शनिवार, 31 दिसंबर 2016

*बुद्ध आदित्य योग पहले तो आप योग का नाम ही पढिये। बुद्ध आदित्य योग याने बुद्ध पहले और बादमे आदित्य याने सूर्य याने कुंडली में बुध पहले तो सूर्य से डिग्रीकली(12")अंस जेसा आगे हो ।ये एक नियम है। दूसरा नियम बुद्ध आदित्य योग फक्त बुद्ध ,सूर्य और सूर्य की उच्च की राशि में ही ये योग बनता है।याने 3-मिथुन,6-कन्या,5-सिंह और 1-मेष.ये राशि में हो तोहि ये योग बनता है।

काली मंत्र काली मां दुर्गा का ही एक स्वरुप है। मां दुर्गा के इस महाकाली स्वरुप को देवी के सभी रुपों में सबसे शक्तिशाली माना जाता है। दसमहाविद्याओं में काली का पहला स्थान माना जाता है। दुष्ट, अभिमानी राक्षसों के संहार के लिए मां काली को जाना जाता है। अक्सर काली की साधना सन्यासी या तांत्रिक करते ही करते हैं लेकिन मां काली के कुछ मंत्र ऐसे भी हैं जिनका जाप कर कोई भी साधक अपने जीवन के संकटों को दूर कर सकता है। 22 अक्षरी श्री दक्षिण काली मंत्र ॐ क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं स्वाहा॥ इस मंत्र के जरिये दक्षिण काली का आह्वान किया जाता है। शत्रुओं के विनाश के लिए साधक इस मंत्र के जरिये मां काली की साधना करते हैं व सिद्धि प्राप्त करते हैं। तंत्र विद्या में मां काली की साधना के लिए यह मंत्र काफी लोकप्रिय है। इस मंत्र का तात्पर्य है अर्थ है कि परमेश्वरी स्वरुप जगत जननी महाकाली महामाया मां मेरे दुखों को दूर करें। शत्रुओं का नाश कर मां अज्ञानता का अंधकार मिटाकर ज्ञान का प्रकाश हो। वैसे भी मां काली ज्ञान, मोक्ष तथा शत्रु नाश करने की अधिष्ठात्री देवी हैं। इनकी कृपा से समस्त दुर्भाग्य दूर हो जाते हैं एकाक्षरी काली मंत्र ॐ क्रीं यह मां काली का एकाक्षरी मंत्र है। इसका जप मां के सभी रूपों की आराधना, उपासना और साधना में किया जा सकता है। मां काली के इस एकाक्षरी मंत्र को मां चिंतामणि काली का विशेष मंत्र भी कहा जाता है। तीन अक्षरी काली मंत्र ॐ क्रीं ह्रुं ह्रीं॥ मां काली की साधना व उनके प्रचंड रुपों की आराधना के लिए यह तीन अक्षरी मंत्र एक विशिष्ट मंत्र है। एकाक्षरी व त्रयाक्षरी मंत्रों को तांत्रिक साधना के मंत्र के पहले और बाद में संपुट की तरह भी लगाया जा सकता है। पांच अक्षरी काली मंत्र ॐ क्रीं ह्रुं ह्रीं हूँ फट्॥ माना जाता है कि इस पंचाक्षरी मंत्र का जाप प्रतिदिन प्रात:काल में 108 बार किया जाये तो मां काली साधक के सभी दुखों का निवारण करके उसके यहां धन-धान्य की वृद्धि करती हैं। पारिवारिक शांति के लिए भी इस मंत्र का जप किया जाता है। षडाक्षरी काली मंत्र ॐ क्रीं कालिके स्वाहा॥ इस षडाक्षरी मंत्र का जप सम्मोहन आदि तांत्रिक सिद्धियों के लिए किया जाता है। यह मंत्र तीनों लोकों को मोहित करने वाला है। सप्ताक्षरी काली मंत्र ॐ हूँ ह्रीं हूँ फट् स्वाहा॥ यह मंत्र भी धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति के लिए यह मंत्र कारगर माना जाता है। श्री दक्षिणकाली मंत्र ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रुं ह्रुं क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिणकालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रुं ह्रुं ह्रीं ह्रीं॥ तांत्रिक इस मंत्र के जरिये दक्षिण काली की साधना कर सिद्धि प्राप्ति की कामना करते हैं। यदि आपको शत्रुओं का भय सता रहा है तो आप भी अपने गुरु के मार्गदर्शन में इस मंत्र का जाप कर सकते हैं। श्री दक्षिणकाली मंत्र क्रीं ह्रुं ह्रीं दक्षिणेकालिके क्रीं ह्रुं ह्रीं स्वाहा॥ यह भी दक्षिण काली का एक प्रचलित मंत्र है। रोग दोष आदि को दूर करने के लिए इस मंत्र से साधना करें। मां काली शीघ्र कृपा करती हैं। श्री दक्षिणकाली मंत्र ॐ ह्रुं ह्रुं क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं दक्षिणकालिके ह्रुं ह्रुं क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं स्वाहा॥ इस मंत्र में भी विभिन्न बीज मंत्रों को सम्मिलित किया गया है जिससे मंत्र और अधिक शक्तिशाली हो जाता है। मां काली को शीघ्र प्रसन्न करने के लिए तांत्रिक या सन्यासी इस मंत्र के द्वारा मां काली की साधना करते हैं। श्री दक्षिणकाली मंत्र ॐ क्रीं क्रीं क्रीं ह्रुं ह्रुं ह्रीं ह्रीं दक्षिणकालिके स्वाहा॥ यह काली माता का एक विशिष्ट मंत्र है इसका प्रयोग भी तांत्रिक साधना में किया जाता है। भद्रकाली मंत्र ॐ ह्रौं काली महाकाली किलिकिले फट् स्वाहा॥ मां भद्रकाली के इस मंत्र का प्रयोग शत्रुओं को वश में करने के लिये किया जाता है। शत्रुओं के तीव्र विनाश के लिये मां भद्रकाली की साधना की जाती है। मां भद्रकाली को धर्म, कर्म और अर्थ की सिद्धी देने वाली माना जाता है। साधक जिस भी कामना से भद्रकाली की साधना करता है, उनकी उपासना करता है, वह पूर्ण होती है। श्री शमशान काली मंत्र ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं कालिके क्लीं श्रीं ह्रीं ऐं॥ यह माना जाता है कि शमशान काली शमशान में वास करती हैं व शव की सवारी करती हैं। तंत्र विद्या के अनुसार शमशान काली की साधना शवारुढ़ यानि शव पर बैठकर की जाती है। इसलिए यह बहुत ही जटिल एवं अमानवीय साधना भी मानी जाती है जो कि सामाजिक व कानूनी रुप से लगभग प्रतिबंधित है। फिर भी लकड़ी आदि के टुकड़ों में प्राण प्रतिष्ठा कर उसे शव का रुप देकर भी तांत्रिक शमशान काली की साधना करते हैं। भूत-प्रेत, पिशाचादि को वश में करने के लिए शमशान काली की साधना की जाती है। नोट: यह बात विशेष रुप से ध्यान दें कि कोई भी साधना गुरु के मार्ग दर्शन में ही करें। विशेषकर मां काली की साधना कठिन होने के कारण तांत्रिकों अथवा योगियों द्वारा ही की जाती है।

शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016

मित्रो मेरी यही कोशिश रहती है आपको ज्योतिष के वारे ज्यादा से ज्यादा जानकारी हो यही मेरा प्रयास रहता है आपमे से वहुँत मित्र मुझे फोन पर कहते है कि आपकी पोस्ट से हमे वहुँत सिखने को मिल रहा है तो वहुँत खुशी होती है कहा जाता है कि आत्मा जब अपने साकार रूप को प्रकट करती है और उस आत्मा के रूप को प्रकट करने का क्षेत्र शुद्ध और सात्विक होता है तो वह आत्मा अपने अन्दर उन्ही गुणो के शरीर को धारण करके आती है जैसा उस स्थान की धरती का प्रभाव होता है। यह प्रभाव भी उसी प्रकार से माना जाता है जैसे एक बीज को बोने के लिये अलग अलग जमीन का प्रयोग किया जाता है और जमीन के प्रभाव के अनुसार ही बीज की उत्पत्ति होती हैकुंडली मे गुरु जीव का अधिकारी होता है सूर्य आत्मा का अधिकारी माना जाता है मंगल आत्मीय शक्ति को बढाने वाला होता है बुध आत्मीय प्रभाव को प्रसारित करने का कारक होता है शुक्र जीव को सजाने और आत्मा के भावो को प्रकट करने मे अपनी सुन्दरता को प्रकट करता है तो चन्द्रमा आत्मीय मन को सृजित करने का भाव पैदा करता है.शनि भौतिक रूप को प्रकट करता है और जीव के कर्म को करने के लिये अपनी योग्यता को प्रकट करता है। यूरेनस दिमाग के संचार को प्रकट करने और भौतिक संचार को बनाने बिगाडने का काम करता है प्लूटो मिट्टी को मशीन मे परिवर्तित करने का कार्य करता है नेपच्यून आत्मा के विकास का अधिकारी माना जाता है.समय के अनुसार जीव का रूप परिवर्तन होता रहता है जैसे आदिम युग मे जीव का रूप कुछ और होता था पाषाण युग मे कुछ था मध्य युग मे कुछ और था और वर्तमान मे कुछ और है तथा आने वाले भविष्य मे जीव का रूप कुछ हो जायेगा। जीव वही रहता है रूप परिवर्तन मे सहायक प्लूटो को मुख्य माना गया है,जो आधुनिकता से लेकर अति अधुनिकता को विकसित करने के लिये लगातार अपने प्रभाव को बढाता जा रहा है और हम क्या से क्या होते जा रहे है,लेकिन जीव के विकास की कहानी के साथ आत्मा का रूप नही बदल पाता है जीव कितना ही आधुनिक हो जाये आत्मा वही रहती है। जो भी कर्म किये जाते है उनका प्रभाव आत्मा पर उसी प्रकार से पडता रहता है जैसे एक चिट्टी विभिन्न डाकघरो मे जाकर डाकघर की उपस्थिति को दर्शाने के लिये अपने ऊपर उन डाकघरो की मुहर अपने चेहरे पर लगाकर प्रस्तुत करती है। कुंडली सिंह लगन की है और सूर्य विद्या से प्राप्त बुद्धि के भाव मे विराजमान है,सूर्य का साथ देने के लिये बुध जो लगन का चेहरा और भौतिक प्राप्ति तथा कार्य के प्रभाव का नाम प्रस्तुत करने की भावना को भी देता है। सूर्य का प्रभाव धरती तक लाने के लिये सूर्य किरण ही जिम्मेदार होती है। बिना सूर्य किरण के सूर्य का प्रभाव धरती पर आ ही नही सकता है,बुध को किरण का रूप मानने पर यही पता चलता है कि बुध सूर्य की गरमी रोशनी जीवन की प्रस्तुति को धरती तक लाने के लिये संचार का काम करता है इसलिये बुध को संचार का ग्रह कहा गया है। पंचम भाव विद्या के भाव से दूसरा भाव होने से विद्या से प्राप्त बुद्धि को प्रयोग करने का भाव भी कहा गया है और जब इस भाव मे गुरु की धनु राशि का समागम होता है तो ऊंची शिक्षा वाली बुद्धि को प्राथमिक शिक्षा जैसा माना जाता है। कानून की कारक यह राशि विदेशो से भी सम्बन्ध रखती है धर्म और भाग्य से भी यह राशि जुडी होती है साथ ही यात्रा और धार्मिकता को फ़ैलाने या उस धार्मिकता से लोकहित के कार्य करने के लिये भी अपनी युति को प्रस्तुत करती है। इस राशि के प्रभाव को अगर पंचम मे लाया जाता है तो ऊंची जानकारी को खेल खेल मे प्रस्तुत करने की कला भी मानी जाते है,सूर्य भी हकीकत मे कालपुरुष की कुंडली के अनुसार इसी भाव का मालिक है,राज्य और राजनीति से भी सम्बन्ध रखता है। लेकिन उद्देश्य कुछ भी हो मतलब शिक्षा से ही होता है। पुराने जमाने की जो कहानी कही जाती है कि गुरुओं मे इतनी दम होती थी कि वे मिट्टी को चलाने फ़िराने लगते थे,वे कहानिया अविश्वसनीय लगती है,हम कभी कभी कह देते है कि यह सब कपोल कल्पित है,लेकिन आज जिधर भी नजर घुमाई जाती है उधर ही मरी हुयी मिट्टी दौड रही है जिस इंसान को देखो मरी मिट्टी से ही खेल रहा है काम कर रहा है उसी मिट्टी को प्रयोग मे लाकर कमा रहा खा रहा है उसी मिट्टी पर बैठ कर भागा जा रहा है उसी मिट्टी से एक दूसरे से संचार कर रहा है,लेकिन उस जमाने की बातें कपोल कल्पित लगती है ! पुराने गुरु पीले कपडे पहिन कर विद्या को प्रदान किया करते थे लेकिन आधुनिक गुरु कम कपडे पहिन कर कम काम करके अधिक बुद्धि का प्रयोग करके जो कारक पैदा कर रहे है उन्हे गुरु की उपाधि से दूर करने के बाद वैज्ञानिक की उपाधि दे रहे है,वास्तविकता भी है कि जब गुरु सुपर गुरु हो जाता है और मरी मिट्टी मे इतनी जान डाल देता है कि उसका जीवन बिना मरी मिट्टी के बेकार सा हो जाता है तो वह दिमाग को हर पल हर क्षण हर मौके पर दौडाने का काम भी करता है और अपने को वैज्ञानिक कहलाने लगता है। वैज्ञानिक शब्द की व्याख्या को देखा जाये तो वह व+ऐ+ज्ञान+इक से ही देखा जायेगा और इसे अगर विच्छेद करने के बाद जाना जाये तो वाममार्गी तांत्रिको से कम नही समझा जा सकता है। व को मुर्दा कहा जाता है ऐ की मात्रा लगाते है मुर्दे मे जान डालने की क्रिया बन जाती है और जो इस क्रिया को प्रयोग करना जानता हो उसे ज्ञानी की उपाधि दी जाती है लेकिन वह सिद्धान्त के ऊपर ही निर्भर है इसलिये इक यानी एक ही के प्रति समर्पित हो जाती है,तो कौन कहता है कि वैज्ञानिक तांत्रिक नही होता है। जीव यानी गुरु को अपने तंत्र से मरी हुयी मिट्टी मे जान डाल कर लोक हित मे प्रयोग किया जाने लगे और लोग उस मरी मिट्टी जिसमे जान डाल दी गयी है उसे प्रयोग मे लेकर अपने को धन्य समझ ले तथा अपनी आवश्यकताओ को पूरा करने के लिये अपनी योग्यता को जाहिर कर दे तो जिसने उस मई मिट्टी मे जान डाल दी है वह किसी संत से कम कहा जा सकता है क्या ?राहु फ़ैलाव देता है फ़ैलना भी सीमित नही होता है,असीमित होता है और जो व्यक्ति एक साधारण व्यक्ति से कई गुनी योग्यता सीखने की रखता हो तथा अपने को बजाय साधारण आदमी के अलग थलग दिखाने की औकात को रखता हो उसी को वक्री कहा जाता है। राहु हमेशा उल्टा चलता है,राहु को शक्ति के रूप मे देखा जाता है और जब यह राहु गुरु के साथ हो जाये तो खराब भाव मे जाकर यह जहरीली हवा बन जाता है लेकिन अच्छे भाव मे जाकर यह अमृत प्रदान करने वाली हवा भी बन जाता है और जिस व्यक्ति की कुंडली मे राहु लगन मे हो अच्छी राशि मे हो तो बात ही कुछ और होती है। लेकिन सीधा आदमी उल्टे को नही सुधार सकता है केवल उल्टा आदमी ही उल्टे को सुधार सकता है,उसी प्रकार से राहु को सुधार मे लाने के लिये गुरु को भी उल्टा कर दिया जाये तो राहु आसानी से सुधार मे लाया जा सकता है,इस कुंडली को भी देखिये राहु लगन मे है शिक्षा की राशि मे है और गुरु भी वक्री होकर राहु की गति मे बदल गया है साथ ही नवे भाव के मालिक मंगल का तकनीकी सहारा भी ले लिया है तो राहु को सुधार कर अच्छे रूप मे बदलना जाना जा सकता है। जो राहु दूसरो को डराने का काम करता है एक प्रकार से काली आंधी बनकर लोगो को परेशान करता है तो वह राहु वक्री गुरु के सानिध्य मे आकर और मंगल का साथ लेकर असीमित ज्ञान के क्षेत्र को दिखाने प्रकाश मे लाने के लिये और संसार को सामने रखने के लिये अपनी योग्यता को जाहिर कर रहा है। इसी