आचार्य राजेश (ज्योतिष,वास्तु , रत्न , तंत्र, और यन्त्र विशेषज्ञ ) जन्म कुंडली के द्वारा , विद्या, कारोबार, विवाह, संतान सुख, विदेश-यात्रा, लाभ-हानि, गृह-क्लेश , गुप्त- शत्रु , कर्ज से मुक्ति, सामाजिक, आर्थिक, राजनितिक ,पारिवारिक विषयों पर वैदिक व लाल किताबकिताब के उपाय ओर और महाकाली के आशीर्वाद से प्राप्त करें07597718725-०9414481324 नोट रत्नों का हमारा wholesale का कारोबार है असली और लैव टैस्ट रत्न भी मंगवा सकते है
शुक्रवार, 14 अप्रैल 2017
जैमोलॉजी जैमोलॉजी वास्तव में एक विज्ञान है और इस पर अच्छा खासा काम हो रहा है। यह बात अलग है कि कीमती पत्थरों ने अपना यह स्थान खुद बनाया है। ठीक सोने, चांदी और प्लेटिनम की तरह। इसमें ज्योतिष का कोई रोल नहीं है। तीन प्रकार के रत्नो का प्रयोग आमतौर पर लोग करते है,शरीर के लिये परिवार और सन्तान के लिये तथा भाग्य के लिये,यही कारण प्राण रक्षा के लिये बुद्धि के विकास के लिये और समय पर कार्य हो जाने के लिये भी माना जाता है। आमतौर पर एक ही रत्न को लोग पहिनने की राय देते है,और उस रत्न के पहिनने के बाद कुछ सीमा मे फ़ायदा और कुछ सीमा मे नुकसान होने की बात से भी मना नही किया जा सकता है।पर यकीन मानिए भाग्य के साथ रत्नों का जुड़ाव मोहनजोदड़ो सभ्यता के दौरान भी रहा है। उस जमाने में भी भारी संख्या में गोमेद रत्न प्राप्त हुए हैं। यह सामान्य अवस्था में पाया जाने वाला रत्न नहीं है, इसके बावजूद इसकी उत्तरी पश्चिमी भारत में उपस्थिति पुरातत्ववेत्ताओं के लिए भी आश्चर्य का विषय रही। पता नहीं उस दौर में इतने अधिक लोगों ने गोमेद धारण करने में रुचि क्यों दिखाई, या गोमेद का रत्न के रूप में धारण करने के अतिरिक्त भी कोई उपयोग होता था, यह स्पष्ट नहीं है, लेकिन वर्तमान में राहू की दशा भोग रहे जातक को राहत दिलाने के लिए गोमेद पहनाया जाता है।जो मेरे हिसाब से गलत है इंटरनेट और किताबों में रत्नों के बारे में विशद जानकारी देने वालों की कमी नहीं है। इसके वारे मेरी पोस्ट इसकी वास्तविक आवश्यकता के बारे में है। मैं एक ज्योतिष विद्यार्थी होने के नाते रत्नों को पहनने का महत्व बताने नहीं बल्कि इनकी वास्तविक आवश्यकता बताने का प्रयास करूंगा। वास्तव में दो विधाओं में उलझा है रत्न विज्ञान वर्तमान दौर में हस्तरेखा और परम्परागत ज्योतिष एक-दूसरे में इस तरह घुलमिल गए हैं कि कई बार एक विषय दूसरे में घुसपैठ करता नजर आता है। रत्नों के बारे में तो यह बात और भी अधिक शिद्दत से महसूस होती है। हस्तरेखा पद्धति ने हाथ की सभी अंगुलियों के हथेली से जुड़े भागों पर ग्रहों का स्वामित्व दर्शाया है। ऐसे में कुण्डली देखकर रत्न पहनने की सलाह देने वाले लोग भी हस्तरेखा की इन बातों को फॉलो करते दिखाई देते हैं। जैसे बुध के लिए बताया गया पन्ना हाथ की सबसे छोटी अंगुली में पहनने, गुरु के लिए पुखराज तर्जनी में पहनने और शनि