।शनि गाडी है,राहु पैट्रोल है और केतु पहिये है,इसी प्रयोग को अगर शरीर के अन्दर लाया जाय तो शनि शरीर राहु विद्या और केतु हाथ पैर,बताइये इनके बिना गाडी कैसे चल सकती है मित्रों अगर आप भी मुझसे अपनी कुंडली बनवाना जा दिखाना चाहते हैं जकी समस्या का हल चाहते हैं तो आप मुझसे संपर्क करें हमारे नंबरों पर कॉल करके पूरी जानकारी ले हमारे नंबर हैं 07597718725 81324094144 paid service

सोमवार, 13 मार्च 2017

मित्रों आज त्योहार 2 दिन होने लग गया है आखिर ऐसा क्योहै।आज होली है और होली परं यह बात मेरे ध्यान में आई है सोचा आप लोगों से शेयर करुपहले लोग जानते थे कि वसंत ऋतु में फागुन का महींना आता है और फागुन के आखिरी दिन पूर्णमासी को हिरणाकश्यम की बहन ने प्रहलाद को अपनी गोद में बिठाकर जलाने का प्रयास किया था क्योंकि हिरणाकश्यम अपने बेटे प्रहलाद को मार डालना चाहता था और होलिका को वरदान था वह नहीं जलेगी । हुआ था उल्टा। होलिका जल गई और प्रहलाद बीच में खड़े रह गए । उसके दूसरे दिन हिरणाकश्यप मारा गया था । फागुन का अन्तिम दिन एक ही होगा, दो नहीं हो सकते।इसी प्रकार मकर संक्रान्ति 14 जनवरी को होती थी क्योंकि इस दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में जाते हैं । हमेशा से सुनते आए हैं कि भीष्मपितामह को इच्छामृत्यु का वरदान था और उन्होंने मकर संक्रान्ति के ही दिन अपने प्राण त्यागे थे । यदि आज वाले ज्योतिषी होते तो 14 की जगह 15 को संक्रान्ति बता देते तो भीष्म को एक दिन और शरसैया पर यानी वाणों की नोक पर लेटे रहना पड़ता ।रामचन्द्र जी लंका जीत कर अयोध्या लौटे तो वहां खुशियां मनाई गईं थी, दीपमालिका सजी थी और समय के साथ यह दीपावली का पर्व बन गया । यह पर्व क्वार के महीने में अमावस्या के दिन पड़ता है लेकिन अब इस अमावस्या को भी ज्योतिषी लोग इधर उधर खिसका देते है । ब होली, दीवाली और मकर संक्रान्ति इधर उधर खिसकते हैं तो स्वाभाविक है शेष सभी त्योहार अपनी जगह बदलेंगे । लेकिन जगह बदलने से उतनी तकलीफ नहीं जितनी दो दिन त्योहार मनाने से होती है मुस्लिम त्योहारों में ज्योतिष ज्ञान का अहंकार नहीं है । चांद दिखेगा तो त्योहार होगा और नहीं दिखेगा तो नहीं होगा । हिन्दू ज्योतिषी तो ग्रहों की चाल जानने का दम भरते हैं तब क्या आजकल उनकी चाल बदल गई है।हार दो दिन मनाने का कोई औचित्य नहीं, केवल पचाग वनाने वाले ज्योतिषियों का अहंकार है । हम जानते हैं कि त्योहार तिथियों के हिसाब से होते हैं और तिथ का आरम्भ सूर्योदय से होता है और उदया तिभि मानी जाती है । तब दो दिन एक ही तिथि हो ही नहीं सकती । यदि हिन्दू समाज के ज्योतिषी अपना अहंकार नहीं छोड़ेंगे तो त्योहारों के प्रति आस्था समाप्त हो जाएगी । आशा है वे ऐसा नहीं चाहेंगे हमारे त्यौहारों का एक ही दिन निश्चित हो और पूरा भारत मिलकर ब त्योहार मनाए ।परक्या हो रहा है उज्जैन से कुछ प्रचार निकल रहा है बनारस से कुछ निकल रहा है पंजाब में किसी दिन त्यौहार होता है तो उत्तर प्रदेश में उसके अगले दिन इसी तरह अलग अलग तरह से सारे त्योहार भी दो दिन में वट जाता है यह हमारे हिंदूओं मे ऐसा क्यों हो रहा है मेरी पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें send करें ताकि औरो तक यह मैसेज पहुंच सके. आचार्य राजेश

गुरुवार, 9 मार्च 2017

मित्रो आज की पोस्ट भी राहु पर ही है राहु खुफिया पाप तो केतु ज़ाहिरा पाप है। सूरज डूबने के बाद शाम मगर शनि की रात शुरू होने से पहले का वक्त राहु और रात खत्म होने के बाद सुबह मगर सूरज निकलने से पहले का वक्त केतु है। राहु सिर का साया तो केतु सिर के बिना धड़ (जिस्म) का साया है। लेकिन इन्सानी जिस्म में नाभि के ऊपर सिर की तरफ का हिस्सा राहु का राज्य और नाभि के नीचे पांव की तरफ के हिस्से पर केतु का राज होगा। राहु कुंडली के खाना नं 12 में आसमानी हद बृहस्पाति के साथ हुआ तो केतु खाना नं 6 पाताल के बुध का साथी हुआ। दोनों की मुश्तरका बैठक कुंडली का खाना नं 2 है। दोनों के बाहम मिलने की जगह शारा आम यानि जिस जगह दो तरफ से आकर रास्ता बन्द हो जाता हो, वहां दोनों ग्रहों का ज़रूर मंदा असर या दोनों मन्दे या पाप की वारदातें या नाहक तोहमत और बदनामी के वाक्यात या ग्रहस्थी के बेगुनाह धक्के लग रहे होंगे '' केतु कुत्ता हो पापी घड़ी का, चाबी राहु जा बनता हो। चन्द्र सूरज से भेद हो खुलता, ज़ेर शनि दो होता हो राहु केतु हमेशा बुध (घड़ी) के दायरे में घूमते हैं। अगर यह देखना हो कि राहु कैसा है तो चन्द्र का उपाय करें इऔर केतु की नीयत का पता लगाने के लिये सूरज का उपायें करें इस तरह दोनों ग्रहों का दिली पाप खुद व खुद पकड़ा जायेगा। यानि उस ग्रह के ताल्लुक के वाक्यात होने लगेगें। राहु और केतु में से अगर कोई भी खाना नं 8 में हो तो शनि भी उस वक्त खाना नं 8 में गिना जायेगा। यानि जैसा शनि वैसा ही फैसला समझा जायेगा। अगर राहु केतु दोनों खराब असर करना शुरू कर दें तो राहु 42 साल और केतु 48 साल तक और दोनो मुश्तरका 45 साल का मन्दा असर कर सकतें हैं। कुंडली में सूरज राहु मुश्तरका से सूरज ग्रहण और चन्द्र केतु मुश्तरका से चन्द्र ग्रहण होगा। लिहाज़ा ग्रहण से राहु केतु के मन्दे असर का ज़माना लम्बा हो सकता है। जिसके लिये ग्रहण के वक्त और वैसे भी पापी ग्रहों की चीज़ें नारियल वगैरह चलते पानी (्दरिया या नदी) में बहाते रहना फायदा होगा राहु चन्द्रमा का पात है। अंग्रेजी में इसकी संज्ञा ड्रैगन्स हेड (सांप के फन) से है। लाल किताब में इसे यही नाम दिया गया है। इसे शनि का एजेंट (प्रतिनिधि) कहा गया है शनि एक विशालकाय सांप है और राहु उसका फन राहु का रंग नीला माना गया है। नीला आकाश और नीला समुद्र राहु के अधिकार छेत्र में आते है। गुरु को हवा या पंख माना गया है जो ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर सतत प्रवाहमान है। द्वादश गुरु के साथ द्वादश में ही राहु भी हो तो वह गुरु से बलवत्तर हो जाता है। तब गुरु पूर्णतः सांसारिक मनुष्य बन जाता है। राहु उसे ऊंचाइयों पर नही जाने देता।