रविवार, 28 अप्रैल 2019

गुण मिलान या कुंडली मिलान

गुण मिलान या कुंडली मिलान आज के कंप्यूटर के युग में बहुत सामान्य की बात हो गयी है हर दूसरा जातक अपने कंप्यूटर पर सॉफ्टवेर के माध्यम से कुंडली मिलान कर बोल देता है

की इनके तो 28 गुण मिल गए या 33 गुण मिल गए अब विवाह में कोई व्यवधान नहीं आएगा आगे बात की जा सकती है मंगल दोष को भी अधिकतर ज्योतिष के सॉफ्टवेर बता ही देते है भकुट और नाडी दोष के बारे में भी सभी सॉफ्टवेर में दिया ही होता है एसे में जातक अपने आप में ही संतुष्ट हो जाता है ये अवस्था तब है जब गुण 26 से ऊपर मिले होते है इसके विपरीत यदि कभी 12या 14गुण मिलते है तो जातक आपनी ही बात से पलट जाते है हम कुंडली मिलान को विशेष महत्त्व ही नहीं देते कुंडली कुछ नहीं होती सिर्फ अपनी सोच है एसे में क्या तत्व दर्शन जातक को अपने पार्टनर का सही चुनाव देने में संभव है तो तो आंशिक रूप से खुद को ही छलावा देना हुआ गणितीय आकडे तो हर सॉफ्टवेर से आसानी से निकल आते है कुंडली मिलान इतना आसान नहीं होता जितना की एक जातक समझता है हर विषय को गंभीरता से जब तक न लिया जाये सही उत्तर मिलना आसान नहीं होते एसे में विवाह तो हो जाते है पर कितने समय तक चलेगे ये अपने आप में प्रश्न चिन्ह बन जाता है वाहिक बंधन जीवन का सबसे महत्वपूर्ण बंधन है। विवाह प्यार और स्नेह पर अधारित एक संस्था है। यह वह पवित्र बंधन है, जिसपर पूरे परिवार का भविष्य निर्भर करता है। समान्यत: कुंडली में अष्ट कुट एवं मांगलिक दोष ही देखा जाता है, लेकिन यह जान लेना अनिवार्य है कि कुंडली मिलान की अपेक्षा कुंडली की मूल संरचना अति महत्वपूर्ण है। एक व्यक्ति में बाहरी आकर्षण तो हो सकता है, लेकिन भीरत से वह पत्थर हृदय वाला और स्वार्थी भी हो सकता है, जाहिर है कि कुंडली की विस्तृत व्याख्या अनिवार्य मानी जाती है। कुंडली के बारह भावों में सप्तम भाव दांपत्य का है, इस भाव के अलावे आयु, भाग्य, संतान, सुख, कर्म, स्थान का पूर्णत: विश्लेषण एक सीमा में अनिवार्य है। नवमांश कुंडली सप्तांश, चतुर्विशांश, सप्तविशांश के अलावा रोग के लिए त्रिशांश कुंडली भी देखी जाती है। लड़कों के लिए शुक्र एवं लड़कियों के लिए गुरु कारक ग्रह है, इसकी स्थिति देखना अनिवार्य है। पुन: गुरु से सप्तम, चंद्र से सप्तम एवं सप्तम भाव के अधिपति की शुभ स्थिति देखी जाती है। शुक्र जो की व्यक्तिगत जीवन का करक है उसकी स्थिति देखे. मांगलिक होने पर मंगल की शक्ति भी देखे, कई बार मांगलिक होने पर भी मंगल का बुरा असर नहीं पड़ता क्यूंकि मंगल बलहीन होता है. . संतान भाव की स्थिति और सम्बंधित ग्रहों का अध्ययन भी अलग से करें . विवाह स्थान और सम्बंधित ग्रहों का अध्ययन करे. कुंडली में मौजूद अच्छे योगो का अध्ययन भी करे. दोनों की कुंडली में मौजूद बुरे योगों का अध्ययन भी करें और उसका समाधान निकाले. लग्न की स्थिति का भी पूरा अध्ययन जरुरी है. इसी के साथ चन्द्र कुंडली, नवमांश कुंडली आदि का अध्ययन भी जरुरी है. अतः किसी भी निष्कर्ष पर ऐसे ही मत पहुचे, अच्छे रिश्तो को ऐसे ही मत छोड़ दीजिये. याद रखे –स्वगृही, मित्रगृही या उच्च हो उसे शुभ ग्रह कहते हैं और कारक और अकारक को भी देखना चाहिए आजकल शादी में सिर्फ लड़की का रूप-रंग ही देखा जाता है, जबकि सामान्य कद-काठी और रूप-रंग के बच्चे भी यदि अत्यंत भाग्यशाली हुए, तो घर की स्थिति उत्तरोत्तर अच्छी होती जाती है और घर में चार चांद लग जाते हैं। कई मामलों में मांगलिक दोष भी भंग हो जाता है, लेकिन उसे मांगलिक मान लिया जाता है और शादियां कट जाती हैं।