गुरुवार, 27 नवंबर 2025

प्रजनन क्षमता और वास्तु: तापमान, ऊर्जा और गर्भधारण का विज्ञान (Deep Dive)

​🔬 प्रजनन क्षमता और वास्तु: तापमान, ऊर्जा और गर्भधारण का विज्ञान (Deep Dive)


वास्तुशास्त्र केवल सजावट नहीं, बल्कि एक प्राचीन स्वास्थ्य प्रबंधन प्रणाली है जो सीधे प्रजनन (Reproduction) और वैवाहिक सुख को प्रभावित करती है।

​1. 🔥 तापमान नियंत्रण: शुक्राणु स्वास्थ्य का आधार

  • जैविक आवश्यकता: स्वस्थ शुक्राणु (Spermatozoa) के उत्पादन (Spermatogenesis) के लिए, वृषण (Testicles) का तापमान शरीर के मुख्य तापमान से 2-3 डिग्री सेल्सियस कम रहना अनिवार्य है। यदि तापमान अधिक होता है, तो शुक्राणु का उत्पादन और विकास बाधित होता है।
  • वास्तु लॉजिक (दक्षिण-पश्चिम): दक्षिण-पश्चिम (South-West) दिशा दोपहर के बाद की सबसे तेज और दीर्घकालिक गर्मी को झेलती है।
    • ​यदि शयनकक्ष इस दिशा में हो और संरचना खुली हो, तो वह ओवरहीट होगा।
    • ​यह अत्यधिक गर्मी सीधे तौर पर शुक्राणुजनन की प्रक्रिया को रोकती है और शुक्राणुओं की संख्या (Count) और उनकी गतिशीलता (Motility) दोनों को कम कर देती है।
    • निष्कर्ष: दक्षिण-पश्चिम को भारी, बंद, और आरामदायक बनाने का नियम सीधे तौर पर इस जैविक आवश्यकता को पूरा करता है—यह शयनकक्ष को शांत और शीतल रखता है, जिससे प्रजनन स्वास्थ्य को प्राकृतिक समर्थन मिलता है।

​2. 🧠 मानसिक स्वास्थ्य और वैवाहिक सामंजस्य

  • ऊर्जा का प्रभाव: वास्तु हमें प्राकृतिक ऊर्जा प्रवाह के अनुसार रहने की सलाह देता है। गलत दिशा में सोना या अशांत वातावरण में रहने से तनाव, चिड़चिड़ापन और अनिद्रा (Insomnia) बढ़ती है।
  • हार्मोनल कनेक्शन: तनाव की स्थिति में शरीर कोर्टिसोल (Cortisol) जैसे स्ट्रेस हार्मोन जारी करता है।
    • ​उच्च कोर्टिसोल स्तर सीधे यौन हार्मोन (Testosterone और Estrogen) के उत्पादन को बाधित करता है।
    • ​इससे कामेच्छा (Libido) कम हो जाती है, जो गर्भाधान के प्रयासों में एक बड़ी बाधा है।
  • समाधान: वास्तु द्वारा बनाया गया शांत और संतुलित पर्यावरण मानसिक शांति देता है, तनाव कम करता है, हार्मोनल संतुलन बनाए रखता है, और वैवाहिक कलह को कम कर सामंजस्य बढ़ाता है—जो सफल गर्भधारण के लिए एक आवश्यक शर्त है।

​3. ✨ कॉस्मिक ऊर्जा का तालमेल

  • ​वास्तु घर को सिर्फ चार दीवारें नहीं मानता, बल्कि इसे पृथ्वी और ब्रह्मांडीय ऊर्जा के बीच एक फिल्टर मानता है।
  • ​सही दिशा में सोने से (जैसे दक्षिण या दक्षिण-पश्चिम), शरीर पृथ्वी के उत्तरी चुंबकीय ध्रुव के साथ प्राकृतिक रूप से संरेखित होता है, जिससे गहरी नींद आती है, शरीर की मरम्मत होती है और ऊर्जा का स्तर बढ़ता है।
  • ​यह संपूर्ण स्वास्थ्य (Holistic Health) और प्रजनन क्षमता को अप्रत्यक्ष रूप से मजबूत करता है।

#FertilityScience #VastuForHealth #Spermatogenesis #CosmicEnergy #तापमान_विज्ञान

शुक्रवार, 21 नवंबर 2025

तर्क और अंधविश्वास के बीच: 'झोला छाप ज्योतिषियों' की भ्रामक दुनिया-----------------------------------

तर्क और अंधविश्वास के बीच: 'झोला छाप ज्योतिषियों' की भ्रामक दुनिया----------- ------------------------

भारतीय संस्कृति में ज्योतिष को खगोल विज्ञान (Astronomy), गणित (Mathematics) और काल गणना (Chronometry) पर आधारित एक प्राचीन एवं गहन Vedanga (वेदांग) ज्ञान माना गया है। यह वह विधा है जो हजारों वर्षों से समय, ग्रह-नक्षत्रों की गति और पृथ्वी पर उनके प्रभावों का अध्ययन करती आ रही है। प्राचीन भारतीय मनीषियों ने इसका विकास व्यक्तिगत जीवन को एक नैतिक और तार्किक ढांचा देने के लिए किया था। ज्योतिष की नींव Siddhantic\ Astronomy (सिद्धांत ज्योतिष) पर टिकी है, जो ग्रहों की स्थिति को Bha\ Chakra (भचक्र) पर अत्यंत सटीक गणितीय गणनाओं से निर्धारित करती है।
लेकिन दुर्भाग्यवश, आज के दौर में कुछ स्व-घोषित 'झोला छाप ज्योतिषियों' ने इस सम्मानित विधा को एक लाभ कमाने वाले व्यवसाय में बदल दिया है। इनका आधार तर्क, शास्त्र और प्रमाणिकता कम, और लोगों को गुमराह करना तथा भय बेचना अधिक है। कुछेक किताबें पढ़कर या केवल ऊपरी ज्ञान के दम पर ये लोग आम जनता के मन में भय और भ्रम का व्यापार कर रहे हैं।
1. 📢 सामूहिक राशिफल का खोखलापन और भ्रामक आधार
न्यूज़ चैनलों और धार्मिक चैनलों पर दैनिक या साप्ताहिक राशिफल का प्रसारण इस भ्रामक कारोबार का सबसे बड़ा उदाहरण है। यह तर्क बिल्कुल सही है कि एक राशि (जैसे मेष, सिंह या तुला) विश्व की करोड़ों की आबादी का प्रतिनिधित्व करती है।  तथाकथित 'झोला छाप ज्योतिषियों' के व्यापार का सबसे बड़ा और सबसे भ्रामक आधार है। यह तर्क और ज्योतिष के मूल सिद्धांतों दोनों का मज़ाक है।: दुनिया की आबादी 8 अरब से अधिक है। ज्योतिष में केवल 12 राशियाँ हैं। इसका सीधा अर्थ है कि प्रत्येक राशि विश्व की अरबों की आबादी का प्रतिनिधित्व करती है।
​व्यक्तिगत आधार: हर व्यक्ति की जन्मकुंडली, ग्रहों की स्थिति (Degree), दशा (Planetary Periods), जन्म नक्षत्र (Nakshatra), नवांश (Divisional Charts), और जीवन के अनुभव पूरी तरह से अलग होते हैं।
​अतार्किक निष्कर्ष: यह मानना कि मकर राशि के सभी 65 करोड़ लोग एक ही दिन एक ही तरह के 'शुभ' या 'अशुभ' परिणाम का अनुभव करेंगे, सामान्य ज्ञान और तर्क बुद्धि की कमी और अल्प बुद्धि को दर्शात है। हर व्यक्ति की कुंडली, ग्रहों की स्थिति, दशा, जन्म नक्षत्र (नछतर), नवांश और जीवन के अनुभव पूरी तरह अलग होते हैं।
सामूहिक राशिफल की भ्रामकता इसलिए भी बढ़ जाती है क्योंकि पश्चिमी ज्योतिष (Tropical Zodiac), जिसे अक्सर मीडिया पर दिखाया जाता है, और भारतीय ज्योतिष (Sidereal Zodiac) की गणना में करीब 24\ Degrees का अंतर होता है। भारतीय ज्योतिष में आपका सूर्य राशि (Sun Sign) लगभग हमेशा एक राशि पीछे होता है। इस Ayanamsa\ Difference (अयनांश अंतर) के कारण, जिस राशि को आप टीवी पर अपनी मान रहे हैं, असल में वैदिक ज्योतिष के अनुसार वह आपकी राशि ही नहीं होती!
इसके बावजूद, सभी को एक ही समय में, एक ही 'शुभ' या 'अशुभ' परिणाम के लिए 'एक लाठी से हाँकना' न केवल ज्योतिष के मूल सिद्धांतों का मज़ाक है, बल्कि यह सामान्य ज्ञान और तर्क बुद्धि का भी अपमान है।
> याद रखें: सामूहिक राशिफल केवल मनोरंजन के लिए हो सकता है, व्यक्तिगत भविष्य बताने या महत्वपूर्ण निर्णय लेने के लिए नहीं।
2. 💎 अंक ज्योतिष और रत्न की मनमानी सलाह
अंक ज्योतिष के आधार पर भविष्य बताना भी अक्सर तार्किक कसौटी पर खरा नहीं उतरता। यह मानना कि एक दिन में जन्म लेने वाले हज़ारों बच्चों का भविष्य और चरित्र समान होगा, पूरी तरह से अतार्किक है।
नामाक्षर और नेम चेंज का दिखावा: इसी प्रकार, अंक ज्योतिष के नाम पर किसी के नाम में अनावश्यक रूप से 'A' या 'K' जोड़कर नाम के Spelling बदलने की सलाह देना भी पूरी तरह से अवैज्ञानिक है। भाग्य किसी Alphabet की संख्या पर नहीं, बल्कि उस समय की गहन खगोलीय स्थिति (ग्रहों की डिग्री, नक्षत्र, नवांश, वर्ग कुंडली आदि) पर निर्भर करता है।
इसी प्रकार, रत्नों को केवल जन्म के महीने या राशि के आधार पर पहनना सबसे बड़ी गलती है। वास्तविक ज्योतिष में रत्न हमेशा व्यक्ति की कुंडली में 'मारक' या 'कमज़ोर' ग्रहों की स्थिति, दशा और गोचर के आधार पर, अत्यंत सावधानी के साथ, विशिष्ट वज़न और धातु में पहनने की सलाह दी जाती है। महीने के आधार पर रत्न की सलाह देना लोगों को अनावश्यक और महंगे खर्च में धकेलना है, जिससे कोई लाभ नहीं होता।