है केतु से यदि राहु सूर्य से युक्त/दृस्ट हो तो वह जिस भाव में स्थित होता है उस भाव का फल विकृत कर देता है। इतना ही नही, उससे आगे वाले भाव को भी प्रभावित करके दूषित कर देता हैराहु मन्दे के वक्त इसका मन्दा असर राहु की कुल मियाद 42 साला उम्र के पूरा होने पर दूर होगा। फालतू धन दौलत, दुनियावी आराम व बरकत 42 के बाद फौरन बहाल हाेंगे। कड़कती हुई बिजली, भूचाल, आतिशी खेज़ मादा पाप की एजेन्सी में बदी का मालिक हर मन्दे काम में मौत का बहाना घड़ने वाली ताकत, ठगी, चोरी और अयारी का सरगना चोट मारके नीला रंग कर देने वाली गैबी लहर का नामी फ़रिशता कभी छिपा नही रहता। कुंडली में सूरज शुक्र मुश्तरका होंतो राहु अमूमन मन्दा असर देगा। अगर सूरज शनि मुश्तरका और मन्दे हों तो राहु नीच फल बल्कि मंगल भी मंगल बद ही होगा। अगर केतु पहले घरों में और राहु बाद के घरों में हो तो राहु का असर मन्दा और केतु सिफर होगा। अगर राहु अपने दुश्मन ग्रहों (सूरज, शुक्र, मंगल) को साथ लेकर केतु को देखे तो नर औलाद, केतु की चीज़ें, कारोबार या रिश्तेदार मतल्का केतु बर्बाद होंगे। सूरज की दृष्टि या साथ से राहु का असर न सिर्फ बैठा होने वाले घर पर मन्दा होगा बल्कि साथ लगता हुआ घर भी बर्बाद होगा। मन्दे राराहू कूटनीति का सबसे बड़ा ग्रह है राहू संगर्ष के बाद सफलता दिलाता है यह कई महापुरशो की कुंडलियो से सपष्ट है|राहू का 12 वे घर में बैठना बड़ा अशुभ होता है क्योकि यह जेल और बंधन का मालिक है 12वे घर में बैठकर अपनी दशा, अंतरदशा में या तो पागलखाने में या अस्पताल और जेल में जरूर भेजता हैराहू चन्द्र जब भी एक साथ किसी भी खाने में बैठे हुए हो तो चिंता का योग बनाते है| राहु के कारण व्यक्ति को निम्नांकित परेषानियों का सामना करना पड़ता हैं: – 1 नौकरी व व्यवसाय में बाधा हु के वक्त दक्षिण के दरवाज़े का साथ न सिफ माली नुक्सान देगा बल्कि इसका ताकतवार हाथी भी मामली चींटी से मरजाता है लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है कि वे सभी के लिए अशुभ फल देते हों। जिसका राहु अच्छा होता है उसे छप्पर फाड़कर देता है। राहु का राजनीति से भी खास लगाव है। राहु अच्छा हो और सटीक बैठ जाए तो नेता को मंत्री तक बना देता है। ओर सँतरी को कमीश्नर इसकी अनुकूलता में अकस्मात धन प्राप्ति के योग बनते हैं। लाटरी खुलना, पूर्वजों की वसीयत प्राप्त होना आदि अचानक धन लाभ राहू ग्रह कराता हैराहु को हाथी की उपाधि दी गई है। कुंडली के प्रत्येक भाव या खाने अनुसार राहु के शुभ-अशुभ प्रभाव को लाल किताब में विस्तृत रूप से समझाकर उसके उपाय बताए गए हैं।प्रत्येक भाव में राहु की स्थित और सावधानी के बारे में संक्षिप्त और सामान्य जानकारी।अगली पोस्ट मै करूगामित्राप भी अपनी कुंडली निकालें और देखें अगर आप की कुंडली में ऐसे योग हों तोआप किसी अच्छे ज्योतिषाचार्य से संपर्क करें और उपायों द्वारा बुरे योगों के दुशप्रभाव को कम करने का प्रयास करें और अपने जीवन को अधिक से अधिक खुशहाल बनायें। मित्रो अगर आप मुझसे अपनी कुंडली बनवाना क्या दिखाना चाहते हैं तो आप मुझसे संपर्क करें नंबर है0941448132407597718725

सोमवार, 6 मार्च 2017

मित्रो कल मैने राहू पर पोस्ट की थी थोडा ओर वात करते है ज्योतष में राहु को मायावी ग्रह के नाम से भी जाना जाता है तथा मुख्य रूप से राहु मायावी विद्याओं तथा मायावी शक्तियों के ही कारक माने जाते हैं। इसके अतिरिक्त राहु को बिना सोचे समझे मन में आ जाने वाले विचार, बिना सोचे समझे अचानक मुंह से निकल जाने वाली बात, क्षणों में ही भारी लाभ अथवा हानि देने वाले क्षेत्रों जैसे जुआ, लाटरी, घुड़दौड़ पर पैसा लगाना, इंटरनैट तथा इसके माध्यम से होने वाले व्यवसायों तथा ऐसे ही कई अन्य व्यवसायों तथा क्षेत्रों का कारक माना जाता है।यह अकेला ही ऐसा ग्रह है जो सबसे कम समय में किसी व्यक्ति को करोड़पति, अरबपति या फिर कंगाल भी बना सकता है तथा इसी लिए इस ग्रह को मायावी ग्रह के नाम से जाना जाता है। अगर आज के युग की बात करें तो इंटरनैट पर कुछ वर्ष पहले साधारण सी दिखने वाली कुछ वैबसाइटें चलाने वाले लोगों को पता भी नहीं था की कुछ ही समय में उन वैबसाइटों के चलते वे करोड़पति अथवा अरबपति बन जाएंगे। किसी लाटरी के माध्यम से अथवा टैलीविज़न पर होने वाले किसी गेम शो के माध्यम से रातों रात कुछ लोगों को धनवान बना देने का काम भी इसी ग्रह का है।