किसी भी कुंडली में हर ग्रह भाव राशि की एक विशेष अवस्था होती है जो जातक की जीवन की प्रकृति का निर्माण करती है एसे में दो जातको की कुंडली को देख कर उसके सामान्य और असामान्य क्रम को देखना और जीवन की अवस्था में बदलव पर दोनों के स्थायित्व को देखने का क्रम ही कुंडली मिलान होता है चंद्र की अवस्था का आकलन ही 36 गुणों में अभिव्यक्त किया गया है जो सही मायेने में सही भी है चंद्र जातक के मन का कारक है चंद्र की विशिष्ट अवस्थाओ के आधार पर दो कुंडलियो में गुण दोषों को देखा जाता है ये सामान्य रूप से बहुत हद तक सही भी है ज्योतिष में मंगल को भी विवाह के समय विशेष रूप से देखा जाता है मंगल के अच्छा होने पर विघ्न कम आते है एसा माना गया है जबकि वास्तविकता कितनी है ये अनुभवी जन ही जानते है इस क्रम में कुछ एसे विषयों को जोड़ना चाहुगा जिसको सामान्य जन नहीं जानते और न ही विवाह के समय उतना विचार करते है जातक की कुंडली में सप्तम भाव जीवन साथी बसका होता है इसके स्वामी का अस्त होना क्रूर ग्रह सूर्य के साथ होना, राहू या केतु के साथ होना सप्तम भाव पर गुरु या शुक्र की द्रष्टि न होना, मंगल या शनि की द्रष्टि होना जातक के वैवाहिक जीवन में नीरसता लाता है हमारे ज्योतिषीय जीवन में अनेकानेक विचित्र अनुभव होते रहे हैं। कुछ महानुभाव ऐसे भी आते हैं, जो कहते हैं कि मेरी कन्या के लिए एक अच्छा रिश्ता आया है। कृपा करके कुण्डली मिला दें। वर-कन्या की कुण्डली मिलाने से उनका आशय केवल इतना होता है कि आप गुण मिलान कर दें,बाकी वेस्वयंनिपटालेगे ये पूरी तरह हास्यपद बात होने के साथ ही उनके अल्पज्ञान का प्रदर्शन भी है।किंतु गांव-गिरांव और कस्बाई इलाकों में महानुभाव पंडितों ने अपने पेशेवर अन्दाज के कारण लोगों को भ्रम में डाला और मेट्रो शहरों के सिलेब्रिट्री ज्योतिर्विदों ने अंधाधुंध कमाई के चक्कर में सच को सामने आने ही नहीं दिया। केवल गुण मिलान के कारण लाखों दाम्पत्य जीवन पूरी तरह बर्बाद हो जाते हैं। छत्तीस गुणों में से कम से कम सोलह गुण मिल गए और वर-कन्या का आंख मूंदकर विवाह सम्पन्न करा दिया जाता है। भोगते तो बेचारे वे हैं जो अब शादी के वचन में व`घ गयै। जन्मकुंडली मिलान करने के पुरा समय लगना चाहिए यदि ज्योतिषाचार्य आपको पांच मिनट में कुंडली मिलान करके दे देते हैं तो यह चिंता का विषय है | सबसे पहले जन्म लग्न से जातक जातिका के चरित्र का पता चलता है | चरित्र सबसे पहले हैं बाकी चीजें बाद की हैं | लग्न के बाद राशी और फिर होरा चक्र देखा जाता है | मांगलिक दोष है या नहीं यह सुनने में आसान लगता है परन्तु कई बार गलती से मांगलिक की अमांगलिक से शादी करवा दी जाती है | मांगलिक योग की तीव्रता में यदि 70 से अधिक अंकों का फर्क हो तो कुंडली मिलान उत्तम नहीं है | जन्मकुंडली का पांचवां घर यह बता सकता है कि भावी पति / पत्नी के भविष्य में संतान सुख है या नहीं | इस पर विचार वे लोग कर सकते हैं जो शादी केवल संतान की इच्छा से करना चाहते हैं | कई बार वंश को आगे बढाने के लिए दुबारा शादी की जाती है | आज भी कुछ लोग ऐसे मिलते हैं जो संतान सुख से वंचित हैं और रजामंदी से दुसरे विवाह के लिए प्रयासरत रहते हैं | अजीब लगेगा परन्तु यह सुनिश्चित कर लें कि एक से अधिक विवाह का योग तो नहीं है ? आयु का विचार ज्योतिष में निषिद्ध है परन्तु मैं मानता हूँ कि यदि कुछ ऐसा दिखाई दे तो संकेत अवश्य दिया जा सकता है | अब मिलान की बारी आती है | कुंडली मिलान करते समय ऊपर लिखे सभी सिद्धांत यदि ध्यान में रखे जाएँ तो उत्त्तम जीवन साथी आपको अवश्य मिलेगा | मैं दावे से कह सकता हूँ कि उपरोक्त बातें सुनिश्चित करने के बाद तलाक जैसी समस्याओं से बचा जा सकता है | यदि हर व्यक्ति ज्योतिष के नियमों का पालन करता है तो आने वाले समय में वैवाहिक समस्याओं पर किसी अदालत में कोई केस नहीं बचेगा |आचार्य राजेश paid service 09414481324 07597718725

