मां लक्ष्मी संसार मे जन्म लेने वाले बुद्धिधारी जीवो मे मनुष्य का रूप सर्वोपरि है और बुद्धि से काम लेने के कारण मनुष्य को कोई भी शारीरिक शस्त्र जानवरो की तरह से पंजा नाखून सींग चीरने फ़ाडने वाले दांत आदि को प्रकृति ने प्रदान नही किया है। बुद्धि को ही मंत्र के रूप मे जगाया जाता है और जैसे ही बुद्धि काम करने लगती है मनुष्य अपने बल से यंत्रो का निर्माण करना शुरु कर देता है और बुद्धि तथा साधन प्राप्त होते ही मनुष्य जीवन मे अपने सुख साधनो के प्रयोग के लिये अपनी रक्षा के लिये भविष्य की समृद्धि के लिये रास्ते बनाने लगता है ।
बुद्धि को जागृत करने के लिये एक समय विशेष का चुनाव किया जाता है साधन बनाने के लिये भी एक समय विशेष का मूल्य होता है और साधन बनने के बाद उनसे अपने जीवन के कारको की प्राप्ति के लिये भी समय विशेष का कारण माना गया है। एक कहावत कही जाती है कि अस्पताल मे रोग के अनुसार जाना चाहिये,जैसे रोग तो ह्रदय रोग के रूप मे है और टीबी के अस्पताल मे जाया जाये तो रोग की पहिचान भी नही हो पायेगी जो दवा देनी है वह दवा नही मिलकर दूसरी दवाओ के लेने से रोग खत्म भी नही हो पायेगा और दूसरा रोग और पैदा होने की बात बन सकती है। उसी प्रकार से कहावत का दूसरा भाग बताया गया है कि मन्दिर मे भोग,यानी मन्दिर दुर्गा जी का है और वहां पर लड्डू का भोग लगाया जाये तो वह भोग लगेगा ही नही कारण दुर्गा के लिये तामसी भोग की जरूरत होती है और लड्डू तो केवल गणेश जी के लिये ही चढाने का प्रयोग है,उसी प्रकार से अगर हनुमान जी के मन्दिर मे तामसी भोग को चढाया जायेगा तो बजाय लाभ के नुकसान भी हो सकता है,कहावत का तीसरा भाग ज्योतिष मे योग के रूप मे समझना चाहिये,जब तक योग नही हो कोई काम करने से फ़ायदा नही हो पाता है,योग मे तीनो कारक बुद्धि साधन और साधनो से प्राप्त होने वाले लाभ मिलना लाजिमी होता है।
दीपावली को लक्ष्मी की आराधना का त्यौहार बताया जाता है। इस त्यौहार को वणिज कुल के लिये माना जाता है,चारो वर्णो मे तृतीय वर्ण वैश्य वर्ण के लिये दीपावली का त्यौहार बताया गया है,जैसे क्षत्रिय के लिये दशहरा ब्राहमण के लिये रक्षाबन्धन वैश्य के लिये दीपावली और शूद्र वर्ण के लिये होली का त्यौहार बताया जाता है। अर्थ यानी धन सम्पत्ति का कारण आज के युग मे सभी के लिये जरूरी हो गया है और बिना अर्थ की प्राप्ति के शायद ही किसी का जीवन सही चल पाये,अगर बिना अर्थ के कोई भी जिन्दा रहना चाहता है तो वह या तो किसी गुफ़ा कन्दरा मे अपना जीवन निकाल रहा हो या वह सन्यासी बनकर मांग कर भोजन आदि का बन्दोबस्त अपने लिये कर रहा हो आदि कारण माने जा सकते है।,कूर्म पुराण के अनुसार लक्ष्मी का रूप तीन प्रकार का माना जाता है सत के रूप मे अचल लक्ष्मी रज के रूप में चलित लक्ष्मी और तम के रूप मे झटति लक्ष्मी। इन तीनो प्रकार के लिये हर व्यक्ति के धन भाव के तीनो भावो को एक साथ जोडा गया है,और तीनो भावो के अनुसार सत से जोडी गयी लक्ष्मी दूसरे भाव से रज से जोडी गयी लक्ष्मी छठे भाव से और तम से जोडी गयी लक्ष्मी को द्सवे भाव से जोड कर देखा जाता है। प्रत्येक युग मे लक्ष्मी को प्राप्त करने के लिये चारो पुरुषार्थो का प्रयोग किया जाता रहा है। धर्म नाम का पुरुषार्थ मेष सिंह और धनु राशियों के लिये अर्थ नाम का पुरुषार्थ वृष कन्या और मकर राशियों के लिये काम नाम का पुरुषार्थ मिथुन तुला और कुम्भ राशियों के लिये तथा मोक्ष नामका पुरुषार्थ कर्क वृश्चिक और मीन राशियों के लिये माना जाता है।मत मतांतर से अष्टलक्ष्मी के भिन्न- भिन्न नाम व रूपों के बारे में बताया गया है, जो इस प्रकार भी हैं -
1 धनलक्ष्मी या वैभवलक्ष्मी 2 गजलक्ष्मी 3 अधिलक्ष्मी 4 विजयालक्ष्मी 5 ऐश्वर्य लक्ष्मी 6 वीर लक्ष्मी 7 धान्य लक्ष्मी 8 संतान लक्ष्मी ।
इसके अलावा कहीं-कहीं पर 1 आद्यलक्ष्मी 2 विद्यालक्ष्मी 3 सौभाग्यलक्ष्मी 4 अमृतलक्ष्मी 5 कामलक्ष्मी 5 सत्यलक्ष्मी, 6 विजयालक्ष्मी , भोगलक्ष्मी एवं योगलक्ष्मी के रूप में पूजा जाता है
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