इंटरनैट से जुड़े हुए व्यवसाय तथा इन्हें करने वाले लोग, साफ्टवेयर क्षेत्र तथा इससे जुड़े लोग, तम्बाकू का व्यापार तथा सेवन, राजनयिक, राजनेता, राजदूत, विमान चालक, विदेशों में जाकर बसने वाले लोग, अजनबी, चोर, कैदी, नशे का व्यापार करने वाले लोग, सफाई कर्मचारी, कंप्यूटर प्रोग्रामर, ठग, धोखेबाज व्यक्ति, पंछी तथा विशेष रूप से कौवा, ससुराल पक्ष के लोग तथा विशेष रूप से ससुर तथा साला, बिजली का काम करने वाले लोग, कूड़ा-कचरा उठाने वाले किसी जातक की कुण्‍डली में राहू की दशा या अंतरदशा चल रही हो तो उसे क्‍या समस्‍या आएगी। अपनी कुण्‍डली विश्‍लेषण के दौरान जातक का यह सबसे कॉमन सवाल होता है और किसी भी ज्‍योतिषी के लिए इस सवाल का जवाब देना सबसे मुश्किल काम होता है। इस लेख में हम चर्चा करेंगे कि राहू की मुख्‍य समस्‍याएं क्‍या हैं और जातक का इस पर क्‍या प्रभाव पड़ता है। राहू क्‍या समस्‍या पैदा करता है, यह जानने से पूर्व यह जानने का प्रयास करते हैं कि राहू खुद क्‍या है। समुद्र मंथन की मिथकीय कथा के साथ राहू और केतू का संबंध जुड़ा हुआ है। देवताओं और राक्षसों की लड़ाई का दौर चल ही रहा था कि यह तय किया गया कि शक्ति को बढ़ाने के लिए समुद्र का मंथन किया जाए। अब समुद्र का मंथन करने के लिए कुछ आवश्‍यक साधनों की जरूरत थी, मसलन एक पर्वत जो कि मंथन करे, सुमेरू पर्वत को यह जिम्‍मेदारी दी गई, शेषनाग रस्‍सी के रूप में मंथन कार्य से जुड़े, सुमेरू पर्वत जिस आधार पर खड़ा था, वह आधार कूर्म देव यानी कछुए का था और मंथन शुरू हो गया यह कथा तो आप सभ जानते ही है दरअसल यह कथा हमारे भीतर की है यह साघको समझ मे ही आ सकती है क्योंकि कुंडली जागरण के लिए भी यह कथा मायने रखती है क्या ध्यान में जो डूबते हैं भीतर अलख लगाते हैं उनको भी जह समझ में आती है कुंडली साप के कृति की तरह हमारे शरीर में है मेरु पर्वत से यात्रा शुभ होती है नीचे से ऊपर की ओर राहु को जैसे सर्प कह दिया जाता है और कुंडली भी सर्प की तरह कुडंल मारे मारे भीतर वेठी हुई है और राहु अघेरे का भी का भी प्रतीक है यानि भीतर के अंधेरे में डूबना होगा। और मंथन भीतर जाकर मंथन करना होगा खैर यह बातें थोड़ी लंबी हो जाएंगी।पोस्ट तो फिर कभी यह मैं आपसे यह बातें शेयर करूंगा मिथकीय घटना के इतर देखा जाए तो राहू और केतू वास्‍तव में सूर्य और चंद्रमा के संपात कोणों पर बनने वाले दो बिंदू हैं। पृथ्‍वी पर खड़ा जातक अगर आकाश की ओर देखता है तो सूर्य और चंद्रमा दोनों ही पृथ्‍वी का चक्‍कर लगाते हुए नजर आत हैं। वास्‍तव में ऐसा नहीं है, लेकिन एक ऑब्‍जर्वर के तौर पर यह घटना ऐसी ही होती है। ऐसे में दोनों ग्रहों (यहां सूर्य तारा है और चंद्रमा उपग्रह इसके बावजूद हम ज्‍योतिषीय कोण से इन्‍हें ग्रह से ही संबोधित करेंगे) की पृथ्‍वी के प्रेक्षक के लिए एक निर्धारित गति है। चूंकि पृथ्‍वी उत्‍तरी और दक्षिणी ध्रुवों पर केन्द्रित हो पश्चिम से पूर्व की ओर घूर्णन करती है, सो उत्‍तर की ओर बनने वाले संपात कोण को राहू (नॉर्थ नोड) और दक्षिण की ओर बनने वाले संपात कोण को केतू (साउथ नोड) कहा गया।कहानी के अनुसार राहू केवल सिर वाला भाग है। राहू गुप्‍त रहता है, राहू गूढ़ है, छिपा हुआ है, अपना भेष बदल सकता है, जो ढ़का हुआ वह सबकुछ राहू के अधीन है। भले ही पॉलीथिन से ढकी मिठाई हो या उल्‍टे घड़े के भीतर का स्‍पेस, कचौरी के भीतर का खाली स्‍थान हो या अंडरग्राउण्‍ड ये सभी राहू के कारकत्‍व में आते हैं। राहू की दशा अथवा अंतरदशा में जातक की मति ही भ्रष्‍ट होती है। चूं‍कि राहू का स्‍वभाव गूढ़ है, सो यह समस्‍याएं भी गूढ़ देता है। जातक परेशानी में होता है, लेकिन यह परेशानी अधिकांशत: मानसिक फितूर के रूप में होती है। उसका कोई जमीनी आधार नहीं होता है। राहू के दौर में बीमारियां होती हैं, अधिकांशत: पेट और सिर से संबंधित, इन बीमारियों का कारण भी स्‍पष्‍ट नहीं हो पाता है।कहानी के अनुसार राहू केवल सिर वाला भाग है। राहू गुप्‍त रहता है, राहू गूढ़ है, छिपा हुआ है, अपना भेष बदल सकता है, जो ढ़का हुआ वह सबकुछ राहू के अधीन है। भले ही पॉलीथिन से ढकी मिठाई हो या उल्‍टे घड़े के भीतर का स्‍पेस, कचौरी के भीतर का खाली स्‍थान हो या अंडरग्राउण्‍ड ये सभी राहू के कारकत्‍व में आते हैं। राहू की दशा अथवा अंतरदशा में जातक की मति ही भ्रष्‍ट होती है। चूं‍कि राहू का स्‍वभाव गूढ़ है, सो यह समस्‍याएं भी गूढ़ देता है। जातक परेशानी में होता है, लेकिन यह परेशानी अधिकांशत: मानसिक फितूर के रूप में होती है। उसका कोई जमीनी आधार नहीं होता है। राहू के दौर में बीमारियां होती हैं, अधिकांशत: पेट और सिर से संबंधित, इन बीमारियों का कारण भी स्‍पष्‍ट नहीं हो पाता राहू से पीडि़त व्‍यक्ति जब चिकित्‍सक के पास जाता है तो चिकित्‍सक प्रथम दृष्‍टया य निर्णय नहीं कर पाते हैं कि वास्‍तव में रोग क्‍या है, ऐसे में जांचें कराई जाती है, और आपको जानकर आश्‍चर्य होगा कि ऐसी मरीज जांच रिपोर्ट में बिल्‍कुल दुरुस्‍त पाए जाते हैं। बार बार चिकित्‍सक के चक्‍कर लगा रहे राहू के मरीज को आखिर चिकित्‍सक मानसिक शांति की दवाएं दे देते है राहू बिगड़ने पर जातक को मुख्‍य रूप से वात रोग विकार घेरते हैं, इसका परिणाम यह होता है कि गैस, एसिडिटी, जोड़ों में दर्द और वात रोग से संबंधित अन्‍य समस्‍याएं खड़ी हो जाती हैं।