सोमवार, 15 अप्रैल 2019

पीपल का वृक्ष और वैज्ञानिक रहस्य

🌹पीपल का वृक्ष देवता कहा जाता है 🌹पीपल का वृक्ष हिन्दू धर्म में सबसे पवित्र माना जाता है. मुख्य रूप से इसको भगवान विष्णु का स्वरूप मानते हैं. इसके पत्तों, टहनियों यहां तक कि कोपलों में भी देवी-देवताओं का वास माना जाता है. कहा जाता है कि पीपल के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और शीर्ष में शिव जी निवास करते हैं.

शाखाओं, पत्तों और फलों में सभी देवताओं का निवास होता है. यह प्राकृतिक और आध्यात्मिक रूप से इतना महत्वपूर्ण है कि भगवान कृष्ण गीता में कहते हैं कि, "वृक्षों में मैं पीपल हूं". वैज्ञानिक रूप से पीपल इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह बहुत ऑक्सीजन पैदा करता है.

हिन्दू धर्म में पीपल के पेड़ का बहुत महत्व होता है. इसे न केवल धर्म संसार से जोड़ा गया है, बल्कि वनस्पति विज्ञान और आयुर्वेद के अनुसार भी पीपल का पेड़ कई तरह से फायदेमंद माना गया है. लुकमान के जीवन मे उल्‍लेख है कि एक आदमी को उसने भारत भेजा आयुर्वेद की शिक्षा के लिए और उससे कहा कि तू बबूल के वृक्ष के नीचे सोता हुआ भारत पहुच। और किसी दूसरे वृक्ष के नीचे न तो आराम करना और न ही सोना। वह आदमी जब तक भारत आया, क्षय रोग से पीड़ित हो गया था। कश्‍मीर पहुंचकर उसने पहले चिकित्‍सक को कहा कि मैं तो मरा जा रहा हूं। मैं तो सीखने आया था आयुर्वेद, अब सीखना नहीं है। सिर्फ मेरी चिकित्‍सा कर दें। मैं ठीक हो जाऊं तो अपने घर वापस लोटू। उस वैद्य न उससे कहा, तू किसी विशेष वृक्ष के नीचे सोता हुआ तो नहीं आया?

उस आदमी ने तपाक से कहा: हां मुझे मेरे गुरु ने आज्ञा दी थी कि तू बबूल के वृक्ष के नीचे सोता हुआ जाना।

वह वैद्य हंसा। उसने कहा, तू कुछ मत कर। तू अब नीम के वृक्ष के नीचे सोता हुआ वापस लौट जा।‘’ वह नीम के वृक्ष के नीचे सोता हुआ वापस लौट गया। वह जैसा स्‍वास्‍थ चला था, वैसा स्‍वास्‍थ लुकमान के पास पहुंच गया।

लुकमान ने उससे पूछा: ‘’तू जिन्‍दा लौट आया, अब आयुर्वेद में जरूर कोई राज है।"

उसने कहा: ‘लेकिन मैंने कोई चिकित्‍सा नहीं की।'

लुकमान ने कहा: इसका कोई सवाल नहीं है। क्‍योंकि मैंने तुझे जिस वृक्ष के नीचे सोते हुए भेजा था। तू जिन्‍दा लौट नहीं सकता था। तू लौटा कैसे। क्‍या किसी और वृक्ष ने नीचे सोत हुआ लौटा है।

