शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2021

ज्योतिषी जीवन नष्ट कर सकते हैं आपका सावधान

www.acharyarajesh.inज्योतिष कितना सही कितना गलत क्या है शुभ क्या है शुभ क्या है नसीब तकदीर किस्मत जानने के लिए यह पोस्ट अंत तक पढ़े

मित्रों। मैं स्पष्ट कर दूं कि अपने नौसिखिए काल में मैं भी ऐसा ही रहा हूं। इसलिए लेख के दौरान जो व्‍यंग्‍य बाण आएंगे उन्‍हें मेरे ऊपर ही चला हुआ समझा जाए। वर्तमान में ज्योतिष विद्या विवादों के घेरे में है और इसका कारण मेरे जैसे ज्योतिषशास्त्री हैं, जो लोगों का मनगढ़ंत भविष्य बता रहे हैं या लोगों को ग्रह-नक्षत्र से डरा रहे हैं। डरपोक लोगों के बारे में क्या कहें, वे तो किसी भी चीज से डर जाएंगे।
 ज्योतिष के त्रिस्कंध हैं यानी इसके 3 प्रमुख स्तंभ हैं- गणित (होरा), संहिता और फलित। कुछ लोग सिद्धांत, संहिता और होरा बताते हैं। एक जमाना था जबकि सारा रेखागणित, बीजगणित, खगोल विज्ञान सब ज्योतिष की ही शाखाएं था, लेकिन अब यह विज्ञान फलित ज्योतिषियों के कारण अज्ञान में बदल गया है।
बहुत से लोगों के मन में आजकल ज्योतिष विद्या को लेकर संदेह और अविश्वास की भावना है जिसका कारण वर्तमान में प्रचलित ज्योतिष और इसको लेकर किया जा रहा व्यापार से है। टीवी चैनलों में ज्योतिष शास्त्री ज्योतिष के संबंध में न मालूम क्या-क्या बातें करके समाज में भय और भ्रम उत्पन्न कर रहे हैं।ज्योतिष को वेदों का नेत्र कहा गया है, लेकिन सवाल यह उठता है कि कौन-सा ज्योतिष?       वेदों में जिस ज्योतिष विज्ञान की चर्चा की गई वह ज्योतिष या आजकल जो प्रचलित है वह ज्योतिष? ऋग्वेद में ज्योतिष से संबंधित 30 श्लोक हैं, यजुर्वेद में 44 तथा अथर्ववेद में 162 श्लोक हैं। वेदों के उक्त श्लोकों पर आधारित आज का ज्योतिष पूर्णत: बदलकर भटक गया है। भविष्य बताने वाली विद्या को फलित ज्योतिष कहा जाता है जिसका वेदों से कोई संबंध नहीं है। ज्योतिष को 6 वेदांगों में शामिल किया गया है। ये 6 वेदांग हैं- 1. शिक्षा, 2. कल्प, 3. व्याकरण, 4. निरुक्त, 5. छंद और 6. ज्योतिष।वेदों में ज्योतिष तो है, परंतु वह फलित ज्योतिष कदापि नहीं है। फलित ज्योतिष में यह माना जाता है कि या तो जीवों को कर्म करने की स्वतंत्रता है ही नहीं, अगर है भी तो वह ग्रह-नक्षत्रों के प्रभावों से कम है अर्थात आपका भाग्य-निर्माता शनि ग्रह या मंगल ग्रह है। यह धारणा धर्म विरुद्ध है। रावण ने जिस शनि को जेल में डाल रखा था, वह कोई ग्रह नहीं था। जिस राहु ने हनुमानजी का रास्ता रोका था, वह भी कोई ग्रह नहीं था। वे सभी इस धरती पर निवास करने वाले देव और दानव थे।
 