3. 👻 ऊट-पटांग उपाय और भय का निर्माण
शायद सबसे खतरनाक पहलू इन ज्योतिषियों द्वारा बताए गए 'ऊट-पटांग' और तर्कहीन उपाय हैं। ये लोग बिना किसी ठोस शास्त्रीय या वैज्ञानिक आधार के अजीबोगरीब टोटके, अनुष्ठान या अनुचित दान-पुण्य करने की सलाह देते हैं:
 * 'रात को चारपाई के नीचे नींबू काट कर रखें'
 * 'पानी में नमक डालकर पोछा लगाएं, लेकिन मंगलवार को नहीं'
 * 'किसी विशेष रंग का वस्त्र पहनें, लेकिन फलानी दिशा में मुँह करके नहीं'
ये ज्योतिषी, अपने तर्कहीन उपायों को सही ठहराने के लिए, 'नेगेटिव एनर्जी' और 'उच्च वाइब्रेशन' जैसे फैशनेबल शब्दों का सहारा लेते हैं, जिसका ज्योतिष के मूल सिद्धांतों से कोई लेना-देना नहीं है। ये उपाय आपके 'लोभ' और 'भय' को भुनाते हैं। ये उपाय न केवल समय और धन की बर्बादी हैं, बल्कि इनका सीधा संबंध व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य से भी है। ये मन में अनावश्यक भय और चिंता पैदा करते हैं। ये ज्योतिषी, लोगों की समस्या का समाधान करने के बजाय, उन्हें मानसिक रूप से और अधिक कमज़ोर बना देते हैं, जिससे वे लगातार उनके ऊपर निर्भर बने रहें।
4. 📚 सतही और भ्रामक शास्त्रीय व्याख्याएँ
आजकल, सोशल मीडिया और पॉडकास्ट पर कई तथाकथित ज्योतिषी ज्योतिष के गंभीर सिद्धांतों को सतही तरीके से प्रस्तुत करके लोगों को गुमराह कर रहे हैं। ये लोग केवल 'ABC' ज्ञान पर अटके रहते हैं, जैसे: 'राहु लग्न में बैठा है तो यह फल होगा,' या 'शनि सप्तम में बैठा है तो यह फल होगा।'
ये व्याख्याएं ज्योतिष के गहन सिद्धांतों की अवहेलना करती हैं। किसी भी ग्रह का फल केवल उसकी स्थिति (भाव) पर निर्भर नहीं करता, बल्कि उस ग्रह की डिग्री, राशि, जन्म का नक्षत्र, उस पर अन्य ग्रहों की दृष्टि, नवांश कुंडली में उसकी स्थिति और सबसे महत्वपूर्ण, व्यक्तिगत दशा-महादशा पर भी निर्भर करता है। किसी एक कारक के आधार पर भयानक या निश्चित फल बता देना पूरी तरह से भ्रामक है और यह लोगों के मन में अनावश्यक भय पैदा करता है।
5. 😱 पैसे ऐंठने का "कालसर्प दोष" और "पितृ दोष" का जाल
तथाकथित 'झोला छाप' ज्योतिषियों द्वारा भय का सबसे बड़ा औजार 'कालसर्प दोष' और 'पितृ दोष' है। ये ज्योतिषी अक्सर लोगों की समस्याओं का कारण सीधे इन दोषों को बताकर उन्हें डराते हैं।
 * कालसर्प दोष: भारतीय ज्योतिष के प्रामाणिक प्राचीन ग्रंथों में 'कालसर्प दोष' का कहीं भी कोई व्यवस्थित उल्लेख नहीं है। यह आधुनिक युग की उपज है जिसे विशेषकर डर पैदा करने और महंगे अनुष्ठानों को बेचने के लिए गढ़ा गया है।
 * पितृ दोष: 'पितृ दोष' के लिए हज़ारों रुपए के बड़े-बड़े अनुष्ठानों की सलाह देना, लोगों को भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल करने जैसा है।
> याद रखें: इन 'दोषों' का नाम लेकर जो आपसे तुरंत हज़ारों या लाखों रुपए के 'शांति पाठ' की मांग करे, वह आपका हितैषी नहीं, बल्कि व्यवसायी है।
6. ⚖️ ज्योतिष की आड़ में कानूनी और वित्तीय धोखाधड़ी
भ्रामक ज्योतिषियों का प्रभाव केवल आध्यात्मिक नहीं होता, बल्कि यह लोगों के व्यावसायिक और व्यक्तिगत जीवन में भी भारी नुकसान पहुंचाता है। ये ज्योतिषी स्टॉक मार्केट में निवेश, व्यापार के उद्घाटन या संपत्ति की खरीद-बिक्री के लिए ऐसी सलाह देते हैं जो पूरी तरह से तर्कहीन होती है। ज्योतिष, व्यापार के फैसलों में 'सहायक' हो सकता है, लेकिन यह बाज़ार के ज्ञान, वित्तीय समझ और व्यावसायिक कौशल का विकल्प कभी नहीं हो सकता।
7. 🛡️ सच्चा मार्गदर्शन कैसे पहचानें? (पाठकों के लिए एक चेकलिस्ट)
असली ज्योतिषी वह होता है जो आपको आपकी समस्या का समाधान बताने के साथ-साथ आपके आत्मबल और विवेक को भी बढ़ाता है, न कि भय और अंधविश्वास पैदा करता है। यदि आप एक सच्चे मार्गदर्शक की तलाश में हैं, तो निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान दें:
 * नक्षत्र और डिग्री पर जोर (The Deep Dive): सच्चा ज्योतिषी कभी भी केवल राशि या भाव के आधार पर फल नहीं बताएगा। वह हमेशा आपकी जन्म तिथि, समय, स्थान, ग्रहों की डिग्री और सबसे महत्वपूर्ण, आपका जन्म नक्षत्र (नछतर) पूछेगा।
 * कर्म और परिश्रम पर बल (The Focus on Action): सच्चा मार्गदर्शक आपको यह स्पष्ट करेगा कि ज्योतिष सहायक है, विकल्प नहीं। वह हमेशा आपको कर्म, परिश्रम, आत्म-सुधार और सही समय पर सही निर्णय लेने के लिए प्रेरित करेगा।
 * सीधे 'शांति पाठ' या 'महंगे रत्न' की मांग नहीं: एक प्रामाणिक ज्योतिषी आपकी कुंडली का गहन विश्लेषण करने के बाद, छोटे और तार्किक उपाय (जैसे मंत्र जाप, दान, व्यवहार परिवर्तन) सुझाएगा।
 * नैतिकता और तर्क (The Logic Test): सच्चे ज्योतिषी की सलाह हमेशा नैतिक और तार्किक कसौटी पर खरी उतरती है। वह आपको कभी भी किसी को नुकसान पहुंचाने या अनैतिक कार्य करने की सलाह नहीं देगा।
 * शिक्षा और निरंतर अभ्यास (The Commitment): एक प्रामाणिक ज्योतिषी अपने ज्ञान की गहनता पर ध्यान केंद्रित करता है और शास्त्रीय ग्रंथों के सिद्धांतों का सम्मान करता है।
🎯 आपका अंतिम संदेश और कर्तव्य (A Final Call to Action)
ज्योतिष एक गंभीर विज्ञान है, न कि भय और धन ऐंठने का जरिया। स्वस्थ समाज के लिए ज्योतिषीय साक्षरता (Astrological Literacy) आवश्यक है। किसी भी सलाह को स्वीकार करने से पहले यह प्रश्न पूछें: "इसका शास्त्रीय आधार क्या है?"
अपने जीवन के महत्वपूर्ण फैसलों के लिए अपनी तर्क बुद्धि, शिक्षा और विवेक को सबसे आगे रखें। ज्योतिष को केवल एक मार्गदर्शक मानचित्र की तरह इस्तेमाल करें, जो आपको यात्रा के खतरों से आगाह करता है, लेकिन यात्रा करने और मंज़िल तक पहुंचने का कर्म आपको स्वयं ही करना होगा।