उसने कहा: ‘ मुझ आज्ञा दी कि अब बबूल से बचूं। और नीम के नीचे सोता हुआ लौट जाऊं। तो लुकमान ने कहा कि वह भी जानते है।असल में बबूल सक-अप करता है एनर्जी को। आपकी जो एनर्जी है, आपकी जो प्राण ऊर्जा है, उसे बबूल पीता है। बबूल के नीचे भूलकर मत सोना। और अगर बबूल की दातुन की जाती रही है तो उसका कुल कारण इतना है कि बबूल की दातुन में सर्वाधिक जीवन एनर्जी होती है। वह आपके दांतों को फायदा पहुंचा देती है। क्‍योंकि वह पाता रहता है। जो भी निकलेगा पास से वह उसकी एनर्जी पी लेता है। नीम आपकी एनर्जी नहीं पीता है। बल्‍कि अपनी एनर्जी आपको दे देता है। अपनी ऊर्जा आप पर उड़ेल देता है।लेकिन पीपल के वृक्ष के नीचे भी मत सोना। क्‍योंकि पीपल का वृक्ष ज्‍यादा एनर्जी उड़ेल देता है कि उसकी वजह से आप बीमार पड़ जाएंगे। पीपल का वृक्ष सर्वाधिक शक्‍ति देने वाला वृक्ष है। इसलिए यह हैरानी की बात नहीं है कि पीपल का वृक्ष बोधि-वृक्ष बन गया, उसके नीचे लोगों को बुद्धत्‍व मिला। उसका कारण है कि वह सर्वाधिक शक्‍ति दे पाता है। वह अपने चारों और से शक्‍ति आप पर लुटा देता है। लेकिन साधारण आदमी उतनी शक्‍ति नहीं झेल पाएगा। सिर्फ पीपल अकेला वृक्ष है पृथ्‍वी पर जो रात में भी और दिन में भी पूरे समय शक्‍ति दे रहा है। इसलिए उसको देवता कहा जाने लगा। उसकी और कोई कारण नहीं है। सिर्फ देवता ही हो सकता है जो ले न और देता ही चला जाए। लेता नहीं, लेता ही नहीं देता ही चला जाता है।


यह जो आपके भीतर प्राण ऊर्जा है, इस प्राण-ऊर्जा को…यही आप है

गुरुवार, 11 अप्रैल 2019

महामृत्युंजय मंत्र


महामृत्युंजय मंत्र ऋग्वेद का एक श्लोक है.शिव को मृत्युंजय के रूप में समर्पित ये महान मंत्र ऋग्वेद में पाया जाता है.स्वयं या परिवार में किसी अन्य व्यक्ति के अस्वस्थ होने पर मेरे पास अक्सर बहुत से लोग इस मन्त्र की और इसके जप विधि की जानकारी प्राप्त करने के लिए आते हैं. इस महामंत्र के बारे में जहांतक मेरी जानकारी है,वो मैं पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ महामृत्युंजय गायत्री संजीवनी मंत्र ऊँ हौं जूं स: ऊँ भूर्भुव: स्व: ऊँ त्रयंबकंयजामहे ऊँ तत्सर्वितुर्वरेण्यं ऊँ सुगन्धिंपुष्टिवर्धनम ऊँ भर्गोदेवस्य धीमहि ऊँ उर्वारूकमिव बंधनान ऊँ धियो योन: प्रचोदयात ऊँ मृत्योर्मुक्षीय मामृतात ऊँ स्व: ऊँ भुव: ऊँ भू: ऊँ स: ऊँ जूं ऊँ हौं ऊँ अक्सर हम लोग घर मे ईसका पाठ करवाते है यातो विमारी से छुटकारा पाने के लिऐ या गृह पिङा शांत करने के लिऐ मित्रो पर वात फिर भी नही वनती कभी सोचा है आपने इस मंत्र का फल क्यो नही मिलता हजारो रुपऐ खर्च करने के वाद भी कई कारण है मित्रो यह विघा मुझे वहुत कठीन प्रयास के वाद ऐक पहुचे हुऐ सिद्ध तपस्वी योगी जी से मिली यह मेरी खुशाकिस्मती है पहला कारण इसमें ऐक वीज मंत्र- कम है यानी पासवर्ङ छुपा दिया गया जो जानकारी कर्मकांड करने वाले पंङित ओर पुजारी लोगो को पता नही दुसरा इसमें आचरन की शुद्धि तथा तपोवल की वहुँत जरुरत है तीसरा खुद की सिद्दि जी यह मंत्र जव तक किसा का सिद्द नही तव तक काम नही करेगा वस आपको तसल्ली हो जाती है कि आपने सवा लाख का जाप करवा लिया अव हमारे योगीयो ने वो वीज इस लिऐ छुपा दिया क्योकि इस मंत्र मे वहुँत शक्ति है ओर इसका गलत प्रयोग भी हो सकता है दुसरा कारण शांत वातावरन ओर ऐकान्त या घ्यान लग जाऐ ओर यह सव रात के समय ही संभव है पुजारी लोग सिर्फ कर्मकांङ पर ही घ्यान देते है वस ओर कुछ नही यह मंत्र जाप मानसिक ओर घ्यान से सम्वघित है पर कलयुग का वोलवाला है दोस्तो सच ना तो कोई सुनना चाहता है ना मानना पुरी पोस्ट पङ कर कुछ लोगो को वुरा लग सकता है पर सच तो सच ही है वाते तो ओर भी इसके सम्वन्घ मे पर आज नही आचार्य राजेश