मुद्रिका सबसे बड़ी अंगुली में पहनने की सलाहें दी जाती हैं। बाकी ग्रहों के लिए अनामिका तो है ही, क्योंकि यह सबसे शुद्ध है। मुझे इस शुद्धि का स्पष्ट आधार नहीं पता लेकिन शुक्र का हीरा, मंगल का मूंगा, चंद्रमा का मोती जैसे रत्न इसी अंगुली में पहनने की सलाह दी जाती है। अब रत्न किसे पहनाना आवश्यक है, इन सब बातों को लेकर कालान्तर में मैंने कुछ तय नियम बना लिए… अब ये कितने सही है कितने गलत यह तो नहीं बता सकता, लेकिन इससे जातक को धोखे में रखने की स्थिति से बच जाता हूं।वास्तव में जैम स्टोन से किस ग्रह का उपचार कैसे किया जाए इस बारे में कई तरह के मत हैं। कोई ग्रह के कमजोर होने पर रत्न पहनाने की सलाह देता है तो कोई केवल कारक ग्रह अथवा लग्नेश संबंधी ग्रह का रत्न पहनने की सलाह देता है। ऐसे में किसे क्या पहनाया जाए, यह बताना टेढ़ी खीर है। यहां के.एस. कृष्णामूर्ति को कोट करूं तो स्पष्ट है कि लग्नेश या नवमेश अथवा इनसे जुड़े ग्रहों का ही उपचार किया जा सकता है। ऐसे में कई दूसरे ग्रह जो फौरी तौर पर कुण्डली में बहुत स्ट्रांग पोजिशन में दिखाई भी दें तो उनसे संबंधित उपचार नहीं कराए जा सकते। मैं उदाहरण से समझाने का प्रयास करता हूं। तुला लग्न के जातक की कुण्डली में लग्न का अधिपति हुआ शुक्र, कारक ग्रह हुआ शनि और नवमेश हुआ बुध। अब कृष्णामूर्ति के अनुसार जब तक शनि का संबंध शुक्र या बुध से न हो तो उससे संबंधित उपचार नहीं किए जा सकते, यानि उपचार प्रभावी नहीं होगा, लेकिन परम्परागत ज्योतिष के अनुसार तुला लग्न के जातक को शनि संबंधी रत्न प्रमुखता से पहनाया जा सकता है। यह शरीर पंच भूतों से बना है और इन्ही के अधिकार मे सम्पूर्ण जीवन का विस्तार होता है। इन पंचभूतो मे किसी भी भूत की कमी या अधिकता जीवन के विस्तार मे अपने अपने प्रकार से दिक्कत देने के लिये अपना प्रभाव देने लगते है। ग्रहों के दो प्रकार सूर्य और चन्द्रमा के साथ देखे जाते है,जैसे मेष राशि का स्वामी मंगल है तो वह लगनेश के लिये मूंगा को पहिनने का कारक बनता है जो शरीर और प्राण रक्षा के लिये अपना प्रभाव देता है,लेकिन उसका असर धन के प्रति सही नही माना जा सकता है जैसे मंगल और शुक्र मे आपस मे नही बनती है,उसी प्रकार से बुध के साथ भी मंगल की नही बनती है,चन्द्रमा के साथ बराबर का असर रहता है सूर्य के साथ उसकी बहुत अधिक बढोत्तरी हो जाती है गुरु के साथ होने से अहम की मात्रा बढ जाती है और शनि के साथ मिलने से कसाई जैसी प्रकृति बन जाती है। तो मूंगा मेष लगन वालो के लिये धन व्यवहार कार्य जीवन साथी उन्नति के साधनो मे तो गलत असर देगा और शरीर मन आयु के साथ भलाई करेगा,अहम ज्ञान और शांति के साधनो मे बढोत्तरी करने से दिक्कत देने वाला बनेगा। अगर शनि लगन मे ही विराजमान है तो वह सिर दर्द की बीमारी देगा और जो भी सोचा जाता है उसके लिये अपनी तर्क शक्ति के विकास होने से तर्क वितर्क करने से होते हुये कार्य को भी बिगाडने की कोशिश करेगा। कार्य तकनीकी बन जायेगा और जो भी कार्य होगा वह मनुष्य शक्ति के अन्दर ही माना जायेगा जैसे शरीर विज्ञान मे रुचि,जो भी कार्य किया जायेगा उसके अन्दर नये नये आविष्कार होने के कारण कार्यों के अन्दर कठिनाई आने लगेगी,एक भाई को बहुत ही कठिनाई केवल इसलिये हो जायेगी कि वह परिवार मे सामजस्य बनाने की कोशिश करेगा और तामसी कारण बढ जाने से परिवार मे अशान्ति का माहौल बना रहेगा। युवावस्था मे अपनी ही चलाने के कारण घर के लोगो से दूरिया बन जायेंगी और विरोधी युवावस्था के बाद हावी हो जायेंगे,दुश्मनी अधिक बन जायेगी और जो भला भी करना चाहेंगे वे डर की बजह से दूर होते चले जायेंगे नाक पर गुस्सा होगा,यानी जरा सी बात का बतंगड बनाने में देर नही लगेगी। यही मंगल जब राहु पर गोचर से अपना असर दिखायेगा या जन्म के समय से ही राहु के सानिध्य मे होगा तो मूंगा का असर दिमाग को पहिया की तरह से घुमाने से बाज नही आयेगा,क्या कहना है किससे कैसे बात करनी है यह सोच विचार बिलकुल ही खत्म हो जायेगी,पारिवारिक कारणो मे भी अक्सर पैतृक सम्पत्ति के पीछे नये नये विवाद बनते जायेंगे और घर के सदस्य ही किसी न किसी प्रकार की घात लगाने लगेंगे,व्यवहार भी तानाशाही जैसा बन जायेगा,जो भी बात की जायेगी वह हुकुम जैसी होगी,इस बात का असर भाई पर भी जायेगा और वह अधिक चिन्ता के cc कारण या आन्तरिक दुश्मनी से दुर्घटना का शिकार भी हो जायेगा,अगर व्यक्ति का बडा भाई भी है तो उसकी चलेगी नही या मूंगा को धारण करने के बाद वह घर से अलग हो जायेगा,अधिक सोच के कारण से व्यक्ति के अन्दर ब्लड प्रेसर की बीमारी पैदा हो जायेगी। किसी प्रकार से मंगल की युति कुंडली मे केतु से है तो स्त्री जातक के लिये परेशानी का कारण बन जायेगा यानी पति का व्यवहार बिलकुल सन्यासी जैसा हो जायेगा,वह अकेला बैठ कर जाने क्या क्या सोचने लगेगा और दूर रहकर ही अपने जीवन को बिताने का कारण सोचने लगेगा,पति का इन्तजार पत्नी को और पत्नी का इन्तजार पति को रहेगा दोनो कभी इकट्ठे नही रह पायेंगे और रहेंगे भी तो जैसे कुत्ते बिल्ली लडते है वैसे आपस के विचारों की लडाई शुरु हो जायेगी,केतु के साथ मंगल के होने से कुंडली में मंगल दोष भले ही नही हो लेकिन मूंगा को पहिनने के बाद जबरदस्ती मे मंगली दोष को पैदा कर लिया जायेगा,शादी मे देरी हो जायेगी,घर मे किसी को भी मानसिक बीमारी पैदा हो सकती है लो ब्लड प्रेसर की बीमारी भी पैदा हो सकती है। अगर दो तीन भाई है तो एक तो किसी प्रकार से अनैतिक कार्यों की तरफ़ भागने लगेगा,और दूसरा किसी प्रकार से घर को त्याग कर ही चला जायेगा,कई बार लोगों के द्वारा अनर्गल बयान दिये जाते है कि अमुक पत्थर के पहिनते ही उन्हे आशातीत लाभ हो गया,अमुक ज्योतिषी ने अमुक रत्न दिया था उससे उन्हे बहुत लाभ हो गया,लेकिन यह क्यों नही सोचा जाता है कि ज्योतिषी केवल तत्व की मीमांशा का ही हाल देता है कभी भी ज्योतिषी केवल रत्न पहिने के बाद आराम मिलना नही बोलता है,रत्न एक यंत्र की तरह से है,रत्न का मंत्र रत्न की विद्या की तरह से है और रत्न का कब प्रयोग करना है कैसे प्रयोग करना है कैसे उसे सम्भालना है आदि की जानकारी तंत्र है। केवल रत्न के पहिनने से कोई लाभ नही होता है ऐसा मैने अपने ज्योतिषीय जीवन मे नही देखा है,वैसे अपने श्रंगार के लिये कितनी ही अंगूठिया पहिने रहो हार मे कितने ही रत्न जडवा दो लेकिन इस मान्यता मे रत्न पहिन लिया जाये कि केवल रत्न ही काम करेगा यह असम्भव बात ही मिलती है।मनुष्य जब भ्रम मे चला जाता है तो उसके लिये ध्यान को भंग करना जरूरी होता है यह मनोवैज्ञानिक कारण है,जब किसी के सामने अपनी समस्या को बताया जाता है तो वह समस्या को सुनता है समस्या की शुरुआत का समय सितारों से निकाला जाता है,समस्या के अन्त का समय भी सितारों से निकाला जाता है,अगर सितारा जो गलत फ़र्क दे रहा है तो उस सितारे के लिये रत्न का पहिना जाना उत्तम माना जाता है,सबसे पहले अच्छे रत्न की पहिचान करना जरूरी होता है,इसे कोई जानने वाला ही पहिचान करवा सकता है वैसे आजकल रत्न परीक्षणशाला बन गयी है और रत्न का परीक्षण करने के लिये रत्नो की कठोरता रत्न के अन्दर की कारकत्व वाली स्थिति को बताया जाता है,जब प्रयोगशाला बन गयी है तो प्रयोगशाला से किन किन तत्वो का निराकरण मिलता है उसके बारे मे रत्न का व्यवसाय करने वालो के लिये जानकारी भी मिल गयी है कि मशीन से कितना और क्या बताया जा सकता है,आजकल की वैज्ञानिक सोच को समझने वाले लोग यह भी समझते है कि रत्न जो भूमि के नीचे से प्राप्त होता है की परिस्थितिया भी सर्दी गर्मी बरसात पर निर्भर होकर और जीवांश के मिश्रण से ही बनी होती है मारे शरीर के चारों ओर एक आभामण्डल होता है, जिसे वे AURA कहते हैं। ये आभामण्डल सभी जीवित वस्तुओं के आसपास मौजूद होता है। मनुष्य शरीर में इसका आकार लगभग 2 फीट की दूरी तक रहता है। यह आभामण्डल अपने सम्पर्क में आने वाले सभी लोगों को प्रभावित करता है। हर व्यक्ति का आभामण्डल कुछ लोगों को सकारात्मक और कुछ लोगों को नकारात्मक प्रभाव होता है, जो कि परस्पर एकदूसरे की प्रकृति पर निर्भर होता है। विभिन्न मशीनें इस आभामण्डल को अलग अलग रंगों के रूप में दिखाती हैं । वैज्ञानिकों ने रंगों का विश्लेषण करके पाया कि हर रंग का अपना विशिष्ट कंपन या स्पंदन होता है। यह स्पन्दन हमारे शरीर के आभामण्डल, हमारी भावनाओं, विचारों, कार्यकलाप के तरीके, किसी भी घटना पर हमारी प्रतिक्रिया, हमारी अभिव्यक्तियों आदि को सम्पूर्ण रूप से प्रभावित करते है। वैज्ञानिकों के अनुसार हर रत्न में अलग क्रियात्मक स्पन्दन होता है। इस स्पन्दन के कारण ही रत्न अपना विशिष्ट प्रभाव मानव शरीर पर छोड़ते हैं। आचार्य राजेश
Rattan jyotish
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