किसी भी जातक की कुण्‍डली में राहू की महादशा 18 साल की आती है। विश्‍लेषण के स्‍तर पर देखा जाए तो राहू की दशा के मुख्‍य रूप से तीन भाग होते हैं। ये लगभग छह छह साल के तीन भाग हैं। राहू की महादशा में अंतरदशाएं इस क्रम में आती हैं राहू-गुरू-शनि-बुध-केतू-शुक्र-सूर्य- चंद्र और आखिर में मंगल। किसी भी महादशा की पहली अंतरदशा में उस महादशा का प्रभाव ठीक प्रकार नहीं आता है। इसे छिद्र दशा कहते हैं। राहू की महादशा के साथ भी ऐसा ही होता है। राहू की महादशा में राहू का अंतर जातक पर कोई खास दुष्‍प्रभाव नहीं डालता है। अगर कुण्‍डली में राहू कुछ अनुकूल स्थिति में बैठा हो तो प्रभाव और भी कम दिखाई देता है। राहू की महादशा में राहू का अंतर अधिकांशत: मंगल के प्रभाव में ही बीत जाता है।राहू में राहू के अंतर के बाद गुरु, शनि, बुध आदि अंतरदशाएं आती हैं। किसी जातक की कुण्‍डली में गुरु बहुत अधिक खराब स्थिति में न हो तो राहू में गुरू का अंतर भी ठीक ठाक बीत जाता है, शनि की अंतरदशा भी कुण्‍डली में शनि की स्थिति पर निर्भर करती है, लेकिन अधिकांशत: शनि और बुध की अंतरदशाएं जातक को कुछ धन दे जाती हैं। इसके बाद राहू की महादशा में केतू का अंतर आता है, यह खराब ही होता है, मैंने आज तक किसी जातक की कुण्‍डली में राहू की महादशा में केतू का अंतर फलदायी नहीं देखा है। राहू में शुक्र कार्य का विस्‍तार करता है और कुछ क्षणिक सफलताएं देता है। इसके बाद का दौर सबसे खराब होता है। राहू में सूर्य, राहू में चंद्रमा और राहू में मंगल की अंतरदशाएं 90 प्रतिशत जातकों की कुण्‍डली में खराब ही होती हैंराहू के आखिरी छह साल सबसे खराब होते हैं, इस दौर में जब जातक ज्‍योतिषी के पास आता है तब तक उसकी नींद प्रभावित हो चुकी होती है, यहां नींद प्रभावित का अर्थ केवल नींद उड़ना नहीं है, नींद लेने का चक्र प्रभावित होता है और नींद की क्‍वालिटी में गिरावट आती है। मंगल की दशा में जहां जातक बेसुध होकर सोता है, वहीं राहू में जातक की नींद हल्‍की हो जाती है, सोने के बावजूद उसे लगता है कि आस पास के वातावरण के प्रति वह सजग है, रात को देरी से सोता है और सुबह उठने पर हैंगओवर जैसी स्थिति रहती है। तुरंत सक्रिय नहीं हो पाता है।राहू की तीनों प्रमुख समस्‍याएं यानी वात रोग, दिमागी फितूर और प्रभावित हुई नींद जातक के निर्णयों को प्रभावित करने लगते हैं। इसका नतीजा यह होता है कि जातक के प्रमुख निर्णय गलत होने लगते हैं। एक गलती को सुधारने की कोशिश में जातक दूसरी और तीसरी गलतियां करता चला जाता है और काफी गहरे तक फंस जाता हैएकमात्र राहू की ही समस्‍याए ऐसी है जो दीर्धकाल तक चलती है। राहू के समाधान के लिए कोई एकल ठोस उपाय कारगर नहीं होता है। ऐसे में जातक को न केवल ज्‍योतिषी की मदद लेनी चाहिए, बल्कि लगातार संपर्क में रहकर उपचारों को क्रम को पूरे अनुशासन के साथ फॉलो करना चाहिए। मेरा निजी अनुभव यह है कि राहू के उपचार शुरू करने के बाद कई जातक जैसे ही थोड़ा आराम की मुद्रा में आते हैं, वे उपचारों में ढील करनी शुरू कर देते हैं, इसका नतीजा यह होता है कि जातक फिर से फिसलकर पहले पायदान पर पहुंच जाता है।अपने सालों के अनुभव में मुझे राहू की समस्‍या वाले जातक ही अधिक मिले हैं। सालों तक हजारो जातकों के राहू के उपचार करते करते मैंने एक पैटर्न बनाया है, जो राहू के बदलते स्‍वभाव और प्रभावों को नियंत्रित कर सकने मे कामयाब साबित हुआ है। ऐसे में प्रभावी उपचार जातक को राहू की पीड़ा से बहुत हद तक बाहर ले के जा सकते है इसके बावजूद भी मैंने हमेशा यही कहा है कि राहू की समस्‍या का 80 प्रतिशत समाधान गारंटी से होता है, राहू की समस्‍या का पूरी तरह समाधान नहीं किया जा सकता, चाहें आप एक हजार ज्‍योतिषियों की सलाह ही क्‍यों न ले लें वाकी कुन्डली मे देख कर कौन सा लग्न है राहु कोन से भाव मे है कितने अ.श का है किसके नछत्तंर मे किसकी राशी मेहै या उप नछत्तर या किसके साथ युती है ओर दृश्टया यह सव वाते गोर करके ही फल देखे Acharya rajesh kumar 07597718725 09414481324 Paid services

रविवार, 5 मार्च 2017

लाल किताब और राहु मित्रों आज बात करते हैं कुंडली मेराहु देव की जब कुन्डली में राहु खराब होता है,तो दिमागी तकलीफ़ें बढ जाती है,बिना किसी कारण के दिमाग में पता नही कितनी टेन्सन पैदा हो जाती है,बिना किसी कारण के सामने वाले पर शक किया जाने लगता है,और जो अपने होते हैं वे पराये हो जाते है,और जो पराये और घर को बिगाडने वाले होते है,उन पर जानबूझ कर विश्वास किया जाता है,घर के मुखिया का राहु खराब होता है,तो पूरा घर ही बेकार सा हो जाता है,संतान अपने कारणो से आत्महत्या तक कर लेती है,पुत्र या पुत्र वधू का स्वभाव खराब हो जाता है,वह अपने शंकित दिमाग से किसी भी परिवार वाले पर विश्वास नही कर पाती है,घर के अन्दर साले की पत्नी,पुत्रवधू,मामी,भानजे की पत्नी,और नौकरानी इन सबकी उपाधि राहु से दी जाती है,कारण केतु का सप्तम राहु होता है,और राहु के खराब होने की स्थिति में इन सब पर असर पडना चालू हो जाता है,राहु के समय में इन लोगों का प्रवेश घर के अन्दर हो जाता है,और यह लोग ही घर और परिवार में फ़ूट डालना इधर की बात को उधर करना चालू कर देते है,साले की पत्नी घर में आकर पत्नी को