बुधवार, 19 नवंबर 2025

वास्तु शास्त्र: महान विज्ञान या महंगा व्यापार? 🤔 ।

वास्तु शास्त्र: महान विज्ञान या महंगा व्यापार? 🤔 ।                           ‌📰 वास्तु शास्त्र: महान ज्ञान या महँगा व्यापार? एक तार्किक विश्लेषण
मित्रों, मेरे पिछले लेख की तरह यह भी वास्तु पर ही आधारित है। मेरी कोशिश है कि मैं ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को इसके बारे में जागरूक कर सकूं ताकि वे लूट का शिकार न हो सकें। आप लोग इसे ज़्यादा से ज़्यादा शेयर करके उन लोगों तक पहुंचा सकते हैं, यही आपसे मेरी गुज़ारिश है।
वास्तु शास्त्र हमारे प्राचीन भारत का एक महान स्थापत्य विज्ञान है। यह वास्तुकला (Architecture) और डिज़ाइन की एक समझदार प्रणाली है, जिसका मूल दर्शन बहुत सीधा है: घर को प्रकृति के साथ तालमेल कैसे बिठाना चाहिए।
यह वैज्ञानिक लेआउट, सही माप और इंजीनियरिंग सिद्धांतों पर ज़ोर देता था, ताकि रहने वालों को सूर्य की रोशनी, हवा का बहाव और पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र से अच्छी सेहत और सकारात्मक ऊर्जा मिले।
🚨 लेकिन, आज यह ज्ञान एक महँगा और डर पर आधारित व्यापार बन गया है।
यहाँ उन तीन बड़ी सच्चाइयों का सरल विश्लेषण है जो इस ज्ञान को एक उद्योग में बदल रही हैं:
1. 🔍 आधुनिक 'वास्तु कंसल्टेंट': डर का व्यापार और 'झोला छाप' ज्ञान

आजकल आप जिसे 32-पद64पद  वाले तरह-तरह के रंगीन 'वास्तु चक्र' और सुंदर चार्ट देख रहे हैं, वह इसी आधुनिक धंधे का प्रतीक है।
 * असली ज्ञान की कमी: बहुत से सलाहकार, जिन्हें आप 'झोला छाप' कह सकते हैं, उनके पास प्राचीन वास्तु के वास्तविक सिद्धांतों का ज्ञान नहीं है। वे केवल किताबी जानकारी या सस्ते ऑनलाइन कोर्स पर निर्भर हैं।
 * डर का इंजेक्शन: ये लोग तर्कसंगत लाभों (अच्छी हवा, रोशनी) को छोड़कर, अंधविश्वास और छद्म-विज्ञान (Fake Science) को बढ़ावा देते हैं। वे आपके मन में डर पैदा करते हैं कि आपके घर में 'नकारात्मक ऊर्जा' है या कोई 'अशुभ दोष' है।
 * महँगे 'उपाय': डर पैदा करने के बाद, वे आपको महँगे 'उपाय' या उत्पाद बेचने की कोशिश करते हैं—जैसे क्रिस्टल, पिरामिड, रंगीन टेप या धातु के यंत्र। कलर टेप जो प्लास्टिक की होती है, अब प्लास्टिक को आप जानते हैं कि किस तरह से आपको लाभ दे सकता है? यह एक बिल्कुल ही धोखाधड़ी है आपको लूटने के लिए। और जो यंत्र वग़ैरह (जैसे पिरामिड) आपके यहाँ लगाए जाते हैं, वे भी गंदे मेटल से तैयार किए जाते हैं, वे भी आपको लाभ की बजाय नुकसान ही देंगे।
> 💡 प्राचीन वास्तु की सच्चाई: प्राचीन वास्तु में उपाय घर की संरचना में बदलाव होते थे (जैसे खिड़की का स्थान बदलना), न कि ये महँगे गैजेट।
2. 🧭 दिशा का सबसे बड़ा तकनीकी धोखा: 'चुंबकीय से उत्तर' दिशा की गलती
वास्तु में दिशा जानना सबसे ज़रूरी है, लेकिन यहीं पर सबसे बड़ी तकनीकी ग़लती की जाती है, जिसे नज़रअंदाज़ किया जाता है:
| पहलू | प्राचीन और सही तरीका ('सही ध्रुवीय उत्तर') | आधुनिक और गलत तरीका ('चुंबकीय उत्तर') |
|---|---|---|
| आधार | पृथ्वी के ध्रुवीय अक्ष पर आधारित। प्राचीन काल में सूर्य की छाया और 'शंकु' (Gnomon) से दिशा निकाली जाती थी, जो हमेशा स्थिर रहती है। | साधारण चुंबकीय कम्पास का उपयोग। यह कम्पास 'चुंबकीय उत्तर' (Magnetic North) दिखाता है। |
| समस्या | यह तरीका दोषरहित था। | 'चुंबकीय उत्तर' हमेशा बदलता रहता है और सही 'उत्तर' से 20 डिग्री तक अलग हो सकता है। इसे चुंबकीय झुकाव (Magnetic Declination) कहते हैं। |
| परिणाम | जब आप कम्पास के हिसाब से वास्तु चक्र सेट करते हैं, तो झुकाव के कारण आपके घर के सभी 32 ज़ोन अपनी सही जगह से खिसक जाते हैं। |  |
इसका फायदा: यह तकनीकी ग़लती सलाहकार को लगभग हर जगह 'कृत्रिम वास्तु दोष' (Fake Dosh) खोजने का मौका देती है, जिससे वे महंगे समाधान आसानी से बेच पाते हैं।
3. 🔮 छद्म-वैज्ञानिक उपकरणों का मिथक तरह-तरह के दिखावे के लिए प्रभावित करने के लिए यंत्र 
: स्कैनर 
अपने दोषों को 'सत्य' साबित करने के लिए, सलाहकार 'यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर' (UAS) या 'एनर्जी स्कैनर' जैसे उपकरणों का इस्तेमाल करते हैं।
 * दावा: ये उपकरण 'सूक्ष्म ऊर्जा' या 'जियोपैथिक स्ट्रेस' मापने का दावा करते हैं।
 * और क्या है सच: वैज्ञानिकों ने इनका कोई समर्थन नहीं किया है। यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (US FDA) जैसी संस्थाएँ इन्हें छद्म-विज्ञान मानती हैं।
 * वास्तविकता: स्कैनर की कार्यप्रणाली 'डॉवसिंग रॉड' के समान है। यह बाहर की ऊर्जा नहीं, बल्कि उपकरण पकड़ने वाले व्यक्ति के हाथ और मांसपेशियों की सूक्ष्म क्रिया (Ideomotor Effect) का परिणाम है। इसमें कुछ भी नहीं होता, एक बैटरी लगी होती है, एक हल्का सा बल्ब रोशनी देने वाला। इसको आप तोड़ कर देखिए, इसके अंदर कुछ भी नहीं होता।
> निष्कर्ष: ये स्कैनर केवल ग्राहकों को डराकर महँगे क्रिस्टल, यंत्र और 'कट/एक्सटेंशन' के दोषों को 'सत्य' साबित करना आसान बनाते हैं।
> यहां तक की इसके द्वारा रतन भी सजेस्ट किए जाते हैं। एक समझदार उपभोक्ता के लिए सुझाव
धोखाधड़ी से बचने और वास्तु के तर्कसंगत सिद्धांतों को अपनाने के लिए ये कदम उठाएँ:
 * सटीक दिशा पता करें: दिशाचक्र आपको चक्कर में डालने के लिए है, आपको लूटने के लिए है। आप इसका उपयोग न करें। जीपीएस-आधारित डिजिटल कम्पास या विशेषज्ञ की मदद लें जो 'चुंबकीय झुकाव' (Magnetic Declination) को सही करना जानता हो।
 * हर दावे पर सवाल करें: किसी भी 'उपाय' या महँगे उत्पाद को खरीदने से पहले, सलाहकार से उसके पीछे का वैज्ञानिक प्रमाण या तर्कसंगत कारण पूछें। यदि समाधान केवल क्रिस्टल, पिरामिड या धातु के यंत्र पर आधारित है, तो सावधान रहें।
 * योग्य पेशेवर चुनें: डिज़ाइन या निर्माण के लिए, किसी योग्य आर्किटेक्ट या सिविल इंजीनियर से सलाह लें, जो वास्तविक वास्तुकला विज्ञान को समझते हों।
 * तर्कसंगत वास्तु पर ध्यान दें:
   * ऊर्जा दक्षता: घर को सही दिशा में बनाने से प्राकृतिक प्रकाश, हवादारता और ऊर्जा की बचत होती है।
   * मनोविज्ञान: स्वच्छ, हवादार और धूप वाला स्थान मानसिक शांति देता है, जिसे आधुनिक विज्ञान भी मानता है। यही वास्तु का वास्तविक और सबसे बड़ा लाभ है।
> निष्कर्ष: आधुनिक वास्तु चक्र एक तकनीकी रूप से दोषपूर्ण और डर पर आधारित व्यापारिक रणनीति है। वास्तु को एक उन्नत स्थापत्य कला के रूप में देखें, न कि डरने वाली ज्योतिषीय प्रणाली के रूप में।
>

