शुक्रवार, 28 अप्रैल 2017

यही जीवन है :- मैं दीपक निरंतर जल रहा हूं, दूर करता हूँ अँधेरा , सुबह होगी मैं मिटूंगा , ख़ाक में मिल जाऊंगा । सूर्य के उजाले के आगे, मैं कहां टिक पाऊंगा। यही मेरा जीवन है। दूसरों की खातिर,खुद मिट जाना, कुछ भी पाने की चाह किए बगैर, हर पल जलना, अंधेरा दूर करने को। मानव जीवन का चरम और सार्थक रूप मोक्ष है। उसे पाने के लिए व्यक्ति तप या पुरुषार्थ करता है। इसलिए मृत्यु के भय से मुक्त होकर व्यक्ति को अपने जीवन का सर्वोत्तम उपयोग करना चाहिए। जहां पर मै अटकता हूँ तो जिंदगी गम़गीन हो जाती है। हर ओर सन्नाटा सा होता है न कोई आता है न कोई जाता है बस मैं ही ‘अकेला’ चलता चला जा रहा हूं। मंजिलों की दूरी का एहसास है मुझे फिर भी सपनों की दुनिया में खोया सा अपनी धुन में मश़गूल मैं चल रहा हूं। कुछ तो ख़ास है, इस सफ़र में, जिसके पूरे होने का भरोसा, न जाने कहां गुम सा हो गया है, फिर भी एक रा़ग सुन रहा हूं। इस जिंदगी की कठिन डगर पे, मैं ‘अकेला’ चल रहा हूं। कभी यादों की छाँव से खेले कभी पेड़ों से शीतलता का मज़ा लो,तो कभी सूरज में आंखे डालो कभी अपनों को गले लगा लो, कभी संभालो अपने पागल दिल को तो कभी गगन मैं दूर उड़ा दो, प्यार हमेशा दिल मैं पालो कभी रास्ते में यूँ ही मुस्करा भी दो | कभी आँखों से बात भी कर लो , कभी सांसों की ताल सुनो तो कभी प्यार भी आभार जाता दो | कभी सपनों मैं उन्हें निहारो कोई खिलौना हाथ मैं लेकर कभी उन्ही की नींद चुरा लो, उसे ही दिल की बात बता दो| कभी तो अपने दिल को खोलो किसी को अपने राज बता दो, दर्द छिपा है दिल मैं जो भी आँखों के रस्ते उसे बहा दो| जिंदगी भर जाएगी खुशियों से यूँ ही कभी दुश्मन को भी गले लगा लो, प्यार रखो इन आँखों मैं अब तुम दिल मैं भी भगवान् बसा लो| वो तो दर्पण है अतीत का ,जब बचपन की यादें आती,तो मैं बच्चा बन जाता हूँ,माँ के आंचल में खेल रहा, मैं मृग शावक बन जाता हूँ, जब बहुत याद आता बचपन, पुलकित होता मेरा तनमन, मैं फिर से बच्चा बन जाऊं,ऐसा कहता है मेरा मन ना भोजन को समय है, ना सोने को समय है, ना कोई सोच ना कोई उद्देश्य , बस भागते रहना , क्या यही जिन्दगी है , कल ये करना है , कल वो करना है , कल क्या क्या करना है बस सोचते रहना कल – कल के चक्कर में , आज का रोना , क्या यही जिंदगी है , कभी सब भूलकर पैसा कमाने की ललक में , बस सोचते रहना , क्या यही जिन्दगी है ? जीवन भगवान के द्वारा हमें दिया गया सबसे बेहतरीन तोहफा है, लेकिन जब कभी जीवन की सुंदरता के पीछे छुपे बदसूरत चेहरे मन को भटकने पर मजबूर कर देता है I मेरा मानना है कि हर आदमी के अंदर एक और आदमी रहता है जो वाह्य दुनिया से सीधे वार्तालाप नही करता किंतु वाह्य दुनिया के कुछ घटनाओ को बहुत बारीकी से महसूस करता है । हमें बाहर का आदमी तो दिखाई देता है किंतु अन्दर का आदमी दिखाई