शुक्रवार, 29 जून 2018

तंत्र-विद्या : कितनी बुरी और कितनी भली

तंत्र-विद्या : कितनी बुरी और कितनी भली                                           __'_________                         तंत्र का जगत बौद्धिक नहीं है, दार्शनिक नहीं है। सिद्धांत इसके लिए अर्थ नहीं रखता। यह उपाय की, विधि की चिंता करता है। तंत्र शब्द का अर्थ ही है विधि, उपाय, मार्ग। तंत्र का अर्थ विधि है। इसलिए यह एक विज्ञान  है। विज्ञान ‘क्यों’ की नहीं, ‘कैसे’ की फिक्र करता है। दर्शन और विज्ञान में यही बुनियादी भेद है। दर्शन पूछता है: यह अस्तित्व क्यों है? विज्ञान पूछता है: यह अस्तित्व कैसे है? तंत्र विज्ञान है, दर्शन नहीं।वैसे देखा जाए तो तंत्र कि परिभाषा लोग अलग अलग देते हैं लेकिन उसमे एक बात सामान्य है और वो है शरीर को साधना | तंत्र-विद्या, को अंग्रेजी में ‘ऑकल्ट’ कहते हैं
|तंत्र-विद्या को आम बोलचाल की भाषा में जादू-टोना समझ सकते हैं। यह विद्या महज एक टेक्नोलॉजी है। आज आप भारत में अपना मोबाइल फोन उठा कर जब चाहें अमेरिका में किसी से बात कर सकते हैं। तंत्र-विद्या भी कुछ ऐसा ही है - अंतर बस यही है कि इसमें आप सेलफोन के बिना ही अमेरिका में किसी से बात कर सकते हैं। यह थोड़ी ज्यादा उन्नत टेक्नोलॉजी है। वक्त के साथ जब आधुनिक टेक्नोलॉजी का और विकास होगा, तब उसके साथ भी ऐसा ही होगा। अभी ही मेरे पास एक ब्लू -टूथ मेकेनिज्म है, जिसमें किसी का नाम बोलने भर से मेरा फोन उसका नंबर डायल करने लगता है। एक दिन ऐसा आएगा, जब इसकी भी जरूरत नहीं रह जाएगी। बस, शरीर में एक छोटा-सा इम्प्लांट लगाने से सारा काम हो जाएगा।तंत्र-विद्या भी इसी तरह एक टेक्नोलॉजी है, लेकिन एक अलग स्तर की, पर है भौतिक ही। यह सब करने के लिए आप अपने शरीर, मन और ऊर्जा का इस्तेमाल कर रहे हैं। टेक्नोलॉजी चाहे जो हो, आप अपने शरीर, मन और ऊर्जा का ही इस्तेमाल करते हैं। आम तौर पर आप अपनी जरूरतों के लिए दूसरे पदार्थों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन एक सेलफोन या किसी टेक्नोलॉजी के उत्पादन के लिए जिन बुनियादी पदार्थों का उपयोग होता है, वे शरीर, मन और ऊर्जा ही होते हैंचूंकि लोगों ने ऐसे बुरे तांत्रिकों के बारे में सुन रखा है, जिन्होंने लोगों की जिंदगी बरबाद करने की कोशिश की या जिन्होंने लोगों को बीमार बनाया और मार डाला, इसलिए जब आप तंत्र-विद्या या जादू-टोने का नाम लेते हैं, तो वे समझते हैं कि यह हमेशा बुरा होता है। सामाजिक दृष्टि से संभव है आपने ऐसे ही लोगों को देखा हो। मगर तंत्र-विद्या बहुत ऊंची श्रेणी की भी होती है। शिव एक तांत्रिक हैं। जादू-टोना एक अच्छी और लाभकारी शक्ति हो सकता है। यह अच्छा है या बुरा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि इसका उपयोग कौन और किस मकसद से कर रहा है।
तंत्र-विद्या योग का सबसे निम्न रूप है, लेकिन लोग सबसे पहले यही करना चाहते हैं। वे कुछ ऐसा देखना या करना चाहते हैं, जो दूसरे नहीं कर सकते।
जब हम योग कहते हैं, तो किसी भी संभावना को नहीं छोड़ते |  इसके अंदर सब कुछ है। अगर आप अपने दिमाग को इतना धारदार बना लें कि वह हर चीज को आरपार देख-समझ सके, तो यह भी एक प्रकार का तंत्र है । अगर आप अपनी सारी ऊर्जा को अपने दिल पर केंद्रित कर दें ताकि आपमें इतना प्यार उमड़ सके कि आप हर किसी को उसमें सराबोर कर दें, तो वह भी तंत्र है। अगर आप अपने भौतिक शरीर को जबरदस्त रूप से शक्तिशाली बना लें कि उससे आप कमाल के करतब कर सकें, तो यह भी तंत्र है। या अगर आप अपनी ऊर्जा को इस काबिल बना लें कि शरीर, मन या भावना का उपयोग किए बिना ये खुद काम कर सके, तो यह भी तंत्र है।