मंगलवार, 18 नवंबर 2025

सीधी बात ​वास्तु कोई जादुई चीज़ नहीं है। यह एक विज्ञान है

होगा।
​✅ सीधी बात
​वास्तु कोई जादुई चीज़ नहीं है। यह एक विज्ञान है
 
जो यह पक्का करता है कि आपके घर का माहौल ऐसा हो जो आपके मन और शरीर को सबसे अच्छी मदद दे सके।
​अच्छा घर का माहौल ightarrow शांत मन ightarrow अच्छा काम ightarrow सफलता और पैसा।
​बस, वास्तु इसी तर्क पर काम करता है।
​वास्तु कोई चमत्कार नहीं है। यह एक विज्ञान है जो यह पक्का करता है कि आपके घर का माहौल ऐसा हो जो आपके मन और शरीर को सबसे अच्छी मदद दे।वास्तु: एक वैज्ञानिक और व्यवहारिक दृष्टिकोण
​वास्तुशास्त्र को केवल दिशाओं के अंधविश्वास के बजाय, मानव व्यवहार, स्थानिक मनोविज्ञान (Environmental Psychology), और टिकाऊ डिज़ाइन (Sustainable Design) के सिद्धांतों पर आधारित एक प्राचीन विज्ञान के रूप में देखा जाना चाहिए।
​यह विज्ञान इस बात पर ज़ोर देता है कि हमारा आस-पास का वातावरण हमारे सोचने, महसूस करने और कार्य करने के तरीके को कैसे प्रभावित करता है।
​नींद की गुणवत्ता और प्रदर्शन (Sleep Quality & Performance):
​: वास्तु के अनुरूप बेडरूम का डिज़ाइन (जैसे सही दिशा, कम रोशनी, कम अव्यवस्था) कोर्टिसोल (तनाव हार्मोन) के स्तर को कम करता है और मेलाटोनिन (नींद हार्मोन) के उत्पादन को बढ़ाता है।
​नतीजा: गहरी  नींद प्राप्त होती है। जब दिमाग को पर्याप्त आराम मिलता है, तो अगले दिन कार्यशील स्मृति (Working Memory), समस्या-समाधान कौशल, और निर्णय लेने की क्षमता (Decision Making) में उल्लेखनीय सुधार होता है। यह सीधा आपकी व्यावसायिक सफलता को प्रभावित करता है।
​प्रकाश और मूड (Light & Mood):
​ सुबह के समय घर में प्राकृतिक सूर्य का प्रकाश (ब्लू-वेवलेंथ लाइट) आना हमारे शरीर की सर्कैडियन लय (Circadian Rhythm) को रीसेट करता है। यह लय हमें दिन में सतर्क और रात में नींद के लिए तैयार रखती है।
​नतीजा: अच्छी तरह से डिज़ाइन की गई खिड़कियाँ प्राकृतिक प्रकाश के माध्यम से विटामिन डी के संश्लेषण में सहायता करती हैं, और मौसमी अवसाद (Seasonal Affective Disorder) को कम करती हैं, जिससे मानसिक ऊर्जा उच्च बनी रहती है।
​अव्यवस्था और तनाव (Clutter & Stress):
​मनोविज्ञान में पाया गया है कि दृश्य अव्यवस्था (Visual Clutter) हमारे दिमाग को लगातार अतिरिक्त, अप्रासंगिक जानकारी को संसाधित (Process) करने के लिए मजबूर करती है। इसे संज्ञानात्मक भार (Cognitive Load) कहते हैं।
​नतीजा: बढ़ा हुआ संज्ञानात्मक भार फोकस को कम करता है, रचनात्मकता को रोकता है, और चिंता (Anxiety) व चिड़चिड़ापन पैदा करता है। वास्तु का 'व्यवस्था' पर ज़ोर, इस संज्ञानात्मक भार को कम करने का एक सीधा वैज्ञानिक तरीका है।
​ ऊर्जा प्रबंधन: ऊष्मा, वायु, और ध्वनिकी (Thermals, Air, & Acoustics)
​वास्तु का 'ऊर्जा प्रबंधन' आधुनिक HVAC (Heating, Ventilation, and Air Conditioning) और टिकाऊ आर्किटेक्चर से मेल खाता है।

बादलदे वास्तु और शौचालय: पुराना ज्ञान बनाम नई तकनीक

🚽 बादलदे वास्तु और शौचालय: पुराना ज्ञान बनाम नई तकनीक

डर नहीं, विज्ञान और समझदारी ज़रूरी है!
वास्तु शास्त्र का मुख्य लक्ष्य हमें स्वस्थ और आरामदायक जीवन देना था। इसके पुराने नियम उस समय की साफ-सफाई और इंजीनियरिंग की कमी को देखते हुए बनाए गए थे। आज, हमारे पास बेहतरीन सीवेज सिस्टम और वेंटिलेशन (हवा निकालने) की सुविधा है। इसलिए, शौचालय के वास्तु को पुराने और नए समय के संदर्भ में तर्क और समझदारी से समझना चाहिए।
1. दिशाओं का नियम: पुरानी ज़रूरत बनाम आज की सुविधा
वास्तु में टॉयलेट की दिशा को लेकर जो भी नियम बनाए गए, वे उस समय की खास ज़रूरतों के कारण थे:
| नियम/निषेध | पुराने समय का कारण (ज़रूरी क्यों था) | आज के समय का तर्क (आसान क्यों है) |
|---|---|---|
| ईशान/केंद्र में वर्जित | ईशान (उत्तर-पूर्व) पानी का प्रवेश और पूजा की जगह थी, और केंद्र खुला आंगन। खुले गंदे पानी को इन जगहों से दूर रखना संक्रमण और बदबू से बचने के लिए बहुत ज़रूरी था। | गंदगी तुरंत सील-बंद पाइपों से बाहर निकल जाती है। अब दिशा से ज़्यादा ज़रूरी वेंटिलेशन (हवा निकासी) और अच्छे ड्रेनेज की व्यवस्था है। |
| पश्चिम/उत्तर-पश्चिम उत्तम | ये दिशाएँ घर से गंदगी को सबसे दूर फेंकने/निकालने के लिए सबसे सही थीं, ताकि इसका असर कम हो। | आज की इंजीनियरिंग में गंदगी का निकास हर दिशा में पूरी तरह सील और नियंत्रित होता है। अब दिशा का प्रभाव न के बराबर रह गया है। |
> निष्कर्ष: पुराने समय में, दिशाओं का ध्यान महामारी और साफ-सफाई के लिए बहुत ज़रूरी था। आज, बेहतरीन ड्रेनेज, वॉटरप्रूफिंग, और वेंटिलेशन किसी भी दिशा में उतनी ही सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं।
2. शौचालय का डिज़ाइन: खुले सिस्टम से सीलबंद सिस्टम तक
वास्तु शास्त्र तब बना जब साफ-सफाई का विज्ञान इतना विकसित नहीं था:
| विशेषता | पुराना शौचालय (कच्चा/घर से बाहर) | आधुनिक अटैच टॉयलेट (सीलबंद) |
|---|---|---|
| गंदगी का निपटान | मैन्युअल (हाथ से), गंदगी इकट्ठी होती थी, संक्रमण का खतरा बहुत ज़्यादा। | फ्लश सिस्टम से गंदगी तुरंत और असरदार तरीके से बाहर निकाल दी जाती है। |
| गंध/बदबू | खुली हवा और कीटाणुओं के कारण बहुत ज़्यादा बदबू (यही नकारात्मक ऊर्जा का मुख्य कारण था)। | एग्जॉस्ट फैन और सीलबंद पाइपों से तुरंत कंट्रोल हो जाती है। |
| वास्तु का लक्ष्य | गंदगी, जमाव और संक्रमण को मुख्य घर से दूर रखना। | गंदगी, सीलन, और दुर्गंध को तुरंत खत्म करना। |
> निष्कर्ष: प्राचीन वास्तु का मुख्य लक्ष्य गंदगी को घर से दूर रखना था। आज के अटैच टॉयलेट की डिज़ाइन ही इस तरह की गई है कि वह गंदगी और बदबू को तुरंत खत्म कर दे, जिससे वह वास्तु के मूल उद्देश्य को पूरी तरह से पूरा करता है।
3. सीट की दिशा: परंपरा बनाम पाइप की व्यवस्था
टॉयलेट सीट के बैठने की दिशा को लेकर जो नियम हैं, वे आजकल की कम जगह और पाइपलाइन बिछाने की ज़रूरतों के सामने अव्यावहारिक हैं।
 * पुरानी बात: सीट का मुख किसी खास दिशा में रखने का कोई पक्का वैज्ञानिक या स्वास्थ्य से जुड़ा कारण साबित नहीं हुआ है। यह नियम शरीर विज्ञान से ज़्यादा सामाजिक परंपरा पर आधारित लगता है।
 * आज की सच्चाई: सीट की दिशा अब मुख्य रूप से जगह की उपलब्धता और ड्रेनेज पाइप को सबसे सीधा और छोटा रास्ता देने पर निर्भर करती है। यदि थोड़ी सी दिशा इधर-उधर है, तो आपके स्वास्थ्य या पैसे पर कोई बुरा असर पड़ेगा, इसका कोई तार्किक सबूत नहीं है।
4. मन की शांति और स्वच्छता: सबसे बड़ा सकारात्मक वास्तु
वास्तु का मतलब डर पैदा करना नहीं, बल्कि स्वस्थ जीवन के लिए अच्छी व्यवस्था बनाना है। आधुनिक तकनीक ने दिशाओं के डर को कम कर दिया है। आज के वास्तु का ध्यान इन तीन वैज्ञानिक और भौतिक बातों पर होना चाहिए:
 * स्वच्छता (साफ-सफाई): टॉयलेट हमेशा साफ़-सुथरा और सूखा रहना चाहिए। सीलन और फंगस ही नकारात्मक ऊर्जा का असली कारण हैं।
 * वायु संचार (वेंटिलेशन): एक शक्तिशाली एग्जॉस्ट फैन ज़रूर लगवाएं जो बदबू और नमी को तुरंत बाहर खींच ले। यह किसी भी वास्तु दोष का सबसे बड़ा समाधान है।
 * अनुशासन (दरवाज़ा/ढक्कन): टॉयलेट का दरवाज़ा और कमोड का ढक्कन हमेशा बंद रखें, ताकि गंदी हवा घर में न फैले।
यदि आपका आधुनिक टॉयलेट साफ़, सूखा और हवादार है, तो आप वास्तु के मूल उद्देश्य को पूरी तरह निभा रहे हैं। अनावश्यक भ्रम से बचें और अपनी बुद्धि का उपयोग करें।

