ज्योतिषी भी उजाड़ देते हैं जिंदगी। कैसे देखें यह कुंडली एक कन्या की है,सिंह लगन है स्वामी सूर्य है,भाग्य के मालिक मंगल है पति का मालिक शनि है,पति के भाग्य का मालिक शुक्र है,धन और लाभ का मालिक बुध है,लगनेश सूर्य भाग्येश और चतुर्थेश मंगल लाभेश और धनेश बुध एक साथ ही भाग्य भाव मे विराजमान है.
मंगल स्वराशि मे है शुक्र भी स्वराशि मे है,चन्द्रमा स्वराशि मे है,शनि उच्च राशि मे जाकर वक्री हो गया है,राहु उच्च का है लेकिन लाभ भाव मे है और केतु भी उच्च राशि मे लेकिन पंचम मे जाकर अपना प्रभाव जीवन मे देने के लिये बैठ गया है। जातिका के पति भाव को राहु केतु शनि तीनो ने अपने अपने अनुसार बल दिया है।कन्या का विवाह विच्छेद केवल इसलिये हो गया है क्योंकि एक ज्योतिषी ने कन्या के पति को राय दे डाली कि यह कन्या भाग्यहीन है। इस कुंडली के अनुसार जब कन्या के भाग्य में भाग्य के मालिक विराजमान है,कन्या तीन तीन विषयों मे डिग्री लेकर बैठी है,कन्या के लगनेश सूर्य भाग्य के ही घर मे विराजमान है लाभ और धन के मालिक कन्या के भाग्य मे विराजमान है फ़िर उन ज्योतिषी जी को कैसे समझ मे आ गया कि कन्या भाग्य हीन है ? जिस दिन से कन्या ने जन्म लिया उसके पिता की दिनो दिन बढोत्तरी हो गयी,जिस दिन से कन्या ने जन्म लिया पिता की साख जनता मे बहुत अच्छी हो गयी,फ़िर कन्या कहां से भाग्य हीन हो गयी। इससे लगता है कि कन्या के पति ने अपने भाग्य को मिटाने के लिये कुचक्र पैदा किया और किसी अज्ञानीज्योतिषी से कहला दिया कि कन्या भाग्य हीन है। कन्या के पति भाव का मालिक शनि है शनि कन्या के तीसरे भाव मे वक्री है,वैसे तो शनि उच्च राशि का होकर तुला राशि मे विराजमान है,लेकिन नियम के अनुसार जब कोई ग्रह उच्च का होकर वकी हो जाता है तो वह नीच का फ़ल देने लगता है। पति के ग्यारहवे भाव मे केतु विराजमान है ग्यारहवा केतु धनु राशि का है,कहने को तो उच्च राशि मे है लेकिन पति के लाभ भाव को केतु अपनी शक्ति दे रहा है,और पति के पंचम मे विराजमान राहु का असर लेकर पति की व्यापारिक बुद्धि का उल्टा फ़ायदा लेकर पति को चंद रुपयों के लिये बनायी हुयी राय जो खुद ने ही प्रकाशित की होगी या किसी घटिया सोफ़्टवेयर से कुंडली को निकाल कर दिखा दिया होगा और कह दिया होगा कि उसकी पत्नी भाग्यहीन है। मित्रों इसलिए अपनी कुंडली कैसे सही ज्योतिषी जो पूरा ज्ञान रखता हो को ही दिखाएं मित्रों रतन भी अगर आप पहन रहे हैं तो किसी अच्छे रतन एक्सपर्ट ज्योतिषी को ही मिलकर ले अब पुखराज का ही उदाहरण लें पुखराज कई किस्मों में कई रंगों में मिलता है अब आपको कोई पुखराज बताता है तो आप अपने हिसाब से बाजार से लेकर पहन लेते हैं जो आपको उल्टा असर भी दे सकता है अब पुखराज कौन सा पहनना है यह अपने ज्योतिषी को पूछ कर दिखा कर ही लेओर देखें कुंडली कर्क राशि की है,चन्द्रमा का स्थान राहु से दूसरे भाव मे है यह कन्या डरने वाली है,लेकिन उसे दम देने के लिये मंगल जो