परिवार के प्रति उल्टा सीधा भरना चालू कर देती है,और पत्नी का मिजाज गर्म होना चालू हो जाता है,वह अपने सामने वाले सदस्यों को अपनी गतिविधियों से परेशान करना चालू कर देती है,उसके दिमाग में राहु का असर बढना चालू हो जाता है,और राहु का असर एक शराब के नशे के बराबर होता है,वह समय पर उतरता ही नही है,केवल अपनी ही झोंक में आगे से आगे चला जाता है,उसे सोचने का मौका ही नही मिलता है,कि वह क्या कर रहा है,जबकि सामने वाला जो साले की पत्नी और पुत्रवधू के रूप में कोई भी हो सकता है,केवल अपने स्वार्थ के लिये ही अपना काम निकालने के प्रति ही अपना रवैया घर के अन्दर चालू करता है,उसका एक ही उद्देश्य होता है,कि राहु की माफ़िक घर के अन्दर झाडू लगाना और किसी प्रकार के पारिवारिक दखलंदाजी को समाप्त कर देना,गाली देना,दवाइयों का प्रयोग करने लग जाना,शराब और तामसी कारणो का प्रयोग करने लग जाना,लगातार यात्राओं की तरफ़ भागते रहने की आदत पड जाना,जब भी दिमाग में अधिक तनाव हो तो जहर आदि को खाने या अधिक नींद की गोलियों को लेने की आदत डाल लेना,अपने ऊपर मिट्टी का तेल या पैट्रोल डालकर आग लगाने की कोशिश करना,राहु ही वाहन की श्रेणी में आता है,उसका चोरी हो जाना,शराब और शराब वाले कामो की तरफ़ मन का लगना,शहर या गांव की सफ़ाई कमेटी का सदस्य बन जाना,नगर पालिका के चुनावों की तरफ़ मन लगना,घर के किसी पूर्वज का इन्तकाल हो जाना और अपने कामों की बजह से उसके क्रिया कर्म के अन्दर शामिल नही कर पाना आदि बातें सामने आने लगती है,जब व्यक्ति इतनी सभी बातो से ग्रसित हो जाता है,तो राहु के लिये वैदिक रीति से काफ़ी सारी बातें जैसे पूजा पाठ और हवन आदि काम बताये जाते है,जाप करने के लिये राहु के मन्त्रों को बताया जाता है,राहु के लिये गोमेद आदि को पहिनने के लिये रत्नोको पहनें का काम बताया जाता हैजो राहु को ओर भी वल देता हैराहु का पहला कार्य होता है झूठ बोलना और झूठ बोलकर अपनी ही औकात को बनाये रखना,वह किसी भी गति से अपने वर्चस्व को दूसरों के सामने नीचा नही होना चाहता है। अधिकतर जादूगरों की सिफ़्त में राहु का असर बहुत अधिक होता है,वे पहले अपने शब्दों के जाल में अपनी जादूगरी को देखने वाली जनता को लेते है फ़िर उन्ही शब्दों के जाल के द्वारा जैसे कह कुछ रहे होते है जनता का ध्यान कहीं रखा जाता है और अपनी करतूत को कहीं अंजाम दे रहे होते है,इस प्रकार से वे अपने फ़ैलाये जाल में जनता को फ़ंसा लेते है. राहु का कार्य अपने प्रभाव में लेकर अपना काम करना होता है,सम्मोहन का नाम भी दिया जाता है,जो लोग अपने प्रभाव को फ़ैलाना चाहते है वे अपने सम्मोहन को कई कारणों से फ़ैलाना भी जानते है,जैसे ही सम्मोहन फ़ैल जाता है लोगों का काम अपने अपने अनुसार चलने लगता है। जैसे पुलिस के द्वारा अक्सर शक्ति प्रदर्शन किया जाता है,उस शक्ति प्रदर्शन की भावना में लोगों के अन्दर पुलिस का खौफ़ भरना होता है,यही खौफ़ अपराधी को अपराध करने से रोकता है,यह खौफ़ नाम का सम्मोहन फ़ायदा देने वाला होता है। इसी प्रकार से अपने कार्यालय आफ़िस गाडी घर शरीर को सजाने संवारने के पीछे जो सम्मोहन होता है वह अपने को समाज में बडा प्रदर्शित करने का सम्मोहन होता है,अपने को बडा प्रदर्शित करना भी शो नामका सम्मोहन राहु की श्रेणी में आता है. राहु की जादूगरी से अक्सर लोग अपने को दुर्घटना में भी ले जाते है,जैसे उनके अन्दर किसी अच्छे या बुरे काम को करने का विचार लगातार दिमाग में चल रहा है,अथवा घर या कोई विशेष टेंसन उनके दिमाग में लगातार चल रही है,उस टेंशन के वशीभूत होकर जहां उनको जाना है उस स्थान पर जाने की वजाय अन्य किसी स्थान पर पहुंच जाते है,अक्सर गाडी चलाते वक्त जब इस प्रकार का कारण दिमाग में चलता है तो अक्समात ही अपनी गाडी या वाहन को मोडना या साइड में ले जाना या वचारों की तंद्रा में खो कर चलना दुर्घटना को जन्म देता है,राहु शराब के रूप में शरीर के खून में उत्तेजना देता है,मानसिक गति को भुलाने का काम करता है लेकिन शरीर पर अधिक दबाब आने के कारण शरीर के अन्दरूनी अंग अपना अपना बल समाप्त करने के बाद बेकार हो जाते है,यह राहु अपने कारणों से व्यक्ति की जिन्दगी को समाप्त कर देता है. लाटरी जुआ सट्टा के समय राहु केवल अपने ख्यालों में रखता है और जो अंक या कार्य दिमाग में छाया हुआ है उस विचार को दिमाग से नही निकलने देता है,सौ मे से दस को वह कुछ देता है और नब्बे का नुकसान करता है. ज्योतिष के मामले में राहु अपनी चलाने के चक्कर में ग्रह और भावों को गलत बताकर भय देने के बाद पूंछने वाले से धन या औकात को छीनने का कार्य करता है. वैसे राहु की देवी सरस्वती है और अपने समय पर व्यक्ति को सत्यता भी देती है लेकिन सरस्वती और लक्ष्मी में बैर है,जहां सरस्वती होती है वहां लक्ष्मी नही और जहां लक्ष्मी होती है वहां सरस्वती नही.