दशम भाव का सूर्य


मित्रों जो सम्मान मकर की संक्रांत को प्राप्त है वह मेष की संक्रांत को नही है..अतः लग्न व पंचम के सूर्य के मुकाबले दशम का सूर्य अधिक प्रभावी होने लगा...कुंडली विवेचन के दौरान नए अभ्यासी ज्योतिषियों बंधुओं को देखने मे आएगा कि दशम का सूर्य परोक्ष व अपरोक्ष रूप से सरकार से जातक को जोड़ता आया है..अगर इसी सूर्य को शनि का बल भी प्राप्त हो रहा हो,,तो छत्रभंग का निर्माण करते हुए यह तय करता है कि यदि जातक परिवार अथवा पिता से दूर रह पाएगा तो सत्ता में सीधे पैठ बना पाने के सक्षम होगा,,जितना जातक अपने भीतर भृत्य(सेवक) होने की भावना प्रबल करेगा,,उतनी तीव्रता से वह सत्ता की शक्ति प्राप्त करेगा...जितना अधिक वह अपने नैसर्गिक राजा होने के भाव को प्रदर्शित करेगा,,सत्ता व राजतंत्र से दूर होता जाएगा....इसी अनुपात में हम देखें तो पंचम पिता की हानि है..यह दशम से अष्ठम पड़ने वाला भाव है..पिता के लिए दुर्योग उत्पन करने वाला...ऐसे में पंचम का सूर्य पिता के साथ कोई बड़ी दुर्घटना तय कर देता है,,किन्तु स्वयं का भाव होने से ये भी देखने मे आता है कि जातक पिता के विभागों में पिता के बाद जुड़ जाता है..इस सूर्य पर किसी पाप ग्रह का प्रभाव हो तो पिता के साथ कई बार बड़ी दुर्घटनाएं भी होती देखी गयी हैं..
दशम से किसी भी प्रकार सूर्य का संबंध बन रहा हो तो सूर्य का रत्न माणिक धारण करने से बचना चाहिए..इसका प्रभाव शनि को प्रभावित करता है,,परिणास्वरूप जो लाभ शनि के भाव दशम में बैठा सूर्य दे रहा होता है वह गड़बड़ाने लगता है....पंचम में सूर्य हो तो माणिक धारण करना शुभ फलदायी होता है..पर यहां भी पुरी कुंडली देखकर ही रत्न धारण करे क्योंकि रतन धारण करने के लिए आपकी जन्मकुंडली में बहुत से सुत्र देखने पड़ते हैं

शनि की साढ़ेसाती किस राशि पर है और किस राशि पर आने वाले समय में होगी---------//**---

शनि की साढ़ेसाती किस राशि पर है और किस राशि पर आने वाले समय में होगी---------//**---

साल 2022 में शनि मकर राशि में गोचर हैं। शनि एक से दूसरी राशि में जाने के लिए करीब ढाई वर्षों का समय लेते हैं। शनि सभी ग्रहों में सबसे मंद गति से चलने वाले ग्रह हैं। शनि की मंद गति के कारण इनका प्रभाव काई वर्षों तक रहता है।  शनि की साढ़ेसाती के तीन चरण होते हैं। इस समय धनु, मकर और कुंभ राशि वालों पर शनि की साढ़ेसाती चल रही है। धनु राशि के जातकों पर शनि का साढ़ेसाती का आखिरी चरण चल रहा है फिर अगले साल यानी 2023 में इन्हें इससे मुक्ति मिल जाएगी। कुंभ राशि वालों पर साढ़ेसाती का दूसरा चरण चल रहा है जबकि मकर राशि पर पहला चरण है। अगले वर्ष शनि जब कुंभ से मीन राशि में आएंगे तब मीन राशि के जातकों पर शनि की साढ़ेसाती का पहला चरण शुरू हो जाएगा। मित्रों 17 जनवरी 2023 को शनि कुंभ राशि में प्रवेश करेंगे मिथुन और तुला राशि के जातकों से ढैया खत्म हो जायेगी और कर्क राशि और वृश्चिक राशि के जातकों की ढैया शुरू हो जाएगी। वहीं धनु राशि के जातक शनि के साढ़ेसाती से पूरी तरह मुक्ति हो जाएंगे। मकर, कुंभ और मीन राशि पर साढ़ेसाती जारी रहेगा।

रविवार, 16 नवंबर 2025

☀️ वास्तु: सूर्य और जीवन का प्राचीन सामंजस्य

☀️
वास्तु: सूर्य और जीवन का प्राचीन सामंजस्य
वास्तु शास्त्र का मूल आधार सूर्य की ऊर्जा और पृथ्वी की गति पर टिका है। प्राचीन समय में, जीवनशैली पूरी तरह से प्रकृति पर निर्भर थी, और सूर्य केवल प्रकाश का नहीं, बल्कि सकारात्मक ऊर्जा और आरोग्य का प्रमुख स्रोत था।
 * मूल सिद्धांत: वास्तु में दिशाओं का निर्धारण सूर्योदय से सूर्यास्त तक उसकी गति पर आधारित है।
पृथ्वी अपने अक्ष पर 23.5 डिग्री पर झुकी हुई है और पश्चिम से पूर्व की ओर चलती है, यही कारण है कि सौर ऊर्जा एक ही समय में पृथ्वी की सभी सतह पर समान नहीं होती है। सूर्य की किरणों में विभिन्न मात्रा में ऊष्मा होती है, जो इसके द्वारा तय की गई दूरी और पृथ्वी पर पड़ने वाले कोण पर निर्भर करती है जो इसके फायदे और नुकसान को परिभाषित करती है। यह एक सर्वविदित तथ्य है कि सूर्य की किरणें सूर्योदय से लेकर अगले दो घंटों तक सबसे अधिक फायदेमंद होती हैं क्योंकि उनमें यूवी किरणों का संतुलन होता है और उन सूर्य की किरणों में गर्मी मनुष्यों के लिए बहुत आरामदायक होती है। इसलिए उत्तर-पूर्व और पूर्व को घर में सबसे अच्छी दिशा माना जाता है। लगभग 10 बजे, जब सूर्य दक्षिण-पूर्व दिशा के करीब होता है, तो इन्फ्रारेड किरणों को ले जाने वाली सूर्य की किरणें, पृथ्वी को घेरना शुरू कर देती हैं इसलिए दिन में  तेज गर्मी के रहते दक्षिण-पूर्व दिशा वाला कमरा रहने के लिए इतना अच्छा विकल्प नहीं होता। हालाँकि, चूँकि दक्षिण-पूर्वी किरणें UVB और UVA से प्रभावित होती हैं, । लेकिन सर्दी के दिनों में यही कैमरा आपको ज्यादा आरामदायक रहेगा। और जहां ज्यादा ठंड पड़ती है वह ऐसे ही लाख के वहां पर यह बेडरूम अच्छा स्थान रहेगा।  

 सूर्य उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) से उगता है और पूरे दिन अपनी स्थिति बदलता है, जिससे अलग-अलग दिशाओं में अलग-अलग ऊर्जा क्षेत्र निर्मित होते हैं।पूर्व दिशा का महत्व: सूर्य की पहली किरणें (सुबह 6 से 9 बजे तक) घर के पूर्वी हिस्से में आती हैं। इन किरणों को विटामिन डी और सकारात्मकता से भरपूर माना जाता है, इसलिए प्राचीन काल में खुले आंगन और पूर्वमुखी घर शुभ माने जाते थे, ताकि प्राकृतिक प्रकाश और हवा का पर्याप्त प्रवेश हो सके।
 * प्राचीन जीवनशैली:
   * पहले कच्चे और खुले मकान होते थे, जहाँ खिड़कियाँ और रोशनदान सभी दिशाओं में होते थे।
   * लोग ब्रह्म मुहूर्त (तड़के 4 से 6 बजे) में उठकर अपनी दिनचर्या शुरू करते थे, जब सूर्य पृथ्वी के उत्तर-पूर्वी भाग में होता है, जो ध्यान और अध्ययन के लिए उत्तम माना जाता है।
   * रसोईघर को अक्सर आग्नेय कोण (दक्षिण-पूर्व) में बनाया जाता था, जहाँ सूर्य की किरणें दोपहर तक पहुँचती थीं, जिससे नमी दूर होती थी और भोजन स्वास्थ्यकर रहता था। लेकिन अब बदलाव के कारण रसोई को नॉर्थ वेस्ट में बनाना चाहिए
🏢 आधुनिकता की चुनौतियाँ और वास्तु में बदलाव
आधुनिक जीवनशैली और शहरीकरण ने वास्तु के सिद्धांतों के सामने कई चुनौतियाँ खड़ी कर दी हैं, जिससे हमें इसमें व्यावहारिक बदलाव करने पड़े हैं।दोपहर 12 से 3 बजे तक विश्रांति काल यानी कि आराम का समय होता है। सूर्य अब दक्षिण में होता है, अत: शयन कक्ष इसी दिशा में बनाया गया शयन कक्ष में पर्दे गहरे रंग के होने चाहिए। क्यों  कि इस वक्‍त सूर्य से खतरनाक पराबैंगनी किरणें निकलती हैं, तो डार्क रंग के पर्दे होने से यह आपके स्‍वास्‍थ्‍य को नुकसान नहीं पहुंचा सकेंगी। लेकिन यह गर्मियों के लिए है। जहां पर अधिक अधिक गर्मी पड़ती है। वहीं जहां पर बर्फ पड़ती है ठंडी पड़ती उस स्थान का वास्तु में बदलाव  जाएगा। उस के लिए भी दिमाग चाहिए आजकल के वास्तु शास्त्रियों की तरह नहीं की किताब में यह लिखा है तो उसी तरह से वस्तु होगा।