नवे भाव का है ने राहु को कन्ट्रोल करने केलिये अपनी शक्ति दी है,अष्टम और पंचम का मालिक गुरु भी चौथे भाव मे वृश्चिक राशि का होकर वक्री है,वर्तमान मे राहु ने भी गुरु पर अपना असर दिया है और वह कनफ़्यूजन मे है,गुरु यानी रिस्ते को कनफ़्यूजन मे देकर बरबाद करने के लिये भी माना जा सकता है,गुरु का सम्बन्ध दसवे शुक्र से भी है शुक्र कार्य और तीसरे भाव का मालिक है,जातिका के पति भाव से शुक्र का स्थान चौथे भाव मे है,इस प्रकार से पति के दिमाग मे एक सात दो स्त्रियों का होना भी माना जा सकता है। कन्या का विवाह जहां होता है वहां की स्त्रियां अपने अनुसार कन्या के पैतृक परिवार की समृद्धि देख कर सहन नही कर पाती है। साथ ही मंगल का स्वराशि मे होने के कारण और सूर्य के साथ होने से मंगल का राहु हो पति भाव से पंचम मे स्वछन्द गति से अपने अनुसार हमेशा बदलने वाले रिस्तो को अपनाने के कारण और राहु से बारहवे शुक्र यानी स्त्री जाति को केवल भोग्या समझने के कारण वह कन्या के परिवार का अंकुश सहन नही कर पाया यह भी कारण हो सकता है,इसके अलावा भी राहु जो कन्या के परिवार से कन्ट्रोल किया गया है राहु ग्यारहवे भाव मे ज्योतिषी का रूप धारण कर लेता है और वह केवल लाभ के लिये अपने कार्यों को करता है साथ ही धर्म कर्म से सम्बन्धित दो लोगो को अपने साथ लेकर चलता है पूजा पाठ कर्मकांड आदि के काम वह अपने अनुसार करवाता है साथ ही वह इन कार्यों के बदले मे वह अच्छे धन को प्राप्त करने के लिये अपनी बुद्धि का प्रयोग करता है। उस ज्योतिषी ने कन्या परिवार से भी किसी पूजा या कर्मकांड के लिये धन की मांग की होगी और कन्या परिवार ने अपने प्रभाव के कारण उस ज्योतिषी को कन्ट्रोल करने के लिये अपनी शक्ति का प्रयोग किया होगा उस ज्योतिषी ने अपने कर्म कांड का हवाला देकर पति परिवार को अपने ग्रहण मे लिया होगा और पति के परिवार ने उस ज्योतिषी की बात को सही मानकर कन्या से छुटकारा करने के लिये तलाक लेने का कार्य रचा होगा। वक्री शनि की नजर पंचम केतु पर है,पति के द्वारा विदेशी कार्य किसी ब्रोकर से करवाये जा रहे होंगे,पिछले समय मे जन्म के केतु पर गोचर के राहु ने अपने कनफ़्यूजन को दिया,पति के किये जाने वाले कार्य और लाभ देने वाले विदेशी ब्रोकर से लाभ का आना बन्द हो गया,साथ ही पति भाव से ग्यारहवे राहु और जन्म के छठे चन्द्रमा से युति होने के कारण जो कार्य प्लान बनाकर किये जा रहे थे वह सभी कनफ़्यूजन मे चले गये और पति को यह लगने लगा कि उसकी शादी के बाद से ही सब कुछ उल्टा होने लगा है इसलिये भी पति ने ज्योतिषी से राय ली और पूरी पत्री की व्याख्या जाने बिना उस ज्योतिषी ने अपनी राय मे कह दिया कि उसकी पत्नी का भाग्य सही नही है इसलिये उसका कारोबार दिक्कत मे आ गया है।
