जन्म, विवाह एवं मृ्त्यु ये तीनों ही जीवन के अति महत्वपूर्ण पडाव या कहें कि अंग माने गये हैं। बेशक जन्म और मृ्त्यु पर तो किसी का भी वश नहीं,किन्तु विवाह एक ऎसा माँगलिक कार्य है जिसके प्रति पुरातन एवं आधुनिक परिस्थितियों को ध्यान में रख कर यदि थोडी सी समझदारी दिखाई जाए तो जीवन को सुखपूर्वक व्यतीत किया जा सकता है। विवाह जिसका मर्म दो आत्माओं का स्वरैक्य है,जीवन में प्रेम, सहानुभूति,कोमलता,पवित्रता तथा भावनाओं का विकास है।आजकल समयाभाव के कारण विवाह की अत्यन्त जटिल विधि को भी बहुत थोडे समय में तुरत फुरत निपटाने की एक परम्परा ही चल पडी है। लेकिन इन सब में भी एक बात जो सबसे अधिक महत्व रखती है,वो है विवाह पूर्व लडका-लडकी की जन्म पत्रिका का मिलान किया जाना। इससे परिणय सूत्र में बँधने वाले वर-वधू के जन्मकालीन ग्रहों तथा नक्षत्रों में परस्पर साम्यता, मित्रता तथा संबंध पर विचार किया जाता है। शास्त्रों में मेलापक के दो भेद बताए गए हैं। एक ग्रह मेलापक तथा दूसरा नक्षत्र मेलापक। इन दोनों के आधार पर वर-वधू की शिक्षा, चरित्र,भाग्य,आयु तथा प्रजनन क्षमता का आकलन किया जाता है। नक्षत्रों के "अष्टकूट"(वर्ण,वश्य,तारा,योनि,ग्रह मैत्री,गण,भकुट,नाडी) तथा नौ ग्रह इत्यादि इस रहस्य को व्यक्त करते हैं।वैसे तो अक्सर ये भी देखने सुनने में आ जाता है कि कुण्डली मिलान के पश्चात भी पति-पत्नि में आपसी तनाव,गृ्हस्थ सुख में न्यूनता,सम्बन्ध विच्छेद रुपी दुष्परिणाम भोगने पड जाते हैं। आखिर ऎसा क्यूं होता है। इसका सबसे बडा कारण तो वो आधे अधूरे ज्योतिषी हैं, जो अपना अधकचरा ज्ञान लेकर सिर्फ गुण मिलान की संख्या को ही मेलापक की इतिश्री समझ लेते हैं। इन लोगों की नजर में यदि गुण संख्या 18 से कम हुई तो मिलान ठीक नहीं है ओर यदि संख्या 18 से अधिक हुई तो समझिये मिलान अच्छा है। गुण संख्या के अतिरिक्त मेलापक में ग्रह मिलान एवं अन्य बहुत सी बातें देखी जाती हैं,जिसका कि एक ज्योतिषी को पूर्णत: ज्ञान होना अति आवश्यक है। यदि कोई व्यक्ति सिर्फ गुणों के आधार पर मेलापक निष्कर्ष निकालता है तो समझिए वो ज्योतिषी नहीं बल्कि कोई घसियारा है,जिसने जीवन में ज्योतिष के नाम पर सिर्फ घास ही खोदी है एक ओर कारण जो कि इस विषय में उतरदायी है--वो है तकनीक पर अति निर्भरता।आजकल एक बात बहुत प्रचलन में आ गयी है कि शादी विवाह के मामले में कम्पयूटर से फ़टाफ़ट गुण मिलाकर शादी करने या नही कर देने के कारण कितने ही रिस्ते या तो शादी के बाद बिगड जाते है या जो रिस्ते कम्पयूटर से नही बनते है वे अपनी अपनी औकात को लेकर सभी प्रकार की शिक्षा को बेकार समझ कर एक तरफ़ कर दिये जाते है। हमेशा जरूरी नही है कि कम्पयूटर अपनी समझ को सही रूप में प्रकट करेगा।भई विज्ञान अभी इतना सूझवान नहीं हो पाया है कि कम्पयूटर जैसी मशीन के जरिये इन्सानी बुद्धि का काम ले सके। इसके जरिये सिर्फ कुंडली में ग्रह नक्षत्रों की स्थिति व गुण दोष ही स्पष्ट हो पाते हैं। विवाह के लिये जरूरी जन्मपत्री का वास्तविक मिलान नहीं हो पाता। कम्पयूटर के जरिये आप सिर्फ गुण मिलान की संख्या के बारे में जान सकते हैं,जीवन पर कुंडली का क्या प्रभाव रहेगा, यह बताने में अभी कंप्यूटर बाबा जी समर्थ नहीं हो पाये हैं। दरअसल यह तो एक ज्योतिष विद्वान के अनुभव आधारित ज्ञान में ही छिपा रहता है,जिसका स्थान कम्पयूटर कदापि नहीं ले सकता।