दोपहर 3 से सायं सूर्य दक्षिण-पश्चिम भाग में होता है। शाम 6 से रात 9 तक का समय 

शाम 6 से रात 9 तक का समय  इस वक्‍त सूर्य भी पश्चिम में होता है।सायं 9 से मध्य रात्रि के समय सूर्य घर के उत्तर-पश्चिम में होता है। मध्य रात्रि से तड़के 3 बजे तक सूर्य घर के उत्तरी भाग में होता है। यह समय अत्यंत गोपनीय होता है यह दिशा व समय होता है यहीं से ब्रह्म मुहूर्त शुरू होता है
 1. निर्माण और संरचना में परिवर्तन
 * सीमित स्थान और बहुमंजिला इमारतें: शहरों में सीमित जगह के कारण अब फ्लैट्स और तंग मकान बनते हैं, जहाँ क्रास वेंटिलेशन और हर दिशा से सूर्य की रोशनी का प्रवेश मुश्किल हो गया है।
 * बंद वातावरण: वातानुकूलन (AC) और पर्दे के अत्यधिक उपयोग से घर का वातावरण बंद रहने लगा है, जिससे प्राकृतिक ऊर्जा का प्रवाह बाधित होता है।
⏰ 2. जीवनशैली में बदलाव
 * देर से सोना-उठना: आधुनिक जीवनशैली में काम के कारण लोग देर से सोते हैं और सुबह की शुभ किरणें अक्सर missed कर देते हैं। अब प्राकृतिक समय के बजाय घड़ी का समय हमारी दिनचर्या तय करता है।
 * कृत्रिम प्रकाश पर निर्भरता: दिन में भी लोग अक्सर कृत्रिम प्रकाश (बल्ब, ट्यूबलाइट) पर निर्भर रहते हैं, जिससे सूर्य के प्राकृतिक लाभ (जैसे कीटाणुनाशक प्रभाव और ऊर्जा) कम हो जाते हैं।
💡 3. वास्तु का आधुनिक सामंजस्य
बदलती परिस्थितियों में वास्तु के सिद्धांतों को पूरी तरह नकारना उचित नहीं, बल्कि उन्हें बुद्धिमानी से लागू करना ज़रूरी है:
| प्राचीन सिद्धांत | आधुनिक सामंजस्य |
|---|---|
| ईशान कोण खुला हो | फ्लैट में उत्तर-पूर्व दिशा में बड़ी खिड़कियाँ/बालकनी रखें और उसे साफ-सुथरा रखें। |
| जल्दी उठना | यदि जल्दी उठना संभव न हो, तो भी सुबह 9 बजे से पहले घर के पूर्वी हिस्से की खिड़कियाँ खोल दें। |
| खुला आंगन | घर में छोटे पौधे, वेंटिलेशन फैन और पारदर्शी परदे का उपयोग करें ताकि प्रकाश और हवा का प्रवाह बना रहे। |
🔑 निष्कर्ष
वास्तु शास्त्र कालातीत है, लेकिन इसे वर्तमान की आवश्यकतानुसार ढालना आवश्यक है। सूर्य की गति पर आधारित वास्तु के नियम आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने पहले थे, क्योंकि सकारात्मक ऊर्जा, शुद्ध हवा और सूर्य का प्रकाश हमारे स्वास्थ्य और मन की शांति के लिए अनिवार्य हैं। हमें आधुनिकता को अपनाना चाहिए, लेकिन प्रकृति के मूल सिद्धांतों को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए।

शुक्रवार, 14 नवंबर 2025

वास्तु रेमेडीज़: तर्क और अंधविश्वास के बीच की दूरी-------------------------------- वास्तु

वास्तु रेमेडीज़: तर्क और अंधविश्वास के बीच की दूरी-------------------------------- वास्तु
शास्त्र एक प्राचीन भारतीय वास्तुकला प्रणाली है, जो प्रकृति के पाँच तत्वों और दिशाओं के साथ भवन निर्माण को संतुलित करने पर केंद्रित है। इसके तर्कसंगत डिज़ाइन में शामिल हैं: प्राकृतिक प्रकाश और वेंटिलेशन, सही जगह का इस्तेमाल, और स्वच्छता और व्यवस्था। ये नियम स्वस्थ और आरामदायक जीवन शैली के लिए व्यावहारिक और वैज्ञानिक हैं। लेकिन जब तर्क छूट जाता है, तो अजीबोगरीब 'रेमेडीज़' जैसे लाल/पीली/हरी टेप लगाना, धातु की रोड या क्रिस्टल की स्थापना, और खास यंत्रों और मूर्तियों का अत्यधिक उपयोग पेश किए जाते हैं। ये उपाय पूरी तरह से तर्कहीन होते हैं और इनका न तो वास्तु के मूल सिद्धांतों से कोई लेना-देना है, और न ही विज्ञान से। यदि आप वास्तव में अपने घर में सकारात्मक ऊर्जा और संतुलन चाहते हैं, तो सरल और तर्कसंगत बातों पर ध्यान दें, जैसे कि सही लेआउट, प्राकृतिक प्रकाश, और स्वच्छता।
ज्ञान का अभाव और "दो दिन का कोर्स"
​आज स्थिति विकट है। कुछ लोग, जिन्होंने वास्तु का केवल दो दिन का कोर्स किया है या बस दो किताबें पढ़ी हैं, वे स्वयं को "वास्तु विशेषज्ञ" घोषित कर रहे हैं। उन्हें न तो प्राचीन ग्रंथों का गहरा ज्ञान है, न ही दिशाओं और ऊर्जा के वैज्ञानिक सिद्धांतों की समझ।
​अपूर्ण ज्ञान: इनका ज्ञान सतही होता है, जो अक्सर पारंपरिक उपायों के बजाय अजीबोगरीब और महंगे 'उपायों' को बढ़ावा देता है।
​व्यावसायीकरण: यह ज्ञान अब सेवा कम, और लाभ कमाने का एक व्यवसाय अधिक बन गया है।
​सामानों की बिक्री का धंधा
​इन तथाकथित विशेषज्ञों ने वास्तु को उपायों के माध्यम से सामान बेचने का एक जरिया बना दिया है।
​डरावनी भविष्यवाणियाँ: वे लोगों के घरों में "भयंकर वास्तु दोष" बताकर उन्हें डराते हैं।
​महंगे 'समाधान': इसके बाद, वे दोषों को दूर करने के नाम पर पिरामिड, क्रिस्टल, विशेष मूर्तियाँ, यंत्र और अन्य वस्तुएं बेचते हैं जिनकी कीमत हजारों में होती है, जबकि उनका वास्तु शास्त्र से कोई सीधा संबंध नहीं होता।
​कोई तार्किक आधार नहीं: इन वस्तुओं के काम करने का कोई तार्किक या वैज्ञानिक आधार नहीं होता। ये सिर्फ लोगों के डर और अंधविश्वास का फायदा उठाकर अपना उल्लू सीधा करने का एक तरीका है।
​हमारा भ्रम और बुद्धि का त्याग
​सबसे बड़ी विडंबना यह है कि हम, शिक्षित होने के बावजूद, इन ढोंग और आडंबरों के जाल में आसानी से फंस जाते हैं।
​भ्रम की स्थिति: हम 'भ्रम' और 'वहम' की स्थिति में आ जाते हैं कि अगर हमने यह 'उपाय' नहीं किया, तो हमारा जीवन बर्बाद हो जाएगा।
​बुद्धि का त्याग: हम अपनी तर्कशक्ति और बुद्धि का उपयोग करना बंद कर देते हैं। हम यह नहीं सोचते कि यदि सिर्फ एक क्रिस्टल या रंगीन पट्टी लगा देने से जीवन की सभी समस्याएं हल हो जातीं, तो मेहनत और कर्म का क्या महत्व रह जाता?
​आसान रास्ते की तलाश: व्यक्ति कठिन मेहनत के बजाय, आसान और चमत्कारी समाधान की तलाश में रहता है, जिसका फायदा ये ठग उठाते हैं।
​समाधान: तर्क और जागरूकता
​हमें इस शोषण से बचने के लिए अपनी आँखें खोलनी होंगी:
​तर्क को अपनाएं: हर वास्तु उपाय को तर्क की कसौटी पर कसें। सवाल करें कि क्या यह उपाय ऊर्जा, हवा, या रोशनी जैसे किसी बुनियादी वैज्ञानिक सिद्धांत पर आधारित है, या सिर्फ सामान बेचने का बहाना है।
​ज्ञान और जागरूकता: वास्तु के मूलभूत सिद्धांतों को समझें। वास्तु का मतलब है स्वच्छता, संतुलन और सही दिशाओं का उपयोग करना, न कि सिर्फ महंगी वस्तुएं खरीदना।
​कर्म में विश्वास: समस्याओं का समाधान हमेशा मेहनत, सही निर्णय और सकारात्मक सोच में होता है, न कि किसी वस्तु या ताबीज में।
​वास्तु को एक सुखद और व्यवस्थित जीवन जीने के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में देखें, न कि डर और अंधविश्वास का कारण। जब तक हम अपनी बुद्धि का उपयोग नहीं करेंगे, तब तक ये अल्पज्ञानी और लालची लोग हमें भ्रमित करके अपना फायदा उठाते रहेंगे।

