शनिवार, 7 जनवरी 2017

मित्रों जहाँ विज्ञानं का क्षेत्र समापत होता है वहां से ज्योतिष विज्ञान की शुरुआत होती है हम रोज अख़बारों में पढ़ते है की आज किसी बेटे ने पिता को मार डाला अथवा माता को मार डाला ! और कभी यह भी की पिता ने बेटे को मार डाला ! कितना भयानक होता होगा यह मंज़र उफ़ वो पिता जो कभी बेटे की एक किलकारी सुनते ही ख़ुशी से मदहोश हो जाता हो और वह बेटा जो पिता के आने की एक आहट से ही झूम उठता हो फिर क्यों हो जाते हैं मजबूर इस भयानक मंज़र को अंजाम देने के लिए !जिस माँ की छवि जीवन भर जिस बेटे ने मन में बसा रखी हो वह फिर ऐसा कर दे कितना भयानक सा लगता है ! कुछ लोग कहते हैं खून तो पानी होता जा रहा है आज ! और कुछ कहते हैं की खून तो आज सफ़ेद होता जा रहा है ! इस भयानक अंजाम के तात्कालिक कारण कुछ भी हों पर कहीं न कहीं इस सब की जिम्मेवार तो है मनो दशा जब मानव के जीवन में राहु जैसे ग्रहों का भूचाल आता है तो मनो दशा तो बिगड़ ही जाती है मानव की फिर वह चाहे रावण जैसा ज्ञानी ही क्यों न हो ! ग्रहों के इस असर पर ओशो ने तो यह कहा है की मानव का जब जनम होता है तो ग्रहों की जिस धुन को वह जनम लेते ही सुनता है वही धुन जीवन भर उस पर अपना प्रभाव रखती है ! ज्यों ही इस में विपरीत धुन शामिल होती है तो शुरू होता है जीवन में भयानक बदलाव ! और ज्यों ही पक्ष में यह धुन पैदा होती है तो मूर्खों को भी ज्ञानी होते देखा गयाहो है जब इस संगीत में बदलाव आता है तो इस का सब से अधिक असर इंसान के दिमाग पर होता है पागलख़ानो की वहां सबसे ज्यादा उत्पात पागल तब मचाते हैं जब आकाश में पूर्ण चाँद होता है ! फिर यदि चाँद से मानव दिमाग पर इतना प्रभाव हो सकता है तो बाकी ग्रहों का तो कहना ही क्या ! वह तो चाँद से हज़ारों गुना बड़े हैं !तो इस का कोई हल है भी या नहीं ? मेरे ख्याल से इस का जवाब ज्योतिष में है ! एक बचे को सभी डाक्टरों ने जवाब दे दिया की इस का बचना मुश्किल है ! पर वह बचा बच गया ! आज भी वह तंदरुस्त है.! आप यकीन माने या न माने पर यह सत्य है ! जहाँ विज्ञानं का क्षेत्र समापत होता है वहां से ज्योतिष की शुरुआत होती है ! उस बचे को एक ज्योतिषी ने एक छोटे से उपाए से बचा लिआ ! पर हाँ न तो हर बार डाक्टर ही सफल होने की गरंटी दे सकता है और न ही कोई ज्योतिषीयह तो बस प्रभु का रचा हुआ खेल है जय माता दी माँ काली ज्योतिष आचार्य राजेश

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