बात को अगर राहु को सिलीकोन माना जाये गुरु को सिलीकोन को तरीके से जोडना और सर्किट आदि बनाने के काम मे लिया जाये तथा मंगल को शक्ति की कारक बिजली के रूप मे देखा जाये तो यह कम्पयूटर का रूप धारण कर सकता है सर्किट बोर्ड पर लगे हुये आई सी कण्डेन्सर रजिस्टेंस ट्रांजिस्टर डायोड आदि की जानकारी भी देता है और उस के अन्दर अपने ज्ञान का प्रयोग करने के बाद लोगो के लिये उस मशीन का तैयार करना हो जाता है जिससे लोग अपने जीवन की जरूरतो को बाहरी लोगो से लिखने पढने से लेकर आने जाने तथा कितने ही प्रकार के कार्य करने के लिये स्वतंत्र हो सकते है। यह वक्री गुरु का ही काम है कि वह शनि प्लूटो यानी मरी हुयी मशीन को हार्डवेयर आदि डालकर उसे सिस्टम से चलाने की क्रिया मे राहु नामका सोफ़्टवेयर डालकर कई प्रकार की मशीनी श्रेणी मे बदल सकता है। अगर इसी जगह पर मार्गी गुरु होता तो वह दूसरे के द्वारा बनाये गये सामान को प्रयोग करने वाला होता लेकिन वक्री गुरु होने के कारण वह अपने द्वारा बनाये गये सामान को दूसरो के हित के लिये प्रयोग करने वाला बन जाता है।सिंह लगन का चौथा भाव वृश्चिक राशि का होता है यह राशि बहुत गूढ होती है कभी प्रकट रूप से सामने नही होती है जैसा कि मेष राशि का स्वभाव होता है कि उसके मन के अन्दर कुछ भी है वह सामने रख देती है इसलिय ही दूसरो के लिये बलि का बकरा बन जाती है उसी स्थान पर सिंह लगन का जातक अपने विचार बहुत गूढ रखता है और उस बुद्धि का प्रयोग करता है जो बुद्धि साधारण आदमी के पास नही होती है वह अपने भाव को प्रकट करने के लिये गूढ तंत्र का प्रयोग करता है उसे तकनीकी विद्या को प्राप्त करने की आदत होती है साथ ही वह अपने को इतने भेद की नीति के अन्दर रखता है कि मन के अन्दर क्या है जान लेने के लिये अपनी पूरी योग्यता को प्रस्तुत कर सकने के बाद भी यह जाहिर नही होने देता है कि आखिर मे उसकी मंशा क्या थी ? यह राशि तकनीकी राशि भी है और किसी भी प्रकार की तकनीक को दिमाग मे रखने और तकनीकी विद्या के प्रति हमेशा मन को लगाकर चलने के लिये भी मानी जा सकती है यह राशि तकनीक के अलावा दुनिया के भेद मृत्यु के बाद का जीवन पराशक्तियों और शमशानी सिद्धियों के प्रति भी जान लेने की भावना को रखती है। हकीकत मे इस भाव का मालिक चन्द्रमा होता है और जनता का मालिक भी चन्द्रमा होता है दिशाओं से यह दक्षिण पश्चिम दिशा की कारक भी कही गयी है इस प्रकार से जातक की मानसिक रुचि अन्तर की जानकारी के लिये भी मानी जा सकती है।यह राशि नकारात्मक मंगल की राशि भी कही गयी है सकारात्मक मंगल जीव के अन्दर की शक्ति कही जाती है और नकारात्मक मंगल जीव के मरने के बाद उसकी पराशक्ति का कारक होता है। सकारात्मक मंगल जीव के जिन्दा रहने तक साथ देने वाला होता है और नकारात्मक मंगल जीव के मरने के बाद उसकी शक्तियों को दूसरे लोगों के प्रति प्रयोग करने के लिये भी माना जाता है,अक्सर सामाजिक परिवेश मे इस मंगल को लोग भूत प्रेत तंत्र आदि के रूप मे कहते सुने जा सकते है।यूरेनस इस राशि मे उपस्थित होता है तो जातक के मन के अन्दर एक तो उन शक्तियों को प्रकट करने की इच्छा होती है जो मरने के बाद की जानी जा सकती है दूसरे जातक के अन्दर मरी हुयी मिट्टी के अन्दर से यह जान लेने की कला का विकास भी होता है कि वह कैसे मरी किस अवयव की खराबी से मरी और उस मरी हुई शक्ति के अवयब को जांच लेने की और उसे बदल कर नया जीवन मरी हुयी मिट्टी को देने से भी जानी जा सकती है इस बात को अगर डाक्टरी रूप मे देखा जाता है तो एक प्राणी की मौत के पहले के जीवन को प्राप्त करने के लिये खराब हुये अवयब को बदलने का काम किया जाता है जबकि यूरेनस को संचार का ग्रह माने जाने पर जातक के अन्दर कमन्यूकेशन की चीजों के खराब होने पर उन्हे जांच लेने और उन्हे ठीक करने की क्रिया को जान लेने का कारण भी कहा जाता है इस कारण को अगर देखा जाये तो आज के जमाने मे इन्हे इन्फ़ोर्मेशन तकनीक का जानकार भी कहा जाता है और कम्पयूटर इंजीनियर के रूप मे भी देखा जाता है। नेपच्यून के इस भाव मे होने से यह भी देखा जाता है कि जातक के अन्दर राख से साख निकालने की क्षमता का होना भी होता है वह समझ सकता है कि जो कबाडा हो चुका है उस कबाडे से क्या क्या वस्तु निकाली जा सकती है जो काम की है और उस वस्तु को दूसरी वस्तुओं मे प्रयोग करने के बाद उन्हे काम मे लिया जा सकता है। नेपच्यून का रूप अक्सर आत्मा के रूप मे पाश्चात्य ज्योतिष मे प्रयोग मे लाया गया है लेकिन हमारी संस्कृति के अनुसार से मन के आगे नही मान सकते है मन और आत्मा मे भेद को समझने वाले लोग इस बात को समझ सकते है। जो आत्मा कबाड से जुगाड बनाकर उन्हे काम का सिद्ध कर सके वही एक अच्छे इंजीनियर की श्रेणी मे भी गिना जाता है। सूर्य और बुध का पंचम भाव मे होना आत्मा का मिलन शिक्षा के क्षेत्र मे जाने का होता है यहा जातक अपनी उपस्थिति को शिक्षा के क्षेत्र मे ले जाने और वहीं से अपनी उन्नति को शुरु करने के लिये भी माना जाता है लेकिन यह बात तभी सिद्ध हो सकती है जब जातक के पुत्र संतान की प्राप्ति हो,उसके पहले सूर्य का उदय होना और सरकारी क्षेत्र मे अपने प्रभाव को दिखाने का कारण नही बनता है,सूर्य से तीसरे भाव मे केतु के होने से भी एक कारण यह भी माना जाता है कि कुम्भ राशि का केतु उन्ही लोगो से मित्रता को बनाता है जब वह मित्रता किसी भी प्रकार से कमन्यूकेशन के मामले मे हो पुरानी ज्योतिष के अनुसार बडे भाई की पत्नी या दोस्त की पत्नी के या बडी बहिन के पति के सहायक कार्यों से जोड कर भी देखा जाता है और इस केतु को अक्सर सहायक के रूप मे भी माना जाता है चाचा भतीजे का सम्बन्ध भी कायम करता है जीवन के अन्दर एक व्यक्ति की सलाह और शिक्षा जातक को आगे बढाने के लिये भी मानी जाती है।यह केतु पत्नी के रूप मे भी सामने आता है और जातक को अपनी सहायता से आगे बढाने के लिये भी देखा जा सकता है। यह केतु मानसिक रूप से भी अपनी सहायता को देने वाला माना जाता है और जीवन मे जो भी सहायक कार्य है उन्हे करने के लिये भी देखा जा सकता है। संतान मे यह दूसरे नम्बर की संतान का रूप भी समझा जा सकता है और पुत्री संतान के प्रति भी अपनी भावना को रखता है।जातक एक शिक्षक के रूप मे भी जाना जा सकता है जो लोगो को आधुनिक युग मे विभिन्न प्रकार की मशीनोको उपयोग मे लाने का रूप बताये,जो लोग विद्या से जुडे है उनके लिये कार्य करने का रूप भी प्रस्तुत करता है,साथ ही कालेज शिक्षा मे कार्य को करने का रूप भी दे सकता है जो राजनीति से सम्बन्धित विषयों की जानकारी कानूनी जानकारी और विदेशी परिवेश से जुडी जानकारी को प्रदान करना जानता हो,एक संत जो अपने स्वार्थ की पूर्ति के बिना अपनी सहायता को सेवा के रूप मे लोगों को प्रदान करे भी माना जा सकता है। शनि अपनी नजर से की जाने वाली सेवा से जीवन यापन के लिये कार्य करना भी माना जाता है साथ ही प्लूटो के साथ होने से वह उतना धन नही इकट्ठा कर पाता है जो जीवन मे धन का मोह रखने वाले करते है और बिना उपयोग मे लाये मर जाते है। चन्द्रमा का ग्यारहवे भाव मे होना जातक को उतना ही लाभ दे पाता है जो अपने शरीर की पूर्ति कर ले और कहने के लिये तो उसके कोई भी काम नही बिगडते है जो भी कार्य होता है वह मित्रो की सहायता से पत्नी की सहायता से साथ मे चलने वाले दो लोगो से जो मित्रता की सीमा मे ही होते है के प्रति माना जा सकता है।

