बुधवार, 29 नवंबर 2017

गंड मूल का सच ओर वैज्ञानिक आधार

वैसे तो बच्चे का जन्म किसी के भी घर में खुशियों को लाने वाला होता है, लेकिन अगर बच्चे का जन्म ‘गण्ड-मूल नक्षत्र’ में हुआ हो; तो लोगों की खुशियाँ ये सुनते ही काफ़ूर हो जाती हैं। क्या होते हैं गण्ड-मूल नक्षत्र? इनकी संख्या कितनी होती है? क्या ये वाकई इतने खतरनाक होते हैं? आज तक आप इन्हीं सब सवालों से जूझते आये होंगे। आइये, आज हम इन्हीं के बारे में बात करते हैं संधि क्षेत्र हमेशा नाजुक और अशुभ होते हैं। जैसे मार् इसी प्रकार गंड-मूल नक्षत्र भी संधि क्षेत्र में आने से नाजुक और दुष्परिणाम देने वाले होते हैं। शास्त्रों के अनुसार इन नक्षत्रों में जन्म लेने वाले बच्चों के सुखमय भविष्य के लिए इन नक्षत्रों की शांति जरूरी है। मूल शांति कराने से इनके कारण लगने वाले दोष शांत हो जाते हैं।
क्या हैं गंड मूल नक्षत्र
ये आप भी जानते हैं कि नक्षत्रों की संख्या 27 होती है; इनमें से ही 6 नक्षत्र गण्ड-मूल नक्षत्र माने जाते हैं, जो कि अश्विनी, आश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मूल और रेवती हैं। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार इन 6 गण्ड-मूल नक्षत्रों में से किसी एक नक्षत्र में जन्म लेने पर जातक को ‘गण्ड-मूल दोष’ से युक्त मान लिया जाता है; जबकि सच्चाई कुछ और है, जिससे हर कोई नावाकिफ़ है। इसी बात का फ़ायदा धूर्त ज्योतिषी और ढोंगी पण्डित उठाते हैं।सच तो ये है कि ये नक्षत्र पूरी तरह से खराब नहीं होते, बल्कि इनका एक छोटा सा अंश ही दोषयुक्त होता है। संधि क्षेत्र हमेशा नाजुक और अशुभ होते हैं। जैसे मार्ग संधि (चौराहे-तिराहे), दिन-रात का संधि काल, ऋतु, लग्र और ग्रह के संधि स्थल आदि को शुभ नहीं मानते हैं। इसी प्रकार गंड-मूल नक्षत्र भी संधि क्षेत्र में आने से नाजुक और दुष्परिणाम देने वाले होते हैं। शास्त्रों के अनुसार इन नक्षत्रों में जन्म लेने वाले बच्चों के सुखमय भविष्य  लिए इन नक्षत्रों की शांति जरूरी है। मूल शांति कराने से इनके कारण लगने वाले दोष शांत हो जाते हैं।राशि और नक्षत्र दोनों जब एक स्थान पर समाप्त होते हैं तब यह स्थित गण्ड नक्षत्र कहलाती है और इस समापन स्थिति से ही नवीन राशि और नक्षत्र के प्रारम्भ होने के कारण ही यह नक्षत्र मूल संज्ञक नक्षत्र कहलाते हैं।राशि चक्र में ऐसी तीन स्थितियां होती हैं जब राशि और नक्षत्र दोनों एक साथ समाप्त होते हैं। यह स्थिति ‘गंड नक्षत्र’ कहलाती है। इन्हीं समाप्ति स्थल से नई राशि और नक्षत्र की शुरूआत होती है। लिहाजा इन्हें ‘मूल नक्षत्र’ कहते हैं। इस तरह तीन नक्षत्र गंड और तीन नक्षत्र मूल कहलाते हैं। गंड और मूल नक्षत्रों को इस प्रकार देखा जा सकता है।
कर्क राशि जल राशि व अश्लेषा नक्षत्र एक साथ समाप्त होते हैं। यहीं से मघा नक्षत्र और सिंह राशिअग्न का उद्गम होता है। लिहाजा अश्लेषा गंड और मघा मूल नक्षत्र है।
वृश्चिक राशि में ज्येष्ठा नक्षत्र एक साथ समाप्त होते हैं, यहीं से मूल नक्षत्र और धनु राशि की शुरूआत होने के कारण ज्येष्ठा ‘गंड’ और ‘मूल’ का नक्षत्र होगा।
मीन राशि और रेवती नक्षत्र का एक साथ समाप्त होकर यहीं से मेष राशि व अश्विनी नक्षत्र की शुरूआत होने से रेवती, गंड तथा अश्विनी मूल नक्षत्र कहलाते हैं।