जो लोग दोनो को इकट्ठा करने के चक्कर में होते है वे या तो कुछ समय तक अपने झूठ को चलाकर चुप हो जाते है या फ़िर सरस्वती खुद उन्हे शरीर धन और समाज से दूर कर देती है,अथवा किसी लक्ष्मी के कारण से उन्हे खुद राहु के साये में जैसे जेल या बन्दी गृह में अपना जीवन निकालना पडता है. राहु अलग अलग भावों में अपनी अलग अलग शक्ति देता है,अलग अलग राशि से अपना अलग अलग प्रभाव देता है,तुला राशि के दूसरे भाव में अगर राहु विद्यमान है तो इस राशि वाला जातक विष जैसी वस्तुओं को आराम से सेवन कर सकता है,और मृत्यु भी इसी प्रकार के कारकों से होती है,उसके बोलने पर गालियों का समिश्रण होता है,मतलब जो भी बात करता है वह बिच्छू के जहर जैसी लगती है,अगर गुरु या कोई सौम्य ग्रह सहायता में नही है तो अक्सर इस प्रकार के लोग शमशान के कारकों के लिये मशहूर हो जाते है,चिता जलाने का काम घुऐ का रुप देता हैराहु गाने बजाने की विद्या के साथ में अपनी गति भी देता है और मनोरंजन के रूप में भी माना जाता है,जैसे किसी सिनेमा मनोरंजन के काम में महारत हासिल करना,भद्दी बातें कहकर अपने को मनोरंजन की दुनिया में शामिल कर लेना और उन बातों को मजाक में कह देना जो बातें अगर सभ्रांत परिवार में कही जायें तो लोग लड मर राहु खून की बीमारियां और इन्फ़ेक्सन भी देता है,जैसे मंगल नीच के साथ अगर मंगल की युति है तो जातक को लो ब्लड प्रेसर की बीमारी होगी,वही बात अगर उच्च के मंगल के साथ है तो हाई ब्लड प्रेसर की बीमारी होगी,और मंगल राहु के साथ गुरु भी कन्या राशि के साथ या छठे भाव के मालिक के साथ मिल गया है तो शुगर की बीमारी भी साथ में होगी. राहु मंगल गुरु अगर बारहवें भाव में है तो केतु अपने आप छठे भाव में होगा,जातक को समाज में कहा तो जायेगा कि वह बहुत विद्वान है लेकिन छुपे रूप में वह शराब मांस का शौकीन होगा,या फ़िर अस्पताल की नौकरी करता होगा या जेल के अन्दर खाना बनाने का काम करता होगा. तीसरे भाव का राहु अपने पराक्रम और चालाकी के लिये माना जायेगा इस प्रकार के व्यक्ति के अन्दर अपनी छा जाने वाली प्रकृति से कोई रोक नही सकता है,वह जिसके सामने भी बात करेगा,उस पर वह अपने कार्यों से बातों से और अपने शौक आदि से छा जाने वाली प्रकृति को अपनायेगा,इसके साथ बुद्धि के अन्दर केवल अपने को प्रदर्शित करने की कला का ही विकास होगा,उसका जीवन साथी अक्सर समाज से अलग और गृहस्थ जीवन कभी सुखी नही होगा। चौथे भाव का राहु शक की बीमारी को देता है रहने वाले स्थान को सुनसान रखने के लिये माना जाता है,मन के अन्दर आशंकाये हमेशा अपने प्रभाव को बनाये रखती है,यहां तक कि रोजाना के किये जाने वाले कामों के अन्दर भी शंका होती है,जो भी काम किया जाता है उसके अन्दर अपमान मृत्यु और जान जोखिम का असर रहता है,बडे भाई और मित्र के साथ कब अपघात कर दे कोई पता नही होता है,जो भी लाभ के साधन होते है उनके लिये हमेशा शंका वाली बातें ही होती है,माता के लिये अपमान और जोखिम देने वाला घर में रहते हुये अपने प्रयासों से कोई न कोई आशंका को देते रहना उसका काम हो जाता है,लेकिन बाहर रहकर अपने को अपने अनुसार किये जाने वाले कामों में वह सुरक्षित रखता है पिता के लिये कलंक देने वाला होता है. पंचम भाव का राहु संतान और बुद्धि को बरबार रखता है,जल्दी से जल्दी हर काम को करने के चक्कर में वह अपनी विद्या को बीच में तोड लेता है,नकल करने की आदत या चोरी से विद्या वाली बातों को प्रयोग करने के कारण वह बुद्धि का विकास नही कर पाता है,जब भी कभी विद्या वाली बात को प्रकट करने का अवसर आता है कोई न कोई बहाना बनाकर अपने को बचाने का प्रयास करता है पत्नी या जीवन साथी के प्रति वह प्रेम प्रदर्शित नही कर पाता है और आत्मीय भाव नही होने से संतान के उत्पन्न होने में बाधा होती है. छठा राहु बुद्धि के अन्दर भ्रम देता है,लेकिन उसके मित्रों या बडे भाई बहिनो के प्रयास से उसे मुशीबतों से बचा लिया जाता है,अपमान लेने में उसे कोई परहेज नही होता है,कोई भी रिस्क को ले सकता है,किसी भी कुये खाई पहाड से कूदने में उसे कोई डर नही लगता है,वह किसी भी कार्य को करने के लिये भूत की तरह से काम कर सकता है और किसी भी धन को बडे आराम से अपने कब्जे में कर सकता है,गूढ ज्ञान के लिये वह अपने को आगे रखता है,राहु को दवाइयों के रूप में भी माना जाता है,जो दवाइयां शरीर में एल्कोहल की मात्रा को बनाती है और जो दवाइयां दर्द आदि से छुटकारा देती है वे राहु की श्रेणी में आती है. राहु की आशंका कभी कभी बहुत बडा कार्य कर जाती है जैसे कि अपना प्रभाव फ़ैलाने के लिये कोई झूठी अफ़वाह फ़ैला कर अपना काम बना ले जाना. धर्म स्थान पर राहु का रूप साफ़ सफ़ाई करने वाले व्यक्ति के रूप में होता है,धन के स्थान में राहु का रूप आई टी फ़ील्ड की सेवाओं के रूप में माना जाता है,जहां असीमित मात्रा की गणना होती है वहां राहु का निवास होता है.बाहरी लोगों से और पराशक्तियों के प्रति उसे विश्वास होता है,अपने खुद के परिवार के लिये आफ़तें और शंकाये पैदा करता रहता है लालकिताब के अन्दर साधारण सा उपाय दिया गया है,कि घर के अन्दर सभी खोटे सिक्के और न प्रयोग में आने वाले बेकार के राहु वाले सामान जैसे कि झाडू और दवाइयों को बहते हुए पानी के अन्दर प्रवाहित कर देना चाहिये,इस छोटे से उपाय के बाद जब राहत मिल जाती है लाल किताब में वह सब है जो एक आदमी को बीमारियों से निजात दिला सकता है और छोटे से छोटे उपाय उसमें दिए गए हैं यहां तक कि लाल किताब की बुराई करने वाले ज्योतिषी भी उसी से उपाय बताते हैं लाल किताब एक जीवनदायिनी और मै इस को को किताब ना कहकर इसको नयमत कहूंगा इसको वख्शीश कहूंगा आचार्य राजेश

शुक्रवार, 3 मार्च 2017

