कुछ मित्रों ने रत्नों को लेकर कुछ सवाल पूछे हैं कि क्या रत्न काम करते हैं ज्ञान के धारण करने से लाभ मिलता है मित्रोंयह शरीर पंच भूतों से बना है और इन्ही के अधिकार मे सम्पूर्ण जीवन का विस्तार होता है। इन पंचभूतो मे किसी भी भूत की कमी या अधिकता जीवन के विस्तार मे अपने अपने प्रकार से दिक्कत देने के लिये अपना प्रभाव देने लगते है
और हमारा शरीर जिन पांच तत्वों से बना है, क्रमानुसार वे हैं- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। पृथ्वी तत्व से हमारा भौतिक शरीर बनता है। जिन तत्वों, धातुओं और अधातुओं से पृथ्वी (धरती) बनी उन्हीं से हमारे भौतिक शरीर की भी रचना हुई है।तत्व से मतलब तरलता से है।ग्नि तत्व ऊर्जा, ऊष्मा, शक्ति और ताप का प्रतीक है। हमारे शरीर में जितनी गर्माहट है, सब अग्नि तत्व से है।नमें प्राण है, उन सबमें वायु तत्व है। हम सांस के रूप में हवा (ऑक्सीजन) लेते हैं, जिससे हमारा जीवन है।काश तत्व अभौतिक रूप में मन है। जैसे आकाश अनंत है वैसे ही मन की भी कोई सीमा नहीं है। जैसे आकाश अनंत ऊर्जाओं से भरा है, वैसे ही मन की शक्ति की कोई सीमा नहीं हैमिट्टी: पृथ्वी या मिट्टी, हमारे शरीर के उन अंगों के निर्माण से जुड़ी है, जो कठोर और भारी हैं। जैसे हड्डियां, दांत, मांस, त्वचा, बाल, मूंछें, नाक आदि।
अग्नि: अग्नि उन अंगों के निर्माण के लिए आवश्यक है, जो गर्म और तीव्र प्रकृति के हैं। दृष्टि, नजर, शरीर की ऊष्मा, तापमान, रंग, चमक, क्रोध, साहस आदिज्योतिष विज्ञान भी इस बात को स्वीकारता है कि व्यक्ति के जीवन तथा चरित्र को मूलतत्व किस प्रकार प्रभावित करते हैं। जहाँ ज्योतिष के अनुसार तत्व एक ब्रह्मांडीय कंपन के लक्षण बताते हैं
।इन सभी तत्वों को समझ कर हम तत्वों को कुछ प्रयोग के द्वारा संतुलन में कर सकते हैं जिससे हमारे आगे की यात्रा बढ़ सके। जैसे-जैसे हम क्रिया करेंगे उसका अनुभव हमें प्रत्यक्ष मिलेगा। हमारी हाथ की उंगलियों में तत्व संदेश देंगे कि कौन सा तत्व आपके भीतर कम है और कौन सा अधिक है। हम जानते हैं कि हाथ की पांच उंगलियां इन्हीं पांच तत्वों का प्रतिनिधत्व करती हैं। अंगूठा अग्नि का, तर्जनी वायु का, मध्यमा आकाश का, अनामिका पृथ्वी का और कनिष्का जल का प्रधिनिधित्व करती हैं। इन उंगलियों में विद्युत धारा प्रवाहित होती रहती है।
मानव शरीर प्रकृति द्वारा तैयार की गई एक मशीन है जिसके सूक्ष्म संसाधनों व तंत्रों और तत्वों के प्रयोग की सटीक सहज क्रिया के जरिए हम अपनी ऊर्जा को निरंतर गति दे सकते हैं।