जब तक विवाह भाव को सही नही देखा जाता है और विवाह तथा साझेदारी को स्पष्ट तरीके से विवेचना मे नही लाया जाता है कोई भी व्यक्ति हरगिज किसी सही नतीजे पर नही पहुंच सकता है। जब सूर्य मंग्ल बुध एक ही भाव मे है और भाग्य भाव मे है तपते हुये मंगल को सूर्य की रोशनी मिल जाती है तो वह अपने वास्तविक रूप मे आजाता है। बुध का साथ मिलने पर वह बुध जो कोमल प्रकृति का होता है दोनो के प्रभाव से कुम्हला जाता है। पति भाव से तीसरे भाव मे सूर्य मंगल के होने से यही कारण माना जाता है.सूर्य मंगल बुध अगर त्रिकोण मे है तो तीन भाई का योग होता है,कारण तीनो ही ग्रह पुरुष राशि मे होने के कारण पुरुषत्व को प्रकट करते है,सूर्य और मंगल मित्र है इसलिये दो भाई जातिका के आज्ञाकारी है और जो जातिका कहती है उसे करने को तैयार हो जाते है इस बात पर भी जातिका के पति को डर लगने लगा हो कि उसने कभी कोई ऐसी वैसी बात वैवाहिक जीवन के अन्दर पैदा की तो जातिका के दोनो भाई क्या से क्या कर सकते है। इसलिये भी कोई कारण नही मिलने पर जातिका के पति ने ज्योतिषी को लोभ देकर कन्या को भाग्यशाली करार दिलवाया हो। जातिका का एक भाई किसी एजेन्सी का कार्य करता है,अक्सर यह सम्बन्ध यात्रा के अन्दर बनते है और जो सम्बन्ध सिंह राशि के यात्रा मे बनते है वे अक्सर धोखा ही देने के लिये माने जाते है।चन्द्र गुरु की युति भी खतरनाक बन जाती है,पति का पिता धार्मिक हो सकता है,लेकिन जातिका की मां धर्म पर विश्वास करने वाली नही होती है,दोनो के सम्बध बनने का कारण चन्द्र गुरु की युति से भी मिलता है जातिका के माता पिता कहीं दूर से जाकर बसे हो और जो समबन्ध बना है वह अनजान लोगो का हो,साथ ही वक्री गुरु का एक प्रभाव यह भी देखा जाता है कि जब वक्री गुरु वक्री शनि के घेरे मे हो तो व्यक्ति जहां रहता है वहां की सभ्यता मर्यादा सामाजिकता आदि सभी विरोध करने वाला होता है,वह उल्टे कार्य करता है और उसके यह कार्य जातिका को सही नही लगे वह उसके अनुसार नही चली हो,इसके बाद भी गुरु चन्द्र की युति अगर कन्या की कुंडली मे मिलती है तो अपने आप ही कन्या की सास से नही बनती है,किसी न किसी बात पर बेकार का मनमुटाव बन जाता है यह प्रभाव गुरु के वक्री होने पर अपने आप ही नफ़रत का रूप ले लेता है। कन्या की सास डायबटीज की रोगी भी होती है और बीमार भी होती है वह बहू के स्थान पर नौकरानी चाहती है लेकिन तीन तीन डिग्री धारण करने वाली कन्या कैसे किसी की नौकरानी बन सकती है।इस प्रकार से कहा जा सकता है कि जातिका बहुत भाग्य शाली है लेकिन भाग्य को प्रयोग करने के लिये मर्द की जरूरत होनी चाहिये अगर कोई चालाक और झूठ पर अपनी गाडी चलाने वाला होगा तो वह ज्योतिषी की राय को ही मानेगा,कहा भी गया है कि पुरुषार्थ सितारों को चलाने वाला होता है और कामचोर को सितारे चलाते रहते है,पुरुषार्थी ज्योतिष से केवल अच्छे और बुरे समय को इसलिये पूंछते है कि उन्हे पहले से क्या तैयारी करनी है जबकि कामचोर केवल ज्योतिष को इसलिये पूंछते है कि वे बिना कार्य किये कैसे मुफ़्त का माल ले सकते है।
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