उक्त तीन गंड नक्षत्र अश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती का स्वामी ग्रह बुध है तथा तीन मूल नक्षत्र मघा, मूल व अश्विनी का स्वामी ग्रह केतु हैसच तो ये है कि ये नक्षत्र पूरी तरह से खराब नहीं होते, बल्कि इनका एक छोटा सा अंश ही दोषयुक्त होता है। अश्विनी, मघा और मूल की प्रारम्भिक 2 घटी तथा रेवती, आश्लेषा और ज्येष्ठा की अन्तिम 2 घटी ही दोषयुक्त होती हैं। चूँकि 1 घटी 24 मिनट की होती है, इसलिए प्रत्येक नक्षत्र में 48 मिनट और इनकी सन्धि के दौरान कुल 96 मिनट अर्थात्‌ 1 घण्टा 36 मिनट ही दोषपूर्ण होते हैं। जबकि  कुछ पण्डित लोग दोनों नक्षत्रों के दौरान अर्थात्‌ पूरे ्2 दिनों (48 घण्टे) के दौरान हुये जन्म को खराब बता कर लोगों को डराते हैं और पूजा-पाठ का जाल फ़ैलाकर उन्हें लूटते हैं।ज्योतिष में कुछ विशेष आधारों पर राशि और नक्षत्र को तीन-२ चक्रों में विभाजित किया गया है। ये चक्र एक विशेष सन्धि-स्थल पर आपस में जुड़े होते हैं। इस तरह इन तीन सन्धि-स्थलों पर जो 6 नक्षत्र आपस में जुड़ते हैं, उन्हें ही ‘गण्ड-मूल नक्षत्र’ कहा जाता है। चूँकि सन्धि या संक्रमण काल को सामान्य रूप से अशुभ या कष्टकारक माना जाता है, अत: ऐसा माना जाता है कि गण्ड-मूल दोष में उत्पन्न बच्चे पर कुछ ना कुछ नकारात्मक प्रभाव अवश्य पड़ता है।चूँकि नक्षत्र का प्रभाव नकारात्मक है, इसलिए 27 दिन पश्चात्‌ पुन: उसी नक्षत्र के आने पर किसी विद्वान ब्राह्मण को बुलवा कर आप् शान्ति के लिए पूजा-पाठ, दान-दक्षिणा आदि करने में कोई बुराई नहीं है; परन्तु 27 दिन तक पिता को अपने बच्चे का मुँह ना देखने देना एक बेकार की बात ही है। लेकिन एक बात का ध्यान रखें कि ये शान्ति वगैरह तभी करवायें, जब बच्चे का जन्म उस विशेष 2 घटी में ही हुआ हो मतलव जल और आग का एक साथ मिलने का समय । वरना मेरे इस लेख को लिखने का कोई फ़ायदा नहीं होगा।शतपथ ब्राह्मण और तैत्तरीय ब्राह्मण नामक ग्रंथ में बताया गया है कि कुछ स्‍थितियों में यह दोष अपने आप समाप्त हो जाता है और इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति खुद के लिए भाग्यशाली होते हैं।व्यक्ति का जन्म अगर वृष, सिंह, वृश्चिक अथवा कुंभ लग्न में हो, तब मूल नक्षत्र में जन्म होने पर भी इसका अशुभ फल प्राप्त नहीं होता है।
गंडमूल नक्षत्र में जन्म लेने पर भी अगर लड़के का जन्म रात में और लड़की का जन्म दिन में हो, तब मूल नक्षत्र का प्रभाव समाप्त हो जाता है। गंडमूल नक्षत्र मघा के चौथे चरण में जन्म लेने वाला बच्चा धनवान और भाग्यशाली होतागंडमूल दोष 28 साल बाद अपने आप समाप्त हो जाता है। ऐसा हमारे जातक शास्त्रों में लिखा है E3। है।Gandmool गंडमूल दोष के बारे में यह article यदि आपको पसंद आया हो, तो इसे like और दूसरों को share करें। आप Comment box में Comment जरुर करें, ताकि यह जानकारी और लोगों तक भी पहुंच सके।
चलते-२ एक बात अवश्य कहूँगा कि बेवजह घबरायें नहीं। आपका बच्चा भी अन्य बच्चों की तरह भाग्यशाली है। उसका भविष्य उसकी कुण्डली के अन्य योगों पर निर्भर करेगा, ना कि केवल ‘गण्ड-मूल दोष’ में बँधकर रह जायेगा। हमेशा की तरह खुश रहिये।


2 टिप्‍पणियां:

  1. Acharya ji mera putra 20.06.2017 ko 4.23 am oe hua hai, sabke anusar ye mool me pauda hua hai, mujhe kya karna chahiye kripya bataiye

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    1. पहले तो आप को नऐ मेहमान के आने की वोहोत वघाई हो आप अपने बेटे से मूली का दान करें पूरी जानकारी के लिए आप मेरे नंबरों से मुझसे बात कर सकते हैं 07597718725-09414481324

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