गुरुवार, 29 दिसंबर 2016

सामान्यतयः लग्न लगभग दो घंटे तक एक ही रहती है फिर भी जिस तरह दो व्यक्तियों के अंगूठे का निशान , आँखोँ के रैटीना की डिजायन या हृदय की धड़कन एक जैसी नहीं हो सकती ठीक उसी तरह कभी भी दो व्यक्तियों की जन्मकुंडली एक जैसी नहीं हो सकती है l यहाँ तक कि एक ही स्थान पर एक ही माँ से जन्म लेने वाले दो जुड़वाँ बच्चो की जन्मकुंडली भी एक जैसी नहीं हो सकती है क्योकि स्थूल रूप से देखने पर लग्न कुण्डली, चन्द्र कुण्डली, नवमांश कुण्डली, चलित कुण्डली तो एक जैसी ही दिखती है किन्तु जब कुण्डली के विस्तृत विश्लेषण की बात आती है तो विद्या के लिये चतुर्विशांश, बलाबल के लिये सप्तविशांश, अरिष्ट गणना के लिये त्रिविशांश, सुख कि गणना के लिये षोडशांश आदि कुंडलियाँ बनानी पड़ती है, जो कि एक ही लग्न में लगभग हर 2 मिनट बाद बदलती रहती है I अन्य अधिक बारीक़ गणना की स्थिती में प्रत्येक 3 सेकेंड के अन्तराल पर कुंडलियों का सूक्ष्म विश्लेषण बदलता रहता है I ऐसी स्थिती में यह आवश्यक हो जाता है कि जन्म के सही समय की गणना सटीकता से की जाये ।अव राशी फल ईस लिऐ भी वोगस हो जाता है जेसा मैने पहले भी कहा है 6 अरव की आवादी पुरे विश्व की है 12 राशीया अव 50 करोङ के लग भग ऐक राशी के लोग जिसमे वच्चे वुढे जवान ओर ईसमे भी सभी अलग अलग काम घन्घे वाले तो राशी फल संभव ही नही कोई भी समझदार जातक राशीफल को वोगस ही कहेगा हा गोचर से हम देश काल मे होने वाले घटना से संबंध का अनुमान लगाया जा सकता है

मंगलवार, 27 दिसंबर 2016

*वर्ष - 2017* *•• शनि राशि बदलकर धनु में प्रवेश करेगा, सीधे मूला-नक्षत्र में संचार* *करेगा । गुरु बृहस्पति शत्रु राशि में है और निर्बल है । गुरु बृहस्पति के निर्बल होने से सुधार और रचनात्मकता की प्रक्रिया थमी रहेगी और पाप ग्रह उत्पात करेंगे । राहु-केतु - वर्ष के मध्य में राशियां बदलेंगे । ये ग्रह-योग दर्शाते हैं कि - ये वर्ष सहज और सरल नहीं है ।* *ये वर्ष - समय, सम्बन्ध और संचार की जटिलता का है । समय निरंतर बदलता रहेगा और असमंजस तथा उलझनों का निर्माण करता रहेगा । संबंधों की नयी परिभाषा बनेगी और वैचारिक मतभेद - संबंधों की सीमायें तय कर देंगे । संचार पर निर्भर रहने वाली ये दुनियाँ खुद को अफवाओं से नहीं बचा पायेगी और ये काम संचार माध्यम खुद ही करेगा । लोग अपने आप में सिमट जायेंगे और किसी पर विश्वास नहीं करेंगे ।* *संचार और संबंधों का कारक बुध है - शनि - बुध के नक्षत्र - ज्येष्ठा में है । गुरु बृहस्पति - बुध की राशि कन्या में है । इसलिये बुध बुनियाद में है । जैसे ही शनि - धनु-राशि में प्रवेश करेगा - बुध की बुनियाद हिल जायेगी । केतु का नक्षत्र बुध के प्रभाव को समाप्त कर देगा और समय रहस्यमय आवरण से लिपट जायेगा । केतु रहस्यमयी ग्रह है और बुध का शत्रु है । इससे संबंधों की नयी परिभाषा बन जायेगी और संचार माध्यम अफवाओं को जन्म देने लगेगा अर्थात संचार माध्यम भय का वातावरण निर्माण करने लगेगा । शनि जोकि समय का कारक है । पहले बुध के नक्षत्र से केतु के नक्षत्र में संचार करेगा फिर केतु के नक्षत्र से बुध के नक्षत्र में संचार करेगा । नक्षत्र तो अदल-बदल करेगा ही राशियां भी बदलेगा । ऐसा वो 21 ऑक्टोबर तक करता रहेगा । अर्थात लगभग पूर्ण वर्ष ऐसा ही करता रहेगा । इससे संपूर्ण वर्ष - समय की उथल-पुथल चलती रहेगी और लोग भविष्य की योजनायें नहीं बना पायेंगे । गुरु बृहस्पति संपूर्ण वर्ष शत्रु राशियों में संचार करता रहेगा । पहले कन्या राशि में फिर वर्ष-मध्य से तुला राशि में संचार करेगा जिससे उसकी निदान प्रस्तुत करने की क्षमता प्रभावित होगी । लोग समस्याओं के उपाय और परिहार नहीं तलाश कर पायेंगे ।* *बुध के कारण ही संचार व्यवस्था ठप्प हो सकती है, लोग अपने फोन इस्तेमाल नहीं कर पायेंगे तथा इंटरनेट व्यवस्था बाधित हो सकती है और आपस के संपर्क-सम्बन्ध टूट सकते हैं । जन-साधारण को वैकल्पिक* *व्यस्थाओं के विषय में सोचना होगा ।* *26 जनवरी, 2017 को शनि - धनु राशि में प्रवेश करेगा और इसके साथ ही केतु के नक्षत्र मूला में भी संचार करने लगेगा । मूला नक्षत्र चमकदार, अग्निकारक और मोक्ष कारक है । शनि धर्म-पारायण, कर्तव्य-पारायण और कर्म-कारक है । मूला नक्षत्र से इसका तालमेल धर्म की कट्टरता को बढ़ावा देगा । धार्मिक कट्टरतावाद से दुनिया का तीव्रता से ध्रुवीकरण होगा और मोक्ष-कारक केतु के प्रभाव से मृत्यु दर बढ़ेगी । आतंकवाद का एक नया चेहरा सामने आ सकता है । शनि के कारण दुनियाँ कर्मफल की और अग्रसर होगी और जिसने जैसा किया है उसे वैसा फल मिलेगा । युद्ध के बादल और घने होंगे तथा रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल से दुनियाँ सिहर सकती है । केतु - रसायन का कारक है अचानक चौका देने का फल कर सकता है* *खाड़ी देशों को विशेष रूप से याद रखना होगा क्योंकि धर्म के नाम पर सबसे ज्यादा उठापटक वही होती आयी है । युद्ध की आग तो वहां सुलग ही रही है - शनि के वक्रि होते ही ये आसपास फ़ैल सकती है ।* *ऐसी शंकायें भी हैं कि - इस बार विश्व-युद्ध देशों के बीच नहीं बल्कि सभ्यताओं के बीच होगा ।* *ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, पाकिस्तान, भारत और दुनियां भर में कई जगहों पर आतंकवादी हमलों से ऐसा वातावरण लगभग तैयार भी हो चुका है ।* *दुनियां में जब शक्ति-संतुलन* *बिगड़ने लगे, एक साथ कई शाक्ति-स्तंभ उभर आयें और छोटे-बड़े देश एक-दूसरे पर दबाव बनाने लगे तो* *समझना होगा कि - तृतीय विश्व-युद्ध की भूमिका बन रही है* *केतु - शनि की राशि में है और शनि - केतु के नक्षत्र में होगा - ये योग भयंकर अग्निकांडों को जन्म दे सकता है । गुरु बृहस्पति और शनि के निर्बल होने से 'वायु-तत्व' के अनुपात में घटबढ़ होगी जिससे आंधी-तूफ़ान और* *वायुयान दुर्घटनाओं की संभावना बढ़ जायेगी । बुध के नक्षत्र से निकलकर केतु के नक्षत्र में संचार और फिर अचानक वक्रि होकर फिरसे बुध के नक्षत्र में* *प्रवेश से शनि - व्यापार-व्यवसाय को और शेयर मार्केट को अकल्पनीय उतार-चढ़ाव प्रदान कर सकता है ।* *बीच-बीच में जब कभी गुरु बृहस्पति को बल मिलेगा तो कुछ राहत अथवा सुधार की संभावना होगी लेकिन इससे भरपाई और सुधार उतना नहीं हो पायेगा जितनी हानि होगी । बुध के नक्षत्र में वक्रि शनि के लौट आने से भी हालात के बेहतर होने का अंदेशा होगा जबकि हालात और खराब होंगे । ये वर्ष राहु-केतु और शनि के प्रभाव का है । इनकी सक्रियता दुनियाँ में उथल-पुथल प्रकट करेगी । हालांकि समय-समय पर शुक्र, बुध और चंद्र शुभ होकर कुछ समय की राहत और शाँति दे सकते है और ऐसे ही समय में जन-साधारण को अपने कार्य बना लेने का प्रयास करना होगा । समय कम होगा और कार्य अधिक लेकिन जितना बन सके उतना बना लेना ही बुद्धीमानी होगी । ऐसे समय में अपने विवेक से काम लेना होगा और तत्पर बुद्धी से कार्य करना होगा*