वास्तु रेमेडीज़: तर्क और अंधविश्वास के बीच की दूरी-

वास्तु रेमेडीज़: तर्क और अंधविश्वास के बीच की दूरी-------------------------------- वास्तु
शास्त्र एक प्राचीन भारतीय वास्तुकला प्रणाली है, जो प्रकृति के पाँच तत्वों और दिशाओं के साथ भवन निर्माण को संतुलित करने पर केंद्रित है। इसके तर्कसंगत डिज़ाइन में शामिल हैं: प्राकृतिक प्रकाश और वेंटिलेशन, सही जगह का इस्तेमाल, और स्वच्छता और व्यवस्था। ये नियम स्वस्थ और आरामदायक जीवन शैली के लिए व्यावहारिक और वैज्ञानिक हैं। लेकिन जब तर्क छूट जाता है, तो अजीबोगरीब 'रेमेडीज़' जैसे लाल/पीली/हरी टेप लगाना, धातु की रोड या क्रिस्टल की स्थापना, और खास यंत्रों और मूर्तियों का अत्यधिक उपयोग पेश किए जाते हैं। ये उपाय पूरी तरह से तर्कहीन होते हैं और इनका न तो वास्तु के मूल सिद्धांतों से कोई लेना-देना है, और न ही विज्ञान से। यदि आप वास्तव में अपने घर में सकारात्मक ऊर्जा और संतुलन चाहते हैं, तो सरल और तर्कसंगत बातों पर ध्यान दें, जैसे कि सही लेआउट, प्राकृतिक प्रकाश, और स्वच्छता।
ज्ञान का अभाव और "दो दिन का कोर्स"
​आज स्थिति विकट है। कुछ लोग, जिन्होंने वास्तु का केवल दो दिन का कोर्स किया है या बस दो किताबें पढ़ी हैं, वे स्वयं को "वास्तु विशेषज्ञ" घोषित कर रहे हैं। उन्हें न तो प्राचीन ग्रंथों का गहरा ज्ञान है, न ही दिशाओं और ऊर्जा के वैज्ञानिक सिद्धांतों की समझ।
​अपूर्ण ज्ञान: इनका ज्ञान सतही होता है, जो अक्सर पारंपरिक उपायों के बजाय अजीबोगरीब और महंगे 'उपायों' को बढ़ावा देता है।
​व्यावसायीकरण: यह ज्ञान अब सेवा कम, और लाभ कमाने का एक व्यवसाय अधिक बन गया है।
​सामानों की बिक्री का धंधा
​इन तथाकथित विशेषज्ञों ने वास्तु को उपायों के माध्यम से सामान बेचने का एक जरिया बना दिया है।
​डरावनी भविष्यवाणियाँ: वे लोगों के घरों में "भयंकर वास्तु दोष" बताकर उन्हें डराते हैं।
​महंगे 'समाधान': इसके बाद, वे दोषों को दूर करने के नाम पर पिरामिड, क्रिस्टल, विशेष मूर्तियाँ, यंत्र और अन्य वस्तुएं बेचते हैं जिनकी कीमत हजारों में होती है, जबकि उनका वास्तु शास्त्र से कोई सीधा संबंध नहीं होता।
​कोई तार्किक आधार नहीं: इन वस्तुओं के काम करने का कोई तार्किक या वैज्ञानिक आधार नहीं होता। ये सिर्फ लोगों के डर और अंधविश्वास का फायदा उठाकर अपना उल्लू सीधा करने का एक तरीका है।
​हमारा भ्रम और बुद्धि का त्याग
​सबसे बड़ी विडंबना यह है कि हम, शिक्षित होने के बावजूद, इन ढोंग और आडंबरों के जाल में आसानी से फंस जाते हैं।
​भ्रम की स्थिति: हम 'भ्रम' और 'वहम' की स्थिति में आ जाते हैं कि अगर हमने यह 'उपाय' नहीं किया, तो हमारा जीवन बर्बाद हो जाएगा।
​बुद्धि का त्याग: हम अपनी तर्कशक्ति और बुद्धि का उपयोग करना बंद कर देते हैं। हम यह नहीं सोचते कि यदि सिर्फ एक क्रिस्टल या रंगीन पट्टी लगा देने से जीवन की सभी समस्याएं हल हो जातीं, तो मेहनत और कर्म का क्या महत्व रह जाता?
​आसान रास्ते की तलाश: व्यक्ति कठिन मेहनत के बजाय, आसान और चमत्कारी समाधान की तलाश में रहता है, जिसका फायदा ये ठग उठाते हैं।
​समाधान: तर्क और जागरूकता
​हमें इस शोषण से बचने के लिए अपनी आँखें खोलनी होंगी:
​तर्क को अपनाएं: हर वास्तु उपाय को तर्क की कसौटी पर कसें। सवाल करें कि क्या यह उपाय ऊर्जा, हवा, या रोशनी जैसे किसी बुनियादी वैज्ञानिक सिद्धांत पर आधारित है, या सिर्फ सामान बेचने का बहाना है।
​ज्ञान और जागरूकता: वास्तु के मूलभूत सिद्धांतों को समझें। वास्तु का मतलब है स्वच्छता, संतुलन और सही दिशाओं का उपयोग करना, न कि सिर्फ महंगी वस्तुएं खरीदना।
​कर्म में विश्वास: समस्याओं का समाधान हमेशा मेहनत, सही निर्णय और सकारात्मक सोच में होता है, न कि किसी वस्तु या ताबीज में।
​वास्तु को एक सुखद और व्यवस्थित जीवन जीने के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में देखें, न कि डर और अंधविश्वास का कारण। जब तक हम अपनी बुद्धि का उपयोग नहीं करेंगे, तब तक ये अल्पज्ञानी और लालची लोग हमें भ्रमित करके अपना फायदा उठाते रहेंगे।

बुधवार, 12 नवंबर 2025

दक्षिण-पश्चिम दिशा में दरवाजे/खिड़की: वैज्ञानिक कारण और वास्तु-भ्रम का विश्लेषण

दक्षिण-पश्चिम दिशा में दरवाजे/खिड़की: वैज्ञानिक कारण और वास्तु-भ्रम का विश्लेषण
-----------111111111-- वास्तु शास्त्र एक प्राचीन भारतीय स्थापत्य विज्ञान है, जिसका मुख्य उद्देश्य किसी भी संरचना को प्रकृति के पाँच तत्वों (पंचभूत) और ऊर्जा के प्रवाह के साथ सामंजस्य बिठाना है। दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य कोण) में दरवाजे या खिड़की को 'अशुभ' मानने के पीछे कई सदियों पुराने कारण हैं, जो अंधविश्वास से कहीं अधिक, जलवायु, खगोल विज्ञान और मानव स्वास्थ्य पर आधारित हैं। वहम और भ्रम को दूर करने के लिए, हमें इसके पीछे की भौतिक और वैज्ञानिक तर्क को समझना होगा। १. सूर्य का तीव्र ताप (थर्मल लोड) दक्षिण-पश्चिम दिशा दोपहर के बाद और देर शाम तक सूर्य की सबसे तीव्र और सीधी किरणों का सामना करती है। हमारे भारत जैसे उष्णकटिबंधीय (ट्रॉपिकल) और उपोष्णकटिबंधीय (सबट्रॉपिकल) क्षेत्रों में, दोपहर के बाद की धूप अत्यधिक गर्म होती है। दक्षिण-पश्चिम में बड़ा दरवाजा या खिड़की होने से घर के अंदर अत्यधिक ऊष्मा (हीट) प्रवेश करती है। यह ऊष्मा घर के तापमान (थर्मल लोड) को बढ़ा देती है, जिससे कमरा असहज हो जाता है और एयर कंडीशनिंग (ए.सी.) जैसे कूलिंग उपकरणों पर निर्भरता बढ़ती है। हानिकारक पराबैंगनी किरणें (हार्मफुल यूवी रेज़) सूर्य की किरणें, विशेष रूप से दोपहर के बाद, अपने साथ उच्च मात्रा में पराबैंगनी किरणें लाती हैं।  जिसे राहु की किरणें भी कहा जाता है, दोपहर की धूप में UV-A और UV-B किरणों बस की तीव्रता अधिक होती है। इसके कारण हवा गर्म हो जाती है और गर्म हवा हल्की होकर आपके घर में प्रवेश करके सब जगह फैल जाती है। इसी कारण से इस दिशा को थोड़ा ऊंचा उठाकर भारी रखने के लिए कहा जाता है ताकि गर्म हवा के दबाव के कारण वहां रहने वाले लोगों को नुकसान न पहुंचे। इसलिए, जहां पर खिड़की और दरवाजे बंद रखना चाहिए, वहां पर मोटे पर्दे डालकर रखना चाहिए। यही इसका वैज्ञानिक कारण है जो मैंने आपको समझाया है। अब, अगर आपके घर में कोई वास्तु शास्त्री वास्तु चेक करने वाला आता है, तो वह यहां पर खिड़कियां और दरवाजे देखकर ही आपको डरा देगा और अपना कोई न कोई सामान वहां पर लगाकर उपाय करवा देगा, जिससे आपको लाखों रुपए का नुकसान हो सकता है। मित्रों, मेरी कोशिश यही रहती है कि मैं आपको सही जानकारी दे सकूं। इस दिशा में बनने वाले कमरे को घर के मुख्य को देने के लिए कहा जाता है। इसका भी एक वैज्ञानिक कारण है।उम्र बढ़ाने के साथ-साथ खून की गर्मी भी काम हो जाती है। सर्दियों के दिनों में अगर यहां पर थोड़ी घुप आती है तो उसमें मुखिया के लिए अच्छा रहता है धूप से उसकी हड्डियों को विटामिन डी कैल्शियम मिलती है।और शरीर गर्म  रहता है। इसलिए घर के मुखिया के कमरे में खिड़की होना भी जरूरी है। जिससे सर्दियों के दिनों में धूप आ सके अब इतना सब कुछ जानने के बाद भी आपको बहम हैया  भ्रमित स्थिति बनी रहती ।है तो फिर उसके बाद तो मैं कुछ भी नहीं कर सकता मित्रों

