रविवार, 19 जून 2016

ब्रह्मांड की अति सूक्षम हलचल का प्रभाव भी पृथ्वी पर पडता है,सूर्य और चन्द्र का प्रत्यक्ष प्रभाव हम आसानी से देख और समझ सकते है,सूर्य के प्रभाव से ऊर्जा और चन्द्रमा के प्रभाव से समुद में ज्वार-भाटा को भी समझ और देख सकते है,जिसमे अष्ट्मी के लघु ज्वार और पूर्णमासी के दिन बृहद ज्वार का आना इसी प्रभाव का कारण है,पानी पर चन्द्रमा का प्रभाव अत्याधिक पडता है,मनुष्य के अन्दर भी पानी की मात्रा अधिक होने के कारण चन्द्रमा का प्रभाव मानव मस्तिष्क पर भी पडता है,पूर्णमासी के दिन होने वाले अपराधों में बढोत्तरी को आसानी से समझा जा सकता है, जो पागल होते है उनके असर भी इसी तिथि को अधिक बढते है,आत्महत्या वाले कारण भी इसी तिथि को अधिक होते है,इस दिन स्त्रियों में मानसिक तनाव भी अधिक दिखाई देता है,इस दिन आपरेशन करने पर खून अधिक बहता है,शुक्ल पक्ष मे वनस्पतियां अधिक बढती है,सूर्योदय के बाद वन्स्पतियों और प्राणियों में स्फ़ूर्ति का प्रभाव अधिक बढ जाता है,आयुर्वेद भी चन्द्रमा का विज्ञान है जिसके अन्तर्गत वनस्पति जगत का सम्पूर्ण मिश्रण है,कहा भी जाता है कि “संसार का प्रत्येक अक्षर एक मंत्र है,प्रत्येक वनस्पति एक औषधि है,और प्रत्येक मनुष्य एक अपना गुण रखता है,आवश्यकता पहिचानने वाले की होती है”,’ ग्रहाधीन जगत सर्वम”,विज्ञान की मान्यता है कि सूर्य एक जलता हुआ आग का गोला है,जिससेसभी ग्रह पैदा हुए है,गायत्री मन्त्र मे सूर्य को सविता या परमात्मा माना गया है,रूस के वैज्ञानिक “चीजेविस्की” ने सन १९२० में अन्वेषण किया था,कि हर ११ साल में सूर्य में विस्फ़ोट होता है,जिसकी क्षमता १००० अणुबम के बराबर होती है,इस विस्फ़ोट के समय पृथ्वी पर उथल-पुथल,लडाई झगडे,मारकाट होती है,युद्ध भी इसी समय मे होते है,पुरुषों का खून पतला हो जाता है,पेडों के तनों में पडने वाले वलय बडे होते है,श्वास रोग सितम्बर से नबम्बर तक बढ जाता है,मासिक धर्म के आरम्भ में १४,१५,या १६ दिन गर्भाधान की अधिक सम्भावना होती है.इतने सब कारण क्या ज्योतिष को विज्ञान कहने के लिये पर्याप्त नही है?

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