.इन पाँच तत्वों के साथ शरीर चलता है .किसी में ज्यादा ,किसी में कम यह देखने को मिलता है और इनपाँच तत्वों के से ही ब्रह्मांड बना है और उसी पर ज्योतिष शास्त्र आधारित हैसभी बारह राशियों को तत्वों के आधार पर चार भागों में बाँटा गया है.और उसी प्रकार ग्रहो की यौगिक विज्ञान के अनुसार हमारा शरीर और यह सारा अस्तित्व पांच तत्वों से मिलकर बना है। ऐसे में खुद को रूपांतरित करने का मतलब होगा - बस इन पांच तत्वों को अपने लिए फायदेमंद बना लेना। हमारे ऋषि-मुनियों में इस पर काफी शोध की रिसर्च की उन्होंने ने अपनी दूरदर्शिता और अनुभूति के आधार पर तथा जन्मकुंडली में ग्रह-राशियों के विन्यास से यह आकलन करने का प्रयास किया कि किस रत्न के प्रयोग से मनुष्य की दैहिक और मानसिक विसंगतियां दूर होती हैं। ज्योतिष शास्त्र के अतिरिक्त आयुर्वेद शास्त्र में भी रत्न प्रयोग से दैहिक रोग मुक्ति का विधान है। रत्न सिद्धांत: आकाश, अग्नि, जल, वायु और पृथ्वी नामक पंचमहाभूतों से प्राणी देह का ही नहीं, बल्कि संपूर्ण प्रकृति का निर्माण हुआ है। समन्वित पंचमहाभूतों के स्थापन से हमारी देह स्वस्थ रहती है, मगर इनमें समन्वय के अभाव से देह अनेक व्याधियों से प्रकुपित होने लगती है। ग्रहों की किसी विशेष अवस्था और उनसे उत्सर्जित ऊर्जा की किसी विशेष मात्रा से दैहिक और मानसिक पुष्टता होती है, जो उत्साह, उमंग, वीरता, विवेकशीलता और पराक्रम की द्योतक है तथा ग्रहों की किसी विपरीत अवस्था में दैहिक और मानसिक दुर्बलता होती है, जो, निराशा, हताशा और असफलता की द्योतक है। ऐसी दुर्बलता की अवस्था जिन ग्रह और नक्षत्रों के कारण होती है, उससे संबंधित रत्न धारण करने से मुक्ति मिलती है। इस प्रकार रत्न संबंधित ग्रह की रश्मियों को एकत्र करके हमारी देह में समावेश करा कर उस ग्रह को अनुकूल करने का महत्वपूर्ण कार्य करते हैं। इसके लिए रत्न जड़ित मुद्रिका इस प्रकार बनाई जाती है कि रत्न दैहिक त्वचा को स्पर्श करता रहे। विभिन्न रत्नों को विभिन्न उंगलियों में धारण किया जाता है, क्योंकि प्रत्येक उंगली से निकलने वाली संदेश संवाहिक तंत्रिका मस्तिष्क के विभिन्न हिस्सों में जाती है। इसलिए रत्न विशेष का प्रभाव उंगली विशेष के माध्यम से मस्तिष्क की विशेष कोशिकाओं को संवेदित करती है। ज्योतिष के अनुसार जब जन्म कुंडली, गोचर कुंडली योगकारक कोई ग्रह निर्बल होता है और उसकी निर्बलता से शरीर में रोग उत्पन्न होता है, तब उस ग्रह से संबंधित रत्न धारण करके या उस रत्न की भस्म का सेवन करके उस ग्रह को बलवान किया जाता है। यह रत्न चिकित्सा का मूलभूत आधार है। यह विज्ञान सम्मत है कि रत्न एक लेंस और प्रिज्म की भांति कार्य करते हैं, जो आकाशीय प्रकाश किरणों को संग्रह करके अपवर्तित करते हैं, जिनसे हमारे कोशिकीय तंतुओं का पोषण होता है। हमारे शरीर में जिस तत्व की कमी हो जाती है या कहें कि जिस ग्रह के बल की कमी हो जाती है तो आपकी कुंडली के आधार पर उस ग्रह को बल देने के लिए रतन धारण करवाए जाते हैं यहां मैं एक बात स्पष्ट कर दूं कि रत्न कभी भी राशि के आधार पर नहीं पहने जाते और ना ही दशा महादशा के आधार पर रत्न हमेशा आप अपनी जन्म कुंडली हस्तरेखा के आधार पर ही पहनें आचार्य राजेश
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