Holli मित्रो कुछ मित्रो ने होली पर लिखने की माँग की है मित्रो फाल्गुन जहां हिन्दू नव वर्ष का अंतिम महीना होता है तो फाल्गुन पूर्णिमा वर्ष की अंतिम पूर्णिमा के साथ-साथ वर्ष का अंतिम दिन भी होती है। फाल्गुनी पूर्णिमा का धार्मिक रूप से तो महत्व है ही साथ ही सामाजिक-सांस्कृतिक नजरिये से भी बहुत महत्व है। पूर्णिमा पर उपवास भी किया जाता है जो सूर्योदय से आरंभ कर चंद्रोदय तक रखा जाता है। वहीं इस त्यौहार की सबसे खास बात यह है कि यह दिन होली पर्व का दिन होता है जिसे बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में मनाया जाता है और तमाम लकड़ियों को इकट्ठा कर सभी प्रकार की नकारात्मकताओं की होली जलाई जाती है। दिवाली के बाद होली दूसरा बड़ा त्योहार होता है। होली को रंगों के त्योहार के नाम से भी जाना जाता है। होली का त्योहार दो दिन मनाया जाता है, एक दिन होलिका दहन के रुप में और अगले दिन धुलंडी के रुप में। पूरे देश में होली का आनंद इसी दिन लिया जाता है। भारत में इस साल होलिका दहन 12 मार्च को किया जाएगा और 13 मार्च को लोग रंगों के इस त्योहार का आनंद उठाएंगे। होली की कहानी का प्रतीक देखें तो हिरण्यकश्यप पिता है। पिता बीज है, पुत्र उसी का अंकुर है। हिरण्यकश्यप जैसी दुष्टात्मा को पता नहीं कि मेरे घर आस्तिक पैदा होगा, मेरे प्राणों से आस्तिकता जन्मेगी। इसका विरोधाभास देखें। इधर नास्तिकता के घर आस्तिकता प्रकट हुई और हिरण्यकश्यप घबड़ा गया। जीवन की मान्यताएं, जीवन की धारणाएं दांव पर लग गई 'हर बाप बेटे से लड़ता है। हर बेटा बाप के खिलाफ बगावत करता है। और ऐसा बाप और बेटे का ही सवाल नहीं है -हर 'आज' 'बीते कल' के खिलाफ बगावत है। वर्तमान अतीत से छुटकारे की चेष्टा करता है। अतीत पिता है, वर्तमान पुत्र है। हिरण्यकश्यप मनुष्य के बाहर नहीं है, न ही प्रहलाद बाहर है। हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद दो नहीं हैं - प्रत्येक व्यक्ति के भीतर घटने वाली दो घटनाएं हैं। जब तक मन में संदेह है, हिरण्यकश्यप मौजूद है। तब तक अपने भीतर उठते श्रद्धा के अंकुरों को हम पहाड़ों से गिराऐगे, पत्थरों से दबाऐगे, पानी में डुबाऐगे, आग में जलाऐगे- लेकिन हम जला न पाऐगे। जहां संदेह के राजपथ हैं; वहां भीड़ साथ है। जहां श्रद्धा की पगडंडियां हैं; वहां ुहम एकदम अकेले हो जाते है एकाकी। संदेह की क्षमता सिर्फ विध्वंस की है, सृजन की नहीं है। संदेह मिटा सकता है, बना नहीं सकता। संदेह के पास सृजनात्मक ऊर्जा नहीं है। आस्तिकता और श्रद्धा कितनी ही छोटी क्यों न हो, शक्तिशाली होती है। प्रह्लाद के भक्ति गीत हिरण्यकश्यप को बहुत बेचैन करने लगे होंगे। उसे एकबारगी वही सूझा जो सूझता है- नकार, मिटा देने की इच्छा। नास्तिकता विध्वंसात्मक है, उसकी सहोदर है आग। इसलिए हिरण्यकश्यप की बहन है अग्नि, होलिका। लेकिन अग्नि सिर्फ अशुभ को जला सकती है, शुद्ध तो उसमें से कुंदन की तरह निखरकर बाहर आता है। इसीलिए आग की गोद में बैठा प्रह्लाद अनजला बच गया। उस परम विजय के दिन को हमने अपनी जीवन शैली में उत्सव की तरह शामिल कर लिया। फिर जन सामान्य ने उसमें रंगों की बौछार जोड़ दी। बड़ा सतरंगी उत्सव है। पहले अग्नि में मन का कचरा जलाओ, उसके बाद प्रेम रंग की बरसात करो। यह होली का मूल स्वरूप था। इसके पीछे मनोविज्ञान है अचेतन मन की सफाई करना। इस सफाई को पाश्चात्य मनोविज्ञान में कैथार्सिस या रेचन कहते हैं।कोथेरेपी का अनिवार्य हिस्सा होता है मन में छिपी गंदगी की सफाई। उसके बाद ही भीतर प्रवेश हो सकता है।होली जैसे वैज्ञानिक पर्व का हम थोड़ी बुद्धिमानी से उपयोग कर सकें तो इस एक दिन में बरसों की सफाई हो सकती है। फिर निर्मल मन के पात्र में, सद्दवों की सुगंध में घोलकर रंग खेलें तो होली वैसी होगी जैसी मीराबाई ने खेली थी : बिन करताल पखावज बाजै, अनहद की झनकार रे फागुन के दिन चार रे, होली खेल मना रे बिन सुर राग छत्तीसों गावै, रोम-रोम रस कार रे होली खेल मना रे Acharya Rajesh Kumar

गुरुवार, 2 मार्च 2017

मित्रो ज्योतिष यों तो हमेशा लोकप्रिय रहा है लेकिन इन दिनों इसके प्रति कुछ ज्यादा ही लगाव देखा जा रहा है। जब से टीवी पर ज्योतिष और चमत्कारों की चर्चाएं बढ़ी हैं तब से तो ज्योतिष का ग्लैमर ही कुछ विचित्र होता जा रहा है। लेकिन जिस अनुपात में ज्योतिष का वर्चस्व बढ़ा है उस अनुपात में ज्योतिषीय सच्चापन नहीं बढ़ पाया है। ज्योतिष ने सेवा से कहीं आगे बढ़कर धंधे का स्वरूप इख़्तियार कर लिया है। जब से ज्योतिष ने घंधे की चकाचौंध भरी गलियों में प्रवेश कर लिया है तभी से ज्योतिषी और इससे जुड़े सभी क्षेत्रों के लोगों से दैवत्व और दिव्यत्व ने पलायन किया है और इसके स्थान पर बिजनैस टेक्ट और मनी अर्निंग स्टंट फल-फूल रहा है। जब मन में मलीनता आ जाए और ईश्वरीय विद्याओं के जरिये व्यापार का भाव जग जाए तभी से प्राच्यविद्याएं अपना प्रभाव दिखाना छोड़ देती हैं। यही वजह है कि आज ज्योतिषियों की भारी भीड़ और चमक-दमक भरी दुकानों की बेतहाशा बढ़ती संख्या और बाजारों के बीच ज्योतिष से सच्चाई गायब है। भविष्यवाणियां खोटी निकलने लगी हैं और ज्योतिषियों में मत भिन्नता चरम पर है। आस्था और अनास्था के इसी भंवर के बीच वह आम आदमी है जिसकी ज्योतिष शास्त्र के प्रति श्रद्धा है और उसे अज्ञात और भावी के संकेत प्राप्त करने की आतुरता है। इसी श्रद्धा का दोहन ही तो आजकल के ज्योतिषी कर रहे हैं। अधिकतर ज्योतिषी या तो सच्चाई जान सकते नहीं अथवा सच्चाई कहने का अधिकार नहीं है। इन्हें लगता है कि जातक को अच्छी-अच्छी बातें नहीं कही जाएं तो पैसा कैसे निकलेगा। जबकि सच्चा ज्योतिषी वही है जो साफ-साफ बात कहे और उसकी प्रत्येक बात स्पष्ट विचारों से भरी हुई होनी चाहिए न कि अपने स्वार्थ के लिए चिकनी चुपड़ी या गोलमाल। ज्योतिषियों का दायित्व है कि ज्योतिष की साख को बढ़ाने के लिए पूरी प्रामाणिकता के साथ गणित और फलित बताएं और जीवन में शुचिता के साथ ही स्पष्टवादिता कायम रखें।