हिन्दू धर्म कर्मप्रधान धर्म है, भाग्य प्रधान नहीं। वेद, उपनिषद और गीता कर्म की शिक्षा देते हैं। सूर्य को इस जगत की आत्मा कहा गया है। एक समय था जबकि ध्यान और मोक्ष की प्राप्ति के लिए ज्योतिष का भी सहारा लिया जाता था लेकिन अब नहीं। प्राचीनकाल में ज्योतिष विद्या का उपयोग उचित जगह पर करने के लिए घर, आश्रम, मंदिर, मठ या गुरुकुल बनाने के लिए ज्योतिष विद्या की सहायता ली जाती थी।र्तमान में प्रचलित ज्योतिष विद्या एक ऐसी विद्या है, जो आपको धर्म और ईश्वर से दूर करके ग्रहों को पूजने की शिक्षा देती है, जो कि गलत है। यह विद्या आपको शनि, राहु, केतु और मंगल से डराने वाली विद्या है और यही कारण है कि वर्तमान में शनि के मंदिर बहुत बन गए हैं। लोग कालसर्प दोष, ग्रह दोष और पितृ दोष से परेशान होकर घाट-घाट के चक्कर काट रहे हैंनिश्‍चित ही देवता और ग्रह दोनों अलग-अलग हैं। जो देवता जिस ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है या जिस देवता का चरित्र जिस ग्रह के समान है या यह कहें कि ग्रहों की प्रकृति को दर्शाने के लिए उसकी प्रकृति अनुसार ग्रहों के नाम उक्त देवताओं पर रखें गए, जो उस प्रकृति के हैं।हमारा सूर्य भी एक नक्षत्र है। ये नक्षत्र कोई चेतन प्राणी नहीं हैं, जो किसी व्यक्ति विशेष पर प्रसन्न या क्रोधित होते हैं। हमारी धरती पर सूर्य का सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है, उसके बाद चन्द्रमा का प्रभाव माना गया है। उसी तरह क्रमश: मंगल, गुरु, बुद्ध और शनि का भी प्रभाव पड़ता है। ग्रहों का प्रभाव संपूर्ण धरती पर पड़ता है, किसी एक मानव पर नहीं। धरती के जिस भी क्षेत्र विशेष में जिस भी ग्रह विशेष का प्रभाव पड़ता है, उस क्षेत्र विशेष में-सा भी ग्रह न तो खराब होता है और न अच्छा। ग्रहों का धरती पर प्रभाव पड़ता है लेकिन उस प्रभाव को कुछ लोग हजम कर जाते हैं और कुछ नहीं। प्रकृति की प्रत्येक वस्तु का प्रभाव अन्य सभी जड़ वस्तुओं पर पड़ता है। मित्रों एक सामान्‍य इंसान और ज्‍योतिषी में कई मूलभूत अंतर होते हैं। हालांकि मैं खुद अभी विद्यार्थी हूं सो पक्‍का नहीं कह सकता कि जितने अंतर मुझे पता है उतने ही अंतर होते हैं या उससे अधिक, लेकिन जो जानता हूं वह बता देता हूं।
इसमें पहला तो है विषय का पुख्‍ता ज्ञान – एक नैसर्गिक ज्‍योतिषी जब ग्रहों, राशियों, भावों, इनके संबंधों और इनके जातक की जिंदगी के प्रभाव के बारे में पढ़ता है तो वह स्‍पष्‍ट रूप से इन्‍हें अलग-अलग समझ पाता है कि इनके जातक की जीवन और आपस में क्‍या संबंध हैं और परिणाम कैसे आ रहे हैं।
शुरूआती दौर में कुंडलियों का विश्‍लेषण उपलब्‍ध किताबी या श्रव्‍य ज्ञान को और धार देता है। बाद में हर ज्‍योतिषी अपने स्‍तर पर पुख्‍ता नियम बना लेता है। बाद में यही नियम फलादेश करने में उसकी सहायता करते हैं।