सिद्धकुंजिकास्तोत्रम

: सिद्धकुंजिकास्तोत्रम ****** स्वयं बाबा भोलेनाथ ने इस भूलोक में ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त करने के लिए एक महाकुंजिका स्तोत्र की रचना अपने मुख से की । जो भक्त इस मंत्र को नित्य उनका ध्यान करके पढ़ेगा, उसे इस संसार में धन-धान्य, समृद्धि, सुख-शांति और निर्भय जीवन व्यतीत करने के समस्त साधन प्राप्त होंगे। यह एक गुप्त मंत्र है।

 इसके पाठ से भक्त के ऊपर किया हुआ समस्त व्यभिचार कर्म स्वतः ही नष्ट हो जाते हैं | इसके पाठ से मारण, मोहन, वशीकरण, स्तम्भन और उच्चाटन आदि उद्देश्यों की भी पूर्ति होती है। इसके पाठ से सम्पूर्ण दुर्गाशप्तशती के पाठ का फल प्राप्त होता है | यह मंत्र कुछ इस तरह हैः--- शिव उवाच शृणु देवी प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम | येन मन्त्रप्रभावेण चंडीजापः शुभो भवेत || १ || न कवचं नार्गालास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम | न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम || २ || कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत | अति गुह्यतरं देवी देवानापि दुर्लभम || ३|| गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वती | मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम | पाठमात्रेण संसिद्ध्येत कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम || ४ || अथ मन्त्रः -- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चमुण्डायै विच्चे।। ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं स: ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।। नमस्ते रूद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनी । नम: कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनी ।। नमस्ते शुम्भहन्त्रयै च निशुम्भासुरघातिनि। जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरूष्व मे । ऐंकारी सृष्टिरूपायै, ह्रींकारी प्रतिपालिका।। ३ || क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोस्तु ते । चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी। विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि ।। धां धीं धूं धूर्जटे: पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी । क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरू ।। हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी। भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नम: ।। अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरू कुरू स्वाहा ।। पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा ।। म्लां म्लीं, म्लूं मूल विस्तीर्ण कुन्जिकाए नमो नमः सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरूष्व मे ।। इदं तु कुंजिका स्तोत्रं मन्त्रजागर्तिहेतवे | अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वती || यस्तु कुंजिकया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत् । न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा ।।... कम से कम 20 बार पहले बोल चुका फिर कहता हूं इस मां के कुंजिका स्तोत्र के 21 पाठ रोज करना शुरू कर दें फिर इसका प्रभाव 3 महीने के बाद दिखना शुरु हो जाएगा जय माता दी

सोमवार, 8 अप्रैल 2019

तंत्र-विद्या (Tantra)