ज्योतिष वैज्ञानिक रहस्यों से भरा गणना पर आधारित विज्ञान है जिसका दुनिया में कोई मुकाबला नहीं। विश्व ब्रह्माण्ड का संविधान वेद है और चारों ज्योतिष चारों वेदों का नेत्र है। ज्योतिष समष्टि और व्यष्टि के लिए कदम-कदम पर उपयोगी है। सकाम हित श्रेष्ठ रश्मियों और श्रेष्ठ समय में करने का ज्ञान यही ज्योतिष ही देता है। ज्योतिष पर निरन्तर शोध और अनुसंधान का नियमित क्रम बने रहना चाहिए। ज्योतिष की मान्यता तभी है जब फलित सटीक और स्पष्ट हो। आज अधिकतर ज्योतिषी जातक का कोई रिकार्ड अपने पास नहीं रखते। जबकि होना यह चाहिए कि वे जिस किसी की जन्मपत्री देखें, उसे कही गई बात को अंकित कर रखें और इसके निष्कर्षों पर चिन्तन करते रहें। इसी से अनुभवों का भण्डार समृद्ध होता है जिसका लाभ समाज को प्राप्त होता है। ज्योतिषियों को चाहिए कि वे आधे अधूरे ज्ञान और पूर्वाग्रहों से ग्रस्त होकर ज्योतिष का कोई काम न करें बल्कि जो कुछ कहें-लिखें, वह ज्योतिषीय ज्ञान और गणना के आधार पर सही और सटीक होना चाहिए। आज एक कुण्डली चार ज्योतिषी देखते हैं और चारों के कथन में भिन्नता होती है और यहीं से शुरू होता है ज्योतिष विज्ञान के प्रति अविश्वास का दौर। इस स्थिति को समाप्त करने की जरूरत है और इसके लिए यह जरूरी है कि ज्योतिष का पूरा पाठ्यक्रम और प्रशिक्षण विधिपूर्वक लिया जाए ताकि जन विश्वास में कमी न आए। इसके साथ ही ज्योतिषियों को अपनी किसी भी प्रकार की गलती को भी स्वीकार करना होगा। इसी प्रकार पंचांगों में भी विभिन्नताओं को दूर करने की जरूरत है। ऐसे में ज्योतिषियों को चाहिए कि वे मिल-बैठ कर चिन्तन करें और ज्योतिष के आधारों को मजबूती दें। ज्योतिष को चमत्कार मानना भूल है क्योंकि यह गणनाओं पर आधारित विज्ञान है। ज्योतिषियों को यह भी चाहिए कि वे ज्योतिष कार्य संपादन में कम्प्यूटर और आधुनिक संचार सुविधाओं का इस्तेमाल करें और ज्योतिषीय अनुसंधानों पर विशेष ध्यान दें। ज्योतिष का विकास तभी संभव है जब इस क्षेत्र से जुड़े विद्वान उदारतापूर्वक आगे आएं और ज्योतिष की सेवा को सर्वोपरि रखकर राजनीति और दुराग्रहों तथा पूर्वाग्रहों से ऊपर उठकर सार्वभौम और व्यापक दृष्टिकोण अपनाते हुए ज्योतिष के विकास पर ध्यान दें। आज देश में समाज-जीवन और सत्ता से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों में रोजाना उतार-चढ़ावों और परिवर्तनों के साथ ही कई अप्रत्याशिक घटनाक्रम अचानक सामने आ जाते हैं। इन सारे हालातों में भावी के बारे में भविष्यवाणी करने में बहुसंख्य ज्योतिषी कतराते रहते हैं और चुप्पी साधे रहते हैं। कुछ दैवीय ऊर्जाओं से सम्पन्न ज्योतिषी जरूर हैं लेकिन वे ज्योतिष की सारी मर्यादाओं और विधाता के विधान में विश्वास रखते हैं। जबकि बहुसंख्य ज्योतिषी अपनी साख बचाने या अपने ज्ञान की अनभिज्ञता को छिपाने के लिए सम सामयिक हालातों पर भविष्यवाणी करने से घबराते हैं। आज देश में कितने ज्योतिषी हैं जो भौगोलिक, सामाजिक, राजनैतिक परिवर्तनों की सम सामयिक और समय पूर्व सटीक भविष्यवाणी कर सकने में समर्थ हैं। इसका जवाब देने का सामर्थ्य किसी में है नहीं। ज्योतिष के नाम पर अधिकांश लोग अधकचरा ज्ञान रखते हैं और अपना धंधा चलाने भर के लिए झूठी-सच्ची मनगढ़ंत बातों और गप्पों का सहारा लेकर जैसे-तैसे अपनी दुकानदारी चला रहे हैं। अगर देश के स्वनामधन्य ज्योतिषियों में इतना दम है तो वे उलुलजुलूल बातों और अपने बेतुके भ्रामक तर्कों की बजाय एकदम स्पष्ट, सटीक और भविष्यवाणी क्यों नहीं कर पा रहे हैं अथवा क्यों नहीं करना चाहते। अधिकांश ज्योतिषियों का धर्म, सदाचार और ईष्टबल से कोई मतलब नहीं रह गया है। सिर्फ प्रोफेशनल की तरह अपने आपको स्थापित कर देने मात्र से ज्योतिष का भला नहीं हो सकता। ‘लगा तो तीर, नहीं तो तुक्का’ वाली बातें अब लोगों को हजम नहीं हो पा रही हैं। जो लोग ज्योतिष क्षेत्र में अपने फन आजमा रहे हैं या जिनकी आजीविका का आधार ही ज्योतिष है उन सभी लोगों को चाहिए कि जनता का विश्वास अर्जित करें और इस बात के लिए अपनी प्रामाणिकता सिद्ध करें कि इनकी वाणी से निकला अथवा इनके ज्योतिषीय ज्ञान से उपजी भविष्यवाणी निश्चय ही खरी निकलती है। अन्यथा इनके पास जमा ज्योतिषीय डिग्रियों और वैध-अवैध ढंग से हड़पे गए प्रमाण पत्रों, सम्मानों और पुरस्कारों का कोई अर्थ नहीं है।

लाल का किताब के अनुसार मंगल शनि

मंगल शनि मिल गया तो - राहू उच्च हो जाता है -              यह व्यक्ति डाक्टर, नेता, आर्मी अफसर, इंजीनियर, हथियार व औजार की मदद से काम करने वा...