रविवार, 25 दिसंबर 2016

[25/12 2:11 pm] Acharya rajesh: मित्रो लेख थोङालंवा खिच गया क्षमा चाहुगा माना जाता है जो अंक हमसे जुड़े होते हैं, वे हमारी किस्मत पर प्रभाव डालते हैं। क्या ऐसा सच में होता है? क्या अंक ज्योतिष कारगर है? या फिर हमें खुद की क्षमता को बढाने पर ध्यान देना चाहिए? : एक दिन कोई उद्योगपति मुझसे मिलने आए थे उन्होंने अपना विजिटिंग कार्ड दिया। थोड़ी देर बातें करते रहे विदा लेकर निकलते हुए जरा हिचकते हुए खड़े रहे। आखिर पूछ ही दिया : आचार्य जी मेरे साथ बात करते समय आप बीच बीच में ‘रमियान’ ‘रमियान’ कह रहे थे। उस मंत्र का क्या अर्थ है मैं चौंक उठा उनका दिया विजिटिंग कार्ड दिखाते हुए मैंने कहा : यही तो आपका नाम है कार्ड में Rhamean ही तो लिखा है ‘‘नहीं महाराज मेरा नाम रमन है। न्यूमरालॅजी के ज्योतिषी ने परामर्श दिया था कि मेरे नाम को अँग्रेजी में इस तरह लिखा जाए तो व्यवसाय में सफलता मिलेगी मैं अपनी हँसी रोक नहीं पाया। मनुष्य ने ही तो अंकों और अक्षरों को रूप दिया है। फिर वे कैसे मानव की किस्मत बना सकते हैं? बताइए, आप अपनी क्षमता के बूते पर उद्योग खड़ा करेंगे या अंकों पर विश्वास करके? नंबर क्या कर सकते हैं?अगर किसी ने कहा दिया कि अंक दो आपके लिए भाग्यशाली है तो क्या आप आँख मूँदकर उस पर विश्वास कर बैठेंगे ज्योतिषी के कहने पर अपना हाथ या पैर काट डालेंगे? कितनी मुरखो वाली वात हमने अपनी सुविधा के लिए दिन, वार और संख्याओं की व्यवस्था की थी। क्या ये सब चीजें हमारे जीवन को तय कर सकती हैं प्राणवान होकर आप लोग जो बेवकूफियाँ करते हैं उनके लिए बेजान ग्रहों को जिम्मेदार ठहराना कितनी बड़ी कायरता है। ग्रहों में जो स्पंदन होते हैं, उनका असर पृथ्वी पर पड़ सकता है। लेकिन जिन लोगों का मन संतुलित है, उन पर इन स्पंदन झेलने की ताकत हो सकती है कार्य आरंभ करने से पहले आप ज्योतिषी के पास जाएँगे। अगर वे कह दें कि कार्य में सफलता मिलेगी तो आप उसी पर विश्वास करते हुए पूरी क्षमता के साथ काम नहीं करेंगे। अगर वे कहें कि सफलता नहीं मिलेगी तब निराशा के मारे लगन के साथ काम नहीं करेंगे। तब ज्योतिषी के पास जाने का मतलब ही क्या है?आधे-अधूरे काम करेंगे तो सफलता कहाँ से मिलेगी इच्छित वस्तु को पाना हो तो अपनी क्षमता बढ़ा लीजिए। खेलने के लिए उतरने से पहले ही परिणाम पाने की इच्छा न करें। अपने काम की जिम्मेदारी स्वयं लेने की आदत डालें।फिर भी पुरी दुनियामे कितनी भाषा वोली जाती है ओर कितने तरह के अक्षर है इसलिए अंक ज्योतिष, रामशलाका, भैरव ज्ञान, नंदी नाड़ी, स्वर ज्योतिष, क्रिस्टल बॉल, रमल ज्योतिष जैसे उपाय चलन में आए। भविष्य जाने की इन विधाओं के बावजूद फलित ज्योतिष ज्यादा xलोकप्रिय रहा है, वजह उसकी समझ में आने वाला वैज्ञानिक आधार और लम्बी परंपरा वैदिक ज्योतिष भारतीय ज्योतिष विधि में सबसे प्रमुख है। यह वेद का हिस्सा है जिसे वेद की आंखें भी कहते हैं। इसमें जन्म कुण्डली के आधार पर भविष्य कथन किया जाता है। इस विधि से भविष्य जानने के लिए जन्म समय, जन्मतिथि एवं जन्म स्थान का ज्ञान होना आवश्यक होता है। महर्षि पराशर और जैमिनी दोनों ही समकालीन थे। इन दोनों ऋषियों ने वैदिक ज्योतिष के आधार पर भविष्य आंकलन की नई विधि को जन्म दिया।जैमिनी पद्धति दक्षिण भारत में अधिक प्रचलित है। यह पद्धति वैदिक ज्योतिष से मिलती-जुलती है परंतु इसके कुछ अपने सिद्धांत और नियम हैं। जो ज्योतिषशास्त्री जैमिनी और पराशरी ज्योतिष दोनों से मिलाकर भविष्य कथन करते हैं उन्हें परिणाम काफी सटीक मिलते हैं। प्रश्न कुण्डली प्रश्न पर आधारित ज्योतिषीय विधि है; जिन्हें अपनी जन्मतिथि, समय और स्थान का ज्ञान नहीं होता उनके लिए यह ज्योतिष विधि श्रेष्ठ मानी जाती है। इन विधियों की सच्चाई या विश्वसनीयता के बारे मे मेरा मानना यह हे ' कि ज्योतिष के रहस्य प्रामाणिक व्यक्ति के सामने ही खुल कर आते है, जो विद्या भूत भविष्य के बारे में सटीक जानकारी देती हो वह इतनी कमजोर और सहज नहीं हो सकती की जिस तिस के सामने उसके गूढ़ अर्थ उजागर हो जाएं। गणित या भूगोल जैसे प्रतिदिन काम आने वाले विषयों के बारे में आधिकारिक प्रवेश के लिए एक न्यूनतम अनुशासन होना जरूरी है। उसके बिना इन विद्याओं का क ख ग भी पता नहीं चलता इसलिए ज्योतिष जैसे गूढ़ विषय में अधिकार की शर्तें या पात्रता तो और भी गंभीर है। ईमानदारी और निस्वार्थ भावना पहली शर्त है, इसके बिना कोई व्यक्ति इस विषय का जानकार तो हो सकता है पर आधिकारिक विद्वान नहीं, की उसकी की हुई गवेषणा सही निकले। भविष्य जानने की अन्य विधाओं का भी अलग-अलग नियम है, उन पर भी गौर किया जाना चाहिए।आज ईतना ही । आचार्य राजेश