https://youtu.be/rLabGPgeiFUतंत्र हमारे प्राचीन हिन्दु-शास्त्रों में कुंडलिनी साधना' का उल्लेख आता है। ऐसे प्राचीन ग्रंथों में साधना के कई मार्ग दिखाए गए हैं। हमारे ऋषि-मुनियों ने हमारे शरीर के भीतर छह चक्रों की खोज की थी। वे छह चक्र क्रमशः मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्धि तथा आज्ञा चक्र हैं। मूलाधार चक्र में एक सर्पिणी ढाई कुंडल मारकर बैठी रहती है, जिसे कुंडलिनी कहते हैं। हमारे मेरुदण्ड में तीन मुख्य नाडियाँ होती हैं, इडा, पिंगला और सुषुम्ना। जैसे-जैसे योगाभ्यास द्वारा जब कुंडलिनी जागृत होकर इन छह चक्रों का भेदन करती हुई आगे बढ़ती है, वैसे-वैसे साधक को तरह-तरह की सिद्धियाँ प्राप्त होती जाती है। अंत में कुंडलिनी आज्ञा चक्र को भेदते हुए सहस्रार बिंदुजिसे कुछ साघक सातव चक्र पर पहुँच जाती है तो वहाँ साधक को आलौकिक ज्ञान की प्राप्ति होने लगती है. यही एक बार इंसान की ऊर्जा सहस्रार तक पहुँच जाती है,
www.acharyarajesh.in तो वह पागलों की तरह परम आनंद में झूमता है। अगर आप बिना किसी कारण ही आनंद में झूमते हैं, तो इसका मतलब है कि आपकी ऊर्जा ने उस चरम शिखर को छू लिया है।दरअसल, किसी भी आध्यात्मिक यात्रा को हम मूलाधार से सहस्रार की यात्रा कह सकते हैं। यह एक आयाम से दूसरे आयाम में विकास की यात्रा है, इसमें तीव्रता के सात अलग-अलग स्तर होते हैं। आपकी ऊर्जा को मूलाधार से आज्ञा चक्र तक ले जाने के लिए कई तरह की आध्यात्मिक प्रक्रियाएं और साधनाएं हैं, लेकिन आज्ञा से सहस्रार तक जाने के लिए कोई रास्ता नहीं है। कोई भी एक खास तरीका नहीं है। आपको या तो छलांग लगानी पड़ती है या फिर आपको उस गड्ढे में गिरना पड़ता है, जो अथाह है, जिसका कोई तल नहीं होता। इसे ही ‘ऊपर की ओर गिरना‘ कहते हैं। योग में कहा जाता है कि जब तक आपमें ऊपर की ओर गिरने’ की ललक नहीं है, तब तक आप वहां पहुँच नहीं सकते।यही वजह है कि कई तथाकथित आध्यात्मिक लोग इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि शांति ही परम संभावना है, क्योंकि वे सभी आज्ञा में ही अटके पडे़ हैं। वास्तव में शांति परम संभावना नहीं है। आप आनंद में मग्न हो सकते हैं, इतने मग्न कि पूरा विश्व आपके अनुभव और समझ में एक मजाक जैसा लगने लगता है। जो चीजें दूसरों के लिए बड़ी गंभीर है, वह आप के लिए एक मजाक होती है।लोग अपने मन को छलांग के लिए तैयार करने में लंबे समय तक आज्ञा चक्र पर रुके रहते हैं। यही वजह है कि आध्यात्मिक परंपरा में गुरु-शिष्य के संबधों को महत्व दिया गया है। उसकी वजह सिर्फ इतनी है कि जब आपको छलांग मारनी हो, तो आपको अपने गुरु पर अथाह विश्वास होना चाहिए। 99.9 फीसदी लोगों को इस विश्वास की जरूरत पड़ती है, नहीं तो वे छलांग मार ही नहीं सकते। यही वजह है कि गुरु-शिष्य के संबंधों पर इतना महत्व दिया गया है, क्योंकि बिना विश्वास कोई भी कूदने को तैयार नहीं होगा।

रविवार, 7 अप्रैल 2019

नवरात्र

आज नवरात्रो के इस महान पुनीत पर आप सबको एक गुरु या मित्र् के नाते एक गुरु-मन्त्र दे रहा हूँ बस मात्र आप इतना करिये घर में पूजा के स्थान पर माँ दुर्गाजी का यन्त्र स्थापित कर जल से स्नान , हल्दी से तिलक , अक्षत-पुष्प अर्पित कर घी का दीपक प्रज्ज्वलित कर प्रातः सूर्योदय के साथ नवरात्र भर निम्न मन्त्र का 1 माला जप क देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि में परम् सुखम् | रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जही || या दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि || दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या | सर्वोपकारकारणाय सदाSSर्दचित्ता || 9 दिन बाद इसका प्रभाव आप स्वयं अनुभव करेगे || मैं नववर्ष के उपलक्ष में आप सभी को स्वस्थ रहने दीर्घायु यशस्वी धन-धान्य ऐशर्व्य सम्पन्न होने सद्गृहस्थ अच्छे पुत्र अच्छे पति अच्छे भाई आदि होने की कामना करता हूँ मेरा आशीर्वाद आपके साथ है आचार्य राजेशwww.acharyarajesh.in