नहीं देता । बाहर का आदमी भौतिक रूप से विद्यमान रहता है किन्तु अन्दर का आदमी का भौतिक अस्तित्व नहीं होता । उसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है । कुछ संवेदनशील व्यक्तियों का इसका एहसास जरुर हो जाता है कि उसके अन्दर कोई और है जो उसे समय समय पर सचेत करता रहता है । जिन्दगी में बहुत से कार्य ऐसे होते है जिसे हम करना नहीं चाहते किन्तु करना पड़ता है । वह कोई और नहीं अन्दर का आदमी ही होता है जो ऐसा करने से रोकता है । निश्चित रूप से अन्दर का आदमी, बाहर के आदमी से ज्यादा न्यायायिक होता है । कुछ करने से पहले उस आदमी का सहमति ज्यादा जरुरी है जो हमारे अन्दर है । इस उम्मीद में कि, आने वाला कल, आज से बेहतर होगा ,जिए जाता हूँ |मुसीबतों का जंगल कभी तो कटेगा, यह सोच कर हर गम को पिए जाता हूँ |इस उम्मीद में कि आने वाला कल आज से बेहतर होगा,जिए जाता हू |दो पहर का उज्जाला हो या रातों का अंधेरा, बर्फों की गलन हो या गर्मी का थपेड़ा प्यासी धरती हो या सावन का बसेरा, हर वक्त दिल के अरमानों को सिये जाता हू इस उम्मीद में कि.... आने वाला कल आज से बेहतर होगा जिए जाता हू | न जाने कब, वो घड़ी आयेगी इंतज़ार की सारी जख्मों को मिटा जायेगी, एक सुकून मिलेगा, जिंदगी भी खूबसूरत होती है वो सब कुछ मिलेगा जिसकी जरुरत होती है, इन्ही तमन्नाओं के डोर से खुद को बांधे जाता हू, इस उम्मीद में कि..... आने वाला कल आज से बेहतर होगा जिए जाता हू |आखिर कब तक झूलता इन ख़्वाबों के हवा महल पर, यह सोचकर उतर आया एक दिन, हकीक़त की धरातल पर, दिल में आया, जिंदगी का हिसाब कर लू अब तक क्या किया, आगे क्या करना है इसे एक बार याद कर लू यह सोच कर पहुँच गया अतीत के झरोखों में गुजरा हुआ वक्त दिखता है कोरे कागज़ में फिसली हुई उम्र डूब चुकी है सागर में जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा इंतज़ार खा गया, पूरब का सूरज भी अब पश्चिम में आ गया, अब तक तो कुछ कर न पाया आगे क्या कुछ कर पायेंगे ? ज़मीन तो खिसक चुकी है क्या शिखर को छू पायेंगे ? नीव तो टूट चुकी है क्या महल खड़ा कर पायेंगे ? इन्ही प्रश्नों में उलझ कर रह जाता हू आने वाला कल आज से बेहतर होगा यह सोच कर जिए जाता हू | खामोश तन्हा चल रहा है जिन्दगी का सफर । तय हो रही हैं बहुत-सी दूरियां हासिल किए जा रहे हैं नए-नए मुकाम स्थापित हो रही हैं नई-नई मान्यताएं हर दिन , हर पल । यही जिन्दगी है यही जिन्दगी का सफर है जो चल रहा है चुपके - चुपके - आहिस्ता - आहिस्ता । जब जिन्दगी, किसी सीधी सड़क से उतर कर पकदंडी की ओर मुड़ जाती है | लक्ष्य पाने की तमन्ना जब टुकड़ों में बट जाती है, हर सोच व ख्यालात का मतलब, जब विपरीत हो जाता है, वजह इन बदलाओं का जब कलम के रास्ते से कागज़ पर उतर आता है, कविता शायद इसी का नाम होता है |एक व्यक्ति, वातानुकूलित महल में, एक दौलत की ढेर पर बैठ कर, असंतुष्ट नजर आता है |दूसरा इससे से दूर रहकर भी, संतुष्ट नजर आता है | दृष्टिकोण के इन बिंदुओं के बीच, सच्चाई को दर्शाना, कविता कुछ और नहीं शायद इसी का नाम होता है | जिन्दगी छोटी है इसके बीच में छुपी जवानी, और भी छोटी है | यह कब शुरू होकर कब ख़त्म हो जाती है एक अतृप्त प्रश्न है यह कभी बदसूरत है तो कभी सुहानी है, समय को मापता उम्र जिन्दगी की कहानी है | बचपन, खेल-खेल में निकल जाता है, जवानी, मदहोशी में फिसल जाता है बुढापा, बचपन और जवानी के पश्चाताप में जल जाता है, यह छोटी सी जिन्दगी तीन खण्डों में बट जाती है तमन्नाओं की तादाद बड़ी है पर जिन्दगी बहुत छोटी है | क्यों बहकते हो भ्रम की हवाओं में ? क्यों जाते हो अंधेरी गुफाओं में ? क्यों भटकते हो कोरी कल्पनाओं में जिन्दगी अनंत नहीं चाँद साँसों की एक लड़ी है यह कोई समंदर नहीं एक छोटी सी नदी है | रास्ते लम्बे किन्तु जिन्दगी छोटी है | जीवन स्वयं व्यापार बना हैं मोल - तोल का भाव बना हैं क्रय - विक्रय जो करना चाहो इसके वास्ते संसार बना हैं फिर भी कुछ अनमोल है इसमें जिसका कोई मोल नहीं भक्त की भक्ती हो हो साकी की हाला दाम से नही मिलती सम्मान से मिलती मधुशाला। यह एक बेहतरीन कविता किसी कवि ने आजकल के भागती-दौड़ती जिंदगी को लेकर लिखी है. ज़िन्दगी है छोटी, हर पल में खुश रहो , ऑफिस में भी खुश रहो और घर में खुश भी रहो । आज नहीं है,पनीर दाल में ही खुश रहो। आज जिम जाने का समय नहीं तो पैदल चल के ही खुश रहो । आज दोस्तों का साथ नहीं, टीवी देख के ही खुश रहो । घर जा नहीं सकते, फोन कर के ही खुश रहो। आज कोई नाराज़ है, उसके इस अन्दाज़ में भी खुश रहो । जिसे देख नहीं सकते, उसकी आवाज़ में ही खुश रहो।जिसे पा नहीं सकते, उसकी याद में ही खुश रहो। लेपटोप न मिला तो क्या, डेस्कटोप में ही खुश रहो। बीता हुआ कल जा चुका है, उससे मीठी-मीठी यादें हैं, उनमें ही खुश रहो। आने वाले पल का पता नहीं … सपनों में ही खुश रहो। हँसते-हँसते ये पल बीतेंगे, आज में ही खुश रहो। ज़िन्दगी है छोटी, हर पल में खुश रहो … यें ज़िन्दगी भी अजीब सी हैं , हर मोड़ पर अपना रंग बदल देती हैंकोई अपने बेगाने हो जाते हैं ,तो कोई पराया अपना हो जाता हैंयें ज़िन्दगी भी अजीब सी हैं , हर मोड़ पर कुछ नया सिखाती हैं कभी खुशिया भर -भर के आती है, तो कभी-कभी दुःख के बादल हर रोज बरसते हैं यें ज़िन्दगी भी अजीब सी हैं ,हरमोड़ पर एक नया मुकाम बनाती हैंइस ज़िन्दगी से हर रोज किसी न किसी को शिकायत होती है ,तो कोई इसकी प्रशंसा करता हैं यें ज़िन्दगी कभी खामोश रहती हैं ,तो कभी-कभी बिन कहे कुछ कह जाती हैं यें ज़िन्दगी दुश्मनों के साथ रहकर, अपनों को धोका दे जाती हैं यें ज़िन्दगी भी अजीब सी हैं , हर मोड़ पर एक नया रंग दे जाती हैं

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