जो लोग पैदाइशी या ईश्‍वरीय कृपा के साथ ज्‍योतिषी नहीं होते हैं उन्‍हें ग्रहों, राशियों और भावों का चक्‍कर उलझन में डाल देता है। मैंने ऐसे सैकड़ों उदाहरण देखे हैं।
दूसरा है ईश्‍वर प्रदत्त अंतर्ज्ञान – यह किसी भी ज्‍योतिषी के लिए सबसे महत्‍वपूर्ण बिन्‍दू है। एक ज्‍योतिषी केवल अपने चेतन मस्तिष्‍क की गणनाओं से फलादेश नहीं कर सकता। इसके दो कारण है।
पहला गणनाओं का विशाल होना और दूसरा देश-काल और परिस्थितियों के लगातार बदलते रहने से इंटरप्रटेशन में बदलाव आना। इसके चलते ज्‍योतिषी केवल फौरी गणनाओं के भरोसे ही फलादेश नहीं कर पाता है। यहां अंतर्ज्ञान ज्‍योतिषी की मदद करता है। कई लोग अनुमान, कल्‍पना और अंतर्ज्ञान में भेद नहीं कर पाते हैं।
ऐसे में वे ऊट-पटांग फलादेश करते जाते हैं। बाद में पता चलता है कि कोई भी फलादेश सटीक नहीं पड़ रहा है। ऐसे कुछ नौसिखिए ज्‍योतिषी ज्‍योतिष की पुस्‍तकों तो कुछ अपने गुरुओं को गालियां निकालकर बरी हो जाते हैं।
तीसरा है अनुभव – जैसा कि मैं ऊपर स्‍पष्‍ट कर चुका हूं कि ज्‍योतिष में इंटरप्रटेशन का बहुत महत्‍व है। ऐसे में काउंसलिंग के दौरान ज्‍योतिषी का अनुभव बहुत मायने रखता है। मेरा मानना है कि आधुनिक ज्‍योतिषियों को वर्तमान में उपलब्‍ध अधिकांश प्रचलित ज्ञान के बारे में जानकारी होनी चाहिए।
अब संचार माध्‍यमों से यह सहज सुलभ भी है और भारत जैसे स्‍वतंत्र राष्‍ट्र में हर तरह की पुस्‍तक हर जगह उपलब्‍ध है। ऐसे में अपने ज्ञान के दायरे को बढ़ाते जाने से ज्‍योतिषी की धार भी मजबूत होती जाएगी। इसके बावजूद भी जीवन जीने से आ रहा अनुभव भी मायने रखता है।
जिस ज्‍योतिषी की शादी नहीं हुई है वह किसी जातक के विवाह संबंध में आधारित प्रश्‍नों के किताबों में लिखे जवाब तो दे देगा, लेकिन उसका इंटरप्रटेशन इतना कमजोर होगा कि जातक तक सही संदेश पहुंचना संदेह के दायरे में ही रहेगा।
चौथा है खुद ज्‍योतिषी के योग – इस बारे में केएस कृष्‍णामूर्ति ने लिखा है कि ज्‍योतिषी दो तरह के होते हैं। एक गणित में होशियार तो दूसरे फलादेश में होशियार। भले ही गणित में होशियार ज्‍योतिषी को अधिक ज्ञान हो, लेकिन प्रसिद्धि फलादेश करने वाले ज्‍योतिषी को ही मिलेगी।
ऐसे में किसी ज्‍योतिषी की कुंडली में यह भी देखने की जरूरत है कि उसके भाग्‍य में प्रसिद्ध होना लिखा है कि नहीं। अगर प्रसिद्धि नहीं लिखी है तो लाख बेहतर फलादेश करने के बाद भी दुनिया उसे जानेगी नहीं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कर्म फल और ईश्वर

परमात्मा हमारे/मनुष्यों के कर्मों का फल स्वयं देने नहीं आता। वह ऐसी परिस्थिति और संयोग बनाता है, जहाँ मनुष्य को फल मिल जाता है। यूं कहें कि ...