नव दुर्गा मां

https://youtu.be/rLabGPgeiFUआप भी पङे ओर लाभ उठाऐ दुर्गा दुखों का नाश करने वाली देवी है। दुर्गा की इन नौ शक्तियों को जागृत करने के लिए दुर्गा के 'नवार्ण मंत्र' का जाप किया जाता है।

इसलिए नवरात्रि में जब उनकी पूजा आस्था, श्रद्धा से की जाती है तो उनकी नौ शक्तियां जागृत होकर नौ ग्रहों को नियंत्रित कर देती हैं। फलस्वरूप प्राणियों का कोई अनिष्ट नहीं हो पाता। दुर्गा की इन नौ शक्तियों को जागृत करने के लिए दुर्गा के 'नवार्ण मंत्र' का जाप किया जाता है। नव का अर्थ 'नौ' तथा अर्ण का अर्थ 'अक्षर' होता है। अतः नवार्ण नौ अक्षरों वाला वह मंत्र है । नवार्ण मंत्र- 'ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चै ।' नौ अक्षरों वाले इस नवार्ण मंत्र के एक-एक अक्षर का संबंध दुर्गा की एक-एक शक्ति से है और उस एक-एक शक्ति का संबंध एक-एक ग्रह से है। नवार्ण मंत्र के नौ अक्षरों में पहला अक्षर ' ऐं ' है, जो सूर्य ग्रह को नियंत्रित करता है। ऐं का संबंध दुर्गा की पहली शक्ति शैलपुत्री से है, जिसकी उपासना 'प्रथम नवरात्रि' को की जाती है। दूसरा अक्षर ' ह्रीं ' है, जो चंद्रमा ग्रह को नियंत्रित करता है। इसका संबंध दुर्गा की दूसरी शक्ति ब्रह्मचारिणी से है, जिसकी पूजा दूसरे नवरात्रि को होती है। तीसरा अक्षर ' क्लीं ' है, जो मंगल ग्रह को नियंत्रित करता है।इसका संबंध दुर्गा की तीसरी शक्ति चंद्रघंटा से है, जिसकी पूजा तीसरे नवरात्रि को होती है। चौथा अक्षर 'चा' है जो बुध को नियंत्रित करता है। इनकी देवी कुष्माण्डा है जिनकी पूजा चौथे नवरात्री को होती है। पांचवां अक्षर 'मुं' है जो गुरु ग्रह को नियंत्रित करता है। इनकी देवी स्कंदमाता है पांचवे नवरात्रि को इनकी पूजा की जाती है। छठा अक्षर 'डा' है जो शुक्र ग्रह को नियंत्रित करता है। छठे नवरात्री को माँ कात्यायिनी की पूजा की जाती है। सातवां अक्षर 'यै' है जो शनि ग्रह को नियंत्रित करता है। इस दिन माँ कालरात्रि की पूजा की जाती है। आठवां अक्षर 'वि' है जो राहू को नियंत्रित करता है । नवरात्री के इस दिन माँ महागौरी की पूजा की जाती है। नौवा अक्षर 'च्चै ' है। जो केतु ग्रह को नियंत्रित करता है। नवरात्री के इस दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है।

शुक्रवार, 5 अप्रैल 2019

महिमा गुरु की

https://youtu.be/5QlK8Oa_lmkइस दुनिया में हर एक चीज़ जो दी जाती है, वह कम होती है, और सिर्फ ज्ञान ही देने से बढ़ता है! वैसा स्वभाव है। सिर्फ ज्ञान ही! दूसरा कुछ भी नहीं। दूसरा सबकुछ तो घटता है। मुझे एक मित्र कहता है कि, 'आप जितना जानते हैं उतना क्यों कह देते हैं? थोड़ा कुछ डिब्बी में नहीं रखते?' मैंने कहा, 'अरे, देने से तो बढ़ता है! मेरा बढ़ता है और उसका भी बढ़ता जाता है, तो क्या नुकसान होता है जी हां ज्ञान ज्ञान का कारक गुरु है तो फिर हम आज गुरु की ही बात करेंगे गुरु ही ब्रह्मा है गुरु ही विष्णु 