सबसे बडी बात जब और समझ में आती है जब कम्पयूटर से अष्टकूट गुण मिलान कर दिया जाता है और किसी न किसी प्रकार का नाडी भकूट वश्य आदि दोष लगाकर पत्रिका मिलान को कर दिया जाता है,राशि के अनुसार ही पत्री को मिलाया जाता है और नाम को दरकिनार कर दिया जाता है।
पिछले कुछ साल से यह प्रचलन काफ़ी बढा है उसके पहले शादी को नाम से मिला दिया जाता था और जो शादिया नाम से मिलाकर की गयी वे आज तक सलामत है और पूरी की पूरी वैवाहिक जिन्दगी को पूरा किया है। इसके साथ ही चाहे गुण पूरे छत्तिस मिले लेकिन दो माह बाद तलाक का मामला या तो अदालत में चला गया या फ़िर पत्नी या पति ने अपने ध्यान को दुष्कर्म की तरफ़ बढा दिया।
चन्द्रमा की वैसे तो चौसठ कलायें है और हर कला को कम्पयूटर से नही निकाला जा सकता है। इसका भी कारण है कि नक्षत्र भेद को दूर किया जा सकता है भकूट दोष को भी दूर किया जा सकता है लेकिन राशि भेद को सामने रखकर भी लोग एक दूसरे पर आक्षेप देने के लिये जाने जाते है।
कम्पयूटर अस्त चन्द्रमा से दूर रहेगा,वह तो केवल चन्द्रमा की गति को ही अपने केलकुलेशन में लायेगा। कम्पयूटर से अक्सर वक्री ग्रह का भेद भी नही बखान किया जाता है सूर्य और चन्द्रमा की गति पर भी निर्भरता नही दी जाती है।
जातक के जो भी नाम शुरु से प्रसिद्धि में चले गये होते है उनके बारे में दक्षिण भारत की नाडी प्रथा के अनुसार गणना करने पर अक्सर सही नाडी में ही देखे गये है और जो भी नाम से शादी विवाह मिलाये जाते है वे अक्सर सही और आजीवन साथ निभाने के लिये चलते देखे गये है।विवाह पश्चात वर एवम कन्या की परस्पर अनुकूलता तथा परिवारिक सामंजस्य हो,दोनों ही दीर्घायु हो,धन-संपत्ति एवम संतान का उत्तम सुख प्राप्त हो, इसी उद्देश्य से हमारे ऋषि-मुनिओं ने अपने ज्ञान एवम अनुसन्धान के आधार पर जन्मकुण्डली मेलापन की इस श्रेष्ठ पद्दति का विकास किया था। लेकिन शायद इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि जहाँ एक ओर आधे अधूरे ज्योतिषी,गलत मिलान के परिणामस्वरूप भावी दम्पति के वैवाहिक जीवन से खिलवाड कर रहे हैं। वहीं कुछ विद्वान अपने अल्पज्ञान का परिचय देते हुए विवाह पूर्व कुण्डली मिलान के औचित्य को ही नकार रहे हैं। मैं इन लोगों से सिर्फ इतना कहना चाहूँगा कि मुहूर्त तथा विवाह इत्यादि जो कि वैदिक ज्योतिष के मुख्य अंग है---इनमें से यदि किसी एक भी अंग को अलग किया गया तो ये विधा ही पंगु हो जाएगी। अंगहीन तो मनुष्य भी किसी काम का नहीं रहता,फिर ये तो विधा है। जरूरत है तो सिर्फ उसे समझने की ओर ज्ञान को उसकी पूर्णता के साथ स्वीकार करने की।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें