मंगलवार, 4 अप्रैल 2017

चंद्र ग्रह पोस्ट नंबर 5मित्रों आज की पोस्ट भी चंद्रमा पर ही है काल पुरुष की कुंडली में चंद्रमा चौथे भाव का स्वामी हैकुंडली का चौथा भाव मानसिक गति का होता है और दूसरा भाव उस गति को लाभान्वित करने के लिये देखा जाता है। मानसिक गति को सोचने के बाद की प्राप्त करने की क्रिया को पंचम से देखा जाता है यानी जो सोचा जाये उसे प्राप्त कर लिया जाये। मानसिक गति को प्राप्त करने के लिये जो भी क्रिया करनी पडती है वह कुंडली के लगन भाव से देखा जाता है या चन्द्रमा के स्थापित स्थान से दसवे भाव के अनुसार समझा जाता है चन्द्रमा पर पडने वाले प्रभाव के साथ साथ चौथे भाव के स्वामी की गति को भी देखा जाता है और चौथे भाव का मालिक अगर चन्द्रमा का शत्रु है या चन्द्रमा से किसी प्रकार से गोचर से शत्रुता रख रहा है या त्रिक भाव से अपनी क्रिया को प्रदर्शित कर रहा है तो वह क्रिया भी प्रयास करने या प्रयास के दौरान अपनी प्रयोग की जाने वाली शक्ति को समझने के लिये मानी जा सकती है।बुद्धि और सोच को एकात्मक करने की क्रिया मे अगर बल की कमी है,बल बुद्धि और सोच मे किसी प्रकार का भ्रम है,बुद्धि बल और सोच मे कोई न कोई नकारात्मक प्रभाव है तो क्रिया पूर्ण नही हो पायेगी। जब कोई भी क्रिया पूरी नही हो पाती है तो बुद्धि पर बल पर और सोच पर इन तीनो के प्रभाव मे एक प्रकार से जल्दी से प्राप्त करने की कोशिश शुरु हो जायेगी और जब अक्समात उस शक्ति को प्राप्त करने की क्रिया होगी तो यह जरूरी है कि उसके लिये पूर्ण रूप से बुद्धि बल शरीर बल और सोचने की शक्ति के बल मे से किसी पर भी या तीनो पर ही केन्द्र बन जायेगा और उस केन्द्र से अगर किसी प्रकार की बाहरी अलावा कारण को उपस्थिति किया जायेगा तो मानसिक क्रिया एक प्रकार से उद्वेग मे चली जायेगी परिणाम में वाणी व्यवहार और कार्य के अन्दर एक झल्लाहट का प्रभाव सामने आने लगेगायह मानसिक गति है और इसे तीन से चार तक पहुंचाने के लिये तीन का भाव जो भावुकता के साथ प्रदर्शन करने से होता है वह भाव भावनाओ को समझने से सात की गति को आठ मे पहुंचाने के लिये सम्बन्धो को शुरु करने से पहले सम्बन्धो के परिणाम को समझना ग्यारह से बारह मे पहुंचाने के लिये मानसिक गति को बजाय हर समय लाभ के सोचने के उसे पराशक्ति के सहारे छोडना सही है। उदाहरण के लिये अगर शुक्र के साथ चन्द्रमा का सम्बन्ध एक बारह का है और वह भी तीन चार मे है तो शुक्र के प्रति चन्द्रमा सोच हमेशा यात्रा आदि के कारको सम्बन्धो मे स्त्री जातको की भावनाओ को देखने मानसिकता मे उन्ही बातो को कहने जो भावना से पूर्ण हो से शुक्र को चन्द्रमा से जोडना बेहतर होगा,इसके लिये जो भी भौतिक सम्पत्तियों में घर मकान जमीन वाहन आदि है उनके लिये व्यवहारिकता मे सोचना और उन पर व्यवहारिकता से अमल करना किसी की भावना को देखकर उसकी सहायता करने से पहले उस भावना को अपनी हैसियत आदि से परखना बजाय रूप के प्रति ध्यान भटकाने के उस रूप को समझकर उसके प्रति प्रतिक्रिया को व्यक्त करना सही होगा.आदि बातो से गति को बदला जा सकता है.इसे अगर तंत्र के रूप मे देखा जाये तो शुक्र चौथे भाव का रहने का भवन है और उस भवन की बाहरी साज सज्जा जो ऊपरी और सबसे नीचे की सज्जा को बनाने मे ध्यान जाता है ,लेकिन उसी प्रकार को अगर बीच के कारको मे पैदा कर दिया जाये और मकान आदि के बाहरी आवरण को अन्दर के आवरण मे स्थापित कर दिया जाये तो उस स्थान की मजबूती और लोगो के लिये मानसिक शांति का कारक बन जायेगा एक महीने के अन्दर चन्द्रमा सवा बारह दिन राहू के घेरे में रहता है और इसी बीच में मनुष्य के हाव भाव चिंता आदि अपनी अपनी राशि के अनुसार बनते रहते है,राहू जिस भाव में होता है उसी प्रकार की चिंता बनी रहती है और जिसके जिस भाव में चन्द्रमा राहू से ग्रसित होता है उसी भाव की चिंता बनाना एक आम बात मानी जाती है.जैसे राहू वृश्चिक मे है इस राशि का भाव या तो अस्पताल होगा या मौत वाले कारण होंगे या इन्फेक्सन होगा या राख से साख निकालने वाली बात होगी किसी प्रकार की खोजबीन में अंदरूनी जानकारी करने वाली बात मानी जायेगी,यह भाव मेष राशि वालो के लिए जब चन्द्रमा राहू के साथ अष्टम में होगा तभी मानी जायेगी,जैसे ही वृष राशि की बात आयेगी उस राशि का चन्द्रमा राहू के साथ सप्तम में होगा और सप्तम के अनुसार नौकरी करना नौकरी से मिलाने वाला लाभ जीवन साथी के मामले में चिंता करना जो भी सलाह देने वाला है उसकी बात का विशवास नहीं करना यहाँ तक की आगे जाने वाले रास्ते में भी कनफ्यूजन को देखना माना जाएगा,कहाँ से कैसे गुप्त धन मिले कैसे गुपचुप रूप से कोइ सम्बन्ध बने आदि की चिंता लगी रहेगी,इसी प्रकार से जैसे ही मिथुन राशि का चन्द्रमा छठे भाव में वृश्चिक के राहू के साथ आयेगा जो भी रोग होंगे वे गुप्त रोगोके साथ इन्फेक्सन वाले रोग होंगे पानी का इन्फेक्सन होगा कर्जा जहां से लिया होगा वह लेने वाला नहीं ले पायेगा जो कर्जा दिया होगा वह भी राख का ढेर दिखेगा जहां नौकरी आदि की जायेगी वह भी गंदा स्थान होगा या कोइ फरेब का कारण होगा नहीं तो किसी कबाड़ के स्टोर वाला ही काम होगा इसके बाद कई प्रकार की अन्य तकलीफे भी देखने को मिलेगी जैसे आपरेशन आदि होना कारण वृश्चिक का राहू इन्फेक्सन भी देता है तो डाक्टरी हथियारों को चलाने का कारण भी पैदा करता है.दुश्मनी भी होगी तो एक दूसरे को समाप्त करने वाली होगी कानूनी लड़ाई भी होगी तो वह राहू के छठे भाव में रहने तक कमजोर ही होगी इसी प्रकार से अन्य कारणों को भी समझा जा सकता है,वही चन्द्रमा जब मेष राशि का कार्य भाव में आयेगा तो भी राहू की नजर में आयेगा वह कार्य भी करने के लिए वही कार्य अधिकतर करेगा की या तो वह बीमार हो जाए या किसी प्रकार की जोखिम के डर से कार्य ही नहीं करे और करे भी तो उसे कोइ न कोइ इस बात का डर बना रहे की कार्य तो किया है लेकिन कार्य फल किस प्रकार का मिलेगा,वही चन्द्रमा जब बारहवे भाव में आयेगा तो भी राहू के घेरे में होगा और उस विचार से यात्रा आदि में किसी प्रकार के जोखिम वाले काम में या किसी प्रकार की नौकरी आदि की योजना में लोन लेने में कर्जा चुकाने में किसी बड़े संस्थान को देखने में वह अपनी गति को प्रदान करेगा उसी प्रकार से जब चन्द्रमा मेष राशि का ही दूसरे भाव में आयेगा तो नगद धन के लिए एक ही चिंता दिमाग में रहेगी की किस प्रकार से मुफ्त का माल मिल जाए या किस प्रकार से जादू यंत्र मन्त्र तंत्र से धन की प्राप्ति हो जाए कोइ ऐसा काम किया जाए जो आगे जाकर लाभ भी दे और मेहनत भी नहीं लगे या धन कमा भी लिया गया है तो राहू की गुप्त नजर से या तो वह चोरी हो जाए या किसी फरेब के शिकार में फंस जाए,वही चन्द्रमा जब चौथे भाव में जाएगा तो मन के अन्दर ज़रा भी जल्दी से कोइ काम करने के लिए दिक्कत का कारण ही जाना जाएगा जो भी पहले से वीरान स्थान है या जो भी पिता माता से समबन्धित स्थान है वे जाकर अपनी युति से बनाए भी जायेंगे और रहने के काम में भी नहीं आयेंगे,इसी प्रकार से माता का स्वास्थ जो पेट वाली बीमारियों से भी जुडा हो सकता है माता के अन्दर पाचन क्रिया का होना भी हो सकता है आदि कारणों के लिए देखा जाएगा अक्सर इस युति में यह भी देखा जाता है की या तो यात्रा के लिए फ्री के साधन मिल जाते है या कबाड़ से जुगाड़ बनाकर यात्रा करनी पड़ती .