है गुरु ही महेश्वर है,गुरु ही साक्षात दिखाई देने वाला ब्रह्म है तो गुरु को क्यों नही माना जाये। वैसे पूजा गुरु की ब्रह्मा के रूप में की जाती है,और गुरु के रूप में चलते फ़िरते धार्मिक लोगों को उनकी जाति के अनुसार धर्म कर्म करवाने वाले लोग जिन्हे हिन्दू पंडित कहते है मुसलमान मौलवी कहते है ईशाई पादरी कहते है। गुरु कोई बनावटी काम नही करता है वह जन्म से ही रूहानी कार्य करने के लिये अपने को आगे रखता है। वह अपनी हवा को चारों तरफ़ फ़ैलाने की कार्यवाही करता है,पहला गुरु पिता होता है जिसने अपने बिन्दु को माता के गर्भ के द्वारा शरीर रूप में परिवर्तित किया है दूसरा गुरु संसार का हर रिस्ता है जो कुछ न कुछ सिखाने के लिये अपना धर्म निभाता है वह रिस्ता अगर दुश्मनी का भी है तो भी लाभकारी होता है कि उससे दुश्मनी के गुण धर्म भी सीखने को मिलते है,तीसरा गुरु अपना खुद का दिमाग होता है जो समय पर अपने ज्ञान की समिधा से जीवन के लिये अपनी सुखद या दुखद अनुभूति को प्रदान करता है। बाकी के गुरु स्वार्थ के लिये अपना काम करते है कोई घर्म को बढाने के लिये और कोई अपनी संस्था के विकास के लिये मायाजाल फ़ैलाने का काम करते है। गुरु के अन्दर की शक्ति एक हाकिम जैसी होती है यानी जैसा हुकुम गुरु ने दिया उसी के अनुसार सभी काम होने लगे,बिना गुरु के सांस लेना भी दूभर होता है कारण गुरु ही हवा का कारक है और सांस बिना गुरु के नही ली जा सकती है। धातुओं मे गुरु को उसी धातु को उत्तम माना जाता है

ज्योतिष में अगर गुरु को देखा जाता है तो पहले भाव में सिंहासन पर बैठा साधु ही माना जाता है उसके पास चाहे कुछ भी हो लेकिन उसके अन्दर अहम नही होता है और न ही वह दिखावा करता है,दूसरे भाव में संसार के लिये तो वह गुरु होता है लेकिन अपने लिये वह हमेशा फ़कीर ही रहता है तीसरा भाव गुरु को खानदान का मुखिया तो बना देता है लेकिन अपने ही बच्चे उसका आदर नही करते है,चौथा गुरु रखता तो राजा महाराजा की तरह से लेकिन अपन को कभी स्थिर नही रहने देता है,पांचवा गुरु स्कूल के मास्टर जैसा होता है कहीं भी गल्ती देखी और अपनी विद्या को बिखेरना शुरु कर देता है कितने ही गालियां देते जाते है और कितनी ही सिर को टेकते जाते है उसे गालियों से और सिर टेकने से कोई फ़र्क महसूस नही होता है। छठा गुरु जब भी बुलायेगा तो बुजुर्गों को ही मेहमान के रूप में बुलायेगा कभी भी जवान लोगों से दोस्ती नही करता है,सातवां गुरु रहेगा हमेशा निर्धन ही लेकिन वह कितना ही जवान हो अपने को बुजुर्गों जैसा ही शो करेगा,आठवां गुरु बच्चे को भी बूढों की बाते करते हुये देख कर खुस होने वाला होता है,नवां गुरु घर में सबसे बडा होगा मगर यह शर्त नही है कि वह अपने ही खून का रिस्तेदार है या कहीं से आकर टिका हुआ व्यक्ति है। दसवां गुरु खतरनाक होता है अपने बाप की खराब आदतों की बजह से दूसरे ही बचपन को जवानी तक खींच कर ले जाने वाले होते है,ग्यारहवा गुरु बिना बुलाये ही मेहमान बनकर आने वाला माना जाता है उसे मान अपमान की चिन्ता नही होती है उसे केवल अपने स्वार्थ से मतलब होता है,कहीं भी दिक्कत आने पर पतली गली से निकलने में अपनी भलाई समझता है,बारहवां गुरु अपने परिवार के लिये बेकार माना जाता है उसे अपने शरीर की भी चिन्ता नही रहती है और मिल जाये तो रोज लड्डू खाये नही तो नमक रोटी से भी गुजारा चला ले,बच्चे हो तो भी बिना बाप जैसे बच्चे दिखाई देते है।

लाल का किताब के अनुसार मंगल शनि

मंगल शनि मिल गया तो - राहू उच्च हो जाता है -              यह व्यक्ति डाक्टर, नेता, आर्मी अफसर, इंजीनियर, हथियार व औजार की मदद से काम करने वा...