सोमवार, 10 नवंबर 2025

आधुनिक वास्तु: रसोई की दिशा का नया समीकरण

आधुनिक वास्तु: रसोई की दिशा का नया समीकरण. 
-------------------
यह मेरा दृढ़ मत है कि वास्तु शास्त्र का उपयोग केवल बुद्धि और तर्क के साथ किया जाना चाहिए, न कि आँख बंद करके पुराने नियमों का पालन किया जाए। हमारी बदलती जीवनशैली के आधार पर, रसोई की दिशा के लिए यहाँ 11 महत्वपूर्ण निष्कर्ष दिए गए हैं:
​पुराने नियम, पुराना तर्क: वास्तु में रसोई के लिए अग्नि कोण (दक्षिण-पूर्व) का निर्धारण सदियों पुरानी जीवनशैली पर आधारित था, जहाँ खाना सुबह 5 से 7 बजे के बीच बनाया जाता था और चूल्हे की सामग्री (लकड़ी, गोबर) को सुखाने के लिए तेज़ गर्मी की आवश्यकता होती थी।
​आधुनिक जीवनशैली में बदलाव: वर्तमान समय में नाश्ता लगभग 9 बजे और दोपहर का भोजन 12 से 2 बजे के बीच बनता है, जिससे मुख्य खाना पकाने का समय दोपहर का होता है।
​अग्नि कोण में अत्यधिक गर्मी की समस्या: दोपहर के इन घंटों में अग्नि कोण (दक्षिण-पूर्व) में 45°C से 50°C तक की तेज़ गर्मी होती है, जो गृहिणी के लिए रसोई में काम करना अत्यधिक कष्टदायक बना देती है, खासकर जब रसोई में AC न हो। इसी तरह देशकाल स्थिति के अनुसार भी वस्तु का इस्तेमाल करना चाहिए यही अगर ठंडी जगह है जहां पर ज्यादा ठंड पड़ती है तो वहां अगले कौन की दिशा किचन के लिए उपयुक्त स्थान है
​ईंधन का परिवर्तन: अब हम लकड़ी या गोबर के बजाय गैस पर खाना बनाते हैं, इसलिए चूल्हे की सामग्री को सुखाने के लिए अग्नि कोण की तेज़ गर्मी की अब आवश्यकता नहीं रही।

​वायु कोण (उत्तर-पश्चिम) का सुझाव: आधुनिक समस्याओं और तर्कों को देखते हुए, रसोई के लिए इसकी मित्र दिशा यानी वायु कोण (उत्तर-पश्चिम) सबसे उपयुक्त स्थान हो सकता है।
​वायु कोण का समर्थन: वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम) वायु तत्व से संबंधित है, जो अग्नि तत्व (रसोई) का समर्थन और पोषण करता है, जिससे सकारात्मक गतिशीलता बनी रहती है।
​कम गर्मी का लाभ: वायु कोण दोपहर में कम गर्म रहता है, जिससे खाना बनाते समय गर्मी कम महसूस होती है और यह गृहिणी के लिए एक आरामदायक कार्यक्षेत्र प्रदान करता है।
​उत्कृष्ट वेंटिलेशन (वायुसंचार): उत्तर-पश्चिम दिशा में अक्सर हवा का अच्छा आवागमन होता है। यह दिशा एग्जॉस्ट फैन और खिड़कियों के माध्यम से गरम हवा और धुएं को आसानी से बाहर निकालने में मदद करती है, जिससे रसोई स्वच्छ और ठंडी रहती है।
​प्राकृतिक प्रकाश की उपलब्धता: इस दिशा में दिन के अधिकांश समय पर्याप्त प्राकृतिक प्रकाश उपलब्ध रहता है, जिससे बिजली की बचत होती है और रसोई में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
​खाद्यान्नों की शुद्धता: इस कोण को खाद्यान्नों के भण्डारण के लिए भी अच्छा माना गया है, क्योंकि यहाँ भंडार किया गया अनाज अधिक समय तक शुद्ध रहता है, जो रसोई के लिए एक महत्वपूर्ण सकारात्मक पहलू है।
​निष्कर्ष: तर्क और बुद्धि का महत्व: मेरा मानना है कि हमें रटे-रटाए नियमों को छोड़कर, तर्क और व्यावहारिक बुद्धि का उपयोग करते हुए वास्तु सिद्धांतों को अपनी वर्तमान जीवनशैली के अनुरूप ढालना चाहिए, न कि सोशल मीडिया के भ्रमित करने वाले उपायों पर निर्भर रहना चाहिए।
​मित्रों मेरी जो भी बात होती है वह तर्क पर आधारित होती है यह नहीं की आंख मूंद कर जो किताबों में लिखा है वही मैं आपको बताऊं जो आजकल हो रहा है लोगों को भ्रमित किया जा रहा है डराया जा रहा है वास्तु के नाम पर गंदे मंदिर चाइनीस सामान बेच जा रहे हैं प्लास्टिक से बने हुए गंदे मेटल के बने हुए जो आपके घरों को और भी नेगेटिव ऊर्जा प्रदान कर रहे हैं मित्रों मैं बहुत ही मेहनत से यह लेख तैयार कर किया है कृपया और उनको भी इससे लाभ मिले इसलिए इसको ज्यादा से ज्यादा शेयर करें

सोमवार, 3 नवंबर 2025

पॉडकास्ट पर ज्योतिष, वास्तु और अंक ज्योतिष: अधूरे ज्ञान और धोखाधड़ी का बढ़ता बाज़ार

🎙️ पॉडकास्ट पर ज्योतिष, वास्तु और अंक ज्योतिष: अधूरे ज्ञान और धोखाधड़ी का बढ़ता बाज़ार
​आजकल पॉडकास्ट की दुनिया ज्ञान से कम, बल्कि 'कचरे' से ज़्यादा भरी हुई है। यह देखकर निराशा होती है कि कैसे कुछ तथाकथित 'अज्ञानी' ज्योतिष, वास्तु और अंक ज्योतिष (न्यूमेरोलॉजी) के नाम पर ऐसा आधा-अधूरा ज्ञान बाँट रहे हैं, जिसका कोई वैज्ञानिक या तार्किक आधार नहीं है।
​🚫 'हाफ नॉलेज' का ख़तरा: अटपटे और मूर्खतापूर्ण उपाय
​पॉडकास्ट और डिजिटल मंचों पर बिना किसी संदर्भ के अटपटे और मूर्खतापूर्ण उपाय बताए जाते हैं, जैसे:
​"यह पेड़ लगा दो।"
​"इस रंग का रुमाल जेब में रख लो।"
​"हाथ पर यह नंबर लिख लो।"
​"जेब में यह यंत्र रख लो।"
​"घर का दरवाज़ा इस दिशा में कर लो।"
​ये बातें तर्क और बुद्धिहीनता की हद पार करती नज़र आती हैं।
​😱 भय-आधारित मार्केटिंग: डर बेचकर पैसा कमाना
​इन तथाकथित विशेषज्ञों की रणनीति भय-आधारित मार्केटिंग पर टिकी होती है। ये लोग समाधान देने के बजाय, लोगों में बेवजह का डर पैदा करते हैं—जैसे, "अगर यह नहीं किया, तो बड़ा संकट आ जाएगा।" वे यह कहकर लोगों को बरगलाते हैं कि किसी खास नंबर को हाथ पर लिखने से किस्मत बदल जाएगी, या वास्तु के अनुसार घर में थोड़ा सा बदलाव करने से धन की वर्षा होने लगेगी।
​🧠 तर्क और विज्ञान के विरुद्ध दावे
​पहले ये सब केवल गली-मोहल्लों के कोनों तक सीमित था, लेकिन अब इंटरनेट ने इन्हें एक विशाल मंच दे दिया है। सोशल मीडिया पर आकर्षक ग्राफिक्स और प्रभावशाली भाषणों के ज़रिए लोगों को गुमराह किया जाता है।
​याद रखें:
​ये सभी दावे पूरी तरह से विज्ञान, तर्क और सामान्य ज्ञान के विपरीत हैं।
​किसी नंबर की स्याही या किसी दिशा में रखी वस्तु का किसी व्यक्ति के जीवन की सफलता या असफलता पर कोई वास्तविक प्रभाव नहीं पड़ सकता।
​जीवन में सफलता कड़ी मेहनत, सही निर्णय लेने की क्षमता, शिक्षा और धैर्य से मिलती है, न कि किसी मनगढ़ंत 'लकी नंबर' या अंधविश्वास से।
​💡 सावधान रहें: अपनी बुद्धि का प्रयोग करें
​विडंबना यह है कि आज भी बड़ी संख्या में लोग इन बातों में आ जाते हैं। इसके पीछे तर्क शक्ति का अभाव और जीवन की समस्याओं से त्वरित समाधान पाने की लालसा है।
​प्रश्न पूछें: किसी भी उपाय को मानने से पहले सवाल ज़रूर पूछें: इसका आधार क्या है?
​समझदारी दिखाएँ: ज्ञान वह है जो आपके जीवन को सरल बनाए, न कि भ्रमित और डराए।
​आधे-अधूरे ज्ञान को 'ज्ञान' न मानें। अपनी बुद्धि का प्रयोग करें और ऊंट पटांग पर सर की बातों पॉडकास्ट की  इस नई लहर से बचें।

ब्रह्मांडीय तालमेल और 'टाइमिंग' का विज्ञान (The Cosmic Synchronization) ​(सिस्टम, अदृश्य किरणें और DNA रि-प्रोग्रामिंग)

 भाग-5: ब्रह्मांडीय तालमेल और 'टाइमिंग' का विज्ञान (The Cosmic Synchronization) ​(सिस्टम, अदृश्य किरणें और DNA रि-प्रोग्रामिंग) ​— ए...