अव यह समस्या आती है कि कोई सरल उपाय जो सभी के लिये उपयोगी वह कैसे ग्रहों के प्रति बताया जाये ? अक्सर जो समर्थ होते है वे तो अपने अनुसार ग्रहों की पीडा का निवारण कर लेते है या करवा लेते है लेकिन जो असमर्थ होते है वे एक तो परेशान होते है ऊपर से अगर उन्हे कोई रत्न या महंगी पूजा पाठ को बता दिया जाये तो कोढ में खाज जैसी हालत हो जाती है। ज्योतिष की मान्यता के अनुसार इसका क्षेत्र अथाह समुद्र की तरह से है,और मान्यताओं के अनुसार जो वैदिक जमाने से चली आ रही है अगर ग्रहों के उपाय किये जायें तो वे सचमुच में फ़लीभूत होते है। लाल किताब के उपाय भी बहुत प्रभावशाली है लेकिन जय उपाय पूरी तरह कुंडली दिखाकर किसी अच्छे ज्योतिष से पर ही उपाय करें ऐसा ना हो कि एक भाव में ग्रह बैठकर देख कर हिसाब से आपको उपाय करें बिना सोचे-समझे किताब पढ़ कर मित्रोंचन्द्रमा को प्रभावित करने वाले ग्रह बुध गुरु शुक्र शनि राहु केतु मंगल है। बुध अगर चन्द्रमा को बुरा फ़ल देता है तो बुरे लोगों से सम्पर्क बढने लगते है और व्यवसाय आदि के लिये मानसिक कष्ट मिलने लगते है। चन्द्रमा स्त्री ग्रह है और भावुकता के लिये भी जाना जाता है। शिवजी ने चन्द्रमा को सिर पर धारण किया है इसलिये चन्द्रमा के लिये आराध्य देव शिवजी को ही माना जाता है। राहु केतु चन्द्रमा को ग्रहण देने वाले है जब भी राहु के साथ जन्म कुंडली में चन्द्रमा गोचर करता है किसी न किसी प्रकार की भ्रम वाली स्थिति पैदा हो जाती है और वही समय चिन्ता करने वाला समय माना जाता है। कुंडली के जिस भाव में राहु होता है उसी भाव की बाते दिमाग में तैरने लगती है,अक्सर इसी समय में बडी बडी अनहोनी होती देखी गयीं है। केतु के साथ गोचर करने पर एक तरह का नकारात्मक भाव दिमाग में आजाता है किसी भी साधन के लिये लम्बी सोच दिमाग में बन जाती है और जैसे ही चन्द्रमा केतु से दूर होता है वह सोच केवल ख्याली पुलाव की तरह से समाप्त हो जाती है। चन्द्रका का गोचर जैसे ही मंगल के साथ होता है दिमाग में तामसी विचार मंगल के स्थापित होने वाली राशि के अनुसार पनपने लगते है,अगर मंगल वृश्चिक राशि में है तो उस कारक को समाप्त करने के लडाई करने के झगडा करने के मारने के कत्ल करने के विचार दिमाग में आने लगते है,अगर मंगल धनु राशि में होता है तो न्याय कानून विदेश धर्म आदि के लिये उत्तेजना पनपने लगती है,अगर चन्द्रमा गुरु के साथ होता है तो सम्बन्धो के मामले में गुरु के स्थान वाले प्रभाव के अनुसार मिलने लगता है,बुध के साथ होने पर बुध जैसा और बुध के स्थान के अनुसार मिलता रहता है,जन्म के चन्द्रमा पर अगर राहु ग्रहण देने लगा है तो चन्द्रमा के बल को बढाना चाहिये और राहु के बल को समाप्त करना चाहिये। राहु अगर वायु राशि में है तो मन्त्रों के द्वारा जाप करने पर और अग्नि राशि में है तो हवन आदि के द्वारा भूमि राशि में है तो राहु के देवता सरस्वती की मूर्ति की पूजा करने के बाद जो मूर्ति पूजन में विश्वास नही रखते है उनके लिये शिक्षा स्थान या मिलकर इबादत करने वाले स्थान में राहु के रूप को नमन करना चाहिये,पानी वाली राशि में होने पर पानी के किनारे राहु का तर्पण करना चाहिये। केतु के द्वारा चन्द्रमा पर असर होने पर चन्द्रमा के बल को रत्न और वस्तुयों के द्वारा बढाकर केतु के बल को क्षीण करना चाहिये। चन्द्रमा की धातु चांदी है और रत्न मोती तथा चन्द्रमणि है। जडी बूटियों में चन्द्रमा के लिये करोंदा का कांटे वाला पेड माना जाता है।मित्रों अगर आपको मेरी पोस्ट अच्छी लगती है तो आप उसे 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