तो तंत्र कोई अटपटी या बेवकूफी की बात नहीं है। यह एक खास तरह की काबिलियत है।  आप जो “बाजार” में घूमते जिन ढोंगी तांत्रिक बाबाओं को देखते हैं,, जो की आम जनता की आँखों में धुल झोंक के उन्हें ताबीज,यन्त्र बाँटते चलते हैं,,,,, मैं उनकी बात नहीं कर रहा | वह सच्चा तंत्र नहीं है | वह केवल ढोंग, छलवा हैतंत्र- शास्त्र से तात्पर्य उन गूढ़ साधनाओं से है जिनके द्वारा इस संसार को संचालित करने वाली विभिन्न दैवीय शक्तियों का आव्हान किया जाता है । तंत्र साधना के समय उच्चारित मंत्र, विभिन्न मुद्रायें एवं क्रियाएं अत्यंत व्यस्थित, नियमित एवं नियंत्रित तरीके से होती हैं ।  तंत्र में श्मशान, उजाड़ स्थान आदि को इसलिए चुना जाता है जिससे कि साधक का जीवन के अंतिम सत्य से साक्षात्कार हो सके तथा उसे ईश्वर की सार्वभौमिकता एवं जीवन की निरर्थकता का आभास हो। यह एक तरह की ऐसी विद्या है जो व्यक्ति के शरीर को अनुशासित बनाती है, शरीर पर खुद का नियंत्रण बढ़ाती है।
एक बार “माता पार्वतीजी” ने “परमपिता महादेव शिव” से प्रश्न किया की—— ” हे महादेव, कलयुग मे धर्म या मोक्ष प्राप्ति का क्या मार्ग होगा ” ?
उनके इस प्रश्न के उत्तर मे महादेव शिव ने उन्हे समझते हुए जो भी व्यक्त किया तंत्र उसी को कहते हैं।
योगिनी तंत्र मे वर्णन है की कलयुग में लोग वेद में बताये गए नियमो का पालन नही करेंगे। इसलिए नियम और शुद्धि रहित वैदिक मंत्र का उच्चारण करने से कोई लाभ नही होगा। जो व्यक्ति वैदिक मंत्रो का कलयुग में उच्चारण करेगा उसकी व्यथा एक ऐसे प्यासे मनुष्य के समान होगी जो गंगा नदी के समीप प्यासे होने पर कुआँ खोद कर अपनी प्यास बुझाने की कोशिश में अपना समय और उर्जा को व्यर्थ करता है। कलयुग में वैदिक मंत्रो का प्रभाव ना के बराबर रह जाएगा। और गृहस्त लोग जो वैसे ही बहुत कम नियमो को जानते हैं उनकी पूजा का फल उन्हे पूर्णतः नही मिल पायेगा ।
महादेव ने बताया की वैदिक मंत्रो का पूर्ण फल सतयुग, द्वापर तथा त्रेता युग में ही मिलेगा.
तब माँ पार्वती ने महादेव से पुछा की कलयुग में मनुष्य अपने पापों का नाश कैसे करेंगे? और जो फल उन्हे पूजा अर्चना से मिलता है वह उन्हे कैसे मिलेगा?
इस पर “शिव जी” ने कहा की कलयुग में तंत्र साधना ही सतयुग की वैदिक पूजा की तरह फल देगा। तंत्र में साधक को बंधन मुक्त कर दिया जाएगा। वह अपने तरीके से इश्वर को प्राप्त करने के लिए अनेको प्रकार के विज्ञानिक प्रयोग करेगा।परन्तु ऐसा करने के लिए साधक के अन्दर इश्वर को पाने का नशा और प्रयोगों से कुछ प्राप्त करने की तीव्र इच्षा होनी चाहिए।तंत्र के प्रायोगिक क्रियाओं को करने के लिए एक तांत्रिक अथवा साधक को सही मंत्र, तंत्र और यन्त्र का ज्ञान जरुरी है। मंत्र एक सिद्धांत को कहते हैं। किसी भी आविष्कार को सफल बनाने के लिए एक सही मार्ग और सही नियमों की आवश्यकता होती है। मंत्र वही सिद्धांत है जो एक प्रयोग को सफल बनाने में तांत्रिक को मदद करता है। मंत्र द्वारा ही यह पता चलता है की कौन से तंत्र को किस यन्त्र में समिलित कर के लक्ष्य तक पंहुचा जा सकता है । मंत्र के सिद्ध होने पर ही पूरा प्रयोग सफल होता है।जैसे “क्रिंग ह्रंग स्वाहा” एक सिद्ध मंत्र है। श्रृष्टि में इश्वर ने हरेक समस्या का समाधान स्वयम दिया हुआ है। ऐसी कोई बीमारी या परेशानी नही जिसका समाधान इश्वर ने इस धरती पर किसी न किसी रूप में न दिया हो। तंत्र श्रृष्टि में पाए गए रासायनिक या प्राकृतिक वस्तुओं के सही समाहार की कला को कहते हैं।मंत्र और तंत्र को यदि सही से प्रयोग किया जाए तो वह प्राणियों के कष्ट दूर करने में सफल है। पर तंत्र के रसायनों को एक उचित पात्र को आवश्यकता होती है। ताकि साधारण मनुष्य उस पात्र को आसानी से अपने पास रख सके या उसका प्रयोग कर सके। इस पात्र या साधन को ही यन्त्र कहते हैं। एक ऐसा पात्र जो तंत्र और मन्त्र को अपने में समिलित कर के आसानी से प्राणियों के कष्ट दूर करे वही यन्त्र है। हवन कुंड को सबसे श्रेष्ठ यन्त्र मन गया है। “आसन”, इत्यादि भी यंत्र माने जाते है। कई प्रकार की आकृति को भी यन्त्र मन गया है,, जैसे “श्री यन्त्र”, “काली यन्त्र”, “महामृतुन्जय यन्त्र” इत्यादि यन्त्र” शब्द “यं” तथा “त्र” के मिलाप से बना है। “यं” को पुर्व में “यम” अर्थात “काल” कहा जाता था। इसलिए जो यम से हमारी रक्षा करे उसे ही यन्त्र कहा जाता है। इसी से समझा जा सकता है कि तंत्र को प्राचीनकाल के बुद्धिजीवियों ने कितने शोध के बाद आम आदमी के लिए प्रतिपादित किया |

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