शुक्रवार, 23 दिसंबर 2016

भावों के विश्लेषण में महत्वपूर्ण तथ्य आइए अब भावों के विश्लेषण में महत्वपूर्ण तथ्यों की बात करें. जब भी किसी कुंडली को देखना हो तब उपरोक्त बातों के साथ भावों का भी अपना बहुत महत्व होता है. आइए उन्हें जाने कि वह कौन सी बाते हैं जो भावों के सन्दर्भ में उपयोगी मानी जाती है. 1. जिस भाव के फल चाहिए उसे देखें कि वह क्या दिखाता है. 2. उस भाव में कौन से ग्रह स्थित हैं. 3. भाव और उसमें बैठे ग्रह पर पड़ने वाली दृष्टियाँ देखें कि कौन सी है. 4. भाव के स्वामी की स्थिति लग्न से कौन से भाव में है अर्थात शुभ भाव में है या अशुभ भाव में है, इसे देखें. 5. जिस भाव की विवेचना करनी है उसका स्वामी कहाँ है, कौन सी राशि व भाव में गया है, यह देखें. 6. भाव स्वामी पर पड़ने वाली दृष्टियाँ देखें कि कौन सी शुभ तो कौन सी अशुभ है. 7. भाव स्वामी की युति अन्य किन ग्रहों से है, यह देखें और जिनसे युति है वह शुभ हैं या अशुभ हैं, इस पर भी ध्यान दें. 8. भाव तथा भाव स्वामी के कारकत्वों का निरीक्षण करें. 9. भाव का स्वामी किस राशि में है, उच्च में है, नीच में है या मित्र भाव में स्थित है, यह देखें. 10. भाव का स्वामी अस्त या गृह युद्ध में हारा हुआ तो नहीं है या अन्य किन्हीं कारणों से निर्बली अवस्था में तो स्थित नहीं है, इन सब बातों को देखें. 11. भाव, भावेश तथा भाव के कारक तीनों का अध्ययन भली - भाँति करना चाहिए. इससे संबंधित भाव के प्रभाव को समझने में सुविधा होती है.

यादो में ना ढूंढो हमें मन में हम बस जायेंगे तम्मना हो अगर मिलने की तो हाथ रखो सीने पर हम धड़कनों में मिल जायेंगे

गुरुवार, 22 दिसंबर 2016

बुध का भेद जब कुंडली मुकम्मल हो और खाना नं १ का अक्षर देकर हर तरह से बात समाप्त हो चुकी हो, तो बुध का सारा भेद या स्वभाव देखने के लिए नीचे का असूल काम में आयगा। हर ग्रह की शक्ति को उस खाना के नं से गुना करे। ९ ग्रहों का जोड़ करे। ९ से भाग करे। बाकि बचा देखे ० बचे तो बुध का स्वभाव कुंडली के खाना नं ५ में बैठे ग्रह की तरह होगा। याने बुध के खाली ढांचे में राहु-केतु पकडे गये। याने जब बुध की शक्ति सिफर हो तो उस कुंडली में राहु केतु का असर दुसरे ग्रह पर न होगा। मगर राहु-केतु का जाती असर जरूर होगा। क्योंकि बुध में राहु-केतु का जाती असर शामिल गिनती है सिवाय बुध खाना नं ४ के। राहु घडी की चाबी तो केतु घडी का कुत्ता है। दोनों को चलता गुरु ही है। मगर घूमते बुध के दायरे में है। गर खाना ५ खाली तो जिस घर में और जैसा सूरज, वैसा ही बुध का फल होगा। अगर जो शेष बचे तो उस से सम्बंधित ग्रह कुंडली में जहाँ बैठा हो उसकी शक्ति तथा स्वभाव का बुध होगा। यह स्वभाव बुध का अपना स्वभाव होगा जैसा की शनि का स्वयं का स्वभाव राहु - केतु - शनि के पहले या बाद के घरो में होने का है। मसलन : बृहस्पति खाना नं ४ में उच्च है। बृहस्पति की शक्ति ९ ग्रहो में ६/९ है - गुना किया ४ गुणा ६/९ = २ ४ / ९ सूर्य खाना नं ३ में : ३ गुणा ९/९ = २ ७ / ९ चन्द्र खाना नं ६ ६ गुणा ८/९ शुक्र खाना नं ५ ५ गुणा ७/९ मंगल खाना नं ५ बुध खाना नं ३ शनि खाना नं १ २ राहु खाना नं २ केतु खाना नं ८ सब ९ ग्रहो को गुणा कर के जोडे। मसलन जोड़ आया २ १ ९ / ९ = २ ४ + ३/९ पूरे हिस्से छोड़ दे यानी ३/९ ही जो बचा लेना है। ३/९ शक्ति तो शनि की है. अब शनि खाना नं १ २ में बैठा था तो यह बुध का स्वभाव हुआ। याने बुध जो खाना नं ३ में बैठा है वो खाना नं 1 में बैठे शनि के स्वभाव का है। शनि का स्वभाव देखे : पहले राहु फिर केतु फिर अंत में शनि है। ऐसे में शनि का अपना प्रभाव मंदा होता है। इस लिए जब बुध का समय होगा तब शनि दो गुना मंदा होगा। क्योंकि बुध शनि दोनों ही खराब स्वाभाव के है। बुध का स्वभाव जिस ग्रह से मिलता हो उपाय उस ग्रह दोनों को मिला कर करना होगा। खाना नं ३ या ९ के लिए लोहे की लाल गोली ले पर अगर बुध नेक स्वाभाव हो तो शीशे की गोली ले और उस रंग को शामिल करे जो ऊपर की तरह से ग्रह आया। खाना नं १२ के बुध के लिए नष्ट ग्रह वाले की मदद का इलाज या केतु ( कुत्ता रंग बिरंगा या काल सफ़ेद पर लाल रंग न हो ) कायम करना शुभ होगा। असल में बुध खली खलाव (जगह), सफ़ेद कागज़, शीशा और फिटकरी होगा। जब उस पर जरा भी मैल या किसी और ग्रह का ताल्लुक हुआ तो उसकी गोलाई का ठिकाना मालूम करना वैसा ही मुश्किल होगा जैसा की जमीन का धुरी माप लेना। इसलिए उस की जांच पूरी कर लेना जरूरी होगा। बहरहाल बुध नं ३ या ९ या कही और का मंदा प्रभाव उस साल या उस समय नेक होगा जिसमे की वो स्वयं अपने स्वभाव के उसूल पर नेक हो जावे, मगर जन्म के पहले साल या पहले मास उसका हिरा जहर से खाली न होगा। अगर होगा तो जन्म मरण का झगडा ही समाप्त होगा। सूर्य और मंगल के मुकाबले में बुध का फल गायब। या ससूर्य मंगल नेक के समय अपना आधा समय चुप होगा फिर भी छुपी शरारत जरूर करता होगा। मंगल नेह है ही वही जिसमे सूर्य हो। और वो सूर्य के साथ चुप होगा। सूर्य रेखा और चन्द्र रेखा दिल को मिलने त्रिकोण मंगल बद को असर देगी जिस का प्रभाव दिल की शक्ति पर होगा चाहे बुरी तरफ ही क्यों न हो। बहरहाल दिल की शक्ति अधिक होगी।

सोमवार, 19 दिसंबर 2016

मित्रो जन्मकुण्डली में ग्रहों की स्थिति प्रायः फल-विचारकों को चिन्तित कर देती है। अक्सर ज्योतिषी लोग कई ग्रहो के ऐक साथ वैठने से गचा खा जाते है पर हो सकता है जो दुरयोग वन रहा है उसका परिहार हो रहा होपर आम जातक का चिन्तित होना स्वाभाविक भी है,क्यों कि हमारा जीवन-चक्र इन्हीं ग्रहों के अधीन है। हालाकि ग्रह तो केवल निमित्त हैं- परमसत्ता के आदेशपाल मात्र । तथाकथित सुपथ-कुपथ चलने वाले जीवन-यान को वैधिक रुप प्रदान करना तो मनुष्य के स्वकर्मों के अधीन है- कर्म प्रधान विश्व करि राखा यहां कोई ये तर्क भी दे सकता है कि सब कुछ ईश्वराधीन है। उनकी मर्जी के बिना तो पत्ता भी नहीं डोलता- सबहीं नचावत राम गुसाईं... ; किन्तु यह आंशिक सत्य है। यह सही है कि सब कुछ भगवान करते-कराते हैं,किन्तु ये भी उतना ही सत्य है कि वे कुछ नहीं करते- वे एक द्रष्टा मात्र हैं,स्रष्टा हैं,नियोक्ता हैं। क्योंकि पूरी व्यवस्था के साथ- पंचज्ञानेन्द्रिय, पंचकर्मेन्द्रिय,के साथ महेन्द्रिय- मन,और फिर उससे परे बुद्धि,और सर्वोपरि- विवेक से सुसज्जित करके हमें कर्मक्षेत्र में उतार दिया गया है जा कहे जन्म दिया है और सुदूर महदाकाश में विराजते हुये निर्विकार भाव से सिर्फ और सिर्फ द्रष्टा की भूमिका निभा रहे हैं। इससे आगे जो कुछ भी होता है, जो कुछ भी हो रहा है- हमारे कर्मों का परिणाम है। इससे भिन्न कुछ नहीं। हम चोरी करते हैं,पकड़े जाते हैं। सजा होती है। इसका ये अर्थ नहीं कि सिपाही हमारा शत्रु है,या दण्डाधिकारी दुष्ट है। वे सब तो अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं- चोर को पकड़ने और सजा देने की ड्यूटी। सूर्यादि नवग्रह भी यही कर रहे हैं- हमारे कर्मों का क्षण-क्षण का लेखाजोखा रखा जाता है,और उसके अनुसार ही आगे की जीवन-यात्रा तय होती है-। जन्मकालिक ग्रह इसी बात का संकेत देते हैंकि जीवन में कब क्या कैसा व्यतीत होगा। पुनः हम अपने कर्मों से धक्के देकर आगत यानी प्रारब्ध कर्म को थोड़ा इधर-उधर सरका भर देते हैं,किन्तु समूल नष्ट नहीं कर सकते,शुभाशुभम्। जो भी शुभ या अशुभ कर्म किये गये हैं- उन्हें तो भोगना ही पड़ेगा- आज भोगें या दो दिन बाद। किन्तु हां,एक अति विशिष्ट स्थिति भी आती है,और उसी का आधार लेकर लोग मान लेते हैं कि सबकुछ भगवान ही कराते हैं। परन्तु यह जान लें कि यह स्पेशल केस है,विशेष स्थिति है- हमारा स्तर,हमारा चिन्तन,हमारा कर्म जब पूर्णरुप से भगवदर्पण या भगवदर्थ हो जाता है,तब की वो स्थिति है। उसके पूर्व ऐसा कदापि नहीं होता। खैर, ये हुयी कर्म-रहस्य की बातें। यहां कहना मैं ये चाहता हूँ कि कुण्डली के द्वादश भावों में बैठे ग्रहों को देख कर चिन्तित न हों। बहुत बार ऐसा भी होता है कि वे निष्क्रिय या निष्फल तुल्य होते हैं। कौन से ग्रह कहां किस भाव में बैठे हैं,किसके साथ बैठे हैं- ये बहुत ही महत्त्वपूर्ण होता है। ज्योतिषशास्त्र का यानी राहु के साथ यदि बुध बैठे हों तो राहु का दोष नहीं लगता,राहु और बुध दोनों के दोषों को शनि का साथ होने पर नाश हो जाता है। राहु,बुध और शनि इन तीनों के दोषों का नाश मंगल के साथ होने से हो जाता है। राहु,बुध, शनि और मंगल इन चारों के दोषों का नाश दैत्यगुरु शुक्राचार्य कर देते हैं यदि साथ में हों। राहु,बुध,शनि,मंगल और शुक्र इन पांचों के दोष का नाश देवगुरु वृहस्पति करते हैं। राहु,बुध,शनि,मंगल,शुक्र और वृहस्पति इन छः ग्रहों के दोष को बलवान चन्द्रमा नष्ट कर देते हैं, और अन्त में कहते हैं कि सूर्य तो उक्त सभी ग्रहों के दोषों का नाश कर देते हैं- साथ में यदि विराज रहे हों,विशेषकर उत्तरायण यानि मकर,कुम्भ,मीन,मेष,वृष और मिथुन राशि पर कहीं भी हों तो और भी शक्तिशाली हो जाते हैं। अतः ग्रहों का दोष-बल विचार करते समय इन बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए। ध्यातव्य है कि यहां केतु की चर्चा नहीं हुयी है। क्यों कि केतु को राहु में ही मानलिया गया है। सूर्य के साथ बैठे होने पर चन्द्रमा निस्तेज होजाते हैं,यानी उनका दोष नहीं लगता। चन्द्रमा के पुत्र यानी बुध चौथे घर में बैठे होने पर निस्तेज होते हैं। वृहस्पति पांचवें घर में और भूमि-पुत्र मंगल दूसरे घर में, भार्गव शुक्राचार्य छठे घर में निष्फल होते हैं,तथा रविनन्दन शनि कलत्र यानी सातवें घर में निष्फल होते हैं। किन्तु शनि की निष्फलता पर विशेष ध्यान ये देना है कि यदि वे अपनी राशि मकर और और कुम्भ में होकर,या उच्चराशि तुला के होकर, सातवें स्थान में बैठे हों,तो विपरीत गुणधर्मी होजाते हैं,यानी निष्फल होने के वजाय और भी प्रबल हो जाते हैं। अतः किसी भी प्रकार के फलकथन में इनका विचार अवश्य करना चाहिए

बुधवार, 14 दिसंबर 2016

अक्षरों से मिलकर शब्द बनते हैं शब्दों से मिलकर वाक्य। वाक्यों से मिलकर अहसास पुरे होते हैं और अहसासों से मिलकर जज्बात। जज्बातों से मिलकर ख़्याल बनता है और ख़्यालों से मिलकर बनती है रचना। जिन्हें हम कभी कविता कहते है तो कभी नज्म और कभी गज़ल कहकर पुकारते है तो कभी छंद कहकर। वास्तव में ये हमारी सोच और ख़्याल का ही तो प्रतिरूप है। अक्स है हमारी खुशी और ग़म का हमारे अकेलेपन और तन्हाईयों का। दिल की गहराईयों में दफ्न हो चुके गुजरे हुए कल का। हमारे आस-पास घटती हर अच्छाई और बुराई का। जिन्हें हम शब्दों की चाशनी में लपेट कर कोरे कागज की थाली में परोस कर आपके सामने रख देते हैं।

शनिवार, 3 दिसंबर 2016

सच्चा गुरु कौनृ[03/12 11:27 am] Acharya rajesh: ज्ञान से त्याग उत्पन्न होता है लेकिन किस चीज़ का और कितना त्याग ? हरेक गुरू ने अलग अलग चीज़ों का त्याग करना बताया और उनका स्तर भी अलग अलग ही बताया। इनमें से किसने ठीक बताया है ?, यह भी एक प्रश्न है। जितने लोगों को आज गुरू माना जाता है। वे ख़ुद जीवन भर दुखी रहे और जिसने भी उनके रास्ते पर चलने की कोशिश की उस पर भी दुख का पहाड़ टूट पड़ा। बुरे लोगों ने गुरू और उनके शिष्यों को ख़ूब सताया। बुरे लोगों ने गुरूओं और उनके शिष्यों के प्राण तक लिए हैं। अच्छे लोगों ने संसार का त्याग किया तो बुरे लोगों ने संसार पर राज्य किया। इस तरह संसार का त्याग करने वाले बुरे लोगों के रास्ते से ख़ुद ही हट गए और बुरे लोगों ने समाज का डटकर शोषण किया। संसार का त्याग करने से न तो अपना दुख नष्ट हुआ और न ही समाज का। यह और बात है कि किसी ने अपने अहसास को ही ख़त्म कर लिया हो। उसकी बेटी विधवा हुई हो तो वह रोया न हो। उसने अपनी बेटी के दुख को अपने अंदर महसूस ही न किया हो कि उसकी बेटी पर क्या दुख गुज़रा है ? उसके घर में कोई जन्मा हो तो वह ख़ुश न हुआ हो। उसके घर में कोई मर भी जाए तो वह दुखी न होगा। उसका मन संवेदना जो खो चुका है। वह अपने मन में ख़ुशी और दुख के हरेक अहसास को महसूस करना बंद कर चुका है। उसमें और एक पत्थर में कोई फ़र्क़ नहीं बचा है। अब वह एक चलते फिरते पत्थर में बदल चुका है। ऐसे लोग परिवार छोड़ कर चले जाते हैं या परिवार में रहते भी हैं तो उनकी मनोदशा असामान्य बनी रहती है। जब तक हमारी खाल तंदरूस्त है, वह ठंडक और गर्मी को महसूस करती है। उसके ऐसा करने से हमें दुख अनुभव होता है। वह ऐसा करना बंद कर दे। हममें से यह कोई भी न चाहेगा क्योंकि इसका मतलब है रोगी हो जाना लेकिन दिल को सुख दुख का अहसास बंद हो जाए, इसके लिए लोगों ने ज़बर्दस्त साधनाएं कीं। जो विफल रहे वे तो नाकाम ही रहे और जिनकी साधना सफल हुई, वे उनसे भी ज़्यादा नाकाम रहे। उनके दिल से सुख दुख का अहसास जाता रहा।सुख दुख का अहसास है तो आप चंगे हैं। दुख मिटाने की कोशिश में आपका दिल संवेदना खो देगा। तब आप न ख़ुशी में ख़ुश होंगे और न दुख में दुखी होंगे। आप समझेंगे कि मुझे ‘सम‘ अवस्था प्राप्त हो गई है लेकिन हक़ीक़त में मानवीय संवेदना की स्थिति जो आपको प्राप्त थी, आपने उसे खो दिया है इच्छा, कामना, तृष्णा और संबंध दुख देते हैं तो दें इन्हें छोड़कर दुख से मुक्ति मिलती है तो उस मुक्ति का अचार डालना है क्या हम किसी के उपयोग के न बचें, जगत की किसी वस्तु का हम उपयोग न करें और अगर करें तो उसमें लिप्त न हों इस सबका लाभ क्या है ? दुख से मुक्ति वह संभव नहीं है कोई बुरा आदमी हमें न भी सताए, तब भी औरत बच्चे को जन्म देगी तो उसे दुख अवश्य होगा दुख हमेशा हमारे कर्म में लिप्त होने से ही उत्पन्न नहीं होता दुख हमारे जीवन का अंग है। परमेश्वर ने हमारे जीवन को ऐसा ही डिज़ायन किया है परमेश्वर ने हमारे जीवन को ऐसा क्यों बनाया है परमेश्वर हमें न बताए तो हम इस सत्य को जान नहीं सकते। जीवन के सत्य को जानने के लिए हमें परमेश्वर की ज़रूरत है क्योंकि सत्य का ज्ञान केवल उसी सर्वज्ञ को है। मनुष्य का गुरू वास्तव में सदा से वही है सच्चा गुरू वह है जो जीने की राह दिखाता है सच्चा गुरू आपको इसी समाज में जीन सिखाएगा। वह आपको पत्नी और परिवार के प्रति संबंधों का निर्वाह सिखाएगा परिवार को छोड़कर भागना वह न सिखाएगा सन्यास को वह वर्जित बताएगा। वह आपको जज़्बात में जीना सिखाएगा। वह आपके दिल की सेहत को और बढ़ाएगा। वह सुख और दुख को महसूस करना और उस पर सही प्रतिक्रिया देना सिखाएगा वह आपको काम, क्रोध, लोभ, मोह को छोड़ने के लिए नहीं कहेगा। वह इनका सकारात्मक उपयोग सिखाएगा। ज़हर का इस्तेमाल दवा के रूप में भी होता है। वह हमें अपने दुखों की चिंता छोड़कर दूसरों के दुख में काम आना सिखाएगा वह अपनी वाणी में यह सब विस्तार से बताएगा। अपनी वाणी के साथ वह उसके अनुसार व्यवहार करने वाले एक मनुष्य को भी लोगों का आदर्श बनाएगा ताकि लोग जान लें कि क्या करना है और कैसे करना है ? परमेश्वर अपने ज्ञान के कारण स्वयं गुरू है और आदर्श मनुष्य उसके ज्ञान के कारण और उसके द्वारा चुने जाने के कारण गुरू है। लोग ईश्वर की वाणी को भी परख सकते हैं और उसके द्वारा घोषित आदर्श व्यक्ति को भी। परमेश्वर के कर्म भी हमारे सामने हैं और आदर्श मनष्य के कर्म भी। प्रकृति ओर इतिहास दोनों हमारे सामने हैं। सच्चे गुरू को पाना बहुत आसान है लेकिन उसके लिए पक्षपात और पूर्वाग्रह छोड़ना पड़ेगा दुनिया में जितने लोगों ने मनुष्य को जीवन का मक़सद और उसे पाने का तरीक़ा बताया है। आप उन सबके कामों पर नज़र डालिए और देखिए कि वे ख़ुद समाज के कमज़ोर और दुखी लोगों के दुख में काम कैसे आए और कितना आए . और उन्होंने एक इंसान को दूसरे इंसान के काम आने के लिए क्या सिखाया और उन्होंने अपने बीवी-बच्चों की देखभाल का हक़ कैसे अदा किया [03/12 11:39 am] Acharya rajesh: उनमें से जिसने यह काम सबसे बेहतर तरीक़े से किया होगा, उसने अपने अनुयायियों का साथ एक दोस्त की तरह ही दिया होगा और उनके भीतर छिपी समझ को भी उन्होंने जगाया होगा और तब उनके दिल की गहराईयों में जो घटित हुआ होगा, उसे बेशक आत्मबोध कहा जा सकता है। आत्मबोध से आपको अपने कर्तव्यों का बोध होगा और उन्हें करने की भरपूर ऊर्जा मिलेगी। उन कर्तव्यों के पूरा होने से आपके परिवार और समाज का भला होगा। किसी के कर्म देखकर ही उसके मन की गहराईयों के विचारों को जाना जा सकता है कि उसके मन में सचमुच ही ‘आत्मबोध‘ घट चुका है। इसी के बाद आदमी को ज्ञान होता है कि किस चीज़ को कितना और कैसे त्यागना है और क्यों त्यागना है ? और किस चीज़ को कितना और कैसे भोगना है और क्यों भोगना है ? जगत का उपभोग यही कर पाते हैं और यह जगत बना भी इसीलिए है दुनियावी जीवन को सार्थक करने वाले यही लोग हैं यही लोग सीधे रास्ते पर हैं और यही लोग सफलता पाने वाले हैं

आने वाले 2017नूतन वर्ष के इस सुप्रभातकारी आगमन की सुमधुर वेला में 'स्वास्थ्य-सुख' परिवार की ओर से अपने सभी पाठकों, समर्थकों, व मित्रो सहित सभी परिचित-अपरिचित साथियों को इस नूतन वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ.... परम-पिता परमेश्वर से कामना है कि आप सहित आपके परिजनों व मित्रों के जीवन में नई उमंगें, व खुशियों के आगमन सहित उनकी सभी कामनाएँ आगामी 365 दिनों के इस कालखंड में सम्पूर्णता को प्राप्त हों. नववर्ष मुबारक

लाल का किताब के अनुसार मंगल शनि

मंगल शनि मिल गया तो - राहू उच्च हो जाता है -              यह व्यक्ति डाक्टर, नेता, आर्मी अफसर, इंजीनियर, हथियार व औजार की मदद से काम करने वा...